\id MRK उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h मरक़ुस \toc1 मरक़ुस \toc2 मरक़ुस \toc3 मर \mt1 मरक़ुस \c 1 \s1 यहया बपतिस्मा देनेवाले की ख़िदमत \p \v 1 यह अल्लाह के फ़रज़ंद ईसा मसीह के बारे में ख़ुशख़बरी है, \v 2 जो यसायाह नबी की पेशगोई के मुताबिक़ यों शुरू हुई : \p ‘देख, मैं अपने पैग़ंबर को तेरे आगे आगे भेज देता हूँ \p जो तेरे लिए रास्ता तैयार करेगा। \p \v 3 रेगिस्तान में एक आवाज़ पुकार रही है, \p रब की राह तैयार करो! \p उसके रास्ते सीधे बनाओ।’ \p \v 4 यह पैग़ंबर यहया बपतिस्मा देनेवाला था। रेगिस्तान में रहकर उसने एलान किया कि लोग तौबा करके बपतिस्मा लें ताकि उन्हें अपने गुनाहों की मुआफ़ी मिल जाए। \v 5 यहूदिया के पूरे इलाक़े के लोग यरूशलम के तमाम बाशिंदों समेत निकलकर उसके पास आए। और अपने गुनाहों को तसलीम करके उन्होंने दरियाए-यरदन में यहया से बपतिस्मा लिया। \p \v 6 यहया ऊँटों के बालों का लिबास पहने और कमर पर चमड़े का पटका बाँधे रहता था। ख़ुराक के तौर पर वह टिड्डियाँ और जंगली शहद खाता था। \v 7 उसने एलान किया, “मेरे बाद एक आनेवाला है जो मुझसे बड़ा है। मैं झुककर उसके जूतों के तसमे खोलने के भी लायक़ नहीं। \v 8 मैं तुमको पानी से बपतिस्मा देता हूँ, लेकिन वह तुम्हें रूहुल-क़ुद्स से बपतिस्मा देगा।” \s1 ईसा का बपतिस्मा और आज़माइश \p \v 9 उन दिनों में ईसा नासरत से आया और यहया ने उसे दरियाए-यरदन में बपतिस्मा दिया। \v 10 पानी से निकलते ही ईसा ने देखा कि आसमान फट रहा है और रूहुल-क़ुद्स कबूतर की तरह मुझ पर उतर रहा है। \v 11 साथ साथ आसमान से एक आवाज़ सुनाई दी, “तू मेरा प्यारा फ़रज़ंद है, तुझसे मैं ख़ुश हूँ।” \p \v 12 इसके फ़ौरन बाद रूहुल-क़ुद्स ने उसे रेगिस्तान में भेज दिया। \v 13 वहाँ वह चालीस दिन रहा जिसके दौरान इबलीस उस की आज़माइश करता रहा। वह जंगली जानवरों के दरमियान रहता और फ़रिश्ते उस की ख़िदमत करते थे। \s1 ईसा चार मछेरों को बुलाता है \p \v 14 जब यहया को जेल में डाल दिया गया तो ईसा गलील के इलाक़े में आया और अल्लाह की ख़ुशख़बरी का एलान करने लगा। \v 15 वह बोला, “मुक़र्ररा वक़्त आ गया है, अल्लाह की बादशाही क़रीब आ गई है। तौबा करो और अल्लाह की ख़ुशख़बरी पर ईमान लाओ।” \p \v 16 एक दिन जब ईसा गलील की झील के किनारे किनारे चल रहा था तो उसने शमौन और उसके भाई अंदरियास को देखा। वह झील में जाल डाल रहे थे क्योंकि वह माहीगीर थे। \v 17 उसने कहा, “आओ, मेरे पीछे हो लो, मैं तुमको आदमगीर बनाऊँगा।” \v 18 यह सुनते ही वह अपने जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। \p \v 19 थोड़ा-सा आगे जाकर ईसा ने ज़बदी के बेटों याक़ूब और यूहन्ना को देखा। वह कश्ती में बैठे अपने जालों की मरम्मत कर रहे थे। \v 20 उसने उन्हें फ़ौरन बुलाया तो वह अपने बाप को मज़दूरों समेत कश्ती में छोड़कर उसके पीछे हो लिए। \s1 आदमी की बदरूह के क़ब्ज़े से रिहाई \p \v 21 वह कफ़र्नहूम शहर में दाख़िल हुए। और सबत के दिन ईसा इबादतख़ाने में जाकर लोगों को सिखाने लगा। \v 22 वह उस की तालीम सुनकर हक्का-बक्का रह गए क्योंकि वह उन्हें शरीअत के आलिमों की तरह नहीं बल्कि इख़्तियार के साथ सिखाता था। \p \v 23 उनके इबादतख़ाने में एक आदमी था जो किसी नापाक रूह के क़ब्ज़े में था। ईसा को देखते ही वह चीख़ चीख़कर बोलने लगा, \v 24 “ऐ नासरत के ईसा, हमारा आपके साथ क्या वास्ता है? क्या आप हमें हलाक करने आए हैं? मैं तो जानता हूँ कि आप कौन हैं, आप अल्लाह के क़ुद्दूस हैं।” \p \v 25 ईसा ने उसे डाँटकर कहा, “ख़ामोश! आदमी से निकल जा!” \v 26 इस पर बदरूह आदमी को झँझोड़कर और चीख़ें मार मारकर उसमें से निकल गई। \p \v 27 तमाम लोग घबरा गए और एक दूसरे से कहने लगे, “यह क्या है? एक नई तालीम जो इख़्तियार के साथ दी जा रही है। और वह बदरूहों को हुक्म देता है तो वह उस की मानती हैं।” \p \v 28 और ईसा के बारे में चर्चा जल्दी से गलील के पूरे इलाक़े में फैल गया। \s1 बहुत-से मरीज़ों की शफ़ा \p \v 29 इबादतख़ाने से निकलने के ऐन बाद वह याक़ूब और यूहन्ना के साथ शमौन और अंदरियास के घर गए। \v 30 वहाँ शमौन की सास बिस्तर पर पड़ी थी, क्योंकि उसे बुख़ार था। उन्होंने ईसा को बता दिया \v 31 तो वह उसके नज़दीक गया। उसका हाथ पकड़कर उसने उठने में उस की मदद की। इस पर बुख़ार उतर गया और वह उनकी ख़िदमत करने लगी। \p \v 32 जब शाम हुई और सूरज ग़ुरूब हुआ तो लोग तमाम मरीज़ों और बदरूह-गिरिफ़्ता अशख़ास को ईसा के पास लाए। \v 33 पूरा शहर दरवाज़े पर जमा हो गया \v 34 और ईसा ने बहुत-से मरीज़ों को मुख़्तलिफ़ क़िस्म की बीमारियों से शफ़ा दी। उसने बहुत-सी बदरूहें भी निकाल दीं, लेकिन उसने उन्हें बोलने न दिया, क्योंकि वह जानती थीं कि वह कौन है। \s1 गलील में मुनादी \p \v 35 अगले दिन सुबह-सवेरे जब अभी अंधेरा ही था तो ईसा उठकर दुआ करने के लिए किसी वीरान जगह चला गया। \v 36 बाद में शमौन और उसके साथी उसे ढूँडने निकले। \v 37 जब मालूम हुआ कि वह कहाँ है तो उन्होंने उससे कहा, “तमाम लोग आपको तलाश कर रहे हैं!” \p \v 38 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “आओ, हम साथवाली आबादियों में जाएँ ताकि मैं वहाँ भी मुनादी करूँ। क्योंकि मैं इसी मक़सद से निकल आया हूँ।” \p \v 39 चुनाँचे वह पूरे गलील में से गुज़रता हुआ इबादतख़ानों में मुनादी करता और बदरूहों को निकालता रहा। \s1 कोढ़ से शफ़ा \p \v 40 एक आदमी ईसा के पास आया जो कोढ़ का मरीज़ था। घुटनों के बल झुककर उसने मिन्नत की, “अगर आप चाहें तो मुझे पाक-साफ़ कर सकते हैं।” \p \v 41 ईसा को तरस आया। उसने अपना हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ, पाक-साफ़ हो जा।” \v 42 इस पर बीमारी फ़ौरन दूर हो गई और वह पाक-साफ़ हो गया। \v 43 ईसा ने उसे फ़ौरन रुख़सत करके सख़्ती से समझाया, \v 44 “ख़बरदार! यह बात किसी को न बताना बल्कि बैतुल-मुक़द्दस में इमाम के पास जा ताकि वह तेरा मुआयना करे। अपने साथ वह क़ुरबानी ले जा जिसका तक़ाज़ा मूसा की शरीअत उनसे करती है जिन्हें कोढ़ से शफ़ा मिली हो। यों अलानिया तसदीक़ हो जाएगी कि तू वाक़ई पाक-साफ़ हो गया है।” \p \v 45 आदमी चला गया, लेकिन वह हर जगह अपनी कहानी सुनाने लगा। उसने यह ख़बर इतनी फैलाई कि ईसा खुले तौर पर किसी भी शहर में दाख़िल न हो सका बल्कि उसे वीरान जगहों में रहना पड़ा। लेकिन वहाँ भी लोग हर जगह से उसके पास पहुँच गए। \c 2 \s1 मफ़लूज के लिए छत खोली जाती है \p \v 1 कुछ दिनों के बाद ईसा कफ़र्नहूम में वापस आया। जल्द ही ख़बर फैल गई कि वह घर में है। \v 2 इस पर इतने लोग जमा हो गए कि पूरा घर भर गया बल्कि दरवाज़े के सामने भी जगह न रही। वह उन्हें कलामे-मुक़द्दस सुनाने लगा। \v 3 इतने में कुछ लोग पहुँचे। उनमें से चार आदमी एक मफ़लूज को उठाए ईसा के पास लाना चाहते थे। \v 4 मगर वह उसे हुजूम की वजह से ईसा तक न पहुँचा सके, इसलिए उन्होंने छत खोल दी। ईसा के ऊपर का हिस्सा उधेड़कर उन्होंने चारपाई को जिस पर मफ़लूज लेटा था उतार दिया। \v 5 जब ईसा ने उनका ईमान देखा तो उसने मफ़लूज से कहा, “बेटा, तेरे गुनाह मुआफ़ कर दिए गए हैं।” \p \v 6 शरीअत के कुछ आलिम वहाँ बैठे थे। वह यह सुनकर सोच-बिचार में पड़ गए। \v 7 “यह किस तरह ऐसी बातें कर सकता है? कुफ़र बक रहा है। सिर्फ़ अल्लाह ही गुनाह मुआफ़ कर सकता है।” \p \v 8 ईसा ने अपनी रूह में फ़ौरन जान लिया कि वह क्या सोच रहे हैं, इसलिए उसने उनसे पूछा, “तुम दिल में इस तरह की बातें क्यों सोच रहे हो? \v 9 क्या मफ़लूज से यह कहना आसान है कि ‘तेरे गुनाह मुआफ़ कर दिए गए हैं’ या यह कि ‘उठ, अपनी चारपाई उठाकर चल-फिर’? \v 10 लेकिन मैं तुमको दिखाता हूँ कि इब्ने-आदम को वाक़ई दुनिया में गुनाह मुआफ़ करने का इख़्तियार है।” यह कहकर वह मफ़लूज से मुख़ातिब हुआ, \v 11 “मैं तुझसे कहता हूँ कि उठ, अपनी चारपाई उठाकर घर चला जा।” \p \v 12 वह आदमी खड़ा हुआ और फ़ौरन अपनी चारपाई उठाकर उनके देखते देखते चला गया। सब सख़्त हैरतज़दा हुए और अल्लाह की तमजीद करके कहने लगे, “ऐसा काम हमने कभी नहीं देखा!” \s1 ईसा मत्ती को बुलाता है \p \v 13 फिर ईसा निकलकर दुबारा झील के किनारे गया। एक बड़ी भीड़ उसके पास आई तो वह उन्हें सिखाने लगा। \v 14 चलते चलते उसने हलफ़ई के बेटे लावी को देखा जो टैक्स लेने के लिए अपनी चौकी पर बैठा था। ईसा ने उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” और लावी उठकर उसके पीछे हो लिया। \p \v 15 बाद में ईसा लावी के घर में खाना खा रहा था। उसके साथ न सिर्फ़ उसके शागिर्द बल्कि बहुत-से टैक्स लेनेवाले और गुनाहगार भी थे, क्योंकि उनमें से बहुतेरे उसके पैरोकार बन चुके थे। \v 16 शरीअत के कुछ फ़रीसी आलिमों ने उसे यों टैक्स लेनेवालों और गुनाहगारों के साथ खाते देखा तो उसके शागिर्दों से पूछा, “यह टैक्स लेनेवालों और गुनाहगारों के साथ क्यों खाता है?” \p \v 17 यह सुनकर ईसा ने जवाब दिया, “सेहतमंदों को डाक्टर की ज़रूरत नहीं होती बल्कि मरीज़ों को। मैं रास्तबाज़ों को नहीं बल्कि गुनाहगारों को बुलाने आया हूँ।” \s1 शागिर्द रोज़ा क्यों नहीं रखते? \p \v 18 यहया के शागिर्द और फ़रीसी रोज़ा रखा करते थे। एक मौक़े पर कुछ लोग ईसा के पास आए और पूछा, “आपके शागिर्द रोज़ा क्यों नहीं रखते जबकि यहया और फ़रीसियों के शागिर्द रोज़ा रखते हैं?” \p \v 19 ईसा ने जवाब दिया, “शादी के मेहमान किस तरह रोज़ा रख सकते हैं जब दूल्हा उनके दरमियान है? जब तक दूल्हा उनके साथ है वह रोज़ा नहीं रख सकते। \v 20 लेकिन एक दिन आएगा जब दूल्हा उनसे ले लिया जाएगा। उस वक़्त वह ज़रूर रोज़ा रखेंगे। \p \v 21 कोई भी नए कपड़े का टुकड़ा किसी पुराने लिबास में नहीं लगाता। अगर वह ऐसा करे तो नया टुकड़ा बाद में सुकड़कर पुराने लिबास से अलग हो जाएगा। यों पुराने लिबास की फटी हुई जगह पहले की निसबत ज़्यादा ख़राब हो जाएगी। \v 22 इसी तरह कोई भी अंगूर का ताज़ा रस पुरानी और बे-लचक मशकों में नहीं डालता। अगर वह ऐसा करे तो पुरानी मशकें पैदा होनेवाली गैस के बाइस फट जाएँगी। नतीजे में मै और मशकें दोनों ज़ाया हो जाएँगी। इसलिए अंगूर का ताज़ा रस नई मशकों में डाला जाता है जो लचकदार होती हैं।” \s1 सबत के बारे में सवाल \p \v 23 एक दिन ईसा अनाज के खेतों में से गुज़र रहा था। चलते चलते उसके शागिर्द खाने के लिए अनाज की बालें तोड़ने लगे। सबत का दिन था। \v 24 यह देखकर फ़रीसियों ने ईसा से पूछा, “देखो, यह क्यों ऐसा कर रहे हैं? सबत के दिन ऐसा करना मना है।” \p \v 25 ईसा ने जवाब दिया, “क्या तुमने कभी नहीं पढ़ा कि दाऊद ने क्या किया जब उसे और उसके साथियों को भूक लगी और उनके पास ख़ुराक नहीं थी? \v 26 उस वक़्त अबियातर इमामे-आज़म था। दाऊद अल्लाह के घर में दाख़िल हुआ और रब के लिए मख़सूसशुदा रोटियाँ लेकर खाईं, अगरचे सिर्फ़ इमामों को इन्हें खाने की इजाज़त है। और उसने अपने साथियों को भी यह रोटियाँ खिलाईं।” \p \v 27 फिर उसने कहा, “इनसान को सबत के दिन के लिए नहीं बनाया गया बल्कि सबत का दिन इनसान के लिए। \v 28 चुनाँचे इब्ने-आदम सबत का भी मालिक है।” \c 3 \s1 सूखे हुए हाथ की शफ़ा \p \v 1 किसी और वक़्त जब ईसा इबादतख़ाने में गया तो वहाँ एक आदमी था जिसका हाथ सूखा हुआ था। \v 2 सबत का दिन था और लोग बड़े ग़ौर से देख रहे थे कि क्या ईसा उस आदमी को आज भी शफ़ा देगा। क्योंकि वह इस पर इलज़ाम लगाने का कोई बहाना तलाश कर रहे थे। \v 3 ईसा ने सूखे हाथवाले आदमी से कहा, “उठ, दरमियान में खड़ा हो।” \v 4 फिर ईसा ने उनसे पूछा, “मुझे बताओ, शरीअत हमें सबत के दिन क्या करने की इजाज़त देती है, नेक काम करने की या ग़लत काम करने की, किसी की जान बचाने की या उसे तबाह करने की?” \p सब ख़ामोश रहे। \v 5 वह ग़ुस्से से अपने इर्दगिर्द के लोगों की तरफ़ देखने लगा। उनकी सख़्तदिली उसके लिए बड़े दुख का बाइस बन रही थी। फिर उसने आदमी से कहा, “अपना हाथ आगे बढ़ा।” उसने ऐसा किया तो उसका हाथ बहाल हो गया। \v 6 इस पर फ़रीसी बाहर निकलकर सीधे हेरोदेस की पार्टी के अफ़राद के साथ मिलकर ईसा को क़त्ल करने की साज़िशें करने लगे। \s1 झील के किनारे पर हुजूम \p \v 7 लेकिन ईसा वहाँ से हटकर अपने शागिर्दों के साथ झील के पास गया। एक बड़ा हुजूम उसके पीछे हो लिया। लोग न सिर्फ़ गलील के इलाक़े से आए बल्कि बहुत-सी और जगहों यानी यहूदिया, \v 8 यरूशलम, इदूमया, दरियाए-यरदन के पार और सूर और सैदा के इलाक़े से भी। वजह यह थी कि ईसा के काम की ख़बर उन इलाक़ों तक भी पहुँच चुकी थी और नतीजे में बहुत-से लोग वहाँ से भी आए। \v 9 ईसा ने शागिर्दों से कहा, “एहतियातन एक कश्ती उस वक़्त के लिए तैयार कर रखो जब हुजूम मुझे हद से ज़्यादा दबाने लगेगा।” \v 10 क्योंकि उस दिन उसने बहुतों को शफ़ा दी थी, इसलिए जिसे भी कोई तकलीफ़ थी वह धक्के दे देकर उसके पास आया ताकि उसे छू सके। \v 11 और जब भी नापाक रूहों ने ईसा को देखा तो वह उसके सामने गिरकर चीख़ें मारने लगीं, “आप अल्लाह के फ़रज़ंद हैं।” \p \v 12 लेकिन ईसा ने उन्हें सख़्ती से डाँटकर कहा कि वह उसे ज़ाहिर न करें। \s1 ईसा बारह