\id NUM उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h गिनती \toc1 गिनती \toc2 गिनती \toc3 गिन \mt1 गिनती \c 1 \s1 इसराईलियों की पहली मर्दुमशुमारी \p \v 1 इसराईलियों को मिसर से निकले हुए एक साल से ज़्यादा अरसा गुज़र गया था। अब तक वह दश्ते-सीना में थे। दूसरे साल के दूसरे महीने के पहले दिन रब मुलाक़ात के ख़ैमे में मूसा से हमकलाम हुआ। उसने कहा, \p \v 2 “तू और हारून तमाम इसराईलियों की मर्दुमशुमारी कुंबों और आबाई घरानों के मुताबिक़ करना। उन तमाम मर्दों की फ़हरिस्त बनाना \v 3 जो कम अज़ कम बीस साल के और जंग लड़ने के क़ाबिल हों। \v 4 इसमें हर क़बीले के एक ख़ानदान का सरपरस्त तुम्हारी मदद करे। \v 5 यह उनके नाम हैं : \p रूबिन के क़बीले से इलीसूर बिन शदियूर, \p \v 6 शमौन के क़बीले से सलूमियेल बिन सूरीशद्दी, \p \v 7 यहूदाह के क़बीले से नहसोन बिन अम्मीनदाब, \p \v 8 इशकार के क़बीले से नतनियेल बिन ज़ुग़र, \p \v 9 ज़बूलून के क़बीले से इलियाब बिन हेलोन, \p \v 10 यूसुफ़ के बेटे इफ़राईम के क़बीले से इलीसमा बिन अम्मीहूद, \p यूसुफ़ के बेटे मनस्सी के क़बीले से जमलियेल बिन फ़दाहसूर, \p \v 11 बिनयमीन के क़बीले से अबिदान बिन जिदौनी, \p \v 12 दान के क़बीले से अख़ियज़र बिन अम्मीशद्दी, \p \v 13 आशर के क़बीले से फ़जियेल बिन अकरान, \p \v 14 जद के क़बीले से इलियासफ़ बिन दऊएल, \p \v 15 नफ़ताली के क़बीले से अख़ीरा बिन एनान।” \p \v 16 यही मर्द जमात से इस काम के लिए बुलाए गए। वह अपने क़बीलों के राहनुमा और कुंबों के सरपरस्त थे। \v 17 इनकी मदद से मूसा और हारून ने \v 18 उसी दिन पूरी जमात को इकट्ठा किया। हर इसराईली मर्द जो कम अज़ कम 20 साल का था रजिस्टर में दर्ज किया गया। रजिस्टर की तरतीब उनके कुंबों और आबाई घरानों के मुताबिक़ थी। \p \v 19 सब कुछ वैसा ही किया गया जैसा रब ने हुक्म दिया था। मूसा ने सीना के रेगिस्तान में लोगों की मर्दुमशुमारी की। नतीजा यह निकला : \p \v 20-21 रूबिन के क़बीले के 46,500 मर्द, \p \v 22-23 शमौन के क़बीले के 59,300 मर्द, \p \v 24-25 जद के क़बीले के 45,650 मर्द, \p \v 26-27 यहूदाह के क़बीले के 74,600 मर्द, \p \v 28-29 इशकार के क़बीले के 54,400 मर्द, \p \v 30-31 ज़बूलून के क़बीले के 57,400 मर्द, \p \v 32-33 यूसुफ़ के बेटे इफ़राईम के क़बीले के 40,500 मर्द, \p \v 34-35 यूसुफ़ के बेटे मनस्सी के क़बीले के 32,200 मर्द, \p \v 36-37 बिनयमीन के क़बीले के 35,400 मर्द, \p \v 38-39 दान के क़बीले के 62,700 मर्द, \p \v 40-41 आशर के क़बीले के 41,500 मर्द, \p \v 42-43 नफ़ताली के क़बीले के 53,400 मर्द। \p \v 44 मूसा, हारून और क़बीलों के बारह राहनुमाओं ने इन तमाम आदमियों को गिना। \v 45-46 उनकी पूरी तादाद 6,03,550 थी। \p \v 47 लेकिन लावियों की मर्दुमशुमारी न हुई, \v 48 क्योंकि रब ने मूसा से कहा था, \v 49 “इसराईलियों की मर्दुमशुमारी में लावियों को शामिल न करना। \v 50 इसके बजाए उन्हें शरीअत की सुकूनतगाह और उसका सारा सामान सँभालने की ज़िम्मादारी देना। वह सफ़र करते वक़्त यह ख़ैमा और उसका सारा सामान उठाकर ले जाएँ, उस की ख़िदमत के लिए हाज़िर रहें और रुकते वक़्त उसे अपने ख़ैमों से घेरे रखें। \v 51 रवाना होते वक़्त वही ख़ैमे को समेटें और रुकते वक़्त वही उसे लगाएँ। अगर कोई और उसके क़रीब आए तो उसे सज़ाए-मौत दी जाएगी। \v 52 बाक़ी इसराईली ख़ैमागाह में अपने अपने दस्ते के मुताबिक़ और अपने अपने अलम के इर्दगिर्द अपने ख़ैमे लगाएँ। \v 53 लेकिन लावी अपने ख़ैमों से शरीअत की सुकूनतगाह को घेर लें ताकि मेरा ग़ज़ब किसी ग़लत शख़्स के नज़दीक आने से इसराईलियों की जमात पर नाज़िल न हो जाए। यों लावियों को शरीअत की सुकूनतगाह को सँभालना है।” \p \v 54 इसराईलियों ने वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा को हुक्म दिया था। \c 2 \s1 ख़ैमागाह में क़बीलों की तरतीब \p \v 1 रब ने मूसा और हारून से कहा \v 2 कि इसराईली अपने ख़ैमे कुछ फ़ासले पर मुलाक़ात के ख़ैमे के इर्दगिर्द लगाएँ। हर एक अपने अपने अलम और अपने अपने आबाई घराने के निशान के साथ ख़ैमाज़न हो। \p \v 3 इन हिदायात के मुताबिक़ मक़दिस के मशरिक़ में यहूदाह का अलम था जिसके इर्दगिर्द तीन दस्ते ख़ैमाज़न थे। पहले, यहूदाह का क़बीला जिसका कमाँडर नहसोन बिन अम्मीनदाब था, \v 4 और जिसके लशकर के 74,600 फ़ौजी थे। \v 5 दूसरे, इशकार का क़बीला जिसका कमाँडर नतनियेल बिन ज़ुग़र था, \v 6 और जिसके लशकर के 54,400 फ़ौजी थे। \v 7 तीसरे, ज़बूलून का क़बीला जिसका कमाँडर इलियाब बिन हेलोन था \v 8 और जिसके लशकर के 57,400 फ़ौजी थे। \v 9 तीनों क़बीलों के फ़ौजियों की कुल तादाद 1,86,400 थी। रवाना होते वक़्त यह आगे चलते थे। \p \v 10 मक़दिस के जुनूब में रूबिन का अलम था जिसके इर्दगिर्द तीन दस्ते ख़ैमाज़न थे। पहले, रूबिन का क़बीला जिसका कमाँडर इलीसूर बिन शदियूर था, \v 11 और जिसके 46,500 फ़ौजी थे। \v 12 दूसरे, शमौन का क़बीला जिसका कमाँडर सलूमियेल बिन सूरीशद्दी था, \v 13 और जिसके 59,300 फ़ौजी थे। \v 14 तीसरे, जद का क़बीला जिसका कमाँडर इलियासफ़ बिन दऊएल था, \v 15 और जिसके 45,650 फ़ौजी थे। \v 16 तीनों क़बीलों के फ़ौजियों की कुल तादाद 1,51,450 थी। रवाना होते वक़्त यह मशरिक़ी क़बीलों के पीछे चलते थे। \p \v 17 इन जुनूबी क़बीलों के बाद लावी मुलाक़ात का ख़ैमा उठाकर क़बीलों के ऐन बीच में चलते थे। क़बीले उस तरतीब से रवाना होते थे जिस तरतीब से वह अपने ख़ैमे लगाते थे। हर क़बीला अपने अलम के पीछे चलता था। \p \v 18 मक़दिस के मग़रिब में इफ़राईम का अलम था जिसके इर्दगिर्द तीन दस्ते ख़ैमाज़न थे। पहले, इफ़राईम का क़बीला जिसका कमाँडर इलीसमा बिन अम्मीहूद था, \v 19 और जिसके 40,500 फ़ौजी थे। \v 20 दूसरे, मनस्सी का क़बीला जिसका कमाँडर जमलियेल बिन फ़दाहसूर था, \v 21 और जिसके 32,200 फ़ौजी थे। \v 22 तीसरे, बिनयमीन का क़बीला जिसका कमाँडर अबिदान बिन जिदौनी था, \v 23 और जिसके 35,400 फ़ौजी थे। \v 24 तीनों क़बीलों के फ़ौजियों की कुल तादाद 1,08,100 थी। रवाना होते वक़्त यह जुनूबी क़बीलों के पीछे चलते थे। \p \v 25 मक़दिस के शिमाल में दान का अलम था जिसके इर्दगिर्द तीन दस्ते ख़ैमाज़न थे। पहले, दान का क़बीला जिसका कमाँडर अख़ियज़र बिन अम्मीशद्दी था, \v 26 और जिसके 62,700 फ़ौजी थे। \v 27 दूसरे, आशर का क़बीला जिसका कमाँडर फ़जियेल बिन अकरान था, \v 28 और जिसके 41,500 फ़ौजी थे। \v 29 तीसरे, नफ़ताली का क़बीला जिसका कमाँडर अख़ीरा बिन एनान था, \v 30 और जिसके 53,400 फ़ौजी थे। \v 31 तीनों क़बीलों की कुल तादाद 1,57,600 थी। वह आख़िर में अपना अलम उठाकर रवाना होते थे। \p \v 32 पूरी ख़ैमागाह के फ़ौजियों की कुल तादाद 6,03,550 थी। \v 33 सिर्फ़ लावी इस तादाद में शामिल नहीं थे, क्योंकि रब ने मूसा को हुक्म दिया था कि उनकी भरती न की जाए। \p \v 34 यों इसराईलियों ने सब कुछ उन हिदायात के मुताबिक़ किया जो रब ने मूसा को दी थीं। उनके मुताबिक़ ही वह अपने झंडों के इर्दगिर्द अपने ख़ैमे लगाते थे और उनके मुताबिक़ ही अपने कुंबों और आबाई घरानों के साथ रवाना होते थे। \c 3 \s1 हारून के बेटे \p \v 1 यह हारून और मूसा के ख़ानदान का बयान है। उस वक़्त का ज़िक्र है जब रब ने सीना पहाड़ पर मूसा से बात की। \v 2 हारून के चार बेटे थे। बड़ा बेटा नदब था, फिर अबीहू, इलियज़र और इतमर। \v 3 यह इमाम थे जिनको मसह करके इस ख़िदमत का इख़्तियार दिया गया था। \v 4 लेकिन नदब और अबीहू उस वक़्त मर गए जब उन्होंने दश्ते-सीना में रब के हुज़ूर नाजायज़ आग पेश की। चूँकि वह बेऔलाद थे इसलिए हारून के जीते-जी सिर्फ़ इलियज़र और इतमर इमाम की ख़िदमत सरंजाम देते थे। \s1 लावियों की मक़दिस में ज़िम्मादारी \p \v 5 रब ने मूसा से कहा, \v 6 “लावी के क़बीले को लाकर हारून की ख़िदमत करने की ज़िम्मादारी दे। \v 7 उन्हें उसके लिए और पूरी जमात के लिए मुलाक़ात के ख़ैमे की ख़िदमात सँभालना है। \v 8 वह मुलाक़ात के ख़ैमे का सामान सँभालें और तमाम इसराईलियों के लिए मक़दिस के फ़रायज़ अदा करें। \v 9 तमाम इसराईलियों में से सिर्फ़ लावियों को हारून और उसके बेटों की ख़िदमत के लिए मुक़र्रर कर। \v 10 लेकिन सिर्फ़ हारून और उसके बेटों को इमाम की हैसियत हासिल है। जो भी बाक़ियों में से उनकी ज़िम्मादारियाँ उठाने की कोशिश करेगा उसे सज़ाए-मौत दी जाएगी।” \p \v 11 रब ने मूसा से यह भी कहा, \v 12 “मैंने इसराईलियों में से लावियों को चुन लिया है। वह तमाम इसराईली पहलौठों के एवज़ मेरे लिए मख़सूस हैं, \v 13 क्योंकि तमाम पहलौठे मेरे ही हैं। जिस दिन मैंने मिसर में तमाम पहलौठों को मार दिया उस दिन मैंने इसराईल के पहलौठों को अपने लिए मख़सूस किया, ख़ाह वह इनसान के थे या हैवान के। वह मेरे ही हैं। मैं रब हूँ।” \s1 लावियों की मर्दुमशुमारी \p \v 14 रब ने सीना के रेगिस्तान में मूसा से कहा, \v 15 “लावियों को गिनकर उनके आबाई घरानों और कुंबों के मुताबिक़ रजिस्टर में दर्ज करना। हर बेटे को गिनना है जो एक माह या इससे ज़ायद का है।” \v 16 मूसा ने ऐसा ही किया। \p \v 17 लावी के तीन बेटे जैरसोन, क़िहात और मिरारी थे। \v 18 जैरसोन के दो कुंबे उसके बेटों लिबनी और सिमई के नाम रखते थे। \v 19 क़िहात के चार कुंबे उसके बेटों अमराम, इज़हार, हबरून और उज़्ज़ियेल के नाम रखते थे। \v 20 मिरारी के दो कुंबे उसके बेटों महली और मूशी के नाम रखते थे। ग़रज़ लावी के क़बीले के कुंबे उसके पोतों के नाम रखते थे। \p \v 21 जैरसोन के दो कुंबों बनाम लिबनी और सिमई \v 22 के 7,500 मर्द थे जो एक माह या इससे ज़ायद के थे। \v 23 उन्हें अपने ख़ैमे मग़रिब में मक़दिस के पीछे लगाने थे। \v 24 उनका राहनुमा इलियासफ़ बिन लाएल था, \v 25 और वह ख़ैमे को सँभालते थे यानी उस की पोशिशें, ख़ैमे के दरवाज़े का परदा, \v 26 ख़ैमे और क़ुरबानगाह की चारदीवारी के परदे, चारदीवारी के दरवाज़े का परदा और तमाम रस्से। इन चीज़ों से मुताल्लिक़ सारी ख़िदमत उनकी ज़िम्मादारी थी। \p \v 27 क़िहात के चार कुंबों बनाम अमराम, इज़हार, हबरून और उज़्ज़ियेल \v 28 के 8,600 मर्द थे जो एक माह या इससे ज़ायद के थे और जिनको मक़दिस की ख़िदमत करनी थी। \v 29 उन्हें अपने डेरे मक़दिस के जुनूब में डालने थे। \v 30 उनका राहनुमा इलीसफ़न बिन उज़्ज़ियेल था, \v 31 और वह यह चीज़ें सँभालते थे : अहद का संदूक़, मेज़, शमादान, क़ुरबानगाहें, वह बरतन और साज़ो-सामान जो मक़दिस में इस्तेमाल होता था और मुक़द्दसतरीन कमरे का परदा। इन चीज़ों से मुताल्लिक़ सारी ख़िदमत उनकी ज़िम्मादारी थी। \v 32 हारून इमाम का बेटा इलियज़र लावियों के तमाम राहनुमाओं पर मुक़र्रर था। वह उन तमाम लोगों का इंचार्ज था जो मक़दिस की देख-भाल करते थे। \p \v 33 मिरारी के दो कुंबों बनाम महली और मूशी \v 34 के 6,200 मर्द थे जो एक माह या इससे ज़ायद के थे। \v 35 उनका राहनुमा सूरियेल बिन अबीख़ैल था। उन्हें अपने डेरे मक़दिस के शिमाल में डालने थे, \v 36 और वह यह चीज़ें सँभालते थे : ख़ैमे के तख़्ते, उसके शहतीर, खंबे, पाए और इस तरह का सारा सामान। इन चीज़ों से मुताल्लिक़ सारी ख़िदमत उनकी ज़िम्मादारी थी। \v 37 वह चारदीवारी के खंबे, पाए, मेख़ें और रस्से भी सँभालते थे। \p \v 38 मूसा, हारून और उनके बेटों को अपने डेरे मशरिक़ में मक़दिस के सामने डालने थे। उनकी ज़िम्मादारी मक़दिस में बनी इसराईल के लिए ख़िदमत करना थी। उनके अलावा जो भी मक़दिस में दाख़िल होने की कोशिश करता उसे सज़ाए-मौत देनी थी। \p \v 39 उन लावी मर्दों की कुल तादाद जो एक माह या इससे ज़ायद के थे 22,000 थी। रब के कहने पर मूसा और हारून ने उन्हें कुंबों के मुताबिक़ गिनकर रजिस्टर में दर्ज किया। \s1 लावी के क़बीले के मर्द पहलौठों के एवज़ी हैं \p \v 40 रब ने मूसा से कहा, “तमाम इसराईली पहलौठों को गिनना जो एक माह या इससे ज़ायद के हैं और उनके नाम रजिस्टर में दर्ज करना। \v 41 उन तमाम पहलौठों की जगह लावियों को मेरे लिए मख़सूस करना। इसी तरह इसराईलियों के मवेशियों के पहलौठों की जगह लावियों के मवेशी मेरे लिए मख़सूस करना। मैं रब हूँ।” \v 42 मूसा ने ऐसा ही किया जैसा रब ने उसे हुक्म दिया। उसने तमाम इसराईली पहलौठे \v 43 जो एक माह या इससे ज़ायद के थे गिन लिए। उनकी कुल तादाद 22,273 थी। \p \v 44 रब ने मूसा से कहा, \v 45 “मुझे तमाम इसराईली पहलौठों की जगह लावियों को पेश करना। इसी तरह मुझे इसराईलियों के मवेशियों की जगह लावियों के मवेशी पेश करना। लावी मेरे ही हैं। मैं रब हूँ। \v 46 लावियों की निसबत बाक़ी इसराईलियों के 273 पहलौठे ज़्यादा हैं। उनमें से \v 47 हर एक के एवज़ चाँदी के पाँच सिक्के ले जो मक़दिस के वज़न के मुताबिक़ हों (फ़ी सिक्का तक़रीबन 11 ग्राम)। \v 48 यह पैसे हारून और उसके बेटों को देना।” \p \v 49 मूसा ने ऐसा ही किया। \v 50 यों उसने चाँदी के 1,365 सिक्के (तक़रीबन 16 किलोग्राम) जमा करके \v 51 हारून और उसके बेटों को दिए, जिस तरह रब ने उसे हुक्म दिया था। \c 4 \s1 क़िहातियों की ज़िम्मादारियाँ \p \v 1 रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 2 “लावी के क़बीले में से क़िहातियों की मर्दुमशुमारी उनके कुंबों और आबाई घरानों के मुताबिक़ करना। \v 3 उन तमाम मर्दों को रजिस्टर में दर्ज करना जो 30 से लेकर 50 साल के हैं और मुलाक़ात के ख़ैमे में ख़िदमत करने के लिए आ सकते हैं। \v 4 क़िहातियों की ख़िदमत मुक़द्दसतरीन कमरे की देख-भाल है। \p \v 5 जब ख़ैमे को सफ़र के लिए समेटना है तो हारून और उसके बेटे दाख़िल होकर मुक़द्दसतरीन कमरे का परदा उतारें और उसे शरीअत के संदूक़ पर डाल दें। \v 6 इस पर वह तख़स की खालों का ग़िलाफ़ और आख़िर में पूरी तरह नीले रंग का कपड़ा बिछाएँ। इसके बाद वह संदूक़ को उठाने की लकड़ियाँ लगाएँ। \p \v 7 वह उस मेज़ पर भी नीले रंग का कपड़ा बिछाएँ जिस पर रब को रोटी पेश की जाती है। उस पर थाल, प्याले, मै की नज़रें पेश करने के बरतन और मरतबान रखे जाएँ। जो रोटी हमेशा मेज़ पर होती है वह भी उस पर रहे। \v 8 हारून और उसके बेटे इन तमाम चीज़ों पर क़िरमिज़ी रंग का कपड़ा बिछाकर आख़िर में उनके ऊपर तख़स की खालों का ग़िलाफ़ डालें। इसके बाद वह मेज़ को उठाने की लकड़ियाँ लगाएँ। \p \v 9 वह शमादान और उसके सामान पर यानी उसके चराग़, बत्ती कतरने की क़ैंचियों, जलते कोयले के छोटे बरतनों और तेल के बरतनों पर नीले रंग का कपड़ा रखें। \v 10 यह सब कुछ वह तख़स की खालों के ग़िलाफ़ में लपेटें और उसे उठाकर ले जाने के लिए एक चौखटे पर रखें। \p \v 11 वह बख़ूर जलाने की सोने की क़ुरबानगाह पर भी नीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर तख़स की खालों का ग़िलाफ़ डालें और फिर उसे उठाने की लकड़ियाँ लगाएँ। \v 12 वह सारा सामान जो मुक़द्दस कमरे में इस्तेमाल होता है लेकर नीले रंग के कपड़े में लपेटें, उस पर तख़स की खालों का ग़िलाफ़ डालें और उसे उठाकर ले जाने के लिए एक चौखटे पर रखें। \p \v 13 फिर वह जानवरों को जलाने की क़ुरबानगाह को राख से साफ़ करके उस पर अरग़वानी रंग का कपड़ा बिछाएँ। \v 14 उस पर वह क़ुरबानगाह की ख़िदमत के लिए सारा ज़रूरी सामान रखें यानी छिड़काव के कटोरे, जलते हुए कोयले के बरतन, बेलचे और काँटे। इस सामान पर वह तख़स की खालों का ग़िलाफ़ डालकर क़ुरबानगाह को उठाने की लकड़ियाँ लगाएँ। \p \v 15 सफ़र के लिए रवाना होते वक़्त यह सब कुछ उठाकर ले जाना क़िहातियों की ज़िम्मादारी है। लेकिन लाज़िम है कि पहले हारून और उसके बेटे यह तमाम मुक़द्दस चीज़ें ढाँपें। क़िहाती इनमें से कोई भी चीज़ न छुएँ वरना मर जाएंगे। \p \v 16 हारून इमाम का बेटा इलियज़र पूरे मुक़द्दस ख़ैमे और उसके सामान का इंचार्ज हो। इसमें चराग़ों का तेल, बख़ूर, ग़ल्ला की रोज़ाना नज़र और मसह का तेल भी शामिल है।” \p \v 17 रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 18 “ख़बरदार रहो कि क़िहात के कुंबे लावी के क़बीले में से मिटने न पाएँ। \v 19 चुनाँचे जब वह मुक़द्दसतरीन चीज़ों के पास आएँ तो हारून और उसके बेटे हर एक को उस सामान के पास ले जाएँ जो उसे उठाकर ले जाना है ताकि वह न मरें बल्कि जीते रहें। \v 20 क़िहाती एक लमहे के लिए भी मुक़द्दस चीज़ें देखने के लिए अंदर न जाएँ, वरना वह मर जाएंगे।” \s1 जैरसोनियों की ज़िम्मादारियाँ \p \v 21 फिर रब ने मूसा से कहा, \v 22 “जैरसोन की औलाद की मर्दुमशुमारी भी उनके आबाई घरानों और कुंबों के मुताबिक़ करना। \v 23 उन तमाम मर्दों को रजिस्टर में दर्ज करना जो 30 से लेकर 50 साल के हैं और मुलाक़ात के ख़ैमे में ख़िदमत के लिए आ सकते हैं। \v 24 वह यह चीज़ें उठाकर ले जाने के ज़िम्मादार हैं : \v 25 मुलाक़ात का ख़ैमा, उस की छत, छत पर रखी हुई तख़स की खाल की पोशिश, ख़ैमे के दरवाज़े का परदा, \v 26 ख़ैमे और क़ुरबानगाह की चारदीवारी के परदे, चारदीवारी के दरवाज़े का परदा, उसके रस्से और उसे लगाने का बाक़ी सामान। वह उन तमाम कामों के ज़िम्मादार हैं जो इन चीज़ों से मुंसलिक हैं। \v 27 जैरसोनियों की पूरी ख़िदमत हारून और उसके बेटों की हिदायात के मुताबिक़ हो। ख़बरदार रहो कि वह सब कुछ ऐन हिदायात के मुताबिक़ उठाकर ले जाएँ। \v 28 यह सब मुलाक़ात के ख़ैमे में जैरसोनियों की ज़िम्मादारियाँ हैं। इस काम में हारून इमाम का बेटा इतमर उन पर मुक़र्रर है।” \s1 मिरारियों की ज़िम्मादारियाँ \p \v 29 रब ने कहा, “मिरारी की औलाद की मर्दुमशुमारी भी उनके आबाई घरानों और कुंबों के मुताबिक़ करना। \v 30 उन तमाम मर्दों को रजिस्टर में दर्ज करना जो 30 से लेकर 50 साल के हैं और मुलाक़ात के ख़ैमे में ख़िदमत के लिए आ सकते हैं। \v 31 वह मुलाक़ात के ख़ैमे की यह चीज़ें उठाकर ले जाने के ज़िम्मादार हैं : दीवार के तख़्ते, शहतीर, खंबे और पाए, \v 32 फिर ख़ैमे की चारदीवारी के खंबे, पाए, मेख़ें, रस्से और यह चीज़ें लगाने का सामान। हर एक को तफ़सील से बताना कि वह क्या क्या उठाकर ले जाए। \v 33 यह सब कुछ मिरारियों की मुलाक़ात के ख़ैमे में ज़िम्मादारियों में शामिल है। इस काम में हारून इमाम का बेटा इतमर उन पर मुक़र्रर हो।” \s1 लावियों की मर्दुमशुमारी \p \v 34 मूसा, हारून और जमात के राहनुमाओं ने क़िहातियों की मर्दुमशुमारी उनके कुंबों और आबाई घरानों के मुताबिक़ की। \v 35-37 उन्होंने उन तमाम मर्दों को रजिस्टर में दर्ज किया जो 30 से लेकर 50 साल के थे और जो मुलाक़ात के ख़ैमे में ख़िदमत कर सकते थे। उनकी कुल तादाद 2,750 थी। मूसा और हारून ने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा की मारिफ़त फ़रमाया था। \v 38-41 फिर जैरसोनियों की मर्दुमशुमारी उनके कुंबों और आबाई घरानों के मुताबिक़ हुई। ख़िदमत के लायक़ मर्दों की कुल तादाद 2,630 थी। मूसा और हारून ने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा के ज़रीए फ़रमाया था। \v 42-45 फिर मिरारियों की मर्दुमशुमारी उनके कुंबों और आबाई घरानों के मुताबिक़ हुई। ख़िदमत के लायक़ मर्दों की कुल तादाद 3,200 थी। मूसा और हारून ने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा के ज़रीए फ़रमाया था। \v 46-48 लावियों के उन मर्दों की कुल तादाद 8,580 थी जिन्हें मुलाक़ात के ख़ैमे में ख़िदमत करना और सफ़र करते वक़्त उसे उठाकर ले जाना था। \p \v 49 मूसा ने रब के हुक्म के मुताबिक़ हर एक को उस की अपनी अपनी ज़िम्मादारी सौंपी और उसे बताया कि उसे क्या क्या उठाकर ले जाना है। यों उनकी मर्दुमशुमारी रब के उस हुक्म के ऐन मुताबिक़ की गई जो उसने मूसा की मारिफ़त दिया था। \c 5 \s1 नापाक लोग ख़ैमागाह में नहीं रह सकते \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को हुक्म दे कि हर उस शख़्स को ख़ैमागाह से बाहर कर दो जिसको वबाई जिल्दी बीमारी है, जिसके ज़ख़मों से माए निकलता रहता है या जो किसी लाश को छूने से नापाक है। \v 3 ख़ाह मर्द हो या औरत, सबको ख़ैमागाह के बाहर भेज देना ताकि वह ख़ैमागाह को नापाक न करें जहाँ मैं तुम्हारे दरमियान सुकूनत करता हूँ।” \v 4 इसराईलियों ने वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा को कहा था। उन्होंने रब के हुक्म के ऐन मुताबिक़ इस तरह के तमाम लोगों को ख़ैमागाह से बाहर कर दिया। \s1 ग़लत काम का मुआवज़ा \p \v 5 रब ने मूसा से कहा, \v 6 “इसराईलियों को हिदायत देना कि जो भी किसी से ग़लत सुलूक करे वह मेरे साथ बेवफ़ाई करता है और क़ुसूरवार है, ख़ाह मर्द हो या औरत। \v 7 लाज़िम है कि वह अपना गुनाह तसलीम करे और उसका पूरा मुआवज़ा दे बल्कि मुतअस्सिरा शख़्स का नुक़सान पूरा करने के अलावा 20 फ़ीसद ज़्यादा दे। \v 8 लेकिन अगर वह शख़्स जिसका क़ुसूर किया गया था मर चुका हो और उसका कोई वारिस न हो जो यह मुआवज़ा वसूल कर सके तो फिर उसे रब को देना है। इमाम को यह मुआवज़ा उस मेंढे के अलावा मिलेगा जो क़ुसूरवार अपने कफ़्फ़ारा के लिए देगा। \v 9-10 नीज़ इमाम को इसराईलियों की क़ुरबानियों में से वह कुछ मिलना है जो उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर उसे दिया जाता है। यह हिस्सा सिर्फ़ इमामों को ही मिलना है।” \s1 ज़िना के शक पर अल्लाह का फ़ैसला \p \v 11 रब ने मूसा से कहा, \v 12 “इसराईलियों को बताना, हो सकता है कि कोई शादीशुदा औरत भटककर अपने शौहर से बेवफ़ा हो जाए और \v 13 किसी और से हमबिसतर होकर नापाक हो जाए। उसके शौहर ने उसे नहीं देखा, क्योंकि यह पोशीदगी में हुआ है और न किसी ने उसे पकड़ा, न इसका कोई गवाह है। \v 14 अगर शौहर को अपनी बीवी की वफ़ादारी पर शक हो और वह ग़ैरत खाने लगे, लेकिन यक़ीन से नहीं कह सकता कि मेरी बीवी क़ुसूरवार है कि नहीं \v 15 तो वह अपनी बीवी को इमाम के पास ले आए। साथ साथ वह अपनी बीवी के लिए क़ुरबानी के तौर पर जौ का डेढ़ किलोग्राम बेहतरीन मैदा ले आए। इस पर न तेल उंडेला जाए, न बख़ूर डाला जाए, क्योंकि ग़ल्ला की यह नज़र ग़ैरत की नज़र है जिसका मक़सद है कि पोशीदा क़ुसूर ज़ाहिर हो जाए। \v 16 इमाम औरत को क़रीब आने दे और रब के सामने खड़ा करे। \v 17 वह मिट्टी का बरतन मुक़द्दस पानी से भरकर उसमें मक़दिस के फ़र्श की कुछ ख़ाक डाले। \v 18 फिर वह औरत को रब को पेश करके उसके बाल खुलवाए और उसके हाथों पर मैदे की नज़र रखे। इमाम के अपने हाथ में कड़वे पानी का वह बरतन हो जो लानत का बाइस है। \p \v 19 फिर वह औरत को क़सम खिलाकर कहे, ‘अगर कोई और आदमी आपसे हमबिसतर नहीं हुआ है और आप नापाक नहीं हुई हैं तो इस कड़वे पानी की लानत का आप पर कोई असर न हो। \v 20 लेकिन अगर आप भटककर अपने शौहर से बेवफ़ा हो गई हैं और किसी और से हमबिसतर होकर नापाक हो गई हैं \v 21 तो रब आपको आपकी क़ौम के सामने लानती बनाए। आप बाँझ हो जाएँ और आपका पेट फूल जाए। \v 22 जब लानत का यह पानी आपके पेट में उतरे तो आप बाँझ हो जाएँ और आपका पेट फूल जाए।’ इस पर औरत कहे, ‘आमीन, ऐसा ही हो।’ \p \v 23 फिर इमाम यह लानत लिखकर काग़ज़ को बरतन के पानी में यों धो दे कि उस पर लिखी हुई बातें पानी में घुल जाएँ। \v 24 बाद में वह औरत को यह पानी पिलाए ताकि वह उसके जिस्म में जाकर उसे लानत पहुँचाए। \v 25 लेकिन पहले इमाम उसके हाथों में से ग़ैरत की क़ुरबानी लेकर उसे ग़ल्ला की नज़र के तौर पर रब के सामने हिलाए और फिर क़ुरबानगाह के पास ले आए। \v 26 उस पर वह मुट्ठी-भर यादगारी की क़ुरबानी के तौर पर जलाए। इसके बाद वह औरत को पानी पिलाए। \v 27 अगर वह अपने शौहर से बेवफ़ा थी और नापाक हो गई है तो वह बाँझ हो जाएगी, उसका पेट फूल जाएगा और वह अपनी क़ौम के सामने लानती ठहरेगी। \v 28 लेकिन अगर वह पाक-साफ़ है तो उसे सज़ा नहीं दी जाएगी और वह बच्चे जन्म देने के क़ाबिल रहेगी। \p \v 29-30 चुनाँचे ऐसा ही करना है जब शौहर ग़ैरत खाए और उसे अपनी बीवी पर ज़िना का शक हो। बीवी को क़ुरबानगाह के सामने खड़ा किया जाए और इमाम यह सब कुछ करे। \v 31 इस सूरत में शौहर बेक़ुसूर ठहरेगा, लेकिन अगर उस की बीवी ने वाक़ई ज़िना किया हो तो उसे अपने गुनाह के नतीजे बरदाश्त करने पड़ेंगे।” \c 6 \s1 जो अपने आपको मख़सूस करते हैं \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को हिदायत देना कि अगर कोई आदमी या औरत मन्नत मानकर अपने आपको एक मुक़र्ररा वक़्त के लिए रब के लिए मख़सूस करे \v 3 तो वह मै या कोई और नशा-आवर चीज़ न पिए। न वह अंगूर या किसी और चीज़ का सिरका पिए, न अंगूर का रस। वह अंगूर या किशमिश न खाए। \v 4 जब तक वह मख़सूस है वह अंगूर की कोई भी पैदावार न खाए, यहाँ तक कि अंगूर के बीज या छिलके भी न खाए। \v 5 जब तक वह अपनी मन्नत के मुताबिक़ मख़सूस है वह अपने बाल न कटवाए। जितनी देर के लिए उसने अपने आपको रब के लिए मख़सूस किया है उतनी देर तक वह मुक़द्दस है। इसलिए वह अपने बाल बढ़ने दे। \v 6 जब तक वह मख़सूस है वह किसी लाश के क़रीब न जाए, \v 7 चाहे वह उसके बाप, माँ, भाई या बहन की लाश क्यों न हो। क्योंकि इससे वह नापाक हो जाएगा जबकि अभी तक उस की मख़सूसियत लंबे बालों की सूरत में नज़र आती है। \v 8 वह अपनी मख़सूसियत के दौरान रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस है। \p \v 9 अगर कोई अचानक मर जाए जब मख़सूस शख़्स उसके क़रीब हो तो उसके मख़सूस बाल नापाक हो जाएंगे। ऐसी सूरत में लाज़िम है कि वह अपने आपको पाक-साफ़ करके सातवें दिन अपने सर को मुँडवाए। \v 10 आठवें दिन वह दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर लेकर मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर आए और इमाम को दे। \v 11 इमाम इनमें से एक को गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाए और दूसरे को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर। यों वह उसके लिए कफ़्फ़ारा देगा जो लाश के क़रीब होने से नापाक हो गया है। उसी दिन वह अपने सर को दुबारा मख़सूस करे \v 12 और अपने आपको मुक़र्ररा वक़्त के लिए दुबारा रब के लिए मख़सूस करे। वह क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर एक साल का भेड़ का बच्चा पेश करे। जितने दिन उसने पहले मख़सूसियत की हालत में गुज़ारे हैं वह शुमार नहीं किए जा सकते क्योंकि वह मख़सूसियत की हालत में नापाक हो गया था। वह दुबारा पहले दिन से शुरू करे। \p \v 13 शरीअत के मुताबिक़ जब मख़सूस शख़्स का मुक़र्ररा वक़्त गुज़र गया हो तो पहले उसे मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर लाया जाए। \v 14 वहाँ वह रब को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए भेड़ का एक बेऐब यकसाला नर बच्चा, गुनाह की क़ुरबानी के लिए एक बेऐब यकसाला भेड़ और सलामती की क़ुरबानी के लिए एक बेऐब मेंढा पेश करे। \v 15 इसके अलावा वह एक टोकरी में बेख़मीरी रोटियाँ जिनमें बेहतरीन मैदा और तेल मिलाया गया हो और बेख़मीरी रोटियाँ जिन पर तेल लगाया गया हो मुताल्लिक़ा ग़ल्ला की नज़र और मै की नज़र के साथ \v 16 रब को पेश करे। पहले इमाम गुनाह की क़ुरबानी और भस्म होनेवाली क़ुरबानी रब के हुज़ूर चढ़ाए। \v 17 फिर वह मेंढे को बेख़मीरी रोटियों के साथ सलामती की क़ुरबानी के तौर पर पेश करे। इमाम ग़ल्ला की नज़र और मै की नज़र भी चढ़ाए। \v 18 इस दौरान मख़सूस शख़्स मुलाक़ात के ख़ैमे पर अपने मख़सूस किए गए सर को मुँडवाकर तमाम बाल सलामती की क़ुरबानी की आग में फेंके। \p \v 19 फिर इमाम मेंढे का एक पका हुआ शाना और टोकरी में से दोनों क़िस्मों की एक एक रोटी लेकर मख़सूस शख़्स के हाथों पर रखे। \v 20 इसके बाद वह यह चीज़ें वापस लेकर उन्हें हिलाने की क़ुरबानी के तौर पर रब के सामने हिलाए। यह एक मुक़द्दस क़ुरबानी है जो इमाम का हिस्सा है। सलामती की क़ुरबानी का हिलाया हुआ सीना और उठाई हुई रान भी इमाम का हिस्सा हैं। क़ुरबानी के इख़्तिताम पर मख़सूस किए हुए शख़्स को मै पीने की इजाज़त है। \p \v 21 जो अपने आपको रब के लिए मख़सूस करता है वह ऐसा ही करे। लाज़िम है कि वह इन हिदायात के मुताबिक़ तमाम क़ुरबानियाँ पेश करे। अगर गुंजाइश हो तो वह और भी पेश कर सकता है। बहरहाल लाज़िम है कि वह अपनी मन्नत और यह हिदायात पूरी करे।” \s1 इमाम की बरकत \p \v 22 रब ने मूसा से कहा, \v 23 “हारून और उसके बेटों को बता देना कि वह इसराईलियों को यों बरकत दें, \p \v 24 ‘रब तुझे बरकत दे और तेरी हिफ़ाज़त करे। \p \v 25 रब अपने चेहरे का मेहरबान नूर तुझ पर चमकाए और तुझ पर रहम करे। \p \v 26 रब की नज़रे-करम तुझ पर हो, और वह तुझे सलामती बख़्शे।’ \p \v 27 यों वह मेरा नाम लेकर इसराईलियों को बरकत दें। फिर मैं उन्हें बरकत दूँगा।” \c 7 \s1 मक़दिस की मख़सूसियत के हदिये \p \v 1 जिस दिन मक़दिस मुकम्मल हुआ उसी दिन मूसा ने उसे मख़सूसो-मुक़द्दस किया। इसके लिए उसने ख़ैमे, उसके तमाम सामान, क़ुरबानगाह और उसके तमाम सामान पर तेल छिड़का। \v 2-3 फिर क़बीलों के बारह सरदार मक़दिस के लिए हदिये लेकर आए। यह वही राहनुमा थे जिन्होंने मर्दुमशुमारी के वक़्त मूसा की मदद की थी। उन्होंने छतवाली छ: बैलगाड़ियाँ और बारह बैल ख़ैमे के सामने रब को पेश किए, दो दो सरदारों की तरफ़ से एक बैलगाड़ी और हर एक सरदार की तरफ़ से एक बैल। \p \v 4 रब ने मूसा से कहा, \v 5 “यह तोह्फ़े क़बूल करके मुलाक़ात के ख़ैमे के काम के लिए इस्तेमाल कर। उन्हें लावियों में उनकी ख़िदमत की ज़रूरत के मुताबिक़ तक़सीम करना।” \v 6 चुनाँचे मूसा ने बैलगाड़ियाँ और बैल लावियों को दे दिए। \v 7 उसने दो बैलगाड़ियाँ चार बैलों समेत जैरसोनियों को \v 8 और चार बैलगाड़ियाँ आठ बैलों समेत मिरारियों को दीं। मिरारी हारून इमाम के बेटे इतमर के तहत ख़िदमत करते थे। \v 9 लेकिन मूसा ने क़िहातियों को न बैलगाड़ियाँ और न बैल दिए। वजह यह थी कि जो मुक़द्दस चीज़ें उनके सुपुर्द थीं वह उनको कंधों पर उठाकर ले जानी थीं। \p \v 10 बारह सरदार क़ुरबानगाह की मख़सूसियत के मौक़े पर भी हदिये ले आए। उन्होंने अपने हदिये क़ुरबानगाह के सामने पेश किए। \v 11 रब ने मूसा से कहा, “सरदार बारह दिन के दौरान बारी बारी अपने हदिये पेश करें।” \v 12 पहले दिन यहूदाह के सरदार नहसोन बिन अम्मीनदाब की बारी थी। उसके हदिये यह थे : \v 13 चाँदी का थाल जिसका वज़न डेढ़ किलोग्राम था और छिड़काव का चाँदी का कटोरा जिसका वज़न 800 ग्राम था। दोनों ग़ल्ला की नज़र के लिए तेल के साथ मिलाए गए बेहतरीन मैदे से भरे हुए थे। \v 14 इनके अलावा नहसोन ने यह चीज़ें पेश कीं : सोने का प्याला जिसका वज़न 110 ग्राम था और जो बख़ूर से भरा हुआ था, \v 15 एक जवान बैल, एक मेंढा, भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए भेड़ का एक यकसाला बच्चा, \v 16 गुनाह की क़ुरबानी के लिए एक बकरा \v 17 और सलामती की क़ुरबानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे और भेड़ के पाँच यकसाला बच्चे। \p \v 18-23 अगले ग्यारह दिन बाक़ी सरदार भी यही हदिये मक़दिस के पास ले आए। दूसरे दिन इशकार के सरदार नतनियेल बिन ज़ुग़र की बारी थी, \v 24-29 तीसरे दिन ज़बूलून के सरदार इलियाब बिन हेलोन की, \v 30-47 चौथे दिन रूबिन के सरदार इलीसूर बिन शदियूर की, पाँचवें दिन शमौन के सरदार सलूमियेल बिन सूरीशद्दी की, छटे दिन जद के सरदार इलियासफ़ बिन दऊएल की, \v 48-53 सातवें दिन इफ़राईम के सरदार इलीसमा बिन अम्मीहूद की, \v 54-71 आठवें दिन मनस्सी के सरदार जमलियेल बिन फ़दाहसूर की, नवें दिन बिनयमीन के सरदार अबिदान बिन जिदौनी की, दसवें दिन दान के सरदार अख़ियज़र बिन अम्मीशद्दी की, \v 72-83 ग्यारहवें दिन आशर के सरदार फ़जियेल बिन अकरान की और बारहवें दिन नफ़ताली के सरदार अख़ीरा बिन एनान की बारी थी। \p \v 84 इसराईल के इन सरदारों ने मिलकर क़ुरबानगाह की मख़सूसियत के लिए चाँदी के 12 थाल, छिड़काव के चाँदी के 12 कटोरे और सोने के 12 प्याले पेश किए। \v 85 हर थाल का वज़न डेढ़ किलोग्राम और छिड़काव के हर कटोरे का वज़न 800 ग्राम था। इन चीज़ों का कुल वज़न तक़रीबन 28 किलोग्राम था। \v 86 बख़ूर से भरे हुए सोने के प्यालों का कुल वज़न तक़रीबन डेढ़ किलोग्राम था (फ़ी प्याला 110 ग्राम)। \v 87 सरदारों ने मिलकर भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए 12 जवान बैल, 12 मेंढे और भेड़ के 12 यकसाला बच्चे उनकी ग़ल्ला की नज़रों समेत पेश किए। गुनाह की क़ुरबानी के लिए उन्होंने 12 बकरे पेश किए \v 88 और सलामती की क़ुरबानी के लिए 24 बैल, 60 मेंढे, 60 बकरे और भेड़ के 60 यकसाला बच्चे। इन तमाम जानवरों को क़ुरबानगाह की मख़सूसियत के मौक़े पर चढ़ाया गया। \p \v 89 जब मूसा मुलाक़ात के ख़ैमे में रब के साथ बात करने के लिए दाख़िल होता था तो वह रब की आवाज़ अहद के संदूक़ के ढकने पर से यानी दो करूबी फ़रिश्तों के दरमियान से सुनता था। \c 8 \s1 शमादान पर चराग़ \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “हारून को बताना, ‘तुझे सात चराग़ों को शमादान पर यों रखना है कि वह शमादान का सामनेवाला हिस्सा रौशन करें’।” \p \v 3 हारून ने ऐसा ही किया। जिस तरह रब ने मूसा को हुक्म दिया था उसी तरह उसने चराग़ों को रख दिया ताकि वह सामनेवाला हिस्सा रौशन करें। \v 4 शमादान पाए से लेकर ऊपर की कलियों तक सोने के एक घड़े हुए टुकड़े का बना हुआ था। मूसा ने उसे उस नमूने के ऐन मुताबिक़ बनवाया जो रब ने उसे दिखाया था। \s1 लावियों की मख़सूसियत \p \v 5 रब ने मूसा से कहा, \v 6 “लावियों को दीगर इसराईलियों से अलग करके पाक-साफ़ करना। \v 7 इसके लिए गुनाह से पाक करनेवाला पानी उन पर छिड़ककर उन्हें हुक्म देना कि अपने जिस्म के पूरे बाल मुँडवाओ और अपने कपड़े धोओ। यों वह पाक-साफ़ हो जाएंगे। \v 8 फिर वह एक जवान बैल चुनें और साथ की ग़ल्ला की नज़र के लिए तेल के साथ मिलाया गया बेहतरीन मैदा लें। तू ख़ुद भी एक जवान बैल चुन। वह गुनाह की क़ुरबानी के लिए होगा। \p \v 9 इसके बाद लावियों को मुलाक़ात के ख़ैमे के सामने खड़ा करके इसराईल की पूरी जमात को वहाँ जमा करना। \v 10 जब लावी रब के सामने खड़े हों तो बाक़ी इसराईली उनके सरों पर अपने हाथ रखें। \v 11 फिर हारून लावियों को रब के सामने पेश करे। उन्हें इसराईलियों की तरफ़ से हिलाई हुई क़ुरबानी की हैसियत से पेश किया जाए ताकि वह रब की ख़िदमत कर सकें। \v 12 फिर लावी अपने हाथ दोनों बैलों के सरों पर रखें। एक बैल को गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर और दूसरे को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाओ ताकि लावियों का कफ़्फ़ारा दिया जाए। \p \v 13 लावियों को इस तरीक़े से हारून और उसके बेटों के सामने खड़ा करके रब को हिलाई हुई क़ुरबानी के तौर पर पेश करना है। \v 14 उन्हें बाक़ी इसराईलियों से अलग करने से वह मेरा हिस्सा बनेंगे। \v 15 इसके बाद ही वह मुलाक़ात के ख़ैमे में आकर ख़िदमत करें, क्योंकि अब वह ख़िदमत करने के लायक़ हैं। उन्हें पाक-साफ़ करके हिलाई हुई क़ुरबानी के तौर पर पेश करने का सबब यह है \v 16 कि लावी इसराईलियों में से वह हैं जो मुझे पूरे तौर पर दिए गए हैं। मैंने उन्हें इसराईलियों के तमाम पहलौठों की जगह ले लिया है। \v 17 क्योंकि इसराईल में हर पहलौठा मेरा है, ख़ाह वह इनसान का हो या हैवान का। उस दिन जब मैंने मिसरियों के पहलौठों को मार दिया मैंने इसराईल के पहलौठों को अपने लिए मख़सूसो-मुक़द्दस किया। \v 18 इस सिलसिले में मैंने लावियों को इसराईलियों के तमाम पहलौठों की जगह लेकर \v 19 उन्हें हारून और उसके बेटों को दिया है। वह मुलाक़ात के ख़ैमे में इसराईलियों की ख़िदमत करें और उनके लिए कफ़्फ़ारा का इंतज़ाम क़ायम रखें ताकि जब इसराईली मक़दिस के क़रीब आएँ तो उनको वबा से मारा न जाए।” \p \v 20 मूसा, हारून और इसराईलियों की पूरी जमात ने एहतियात से रब की लावियों के बारे में हिदायात पर अमल किया। \v 21 लावियों ने अपने आपको गुनाहों से पाक-साफ़ करके अपने कपड़ों को धोया। फिर हारून ने उन्हें रब के सामने हिलाई हुई क़ुरबानी के तौर पर पेश किया और उनका कफ़्फ़ारा दिया ताकि वह पाक हो जाएँ। \v 22 इसके बाद लावी मुलाक़ात के ख़ैमे में आए ताकि हारून और उसके बेटों के तहत ख़िदमत करें। यों सब कुछ वैसा ही किया गया जैसा रब ने मूसा को हुक्म दिया था। \p \v 23 रब ने मूसा से यह भी कहा, \v 24 “लावी 25 साल की उम्र में मुलाक़ात के ख़ैमे में अपनी ख़िदमत शुरू करें \v 25 और 50 साल की उम्र में रिटायर हो जाएँ। \v 26 इसके बाद वह मुलाक़ात के ख़ैमे में अपने भाइयों की मदद कर सकते हैं, लेकिन ख़ुद ख़िदमत नहीं कर सकते। तुझे लावियों को इन हिदायात के मुताबिक़ उनकी अपनी अपनी ज़िम्मादारियाँ देनी हैं।” \c 9 \s1 रेगिस्तान में ईदे-फ़सह \p \v 1 इसराईलियों को मिसर से निकले एक साल हो गया था। दूसरे साल के पहले महीने में रब ने दश्ते-सीना में मूसा से बात की। \p \v 2 “लाज़िम है कि इसराईली ईदे-फ़सह को मुक़र्ररा वक़्त पर मनाएँ, \v 3 यानी इस महीने के चौधवें दिन, सूरज के ग़ुरूब होने के ऐन बाद। उसे तमाम क़वायद के मुताबिक़ मनाना।” \v 4 चुनाँचे मूसा ने इसराईलियों से कहा कि वह ईदे-फ़सह मनाएँ, \v 5 और उन्होंने ऐसा ही किया। उन्होंने ईदे-फ़सह को पहले महीने के चौधवें दिन सूरज के ग़ुरूब होने के ऐन बाद मनाया। उन्होंने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा को हुक्म दिया था। \p \v 6 लेकिन कुछ आदमी नापाक थे, क्योंकि उन्होंने लाश छू ली थी। इस वजह से वह उस दिन ईदे-फ़सह न मना सके। वह मूसा और हारून के पास आकर \v 7 कहने लगे, “हमने लाश छू ली है, इसलिए नापाक हैं। लेकिन हमें इस सबब से ईदे-फ़सह को मनाने से क्यों रोका जाए? हम भी मुक़र्ररा वक़्त पर बाक़ी इसराईलियों के साथ रब की क़ुरबानी पेश करना चाहते हैं।” \v 8 मूसा ने जवाब दिया, “यहाँ मेरे इंतज़ार में खड़े रहो। मैं मालूम करता हूँ कि रब तुम्हारे बारे में क्या हुक्म देता है।” \p \v 9 रब ने मूसा से कहा, \v 10 “इसराईलियों को बता देना कि अगर तुम या तुम्हारी औलाद में से कोई ईदे-फ़सह के दौरान लाश छूने से नापाक हो या किसी दूर-दराज़ इलाक़े में सफ़र कर रहा हो, तो भी वह ईद मना सकता है। \v 11 ऐसा शख़्स उसे ऐन एक माह के बाद मनाकर लेले के साथ बेख़मीरी रोटी और कड़वा साग-पात खाए। \v 12 खाने में से कुछ भी अगली सुबह तक बाक़ी न रहे। जानवर की कोई भी हड्डी न तोड़ना। मनानेवाला ईदे-फ़सह के पूरे फ़रायज़ अदा करे। \v 13 लेकिन जो पाक होने और सफ़र न करने के बावुजूद भी ईदे-फ़सह को न मनाए उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए, क्योंकि उसने मुक़र्ररा वक़्त पर रब को क़ुरबानी पेश नहीं की। उस शख़्स को अपने गुनाह का नतीजा भुगतना पड़ेगा। \v 14 अगर कोई परदेसी तुम्हारे दरमियान रहते हुए रब के सामने ईदे-फ़सह मनाना चाहे तो उसे इजाज़त है। शर्त यह है कि वह पूरे फ़रायज़ अदा करे। परदेसी और देसी के लिए ईदे-फ़सह मनाने के फ़रायज़ एक जैसे हैं।” \s1 मुलाक़ात के ख़ैमे पर बादल का सतून \p \v 15 जिस दिन शरीअत के मुक़द्दस ख़ैमे को खड़ा किया गया उस दिन बादल आकर उस पर छा गया। रात के वक़्त बादल आग की सूरत में नज़र आया। \v 16 इसके बाद यही सूरते-हाल रही कि बादल उस पर छाया रहता और रात के दौरान आग की सूरत में नज़र आता। \v 17 जब भी बादल ख़ैमे पर से उठता इसराईली रवाना हो जाते। जहाँ भी बादल उतर जाता वहाँ इसराईली अपने डेरे डालते। \v 18 इसराईली रब के हुक्म पर रवाना होते और उसके हुक्म पर डेरे डालते। जब तक बादल मक़दिस पर छाया रहता उस वक़्त तक वह वहीं ठहरते। \v 19 कभी कभी बादल बड़ी देर तक ख़ैमे पर ठहरा रहता। तब इसराईली रब का हुक्म मानकर रवाना न होते। \v 20 कभी कभी बादल सिर्फ़ दो-चार दिन के लिए ख़ैमे पर ठहरता। फिर वह रब के हुक्म के मुताबिक़ ही ठहरते और रवाना होते थे। \v 21 कभी कभी बादल सिर्फ़ शाम से लेकर सुबह तक ख़ैमे पर ठहरता। जब वह सुबह के वक़्त उठता तो इसराईली भी रवाना होते थे। जब भी बादल उठता वह भी रवाना हो जाते। \v 22 जब तक बादल मुक़द्दस ख़ैमे पर छाया रहता उस वक़्त तक इसराईली रवाना न होते, चाहे वह दो दिन, एक माह, एक साल या इससे ज़्यादा अरसा मक़दिस पर छाया रहता। लेकिन जब वह उठता तो इसराईली भी रवाना हो जाते। \v 23 वह रब के हुक्म पर ख़ैमे लगाते और उसके हुक्म पर रवाना होते थे। वह वैसा ही करते थे जैसा रब मूसा की मारिफ़त फ़रमाता था। \c 10 \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “चाँदी के दो बिगुल घड़कर बनवा ले। उन्हें जमात को जमा करने और क़बीलों को रवाना करने के लिए इस्तेमाल कर। \v 3 जब दोनों को देर तक बजाया जाए तो पूरी जमात मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर आकर तेरे सामने जमा हो जाए। \v 4 लेकिन अगर एक ही बजाया जाए तो सिर्फ़ कुंबों के बुज़ुर्ग तेरे सामने जमा हो जाएँ। \v 5 अगर उनकी आवाज़ सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए सुनाई दे तो मक़दिस के मशरिक़ में मौजूद क़बीले रवाना हो जाएँ। \v 6 फिर जब उनकी आवाज़ दूसरी बार थोड़ी देर के लिए सुनाई दे तो मक़दिस के जुनूब में मौजूद क़बीले रवाना हो जाएँ। जब उनकी आवाज़ थोड़ी देर के लिए सुनाई दे तो यह रवाना होने का एलान होगा। \v 7 इसके मुक़ाबले में जब उनकी आवाज़ देर तक सुनाई दे तो यह इस बात का एलान होगा कि जमात जमा हो जाए। \p \v 8 बिगुल बजाने की ज़िम्मादारी हारून के बेटों यानी इमामों को दी जाए। यह तुम्हारे और आनेवाली नसलों के लिए दायमी उसूल हो। \v 9 उनकी आवाज़ उस वक़्त भी थोड़ी देर के लिए सुना दो जब तुम अपने मुल्क में किसी ज़ालिम दुश्मन से जंग लड़ने के लिए निकलोगे। तब रब तुम्हारा ख़ुदा तुम्हें याद करके दुश्मन से बचाएगा। \p \v 10 इसी तरह उनकी आवाज़ मक़दिस में ख़ुशी के मौक़ों पर सुनाई दे यानी मुक़र्ररा ईदों और नए चाँद की ईदों पर। इन मौक़ों पर वह भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ और सलामती की क़ुरबानियाँ चढ़ाते वक़्त बजाए जाएँ। फिर तुम्हारा ख़ुदा तुम्हें याद करेगा। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।” \s1 सीना पहाड़ से रवानगी \p \v 11 इसराईलियों को मिसर से निकले एक साल से ज़ायद अरसा हो चुका था। दूसरे महीने के बीसवें दिन बादल मुलाक़ात के ख़ैमे पर से उठा। \v 12 फिर इसराईली मुक़र्ररा तरतीब के मुताबिक़ दश्ते-सीना से रवाना हुए। चलते चलते बादल फ़ारान के रेगिस्तान में उतर आया। \p \v 13 उस वक़्त वह पहली दफ़ा उस तरतीब से रवाना हुए जो रब ने मूसा की मारिफ़त मुक़र्रर की थी। \v 14 पहले यहूदाह के क़बीले के तीन दस्ते अपने अलम के तहत चल पड़े। तीनों का कमाँडर नहसोन बिन अम्मीनदाब था। \v 15 साथ चलनेवाले क़बीले इशकार का कमाँडर नतनियेल बिन ज़ुग़र था। \v 16 ज़बूलून का क़बीला भी साथ चला जिसका कमाँडर इलियाब बिन हेलोन था। \v 17 इसके बाद मुलाक़ात का ख़ैमा उतारा गया। जैरसोनी और मिरारी उसे उठाकर चल दिए। \v 18 इन लावियों के बाद रूबिन के क़बीले के तीन दस्ते अपने अलम के तहत चलने लगे। तीनों का कमाँडर इलीसूर बिन शदियूर था। \v 19 साथ चलनेवाले क़बीले शमौन का कमाँडर सलूमियेल बिन सूरीशद्दी था। \v 20 जद का क़बीला भी साथ चला जिसका कमाँडर इलियासफ़ बिन दऊएल था। \v 21 फिर लावियों में से क़िहाती मक़दिस का सामान उठाकर रवाना हुए। लाज़िम था कि उनके अगली मनज़िल पर पहुँचने तक मुलाक़ात का ख़ैमा लगा दिया गया हो। \v 22 इसके बाद इफ़राईम के क़बीले के तीन दस्ते अपने अलम के तहत चल दिए। उनका कमाँडर इलीसमा बिन अम्मीहूद था। \v 23 इफ़राईम के साथ चलनेवाले क़बीले मनस्सी का कमाँडर जमलियेल बिन फ़दाहसूर था। \v 24 बिनयमीन का क़बीला भी साथ चला जिसका कमाँडर अबिदान बिन जिदौनी था। \v 25 आख़िर में दान के तीन दस्ते अक़बी मुहाफ़िज़ के तौर पर अपने अलम के तहत रवाना हुए। उनका कमाँडर अख़ियज़र बिन अम्मीशद्दी था। \v 26 दान के साथ चलनेवाले क़बीले आशर का कमाँडर फ़जियेल बिन अकरान था। \v 27 नफ़ताली का क़बीला भी साथ चला जिसका कमाँडर अख़ीरा बिन एनान था। \v 28 इसराईली इसी तरतीब से रवाना हुए। \s1 मूसा होबाब को साथ चलने पर मजबूर करता है \p \v 29 मूसा ने अपने मिदियानी सुसर रऊएल यानी यितरो के बेटे होबाब से कहा, “हम उस जगह के लिए रवाना हो रहे हैं जिसका वादा रब ने हमसे किया है। हमारे साथ चलें! हम आप पर एहसान करेंगे, क्योंकि रब ने इसराईल पर एहसान करने का वादा किया है।” \v 30 लेकिन होबाब ने जवाब दिया, “मैं साथ नहीं जाऊँगा बल्कि अपने मुल्क और रिश्तेदारों के पास वापस चला जाऊँगा।” \v 31 मूसा ने कहा, “मेहरबानी करके हमें न छोड़ें। क्योंकि आप ही जानते हैं कि हम रेगिस्तान में कहाँ कहाँ अपने डेरे डाल सकते हैं। आप रेगिस्तान में हमें रास्ता दिखा सकते हैं। \v 32 अगर आप हमारे साथ जाएँ तो हम आपको उस एहसान में शरीक करेंगे जो रब हम पर करेगा।” \s1 अहद के संदूक़ का सफ़र \p \v 33 चुनाँचे उन्होंने रब के पहाड़ से रवाना होकर तीन दिन सफ़र किया। इस दौरान रब का अहद का संदूक़ उनके आगे आगे चला ताकि उनके लिए आराम करने की जगह मालूम करे। \v 34 जब कभी वह रवाना होते तो रब का बादल दिन के वक़्त उनके ऊपर रहता। \v 35 संदूक़ के रवाना होते वक़्त मूसा कहता, “ऐ रब, उठ। तेरे दुश्मन तित्तर-बित्तर हो जाएँ। तुझसे नफ़रत करनेवाले तेरे सामने से फ़रार हो जाएँ।” \v 36 और जब भी वह रुक जाता तो मूसा कहता, “ऐ रब, इसराईल के हज़ारों ख़ानदानों के पास वापस आ।” \c 11 \s1 तबएरा में रब की आग \p \v 1 एक दिन लोग ख़ूब शिकायत करने लगे। जब यह शिकायतें रब तक पहुँचीं तो उसे ग़ुस्सा आया और उस की आग उनके दरमियान भड़क उठी। जलते जलते उसने ख़ैमागाह का एक किनारा भस्म कर दिया। \v 2 लोग मदद के लिए मूसा के पास आकर चिल्लाने लगे तो उसने रब से दुआ की, और आग बुझ गई। \v 3 उस मक़ाम का नाम तबएरा यानी जलना पड़ गया, क्योंकि रब की आग उनके दरमियान जल उठी थी। \s1 मूसा 70 राहनुमा चुनता है \p \v 4 इसराईलियों के साथ जो अजनबी सफ़र कर रहे थे वह गोश्त खाने की शदीद आरज़ू करने लगे। तब इसराईली भी रो पड़े और कहने लगे, “कौन हमें गोश्त खिलाएगा? \v 5 मिसर में हम मछली मुफ़्त खा सकते थे। हाय, वहाँ के खीरे, तरबूज़, गंदने, प्याज़ और लहसन कितने अच्छे थे! \v 6 लेकिन अब तो हमारी जान सूख गई है। यहाँ बस मन ही मन नज़र आता रहता है।” \p \v 7 मन धनिये के दानों की मानिंद था, और उसका रंग गूगल के गूँद की मानिंद था। \v 8-9 रात के वक़्त वह ख़ैमागाह में ओस के साथ ज़मीन पर गिरता था। सुबह के वक़्त लोग इधर-उधर घुमते-फिरते हुए उसे जमा करते थे। फिर वह उसे चक्की में पीसकर या उखली में कूटकर उबालते या रोटी बनाते थे। उसका ज़ायक़ा ऐसी रोटी का-सा था जिसमें ज़ैतून का तेल डाला गया हो। \p \v 10 तमाम ख़ानदान अपने अपने ख़ैमे के दरवाज़े पर रोने लगे तो रब को शदीद ग़ुस्सा आया। उनका शोर मूसा को भी बहुत बुरा लगा। \v 11 उसने रब से पूछा, “तूने अपने ख़ादिम के साथ इतना बुरा सुलूक क्यों किया? मैंने किस काम से तुझे इतना नाराज़ किया कि तूने इन तमाम लोगों का बोझ मुझ पर डाल दिया? \v 12 क्या मैंने हामिला होकर इस पूरी क़ौम को जन्म दिया कि तू मुझसे कहता है, ‘इसे उस तरह उठाकर ले चलना जिस तरह आया शीरख़ार बच्चे को उठाकर हर जगह साथ लिए फिरती है। इसी तरह इसे उस मुल्क में ले जाना जिसका वादा मैंने क़सम खाकर इनके बापदादा से किया है।’ \v 13 ऐ अल्लाह, मैं इन तमाम लोगों को कहाँ से गोश्त मुहैया करूँ? वह मेरे सामने रोते रहते हैं कि हमें खाने के लिए गोश्त दो। \v 14 मैं अकेला इन तमाम लोगों की ज़िम्मादारी नहीं उठा सकता। यह बोझ मेरे लिए हद से ज़्यादा भारी है। \v 15 अगर तू इस पर इसरार करे तो फिर बेहतर है कि अभी मुझे मार दे ताकि मैं अपनी तबाही न देखूँ।” \p \v 16 जवाब में रब ने मूसा से कहा, “मेरे पास इसराईल के 70 बुज़ुर्ग जमा कर। सिर्फ़ ऐसे लोग चुन जिनके बारे में तुझे मालूम है कि वह लोगों के बुज़ुर्ग और निगहबान हैं। उन्हें मुलाक़ात के ख़ैमे के पास ले आ। वहाँ वह तेरे साथ खड़े हो जाएँ, \v 17 तो मैं उतरकर तेरे साथ हमकलाम हूँगा। उस वक़्त मैं उस रूह में से कुछ लूँगा जो मैंने तुझ पर नाज़िल किया था और उसे उन पर नाज़िल करूँगा। तब वह क़ौम का बोझ उठाने में तेरी मदद करेंगे और तू इसमें अकेला नहीं रहेगा। \v 18 लोगों को बताना, ‘अपने आपको मख़सूसो-मुक़द्दस करो, क्योंकि कल तुम गोश्त खाओगे। रब ने तुम्हारी सुनी जब तुम रो पड़े कि कौन हमें गोश्त खिलाएगा, मिसर में हमारी हालत बेहतर थी। अब रब तुम्हें गोश्त मुहैया करेगा और तुम उसे खाओगे। \v 19 तुम उसे न सिर्फ़ एक, दो या पाँच दिन खाओगे बल्कि 10 या 20 दिन से भी ज़्यादा अरसे तक। \v 20 तुम एक पूरा महीना ख़ूब गोश्त खाओगे, यहाँ तक कि वह तुम्हारी नाक से निकलेगा और तुम्हें उससे घिन आएगी। और यह इस सबब से होगा कि तुमने रब को जो तुम्हारे दरमियान है रद्द किया और रोते रोते उसके सामने कहा कि हम क्यों मिसर से निकले’।” \p \v 21 लेकिन मूसा ने एतराज़ किया, “अगर क़ौम के पैदल चलनेवाले गिने जाएँ तो छः लाख हैं। तू किस तरह हमें एक माह तक गोश्त मुहैया करेगा? \v 22 क्या गाय-बैलों या भेड़-बकरियों को इतनी मिक़दार में ज़बह किया जा सकता है कि काफ़ी हो? अगर समुंदर की तमाम मछलियाँ उनके लिए पकड़ी जाएँ तो क्या काफ़ी होंगी?” \p \v 23 रब ने कहा, “क्या रब का इख़्तियार कम है? अब तू ख़ुद देख लेगा कि मेरी बातें दुरुस्त हैं कि नहीं।” \p \v 24 चुनाँचे मूसा ने वहाँ से निकलकर लोगों को रब की यह बातें बताईं। उसने उनके बुज़ुर्गों में से 70 को चुनकर उन्हें मुलाक़ात के ख़ैमे के इर्दगिर्द खड़ा कर दिया। \v 25 तब रब बादल में उतरकर मूसा से हमकलाम हुआ। जो रूह उसने मूसा पर नाज़िल किया था उसमें से उसने कुछ लेकर उन 70 बुज़ुर्गों पर नाज़िल किया। जब रूह उन पर आया तो वह नबुव्वत करने लगे। लेकिन ऐसा फिर कभी न हुआ। \p \v 26 अब ऐसा हुआ कि इन सत्तर बुज़ुर्गों में से दो ख़ैमागाह में रह गए थे। उनके नाम इलदाद और मेदाद थे। उन्हें चुना तो गया था लेकिन वह मुलाक़ात के ख़ैमे के पास नहीं आए थे। इसके बावुजूद रूह उन पर भी नाज़िल हुआ और वह ख़ैमागाह में नबुव्वत करने लगे। \v 27 एक नौजवान भागकर मूसा के पास आया और कहा, “इलदाद और मेदाद ख़ैमागाह में ही नबुव्वत कर रहे हैं।” \p \v 28 यशुअ बिन नून जो जवानी से मूसा का मददगार था बोल उठा, “मूसा मेरे आक़ा, उन्हें रोक दें!” \v 29 लेकिन मूसा ने जवाब दिया, “क्या तू मेरी ख़ातिर ग़ैरत खा रहा है? काश रब के तमाम लोग नबी होते और वह उन सब पर अपना रूह नाज़िल करता!” \v 30 फिर मूसा और इसराईल के बुज़ुर्ग ख़ैमागाह में वापस आए। \p \v 31 तब रब की तरफ़ से ज़ोरदार हवा चलने लगी जिसने समुंदर को पार करनेवाले बटेरों के ग़ोल धकेलकर ख़ैमागाह के इर्दगिर्द ज़मीन पर फेंक दिए। उनके ग़ोल तीन फ़ुट ऊँचे और ख़ैमागाह के चारों तरफ़ 30 किलोमीटर तक पड़े रहे। \v 32 उस पूरे दिन और रात और अगले पूरे दिन लोग निकलकर बटेरें जमा करते रहे। हर एक ने कम अज़ कम दस बड़ी टोकरियाँ भर लीं। फिर उन्होंने उनका गोश्त ख़ैमे के इर्दगिर्द ज़मीन पर फैला दिया ताकि वह ख़ुश्क हो जाए। \p \v 33 लेकिन गोश्त के पहले टुकड़े अभी मुँह में थे कि रब का ग़ज़ब उन पर आन पड़ा, और उसने उनमें सख़्त वबा फैलने दी। \v 34 चुनाँचे मक़ाम का नाम क़ब्रोत-हत्तावा यानी ‘लालच की क़ब्रें’ रखा गया, क्योंकि वहाँ उन्होंने उन लोगों को दफ़न किया जो गोश्त के लालच में आ गए थे। \p \v 35 इसके बाद इसराईली क़ब्रोत-हत्तावा से रवाना होकर हसीरात पहुँच गए। वहाँ वह ख़ैमाज़न हुए। \c 12 \s1 मरियम और हारून की मुख़ालफ़त \p \v 1 एक दिन मरियम और हारून मूसा के ख़िलाफ़ बातें करने लगे। वजह यह थी कि उसने कूश की एक औरत से शादी की थी। \v 2 उन्होंने पूछा, “क्या रब सिर्फ़ मूसा की मारिफ़त बात करता है? क्या उसने हमसे भी बात नहीं की?” रब ने उनकी यह बातें सुनीं। \p \v 3 लेकिन मूसा निहायत हलीम था। दुनिया में उस जैसा हलीम कोई नहीं था। \v 4 अचानक रब मूसा, हारून और मरियम से मुख़ातिब हुआ, “तुम तीनों बाहर निकलकर मुलाक़ात के ख़ैमे के पास आओ।” \p तीनों वहाँ पहुँचे। \v 5 तब रब बादल के सतून में उतरकर मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर खड़ा हुआ। उसने हारून और मरियम को बुलाया तो दोनों आए। \v 6 उसने कहा, “मेरी बात सुनो। जब तुम्हारे दरमियान नबी होता है तो मैं अपने आपको रोया में उस पर ज़ाहिर करता हूँ या ख़ाब में उससे मुख़ातिब होता हूँ। \v 7 लेकिन मेरे ख़ादिम मूसा की और बात है। उसे मैंने अपने पूरे घराने पर मुक़र्रर किया है। \v 8 उससे मैं रूबरू हमकलाम होता हूँ। उससे मैं मुअम्मों के ज़रीए नहीं बल्कि साफ़ साफ़ बात करता हूँ। वह रब की सूरत देखता है। तो फिर तुम मेरे ख़ादिम के ख़िलाफ़ बातें करने से क्यों न डरे?” \p \v 9 रब का ग़ज़ब उन पर आन पड़ा, और वह चला गया। \v 10 जब बादल का सतून ख़ैमे से दूर हुआ तो मरियम की जिल्द बर्फ़ की मानिंद सफ़ेद थी। वह कोढ़ का शिकार हो गई थी। हारून उस की तरफ़ मुड़ा तो उस की हालत देखी \v 11 और मूसा से कहा, “मेरे आक़ा, मेहरबानी करके हमें इस गुनाह की सज़ा न दें जो हमारी हमाक़त के बाइस सरज़द हुआ है। \v 12 मरियम को इस हालत में न छोड़ें। वह तो ऐसे बच्चे की मानिंद है जो मुरदा पैदा हुआ हो, जिसके जिस्म का आधा हिस्सा गल चुका हो।” \p \v 13 तब मूसा ने पुकारकर रब से कहा, “ऐ अल्लाह, मेहरबानी करके उसे शफ़ा दे।” \v 14 रब ने जवाब में मूसा से कहा, “अगर मरियम का बाप उसके मुँह पर थूकता तो क्या वह पूरे हफ़ते तक शर्म महसूस न करती? उसे एक हफ़ते के लिए ख़ैमागाह के बाहर बंद रख। इसके बाद उसे वापस लाया जा सकता है।” \p \v 15 चुनाँचे मरियम को एक हफ़ते के लिए ख़ैमागाह के बाहर बंद रखा गया। लोग उस वक़्त तक सफ़र के लिए रवाना न हुए जब तक उसे वापस न लाया गया। \v 16 जब वह वापस आई तो इसराईली हसीरात से रवाना होकर फ़ारान के रेगिस्तान में ख़ैमाज़न हुए। \c 13 \s1 मुल्के-कनान में इसराईली जासूस \p \v 1 फिर रब ने मूसा से कहा, \v 2 “कुछ आदमी मुल्के-कनान का जायज़ा लेने के लिए भेज दे, क्योंकि मैं उसे इसराईलियों को देने को हूँ। हर क़बीले में से एक राहनुमा को चुनकर भेज दे।” \p \v 3 मूसा ने रब के कहने पर उन्हें दश्ते-फ़ारान से भेजा। सब इसराईली राहनुमा थे। \v 4 उनके नाम यह हैं : \p रूबिन के क़बीले से सम्मुअ बिन ज़क्कूर, \p \v 5 शमौन के क़बीले से साफ़त बिन होरी, \p \v 6 यहूदाह के क़बीले से कालिब बिन यफ़ुन्ना, \p \v 7 इशकार के क़बीले से इजाल बिन यूसुफ़, \p \v 8 इफ़राईम के क़बीले से होसेअ बिन नून, \p \v 9 बिनयमीन के क़बीले से फ़लती बिन रफ़ू, \p \v 10 ज़बूलून के क़बीले से जद्दियेल बिन सोदी, \p \v 11 यूसुफ़ के बेटे मनस्सी के क़बीले से जिद्दी बिन सूसी, \p \v 12 दान के क़बीले से अम्मियेल बिन जमल्ली, \p \v 13 आशर के क़बीले से सतूर बिन मीकाएल, \p \v 14 नफ़ताली के क़बीले से नख़बी बिन वुफ़सी, \p \v 15 जद के क़बीले से जियुएल बिन माकी। \p \v 16 मूसा ने इन्हीं बारह आदमियों को मुल्क का जायज़ा लेने के लिए भेजा। उसने होसेअ का नाम यशुअ यानी ‘रब नजात है’ में बदल दिया। \p \v 17 उन्हें रुख़सत करने से पहले उसने कहा, “दश्ते-नजब से गुज़रकर पहाड़ी इलाक़े तक पहुँचो। \v 18 मालूम करो कि यह किस तरह का मुल्क है और उसके बाशिंदे कैसे हैं। क्या वह ताक़तवर हैं या कमज़ोर, तादाद में कम हैं या ज़्यादा? \v 19 जिस मुल्क में वह बसते हैं क्या वह अच्छा है कि नहीं? वह किस क़िस्म के शहरों में रहते हैं? क्या उनकी चारदीवारियाँ हैं कि नहीं? \v 20 मुल्क की ज़मीन ज़रख़ेज़ है या बंजर? उसमें दरख़्त हैं कि नहीं? और जुर्रत करके मुल्क का कुछ फल चुनकर ले आओ।” उस वक़्त पहले अंगूर पक गए थे। \p \v 21 चुनाँचे इन आदमियों ने सफ़र करके दश्ते-सीन से रहोब तक मुल्क का जायज़ा लिया। रहोब लबो-हमात के क़रीब है। \v 22 वह दश्ते-नजब से गुज़रकर हबरून पहुँचे जहाँ अनाक़ के बेटे अख़ीमान, सीसी और तलमी रहते थे। (हबरून को मिसर के शहर ज़ुअन से सात साल पहले तामीर किया गया था)। \v 23 जब वह वादीए-इसकाल तक पहुँचे तो उन्होंने एक डाली काट ली जिस पर अंगूर का गुच्छा लगा हुआ था। दो आदमियों ने यह अंगूर, कुछ अनार और कुछ अंजीर लाठी पर लटकाए और उसे उठाकर चल पड़े। \v 24 उस जगह का नाम उस गुच्छे के सबब से जो इसराईलियों ने वहाँ से काट लिया इसकाल यानी गुच्छा रखा गया। \p \v 25 चालीस दिन तक मुल्क का खोज लगाते लगाते वह लौट आए। \v 26 वह मूसा, हारून और इसराईल की पूरी जमात के पास आए जो दश्ते-फ़ारान में क़ादिस की जगह पर इंतज़ार कर रहे थे। वहाँ उन्होंने सब कुछ बताया जो उन्होंने मालूम किया था और उन्हें वह फल दिखाए जो लेकर आए थे। \v 27 उन्होंने मूसा को रिपोर्ट दी, “हम उस मुल्क में गए जहाँ आपने हमें भेजा था। वाक़ई उस मुल्क में दूध और शहद की कसरत है। यहाँ हमारे पास उसके कुछ फल भी हैं। \v 28 लेकिन उसके बाशिंदे ताक़तवर हैं। उनके शहरों की फ़सीलें हैं, और वह निहायत बड़े हैं। हमने वहाँ अनाक़ की औलाद भी देखी। \v 29 अमालीक़ी दश्ते-नजब में रहते हैं जबकि हित्ती, यबूसी और अमोरी पहाड़ी इलाक़े में आबाद हैं। कनानी साहिली इलाक़े और दरियाए-यरदन के किनारे किनारे बसते हैं।” \p \v 30 कालिब ने मूसा के सामने जमाशुदा लोगों को इशारा किया कि वह ख़ामोश हो जाएँ। फिर उसने कहा, “आएँ, हम मुल्क में दाख़िल हो जाएँ और उस पर क़ब्ज़ा कर लें, क्योंकि हम यक़ीनन यह करने के क़ाबिल हैं।” \v 31 लेकिन दूसरे आदमियों ने जो उसके साथ मुल्क को देखने गए थे कहा, “हम उन लोगों पर हमला नहीं कर सकते, क्योंकि वह हमसे ताक़तवर हैं।” \v 32 उन्होंने इसराईलियों के दरमियान उस मुल्क के बारे में ग़लत अफ़वाहें फैलाईं जिसकी तफ़तीश उन्होंने की थी। उन्होंने कहा, “जिस मुल्क में से हम गुज़रे ताकि उसका जायज़ा लें वह अपने बाशिंदों को हड़प कर लेता है। जो भी उसमें रहता है निहायत दराज़क़द है। \v 33 हमने वहाँ देवक़ामत अफ़राद भी देखे। (अनाक़ के बेटे देवक़ामत के अफ़राद की औलाद थे)। उनके सामने हम अपने आपको टिड्डी जैसा महसूस कर रहे थे, और हम उनकी नज़र में ऐसे थे भी।” \c 14 \s1 लोग कनान में दाख़िल नहीं होना चाहते \p \v 1 उस रात तमाम लोग चीख़ें मार मारकर रोते रहे। \v 2 सब मूसा और हारून के ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाने लगे। पूरी जमात ने उनसे कहा, “काश हम मिसर या इस रेगिस्तान में मर गए होते! \v 3 रब हमें क्यों उस मुल्क में ले जा रहा है? क्या इसलिए कि दुश्मन हमें तलवार से क़त्ल करे और हमारे बाल-बच्चों को लूट ले? क्या बेहतर नहीं होगा कि हम मिसर वापस जाएँ?” \v 4 उन्होंने एक दूसरे से कहा, “आओ, हम राहनुमा चुनकर मिसर वापस चले जाएँ।” \p \v 5 तब मूसा और हारून पूरी जमात के सामने मुँह के बल गिरे। \v 6 लेकिन यशुअ बिन नून और कालिब बिन यफ़ुन्ना बाक़ी दस जासूसों से फ़रक़ थे। परेशानी के आलम में उन्होंने अपने कपड़े फाड़कर \v 7 पूरी जमात से कहा, “जिस मुल्क में से हम गुज़रे और जिसकी तफ़तीश हमने की वह निहायत ही अच्छा है। \v 8 अगर रब हमसे ख़ुश है तो वह ज़रूर हमें उस मुल्क में ले जाएगा जिसमें दूध और शहद की कसरत है। वह हमें ज़रूर यह मुल्क देगा। \v 9 रब से बग़ावत मत करना। उस मुल्क के रहनेवालों से न डरें। हम उन्हें हड़प कर जाएंगे। उनकी पनाह उनसे जाती रही है जबकि रब हमारे साथ है। चुनाँचे उनसे मत डरें।” \p \v 10 यह सुनकर पूरी जमात उन्हें संगसार करने के लिए तैयार हुई। लेकिन अचानक रब का जलाल मुलाक़ात के ख़ैमे पर ज़ाहिर हुआ, और तमाम इसराईलियों ने उसे देखा। \v 11 रब ने मूसा से कहा, “यह लोग मुझे कब तक हक़ीर जानेंगे? वह कब तक मुझ पर ईमान रखने से इनकार करेंगे अगरचे मैंने उनके दरमियान इतने मोजिज़े किए हैं? \v 12 मैं उन्हें वबा से मार डालूँगा और उन्हें रूए-ज़मीन पर से मिटा दूँगा। उनकी जगह मैं तुझसे एक क़ौम बनाऊँगा जो उनसे बड़ी और ताक़तवर होगी।” \p \v 13 लेकिन मूसा ने रब से कहा, “फिर मिसरी यह सुन लेंगे! क्योंकि तूने अपनी क़ुदरत से इन लोगों को मिसर से निकालकर यहाँ तक पहुँचाया है। \v 14 मिसरी यह बात कनान के बाशिंदों को बताएँगे। यह लोग पहले से सुन चुके हैं कि रब इस क़ौम के साथ है, कि तुझे रूबरू देखा जाता है, कि तेरा बादल उनके ऊपर ठहरा रहता है, और कि तू दिन के वक़्त बादल के सतून में और रात को आग के सतून में इनके आगे आगे चलता है। \v 15 अगर तू एकदम इस पूरी क़ौम को तबाह कर डाले तो बाक़ी क़ौमें यह सुनकर कहेंगी, \v 16 ‘रब इन लोगों को उस मुल्क में ले जाने के क़ाबिल नहीं था जिसका वादा उसने उनसे क़सम खाकर किया था। इसी लिए उसने उन्हें रेगिस्तान में हलाक कर दिया।’ \v 17 ऐ रब, अब अपनी क़ुदरत यों ज़ाहिर कर जिस तरह तूने फ़रमाया है। क्योंकि तूने कहा, \v 18 ‘रब तहम्मुल और शफ़क़त से भरपूर है। वह गुनाह और नाफ़रमानी मुआफ़ करता है, लेकिन हर एक को उस की मुनासिब सज़ा भी देता है। जब वालिदैन गुनाह करें तो उनकी औलाद को भी तीसरी और चौथी पुश्त तक सज़ा के नतायज भुगतने पड़ेंगे।’ \v 19 इन लोगों का क़ुसूर अपनी अज़ीम शफ़क़त के मुताबिक़ मुआफ़ कर। उन्हें उस तरह मुआफ़ कर जिस तरह तू उन्हें मिसर से निकलते वक़्त अब तक मुआफ़ करता रहा है।” \p \v 20 रब ने जवाब दिया, “तेरे कहने पर मैंने उन्हें मुआफ़ कर दिया है। \v 21 इसके बावुजूद मेरी हयात की क़सम और मेरे जलाल की क़सम जो पूरी दुनिया को मामूर करता है, \v 22 इन लोगों में से कोई भी उस मुल्क में दाख़िल नहीं होगा। उन्होंने मेरा जलाल और मेरे मोजिज़े देखे हैं जो मैंने मिसर और रेगिस्तान में कर दिखाए हैं। तो भी उन्होंने दस दफ़ा मुझे आज़माया और मेरी न सुनी। \v 23 उनमें से एक भी उस मुल्क को नहीं देखेगा जिसका वादा मैंने क़सम खाकर उनके बापदादा से किया था। जिसने भी मुझे हक़ीर जाना है वह कभी उसे नहीं देखेगा। \v 24 सिर्फ़ मेरा ख़ादिम कालिब मुख़्तलिफ़ है। उस की रूह फ़रक़ है। वह पूरे दिल से मेरी पैरवी करता है, इसलिए मैं उसे उस मुल्क में ले जाऊँगा जिसमें उसने सफ़र किया है। उस की औलाद मुल्क मीरास में पाएगी। \v 25 लेकिन फ़िलहाल अमालीक़ी और कनानी उस की वादियों में आबाद रहेंगे। चुनाँचे कल मुड़कर वापस चलो। रेगिस्तान में बहरे-क़ुलज़ुम की तरफ़ रवाना हो जाओ।” \p \v 26 रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 27 “यह शरीर जमात कब तक मेरे ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाती रहेगी? उनके गिले-शिकवे मुझ तक पहुँच गए हैं। \v 28 इसलिए उन्हें बताओ, ‘रब फ़रमाता है कि मेरी हयात की क़सम, मैं तुम्हारे साथ वही कुछ करूँगा जो तुमने मेरे सामने कहा है। \v 29 तुम इस रेगिस्तान में मरकर यहीं पड़े रहोगे, हर एक जो 20 साल या इससे ज़ायद का है, जो मर्दुमशुमारी में गिना गया और जो मेरे ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाया। \v 30 गो मैंने हाथ उठाकर क़सम खाई थी कि मैं तुझे उसमें बसाऊँगा तुममें से कोई भी उस मुल्क में दाख़िल नहीं होगा। सिर्फ़ कालिब बिन यफ़ुन्ना और यशुअ बिन नून दाख़िल होंगे। \v 31 तुमने कहा था कि दुश्मन हमारे बच्चों को लूट लेंगे। लेकिन उन्हीं को मैं उस मुल्क में ले जाऊँगा जिसे तुमने रद्द किया है। \v 32 लेकिन तुम ख़ुद दाख़िल नहीं होगे। तुम्हारी लाशें इस रेगिस्तान में पड़ी रहेंगी। \v 33 तुम्हारे बच्चे 40 साल तक यहाँ रेगिस्तान में गल्लाबान होंगे। उन्हें तुम्हारी बेवफ़ाई के सबब से उस वक़्त तक तकलीफ़ उठानी पड़ेगी जब तक तुममें से आख़िरी शख़्स मर न गया हो। \v 34 तुमने चालीस दिन के दौरान उस मुल्क का जायज़ा लिया। अब तुम्हें चालीस साल तक अपने गुनाहों का नतीजा भुगतना पड़ेगा। तब तुम्हें पता चलेगा कि इसका क्या मतलब है कि मैं तुम्हारी मुख़ालफ़त करता हूँ। \v 35 मैं, रब ने यह बात फ़रमाई है। मैं यक़ीनन यह सब कुछ उस सारी शरीर जमात के साथ करूँगा जिसने मिलकर मेरी मुख़ालफ़त की है। इसी रेगिस्तान में वह ख़त्म हो जाएंगे, यहीं मर जाएंगे’।” \p \v 36-37 जिन आदमियों को मूसा ने मुल्क का जायज़ा लेने के लिए भेजा था, रब ने उन्हें फ़ौरन मोहलक वबा से मार डाला, क्योंकि उनके ग़लत अफ़वाहें फैलाने से पूरी जमात बुड़बुड़ाने लगी थी। \v 38 सिर्फ़ यशुअ बिन नून और कालिब बिन यफ़ुन्ना ज़िंदा रहे। \p \v 39 जब मूसा ने रब की यह बातें इसराईलियों को बताईं तो वह ख़ूब मातम करने लगे। \v 40 अगली सुबह-सवेरे वह उठे और यह कहते हुए ऊँचे पहाड़ी इलाक़े के लिए रवाना हुए कि हमसे ग़लती हुई है, लेकिन अब हम हाज़िर हैं और उस जगह की तरफ़ जा रहे हैं जिसका ज़िक्र रब ने किया है। \p \v 41 लेकिन मूसा ने कहा, “तुम क्यों रब की ख़िलाफ़वरज़ी कर रहे हो? तुम कामयाब नहीं होगे। \v 42 वहाँ न जाओ, क्योंकि रब तुम्हारे साथ नहीं है। तुम दुश्मनों के हाथों शिकस्त खाओगे, \v 43 क्योंकि वहाँ अमालीक़ी और कनानी तुम्हारा सामना करेंगे। चूँकि तुमने अपना मुँह रब से फेर लिया है इसलिए वह तुम्हारे साथ नहीं होगा, और दुश्मन तुम्हें तलवार से मार डालेगा।” \p \v 44 तो भी वह अपने ग़ुरूर में जुर्रत करके ऊँचे पहाड़ी इलाक़े की तरफ़ बढ़े, हालाँकि न मूसा और न अहद के संदूक़ ही ने ख़ैमागाह को छोड़ा। \v 45 फिर उस पहाड़ी इलाक़े में रहनेवाले अमालीक़ी और कनानी उन पर आन पड़े और उन्हें मारते मारते हुरमा तक तित्तर-बित्तर कर दिया। \c 15 \s1 कनान में क़ुरबानियाँ पेश करने का तरीक़ा \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि जब तुम उस मुल्क में दाख़िल होगे जो मैं तुम्हें दूँगा \v 3-4 तो जलनेवाली क़ुरबानियाँ यों पेश करना : \p अगर तुम अपने गाय-बैलों या भेड़-बकरियों में से ऐसी क़ुरबानी पेश करना चाहो जिसकी ख़ुशबू रब को पसंद हो तो साथ साथ डेढ़ किलोग्राम बेहतरीन मैदा भी पेश करो जो एक लिटर ज़ैतून के तेल के साथ मिलाया गया हो। इसमें कोई फ़रक़ नहीं कि यह भस्म होनेवाली क़ुरबानी, मन्नत की क़ुरबानी, दिली ख़ुशी की क़ुरबानी या किसी ईद की क़ुरबानी हो। \p \v 5 हर भेड़ को पेश करते वक़्त एक लिटर मै भी मै की नज़र के तौर पर पेश करना। \v 6 जब मेंढा क़ुरबान किया जाए तो 3 किलोग्राम बेहतरीन मैदा भी साथ पेश करना जो सवा लिटर तेल के साथ मिलाया गया हो। \v 7 सवा लिटर मै भी मै की नज़र के तौर पर पेश की जाए। ऐसी क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद आएगी। \p \v 8 अगर तू रब को भस्म होनेवाली क़ुरबानी, मन्नत की क़ुरबानी या सलामती की क़ुरबानी के तौर पर जवान बैल पेश करना चाहे \v 9 तो उसके साथ साढ़े 4 किलोग्राम बेहतरीन मैदा भी पेश करना जो दो लिटर तेल के साथ मिलाया गया हो। \v 10 दो लिटर मै भी मै की नज़र के तौर पर पेश की जाए। ऐसी क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद है। \v 11 लाज़िम है कि जब भी किसी गाय, बैल, भेड़, मेंढे, बकरी या बकरे को चढ़ाया जाए तो ऐसा ही किया जाए। \p \v 12 अगर एक से ज़ायद जानवरों को क़ुरबान करना है तो हर एक के लिए मुक़र्ररा ग़ल्ला और मै की नज़रें भी साथ ही पेश की जाएँ। \p \v 13 लाज़िम है कि हर देसी इसराईली जलनेवाली क़ुरबानियाँ पेश करते वक़्त ऐसा ही करे। फिर उनकी ख़ुशबू रब को पसंद आएगी। \v 14 यह भी लाज़िम है कि इसराईल में आरिज़ी या मुस्तक़िल तौर पर रहनेवाले परदेसी इन उसूलों के मुताबिक़ अपनी क़ुरबानियाँ चढ़ाएँ। फिर उनकी ख़ुशबू रब को पसंद आएगी। \v 15 मुल्के-कनान में रहनेवाले तमाम लोगों के लिए पाबंदियाँ एक जैसी हैं, ख़ाह वह देसी हों या परदेसी, क्योंकि रब की नज़र में परदेसी तुम्हारे बराबर है। यह तुम्हारे और तुम्हारी औलाद के लिए दायमी उसूल है। \v 16 तुम्हारे और तुम्हारे साथ रहनेवाले परदेसी के लिए एक ही शरीअत है।” \s1 फ़सल के लिए शुक्रगुज़ारी की क़ुरबानी \p \v 17 रब ने मूसा से कहा, \v 18 “इसराईलियों को बताना कि जब तुम उस मुल्क में दाख़िल होगे जिसमें मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ \v 19 और वहाँ की पैदावार खाओगे तो पहले उसका एक हिस्सा उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब को पेश करना। \v 20 फ़सल के पहले ख़ालिस आटे में से मेरे लिए एक रोटी बनाकर उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करो। वह गाहने की जगह की तरफ़ से रब के लिए उठानेवाली क़ुरबानी होगी। \v 21 अपनी फ़सल के पहले ख़ालिस आटे में से यह क़ुरबानी पेश किया करो। यह उसूल हमेशा तक लागू रहे। \s1 नादानिस्ता गुनाहों के लिए क़ुरबानियाँ \p \v 22 हो सकता है कि ग़ैरइरादी तौर पर तुमसे ग़लती हुई है और तुमने उन अहकाम पर पूरे तौर पर अमल नहीं किया जो रब मूसा को दे चुका है \v 23 या जो वह आनेवाली नसलों को देगा। \v 24 अगर जमात इस बात से नावाक़िफ़ थी और ग़ैरइरादी तौर पर उससे ग़लती हुई तो फिर पूरी जमात एक जवान बैल भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करे। साथ ही वह मुक़र्ररा ग़ल्ला और मै की नज़रें भी पेश करे। इसकी ख़ुशबू रब को पसंद होगी। इसके अलावा जमात गुनाह की क़ुरबानी के लिए एक बकरा पेश करे। \v 25 इमाम इसराईल की पूरी जमात का कफ़्फ़ारा दे तो उन्हें मुआफ़ी मिलेगी, क्योंकि उनका गुनाह ग़ैरइरादी था और उन्होंने रब को भस्म होनेवाली क़ुरबानी और गुनाह की क़ुरबानी पेश की है। \v 26 इसराईलियों की पूरी जमात को परदेसियों समेत मुआफ़ी मिलेगी, क्योंकि गुनाह ग़ैरइरादी था। \p \v 27 अगर सिर्फ़ एक शख़्स से ग़ैरइरादी तौर पर गुनाह हुआ हो तो गुनाह की क़ुरबानी के लिए वह एक यकसाला बकरी पेश करे। \v 28 इमाम रब के सामने उस शख़्स का कफ़्फ़ारा दे। जब कफ़्फ़ारा दे दिया गया तो उसे मुआफ़ी हासिल होगी। \v 29 यही उसूल परदेसी पर भी लागू है। अगर उससे ग़ैरइरादी तौर पर गुनाह हुआ हो तो वह मुआफ़ी हासिल करने के लिए वही कुछ करे जो इसराईली को करना होता है। \s1 दानिस्ता गुनाहों के लिए सज़ाए-मौत \p \v 30 लेकिन अगर कोई देसी या परदेसी जान-बूझकर गुनाह करता है तो ऐसा शख़्स रब की इहानत करता है, इसलिए लाज़िम है कि उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए। \v 31 उसने रब का कलाम हक़ीर जानकर उसके अहकाम तोड़ डाले हैं, इसलिए उसे ज़रूर क़ौम में से मिटाया जाए। वह अपने गुनाह का ज़िम्मादार है।” \p \v 32 जब इसराईली रेगिस्तान में से गुज़र रहे थे तो एक आदमी को पकड़ा गया जो हफ़ते के दिन लकड़ियाँ जमा कर रहा था। \v 33 जिन्होंने उसे पकड़ा था वह उसे मूसा, हारून और पूरी जमात के पास ले आए। \v 34 चूँकि साफ़ मालूम नहीं था कि उसके साथ क्या किया जाए इसलिए उन्होंने उसे गिरिफ़्तार कर लिया। \p \v 35 फिर रब ने मूसा से कहा, “इस आदमी को ज़रूर सज़ाए-मौत दी जाए। पूरी जमात उसे ख़ैमागाह के बाहर ले जाकर संगसार करे।” \v 36 चुनाँचे जमात ने उसे ख़ैमागाह के बाहर ले जाकर संगसार किया, जिस तरह रब ने मूसा को हुक्म दिया था। \s1 अहकाम की याद दिलानेवाले फुँदने \p \v 37 रब ने मूसा से कहा, \v 38 “इसराईलियों को बताना कि तुम और तुम्हारे बाद की नसलें अपने लिबास के किनारों पर फुँदने लगाएँ। हर फुँदना एक क़िरमिज़ी डोरी से लिबास के साथ लगा हो। \v 39 इन फुँदनों को देखकर तुम्हें रब के तमाम अहकाम याद रहेंगे और तुम उन पर अमल करोगे। फिर तुम अपने दिलों और आँखों की ग़लत ख़ाहिशों के पीछे नहीं पड़ोगे बल्कि ज़िनाकारी से दूर रहोगे। \v 40 फिर तुम मेरे अहकाम को याद करके उन पर अमल करोगे और अपने ख़ुदा के सामने मख़सूसो-मुक़द्दस रहोगे। \v 41 मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ जो तुम्हें मिसर से निकाल लाया ताकि तुम्हारा ख़ुदा हूँ। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।” \c 16 \s1 क़ोरह, दातन और अबीराम की सरकशी \p \v 1-2 एक दिन क़ोरह बिन इज़हार मूसा के ख़िलाफ़ उठा। वह लावी के क़बीले का क़िहाती था। उसके साथ रूबिन के क़बीले के तीन आदमी थे, इलियाब के बेटे दातन और अबीराम और ओन बिन पलत। उनके साथ 250 और आदमी भी थे जो जमात के सरदार और असरो-रसूख़वाले थे, और जो कौंसल के लिए चुने गए थे। \v 3 वह मिलकर मूसा और हारून के पास आकर कहने लगे, “आप हमसे ज़्यादती कर रहे हैं। पूरी जमात मख़सूसो-मुक़द्दस है, और रब उसके दरमियान है। तो फिर आप अपने आपको क्यों रब की जमात से बढ़कर समझते हैं?” \p \v 4 यह सुनकर मूसा मुँह के बल गिरा। \v 5 फिर उसने क़ोरह और उसके तमाम साथियों से कहा, “कल सुबह रब ज़ाहिर करेगा कि कौन उसका बंदा और कौन मख़सूसो-मुक़द्दस है। उसी को वह अपने पास आने देगा। \v 6 ऐ क़ोरह, कल अपने तमाम साथियों के साथ बख़ूरदान लेकर \v 7 रब के सामने उनमें अंगारे और बख़ूर डालो। जिस आदमी को रब चुनेगा वह मख़सूसो-मुक़द्दस होगा। अब तुम लावी ख़ुद ज़्यादती कर रहे हो।” \p \v 8 मूसा ने क़ोरह से बात जारी रखी, “ऐ लावी की औलाद, सुनो! \v 9 क्या तुम्हारी नज़र में यह कोई छोटी बात है कि रब तुम्हें इसराईली जमात के बाक़ी लोगों से अलग करके अपने क़रीब ले आया ताकि तुम रब के मक़दिस में और जमात के सामने खड़े होकर उनकी ख़िदमत करो? \v 10 वह तुझे और तेरे साथी लावियों को अपने क़रीब लाया है। लेकिन अब तुम इमाम का ओहदा भी अपनाना चाहते हो। \v 11 अपने साथियों से मिलकर तूने हारून की नहीं बल्कि रब की मुख़ालफ़त की है। क्योंकि हारून कौन है कि तुम उसके ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाओ?” \p \v 12 फिर मूसा ने इलियाब के बेटों दातन और अबीराम को बुलाया। लेकिन उन्होंने कहा, “हम नहीं आएँगे। \v 13 आप हमें एक ऐसे मुल्क से निकाल लाए हैं जहाँ दूध और शहद की कसरत है ताकि हम रेगिस्तान में हलाक हो जाएँ। क्या यह काफ़ी नहीं है? क्या अब आप हम पर हुकूमत भी करना चाहते हैं? \v 14 न आपने हमें ऐसे मुल्क में पहुँचाया जिसमें दूध और शहद की कसरत है, न हमें खेतों और अंगूर के बाग़ों के वारिस बनाया है। क्या आप इन आदमियों की आँखें निकाल डालेंगे? नहीं, हम हरगिज़ नहीं आएँगे।” \p \v 15 तब मूसा निहायत ग़ुस्से हुआ। उसने रब से कहा, “उनकी क़ुरबानी को क़बूल न कर। मैंने एक गधा तक उनसे नहीं लिया, न मैंने उनमें से किसी से बुरा सुलूक किया है।” \p \v 16 क़ोरह से उसने कहा, “कल तुम और तुम्हारे साथी रब के सामने हाज़िर हो जाओ। हारून भी आएगा। \v 17 हर एक अपना बख़ूरदान लेकर उसे रब को पेश करे।” \v 18 चुनाँचे हर आदमी ने अपना बख़ूरदान लेकर उसमें अंगारे और बख़ूर डाल दिया। फिर सब मूसा और हारून के साथ मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर खड़े हुए। \v 19 क़ोरह ने पूरी जमात को दरवाज़े पर मूसा और हारून के मुक़ाबले में जमा किया था। \p अचानक पूरी जमात पर रब का जलाल ज़ाहिर हुआ। \v 20 रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 21 “इस जमात से अलग हो जाओ ताकि मैं इसे फ़ौरन हलाक कर दूँ।” \v 22 मूसा और हारून मुँह के बल गिरे और बोल उठे, “ऐ अल्लाह, तू तमाम जानों का ख़ुदा है। क्या तेरा ग़ज़ब एक ही आदमी के गुनाह के सबब से पूरी जमात पर आन पड़ेगा?” \p \v 23 तब रब ने मूसा से कहा, \v 24 “जमात को बता दे कि क़ोरह, दातन और अबीराम के डेरों से दूर हो जाओ।” \v 25 मूसा उठकर दातन और अबीराम के पास गया, और इसराईल के बुज़ुर्ग उसके पीछे चले। \v 26 उसने जमात को आगाह किया, “इन शरीरों के ख़ैमों से दूर हो जाओ! जो कुछ भी उनके पास है उसे न छुओ, वरना तुम भी उनके साथ तबाह हो जाओगे जब वह अपने गुनाहों के बाइस हलाक होंगे।” \v 27 तब बाक़ी लोग क़ोरह, दातन और अबीराम के डेरों से दूर हो गए। \p दातन और अबीराम अपने बाल-बच्चों समेत अपने ख़ैमों से निकलकर बाहर खड़े थे। \v 28 मूसा ने कहा, “अब तुम्हें पता चलेगा कि रब ने मुझे यह सब कुछ करने के लिए भेजा है। मैं अपनी नहीं बल्कि उस की मरज़ी पूरी कर रहा हूँ। \v 29 अगर यह लोग दूसरों की तरह तबई मौत मरें तो फिर रब ने मुझे नहीं भेजा। \v 30 लेकिन अगर रब ऐसा काम करे जो पहले कभी नहीं हुआ और ज़मीन अपना मुँह खोलकर उन्हें और उनका पूरा माल हड़प कर ले और उन्हें जीते-जी दफ़ना दे तो इसका मतलब होगा कि इन आदमियों ने रब को हक़ीर जाना है।” \p \v 31 यह बात कहते ही उनके नीचे की ज़मीन फट गई। \v 32 उसने अपना मुँह खोलकर उन्हें, उनके ख़ानदानों को, क़ोरह के तमाम लोगों को और उनका सारा सामान हड़प कर लिया। \v 33 वह अपनी पूरी मिलकियत समेत जीते-जी दफ़न हो गए। ज़मीन उनके ऊपर वापस आ गई। यों उन्हें जमात से निकाला गया और वह हलाक हो गए। \v 34 उनकी चीख़ें सुनकर उनके इर्दगिर्द खड़े तमाम इसराईली भाग उठे, क्योंकि उन्होंने सोचा, “ऐसा न हो कि ज़मीन हमें भी निगल ले।” \p \v 35 उसी लमहे रब की तरफ़ से आग उतर आई और उन 250 आदमियों को भस्म कर दिया जो बख़ूर पेश कर रहे थे। \v 36 रब ने मूसा से कहा, \v 37 “हारून इमाम के बेटे इलियज़र को इत्तला दे कि वह बख़ूरदानों को राख में से निकालकर रखे। उनके अंगारे वह दूर फेंके। बख़ूरदानों को रखने का सबब यह है कि अब वह मख़सूसो-मुक़द्दस हैं। \v 38 लोग उन आदमियों के यह बख़ूरदान ले लें जो अपने गुनाह के बाइस जान-बहक़ हो गए। वह उन्हें कूटकर उनसे चादरें बनाएँ और उन्हें जलनेवाली क़ुरबानियों की क़ुरबानगाह पर चढ़ाएँ। क्योंकि वह रब को पेश किए गए हैं, इसलिए वह मख़सूसो-मुक़द्दस हैं। यों वह इसराईलियों के लिए एक निशान रहेंगे।” \p \v 39 चुनाँचे इलियज़र इमाम ने पीतल के यह बख़ूरदान जमा किए जो भस्म किए हुए आदमियों ने रब को पेश किए थे। फिर लोगों ने उन्हें कूटकर उनसे चादरें बनाईं और उन्हें क़ुरबानगाह पर चढ़ा दिया। \v 40 हारून ने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा की मारिफ़त बताया था। मक़सद यह था कि बख़ूरदान इसराईलियों को याद दिलाते रहें कि सिर्फ़ हारून की औलाद ही को रब के सामने आकर बख़ूर जलाने की इजाज़त है। अगर कोई और ऐसा करे तो उसका हाल क़ोरह और उसके साथियों का-सा होगा। \p \v 41 अगले दिन इसराईल की पूरी जमात मूसा और हारून के ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाने लगी। उन्होंने कहा, “आपने रब की क़ौम को मार डाला है।” \v 42 लेकिन जब वह मूसा और हारून के मुक़ाबले में जमा हुए और मुलाक़ात के ख़ैमे का रुख़ किया तो अचानक उस पर बादल छा गया और रब का जलाल ज़ाहिर हुआ। \v 43 फिर मूसा और हारून मुलाक़ात के ख़ैमे के सामने आए, \v 44 और रब ने मूसा से कहा, \v 45 “इस जमात से निकल जाओ ताकि मैं इसे फ़ौरन हलाक कर दूँ।” यह सुनकर दोनों मुँह के बल गिरे। \v 46 मूसा ने हारून से कहा, “अपना बख़ूरदान लेकर उसमें क़ुरबानगाह के अंगारे और बख़ूर डालें। फिर भागकर जमात के पास चले जाएँ ताकि उनका कफ़्फ़ारा दें। जल्दी करें, क्योंकि रब का ग़ज़ब उन पर टूट पड़ा है। वबा फैलने लगी है।” \p \v 47 हारून ने ऐसा ही किया। वह दौड़कर जमात के बीच में गया। लोगों में वबा शुरू हो चुकी थी, लेकिन हारून ने रब को बख़ूर पेश करके उनका कफ़्फ़ारा दिया। \v 48 वह ज़िंदों और मुरदों के बीच में खड़ा हुआ तो वबा रुक गई। \v 49 तो भी 14,700 अफ़राद वबा से मर गए। इसमें वह शामिल नहीं हैं जो क़ोरह के सबब से मर गए थे। \p \v 50 जब वबा रुक गई तो हारून मूसा के पास वापस आया जो अब तक मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर खड़ा था। \c 17 \s1 हारून की लाठी से कोंपलें निकलती हैं \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों से बात करके उनसे 12 लाठियाँ मँगवा ले, हर क़बीले के सरदार से एक लाठी। हर लाठी पर उसके मालिक का नाम लिखना। \v 3 लावी की लाठी पर हारून का नाम लिखना, क्योंकि हर क़बीले के सरदार के लिए एक लाठी होगी। \v 4 फिर उनको मुलाक़ात के ख़ैमे में अहद के संदूक़ के सामने रख जहाँ मेरी तुमसे मुलाक़ात होती है। \v 5 जिस आदमी को मैंने चुन लिया है उस की लाठी से कोंपलें फूट निकलेंगी। इस तरह मैं तुम्हारे ख़िलाफ़ इसराईलियों की बुड़बुड़ाहट ख़त्म कर दूँगा।” \p \v 6 चुनाँचे मूसा ने इसराईलियों से बात की, और क़बीलों के हर सरदार ने उसे अपनी लाठी दी। इन 12 लाठियों में हारून की लाठी भी शामिल थी। \v 7 मूसा ने उन्हें मुलाक़ात के ख़ैमे में अहद के संदूक़ के सामने रखा। \v 8 अगले दिन जब वह मुलाक़ात के ख़ैमे में दाख़िल हुआ तो उसने देखा कि लावी के क़बीले के सरदार हारून की लाठी से न सिर्फ़ कोंपलें फूट निकली हैं बल्कि फूल और पके हुए बादाम भी लगे हैं। \p \v 9 मूसा तमाम लाठियाँ रब के सामने से बाहर लाकर इसराईलियों के पास ले आया, और उन्होंने उनका मुआयना किया। फिर हर एक ने अपनी अपनी लाठी वापस ले ली। \v 10 रब ने मूसा से कहा, “हारून की लाठी अहद के संदूक़ के सामने रख दे। यह बाग़ी इसराईलियों को याद दिलाएगी कि वह अपना बुड़बुड़ाना बंद करें, वरना हलाक हो जाएंगे।” \p \v 11 मूसा ने ऐसा ही किया। \v 12 लेकिन इसराईलियों ने मूसा से कहा, “हाय, हम मर जाएंगे। हाय, हम हलाक हो जाएंगे, हम सब हलाक हो जाएंगे। \v 13 जो भी रब के मक़दिस के क़रीब आए वह मर जाएगा। क्या हम सब ही हलाक हो जाएंगे?” \c 18 \s1 इमामों और लावियों की ज़िम्मादारियाँ \p \v 1 रब ने हारून से कहा, “मक़दिस तेरी, तेरे बेटों और लावी के क़बीले की ज़िम्मादारी है। अगर इसमें कोई ग़लती हो जाए तो तुम क़ुसूरवार ठहरोगे। इसी तरह इमामों की ख़िदमत सिर्फ़ तेरी और तेरे बेटों की ज़िम्मादारी है। अगर इसमें कोई ग़लती हो जाए तो तू और तेरे बेटे क़ुसूरवार ठहरेंगे। \v 2 अपने क़बीले लावी के बाक़ी आदमियों को भी मेरे क़रीब आने दे। वह तेरे साथ मिलकर यों हिस्सा लें कि वह तेरी और तेरे बेटों की ख़िदमत करें जब तुम ख़ैमे के सामने अपनी ज़िम्मादारियाँ निभाओगे। \v 3 तेरी ख़िदमत और ख़ैमे में ख़िदमत उनकी ज़िम्मादारी है। लेकिन वह ख़ैमे के मख़सूसो-मुक़द्दस सामान और क़ुरबानगाह के क़रीब न जाएँ, वरना न सिर्फ़ वह बल्कि तू भी हलाक हो जाएगा। \v 4 यों वह तेरे साथ मिलकर मुलाक़ात के ख़ैमे के पूरे काम में हिस्सा लें। लेकिन किसी और को ऐसा करने की इजाज़त नहीं है। \v 5 सिर्फ़ तू और तेरे बेटे मक़दिस और क़ुरबानगाह की देख-भाल करें ताकि मेरा ग़ज़ब दुबारा इसराईलियों पर न भड़के। \v 6 मैं ही ने इसराईलियों में से तेरे भाइयों यानी लावियों को चुनकर तुझे तोह्फ़े के तौर पर दिया है। वह रब के लिए मख़सूस हैं ताकि ख़ैमे में ख़िदमत करें। \v 7 लेकिन सिर्फ़ तू और तेरे बेटे इमाम की ख़िदमत सरंजाम दें। मैं तुम्हें इमाम का ओहदा तोह्फ़े के तौर पर देता हूँ। कोई और क़ुरबानगाह और मुक़द्दस चीज़ों के नज़दीक न आए, वरना उसे सज़ाए-मौत दी जाए।” \s1 इमामों का हिस्सा \p \v 8 रब ने हारून से कहा, “मैंने ख़ुद मुक़र्रर किया है कि तमाम उठानेवाली क़ुरबानियाँ तेरा हिस्सा हों। यह हमेशा तक क़ुरबानियों में से तेरा और तेरी औलाद का हिस्सा हैं। \v 9 तुम्हें मुक़द्दसतरीन क़ुरबानियों का वह हिस्सा मिलना है जो जलाया नहीं जाता। हाँ, तुझे और तेरे बेटों को वही हिस्सा मिलना है, ख़ाह वह मुझे ग़ल्ला की नज़रें, गुनाह की क़ुरबानियाँ या क़ुसूर की क़ुरबानियाँ पेश करें। \v 10 उसे मुक़द्दस जगह पर खाना। हर मर्द उसे खा सकता है। ख़याल रख कि वह मख़सूसो-मुक़द्दस है। \p \v 11 मैंने मुक़र्रर किया है कि तमाम हिलानेवाली क़ुरबानियों का उठाया हुआ हिस्सा तेरा है। यह हमेशा के लिए तेरे और तेरे बेटे-बेटियों का हिस्सा है। तेरे घराने का हर फ़रद उसे खा सकता है। शर्त यह है कि वह पाक हो। \v 12 जब लोग रब को अपनी फ़सलों का पहला फल पेश करेंगे तो वह तेरा ही हिस्सा होगा। मैं तुझे ज़ैतून के तेल, नई मै और अनाज का बेहतरीन हिस्सा देता हूँ। \v 13 फ़सलों का जो भी पहला फल वह रब को पेश करेंगे वह तेरा ही होगा। तेरे घराने का हर पाक फ़रद उसे खा सकता है। \v 14 इसराईल में जो भी चीज़ रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस की गई है वह तेरी होगी। \v 15 हर इनसान और हर हैवान का जो पहलौठा रब को पेश किया जाता है वह तेरा ही है। लेकिन लाज़िम है कि तू हर इनसान और हर नापाक जानवर के पहलौठे का फ़िद्या देकर उसे छुड़ाए। \p \v 16 जब वह एक माह के हैं तो उनके एवज़ चाँदी के पाँच सिक्के देना। (हर सिक्के का वज़न मक़दिस के बाटों के मुताबिक़ 11 ग्राम हो)। \v 17 लेकिन गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के पहले बच्चों का फ़िद्या यानी मुआवज़ा न देना। वह मख़सूसो-मुक़द्दस हैं। उनका ख़ून क़ुरबानगाह पर छिड़क देना और उनकी चरबी जला देना। ऐसी क़ुरबानी रब को पसंद होगी। \v 18 उनका गोश्त वैसे ही तुम्हारे लिए हो, जैसे हिलानेवाली क़ुरबानी का सीना और दहनी रान भी तुम्हारे लिए हैं। \p \v 19 मुक़द्दस क़ुरबानियों में से तमाम उठानेवाली क़ुरबानियाँ तेरा और तेरे बेटे-बेटियों का हिस्सा हैं। मैंने उसे हमेशा के लिए तुझे दिया है। यह नमक का दायमी अहद है जो मैंने तेरे और तेरी औलाद के साथ क़ायम किया है।” \s1 लावियों का हिस्सा \p \v 20 रब ने हारून से कहा, “तू मीरास में ज़मीन नहीं पाएगा। इसराईल में तुझे कोई हिस्सा नहीं दिया जाएगा, क्योंकि इसराईलियों के दरमियान मैं ही तेरा हिस्सा और तेरी मीरास हूँ। \v 21 अपनी पैदावार का जो दसवाँ हिस्सा इसराईली मुझे देते हैं वह मैं लावियों को देता हूँ। यह उनकी विरासत है, जो उन्हें मुलाक़ात के ख़ैमे में ख़िदमत करने के बदले में मिलती है। \v 22 अब से इसराईली मुलाक़ात के ख़ैमे के क़रीब न आएँ, वरना उन्हें अपनी ख़ता का नतीजा बरदाश्त करना पड़ेगा और वह हलाक हो जाएंगे। \v 23 सिर्फ़ लावी मुलाक़ात के ख़ैमे में ख़िदमत करें। अगर इसमें कोई ग़लती हो जाए तो वही क़ुसूरवार ठहरेंगे। यह एक दायमी उसूल है। उन्हें इसराईल में मीरास में ज़मीन नहीं मिलेगी। \v 24 क्योंकि मैंने उन्हें वही दसवाँ हिस्सा मीरास के तौर पर दिया है जो इसराईली मुझे उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करते हैं। इस वजह से मैंने उनके बारे में कहा कि उन्हें बाक़ी इसराईलियों के साथ मीरास में ज़मीन नहीं मिलेगी।” \s1 लावियों का दसवाँ हिस्सा \p \v 25 रब ने मूसा से कहा, \v 26 “लावियों को बताना कि तुम्हें इसराईलियों की पैदावार का दसवाँ हिस्सा मिलेगा। यह रब की तरफ़ से तुम्हारी विरासत होगी। लाज़िम है कि तुम इसका दसवाँ हिस्सा रब को उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करो। \v 27 तुम्हारी यह क़ुरबानी नए अनाज या नए अंगूर के रस की क़ुरबानी के बराबर क़रार दी जाएगी। \v 28 इस तरह तुम भी रब को इसराईलियों की पैदावार के दसवें हिस्से में से उठानेवाली क़ुरबानी पेश करोगे। रब के लिए यह क़ुरबानी हारून इमाम को देना। \v 29 जो भी तुम्हें मिला है उसमें से सबसे अच्छा और मुक़द्दस हिस्सा रब को देना। \v 30 जब तुम इसका सबसे अच्छा हिस्सा पेश करोगे तो उसे नए अनाज या नए अंगूर के रस की क़ुरबानी के बराबर क़रार दिया जाएगा। \v 31 तुम अपने घरानों समेत इसका बाक़ी हिस्सा कहीं भी खा सकते हो, क्योंकि यह मुलाक़ात के ख़ैमे में तुम्हारी ख़िदमत का अज्र है। \v 32 अगर तुमने पहले इसका बेहतरीन हिस्सा पेश किया हो तो फिर इसे खाने में तुम्हारा कोई क़ुसूर नहीं होगा। फिर इसराईलियों की मख़सूसो-मुक़द्दस क़ुरबानियाँ तुमसे नापाक नहीं हो जाएँगी और तुम नहीं मरोगे।” \c 19 \s1 सुर्ख़ गाय की राख \p \v 1 रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि वह तुम्हारे पास सुर्ख़ रंग की जवान गाय लेकर आएँ। उसमें नुक़्स न हो और उस पर कभी जुआ न रखा गया हो। \v 3 तुम उसे इलियज़र इमाम को देना जो उसे ख़ैमे के बाहर ले जाए। वहाँ उसे उस की मौजूदगी में ज़बह किया जाए। \v 4 फिर इलियज़र इमाम अपनी उँगली से उसके ख़ून से कुछ लेकर मुलाक़ात के ख़ैमे के सामनेवाले हिस्से की तरफ़ छिड़के। \v 5 उस की मौजूदगी में पूरी की पूरी गाय को जलाया जाए। उस की खाल, गोश्त, ख़ून और अंतड़ियों का गोबर भी जलाया जाए। \v 6 फिर वह देवदार की लकड़ी, ज़ूफ़ा और क़िरमिज़ी रंग का धागा लेकर उसे जलती हुई गाय पर फेंके। \v 7 इसके बाद वह अपने कपड़ों को धोकर नहा ले। फिर वह ख़ैमागाह में आ सकता है लेकिन शाम तक नापाक रहेगा। \p \v 8 जिस आदमी ने गाय को जलाया वह भी अपने कपड़ों को धोकर नहा ले। वह भी शाम तक नापाक रहेगा। \p \v 9 एक दूसरा आदमी जो पाक है गाय की राख इकट्ठी करके ख़ैमागाह के बाहर किसी पाक जगह पर डाल दे। वहाँ इसराईल की जमात उसे नापाकी दूर करने का पानी तैयार करने के लिए महफ़ूज़ रखे। यह गुनाह से पाक करने के लिए इस्तेमाल होगा। \v 10 जिस आदमी ने राख इकट्ठी की है वह भी अपने कपड़ों को धो ले। वह भी शाम तक नापाक रहेगा। यह इसराईलियों और उनके दरमियान रहनेवाले परदेसियों के लिए दायमी उसूल हो। \s1 लाश छूने से पाक हो जाने का तरीक़ा \p \v 11 जो भी लाश छुए वह सात दिन तक नापाक रहेगा। \v 12 तीसरे और सातवें दिन वह अपने आप पर नापाकी दूर करने का पानी छिड़ककर पाक-साफ़ हो जाए। इसके बाद ही वह पाक होगा। लेकिन अगर वह इन दोनों दिनों में अपने आपको यों पाक न करे तो नापाक रहेगा। \v 13 जो भी लाश छूकर अपने आपको यों पाक नहीं करता वह रब के मक़दिस को नापाक करता है। लाज़िम है कि उसे इसराईल में से मिटाया जाए। चूँकि नापाकी दूर करने का पानी उस पर छिड़का नहीं गया इसलिए वह नापाक रहेगा। \p \v 14 अगर कोई डेरे में मर जाए तो जो भी उस वक़्त उसमें मौजूद हो या दाख़िल हो जाए वह सात दिन तक नापाक रहेगा। \v 15 हर खुला बरतन जो ढकने से बंद न किया गया हो वह भी नापाक होगा। \v 16 इसी तरह जो खुले मैदान में लाश छुए वह भी सात दिन तक नापाक रहेगा, ख़ाह वह तलवार से या तबई मौत मरा हो। जो इनसान की कोई हड्डी या क़ब्र छुए वह भी सात दिन तक नापाक रहेगा। \p \v 17 नापाकी दूर करने के लिए उस सुर्ख़ रंग की गाय की राख में से कुछ लेना जो गुनाह दूर करने के लिए जलाई गई थी। उसे बरतन में डालकर ताज़ा पानी में मिलाना। \v 18 फिर कोई पाक आदमी कुछ ज़ूफ़ा ले और उसे उस पानी में डुबोकर मरे हुए शख़्स के ख़ैमे, उसके सामान और उन लोगों पर छिड़के जो उसके मरते वक़्त वहाँ थे। इसी तरह वह पानी उस शख़्स पर भी छिड़के जिसने तबई या ग़ैरतबई मौत मरे हुए शख़्स को, किसी इनसान की हड्डी को या कोई क़ब्र छूई हो। \v 19 पाक आदमी यह पानी तीसरे और सातवें दिन नापाक शख़्स पर छिड़के। सातवें दिन वह उसे पाक करे। जिसे पाक किया जा रहा है वह अपने कपड़े धोकर नहा ले तो वह उसी शाम पाक होगा। \p \v 20 लेकिन जो नापाक शख़्स अपने आपको पाक नहीं करता उसे जमात में से मिटाना है, क्योंकि उसने रब का मक़दिस नापाक कर दिया है। नापाकी दूर करने का पानी उस पर नहीं छिड़का गया, इसलिए वह नापाक रहा है। \v 21 यह उनके लिए दायमी उसूल है। जिस आदमी ने नापाकी दूर करने का पानी छिड़का है वह भी अपने कपड़े धोए। बल्कि जिसने भी यह पानी छुआ है शाम तक नापाक रहेगा। \v 22 और नापाक शख़्स जो भी चीज़ छुए वह नापाक हो जाती है। न सिर्फ़ यह बल्कि जो बाद में यह नापाक चीज़ छुए वह भी शाम तक नापाक रहेगा।” \c 20 \s1 चट्टान से पानी \p \v 1 पहले महीने में इसराईल की पूरी जमात दश्ते-सीन में पहुँचकर क़ादिस में रहने लगी। वहाँ मरियम ने वफ़ात पाई और वहीं उसे दफ़नाया गया। \p \v 2 क़ादिस में पानी दस्तयाब नहीं था, इसलिए लोग मूसा और हारून के मुक़ाबले में जमा हुए। \v 3 वह मूसा से यह कहकर झगड़ने लगे, “काश हम अपने भाइयों के साथ रब के सामने मर गए होते! \v 4 आप रब की जमात को क्यों इस रेगिस्तान में ले आए? क्या इसलिए कि हम यहाँ अपने मवेशियों समेत मर जाएँ? \v 5 आप हमें मिसर से निकालकर उस नाख़ुशगवार जगह पर क्यों ले आए हैं? यहाँ न तो अनाज, न अंजीर, अंगूर या अनार दस्तयाब हैं। पानी भी नहीं है!” \p \v 6 मूसा और हारून लोगों को छोड़कर मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर गए और मुँह के बल गिरे। तब रब का जलाल उन पर ज़ाहिर हुआ। \v 7 रब ने मूसा से कहा, \v 8 “अहद के संदूक़ के सामने पड़ी लाठी पकड़कर हारून के साथ जमात को इकट्ठा कर। उनके सामने चट्टान से बात करो तो वह अपना पानी देगी। यों तू चट्टान में से जमात के लिए पानी निकालकर उन्हें उनके मवेशियों समेत पानी पिलाएगा।” \p \v 9 मूसा ने ऐसा ही किया। उसने अहद के संदूक़ के सामने पड़ी लाठी उठाई \v 10 और हारून के साथ जमात को चट्टान के सामने इकट्ठा किया। मूसा ने उनसे कहा, “ऐ बग़ावत करनेवालो, सुनो! क्या हम इस चट्टान में से तुम्हारे लिए पानी निकालें?” \v 11 उसने लाठी को उठाकर चट्टान को दो मरतबा मारा तो बहुत-सा पानी फूट निकला। जमात और उनके मवेशियों ने ख़ूब पानी पिया। \p \v 12 लेकिन रब ने मूसा और हारून से कहा, “तुम्हारा मुझ पर इतना ईमान नहीं था कि मेरी क़ुद्दूसियत को इसराईलियों के सामने क़ायम रखते। इसलिए तुम उस जमात को उस मुल्क में नहीं ले जाओगे जो मैं उन्हें दूँगा।” \p \v 13 यह वाक़िया मरीबा यानी ‘झगड़ना’ के पानी पर हुआ। वहाँ इसराईलियों ने रब से झगड़ा किया, और वहाँ उसने उन पर ज़ाहिर किया कि वह क़ुद्दूस है। \s1 अदोम इसराईल को गुज़रने नहीं देता \p \v 14 क़ादिस से मूसा ने अदोम के बादशाह को इत्तला भेजी, “आपके भाई इसराईल की तरफ़ से एक गुज़ारिश है। आपको उन तमाम मुसीबतों के बारे में इल्म है जो हम पर आन पड़ी हैं। \v 15 हमारे बापदादा मिसर गए थे और वहाँ हम बहुत अरसे तक रहे। मिसरियों ने हमारे बापदादा और हमसे बुरा सुलूक किया। \v 16 लेकिन जब हमने चिल्लाकर रब से मिन्नत की तो उसने हमारी सुनी और फ़रिश्ता भेजकर हमें मिसर से निकाल लाया। अब हम यहाँ क़ादिस शहर में हैं जो आपकी सरहद पर है। \v 17 मेहरबानी करके हमें अपने मुल्क में से गुज़रने दें। हम किसी खेत या अंगूर के बाग़ में नहीं जाएंगे, न किसी कुएँ का पानी पिएँगे। हम शाहराह पर ही रहेंगे। आपके मुल्क में से गुज़रते हुए हम उससे न दाईं और न बाईं तरफ़ हटेंगे।” \p \v 18 लेकिन अदोमियों ने जवाब दिया, “यहाँ से न गुज़रना, वरना हम निकलकर आपसे लड़ेंगे।” \v 19 इसराईल ने दुबारा ख़बर भेजी, “हम शाहराह पर रहते हुए गुज़रेंगे। अगर हमें या हमारे जानवरों को पानी की ज़रूरत हुई तो पैसे देकर ख़रीद लेंगे। हम पैदल ही गुज़रना चाहते हैं, और कुछ नहीं चाहते।” \p \v 20 लेकिन अदोमियों ने दुबारा इनकार किया। साथ ही उन्होंने उनके साथ लड़ने के लिए एक बड़ी और ताक़तवर फ़ौज भेजी। \p \v 21 चूँकि अदोम ने उन्हें गुज़रने की इजाज़त न दी इसलिए इसराईली मुड़कर दूसरे रास्ते से चले गए। \s1 हारून की वफ़ात \p \v 22 इसराईल की पूरी जमात क़ादिस से रवाना होकर होर पहाड़ के पास पहुँची। \v 23 यह पहाड़ अदोम की सरहद पर वाक़े था। वहाँ रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 24 “हारून अब कूच करके अपने बापदादा से जा मिलेगा। वह उस मुल्क में दाख़िल नहीं होगा जो मैं इसराईलियों को दूँगा, क्योंकि तुम दोनों ने मरीबा के पानी पर मेरे हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी की। \v 25 हारून और उसके बेटे इलियज़र को लेकर होर पहाड़ पर चढ़ जा। \v 26 हारून के कपड़े उतारकर उसके बेटे इलियज़र को पहना देना। फिर हारून कूच करके अपने बापदादा से जा मिलेगा।” \p \v 27 मूसा ने ऐसा ही किया जैसा रब ने कहा। तीनों पूरी जमात के देखते देखते होर पहाड़ पर चढ़ गए। \v 28 मूसा ने हारून के कपड़े उतरवाकर उसके बेटे इलियज़र को पहना दिए। फिर हारून वहाँ पहाड़ की चोटी पर फ़ौत हुआ, और मूसा और इलियज़र नीचे उतर गए। \v 29 जब पूरी जमात को मालूम हुआ कि हारून इंतक़ाल कर गया है तो सबने 30 दिन तक उसके लिए मातम किया। \c 21 \s1 कनानी मुल्के-अराद पर फ़तह \p \v 1 दश्ते-नजब के कनानी मुल्क अराद के बादशाह को ख़बर मिली कि इसराईली अथारिम की तरफ़ बढ़ रहे हैं। उसने उन पर हमला किया और कई एक को पकड़कर क़ैद कर लिया। \v 2 तब इसराईलियों ने रब के सामने मन्नत मानकर कहा, “अगर तू हमें उन पर फ़तह देगा तो हम उन्हें उनके शहरों समेत तबाह कर देंगे।” \v 3 रब ने उनकी सुनी और कनानियों पर फ़तह बख़्शी। इसराईलियों ने उन्हें उनके शहरों समेत पूरी तरह तबाह कर दिया। इसलिए उस जगह का नाम हुरमा यानी तबाही पड़ गया। \s1 पीतल का साँप \p \v 4 होर पहाड़ से रवाना होकर वह बहरे-क़ुलज़ुम की तरफ़ चल दिए ताकि अदोम के मुल्क में से गुज़रना न पड़े। लेकिन चलते चलते लोग बेसबर हो गए। \v 5 वह रब और मूसा के ख़िलाफ़ बातें करने लगे, “आप हमें मिसर से निकालकर रेगिस्तान में मरने के लिए क्यों ले आए हैं? यहाँ न रोटी दस्तयाब है न पानी। हमें इस घटिया क़िस्म की ख़ुराक से घिन आती है।” \p \v 6 तब रब ने उनके दरमियान ज़हरीले साँप भेज दिए जिनके काटने से बहुत-से लोग मर गए। \v 7 फिर लोग मूसा के पास आए। उन्होंने कहा, “हमने रब और आपके ख़िलाफ़ बातें करते हुए गुनाह किया। हमारी सिफ़ारिश करें कि रब हमसे साँप दूर कर दे।” \p मूसा ने उनके लिए दुआ की \v 8 तो रब ने मूसा से कहा, “एक साँप बनाकर उसे खंबे से लटका दे। जो भी डसा गया हो वह उसे देखकर बच जाएगा।” \v 9 चुनाँचे मूसा ने पीतल का एक साँप बनाया और खंबा खड़ा करके साँप को उससे लटका दिया। और ऐसा हुआ कि जिसे भी डसा गया था वह पीतल के साँप पर नज़र करके बच गया। \s1 मोआब की तरफ़ सफ़र \p \v 10 इसराईली रवाना हुए और ओबोत में अपने ख़ैमे लगाए। \v 11 फिर वहाँ से कूच करके ऐये-अबारीम में डेरे डाले, उस रेगिस्तान में जो मशरिक़ की तरफ़ मोआब के सामने है। \v 12 वहाँ से रवाना होकर वह वादीए-ज़िरद में ख़ैमाज़न हुए। \v 13 जब वादीए-ज़िरद से रवाना हुए तो दरियाए-अरनोन के परले यानी जुनूबी किनारे पर ख़ैमाज़न हुए। यह दरिया रेगिस्तान में है और अमोरियों के इलाक़े से निकलता है। यह अमोरियों और मोआबियों के दरमियान की सरहद है। \v 14 इसका ज़िक्र किताब ‘रब की जंगें’ में भी है, \p “वाहेब जो सूफ़ा में है, दरियाए-अरनोन की वादियाँ \v 15 और वादियों का वह ढलान जो आर शहर तक जाता है और मोआब की सरहद पर वाक़े है।” \p \v 16 वहाँ से वह बैर यानी ‘कुआँ’ पहुँचे। यह वही बैर है जहाँ रब ने मूसा से कहा, “लोगों को इकट्ठा कर तो मैं उन्हें पानी दूँगा।” \v 17 उस वक़्त इसराईलियों ने यह गीत गाया, \p “ऐ कुएँ, फूट निकल! उसके बारे में गीत गाओ, \p \v 18 उस कुएँ के बारे में जिसे सरदारों ने खोदा, जिसे क़ौम के राहनुमाओं ने असाए-शाही और अपनी लाठियों से खोदा।” \p फिर वह रेगिस्तान से मत्तना को गए, \v 19 मत्तना से नहलियेल को और नहलियेल से बामात को। \v 20 बामात से वह मोआबियों के इलाक़े की उस वादी में पहुँचे जो पिसगा पहाड़ के दामन में है। इस पहाड़ की चोटी से वादीए-यरदन का जुनूबी हिस्सा यशीमोन ख़ूब नज़र आता है। \s1 सीहोन और ओज की शिकस्त \p \v 21 इसराईल ने अमोरियों के बादशाह सीहोन को इत्तला भेजी, \v 22 “हमें अपने मुल्क में से गुज़रने दें। हम सीधे सीधे गुज़र जाएंगे। न हम कोई खेत या अंगूर का बाग़ छेड़ेंगे, न किसी कुएँ का पानी पिएँगे। हम आपके मुल्क में से सीधे गुज़रते हुए शाहराह पर ही रहेंगे।” \v 23 लेकिन सीहोन ने उन्हें गुज़रने न दिया बल्कि अपनी फ़ौज जमा करके इसराईल से लड़ने के लिए रेगिस्तान में चल पड़ा। यहज़ पहुँचकर उसने इसराईलियों से जंग की। \v 24 लेकिन इसराईलियों ने उसे क़त्ल किया और दरियाए-अरनोन से लेकर दरियाए-यब्बोक़ तक यानी अम्मोनियों की सरहद तक उसके मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया। वह इससे आगे न जा सके क्योंकि अम्मोनियों ने अपनी सरहद की हिसारबंदी कर रखी थी। \v 25 इसराईली तमाम अमोरी शहरों पर क़ब्ज़ा करके उनमें रहने लगे। उनमें हसबोन और उसके इर्दगिर्द की आबादियाँ शामिल थीं। \p \v 26 हसबोन अमोरी बादशाह सीहोन का दारुल-हुकूमत था। उसने मोआब के पिछले बादशाह से लड़कर उससे यह इलाक़ा दरियाए-अरनोन तक छीन लिया था। \v 27 उस वाक़िये का ज़िक्र शायरी में यों किया गया है, \p “हसबोन के पास आकर उसे अज़ सरे-नौ तामीर करो, सीहोन के शहर को अज़ सरे-नौ क़ायम करो। \p \v 28 हसबोन से आग निकली, सीहोन के शहर से शोला भड़का। उसने मोआब के शहर आर को जला दिया, अरनोन की बुलंदियों के मालिकों को भस्म किया। \p \v 29 ऐ मोआब, तुझ पर अफ़सोस! ऐ कमोस देवता की क़ौम, तू हलाक हुई है। कमोस ने अपने बेटों को मफ़रूर और अपनी बेटियों को अमोरी बादशाह सीहोन की क़ैदी बना दिया है। \p \v 30 लेकिन जब हमने अमोरियों पर तीर चलाए तो हसबोन का इलाक़ा दीबोन तक बरबाद हुआ। हमने नुफ़ह तक सब कुछ तबाह किया, वह नुफ़ह जिसका इलाक़ा मीदबा तक है।” \p \v 31 यों इसराईल अमोरियों के मुल्क में आबाद हुआ। \v 32 वहाँ से मूसा ने अपने जासूस याज़ेर शहर भेजे। वहाँ भी अमोरी रहते थे। इसराईलियों ने याज़ेर और उसके इर्दगिर्द के शहरों पर भी क़ब्ज़ा किया और वहाँ के अमोरियों को निकाल दिया। \p \v 33 इसके बाद वह मुड़कर बसन की तरफ़ बढ़े। तब बसन का बादशाह ओज अपनी तमाम फ़ौज लेकर उनसे लड़ने के लिए शहर इदरई आया। \v 34 उस वक़्त रब ने मूसा से कहा, “ओज से न डरना। मैं उसे, उस की तमाम फ़ौज और उसका मुल्क तेरे हवाले कर चुका हूँ। उसके साथ वही सुलूक कर जो तूने अमोरियों के बादशाह सीहोन के साथ किया, जिसका दारुल-हुकूमत हसबोन था।” \v 35 इसराईलियों ने ओज, उसके बेटों और तमाम फ़ौज को हलाक कर दिया। कोई भी न बचा। फिर उन्होंने बसन के मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया। \c 22 \s1 बलक़ बिलाम को इसराईल पर लानत भेजने के लिए बुलाता है \p \v 1 इसके बाद इसराईली मोआब के मैदानों में पहुँचकर दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर यरीहू के आमने-सामने ख़ैमाज़न हुए। \p \v 2 मोआब के बादशाह बलक़ बिन सफ़ोर को मालूम हुआ कि इसराईलियों ने अमोरियों के साथ क्या कुछ किया है। \v 3 मोआबियों ने यह भी देखा कि इसराईली बहुत ज़्यादा हैं, इसलिए उन पर दहशत छा गई। \v 4 उन्होंने मिदियानियों के बुज़ुर्गों से बात की, “अब यह हुजूम उस तरह हमारे इर्दगिर्द का इलाक़ा चट कर जाएगा जिस तरह बैल मैदान की घास चट कर जाता है।” \p \v 5 तब बलक़ ने अपने क़ासिद फ़तोर शहर को भेजे जो दरियाए-फ़ुरात पर वाक़े था और जहाँ बिलाम बिन बओर अपने वतन में रहता था। क़ासिद उसे बुलाने के लिए उसके पास पहुँचे और उसे बलक़ का पैग़ाम सुनाया, “एक क़ौम मिसर से निकल आई है जो रूए-ज़मीन पर छाकर मेरे क़रीब ही आबाद हुई है। \v 6 इसलिए आएँ और इन लोगों पर लानत भेजें, क्योंकि वह मुझसे ज़्यादा ताक़तवर हैं। फिर शायद मैं उन्हें शिकस्त देकर मुल्क से भगा सकूँ। क्योंकि मैं जानता हूँ कि जिन्हें आप बरकत देते हैं उन्हें बरकत मिलती है और जिन पर आप लानत भेजते हैं उन पर लानत आती है।” \p \v 7 यह पैग़ाम लेकर मोआब और मिदियान के बुज़ुर्ग रवाना हुए। उनके पास इनाम के पैसे थे। बिलाम के पास पहुँचकर उन्होंने उसे बलक़ का पैग़ाम सुनाया। \v 8 बिलाम ने कहा, “रात यहाँ गुज़ारें। कल मैं आपको बता दूँगा कि रब इसके बारे में क्या फ़रमाता है।” चुनाँचे मोआबी सरदार उसके पास ठहर गए। \p \v 9 रात के वक़्त अल्लाह बिलाम पर ज़ाहिर हुआ। उसने पूछा, “यह आदमी कौन हैं जो तेरे पास आए हैं?” \v 10 बिलाम ने जवाब दिया, “मोआब के बादशाह बलक़ बिन सफ़ोर ने मुझे पैग़ाम भेजा है, \v 11 ‘जो क़ौम मिसर से निकल आई है वह रूए-ज़मीन पर छा गई है। इसलिए आएँ और मेरे लिए उन पर लानत भेजें। फिर शायद मैं उनसे लड़कर उन्हें भगा देने में कामयाब हो जाऊँ’।” \v 12 रब ने बिलाम से कहा, “उनके साथ न जाना। तुझे उन पर लानत भेजने की इजाज़त नहीं है, क्योंकि उन पर मेरी बरकत है।” \p \v 13 अगली सुबह बिलाम जाग उठा तो उसने बलक़ के सरदारों से कहा, “अपने वतन वापस चले जाएँ, क्योंकि रब ने मुझे आपके साथ जाने की इजाज़त नहीं दी।” \v 14 चुनाँचे मोआबी सरदार ख़ाली हाथ बलक़ के पास वापस आए। उन्होंने कहा, “बिलाम हमारे साथ आने से इनकार करता है।” \v 15 तब बलक़ ने और सरदार भेजे जो पहलेवालों की निसबत तादाद और ओहदे के लिहाज़ से ज़्यादा थे। \v 16 वह बिलाम के पास जाकर कहने लगे, “बलक़ बिन सफ़ोर कहते हैं कि कोई भी बात आपको मेरे पास आने से न रोके, \v 17 क्योंकि मैं आपको बड़ा इनाम दूँगा। आप जो भी कहेंगे मैं करने के लिए तैयार हूँ। आएँ तो सही और मेरे लिए उन लोगों पर लानत भेजें।” \p \v 