\id ZEC उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h ज़करियाह \toc1 ज़करियाह \toc2 ज़करियाह \toc3 ज़क \mt1 ज़करियाह \c 1 \s1 तौबा करो! \p \v 1 फ़ारस के बादशाह दारा की हुकूमत के दूसरे साल और आठवें महीने \f + \fr 1:1 \ft अक्तूबर ता नवंबर। \f* में रब का कलाम नबी ज़करियाह बिन बरकियाह बिन इद्दू पर नाज़िल हुआ, \p \v 2-3 “लोगों से कह कि रब तुम्हारे बापदादा से निहायत ही नाराज़ था। अब रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है कि मेरे पास वापस आओ तो मैं भी तुम्हारे पास वापस आऊँगा। \v 4 अपने बापदादा की मानिंद न हो जिन्होंने न मेरी सुनी, न मेरी तरफ़ तवज्जुह दी, गो मैंने उस वक़्त के नबियों की मारिफ़त उन्हें आगाह किया था कि अपनी बुरी राहों और शरीर हरकतों से बाज़ आओ। \v 5 अब तुम्हारे बापदादा कहाँ हैं? और क्या नबी अबद तक ज़िंदा रहते हैं? दोनों बहुत देर हुई वफ़ात पा चुके हैं। \f + \fr 1:5 \ft ‘दोनों . . . चुके हैं’ इज़ाफ़ा है ताकि मतलब साफ़ हो। \f* \v 6 लेकिन तुम्हारे बापदादा के बारे में जितनी भी बातें और फ़ैसले मैंने अपने ख़ादिमों यानी नबियों की मारिफ़त फ़रमाए वह सब पूरे हुए। तब उन्होंने तौबा करके इक़रार किया, ‘रब्बुल-अफ़वाज ने हमारी बुरी राहों और हरकतों के सबब से वह कुछ किया है जो उसने करने को कहा था’।” \s1 ज़करियाह रोया देखता है \p \v 7 तीन माह के बाद रब ने नबी ज़करियाह बिन बरकियाह बिन इद्दू पर एक और कलाम नाज़िल किया। सबात यानी 11वें महीने का 24वाँ दिन \f + \fr 1:7 \ft 15 फ़रवरी। \f* था। \s1 पहली रोया : घुड़सवार \p \v 8 उस रात मैंने रोया में एक आदमी को सुर्ख़ रंग के घोड़े पर सवार देखा। वह घाटी के दरमियान उगनेवाली मेहँदी की झाड़ियों के बीच में रुका हुआ था। उसके पीछे सुर्ख़, भूरे और सफ़ेद रंग के घोड़े खड़े थे। उन पर भी आदमी बैठे थे। \f + \fr 1:8 \ft ‘उन . . . बैठे थे’ इज़ाफ़ा है ताकि मतलब साफ़ हो। \f* \v 9 जो फ़रिश्ता मुझसे बात कर रहा था उससे मैंने पूछा, “मेरे आक़ा, इन घुड़सवारों से क्या मुराद है?” उसने जवाब दिया, “मैं तुझे उनका मतलब दिखाता हूँ।” \v 10 तब मेहँदी की झाड़ियों में रुके हुए आदमी ने जवाब दिया, “यह वह हैं जिन्हें रब ने पूरी दुनिया की गश्त करने के लिए भेजा है।” \v 11 अब दीगर घुड़सवार रब के उस फ़रिश्ते के पास आए जो मेहँदी की झाड़ियों के दरमियान रुका हुआ था। उन्होंने इत्तला दी, “हमने दुनिया की गश्त लगाई तो मालूम हुआ कि पूरी दुनिया में अमनो-अमान है।” \v 12 तब रब का फ़रिश्ता बोला, “ऐ रब्बुल-अफ़वाज, अब तू 70 सालों से यरूशलम और यहूदाह की आबादियों से नाराज़ रहा है। तू कब तक उन पर रहम न करेगा?” \p \v 13 जवाब में रब ने मेरे साथ गुफ़्तगू करनेवाले फ़रिश्ते से नरम और तसल्ली देनेवाली बातें कीं। \v 14 फ़रिश्ता दुबारा मुझसे मुख़ातिब हुआ, “एलान कर कि रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘मैं बड़ी ग़ैरत से यरूशलम और कोहे-सिय्यून के लिए लड़ूँगा। \v 15 मैं उन दीगर अक़वाम से निहायत नाराज़ हूँ जो इस वक़्त अपने आपको महफ़ूज़ समझती हैं। बेशक मैं अपनी क़ौम से कुछ नाराज़ था, लेकिन इन दीगर क़ौमों ने उसे हद से ज़्यादा तबाह कर दिया है। यह कभी भी मेरा मक़सद नहीं था।’ \v 16 रब फ़रमाता है, ‘अब मैं दुबारा यरूशलम की तरफ़ मायल होकर उस पर रहम करूँगा। मेरा घर नए सिरे से उसमें तामीर हो जाएगा बल्कि पूरे शहर की पैमाइश की जाएगी ताकि उसे दुबारा तामीर किया जाए।’ यह रब्बुल-अफ़वाज का फ़रमान है। \p \v 17 मज़ीद एलान कर कि रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘मेरे शहरों में दुबारा कसरत का माल पाया जाएगा। रब दुबारा कोहे-सिय्यून को तसल्ली देगा, दुबारा यरूशलम को चुन लेगा’।” \s1 दूसरी रोया : सींग और कारीगर \p \v 18 मैंने अपनी निगाह उठाई तो क्या देखता हूँ कि चार सींग मेरे सामने हैं। \v 19 जो फ़रिश्ता मुझसे बात कर रहा था उससे मैंने पूछा, “इनका क्या मतलब है?” उसने जवाब दिया, “यह वह सींग हैं जिन्होंने यहूदाह और इसराईल को यरूशलम समेत मुंतशिर कर दिया था।” \p \v 20 फिर रब ने मुझे चार कारीगर दिखाए। \v 21 मैंने सवाल किया, “यह क्या करने आ रहे हैं?” उसने जवाब दिया, “मज़कूरा सींगों ने यहूदाह को इतने ज़ोर से मुंतशिर कर दिया कि आख़िरकार एक भी अपना सर नहीं उठा सका। लेकिन अब यह कारीगर उनमें दहशत फैलाने आए हैं। यह उन क़ौमों के सींगों को ख़ाक में मिला देंगे जिन्होंने उनसे यहूदाह के बाशिंदों को मुंतशिर कर दिया था।” \c 2 \s1 तीसरी रोया : आदमी यरूशलम की पैमाइश करता है \p \v 1 मैंने अपनी नज़र दुबारा उठाई तो एक आदमी को देखा जिसके हाथ में फ़ीता था। \v 2 मैंने पूछा, “आप कहाँ जा रहे हैं?” उसने जवाब दिया, “यरूशलम की पैमाइश करने जा रहा हूँ। मैं मालूम करना चाहता हूँ कि शहर की लंबाई और चौड़ाई कितनी होनी चाहिए।” \v 3 तब वह फ़रिश्ता रवाना हुआ जो अब तक मुझसे बात कर रहा था। लेकिन रास्ते में एक और फ़रिश्ता उससे मिलने आया। \v 4 इस दूसरे फ़रिश्ते