\id PRO उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h अमसाल \toc1 अमसाल \toc2 अमसाल \toc3 अमसा \mt1 अमसाल \c 1 \s1 किताब का मक़सद \p \v 1 ज़ैल में इसराईल के बादशाह सुलेमान बिन दाऊद की अमसाल क़लमबंद हैं। \p \v 2 इनसे तू हिकमत और तरबियत हासिल करेगा, बसीरत के अलफ़ाज़ समझने के क़ाबिल हो जाएगा, \v 3 और दानाई दिलानेवाली तरबियत, रास्ती, इनसाफ़ और दियानतदारी अपनाएगा। \v 4 यह अमसाल सादालौह को होशियारी और नौजवान को इल्म और तमीज़ सिखाती हैं। \v 5 जो दाना है वह सुनकर अपने इल्म में इज़ाफ़ा करे, जो समझदार है वह राहनुमाई करने का फ़न सीख ले। \v 6 तब वह अमसाल और तमसीलें, दानिशमंदों की बातें और उनके मुअम्मे समझ लेगा। \p \v 7 हिकमत इससे शुरू होती है कि हम रब का ख़ौफ़ मानें। सिर्फ़ अहमक़ हिकमत और तरबियत को हक़ीर जानते हैं। \s1 ग़लत साथियों से ख़बरदार \p \v 8 मेरे बेटे, अपने बाप की तरबियत के ताबे रह, और अपनी माँ की हिदायत मुस्तरद न कर। \v 9 क्योंकि यह तेरे सर पर दिलकश सेहरा और तेरे गले में गुलूबंद हैं। \v 10 मेरे बेटे, जब ख़ताकार तुझे फुसलाने की कोशिश करें तो उनके पीछे न हो ले। \v 11 उनकी बात न मान जब वह कहें, “आ, हमारे साथ चल! हम ताक में बैठकर किसी को क़त्ल करें, बिलावजह किसी बेक़ुसूर की घात लगाएँ। \v 12 हम उन्हें पाताल की तरह ज़िंदा निगल लें, उन्हें मौत के गढ़े में उतरनेवालों की तरह एकदम हड़प कर लें। \v 13 हम हर क़िस्म की क़ीमती चीज़ हासिल करेंगे, अपने घरों को लूट के माल से भर लेंगे। \v 14 आ, जुर्रत करके हममें शरीक हो जा, हम लूट का तमाम माल बराबर तक़सीम करेंगे।” \p \v 15 मेरे बेटे, उनके साथ मत जाना, अपना पाँव उनकी राहों पर रखने से रोक लेना। \v 16 क्योंकि उनके पाँव ग़लत काम के पीछे दौड़ते, ख़ून बहाने के लिए भागते हैं। \v 17 जब चिड़ीमार अपना जाल लगाकर उस पर परिंदों को फाँसने के लिए रोटी के टुकड़े बिखेर देता है तो परिंदों की नज़र में यह बेमक़सद है। \v 18 यह लोग भी एक दिन फँस जाएंगे। जब ताक में बैठ जाते हैं तो अपने आपको तबाह करते हैं, जब दूसरों की घात लगाते हैं तो अपनी ही जान को नुक़सान पहुँचाते हैं। \v 19 यही उन सबका अंजाम है जो नारवा नफ़ा के पीछे भागते हैं। नाजायज़ नफ़ा अपने मालिक की जान छीन लेता है। \s1 हिकमत की पुकार \p \v 20 हिकमत गली में ज़ोर से आवाज़ देती, चौकों में बुलंद आवाज़ से पुकारती है। \v 21 जहाँ सबसे ज़्यादा शोर-शराबा है वहाँ वह चिल्ला चिल्लाकर बोलती, शहर के दरवाज़ों पर ही अपनी तक़रीर करती है, \v 22 “ऐ सादालौह लोगो, तुम कब तक अपनी सादालौही से मुहब्बत रखोगे? मज़ाक़ उड़ानेवाले कब तक अपने मज़ाक़ से लुत्फ़ उठाएँगे, अहमक़ कब तक इल्म से नफ़रत करेंगे? \v 23 आओ, मेरी सरज़निश पर ध्यान दो। तब मैं अपनी रूह का चश्मा तुम पर फूटने दूँगी, तुम्हें अपनी बातें सुनाऊँगी। \p \v 24 लेकिन जब मैंने आवाज़ दी तो तुमने इनकार किया, जब मैंने अपना हाथ तुम्हारी तरफ़ बढ़ाया तो किसी ने भी तवज्जुह न दी। \v 25 तुमने मेरे किसी मशवरे की परवा न की, मेरी मलामत तुम्हारे नज़दीक क़ाबिले-क़बूल नहीं थी। \v 26 इसलिए जब तुम पर आफ़त आएगी तो मैं क़हक़हा लगाऊँगी, जब तुम हौलनाक मुसीबत में फँस जाओगे तो तुम्हारा मज़ाक़ उड़ाऊँगी। \v 27 उस वक़्त तुम पर दहशतनाक आँधी टूट पड़ेगी, आफ़त तूफ़ान की तरह तुम पर आएगी, और तुम मुसीबत और तकलीफ़ के सैलाब में डूब जाओगे। \v 28 तब वह मुझे आवाज़ देंगे, लेकिन मैं उनकी नहीं सुनूँगी, वह मुझे ढूँडेंगे पर पाएँगे नहीं। \b \p \v 29 क्योंकि वह इल्म से नफ़रत करके रब का ख़ौफ़ मानने के लिए तैयार नहीं थे। \v 30 मेरा मशवरा उन्हें क़बूल नहीं था बल्कि वह मेरी हर सरज़निश को हक़ीर जानते थे। \v 31 चुनाँचे अब वह अपने चाल-चलन का फल खाएँ, अपने मनसूबों की फ़सल खा खाकर सेर हो जाएँ। \b \p \v 32 क्योंकि सहीह राह से दूर होने का अमल सादालौह को मार डालता है, और अहमक़ों की बेपरवाई उन्हें तबाह करती है। \v 33 लेकिन जो मेरी सुने वह सुकून से बसेगा, हौलनाक मुसीबत उसे परेशान नहीं करेगी।” \c 2 \s1 हिकमत की अहमियत \p \v 1 मेरे बेटे, मेरी बात क़बूल करके मेरे अहकाम अपने दिल में महफ़ूज़ रख। \v 2 अपना कान हिकमत पर धर, अपना दिल समझ की तरफ़ मायल कर। \v 3 बसीरत के लिए आवाज़ दे, चिल्लाकर समझ माँग। \v 4 उसे यों तलाश कर गोया चाँदी हो, उसका यों खोज लगा गोया पोशीदा ख़ज़ाना हो। \v 5 अगर तू ऐसा करे तो तुझे रब के ख़ौफ़ की समझ आएगी और अल्लाह का इरफ़ान हासिल होगा। \v 6 क्योंकि रब ही हिकमत अता करता, उसी के मुँह से इरफ़ान और समझ निकलती है। \v 7 वह सीधी राह पर चलनेवालों को कामयाबी फ़राहम करता और बेइलज़ाम ज़िंदगी गुज़ारनेवालों की ढाल बना रहता है। \v 8 क्योंकि वह इनसाफ़ पसंदों की राहों की पहरादारी करता है। जहाँ भी उसके ईमानदार चलते हैं वहाँ वह उनकी हिफ़ाज़त करता है। \p \v 9 तब तुझे रास्ती, इनसाफ़, दियानतदारी और हर अच्छी राह की समझ आएगी। \v 10 क्योंकि तेरे दिल में हिकमत दाख़िल हो जाएगी, और इल्मो-इरफ़ान तेरी जान को प्यारा हो जाएगा। \v 11 तमीज़ तेरी हिफ़ाज़त और समझ तेरी चौकीदारी करेगी। \v 12 हिकमत तुझे ग़लत राह और कजरौ बातें करनेवाले से बचाए रखेगी। \v 13 ऐसे लोग सीधी राह को छोड़ देते हैं ताकि तारीक रास्तों पर चलें, \v 14 वह बुरी हरकतें करने से ख़ुश हो जाते हैं, ग़लत काम की कजरवी देखकर जशन मनाते हैं। \v 15 उनकी राहें टेढ़ी हैं, और वह जहाँ भी चलें आवारा फिरते हैं। \p \v 16 हिकमत तुझे नाजायज़ औरत से छुड़ाती है, उस अजनबी औरत से जो चिकनी-चुपड़ी बातें करती, \v 17 जो अपने जीवनसाथी को तर्क करके अपने ख़ुदा का अहद भूल जाती है। \v 18 क्योंकि उसके घर में दाख़िल होने का अंजाम मौत, उस की राहों की मनज़िले-मक़सूद पाताल है। \v 19 जो भी उसके पास जाए वह वापस नहीं आएगा, वह ज़िंदगीबख़्श राहों पर दुबारा नहीं पहुँचेगा। \p \v 20 चुनाँचे अच्छे लोगों की राह पर चल-फिर, ध्यान दे कि तेरे क़दम रास्तबाज़ों के रास्ते पर रहें। \v 21 क्योंकि सीधी राह पर चलनेवाले मुल्क में आबाद होंगे, आख़िरकार बेइलज़ाम ही उसमें बाक़ी रहेंगे। \v 22 लेकिन बेदीन मुल्क से मिट जाएंगे, और बेवफ़ाओं को उखाड़कर मुल्क से ख़ारिज कर दिया जाएगा। \c 3 \s1 अल्लाह के ख़ौफ़ और हिकमत की बरकत \p \v 1 मेरे बेटे, मेरी हिदायत मत भूलना। मेरे अहकाम तेरे दिल में महफ़ूज़ रहें। \v 2 क्योंकि इन्हीं से तेरी ज़िंदगी के दिनों और सालों में इज़ाफ़ा होगा और तेरी ख़ुशहाली बढ़ेगी। \v 3 शफ़क़त और वफ़ा तेरा दामन न छोड़ें। उन्हें अपने गले से बाँधना, अपने दिल की तख़्ती पर कंदा करना। \v 4 तब तुझे अल्लाह और इनसान के सामने मेहरबानी और क़बूलियत हासिल होगी। \p \v 5 पूरे दिल से रब पर भरोसा रख, और अपनी अक़्ल पर तकिया न कर। \v 6 जहाँ भी तू चले सिर्फ़ उसी को जान ले, फिर वह ख़ुद तेरी राहों को हमवार करेगा। \v 7 अपने आपको दानिशमंद मत समझना बल्कि रब का ख़ौफ़ मानकर बुराई से दूर रह। \v 8 इससे तेरा बदन सेहत पाएगा और तेरी हड्डियाँ तरो-ताज़ा हो जाएँगी। \v 9 अपनी मिलकियत और अपनी तमाम पैदावार के पहले फल से रब का एहतराम कर, \v 10 फिर तेरे गोदाम अनाज से भर जाएंगे और तेरे बरतन मै से छलक उठेंगे। \p \v 11 मेरे बेटे, रब की तरबियत को रद्द न कर, जब वह तुझे डाँटे तो रंजीदा न हो। \v 12 क्योंकि जो रब को प्यारा है उस की वह तादीब करता है, जिस तरह बाप उस बेटे को तंबीह करता है जो उसे पसंद है। \s1 हक़ीक़ी दौलत \p \v 13 मुबारक है वह जो हिकमत पाता है, जिसे समझ हासिल होती है। \v 14 क्योंकि हिकमत चाँदी से कहीं ज़्यादा सूदमंद है, और उससे सोने से कहीं ज़्यादा क़ीमती चीज़ें हासिल होती हैं। \v 15 हिकमत मोतियों से ज़्यादा नफ़ीस है, तेरे तमाम ख़ज़ाने उसका मुक़ाबला नहीं कर सकते। \v 16 उसके दहने हाथ में उम्र की दराज़ी और बाएँ हाथ में दौलत और इज़्ज़त है। \v 17 उस की राहें ख़ुशगवार, उसके तमाम रास्ते पुरअमन हैं। \v 18 जो उसका दामन पकड़ ले उसके लिए वह ज़िंदगी का दरख़्त है। मुबारक है वह जो उससे लिपटा रहे। \v 19 रब ने हिकमत के वसीले से ही ज़मीन की बुनियाद रखी, समझ के ज़रीए ही आसमान को मज़बूती से लगाया। \v 20 उसके इरफ़ान से ही गहराइयों का पानी फूट निकला और आसमान से शबनम टपककर ज़मीन पर पड़ती है। \p \v 21 मेरे बेटे, दानाई और तमीज़ अपने पास महफ़ूज़ रख और उन्हें अपनी नज़र से दूर न होने दे। \v 22 उनसे तेरी जान तरो-ताज़ा और तेरा गला आरास्ता रहेगा। \v 23 तब तू चलते वक़्त महफ़ूज़ रहेगा, और तेरा पाँव ठोकर नहीं खाएगा। \v 24 तू पाँव फैलाकर सो सकेगा, कोई सदमा तुझे नहीं पहुँचेगा बल्कि तू लेटकर गहरी नींद सोएगा। \v 25 नागहाँ आफ़त से मत डरना, न उस तबाही से जो बेदीन पर ग़ालिब आती है, \v 26 क्योंकि रब पर तेरा एतमाद है, वही तेरे पाँवों को फँस जाने से महफ़ूज़ रखेगा। \s1 दूसरों की मदद करने की नसीहत \p \v 27 अगर कोई ज़रूरतमंद हो और तू उस की मदद कर सके तो उसके साथ भलाई करने से इनकार न कर। \v 28 अगर तू आज कुछ दे सके तो अपने पड़ोसी से मत कहना, “कल आना तो मैं आपको कुछ दे दूँगा।” \v 29 जो पड़ोसी बेफ़िकर तेरे साथ रहता है उसके ख़िलाफ़ बुरे मनसूबे मत बाँधना। \v 30 जिसने तुझे नुक़सान नहीं पहुँचाया अदालत में उस पर बेबुनियाद इलज़ाम न लगाना। \p \v 31 न ज़ालिम से हसद कर, न उस की कोई राह इख़्तियार कर। \v 32 क्योंकि बुरी राह पर चलनेवाले से रब घिन खाता है जबकि सीधी राह पर चलनेवालों को वह अपने राज़ों से आगाह करता है। \v 33 बेदीन के घर पर रब की लानत आती जबकि रास्तबाज़ के घर को वह बरकत देता है। \v 34 मज़ाक़ उड़ानेवालों का वह मज़ाक़ उड़ाता, लेकिन फ़रोतनों पर मेहरबानी करता है। \v 35 दानिशमंद मीरास में इज़्ज़त पाएँगे जबकि अहमक़ के नसीब में शरमिंदगी होगी। \c 4 \s1 बाप की नसीहत \p \v 1 ऐ बेटो, बाप की नसीहत सुनो, ध्यान दो ताकि तुम सीखकर समझ हासिल कर सको। \v 2 मैं तुम्हें अच्छी तालीम देता हूँ, इसलिए मेरी हिदायत को तर्क न करो। \v 3 मैं अभी अपने बाप के घर में नाज़ुक लड़का था, अपनी माँ का वाहिद बच्चा, \v 4 तो मेरे बाप ने मुझे तालीम देकर कहा, \p “पूरे दिल से मेरे अलफ़ाज़ अपना ले और हर वक़्त मेरे अहकाम पर अमल कर तो तू जीता रहेगा। \v 5 हिकमत हासिल कर, समझ अपना ले! यह चीज़ें मत भूलना, मेरे मुँह के अलफ़ाज़ से दूर न होना। \v 6 हिकमत तर्क न कर तो वह तुझे महफ़ूज़ रखेगी। उससे मुहब्बत रख तो वह तेरी देख-भाल करेगी। \v 7 हिकमत इससे शुरू होती है कि तू हिकमत अपना ले। समझ हासिल करने के लिए बाक़ी तमाम मिलकियत क़ुरबान करने के लिए तैयार हो। \v 8 उसे अज़ीज़ रख तो वह तुझे सरफ़राज़ करेगी, उसे गले लगा तो वह तुझे इज़्ज़त बख़्शेगी। \v 9 तब वह तेरे सर को ख़ूबसूरत सेहरे से आरास्ता करेगी और तुझे शानदार ताज से नवाज़ेगी।” \p \v 10 मेरे बेटे, मेरी सुन! मेरी बातें अपना ले तो तेरी उम्र दराज़ होगी। \v 11 मैं तुझे हिकमत की राह पर चलने की हिदायत देता, तुझे सीधी राहों पर फिरने देता हूँ। \v 12 जब तू चलेगा तो तेरे क़दमों को किसी भी चीज़ से रोका नहीं जाएगा, और दौड़ते वक़्त तू ठोकर नहीं खाएगा। \v 13 तरबियत का दामन थामे रह! उसे न छोड़ बल्कि महफ़ूज़ रख, क्योंकि वह तेरी ज़िंदगी है। \p \v 14 बेदीनों की राह पर क़दम न रख, शरीरों के रास्ते पर मत जा। \v 15 उससे गुरेज़ कर, उस पर सफ़र न कर बल्कि उससे कतराकर आगे निकल जा। \v 16 क्योंकि जब तक उनसे बुरा काम सरज़द न हो जाए वह सो ही नहीं सकते, जब तक उन्होंने किसी को ठोकर खिलाकर ख़ाक में मिला न दिया हो वह नींद से महरूम रहते हैं। \v 17 वह बेदीनी की रोटी खाते और ज़ुल्म की मै पीते हैं। \v 18 लेकिन रास्तबाज़ की राह तुलूए-सुबह की पहली रौशनी की मानिंद है जो दिन के उरूज तक बढ़ती रहती है। \v 19 इसके मुक़ाबले में बेदीन का रास्ता गहरी तारीकी की मानिंद है, उन्हें पता ही नहीं चलता कि किस चीज़ से ठोकर खाकर गिर गए हैं। \p \v 20 मेरे बेटे, मेरी बातों पर ध्यान दे, मेरे अलफ़ाज़ पर कान धर। \v 21 उन्हें अपनी नज़र से ओझल न होने दे बल्कि अपने दिल में महफ़ूज़ रख। \v 22 क्योंकि जो यह बातें अपनाएँ वह ज़िंदगी और पूरे जिस्म के लिए शफ़ा पाते हैं। \v 23 तमाम चीज़ों से पहले अपने दिल की हिफ़ाज़त कर, क्योंकि यही ज़िंदगी का सरचश्मा है। \v 24 अपने मुँह से झूट और अपने होंटों से कजगोई दूर कर। \v 25 ध्यान दे कि तेरी आँखें सीधा आगे की तरफ़ देखें, कि तेरी नज़र उस रास्ते पर लगी रहे जो सीधा है। \v 26 अपने पाँवों का रास्ता चलने के क़ाबिल बना दे, ध्यान दे कि तेरी राहें मज़बूत हैं। \v 27 न दाईं, न बाईं तरफ़ मुड़ बल्कि अपने पाँवों को ग़लत क़दम उठाने से बाज़ रख। \c 5 \s1 ज़िनाकारी से ख़बरदार \p \v 1 मेरे बेटे, मेरी हिकमत पर ध्यान दे, मेरी समझ की बातों पर कान धर। \v 2 फिर तू तमीज़ का दामन थामे रहेगा, और तेरे होंट इल्मो-इरफ़ान महफ़ूज़ रखेंगे। \v 3 क्योंकि ज़िनाकार औरत के होंटों से शहद टपकता है, उस की बातें तेल की तरह चिकनी-चुपड़ी होती हैं। \v 4 लेकिन अंजाम में वह ज़हर जैसी कड़वी और दोधारी तलवार जैसी तेज़ साबित होती है। \v 5 उसके पाँव मौत की तरफ़ उतरते, उसके क़दम पाताल की जानिब बढ़ते जाते हैं। \v 6 उसके रास्ते कभी इधर कभी इधर फिरते हैं ताकि तू ज़िंदगी की राह पर तवज्जुह न दे और उस की आवारगी को जान न ले। \p \v 7 