\id PSA उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h ज़बूर \toc1 ज़बूर \toc2 ज़बूर \toc3 ज़बूर \mt1 ज़बूर \c 1 \ms1 पहली किताब : 1-41 \s1 दो राहें \p \v 1 मुबारक है वह जो न बेदीनों के मशवरे पर चलता, न गुनाहगारों की राह पर क़दम रखता, और न तानाज़नों के साथ बैठता है \p \v 2 बल्कि रब की शरीअत से लुत्फ़अंदोज़ होता और दिन-रात उसी पर ग़ौरो-ख़ौज़ करता रहता है। \p \v 3 वह नहरों के किनारे पर लगे दरख़्त की मानिंद है। वक़्त पर वह फल लाता, और उसके पत्ते नहीं मुरझाते। जो कुछ भी करे उसमें वह कामयाब है। \b \p \v 4 बेदीनों का यह हाल नहीं होता। वह भूसे की मानिंद हैं जिसे हवा उड़ा ले जाती है। \p \v 5 इसलिए बेदीन अदालत में क़ायम नहीं रहेंगे, और गुनाहगार का रास्तबाज़ों की मजलिस में मक़ाम नहीं होगा। \p \v 6 क्योंकि रब रास्तबाज़ों की राह की पहरादारी करता है जबकि बेदीनों की राह तबाह हो जाएगी। \c 2 \s1 अल्लाह का मसीह \p \v 1 अक़वाम क्यों तैश में आ गई हैं? उम्मतें क्यों बेकार साज़िशें कर रही हैं? \p \v 2 दुनिया के बादशाह उठ खड़े हुए, हुक्मरान रब और उसके मसीह के ख़िलाफ़ जमा हो गए हैं। \p \v 3 वह कहते हैं, “आओ, हम उनकी ज़ंजीरों को तोड़कर आज़ाद हो जाएँ, उनके रस्सों को दूर तक फेंक दें।” \p \v 4 लेकिन जो आसमान पर तख़्तनशीन है वह हँसता है, रब उनका मज़ाक़ उड़ाता है। \p \v 5 फिर वह ग़ुस्से से उन्हें डाँटता, अपना शदीद ग़ज़ब उन पर नाज़िल करके उन्हें डराता है। \p \v 6 वह फ़रमाता है, “मैंने ख़ुद अपने बादशाह को अपने मुक़द्दस पहाड़ सिय्यून पर मुक़र्रर किया है!” \b \p \v 7 आओ, मैं रब का फ़रमान सुनाऊँ। उसने मुझसे कहा, “तू मेरा बेटा है, आज मैं तेरा बाप बन गया हूँ। \p \v 8 मुझसे माँग तो मैं तुझे मीरास में तमाम अक़वाम अता करूँगा, दुनिया की इंतहा तक सब कुछ बख़्श दूँगा। \p \v 9 तू उन्हें लोहे के शाही असा से पाश पाश करेगा, उन्हें मिट्टी के बरतनों की तरह चकनाचूर करेगा।” \p \v 10 चुनाँचे ऐ बादशाहो, समझ से काम लो! ऐ दुनिया के हुक्मरानो, तरबियत क़बूल करो! \p \v 11 ख़ौफ़ करते हुए रब की ख़िदमत करो, लरज़ते हुए ख़ुशी मनाओ। \p \v 12 बेटे को बोसा दो, ऐसा न हो कि वह ग़ुस्से हो जाए और तुम रास्ते में ही हलाक हो जाओ। क्योंकि वह एकदम तैश में आ जाता है। मुबारक हैं वह सब जो उसमें पनाह लेते हैं। \c 3 \s1 सुबह को मदद के लिए दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। उस वक़्त जब उसे अपने बेटे अबीसलूम से भागना पड़ा। \p ऐ रब, मेरे दुश्मन कितने ज़्यादा हैं, कितने लोग मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं! \p \v 2 मेरे बारे में बहुतेरे कह रहे हैं, “अल्लाह इसे छुटकारा नहीं देगा।” (सिलाह) \f + \fr 3:2 \ft सिलाह ग़ालिबन गाने बजाने के बारे में कोई हिदायत है। मुफ़स्सिरीन में इसके मतलब के बारे में इत्तफ़ाक़े-राय नहीं होती। \f* \b \p \v 3 लेकिन तू ऐ रब, चारों तरफ़ मेरी हिफ़ाज़त करनेवाली ढाल है। तू मेरी इज़्ज़त है जो मेरे सर को उठाए रखता है। \p \v 4 मैं बुलंद आवाज़ से रब को पुकारता हूँ, और वह अपने मुक़द्दस पहाड़ से मेरी सुनता है। (सिलाह) \p \v 5 मैं आराम से लेटकर सो गया, फिर जाग उठा, क्योंकि रब ख़ुद मुझे सँभाले रखता है। \p \v 6 उन हज़ारों से मैं नहीं डरता जो मुझे घेरे रखते हैं। \p \v 7 ऐ रब, उठ! ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे रिहा कर! क्योंकि तूने मेरे तमाम दुश्मनों के मुँह पर थप्पड़ मारा, तूने बेदीनों के दाँतों को तोड़ दिया है। \p \v 8 रब के पास नजात है। तेरी बरकत तेरी क़ौम पर आए। (सिलाह) \c 4 \s1 शाम को मदद के लिए दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तारदार साज़ों के साथ गाना है। \p ऐ मेरी रास्ती के ख़ुदा, मेरी सुन जब मैं तुझे पुकारता हूँ। ऐ तू जो मुसीबत में मेरी मख़लसी रहा है मुझ पर मेहरबानी करके मेरी इल्तिजा सुन! \b \p \v 2 ऐ आदमज़ादो, मेरी इज़्ज़त कब तक ख़ाक में मिलाई जाती रहेगी? तुम कब तक बातिल चीज़ों से लिपटे रहोगे, कब तक झूट की तलाश में रहोगे? (सिलाह) \p \v 3 जान लो कि रब ने ईमानदार को अपने लिए अलग कर रखा है। रब मेरी सुनेगा जब मैं उसे पुकारूँगा। \p \v 4 ग़ुस्से में आते वक़्त गुनाह मत करना। अपने बिस्तर पर लेटकर मामले पर सोच-बिचार करो, लेकिन दिल में, ख़ामोशी से। (सिलाह) \p \v 5 रास्ती की क़ुरबानियाँ पेश करो, और रब पर भरोसा रखो। \p \v 6 बहुतेरे शक कर रहे हैं, “कौन हमारे हालात ठीक करेगा?” ऐ रब, अपने चेहरे का नूर हम पर चमका! \b \p \v 7 तूने मेरे दिल को ख़ुशी से भर दिया है, ऐसी ख़ुशी से जो उनके पास भी नहीं होती जिनके पास कसरत का अनाज और अंगूर है। \p \v 8 मैं आराम से लेटकर सो जाता हूँ, क्योंकि तू ही ऐ रब मुझे हिफ़ाज़त से बसने देता है। \c 5 \s1 हिफ़ाज़त के लिए दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। इसे बाँसरी के साथ गाना है। \p ऐ रब, मेरी बातें सुन, मेरी आहों पर ध्यान दे! \p \v 2 ऐ मेरे बादशाह, मेरे ख़ुदा, मदद के लिए मेरी चीख़ें सुन, क्योंकि मैं तुझी से दुआ करता हूँ। \p \v 3 ऐ रब, सुबह को तू मेरी आवाज़ सुनता है, सुबह को मैं तुझे सब कुछ तरतीब से पेश करके जवाब का इंतज़ार करने लगता हूँ। \b \p \v 4 क्योंकि तू ऐसा ख़ुदा नहीं है जो बेदीनी से ख़ुश हो। जो बुरा है वह तेरे हुज़ूर नहीं ठहर सकता। \p \v 5 मग़रूर तेरे हुज़ूर खड़े नहीं हो सकते, बदकार से तू नफ़रत करता है। \p \v 6 झूट बोलनेवालों को तू तबाह करता, ख़ूनख़ार और धोकेबाज़ से रब घिन खाता है। \b \p \v 7 लेकिन मुझ पर तूने बड़ी मेहरबानी की है, इसलिए मैं तेरे घर में दाख़िल हो सकता, मैं तेरा ख़ौफ़ मानकर तेरी मुक़द्दस सुकूनतगाह के सामने सिजदा करता हूँ। \p \v 8 ऐ रब, अपनी रास्त राह पर मेरी राहनुमाई कर ताकि मेरे दुश्मन मुझ पर ग़ालिब न आएँ। अपनी राह को मेरे आगे हमवार कर। \b \p \v 9 क्योंकि उनके मुँह से एक भी क़ाबिले-एतमाद बात नहीं निकलती। उनका दिल तबाही से भरा रहता, उनका गला खुली क़ब्र है, और उनकी ज़बान चिकनी-चुपड़ी बातें उगलती रहती है। \p \v 10 ऐ रब, उन्हें उनके ग़लत काम का अज्र दे। उनकी साज़िशें उनकी अपनी तबाही का बाइस बनें। उन्हें उनके मुतअद्दिद गुनाहों के बाइस निकालकर मुंतशिर कर दे, क्योंकि वह तुझसे सरकश हो गए हैं। \b \p \v 11 लेकिन जो तुझमें पनाह लेते हैं वह सब ख़ुश हों, वह अबद तक शादियाना बजाएँ, क्योंकि तू उन्हें महफ़ूज़ रखता है। तेरे नाम को प्यार करनेवाले तेरा जशन मनाएँ। \p \v 12 क्योंकि तू ऐ रब, रास्तबाज़ को बरकत देता है, तू अपनी मेहरबानी की ढाल से उस की चारों तरफ़ हिफ़ाज़त करता है। \c 6 \s1 मुसीबत में दुआ (तौबा का पहला ज़बूर) \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तारदार साज़ों के साथ गाना है। \p ऐ रब, ग़ुस्से में मुझे सज़ा न दे, तैश में मुझे तंबीह न कर। \p \v 2 ऐ रब, मुझ पर रहम कर, क्योंकि मैं निढाल हूँ। ऐ रब, मुझे शफ़ा दे, क्योंकि मेरे आज़ा दहशतज़दा हैं। \p \v 3 मेरी जान निहायत ख़ौफ़ज़दा है। ऐ रब, तू कब तक देर करेगा? \p \v 4 ऐ रब, वापस आकर मेरी जान को बचा। अपनी शफ़क़त की ख़ातिर मुझे छुटकारा दे। \p \v 5 क्योंकि मुरदा तुझे याद नहीं करता। पाताल में कौन तेरी सताइश करेगा? \b \p \v 6 मैं कराहते कराहते थक गया हूँ। पूरी रात रोने से बिस्तर भीग गया है, मेरे आँसुओं से पलंग गल गया है। \p \v 7 ग़म के मारे मेरी आँखें सूज गई हैं, मेरे मुख़ालिफ़ों के हमलों से वह ज़ाया होती जा रही हैं। \p \v 8 ऐ बदकारो, मुझसे दूर हो जाओ, क्योंकि रब ने मेरी आहो-बुका सुनी है। \p \v 9 रब ने मेरी इल्तिजाओं को सुन लिया है, मेरी दुआ रब को क़बूल है। \p \v 10 मेरे तमाम दुश्मनों की रुसवाई हो जाएगी, और वह सख़्त घबरा जाएंगे। वह मुड़कर अचानक ही शरमिंदा हो जाएंगे। \c 7 \s1 इनसाफ़ के लिए दुआ \p \v 1 दाऊद का वह मातमी गीत जो उसने कूश बिनयमीनी की बातों पर रब की तमजीद में गाया। \p ऐ रब मेरे ख़ुदा, मैं तुझमें पनाह लेता हूँ। मुझे उन सबसे बचाकर छुटकारा दे जो मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं, \p \v 2 वरना वह शेरबबर की तरह मुझे फाड़कर टुकड़े टुकड़े कर देंगे, और बचानेवाला कोई नहीं होगा। \b \p \v 3 ऐ रब मेरे ख़ुदा, अगर मुझसे यह कुछ सरज़द हुआ और मेरे हाथ क़ुसूरवार हों, \p \v 4 अगर मैंने उससे बुरा सुलूक किया जिसका मेरे साथ झगड़ा नहीं था या अपने दुश्मन को ख़ाहमख़ाह लूट लिया हो \p \v 5 तो फिर मेरा दुश्मन मेरे पीछे पड़कर मुझे पकड़ ले। वह मेरी जान को मिट्टी में कुचल दे, मेरी इज़्ज़त को ख़ाक में मिलाए। (सिलाह) \b \p \v 6 ऐ रब, उठ और अपना ग़ज़ब दिखा! मेरे दुश्मनों के तैश के ख़िलाफ़ खड़ा हो जा। मेरी मदद करने के लिए जाग उठ! तूने ख़ुद अदालत का हुक्म दिया है। \p \v 7 अक़वाम तेरे इर्दगिर्द जमा हो जाएँ जब तू उनके ऊपर बुलंदियों पर तख़्तनशीन हो जाए। \p \v 8 रब अक़वाम की अदालत करता है। ऐ रब, मेरी रास्तबाज़ी और बेगुनाही का लिहाज़ करके मेरा इनसाफ़ कर। \p \v 9 ऐ रास्त ख़ुदा, जो दिल की गहराइयों को तह तक जाँच लेता है, बेदीनों की शरारतें ख़त्म कर और रास्तबाज़ को क़ायम रख। \b \p \v 10 अल्लाह मेरी ढाल है। जो दिल से सीधी राह पर चलते हैं उन्हें वह रिहाई देता है। \p \v 11 अल्लाह आदिल मुंसिफ़ है, ऐसा ख़ुदा जो रोज़ाना लोगों की सरज़निश करता है। \b \p \v 12 यक़ीनन इस वक़्त भी दुश्मन अपनी तलवार को तेज़ कर रहा, अपनी कमान को तानकर निशाना बाँध रहा है। \p \v 13 लेकिन जो मोहलक हथियार और जलते हुए तीर उसने तैयार कर रखे हैं उनकी ज़द में वह ख़ुद ही आ जाएगा। \p \v 14 देख, बुराई का बीज उसमें उग आया है। अब वह शरारत से हामिला होकर फिरता और झूट के बच्चे जन्म देता है। \p \v 15 लेकिन जो गढ़ा उसने दूसरों को फँसाने के लिए खोद खोदकर तैयार किया उसमें ख़ुद गिर पड़ा है। \p \v 16 वह ख़ुद अपनी शरारत की ज़द में आएगा, उसका ज़ुल्म उसके अपने सर पर नाज़िल होगा। \b \p \v 17 मैं रब की सताइश करूँगा, क्योंकि वह रास्त है। मैं रब तआला के नाम की तारीफ़ में गीत गाऊँगा। \c 8 \s1 मख़लूक़ात का ताज \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : गित्तीत। \p ऐ रब हमारे आक़ा, तेरा नाम पूरी दुनिया में कितना शानदार है! तूने आसमान पर ही अपना जलाल ज़ाहिर कर दिया है। \p \v 2 अपने मुख़ालिफ़ों के जवाब में तूने छोटे बच्चों और शीरख़ारों की ज़बान को तैयार किया है ताकि वह तेरी क़ुव्वत से दुश्मन और कीनापरवर को ख़त्म करें। \b \p \v 3 जब मैं तेरे आसमान का मुलाहज़ा करता हूँ जो तेरी उँगलियों का काम है, चाँद और सितारों पर ग़ौर करता हूँ जिनको तूने अपनी अपनी जगह पर क़ायम किया \p \v 4 तो इनसान कौन है कि तू उसे याद करे या आदमज़ाद कि तू उसका ख़याल रखे? \p \v 5 तूने उसे फ़रिश्तों से कुछ ही कम बनाया, \f + \fr 8:5 \ft एक और मुमकिना तरजुमा : तूने उसे थोड़ी देर के लिए फ़रिश्तों से कम कर दिया (देखिए इबरानियों 2:7,9)। \f* तूने उसे जलाल और इज़्ज़त का ताज पहनाया। \p \v 6 तूने उसे अपने हाथों के कामों पर मुक़र्रर किया, सब कुछ उसके पाँवों के नीचे कर दिया, \p \v 7 ख़ाह भेड़-बकरियाँ हों ख़ाह गाय-बैल, जंगली जानवर, \p \v 8 परिंदे, मछलियाँ या समुंदरी राहों पर चलनेवाले बाक़ी तमाम जानवर। \b \p \v 9 ऐ रब हमारे आक़ा, पूरी दुनिया में तेरा नाम कितना शानदार है! \c 9 \s1 अल्लाह की क़ुदरत और इनसाफ़ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : अलामूत-लब्बीन। \p ऐ रब, मैं पूरे दिल से तेरी सताइश करूँगा, तेरे तमाम मोजिज़ात का बयान करूँगा। \p \v 2 मैं शादमान होकर तेरी ख़ुशी मनाऊँगा। ऐ अल्लाह तआला, मैं तेरे नाम की तमजीद में गीत गाऊँगा। \p \v 3 जब मेरे दुश्मन पीछे हट जाएंगे तो वह ठोकर खाकर तेरे हुज़ूर तबाह हो जाएंगे। \p \v 4 क्योंकि तूने मेरा इनसाफ़ किया है, तू तख़्त पर बैठकर रास्त मुंसिफ़ साबित हुआ है। \p \v 5 तूने अक़वाम को मलामत करके बेदीनों को हलाक कर दिया, उनका नामो-निशान हमेशा के लिए मिटा दिया है। \p \v 6 दुश्मन तबाह हो गया, अबद तक मलबे का ढेर बन गया है। तूने शहरों को जड़ से उखाड़ दिया है, और उनकी याद तक बाक़ी नहीं रहेगी। \b \p \v 7 लेकिन रब हमेशा तक तख़्तनशीन रहेगा, और उसने अपने तख़्त को अदालत करने के लिए खड़ा किया है। \p \v 8 वह रास्ती से दुनिया की अदालत करेगा, इनसाफ़ से उम्मतों का फ़ैसला करेगा। \p \v 9 रब मज़लूमों की पनाहगाह है, एक क़िला जिसमें वह मुसीबत के वक़्त महफ़ूज़ रहते हैं। \b \p \v 10 ऐ रब, जो तेरा नाम जानते वह तुझ पर भरोसा रखते हैं। क्योंकि जो तेरे तालिब हैं उन्हें तूने कभी तर्क नहीं किया। \p \v 11 रब की तमजीद में गीत गाओ जो सिय्यून पहाड़ पर तख़्तनशीन है, उम्मतों में वह कुछ सुनाओ जो उसने किया है। \p \v 12 क्योंकि जो मक़तूलों का इंतक़ाम लेता है वह मुसीबतज़दों की चीख़ें नज़रंदाज़ नहीं करता। \b \p \v 13 ऐ रब, मुझ पर रहम कर! मेरी उस तकलीफ़ पर ग़ौर कर जो नफ़रत करनेवाले मुझे पहुँचा रहे हैं। मुझे मौत के दरवाज़ों में से निकालकर उठा ले \p \v 14 ताकि मैं सिय्यून बेटी के दरवाज़ों में तेरी सताइश करके वह कुछ सुनाऊँ जो तूने मेरे लिए किया है, ताकि मैं तेरी नजात की ख़ुशी मनाऊँ। \b \p \v 15 अक़वाम उस गढ़े में ख़ुद गिर गई हैं जो उन्होंने दूसरों को पकड़ने के लिए खोदा था। उनके अपने पाँव उस जाल में फँस गए हैं जो उन्होंने दूसरों को फँसाने के लिए बिछा दिया था। \p \v 16 रब ने इनसाफ़ करके अपना इज़हार किया तो बेदीन अपने हाथ के फंदे में उलझ गया। (हिग्गायून का तर्ज़। सिलाह) \p \v 17 बेदीन पाताल में उतरेंगे, जो उम्मतें अल्लाह को भूल गई हैं वह सब वहाँ जाएँगी। \p \v 18 क्योंकि वह ज़रूरतमंदों को हमेशा तक नहीं भूलेगा, मुसीबतज़दों की उम्मीद अबद तक जाती नहीं रहेगी। \b \p \v 19 ऐ रब, उठ खड़ा हो ताकि इनसान ग़ालिब न आए। बख़्श दे कि तेरे हुज़ूर अक़वाम की अदालत की जाए। \p \v 20 ऐ रब, उन्हें दहशतज़दा कर ताकि अक़वाम जान लें कि इनसान ही हैं। (सिलाह) \c 10 \s1 इनसाफ़ के लिए दुआ \p \v 1 ऐ रब, तू इतना दूर क्यों खड़ा है? मुसीबत के वक़्त तू अपने आपको पोशीदा क्यों रखता है? \b \p \v 2 बेदीन तकब्बुर से मुसीबतज़दों के पीछे लग गए हैं, और अब बेचारे उनके जालों में उलझने लगे हैं। \p \v 3 क्योंकि बेदीन अपनी दिली आरज़ुओं पर शेख़ी मारता है, और नाजायज़ नफ़ा कमानेवाला लानत करके रब को हक़ीर जानता है। \p \v 4 बेदीन ग़ुरूर से फूलकर कहता है, “अल्लाह मुझसे जवाबतलबी नहीं करेगा।” उसके तमाम ख़यालात इस बात पर मबनी हैं कि कोई ख़ुदा नहीं है। \p \v 5 जो कुछ भी करे उसमें वह कामयाब है। तेरी अदालतें उसे बुलंदियों में कहीं दूर लगती हैं जबकि वह अपने तमाम मुख़ालिफ़ों के ख़िलाफ़ फुँकारता है। \p \v 6 दिल में वह सोचता है, “मैं कभी नहीं डगमगाऊँगा, नसल-दर-नसल मुसीबत के पंजों से बचा रहूँगा।” \p \v 7 उसका मुँह लानतों, फ़रेब और ज़ुल्म से भरा रहता, उस की ज़बान नुक़सान और आफ़त पहुँचाने के लिए तैयार रहती है। \p \v 8 वह आबादियों के क़रीब ताक में बैठकर चुपके से बेगुनाहों को मार डालता है, उस की आँखें बदक़िस्मतों की घात में रहती हैं। \p \v 9 जंगल में बैठे शेरबबर की तरह ताक में रहकर वह मुसीबतज़दा पर हमला करने का मौक़ा ढूँडता है। जब उसे पकड़ ले तो उसे अपने जाल में घसीटकर ले जाता है। \p \v 10 उसके शिकार पाश पाश होकर झुक जाते हैं, बेचारे उस की ज़बरदस्त ताक़त की ज़द में आकर गिर जाते हैं। \p \v 11 तब वह दिल में कहता है, “अल्लाह भूल गया है, उसने अपना चेहरा छुपा लिया है, उसे यह कभी नज़र नहीं आएगा।” \b \p \v 12 ऐ रब, उठ! ऐ अल्लाह, अपना हाथ उठाकर नाचारों की मदद कर और उन्हें न भूल। \p \v 13 बेदीन अल्लाह की तहक़ीर क्यों करे, वह दिल में क्यों कहे, “अल्लाह मुझसे जवाब तलब नहीं करेगा”? \p \v 14 ऐ अल्लाह, हक़ीक़त में तू यह सब कुछ देखता है। तू हमारी तकलीफ़ और परेशानी पर ध्यान देकर मुनासिब जवाब देगा। नाचार अपना मामला तुझ पर छोड़ देता है, क्योंकि तू यतीमों का मददगार है। \p \v 15 शरीर और बेदीन आदमी का बाज़ू तोड़ दे! उससे उस की शरारतों की जवाबतलबी कर ताकि उसका पूरा असर मिट जाए। \b \p \v 16 रब अबद तक बादशाह है। उसके मुल्क से दीगर अक़वाम ग़ायब हो गई हैं। \p \v 17 ऐ रब, तूने नाचारों की आरज़ू सुन ली है। तू उनके दिलों को मज़बूत करेगा और उन पर ध्यान देकर \p \v 18 यतीमों और मज़लूमों का इनसाफ़ करेगा ताकि आइंदा कोई भी इनसान मुल्क में दहशत न फैलाए। \c 11 \s1 रब पर भरोसा \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p मैंने रब में पनाह ली है। तो फिर तुम किस तरह मुझसे कहते हो, “चल, परिंदे की तरह फड़फड़ाकर पहाड़ों में भाग जा”? \p \v 2 क्योंकि देखो, बेदीन कमान तानकर तीर को ताँत पर लगा चुके हैं। अब वह अंधेरे में बैठकर इस इंतज़ार में हैं कि दिल से सीधी राह पर चलनेवालों पर चलाएँ। \p \v 3 रास्तबाज़ क्या करे? उन्होंने तो बुनियाद को ही तबाह कर दिया है। \b \p \v 4 लेकिन रब अपनी मुक़द्दस सुकूनतगाह में है, रब का तख़्त आसमान पर है। वहाँ से वह देखता है, वहाँ से उस की आँखें आदमज़ादों को परखती हैं। \p \v 5 रब रास्तबाज़ को परखता तो है, लेकिन बेदीन और ज़ालिम से नफ़रत ही करता है। \p \v 6 बेदीनों पर वह जलते हुए कोयले और शोलाज़न गंधक बरसा देगा। झुलसनेवाली आँधी उनका हिस्सा होगी। \p \v 7 क्योंकि रब रास्त है, और उसे इनसाफ़ प्यारा है। सिर्फ़ सीधी राह पर चलनेवाले उसका चेहरा देखेंगे। \c 12 \s1 मदद के लिए दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : शमीनीत। \p ऐ रब, मदद फ़रमा! क्योंकि ईमानदार ख़त्म हो गए हैं। दियानतदार इनसानों में से मिट गए हैं। \p \v 2 आपस में सब झूट बोलते हैं। उनकी ज़बान पर चिकनी-चुपड़ी बातें होती हैं जबकि दिल में कुछ और ही होता है। \p \v 3 रब तमाम चिकनी-चुपड़ी और शेख़ीबाज़ ज़बानों को काट डाले! \p \v 4 वह उन सबको मिटा दे जो कहते हैं, “हम अपनी लायक़ ज़बान के बाइस ताक़तवर हैं। हमारे होंट हमें सहारा देते हैं तो कौन हमारा मालिक होगा? कोई नहीं!” \b \p \v 5 लेकिन रब फ़रमाता है, “नाचारों पर तुम्हारे ज़ुल्म की ख़बर और ज़रूरतमंदों की कराहती आवाज़ें मेरे सामने आई हैं। अब मैं उठकर उन्हें उनसे छुटकारा दूँगा जो उनके ख़िलाफ़ फुँकारते हैं।” \b \p \v 6 रब के फ़रमान पाक हैं, वह भट्टी में सात बार साफ़ की गई चाँदी की मानिंद ख़ालिस हैं। \p \v 7 ऐ रब, तू ही उन्हें महफ़ूज़ रखेगा, तू ही उन्हें अबद तक इस नसल से बचाए रखेगा, \p \v 8 गो बेदीन आज़ादी से इधर-उधर फिरते हैं, और इनसानों के दरमियान कमीनापन का राज है। \c 13 \s1 मदद के लिए दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ रब, कब तक? क्या तू मुझे अबद तक भूला रहेगा? तू कब तक अपना चेहरा मुझसे छुपाए रखेगा? \p \v 2 मेरी जान कब तक परेशानियों में मुब्तला रहे, मेरा दिल कब तक रोज़ बरोज़ दुख उठाता रहे? मेरा दुश्मन कब तक मुझ पर ग़ालिब रहेगा? \b \p \v 3 ऐ रब मेरे ख़ुदा, मुझ पर नज़र डालकर मेरी सुन! मेरी आँखों को रौशन कर, वरना मैं मौत की नींद सो जाऊँगा। \p \v 4 तब मेरा दुश्मन कहेगा, “मैं उस पर ग़ालिब आ गया हूँ!” और मेरे मुख़ालिफ़ शादियाना बजाएंगे कि मैं हिल गया हूँ। \b \p \v 5 लेकिन मैं तेरी शफ़क़त पर भरोसा रखता हूँ, मेरा दिल तेरी नजात देखकर ख़ुशी मनाएगा। \p \v 6 मैं रब की तमजीद में गीत गाऊँगा, क्योंकि उसने मुझ पर एहसान किया है। \c 14 \s1 बेदीन की हमाक़त \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p अहमक़ दिल में कहता है, “अल्लाह है ही नहीं!” ऐसे लोग बदचलन हैं, उनकी हरकतें क़ाबिले-घिन हैं। एक भी नहीं है जो अच्छा काम करे। \p \v 2 रब ने आसमान से इनसान पर नज़र डाली ताकि देखे कि क्या कोई समझदार है? क्या कोई अल्लाह का तालिब है? \p \v 3 अफ़सोस, सब सहीह राह से भटक गए, सबके सब बिगड़ गए हैं। कोई नहीं जो भलाई करता हो, एक भी नहीं। \b \p \v 4 क्या जो बदी करके मेरी क़ौम को रोटी की तरह खा लेते हैं उनमें से एक को भी समझ नहीं आती? वह तो रब को पुकारते ही नहीं। \b \p \v 5 तब उन पर सख़्त दहशत छा गई, क्योंकि अल्लाह रास्तबाज़ की नसल के साथ है। \p \v 6 तुम नाचार के मनसूबों को ख़ाक में मिलाना चाहते हो, लेकिन रब ख़ुद उस की पनाहगाह है। \b \p \v 7 काश कोहे-सिय्यून से इसराईल की नजात निकले! जब रब अपनी क़ौम को बहाल करेगा तो याक़ूब ख़ुशी के नारे लगाएगा, इसराईल बाग़ बाग़ होगा। \c 15 \s1 कौन अल्लाह के हुज़ूर क़ायम रह सकता है? \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ऐ रब, कौन तेरे ख़ैमे में ठहर सकता है? किस को तेरे मुक़द्दस पहाड़ पर रहने की इजाज़त है? \p \v 2 वह जिसका चाल-चलन बेगुनाह है, जो रास्तबाज़ ज़िंदगी गुज़ारकर दिल से सच बोलता है। \p \v 3 ऐसा शख़्स अपनी ज़बान से किसी पर तोहमत नहीं लगाता। न वह अपने पड़ोसी पर ज़्यादती करता, न उस की बेइज़्ज़ती करता है। \p \v 4 वह मरदूद को हक़ीर जानता लेकिन ख़ुदातरस की इज़्ज़त करता है। जो वादा उसने क़सम खाकर किया उसे पूरा करता है, ख़ाह उसे कितना ही नुक़सान क्यों न पहुँचे। \p \v 5 वह सूद लिए बग़ैर उधार देता है और उस की रिश्वत क़बूल नहीं करता जो बेगुनाह का हक़ मारना चाहता है। ऐसा शख़्स कभी डाँवाँडोल नहीं होगा। \c 16 \s1 एतमाद की दुआ \p \v 1 दाऊद का एक सुनहरा ज़बूर। \p ऐ अल्लाह, मुझे महफ़ूज़ रख, क्योंकि तुझमें मैं पनाह लेता हूँ। \p \v 2 मैंने रब से कहा, “तू मेरा आक़ा है, तू ही मेरी ख़ुशहाली का वाहिद सरचश्मा है।” \p \v 3 मुल्क में जो मुक़द्दसीन हैं वही मेरे सूरमे हैं, उन्हीं को मैं पसंद करता हूँ। \p \v 4 लेकिन जो दीगर माबूदों के पीछे भागे रहते हैं उनकी तकलीफ़ बढ़ती जाएगी। न मैं उनकी ख़ून की क़ुरबानियों को पेश करूँगा, न उनके नामों का ज़िक्र तक करूँगा। \b \p \v 5 ऐ रब, तू मेरी मीरास और मेरा हिस्सा है। मेरा नसीब तेरे हाथ में है। \p \v 6 जब क़ुरा डाला गया तो मुझे ख़ुशगवार ज़मीन मिल गई। यक़ीनन मेरी मीरास मुझे बहुत पसंद है। \p \v 7 मैं रब की सताइश करूँगा जिसने मुझे मशवरा दिया है। रात को भी मेरा दिल मेरी हिदायत करता है। \p \v 8 रब हर वक़्त मेरी आँखों के सामने रहता है। वह मेरे दहने हाथ रहता है, इसलिए मैं नहीं डगमगाऊँगा। \p \v 9 इसलिए मेरा दिल शादमान है, मेरी जान ख़ुशी के नारे लगाती है। हाँ, मेरा बदन पुरसुकून ज़िंदगी गुज़ारेगा। \p \v 10 क्योंकि तू मेरी जान को पाताल में नहीं छोड़ेगा, और न अपने मुक़द्दस को गलने-सड़ने की नौबत तक पहुँचने देगा। \p \v 11 तू मुझे ज़िंदगी की राह से आगाह करता है। तेरे हुज़ूर से भरपूर ख़ुशियाँ, तेरे दहने हाथ से अबदी मसर्रतें हासिल होती हैं। \c 17 \s1 बेगुनाह शख़्स की दुआ \p \v 1 दाऊद की दुआ। \p ऐ रब, इनसाफ़ के लिए मेरी फ़रियाद सुन, मेरी आहो-ज़ारी पर ध्यान दे। मेरी दुआ पर ग़ौर कर, क्योंकि वह फ़रेबदेह होंटों से नहीं निकलती। \p \v 2 तेरे हुज़ूर मेरा इनसाफ़ किया जाए, तेरी आँखें उन बातों का मुशाहदा करें जो सच हैं। \p \v 3 तूने मेरे दिल को जाँच लिया, रात को मेरा मुआयना किया है। तूने मुझे भट्टी में डाल दिया ताकि नापाक चीज़ें दूर करे, गो ऐसी कोई चीज़ नहीं मिली। क्योंकि मैंने पूरा इरादा कर लिया है कि मेरे मुँह से बुरी बात नहीं निकलेगी। \p \v 4 जो कुछ भी दूसरे करते हैं मैंने ख़ुद तेरे मुँह के फ़रमान के ताबे रहकर अपने आपको ज़ालिमों की राहों से दूर रखा है। \p \v 5 मैं क़दम बक़दम तेरी राहों में रहा, मेरे पाँव कभी न डगमगाए। \p \v 6 ऐ अल्लाह, मैं तुझे पुकारता हूँ, क्योंकि तू मेरी सुनेगा। कान लगाकर मेरी दुआ को सुन। \p \v 7 तू जो अपने दहने हाथ से उन्हें रिहाई देता है जो अपने मुख़ालिफ़ों से तुझमें पनाह लेते हैं, मोजिज़ाना तौर पर अपनी शफ़क़त का इज़हार कर। \p \v 8 आँख की पुतली की तरह मेरी हिफ़ाज़त कर, अपने परों के साये में मुझे छुपा ले। \p \v 9 उन बेदीनों से मुझे महफ़ूज़ रख जो मुझ पर तबाहकुन हमले कर रहे हैं, उन दुश्मनों से जो मुझे घेरकर मार डालने की कोशिश कर रहे हैं। \p \v 10 वह सरकश हो गए हैं, उनके मुँह घमंड की बातें करते हैं। \p \v 11 जिधर भी हम क़दम उठाएँ वहाँ वह भी पहुँच जाते हैं। अब उन्होंने हमें घेर लिया है, वह घूर घूरकर हमें ज़मीन पर पटख़ने का मौक़ा ढूँड रहे हैं। \p \v 12 वह उस शेरबबर की मानिंद हैं जो शिकार को फाड़ने के लिए तड़पता है, उस जवान शेर की मानिंद जो ताक में बैठा है। \b \p \v 13 ऐ रब, उठ और उनका सामना कर, उन्हें ज़मीन पर पटख़ दे! अपनी तलवार से मेरी जान को बेदीनों से बचा। \p \v 14 ऐ रब, अपने हाथ से मुझे इनसे छुटकारा दे। उन्हें तो इस दुनिया में अपना हिस्सा मिल चुका है। क्योंकि तूने उनके पेट को अपने माल से भर दिया, बल्कि उनके बेटे भी सेर हो गए हैं और इतना बाक़ी है कि वह अपनी औलाद के लिए भी काफ़ी कुछ छोड़ जाएंगे। \p \v 15 लेकिन मैं ख़ुद रास्तबाज़ साबित होकर तेरे चेहरे का मुशाहदा करूँगा, मैं जागकर तेरी सूरत से सेर हो जाऊँगा। \c 18 \s1 दाऊद का फ़तह का गीत \p \v 1 रब के ख़ादिम दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। दाऊद ने रब के लिए यह गीत गाया जब रब ने उसे तमाम दुश्मनों और साऊल से बचाया। वह बोला, \p ऐ रब मेरी क़ुव्वत, मैं तुझे प्यार करता हूँ। \p \v 2 रब मेरी चट्टान, मेरा क़िला और मेरा नजातदहिंदा है। मेरा ख़ुदा मेरी चट्टान है जिसमें मैं पनाह लेता हूँ। वह मेरी ढाल, मेरी नजात का पहाड़, मेरा बुलंद हिसार है। \p \v 3 मैं रब को पुकारता हूँ, उस की तमजीद हो! तब वह मुझे दुश्मनों से छुटकारा देता है। \b \p \v 4 मौत के रस्सों ने मुझे घेर लिया, हलाकत के सैलाब ने मेरे दिल पर दहशत तारी की। \p \v 5 पाताल के रस्सों ने मुझे जकड़ लिया, मौत ने मेरे रास्ते में अपने फंदे डाल दिए। \p \v 6 जब मैं मुसीबत में फँस गया तो मैंने रब को पुकारा। मैंने मदद के लिए अपने ख़ुदा से फ़रियाद की तो उसने अपनी सुकूनतगाह से मेरी आवाज़ सुनी, मेरी चीख़ें उसके कान तक पहुँच गईं। \b \p \v 7 तब ज़मीन लरज़ उठी और थरथराने लगी, पहाड़ों की बुनियादें रब के ग़ज़ब के सामने काँपने और झूलने लगीं। \p \v 8 उस की नाक से धुआँ निकल आया, उसके मुँह से भस्म करनेवाले शोले और दहकते कोयले भड़क उठे। \p \v 9 आसमान को झुकाकर वह नाज़िल हुआ। जब उतर आया तो उसके पाँवों के नीचे अंधेरा ही अंधेरा था। \p \v 10 वह करूबी फ़रिश्ते पर सवार हुआ और उड़कर हवा के परों पर मँडलाने लगा। \p \v 11 उसने अंधेरे को अपनी छुपने की जगह बनाया, बारिश के काले और घने बादल ख़ैमे की तरह अपने गिर्दागिर्द लगाए। \p \v 12 उसके हुज़ूर की तेज़ रौशनी से उसके बादल ओले और शोलाज़न कोयले लेकर निकल आए। \p \v 13 रब आसमान से कड़कने लगा, अल्लाह तआला की आवाज़ गूँज उठी। तब ओले और शोलाज़न कोयले बरसने लगे। \p \v 14 उसने अपने तीर चलाए तो दुश्मन तित्तर-बित्तर हो गए। उस की तेज़ बिजली इधर-उधर गिरती गई तो उनमें हलचल मच गई। \p \v 15 ऐ रब, तूने डाँटा तो समुंदर की वादियाँ ज़ाहिर हुईं, जब तू ग़ुस्से में गरजा तो तेरे दम के झोंकों से ज़मीन की बुनियादें नज़र आईं। \b \p \v 16 बुलंदियों पर से अपना हाथ बढ़ाकर उसने मुझे पकड़ लिया, मुझे गहरे पानी में से खींचकर निकाल लाया। \p \v 17 उसने मुझे मेरे ज़बरदस्त दुश्मन से बचाया, उनसे जो मुझसे नफ़रत करते हैं, जिन पर मैं ग़ालिब न आ सका। \p \v 18 जिस दिन मैं मुसीबत में फँस गया उस दिन उन्होंने मुझ पर हमला किया, लेकिन रब मेरा सहारा बना रहा। \p \v 19 उसने मुझे तंग जगह से निकालकर छुटकारा दिया, क्योंकि वह मुझसे ख़ुश था। \p \v 20 रब मुझे मेरी रास्तबाज़ी का अज्र देता है। मेरे हाथ साफ़ हैं, इसलिए वह मुझे बरकत देता है। \p \v 21 क्योंकि मैं रब की राहों पर चलता रहा हूँ, मैं बदी करने से अपने ख़ुदा से दूर नहीं हुआ। \p \v 22 उसके तमाम अहकाम मेरे सामने रहे हैं, मैंने उसके फ़रमानों को रद्द नहीं किया। \p \v 23 उसके सामने ही मैं बेइलज़ाम रहा, गुनाह करने से बाज़ रहा हूँ। \p \v 24 इसलिए रब ने मुझे मेरी रास्तबाज़ी का अज्र दिया, क्योंकि उस की आँखों के सामने ही में पाक-साफ़ साबित हुआ। \b \p \v 25 ऐ अल्लाह, जो वफ़ादार है उसके साथ तेरा सुलूक वफ़ादारी का है, जो बेइलज़ाम है उसके साथ तेरा सुलूक बेइलज़ाम है। \p \v 26 जो पाक है उसके साथ तेरा सुलूक पाक है। लेकिन जो कजरौ है उसके साथ तेरा सुलूक भी कजरवी का है। \p \v 27 क्योंकि तू पस्तहालों को नजात देता और मग़रूर आँखों को पस्त करता है। \b \p \v 28 ऐ रब, तू ही मेरा चराग़ जलाता, मेरा ख़ुदा ही मेरे अंधेरे को रौशन करता है। \p \v 29 क्योंकि तेरे साथ मैं फ़ौजी दस्ते पर हमला कर सकता, अपने ख़ुदा के साथ दीवार को फलाँग सकता हूँ। \p \v 30 अल्लाह की राह कामिल है, रब का फ़रमान ख़ालिस है। जो भी उसमें पनाह ले उस की वह ढाल है। \p \v 31 क्योंकि रब के सिवा कौन ख़ुदा है? हमारे ख़ुदा के सिवा कौन चट्टान है? \p \v 32 अल्लाह मुझे क़ुव्वत से कमरबस्ता करता, वह मेरी राह को कामिल कर देता है। \p \v 33 वह मेरे पाँवों को हिरन की-सी फुरती अता करता, मुझे मज़बूती से मेरी बुलंदियों पर खड़ा करता है। \p \v 34 वह मेरे हाथों को जंग करने की तरबियत देता है। अब मेरे बाज़ू पीतल की कमान को भी तान लेते हैं। \b \p \v 35 ऐ रब, तूने मुझे अपनी नजात की ढाल बख़्श दी है। तेरे दहने हाथ ने मुझे क़ायम रखा, तेरी नरमी ने मुझे बड़ा बना दिया है। \p \v 36 तू मेरे क़दमों के लिए रास्ता बना देता है, इसलिए मेरे टख़ने नहीं डगमगाते। \p \v 37 मैंने अपने दुश्मनों का ताक़्क़ुब करके उन्हें पकड़ लिया, मैं बाज़ न आया जब तक वह ख़त्म न हो गए। \p \v 38 मैंने उन्हें यों पाश पाश कर दिया कि दुबारा उठ न सके बल्कि गिरकर मेरे पाँवों तले पड़े रहे। \p \v 39 क्योंकि तूने मुझे जंग करने के लिए क़ुव्वत से कमरबस्ता कर दिया, तूने मेरे मुख़ालिफ़ों को मेरे सामने झुका दिया। \p \v 40 तूने मेरे दुश्मनों को मेरे सामने से भगा दिया, और मैंने नफ़रत करनेवालों को तबाह कर दिया। \p \v 41 वह मदद के लिए चीख़ते-चिल्लाते रहे, लेकिन बचानेवाला कोई नहीं था। वह रब को पुकारते रहे, लेकिन उसने जवाब न दिया। \p \v 42 मैंने उन्हें चूर चूर करके गर्द की तरह हवा में उड़ा दिया। मैंने उन्हें कचरे की तरह गली में फेंक दिया। \b \p \v 43 तूने मुझे क़ौम के झगड़ों से बचाकर अक़वाम का सरदार बना दिया है। जिस क़ौम से मैं नावाक़िफ़ था वह मेरी ख़िदमत करती है। \p \v 44 ज्योंही मैं बात करता हूँ तो लोग मेरी सुनते हैं। परदेसी दबककर मेरी ख़ुशामद करते हैं। \p \v 45 वह हिम्मत हारकर काँपते हुए अपने क़िलों से निकल आते हैं। \b \p \v 46 रब ज़िंदा है! मेरी चट्टान की तमजीद हो! मेरी नजात के ख़ुदा की ताज़ीम हो! \p \v 47 वही ख़ुदा है जो मेरा इंतक़ाम लेता, अक़वाम को मेरे ताबे कर देता \p \v 48 और मुझे मेरे दुश्मनों से छुटकारा देता है। यक़ीनन तू मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों पर सरफ़राज़ करता, मुझे ज़ालिमों से बचाए रखता है। \p \v 49 ऐ रब, इसलिए मैं अक़वाम में तेरी हम्दो-सना करूँगा, तेरे नाम की तारीफ़ में गीत गाऊँगा। \p \v 50 क्योंकि रब अपने बादशाह को बड़ी नजात देता है, वह अपने मसह किए हुए बादशाह दाऊद और उस की औलाद पर हमेशा तक मेहरबान रहेगा। \c 19 \s1 मख़लूक़ात में अल्लाह का जलाल \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p आसमान अल्लाह के जलाल का एलान करते हैं, आसमानी गुंबद उसके हाथों का काम बयान करता है। \p \v 2 एक दिन दूसरे को इत्तला देता, एक रात दूसरी को ख़बर पहुँचाती है, \p \v 3 लेकिन ज़बान से नहीं। गो उनकी आवाज़ सुनाई नहीं देती, \p \v 4 तो भी उनकी आवाज़ निकलकर पूरी दुनिया में सुनाई देती, उनके अलफ़ाज़ दुनिया की इंतहा तक पहुँच जाते हैं। वहाँ अल्लाह ने आफ़ताब के लिए ख़ैमा लगाया है। \p \v 5 जिस तरह दूल्हा अपनी ख़ाबगाह से निकलता है उसी तरह सूरज निकलकर पहलवान की तरह अपनी दौड़ दौड़ने पर ख़ुशी मनाता है। \p \v 6 आसमान के एक सिरे से चढ़कर उसका चक्कर दूसरे सिरे तक लगता है। उस की तपती गरमी से कोई भी चीज़ पोशीदा नहीं रहती। \b \p \v 7 रब की शरीअत कामिल है, उससे जान में जान आ जाती है। रब के अहकाम क़ाबिले-एतमाद हैं, उनसे सादालौह दानिशमंद हो जाता है। \p \v 8 रब की हिदायात बा-इनसाफ़ हैं, उनसे दिल बाग़ बाग़ हो जाता है। रब के अहकाम पाक हैं, उनसे आँखें चमक उठती हैं। \p \v 9 रब का ख़ौफ़ पाक है और अबद तक क़ायम रहेगा। रब के फ़रमान सच्चे और सबके सब रास्त हैं। \p \v 10 वह सोने बल्कि ख़ालिस सोने के ढेर से ज़्यादा मरग़ूब हैं। वह शहद बल्कि छत्ते के ताज़ा शहद से ज़्यादा मीठे हैं। \b \p \v 11 उनसे तेरे ख़ादिम को आगाह किया जाता है, उन पर अमल करने से बड़ा अज्र मिलता है। \p \v 12 जो ख़ताएँ बेख़बरी में सरज़द हुईं कौन उन्हें जानता है? मेरे पोशीदा गुनाहों को मुआफ़ कर! \p \v 13 अपने ख़ादिम को गुस्ताखों से महफ़ूज़ रख ताकि वह मुझ पर हुकूमत न करें। तब मैं बेइलज़ाम होकर संगीन गुनाह से पाक रहूँगा। \b \p \v 14 ऐ रब, बख़्श दे कि मेरे मुँह की बातें और मेरे दिल की सोच-बिचार तुझे पसंद आए। तू ही मेरी चट्टान और मेरा छुड़ानेवाला है। \c 20 \s1 फ़तह के लिए दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p मुसीबत के दिन रब तेरी सुने, याक़ूब के ख़ुदा का नाम तुझे महफ़ूज़ रखे। \p \v 2 वह मक़दिस से तेरी मदद भेजे, वह सिय्यून से तेरा सहारा बने। \p \v 3 वह तेरी ग़ल्ला की नज़रें याद करे, तेरी भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ क़बूल फ़रमाए। (सिलाह) \p \v 4 वह तेरे दिल की आरज़ू पूरी करे, तेरे तमाम मनसूबों को कामयाबी बख़्शे। \p \v 5 तब हम तेरी नजात की ख़ुशी मनाएँगे, हम अपने ख़ुदा के नाम में फ़तह का झंडा गाड़ेंगे। रब तेरी तमाम गुज़ारिशें पूरी करे। \b \p \v 6 अब मैंने जान लिया है कि रब अपने मसह किए हुए बादशाह की मदद करता है। वह अपने मुक़द्दस आसमान से उस की सुनकर अपने दहने हाथ की क़ुदरत से उसे छुटकारा देगा। \p \v 7 बाज़ अपने रथों पर, बाज़ अपने घोड़ों पर फ़ख़र करते हैं, लेकिन हम रब अपने ख़ुदा के नाम पर फ़ख़र करेंगे। \p \v 8 हमारे दुश्मन झुककर गिर जाएंगे, लेकिन हम उठकर मज़बूती से खड़े रहेंगे। \b \p \v 9 ऐ रब, हमारी मदद फ़रमा! बादशाह हमारी सुने जब हम मदद के लिए पुकारें। \c 21 \s1 बादशाह के लिए अल्लाह की मदद \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ रब, बादशाह तेरी क़ुव्वत देखकर शादमान है, वह तेरी नजात की कितनी बड़ी ख़ुशी मनाता है। \p \v 2 तूने उस की दिली ख़ाहिश पूरी की और इनकार न किया जब उस की आरज़ू ने होंटों पर अलफ़ाज़ का रूप धारा। (सिलाह) \p \v 3 क्योंकि तू अच्छी अच्छी बरकतें अपने साथ लेकर उससे मिलने आया, तूने उसे ख़ालिस सोने का ताज पहनाया। \p \v 4 उसने तुझसे ज़िंदगी पाने की आरज़ू की तो तूने उसे उम्र की दराज़ी बख़्शी, मज़ीद इतने दिन कि उनकी इंतहा नहीं। \p \v 5 तेरी नजात से उसे बड़ी इज़्ज़त हासिल हुई, तूने उसे शानो-शौकत से आरास्ता किया। \p \v 6 क्योंकि तू उसे अबद तक बरकत देता, उसे अपने चेहरे के हुज़ूर लाकर निहायत ख़ुश कर देता है। \p \v 7 क्योंकि बादशाह रब पर एतमाद करता है, अल्लाह तआला की शफ़क़त उसे डगमगाने से बचाएगी। \b \p \v 8 तेरे दुश्मन तेरे क़ब्ज़े में आ जाएंगे, जो तुझसे नफ़रत करते हैं उन्हें तेरा दहना हाथ पकड़ लेगा। \p \v 9 जब तू उन पर ज़ाहिर होगा तो वह भड़कती भट्टी की-सी मुसीबत में फँस जाएंगे। रब अपने ग़ज़ब में उन्हें हड़प कर लेगा, और आग उन्हें खा जाएगी। \p \v 10 तू उनकी औलाद को रूए-ज़मीन पर से मिटा डालेगा, इनसानों में उनका नामो-निशान तक नहीं रहेगा। \p \v 11 गो वह तेरे ख़िलाफ़ साज़िशें करते हैं तो भी उनके बुरे मनसूबे नाकाम रहेंगे। \p \v 12 क्योंकि तू उन्हें भगाकर उनके चेहरों को अपने तीरों का निशाना बना देगा। \p \v 13 ऐ रब, उठ और अपनी क़ुदरत का इज़हार कर ताकि हम तेरी क़ुदरत की तमजीद में साज़ बजाकर गीत गाएँ। \c 22 \s1 रास्तबाज़ का दुख \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : तुलूए-सुबह की हिरनी। \p ऐ मेरे ख़ुदा, ऐ मेरे ख़ुदा, तूने मुझे क्यों तर्क कर दिया है? मैं चीख़ रहा हूँ, लेकिन मेरी नजात नज़र नहीं आती। \p \v 2 ऐ मेरे ख़ुदा, दिन को मैं चिल्लाता हूँ, लेकिन तू जवाब नहीं देता। रात को पुकारता हूँ, लेकिन आराम नहीं पाता। \b \p \v 3 लेकिन तू क़ुद्दूस है, तू जो इसराईल की मद्हसराई पर तख़्तनशीन होता है। \p \v 4 तुझ पर हमारे बापदादा ने भरोसा रखा, और जब भरोसा रखा तो तूने उन्हें रिहाई दी। \p \v 5 जब उन्होंने मदद के लिए तुझे पुकारा तो बचने का रास्ता खुल गया। जब उन्होंने तुझ पर एतमाद किया तो शरमिंदा न हुए। \b \p \v 6 लेकिन मैं कीड़ा हूँ, मुझे इनसान नहीं समझा जाता। लोग मेरी बेइज़्ज़ती करते, मुझे हक़ीर जानते हैं। \p \v 7 सब मुझे देखकर मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं। वह मुँह बनाकर तौबा तौबा करते और कहते हैं, \p \v 8 “उसने अपना मामला रब के सुपुर्द किया है। अब रब ही उसे बचाए। वही उसे छुटकारा दे, क्योंकि वही उससे ख़ुश है।” \b \p \v 9 यक़ीनन तू मुझे माँ के पेट से निकाल लाया। मैं अभी माँ का दूध पीता था कि तूने मेरे दिल में भरोसा पैदा किया। \p \v 10 ज्योंही मैं पैदा हुआ मुझे तुझ पर छोड़ दिया गया। माँ के पेट से ही तू मेरा ख़ुदा रहा है। \p \v 11 मुझसे दूर न रह। क्योंकि मुसीबत ने मेरा दामन पकड़ लिया है, और कोई नहीं जो मेरी मदद करे। \p \v 12 मुतअद्दिद बैलों ने मुझे घेर लिया, बसन के ताक़तवर साँड चारों तरफ़ जमा हो गए हैं। \p \v 13 मेरे ख़िलाफ़ उन्होंने अपने मुँह खोल दिए हैं, उस दहाड़ते हुए शेरबबर की तरह जो शिकार को फाड़ने के जोश में आ गया है। \p \v 14 मुझे पानी की तरह ज़मीन पर उंडेला गया है, मेरी तमाम हड्डियाँ अलग अलग हो गई हैं, जिस्म के अंदर मेरा दिल मोम की तरह पिघल गया है। \p \v 15 मेरी ताक़त ठीकरे की तरह ख़ुश्क हो गई, मेरी ज़बान तालू से चिपक गई है। हाँ, तूने मुझे मौत की ख़ाक में लिटा दिया है। \p \v 16 कुत्तों ने मुझे घेर रखा, शरीरों के जत्थे ने मेरा इहाता किया है। उन्होंने मेरे हाथों और पाँवों को छेद डाला है। \p \v 17 मैं अपनी हड्डियों को गिन सकता हूँ। लोग घूर घूरकर मेरी मुसीबत से ख़ुश होते हैं। \p \v 18 वह आपस में मेरे कपड़े बाँट लेते और मेरे लिबास पर क़ुरा डालते हैं। \b \p \v 19 लेकिन तू ऐ रब, दूर न रह! ऐ मेरी क़ुव्वत, मेरी मदद करने के लिए जल्दी कर! \p \v 20 मेरी जान को तलवार से बचा, मेरी ज़िंदगी को कुत्ते के पंजे से छुड़ा। \p \v 21 शेर के मुँह से मुझे मख़लसी दे, जंगली बैलों के सींगों से रिहाई अता कर। \b \p ऐ रब, तूने मेरी सुनी है! \p \v 22 मैं अपने भाइयों के सामने तेरे नाम का एलान करूँगा, जमात के दरमियान तेरी मद्हसराई करूँगा। \p \v 23 तुम जो रब का ख़ौफ़ मानते हो, उस की तमजीद करो! ऐ याक़ूब की तमाम औलाद, उसका एहतराम करो! ऐ इसराईल के तमाम फ़रज़ंदो, उससे ख़ौफ़ खाओ! \p \v 24 क्योंकि न उसने मुसीबतज़दा का दुख हक़ीर जाना, न उस की तकलीफ़ से घिन खाई। उसने अपना मुँह उससे न छुपाया बल्कि उस की सुनी जब वह मदद के लिए चीख़ने-चिल्लाने लगा। \p \v 25 ऐ ख़ुदा, बड़े इजतिमा