\id LUK उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h लूक़ा \toc1 लूक़ा \toc2 लूक़ा \toc3 लू \mt1 लूक़ा \c 1 \s1 पेशलफ़्ज़ \p \v 1 मुहतरम थियुफ़िलुस, बहुत-से लोग वह सब कुछ लिख चुके हैं जो हमारे दरमियान वाक़े हुआ है। \v 2 उनकी कोशिश यह थी कि वही कुछ बयान किया जाए जिसकी गवाही वह देते हैं जो शुरू ही से साथ थे और आज तक अल्लाह का कलाम सुनाने की ख़िदमत सरंजाम दे रहे हैं। \v 3 मैंने भी हर मुमकिन कोशिश की है कि सब कुछ शुरू से और ऐन हक़ीक़त के मुताबिक़ मालूम करूँ। अब मैं यह बातें तरतीब से आपके लिए लिखना चाहता हूँ। \v 4 आप यह पढ़कर जान लेंगे कि जो बातें आपको सिखाई गई हैं वह सच और दुरुस्त हैं। \s1 यहया के बारे में पेशगोई \p \v 5 यहूदिया के बादशाह हेरोदेस के ज़माने में एक इमाम था जिसका नाम ज़करियाह था। बैतुल-मुक़द्दस में इमामों के मुख़्तलिफ़ गुरोह ख़िदमत सरंजाम देते थे, और ज़करियाह का ताल्लुक़ अबियाह के गुरोह से था। उस की बीवी इमामे-आज़म हारून की नसल से थी और उसका नाम इलीशिबा था। \v 6 मियाँ-बीवी अल्लाह के नज़दीक रास्तबाज़ थे और रब के तमाम अहकाम और हिदायात के मुताबिक़ बेइलज़ाम ज़िंदगी गुज़ारते थे। \v 7 लेकिन वह बेऔलाद थे। इलीशिबा के बच्चे पैदा नहीं हो सकते थे। अब वह दोनों बूढ़े हो चुके थे। \p \v 8 एक दिन बैतुल-मुक़द्दस मैं अबियाह के गुरोह की बारी थी और ज़करियाह अल्लाह के हुज़ूर अपनी ख़िदमत सरंजाम दे रहा था। \v 9 दस्तूर के मुताबिक़ उन्होंने क़ुरा डाला ताकि मालूम करें कि रब के मक़दिस में जाकर बख़ूर की क़ुरबानी कौन जलाए। ज़करियाह को चुना गया। \v 10 जब वह मुक़र्ररा वक़्त पर बख़ूर जलाने के लिए बैतुल-मुक़द्दस में दाख़िल हुआ तो जमा होनेवाले तमाम परस्तार सहन में दुआ कर रहे थे। \p \v 11 अचानक रब का एक फ़रिश्ता ज़ाहिर हुआ जो बख़ूर जलाने की क़ुरबानगाह के दहनी तरफ़ खड़ा था। \v 12 उसे देखकर ज़करियाह घबराया और बहुत डर गया। \v 13 लेकिन फ़रिश्ते ने उससे कहा, “ज़करियाह, मत डर! अल्लाह ने तेरी दुआ सुन ली है। तेरी बीवी इलीशिबा के बेटा होगा। उसका नाम यहया रखना। \v 14 वह न सिर्फ़ तेरे लिए ख़ुशी और मुसर्रत का बाइस होगा, बल्कि बहुत-से लोग उस की पैदाइश पर ख़ुशी मनाएँगे। \v 15 क्योंकि वह रब के नज़दीक अज़ीम होगा। लाज़िम है कि वह मै और शराब से परहेज़ करे। वह पैदा होने से पहले ही रूहुल-क़ुद्स से मामूर होगा \v 16 और इसराईली क़ौम में से बहुतों को रब उनके ख़ुदा के पास वापस लाएगा। \v 17 वह इलियास की रूह और क़ुव्वत से ख़ुदावंद के आगे आगे चलेगा। उस की ख़िदमत से वालिदों के दिल अपने बच्चों की तरफ़ मायल हो जाएंगे और नाफ़रमान लोग रास्तबाज़ों की दानाई की तरफ़ रुजू करेंगे। यों वह इस क़ौम को रब के लिए तैयार करेगा।” \p \v 18 ज़करियाह ने फ़रिश्ते से पूछा, “मैं किस तरह जानूँ कि यह बात सच है? मैं ख़ुद बूढ़ा हूँ और मेरी बीवी भी उम्ररसीदा है।” \p \v 19 फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “मैं जिबराईल हूँ जो अल्लाह के हुज़ूर खड़ा रहता हूँ। मुझे इसी मक़सद के लिए भेजा गया है कि तुझे यह ख़ुशख़बरी सुनाऊँ। \v 20 लेकिन चूँकि तूने मेरी बात का यक़ीन नहीं किया इसलिए तू ख़ामोश रहेगा और उस वक़्त तक बोल नहीं सकेगा जब तक तेरे बेटा पैदा न हो। मेरी यह बातें मुक़र्ररा वक़्त पर ही पूरी होंगी।” \p \v 21 इस दौरान बाहर के लोग ज़करियाह के इंतज़ार में थे। वह हैरान होते जा रहे थे कि उसे वापस आने में क्यों इतनी देर हो रही है। \v 22 आख़िरकार वह बाहर आया, लेकिन वह उनसे बात न कर सका। तब उन्होंने जान लिया कि उसने बैतुल-मुक़द्दस में रोया देखी है। उसने हाथों से इशारे तो किए, लेकिन ख़ामोश रहा। \p \v 23 ज़करियाह मुक़र्ररा वक़्त तक बैतुल-मुक़द्दस में अपनी ख़िदमत अंजाम देता रहा, फिर अपने घर वापस चला गया। \v 24 थोड़े दिनों के बाद उस की बीवी इलीशिबा हामिला हो गई और वह पाँच माह तक घर में छुपी रही। \v 25 उसने कहा, “ख़ुदावंद ने मेरे लिए कितना बड़ा काम किया है, क्योंकि अब उसने मेरी फ़िकर की और लोगों के सामने से मेरी रुसवाई दूर कर दी।” \s1 ईसा की पैदाइश की पेशगोई \p \v 26-27 इलीशिबा छः माह से उम्मीद से थी जब अल्लाह ने जिबराईल फ़रिश्ते को एक कुँवारी के पास भेजा जो नासरत में रहती थी। नासरत गलील का एक शहर है और कुँवारी का नाम मरियम था। उस की मँगनी एक मर्द के साथ हो चुकी थी जो दाऊद बादशाह की नसल से था और जिसका नाम यूसुफ़ था। \v 28 फ़रिश्ते ने उसके पास आकर कहा, “ऐ ख़ातून जिस पर रब का ख़ास फ़ज़ल हुआ है, सलाम! रब तेरे साथ है।” \p \v 29 मरियम यह सुनकर घबरा गई और सोचा, “यह किस तरह का सलाम है?” \v 30 लेकिन फ़रिश्ते ने अपनी बात जारी रखी और कहा, “ऐ मरियम, मत डर, क्योंकि तुझ पर अल्लाह का फ़ज़ल हुआ है। \v 31 तू उम्मीद से होकर एक बेटे को जन्म देगी। तुझे उसका नाम ईसा (नजात देनेवाला) रखना है। \v 32 वह अज़ीम होगा और अल्लाह तआला का फ़रज़ंद कहलाएगा। रब हमारा ख़ुदा उसे उसके बाप दाऊद के तख़्त पर बिठाएगा \v 33 और वह हमेशा तक इसराईल पर हुकूमत करेगा। उस की सलतनत कभी ख़त्म न होगी।” \p \v 34 मरियम ने फ़रिश्ते से कहा, “यह क्योंकर हो सकता है? अभी तो मैं कुँवारी हूँ।” \p \v 35 फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “रूहुल-क़ुद्स तुझ पर नाज़िल होगा, अल्लाह तआला की क़ुदरत का साया तुझ पर छा जाएगा। इसलिए यह बच्चा क़ुद्दूस होगा और अल्लाह का फ़रज़ंद कहलाएगा। \v 36 और देख, तेरी रिश्तेदार इलीशिबा के भी बेटा होगा हालाँकि वह उम्ररसीदा है। गो उसे बाँझ क़रार दिया गया था, लेकिन वह छः माह से उम्मीद से है। \v 37 क्योंकि अल्लाह के नज़दीक कोई काम नामुमकिन नहीं है।” \p \v 38 मरियम ने जवाब दिया, “मैं रब की ख़िदमत के लिए हाज़िर हूँ। मेरे साथ वैसा ही हो जैसा आपने कहा है।” इस पर फ़रिश्ता चला गया। \s1 मरियम इलीशिबा से मिलती है \p \v 39 उन दिनों में मरियम यहूदिया के पहाड़ी इलाक़े के एक शहर के लिए रवाना हुई। उसने जल्दी जल्दी सफ़र किया। \v 40 वहाँ पहुँचकर वह ज़करियाह के घर में दाख़िल हुई और इलीशिबा को सलाम किया। \v 41 मरियम का यह सलाम सुनकर इलीशिबा का बच्चा उसके पेट में उछल पड़ा और इलीशिबा ख़ुद रूहुल-क़ुद्स से भर गई। \v 42 उसने बुलंद आवाज़ से कहा, “तू तमाम औरतों में मुबारक है और मुबारक है तेरा बच्चा! \v 43 मैं कौन हूँ कि मेरे ख़ुदावंद की माँ मेरे पास आई! \v 44 ज्योंही मैंने तेरा सलाम सुना बच्चा मेरे पेट में ख़ुशी से उछल पड़ा। \v 45 तू कितनी मुबारक है, क्योंकि तू ईमान लाई कि जो कुछ रब ने फ़रमाया है वह तकमील तक पहुँचेगा।” \s1 मरियम का गीत \p \v 46 इस पर मरियम ने कहा, \p “मेरी जान रब की ताज़ीम करती है \p \v 47 और मेरी रूह अपने नजातदहिंदा अल्लाह से निहायत ख़ुश है। \p \v 48 क्योंकि उसने अपनी ख़ादिमा की पस्ती पर नज़र की है। \p हाँ, अब से तमाम नसलें मुझे मुबारक कहेंगी, \p \v 49 क्योंकि क़ादिरे-मुतलक़ ने मेरे लिए बड़े बड़े काम किए हैं। \p उसका नाम क़ुद्दूस है। \p \v 50 जो उसका ख़ौफ़ मानते हैं \p उन पर वह पुश्त-दर-पुश्त अपनी रहमत ज़ाहिर करेगा। \p \v 51 उस की क़ुदरत ने अज़ीम काम कर दिखाए हैं, \p और दिल से मग़रूर लोग तित्तर-बित्तर हो गए हैं। \p \v 52 उसने हुक्मरानों को उनके तख़्त से हटाकर \p पस्तहाल लोगों को सरफ़राज़ कर दिया है। \p \v 53 भूकों को उसने अच्छी चीज़ों से मालामाल करके \p अमीरों को ख़ाली हाथ लौटा दिया है। \p \v 54 वह अपने ख़ादिम इसराईल की मदद के लिए आ गया है। \p हाँ, उसने अपनी रहमत को याद किया है, \p \v 55 यानी वह दायमी वादा जो उसने हमारे बुज़ुर्गों के साथ किया था, \p इब्राहीम और उस की औलाद के साथ।” \p \v 56 मरियम तक़रीबन तीन माह इलीशिबा के हाँ ठहरी रही, फिर अपने घर लौट गई। \s1 यहया बपतिस्मा देनेवाले की पैदाइश \p \v 57 फिर इलीशिबा का बच्चे को जन्म देने का दिन आ पहुँचा और उसके बेटा हुआ। \v 58 जब उसके हमसायों और रिश्तेदारों को इत्तला मिली कि रब की उस पर कितनी बड़ी रहमत हुई है तो उन्होंने उसके साथ ख़ुशी मनाई। \p \v 59 जब बच्चा आठ दिन का था तो वह उसका ख़तना करवाने की रस्म के लिए आए। वह बच्चे का नाम उसके बाप के नाम पर ज़करियाह रखना चाहते थे, \v 60 लेकिन उस की माँ ने एतराज़ किया। उसने कहा, “नहीं, उसका नाम यहया हो।” \p \v 61 उन्होंने कहा, “आपके रिश्तेदारों में तो ऐसा नाम कहीं भी नहीं पाया जाता।” \v 62 तब उन्होंने इशारों से बच्चे के बाप से पूछा कि वह क्या नाम रखना चाहता है। \p \v 63 जवाब में ज़करियाह ने तख़्ती मँगवाकर उस पर लिखा, “इसका नाम यहया है।” यह देखकर सब हैरान हुए। \v 64 उसी लमहे ज़करियाह दुबारा बोलने के क़ाबिल हो गया, और वह अल्लाह की तमजीद करने लगा। \v 65 तमाम हमसायों पर ख़ौफ़ छा गया और इस बात का चर्चा यहूदिया के पूरे इलाक़े में फैल गया। \v 66 जिसने भी सुना उसने संजीदगी से इस पर ग़ौर किया और सोचा, “इस बच्चे का क्या बनेगा?” क्योंकि रब की क़ुदरत उसके साथ थी। \s1 ज़करियाह की नबुव्वत \p \v 67 उसका बाप ज़करियाह रूहुल-क़ुद्स से मामूर हो गया और नबुव्वत करके कहा, \p \v 68 “रब इसराईल के अल्लाह की तमजीद हो! \p क्योंकि वह अपनी क़ौम की मदद के लिए आया है, \p उसने फ़िद्या देकर उसे छुड़ाया है। \p \v 69 उसने अपने ख़ादिम दाऊद के घराने में \p हमारे लिए एक अज़ीम नजातदहिंदा खड़ा किया है। \p \v 70 ऐसा ही हुआ जिस तरह उसने क़दीम ज़मानों में \p अपने मुक़द्दस नबियों की मारिफ़त फ़रमाया था, \p \v 71 कि वह हमें हमारे दुश्मनों से नजात दिलाएगा, \p उन सबके हाथ से \p जो हमसे नफ़रत रखते हैं। \p \v 72 क्योंकि उसने फ़रमाया था कि वह हमारे बापदादा पर रहम करेगा \p \v 73 और अपने मुक़द्दस अहद को याद रखेगा, \p उस वादे को जो उसने क़सम खा कर \p इब्राहीम के साथ किया था। \p \v 74 अब उसका यह वादा पूरा हो जाएगा : \p हम अपने दुश्मनों से मख़लसी पाकर \p ख़ौफ़ के बग़ैर अल्लाह की ख़िदमत कर सकेंगे, \p \v 75 जीते-जी उसके हुज़ूर मुक़द्दस और रास्त ज़िंदगी गुज़ार सकेंगे। \p \v 76 और तू, मेरे बच्चे, अल्लाह तआला का नबी कहलाएगा। \p क्योंकि तू ख़ुदावंद के आगे आगे \p उसके रास्ते तैयार करेगा। \p \v 77 तू उस की क़ौम को नजात का रास्ता दिखाएगा, \p कि वह किस तरह अपने गुनाहों की मुआफ़ी पाएगी। \p \v 78 हमारे अल्लाह की बड़ी रहमत की वजह से \p हम पर इलाही नूर चमकेगा। \p \v 79 उस की रौशनी उन पर फैल जाएगी \p जो अंधेरे और मौत के साये में बैठे हैं, \p हाँ वह हमारे क़दमों को सलामती की राह पर पहुँचाएगी।” \p \v 80 यहया परवान चढ़ा और उस की रूह ने तक़वियत पाई। उसने उस वक़्त तक रेगिस्तान में ज़िंदगी गुज़ारी जब तक उसे इसराईल की ख़िदमत करने के लिए बुलाया न गया। \c 2 \s1 ईसा की पैदाइश \p \v 1 उन ऐयाम में रोम के शहनशाह औगुस्तुस ने फ़रमान जारी किया कि पूरी सलतनत की मर्दुमशुमारी की जाए। \v 2 यह पहली मर्दुमशुमारी उस वक़्त हुई जब कूरिनियुस शाम का गवर्नर था। \v 3 हर किसी को अपने वतनी शहर में जाना पड़ा ताकि वहाँ रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करवाए। \p \v 4 चुनाँचे यूसुफ़ गलील के शहर नासरत से रवाना होकर यहूदिया के शहर बैत-लहम पहुँचा। वजह यह थी कि वह दाऊद बादशाह के घराने और नसल से था, और बैत-लहम दाऊद का शहर था। \v 5 चुनाँचे वह अपने नाम को रजिस्टर में दर्ज करवाने के लिए वहाँ गया। उस की मंगेतर मरियम भी साथ थी। उस वक़्त वह उम्मीद से थी। \v 6 जब वह वहाँ ठहरे हुए थे तो बच्चे को जन्म देने का वक़्त आ पहुँचा। \v 7 बेटा पैदा हुआ। यह मरियम का पहला बच्चा था। उसने उसे कपड़ों \f + \fr 2:7 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : पोतड़ों \f* में लपेटकर एक चरनी में लिटा दिया, क्योंकि उन्हें सराय में रहने की जगह नहीं मिली थी। \s1 चरवाहों को ख़ुशख़बरी \p \v 8 उस रात कुछ चरवाहे क़रीब के खुले मैदान में अपने रेवड़ों की पहरादारी कर रहे थे। \v 9 अचानक रब का एक फ़रिश्ता उन पर ज़ाहिर हुआ, और उनके इर्दगिर्द रब का जलाल चमका। यह देखकर वह सख़्त डर गए। \v 10 लेकिन फ़रिश्ते ने उनसे कहा, “डरो मत! देखो मैं तुमको बड़ी ख़ुशी की ख़बर देता हूँ जो तमाम लोगों के लिए होगी। \v 11 आज ही दाऊद के शहर में तुम्हारे लिए नजातदहिंदा पैदा हुआ है यानी मसीह ख़ुदावंद। \v 12 और तुम उसे इस निशान से पहचान लोगे, तुम एक शीरख़ार बच्चे को कपड़ों में लिपटा हुआ पाओगे। वह चरनी में पड़ा हुआ होगा।” \p \v 13 अचानक आसमानी लशकरों के बेशुमार फ़रिश्ते उस फ़रिश्ते के साथ ज़ाहिर हुए जो अल्लाह की हम्दो-सना करके कह रहे थे, \p \v 14 “आसमान की बुलंदियों पर अल्लाह की इज़्ज़तो-जलाल, ज़मीन पर उन लोगों की सलामती जो उसे मंज़ूर हैं।” \p \v 15 फ़रिश्ते उन्हें छोड़कर आसमान पर वापस चले गए तो चरवाहे आपस में कहने लगे, “आओ, हम बैत-लहम जाकर यह बात देखें जो हुई है और जो रब ने हम पर ज़ाहिर की है।” \p \v 16 वह भागकर बैत-लहम पहुँचे। वहाँ उन्हें मरियम और यूसुफ़ मिले और साथ ही छोटा बच्चा जो चरनी में पड़ा हुआ था। \v 17 यह देखकर उन्होंने सब कुछ बयान किया जो उन्हें इस बच्चे के बारे में बताया गया था। \v 18 जिसने भी उनकी बात सुनी वह हैरतज़दा हुआ। \v 19 लेकिन मरियम को यह तमाम बातें याद रहीं और वह अपने दिल में उन पर ग़ौर करती रही। \p \v 20 फिर चरवाहे लौट गए और चलते चलते उन तमाम बातों के लिए अल्लाह की ताज़ीमो-तारीफ़ करते रहे जो उन्होंने सुनी और देखी थीं, क्योंकि सब कुछ वैसा ही पाया था जैसा फ़रिश्ते ने उन्हें बताया था। \s1 बच्चे का नाम ईसा रखा जाता है \p \v 21 आठ दिन के बाद बच्चे का ख़तना करवाने का वक़्त आ गया। उसका नाम ईसा रखा गया, यानी वही नाम जो फ़रिश्ते ने मरियम को उसके हामिला होने से पहले बताया था। \s1 ईसा को बैतुल-मुक़द्दस में पेश किया जाता है \p \v 22 जब मूसा की शरीअत के मुताबिक़ तहारत के दिन पूरे हुए तब वह बच्चे को यरूशलम ले गए ताकि उसे रब के हुज़ूर पेश किया जाए, \v 23 जैसे रब की शरीअत में लिखा है, “हर पहलौठे को रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करना है।” \v 24 साथ ही उन्होंने मरियम की तहारत की रस्म के लिए वह क़ुरबानी पेश की जो रब की शरीअत बयान करती है, यानी “दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर।” \p \v 25 उस वक़्त यरूशलम में एक आदमी बनाम शमौन रहता था। वह रास्तबाज़ और ख़ुदातरस था और इस इंतज़ार में था कि मसीह आकर इसराईल को सुकून बख़्शे। रूहुल-क़ुद्स उस पर था, \v 26 और उसने उस पर यह बात ज़ाहिर की थी कि वह जीते-जी रब के मसीह को देखेगा। \v 27 उस दिन रूहुल-क़ुद्स ने उसे तहरीक दी कि वह बैतुल-मुक़द्दस में जाए। चुनाँचे जब मरियम और यूसुफ़ बच्चे को रब की शरीअत के मुताबिक़ पेश करने के लिए बैतुल-मुक़द्दस में आए \v 28 तो शमौन मौजूद था। उसने बच्चे को अपने बाज़ुओं में लेकर अल्लाह की हम्दो-सना करते हुए कहा, \p \v 29 “ऐ आक़ा, अब तू अपने बंदे को इजाज़त देता है \p कि वह सलामती से रेहलत कर जाए, जिस तरह तूने फ़रमाया है। \p \v 30 क्योंकि मैंने अपनी आँखों से तेरी उस नजात का मुशाहदा कर लिया है \p \v 31 जो तूने तमाम क़ौमों की मौजूदगी में तैयार की है। \p \v 32 यह एक ऐसी रौशनी है जिससे ग़ैरयहूदियों की आँखें खुल जाएँगी \p और तेरी क़ौम इसराईल को जलाल हासिल होगा।” \p \v 33 बच्चे के माँ-बाप अपने बेटे के बारे में इन अलफ़ाज़ पर हैरान हुए। \v 34 शमौन ने उन्हें बरकत दी और मरियम से कहा, “यह बच्चा मुक़र्रर हुआ है कि इसराईल के बहुत-से लोग इससे ठोकर खाकर गिर जाएँ, लेकिन बहुत-से इससे अपने पाँवों पर खड़े भी हो जाएंगे। गो यह अल्लाह की तरफ़ से एक इशारा है तो भी इसकी मुख़ालफ़त की जाएगी। \v 35 यों बहुतों के दिली ख़यालात ज़ाहिर हो जाएंगे। इस सिलसिले में तलवार तेरी जान में से भी गुज़र जाएगी।” \p \v 36 वहाँ बैतुल-मुक़द्दस में एक उम्ररसीदा नबिया भी थी जिसका नाम हन्नाह था। वह फ़नुएल की बेटी और आशर के क़बीले से थी। शादी के सात साल बाद उसका शौहर मर गया था। \v 37 अब वह बेवा की हैसियत से 84 साल की हो चुकी थी। वह कभी बैतुल-मुक़द्दस को नहीं छोड़ती थी, बल्कि दिन-रात अल्लाह को सिजदा करती, रोज़ा रखती और दुआ करती थी। \v 38 उस वक़्त वह मरियम और यूसुफ़ के पास आकर अल्लाह की तमजीद करने लगी। साथ साथ वह हर एक को जो इस इंतज़ार में था कि अल्लाह फ़िद्या देकर यरूशलम को छुड़ाए, बच्चे के बारे में बताती रही। \s1 वह नासरत वापस चले जाते हैं \p \v 39 जब ईसा के वालिदैन ने रब की शरीअत में दर्ज तमाम फ़रायज़ अदा कर लिए तो वह गलील में अपने शहर नासरत को लौट गए। \v 40 वहाँ बच्चा परवान चढ़ा और तक़वियत पाता गया। वह हिकमतो-दानाई से मामूर था, और अल्लाह का फ़ज़ल उस पर था। \s1 बारह साल की उम्र में बैतुल-मुक़द्दस में \p \v 41 ईसा के वालिदैन हर साल फ़सह की ईद के लिए यरूशलम जाया करते थे। \v 42 उस साल भी वह मामूल के मुताबिक़ ईद के लिए गए जब ईसा बारह साल का था। \v 43 ईद के इख़्तिताम पर वह नासरत वापस जाने लगे, लेकिन ईसा यरूशलम में रह गया। पहले उसके वालिदैन को मालूम न था, \v 44 क्योंकि वह समझते थे कि वह क़ाफ़िले में कहीं मौजूद है। लेकिन चलते चलते पहला दिन गुज़र गया और वह अब तक नज़र न आया था। इस पर वालिदैन उसे अपने रिश्तेदारों और अज़ीज़ों में ढूँडने लगे। \v 45 जब वह वहाँ न मिला तो मरियम और यूसुफ़ यरूशलम वापस गए और वहाँ ढूँडने लगे। \v 46 तीन दिन के बाद वह आख़िरकार बैतुल-मुक़द्दस में पहुँचे। वहाँ ईसा दीनी उस्तादों के दरमियान बैठा उनकी बातें सुन रहा और उनसे सवालात पूछ रहा था। \v 47 जिसने भी उस की बातें सुनीं वह उस की समझ और जवाबों से दंग रह गया। \v 48 उसे देखकर उसके वालिदैन घबरा गए। उस की माँ ने कहा, “बेटा, तूने हमारे साथ यह क्यों किया? तेरा बाप और मैं तुझे ढूँडते ढूँडते शदीद कोफ़्त का शिकार हुए।” \p \v 49 ईसा ने जवाब दिया, “आपको मुझे तलाश करने की क्या ज़रूरत थी? क्या आपको मालूम न था कि मुझे अपने बाप के घर में होना ज़रूर है?” \v 50 लेकिन वह उस की बात न समझे। \p \v 51 फिर वह उनके साथ रवाना होकर नासरत वापस आया और उनके ताबे रहा। लेकिन उस की माँ ने यह तमाम बातें अपने दिल में महफ़ूज़ रखें। \v 52 यों ईसा जवान हुआ। उस की समझ और हिकमत बढ़ती गई, और उसे अल्लाह और इनसान की मक़बूलियत हासिल थी। \c 3 \s1 यहया बपतिस्मा देनेवाले की ख़िदमत \p \v 1 फिर रोम के शहनशाह तिबरियुस की हुकूमत का पंद्रहवाँ साल आ गया। उस वक़्त पुंतियुस पीलातुस सूबा यहूदिया का गवर्नर था, हेरोदेस अंतिपास गलील का हाकिम था, उसका भाई फ़िलिप्पुस इतूरिया और त्रख़ोनीतिस के इलाक़े का, जबकि लिसानियास अबिलेने का। \v 2 हन्ना और कायफ़ा दोनों इमामे-आज़म थे। उन दिनों में अल्लाह यहया बिन ज़करियाह से हमकलाम हुआ जब वह रेगिस्तान में था। \v 3 फिर वह दरियाए-यरदन के पूरे इलाक़े में से गुज़रा। हर जगह उसने एलान किया कि तौबा करके बपतिस्मा लो ताकि तुम्हें अपने गुनाहों की मुआफ़ी मिल जाए। \v 4 यों यसायाह नबी के अलफ़ाज़ पूरे हुए जो उस की किताब में दर्ज हैं : \p ‘रेगिस्तान में एक आवाज़ पुकार रही है, \p रब की राह तैयार करो! \p उसके रास्ते सीधे बनाओ। \p \v 5 लाज़िम है कि हर वादी भर दी जाए, \p ज़रूरी है कि हर पहाड़ और बुलंद जगह मैदान बन जाए। \p जो टेढ़ा है उसे सीधा किया जाए, \p जो नाहमवार है उसे हमवार किया जाए। \p \v 6 और तमाम इनसान अल्लाह की नजात देखेंगे।’ \p \v 7 जब बहुत-से लोग यहया के पास आए ताकि उससे बपतिस्मा लें तो उसने उनसे कहा, “ऐ ज़हरीले साँप के बच्चो! किसने तुमको आनेवाले ग़ज़ब से बचने की हिदायत की? \v 8 अपनी ज़िंदगी से ज़ाहिर करो कि तुमने वाक़ई तौबा की है। यह ख़याल मत करो कि हम तो बच जाएंगे क्योंकि इब्राहीम हमारा बाप है। मैं तुमको बताता हूँ कि अल्लाह इन पत्थरों से भी इब्राहीम के लिए औलाद पैदा कर सकता है। \v 9 अब तो अदालत की कुल्हाड़ी दरख़्तों की जड़ों पर रखी हुई है। हर दरख़्त जो अच्छा फल न लाए काटा और आग में झोंका जाएगा।” \p \v 10 लोगों ने उससे पूछा, “फिर हम क्या करें?” \p \v 11 उसने जवाब दिया, “जिसके पास दो कुरते हैं वह एक उसको दे दे जिसके पास कुछ न हो। और जिसके पास खाना है वह उसे खिला दे जिसके पास कुछ न हो।” \p \v 12 टैक्स लेनेवाले भी बपतिस्मा लेने के लिए आए तो उन्होंने पूछा, “उस्ताद, हम क्या करें?” \p \v 13 उसने जवाब दिया, “सिर्फ़ उतने टैक्स लेना जितने हुकूमत ने मुक़र्रर किए हैं।” \p \v 14 कुछ फ़ौजियों ने पूछा, “हमें क्या करना चाहिए?” \p उसने जवाब दिया, “किसी से जबरन या ग़लत इलज़ाम लगाकर पैसे न लेना बल्कि अपनी जायज़ आमदनी पर इकतिफ़ा करना।” \p \v 15 लोगों की तवक़्क़ोआत बहुत बढ़ गईं। वह अपने दिलों में सोचने लगे कि क्या यह मसीह तो नहीं है? \v 16 इस पर यहया उन सबसे मुख़ातिब होकर कहने लगा, “मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ, लेकिन एक आनेवाला है जो मुझसे बड़ा है। मैं उसके जूतों के तसमे खोलने के भी लायक़ नहीं। वह तुम्हें रूहुल-क़ुद्स और आग से बपतिस्मा देगा। \v 17 वह हाथ में छाज पकड़े हुए अनाज को भूसे से अलग करने के लिए तैयार खड़ा है। वह गाहने की जगह को बिलकुल साफ़ करके अनाज को अपने गोदाम में जमा करेगा। लेकिन भूसे को वह ऐसी आग में झोंकेगा जो बुझने की नहीं।” \p \v 18 इस क़िस्म की बहुत-सी और बातों से उसने क़ौम को नसीहत की और उसे अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाई। \v 19 लेकिन एक दिन यों हुआ कि यहया ने गलील के हाकिम हेरोदेस अंतिपास को डाँटा। वजह यह थी कि हेरोदेस ने अपने भाई की बीवी हेरोदियास से शादी कर ली थी और इसके अलावा और बहुत-से ग़लत काम किए थे। \v 20 यह मलामत सुनकर हेरोदेस ने अपने ग़लत कामों में और इज़ाफ़ा यह किया कि यहया को जेल में डाल दिया। \s1 ईसा का बपतिस्मा \p \v 21 एक दिन जब बहुत-से लोगों को बपतिस्मा दिया जा रहा था तो ईसा ने भी बपतिस्मा लिया। जब वह दुआ कर रहा था तो आसमान खुल गया \v 22 और रूहुल-क़ुद्स जिस्मानी सूरत में कबूतर की तरह उस पर उतर आया। साथ साथ आसमान से एक आवाज़ सुनाई दी, “तू मेरा प्यारा फ़रज़ंद है, तुझसे मैं ख़ुश हूँ।” \s1 ईसा का नसबनामा \p \v 23 ईसा तक़रीबन तीस साल का था जब उसने ख़िदमत शुरू की। उसे यूसुफ़ का बेटा समझा जाता था। उसका नसबनामा यह है : यूसुफ़ बिन एली \v 24 बिन मत्तात बिन लावी बिन मलकी बिन यन्ना बिन यूसुफ़ \v 25 बिन मत्तितियाह बिन आमूस बिन नाहूम बिन असलियाह बिन नोगा \v 26 बिन माअत बिन मत्तितियाह बिन शमई बिन योसेख़ बिन यूदाह \v 27 बिन यूहन्नाह बिन रेसा बिन ज़रुब्बाबल बिन सियालतियेल बिन नेरी \v 28 बिन मलिकी बिन अद्दी बिन क़ोसाम बिन इलमोदाम बिन एर \v 29 बिन यशुअ बिन इलियज़र बिन योरीम बिन मत्तात बिन लावी \v 30 बिन शमौन बिन यहूदाह बिन यूसुफ़ बिन योनाम बिन इलियाक़ीम \v 31 बिन मलेआह बिन मिन्नाह बिन मत्तितियाह बिन नातन बिन दाऊद \v 32 बिन यस्सी बिन ओबेद बिन बोअज़ बिन सलमोन बिन नहसोन \v 33 बिन अम्मीनदाब बिन अदमीन बिन अरनी बिन हसरोन बिन फ़ारस बिन यहूदाह \v 34 बिन याक़ूब बिन इसहाक़ बिन इब्राहीम बिन तारह बिन नहूर \v 35 बिन सरूज बिन रऊ बिन फ़लज बिन इबर बिन सिलह \v 36 बिन क़ीनान बिन अरफ़क्सद बिन सिम बिन नूह बिन लमक \v 37 बिन मतूसिलह बिन हनूक बिन यारिद बिन महललेल बिन क़ीनान \v 38 बिन अनूस बिन सेत बिन आदम। आदम को अल्लाह ने पैदा किया था। \c 4 \s1 ईसा को आज़माया जाता है \p \v 1 ईसा दरियाए-यरदन से वापस आया। वह रूहुल-क़ुद्स से मामूर था जिसने उसे रेगिस्तान में लाकर उस की राहनुमाई की। \v 2 वहाँ उसे चालीस दिन तक इबलीस से आज़माया गया। इस पूरे अरसे में उसने कुछ न खाया। आख़िरकार उसे भूक लगी। \p \v 3 फिर इबलीस ने उससे कहा, “अगर तू अल्लाह का फ़रज़ंद है तो इस पत्थर को हुक्म दे कि रोटी बन जाए।” \p \v 4 लेकिन ईसा ने इनकार करके कहा, “हरगिज़ नहीं, क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में लिखा है कि इनसान की ज़िंदगी सिर्फ़ रोटी पर मुनहसिर नहीं होती।” \p \v 5 इस पर इबलीस ने उसे किसी बुलंद जगह पर ले जाकर एक लमहे में दुनिया के तमाम ममालिक दिखाए। \v 6 वह बोला, “मैं तुझे इन ममालिक की शानो-शौकत और इन पर तमाम इख़्तियार दूँगा। क्योंकि यह मेरे सुपुर्द किए गए हैं और जिसे चाहूँ दे सकता हूँ। \v 7 लिहाज़ा यह सब कुछ तेरा ही होगा। शर्त यह है कि तू मुझे सिजदा करे।” \p \v 8 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “हरगिज़ नहीं, क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में यों लिखा है, ‘रब अपने अल्लाह को सिजदा कर और सिर्फ़ उसी की इबादत कर’।” \p \v 9 फिर इबलीस ने उसे यरूशलम ले जाकर बैतुल-मुक़द्दस की सबसे ऊँची जगह पर खड़ा किया और कहा, “अगर तू अल्लाह का फ़रज़ंद है तो यहाँ से छलाँग लगा दे। \v 10 क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, ‘वह अपने फ़रिश्तों को तेरी हिफ़ाज़त करने का हुक्म देगा, \v 11 और वह तुझे अपने हाथों पर उठा लेंगे ताकि तेरे पाँवों को पत्थर से ठेस न लगे’।” \p \v 12 लेकिन ईसा ने तीसरी बार इनकार किया और कहा, “कलामे-मुक़द्दस यह भी फ़रमाता है, ‘रब अपने अल्लाह को न आज़माना’।” \p \v 13 इन आज़माइशों के बाद इबलीस ने ईसा को कुछ देर के लिए छोड़ दिया। \s1 ख़िदमत का आग़ाज़ \p \v 14 फिर ईसा वापस गलील में आया। उसमें रूहुल-क़ुद्स की क़ुव्वत थी, और उस की शोहरत उस पूरे इलाक़े में फैल गई। \v 15 वहाँ वह उनके इबादतख़ानों में तालीम देने लगा, और सबने उस की तारीफ़ की। \s1 ईसा को नासरत में रद्द किया जाता है \p \v 16 एक दिन वह नासरत पहुँचा जहाँ वह परवान चढ़ा था। वहाँ भी वह मामूल के मुताबिक़ सबत के दिन मक़ामी इबादतख़ाने में जाकर कलामे-मुक़द्दस में से पढ़ने के लिए खड़ा हो गया। \v 17 उसे यसायाह नबी की किताब दी गई तो उसने तूमार को खोलकर यह हवाला ढूँड निकाला, \p \v 18 “रब का रूह मुझ पर है, \p क्योंकि उसने मुझे तेल से मसह करके \p ग़रीबों को ख़ुशख़बरी सुनाने का इख़्तियार दिया है। \p उसने मुझे यह एलान करने के लिए भेजा है \p कि क़ैदियों को रिहाई मिलेगी और अंधे देखेंगे। \p उसने मुझे भेजा है \p कि मैं कुचले हुओं को आज़ाद कराऊँ \p \v 19 और रब की तरफ़ से बहाली के साल का एलान करूँ।” \p \v 20 यह कहकर ईसा ने तूमार को लपेटकर इबादतख़ाने के मुलाज़िम को वापस कर दिया और बैठ गया। सारी जमात की आँखें उस पर लगी थीं। \v 21 फिर वह बोल उठा, “आज अल्लाह का यह फ़रमान तुम्हारे सुनते ही पूरा हो गया है।” \p \v 22 सब ईसा के हक़ में बातें करने लगे। वह उन पुरफ़ज़ल बातों पर हैरतज़दा थे जो उसके मुँह से निकलीं, और वह कहने लगे, “क्या यह यूसुफ़ का बेटा नहीं है?” \p \v 23 उसने उनसे कहा, “बेशक तुम मुझे यह कहावत बताओगे, ‘ऐ डाक्टर, पहले अपने आपका इलाज कर।’ यानी सुनने में आया है कि आपने कफ़र्नहूम में मोजिज़े किए हैं। अब ऐसे मोजिज़े यहाँ अपने वतनी शहर में भी दिखाएँ। \v 24 लेकिन मैं तुमको सच बताता हूँ कि कोई भी नबी अपने वतनी शहर में मक़बूल नहीं होता। \p \v 25 यह हक़ीक़त है कि इलियास नबी के ज़माने में इसराईल में बहुत-सी ज़रूरतमंद बेवाएँ थीं, उस वक़्त जब साढ़े तीन साल तक बारिश न हुई और पूरे मुल्क में सख़्त काल पड़ा। \v 26 इसके बावुजूद इलियास को उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया बल्कि एक ग़ैरयहूदी बेवा के पास जो सैदा के शहर सारपत में रहती थी। \v 27 इसी तरह इलीशा नबी के ज़माने में इसराईल में कोढ़ के बहुत-से मरीज़ थे। लेकिन उनमें से किसी को शफ़ा न मिली बल्कि सिर्फ़ नामान को जो मुल्के-शाम का शहरी था।” \p \v 28 जब इबादतख़ाने में जमा लोगों ने यह बातें सुनीं तो वह बड़े तैश में आ गए। \v 29 वह उठे और उसे शहर से निकालकर उस पहाड़ी के किनारे ले गए जिस पर शहर को तामीर किया गया था। वहाँ से वह उसे नीचे गिराना चाहते थे, \v 30 लेकिन ईसा उनमें से गुज़रकर वहाँ से चला गया। \s1 आदमी का बदरूह की गिरिफ़्त से रिहाई \p \v 31 इसके बाद वह गलील के शहर कफ़र्नहूम को गया और सबत के दिन इबादतख़ाने में लोगों को सिखाने लगा। \v 32 वह उस की तालीम सुनकर हक्का-बक्का रह गए, क्योंकि वह इख़्तियार के साथ तालीम देता था। \v 33 इबादतख़ाने में एक आदमी था जो किसी नापाक रूह के क़ब्ज़े में था। अब वह चीख़ चीख़कर बोलने लगा, \v 34 “अरे नासरत के ईसा, हमारा आपके साथ क्या वास्ता है? क्या आप हमें हलाक करने आए हैं? मैं तो जानता हूँ कि आप कौन हैं, आप अल्लाह के क़ुद्दूस हैं।” \p \v 35 ईसा ने उसे डाँटकर कहा, “ख़ामोश! आदमी में से निकल जा!” इस पर बदरूह आदमी को जमात के बीच में फ़र्श पर पटककर उसमें से निकल गई। लेकिन वह आदमी ज़ख़मी न हुआ। \p \v 36 तमाम लोग घबरा गए और एक दूसरे से कहने लगे, “उस आदमी के अलफ़ाज़ में क्या इख़्तियार और क़ुव्वत है कि बदरूहें उसका हुक्म मानती और उसके कहने पर निकल जाती हैं?” \v 37 और ईसा के बारे में चर्चा उस पूरे इलाक़े में फैल गया। \s1 बहुत-से मरीज़ों की शफ़ायाबी \p \v 38 फिर ईसा इबादतख़ाने को छोड़कर शमौन के घर गया। वहाँ शमौन की सास शदीद बुख़ार में मुब्तला थी। उन्होंने ईसा से गुज़ारिश की कि वह उस की मदद करे। \v 39 उसने उसके सिरहाने खड़े होकर बुख़ार को डाँटा तो वह उतर गया और शमौन की सास उसी वक़्त उठकर उनकी ख़िदमत करने लगी। \p \v 40 जब दिन ढल गया तो सब मक़ामी लोग अपने मरीज़ों को ईसा के पास लाए। ख़ाह उनकी बीमारियाँ कुछ भी क्यों न थीं, उसने हर एक पर अपने हाथ रखकर उसे शफ़ा दी। \v 41 बहुतों में बदरूहें भी थीं जिन्होंने निकलते वक़्त चिल्लाकर कहा, “तू अल्लाह का फ़रज़ंद है।” लेकिन चूँकि वह जानती थीं कि वह मसीह है इसलिए उसने उन्हें डाँटकर बोलने न दिया। \s1 ख़ुशख़बरी हर एक के लिए है \p \v 42 जब अगला दिन चढ़ा तो ईसा शहर से निकलकर किसी वीरान जगह चला गया। लेकिन हुजूम उसे ढूँडते ढूँडते आख़िरकार उसके पास पहुँचा। लोग उसे अपने पास से जाने नहीं देना चाहते थे। \v 43 लेकिन उसने उनसे कहा, “लाज़िम है कि मैं दूसरे शहरों में भी जाकर अल्लाह की बादशाही की ख़ुशख़बरी सुनाऊँ, क्योंकि मुझे इसी मक़सद के लिए भेजा गया है।” \p \v 44 चुनाँचे वह यहूदिया के इबादतख़ानों में मुनादी करता रहा। \c 5 \s1 पहले शागिर्दों की बुलाहट \p \v 1 एक दिन ईसा गलील की झील गन्नेसरत के किनारे पर खड़ा हुजूम को अल्लाह का कलाम सुना रहा था। लोग सुनते सुनते इतने क़रीब आ गए कि उसके लिए जगह कम हो गई। \v 2 फिर उसे दो कश्तियाँ नज़र आईं जो झील के किनारे लगी थीं। मछेरे उनमें से उतर चुके थे और अब अपने जालों को धो रहे थे। \v 3 ईसा एक कश्ती पर सवार हुआ। उसने कश्ती के मालिक शमौन से दरख़ास्त की कि वह कश्ती को किनारे से थोड़ा-सा दूर ले चले। फिर वह कश्ती में बैठा और हुजूम को तालीम देने लगा। \p \v 4 तालीम देने के इख़्तिताम पर उसने शमौन से कहा, “अब कश्ती को वहाँ ले जा जहाँ पानी गहरा है और अपने जालों को मछलियाँ पकड़ने के लिए डाल दो।” \p \v 5 लेकिन शमौन ने एतराज़ किया, “उस्ताद, हमने तो पूरी रात बड़ी कोशिश की, लेकिन एक भी न पकड़ी। ताहम आपके कहने पर मैं जालों को दुबारा डालूँगा।” \v 6 यह कहकर उन्होंने गहरे पानी में जाकर अपने जाल डाल दिए। और वाक़ई, मछलियों का इतना बड़ा ग़ोल जालों में फँस गया कि वह फटने लगे। \v 7 यह देखकर उन्होंने अपने साथियों को इशारा करके बुलाया ताकि वह दूसरी कश्ती में आकर उनकी मदद करें। वह आए और सबने मिलकर दोनों कश्तियों को इतनी मछलियों से भर दिया कि आख़िरकार दोनों डूबने के ख़तरे में थीं। \v 8 जब शमौन पतरस ने यह सब कुछ देखा तो उसने ईसा के सामने मुँह के बल गिरकर कहा, “ख़ुदावंद, मुझसे दूर चले जाएँ। मैं तो गुनाहगार हूँ।” \v 9 क्योंकि वह और उसके साथी इतनी मछलियाँ पकड़ने की वजह से सख़्त हैरान थे। \v 10 और ज़बदी के बेटे याक़ूब और यूहन्ना की हालत भी यही थी जो शमौन के साथ मिलकर काम करते थे। \p लेकिन ईसा ने शमौन से कहा, “मत डर। अब से तू आदमियों को पकड़ा करेगा।” \p \v 11 वह अपनी कश्तियों को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर ईसा के पीछे हो लिए। \s1 कोढ़ से शफ़ा \p \v 12 एक दिन ईसा किसी शहर में से गुज़र रहा था कि वहाँ एक मरीज़ मिला जिसका पूरा जिस्म कोढ़ से मुतअस्सिर था। जब उसने ईसा को देखा तो वह मुँह के बल गिर पड़ा और इल्तिजा की, “ऐ ख़ुदावंद, अगर आप चाहें तो मुझे पाक-साफ़ कर सकते हैं।” \p \v 13 ईसा ने अपना हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ, पाक-साफ़ हो जा।” इस पर बीमारी फ़ौरन दूर हो गई। \v 14 ईसा ने उसे हिदायत की कि वह किसी को न बताए कि क्या हुआ है। उसने कहा, “सीधा बैतुल-मुक़द्दस में इमाम के पास जा ताकि वह तेरा मुआयना करे। अपने साथ वह क़ुरबानी ले जा जिसका तक़ाज़ा मूसा की शरीअत उनसे करती है जिन्हें कोढ़ से शफ़ा मिलती है। यों अलानिया तसदीक़ हो जाएगी कि तू वाक़ई पाक-साफ़ हो गया है।” \p \v 15 ताहम ईसा के बारे में ख़बर और ज़्यादा तेज़ी से फैलती गई। लोगों के बड़े गुरोह उसके पास आते रहे ताकि उस की बातें सुनें और उसके हाथ से शफ़ा पाएँ। \v 16 फिर भी वह कई बार उन्हें छोड़कर दुआ करने के लिए वीरान जगहों पर जाया करता था। \s1 मफ़लूज के लिए छत खोली जाती है \p \v 17 एक दिन वह लोगों को तालीम दे रहा था। फ़रीसी और शरीअत के आलिम भी गलील और यहूदिया के हर गाँव और यरूशलम से आकर उसके पास बैठे थे। और रब की क़ुदरत उसे शफ़ा देने के लिए तहरीक दे रही थी। \v 18 इतने में कुछ आदमी एक मफ़लूज को चारपाई पर डालकर वहाँ पहुँचे। उन्होंने उसे घर के अंदर ईसा के सामने रखने की कोशिश की, \v 19 लेकिन बेफ़ायदा। घर में इतने लोग थे कि अंदर जाना नामुमकिन था। इसलिए वह आख़िरकार छत पर चढ़ गए और कुछ टायलें उधेड़कर छत का एक हिस्सा खोल दिया। फिर उन्होंने चारपाई को मफ़लूज समेत हुजूम के दरमियान ईसा के सामने उतारा। \v 20 जब ईसा ने उनका ईमान देखा तो उसने मफ़लूज से कहा, “ऐ आदमी, तेरे गुनाह मुआफ़ कर दिए गए हैं।” \p \v 21 यह सुनकर शरीअत के आलिम और फ़रीसी सोच-बिचार में पड़ गए, “यह किस तरह का बंदा है जो इस क़िस्म का कुफ़र बकता है? सिर्फ़ अल्लाह ही गुनाह मुआफ़ कर सकता है।” \p \v 22 लेकिन ईसा ने जान लिया कि यह क्या सोच रहे हैं, इसलिए उसने पूछा, “तुम दिल में इस तरह की बातें क्यों सोच रहे हो? \v 23 क्या मफ़लूज से यह कहना ज़्यादा आसान है कि ‘तेरे गुनाह मुआफ़ कर दिए गए हैं’ या यह कि ‘उठकर चल-फिर’? \v 24 लेकिन मैं तुमको दिखाता हूँ कि इब्ने-आदम को वाक़ई दुनिया में गुनाह मुआफ़ करने का इख़्तियार है।” यह कहकर वह मफ़लूज से मुख़ातिब हुआ, “उठ, अपनी चारपाई उठाकर अपने घर चला जा।” \p \v 25 लोगों के देखते देखते वह आदमी खड़ा हुआ और अपनी चारपाई उठाकर अल्लाह की हम्दो-सना करते हुए अपने घर चला गया। \v 26 यह देखकर सब सख़्त हैरतज़दा हुए और अल्लाह की तमजीद करने लगे। उन पर ख़ौफ़ छा गया और वह कह उठे, “आज हमने नाक़ाबिले-यक़ीन बातें देखी हैं।” \s1 ईसा मत्ती को बुलाता है \p \v 27 इसके बाद ईसा निकलकर एक टैक्स लेनेवाले के पास से गुज़रा जो अपनी चौकी पर बैठा था। उसका नाम लावी था। उसे देखकर ईसा ने कहा, “मेरे पीछे हो ले।” \v 28 वह उठा और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिया। \p \v 29 बाद में उसने अपने घर में ईसा की बड़ी ज़ियाफ़त की। बहुत-से टैक्स लेनेवाले और दीगर मेहमान इसमें शरीक हुए। \v 30 यह देखकर कुछ फ़रीसियों और उनसे ताल्लुक़ रखनेवाले शरीअत के आलिमों ने ईसा के शागिर्दों से शिकायत की। उन्होंने कहा, “तुम टैक्स लेनेवालों और गुनाहगारों के साथ क्यों खाते-पीते हो?” \p \v 31 ईसा ने जवाब दिया, “सेहतमंदों को डाक्टर की ज़रूरत नहीं होती बल्कि मरीज़ों को। \v 32 मैं रास्तबाज़ों को नहीं बल्कि गुनाहगारों को बुलाने आया हूँ ताकि वह तौबा करें।” \s1 शागिर्द रोज़ा क्यों नहीं रखते? \p \v 33 कुछ लोगों ने ईसा से एक और सवाल पूछा, “यहया के शागिर्द अकसर रोज़ा रखते हैं। और साथ साथ वह दुआ भी करते रहते हैं। फ़रीसियों के शागिर्द भी इसी तरह करते हैं। लेकिन आपके शागिर्द खाने-पीने का सिलसिला जारी रखते हैं।” \p \v 34 ईसा ने जवाब दिया, “क्या तुम शादी के मेहमानों को रोज़ा रखने को कह सकते हो जब दूल्हा उनके दरमियान है? हरगिज़ नहीं! \v 35 लेकिन एक दिन आएगा जब दूल्हा उनसे ले लिया जाएगा। उस वक़्त वह ज़रूर रोज़ा रखेंगे।” \p \v 36 उसने उन्हें यह मिसाल भी दी, “कौन किसी नए लिबास को फाड़कर उसका एक टुकड़ा किसी पुराने लिबास में लगाएगा? कोई भी नहीं! अगर वह ऐसा करे तो न सिर्फ़ नया लिबास ख़राब होगा बल्कि उससे लिया गया टुकड़ा पुराने लिबास को भी ख़राब कर देगा। \v 37 इसी तरह कोई भी अंगूर का ताज़ा रस पुरानी और बे-लचक मशकों में नहीं डालेगा। अगर वह ऐसा करे तो पुरानी मशकें पैदा होनेवाली गैस के बाइस फट जाएँगी। नतीजे में मै और मशकें दोनों ज़ाया हो जाएँगी। \v 38 इसलिए अंगूर का ताज़ा रस नई मशकों में डाला जाता है जो लचकदार होती हैं। \v 39 लेकिन जो भी पुरानी मै पीना पसंद करे वह अंगूर का नया और ताज़ा रस पसंद नहीं करेगा। वह कहेगा कि पुरानी ही बेहतर है।” \c 6 \s1 सबत के बारे में सवाल \p \v 1 एक दिन ईसा अनाज के खेतों में से गुज़र रहा था। चलते चलते उसके शागिर्द अनाज की बालें तोड़ने और अपने हाथों से मलकर खाने लगे। सबत का दिन था। \v 2 यह देखकर कुछ फ़रीसियों ने कहा, “तुम यह क्यों कर रहे हो? सबत के दिन ऐसा करना मना है।” \p \v 3 ईसा ने जवाब दिया, “क्या तुमने कभी नहीं पढ़ा कि दाऊद ने क्या किया जब उसे और उसके साथियों को भूक लगी थी? \v 4 वह अल्लाह के घर में दाख़िल हुआ और रब के लिए मख़सूसशुदा रोटियाँ लेकर खाईं, अगरचे सिर्फ़ इमामों को इन्हें खाने की इजाज़त है। और उसने अपने साथियों को भी यह रोटियाँ खिलाईं।” \v 5 फिर ईसा ने उनसे कहा, “इब्ने-आदम सबत का मालिक है।” \s1 सूखे हाथ की शफ़ा \p \v 6 सबत के एक और दिन ईसा इबादतख़ाने में जाकर सिखाने लगा। वहाँ एक आदमी था जिसका दहना हाथ सूखा हुआ था। \v 7 शरीअत के आलिम और फ़रीसी बड़े ग़ौर से देख रहे थे कि क्या ईसा इस आदमी को आज भी शफ़ा देगा? क्योंकि वह उस पर इलज़ाम लगाने का कोई बहाना ढूँड रहे थे। \v 8 लेकिन ईसा ने उनकी सोच को जान लिया और उस सूखे हाथवाले आदमी से कहा, “उठ, दरमियान में खड़ा हो।” चुनाँचे वह आदमी खड़ा हुआ। \v 9 फिर ईसा ने उनसे पूछा, “मुझे बताओ, शरीअत हमें सबत के दिन क्या करने की इजाज़त देती है, नेक काम करने की या ग़लत काम करने की, किसी की जान बचाने की या उसे तबाह करने की?” \v 10 वह ख़ामोश होकर अपने इर्दगिर्द के तमाम लोगों की तरफ़ देखने लगा। फिर उसने कहा, “अपना हाथ आगे बढ़ा।” उसने ऐसा किया तो उसका हाथ बहाल हो गया। \p \v 11 लेकिन वह आपे में न रहे और एक दूसरे से बात करने लगे कि हम ईसा से किस तरह निपट सकते हैं? \s1 ईसा बारह रसूलों को मुक़र्रर करता है \p \v 12 उन्हीं दिनों में ईसा निकलकर दुआ करने के लिए पहाड़ पर चढ़ गया। दुआ करते करते पूरी रात गुज़र गई। \v 13 फिर उसने अपने शागिर्दों को अपने पास बुलाकर उनमें से बारह को चुन लिया, जिन्हें उसने अपने रसूल मुक़र्रर किया। उनके नाम यह हैं : \v 14 शमौन जिसका लक़ब उसने पतरस रखा, उसका भाई अंदरियास, याक़ूब, यूहन्ना, फ़िलिप्पुस, बरतुलमाई, \v 15 मत्ती, तोमा, याक़ूब बिन हलफ़ई, शमौन मुजाहिद, \v 16 यहूदाह बिन याक़ूब और यहूदाह इस्करियोती जिसने बाद में उसे दुश्मन के हवाले कर दिया। \s1 ईसा तालीम और शफ़ा देता है \p \v 17 फिर वह उनके साथ पहाड़ से उतरकर एक खुले और हमवार मैदान में खड़ा हुआ। वहाँ शागिर्दों की बड़ी तादाद ने उसे घेर लिया। साथ ही बहुत-से लोग यहूदिया, यरूशलम और सूर और सैदा के साहिली इलाक़े से \v 18 उस की तालीम सुनने और बीमारियों से शफ़ा पाने के लिए आए थे। और जिन्हें बदरूहें तंग कर रही थीं उन्हें भी शफ़ा मिली। \v 19 तमाम लोग उसे छूने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि उसमें से क़ुव्वत निकलकर सबको शफ़ा दे रही थी। \s1 कौन मुबारक है? \p \v 20 फिर ईसा ने अपने शागिर्दों की तरफ़ देखकर कहा, \p “मुबारक हो तुम जो ज़रूरतमंद हो, \p क्योंकि अल्लाह की बादशाही तुमको ही हासिल है। \p \v 21 मुबारक हो तुम जो इस वक़्त भूके हो, \p क्योंकि सेर हो जाओगे। \p मुबारक हो तुम जो इस वक़्त रोते हो, \p क्योंकि ख़ुशी से हँसोगे। \p \v 22 मुबारक हो तुम जब लोग इसलिए तुमसे नफ़रत करते और तुम्हारा हुक़्क़ा-पानी बंद करते हैं कि तुम इब्ने-आदम के पैरोकार बन गए हो। हाँ, मुबारक हो तुम जब वह इसी वजह से तुम्हें लान-तान करते और तुम्हारी बदनामी करते हैं। \v 23 जब वह ऐसा करते हैं तो शादमान होकर ख़ुशी से