रसूलों को मुक़र्रर करता है \p \v 13 इसके बाद ईसा ने पहाड़ पर चढ़कर जिन्हें वह चाहता था उन्हें अपने पास बुला लिया। और वह उसके पास आए। \v 14 उसने उनमें से बारह को चुन लिया। उन्हें उसने अपने रसूल मुक़र्रर कर लिया ताकि वह उसके साथ चलें और वह उन्हें मुनादी करने के लिए भेज सके। \v 15 उसने उन्हें बदरूहें निकालने का इख़्तियार भी दिया। \p \v 16 जिन बारह को उसने मुक़र्रर किया उनके नाम यह हैं : शमौन जिसका लक़ब उसने पतरस रखा, \v 17 ज़बदी के बेटे याक़ूब और यूहन्ना जिनका लक़ब ईसा ने ‘बादल की गरज के बेटे’ रखा, \v 18 अंदरियास, फ़िलिप्पुस, बरतुलमाई, मत्ती, तोमा, याक़ूब बिन हलफ़ई, तद्दी, शमौन मुजाहिद \v 19 और यहूदाह इस्करियोती जिसने बाद में उसे दुश्मन के हवाले कर दिया। \s1 ईसा और बदरूहों का सरदार \p \v 20 फिर ईसा किसी घर में दाख़िल हुआ। इस बार भी इतना हुजूम जमा हो गया कि ईसा को अपने शागिर्दों समेत खाना खाने का मौक़ा भी न मिला। \v 21 जब उसके ख़ानदान के अफ़राद ने यह सुना तो वह उसे पकड़कर ले जाने के लिए आए, क्योंकि उन्होंने कहा, “वह होश में नहीं है।” \p \v 22 लेकिन शरीअत के जो आलिम यरूशलम से आए थे उन्होंने कहा, “यह बदरूहों के सरदार बाल-ज़बूल के क़ब्ज़े में है। उसी की मदद से बदरूहों को निकाल रहा है।” \p \v 23 फिर ईसा ने उन्हें अपने पास बुलाकर तमसीलों में जवाब दिया। “इबलीस किस तरह इबलीस को निकाल सकता है? \v 24 जिस बादशाही में फूट पड़ जाए वह क़ायम नहीं रह सकती। \v 25 और जिस घराने की ऐसी हालत हो वह भी क़ायम नहीं रह सकता। \v 26 इसी तरह अगर इबलीस अपने आपकी मुख़ालफ़त करे और यों उसमें फूट पड़ जाए तो वह क़ायम नहीं रह सकता बल्कि ख़त्म हो चुका है। \p \v 27 किसी ज़ोरावर आदमी के घर में घुसकर उसका मालो-असबाब लूटना उस वक़्त तक मुमकिन नहीं है जब तक उस आदमी को बाँधा न जाए। फिर ही उसे लूटा जा सकता है। \p \v 28 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि लोगों के तमाम गुनाह और कुफ़र की बातें मुआफ़ की जा सकेंगी, ख़ाह वह कितना ही कुफ़र क्यों न बकें। \v 29 लेकिन जो रूहुल-क़ुद्स के ख़िलाफ़ कुफ़र बके उसे अबद तक मुआफ़ी नहीं मिलेगी। वह एक अबदी गुनाह का क़ुसूरवार ठहरेगा।” \v 30 ईसा ने यह इसलिए कहा क्योंकि आलिम कह रहे थे कि वह किसी बदरूह की गिरिफ़्त में है। \s1 ईसा की माँ और भाई \p \v 31 फिर ईसा की माँ और भाई पहुँच गए। बाहर खड़े होकर उन्होंने किसी को उसे बुलाने को भेज दिया। \v 32 उसके इर्दगिर्द हुजूम बैठा था। उन्होंने कहा, “आपकी माँ और भाई बाहर आपको बुला रहे हैं।” \p \v 33 ईसा ने पूछा, “कौन मेरी माँ और कौन मेरे भाई हैं?” \v 34 और अपने गिर्द बैठे लोगों पर नज़र डालकर उसने कहा, “देखो, यह मेरी माँ और मेरे भाई हैं। \v 35 जो भी अल्लाह की मरज़ी पूरी करता है वह मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माँ है।” \c 4 \s1 बीज बोनेवाले की तमसील \p \v 1 फिर ईसा दुबारा झील के किनारे तालीम देने लगा। और इतनी बड़ी भीड़ उसके पास जमा हुई कि वह झील में खड़ी एक कश्ती में बैठ गया। बाक़ी लोग झील के किनारे पर खड़े रहे। \v 2 उसने उन्हें बहुत-सी बातें तमसीलों में सिखाईं। उनमें से एक यह थी : \p \v 3 “सुनो! एक किसान बीज बोने के लिए निकला। \v 4 जब बीज इधर-उधर बिखर गया तो कुछ दाने रास्ते पर गिरे और परिंदों ने आकर उन्हें चुग लिया। \v 5 कुछ पथरीली ज़मीन पर गिरे जहाँ मिट्टी की कमी थी। वह जल्द उग आए क्योंकि मिट्टी गहरी नहीं थी। \v 6 लेकिन जब सूरज निकला तो पौदे झुलस गए और चूँकि वह जड़ न पकड़ सके इसलिए सूख गए। \v 7 कुछ दाने ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दरमियान भी गिरे। वहाँ वह उगने तो लगे, लेकिन ख़ुदरौ पौदों ने साथ साथ बढ़कर उन्हें फलने फूलने की जगह न दी। चुनाँचे वह भी ख़त्म हो गए और फल न ला सके। \v 8 लेकिन ऐसे दाने भी थे जो ज़रख़ेज़ ज़मीन में गिरे। वहाँ वह फूट निकले और बढ़ते बढ़ते तीस गुना, साठ गुना बल्कि सौ गुना तक फल लाए।” \p \v 9 फिर उसने कहा, “जो सुन सकता है वह सुन ले!” \s1 तमसीलों का मक़सद \p \v 10 जब वह अकेला था तो जो लोग उसके इर्दगिर्द जमा थे उन्होंने बारह शागिर्दों समेत उससे पूछा कि इस तमसील का क्या मतलब है? \v 11 उसने जवाब दिया, “तुमको तो अल्लाह की बादशाही का भेद समझने की लियाक़त दी गई है। लेकिन मैं इस दायरे से बाहर के लोगों को हर बात समझाने के लिए तमसीलें इस्तेमाल करता हूँ \v 12 ताकि पाक कलाम पूरा हो जाए कि \p ‘वह अपनी आँखों से देखेंगे मगर कुछ नहीं जानेंगे, \p वह अपने कानों से सुनेंगे मगर कुछ नहीं समझेंगे, \p ऐसा न हो कि वह मेरी तरफ़ रुजू करें \p और उन्हें मुआफ़ कर दिया जाए’।” \s1 बीज बोनेवाले की तमसील का मतलब \p \v 13 फिर ईसा ने उनसे कहा, “क्या तुम यह तमसील नहीं समझते? तो फिर बाक़ी तमाम तमसीलें किस तरह समझ पाओगे? \v 14 बीज बोनेवाला अल्लाह का कलाम बो देता है। \v 15 रास्ते पर गिरनेवाले दाने वह लोग हैं जो कलाम को सुनते तो हैं, लेकिन फिर इबलीस फ़ौरन आकर वह कलाम छीन लेता है जो उनमें बोया गया है। \v 16 पथरीली ज़मीन पर गिरनेवाले दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनते ही उसे ख़ुशी से क़बूल तो कर लेते हैं, \v 17 लेकिन वह जड़ नहीं पकड़ते और इसलिए ज़्यादा देर तक क़ायम नहीं रहते। ज्योंही वह कलाम पर ईमान लाने के बाइस किसी मुसीबत या ईज़ारसानी से दोचार हो जाएँ, तो वह बरगश्ता हो जाते हैं। \v 18 ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दरमियान गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनते तो हैं, \v 19 लेकिन फिर रोज़मर्रा की परेशानियाँ, दौलत का फ़रेब और दीगर चीज़ों का लालच कलाम को फलने फूलने नहीं देते। नतीजे में वह फल लाने तक नहीं पहुँचता। \v 20 इसके मुक़ाबले में ज़रख़ेज़ ज़मीन में गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनकर उसे क़बूल करते और बढ़ते बढ़ते तीस गुना, साठ गुना बल्कि सौ गुना तक फल लाते हैं।” \s1 कोई चराग़ को बरतन के नीचे नहीं छुपाता \p \v 21 ईसा ने बात जारी रखी और कहा, “क्या चराग़ को इसलिए जलाकर लाया जाता है कि वह किसी बरतन या चारपाई के नीचे रखा जाए? हरगिज़ नहीं! उसे शमादान पर रखा जाता है। \v 22 क्योंकि जो कुछ भी इस वक़्त पोशीदा है उसे आख़िरकार ज़ाहिर हो जाना है और तमाम भेदों को एक दिन खुल जाना है। \v 23 अगर कोई सुन सके तो सुन ले।” \p \v 24 उसने उनसे यह भी कहा, “इस पर ध्यान दो कि तुम क्या सुनते हो। जिस हिसाब से तुम दूसरों को देते हो उसी हिसाब से तुमको भी दिया जाएगा बल्कि तुमको उससे बढ़कर मिलेगा। \v 25 क्योंकि जिसे कुछ हासिल हुआ है उसे और भी दिया जाएगा, जबकि जिसे कुछ हासिल नहीं हुआ उससे वह थोड़ा-बहुत भी छीन लिया जाएगा जो उसे हासिल है।” \s1 ख़ुद बख़ुद उगनेवाले बीज की तमसील \p \v 26 फिर ईसा ने कहा, “अल्लाह की बादशाही यों समझ लो : एक किसान ज़मीन में बीज बिखेर देता है। \v 27 यह बीज फूटकर दिन-रात उगता रहता है, ख़ाह किसान सो रहा या जाग रहा हो। उसे मालूम नहीं कि यह क्योंकर होता है। \v 28 ज़मीन ख़ुद बख़ुद अनाज की फ़सल पैदा करती है। पहले पत्ते निकलते हैं, फिर बालें नज़र आने लगती हैं और आख़िर में दाने पैदा हो जाते हैं। \v 29 और ज्योंही अनाज की फ़सल पक जाती है किसान आकर दराँती से उसे काट लेता है, क्योंकि फ़सल की कटाई का वक़्त आ चुका होता है।” \s1 राई के दाने की तमसील \p \v 30 फिर ईसा ने कहा, “हम अल्लाह की बादशाही का मुवाज़ना किस चीज़ से करें? या हम कौन-सी तमसील से इसे बयान करें? \v 31 वह राई के दाने की मानिंद है जो ज़मीन में डाला गया हो। राई बीजों में सबसे छोटा दाना है \v 32 लेकिन बढ़ते बढ़ते सब्ज़ियों में सबसे बड़ा हो जाता है। उस की शाख़ें इतनी लंबी हो जाती हैं कि परिंदे उसके साये में अपने घोंसले बना सकते हैं।” \p \v 33 ईसा इसी क़िस्म की बहुत-सी तमसीलों की मदद से उन्हें कलाम यों सुनाता था कि वह इसे समझ सकते थे। \v 34 हाँ, अवाम को वह सिर्फ़ तमसीलों के ज़रीए सिखाता था। लेकिन जब वह अपने शागिर्दों के साथ अकेला होता तो वह हर बात की तशरीह करता था। \s1 ईसा आँधी को थमा देता है \p \v 35 उस दिन जब शाम हुई तो ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “आओ, हम झील के पार चलें।” \v 36 चुनाँचे वह भीड़ को रुख़सत करके उसे लेकर चल पड़े। बाज़ और कश्तियाँ भी साथ गईं। \v 37 अचानक सख़्त आँधी आई। लहरें कश्ती से टकराकर उसे पानी से भरने लगीं, \v 38 लेकिन ईसा अभी तक कश्ती के पिछले हिस्से में अपना सर गद्दी पर रखे सो रहा था। शागिर्दों ने उसे जगाकर कहा, “उस्ताद, क्या आपको परवा नहीं कि हम तबाह हो रहे हैं?” \p \v 39 वह जाग उठा, आँधी को डाँटा और झील से कहा, “ख़ामोश! चुप कर!” इस पर आँधी थम गई और लहरें बिलकुल साकित हो गईं। \v 40 फिर ईसा ने शागिर्दों से पूछा, “तुम क्यों घबराते हो? क्या तुम अभी तक ईमान नहीं रखते?” \p \v 41 उन पर सख़्त ख़ौफ़ तारी हो गया और वह एक दूसरे से कहने लगे, “आख़िर यह कौन है? हवा और झील भी उसका हुक्म मानती हैं।” \c 5 \s1 ईसा एक गरासीनी आदमी से बदरूहें निकाल देता है \p \v 1 फिर वह झील के पार गरासा के इलाक़े में पहुँचे। \v 2 जब ईसा कश्ती से उतरा तो एक आदमी जो नापाक रूह की गिरिफ़्त में था क़ब्रों में से निकलकर ईसा को मिला। \v 3 यह आदमी क़ब्रों में रहता और इस नौबत तक पहुँच गया था कि कोई भी उसे बाँध न सकता था, चाहे उसे ज़ंजीरों से भी बाँधा जाता। \v 4 उसे बहुत दफ़ा बेड़ियों और ज़ंजीरों से बाँधा गया था, लेकिन जब भी ऐसा हुआ तो उसने ज़ंजीरों को तोड़कर बेड़ियों को टुकड़े टुकड़े कर दिया था। कोई भी उसे कंट्रोल नहीं कर सकता था। \v 5 दिन-रात वह चीख़ें मार मारकर क़ब्रों और पहाड़ी इलाक़े में घुमता-फिरता और अपने आपको पत्थरों से ज़ख़मी कर लेता था। \p \v 6 ईसा को दूर से देखकर वह दौड़ा और उसके सामने मुँह के बल गिरा। \v 7 वह ज़ोर से चीख़ा, “ऐ ईसा अल्लाह तआला के फ़रज़ंद, मेरा आपके साथ क्या वास्ता है? अल्लाह के नाम में आपको क़सम देता हूँ कि मुझे अज़ाब में न डालें।” \v 8 क्योंकि ईसा ने उसे कहा था, “ऐ नापाक रूह, आदमी में से निकल जा!” \p \v 9 फिर ईसा ने पूछा, “तेरा नाम क्या है?” \p उसने जवाब दिया, “लशकर, क्योंकि हम बहुत-से हैं।” \v 10 और वह बार बार मिन्नत करता रहा कि ईसा उन्हें इस इलाक़े से न निकाले। \p \v 11 उस वक़्त क़रीब की पहाड़ी पर सुअरों का बड़ा ग़ोल चर रहा था। \v 12 बदरूहों ने ईसा से इलतमास की, “हमें सुअरों में भेज दें, हमें उनमें दाख़िल होने दें।” \v 13 उसने उन्हें इजाज़त दी तो बदरूहें उस आदमी में से निकलकर सुअरों में जा घुसीं। इस पर पूरे ग़ोल के तक़रीबन 2,000 सुअर भाग भागकर पहाड़ी की ढलान पर से उतरे और झील में झपटकर डूब मरे। \p \v 14 यह देखकर सुअरों के गल्लाबान भाग गए। उन्होंने शहर और देहात में इस बात का चर्चा किया तो लोग यह मालूम करने के लिए कि क्या हुआ है अपनी जगहों से निकलकर ईसा के पास आए। \v 15 उसके पास पहुँचे तो वह आदमी मिला जिसमें पहले बदरूहों का लशकर था। अब वह कपड़े पहने वहाँ बैठा था और उस की ज़हनी हालत ठीक थी। यह देखकर वह डर गए। \v 16 जिन्होंने सब कुछ देखा था उन्होंने लोगों को बताया कि बदरूह-गिरिफ़्ता आदमी और सुअरों के साथ क्या हुआ है। \p \v 17 फिर लोग ईसा की मिन्नत करने लगे कि वह उनके इलाक़े से चला जाए। \p \v 18 ईसा कश्ती पर सवार होने लगा तो बदरूहों से आज़ाद किए गए आदमी ने उससे इलतमास की, “मुझे भी अपने साथ जाने दें।” \p \v 19 लेकिन ईसा ने उसे साथ जाने न दिया बल्कि कहा, “अपने घर वापस चला जा और अपने अज़ीज़ों को सब कुछ बता जो रब ने तेरे लिए किया है, कि उसने तुझ पर कितना रहम किया है।” \p \v 20 चुनाँचे आदमी चला गया और दिकपुलिस के इलाक़े में लोगों को बताने लगा कि ईसा ने मेरे लिए क्या कुछ किया है। और सब हैरतज़दा हुए। \s1 याईर की बेटी और बीमार औरत \p \v 21 ईसा ने कश्ती में बैठे झील को दुबारा पार किया। जब दूसरे किनारे पहुँचा तो एक हुजूम उसके गिर्द जमा हो गया। वह अभी झील के पास ही था \v 22 कि मक़ामी इबादतख़ाने का एक राहनुमा उसके पास आया। उसका नाम याईर था। ईसा को देखकर वह उसके पाँवों में गिर गया \v 23 और बहुत मिन्नत करने लगा, “मेरी छोटी बेटी मरनेवाली है, बराहे-करम आकर उस पर अपने हाथ रखें ताकि वह शफ़ा पाकर ज़िंदा रहे।” \p \v 24 चुनाँचे ईसा उसके साथ चल पड़ा। एक बड़ी भीड़ उसके पीछे लग गई और लोग उसे घेरकर हर तरफ़ से दबाने लगे। \p \v 25 हुजूम में एक औरत थी जो बारह साल से ख़ून बहने के मरज़ से रिहाई न पा सकी थी। \v 26 बहुत डाक्टरों से अपना इलाज करवा करवा कर उसे कई तरह की मुसीबत झेलनी पड़ी थी और इतने में उसके तमाम पैसे भी ख़र्च हो गए थे। तो भी कोई फ़ायदा न हुआ था बल्कि उस की हालत मज़ीद ख़राब होती गई। \v 27 ईसा के बारे में सुनकर वह भीड़ में शामिल हो गई थी। अब पीछे से आकर उसने उसके लिबास को छुआ, \v 28 क्योंकि उसने सोचा, “अगर मैं सिर्फ़ उसके लिबास को ही छू लूँ तो मैं शफ़ा पा लूँगी।” \p \v 29 ख़ून बहना फ़ौरन