ने कहा, “भागकर पैमाइश करनेवाले नौजवान को बता दे, ‘इनसानो-हैवान की इतनी बड़ी तादाद होगी कि आइंदा यरूशलम की फ़सील नहीं होगी। \v 5 रब फ़रमाता है कि उस वक़्त मैं आग की चारदीवारी बनकर उस की हिफ़ाज़त करूँगा, मैं उसके दरमियान रहकर उस की इज़्ज़तो-जलाल का बाइस हूँगा’।” \p \v 6 रब फ़रमाता है, “उठो, उठो! शिमाली मुल्क से भाग आओ। क्योंकि मैंने ख़ुद तुम्हें चारों तरफ़ मुंतशिर कर दिया था। \v 7 लेकिन अब मैं फ़रमाता हूँ कि वहाँ से निकल आओ। सिय्यून के जितने लोग बाबल \f + \fr 2:7 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : बाबल बेटी। \f* में रहते हैं वहाँ से बच निकलें!” \v 8 क्योंकि रब्बुल-अफ़वाज जिसने मुझे भेजा वह उन क़ौमों के बारे में जिन्होंने तुम्हें लूट लिया फ़रमाता है, “जो तुम्हें छेड़े वह मेरी आँख की पुतली को छेड़ेगा। \v 9 इसलिए यक़ीन करो कि मैं अपना हाथ उनके ख़िलाफ़ उठाऊँगा। उनके अपने ग़ुलाम उन्हें लूट लेंगे।” \p तब तुम जान लोगे कि रब्बुल-अफ़वाज ने मुझे भेजा है। \v 10 रब फ़रमाता है, “ऐ सिय्यून बेटी, ख़ुशी के नारे लगा! क्योंकि मैं आ रहा हूँ, मैं तेरे दरमियान सुकूनत करूँगा। \v 11 उस दिन बहुत-सी अक़वाम मेरे साथ पैवस्त होकर मेरी क़ौम का हिस्सा बन जाएँगी। मैं ख़ुद तेरे दरमियान सुकूनत करूँगा।” \p तब तू जान लेगी कि रब्बुल-अफ़वाज ने मुझे तेरे पास भेजा है। \p \v 12 मुक़द्दस मुल्क में यहूदाह रब की मौरूसी ज़मीन बनेगा, और वह यरूशलम को दुबारा चुन लेगा। \v 13 तमाम इनसान रब के सामने ख़ामोश हो जाएँ, क्योंकि वह उठकर अपनी मुक़द्दस सुकूनतगाह से निकल आया है। \c 3 \s1 चौथी रोया : इमामे-आज़म यशुअ \p \v 1 इसके बाद रब ने मुझे रोया में इमामे-आज़म यशुअ को दिखाया। वह रब के फ़रिश्ते के सामने खड़ा था, और इबलीस उस पर इलज़ाम लगाने के लिए उसके दाएँ हाथ खड़ा हो गया था। \v 2 रब ने इबलीस से फ़रमाया, “ऐ इबलीस, रब तुझे मलामत करता है! रब जिसने यरूशलम को चुन लिया वह तुझे डाँटता है! यह आदमी तो बाल बाल बच गया है, उस लकड़ी की तरह जो भड़कती आग में से छीन ली गई है।” \p \v 3 यशुअ गंदे कपड़े पहने हुए फ़रिश्ते के सामने खड़ा था। \v 4 जो अफ़राद साथ खड़े थे उन्हें फ़रिश्ते ने हुक्म दिया, “उसके मैले कपड़े उतार दो।” फिर यशुअ से मुख़ातिब हुआ, “देख, मैंने तेरा क़ुसूर तुझसे दूर कर दिया है, और अब मैं तुझे शानदार सफ़ेद कपड़े पहना देता हूँ।” \v 5 मैंने कहा, “वह उसके सर पर पाक-साफ़ पगड़ी बाँधें!” चुनाँचे उन्होंने यशुअ के सर पर पाक-साफ़ पगड़ी बाँधकर उसे नए कपड़े पहनाए। रब का फ़रिश्ता साथ खड़ा रहा। \v 6 यशुअ से उसने बड़ी संजीदगी से कहा, \p \v 7 “रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘मेरी राहों पर चलकर मेरे अहकाम पर अमल कर तो तू मेरे घर की राहनुमाई और उस की बारगाहों की देख-भाल करेगा। फिर मैं तेरे लिए यहाँ आने और हाज़िरीन में खड़े होने का रास्ता क़ायम रखूँगा। \p \v 8 ऐ इमामे-आज़म यशुअ, सुन! तू और तेरे सामने बैठे तेरे इमाम भाई मिलकर उस वक़्त की तरफ़ इशारा हैं जब मैं अपने ख़ादिम को जो कोंपल कहलाता है आने दूँगा। \v 9 देखो वह जौहर जो मैंने यशुअ के सामने रखा है। उस एक ही पत्थर पर सात आँखें हैं।’ रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘मैं उस पर कतबा कंदा करके एक ही दिन में इस मुल्क का गुनाह मिटा दूँगा। \v 10 उस दिन तुम एक दूसरे को अपनी अंगूर की बेल और अपने अंजीर के दरख़्त के साये में बैठने की दावत दोगे।’ यह रब्बुल-अफ़वाज का फ़रमान है।” \c 4 \s1 पाँचवीं रोया : सोने का शमादान और ज़ैतून के दरख़्त \p \v 1 जिस फ़रिश्ते ने मुझसे बात की थी वह अब मेरे पास वापस आया। उसने मुझे यों जगा दिया जिस तरह गहरी नींद सोनेवाले को जगाया जाता है। \v 2 उसने पूछा, “तुझे क्या नज़र आता है?” मैंने जवाब दिया, “ख़ालिस सोने का शमादान जिस पर तेल का प्याला और सात चराग़ हैं। हर चराग़ के सात मुँह हैं। \v 3 ज़ैतून के दो दरख़्त भी दिखाई देते हैं। एक दरख़्त तेल के प्याले के दाईं तरफ़ और दूसरा उसके बाईं तरफ़ है। \v 4 लेकिन मेरे आक़ा, इन चीज़ों का मतलब क्या है?” \p \v 5 फ़रिश्ता बोला, “क्या यह तुझे मालूम नहीं?” मैंने जवाब दिया, “नहीं, मेरे आक़ा।” \p \v 6 फ़रिश्ते ने मुझसे कहा, “ज़रुब्बाबल के लिए रब का यह पैग़ाम है, \p ‘रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है कि तू न अपनी ताक़त, न अपनी क़ुव्वत से बल्कि मेरे रूह से ही कामयाब होगा।’ \v 7 क्या रास्ते में बड़ा पहाड़ हायल है? ज़रुब्बाबल के सामने वह हमवार मैदान बन जाएगा। और जब ज़रुब्बाबल रब के घर का आख़िरी पत्थर लगाएगा तो हाज़िरीन पुकार उठेंगे, ‘मुबारक हो! मुबारक हो’!” \p \v 8 रब का कलाम एक बार फिर मुझ पर नाज़िल हुआ, \v 9 “ज़रुब्बाबल के हाथों ने इस घर की बुनियाद डाली, और उसी के हाथ उसे तकमील तक पहुँचाएँगे। तब तू जान लेगा कि रब्बुल-अफ़वाज ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। \v 10 गो तामीर के आग़ाज़ में बहुत कम नज़र आता है तो भी उस पर हिक़ारत की निगाह न डालो। क्योंकि लोग ख़ुशी मनाएँगे जब ज़रुब्बाबल के हाथ में साहूल देखेंगे। (मज़कूरा सात चराग़ रब की आँखें हैं जो पूरी दुनिया की गश्त लगाती रहती हैं)।” \p \v 11 मैंने मज़ीद पूछा, “शमादान के दाएँ बाएँ के ज़ैतून के दो दरख़्तों से क्या मुराद है? \v 12 यहाँ सोने के दो पायप भी नज़र आते हैं जिनसे ज़ैतून का सुनहरा तेल बह निकलता है। ज़ैतून की जो दो टहनियाँ उनके साथ हैं उनका मतलब क्या है?” \p \v 13 फ़रिश्ते ने कहा, “क्या तू यह नहीं जानता?” मैं बोला, “नहीं, मेरे आक़ा।” \v 14 तब उसने फ़रमाया, “यह वह दो मसह किए हुए आदमी हैं जो पूरी दुनिया के मालिक के हुज़ूर खड़े होते हैं।” \c 5 \s1 छटी रोया : उड़नेवाला तूमार \p \v 1 मैंने एक बार फिर अपनी नज़र उठाई तो एक उड़ता हुआ तूमार देखा। \v 2 फ़रिश्ते ने पूछा, “तुझे क्या नज़र आता है?” मैंने जवाब दिया, “एक उड़ता हुआ तूमार जो 30 फ़ुट लंबा और 15 फ़ुट चौड़ा है।” \v 3 वह बोला, “इससे मुराद एक लानत है जो पूरे मुल्क पर भेजी जाएगी। इस तूमार के एक तरफ़ लिखा है कि हर चोर को मिटा दिया जाएगा और दूसरी तरफ़ यह कि झूटी क़सम खानेवाले को नेस्त किया जाएगा। \v 4 रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘मैं यह भेजूँगा तो चोर और मेरे नाम की झूटी क़सम खानेवाले के घर में लानत दाख़िल होगी और उसके बीच में रहकर उसे लकड़ी और पत्थर समेत तबाह कर देगी’।” \s1 सातवीं रोया : टोकरी में औरत \p \v 5 जो फ़रिश्ता मुझसे बात कर रहा था उसने आकर मुझसे कहा, “अपनी निगाह उठाकर वह देख जो निकलकर आ रहा है।” \v 6 मैंने पूछा, “यह क्या है?” उसने जवाब दिया, “यह अनाज की पैमाइश करने की टोकरी है। यह पूरे मुल्क में नज़र आती है।” \v 7 टोकरी पर सीसे का ढकना था। अब वह खुल गया, और टोकरी में बैठी हुई एक औरत दिखाई दी। \v 8 फ़रिश्ता बोला, “इस औरत से मुराद बेदीनी है।” उसने औरत को धक्का देकर टोकरी में वापस कर दिया और सीसे का ढकना ज़ोर से बंद कर दिया। \p \v 9 मैंने दुबारा अपनी नज़र उठाई तो दो औरतों को देखा। उनके लक़लक़ के-से पर थे, और उड़ते वक़्त हवा उनके साथ थी। टोकरी के पास पहुँचकर वह उसे उठाकर आसमानो-ज़मीन के दरमियान ले गईं। \v 10 जो फ़रिश्ता मुझसे गुफ़्तगू कर रहा था उससे मैंने पूछा, “औरतें टोकरी को किधर ले जा रही हैं?” \v 11 उसने जवाब दिया, “मुल्के-बाबल में। वहाँ वह उसके लिए घर बना देंगी। जब घर तैयार होगा तो टोकरी वहाँ उस की अपनी जगह पर रखी जाएगी।” \c 6 \s1 चार रथ \p \v 1 मैंने फिर अपनी निगाह उठाई तो क्या देखता हूँ कि चार रथ पीतल के दो पहाड़ों के बीच में से निकल रहे हैं। \v 2 पहले रथ के घोड़े सुर्ख़, दूसरे के स्याह, \v 3 तीसरे के सफ़ेद और चौथे के धब्बेदार थे। सब ताक़तवर थे। \p \v 4 जो फ़रिश्ता मुझसे बात कर रहा था उससे मैंने सवाल किया, “मेरे आक़ा, इनका क्या मतलब है?” \v 5 उसने जवाब दिया, “यह आसमान की चार रूहें \f + \fr 6:5 \ft या हवाएँ। \f* हैं। पहले यह पूरी दुनिया के मालिक के हुज़ूर खड़ी थीं, लेकिन अब वहाँ से निकल रही हैं। \v 6 स्याह घोड़ों का रथ शिमाली मुल्क की तरफ़ जा रहा है, सफ़ेद घोड़ों का मग़रिब की तरफ़, और धब्बेदार घोड़ों का जुनूब की तरफ़।” \p \v 7 यह ताक़तवर घोड़े बड़ी बेताबी से इस इंतज़ार में थे कि दुनिया की गश्त करें। फिर उसने हुक्म दिया, “चलो, दुनिया की गश्त करो।” वह फ़ौरन निकलकर दुनिया की गश्त करने लगे। \v 8 फ़रिश्ते ने मुझे आवाज़ देकर कहा, “उन घोड़ों पर ख़ास ध्यान दो जो शिमाली मुल्क की तरफ़ बढ़ रहे हैं। यह उस मुल्क पर मेरा ग़ुस्सा उतारेंगे।” \s1 इसराईल का आनेवाला बादशाह \p \v 9 रब का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, \v 10 “आज ही यूसियाह बिन सफ़नियाह के घर में जा! वहाँ तेरी मुलाक़ात बाबल में जिलावतन किए हुए इसराईलियों ख़लदी, तूबियाह और यदायाह से होगी जो इस वक़्त वहाँ पहुँच चुके हैं। जो हदिये वह अपने साथ लाए हैं उन्हें क़बूल कर। \v 11 उनकी यह सोना-चाँदी लेकर ताज बना ले, फिर ताज को इमामे-आज़म यशुअ बिन यहूसदक़ के सर पर रखकर \v 12 उसे बता, ‘रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है कि एक आदमी आनेवाला है जिसका नाम कोंपल है। उसके साये में बहुत कोंपलें फूट निकलेंगी, और वह रब का घर तामीर करेगा। \v 13 हाँ, वही रब का घर बनाएगा और शानो-शौकत के साथ तख़्त पर बैठकर हुकूमत करेगा। वह इमाम की हैसियत से भी तख़्त पर बैठेगा, और दोनों ओहदों में इत्तफ़ाक़ और सलामती होगी।’ \v 14 ताज को हीलम, तूबियाह, यदायाह और हेन बिन सफ़नियाह की याद में रब के घर में महफ़ूज़ रखा जाए। \v 15 लोग दूर-दराज़ इलाक़ों से आकर रब का घर तामीर करने में मदद करेंगे।” \p तब तुम जान लोगे कि रब्बुल-अफ़वाज ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। अगर तुम ध्यान से रब अपने ख़ुदा की सुनो तो यह सब कुछ पूरा हो जाएगा। \c 7 \s1 तुम मेरी सुनने से इनकार करते हो \p \v 1 दारा बादशाह की हुकूमत के चौथे साल में रब ज़करियाह से हमकलाम हुआ। किसलेव यानी नवें महीने का चौथा दिन \f + \fr 7:1 \ft 4 दिसंबर। \f* था। \v 2 उस वक़्त बैतेल शहर ने सराज़र और रजम-मलिक को उसके आदमियों समेत यरूशलम भेजा था ताकि रब से इलतमास करें। \v 3 साथ साथ उन्हें रब्बुल-अफ़वाज के घर के इमामों को यह सवाल पेश करना था, “अब हम कई साल से पाँचवें महीने में रोज़ा रखकर रब के घर की तबाही पर मातम करते आए हैं। क्या लाज़िम है कि हम यह दस्तूर आइंदा भी जारी रखें?” \p \v 4 तब मुझे रब्बुल-अफ़वाज से जवाब मिला, \v 5 “मुल्क के तमाम बाशिंदों और इमामों से कह, ‘बेशक तुम 70 साल से पाँचवें और सातवें महीने में रोज़ा रखकर मातम करते आए हो। लेकिन क्या तुमने यह दस्तूर वाक़ई मेरी ख़ातिर अदा किया? हरगिज़ नहीं! \v 6 ईदों पर भी तुम खाते-पीते वक़्त सिर्फ़ अपनी ही ख़ातिर ख़ुशी मनाते हो। \v 7 यह वही बात है जो मैंने माज़ी में भी नबियों की मारिफ़त तुम्हें बताई, उस वक़्त जब यरूशलम में आबादी और सुकून था, जब गिर्दो-नवाह के शहर दश्ते-नजब और मग़रिब के नशेबी पहाड़ी इलाक़े तक आबाद थे’।” \p \v 8 इस नाते से ज़करियाह पर रब का एक और कलाम नाज़िल हुआ, \v 9 “रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘अदालत में मुंसिफ़ाना फ़ैसले करो, एक दूसरे पर मेहरबानी और रहम करो! \v 10 बेवाओं, यतीमों, अजनबियों और ग़रीबों पर ज़ुल्म मत करना। अपने दिल में एक दूसरे के ख़िलाफ़ बुरे मनसूबे न बान्धो।’ \v 11 जब तुम्हारे बापदादा ने यह कुछ सुना तो वह इस पर ध्यान देने के लिए तैयार नहीं थे बल्कि अकड़ गए। उन्होंने अपना मुँह दूसरी तरफ़ फेरकर अपने कानों को बंद किए रखा। \v 12 उन्होंने अपने दिलों को हीरे की तरह सख़्त कर लिया ताकि शरीअत और वह बातें उन पर असरअंदाज़ न हो सकें जो रब्बुल-अफ़वाज ने अपने रूह के वसीले से गुज़शता नबियों को बताने को कहा था। तब रब्बुल-अफ़वाज का शदीद ग़ज़ब उन पर नाज़िल हुआ। \v 13 वह फ़रमाता है, ‘चूँकि उन्होंने मेरी न सुनी इसलिए मैंने फ़ैसला किया कि जब वह मदद के लिए मुझसे इल्तिजा करें तो मैं भी उनकी नहीं सुनूँगा। \v 14 मैंने उन्हें आँधी से उड़ाकर तमाम दीगर अक़वाम में मुंतशिर कर दिया, ऐसी क़ौमों में जिनसे वह नावाक़िफ़ थे। उनके जाने पर वतन इतना वीरानो-सुनसान हुआ कि कोई न रहा जो उसमें आए या वहाँ से जाए। यों उन्होंने उस ख़ुशगवार मुल्क को तबाह कर दिया’।” \c 8 \s1 एक नया आग़ाज़ \p \v 1 एक बार फिर रब्बुल-अफ़वाज का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, \v 2 “रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है कि मैं बड़ी ग़ैरत से सिय्यून के लिए लड़ रहा हूँ, बड़े ग़ुस्से में उसके लिए जिद्दो-जहद कर रहा हूँ। \v 3 रब फ़रमाता है कि मैं सिय्यून के पास वापस आऊँगा, दुबारा यरूशलम के बीच में सुकूनत करूँगा। तब यरूशलम ‘वफ़ादारी का शहर’ और रब्बुल-अफ़वाज का पहाड़ ‘कोहे-मुक़द्दस’ कहलाएगा। \v 4 क्योंकि रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘बुज़ुर्ग मर्दो-ख़वातीन दुबारा यरूशलम के चौकों में बैठेंगे, और हर एक इतना उम्ररसीदा होगा कि उसे छड़ी का सहारा लेना पड़ेगा। \v 5 साथ साथ चौक खेल-कूद में मसरूफ़ लड़के-लड़कियों से भरे रहेंगे।’ \p \v 6 रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘शायद यह उस वक़्त बचे हुए इसराईलियों को नामुमकिन लगे। लेकिन क्या ऐसा काम मेरे लिए जो रब्बुल-अफ़वाज हूँ नामुमकिन है? हरगिज़ नहीं!’ \v 7 रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘मैं अपनी क़ौम को मशरिक़ और मग़रिब के ममालिक से बचाकर \v 8 वापस लाऊँगा, और वह यरूशलम में बसेंगे। वहाँ वह मेरी क़ौम होंगे और मैं वफ़ादारी और इनसाफ़ के साथ उनका ख़ुदा हूँगा।’ \p \v 9 रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘हौसला रखकर तामीरी काम तकमील तक पहुँचाओ! आज भी तुम उन बातों पर एतमाद कर सकते हो जो नबियों ने रब्बुल-अफ़वाज के घर की बुनियाद डालते वक़्त सुनाई थीं। \v 10 याद रहे कि उस वक़्त से पहले न इनसान और न हैवान को मेहनत की मज़दूरी मिलती थी। आने जानेवाले कहीं भी दुश्मन के हमलों से महफ़ूज़ नहीं थे, क्योंकि मैंने हर आदमी को उसके हमसाये का दुश्मन बना दिया था।’ \v 11 लेकिन रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘अब से मैं तुमसे जो बचे हुए हो ऐसा सुलूक नहीं करूँगा। \v 12 लोग सलामती से बीज बोएँगे, अंगूर की बेल वक़्त पर अपना फल लाएगी, खेतों में फ़सलें पकेंगी और आसमान ओस पड़ने देगा। यह तमाम चीज़ें मैं यहूदाह के बचे हुओं को मीरास में दूँगा। \v 13 ऐ यहूदाह और इसराईल, पहले तुम दीगर अक़वाम में लानत का निशाना बन गए थे, लेकिन अब जब मैं तुम्हें रिहा करूँगा तो तुम बरकत का बाइस होगे। डरो मत! हौसला रखो!’ \p \v 14 रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘पहले जब तुम्हारे बापदादा ने मुझे तैश दिलाया तो मैंने तुम पर आफ़त लाने का मुसम्मम इरादा कर लिया था और कभी न पछताया। \v 15 लेकिन अब मैं यरूशलम और यहूदाह को बरकत देना चाहता हूँ। इसमें मेरा इरादा उतना ही पक्का है जितना पहले तुम्हें नुक़सान पहुँचाने में पक्का था। चुनाँचे डरो मत! \v 16 लेकिन इन बातों पर ध्यान दो, एक दूसरे से सच बात करो, अदालत में सच्चाई और सलामती पर मबनी फ़ैसले करो, \v 17 अपने पड़ोसी के ख़िलाफ़ बुरे मनसूबे मत बान्धो और झूटी क़सम खाने के शौक़ से बाज़ आओ। इन तमाम चीज़ों से मैं नफ़रत करता हूँ।’ यह रब का फ़रमान है।” \p \v 18 एक बार फिर रब्बुल-अफ़वाज का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, \v 19 “रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है कि आज तक यहूदाह के लोग चौथे, पाँचवें, सातवें और दसवें महीने में रोज़ा रखकर मातम करते आए हैं। लेकिन अब से यह औक़ात ख़ुशीओ-शादमानी के मौक़े होंगे जिन पर जशन मनाओगे। लेकिन सच्चाई और सलामती को प्यार करो! \p \v 20 रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है कि ऐसा वक़्त आएगा जब दीगर अक़वाम और मुतअद्दिद शहरों के लोग यहाँ आएँगे। \v 21 एक शहर के बाशिंदे दूसरे शहर में जाकर कहेंगे, ‘आओ, हम यरूशलम जाकर रब से इलतमास करें, रब्बुल-अफ़वाज की मरज़ी दरियाफ़्त करें। हम भी जाएंगे।’ \v 22 हाँ, मुतअद्दिद अक़वाम और ताक़तवर उम्मतें यरूशलम आएँगी ताकि रब्बुल-अफ़वाज की मरज़ी मालूम करें और उससे इलतमास करें। \p \v 23 रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है कि उन दिनों में मुख़्तलिफ़ अक़वाम और अहले-ज़बान के दस आदमी एक यहूदी के दामन को पकड़कर कहेंगे, ‘हमें अपने साथ चलने दें, क्योंकि हमने सुना है कि अल्लाह आपके साथ है’।” \c 9 \s1 इसराईल के दुश्मनों की अदालत \p \v 1 रब का कलाम मुल्के-हद्राक के ख़िलाफ़ है, और वह दमिश्क़ पर नाज़िल होगा। क्योंकि इनसान और इसराईल के तमाम क़बीलों की आँखें रब की तरफ़ देखती हैं। \v 2 दमिश्क़ की सरहद पर वाक़े हमात बल्कि सूर और सैदा भी इस कलाम से मुतअस्सिर हो जाएंगे, ख़ाह वह कितने दानिशमंद क्यों न हों। \v 3 बेशक सूर ने अपने लिए मज़बूत क़िला बना लिया है, बेशक उसने सोने-चाँदी के ऐसे ढेर लगाए हैं जैसे आम तौर पर गलियों में रेत या कचरे के ढेर लगा लिए जाते हैं। \v 4 लेकिन रब उस पर क़ब्ज़ा करके उस की फ़ौज को समुंदर में फेंक देगा। तब शहर नज़रे-आतिश हो जाएगा। \v 5 यह देखकर अस्क़लून घबरा जाएगा और ग़ज़्ज़ा तड़प उठेगा। अक़रून भी लरज़ उठेगा, क्योंकि उस की उम्मीद जाती रहेगी। ग़ज़्ज़ा का बादशाह हलाक और अस्क़लून ग़ैरआबाद हो जाएगा। \v 6 अशदूद में दो नसलों के लोग बसेंगे। रब फ़रमाता है, “जो कुछ फ़िलिस्तियों के लिए फ़ख़र का बाइस है उसे मैं मिटा दूँगा। \v 7 मैं उनकी बुतपरस्ती ख़त्म करूँगा। आइंदा वह गोश्त को ख़ून के साथ और अपनी घिनौनी क़ुरबानियाँ नहीं खाएँगे। तब जो बच जाएंगे मेरे परस्तार होंगे और यहूदाह के ख़ानदानों में शामिल हो जाएंगे। अक़रून के फ़िलिस्ती यों मेरी क़ौम में शामिल हो जाएंगे जिस तरह क़दीम ज़माने में यबूसी मेरी क़ौम में शामिल हो गए। \v 8 मैं ख़ुद अपने घर की पहरादारी करूँगा ताकि आइंदा जो भी आते या जाते वक़्त वहाँ से गुज़रे उस पर हमला न करे, कोई भी ज़ालिम मेरी क़ौम को तंग न करे। अब से मैं ख़ुद उस की देख-भाल करूँगा। \s1 नया बादशाह आनेवाला है \p \v 9 ऐ सिय्यून बेटी, शादियाना बजा! ऐ यरूशलम बेटी, शादमानी के नारे लगा! देख, तेरा बादशाह तेरे पास आ रहा है। वह रास्तबाज़ और फ़तहमंद है, वह हलीम है और गधे पर, हाँ गधी के बच्चे पर सवार है। \p \v 10 मैं इफ़राईम से रथ और यरूशलम से घोड़े दूर कर दूँगा। जंग की कमान टूट जाएगी। मौऊदा बादशाह \f + \fr 9:10 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : उसके कहने पर। \f* के कहने पर तमाम अक़वाम में सलामती क़ायम हो जाएगी। उस की हुकूमत एक समुंदर से दूसरे तक और दरियाए-फ़ुरात से दुनिया की इंतहा तक मानी जाएगी। \s1 रब अपनी क़ौम की हिफ़ाज़त करेगा \p \v 11 ऐ मेरी क़ौम, मैंने तेरे साथ एक अहद बाँधा जिसकी तसदीक़ क़ुरबानियों के ख़ून से हुई, इसलिए मैं तेरे क़ैदियों को पानी से महरूम गढ़े से रिहा करूँगा। \v 12 ऐ पुरउम्मीद क़ैदियो, क़िले के पास वापस आओ! क्योंकि आज ही मैं एलान करता हूँ कि तुम्हारी हर तकलीफ़ के एवज़ मैं तुम्हें दो बरकतें बख़्श दूँगा। \p \v 13 यहूदाह मेरी कमान है और इसराईल मेरे तीर जो मैं दुश्मन के ख़िलाफ़ चलाऊँगा। ऐ सिय्यून बेटी, मैं तेरे बेटों को यूनान के फ़ौजियों से लड़ने के लिए भेजूँगा, मैं तुझे सूरमे की तलवार की मानिंद बना दूँगा।” \p \v 14 तब रब उन पर ज़ाहिर होकर बिजली की तरह अपना तीर चलाएगा। रब क़ादिरे-मुतलक़ नरसिंगा फूँककर जुनूबी आँधियों में आएगा। \v 15 रब्बुल-अफ़वाज ख़ुद इसराईलियों को पनाह देगा। तब वह दुश्मन को खा खाकर उसके फेंके हुए पत्थरों को ख़ाक में मिला देंगे और ख़ून को मै की तरह पी पीकर शोर मचाएँगे। वह क़ुरबानी के ख़ून से भरे कटोरे की तरह भर जाएंगे, क़ुरबानगाह के कोनों जैसे ख़ूनआलूदा हो जाएंगे। \p \v 16 उस दिन रब उनका