में मैं तेरी सताइश करूँगा, ख़ुदातरसों के सामने अपनी मन्नत पूरी करूँगा। \p \v 26 नाचार जी भरकर खाएँगे, रब के तालिब उस की हम्दो-सना करेंगे। तुम्हारे दिल अबद तक ज़िंदा रहें! \p \v 27 लोग दुनिया की इंतहा तक रब को याद करके उस की तरफ़ रुजू करेंगे। ग़ैरअक़वाम के तमाम ख़ानदान उसे सिजदा करेंगे। \p \v 28 क्योंकि रब को ही बादशाही का इख़्तियार हासिल है, वही अक़वाम पर हुकूमत करता है। \b \p \v 29 दुनिया के तमाम बड़े लोग उसके हुज़ूर खाएँगे और सिजदा करेंगे। ख़ाक में उतरनेवाले सब उसके सामने झुक जाएंगे, वह सब जो अपनी ज़िंदगी को ख़ुद क़ायम नहीं रख सकते। \p \v 30 उसके फ़रज़ंद उस की ख़िदमत करेंगे। एक आनेवाली नसल को रब के बारे में सुनाया जाएगा। \p \v 31 हाँ, वह आकर उस की रास्ती एक क़ौम को सुनाएँगे जो अभी पैदा नहीं हुई, क्योंकि उसने यह कुछ किया है। \c 23 \s1 अच्छा चरवाहा \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p रब मेरा चरवाहा है, मुझे कमी न होगी। \p \v 2 वह मुझे शादाब चरागाहों में चराता और पुरसुकून चश्मों के पास ले जाता है। \p \v 3 वह मेरी जान को ताज़ादम करता और अपने नाम की ख़ातिर रास्ती की राहों पर मेरी क़ियादत करता है। \p \v 4 गो मैं तारीकतरीन वादी में से गुज़रूँ मैं मुसीबत से नहीं डरूँगा, क्योंकि तू मेरे साथ है, तेरी लाठी और तेरा असा मुझे तसल्ली देते हैं। \b \p \v 5 तू मेरे दुश्मनों के रूबरू मेरे सामने मेज़ बिछाकर मेरे सर को तेल से तरो-ताज़ा करता है। मेरा प्याला तेरी बरकत से छलक उठता है। \p \v 6 यक़ीनन भलाई और शफ़क़त उम्र-भर मेरे साथ साथ रहेंगी, और मैं जीते-जी रब के घर में सुकूनत करूँगा। \c 24 \s1 बादशाह का इस्तक़बाल \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ज़मीन और जो कुछ उस पर है रब का है, दुनिया और उसके बाशिंदे उसी के हैं। \v 2 क्योंकि उसने ज़मीन की बुनियाद समुंदरों पर रखी और उसे दरियाओं पर क़ायम किया। \b \p \v 3 किस को रब के पहाड़ पर चढ़ने की इजाज़त है? कौन उसके मुक़द्दस मक़ाम में खड़ा हो सकता है? \p \v 4 वह जिसके हाथ पाक और दिल साफ़ हैं, जो न फ़रेब का इरादा रखता, न क़सम खाकर झूट बोलता है। \p \v 5 वह रब से बरकत पाएगा, उसे अपनी नजात के ख़ुदा से रास्ती मिलेगी। \p \v 6 यह होगा उन लोगों का हाल जो अल्लाह की मरज़ी दरियाफ़्त करते, जो तेरे चेहरे के तालिब होते हैं, ऐ याक़ूब के ख़ुदा। (सिलाह) \b \p \v 7 ऐ फाटको, खुल जाओ! ऐ क़दीम दरवाज़ो, पूरे तौर पर खुल जाओ ताकि जलाल का बादशाह दाख़िल हो जाए। \p \v 8 जलाल का बादशाह कौन है? रब जो क़वी और क़ादिर है, रब जो जंग में ज़ोरावर है। \p \v 9 ऐ फाटको, खुल जाओ! ऐ क़दीम दरवाज़ो, पूरे तौर पर खुल जाओ ताकि जलाल का बादशाह दाख़िल हो जाए। \p \v 10 जलाल का बादशाह कौन है? रब्बुल-अफ़वाज, वही जलाल का बादशाह है। (सिलाह) \c 25 \s1 मुआफ़ी और राहनुमाई के लिए दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ऐ रब, मैं तेरा आरज़ूमंद हूँ। \p \v 2 ऐ मेरे ख़ुदा, तुझ पर मैं भरोसा रखता हूँ। मुझे शरमिंदा न होने दे कि मेरे दुश्मन मुझ पर शादियाना बजाएँ। \p \v 3 क्योंकि जो भी तुझ पर उम्मीद रखे वह शरमिंदा नहीं होगा जबकि जो बिलावजह बेवफ़ा होते हैं वही शरमिंदा हो जाएंगे। \b \p \v 4 ऐ रब, अपनी राहें मुझे दिखा, मुझे अपने रास्तों की तालीम दे। \p \v 5 अपनी सच्चाई के मुताबिक़ मेरी राहनुमाई कर, मुझे तालीम दे। क्योंकि तू मेरी नजात का ख़ुदा है। दिन-भर मैं तेरे इंतज़ार में रहता हूँ। \p \v 6 ऐ रब, अपना वह रहम और मेहरबानी याद कर जो तू क़दीम ज़माने से करता आया है। \p \v 7 ऐ रब, मेरी जवानी के गुनाहों और मेरी बेवफ़ा हरकतों को याद न कर बल्कि अपनी भलाई की ख़ातिर और अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मेरा ख़याल रख। \b \p \v 8 रब भला और आदिल है, इसलिए वह गुनाहगारों को सहीह राह पर चलने की तलक़ीन करता है। \p \v 9 वह फ़रोतनों की इनसाफ़ की राह पर राहनुमाई करता, हलीमों को अपनी राह की तालीम देता है। \p \v 10 जो रब के अहद और अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारें उन्हें रब मेहरबानी और वफ़ादारी की राहों पर ले चलता है। \p \v 11 ऐ रब, मेरा क़ुसूर संगीन है, लेकिन अपने नाम की ख़ातिर उसे मुआफ़ कर। \p \v 12 रब का ख़ौफ़ माननेवाला कहाँ है? रब ख़ुद उसे उस राह की तालीम देगा जो उसे चुनना है। \p \v 13 तब वह ख़ुशहाल रहेगा, और उस की औलाद मुल्क को मीरास में पाएगी। \p \v 14 जो रब का ख़ौफ़ मानें उन्हें वह अपने हमराज़ बनाकर अपने अहद की तालीम देता है। \b \p \v 15 मेरी आँखें रब को तकती रहती हैं, क्योंकि वही मेरे पाँवों को जाल से निकाल लेता है। \p \v 16 मेरी तरफ़ मायल हो जा, मुझ पर मेहरबानी कर! क्योंकि मैं तनहा और मुसीबतज़दा हूँ। \p \v 17 मेरे दिल की परेशानियाँ दूर कर, मुझे मेरी तकालीफ़ से रिहाई दे। \p \v 18 मेरी मुसीबत और तंगी पर नज़र डालकर मेरी ख़ताओं को मुआफ़ कर। \p \v 19 देख, मेरे दुश्मन कितने ज़्यादा हैं, वह कितना ज़ुल्म करके मुझसे नफ़रत करते हैं। \p \v 20 मेरी जान को महफ़ूज़ रख, मुझे बचा! मुझे शरमिंदा न होने दे, क्योंकि मैं तुझमें पनाह लेता हूँ। \p \v 21 बेगुनाही और दियानतदारी मेरी पहरादारी करें, क्योंकि मैं तेरे इंतज़ार में रहता हूँ। \p \v 22 ऐ अल्लाह, फ़िद्या देकर इसराईल को उस की तमाम तकालीफ़ से आज़ाद कर! \c 26 \s1 बेगुनाह का इक़रार और इल्तिजा \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ऐ रब, मेरा इनसाफ़ कर, क्योंकि मेरा चाल-चलन बेक़ुसूर है। मैंने रब पर भरोसा रखा है, और मैं डाँवाँडोल नहीं हो जाऊँगा। \b \p \v 2 ऐ रब, मुझे जाँच ले, मुझे आज़माकर दिल की तह तक मेरा मुआयना कर। \p \v 3 क्योंकि तेरी शफ़क़त मेरी आँखों के सामने रही है, मैं तेरी सच्ची राह पर चलता रहा हूँ। \p \v 4 न मैं धोकेबाज़ों की मजलिस में बैठता, न चालाक लोगों से रिफ़ाक़त रखता हूँ। \p \v 5 मुझे शरीरों के इजतिमाओं से नफ़रत है, बेदीनों के साथ मैं बैठता भी नहीं। \p \v 6 ऐ रब, मैं अपने हाथ धोकर अपनी बेगुनाही का इज़हार करता हूँ। मैं तेरी क़ुरबानगाह के गिर्द फिरकर \p \v 7 बुलंद आवाज़ से तेरी हम्दो-सना करता, तेरे तमाम मोजिज़ात का एलान करता हूँ। \p \v 8 ऐ रब, तेरी सुकूनतगाह मुझे प्यारी है, जिस जगह तेरा जलाल ठहरता है वह मुझे अज़ीज़ है। \b \p \v 9 मेरी जान को मुझसे छीनकर मुझे गुनाहगारों में शामिल न कर! मेरी ज़िंदगी को मिटाकर मुझे ख़ूनख़ारों में शुमार न कर, \p \v 10 ऐसे लोगों में जिनके हाथ शर्मनाक हरकतों से आलूदा हैं, जो हर वक़्त रिश्वत खाते हैं। \p \v 11 क्योंकि मैं बेगुनाह ज़िंदगी गुज़ारता हूँ। फ़िद्या देकर मुझे छुटकारा दे! मुझ पर मेहरबानी कर! \b \p \v 12 मेरे पाँव हमवार ज़मीन पर क़ायम हो गए हैं, और मैं इजतिमाओं में रब की सताइश करूँगा। \c 27 \s1 अल्लाह से रिफ़ाक़त \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p रब मेरी रौशनी और मेरी नजात है, मैं किससे डरूँ? रब मेरी जान की पनाहगाह है, मैं किससे दहशत खाऊँ? \p \v 2 जब शरीर मुझ पर हमला करें ताकि मुझे हड़प कर लें, जब मेरे मुख़ालिफ़ और दुश्मन मुझ पर टूट पड़ें तो वह ठोकर खाकर गिर जाएंगे। \p \v 3 गो फ़ौज मुझे घेर ले मेरा दिल ख़ौफ़ नहीं खाएगा, गो मेरे ख़िलाफ़ जंग छिड़ जाए मेरा भरोसा क़ायम रहेगा। \b \p \v 4 रब से मेरी एक गुज़ारिश है, मैं एक ही बात चाहता हूँ। यह कि जीते-जी रब के घर में रहकर उस की शफ़क़त से लुत्फ़अंदोज़ हो सकूँ, कि उस की सुकूनतगाह में ठहरकर महवे-ख़याल रह सकूँ। \p \v 5 क्योंकि मुसीबत के दिन वह मुझे अपनी सुकूनतगाह में पनाह देगा, मुझे अपने ख़ैमे में छुपा लेगा, मुझे उठाकर ऊँची चट्टान पर रखेगा। \p \v 6 अब मैं अपने दुश्मनों पर सरबुलंद हूँगा, अगरचे उन्होंने मुझे घेर रखा है। मैं उसके ख़ैमे में ख़ुशी के नारे लगाकर क़ुरबानियाँ पेश करूँगा, साज़ बजाकर रब की मद्हसराई करूँगा। \b \p \v 7 ऐ रब, मेरी आवाज़ सुन जब मैं तुझे पुकारूँ, मुझ पर मेहरबानी करके मेरी सुन। \p \v 8 मेरा दिल तुझे याद दिलाता है कि तूने ख़ुद फ़रमाया, “मेरे चेहरे के तालिब रहो!” ऐ रब, मैं तेरे ही चेहरे का तालिब रहा हूँ। \p \v 9 अपने चेहरे को मुझसे छुपाए न रख, अपने ख़ादिम को ग़ुस्से से अपने हुज़ूर से न निकाल। क्योंकि तू ही मेरा सहारा रहा है। ऐ मेरी नजात के ख़ुदा, मुझे न छोड़, मुझे तर्क न कर। \p \v 10 क्योंकि मेरे माँ-बाप ने मुझे तर्क कर दिया है, लेकिन रब मुझे क़बूल करके अपने घर में लाएगा। \p \v 11 ऐ रब, मुझे अपनी राह की तरबियत दे, हमवार रास्ते पर मेरी राहनुमाई कर ताकि अपने दुश्मनों से महफ़ूज़ रहूँ। \p \v 12 मुझे मुख़ालिफ़ों के लालच में न आने दे, क्योंकि झूटे गवाह मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं जो तशद्दुद करने के लिए तैयार हैं। \p \v 13 लेकिन मेरा पूरा ईमान यह है कि मैं ज़िंदों के मुल्क में रहकर रब की भलाई देखूँगा। \b \p \v 14 रब के इंतज़ार में रह! मज़बूत और दिलेर हो, और रब के इंतज़ार में रह! \c 28 \s1 मदद के लिए दुआ और जवाब के लिए शुक्रगुज़ारी \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ऐ रब, मैं तुझे पुकारता हूँ। ऐ मेरी चट्टान, ख़ामोशी से अपना मुँह मुझसे न फेर। क्योंकि अगर तू चुप रहे तो मैं मौत के गढ़े में उतरनेवालों की मानिंद हो जाऊँगा। \p \v 2 मेरी इल्तिजाएँ सुन जब मैं चीख़ते-चिल्लाते तुझसे मदद माँगता हूँ, जब मैं अपने हाथ तेरी सुकूनतगाह के मुक़द्दसतरीन कमरे की तरफ़ उठाता हूँ। \p \v 3 मुझे उन बेदीनों के साथ घसीटकर सज़ा न दे जो ग़लत काम करते हैं, जो अपने पड़ोसियों से बज़ाहिर दोस्ताना बातें करते, लेकिन दिल में उनके ख़िलाफ़ बुरे मनसूबे बाँधते हैं। \p \v 4 उन्हें उनकी हरकतों और बुरे कामों का बदला दे। जो कुछ उनके हाथों से सरज़द हुआ है उस की पूरी सज़ा दे। उन्हें उतना ही नुक़सान पहुँचा दे जितना उन्होंने दूसरों को पहुँचाया है। \p \v 5 क्योंकि न वह रब के आमाल पर, न उसके हाथों के काम पर तवज्जुह देते हैं। अल्लाह उन्हें ढा देगा और दुबारा कभी तामीर नहीं करेगा। \b \p \v 6 रब की तमजीद हो, क्योंकि उसने मेरी इल्तिजा सुन ली। \p \v 7 रब मेरी क़ुव्वत और मेरी ढाल है। उस पर मेरे दिल ने भरोसा रखा, उससे मुझे मदद मिली है। मेरा दिल शादियाना बजाता है, मैं गीत गाकर उस की सताइश करता हूँ। \p \v 8 रब अपनी क़ौम की क़ुव्वत और अपने मसह किए हुए ख़ादिम का नजातबख़्श क़िला है। \p \v 9 ऐ रब, अपनी क़ौम को नजात दे! अपनी मीरास को बरकत दे! उनकी गल्लाबानी करके उन्हें हमेशा तक उठाए रख। \c 29 \s1 रब के जलाल की तमजीद \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ऐ अल्लाह के फ़रज़ंदो, रब की तमजीद करो! रब के जलाल और क़ुदरत की सताइश करो! \p \v 2 रब के नाम को जलाल दो। मुक़द्दस लिबास से आरास्ता होकर रब को सिजदा करो। \p \v 3 रब की आवाज़ समुंदर के ऊपर गूँजती है। जलाल का ख़ुदा गरजता है, रब गहरे पानी के ऊपर गरजता है। \p \v 4 रब की आवाज़ ज़ोरदार है, रब की आवाज़ पुरजलाल है। \p \v 5 रब की आवाज़ देवदार के दरख़्तों को तोड़ डालती है, रब लुबनान के देवदार के दरख़्तों को टुकड़े टुकड़े कर देता है। \p \v 6 वह लुबनान को बछड़े और कोहे-सिरयून \f + \fr 29:6 \ft सिरयून हरमून का दूसरा नाम है। \f* को जंगली बैल के बच्चे की तरह कूदने फाँदने देता है। \p \v 7 रब की आवाज़ आग के शोले भड़का देती है। \p \v 8 रब की आवाज़ रेगिस्तान को हिला देती है, रब दश्ते-क़ादिस को काँपने देता है। \p \v 9 रब की आवाज़ सुनकर हिरनी दर्दे-ज़ह में मुब्तला हो जाती और जंगलों के पत्ते झड़ जाते हैं। लेकिन उस की सुकूनतगाह में सब पुकारते हैं, “जलाल!” \p \v 10 रब सैलाब के ऊपर तख़्तनशीन है, रब बादशाह की हैसियत से अबद तक तख़्तनशीन है। \p \v 11 रब अपनी क़ौम को तक़वियत देगा, रब अपने लोगों को सलामती की बरकत देगा। \c 30 \s1 मौत से छुटकारे पर शुक्रगुज़ारी \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। रब के घर की मख़सूसियत के मौक़े पर गीत। \p ऐ रब, मैं तेरी सताइश करता हूँ, क्योंकि तूने मुझे गहराइयों में से खींच निकाला। तूने मेरे दुश्मनों को मुझ पर बग़लें बजाने का मौक़ा नहीं दिया। \p \v 2 ऐ रब मेरे ख़ुदा, मैंने चीख़ते-चिल्लाते हुए तुझसे मदद माँगी, और तूने मुझे शफ़ा दी। \p \v 3 ऐ रब, तू मेरी जान को पाताल से निकाल लाया, तूने मेरी जान को मौत के गढ़े में उतरने से बचाया है। \p \v 4 ऐ ईमानदारो, साज़ बजाकर रब की तारीफ़ में गीत गाओ। उसके मुक़द्दस नाम की हम्दो-सना करो। \p \v 5 क्योंकि वह लमहा-भर के लिए ग़ुस्से होता, लेकिन ज़िंदगी-भर के लिए मेहरबानी करता है। गो शाम को रोना पड़े, लेकिन सुबह को हम ख़ुशी मनाएँगे। \b \p \v 6 जब हालात पुरसुकून थे तो मैं बोला, “मैं कभी नहीं डगमगाऊँगा।” \p \v 7 ऐ रब, जब तू मुझसे ख़ुश था तो तूने मुझे मज़बूत पहाड़ पर रख दिया। लेकिन जब तूने अपना चेहरा मुझसे छुपा लिया तो मैं सख़्त घबरा गया। \p \v 8 ऐ रब, मैंने तुझे पुकारा, हाँ ख़ुदावंद से मैंने इल्तिजा की, \p \v 9 “क्या फ़ायदा है अगर मैं हलाक होकर मौत के गढ़े में उतर जाऊँ? क्या ख़ाक तेरी सताइश करेगी? क्या वह लोगों को तेरी वफ़ादारी के बारे में बताएगी? \p \v 10 ऐ रब, मेरी सुन, मुझ पर मेहरबानी कर। ऐ रब, मेरी मदद करने के लिए आ!” \b \p \v 11 तूने मेरा मातम ख़ुशी के नाच में बदल दिया, तूने मेरे मातमी कपड़े उतारकर मुझे शादमानी से मुलब्बस किया। \p \v 12 क्योंकि तू चाहता है कि मेरी जान ख़ामोश न हो बल्कि गीत गाकर तेरी तमजीद करती रहे। ऐ रब मेरे ख़ुदा, मैं अबद तक तेरी हम्दो-सना करूँगा। \c 31 \s1 हिफ़ाज़त के लिए दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ रब, मैंने तुझमें पनाह ली है। मुझे कभी शरमिंदा न होने दे बल्कि अपनी रास्ती के मुताबिक़ मुझे बचा! \p \v 2 अपना कान मेरी तरफ़ झुका, जल्द ही मुझे छुटकारा दे। चट्टान का मेरा बुर्ज हो, पहाड़ का क़िला जिसमें मैं पनाह लेकर नजात पा सकूँ। \b \p \v 3 क्योंकि तू मेरी चट्टान, मेरा क़िला है, अपने नाम की ख़ातिर मेरी राहनुमाई, मेरी क़ियादत कर। \p \v 4 मुझे उस जाल से निकाल दे जो मुझे पकड़ने के लिए चुपके से बिछाया गया है। क्योंकि तू ही मेरी पनाहगाह है। \p \v 5 मैं अपनी रूह तेरे हाथों में सौंपता हूँ। ऐ रब, ऐ वफ़ादार ख़ुदा, तूने फ़िद्या देकर मुझे छुड़ाया है! \b \p \v 6 मैं उनसे नफ़रत रखता हूँ जो बेकार बुतों से लिपटे रहते हैं। मैं तो रब पर भरोसा रखता हूँ। \p \v 7 मैं बाग़ बाग़ हूँगा और तेरी शफ़क़त की ख़ुशी मनाऊँगा, क्योंकि तूने मेरी मुसीबत देखकर मेरी जान की परेशानी का ख़याल किया है। \p \v 8 तूने मुझे दुश्मन के हवाले नहीं किया बल्कि मेरे पाँवों को खुले मैदान में क़ायम कर दिया है। \b \p \v 9 ऐ रब, मुझ पर मेहरबानी कर, क्योंकि मैं मुसीबत में हूँ। ग़म के मारे मेरी आँखें सूज गई हैं, मेरी जान और जिस्म गल रहे हैं। \p \v 10 मेरी ज़िंदगी दुख की चक्की में पिस रही है, मेरे साल आहें भरते भरते ज़ाया हो रहे हैं। मेरे क़ुसूर की वजह से मेरी ताक़त जवाब दे गई, मेरी हड्डियाँ गलने-सड़ने लगी हैं। \p \v 11 मैं अपने दुश्मनों के लिए मज़ाक़ का निशाना बन गया हूँ बल्कि मेरे हमसाये भी मुझे लान-तान करते, मेरे जाननेवाले मुझसे दहशत खाते हैं। गली में जो भी मुझे देखे मुझसे भाग जाता है। \p \v 12 मैं मुरदों की मानिंद उनकी याददाश्त से मिट गया हूँ, मुझे ठीकरे की तरह फेंक दिया गया है। \p \v 13 बहुतों की अफ़वाहें मुझ तक पहुँच गई हैं, चारों तरफ़ से हौलनाक ख़बरें मिल रही हैं। वह मिलकर मेरे ख़िलाफ़ साज़िशें कर रहे, मुझे क़त्ल करने के मनसूबे बाँध रहे हैं। \b \p \v 14 लेकिन मैं ऐ रब, तुझ पर भरोसा रखता हूँ। मैं कहता हूँ, “तू मेरा ख़ुदा है!” \p \v 15 मेरी तक़दीर \f + \fr 31:15 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : मेरे औक़ात। \f* तेरे हाथ में है। मुझे मेरे दुश्मनों के हाथ से बचा, उनसे जो मेरे पीछे पड़ गए हैं। \p \v 16 अपने चेहरे का नूर अपने ख़ादिम पर चमका, अपनी मेहरबानी से मुझे नजात दे। \p \v 17 ऐ रब, मुझे शरमिंदा न होने दे, क्योंकि मैंने तुझे पुकारा है। मेरे बजाए बेदीनों के मुँह काले हो जाएँ, वह पाताल में उतरकर चुप हो जाएँ। \p \v 18 उनके फ़रेबदेह होंट बंद हो जाएँ, क्योंकि वह तकब्बुर और हिक़ारत से रास्तबाज़ के ख़िलाफ़ कुफ़र बकते हैं। \b \p \v 19 तेरी भलाई कितनी अज़ीम है! तू उसे उनके लिए तैयार रखता है जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं, उसे उन्हें दिखाता है जो इनसानों के सामने से तुझमें पनाह लेते हैं। \p \v 20 तू उन्हें अपने चेहरे की आड़ में लोगों के हमलों से छुपा लेता, उन्हें ख़ैमे में लाकर इलज़ामतराश ज़बानों से महफ़ूज़ रखता है। \p \v 21 रब की तमजीद हो, क्योंकि जब शहर का मुहासरा हो रहा था तो उसने मोजिज़ाना तौर पर मुझ पर मेहरबानी की। \p \v 22 उस वक़्त मैं घबराकर बोला, “हाय, मैं तेरे हुज़ूर से मुंक़ते हो गया हूँ!” लेकिन जब मैंने चीख़ते-चिल्लाते हुए तुझसे मदद माँगी तो तूने मेरी इल्तिजा सुन ली। \b \p \v 23 ऐ रब के तमाम ईमानदारो, उससे मुहब्बत रखो! रब वफ़ादारों को महफ़ूज़ रखता, लेकिन मग़रूरों को उनके रवय्ये का पूरा अज्र देगा। \p \v 24 चुनाँचे मज़बूत और दिलेर हो, तुम सब जो रब के इंतज़ार में हो। \c 32 \s1 मुआफ़ी की बरकत (तौबा का दूसरा ज़बूर) \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। हिकमत का गीत। \p मुबारक है वह जिसके जरायम मुआफ़ किए गए, जिसके गुनाह ढाँपे गए हैं। \p \v 2 मुबारक है वह जिसका गुनाह रब हिसाब में नहीं लाएगा और जिसकी रूह में फ़रेब नहीं है। \b \p \v 3 जब मैं चुप रहा तो दिन-भर आहें भरने से मेरी हड्डियाँ गलने लगीं। \p \v 4 क्योंकि दिन-रात मैं तेरे हाथ के बोझ तले पिसता रहा, मेरी ताक़त गोया मौसमे-गरमा की झुलसती तपिश में जाती रही। (सिलाह) \p \v 5 तब मैंने तेरे सामने अपना गुनाह तसलीम किया, मैं अपना गुनाह छुपाने से बाज़ आया। मैं बोला, “मैं रब के सामने अपने जरायम का इक़रार करूँगा।” तब तूने मेरे गुनाह को मुआफ़ कर दिया। (सिलाह) \b \p \v 6 इसलिए तमाम ईमानदार उस वक़्त तुझसे दुआ करें जब तू मिल सकता है। यक़ीनन जब बड़ा सैलाब आए तो उन तक नहीं पहुँचेगा। \b \p \v 7 तू मेरी छुपने की जगह है, तू मुझे परेशानी से महफ़ूज़ रखता, मुझे नजात के नग़मों से घेर लेता है। (सिलाह) \p \v 8 “मैं तुझे तालीम दूँगा, तुझे वह राह दिखाऊँगा जिस पर तुझे जाना है। मैं तुझे मशवरा देकर तेरी देख-भाल करूँगा। \p \v 9 नासमझ घोड़े या ख़च्चर की मानिंद न हो, जिन पर क़ाबू पाने के लिए लगाम और दहाने की ज़रूरत है, वरना वह तेरे पास नहीं आएँगे।” \b \p \v 10 बेदीन की मुतअद्दिद परेशानियाँ होती हैं, लेकिन जो रब पर भरोसा रखे उसे वह अपनी शफ़क़त से घेरे रखता है। \p \v 11 ऐ रास्तबाज़ो, रब की ख़ुशी में जशन मनाओ! ऐ तमाम दियानतदारो, शादमानी के नारे लगाओ! \c 33 \s1 अल्लाह की हुकूमत और मदद की तारीफ़ \p \v 1 ऐ रास्तबाज़ो, रब की ख़ुशी मनाओ! क्योंकि मुनासिब है कि सीधी राह पर चलनेवाले उस की सताइश करें। \p \v 2 सरोद बजाकर रब की हम्दो-सना करो। उस की तमजीद में दस तारोंवाला साज़ बजाओ। \p \v 3 उस की तमजीद में नया गीत गाओ, महारत से साज़ बजाकर ख़ुशी के नारे लगाओ। \p \v 4 क्योंकि रब का कलाम सच्चा है, और वह हर काम वफ़ादारी से करता है। \p \v 5 उसे रास्तबाज़ी और इनसाफ़ प्यारे हैं, दुनिया रब की शफ़क़त से भरी हुई है। \p \v 6 रब के कहने पर आसमान ख़लक़ हुआ, उसके मुँह के दम से सितारों का पूरा लशकर वुजूद में आया। \p \v 7 वह समुंदर के पानी का बड़ा ढेर जमा करता, पानी की गहराइयों को गोदामों में महफ़ूज़ रखता है। \p \v 8 कुल दुनिया रब का ख़ौफ़ माने, ज़मीन के तमाम बाशिंदे उससे दहशत खाएँ। \p \v 9 क्योंकि उसने फ़रमाया तो फ़ौरन वुजूद में आया, उसने हुक्म दिया तो उसी वक़्त क़ायम हुआ। \p \v 10 रब अक़वाम का मनसूबा नाकाम होने देता, वह उम्मतों के इरादों को शिकस्त देता है। \p \v 11 लेकिन रब का मनसूबा हमेशा तक कामयाब रहता, उसके दिल के इरादे पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रहते हैं। \b \p \v 12 मुबारक है वह क़ौम जिसका ख़ुदा रब है, वह क़ौम जिसे उसने चुनकर अपनी मीरास बना लिया है। \b \p \v 13 रब आसमान से नज़र डालकर तमाम इनसानों का मुलाहज़ा करता है। \p \v 14 अपने तख़्त से वह ज़मीन के तमाम बाशिंदों का मुआयना करता है। \p \v 15 जिसने उन सबके दिलों को तश्कील दिया वह उनके तमाम कामों पर ध्यान देता है। \b \p \v 16 बादशाह की बड़ी फ़ौज उसे नहीं छुड़ाती, और सूरमे की बड़ी ताक़त उसे नहीं बचाती। \p \v 17 घोड़ा भी मदद नहीं कर सकता। जो उस पर उम्मीद रखे वह धोका खाएगा। उस की बड़ी ताक़त छुटकारा नहीं देती। \p \v 18 यक़ीनन रब की आँख उन पर लगी रहती है जो उसका ख़ौफ़ मानते और उस की मेहरबानी के इंतज़ार में रहते हैं, \p \v 19 कि वह उनकी जान मौत से बचाए और काल में महफ़ूज़ रखे। \b \p \v 20 हमारी जान रब के इंतज़ार में है। वही हमारा सहारा, हमारी ढाल है। \p \v 21 हमारा दिल उसमें ख़ुश है, क्योंकि हम उसके मुक़द्दस नाम पर भरोसा रखते हैं। \b \p \v 22 ऐ रब, तेरी मेहरबानी हम पर रहे, क्योंकि हम तुझ पर उम्मीद रखते हैं। \c 34 \s1 अल्लाह की हिफ़ाज़त \p \v 1 दाऊद का यह ज़बूर उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब उसने फ़िलिस्ती बादशाह अबीमलिक के सामने पागल बनने का रूप भर लिया। यह देखकर बादशाह ने उसे भगा दिया। चले जाने के बाद दाऊद ने यह गीत गाया। \p हर वक़्त मैं रब की तमजीद करूँगा, उस की हम्दो-सना हमेशा ही मेरे होंटों पर रहेगी। \p \v 2 मेरी जान रब पर फ़ख़र करेगी। मुसीबतज़दा यह सुनकर ख़ुश हो जाएँ। \p \v 3 आओ, मेरे साथ रब की ताज़ीम करो। आओ, हम मिलकर उसका नाम सरबुलंद करें। \b \p \v 4 मैंने रब को तलाश किया तो उसने मेरी सुनी। जिन चीज़ों से मैं दहशत खा रहा था उन सबसे उसने मुझे रिहाई दी। \p \v 5 जिनकी आँखें उस पर लगी रहें वह ख़ुशी से चमकेंगे, और उनके मुँह शरमिंदा नहीं होंगे। \p \v 6 इस नाचार ने पुकारा तो रब ने उस की सुनी, उसने उसे उस की तमाम मुसीबतों से नजात दी। \b \p \v 7 जो रब का ख़ौफ़ मानें उनके इर्दगिर्द उसका फ़रिश्ता ख़ैमाज़न होकर उनको बचाए रखता है। \p \v 8 रब की भलाई का तजरबा करो। मुबारक है वह जो उसमें पनाह ले। \p \v 9 ऐ रब के मुक़द्दसीन, उसका ख़ौफ़ मानो, क्योंकि जो उसका ख़ौफ़ मानें उन्हें कमी नहीं। \p \v 10 जवान शेरबबर कभी ज़रूरतमंद और भूके होते हैं, लेकिन रब के तालिबों को किसी भी अच्छी चीज़ की कमी नहीं होगी। \p \v 11 ऐ बच्चो, आओ, मेरी बातें सुनो! मैं तुम्हें रब के ख़ौफ़ की तालीम दूँगा। \p \v 12 कौन मज़े से ज़िंदगी गुज़ारना और अच्छे दिन देखना चाहता है? \p \v 13 वह अपनी ज़बान को शरीर बातें करने से रोके और अपने होंटों को झूट बोलने से। \p \v 14 वह बुराई से मुँह फेरकर नेक काम करे, सुलह-सलामती का तालिब होकर उसके पीछे लगा रहे। \p \v 15 रब की आँखें रास्तबाज़ों पर लगी रहती हैं, और उसके कान उनकी इल्तिजाओं की तरफ़ मायल हैं। \p \v 16 लेकिन रब का चेहरा उनके ख़िलाफ़ है जो ग़लत काम करते हैं। उनका ज़मीन पर नामो-निशान तक नहीं रहेगा। \p \v 17 जब रास्तबाज़ फ़रियाद करें तो रब उनकी सुनता, वह उन्हें उनकी तमाम मुसीबत से छुटकारा देता है। \p \v 18 रब शिकस्तादिलों के क़रीब होता है, वह उन्हें रिहाई देता है जिनकी रूह को ख़ाक में कुचला गया हो। \p \v 19 रास्तबाज़ की मुतअद्दिद तकालीफ़ होती हैं, लेकिन रब उसे उन सबसे बचा लेता है। \p \v 20 वह उस की तमाम हड्डियों की हिफ़ाज़त करता है, एक भी नहीं तोड़ी जाएगी। \p \v 21 बुराई बेदीन को मार डालेगी, और जो रास्तबाज़ से नफ़रत करे उसे मुनासिब अज्र मिलेगा। \p \v 22 लेकिन रब अपने ख़ादिमों की जान का फ़िद्या देगा। जो भी उसमें पनाह ले उसे सज़ा नहीं मिलेगी। \c 35 \s1 शरीरों के हमलों से रिहाई के लिए दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ऐ रब, उनसे झगड़ जो मेरे साथ झगड़ते हैं, उनसे लड़ जो मेरे साथ लड़ते हैं। \p \v 2 लंबी और छोटी ढाल पकड़ ले और उठकर मेरी मदद करने आ। \p \v 3 नेज़े और बरछी को निकालकर उन्हें रोक दे जो मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं! मेरी जान से फ़रमा, “मैं तेरी नजात हूँ!” \p \v 4 जो मेरी जान के लिए कोशाँ हैं उनका मुँह काला हो जाए, वह रुसवा हो जाएँ। जो मुझे मुसीबत में डालने के मनसूबे बाँध रहे हैं वह पीछे हटकर शरमिंदा हों। \p \v 5 वह हवा में भूसे की तरह उड़ जाएँ जब रब का फ़रिश्ता उन्हें भगा दे। \p \v 6 उनका रास्ता तारीक और फिसलना हो जब रब का फ़रिश्ता उनके पीछे पड़ जाए। \p \v 7 क्योंकि उन्होंने बेसबब और चुपके से मेरे रास्ते में जाल बिछाया, बिलावजह मुझे पकड़ने का गढ़ा खोदा है। \p \v 8 इसलिए तबाही अचानक ही उन पर आ पड़े, पहले उन्हें पता ही न चले। जो जाल उन्होंने चुपके से बिछाया उसमें वह ख़ुद उलझ जाएँ, जिस गढ़े को उन्होंने खोदा उसमें वह ख़ुद गिरकर तबाह हो जाएँ। \b \p \v 9 तब मेरी जान रब की ख़ुशी मनाएगी और उस की नजात के बाइस शादमान होगी। \p \v 10 मेरे तमाम आज़ा कह उठेंगे, “ऐ रब, कौन तेरी मानिंद है? कोई भी नहीं! क्योंकि तू ही मुसीबतज़दा को ज़बरदस्त आदमी से छुटकारा देता, तू ही नाचार और ग़रीब को लूटनेवाले के हाथ से बचा लेता है।” \b \p \v 11 ज़ालिम गवाह मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़े हो रहे हैं। वह ऐसी बातों के बारे में मेरी पूछ-गछ कर रहे हैं जिनसे मैं वाक़िफ़ ही नहीं। \p \v 12 वह मेरी नेकी के एवज़ मुझे नुक़सान पहुँचा रहे हैं। अब मेरी जान तने-तनहा है। \p \v 13 जब वह बीमार हुए तो मैंने टाट ओढ़कर और रोज़ा रखकर अपनी जान को दुख दिया। काश मेरी दुआ मेरी गोद में वापस आए! \p \v 14 मैंने यों मातम किया जैसे मेरा कोई दोस्त या भाई हो। मैं मातमी लिबास पहनकर यों ख़ाक में झुक गया जैसे अपनी माँ का जनाज़ा हो। \b \p \v 15 लेकिन जब मैं ख़ुद ठोकर खाने लगा तो वह ख़ुश होकर मेरे ख़िलाफ़ जमा हुए। वह मुझ पर हमला करने के लिए इकट्ठे हुए, और मुझे मालूम ही नहीं था। वह मुझे फाड़ते रहे और बाज़ न आए। \p \v 16 मुसलसल कुफ़र बक बककर वह मेरा मज़ाक़ उड़ाते, मेरे ख़िलाफ़ दाँत पीसते थे। \p \v 17 ऐ रब, तू कब तक ख़ामोशी से देखता रहेगा? मेरी जान को उनकी तबाहकुन हरकतों से बचा, मेरी ज़िंदगी को जवान शेरों से छुटकारा दे। \p \v 18 तब मैं बड़ी जमात में तेरी सताइश और बड़े हुजूम में तेरी तारीफ़ करूँगा। \p \v 19 उन्हें मुझ पर बग़लें बजाने न दे जो बेसबब मेरे दुश्मन हैं। उन्हें मुझ पर नाक-भौं चढ़ाने न दे जो बिलावजह मुझसे कीना रखते हैं। \p \v 20 क्योंकि वह ख़ैर और सलामती की बातें नहीं करते बल्कि उनके ख़िलाफ़ फ़रेबदेह मनसूबे बाँधते हैं जो अमन और सुकून से मुल्क में रहते हैं। \p \v 21 वह मुँह फाड़कर कहते हैं, “लो जी, हमने अपनी आँखों से उस की हरकतें देखी हैं!” \p \v 22 ऐ रब, तुझे सब कुछ नज़र आया है। ख़ामोश न रह! ऐ रब, मुझसे दूर न हो। \p \v 23 ऐ रब मेरे ख़ुदा, जाग उठ! मेरे दिफ़ा में उठकर उनसे लड़! \p \v 24 ऐ रब मेरे ख़ुदा, अपनी रास्ती के मुताबिक़ मेरा इनसाफ़ कर। उन्हें मुझ पर बग़लें बजाने न दे। \p \v 25 वह दिल में न सोचें, “लो जी, हमारा इरादा पूरा हुआ है!” वह न बोलें, “हमने उसे हड़प कर लिया है।” \p \v 26 जो मेरा नुक़सान देखकर ख़ुश हुए उन सबका मुँह काला हो जाए, वह शरमिंदा हो जाएँ। जो मुझे दबाकर अपने आप पर फ़ख़र करते हैं वह शरमिंदगी और रुसवाई से मुलब्बस हो जाएँ। \b \p \v 27 लेकिन जो मेरे इनसाफ़ के आरज़ूमंद हैं वह ख़ुश हों और शादियाना बजाएँ। वह कहें, “रब की बड़ी तारीफ़ हो, जो अपने ख़ादिम की ख़ैरियत चाहता है।” \p \v 28 तब मेरी ज़बान तेरी रास्ती बयान करेगी, वह सारा दिन तेरी तमजीद करती रहेगी। \c 36 \s1 अल्लाह की मेहरबानी की तारीफ़ \p \v 1 रब के ख़ादिम दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p बदकारी बेदीन के दिल ही में उससे बात करती है। उस की आँखों के सामने अल्लाह का ख़ौफ़ नहीं होता, \p \v 2 क्योंकि उस की नज़र में यह बात फ़ख़र का बाइस है कि उसे क़ुसूरवार पाया गया, कि वह नफ़रत करता है। \p \v 3 उसके मुँह से शरारत और फ़रेब निकलता है, वह समझदार होने और नेक काम करने से बाज़ आया है। \p \v 4 अपने बिस्तर पर भी वह शरारत के मनसूबे बाँधता है। वह मज़बूती से बुरी राह पर खड़ा रहता और बुराई को मुस्तरद नहीं करता। \b \p \v 5 ऐ रब, तेरी शफ़क़त आसमान तक, तेरी वफ़ादारी बादलों तक पहुँचती है। \p \v 6 तेरी रास्ती बुलंदतरीन पहाड़ों की मानिंद, तेरा इनसाफ़ समुंदर की गहराइयों जैसा है। ऐ रब, तू इनसानो-हैवान की मदद करता है। \p \v 7 ऐ अल्लाह, तेरी शफ़क़त कितनी बेशक़ीमत है! आदमज़ाद तेरे परों के साये में पनाह लेते हैं। \p \v 8 वह तेरे घर के उम्दा खाने से तरो-ताज़ा हो जाते हैं, और तू उन्हें अपनी ख़ुशियों की नदी में से पिलाता है। \p \v 9 क्योंकि ज़िंदगी का सरचश्मा तेरे ही पास है, और हम तेरे नूर में रहकर नूर का मुशाहदा करते हैं। \p \v 10 अपनी शफ़क़त उन पर फैलाए रख जो तुझे जानते हैं, अपनी रास्ती उन पर जो दिल से दियानतदार हैं। \p \v 11 मग़रूरों का पाँव मुझ तक न पहुँचे, बेदीनों का हाथ मुझे बेघर न बनाए। \p \v 12 देखो, बदकार गिर गए हैं! उन्हें ज़मीन पर पटख़ दिया गया है, और वह दुबारा कभी नहीं उठेंगे। \c 37 \s1 बेदीनों की बज़ाहिर ख़ुशहाली \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p शरीरों के बाइस बेचैन न हो जा, बदकारों पर रश्क न कर। \p \v 2 क्योंकि वह घास की तरह जल्द ही मुरझा जाएंगे, हरियाली की तरह जल्द ही सूख जाएंगे। \p \v 3 रब पर भरोसा रखकर भलाई कर, मुल्क में रहकर वफ़ादारी की परवरिश कर। \p \v 4 रब से लुत्फ़अंदोज़ हो तो जो तेरा दिल चाहे वह तुझे देगा। \p \v 5 अपनी राह रब के सुपुर्द कर। उस पर भरोसा रख तो वह तुझे कामयाबी बख़्शेगा। \p \v 6 तब वह तेरी रास्तबाज़ी सूरज की तरह तुलू होने देगा और तेरा इनसाफ़ दोपहर की रौशनी की तरह चमकने देगा। \p \v 7 रब के हुज़ूर चुप होकर सब्र से उसका इंतज़ार कर। बेक़रार न हो अगर साज़िशें करनेवाला कामयाब हो। \p \v 8 ख़फ़ा होने से बाज़ आ, ग़ुस्से को छोड़ दे। रंजीदा न हो, वरना बुरा ही नतीजा निकलेगा। \b \p \v 9 क्योंकि शरीर मिट जाएंगे जबकि रब से उम्मीद रखनेवाले मुल्क को मीरास में पाएँगे। \p \v 10 मज़ीद थोड़ी देर सब्र कर तो बेदीन का नामो-निशान मिट जाएगा। तू उसका खोज लगाएगा, लेकिन कहीं नहीं पाएगा। \p \v 11 लेकिन हलीम मुल्क को मीरास में पाकर बड़े अमन और सुकून से लुत्फ़अंदोज़ होंगे। \p \v 12 बेशक बेदीन दाँत पीस पीसकर रास्तबाज़ के ख़िलाफ़ साज़िशें करता रहे। \p \v 13 लेकिन रब उस पर हँसता है, क्योंकि वह जानता है कि उसका अंजाम क़रीब ही है। \p \v 14 बेदीनों ने तलवार को खींचा और कमान को तान लिया है ताकि नाचारों और ज़रूरतमंदों को गिरा दें और सीधी राह पर चलनेवालों को क़त्ल करें। \p \v 15 लेकिन उनकी तलवार उनके अपने दिल में घोंपी जाएगी, उनकी कमान टूट जाएगी। \b \p \v 16 रास्तबाज़ को जो थोड़ा-बहुत हासिल है वह बहुत बेदीनों की दौलत से बेहतर है। \p \v 17 क्योंकि बेदीनों का बाज़ू टूट जाएगा जबकि रब रास्तबाज़ों को सँभालता है। \p \v 18 रब बेइलज़ामों के दिन जानता है, और उनकी मौरूसी मिलकियत हमेशा के लिए क़ायम रहेगी। \p \v 19 मुसीबत के वक़्त वह शर्मसार नहीं होंगे, काल भी पड़े तो सेर होंगे। \p \v 20 लेकिन बेदीन हलाक हो जाएंगे, और रब के दुश्मन चरागाहों की शान की तरह नेस्त हो जाएंगे, धुएँ की तरह ग़ायब हो जाएंगे। \p \v 21 बेदीन क़र्ज़ लेता और उसे नहीं उतारता, लेकिन रास्तबाज़ मेहरबान है और फ़ैयाज़ी से देता है। \p \v 22 क्योंकि जिन्हें रब बरकत दे वह मुल्क को मीरास में पाएँगे, लेकिन जिन पर वह लानत भेजे उनका नामो-निशान तक नहीं रहेगा। \p \v 23 अगर किसी के पाँव जम जाएँ तो यह रब की तरफ़ से है। ऐसे शख़्स की राह को वह पसंद करता है। \p \v 24 अगर गिर भी जाए तो पड़ा नहीं रहेगा, क्योंकि रब उसके हाथ का सहारा बना रहेगा। \b \p \v 25 मैं जवान था और अब बूढ़ा हो गया हूँ। लेकिन मैंने कभी नहीं देखा कि रास्तबाज़ को तर्क किया गया या उसके बच्चों को भीक माँगनी पड़ी। \p \v 26 वह हमेशा मेहरबान और क़र्ज़ देने के लिए तैयार है। उस की औलाद बरकत का बाइस होगी। \b \p \v 27 बुराई से बाज़ आकर भलाई कर। तब तू हमेशा के लिए मुल्क में आबाद रहेगा, \p \v 28 क्योंकि रब को इनसाफ़ प्यारा है, और वह अपने ईमानदारों को कभी तर्क नहीं करेगा। वह अबद तक महफ़ूज़ रहेंगे जबकि बेदीनों की औलाद का नामो-निशान तक नहीं रहेगा। \p \v 29 रास्तबाज़ मुल्क को मीरास में पाकर उसमें हमेशा बसेंगे। \p \v 30 रास्तबाज़ का मुँह हिकमत बयान करता और उस की ज़बान से इनसाफ़ निकलता है। \p \v 31 अल्लाह की शरीअत उसके दिल में है, और उसके क़दम कभी नहीं डगमगाएँगे। \p \v 32 बेदीन रास्तबाज़ की ताक में बैठकर उसे मार डालने का मौक़ा ढूँडता है। \p \v 33 लेकिन रब रास्तबाज़ को उसके हाथ में नहीं छोड़ेगा, वह उसे अदालत में मुजरिम नहीं ठहरने देगा। \p \v 34 रब के इंतज़ार में रह और उस की राह पर चलता रह। तब वह तुझे सरफ़राज़ करके मुल्क का वारिस बनाएगा, और तू बेदीनों की हलाकत देखेगा। \b \p \v 35 मैंने एक बेदीन और ज़ालिम आदमी को देखा जो फलते-फूलते देवदार के दरख़्त की तरह आसमान से बातें करने लगा। \p \v 36 लेकिन थोड़ी देर के बाद जब मैं दुबारा वहाँ से गुज़रा तो वह था नहीं। मैंने उसका खोज लगाया, लेकिन कहीं न मिला। \p \v 37 बेइलज़ाम पर ध्यान दे और दियानतदार पर ग़ौर कर, क्योंकि आख़िरकार उसे अमन और सुकून हासिल होगा। \p \v 38 लेकिन मुजरिम मिलकर तबाह हो जाएंगे, और बेदीनों को आख़िरकार रूए-ज़मीन पर से मिटाया जाएगा। \p \v 39 रास्तबाज़ों की नजात रब की तरफ़ से है, मुसीबत के वक़्त वही उनका क़िला है। \p \v 40 रब ही उनकी मदद करके उन्हें छुटकारा देगा, वही उन्हें बेदीनों से बचाकर नजात देगा। क्योंकि उन्होंने उसमें पनाह ली है। \c 38 \s1 सज़ा से बचने की इल्तिजा (तौबा का तीसरा ज़बूर) \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। याददाश्त के लिए। \p ऐ रब, अपने ग़ज़ब में मुझे सज़ा न दे, क़हर में मुझे तंबीह न कर! \p \v 2 क्योंकि तेरे तीर मेरे जिस्म में लग गए हैं, तेरा हाथ मुझ पर भारी है। \p \v 3 तेरी लानत के बाइस मेरा पूरा जिस्म बीमार है, मेरे गुनाह के बाइस मेरी तमाम हड्डियाँ गलने लगी हैं। \p \v 4 क्योंकि मैं अपने गुनाहों के सैलाब में डूब गया हूँ, वह नाक़ाबिले-बरदाश्त बोझ बन गए हैं। \p \v 5 मेरी हमाक़त के बाइस मेरे ज़ख़मों से बदबू आने लगी, वह गलने लगे हैं। \p \v 6 मैं कुबड़ा बनकर ख़ाक में दब गया हूँ, पूरा दिन मातमी लिबास पहने फिरता हूँ। \p \v 7 मेरी कमर में शदीद सोज़िश है, पूरा जिस्म बीमार है। \p \v 8 मैं निढाल और पाश पाश हो गया हूँ। दिल के अज़ाब के बाइस मैं चीख़ता-चिल्लाता हूँ। \b \p \v 9 ऐ रब, मेरी तमाम आरज़ू तेरे सामने है, मेरी आहें तुझसे पोशीदा नहीं रहतीं। \p \v 10 मेरा दिल ज़ोर से धड़कता, मेरी ताक़त जवाब दे गई बल्कि मेरी आँखों की रौशनी भी जाती रही है। \p \v 11 मेरे दोस्त और साथी मेरी मुसीबत देखकर मुझसे गुरेज़ करते, मेरे क़रीब के रिश्तेदार दूर खड़े रहते हैं। \p \v 12 मेरे जानी दुश्मन फंदे बिछा रहे हैं, जो मुझे नुक़सान पहुँचाना चाहते हैं वह धमकियाँ दे रहे और सारा सारा दिन फ़रेबदेह मनसूबे बाँध रहे हैं। \p \v 13 और मैं? मैं तो गोया बहरा हूँ, मैं नहीं सुनता। मैं गूँगे की मानिंद हूँ जो अपना मुँह नहीं खोलता। \p \v 14 मैं ऐसा शख़्स बन गया हूँ जो न सुनता, न जवाब में एतराज़ करता है। \b \p \v 15 क्योंकि ऐ रब, मैं तेरे इंतज़ार में हूँ। ऐ रब मेरे ख़ुदा, तू ही मेरी सुनेगा। \p \v 16 मैं बोला, “ऐसा न हो कि वह मेरा नुक़सान देखकर बग़लें बजाएँ, वह मेरे पाँवों के डगमगाने पर मुझे दबाकर अपने आप पर फ़ख़र करें।” \p \v 17 क्योंकि मैं लड़खड़ाने को हूँ, मेरी अज़ियत मुतवातिर मेरे सामने रहती है। \p \v 18 चुनाँचे मैं अपना क़ुसूर तसलीम करता हूँ, मैं अपने गुनाह के बाइस ग़मगीन हूँ। \p \v 19 मेरे दुश्मन ज़िंदा और ताक़तवर हैं, और जो बिलावजह मुझसे नफ़रत करते हैं वह बहुत हैं। \p \v 20 वह नेकी के बदले बदी करते हैं। वह इसलिए मेरे दुश्मन हैं कि मैं भलाई के पीछे लगा रहता हूँ। \b \p \v 21 ऐ रब, मुझे तर्क न कर! ऐ अल्लाह, मुझसे दूर न रह! \p \v 22 ऐ रब मेरी नजात, मेरी मदद करने में जल्दी कर! \c 39 \s1 इनसान के फ़ानी होने के पेशे-नज़र इल्तिजा \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। यदूतून के लिए। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p मैं बोला, “मैं अपनी राहों पर ध्यान दूँगा ताकि अपनी ज़बान से गुनाह न करूँ। जब तक बेदीन मेरे सामने रहे उस वक़्त तक अपने मुँह को लगाम दिए रहूँगा।” \p \v 2 मैं चुप-चाप हो गया और अच्छी चीज़ों से दूर रहकर ख़ामोश रहा। तब मेरी अज़ियत बढ़ गई। \p \v 3 मेरा दिल परेशानी से तपने लगा, मेरे कराहते कराहते मेरे अंदर बेचैनी की आग-सी भड़क उठी। तब बात ज़बान पर आ गई, \p \v 4 “ऐ रब, मुझे मेरा अंजाम और मेरी उम्र की हद दिखा ताकि मैं जान लूँ कि कितना फ़ानी हूँ। \p \v 5 देख, मेरी ज़िंदगी का दौरानिया तेरे सामने लमहा-भर का है। मेरी पूरी उम्र तेरे नज़दीक कुछ भी नहीं है। हर इनसान दम-भर का ही है, ख़ाह वह कितनी ही मज़बूती से खड़ा क्यों न हो। (सिलाह) \p \v 6 जब वह इधर-उधर घूमे फिरे तो साया ही है। उसका शोर-शराबा बातिल है, और गो वह दौलत जमा करने में मसरूफ़ रहे तो भी उसे मालूम नहीं कि बाद में किसके क़ब्ज़े में आएगी।” \b \p \v 7 चुनाँचे ऐ रब, मैं किसके इंतज़ार में रहूँ? तू ही मेरी वाहिद उम्मीद है! \p \v 8 मेरे तमाम गुनाहों से मुझे छुटकारा दे। अहमक़ को मेरी रुसवाई करने न दे। \p \v 9 मैं ख़ामोश हो गया हूँ और कभी अपना मुँह नहीं खोलता, क्योंकि यह सब कुछ तेरे ही हाथ से हुआ है। \p \v 10 अपना अज़ाब मुझसे दूर कर! तेरे हाथ की ज़रबों से मैं हलाक हो रहा हूँ। \p \v 11 जब तू इनसान को उसके क़ुसूर की मुनासिब सज़ा देकर उसको तंबीह करता है तो उस की ख़ूबसूरती कीड़ा लगे कपड़े की तरह जाती रहती है। हर इनसान दम-भर का ही है। (सिलाह) \b \p \v 12 ऐ रब, मेरी दुआ सुन और मदद के लिए मेरी आहों पर तवज्जुह दे। मेरे आँसुओं को देखकर ख़ामोश न रह। क्योंकि मैं तेरे हुज़ूर रहनेवाला परदेसी, अपने तमाम बापदादा की तरह तेरे हुज़ूर बसनेवाला ग़ैरशहरी हूँ। \p \v 13 मुझसे बाज़ आ ताकि मैं कूच करके नेस्त हो जाने से पहले एक बार फिर हश्शाश-बश्शाश हो जाऊँ। \c 40 \s1 शुक्र और दरख़ास्त \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p मैं सब्र से रब के इंतज़ार में रहा तो वह मेरी तरफ़ मायल हुआ और मदद के लिए मेरी चीख़ों पर तवज्जुह दी। \p \v 2 वह मुझे तबाही के गढ़े से खींच लाया, दलदल और कीचड़ से निकाल लाया। उसने मेरे पाँवों को चट्टान पर रख दिया, और अब मैं मज़बूती से चल-फिर सकता हूँ। \p \v 3 उसने मेरे मुँह में नया गीत डाल दिया, हमारे ख़ुदा की हम्दो-सना का गीत उभरने दिया। बहुत-से लोग यह देखेंगे और ख़ौफ़ खाकर रब पर भरोसा रखेंगे। \p \v 4 मुबारक है वह जो रब पर पूरा भरोसा रखता है, जो तंग करनेवालों और फ़रेब में उलझे हुओं की तरफ़ रुख़ नहीं करता। \p \v 5 ऐ रब मेरे ख़ुदा, बार बार तूने हमें अपने मोजिज़े दिखाए, जगह बजगह अपने मनसूबे वुजूद में लाकर हमारी मदद की। तुझ जैसा कोई नहीं है। तेरे अज़ीम काम बेशुमार हैं, मैं उनकी पूरी फ़हरिस्त बता भी नहीं सकता। \b \p \v 6 तू क़ुरबानियाँ और नज़रें नहीं चाहता था, लेकिन तूने मेरे कानों को खोल दिया। तूने भस्म होनेवाली क़ुरबानियों और गुनाह की क़ुरबानियों का तक़ाज़ा न किया। \p \v 7 फिर मैं बोल उठा, “मैं हाज़िर हूँ जिस तरह मेरे बारे में कलामे-मुक़द्दस \f + \fr 40:7 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : किताब के तूमार में। \f* में लिखा है। \p \v 8 ऐ मेरे ख़ुदा, मैं ख़ुशी से तेरी मरज़ी पूरी करता हूँ, तेरी शरीअत मेरे दिल में टिक गई है।” \p \v 9 मैंने बड़े इजतिमा में रास्ती की ख़ुशख़बरी सुनाई है। ऐ रब, यक़ीनन तू जानता है कि मैंने अपने होंटों को बंद न रखा। \p \v 10 मैंने तेरी रास्ती अपने दिल में छुपाए न रखी बल्कि तेरी वफ़ादारी और नजात बयान की। मैंने बड़े इजतिमा में तेरी शफ़क़त और सदाक़त की एक बात भी पोशीदा न रखी। \b \p \v 11 ऐ रब, तू मुझे अपने रहम से महरूम नहीं रखेगा, तेरी मेहरबानी और वफ़ादारी मुसलसल मेरी निगहबानी करेंगी। \p \v 12 क्योंकि बेशुमार तकलीफ़ों ने मुझे घेर रखा है, मेरे गुनाहों ने आख़िरकार मुझे आ पकड़ा है। अब मैं नज़र भी नहीं उठा सकता। वह मेरे सर के बालों से ज़्यादा हैं, इसलिए मैं हिम्मत हार गया हूँ। \b \p \v 13 ऐ रब, मेहरबानी करके मुझे बचा! ऐ रब, मेरी मदद करने में जल्दी कर! \p \v 14 मेरे जानी दुश्मन सब शरमिंदा हो जाएँ, उनकी सख़्त रुसवाई हो जाए। जो मेरी मुसीबत देखने से लुत्फ़ उठाते हैं वह पीछे हट जाएँ, उनका मुँह काला हो जाए। \p \v 15 जो मेरी मुसीबत देखकर क़हक़हा लगाते हैं वह शर्म के मारे तबाह हो जाएँ। \b \p \v 16 लेकिन तेरे तालिब शादमान होकर तेरी ख़ुशी मनाएँ। जिन्हें तेरी नजात प्यारी है वह हमेशा कहें, “रब अज़ीम है!” \p \v 17 मैं नाचार और ज़रूरतमंद हूँ, लेकिन रब मेरा ख़याल रखता है। तू ही मेरा सहारा और मेरा नजातदहिंदा है। ऐ मेरे ख़ुदा, देर न कर! \c 41 \s1 मरीज़ की दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p मुबारक है वह जो पस्तहाल का ख़याल रखता है। मुसीबत के दिन रब उसे छुटकारा देगा। \p \v 2 रब उस की हिफ़ाज़त करके उस की ज़िंदगी को महफ़ूज़ रखेगा, वह मुल्क में उसे बरकत देकर उसे उसके दुश्मनों के लालच के हवाले नहीं करेगा। \p \v 3 बीमारी के वक़्त रब उसको बिस्तर पर सँभालेगा। तू उस की सेहत पूरी तरह बहाल करेगा। \b \p \v 4 मैं बोला, “ऐ रब, मुझ पर रहम कर! मुझे शफ़ा दे, क्योंकि मैंने तेरा ही गुनाह किया है।” \p \v 5 मेरे दुश्मन मेरे बारे में ग़लत बातें करके कहते हैं, “वह कब मरेगा? उसका नामो-निशान कब मिटेगा?” \p \v 6 जब कभी कोई मुझसे मिलने आए तो उसका दिल झूट बोलता है। पसे-परदा वह ऐसी नुक़सानदेह मालूमात जमा करता है जिन्हें बाद में बाहर जाकर गलियों में फैला सके। \p \v 7 मुझसे नफ़रत करनेवाले सब आपस में मेरे ख़िलाफ़ फुसफुसाते हैं। वह मेरे ख़िलाफ़ बुरे मनसूबे बाँधकर कहते हैं, \p \v 8 “उसे मोहलक मरज़ लग गया है। वह कभी अपने बिस्तर पर से दुबारा नहीं उठेगा।” \p \v 9 मेरा दोस्त भी मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ है। जिस पर मैं एतमाद करता था और जो मेरी रोटी खाता था, उसने मुझ पर लात उठाई है। \b \p \v 10 लेकिन तू ऐ रब, मुझ पर मेहरबानी कर! मुझे दुबारा उठा खड़ा कर ताकि उन्हें उनके सुलूक का बदला दे सकूँ। \p \v 11 इससे मैं जानता हूँ कि तू मुझसे ख़ुश है कि मेरा दुश्मन मुझ पर फ़तह के नारे नहीं लगाता। \p \v 12 तूने मुझे मेरी दियानतदारी के बाइस क़ायम रखा और हमेशा के लिए अपने हुज़ूर खड़ा किया है। \b \p \v 13 रब की हम्द हो जो इसराईल का ख़ुदा है। अज़ल से अबद तक उस की तमजीद हो। आमीन, फिर आमीन। \c 42 \ms1 दूसरी किताब 42-72 \s1 परदेस में अल्लाह का आरज़ूमंद \p \v 1 क़ोरह की औलाद का ज़बूर। हिकमत का गीत। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ अल्लाह, जिस तरह हिरनी नदियों के ताज़ा पानी के लिए तड़पती है उसी तरह मेरी जान तेरे लिए तड़पती है। \p \v 2 मेरी जान ख़ुदा, हाँ ज़िंदा ख़ुदा की प्यासी है। मैं कब जाकर अल्लाह का चेहरा देखूँगा? \b \p \v 3 दिन-रात मेरे आँसू मेरी ग़िज़ा रहे हैं। क्योंकि पूरा दिन मुझसे कहा जाता है, “तेरा ख़ुदा कहाँ है?” \p \v 4 पहले हालात याद करके मैं अपने सामने अपने दिल की आहो-ज़ारी उंडेल देता हूँ। \f + \fr 42:4 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : अपनी जान उंडेल देता हूँ। \f* कितना मज़ा आता था जब हमारा जुलूस निकलता था, जब मैं हुजूम के बीच में ख़ुशी और शुक्रगुज़ारी के नारे लगाते हुए अल्लाह की सुकूनतगाह की जानिब बढ़ता जाता था। कितना शोर मच जाता था जब हम जशन मनाते हुए घुमते-फिरते थे। \b \p \v 5 ऐ मेरी जान, तू ग़म क्यों खा रही है, बेचैनी से क्यों तड़प रही है? अल्लाह के इंतज़ार में रह, क्योंकि मैं दुबारा उस की सताइश करूँगा जो मेरा ख़ुदा है और मेरे देखते देखते मुझे नजात देता है। \b \p \v 6 मेरी जान ग़म के मारे पिघल रही है। इसलिए मैं तुझे यरदन के मुल्क, हरमून के पहाड़ी सिलसिले और कोहे-मिसआर से याद करता हूँ। \p \v 7 जब से तेरे आबशारों की आवाज़ बुलंद हुई तो एक सैलाब दूसरे को पुकारने लगा है। तेरी तमाम मौजें और लहरें मुझ पर से गुज़र गई हैं। \p \v 8 दिन के वक़्त रब अपनी शफ़क़त भेजेगा, और रात के वक़्त उसका गीत मेरे साथ होगा, मैं अपनी हयात के ख़ुदा से दुआ करूँगा। \p \v 9 मैं अल्लाह अपनी चट्टान से कहूँगा, “तू मुझे क्यों भूल गया है? मैं अपने दुश्मन के ज़ुल्म के बाइस क्यों मातमी लिबास पहने फिरूँ?” \p \v 10 मेरे दुश्मनों की लान-तान से मेरी हड्डियाँ टूट रही हैं, क्योंकि पूरा दिन वह कहते हैं, “तेरा ख़ुदा कहाँ है?” \b \p \v 11 ऐ मेरी जान, तू ग़म क्यों खा रही है, बेचैनी से क्यों तड़प रही है? अल्लाह के इंतज़ार में रह, क्योंकि मैं दुबारा उस की सताइश करूँगा जो मेरा ख़ुदा है और मेरे देखते देखते मुझे नजात देता है। \c 43 \p \v 1 ऐ अल्लाह, मेरा इनसाफ़ कर! मेरे लिए ग़ैरईमानदार क़ौम से लड़, मुझे धोकेबाज़ और शरीर आदमियों से बचा। \p \v 2 क्योंकि तू मेरी पनाह का ख़ुदा है। तूने मुझे क्यों रद्द किया है? मैं अपने दुश्मन के ज़ुल्म के बाइस क्यों मातमी लिबास पहने फिरूँ? \p \v 3 अपनी रौशनी और सच्चाई को भेज ताकि वह मेरी राहनुमाई करके मुझे तेरे मुक़द्दस पहाड़ और तेरी सुकूनतगाह के पास पहुँचाएँ। \p \v 4 तब मैं अल्लाह की क़ुरबानगाह के पास आऊँगा, उस ख़ुदा के पास जो मेरी ख़ुशी और फ़रहत है। ऐ अल्लाह मेरे ख़ुदा, वहाँ मैं सरोद बजाकर तेरी सताइश करूँगा। \b \p \v 5 ऐ मेरी जान, तू ग़म क्यों खा रही है, बेचैनी से क्यों तड़प रही है? अल्लाह के इंतज़ार में रह, क्योंकि मैं दुबारा उस की सताइश करूँगा जो मेरा ख़ुदा है और मेरे देखते देखते मुझे नजात देता है। \c 44 \s1 क्या अल्लाह ने अपनी क़ौम को रद्द किया है? \p \v 1 क़ोरह की औलाद का ज़बूर। हिकमत का गीत। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ अल्लाह, जो कुछ तूने हमारे बापदादा के ऐयाम में यानी क़दीम ज़माने में किया वह हमने अपने कानों से उनसे सुना है। \p \v 2 तूने ख़ुद अपने हाथ से दीगर क़ौमों को निकालकर हमारे बापदादा को मुल्क में पौदे की तरह लगा दिया। तूने ख़ुद दीगर उम्मतों को शिकस्त देकर हमारे बापदादा को मुल्क में फलने फूलने दिया। \p \v 3 उन्होंने अपनी ही तलवार के ज़रीए मुल्क पर क़ब्ज़ा नहीं किया, अपने ही बाज़ू से फ़तह नहीं पाई बल्कि तेरे दहने हाथ, तेरे बाज़ू और तेरे चेहरे के नूर ने यह सब कुछ किया। क्योंकि वह तुझे पसंद थे। \p \v 4 तू मेरा बादशाह, मेरा ख़ुदा है। तेरे ही हुक्म पर याक़ूब को मदद हासिल होती है। \p \v 5 तेरी मदद से हम अपने दुश्मनों को ज़मीन पर पटख़ देते, तेरा नाम लेकर अपने मुख़ालिफ़ों को कुचल देते हैं। \p \v 6 क्योंकि मैं अपनी कमान पर एतमाद नहीं करता, और मेरी तलवार मुझे नहीं बचाएगी \p \v 7 बल्कि तू ही हमें दुश्मन से बचाता, तू ही उन्हें शरमिंदा होने देता है जो हमसे नफ़रत करते हैं। \p \v 8 पूरा दिन हम अल्लाह पर फ़ख़र करते हैं, और हम हमेशा तक तेरे नाम की तमजीद करेंगे। (सिलाह) \b \p \v 9 लेकिन अब तूने हमें रद्द कर दिया, हमें शरमिंदा होने दिया है। जब हमारी फ़ौजें लड़ने के लिए निकलती हैं तो तू उनका साथ नहीं देता। \p \v 10 तूने हमें दुश्मन के सामने पसपा होने दिया, और जो हमसे नफ़रत करते हैं उन्होंने हमें लूट लिया है। \p \v 11 तूने हमें भेड़-बकरियों की तरह क़स्साब के हाथ में छोड़ दिया, हमें मुख़्तलिफ़ क़ौमों में मुंतशिर कर दिया है। \p \v 12 तूने अपनी क़ौम को ख़फ़ीफ़-सी रक़म के लिए बेच डाला, उसे फ़रोख़्त करने से नफ़ा हासिल न हुआ। \p \v 13 यह तेरी तरफ़ से हुआ कि हमारे पड़ोसी हमें रुसवा करते, गिर्दो-नवाह के लोग हमें लान-तान करते हैं। \p \v 14 हम अक़वाम में इबरतअंगेज़ मिसाल बन गए हैं। लोग हमें देखकर तौबा तौबा कहते हैं। \p \v 15 दिन-भर मेरी रुसवाई मेरी आँखों के सामने रहती है। मेरा चेहरा शर्मसार ही रहता है, \p \v 16 क्योंकि मुझे उनकी गालियाँ और कुफ़र सुनना पड़ता है, दुश्मन और इंतक़ाम लेने पर तुले हुए को बरदाश्त करना पड़ता है। \b \p \v 17 यह सब कुछ हम पर आ गया है, हालाँकि न हम तुझे भूल गए और न तेरे अहद से बेवफ़ा हुए हैं। \p \v 18 न हमारा दिल बाग़ी हो गया, न हमारे क़दम तेरी राह से भटक गए हैं। \p \v 19 ताहम तूने हमें चूर चूर करके गीदड़ों के दरमियान छोड़ दिया, तूने हमें गहरी तारीकी में डूबने दिया है। \p \v 20 अगर हम अपने ख़ुदा का नाम भूलकर अपने हाथ किसी और माबूद की तरफ़ उठाते \p \v 21 तो क्या अल्लाह को यह बात मालूम न हो जाती? ज़रूर! वह तो दिल के राज़ों से वाक़िफ़ होता है। \p \v 22 लेकिन तेरी ख़ातिर हमें दिन-भर मौत का सामना करना पड़ता है, लोग हमें ज़बह होनेवाली भेड़ों के बराबर समझते हैं। \b \p \v 23 ऐ रब, जाग उठ! तू क्यों सोया हुआ है? हमें हमेशा के लिए रद्द न कर बल्कि हमारी मदद करने के लिए खड़ा हो जा। \p \v 24 तू अपना चेहरा हमसे पोशीदा क्यों रखता है, हमारी मुसीबत और हम पर होनेवाले ज़ुल्म को नज़रंदाज़ क्यों करता है? \p \v 25 हमारी जान ख़ाक में दब गई, हमारा बदन मिट्टी से चिमट गया है। \p \v 26 उठकर हमारी मदद कर! अपनी शफ़क़त की ख़ातिर फ़िद्या देकर हमें छुड़ा! \c 45 \s1 बादशाह की शादी \p \v 1 क़ोरह की औलाद का ज़बूर। हिकमत और मुहब्बत का गीत। तर्ज़ : सोसन के फूल। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p मेरे दिल से ख़ूबसूरत गीत छलक रहा है, मैं उसे बादशाह को पेश करूँगा। मेरी ज़बान माहिर कातिब के क़लम की मानिंद हो! \b \p \v 2 तू आदमियों में सबसे ख़ूबसूरत है! तेरे होंट शफ़क़त से मसह किए हुए हैं, इसलिए अल्लाह ने तुझे अबदी बरकत दी है। \p \v 3 ऐ सूरमे, अपनी तलवार से कमरबस्ता हो, अपनी शानो-शौकत से मुलब्बस हो जा! \p \v 4 ग़लबा और कामयाबी हासिल कर। सच्चाई, इंकिसारी और रास्ती की ख़ातिर लड़ने के लिए निकल आ। तेरा दहना हाथ तुझे हैरतअंगेज़ काम दिखाए। \p \v 5 तेरे तेज़ तीर बादशाह के दुश्मनों के दिलों को छेद डालें। क़ौमें तेरे पाँवों में गिर जाएँ। \p \v 6 ऐ अल्लाह, तेरा तख़्त अज़ल से अबद तक क़ायमो-दायम रहेगा, और इनसाफ़ का शाही असा तेरी बादशाही पर हुकूमत करेगा। \p \v 7 तूने रास्तबाज़ी से मुहब्बत और बेदीनी से नफ़रत की, इसलिए अल्लाह तेरे ख़ुदा ने तुझे ख़ुशी के तेल से मसह करके तुझे तेरे साथियों से कहीं ज़्यादा सरफ़राज़ कर दिया। \p \v 8 मुर, ऊद और अमलतास की बेशक़ीमत ख़ुशबू तेरे तमाम कपड़ों से फैलती है। हाथीदाँत के महलों में तारदार मौसीक़ी तेरा दिल बहलाती है। \p \v 9 बादशाहों की बेटियाँ तेरे ज़ेवरात से सजी फिरती हैं। मलिका ओफ़ीर का सोना पहने हुए तेरे दहने हाथ खड़ी है। \b \p \v 10 ऐ बेटी, सुन मेरी बात! ग़ौर कर और कान लगा। अपनी क़ौम और अपने बाप का घर भूल जा। \p \v 11 बादशाह तेरे हुस्न का आरज़ूमंद है, क्योंकि वह तेरा आक़ा है। चुनाँचे झुककर उसका एहतराम कर। \p \v 12 सूर की बेटी तोह्फ़ा लेकर आएगी, क़ौम के अमीर तेरी नज़रे-करम हासिल करने की कोशिश करेंगे। \p \v 13 बादशाह की बेटी कितनी शानदार चीज़ों से आरास्ता है। उसका लिबास सोने के धागों से बुना हुआ है। \p \v 14 उसे नफ़ीस रंगदार कपड़े पहने बादशाह के पास लाया जाता है। जो कुँवारी सहेलियाँ उसके पीछे चलती हैं उन्हें भी तेरे सामने लाया जाता है। \p \v 15 लोग शादमान होकर और ख़ुशी मनाते हुए उन्हें वहाँ पहुँचाते हैं, और वह शाही महल में दाख़िल होती हैं। \b \p \v 16 ऐ बादशाह, तेरे बेटे तेरे बापदादा की जगह खड़े हो जाएंगे, और तू उन्हें रईस बनाकर पूरी दुनिया में ज़िम्मादारियाँ देगा। \p \v 17 पुश्त-दर-पुश्त मैं तेरे नाम की तमजीद करूँगा, इसलिए क़ौमें हमेशा तक तेरी सताइश करेंगी। \c 46 \s1 अल्लाह हमारी क़ुव्वत है \p \v 1 क़ोरह की औलाद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। गीत का तर्ज़ : कुँवारियाँ। \p अल्लाह हमारी पनाहगाह और क़ुव्वत है। मुसीबत के वक़्त वह हमारा मज़बूत सहारा साबित हुआ है। \p \v 2 इसलिए हम ख़ौफ़ नहीं खाएँगे, गो ज़मीन लरज़ उठे और पहाड़ झूमकर समुंदर की गहराइयों में गिर जाएँ, \p \v 3 गो समुंदर शोर मचाकर ठाठें मारे और पहाड़ उस की दहाड़ों से काँप उठें। (सिलाह) \b \p \v 4 दरिया की शाख़ें अल्लाह के शहर को ख़ुश करती हैं, उस शहर को जो अल्लाह तआला की मुक़द्दस सुकूनतगाह है। \p \v 5 अल्लाह उसके बीच में है, इसलिए शहर नहीं डगमगाएगा। सुबह-सवेरे ही अल्लाह उस की मदद करेगा। \p \v 6 क़ौमें शोर मचाने, सलतनतें लड़खड़ाने लगीं। अल्लाह ने आवाज़ दी तो ज़मीन लरज़ उठी। \b \p \v 7 रब्बुल-अफ़वाज हमारे साथ है, याक़ूब का ख़ुदा हमारा क़िला है। (सिलाह) \b \p \v 8 आओ, रब के अज़ीम कामों पर नज़र डालो! उसी ने ज़मीन पर हौलनाक तबाही नाज़िल की है। \p \v 9 वही दुनिया की इंतहा तक जंगें रोक देता, वही कमान को तोड़ देता, नेज़े को टुकड़े टुकड़े करता और ढाल को जला देता है। \p \v 10 वह फ़रमाता है, “अपनी हरकतों से बाज़ आओ! जान लो कि मैं ख़ुदा हूँ। मैं अक़वाम में सरबुलंद और दुनिया में सरफ़राज़ हूँगा।” \b \p \v 11 रब्बुल-अफ़वाज हमारे साथ है। याक़ूब का ख़ुदा हमारा क़िला है। (सिलाह) \c 47 \s1 अल्लाह तमाम क़ौमों का बादशाह है \p \v 1 क़ोरह की औलाद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ तमाम क़ौमो, ताली बजाओ! ख़ुशी के नारे लगाकर अल्लाह की मद्हसराई करो! \p \v 2 क्योंकि रब तआला पुरजलाल है, वह पूरी दुनिया का अज़ीम बादशाह है। \p \v 3 उसने क़ौमों को हमारे तहत कर दिया, उम्मतों को हमारे पाँवों तले रख दिया। \p \v 4 उसने हमारे लिए हमारी मीरास को चुन लिया, उसी को जो उसके प्यारे बंदे याक़ूब के लिए फ़ख़र का बाइस था। (सिलाह) \b \p \v 5 अल्लाह ने सऊद फ़रमाया तो साथ साथ ख़ुशी का नारा बुलंद हुआ, रब बुलंदी पर चढ़ गया तो साथ साथ नरसिंगा बजता रहा। \p \v 6 मद्हसराई करो, अल्लाह की मद्हसराई करो! मद्हसराई करो, हमारे बादशाह की मद्हसराई करो! \p \v 7 क्योंकि अल्लाह पूरी दुनिया का बादशाह है। हिकमत का गीत गाकर उस की सताइश करो। \p \v 8 अल्लाह क़ौमों पर हुकूमत करता है, अल्लाह अपने मुक़द्दस तख़्त पर बैठा है। \p \v 9 दीगर क़ौमों के शुरफ़ा इब्राहीम के ख़ुदा की क़ौम के साथ जमा हो गए हैं, क्योंकि वह दुनिया के हुक्मरानों का मालिक है। वह निहायत ही सरबुलंद है। \c 48 \s1 अल्लाह का शहर यरूशलम \p \v 1 गीत। क़ोरह की औलाद का ज़बूर। \p रब अज़ीम और बड़ी तारीफ़ के लायक़ है। उसका मुक़द्दस पहाड़ हमारे ख़ुदा के शहर में है। \p \v 2 कोहे-सिय्यून की बुलंदी ख़ूबसूरत है, पूरी दुनिया उससे ख़ुश होती है। कोहे-सिय्यून दूरतरीन शिमाल का इलाही पहाड़ ही है, वह अज़ीम बादशाह का शहर है। \p \v 3 अल्लाह उसके महलों में है, वह उस की पनाहगाह साबित हुआ है। \p \v 4 क्योंकि देखो, बादशाह जमा होकर यरूशलम से लड़ने आए। \p \v 5 लेकिन उसे देखते ही वह हैरान हुए, वह दहशत खाकर भाग गए। \p \v 6 वहाँ उन पर कपकपी तारी हुई, और वह दर्दे-ज़ह में मुब्तला औरत की तरह पेचो-ताब खाने लगे। \p \v 7 जिस तरह मशरिक़ी आँधी तरसीस के शानदार जहाज़ों को टुकड़े टुकड़े कर देती है उसी तरह तूने उन्हें तबाह कर दिया। \b \p \v 8 जो कुछ हमने सुना है वह हमारे देखते देखते रब्बुल-अफ़वाज हमारे ख़ुदा के शहर पर सादिक़ आया है, अल्लाह उसे अबद तक क़ायम रखेगा। (सिलाह) \p \v 9 ऐ अल्लाह, हमने तेरी सुकूनतगाह में तेरी शफ़क़त पर ग़ौरो-ख़ौज़ किया है। \p \v 10 ऐ अल्लाह, तेरा नाम इस लायक़ है कि तेरी तारीफ़ दुनिया की इंतहा तक की जाए। तेरा दहना हाथ रास्ती से भरा रहता है। \p \v 11 कोहे-सिय्यून शादमान हो, यहूदाह की बेटियाँ \f + \fr 48:11 \ft यहाँ यहूदाह की बेटियों से मुराद उसके शहर भी हो सकते हैं। \f* तेरे मुंसिफ़ाना फ़ैसलों के बाइस ख़ुशी मनाएँ। \b \p \v 12 सिय्यून के इर्दगिर्द घूमो फिरो, उस की फ़सील के साथ साथ चलकर उसके बुर्ज गिन लो। \p \v 13 उस की क़िलाबंदी पर ख़ूब ध्यान दो, उसके महलों का मुआयना करो ताकि आनेवाली नसल को सब कुछ सुना सको। \p \v 14 यक़ीनन अल्लाह हमारा ख़ुदा हमेशा तक ऐसा ही है। वह अबद तक हमारी राहनुमाई करेगा। \c 49 \s1 अमीरों की शान सराब ही है \p \v 1 क़ोरह की औलाद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ तमाम क़ौमो, सुनो! दुनिया के तमाम बाशिंदो, ध्यान दो! \p \v 2 छोटे और बड़े, अमीर और ग़रीब सब तवज्जुह दें। \p \v 3 मेरा मुँह हिकमत बयान करेगा और मेरे दिल का ग़ौरो-ख़ौज़ समझ अता करेगा। \p \v 4 मैं अपना कान एक कहावत की तरफ़ झुकाऊँगा, सरोद बजाकर अपनी पहेली का हल बताऊँगा। \b \p \v 5 मैं ख़ौफ़ क्यों खाऊँ जब मुसीबत के दिन आएँ और मक्कारों का बुरा काम मुझे घेर ले? \p \v 6 ऐसे लोग अपनी मिलकियत पर एतमाद और अपनी बड़ी दौलत पर फ़ख़र करते हैं। \p \v 7 कोई भी फ़िद्या देकर अपने भाई की जान को नहीं छुड़ा सकता। वह अल्लाह को इस क़िस्म का तावान नहीं दे सकता। \p \v 8 क्योंकि इतनी बड़ी रक़म देना उसके बस की बात नहीं। आख़िरकार उसे हमेशा के लिए ऐसी कोशिशों से बाज़ आना पड़ेगा। \p \v 9 चुनाँचे कोई भी हमेशा के लिए ज़िंदा नहीं रह सकता, आख़िरकार हर एक मौत के गढ़े में उतरेगा। \p \v 10 क्योंकि हर एक देख सकता है कि दानिशमंद भी वफ़ात पाते और अहमक़ और नासमझ भी मिलकर हलाक हो जाते हैं। सबको अपनी दौलत दूसरों के लिए छोड़नी पड़ती है। \p \v 11 उनकी क़ब्रें अबद तक उनके घर बनी रहेंगी, पुश्त-दर-पुश्त वह उनमें बसे रहेंगे, गो उन्हें ज़मीनें हासिल थीं जो उनके नाम पर थीं। \b \p \v 12 इनसान अपनी शानो-शौकत के बावुजूद क़ायम नहीं रहता, उसे जानवरों की तरह हलाक होना है। \p \v 13 यह उन सबकी तक़दीर है जो अपने आप पर एतमाद रखते हैं, और उन सबका अंजाम जो उनकी बातें पसंद करते हैं। (सिलाह) \p \v 14 उन्हें भेड़-बकरियों की तरह पाताल में लाया जाएगा, और मौत उन्हें चराएगी। क्योंकि सुबह के वक़्त दियानतदार उन पर हुकूमत करेंगे। तब उनकी शक्लो-सूरत घिसे-फटे कपड़े की तरह गल-सड़ जाएगी, पाताल ही उनकी रिहाइशगाह होगा। \p \v 15 लेकिन अल्लाह मेरी जान का फ़िद्या देगा, वह मुझे पकड़कर पाताल की गिरिफ़्त से छुड़ाएगा। (सिलाह) \b \p \v 16 मत घबरा जब कोई अमीर हो जाए, जब उसके घर की शानो-शौकत बढ़ती जाए। \p \v 17 मरते वक़्त तो वह अपने साथ कुछ नहीं ले जाएगा, उस की शानो-शौकत उसके साथ पाताल में नहीं उतरेगी। \p \v 18 बेशक वह जीते-जी अपने आपको मुबारक कहेगा, और दूसरे भी खाते-पीते आदमी की तारीफ़ करेंगे। \p \v 19 फिर भी वह आख़िरकार अपने बापदादा की नसल के पास उतरेगा, उनके पास जो दुबारा कभी रौशनी नहीं देखेंगे। \b \p \v 20 जो इनसान अपनी शानो-शौकत के बावुजूद नासमझ है, उसे जानवरों की तरह हलाक होना है। \c 50 \s1 सहीह इबादत \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। \p रब क़ादिरे-मुतलक़ ख़ुदा बोल उठा है, उसने तुलूए-सुबह से लेकर ग़ुरूबे-आफ़ताब तक पूरी दुनिया को बुलाया है। \p \v 2 अल्लाह का नूर सिय्यून से चमक उठा है, उस पहाड़ से जो कामिल हुस्न का इज़हार है। \p \v 3 हमारा ख़ुदा आ रहा है, वह ख़ामोश नहीं रहेगा। उसके आगे आगे सब कुछ भस्म हो रहा है, उसके इर्दगिर्द तेज़ आँधी चल रही है। \p \v 4 वह आसमानो-ज़मीन को आवाज़ देता है, “अब मैं अपनी क़ौम की अदालत करूँगा। \p \v 5 मेरे ईमानदारों को मेरे हुज़ूर जमा करो, उन्हें जिन्होंने क़ुरबानियाँ पेश करके मेरे साथ अहद बाँधा है।” \p \v 6 आसमान उस की रास्ती का एलान करेंगे, क्योंकि अल्लाह ख़ुद इनसाफ़ करनेवाला है। (सिलाह) \p \v 7 “ऐ मेरी क़ौम, सुन! मुझे बात करने दे। ऐ इसराईल, मैं तेरे ख़िलाफ़ गवाही दूँगा। मैं अल्लाह तेरा ख़ुदा हूँ। \p \v 8 मैं तुझे तेरी ज़बह की क़ुरबानियों के बाइस मलामत नहीं कर रहा। तेरी भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ तो मुसलसल मेरे सामने हैं। \p \v 9 न मैं तेरे घर से बैल लूँगा, न तेरे बाड़ों से बकरे। \p \v 10 क्योंकि जंगल के तमाम जानदार मेरे ही हैं, हज़ारों पहाड़ियों पर बसनेवाले जानवर मेरे ही हैं। \p \v 11 मैं पहाड़ों के हर परिंदे को जानता हूँ, और जो भी मैदानों में हरकत करता है वह मेरा है। \p \v 12 अगर मुझे भूक लगती तो मैं तुझे न बताता, क्योंकि ज़मीन और जो कुछ उस पर है मेरा है। \p \v 13 क्या तू समझता है कि मैं साँडों का गोश्त खाना या बकरों का ख़ून पीना चाहता हूँ? \p \v 14 अल्लाह को शुक्रगुज़ारी की क़ुरबानी पेश कर, और वह मन्नत पूरी कर जो तूने अल्लाह तआला के हुज़ूर मानी है। \p \v 15 मुसीबत के दिन मुझे पुकार। तब मैं तुझे नजात दूँगा और तू मेरी तमजीद करेगा।” \b \p \v 16 लेकिन बेदीन से अल्लाह फ़रमाता है, “मेरे अहकाम सुनाने और मेरे अहद का ज़िक्र करने का तेरा क्या हक़ है? \p \v 17 तू तो तरबियत से नफ़रत करता और मेरे फ़रमान कचरे की तरह अपने पीछे फेंक देता है। \p \v 18 किसी चोर को देखते ही तू उसका साथ देता है, तू ज़िनाकारों से रिफ़ाक़त रखता है। \p \v 19 तू अपने मुँह को बुरे काम के लिए इस्तेमाल करता, अपनी ज़बान को धोका देने के लिए तैयार रखता है। \p \v 20 तू दूसरों के पास बैठकर अपने भाई के ख़िलाफ़ बोलता है, अपनी ही माँ के बेटे पर तोहमत लगाता है। \b \p \v 21 यह कुछ तूने किया है, और मैं ख़ामोश रहा। तब तू समझा कि मैं बिलकुल तुझ जैसा हूँ। लेकिन मैं तुझे मलामत करूँगा, तेरे सामने ही मामला तरतीब से सुनाऊँगा। \p \v 22 तुम जो अल्लाह को भूले हुए हो, बात समझ लो, वरना मैं तुम्हें फाड़ डालूँगा। उस वक़्त कोई नहीं होगा जो तुम्हें बचाए। \b \p \v 23 जो शुक्रगुज़ारी की क़ुरबानी पेश करे वह मेरी ताज़ीम करता है। जो मुसम्मम इरादे से ऐसी राह पर चले उसे मैं अल्लाह की नजात दिखाऊँगा।” \c 51 \s1 मुझ जैसे गुनाहगार पर रहम कर! (तौबा का चौथा ज़बूर) \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। यह गीत उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब दाऊद के बत-सबा के साथ ज़िना करने के बाद नातन नबी उसके पास आया। \p ऐ अल्लाह, अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मुझ पर मेहरबानी कर, अपने बड़े रहम के मुताबिक़ मेरी सरकशी के दाग़ मिटा दे। \p \v 2 मुझे धो दे ताकि मेरा क़ुसूर दूर हो जाए, जो गुनाह मुझसे सरज़द हुआ है उससे मुझे पाक कर। \p \v 3 क्योंकि मैं अपनी सरकशी को मानता हूँ, और मेरा गुनाह हमेशा मेरे सामने रहता है। \p \v 4 मैंने तेरे, सिर्फ़ तेरे ही ख़िलाफ़ गुनाह किया, मैंने वह कुछ किया जो तेरी नज़र में बुरा है। क्योंकि लाज़िम है कि तू बोलते वक़्त रास्त ठहरे और अदालत करते वक़्त पाकीज़ा साबित हो जाए। \b \p \v 5 यक़ीनन मैं गुनाहआलूदा हालत में पैदा हुआ। ज्योंही मैं माँ के पेट में वुजूद में आया तो गुनाहगार था। \p \v 6 यक़ीनन तू बातिन की सच्चाई पसंद करता और पोशीदगी में मुझे हिकमत की तालीम देता है। \p \v 7 ज़ूफ़ा लेकर मुझसे गुनाह दूर कर ताकि पाक-साफ़ हो जाऊँ। मुझे धो दे ताकि बर्फ़ से ज़्यादा सफ़ेद हो जाऊँ। \p \v 8 मुझे दुबारा ख़ुशी और शादमानी सुनने दे ताकि जिन हड्डियों को तूने कुचल दिया वह शादियाना बजाएँ। \p \v 9 अपने चेहरे को मेरे गुनाहों से फेर ले, मेरा तमाम क़ुसूर मिटा दे। \p \v 10 ऐ अल्लाह, मेरे अंदर पाक दिल पैदा कर, मुझमें नए सिरे से साबितक़दम रूह क़ायम कर। \p \v 11 मुझे अपने हुज़ूर से ख़ारिज न कर, न अपने मुक़द्दस रूह को मुझसे दूर कर। \p \v 12 मुझे दुबारा अपनी नजात की ख़ुशी दिला, मुझे मुस्तैद रूह अता करके सँभाले रख। \p \v 13 तब मैं उन्हें तेरी राहों की तालीम दूँगा जो तुझसे बेवफ़ा हो गए हैं, और गुनाहगार तेरे पास वापस आएँगे। \b \p \v 14 ऐ अल्लाह, मेरी नजात के ख़ुदा, क़त्ल का क़ुसूर मुझसे दूर करके मुझे बचा। तब मेरी ज़बान तेरी रास्ती की हम्दो-सना करेगी। \p \v 15 ऐ रब, मेरे होंटों को खोल ताकि मेरा मुँह तेरी सताइश करे। \p \v 16 क्योंकि तू ज़बह की क़ुरबानी नहीं चाहता, वरना मैं वह पेश करता। भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ तुझे पसंद नहीं। \p \v 17 अल्लाह को मंज़ूर क़ुरबानी शिकस्ता रूह है। ऐ अल्लाह, तू शिकस्ता और कुचले हुए दिल को हक़ीर नहीं जानेगा। \b \p \v 18 अपनी मेहरबानी का इज़हार करके सिय्यून को ख़ुशहाली बख़्श, यरूशलम की फ़सील तामीर कर। \p \v 19 तब तुझे हमारी सहीह क़ुरबानियाँ, हमारी भस्म होनेवाली और मुकम्मल क़ुरबानियाँ पसंद आएँगी। तब तेरी क़ुरबानगाह पर बैल चढ़ाए जाएंगे। \c 52 \s1 ज़ुल्म के बावुजूद तसल्ली \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। हिकमत का यह गीत उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब दोएग अदोमी साऊल बादशाह के पास गया और उसे बताया, “दाऊद अख़ीमलिक इमाम के घर में गया है।” \p ऐ सूरमे, तू अपनी बदी पर क्यों फ़ख़र करता है? अल्लाह की शफ़क़त दिन-भर क़ायम रहती है। \p \v 2 ऐ धोकेबाज़, तेरी ज़बान तेज़ उस्तरे की तरह चलती हुई तबाही के मनसूबे बाँधती है। \p \v 3 तुझे भलाई की निसबत बुराई ज़्यादा प्यारी है, सच बोलने की निसबत झूट ज़्यादा पसंद है। (सिलाह) \p \v 4 ऐ फ़रेबदेह ज़बान, तू हर तबाहकुन बात से प्यार करती है। \p \v 5 लेकिन अल्लाह तुझे हमेशा के लिए ख़ाक में मिलाएगा। वह तुझे मार मारकर तेरे ख़ैमे से निकाल देगा, तुझे जड़ से उखाड़कर ज़िंदों के मुल्क से ख़ारिज कर देगा। (सिलाह) \b \p \v 6 रास्तबाज़ यह देखकर ख़ौफ़ खाएँगे। वह उस पर हँसकर कहेंगे, \p \v 7 “लो, यह वह आदमी है जिसने अल्लाह में पनाह न ली बल्कि अपनी बड़ी दौलत पर एतमाद किया, जो अपने तबाहकुन मनसूबों से ताक़तवर हो गया था।” \b \p \v 8 लेकिन मैं अल्लाह के घर में ज़ैतून के फलते-फूलते दरख़्त की मानिंद हूँ। मैं हमेशा के लिए अल्लाह की शफ़क़त पर भरोसा रखूँगा। \p \v 9 मैं अबद तक उसके लिए तेरी सताइश करूँगा जो तूने किया है। मैं तेरे ईमानदारों के सामने ही तेरे नाम के इंतज़ार में रहूँगा, क्योंकि वह भला है। \c 53 \s1 बेदीन की हमाक़त \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। हिकमत का गीत। तर्ज़ : महलत। \p अहमक़ दिल में कहता है, “अल्लाह है ही नहीं!” ऐसे लोग बदचलन हैं, उनकी हरकतें क़ाबिले-घिन हैं। एक भी नहीं है जो अच्छा काम करे। \p \v 2 अल्लाह ने आसमान से इनसान पर नज़र डाली ताकि देखे कि क्या कोई समझदार है? क्या कोई अल्लाह का तालिब है? \p \v 3 अफ़सोस, सब सहीह राह से भटक गए, सबके सब बिगड़ गए हैं। कोई नहीं जो भलाई करता हो, एक भी नहीं। \b \p \v 4 क्या जो बदी करके मेरी क़ौम को रोटी की तरह खा लेते हैं उन्हें समझ नहीं आती? वह तो अल्लाह को पुकारते ही नहीं। \p \v 5 तब उन पर सख़्त दहशत वहाँ छा गई जहाँ पहले दहशत का सबब नहीं था। जिन्होंने तुझे घेर रखा था अल्लाह ने उनकी हड्डियाँ बिखेर दीं। तूने उनको रुसवा किया, क्योंकि अल्लाह ने उन्हें रद्द किया है। \b \p \v 6 काश कोहे-सिय्यून से इसराईल की नजात निकले! जब रब अपनी क़ौम को बहाल करेगा तो याक़ूब ख़ुशी के नारे लगाएगा, इसराईल बाग़ बाग़ होगा। \c 54 \s1 ख़तरे में फँसे हुए शख़्स की इल्तिजा \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। हिकमत का यह गीत तारदार साज़ों के साथ गाना है। यह उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब ज़ीफ़ के बाशिंदों ने साऊल के पास जाकर कहा, “दाऊद हमारे पास छुपा हुआ है।” \p ऐ अल्लाह, अपने नाम के ज़रीए से मुझे छुटकारा दे! अपनी क़ुदरत के ज़रीए से मेरा इनसाफ़ कर! \p \v 2 ऐ अल्लाह, मेरी इल्तिजा सुन, मेरे मुँह के अलफ़ाज़ पर ध्यान दे। \p \v 3 क्योंकि परदेसी मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं, ज़ालिम जो अल्लाह का लिहाज़ नहीं करते मेरी जान लेने के दरपै हैं। (सिलाह) \b \p \v 4 लेकिन अल्लाह मेरा सहारा है, रब मेरी ज़िंदगी क़ायम रखता है। \p \v 5 वह मेरे दुश्मनों की शरारत उन पर वापस लाएगा। चुनाँचे अपनी वफ़ादारी दिखाकर उन्हें तबाह कर दे! \p \v 6 मैं तुझे रज़ाकाराना क़ुरबानी पेश करूँगा। ऐ रब, मैं तेरे नाम की सताइश करूँगा, क्योंकि वह भला है। \p \v 7 क्योंकि उसने मुझे सारी मुसीबत से रिहाई दी, और अब मैं अपने दुश्मनों की शिकस्त देखकर ख़ुश हूँगा। \c 55 \s1 झूटे भाइयों पर शिकायत \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। हिकमत का यह गीत तारदार साज़ों के साथ गाना है। \p ऐ अल्लाह, मेरी दुआ पर ध्यान दे, अपने आपको मेरी इल्तिजा से छुपाए न रख। \p \v 2 मुझ पर ग़ौर कर, मेरी सुन। मैं बेचैनी से इधर-उधर घूमते हुए आहें भर रहा हूँ। \p \v 3 क्योंकि दुश्मन शोर मचा रहा, बेदीन मुझे तंग कर रहा है। वह मुझ पर आफ़त लाने पर तुले हुए हैं, ग़ुस्से में मेरी मुख़ालफ़त कर रहे हैं। \p \v 4 मेरा दिल मेरे अंदर तड़प रहा है, मौत की दहशत मुझ पर छा गई है। \p \v 5 ख़ौफ़ और लरज़िश मुझ पर तारी हुई, हैबत मुझ पर ग़ालिब आ गई है। \b \p \v 6 मैं बोला, “काश मेरे कबूतर के-से पर हों ताकि उड़कर आरामो-सुकून पा सकूँ! \p \v 7 तब मैं दूर तक भागकर रेगिस्तान में बसेरा करता, \p \v 8 मैं जल्दी से कहीं पनाह लेता जहाँ तेज़ आँधी और तूफ़ान से महफ़ूज़ रहता।” (सिलाह) \b \p \v 9 ऐ रब, उनमें अबतरी पैदा कर, उनकी ज़बान में इख़्तिलाफ़ डाल! क्योंकि मुझे शहर में हर तरफ़ ज़ुल्म और झगड़े नज़र आते हैं। \p \v 10 दिन-रात वह फ़सील पर चक्कर काटते हैं, और शहर फ़साद और ख़राबी से भरा रहता है। \p \v 11 उसके बीच में तबाही की हुकूमत है, और ज़ुल्म और फ़रेब उसके चौक को नहीं छोड़ते। \b \p \v 12 अगर कोई दुश्मन मेरी रुसवाई करता तो क़ाबिले-बरदाश्त होता। अगर मुझसे नफ़रत करनेवाला मुझे दबाकर अपने आपको सरफ़राज़ करता तो मैं उससे छुप जाता। \p \v 13 लेकिन तू ही ने यह किया, तू जो मुझ जैसा है, जो मेरा क़रीबी दोस्त और हमराज़ है। \p \v 14 मेरी तेरे साथ कितनी अच्छी रिफ़ाक़त थी जब हम हुजूम के साथ अल्लाह के घर की तरफ़ चलते गए! \b \p \v 15 मौत अचानक ही उन्हें अपनी गिरिफ़्त में ले ले। ज़िंदा ही वह पाताल में उतर जाएँ, क्योंकि बुराई ने उनमें अपना घर बना लिया है। \p \v 16 लेकिन मैं पुकारकर अल्लाह से मदद माँगता हूँ, और रब मुझे नजात देगा। \p \v 17 मैं हर वक़्त आहो-ज़ारी करता और कराहता रहता हूँ, ख़ाह सुबह हो, ख़ाह दोपहर या शाम। और वह मेरी सुनेगा। \p \v 18 वह फ़िद्या देकर मेरी जान को उनसे छुड़ाएगा जो मेरे ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं। गो उनकी तादाद बड़ी है वह मुझे आरामो-सुकून देगा। \p \v 19 अल्लाह जो अज़ल से तख़्तनशीन है मेरी सुनकर उन्हें मुनासिब जवाब देगा। (सिलाह) क्योंकि न वह तबदील हो जाएंगे, न कभी अल्लाह का ख़ौफ़ मानेंगे। \b \p \v 20 उस शख़्स ने अपना हाथ अपने दोस्तों के ख़िलाफ़ उठाया, उसने अपना अहद तोड़ लिया है। \p \v 21 उस की ज़बान पर मक्खन की-सी चिकनी-चुपड़ी बातें और दिल में जंग है। उसके तेल से ज़्यादा नरम अलफ़ाज़ हक़ीक़त में खींची हुई तलवारें हैं। \b \p \v 22 अपना बोझ रब पर डाल तो वह तुझे सँभालेगा। वह रास्तबाज़ को कभी डगमगाने नहीं देगा। \p \v 23 लेकिन ऐ अल्लाह, तू उन्हें तबाही के गढ़े में उतरने देगा। ख़ूनख़ार और धोकेबाज़ आधी उम्र भी नहीं पाएँगे बल्कि जल्दी मरेंगे। लेकिन मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ। \c 56 \s1 मुसीबत में भरोसा \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : दूर-दराज़ जज़ीरों का कबूतर। यह सुनहरा गीत उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब फ़िलिस्तियों ने उसे जात में पकड़ लिया। \p ऐ अल्लाह, मुझ पर मेहरबानी कर! क्योंकि लोग मुझे तंग कर रहे हैं, लड़नेवाला दिन-भर मुझे सता रहा है। \p \v 2 दिन-भर मेरे दुश्मन मेरे पीछे लगे हैं, क्योंकि वह बहुत हैं और ग़ुरूर से मुझसे लड़ रहे हैं। \p \v 3 लेकिन जब ख़ौफ़ मुझे अपनी गिरिफ़्त में ले ले तो मैं तुझ पर ही भरोसा रखता हूँ। \b \p \v 4 अल्लाह के कलाम पर मेरा फ़ख़र है, अल्लाह पर मेरा भरोसा है। मैं डरूँगा नहीं, क्योंकि फ़ानी इनसान मुझे क्या नुक़सान पहुँचा सकता है? \b \p \v 5 दिन-भर वह मेरे अलफ़ाज़ को तोड़-मरोड़कर ग़लत मानी निकालते, अपने तमाम मनसूबों से मुझे ज़रर पहुँचाना चाहते हैं। \p \v 6 वह हमलाआवर होकर ताक में बैठ जाते और मेरे हर क़दम पर ग़ौर करते हैं। क्योंकि वह मुझे मार डालने पर तुले हुए हैं। \p \v 7 जो ऐसी शरीर हरकतें करते हैं, क्या उन्हें बचना चाहिए? हरगिज़ नहीं! ऐ अल्लाह, अक़वाम को ग़ुस्से में ख़ाक में मिला दे। \p \v 8 जितने भी दिन मैं बेघर फिरा हूँ उनका तूने पूरा हिसाब रखा है। ऐ अल्लाह, मेरे आँसू अपने मशकीज़े में डाल ले! क्या वह पहले से तेरी किताब में क़लमबंद नहीं हैं? ज़रूर! \p \v 9 फिर जब मैं तुझे पुकारूँगा तो मेरे दुश्मन मुझसे बाज़ आएँगे। यह मैंने जान लिया है कि अल्लाह मेरे साथ है! \p \v 10 अल्लाह के कलाम पर मेरा फ़ख़र है, रब के कलाम पर मेरा फ़ख़र है। \p \v 11 अल्लाह पर मेरा भरोसा है। मैं डरूँगा नहीं, क्योंकि फ़ानी इनसान मुझे क्या नुक़सान पहुँचा सकता है? \b \p \v 12 ऐ अल्लाह, तेरे हुज़ूर मैंने मन्नतें मानी हैं, और अब मैं तुझे शुक्रगुज़ारी की क़ुरबानियाँ पेश करूँगा। \p \v 13 क्योंकि तूने मेरी जान को मौत से बचाया और मेरे पाँवों को ठोकर खाने से महफ़ूज़ रखा ताकि ज़िंदगी की रौशनी में अल्लाह के हुज़ूर चलूँ। \c 57 \s1 आज़माइश में अल्लाह पर एतमाद \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : तबाह न कर। यह सुनहरा गीत उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब वह साऊल से भागकर ग़ार में छुप गया। \p ऐ अल्लाह, मुझ पर मेहरबानी कर, मुझ पर मेहरबानी कर! क्योंकि मेरी जान तुझमें पनाह लेती है। जब तक आफ़त मुझ पर से गुज़र न जाए मैं तेरे परों के साये में पनाह लूँगा। \p \v 2 मैं अल्लाह तआला को पुकारता हूँ, अल्लाह से जो मेरा मामला ठीक करेगा। \p \v 3 वह आसमान से मदद भेजकर मुझे छुटकारा देगा और उनकी रुसवाई करेगा जो मुझे तंग कर रहे हैं। (सिलाह) अल्लाह अपना करम और वफ़ादारी भेजेगा। \p \v 4 मैं इनसान को हड़प करनेवाले शेरबबरों के बीच में लेटा हुआ हूँ, उनके दरमियान जिनके दाँत नेज़े और तीर हैं और जिनकी ज़बान तेज़ तलवार है। \b \p \v 5 ऐ अल्लाह, आसमान पर सरबुलंद हो जा! तेरा जलाल पूरी दुनिया पर छा जाए! \b \p \v 6 उन्होंने मेरे क़दमों के आगे फंदा बिछा दिया, और मेरी जान ख़ाक में दब गई है। उन्होंने मेरे सामने गढ़ा खोद लिया, लेकिन वह ख़ुद उसमें गिर गए हैं। (सिलाह) \b \p \v 7 ऐ अल्लाह, मेरा दिल मज़बूत, मेरा दिल साबितक़दम है। मैं साज़ बजाकर तेरी मद्हसराई करूँगा। \p \v 8 ऐ मेरी जान, जाग उठ! ऐ सितार और सरोद, जाग उठो! आओ, मैं तुलूए-सुबह को जगाऊँ। \p \v 9 ऐ रब, क़ौमों में मैं तेरी सताइश, उम्मतों में तेरी मद्हसराई करूँगा। \p \v 10 क्योंकि तेरी अज़ीम शफ़क़त आसमान जितनी बुलंद है, तेरी वफ़ादारी बादलों तक पहुँचती है। \p \v 11 ऐ अल्लाह, आसमान पर सरफ़राज़ हो! तेरा जलाल पूरी दुनिया पर छा जाए। \c 58 \s1 इंतक़ाम की दुआ \p \v 1 दाऊद का सुनहरा गीत। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : तबाह न कर। \p ऐ हुक्मरानो, क्या तुम वाक़ई मुंसिफ़ाना फ़ैसला करते, क्या दियानतदारी से आदमज़ादों की अदालत करते हो? \p \v 2 हरगिज़ नहीं, तुम दिल में बदी करते और मुल्क में अपने ज़ालिम हाथों के लिए रास्ता बनाते हो। \p \v 3 बेदीन पैदाइश से ही सहीह राह से दूर हो गए हैं, झूट बोलनेवाले माँ के पेट से ही भटक गए हैं। \p \v 4 वह साँप की तरह ज़हर उगलते हैं, उस बहरे नाग की तरह जो अपने कानों को बंद कर रखता है \p \v 5 ताकि न जादूगर की आवाज़ सुने, न माहिर सपेरे के मंत्र। \b \p \v 6 ऐ अल्लाह, उनके मुँह के दाँत तोड़ डाल! ऐ रब, जवान शेरबबरों के जबड़े को पाश पाश कर! \p \v 7 वह उस पानी की तरह ज़ाया हो जाएँ जो बहकर ग़ायब हो जाता है। उनके चलाए हुए तीर बेअसर रहें। \p \v 8 वह धूप में घोंगे की मानिंद हों जो चलता चलता पिघल जाता है। उनका अंजाम उस बच्चे का-सा हो जो माँ के पेट में ज़ाया होकर कभी सूरज नहीं देखेगा। \p \v 9 इससे पहले कि तुम्हारी देगें काँटेदार टहनियों की आग महसूस करें अल्लाह उन सबको आँधी में उड़ाकर ले जाएगा। \b \p \v 10 आख़िरकार दुश्मन को सज़ा मिलेगी। यह देखकर रास्तबाज़ ख़ुश होगा, और वह अपने पाँवों को बेदीनों के ख़ून में धो लेगा। \p \v 11 तब लोग कहेंगे, “वाक़ई रास्तबाज़ को अज्र मिलता है, वाक़ई अल्लाह है जो दुनिया में लोगों की अदालत करता है!” \c 59 \s1 दुश्मन के दरमियान दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : तबाह न कर। यह सुनहरा गीत उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब साऊल ने अपने आदमियों को दाऊद के घर की पहरादारी करने के लिए भेजा ताकि जब मौक़ा मिले उसे क़त्ल करें। \p ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे मेरे दुश्मनों से बचा। उनसे मेरी हिफ़ाज़त कर जो मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं। \p \v 2 मुझे बदकारों से छुटकारा दे, ख़ूनख़ारों से रिहा कर। \p \v 3 देख, वह मेरी ताक में बैठे हैं। ऐ रब, ज़बरदस्त आदमी मुझ पर हमलाआवर हैं, हालाँकि मुझसे न ख़ता हुई न गुनाह। \p \v 4 मैं बेक़ुसूर हूँ, ताहम वह दौड़ दौड़कर मुझसे लड़ने की तैयारियाँ कर रहे हैं। चुनाँचे जाग उठ, मेरी मदद करने आ, जो कुछ हो रहा है उस पर नज़र डाल। \p \v 5 ऐ रब, लशकरों और इसराईल के ख़ुदा, दीगर तमाम क़ौमों को सज़ा देने के लिए जाग उठ! उन सब पर करम न फ़रमा जो शरीर और ग़द्दार हैं। (सिलाह) \b \p \v 6 हर शाम को वह वापस आ जाते और कुत्तों की तरह भौंकते हुए शहर की गलियों में घुमते-फिरते हैं। \p \v 7 देख, उनके मुँह से राल टपक रही है, उनके होंटों से तलवारें निकल रही हैं। क्योंकि वह समझते हैं, “कौन सुनेगा?” \b \p \v 8 लेकिन तू ऐ रब, उन पर हँसता है, तू तमाम क़ौमों का मज़ाक़ उड़ाता है। \p \v 9 ऐ मेरी क़ुव्वत, मेरी आँखें तुझ पर लगी रहेंगी, क्योंकि अल्लाह मेरा क़िला है। \p \v 10 मेरा ख़ुदा अपनी मेहरबानी के साथ मुझसे मिलने आएगा, अल्लाह बख़्श देगा कि मैं अपने दुश्मनों की शिकस्त देखकर ख़ुश हूँगा। \b \p \v 11 ऐ अल्लाह हमारी ढाल, उन्हें हलाक न कर, वरना मेरी क़ौम तेरा काम भूल जाएगी। अपनी क़ुदरत का इज़हार यों कर कि वह इधर-उधर लड़खड़ाकर गिर जाएँ। \p \v 12 जो कुछ भी उनके मुँह से निकलता है वह गुनाह है, वह लानतें और झूट ही सुनाते हैं। चुनाँचे उन्हें उनके तकब्बुर के जाल में फँसने दे। \p \v 13 ग़ुस्से में उन्हें तबाह कर! उन्हें यों तबाह कर कि उनका नामो-निशान तक न रहे। तब लोग दुनिया की इंतहा तक जान लेंगे कि अल्लाह याक़ूब की औलाद पर हुकूमत करता है। (सिलाह) \b \p \v 14 हर शाम को वह वापस आ जाते और कुत्तों की तरह भौंकते हुए शहर की गलियों में घुमते-फिरते हैं। \p \v 15 वह इधर-उधर गश्त लगाकर खाने की चीज़ें ढूँडते हैं। अगर पेट न भरे तो ग़ुर्राते रहते हैं। \b \p \v 16 लेकिन मैं तेरी क़ुदरत की मद्हसराई करूँगा, सुबह को ख़ुशी के नारे लगाकर तेरी शफ़क़त की सताइश करूँगा। क्योंकि तू मेरा क़िला और मुसीबत के वक़्त मेरी पनाहगाह है। \p \v 17 ऐ मेरी क़ुव्वत, मैं तेरी मद्हसराई करूँगा, क्योंकि अल्लाह मेरा क़िला और मेरा मेहरबान ख़ुदा है। \c 60 \s1 मरदूद क़ौम की दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। तर्ज़ : अहद का सोसन। तालीम के लिए यह सुनहरा गीत उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब दाऊद ने मसोपुतामिया के अरामियों और ज़ोबाह के अरामियों से जंग की। वापसी पर योआब ने नमक की वादी में 12,000 अदोमियों को मार डाला। \p ऐ अल्लाह, तूने हमें रद्द किया, हमारी क़िलाबंदी में रख़ना डाल दिया है। लेकिन अब अपने ग़ज़ब से बाज़ आकर हमें बहाल कर। \p \v 2 तूने ज़मीन को ऐसे झटके दिए कि उसमें दराड़ें पड़ गईं। अब उसके शिगाफ़ों को शफ़ा दे, क्योंकि वह अभी तक थरथरा रही है। \p \v 3 तूने अपनी क़ौम को तलख़ तजरबों से दोचार होने दिया, हमें ऐसी तेज़ मै पिला दी कि हम डगमगाने लगे हैं। \p \v 4 लेकिन जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं उनके लिए तूने झंडा गाड़ दिया जिसके इर्दगिर्द वह जमा होकर तीरों से पनाह ले सकते हैं। (सिलाह) \p \v 5 अपने दहने हाथ से मदद करके मेरी सुन ताकि जो तुझे प्यारे हैं वह नजात पाएँ। \b \p \v 6 अल्लाह ने अपने मक़दिस में फ़रमाया है, “मैं फ़तह मनाते हुए सिकम को तक़सीम करूँगा और वादीए-सुक्कात को नापकर बाँट दूँगा। \p \v 7 जिलियाद मेरा है और मनस्सी मेरा है। इफ़राईम मेरा ख़ोद और यहूदाह मेरा शाही असा है। \p \v 8 मोआब मेरा ग़ुस्ल का बरतन है, और अदोम पर मैं अपना जूता फेंक दूँगा। ऐ फ़िलिस्ती मुल्क, मुझे देखकर ज़ोरदार नारे लगा!” \b \p \v 9 कौन मुझे क़िलाबंद शहर में लाएगा? कौन मेरी राहनुमाई करके मुझे अदोम तक पहुँचाएगा? \p \v 10 ऐ अल्लाह, तू ही यह कर सकता है, गो तूने हमें रद्द किया है। ऐ अल्लाह, तू हमारी फ़ौजों का साथ नहीं देता जब वह लड़ने के लिए निकलती हैं। \p \v 11 मुसीबत में हमें सहारा दे, क्योंकि इस वक़्त इनसानी मदद बेकार है। \p \v 12 अल्लाह के साथ हम ज़बरदस्त काम करेंगे, क्योंकि वही हमारे दुश्मनों को कुचल देगा। \c 61 \s1 दूर से दरख़ास्त \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तारदार साज़ के साथ गाना है। \p ऐ अल्लाह, मेरी आहो-ज़ारी सुन, मेरी दुआ पर तवज्जुह दे। \p \v 2 मैं तुझे दुनिया की इंतहा से पुकार रहा हूँ, क्योंकि मेरा दिल निढाल हो गया है। मेरी राहनुमाई करके मुझे उस चट्टान पर पहुँचा दे जो मुझसे बुलंद है। \b \p \v 3 क्योंकि तू मेरी पनाहगाह रहा है, एक मज़बूत बुर्ज जिसमें मैं दुश्मन से महफ़ूज़ हूँ। \p \v 4 मैं हमेशा के लिए तेरे ख़ैमे में रहना, तेरे परों तले पनाह लेना चाहता हूँ। (सिलाह) \b \p \v 5 क्योंकि ऐ अल्लाह, तूने मेरी मन्नतों पर ध्यान दिया, तूने मुझे वह मीरास बख़्शी जो उन सबको मिलती है जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं। \p \v 6 बादशाह को उम्र की दराज़ी बख़्श दे। वह पुश्त-दर-पुश्त जीता रहे। \p \v 7 वह हमेशा तक अल्लाह के हुज़ूर तख़्तनशीन रहे। शफ़क़त और वफ़ादारी उस की हिफ़ाज़त करें। \p \v 8 तब मैं हमेशा तक तेरे नाम की मद्हसराई करूँगा, रोज़ बरोज़ अपनी मन्नतें पूरी करूँगा। \c 62 \s1 ख़ामोशी से अल्लाह का इंतज़ार कर \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। यदूतून के लिए। \p मेरी जान ख़ामोशी से अल्लाह ही के इंतज़ार में है। उसी से मुझे मदद मिलती है। \p \v 2 वही मेरी चट्टान, मेरी नजात और मेरा क़िला है, इसलिए मैं ज़्यादा नहीं डगमगाऊँगा। \b \p \v 3 तुम कब तक उस पर हमला करोगे जो पहले ही झुकी हुई दीवार की मानिंद है? तुम सब कब तक उसे क़त्ल करने पर तुले रहोगे जो पहले ही गिरनेवाली चारदीवारी जैसा है? \p \v 4 उनके मनसूबों का एक ही मक़सद है, कि उसे उसके ऊँचे ओहदे से उतारें। उन्हें झूट से मज़ा आता है। मुँह से वह बरकत देते, लेकिन अंदर ही अंदर लानत करते हैं। (सिलाह) \b \p \v 5 लेकिन तू ऐ मेरी जान, ख़ामोशी से अल्लाह ही के इंतज़ार में रह। क्योंकि उसी से मुझे उम्मीद है। \p \v 6 सिर्फ़ वही मेरी जान की चट्टान, मेरी नजात और मेरा क़िला है, इसलिए मैं नहीं डगमगाऊँगा। \b \p \v 7 मेरी नजात और इज़्ज़त अल्लाह पर मबनी है, वही मेरी महफ़ूज़ चट्टान है। अल्लाह में मैं पनाह लेता हूँ। \p \v 8 ऐ उम्मत, हर वक़्त उस पर भरोसा रख! उसके हुज़ूर अपने दिल का रंजो-अलम पानी की तरह उंडेल दे। अल्लाह ही हमारी पनाहगाह है। (सिलाह) \b \p \v 9 इनसान दम-भर का ही है, और बड़े लोग फ़रेब ही हैं। अगर उन्हें तराज़ू में तोला जाए तो मिलकर उनका वज़न एक फूँक से भी कम है। \p \v 10 ज़ुल्म पर एतमाद न करो, चोरी करने पर फ़ज़ूल उम्मीद न रखो। और अगर दौलत बढ़ जाए तो तुम्हारा दिल उससे लिपट न जाए। \p \v 11 अल्लाह ने एक बात फ़रमाई बल्कि दो बार मैंने सुनी है कि अल्लाह ही क़ादिर है। \p \v 12 ऐ रब, यक़ीनन तू मेहरबान है, क्योंकि तू हर एक को उसके आमाल का बदला देता है। \c 63 \s1 अल्लाह के लिए आरज़ू \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। यह उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब वह यहूदाह के रेगिस्तान में था। \p ऐ अल्लाह, तू मेरा ख़ुदा है जिसे मैं ढूँडता हूँ। मेरी जान तेरी प्यासी है, मेरा पूरा जिस्म तेरे लिए तरसता है। मैं उस ख़ुश्क और निढाल मुल्क की मानिंद हूँ जिसमें पानी नहीं है। \p \v 2 चुनाँचे मैं मक़दिस में तुझे देखने के इंतज़ार में रहा ताकि तेरी क़ुदरत और जलाल का मुशाहदा करूँ। \p \v 3 क्योंकि तेरी शफ़क़त ज़िंदगी से कहीं बेहतर है, मेरे होंट तेरी मद्हसराई करेंगे। \p \v 4 चुनाँचे मैं जीते-जी तेरी सताइश करूँगा, तेरा नाम लेकर अपने हाथ उठाऊँगा। \p \v 5 मेरी जान उम्दा ग़िज़ा से सेर हो जाएगी, मेरा मुँह ख़ुशी के नारे लगाकर तेरी हम्दो-सना करेगा। \p \v 6 बिस्तर पर मैं तुझे याद करता, पूरी रात के दौरान तेरे बारे में सोचता रहता हूँ। \p \v 7 क्योंकि तू मेरी मदद करने आया, और मैं तेरे परों के साये में ख़ुशी के नारे लगाता हूँ। \p \v 8 मेरी जान तेरे साथ लिपटी रहती, और तेरा दहना हाथ मुझे सँभालता है। \b \p \v 9 लेकिन जो मेरी जान लेने पर तुले हुए हैं वह तबाह हो जाएंगे, वह ज़मीन की गहराइयों में उतर जाएंगे। \p \v 10 उन्हें तलवार के हवाले किया जाएगा, और वह गीदड़ों की ख़ुराक बन जाएंगे। \b \p \v 11 लेकिन बादशाह अल्लाह की ख़ुशी मनाएगा। जो भी अल्लाह की क़सम खाता है वह फ़ख़र करेगा, क्योंकि झूट बोलनेवालों के मुँह बंद हो जाएंगे। \c 64 \s1 शरीअत के पोशीदा हमलों से हिफ़ाज़त की दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ अल्लाह, सुन जब मैं अपनी आहो-ज़ारी पेश करता हूँ। मेरी ज़िंदगी दुश्मन की दहशत से महफ़ूज़ रख। \p \v 2 मुझे बदमाशों की साज़िशों से छुपाए रख, उनकी हलचल से जो ग़लत काम करते हैं। \p \v 3 वह अपनी ज़बान को तलवार की तरह तेज़ करते और अपने ज़हरीले अलफ़ाज़ को तीरों की तरह तैयार रखते हैं \p \v 4 ताकि ताक में बैठकर उन्हें बेक़ुसूर पर चलाएँ। वह अचानक और बेबाकी से उन्हें उस पर बरसा देते हैं। \p \v 5 वह बुरा काम करने में एक दूसरे की हौसलाअफ़्ज़ाई करते, एक दूसरे से मशवरा लेते हैं कि हम अपने फंदे किस तरह छुपाकर लगाएँ? वह कहते हैं, “यह किसी को भी नज़र नहीं आएँगे।” \p \v 6 वह बड़ी बारीकी से बुरे मनसूबों की तैयारियाँ करते, फिर कहते हैं, “चलो, बात बन गई है, मनसूबा सोच-बिचार के बाद तैयार हुआ है।” यक़ीनन इनसान के बातिन और दिल की तह तक पहुँचना मुश्किल ही है। \b \p \v 7 लेकिन अल्लाह उन पर तीर बरसाएगा, और अचानक ही वह ज़ख़मी हो जाएंगे। \p \v 8 वह अपनी ही ज़बान से ठोकर खाकर गिर जाएंगे। जो भी उन्हें देखेगा वह “तौबा तौबा” कहेगा। \p \v 9 तब तमाम लोग ख़ौफ़ खाकर कहेंगे, “अल्लाह ही ने यह किया!” उन्हें समझ आएगी कि यह उसी का काम है। \b \p \v 10 रास्तबाज़ अल्लाह की ख़ुशी मनाकर उसमें पनाह लेगा, और जो दिल से दियानतदार हैं वह सब फ़ख़र करेंगे। \c 65 \s1 रूहानी और जिस्मानी बरकतों के लिए शुक्रगुज़ारी \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए गीत। \p ऐ अल्लाह, तू ही इस लायक़ है कि इनसान कोहे-सिय्यून पर ख़ामोशी से तेरे इंतज़ार में रहे, तेरी तमजीद करे और तेरे हुज़ूर अपनी मन्नतें पूरी करे। \p \v 2 तू दुआओं को सुनता है, इसलिए तमाम इनसान तेरे हुज़ूर आते हैं। \p \v 3 गुनाह मुझ पर ग़ालिब आ गए हैं, तू ही हमारी सरकश हरकतों को मुआफ़ कर। \p \v 4 मुबारक है वह जिसे तू चुनकर क़रीब आने देता है, जो तेरी बारगाहों में बस सकता है। बख़्श दे कि हम तेरे घर, तेरी मुक़द्दस सुकूनतगाह की अच्छी चीज़ों से सेर हो जाएँ। \b \p \v 5 ऐ हमारी नजात के ख़ुदा, हैबतनाक कामों से अपनी रास्ती क़ायम करके हमारी सुन! क्योंकि तू ज़मीन की तमाम हुदूद और दूर-दराज़ समुंदरों तक सबकी उम्मीद है। \p \v 6 तू अपनी क़ुदरत से पहाड़ों की मज़बूत बुनियादें डालता और क़ुव्वत से कमरबस्ता रहता है। \p \v 7 तू मुतलातिम समुंदरों को थमा देता है, तू उनकी गरजती लहरों और उम्मतों का शोर-शराबा ख़त्म कर देता है। \p \v 8 दुनिया की इंतहा के बाशिंदे तेरे निशानात से ख़ौफ़ खाते हैं, और तू तुलूए-सुबह और ग़ुरूबे-आफ़ताब को ख़ुशी मनाने देता है। \b \p \v 9 तू ज़मीन की देख-भाल करके उसे पानी की कसरत और ज़रख़ेज़ी से नवाज़ता है, चुनाँचे अल्लाह की नदी पानी से भरी रहती है। ज़मीन को यों तैयार करके तू इनसान को अनाज की अच्छी फ़सल मुहैया करता है। \p \v 10 तू खेत की रेघारियों को शराबोर करके उसके ढेलों को हमवार करता है। तू बारिश की बौछाड़ों से ज़मीन को नरम करके उस की फ़सलों को बरकत देता है। \p \v 11 तू साल को अपनी भलाई का ताज पहना देता है, और तेरे नक़्शे-क़दम तेल की फ़रावानी से टपकते हैं। \p \v 12 बयाबान की चरागाहें तेल \f + \fr 65:12 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : ‘चरबी,’ जो फ़रावानी का निशान था। \f* की कसरत से टपकती हैं, और पहाड़ियाँ भरपूर ख़ुशी से मुलब्बस हो जाती हैं। \p \v 13 सब्ज़ाज़ार भेड़-बकरियों से आरास्ता हैं, वादियाँ अनाज से ढकी हुई हैं। सब ख़ुशी के नारे लगा रहे हैं, सब गीत गा रहे हैं! \c 66 \s1 अल्लाह की मोजिज़ाना मदद की तारीफ़ \p \v 1 मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। ज़बूर। गीत। \p ऐ सारी ज़मीन, ख़ुशी के नारे लगाकर अल्लाह की मद्हसराई कर! \p \v 2 उसके नाम के जलाल की तमजीद करो, उस की सताइश उरूज तक ले जाओ! \p \v 3 अल्लाह से कहो, “तेरे काम कितने पुरजलाल हैं। तेरी बड़ी क़ुदरत के सामने तेरे दुश्मन दबककर तेरी ख़ुशामद करने लगते हैं। \p \v 4 तमाम दुनिया तुझे सिजदा करे! वह तेरी तारीफ़ में गीत गाए, तेरे नाम की सताइश करे।” (सिलाह) \b \p \v 5 आओ, अल्लाह के काम देखो! आदमज़ाद की ख़ातिर उसने कितने पुरजलाल मोजिज़े किए हैं! \p \v 6 उसने समुंदर को ख़ुश्क ज़मीन में बदल दिया। जहाँ पहले पानी का तेज़ बहाव था वहाँ से लोग पैदल ही गुज़रे। चुनाँचे आओ, हम उस की ख़ुशी मनाएँ। \p \v 7 अपनी क़ुदरत से वह अबद तक हुकूमत करता है। उस की आँखें क़ौमों पर लगी रहती हैं ताकि सरकश उसके ख़िलाफ़ न उठें। (सिलाह) \b \p \v 8 ऐ उम्मतो, हमारे ख़ुदा की हम्द करो। उस की सताइश दूर तक सुनाई दे। \p \v 9 क्योंकि वह हमारी ज़िंदगी क़ायम रखता, हमारे पाँवों को डगमगाने नहीं देता। \b \p \v 10 क्योंकि ऐ अल्लाह, तूने हमें आज़माया। जिस तरह चाँदी को पिघलाकर साफ़ किया जाता है उसी तरह तूने हमें पाक-साफ़ कर दिया है। \p \v 11 तूने हमें जाल में फँसा दिया, हमारी कमर पर अज़ियतनाक बोझ डाल दिया। \p \v 12 तूने लोगों के रथों को हमारे सरों पर से गुज़रने दिया, और हम आग और पानी की ज़द में आ गए। लेकिन फिर तूने हमें मुसीबत से निकालकर फ़रावानी की जगह पहुँचाया। \b \p \v 13 मैं भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ लेकर तेरे घर में आऊँगा और तेरे हुज़ूर अपनी मन्नतें पूरी करूँगा, \p \v 14 वह मन्नतें जो मेरे मुँह ने मुसीबत के वक़्त मानी थीं। \p \v 15 भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर मैं तुझे मोटी-ताज़ी भेड़ें और मेंढों का धुआँ पेश करूँगा, साथ साथ बैल और बकरे भी चढ़ाऊँगा। (सिलाह) \b \p \v 16 ऐ अल्लाह का ख़ौफ़ माननेवालो, आओ और सुनो! जो कुछ अल्लाह ने मेरी जान के लिए किया वह तुम्हें सुनाऊँगा। \p \v 17 मैंने अपने मुँह से उसे पुकारा, लेकिन मेरी ज़बान उस की तारीफ़ करने के लिए तैयार थी। \p \v 18 अगर मैं दिल में गुनाह की परवरिश करता तो रब मेरी न सुनता। \p \v 19 लेकिन यक़ीनन रब ने मेरी सुनी, उसने मेरी इल्तिजा पर तवज्जुह दी। \p \v 20 अल्लाह की हम्द हो, जिसने न मेरी दुआ रद्द की, न अपनी शफ़क़त मुझसे बाज़ रखी। \c 67 \s1 तमाम क़ौमें अल्लाह की तारीफ़ करें \p \v 1 ज़बूर। तारदार साज़ों के साथ गाना है। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p अल्लाह हम पर मेहरबानी करे और हमें बरकत दे। वह अपने चेहरे का नूर हम पर चमकाए (सिलाह) \p \v 2 ताकि ज़मीन पर तेरी राह और तमाम क़ौमों में तेरी नजात मालूम हो जाए। \b \p \v 3 ऐ अल्लाह, क़ौमें तेरी सताइश करें, तमाम क़ौमें तेरी सताइश करें। \b \p \v 4 उम्मतें शादमान होकर ख़ुशी के नारे लगाएँ, क्योंकि तू इनसाफ़ से क़ौमों की अदालत करेगा और ज़मीन पर उम्मतों की क़ियादत करेगा। (सिलाह) \b \p \v 5 ऐ अल्लाह, क़ौमें तेरी सताइश करें, तमाम क़ौमें तेरी सताइश करें। \b \p \v 6 ज़मीन अपनी फ़सलें देती है। अल्लाह हमारा ख़ुदा हमें बरकत दे! \p \v 7 अल्लाह हमें बरकत दे, और दुनिया की इंतहाएँ सब उसका ख़ौफ़ मानें। \c 68 \s1 अल्लाह की फ़तह \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए गीत। \p अल्लाह उठे तो उसके दुश्मन तित्तर-बित्तर हो जाएंगे, उससे नफ़रत करनेवाले उसके सामने से भाग जाएंगे। \p \v 2 वह धुएँ की तरह बिखर जाएंगे। जिस तरह मोम आग के सामने पिघल जाता है उसी तरह बेदीन अल्लाह के हुज़ूर हलाक हो जाएंगे। \p \v 3 लेकिन रास्तबाज़ ख़ुशो-ख़ुर्रम होंगे, वह अल्लाह के हुज़ूर जशन मनाकर फूले न समाएँगे। \b \p \v 4 अल्लाह की ताज़ीम में गीत गाओ, उसके नाम की मद्हसराई करो! जो रथ पर सवार बयाबान में से गुज़र रहा है उसके लिए रास्ता तैयार करो। रब उसका नाम है, उसके हुज़ूर ख़ुशी मनाओ! \p \v 5 अल्लाह अपनी मुक़द्दस सुकूनतगाह में यतीमों का बाप और बेवाओं का हामी है। \p \v 6 अल्लाह बेघरों को घरों में बसा देता और क़ैदियों को क़ैद से निकालकर ख़ुशहाली अता करता है। लेकिन जो सरकश हैं वह झुलसे हुए मुल्क में रहेंगे। \b \p \v 7 ऐ अल्लाह, जब तू अपनी क़ौम के आगे आगे निकला, जब तू रेगिस्तान में क़दम बक़दम आगे बढ़ा (सिलाह) \p \v 8 तो ज़मीन लरज़ उठी और आसमान से बारिश टपकने लगी। हाँ, अल्लाह के हुज़ूर जो कोहे-सीना और इसराईल का ख़ुदा है ऐसा ही हुआ। \p \v 9 ऐ अल्लाह, तूने कसरत की बारिश बरसने दी। जब कभी तेरा मौरूसी मुल्क निढाल हुआ तो तूने उसे ताज़ादम किया। \p \v 10 यों तेरी क़ौम उसमें आबाद हुई। ऐ अल्लाह, अपनी भलाई से तूने उसे ज़रूरतमंदों के लिए तैयार किया। \b \p \v 11 रब फ़रमान सादिर करता है तो ख़ुशख़बरी सुनानेवाली औरतों का बड़ा लशकर निकलता है, \p \v 12 “फ़ौजों के बादशाह भाग रहे हैं। वह भाग रहे हैं और औरतें लूट का माल तक़सीम कर रही हैं। \p \v 13 तुम क्यों अपने ज़ीन के दो बोरों के दरमियान बैठे रहते हो? देखो, कबूतर के परों पर चाँदी और उसके शाहपरों पर पीला सोना चढ़ाया गया है।” \p \v 14 जब क़ादिरे-मुतलक़ ने वहाँ के बादशाहों को मुंतशिर कर दिया तो कोहे-ज़लमोन पर बर्फ़ पड़ी। \b \p \v 15 कोहे-बसन इलाही पहाड़ है, कोहे-बसन की मुतअद्दिद चोटियाँ हैं। \p \v 16 ऐ पहाड़ की मुतअद्दिद चोटियो, तुम उस पहाड़ को क्यों रश्क की निगाह से देखती हो जिसे अल्लाह ने अपनी सुकूनतगाह के लिए पसंद किया है? यक़ीनन रब वहाँ हमेशा के लिए सुकूनत करेगा। \p \v 17 अल्लाह के बेशुमार रथ और अनगिनत फ़ौजी हैं। ख़ुदावंद उनके दरमियान है, सीना का ख़ुदा मक़दिस में है। \p \v 18 तूने बुलंदी पर चढ़कर क़ैदियों का हुजूम गिरिफ़्तार कर लिया, तुझे इनसानों से तोह्फ़े मिले, उनसे भी जो सरकश हो गए थे। यों ही रब ख़ुदा वहाँ सुकूनतपज़ीर हुआ। \b \p \v 19 रब की तमजीद हो जो रोज़ बरोज़ हमारा बोझ उठाए चलता है। अल्लाह हमारी नजात है। (सिलाह) \p \v 20 हमारा ख़ुदा वह ख़ुदा है जो हमें बार बार नजात देता है, रब क़ादिरे-मुतलक़ हमें बार बार मौत से बचने के रास्ते मुहैया करता है। \p \v 21 यक़ीनन अल्लाह अपने दुश्मनों के सरों को कुचल देगा। जो अपने गुनाहों से बाज़ नहीं आता उस की खोपड़ी वह पाश पाश करेगा। \p \v 22 रब ने फ़रमाया, “मैं उन्हें बसन से वापस लाऊँगा, समुंदर की गहराइयों से वापस पहुँचाऊँगा। \p \v 23 तब तू अपने पाँवों को दुश्मन के ख़ून में धो लेगा, और तेरे कुत्ते उसे चाट लेंगे।” \b \p \v 24 ऐ अल्लाह, तेरे जुलूस नज़र आ गए हैं, मेरे ख़ुदा और बादशाह के जुलूस मक़दिस में दाख़िल होते हुए नज़र आ गए हैं। \p \v 25 आगे गुलूकार, फिर साज़ बजानेवाले चल रहे हैं। उनके आस-पास कुँवारियाँ दफ़ बजाते हुए फिर रही हैं। \p \v 26 “जमातों में अल्लाह की सताइश करो! जितने भी इसराईल के सरचश्मे से निकले हुए हो रब की तमजीद करो!” \p \v 27 वहाँ सबसे छोटा भाई बिनयमीन आगे चल रहा है, फिर यहूदाह के बुज़ुर्गों का पुरशोर हुजूम ज़बूलून और नफ़ताली के बुज़ुर्गों के साथ चल रहा है। \b \p \v 28 ऐ अल्लाह, अपनी क़ुदरत बरूए-कार ला! ऐ अल्लाह, जो क़ुदरत तूने पहले भी हमारी ख़ातिर दिखाई उसे दुबारा दिखा! \p \v 29 उसे यरूशलम के ऊपर अपनी सुकूनतगाह से दिखा। तब बादशाह तेरे हुज़ूर तोह्फ़े लाएँगे। \p \v 30 सरकंडों में छुपे हुए दरिंदे को मलामत कर! साँडों का जो ग़ोल बछड़ों जैसी क़ौमों में रहता है उसे डाँट! उन्हें कुचल दे जो चाँदी को प्यार करते हैं। उन क़ौमों को मुंतशिर कर जो जंग करने से लुत्फ़अंदोज़ होती हैं। \p \v 31 मिसर से सफ़ीर आएँगे, एथोपिया अपने हाथ अल्लाह की तरफ़ उठाएगा। \b \p \v 32 ऐ दुनिया की सलतनतो, अल्लाह की ताज़ीम में गीत गाओ! रब की मद्हसराई करो (सिलाह) \p \v 33 जो अपने रथ पर सवार होकर क़दीम ज़माने के बुलंदतरीन आसमानों में से गुज़रता है। सुनो उस की आवाज़ जो ज़ोर से गरज रहा है। \p \v 34 अल्लाह की क़ुदरत को तसलीम करो! उस की अज़मत इसराईल पर छाई रहती और उस की क़ुदरत आसमान पर है। \p \v 35 ऐ अल्लाह, तू अपने मक़दिस से ज़ाहिर होते वक़्त कितना महीब है। इसराईल का ख़ुदा ही क़ौम को क़ुव्वत और ताक़त अता करता है। अल्लाह की तमजीद हो! \c 69 \s1 आज़माइश से नजात की दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। तर्ज़ : सोसन के फूल। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ अल्लाह, मुझे बचा! क्योंकि पानी मेरे गले तक पहुँच गया है। \p \v 2 मैं गहरी दलदल में धँस गया हूँ, कहीं पाँव जमाने की जगह नहीं मिलती। मैं पानी की गहराइयों में आ गया हूँ, सैलाब मुझ पर ग़ालिब आ गया है। \p \v 3 मैं चिल्लाते चिल्लाते थक गया हूँ। मेरा गला बैठ गया है। अपने ख़ुदा का इंतज़ार करते करते मेरी आँखें धुँधला गईं। \p \v 4 जो बिलावजह मुझसे कीना रखते हैं वह मेरे सर के बालों से ज़्यादा हैं, जो बेसबब मेरे दुश्मन हैं और मुझे तबाह करना चाहते हैं वह ताक़तवर हैं। जो कुछ मैंने नहीं लूटा उसे मुझसे तलब किया जाता है। \b \p \v 5 ऐ अल्लाह, तू मेरी हमाक़त से वाक़िफ़ है, मेरा क़ुसूर तुझसे पोशीदा नहीं है। \p \v 6 ऐ क़ादिरे-मुतलक़ रब्बुल-अफ़वाज, जो तेरे इंतज़ार में रहते हैं वह मेरे बाइस शरमिंदा न हों। ऐ इसराईल के ख़ुदा, मेरे बाइस तेरे तालिब की रुसवाई न हो। \p \v 7 क्योंकि तेरी ख़ातिर मैं शरमिंदगी बरदाश्त कर रहा हूँ, तेरी ख़ातिर मेरा चेहरा शर्मसार ही रहता है। \p \v 8 मैं अपने सगे भाइयों के नज़दीक अजनबी और अपनी माँ के बेटों के नज़दीक परदेसी बन गया हूँ। \p \v 9 क्योंकि तेरे घर की ग़ैरत मुझे खा गई है, जो तुझे गालियाँ देते हैं उनकी गालियाँ मुझ पर आ गई हैं। \p \v 10 जब मैं रोज़ा रखकर रोता था तो लोग मेरा मज़ाक़ उड़ाते थे। \p \v 11 जब मातमी लिबास पहने फिरता था तो उनके लिए इबरतअंगेज़ मिसाल बन गया। \p \v 12 जो बुज़ुर्ग शहर के दरवाज़े पर बैठे हैं वह मेरे बारे में गप्पें हाँकते हैं। शराबी मुझे अपने तंज़ भरे गीतों का निशाना बनाते हैं। \b \p \v 13 लेकिन ऐ रब, मेरी तुझसे दुआ है कि मैं तुझे दुबारा मंज़ूर हो जाऊँ। ऐ अल्लाह, अपनी अज़ीम शफ़क़त के मुताबिक़ मेरी सुन, अपनी यक़ीनी नजात के मुताबिक़ मुझे बचा। \p \v 14 मुझे दलदल से निकाल ताकि ग़रक़ न हो जाऊँ। मुझे उनसे छुटकारा दे जो मुझसे नफ़रत करते हैं। पानी की गहराइयों से मुझे बचा। \p \v 15 सैलाब मुझ पर ग़ालिब न आए, समुंदर की गहराई मुझे हड़प न कर ले, गढ़ा मेरे ऊपर अपना मुँह बंद न कर ले। \p \v 16 ऐ रब, मेरी सुन, क्योंकि तेरी शफ़क़त भली है। अपने अज़ीम रहम के मुताबिक़ मेरी तरफ़ रुजू कर। \p \v 17 अपना चेहरा अपने ख़ादिम से छुपाए न रख, क्योंकि मैं मुसीबत में हूँ। जल्दी से मेरी सुन! \p \v 18 क़रीब आकर मेरी जान का फ़िद्या दे, मेरे दुश्मनों के सबब से एवज़ाना देकर मुझे छुड़ा। \b \p \v 19 तू मेरी रुसवाई, मेरी शरमिंदगी और तज़लील से वाक़िफ़ है। तेरी आँखें मेरे तमाम दुश्मनों पर लगी रहती हैं। \p \v 20 उनके तानों से मेरा दिल टूट गया है, मैं बीमार पड़ गया हूँ। मैं हमदर्दी के इंतज़ार में रहा, लेकिन बेफ़ायदा। मैंने तवक़्क़ो की कि कोई मुझे दिलासा दे, लेकिन एक भी न मिला। \p \v 21 उन्होंने मेरी ख़ुराक में कड़वा ज़हर मिलाया, मुझे सिरका पिलाया जब प्यासा था। \b \p \v 22 उनकी मेज़ उनके लिए फंदा और उनके साथियों के लिए जाल बन जाए। \p \v 23 उनकी आँखें तारीक हो जाएँ ताकि वह देख न सकें। उनकी कमर हमेशा तक डगमगाती रहे। \p \v 24 अपना पूरा ग़ुस्सा उन पर उतार, तेरा सख़्त ग़ज़ब उन पर आ पड़े। \p \v 25 उनकी रिहाइशगाह सुनसान हो जाए और कोई उनके ख़ैमों में आबाद न हो, \p \v 26 क्योंकि जिसे तू ही ने सज़ा दी उसे वह सताते हैं, जिसे तू ही ने ज़ख़मी किया उसका दुख दूसरों को सुनाकर ख़ुश होते हैं। \p \v 27 उनके क़ुसूर का सख़्ती से हिसाब-किताब कर, वह तेरे सामने रास्तबाज़ न ठहरें। \p \v 28 उन्हें किताबे-हयात से मिटाया जाए, उनका नाम रास्तबाज़ों की फ़हरिस्त में दर्ज न हो। \b \p \v 29 हाय, मैं मुसीबत में फँसा हुआ हूँ, मुझे बहुत दर्द है। ऐ अल्लाह, तेरी नजात मुझे महफ़ूज़ रखे। \p \v 30 मैं अल्लाह के नाम की मद्हसराई करूँगा, शुक्रगुज़ारी से उस की ताज़ीम करूँगा। \p \v 31 यह रब को बैल या सींग और खुर रखनेवाले साँड से कहीं ज़्यादा पसंद आएगा। \p \v 32 हलीम अल्लाह का काम देखकर ख़ुश हो जाएंगे। ऐ अल्लाह के तालिबो, तसल्ली पाओ! \p \v 33 क्योंकि रब मुहताजों की सुनता और अपने क़ैदियों को हक़ीर नहीं जानता। \b \p \v 34 आसमानो-ज़मीन उस की तमजीद करें, समुंदर और जो कुछ उसमें हरकत करता है उस की सताइश करे। \p \v 35 क्योंकि अल्लाह सिय्यून को नजात देकर यहूदाह के शहरों को तामीर करेगा, और उसके ख़ादिम उन पर क़ब्ज़ा करके उनमें आबाद हो जाएंगे। \p \v 36 उनकी औलाद मुल्क को मीरास में पाएगी, और उसके नाम से मुहब्बत रखनेवाले उसमें बसे रहेंगे। \c 70 \s1 दुश्मन से नजात की दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। याददाश्त के लिए। \p ऐ अल्लाह, जल्दी से आकर मुझे बचा! ऐ रब, मेरी मदद करने में जल्दी कर! \p \v 2 मेरे जानी दुश्मन शरमिंदा हो जाएँ, उनकी सख़्त रुसवाई हो जाए। जो मेरी मुसीबत देखने से लुत्फ़ उठाते हैं वह पीछे हट जाएँ, उनका मुँह काला हो जाए। \p \v 3 जो मेरी मुसीबत देखकर क़हक़हा लगाते हैं वह शर्म के मारे पुश्त दिखाएँ। \p \v 4 लेकिन तेरे तालिब शादमान होकर तेरी ख़ुशी मनाएँ। जिन्हें तेरी नजात प्यारी है वह हमेशा कहें, “अल्लाह अज़ीम है!” \p \v 5 लेकिन मैं नाचार और मुहताज हूँ। ऐ अल्लाह, जल्दी से मेरे पास आ! तू ही मेरा सहारा और मेरा नजातदहिंदा है। ऐ रब, देर न कर! \c 71 \s1 हिफ़ाज़त के लिए दुआ \p \v 1 ऐ रब, मैंने तुझमें पनाह ली है। मुझे कभी शरमिंदा न होने दे। \p \v 2 अपनी रास्ती से मुझे बचाकर छुटकारा दे। अपना कान मेरी तरफ़ झुकाकर मुझे नजात दे। \p \v 3 मेरे लिए चट्टान पर महफ़ूज़ घर हो जिसमें मैं हर वक़्त पनाह ले सकूँ। तूने फ़रमाया है कि मुझे नजात देगा, क्योंकि तू ही मेरी चट्टान और मेरा क़िला है। \b \p \v 4 ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे बेदीन के हाथ से बचा, उसके क़ब्ज़े से जो बेइनसाफ़ और ज़ालिम है। \b \p \v 5 क्योंकि तू ही मेरी उम्मीद है। ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, तू मेरी जवानी ही से मेरा भरोसा रहा है। \p \v 6 पैदाइश से ही मैंने तुझ पर तकिया किया है, माँ के पेट से तूने मुझे सँभाला है। मैं हमेशा तेरी हम्दो-सना करूँगा। \b \p \v 7 बहुतों के नज़दीक मैं बदशुगूनी हूँ, लेकिन तू मेरी मज़बूत पनाहगाह है। \p \v 8 दिन-भर मेरा मुँह तेरी तमजीद और ताज़ीम से लबरेज़ रहता है। \b \p \v 9 बुढ़ापे में मुझे रद्द न कर, ताक़त के ख़त्म होने पर मुझे तर्क न कर। \p \v 10 क्योंकि मेरे दुश्मन मेरे बारे में बातें कर रहे हैं, जो मेरी जान की ताक लगाए बैठे हैं वह एक दूसरे से सलाह-मशवरा कर रहे हैं। \p \v 11 वह कहते हैं, “अल्लाह ने उसे तर्क कर दिया है। उसके पीछे पड़कर उसे पकड़ो, क्योंकि कोई नहीं जो उसे बचाए।” \b \p \v 12 ऐ अल्लाह, मुझसे दूर न हो। ऐ मेरे ख़ुदा, मेरी मदद करने में जल्दी कर। \p \v 13 मेरे हरीफ़ शरमिंदा होकर फ़ना हो जाएँ, जो मुझे नुक़सान पहुँचाने के दरपै हैं वह लान-तान और रुसवाई तले दब जाएँ। \p \v 14 लेकिन मैं हमेशा तेरे इंतज़ार में रहूँगा, हमेशा तेरी सताइश करता रहूँगा। \p \v 15 मेरा मुँह तेरी रास्ती सुनाता रहेगा, सारा दिन तेरे नजातबख़्श कामों का ज़िक्र करता रहेगा, गो मैं उनकी पूरी तादाद गिन भी नहीं सकता। \p \v 16 मैं रब क़ादिरे-मुतलक़ के अज़ीम काम सुनाते हुए आऊँगा, मैं तेरी, सिर्फ़ तेरी ही रास्ती याद करूँगा। \b \p \v 17 ऐ अल्लाह, तू मेरी जवानी से मुझे तालीम देता रहा है, और आज तक मैं तेरे मोजिज़ात का एलान करता आया हूँ। \p \v 18 ऐ अल्लाह, ख़ाह मैं बूढ़ा हो जाऊँ और मेरे बाल सफ़ेद हो जाएँ मुझे तर्क न कर जब तक मैं आनेवाली पुश्त के तमाम लोगों को तेरी क़ुव्वत और क़ुदरत के बारे में बता न लूँ। \b \p \v 19 ऐ अल्लाह, तेरी रास्ती आसमान से बातें करती है। ऐ अल्लाह, तुझ जैसा कौन है जिसने इतने अज़ीम काम किए हैं? \p \v 20 तूने मुझे मुतअद्दिद तलख़ तजरबों में से गुज़रने दिया है, लेकिन तू मुझे दुबारा ज़िंदा भी करेगा, तू मुझे ज़मीन की गहराइयों में से वापस लाएगा। \p \v 21 मेरा रुतबा बढ़ा दे, मुझे दुबारा तसल्ली दे। \p \v 22 ऐ मेरे ख़ुदा, मैं सितार बजाकर तेरी सताइश और तेरी वफ़ादारी की तमजीद करूँगा। ऐ इसराईल के क़ुद्दूस, मैं सरोद बजाकर तेरी तारीफ़ में गीत गाऊँगा। \p \v 23 जब मैं तेरी मद्हसराई करूँगा तो मेरे होंट ख़ुशी के नारे लगाएँगे, और मेरी जान जिसे तूने फ़िद्या देकर छुड़ाया है शादियाना बजाएगी। \p \v 24 मेरी ज़बान भी दिन-भर तेरी रास्ती बयान करेगी, क्योंकि जो मुझे नुक़सान पहुँचाना चाहते थे वह शर्मसार और रुसवा हो गए हैं। \c 72 \s1 सलामती का बादशाह \p \v 1 सुलेमान का ज़बूर। \p ऐ अल्लाह, बादशाह को अपना इनसाफ़ अता कर, बादशाह के बेटे को अपनी रास्ती बख़्श दे \p \v 2 ताकि वह रास्ती से तेरी क़ौम और इनसाफ़ से तेरे मुसीबतज़दों की अदालत करे। \p \v 3 पहाड़ क़ौम को सलामती और पहाड़ियाँ रास्ती पहुँचाएँ। \p \v 4 वह क़ौम के मुसीबतज़दों का इनसाफ़ करे और मुहताजों की मदद करके ज़ालिमों को कुचल दे। \p \v 5 तब लोग पुश्त-दर-पुश्त तेरा ख़ौफ़ मानेंगे जब तक सूरज चमके और चाँद रौशनी दे। \p \v 6 वह कटी हुई घास के खेत पर बरसनेवाली बारिश की तरह उतर आए, ज़मीन को तर करनेवाली बौछाड़ों की तरह नाज़िल हो जाए। \p \v 7 उसके दौरे-हुकूमत में रास्तबाज़ फले-फूलेगा, और जब तक चाँद नेस्त न हो जाए सलामती का ग़लबा होगा। \p \v 8 वह एक समुंदर से दूसरे समुंदर तक और दरियाए-फ़ुरात से दुनिया की इंतहा तक हुकूमत करे। \p \v 9 रेगिस्तान के बाशिंदे उसके सामने झुक जाएँ, उसके दुश्मन ख़ाक चाटें। \p \v 10 तरसीस और साहिली इलाक़ों के बादशाह उसे ख़राज पहुँचाएँ, सबा और सिबा उसे बाज पेश करें। \p \v 11 तमाम बादशाह उसे सिजदा करें, सब अक़वाम उस की ख़िदमत करें। \b \p \v 12 क्योंकि जो ज़रूरतमंद मदद के लिए पुकारे उसे वह छुटकारा देगा, जो मुसीबत में है और जिसकी मदद कोई नहीं करता उसे वह रिहाई देगा। \p \v 13 वह पस्तहालों और ग़रीबों पर तरस खाएगा, मुहताजों की जान को बचाएगा। \p \v 14 वह एवज़ाना देकर उन्हें ज़ुल्मो-तशद्दुद से छुड़ाएगा, क्योंकि उनका ख़ून उस की नज़र में क़ीमती है। \b \p \v 15 बादशाह ज़िंदाबाद! सबा का सोना उसे दिया जाए। लोग हमेशा उसके लिए दुआ करें, दिन-भर उसके लिए बरकत चाहें। \p \v 16 मुल्क में अनाज की कसरत हो, पहाड़ों की चोटियों पर भी उस की फ़सलें लहलहाएँ। उसका फल लुबनान के फल जैसा उम्दा हो, शहरों के बाशिंदे हरियाली की तरह फलें-फूलें। \p \v 17 बादशाह का नाम अबद तक क़ायम रहे, जब तक सूरज चमके उसका नाम फले-फूले। तमाम अक़वाम उससे बरकत पाएँ, और वह उसे मुबारक कहें। \b \p \v 18 रब ख़ुदा की तमजीद हो जो इसराईल का ख़ुदा है। सिर्फ़ वही मोजिज़े करता है! \p \v 19 उसके जलाली नाम की अबद तक तमजीद हो, पूरी दुनिया उसके जलाल से भर जाए। आमीन, फिर आमीन। \b \p \v 20 यहाँ दाऊद बिन यस्सी की दुआएँ ख़त्म होती हैं। \c 73 \ms1 तीसरी किताब 73-89 \s1 बेदीनों की कामयाबी के बावुजूद तसल्ली \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। \p यक़ीनन अल्लाह इसराईल पर मेहरबान है, उन पर जिनके दिल पाक हैं। \p \v 2 लेकिन मैं फिसलने को था, मेरे क़दम लग़ज़िश खाने को थे। \p \v 3 क्योंकि शेख़ीबाज़ों को देखकर मैं बेचैन हो गया, इसलिए कि बेदीन इतने ख़ुशहाल हैं। \p \v 4 मरते वक़्त उनको कोई तकलीफ़ नहीं होती, और उनके जिस्म मोटे-ताज़े रहते हैं। \p \v 5 आम लोगों के मसायल से उनका वास्ता नहीं पड़ता। जिस दर्दो-करब में दूसरे मुब्तला रहते हैं उससे वह आज़ाद होते हैं। \p \v 6 इसलिए उनके गले में तकब्बुर का हार है, वह ज़ुल्म का लिबास पहने फिरते हैं। \p \v 7 चरबी के बाइस उनकी आँखें उभर आई हैं। उनके दिल बेलगाम वहमों की गिरिफ़्त में रहते हैं। \p \v 8 वह मज़ाक़ उड़ाकर बुरी बातें करते हैं, अपने ग़ुरूर में ज़ुल्म की धमकियाँ देते हैं। \p \v 9 वह समझते हैं कि जो कुछ हमारे मुँह से निकलता है वह आसमान से है, जो बात हमारी ज़बान पर आ जाती है वह पूरी ज़मीन के लिए अहमियत रखती है। \p \v 10 चुनाँचे अवाम उनकी तरफ़ रुजू होते हैं, क्योंकि उनके हाँ कसरत का पानी पिया जाता है। \p \v 11 वह कहते हैं, “अल्लाह को क्या पता है? अल्लाह तआला को इल्म ही नहीं।” \p \v 12 देखो, यही है बेदीनों का हाल। वह हमेशा सुकून से रहते, हमेशा अपनी दौलत में इज़ाफ़ा करते हैं। \p \v 13 यक़ीनन मैंने बेफ़ायदा अपना दिल पाक रखा और अबस अपने हाथ ग़लत काम करने से बाज़ रखे। \p \v 14 क्योंकि दिन-भर मैं दर्दो-करब में मुब्तला रहता हूँ, हर सुबह मुझे सज़ा दी जाती है। \b \p \v 15 अगर मैं कहता, “मैं भी उनकी तरह बोलूँगा,” तो तेरे फ़रज़ंदों की नसल से ग़द्दारी करता। \p \v 16 मैं सोच-बिचार में पड़ गया ताकि बात समझूँ, लेकिन सोचते सोचते थक गया, अज़ियत में सिर्फ़ इज़ाफ़ा हुआ। \b \p \v 17 तब मैं अल्लाह के मक़दिस में दाख़िल होकर समझ गया कि उनका अंजाम क्या होगा। \p \v 18 यक़ीनन तू उन्हें फिसलनी जगह पर रखेगा, उन्हें फ़रेब में फँसाकर ज़मीन पर पटख़ देगा। \p \v 19 अचानक ही वह तबाह हो जाएंगे, दहशतनाक मुसीबत में फँसकर मुकम्मल तौर पर फ़ना हो जाएंगे। \p \v 20 ऐ रब, जिस तरह ख़ाब जाग उठते वक़्त ग़ैरहक़ीक़ी साबित होता है उसी तरह तू उठते वक़्त उन्हें वहम क़रार देकर हक़ीर जानेगा। \b \p \v 21 जब मेरे दिल में तलख़ी पैदा हुई और मेरे बातिन में सख़्त दर्द था \p \v 22 तो मैं अहमक़ था। मैं कुछ नहीं समझता था बल्कि तेरे सामने मवेशी की मानिंद था। \p \v 23 तो भी मैं हमेशा तेरे साथ लिपटा रहूँगा, क्योंकि तू मेरा दहना हाथ थामे रखता है। \p \v 24 तू अपने मशवरे से मेरी क़ियादत करके आख़िर में इज़्ज़त के साथ मेरा ख़ैरमक़्दम करेगा। \p \v 25 जब तू मेरे साथ है तो मुझे आसमान पर क्या कमी होगी? जब तू मेरे साथ है तो मैं ज़मीन की कोई भी चीज़ नहीं चाहूँगा। \p \v 26 ख़ाह मेरा जिस्म और मेरा दिल जवाब दे जाएँ, लेकिन अल्लाह हमेशा तक मेरे दिल की चट्टान और मेरी मीरास है। \b \p \v 27 यक़ीनन जो तुझसे दूर हैं वह हलाक हो जाएंगे, जो तुझसे बेवफ़ा हैं उन्हें तू तबाह कर देगा। \p \v 28 लेकिन मेरे लिए अल्लाह की क़ुरबत सब कुछ है। मैंने रब क़ादिरे-मुतलक़ को अपनी पनाहगाह बनाया है, और मैं लोगों को तेरे तमाम काम सुनाऊँगा। \c 74 \s1 रब के घर की बेहुरमती पर अफ़सोस \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। हिकमत का गीत। \p ऐ अल्लाह, तूने हमें हमेशा के लिए क्यों रद्द किया है? अपनी चरागाह की भेड़ों पर तेरा क़हर क्यों भड़कता रहता है? \p \v 2 अपनी जमात को याद कर जिसे तूने क़दीम ज़माने में ख़रीदा और एवज़ाना देकर छुड़ाया ताकि तेरी मीरास का क़बीला हो। कोहे-सिय्यून को याद कर जिस पर तू सुकूनतपज़ीर रहा है। \p \v 3 अपने क़दम इन दायमी खंडरात की तरफ़ बढ़ा। दुश्मन ने मक़दिस में सब कुछ तबाह कर दिया है। \p \v 4 तेरे मुख़ालिफ़ों ने गरजते हुए तेरी जलसागाह में अपने निशान गाड़ दिए हैं। \p \v 5 उन्होंने गुंजान जंगल में लकड़हारों की तरह अपने कुल्हाड़े चलाए, \p \v 6 अपने कुल्हाड़ों और कुदालों से उस की तमाम कंदाकारी को टुकड़े टुकड़े कर दिया है। \p \v 7 उन्होंने तेरे मक़दिस को भस्म कर दिया, फ़र्श तक तेरे नाम की सुकूनतगाह की बेहुरमती की है। \p \v 8 अपने दिल में वह बोले, “आओ, हम उन सबको ख़ाक में मिलाएँ!” उन्होंने मुल्क में अल्लाह की हर इबादतगाह नज़रे-आतिश कर दी है। \p \v 9 अब हम पर कोई इलाही निशान ज़ाहिर नहीं होता। न कोई नबी हमारे पास रह गया, न कोई और मौजूद है जो जानता हो कि ऐसे हालात कब तक रहेंगे। \p \v 10 ऐ अल्लाह, हरीफ़ कब तक लान-तान करेगा, दुश्मन कब तक तेरे नाम की तकफ़ीर करेगा? \p \v 11 तू अपना हाथ क्यों हटाता, अपना दहना हाथ दूर क्यों रखता है? उसे अपनी चादर से निकालकर उन्हें तबाह कर दे! \b \p \v 12 अल्लाह क़दीम ज़माने से मेरा बादशाह है, वही दुनिया में नजातबख़्श काम अंजाम देता है। \p \v 13 तू ही ने अपनी क़ुदरत से समुंदर को चीरकर पानी में अज़दहाओं के सरों को तोड़ डाला। \p \v 14 तू ही ने लिवियातान के सरों को चूर चूर करके उसे जंगली जानवरों को खिला दिया। \p \v 15 एक जगह तूने चश्मे और नदियाँ फूटने दीं, दूसरी जगह कभी न सूखनेवाले दरिया सूखने दिए। \p \v 16 दिन भी तेरा है, रात भी तेरी ही है। चाँद और सूरज तेरे ही हाथ से क़ायम हुए। \p \v 17 तू ही ने ज़मीन की हुदूद मुक़र्रर कीं, तू ही ने गरमियों और सर्दियों के मौसम बनाए। \b \p \v 18 ऐ रब, दुश्मन की लान-तान याद कर। ख़याल कर कि अहमक़ क़ौम तेरे नाम पर कुफ़र बकती है। \p \v 19 अपने कबूतर की जान को वहशी जानवरों के हवाले न कर, हमेशा तक अपने मुसीबतज़दों की ज़िंदगी को न भूल। \p \v 20 अपने अहद का लिहाज़ कर, क्योंकि मुल्क के तारीक कोने ज़ुल्म के मैदानों से भर गए हैं। \p \v 21 होने न दे कि मज़लूमों को शरमिंदा होकर पीछे हटना पड़े बल्कि बख़्श दे कि मुसीबतज़दा और ग़रीब तेरे नाम पर फ़ख़र कर सकें। \p \v 22 ऐ अल्लाह, उठकर अदालत में अपने मामले का दिफ़ा कर। याद रहे कि अहमक़ दिन-भर तुझे लान-तान करता है। \p \v 23 अपने दुश्मनों के नारे न भूल बल्कि अपने मुख़ालिफ़ों का मुसलसल बढ़ता हुआ शोर-शराबा याद कर। \c 75 \s1 अल्लाह मग़रूरों की अदालत करता है \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : तबाह न कर। \p ऐ अल्लाह, तेरा शुक्र हो, तेरा शुक्र! तेरा नाम उनके क़रीब है जो तेरे मोजिज़े बयान करते हैं। \b \p \v 2 अल्लाह फ़रमाता है, “जब मेरा वक़्त आएगा तो मैं इनसाफ़ से अदालत करूँगा। \p \v 3 गो ज़मीन अपने बाशिंदों समेत डगमगाने लगे, लेकिन मैं ही ने उसके सतूनों को मज़बूत कर दिया है। (सिलाह) \p \v 4 शेख़ीबाज़ों से मैंने कहा, ‘डींगें मत मारो,’ और बेदीनों से, ‘अपने आप पर फ़ख़र मत करो। \f + \fr 75:4 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : सींग मत उठाओ। \f* \p \v 5 न अपनी ताक़त पर शेख़ी मारो, \f + \fr 75:5 \ft लफ़्ज़ी मतलब : न अपना सींग उठाओ। \f* न अकड़कर कुफ़र बको’।” \p \v 6 क्योंकि सरफ़राज़ी न मशरिक़ से, न मग़रिब से और न बयाबान से आती है \p \v 7 बल्कि अल्लाह से जो मुंसिफ़ है। वही एक को पस्त कर देता है और दूसरे को सरफ़राज़। \p \v 8 क्योंकि रब के हाथ में झागदार और मसालेदार मै का प्याला है जिसे वह लोगों को पिला देता है। यक़ीनन दुनिया के तमाम बेदीनों को इसे आख़िरी क़तरे तक पीना है। \b \p \v 9 लेकिन मैं हमेशा अल्लाह के अज़ीम काम सुनाऊँगा, हमेशा याक़ूब के ख़ुदा की मद्हसराई करूँगा। \b \p \v 10 अल्लाह फ़रमाता है, “मैं तमाम बेदीनों की कमर तोड़ दूँगा जबकि रास्तबाज़ सरफ़राज़ होगा।” \f + \fr 75:10 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : बेदीनों के तमाम सींगों को काट डालूँगा जबकि रास्तबाज़ों का सींग सरफ़राज़ हो जाएगा। \f* \c 76 \s1 अल्लाह मुंसिफ़ है \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तारदार साज़ों के साथ गाना है। \p अल्लाह यहूदाह में मशहूर है, उसका नाम इसराईल में अज़ीम है। \p \v 2 उसने अपनी माँद सालिम \f + \fr 76:2 \ft सालिम से मुराद यरूशलम है। \f* में और अपना भट कोहे-सिय्यून पर बना लिया है। \p \v 3 वहाँ उसने जलते हुए तीरों को तोड़ डाला और ढाल, तलवार और जंग के हथियारों को चूर चूर कर दिया है। (सिलाह) \p \v 4 ऐ अल्लाह, तू दरख़्शाँ है, तू शिकार के पहाड़ों से आया हुआ अज़ीमुश-शान सूरमा है। \b \p \v 5 बहादुरों को लूट लिया गया है, वह मौत की नींद सो गए हैं। फ़ौजियों में से एक भी हाथ नहीं उठा सकता। \p \v 6 ऐ याक़ूब के ख़ुदा, तेरे डाँटने पर घोड़े और रथबान बेहिसो-हरकत हो गए हैं। \p \v 7 तू ही महीब है। जब तू झिड़के तो कौन तेरे हुज़ूर क़ायम रहेगा? \p \v 8 तूने आसमान से फ़ैसले का एलान किया। ज़मीन सहमकर चुप हो गई \p \v 9 जब अल्लाह अदालत करने के लिए उठा, जब वह तमाम मुसीबतज़दों को नजात देने के लिए आया। (सिलाह) \p \v 10 क्योंकि इनसान का तैश भी तेरी तमजीद का बाइस है। उसके तैश का आख़िरी नतीजा तेरा जलाल ही है। \f + \fr 76:10 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : तू बचे हुए तैश से कमरबस्ता हो जाता है। \f* \b \p \v 11 रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर मन्नतें मानकर उन्हें पूरा करो। जितने भी उसके इर्दगिर्द हैं वह पुरजलाल ख़ुदा के हुज़ूर हदिये लाएँ। \p \v 12 वह हुक्मरानों को शिकस्ता रूह कर देता है, उसी से दुनिया के बादशाह दहशत खाते हैं। \c 77 \s1 अल्लाह के अज़ीम कामों से तसल्ली मिलती है \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। यदूतून के लिए। \p मैं अल्लाह से फ़रियाद करके मदद के लिए चिल्लाता हूँ, मैं अल्लाह को पुकारता हूँ कि मुझ पर ध्यान दे। \p \v 2 अपनी मुसीबत में मैंने रब को तलाश किया। रात के वक़्त मेरे हाथ बिलानाग़ा उस की तरफ़ उठे रहे। मेरी जान ने तसल्ली पाने से इनकार किया। \b \p \v 3 मैं अल्लाह को याद करता हूँ तो आहें भरने लगता हूँ, मैं सोच-बिचार में पड़ जाता हूँ तो रूह निढाल हो जाती है। (सिलाह) \p \v 4 तू मेरी आँखों को बंद होने नहीं देता। मैं इतना बेचैन हूँ कि बोल भी नहीं सकता। \b \p \v 5 मैं क़दीम ज़माने पर ग़ौर करता हूँ, उन सालों पर जो बड़ी देर हुए गुज़र गए हैं। \p \v 6 रात को मैं अपना गीत याद करता हूँ। मेरा दिल महवे-ख़याल रहता और मेरी रूह तफ़तीश करती रहती है। \p \v 7 “क्या रब हमेशा के लिए रद्द करेगा, क्या आइंदा हमें कभी पसंद नहीं करेगा? \p \v 8 क्या उस की शफ़क़त हमेशा के लिए जाती रही है? क्या उसके वादे अब से जवाब दे गए हैं? \p \v 9 क्या अल्लाह मेहरबानी करना भूल गया है? क्या उसने ग़ुस्से में अपना रहम बाज़ रखा है?” (सिलाह) \p \v 10 मैं बोला, “इससे मुझे दुख है कि अल्लाह तआला का दहना हाथ बदल गया है।” \b \p \v 11 मैं रब के काम याद करूँगा, हाँ क़दीम ज़माने के तेरे मोजिज़े याद करूँगा। \p \v 12 जो कुछ तूने किया उसके हर पहलू पर ग़ौरो-ख़ौज़ करूँगा, तेरे अज़ीम कामों में महवे-ख़याल रहूँगा। \p \v 13 ऐ अल्लाह, तेरी राह क़ुद्दूस है। कौन-सा माबूद हमारे ख़ुदा जैसा अज़ीम है? \p \v 14 तू ही मोजिज़े करनेवाला ख़ुदा है। अक़वाम के दरमियान तूने अपनी क़ुदरत का इज़हार किया है। \p \v 15 बड़ी क़ुव्वत से तूने एवज़ाना देकर अपनी क़ौम, याक़ूब और यूसुफ़ की औलाद को रिहा कर दिया है। (सिलाह) \p \v 16 ऐ अल्लाह, पानी ने तुझे देखा, पानी ने तुझे देखा तो तड़पने लगा, गहराइयों तक लरज़ने लगा। \p \v 17 मूसलाधार बारिश बरसी, बादल गरज उठे और तेरे तीर इधर-उधर चलने लगे। \p \v 18 आँधी में तेरी आवाज़ कड़कती रही, दुनिया बिजलियों से रौशन हुई, ज़मीन काँपती काँपती उछल पड़ी। \p \v 19 तेरी राह समुंदर में से, तेरा रास्ता गहरे पानी में से गुज़रा, तो भी तेरे नक़्शे-क़दम किसी को नज़र न आए। \p \v 20 मूसा और हारून के हाथ से तूने रेवड़ की तरह अपनी क़ौम की राहनुमाई की। \c 78 \s1 इसराईल की तारीख़ में इलाही सज़ा और रहम \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। हिकमत का गीत। \p ऐ मेरी क़ौम, मेरी हिदायत पर ध्यान दे, मेरे मुँह की बातों पर कान लगा। \p \v 2 मैं तमसीलों में बात करूँगा, क़दीम ज़माने के मुअम्मे बयान करूँगा। \p \v 3 जो कुछ हमने सुन लिया और हमें मालूम हुआ है, जो कुछ हमारे बापदादा ने हमें सुनाया है \p \v 4 उसे हम उनकी औलाद से नहीं छुपाएँगे। हम आनेवाली पुश्त को रब के क़ाबिले-तारीफ़ काम बताएँगे, उस की क़ुदरत और मोजिज़ात बयान करेंगे। \p \v 5 क्योंकि उसने याक़ूब की औलाद को शरीअत दी, इसराईल में अहकाम क़ायम किए। उसने फ़रमाया कि हमारे बापदादा यह अहकाम अपनी औलाद को सिखाएँ \p \v 6 ताकि आनेवाली पुश्त भी उन्हें अपनाए, वह बच्चे जो अभी पैदा नहीं हुए थे। फिर उन्हें भी अपने बच्चों को सुनाना था। \p \v 7 क्योंकि अल्लाह की मरज़ी है कि इस तरह हर पुश्त अल्लाह पर एतमाद रखकर उसके अज़ीम काम न भूले बल्कि उसके अहकाम पर अमल करे। \p \v 8 वह नहीं चाहता कि वह अपने बापदादा की मानिंद हों जो ज़िद्दी और सरकश नसल थे, ऐसी नसल जिसका दिल साबितक़दम नहीं था और जिसकी रूह वफ़ादारी से अल्लाह से लिपटी न रही। \b \p \v 9 चुनाँचे इफ़राईम के मर्द गो कमानों से लैस थे जंग के वक़्त फ़रार हुए। \p \v 10 वह अल्लाह के अहद के वफ़ादार न रहे, उस की शरीअत पर अमल करने के लिए तैयार नहीं थे। \p \v 11 जो कुछ उसने किया था, जो मोजिज़े उसने उन्हें दिखाए थे, इफ़राईमी वह सब कुछ भूल गए। \p \v 12 मुल्के-मिसर के इलाक़े ज़ुअन में उसने उनके बापदादा के देखते देखते मोजिज़े किए थे। \p \v 13 समुंदर को चीरकर उसने उन्हें उसमें से गुज़रने दिया, और दोनों तरफ़ पानी मज़बूत दीवार की तरह खड़ा रहा। \p \v 14 दिन को उसने बादल के ज़रीए और रात-भर चमकदार आग से उनकी क़ियादत की। \p \v 15 रेगिस्तान में उसने पत्थरों को चाक करके उन्हें समुंदर की-सी कसरत का पानी पिलाया। \p \v 16 उसने होने दिया कि चट्टान से नदियाँ फूट निकलें और पानी दरियाओं की तरह बहने लगे। \b \p \v 17 लेकिन वह उसका गुनाह करने से बाज़ न आए बल्कि रेगिस्तान में अल्लाह तआला से सरकश रहे। \p \v 18 जान-बूझकर उन्होंने अल्लाह को आज़माकर वह ख़ुराक माँगी जिसका लालच करते थे। \p \v 19 अल्लाह के ख़िलाफ़ कुफ़र बककर वह बोले, “क्या अल्लाह रेगिस्तान में हमारे लिए मेज़ बिछा सकता है? \p \v 20 बेशक जब उसने चट्टान को मारा तो पानी फूट निकला और नदियाँ बहने लगीं। लेकिन क्या वह रोटी भी दे सकता है, अपनी क़ौम को गोश्त भी मुहैया कर सकता है? यह तो नामुमकिन है।” \p \v 21 यह सुनकर रब तैश में आ गया। याक़ूब के ख़िलाफ़ आग भड़क उठी, और उसका ग़ज़ब इसराईल पर नाज़िल हुआ। \p \v 22 क्यों? इसलिए कि उन्हें अल्लाह पर यक़ीन नहीं था, वह उस की नजात पर भरोसा नहीं रखते थे। \b \p \v 23 इसके बावुजूद अल्लाह ने उनके ऊपर बादलों को हुक्म देकर आसमान के दरवाज़े खोल दिए। \p \v 24 उसने खाने के लिए उन पर मन बरसाया, उन्हें आसमान से रोटी खिलाई। \p \v 25 हर एक ने फ़रिश्तों की यह रोटी खाई बल्कि अल्लाह ने इतना खाना भेजा कि उनके पेट भर गए। \p \v 26 फिर उसने आसमान पर मशरिक़ी हवा चलाई और अपनी क़ुदरत से जुनूबी हवा पहुँचाई। \p \v 27 उसने गर्द की तरह उन पर गोश्त बरसाया, समुंदर की रेत जैसे बेशुमार परिंदे उन पर गिरने दिए। \p \v 28 ख़ैमागाह के बीच में ही वह गिर पड़े, उनके घरों के इर्दगिर्द ही ज़मीन पर आ गिरे। \p \v 29 तब वह खा खाकर ख़ूब सेर हो गए, क्योंकि जिसका लालच वह करते थे वह अल्लाह ने उन्हें मुहैया किया था। \p \v 30 लेकिन उनका लालच अभी पूरा नहीं हुआ था और गोश्त अभी उनके मुँह में था \p \v 31 कि अल्लाह का ग़ज़ब उन पर नाज़िल हुआ। क़ौम के खाते-पीते लोग हलाक हुए, इसराईल के जवान ख़ाक में मिल गए। \b \p \v 32 इन तमाम बातों के बावुजूद वह अपने गुनाहों में इज़ाफ़ा करते गए और उसके मोजिज़ात पर ईमान न लाए। \p \v 33 इसलिए उसने उनके दिन नाकामी में गुज़रने दिए, और उनके साल दहशत की हालत में इख़्तितामपज़ीर हुए। \p \v 34 जब कभी अल्लाह ने उनमें क़त्लो-ग़ारत होने दी तो वह उसे ढूँडने लगे, वह मुड़कर अल्लाह को तलाश करने लगे। \p \v 35 तब उन्हें याद आया कि अल्लाह हमारी चट्टान, अल्लाह तआला हमारा छुड़ानेवाला है। \p \v 36 लेकिन वह मुँह से उसे धोका देते, ज़बान से उसे झूट पेश करते थे। \p \v 37 न उनके दिल साबितक़दमी से उसके साथ लिपटे रहे, न वह उसके अहद के वफ़ादार रहे। \b \p \v 38 तो भी अल्लाह रहमदिल रहा। उसने उन्हें तबाह न किया बल्कि उनका क़ुसूर मुआफ़ करता रहा। बार बार वह अपने ग़ज़ब से बाज़ आया, बार बार अपना पूरा क़हर उन पर उतारने से गुरेज़ किया। \p \v 39 क्योंकि उसे याद रहा कि वह फ़ानी इनसान हैं, हवा का एक झोंका जो गुज़रकर कभी वापस नहीं आता। \b \p \v 40 रेगिस्तान में वह कितनी दफ़ा उससे सरकश हुए, कितनी मरतबा उसे दुख पहुँचाया। \p \v 41 बार बार उन्होंने अल्लाह को आज़माया, बार बार इसराईल के क़ुद्दूस को रंजीदा किया। \p \v 42 उन्हें उस की क़ुदरत याद न रही, वह दिन जब उसने फ़िद्या देकर उन्हें दुश्मन से छुड़ाया, \b \p \v 43 वह दिन जब उसने मिसर में अपने इलाही निशान दिखाए, ज़ुअन के इलाक़े में अपने मोजिज़े किए। \p \v 44 उसने उनकी नहरों का पानी ख़ून में बदल दिया, और वह अपनी नदियों का पानी पी न सके। \p \v 45 उसने उनके दरमियान जुओं के ग़ोल भेजे जो उन्हें खा गईं, मेंढक जो उन पर तबाही लाए। \p \v 46 उनकी पैदावार उसने जवान टिड्डियों के हवाले की, उनकी मेहनत का फल बालिग़ टिड्डियों के सुपुर्द किया। \p \v 47 उनकी अंगूर की बेलें उसने ओलों से, उनके अंजीर-तूत के दरख़्त सैलाब से तबाह कर दिए। \p \v 48 उनके मवेशी उसने ओलों के हवाले किए, उनके रेवड़ बिजली के सुपुर्द किए। \p \v 49 उसने उन पर अपना शोलाज़न ग़ज़ब नाज़िल किया। क़हर, ख़फ़गी और मुसीबत यानी तबाही लानेवाले फ़रिश्तों का पूरा दस्ता उन पर हमलाआवर हुआ। \p \v 50 उसने अपने ग़ज़ब के लिए रास्ता तैयार करके उन्हें मौत से न बचाया बल्कि मोहलक वबा की ज़द में आने दिया। \p \v 51 मिसर में उसने तमाम पहलौठों को मार डाला और हाम के ख़ैमों में मरदानगी का पहला फल तमाम कर दिया। \p \v 52 फिर वह अपनी क़ौम को भेड़-बकरियों की तरह मिसर से बाहर लाकर रेगिस्तान में रेवड़ की तरह लिए फिरा। \p \v 53 वह हिफ़ाज़त से उनकी क़ियादत करता रहा। उन्हें कोई डर नहीं था जबकि उनके दुश्मन समुंदर में डूब गए। \p \v 54 यों अल्लाह ने उन्हें मुक़द्दस मुल्क तक पहुँचाया, उस पहाड़ तक जिसे उसके दहने हाथ ने हासिल किया था। \p \v 55 उनके आगे आगे वह दीगर क़ौमें निकालता गया। उनकी ज़मीन उसने तक़सीम करके इसराईलियों को मीरास में दी, और उनके ख़ैमों में उसने इसराईली क़बीले बसाए। \b \p \v 56 इसके बावुजूद वह अल्लाह तआला को आज़माने से बाज़ न आए बल्कि उससे सरकश हुए और उसके अहकाम के ताबे न रहे। \p \v 57 अपने बापदादा की तरह वह ग़द्दार बनकर बेवफ़ा हुए। वह ढीली कमान की तरह नाकाम हो गए। \p \v 58 उन्होंने ऊँची जगहों की ग़लत क़ुरबानगाहों से अल्लाह को ग़ुस्सा दिलाया और अपने बुतों से उसे रंजीदा किया। \p \v 59 जब अल्लाह को ख़बर मिली तो वह ग़ज़बनाक हुआ और इसराईल को मुकम्मल तौर पर मुस्तरद कर दिया। \p \v 60 उसने सैला में अपनी सुकूनतगाह छोड़ दी, वह ख़ैमा जिसमें वह इनसान के दरमियान सुकूनत करता था। \p \v 61 अहद का संदूक़ उस की क़ुदरत और जलाल का निशान था, लेकिन उसने उसे दुश्मन के हवाले करके जिलावतनी में जाने दिया। \p \v 62 अपनी क़ौम को उसने तलवार की ज़द में आने दिया, क्योंकि वह अपनी मौरूसी मिलकियत से निहायत नाराज़ था। \p \v 63 क़ौम के जवान नज़रे-आतिश हुए, और उस की कुँवारियों के लिए शादी के गीत गाए न गए। \p \v 64 उसके इमाम तलवार से क़त्ल हुए, और उस की बेवाओं ने मातम न किया। \b \p \v 65 तब रब जाग उठा, उस आदमी की तरह जिसकी नींद उचाट हो गई हो, उस सूरमे की मानिंद जिससे नशे का असर उतर गया हो। \p \v 66 उसने अपने दुश्मनों को मार मारकर भगा दिया और उन्हें हमेशा के लिए शरमिंदा कर दिया। \p \v 67 उस वक़्त उसने यूसुफ़ का ख़ैमा रद्द किया और इफ़राईम के क़बीले को न चुना \p \v 68 बल्कि यहूदाह के क़बीले और कोहे-सिय्यून को चुन लिया जो उसे प्यारा था। \p \v 69 उसने अपना मक़दिस बुलंदियों की मानिंद बनाया, ज़मीन की मानिंद जिसे उसने हमेशा के लिए क़ायम किया है। \p \v 70 उसने अपने ख़ादिम दाऊद को चुनकर भेड़-बकरियों के बाड़ों से बुलाया। \p \v 71 हाँ, उसने उसे भेड़ों \f + \fr 78:71 \ft इबरानी मतन से मुराद वह भेड़ है जो अभी अपने बच्चों को दूध पिलाती है। \f* की देख-भाल से बुलाया ताकि वह उस की क़ौम याक़ूब, उस की मीरास इसराईल की गल्लाबानी करे। \p \v 72 दाऊद ने ख़ुलूसदिली से उनकी गल्लाबानी की, बड़ी महारत से उसने उनकी राहनुमाई की। \c 79 \s1 जंग की मुसीबत में क़ौम की दुआ \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। \p ऐ अल्लाह, अजनबी क़ौमें तेरी मौरूसी ज़मीन में घुस आई हैं। उन्होंने तेरी मुक़द्दस सुकूनतगाह की बेहुरमती करके यरूशलम को मलबे का ढेर बना दिया है। \p \v 2 उन्होंने तेरे ख़ादिमों की लाशें परिंदों को और तेरे ईमानदारों का गोश्त जंगली जानवरों को खिला दिया है। \p \v 3 यरूशलम के चारों तरफ़ उन्होंने ख़ून की नदियाँ बहाईं, और कोई बाक़ी न रहा जो मुरदों को दफ़नाता। \p \v 4 हमारे पड़ोसियों ने हमें मज़ाक़ का निशाना बना लिया है, इर्दगिर्द की क़ौमें हमारी हँसी उड़ाती और लान-तान करती हैं। \b \p \v 5 ऐ रब, कब तक? क्या तू हमेशा तक ग़ुस्से होगा? तेरी ग़ैरत कब तक आग की तरह भड़कती रहेगी? \p \v 6 अपना ग़ज़ब उन अक़वाम पर नाज़िल कर जो तुझे तसलीम नहीं करतीं, उन सलतनतों पर जो तेरे नाम को नहीं पुकारतीं। \p \v 7 क्योंकि उन्होंने याक़ूब को हड़प करके उस की रिहाइशगाह तबाह कर दी है। \p \v 8 हमें उन गुनाहों के क़ुसूरवार न ठहरा जो हमारे बापदादा से सरज़द हुए। हम पर रहम करने में जल्दी कर, क्योंकि हम बहुत पस्तहाल हो गए हैं। \p \v 9 ऐ हमारी नजात के ख़ुदा, हमारी मदद कर ताकि तेरे नाम को जलाल मिले। हमें बचा, अपने नाम की ख़ातिर हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर। \p \v 10 दीगर अक़वाम क्यों कहें, “उनका ख़ुदा कहाँ है?” हमारे देखते देखते उन्हें दिखा कि तू अपने ख़ादिमों के ख़ून का बदला लेता है। \p \v 11 क़ैदियों की आहें तुझ तक पहुँचीं, जो मरने को हैं उन्हें अपनी अज़ीम क़ुदरत से महफ़ूज़ रख। \p \v 12 ऐ रब, जो लान-तान हमारे पड़ोसियों ने तुझ पर बरसाई है उसे सात गुना उनके सरों पर वापस ला। \p \v 13 तब हम जो तेरी क़ौम और तेरी चरागाह की भेड़ें हैं अबद तक तेरी सताइश करेंगे, पुश्त-दर-पुश्त तेरी हम्दो-सना करेंगे। \c 80 \s1 अंगूर की बेल की बहाली के लिए दुआ \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : अहद के सोसन। \p ऐ इसराईल के गल्लाबान, हम पर ध्यान दे! तू जो यूसुफ़ की रेवड़ की तरह राहनुमाई करता है, हम पर तवज्जुह कर! तू जो करूबी फ़रिश्तों के दरमियान तख़्तनशीन है, अपना नूर चमका! \p \v 2 इफ़राईम, बिनयमीन और मनस्सी के सामने अपनी क़ुदरत को हरकत में ला। हमें बचाने आ! \b \p \v 3 ऐ अल्लाह, हमें बहाल कर। अपने चेहरे का नूर चमका तो हम नजात पाएँगे। \b \p \v 4 ऐ रब, लशकरों के ख़ुदा, तेरा ग़ज़ब कब तक भड़कता रहेगा, हालाँकि तेरी क़ौम तुझसे इल्तिजा कर रही है? \p \v 5 तूने उन्हें आँसुओं की रोटी खिलाई और आँसुओं का प्याला ख़ूब पिलाया। \p \v 6 तूने हमें पड़ोसियों के झगड़ों का निशाना बनाया। हमारे दुश्मन हमारा मज़ाक़ उड़ाते हैं। \b \p \v 7 ऐ लशकरों के ख़ुदा, हमें बहाल कर। अपने चेहरे का नूर चमका तो हम नजात पाएँगे। \b \p \v 8 अंगूर की जो बेल मिसर में उग रही थी उसे तू उखाड़कर मुल्के-कनान लाया। तूने वहाँ की अक़वाम को भगाकर यह बेल उनकी जगह लगाई। \p \v 9 तूने उसके लिए ज़मीन तैयार की तो वह जड़ पकड़कर पूरे मुल्क में फैल गई। \p \v 10 उसका साया पहाड़ों पर छा गया, और उस की शाख़ों ने देवदार के अज़ीम दरख़्तों को ढाँक लिया। \p \v 11 उस की टहनियाँ मग़रिब में समुंदर तक फैल गईं, उस की डालियाँ मशरिक़ में दरियाए-फ़ुरात तक पहुँच गईं। \p \v 12 तूने उस की चारदीवारी क्यों गिरा दी? अब हर गुज़रनेवाला उसके अंगूर तोड़ लेता है। \p \v 13 जंगल के सुअर उसे खा खाकर तबाह करते, खुले मैदान के जानवर वहाँ चरते हैं। \b \p \v 14 ऐ लशकरों के ख़ुदा, हमारी तरफ़ दुबारा रुजू फ़रमा! आसमान से नज़र डालकर हालात पर ध्यान दे। इस बेल की देख-भाल कर। \b \p \v 15 उसे महफ़ूज़ रख जिसे तेरे दहने हाथ ने ज़मीन में लगाया, उस बेटे को जिसे तूने अपने लिए पाला है। \p \v 16 इस वक़्त वह कटकर नज़रे-आतिश हुआ है। तेरे चेहरे की डाँट-डपट से लोग हलाक हो जाते हैं। \p \v 17 तेरा हाथ अपने दहने हाथ के बंदे को पनाह दे, उस आदमज़ाद को जिसे तूने अपने लिए पाला था। \p \v 18 तब हम तुझसे दूर नहीं हो जाएंगे। बख़्श दे कि हमारी जान में जान आए तो हम तेरा नाम पुकारेंगे। \b \p \v 19 ऐ रब, लशकरों के ख़ुदा, हमें बहाल कर। अपने चेहरे का नूर चमका तो हम नजात पाएँगे। \c 81 \s1 हक़ीक़ी इबादत क्या है? \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : गित्तीत। \p अल्लाह हमारी क़ुव्वत है। उस की ख़ुशी में शादियाना बजाओ, याक़ूब के ख़ुदा की ताज़ीम में ख़ुशी के नारे लगाओ। \p \v 2 गीत गाना शुरू करो। दफ़ बजाओ, सरोद और सितार की सुरीली आवाज़ निकालो। \p \v 3 नए चाँद के दिन नरसिंगा फूँको, पूरे चाँद के जिस दिन हमारी ईद होती है उसे फूँको। \p \v 4 क्योंकि यह इसराईल का फ़र्ज़ है, यह याक़ूब के ख़ुदा का फ़रमान है। \p \v 5 जब यूसुफ़ मिसर के ख़िलाफ़ निकला तो अल्लाह ने ख़ुद यह मुक़र्रर किया। \b \p मैंने एक ज़बान सुनी, जो मैं अब तक नहीं जानता था, \p \v 6 “मैंने उसके कंधे पर से बोझ उतारा और उसके हाथ भारी टोकरी उठाने से आज़ाद किए। \p \v 7 मुसीबत में तूने आवाज़ दी तो मैंने तुझे बचाया। गरजते बादल में से मैंने तुझे जवाब दिया और तुझे मरीबा के पानी पर आज़माया। (सिलाह) \p \v 8 ऐ मेरी क़ौम, सुन, तो मैं तुझे आगाह करूँगा। ऐ इसराईल, काश तू मेरी सुने! \p \v 9 तेरे दरमियान कोई और ख़ुदा न हो, किसी अजनबी माबूद को सिजदा न कर। \p \v 10 मैं ही रब तेरा ख़ुदा हूँ जो तुझे मुल्के-मिसर से निकाल लाया। अपना मुँह ख़ूब खोल तो मैं उसे भर दूँगा। \b \p \v 11 लेकिन मेरी क़ौम ने मेरी न सुनी, इसराईल मेरी बात मानने के लिए तैयार न था। \p \v 12 चुनाँचे मैंने उन्हें उनके दिलों की ज़िद के हवाले कर दिया, और वह अपने ज़ाती मशवरों के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने लगे। \p \v 13 काश मेरी क़ौम सुने, इसराईल मेरी राहों पर चले! \p \v 14 तब मैं जल्दी से उसके दुश्मनों को ज़ेर करता, अपना हाथ उसके मुख़ालिफ़ों के ख़िलाफ़ उठाता। \p \v 15 तब रब से नफ़रत करनेवाले दबककर उस की ख़ुशामद करते, उनकी शिकस्त अबदी होती। \p \v 16 लेकिन इसराईल को मैं बेहतरीन गंदुम खिलाता, मैं चट्टान में से शहद निकालकर उसे सेर करता।” \c 82 \s1 सबसे आला मुंसिफ़ \p \v 1 आसफ़ का ज़बूर। \p अल्लाह इलाही मजलिस में खड़ा है, माबूदों के दरमियान वह अदालत करता है, \p \v 2 “तुम कब तक अदालत में ग़लत फ़ैसले करके बेदीनों की जानिबदारी करोगे? (सिलाह) \p \v 3 पस्तहालों और यतीमों का इनसाफ़ करो, मुसीबतज़दों और ज़रूरतमंदों के हुक़ूक़ क़ायम रखो। \p \v 4 पस्तहालों और ग़रीबों को बचाकर बेदीनों के हाथ से छुड़ाओ।” \b \p \v 5 लेकिन वह कुछ नहीं जानते, उन्हें समझ ही नहीं आती। वह तारीकी में टटोल टटोलकर घुमते-फिरते हैं जबकि ज़मीन की तमाम बुनियादें झूमने लगी हैं। \p \v 6 बेशक मैंने कहा, “तुम ख़ुदा हो, सब अल्लाह तआला के फ़रज़ंद हो। \p \v 7 लेकिन तुम फ़ानी इनसान की तरह मर जाओगे, तुम दीगर हुक्मरानों की तरह गिर जाओगे।” \b \p \v 8 ऐ अल्लाह, उठकर ज़मीन की अदालत कर! क्योंकि तमाम अक़वाम तेरी ही मौरूसी मिलकियत हैं। \c 83 \s1 क़ौम के दुश्मनों के ख़िलाफ़ दुआ \p \v 1 गीत। आसफ़ का ज़बूर। \p ऐ अल्लाह, ख़ामोश न रह! ऐ अल्लाह, चुप न रह! \p \v 2 देख, तेरे दुश्मन शोर मचा रहे हैं, तुझसे नफ़रत करनेवाले अपना सर तेरे ख़िलाफ़ उठा रहे हैं। \p \v 3 तेरी क़ौम के ख़िलाफ़ वह चालाक मनसूबे बाँध रहे हैं, जो तेरी आड़ में छुप गए हैं उनके ख़िलाफ़ साज़िशें कर रहे हैं। \p \v 4 वह कहते हैं, “आओ, हम उन्हें मिटा दें ताकि क़ौम नेस्त हो जाए और इसराईल का नामो-निशान बाक़ी न रहे।” \p \v 5 क्योंकि वह आपस में सलाह-मशवरा करने के बाद दिली तौर पर मुत्तहिद हो गए हैं, उन्होंने तेरे ही ख़िलाफ़ अहद बाँधा है। \p \v 6 उनमें अदोम के ख़ैमे, इसमाईली, मोआब, हाजिरी, \p \v 7 जबाल, अम्मोन, अमालीक़, फिलिस्तिया और सूर के बाशिंदे शामिल हो गए हैं। \p \v 8 असूर भी उनमें शरीक होकर लूत की औलाद को सहारा दे रहा है। (सिलाह) \b \p \v 9 उनके साथ वही सुलूक कर जो तूने मिदियानियों से यानी क़ैसोन नदी पर सीसरा और याबीन से किया। \p \v 10 क्योंकि वह ऐन-दोर के पास हलाक होकर खेत में गोबर बन गए। \p \v 11 उनके शुरफ़ा के साथ वही बरताव कर जो तूने ओरेब और ज़एब से किया। उनके तमाम सरदार ज़िबह और ज़लमुन्ना की मानिंद बन जाएँ, \p \v 12 जिन्होंने कहा, “आओ, हम अल्लाह की चरागाहों पर क़ब्ज़ा करें।” \p \v 13 ऐ मेरे ख़ुदा, उन्हें लुढ़कबूटी और हवा में उड़ते हुए भूसे की मानिंद बना दे। \p \v 14 जिस तरह आग पूरे जंगल में फैल जाती और एक ही शोला पहाड़ों को झुलसा देता है, \p \v 15 उसी तरह अपनी आँधी से उनका ताक़्क़ुब कर, अपने तूफ़ान से उनको दहशतज़दा कर दे। \p \v 16 ऐ रब, उनका मुँह काला कर ताकि वह तेरा नाम तलाश करें। \p \v 17 वह हमेशा तक शरमिंदा और हवासबाख़्ता रहें, वह शर्मसार होकर हलाक हो जाएँ। \p \v 18 तब ही वह जान लेंगे कि तू ही जिसका नाम रब है अल्लाह तआला यानी पूरी दुनिया का मालिक है। \c 84 \s1 रब के घर पर ख़ुशी \p \v 1 क़ोरह ख़ानदान का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : गित्तीत। \p ऐ रब्बुल-अफ़वाज, तेरी सुकूनतगाह कितनी प्यारी है! \p \v 2 मेरी जान रब की बारगाहों के लिए तड़पती हुई निढाल है। मेरा दिल बल्कि पूरा जिस्म ज़िंदा ख़ुदा को ज़ोर से पुकार रहा है। \p \v 3 ऐ रब्बुल-अफ़वाज, ऐ मेरे बादशाह और ख़ुदा, तेरी क़ुरबानगाहों के पास परिंदे को भी घर मिल गया, अबाबील को भी अपने बच्चों को पालने का घोंसला मिल गया है। \b \p \v 4 मुबारक हैं वह जो तेरे घर में बसते हैं, वह हमेशा ही तेरी सताइश करेंगे। (सिलाह) \p \v 5 मुबारक हैं वह जो तुझमें अपनी ताक़त पाते, जो दिल से तेरी राहों में चलते हैं। \p \v 6 वह बुका की ख़ुश्क वादी \f + \fr 84:6 \ft या रोनेवाली यानी आँसुओं की वादी। \f* में से गुज़रते हुए उसे शादाब जगह बना लेते हैं, और बारिशें उसे बरकतों से ढाँप देती हैं। \p \v 7 वह क़दम बक़दम तक़वियत पाते हुए आगे बढ़ते, सब कोहे-सिय्यून पर अल्लाह के सामने हाज़िर हो जाते हैं। \p \v 8 ऐ रब, ऐ लशकरों के ख़ुदा, मेरी दुआ सुन! ऐ याक़ूब के ख़ुदा, ध्यान दे! (सिलाह) \p \v 9 ऐ अल्लाह, हमारी ढाल पर करम की निगाह डाल। अपने मसह किए हुए ख़ादिम के चेहरे पर नज़र कर। \b \p \v 10 तेरी बारगाहों में एक दिन किसी और जगह पर हज़ार दिनों से बेहतर है। मुझे अपने ख़ुदा के घर के दरवाज़े पर हाज़िर रहना बेदीनों के घरों में बसने से कहीं ज़्यादा पसंद है। \p \v 11 क्योंकि रब ख़ुदा आफ़ताब और ढाल है, वही हमें फ़ज़ल और इज़्ज़त से नवाज़ता है। जो दियानतदारी से चलें उन्हें वह किसी भी अच्छी चीज़ से महरूम नहीं रखता। \p \v 12 ऐ रब्बुल-अफ़वाज, मुबारक है वह जो तुझ पर भरोसा रखता है! \c 85 \s1 नए सिरे से बरकत पाने के लिए दुआ \p \v 1 क़ोरह की औलाद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ रब, पहले तूने अपने मुल्क को पसंद किया, पहले याक़ूब को बहाल किया। \p \v 2 पहले तूने अपनी क़ौम का क़ुसूर मुआफ़ किया, उसका तमाम गुनाह ढाँप दिया। (सिलाह) \p \v 3 जो ग़ज़ब हम पर नाज़िल हो रहा था उसका सिलसिला तूने रोक दिया, जो क़हर हमारे ख़िलाफ़ भड़क रहा था उसे छोड़ दिया। \b \p \v 4 ऐ हमारी नजात के ख़ुदा, हमें दुबारा बहाल कर। हमसे नाराज़ होने से बाज़ आ। \p \v 5 क्या तू हमेशा तक हमसे ग़ुस्से रहेगा? क्या तू अपना क़हर पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रखेगा? \p \v 6 क्या तू दुबारा हमारी जान को ताज़ादम नहीं करेगा ताकि तेरी क़ौम तुझसे ख़ुश हो जाए? \p \v 7 ऐ रब, अपनी शफ़क़त हम पर ज़ाहिर कर, अपनी नजात हमें अता फ़रमा। \b \p \v 8 मैं वह कुछ सुनूँगा जो ख़ुदा रब फ़रमाएगा। क्योंकि वह अपनी क़ौम और अपने ईमानदारों से सलामती का वादा करेगा, अलबत्ता लाज़िम है कि वह दुबारा हमाक़त में उलझ न जाएँ। \p \v 9 यक़ीनन उस की नजात उनके क़रीब है जो उसका ख़ौफ़ मानते हैं ताकि जलाल हमारे मुल्क में सुकूनत करे। \p \v 10 शफ़क़त और वफ़ादारी एक दूसरे के गले लग गए हैं, रास्ती और सलामती ने एक दूसरे को बोसा दिया है। \p \v 11 सच्चाई ज़मीन से फूट निकलेगी और रास्ती आसमान से ज़मीन पर नज़र डालेगी। \p \v 12 अल्लाह ज़रूर वह कुछ देगा जो अच्छा है, हमारी ज़मीन ज़रूर अपनी फ़सलें पैदा करेगी। \p \v 13 रास्ती उसके आगे आगे चलकर उसके क़दमों के लिए रास्ता तैयार करेगी। \c 86 \s1 मुसीबत में दुआ \p \v 1 दाऊद की दुआ। \p ऐ रब, अपना कान झुकाकर मेरी सुन, क्योंकि मैं मुसीबतज़दा और मुहताज हूँ। \p \v 2 मेरी जान को महफ़ूज़ रख, क्योंकि मैं ईमानदार हूँ। अपने ख़ादिम को बचा जो तुझ पर भरोसा रखता है। तू ही मेरा ख़ुदा है! \p \v 3 ऐ रब, मुझ पर मेहरबानी कर, क्योंकि दिन-भर मैं तुझे पुकारता हूँ। \p \v 4 अपने ख़ादिम की जान को ख़ुश कर, क्योंकि मैं तेरा आरज़ूमंद हूँ। \p \v 5 क्योंकि तू ऐ रब भला है, तू मुआफ़ करने के लिए तैयार है। जो भी तुझे पुकारते हैं उन पर तू बड़ी शफ़क़त करता है। \p \v 6 ऐ रब, मेरी दुआ सुन, मेरी इल्तिजाओं पर तवज्जुह कर। \p \v 7 मुसीबत के दिन मैं तुझे पुकारता हूँ, क्योंकि तू मेरी सुनता है। \b \p \v 8 ऐ रब, माबूदों में से कोई तेरी मानिंद नहीं है। जो कुछ तू करता है कोई और नहीं कर सकता। \p \v 9 ऐ रब, जितनी भी क़ौमें तूने बनाईं वह आकर तेरे हुज़ूर सिजदा करेंगी और तेरे नाम को जलाल देंगी। \p \v 10 क्योंकि तू ही अज़ीम है और मोजिज़े करता है। तू ही ख़ुदा है। \b \p \v 11 ऐ रब, मुझे अपनी राह सिखा ताकि तेरी वफ़ादारी में चलूँ। बख़्श दे कि मैं पूरे दिल से तेरा ख़ौफ़ मानूँ। \p \v 12 ऐ रब मेरे ख़ुदा, मैं पूरे दिल से तेरा शुक्र करूँगा, हमेशा तक तेरे नाम की ताज़ीम करूँगा। \p \v 13 क्योंकि तेरी मुझ पर शफ़क़त अज़ीम है, तूने मेरी जान को पाताल की गहराइयों से छुड़ाया है। \b \p \v 14 ऐ अल्लाह, मग़रूर मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं, ज़ालिमों का जत्था मेरी जान लेने के दरपै है। यह लोग तेरा लिहाज़ नहीं करते। \p \v 15 लेकिन तू, ऐ रब, रहीम और मेहरबान ख़ुदा है। तू तहम्मुल, शफ़क़त और वफ़ा से भरपूर है। \p \v 16 मेरी तरफ़ रुजू फ़रमा, मुझ पर मेहरबानी कर! अपने ख़ादिम को अपनी क़ुव्वत अता कर, अपनी ख़ादिमा के बेटे को बचा। \p \v 17 मुझे अपनी मेहरबानी का कोई निशान दिखा। मुझसे नफ़रत करनेवाले यह देखकर शरमिंदा हो जाएँ कि तू रब ने मेरी मदद करके मुझे तसल्ली दी है। \c 87 \s1 सिय्यून अक़वाम की माँ है \p \v 1 क़ोरह की औलाद का ज़बूर। गीत। \p उस की बुनियाद मुक़द्दस पहाड़ों पर रखी गई है। \p \v 2 रब सिय्यून के दरवाज़ों को याक़ूब की दीगर आबादियों से कहीं ज़्यादा प्यार करता है। \b \p \v 3 ऐ अल्लाह के शहर, तेरे बारे में शानदार बातें सुनाई जाती हैं। (सिलाह) \p \v 4 रब फ़रमाता है, “मैं मिसर और बाबल को उन लोगों में शुमार करूँगा जो मुझे जानते हैं।” फिलिस्तिया, सूर और एथोपिया के बारे में भी कहा जाएगा, “इनकी पैदाइश यहीं हुई है।” \b \p \v 5 लेकिन सिय्यून के बारे में कहा जाएगा, “हर एक बाशिंदा उसमें पैदा हुआ है। अल्लाह तआला ख़ुद उसे क़ायम रखेगा।” \p \v 6 जब रब अक़वाम को किताब में दर्ज करेगा तो वह साथ साथ यह भी लिखेगा, “यह सिय्यून में पैदा हुई हैं।” (सिलाह) \p \v 7 और लोग नाचते हुए गाएँगे, “मेरे तमाम चश्मे तुझमें हैं।” \c 88 \s1 तर्क किए गए शख़्स के लिए दुआ \p \v 1 क़ोरह की औलाद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : महलत लअन्नोत। हैमान इज़राही का हिकमत का गीत। \p ऐ रब, ऐ मेरी नजात के ख़ुदा, दिन-रात मैं तेरे हुज़ूर चीख़ता-चिल्लाता हूँ। \p \v 2 मेरी दुआ तेरे हुज़ूर पहुँचे, अपना कान मेरी चीख़ों की तरफ़ झुका। \p \v 3 क्योंकि मेरी जान दुख से भरी है, और मेरी टाँगें क़ब्र में लटकी हुई हैं। \p \v 4 मुझे उनमें शुमार किया जाता है जो पाताल में उतर रहे हैं। मैं उस मर्द की मानिंद हूँ जिसकी तमाम ताक़त जाती रही है। \p \v 5 मुझे मुरदों में तनहा छोड़ा गया है, क़ब्र में उन मक़तूलों की तरह जिनका तू अब ख़याल नहीं रखता और जो तेरे हाथ के सहारे से मुंक़ते हो गए हैं। \p \v 6 तूने मुझे सबसे गहरे गढ़े में, तारीकतरीन गहराइयों में डाल दिया है। \p \v 7 तेरे ग़ज़ब का पूरा बोझ मुझ पर आ पड़ा है, तूने मुझे अपनी तमाम मौजों के नीचे दबा दिया है। (सिलाह) \p \v 8 तूने मेरे क़रीबी दोस्तों को मुझसे दूर कर दिया है, और अब वह मुझसे घिन खाते हैं। मैं फँसा हुआ हूँ और निकल नहीं सकता। \p \v 9 मेरी आँखें ग़म के मारे पज़मुरदा हो गई हैं। ऐ रब, दिन-भर मैं तुझे पुकारता, अपने हाथ तेरी तरफ़ उठाए रखता हूँ। \b \p \v 10 क्या तू मुरदों के लिए मोजिज़े करेगा? क्या पाताल के बाशिंदे उठकर तेरी तमजीद करेंगे? (सिलाह) \p \v 11 क्या लोग क़ब्र में तेरी शफ़क़त या पाताल में तेरी वफ़ा बयान करेंगे? \p \v 12 क्या तारीकी में तेरे मोजिज़े या मुल्के-फ़रामोश में तेरी रास्ती मालूम हो जाएगी? \b \p \v 13 लेकिन ऐ रब, मैं मदद के लिए तुझे पुकारता हूँ, मेरी दुआ सुबह-सवेरे तेरे सामने आ जाती है। \p \v 14 ऐ रब, तू मेरी जान को क्यों रद्द करता, अपने चेहरे को मुझसे पोशीदा क्यों रखता है? \p \v 15 मैं मुसीबतज़दा और जवानी से मौत के क़रीब रहा हूँ। तेरे दहशतनाक हमले बरदाश्त करते करते मैं जान से हाथ धो बैठा हूँ। \p \v 16 तेरा भड़कता क़हर मुझ पर से गुज़र गया, तेरे हौलनाक कामों ने मुझे नाबूद कर दिया है। \p \v 17 दिन-भर वह मुझे सैलाब की तरह घेरे रखते हैं, हर तरफ़ से मुझ पर हमलाआवर होते हैं। \p \v 18 तूने मेरे दोस्तों और पड़ोसियों को मुझसे दूर कर रखा है। तारीकी ही मेरी क़रीबी दोस्त बन गई है। \c 89 \s1 इसराईल की मुसीबत और दाऊद से वादा \p \v 1 ऐतान इज़राही का हिकमत का गीत। \p मैं अबद तक रब की मेहरबानियों की मद्हसराई करूँगा, पुश्त-दर-पुश्त मुँह से तेरी वफ़ा का एलान करूँगा। \p \v 2 क्योंकि मैं बोला, “तेरी शफ़क़त हमेशा तक क़ायम है, तूने अपनी वफ़ा की मज़बूत बुनियाद आसमान पर ही रखी है।” \p \v 3 तूने फ़रमाया, “मैंने अपने चुने हुए बंदे से अहद बाँधा, अपने ख़ादिम दाऊद से क़सम खाकर वादा किया है, \p \v 4 ‘मैं तेरी नसल को हमेशा तक क़ायम रखूँगा, तेरा तख़्त हमेशा तक मज़बूत रखूँगा’।” (सिलाह) \b \p \v 5 ऐ रब, आसमान तेरे मोजिज़ों की सताइश करेंगे, मुक़द्दसीन की जमात में ही तेरी वफ़ादारी की तमजीद करेंगे। \p \v 6 क्योंकि बादलों में कौन रब की मानिंद है? इलाही हस्तियों में से कौन रब की मानिंद है? \p \v 7 जो भी मुक़द्दसीन की मजलिस में शामिल हैं वह अल्लाह से ख़ौफ़ खाते हैं। जो भी उसके इर्दगिर्द होते हैं उन पर उस की अज़मत और रोब छाया रहता है। \p \v 8 ऐ रब, ऐ लशकरों के ख़ुदा, कौन तेरी मानिंद है? ऐ रब, तू क़वी और अपनी वफ़ा से घिरा रहता है। \p \v 9 तू ठाठें मारते हुए समुंदर पर हुकूमत करता है। जब वह मौजज़न हो तो तू उसे थमा देता है। \p \v 10 तूने समुंदरी अज़दहे रहब को कुचल दिया, और वह मक़तूल की मानिंद बन गया। अपने क़वी बाज़ू से तूने अपने दुश्मनों को तित्तर-बित्तर कर दिया। \p \v 11 आसमानो-ज़मीन तेरे ही हैं। दुनिया और जो कुछ उसमें है तूने क़ायम किया। \p \v 12 तूने शिमालो-जुनूब को ख़लक़ किया। तबूर और हरमून तेरे नाम की ख़ुशी में नारे लगाते हैं। \p \v 13 तेरा बाज़ू क़वी और तेरा हाथ ताक़तवर है। तेरा दहना हाथ अज़ीम काम करने के लिए तैयार है। \p \v 14 रास्ती और इनसाफ़ तेरे तख़्त की बुनियाद हैं। शफ़क़त और वफ़ा तेरे आगे आगे चलती हैं। \b \p \v 15 मुबारक है वह क़ौम जो तेरी ख़ुशी के नारे लगा सके। ऐ रब, वह तेरे चेहरे के नूर में चलेंगे। \p \v 16 रोज़ाना वह तेरे नाम की ख़ुशी मनाएँगे और तेरी रास्ती से सरफ़राज़ होंगे। \p \v 17 क्योंकि तू ही उनकी ताक़त की शान है, और तू अपने करम से हमें सरफ़राज़ करेगा। \p \v 18 क्योंकि हमारी ढाल रब ही की है, हमारा बादशाह इसराईल के क़ुद्दूस ही का है। \b \p \v 19 माज़ी में तू रोया में अपने ईमानदारों से हमकलाम हुआ। उस वक़्त तूने फ़रमाया, “मैंने एक सूरमे को ताक़त से नवाज़ा है, क़ौम में से एक को चुनकर सरफ़राज़ किया है। \p \v 20 मैंने अपने ख़ादिम दाऊद को पा लिया और उसे अपने मुक़द्दस तेल से मसह किया है। \p \v 21 मेरा हाथ उसे क़ायम रखेगा, मेरा बाज़ू उसे तक़वियत देगा। \p \v 22 दुश्मन उस पर ग़ालिब नहीं आएगा, शरीर उसे ख़ाक में नहीं मिलाएँगे। \p \v 23 उसके आगे आगे मैं उसके दुश्मनों को पाश पाश करूँगा। जो उससे नफ़रत रखते हैं उन्हें ज़मीन पर पटख़ दूँगा। \p \v 24 मेरी वफ़ा और मेरी शफ़क़त उसके साथ रहेंगी, मेरे नाम से वह सरफ़राज़ होगा। \p \v 25 मैं उसके हाथ को समुंदर पर और उसके दहने हाथ को दरियाओं पर हुकूमत करने दूँगा। \p \v 26 वह मुझे पुकारकर कहेगा, ‘तू मेरा बाप, मेरा ख़ुदा और मेरी नजात की चट्टान है।’ \p \v 27 मैं उसे अपना पहलौठा और दुनिया का सबसे आला बादशाह बनाऊँगा। \p \v 28 मैं उसे हमेशा तक अपनी शफ़क़त से नवाज़ता रहूँगा, मेरा उसके साथ अहद कभी तमाम नहीं होगा। \p \v 29 मैं उस की नसल हमेशा तक क़ायम रखूँगा, जब तक आसमान क़ायम है उसका तख़्त क़ायम रखूँगा। \p \v 30 अगर उसके बेटे मेरी शरीअत तर्क करके मेरे अहकाम पर अमल न करें, \p \v 31 अगर वह मेरे फ़रमानों की बेहुरमती करके मेरी हिदायात के मुताबिक़ ज़िंदगी न गुज़ारें \p \v 32 तो मैं लाठी लेकर उनकी तादीब करूँगा और मोहलक वबाओं से उनके गुनाहों की सज़ा दूँगा। \p \v 33 लेकिन मैं उसे अपनी शफ़क़त से महरूम नहीं करूँगा, अपनी वफ़ा का इनकार नहीं करूँगा। \p \v 34 न मैं अपने अहद की बेहुरमती करूँगा, न वह कुछ तबदील करूँगा जो मैंने फ़रमाया है। \p \v 35 मैंने एक बार सदा के लिए अपनी क़ुद्दूसियत की क़सम खाकर वादा किया है, और मैं दाऊद को कभी धोका नहीं दूँगा। \p \v 36 उस की नसल अबद तक क़ायम रहेगी, उसका तख़्त आफ़ताब की तरह मेरे सामने खड़ा रहेगा। \p \v 37 चाँद की तरह वह हमेशा तक बरक़रार रहेगा, और जो गवाह बादलों में है वह वफ़ादार है।” (सिलाह) \b \p \v 38 लेकिन अब तूने अपने मसह किए हुए ख़ादिम को ठुकराकर रद्द किया, तू उससे ग़ज़बनाक हो गया है। \p \v 39 तूने अपने ख़ादिम का अहद नामंज़ूर किया और उसका ताज ख़ाक में मिलाकर उस की बेहुरमती की है। \p \v 40 तूने उस की तमाम फ़सीलें ढाकर उसके क़िलों को मलबे के ढेर बना दिया है। \p \v 41 जो भी वहाँ से गुज़रे वह उसे लूट लेता है। वह अपने पड़ोसियों के लिए मज़ाक़ का निशाना बन गया है। \p \v 42 तूने उसके मुख़ालिफ़ों का दहना हाथ सरफ़राज़ किया, उसके तमाम दुश्मनों को ख़ुश कर दिया है। \p \v 43 तूने उस की तलवार की तेज़ी बेअसर करके उसे जंग में फ़तह पाने से रोक दिया है। \p \v 44 तूने उस की शान ख़त्म करके उसका तख़्त ज़मीन पर पटख़ दिया है। \p \v 45 तूने उस की जवानी के दिन मुख़तसर करके उसे रुसवाई की चादर में लपेटा है। (सिलाह) \b \p \v 46 ऐ रब, कब तक? क्या तू अपने आपको हमेशा तक छुपाए रखेगा? क्या तेरा क़हर अबद तक आग की तरह भड़कता रहेगा? \p \v 47 याद रहे कि मेरी ज़िंदगी कितनी मुख़तसर है, कि तूने तमाम इनसान कितने फ़ानी ख़लक़ किए हैं। \p \v 48 कौन है जिसका मौत से वास्ता न पड़े, कौन है जो हमेशा ज़िंदा रहे? कौन अपनी जान को मौत के क़ब्ज़े से बचाए रख सकता है? (सिलाह) \p \v 49 ऐ रब, तेरी वह पुरानी मेहरबानियाँ कहाँ हैं जिनका वादा तूने अपनी वफ़ा की क़सम खाकर दाऊद से किया? \p \v 50 ऐ रब, अपने ख़ादिमों की ख़जालत याद कर। मेरा सीना मुतअद्दिद क़ौमों की लान-तान से दुखता है, \p \v 51 क्योंकि ऐ रब, तेरे दुश्मनों ने मुझे लान-तान की, उन्होंने तेरे मसह किए हुए ख़ादिम को हर क़दम पर लान-तान की है! \b \p \v 52 अबद तक रब की हम्द हो! आमीन, फिर आमीन। \c 90 \ms1 चौथी किताब 90-106 \s1 फ़ानी इनसान अल्लाह में पनाह ले \p \v 1 मर्दे-ख़ुदा मूसा की दुआ। \p ऐ रब, पुश्त-दर-पुश्त तू हमारी पनाहगाह रहा है। \p \v 2 इससे पहले कि पहाड़ पैदा हुए और तू ज़मीन और दुनिया को वुजूद में लाया तू ही था। ऐ अल्लाह, तू अज़ल से अबद तक है। \p \v 3 तू इनसान को दुबारा ख़ाक होने देता है। तू फ़रमाता है, ‘ऐ आदमज़ादो, दुबारा ख़ाक में मिल जाओ!’ \p \v 4 क्योंकि तेरी नज़र में हज़ार साल कल के गुज़रे हुए दिन के बराबर या रात के एक पहर की मानिंद हैं। \p \v 5 तू लोगों को सैलाब की तरह बहा ले जाता है, वह नींद और उस घास की मानिंद हैं जो सुबह को फूट निकलती है। \p \v 6 वह सुबह को फूट निकलती और उगती है, लेकिन शाम को मुरझाकर सूख जाती है। \b \p \v 7 क्योंकि हम तेरे ग़ज़ब से फ़ना हो जाते और तेरे क़हर से हवासबाख़्ता हो जाते हैं। \p \v 8 तूने हमारी ख़ताओं को अपने सामने रखा, हमारे पोशीदा गुनाहों को अपने चेहरे के नूर में लाया है। \p \v 9 चुनाँचे हमारे तमाम दिन तेरे क़हर के तहत घटते घटते ख़त्म हो जाते हैं। जब हम अपने सालों के इख़्तिताम पर पहुँचते हैं तो ज़िंदगी सर्द आह के बराबर ही होती है। \p \v 10 हमारी उम्र 70 साल या अगर ज़्यादा ताक़त हो तो 80 साल तक पहुँचती है, और जो दिन फ़ख़र का बाइस थे वह भी तकलीफ़देह और बेकार हैं। जल्द ही वह गुज़र जाते हैं, और हम परिंदों की तरह उड़कर चले जाते हैं। \p \v 11 कौन तेरे ग़ज़ब की पूरी शिद्दत जानता है? कौन समझता है कि तेरा क़हर हमारी ख़ुदातरसी की कमी के मुताबिक़ ही है? \p \v 12 चुनाँचे हमें हमारे दिनों का सहीह हिसाब करना सिखा ताकि हमारे दिल दानिशमंद हो जाएँ। \b \p \v 13 ऐ रब, दुबारा हमारी तरफ़ रुजू फ़रमा! तू कब तक दूर रहेगा? अपने ख़ादिमों पर तरस खा! \p \v 14 सुबह को हमें अपनी शफ़क़त से सेर कर! तब हम ज़िंदगी-भर बाग़ बाग़ होंगे और ख़ुशी मनाएँगे। \p \v 15 हमें उतने ही दिन ख़ुशी दिला जितने तूने हमें पस्त किया है, उतने ही साल जितने हमें दुख सहना पड़ा है। \p \v 16 अपने ख़ादिमों पर अपने काम और उनकी औलाद पर अपनी अज़मत ज़ाहिर कर। \p \v 17 रब हमारा ख़ुदा हमें अपनी मेहरबानी दिखाए। हमारे हाथों का काम मज़बूत कर, हाँ हमारे हाथों का काम मज़बूत कर! \c 91 \s1 अल्लाह की पनाह में \p \v 1 जो अल्लाह तआला की पनाह में रहे वह क़ादिरे-मुतलक़ के साये में सुकूनत करेगा। \p \v 2 मैं कहूँगा, “ऐ रब, तू मेरी पनाह और मेरा क़िला है, मेरा ख़ुदा जिस पर मैं भरोसा रखता हूँ।” \b \p \v 3 क्योंकि वह तुझे चिड़ीमार के फंदे और मोहलक मरज़ से छुड़ाएगा। \p \v 4 वह तुझे अपने शाहपरों के नीचे ढाँप लेगा, और तू उसके परों तले पनाह ले सकेगा। उस की वफ़ादारी तेरी ढाल और पुश्ता रहेगी। \p \v 5 रात की दहशतों से ख़ौफ़ मत खा, न उस तीर से जो दिन के वक़्त चले। \p \v 6 उस मोहलक मरज़ से दहशत मत खा जो तारीकी में घूमे फिरे, न उस वबाई बीमारी से जो दोपहर के वक़्त तबाही फैलाए। \p \v 7 गो तेरे साथ खड़े हज़ार अफ़राद हलाक हो जाएँ और तेरे दहने हाथ दस हज़ार मर जाएँ, लेकिन तू उस की ज़द में नहीं आएगा। \p \v 8 तू अपनी आँखों से इसका मुलाहज़ा करेगा, तू ख़ुद बेदीनों की सज़ा देखेगा। \p \v 9 क्योंकि तूने कहा है, “रब मेरी पनाहगाह है,” तू अल्लाह तआला के साये में छुप गया है। \p \v 10 इसलिए तेरा किसी बला से वास्ता नहीं पड़ेगा, कोई आफ़त भी तेरे ख़ैमे के क़रीब फटकने नहीं पाएगी। \b \p \v 11 क्योंकि वह अपने फ़रिश्तों को हर राह पर तेरी हिफ़ाज़त करने का हुक्म देगा, \p \v 12 और वह तुझे अपने हाथों पर उठा लेंगे ताकि तेरे पाँवों को पत्थर से ठेस न लगे। \p \v 13 तू शेरबबरों और ज़हरीले साँपों पर क़दम रखेगा, तू जवान शेरों और अज़दहाओं को कुचल देगा। \p \v 14 रब फ़रमाता है, “चूँकि वह मुझसे लिपटा रहता है इसलिए मैं उसे बचाऊँगा। चूँकि वह मेरा नाम जानता है इसलिए मैं उसे महफ़ूज़ रखूँगा। \p \v 15 वह मुझे पुकारेगा तो मैं उस की सुनूँगा। मुसीबत में मैं उसके साथ हूँगा। मैं उसे छुड़ाकर उस की इज़्ज़त करूँगा। \p \v 16 मैं उसे उम्र की दराज़ी बख़्शूँगा और उस पर अपनी नजात ज़ाहिर करूँगा।” \c 92 \s1 अल्लाह की सताइश करने की ख़ुशी \p \v 1 ज़बूर। सबत के लिए गीत। \p रब का शुक्र करना भला है। ऐ अल्लाह तआला, तेरे नाम की मद्हसराई करना भला है। \p \v 2 सुबह को तेरी शफ़क़त और रात को तेरी वफ़ा का एलान करना भला है, \p \v 3 ख़ासकर जब साथ साथ दस तारोंवाला साज़, सितार और सरोद बजते हैं। \b \p \v 4 क्योंकि ऐ रब, तूने मुझे अपने कामों से ख़ुश किया है, और तेरे हाथों के काम देखकर मैं ख़ुशी के नारे लगाता हूँ। \p \v 5 ऐ रब, तेरे काम कितने अज़ीम, तेरे ख़यालात कितने गहरे हैं। \p \v 6 नादान यह नहीं जानता, अहमक़ को इसकी समझ नहीं आती। \p \v 7 गो बेदीन घास की तरह फूट निकलते और बदकार सब फलते-फूलते हैं, लेकिन आख़िरकार वह हमेशा के लिए हलाक हो जाएंगे। \p \v 8 मगर तू, ऐ रब, अबद तक सरबुलंद रहेगा। \b \p \v 9 क्योंकि तेरे दुश्मन, ऐ रब, तेरे दुश्मन यक़ीनन तबाह हो जाएंगे, बदकार सब तित्तर-बित्तर हो जाएंगे। \b \p \v 10 तूने मुझे जंगली बैल की-सी ताक़त देकर ताज़ा तेल से मसह किया है। \p \v 11 मेरी आँख अपने दुश्मनों की शिकस्त से और मेरे कान उन शरीरों के अंजाम से लुत्फ़अंदोज़ हुए हैं जो मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं। \b \p \v 12 रास्तबाज़ खजूर के दरख़्त की तरह फले-फूलेगा, वह लुबनान के देवदार के दरख़्त की तरह बढ़ेगा। \p \v 13 जो पौदे रब की सुकूनतगाह में लगाए गए हैं वह हमारे ख़ुदा की बारगाहों में फलें-फूलेंगे। \p \v 14 वह बुढ़ापे में भी फल लाएँगे और तरो-ताज़ा और हरे-भरे रहेंगे। \p \v 15 उस वक़्त भी वह एलान करेंगे, “रब रास्त है। वह मेरी चट्टान है, और उसमें नारास्ती नहीं होती।” \c 93 \s1 अल्लाह अबदी बादशाह है \p \v 1 रब बादशाह है, वह जलाल से मुलब्बस है। रब जलाल से मुलब्बस और क़ुदरत से कमरबस्ता है। यक़ीनन दुनिया मज़बूत बुनियाद पर क़ायम है, और वह नहीं डगमगाएगी। \b \p \v 2 तेरा तख़्त क़दीम ज़माने से क़ायम है, तू अज़ल से मौजूद है। \p \v 3 ऐ रब, सैलाब गरज उठे, सैलाब शोर मचाकर गरज उठे, सैलाब ठाठें मारकर गरज उठे। \p \v 4 लेकिन एक है जो गहरे पानी के शोर से ज़्यादा ज़ोरावर, जो समुंदर की ठाठों से ज़्यादा ताक़तवर है। रब जो बुलंदियों पर रहता है कहीं ज़्यादा अज़ीम है। \b \p \v 5 ऐ रब, तेरे अहकाम हर तरह से क़ाबिले-एतमाद हैं। तेरा घर हमेशा तक क़ुद्दूसियत से आरास्ता रहेगा। \c 94 \s1 क़ौम पर ज़ुल्म करनेवालों से रिहाई के लिए दुआ \p \v 1 ऐ रब, ऐ इंतक़ाम लेनेवाले ख़ुदा! ऐ इंतक़ाम लेनेवाले ख़ुदा, अपना नूर चमका। \p \v 2 ऐ दुनिया के मुंसिफ़, उठकर मग़रूरों को उनके आमाल की मुनासिब सज़ा दे। \p \v 3 ऐ रब, बेदीन कब तक, हाँ कब तक फ़तह के नारे लगाएँगे? \b \p \v 4 वह कुफ़र की बातें उगलते रहते, तमाम बदकार शेख़ी मारते रहते हैं। \p \v 5 ऐ रब, वह तेरी क़ौम को कुचल रहे, तेरी मौरूसी मिलकियत पर ज़ुल्म कर रहे हैं। \p \v 6 बेवाओं और अजनबियों को वह मौत के घाट उतार रहे, यतीमों को क़त्ल कर रहे हैं। \p \v 7 वह कहते हैं, “यह रब को नज़र नहीं आता, याक़ूब का ख़ुदा ध्यान ही नहीं देता।” \b \p \v 8 ऐ क़ौम के नादानो, ध्यान दो! ऐ अहमक़ो, तुम्हें कब समझ आएगी? \p \v 9 जिसने कान बनाया, क्या वह नहीं सुनता? जिसने आँख को तश्कील दिया क्या वह नहीं देखता? \p \v 10 जो अक़वाम को तंबीह करता और इनसान को तालीम देता है क्या वह सज़ा नहीं देता? \p \v 11 रब इनसान के ख़यालात जानता है, वह जानता है कि वह दम-भर के ही हैं। \b \p \v 12 ऐ रब, मुबारक है वह जिसे तू तरबियत देता है, जिसे तू अपनी शरीअत की तालीम देता है \p \v 13 ताकि वह मुसीबत के दिनों से आराम पाए और उस वक़्त तक सुकून से ज़िंदगी गुज़ारे जब तक बेदीनों के लिए गढ़ा तैयार न हो। \p \v 14 क्योंकि रब अपनी क़ौम को रद्द नहीं करेगा, वह अपनी मौरूसी मिलकियत को तर्क नहीं करेगा। \p \v 15 फ़ैसले दुबारा इनसाफ़ पर मबनी होंगे, और तमाम दियानतदार दिल उस की पैरवी करेंगे। \b \p \v 16 कौन शरीरों के सामने मेरा दिफ़ा करेगा? कौन मेरे लिए बदकारों का सामना करेगा? \p \v 17 अगर रब मेरा सहारा न होता तो मेरी जान जल्द ही ख़ामोशी के मुल्क में जा बसती। \p \v 18 ऐ रब, जब मैं बोला, “मेरा पाँव डगमगाने लगा है” तो तेरी शफ़क़त ने मुझे सँभाला। \p \v 19 जब तशवीशनाक ख़यालात मुझे बेचैन करने लगे तो तेरी तसल्लियों ने मेरी जान को ताज़ादम किया। \b \p \v 20 ऐ अल्लाह, क्या तबाही की हुकूमत तेरे साथ मुत्तहिद हो सकती है, ऐसी हुकूमत जो अपने फ़रमानों से ज़ुल्म करती है? हरगिज़ नहीं! \p \v 21 वह रास्तबाज़ की जान लेने के लिए आपस में मिल जाते और बेक़ुसूरों को क़ातिल ठहराते हैं। \p \v 22 लेकिन रब मेरा क़िला बन गया है, और मेरा ख़ुदा मेरी पनाह की चट्टान साबित हुआ है। \p \v 23 वह उनकी नाइनसाफ़ी उन पर वापस आने देगा और उनकी शरीर हरकतों के जवाब में उन्हें तबाह करेगा। रब हमारा ख़ुदा उन्हें नेस्त करेगा। \c 95 \s1 परस्तिश और फ़रमाँबरदारी की दावत \p \v 1 आओ, हम शादियाना बजाकर रब की मद्हसराई करें, ख़ुशी के नारे लगाकर अपनी नजात की चट्टान की तमजीद करें! \p \v 2 आओ, हम शुक्रगुज़ारी के साथ उसके हुज़ूर आएँ, गीत गाकर उस की सताइश करें। \p \v 3 क्योंकि रब अज़ीम ख़ुदा और तमाम माबूदों पर अज़ीम बादशाह है। \p \v 4 उसके हाथ में ज़मीन की गहराइयाँ हैं, और पहाड़ की बुलंदियाँ भी उसी की हैं। \p \v 5 समुंदर उसका है, क्योंकि उसने उसे ख़लक़ किया। ख़ुश्की उस की है, क्योंकि उसके हाथों ने उसे तश्कील दिया। \p \v 6 आओ हम सिजदा करें और रब अपने ख़ालिक़ के सामने झुककर घुटने टेकें। \p \v 7 क्योंकि वह हमारा ख़ुदा है और हम उस की चरागाह की क़ौम और उसके हाथ की भेड़ें हैं। अगर तुम आज उस की आवाज़ सुनो \p \v 8 “तो अपने दिलों को सख़्त न करो जिस तरह मरीबा में हुआ, जिस तरह रेगिस्तान में मस्सा में हुआ। \p \v 9 वहाँ तुम्हारे बापदादा ने मुझे आज़माया और जाँचा, हालाँकि उन्होंने मेरे काम देख लिए थे। \p \v 10 चालीस साल मैं उस नसल से घिन खाता रहा। मैं बोला, ‘उनके दिल हमेशा सहीह राह से हट जाते हैं, और वह मेरी राहें नहीं जानते।’ \p \v 11 अपने ग़ज़ब में मैंने क़सम खाई, ‘यह कभी उस मुल्क में दाख़िल नहीं होंगे जहाँ मैं उन्हें सुकून देता’।” \c 96 \s1 दुनिया का ख़ालिक़ और मुंसिफ़ \p \v 1 रब की तमजीद में नया गीत गाओ, ऐ पूरी दुनिया, रब की मद्हसराई करो। \p \v 2 रब की तमजीद में गीत गाओ, उसके नाम की सताइश करो, रोज़ बरोज़ उस की नजात की ख़ुशख़बरी सुनाओ। \p \v 3 क़ौमों में उसका जलाल और तमाम उम्मतों में उसके अजायब बयान करो। \p \v 4 क्योंकि रब अज़ीम और सताइश के बहुत लायक़ है। वह तमाम माबूदों से महीब है। \p \v 5 क्योंकि दीगर क़ौमों के तमाम माबूद बुत ही हैं जबकि रब ने आसमान को बनाया। \p \v 6 उसके हुज़ूर शानो-शौकत, उसके मक़दिस में क़ुदरत और जलाल है। \p \v 7 ऐ क़ौमों के क़बीलो, रब की तमजीद करो, रब के जलाल और क़ुदरत की सताइश करो। \p \v 8 रब के नाम को जलाल दो। क़ुरबानी लेकर उस की बारगाहों में दाख़िल हो जाओ। \p \v 9 मुक़द्दस लिबास से आरास्ता होकर रब को सिजदा करो। पूरी दुनिया उसके सामने लरज़ उठे। \p \v 10 क़ौमों में एलान करो, “रब ही बादशाह है! यक़ीनन दुनिया मज़बूती से क़ायम है और नहीं डगमगाएगी। वह इनसाफ़ से क़ौमों की अदालत करेगा।” \b \p \v 11 आसमान ख़ुश हो, ज़मीन जशन मनाए! समुंदर और जो कुछ उसमें है ख़ुशी से गरज उठे। \p \v 12 मैदान और जो कुछ उसमें है बाग़ बाग़ हो। फिर जंगल के दरख़्त शादियाना बजाएंगे। \p \v 13 वह रब के सामने शादियाना बजाएंगे, क्योंकि वह आ रहा है, वह दुनिया की अदालत करने आ रहा है। वह इनसाफ़ से दुनिया की अदालत करेगा और अपनी सदाक़त से अक़वाम का फ़ैसला करेगा। \c 97 \s1 अल्लाह की सलतनत पर ख़ुशी \p \v 1 रब बादशाह है! ज़मीन जशन मनाए, साहिली इलाक़े दूर दूर तक ख़ुश हों। \p \v 2 वह बादलों और गहरे अंधेरे से घिरा रहता है, रास्ती और इनसाफ़ उसके तख़्त की बुनियाद हैं। \p \v 3 आग उसके आगे आगे भड़ककर चारों तरफ़ उसके दुश्मनों को भस्म कर देती है। \p \v 4 उस की कड़कती बिजलियों ने दुनिया को रौशन कर दिया तो ज़मीन यह देखकर पेचो-ताब खाने लगी। \p \v 5 रब के आगे आगे, हाँ पूरी दुनिया के मालिक के आगे आगे पहाड़ मोम की तरह पिघल गए। \p \v 6 आसमानों ने उस की रास्ती का एलान किया, और तमाम क़ौमों ने उसका जलाल देखा। \b \p \v 7 तमाम बुतपरस्त, हाँ सब जो बुतों पर फ़ख़र करते हैं शरमिंदा हों। ऐ तमाम माबूदो, उसे सिजदा करो! \p \v 8 कोहे-सिय्यून सुनकर ख़ुश हुआ। ऐ रब, तेरे फ़ैसलों के बाइस यहूदाह की बेटियाँ \f + \fr 97:8 \ft एक और मुमकिना तरजुमा : यहूदाह की आबादियाँ। \f* बाग़ बाग़ हुईं। \p \v 9 क्योंकि तू ऐ रब, पूरी दुनिया पर सबसे आला है, तू तमाम माबूदों से सरबुलंद है। \b \p \v 10 तुम जो रब से मुहब्बत रखते हो, बुराई से नफ़रत करो! रब अपने ईमानदारों की जान को महफ़ूज़ रखता है, वह उन्हें बेदीनों के क़ब्ज़े से छुड़ाता है। \p \v 11 रास्तबाज़ के लिए नूर का और दिल के दियानतदारों के लिए शादमानी का बीज बोया गया है। \p \v 12 ऐ रास्तबाज़ो, रब से ख़ुश हो, उसके मुक़द्दस नाम की सताइश करो। \c 98 \s1 पूरी दुनिया का शाही मुंसिफ़ \p \v 1 रब की तमजीद में नया गीत गाओ, क्योंकि उसने मोजिज़े किए हैं। अपने दहने हाथ और मुक़द्दस बाज़ू से उसने नजात दी है। \p \v 2 रब ने अपनी नजात का एलान किया और अपनी रास्ती क़ौमों के रूबरू ज़ाहिर की है। \p \v 3 उसने इसराईल के लिए अपनी शफ़क़त और वफ़ा याद की है। दुनिया की इंतहाओं ने सब हमारे ख़ुदा की नजात देखी है। \p \v 4 ऐ पूरी दुनिया, नारे लगाकर रब की मद्हसराई करो! आपे में न समाओ और जशन मनाकर हम्द के गीत गाओ! \p \v 5 सरोद बजाकर रब की मद्हसराई करो, सरोद और गीत से उस की सताइश करो। \p \v 6 तुरम और नरसिंगा फूँककर रब बादशाह के हुज़ूर ख़ुशी के नारे लगाओ! \p \v 7 समुंदर और जो कुछ उसमें है, दुनिया और उसके बाशिंदे ख़ुशी से गरज उठें। \p \v 8 दरिया तालियाँ बजाएँ, पहाड़ मिलकर ख़ुशी मनाएँ, \p \v 9 वह रब के सामने ख़ुशी मनाएँ। क्योंकि वह ज़मीन की अदालत करने आ रहा है। वह इनसाफ़ से दुनिया की अदालत करेगा, रास्ती से क़ौमों का फ़ैसला करेगा। \c 99 \s1 क़ुद्दूस ख़ुदा \p \v 1 रब बादशाह है, अक़वाम लरज़ उठें! वह करूबी फ़रिश्तों के दरमियान तख़्तनशीन है, दुनिया डगमगाए! \p \v 2 कोहे-सिय्यून पर रब अज़ीम है, तमाम अक़वाम पर सरबुलंद है। \p \v 3 वह तेरे अज़ीम और पुरजलाल नाम की सताइश करें, क्योंकि वह क़ुद्दूस है। \b \p \v 4 वह बादशाह की क़ुदरत की तमजीद करें जो इनसाफ़ से प्यार करता है। ऐ अल्लाह, तू ही ने अदल क़ायम किया, तू ही ने याक़ूब में इनसाफ़ और रास्ती पैदा की है। \p \v 5 रब हमारे ख़ुदा की ताज़ीम करो, उसके पाँवों की चौकी के सामने सिजदा करो, क्योंकि वह क़ुद्दूस है। \b \p \v 6 मूसा और हारून उसके इमामों में से थे। समुएल भी उनमें से था जो उसका नाम पुकारते थे। उन्होंने रब को पुकारा, और उसने उनकी सुनी। \p \v 7 वह बादल के सतून में से उनसे हमकलाम हुआ, और वह उन अहकाम और फ़रमानों के ताबे रहे जो उसने उन्हें दिए थे। \p \v 8 ऐ रब हमारे ख़ुदा, तूने उनकी सुनी। तू जो अल्लाह है उन्हें मुआफ़ करता रहा, अलबत्ता उन्हें उनकी बुरी हरकतों की सज़ा भी देता रहा। \p \v 9 रब हमारे ख़ुदा की ताज़ीम करो और उसके मुक़द्दस पहाड़ पर सिजदा करो, क्योंकि रब हमारा ख़ुदा क़ुद्दूस है। \c 100 \s1 अल्लाह की सताइश करो! \p \v 1 शुक्रगुज़ारी की क़ुरबानी के लिए ज़बूर। \p ऐ पूरी दुनिया, ख़ुशी के नारे लगाकर रब की मद्हसराई करो! \p \v 2 ख़ुशी से रब की इबादत करो, जशन मनाते हुए उसके हुज़ूर आओ! \p \v 3 जान लो कि रब ही ख़ुदा है। उसी ने हमें ख़लक़ किया, और हम उसके हैं, उस की क़ौम और उस की चरागाह की भेड़ें। \b \p \v 4 शुक्र करते हुए उसके दरवाज़ों में दाख़िल हो, सताइश करते हुए उस की बारगाहों में हाज़िर हो। उसका शुक्र करो, उसके नाम की तमजीद करो! \p \v 5 क्योंकि रब भला है। उस की शफ़क़त अबदी है, और उस की वफ़ादारी पुश्त-दर-पुश्त क़ायम है। \c 101 \s1 बादशाह की हुकूमत कैसी होनी चाहिए? \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p मैं शफ़क़त और इनसाफ़ का गीत गाऊँगा। ऐ रब, मैं तेरी मद्हसराई करूँगा। \p \v 2 मैं बड़ी एहतियात से बेइलज़ाम राह पर चलूँगा। लेकिन तू कब मेरे पास आएगा? मैं ख़ुलूसदिली से अपने घर में ज़िंदगी गुज़ारूँगा। \p \v 3 मैं शरारत की बात अपने सामने नहीं रखता और बुरी हरकतों से नफ़रत करता हूँ। ऐसी चीज़ें मेरे साथ लिपट न जाएँ। \p \v 4 झूटा दिल मुझसे दूर रहे। मैं बुराई को जानना ही नहीं चाहता। \p \v 5 जो चुपके से अपने पड़ोसी पर तोहमत लगाए उसे मैं ख़ामोश कराऊँगा, जिसकी आँखें मग़रूर और दिल मुतकब्बिर हो उसे बरदाश्त नहीं करूँगा। \p \v 6 मेरी आँखें मुल्क के वफ़ादारों पर लगी रहती हैं ताकि वह मेरे साथ रहें। जो बेइलज़ाम राह पर चले वही मेरी ख़िदमत करे। \p \v 7 धोकेबाज़ मेरे घर में न ठहरे, झूट बोलनेवाला मेरी मौजूदगी में क़ायम न रहे। \p \v 8 हर सुबह को मैं मुल्क के तमाम बेदीनों को ख़ामोश कराऊँगा ताकि तमाम बदकारों को रब के शहर में से मिटाया जाए। \c 102 \s1 सिय्यून की बहाली के लिए दुआ (तौबा का पाँचवाँ ज़बूर) \p \v 1 मुसीबतज़दा की दुआ, उस वक़्त जब वह निढाल होकर रब के सामने अपनी आहो-ज़ारी उंडेल देता है। \p ऐ रब, मेरी दुआ सुन! मदद के लिए मेरी आहें तेरे हुज़ूर पहुँचें। \p \v 2 जब मैं मुसीबत में हूँ तो अपना चेहरा मुझसे छुपाए न रख बल्कि अपना कान मेरी तरफ़ झुका। जब मैं पुकारूँ तो जल्द ही मेरी सुन। \p \v 3 क्योंकि मेरे दिन धुएँ की तरह ग़ायब हो रहे हैं, मेरी हड्डियाँ कोयलों की तरह दहक रही हैं। \p \v 4 मेरा दिल घास की तरह झुलसकर सूख गया है, और मैं रोटी खाना भी भूल गया हूँ। \p \v 5 आहो-ज़ारी करते करते मेरा जिस्म सुकड़ गया है, जिल्द और हड्डियाँ ही रह गई हैं। \p \v 6 मैं रेगिस्तान में दश्ती उल्लू और खंडरात में छोटे उल्लू की मानिंद हूँ। \p \v 7 मैं बिस्तर पर जागता रहता हूँ, छत पर तनहा परिंदे की मानिंद हूँ। \p \v 8 दिन-भर मेरे दुश्मन मुझे लान-तान करते हैं। जो मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं वह मेरा नाम लेकर लानत करते हैं। \p \v 9 राख मेरी रोटी है, और जो कुछ पीता हूँ उसमें मेरे आँसू मिले होते हैं। \p \v 10 क्योंकि मुझ पर तेरी लानत और तेरा ग़ज़ब नाज़िल हुआ है। तूने मुझे उठाकर ज़मीन पर पटख़ दिया है। \p \v 11 मेरे दिन शाम के ढलनेवाले साये की मानिंद हैं। मैं घास की तरह सूख रहा हूँ। \b \p \v 12 लेकिन तू ऐ रब अबद तक तख़्तनशीन है, तेरा नाम पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रहता है। \p \v 13 अब आ, कोहे-सिय्यून पर रहम कर। क्योंकि उस पर मेहरबानी करने का वक़्त आ गया है, मुक़र्ररा वक़्त आ गया है। \p \v 14 क्योंकि तेरे ख़ादिमों को उसका एक एक पत्थर प्यारा है, और वह उसके मलबे पर तरस खाते हैं। \p \v 15 तब ही क़ौमें रब के नाम से डरेंगी, और दुनिया के तमाम बादशाह तेरे जलाल का ख़ौफ़ खाएँगे। \p \v 16 क्योंकि रब सिय्यून को अज़ सरे-नौ तामीर करेगा, वह अपने पूरे जलाल के साथ ज़ाहिर हो जाएगा। \p \v 17 मुफ़लिसों की दुआ पर वह ध्यान देगा और उनकी फ़रियादों को हक़ीर नहीं जानेगा। \b \p \v 18 आनेवाली नसल के लिए यह क़लमबंद हो जाए ताकि जो क़ौम अभी पैदा नहीं हुई वह रब की सताइश करे। \p \v 19 क्योंकि रब ने अपने मक़दिस की बुलंदियों से झाँका है, उसने आसमान से ज़मीन पर नज़र डाली है \p \v 20 ताकि क़ैदियों की आहो-ज़ारी सुने और मरनेवालों की ज़ंजीरें खोले। \p \v 21 क्योंकि उस की मरज़ी है कि वह कोहे-सिय्यून पर रब के नाम का एलान करें और यरूशलम में उस की सताइश करें, \p \v 22 कि क़ौमें और सलतनतें मिलकर जमा हो जाएँ और रब की इबादत करें। \b \p \v 23 रास्ते में ही अल्लाह ने मेरी ताक़त तोड़कर मेरे दिन मुख़तसर कर दिए हैं। \p \v 24 मैं बोला, “ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे ज़िंदों के मुल्क से दूर न कर, मेरी ज़िंदगी तो अधूरी रह गई है। लेकिन तेरे साल पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रहते हैं। \p \v 25 तूने क़दीम ज़माने में ज़मीन की बुनियाद रखी, और तेरे ही हाथों ने आसमानों को बनाया। \p \v 26 यह तो तबाह हो जाएंगे, लेकिन तू क़ायम रहेगा। यह सब कपड़े की तरह घिस फट जाएंगे। तू उन्हें पुराने लिबास की तरह बदल देगा, और वह जाते रहेंगे। \p \v 27 लेकिन तू वही का वही रहता है, और तेरी ज़िंदगी कभी ख़त्म नहीं होती। \p \v 28 तेरे ख़ादिमों के फ़रज़ंद तेरे हुज़ूर बसते रहेंगे, और उनकी औलाद तेरे सामने क़ायम रहेगी।” \c 103 \s1 रब की शफ़क़त की सताइश \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ऐ मेरी जान, रब की सताइश कर! मेरा रगो-रेशा उसके क़ुद्दूस नाम की हम्द करे! \p \v 2 ऐ मेरी जान, रब की सताइश कर और जो कुछ उसने तेरे लिए किया है उसे भूल न जा। \p \v 3 क्योंकि वह तेरे तमाम गुनाहों को मुआफ़ करता, तुझे तमाम बीमारियों से शफ़ा देता है। \p \v 4 वह एवज़ाना देकर तेरी जान को मौत के गढ़े से छुड़ा लेता, तेरे सर को अपनी शफ़क़त और रहमत के ताज से आरास्ता करता है। \p \v 5 वह तेरी ज़िंदगी को अच्छी चीज़ों से सेर करता है, और तू दुबारा जवान होकर उक़ाब की-सी तक़वियत पाता है। \b \p \v 6 रब तमाम मज़लूमों के लिए रास्ती और इनसाफ़ क़ायम करता है। \p \v 7 उसने अपनी राहें मूसा पर और अपने अज़ीम काम इसराईलियों पर ज़ाहिर किए। \p \v 8 रब रहीम और मेहरबान है, वह तहम्मुल और शफ़क़त से भरपूर है। \p \v 9 न वह हमेशा डाँटता रहेगा, न अबद तक नाराज़ रहेगा। \p \v 10 न वह हमारी ख़ताओं के मुताबिक़ सज़ा देता, न हमारे गुनाहों का मुनासिब अज्र देता है। \p \v 11 क्योंकि जितना बुलंद आसमान है, उतनी ही अज़ीम उस की शफ़क़त उन पर है जो उसका ख़ौफ़ मानते हैं। \p \v 12 जितनी दूर मशरिक़ मग़रिब से है उतना ही उसने हमारे क़ुसूर हमसे दूर कर दिए हैं। \p \v 13 जिस तरह बाप अपने बच्चों पर तरस खाता है उसी तरह रब उन पर तरस खाता है जो उसका ख़ौफ़ मानते हैं। \b \p \v 14 क्योंकि वह हमारी साख़्त जानता है, उसे याद है कि हम ख़ाक ही हैं। \p \v 15 इनसान के दिन घास की मानिंद हैं, और वह जंगली फूल की तरह ही फलता-फूलता है। \p \v 16 जब उस पर से हवा गुज़रे तो वह नहीं रहता, और उसके नामो-निशान का भी पता नहीं चलता। \b \p \v 17 लेकिन जो रब का ख़ौफ़ मानें उन पर वह हमेशा तक मेहरबानी करेगा, वह अपनी रास्ती उनके पोतों और नवासों पर भी ज़ाहिर करेगा। \p \v 18 शर्त यह है कि वह उसके अहद के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारें और ध्यान से उसके अहकाम पर अमल करें। \b \p \v 19 रब ने आसमान पर अपना तख़्त क़ायम किया है, और उस की बादशाही सब पर हुकूमत करती है। \p \v 20 ऐ रब के फ़रिश्तो, उसके ताक़तवर सूरमाओ, जो उसके फ़रमान पूरे करते हो ताकि उसका कलाम माना जाए, रब की सताइश करो! \p \v 21 ऐ तमाम लशकरो, तुम सब जो उसके ख़ादिम हो और उस की मरज़ी पूरी करते हो, रब की सताइश करो! \p \v 22 तुम सब जिन्हें उसने बनाया, रब की सताइश करो! उस की सलतनत की हर जगह पर उस की तमजीद करो। ऐ मेरी जान, रब की सताइश कर! \c 104 \s1 ख़ालिक़ की हम्दो-सना \p \v 1 ऐ मेरी जान, रब की सताइश कर! ऐ रब मेरे ख़ुदा, तू निहायत ही अज़ीम है, तू जाहो-जलाल से आरास्ता है। \p \v 2 तेरी चादर नूर है जिसे तू ओढ़े रहता है। तू आसमान को ख़ैमे की तरह तानकर \p \v 3 अपना बालाखाना उसके पानी के बीच में तामीर करता है। बादल तेरा रथ है, और तू हवा के परों पर सवार होता है। \p \v 4 तू हवाओं को अपने क़ासिद और आग के शोलों को अपने ख़ादिम बना देता है। \b \p \v 5 तूने ज़मीन को मज़बूत बुनियाद पर रखा ताकि वह कभी न डगमगाए। \p \v 6 सैलाब ने उसे लिबास की तरह ढाँप दिया, और पानी पहाड़ों के ऊपर ही खड़ा हुआ। \p \v 7 लेकिन तेरे डाँटने पर पानी फ़रार हुआ, तेरी गरजती आवाज़ सुनकर वह एकदम भाग गया। \p \v 8 तब पहाड़ ऊँचे हुए और वादियाँ उन जगहों पर उतर आईं जो तूने उनके लिए मुक़र्रर की थीं। \p \v 9 तूने एक हद बाँधी जिससे पानी बढ़ नहीं सकता। आइंदा वह कभी पूरी ज़मीन को नहीं ढाँकने का। \p \v 10 तू वादियों में चश्मे फूटने देता है, और वह पहाड़ों में से बह निकलते हैं। \p \v 11 बहते बहते वह खुले मैदान के तमाम जानवरों को पानी पिलाते हैं। जंगली गधे आकर अपनी प्यास बुझाते हैं। \p \v 12 परिंदे उनके किनारों पर बसेरा करते, और उनकी चहचहाती आवाज़ें घने बेल-बूटों में से सुनाई देती हैं। \p \v 13 तू अपने बालाख़ाने से पहाड़ों को तर करता है, और ज़मीन तेरे हाथ से सेर होकर हर तरह का फल लाती है। \p \v 14 तू जानवरों के लिए घास फूटने और इनसान के लिए पौदे उगने देता है ताकि वह ज़मीन की काश्तकारी करके रोटी हासिल करे। \p \v 15 तेरी मै इनसान का दिल ख़ुश करती, तेरा तेल उसका चेहरा रौशन कर देता, तेरी रोटी उसका दिल मज़बूत करती है। \p \v 16 रब के दरख़्त यानी लुबनान में उसके लगाए हुए देवदार के दरख़्त सेराब रहते हैं। \p \v 17 परिंदे उनमें अपने घोंसले बना लेते हैं, और लक़लक़ जूनीपर के दरख़्त में अपना आशियाना। \p \v 18 पहाड़ों की बुलंदियों पर पहाड़ी बकरों का राज है, चट्टानों में बिज्जू पनाह लेते हैं। \p \v 19 तूने साल को महीनों में तक़सीम करने के लिए चाँद बनाया, और सूरज को ग़ुरूब होने के औक़ात मालूम हैं। \p \v 20 तू अंधेरा फैलने देता है तो दिन ढल जाता है और जंगली जानवर हरकत में आ जाते हैं। \p \v 21 जवान शेरबबर दहाड़कर शिकार के पीछे पड़ जाते और अल्लाह से अपनी ख़ुराक का मुतालबा करते हैं। \p \v 22 फिर सूरज तुलू होने लगता है, और वह खिसककर अपने भटों में छुप जाते हैं। \p \v 23 उस वक़्त इनसान घर से निकलकर अपने काम में लग जाता और शाम तक मसरूफ़ रहता है। \b \p \v 24 ऐ रब, तेरे अनगिनत काम कितने अज़ीम हैं! तूने हर एक को हिकमत से बनाया, और ज़मीन तेरी मख़लूक़ात से भरी पड़ी है। \b \p \v 25 समुंदर को देखो, वह कितना बड़ा और वसी है। उसमें बेशुमार जानदार हैं, बड़े भी और छोटे भी। \p \v 26 उस की सतह पर जहाज़ इधर-उधर सफ़र करते हैं, उस की गहराइयों में लिवियातान फिरता है, वह अज़दहा जिसे तूने उसमें उछलने कूदने के लिए तश्कील दिया था। \p \v 27 सब तेरे इंतज़ार में रहते हैं कि तू उन्हें वक़्त पर खाना मुहैया करे। \p \v 28 तू उनमें ख़ुराक तक़सीम करता है तो वह उसे इकट्ठा करते हैं। तू अपनी मुट्ठी खोलता है तो वह अच्छी चीज़ों से सेर हो जाते हैं। \p \v 29 जब तू अपना चेहरा छुपा लेता है तो उनके हवास गुम हो जाते हैं। जब तू उनका दम निकाल लेता है तो वह नेस्त होकर दुबारा ख़ाक में मिल जाते हैं। \p \v 30 तू अपना दम भेज देता है तो वह पैदा हो जाते हैं। तू ही रूए-ज़मीन को बहाल करता है। \b \p \v 31 रब का जलाल अबद तक क़ायम रहे! रब अपने काम की ख़ुशी मनाए! \p \v 32 वह ज़मीन पर नज़र डालता है तो वह लरज़ उठती है। वह पहाड़ों को छू देता है तो वह धुआँ छोड़ते हैं। \p \v 33 मैं उम्र-भर रब की तमजीद में गीत गाऊँगा, जब तक ज़िंदा हूँ अपने ख़ुदा की मद्हसराई करूँगा। \p \v 34 मेरी बात उसे पसंद आए! मैं रब से कितना ख़ुश हूँ! \p \v 35 गुनाहगार ज़मीन से मिट जाएँ और बेदीन नेस्तो-नाबूद हो जाएँ। ऐ मेरी जान, रब की सताइश कर! रब की हम्द हो! \c 105 \s1 माज़ी में रब की नजात की हम्द \p \v 1 रब का शुक्र करो और उसका नाम पुकारो! अक़वाम में उसके कामों का एलान करो। \p \v 2 साज़ बजाकर उस की मद्हसराई करो। उसके तमाम अजायब के बारे में लोगों को बताओ। \p \v 3 उसके मुक़द्दस नाम पर फ़ख़र करो। रब के तालिब दिल से ख़ुश हों। \p \v 4 रब और उस की क़ुदरत की दरियाफ़्त करो, हर वक़्त उसके चेहरे के तालिब रहो। \p \v 5 जो मोजिज़े उसने किए उन्हें याद करो। उसके इलाही निशान और उसके मुँह के फ़ैसले दोहराते रहो। \p \v 6 तुम जो उसके ख़ादिम इब्राहीम की औलाद और याक़ूब के फ़रज़ंद हो, जो उसके बरगुज़ीदा लोग हो, तुम्हें सब कुछ याद रहे! \p \v 7 वही रब हमारा ख़ुदा है, वही पूरी दुनिया की अदालत करता है। \p \v 8 वह हमेशा अपने अहद का ख़याल रखता है, उस कलाम का जो उसने हज़ार पुश्तों के लिए फ़रमाया था। \p \v 9 यह वह अहद है जो उसने इब्राहीम से बाँधा, वह वादा जो उसने क़सम खाकर इसहाक़ से किया था। \p \v 10 उसने उसे याक़ूब के लिए क़ायम किया ताकि वह उसके मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारे, उसने तसदीक़ की कि यह मेरा इसराईल से अबदी अहद है। \p \v 11 साथ साथ उसने फ़रमाया, “मैं तुझे मुल्के-कनान दूँगा। यह तेरी मीरास का हिस्सा होगा।” \b \p \v 12 उस वक़्त वह तादाद में कम और थोड़े ही थे बल्कि मुल्क में अजनबी ही थे। \p \v 13 अब तक वह मुख़्तलिफ़ क़ौमों और सलतनतों में घुमते-फिरते थे। \p \v 14 लेकिन अल्लाह ने उन पर किसी को ज़ुल्म करने न दिया, और उनकी ख़ातिर उसने बादशाहों को डाँटा, \p \v 15 “मेरे मसह किए हुए ख़ादिमों को मत छेड़ना, मेरे नबियों को नुक़सान मत पहुँचाना।” \b \p \v 16 फिर अल्लाह ने मुल्के-कनान में काल पड़ने दिया और ख़ुराक का हर ज़ख़ीरा ख़त्म किया। \p \v 17 लेकिन उसने उनके आगे आगे एक आदमी को मिसर भेजा यानी यूसुफ़ को जो ग़ुलाम बनकर फ़रोख़्त हुआ। \p \v 18 उसके पाँव और गरदन ज़ंजीरों में जकड़े रहे \p \v 19 जब तक वह कुछ पूरा न हुआ जिसकी पेशगोई यूसुफ़ ने की थी, जब तक रब के फ़रमान ने उस की तसदीक़ न की। \p \v 20 तब मिसरी बादशाह ने अपने बंदों को भेजकर उसे रिहाई दी, क़ौमों के हुक्मरान ने उसे आज़ाद किया। \p \v 21 उसने उसे अपने घराने पर निगरान और अपनी तमाम मिलकियत पर हुक्मरान मुक़र्रर किया। \p \v 22 यूसुफ़ को फ़िरौन के रईसों को अपनी मरज़ी के मुताबिक़ चलाने और मिसरी बुज़ुर्गों को हिकमत की तालीम देने की ज़िम्मादारी भी दी गई। \b \p \v 23 फिर याक़ूब का ख़ानदान मिसर आया, और इसराईल हाम के मुल्क में अजनबी की हैसियत से बसने लगा। \p \v 24 वहाँ अल्लाह ने अपनी क़ौम को बहुत फलने फूलने दिया, उसने उसे उसके दुश्मनों से ज़्यादा ताक़तवर बना दिया। \p \v 25 साथ साथ उसने मिसरियों का रवैया बदल दिया, तो वह उस की क़ौम इसराईल से नफ़रत करके रब के ख़ादिमों से चालाकियाँ करने लगे। \b \p \v 26 तब अल्लाह ने अपने ख़ादिम मूसा और अपने चुने हुए बंदे हारून को मिसर में भेजा। \p \v 27 मुल्के-हाम में आकर उन्होंने उनके दरमियान अल्लाह के इलाही निशान और मोजिज़े दिखाए। \p \v 28 अल्लाह के हुक्म पर मिसर पर तारीकी छा गई, मुल्क में अंधेरा हो गया। लेकिन उन्होंने उसके फ़रमान न माने। \p \v 29 उसने उनका पानी ख़ून में बदलकर उनकी मछलियों को मरवा दिया। \p \v 30 मिसर के मुल्क पर मेंढकों के ग़ोल छा गए जो उनके हुक्मरानों के अंदरूनी कमरों तक पहुँच गए। \p \v 31 अल्लाह के हुक्म पर मिसर के पूरे इलाक़े में मक्खियों और जुओं के ग़ोल फैल गए। \p \v 32 बारिश की बजाए उसने उनके मुल्क पर ओले और दहकते शोले बरसाए। \p \v 33 उसने उनकी अंगूर की बेलें और अंजीर के दरख़्त तबाह कर दिए, उनके इलाक़े के दरख़्त तोड़ डाले। \p \v 34 उसके हुक्म पर अनगिनत टिड्डियाँ अपने बच्चों समेत मुल्क पर हमलाआवर हुईं। \p \v 35 वह उनके मुल्क की तमाम हरियाली और उनके खेतों की तमाम पैदावार चट कर गईं। \p \v 36 फिर अल्लाह ने मिसर में तमाम पहलौठों को मार डाला, उनकी मरदानगी का पहला फल तमाम हुआ। \b \p \v 37 इसके बाद वह इसराईल को चाँदी और सोने से नवाज़कर मिसर से निकाल लाया। उस वक़्त उसके क़बीलों में ठोकर खानेवाला एक भी नहीं था। \p \v 38 मिसर ख़ुश था जब वह रवाना हुए, क्योंकि उन पर इसराईल की दहशत छा गई थी। \p \v 39 दिन को अल्लाह ने उनके ऊपर बादल कम्बल की तरह बिछा दिया, रात को आग मुहैया की ताकि रौशनी हो। \p \v 40 जब उन्होंने ख़ुराक माँगी तो उसने उन्हें बटेर पहुँचाकर आसमानी रोटी से सेर किया। \p \v 41 उसने चट्टान को चाक किया तो पानी फूट निकला, और रेगिस्तान में पानी की नदियाँ बहने लगीं। \b \p \v 42 क्योंकि उसने उस मुक़द्दस वादे का ख़याल रखा जो उसने अपने ख़ादिम इब्राहीम से किया था। \p \v 43 चुनाँचे वह अपनी चुनी हुई क़ौम को मिसर से निकाल लाया, और वह ख़ुशी और शादमानी के नारे लगाकर निकल आए। \p \v 44 उसने उन्हें दीगर अक़वाम के ममालिक दिए, और उन्होंने दीगर उम्मतों की मेहनत के फल पर क़ब्ज़ा किया। \p \v 45 क्योंकि वह चाहता था कि वह उसके अहकाम और हिदायात के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारें। रब की हम्द हो। \c 106 \s1 अल्लाह का फ़ज़ल और इसराईल की सरकशी \p \v 1 रब की हम्द हो! रब का शुक्र करो, क्योंकि वह भला है, और उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 2 कौन रब के तमाम अज़ीम काम सुना सकता, कौन उस की मुनासिब तमजीद कर सकता है? \b \p \v 3 मुबारक हैं वह जो इनसाफ़ क़ायम रखते, जो हर वक़्त रास्त काम करते हैं। \p \v 4 ऐ रब, अपनी क़ौम पर मेहरबानी करते वक़्त मेरा ख़याल रख, नजात देते वक़्त मेरी भी मदद कर \p \v 5 ताकि मैं तेरे चुने हुए लोगों की ख़ुशहाली देख सकूँ और तेरी क़ौम की ख़ुशी में शरीक होकर तेरी मीरास के साथ सताइश कर सकूँ। \b \p \v 6 हमने अपने बापदादा की तरह गुनाह किया है, हमसे नाइनसाफ़ी और बेदीनी सरज़द हुई है। \p \v 7 जब हमारे बापदादा मिसर में थे तो उन्हें तेरे मोजिज़ों की समझ न आई और तेरी मुतअद्दिद मेहरबानियाँ याद न रहीं बल्कि वह समुंदर यानी बहरे-क़ुलज़ुम पर सरकश हुए। \b \p \v 8 तो भी उसने उन्हें अपने नाम की ख़ातिर बचाया, क्योंकि वह अपनी क़ुदरत का इज़हार करना चाहता था। \p \v 9 उसने बहरे-क़ुलज़ुम को झिड़का तो वह ख़ुश्क हो गया। उसने उन्हें समुंदर की गहराइयों में से यों गुज़रने दिया जिस तरह रेगिस्तान में से। \p \v 10 उसने उन्हें नफ़रत करनेवाले के हाथ से छुड़ाया और एवज़ाना देकर दुश्मन के हाथ से रिहा किया। \p \v 11 उनके मुख़ालिफ़ पानी में डूब गए। एक भी न बचा। \p \v 12 तब उन्होंने अल्लाह के फ़रमानों पर ईमान लाकर उस की मद्हसराई की। \b \p \v 13 लेकिन जल्द ही वह उसके काम भूल गए। वह उस की मरज़ी का इंतज़ार करने के लिए तैयार न थे। \p \v 14 रेगिस्तान में शदीद लालच में आकर उन्होंने वहीं बयाबान में अल्लाह को आज़माया। \p \v 15 तब उसने उनकी दरख़ास्त पूरी की, लेकिन साथ साथ मोहलक वबा भी उनमें फैला दी। \p \v 16 ख़ैमागाह में वह मूसा और रब के मुक़द्दस इमाम हारून से हसद करने लगे। \p \v 17 तब ज़मीन खुल गई, और उसने दातन को हड़प कर लिया, अबीराम के जत्थे को अपने अंदर दफ़न कर लिया। \p \v 18 आग उनके जत्थे में भड़क उठी, और बेदीन नज़रे-आतिश हुए। \b \p \v 19 वह कोहे-होरिब यानी सीना के दामन में बछड़े का बुत ढालकर उसके सामने औंधे मुँह हो गए। \p \v 20 उन्होंने अल्लाह को जलाल देने के बजाए घास खानेवाले बैल की पूजा की। \p \v 21 वह अल्लाह को भूल गए, हालाँकि उसी ने उन्हें छुड़ाया था, उसी ने मिसर में अज़ीम काम किए थे। \p \v 22 जो मोजिज़े हाम के मुल्क में हुए और जो जलाली वाक़ियात बहरे-क़ुलज़ुम पर पेश आए थे वह सब अल्लाह के हाथ से हुए थे। \p \v 23 चुनाँचे अल्लाह ने फ़रमाया कि मैं उन्हें नेस्तो-नाबूद करूँगा। लेकिन उसका चुना हुआ ख़ादिम मूसा रख़ने में खड़ा हो गया ताकि उसके ग़ज़ब को इसराईलियों को मिटाने से रोके। सिर्फ़ इस वजह से अल्लाह अपने इरादे से बाज़ आया। \b \p \v 24 फिर उन्होंने कनान के ख़ुशगवार मुल्क को हक़ीर जाना। उन्हें यक़ीन नहीं था कि अल्लाह अपना वादा पूरा करेगा। \p \v 25 वह अपने ख़ैमों में बुड़बुड़ाने लगे और रब की आवाज़ सुनने के लिए तैयार न हुए। \p \v 26 तब उसने अपना हाथ उनके ख़िलाफ़ उठाया ताकि उन्हें वहीं रेगिस्तान में हलाक करे \p \v 27 और उनकी औलाद को दीगर अक़वाम में फेंककर मुख़्तलिफ़ ममालिक में मुंतशिर कर दे। \b \p \v 28 वह बाल-फ़ग़ूर देवता से लिपट गए और मुरदों के लिए पेश की गई क़ुरबानियों का गोश्त खाने लगे। \p \v 29 उन्होंने अपनी हरकतों से रब को तैश दिलाया तो उनमें मोहलक बीमारी फैल गई। \p \v 30 लेकिन फ़ीनहास ने उठकर उनकी अदालत की। तब वबा रुक गई। \p \v 31 इसी बिना पर अल्लाह ने उसे पुश्त-दर-पुश्त और अबद तक रास्तबाज़ क़रार दिया। \b \p \v 32 मरीबा के चश्मे पर भी उन्होंने रब को ग़ुस्सा दिलाया। उन्हीं के बाइस मूसा का बुरा हाल हुआ। \p \v 33 क्योंकि उन्होंने उसके दिल में इतनी तलख़ी पैदा की कि उसके मुँह से बेजा बातें निकलीं। \b \p \v 34 जो दीगर क़ौमें मुल्क में थीं उन्हें उन्होंने नेस्त न किया, हालाँकि रब ने उन्हें यह करने को कहा था। \p \v 35 न सिर्फ़ यह बल्कि वह ग़ैरक़ौमों से रिश्ता बाँधकर उनमें घुल मिल गए और उनके रस्मो-रिवाज अपना लिए। \p \v 36 वह उनके बुतों की पूजा करने में लग गए, और यह उनके लिए फंदे का बाइस बन गए। \p \v 37 वह अपने बेटे-बेटियों को बदरूहों के हुज़ूर क़ुरबान करने से भी न कतराए। \p \v 38 हाँ, उन्होंने अपने बेटे-बेटियों को कनान के देवताओं के हुज़ूर पेश करके उनका मासूम ख़ून बहाया। इससे मुल्क की बेहुरमती हुई। \p \v 39 वह अपनी ग़लत हरकतों से नापाक और अपने ज़िनाकाराना कामों से अल्लाह से बेवफ़ा हुए। \b \p \v 40 तब अल्लाह अपनी क़ौम से सख़्त नाराज़ हुआ, और उसे अपनी मौरूसी मिलकियत से घिन आने लगी। \p \v 41 उसने उन्हें दीगर क़ौमों के हवाले किया, और जो उनसे नफ़रत करते थे वह उन पर हुकूमत करने लगे। \p \v 42 उनके दुश्मनों ने उन पर ज़ुल्म करके उनको अपना मुती बना लिया। \p \v 43 अल्लाह बार बार उन्हें छुड़ाता रहा, हालाँकि वह अपने सरकश मनसूबों पर तुले रहे और अपने क़ुसूर में डूबते गए। \p \v 44 लेकिन उसने मदद के लिए उनकी आहें सुनकर उनकी मुसीबत पर ध्यान दिया। \p \v 45 उसने उनके साथ अपना अहद याद किया, और वह अपनी बड़ी शफ़क़त के बाइस पछताया। \p \v 46 उसने होने दिया कि जिसने भी उन्हें गिरिफ़्तार किया उसने उन पर तरस खाया। \b \p \v 47 ऐ रब हमारे ख़ुदा, हमें बचा! हमें दीगर क़ौमों से निकालकर जमा कर। तब ही हम तेरे मुक़द्दस नाम की सताइश करेंगे और तेरे क़ाबिले-तारीफ़ कामों पर फ़ख़र करेंगे। \p \v 48 अज़ल से अबद तक रब, इसराईल के ख़ुदा की हम्द हो। तमाम क़ौम कहे, “आमीन! रब की हम्द हो!” \c 107 \ms1 पाँचवीं किताब 107-15 \s1 नजातयाफ़्ता की शुक्रगुज़ारी \p \v 1 रब का शुक्र करो, क्योंकि वह भला है, और उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 2 रब के नजातयाफ़्ता जिनको उसने एवज़ाना देकर दुश्मन के क़ब्ज़े से छुड़ाया है सब यह कहें। \p \v 3 उसने उन्हें मशरिक़ से मग़रिब तक और शिमाल से जुनूब तक दीगर ममालिक से इकट्ठा किया है। \b \p \v 4 बाज़ रेगिस्तान में सहीह रास्ता भूलकर वीरान रास्ते पर मारे मारे फिरे, और कहीं भी आबादी न मिली। \p \v 5 भूक और प्यास के मारे उनकी जान निढाल हो गई। \p \v 6 तब उन्होंने अपनी मुसीबत में रब को पुकारा, और उसने उन्हें उनकी तमाम परेशानियों से छुटकारा दिया। \p \v 7 उसने उन्हें सहीह राह पर लाकर ऐसी आबादी तक पहुँचाया जहाँ रह सकते थे। \p \v 8 वह रब का शुक्र करें कि उसने अपनी शफ़क़त और अपने मोजिज़े इनसान पर ज़ाहिर किए हैं। \p \v 9 क्योंकि वह प्यासी जान को आसूदा करता और भूकी जान को कसरत की अच्छी चीज़ों से सेर करता है। \b \p \v 10 दूसरे ज़ंजीरों और मुसीबत में जकड़े हुए अंधेरे और गहरी तारीकी में बसते थे, \p \v 11 क्योंकि वह अल्लाह के फ़रमानों से सरकश हुए थे, उन्होंने अल्लाह तआला का फ़ैसला हक़ीर जाना था। \p \v 12 इसलिए अल्लाह ने उनके दिल को तकलीफ़ में मुब्तला करके पस्त कर दिया। जब वह ठोकर खाकर गिर गए और मदद करनेवाला कोई न रहा था \p \v 13 तो उन्होंने अपनी मुसीबत में रब को पुकारा, और उसने उन्हें उनकी तमाम परेशानियों से छुटकारा दिया। \p \v 14 वह उन्हें अंधेरे और गहरी तारीकी से निकाल लाया और उनकी ज़ंजीरें तोड़ डालीं। \p \v 15 वह रब का शुक्र करें कि उसने अपनी शफ़क़त और अपने मोजिज़े इनसान पर ज़ाहिर किए हैं। \p \v 16 क्योंकि उसने पीतल के दरवाज़े तोड़ डाले, लोहे के कुंडे टुकड़े टुकड़े कर दिए हैं। \b \p \v 17 कुछ लोग अहमक़ थे, वह अपने सरकश चाल-चलन और गुनाहों के बाइस परेशानियों में मुब्तला हुए। \p \v 18 उन्हें हर ख़ुराक से घिन आने लगी, और वह मौत के दरवाज़ों के क़रीब पहुँचे। \p \v 19 तब उन्होंने अपनी मुसीबत में रब को पुकारा, और उसने उन्हें उनकी तमाम परेशानियों से छुटकारा दिया। \p \v 20 उसने अपना कलाम भेजकर उन्हें शफ़ा दी और उन्हें मौत के गढ़े से बचाया। \p \v 21 वह रब का शुक्र करें कि उसने अपनी शफ़क़त और मोजिज़े इनसान पर ज़ाहिर किए हैं। \p \v 22 वह शुक्रगुज़ारी की क़ुरबानियाँ पेश करें और ख़ुशी के नारे लगाकर उसके कामों का चर्चा करें। \b \p \v 23 बाज़ बहरी जहाज़ में बैठ गए और तिजारत के सिलसिले में समुंदर पर सफ़र करते करते दूर-दराज़ इलाक़ों तक पहुँचे। \p \v 24 उन्होंने रब के अज़ीम काम और समुंदर की गहराइयों में उसके मोजिज़े देखे हैं। \p \v 25 क्योंकि रब ने हुक्म दिया तो आँधी चली जो समुंदर की मौजें बुलंदियों पर लाई। \p \v 26 वह आसमान तक चढ़ीं और गहराइयों तक उतरीं। परेशानी के बाइस मल्लाहों की हिम्मत जवाब दे गई। \p \v 27 वह शराब में धुत आदमी की तरह लड़खड़ाते और डगमगाते रहे। उनकी तमाम हिकमत नाकाम साबित हुई। \p \v 28 तब उन्होंने अपनी मुसीबत में रब को पुकारा, और उसने उन्हें तमाम परेशानियों से छुटकारा दिया। \p \v 29 उसने समुंदर को थमा दिया और ख़ामोशी फैल गई, लहरें साकित हो गईं। \p \v 30 मुसाफ़िर पुरसुकून हालात देखकर ख़ुश हुए, और अल्लाह ने उन्हें मनज़िले-मक़सूद तक पहुँचाया। \p \v 31 वह रब का शुक्र करें कि उसने अपनी शफ़क़त और अपने मोजिज़े इनसान पर ज़ाहिर किए हैं। \p \v 32 वह क़ौम की जमात में उस की ताज़ीम करें, बुज़ुर्गों की मजलिस में उस की हम्द करें। \b \p \v 33 कई जगहों पर वह दरियाओं को रेगिस्तान में और चश्मों को प्यासी ज़मीन में बदल देता है। \p \v 34 बाशिंदों की बुराई देखकर वह ज़रख़ेज़ ज़मीन को कल्लर के बयाबान में बदल देता है। \p \v 35 दूसरी जगहों पर वह रेगिस्तान को झील में और प्यासी ज़मीन को चश्मों