चुनाँचे मेरे बेटो, मेरी सुनो और मेरे मुँह की बातों से दूर न हो जाओ। \v 8 अपने रास्ते उससे दूर रख, उसके घर के दरवाज़े के क़रीब भी न जा। \v 9 ऐसा न हो कि तू अपनी ताक़त किसी और के लिए सर्फ़ करे और अपने साल ज़ालिम के लिए ज़ाया करे। \v 10 ऐसा न हो कि परदेसी तेरी मिलकियत से सेर हो जाएँ, कि जो कुछ तूने मेहनत-मशक़्क़त से हासिल किया वह किसी और के घर में आए। \v 11 तब आख़िरकार तेरा बदन और गोश्त घुल जाएंगे, और तू आहें भर भरकर \v 12 कहेगा, “हाय, मैंने क्यों तरबियत से नफ़रत की, मेरे दिल ने क्यों सरज़निश को हक़ीर जाना? \v 13 हिदायत करनेवालों की मैंने न सुनी, अपने उस्तादों की बातों पर कान न धरा। \v 14 जमात के दरमियान ही रहते हुए मुझ पर ऐसी आफ़त आई कि मैं तबाही के दहाने तक पहुँच गया हूँ।” \p \v 15 अपने ही हौज़ का पानी और अपने ही कुएँ से फूटनेवाला पानी पी ले। \v 16 क्या मुनासिब है कि तेरे चश्मे गलियों में और तेरी नदियाँ चौकों में बह निकलें? \v 17 जो पानी तेरा अपना है वह तुझ तक महदूद रहे, अजनबी उसमें शरीक न हो जाए। \v 18 तेरा चश्मा मुबारक हो। हाँ, अपनी बीवी से ख़ुश रह। \v 19 वही तेरी मनमोहन हिरनी और दिलरुबा ग़ज़ाल \f + \fr 5:19 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : पहाड़ी बकरी। \f* है। उसी का प्यार तुझे तरो-ताज़ा करे, उसी की मुहब्बत तुझे हमेशा मस्त रखे। \p \v 20 मेरे बेटे, तू अजनबी औरत से क्यों मस्त हो जाए, किसी दूसरे की बीवी से क्यों लिपट जाए? \v 21 ख़याल रख, इनसान की राहें रब को साफ़ दिखाई देती हैं, जहाँ भी वह चले उस पर वह तवज्जुह देता है। \v 22 बेदीन की अपनी ही हरकतें उसे फँसा देती हैं, वह अपने ही गुनाह के रस्सों में जकड़ा रहता है। \v 23 वह तरबियत की कमी के सबब से हलाक हो जाएगा, अपनी बड़ी हमाक़त के बाइस डगमगाते हुए अपने अंजाम को पहुँचेगा। \c 6 \s1 ज़मानत देने, काहिली और झूट से ख़बरदार \p \v 1 मेरे बेटे, क्या तू अपने पड़ोसी का ज़ामिन बना है? क्या तूने हाथ मिलाकर वादा किया है कि मैं किसी दूसरे का ज़िम्मादार ठहरूँगा? \v 2 क्या तू अपने वादे से बँधा हुआ, अपने मुँह के अलफ़ाज़ से फँसा हुआ है? \v 3 ऐसा करने से तू अपने पड़ोसी के हाथ में आ गया है, इसलिए अपनी जान को छुड़ाने के लिए उसके सामने औंधे मुँह होकर उसे अपनी मिन्नत-समाजत से तंग कर। \v 4 अपनी आँखों को सोने न दे, अपने पपोटों को ऊँघने न दे जब तक तू इस ज़िम्मादारी से फ़ारिग़ न हो जाए। \v 5 जिस तरह ग़ज़ाल शिकारी के हाथ से और परिंदा चिड़ीमार के हाथ से छूट जाता है उसी तरह सिर-तोड़ कोशिश कर ताकि तेरी जान छूट जाए। \p \v 6 ऐ काहिल, चियूँटी के पास जाकर उस की राहों पर ग़ौर कर! उसके नमूने से हिकमत सीख ले। \v 7 उस पर न सरदार, न अफ़सर या हुक्मरान मुक़र्रर है, \v 8 तो भी वह गरमियों में सर्दियों के लिए खाने का ज़ख़ीरा कर रखती, फ़सल के दिनों में ख़ूब ख़ुराक इकट्ठी करती है। \v 9 ऐ काहिल, तू मज़ीद कब तक सोया रहेगा, कब जाग उठेगा? \v 10 तू कहता है, “मुझे थोड़ी देर सोने दे, थोड़ी देर ऊँघने दे, थोड़ी देर हाथ पर हाथ धरे बैठने दे ताकि आराम कर सकूँ।” \v 11 लेकिन ख़बरदार, जल्द ही ग़ुरबत राहज़न की तरह तुझ पर आएगी, मुफ़लिसी हथियार से लेस डाकू की तरह तुझ पर टूट पड़ेगी। \p \v 12 बदमाश और कमीना किस तरह पहचाना जाता है? वह मुँह में झूट लिए फिरता है, \v 13 अपनी आँखों, पाँवों और उँगलियों से इशारा करके तुझे फ़रेब के जाल में फँसाने की कोशिश करता है। \v 14 उसके दिल में कजी है, और वह हर वक़्त बुरे मनसूबे बाँधने में लगा रहता है। जहाँ भी जाए वहाँ झगड़े छिड़ जाते हैं। \v 15 लेकिन ऐसे शख़्स पर अचानक ही आफ़त आएगी। एक ही लमहे में वह पाश पाश हो जाएगा। तब उसका इलाज नामुमकिन होगा। \p \v 16 रब छः चीज़ों से नफ़रत बल्कि सात चीज़ों से घिन खाता है, \p \v 17 वह आँखें जो ग़ुरूर से देखती हैं, वह ज़बान जो झूट बोलती है, वह हाथ जो बेगुनाहों को क़त्ल करते हैं, \v 18 वह दिल जो बुरे मनसूबे बाँधता है, वह पाँव जो दूसरों को नुक़सान पहुँचाने के लिए भागते हैं, \v 19 वह गवाह जो अदालत में झूट बोलता और वह जो भाइयों में झगड़ा पैदा करता है। \s1 ज़िना करने से ख़बरदार \p \v 20 मेरे बेटे, अपने बाप के हुक्म से लिपटा रह, और अपनी माँ की हिदायत नज़रंदाज़ न कर। \v 21 उन्हें यों अपने दिल के साथ बाँधे रख कि कभी दूर न हो जाएँ। उन्हें हार की तरह अपने गले में डाल ले। \v 22 चलते वक़्त वह तेरी राहनुमाई करें, आराम करते वक़्त तेरी पहरादारी करें, जागते वक़्त तुझसे हमकलाम हों। \v 23 क्योंकि बाप का हुक्म चराग़ और माँ की हिदायत रौशनी है, तरबियत की डाँट-डपट ज़िंदगीबख़्श राह है। \v 24 यों तू बदकार औरत और दूसरे की ज़िनाकार बीवी की चिकनी-चुपड़ी बातों से महफ़ूज़ रहेगा। \v 25 दिल में उसके हुस्न का लालच न कर, ऐसा न हो कि वह पलक मार मारकर तुझे पकड़ ले। \v 26 क्योंकि गो कसबी आदमी को उसके पैसे से महरूम करती है, लेकिन दूसरे की ज़िनाकार बीवी उस की क़ीमती जान का शिकार करती है। \p \v 27 क्या इनसान अपनी झोली में भड़कती आग यों उठाकर फिर सकता है कि उसके कपड़े न जलें? \v 28 या क्या कोई दहकते कोयलों पर यों फिर सकता है कि उसके पाँव झुलस न जाएँ? \v 29 इसी तरह जो किसी दूसरे की बीवी से हमबिसतर हो जाए उसका अंजाम बुरा है, जो भी दूसरे की बीवी को छेड़े उसे सज़ा मिलेगी। \v 30 जो भूक के मारे अपना पेट भरने के लिए चोरी करे उसे लोग हद से ज़्यादा हक़ीर नहीं जानते, \v 31 हालाँकि उसे चोरी किए हुए माल को सात गुना वापस करना है और उसके घर की दौलत जाती रहेगी। \v 32 लेकिन जो किसी दूसरे की बीवी के साथ ज़िना करे वह बेअक़्ल है। जो अपनी जान को तबाह करना चाहे वही ऐसा करता है। \v 33 उस की पिटाई और बेइज़्ज़ती की जाएगी, और उस की शरमिंदगी कभी नहीं मिटेगी। \v 34 क्योंकि शौहर ग़ैरत खाकर और तैश में आकर बेरहमी से बदला लेगा। \v 35 न वह कोई मुआवज़ा क़बूल करेगा, न रिश्वत लेगा, ख़ाह कितनी ज़्यादा क्यों न हो। \c 7 \s1 बेवफ़ा बीवी \p \v 1 मेरे बेटे, मेरे अलफ़ाज़ की पैरवी कर, मेरे अहकाम अपने अंदर महफ़ूज़ रख। \v 2 मेरे अहकाम के ताबे रह तो जीता रहेगा। अपनी आँख की पुतली की तरह मेरी हिदायत की हिफ़ाज़त कर। \v 3 उन्हें अपनी उँगली के साथ बाँध, अपने दिल की तख़्ती पर कंदा कर। \v 4 हिकमत से कह, “तू मेरी बहन है,” और समझ से, “तू मेरी क़रीबी रिश्तेदार है।” \v 5 यही तुझे ज़िनाकार औरत से महफ़ूज़ रखेंगी, दूसरे की उस बीवी से जो अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से तुझे फुसलाने की कोशिश करती है। \p \v 6 एक दिन मैंने अपने घर की खिड़की \f + \fr 7:6 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : घर की खिड़की के जंगले। \f* में से बाहर झाँका \v 7 तो क्या देखता हूँ कि वहाँ कुछ सादालौह नौजवान खड़े हैं। उनमें से एक बेअक़्ल जवान नज़र आया। \v 8 वह गली में से गुज़रकर ज़िनाकार औरत के कोने की तरफ़ टहलने लगा। चलते चलते वह उस रास्ते पर आ गया जो औरत के घर तक ले जाता है। \v 9 शाम का धुँधलका था, दिन ढलने और रात का अंधेरा छाने लगा था। \v 10 तब एक औरत कसबी का लिबास पहने हुए चालाकी से उससे मिलने आई। \v 11 यह औरत इतनी बेलगाम और ख़ुदसर है कि उसके पाँव उसके घर में नहीं टिकते। \v 12 कभी वह गली में, कभी चौकों में होती है, हर कोने पर वह ताक में बैठी रहती है। \p \v 13 अब उसने नौजवान को पकड़कर उसे बोसा दिया। बेहया नज़र उस पर डालकर उसने कहा, \v 14 “मुझे सलामती की क़ुरबानियाँ पेश करनी थीं, और आज ही मैंने अपनी मन्नतें पूरी कीं। \v 15 इसलिए मैं निकलकर तुझसे मिलने आई, मैंने तेरा पता किया और अब तू मुझे मिल गया है। \v 16 मैंने अपने बिस्तर पर मिसर के रंगीन कम्बल बिछाए, \v 17 उस पर मुर, ऊद और दारचीनी की ख़ुशबू छिड़की है। \v 18 आओ, हम सुबह तक मुहब्बत का प्याला तह तक पी लें, हम इश्क़बाज़ी से लुत्फ़अंदोज़ हों! \v 19 क्योंकि मेरा ख़ाविंद घर में नहीं है, वह लंबे सफ़र के लिए रवाना हुआ है। \v 20 वह बटवे में पैसे डालकर चला गया है और पूरे चाँद तक वापस नहीं आएगा।” \p \v 21 ऐसी बातें करते करते औरत ने नौजवान को तरग़ीब देकर अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से वरग़लाया। \v 22 नौजवान सीधा उसके पीछे यों हो लिया जिस तरह बैल ज़बह होने के लिए जाता या हिरन उछलकर फंदे में फँस जाता है। \v 23 क्योंकि एक वक़्त आएगा कि तीर उसका दिल चीर डालेगा। लेकिन फ़िलहाल उस की हालत उस चिड़िया की मानिंद है जो उड़कर जाल में आ जाती और ख़याल तक नहीं करती कि मेरी जान ख़तरे में है। \p \v 24 चुनाँचे मेरे बेटो, मेरी सुनो, मेरे मुँह की बातों पर ध्यान दो! \v 25 तेरा दिल भटककर उस तरफ़ रुख़ न करे जहाँ ज़िनाकार औरत फिरती है, ऐसा न हो कि तू आवारा होकर उस की राहों में उलझ जाए। \v 26 क्योंकि उनकी तादाद बड़ी है जिन्हें उसने गिराकर मौत के घाट उतारा है, उसने मुतअद्दिद लोगों को मार डाला है। \v 27 उसका घर पाताल का रास्ता है जो लोगों को मौत की कोठड़ियों तक पहुँचाता है। \c 8 \s1 हिकमत की दावत और वादा \p \v 1 सुनो! क्या हिकमत आवाज़ नहीं देती? हाँ, समझ ऊँची आवाज़ से एलान करती है। \v 2 वह बुलंदियों पर खड़ी है, उस जगह जहाँ तमाम रास्ते एक दूसरे से मिलते हैं। \v 3 शहर के दरवाज़ों पर जहाँ लोग निकलते और दाख़िल होते हैं वहाँ हिकमत ज़ोरदार आवाज़ से पुकारती है, \b \p \v 4 “ऐ मर्दो, मैं तुम्हीं को पुकारती हूँ, तमाम इनसानों को आवाज़ देती हूँ। \p \v 5 ऐ सादालौहो, होशियारी सीख लो! ऐ अहमक़ो, समझ अपना लो! \p \v 6 सुनो, क्योंकि मैं शराफ़त की बातें करती हूँ, और मेरे होंट सच्चाई पेश करते हैं। \p \v 7 मेरा मुँह सच बोलता है, क्योंकि मेरे होंट बेदीनी से घिन खाते हैं। \p \v 8 जो भी बात मेरे मुँह से निकले वह रास्त है, एक भी पेचदार या टेढ़ी नहीं है। \p \v 9 समझदार जानता है कि मेरी बातें सब दुरुस्त हैं, इल्म रखनेवाले को मालूम है कि वह सहीह हैं। \p \v 10 चाँदी की जगह मेरी तरबियत और ख़ालिस सोने के बजाए इल्मो-इरफ़ान अपना लो। \p \v 11 क्योंकि हिकमत मोतियों से कहीं बेहतर है, कोई भी ख़ज़ाना उसका मुक़ाबला नहीं कर सकता। \b \p \v 12 मैं जो हिकमत हूँ होशियारी के साथ बसती हूँ, और मैं तमीज़ का इल्म रखती हूँ। \p \v 13 जो रब का ख़ौफ़ मानता है वह बुराई से नफ़रत करता है। मुझे ग़ुरूर, तकब्बुर, ग़लत चाल-चलन और टेढ़ी बातों से नफ़रत है। \p \v 14 मेरे पास अच्छा मशवरा और कामयाबी है। मेरा दूसरा नाम समझ है, और मुझे क़ुव्वत हासिल है। \p \v 15 मेरे वसीले से बादशाह सलतनत और हुक्मरान रास्त फ़ैसले करते हैं। \p \v 16 मेरे ज़रीए रईस और शुरफ़ा बल्कि तमाम आदिल मुंसिफ़ हुकूमत करते हैं। \p \v 17 जो मुझे प्यार करते हैं उन्हें मैं प्यार करती हूँ, और जो मुझे ढूँडते हैं वह मुझे पा लेते हैं। \p \v 18 मेरे पास इज़्ज़तो-दौलत, शानदार माल और रास्ती है। \p \v 19 मेरा फल सोने बल्कि ख़ालिस सोने से कहीं बेहतर है, मेरी पैदावार ख़ालिस चाँदी पर सबक़त रखती है। \p \v 20 मैं रास्ती की राह पर ही चलती हूँ, वहीं जहाँ इनसाफ़ है। \p \v 21 जो मुझसे मुहब्बत रखते हैं उन्हें मैं मीरास में दौलत मुहैया करती हूँ। उनके गोदाम भरे रहते हैं। \s1 हिकमत का तख़लीक़ में हिस्सा \p \v 22 जब रब तख़लीक़ का सिलसिला अमल में लाया तो पहले उसने मुझे ही बनाया। क़दीम ज़माने में मैं उसके दीगर कामों से पहले ही वुजूद में आई। \p \v 23 मुझे अज़ल से मुक़र्रर किया गया, इब्तिदा ही से जब दुनिया अभी पैदा नहीं हुई थी। \p \v 24 न समुंदर की गहराइयाँ, न कसरत से फूटनेवाले चश्मे थे जब मैंने जन्म लिया। \p \v 25 न पहाड़ अपनी अपनी जगह पर क़ायम हुए थे, न पहाड़ियाँ थीं जब मैं पैदा हुई। \p \v 26 उस वक़्त अल्लाह ने न ज़मीन, न उसके मैदान, और न दुनिया के पहले ढेले बनाए थे। \p \v 27 जब उसने आसमान को उस की जगह पर लगाया और समुंदर की गहराइयों पर ज़मीन का इलाक़ा मुक़र्रर किया तो मैं साथ थी। \p \v 28 जब उसने आसमान पर बादलों और गहराइयों में सरचश्मों का इंतज़ाम मज़बूत किया तो मैं साथ थी। \p \v 29 जब उसने समुंदर की हद्दें मुक़र्रर कीं और हुक्म दिया कि पानी उनसे तजावुज़ न करे, जब उसने ज़मीन की बुनियादें अपनी अपनी जगह पर रखीं \p \v 30 तो मैं माहिर कारीगर की हैसियत से उसके साथ थी। रोज़ बरोज़ मैं लुत्फ़ का बाइस थी, हर वक़्त उसके हुज़ूर रंगरलियाँ मनाती रही। \p \v 31 मैं उस की ज़मीन की सतह पर रंगरलियाँ मनाती और इनसान से लुत्फ़अंदोज़ होती रही। \b \p \v 32 चुनाँचे मेरे बेटो, मेरी सुनो, क्योंकि मुबारक हैं वह जो मेरी राहों पर चलते हैं। \p \v 33 मेरी तरबियत मानकर दानिशमंद बन जाओ, उसे नज़रंदाज़ मत करना। \p \v 34 मुबारक है वह जो मेरी सुने, जो रोज़ बरोज़ मेरे दरवाज़े पर चौकस खड़ा रहे, रोज़ाना मेरी चौखट पर हाज़िर रहे। \p \v 35 क्योंकि जो मुझे पाए वह ज़िंदगी और रब की मंज़ूरी पाता है। \p \v 36 लेकिन जो मुझे पाने से क़ासिर रहे वह अपनी जान पर ज़ुल्म करता है, जो भी मुझसे नफ़रत करे उसे मौत प्यारी है।” \c 9 \s1 हिकमत की ज़ियाफ़त \p \v 1 हिकमत ने अपना घर तामीर करके अपने लिए सात सतून तराश लिए हैं। \p \v 2 अपने जानवरों को ज़बह करने और अपनी मै तैयार करने के बाद उसने अपनी मेज़ बिछाई है। \v 3 अब उसने अपनी नौकरानियों को भेजा है, और