ख़ुदा उन्हें जो उस की क़ौम का रेवड़ हैं छुटकारा देगा। तब वह उसके मुल्क में ताज के जवाहर की मानिंद चमक उठेंगे। \v 17 वह कितने दिलकश और ख़ूबसूरत लगेंगे! अनाज और मै की कसरत से कुँवारे-कुँवारियाँ फलने फूलने लगेंगे। \c 10 \s1 रब ही मदद कर सकता है \p \v 1 बहार के मौसम में रब से बारिश माँगो। क्योंकि वही घने बादल बनाता है, वही बारिश बरसाकर हर एक को खेत की हरियाली मुहैया करता है। \v 2 तुम्हारे घरों के बुत फ़रेब देते, तुम्हारे ग़ैबदान झूटी रोया देखते और फ़रेबदेह ख़ाब सुनाते हैं। उनकी तसल्ली अबस है। इसी लिए क़ौम को भेड़-बकरियों की तरह यहाँ से चला जाना पड़ा। गल्लाबान नहीं है, इसलिए वह मुसीबत में उलझे रहते हैं। \s1 रब अपनी क़ौम को वापस लाएगा \p \v 3 रब फ़रमाता है, “मेरी क़ौम के गल्लाबानों पर मेरा ग़ज़ब भड़क उठा है, और जो बकरे उस की राहनुमाई कर रहे हैं उन्हें मैं सज़ा दूँगा। क्योंकि रब्बुल-अफ़वाज अपने रेवड़ यहूदाह के घराने की देख-भाल करेगा, उसे जंगी घोड़े जैसा शानदार बना देगा। \v 4 यहूदाह से कोने का बुनियादी पत्थर, मेख़, जंग की कमान और तमाम हुक्मरान निकल आएँगे। \v 5 सब सूरमे की मानिंद होंगे जो लड़ते वक़्त दुश्मन को गली के कचरे में कुचल देंगे। रब्बुल-अफ़वाज उनके साथ होगा, इसलिए वह लड़कर ग़ालिब आएँगे। मुख़ालिफ़ घुड़सवारों की बड़ी रुसवाई होगी। \p \v 6 मैं यहूदाह के घराने को तक़वियत दूँगा, यूसुफ़ के घराने को छुटकारा दूँगा, हाँ उन पर रहम करके उन्हें दुबारा वतन में बसा दूँगा। तब उनकी हालत से पता नहीं चलेगा कि मैंने कभी उन्हें रद्द किया था। क्योंकि मैं रब उनका ख़ुदा हूँ, मैं ही उनकी सुनूँगा। \v 7 इफ़राईम के अफ़राद सूरमे से बन जाएंगे, वह यों ख़ुश हो जाएंगे जिस तरह दिल मै पीने से ख़ुश हो जाता है। उनके बच्चे यह देखकर बाग़ बाग़ हो जाएंगे, उनके दिल रब की ख़ुशी मनाएँगे। \p \v 8 मैं सीटी बजाकर उन्हें जमा करूँगा, क्योंकि मैंने फ़िद्या देकर उन्हें आज़ाद कर दिया है। तब वह पहले की तरह बेशुमार हो जाएंगे। \v 9 मैं उन्हें बीज की तरह मुख़्तलिफ़ क़ौमों में बोकर मुंतशिर कर दूँगा, लेकिन दूर-दराज़ इलाक़ों में वह मुझे याद करेंगे। और एक दिन वह अपनी औलाद समेत बचकर वापस आएँगे। \v 10 मैं उन्हें मिसर से वापस लाऊँगा, असूर से इकट्ठा करूँगा। मैं उन्हें जिलियाद और लुबनान में लाऊँगा, तो भी उनके लिए जगह काफ़ी नहीं होगी। \v 11 जब वह मुसीबत के समुंदर में से गुज़रेंगे तो रब मौजों को यों मारेगा कि सब कुछ पानी की गहराइयों तक ख़ुश्क हो जाएगा। असूर का फ़ख़र ख़ाक में मिल जाएगा, और मिसर का शाही असा दूर हो जाएगा। \v 12 मैं अपनी क़ौम को रब में तक़वियत दूँगा, और वह उसका ही नाम लेकर ज़िंदगी गुज़ारेंगे।” यह रब का फ़रमान है। \c 11 \s1 बड़ों को नीचा किया जाएगा \p \v 1 ऐ लुबनान, अपने दरवाज़ों को खोल दे ताकि तेरे देवदार के दरख़्त नज़रे-आतिश हो जाएँ। \p \v 2 ऐ जूनीपर के दरख़तो, वावैला करो! क्योंकि देवदार के दरख़्त गिर गए हैं, यह ज़बरदस्त दरख़्त तबाह हो गए हैं। ऐ बसन के बलूतो, आहो-ज़ारी करो! जो जंगल इतना घना था कि कोई उसमें से गुज़र न सकता था उसे काटा गया है। \p \v 3 सुनो, चरवाहे रो रहे हैं, क्योंकि उनकी शानदार चरागाहें बरबाद हो गई हैं। सुनो, जवान शेरबबर दहाड़ रहे हैं, क्योंकि वादीए-यरदन का गुंजान जंगल ख़त्म हो गया है। \s1 दो क़िस्म के गल्लाबान \p \v 4 रब मेरा ख़ुदा मुझसे हमकलाम हुआ, “ज़बह होनेवाली भेड़-बकरियों की गल्लाबानी कर! \v 5 जो उन्हें ख़रीद लेते वह उन्हें ज़बह करते हैं और क़ुसूरवार नहीं ठहरते। और जो उन्हें बेचते वह कहते हैं, ‘अल्लाह की हम्द हो, मैं अमीर हो गया हूँ!’ उनके अपने चरवाहे उन पर तरस नहीं खाते। \p \v 6 इसलिए रब फ़रमाता है कि मैं भी मुल्क के बाशिंदों पर तरस नहीं खाऊँगा। मैं हर एक को उसके पड़ोसी और उसके बादशाह के हवाले करूँगा। वह मुल्क को टुकड़े टुकड़े करेंगे, और मैं उन्हें उनके हाथ से नहीं छुड़ाऊँगा।” \p \v 7 चुनाँचे मैं, ज़करियाह ने सौदागरों के लिए ज़बह होनेवाली भेड़-बकरियों की गल्लाबानी की। मैंने उस काम के लिए दो लाठियाँ लीं। एक का नाम ‘मेहरबानी’ और दूसरी का नाम ‘यगांगत’ था। उनके साथ मैंने रेवड़ की गल्लाबानी की। \v 8 एक ही महीने में मैंने तीन गल्लाबानों को मिटा दिया। लेकिन जल्द ही मैं भेड़-बकरियों से तंग आ गया, और उन्होंने मुझे भी हक़ीर जाना। \p \v 9 तब मैं बोला, “आइंदा मैं तुम्हारी गल्लाबानी नहीं करूँगा। जिसे मरना है वह मरे, जिसे ज़ाया होना है वह ज़ाया हो जाए। और जो बच जाएँ वह एक दूसरे का गोश्त खाएँ। मैं ज़िम्मादार नहीं हूँगा!” \f + \fr 11:9 \ft ‘मैं ज़िम्मादार नहीं हूँगा’ इज़ाफ़ा है ताकि मतलब साफ़ हो। \f* \v 10 मैंने लाठी बनाम ‘मेहरबानी’ को तोड़कर ज़ाहिर किया कि जो अहद मैंने तमाम अक़वाम के साथ बाँधा था वह मनसूख़ है। \v 11 उसी दिन वह मनसूख़ हुआ। \p तब भेड़-बकरियों के जो सौदागर मुझ पर ध्यान दे रहे थे उन्होंने जान लिया कि यह पैग़ाम रब की तरफ़ से है। \v 12 फिर मैंने