18 लेकिन बिलाम ने जवाब दिया, “अगर बलक़ अपने महल को चाँदी और सोने से भरकर भी मुझे दे तो भी मैं रब अपने ख़ुदा के फ़रमान की ख़िलाफ़वरज़ी नहीं कर सकता, ख़ाह बात छोटी हो या बड़ी। \v 19 आप दूसरे सरदारों की तरह रात यहाँ गुज़ारें। इतने में मैं मालूम करूँगा कि रब मुझे मज़ीद क्या कुछ बताता है।” \p \v 20 उस रात अल्लाह बिलाम पर ज़ाहिर हुआ और कहा, “चूँकि यह आदमी तुझे बुलाने आए हैं इसलिए उनके साथ चला जा। लेकिन सिर्फ़ वही कुछ करना जो मैं तुझे बताऊँगा।” \s1 बिलाम की गधी \p \v 21 सुबह को बिलाम ने उठकर अपनी गधी पर ज़ीन कसा और मोआबी सरदारों के साथ चल पड़ा। \v 22 लेकिन अल्लाह निहायत ग़ुस्से हुआ कि वह जा रहा है, इसलिए उसका फ़रिश्ता उसका मुक़ाबला करने के लिए रास्ते में खड़ा हो गया। बिलाम अपनी गधी पर सवार था और उसके दो नौकर उसके साथ चल रहे थे। \v 23 जब गधी ने देखा कि रब का फ़रिश्ता अपने हाथ में तलवार थामे हुए रास्ते में खड़ा है तो वह रास्ते से हटकर खेत में चलने लगी। बिलाम उसे मारते मारते रास्ते पर वापस ले आया। \p \v 24 फिर वह अंगूर के दो बाग़ों के दरमियान से गुज़रने लगे। रास्ता तंग था, क्योंकि वह दोनों तरफ़ बाग़ों की चारदीवारी से बंद था। अब रब का फ़रिश्ता वहाँ खड़ा हुआ। \v 25 गधी यह देखकर चारदीवारी के साथ साथ चलने लगी, और बिलाम का पाँव कुचला गया। उसने उसे दुबारा मारा। \p \v 26 रब का फ़रिश्ता आगे निकला और तीसरी मरतबा रास्ते में खड़ा हो गया। अब रास्ते से हट जाने की कोई गुंजाइश नहीं थी, न दाईं तरफ़ और न बाईं तरफ़। \v 27 जब गधी ने रब का फ़रिश्ता देखा तो वह लेट गई। बिलाम को ग़ुस्सा आ गया, और उसने उसे अपनी लाठी से ख़ूब मारा। \p \v 28 तब रब ने गधी को बोलने दिया, और उसने बिलाम से कहा, “मैंने आपसे क्या ग़लत सुलूक किया है कि आप मुझे अब तीसरी दफ़ा पीट रहे हैं?” \v 29 बिलाम ने जवाब दिया, “तूने मुझे बेवुक़ूफ़ बनाया है! काश मेरे हाथ में तलवार होती तो मैं अभी तुझे ज़बह कर देता!” \v 30 गधी ने बिलाम से कहा, “क्या मैं आपकी गधी नहीं हूँ जिस पर आप आज तक सवार होते रहे हैं? क्या मुझे कभी ऐसा करने की आदत थी?” उसने कहा, “नहीं।” \p \v 31 फिर रब ने बिलाम की आँखें खोलीं और उसने रब के फ़रिश्ते को देखा जो अब तक हाथ में तलवार थामे हुए रास्ते में खड़ा था। बिलाम ने मुँह के बल गिरकर सिजदा किया। \v 32 रब के फ़रिश्ते ने पूछा, “तूने तीन बार अपनी गधी को क्यों पीटा? मैं तेरे मुक़ाबले में आया हूँ, क्योंकि जिस तरफ़ तू बढ़ रहा है उसका अंजाम बुरा है। \v 33 गधी तीन मरतबा मुझे देखकर मेरी तरफ़ से हट गई। अगर वह न हटती तो तू उस वक़्त हलाक हो गया होता अगरचे मैं गधी को छोड़ देता।” \p \v 34 बिलाम ने रब के फ़रिश्ते से कहा, “मैंने गुनाह किया है। मुझे मालूम नहीं था कि तू मेरे मुक़ाबले में रास्ते में खड़ा है। लेकिन अगर मेरा सफ़र तुझे बुरा लगे तो मैं अब वापस चला जाऊँगा।” \v 35 रब के फ़रिश्ते ने कहा, “इन आदमियों के साथ अपना सफ़र जारी रख। लेकिन सिर्फ़ वही कुछ कहना जो मैं तुझे बताऊँगा।” चुनाँचे बिलाम ने बलक़ के सरदारों के साथ अपना सफ़र जारी रखा। \p \v 36 जब बलक़ को ख़बर मिली कि बिलाम आ रहा है तो वह उससे मिलने के लिए मोआब के उस शहर तक गया जो मोआब की सरहद दरियाए-अरनोन पर वाक़े है। \v 37 उसने बिलाम से कहा, “क्या मैंने आपको इत्तला नहीं भेजी थी कि आप ज़रूर आएँ? आप क्यों नहीं आए? क्या आपने सोचा कि मैं आपको मुनासिब इनाम नहीं दे पाऊँगा?” \v 38 बिलाम ने जवाब दिया, “बहरहाल अब मैं पहुँच गया हूँ। लेकिन मैं सिर्फ़ वही कुछ कह सकता हूँ जो अल्लाह ने पहले ही मेरे मुँह में डाल दिया है।” \p \v 39 फिर बिलाम बलक़ के साथ क़िरियत-हुसात गया। \v 40 वहाँ बलक़ ने गाय-बैल और भेड़-बकरियाँ क़ुरबान करके उनके गोश्त में से बिलाम और उसके साथवाले सरदारों को दे दिया। \v 41 अगली सुबह बलक़ बिलाम को साथ लेकर एक ऊँची जगह पर चढ़ गया जिसका नाम बामोत-बाल था। वहाँ से इसराईली ख़ैमागाह का किनारा नज़र आता था। \c 23 \s1 बिलाम की पहली बरकत \p \v 1 बिलाम ने कहा, “यहाँ मेरे लिए सात क़ुरबानगाहें बनाएँ। साथ साथ मेरे लिए सात बैल और सात मेंढे तैयार कर रखें।” \v 2 बलक़ ने ऐसा ही किया, और दोनों ने मिलकर हर क़ुरबानगाह पर एक बैल और एक मेंढा चढ़ाया। \v 3 फिर बिलाम ने बलक़ से कहा, “यहाँ अपनी क़ुरबानी के पास खड़े रहें। मैं कुछ फ़ासले पर जाता हूँ, शायद रब मुझसे मिलने आए। जो कुछ वह मुझ पर ज़ाहिर करे मैं आपको बता दूँगा।” \p यह कहकर वह एक ऊँचे मक़ाम पर चला गया जो हरियाली से बिलकुल महरूम था। \v 4 वहाँ अल्लाह बिलाम से मिला। बिलाम ने कहा, “मैंने सात क़ुरबानगाहें तैयार करके हर क़ुरबानगाह पर एक बैल और एक मेंढा क़ुरबान किया है।” \v 5 तब रब ने उसे बलक़ के लिए पैग़ाम दिया और कहा, “बलक़ के पास वापस जा और उसे यह पैग़ाम सुना।” \v 6 बिलाम बलक़ के पास वापस आया जो अब तक मोआबी सरदारों के साथ अपनी क़ुरबानी के पास खड़ा था। \v 7 बिलाम बोल उठा, \p “बलक़ मुझे अराम से यहाँ लाया है, मोआबी बादशाह ने मुझे मशरिक़ी पहाड़ों से बुलाकर कहा, ‘आओ, याक़ूब पर मेरे लिए लानत भेजो। आओ, इसराईल को बददुआ दो।’ \p \v 8 मैं किस तरह उन पर लानत भेजूँ जिन पर अल्लाह ने लानत नहीं भेजी? मैं किस तरह उन्हें बददुआ दूँ जिन्हें रब ने बददुआ नहीं दी? \p \v 9 मैं उन्हें चट्टानों की चोटी से देखता हूँ, पहाड़ियों से उनका मुशाहदा करता हूँ। वाक़ई यह एक ऐसी क़ौम है जो दूसरों से अलग रहती है। यह अपने आपको दूसरी क़ौमों से मुमताज़ समझती है। \p \v 10 कौन याक़ूब की औलाद को गिन सकता है जो गर्द की मानिंद बेशुमार है। कौन इसराईलियों का चौथा हिस्सा भी गिन सकता है? रब करे कि मैं रास्तबाज़ों की मौत मरूँ, कि मेरा अंजाम उनके अंजाम जैसा अच्छा हो।” \p \v 11 बलक़ ने बिलाम से कहा, “आपने मेरे साथ क्या किया है? मैं आपको अपने दुश्मनों पर लानत भेजने के लिए लाया और आपने उन्हें अच्छी-ख़ासी बरकत दी है।” \v 12 बिलाम ने जवाब दिया, “क्या लाज़िम नहीं कि मैं वही कुछ बोलूँ जो रब ने बताने को कहा है?” \s1 बिलाम की दूसरी बरकत \p \v 13 फिर बलक़ ने उससे कहा, “आएँ, हम एक और जगह जाएँ जहाँ से आप इसराईली क़ौम को देख सकेंगे, गो उनकी ख़ैमागाह का सिर्फ़ किनारा ही नज़र आएगा। आप सबको नहीं देख सकेंगे। वहीं से उन पर मेरे लिए लानत भेजें।” \v 14 यह कहकर वह उसके साथ पिसगा की चोटी पर चढ़कर पहरेदारों के मैदान तक पहुँच गया। वहाँ भी उसने सात क़ुरबानगाहें बनाकर हर एक पर एक बैल और एक मेंढा क़ुरबान किया। \v 15 बिलाम ने बलक़ से कहा, “यहाँ अपनी क़ुरबानगाह के पास खड़े रहें। मैं कुछ फ़ासले पर जाकर रब से मिलूँगा।” \p \v 16 रब बिलाम से मिला। उसने उसे बलक़ के लिए पैग़ाम दिया और कहा, “बलक़ के पास वापस जा और उसे यह पैग़ाम सुना दे।” \v 17 वह वापस चला गया। बलक़ अब तक अपने सरदारों के साथ अपनी क़ुरबानी के पास खड़ा था। उसने उससे पूछा, “रब ने क्या कहा?” \v 18 बिलाम ने कहा, “ऐ बलक़, उठो और सुनो। ऐ सफ़ोर के बेटे, मेरी बात पर ग़ौर करो। \p \v 19 अल्लाह आदमी नहीं जो झूट बोलता है। वह इनसान नहीं जो कोई फ़ैसला करके बाद में पछताए। क्या वह कभी अपनी बात पर अमल नहीं करता? क्या वह कभी अपनी बात पूरी नहीं करता? \p \v 20 मुझे बरकत देने को कहा गया है। उसने बरकत दी है और मैं यह बरकत रोक नहीं सकता। \p \v 21 याक़ूब के घराने में ख़राबी नज़र नहीं आती, इसराईल में दुख दिखाई नहीं देता। रब उसका ख़ुदा उसके साथ है, और क़ौम बादशाह की ख़ुशी में नारे लगाती है। \p \v 22 अल्लाह उन्हें मिसर से निकाल लाया, और उन्हें जंगली बैल की ताक़त हासिल है। \p \v 23 याक़ूब के घराने के ख़िलाफ़ जादूगरी नाकाम है, इसराईल के ख़िलाफ़ ग़ैबदानी बेफ़ायदा है। अब याक़ूब के घराने से कहा जाएगा, ‘अल्लाह ने कैसा काम किया है!’ \p \v 24 इसराईली क़ौम शेरनी की तरह उठती और शेरबबर की तरह खड़ी हो जाती है। जब तक वह अपना शिकार न खा ले वह आराम नहीं करता, जब तक वह मारे हुए लोगों का ख़ून न पी ले वह नहीं लेटता।” \p \v 25 यह सुनकर बलक़ ने कहा, “अगर आप उन पर लानत भेजने से इनकार करें, कम अज़ कम उन्हें बरकत तो न दें।” \v 26 बिलाम ने जवाब दिया, “क्या मैंने आपको नहीं बताया था कि जो कुछ भी रब कहेगा मैं वही करूँगा?” \s1 बिलाम की तीसरी बरकत \p \v 27 तब बलक़ ने बिलाम से कहा, “आएँ, मैं आपको एक और जगह ले जाऊँ। शायद अल्लाह राज़ी हो जाए कि आप मेरे लिए वहाँ से उन पर लानत भेजें।” \v 28 वह उसके साथ फ़ग़ूर पहाड़ पर चढ़ गया। उस की चोटी से यरदन की वादी का जुनूबी हिस्सा यशीमोन दिखाई दिया। \v 29 बिलाम ने उससे कहा, “मेरे लिए यहाँ सात क़ुरबानगाहें बनाकर सात बैल और सात मेंढे तैयार कर रखें।” \v 30 बलक़ ने ऐसा ही किया। उसने हर एक क़ुरबानगाह पर एक बैल और एक मेंढा क़ुरबान किया। \c 24 \p \v 1 अब बिलाम को उस बात का पूरा यक़ीन हो गया कि रब को पसंद है कि मैं इसराईलियों को बरकत दूँ। इसलिए उसने इस मरतबा पहले की तरह जादूगरी का तरीक़ा इस्तेमाल न किया बल्कि सीधा रेगिस्तान की तरफ़ रुख़ किया \v 2 जहाँ इसराईल अपने अपने क़बीलों की तरतीब से ख़ैमाज़न था। यह देखकर अल्लाह का रूह उस पर नाज़िल हुआ, \v 3 और वह बोल उठा, \p “बिलाम बिन बओर का पैग़ाम सुनो, उसके पैग़ाम पर ग़ौर करो जो साफ़ साफ़ देखता है, \p \v 4 उसका पैग़ाम जो अल्लाह की बातें सुन लेता है, क़ादिरे-मुतलक़ की रोया को देख लेता है और ज़मीन पर गिरकर पोशीदा बातें देखता है। \p \v 5 ऐ याक़ूब, तेरे ख़ैमे कितने शानदार हैं! ऐ इसराईल, तेरे घर कितने अच्छे हैं! \p \v 6 वह दूर तक फैली हुई वादियों की मानिंद, नहर के किनारे लगे बाग़ों की मानिंद, रब के लगाए हुए ऊद के दरख़्तों की मानिंद, पानी के किनारे लगे देवदार के दरख़्तों की मानिंद हैं। \p \v 7 उनकी बालटियों से पानी छलकता रहेगा, उनके बीज को कसरत का पानी मिलेगा। उनका बादशाह अजाज से ज़्यादा ताक़तवर होगा, और उनकी सलतनत सरफ़राज़ होगी। \p \v 8 अल्लाह उन्हें मिसर से निकाल लाया, और उन्हें जंगली बैल की-सी ताक़त हासिल है। वह मुख़ालिफ़ क़ौमों को हड़प करके उनकी हड्डियाँ चूर चूर कर देते हैं, वह अपने तीर चलाकर उन्हें मार डालते हैं। \p \v 9 इसराईल शेरबबर या शेरनी की मानिंद है। जब वह दबककर बैठ जाए तो कोई भी उसे छेड़ने की जुर्रत नहीं करता। जो तुझे बरकत दे उसे बरकत मिले, और जो तुझ पर लानत भेजे उस पर लानत आए।” \p \v 10 यह सुनकर बलक़ आपे से बाहर हुआ। उसने ताली बजाकर अपनी हिक़ारत का इज़हार किया और कहा, “मैंने तुझे इसलिए बुलाया था कि तू मेरे दुश्मनों पर लानत भेजे। अब तूने उन्हें तीनों बार बरकत ही दी है। \v 11 अब दफ़ा हो जा! अपने घर वापस भाग जा! मैंने कहा था कि बड़ा इनाम दूँगा। लेकिन रब ने तुझे इनाम पाने से रोक दिया है।” \p \v 12 बिलाम ने जवाब दिया, “क्या मैंने उन लोगों को जिन्हें आपने मुझे बुलाने के लिए भेजा था नहीं बताया था \v 13 कि अगर बलक़ अपने महल को चाँदी और सोने से भरकर भी मुझे दे दे तो भी मैं रब की किसी बात की ख़िलाफ़वरज़ी नहीं कर सकता, ख़ाह मेरी नीयत अच्छी हो या बुरी। मैं सिर्फ़ वह कुछ कर सकता हूँ जो अल्लाह फ़रमाता है। \v 14 अब मैं अपने वतन वापस चला जाता हूँ। लेकिन पहले मैं आपको बता देता हूँ कि आख़िरकार यह क़ौम आपकी क़ौम के साथ क्या कुछ करेगी।” \s1 बिलाम की चौथी बरकत \p \v 15 वह बोल उठा, \p “बिलाम बिन बओर का पैग़ाम सुनो, उसका पैग़ाम जो साफ़ साफ़ देखता है, \p \v 16 उसका पैग़ाम जो अल्लाह की बातें सुन लेता और अल्लाह तआला की मरज़ी को जानता है, जो क़ादिरे-मुतलक़ की रोया को देख लेता और ज़मीन पर गिरकर पोशीदा बातें देखता है। \p \v 17 जिसे मैं देख रहा हूँ वह इस वक़्त नहीं है। जो मुझे नज़र आ रहा है वह क़रीब नहीं है। याक़ूब के घराने से सितारा निकलेगा, और इसराईल से असाए-शाही उठेगा जो मोआब के माथों और सेत के तमाम बेटों की खोपड़ियों को पाश पाश करेगा। \p \v 18 अदोम उसके क़ब्ज़े में आएगा, उसका दुश्मन सईर उस की मिलकियत बनेगा जबकि इसराईल की ताक़त बढ़ती जाएगी। \p \v 19 याक़ूब के घराने से एक हुक्मरान निकलेगा जो शहर के बचे हुओं को हलाक कर देगा।” \s1 बिलाम के आख़िरी पैग़ाम \p \v 20 फिर बिलाम ने अमालीक़ को देखा और कहा, \p “अमालीक़ क़ौमों में अव्वल था, लेकिन आख़िरकार वह ख़त्म हो जाएगा।” \p \v 21 फिर उसने क़ीनियों को देखा और कहा, \p “तेरी सुकूनतगाह मुस्तहकम है, तेरा चट्टान में बना घोंसला मज़बूत है। \p \v 22 लेकिन तू तबाह हो जाएगा जब असूर तुझे गिरिफ़्तार करेगा।” \p \v 23 एक और दफ़ा उसने बात की, \p “हाय, कौन ज़िंदा रह सकता है जब अल्लाह यों करेगा? \p \v 24 कित्तीम के साहिल से बहरी जहाज़ आएँगे जो असूर और इबर को ज़लील करेंगे, लेकिन वह ख़ुद भी हलाक हो जाएंगे।” \p \v 25 फिर बिलाम उठकर अपने घर वापस चला गया। बलक़ भी वहाँ से चला गया। \c 25 \s1 मोआब इसराईलियों की आज़माइश करता है \p \v 1 जब इसराईली शित्तीम में रह रहे थे तो इसराईली मर्द मोआबी औरतों से ज़िनाकारी करने लगे। \v 2 यह ऐसा हुआ कि मोआबी औरतें अपने देवताओं को क़ुरबानियाँ पेश करते वक़्त इसराईलियों को शरीक होने की दावत देने लगीं। इसराईली दावत क़बूल करके क़ुरबानियों से खाने और देवताओं को सिजदा करने लगे। \v 3 इस तरीक़े से इसराईली मोआबी देवता बनाम बाल-फ़ग़ूर की पूजा करने लगे, और रब का ग़ज़ब उन पर आन पड़ा। \v 4 उसने मूसा से कहा, “इस क़ौम के तमाम राहनुमाओं को सज़ाए-मौत देकर सूरज की रौशनी में रब के सामने लटका, वरना रब का इसराईलियों पर से ग़ज़ब नहीं टलेगा।” \v 5 चुनाँचे मूसा ने इसराईल के क़ाज़ियों से कहा, “लाज़िम है कि तुममें से हर एक अपने उन आदमियों को जान से मार दे जो बाल-फ़ग़ूर देवता की पूजा में शरीक हुए हैं।” \p \v 6 मूसा और इसराईल की पूरी जमात मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर जमा होकर रोने लगे। इत्तफ़ाक़ से उसी वक़्त एक आदमी वहाँ से गुज़रा जो एक मिदियानी औरत को अपने घर ले जा रहा था। \v 7 यह देखकर हारून का पोता फ़ीनहास बिन इलियज़र जमात से निकला और नेज़ा पकड़कर \v 8 उस इसराईली के पीछे चल पड़ा। वह औरत समेत अपने ख़ैमे में दाख़िल हुआ तो फ़ीनहास ने उनके पीछे पीछे जाकर नेज़ा इतने ज़ोर से मारा कि वह दोनों में से गुज़र गया। उस वक़्त वबा फैलने लगी थी, लेकिन फ़ीनहास के इस अमल से वह रुक गई। \v 9 तो भी 24,000 अफ़राद मर चुके थे। \p \v 10 रब ने मूसा से कहा, \v 11 “हारून के पोते फ़ीनहास बिन इलियज़र ने इसराईलियों पर मेरा ग़ुस्सा ठंडा कर दिया है। मेरी ग़ैरत अपनाकर वह इसराईल में दीगर माबूदों की पूजा को बरदाश्त न कर सका। इसलिए मेरी ग़ैरत ने इसराईलियों को नेस्तो-नाबूद नहीं किया। \v 12 लिहाज़ा उसे बता देना कि मैं उसके साथ सलामती का अहद क़ायम करता हूँ। \v 13 इस अहद के तहत उसे और उस की औलाद को अबद तक इमाम का ओहदा हासिल रहेगा, क्योंकि अपने ख़ुदा की ख़ातिर ग़ैरत खाकर उसने इसराईलियों का कफ़्फ़ारा दिया।” \p \v 14 जिस आदमी को मिदियानी औरत के साथ मार दिया गया उसका नाम ज़िमरी बिन सलू था, और वह शमौन के क़बीले के एक आबाई घराने का सरपरस्त था। \v 15 मिदियानी औरत का नाम कज़बी था, और वह सूर की बेटी थी जो मिदियानियों के एक आबाई घराने का सरपरस्त था। \p \v 16 रब ने मूसा से कहा, \v 17 “मिदियानियों को दुश्मन क़रार देकर उन्हें मार डालना। \v 18 क्योंकि उन्होंने अपनी चालाकियों से तुम्हारे साथ दुश्मन का-सा सुलूक किया, उन्होंने तुम्हें बाल-फ़ग़ूर की पूजा करने पर उकसाया और तुम्हें अपनी बहन मिदियानी सरदार की बेटी कज़बी के ज़रीए जिसे वबा फैलते वक़्त मार दिया गया बहकाया।” \c 26 \s1 दूसरी मर्दुमशुमारी \p \v 1 वबा के बाद रब ने मूसा और हारून के बेटे इलियज़र से कहा, \p \v 2 “पूरी इसराईली जमात की मर्दुमशुमारी उनके आबाई घरानों के मुताबिक़ करना। उन तमाम मर्दों को गिनना जो 20 साल या इससे ज़ायद के हैं और जो जंग लड़ने के क़ाबिल हैं।” \p \v 3-4 मूसा और इलियज़र ने इसराईलियों को बताया कि रब ने उन्हें क्या हुक्म दिया है। चुनाँचे उन्होंने मोआब के मैदानी इलाक़े में यरीहू के सामने, लेकिन दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर मर्दुमशुमारी की। यह वह इसराईली आदमी थे जो मिसर से निकले थे। \p \v 5-7 इसराईल के पहलौठे रूबिन के क़बीले के 43,730 मर्द थे। क़बीले के चार कुंबे हनूकी, फ़ल्लुवी, हसरोनी और करमी रूबिन के बेटों हनूक, फ़ल्लू, हसरोन और करमी से निकले हुए थे। \v 8 रूबिन का बेटा फ़ल्लू इलियाब का बाप था \v 9 जिसके बेटे नमुएल, दातन और अबीराम थे। \p दातन और अबीराम वही लोग थे जिन्हें जमात ने चुना था और जिन्होंने क़ोरह के गुरोह समेत मूसा और हारून से झगड़ते हुए ख़ुद रब से झगड़ा किया। \v 10 उस वक़्त ज़मीन ने अपना मुँह खोलकर उन्हें क़ोरह समेत हड़प कर लिया था। उसके 250 साथी भी मर गए थे जब आग ने उन्हें भस्म कर दिया। यों वह सब इसराईल के लिए इबरतअंगेज़ मिसाल बन गए थे। \v 11 लेकिन क़ोरह की पूरी नसल मिटाई नहीं गई थी। \p \v 12-14 शमौन के क़बीले के 22,200 मर्द थे। क़बीले के पाँच कुंबे नमुएली, यमीनी, यकीनी, ज़ारही और साऊली शमौन के बेटों नमुएल, यमीन, यकीन, ज़ारह और साऊल से निकले हुए थे। \p \v 15-18 जद के क़बीले के 40,500 मर्द थे। क़बीले के सात कुंबे सफ़ोनी, हज्जी, सूनी, उज़नी, एरी, अरूदी और अरेली जद के बेटों सफ़ोन, हज्जी, सूनी, उज़नी, एरी, अरूद और अरेली से निकले हुए थे। \p \v 19-22 यहूदाह के क़बीले के 76,500 मर्द थे। यहूदाह के दो बेटे एर और ओनान मिसर आने से पहले कनान में मर गए थे। क़बीले के तीन कुंबे सेलानी, फ़ारसी और ज़ारही यहूदाह के बेटों सेला, फ़ारस और ज़ारह से निकले हुए थे। \p फ़ारस के दो बेटों हसरोन और हमूल से दो कुंबे हसरोनी और हमूली निकले हुए थे। \v 23-25 इशकार के क़बीले के 64,300 मर्द थे। क़बीले के चार कुंबे तोलई, फ़ुव्वी, यसूबी और सिमरोनी इशकार के बेटों तोला, फ़ुव्वा, यसूब और सिमरोन से निकले हुए थे। \p \v 26-27 ज़बूलून के क़बीले के 60,500 मर्द थे। क़बीले के तीन कुंबे सरदी, ऐलोनी और यहलियेली ज़बूलून के बेटों सरद, ऐलोन और यहलियेल से निकले हुए थे। \p \v 28 यूसुफ़ के दो बेटों मनस्सी और इफ़राईम के अलग अलग क़बीले बने। \p \v 29-34 मनस्सी के क़बीले के 52,700 मर्द थे। क़बीले के आठ कुंबे मकीरी, जिलियादी, इयज़री, ख़लक़ी, असरियेली, सिकमी, समीदाई और हिफ़री थे। मकीरी मनस्सी के बेटे मकीर से जबकि जिलियादी मकीर के बेटे जिलियाद से निकले हुए थे। बाक़ी कुंबे जिलियाद के छः बेटों इयज़र, ख़लक़, असरियेल, सिकम, समीदा और हिफ़र से निकले हुए थे। \p हिफ़र सिलाफ़िहाद का बाप था। सिलाफ़िहाद का कोई बेटा नहीं बल्कि पाँच बेटियाँ महलाह, नुआह, हुजलाह, मिलकाह और तिरज़ा थीं। \p \v 35-37 इफ़राईम के क़बीले के 32,500 मर्द थे। क़बीले के चार कुंबे सूतलही, बकरी, तहनी और ईरानी थे। पहले तीन कुंबे इफ़राईम के बेटों सूतलह, बकर और तहन से जबकि ईरानी सूतलह के बेटे ईरान से निकले हुए थे। \p \v 38-41 बिनयमीन के क़बीले के 45,600 मर्द थे। क़बीले के सात कुंबे बालाई, अशबेली, अख़ीरामी, सूफ़ामी, हूफ़ामी, अरदी और नामानी थे। पहले पाँच कुंबे बिनयमीन के बेटों बाला, अशबेल, अख़ीराम, सूफ़ाम और हूफ़ाम से जबकि अरदी और नामानी बाला के बेटों से निकले हुए थे। \p \v 42-43 दान के क़बीले के 64,400 मर्द थे। सब दान के बेटे सूहाम से निकले हुए थे, इसलिए सूहामी कहलाते थे। \p \v 44-47 आशर के क़बीले के 53,400 मर्द थे। क़बीले के पाँच कुंबे यिमनी, इसवी, बरीई, हिबरी और मलकियेली थे। पहले तीन कुंबे आशर के बेटों यिमना, इसवी और बरिया से जबकि बाक़ी बरिया के बेटों हिबर और मलकियेल से निकले हुए थे। आशर की एक बेटी बनाम सिरह भी थी। \p \v 48-50 नफ़ताली के क़बीले के 45,400 मर्द थे। क़बीले के चार कुंबे यहसियेली, जूनी, यिसरी और सिल्लीमी नफ़ताली के बेटों यहसियेल, जूनी, यिसर और सिल्लीम से निकले हुए थे। \p \v 51 इसराईली मर्दों की कुल तादाद 6,01,730 थी। \p \v 52 रब ने मूसा से कहा, \v 53 “जब मुल्के-कनान को तक़सीम किया जाएगा तो ज़मीन इनकी तादाद के मुताबिक़ देना है। \v 54 बड़े क़बीलों को छोटे की निसबत ज़्यादा ज़मीन दी जाए। हर क़बीले का इलाक़ा उस की तादाद से मुताबिक़त रखे। \v 55-56 क़ुरा डालने से फ़ैसला किया जाए कि हर क़बीले को कहाँ ज़मीन मिलेगी। लेकिन हर क़बीले के इलाक़े का रक़बा इस पर मबनी हो कि क़बीले के कितने अफ़राद हैं।” \p \v 57 लावी के क़बीले के तीन कुंबे जैरसोनी, क़िहाती और मिरारी लावी के बेटों जैरसोन, क़िहात और मिरारी से निकले हुए थे। \v 58 इसके अलावा लिबनी, हिब्रूनी, महली, मूशी और कोरही भी लावी के कुंबे थे। क़िहात अमराम का