ख़ुद भी लोगों को शहर की बुलंदियों से ज़ियाफ़त करने की दावत देती है, \p \v 4 “जो सादालौह है, वह मेरे पास आए।” नासमझ लोगों से वह कहती है, \v 5 “आओ, मेरी रोटी खाओ, वह मै पियो जो मैंने तैयार कर रखी है। \v 6 अपनी सादालौह राहों से बाज़ आओ तो जीते रहोगे, समझ की राह पर चल पड़ो।” \b \p \v 7 जो लान-तान करनेवाले को तालीम दे उस की अपनी रुसवाई हो जाएगी, और जो बेदीन को डाँटे उसे नुक़सान पहुँचेगा। \v 8 लान-तान करनेवाले की मलामत न कर वरना वह तुझसे नफ़रत करेगा। दानिशमंद की मलामत कर तो वह तुझसे मुहब्बत करेगा। \v 9 दानिशमंद को हिदायत दे तो उस की हिकमत मज़ीद बढ़ेगी, रास्तबाज़ को तालीम दे तो वह अपने इल्म में इज़ाफ़ा करेगा। \p \v 10 रब का ख़ौफ़ मानने से ही हिकमत शुरू होती है, क़ुद्दूस ख़ुदा को जानने से ही समझ हासिल होती है। \v 11 मुझसे ही तेरी उम्र के दिनों और सालों में इज़ाफ़ा होगा। \v 12 अगर तू दानिशमंद हो तो ख़ुद इससे फ़ायदा उठाएगा, अगर लान-तान करनेवाला हो तो तुझे ही इसका नुक़सान झेलना पड़ेगा। \s1 हमाक़त बीबी की ज़ियाफ़त \p \v 13 हमाक़त बीबी बेलगाम और नासमझ है, वह कुछ नहीं जानती। \v 14 उसका घर शहर की बुलंदी पर वाक़े है। दरवाज़े के पास कुरसी पर बैठी \v 15 वह गुज़रनेवालों को जो सीधी राह पर चलते हैं ऊँची आवाज़ से दावत देती है, \v 16 “जो सादालौह है वह मेरे पास आए।” \p जो नासमझ हैं उनसे वह कहती है, \v 17 “चोरी का पानी मीठा और पोशीदगी में खाई गई रोटी लज़ीज़ होती है।” \p \v 18 लेकिन उन्हें मालूम नहीं कि हमाक़त बीबी के घर में सिर्फ़ मुरदों की रूहें बसती हैं, कि उसके मेहमान पाताल की गहराइयों में रहते हैं। \c 10 \s1 सुलेमान की हिकमत भरी हिदायात \p \v 1 ज़ैल में सुलेमान की अमसाल क़लमबंद हैं। \s1 ज़िंदगीबख़्श बातें \p दानिशमंद बेटा अपने बाप को ख़ुशी दिलाता जबकि अहमक़ बेटा अपनी माँ को दुख पहुँचाता है। \p \v 2 ख़ज़ानों का कोई फ़ायदा नहीं अगर वह बेदीन तरीक़ों से जमा हो गए हों, लेकिन रास्तबाज़ी मौत से बचाए रखती है। \p \v 3 रब रास्तबाज़ को भूके मरने नहीं देता, लेकिन बेदीनों का लालच रोक देता है। \p \v 4 ढीले हाथ ग़ुरबत और मेहनती हाथ दौलत की तरफ़ ले जाते हैं। \p \v 5 जो गरमियों में फ़सल जमा करता है वह दानिशमंद बेटा है जबकि जो फ़सल की कटाई के वक़्त सोया रहता है वह वालिदैन के लिए शर्म का बाइस है। \p \v 6 रास्तबाज़ का सर बरकत के ताज से आरास्ता रहता है जबकि बेदीनों के मुँह पर ज़ुल्म का परदा पड़ा रहता है। \p \v 7 लोग रास्तबाज़ को याद करके उसे मुबारक कहते हैं, लेकिन बेदीन का नाम सड़कर मिट जाएगा। \p \v 8 जो दिल से दानिशमंद है वह अहकाम क़बूल करता है, लेकिन बकवासी तबाह हो जाएगा। \p \v 9 जिसका चाल-चलन बेइलज़ाम है वह सुकून से ज़िंदगी गुज़ारता है, लेकिन जो टेढ़ा रास्ता इख़्तियार करे उसे पकड़ा जाएगा। \p \v 10 आँख मारनेवाला दुख पहुँचाता है, और बकवासी तबाह हो जाएगा। \p \v 11 रास्तबाज़ का मुँह ज़िंदगी का सरचश्मा है, लेकिन बेदीन के मुँह पर ज़ुल्म का परदा पड़ा रहता है। \p \v 12 नफ़रत झगड़े छेड़ती रहती जबकि मुहब्बत तमाम ख़ताओं पर परदा डाल देती है। \p \v 13 समझदार के होंटों पर हिकमत पाई जाती है, लेकिन नासमझ सिर्फ़ डंडे का पैग़ाम समझता है। \p \v 14 दानिशमंद अपना इल्म महफ़ूज़ रखते हैं, लेकिन अहमक़ का मुँह जल्द ही तबाही की तरफ़ ले जाता है। \p \v 15 अमीर की दौलत क़िलाबंद शहर है जिसमें वह महफ़ूज़ है जबकि ग़रीब की ग़ुरबत उस की तबाही का बाइस है। \p \v 16 जो कुछ रास्तबाज़ कमा लेता है वह ज़िंदगी का बाइस है, लेकिन बेदीन अपनी रोज़ी गुनाह करने के लिए इस्तेमाल करता है। \p \v 17 जो तरबियत क़बूल करे वह दूसरों को ज़िंदगी की राह पर लाता है, जो नसीहत नज़रंदाज़ करे वह दूसरों को सहीह राह से दूर ले जाता है। \p \v 18 जो अपनी नफ़रत छुपाए रखे वह झूट बोलता है, जो दूसरों के बारे में ग़लत ख़बरें फैलाए वह अहमक़ है। \p \v 19 जहाँ बहुत बातें की जाती हैं वहाँ गुनाह भी आ मौजूद होता है, जो अपनी ज़बान को क़ाबू में रखे वह दानिशमंद है। \p \v 20 रास्तबाज़ की ज़बान उम्दा चाँदी है जबकि बेदीन के दिल की कोई क़दर नहीं। \p \v 21 रास्तबाज़ की ज़बान बहुतों की परवरिश करती है, \f + \fr 10:21 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : रास्तबाज़ के होंट बहुतों को चराते हैं। \f* लेकिन अहमक़ अपनी बेअक़्ली के बाइस हलाक हो जाते हैं। \p \v 22 रब की बरकत दौलत का बाइस है, हमारी अपनी मेहनत-मशक़्क़त इसमें इज़ाफ़ा नहीं करती। \p \v 23 अहमक़ ग़लत काम से अपना दिल बहलाता, लेकिन समझदार हिकमत से लुत्फ़अंदोज़ होता है। \p \v 24 जिस चीज़ से बेदीन दहशत खाता है वही उस पर आएगी, लेकिन रास्तबाज़ की आरज़ू पूरी हो जाएगी। \p \v 25 जब तूफ़ान आते हैं तो बेदीन का नामो-निशान मिट जाता जबकि रास्तबाज़ हमेशा तक क़ायम रहता है। \p \v 26 जिस तरह दाँत सिरके से और आँखें धुएँ से तंग आ जाती हैं उसी तरह वह तंग आ जाता है जो सुस्त आदमी से काम करवाता है। \p \v 27 जो रब का ख़ौफ़ माने उस की ज़िंदगी के दिनों में इज़ाफ़ा होता है जबकि बेदीन की ज़िंदगी वक़्त से पहले ही ख़त्म हो जाती है। \p \v 28 रास्तबाज़ आख़िरकार ख़ुशी मनाएँगे, क्योंकि उनकी उम्मीद बर आएगी। लेकिन बेदीनों की उम्मीद जाती रहेगी। \p \v 29 रब की राह बेइलज़ाम शख़्स के लिए पनाहगाह, लेकिन बदकार के लिए तबाही का बाइस है। \p \v 30 रास्तबाज़ कभी डाँवाँडोल नहीं होगा, लेकिन बेदीन मुल्क में आबाद नहीं रहेंगे। \p \v 31 रास्तबाज़ का मुँह हिकमत का फल लाता रहता है, लेकिन कजगो ज़बान को काट डाला जाएगा। \p \v 32 रास्तबाज़ के होंट जानते हैं कि अल्लाह को क्या पसंद है, लेकिन बेदीन का मुँह टेढ़ी बातें ही जानता है। \c 11 \p \v 1 रब ग़लत तराज़ू से घिन खाता है, वह सहीह तराज़ू ही से ख़ुश होता है। \p \v 2 जहाँ तकब्बुर है वहाँ बदनामी भी क़रीब ही रहती है, लेकिन जो हलीम है उसके दामन में हिकमत रहती है। \p \v 3 सीधी राह पर चलनेवालों की दियानतदारी उनकी राहनुमाई करती जबकि बेवफ़ाओं की नमकहरामी उन्हें तबाह करती है। \p \v 4 ग़ज़ब के दिन दौलत का कोई फ़ायदा नहीं जबकि रास्तबाज़ी लोगों की जान को छुड़ाती है। \p \v 5 बेइलज़ाम की रास्तबाज़ी उसका रास्ता हमवार बना देती है जबकि बेदीन की बुरी हरकतें उसे गिरा देती हैं। \p \v 6 सीधी राह पर चलनेवालों की रास्तबाज़ी उन्हें छुड़ा देती जबकि बेवफ़ाओं का लालच उन्हें फँसा देता है। \p \v 7 दम तोड़ते वक़्त बेदीन की सारी उम्मीद जाती रहती है, जिस दौलत की तवक़्क़ो उसने की वह जाती रहती है। \p \v 8 रास्तबाज़ की जान मुसीबत से छूट जाती है, और उस की जगह बेदीन फँस जाता है। \p \v 9 काफ़िर अपने मुँह से अपने पड़ोसी को तबाह करता है, लेकिन रास्तबाज़ों का इल्म उन्हें छुड़ाता है। \p \v 10 जब रास्तबाज़ कामयाब हों तो पूरा शहर जशन मनाता है, जब बेदीन हलाक हों तो ख़ुशी के नारे बुलंद हो जाते हैं। \p \v 11 सीधी राह पर चलनेवालों की बरकत से शहर तरक़्क़ी करता है, लेकिन बेदीन के मुँह से वह मिसमार हो जाता है। \p \v 12 नासमझ आदमी अपने पड़ोसी को हक़ीर जानता है जबकि समझदार आदमी ख़ामोश रहता है। \p \v 13 तोहमत लगानेवाला दूसरों के राज़ फ़ाश करता है, लेकिन क़ाबिले-एतमाद शख़्स वह भेद पोशीदा रखता है जो उसके सुपुर्द किया गया हो। \p \v 14 जहाँ क़ियादत की कमी है वहाँ क़ौम का तनज़्ज़ुल यक़ीनी है, जहाँ मुशीरों की कसरत है वहाँ क़ौम फ़तहयाब रहेगी। \p \v 15 जो अजनबी का ज़ामिन हो जाए उसे यक़ीनन नुक़सान पहुँचेगा, जो ज़ामिन बनने से इनकार करे वह महफ़ूज़ रहेगा। \p \v 16 नेक औरत इज़्ज़त से और ज़ालिम आदमी दौलत से लिपटे रहते हैं। \p \v 17 शफ़ीक़ का अच्छा सुलूक उसी के लिए फ़ायदामंद है जबकि ज़ालिम का बुरा सुलूक उसी के लिए नुक़सानदेह है। \p \v 18 जो कुछ बेदीन कमाता है वह फ़रेबदेह है, लेकिन जो रास्ती का बीज बोए उसका अज्र यक़ीनी है। \p \v 19 रास्तबाज़ी का फल ज़िंदगी है जबकि बुराई के पीछे भागनेवाले का अंजाम मौत है। \p \v 20 रब कजदिलों से घिन खाता है, वह बेइलज़ाम राह पर चलनेवालों ही से ख़ुश होता है। \p \v 21 यक़ीन करो, बदकार सज़ा से नहीं बचेगा जबकि रास्तबाज़ों के फ़रज़ंद छूट जाएंगे। \p \v 22 जिस तरह सुअर की थूथनी में सोने का छल्ला खटकता है उसी तरह ख़ूबसूरत औरत की बेतमीज़ी खटकती है। \p \v 23 अल्लाह रास्तबाज़ों की आरज़ू अच्छी चीज़ों से पूरी करता है, लेकिन उसका ग़ज़ब बेदीनों की उम्मीद पर नाज़िल होता है। \p \v 24 एक आदमी की दौलत में इज़ाफ़ा होता है, गो वह फ़ैयाज़दिली से तक़सीम करता है। दूसरे की ग़ुरबत में इज़ाफ़ा होता है, गो वह हद से ज़्यादा कंजूस है। \p \v 25 फ़ैयाज़दिल ख़ुशहाल रहेगा, जो दूसरों को तरो-ताज़ा करे वह ख़ुद ताज़ादम रहेगा। \p \v 26 लोग गंदुम के ज़खीराअंदोज़ पर लानत भेजते हैं, लेकिन जो गंदुम को बाज़ार में आने देता है उसके सर पर बरकत आती है। \p \v 27 जो भलाई की तलाश में रहे वह अल्लाह की मंज़ूरी चाहता है, लेकिन जो बुराई की तलाश में रहे वह ख़ुद बुराई के फंदे में फँस जाएगा। \p \v 28 जो अपनी दौलत पर भरोसा रखे वह गिर जाएगा, लेकिन रास्तबाज़ हरे-भरे पत्तों की तरह फलें-फूलेंगे। \p \v 29 जो अपने घर में गड़बड़ पैदा करे वह मीरास में हवा ही पाएगा। अहमक़ दानिशमंद का नौकर बनेगा। \p \v 30 रास्तबाज़ का फल ज़िंदगी का दरख़्त है, और दानिशमंद आदमी जानें जीतता है। \p \v 31 रास्तबाज़ को ज़मीन पर ही अज्र मिलता है। तो फिर बेदीन और गुनाहगार सज़ा क्यों न पाएँ? \c 12 \p \v 1 जिसे इल्मो-इरफ़ान प्यारा है उसे तरबियत भी प्यारी है, जिसे नसीहत से नफ़रत है वह बेअक़्ल है। \p \v 2 रब अच्छे आदमी से ख़ुश होता है जबकि वह साज़िश करनेवाले को क़ुसूरवार ठहराता है। \p \v 3 इनसान बेदीनी की बुनियाद पर क़ायम नहीं रह सकता जबकि रास्तबाज़ की जड़ें उखाड़ी नहीं जा सकतीं। \p \v 4 सुघड़ बीवी अपने शौहर का ताज है, लेकिन जो शौहर की रुसवाई का बाइस है वह उस की हड्डियों में सड़ाहट की मानिंद है। \p \v 5 रास्तबाज़ के ख़यालात मुंसिफ़ाना हैं जबकि बेदीनों के मनसूबे फ़रेबदेह हैं। \p \v 6 बेदीनों के अलफ़ाज़ लोगों को क़त्ल करने की ताक में रहते हैं जबकि सीधी राह पर चलनेवालों की बातें लोगों को छुड़ा लेती हैं। \p \v 7 बेदीनों को ख़ाक में यों मिलाया जाता है कि उनका नामो-निशान तक नहीं रहता, लेकिन रास्तबाज़ का घर क़ायम रहता है। \p \v 8 किसी की जितनी अक़्लो-समझ है उतना ही लोग उस की तारीफ़ करते हैं, लेकिन जिसके ज़हन में फ़ुतूर है उसे हक़ीर जाना जाता है। \p \v 9 निचले तबक़े का जो आदमी अपनी ज़िम्मादारियाँ अदा करता है वह उस आदमी से कहीं बेहतर है जो नख़रा बघारता है गो उसके पास रोटी भी नहीं है। \p \v 10 रास्तबाज़ अपने मवेशी का भी ख़याल करता है जबकि बेदीन का दिल ज़ालिम ही ज़ालिम है। \p \v 11 जो अपनी ज़मीन की खेतीबाड़ी करे उसके पास कसरत का खाना होगा, लेकिन जो फ़ज़ूल चीज़ों के पीछे पड़ जाए वह नासमझ है। \p \v 12 बेदीन दूसरों को जाल में फँसाने से अपना दिल बहलाता है, लेकिन रास्तबाज़ की जड़ फलदार होती है। \p \v 13 शरीर अपनी ग़लत बातों के जाल में उलझ जाता जबकि रास्तबाज़ मुसीबत से बच जाता है। \p \v 14 इनसान अपने मुँह के फल से ख़ूब सेर हो जाता है, और जो काम उसके हाथों ने किया उसका अज्र उसे ज़रूर मिलेगा। \p \v 15 अहमक़ की नज़र में उस की अपनी राह ठीक है, लेकिन दानिशमंद दूसरों के मशवरे पर ध्यान देता है। \p \v 16 अहमक़ एकदम अपनी नाराज़ी का इज़हार करता है, लेकिन दाना अपनी बदनामी छुपाए रखता है। \p \v 17 दियानतदार गवाह खुले तौर पर सच्चाई बयान करता है जबकि झूटा गवाह धोका ही धोका पेश करता है। \p \v 18 गप्पें हाँकनेवाले की बातें तलवार की तरह ज़ख़मी कर देती हैं जबकि दानिशमंद की ज़बान शफ़ा देती है। \p \v 19 सच्चे होंट हमेशा तक क़ायम रहते हैं जबकि झूटी ज़बान एक ही लमहे के बाद ख़त्म हो जाती है। \p \v 20 बुरे मनसूबे बाँधनेवाले का दिल धोके से भरा रहता जबकि सलामती के मशवरे देनेवाले का दिल ख़ुशी से छलकता है। \p \v 21 कोई भी आफ़त रास्तबाज़ पर नहीं आएगी जबकि दुख तकलीफ़ बेदीनों का दामन कभी नहीं छोड़ेगी। \p \v 22 रब फ़रेबदेह होंटों से घिन खाता है, लेकिन जो वफ़ादारी से ज़िंदगी गुज़ारते हैं उनसे वह ख़ुश होता है। \p \v 23 समझदार अपना इल्म छुपाए रखता जबकि अहमक़ अपने दिल की हमाक़त बुलंद आवाज़ से सबको पेश करता है। \p \v 24 जिसके हाथ मेहनती हैं वह हुकूमत करेगा, लेकिन जिसके हाथ ढीले हैं उसे बेगार में काम करना पड़ेगा। \p \v 25 जिसके दिल में परेशानी है वह दबा रहता है, लेकिन कोई भी अच्छी बात उसे ख़ुशी दिलाती है। \p \v 26 रास्तबाज़ अपनी चरागाह मालूम कर लेता है, लेकिन बेदीनों की राह उन्हें आवारा फिरने देती है। \p \v 27 ढीला आदमी अपना शिकार नहीं पकड़ सकता जबकि मेहनती शख़्स कसरत का माल हासिल कर लेता है। \p \v 28 रास्ती की राह में ज़िंदगी है, लेकिन ग़लत राह मौत तक पहुँचाती है। \c 13 \p \v 1 दानिशमंद बेटा अपने बाप की तरबियत क़बूल करता है, लेकिन तानाज़न परवा ही नहीं करता अगर कोई उसे डाँटे। \p \v 2 इनसान अपने मुँह के अच्छे फल से ख़ूब सेर हो जाता है, लेकिन बेवफ़ा के दिल में ज़ुल्म का लालच रहता है। \p \v 3 जो अपनी ज़बान क़ाबू में रखे वह अपनी ज़िंदगी महफ़ूज़ रखता है, जो अपनी ज़बान को बेलगाम छोड़ दे वह तबाह हो जाएगा। \p \v 4 काहिल आदमी लालच करता है, लेकिन उसे कुछ नहीं मिलता जबकि मेहनती शख़्स की आरज़ू पूरी हो जाती है। \p \v 5 रास्तबाज़ झूट से नफ़रत करता है, लेकिन बेदीन शर्म और रुसवाई का बाइस है। \p \v 6 रास्ती बेइलज़ाम की हिफ़ाज़त करती जबकि बेदीनी गुनाहगार को तबाह कर देती है। \p \v 7 कुछ लोग अमीर का रूप भरकर फिरते हैं गो ग़रीब हैं। दूसरे ग़रीब का रूप भरकर फिरते हैं गो अमीरतरीन हैं। \p \v 8 कभी अमीर को अपनी जान छुड़ाने के लिए ऐसा तावान देना पड़ता है कि तमाम दौलत जाती रहती है, लेकिन ग़रीब की जान इस क़िस्म की धमकी से बची रहती है। \p \v 9 रास्तबाज़ की रौशनी चमकती रहती \f + \fr 13:9 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : ख़ुशी मनाती। \f* जबकि बेदीन का चराग़ बुझ जाता है। \p \v 10 मग़रूरों में हमेशा झगड़ा होता है जबकि दानिशमंद सलाह-मशवरे के मुताबिक़ ही चलते हैं। \p \v 11 जल्दबाज़ी से हासिलशुदा दौलत जल्द ही ख़त्म हो जाती है जबकि जो रफ़्ता रफ़्ता अपना माल जमा करे वह उसे बढ़ाता रहेगा। \p \v 12 जो उम्मीद वक़्त पर पूरी न हो जाए वह दिल को बीमार कर देती है, लेकिन जो आरज़ू पूरी हो जाए वह ज़िंदगी का दरख़्त है। \p \v 13 जो अच्छी हिदायत को हक़ीर जाने उसे नुक़सान पहुँचेगा, लेकिन जो हुक्म माने उसे अज्र मिलेगा। \p \v 14 दानिशमंद की हिदायत ज़िंदगी का सरचश्मा है जो इनसान को मोहलक फंदों से बचाए रखती है। \p \v 15 अच्छी समझ मंज़ूरी अता करती है, लेकिन बेवफ़ा की राह अबदी तबाही का बाइस है। \p \v 16 ज़हीन हर काम सोच-समझकर करता, लेकिन अहमक़ तमाम नज़रों के सामने ही अपनी हमाक़त की नुमाइश करता है। \p \v 17 बेदीन क़ासिद मुसीबत में फँस जाता जबकि वफ़ादार क़ासिद शफ़ा का बाइस है। \p \v 18 जो तरबियत की परवा न करे उसे ग़ुरबत और शरमिंदगी हासिल होगी, लेकिन जो दूसरे की नसीहत मान जाए उसका एहतराम किया जाएगा। \p \v 19 जो आरज़ू पूरी हो जाए वह दिल को तरो-ताज़ा करती है, लेकिन अहमक़ बुराई से दरेग़ करने से घिन खाता है। \p \v 20 जो दानिशमंदों के साथ चले वह ख़ुद दानिशमंद हो जाएगा, लेकिन जो अहमक़ों के साथ चले उसे नुक़सान पहुँचेगा। \p \v 21 मुसीबत गुनाहगार का पीछा करती है जबकि रास्तबाज़ों का अज्र ख़ुशहाली है। \p \v 22 नेक आदमी के बेटे और पोते उस की मीरास पाएँगे, लेकिन गुनाहगार की दौलत रास्तबाज़ के लिए महफ़ूज़ रखी जाएगी। \p \v 23 ग़रीब का खेत कसरत की फ़सलें मुहैया कर सकता है, लेकिन जहाँ इनसाफ़ नहीं वहाँ सब कुछ छीन लिया जाता है। \p \v 24 जो अपने बेटे को तंबीह नहीं करता वह उससे नफ़रत करता है। जो उससे मुहब्बत रखे वह वक़्त पर उस की तरबियत करता है। \p \v 25 रास्तबाज़ जी भरकर खाना खाता है, लेकिन बेदीन का पेट ख़ाली रहता है। \c 14 \p \v 1 हिकमत बीबी अपना घर तामीर करती है, लेकिन हमाक़त बीबी अपने ही हाथों से उसे ढा देती है। \p \v 2 जो सीधी राह पर चलता है वह अल्लाह का ख़ौफ़ मानता है, लेकिन जो ग़लत राह पर चलता है वह उसे हक़ीर जानता है। \p \v 3 अहमक़ की बातों से वह डंडा निकलता है जो उसे उसके तकब्बुर की सज़ा देता है, लेकिन दानिशमंद के होंट उसे महफ़ूज़ रखते हैं। \p \v 4 जहाँ बैल नहीं वहाँ चरनी ख़ाली रहती है, बैल की ताक़त ही से कसरत की फ़सलें पैदा होती हैं। \p \v 5 वफ़ादार गवाह झूट नहीं बोलता, लेकिन झूटे गवाह के मुँह से झूट निकलता है। \p \v 6 तानाज़न हिकमत को ढूँडता है, लेकिन बेफ़ायदा। समझदार के इल्म में आसानी से इज़ाफ़ा होता है। \p \v 7 अहमक़ से दूर रह, क्योंकि तू उस की बातों में इल्म नहीं पाएगा। \p \v 8 ज़हीन की हिकमत इसमें है कि वह सोच-समझकर अपनी राह पर चले, लेकिन अहमक़ की हमाक़त सरासर धोका ही है। \p \v 9 अहमक़ अपने क़ुसूर का मज़ाक़ उड़ाते हैं, लेकिन सीधी राह पर चलनेवाले रब को मंज़ूर हैं। \p \v 10 हर दिल की अपनी ही तलख़ी होती है जिससे सिर्फ़ वही वाक़िफ़ है, और उस की ख़ुशी में भी कोई और शरीक नहीं हो सकता। \p \v 11 बेदीन का घर तबाह हो जाएगा, लेकिन सीधी राह पर चलनेवाले का ख़ैमा फले-फूलेगा। \p \v 12 ऐसी राह भी होती है जो देखने में ठीक तो लगती है गो उसका अंजाम मौत है। \p \v 13 दिल हँसते वक़्त भी रंजीदा हो सकता है, और ख़ुशी के इख़्तिताम पर दुख ही बाक़ी रह जाता है। \p \v 14 जिसका दिल बेवफ़ा है वह जी भरकर अपने चाल-चलन का कड़वा फल खाएगा जबकि नेक आदमी अपने आमाल के मीठे फल से सेर हो जाएगा। \p \v 15 सादालौह हर एक की बात मान लेता है जबकि ज़हीन आदमी अपना हर क़दम सोच-समझकर उठाता है। \p \v 16 दानिशमंद डरते डरते ग़लत काम से दरेग़ करता है, लेकिन अहमक़ ख़ुदएतमाद है और एकदम मुश्तइल हो जाता है। \p \v 17 ग़ुसीला आदमी अहमक़ाना हरकतें करता है, और लोग साज़िशी शख़्स से नफ़रत करते हैं। \p \v 18 सादालौह मीरास में हमाक़त पाता है जबकि ज़हीन आदमी का सर इल्म के ताज से आरास्ता रहता है। \p \v 19 शरीरों को नेकों के सामने झुकना पड़ेगा, और बेदीनों को रास्तबाज़ के दरवाज़े पर औंधे मुँह होना पड़ेगा। \p \v 20 ग़रीब के हमसाये भी उससे नफ़रत करते हैं जबकि अमीर के बेशुमार दोस्त होते हैं। \p \v 21 जो अपने पड़ोसी को हक़ीर जाने वह गुनाह करता है। मुबारक है वह जो ज़रूरतमंद पर तरस खाता है। \p \v 22 बुरे मनसूबे बाँधनेवाले सब आवारा फिरते हैं। लेकिन अच्छे मनसूबे बाँधनेवाले शफ़क़त और वफ़ा पाएँगे। \p \v 23 मेहनत-मशक़्क़त करने में हमेशा फ़ायदा होता है, जबकि ख़ाली बातें करने से लोग ग़रीब हो जाते हैं। \p \v 24 दानिशमंदों का अज्र दौलत का ताज है जबकि अहमक़ों का अज्र हमाक़त ही है। \p \v 25 सच्चा गवाह जानें बचाता है जबकि झूटा गवाह फ़रेबदेह है। \p \v 26 जो रब का ख़ौफ़ माने उसके पास महफ़ूज़ क़िला है जिसमें उस की औलाद भी पनाह ले सकती है। \p \v 27 रब का ख़ौफ़ ज़िंदगी का सरचश्मा है जो इनसान को मोहलक फंदों से बचाए रखता है। \p \v 28 जितनी आबादी मुल्क में है उतनी ही बादशाह की शानो-शौकत है। रिआया की कमी हुक्मरान के तनज़्ज़ुल का बाइस है। \p \v 29 तहम्मुल करनेवाला बड़ी समझदारी का मालिक है, लेकिन ग़ुसीला आदमी अपनी हमाक़त का इज़हार करता है। \p \v 30 पुरसुकून दिल जिस्म को ज़िंदगी दिलाता जबकि हसद हड्डियों को गलने देता है। \p \v 31 जो पस्तहाल पर ज़ुल्म करे वह उसके ख़ालिक़ की तहक़ीर करता है जबकि जो ज़रूरतमंद पर तरस खाए वह अल्लाह का एहतराम करता है। \p \v 32 बेदीन की बुराई उसे ख़ाक में मिला देती है, लेकिन रास्तबाज़ मरते वक़्त भी अल्लाह में पनाह लेता है। \p \v 33 हिकमत समझदार के दिल में आराम करती है, और वह अहमक़ों के दरमियान भी ज़ाहिर हो जाती है। \p \v 34 रास्ती से हर क़ौम सरफ़राज़ होती है जबकि गुनाह से उम्मतें रुसवा हो जाती हैं। \p \v 35 बादशाह दानिशमंद मुलाज़िम से ख़ुश होता है, लेकिन शर्मनाक काम करनेवाला मुलाज़िम उसके ग़ुस्से का निशाना बन जाता है। \c 15 \p \v 1 नरम जवाब ग़ुस्सा ठंडा करता, लेकिन तुरश बात तैश दिलाती है। \p \v 2 दानिशमंदों की ज़बान इल्मो-इरफ़ान फैलाती है जबकि अहमक़ का मुँह हमाक़त का ज़ोर से उबलनेवाला चश्मा है। \p \v 3 रब की आँखें हर जगह मौजूद हैं, वह बुरे और भले सब पर ध्यान देती हैं। \p \v 4 नरम ज़बान ज़िंदगी का दरख़्त है जबकि फ़रेबदेह ज़बान शिकस्तादिल कर देती है। \p \v 5 अहमक़ अपने बाप की तरबियत को हक़ीर जानता है, लेकिन जो नसीहत माने वह दानिशमंद है। \p \v 6 रास्तबाज़ के घर में बड़ा ख़ज़ाना होता है, लेकिन जो कुछ बेदीन हासिल करता है वह तबाही का बाइस है। \p \v 7 दानिशमंदों के होंट इल्मो-इरफ़ान का बीज बिखेर देते हैं, लेकिन अहमक़ों का दिल ऐसा नहीं करता। \p \v 8 रब बेदीनों की क़ुरबानी से घिन खाता, लेकिन सीधी राह पर चलनेवालों की दुआ से ख़ुश होता है। \p \v 9 रब बेदीन की राह से घिन खाता, लेकिन रास्ती का पीछा करनेवाले से प्यार करता है। \p \v 10 जो सहीह राह को तर्क करे उस की सख़्त तादीब की जाएगी, जो नसीहत से नफ़रत करे वह मर जाएगा। \p \v 11 पाताल और आलमे-अरवाह रब को साफ़ नज़र आते हैं। तो फिर इनसानों के दिल उसे क्यों न साफ़ दिखाई दें? \p \v 12 तानाज़न को दूसरों की नसीहत पसंद नहीं आती, इसलिए वह दानिशमंदों के पास नहीं जाता। \p \v 13 जिसका दिल ख़ुश है उसका चेहरा खुला रहता है, लेकिन जिसका दिल परेशान है उस की रूह शिकस्ता रहती है। \p \v 14 समझदार का दिल इल्मो-इरफ़ान की तलाश में रहता, लेकिन अहमक़ हमाक़त की चरागाह में चरता रहता है। \p \v 15 मुसीबतज़दा के तमाम दिन बुरे हैं, लेकिन जिसका दिल ख़ुश है वह रोज़ाना जशन मनाता है। \p \v 16 जो ग़रीब रब का ख़ौफ़ मानता है उसका हाल उस करोड़पति से कहीं बेहतर है जो बड़ी बेचैनी से ज़िंदगी गुज़ारता है। \p \v 17 जहाँ मुहब्बत है वहाँ सब्ज़ी का सालन बहुत है, जहाँ नफ़रत है वहाँ मोटे-ताज़े बछड़े की ज़ियाफ़त भी बेफ़ायदा है। \p \v 18 ग़ुसीला आदमी झगड़े छेड़ता रहता जबकि तहम्मुल करनेवाला लोगों के ग़ुस्से को ठंडा कर देता है। \p \v 19 काहिल का रास्ता काँटेदार बाड़ की मानिंद है, लेकिन दियानतदारों की राह पक्की सड़क ही है। \p \v 20 दानिशमंद बेटा अपने बाप के लिए ख़ुशी का बाइस है, लेकिन अहमक़ अपनी माँ को हक़ीर जानता है। \p \v 21 नासमझ आदमी हमाक़त से लुत्फ़अंदोज़ होता, लेकिन समझदार आदमी सीधी राह पर चलता है। \p \v 22 जहाँ सलाह-मशवरा नहीं होता वहाँ मनसूबे नाकाम रह जाते हैं, जहाँ बहुत-से मुशीर होते हैं वहाँ कामयाबी होती है। \p \v 23 इनसान मौज़ूँ जवाब देने से ख़ुश हो जाता है, वक़्त पर मुनासिब बात कितनी अच्छी होती है। \p \v 24 ज़िंदगी की राह चढ़ती रहती है ताकि समझदार उस पर चलते हुए पाताल में उतरने से बच जाए। \p \v 25 रब मुतकब्बिर का घर ढा देता, लेकिन बेवा की ज़मीन की हुदूद महफ़ूज़ रखता है। \p \v 26 रब बुरे मनसूबों से घिन खाता है, और मेहरबान अलफ़ाज़ उसके नज़दीक पाक हैं। \p \v 27 जो नाजायज़ नफ़ा कमाए वह अपने घर पर आफ़त लाता है, लेकिन जो रिश्वत से नफ़रत रखे वह जीता रहेगा। \p \v 28 रास्तबाज़ का दिल सोच-समझकर जवाब देता है, लेकिन बेदीन का मुँह ज़ोर से उबलनेवाला चश्मा है जिससे बुरी बातें निकलती रहती हैं। \p \v 29 रब बेदीनों से दूर रहता, लेकिन रास्तबाज़ की दुआ सुनता है। \p \v 30 चमकती आँखें दिल को ख़ुशी दिलाती हैं, अच्छी ख़बर पूरे जिस्म को तरो-ताज़ा कर देती है। \p \v 31 जो ज़िंदगीबख़्श नसीहत पर ध्यान दे वह दानिशमंदों के दरमियान ही सुकूनत करेगा। \p \v 32 जो तरबियत की परवा न करे वह अपने आपको हक़ीर जानता है, लेकिन जो नसीहत पर ध्यान दे उस की समझ में इज़ाफ़ा होता है। \p \v 33 रब का ख़ौफ़ ही वह तरबियत है जिससे इनसान हिकमत सीखता है। पहले फ़रोतनी अपना ले, क्योंकि यही इज़्ज़त पाने का पहला क़दम है। \c 16 \p \v 1 इनसान दिल में मनसूबे बाँधता है, लेकिन ज़बान का जवाब रब की तरफ़ से आता है। \p \v 2 इनसान की नज़र में उस की तमाम राहें पाक-साफ़ हैं, लेकिन रब ही रूहों की जाँच-पड़ताल करता है। \p \v 3 जो कुछ भी तू करना चाहे उसे रब के सुपुर्द कर। तब ही तेरे मनसूबे कामयाब होंगे। \p \v 4 रब ने सब कुछ अपने ही मक़ासिद पूरे करने के लिए बनाया है। वह दिन भी पहले से मुक़र्रर है जब बेदीन पर आफ़त आएगी। \p \v 5 रब हर मग़रूर दिल से घिन खाता है। यक़ीनन वह सज़ा से नहीं बचेगा। \p \v 6 शफ़क़त और वफ़ादारी गुनाह का कफ़्फ़ारा देती हैं। रब का ख़ौफ़ मानने से इनसान बुराई से दूर रहता है। \p \v 7 अगर रब किसी इनसान की राहों से ख़ुश हो तो वह उसके दुश्मनों को भी उससे सुलह कराने देता है। \p \v 8 इनसाफ़ से थोड़ा-बहुत कमाना नाइनसाफ़ी से बहुत दौलत जमा करने से कहीं बेहतर है। \p \v 9 इनसान अपने दिल में मनसूबे बाँधता रहता है, लेकिन रब ही मुक़र्रर करता है कि वह आख़िरकार किस राह पर चल पड़े। \p \v 10 बादशाह के होंट गोया इलाही फ़ैसले पेश करते हैं, उसका मुँह अदालत करते वक़्त बेवफ़ा नहीं होता। \p \v 11 रब दुरुस्त तराज़ू का मालिक है, उसी ने तमाम बाटों का इंतज़ाम क़ायम किया। \p \v 12 बादशाह बेदीनी से घिन खाता है, क्योंकि उसका तख़्त रास्तबाज़ी की बुनियाद पर मज़बूत रहता है। \p \v 13 बादशाह रास्तबाज़ होंटों से ख़ुश होता और साफ़ बात करनेवाले से मुहब्बत रखता है। \p \v 14 बादशाह का ग़ुस्सा मौत का पेशख़ैमा है, लेकिन दानिशमंद उसे ठंडा करने के तरीक़े जानता है। \p \v 15 जब बादशाह का चेहरा खिल उठे तो मतलब ज़िंदगी है। उस की मंज़ूरी मौसमे-बहार के तरो-ताज़ा करनेवाले बादल की मानिंद है। \p \v 16 हिकमत का हुसूल सोने से कहीं बेहतर और समझ पाना चाँदी से कहीं बढ़कर है। \p \v 17 दियानतदार की मज़बूत राह बुरे काम से दूर रहती है, जो अपनी राह की पहरादारी करे वह अपनी जान बचाए रखता है। \p \v 18 तबाही से पहले ग़ुरूर और गिरने से पहले तकब्बुर आता है। \p \v 19 फ़रोतनी से ज़रूरतमंदों के दरमियान बसना घमंडियों के लूटे हुए माल में शरीक होने से कहीं बेहतर है। \p \v 20 जो कलाम पर ध्यान दे वह ख़ुशहाल होगा, मुबारक है वह जो रब पर भरोसा रखे। \p \v 21 जो दिल से दानिशमंद है उसे समझदार क़रार दिया जाता है, और मीठे अलफ़ाज़ तालीम में इज़ाफ़ा करते हैं। \p \v 22 फ़हम अपने मालिक के लिए ज़िंदगी का सरचश्मा है, लेकिन अहमक़ की अपनी ही हमाक़त उसे सज़ा देती है। \p \v 23 दानिशमंद का दिल समझ की बातें