नाचो, क्योंकि आसमान पर तुमको बड़ा अज्र मिलेगा। उनके बापदादा ने यही सुलूक नबियों के साथ किया था। \p \v 24 मगर तुम पर अफ़सोस जो अब दौलतमंद हो, \p क्योंकि तुम्हारा सुकून यहीं ख़त्म हो जाएगा। \p \v 25 तुम पर अफ़सोस जो इस वक़्त ख़ूब सेर हो, \p क्योंकि बाद में तुम भूके होगे। \p तुम पर अफ़सोस जो अब हँस रहे हो, \p क्योंकि एक वक़्त आएगा कि रो रोकर मातम करोगे। \p \v 26 तुम पर अफ़सोस जिनकी तमाम लोग तारीफ़ करते हैं, क्योंकि उनके बापदादा ने यही सुलूक झूटे नबियों के साथ किया था। \s1 अपने दुश्मनों से मुहब्बत रखना \p \v 27 लेकिन तुमको जो सुन रहे हो मैं यह बताता हूँ, अपने दुश्मनों से मुहब्बत रखो, और उनसे भलाई करो जो तुमसे नफ़रत करते हैं। \v 28 जो तुम पर लानत करते हैं उन्हें बरकत दो, और जो तुमसे बुरा सुलूक करते हैं उनके लिए दुआ करो। \v 29 अगर कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो उसे दूसरा गाल भी पेश कर दो। इसी तरह अगर कोई तुम्हारी चादर छीन ले तो उसे क़मीस लेने से भी न रोको। \v 30 जो भी तुमसे कुछ माँगता है उसे दो। और जिसने तुमसे कुछ लिया है उससे उसे वापस देने का तक़ाज़ा न करो। \v 31 लोगों के साथ वैसा सुलूक करो जैसा तुम चाहते हो कि वह तुम्हारे साथ करें। \p \v 32 अगर तुम सिर्फ़ उन्हीं से मुहब्बत करो जो तुमसे करते हैं तो इसमें तुम्हारी क्या ख़ास मेहरबानी होगी? गुनाहगार भी ऐसा ही करते हैं। \v 33 और अगर तुम सिर्फ़ उन्हीं से भलाई करो जो तुमसे भलाई करते हैं तो इसमें तुम्हारी क्या ख़ास मेहरबानी होगी? गुनाहगार भी ऐसा ही करते हैं। \v 34 इसी तरह अगर तुम सिर्फ़ उन्हीं को उधार दो जिनके बारे में तुम्हें अंदाज़ा है कि वह वापस कर देंगे तो इसमें तुम्हारी क्या ख़ास मेहरबानी होगी? गुनाहगार भी गुनाहगारों को उधार देते हैं जब उन्हें सब कुछ वापस मिलने का यक़ीन होता है। \v 35 नहीं, अपने दुश्मनों से मुहब्बत करो और उन्हीं से भलाई करो। उन्हें उधार दो जिनके बारे में तुम्हें वापस मिलने की उम्मीद नहीं है। फिर तुमको बड़ा अज्र मिलेगा और तुम अल्लाह तआला के फ़रज़ंद साबित होगे, क्योंकि वह भी नाशुक्रों और बुरे लोगों पर नेकी का इज़हार करता है। \v 36 लाज़िम है कि तुम रहमदिल हो क्योंकि तुम्हारा बाप भी रहमदिल है। \s1 मुंसिफ़ न बनना \p \v 37 दूसरों की अदालत न करना तो तुम्हारी भी अदालत नहीं की जाएगी। दूसरों को मुजरिम क़रार न देना तो तुमको भी मुजरिम क़रार नहीं दिया जाएगा। मुआफ़ करो तो तुमको भी मुआफ़ कर दिया जाएगा। \v 38 दो तो तुमको भी दिया जाएगा। हाँ, जिस हिसाब से तुमने दिया उसी हिसाब से तुमको दिया जाएगा, बल्कि पैमाना दबा दबा और हिला हिलाकर और लबरेज़ करके तुम्हारी झोली में डाल दिया जाएगा। क्योंकि जिस पैमाने से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा।” \p \v 39 फिर ईसा ने यह मिसाल पेश की। “क्या एक अंधा दूसरे अंधे की राहनुमाई कर सकता है? हरगिज़ नहीं! अगर वह ऐसा करे तो दोनों गढ़े में गिर जाएंगे। \v 40 शागिर्द अपने उस्ताद से बड़ा नहीं होता बल्कि जब उसे पूरी ट्रेनिंग मिली हो तो वह अपने उस्ताद ही की मानिंद होगा। \p \v 41 तू क्यों ग़ौर से अपने भाई की आँख में पड़े तिनके पर नज़र करता है जबकि तुझे वह शहतीर नज़र नहीं आता जो तेरी अपनी आँख में है? \v 42 तू क्योंकर अपने भाई से कह सकता है, ‘भाई, ठहरो, मुझे तुम्हारी आँख में पड़ा तिनका निकालने दो’ जबकि तुझे अपनी आँख का शहतीर नज़र नहीं आता? रियाकार! पहले अपनी आँख के शहतीर को निकाल। तब ही तुझे भाई का तिनका साफ़ नज़र आएगा और तू उसे अच्छी तरह से देखकर निकाल सकेगा। \s1 दरख़्त उसके फल से पहचाना जाता है \p \v 43 न अच्छा दरख़्त ख़राब फल लाता है, न ख़राब दरख़्त अच्छा फल। \v 44 हर क़िस्म का दरख़्त उसके फल से पहचाना जाता है। ख़ारदार झाड़ियों से अंजीर या अंगूर नहीं तोड़े जाते। \v 45 नेक शख़्स का अच्छा फल उसके दिल के अच्छे ख़ज़ाने से निकलता है जबकि बुरे शख़्स का ख़राब फल उसके दिल की बुराई से निकलता है। क्योंकि जिस चीज़ से दिल भरा होता है वही छलककर मुँह से निकलती है। \s1 दो क़िस्म के मकान \p \v 46 तुम क्यों मुझे ‘ख़ुदावंद, ख़ुदावंद’ कहकर पुकारते हो? मेरी बात पर तो तुम अमल नहीं करते। \v 47 लेकिन मैं तुमको बताता हूँ कि वह शख़्स किसकी मानिंद है जो मेरे पास आकर मेरी बात सुन लेता और उस पर अमल करता है। \v 48 वह उस आदमी की मानिंद है जिसने अपना मकान बनाने के लिए गहरी बुनियाद की खुदाई करवाई। खोद खोदकर वह चट्टान तक पहुँच गया। उसी पर उसने मकान की बुनियाद रखी। मकान मुकम्मल हुआ तो एक दिन सैलाब आया। ज़ोर से बहता हुआ पानी मकान से टकराया, लेकिन वह उसे हिला न सका क्योंकि वह मज़बूती से बनाया गया था। \v 49 लेकिन जो मेरी बात सुनता और उस पर अमल नहीं करता वह उस शख़्स की मानिंद है जिसने अपना मकान बुनियाद के बग़ैर ज़मीन पर ही तामीर किया। ज्योंही ज़ोर से बहता हुआ पानी उससे टकराया तो वह गिर गया और सरासर तबाह हो गया।” \c 7 \s1 रोमी अफ़सर के ग़ुलाम की शफ़ा \p \v 1 यह सब कुछ लोगों को सुनाने के बाद ईसा कफ़र्नहूम चला गया। \v 2 वहाँ सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर एक अफ़सर रहता था। उन दिनों में उसका एक ग़ुलाम जो उसे बहुत अज़ीज़ था बीमार पड़ गया। अब वह मरने को था। \v 3 चूँकि अफ़सर ने ईसा के बारे में सुना था इसलिए उसने यहूदियों के कुछ बुज़ुर्ग यह दरख़ास्त करने के लिए उसके पास भेज दिए कि वह आकर ग़ुलाम को शफ़ा दे। \v 4 वह ईसा के पास पहुँचकर बड़े ज़ोर से इल्तिजा करने लगे, “यह आदमी इस लायक़ है कि आप उस की दरख़ास्त पूरी करें, \v 5 क्योंकि वह हमारी क़ौम से प्यार करता है, यहाँ तक कि उसने हमारे लिए इबादतख़ाना भी तामीर करवाया है।” \p \v 6 चुनाँचे ईसा उनके साथ चल पड़ा। लेकिन जब वह घर के क़रीब पहुँच गया तो अफ़सर ने अपने कुछ दोस्त यह कहकर उसके पास भेज दिए कि “ख़ुदावंद, मेरे घर में आने की तकलीफ़ न करें, क्योंकि मैं इस लायक़ नहीं हूँ। \v 7 इसलिए मैंने ख़ुद को आपके पास आने के लायक़ भी न समझा। बस वहीं से कह दें तो मेरा ग़ुलाम शफ़ा पा जाएगा। \v 8 क्योंकि मुझे ख़ुद आला अफ़सरों के हुक्म पर चलना पड़ता है और मेरे मातहत भी फ़ौजी हैं। एक को कहता हूँ, ‘जा!’ तो वह जाता है और दूसरे को ‘आ!’ तो वह आता है। इसी तरह मैं अपने नौकर को हुक्म देता हूँ, ‘यह कर!’ तो वह करता है।” \p \v 9 यह सुनकर ईसा निहायत हैरान हुआ। उसने मुड़कर अपने पीछे आनेवाले हुजूम से कहा, “मैं तुमको सच बताता हूँ, मैंने इसराईल में भी इस क़िस्म का ईमान नहीं पाया।” \p \v 10 जब अफ़सर का पैग़ाम पहुँचानेवाले घर वापस आए तो उन्होंने देखा कि ग़ुलाम की सेहत बहाल हो चुकी है। \s1 बेवा का बेटा ज़िंदा किया जाता है \p \v 11 कुछ देर के बाद ईसा अपने शागिर्दों के साथ नायन शहर के लिए रवाना हुआ। एक बड़ा हुजूम भी साथ चल रहा था। \v 12 जब वह शहर के दरवाज़े के क़रीब पहुँचा तो एक जनाज़ा निकला। जो नौजवान फ़ौत हुआ था उस की माँ बेवा थी और वह उसका इकलौता बेटा था। माँ के साथ शहर के बहुत-से लोग चल रहे थे। \v 13 उसे देखकर ख़ुदावंद को उस पर बड़ा तरस आया। उसने उससे कहा, “मत रो।” \v 14 फिर वह जनाज़े के पास गया और उसे छुआ। उसे उठानेवाले रुक गए तो ईसा ने कहा, “ऐ नौजवान, मैं तुझे कहता हूँ कि उठ!” \v 15 मुरदा उठ बैठा और बोलने लगा। ईसा ने उसे उस की माँ के सुपुर्द कर दिया। \p \v 16 यह देखकर तमाम लोगों पर ख़ौफ़ तारी हो गया और वह अल्लाह की तमजीद करके कहने लगे, “हमारे दरमियान एक बड़ा नबी बरपा हुआ है। अल्लाह ने अपनी क़ौम पर नज़र की है।” \p \v 17 और ईसा के बारे में यह ख़बर पूरे यहूदिया और इर्दगिर्द के इलाक़े में फैल गई। \s1 यहया का ईसा से सवाल \p \v 18 यहया को भी अपने शागिर्दों की मारिफ़त इन तमाम वाक़ियात के बारे में पता चला। इस पर उसने दो शागिर्दों को बुलाकर \v 19 उन्हें यह पूछने के लिए ख़ुदावंद के पास भेजा, “क्या आप वही हैं जिसे आना है या हम किसी और के इंतज़ार में रहें?” \p \v 20 चुनाँचे यह शागिर्द ईसा के पास पहुँचकर कहने लगे, “यहया बपतिस्मा देनेवाले ने हमें यह पूछने के लिए भेजा है कि क्या आप वही हैं जिसे आना है या हम किसी और का इंतज़ार करें?” \p \v 21 ईसा ने उसी वक़्त बहुत-से लोगों को शफ़ा दी थी जो मुख़्तलिफ़ क़िस्म की बीमारियों, मुसीबतों और बदरूहों की गिरिफ़्त में थे। अंधों की आँखें भी बहाल हो गई थीं। \v 22 इसलिए उसने जवाब में यहया के क़ासिदों से कहा, “यहया के पास वापस जाकर उसे सब कुछ बता देना जो तुमने देखा और सुना है। ‘अंधे देखते, लँगड़े चलते-फिरते हैं, कोढ़ियों को पाक-साफ़ किया जाता है, बहरे सुनते हैं, मुरदों को ज़िंदा किया जाता है और ग़रीबों को अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाई जाती है।’ \v 23 यहया को बताओ, ‘मुबारक है वह जो मेरे सबब से ठोकर खाकर बरगश्ता नहीं होता’।” \p \v 24 यहया के यह क़ासिद चले गए तो ईसा हुजूम से यहया के बारे में बात करने लगा, “तुम रेगिस्तान में क्या देखने गए थे? एक सरकंडा जो हवा के हर झोंके से हिलता है? बेशक नहीं। \v 25 या क्या वहाँ जाकर ऐसे आदमी की तवक़्क़ो कर रहे थे जो नफ़ीस और मुलायम लिबास पहने हुए है? नहीं, जो शानदार कपड़े पहनते और ऐशो-इशरत में ज़िंदगी गुज़ारते हैं वह शाही महलों में पाए जाते हैं। \v 26 तो फिर तुम क्या देखने गए थे? एक नबी को? बिलकुल सहीह, बल्कि मैं तुमको बताता हूँ कि वह नबी से भी बड़ा है। \v 27 उसी के बारे में कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, ‘देख मैं अपने पैग़ंबर को तेरे आगे आगे भेज देता हूँ जो तेरे सामने रास्ता तैयार करेगा।’ \v 28 मैं तुमको बताता हूँ कि इस दुनिया में पैदा होनेवाला कोई भी शख़्स यहया से बड़ा नहीं है। तो भी अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होनेवाला सबसे छोटा शख़्स उससे बड़ा है।” \p \v 29 बात यह थी कि तमाम क़ौम बशमूल टैक्स लेनेवालों ने यहया का पैग़ाम सुनकर अल्लाह का इनसाफ़ मान लिया और यहया से बपतिस्मा लिया था। \v 30 सिर्फ़ फ़रीसी और शरीअत के उलमा ने अपने बारे में अल्लाह की मरज़ी को रद्द करके यहया का बपतिस्मा लेने से इनकार किया था। \p \v 31 ईसा ने बात जारी रखी, “चुनाँचे मैं इस नसल के लोगों को किससे तशबीह दूँ? वह किससे मुताबिक़त रखते हैं? \v 32 वह उन बच्चों की मानिंद हैं जो बाज़ार में बैठे खेल रहे हैं। उनमें से कुछ ऊँची आवाज़ से दूसरे बच्चों से शिकायत कर रहे हैं, ‘हमने बाँसरी बजाई तो तुम न नाचे। फिर हमने नोहा के गीत गाए, लेकिन तुम न रोए।’ \v 33 देखो, यहया बपतिस्मा देनेवाला आया और न रोटी खाई, न मै पी। यह देखकर तुम कहते हो कि उसमें बदरूह है। \v 34 फिर इब्ने-आदम खाता और पीता हुआ आया। अब तुम कहते हो, ‘देखो यह कैसा पेटू और शराबी है। और वह टैक्स लेनेवालों और गुनाहगारों का दोस्त भी है।’ \v 35 लेकिन हिकमत अपने तमाम बच्चों से ही सहीह साबित हुई है।” \s1 ईसा शमौन फ़रीसी के घर में \p \v 36 एक फ़रीसी ने ईसा को खाना खाने की दावत दी। ईसा उसके घर जाकर खाना खाने के लिए बैठ गया। \v 37 उस शहर में एक बदचलन औरत रहती थी। जब उसे पता चला कि ईसा उस फ़रीसी के घर में खाना खा रहा है तो वह इत्रदान में बेशक़ीमत इत्र लाकर \v 38 पीछे से उसके पाँवों के पास खड़ी हो गई। वह रो पड़ी और उसके आँसू टपक टपककर ईसा के पाँवों को तर करने लगे। फिर उसने उसके पाँवों को अपने बालों से पोंछकर उन्हें चूमा और उन पर इत्र डाला। \v 39 जब ईसा के फ़रीसी मेज़बान ने यह देखा तो उसने दिल में कहा, “अगर यह आदमी नबी होता तो उसे मालूम होता कि यह किस क़िस्म की औरत है जो उसे छू रही है, कि यह गुनाहगार है।” \p \v 40 ईसा ने इन ख़यालात के जवाब में उससे कहा, “शमौन, मैं तुझे कुछ बताना चाहता हूँ।” \p उसने कहा, “जी उस्ताद, बताएँ।” \p \v 41 ईसा ने कहा, “एक साहूकार के दो क़र्ज़दार थे। एक को उसने चाँदी के 500 सिक्के दिए थे और दूसरे को 50 सिक्के। \v 42 लेकिन दोनों अपना क़र्ज़ अदा न कर सके। यह देखकर उसने दोनों का क़र्ज़ मुआफ़ कर दिया। अब मुझे बता, दोनों क़र्ज़दारों में से कौन उसे ज़्यादा अज़ीज़ रखेगा?” \p \v 43 शमौन ने जवाब दिया, “मेरे ख़याल में वह जिसे ज़्यादा मुआफ़ किया गया।” \p ईसा ने कहा, “तूने ठीक अंदाज़ा लगाया है।” \v 44 और औरत की तरफ़ मुड़कर उसने शमौन से बात जारी रखी, “क्या तू इस औरत को देखता है? \v 45 जब मैं इस घर में आया तो तूने मुझे पाँव धोने के लिए पानी न दिया। लेकिन इसने मेरे पाँवों को अपने आँसुओं से तर करके अपने बालों से पोंछकर ख़ुश्क कर दिया है। तूने मुझे बोसा न दिया, लेकिन यह मेरे अंदर आने से लेकर अब तक मेरे पाँवों को चूमने से बाज़ नहीं रही। \v 46 तूने मेरे सर पर ज़ैतून का तेल न डाला, लेकिन इसने मेरे पाँवों पर इत्र डाला। \v 47 इसलिए मैं तुझे बताता हूँ कि इसके गुनाहों को गो वह बहुत हैं मुआफ़ कर दिया गया है, क्योंकि इसने बहुत मुहब्बत का इज़हार किया है। लेकिन जिसे कम मुआफ़ किया गया हो वह कम मुहब्बत रखता है।” \p \v 48 फिर ईसा ने औरत से कहा, “तेरे गुनाहों को मुआफ़ कर दिया गया है।” \p \v 49 यह सुनकर जो साथ बैठे थे आपस में कहने लगे, “यह किस क़िस्म का शख़्स है जो गुनाहों को भी मुआफ़ करता है?” \p \v 50 लेकिन ईसा ने ख़ातून से कहा, “तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है। सलामती से चली जा।” \c 8 \s1 ख़िदमतगुज़ार ख़वातीन ईसा के साथ सफ़र करती हैं \p \v 1 इसके कुछ देर बाद ईसा मुख़्तलिफ़ शहरों और देहातों में से गुज़रकर सफ़र करने लगा। हर जगह उसने अल्लाह की बादशाही के बारे में ख़ुशख़बरी सुनाई। उसके बारह शागिर्द उसके साथ थे, \v 2 नीज़ कुछ ख़वातीन भी जिन्हें उसने बदरूहों से रिहाई और बीमारियों से शफ़ा दी थी। इनमें से एक मरियम थी जो मग्दलीनी कहलाती थी जिसमें से सात बदरूहें निकाली गई थीं। \v 3 फिर युअन्ना जो ख़ूज़ा की बीवी थी (ख़ूज़ा हेरोदेस बादशाह का एक अफ़सर था)। सूसन्ना और दीगर कई ख़वातीन भी थीं जो अपने माली वसायल से उनकी ख़िदमत करती थीं। \s1 बीज बोनेवाले की तमसील \p \v 4 एक दिन ईसा ने एक बड़े हुजूम को एक तमसील सुनाई। लोग मुख़्तलिफ़ शहरों से उसे सुनने के लिए जमा हो गए थे। \p \v 5 “एक किसान बीज बोने के लिए निकला। जब बीज इधर-उधर बिखर गया तो कुछ दाने रास्ते पर गिरे। वहाँ उन्हें पाँवों तले कुचला गया और परिंदों ने उन्हें चुग लिया। \v 6 कुछ पथरीली ज़मीन पर गिरे। वहाँ वह उगने तो लगे, लेकिन नमी की कमी थी, इसलिए पौदे कुछ देर के बाद सूख गए। \v 7 कुछ दाने ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दरमियान भी गिरे। वहाँ वह उगने तो लगे, लेकिन ख़ुदरौ पौदों ने साथ साथ बढ़कर उन्हें फलने फूलने की जगह न दी। चुनाँचे वह भी ख़त्म हो गए। \v 8 लेकिन ऐसे दाने भी थे जो ज़रख़ेज़ ज़मीन पर गिरे। वहाँ वह उग सके और जब फ़सल पक गई तो सौ गुना ज़्यादा फल पैदा हुआ।” \p यह कहकर ईसा पुकार उठा, “जो सुन सकता है वह सुन ले!” \s1 तमसीलों का मक़सद \p \v 9 उसके शागिर्दों ने उससे पूछा कि इस तमसील का क्या मतलब है? \v 10 जवाब में उसने कहा, “तुमको तो अल्लाह की बादशाही के भेद समझने की लियाक़त दी गई है। लेकिन मैं दूसरों को समझाने के लिए तमसीलें इस्तेमाल करता हूँ ताकि पाक कलाम पूरा हो जाए कि ‘वह अपनी आँखों से देखेंगे मगर कुछ नहीं जानेंगे, वह अपने कानों से सुनेंगे मगर कुछ नहीं समझेंगे।’ \s1 बीज बोनेवाले की तमसील का मतलब \p \v 11 तमसील का मतलब यह है : बीज से मुराद अल्लाह का कलाम है। \v 12 राह पर गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनते तो हैं, लेकिन फिर इबलीस आकर उसे उनके दिलों से छीन लेता है, ऐसा न हो कि वह ईमान लाकर नजात पाएँ। \v 13 पथरीली ज़मीन पर गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनकर उसे ख़ुशी से क़बूल तो कर लेते हैं, लेकिन जड़ नहीं पकड़ते। नतीजे में अगरचे वह कुछ देर के लिए ईमान रखते हैं तो भी जब किसी आज़माइश का सामना करना पड़ता है तो वह बरगश्ता हो जाते हैं। \v 14 ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दरमियान गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो सुनते तो हैं, लेकिन जब वह चले जाते हैं तो रोज़मर्रा की परेशानियाँ, दौलत और ज़िंदगी की ऐशो-इशरत उन्हें फलने फूलने नहीं देती। नतीजे में वह फल लाने तक नहीं पहुँचते। \v 15 इसके मुक़ाबले में ज़रख़ेज़ ज़मीन में गिरे हुए दाने वह लोग हैं जिनका दिल दियानतदार और अच्छा है। जब वह कलाम सुनते हैं तो वह उसे अपनाते और साबितक़दमी से तरक़्क़ी करते करते फल लाते हैं। \s1 कोई चराग़ को बरतन के नीचे नहीं छुपाता \p \v 16 जब कोई चराग़ जलाता है तो वह उसे किसी बरतन या चारपाई के नीचे नहीं रखता, बल्कि उसे शमादान पर रख देता है ताकि उस की रौशनी अंदर आनेवालों को नज़र आए। \p \v 17 जो कुछ भी इस वक़्त पोशीदा है वह आख़िर में ज़ाहिर हो जाएगा, और जो कुछ भी छुपा हुआ है वह मालूम हो जाएगा और रौशनी में लाया जाएगा। \p \v 18 चुनाँचे इस पर ध्यान दो कि तुम किस तरह सुनते हो। क्योंकि जिसके पास कुछ है उसे और दिया जाएगा, जबकि जिसके पास कुछ नहीं है उससे वह भी छीन लिया जाएगा जिसके बारे में वह ख़याल करता है कि उसका है।” \s1 ईसा की माँ और भाई \p \v 19 एक दिन ईसा की माँ और भाई उसके पास आए, लेकिन वह हुजूम की वजह से उस तक न पहुँच सके। \v 20 चुनाँचे ईसा को इत्तला दी गई, “आपकी माँ और भाई बाहर खड़े हैं और आपसे मिलना चाहते हैं।” \p \v 21 उसने जवाब दिया, “मेरी माँ और भाई वह सब हैं जो अल्लाह का कलाम सुनकर उस पर अमल करते हैं।” \s1 ईसा आँधी को थमा देता है \p \v 22 एक दिन ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “आओ, हम झील को पार करें।” चुनाँचे वह कश्ती पर सवार होकर रवाना हुए। \v 23 जब कश्ती चली जा रही थी तो ईसा सो गया। अचानक झील पर आँधी आई। कश्ती पानी से भरने लगी और डूबने का ख़तरा था। \v 24 फिर उन्होंने ईसा के पास जाकर उसे जगा दिया और कहा, “उस्ताद, उस्ताद, हम तबाह हो रहे हैं।” \p वह जाग उठा और आँधी और मौजों को डाँटा। आँधी थम गई और लहरें बिलकुल साकित हो गईं। \v 25 फिर उसने शागिर्दों से पूछा, “तुम्हारा ईमान कहाँ है?” \p उन पर ख़ौफ़ तारी हो गया और वह सख़्त हैरान होकर आपस में कहने लगे, “आख़िर यह कौन है? वह हवा और पानी को भी हुक्म देता है, और वह उस की मानते हैं।” \s1 ईसा एक गरासीनी आदमी से बदरूहें निकाल देता है \p \v 26 फिर वह सफ़र जारी रखते हुए गरासा के इलाक़े के किनारे पर पहुँचे जो झील के पार गलील के मुक़ाबिल है। \v 27 जब ईसा कश्ती से उतरा तो शहर का एक आदमी ईसा को मिला जो बदरूहों की गिरिफ़्त में था। वह काफ़ी देर से कपड़े पहने बग़ैर चलता-फिरता था और अपने घर के बजाए क़ब्रों में रहता था। \v 28 ईसा को देखकर वह चिल्लाया और उसके सामने गिर गया। ऊँची आवाज़ से उसने कहा, “ईसा अल्लाह तआला के फ़रज़ंद, मेरा आपके साथ क्या वास्ता है? मैं मिन्नत करता हूँ, मुझे अज़ाब में न डालें।” \v 29 क्योंकि ईसा ने नापाक रूह को हुक्म दिया था, “आदमी में से निकल जा!” इस बदरूह ने बड़ी देर से उस पर क़ब्ज़ा किया हुआ था, इसलिए लोगों ने उसके हाथ-पाँव ज़ंजीरों से बाँधकर उस की पहरादारी करने की कोशिश की थी, लेकिन बेफ़ायदा। वह ज़ंजीरों को तोड़ डालता और बदरूह उसे वीरान इलाक़ों में भगाए फिरती थी। \p \v 30 ईसा ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?” उसने जवाब दिया, “लशकर।” इस नाम की वजह यह थी कि उसमें बहुत-सी बदरूहें घुसी हुई थीं। \v 31 अब यह मिन्नत करने लगीं, “हमें अथाह गढ़े में जाने को न कहें।” \p \v 32 उस वक़्त क़रीब की पहाड़ी पर सुअरों का बड़ा ग़ोल चर रहा था। बदरूहों ने ईसा से इलतमास की, “हमें उन सुअरों में दाख़िल होने दें।” उसने इजाज़त दे दी। \v 33 चुनाँचे वह उस आदमी में से निकलकर सुअरों में जा घुसीं। इस पर पूरे ग़ोल के सुअर भाग भागकर पहाड़ी की ढलान पर से उतरे और झील में झपटकर डूब मरे। \p \v 34 यह देखकर सुअरों के गल्लाबान भाग गए। उन्होंने शहर और देहात में इस बात का चर्चा किया \v 35 तो लोग यह मालूम करने के लिए कि क्या हुआ है अपनी जगहों से निकलकर ईसा के पास आए। उसके पास पहुँचे तो वह आदमी मिला जिससे बदरूहें निकल गई थीं। अब वह कपड़े पहने ईसा के पाँवों में बैठा था