बाप था। \v 59 अमराम ने लावी औरत यूकबिद से शादी की जो मिसर में पैदा हुई थी। उनके दो बेटे हारून और मूसा और एक बेटी मरियम पैदा हुए। \v 60 हारून के बेटे नदब, अबीहू, इलियज़र और इतमर थे। \v 61 लेकिन नदब और अबीहू रब को बख़ूर की नाजायज़ क़ुरबानी पेश करने के बाइस मर गए। \v 62 लावियों के मर्दों की कुल तादाद 23,000 थी। इनमें वह सब शामिल थे जो एक माह या इससे ज़ायद के थे। उन्हें दूसरे इसराईलियों से अलग गिना गया, क्योंकि उन्हें इसराईल में मीरास में ज़मीन नहीं मिलनी थी। \p \v 63 यों मूसा और इलियज़र ने मोआब के मैदानी इलाक़े में यरीहू के सामने लेकिन दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर इसराईलियों की मर्दुमशुमारी की। \v 64 लोगों को गिनते गिनते उन्हें मालूम हुआ कि जो लोग दश्ते-सीन में मूसा और हारून की पहली मर्दुमशुमारी में गिने गए थे वह सब मर चुके हैं। \v 65 रब ने कहा था कि वह सबके सब रेगिस्तान में मर जाएंगे, और ऐसा ही हुआ था। सिर्फ़ कालिब बिन यफ़ुन्ना और यशुअ बिन नून ज़िंदा रहे। \c 27 \s1 सिलाफ़िहाद की बेटियाँ \p \v 1 सिलाफ़िहाद की पाँच बेटियाँ महलाह, नुआह, हुजलाह, मिलकाह और तिरज़ा थीं। सिलाफ़िहाद यूसुफ़ के बेटे मनस्सी के कुंबे का था। उसका पूरा नाम सिलाफ़िहाद बिन हिफ़र बिन जिलियाद बिन मकीर बिन मनस्सी बिन यूसुफ़ था। \v 2 सिलाफ़िहाद की बेटियाँ मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर आकर मूसा, इलियज़र इमाम और पूरी जमात के सामने खड़ी हुईं। उन्होंने कहा, \v 3 “हमारा बाप रेगिस्तान में फ़ौत हुआ। लेकिन वह क़ोरह के उन साथियों में से नहीं था जो रब के ख़िलाफ़ मुत्तहिद हुए थे। वह इस सबब से न मरा बल्कि अपने ज़ाती गुनाह के बाइस। जब वह मर गया तो उसका कोई बेटा नहीं था। \v 4 क्या यह ठीक है कि हमारे ख़ानदान में बेटा न होने के बाइस हमें ज़मीन न मिले और हमारे बाप का नामो-निशान मिट जाए? हमें भी हमारे बाप के दीगर रिश्तेदारों के साथ ज़मीन दें।” \p \v 5 मूसा ने उनका मामला रब के सामने पेश किया \v 6 तो रब ने उससे कहा, \v 7 “जो बात सिलाफ़िहाद की बेटियाँ कर रही हैं वह दुरुस्त है। उन्हें ज़रूर उनके बाप के रिश्तेदारों के साथ ज़मीन मिलनी चाहिए। उन्हें बाप का विरसा मिल जाए। \v 8 इसराईलियों को भी बताना कि जब भी कोई आदमी मर जाए जिसका बेटा न हो तो उस की बेटी को उस की मीरास मिल जाए। \v 9 अगर उस की बेटी भी न हो तो उसके भाइयों को उस की मीरास मिल जाए। \v 10 अगर उसके भाई भी न हों तो उसके बाप के भाइयों को उस की मीरास मिल जाए। \v 11 अगर यह भी न हों तो उसके सबसे क़रीबी रिश्तेदार को उस की मीरास मिल जाए। वह उस की ज़ाती मिलकियत होगी। यह उसूल इसराईलियों के लिए क़ानूनी हैसियत रखता है। वह इसे वैसा मानें जैसा रब ने मूसा को हुक्म दिया है।” \s1 यशुअ को मूसा का जा-नशीन मुक़र्रर किया जाता है \p \v 12 फिर रब ने मूसा से कहा, “अबारीम के पहाड़ी सिलसिले के इस पहाड़ पर चढ़कर उस मुल्क पर निगाह डाल जो मैं इसराईलियों को दूँगा। \v 13 उसे देखने के बाद तू भी अपने भाई हारून की तरह कूच करके अपने बापदादा से जा मिलेगा, \v 14 क्योंकि तुम दोनों ने दश्ते-सीन में मेरे हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी की। उस वक़्त जब पूरी जमात ने मरीबा में मेरे ख़िलाफ़ गिला-शिकवा किया तो तूने चट्टान से पानी निकालते वक़्त लोगों के सामने मेरी क़ुद्दूसियत क़ायम न रखी।” (मरीबा दश्ते-सीन के क़ादिस में चश्मा है।) \p \v 15 मूसा ने रब से कहा, \v 16 “ऐ रब, तमाम जानों के ख़ुदा, जमात पर किसी आदमी को मुक़र्रर कर \v 17 जो उनके आगे आगे जंग के लिए निकले और उनके आगे आगे वापस आ जाए, जो उन्हें बाहर ले जाए और वापस ले आए। वरना रब की जमात उन भेड़ों की मानिंद होगी जिनका कोई चरवाहा न हो।” \p \v 18 जवाब में रब ने मूसा से कहा, “यशुअ बिन नून को चुन ले जिसमें मेरा रूह है, और अपना हाथ उस पर रख। \v 19 उसे इलियज़र इमाम और पूरी जमात के सामने खड़ा करके उनके रूबरू ही उसे राहनुमाई की ज़िम्मादारी दे। \v 20 अपने इख़्तियार में से कुछ उसे दे ताकि इसराईल की पूरी जमात उस की इताअत करे। \v 21 रब की मरज़ी जानने के लिए वह इलियज़र इमाम के सामने खड़ा होगा तो इलियज़र रब के सामने ऊरीम और तुम्मीम इस्तेमाल करके उस की मरज़ी दरियाफ़्त करेगा। उसी के हुक्म पर यशुअ और इसराईल की पूरी जमात ख़ैमागाह से निकलेंगे और वापस आएँगे।” \p \v 22 मूसा ने ऐसा ही किया। उसने यशुअ को चुनकर इलियज़र और पूरी जमात के सामने खड़ा किया। \v 23 फिर उसने उस पर अपने हाथ रखकर उसे राहनुमाई की ज़िम्मादारी सौंपी जिस तरह रब ने उसे बताया था। \c 28 \s1 रोज़मर्रा की क़ुरबानियाँ \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना, ख़याल रखो कि तुम मुक़र्ररा औक़ात पर मुझे जलनेवाली क़ुरबानियाँ पेश करो। यह मेरी रोटी हैं और इनकी ख़ुशबू मुझे पसंद है। \v 3 रब को जलनेवाली यह क़ुरबानी पेश करना : \p रोज़ाना भेड़ के दो यकसाला बच्चे जो बेऐब हों पूरे तौर पर जला देना। \v 4 एक को सुबह के वक़्त पेश करना और दूसरे को सूरज के डूबने के ऐन बाद। \v 5 भेड़ के बच्चे के साथ ग़ल्ला की नज़र भी पेश की जाए यानी डेढ़ किलोग्राम बेहतरीन मैदा जो एक लिटर ज़ैतून के कूटकर निकाले हुए तेल के साथ मिलाया गया हो। \v 6 यह रोज़मर्रा की क़ुरबानी है जो पूरे तौर पर जलाई जाती है और पहली दफ़ा सीना पहाड़ पर चढ़ाई गई। इस जलनेवाली क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद है। \v 7-8 साथ ही एक लिटर शराब भी नज़र के तौर पर क़ुरबानगाह पर डाली जाए। सुबह और शाम की यह क़ुरबानियाँ दोनों ही इस तरीक़े से पेश की जाएँ। \s1 सबत यानी हफ़ते की क़ुरबानी \p \v 9 सबत के दिन भेड़ के दो और बच्चे चढ़ाना। वह भी बेऐब और एक साल के हों। साथ ही मै और ग़ल्ला की नज़रें भी पेश की जाएँ। ग़ल्ला की नज़र के लिए 3 किलोग्राम बेहतरीन मैदा तेल के साथ मिलाया जाए। \v 10 भस्म होनेवाली यह क़ुरबानी हर हफ़ते के दिन पेश करनी है। यह रोज़मर्रा की क़ुरबानियों के अलावा है। \s1 हर माह के पहले दिन की क़ुरबानी \p \v 11 हर माह के शुरू में रब को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर दो जवान बैल, एक मेंढा और भेड़ के सात यकसाला बच्चे पेश करना। सब बग़ैर नुक़्स के हों। \v 12 हर जानवर के साथ ग़ल्ला की नज़र पेश करना जिसके लिए तेल में मिलाया गया बेहतरीन मैदा इस्तेमाल किया जाए। हर बैल के साथ साढ़े 4 किलोग्राम, हर मेंढे के साथ 3 किलोग्राम \v 13 और भेड़ के हर बच्चे के साथ डेढ़ किलोग्राम मैदा पेश करना। भस्म होनेवाली यह क़ुरबानियाँ रब को पसंद हैं। \v 14 इन क़ुरबानियों के साथ मै की नज़र भी क़ुरबानगाह पर डालना यानी हर बैल के साथ दो लिटर, हर मेंढे के साथ सवा लिटर और भेड़ के हर बच्चे के साथ एक लिटर मै पेश करना। यह क़ुरबानी साल में हर महीने के पहले दिन के मौक़े पर पेश करनी है। \v 15 इस क़ुरबानी और रोज़मर्रा की क़ुरबानियों के अलावा रब को एक बकरा गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर पेश करना। \s1 फ़सह की क़ुरबानियाँ \p \v 16 पहले महीने के चौधवें दिन फ़सह की ईद मनाई जाए। \v 17 अगले दिन पूरे हफ़ते की वह ईद शुरू होती है जिसके दौरान तुम्हें सिर्फ़ बेख़मीरी रोटी खानी है। \v 18 पहले दिन काम न करना बल्कि मुक़द्दस इजतिमा के लिए इकट्ठे होना। \v 19 रब के हुज़ूर भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर दो जवान बैल, एक मेंढा और भेड़ के सात यकसाला बच्चे पेश करना। सब बग़ैर नुक़्स के हों। \v 20 हर जानवर के साथ ग़ल्ला की नज़र भी पेश करना जिसके लिए तेल के साथ मिलाया गया बेहतरीन मैदा इस्तेमाल किया जाए। हर बैल के साथ साढ़े 4 किलोग्राम, हर मेंढे के साथ 3 किलोग्राम \v 21 और भेड़ के हर बच्चे के साथ डेढ़ किलोग्राम मैदा पेश करना। \v 22 गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर एक बकरा भी पेश करना ताकि तुम्हारा कफ़्फ़ारा दिया जाए। \v 23-24 इन तमाम क़ुरबानियों को ईद के दौरान हर रोज़ पेश करना। यह रोज़मर्रा की भस्म होनेवाली क़ुरबानियों के अलावा हैं। इस ख़ुराक की ख़ुशबू रब को पसंद है। \v 25 सातवें दिन काम न करना बल्कि मुक़द्दस इजतिमा के लिए इकट्ठे होना। \s1 फ़सल की कटाई की ईद की क़ुरबानियाँ \p \v 26 फ़सल की कटाई के पहले दिन की ईद पर जब तुम रब को अपनी फ़सल की पहली पैदावार पेश करते हो तो काम न करना बल्कि मुक़द्दस इजतिमा के लिए इकट्ठे होना। \v 27-29 उस दिन दो जवान बैल, एक मेंढा और भेड़ के सात यकसाला बच्चे क़ुरबानगाह पर पूरे तौर पर जला देना। इसके साथ ग़ल्ला और मै की वही नज़रें पेश करना जो फ़सह की ईद पर भी पेश की जाती हैं। \v 30 इसके अलावा रब को एक बकरा गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाना। \p \v 31 यह तमाम क़ुरबानियाँ रोज़मर्रा की भस्म होनेवाली क़ुरबानियों और उनके साथवाली ग़ल्ला और मै की नज़रों के अलावा हैं। वह बेऐब हों। \c 29 \s1 नए साल की ईद की क़ुरबानियाँ \p \v 1 सातवें माह के पंद्रहवें दिन भी काम न करना बल्कि मुक़द्दस इजतिमा के लिए इकट्ठे होना। उस दिन नरसिंगे फूँके जाएँ। \v 2 रब को भस्म होनेवाली क़ुरबानी पेश की जाए जिसकी ख़ुशबू उसे पसंद हो यानी एक जवान बैल, एक मेंढा और भेड़ के सात यकसाला बच्चे। सब नुक़्स के बग़ैर हों। \v 3 हर जानवर के साथ ग़ल्ला की नज़र भी पेश करना जिसके लिए तेल के साथ मिलाया गया बेहतरीन मैदा इस्तेमाल किया जाए। बैल के साथ साढ़े 4 किलोग्राम, मेंढे के साथ 3 किलोग्राम \v 4 और भेड़ के हर बच्चे के साथ डेढ़ किलोग्राम मैदा पेश करना। \v 5 एक बकरा भी गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर पेश करना ताकि तुम्हारा कफ़्फ़ारा दिया जाए। \v 6 यह क़ुरबानियाँ रोज़ाना और हर माह के पहले दिन की क़ुरबानियों और उनके साथ की ग़ल्ला और मै की नज़रों के अलावा हैं। इनकी ख़ुशबू रब को पसंद है। \s1 कफ़्फ़ारा के दिन की क़ुरबानियाँ \p \v 7 सातवें महीने के दसवें दिन मुक़द्दस इजतिमा के लिए इकट्ठे होना। उस दिन काम न करना और अपनी जान को दुख देना। \v 8-11 रब को वही क़ुरबानियाँ पेश करना जो इसी महीने के पहले दिन पेश की जाती हैं। सिर्फ़ एक फ़रक़ है, उस दिन एक नहीं बल्कि दो बकरे गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर पेश किए जाएँ ताकि तुम्हारा कफ़्फ़ारा दिया जाए। ऐसी क़ुरबानियाँ रब को पसंद हैं। \s1 झोंपड़ियों की ईद की क़ुरबानियाँ \p \v 12 सातवें महीने के पंद्रहवें दिन भी काम न करना बल्कि मुक़द्दस इजतिमा के लिए इकट्ठे होना। सात दिन तक रब की ताज़ीम में ईद मनाना। \v 13 ईद के पहले दिन रब को 13 जवान बैल, 2 मेंढे और 14 भेड़ के यकसाला बच्चे भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करना। इनकी ख़ुशबू उसे पसंद है। सब नुक़्स के बग़ैर हों। \v 14 हर जानवर के साथ ग़ल्ला की नज़र भी पेश करना जिसके लिए तेल से मिलाया गया बेहतरीन मैदा इस्तेमाल किया जाए। हर बैल के साथ साढ़े 4 किलोग्राम, हर मेंढे के साथ 3 किलोग्राम \v 15 और भेड़ के हर बच्चे के साथ डेढ़ किलोग्राम मैदा पेश करना। \v 16 इसके अलावा एक बकरा भी गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर पेश करना। यह क़ुरबानियाँ रोज़ाना की भस्म होनेवाली क़ुरबानियों और उनके साथवाली ग़ल्ला और मै की नज़रों के अलावा हैं। \v 17-34 ईद के बाक़ी छः दिन यही क़ुरबानियाँ पेश करनी हैं। लेकिन हर दिन एक बैल कम हो यानी दूसरे दिन 12, तीसरे दिन 11, चौथे दिन 10, पाँचवें दिन 9, छटे दिन 8 और सातवें दिन 7 बैल। हर दिन गुनाह की क़ुरबानी के लिए बकरा और मामूल की रोज़ाना की क़ुरबानियाँ भी पेश करना। \v 35 ईद के आठवें दिन काम न करना बल्कि मुक़द्दस इजतिमा के लिए इकट्ठे होना। \v 36 रब को एक जवान बैल, एक मेंढा और भेड़ के सात यकसाला बच्चे भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करना। इनकी ख़ुशबू रब को पसंद है। सब नुक़्स के बग़ैर हों। \v 37-38 साथ ही वह तमाम क़ुरबानियाँ भी पेश करना जो पहले दिन पेश की जाती हैं। \v 39 यह सब वही क़ुरबानियाँ हैं जो तुम्हें रब को अपनी ईदों पर पेश करनी हैं। यह उन तमाम क़ुरबानियों के अलावा हैं जो तुम दिली ख़ुशी से या मन्नत मानकर देते हो, चाहे वह भस्म होनेवाली, ग़ल्ला की, मै की या सलामती की क़ुरबानियाँ क्यों न हों।” \p \v 40 मूसा ने रब की यह तमाम हिदायात इसराईलियों को बता दीं। \c 30 \s1 मन्नत मानने के क़वायद \p \v 1 फिर मूसा ने क़बीलों के सरदारों से कहा, “रब फ़रमाता है, \p \v 2 अगर कोई आदमी रब को कुछ देने की मन्नत माने या किसी चीज़ से परहेज़ करने की क़सम खाए तो वह अपनी बात पर क़ायम रहकर उसे पूरा करे। \p \v 3 अगर कोई जवान औरत जो अब तक अपने बाप के घर में रहती है रब को कुछ देने की मन्नत माने या किसी चीज़ से परहेज़ करने की क़सम खाए \v 4 तो लाज़िम है कि वह अपनी मन्नत या क़सम की हर बात पूरी करे। शर्त यह है कि उसका बाप उसके बारे में सुनकर एतराज़ न करे। \v 5 लेकिन अगर उसका बाप यह सुनकर उसे ऐसा करने से मना करे तो उस की मन्नत या क़सम मनसूख़ है, और वह उसे पूरा करने से बरी है। रब उसे मुआफ़ करेगा, क्योंकि उसके बाप ने उसे मना किया है। \p \v 6 हो सकता है कि किसी ग़ैरशादीशुदा औरत ने मन्नत मानी या किसी चीज़ से परहेज़ करने की क़सम खाई, चाहे उसने दानिस्ता तौर पर या बेसोचे-समझे ऐसा किया। इसके बाद उस औरत ने शादी कर ली। \v 7 शादीशुदा हालत में भी लाज़िम है कि वह अपनी मन्नत या क़सम की हर बात पूरी करे। शर्त यह है कि उसका शौहर इसके बारे में सुनकर एतराज़ न करे। \v 8 लेकिन अगर उसका शौहर यह सुनकर उसे ऐसा करने से मना करे तो उस की मन्नत या क़सम मनसूख़ है, और वह उसे पूरा करने से बरी है। रब उसे मुआफ़ करेगा। \v 9 अगर किसी बेवा या तलाक़शुदा औरत ने मन्नत मानी या किसी चीज़ से परहेज़ करने की क़सम खाई तो लाज़िम है कि वह अपनी हर बात पूरी करे। \p \v 10 अगर किसी शादीशुदा औरत ने मन्नत मानी या किसी चीज़ से परहेज़ करने की क़सम खाई \v 11 तो लाज़िम है कि वह अपनी हर बात पूरी करे। शर्त यह है कि उसका शौहर उसके बारे में सुनकर एतराज़ न करे। \v 12 लेकिन अगर उसका शौहर उसे ऐसा करने से मना करे तो उस की मन्नत या क़सम मनसूख़ है। वह उसे पूरा करने से बरी है। रब उसे मुआफ़ करेगा, क्योंकि उसके शौहर ने उसे मना किया है। \v 13 चाहे बीवी ने कुछ देने की मन्नत मानी हो या किसी चीज़ से परहेज़ करने की क़सम खाई हो, उसके शौहर को उस की तसदीक़ या उसे मनसूख़ करने का इख़्तियार है। \v 14 अगर उसने अपनी बीवी की मन्नत या क़सम के बारे में सुन लिया और अगले दिन तक एतराज़ न किया तो लाज़िम है कि उस की बीवी अपनी हर बात पूरी करे। शौहर ने अगले दिन तक एतराज़ न करने से अपनी बीवी की बात की तसदीक़ की है। \v 15 अगर वह इसके बाद यह मन्नत या क़सम मनसूख़ करे तो उसे इस क़ुसूर के नतायज भुगतने पड़ेंगे।” \p \v 16 रब ने मूसा को यह हिदायात दीं। यह ऐसी औरतों की मन्नतों या क़समों के उसूल हैं जो ग़ैरशादीशुदा हालत में अपने बाप के घर में रहती हैं या जो शादीशुदा हैं। \c 31 \s1 मिदियानियों से जंग \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “मिदियानियों से इसराईलियों का बदला ले। इसके बाद तू कूच करके अपने बापदादा से जा मिलेगा।” \p \v 3 चुनाँचे मूसा ने इसराईलियों से कहा, “हथियारों से अपने कुछ आदमियों को लैस करो ताकि वह मिदियान से जंग करके रब का बदला लें। \v 4 हर क़बीले के 1,000 मर्द जंग लड़ने के लिए भेजो।” \p \v 5 चुनाँचे हर क़बीले के 1,000 मुसल्लह मर्द यानी कुल 12,000 आदमी चुने गए। \v 6 तब मूसा ने उन्हें जंग लड़ने के लिए भेज दिया। उसने इलियज़र इमाम के बेटे फ़ीनहास को भी उनके साथ भेजा जिसके पास मक़दिस की कुछ चीज़ें और एलान करने के बिगुल थे। \v 7 उन्होंने रब के हुक्म के मुताबिक़ मिदियानियों से जंग की और तमाम आदमियों को मौत के घाट उतार दिया। \v 8 इनमें मिदियानियों के पाँच बादशाह इवी, रक़म, सूर, हूर और रबा थे। बिलाम बिन बओर को भी जान से मार दिया गया। \p \v 9 इसराईलियों ने मिदियानी औरतों और बच्चों को गिरिफ़्तार करके उनके तमाम गाय-बैल, भेड़-बकरियाँ और माल लूट लिया। \v 10 उन्होंने उनकी तमाम आबादियों को ख़ैमागाहों समेत जलाकर राख कर दिया। \v 11-12 फिर वह तमाम लूटा हुआ माल क़ैदियों और जानवरों समेत मूसा, इलियज़र इमाम और इसराईल की पूरी जमात के पास ले आए जो ख़ैमागाह में इंतज़ार कर रहे थे। अभी तक वह मोआब के मैदानी इलाक़े में दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर यरीहू के सामने ठहरे हुए थे। \v 13 मूसा, इलियज़र और जमात के तमाम सरदार उनका इस्तक़बाल करने के लिए ख़ैमागाह से निकले। \p \v 14 उन्हें देखकर मूसा को हज़ार हज़ार और सौ सौ अफ़राद पर मुक़र्रर अफ़सरान पर ग़ुस्सा आया। \v 15 उसने कहा, “आपने तमाम औरतों को क्यों बचाए रखा? \v 16 उन्हीं ने बिलाम के मशवरे पर फ़ग़ूर में इसराईलियों को रब से दूर कर दिया था। उन्हीं के सबब से रब की वबा उसके लोगों में फैल गई। \v 17 चुनाँचे अब तमाम लड़कों को जान से मार दो। उन तमाम औरतों को भी मौत के घाट उतारना जो कुँवारियाँ नहीं हैं। \v 18 लेकिन तमाम कुँवारियों को बचाए रखना। \v 19 जिसने भी किसी को मार दिया या किसी लाश को छुआ है वह सात दिन तक ख़ैमागाह के बाहर रहे। तीसरे और सातवें दिन अपने आपको अपने क़ैदियों समेत गुनाह से पाक-साफ़ करना। \v 20 हर लिबास और हर चीज़ को पाक-साफ़ करना जो चमड़े, बकरियों के बालों या लकड़ी की हो।” \p \v 21 फिर इलियज़र इमाम ने जंग से वापस आनेवाले मर्दों से कहा, “जो शरीअत रब ने मूसा को दी उसके मुताबिक़ \v 22-23 जो भी चीज़ जल नहीं जाती उसे आग में से गुज़ार देना ताकि पाक-साफ़ हो जाए। उसमें सोना, चाँदी, पीतल, लोहा, टीन और सीसा शामिल है। फिर उस पर नापाकी दूर करने का पानी छिड़कना। बाक़ी तमाम चीज़ें पानी में से गुज़ार देना ताकि वह पाक-साफ़ हो जाएँ। \v 24 सातवें दिन अपने लिबास को धोना तो तुम पाक-साफ़ होकर ख़ैमागाह में दाख़िल हो सकते हो।” \s1 लूटे हुए माल की तक़सीम \p \v 25 रब ने मूसा से कहा, \v 26 “तमाम क़ैदियों और लूटे हुए जानवरों को गिन। इसमें इलियज़र इमाम और क़बायली कुंबों के सरपरस्त तेरी मदद करें। \v 27 सारा माल दो बराबर के हिस्सों में तक़सीम करना, एक हिस्सा फ़ौजियों के लिए और दूसरा बाक़ी जमात के लिए हो। \v 28 फ़ौजियों के हिस्से के पाँच पाँच सौ क़ैदियों में से एक एक निकालकर रब को देना। इसी तरह पाँच पाँच सौ बैलों, गधों, भेड़ों और बकरियों में से एक एक निकालकर रब को देना। \v 29 उन्हें इलियज़र इमाम को देना ताकि वह उन्हें रब को उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करे। \v 30 बाक़ी जमात के हिस्से के पचास पचास क़ैदियों में से एक एक निकालकर रब को देना, इसी तरह पचास पचास बैलों, गधों, भेड़ों और बकरियों या दूसरे जानवरों में से भी एक एक निकालकर रब को देना। उन्हें उन लावियों को देना जो रब के मक़दिस को सँभालते हैं।” \p \v 31 मूसा और इलियज़र ने ऐसा ही किया। \v 32-34 उन्होंने 6,75,000 भेड़-बकरियाँ, 72,000 गाय-बैल और 61,000 गधे गिने। \v 35 इनके अलावा 32,000 क़ैदी कुँवारियाँ भी थीं। \v 36-40 फ़ौजियों को तमाम चीज़ों का आधा हिस्सा मिल गया यानी 3,37,500 भेड़-बकरियाँ, 36,000 गाय-बैल, 30,500 गधे और 16,000 क़ैदी कुँवारियाँ। इनमें से उन्होंने 675 भेड़-बकरियाँ, 72 गाय-बैल, 61 गधे और 32 लड़कियाँ रब को दीं। \v 41 मूसा ने रब का यह हिस्सा इलियज़र इमाम को उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर दे दिया, जिस तरह रब ने हुक्म दिया था। \v 42-47 बाक़ी जमात को भी लूटे हुए माल का आधा हिस्सा मिल गया। मूसा ने पचास पचास क़ैदियों और जानवरों में से एक एक निकालकर उन लावियों को दे दिया जो रब का मक़दिस सँभालते थे। उसने वैसा ही किया जैसा रब ने हुक्म दिया था। \p \v 48 फिर वह अफ़सर मूसा के पास आए जो लशकर के हज़ार हज़ार और सौ सौ आदमियों पर मुक़र्रर थे। \v 49 उन्होंने उससे कहा, “आपके ख़ादिमों ने उन फ़ौजियों को गिन लिया है जिन पर वह मुक़र्रर हैं, और हमें पता चल गया कि एक भी कम नहीं हुआ। \v 50 इसलिए हम रब को सोने का तमाम ज़ेवर क़ुरबान करना चाहते हैं जो हमें फ़तह पाने पर मिला था मसलन सोने के बाज़ूबंद, कंगन, मुहर लगाने की अंगूठियाँ, बालियाँ और हार। यह सब कुछ हम रब को पेश करना चाहते हैं ताकि रब के सामने हमारा कफ़्फ़ारा हो जाए।” \p \v 51 मूसा और इलियज़र इमाम ने सोने की तमाम चीज़ें उनसे ले लीं। \v 52 जो चीज़ें उन्होंने अफ़सरान के लूटे हुए माल में से रब को उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश कीं उनका पूरा वज़न तक़रीबन 190 किलोग्राम था। \v 53 सिर्फ़ अफ़सरान ने ऐसा किया। बाक़ी फ़ौजियों ने अपना लूट का माल अपने लिए रख लिया। \v 54 मूसा और इलियज़र अफ़सरान का यह सोना मुलाक़ात के ख़ैमे में ले आए ताकि वह रब को उस की क़ौम की याद दिलाता रहे। \c 32 \s1 दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर आबाद क़बीले \p \v 1 रूबिन और जद के क़बीलों के पास बहुत-से मवेशी थे। जब उन्होंने देखा कि याज़ेर और जिलियाद का इलाक़ा मवेशी पालने के लिए अच्छा है \v 2 तो उन्होंने मूसा, इलियज़र इमाम और जमात के राहनुमाओं के पास आकर कहा, \v 3-4 “जिस इलाक़े को रब ने इसराईल की जमात के आगे आगे शिकस्त दी है वह मवेशी पालने के लिए अच्छा है। अतारात, दीबोन, याज़ेर, निमरा, हसबोन, इलियाली, सबाम, नबू और बऊन जो इसमें शामिल हैं हमारे काम आएँगे, क्योंकि आपके ख़ादिमों के पास मवेशी हैं। \v 5 अगर आपकी नज़रे-करम हम पर हो तो हमें यह इलाक़ा दिया जाए। यह हमारी मिलकियत बन जाए और हमें दरियाए-यरदन को पार करने पर मजबूर न किया जाए।” \p \v 6 मूसा ने जद और रूबिन के अफ़राद से कहा, “क्या तुम यहाँ पीछे रहकर अपने भाइयों को छोड़ना चाहते हो जब वह जंग लड़ने के लिए आगे निकलेंगे? \v 7 इस वक़्त जब इसराईली दरियाए-यरदन को पार करके उस मुल्क में दाख़िल होनेवाले हैं जो रब ने उन्हें दिया है तो तुम क्यों उनकी हौसलाशिकनी कर रहे हो? \v 8 तुम्हारे बापदादा ने भी यही कुछ किया जब मैंने उन्हें क़ादिस-बरनीअ से मुल्क के बारे में मालूमात हासिल करने के लिए भेजा। \v 9 इसकाल की वादी में पहुँचकर मुल्क की तफ़तीश करने के बाद उन्होंने इसराईलियों की हौसलाशिकनी की ताकि वह उस मुल्क में दाख़िल न हों जो रब ने उन्हें दिया था। \v 10 उस दिन रब ने ग़ुस्से में आकर क़सम खाई, \v 11 ‘उन आदमियों में से जो मिसर से निकल आए हैं कोई उस मुल्क को नहीं देखेगा जिसका वादा मैंने क़सम खाकर इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से किया था। क्योंकि उन्होंने पूरी वफ़ादारी से मेरी पैरवी न की। सिर्फ़ वह जिनकी उम्र उस वक़्त 20 साल से कम है दाख़िल होंगे। \v 12 बुज़ुर्गों में से सिर्फ़ कालिब बिन यफ़ुन्ना क़निज़्ज़ी और यशुअ बिन नून मुल्क में दाख़िल होंगे, इसलिए कि उन्होंने पूरी वफ़ादारी से मेरी पैरवी की।’ \v 13 उस वक़्त रब का ग़ज़ब उन पर आन पड़ा, और उन्हें 40 साल तक रेगिस्तान में मारे मारे फिरना पड़ा, जब तक कि वह तमाम नसल ख़त्म न हो गई जिसने उसके नज़दीक ग़लत काम किया था। \v 14 अब तुम गुनाहगारों की औलाद अपने बापदादा की जगह खड़े होकर रब का इसराईल पर ग़ुस्सा मज़ीद बढ़ा रहे हो। \v 15 अगर तुम उस की पैरवी से हटोगे तो वह दुबारा इन लोगों को रेगिस्तान में रहने देगा, और तुम इनकी हलाकत का बाइस बनोगे।” \p \v 16 इसके बाद रूबिन और जद के अफ़राद दुबारा मूसा के पास आए और कहा, “हम यहाँ फ़िलहाल अपने मवेशी के लिए बाड़े और अपने बाल-बच्चों के लिए शहर बनाना चाहते हैं। \v 17 इसके बाद हम मुसल्लह होकर इसराईलियों के आगे आगे चलेंगे और हर एक को उस की अपनी जगह तक पहुँचाएँगे। इतने में हमारे बाल-बच्चे हमारे शहरों की फ़सीलों के अंदर मुल्क के मुख़ालिफ़ बाशिंदों से महफ़ूज़ रहेंगे। \v 18 हम उस वक़्त तक अपने घरों को नहीं लौटेंगे जब तक हर इसराईली को उस की मौरूसी ज़मीन न मिल जाए। \v 19 दूसरे, हम ख़ुद उनके साथ दरियाए-यरदन के मग़रिब में मीरास में कुछ नहीं पाएँगे, क्योंकि हमें अपनी मौरूसी ज़मीन दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर मिल चुकी है।” \p \v 20 यह सुनकर मूसा ने कहा, “अगर तुम ऐसा ही करोगे तो ठीक है। फिर रब के सामने जंग के लिए तैयार हो जाओ \v 21 और सब हथियार बाँधकर रब के सामने दरियाए-यरदन को पार करो। उस वक़्त तक न लौटो जब तक रब ने अपने तमाम दुश्मनों को अपने आगे से निकाल न दिया हो। \v 22 फिर जब मुल्क पर रब का क़ब्ज़ा हो गया होगा तो तुम लौट सकोगे। तब तुमने रब और अपने हमवतन भाइयों के लिए अपने फ़रायज़ अदा कर दिए होंगे, और यह इलाक़ा रब के सामने तुम्हारा मौरूसी हक़ होगा। \v 23 लेकिन अगर तुम ऐसा न करो तो फिर तुम रब ही का गुनाह करोगे। यक़ीन जानो तुम्हें अपने गुनाह की सज़ा मिलेगी। \v 24 अब अपने बाल-बच्चों के लिए शहर और अपने मवेशियों के लिए बाड़े बना लो। लेकिन अपने वादे को ज़रूर पूरा करना।” \p \v 25 जद और रूबिन के अफ़राद ने मूसा से कहा, “हम आपके ख़ादिम हैं, हम अपने आक़ा के हुक्म के मुताबिक़ ही करेंगे। \v 26 हमारे बाल-बच्चे और मवेशी यहीं जिलियाद के शहरों में रहेंगे। \v 27 लेकिन आपके ख़ादिम मुसल्लह होकर दरिया को पार करेंगे और रब के सामने जंग करेंगे। हम सब कुछ वैसा ही करेंगे जैसा हमारे आक़ा ने हमें हुक्म दिया है।” \p \v 28 तब मूसा ने इलियज़र इमाम, यशुअ बिन नून और क़बायली कुंबों के सरपरस्तों को हिदायत दी, \v 29 “लाज़िम है कि जद और रूबिन के मर्द मुसल्लह होकर तुम्हारे साथ ही रब के सामने दरियाए-यरदन को पार करें और मुल्क पर क़ब्ज़ा करें। अगर वह ऐसा करें तो उन्हें मीरास में जिलियाद का इलाक़ा दो। \v 30 लेकिन अगर वह ऐसा न करें तो फिर उन्हें मुल्के-कनान ही में तुम्हारे साथ मौरूसी ज़मीन मिले।” \p \v 31 जद और रूबिन के अफ़राद ने इसरार किया, “आपके ख़ादिम सब कुछ करेंगे जो रब ने कहा है। \v 32 हम मुसल्लह होकर रब के सामने दरियाए-यरदन को पार करेंगे और कनान के मुल्क में दाख़िल होंगे, अगरचे हमारी मौरूसी ज़मीन यरदन के मशरिक़ी किनारे पर होगी।” \p \v 33 तब मूसा ने जद, रूबिन और मनस्सी के आधे क़बीले को यह इलाक़ा दिया। उसमें वह पूरा मुल्क शामिल था जिस पर पहले अमोरियों का बादशाह सीहोन और बसन का बादशाह ओज हुकूमत करते थे। इन शिकस्तख़ुरदा ममालिक के देहातों समेत तमाम शहर उनके हवाले किए गए। \p \v 34 जद के क़बीले ने दीबोन, अतारात, अरोईर, \v 35 अतरात-शोफ़ान, याज़ेर, युगबहा, \v 36 बैत-निमरा और बैत-हारान के शहरों को दुबारा तामीर किया। उन्होंने उनकी फ़सीलें बनाईं और अपने मवेशियों के लिए बाड़े भी। \v 37 रूबिन के क़बीले ने हसबोन, इलियाली, क़िरियतायम, \v 38 नबू, बाल-मऊन और सिबमाह दुबारा तामीर किए। नबू और बाल-मऊन के नाम बदल गए, क्योंकि उन्होंने उन शहरों को नए नाम दिए जो उन्होंने दुबारा तामीर किए। \p \v 39 मनस्सी के बेटे मकीर की औलाद ने जिलियाद जाकर उस पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसके तमाम अमोरी बाशिंदों को निकाल दिया। \v 40 चुनाँचे मूसा ने मकीरियों को जिलियाद की सरज़मीन दे दी, और वह वहाँ आबाद हुए। \v 41 मनस्सी के एक आदमी बनाम याईर ने उस इलाक़े में कुछ बस्तियों पर क़ब्ज़ा करके उन्हें हव्वोत-याईर यानी ‘याईर की बस्तियाँ’ का नाम दिया। \v 42 इसी तरह उस क़बीले के एक और आदमी बनाम नूबह ने जाकर क़नात और उसके देहातों पर क़ब्ज़ा कर लिया। उसने शहर का नाम नूबह रखा। \c 33 \s1 इसराईल के सफ़र के मरहले \p \v 1 ज़ैल में उन जगहों के नाम हैं जहाँ जहाँ इसराईली क़बीले अपने दस्तों के मुताबिक़ मूसा और हारून की राहनुमाई में मिसर से निकलकर ख़ैमाज़न हुए थे। \v 2 रब के हुक्म पर मूसा ने हर जगह का नाम क़लमबंद किया जहाँ उन्होंने अपने ख़ैमे लगाए थे। उन जगहों के नाम यह हैं : \p \v 3 पहले महीने के पंद्रहवें दिन इसराईली रामसीस से रवाना हुए। यानी फ़सह के दिन के बाद के दिन वह बड़े इख़्तियार के साथ तमाम मिसरियों के देखते देखते चले गए। \v 4 मिसरी उस वक़्त अपने पहलौठों को दफ़न कर रहे थे, क्योंकि रब ने पहलौठों को मारकर उनके देवताओं की अदालत की थी। \p \v 5 रामसीस से इसराईली सुक्कात पहुँच गए जहाँ उन्होंने पहली मरतबा अपने डेरे लगाए। \v 6 वहाँ से वह एताम पहुँचे जो रेगिस्तान के किनारे पर वाक़े है। \v 7 एताम से वह वापस मुड़कर फ़ी-हख़ीरोत की तरफ़ बढ़े जो बाल-सफ़ोन के मशरिक़ में है। वह मिजदाल के क़रीब ख़ैमाज़न हुए। \v 8 फिर वह फ़ी-हख़ीरोत से कूच करके समुंदर में से गुज़र गए। इसके बाद वह तीन दिन एताम के रेगिस्तान में सफ़र करते करते मारा पहुँच गए और वहाँ अपने ख़ैमे लगाए। \v 9 मारा से वह एलीम चले गए जहाँ 12 चश्मे और खजूर के 70 दरख़्त थे। वहाँ ठहरने के बाद \v 10 वह बहरे-क़ुलज़ुम के साहिल पर ख़ैमाज़न हुए, \v 11 फिर दश्ते-सीन में पहुँच गए। \p \v 12 उनके अगले मरहले यह थे : दुफ़क़ा, \v 13-37 अलूस, रफ़ीदीम जहाँ पीने का पानी दस्तयाब न था, दश्ते-सीना, क़ब्रोत-हत्तावा, हसीरात, रितमा, रिम्मोन-फ़ारस, लिबना, रिस्सा, क़हीलाता, साफ़र पहाड़, हरादा, मक़हीलोत, तहत, तारह, मितक़ा, हशमूना, मौसीरोत, बनी-याक़ान, होर-हज्जिदजाद, युतबाता, अबरूना, अस्यून-जाबर, दश्ते-सीन में वाक़े क़ादिस और होर पहाड़ जो अदोम की सरहद पर वाक़े है। \p \v 38 वहाँ रब ने हारून इमाम को हुक्म दिया कि वह होर पहाड़ पर चढ़ जाए। वहीं वह पाँचवें माह के पहले दिन फ़ौत हुआ। इसराईलियों को मिसर से निकले 40 साल गुज़र चुके थे। \v 39 उस वक़्त हारून 123 साल का था। \p \v 40 उन दिनों में अराद के कनानी बादशाह ने सुना कि इसराईली मेरे मुल्क की तरफ़ बढ़ रहे हैं। वह कनान के जुनूब में हुकूमत करता था। \p \v 41-47 होर पहाड़ से रवाना होकर इसराईली ज़ैल की जगहों पर ठहरे : ज़लमूना, फ़ूनोन, ओबोत, ऐये-अबारीम जो मोआब के इलाक़े में था, दीबोन-जद, अलमून-दिबलातायम और नबू के क़रीब वाक़े अबारीम का पहाड़ी इलाक़ा। \v 48 वहाँ से उन्होंने यरदन की वादी में उतरकर मोआब के मैदानी इलाक़े में अपने डेरे लगाए। अब वह दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर यरीहू शहर के सामने थे। \v 49 उनके ख़ैमे बैत-यसीमोत से लेकर अबील-शित्तीम तक लगे थे। \s1 तमाम कनानी बाशिंदों को निकालने का हुक्म \p \v 50 वहाँ रब ने मूसा से कहा, \v 51 “इसराईलियों को बताना कि जब तुम दरियाए-यरदन को पार करके मुल्के-कनान में दाख़िल होगे \v 52 तो लाज़िम है कि तुम तमाम बाशिंदों को निकाल दो। उनके तराशे और ढाले हुए बुतों को तोड़ डालो और उनकी ऊँची जगहों के मंदिरों को तबाह करो। \v 53 मुल्क पर क़ब्ज़ा करके उसमें आबाद हो जाओ, क्योंकि मैंने यह मुल्क तुम्हें दे दिया है। यह मेरी तरफ़ से तुम्हारी मौरूसी मिलकियत है। \v 54 मुल्क को मुख़्तलिफ़ क़बीलों और ख़ानदानों में क़ुरा डालकर तक़सीम करना। हर ख़ानदान के अफ़राद की तादाद का लिहाज़ रखना। बड़े ख़ानदान को निसबतन ज़्यादा ज़मीन देना और छोटे ख़ानदान को निसबतन कम ज़मीन। \v 55 लेकिन अगर तुम मुल्क के बाशिंदों को नहीं निकालोगे तो बचे हुए तुम्हारी आँखों में ख़ार और तुम्हारे पहलुओं में काँटे बनकर तुम्हें उस मुल्क में तंग करेंगे जिसमें तुम आबाद होगे। \v 56 फिर मैं तुम्हारे साथ वह कुछ करूँगा जो उनके साथ करना चाहता हूँ।” \c 34 \s1 मुल्के-कनान की सरहद्दें \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि जब तुम उस मुल्क में दाख़िल होगे जो मैं तुम्हें मीरास में दूँगा तो उस की सरहद्दें यह होंगी : \p \v 3 उस की जुनूबी सरहद दश्ते-सीन में अदोम की सरहद के साथ साथ चलेगी। मशरिक़ में वह बहीराए-मुरदार के जुनूबी साहिल से शुरू होगी, फिर इन जगहों से होकर मग़रिब की तरफ़ गुज़रेगी : \v 4 दर्राए-अक़्रब्बीम के जुनूब में से, दश्ते-सीन में से, क़ादिस-बरनीअ के जुनूब में से हसर-अद्दार और अज़मून में से। \v 5 वहाँ से वह मुड़कर मिसर की सरहद पर वाक़े वादीए-मिसर के साथ साथ बहीराए-रूम तक पहुँचेगी। \v 6 उस की मग़रिबी सरहद बहीराए-रूम का साहिल होगा। \v 7 उस की शिमाली सरहद बहीराए-रूम से लेकर इन जगहों से होकर मशरिक़ की तरफ़ गुज़रेगी : होर पहाड़, \v 8 लबो-हमात, सिदाद, \v 9 ज़िफ़रून और हसर-एनान। हसर-एनान शिमाली सरहद का सबसे मशरिक़ी मक़ाम होगा। \v 10 उस की मशरिक़ी सरहद शिमाल में हसर-एनान से शुरू होगी। फिर वह इन जगहों से होकर जुनूब की तरफ़ गुज़रेगी : सिफ़ाम, \v 11 रिबला जो ऐन के मशरिक़ में है और किन्नरत यानी गलील की झील के मशरिक़ में वाक़े पहाड़ी इलाक़ा। \v 12 इसके बाद वह दरियाए-यरदन के किनारे किनारे गुज़रती हुई बहीराए-मुरदार तक पहुँचेगी। यह तुम्हारे मुल्क की सरहद्दें होंगी।” \p \v 13 मूसा ने इसराईलियों से कहा, “यह वही मुल्क है जिसे तुम्हें क़ुरा डालकर तक़सीम करना है। रब ने हुक्म दिया है कि उसे बाक़ी साढ़े नौ क़बीलों को देना है। \v 14 क्योंकि अढ़ाई क़बीलों के ख़ानदानों को उनकी मीरास मिल चुकी है यानी रूबिन और जद के पूरे क़बीले और मनस्सी के आधे क़बीले को। \v 15 उन्हें यहाँ, दरियाए-यरदन के मशरिक़ में यरीहू के सामने ज़मीन मिल चुकी है।” \s1 मुल्क तक़सीम करने के ज़िम्मादार आदमी \p \v 16 रब ने मूसा से कहा, \v 17 “इलियज़र इमाम और यशुअ बिन नून लोगों के लिए मुल्क तक़सीम करें। \v 18 हर क़बीले के एक एक राहनुमा को भी चुनना ताकि वह तक़सीम करने में मदद करे। जिनको तुम्हें चुनना है उनके नाम यह हैं : \p \v 19 यहूदाह के क़बीले का कालिब बिन यफ़ुन्ना, \p \v 20 शमौन के क़बीले का समुएल बिन अम्मीहूद, \p \v 21 बिनयमीन के क़बीले का इलीदाद बिन किस्लोन, \p \v 22 दान के क़बीले का बुक़्क़ी बिन युगली, \p \v 23 मनस्सी के क़बीले का हन्नियेल बिन अफ़ूद, \p \v 24 इफ़राईम के क़बीले का क़मुएल बिन सिफ़तान, \p \v 25 ज़बूलून के क़बीले का इलीसफ़न बिन फ़रनाक, \p \v 26 इशकार के क़बीले का फ़लतियेल बिन अज़्ज़ान, \p \v 27 आशर के क़बीले का अख़ीहूद बिन शलूमी, \p \v 28 नफ़ताली के क़बीले का फ़िदाहेल बिन अम्मीहूद।” \p \v 29 रब ने इन्हीं आदमियों को मुल्क को इसराईलियों में तक़सीम करने की ज़िम्मादारी दी। \c 35 \s1 लावियों के लिए शहर \p \v 1 इसराईली अब तक मोआब के मैदानी इलाक़े में दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर यरीहू के सामने थे। वहाँ रब ने मूसा से कहा, \p \v 2 “इसराईलियों को बता दे कि वह लावियों को अपनी मिली हुई ज़मीनों में से रहने के लिए शहर दें। उन्हें शहरों के इर्दगिर्द मवेशी चराने की ज़मीन भी मिले। \v 3 फिर लावियों के पास रहने के लिए शहर और अपने जानवर चराने के लिए ज़मीन होगी। \v 4 चराने के लिए ज़मीन शहर के इर्दगिर्द होगी, और चारों तरफ़ का फ़ासला फ़सीलों से 1,500 फ़ुट हो। \v 5 चराने की यह ज़मीन मुरब्बा शक्ल की होगी जिसके हर पहलू का फ़ासला 3,000 फ़ुट हो। शहर इस मुरब्बा शक्ल के बीच में हो। यह रक़बा शहर के बाशिंदों के लिए हो ताकि वह अपने मवेशी चरा सकें। \s1 ग़ैरइरादी ख़ूनरेज़ी के लिए पनाह के शहर \p \v 6-7 लावियों को कुल 48 शहर देना। इनमें से छः पनाह के शहर मुक़र्रर करना। उनमें ऐसे लोग पनाह ले सकेंगे जिनके हाथों ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो। \v 8 हर क़बीला लावियों को अपने इलाक़े के रक़बे के मुताबिक़ शहर दे। जिस क़बीले का इलाक़ा बड़ा है उसे लावियों को ज़्यादा शहर देने हैं जबकि जिस क़बीले का इलाक़ा छोटा है वह लावियों को कम शहर दे।” \p \v 9 फिर रब ने मूसा से कहा, \v 10 “इसराईलियों को बताना कि दरियाए-यरदन को पार करने के बाद \v 11 कुछ पनाह के शहर मुक़र्रर करना। उनमें वह शख़्स पनाह ले सकेगा जिसके हाथों ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो। \v 12 वहाँ वह इंतक़ाम लेनेवाले से पनाह ले सकेगा और जमात की अदालत के सामने खड़े होने से पहले मारा नहीं जा सकेगा। \v 13 इसके लिए छः शहर चुन लो। \v 14 तीन दरियाए-यरदन के मशरिक़ में और तीन मुल्के-कनान में हों। \v 15 यह छः शहर हर किसी को पनाह देंगे, चाहे वह इसराईली, परदेसी या उनके दरमियान रहनेवाला ग़ैरशहरी हो। जिससे भी ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो वह वहाँ पनाह ले सकता है। \p \v 16-18 अगर किसी ने किसी को जान-बूझकर लोहे, पत्थर या लकड़ी की किसी चीज़ से मार डाला हो वह क़ातिल है और उसे सज़ाए-मौत देनी है। \v 19 मक़तूल का सबसे क़रीबी रिश्तेदार उसे तलाश करके मार दे। \v 20-21 क्योंकि जो नफ़रत या दुश्मनी के बाइस जान-बूझकर किसी को यों धक्का दे, उस पर कोई चीज़ फेंक दे या उसे मुक्का मारे कि वह मर जाए वह क़ातिल है और उसे सज़ाए-मौत देनी है। \p \v 22 लेकिन वह क़ातिल नहीं है जिससे दुश्मनी के बाइस नहीं बल्कि इत्तफ़ाक़ से और ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो, चाहे उसने उसे धक्का दिया, कोई चीज़ उस पर फेंक दी \v 23 या कोई पत्थर उस पर गिरने दिया। \v 24 अगर ऐसा हुआ तो लाज़िम है कि जमात इन हिदायात के मुताबिक़ उसके और इंतक़ाम लेनेवाले के दरमियान फ़ैसला करे। \v 25 अगर मुलज़िम बेक़ुसूर है तो जमात उस की हिफ़ाज़त करके उसे पनाह के उस शहर में वापस ले जाए जिसमें उसने पनाह ली है। वहाँ वह मुक़द्दस तेल से मसह किए गए इमामे-आज़म की मौत तक रहे। \v 26 लेकिन अगर यह शख़्स इससे पहले पनाह के शहर से निकले तो वह महफ़ूज़ नहीं होगा। \v 27 अगर उसका इंतक़ाम लेनेवाले से सामना हो जाए तो इंतक़ाम लेनेवाले को उसे मार डालने की इजाज़त होगी। अगर वह ऐसा करे तो बेक़ुसूर रहेगा। \v 28 पनाह लेनेवाला इमामे-आज़म की वफ़ात तक पनाह के शहर में रहे। इसके बाद ही वह अपने घर वापस जा सकता है। \v 29 यह उसूल दायमी हैं। जहाँ भी तुम रहते हो तुम्हें हमेशा इन पर अमल करना है। \p \v 30 जिस पर क़त्ल का इलज़ाम लगाया गया हो उसे सिर्फ़ इस सूरत में सज़ाए-मौत दी जा सकती है कि कम अज़ कम दो गवाह हों। एक गवाह काफ़ी नहीं है। \p \v 31 क़ातिल को ज़रूर सज़ाए-मौत देना। ख़ाह वह इससे बचने के लिए कोई भी मुआवज़ा दे उसे आज़ाद न छोड़ना बल्कि सज़ाए-मौत देना। \v 32 उस शख़्स से भी पैसे क़बूल न करना जिससे ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो और जो इस सबब से पनाह के शहर में रह रहा है। उसे इजाज़त नहीं कि वह पैसे देकर पनाह का शहर छोड़े और अपने घर वापस चला जाए। लाज़िम है कि वह इसके लिए इमामे-आज़म की वफ़ात का इंतज़ार करे। \p \v 33 जिस मुल्क में तुम रहते हो उस की मुक़द्दस हालत को नापाक न करना। जब किसी को उसमें क़त्ल किया जाए तो वह नापाक हो जाता है। जब इस तरह ख़ून बहता है तो मुल्क की मुक़द्दस हालत सिर्फ़ उस शख़्स के ख़ून बहने से बहाल हो जाती है जिसने यह ख़ून बहाया है। यानी मुल्क का सिर्फ़ क़ातिल की मौत से ही कफ़्फ़ारा दिया जा सकता है। \v 34 उस मुल्क को नापाक न करना जिसमें तुम आबाद हो और जिसमें मैं सुकूनत करता हूँ। क्योंकि मैं रब हूँ जो इसराईलियों के दरमियान सुकूनत करता हूँ।” \c 36 \s1 एक क़बीले की मौरूसी ज़मीन शादी से दूसरे क़बीले में मुंतक़िल नहीं हो सकती \p \v 1 एक दिन जिलियाद बिन मकीर बिन मनस्सी बिन यूसुफ़ के कुंबे से निकले हुए आबाई घरानों के सरपरस्त मूसा और उन सरदारों के पास आए जो दीगर आबाई घरानों के सरपरस्त थे। \v 2 उन्होंने कहा, “रब ने आपको हुक्म दिया था कि आप क़ुरा डालकर मुल्क को इसराईलियों में तक़सीम करें। उस वक़्त उसने यह भी कहा था कि हमारे भाई सिलाफ़िहाद की बेटियों को उस की मौरूसी ज़मीन मिलनी है। \v 3 अगर वह इसराईल के किसी और क़बीले के मर्दों से शादी करें तो फिर यह ज़मीन जो हमारे क़बीले का मौरूसी हिस्सा है उस क़बीले का मौरूसी हिस्सा बनेगी और हम उससे महरूम हो जाएंगे। फिर हमारा क़बायली इलाक़ा छोटा हो जाएगा। \v 4 और अगर हम यह ज़मीन वापस भी ख़रीदें तो भी वह अगले बहाली के साल में दूसरे क़बीले को वापस चली जाएगी जिसमें इन औरतों ने शादी की है। इस तरह वह हमेशा के लिए हमारे हाथ से निकल जाएगी।” \p \v 5 मूसा ने रब के हुक्म पर इसराईलियों को बताया, “जिलियाद के मर्द हक़-बजानिब हैं। \v 6 इसलिए रब की हिदायत यह है कि सिलाफ़िहाद की बेटियों को हर आदमी से शादी करने की इजाज़त है, लेकिन सिर्फ़ इस सूरत में कि वह उनके अपने क़बीले का हो। \v 7 इस तरह एक क़बीले की मौरूसी ज़मीन किसी दूसरे क़बीले में मुंतक़िल नहीं होगी। लाज़िम है कि हर क़बीले का पूरा इलाक़ा उसी के पास रहे। \p \v 8 जो भी बेटी मीरास में ज़मीन पाती है उसके लिए लाज़िम है कि वह अपने ही क़बीले के किसी मर्द से शादी करे ताकि उस की ज़मीन क़बीले के पास ही रहे। \v 9 एक क़बीले की मौरूसी ज़मीन किसी दूसरे क़बीले को मुंतक़िल करने की इजाज़त नहीं है। लाज़िम है कि हर क़बीले का पूरा मौरूसी इलाक़ा उसी के पास रहे।” \p \v 10-11 सिलाफ़िहाद की बेटियों महलाह, तिरज़ा, हुजलाह, मिलकाह और नुआह ने वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा को बताया था। उन्होंने अपने चचाज़ाद भाइयों से शादी की। \v 12 चूँकि वह भी मनस्सी के क़बीले के थे इसलिए यह मौरूसी ज़मीन सिलाफ़िहाद के क़बीले के पास रही। \p \v 13 रब ने यह अहकाम और हिदायात इसराईलियों को मूसा की मारिफ़त दीं जब वह मोआब के मैदानी इलाक़े में दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर यरीहू के सामने ख़ैमाज़न थे।