ज़बान पर लाता और तालीम देने में होंटों का सहारा बनता है। \p \v 24 मेहरबान अलफ़ाज़ ख़ालिस शहद हैं, वह जान के लिए शीरीं और पूरे जिस्म को तरो-ताज़ा कर देते हैं। \p \v 25 ऐसी राह भी होती है जो देखने में तो ठीक लगती है गो उसका अंजाम मौत है। \p \v 26 मज़दूर का ख़ाली पेट उसे काम करने पर मजबूर करता, उस की भूक उसे हाँकती रहती है। \p \v 27 शरीर कुरेद कुरेदकर ग़लत काम निकाल लेता, उसके होंटों पर झुलसानेवाली आग रहती है। \p \v 28 कजरौ आदमी झगड़े छेड़ता रहता, और तोहमत लगानेवाला दिली दोस्तों में भी रख़ना डालता है। \p \v 29 ज़ालिम अपने पड़ोसी को वरग़लाकर ग़लत राह पर ले जाता है। \p \v 30 जो आँख मारे वह ग़लत मनसूबे बाँध रहा है, जो अपने होंट चबाए वह ग़लत काम करने पर तुला हुआ है। \p \v 31 सफ़ेद बाल एक शानदार ताज हैं जो रास्तबाज़ ज़िंदगी गुज़ारने से हासिल होते हैं। \p \v 32 तहम्मुल करनेवाला सूरमे से सबक़त लेता है, जो अपने आपको क़ाबू में रखे वह शहर को शिकस्त देनेवाले से बरतर है। \p \v 33 इनसान तो क़ुरा डालता है, लेकिन उसका हर फ़ैसला रब की तरफ़ से है। \c 17 \p \v 1 जिस घर में रोटी का बासी टुकड़ा सुकून के साथ खाया जाए वह उस घर से कहीं बेहतर है जिसमें लड़ाई-झगड़ा है, ख़ाह उसमें कितनी शानदार ज़ियाफ़त क्यों न हो रही हो। \p \v 2 समझदार मुलाज़िम मालिक के उस बेटे पर क़ाबू पाएगा जो शर्म का बाइस है, और जब भाइयों में मौरूसी मिलकियत तक़सीम की जाए तो उसे भी हिस्सा मिलेगा। \p \v 3 सोना-चाँदी कुठाली में पिघलाकर पाक-साफ़ की जाती है, लेकिन रब ही दिल की जाँच-पड़ताल करता है। \p \v 4 बदकार शरीर होंटों पर ध्यान और धोकेबाज़ तबाहकुन ज़बान पर तवज्जुह देता है। \p \v 5 जो ग़रीब का मज़ाक़ उड़ाए वह उसके ख़ालिक़ की तहक़ीर करता है, जो दूसरे की मुसीबत देखकर ख़ुश हो जाए वह सज़ा से नहीं बचेगा। \p \v 6 पोते बूढ़ों का ताज और वालिदैन अपने बच्चों के ज़ेवर हैं। \p \v 7 अहमक़ के लिए बड़ी बड़ी बातें करना मौज़ूँ नहीं, लेकिन शरीफ़ होंटों पर फ़रेब कहीं ज़्यादा ग़ैरमुनासिब है। \p \v 8 रिश्वत देनेवाले की नज़र में रिश्वत जादू की मानिंद है। जिस दरवाज़े पर भी खटखटाए वह खुल जाता है। \p \v 9 जो दूसरे की ग़लती को दरगुज़र करे वह मुहब्बत को फ़रोग़ देता है, लेकिन जो माज़ी की ग़लतियाँ दोहराता रहे वह क़रीबी दोस्तों में निफ़ाक़ पैदा करता है। \p \v 10 अगर समझदार को डाँटा जाए तो वह ख़ूब सीख लेता है, लेकिन अगर अहमक़ को सौ बार मारा जाए तो भी वह इतना नहीं सीखता। \p \v 11 शरीर सरकशी पर तुला रहता है, लेकिन उसके ख़िलाफ़ ज़ालिम क़ासिद भेजा जाएगा। \p \v 12 जो अहमक़ अपनी हमाक़त में उलझा हुआ हो उससे दरेग़ कर, क्योंकि उससे मिलने से बेहतर यह है कि तेरा उस रीछनी से वास्ता पड़े जिसके बच्चे उससे छीन लिए गए हों। \p \v 13 जो भलाई के एवज़ बुराई करे उसके घर से बुराई कभी दूर नहीं होगी। \p \v 14 लड़ाई-झगड़ा छेड़ना बंद में रख़ना डालने के बराबर है। इससे पहले कि मुक़दमाबाज़ी शुरू हो उससे बाज़ आ। \p \v 15 जो बेदीन को बेक़ुसूर और रास्तबाज़ को मुजरिम ठहराए उससे रब घिन खाता है। \p \v 16 अहमक़ के हाथ में पैसों का क्या फ़ायदा है? क्या वह हिकमत ख़रीद सकता है जबकि उसमें अक़्ल नहीं? हरगिज़ नहीं! \p \v 17 पड़ोसी वह है जो हर वक़्त मुहब्बत रखता है, भाई वह है जो मुसीबत में सहारा देने के लिए पैदा हुआ है। \p \v 18 जो हाथ मिलाकर अपने पड़ोसी का ज़ामिन होने का वादा करे वह नासमझ है। \p \v 19 जो लड़ाई-झगड़े से मुहब्बत रखे वह गुनाह से मुहब्बत रखता है, जो अपना दरवाज़ा हद से ज़्यादा बड़ा बनाए वह तबाही को दाख़िल होने की दावत देता है। \p \v 20 जिसका दिल टेढ़ा है वह ख़ुशहाली नहीं पाएगा, और जिसकी ज़बान चालाक है वह मुसीबत में उलझ जाएगा। \p \v 21 जिसके हाँ अहमक़ बेटा पैदा हो जाए उसे दुख पहुँचता है, और अक़्ल से ख़ाली बेटा बाप के लिए ख़ुशी का बाइस नहीं होता। \p \v 22 ख़ुशबाश दिल पूरे जिस्म को शफ़ा देता है, लेकिन शिकस्ता रूह हड्डियों को ख़ुश्क कर देती है। \p \v 23 बेदीन चुपके से रिश्वत लेकर इनसाफ़ की राहों को बिगाड़ देता है। \p \v 24 समझदार अपनी नज़र के सामने हिकमत रखता है, लेकिन अहमक़ की नज़रें दुनिया की इंतहा तक आवारा फिरती हैं। \p \v 25 अहमक़ बेटा बाप के लिए रंज का बाइस और माँ के लिए तलख़ी का सबब है। \p \v 26 बेक़ुसूर पर जुरमाना लगाना ग़लत है, और शरीफ़ को उस की दियानतदारी के सबब से कोड़े लगाना बुरा है। \p \v 27 जो अपनी ज़बान को क़ाबू में रखे वह इल्मो-इरफ़ान का मालिक है, जो ठंडे दिल से बात करे वह समझदार है। \p \v 28 अगर अहमक़ ख़ामोश रहे तो वह भी दानिशमंद लगता है। जब तक वह बात न करे लोग उसे समझदार क़रार देते हैं। \c 18 \p \v 1 जो दूसरों से अलग हो जाए वह अपने ज़ाती मक़ासिद पूरे करना चाहता और समझ की हर बात पर झगड़ने लगता है। \p \v 2 अहमक़ समझ से लुत्फ़अंदोज़ नहीं होता बल्कि सिर्फ़ अपने दिल की बातें दूसरों पर ज़ाहिर करने से। \p \v 3 जहाँ बेदीन आए वहाँ हिक़ारत भी आ मौजूद होती, और जहाँ रुसवाई हो वहाँ तानाज़नी भी होती है। \p \v 4 इनसान के अलफ़ाज़ गहरा पानी हैं, हिकमत का सरचश्मा बहती हुई नदी है। \p \v 5 बेदीन की जानिबदारी करके रास्तबाज़ का हक़ मारना ग़लत है। \p \v 6 अहमक़ के होंट लड़ाई-झगड़ा पैदा करते हैं, उसका मुँह ज़ोर से पिटाई का मुतालबा करता है। \p \v 7 अहमक़ का मुँह उस की तबाही का बाइस है, उसके होंट ऐसा फंदा हैं जिसमें उस की अपनी जान उलझ जाती है। \p \v 8 तोहमत लगानेवाले की बातें लज़ीज़ खाने के लुक़मों की मानिंद हैं, वह दिल की तह तक उतर जाती हैं। \p \v 9 जो अपने काम में ज़रा भी ढीला हो जाए, उसे याद रहे कि ढीलेपन का भाई तबाही है। \p \v 10 रब का नाम मज़बूत बुर्ज है जिसमें रास्तबाज़ भागकर महफ़ूज़ रहता है। \p \v 11 अमीर समझता है कि मेरी दौलत मेरा क़िलाबंद शहर और मेरी ऊँची चारदीवारी है जिसमें मैं महफ़ूज़ हूँ। \p \v 12 तबाह होने से पहले इनसान का दिल मग़रूर हो जाता है, इज़्ज़त मिलने से पहले लाज़िम है कि वह फ़रोतन हो जाए। \p \v 13 दूसरे की बात सुनने से पहले जवाब देना हमाक़त है। जो ऐसा करे उस की रुसवाई हो जाएगी। \p \v 14 बीमार होते वक़्त इनसान की रूह जिस्म की परवरिश करती है, लेकिन अगर रूह शिकस्ता हो तो फिर कौन उसको सहारा देगा? \p \v 15 समझदार का दिल इल्म अपनाता और दानिशमंद का कान इरफ़ान का खोज लगाता रहता है। \p \v 16 तोह्फ़ा रास्ता खोलकर देनेवाले को बड़ों तक पहुँचा देता है। \p \v 17 जो अदालत में पहले अपना मौक़िफ़ पेश करे वह उस वक़्त तक हक़-बजानिब लगता है जब तक दूसरा फ़रीक़ सामने आकर उस की हर बात की तहक़ीक़ न करे। \p \v 18 क़ुरा डालने से झगड़े ख़त्म हो जाते और बड़ों का एक दूसरे से लड़ने का ख़तरा दूर हो जाता है। \p \v 19 जिस भाई को एक दफ़ा मायूस कर दिया जाए उसे दुबारा जीत लेना क़िलाबंद शहर पर फ़तह पाने से ज़्यादा दुश्वार है। झगड़े हल करना बुर्ज के कुंडे तोड़ने की तरह मुश्किल है। \p \v 20 इनसान अपने मुँह के फल से सेर हो जाएगा, वह अपने होंटों की पैदावार को जी भरकर खाएगा। \p \v 21 ज़बान का ज़िंदगी और मौत पर इख़्तियार है, जो उसे प्यार करे वह उसका फल भी खाएगा। \p \v 22 जिसे बीवी मिली उसे अच्छी नेमत मिली, और उसे रब की मंज़ूरी हासिल हुई। \p \v 23 ग़रीब मिन्नत करते करते अपना मामला पेश करता है, लेकिन अमीर का जवाब सख़्त होता है। \p \v 24 कई दोस्त तुझे तबाह करते हैं, लेकिन ऐसे भी हैं जो तुझसे भाई से ज़्यादा लिपटे रहते हैं। \c 19 \p \v 1 जो ग़रीब बेइलज़ाम ज़िंदगी गुज़ारे वह टेढ़ी बातें करनेवाले अहमक़ से कहीं बेहतर है। \p \v 2 अगर इल्म साथ न हो तो सरगरमी का कोई फ़ायदा नहीं। जल्दबाज़ ग़लत राह पर आता रहता है। \p \v 3 गो इनसान की अपनी हमाक़त उसे भटका देती है तो भी उसका दिल रब से नाराज़ होता है। \p \v 4 दौलतमंद के दोस्तों में इज़ाफ़ा होता है, लेकिन ग़रीब का एक दोस्त भी उससे अलग हो जाता है। \p \v 5 झूटा गवाह सज़ा से नहीं बचेगा, जो झूटी गवाही दे उस की जान नहीं छूटेगी। \p \v 6 मुतअद्दिद लोग बड़े आदमी की ख़ुशामद करते हैं, और हर एक उस आदमी का दोस्त है जो तोह्फ़े देता है। \p \v 7 ग़रीब के तमाम भाई उससे नफ़रत करते हैं, तो फिर उसके दोस्त उससे क्यों दूर न रहें। वह बातें करते करते उनका पीछा करता है, लेकिन वह ग़ायब हो जाते हैं। \p \v 8 जो हिकमत अपना ले वह अपनी जान से मुहब्बत रखता है, जो समझ की परवरिश करे उसे कामयाबी होगी। \p \v 9 झूटा गवाह सज़ा से नहीं बचेगा, झूटी गवाही देनेवाला तबाह हो जाएगा। \p \v 10 अहमक़ के लिए ऐशो-इशरत से ज़िंदगी गुज़ारना मौज़ूँ नहीं, लेकिन ग़ुलाम की हुक्मरानों पर हुकूमत कहीं ज़्यादा ग़ैरमुनासिब है। \p \v 11 इनसान की हिकमत उसे तहम्मुल सिखाती है, और दूसरों के जरायम से दरगुज़र करना उसका फ़ख़र है। \p \v 12 बादशाह का तैश जवान शेरबबर की दहाड़ों की मानिंद है जबकि उस की मंज़ूरी घास पर शबनम की तरह तरो-ताज़ा करती है। \p \v 13 अहमक़ बेटा बाप की तबाही और झगड़ालू बीवी मुसलसल टपकनेवाली छत है। \p \v 14 मौरूसी घर और मिलकियत बापदादा की तरफ़ से मिलती है, लेकिन समझदार बीवी रब की तरफ़ से है। \p \v 15 सुस्त होने से इनसान गहरी नींद सो जाता है, लेकिन ढीला शख़्स भूके मरेगा। \p \v 16 जो वफ़ादारी से हुक्म पर अमल करे वह अपनी जान महफ़ूज़ रखता है, लेकिन जो अपनी राहों की परवा न करे वह मर जाएगा। \p \v 17 जो ग़रीब पर मेहरबानी करे वह रब को उधार देता है, वही उसे अज्र देगा। \p \v 18 जब तक उम्मीद की किरण बाक़ी हो अपने बेटे की तादीब कर, लेकिन इतने जोश में न आ कि वह मर जाए। \p \v 19 जो हद से ज़्यादा तैश में आए उसे जुरमाना देना पड़ेगा। उसे बचाने की कोशिश मत कर वरना उसका तैश और बढ़ेगा। \p \v 20 अच्छा मशवरा अपना और तरबियत क़बूल कर ताकि आइंदा दानिशमंद हो। \p \v 21 इनसान दिल में मुतअद्दिद मनसूबे बाँधता रहता है, लेकिन रब का इरादा हमेशा पूरा हो जाता है। \p \v 22 इनसान का लालच उस की रुसवाई का बाइस है, और ग़रीब दरोग़गो से बेहतर है। \p \v 23 रब का ख़ौफ़ ज़िंदगी का मंबा है। ख़ुदातरस आदमी सेर होकर सुकून से सो जाता और मुसीबत से महफ़ूज़ रहता है। \p \v 24 काहिल अपना हाथ खाने के बरतन में डालकर उसे मुँह तक नहीं ला सकता। \p \v 25 तानाज़न को मार तो सादालौह सबक़ सीखेगा, समझदार को डाँट तो उसके इल्म में इज़ाफ़ा होगा। \p \v 26 जो अपने बाप पर ज़ुल्म करे और अपनी माँ को निकाल दे वह वालिदैन के लिए शर्म और रुसवाई का बाइस है। \p \v 27 मेरे बेटे, तरबियत पर ध्यान देने से बाज़ न आ, वरना तू इल्मो-इरफ़ान की राह से भटक जाएगा। \p \v 28 शरीर गवाह इनसाफ़ का मज़ाक़ उड़ाता है, और बेदीन का मुँह आफ़त की ख़बरें फैलाता है। \p \v 29 तानाज़न के लिए सज़ा और अहमक़ की पीठ के लिए कोड़ा तैयार है। \c 20 \p \v 1 मै तानाज़न का बाप और शराब शोर-शराबा की माँ है। जो यह पी पीकर डगमगाने लगे वह दानिशमंद नहीं। \p \v 2 बादशाह का क़हर जवान शेरबबर की दहाड़ों की मानिंद है, जो उसे तैश दिलाए वह अपनी जान पर खेलता है। \p \v 3 लड़ाई-झगड़े से बाज़ रहना इज़्ज़त का तुर्राए-इम्तियाज़ है जबकि हर अहमक़ झगड़ने के लिए तैयार रहता है। \p \v 4 काहिल वक़्त पर हल नहीं चलाता, चुनाँचे जब वह फ़सल पकते वक़्त अपने खेत पर निगाह करे तो कुछ नज़र नहीं आएगा। \p \v 5 इनसान के दिल का मनसूबा गहरे पानी की मानिंद है, लेकिन समझदार आदमी उसे निकालकर अमल में लाता है। \p \v 6 बहुत-से लोग अपनी वफ़ादारी पर फ़ख़र करते हैं, लेकिन क़ाबिले-एतमाद शख़्स कहाँ पाया जाता है? \p \v 7 जो रास्तबाज़ बेइलज़ाम ज़िंदगी गुज़ारे उस की औलाद मुबारक है। \p \v 8 जब बादशाह तख़्ते-अदालत पर बैठ जाए तो वह अपनी आँखों से सब कुछ छानकर हर ग़लत बात एक तरफ़ कर लेता है। \p \v 9 कौन कह सकता है, “मैंने अपने दिल को पाक-साफ़ कर रखा है, मैं अपने गुनाह से पाक हो गया हूँ”? \p \v 10 ग़लत बाट और ग़लत पैमाइश, रब दोनों से घिन खाता है। \p \v 11 लड़के का किरदार उसके सुलूक से मालूम होता है। इससे पता चलता है कि उसका चाल-चलन पाक और रास्त है या नहीं। \p \v 12 सुननेवाले कान और देखनेवाली आँखें दोनों ही रब ने बनाई हैं। \p \v 13 नींद को प्यार न कर वरना ग़रीब हो जाएगा। अपनी आँखों को खुला रख तो जी भरकर खाना खाएगा। \p \v 14 गाहक दुकानदार से कहता है, “यह कैसी नाक़िस चीज़ है!” लेकिन फिर जाकर दूसरों के सामने अपने सौदे पर शेख़ी मारता है। \p \v 15 सोना और कसरत के मोती पाए जा सकते हैं, लेकिन समझदार होंट उनसे कहीं ज़्यादा क़ीमती हैं। \p \v 16 ज़मानत का वह लिबास वापस न कर जो किसी ने परदेसी का ज़ामिन बनकर दिया है। अगर वह अजनबी का ज़ामिन हो तो उस ज़मानत पर ज़रूर क़ब्ज़ा कर जो उसने दी थी। \p \v 17 धोके से हासिल की हुई रोटी आदमी को मीठी लगती है, लेकिन उसका अंजाम कंकरों से भरा मुँह है। \p \v 18 मनसूबे सलाह-मशवरे से मज़बूत हो जाते हैं, और जंग करने से पहले दूसरों की हिदायात पर ध्यान दे। \p \v 19 अगर तू बुहतान लगानेवाले को हमराज़ बनाए तो वह इधर-उधर फिरकर बात फैलाएगा। चुनाँचे बातूनी से गुरेज़ कर। \p \v 20 जो अपने बाप या माँ पर लानत करे उसका चराग़ घने अंधेरे में बुझ जाएगा। \p \v 21 जो मीरास शुरू में बड़ी जल्दी से मिल जाए वह आख़िर में बरकत का बाइस नहीं