बंद हो गया और उसने अपने जिस्म में महसूस किया कि मुझे इस अज़ियतनाक हालत से रिहाई मिल गई है। \v 30 लेकिन उसी लमहे ईसा को ख़ुद महसूस हुआ कि मुझमें से तवानाई निकली है। उसने मुड़कर पूछा, “किसने मेरे कपड़ों को छुआ है?” \p \v 31 उसके शागिर्दों ने जवाब दिया, “आप ख़ुद देख रहे हैं कि हुजूम आपको घेरकर दबा रहा है। तो फिर आप किस तरह पूछ सकते हैं कि किसने मुझे छुआ?” \p \v 32 लेकिन ईसा अपने चारों तरफ़ देखता रहा कि किसने यह किया है। \v 33 इस पर वह औरत यह जानकर कि मेरे साथ क्या हुआ है ख़ौफ़ के मारे लरज़ती हुई उसके पास आई। वह उसके सामने गिर पड़ी और उसे पूरी हक़ीक़त खोलकर बयान की। \v 34 ईसा ने उससे कहा, “बेटी, तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है। सलामती से जा और अपनी अज़ियतनाक हालत से बची रह।” \p \v 35 ईसा ने यह बात अभी ख़त्म नहीं की थी कि इबादतख़ाने के राहनुमा याईर के घर की तरफ़ से कुछ लोग पहुँचे और कहा, “आपकी बेटी फ़ौत हो चुकी है, अब उस्ताद को मज़ीद तकलीफ़ देने की क्या ज़रूरत?” \p \v 36 उनकी यह बात नज़रंदाज़ करके ईसा ने याईर से कहा, “मत घबराओ, फ़क़त ईमान रखो।” \v 37 फिर ईसा ने हुजूम को रोक लिया और सिर्फ़ पतरस, याक़ूब और उसके भाई यूहन्ना को अपने साथ जाने की इजाज़त दी। \v 38 जब इबादतख़ाने के राहनुमा के घर पहुँचे तो वहाँ बड़ी अफ़रा-तफ़री नज़र आई। लोग ख़ूब गिर्याओ-ज़ारी कर रहे थे। \v 39 अंदर जाकर ईसा ने उनसे कहा, “यह कैसा शोर-शराबा है? क्यों रो रहे हो? लड़की मर नहीं गई बल्कि सो रही है।” \p \v 40 लोग हँसकर उसका मज़ाक़ उड़ाने लगे। लेकिन उसने सबको बाहर निकाल दिया। फिर सिर्फ़ लड़की के वालिदैन और अपने तीन शागिर्दों को साथ लेकर वह उस कमरे में दाख़िल हुआ जिसमें लड़की पड़ी थी। \v 41 उसने उसका हाथ पकड़कर कहा, “तलिथा क़ूम!” इसका मतलब है, “छोटी लड़की, मैं तुझे हुक्म देता हूँ कि जाग उठ!” \p \v 42 लड़की फ़ौरन उठकर चलने-फिरने लगी। उस की उम्र बारह साल थी। यह देखकर लोग घबराकर हैरान रह गए। \v 43 ईसा ने उन्हें संजीदगी से समझाया कि वह किसी को भी इसके बारे में न बताएँ। फिर उसने उन्हें कहा कि उसे खाने को कुछ दो। \c 6 \s1 ईसा को नासरत में रद्द किया जाता है \p \v 1 फिर ईसा वहाँ से चला गया और अपने वतनी शहर नासरत में आया। उसके शागिर्द उसके साथ थे। \v 2 सबत के दिन वह इबादतख़ाने में तालीम देने लगा। बेशतर लोग उस की बातें सुनकर हैरतज़दा हुए। उन्होंने पूछा, “इसे यह कहाँ से हासिल हुआ है? यह हिकमत जो इसे मिली है, और यह मोजिज़े जो इसके हाथों से होते हैं, यह क्या है? \v 3 क्या यह वह बढ़ई नहीं है जो मरियम का बेटा है और जिसके भाई याक़ूब, यूसुफ़, यहूदाह और शमौन हैं? और क्या इसकी बहनें यहीं नहीं रहतीं?” यों उन्होंने उससे ठोकर खाकर उसे क़बूल न किया। \p \v 4 ईसा ने उनसे कहा, “नबी की हर जगह इज़्ज़त होती है सिवाए उसके वतनी शहर, उसके रिश्तेदारों और उसके अपने ख़ानदान के।” \p \v 5 वहाँ वह कोई मोजिज़ा न कर सका। उसने सिर्फ़ चंद एक मरीज़ों पर हाथ रखकर उनको शफ़ा दी। \v 6 और वह उनकी बेएतक़ादी के सबब से बहुत हैरान था। \s1 ईसा बारह शागिर्दों को तबलीग़ करने भेजता है \p इसके बाद ईसा ने इर्दगिर्द के इलाक़े में गाँव गाँव जाकर लोगों को तालीम दी। \v 7 बारह शागिर्दों को बुलाकर वह उन्हें दो दो करके मुख़्तलिफ़ जगहों पर भेजने लगा। इसके लिए उसने उन्हें नापाक रूहों को निकालने का इख़्तियार देकर \v 8 यह हिदायत की, “सफ़र पर अपने साथ कुछ न लेना सिवाए एक लाठी के। न रोटी, न सामान के लिए कोई बैग, न कमरबंद में कोई पैसा, \v 9 न एक से ज़्यादा सूट। तुम जूते पहन सकते हो। \v 10 जिस घर में भी दाख़िल हो उसमें उस मक़ाम से चले जाने तक ठहरो। \v 11 और अगर कोई मक़ाम तुमको क़बूल न करे या तुम्हारी न सुने तो फिर रवाना होते वक़्त अपने पाँवों से गर्द झाड़ दो। यों तुम उनके ख़िलाफ़ गवाही दोगे।” \p \v 12 चुनाँचे शागिर्द वहाँ से निकलकर मुनादी करने लगे कि लोग तौबा करें। \v 13 उन्होंने बहुत-सी बदरूहें निकाल दीं और बहुत-से मरीज़ों पर ज़ैतून का तेल मलकर उन्हें शफ़ा दी। \s1 यहया बपतिस्मा देनेवाले का क़त्ल \p \v 14 बादशाह हेरोदेस अंतिपास ने ईसा के बारे में सुना, क्योंकि उसका नाम मशहूर हो गया था। कुछ कह रहे थे, “यहया बपतिस्मा देनेवाला मुरदों में से जी उठा है, इसलिए इस क़िस्म की मोजिज़ाना ताक़तें उसमें नज़र आती हैं।” \p औरों ने सोचा, “यह इलियास नबी है।” \p \v 15 यह ख़याल भी पेश किया जा रहा था कि वह क़दीम ज़माने के नबियों जैसा कोई नबी है। \p \v 16 लेकिन जब हेरोदेस ने उसके बारे में सुना तो उसने कहा, “यहया जिसका मैंने सर क़लम करवाया है मुरदों में से जी उठा है।” \v 17 वजह यह थी कि हेरोदेस के हुक्म पर ही यहया को गिरिफ़्तार करके जेल में डाला गया था। यह हेरोदियास की ख़ातिर हुआ था जो पहले हेरोदेस के भाई फ़िलिप्पुस की बीवी थी, लेकिन जिससे उसने अब ख़ुद शादी कर ली थी। \v 18 यहया ने हेरोदेस को बताया था, “अपने भाई की बीवी से तेरी शादी नाजायज़ है।” \p \v 19 इस वजह से हेरोदियास उससे कीना रखती और उसे क़त्ल कराना चाहती थी। लेकिन इसमें वह नाकाम रही \v 20 क्योंकि हेरोदेस यहया से डरता था। वह जानता था कि यह आदमी रास्तबाज़ और मुक़द्दस है, इसलिए वह उस की हिफ़ाज़त करता था। जब भी उससे बात होती तो हेरोदेस सुन सुनकर बड़ी उलझन में पड़ जाता। तो भी वह उस की बातें सुनना पसंद करता था। \p \v 21 आख़िरकार हेरोदियास को हेरोदेस की सालगिरह पर अच्छा मौक़ा मिल गया। सालगिरह को मनाने के लिए हेरोदेस ने अपने बड़े सरकारी अफ़सरों, मिल्ट्री कमाँडरों और गलील के अव्वल दर्जे के शहरियों की ज़ियाफ़त की। \v 22 ज़ियाफ़त के दौरान हेरोदियास की बेटी अंदर आकर नाचने लगी। हेरोदेस और उसके मेहमानों को यह बहुत पसंद आया और उसने लड़की से कहा, “जो जी चाहे मुझसे माँग तो मैं वह तुझे दूँगा।” \v 23 बल्कि उसने क़सम खाकर कहा, “जो भी तू माँगेगी मैं तुझे दूँगा, ख़ाह बादशाही का आधा हिस्सा ही क्यों न हो।” \p \v 24 लड़की ने निकलकर अपनी माँ से पूछा, “मैं क्या माँगूँ?” \p माँ ने जवाब दिया, “यहया बपतिस्मा देनेवाले का सर।” \p \v 25 लड़की फुरती से अंदर जाकर बादशाह के पास वापस आई और कहा, “मैं चाहती हूँ कि आप मुझे अभी अभी यहया बपतिस्मा देनेवाले का सर ट्रे में मँगवा दें।” \p \v 26 यह सुनकर बादशाह को बहुत दुख हुआ। लेकिन अपनी क़समों और मेहमानों की मौजूदगी की वजह से वह इनकार करने के लिए भी तैयार नहीं था। \v 27 चुनाँचे उसने फ़ौरन जल्लाद को भेजकर हुक्म दिया कि वह यहया का सर ले आए। जल्लाद ने जेल में जाकर यहया का सर क़लम कर दिया। \v 28 फिर वह उसे ट्रे में रखकर ले आया और लड़की को दे दिया। लड़की ने उसे अपनी माँ के सुपुर्द किया। \v 29 जब यहया के शागिर्दों को यह ख़बर पहुँची तो वह आए और उस की लाश लेकर उसे क़ब्र में रख दिया। \s1 ईसा 5000 अफ़राद को खाना खिलाता है \p \v 30 रसूल वापस आकर ईसा के पास जमा हुए और उसे सब कुछ सुनाने लगे जो उन्होंने किया और सिखाया था। \v 31 इस दौरान इतने लोग आ और जा रहे थे कि उन्हें खाना खाने का मौक़ा भी न मिला। इसलिए ईसा ने बारह शागिर्दों से कहा, “आओ, हम लोगों से अलग होकर किसी ग़ैरआबाद जगह जाएँ और आराम करें।” \v 32 चुनाँचे वह कश्ती पर सवार होकर किसी वीरान जगह चले गए। \p \v 33 लेकिन बहुत-से लोगों ने उन्हें जाते वक़्त पहचान लिया। वह पैदल चलकर तमाम शहरों से निकल आए और दौड़ दौड़कर उनसे पहले मनज़िले-मक़सूद तक पहुँच गए। \v 34 जब ईसा ने कश्ती पर से उतरकर बड़े हुजूम को देखा तो उसे लोगों पर तरस आया, क्योंकि वह उन भेड़ों की मानिंद थे जिनका कोई चरवाहा न हो। वहीं वह उन्हें बहुत-सी बातें सिखाने लगा। \p \v 35 जब दिन ढलने लगा तो उसके शागिर्द उसके पास आए और कहा, “यह जगह वीरान है और दिन ढलने लगा है। \v 36 इनको रुख़सत कर दें ताकि यह इर्दगिर्द की बस्तियों और देहातों में जाकर खाने के लिए कुछ ख़रीद लें।” \p \v 37 लेकिन ईसा ने उन्हें कहा, “तुम ख़ुद इन्हें कुछ खाने को दो।” \p उन्होंने पूछा, “हम इसके लिए दरकार चाँदी के 200 सिक्के कहाँ से लेकर रोटी ख़रीदने जाएँ और इन्हें खिलाएँ?” \p \v 38 उसने कहा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? जाकर पता करो!” \p उन्होंने मालूम किया। फिर दुबारा उसके पास आकर कहने लगे, “हमारे पास पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं।” \p \v 39 इस पर ईसा ने उन्हें हिदायत दी, “तमाम लोगों को गुरोहों में हरी घास पर बिठा दो।” \v 40 चुनाँचे लोग सौ सौ और पचास पचास की सूरत में बैठ गए। \v 41 फिर ईसा ने उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को लेकर आसमान की तरफ़ देखा और शुक्रगुज़ारी की दुआ की। फिर उसने रोटियों को तोड़ तोड़कर शागिर्दों को दिया ताकि वह लोगों में तक़सीम करें। उसने दो मछलियों को भी टुकड़े टुकड़े करके शागिर्दों के ज़रीए उनमें तक़सीम करवाया। \v 42 और सबने जी भरकर खाया। \v 43 जब शागिर्दों ने रोटियों और मछलियों के बचे हुए टुकड़े जमा किए तो बारह टोकरे भर गए। \v 44 खानेवाले मर्दों की कुल तादाद 5,000 थी। \s1 ईसा पानी पर चलता है \p \v 45 इसके ऐन बाद ईसा ने अपने शागिर्दों को मजबूर किया कि वह कश्ती पर सवार होकर आगे निकलें और झील के पार के शहर बैत-सैदा जाएँ। इतने में वह हुजूम को रुख़सत करना चाहता था। \v 46 उन्हें ख़ैरबाद कहने के बाद वह दुआ करने के लिए पहाड़ पर चढ़ गया। \v 47 शाम के वक़्त शागिर्दों की कश्ती झील के बीच तक पहुँच गई थी जबकि ईसा ख़ुद ख़ुश्की पर अकेला रह गया था। \v 48 वहाँ से उसने देखा कि शागिर्द कश्ती को खेने में बड़ी जिद्दो-जहद कर रहे हैं, क्योंकि हवा उनके ख़िलाफ़ चल रही थी। तक़रीबन तीन बजे रात के वक़्त ईसा पानी पर चलते हुए उनके पास आया। वह उनसे आगे निकलना चाहता था, \v 49 लेकिन जब उन्होंने उसे झील की सतह पर चलते हुए देखा तो सोचने लगे, “यह कोई भूत है” और चीख़ें मारने लगे। \v 50 क्योंकि सबने उसे देखकर दहशत खाई। \p लेकिन ईसा फ़ौरन उनसे मुख़ातिब होकर बोला, “हौसला रखो! मैं ही हूँ। मत घबराओ।” \v 51 फिर वह उनके पास आया और कश्ती में बैठ गया। उसी वक़्त हवा थम गई। शागिर्द निहायत ही हैरतज़दा हुए। \v 52 क्योंकि जब रोटियों का मोजिज़ा किया गया था तो वह इसका मतलब नहीं समझे थे बल्कि उनके दिल बेहिस हो गए थे। \s1 गन्नेसरत में मरीज़ों की शफ़ा \p \v 53 झील को पार करके वह गन्नेसरत शहर के पास पहुँच गए और लंगर डाल दिया। \v 54 ज्योंही वह कश्ती से उतरे लोगों ने ईसा को पहचान लिया। \v 55 वह भाग भागकर उस पूरे इलाक़े में से गुज़रे और मरीज़ों को चारपाइयों पर उठा उठाकर वहाँ ले आए जहाँ कहीं उन्हें ख़बर मिली कि वह ठहरा हुआ है। \v 56 जहाँ भी वह गया चाहे गाँव, शहर या बस्ती में, वहाँ लोगों ने बीमारों को चौकों में रखकर उससे मिन्नत की कि वह कम अज़ कम उन्हें अपने लिबास के दामन को छूने दे। और जिसने भी उसे छुआ उसे शफ़ा मिली। \c 7 \s1 बापदादा की तालीम \p \v 1 एक दिन फ़रीसी और शरीअत के कुछ आलिम यरूशलम से ईसा से मिलने आए। \v 2 जब वह वहाँ थे तो उन्होंने देखा कि उसके कुछ शागिर्द अपने हाथ पाक-साफ़ किए बग़ैर यानी धोए बग़ैर खाना खा रहे हैं। \p \v 3 (क्योंकि यहूदी और ख़ासकर फ़रीसी फ़िरक़े के लोग इस मामले में अपने बापदादा की रिवायत को मानते हैं। वह अपने हाथ अच्छी तरह धोए बग़ैर खाना नहीं खाते। \v 4 इसी तरह जब वह कभी बाज़ार से आते हैं तो वह ग़ुस्ल करके ही खाना खाते हैं। वह बहुत-सी और रिवायतों पर भी अमल करते हैं, मसलन कप, जग और केतली को धोकर पाक-साफ़ करने की रस्म पर।) \p \v 5 चुनाँचे फ़रीसियों और शरीअत के आलिमों ने ईसा से पूछा, “आपके शागिर्द बापदादा की रिवायतों के मुताबिक़ ज़िंदगी क्यों नहीं गुज़ारते बल्कि रोटी भी हाथ पाक-साफ़ किए बग़ैर खाते हैं?” \p \v 6 ईसा ने जवाब दिया, “यसायाह नबी ने तुम रियाकारों के बारे में ठीक कहा जब उसने यह नबुव्वत की, \p ‘यह क़ौम अपने होंटों से तो मेरा एहतराम करती है \p लेकिन उसका दिल मुझसे दूर है। \p \v 7 वह मेरी परस्तिश करते तो हैं, लेकिन बेफ़ायदा। \p क्योंकि वह सिर्फ़ इनसान ही के अहकाम सिखाते हैं।’ \p \v 8 तुम अल्लाह के अहकाम को छोड़कर इनसानी रिवायात की पैरवी करते हो।” \p \v 9 ईसा ने अपनी बात जारी रखी, “तुम कितने सलीक़े से अल्लाह का हुक्म मनसूख़ करते हो ताकि अपनी रिवायात को क़ायम रख सको। \v 10 मसलन मूसा ने फ़रमाया, ‘अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना’ और ‘जो अपने बाप या माँ पर लानत करे उसे सज़ाए-मौत दी जाए।’ \v 11 लेकिन जब कोई अपने वालिदैन से कहे, ‘मैं आपकी मदद नहीं कर सकता, क्योंकि मैंने मन्नत मानी है कि जो मुझे आपको देना था वह अल्लाह के लिए क़ुरबानी है’ तो तुम इसे जायज़ क़रार देते हो। \v 12 यों तुम उसे अपने माँ-बाप की मदद करने से रोक लेते हो। \v 13 और इसी तरह तुम अल्लाह के कलाम को अपनी उस रिवायत से मनसूख़ कर लेते हो जो तुमने नसल-दर-नसल मुंतक़िल की है। तुम इस क़िस्म की बहुत-सी हरकतें करते हो।” \s1 क्या कुछ इनसान को नापाक कर देता है? \p \v 14 फिर ईसा ने दुबारा हुजूम को अपने पास बुलाया और कहा, “सब मेरी बात सुनो और इसे समझने की कोशिश करो। \v 15 कोई ऐसी चीज़ है नहीं जो इनसान में दाख़िल होकर उसे नापाक कर सके, बल्कि जो कुछ इनसान के अंदर से निकलता है वही उसे नापाक कर देता है।” \v 16 [अगर कोई सुन सकता है तो वह सुन ले।] \p \v 17 फिर वह हुजूम को छोड़कर किसी घर में दाख़िल हुआ। वहाँ उसके शागिर्दों ने पूछा, “इस तमसील का क्या मतलब है?” \p \v 18 उसने कहा, “क्या तुम भी इतने नासमझ हो? क्या तुम नहीं समझते कि जो कुछ बाहर से इनसान में दाख़िल होता है वह उसे नापाक नहीं कर सकता? \v 19 वह तो उसके दिल में नहीं जाता बल्कि उसके मेदे में और वहाँ से निकलकर जाए-ज़रूरत में।” (यह कहकर ईसा ने हर क़िस्म का खाना पाक-साफ़ क़रार दिया।) \p \v 20 उसने यह भी कहा, “जो कुछ इनसान के अंदर से निकलता है वही उसे नापाक करता है। \v 21 क्योंकि लोगों के अंदर से, उनके दिलों ही से बुरे ख़यालात, हरामकारी, चोरी, क़त्लो-ग़ारत, \v 22 ज़िनाकारी, लालच, बदकारी, धोका, शहवतपरस्ती, हसद, बुहतान, ग़ुरूर और हमाक़त निकलते हैं। \v 23 यह तमाम बुराइयाँ अंदर ही से निकलकर इनसान को नापाक कर देती हैं।” \s1 ग़ैरयहूदी औरत का ईमान \p \v 24 फिर ईसा गलील से रवाना होकर शिमाल में सूर के इलाक़े में आया। वहाँ वह किसी घर में दाख़िल हुआ। वह नहीं चाहता था कि किसी को पता चले, लेकिन वह पोशीदा न रह सका। \v 25 फ़ौरन एक औरत उसके पास आई जिसने उसके बारे में सुन रखा था। वह उसके पाँवों में गिर गई। उस की छोटी बेटी किसी नापाक रूह के क़ब्ज़े में थी, \v 26 और उसने ईसा से गुज़ारिश की, “बदरूह को मेरी बेटी में से निकाल दें।” लेकिन वह औरत यूनानी थी और सूरुफ़ेनीके के इलाक़े में पैदा हुई थी, \v 27 इसलिए ईसा ने उसे बताया, “पहले बच्चों को जी भरकर खाने दे, क्योंकि यह मुनासिब नहीं कि बच्चों से खाना लेकर कुत्तों के सामने फेंक दिया जाए।” \p \v 28 उसने जवाब दिया, “जी ख़ुदावंद, लेकिन मेज़ के नीचे के कुत्ते भी बच्चों के गिरे हुए टुकड़े खाते हैं।” \p \v 29 ईसा ने कहा, “तूने अच्छा जवाब दिया, इसलिए जा, बदरूह तेरी बेटी में से निकल गई है।” \p \v 30 औरत अपने घर वापस चली गई तो देखा कि लड़की बिस्तर पर पड़ी है और बदरूह उसमें से निकल चुकी है। \s1 गूँगे-बहरे की शफ़ा \p \v 31 जब ईसा सूर से रवाना हुआ तो वह पहले शिमाल में वाक़े शहर सैदा को चला गया। फिर वहाँ से भी फ़ारिग़ होकर वह दुबारा गलील की झील के किनारे वाक़े दिकपुलिस के इलाक़े में पहुँच गया। \v 32 वहाँ उसके पास एक बहरा आदमी लाया गया जो मुश्किल ही से बोल सकता था। उन्होंने मिन्नत की कि वह अपना हाथ उस पर रखे। \v 33 ईसा उसे हुजूम से दूर ले गया। उसने अपनी उँगलियाँ उसके कानों में डालीं और थूककर आदमी की ज़बान को छुआ। \v 34 फिर आसमान की तरफ़ नज़र उठाकर उसने आह भरी और उससे कहा, “इफ़्फ़तह!” (इसका मतलब है “खुल जा!”) \p \v 35 फ़ौरन आदमी के कान खुल गए, ज़बान का बंधन टूट गया और वह ठीक ठीक बोलने लगा। \v 36 ईसा ने हाज़िरीन को हुक्म दिया कि वह किसी को यह बात न बताएँ। लेकिन जितना वह मना करता था उतना ही लोग इसकी ख़बर फैलाते थे। \v 37 वह निहायत ही हैरान हुए और कहने लगे, “इसने सब कुछ अच्छा किया है, यह बहरों को सुनने की ताक़त देता है और गूँगों को बोलने की।” \c 8 \s1 ईसा 4000 अफ़राद को खाना खिलाता है \p \v 1 उन दिनों में एक और मरतबा ऐसा हुआ कि बहुत-से लोग जमा हुए जिनके पास खाने का बंदोबस्त नहीं था। चुनाँचे ईसा ने अपने शागिर्दों को बुलाकर उनसे कहा, \v 2 “मुझे इन लोगों पर तरस आता है। इन्हें मेरे साथ ठहरे तीन दिन हो चुके हैं और इनके पास खाने की कोई चीज़ नहीं है। \v 3 लेकिन अगर मैं इन्हें रुख़सत कर दूँ और वह इस भूकी हालत में अपने अपने घर चले जाएँ तो वह रास्ते में थककर चूर हो जाएंगे। और इनमें से कई दूर-दराज़ से आए हैं।” \p \v 4 उसके शागिर्दों ने जवाब दिया, “इस वीरान इलाक़े में कहाँ से इतना खाना मिल सकेगा कि यह खाकर सेर हो जाएँ?” \p \v 5 ईसा ने पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” \p उन्होंने जवाब दिया, “सात।” \p \v 6 ईसा ने हुजूम को ज़मीन पर बैठने को कहा। फिर सात रोटियों को लेकर उसने शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उन्हें तोड़ तोड़कर अपने शागिर्दों को तक़सीम करने के लिए दे दिया। \v 7 उनके पास दो-चार छोटी मछलियाँ भी थीं। ईसा ने उन पर भी शुक्रगुज़ारी की दुआ की और शागिर्दों को उन्हें बाँटने को कहा। \v 8 लोगों ने जी भरकर खाया। बाद में जब खाने के बचे हुए टुकड़े जमा किए गए तो सात बड़े टोकरे भर गए। \v 9 तक़रीबन 4,000 आदमी हाज़िर थे। खाने के बाद ईसा ने उन्हें रुख़सत कर दिया \v 10 और फ़ौरन कश्ती पर सवार होकर अपने शागिर्दों के साथ दल्मनूता के इलाक़े में पहुँच गया। \s1 फ़रीसी इलाही निशान तलब करते हैं \p \v 11 इस पर फ़रीसी निकलकर ईसा के पास आए और उससे बहस करने लगे। उसे आज़माने के लिए उन्होंने मुतालबा किया कि वह उन्हें आसमान की तरफ़ से कोई इलाही निशान दिखाए ताकि उसका इख़्तियार साबित हो जाए। \v 12 लेकिन उसने ठंडी आह भरकर कहा, “यह नसल क्यों इलाही निशान का मुतालबा करती है? मैं तुमको सच बताता हूँ कि इसे कोई निशान नहीं दिया जाएगा।” \p \v 13 और उन्हें छोड़कर वह दुबारा कश्ती में बैठ गया और झील को पार करने लगा। \s1 फ़रीसियों और हेरोदेस का ख़मीर \p \v 14 लेकिन शागिर्द अपने साथ खाना लाना भूल गए थे। कश्ती में उनके पास सिर्फ़ एक रोटी थी। \v 15 ईसा ने उन्हें हिदायत की, “ख़बरदार, फ़रीसियों और हेरोदेस के ख़मीर से होशियार रहना।” \p \v 16 शागिर्द आपस में बहस करने लगे, “वह इसलिए कह रहे होंगे कि हमारे पास रोटी नहीं है।” \p \v 17 ईसा को मालूम हुआ कि वह क्या सोच रहे हैं। उसने कहा, “तुम आपस में क्यों बहस कर रहे हो कि हमारे पास रोटी नहीं है? क्या तुम अब तक न जानते, न समझते हो? क्या तुम्हारे दिल इतने बेहिस हो गए हैं? \v 18 तुम्हारी आँखें तो हैं, क्या तुम देख नहीं सकते? तुम्हारे कान तो हैं, क्या तुम सुन नहीं सकते? और क्या तुम्हें याद नहीं \v 19 जब मैंने 5,000 आदमियों को पाँच रोटियों से सेर कर दिया तो तुमने बचे हुए टुकड़ों के कितने टोकरे उठाए थे?” \p उन्होंने जवाब दिया, “बारह”। \p \v 20 “और जब मैंने 4,000 आदमियों को सात रोटियों से सेर कर दिया तो तुमने बचे हुए टुकड़ों के कितने टोकरे उठाए थे?” \p उन्होंने जवाब दिया, “सात।” \p \v 21 उसने पूछा, “क्या तुम अभी तक नहीं समझते?” \s1 बैत-सैदा में अंधे की शफ़ा \p \v 22 वह बैत-सैदा पहुँचे तो लोग ईसा के पास एक अंधे आदमी को लाए। उन्होंने इलतमास की कि वह उसे छुए। \v 23 ईसा अंधे का हाथ पकड़कर उसे गाँव से बाहर ले गया। वहाँ उसने उस की आँखों पर थूककर अपने हाथ उस पर रख दिए और पूछा, “क्या तू कुछ देख सकता है?” \p \v 24 आदमी ने नज़र उठाकर कहा, “हाँ, मैं लोगों को देख सकता हूँ। वह फिरते हुए दरख़्तों की मानिंद दिखाई दे रहे हैं।” \p \v 25 ईसा ने दुबारा अपने हाथ उस की आँखों पर रखे। इस पर आदमी की आँखें पूरे तौर पर खुल गईं, उस की नज़र बहाल हो गई और वह सब कुछ साफ़ साफ़ देख सकता था। \v 26 ईसा ने उसे रुख़सत करके कहा, “इस गाँव में वापस न जाना बल्कि सीधा अपने घर चला जा।” \s1 पतरस का इक़रार \p \v 27 फिर ईसा वहाँ से निकलकर अपने शागिर्दों के साथ क़ैसरिया-फ़िलिप्पी के क़रीब के देहातों में गया। चलते चलते उसने उनसे पूछा, “मैं लोगों के नज़दीक कौन हूँ?” \p \v 28 उन्होंने जवाब दिया, “कुछ कहते हैं यहया बपतिस्मा देनेवाला, कुछ यह कि आप इलियास नबी हैं। कुछ यह भी कहते हैं कि नबियों में से एक।” \p \v 29 उसने पूछा, “लेकिन तुम क्या कहते हो? तुम्हारे नज़दीक मैं कौन हूँ?” \p पतरस ने जवाब दिया, “आप मसीह हैं।” \p \v 30 यह सुनकर ईसा ने उन्हें किसी को भी यह बात बताने से मना किया। \s1 ईसा अपनी मौत का ज़िक्र करता है \p \v 31 फिर ईसा उन्हें तालीम देने लगा, “लाज़िम है कि इब्ने-आदम बहुत दुख उठाकर बुज़ुर्गों, राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा से रद्द किया जाए। उसे क़त्ल भी किया जाएगा, लेकिन वह तीसरे दिन जी उठेगा।” \v 32 उसने उन्हें यह बात साफ़ साफ़ बताई। इस पर पतरस उसे एक तरफ़ ले जाकर समझाने लगा। \v 33 ईसा मुड़कर शागिर्दों की तरफ़ देखने लगा। उसने पतरस को डाँटा, “शैतान, मेरे सामने से हट जा! तू अल्लाह की सोच नहीं रखता बल्कि इनसान की।” \p \v 34 फिर उसने शागिर्दों के अलावा हुजूम को भी अपने पास बुलाया। उसने कहा, “जो मेरे पीछे आना चाहे वह अपने आपका इनकार करे और अपनी सलीब उठाकर मेरे पीछे हो ले। \v 35 क्योंकि जो अपनी जान को बचाए रखना चाहे वह उसे खो देगा। लेकिन जो मेरी और अल्लाह की ख़ुशख़बरी की ख़ातिर अपनी जान खो दे वही उसे बचाएगा। \v 36 क्या फ़ायदा है अगर किसी को पूरी दुनिया हासिल हो जाए, लेकिन वह अपनी जान से महरूम हो जाए? \v 37 इनसान अपनी जान के बदले क्या दे सकता है? \v 38 जो भी इस ज़िनाकार और गुनाहआलूदा नसल के सामने मेरे और मेरी बातों के सबब से शरमाए उससे इब्ने-आदम भी उस वक़्त शरमाएगा जब वह अपने बाप के जलाल में मुक़द्दस फ़रिश्तों के साथ आएगा।” \c 9 \p \v 1 ईसा ने उन्हें यह भी बताया, “मैं तुमको सच बताता हूँ, यहाँ कुछ ऐसे लोग खड़े हैं जो मरने से पहले ही अल्लाह की बादशाही को क़ुदरत के साथ आते हुए देखेंगे।” \s1 पहाड़ पर ईसा की सूरत बदल जाती है \p \v 2 छः दिन के बाद ईसा सिर्फ़ पतरस, याक़ूब और यूहन्ना को अपने साथ लेकर ऊँचे पहाड़ पर चढ़ गया। वहाँ उस की शक्लो-सूरत उनके सामने बदल गई। \v 3 उसके कपड़े चमकने लगे और निहायत सफ़ेद हो गए। दुनिया में कोई भी धोबी कपड़े इतने सफ़ेद नहीं कर सकता। \v 4 फिर इलियास और मूसा ज़ाहिर हुए और ईसा से बात करने लगे। \v 5 पतरस बोल उठा, “उस्ताद, कितनी अच्छी बात है कि हम यहाँ हैं। आएँ, हम तीन झोंपड़ियाँ बनाएँ, एक आपके लिए, एक मूसा के लिए और एक इलियास के लिए।” \v 6 उसने यह इसलिए कहा कि तीनों शागिर्द सहमे हुए थे और वह नहीं जानता था कि क्या कहे। \p \v 7 इस पर एक बादल आकर उन पर छा गया और बादल में से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा प्यारा फ़रज़ंद है। इसकी सुनो।” \v 8 अचानक मूसा और इलियास ग़ायब हो गए। शागिर्दों ने चारों तरफ़ देखा, लेकिन सिर्फ़ ईसा नज़र आया। \p \v 9 वह पहाड़ से उतरने लगे तो ईसा ने उन्हें हुक्म दिया, “जो कुछ तुमने देखा है उसे उस वक़्त तक किसी को न बताना जब तक कि इब्ने-आदम मुरदों में से जी न उठे।” \p \v 10 चुनाँचे उन्होंने यह बात अपने तक महदूद रखी। लेकिन वह कई बार आपस में बहस करने लगे कि मुरदों में से जी उठने से क्या मुराद हो सकती है। \v 11 फिर उन्होंने उससे पूछा, “शरीअत के उलमा क्यों कहते हैं कि मसीह की आमद से पहले इलियास का आना ज़रूरी है?” \p \v 12 ईसा ने जवाब दिया, “इलियास तो ज़रूर पहले सब कुछ बहाल करने के लिए आएगा। लेकिन कलामे-मुक़द्दस में इब्ने-आदम के बारे में यह क्यों लिखा है कि उसे बहुत दुख उठाना और हक़ीर समझा जाना है? \v 13 लेकिन मैं तुमको बताता हूँ, इलियास तो आ चुका है और उन्होंने उसके साथ जो चाहा किया। यह भी कलामे-मुक़द्दस के मुताबिक़ ही हुआ है।” \s1 ईसा लड़के में से बदरूह निकालता है \p \v 14 जब वह बाक़ी शागिर्दों के पास वापस पहुँचे तो उन्होंने देखा कि उनके गिर्द एक बड़ा हुजूम जमा है और शरीअत के कुछ उलमा उनके साथ बहस कर रहे हैं। \v 15 ईसा को देखते ही लोगों ने बड़ी बेचैनी से उस की तरफ़ दौड़कर उसे सलाम किया। \v 16 उसने शागिर्दों से सवाल किया, “तुम उनके साथ किसके बारे में बहस कर रहे हो?” \p \v 17 हुजूम में से एक आदमी ने जवाब दिया, “उस्ताद, मैं अपने बेटे को आपके पास लाया था। वह ऐसी बदरूह के क़ब्ज़े में है जो उसे बोलने नहीं देती। \v 18 और जब भी वह उस पर ग़ालिब आती है वह उसे ज़मीन पर पटक देती है। बेटे के मुँह से झाग निकलने लगता और वह दाँत पीसने लगता है। फिर उसका जिस्म अकड़ जाता है। मैंने आपके शागिर्दों से कहा तो था कि वह बदरूह को निकाल दें, लेकिन वह न निकाल सके।” \p \v 19 ईसा ने उनसे कहा, “ईमान से ख़ाली नसल! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ, कब तक तुम्हें बरदाश्त करूँ? लड़के को मेरे पास ले आओ।” \v 20 वह उसे ईसा के पास ले आए। \p ईसा को देखते ही बदरूह लड़के को झँझोड़ने लगी। वह ज़मीन पर गिर गया और इधर-उधर लुढ़कते हुए मुँह से झाग निकालने लगा। \v 21 ईसा ने बाप से पूछा, “इसके साथ कब से ऐसा हो रहा है?” \p उसने जवाब दिया, “बचपन से। \v 22 बहुत दफ़ा उसने इसे हलाक करने की ख़ातिर आग या पानी में गिराया है। अगर आप कुछ कर सकते हैं तो तरस खाकर हमारी मदद करें।” \p \v 23 ईसा ने पूछा, “क्या मतलब, ‘अगर आप कुछ कर सकते हैं’? जो ईमान रखता है उसके लिए सब कुछ मुमकिन है।” \p \v 24 लड़के का बाप फ़ौरन चिल्ला उठा, “मैं ईमान रखता हूँ। मेरी बेएतक़ादी का इलाज करें।” \p \v 25 ईसा ने देखा कि बहुत-से लोग दौड़ दौड़कर देखने आ रहे हैं, इसलिए उसने नापाक रूह को डाँटा, “ऐ गूँगी और बहरी बदरूह, मैं तुझे हुक्म देता हूँ कि इसमें से निकल जा। कभी भी इसमें दुबारा दाख़िल न होना!” \p \v 26 इस पर बदरूह चीख़ उठी और लड़के को शिद्दत से झँझोड़कर निकल गई। लड़का लाश की तरह ज़मीन पर पड़ा रहा, इसलिए सबने कहा, “वह मर गया है।” \v 27 लेकिन ईसा ने उसका हाथ पकड़कर उठने में उस की मदद की और वह खड़ा हो गया। \p \v 28 बाद में जब ईसा किसी घर में जाकर अपने शागिर्दों के साथ अकेला था तो उन्होंने उससे पूछा, “हम बदरूह को क्यों न निकाल सके?” \p \v 29 उसने जवाब दिया, “इस क़िस्म की बदरूह सिर्फ़ दुआ से निकाली जा सकती है।” \s1 ईसा दूसरी दफ़ा अपनी मौत का ज़िक्र करता है \p \v 30 वहाँ से निकलकर वह गलील में से गुज़रे। ईसा नहीं चाहता था कि किसी को पता चले कि वह कहाँ है, \v 31 क्योंकि वह अपने शागिर्दों को तालीम दे रहा था। उसने उनसे कहा, “इब्ने-आदम को आदमियों के हवाले कर दिया जाएगा। वह उसे क़त्ल करेंगे, लेकिन तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।” \p \v 32 लेकिन शागिर्द इसका मतलब न समझे और वह ईसा से इसके बारे में पूछने से डरते भी थे। \s1 कौन सबसे बड़ा है? \p \v 33 चलते चलते वह कफ़र्नहूम पहुँचे। जब वह किसी घर में थे तो ईसा ने शागिर्दों से सवाल किया, “रास्ते में तुम किस बात पर बहस कर रहे थे?” \p \v 34 लेकिन वह ख़ामोश रहे, क्योंकि वह रास्ते में इस पर बहस कर रहे थे कि हममें से बड़ा कौन है? \v 35 ईसा बैठ गया और बारह शागिर्दों को बुलाकर कहा, “जो अव्वल होना चाहता है वह सबसे आख़िर में आए और सबका ख़ादिम हो।” \v 36 फिर उसने एक छोटे बच्चे को लेकर उनके दरमियान खड़ा किया। उसे गले लगाकर उसने उनसे कहा, \v 37 “जो मेरे नाम में इन बच्चों में से किसी को क़बूल करता है वह मुझे ही क़बूल करता है। और जो मुझे क़बूल करता है वह मुझे नहीं बल्कि उसे क़बूल करता है जिसने मुझे भेजा है।” \s1 जो हमारे ख़िलाफ़ नहीं वह हमारे हक़ में है \p \v 38 यूहन्ना बोल उठा, “उस्ताद, हमने एक शख़्स को देखा जो आपका नाम लेकर बदरूहें निकाल रहा था। हमने उसे मना किया, क्योंकि वह हमारी पैरवी नहीं करता।” \p \v 39 लेकिन ईसा ने कहा, “उसे मना न करना। जो भी मेरे नाम में मोजिज़ा करे वह अगले लमहे मेरे बारे में बुरी बातें नहीं कह सकेगा। \v 40 क्योंकि जो हमारे ख़िलाफ़ नहीं वह हमारे हक़ में है। \v 41 मैं तुमको सच बताता हूँ, जो भी तुम्हें इस वजह से पानी का गलास पिलाए कि तुम मसीह के पैरोकार हो उसे ज़रूर अज्र मिलेगा। \s1 आज़माइशें \p \v 42 और जो कोई मुझ पर ईमान रखनेवाले इन छोटों में से किसी को गुनाह करने पर उकसाए उसके लिए बेहतर है कि उसके गले में बड़ी चक्की का पाट बाँधकर उसे समुंदर में फेंक दिया जाए। \v 43-44 अगर तेरा हाथ तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे काट डालना। इससे पहले कि तू दो हाथों समेत जहन्नुम की कभी न बुझनेवाली आग में चला जाए [यानी वहाँ जहाँ लोगों को खानेवाले कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती] बेहतर यह है कि तू एक हाथ से महरूम होकर अबदी ज़िंदगी में दाख़िल हो। \v 45-46 अगर तेरा पाँव तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे काट डालना। इससे पहले कि तुझे दो पाँवों समेत जहन्नुम में फेंका जाए [जहाँ लोगों को खानेवाले कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती] बेहतर यह है कि तू एक पाँव से महरूम होकर अबदी ज़िंदगी में दाख़िल हो। \v 47-48 और अगर तेरी आँख तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे निकाल देना। इससे पहले कि तुझे दो आँखों समेत जहन्नुम में फेंका जाए जहाँ लोगों को खानेवाले कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती बेहतर यह है कि तू एक आँख से महरूम होकर अल्लाह की बादशाही में दाख़िल हो। \p \v 49 क्योंकि हर एक को आग से नमकीन किया जाएगा [और हर एक क़ुरबानी नमक से नमकीन की जाएगी]। \p \v 50 नमक अच्छी चीज़ है। लेकिन अगर उसका ज़ायक़ा जाता रहे तो उसे क्योंकर दुबारा नमकीन किया जा सकता है? अपने दरमियान नमक की खूबियाँ बरक़रार रखो और सुलह-सलामती से एक दूसरे के साथ ज़िंदगी गुज़ारो।” \c 10 \s1 तलाक़ के बारे में तालीम \p \v 1 फिर ईसा उस जगह को छोड़कर यहूदिया के इलाक़े में और दरियाए-यरदन के पार चला गया। वहाँ भी हुजूम जमा हो गया। उसने उन्हें मामूल के मुताबिक़ तालीम दी। \p \v 2 कुछ फ़रीसी आए और उसे फँसाने की ग़रज़ से सवाल किया, “क्या जायज़ है कि मर्द अपनी बीवी को तलाक़ दे?” \p \v 3 ईसा ने उनसे पूछा, “मूसा ने शरीअत में तुमको क्या हिदायत की है?” \p \v 4 उन्होंने कहा, “उसने इजाज़त दी है कि आदमी तलाक़नामा लिखकर बीवी को रुख़सत कर दे।” \p \v 5 ईसा ने जवाब दिया, “मूसा ने तुम्हारी सख़्तदिली की वजह से तुम्हारे लिए यह हुक्म लिखा था। \v 6 लेकिन इब्तिदा में ऐसा नहीं था। दुनिया की तख़लीक़ के वक़्त अल्लाह ने उन्हें मर्द और औरत बनाया। \v 7 ‘इसलिए मर्द अपने माँ-बाप को छोड़कर अपनी बीवी के साथ पैवस्त हो जाता है। \v 8 वह दोनों एक हो जाते हैं।’ यों वह कलामे-मुक़द्दस के मुताबिक़ दो नहीं रहते बल्कि एक हो जाते हैं। \v 9 तो जिसे अल्लाह ने ख़ुद जोड़ा है उसे इनसान जुदा न करे।” \p \v 10 किसी घर में आकर शागिर्दों ने यह बात दुबारा छेड़कर ईसा से मज़ीद दरियाफ़्त किया। \v 11 उसने उन्हें बताया, “जो अपनी बीवी को तलाक़ देकर किसी और से शादी करे वह उसके साथ ज़िना करता है। \v 12 और जो औरत अपने ख़ाविंद को तलाक़ देकर किसी और से शादी करे वह भी ज़िना करती है।” \s1 ईसा छोटे बच्चों को बरकत देता है \p \v 13 एक दिन लोग अपने छोटे बच्चों को ईसा के पास लाए ताकि वह उन्हें छुए। लेकिन शागिर्दों ने उनको मलामत की। \v 14 यह देखकर ईसा नाराज़ हुआ। उसने उनसे कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें न रोको, क्योंकि अल्लाह की बादशाही इन जैसे लोगों को हासिल है। \v 15 मैं तुमको सच बताता हूँ, जो अल्लाह की बादशाही को बच्चे की तरह क़बूल न करे वह उसमें दाख़िल नहीं होगा।” \v 16 यह कहकर उसने उन्हें गले लगाया और अपने हाथ उन पर रखकर उन्हें बरकत दी। \s1 अमीर मुश्किल से बादशाही में दाख़िल हो सकते हैं \p \v 17 जब ईसा रवाना होने लगा तो एक आदमी दौड़कर उसके पास आया और उसके सामने घुटने टेककर पूछा, “नेक उस्ताद, मैं क्या करूँ ताकि अबदी ज़िंदगी मीरास में पाऊँ?” \p \v 18 ईसा ने पूछा, “तू मुझे नेक क्यों कहता है? कोई नेक नहीं सिवाए एक के और वह है अल्लाह। \v 19 तू शरीअत के अहकाम से तो वाक़िफ़ है। क़त्ल न करना, ज़िना न करना, चोरी न करना, झूटी गवाही न देना, धोका न देना, अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना।” \p \v 20 आदमी ने जवाब दिया, “उस्ताद, मैंने जवानी से आज तक इन तमाम अहकाम की पैरवी की है।” \p \v 21 ईसा ने ग़ौर से उस की तरफ़ देखा। उसके दिल में उसके लिए प्यार उभर आया। वह बोला, “एक काम रह गया है। जा, अपनी पूरी जायदाद फ़रोख़्त करके पैसे ग़रीबों में तक़सीम कर दे। फिर तेरे लिए आसमान पर ख़ज़ाना जमा हो जाएगा। इसके बाद आकर मेरे पीछे हो ले।” \v 22 यह सुनकर आदमी का मुँह लटक गया और वह मायूस होकर चला गया, क्योंकि वह निहायत दौलतमंद था। \p \v 23 ईसा ने अपने इर्दगिर्द देखकर शागिर्दों से कहा, “दौलतमंदों के लिए अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होना कितना मुश्किल है!” \p \v 24 शागिर्द उसके यह अलफ़ाज़ सुनकर हैरान हुए। लेकिन ईसा ने दुबारा कहा, “बच्चो! अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होना कितना मुश्किल है। \v 25 अमीर के अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होने की निसबत ज़्यादा आसान यह है कि ऊँट सूई के नाके में से गुज़र जाए।” \p \v 26 इस पर शागिर्द मज़ीद हैरतज़दा हुए और एक दूसरे से कहने लगे, “फिर किस को नजात मिल सकती है?” \p \v 27 ईसा ने ग़ौर से उनकी तरफ़ देखकर जवाब दिया, “यह इनसान के लिए तो नामुमकिन है, लेकिन अल्लाह के लिए नहीं। उसके लिए सब कुछ मुमकिन है।” \p \v 28 फिर पतरस बोल उठा, “हम तो अपना सब कुछ छोड़कर आपके पीछे हो लिए हैं।” \p \v 29 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुमको सच बताता हूँ, जिसने भी मेरी और अल्लाह की ख़ुशख़बरी की ख़ातिर अपने घर, भाइयों, बहनों, माँ, बाप, बच्चों या खेतों को छोड़ दिया है \v 30 उसे इस ज़माने में ईज़ारसानी के साथ साथ सौ गुना ज़्यादा घर, भाई, बहनें, माएँ, बच्चे और खेत मिल जाएंगे। और आनेवाले ज़माने में उसे अबदी ज़िंदगी मिलेगी। \v 31 लेकिन बहुत-से लोग जो अब अव्वल हैं उस वक़्त आख़िर होंगे और जो अब आख़िर हैं वह अव्वल होंगे।” \s1 ईसा तीसरी दफ़ा अपनी मौत का ज़िक्र करता है \p \v 32 अब वह यरूशलम की तरफ़ बढ़ रहे थे और ईसा उनके आगे आगे चल रहा था। शागिर्द हैरतज़दा थे जबकि उनके पीछे चलनेवाले लोग सहमे हुए थे। एक और दफ़ा बारह शागिर्दों को एक तरफ़ ले जाकर ईसा उन्हें वह कुछ बताने लगा जो उसके साथ होने को था। \v 33 उसने कहा, “हम यरूशलम की तरफ़ बढ़ रहे हैं। वहाँ इब्ने-आदम को राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा के हवाले कर दिया जाएगा। वह उस पर सज़ाए-मौत का फ़तवा देकर उसे ग़ैरयहूदियों के हवाले कर देंगे, \v 34 जो उसका मज़ाक़ उड़ाएँगे, उस पर थूकेंगे, उसको कोड़े मारेंगे और उसे क़त्ल करेंगे। लेकिन तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।” \s1 याक़ूब और यूहन्ना की गुज़ारिश \p \v 35 फिर ज़बदी के बेटे याक़ूब और यूहन्ना उसके पास आए। वह कहने लगे, “उस्ताद, आपसे एक गुज़ारिश है।” \p \v 36 उसने पूछा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूँ?” \p \v 37 उन्होंने जवाब दिया, “जब आप अपने जलाली तख़्त पर बैठेंगे तो हममें से एक को अपने दाएँ हाथ बैठने दें और दूसरे को बाएँ हाथ।” \p \v 38 ईसा ने कहा, “तुमको नहीं मालूम कि क्या माँग रहे हो। क्या तुम वह प्याला पी सकते हो जो मैं पीने को हूँ या वह बपतिस्मा ले सकते हो जो मैं लेने को हूँ?” \p \v 39 उन्होंने जवाब दिया, “जी, हम कर सकते हैं।” फिर ईसा ने उनसे कहा, “तुम ज़रूर वह प्याला पियोगे जो मैं पीने को हूँ और वह बपतिस्मा लोगे जो मैं लेने को हूँ। \v 40 लेकिन यह फ़ैसला करना मेरा काम नहीं कि कौन मेरे दाएँ हाथ बैठेगा और कौन बाएँ हाथ। अल्लाह ने यह मक़ाम सिर्फ़ उन्हीं के लिए तैयार किया है जिनको उसने ख़ुद मुक़र्रर किया है।” \p \v 41 जब बाक़ी दस शागिर्दों ने यह सुना तो उन्हें याक़ूब और यूहन्ना पर ग़ुस्सा आया। \v 42 इस पर ईसा ने उन सबको बुलाकर कहा, “तुम जानते हो कि क़ौमों के हुक्मरान अपनी रिआया पर रोब डालते हैं, और उनके बड़े अफ़सर उन पर अपने इख़्तियार का ग़लत इस्तेमाल करते हैं। \v 43 लेकिन तुम्हारे दरमियान ऐसा नहीं है। जो तुममें बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा ख़ादिम बने \v 44 और जो तुममें अव्वल होना चाहे वह सबका ग़ुलाम बने। \v 45 क्योंकि इब्ने-आदम भी इसलिए नहीं आया कि ख़िदमत ले बल्कि इसलिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान फ़िद्या के तौर पर देकर बहुतों को छुड़ाए।” \s1 अंधे बरतिमाई की शफ़ा \p \v 46 वह यरीहू पहुँच गए। उसमें से गुज़रकर ईसा शागिर्दों और एक बड़े हुजूम के साथ बाहर निकलने लगा। वहाँ एक अंधा भीक माँगनेवाला रास्ते के किनारे बैठा था। उसका नाम बरतिमाई (तिमाई का बेटा) था। \v 47 जब उसने सुना कि ईसा नासरी क़रीब ही है तो वह चिल्लाने लगा, “ईसा इब्ने-दाऊद, मुझ पर रहम करें!” \p \v 48 बहुत-से लोगों ने उसे डाँटकर कहा, “ख़ामोश!” लेकिन वह मज़ीद ऊँची आवाज़ से पुकारता रहा, “इब्ने-दाऊद, मुझ पर रहम करें!” \p \v 49 ईसा रुककर बोला, “उसे बुलाओ।” \p चुनाँचे उन्होंने उसे बुलाकर कहा, “हौसला रख। उठ, वह तुझे बुला रहा है।” \p \v 50 बरतिमाई ने अपनी चादर ज़मीन पर फेंक दी और उछलकर ईसा के पास आया। \p \v 51 ईसा ने पूछा, “तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?” \p उसने जवाब दिया, “उस्ताद, यह कि मैं देख सकूँ।” \p \v 52 ईसा ने कहा, “जा, तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है।” \p ज्योंही ईसा ने यह कहा अंधे की आँखें बहाल हो गईं और वह ईसा के पीछे चलने लगा। \c 11 \s1 यरूशलम में ईसा का पुरजोश इस्तक़बाल \p \v 1 वह यरूशलम के क़रीब बैत-फ़गे और बैत-अनियाह पहुँचने लगे। यह गाँव ज़ैतून के पहाड़ पर वाक़े थे। ईसा ने अपने शागिर्दों में से दो को भेजा \v 2 और कहा, “सामनेवाले गाँव में जाओ। वहाँ तुम एक जवान गधा देखोगे। वह बँधा हुआ होगा और अब तक कोई भी उस पर सवार नहीं हुआ है। उसे खोलकर यहाँ ले आओ। \v 3 अगर कोई पूछे कि यह क्या कर रहे हो तो उसे बता देना, ‘ख़ुदावंद को इसकी ज़रूरत है। वह जल्द ही इसे वापस भेज देंगे’।” \p \v 4 दोनों शागिर्द वहाँ गए तो एक जवान गधा देखा जो बाहर गली में किसी दरवाज़े के साथ बँधा हुआ था। जब वह उस की रस्सी खोलने लगे \v 5 तो वहाँ खड़े कुछ लोगों ने पूछा, “तुम यह क्या कर रहे हो? जवान गधे को क्यों खोल रहे हो?” \p \v 6 उन्होंने जवाब में वह कुछ बता दिया जो ईसा ने उन्हें कहा था। इस पर लोगों ने उन्हें खोलने दिया। \v 7 वह जवान गधे को ईसा के पास ले आए और अपने कपड़े उस पर रख दिए। फिर ईसा उस पर सवार हुआ। \v 8 जब वह चल पड़ा तो बहुत-से लोगों ने उसके आगे आगे रास्ते में अपने कपड़े बिछा दिए। बाज़ ने हरी शाख़ें भी उसके आगे बिछा दीं जो उन्होंने खेतों के दरख़्तों से काट ली थीं। \v 9 लोग ईसा के आगे और पीछे चल रहे थे और चिल्ला चिल्लाकर नारे लगा रहे थे, \p “होशाना! \f + \fr 11:9 \ft होशाना (इबरानी : मेहरबानी करके हमें बचा)। यहाँ इसमें हम्दो-सना का उनसुर भी पाया जाता है। \f* \p मुबारक है वह जो रब के नाम से आता है। \v 10 मुबारक है हमारे बाप दाऊद की बादशाही जो आ रही है। \p आसमान की बुलंदियों पर होशाना।” \f + \fr 11:10 \ft होशाना (इबरानी : मेहरबानी करके हमें बचा)। यहाँ इसमें हम्दो-सना का उनसुर भी पाया जाता है। \f* \p \v 11 यों ईसा यरूशलम में दाख़िल हुआ। वह बैतुल-मुक़द्दस में गया और अपने इर्दगिर्द नज़र दौड़ाकर सब कुछ देखने के बाद चला गया। चूँकि शाम का पिछला वक़्त था इसलिए वह बारह शागिर्दों समेत शहर से निकलकर बैत-अनियाह वापस गया। \s1 अंजीर के दरख़्त पर लानत \p \v 12 अगले दिन जब वह बैत-अनियाह से निकल रहे थे तो ईसा को भूक लगी। \v 13 उसने कुछ फ़ासले पर अंजीर का एक दरख़्त देखा जिस पर पत्ते थे। इसलिए वह यह देखने के लिए उसके पास गया कि आया कोई फल लगा है या नहीं। लेकिन जब वह वहाँ पहुँचा तो देखा कि पत्ते ही पत्ते हैं। वजह यह थी कि अंजीर का मौसम नहीं था। \v 14 इस पर ईसा ने दरख़्त से कहा, “अब से हमेशा तक तुझसे फल खाया न जा सके!” उसके शागिर्दों ने उस की यह बात सुन ली। \s1 ईसा बैतुल-मुक़द्दस में जाता है \p \v 15 वह यरूशलम पहुँच गए। और ईसा बैतुल-मुक़द्दस में जाकर उन्हें निकालने लगा जो वहाँ क़ुरबानियों के लिए दरकार चीज़ों की ख़रीदो-फ़रोख़्त कर रहे थे। उसने सिक्कों का तबादला करनेवालों की मेज़ें और कबूतर बेचनेवालों की कुरसियाँ उलट दीं \v 16 और जो तिजारती माल लेकर बैतुल-मुक़द्दस के सहनों में से गुज़र रहे थे उन्हें रोक लिया। \v 17 तालीम देकर उसने कहा, “क्या कलामे-मुक़द्दस में नहीं लिखा है, ‘मेरा घर तमाम क़ौमों के लिए दुआ का घर कहलाएगा’? लेकिन तुमने उसे डाकुओं के अड्डे में बदल दिया है।” \p \v 18 राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा ने जब यह सुना तो उसे क़त्ल करने का मौक़ा ढूँडने लगे। क्योंकि वह उससे डरते थे इसलिए कि पूरा हुजूम उस की तालीम से निहायत हैरान था। \p \v 19 जब शाम हुई तो ईसा और उसके शागिर्द शहर से निकल गए। \s1 अंजीर के दरख़्त से सबक़ \p \v 20 अगले दिन वह सुबह-सवेरे अंजीर के उस दरख़्त के पास से गुज़रे जिस पर ईसा ने लानत भेजी थी। जब उन्होंने उस पर ग़ौर किया तो मालूम हुआ कि वह जड़ों तक सूख गया है। \v 21 तब पतरस को वह बात याद आई जो ईसा ने कल अंजीर के दरख़्त से की थी। उसने कहा, “उस्ताद, यह देखें! अंजीर के जिस दरख़्त पर आपने लानत भेजी थी वह सूख गया है।” \p \v 22 ईसा ने जवाब दिया, “अल्लाह पर ईमान रखो। \v 23 मैं तुमको सच बताता हूँ कि अगर कोई इस पहाड़ से कहे, ‘उठ, अपने आपको समुंदर में गिरा दे’ तो यह हो जाएगा। शर्त सिर्फ़ यह है कि वह शक न करे बल्कि ईमान रखे कि जो कुछ उसने कहा है वह उसके लिए हो जाएगा। \v 24 इसलिए मैं तुमको बताता हूँ, जब भी तुम दुआ करके कुछ माँगते हो तो ईमान रखो कि तुमको मिल गया है। फिर वह तुम्हें ज़रूर मिल जाएगा। \v 25 और जब तुम खड़े होकर दुआ करते हो तो अगर तुम्हें किसी से शिकायत हो तो पहले उसे मुआफ़ करो ताकि आसमान पर तुम्हारा बाप भी तुम्हारे गुनाहों को मुआफ़ करे। \v 26 [और अगर तुम मुआफ़ न करो तो तुम्हारा आसमानी बाप तुम्हारे गुनाह भी मुआफ़ नहीं करेगा।]” \s1 किसने ईसा को इख़्तियार दिया? \p \v 27 वह एक और दफ़ा यरूशलम पहुँच गए। और जब ईसा बैतुल-मुक़द्दस में फिर रहा था तो राहनुमा इमाम, शरीअत के उलमा और बुज़ुर्ग उसके पास आए। \v 28 उन्होंने पूछा, “आप यह सब कुछ किस इख़्तियार से कर रहे हैं? किसने आपको यह करने का इख़्तियार दिया है?” \p \v 29 ईसा ने जवाब दिया, “मेरा भी तुमसे एक सवाल है। इसका जवाब दो तो फिर तुमको बता दूँगा कि मैं यह किस इख़्तियार से कर रहा हूँ। \v 30 मुझे बताओ, क्या यहया का बपतिस्मा आसमानी था या इनसानी?” \p \v 31 वह आपस में बहस करने लगे, “अगर हम कहें ‘आसमानी’ तो वह पूछेगा, ‘तो फिर तुम उस पर ईमान क्यों न लाए?’ \v 32 लेकिन हम कैसे कह सकते हैं कि वह इनसानी था?” वजह यह थी कि वह आम लोगों से डरते थे, क्योंकि सब मानते थे कि यहया वाक़ई नबी था। \v 33 चुनाँचे उन्होंने जवाब दिया, “हम नहीं जानते।” \p ईसा ने कहा, “तो फिर मैं भी तुमको नहीं बताता कि मैं यह सब कुछ किस इख़्तियार से कर रहा हूँ।” \c 12 \s1 अंगूर के बाग़ के मुज़ारेओं की बग़ावत \p \v 1 फिर वह तमसीलों में उनसे बात करने लगा। “किसी आदमी ने अंगूर का एक बाग़ लगाया। उसने उस की चारदीवारी बनाई, अंगूरों का रस निकालने के लिए एक गढ़े की खुदाई की और पहरेदारों के लिए बुर्ज तामीर किया। फिर वह उसे मुज़ारेओं के सुपुर्द करके बैरूने-मुल्क चला गया। \v 2 जब अंगूर पक गए तो उसने अपने नौकर को मुज़ारेओं के पास भेज दिया ताकि वह उनसे मालिक का हिस्सा वसूल करे। \v 3 लेकिन मुज़ारेओं ने उसे पकड़कर उस की पिटाई की और उसे ख़ाली हाथ लौटा दिया। \v 4 फिर मालिक ने एक और नौकर को भेज दिया। लेकिन उन्होंने उस की भी बेइज़्ज़ती करके उसका सर फोड़ दिया। \v 5 जब मालिक ने तीसरे नौकर को भेजा तो उन्होंने उसे मार डाला। यों उसने कई एक को भेजा। बाज़ को उन्होंने मारा पीटा, बाज़ को क़त्ल किया। \v 6 आख़िरकार सिर्फ़ एक बाक़ी रह गया था। वह था उसका प्यारा बेटा। अब उसने उसे भेजकर कहा, ‘आख़िर मेरे बेटे का तो लिहाज़ करेंगे।’ \v 7 लेकिन मुज़ारे एक दूसरे से कहने लगे, ‘यह ज़मीन का वारिस है। आओ हम इसे मार डालें तो फिर इसकी मीरास हमारी ही होगी।’ \v 8 उन्होंने उसे पकड़कर क़त्ल किया और बाग़ से बाहर फेंक दिया। \p \v 9 अब बताओ, बाग़ का मालिक क्या करेगा? वह जाकर मुज़ारेओं को हलाक करेगा और बाग़ को दूसरों के सुपुर्द कर देगा। \v 10 क्या तुमने कलामे-मुक़द्दस का यह हवाला नहीं पढ़ा, \p ‘जिस पत्थर को मकान बनानेवालों ने रद्द किया \p वह कोने का बुनियादी पत्थर बन गया। \p \v 11 यह रब ने किया \p और देखने में कितना हैरतअंगेज़ है’।” \p \v 12 इस पर दीनी राहनुमाओं ने ईसा को गिरिफ़्तार करने की कोशिश की, क्योंकि वह समझ गए थे कि तमसील में बयानशुदा मुज़ारे हम ही हैं। लेकिन वह हुजूम से डरते थे, इसलिए वह उसे छोड़कर चले गए। \s1 क्या टैक्स देना जायज़ है? \p \v 13 बाद में उन्होंने कुछ फ़रीसियों और हेरोदेस के पैरोकारों को उसके पास भेज दिया ताकि वह उसे कोई ऐसी बात करने पर उभारें जिससे उसे पकड़ा जा सके। \v 14 वह उसके पास आकर कहने लगे, “उस्ताद, हम जानते हैं कि आप सच्चे हैं और किसी की परवा नहीं करते। आप जानिबदार नहीं होते बल्कि दियानतदारी से अल्लाह की राह की तालीम देते हैं। अब हमें बताएँ कि क्या रोमी शहनशाह को टैक्स देना जायज़ है या नाजायज़? क्या हम अदा करें या न करें?” \p \v 15 लेकिन ईसा ने उनकी रियाकारी जानकर उनसे कहा, “मुझे क्यों फँसाना चाहते हो? चाँदी का एक रोमी सिक्का मेरे पास ले आओ।” \p \v 16 वह एक सिक्का उसके पास ले आए तो उसने पूछा, “किसकी सूरत और नाम इस पर कंदा है?” उन्होंने जवाब दिया, “शहनशाह का।” \p \v 17 उसने कहा, “तो जो शहनशाह का है शहनशाह को दो और जो अल्लाह का है अल्लाह को।” \p उसका यह जवाब सुनकर उन्होंने बड़ा ताज्जुब किया। \s1 क्या हम जी उठेंगे? \p \v 18 फिर कुछ सदूक़ी ईसा के पास आए। सदूक़ी नहीं मानते कि रोज़े-क़ियामत मुरदे जी उठेंगे। उन्होंने ईसा से एक सवाल किया, \v 19 “उस्ताद, मूसा ने हमें हुक्म दिया कि अगर कोई शादीशुदा आदमी बेऔलाद मर जाए और उसका भाई हो तो भाई का फ़र्ज़ है कि वह बेवा से शादी करके अपने भाई के लिए औलाद पैदा करे। \v 20 अब फ़र्ज़ करें कि सात भाई थे। पहले ने शादी की, लेकिन बेऔलाद फ़ौत हुआ। \v 21 इस पर दूसरे ने उससे शादी की, लेकिन वह भी बेऔलाद मर गया। फिर तीसरे भाई ने उससे शादी की। \v 22 यह सिलसिला सातवें भाई तक जारी रहा। यके बाद दीगरे हर भाई बेवा से शादी करने के बाद मर गया। आख़िर में बेवा भी फ़ौत हो गई। \v 23 अब बताएँ कि क़ियामत के दिन वह किसकी बीवी होगी? क्योंकि सात के सात भाइयों ने उससे शादी की थी।” \p \v 24 ईसा ने जवाब दिया, “तुम इसलिए ग़लती पर हो कि न तुम कलामे-मुक़द्दस से वाक़िफ़ हो, न अल्लाह की क़ुदरत से। \v 25 क्योंकि जब मुरदे जी उठेंगे तो न वह शादी करेंगे न उनकी शादी कराई जाएगी बल्कि वह आसमान पर फ़रिश्तों की मानिंद होंगे। \v 26 रही यह बात कि मुरदे जी उठेंगे। क्या तुमने मूसा की किताब में नहीं पढ़ा कि अल्लाह जलती हुई झाड़ी में से किस तरह मूसा से हमकलाम हुआ? उसने फ़रमाया, ‘मैं इब्राहीम का ख़ुदा, इसहाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा हूँ,’ हालाँकि उस वक़्त तीनों काफ़ी अरसे से मर चुके थे। \v 27 इसका मतलब है कि यह हक़ीक़त में ज़िंदा हैं, क्योंकि अल्लाह मुरदों का नहीं, बल्कि ज़िंदों का ख़ुदा है। तुमसे बड़ी ग़लती हुई है।” \s1 अव्वल हुक्म \p \v 28 इतने में शरीअत का एक आलिम उनके पास आया। उसने उन्हें बहस करते हुए सुना था और जान लिया कि ईसा ने अच्छा जवाब दिया, इसलिए उसने पूछा, “तमाम अहकाम में से कौन-सा हुक्म सबसे अहम है?” \p \v 29 ईसा ने जवाब दिया, “अव्वल हुक्म यह है : ‘सुन ऐ इसराईल! रब हमारा ख़ुदा एक ही रब है। \v 30 रब अपने ख़ुदा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपने पूरे ज़हन और अपनी पूरी ताक़त से प्यार करना।’ \v 31 दूसरा हुक्म यह है : ‘अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।’ दीगर कोई भी हुक्म इन दो अहकाम से अहम नहीं है।” \p \v 32 उस आलिम ने कहा, “शाबाश, उस्ताद! आपने सच कहा है कि अल्लाह सिर्फ़ एक ही है और उसके सिवा कोई और नहीं है। \v 33 हमें उसे अपने पूरे दिल, अपने पूरे ज़हन और अपनी पूरी ताक़त से प्यार करना चाहिए और साथ साथ अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखनी चाहिए जैसी अपने आपसे रखते हैं। यह दो अहकाम भस्म होनेवाली तमाम क़ुरबानियों और दीगर नज़रों से ज़्यादा अहमियत रखते हैं।” \p \v 34 जब ईसा ने उसका यह जवाब सुना तो उससे कहा, “तू अल्लाह की बादशाही से दूर नहीं है।” \p इसके बाद किसी ने भी उससे सवाल पूछने की जुर्रत न की। \s1 मसीह के बारे में सवाल \p \v 35 जब ईसा बैतुल-मुक़द्दस में तालीम दे रहा था तो उसने पूछा, “शरीअत के उलमा क्यों दावा करते हैं कि मसीह दाऊद का फ़रज़ंद है? \v 36 क्योंकि दाऊद ने तो ख़ुद रूहुल-क़ुद्स की मारिफ़त यह फ़रमाया, \p ‘रब ने मेरे रब से कहा, \p मेरे दहने हाथ बैठ, \p जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँवों के नीचे न कर दूँ।’ \p \v 37 दाऊद तो ख़ुद मसीह को रब कहता है। तो फिर वह किस तरह दाऊद का फ़रज़ंद हो सकता है?” \s1 शरीअत के उलमा से ख़बरदार रहना \p एक बड़ा हुजूम मज़े से ईसा की बातें सुन रहा था। \v 38 उन्हें तालीम देते वक़्त उसने कहा, “उलमा से ख़बरदार रहो! क्योंकि वह शानदार चोग़े पहनकर इधर-उधर फिरना पसंद करते हैं। जब लोग बाज़ारों में सलाम करके उनकी इज़्ज़त करते हैं तो फिर वह ख़ुश हो जाते हैं। \v 39 उनकी बस एक ही ख़ाहिश होती है कि इबादतख़ानों और ज़ियाफ़तों में इज़्ज़त की कुरसियों पर बैठ जाएँ। \v 40 यह लोग बेवाओं के घर हड़प कर जाते और साथ साथ दिखावे के लिए लंबी लंबी दुआएँ माँगते हैं। ऐसे लोगों को निहायत सख़्त सज़ा मिलेगी।” \s1 बेवा का चंदा \p \v 41 ईसा बैतुल-मुक़द्दस के चंदे के बक्स के मुक़ाबिल बैठ गया और हुजूम को हदिये डालते हुए देखने लगा। कई अमीर बड़ी बड़ी रक़में डाल रहे थे। \v 42 फिर एक ग़रीब बेवा भी वहाँ से गुज़री जिसने उसमें ताँबे के दो मामूली-से सिक्के डाल दिए। \v 43 ईसा ने शागिर्दों को अपने पास बुलाकर कहा, “मैं तुमको सच बताता हूँ कि इस ग़रीब बेवा ने तमाम लोगों की निसबत ज़्यादा डाला है। \v 44 क्योंकि इन सबने अपनी दौलत की कसरत से दे दिया जबकि उसने ज़रूरतमंद होने के बावुजूद भी अपने गुज़ारे के सारे पैसे दे दिए हैं।” \c 13 \s1 बैतुल-मुक़द्दस पर आनेवाली तबाही \p \v 1 उस दिन जब ईसा बैतुल-मुक़द्दस से निकल रहा था तो उसके शागिर्दों ने कहा, “उस्ताद, देखें कितने शानदार पत्थर और इमारतें हैं!” \p \v 2 ईसा ने जवाब दिया, “क्या तुमको यह बड़ी बड़ी इमारतें नज़र आती हैं? पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा। सब कुछ ढा दिया जाएगा।” \s1 मुसीबतों और ईज़ारसानी की पेशगोई \p \v 3 बाद में ईसा ज़ैतून के पहाड़ पर बैतुल-मुक़द्दस के मुक़ाबिल बैठ गया। पतरस, याक़ूब, यूहन्ना और अंदरियास अकेले उसके पास आए। उन्होंने कहा, \v 4 “हमें ज़रा बताएँ, यह कब होगा? क्या क्या नज़र आएगा जिससे मालूम होगा कि यह अब पूरा होने को है?” \p \v 5 ईसा ने जवाब दिया, “ख़बरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न कर दे। \v 6 बहुत-से लोग मेरा नाम लेकर आएँगे और कहेंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ।’ यों वह बहुतों को गुमराह कर देंगे। \v 7 जब जंगों की ख़बरें और अफ़वाहें तुम तक पहुँचेंगी तो मत घबराना। क्योंकि लाज़िम है कि यह सब कुछ पेश आए। तो भी अभी आख़िरत नहीं होगी। \v 8 एक क़ौम दूसरी के ख़िलाफ़ उठ खड़ी होगी और एक बादशाही दूसरी के ख़िलाफ़। जगह जगह ज़लज़ले आएँगे, काल पड़ेंगे। लेकिन यह सिर्फ़ दर्दे-ज़ह की इब्तिदा ही होगी। \p \v 9 तुम ख़ुद ख़बरदार रहो। तुमको मक़ामी अदालतों के हवाले कर दिया जाएगा और लोग यहूदी इबादतख़ानों में तुम्हें कोड़े लगवाएँगे। मेरी ख़ातिर तुम्हें हुक्मरानों और बादशाहों के सामने पेश किया जाएगा। यों तुम उन्हें मेरी गवाही दोगे। \v 10 लाज़िम है कि आख़िरत से पहले अल्लाह की ख़ुशख़बरी तमाम अक़वाम को सुनाई जाए। \v 11 लेकिन जब लोग तुमको गिरिफ़्तार करके अदालत में पेश करेंगे तो यह सोचते सोचते परेशान न हो जाना कि मैं क्या कहूँ। बस वही कुछ कहना जो अल्लाह तुम्हें उस वक़्त बताएगा। क्योंकि उस वक़्त तुम नहीं बल्कि रूहुल-क़ुद्स बोलनेवाला होगा। \v 12 भाई अपने भाई को और बाप अपने बच्चे को मौत के हवाले कर देगा। बच्चे अपने वालिदैन के ख़िलाफ़ खड़े होकर उन्हें क़त्ल करवाएँगे। \v 13 सब तुमसे नफ़रत करेंगे, इसलिए कि तुम मेरे पैरोकार हो। लेकिन जो आख़िर तक क़ायम रहेगा उसे नजात मिलेगी। \s1 बैतुल-मुक़द्दस की बेहुरमती \p \v 14 एक दिन आएगा जब तुम वहाँ जहाँ उसे नहीं होना चाहिए वह कुछ खड़ा देखोगे जो बेहुरमती और तबाही का बाइस है।” (क़ारी इस पर ध्यान दे!) “उस वक़्त यहूदिया के रहनेवाले भागकर पहाड़ी इलाक़े में पनाह लें। \v 15 जो अपने घर की छत पर हो वह न उतरे, न कुछ साथ ले जाने के लिए घर में दाख़िल हो जाए। \v 16 जो खेत में हो वह अपनी चादर साथ ले जाने के लिए वापस न जाए। \v 17 उन ख़वातीन पर अफ़सोस जो उन दिनों में हामिला हों या अपने बच्चों को दूध पिलाती हों। \v 18 दुआ करो कि यह वाक़िया सर्दियों के मौसम में पेश न आए। \v 19 क्योंकि उन दिनों में ऐसी मुसीबत होगी कि दुनिया की तख़लीक़ से आज तक देखने में न आई होगी। इस क़िस्म की मुसीबत बाद में भी कभी नहीं आएगी। \v 20 और अगर ख़ुदावंद इस मुसीबत का दौरानिया मुख़तसर न करता तो कोई न बचता। लेकिन उसने अपने चुने हुओं की ख़ातिर उसका दौरानिया मुख़तसर कर दिया है। \p \v 21 उस वक़्त अगर कोई तुमको बताए, ‘देखो, मसीह यहाँ है,’ या ‘वह वहाँ है’ तो उस की बात न मानना। \v 22 क्योंकि झूटे मसीह और झूटे नबी उठ खड़े होंगे जो अजीबो-ग़रीब निशान और मोजिज़े दिखाएँगे ताकि अल्लाह के चुने हुए लोगों को ग़लत रास्ते पर डाल दें—अगर यह मुमकिन होता। \v 23 इसलिए ख़बरदार! मैंने तुमको पहले ही इन सब बातों से आगाह कर दिया है। \s1 इब्ने-आदम की आमद \p \v 24 मुसीबत के उन दिनों के बाद सूरज तारीक हो जाएगा और चाँद की रौशनी ख़त्म हो जाएगी। \v 25 सितारे आसमान पर से गिर पड़ेंगे और आसमान की क़ुव्वतें हिलाई जाएँगी। \v 26 उस वक़्त लोग इब्ने-आदम को बड़ी क़ुदरत और जलाल के साथ बादलों में आते हुए देखेंगे। \v 27 और वह अपने फ़रिश्तों को भेज देगा ताकि उसके चुने हुओं को चारों तरफ़ से जमा करें, दुनिया के कोने कोने से आसमान की इंतहा तक इकट्ठा करें। \s1 अंजीर के दरख़्त से सबक़ \p \v 28 अंजीर के दरख़्त से सबक़ सीखो। ज्योंही उस की शाख़ें नरम और लचकदार हो जाती हैं और उनसे कोंपलें फूट निकलती हैं तो तुमको मालूम हो जाता है कि गरमियों का मौसम क़रीब आ गया है। \v 29 इसी तरह जब तुम यह वाक़ियात देखोगे तो जान लोगे कि इब्ने-आदम की आमद क़रीब बल्कि दरवाज़े पर है। \v 30 मैं तुमको सच बताता हूँ, इस नसल के ख़त्म होने से पहले पहले यह सब कुछ वाक़े होगा। \v 31 आसमानो-ज़मीन तो जाते रहेंगे, लेकिन मेरी बातें हमेशा तक क़ायम रहेंगी। \s1 किसी को भी उस की आमद का वक़्त मालूम नहीं \p \v 32 लेकिन किसी को भी इल्म नहीं कि यह किस दिन या कौन-सी घड़ी रूनुमा होगा। आसमान के फ़रिश्तों और फ़रज़ंद को भी इल्म नहीं बल्कि सिर्फ़ बाप को। \v 33 चुनाँचे ख़बरदार और चौकन्ने रहो! क्योंकि तुमको नहीं मालूम कि यह वक़्त कब आएगा। \v 34 इब्ने-आदम की आमद उस आदमी से मुताबिक़त रखती है जिसे किसी सफ़र पर जाना था। घर छोड़ते वक़्त उसने अपने नौकरों को इंतज़ाम चलाने का इख़्तियार देकर हर एक को उस की अपनी ज़िम्मादारी सौंप दी। दरबान को उसने हुक्म दिया कि वह चौकस रहे। \v 35 तुम भी इसी तरह चौकस रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि घर का मालिक कब वापस आएगा, शाम को, आधी रात को, मुरग़ के बाँग देते या पौ फटते वक़्त। \v 36 ऐसा न हो कि वह अचानक आकर तुमको सोते पाए। \v 37 यह बात मैं न सिर्फ़ तुमको बल्कि सबको बताता हूँ, चौकस रहो!” \c 14 \s1 ईसा के ख़िलाफ़ मनसूबाबंदियाँ \p \v 1 फ़सह और बेख़मीरी रोटी की ईद क़रीब आ गई थी। सिर्फ़ दो दिन रह गए थे। राहनुमा इमाम और शरीअत के उलमा ईसा को किसी चालाकी से गिरिफ़्तार करके क़त्ल करने की तलाश में थे। \v 2 उन्होंने कहा, “लेकिन यह ईद के दौरान नहीं होना चाहिए, ऐसा न हो कि अवाम में हलचल मच जाए।” \s1 ख़ातून ईसा पर ख़ुशबू उंडेलती है \p \v 3 इतने में ईसा बैत-अनियाह आकर एक आदमी के घर में दाख़िल हुआ जो किसी वक़्त कोढ़ का मरीज़ था। उसका नाम शमौन था। ईसा खाना खाने के लिए बैठ गया तो एक औरत आई। उसके पास ख़ालिस जटामासी के निहायत क़ीमती इत्र का इत्रदान था। उसका सर तोड़कर उसने इत्र ईसा के सर पर उंडेल दिया। \v 4 हाज़िरीन में से कुछ नाराज़ हुए। “इतना क़ीमती इत्र ज़ाया करने की क्या ज़रूरत थी? \v 5 इसकी क़ीमत कम अज़ कम चाँदी के 300 सिक्के थी। अगर इसे बेचा जाता तो इसके पैसे ग़रीबों को दिए जा सकते थे।” ऐसी बातें करते हुए उन्होंने उसे झिड़का। \p \v 6 लेकिन ईसा ने कहा, “इसे छोड़ दो, तुम इसे क्यों तंग कर रहे हो? इसने तो मेरे लिए एक नेक काम किया है। \v 7 ग़रीब तो हमेशा तुम्हारे पास रहेंगे, और तुम जब भी चाहो उनकी मदद कर सकोगे। लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा। \v 8 जो कुछ वह कर सकती थी उसने किया है। मुझ पर इत्र उंडेलने से वह मुक़र्ररा वक़्त से पहले मेरे बदन को दफ़नाने के लिए तैयार कर चुकी है। \v 9 मैं तुमको सच बताता हूँ कि तमाम दुनिया में जहाँ भी अल्लाह की ख़ुशख़बरी का एलान किया जाएगा वहाँ लोग इस ख़ातून को याद करके वह कुछ सुनाएँगे जो इसने किया है।” \s1 ईसा को दुश्मन के हवाले करने का मनसूबा \p \v 10 फिर यहूदाह इस्करियोती जो बारह शागिर्दों में से एक था राहनुमा इमामों के पास गया ताकि ईसा को उनके हवाले करने की बात करे। \v 11 उसके आने का मक़सद सुनकर वह ख़ुश हुए और उसे पैसे देने का वादा किया। चुनाँचे वह ईसा को उनके हवाले करने का मौक़ा ढूँडने लगा। \s1 फ़सह की ईद के लिए तैयारियाँ \p \v 12 बेख़मीरी रोटी की ईद आई जब लोग फ़सह के लेले को क़ुरबान करते थे। ईसा के शागिर्दों ने उससे पूछा, “हम कहाँ आपके लिए फ़सह का खाना तैयार करें?” \p \v 13 चुनाँचे ईसा ने उनमें से दो को यह हिदायत देकर यरूशलम भेज दिया कि “जब तुम शहर में दाख़िल होगे तो तुम्हारी मुलाक़ात एक आदमी से होगी जो पानी का घड़ा उठाए चल रहा होगा। उसके पीछे हो लेना। \v 14 जिस घर में वह दाख़िल हो उसके मालिक से कहना, ‘उस्ताद आपसे पूछते हैं कि वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह का खाना खाऊँ?’ \v 15 वह तुम्हें दूसरी मनज़िल पर एक बड़ा और सजा हुआ कमरा दिखाएगा। वह तैयार होगा। हमारे लिए फ़सह का खाना वहीं तैयार करना।” \p \v 16 दोनों चले गए तो शहर में दाख़िल होकर सब कुछ वैसा ही पाया जैसा ईसा ने उन्हें बताया था। फिर उन्होंने फ़सह का खाना तैयार किया। \s1 ग़द्दार कौन है? \p \v 17 शाम के वक़्त ईसा बारह शागिर्दों समेत वहाँ पहुँच गया। \v 18 जब वह मेज़ पर बैठे खाना खा रहे थे तो उसने कहा, “मैं तुमको सच बताता हूँ, तुममें से एक जो मेरे साथ खाना खा रहा है मुझे दुश्मन के हवाले कर देगा।” \p \v 19 शागिर्द यह सुनकर ग़मगीन हुए। बारी बारी उन्होंने उससे पूछा, “मैं तो नहीं हूँ?” \p \v 20 ईसा ने जवाब दिया, “तुम बारह में से एक है। वह मेरे साथ अपनी रोटी सालन के बरतन में डाल रहा है। \v 21 इब्ने-आदम तो कूच कर जाएगा जिस तरह कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, लेकिन उस शख़्स पर अफ़सोस जिसके वसीले से उसे दुश्मन के हवाले कर दिया जाएगा। उसके लिए बेहतर यह होता कि वह कभी पैदा ही न होता।” \s1 फ़सह का आख़िरी खाना \p \v 22 खाने के दौरान ईसा ने रोटी लेकर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उसे टुकड़े करके शागिर्दों को दे दिया। उसने कहा, “यह लो, यह मेरा बदन है।” \p \v 23 फिर उसने मै का प्याला लेकर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उसे उन्हें दे दिया। सबने उसमें से पी लिया। \v 24 उसने उनसे कहा, “यह मेरा ख़ून है, नए अहद का वह ख़ून जो बहुतों के लिए बहाया जाता है। \v 25 मैं तुमको सच बताता हूँ कि अब से मैं अंगूर का रस नहीं पियूँगा, क्योंकि अगली दफ़ा इसे नए सिरे से अल्लाह की बादशाही में ही पियूँगा।” \p \v 26 फिर वह एक ज़बूर गाकर निकले और ज़ैतून के पहाड़ के पास पहुँचे। \s1 पतरस के इनकार की पेशगोई \p \v 27 ईसा ने उन्हें बताया, “तुम सब बरगश्ता हो जाओगे, क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में अल्लाह फ़रमाता है, ‘मैं चरवाहे को मार डालूँगा और भेड़ें तित्तर-बित्तर हो जाएँगी।’ \v 28 लेकिन अपने जी उठने के बाद मैं तुम्हारे आगे आगे गलील पहुँचूँगा।” \p \v 29 पतरस ने एतराज़ किया, “दूसरे बेशक सब बरगश्ता हो जाएँ, लेकिन मैं कभी नहीं हूँगा।” \p \v 30 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुझे सच बताता हूँ, इसी रात मुरग़ के दूसरी दफ़ा बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर चुका होगा।” \p \v 31 पतरस ने इसरार किया, “हरगिज़ नहीं! मैं आपको जानने से कभी इनकार नहीं करूँगा, चाहे मुझे आपके साथ मरना भी पड़े।” \p दूसरों ने भी यही कुछ कहा। \s1 गत्समनी बाग़ में ईसा की दुआ \p \v 32 वह एक बाग़ में पहुँचे जिसका नाम गत्समनी था। ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “यहाँ बैठकर मेरा इंतज़ार करो। मैं दुआ करने के लिए आगे जाता हूँ।” \v 33 उसने पतरस, याक़ूब और यूहन्ना को साथ लिया। वहाँ वह घबराकर बेक़रार होने लगा। \v 34 उसने उनसे कहा, “मैं दुख से इतना दबा हुआ हूँ कि मरने को हूँ। यहाँ ठहरकर जागते रहो।” \p \v 35 कुछ आगे जाकर वह ज़मीन पर गिर गया और दुआ करने लगा कि अगर मुमकिन हो तो मुझे आनेवाली घड़ियों की तकलीफ़ से गुज़रना न पड़े। \v 36 उसने कहा, “ऐ अब्बा, ऐ बाप! तेरे लिए सब कुछ मुमकिन है। दुख का यह प्याला मुझसे हटा ले। लेकिन मेरी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।” \p \v 37 वह अपने शागिर्दों के पास वापस आया तो देखा कि वह सो रहे हैं। उसने पतरस से कहा, “शमौन, क्या तू सो रहा है? क्या तू एक घंटा भी नहीं जाग सका? \v 38 जागते और दुआ करते रहो ताकि तुम आज़माइश में न पड़ो। क्योंकि रूह तो तैयार है, लेकिन जिस्म कमज़ोर।” \p \v 39 एक बार फिर उसने जाकर वही दुआ की जो पहले की थी। \v 40 जब वापस आया तो दुबारा देखा कि वह सो रहे हैं, क्योंकि नींद की बदौलत उनकी आँखें बोझल थीं। वह नहीं जानते थे कि क्या जवाब दें। \p \v 41 जब ईसा तीसरी बार वापस आया तो उसने उनसे कहा, “तुम अभी तक सो और आराम कर रहे हो? बस काफ़ी है। वक़्त आ गया है। देखो, इब्ने-आदम को गुनाहगारों के हवाले किया जा रहा है। \v 42 उठो। आओ, चलें। देखो, मुझे दुश्मन के हवाले करनेवाला क़रीब आ चुका है।” \s1 ईसा की गिरिफ़्तारी \p \v 43 वह अभी यह बात कर ही रहा था कि यहूदाह पहुँच गया, जो बारह शागिर्दों में से एक था। उसके साथ तलवारों और लाठियों से लैस आदमियों का हुजूम था। उन्हें राहनुमा इमामों, शरीअत के उलमा और बुज़ुर्गों ने भेजा था। \v 44 इस ग़द्दार यहूदाह ने उन्हें एक इम्तियाज़ी निशान दिया था कि जिसको मैं बोसा दूँ वही ईसा है। उसे गिरिफ़्तार करके ले जाएँ। \p \v 45 ज्योंही वह पहुँचे यहूदाह ईसा के पास गया और “उस्ताद!” कहकर उसे बोसा दिया। \v 46 इस पर उन्होंने उसे पकड़कर गिरिफ़्तार कर लिया। \v 47 लेकिन ईसा के पास खड़े एक शख़्स ने अपनी तलवार मियान से निकाली और इमामे-आज़म के ग़ुलाम को मारकर उसका कान उड़ा दिया। \v 48 ईसा ने उनसे पूछा, “क्या मैं डाकू हूँ कि तुम तलवारें और लाठियाँ लिए मुझे गिरिफ़्तार करने निकले हो? \v 49 मैं तो रोज़ाना बैतुल-मुक़द्दस में तुम्हारे पास था और तालीम देता रहा, मगर तुमने मुझे गिरिफ़्तार नहीं किया। लेकिन यह इसलिए हो रहा है ताकि कलामे-मुक़द्दस की बातें पूरी हो जाएँ।” \p \v 50 फिर सबके सब उसे छोड़कर भाग गए। \p \v 51 लेकिन एक नौजवान ईसा के पीछे पीछे चलता रहा जो सिर्फ़ चादर ओढ़े हुए था। लोगों ने उसे पकड़ने की कोशिश की, \v 52 लेकिन वह चादर