उनसे कहा, “अगर यह आपको मुनासिब लगे तो मुझे मज़दूरी के पैसे दे दें, वरना रहने दें।” उन्होंने मज़दूरी के लिए मुझे चाँदी के 30 सिक्के दे दिए। \p \v 13 तब रब ने मुझे हुक्म दिया, “अब यह रक़म कुम्हार \f + \fr 11:13 \ft या धात ढालनेवाले। \f* के सामने फेंक दे। कितनी शानदार रक़म है! यह मेरी इतनी ही क़दर करते हैं।” मैंने चाँदी के 30 सिक्के लेकर रब के घर में कुम्हार के सामने फेंक दिए। \v 14 इसके बाद मैंने दूसरी लाठी बनाम ‘यगांगत’ को तोड़कर ज़ाहिर किया कि यहूदाह और इसराईल की अख़ुव्वत मनसूख़ हो गई है। \p \v 15 फिर रब ने मुझे बताया, “अब दुबारा गल्लाबान का सामान ले ले। लेकिन इस बार अहमक़ चरवाहे का-सा रवैया अपना ले। \v 16 क्योंकि मैं मुल्क पर ऐसा गल्लाबान मुक़र्रर करूँगा जो न हलाक होनेवालों की देख-भाल करेगा, न छोटों को तलाश करेगा, न ज़ख़मियों को शफ़ा देगा, न सेहतमंदों को ख़ुराक मुहैया करेगा। इसके बजाए वह बेहतरीन जानवरों का गोश्त खा लेगा बल्कि इतना ज़ालिम होगा कि उनके खुरों को फाड़कर तोड़ेगा। \v 17 उस बेकार चरवाहे पर अफ़सोस जो अपने रेवड़ को छोड़ देता है। तलवार उसके बाज़ू और दहनी आँख को ज़ख़मी करे। उसका बाज़ू सूख जाए और उस की दहनी आँख अंधी हो जाए।” \c 12 \s1 अल्लाह यरूशलम की हिफ़ाज़त करेगा \p \v 1 ज़ैल में रब का इसराईल के लिए कलाम है। रब जिसने आसमान को ख़ैमे की तरह तानकर ज़मीन की बुनियादें रखीं और इनसान के अंदर उस की रूह को तश्कील दिया वह फ़रमाता है, \p \v 2 “मैं यरूशलम को गिर्दो-नवाह की क़ौमों के लिए शराब का प्याला बना दूँगा जिसे वह पीकर लड़खड़ाने लगेंगी। यहूदाह भी मुसीबत में आएगा जब यरूशलम का मुहासरा किया जाएगा। \v 3 उस दिन दुनिया की तमाम अक़वाम यरूशलम के ख़िलाफ़ जमा हो जाएँगी। तब मैं यरूशलम को एक ऐसा पत्थर बनाऊँगा जो कोई नहीं उठा सकेगा। जो भी उसे उठाकर ले जाना चाहे वह ज़ख़मी हो जाएगा।” \v 4 रब फ़रमाता है, “उस दिन मैं तमाम घोड़ों में अबतरी और उनके सवारों में दीवानगी पैदा करूँगा। मैं दीगर अक़वाम के तमाम घोड़ों को अंधा कर दूँगा। \p साथ साथ मैं खुली आँखों से यहूदाह के घराने की देख-भाल करूँगा। \v 5 तब यहूदाह के ख़ानदान दिल में कहेंगे, ‘यरूशलम के बाशिंदे इसलिए हमारे लिए क़ुव्वत का बाइस हैं कि रब्बुल-अफ़वाज उनका ख़ुदा है।’ \v 6 उस दिन मैं यहूदाह के ख़ानदानों को जलते हुए कोयले बना दूँगा जो दुश्मन की सूखी लकड़ी को जला देंगे। वह भड़कती हुई मशाल होंगे जो दुश्मन की पूलों को भस्म करेगी। उनके दाईं और बाईं तरफ़ जितनी भी क़ौमें गिर्दो-नवाह में रहती हैं वह सब नज़रे-आतिश हो जाएँगी। लेकिन यरूशलम अपनी ही जगह महफ़ूज़ रहेगा। \p \v 7 पहले रब यहूदाह के घरों को बचाएगा ताकि दाऊद के घराने और यरूशलम के बाशिंदों की शानो-शौकत यहूदाह से बड़ी न हो। \v 8 लेकिन रब यरूशलम के बाशिंदों को भी पनाह देगा। तब उनमें से कमज़ोर आदमी दाऊद जैसा सूरमा होगा जबकि दाऊद का घराना ख़ुदा की मानिंद, उनके आगे चलनेवाले रब के फ़रिश्ते की मानिंद होगा। \v 9 उस दिन मैं यरूशलम पर हमलाआवर तमाम अक़वाम को तबाह करने के लिए निकलूँगा। \s1 यरूशलम का मातम \p \v 10 मैं दाऊद के घराने और यरूशलम के बाशिंदों पर मेहरबानी और इलतमास का रूह उंडेलूँगा। तब वह मुझ पर नज़र डालेंगे जिसे उन्होंने छेदा है, और वह उसके लिए ऐसा मातम करेंगे जैसे अपने इकलौते बेटे के लिए, उसके लिए ऐसा शदीद ग़म खाएँगे जिस तरह अपने पहलौठे के लिए। \v 11 उस दिन लोग यरूशलम में शिद्दत से मातम करेंगे। ऐसा मातम होगा जैसा मैदाने-मजिद्दो में हदद-रिम्मोन पर किया जाता था। \v 12-14 पूरे का पूरा मुल्क वावैला करेगा। तमाम ख़ानदान एक दूसरे से अलग और तमाम औरतें दूसरों से अलग आहो-बुका करेंगी। दाऊद का ख़ानदान, नातन का ख़ानदान, लावी का ख़ानदान, सिमई का ख़ानदान और मुल्क के बाक़ी तमाम ख़ानदान अलग अलग मातम करेंगे। \c 13 \s1 बुतपरस्ती और झूटी नबुव्वत का ख़ातमा \p \v 1 उस दिन दाऊद के घराने और यरूशलम के बाशिंदों के लिए चश्मा खोला जाएगा जिसके ज़रीए वह अपने गुनाहों और नापाकी को दूर कर सकेंगे।” \p \v 2 रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “उस दिन मैं तमाम बुतों को मुल्क में से मिटा दूँगा। उनका नामो-निशान तक नहीं रहेगा, और वह किसी को याद नहीं रहेंगे। \p नबियों और नापाकी की रूह को भी मैं मुल्क से दूर करूँगा। \v 3 इसके बाद अगर कोई नबुव्वत करे तो उसके अपने माँ-बाप उससे कहेंगे, ‘तू ज़िंदा नहीं रह सकता, क्योंकि तूने रब का नाम लेकर झूट बोला है।’ जब वह पेशगोइयाँ सुनाएगा तो उसके अपने वालिदैन उसे छेद डालेंगे। \v 4 उस वक़्त हर नबी को अपनी रोया पर शर्म आएगी जब नबुव्वत करेगा। वह नबी का बालों से बना लिबास नहीं पहनेगा ताकि फ़रेब दे \v 5 बल्कि कहेगा, ‘मैं नबी नहीं बल्कि काश्तकार हूँ। जवानी से ही मेरा पेशा खेतीबाड़ी रहा है।’ \v 6 अगर कोई पूछे, ‘तो फिर तेरे सीने पर ज़ख़मों के निशान किस तरह लगे? तो जवाब देगा, मैं अपने दोस्तों के घर में ज़ख़मी हुआ’।” \s1 लोगों की जाँच-पड़ताल \p \v 7 रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “ऐ तलवार, जाग उठ! मेरे गल्लाबान पर हमला कर, उस पर जो मेरे क़रीब है। गल्लाबान को मार डाल ताकि भेड़-बकरियाँ तित्तर-बित्तर हो जाएँ। मैं ख़ुद अपने हाथ को छोटों के ख़िलाफ़ उठाऊँगा।” \v 8 रब फ़रमाता है, “पूरे मुल्क में लोगों के तीन हिस्सों में से दो हिस्सों को मिटाया जाएगा। दो हिस्से हलाक हो जाएंगे और सिर्फ़ एक ही हिस्सा बचा रहेगा। \v 9 इस बचे हुए हिस्से को मैं आग में डालकर चाँदी या सोने की तरह पाक-साफ़ करूँगा। तब वह मेरा नाम पुकारेंगे, और मैं उनकी सुनूँगा। मैं कहूँगा, ‘यह मेरी क़ौम है,’ और वह कहेंगे, ‘रब हमारा ख़ुदा है’।” \c 14 \s1 रब ख़ुद यरूशलम में बादशाह होगा \p \v 1 ऐ यरूशलम, रब का वह दिन आनेवाला है जब दुश्मन तेरा माल लूटकर तेरे दरमियान ही उसे आपस में तक़सीम करेगा। \v 2 क्योंकि मैं तमाम अक़वाम को यरूशलम से लड़ने के लिए जमा करूँगा। शहर दुश्मन के क़ब्ज़े में आएगा, घरों को लूट लिया जाएगा और औरतों की इसमतदरी की जाएगी। शहर के आधे बाशिंदे जिलावतन हो जाएंगे, लेकिन बाक़ी हिस्सा उसमें ज़िंदा छोड़ा जाएगा। \p \v 3 लेकिन फिर रब ख़ुद निकलकर इन अक़वाम से यों लड़ेगा जिस तरह तब लड़ता है जब कभी मैदाने-जंग में आ जाता है। \v 4 उस दिन उसके पाँव यरूशलम के मशरिक़ में ज़ैतून के पहाड़ पर खड़े होंगे। तब पहाड़ फट जाएगा। उसका एक हिस्सा शिमाल की तरफ़ और दूसरा जुनूब की तरफ़ खिसक जाएगा। बीच में मशरिक़ से मग़रिब की तरफ़ एक बड़ी वादी पैदा हो जाएगी। \v 5 तुम मेरे पहाड़ों की इस वादी में भागकर पनाह लोगे, क्योंकि यह आज़ल तक पहुँचाएगी। जिस तरह तुम यहूदाह के बादशाह उज़्ज़ियाह के ऐयाम में अपने आपको ज़लज़ले से बचाने के लिए यरूशलम से भाग निकले थे उसी तरह तुम मज़कूरा वादी में दौड़ आओगे। तब रब मेरा ख़ुदा आएगा, और तमाम मुक़द्दसीन उसके साथ होंगे। \p \v 6 उस दिन न तपती गरमी होगी, न सर्दी या पाला। \v 7 वह एक मुन्फ़रिद दिन होगा जो रब ही को मालूम होगा। न दिन होगा और न रात बल्कि शाम को भी रौशनी होगी। \v 8 उस दिन यरूशलम से ज़िंदगी का पानी बह निकलेगा। उस की एक शाख़ मशरिक़ के बहीराए-मुरदार की तरफ़ और दूसरी शाख़ मग़रिब के समुंदर की तरफ़ बहेगी। इस पानी में न गरमियों में, न सर्दियों में कभी कमी होगी। \p \v 9 रब पूरी दुनिया का बादशाह होगा। उस दिन रब वाहिद ख़ुदा होगा, लोग सिर्फ़ उसी के नाम की परस्तिश करेंगे। \v 10 पूरा मुल्क शिमाली शहर जिबा से लेकर यरूशलम के जुनूब में वाक़े शहर रिम्मोन तक खुला मैदान बन जाएगा। सिर्फ़ यरूशलम अपनी ही ऊँची जगह पर रहेगा। उस की पुरानी हुदूद भी क़ायम रहेंगी यानी बिनयमीन के दरवाज़े से लेकर पुराने दरवाज़े और कोने के दरवाज़े तक, फिर हननेल के बुर्ज से लेकर उस जगह तक जहाँ शाही मै बनाई जाती है। \v 11 लोग उसमें बसेंगे, और आइंदा उसे कभी पूरी तबाही के लिए मख़सूस नहीं किया जाएगा। यरूशलम महफ़ूज़ जगह रहेगी। \p \v 12 लेकिन जो क़ौमें यरूशलम से लड़ने निकलें उन पर रब एक हौलनाक बीमारी लाएगा। लोग अभी खड़े हो सकेंगे कि उनके जिस्म सड़ जाएंगे। आँखें अपने ख़ानों में और ज़बान मुँह में गल जाएगी। \v 13 उस दिन रब उनमें बड़ी अबतरी पैदा करेगा। हर एक अपने साथी का हाथ पकड़कर उस पर हमला करेगा। \v 14 यहूदाह भी यरूशलम से \f + \fr 14:14 \ft या में। \f* लड़ेगा। तमाम पड़ोसी अक़वाम की दौलत वहाँ जमा हो जाएगी यानी कसरत का सोना, चाँदी और कपड़े। \v 15 न सिर्फ़ इनसान मोहलक बीमारी की ज़द में आएगा बल्कि जानवर भी। घोड़े, ख़च्चर, ऊँट, गधे और बाक़ी जितने जानवर उन लशकरगाहों में होंगे उन सब पर यही आफ़त आएगी। \s1 तमाम अक़वाम यरूशलम में ईद मनाएँगी \p \v 16 तो भी उन तमाम अक़वाम के कुछ लोग बच जाएंगे जिन्होंने यरूशलम पर हमला किया था। अब वह साल बसाल यरूशलम आते रहेंगे ताकि हमारे बादशाह रब्बुल-अफ़वाज की परस्तिश करें और झोंपड़ियों की ईद मनाएँ। \v 17 जब कभी दुनिया की तमाम अक़वाम में से कोई हमारे बादशाह रब्बुल-अफ़वाज को सिजदा करने के लिए यरूशलम न आए तो उसका मुल्क बारिश से महरूम रहेगा। \v 18 अगर मिसरी क़ौम यरूशलम न आए और हिस्सा न ले तो वह बारिश से महरूम रहेगी। यों रब उन क़ौमों को सज़ा देगा जो झोंपड़ियों की ईद मनाने के लिए यरूशलम नहीं आएँगी। \v 19 जितनी भी क़ौमें झोंपड़ियों की ईद मनाने के लिए यरूशलम न आएँ उन्हें यही सज़ा मिलेगी, ख़ाह मिसर हो या कोई और क़ौम। \p \v 20 उस दिन घोड़ों की घंटियों पर लिखा होगा, “रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस।” और रब के घर की देगें उन मुक़द्दस कटोरों के बराबर होंगी जो क़ुरबानगाह के सामने इस्तेमाल होते हैं। \v 21 हाँ, यरूशलम और यहूदाह में मौजूद हर देग रब्बुल-अफ़वाज के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस होगी। जो भी क़ुरबानियाँ पेश करने के लिए यरूशलम आए वह उन्हें अपनी क़ुरबानियाँ पकाने के लिए इस्तेमाल करेगा। उस दिन से रब्बुल-अफ़वाज के घर में कोई भी सौदागर पाया नहीं जाएगा।