में बदल देता है। \p \v 36 वहाँ वह भूकों को बसा देता है ताकि आबादियाँ क़ायम करें। \p \v 37 तब वह खेत और अंगूर के बाग़ लगाते हैं जो ख़ूब फल लाते हैं। \p \v 38 अल्लाह उन्हें बरकत देता है तो उनकी तादाद बहुत बढ़ जाती है। वह उनके रेवड़ों को भी कम होने नहीं देता। \p \v 39 जब कभी उनकी तादाद कम हो जाती और वह मुसीबत और दुख के बोझ तले ख़ाक में दब जाते हैं \p \v 40 तो वह शुरफ़ा पर अपनी हिक़ारत उंडेल देता और उन्हें रेगिस्तान में भगाकर सहीह रास्ते से दूर फिरने देता है। \p \v 41 लेकिन मुहताज को वह मुसीबत की दलदल से निकालकर सरफ़राज़ करता और उसके ख़ानदानों को भेड़-बकरियों की तरह बढ़ा देता है। \b \p \v 42 सीधी राह पर चलनेवाले यह देखकर ख़ुश होंगे, लेकिन बेइनसाफ़ का मुँह बंद किया जाएगा। \p \v 43 कौन दानिशमंद है? वह इस पर ध्यान दे, वह रब की मेहरबानियों पर ग़ौर करे। \c 108 \s1 जंग में रब पर उम्मीद \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। गीत। \p ऐ अल्लाह, मेरा दिल मज़बूत है। मैं साज़ बजाकर तेरी मद्हसराई करूँगा। ऐ मेरी जान, जाग उठ! \p \v 2 ऐ सितार और सरोद, जाग उठो! मैं तुलूए-सुबह को जगाऊँगा। \p \v 3 ऐ रब, मैं क़ौमों में तेरी सताइश, उम्मतों में तेरी मद्हसराई करूँगा। \p \v 4 क्योंकि तेरी शफ़क़त आसमान से कहीं बुलंद है, तेरी वफ़ादारी बादलों तक पहुँचती है। \p \v 5 ऐ अल्लाह, आसमान पर सरफ़राज़ हो! तेरा जलाल पूरी दुनिया पर छा जाए। \p \v 6 अपने दहने हाथ से मदद करके मेरी सुन ताकि जो तुझे प्यारे हैं नजात पाएँ। \b \p \v 7 अल्लाह ने अपने मक़दिस में फ़रमाया है, “मैं फ़तह मनाते हुए सिकम को तक़सीम करूँगा और वादीए-सुक्कात को नापकर बाँट दूँगा। \p \v 8 जिलियाद मेरा है और मनस्सी मेरा है। इफ़राईम मेरा ख़ोद और यहूदाह मेरा शाही असा है। \p \v 9 मोआब मेरा ग़ुस्ल का बरतन है, और अदोम पर मैं अपना जूता फेंक दूँगा। मैं फ़िलिस्ती मुल्क पर ज़ोरदार नारे लगाऊँगा!” \b \p \v 10 कौन मुझे क़िलाबंद शहर में लाएगा? कौन मेरी राहनुमाई करके मुझे अदोम तक पहुँचाएगा? \p \v 11 ऐ अल्लाह, तू ही यह कर सकता है, गो तूने हमें रद्द किया है। ऐ अल्लाह, तू हमारी फ़ौजों का साथ नहीं देता जब वह लड़ने के लिए निकलती हैं। \p \v 12 मुसीबत में हमें सहारा दे, क्योंकि इस वक़्त इनसानी मदद बेकार है। \p \v 13 अल्लाह के साथ हम ज़बरदस्त काम करेंगे, क्योंकि वही हमारे दुश्मनों को कुचल देगा। \c 109 \s1 बेरहम मुख़ालिफ़ के सामने अल्लाह से दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ अल्लाह मेरे फ़ख़र, ख़ामोश न रह! \p \v 2 क्योंकि उन्होंने अपना बेदीन और फ़रेबदेह मुँह मेरे ख़िलाफ़ खोलकर झूटी ज़बान से मेरे साथ बात की है। \p \v 3 वह मुझे नफ़रत के अलफ़ाज़ से घेरकर बिलावजह मुझसे लड़े हैं। \p \v 4 मेरी मुहब्बत के जवाब में वह मुझ पर अपनी दुश्मनी का इज़हार करते हैं। लेकिन दुआ ही मेरा सहारा है। \p \v 5 मेरी नेकी के एवज़ वह मुझे नुक़सान पहुँचाते और मेरे प्यार के बदले मुझसे नफ़रत करते हैं। \b \p \v 6 ऐ अल्लाह, किसी बेदीन को मुक़र्रर कर जो मेरे दुश्मन के ख़िलाफ़ गवाही दे, कोई मुख़ालिफ़ उसके दहने हाथ खड़ा हो जाए जो उस पर इलज़ाम लगाए। \p \v 7 मुक़दमे में उसे मुजरिम ठहराया जाए। उस की दुआएँ भी उसके गुनाहों में शुमार की जाएँ। \p \v 8 उस की ज़िंदगी मुख़तसर हो, कोई और उस की ज़िम्मादारी उठाए। \p \v 9 उस की औलाद यतीम और उस की बीवी बेवा बन जाए। \p \v 10 उसके बच्चे आवारा फिरें और भीक माँगने पर मजबूर हो जाएँ। उन्हें उनके तबाहशुदा घरों से निकलकर इधर-उधर रोटी ढूँडनी पड़े। \p \v 11 जिससे उसने क़र्ज़ा लिया था वह उसके तमाम माल पर क़ब्ज़ा करे, और अजनबी उस की मेहनत का फल लूट लें। \p \v 12 कोई न हो जो उस पर मेहरबानी करे या उसके यतीमों पर रहम करे। \p \v 13 उस की औलाद को मिटाया जाए, अगली पुश्त में उनका नामो-निशान तक न रहे। \p \v 14 रब उसके बापदादा की नाइनसाफ़ी का लिहाज़ करे, और वह उस की माँ की ख़ता भी दरगुज़र न करे। \p \v 15 उनका बुरा किरदार रब के सामने रहे, और वह उनकी याद रूए-ज़मीन पर से मिटा डाले। \p \v 16 क्योंकि उसको कभी मेहरबानी करने का ख़याल न आया बल्कि वह मुसीबतज़दा, मुहताज और शिकस्तादिल का ताक़्क़ुब करता रहा ताकि उसे मार डाले। \p \v 17 उसे लानत करने का शौक़ था, चुनाँचे लानत उसी पर आए! उसे बरकत देना पसंद नहीं था, चुनाँचे बरकत उससे दूर रहे। \p \v 18 उसने लानत चादर की तरह ओढ़ ली, चुनाँचे लानत पानी की तरह उसके जिस्म में और तेल की तरह उस की हड्डियों में सरायत कर जाए। \p \v 19 वह कपड़े की तरह उससे लिपटी रहे, पटके की तरह हमेशा उससे कमरबस्ता रहे। \b \p \v 20 रब मेरे मुख़ालिफ़ों को और उन्हें जो मेरे ख़िलाफ़ बुरी बातें करते हैं यही सज़ा दे। \p \v 21 लेकिन तू ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, अपने नाम की ख़ातिर मेरे साथ मेहरबानी का सुलूक कर। मुझे बचा, क्योंकि तेरी ही शफ़क़त तसल्लीबख़्श है। \p \v 22 क्योंकि मैं मुसीबतज़दा और ज़रूरतमंद हूँ। मेरा दिल मेरे अंदर मजरूह है। \p \v 23 शाम के ढलते साये की तरह मैं ख़त्म होनेवाला हूँ। मुझे टिड्डी की तरह झाड़कर दूर कर दिया गया है। \p \v 24 रोज़ा रखते रखते मेरे घुटने डगमगाने लगे और मेरा जिस्म सूख गया है। \p \v 25 मैं अपने दुश्मनों के लिए मज़ाक़ का निशाना बन गया हूँ। मुझे देखकर वह सर हिलाकर “तौबा तौबा” कहते हैं। \p \v 26 ऐ रब मेरे ख़ुदा, मेरी मदद कर! अपनी शफ़क़त का इज़हार करके मुझे छुड़ा! \p \v 27 उन्हें पता चले कि यह तेरे हाथ से पेश आया है, कि तू रब ही ने यह सब कुछ किया है। \p \v 28 जब वह लानत करें तो मुझे बरकत दे! जब वह मेरे ख़िलाफ़ उठें तो बख़्श दे कि शरमिंदा हो जाएँ जबकि तेरा ख़ादिम ख़ुश हो। \p \v 29 मेरे मुख़ालिफ़ रुसवाई से मुलब्बस हो जाएँ, उन्हें शरमिंदगी की चादर ओढ़नी पड़े। \b \p \v 30 मैं ज़ोर से रब की सताइश करूँगा, बहुतों के दरमियान उस की हम्द करूँगा। \p \v 31 क्योंकि वह मुहताज के दहने हाथ खड़ा रहता है ताकि उसे उनसे बचाए जो उसे मुजरिम ठहराते हैं। \c 110 \s1 अबदी बादशाह और इमाम \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p रब ने मेरे रब से कहा, “मेरे दहने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँवों की चौकी न बना दूँ।” \p \v 2 रब सिय्यून से तेरी सलतनत की सरहद्दें बढ़ाकर कहेगा, “आस-पास के दुश्मनों पर हुकूमत कर!” \p \v 3 जिस दिन तू अपनी फ़ौज को खड़ा करेगा तेरी क़ौम ख़ुशी से तेरे पीछे हो लेगी। तू मुक़द्दस शानो-शौकत से आरास्ता होकर तुलूए-सुबह के बातिन से अपनी जवानी की ओस पाएगा। \b \p \v 4 रब ने क़सम खाई है और इससे पछताएगा नहीं, “तू अबद तक इमाम है, ऐसा इमाम जैसा मलिके-सिद्क़ था।” \p \v 5 रब तेरे दहने हाथ पर रहेगा और अपने ग़ज़ब के दिन दीगर बादशाहों को चूर चूर करेगा। \p \v 6 वह क़ौमों में अदालत करके मैदान को लाशों से भर देगा और दूर तक सरों को पाश पाश करेगा। \p \v 7 रास्ते में वह नदी से पानी पी लेगा, इसलिए अपना सर उठाए फिरेगा। \c 111 \s1 अल्लाह के फ़ज़ल की तमजीद \p \v 1 रब की हम्द हो! मैं पूरे दिल से दियानतदारों की मजलिस और जमात में रब का शुक्र करूँगा। \p \v 2 रब के काम अज़ीम हैं। जो उनसे लुत्फ़अंदोज़ होते हैं वह उनका ख़ूब मुतालआ करते हैं। \b \p \v 3 उसका काम शानदार और जलाली है, उस की रास्ती अबद तक क़ायम रहती है। \p \v 4 वह अपने मोजिज़े याद कराता है। रब मेहरबान और रहीम है। \p \v 5 जो उसका ख़ौफ़ मानते हैं उन्हें उसने ख़ुराक मुहैया की है। वह हमेशा तक अपने अहद का ख़याल रखेगा। \p \v 6 उसने अपनी क़ौम को अपने ज़बरदस्त कामों का एलान करके कहा, “मैं तुम्हें ग़ैरक़ौमों की मीरास अता करूँगा।” \p \v 7 जो भी काम उसके हाथ करें वह सच्चे और रास्त हैं। उसके तमाम अहकाम क़ाबिले-एतमाद हैं। \p \v 8 वह अज़ल से अबद तक क़ायम हैं, और उन पर सच्चाई और दियानतदारी से अमल करना है। \p \v 9 उसने अपनी क़ौम का फ़िद्या भेजकर उसे छुड़ाया है। उसने फ़रमाया, “मेरा क़ौम के साथ अहद अबद तक क़ायम रहे।” उसका नाम क़ुद्दूस और पुरजलाल है। \p \v 10 हिकमत इससे शुरू होती है कि हम रब का ख़ौफ़ मानें। जो भी उसके अहकाम पर अमल करे उसे अच्छी समझ हासिल होगी। उस की हम्द हमेशा तक क़ायम रहेगी। \c 112 \s1 अल्लाह के ख़ौफ़ की तारीफ़ \p \v 1 रब की हम्द हो! मुबारक है वह जो अल्लाह का ख़ौफ़ मानता और उसके अहकाम से बहुत लुत्फ़अंदोज़ होता है। \p \v 2 उसके फ़रज़ंद मुल्क में ताक़तवर होंगे, और दियानतदार की नसल को बरकत मिलेगी। \p \v 3 दौलत और ख़ुशहाली उसके घर में रहेगी, और उस की रास्तबाज़ी अबद तक क़ायम रहेगी। \p \v 4 अंधेरे में चलते वक़्त दियानतदारों पर रौशनी चमकती है। वह रास्तबाज़, मेहरबान और रहीम है। \b \p \v 5 मेहरबानी करना और क़र्ज़ देना बा-बरकत है। जो अपने मामलों को इनसाफ़ से हल करे वह अच्छा करेगा, \p \v 6 क्योंकि वह अबद तक नहीं डगमगाएगा। रास्तबाज़ हमेशा ही याद रहेगा। \p \v 7 वह बुरी ख़बर मिलने से नहीं डरता। उसका दिल मज़बूत है, और वह रब पर भरोसा रखता है। \p \v 8 उसका दिल मुस्तहकम है। वह सहमा हुआ नहीं रहता, क्योंकि वह जानता है कि एक दिन मैं अपने दुश्मनों की शिकस्त देखकर ख़ुश हूँगा। \p \v 9 वह फ़ैयाज़ी से ज़रूरतमंदों में ख़ैरात बिखेर देता है। उस की रास्तबाज़ी हमेशा क़ायम रहेगी, और उसे इज़्ज़त के साथ सरफ़राज़ किया जाएगा। \p \v 10 बेदीन यह देखकर नाराज़ हो जाएगा, वह दाँत पीस पीसकर नेस्त हो जाएगा। जो कुछ बेदीन चाहते हैं वह जाता रहेगा। \c 113 \s1 अल्लाह की अज़मत और मेहरबानी \p \v 1 रब की हम्द हो! ऐ रब के ख़ादिमो, रब के नाम की सताइश करो, रब के नाम की तारीफ़ करो। \p \v 2 रब के नाम की अब से अबद तक तमजीद हो। \p \v 3 तुलूए-सुबह से ग़ुरूबे-आफ़ताब तक रब के नाम की हम्द हो। \p \v 4 रब तमाम अक़वाम से सरबुलंद है, उसका जलाल आसमान से अज़ीम है। \p \v 5 कौन रब हमारे ख़ुदा की मानिंद है जो बुलंदियों पर तख़्तनशीन है \p \v 6 और आसमानो-ज़मीन को देखने के लिए नीचे झुकता है? \p \v 7 पस्तहाल को वह ख़ाक में से उठाकर पाँवों पर खड़ा करता, मुहताज को राख से निकालकर सरफ़राज़ करता है। \p \v 8 वह उसे शुरफ़ा के साथ, अपनी क़ौम के शुरफ़ा के साथ बिठा देता है। \p \v 9 बाँझ को वह औलाद अता करता है ताकि वह घर में ख़ुशी से ज़िंदगी गुज़ार सके। रब की हम्द हो! \c 114 \s1 मिसर में अल्लाह के मोजिज़ात \p \v 1 जब इसराईल मिसर से रवाना हुआ और याक़ूब का घराना अजनबी ज़बान बोलनेवाली क़ौम से निकल आया \p \v 2 तो यहूदाह अल्लाह का मक़दिस बन गया और इसराईल उस की बादशाही। \p \v 3 यह देखकर समुंदर भाग गया और दरियाए-यरदन पीछे हट गया। \p \v 4 पहाड़ मेंढों की तरह कूदने और पहाड़ियाँ जवान भेड़-बकरियों की तरह फाँदने लगीं। \b \p \v 5 ऐ समुंदर, क्या हुआ कि तू भाग गया है? ऐ यरदन, क्या हुआ कि तू पीछे हट गया है? \p \v 6 ऐ पहाड़ो, क्या हुआ कि तुम मेंढों की तरह कूदने लगे हो? ऐ पहाड़ियो, क्या हुआ कि तुम जवान भेड़-बकरियों की तरह फाँदने लगी हो? \p \v 7 ऐ ज़मीन, रब के हुज़ूर, याक़ूब के ख़ुदा के हुज़ूर लरज़ उठ, \p \v 8 उसके सामने थरथरा जिसने चट्टान को जोहड़ में और सख़्त पत्थर को चश्मे में बदल दिया। \c 115 \s1 अल्लाह ही की हम्द हो \p \v 1 ऐ रब, हमारी ही इज़्ज़त की ख़ातिर काम न कर बल्कि इसलिए कि तेरे नाम को जलाल मिले, इसलिए कि तू मेहरबान और वफ़ादार ख़ुदा है। \p \v 2 दीगर अक़वाम क्यों कहें, “उनका ख़ुदा कहाँ है?” \p \v 3 हमारा ख़ुदा तो आसमान पर है, और जो जी चाहे करता है। \b \p \v 4 उनके बुत सोने-चाँदी के हैं, इनसान के हाथ ने उन्हें बनाया है। \p \v 5 उनके मुँह हैं लेकिन वह बोल नहीं सकते। उनकी आँखें हैं लेकिन वह देख नहीं सकते। \p \v 6 उनके कान हैं लेकिन वह सुन नहीं सकते, उनकी नाक है लेकिन वह सूँघ नहीं सकते। \p \v 7 उनके हाथ हैं, लेकिन वह छू नहीं सकते। उनके पाँव हैं, लेकिन वह चल नहीं सकते। उनके गले से आवाज़ नहीं निकलती। \p \v 8 जो बुत बनाते हैं वह उनकी मानिंद हो जाएँ, जो उन पर भरोसा रखते हैं वह उन जैसे बेहिसो-हरकत हो जाएँ। \b \p \v 9 ऐ इसराईल, रब पर भरोसा रख! वही तेरा सहारा और तेरी ढाल है। \p \v 10 ऐ हारून के घराने, रब पर भरोसा रख! वही तेरा सहारा और तेरी ढाल है। \p \v 11 ऐ रब का ख़ौफ़ माननेवालो, रब पर भरोसा रखो! वही तुम्हारा सहारा और तुम्हारी ढाल है। \b \p \v 12 रब ने हमारा ख़याल किया है, और वह हमें बरकत देगा। वह इसराईल के घराने को बरकत देगा, वह हारून के घराने को बरकत देगा। \p \v 13 वह रब का ख़ौफ़ माननेवालों को बरकत देगा, ख़ाह छोटे हों या बड़े। \p \v 14 रब तुम्हारी तादाद में इज़ाफ़ा करे, तुम्हारी भी और तुम्हारी औलाद की भी। \p \v 15 रब जो आसमानो-ज़मीन का ख़ालिक़ है तुम्हें बरकत से मालामाल करे। \p \v 16 आसमान तो रब का है, लेकिन ज़मीन को उसने आदमज़ादों को बख़्श दिया है। \p \v 17 ऐ रब, मुरदे तेरी सताइश नहीं करते, ख़ामोशी के मुल्क में उतरनेवालों में से कोई भी तेरी तमजीद नहीं करता। \p \v 18 लेकिन हम रब की सताइश अब से अबद तक करेंगे। रब की हम्द हो! \c 116 \s1 मौत से नजात पर शुक्रगुज़ारी \p \v 1 मैं रब से मुहब्बत रखता हूँ, क्योंकि उसने मेरी आवाज़ और मेरी इल्तिजा सुनी है। \p \v 2 उसने अपना कान मेरी तरफ़ झुकाया है, इसलिए मैं उम्र-भर उसे पुकारूँगा। \b \p \v 3 मौत ने मुझे अपनी ज़ंजीरों में जकड़ लिया, और पाताल की परेशानियाँ मुझ पर ग़ालिब आईं। मैं मुसीबत और दुख में फँस गया। \p \v 4 तब मैंने रब का नाम पुकारा, “ऐ रब, मेहरबानी करके मुझे बचा!” \p \v 5 रब मेहरबान और रास्त है, हमारा ख़ुदा रहीम है। \p \v 6 रब सादा लोगों की हिफ़ाज़त करता है। जब मैं पस्तहाल था तो उसने मुझे बचाया। \p \v 7 ऐ मेरी जान, अपनी आरामगाह के पास वापस आ, क्योंकि रब ने तेरे साथ भलाई की है। \p \v 8 क्योंकि ऐ रब, तूने मेरी जान को मौत से, मेरी आँखों को आँसू बहाने से और मेरे पाँवों को फिसलने से बचाया है। \p \v 9 अब मैं ज़िंदों की ज़मीन में रहकर रब के हुज़ूर चलूँगा। \p \v 10 मैं ईमान लाया और इसलिए बोला, “मैं शदीद मुसीबत में फँस गया हूँ।” \p \v 11 मैं सख़्त घबरा गया और बोला, “तमाम इनसान दरोग़गो हैं।” \p \v 12 जो भलाइयाँ रब ने मेरे साथ की हैं उन सबके एवज़ मैं क्या दूँ? \p \v 13 मैं नजात का प्याला उठाकर रब का नाम पुकारूँगा। \p \v 14 मैं रब के हुज़ूर उस की सारी क़ौम के सामने ही अपनी मन्नतें पूरी करूँगा। \b \p \v 15 रब की निगाह में उसके ईमानदारों की मौत गिराँक़दर है। \p \v 16 ऐ रब, यक़ीनन मैं तेरा ख़ादिम, हाँ तेरा ख़ादिम और तेरी ख़ादिमा का बेटा हूँ। तूने मेरी ज़ंजीरों को तोड़ डाला है। \p \v 17 मैं तुझे शुक्रगुज़ारी की क़ुरबानी पेश करके तेरा नाम पुकारूँगा। \p \v 18 मैं रब के हुज़ूर उस की सारी क़ौम के सामने ही अपनी मन्नतें पूरी करूँगा। \p \v 19 मैं रब के घर की बारगाहों में, ऐ यरूशलम तेरे बीच में ही उन्हें पूरा करूँगा। रब की हम्द हो। \c 117 \s1 तमाम अक़वाम अल्लाह की हम्द करें \p \v 1 ऐ तमाम अक़वाम, रब की तमजीद करो! ऐ तमाम उम्मतो, उस की मद्हसराई करो! \p \v 2 क्योंकि उस की हम पर शफ़क़त अज़ीम है, और रब की वफ़ादारी अबदी है। रब की हम्द हो! \c 118 \s1 अल्लाह की मदद पर शुक्रगुज़ारी \p \v 1 रब का शुक्र करो, क्योंकि वह भला है, और उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 2 इसराईल कहे, “उस की शफ़क़त अबदी है।” \p \v 3 हारून का घराना कहे, “उस की शफ़क़त अबदी है।” \p \v 4 रब का ख़ौफ़ माननेवाले कहें, “उस की शफ़क़त अबदी है।” \b \p \v 5 मुसीबत में मैंने रब को पुकारा तो रब ने मेरी सुनकर मेरे पाँवों को खुले मैदान में क़ायम कर दिया है। \p \v 6 रब मेरे हक़ में है, इसलिए मैं नहीं डरूँगा। इनसान मेरा क्या बिगाड़ सकता है? \p \v 7 रब मेरे हक़ में है और मेरा सहारा है, इसलिए मैं उनकी शिकस्त देखकर ख़ुश हूँगा जो मुझसे नफ़रत करते हैं। \b \p \v 8 रब में पनाह लेना इनसान पर एतमाद करने से कहीं बेहतर है। \p \v 9 रब में पनाह लेना शुरफ़ा पर एतमाद करने से कहीं बेहतर है। \b \p \v 10 तमाम अक़वाम ने मुझे घेर लिया, लेकिन मैंने अल्लाह का नाम लेकर उन्हें भगा दिया। \p \v 11 उन्होंने मुझे घेर लिया, हाँ चारों तरफ़ से घेर लिया, लेकिन मैंने अल्लाह का नाम लेकर उन्हें भगा दिया। \p \v 12 वह शहद की मक्खियों की तरह चारों तरफ़ से मुझ पर हमलाआवर हुए, लेकिन काँटेदार झाड़ियों की आग की तरह जल्द ही बुझ गए। मैंने रब का नाम लेकर उन्हें भगा दिया। \p \v 13 दुश्मन ने मुझे धक्का देकर गिराने की कोशिश की, लेकिन रब ने मेरी मदद की। \p \v 14 रब मेरी क़ुव्वत और मेरा गीत है, वह मेरी नजात बन गया है। \b \p \v 15 ख़ुशी और फ़तह के नारे रास्तबाज़ों के ख़ैमों में गूँजते हैं, “रब का दहना हाथ ज़बरदस्त काम करता है! \p \v 16 रब का दहना हाथ सरफ़राज़ करता है, रब का दहना हाथ ज़बरदस्त काम करता है!” \p \v 17 मैं नहीं मरूँगा बल्कि ज़िंदा रहकर रब के काम बयान करूँगा। \p \v 18 गो रब ने मेरी सख़्त तादीब की है, उसने मुझे मौत के हवाले नहीं किया। \b \p \v 19 रास्ती के दरवाज़े मेरे लिए खोल दो ताकि मैं उनमें दाख़िल होकर रब का शुक्र करूँ। \p \v 20 यह रब का दरवाज़ा है, इसी में रास्तबाज़ दाख़िल होते हैं। \b \p \v 21 मैं तेरा शुक्र करता हूँ, क्योंकि तूने मेरी सुनकर मुझे बचाया है। \p \v 22 जिस पत्थर को मकान बनानेवालों ने रद्द किया वह कोने का बुनियादी पत्थर बन गया। \p \v 23 यह रब ने किया और देखने में कितना हैरतअंगेज़ है। \p \v 24 इसी दिन रब ने अपनी क़ुदरत दिखाई है। आओ, हम शादियाना बजाकर उस की ख़ुशी मनाएँ। \p \v 25 ऐ रब, मेहरबानी करके हमें बचा! ऐ रब, मेहरबानी करके कामयाबी अता फ़रमा! \b \p \v 26 मुबारक है वह जो रब के नाम से आता है। रब की सुकूनतगाह से हम तुम्हें बरकत देते हैं। \p \v 27 रब ही ख़ुदा है, और उसने हमें रौशनी बख़्शी है। आओ, ईद की क़ुरबानी रस्सियों से क़ुरबानगाह के सींगों के साथ बान्धो। \b \p \v 28 तू मेरा ख़ुदा है, और मैं तेरा शुक्र करता हूँ। ऐ मेरे ख़ुदा, मैं तेरी ताज़ीम करता हूँ। \p \v 29 रब की सताइश करो, क्योंकि वह भला है और उस की शफ़क़त अबदी है। \c 119 \s1 अल्लाह के कलाम की शान \s1 1 \p \v 1 मुबारक हैं वह जिनका चाल-चलन बेइलज़ाम है, जो रब की शरीअत के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते हैं। \p \v 2 मुबारक हैं वह जो उसके अहकाम पर अमल करते और पूरे दिल से उसके तालिब रहते हैं, \p \v 3 जो बदी नहीं करते बल्कि उस की राहों पर चलते हैं। \p \v 4 तूने हमें अपने अहकाम दिए हैं, और तू चाहता है कि हम हर लिहाज़ से उनके ताबे रहें। \p \v 5 काश मेरी राहें इतनी पुख़्ता हों कि मैं साबितक़दमी से तेरे अहकाम पर अमल करूँ! \p \v 6 तब मैं शरमिंदा नहीं हूँगा, क्योंकि मेरी आँखें तेरे तमाम अहकाम पर लगी रहेंगी। \p \v 7 जितना मैं तेरे बा-इनसाफ़ फ़ैसलों के बारे में सीखूँगा उतना ही दियानतदार दिल से तेरी सताइश करूँगा। \p \v 8 तेरे अहकाम पर मैं हर वक़्त अमल करूँगा। मुझे पूरी तरह तर्क न कर! \s1 2 \p \v 9 नौजवान अपनी राह को किस तरह पाक रखे? इस तरह कि तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारे। \p \v 10 मैं पूरे दिल से तेरा तालिब रहा हूँ। मुझे अपने अहकाम से भटकने न दे। \p \v 11 मैंने तेरा कलाम अपने दिल में महफ़ूज़ रखा है ताकि तेरा गुनाह न करूँ। \p \v 12 ऐ रब, तेरी हम्द हो! मुझे अपने अहकाम सिखा। \p \v 13 अपने होंटों से मैं दूसरों को तेरे मुँह की तमाम हिदायात सुनाता हूँ। \p \v 14 मैं तेरे अहकाम की राह से उतना लुत्फ़अंदोज़ होता हूँ जितना कि हर तरह की दौलत से। \p \v 15 मैं तेरी हिदायात में महवे-ख़याल रहूँगा और तेरी राहों को तकता रहूँगा। \p \v 16 मैं तेरे फ़रमानों से लुत्फ़अंदोज़ होता हूँ और तेरा कलाम नहीं भूलता। \s1 3 \p \v 17 अपने ख़ादिम से भलाई कर ताकि मैं ज़िंदा रहूँ और तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारूँ। \p \v 18 मेरी आँखों को खोल ताकि तेरी शरीअत के अजायब देखूँ। \p \v 19 दुनिया में मैं परदेसी ही हूँ। अपने अहकाम मुझसे छुपाए न रख! \p \v 20 मेरी जान हर वक़्त तेरी हिदायात की आरज़ू करते करते निढाल हो रही है। \p \v 21 तू मग़रूरों को डाँटता है। उन पर लानत जो तेरे अहकाम से भटक जाते हैं! \p \v 22 मुझे लोगों की तौहीन और तहक़ीर से रिहाई दे, क्योंकि मैं तेरे अहकाम के ताबे रहा हूँ। \p \v 23 गो बुज़ुर्ग मेरे ख़िलाफ़ मनसूबे बाँधने के लिए बैठ गए हैं, तेरा ख़ादिम तेरे अहकाम में महवे-ख़याल रहता है। \p \v 24 तेरे अहकाम से ही मैं लुत्फ़ उठाता हूँ, वही मेरे मुशीर हैं। \s1 4 \p \v 25 मेरी जान ख़ाक में दब गई है। अपने कलाम के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। \p \v 26 मैंने अपनी राहें बयान कीं तो तूने मेरी सुनी। मुझे अपने अहकाम सिखा। \p \v 27 मुझे अपने अहकाम की राह समझने के क़ाबिल बना ताकि तेरे अजायब में महवे-ख़याल रहूँ। \p \v 28 मेरी जान दुख के मारे निढाल हो गई है। मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ तक़वियत दे। \p \v 29 फ़रेब की राह मुझसे दूर रख और मुझे अपनी शरीअत से नवाज़। \p \v 30 मैंने वफ़ा की राह इख़्तियार करके तेरे आईन अपने सामने रखे हैं। \p \v 31 मैं तेरे अहकाम से लिपटा रहता हूँ। ऐ रब, मुझे शरमिंदा न होने दे। \p \v 32 मैं तेरे फ़रमानों की राह पर दौड़ता हूँ, क्योंकि तूने मेरे दिल को कुशादगी बख़्शी है। \s1 5 \p \v 33 ऐ रब, मुझे अपने आईन की राह सिखा तो मैं उम्र-भर उन पर अमल करूँगा। \p \v 34 मुझे समझ अता कर ताकि तेरी शरीअत के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारूँ और पूरे दिल से उसके ताबे रहूँ। \p \v 35 अपने अहकाम की राह पर मेरी राहनुमाई कर, क्योंकि यही मैं पसंद करता हूँ। \p \v 36 मेरे दिल को लालच में आने न दे बल्कि उसे अपने फ़रमानों की तरफ़ मायल कर। \p \v 37 मेरी आँखों को बातिल चीज़ों से फेर ले, और मुझे अपनी राहों पर सँभालकर मेरी जान को ताज़ादम कर। \p \v 38 जो वादा तूने अपने ख़ादिम से किया वह पूरा कर ताकि लोग तेरा ख़ौफ़ मानें। \p \v 39 जिस रुसवाई से मुझे ख़ौफ़ है उसका ख़तरा दूर कर, क्योंकि तेरे अहकाम अच्छे हैं। \p \v 40 मैं तेरी हिदायात का शदीद आरज़ूमंद हूँ, अपनी रास्ती से मेरी जान को ताज़ादम कर। \s1 6 \p \v 41 ऐ रब, तेरी शफ़क़त और वह नजात जिसका वादा तूने किया है मुझ तक पहुँचे \p \v 42 ताकि मैं बेइज़्ज़ती करनेवाले को जवाब दे सकूँ। क्योंकि मैं तेरे कलाम पर भरोसा रखता हूँ। \p \v 43 मेरे मुँह से सच्चाई का कलाम न छीन, क्योंकि मैं तेरे फ़रमानों के इंतज़ार में हूँ। \p \v 44 मैं हर वक़्त तेरी शरीअत की पैरवी करूँगा, अब से अबद तक उसमें क़ायम रहूँगा। \p \v 45 मैं खुले मैदान में चलता फिरूँगा, क्योंकि तेरे आईन का तालिब रहता हूँ। \p \v 46 मैं शर्म किए बग़ैर बादशाहों के सामने तेरे अहकाम बयान करूँगा। \p \v 47 मैं तेरे फ़रमानों से लुत्फ़अंदोज़ होता हूँ, वह मुझे प्यारे हैं। \p \v 48 मैं अपने हाथ तेरे फ़रमानों की तरफ़ उठाऊँगा, क्योंकि वह मुझे प्यारे हैं। मैं तेरी हिदायात में महवे-ख़याल रहूँगा। \s1 7 \p \v 49 उस बात का ख़याल रख जो तूने अपने ख़ादिम से की और जिससे तूने मुझे उम्मीद दिलाई है। \p \v 50 मुसीबत में यही तसल्ली का बाइस रहा है कि तेरा कलाम मेरी जान को ताज़ादम करता है। \p \v 51 मग़रूर मेरा हद से ज़्यादा मज़ाक़ उड़ाते हैं, लेकिन मैं तेरी शरीअत से दूर नहीं होता। \p \v 52 ऐ रब, मैं तेरे क़दीम फ़रमान याद करता हूँ तो मुझे तसल्ली मिलती है। \p \v 53 बेदीनों को देखकर मैं आग-बगूला हो जाता हूँ, क्योंकि उन्होंने तेरी शरीअत को तर्क किया है। \p \v 54 जिस घर में मैं परदेसी हूँ उसमें मैं तेरे अहकाम के गीत गाता रहता हूँ। \p \v 55 ऐ रब, रात को मैं तेरा नाम याद करता हूँ, तेरी शरीअत पर अमल करता रहता हूँ। \p \v 56 यह तेरी बख़्शिश है कि मैं तेरे आईन की पैरवी करता हूँ। \s1 8 \p \v 57 रब मेरी मीरास है। मैंने तेरे फ़रमानों पर अमल करने का वादा किया है। \p \v 58 मैं पूरे दिल से तेरी शफ़क़त का तालिब रहा हूँ। अपने वादे के मुताबिक़ मुझ पर मेहरबानी कर। \p \v 59 मैंने अपनी राहों पर ध्यान देकर तेरे अहकाम की तरफ़ क़दम बढ़ाए हैं। \p \v 60 मैं नहीं झिजकता बल्कि भागकर तेरे अहकाम पर अमल करने की कोशिश करता हूँ। \p \v 61 बेदीनों के रस्सों ने मुझे जकड़ लिया है, लेकिन मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता। \p \v 62 आधी रात को मैं जाग उठता हूँ ताकि तेरे रास्त फ़रमानों के लिए तेरा शुक्र करूँ। \p \v 63 मैं उन सबका साथी हूँ जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं, उन सबका दोस्त जो तेरी हिदायात पर अमल करते हैं। \p \v 64 ऐ रब, दुनिया तेरी शफ़क़त से मामूर है। मुझे अपने अहकाम सिखा! \s1 9 \p \v 65 ऐ रब, तूने अपने कलाम के मुताबिक़ अपने ख़ादिम से भलाई की है। \p \v 66 मुझे सहीह इम्तियाज़ और इरफ़ान सिखा, क्योंकि मैं तेरे अहकाम पर ईमान रखता हूँ। \p \v 67 इससे पहले कि मुझे पस्त किया गया मैं आवारा फिरता था, लेकिन अब मैं तेरे कलाम के ताबे रहता हूँ। \p \v 68 तू भला है और भलाई करता है। मुझे अपने आईन सिखा! \p \v 69 मग़रूरों ने झूट बोलकर मुझ पर कीचड़ उछाली है, लेकिन मैं पूरे दिल से तेरी हिदायात की फ़रमाँबरदारी करता हूँ। \p \v 70 उनके दिल अकड़कर बेहिस हो गए हैं, लेकिन मैं तेरी शरीअत से लुत्फ़अंदोज़ होता हूँ। \p \v 71 मेरे लिए अच्छा था कि मुझे पस्त किया गया, क्योंकि इस तरह मैंने तेरे अहकाम सीख लिए। \p \v 72 जो शरीअत तेरे मुँह से सादिर हुई है वह मुझे सोने-चाँदी के हज़ारों सिक्कों से ज़्यादा पसंद है। \s1 10 \p \v 73 तेरे हाथों ने मुझे बनाकर मज़बूत बुनियाद पर रख दिया है। मुझे समझ अता फ़रमा ताकि तेरे अहकाम सीख लूँ। \p \v 74 जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं वह मुझे देखकर ख़ुश हो जाएँ, क्योंकि मैं तेरे कलाम के इंतज़ार में रहता हूँ। \p \v 75 ऐ रब, मैंने जान लिया है कि तेरे फ़ैसले रास्त हैं। यह भी तेरी वफ़ादारी का इज़हार है कि तूने मुझे पस्त किया है। \p \v 76 तेरी शफ़क़त मुझे तसल्ली दे, जिस तरह तूने अपने ख़ादिम से वादा किया है। \p \v 77 मुझ पर अपने रहम का इज़हार कर ताकि मेरी जान में जान आए, क्योंकि मैं तेरी शरीअत से लुत्फ़अंदोज़ होता हूँ। \p \v 78 जो मग़रूर मुझे झूट से पस्त कर रहे हैं वह शरमिंदा हो जाएँ। लेकिन मैं तेरे फ़रमानों में महवे-ख़याल रहूँगा। \p \v 79 काश जो तेरा ख़ौफ़ मानते और तेरे अहकाम जानते हैं वह मेरे पास वापस आएँ! \p \v 80 मेरा दिल तेरे आईन की पैरवी करने में बेइलज़ाम रहे ताकि मेरी रुसवाई न हो जाए। \s1 11 \p \v 81 मेरी जान तेरी नजात की आरज़ू करते करते निढाल हो रही है, मैं तेरे कलाम के इंतज़ार में हूँ। \p \v 82 मेरी आँखें तेरे वादे की राह देखते देखते धुँधला रही हैं। तू मुझे कब तसल्ली देगा? \p \v 83 मैं धुएँ में सुकड़ी हुई मशक की मानिंद हूँ लेकिन तेरे फ़रमानों को नहीं भूलता। \p \v 84 तेरे ख़ादिम को मज़ीद कितनी देर इंतज़ार करना पड़ेगा? तू मेरा ताक़्क़ुब करनेवालों की अदालत कब करेगा? \p \v 85 जो मग़रूर तेरी शरीअत के ताबे नहीं होते उन्होंने मुझे फँसाने के लिए गढ़े खोद लिए हैं। \p \v 86 तेरे तमाम अहकाम पुरवफ़ा हैं। मेरी मदद कर, क्योंकि वह झूट का सहारा लेकर मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं। \p \v 87 वह मुझे रूए-ज़मीन पर से मिटाने के क़रीब ही हैं, लेकिन मैंने तेरे आईन को तर्क नहीं किया। \p \v 88 अपनी शफ़क़त का इज़हार करके मेरी जान को ताज़ादम कर ताकि तेरे मुँह के फ़रमानों पर अमल करूँ। \s1 12 \p \v 89 ऐ रब, तेरा कलाम अबद तक आसमान पर क़ायमो-दायम है। \p \v 90 तेरी वफ़ादारी पुश्त-दर-पुश्त रहती है। तूने ज़मीन की बुनियाद रखी, और वह वहीं की वहीं बरक़रार रहती है। \p \v 91 आज तक आसमानो-ज़मीन तेरे फ़रमानों को पूरा करने के लिए हाज़िर रहते हैं, क्योंकि तमाम चीज़ें तेरी ख़िदमत करने के लिए बनाई गई हैं। \p \v 92 अगर तेरी शरीअत मेरी ख़ुशी न होती तो मैं अपनी मुसीबत में हलाक हो गया होता। \p \v 93 मैं तेरी हिदायात कभी नहीं भूलूँगा, क्योंकि उन्हीं के ज़रीए तू मेरी जान को ताज़ादम करता है। \p \v 94 मैं तेरा ही हूँ, मुझे बचा! क्योंकि मैं तेरे अहकाम का तालिब रहा हूँ। \p \v 95 बेदीन मेरी ताक में बैठ गए हैं ताकि मुझे मार डालें, लेकिन मैं तेरे आईन पर ध्यान देता रहूँगा। \p \v 96 मैंने देखा है कि हर कामिल चीज़ की हद होती है, लेकिन तेरे फ़रमान की कोई हद नहीं होती। \s1 13 \p \v 97 तेरी शरीअत मुझे कितनी प्यारी है! दिन-भर मैं उसमें महवे-ख़याल रहता हूँ। \p \v 98 तेरा फ़रमान मुझे मेरे दुश्मनों से ज़्यादा दानिशमंद बना देता है, क्योंकि वह हमेशा तक मेरा ख़ज़ाना है। \p \v 99 मुझे अपने तमाम उस्तादों से ज़्यादा समझ हासिल है, क्योंकि मैं तेरे आईन में महवे-ख़याल रहता हूँ। \p \v 100 मुझे बुज़ुर्गों से ज़्यादा समझ हासिल है, क्योंकि मैं वफ़ादारी से तेरे अहकाम की पैरवी करता हूँ। \p \v 101 मैंने हर बुरी राह पर क़दम रखने से गुरेज़ किया है ताकि तेरे कलाम से लिपटा रहूँ। \p \v 102 मैं तेरे फ़रमानों से दूर नहीं हुआ, क्योंकि तू ही ने मुझे तालीम दी है। \p \v 103 तेरा कलाम कितना लज़ीज़ है, वह मेरे मुँह में शहद से ज़्यादा मीठा है। \p \v 104 तेरे अहकाम से मुझे समझ हासिल होती है, इसलिए मैं झूट की हर राह से नफ़रत करता हूँ। \s1 14 \p \v 105 तेरा कलाम मेरे पाँवों के लिए चराग़ है जो मेरी राह को रौशन करता है। \p \v 106 मैंने क़सम खाई है कि तेरे रास्त फ़रमानों की पैरवी करूँगा, और मैं यह वादा पूरा भी करूँगा। \p \v 107 मुझे बहुत पस्त किया गया है। ऐ रब, अपने कलाम के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। \p \v 108 ऐ रब, मेरे मुँह की रज़ाकाराना क़ुरबानियों को पसंद कर और मुझे अपने आईन सिखा! \p \v 109 मेरी जान हमेशा ख़तरे में है, लेकिन मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता। \p \v 110 बेदीनों ने मेरे लिए फंदा तैयार कर रखा है, लेकिन मैं तेरे फ़रमानों से नहीं भटका। \p \v 111 तेरे अहकाम मेरी अबदी मीरास बन गए हैं, क्योंकि उनसे मेरा दिल ख़ुशी से उछलता है। \p \v 112 मैंने अपना दिल तेरे अहकाम पर अमल करने की तरफ़ मायल किया है, क्योंकि इसका अज्र अबदी है। \s1 15 \p \v 113 मैं दोदिलों से नफ़रत लेकिन तेरी शरीअत से मुहब्बत करता हूँ। \p \v 114 तू मेरी पनाहगाह और मेरी ढाल है, मैं तेरे कलाम के इंतज़ार में रहता हूँ। \p \v 115 ऐ बदकारो, मुझसे दूर हो जाओ, क्योंकि मैं अपने ख़ुदा के अहकाम से लिपटा रहूँगा। \p \v 116 अपने फ़रमान के मुताबिक़ मुझे सँभाल ताकि ज़िंदा रहूँ। मेरी आस टूटने न दे ताकि शरमिंदा न हो जाऊँ। \p \v 117 मेरा सहारा बन ताकि बचकर हर वक़्त तेरे आईन का लिहाज़ रखूँ। \p \v 118 तू उन सबको रद्द करता है जो तेरे अहकाम से भटके फिरते हैं, क्योंकि उनकी धोकेबाज़ी फ़रेब ही है। \p \v 119 तू ज़मीन के तमाम बेदीनों को नापाक चाँदी से ख़ारिज की हुई मैल की तरह फेंककर नेस्त कर देता है, इसलिए तेरे फ़रमान मुझे प्यारे हैं। \p \v 120 मेरा जिस्म तुझसे दहशत खाकर थरथराता है, और मैं तेरे फ़ैसलों से डरता हूँ। \s1 16 \p \v 121 मैंने रास्त और बा-इनसाफ़ काम किया है, चुनाँचे मुझे उनके हवाले न कर जो मुझ पर ज़ुल्म करते हैं। \p \v 122 अपने ख़ादिम की ख़ुशहाली का ज़ामिन बनकर मग़रूरों को मुझ पर ज़ुल्म करने न दे। \p \v 123 मेरी आँखें तेरी नजात और तेरे रास्त वादे की राह देखते देखते रह गई हैं। \p \v 124 अपने ख़ादिम से तेरा सुलूक तेरी शफ़क़त के मुताबिक़ हो। मुझे अपने अहकाम सिखा। \p \v 125 मैं तेरा ही ख़ादिम हूँ। मुझे फ़हम अता फ़रमा ताकि तेरे आईन की पूरी समझ आए। \p \v 126 अब वक़्त आ गया है कि रब क़दम उठाए, क्योंकि लोगों ने तेरी शरीअत को तोड़ डाला है। \p \v 127 इसलिए मैं तेरे अहकाम को सोने बल्कि ख़ालिस सोने से ज़्यादा प्यार करता हूँ। \p \v 128 इसलिए मैं एहतियात से तेरे तमाम आईन के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारता हूँ। मैं हर फ़रेबदेह राह से नफ़रत करता हूँ। \s1 17 \p \v 129 तेरे अहकाम ताज्जुबअंगेज़ हैं, इसलिए मेरी जान उन पर अमल करती है। \p \v 130 तेरे कलाम का इनकिशाफ़ रौशनी बख़्शता और सादालौह को समझ अता करता है। \p \v 131 मैं तेरे फ़रमानों के लिए इतना प्यासा हूँ कि मुँह खोलकर हाँप रहा हूँ। \p \v 132 मेरी तरफ़ रुजू फ़रमा और मुझ पर वही मेहरबानी कर जो तू उन सब पर करता है जो तेरे नाम से प्यार करते हैं। \p \v 133 अपने कलाम से मेरे क़दम मज़बूत कर, किसी भी गुनाह को मुझ पर हुकूमत न करने दे। \p \v 134 फ़िद्या देकर मुझे इनसान के ज़ुल्म से छुटकारा दे ताकि मैं तेरे अहकाम के ताबे रहूँ। \p \v 135 अपने चेहरे का नूर अपने ख़ादिम पर चमका और मुझे अपने अहकाम सिखा। \p \v 136 मेरी आँखों से आँसुओं की नदियाँ बह रही हैं, क्योंकि लोग तेरी शरीअत के ताबे नहीं रहते। \s1 18 \p \v 137 ऐ रब, तू रास्त है, और तेरे फ़ैसले दुरुस्त हैं। \p \v 138 तूने रास्ती और बड़ी वफ़ादारी के साथ अपने फ़रमान जारी किए हैं। \p \v 139 मेरी जान ग़ैरत के बाइस तबाह हो गई है, क्योंकि मेरे दुश्मन तेरे फ़रमान भूल गए हैं। \p \v 140 तेरा कलाम आज़माकर पाक-साफ़ साबित हुआ है, तेरा ख़ादिम उसे प्यार करता है। \p \v 141 मुझे ज़लील और हक़ीर जाना जाता है, लेकिन मैं तेरे आईन नहीं भूलता। \p \v 142 तेरी रास्ती अबदी है, और तेरी शरीअत सच्चाई है। \p \v 143 मुसीबत और परेशानी मुझ पर ग़ालिब आ गई हैं, लेकिन मैं तेरे अहकाम से लुत्फ़अंदोज़ होता हूँ। \p \v 144 तेरे अहकाम अबद तक रास्त हैं। मुझे समझ अता फ़रमा ताकि मैं जीता रहूँ। \s1 19 \p \v 145 मैं पूरे दिल से पुकारता हूँ, “ऐ रब, मेरी सुन! मैं तेरे आईन के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारूँगा।” \p \v 146 मैं पुकारता हूँ, “मुझे बचा! मैं तेरे अहकाम की पैरवी करूँगा।” \p \v 147 पौ फटने से पहले पहले मैं उठकर मदद के लिए पुकारता हूँ। मैं तेरे कलाम के इंतज़ार में हूँ। \p \v 148 रात के वक़्त ही मेरी आँखें खुल जाती हैं ताकि तेरे कलाम पर ग़ौरो-ख़ौज़ करूँ। \p \v 149 अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मेरी आवाज़ सुन! ऐ रब, अपने फ़रमानों के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। \p \v 150 जो चालाकी से मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं वह क़रीब पहुँच गए हैं। लेकिन वह तेरी शरीअत से इंतहाई दूर हैं। \p \v 151 ऐ रब, तू क़रीब ही है, और तेरे अहकाम सच्चाई हैं। \p \v 152 बड़ी देर पहले मुझे तेरे फ़रमानों से मालूम हुआ है कि तूने उन्हें हमेशा के लिए क़ायम रखा है। \s1 20 \p \v 153 मेरी मुसीबत का ख़याल करके मुझे बचा! क्योंकि मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता। \p \v 154 अदालत में मेरे हक़ में लड़कर मेरा एवज़ाना दे ताकि मेरी जान छूट जाए। अपने वादे के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। \p \v 155 नजात बेदीनों से बहुत दूर है, क्योंकि वह तेरे अहकाम के तालिब नहीं होते। \p \v 156 ऐ रब, तू मुतअद्दिद तरीक़ों से अपने रहम का इज़हार करता है। अपने आईन के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। \p \v 157 मेरा ताक़्क़ुब करनेवालों और मेरे दुश्मनों की बड़ी तादाद है, लेकिन मैं तेरे अहकाम से दूर नहीं हुआ। \p \v 158 बेवफ़ाओं को देखकर मुझे घिन आती है, क्योंकि वह तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िंदगी नहीं गुज़ारते। \p \v 159 देख, मुझे तेरे अहकाम से प्यार है। ऐ रब, अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। \p \v 160 तेरे कलाम का लुब्बे-लुबाब सच्चाई है, तेरे तमाम रास्त फ़रमान अबद तक क़ायम हैं। \s1 21 \p \v 161 सरदार बिलावजह मेरा पीछा करते हैं, लेकिन मेरा दिल तेरे कलाम से ही डरता है। \p \v 162 मैं तेरे कलाम की ख़ुशी उस की तरह मनाता हूँ जिसे कसरत का माले-ग़नीमत मिल गया हो। \p \v 163 मैं झूट से नफ़रत करता बल्कि घिन खाता हूँ, लेकिन तेरी शरीअत मुझे प्यारी है। \p \v 164 मैं दिन में सात बार तेरी सताइश करता हूँ, क्योंकि तेरे अहकाम रास्त हैं। \p \v 165 जिन्हें शरीअत प्यारी है उन्हें बड़ा सुकून हासिल है, वह किसी भी चीज़ से ठोकर खाकर नहीं गिरेंगे। \p \v 166 ऐ रब, मैं तेरी नजात के इंतज़ार में रहते हुए तेरे अहकाम की पैरवी करता हूँ। \p \v 167 मेरी जान तेरे फ़रमानों से लिपटी रहती है, वह उसे निहायत प्यारे हैं। \p \v 168 मैं तेरे आईन और हिदायात की पैरवी करता हूँ, क्योंकि मेरी तमाम राहें तेरे सामने हैं। \s1 22 \p \v 169 ऐ रब, मेरी आहें तेरे सामने आएँ, मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ समझ अता फ़रमा। \p \v 170 मेरी इल्तिजाएँ तेरे सामने आएँ, मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ छुड़ा! \p \v 171 मेरे होंटों से हम्दो-सना फूट निकले, क्योंकि तू मुझे अपने अहकाम सिखाता है। \p \v 172 मेरी ज़बान तेरे कलाम की मद्हसराई करे, क्योंकि तेरे तमाम फ़रमान रास्त हैं। \p \v 173 तेरा हाथ मेरी मदद करने के लिए तैयार रहे, क्योंकि मैंने तेरे अहकाम इख़्तियार किए हैं। \p \v 174 ऐ रब, मैं तेरी नजात का आरज़ूमंद हूँ, तेरी शरीअत से लुत्फ़अंदोज़ होता हूँ। \p \v 175 मेरी जान ज़िंदा रहे ताकि तेरी सताइश कर सके। तेरे आईन मेरी मदद करें। \p \v 176 मैं भटकी हुई भेड़ की तरह आवारा फिर रहा हूँ। अपने ख़ादिम को तलाश कर, क्योंकि मैं तेरे अहकाम नहीं भूलता। \c 120 \s1 तोहमत लगानेवालों से रिहाई के लिए दुआ \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p मुसीबत में मैंने रब को पुकारा, और उसने मेरी सुनी। \p \v 2 ऐ रब, मेरी जान को झूटे होंटों और फ़रेबदेह ज़बान से बचा। \p \v 3 ऐ फ़रेबदेह ज़बान, वह तेरे साथ किया करे, मज़ीद तुझे क्या दे? \p \v 4 वह तुझ पर जंगजू के तेज़ तीर और दहकते कोयले बरसाए! \b \p \v 5 मुझ पर अफ़सोस! मुझे अजनबी मुल्क मसक में, क़ीदार के ख़ैमों के पास रहना पड़ता है। \p \v 6 इतनी देर से अमन के दुश्मनों के पास रहने से मेरी जान तंग आ गई है। \p \v 7 मैं तो अमन चाहता हूँ, लेकिन जब कभी बोलूँ तो वह जंग करने पर तुले होते हैं। \c 121 \s1 इनसान का वफ़ादार मुहाफ़िज़ \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p मैं अपनी आँखों को पहाड़ों की तरफ़ उठाता हूँ। मेरी मदद कहाँ से आती है? \p \v 2 मेरी मदद रब से आती है, जो आसमानो-ज़मीन का ख़ालिक़ है। \b \p \v 3 वह तेरा पाँव फिसलने नहीं देगा। तेरा मुहाफ़िज़ ऊँघने का नहीं। \p \v 4 यक़ीनन इसराईल का मुहाफ़िज़ न ऊँघता है, न सोता है। \p \v 5 रब तेरा मुहाफ़िज़ है, रब तेरे दहने हाथ पर सायबान है। \p \v 6 न दिन को सूरज, न रात को चाँद तुझे ज़रर पहुँचाएगा। \p \v 7 रब तुझे हर नुक़सान से बचाएगा, वह तेरी जान को महफ़ूज़ रखेगा। \p \v 8 रब अब से अबद तक तेरे आने जाने की पहरादारी करेगा। \c 122 \s1 यरूशलम पर बरकत \p \v 