छोड़कर नंगी हालत में भाग गया। \s1 यहूदी अदालते-आलिया के सामने \p \v 53 वह ईसा को इमामे-आज़म के पास ले गए जहाँ तमाम राहनुमा इमाम, बुज़ुर्ग और शरीअत के उलमा भी जमा थे। \v 54 इतने में पतरस कुछ फ़ासले पर ईसा के पीछे पीछे इमामे-आज़म के सहन तक पहुँच गया। वहाँ वह मुलाज़िमों के साथ बैठकर आग तापने लगा। \v 55 मकान के अंदर राहनुमा इमाम और यहूदी अदालते-आलिया के तमाम अफ़राद ईसा के ख़िलाफ़ गवाहियाँ ढूँड रहे थे ताकि उसे सज़ाए-मौत दिलवा सकें। लेकिन कोई गवाही न मिली। \v 56 काफ़ी लोगों ने उसके ख़िलाफ़ झूटी गवाही तो दी, लेकिन उनके बयान एक दूसरे के मुतज़ाद थे। \p \v 57 आख़िरकार बाज़ ने खड़े होकर यह झूटी गवाही दी, \v 58 “हमने इसे यह कहते सुना है कि मैं इनसान के हाथों के बने इस बैतुल-मुक़द्दस को ढाकर तीन दिन के अंदर अंदर नया मक़दिस तामीर कर दूँगा, एक ऐसा मक़दिस जो इनसान के हाथ नहीं बनाएँगे।” \v 59 लेकिन उनकी गवाहियाँ भी एक दूसरी से मुतज़ाद थीं। \p \v 60 फिर इमामे-आज़म ने हाज़िरीन के सामने खड़े होकर ईसा से पूछा, “क्या तू कोई जवाब नहीं देगा? यह क्या गवाहियाँ हैं जो यह लोग तेरे ख़िलाफ़ दे रहे हैं?” \p \v 61 लेकिन ईसा ख़ामोश रहा। उसने कोई जवाब न दिया। इमामे-आज़म ने उससे एक और सवाल किया, “क्या तू अल-हमीद का फ़रज़ंद मसीह है?” \p \v 62 ईसा ने कहा, “जी, मैं हूँ। और आइंदा तुम इब्ने-आदम को क़ादिरे-मुतलक़ के दहने हाथ बैठे और आसमान के बादलों पर आते हुए देखोगे।” \p \v 63 इमामे-आज़म ने रंजिश का इज़हार करके अपने कपड़े फाड़ लिए और कहा, “हमें मज़ीद गवाहों की क्या ज़रूरत रही! \v 64 आपने ख़ुद सुन लिया है कि इसने कुफ़र बका है। आपका क्या फ़ैसला है?” \p सबने उसे सज़ाए-मौत के लायक़ क़रार दिया। \p \v 65 फिर कुछ उस पर थूकने लगे। उन्होंने उस की आँखों पर पट्टी बाँधी और उसे मुक्के मार मारकर कहने लगे, “नबुव्वत कर!” मुलाज़िमों ने भी उसे थप्पड़ मारे। \s1 पतरस ईसा को जानने से इनकार करता है \p \v 66 इस दौरान पतरस नीचे सहन में था। इमामे-आज़म की एक नौकरानी वहाँ से गुज़री \v 67 और देखा कि पतरस वहाँ आग ताप रहा है। उसने ग़ौर से उस पर नज़र की और कहा, “तुम भी नासरत के उस आदमी ईसा के साथ थे।” \p \v 68 लेकिन उसने इनकार किया, “मैं नहीं जानता या समझता कि तू क्या बात कर रही है।” यह कहकर वह गेट के क़रीब चला गया। [उसी लमहे मुरग़ ने बाँग दी।] \p \v 69 जब नौकरानी ने उसे वहाँ देखा तो उसने दुबारा पास खड़े लोगों से कहा, “यह बंदा उनमें से है।” \v 70 दुबारा पतरस ने इनकार किया। \p थोड़ी देर के बाद पतरस के साथ खड़े लोगों ने भी उससे कहा, “तुम ज़रूर उनमें से हो क्योंकि तुम गलील के रहनेवाले हो।” \p \v 71 इस पर पतरस ने क़सम खाकर कहा, “मुझ पर लानत अगर मैं झूट बोल रहा हूँ। मैं उस आदमी को नहीं जानता जिसका ज़िक्र तुम कर रहे हो।” \p \v 72 फ़ौरन मुरग़ की बाँग दूसरी मरतबा सुनाई दी। फिर पतरस को वह बात याद आई जो ईसा ने उससे कही थी, “मुरग़ के दूसरी दफ़ा बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर चुका होगा।” इस पर वह रो पड़ा। \c 15 \s1 पीलातुस के सामने \p \v 1 सुबह-सवेरे ही राहनुमा इमाम बुज़ुर्गों, शरीअत के उलमा और पूरी यहूदी अदालते-आलिया के साथ मिलकर फ़ैसले तक पहुँच गए। वह ईसा को बाँधकर वहाँ से ले गए और रोमी गवर्नर पीलातुस के हवाले कर दिया। \v 2 पीलातुस ने उससे पूछा, “क्या तुम यहूदियों के बादशाह हो?” \p ईसा ने जवाब दिया, “जी, आप ख़ुद कहते हैं।” \p \v 3 राहनुमा इमामों ने उस पर बहुत इलज़ाम लगाए। \v 4 चुनाँचे पीलातुस ने दुबारा उससे सवाल किया, “क्या तुम कोई जवाब नहीं दोगे? यह तो तुम पर बहुत-से इलज़ामात लगा रहे हैं।” \p \v 5 लेकिन ईसा ने इस पर भी कोई जवाब न दिया, और पीलातुस बड़ा हैरान हुआ। \s1 सज़ाए-मौत का फ़ैसला \p \v 6 उन दिनों यह रिवाज था कि हर साल फ़सह की ईद पर एक क़ैदी को रिहा कर दिया जाता था। यह क़ैदी अवाम से मुंतख़ब किया जाता था। \v 7 उस वक़्त कुछ आदमी जेल में थे जो हुकूमत के ख़िलाफ़ किसी इंकलाबी तहरीक में शरीक हुए थे और जिन्होंने बग़ावत के मौक़े पर क़त्लो-ग़ारत की थी। उनमें से एक का नाम बर-अब्बा था। \v 8 अब हुजूम ने पीलातुस के पास आकर उससे गुज़ारिश की कि वह मामूल के मुताबिक़ एक क़ैदी को आज़ाद कर दे। \v 9 पीलातुस ने पूछा, “क्या तुम चाहते हो कि मैं यहूदियों के बादशाह को आज़ाद कर दूँ?” \v 10 वह जानता था कि राहनुमा इमामों ने ईसा को सिर्फ़ हसद की बिना पर उसके हवाले किया है। \p \v 11 लेकिन राहनुमा इमामों ने हुजूम को उकसाया कि वह ईसा के बजाए बर-अब्बा को माँगें। \v 12 पीलातुस ने सवाल किया, “फिर मैं इसके साथ क्या करूँ जिसका नाम तुमने यहूदियों का बादशाह रखा है?” \p \v 13 वह चीख़े, “उसे मसलूब करें।” \p \v 14 पीलातुस ने पूछा, “क्यों? उसने क्या जुर्म किया है?” \p लेकिन लोग मज़ीद शोर मचाकर चीख़ते रहे, “उसे मसलूब करें!” \p \v 15 चुनाँचे पीलातुस ने हुजूम को मुतमइन करने की ख़ातिर बर-अब्बा को आज़ाद कर दिया। उसने ईसा को कोड़े लगाने को कहा, फिर उसे मसलूब करने के लिए फ़ौजियों के हवाले कर दिया। \s1 फ़ौजी ईसा का मज़ाक़ उड़ाते हैं \p \v 16 फ़ौजी ईसा को गवर्नर के महल बनाम प्रैटोरियुम के सहन में ले गए और पूरी पलटन को इकट्ठा किया। \v 17 उन्होंने उसे अरग़वानी रंग का लिबास पहनाया और काँटेदार टहनियों का एक ताज बनाकर उसके सर पर रख दिया। \v 18 फिर वह उसे सलाम करने लगे, “ऐ यहूदियों के बादशाह, आदाब!” \v 19 लाठी से उसके सर पर मार मारकर वह उस पर थूकते रहे। घुटने टेककर उन्होंने उसे सिजदा किया। \v 20 फिर उसका मज़ाक़ उड़ाने से थककर उन्होंने अरग़वानी लिबास उतारकर उसे दुबारा उसके अपने कपड़े पहनाए। फिर वह उसे मसलूब करने के लिए बाहर ले गए। \s1 ईसा को मसलूब किया जाता है \p \v 21 उस वक़्त लिबिया के शहर कुरेन का रहनेवाला एक आदमी बनाम शमौन देहात से शहर को आ रहा था। वह सिकंदर और रूफ़ुस का बाप था। जब वह ईसा और फ़ौजियों के पास से गुज़रने लगा तो फ़ौजियों ने उसे सलीब उठाने पर मजबूर किया। \v 22 यों चलते चलते वह ईसा को एक मक़ाम पर ले गए जिसका नाम गुलगुता (यानी खोपड़ी का मक़ाम) था। \v 23 वहाँ उन्होंने उसे मै पेश की जिसमें मुर मिलाया गया था, लेकिन उसने पीने से इनकार किया। \v 24 फिर फ़ौजियों ने उसे मसलूब किया और उसके कपड़े आपस में बाँट लिए। यह फ़ैसला करने के लिए कि किस को क्या क्या मिलेगा उन्होंने क़ुरा डाला। \v 25 नौ बजे सुबह का वक़्त था जब उन्होंने उसे मसलूब किया। \v 26 एक तख़्ती सलीब पर लगा दी गई जिस पर यह इलज़ाम लिखा था, “यहूदियों का बादशाह।” \v 27 दो डाकुओं को भी ईसा के साथ मसलूब किया गया, एक को उसके दहने हाथ और दूसरे को उसके बाएँ हाथ। \v 28 [यों मुक़द्दस कलाम का वह हवाला पूरा हुआ जिसमें लिखा है, ‘उसे मुजरिमों में शुमार किया गया।’] \p \v 29 जो वहाँ से गुज़रे उन्होंने कुफ़र बककर उस की तज़लील की और सर हिला हिलाकर अपनी हिक़ारत का इज़हार किया। उन्होंने कहा, “तूने तो कहा था कि मैं बैतुल-मुक़द्दस को ढाकर उसे तीन दिन के अंदर अंदर दुबारा तामीर कर दूँगा। \v 30 अब सलीब पर से उतरकर अपने आपको बचा!” \p \v 31 राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा ने भी ईसा का मज़ाक़ उड़ाकर कहा, “इसने औरों को बचाया, लेकिन अपने आपको नहीं बचा सकता। \v 32 इसराईल का यह बादशाह मसीह अब सलीब पर से उतर आए ताकि हम यह देखकर ईमान लाएँ।” और जिन आदमियों को उसके साथ मसलूब किया गया था उन्होंने भी उसे लान-तान की। \s1 ईसा की मौत \p \v 33 दोपहर बारह बजे पूरा मुल्क अंधेरे में डूब गया। यह तारीकी तीन घंटों तक रही। \v 34 फिर तीन बजे ईसा ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “एली, एली, लमा शबक़्तनी?” जिसका मतलब है, “ऐ मेरे ख़ुदा, ऐ मेरे ख़ुदा, तूने मुझे क्यों तर्क कर दिया है?” \p \v 35 यह सुनकर पास खड़े कुछ लोग कहने लगे, “वह इलियास नबी को बुला रहा है।” \v 36 किसी ने दौड़कर मै के सिरके में एक इस्फ़ंज डुबोया और उसे डंडे पर लगाकर ईसा को चुसाने की कोशिश की। वह बोला, “आओ हम देखें, शायद इलियास आकर उसे सलीब पर से उतार ले।” \p \v 37 लेकिन ईसा ने बड़े ज़ोर से चिल्लाकर दम छोड़ दिया। \p \v 38 उसी वक़्त बैतुल-मुक़द्दस के मुक़द्दसतरीन कमरे के सामने लटका हुआ परदा ऊपर से लेकर नीचे तक दो हिस्सों में फट गया। \v 39 जब ईसा के मुक़ाबिल खड़े रोमी अफ़सर \f + \fr 15:39 \ft सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़सर। \f* ने देखा कि वह किस तरह मरा तो उसने कहा, “यह आदमी वाक़ई अल्लाह का फ़रज़ंद था!” \p \v 40 कुछ ख़वातीन भी वहाँ थीं जो कुछ फ़ासले पर उसका मुशाहदा कर रही थीं। उनमें मरियम मग्दलीनी, छोटे याक़ूब और योसेस की माँ मरियम और सलोमी भी थीं। \v 41 गलील में यह औरतें ईसा के पीछे चलकर इसकी ख़िदमत करती रही थीं। कई और ख़वातीन भी वहाँ थीं जो उसके साथ यरूशलम आ गई थीं। \s1 ईसा को दफ़न किया जाता है \p \v 42 यह सब कुछ जुमे को हुआ जो अगले दिन के सबत के लिए तैयारी का दिन था। जब शाम होने को थी \v 43 तो अरिमतियाह का एक आदमी बनाम यूसुफ़ हिम्मत करके पीलातुस के पास गया और उससे ईसा की लाश माँगी। (यूसुफ़ यहूदी अदालते-आलिया का नामवर मेंबर था और अल्लाह की बादशाही के आने के इंतज़ार में था।) \v 44 पीलातुस यह सुनकर हैरान हुआ कि ईसा मर चुका है। उसने रोमी अफ़सर को बुलाकर उससे पूछा कि क्या ईसा वाक़ई मर चुका है? \v 45 जब अफ़सर ने इसकी तसदीक़ की तो पीलातुस ने यूसुफ़ को लाश दे दी। \v 46 यूसुफ़ ने कफ़न ख़रीद लिया, फिर ईसा की लाश उतारकर उसे कतान के कफ़न में लपेटा और एक क़ब्र में रख दिया जो चट्टान में तराशी गई थी। आख़िर में उसने एक बड़ा पत्थर लुढ़काकर क़ब्र का मुँह बंद कर दिया। \v 47 मरियम मग्दलीनी और योसेस की माँ मरियम ने देख लिया कि ईसा की लाश कहाँ रखी गई है। \c 16 \s1 ईसा जी उठता है \p \v 1 हफ़ते की शाम को जब सबत का दिन गुज़र गया तो मरियम मग्दलीनी, याक़ूब की माँ मरियम और सलोमी ने ख़ुशबूदार मसाले ख़रीद लिए, क्योंकि वह क़ब्र के पास जाकर उन्हें ईसा की लाश पर लगाना चाहती थीं। \v 2 चुनाँचे वह इतवार को सुबह-सवेरे ही क़ब्र पर गईं। सूरज तुलू हो रहा था। \v 3 रास्ते में वह एक दूसरे से पूछने लगीं, “कौन हमारे लिए क़ब्र के मुँह से पत्थर को लुढ़काएगा?” \v 4 लेकिन जब वहाँ पहुँचीं और नज़र उठाकर क़ब्र पर ग़ौर किया तो देखा कि पत्थर को एक तरफ़ लुढ़काया जा चुका है। यह पत्थर बहुत बड़ा था। \v 5 वह क़ब्र में दाख़िल हुईं। वहाँ एक जवान आदमी नज़र आया जो सफ़ेद लिबास पहने हुए दाईं तरफ़ बैठा था। वह घबरा गईं। \p \v 6 उसने कहा, “मत घबराओ। तुम ईसा नासरी को ढूँड रही हो जो मसलूब हुआ था। वह जी उठा है, वह यहाँ नहीं है। उस जगह को ख़ुद देख लो जहाँ उसे रखा गया था। \v 7 अब जाओ, उसके शागिर्दों और पतरस को बता दो कि वह तुम्हारे आगे आगे गलील पहुँच जाएगा। वहीं तुम उसे देखोगे, जिस तरह उसने तुमको बताया था।” \p \v 8 ख़वातीन लरज़ती और उलझी हुई हालत में क़ब्र से निकलकर भाग गईं। उन्होंने किसी को भी कुछ न बताया, क्योंकि वह निहायत सहमी हुई थीं। \s1 ईसा मरियम मग्दलीनी पर ज़ाहिर होता है \p \v 9 जब ईसा इतवार को सुबह-सवेरे जी उठा तो पहला शख़्स जिस पर वह ज़ाहिर हुआ मरियम मग्दलीनी थी जिससे उसने सात बदरूहें निकाली थीं। \v 10 मरियम ईसा के साथियों के पास गई जो मातम कर रहे और रो रहे थे। उसने उन्हें जो कुछ हुआ था बताया। \v 11 लेकिन गो उन्होंने सुना कि ईसा ज़िंदा है और कि मरियम ने उसे देखा है तो भी उन्हें यक़ीन न आया। \s1 ईसा मज़ीद दो शागिर्दों पर ज़ाहिर होता है \p \v 12 इसके बाद ईसा दूसरी सूरत में उनमें से दो पर ज़ाहिर हुआ जब वह यरूशलम से देहात की तरफ़ पैदल चल रहे थे। \v 13 दोनों ने वापस जाकर यह बात बाक़ी लोगों को बताई। लेकिन उन्हें इनका भी यक़ीन न आया। \s1 ईसा ग्यारह रसूलों पर ज़ाहिर होता है \p \v 14 आख़िर में ईसा ग्यारह शागिर्दों पर भी ज़ाहिर हुआ। उस वक़्त वह मेज़ पर बैठे खाना खा रहे थे। उसने उन्हें उनकी बेएतक़ादी और सख़्तदिली के सबब से डाँटा, कि उन्होंने उनका यक़ीन न किया जिन्होंने उसे ज़िंदा देखा था। \v 15 फिर उसने उनसे कहा, “पूरी दुनिया में जाकर तमाम मख़लूक़ात को अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाओ। \v 16 जो भी ईमान लाकर बपतिस्मा ले उसे नजात मिलेगी। लेकिन जो ईमान न लाए उसे मुजरिम क़रार दिया जाएगा। \v 17 और जहाँ जहाँ लोग ईमान रखेंगे वहाँ यह इलाही निशान ज़ाहिर होंगे : वह मेरे नाम से बदरूहें निकाल देंगे, नई नई ज़बानें बोलेंगे \v 18 और साँपों को उठाकर महफ़ूज़ रहेंगे। मोहलक ज़हर पीने से उन्हें नुक़सान नहीं पहुँचेगा और जब वह अपने हाथ मरीज़ों पर रखेंगे तो शफ़ा पाएँगे।” \s1 ईसा को आसमान पर उठाया जाता है \p \v 19 उनसे बात करने के बाद ख़ुदावंद ईसा को आसमान पर उठा लिया गया और वह अल्लाह के दहने हाथ बैठ गया। \v 20 इस पर शागिर्दों ने निकलकर हर जगह मुनादी की। और ख़ुदावंद ने उनकी हिमायत करके इलाही निशानों से कलाम की तसदीक़ की।