होगी। \p \v 22 मत कहना, “मैं ग़लत काम का इंतक़ाम लूँगा।” रब के इंतज़ार में रह तो वही तेरी मदद करेगा। \p \v 23 रब झूटे बाटों से घिन खाता है, और ग़लत तराज़ू उसे अच्छा नहीं लगता। \p \v 24 रब हर एक के क़दम मुक़र्रर करता है। तो फिर इनसान किस तरह अपनी राह समझ सकता है? \p \v 25 इनसान अपने लिए फंदा तैयार करता है जब वह जल्दबाज़ी से मन्नत मानता और बाद में ही मन्नत के नतायज पर ग़ौर करने लगता है। \p \v 26 दानिशमंद बादशाह बेदीनों को छान छानकर उड़ा लेता है, हाँ वह गाहने का आला ही उन पर से गुज़रने देता है। \p \v 27 आदमज़ाद की रूह रब का चराग़ है जो इनसान के बातिन की तह तक सब कुछ की तहक़ीक़ करता है। \p \v 28 शफ़क़त और वफ़ा बादशाह को महफ़ूज़ रखती हैं, शफ़क़त से वह अपना तख़्त मुस्तहकम कर लेता है। \p \v 29 नौजवानों का फ़ख़र उनकी ताक़त और बुज़ुर्गों की शान उनके सफ़ेद बाल हैं। \p \v 30 ज़ख़म और चोटें बुराई को दूर कर देती हैं, ज़रबें बातिन की तह तक सब कुछ साफ़ कर देती हैं। \c 21 \p \v 1 बादशाह का दिल रब के हाथ में नहर की मानिंद है। वह जिधर चाहे उसका रुख़ फेर देता है। \p \v 2 हर आदमी की राह उस की अपनी नज़र में ठीक लगती है, लेकिन रब ही दिलों की जाँच-पड़ताल करता है। \p \v 3 रास्तबाज़ी और इनसाफ़ करना रब को ज़बह की क़ुरबानियों से कहीं ज़्यादा पसंद है। \p \v 4 मग़रूर आँखें और मुतकब्बिर दिल जो बेदीनों का चराग़ हैं गुनाह हैं। \p \v 5 मेहनती शख़्स के मनसूबे नफ़ा का बाइस हैं, लेकिन जल्दबाज़ी ग़ुरबत तक पहुँचा देती है। \p \v 6 फ़रेबदेह ज़बान से जमा किया हुआ ख़ज़ाना बिखर जानेवाला धुआँ और मोहलक फंदा है। \p \v 7 बेदीनों का ज़ुल्म ही उन्हें घसीटकर ले जाता है, क्योंकि वह इनसाफ़ करने से इनकार करते हैं। \p \v 8 क़ुसूरवार की राह पेचदार है जबकि पाक शख़्स सीधी राह पर चलता है। \p \v 9 झगड़ालू बीवी के साथ एक ही घर में रहने की निसबत छत के किसी कोने में गुज़ारा करना बेहतर है। \p \v 10 बेदीन ग़लत काम करने के लालच में रहता है और अपने किसी भी पड़ोसी पर तरस नहीं खाता। \p \v 11 तानाज़न पर जुरमाना लगा तो सादालौह सबक़ सीखेगा, दानिशमंद को तालीम दे तो उसके इल्म में इज़ाफ़ा होगा। \p \v 12 अल्लाह जो रास्त है बेदीन के घर को ध्यान में रखता है, वही बेदीन को ख़ाक में मिला देता है। \p \v 13 जो कान में उँगली डालकर ग़रीब की मदद के लिए चीख़ें नहीं सुनता वह भी एक दिन चीख़ें मारेगा, और उस की भी सुनी नहीं जाएगी। \p \v 14 पोशीदगी में सिला देने से दूसरे का ग़ुस्सा ठंडा हो जाता, किसी की जेब गरम करने से उसका सख़्त तैश दूर हो जाता है। \p \v 15 जब इनसाफ़ किया जाए तो रास्तबाज़ ख़ुश हो जाता, लेकिन बदकार दहशत खाने लगता है। \p \v 16 जो समझ की राह से भटक जाए वह एक दिन मुरदों की जमात में आराम करेगा। \p \v 17 जो ऐशो-इशरत की ज़िंदगी पसंद करे वह ग़रीब हो जाएगा, जिसे मै और तेल प्यारा हो वह अमीर नहीं हो जाएगा। \p \v 18 जब रास्तबाज़ का फ़िद्या देना है तो बेदीन को दिया जाएगा, और दियानतदार की जगह बेवफ़ा को दिया जाएगा। \p \v 19 झगड़ालू और तंग करनेवाली बीवी के साथ बसने की निसबत रेगिस्तान में गुज़ारा करना बेहतर है। \p \v 20 दानिशमंद के घर में उम्दा ख़ज़ाना और तेल होता है, लेकिन अहमक़ अपना सारा माल हड़प कर लेता है। \p \v 21 जो इनसाफ़ और शफ़क़त का ताक़्क़ुब करता रहे वह ज़िंदगी, रास्ती और इज़्ज़त पाएगा। \p \v 22 दानिशमंद आदमी ताक़तवर फ़ौजियों के शहर पर हमला करके वह क़िलाबंदी ढा देता है जिस पर उनका पूरा एतमाद था। \p \v 23 जो अपने मुँह और ज़बान की पहरादारी करे वह अपनी जान को मुसीबत से बचाए रखता है। \p \v 24 मग़रूर और घमंडी का नाम ‘तानाज़न’ है, हर काम वह बेहद तकब्बुर के साथ करता है। \p \v 25 काहिल का लालच उसे मौत के घाट उतार देता है, क्योंकि उसके हाथ काम करने से इनकार करते हैं। \p \v 26 लालची पूरा दिन लालच करता रहता है, लेकिन रास्तबाज़ फ़ैयाज़दिली से देता है। \p \v 27 बेदीनों की क़ुरबानी क़ाबिले-घिन है, ख़ासकर जब उसे बुरे मक़सद से पेश किया जाए। \p \v 28 झूटा गवाह तबाह हो जाएगा, लेकिन जो दूसरे की ध्यान से सुने उस की बात हमेशा तक क़ायम रहेगी। \p \v 29 बेदीन आदमी गुस्ताख़ अंदाज़ से पेश आता है, लेकिन सीधी राह पर चलनेवाला सोच-समझकर अपनी राह पर चलता है। \p \v 30 किसी की भी हिकमत, समझ या मनसूबा रब का सामना नहीं कर सकता। \p \v 31 घोड़े को जंग के दिन के लिए तैयार तो किया जाता है, लेकिन फ़तह रब के हाथ में है। \c 22 \p \v 1 नेक नाम बड़ी दौलत से क़ीमती, और मंज़ूरे-नज़र होना सोने-चाँदी से बेहतर है। \p \v 2 अमीर और ग़रीब एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं, रब उन सबका ख़ालिक़ है। \p \v 3 ज़हीन आदमी ख़तरा पहले से भाँपकर छुप जाता है, जबकि सादालौह आगे बढ़कर उस की लपेट में आ जाता है। \p \v 4 फ़रोतनी और रब का ख़ौफ़ मानने का फल दौलत, एहतराम और ज़िंदगी है। \p \v 5 बेदीन की राह में काँटे और फंदे होते हैं। जो अपनी जान महफ़ूज़ रखना चाहे वह उनसे दूर रहता है। \p \v 6 छोटे बच्चे को सहीह राह पर चलने की तरबियत कर तो वह बूढ़ा होकर भी उससे नहीं हटेगा। \p \v 7 अमीर ग़रीब पर हुकूमत करता, और क़र्ज़दार क़र्ज़ख़ाह का ग़ुलाम होता है। \p \v 8 जो नाइनसाफ़ी का बीज बोए वह आफ़त की फ़सल काटेगा, तब उस की ज़्यादती की लाठी टूट जाएगी। \p \v 9 फ़ैयाज़दिल को बरकत मिलेगी, क्योंकि वह पस्तहाल को अपने खाने में शरीक करता है। \p \v 10 तानाज़न को भगा दे तो लड़ाई-झगड़ा घर से निकल जाएगा, तू तू मैं मैं और एक दूसरे की बेइज़्ज़ती करने का सिलसिला ख़त्म हो जाएगा। \p \v 11 जो दिल की पाकीज़गी को प्यार करे और मेहरबान ज़बान का मालिक हो वह बादशाह का दोस्त बनेगा। \p \v 12 रब की आँखें इल्मो-इरफ़ान की देख-भाल करती हैं, लेकिन वह बेवफ़ा की बातों को तबाह होने देता है। \p \v 13 काहिल कहता है, “गली में शेर है, अगर बाहर जाऊँ तो मुझे किसी चौक में फाड़ खाएगा।” \p \v 14 ज़िनाकार औरत का मुँह गहरा गढ़ा है। जिससे रब नाराज़ हो वह उसमें गिर जाता है। \p \v 15 बच्चे के दिल में हमाक़त टिकती है, लेकिन तरबियत की छड़ी उसे भगा देती है। \p \v 16 एक पस्तहाल पर ज़ुल्म करता है ताकि दौलत पाए, दूसरा अमीर को तोह्फ़े देता है लेकिन ग़रीब हो जाता है। \s1 दानिशमंदों की 30 कहावतें \p \v 17 कान लगाकर दानाओं की बातों पर ध्यान दे, दिल से मेरी तालीम अपना ले! \v 18 क्योंकि अच्छा है कि तू उन्हें अपने दिल में महफ़ूज़ रखे, वह सब तेरे होंटों पर मुस्तैद रहें। \v 19 आज मैं तुझे, हाँ तुझे ही तालीम दे रहा हूँ ताकि तेरा भरोसा रब पर रहे। \v 20 मैंने तेरे लिए 30 कहावतें क़लमबंद की हैं, ऐसी बातें जो मशवरों और इल्म से भरी हुई हैं। \v 21 क्योंकि मैं तुझे सच्चाई की क़ाबिले-एतमाद बातें सिखाना चाहता हूँ ताकि तू उन्हें क़ाबिले-एतमाद जवाब दे सके जिन्होंने तुझे भेजा है। \s1 -1- \p \v 22 पस्तहाल को इसलिए न लूट कि वह पस्तहाल है, मुसीबतज़दा को अदालत में मत कुचलना। \v 23 क्योंकि रब ख़ुद उनका दिफ़ा करके उन्हें लूट लेगा जो उन्हें लूट रहे हैं। \s1 -2- \p \v 24 ग़ुसीले शख़्स का दोस्त न बन, न उससे ज़्यादा ताल्लुक़ रख जो जल्दी से आग-बगूला हो जाता है। \v 25 ऐसा न हो कि तू उसका चाल-चलन अपनाकर अपनी जान के लिए फंदा लगाए। \s1 -3- \p \v 26 कभी हाथ मिलाकर वादा न कर कि मैं दूसरे के कर्ज़े का ज़ामिन हूँगा। \v 27 क़र्ज़दार के पैसे वापस न करने पर अगर तू भी पैसे अदा न कर सके तो तेरी चारपाई भी तेरे नीचे से छीन ली जाएगी। \s1 -4- \p \v 28 ज़मीन की जो हुदूद तेरे बापदादा ने मुक़र्रर कीं उन्हें आगे पीछे मत करना। \s1 -5- \p \v 29 क्या तुझे ऐसा आदमी नज़र आता है जो अपने काम में माहिर है? वह निचले तबक़े के लोगों की ख़िदमत नहीं करेगा बल्कि बादशाहों की। \c 23 \s1 -6- \p \v 1 अगर तू किसी हुक्मरान के खाने में शरीक हो जाए तो ख़ूब ध्यान दे कि तू किसके हुज़ूर है। \v 2 अगर तू पेटू हो तो अपने गले पर छुरी रख। \v 3 उस की उम्दा चीज़ों का लालच मत कर, क्योंकि यह खाना फ़रेबदेह है। \s1 -7- \p \v 4 अपनी पूरी ताक़त अमीर बनने में सर्फ़ न कर, अपनी हिकमत ऐसी कोशिशों से ज़ाया मत कर। \v 5 एक नज़र दौलत पर डाल तो वह ओझल हो जाती है, और पर लगाकर उक़ाब की तरह आसमान की तरफ़ उड़ जाती है। \s1 -8- \p \v 6 जलनेवाले की रोटी मत खा, उसके लज़ीज़ खानों का लालच न कर। \v 7 क्योंकि यह गले में बाल की तरह होगा। वह तुझसे कहेगा, “खाओ, पियो!” लेकिन उसका दिल तेरे साथ नहीं है। \v 8 जो लुक़मा तूने खा लिया उससे तुझे क़ै आएगी, और तेरी उससे दोस्ताना बातें ज़ाया हो जाएँगी। \s1 -9- \p \v 9 अहमक़ से बात न कर, क्योंकि वह तेरी दानिशमंद बातें हक़ीर जानेगा। \s1 -10- \p \v 10 ज़मीन की जो हुदूद क़दीम ज़माने में मुक़र्रर हुईं उन्हें आगे पीछे मत करना, और यतीमों के खेतों पर क़ब्ज़ा न कर। \v 11 क्योंकि उनका छुड़ानेवाला क़वी है, वह उनके हक़ में ख़ुद तेरे ख़िलाफ़ लड़ेगा। \s1 -11- \p \v 12 अपना दिल तरबियत के हवाले कर और अपने कान इल्म की बातों पर लगा। \s1 -12- \p \v 13 बच्चे को तरबियत से महरूम न रख, छड़ी से उसे सज़ा देने से वह नहीं मरेगा। \v 14 छड़ी से उसे सज़ा दे तो उस की जान मौत से छूट जाएगी। \s1 -13- \p \v 15 मेरे बेटे, अगर तेरा दिल दानिशमंद हो तो मेरा दिल भी ख़ुश होगा। \v 16 मैं अंदर ही अंदर ख़ुशी मनाऊँगा जब तेरे होंट दियानतदार बातें करेंगे। \s1 -14- \p \v 17 तेरा दिल गुनाहगारों को देखकर कुढ़ता न रहे बल्कि पूरे दिन रब का ख़ौफ़ रखने में सरगरम रहे। \v 18 क्योंकि तेरी उम्मीद जाती नहीं रहेगी बल्कि तेरा मुस्तक़बिल यक़ीनन अच्छा होगा। \s1 -15- \p \v 19 मेरे बेटे, सुनकर दानिशमंद हो जा और सहीह राह पर अपने दिल की राहनुमाई कर। \v 20 शराबी और पेटू से दरेग़ कर, \v 21 क्योंकि शराबी और पेटू ग़रीब हो जाएंगे, और काहिली उन्हें चीथड़े पहनाएगी। \s1 -16- \p \v 22 अपने बाप की सुन जिसने तुझे पैदा किया, और अपनी माँ को हक़ीर न जान जब बूढ़ी हो जाए। \p \v 23 सच्चाई ख़रीद ले और कभी फ़रोख़्त न कर, उसमें शामिल हिकमत, तरबियत और समझ अपना ले। \p \v 24 रास्तबाज़ का बाप बड़ी ख़ुशी मनाता है, और दानिशमंद बेटे का वालिद उससे लुत्फ़अंदोज़ होता है। \p \v 25 चुनाँचे अपने माँ-बाप के लिए ख़ुशी का बाइस हो, ऐसी ज़िंदगी गुज़ार कि तेरी माँ जशन मना सके। \s1 -17- \p \v 26 मेरे बेटे, अपना दिल मेरे हवाले कर, तेरी आँखें मेरी राहें पसंद करें। \v 27 क्योंकि कसबी गहरा गढ़ा और ज़िनाकार औरत तंग कुआँ है, \v 28 डाकू की तरह वह ताक लगाए बैठकर मर्दों में बेवफ़ाओं का इज़ाफ़ा करती है। \s1 -18- \p \v 29 कौन आहें भरता है? कौन हाय हाय करता और लड़ाई-झगड़े में मुलव्वस रहता है? किस को बिलावजह चोटें लगती, किसकी आँखें धुँधली-सी रहती हैं? \v 30 वह जो रात गए तक मै पीने और मसालेदार मै से मज़ा लेने में मसरूफ़ रहता है। \v 31 मै को तकता न रह, ख़ाह उसका सुर्ख़ रंग कितनी ख़ूबसूरती से प्याले में क्यों न चमके, ख़ाह उसे बड़े मज़े से क्यों न पिया जाए। \v 32 अंजामकार वह तुझे साँप की तरह काटेगी, नाग की तरह डसेगी। \v 33 तेरी आँखें अजीबो-ग़रीब मंज़र देखेंगी और तेरा दिल बेतुकी बातें हकलाएगा। \v 34 तू समुंदर के बीच में लेटनेवाले की मानिंद होगा, उस जैसा जो मस्तूल पर चढ़कर लेट गया हो। \v 35 तू कहेगा, “मेरी पिटाई हुई लेकिन दर्द महसूस न हुआ, मुझे मारा गया लेकिन मालूम न हुआ। मैं कब जाग उठूँगा ताकि दुबारा शराब की तरफ़ रुख़ कर सकूँ?” \c 24 \s1 -19- \p \v 1 शरीरों से हसद न कर, न उनसे सोहबत रखने की आरज़ू रख, \v 2 क्योंकि उनका दिल ज़ुल्म करने पर तुला रहता है, उनके होंट दूसरों को दुख पहुँचाते हैं। \s1 -20- \p \v 3 हिकमत घर को तामीर करती, समझ उसे मज़बूत बुनियाद पर खड़ा कर देती, \v 4 और इल्मो-इरफ़ान उसके कमरों को बेशक़ीमत और मनमोहन चीज़ों से भर देता है। \s1 -21- \p \v 5 दानिशमंद को ताक़त हासिल होती और इल्म रखनेवाले की क़ुव्वत बढ़ती रहती है, \v 6 क्योंकि जंग करने के लिए हिदायत और फ़तह पाने के लिए मुतअद्दिद मुशीरों की ज़रूरत होती है। \s1 -22- \p \v 7 हिकमत इतनी बुलंदो-बाला है कि अहमक़ उसे पा नहीं सकता। जब बुज़ुर्ग शहर के दरवाज़े में फ़ैसला करने के लिए जमा होते हैं तो वह कुछ नहीं कह सकता। \s1 -23- \p \v 8 बुरे मनसूबे बाँधनेवाला साज़िशी कहलाता है। \v 9 अहमक़ की चालाकियाँ गुनाह हैं, और लोग तानाज़न से घिन खाते हैं। \s1 -24- \p \v 10 अगर तू मुसीबत के दिन हिम्मत हारकर ढीला हो जाए तो तेरी ताक़त जाती रहेगी। \s1 -25- \p \v 11 जिन्हें मौत के हवाले किया जा रहा है उन्हें छुड़ा, जो क़साई की तरफ़ डगमगाते हुए जा रहे हैं उन्हें रोक दे। \v 12 शायद तू कहे, “हमें तो इसके बारे में इल्म नहीं था।” लेकिन यक़ीन जान, जो दिल की जाँच-पड़ताल करता है वह बात समझता है, जो तेरी जान की देख-भाल करता है उसे मालूम है। वह इनसान को उसके आमाल का बदला देता है। \s1 -26- \p \v 13 मेरे बेटे, शहद खा क्योंकि वह अच्छा है, छत्ते का ख़ालिस शहद मीठा है। \v 14 जान ले कि हिकमत इसी तरह तेरी जान के लिए मीठी है। अगर तू उसे पाए तो तेरी उम्मीद जाती नहीं रहेगी बल्कि तेरा मुस्तक़बिल अच्छा होगा। \s1 -27- \p \v 15 ऐ बेदीन, रास्तबाज़ के घर की ताक लगाए