1 दाऊद का ज़ियारत का गीत। \p मैं उनसे ख़ुश हुआ जिन्होंने मुझसे कहा, “आओ, हम रब के घर चलें।” \p \v 2 ऐ यरूशलम, अब हमारे पाँव तेरे दरवाज़ों में खड़े हैं। \p \v 3 यरूशलम शहर यों बनाया गया है कि उसके तमाम हिस्से मज़बूती से एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। \p \v 4 वहाँ क़बीले, हाँ रब के क़बीले हाज़िर होते हैं ताकि रब के नाम की सताइश करें जिस तरह इसराईल को फ़रमाया गया है। \p \v 5 क्योंकि वहाँ तख़्ते-अदालत करने के लिए लगाए गए हैं, वहाँ दाऊद के घराने के तख़्त हैं। \p \v 6 यरूशलम के लिए सलामती माँगो! “जो तुझसे प्यार करते हैं वह सुकून पाएँ। \p \v 7 तेरी फ़सील में सलामती और तेरे महलों में सुकून हो।” \p \v 8 अपने भाइयों और हमसायों की ख़ातिर मैं कहूँगा, “तेरे अंदर सलामती हो!” \p \v 9 रब हमारे ख़ुदा के घर की ख़ातिर मैं तेरी ख़ुशहाली का तालिब रहूँगा। \c 123 \s1 अल्लाह हम पर मेहरबानी करे \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p मैं अपनी आँखों को तेरी तरफ़ उठाता हूँ, तेरी तरफ़ जो आसमान पर तख़्तनशीन है। \p \v 2 जिस तरह ग़ुलाम की आँखें अपने मालिक के हाथ की तरफ़ और लौंडी की आँखें अपनी मालिकन के हाथ की तरफ़ लगी रहती हैं उसी तरह हमारी आँखें रब अपने ख़ुदा पर लगी रहती हैं, जब तक वह हम पर मेहरबानी न करे। \p \v 3 ऐ रब, हम पर मेहरबानी कर, हम पर मेहरबानी कर! क्योंकि हम हद से ज़्यादा हिक़ारत का निशाना बन गए हैं। \p \v 4 सुकून से ज़िंदगी गुज़ारनेवालों की लान-तान और मग़रूरों की तहक़ीर से हमारी जान दूभर हो गई है। \c 124 \s1 मुसीबत में अल्लाह हमारा सहारा है \p \v 1 दाऊद का ज़ियारत का गीत। \p इसराईल कहे, “अगर रब हमारे साथ न होता, \p \v 2 अगर रब हमारे साथ न होता जब लोग हमारे ख़िलाफ़ उठे \p \v 3 और आग-बगूला होकर अपना पूरा ग़ुस्सा हम पर उतारा, तो वह हमें ज़िंदा हड़प कर लेते। \p \v 4 फिर सैलाब हम पर टूट पड़ता, नदी का तेज़ धारा हम पर ग़ालिब आ जाता \p \v 5 और मुतलातिम पानी हम पर से गुज़र जाता।” \p \v 6 रब की हम्द हो जिसने हमें उनके दाँतों के हवाले न किया, वरना वह हमें फाड़ खाते। \p \v 7 हमारी जान उस चिड़िया की तरह छूट गई है जो चिड़ीमार के फंदे से निकलकर उड़ गई है। फंदा टूट गया है, और हम बच निकले हैं। \p \v 8 रब का नाम, हाँ उसी का नाम हमारा सहारा है जो आसमानो-ज़मीन का ख़ालिक़ है। \c 125 \s1 चारों तरफ़ से क़ौम की हिफ़ाज़त \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p जो रब पर भरोसा रखते हैं वह कोहे-सिय्यून की मानिंद हैं जो कभी नहीं डगमगाता बल्कि अबद तक क़ायम रहता है। \p \v 2 जिस तरह यरूशलम पहाड़ों से घिरा रहता है उसी तरह रब अपनी क़ौम को अब से अबद तक चारों तरफ़ से महफ़ूज़ रखता है। \p \v 3 क्योंकि बेदीनों की रास्तबाज़ों की मीरास पर हुकूमत नहीं रहेगी, ऐसा न हो कि रास्तबाज़ बदकारी करने की आज़माइश में पड़ जाएँ। \p \v 4 ऐ रब, उनसे भलाई कर जो नेक हैं, जो दिल से सीधी राह पर चलते हैं। \p \v 5 लेकिन जो भटककर अपनी टेढ़ी-मेढ़ी राहों पर चलते हैं उन्हें रब बदकारों के साथ ख़ारिज कर दे। इसराईल की सलामती हो! \c 126 \s1 रब अपने क़ैदियों को रिहाई देता है \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p जब रब ने सिय्यून को बहाल किया तो ऐसा लग रहा था कि हम ख़ाब देख रहे हैं। \p \v 2 तब हमारा मुँह हँसी-ख़ुशी से भर गया, और हमारी ज़बान शादमानी के नारे लगाने से रुक न सकी। तब दीगर क़ौमों में कहा गया, “रब ने उनके लिए ज़बरदस्त काम किया है।” \p \v 3 रब ने वाक़ई हमारे लिए ज़बरदस्त काम किया है। हम कितने ख़ुश थे, कितने ख़ुश! \b \p \v 4 ऐ रब, हमें बहाल कर। जिस तरह मौसमे-बरसात में दश्ते-नजब के ख़ुश्क नाले पानी से भर जाते हैं उसी तरह हमें बहाल कर। \p \v 5 जो आँसू बहा बहाकर बीज बोएँ वह ख़ुशी के नारे लगाकर फ़सल काटेंगे। \p \v 6 वह रोते हुए बीज बोने के लिए निकलेंगे, लेकिन जब फ़सल पक जाए तो ख़ुशी के नारे लगाकर पूले उठाए अपने घर लौटेंगे। \c 127 \s1 अल्लाह ही हमारा घर तामीर करता है \p \v 1 सुलेमान का ज़ियारत का गीत। \p अगर रब घर को तामीर न करे तो उस पर काम करनेवालों की मेहनत अबस है। अगर रब शहर की पहरादारी न करे तो इनसानी पहरेदारों की निगहबानी अबस है। \p \v 2 यह भी अबस है कि तुम सुबह-सवेरे उठो और पूरे दिन मेहनत-मशक़्क़त के साथ रोज़ी कमाकर रात गए सो जाओ। क्योंकि जो अल्लाह को प्यारे हैं उन्हें वह उनकी ज़रूरियात उनके सोते में पूरी कर देता है। \b \p \v 3 बच्चे ऐसी नेमत हैं जो हम मीरास में रब से पाते हैं, औलाद एक अज्र है जो वही हमें देता है। \p \v 4 जवानी में पैदा हुए बेटे सूरमे के हाथ में तीरों की मानिंद हैं। \p \v 5 मुबारक है वह आदमी जिसका तरकश उनसे भरा है। जब वह शहर के दरवाज़े पर अपने दुश्मनों से झगड़ेगा तो शरमिंदा नहीं होगा। \c 128 \s1 जिस ख़ानदान को अल्लाह बरकत देता है \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p मुबारक है वह जो रब का ख़ौफ़ मानकर उस की राहों पर चलता है। \p \v 2 यक़ीनन तू अपनी मेहनत का फल खाएगा। मुबारक हो, क्योंकि तू कामयाब होगा। \p \v 3 घर में तेरी बीवी अंगूर की फलदार बेल की मानिंद होगी, और तेरे बेटे मेज़ के इर्दगिर्द बैठकर ज़ैतून की ताज़ा शाख़ों \f + \fr 128:3 \ft इससे मुराद है पैवंदकारी के लिए दरख़्त से काटी गई टहनियाँ। \f* की मानिंद होंगे। \p \v 4 जो आदमी रब का ख़ौफ़ माने उसे ऐसी ही बरकत मिलेगी। \p \v 5 रब तुझे कोहे-सिय्यून से बरकत दे। वह करे कि तू जीते-जी यरूशलम की ख़ुशहाली देखे, \p \v 6 कि तू अपने पोतों-नवासों को भी देखे। इसराईल की सलामती हो! \c 129 \s1 मदद के लिए इसराईल की दुआ \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p इसराईल कहे, “मेरी जवानी से ही मेरे दुश्मन बार बार मुझ पर हमलाआवर हुए हैं। \p \v 2 मेरी जवानी से ही वह बार बार मुझ पर हमलाआवर हुए हैं। तो भी वह मुझ पर ग़ालिब न आए।” \p \v 3 हल चलानेवालों ने मेरी पीठ पर हल चलाकर उस पर अपनी लंबी लंबी रेघारयाँ बनाई हैं। \p \v 4 रब रास्त है। उसने बेदीनों के रस्से काटकर मुझे आज़ाद कर दिया है। \b \p \v 5 अल्लाह करे कि जितने भी सिय्यून से नफ़रत रखें वह शरमिंदा होकर पीछे हट जाएँ। \p \v 6 वह छतों पर की घास की मानिंद हों जो सहीह तौर पर बढ़ने से पहले ही मुरझा जाती है \p \v 7 और जिससे न फ़सल काटनेवाला अपना हाथ, न पूले बाँधनेवाला अपना बाज़ू भर सके। \p \v 8 जो भी उनसे गुज़रे वह न कहे, “रब तुम्हें बरकत दे।” \p हम रब का नाम लेकर तुम्हें बरकत देते हैं! \c 130 \s1 बड़ी मुसीबत से रिहाई की दुआ (तौबा का छटा ज़बूर) \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p ऐ रब, मैं तुझे गहराइयों से पुकारता हूँ। \p \v 2 ऐ रब, मेरी आवाज़ सुन! कान लगाकर मेरी इल्तिजाओं पर ध्यान दे! \p \v 3 ऐ रब, अगर तू हमारे गुनाहों का हिसाब करे तो कौन क़ायम रहेगा? कोई भी नहीं! \p \v 4 लेकिन तुझसे मुआफ़ी हासिल होती है ताकि तेरा ख़ौफ़ माना जाए। \b \p \v 5 मैं रब के इंतज़ार में हूँ, मेरी जान शिद्दत से इंतज़ार करती है। मैं उसके कलाम से उम्मीद रखता हूँ। \p \v 6 पहरेदार जिस शिद्दत से पौ फटने के इंतज़ार में रहते हैं, मेरी जान उससे भी ज़्यादा शिद्दत के साथ, हाँ ज़्यादा शिद्दत के साथ रब की मुंतज़िर रहती है। \b \p \v 7 ऐ इसराईल, रब की राह देखता रह! क्योंकि रब के पास शफ़क़त और फ़िद्या का ठोस बंदोबस्त है। \p \v 8 वह इसराईल के तमाम गुनाहों का फ़िद्या देकर उसे नजात देगा। \c 131 \s1 बच्चे का-सा ईमान \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p ऐ रब, न मेरा दिल घमंडी है, न मेरी आँखें मग़रूर हैं। जो बातें इतनी अज़ीम और हैरानकुन हैं कि मैं उनसे निपट नहीं सकता उन्हें मैं नहीं छेड़ता। \p \v 2 यक़ीनन मैंने अपनी जान को राहत और सुकून दिलाया है, और अब वह माँ की गोद में बैठे छोटे बच्चे की मानिंद है, हाँ मेरी जान छोटे बच्चे \f + \fr 131:2 \ft जिस बच्चे ने माँ का दूध पीना छोड़ दिया है। \f* की मानिंद है। \p \v 3 ऐ इसराईल, अब से अबद तक रब के इंतज़ार में रह! \c 132 \s1 दाऊद का घराना और सिय्यून पर मक़दिस \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p ऐ रब, दाऊद का ख़याल रख, उस की तमाम मुसीबतों को याद कर। \p \v 2 उसने क़सम खाकर रब से वादा किया और याक़ूब के क़वी ख़ुदा के हुज़ूर मन्नत मानी, \p \v 3 “न मैं अपने घर में दाख़िल हूँगा, न बिस्तर पर लेटूँगा, \p \v 4 न मैं अपनी आँखों को सोने दूँगा, न अपने पपोटों को ऊँघने दूँगा \p \v 5 जब तक रब के लिए मक़ाम और याक़ूब के सूरमे के लिए सुकूनतगाह न मिले।” \b \p \v 6 हमने इफ़राता में अहद के संदूक़ की ख़बर सुनी और यार के खुले मैदान में उसे पा लिया। \p \v 7 आओ, हम उस की सुकूनतगाह में दाख़िल होकर उसके पाँवों की चौकी के सामने सिजदा करें। \b \p \v 8 ऐ रब, उठकर अपनी आरामगाह के पास आ, तू और अहद का संदूक़ जो तेरी क़ुदरत का इज़हार है। \p \v 9 तेरे इमाम रास्ती से मुलब्बस हो जाएँ, और तेरे ईमानदार ख़ुशी के नारे लगाएँ। \b \p \v 10 ऐ अल्लाह, अपने ख़ादिम दाऊद की ख़ातिर अपने मसह किए हुए बंदे के चेहरे को रद्द न कर। \p \v 11 रब ने क़सम खाकर दाऊद से वादा किया है, और वह उससे कभी नहीं फिरेगा, “मैं तेरी औलाद में से एक को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा। \p \v 12 अगर तेरे बेटे मेरे अहद के वफ़ादार रहें और उन अहकाम की पैरवी करें जो मैं उन्हें सिखाऊँगा तो उनके बेटे भी हमेशा तक तेरे तख़्त पर बैठेंगे।” \b \p \v 13 क्योंकि रब ने कोहे-सिय्यून को चुन लिया है, और वही वहाँ सुकूनत करने का आरज़ूमंद था। \p \v 14 उसने फ़रमाया, “यह हमेशा तक मेरी आरामगाह है, और यहाँ मैं सुकूनत करूँगा, क्योंकि मैं इसका आरज़ूमंद हूँ। \p \v 15 मैं सिय्यून की ख़ुराक को कसरत की बरकत देकर उसके ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा। \p \v 16 मैं उसके इमामों को नजात से मुलब्बस करूँगा, और उसके ईमानदार ख़ुशी से ज़ोरदार नारे लगाएँगे। \p \v 17 यहाँ मैं दाऊद की ताक़त बढ़ा दूँगा, \f + \fr 132:17 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : मैं दाऊद का सींग फूटने दूँगा। \f* और यहाँ मैंने अपने मसह किए हुए ख़ादिम के लिए चराग़ तैयार कर रखा है। \p \v 18 मैं उसके दुश्मनों को शरमिंदगी से मुलब्बस करूँगा जबकि उसके सर का ताज चमकता रहेगा।” \c 133 \s1 भाइयों की यगांगत की बरकत \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। ज़ियारत का गीत। \p जब भाई मिलकर और यगांगत से रहते हैं यह कितना अच्छा और प्यारा है। \p \v 2 यह उस नफ़ीस तेल की मानिंद है जो हारून इमाम के सर पर उंडेला जाता है और टपक टपककर उस की दाढ़ी और लिबास के गरेबान पर आ जाता है। \p \v 3 यह उस ओस की मानिंद है जो कोहे-हरमून से सिय्यून के पहाड़ों पर पड़ती है। क्योंकि रब ने फ़रमाया है, “वहीं हमेशा तक बरकत और ज़िंदगी मिलेगी।” \c 134 \s1 रब के घर में रात की सताइश \p \v 1 ज़ियारत का गीत। \p आओ, रब की सताइश करो, ऐ रब के तमाम ख़ादिमो जो रात के वक़्त रब के घर में खड़े हो। \p \v 2 मक़दिस में अपने हाथ उठाकर रब की तमजीद करो! \p \v 3 रब सिय्यून से तुझे बरकत दे, आसमानो-ज़मीन का ख़ालिक़ तुझे बरकत दे। \c 135 \s1 अल्लाह की परस्तिश \p \v 1 रब की हम्द हो! रब के नाम की सताइश करो! उस की तमजीद करो, ऐ रब के तमाम ख़ादिमो, \p \v 2 जो रब के घर में, हमारे ख़ुदा की बारगाहों में खड़े हो। \p \v 3 रब की हम्द करो, क्योंकि रब भला है। उसके नाम की मद्हसराई करो, क्योंकि वह प्यारा है। \p \v 4 क्योंकि रब ने याक़ूब को अपने लिए चुन लिया, इसराईल को अपनी मिलकियत बना लिया है। \b \p \v 5 हाँ, मैंने जान लिया है कि रब अज़ीम है, कि हमारा रब दीगर तमाम माबूदों से ज़्यादा अज़ीम है। \p \v 6 रब जो जी चाहे करता है, ख़ाह आसमान पर हो या ज़मीन पर, ख़ाह समुंदरों में हो या गहराइयों में कहीं भी हो। \p \v 7 वह ज़मीन की इंतहा से बादल चढ़ने देता और बिजली बारिश के लिए पैदा करता है, वह हवा अपने गोदामों से निकाल लाता है। \p \v 8 मिसर में उसने इनसानो-हैवान के तमाम पहलौठों को मार डाला। \p \v 9 ऐ मिसर, उसने अपने इलाही निशान और मोजिज़ात तेरे दरमियान ही किए। तब फ़िरौन और उसके तमाम मुलाज़िम उनका निशाना बन गए। \b \p \v 10 उसने मुतअद्दिद क़ौमों को शिकस्त देकर ताक़तवर बादशाहों को मौत के घाट उतार दिया। \p \v 11 अमोरियों का बादशाह सीहोन, बसन का बादशाह ओज और मुल्के-कनान की तमाम सलतनतें न रहीं। \p \v 12 उसने उनका मुल्क इसराईल को देकर फ़रमाया कि आइंदा यह मेरी क़ौम की मौरूसी मिलकियत होगा। \b \p \v 13 ऐ रब, तेरा नाम अबदी है। ऐ रब, तुझे पुश्त-दर-पुश्त याद किया जाएगा। \p \v 14 क्योंकि रब अपनी क़ौम का इनसाफ़ करके अपने ख़ादिमों पर तरस खाएगा। \b \p \v 15 दीगर क़ौमों के बुत सोने-चाँदी के हैं, इनसान के हाथ ने उन्हें बनाया। \p \v 16 उनके मुँह हैं लेकिन वह बोल नहीं सकते, उनकी आँखें हैं लेकिन वह देख नहीं सकते। \p \v 17 उनके कान हैं लेकिन वह सुन नहीं सकते, उनके मुँह में साँस ही नहीं होती। \p \v 18 जो बुत बनाते हैं वह उनकी मानिंद हो जाएँ, जो उन पर भरोसा रखते हैं वह उन जैसे बेहिसो-हरकत हो जाएँ। \b \p \v 19 ऐ इसराईल के घराने, रब की सताइश कर। ऐ हारून के घराने, रब की तमजीद कर। \p \v 20 ऐ लावी के घराने, रब की हम्दो-सना कर। ऐ रब का ख़ौफ़ माननेवालो, रब की सताइश करो। \p \v 21 सिय्यून से रब की हम्द हो। उस की हम्द हो जो यरूशलम में सुकूनत करता है। रब की हम्द हो! \c 136 \s1 तख़लीक़ और क़ौम की तारीख़ में अल्लाह के मोजिज़े \p \v 1 रब का शुक्र करो, क्योंकि वह भला है, और उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 2 ख़ुदाओं के ख़ुदा का शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 3 मालिकों के मालिक का शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 4 जो अकेला ही अज़ीम मोजिज़े करता है उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 5 जिसने हिकमत के साथ आसमान बनाया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 6 जिसने ज़मीन को मज़बूती से पानी के ऊपर लगा दिया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 7 जिसने आसमान की रौशनियों को ख़लक़ किया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 8 जिसने सूरज को दिन के वक़्त हुकूमत करने के लिए बनाया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 9 जिसने चाँद और सितारों को रात के वक़्त हुकूमत करने के लिए बनाया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 10 जिसने मिसर में पहलौठों को मार डाला उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 11 जो इसराईल को मिसरियों में से निकाल लाया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 12 जिसने उस वक़्त बड़ी ताक़त और क़ुदरत का इज़हार किया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 13 जिसने बहरे-क़ुलज़ुम को दो हिस्सों में तक़सीम कर दिया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 14 जिसने इसराईल को उसके बीच में से गुज़रने दिया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 15 जिसने फ़िरौन और उस की फ़ौज को बहरे-क़ुलज़ुम में बहाकर ग़रक़ कर दिया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 16 जिसने रेगिस्तान में अपनी क़ौम की क़ियादत की उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 17 जिसने बड़े बादशाहों को शिकस्त दी उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 18 जिसने ताक़तवर बादशाहों को मार डाला उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 19 जिसने अमोरियों के बादशाह सीहोन को मौत के घाट उतारा उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 20 जिसने बसन के बादशाह ओज को हलाक कर दिया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 21 जिसने उनका मुल्क इसराईल को मीरास में दिया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 22 जिसने उनका मुल्क अपने ख़ादिम इसराईल की मौरूसी मिलकियत बनाया उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 23 जिसने हमारा ख़याल किया जब हम ख़ाक में दब गए थे उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 24 जिसने हमें उनके क़ब्ज़े से छुड़ाया जो हम पर ज़ुल्म कर रहे थे उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 25 जो तमाम जानदारों को ख़ुराक मुहैया करता है उसका शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \p \v 26 आसमान के ख़ुदा का शुक्र करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है। \c 137 \s1 बाबल में जिलावतनों की आहो-ज़ारी \p \v 1 जब सिय्यून की याद आई तो हम बाबल की नहरों के किनारे ही बैठकर रो पड़े। \p \v 2 हमने वहाँ के सफ़ेदा के दरख़्तों से अपने सरोद लटका दिए, \p \v 3 क्योंकि जिन्होंने हमें गिरिफ़्तार किया था उन्होंने हमें वहाँ गीत गाने को कहा, और जो हमारा मज़ाक़ उड़ाते हैं उन्होंने ख़ुशी का मुतालबा किया, “हमें सिय्यून का कोई गीत सुनाओ!” \p \v 4 लेकिन हम अजनबी मुल्क में किस तरह रब का गीत गाएँ? \p \v 5 ऐ यरूशलम, अगर मैं तुझे भूल जाऊँ तो मेरा दहना हाथ सूख जाए। \p \v 6 अगर मैं तुझे याद न करूँ और यरूशलम को अपनी अज़ीमतरीन ख़ुशी से ज़्यादा क़ीमती न समझूँ तो मेरी ज़बान तालू से चिपक जाए। \b \p \v 7 ऐ रब, वह कुछ याद कर जो अदोमियों ने उस दिन किया जब यरूशलम दुश्मन के क़ब्ज़े में आया। उस वक़्त वह बोले, “उसे ढा दो! बुनियादों तक उसे गिरा दो!” \p \v 8 ऐ बाबल बेटी जो तबाह करने पर तुली हुई है, मुबारक है वह जो तुझे उसका बदला दे जो तूने हमारे साथ किया है। \p \v 9 मुबारक है वह जो तेरे बच्चों को पकड़कर पत्थर पर पटख़ दे। \c 138 \s1 अल्लाह की मदद के लिए शुक्रगुज़ारी \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ऐ रब, मैं पूरे दिल से तेरी सताइश करूँगा, माबूदों के सामने ही तेरी तमजीद करूँगा। \p \v 2 मैं तेरी मुक़द्दस सुकूनतगाह की तरफ़ रुख़ करके सिजदा करूँगा, तेरी मेहरबानी और वफ़ादारी के बाइस तेरा शुक्र करूँगा। क्योंकि तूने अपने नाम और कलाम को तमाम चीज़ों पर सरफ़राज़ किया है। \p \v 3 जिस दिन मैंने तुझे पुकारा तूने मेरी सुनकर मेरी जान को बड़ी तक़वियत दी। \b \p \v 4 ऐ रब, दुनिया के तमाम हुक्मरान तेरे मुँह के फ़रमान सुनकर तेरा शुक्र करें। \p \v 5 वह रब की राहों की मद्हसराई करें, क्योंकि रब का जलाल अज़ीम है। \p \v 6 क्योंकि गो रब बुलंदियों पर है वह पस्तहाल का ख़याल करता और मग़रूरों को दूर से ही पहचान लेता है। \b \p \v 7 जब कभी मुसीबत मेरा दामन नहीं छोड़ती तो तू मेरी जान को ताज़ादम करता है, तू अपना दहना हाथ बढ़ाकर मुझे मेरे दुश्मनों के तैश से बचाता है। \p \v 8 रब मेरी ख़ातिर बदला लेगा। ऐ रब, तेरी शफ़क़त अबदी है। उन्हें न छोड़ जिनको तेरे हाथों ने बनाया है! \c 139 \s1 अल्लाह सब कुछ जानता और हर जगह मौजूद है \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ रब, तू मेरा मुआयना करता और मुझे ख़ूब जानता है। \p \v 2 मेरा उठना बैठना तुझे मालूम है, और तू दूर से ही मेरी सोच समझता है। \p \v 3 तू मुझे जाँचता है, ख़ाह मैं रास्ते में हूँ या आराम करूँ। तू मेरी तमाम राहों से वाक़िफ़ है। \p \v 4 क्योंकि जब भी कोई बात मेरी ज़बान पर आए तू ऐ रब पहले ही उसका पूरा इल्म रखता है। \p \v 5 तू मुझे चारों तरफ़ से घेरे रखता है, तेरा हाथ मेरे ऊपर ही रहता है। \p \v 6 इसका इल्म इतना हैरानकुन और अज़ीम है कि मैं इसे समझ नहीं सकता। \b \p \v 7 मैं तेरे रूह से कहाँ भाग जाऊँ, तेरे चेहरे से कहाँ फ़रार हो जाऊँ? \p \v 8 अगर आसमान पर चढ़ जाऊँ तो तू वहाँ मौजूद है, अगर उतरकर अपना बिस्तर पाताल में बिछाऊँ तो तू वहाँ भी है। \p \v 9 गो मैं तुलूए-सुबह के परों पर उड़कर समुंदर की दूरतरीन हद पर जा बसूँ, \p \v 10 वहाँ भी तेरा हाथ मेरी क़ियादत करेगा, वहाँ भी तेरा दहना हाथ मुझे थामे रखेगा। \p \v 11 अगर मैं कहूँ, “तारीकी मुझे छुपा दे, और मेरे इर्दगिर्द की रौशनी रात में बदल जाए,” तो भी कोई फ़रक़ नहीं पड़ेगा। \p \v 12 तेरे सामने तारीकी भी तारीक नहीं होती, तेरे हुज़ूर रात दिन की तरह रौशन होती है बल्कि रौशनी और अंधेरा एक जैसे होते हैं। \b \p \v 13 क्योंकि तूने मेरा बातिन बनाया है, तूने मुझे माँ के पेट में तश्कील दिया है। \p \v 14 मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि मुझे जलाली और मोजिज़ाना तौर से बनाया गया है। तेरे काम हैरतअंगेज़ हैं, और मेरी जान यह ख़ूब जानती है। \p \v 15 मेरा ढाँचा तुझसे छुपा नहीं था जब मुझे पोशीदगी में बनाया गया, जब मुझे ज़मीन की गहराइयों में तश्कील दिया गया। \p \v 16 तेरी आँखों ने मुझे उस वक़्त देखा जब मेरे जिस्म की शक्ल अभी नामुकम्मल थी। जितने भी दिन मेरे लिए मुक़र्रर थे वह सब तेरी किताब में उस वक़्त दर्ज थे, जब एक भी नहीं गुज़रा था। \b \p \v 17 ऐ अल्लाह, तेरे ख़यालात समझना मेरे लिए कितना मुश्किल है! उनकी कुल तादाद कितनी अज़ीम है। \p \v 18 अगर मैं उन्हें गिन सकता तो वह रेत से ज़्यादा होते। मैं जाग उठता हूँ तो तेरे ही साथ होता हूँ। \b \p \v 19 ऐ अल्लाह, काश तू बेदीन को मार डाले, कि ख़ूनख़ार मुझसे दूर हो जाएँ। \p \v 20 वह फ़रेब से तेरा ज़िक्र करते हैं, हाँ तेरे मुख़ालिफ़ झूट बोलते हैं। \p \v 21 ऐ रब, क्या मैं उनसे नफ़रत न करूँ जो तुझसे नफ़रत करते हैं? क्या मैं उनसे घिन न खाऊँ जो तेरे ख़िलाफ़ उठे हैं? \p \v 22 यक़ीनन मैं उनसे सख़्त नफ़रत करता हूँ। वह मेरे दुश्मन बन गए हैं। \b \p \v 23 ऐ अल्लाह, मेरा मुआयना करके मेरे दिल का हाल जान ले, मुझे जाँचकर मेरे बेचैन ख़यालात को जान ले। \p \v 24 मैं नुक़सानदेह राह पर तो नहीं चल रहा? अबदी राह पर मेरी क़ियादत कर! \c 140 \s1 दुश्मन से रिहाई की दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। \p ऐ रब, मुझे शरीरों से छुड़ा और ज़ालिमों से महफ़ूज़ रख। \p \v 2 दिल में वह बुरे मनसूबे बाँधते, रोज़ाना जंग छेड़ते हैं। \p \v 3 उनकी ज़बान साँप की ज़बान जैसी तेज़ है, और उनके होंटों में साँप का ज़हर है। (सिलाह) \p \v 4 ऐ रब, मुझे बेदीन के हाथों से महफ़ूज़ रख, ज़ालिम से मुझे बचाए रख, उनसे जो मेरे पाँवों को ठोकर खिलाने के मनसूबे बाँध रहे हैं। \p \v 5 मग़रूरों ने मेरे रास्ते में फंदा और रस्से छुपाए हैं, उन्होंने जाल बिछाकर रास्ते के किनारे किनारे मुझे पकड़ने के फंदे लगाए हैं। (सिलाह) \b \p \v 6 मैं रब से कहता हूँ, “तू ही मेरा ख़ुदा है, मेरी इल्तिजाओं की आवाज़ सुन!” \p \v 7 ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, ऐ मेरी क़वी नजात! जंग के दिन तू अपनी ढाल से मेरे सर की हिफ़ाज़त करता है। \p \v 8 ऐ रब, बेदीन का लालच पूरा न कर। उसका इरादा कामयाब होने न दे, ऐसा न हो कि यह लोग सरफ़राज़ हो जाएँ। (सिलाह) \p \v 9 उन्होंने मुझे घेर लिया है, लेकिन जो आफ़त उनके होंट मुझ पर लाना चाहते हैं वह उनके अपने सरों पर आए! \p \v 10 दहकते कोयले उन पर बरसें, और उन्हें आग में, अथाह गढ़ों में फेंका जाए ताकि आइंदा कभी न उठें। \p \v 11 तोहमत लगानेवाला मुल्क में क़ायम न रहे, और बुराई ज़ालिम को मार मारकर उसका पीछा करे। \b \p \v 12 मैं जानता हूँ कि रब अदालत में मुसीबतज़दा का दिफ़ा करेगा। वही ज़रूरतमंद का इनसाफ़ करेगा। \p \v 13 यक़ीनन रास्तबाज़ तेरे नाम की सताइश करेंगे, और दियानतदार तेरे हुज़ूर बसेंगे। \c 141 \s1 हिफ़ाज़त की गुज़ारिश \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ऐ रब, मैं तुझे पुकार रहा हूँ, मेरे पास आने में जल्दी कर! जब मैं तुझे आवाज़ देता हूँ तो मेरी फ़रियाद पर ध्यान दे! \p \v 2 मेरी दुआ तेरे हुज़ूर बख़ूर की क़ुरबानी की तरह क़बूल हो, मेरे तेरी तरफ़ उठाए हुए हाथ शाम की ग़ल्ला की नज़र की तरह मंज़ूर हों। \p \v 3 ऐ रब, मेरे मुँह पर पहरा बिठा, मेरे होंटों के दरवाज़े की निगहबानी कर। \p \v 4 मेरे दिल को ग़लत बात की तरफ़ मायल न होने दे, ऐसा न हो कि मैं बदकारों के साथ मिलकर बुरे काम में मुलव्वस हो जाऊँ और उनके लज़ीज़ खानों में शिरकत करूँ। \b \p \v 5 रास्तबाज़ शफ़क़त से मुझे मारे और मुझे तंबीह करे। मेरा सर इससे इनकार नहीं करेगा, क्योंकि यह उसके लिए शफ़ाबख़्श तेल की मानिंद होगा। लेकिन मैं हर वक़्त शरीरों की हरकतों के ख़िलाफ़ दुआ करता हूँ। \p \v 6 जब वह गिरकर उस चट्टान के हाथ में आएँगे जो उनका मुंसिफ़ है तो वह मेरी बातों पर ध्यान देंगे, और उन्हें समझ आएगी कि वह कितनी प्यारी हैं। \b \p \v 7 ऐ अल्लाह, हमारी हड्डियाँ उस ज़मीन की मानिंद हैं जिस पर किसी ने इतने ज़ोर से हल चलाया है कि ढेले उड़कर इधर-उधर बिखर गए हैं। हमारी हड्डियाँ पाताल के मुँह तक बिखर गई हैं। \p \v 8 ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, मेरी आँखें तुझ पर लगी रहती हैं, और मैं तुझमें पनाह लेता हूँ। मुझे मौत के हवाले न कर। \p \v 9 मुझे उस जाल से महफ़ूज़ रख जो उन्होंने मुझे पकड़ने के लिए बिछाया है। मुझे बदकारों के फंदों से बचाए रख। \p \v 10 बेदीन मिलकर उनके अपने जालों में उलझ जाएँ जबकि मैं बचकर आगे निकलूँ। \c 142 \s1 सख़्त मुसीबत में मदद की पुकार \p \v 1 हिकमत का गीत। दुआ जो दाऊद ने की जब वह ग़ार में था। \p मैं मदद के लिए चीख़ता-चिल्लाता रब को पुकारता हूँ, मैं ज़ोरदार आवाज़ से रब से इल्तिजा करता हूँ। \p \v 2 मैं अपनी आहो-ज़ारी उसके सामने उंडेल देता, अपनी तमाम मुसीबत उसके हुज़ूर पेश करता हूँ। \p \v 3 जब मेरी रूह मेरे अंदर निढाल हो जाती है तो तू ही मेरी राह जानता है। जिस रास्ते में मैं चलता हूँ उसमें लोगों ने फंदा छुपाया है। \p \v 4 मैं दहनी तरफ़ नज़र डालकर देखता हूँ, लेकिन कोई नहीं है जो मेरा ख़याल करे। मैं बच नहीं सकता, कोई नहीं है जो मेरी जान की फ़िकर करे। \b \p \v 5 ऐ रब, मैं मदद के लिए तुझे पुकारता हूँ। मैं कहता हूँ, “तू मेरी पनाहगाह और ज़िंदों के मुल्क में मेरा मौरूसी हिस्सा है।” \p \v 6 मेरी चीख़ों पर ध्यान दे, क्योंकि मैं बहुत पस्त हो गया हूँ। मुझे उनसे छुड़ा जो मेरा पीछा कर रहे हैं, क्योंकि मैं उन पर क़ाबू नहीं पा सकता। \p \v 7 मेरी जान को क़ैदख़ाने से निकाल ला ताकि तेरे नाम की सताइश करूँ। जब तू मेरे साथ भलाई करेगा तो रास्तबाज़ मेरे इर्दगिर्द जमा हो जाएंगे। \c 143 \s1 बचाव और क़ियादत की गुज़ारिश (तौबा का सातवाँ ज़बूर) \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p ऐ रब, मेरी दुआ सुन, मेरी इल्तिजाओं पर ध्यान दे। अपनी वफ़ादारी और रास्ती की ख़ातिर मेरी सुन! \p \v 2 अपने ख़ादिम को अपनी अदालत में न ला, क्योंकि तेरे हुज़ूर कोई भी जानदार रास्तबाज़ नहीं ठहर सकता। \p \v 3 क्योंकि दुश्मन ने मेरी जान का पीछा करके उसे ख़ाक में कुचल दिया है। उसने मुझे उन लोगों की तरह तारीकी में बसा दिया है जो बड़े अरसे से मुरदा हैं। \p \v 4 मेरे अंदर मेरी रूह निढाल है, मेरे अंदर मेरा दिल दहशत के मारे बेहिसो-हरकत हो गया है। \b \p \v 5 मैं क़दीम ज़माने के दिन याद करता और तेरे कामों पर ग़ौरो-ख़ौज़ करता हूँ। जो कुछ तेरे हाथों ने किया उसमें मैं महवे-ख़याल रहता हूँ। \p \v 6 मैं अपने हाथ तेरी तरफ़ उठाता हूँ, मेरी जान ख़ुश्क ज़मीन की तरह तेरी प्यासी है। (सिलाह) \b \p \v 7 ऐ रब, मेरी सुनने में जल्दी कर। मेरी जान तो ख़त्म होनेवाली है। अपना चेहरा मुझसे छुपाए न रख, वरना मैं गढ़े में उतरनेवालों की मानिंद हो जाऊँगा। \p \v 8 सुबह के वक़्त मुझे अपनी शफ़क़त की ख़बर सुना, क्योंकि मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ। मुझे वह राह दिखा जिस पर मुझे जाना है, क्योंकि मैं तेरा ही आरज़ूमंद हूँ। \p \v 9 ऐ रब, मुझे मेरे दुश्मनों से छुड़ा, क्योंकि मैं तुझमें पनाह लेता हूँ। \p \v 10 मुझे अपनी मरज़ी पूरी करना सिखा, क्योंकि तू मेरा ख़ुदा है। तेरा नेक रूह हमवार ज़मीन पर मेरी राहनुमाई करे। \p \v 11 ऐ रब, अपने नाम की ख़ातिर मेरी जान को ताज़ादम कर। अपनी रास्ती से मेरी जान को मुसीबत से बचा। \p \v 12 अपनी शफ़क़त से मेरे दुश्मनों को हलाक कर। जो भी मुझे तंग कर रहे हैं उन्हें तबाह कर! क्योंकि मैं तेरा ख़ादिम हूँ। \c 144 \s1 नजात और ख़ुशहाली की दुआ \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। \p रब मेरी चट्टान की हम्द हो, जो मेरे हाथों को लड़ने और मेरी उँगलियों को जंग करने की तरबियत देता है। \p \v 2 वह मेरी शफ़क़त, मेरा क़िला, मेरा नजातदहिंदा और मेरी ढाल है। उसी में मैं पनाह लेता हूँ, और वही दीगर अक़वाम को मेरे ताबे कर देता है। \b \p \v 3 ऐ रब, इनसान कौन है कि तू उसका ख़याल रखे? आदमज़ाद कौन है कि तू उसका लिहाज़ करे? \p \v 4 इनसान दम-भर का ही है, उसके दिन तेज़ी से गुज़रनेवाले साये की मानिंद हैं। \b \p \v 5 ऐ रब, अपने आसमान को झुकाकर उतर आ! पहाड़ों को छू ताकि वह धुआँ छोड़ें। \p \v 6 बिजली भेजकर उन्हें मुंतशिर कर, अपने तीर चलाकर उन्हें दरहम-बरहम कर। \p \v 7 अपना हाथ बुलंदियों से नीचे बढ़ा और मुझे छुड़ाकर पानी की गहराइयों और परदेसियों के हाथ से बचा, \p \v 8 जिनका मुँह झूट बोलता और दहना हाथ फ़रेब देता है। \b \p \v 9 ऐ अल्लाह, मैं तेरी तमजीद में नया गीत गाऊँगा, दस तारों का सितार बजाकर तेरी मद्हसराई करूँगा। \p \v 10 क्योंकि तू बादशाहों को नजात देता और अपने ख़ादिम दाऊद को मोहलक तलवार से बचाता है। \b \p \v 11 मुझे छुड़ाकर परदेसियों के हाथ से बचा, जिनका मुँह झूट बोलता और दहना हाथ फ़रेब देता है। \p \v 12 हमारे बेटे जवानी में फलने फूलनेवाले पौदों की मानिंद हों, हमारी बेटियाँ महल को सजाने के लिए तराशे हुए कोने के सतून की मानिंद हों। \p \v 13 हमारे गोदाम भरे रहें और हर क़िस्म की ख़ुराक मुहैया करें। हमारी भेड़-बकरियाँ हमारे मैदानों में हज़ारों बल्कि बेशुमार बच्चे जन्म दें। \p \v 14 हमारे गाय-बैल मोटे-ताज़े हों, और न कोई ज़ाया हो जाए, न किसी को नुक़सान पहुँचे। हमारे चौकों में आहो-ज़ारी की आवाज़ सुनाई न दे। \p \v 15 मुबारक है वह क़ौम जिस पर यह सब कुछ सादिक़ आता है, मुबारक है वह क़ौम जिसका ख़ुदा रब है! \c 145 \s1 अल्लाह की अबदी शफ़क़त \p \v 1 दाऊद का ज़बूर। हम्दो-सना का गीत। \p ऐ मेरे ख़ुदा, मैं तेरी ताज़ीम करूँगा। ऐ बादशाह, मैं हमेशा तक तेरे नाम की सताइश करूँगा। \p \v 2 रोज़ाना मैं तेरी तमजीद करूँगा, हमेशा तक तेरे नाम की हम्द करूँगा। \p \v 3 रब अज़ीम और बड़ी तारीफ़ के लायक़ है। उस की अज़मत इनसान की समझ से बाहर है। \p \v 4 एक पुश्त अगली पुश्त के सामने वह कुछ सराहे जो तूने किया है, वह दूसरों को तेरे ज़बरदस्त काम सुनाएँ। \p \v 5 मैं तेरे शानदार जलाल की अज़मत और तेरे मोजिज़ों में महवे-ख़याल रहूँगा। \p \v 6 लोग तेरे हैबतनाक कामों की क़ुदरत पेश करें, और मैं भी तेरी अज़मत बयान करूँगा। \p \v 7 वह जोश से तेरी बड़ी भलाई को सराहें और ख़ुशी से तेरी रास्ती की मद्हसराई करें। \p \v 8 रब मेहरबान और रहीम है। वह तहम्मुल और शफ़क़त से भरपूर है। \p \v 9 रब सबके साथ भलाई करता है, वह अपनी तमाम मख़लूक़ात पर रहम करता है। \b \p \v 10 ऐ रब, तेरी तमाम मख़लूक़ात तेरा शुक्र करें। तेरे ईमानदार तेरी तमजीद करें। \p \v 11 वह तेरी बादशाही के जलाल पर फ़ख़र करें और तेरी क़ुदरत बयान करें \p \v 12 ताकि आदमज़ाद तेरे क़वी कामों और तेरी बादशाही की जलाली शानो-शौकत से आगाह हो जाएँ। \p \v 13 तेरी बादशाही की कोई इंतहा नहीं, और तेरी सलतनत पुश्त-दर-पुश्त हमेशा तक क़ायम रहेगी। \b \p \v 14 रब तमाम गिरनेवालों का सहारा है। जो भी दब जाए उसे वह उठा खड़ा करता है। \p \v 15 सबकी आँखें तेरे इंतज़ार में रहती हैं, और तू हर एक को वक़्त पर उसका खाना मुहैया करता है। \p \v 16 तू अपनी मुट्ठी खोलकर हर जानदार की ख़ाहिश पूरी करता है। \p \v 17 रब अपनी तमाम राहों में रास्त और अपने तमाम कामों में वफ़ादार है। \p \v 18 रब उन सबके क़रीब है जो उसे पुकारते हैं, जो दियानतदारी से उसे पुकारते हैं। \p \v 19 जो उसका ख़ौफ़ मानें उनकी आरज़ू वह पूरी करता है। वह उनकी फ़रियादें सुनकर उनकी मदद करता है। \p \v 20 रब उन सबको महफ़ूज़ रखता है जो उसे प्यार करते हैं, लेकिन बेदीनों को वह हलाक करता है। \b \p \v 21 मेरा मुँह रब की तारीफ़ बयान करे, तमाम मख़लूक़ात हमेशा तक उसके मुक़द्दस नाम की सताइश करें। \c 146 \s1 अल्लाह की अबदी वफ़ादारी \p \v 1 रब की हम्द हो! ऐ मेरी जान, रब की हम्द कर। \p \v 2 जीते-जी मैं रब की सताइश करूँगा, उम्र-भर अपने ख़ुदा की मद्हसराई करूँगा। \b \p \v 3 शुरफ़ा पर भरोसा न रखो, न आदमज़ाद पर जो नजात नहीं दे सकता। \p \v 4 जब उस की रूह निकल जाए तो वह दुबारा ख़ाक में मिल जाता है, उसी वक़्त उसके मनसूबे अधूरे रह जाते हैं। \b \p \v 5 मुबारक है वह जिसका सहारा याक़ूब का ख़ुदा है, जो रब अपने ख़ुदा के इंतज़ार में रहता है। \p \v 6 क्योंकि उसने आसमानो-ज़मीन, समुंदर और जो कुछ उनमें है बनाया है। वह हमेशा तक वफ़ादार है। \p \v 7 वह मज़लूमों का इनसाफ़ करता और भूकों को रोटी खिलाता है। रब क़ैदियों को आज़ाद करता है। \p \v 8 रब अंधों की आँखें बहाल करता और ख़ाक में दबे हुओं को उठा खड़ा करता है, रब रास्तबाज़ को प्यार करता है। \p \v 9 रब परदेसियों की देख-भाल करता, यतीमों और बेवाओं को क़ायम रखता है। लेकिन वह बेदीनों की राह को टेढ़ा बनाकर कामयाब होने नहीं देता। \b \p \v 10 रब अबद तक हुकूमत करेगा। ऐ सिय्यून, तेरा ख़ुदा पुश्त-दर-पुश्त बादशाह रहेगा। रब की हम्द हो। \c 147 \s1 कायनात और तारीख़ में रब का बंदोबस्त \p \v 1 रब की हम्द हो! अपने ख़ुदा की मद्हसराई करना कितना भला है, उस की तमजीद करना कितना प्यारा और ख़ूबसूरत है। \p \v 2 रब यरूशलम को तामीर करता और इसराईल के मुंतशिर जिलावतनों को जमा करता है। \p \v 3 वह दिलशिकस्तों को शफ़ा देकर उनके ज़ख़मों पर मरहम-पट्टी लगाता है। \p \v 4 वह सितारों की तादाद गिन लेता और हर एक का नाम लेकर उन्हें बुलाता है। \p \v 5 हमारा रब अज़ीम है, और उस की क़ुदरत ज़बरदस्त है। उस की हिकमत की कोई इंतहा नहीं। \p \v 6 रब मुसीबतज़दों को उठा खड़ा करता लेकिन बदकारों को ख़ाक में मिला देता है। \b \p \v 7 रब की तमजीद में शुक्र का गीत गाओ, हमारे ख़ुदा की ख़ुशी में सरोद बजाओ। \p \v 8 क्योंकि वह आसमान पर बादल छाने देता, ज़मीन को बारिश मुहैया करता और पहाड़ों पर घास फूटने देता है। \p \v 9 वह मवेशी को चारा और कौवे के बच्चों को वह कुछ खिलाता है जो वह शोर मचाकर माँगते हैं। \b \p \v 10 न वह घोड़े की ताक़त से लुत्फ़अंदोज़ होता, न आदमी की मज़बूत टाँगों से ख़ुश होता है। \p \v 11 रब उन्हीं से ख़ुश होता है जो उसका ख़ौफ़ मानते और उस की शफ़क़त के इंतज़ार में रहते हैं। \b \p \v 12 ऐ यरूशलम, रब की मद्हसराई कर! ऐ सिय्यून, अपने ख़ुदा की हम्द कर! \p \v 13 क्योंकि उसने तेरे दरवाज़ों के कुंडे मज़बूत करके तेरे दरमियान बसनेवाली औलाद को बरकत दी है। \p \v 14 वही तेरे इलाक़े में अमन और सुकून क़ायम रखता और तुझे बेहतरीन गंदुम से सेर करता है। \p \v 15 वह अपना फ़रमान ज़मीन पर भेजता है तो उसका कलाम तेज़ी से पहुँचता है। \p \v 16 वह ऊन जैसी बर्फ़ मुहैया करता और पाला राख की तरह चारों तरफ़ बिखेर देता है। \p \v 17 वह अपने ओले कंकरों की तरह ज़मीन पर फेंक देता है। कौन उस की शदीद सर्दी बरदाश्त कर सकता है? \p \v 18 वह एक बार फिर अपना फ़रमान भेजता है तो बर्फ़ पिघल जाती है। वह अपनी हवा चलने देता है तो पानी टपकने लगता है। \b \p \v 19 उसने याक़ूब को अपना कलाम सुनाया, इसराईल पर अपने अहकाम और आईन ज़ाहिर किए हैं। \p \v 20 ऐसा सुलूक उसने किसी और क़ौम से नहीं किया। दीगर अक़वाम तो तेरे अहकाम नहीं जानतीं। रब की हम्द हो! \c 148 \s1 आसमानो-ज़मीन पर अल्लाह की तमजीद \p \v 1 रब की हम्द हो! आसमान से रब की सताइश करो, बुलंदियों पर उस की तमजीद करो! \p \v 2 ऐ उसके तमाम फ़रिश्तो, उस की हम्द करो! ऐ उसके तमाम लशकरो, उस की तारीफ़ करो! \p \v 3 ऐ सूरज और चाँद, उस की हम्द करो! ऐ तमाम चमकदार सितारो, उस की सताइश करो! \p \v 4 ऐ बुलंदतरीन आसमानो और आसमान के ऊपर के पानी, उस की हम्द करो! \b \p \v 5 वह रब के नाम की सताइश करें, क्योंकि उसने फ़रमाया तो वह वुजूद में आए। \p \v 6 उसने नाक़ाबिले-मनसूख़ फ़रमान जारी करके उन्हें हमेशा के लिए क़ायम किया है। \b \p \v 7 ऐ समुंदर के अज़दहाओ और तमाम गहराइयो, ज़मीन से रब की तमजीद करो! \p \v 8 ऐ आग, ओलो, बर्फ़, धुंध और उसके हुक्म पर चलनेवाली आँधियो, उस की हम्द करो! \p \v 9 ऐ पहाड़ो और पहाड़ियो, फलदार दरख़तो और तमाम देवदारो, उस की तारीफ़ करो! \p \v 10 ऐ जंगली जानवरो, मवीशियो, रेंगनेवाली मख़लूक़ात और परिंदो, उस की हम्द करो! \p \v 11 ऐ ज़मीन के बादशाहो और तमाम क़ौमो, सरदारो और ज़मीन के तमाम हुक्मरानो, उस की तमजीद करो! \p \v 12 ऐ नौजवानो और कुँवारियो, बुज़ुर्गो और बच्चो, उस की हम्द करो! \b \p \v 13 सब रब के नाम की सताइश करें, क्योंकि सिर्फ़ उसी का नाम अज़ीम है, उस की अज़मत आसमानो-ज़मीन से आला है। \p \v 14 उसने अपनी क़ौम को सरफ़राज़ करके \f + \fr 148:14 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : अपनी क़ौम का सींग बुलंद करके। \f* अपने तमाम ईमानदारों की शोहरत बढ़ाई है, यानी इसराईलियों की शोहरत, उस क़ौम की जो उसके क़रीब रहती है। रब की हम्द हो! \c 149 \s1 सिय्यून रब की हम्द करे! \p \v 1 रब की हम्द हो! रब की तमजीद में नया गीत गाओ, ईमानदारों की जमात में उस की तारीफ़ करो। \p \v 2 इसराईल अपने ख़ालिक़ से ख़ुश हो, सिय्यून के फ़रज़ंद अपने बादशाह की ख़ुशी मनाएँ। \p \v 3 वह नाचकर उसके नाम की सताइश करें, दफ़ और सरोद से उस की मद्हसराई करें। \b \p \v 4 क्योंकि रब अपनी क़ौम से ख़ुश है। वह मुसीबतज़दों को अपनी नजात की शानो-शौकत से आरास्ता करता है। \p \v 5 ईमानदार इस शानो-शौकत के बाइस ख़ुशी मनाएँ, वह अपने बिस्तरों पर शादमानी के नारे लगाएँ। \p \v 6 उनके मुँह में अल्लाह की हम्दो-सना और उनके हाथों में दोधारी तलवार हो \p \v 7 ताकि दीगर अक़वाम से इंतक़ाम लें और उम्मतों को सज़ा दें। \p \v 8 वह उनके बादशाहों को ज़ंजीरों में और उनके शुरफ़ा को बेड़ियों में जकड़ लेंगे \p \v 9 ताकि उन्हें वह सज़ा दें जिसका फ़ैसला क़लमबंद हो चुका है। यह इज़्ज़त अल्लाह के तमाम ईमानदारों को हासिल है। रब की हम्द हो! \c 150 \s1 रब की हम्दो-सना \p \v 1 रब की हम्द हो! अल्लाह के मक़दिस में उस की सताइश करो। उस की क़ुदरत के बने हुए आसमानी गुंबद में उस की तमजीद करो। \p \v 2 उसके अज़ीम कामों के बाइस उस की हम्द करो। उस की ज़बरदस्त अज़मत के बाइस उस की सताइश करो। \p \v 3 नरसिंगा फूँककर उस की हम्द करो, सितार और सरोद बजाकर उस की तमजीद करो। \p \v 4 दफ़ और लोकनाच से उस की हम्द करो। तारदार साज़ और बाँसरी बजाकर उस की सताइश करो। \p \v 5 झाँझों की झंकारती आवाज़ से उस की हम्द करो, गूँजती झाँझ से उस की तारीफ़ करो। \p \v 6 जिसमें भी साँस है वह रब की सताइश करे। रब की हम्द हो!।