मत बैठना, उस की रिहाइशगाह तबाह न कर। \v 16 क्योंकि गो रास्तबाज़ सात बार गिर जाए तो भी हर बार दुबारा उठ खड़ा होगा जबकि बेदीन एक बार ठोकर खाकर मुसीबत में फँसा रहेगा। \s1 -28- \p \v 17 अगर तेरा दुश्मन गिर जाए तो ख़ुश न हो, अगर वह ठोकर खाए तो तेरा दिल जशन न मनाए। \v 18 ऐसा न हो कि रब यह देखकर तेरा रवैया पसंद न करे और अपना ग़ुस्सा दुश्मन पर उतारने से बाज़ आए। \s1 -29- \p \v 19 बदकारों को देखकर मुश्तइल न हो जा, बेदीनों के बाइस कुढ़ता न रह। \v 20 क्योंकि शरीरों का कोई मुस्तक़बिल नहीं, बेदीनों का चराग़ बुझ जाएगा। \s1 -30- \p \v 21 मेरे बेटे, रब और बादशाह का ख़ौफ़ मान, और सरकशों में शरीक न हो। \v 22 क्योंकि अचानक ही उन पर आफ़त आएगी, किसी को पता ही नहीं चलेगा जब दोनों उन पर हमला करके उन्हें तबाह कर देंगे। \s1 दानिशमंदों की मज़ीद कहावतें \p \v 23 ज़ैल में दानिशमंदों की मज़ीद कहावतें क़लमबंद हैं। \p अदालत में जानिबदारी दिखाना बुरी बात है। \v 24 जो क़ुसूरवार से कहे, “तू बेक़ुसूर है” उस पर क़ौमें लानत भेजेंगी, उस की सरज़निश उम्मतें करेंगी। \v 25 लेकिन जो क़ुसूरवार को मुजरिम ठहराए वह ख़ुशहाल होगा, उसे कसरत की बरकत मिलेगी। \p \v 26 सच्चा जवाब दोस्त के बोसे की मानिंद है। \p \v 27 पहले बाहर का काम मुकम्मल करके अपने खेतों को तैयार कर, फिर ही अपना घर तामीर कर। \p \v 28 बिलावजह अपने पड़ोसी के ख़िलाफ़ गवाही मत दे। या क्या तू अपने होंटों से धोका देना चाहता है? \p \v 29 मत कहना, “जिस तरह उसने मेरे साथ किया उसी तरह मैं उसके साथ करूँगा, मैं उसके हर फ़ेल का मुनासिब जवाब दूँगा।” \b \p \v 30 एक दिन मैं सुस्त और नासमझ आदमी के खेत और अंगूर के बाग़ में से गुज़रा। \v 31 हर जगह काँटेदार झाड़ियाँ फैली हुई थीं, ख़ुदरौ पौदे पूरी ज़मीन पर छा गए थे। उस की चारदीवारी भी गिर गई थी। \v 32 यह देखकर मैंने दिल से ध्यान दिया और सबक़ सीख लिया, \p \v 33 अगर तू कहे, “मुझे थोड़ी देर सोने दे, थोड़ी देर ऊँघने दे, थोड़ी देर हाथ पर हाथ धरे बैठने दे ताकि मैं आराम कर सकूँ” \v 34 तो ख़बरदार, जल्द ही ग़ुरबत राहज़न की तरह तुझ पर आएगी, मुफ़लिसी हथियार से लेस डाकू की तरह तुझ पर आ पड़ेगी। \c 25 \s1 सुलेमान की मज़ीद कहावतें \p \v 1 ज़ैल में सुलेमान की मज़ीद कहावतें दर्ज हैं जिन्हें यहूदाह के बादशाह हिज़क़ियाह के लोगों ने जमा किया। \b \p \v 2 अल्लाह का जलाल इसमें ज़ाहिर होता है कि वह मामला पोशीदा रखता है, बादशाह का जलाल इसमें कि वह मामले की तहक़ीक़ करता है। \p \v 3 जितना आसमान बुलंद और ज़मीन गहरी है उतना ही बादशाहों के दिल का खोज नहीं लगाया जा सकता। \p \v 4 चाँदी से मैल दूर करो तो सुनार बरतन बनाने में कामयाब हो जाएगा, \v 5 बेदीन को बादशाह के हुज़ूर से दूर करो तो उसका तख़्त रास्ती की बुनियाद पर क़ायम रहेगा। \p \v 6 बादशाह के हुज़ूर अपने आप पर फ़ख़र न कर, न इज़्ज़त की उस जगह पर खड़ा हो जा जो बुज़ुर्गों के लिए मख़सूस है। \v 7 इससे पहले कि शुरफ़ा के सामने ही तेरी बेइज़्ज़ती हो जाए बेहतर है कि तू पीछे खड़ा हो जा और बाद में कोई तुझसे कहे, “यहाँ सामने आ जाएँ।” \p जो कुछ तेरी आँखों ने देखा उसे अदालत में पेश करने में \v 8 जल्दबाज़ी न कर, क्योंकि तू क्या करेगा अगर तेरा पड़ोसी तेरे मामले को झुटलाकर तुझे शरमिंदा करे? \p \v 9 अदालत में अपने पड़ोसी से लड़ते वक़्त वह बात बयान न कर जो किसी ने पोशीदगी में तेरे सुपुर्द की, \v 10 ऐसा न हो कि सुननेवाला तेरी बेइज़्ज़ती करे। तब तेरी बदनामी कभी नहीं मिटेगी। \p \v 11 वक़्त पर मौज़ूँ बात चाँदी के बरतन में सोने के सेब की मानिंद है। \v 12 दानिशमंद की नसीहत क़बूल करनेवाले के लिए सोने की बाली और ख़ालिस सोने के गुलूबंद की मानिंद है। \p \v 13 क़ाबिले-एतमाद क़ासिद भेजनेवाले के लिए फ़सल काटते वक़्त बर्फ़ की ठंडक जैसा है, इस तरह वह अपने मालिक की जान को तरो-ताज़ा कर देता है। \p \v 14 जो शेख़ी मारकर तोह्फ़ों का वादा करे लेकिन कुछ न दे वह उन तूफ़ानी बादलों की मानिंद है जो बरसे बग़ैर गुज़र जाते हैं। \p \v 15 हुक्मरान को तहम्मुल से क़ायल किया जा सकता, और नरम ज़बान हड्डियाँ तोड़ने के क़ाबिल है। \p \v 16 अगर शहद मिल जाए तो ज़रूरत से ज़्यादा मत खा, हद से ज़्यादा खाने से तुझे क़ै आएगी। \p \v 17 अपने पड़ोसी के घर में बार बार जाने से अपने क़दमों को रोक, वरना वह तंग आकर तुझसे नफ़रत करने लगेगा। \p \v 18 जो अपने पड़ोसी के ख़िलाफ़ झूटी गवाही दे वह हथौड़े, तलवार और तेज़ तीर जैसा नुक़सानदेह है। \p \v 19 मुसीबत के वक़्त बेवफ़ा पर एतबार करना ख़राब दाँत या डगमगाते पाँवों की तरह तकलीफ़देह है। \p \v 20 दुखते दिल के लिए गीत गाना उतना ही ग़ैरमौज़ूँ है जितना सर्दियों के मौसम में क़मीस उतारना या सोडे पर सिरका डालना। \p \v 21 अगर तेरा दुश्मन भूका हो तो उसे खाना खिला, अगर प्यासा हो तो पानी पिला। \v 22 क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सर पर जलते हुए कोयलों का ढेर लगाएगा, और रब तुझे अज्र देगा। \p \v 23 जिस तरह काले बादल लानेवाली हवा बारिश पैदा करती है उसी तरह बातूनी की चुपके से की गई बातों से लोगों के मुँह बिगड़ जाते हैं। \p \v 24 झगड़ालू बीवी के साथ एक ही घर में रहने की निसबत छत के किसी कोने में गुज़ारा करना बेहतर है। \p \v 25 दूर-दराज़ मुल्क की ख़ुशख़बरी प्यासे गले में ठंडा पानी है। \p \v 26 जो रास्तबाज़ बेदीन के सामने डगमगाने लगे, वह गदला चश्मा और आलूदा कुआँ है। \p \v 27 ज़्यादा शहद खाना अच्छा नहीं, और न ही ज़्यादा अपनी इज़्ज़त की फ़िकर करना। \p \v 28 जो अपने आप पर क़ाबू न पा सके वह उस शहर की मानिंद है जिसकी फ़सील ढा दी गई है। \c 26 \p \v 1 अहमक़ की इज़्ज़त करना उतना ही ग़ैरमौज़ूँ है जितना मौसमे-गरमा में बर्फ़ या फ़सल काटते वक़्त बारिश। \p \v 2 बिलावजह भेजी हुई लानत फड़फड़ाती चिड़िया या उड़ती हुई अबाबील की तरह ओझल होकर बेअसर रह जाती है। \p \v 3 घोड़े को छड़ी से, गधे को लगाम से और अहमक़ की पीठ को लाठी से तरबियत दे। \p \v 4 जब अहमक़ अहमक़ाना बातें करे तो उसे जवाब न दे, वरना तू उसी के बराबर हो जाएगा। \p \v 5 जब अहमक़ अहमक़ाना बातें करे तो उसे जवाब दे, वरना वह अपनी नज़र में दानिशमंद ठहरेगा। \p \v 6 जो अहमक़ के हाथ पैग़ाम भेजे वह उस की मानिंद है जो अपने पाँवों पर कुल्हाड़ी मारकर अपने आपसे ज़्यादती करता है। \f + \fr 26:6 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : ज़्यादती का प्याला पीता है। \f* \p \v 7 अहमक़ के मुँह में हिकमत की बात मफ़लूज की बेहरकत लटकती टाँगों की तरह बेकार है। \p \v 8 अहमक़ का एहतराम करना फ़लाख़न के साथ पत्थर बाँधने के बराबर है। \p \v 9 अहमक़ के मुँह में हिकमत की बात नशे में धुत शराबी के हाथ में काँटेदार झाड़ी की मानिंद है। \p \v 10 जो अहमक़ या हर किसी गुज़रनेवाले को काम पर लगाए वह सबको ज़ख़मी करनेवाले तीरअंदाज़ की मानिंद है। \p \v 11 जो अहमक़ अपनी हमाक़त दोहराए वह अपनी क़ै के पास वापस आनेवाले कुत्ते की मानिंद है। \p \v 12 क्या कोई दिखाई देता है जो अपने आपको दानिशमंद समझता है? उस की निसबत अहमक़ के सुधरने की ज़्यादा उम्मीद है। \p \v 13 काहिल कहता है, “रास्ते में शेर है, हाँ चौकों में शेर फिर रहा है!” \p \v 14 जिस तरह दरवाज़ा क़ब्ज़े पर घूमता है उसी तरह काहिल अपने बिस्तर पर करवटें बदलता है। \p \v 15 जब काहिल अपना हाथ खाने के बरतन में डाल दे तो वह इतना सुस्त है कि उसे मुँह तक वापस नहीं ला सकता। \p \v 16 काहिल अपनी नज़र में हिकमत से जवाब देनेवाले सात आदमियों से कहीं ज़्यादा दानिशमंद है। \p \v 17 जो गुज़रते वक़्त दूसरों के झगड़े में मुदाख़लत करे वह उस आदमी की मानिंद है जो कुत्ते को कानों से पकड़ ले। \p \v 18-19 जो अपने पड़ोसी को फ़रेब देकर बाद में कहे, “मैं सिर्फ़ मज़ाक़ कर रहा था” वह उस दीवाने की मानिंद है जो लोगों पर जलते हुए और मोहलक तीर बरसाता है। \p \v 20 लकड़ी के ख़त्म होने पर आग बुझ जाती है, तोहमत लगानेवाले के चले जाने पर झगड़ा बंद हो जाता है। \p \v 21 अंगारों में कोयले और आग में लकड़ी डाल तो आग भड़क उठेगी। झगड़ालू को कहीं भी खड़ा कर तो लोग मुश्तइल हो जाएंगे। \p \v 22 तोहमत लगानेवाले की बातें लज़ीज़ खाने के लुक़मों जैसी हैं, वह दिल की तह तक उतर जाती हैं। \p \v 23 जलनेवाले होंट और शरीर दिल मिट्टी के उस बरतन की मानिंद हैं जिसे चमकदार बनाया गया हो। \p \v 24 नफ़रत करनेवाला अपने होंटों से अपना असली रूप छुपा लेता है, लेकिन उसका दिल फ़रेब से भरा रहता है। \v 25 जब वह मेहरबान बातें करे तो उस पर यक़ीन न कर, क्योंकि उसके दिल में सात मकरूह बातें हैं। \v 26 गो उस की नफ़रत फ़िलहाल फ़रेब से छुपी रहे, लेकिन एक दिन उसका ग़लत किरदार पूरी जमात के सामने ज़ाहिर हो जाएगा। \p \v 27 जो दूसरों को फँसाने के लिए गढ़ा खोदे वह उसमें ख़ुद गिर जाएगा, जो पत्थर लुढ़काकर दूसरों पर फेंकना चाहे उस पर ही पत्थर वापस लुढ़क आएगा। \p \v 28 झूटी ज़बान उनसे नफ़रत करती है जिन्हें वह कुचल देती है, ख़ुशामद करनेवाला मुँह तबाही मचा देता है। \c 27 \p \v 1 उस पर शेख़ी न मार जो तू कल करेगा, तुझे क्या मालूम कि कल का दिन क्या कुछ फ़राहम करेगा? \p \v 2 तेरा अपना मुँह और अपने होंट तेरी तारीफ़ न करें बल्कि वह जो तुझसे वाक़िफ़ भी न हो। \p \v 3 पत्थर भारी और रेत वज़नी है, लेकिन जो अहमक़ तुझे तंग करे वह ज़्यादा नाक़ाबिले-बरदाश्त है। \p \v 4 ग़ुस्सा ज़ालिम होता और तैश सैलाब की तरह इनसान पर आ जाता है, लेकिन कौन हसद का मुक़ाबला कर सकता है? \p \v 5 खुली मलामत छुपी हुई मुहब्बत से बेहतर है। \p \v 6 प्यार करनेवाले की ज़रबें वफ़ा का सबूत हैं, लेकिन नफ़रत करनेवाले के मुतअद्दिद बोसों से ख़बरदार रह। \p \v 7 जो सेर है वह शहद को भी पाँवों तले रौंद देता है, लेकिन भूके को कड़वी चीज़ें भी मीठी लगती हैं। \p \v 8 जो आदमी अपने घर से निकलकर मारा मारा फिरे वह उस परिंदे की मानिंद है जो अपने घोंसले से भागकर कभी इधर कभी इधर फड़फड़ाता रहता है। \p \v 9 तेल और बख़ूर दिल को ख़ुश करते हैं, लेकिन दोस्त अपने अच्छे मशवरों से ख़ुशी दिलाता है। \p \v 10 अपने दोस्तों को कभी न छोड़, न अपने ज़ाती दोस्तों को न अपने बाप के दोस्तों को। तब तुझे मुसीबत के दिन अपने भाई से मदद नहीं माँगनी पड़ेगी। क्योंकि क़रीब का पड़ोसी दूर के भाई से बेहतर है। \p \v 11 मेरे बेटे, दानिशमंद बनकर मेरे दिल को ख़ुश कर ताकि मैं अपने हक़ीर जाननेवाले को जवाब दे सकूँ। \p \v 12 ज़हीन आदमी ख़तरा पहले से भाँपकर छुप जाता है, जबकि सादालौह आगे बढ़कर उस की लपेट में आ जाता है। \p \v 13 ज़मानत का वह लिबास वापस न कर जो किसी ने परदेसी का ज़ामिन बनकर दिया है। अगर वह अजनबी औरत का ज़ामिन हो तो उस ज़मानत पर ज़रूर क़ब्ज़ा कर जो उसने दी थी। \p \v 14 जो सुबह-सवेरे बुलंद आवाज़ से अपने पड़ोसी को बरकत दे उस की बरकत लानत ठहराई जाएगी। \p \v 15 झगड़ालू बीवी मूसलाधार बारिश के बाइस मुसलसल टपकनेवाली छत की मानिंद है। \v 16 उसे रोकना हवा को रोकने या तेल को पकड़ने के बराबर है। \p \v 17 लोहा लोहे को और इनसान इनसान के ज़हन को तेज़ करता है। \p \v 18 जो अंजीर के दरख़्त की देख-भाल करे वह उसका फल खाएगा, जो अपने मालिक की वफ़ादारी से ख़िदमत करे उसका एहतराम किया जाएगा। \p \v 19 जिस तरह पानी चेहरे को मुनअकिस करता है उसी तरह इनसान का दिल इनसान को मुनअकिस करता है। \p \v 20 न मौत और न पाताल कभी सेर होते हैं, न इनसान की आँखें। \p \v 21 सोना और चाँदी कुठाली में पिघलाकर पाक-साफ़ कर, लेकिन इनसान का किरदार इससे मालूम कर कि लोग उस की कितनी क़दर करते हैं। \p \v 22 अगर अहमक़ को अनाज की तरह ओखली और मूसल से कूटा भी जाए तो भी उस की हमाक़त दूर नहीं हो जाएगी। \p \v 23 एहतियात से अपनी भेड़-बकरियों की हालत पर ध्यान दे, अपने रेवड़ों पर ख़ूब तवज्जुह दे। \v 24 क्योंकि कोई भी दौलत हमेशा तक क़ायम नहीं रहती, कोई भी ताज नसल-दर-नसल बरक़रार नहीं रहता। \v 25 खुले मैदान में घास काटकर जमा कर ताकि नई घास उग सके, चारा पहाड़ों से भी इकट्ठा कर। \v 26 तब तू भेड़ों की ऊन से कपड़े बना सकेगा, बकरों की फ़रोख़्त से खेत ख़रीद सकेगा, \v 27 और बकरियाँ इतना दूध देंगी कि तेरे, तेरे ख़ानदान और तेरे नौकर-चाकरों के लिए काफ़ी होगा। \c 28 \p \v 1 बेदीन फ़रार हो जाता है हालाँकि ताक़्क़ुब करनेवाला कोई नहीं होता, लेकिन रास्तबाज़ अपने आपको जवान शेरबबर की तरह महफ़ूज़ समझता है। \p \v 2 मुल्क की ख़ताकारी के सबब से उस की हुकूमत की यगांगत क़ायम नहीं रहेगी, लेकिन समझदार और दानिशमंद आदमी उसे बड़ी देर तक क़ायम रखेगा। \p \v 3 जो ग़रीब ग़रीबों पर ज़ुल्म करे वह उस मूसलाधार बारिश की मानिंद है जो सैलाब लाकर फ़सलों को तबाह कर देती है। \p \v 4 जिसने शरीअत को तर्क किया वह बेदीन की तारीफ़ करता है, लेकिन जो शरीअत के ताबे रहता है वह उस की मुख़ालफ़त करता है। \p \v 5 शरीर इनसाफ़ नहीं समझते, लेकिन रब के तालिब सब कुछ समझते हैं। \p \v 6 बेइलज़ाम ज़िंदगी गुज़ारनेवाला ग़रीब टेढ़ी राहों पर चलनेवाले अमीर से बेहतर है। \p \v 7 जो शरीअत की पैरवी करे वह समझदार बेटा है, लेकिन ऐयाशों का साथी अपने बाप की बेइज़्ज़ती करता है। \p \v 8 जो अपनी दौलत नाजायज़ सूद से बढ़ाए वह उसे किसी और के लिए जमा कर रहा है, ऐसे शख़्स के लिए जो ग़रीबों पर रहम करेगा। \p \v 9 जो अपने कान में उँगली डाले ताकि शरीअत की बातें न सुने उस की दुआएँ भी क़ाबिले-घिन हैं। \p \v 10 जो सीधी राह पर चलनेवालों को ग़लत राह पर लाए वह अपने ही गढ़े में गिर जाएगा, लेकिन बेइलज़ाम अच्छी मीरास पाएँगे। \p \v 11 अमीर अपने आपको दानिशमंद समझता है, लेकिन जो ज़रूरतमंद समझदार है वह उसका असली किरदार मालूम कर लेता है। \p \v 12 जब रास्तबाज़ फ़तहयाब हों तो मुल्क की शानो-शौकत बढ़ जाती है, लेकिन जब बेदीन उठ खड़े हों तो लोग छुप जाते हैं। \p \v 13 जो अपने गुनाह छुपाए वह नाकाम रहेगा, लेकिन जो उन्हें तसलीम करके तर्क करे वह रहम पाएगा। \p \v 14 मुबारक है वह जो हर वक़्त रब का ख़ौफ़ माने, लेकिन जो अपना दिल सख़्त करे वह मुसीबत में फँस जाएगा। \p \v 15 पस्तहाल क़ौम पर हुकूमत करनेवाला बेदीन ग़ुर्राते हुए शेरबबर और हमलाआवर रीछ की मानिंद है। \p \v 16 जहाँ नासमझ हुक्मरान है वहाँ ज़ुल्म होता है, लेकिन जिसे ग़लत नफ़ा से नफ़रत हो उस की उम्र दराज़ होगी। \p \v 17 जो किसी को क़त्ल करे वह मौत तक अपने क़ुसूर के नीचे दबा हुआ मारा मारा फिरेगा। ऐसे शख़्स का सहारा न बन! \p \v 18 जो बेइलज़ाम ज़िंदगी गुज़ारे वह बचा रहेगा, लेकिन जो टेढ़ी राह पर चले वह अचानक ही गिर जाएगा। \p \v 19 जो अपनी ज़मीन की खेतीबाड़ी करे वह जी भरकर रोटी खाएगा, लेकिन जो फ़ज़ूल चीज़ों के पीछे पड़ जाए वह ग़ुरबत से सेर हो जाएगा। \p \v 20 क़ाबिले-एतमाद आदमी को कसरत की बरकतें हासिल होंगी, लेकिन जो भाग भागकर दौलत जमा करने में मसरूफ़ रहे वह सज़ा से नहीं बचेगा। \p \v 21 जानिबदारी बुरी बात है, लेकिन इनसान रोटी का टुकड़ा हासिल करने के लिए मुजरिम बन जाता है। \p \v 22 लालची भाग भागकर दौलत जमा करता है, उसे मालूम ही नहीं कि इसका अंजाम ग़ुरबत ही है। \p \v 23 आख़िरकार नसीहत देनेवाला चापलूसी करनेवाले से ज़्यादा मंज़ूर होता है। \p \v 24 जो अपने बाप या माँ को लूटकर कहे, “यह जुर्म नहीं है” वह मोहलक क़ातिल का शरीके-कार होता है। \p \v 25 लालची झगड़ों का मंबा रहता है, लेकिन जो रब पर भरोसा रखे वह ख़ुशहाल रहेगा। \p \v 26 जो अपने दिल पर भरोसा रखे वह बेवुक़ूफ़ है, लेकिन जो हिकमत की राह पर चले वह महफ़ूज़ रहेगा। \p \v 27 ग़रीबों को देनेवाला ज़रूरतमंद नहीं होगा, लेकिन जो अपनी आँखें बंद करके उन्हें नज़रंदाज़ करे उस पर बहुत लानतें आएँगी। \p \v 28 जब बेदीन उठ खड़े हों तो लोग छुप जाते हैं, लेकिन जब हलाक हो जाएँ तो रास्तबाज़ों की तादाद बढ़ जाती है। \c 29 \p \v 1 जो मुतअद्दिद नसीहतों के बावुजूद हटधर्म रहे वह अचानक ही बरबाद हो जाएगा, और शफ़ा का इमकान ही नहीं होगा। \p \v 2 जब रास्तबाज़ बहुत हैं तो क़ौम ख़ुश होती, लेकिन जब बेदीन हुकूमत करे तो क़ौम आहें भरती है। \p \v 3 जिसे हिकमत प्यारी हो वह अपने बाप को ख़ुशी दिलाता है, लेकिन कसबियों का साथी अपनी दौलत उड़ा देता है। \p \v 4 बादशाह इनसाफ़ से मुल्क को मुस्तहकम करता, लेकिन हद से ज़्यादा टैक्स लेने से उसे तबाह करता है। \p \v 5 जो अपने पड़ोसी की चापलूसी करे वह उसके क़दमों के आगे जाल बिछाता है। \p \v 6 शरीर जुर्म करते वक़्त अपने आपको फँसा देता, लेकिन रास्तबाज़ ख़ुशी मनाकर शादमान रहता है। \p \v 7 रास्तबाज़ पस्तहालों के हुक़ूक़ का ख़याल रखता है, लेकिन बेदीन परवा ही नहीं करता। \p \v 8 तानाज़न शहर में अफ़रा-तफ़री मचा देते जबकि दानिशमंद ग़ुस्सा ठंडा कर देते हैं। \p \v 9 जब दानिशमंद आदमी अदालत में अहमक़ से लड़े तो अहमक़ तैश में आ जाता या क़हक़हा लगाता है, सुकून का इमकान ही नहीं होता। \p \v 10 ख़ूनख़ार आदमी बेइलज़ाम शख़्स से नफ़रत करता, लेकिन सीधी राह पर चलनेवाला उस की बेहतरी चाहता है। \p \v 11 अहमक़ अपना पूरा ग़ुस्सा उतारता, लेकिन दानिशमंद उसे रोककर क़ाबू में रखता है। \p \v 12 जो हुक्मरान झूट पर ध्यान दे उसके तमाम मुलाज़िम बेदीन होंगे। \p \v 13 जब ग़रीब और ज़ालिम की मुलाक़ात होती है तो दोनों की आँखों को रौशन करनेवाला रब ही है। \p \v 14 जो बादशाह दियानतदारी से ज़रूरतमंद की अदालत करे उसका तख़्त हमेशा तक क़ायम रहेगा। \p \v 15 छड़ी और नसीहत हिकमत पैदा करती हैं। जिसे बेलगाम छोड़ा जाए वह अपनी माँ के लिए शरमिंदगी का बाइस होगा। \p \v 16 जब बेदीन फलें-फूलें तो गुनाह भी फलता-फूलता है, लेकिन रास्तबाज़ उनकी शिकस्त के गवाह होंगे। \p \v 17 अपने बेटे की तरबियत कर तो वह तुझे सुकून और ख़ुशी दिलाएगा। \p \v 18 जहाँ रोया नहीं वहाँ क़ौम बेलगाम हो जाती है, लेकिन मुबारक है वह जो शरीअत के ताबे रहता है। \p \v 19 नौकर सिर्फ़ अलफ़ाज़ से नहीं सुधरता। अगर वह बात समझे भी तो भी ध्यान नहीं देगा। \p \v 20 क्या कोई दिखाई देता है जो बात करने में जल्दबाज़ है? उस की निसबत अहमक़ के सुधरने की ज़्यादा उम्मीद है। \p \v 21 जो ग़ुलाम जवानी से नाज़ो-नेमत में पलकर बिगड़ जाए उसका बुरा अंजाम होगा। \p \v 22 ग़ज़बआलूद आदमी झगड़े छेड़ता रहता है, ग़ुसीले शख़्स से मुतअद्दिद गुनाह सरज़द होते हैं। \p \v 23 तकब्बुर अपने मालिक को पस्त कर देगा जबकि फ़रोतन शख़्स इज़्ज़त पाएगा। \p \v 24 जो चोर का साथी हो वह अपनी जान से नफ़रत रखता है। गो उससे हलफ़ उठवाया जाए कि चोरी के बारे में गवाही दे तो भी कुछ नहीं बताता बल्कि हलफ़ की लानत की ज़द में आ जाता है। \p \v 25 जो इनसान से ख़ौफ़ खाए वह फंदे में फँस जाएगा, लेकिन जो रब का ख़ौफ़ माने वह महफ़ूज़ रहेगा। \p \v 26 बहुत लोग हुक्मरान की मंज़ूरी के तालिब रहते हैं, लेकिन इनसाफ़ रब ही की तरफ़ से मिलता है। \p \v 27 रास्तबाज़ बदकार से और बेदीन सीधी राह पर चलनेवाले से घिन खाता है। \c 30 \s1 अजूर की कहावतें \p \v 1 ज़ैल में अजूर बिन याक़ा की कहावतें हैं। वह मस्सा का रहनेवाला था। उसने फ़रमाया, \p ऐ अल्लाह, मैं थक गया हूँ, ऐ अल्लाह, मैं थक गया हूँ, यह मेरे बस की बात नहीं रही। \v 2 यक़ीनन मैं इनसानों में सबसे ज़्यादा नादान हूँ, मुझे इनसान की समझ हासिल नहीं। \v 3 न मैंने हिकमत सीखी, न क़ुद्दूस ख़ुदा के बारे में इल्म रखता हूँ। \b \p \v 4 कौन आसमान पर चढ़कर वापस उतर आया? किसने हवा को अपने हाथों में जमा किया? किसने गहरे पानी को चादर में लपेट लिया? किसने ज़मीन की हुदूद को अपनी अपनी जगह पर क़ायम किया है? उसका नाम क्या है, उसके बेटे का क्या नाम है? अगर तुझे मालूम हो तो मुझे बता! \b \p \v 5 अल्लाह की हर बात आज़मूदा है, जो उसमें पनाह ले उसके लिए वह ढाल है। \p \v 6 उस की बातों में इज़ाफ़ा मत कर, वरना वह तुझे डाँटेगा और तू झूटा ठहरेगा। \b \p \v 7 ऐ रब, मैं तुझसे दो चीज़ें माँगता हूँ, मेरे मरने से पहले इनसे इनकार न कर। \v 8 पहले, दरोग़गोई और झूट मुझसे दूर रख। दूसरे, न ग़ुरबत न दौलत मुझे दे बल्कि उतनी ही रोटी जितनी मेरा हक़ है, \v 9 ऐसा न हो कि मैं दौलत के बाइस सेर होकर तेरा इनकार करूँ और कहूँ, “रब कौन है?” ऐसा भी न हो कि मैं ग़ुरबत के बाइस चोरी करके अपने ख़ुदा के नाम की बेहुरमती करूँ। \p \v 10 मालिक के सामने मुलाज़िम पर तोहमत न लगा, ऐसा न हो कि वह तुझ पर लानत भेजे और तुझे इसका बुरा नतीजा भुगतना पड़े। \b \p \v 11 ऐसी नसल भी है जो अपने बाप पर लानत करती और अपनी माँ को बरकत नहीं देती। \p \v 12 ऐसी नसल भी है जो अपनी नज़र में पाक-साफ़ है, गो उस की ग़िलाज़त दूर नहीं हुई। \p \v 13 ऐसी नसल भी है जिसकी आँखें बड़े तकब्बुर से देखती हैं, जो अपनी पलकें बड़े घमंड से मारती है। \p \v 14 ऐसी नसल भी है जिसके दाँत तलवारें और जबड़े छुरियाँ हैं ताकि दुनिया के मुसीबतज़दों को खा जाएँ, मुआशरे के ज़रूरतमंदों को हड़प कर लें। \b \p \v 15 जोंक की दो बेटियाँ हैं, चूसने के दो आज़ा जो चीख़ते रहते हैं, “और दो, और दो।” \p तीन चीज़ें हैं जो कभी सेर नहीं होतीं बल्कि चार हैं जो कभी नहीं कहतीं, “अब बस करो, अब काफ़ी है,” \v 16 पाताल, बाँझ का रहम, ज़मीन जिसकी प्यास कभी नहीं बुझती और आग जो कभी नहीं कहती, “अब बस करो, अब काफ़ी है।” \p \v 17 जो आँख बाप का मज़ाक़ उड़ाए और माँ की हिदायत को हक़ीर जाने उसे वादी के कौवे अपनी चोंचों से निकालेंगे और गिद्ध के बच्चे खा जाएंगे। \p \v 18 तीन बातें मुझे हैरतज़दा करती हैं बल्कि चार हैं जिनकी मुझे समझ नहीं आती, \v 19 आसमान की बुलंदियों पर उक़ाब की राह, चट्टान पर साँप की राह, समुंदर के बीच में जहाज़ की राह और वह राह जो मर्द कुँवारी के साथ चलता है। \p \v 20 ज़िनाकार औरत की यह राह है, वह खा लेती और फिर अपना मुँह पोंछकर कहती है, “मुझसे कोई ग़लती नहीं हुई।” \p \v 21 ज़मीन तीन चीज़ों से लरज़ उठती है बल्कि चार चीज़ें बरदाश्त नहीं कर सकती, \v 22 वह ग़ुलाम जो बादशाह बन जाए, वह अहमक़ जो जी भरकर खाना खा सके, \v 23 वह नफ़रतअंगेज़ \f + \fr 30:23 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : जिससे नफ़रत की जाती है। \f* औरत जिसकी शादी हो जाए और वह नौकरानी जो अपनी मालिकन की मिलकियत पर क़ब्ज़ा करे। \p \v 24 ज़मीन की चार मख़लूक़ात निहायत ही दानिशमंद हैं हालाँकि छोटी हैं। \v 25 चियूँटियाँ कमज़ोर नसल हैं लेकिन गरमियों के मौसम में सर्दियों के लिए ख़ुराक जमा करती हैं, \v 26 बिज्जू कमज़ोर नसल हैं लेकिन चट्टानों में ही अपने घर बना लेते हैं, \v 27 टिड्डियों का बादशाह नहीं होता ताहम सब परे बाँधकर निकलती हैं, \v 28 छिपकलियाँ गो हाथ से पकड़ी जाती हैं, ताहम शाही महलों में पाई जाती हैं। \p \v 29 तीन बल्कि चार जानदार पुरवक़ार अंदाज़ में चलते हैं। \v 30 पहले, शेरबबर जो जानवरों में ज़ोरावर है और किसी से भी पीछे नहीं हटता, \v 31 दूसरे, मुरग़ा जो अकड़कर चलता है, तीसरे, बकरा और चौथे अपनी फ़ौज के साथ चलनेवाला बादशाह। \p \v 32 अगर तूने मग़रूर होकर हमाक़त की या बुरे मनसूबे बाँधे तो अपने मुँह पर हाथ रखकर ख़ामोश हो जा, \v 33 क्योंकि दूध बिलोने से मक्खन, नाक को मरोड़ने \f + \fr 30:33 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : दबाव डालने। \f* से ख़ून और किसी को ग़ुस्सा दिलाने से लड़ाई-झगड़ा पैदा होता है। \c 31 \s1 लमुएल की कहावतें \p \v 1 ज़ैल में मस्सा के बादशाह लमुएल की कहावतें हैं। उस की माँ ने उसे यह तालीम दी, \p \v 2 ऐ मेरे बेटे, मेरे पेट के फल, जो मेरी मन्नतों से पैदा हुआ, मैं तुझे क्या बताऊँ? \v 3 अपनी पूरी ताक़त औरतों पर ज़ाया न कर, उन पर जो बादशाहों की तबाही का बाइस हैं। \p \v 4 ऐ लमुएल, बादशाहों के लिए मै पीना मुनासिब नहीं, हुक्मरानों के लिए शराब की आरज़ू रखना मौज़ूँ नहीं। \v 5 ऐसा न हो कि वह पी पीकर क़वानीन भूल जाएँ और तमाम मज़लूमों का हक़ मारें। \v 6 शराब उन्हें पिला जो तबाह होनेवाले हैं, मै उन्हें पिला जो ग़म खाते हैं, \v 7 ऐसे ही पी पीकर अपनी ग़ुरबत और मुसीबत भूल जाएँ। \p \v 8 अपना मुँह उनके लिए खोल जो बोल नहीं सकते, उनके हक़ में जो ज़रूरतमंद हैं। \v 9 अपना मुँह खोलकर इनसाफ़ से अदालत कर और मुसीबतज़दा और ग़रीबों के हुक़ूक़ महफ़ूज़ रख। \s1 सुघड़ बीवी की तारीफ़ \p \v 10 सुघड़ बीवी कौन पा सकता है? ऐसी औरत मोतियों से कहीं ज़्यादा बेशक़ीमत है। \v 11 उस पर उसके शौहर को पूरा एतमाद है, और वह नफ़ा से महरूम नहीं रहेगा। \v 12 उम्र-भर वह उसे नुक़सान नहीं पहुँचाएगी बल्कि बरकत का बाइस होगी। \p \v 13 वह ऊन और सन चुनकर बड़ी मेहनत से धागा बना लेती है। \v 14 तिजारती जहाज़ों की तरह वह दूर-दराज़ इलाक़ों से अपनी रोटी ले आती है। \p \v 15 वह पौ फटने से पहले ही जाग उठती है ताकि अपने घरवालों के लिए खाना और अपनी नौकरानियों के लिए उनका हिस्सा तैयार करे। \v 16 सोच-बिचार के बाद वह खेत ख़रीद लेती, अपने कमाए हुए पैसों से अंगूर का बाग़ लगा लेती है। \p \v 17 ताक़त से कमरबस्ता होकर वह अपने बाज़ुओं को मज़बूत करती है। \v 18 वह महसूस करती है, “मेरा कारोबार फ़ायदामंद है,” इसलिए उसका चराग़ रात के वक़्त भी नहीं बुझता। \v 19 उसके हाथ हर वक़्त ऊन और कतान कातने में मसरूफ़ रहते हैं। \v 20 वह अपनी मुट्ठी मुसीबतज़दों और ग़रीबों के लिए खोलकर उनकी मदद करती है। \v 21 जब बर्फ़ पड़े तो उसे घरवालों के बारे में कोई डर नहीं, क्योंकि सब गरम गरम कपड़े पहने हुए हैं। \v 22 अपने बिस्तर के लिए वह अच्छे कम्बल बना लेती, और ख़ुद वह बारीक कतान और अरग़वानी रंग के लिबास पहने फिरती है। \p \v 23 शहर के दरवाज़े में बैठे मुल्क के बुज़ुर्ग उसके शौहर से ख़ूब वाक़िफ़ हैं, और जब कभी कोई फ़ैसला करना हो तो वह भी शूरा में शरीक होता है। \p \v 24 बीवी कपड़ों की सिलाई करके उन्हें फ़रोख़्त करती है, सौदागर उसके कमरबंद ख़रीद लेते हैं। \p \v 25 वह ताक़त और वक़ार से मुलब्बस रहती और हँसकर आनेवाले दिनों का सामना करती है। \v 26 वह हिकमत से बात करती, और उस की ज़बान पर शफ़ीक़ तालीम रहती है। \v 27 वह सुस्ती की रोटी नहीं खाती बल्कि अपने घर में हर मामले की देख-भाल करती है। \p \v 28 उसके बेटे खड़े होकर उसे मुबारक कहते हैं, उसका शौहर भी उस की तारीफ़ करके कहता है, \v 29 “बहुत-सी औरतें सुघड़ साबित हुई हैं, लेकिन तू उन सब पर सबक़त रखती है!” \p \v 30 दिलफ़रेबी, धोका और हुस्न पल-भर का है, लेकिन जो औरत अल्लाह का ख़ौफ़ माने वह क़ाबिले-तारीफ़ है। \v 31 उसे उस की मेहनत का अज्र दो! शहर के दरवाज़ों में उसके काम उस की सताइश करें!।