और उस की ज़हनी हालत ठीक थी। यह देखकर वह डर गए। \v 36 जिन्होंने सब कुछ देखा था उन्होंने लोगों को बताया कि इस बदरूह-गिरिफ़्ता आदमी को किस तरह रिहाई मिली है। \v 37 फिर उस इलाक़े के तमाम लोगों ने ईसा से दरख़ास्त की कि वह उन्हें छोड़कर चला जाए, क्योंकि उन पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया था। चुनाँचे ईसा कश्ती पर सवार होकर वापस चला गया। \v 38 जिस आदमी से बदरूहें निकल गई थीं उसने उससे इलतमास की, “मुझे भी अपने साथ जाने दें।” \p लेकिन ईसा ने उसे इजाज़त न दी बल्कि कहा, \v 39 “अपने घर वापस चला जा और दूसरों को वह सब कुछ बता जो अल्लाह ने तेरे लिए किया है।” \p चुनाँचे वह वापस चला गया और पूरे शहर में लोगों को बताने लगा कि ईसा ने मेरे लिए क्या कुछ किया है। \s1 याईर की बेटी और बीमार ख़ातून \p \v 40 जब ईसा झील के दूसरे किनारे पर वापस पहुँचा तो लोगों ने उसका इस्तक़बाल किया, क्योंकि वह उसके इंतज़ार में थे। \v 41 इतने में एक आदमी ईसा के पास आया जिसका नाम याईर था। वह मक़ामी इबादतख़ाने का राहनुमा था। वह ईसा के पाँवों में गिरकर मिन्नत करने लगा, “मेरे घर चलें।” \v 42 क्योंकि उस की इकलौती बेटी जो तक़रीबन बारह साल की थी मरने को थी। \p ईसा चल पड़ा। हुजूम ने उसे यों घेरा हुआ था कि साँस लेना भी मुश्किल था। \v 43 हुजूम में एक ख़ातून थी जो बारह साल से ख़ून बहने के मरज़ से रिहाई न पा सकी थी। कोई उसे शफ़ा न दे सका था। \v 44 अब उसने पीछे से आकर ईसा के लिबास के किनारे को छुआ। ख़ून बहना फ़ौरन बंद हो गया। \v 45 लेकिन ईसा ने पूछा, “किसने मुझे छुआ है?” \p सबने इनकार किया और पतरस ने कहा, “उस्ताद, यह तमाम लोग तो आपको घेरकर दबा रहे हैं।” \p \v 46 लेकिन ईसा ने इसरार किया, “किसी ने ज़रूर मुझे छुआ है, क्योंकि मुझे महसूस हुआ है कि मुझमें से तवानाई निकली है।” \v 47 जब उस ख़ातून ने देखा कि भेद खुल गया तो वह लरज़ती हुई आई और उसके सामने गिर गई। पूरे हुजूम की मौजूदगी में उसने बयान किया कि उसने ईसा को क्यों छुआ था और कि छूते ही उसे शफ़ा मिल गई थी। \v 48 ईसा ने कहा, “बेटी, तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है। सलामती से चली जा।” \p \v 49 ईसा ने यह बात अभी ख़त्म नहीं की थी कि इबादतख़ाने के राहनुमा याईर के घर से कोई शख़्स आ पहुँचा। उसने कहा, “आपकी बेटी फ़ौत हो चुकी है, अब उस्ताद को मज़ीद तकलीफ़ न दें।” \p \v 50 लेकिन ईसा ने यह सुनकर कहा, “मत घबरा। फ़क़त ईमान रख तो वह बच जाएगी।” \p \v 51 वह घर पहुँच गए तो ईसा ने किसी को भी सिवाए पतरस, यूहन्ना, याक़ूब और बेटी के वालिदैन के अंदर आने की इजाज़त न दी। \v 52 तमाम लोग रो रहे और छाती पीट पीटकर मातम कर रहे थे। ईसा ने कहा, “ख़ामोश! वह मर नहीं गई बल्कि सो रही है।” \p \v 53 लोग हँसकर उसका मज़ाक़ उड़ाने लगे, क्योंकि वह जानते थे कि लड़की मर गई है। \v 54 लेकिन ईसा ने लड़की का हाथ पकड़कर ऊँची आवाज़ से कहा, “बेटी, जाग उठ!” \v 55 लड़की की जान वापस आ गई और वह फ़ौरन उठ खड़ी हुई। फिर ईसा ने हुक्म दिया कि उसे कुछ खाने को दिया जाए। \v 56 यह सब कुछ देखकर उसके वालिदैन हैरतज़दा हुए। लेकिन उसने उन्हें कहा कि इसके बारे में किसी को भी न बताना। \c 9 \s1 ईसा बारह रसूलों को तबलीग़ करने भेज देता है \p \v 1 इसके बाद ईसा ने अपने बारह शागिर्दों को इकट्ठा करके उन्हें बदरूहों को निकालने और मरीज़ों को शफ़ा देने की क़ुव्वत और इख़्तियार दिया। \v 2 फिर उसने उन्हें अल्लाह की बादशाही की मुनादी करने और शफ़ा देने के लिए भेज दिया। \v 3 उसने कहा, “सफ़र पर कुछ साथ न लेना। न लाठी, न सामान के लिए बैग, न रोटी, न पैसे और न एक से ज़्यादा सूट। \v 4 जिस घर में भी तुम जाते हो उसमें उस मक़ाम से चले जाने तक ठहरो। \v 5 और अगर मक़ामी लोग तुमको क़बूल न करें तो फिर उस शहर से निकलते वक़्त उस की गर्द अपने पाँवों से झाड़ दो। यों तुम उनके ख़िलाफ़ गवाही दोगे।” \p \v 6 चुनाँचे वह निकलकर गाँव गाँव जाकर अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाने और मरीज़ों को शफ़ा देने लगे। \s1 हेरोदेस अंतिपास परेशान हो जाता है \p \v 7 जब गलील के हुक्मरान हेरोदेस अंतिपास ने सब कुछ सुना जो ईसा कर रहा था तो वह उलझन में पड़ गया। बाज़ तो कह रहे थे कि यहया बपतिस्मा देनेवाला जी उठा है। \v 8 औरों का ख़याल था कि इलियास नबी ईसा में ज़ाहिर हुआ है या कि क़दीम ज़माने का कोई और नबी जी उठा है। \v 9 लेकिन हेरोदेस ने कहा, “मैंने ख़ुद यहया का सर क़लम करवाया था। तो फिर यह कौन है जिसके बारे में मैं इस क़िस्म की बातें सुनता हूँ?” और वह उससे मिलने की कोशिश करने लगा। \s1 ईसा 5000 अफ़राद को खाना खिलाता है \p \v 10 रसूल वापस आए तो उन्होंने ईसा को सब कुछ सुनाया जो उन्होंने किया था। फिर वह उन्हें अलग ले जाकर बैत-सैदा नामी शहर में आया। \v 11 लेकिन जब लोगों को पता चला तो वह उनके पीछे वहाँ पहुँच गए। ईसा ने उन्हें आने दिया और अल्लाह की बादशाही के बारे में तालीम दी। साथ साथ उसने मरीज़ों को शफ़ा भी दी। \v 12 जब दिन ढलने लगा तो बारह शागिर्दों ने पास आकर उससे कहा, “लोगों को रुख़सत कर दें ताकि वह इर्दगिर्द के देहातों और बस्तियों में जाकर रात ठहरने और खाने का बंदोबस्त कर सकें, क्योंकि इस वीरान जगह में कुछ नहीं मिलेगा।” \p \v 13 लेकिन ईसा ने उन्हें कहा, “तुम ख़ुद इन्हें कुछ खाने को दो।” \p उन्होंने जवाब दिया, “हमारे पास सिर्फ़ पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं। या क्या हम जाकर इन तमाम लोगों के लिए खाना ख़रीद लाएँ?” \v 14 (वहाँ तक़रीबन 5,000 मर्द थे।) \p ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “तमाम लोगों को गुरोहों में तक़सीम करके बिठा दो। हर गुरोह पचास अफ़राद पर मुश्तमिल हो।” \p \v 15 शागिर्दों ने ऐसा ही किया और सबको बिठा दिया। \v 16 इस पर ईसा ने उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को लेकर आसमान की तरफ़ नज़र उठाई और उनके लिए शुक्रगुज़ारी की दुआ की। फिर उसने उन्हें तोड़ तोड़कर शागिर्दों को दिया ताकि वह लोगों में तक़सीम करें। \v 17 और सबने जी भरकर खाया। इसके बाद जब बचे हुए टुकड़े जमा किए गए तो बारह टोकरे भर गए। \s1 पतरस का इक़रार \p \v 18 एक दिन ईसा अकेला दुआ कर रहा था। सिर्फ़ शागिर्द उसके साथ थे। उसने उनसे पूछा, “मैं आम लोगों के नज़दीक कौन हूँ?” \p \v 19 उन्होंने जवाब दिया, “कुछ कहते हैं यहया बपतिस्मा देनेवाला, कुछ यह कि आप इलियास नबी हैं। कुछ यह भी कहते हैं कि क़दीम ज़माने का कोई नबी जी उठा है।” \p \v 20 उसने पूछा, “लेकिन तुम क्या कहते हो? तुम्हारे नज़दीक मैं कौन हूँ?” \p पतरस ने जवाब दिया, “आप अल्लाह के मसीह हैं।” \s1 ईसा अपनी मौत का ज़िक्र करता है \p \v 21 यह सुनकर ईसा ने उन्हें यह बात किसी को भी बताने से मना किया। \v 22 उसने कहा, “लाज़िम है कि इब्ने-आदम बहुत दुख उठाकर बुज़ुर्गों, राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा से रद्द किया जाए। उसे क़त्ल भी किया जाएगा, लेकिन तीसरे दिन वह जी उठेगा।” \p \v 23 फिर उसने सबसे कहा, “जो मेरे पीछे आना चाहे वह अपने आपका इनकार करे और हर रोज़ अपनी सलीब उठाकर मेरे पीछे हो ले। \v 24 क्योंकि जो अपनी जान को बचाए रखना चाहे वह उसे खो देगा। लेकिन जो मेरी ख़ातिर अपनी जान खो दे वही उसे बचाएगा। \v 25 क्या फ़ायदा है अगर किसी को पूरी दुनिया हासिल हो जाए मगर वह अपनी जान से महरूम हो जाए या उसे इसका नुक़सान उठाना पड़े? \v 26 जो भी मेरे और मेरी बातों के सबब से शरमाए उससे इब्ने-आदम भी उस वक़्त शरमाएगा जब वह अपने और अपने बाप के और मुक़द्दस फ़रिश्तों के जलाल में आएगा। \v 27 मैं तुमको सच बताता हूँ, यहाँ कुछ ऐसे लोग खड़े हैं जो मरने से पहले ही अल्लाह की बादशाही को देखेंगे।” \s1 ईसा की सूरत बदल जाती है \p \v 28 तक़रीबन आठ दिन गुज़र गए। फिर ईसा पतरस, याक़ूब और यूहन्ना को साथ लेकर दुआ करने के लिए पहाड़ पर चढ़ गया। \v 29 वहाँ दुआ करते करते उसके चेहरे की सूरत बदल गई और उसके कपड़े सफ़ेद होकर बिजली की तरह चमकने लगे। \v 30 अचानक दो मर्द ज़ाहिर होकर उससे मुख़ातिब हुए। एक मूसा और दूसरा इलियास था। \v 31 उनकी शक्लो-सूरत पुरजलाल थी। वह ईसा से इसके बारे में बात करने लगे कि वह किस तरह अल्लाह का मक़सद पूरा करके यरूशलम में इस दुनिया से कूच कर जाएगा। \v 32 पतरस और उसके साथियों को गहरी नींद आ गई थी, लेकिन जब वह जाग उठे तो ईसा का जलाल देखा और यह कि दो आदमी उसके साथ खड़े हैं। \v 33 जब वह मर्द ईसा को छोड़कर रवाना होने लगे तो पतरस ने कहा, “उस्ताद, कितनी अच्छी बात है कि हम यहाँ हैं। आएँ, हम तीन झोंपड़ियाँ बनाएँ, एक आपके लिए, एक मूसा के लिए और एक इलियास के लिए।” लेकिन वह नहीं जानता था कि क्या कह रहा है। \p \v 34 यह कहते ही एक बादल आकर उन पर छा गया। जब वह उसमें दाख़िल हुए तो दहशतज़दा हो गए। \v 35 फिर बादल से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा चुना हुआ फ़रज़ंद है, इसकी सुनो।” \p \v 36 आवाज़ ख़त्म हुई तो ईसा अकेला ही था। और उन दिनों में शागिर्दों ने किसी को भी इस वाक़िये के बारे में न बताया बल्कि ख़ामोश रहे। \s1 ईसा लड़के में से बदरूह निकालता है \p \v 37 अगले दिन वह पहाड़ से उतर आए तो एक बड़ा हुजूम ईसा से मिलने आया। \v 38 हुजूम में से एक आदमी ने ऊँची आवाज़ से कहा, “उस्ताद, मेहरबानी करके मेरे बेटे पर नज़र करें। वह मेरा इकलौता बेटा है। \v 39 एक बदरूह उसे बार बार अपनी गिरिफ़्त में ले लेती है। फिर वह अचानक चीख़ें मारने लगता है। बदरूह उसे झँझोड़कर इतना तंग करती है कि उसके मुँह से झाग निकलने लगता है। वह उसे कुचल कुचलकर मुश्किल से छोड़ती है। \v 40 मैंने आपके शागिर्दों से दरख़ास्त की थी कि वह उसे निकालें, लेकिन वह नाकाम रहे।” \p \v 41 ईसा ने कहा, “ईमान से ख़ाली और टेढ़ी नसल! मैं कब तक तुम्हारे पास रहूँ, कब तक तुम्हें बरदाश्त करूँ?” फिर उसने आदमी से कहा, “अपने बेटे को ले आ।” \p \v 42 बेटा ईसा के पास आ रहा था तो बदरूह उसे ज़मीन पर पटख़कर झँझोड़ने लगी। लेकिन ईसा ने नापाक रूह को डाँटकर बच्चे को शफ़ा दी। फिर उसने उसे वापस बाप के सुपुर्द कर दिया। \v 43 तमाम लोग अल्लाह की अज़ीम क़ुदरत को देखकर हक्का-बक्का रह गए। \s1 ईसा की मौत का दूसरा एलान \p अभी सब उन तमाम कामों पर ताज्जुब कर रहे थे जो ईसा ने हाल ही में किए थे कि उसने अपने शागिर्दों से कहा, \v 44 “मेरी इस बात पर ख़ूब ध्यान दो, इब्ने-आदम को आदमियों के हवाले कर दिया जाएगा।” \v 45 लेकिन शागिर्द इसका मतलब न समझे। यह बात उनसे पोशीदा रही और वह इसे समझ न सके। नीज़, वह ईसा से इसके बारे में पूछने से डरते भी थे। \s1 कौन सबसे बड़ा है? \p \v 46 फिर शागिर्द बहस करने लगे कि हममें से कौन सबसे बड़ा है। \v 47 लेकिन ईसा जानता था कि वह क्या सोच रहे हैं। उसने एक छोटे बच्चे को लेकर अपने पास खड़ा किया \v 48 और उनसे कहा, “जो मेरे नाम में इस बच्चे को क़बूल करता है वह मुझे ही क़बूल करता है। और जो मुझे क़बूल करता है वह उसे क़बूल करता है जिसने मुझे भेजा है। चुनाँचे तुममें से जो सबसे छोटा है वही बड़ा है।” \s1 जो तुम्हारे ख़िलाफ़ नहीं वह तुम्हारे हक़ में है \p \v 49 यूहन्ना बोल उठा, “उस्ताद, हमने किसी को देखा जो आपका नाम लेकर बदरूहें निकाल रहा था। हमने उसे मना किया, क्योंकि वह हमारे साथ मिलकर आपकी पैरवी नहीं करता।” \p \v 50 लेकिन ईसा ने कहा, “उसे मना न करना, क्योंकि जो तुम्हारे ख़िलाफ़ नहीं वह तुम्हारे हक़ में है।” \s1 एक सामरी गाँव ईसा को ठहरने नहीं देता \p \v 51 जब वह वक़्त क़रीब आया कि ईसा को आसमान पर उठा लिया जाए तो वह बड़े अज़म के साथ यरूशलम की तरफ़ सफ़र करने लगा। \v 52 इस मक़सद के तहत उसने अपने आगे क़ासिद भेज दिए। चलते चलते वह सामरियों के एक गाँव में पहुँचे जहाँ वह उसके लिए ठहरने की जगह तैयार करना चाहते थे। \v 53 लेकिन गाँव के लोगों ने ईसा को टिकने न दिया, क्योंकि उस की मनज़िले-मक़सूद यरूशलम थी। \v 54 यह देखकर उसके शागिर्द याक़ूब और यूहन्ना ने कहा, “ख़ुदावंद, क्या [इलियास की तरह] हम कहें कि आसमान पर से आग नाज़िल होकर इनको भस्म कर दे?” \p \v 55 लेकिन ईसा ने मुड़कर उन्हें डाँटा [और कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम किस क़िस्म की रूह के हो। इब्ने-आदम इसलिए नहीं आया कि लोगों को हलाक करे बल्कि इसलिए कि उन्हें बचाए।”] \v 56 चुनाँचे वह किसी और गाँव में चले गए। \s1 पैरवी की संजीदगी \p \v 57 सफ़र करते करते किसी ने रास्ते में ईसा से कहा, “जहाँ भी आप जाएँ मैं आपके पीछे चलता रहूँगा।” \p \v 58 ईसा ने जवाब दिया, “लोमड़ियाँ अपने भटों में और परिंदे अपने घोंसलों में आराम कर सकते हैं, लेकिन इब्ने-आदम के पास सर रखकर आराम करने की कोई जगह नहीं।” \p \v 59 किसी और से उसने कहा, “मेरे पीछे हो ले।” \p लेकिन उस आदमी ने कहा, “ख़ुदावंद, मुझे पहले जाकर अपने बाप को दफ़न करने की इजाज़त दें।” \p \v 60 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “मुरदों को अपने मुरदे दफ़नाने दे। तू जाकर अल्लाह की बादशाही की मुनादी कर।” \p \v 61 एक और आदमी ने यह माज़रत चाही, “ख़ुदावंद, मैं ज़रूर आपके पीछे हो लूँगा। लेकिन पहले मुझे अपने घरवालों को ख़ैरबाद कहने दें।” \p \v 62 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “जो भी हल चलाते हुए पीछे की तरफ़ देखे वह अल्लाह की बादशाही के लायक़ नहीं है।” \c 10 \s1 ईसा 72 शागिर्दों को मुनादी के लिए भेजता है \p \v 1 इसके बाद ख़ुदावंद ने मज़ीद 72 शागिर्दों को मुक़र्रर किया और उन्हें दो दो करके अपने आगे हर उस शहर और जगह भेज दिया जहाँ वह अभी जाने को था। \v 2 उसने उनसे कहा, “फ़सल बहुत है, लेकिन मज़दूर थोड़े। इसलिए फ़सल के मालिक से दरख़ास्त करो कि वह फ़सल काटने के लिए मज़ीद मज़दूर भेज दे। \v 3 अब रवाना हो जाओ, लेकिन ज़हन में यह बात रखो कि तुम भेड़ के बच्चों की मानिंद हो जिन्हें मैं भेड़ियों के दरमियान भेज रहा हूँ। \v 4 अपने साथ न बटवा ले जाना, न सामान के लिए बैग, न जूते। और रास्ते में किसी को भी सलाम न करना। \v 5 जब भी तुम किसी के घर में दाख़िल हो तो पहले यह कहना, ‘इस घर की सलामती हो।’ \v 6 अगर उसमें सलामती का कोई बंदा होगा तो तुम्हारी बरकत उस पर ठहरेगी, वरना वह तुम पर लौट आएगी। \v 7 सलामती के ऐसे घर में ठहरो और वह कुछ खाओ पियो जो तुमको दिया जाए, क्योंकि मज़दूर अपनी मज़दूरी का हक़दार है। मुख़्तलिफ़ घरों में घूमते न फिरो बल्कि एक ही घर में रहो। \v 8 जब भी तुम किसी शहर में दाख़िल हो और लोग तुमको क़बूल करें तो जो कुछ वह तुमको खाने को दें उसे खाओ। \v 9 वहाँ के मरीज़ों को शफ़ा देकर बताओ कि अल्लाह की बादशाही क़रीब आ गई है। \v 10 लेकिन अगर तुम किसी शहर में जाओ और लोग तुमको क़बूल न करें तो फिर शहर की सड़कों पर खड़े होकर कहो, \v 11 ‘हम अपने जूतों से तुम्हारे शहर की गर्द भी झाड़ देते हैं। यों हम तुम्हारे ख़िलाफ़ गवाही देते हैं। लेकिन यह जान लो कि अल्लाह की बादशाही क़रीब आ गई है।’ \v 12 मैं तुमको बताता हूँ कि उस दिन उस शहर की निसबत सदूम का हाल ज़्यादा क़ाबिले-बरदाश्त होगा। \s1 तौबा न करनेवाले शहरों पर अफ़सोस \p \v 13 ऐ ख़ुराज़ीन, तुझ पर अफ़सोस! बैत-सैदा, तुझ पर अफ़सोस! अगर सूर और सैदा में वह मोजिज़े किए गए होते जो तुममें हुए तो वहाँ के लोग कब के टाट ओढ़कर और सर पर राख डालकर तौबा कर चुके होते। \v 14 जी हाँ, अदालत के दिन तुम्हारी निसबत सूर और सैदा का हाल ज़्यादा क़ाबिले-बरदाश्त होगा। \v 15 और तू ऐ कफ़र्नहूम, क्या तुझे आसमान तक सरफ़राज़ किया जाएगा? हरगिज़ नहीं, बल्कि तू उतरता उतरता पाताल तक पहुँचेगा। \p \v 16 जिसने तुम्हारी सुनी उसने मेरी भी सुनी। और जिसने तुमको रद्द किया उसने मुझे भी रद्द किया। और मुझे रद्द करनेवाले ने उसे भी रद्द किया जिसने मुझे भेजा है।” \s1 72 शागिर्दों की वापसी \p \v 17 72 शागिर्द लौट आए। वह बहुत ख़ुश थे और कहने लगे, “ख़ुदावंद, जब हम आपका नाम लेते हैं तो बदरूहें भी हमारे ताबे हो जाती हैं।” \p \v 18 ईसा ने जवाब दिया, “इबलीस मुझे नज़र आया और वह बिजली की तरह आसमान से गिर रहा था। \v 19 देखो, मैंने तुमको साँपों और बिछुओं पर चलने का इख़्तियार दिया है। तुमको दुश्मन की पूरी ताक़त पर इख़्तियार हासिल है। कुछ भी तुमको नुक़सान नहीं पहुँचा सकेगा। \v 20 लेकिन इस वजह से ख़ुशी न मनाओ कि बदरूहें तुम्हारे ताबे हैं, बल्कि इस वजह से कि तुम्हारे नाम आसमान पर दर्ज किए गए हैं।” \s1 बाप की तमजीद \p \v 21 उसी वक़्त ईसा रूहुल-क़ुद्स में ख़ुशी मनाने लगा। उसने कहा, “ऐ बाप, आसमानो-ज़मीन के मालिक! मैं तेरी तमजीद करता हूँ कि तूने यह बात दानाओं और अक़्लमंदों से छुपाकर छोटे बच्चों पर ज़ाहिर कर दी है। हाँ मेरे बाप, क्योंकि यही तुझे पसंद आया। \p \v 22 मेरे बाप ने सब कुछ मेरे सुपुर्द कर दिया है। कोई नहीं जानता कि फ़रज़ंद कौन है सिवाए बाप के। और कोई नहीं जानता कि बाप कौन है सिवाए फ़रज़ंद के और उन लोगों के जिन पर फ़रज़ंद यह ज़ाहिर करना चाहता है।” \p \v 23 फिर ईसा शागिर्दों की तरफ़ मुड़ा और अलहदगी में उनसे कहने लगा, “मुबारक हैं वह आँखें जो वह कुछ देखती हैं जो तुमने देखा है। \v 24 मैं तुमको बताता हूँ कि बहुत-से नबी और बादशाह यह देखना चाहते थे जो तुम देखते हो, लेकिन उन्होंने न देखा। और वह यह सुनने के आरज़ूमंद थे जो तुम सुनते हो, लेकिन उन्होंने न सुना।” \s1 नेक सामरी की तमसील \p \v 25 एक मौक़े पर शरीअत का एक आलिम ईसा को फँसाने की ख़ातिर खड़ा हुआ। उसने पूछा, “उस्ताद, मैं क्या क्या करने से मीरास में अबदी ज़िंदगी पा सकता हूँ?” \p \v 26 ईसा ने उससे कहा, “शरीअत में क्या लिखा है? तू उसमें क्या पढ़ता है?” \p \v 27 आदमी ने जवाब दिया, “‘रब अपने ख़ुदा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपनी पूरी ताक़त और अपने पूरे ज़हन से प्यार करना।’ और ‘अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है’।” \p \v 28 ईसा ने कहा, “तूने ठीक जवाब दिया। ऐसा ही कर तो ज़िंदा रहेगा।” \p \v 29 लेकिन आलिम ने अपने आपको दुरुस्त साबित करने की ग़रज़ से पूछा, “तो मेरा पड़ोसी कौन है?” \p \v 30 ईसा ने जवाब में कहा, “एक आदमी यरूशलम से यरीहू की तरफ़ जा रहा था कि वह डाकुओं के हाथों में पड़ गया। उन्होंने उसके कपड़े उतारकर उसे ख़ूब मारा और अधमुआ छोड़कर चले गए। \v 31 इत्तफ़ाक़ से एक इमाम भी उसी रास्ते पर यरीहू की तरफ़ चल रहा था। लेकिन जब उसने ज़ख़मी आदमी को देखा तो रास्ते की परली तरफ़ होकर आगे निकल गया। \v 32 लावी क़बीले का एक ख़ादिम भी वहाँ से गुज़रा। लेकिन वह भी रास्ते की परली तरफ़ से आगे निकल गया। \v 33 फिर सामरिया का एक मुसाफ़िर वहाँ से गुज़रा। जब उसने ज़ख़मी आदमी को देखा तो उसे उस पर तरस आया। \v 34 वह उसके पास गया और उसके ज़ख़मों पर तेल और मै लगाकर उन पर पट्टियाँ बाँध दीं। फिर उसको अपने गधे पर बिठाकर सराय तक ले गया। वहाँ उसने उस की मज़ीद देख-भाल की। \v 35 अगले दिन उसने चाँदी के दो सिक्के निकालकर सराय के मालिक को दिए और कहा, ‘इसकी देख-भाल करना। अगर ख़र्चा इससे बढ़कर हुआ तो मैं वापसी पर अदा कर दूँगा’।” \p \v 36 फिर ईसा ने पूछा, “अब तेरा क्या ख़याल है, डाकुओं की ज़द में आनेवाले आदमी का पड़ोसी कौन था? इमाम, लावी या सामरी?” \p \v 37 आलिम ने जवाब दिया, “वह जिसने उस पर रहम किया।” \p ईसा ने कहा, “बिलकुल ठीक। अब तू भी जाकर ऐसा ही कर।” \s1 ईसा मरियम और मर्था के घर जाता है \p \v 38 फिर ईसा शागिर्दों के साथ आगे निकला। चलते चलते वह एक गाँव में पहुँचा। वहाँ की एक औरत बनाम मर्था ने उसे अपने घर में ख़ुशआमदीद कहा। \v 39 मर्था की एक बहन थी जिसका नाम मरियम था। वह ख़ुदावंद के पाँवों में बैठकर उस की बातें सुनने लगी \v 40 जबकि मर्था मेहमानों की ख़िदमत करते करते थक गई। आख़िरकार वह ईसा के पास आकर कहने लगी, “ख़ुदावंद, क्या आपको परवा नहीं कि मेरी बहन ने मेहमानों की ख़िदमत का पूरा इंतज़ाम मुझ पर छोड़ दिया है? उससे कहें कि वह मेरी मदद करे।” \p \v 41 लेकिन ख़ुदावंद ईसा ने जवाब में कहा, “मर्था, मर्था, तू बहुत-सी फ़िकरों और परेशानियों में पड़ गई है। \v 42 लेकिन एक बात ज़रूरी है। मरियम ने बेहतर हिस्सा चुन लिया है और यह उससे छीना नहीं जाएगा।” \c 11 \s1 दुआ किस तरह करनी है \p \v 1 एक दिन ईसा कहीं दुआ कर रहा था। जब वह फ़ारिग़ हुआ तो उसके किसी शागिर्द ने कहा, “ख़ुदावंद, हमें दुआ करना सिखाएँ, जिस तरह यहया ने भी अपने शागिर्दों को दुआ करने की तालीम दी।” \p \v 2 ईसा ने कहा, “दुआ करते वक़्त यों कहना, \p ऐ बाप, \p तेरा नाम मुक़द्दस माना जाए। \p तेरी बादशाही आए। \p \v 3 हर रोज़ हमें हमारी रोज़ की रोटी दे। \p \v 4 हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर। \p क्योंकि हम भी हर एक को मुआफ़ करते हैं \p जो हमारा गुनाह करता है। \f + \fr 11:4 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : जो हमारा क़र्ज़दार है। \f* \p और हमें आज़माइश में न पड़ने दे।” \s1 माँगते रहो \p \v 5 फिर उसने उनसे कहा, “अगर तुममें से कोई आधी रात के वक़्त अपने दोस्त के घर जाकर कहे, ‘भाई, मुझे तीन रोटियाँ दे, बाद में मैं यह वापस कर दूँगा। \v 6 क्योंकि मेरा दोस्त सफ़र करके मेरे पास आया है और मैं उसे खाने के लिए कुछ नहीं दे सकता।’ \v 7 अब फ़र्ज़ करो कि यह दोस्त अंदर से जवाब दे, ‘मेहरबानी करके मुझे तंग न कर। दरवाज़े पर ताला लगा है और मेरे बच्चे मेरे साथ बिस्तर पर हैं, इसलिए मैं तुझे देने के लिए उठ नहीं सकता।’ \v 8 लेकिन मैं तुमको यह बताता हूँ कि अगर वह दोस्ती की ख़ातिर न भी उठे, तो भी वह अपने दोस्त के बेजा इसरार की वजह से उस की तमाम ज़रूरत पूरी करेगा। \p \v 9 चुनाँचे माँगते रहो तो तुमको दिया जाएगा, ढूँडते रहो तो तुमको मिल जाएगा। खटखटाते रहो तो तुम्हारे लिए दरवाज़ा खोल दिया जाएगा। \v 10 क्योंकि जो भी माँगता है वह पाता है, जो ढूँडता है उसे मिलता है और जो खटखटाता है उसके लिए दरवाज़ा खोल दिया जाता है। \v 11 तुम बापों में से कौन अपने बेटे को साँप देगा अगर वह मछली माँगे? \v 12 या कौन उसे बिच्छू देगा अगर वह अंडा माँगे? कोई नहीं! \v 13 जब तुम बुरे होने के बावुजूद इतने समझदार हो कि अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें दे सकते हो तो फिर कितनी ज़्यादा यक़ीनी बात है कि आसमानी बाप अपने माँगनेवालों को रूहुल-क़ुद्स देगा।” \s1 ईसा और बदरूहों का सरदार \p \v 14 एक दिन ईसा ने एक ऐसी बदरूह निकाल दी जो गूँगी थी। जब वह गूँगे आदमी में से निकली तो वह बोलने लगा। वहाँ पर जमा लोग हक्का-बक्का रह गए। \v 15 लेकिन बाज़ ने कहा, “यह तो बदरूहों के सरदार बाल-ज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता है।” \p \v 16 औरों ने उसे आज़माने के लिए किसी इलाही निशान का मुतालबा किया। \v 17 लेकिन ईसा ने उनके ख़यालात जानकर कहा, “जिस बादशाही में भी फूट पड़ जाए वह तबाह हो जाएगी, और जिस घराने की ऐसी हालत हो वह भी ख़ाक में मिल जाएगा। \v 18 तुम कहते हो कि मैं बाल-ज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता हूँ। लेकिन अगर इबलीस में फूट पड़ गई है तो फिर उस की बादशाही किस तरह क़ायम रह सकती है? \v 19 दूसरा सवाल यह है, अगर मैं बाल-ज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता हूँ तो तुम्हारे बेटे उन्हें किसके ज़रीए निकालते हैं? चुनाँचे वही इस बात में तुम्हारे मुंसिफ़ होंगे। \v 20 लेकिन अगर मैं अल्लाह की क़ुदरत से बदरूहों को निकालता हूँ तो फिर अल्लाह की बादशाही तुम्हारे पास पहुँच चुकी है। \p \v 21 जब तक कोई ज़ोरावर आदमी हथियारों से लैस अपने डेरे की पहरादारी करे उस वक़्त तक उस की मिलकियत महफ़ूज़ रहती है। \v 22 लेकिन अगर कोई ज़्यादा ताक़तवर शख़्स हमला करके उस पर ग़ालिब आए तो वह उसके असला पर क़ब्ज़ा करेगा जिस पर उसका भरोसा था, और लूटा हुआ माल अपने लोगों में तक़सीम कर देगा। \p \v 23 जो मेरे साथ नहीं वह मेरे ख़िलाफ़ है और जो मेरे साथ जमा नहीं करता वह बिखेरता है। \s1 बदरूह की वापसी \p \v 24 जब कोई बदरूह किसी शख़्स में से निकलती है तो वह वीरान इलाक़ों में से गुज़रती हुई आराम की जगह तलाश करती है। लेकिन जब उसे कोई ऐसा मक़ाम नहीं मिलता तो वह कहती है, ‘मैं अपने उस घर में वापस चली जाऊँगी जिसमें से निकली थी।’ \v 25 वह वापस आकर देखती है कि किसी ने झाड़ू देकर सब कुछ सलीक़े से रख दिया है। \v 26 फिर वह जाकर सात और बदरूहें ढूँड लाती है जो उससे बदतर होती हैं, और वह सब उस शख़्स में घुसकर रहने लगती हैं। चुनाँचे अब उस आदमी की हालत पहले की निसबत ज़्यादा बुरी हो जाती है।” \s1 कौन मुबारक है? \p \v 27 ईसा अभी यह बात कर ही रहा था कि एक औरत ने ऊँची आवाज़ से कहा, “आपकी माँ मुबारक है जिसने आपको जन्म दिया और आपको दूध पिलाया।” \p \v 28 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “बात यह नहीं है। हक़ीक़त में वह मुबारक हैं जो अल्लाह का कलाम सुनकर उस पर अमल करते हैं।” \s1 इलाही निशान का तक़ाज़ा \p \v 29 सुननेवालों की तादाद बहुत बढ़ गई तो वह कहने लगा, “यह नसल शरीर है, क्योंकि यह मुझसे इलाही निशान का तक़ाज़ा करती है। लेकिन इसे कोई भी इलाही निशान पेश नहीं किया जाएगा सिवाए यूनुस के निशान के। \v 30 क्योंकि जिस तरह यूनुस नीनवा शहर के बाशिंदों के लिए निशान था बिलकुल उसी तरह इब्ने-आदम इस नसल के लिए निशान होगा। \v 31 क़ियामत के दिन जुनूबी मुल्क सबा की मलिका इस नसल के लोगों के साथ खड़ी होकर उन्हें मुजरिम क़रार देगी। क्योंकि वह दूर-दराज़ मुल्क से सुलेमान की हिकमत सुनने के लिए आई थी जबकि यहाँ वह है जो सुलेमान से भी बड़ा है। \v 32 उस दिन नीनवा के बाशिंदे भी इस नसल के लोगों के साथ खड़े होकर उन्हें मुजरिम ठहराएँगे। क्योंकि यूनुस के एलान पर उन्होंने तौबा की थी जबकि यहाँ वह है जो यूनुस से भी बड़ा है। \s1 बदन की रौशनी \p \v 33 जब कोई शख़्स चराग़ जलाता है तो न वह उसे छुपाता, न बरतन के नीचे रखता बल्कि उसे शमादान पर रख देता है ताकि उस की रौशनी अंदर आनेवालों को नज़र आए। \v 34 तेरी आँख तेरे बदन का चराग़ है। अगर तेरी आँख ठीक हो तो तेरा पूरा जिस्म रौशन होगा। लेकिन अगर आँख ख़राब हो तो पूरा जिस्म अंधेरा ही अंधेरा होगा। \v 35 ख़बरदार! ऐसा न हो कि जो रौशनी तेरे अंदर है वह हक़ीक़त में तारीकी हो। \v 36 चुनाँचे अगर तेरा पूरा जिस्म रौशन हो और कोई भी हिस्सा तारीक न हो तो फिर वह बिलकुल रौशन होगा, ऐसा जैसा उस वक़्त होता है जब चराग़ तुझे अपने चमकने-दमकने से रौशन कर देता है।” \s1 फ़रीसियों पर अफ़सोस \p \v 37 ईसा अभी बात कर रहा था कि किसी फ़रीसी ने उसे खाने की दावत दी। चुनाँचे वह उसके घर में जाकर खाने के लिए बैठ गया। \v 38 मेज़बान बड़ा हैरान हुआ, क्योंकि उसने देखा कि ईसा हाथ धोए बग़ैर खाने के लिए बैठ गया है। \v 39 लेकिन ख़ुदावंद ने उससे कहा, “देखो, तुम फ़रीसी बाहर से हर प्याले और बरतन की सफ़ाई करते हो, लेकिन अंदर से तुम लूट-मार और शरारत से भरे होते हो। \v 40 नादानो! अल्लाह ने बाहरवाले हिस्से को ख़लक़ किया, तो क्या उसने अंदरवाले हिस्से को नहीं बनाया? \v 41 चुनाँचे जो कुछ बरतन के अंदर है उसे ग़रीबों को दे दो। फिर तुम्हारे लिए सब कुछ पाक-साफ़ होगा। \p \v 42 फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! क्योंकि एक तरफ़ तुम पौदीना, सदाब और बाग़ की हर क़िस्म की तरकारी का दसवाँ हिस्सा अल्लाह के लिए मख़सूस करते हो, लेकिन दूसरी तरफ़ तुम इनसाफ़ और अल्लाह की मुहब्बत को नज़रंदाज़ करते हो। लाज़िम है कि तुम यह काम भी करो और पहला भी न छोड़ो। \p \v 43 फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! क्योंकि तुम इबादतख़ानों की इज़्ज़त की कुरसियों पर बैठने के लिए बेचैन रहते और बाज़ार में लोगों का सलाम सुनने के लिए तड़पते हो। \v 44 हाँ, तुम पर अफ़सोस! क्योंकि तुम पोशीदा क़ब्रों की मानिंद हो जिन पर से लोग नादानिस्ता तौर पर गुज़रते हैं।” \p \v 45 शरीअत के एक आलिम ने एतराज़ किया, “उस्ताद, आप यह कहकर हमारी भी बेइज़्ज़ती करते हैं।” \p \v 46 ईसा ने जवाब दिया, “तुम शरीअत के आलिमों पर भी अफ़सोस! क्योंकि तुम लोगों पर भारी बोझ डाल देते हो जो मुश्किल से उठाया जा सकता है। न सिर्फ़ यह बल्कि तुम ख़ुद इस बोझ को अपनी एक उँगली भी नहीं लगाते। \v 47 तुम पर अफ़सोस! क्योंकि तुम नबियों के मज़ार बना देते हो, उनके जिन्हें तुम्हारे बापदादा ने मार डाला। \v 48 इससे तुम गवाही देते हो कि तुम वह कुछ पसंद करते हो जो तुम्हारे बापदादा ने किया। उन्होंने नबियों को क़त्ल किया जबकि तुम उनके मज़ार तामीर करते हो। \v 49 इसलिए अल्लाह की हिकमत ने कहा, ‘मैं उनमें नबी और रसूल भेज दूँगी। उनमें से बाज़ को वह क़त्ल करेंगे और बाज़ को सताएँगे।’ \v 50 नतीजे में यह नसल तमाम नबियों के क़त्ल की ज़िम्मादार ठहरेगी—दुनिया की तख़लीक़ से लेकर आज तक, \v 51 यानी हाबील के क़त्ल से लेकर ज़करियाह के क़त्ल तक, जिसे बैतुल-मुक़द्दस के सहन में मौजूद क़ुरबानगाह और बैतुल-मुक़द्दस के दरवाज़े के दरमियान क़त्ल किया गया। हाँ, मैं तुमको बताता हूँ कि यह नसल ज़रूर उनकी ज़िम्मादार ठहरेगी। \p \v 52 शरीअत के आलिमो, तुम पर अफ़सोस! क्योंकि तुमने इल्म की कुंजी को छीन लिया है। न सिर्फ़ यह कि तुम ख़ुद दाख़िल नहीं हुए, बल्कि तुमने दाख़िल होनेवालों को भी रोक लिया।” \p \v 53 जब ईसा वहाँ से निकला तो आलिम और फ़रीसी उसके सख़्त मुख़ालिफ़ हो गए और बड़े ग़ौर से उस की पूछ-गछ करने लगे। \v 54 वह इस ताक में रहे कि उसे मुँह से निकली किसी बात की वजह से पकड़ें। \c 12 \s1 रियाकारी से ख़बरदार रहो! \p \v 1 इतने में कई हज़ार लोग जमा हो गए थे। बड़ी तादाद की वजह से वह एक दूसरे पर गिरे पड़ते थे। फिर ईसा अपने शागिर्दों से यह बात करने लगा, “फ़रीसियों के ख़मीर यानी रियाकारी से ख़बरदार! \v 2 जो कुछ भी अभी छुपा हुआ है उसे आख़िर में ज़ाहिर किया जाएगा और जो कुछ भी इस वक़्त पोशीदा है उसका राज़ आख़िर में खुल जाएगा। \v 3 इसलिए जो कुछ तुमने अंधेरे में कहा है वह रोज़े-रौशन में सुनाया जाएगा और जो कुछ तुमने अंदरूनी कमरों का दरवाज़ा बंद करके आहिस्ता आहिस्ता कान में बयान किया है उसका छतों से एलान किया जाएगा। \s1 किससे डरना चाहिए? \p \v 4 मेरे अज़ीज़ो, उनसे मत डरना जो सिर्फ़ जिस्म को क़त्ल करते हैं और मज़ीद नुक़सान नहीं पहुँचा सकते। \v 5 मैं तुमको बताता हूँ कि किससे डरना है। अल्लाह से डरो, जो तुम्हें हलाक करने के बाद जहन्नुम में फेंकने का इख़्तियार भी रखता है। जी हाँ, उसी से ख़ौफ़ खाओ। \p \v 6 क्या पाँच चिड़ियाँ दो पैसों में नहीं बिकतीं? तो भी अल्लाह हर एक की फ़िकर करके एक को भी नहीं भूलता। \v 7 हाँ, बल्कि तुम्हारे सर के सब बाल भी गिने हुए हैं। लिहाज़ा मत डरो। तुम्हारी क़दरो-क़ीमत बहुत-सी चिड़ियों से कहीं ज़्यादा है। \s1 मसीह का इक़रार या इनकार करने के नतीजे \p \v 8 मैं तुमको बताता हूँ, जो भी लोगों के सामने मेरा इक़रार करे उसका इक़रार इब्ने-आदम भी फ़रिश्तों के सामने करेगा। \v 9 लेकिन जो लोगों के सामने मेरा इनकार करे उसका भी अल्लाह के फ़रिश्तों के सामने इनकार किया जाएगा। \p \v 10 और जो भी इब्ने-आदम के ख़िलाफ़ बात करे उसे मुआफ़ किया जा सकता है। लेकिन जो रूहुल-क़ुद्स के ख़िलाफ़ कुफ़र बके उसे मुआफ़ नहीं किया जाएगा। \p \v 11 जब लोग तुमको इबादतख़ानों में और हाकिमों और इख़्तियारवालों के सामने घसीटकर ले जाएंगे तो यह सोचते सोचते परेशान न हो जाना कि मैं किस तरह अपना दिफ़ा करूँ या क्या कहूँ, \v 12 क्योंकि रूहुल-क़ुद्स तुमको उसी वक़्त सिखा देगा कि तुमको क्या कहना है।” \s1 नादान अमीर की तमसील \p \v 13 किसी ने भीड़ में से कहा, “उस्ताद, मेरे भाई से कहें कि मीरास का मेरा हिस्सा मुझे दे।” \p \v 14 ईसा ने जवाब दिया, “भई, किसने मुझे तुम पर जज या तक़सीम करनेवाला मुक़र्रर किया है?” \v 15 फिर उसने उनसे मज़ीद कहा, “ख़बरदार! हर क़िस्म के लालच से बचे रहना, क्योंकि इनसान की ज़िंदगी उसके मालो-दौलत की कसरत पर मुनहसिर नहीं।” \p \v 16 उसने उन्हें एक तमसील सुनाई। “किसी अमीर आदमी की ज़मीन में अच्छी फ़सल पैदा हुई। \v 17 चुनाँचे वह सोचने लगा, ‘अब मैं क्या करूँ? मेरे पास तो इतनी जगह नहीं जहाँ मैं सब कुछ जमा करके रखूँ।’ \v 18 फिर उसने कहा, ‘मैं यह करूँगा कि अपने गोदामों को ढाकर इनसे बड़े तामीर करूँगा। उनमें अपना तमाम अनाज और बाक़ी पैदावार जमा कर लूँगा। \v 19 फिर मैं अपने आपसे कहूँगा कि लो, इन अच्छी चीज़ों से तेरी ज़रूरियात बहुत सालों तक पूरी होती रहेंगी। अब आराम कर। खा, पी और ख़ुशी मना।’ \v 20 लेकिन अल्लाह ने उससे कहा, ‘अहमक़! इसी रात तू मर जाएगा। तो फिर जो चीज़ें तूने जमा की हैं वह किसकी होंगी?’ \p \v 21 यही उस शख़्स का अंजाम है जो सिर्फ़ अपने लिए चीज़ें जमा करता है जबकि वह अल्लाह के सामने ग़रीब है।” \s1 अल्लाह पर भरोसा \p \v 22 फिर ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “इसलिए अपनी ज़िंदगी की ज़रूरियात पूरी करने के लिए परेशान न रहो कि हाय, मैं क्या खाऊँ। और जिस्म के लिए फ़िकरमंद न रहो कि हाय, मैं क्या पहनूँ। \v 23 ज़िंदगी तो खाने से ज़्यादा अहम है और जिस्म पोशाक से ज़्यादा। \v 24 कौवों पर ग़ौर करो। न वह बीज बोते, न फ़सलें काटते हैं। उनके पास न स्टोर होता है, न गोदाम। तो भी अल्लाह ख़ुद उन्हें खाना खिलाता है। और तुम्हारी क़दरो-क़ीमत तो परिंदों से कहीं ज़्यादा है। \v 25 क्या तुममें से कोई फ़िकर करते करते अपनी ज़िंदगी में एक लमहे का भी इज़ाफ़ा कर सकता है? \v 26 अगर तुम फ़िकर करने से इतनी छोटी-सी तबदीली भी नहीं ला सकते तो फिर तुम बाक़ी बातों के बारे में क्यों फ़िकरमंद हो? \v 27 ग़ौर करो कि सोसन के फूल किस तरह उगते हैं। न वह मेहनत करते, न कातते हैं। लेकिन मैं तुम्हें बताता हूँ कि सुलेमान बादशाह अपनी पूरी शानो-शौकत के बावुजूद ऐसे शानदार कपड़ों से मुलब्बस नहीं था जैसे उनमें से एक। \v 28 अगर अल्लाह उस घास को जो आज मैदान में है और कल आग में झोंकी जाएगी ऐसा शानदार लिबास पहनाता है तो ऐ कमएतक़ादो, वह तुमको पहनाने के लिए क्या कुछ नहीं करेगा? \p \v 29 इसकी तलाश में न रहना कि क्या खाओगे या क्या पियोगे। ऐसी बातों की वजह से बेचैन न रहो। \v 30 क्योंकि दुनिया में जो ईमान नहीं रखते वही इन तमाम चीज़ों के पीछे भागते रहते हैं, जबकि तुम्हारे बाप को पहले से मालूम है कि तुमको इनकी ज़रूरत है। \v 31 चुनाँचे उसी की बादशाही की तलाश में रहो। फिर यह तमाम चीज़ें भी तुमको मिल जाएँगी। \s1 आसमान पर दौलत जमा करना \p \v 32 ऐ छोटे गल्ले, मत डरना, क्योंकि तुम्हारे बाप ने तुमको बादशाही देना पसंद किया। \v 33 अपनी मिलकियत बेचकर ग़रीबों को दे देना। अपने लिए ऐसे बटवे बनवाओ जो नहीं घिसते। अपने लिए आसमान पर ऐसा ख़ज़ाना जमा करो जो कभी ख़त्म नहीं होगा और जहाँ न कोई चोर आएगा, न कोई कीड़ा उसे ख़राब करेगा। \v 34 क्योंकि जहाँ तुम्हारा ख़ज़ाना है वहीं तुम्हारा दिल भी लगा रहेगा। \s1 हर वक़्त तैयार नौकर \p \v 35 ख़िदमत के लिए तैयार खड़े रहो और इस पर ध्यान दो कि तुम्हारे चराग़ जलते रहें। \v 36 यानी ऐसे नौकरों की मानिंद जिनका मालिक किसी शादी से वापस आनेवाला है और वह उसके लिए तैयार खड़े हैं। ज्योंही वह आकर दस्तक दे वह दरवाज़े को खोल देंगे। \v 37 वह नौकर मुबारक हैं जिन्हें मालिक आकर जागते हुए और चौकस पाएगा। मैं तुमको सच बताता हूँ कि यह देखकर मालिक अपने कपड़े बदलकर उन्हें बिठाएगा और मेज़ पर उनकी ख़िदमत करेगा। \v 38 हो सकता है मालिक आधी रात या इसके बाद आए। अगर वह इस सूरत में भी उन्हें मुस्तैद पाए तो वह मुबारक हैं। \v 39 यक़ीन जानो, अगर किसी घर के मालिक को पता होता कि चोर कब आएगा तो वह ज़रूर उसे घर में नक़ब लगाने न देता। \v 40 तुम भी तैयार रहो, क्योंकि इब्ने-आदम ऐसे वक़्त आएगा जब तुम इसकी तवक़्क़ो नहीं करोगे।” \s1 वफ़ादार नौकर \p \v 41 पतरस ने पूछा, “ख़ुदावंद, क्या यह तमसील सिर्फ़ हमारे लिए है या सबके लिए?” \p \v 42 ख़ुदावंद ने जवाब दिया, “कौन-सा नौकर वफ़ादार और समझदार है? फ़र्ज़ करो कि घर के मालिक ने किसी नौकर को बाक़ी नौकरों पर मुक़र्रर किया हो। उस की एक ज़िम्मादारी यह भी है कि उन्हें वक़्त पर मुनासिब खाना खिलाए। \v 43 वह नौकर मुबारक होगा जो मालिक की वापसी पर यह सब कुछ कर रहा होगा। \v 44 मैं तुमको सच बताता हूँ कि यह देखकर मालिक उसे अपनी पूरी जायदाद पर मुक़र्रर करेगा। \v 45 लेकिन फ़र्ज़ करो कि नौकर अपने दिल में सोचे, ‘मालिक की वापसी में अभी देर है।’ वह नौकरों और नौकरानियों को पीटने लगे और खाते-पीते वह नशे में रहे। \v 46 अगर वह ऐसा करे तो मालिक ऐसे दिन और वक़्त आएगा जिसकी तवक़्क़ो नौकर को नहीं होगी। इन हालात को देखकर वह नौकर को टुकड़े टुकड़े कर डालेगा और उसे ग़ैरईमानदारों में शामिल करेगा। \p \v 47 जो नौकर अपने मालिक की मरज़ी को जानता है, लेकिन उसके लिए तैयारियाँ नहीं करता, न उसे पूरी करने की कोशिश करता है, उस की ख़ूब पिटाई की जाएगी। \v 48 इसके मुक़ाबले में वह जो मालिक की मरज़ी को नहीं जानता और इस बिना पर कोई क़ाबिले-सज़ा काम करे उस की कम पिटाई की जाएगी। क्योंकि जिसे बहुत दिया गया हो उससे बहुत तलब किया जाएगा। और जिसके सुपुर्द बहुत कुछ किया गया हो उससे कहीं ज़्यादा माँगा जाएगा। \s1 ईसा की वजह से इख़्तिलाफ़ पैदा होगा \p \v 49 मैं ज़मीन पर आग लगाने आया हूँ, और काश वह पहले ही भड़क रही होती! \v 50 लेकिन अब तक मेरे सामने एक बपतिस्मा है जिसे लेना ज़रूरी है। और मुझ पर कितना दबाव है जब तक उस की तकमील न हो जाए। \v 51 क्या तुम समझते हो कि मैं दुनिया में सुलह-सलामती क़ायम करने आया हूँ? नहीं, मैं तुमको बताता हूँ कि इसकी बजाए मैं इख़्तिलाफ़ पैदा करूँगा। \v 52 क्योंकि अब से एक घराने के पाँच अफ़राद में इख़्तिलाफ़ होगा। तीन दो के ख़िलाफ़ और दो तीन के ख़िलाफ़ होंगे। \v 53 बाप बेटे के ख़िलाफ़ होगा और बेटा बाप के ख़िलाफ़, माँ बेटी के ख़िलाफ़ और बेटी माँ के ख़िलाफ़, सास बहू के ख़िलाफ़ और बहू सास के ख़िलाफ़।” \s1 मौजूदा हालात का सहीह नतीजा निकालना चाहिए \p \v 54 ईसा ने हुजूम से यह भी कहा, “ज्योंही कोई बादल मग़रिबी उफ़क़ से चढ़ता हुआ नज़र आए तो तुम कहते हो कि बारिश होगी। और ऐसा ही होता है। \v 55 और जब जुनूबी लू चलती है तो तुम कहते हो कि सख़्त गरमी होगी। और ऐसा ही होता है। \v 56 ऐ रियाकारो! तुम आसमानो-ज़मीन के हालात पर ग़ौर करके सहीह नतीजा निकाल लेते हो। तो फिर तुम मौजूदा ज़माने के हालात पर ग़ौर करके सहीह नतीजा क्यों नहीं निकाल सकते? \s1 अपने मुख़ालिफ़ से समझौता करना \p \v 57 तुम ख़ुद सहीह फ़ैसला क्यों नहीं कर सकते? \v 58 फ़र्ज़ करो कि किसी ने तुझ पर मुक़दमा चलाया है। अगर ऐसा हो तो पूरी कोशिश कर कि कचहरी में पहुँचने से पहले पहले मामला हल करके मुख़ालिफ़ से फ़ारिग़ हो जाए। ऐसा न हो कि वह तुझको जज के सामने घसीटकर ले जाए, जज तुझे पुलिस अफ़सर के हवाले करे और पुलिस अफ़सर तुझे जेल में डाल दे। \v 59 मैं तुझे बताता हूँ, वहाँ से तू उस वक़्त तक नहीं निकल पाएगा जब तक जुर्माने की पूरी पूरी रक़म अदा न कर दे।” \c 13 \s1 तौबा करो वरना हलाक हो जाओगे \p \v 1 उस वक़्त कुछ लोग ईसा के पास पहुँचे। उन्होंने उसे गलील के कुछ लोगों के बारे में बताया जिन्हें पीलातुस ने उस वक़्त क़त्ल करवाया था जब वह बैतुल-मुक़द्दस में क़ुरबानियाँ पेश कर रहे थे। यों उनका ख़ून क़ुरबानियों के ख़ून के साथ मिलाया गया था। \v 2 ईसा ने यह सुनकर पूछा, “क्या तुम्हारे ख़याल में यह लोग गलील के बाक़ी लोगों से ज़्यादा गुनाहगार थे कि इन्हें इतना दुख उठाना पड़ा? \v 3 हरगिज़ नहीं! बल्कि मैं तुमको बताता हूँ कि अगर तुम तौबा न करो तो तुम भी इसी तरह तबाह हो जाओगे। \v 4 या उन 18 अफ़राद के बारे में तुम्हारा क्या ख़याल है जो मर गए जब शिलोख़ का बुर्ज उन पर गिरा? क्या वह यरूशलम के बाक़ी बाशिंदों की निसबत ज़्यादा गुनाहगार थे? \v 5 हरगिज़ नहीं! मैं तुमको बताता हूँ कि अगर तुम तौबा न करो तो तुम भी तबाह हो जाओगे।” \s1 बेफल अंजीर का दरख़्त \p \v 6 फिर ईसा ने उन्हें यह तमसील सुनाई, “किसी ने अपने बाग़ में अंजीर का दरख़्त लगाया। जब वह उसका फल तोड़ने के लिए आया तो कोई फल नहीं था। \v 7 यह देखकर उसने माली से कहा, ‘मैं तीन साल से इसका फल तोड़ने आता हूँ, लेकिन आज तक कुछ भी नहीं मिला। इसे काट डाल। यह ज़मीन की ताक़त क्यों ख़त्म करे?’ \v 8 लेकिन माली ने कहा, ‘जनाब, इसे एक साल और रहने दें। मैं इसके इर्दगिर्द गोडी करके खाद डालूँगा। \v 9 फिर अगर यह अगले साल फल लाया तो ठीक, वरना इसे कटवा डालना’।” \s1 सबत के दिन कुबड़ी औरत की शफ़ा \p \v 10 सबत के दिन ईसा किसी इबादतख़ाने में तालीम दे रहा था। \v 11 वहाँ एक औरत थी जो 18 साल से बदरूह के बाइस बीमार थी। वह कुबड़ी हो गई थी और सीधी खड़ी होने के बिलकुल क़ाबिल न थी। \v 12 जब ईसा ने उसे देखा तो पुकारकर कहा, “ऐ औरत, तू अपनी बीमारी से छूट गई है!” \v 13 उसने अपने हाथ उस पर रखे तो वह फ़ौरन सीधी खड़ी होकर अल्लाह की तमजीद करने लगी। \p \v 14 लेकिन इबादतख़ाने का राहनुमा नाराज़ हुआ क्योंकि ईसा ने सबत के दिन शफ़ा दी थी। उसने लोगों से कहा, “हफ़ते के छः दिन काम करने के लिए होते हैं। इसलिए इतवार से लेकर जुमे तक शफ़ा पाने के लिए आओ, न कि सबत के दिन।” \p \v 15 ख़ुदावंद ने जवाब में उससे कहा, “तुम कितने रियाकार हो! क्या तुममें से हर कोई सबत के दिन अपने बैल या गधे को खोलकर उसे थान से बाहर नहीं ले जाता ताकि उसे पानी पिलाए? \v 16 अब इस औरत को देखो जो इब्राहीम की बेटी है और जो 18 साल से इबलीस के बंधन में थी। जब तुम सबत के दिन अपने जानवरों की मदद करते हो तो क्या यह ठीक नहीं कि औरत को इस बंधन से रिहाई दिलाई जाती, चाहे यह काम सबत के दिन ही क्यों न किया जाए?” \v 17 ईसा के इस जवाब से उसके मुख़ालिफ़ शरमिंदा हो गए। लेकिन आम लोग उसके इन तमाम शानदार कामों से ख़ुश हुए। \s1 राई के दाने की तमसील \p \v 18 ईसा ने कहा, “अल्लाह की बादशाही किस चीज़ की मानिंद है? मैं इसका मुवाज़ना किससे करूँ? \v 19 वह राई के एक दाने की मानिंद है जो किसी ने अपने बाग़ में बो दिया। बढ़ते बढ़ते वह दरख़्त-सा बन गया और परिंदों ने उस की शाख़ों में अपने घोंसले बना लिए।” \s1 ख़मीर की मिसाल \p \v 20 उसने दुबारा पूछा, “अल्लाह की बादशाही का किस चीज़ से मुवाज़ना करूँ? \v 21 वह उस ख़मीर की मानिंद है जो किसी औरत ने लेकर तक़रीबन 27 किलोग्राम आटे में मिला दिया। गो वह उसमें छुप गया तो भी होते होते पूरे गुंधे हुए आटे को ख़मीर कर गया।” \s1 तंग दरवाज़ा \p \v 22 ईसा तालीम देते देते मुख़्तलिफ़ शहरों और देहातों में से गुज़रा। अब उसका रुख़ यरूशलम ही की तरफ़ था। \v 23 इतने में किसी ने उससे पूछा, “ख़ुदावंद, क्या कम लोगों को नजात मिलेगी?” \p उसने जवाब दिया, \v 24 “तंग दरवाज़े में से दाख़िल होने की सिर-तोड़ कोशिश करो। क्योंकि मैं तुमको बताता हूँ कि बहुत-से लोग अंदर जाने की कोशिश करेंगे, लेकिन बेफ़ायदा। \v 25 एक वक़्त आएगा कि घर का मालिक उठकर दरवाज़ा बंद कर देगा। फिर तुम बाहर खड़े रहोगे और खटखटाते खटखटाते इलतमास करोगे, ‘ख़ुदावंद, हमारे लिए दरवाज़ा खोल दें।’ लेकिन वह जवाब देगा, ‘न मैं तुमको जानता हूँ, न यह कि तुम कहाँ के हो।’ \v 26 फिर तुम कहोगे, ‘हमने तो आपके सामने ही खाया और पिया और आप ही हमारी सड़कों पर तालीम देते रहे।’ \v 27 लेकिन वह जवाब देगा, ‘न मैं तुमको जानता हूँ, न यह कि तुम कहाँ के हो। ऐ तमाम बदकारो, मुझसे दूर हो जाओ!’ \v 28 वहाँ तुम रोते और दाँत पीसते रहोगे। क्योंकि तुम देखोगे कि इब्राहीम, इसहाक़, याक़ूब और तमाम नबी अल्लाह की बादशाही में हैं जबकि तुमको निकाल दिया गया है। \v 29 और लोग मशरिक़, मग़रिब, शिमाल और जुनूब से आकर अल्लाह की बादशाही की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे। \v 30 उस वक़्त कुछ ऐसे होंगे जो पहले आख़िर थे, लेकिन अब अव्वल होंगे। और कुछ ऐसे भी होंगे जो पहले अव्वल थे, लेकिन अब आख़िर होंगे।” \s1 यरूशलम पर अफ़सोस \p \v 31 उस वक़्त कुछ फ़रीसी ईसा के पास आकर उससे कहने लगे, “इस मक़ाम को छोड़कर कहीं और चले जाएँ, क्योंकि हेरोदेस आपको क़त्ल करने का इरादा रखता है।” \p \v 32 ईसा ने जवाब दिया, “जाओ, उस लोमड़ी को बता दो, ‘आज और कल मैं बदरूहें निकालता और मरीज़ों को शफ़ा देता रहूँगा। फिर तीसरे दिन मैं पायाए-तकमील को पहुँचूँगा।’ \v 33 इसलिए लाज़िम है कि मैं आज, कल और परसों आगे चलता रहूँ। क्योंकि मुमकिन नहीं कि कोई नबी यरूशलम से बाहर हलाक हो। \p \v 34 हाय यरूशलम, यरूशलम! तू जो नबियों को क़त्ल करती और अपने पास भेजे हुए पैग़ंबरों को संगसार करती है। मैंने कितनी ही बार तेरी औलाद को जमा करना चाहा, बिलकुल उसी तरह जिस तरह मुरग़ी अपने बच्चों को अपने परों तले जमा करके महफ़ूज़ कर लेती है। लेकिन तूने न चाहा। \v 35 अब तेरे घर को वीरानो-सुनसान छोड़ा जाएगा। और मैं तुमको बताता हूँ, तुम मुझे उस वक़्त तक दुबारा नहीं देखोगे जब तक तुम न कहो कि मुबारक है वह जो रब के नाम से आता है।” \c 14 \s1 सबत के दिन मरीज़ की शफ़ा \p \v 1 सबत के एक दिन ईसा खाने के लिए फ़रीसियों के किसी राहनुमा के घर आया। लोग उसे पकड़ने के लिए उस की हर हरकत पर नज़र रखे हुए थे। \v 2 वहाँ एक आदमी ईसा के सामने था जिसके बाज़ू और टाँगें फूले हुए थे। \v 3 यह देखकर वह फ़रीसियों और शरीअत के आलिमों से पूछने लगा, “क्या शरीअत सबत के दिन शफ़ा देने की इजाज़त देती है?” \p \v 4 लेकिन वह ख़ामोश रहे। फिर उसने उस आदमी पर हाथ रखा और उसे शफ़ा देकर रुख़सत कर दिया। \v 5 हाज़िरीन से वह कहने लगा, “अगर तुममें से किसी का बेटा या बैल सबत के दिन कुएँ में गिर जाए तो क्या तुम उसे फ़ौरन नहीं निकालोगे?” \p \v 6 इस पर वह कोई जवाब न दे सके। \s1 इज़्ज़त और अज्र हासिल करने का तरीक़ा \p \v 7 जब ईसा ने देखा कि मेहमान मेज़ पर इज़्ज़त की कुरसियाँ चुन रहे हैं तो उसने उन्हें यह तमसील सुनाई, \v 8 “जब तुझे किसी शादी की ज़ियाफ़त में शरीक होने की दावत दी जाए तो वहाँ जाकर इज़्ज़त की कुरसी पर न बैठना। ऐसा न हो कि किसी और को भी दावत दी गई हो जो तुझसे ज़्यादा इज़्ज़तदार है। \v 9 क्योंकि जब वह पहुँचेगा तो मेज़बान तेरे पास आकर कहेगा, ‘ज़रा इस आदमी को यहाँ बैठने दे।’ यों तेरी बेइज़्ज़ती हो जाएगी और तुझे वहाँ से उठकर आख़िरी कुरसी पर बैठना पड़ेगा। \v 10 इसलिए ऐसा मत करना बल्कि जब तुझे दावत दी जाए तो जाकर आख़िरी कुरसी पर बैठ जा। फिर जब मेज़बान तुझे वहाँ बैठा हुआ देखेगा तो वह कहेगा, ‘दोस्त, सामनेवाली कुरसी पर बैठ।’ इस तरह तमाम मेहमानों के सामने तेरी इज़्ज़त हो जाएगी। \v 11 क्योंकि जो भी अपने आपको सरफ़राज़ करे उसे पस्त किया जाएगा और जो अपने आपको पस्त करे उसे सरफ़राज़ किया जाएगा।” \p \v 12 फिर ईसा ने मेज़बान से बात की, “जब तू लोगों को दोपहर या शाम का खाना खाने की दावत देना चाहता है तो अपने दोस्तों, भाइयों, रिश्तेदारों या अमीर हमसायों को न बुला। ऐसा न हो कि वह इसके एवज़ तुझे भी दावत दें। क्योंकि अगर वह ऐसा करें तो यही तेरा मुआवज़ा होगा। \v 13 इसके बजाए ज़ियाफ़त करते वक़्त ग़रीबों, लँगड़ों, मफ़लूजों और अंधों को दावत दे। \v 14 ऐसा करने से तुझे बरकत मिलेगी। क्योंकि वह तुझे इसके एवज़ कुछ नहीं दे सकेंगे, बल्कि तुझे इसका मुआवज़ा उस वक़्त मिलेगा जब रास्तबाज़ जी उठेंगे।” \s1 बड़ी ज़ियाफ़त की तमसील \p \v 15 यह सुनकर मेहमानों में से एक ने उससे कहा, “मुबारक है वह जो अल्लाह की बादशाही में खाना खाए।” \p \v 16 ईसा ने जवाब में कहा, “किसी आदमी ने एक बड़ी ज़ियाफ़त का इंतज़ाम किया। इसके लिए उसने बहुत-से लोगों को दावत दी। \v 17 जब ज़ियाफ़त का वक़्त आया तो उसने अपने नौकर को मेहमानों को इत्तला देने के लिए भेजा कि ‘आएँ, सब कुछ तैयार है।’ \v 18 लेकिन वह सबके सब माज़रत चाहने लगे। पहले ने कहा, ‘मैंने खेत ख़रीदा है और अब ज़रूरी है कि निकलकर उसका मुआयना करूँ। मैं माज़रत चाहता हूँ।’ \v 19 दूसरे ने कहा, ‘मैंने बैलों के पाँच जोड़े ख़रीदे हैं। अब मैं उन्हें आज़माने जा रहा हूँ। मैं माज़रत चाहता हूँ।’ \v 20 तीसरे ने कहा, ‘मैंने शादी की है, इसलिए नहीं आ सकता।’ \p \v 21 नौकर ने वापस आकर मालिक को सब कुछ बताया। वह ग़ुस्से होकर नौकर से कहने लगा, ‘जा, सीधे शहर की सड़कों और गलियों में जाकर वहाँ के ग़रीबों, लँगड़ों, अंधों और मफ़लूजों को ले आ।’ नौकर ने ऐसा ही किया। \v 22 फिर वापस आकर उसने मालिक को इत्तला दी, ‘जनाब, जो कुछ आपने कहा था पूरा हो चुका है। लेकिन अब भी मज़ीद लोगों के लिए गुंजाइश है।’ \v 23 मालिक ने उससे कहा, फिर शहर से निकलकर देहात की सड़कों पर और बाड़ों के पास जा। जो भी मिल जाए उसे हमारी ख़ुशी में शरीक होने पर मजबूर कर ताकि मेरा घर भर जाए। \v 24 क्योंकि मैं तुमको बताता हूँ कि जिनको पहले दावत दी गई थी उनमें से कोई भी मेरी ज़ियाफ़त में शरीक न होगा।” \s1 शागिर्द होने की क़ीमत \p \v 25 एक बड़ा हुजूम ईसा के साथ चल रहा था। उनकी तरफ़ मुड़कर उसने कहा, \v 26 “अगर कोई मेरे पास आकर अपने बाप, माँ, बीवी, बच्चों, भाइयों, बहनों बल्कि अपने आपसे भी दुश्मनी न रखे तो वह मेरा शागिर्द नहीं हो सकता। \v 27 और जो अपनी सलीब उठाकर मेरे पीछे न हो ले वह मेरा शागिर्द नहीं हो सकता। \p \v 28 अगर तुममें से कोई बुर्ज तामीर करना चाहे तो क्या वह पहले बैठकर पूरे अख़राजात का अंदाज़ा नहीं लगाएगा ताकि मालूम हो जाए कि वह उसे तकमील तक पहुँचा सकेगा या नहीं? \v 29 वरना ख़तरा है कि उस की बुनियाद डालने के बाद पैसे ख़त्म हो जाएँ और वह आगे कुछ न बना सके। फिर जो कोई भी देखेगा वह उसका मज़ाक़ उड़ाकर \v 30 कहेगा, ‘उसने इमारत को शुरू तो किया, लेकिन अब उसे मुकम्मल नहीं कर पाया।’ \p \v 31 या अगर कोई बादशाह किसी दूसरे बादशाह के साथ जंग के लिए निकले तो क्या वह पहले बैठकर अंदाज़ा नहीं लगाएगा कि वह अपने दस हज़ार फ़ौजियों से उन बीस हज़ार फ़ौजियों पर ग़ालिब आ सकता है जो उससे लड़ने आ रहे हैं? \v 32 अगर वह इस नतीजे पर पहुँचे कि ग़ालिब नहीं आ सकता तो वह सुलह करने के लिए अपने नुमाइंदे दुश्मन के पास भेजेगा जब वह अभी दूर ही हो। \v 33 इसी तरह तुममें से जो भी अपना सब कुछ न छोड़े वह मेरा शागिर्द नहीं हो सकता। \s1 बेकार नमक \p \v 34 नमक अच्छी चीज़ है। लेकिन अगर उसका ज़ायक़ा जाता रहे तो फिर उसे क्योंकर दुबारा नमकीन किया जा सकता है? \v 35 न वह ज़मीन के लिए मुफ़ीद है, न खाद के लिए बल्कि उसे निकालकर बाहर फेंका जाएगा। जो सुन सकता है वह सुन ले।” \c 15 \s1 खोई हुई भेड़ \p \v 1 अब ऐसा था कि तमाम टैक्स लेनेवाले और गुनाहगार ईसा की बातें सुनने के लिए उसके पास आते थे। \v 2 यह देखकर फ़रीसी और शरीअत के आलिम बुड़बुड़ाने लगे, “यह आदमी गुनाहगारों को ख़ुशआमदीद कहकर उनके साथ खाना खाता है।” \v 3 इस पर ईसा ने उन्हें यह तमसील सुनाई, \p \v 4 “फ़र्ज़ करो कि तुममें से किसी की सौ भेड़ें हैं। लेकिन एक गुम हो जाती है। अब मालिक क्या करेगा? क्या वह बाक़ी 99 भेड़ें खुले मैदान में छोड़कर गुमशुदा भेड़ को ढूँडने नहीं जाएगा? ज़रूर जाएगा, बल्कि जब तक उसे वह भेड़ मिल न जाए वह उस की तलाश में रहेगा। \v 5 फिर वह ख़ुश होकर उसे अपने कंधों पर उठा लेगा। \v 6 यों चलते चलते वह अपने घर पहुँच जाएगा और वहाँ अपने दोस्तों और हमसायों को बुलाकर उनसे कहेगा, ‘मेरे साथ ख़ुशी मनाओ! क्योंकि मुझे अपनी खोई हुई भेड़ मिल गई है।’ \v 7 मैं तुमको बताता हूँ कि आसमान पर बिलकुल इसी तरह ख़ुशी मनाई जाएगी जब एक ही गुनाहगार तौबा करेगा। और यह ख़ुशी उस ख़ुशी की निसबत ज़्यादा होगी जो उन 99 अफ़राद के बाइस मनाई जाएगी जिन्हें तौबा करने की ज़रूरत ही नहीं थी। \s1 गुमशुदा सिक्का \p \v 8 या फ़र्ज़ करो कि किसी औरत के पास दस सिक्के हों लेकिन एक सिक्का गुम हो जाए। अब औरत क्या करेगी? क्या वह चराग़ जलाकर और घर में झाड़ू दे देकर बड़ी एहतियात से सिक्के को तलाश नहीं करेगी? ज़रूर करेगी, बल्कि वह उस वक़्त तक ढूँडती रहेगी जब तक उसे सिक्का मिल न जाए। \v 9 जब उसे सिक्का मिल जाएगा तो वह अपनी सहेलियों और हमसायों को बुलाकर उनसे कहेगी, ‘मेरे साथ ख़ुशी मनाओ! क्योंकि मुझे अपना गुमशुदा सिक्का मिल गया है।’ \v 10 मैं तुमको बताता हूँ कि बिलकुल इसी तरह अल्लाह के फ़रिश्तों के सामने ख़ुशी मनाई जाती है जब एक भी गुनाहगार तौबा करता है।” \s1 गुमशुदा बेटा \p \v 11 ईसा ने अपनी बात जारी रखी। “किसी आदमी के दो बेटे थे। \v 12 इनमें से छोटे ने बाप से कहा, ‘ऐ बाप, मीरास का मेरा हिस्सा दे दें।’ इस पर बाप ने दोनों में अपनी मिलकियत तक़सीम कर दी। \v 13 थोड़े दिनों के बाद छोटा बेटा अपना सारा सामान समेटकर अपने साथ किसी दूर-दराज़ मुल्क में ले गया। वहाँ उसने ऐयाशी में अपना पूरा मालो-मता उड़ा दिया। \v 14 सब कुछ ज़ाया हो गया तो उस मुल्क में सख़्त काल पड़ा। अब वह ज़रूरतमंद होने लगा। \v 15 नतीजे में वह उस मुल्क के किसी बाशिंदे के हाँ जा पड़ा जिसने उसे सुअरों को चराने के लिए अपने खेतों में भेज दिया। \v 16 वहाँ वह अपना पेट उन फलियों से भरने की शदीद ख़ाहिश रखता था जो सुअर खाते थे, लेकिन उसे इसकी भी इजाज़त न मिली। \v 17 फिर वह होश में आया। वह कहने लगा, मेरे बाप के कितने मज़दूरों को कसरत से खाना मिलता है जबकि मैं यहाँ भूका मर रहा हूँ। \v 18 मैं उठकर अपने बाप के पास वापस चला जाऊँगा और उससे कहूँगा, ‘ऐ बाप, मैंने आसमान का और आपका गुनाह किया है। \v 19 अब मैं इस लायक़ नहीं रहा कि आपका बेटा कहलाऊँ। मेहरबानी करके मुझे अपने मज़दूरों में रख लें।’ \v 20 फिर वह उठकर अपने बाप के पास वापस चला गया। \p लेकिन वह घर से अभी दूर ही था कि उसके बाप ने उसे देख लिया। उसे तरस आया और वह भागकर बेटे के पास आया और गले लगाकर उसे बोसा दिया। \v 21 बेटे ने कहा, ‘ऐ बाप, मैंने आसमान का और आपका गुनाह किया है। अब मैं इस लायक़ नहीं रहा कि आपका बेटा कहलाऊँ।’ \v 22 लेकिन बाप ने अपने नौकरों को बुलाया और कहा, ‘जल्दी करो, बेहतरीन सूट लाकर इसे पहनाओ। इसके हाथ में अंगूठी और पाँवों में जूते पहना दो। \v 23 फिर मोटा-ताज़ा बछड़ा लाकर उसे ज़बह करो ताकि हम खाएँ और ख़ुशी मनाएँ, \v 24 क्योंकि यह मेरा बेटा मुरदा था अब ज़िंदा हो गया है, गुम हो गया था अब मिल गया है।’ इस पर वह ख़ुशी मनाने लगे। \p \v 25 इस दौरान बाप का बड़ा बेटा खेत में था। अब वह घर लौटा। जब वह घर के क़रीब पहुँचा तो अंदर से मौसीक़ी और नाचने की आवाज़ें सुनाई दीं। \v 26 उसने किसी नौकर को बुलाकर पूछा, ‘यह क्या हो रहा है?’ \v 27 नौकर ने जवाब दिया, ‘आपका भाई आ गया है और आपके बाप ने मोटा-ताज़ा बछड़ा ज़बह करवाया है, क्योंकि उसे अपना बेटा सहीह-सलामत वापस मिल गया है।’ \p \v 28 यह सुनकर बड़ा बेटा ग़ुस्से हुआ और अंदर जाने से इनकार कर दिया। फिर बाप घर से निकलकर उसे समझाने लगा। \v 29 लेकिन उसने जवाब में अपने बाप से कहा, ‘देखें, मैंने इतने साल आपकी ख़िदमत में सख़्त मेहनत-मशक़्क़त की है और एक दफ़ा भी आपकी मरज़ी की ख़िलाफ़वरज़ी नहीं की। तो भी आपने मुझे इस पूरे अरसे में एक छोटा बकरा भी नहीं दिया कि उसे ज़बह करके अपने दोस्तों के साथ ज़ियाफ़त करता। \v 30 लेकिन ज्योंही आपका यह बेटा आया जिसने आपकी दौलत कसबियों में उड़ा दी, आपने उसके लिए मोटा-ताज़ा बछड़ा ज़बह करवाया।’ \v 31 बाप ने जवाब दिया, ‘बेटा, आप तो हर वक़्त मेरे पास रहे हैं, और जो कुछ मेरा है वह आप ही का है। \v 32 लेकिन अब ज़रूरी था कि हम जशन मनाएँ और ख़ुश हों। क्योंकि आपका यह भाई जो मुरदा था अब ज़िंदा हो गया है, जो गुम हो गया था अब मिल गया है’।” \c 16 \s1 चालाक मुलाज़िम \p \v 1 ईसा ने शागिर्दों से कहा, “किसी अमीर आदमी ने एक मुलाज़िम रखा था जो उस की जायदाद की देख-भाल करता था। ऐसा हुआ कि एक दिन उस पर इलज़ाम लगाया गया कि वह अपने मालिक की दौलत ज़ाया कर रहा है। \v 2 मालिक ने उसे बुलाकर कहा, ‘यह क्या है जो मैं तेरे बारे में सुनता हूँ? अपनी तमाम ज़िम्मादारियों का हिसाब दे, क्योंकि मैं तुझे बरख़ास्त कर दूँगा।’ \v 3 मुलाज़िम ने दिल में कहा, ‘अब मैं क्या करूँ जबकि मेरा मालिक यह ज़िम्मादारी मुझसे छीन लेगा? खुदाई जैसा सख़्त काम मुझसे नहीं होता और भीक माँगने से शर्म आती है। \v 4 हाँ, मैं जानता हूँ कि क्या करूँ ताकि लोग मुझे बरख़ास्त किए जाने के बाद अपने घरों में ख़ुशआमदीद कहें।’ \p \v 5 यह कहकर उसने अपने मालिक के तमाम क़र्ज़दारों को बुलाया। पहले से उसने पूछा, ‘तुम्हारा क़र्ज़ा कितना है?’ \v 6 उसने जवाब दिया, ‘मुझे मालिक को ज़ैतून के तेल के सौ कनस्तर वापस करने हैं।’ मुलाज़िम ने कहा, ‘अपना बिल ले लो और बैठकर जल्दी से सौ कनस्तर पचास में बदल लो।’ \v 7 दूसरे से उसने पूछा, ‘तुम्हारा कितना क़र्ज़ा है?’ उसने जवाब दिया, ‘मुझे गंदुम की हज़ार बोरियाँ वापस करनी हैं।’ मुलाज़िम ने कहा, ‘अपना बिल ले लो और हज़ार के बदले आठ सौ लिख लो।’ \p \v 8 यह देखकर मालिक ने बेईमान मुलाज़िम की तारीफ़ की कि उसने अक़्ल से काम लिया है। क्योंकि इस दुनिया के फ़रज़ंद अपनी नसल के लोगों से निपटने में नूर के फ़रज़ंदों से ज़्यादा होशियार होते हैं। \p \v 9 मैं तुमको बताता हूँ कि दुनिया की नारास्त दौलत से अपने लिए दोस्त बना लो ताकि जब यह ख़त्म हो जाए तो लोग तुमको अबदी रिहाइशगाहों में ख़ुशआमदीद कहें। \v 10 जो थोड़े में वफ़ादार है वह ज़्यादा में भी वफ़ादार होगा। और जो थोड़े में बेईमान है वह ज़्यादा में भी बेईमानी करेगा। \v 11 अगर तुम दुनिया की नारास्त दौलत को सँभालने में वफ़ादार न रहे तो फिर कौन हक़ीक़ी दौलत तुम्हारे सुपुर्द करेगा? \v 12 और अगर तुमने दूसरों की दौलत सँभालने में बेईमानी दिखाई है तो फिर कौन तुमको तुम्हारे ज़ाती इस्तेमाल के लिए कुछ देगा? \p \v 13 कोई भी ग़ुलाम दो मालिकों की ख़िदमत नहीं कर सकता। या तो वह एक से नफ़रत करके दूसरे से मुहब्बत रखेगा, या एक से लिपटकर दूसरे को हक़ीर जानेगा। तुम एक ही वक़्त में अल्लाह और दौलत की ख़िदमत नहीं कर सकते।” \s1 ईसा की चंद कहावतें \p \v 14 फ़रीसियों ने यह सब कुछ सुना तो वह उसका मज़ाक़ उड़ाने लगे, क्योंकि वह लालची थे। \v 15 उसने उनसे कहा, “तुम ही वह हो जो अपने आपको लोगों के सामने रास्तबाज़ क़रार देते हो, लेकिन अल्लाह तुम्हारे दिलों से वाक़िफ़ है। क्योंकि लोग जिस चीज़ की बहुत क़दर करते हैं वह अल्लाह के नज़दीक मकरूह है। \p \v 16 यहया के आने तक तुम्हारे राहनुमा मूसा की शरीअत और नबियों के पैग़ामात थे। लेकिन अब अल्लाह की बादशाही की ख़ुशख़बरी का एलान किया जा रहा है और तमाम लोग ज़बरदस्ती इसमें दाख़िल हो रहे हैं। \v 17 लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि शरीअत मनसूख़ हो गई है बल्कि आसमानो-ज़मीन जाते रहेंगे, लेकिन शरीअत की ज़ेर ज़बर तक कोई भी बात नहीं बदलेगी। \p \v 18 चुनाँचे जो आदमी अपनी बीवी को तलाक़ देकर किसी और से शादी करे वह ज़िना करता है। इसी तरह जो किसी तलाक़शुदा औरत से शादी करे वह भी ज़िना करता है। \s1 अमीर आदमी और लाज़र \p \v 19 एक अमीर आदमी का ज़िक्र है जो अरग़वानी रंग के कपड़े और नफ़ीस कतान पहनता और हर रोज़ ऐशो-इशरत में गुज़ारता था। \v 20 अमीर के गेट पर एक ग़रीब आदमी पड़ा था जिसके पूरे जिस्म पर नासूर थे। उसका नाम लाज़र था \v 21 और उस की बस एक ही ख़ाहिश थी कि वह अमीर की मेज़ से गिरे हुए टुकड़े खाकर सेर हो जाए। कुत्ते उसके पास आकर उसके नासूर चाटते थे। \p \v 22 फिर ऐसा हुआ कि ग़रीब आदमी मर गया। फ़रिश्तों ने उसे उठाकर इब्राहीम की गोद में बिठा दिया। अमीर आदमी भी फ़ौत हुआ और दफ़नाया गया। \v 23 वह जहन्नुम में पहुँचा। अज़ाब की हालत में उसने अपनी नज़र उठाई तो दूर से इब्राहीम और उस की गोद में लाज़र को देखा। \v 24 वह पुकार उठा, ‘ऐ मेरे बाप इब्राहीम, मुझ पर रहम करें। मेहरबानी करके लाज़र को मेरे पास भेज दें ताकि वह अपनी उँगली को पानी में डुबोकर मेरी ज़बान को ठंडा करे, क्योंकि मैं इस आग में तड़पता हूँ।’ \p \v 25 लेकिन इब्राहीम ने जवाब दिया, ‘बेटा, याद रख कि तुझे अपनी ज़िंदगी में बेहतरीन चीज़ें मिल चुकी हैं जबकि लाज़र को बदतरीन चीज़ें। लेकिन अब उसे आराम और तसल्ली मिल गई है जबकि तुझे अज़ियत। \v 26 नीज़, हमारे और तुम्हारे दरमियान एक वसी ख़लीज क़ायम है। अगर कोई चाहे भी तो उसे पार करके यहाँ से तुम्हारे पास नहीं जा सकता, न वहाँ से कोई यहाँ आ सकता है।’ \v 27 अमीर आदमी ने कहा, ‘मेरे बाप, फिर मेरी एक और गुज़ारिश है, मेहरबानी करके लाज़र को मेरे वालिद के घर भेज दें। \v 28 मेरे पाँच भाई हैं। वह वहाँ जाकर उन्हें आगाह करे, ऐसा न हो कि उनका अंजाम भी यह अज़ियतनाक मक़ाम हो।’ \p \v 29 लेकिन इब्राहीम ने जवाब दिया, ‘उनके पास मूसा की तौरेत और नबियों के सहीफ़े तो हैं। वह उनकी सुनें।’ \v 30 अमीर ने अर्ज़ की, ‘नहीं, मेरे बाप इब्राहीम, अगर कोई मुरदों में से उनके पास जाए तो फिर वह ज़रूर तौबा करेंगे।’ \v 31 इब्राहीम ने कहा, ‘अगर वह मूसा और नबियों की नहीं सुनते तो वह उस वक़्त भी क़ायल नहीं होंगे जब कोई मुरदों में से जी उठकर उनके पास जाएगा’।” \c 17 \s1 गुनाह \p \v 1 ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “आज़माइशों को तो आना ही आना है, लेकिन उस पर अफ़सोस जिसकी मारिफ़त वह आएँ। \v 2 अगर वह इन छोटों में से किसी को गुनाह करने पर उकसाए तो उसके लिए बेहतर है कि उसके गले में बड़ी चक्की का पाट बाँधा जाए और उसे समुंदर में फेंक दिया जाए। \v 3 ख़बरदार रहो! \p अगर तुम्हारा भाई गुनाह करे तो उसे समझाओ। अगर वह इस पर तौबा करे तो उसे मुआफ़ कर दो। \v 4 अब फ़र्ज़ करो कि वह एक दिन के अंदर सात बार तुम्हारा गुनाह करे, लेकिन हर दफ़ा वापस आकर तौबा का इज़हार करे, तो भी उसे हर दफ़ा मुआफ़ कर दो।” \s1 ईमान \p \v 5 रसूलों ने ख़ुदावंद से कहा, “हमारे ईमान को बढ़ा दें।” \p \v 6 ख़ुदावंद ने जवाब दिया, “अगर तुम्हारा ईमान राई के दाने जैसा छोटा भी हो तो तुम शहतूत के इस दरख़्त को कह सकते हो, ‘उखड़कर समुंदर में जा लग’ तो वह तुम्हारी बात पर अमल करेगा। \s1 ग़ुलाम का फ़र्ज़ \p \v 7 फ़र्ज़ करो कि तुममें से किसी ने हल चलाने या जानवर चराने के लिए एक ग़ुलाम रखा है। जब यह ग़ुलाम खेत से घर आएगा तो क्या उसका मालिक कहेगा, ‘इधर आओ, खाने के लिए बैठ जाओ?’ \v 8 हरगिज़ नहीं, बल्कि वह यह कहेगा, ‘मेरा खाना तैयार करो, ड्यूटी के कपड़े पहनकर मेरी ख़िदमत करो जब तक मैं खा-पी न लूँ। इसके बाद तुम भी खा और पी सकोगे।’ \v 9 और क्या वह अपने ग़ुलाम की उस ख़िदमत का शुक्रिया अदा करेगा जो उसने उसे करने को कहा था? हरगिज़ नहीं! \v 10 इसी तरह जब तुम सब कुछ जो तुम्हें करने को कहा गया है कर चुको तब तुमको यह कहना चाहिए, ‘हम नालायक़ नौकर हैं। हमने सिर्फ़ अपना फ़र्ज़ अदा किया है’।” \s1 कोढ़ के दस मरीज़ों की शफ़ा \p \v 11 ऐसा हुआ कि यरूशलम की तरफ़ सफ़र करते करते ईसा सामरिया और गलील में से गुज़रा। \v 12 एक दिन वह किसी गाँव में दाख़िल हो रहा था कि कोढ़ के दस मरीज़ उसको मिलने आए। वह कुछ फ़ासले पर खड़े होकर \v 13 ऊँची आवाज़ से कहने लगे, “ऐ ईसा, उस्ताद, हम पर रहम करें।” \p \v 14 उसने उन्हें देखा तो कहा, “जाओ, अपने आपको इमामों को दिखाओ ताकि वह तुम्हारा मुआयना करें।” \p और ऐसा हुआ कि वह चलते चलते अपनी बीमारी से पाक-साफ़ हो गए। \v 15 उनमें से एक ने जब देखा कि शफ़ा मिल गई है तो वह मुड़कर ऊँची आवाज़ से अल्लाह की तमजीद करने लगा, \v 16 और ईसा के सामने मुँह के बल गिरकर शुक्रिया अदा किया। यह आदमी सामरिया का बाशिंदा था। \v 17 ईसा ने पूछा, “क्या दस के दस आदमी अपनी बीमारी से पाक-साफ़ नहीं हुए? बाक़ी नौ कहाँ हैं? \v 18 क्या इस ग़ैरमुल्की के अलावा कोई और वापस आकर अल्लाह की तमजीद करने के लिए तैयार नहीं था?” \v 19 फिर उसने उससे कहा, “उठकर चला जा। तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है।” \s1 अल्लाह की बादशाही कब आएगी \p \v 20 कुछ फ़रीसियों ने ईसा से पूछा, “अल्लाह की बादशाही कब आएगी?” उसने जवाब दिया, “अल्लाह की बादशाही यों नहीं आ रही कि उसे ज़ाहिरी निशानों से पहचाना जाए। \v 21 लोग यह भी नहीं कह सकेंगे, ‘वह यहाँ है’ या ‘वह वहाँ है’ क्योंकि अल्लाह की बादशाही तुम्हारे दरमियान है।” \p \v 22 फिर उसने अपने शागिर्दों से कहा, “ऐसे दिन आएँगे कि तुम इब्ने-आदम का कम अज़ कम एक दिन देखने की तमन्ना करोगे, लेकिन नहीं देखोगे। \v 23 लोग तुमको बताएँगे, ‘वह वहाँ है’ या ‘वह यहाँ है।’ लेकिन मत जाना और उनके पीछे न लगना। \v 24 क्योंकि जब इब्ने-आदम का दिन आएगा तो वह बिजली की मानिंद होगा जिसकी चमक आसमान को एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक रौशन कर देती है। \v 25 लेकिन पहले लाज़िम है कि वह बहुत दुख उठाए और इस नसल के हाथों रद्द किया जाए। \v 26 जब इब्ने-आदम का वक़्त आएगा तो हालात नूह के दिनों जैसे होंगे। \v 27 लोग उस दिन तक खाने-पीने और शादी करने करवाने में लगे रहे जब तक नूह कश्ती में दाख़िल न हो गया। फिर सैलाब ने आकर उन सबको तबाह कर दिया। \v 28 बिलकुल यही कुछ लूत के ऐयाम में हुआ। लोग खाने-पीने, ख़रीदो-फ़रोख़्त, काश्तकारी और तामीर के काम में लगे रहे। \v 29 लेकिन जब लूत सदूम को छोड़कर निकला तो आग और गंधक ने आसमान से बरसकर उन सबको तबाह कर दिया। \v 30 इब्ने-आदम के ज़ुहूर के वक़्त ऐसे ही हालात होंगे। \p \v 31 जो शख़्स उस दिन छत पर हो वह घर का सामान साथ ले जाने के लिए नीचे न उतरे। इसी तरह जो खेत में हो वह अपने पीछे पड़ी चीज़ों को साथ ले जाने के लिए घर न लौटे। \v 32 लूत की बीवी को याद रखो। \v 33 जो अपनी जान बचाने की कोशिश करेगा वह उसे खो देगा, और जो अपनी जान खो देगा वही उसे बचाए रखेगा। \v 34 मैं तुमको बताता हूँ कि उस रात दो अफ़राद एक बिस्तर में सोए होंगे, एक को साथ ले लिया जाएगा जबकि दूसरे को पीछे छोड़ दिया जाएगा। \v 35 दो ख़वातीन चक्की पर गंदुम पीस रही होंगी, एक को साथ ले लिया जाएगा जबकि दूसरी को पीछे छोड़ दिया जाएगा। \v 36 [दो अफ़राद खेत में होंगे, एक को साथ ले लिया जाएगा जबकि दूसरे को पीछे छोड़ दिया जाएगा।]” \p \v 37 उन्होंने पूछा, “ख़ुदावंद, यह कहाँ होगा?” \p उसने जवाब दिया, “जहाँ लाश पड़ी हो वहाँ गिद्ध जमा हो जाएंगे।” \c 18 \s1 बेवा और जज की तमसील \p \v 1 फिर ईसा ने उन्हें एक तमसील सुनाई जो मुसलसल दुआ करने और हिम्मत न हारने की ज़रूरत को ज़ाहिर करती है। \v 2 उसने कहा, “किसी शहर में एक जज रहता था जो न ख़ुदा का ख़ौफ़ मानता, न किसी इनसान का लिहाज़ करता था। \v 3 अब उस शहर में एक बेवा भी थी जो यह कहकर उसके पास आती रही कि ‘मेरे मुख़ालिफ़ को जीतने न दें बल्कि मेरा इनसाफ़ करें।’ \v 4 कुछ देर के लिए जज ने इनकार किया। लेकिन फिर वह दिल में कहने लगा, ‘बेशक मैं ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं मानता, न लोगों की परवा करता हूँ, \v 5 लेकिन यह बेवा मुझे बार बार तंग कर रही है। इसलिए मैं उसका इनसाफ़ करूँगा। ऐसा न हो कि आख़िरकार वह आकर मेरे मुँह पर थप्पड़ मारे’।” \p \v 6 ख़ुदावंद ने बात जारी रखी। “इस पर ध्यान दो जो बेइनसाफ़ जज ने कहा। \v 7 अगर उसने आख़िरकार इनसाफ़ किया तो क्या अल्लाह अपने चुने हुए लोगों का इनसाफ़ नहीं करेगा जो दिन-रात उसे मदद के लिए पुकारते हैं? क्या वह उनकी बात मुलतवी करता रहेगा? \v 8 हरगिज़ नहीं! मैं तुमको बताता हूँ कि वह जल्दी से उनका इनसाफ़ करेगा। लेकिन क्या इब्ने-आदम जब दुनिया में आएगा तो ईमान देख पाएगा?” \s1 फ़रीसी और टैक्स लेनेवाले की तमसील \p \v 9 बाज़ लोग मौजूद थे जो अपनी रास्तबाज़ी पर भरोसा रखते और दूसरों को हक़ीर जानते थे। उन्हें ईसा ने यह तमसील सुनाई, \v 10 “दो आदमी बैतुल-मुक़द्दस में दुआ करने आए। एक फ़रीसी था और दूसरा टैक्स लेनेवाला। \p \v 11 फ़रीसी खड़ा होकर यह दुआ करने लगा, ‘ऐ ख़ुदा, मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि मैं बाक़ी लोगों की तरह नहीं हूँ। न मैं डाकू हूँ, न बेइनसाफ़, न ज़िनाकार। मैं इस टैक्स लेनेवाले की मानिंद भी नहीं हूँ। \v 12 मैं हफ़ते में दो मरतबा रोज़ा रखता हूँ और तमाम आमदनी का दसवाँ हिस्सा तेरे लिए मख़सूस करता हूँ।’ \p \v 13 लेकिन टैक्स लेनेवाला दूर ही खड़ा रहा। उसने अपनी आँखें आसमान की तरफ़ उठाने तक की जुर्रत न की बल्कि अपनी छाती पीट पीटकर कहने लगा, ‘ऐ ख़ुदा, मुझ गुनाहगार पर रहम कर!’ \v 14 मैं तुमको बताता हूँ कि जब दोनों अपने अपने घर लौटे तो फ़रीसी नहीं बल्कि यह आदमी अल्लाह के नज़दीक रास्तबाज़ ठहरा। क्योंकि जो भी अपने आपको सरफ़राज़ करे उसे पस्त किया जाएगा और जो अपने आपको पस्त करे उसे सरफ़राज़ किया जाएगा।” \s1 ईसा छोटे बच्चों को प्यार करता है \p \v 15 एक दिन लोग अपने छोटे बच्चों को भी ईसा के पास लाए ताकि वह उन्हें छुए। यह देखकर शागिर्दों ने उनको मलामत की। \v 16 लेकिन ईसा ने उन्हें अपने पास बुलाकर कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें न रोको, क्योंकि अल्लाह की बादशाही इन जैसे लोगों को हासिल है। \v 17 मैं तुमको सच बताता हूँ, जो अल्लाह की बादशाही को बच्चे की तरह क़बूल न करे वह उसमें दाख़िल नहीं होगा।” \s1 अमीर मुश्किल से अल्लाह की बादशाही में दाख़िल हो सकते हैं \p \v 18 किसी राहनुमा ने उससे पूछा, “नेक उस्ताद, मैं क्या करूँ ताकि मीरास में अबदी ज़िंदगी पाऊँ?” \p \v 19 ईसा ने जवाब दिया, “तू मुझे नेक क्यों कहता है? कोई नेक नहीं सिवाए एक के और वह है अल्लाह। \v 20 तू शरीअत के अहकाम से तो वाक़िफ़ है कि ज़िना न करना, क़त्ल न करना, चोरी न करना, झूटी गवाही न देना, अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना।” \p \v 21 आदमी ने जवाब दिया, “मैंने जवानी से आज तक इन तमाम अहकाम की पैरवी की है।” \p \v 22 यह सुनकर ईसा ने कहा, “एक काम अब तक रह गया है। अपनी पूरी जायदाद फ़रोख़्त करके पैसे ग़रीबों में तक़सीम कर दे। फिर तेरे लिए आसमान पर ख़ज़ाना जमा हो जाएगा। इसके बाद आकर मेरे पीछे हो ले।” \v 23 यह सुनकर आदमी को बहुत दुख हुआ, क्योंकि वह निहायत दौलतमंद था। \p \v 24 यह देखकर ईसा ने कहा, “दौलतमंदों के लिए अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होना कितना मुश्किल है! \v 25 अमीर के अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होने की निसबत यह ज़्यादा आसान है कि ऊँट सूई के नाके में से गुज़र जाए।” \p \v 26 यह बात सुनकर सुननेवालों ने पूछा, “फिर किस को नजात मिल सकती है?” \p \v 27 ईसा ने जवाब दिया, “जो इनसान के लिए नामुमकिन है वह अल्लाह के लिए मुमकिन है।” \p \v 28 पतरस ने उससे कहा, “हम तो अपना सब कुछ छोड़कर आपके पीछे हो लिए हैं।” \p \v 29 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुमको सच बताता हूँ कि जिसने भी अल्लाह की बादशाही की ख़ातिर अपने घर, बीवी, भाइयों, वालिदैन या बच्चों को छोड़ दिया है \v 30 उसे इस ज़माने में कई गुना ज़्यादा और आनेवाले ज़माने में अबदी ज़िंदगी मिलेगी।” \s1 ईसा की मौत की तीसरी पेशगोई \p \v 31 ईसा शागिर्दों को एक तरफ़ ले जाकर उनसे कहने लगा, “सुनो, हम यरूशलम की तरफ़ बढ़ रहे हैं। वहाँ सब कुछ पूरा हो जाएगा जो नबियों की मारिफ़त इब्ने-आदम के बारे में लिखा गया है। \v 32 उसे ग़ैरयहूदियों के हवाले कर दिया जाएगा जो उसका मज़ाक़ उड़ाएँगे, उस की बेइज़्ज़ती करेंगे, उस पर थूकेंगे, \v 33 उसको कोड़े मारेंगे और उसे क़त्ल करेंगे। लेकिन तीसरे दिन वह जी उठेगा।” \p \v 34 लेकिन शागिर्दों की समझ में कुछ न आया। इस बात का मतलब उनसे छुपा रहा और वह न समझे कि वह क्या कह रहा है। \s1 अंधे की शफ़ा \p \v 35 ईसा यरीहू के क़रीब पहुँचा। वहाँ रास्ते के किनारे एक अंधा बैठा भीक माँग रहा था। \v 36 बहुत-से लोग उसके सामने से गुज़रने लगे तो उसने यह सुनकर पूछा कि क्या हो रहा है। \p \v 37 उन्होंने कहा, “ईसा नासरी यहाँ से गुज़र रहा है।” \p \v 38 अंधा चिल्लाने लगा, “ऐ ईसा इब्ने-दाऊद, मुझ पर रहम करें।” \p \v 39 आगे चलनेवालों ने उसे डाँटकर कहा, “ख़ामोश!” लेकिन वह मज़ीद ऊँची आवाज़ से पुकारता रहा, “ऐ इब्ने-दाऊद, मुझ पर रहम करें।” \p \v 40 ईसा रुक गया और हुक्म दिया, “उसे मेरे पास लाओ।” जब वह क़रीब आया तो ईसा ने उससे पूछा, \v 41 “तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?” \p उसने जवाब दिया, “ख़ुदावंद, यह कि मैं देख सकूँ।” \p \v 42 ईसा ने उससे कहा, “तो फिर देख! तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है।” \p \v 43 ज्योंही उसने यह कहा अंधे की आँखें बहाल हो गईं और वह अल्लाह की तमजीद करते हुए उसके पीछे हो लिया। यह देखकर पूरे हुजूम ने अल्लाह को जलाल दिया। \c 19 \s1 ईसा और ज़क्काई \p \v 1 फिर ईसा यरीहू में दाख़िल हुआ और उसमें से गुज़रने लगा। \v 2 उस शहर में एक अमीर आदमी बनाम ज़क्काई रहता था जो टैक्स लेनेवालों का अफ़सर था। \v 3 वह जानना चाहता था कि यह ईसा कौन है, लेकिन पूरी कोशिश करने के बावुजूद उसे देख न सका, क्योंकि ईसा के इर्दगिर्द बड़ा हुजूम था और ज़क्काई का क़द छोटा था। \v 4 इसलिए वह दौड़कर आगे निकला और उसे देखने के लिए अंजीर-तूत \f + \fr 19:4 \ft एक सायादार दरख़्त जिसमें अंजीर की तरह का ख़ुरदनी फल लगता है। इसके फूल ज़रद और आराइशी होते हैं। मिसरी तूत। जमीज़। ficus sycomorus। \f* के दरख़्त पर चढ़ गया जो रास्ते में था। \v 5 जब ईसा वहाँ पहुँचा तो उसने नज़र उठाकर कहा, “ज़क्काई, जल्दी से उतर आ, क्योंकि आज मुझे तेरे घर में ठहरना है।” \p \v 6 ज़क्काई फ़ौरन उतर आया और ख़ुशी से उस की मेहमान-नवाज़ी की। \v 7 यह देखकर बाक़ी तमाम लोग बुड़बुड़ाने लगे, “इसके घर में जाकर वह एक गुनाहगार के मेहमान बन गए हैं।” \p \v 8 लेकिन ज़क्काई ने ख़ुदावंद के सामने खड़े होकर कहा, “ख़ुदावंद, मैं अपने माल का आधा हिस्सा ग़रीबों को दे देता हूँ। और जिससे मैंने नाजायज़ तौर से कुछ लिया है उसे चार गुना वापस करता हूँ।” \p \v 9 ईसा ने उससे कहा, “आज इस घराने को नजात मिल गई है, इसलिए कि यह भी इब्राहीम का बेटा है। \v 10 क्योंकि इब्ने-आदम गुमशुदा को ढूँडने और नजात देने के लिए आया है।” \s1 पैसों में इज़ाफ़ा \p \v 11 अब ईसा यरूशलम के क़रीब आ चुका था, इसलिए लोग अंदाज़ा लगाने लगे कि अल्लाह की बादशाही ज़ाहिर होनेवाली है। इसके पेशे-नज़र ईसा ने अपनी यह बातें सुननेवालों को एक तमसील सुनाई। \v 12 उसने कहा, “एक नवाब किसी दूर-दराज़ मुल्क को चला गया ताकि उसे बादशाह मुक़र्रर किया जाए। फिर उसे वापस आना था। \v 13 रवाना होने से पहले उसने अपने नौकरों में से दस को बुलाकर उन्हें सोने का एक एक सिक्का दिया। साथ साथ उसने कहा, ‘यह पैसे लेकर उस वक़्त तक कारोबार में लगाओ जब तक मैं वापस न आऊँ।’ \v 14 लेकिन उस की रिआया उससे नफ़रत रखती थी, इसलिए उसने उसके पीछे वफ़द भेजकर इत्तला दी, ‘हम नहीं चाहते कि यह आदमी हमारा बादशाह बने।’ \p \v 15 तो भी उसे बादशाह मुक़र्रर किया गया। इसके बाद जब वापस आया तो उसने उन नौकरों को बुलाया जिन्हें उसने पैसे दिए थे ताकि मालूम करे कि उन्होंने यह पैसे कारोबार में लगाकर कितना इज़ाफ़ा किया है। \v 16 पहला नौकर आया। उसने कहा, ‘जनाब, आपके एक सिक्के से दस हो गए हैं।’ \v 17 मालिक ने कहा, ‘शाबाश, अच्छे नौकर। तू थोड़े में वफ़ादार रहा, इसलिए अब तुझे दस शहरों पर इख़्तियार मिलेगा।’ \v 18 फिर दूसरा नौकर आया। उसने कहा, ‘जनाब, आपके एक सिक्के से पाँच हो गए हैं।’ \v 19 मालिक ने उससे कहा, ‘तुझे पाँच शहरों पर इख़्तियार मिलेगा।’ \p \v 20 फिर एक और नौकर आकर कहने लगा, ‘जनाब, यह आपका सिक्का है। मैंने इसे कपड़े में लपेटकर महफ़ूज़ रखा, \v 21 क्योंकि मैं आपसे डरता था, इसलिए कि आप सख़्त आदमी हैं। जो पैसे आपने नहीं लगाए उन्हें ले लेते हैं और जो बीज आपने नहीं बोया उस की फ़सल काटते हैं।’ \v 22 मालिक ने कहा, ‘शरीर नौकर! मैं तेरे अपने अलफ़ाज़ के मुताबिक़ तेरी अदालत करूँगा। जब तू जानता था कि मैं सख़्त आदमी हूँ, कि वह पैसे ले लेता हूँ जो ख़ुद नहीं लगाए और वह फ़सल काटता हूँ जिसका बीज नहीं बोया, \v 23 तो फिर तूने मेरे पैसे बैंक में क्यों न जमा कराए? अगर तू ऐसा करता तो वापसी पर मुझे कम अज़ कम वह पैसे सूद समेत मिल जाते।’ \p \v 24 यह कहकर वह हाज़िरीन से मुख़ातिब हुआ, ‘यह सिक्का इससे लेकर उस नौकर को दे दो जिसके पास दस सिक्के हैं।’ \v 25 उन्होंने एतराज़ किया, ‘जनाब, उसके पास तो पहले ही दस सिक्के हैं।’ \v 26 उसने जवाब दिया, ‘मैं तुम्हें बताता हूँ कि हर शख़्स जिसके पास कुछ है उसे और दिया जाएगा, लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है उससे वह भी छीन लिया जाएगा जो उसके पास है। \v 27 अब उन दुश्मनों को ले आओ जो नहीं चाहते थे कि मैं उनका बादशाह बनूँ। उन्हें मेरे सामने फाँसी दे दो’।” \s1 यरूशलम में ईसा का पुरजोश इस्तक़बाल \p \v 28 इन बातों के बाद ईसा दूसरों के आगे आगे यरूशलम की तरफ़ बढ़ने लगा। \v 29 जब वह बैत-फ़गे और बैत-अनियाह के क़रीब पहुँचा जो ज़ैतून के पहाड़ पर थे तो उसने दो शागिर्दों को अपने आगे भेजकर \v 30 कहा, “सामनेवाले गाँव में जाओ। वहाँ तुम एक जवान गधा देखोगे। वह बँधा हुआ होगा और अब तक कोई भी उस पर सवार नहीं हुआ है। उसे खोलकर ले आओ। \v 31 अगर कोई पूछे कि गधे को क्यों खोल रहे हो तो उसे बता देना कि ख़ुदावंद को इसकी ज़रूरत है।” \p \v 32 दोनों शागिर्द गए तो देखा कि सब कुछ वैसा ही है जैसा ईसा ने उन्हें बताया था। \v 33 जब वह जवान गधे को खोलने लगे तो उसके मालिकों ने पूछा, “तुम गधे को क्यों खोल रहे हो?” \p \v 34 उन्होंने जवाब दिया, “ख़ुदावंद को इसकी ज़रूरत है।” \v 35 वह उसे ईसा के पास ले आए, और अपने कपड़े गधे पर रखकर उसको उस पर सवार किया। \v 36 जब वह चल पड़ा तो लोगों ने उसके आगे आगे रास्ते में अपने कपड़े बिछा दिए। \p \v 37 चलते चलते वह उस जगह के क़रीब पहुँचा जहाँ रास्ता ज़ैतून के पहाड़ पर से उतरने लगता है। इस पर शागिर्दों का पूरा हुजूम ख़ुशी के मारे ऊँची आवाज़ से उन मोजिज़ों के लिए अल्लाह की तमजीद करने लगा जो उन्होंने देखे थे, \p \v 38 “मुबारक है वह बादशाह \p जो रब के नाम से आता है। \p आसमान पर सलामती हो और बुलंदियों पर इज़्ज़तो-जलाल।” \p \v 39 कुछ फ़रीसी भीड़ में थे। उन्होंने ईसा से कहा, “उस्ताद, अपने शागिर्दों को समझाएँ।” \p \v 40 उसने जवाब दिया, “मैं तुम्हें बताता हूँ, अगर यह चुप हो जाएँ तो पत्थर पुकार उठेंगे।” \s1 ईसा शहर को देखकर रो पड़ता है \p \v 41 जब वह यरूशलम के क़रीब पहुँचा तो शहर को देखकर रो पड़ा \v 42 और कहा, “काश तू भी इस दिन जान लेती कि तेरी सलामती किसमें है। लेकिन अब यह बात तेरी आँखों से छुपी हुई है। \v 43 क्योंकि तुझ पर ऐसा वक़्त आएगा कि तेरे दुश्मन तेरे इर्दगिर्द बंद बाँधकर तेरा मुहासरा करेंगे और यों तुझे चारों तरफ़ से घेरकर तंग करेंगे। \v 44 वह तुझे तेरे बच्चों समेत ज़मीन पर पटकेंगे और तेरे अंदर एक भी पत्थर दूसरे पर नहीं छोड़ेंगे। और वजह यही होगी कि तूने वह वक़्त नहीं पहचाना जब अल्लाह ने तेरी नजात के लिए तुझ पर नज़र की।” \s1 ईसा बैतुल-मुक़द्दस में जाता है \p \v 45 फिर ईसा बैतुल-मुक़द्दस में जाकर उन्हें निकालने लगा जो वहाँ क़ुरबानियों के लिए दरकार चीज़ें बेच रहे थे। उसने कहा, \v 46 “कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, ‘मेरा घर दुआ का घर होगा’ जबकि तुमने उसे डाकुओं के अड्डे में बदल दिया है।” \p \v 47 और वह रोज़ाना बैतुल-मुक़द्दस में तालीम देता रहा। लेकिन बैतुल-मुक़द्दस के राहनुमा इमाम, शरीअत के आलिम और अवामी राहनुमा उसे क़त्ल करने के लिए कोशाँ रहे, \v 48 अलबत्ता उन्हें कोई मौक़ा न मिला, क्योंकि तमाम लोग ईसा की हर बात सुन सुनकर उससे लिपटे रहते थे। \c 20 \s1 ईसा का इख़्तियार \p \v 1 एक दिन जब वह बैतुल-मुक़द्दस में लोगों को तालीम दे रहा और अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुना रहा था तो राहनुमा इमाम, शरीअत के उलमा और बुज़ुर्ग उसके पास आए। \v 2 उन्होंने कहा, “हमें बताएँ, आप यह किस इख़्तियार से कर रहे हैं? किसने आपको यह इख़्तियार दिया है?” \p \v 3 ईसा ने जवाब दिया, “मेरा भी तुमसे एक सवाल है। तुम मुझे बताओ कि \v 4 क्या यहया का बपतिस्मा आसमानी था या इनसानी?” \p \v 5 वह आपस में बहस करने लगे, “अगर हम कहें ‘आसमानी’ तो वह पूछेगा, ‘तो फिर तुम उस पर ईमान क्यों न लाए?’ \v 6 लेकिन अगर हम कहें ‘इनसानी’ तो तमाम लोग हमें संगसार करेंगे, क्योंकि वह तो यक़ीन रखते हैं कि यहया नबी था।” \v 7 इसलिए उन्होंने जवाब दिया, “हम नहीं जानते कि वह कहाँ से था।” \p \v 8 ईसा ने कहा, “तो फिर मैं भी तुमको नहीं बताता कि मैं यह सब कुछ किस इख़्तियार से कर रहा हूँ।” \s1 अंगूर के बाग़ के मुज़ारेओं की बग़ावत \p \v 9 फिर ईसा लोगों को यह तमसील सुनाने लगा, “किसी आदमी ने अंगूर का एक बाग़ लगाया। फिर वह उसे मुज़ारेओं के सुपुर्द करके बहुत देर के लिए बैरूने-मुल्क चला गया। \v 10 जब अंगूर पक गए तो उसने अपने नौकर को उनके पास भेज दिया ताकि वह मालिक का हिस्सा वसूल करे। लेकिन मुज़ारेओं ने उस की पिटाई करके उसे ख़ाली हाथ लौटा दिया। \v 11 इस पर मालिक ने एक और नौकर को उनके पास भेजा। लेकिन मुज़ारेओं ने उसे भी मार मारकर उस की बेइज़्ज़ती की और ख़ाली हाथ निकाल दिया। \v 12 फिर मालिक ने तीसरे नौकर को भेज दिया। उसे भी उन्होंने मारकर ज़ख़मी कर दिया और निकाल दिया। \v 13 बाग़ के मालिक ने कहा, ‘अब मैं क्या करूँ? मैं अपने प्यारे बेटे को भेजूँगा, शायद वह उसका लिहाज़ करें।’ \v 14 लेकिन मालिक के बेटे को देखकर मुज़ारे आपस में कहने लगे, ‘यह ज़मीन का वारिस है। आओ, हम इसे मार डालें। फिर इसकी मीरास हमारी ही होगी।’ \v 15 उन्होंने उसे बाग़ से बाहर फेंककर क़त्ल किया।” \p ईसा ने पूछा, “अब बताओ, बाग़ का मालिक क्या करेगा? \v 16 वह वहाँ जाकर मुज़ारेओं को हलाक करेगा और बाग़ को दूसरों के सुपुर्द कर देगा।” \p यह सुनकर लोगों ने कहा, “ख़ुदा ऐसा कभी न करे।” \p \v 17 ईसा ने उन पर नज़र डालकर पूछा, “तो फिर कलामे-मुक़द्दस के इस हवाले का क्या मतलब है कि \p ‘जिस पत्थर को मकान बनानेवालों ने रद्द किया, \p वह कोने का बुनियादी पत्थर बन गया’? \p \v 18 जो इस पत्थर पर गिरेगा वह टुकड़े टुकड़े हो जाएगा, जबकि जिस पर वह ख़ुद गिरेगा उसे पीस डालेगा।” \s1 क्या टैक्स देना जायज़ है? \p \v 19 शरीअत के उलमा और राहनुमा इमामों ने उसी वक़्त उसे पकड़ने की कोशिश की, क्योंकि वह समझ गए थे कि तमसील में बयानशुदा मुज़ारे हम ही हैं। लेकिन वह अवाम से डरते थे। \v 20 चुनाँचे वह उसे पकड़ने का मौक़ा ढूँडते रहे। इस मक़सद के तहत उन्होंने उसके पास जासूस भेज दिए। यह लोग अपने आपको दियानतदार ज़ाहिर करके ईसा के पास आए ताकि उस की कोई बात पकड़कर उसे रोमी गवर्नर के हवाले कर सकें। \v 21 इन जासूसों ने उससे पूछा, “उस्ताद, हम जानते हैं कि आप वही कुछ बयान करते और सिखाते हैं जो सहीह है। आप जानिबदार नहीं होते बल्कि दियानतदारी से अल्लाह की राह की तालीम देते हैं। \v 22 अब हमें बताएँ कि क्या रोमी शहनशाह को टैक्स देना जायज़ है या नाजायज़?” \p \v 23 लेकिन ईसा ने उनकी चालाकी भाँप ली और कहा, \v 24 “मुझे चाँदी का एक रोमी सिक्का दिखाओ। किसकी सूरत और नाम इस पर कंदा है?” \p उन्होंने जवाब दिया, “शहनशाह का।” \p \v 25 उसने कहा, “तो जो शहनशाह का है शहनशाह को दो और जो अल्लाह का है अल्लाह को।” \p \v 26 यों वह अवाम के सामने उस की कोई बात पकड़ने में नाकाम रहे। उसका जवाब सुनकर वह हक्का-बक्का रह गए और मज़ीद कोई बात न कर सके। \s1 क्या हम जी उठेंगे? \p \v 27 फिर कुछ सदूक़ी उसके पास आए। सदूक़ी नहीं मानते कि रोज़े-क़ियामत मुरदे जी उठेंगे। उन्होंने ईसा से एक सवाल किया, \v 28 “उस्ताद, मूसा ने हमें हुक्म दिया कि अगर कोई शादीशुदा आदमी बेऔलाद मर जाए और उसका भाई हो तो भाई का फ़र्ज़ है कि वह बेवा से शादी करके अपने भाई के लिए औलाद पैदा करे। \v 29 अब फ़र्ज़ करें कि सात भाई थे। पहले ने शादी की, लेकिन बेऔलाद फ़ौत हुआ। \v 30 इस पर दूसरे ने उससे शादी की, लेकिन वह भी बेऔलाद मर गया। \v 31 फिर तीसरे ने उससे शादी की। यह सिलसिला सातवें भाई तक जारी रहा। यके बाद दीगरे हर भाई बेवा से शादी करने के बाद मर गया। \v 32 आख़िर में बेवा भी फ़ौत हो गई। \v 33 अब बताएँ कि क़ियामत के दिन वह किसकी बीवी होगी? क्योंकि सात के सात भाइयों ने उससे शादी की थी।” \p \v 34 ईसा ने जवाब दिया, “इस ज़माने में लोग ब्याह-शादी करते और कराते हैं। \v 35 लेकिन जिन्हें अल्लाह आनेवाले ज़माने में शरीक होने और मुरदों में से जी उठने के लायक़ समझता है वह उस वक़्त शादी नहीं करेंगे, न उनकी शादी किसी से कराई जाएगी। \v 36 वह मर भी नहीं सकेंगे, क्योंकि वह फ़रिश्तों की मानिंद होंगे और क़ियामत के फ़रज़ंद होने के बाइस अल्लाह के फ़रज़ंद होंगे। \v 37 और यह बात कि मुरदे जी उठेंगे मूसा से भी ज़ाहिर की गई है। क्योंकि जब वह काँटेदार झाड़ी के पास आया तो उसने रब को यह नाम दिया, ‘इब्राहीम का ख़ुदा, इसहाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा,’ हालाँकि उस वक़्त तीनों बहुत पहले मर चुके थे। इसका मतलब है कि यह हक़ीक़त में ज़िंदा हैं। \v 38 क्योंकि अल्लाह मुरदों का नहीं बल्कि ज़िंदों का ख़ुदा है। उसके नज़दीक यह सब ज़िंदा हैं।” \p \v 39 यह सुनकर शरीअत के कुछ उलमा ने कहा, “शाबाश उस्ताद, आपने अच्छा कहा है।” \v 40 इसके बाद उन्होंने उससे कोई भी सवाल करने की जुर्रत न की। \s1 मसीह के बारे में सवाल \p \v 41 फिर ईसा ने उनसे पूछा, “मसीह के बारे में क्यों कहा जाता है कि वह दाऊद का फ़रज़ंद है? \v 42 क्योंकि दाऊद ख़ुद ज़बूर की किताब में फ़रमाता है, \p ‘रब ने मेरे रब से कहा, \p मेरे दहने हाथ बैठ, \p \v 43 जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँवों की चौकी न बना दूँ।’ \p \v 44 दाऊद तो ख़ुद मसीह को रब कहता है। तो फिर वह किस तरह दाऊद का फ़रज़ंद हो सकता है?” \s1 शरीअत के उलमा से ख़बरदार \p \v 45 जब लोग सुन रहे थे तो उसने अपने शागिर्दों से कहा, \v 46 “शरीअत के उलमा से ख़बरदार रहो! क्योंकि वह शानदार चोग़े पहनकर इधर-उधर फिरना पसंद करते हैं। जब लोग बाज़ारों में सलाम करके उनकी इज़्ज़त करते हैं तो फिर वह ख़ुश हो जाते हैं। उनकी बस एक ही ख़ाहिश होती है कि इबादतख़ानों और ज़ियाफ़तों में इज़्ज़त की कुरसियों पर बैठ जाएँ। \v 47 यह लोग बेवाओं के घर हड़प कर जाते और साथ साथ दिखावे के लिए लंबी लंबी दुआएँ माँगते हैं। ऐसे लोगों को निहायत सख़्त सज़ा मिलेगी।” \c 21 \s1 बेवा का चंदा \p \v 1 ईसा ने नज़र उठाकर देखा कि अमीर लोग अपने हदिये बैतुल-मुक़द्दस के चंदे के बक्स में डाल रहे हैं। \v 2 एक ग़रीब बेवा भी वहाँ से गुज़री जिसने उसमें ताँबे के दो मामूली-से सिक्के डाल दिए। \v 3 ईसा ने कहा, “मैं तुमको सच बताता हूँ कि इस ग़रीब बेवा ने तमाम लोगों की निसबत ज़्यादा डाला है। \v 4 क्योंकि इन सबने तो अपनी दौलत की कसरत से कुछ डाला जबकि इसने ज़रूरतमंद होने के बावुजूद भी अपने गुज़ारे के सारे पैसे दे दिए हैं।” \s1 बैतुल-मुक़द्दस पर आनेवाली तबाही \p \v 5 उस वक़्त कुछ लोग बैतुल-मुक़द्दस की तारीफ़ में कहने लगे कि वह कितने ख़ूबसूरत पत्थरों और मन्नत के तोह्फ़ों से सजी हुई है। यह सुनकर ईसा ने कहा, \v 6 “जो कुछ तुमको यहाँ नज़र आता है उसका पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा। आनेवाले दिनों में सब कुछ ढा दिया जाएगा।” \s1 मुसीबतों और ईज़ारसानी की पेशगोई \p \v 7 उन्होंने पूछा, “उस्ताद, यह कब होगा? क्या क्या नज़र आएगा जिससे मालूम हो कि यह अब होने को है?” \p \v 8 ईसा ने जवाब दिया, “ख़बरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न कर दे। क्योंकि बहुत-से लोग मेरा नाम लेकर आएँगे और कहेंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ’ और कि ‘वक़्त क़रीब आ चुका है।’ लेकिन उनके पीछे न लगना। \v 9 और जब जंगों और फ़ितनों की ख़बरें तुम तक पहुँचेंगी तो मत घबराना। क्योंकि लाज़िम है कि यह सब कुछ पहले पेश आए। तो भी अभी आख़िरत न होगी।” \p \v 10 उसने अपनी बात जारी रखी, “एक क़ौम दूसरी के ख़िलाफ़ उठ खड़ी होगी, और एक बादशाही दूसरी के ख़िलाफ़। \v 11 शदीद ज़लज़ले आएँगे, जगह जगह काल पड़ेंगे और वबाई बीमारियाँ फैल जाएँगी। हैबतनाक वाक़ियात और आसमान पर बड़े निशान देखने में आएँगे। \v 12 लेकिन इन तमाम वाक़ियात से पहले लोग तुमको पकड़कर सताएँगे। वह तुमको यहूदी इबादतख़ानों के हवाले करेंगे, क़ैदख़ानों में डलवाएँगे और बादशाहों और हुक्मरानों के सामने पेश करेंगे। और यह इसलिए होगा कि तुम मेरे पैरोकार हो। \v 13 नतीजे में तुम्हें मेरी गवाही देने का मौक़ा मिलेगा। \v 14 लेकिन ठान लो कि तुम पहले से अपना दिफ़ा करने की तैयारी न करो, \v 15 क्योंकि मैं तुमको ऐसे अलफ़ाज़ और हिकमत अता करूँगा कि तुम्हारे तमाम मुख़ालिफ़ न उसका मुक़ाबला और न उस की तरदीद कर सकेंगे। \v 16 तुम्हारे वालिदैन, भाई, रिश्तेदार और दोस्त भी तुमको दुश्मन के हवाले कर देंगे, बल्कि तुममें से बाज़ को क़त्ल किया जाएगा। \v 17 सब तुमसे नफ़रत करेंगे, इसलिए कि तुम मेरे पैरोकार हो। \v 18 तो भी तुम्हारा एक बाल भी बीका नहीं होगा। \v 19 साबितक़दम रहने से ही तुम अपनी जान बचा लोगे। \s1 यरूशलम की तबाही \p \v 20 जब तुम यरूशलम को फ़ौजों से घिरा हुआ देखो तो जान लो कि उस की तबाही क़रीब आ चुकी है। \v 21 उस वक़्त यहूदिया के बाशिंदे भागकर पहाड़ी इलाक़े में पनाह लें। शहर के रहनेवाले उससे निकल जाएँ और देहात में आबाद लोग शहर में दाख़िल न हों। \v 22 क्योंकि यह इलाही ग़ज़ब के दिन होंगे जिनमें वह सब कुछ पूरा हो जाएगा जो कलामे-मुक़द्दस में लिखा है। \v 23 उन ख़वातीन पर अफ़सोस जो उन दिनों में हामिला हों या अपने बच्चों को दूध पिलाती हों, क्योंकि मुल्क में बहुत मुसीबत होगी और इस क़ौम पर अल्लाह का ग़ज़ब नाज़िल होगा। \v 24 लोग उन्हें तलवार से क़त्ल करेंगे और क़ैद करके तमाम ग़ैरयहूदी ममालिक में ले जाएंगे। ग़ैरयहूदी यरूशलम को पाँवों तले कुचल डालेंगे। यह सिलसिला उस वक़्त तक जारी रहेगा जब तक ग़ैरयहूदियों का दौर पूरा न हो जाए। \s1 इब्ने-आदम की आमद \p \v 25 सूरज, चाँद और सितारों में अजीबो-ग़रीब निशान ज़ाहिर होंगे। क़ौमें समुंदर के शोर और ठाठें मारने से हैरानो-परेशान होंगी। \v 26 लोग इस अंदेशे से कि क्या क्या मुसीबत दुनिया पर आएगी इस क़दर ख़ौफ़ खाएँगे कि उनकी जान में जान न रहेगी, क्योंकि आसमान की क़ुव्वतें हिलाई जाएँगी। \v 27 और फिर वह इब्ने-आदम को बड़ी क़ुदरत और जलाल के साथ बादल में आते हुए देखेंगे। \v 28 चुनाँचे जब यह कुछ पेश आने लगे तो सीधे खड़े होकर अपनी नज़र उठाओ, क्योंकि तुम्हारी नजात नज़दीक होगी।” \s1 अंजीर के दरख़्त की तमसील \p \v 29 इस सिलसिले में ईसा ने उन्हें एक तमसील सुनाई। “अंजीर के दरख़्त और बाक़ी दरख़्तों पर ग़ौर करो। \v 30 ज्योंही कोंपलें निकलने लगती हैं तुम जान लेते हो कि गरमियों का मौसम नज़दीक है। \v 31 इसी तरह जब तुम यह वाक़ियात देखोगे तो जान लोगे कि अल्लाह की बादशाही क़रीब ही है। \p \v 32 मैं तुमको सच बताता हूँ कि इस नसल के ख़त्म होने से पहले पहले यह सब कुछ वाक़े होगा। \v 33 आसमानो-ज़मीन तो जाते रहेंगे, लेकिन मेरी बातें हमेशा तक क़ायम रहेंगी। \s1 ख़बरदार रहना \p \v 34 ख़बरदार रहो ताकि तुम्हारे दिल ऐयाशी, नशाबाज़ी और रोज़ाना की फ़िकरों तले दब न जाएँ। वरना यह दिन अचानक तुम पर आन पड़ेगा, \v 35 और फंदे की तरह तुम्हें जकड़ लेगा। क्योंकि वह दुनिया के तमाम बाशिंदों पर आएगा। \v 36 हर वक़्त चौकस रहो और दुआ करते रहो कि तुमको आनेवाली इन सब बातों से बच निकलने की तौफ़ीक़ मिल जाए और तुम इब्ने-आदम के सामने खड़े हो सको।” \p \v 37 हर रोज़ ईसा बैतुल-मुक़द्दस में तालीम देता रहा और हर शाम वह निकलकर उस पहाड़ पर रात गुज़ारता था जिसका नाम ज़ैतून का पहाड़ है। \v 38 और तमाम लोग उस की बातें सुनने के लिए सुबह-सवेरे बैतुल-मुक़द्दस में उसके पास आते थे। \c 22 \s1 ईसा के ख़िलाफ़ मनसूबाबंदियाँ \p \v 1 बेख़मीरी रोटी की ईद यानी फ़सह की ईद क़रीब आ गई थी। \v 2 राहनुमा इमाम और शरीअत के उलमा ईसा को क़त्ल करने का कोई मौज़ूँ मौक़ा ढूँड रहे थे, क्योंकि वह अवाम के रद्दे-अमल से डरते थे। \s1 ईसा को दुश्मन के हवाले करने का मनसूबा \p \v 3 उस वक़्त इबलीस यहूदाह इस्करियोती में समा गया जो बारह रसूलों में से था। \v 4 अब वह राहनुमा इमामों और बैतुल-मुक़द्दस के पहरेदारों के अफ़सरों से मिला और उनसे बात करने लगा कि वह ईसा को किस तरह उनके हवाले कर सकेगा। \v 5 वह ख़ुश हुए और उसे पैसे देने पर मुत्तफ़िक़ हुए। \v 6 यहूदाह रज़ामंद हुआ। अब से वह इस तलाश में रहा कि ईसा को ऐसे मौक़े पर उनके हवाले करे जब हुजूम उसके पास न हो। \s1 फ़सह की ईद के लिए तैयारियाँ \p \v 7 बेख़मीरी रोटी की ईद आई जब फ़सह के लेले को क़ुरबान करना था। \v 8 ईसा ने पतरस और यूहन्ना को आगे भेजकर हिदायत की, “जाओ, हमारे लिए फ़सह का खाना तैयार करो ताकि हम जाकर उसे खा सकें।” \p \v 9 उन्होंने पूछा, “हम उसे कहाँ तैयार करें?” \p \v 10 उसने जवाब दिया, “जब तुम शहर में दाख़िल होगे तो तुम्हारी मुलाक़ात एक आदमी से होगी जो पानी का घड़ा उठाए चल रहा होगा। उसके पीछे चलकर उस घर में दाख़िल हो जाओ जिसमें वह जाएगा। \v 11 वहाँ के मालिक से कहना, ‘उस्ताद आपसे पूछते हैं कि वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह का खाना खाऊँ?’ \v 12 वह तुमको दूसरी मनज़िल पर एक बड़ा और सजा हुआ कमरा दिखाएगा। फ़सह का खाना वहीं तैयार करना।” \p \v 13 दोनों चले गए तो सब कुछ वैसा ही पाया जैसा ईसा ने उन्हें बताया था। फिर उन्होंने फ़सह का खाना तैयार किया। \s1 फ़सह का आख़िरी खाना \p \v 14 मुक़र्ररा वक़्त पर ईसा अपने शागिर्दों के साथ खाने के लिए बैठ गया। \v 15 उसने उनसे कहा, “मेरी शदीद आरज़ू थी कि दुख उठाने से पहले तुम्हारे साथ मिलकर फ़सह का यह खाना खाऊँ। \v 16 क्योंकि मैं तुमको बताता हूँ कि उस वक़्त तक इस खाने में शरीक नहीं हूँगा जब तक इसका मक़सद अल्लाह की बादशाही में पूरा न हो गया हो।” \p \v 17 फिर उसने मै का प्याला लेकर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और कहा, “इसको लेकर आपस में बाँट लो। \v 18 मैं तुमको बताता हूँ कि अब से मैं अंगूर का रस नहीं पियूँगा, क्योंकि अगली दफ़ा इसे अल्लाह की बादशाही के आने पर पियूँगा।” \p \v 19 फिर उसने रोटी लेकर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उसे टुकड़े करके उन्हें दे दिया। उसने कहा, “यह मेरा बदन है, जो तुम्हारे लिए दिया जाता है। मुझे याद करने के लिए यही किया करो।” \v 20 इसी तरह उसने खाने के बाद प्याला लेकर कहा, “मै का यह प्याला वह नया अहद है जो मेरे ख़ून के ज़रीए क़ायम किया जाता है, वह ख़ून जो तुम्हारे लिए बहाया जाता है। \p \v 21 लेकिन जिस शख़्स का हाथ मेरे साथ खाना खाने में शरीक है वह मुझे दुश्मन के हवाले कर देगा। \v 22 इब्ने-आदम तो अल्लाह की मरज़ी के मुताबिक़ कूच कर जाएगा, लेकिन उस शख़्स पर अफ़सोस जिसके वसीले से उसे दुश्मन के हवाले कर दिया जाएगा।” \p \v 23 यह सुनकर शागिर्द एक दूसरे से बहस करने लगे कि हममें से यह कौन हो सकता है जो इस क़िस्म की हरकत करेगा। \s1 कौन बड़ा है? \p \v 24 फिर एक और बात भी छिड़ गई। वह एक दूसरे से बहस करने लगे कि हममें से कौन सबसे बड़ा समझा जाए। \v 25 लेकिन ईसा ने उनसे कहा, “ग़ैरयहूदी क़ौमों में बादशाह वही हैं जो दूसरों पर हुकूमत करते हैं, और इख़्तियारवाले वही हैं जिन्हें ‘मोहसिन’ का लक़ब दिया जाता है। \v 26 लेकिन तुमको ऐसा नहीं होना चाहिए। इसके बजाए जो सबसे बड़ा है वह सबसे छोटे लड़के की मानिंद हो और जो राहनुमाई करता है वह नौकर जैसा हो। \v 27 क्योंकि आम तौर पर कौन ज़्यादा बड़ा होता है, वह जो खाने के लिए बैठा है या वह जो लोगों की ख़िदमत के लिए हाज़िर होता है? क्या वह नहीं जो खाने के लिए बैठा है? बेशक। लेकिन मैं ख़िदमत करनेवाले की हैसियत से ही तुम्हारे दरमियान हूँ। \p \v 28 देखो, तुम वही हो जो मेरी तमाम आज़माइशों के दौरान मेरे साथ रहे हो। \v 29 चुनाँचे मैं तुमको बादशाही अता करता हूँ जिस तरह बाप ने मुझे भी बादशाही अता की है। \v 30 तुम मेरी बादशाही में मेरी मेज़ पर बैठकर मेरे साथ खाओ और पियोगे, और तख़्तों पर बैठकर इसराईल के बारह क़बीलों का इनसाफ़ करोगे। \s1 पतरस के इनकार की पेशगोई \p \v 31 शमौन, शमौन! इबलीस ने तुम लोगों को गंदुम की तरह फटकने का मुतालबा किया है। \v 32 लेकिन मैंने तेरे लिए दुआ की है ताकि तेरा ईमान जाता न रहे। और जब तू मुड़कर वापस आए तो उस वक़्त अपने भाइयों को मज़बूत करना।” \p \v 33 पतरस ने जवाब दिया, “ख़ुदावंद, मैं तो आपके साथ जेल में भी जाने बल्कि मरने को तैयार हूँ।” \p \v 34 ईसा ने कहा, “पतरस, मैं तुझे बताता हूँ कि कल सुबह मुरग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर चुका होगा।” \s1 अब बटवे, बैग और तलवार की ज़रूरत है \p \v 35 फिर उसने उनसे पूछा, “जब मैंने तुमको बटवे, सामान के लिए बैग और जूतों के बग़ैर भेज दिया तो क्या तुम किसी भी चीज़ से महरूम रहे?” \p उन्होंने जवाब दिया, “किसी से नहीं।” \p \v 36 उसने कहा, “लेकिन अब जिसके पास बटवा या बैग हो वह उसे साथ ले जाए, बल्कि जिसके पास तलवार न हो वह अपनी चादर बेचकर तलवार ख़रीद ले। \v 37 कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, ‘उसे मुजरिमों में शुमार किया गया’ और मैं तुमको बताता हूँ, लाज़िम है कि यह बात मुझमें पूरी हो जाए। क्योंकि जो कुछ मेरे बारे में लिखा है उसे पूरा ही होना है।” \p \v 38 उन्होंने कहा, “ख़ुदावंद, यहाँ दो तलवारें हैं।” उसने कहा, “बस! काफ़ी है!” \s1 ज़ैतून के पहाड़ पर ईसा की दुआ \p \v 39 फिर वह शहर से निकलकर मामूल के मुताबिक़ ज़ैतून के पहाड़ की तरफ़ चल दिया। उसके शागिर्द उसके पीछे हो लिए। \v 40 वहाँ पहुँचकर उसने उनसे कहा, “दुआ करो ताकि आज़माइश में न पड़ो।” \p \v 41 फिर वह उन्हें छोड़कर कुछ आगे निकला, तक़रीबन इतने फ़ासले पर जितनी दूर तक पत्थर फेंका जा सकता है। वहाँ वह झुककर दुआ करने लगा, \v 42 “ऐ बाप, अगर तू चाहे तो यह प्याला मुझसे हटा ले। लेकिन मेरी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।” \v 43 उस वक़्त एक फ़रिश्ते ने आसमान पर से उस पर ज़ाहिर होकर उसको तक़वियत दी। \v 44 वह सख़्त परेशान होकर ज़्यादा दिलसोज़ी से दुआ करने लगा। साथ साथ उसका पसीना ख़ून की बूँदों की तरह ज़मीन पर टपकने लगा। \p \v 45 जब वह दुआ से फ़ारिग़ होकर खड़ा हुआ और शागिर्दों के पास वापस आया तो देखा कि वह ग़म के मारे सो गए हैं। \v 46 उसने उनसे कहा, “तुम क्यों सो रहे हो? उठकर दुआ करते रहो ताकि आज़माइश में न पड़ो।” \s1 ईसा की गिरिफ़्तारी \p \v 47 वह अभी यह बात कर ही रहा था कि एक हुजूम आ पहुँचा जिसके आगे आगे यहूदाह चल रहा था। वह ईसा को बोसा देने के लिए उसके पास आया। \v 48 लेकिन उसने कहा, “यहूदाह, क्या तू इब्ने-आदम को बोसा देकर दुश्मन के हवाले कर रहा है?” \p \v 49 जब उसके साथियों ने भाँप लिया कि अब क्या होनेवाला है तो उन्होंने कहा, “ख़ुदावंद, क्या हम तलवार चलाएँ?” \v 50 और उनमें से एक ने अपनी तलवार से इमामे-आज़म के ग़ुलाम का दहना कान उड़ा दिया। \p \v 51 लेकिन ईसा ने कहा, “बस कर!” उसने ग़ुलाम का कान छूकर उसे शफ़ा दी। \v 52 फिर वह उन राहनुमा इमामों, बैतुल-मुक़द्दस के पहरेदारों के अफ़सरों और बुज़ुर्गों से मुख़ातिब हुआ जो उसके पास आए थे, “क्या मैं डाकू हूँ कि तुम तलवारें और लाठियाँ लिए मेरे ख़िलाफ़ निकले हो? \v 53 मैं तो रोज़ाना बैतुल-मुक़द्दस में तुम्हारे पास था, मगर तुमने वहाँ मुझे हाथ नहीं लगाया। लेकिन अब यह तुम्हारा वक़्त है, वह वक़्त जब तारीकी हुकूमत करती है।” \s1 पतरस ईसा को जानने से इनकार करता है \p \v 54 फिर वह उसे गिरिफ़्तार करके इमामे-आज़म के घर ले गए। पतरस कुछ फ़ासले पर उनके पीछे पीछे वहाँ पहुँच गया। \v 55 लोग सहन में आग जलाकर उसके इर्दगिर्द बैठ गए। पतरस भी उनके दरमियान बैठ गया। \v 56 किसी नौकरानी ने उसे वहाँ आग के पास बैठे हुए देखा। उसने उसे घूरकर कहा, “यह भी उसके साथ था।” \p \v 57 लेकिन उसने इनकार किया, “ख़ातून, मैं उसे नहीं जानता।” \p \v 58 थोड़ी देर के बाद किसी आदमी ने उसे देखा और कहा, “तुम भी उनमें से हो।” \p लेकिन पतरस ने जवाब दिया, “नहीं भई! मैं नहीं हूँ।” \p \v 59 तक़रीबन एक घंटा गुज़र गया तो किसी और ने इसरार करके कहा, “यह आदमी यक़ीनन उसके साथ था, क्योंकि यह भी गलील का रहनेवाला है।” \p \v 60 लेकिन पतरस ने जवाब दिया, “यार, मैं नहीं जानता कि तुम क्या कह रहे हो!” \p वह अभी बात कर ही रहा था कि अचानक मुरग़ की बाँग सुनाई दी। \v 61 ख़ुदावंद ने मुड़कर पतरस पर नज़र डाली। फिर पतरस को ख़ुदावंद की वह बात याद आई जो उसने उससे कही थी कि “कल सुबह मुरग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर चुका होगा।” \v 62 पतरस वहाँ से निकलकर टूटे दिल से ख़ूब रोया। \s1 लान-तान और पिटाई \p \v 63 पहरेदार ईसा का मज़ाक़ उड़ाने और उस की पिटाई करने लगे। \v 64 उन्होंने उस की आँखों पर पट्टी बाँधकर पूछा, “नबुव्वत कर कि किसने तुझे मारा?” \v 65 इस तरह की और बहुत-सी बातों से वह उस की बेइज़्ज़ती करते रहे। \s1 यहूदी अदालते-आलिया के सामने पेशी \p \v 66 जब दिन चढ़ा तो राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा पर मुश्तमिल क़ौम की मजलिस ने जमा होकर उसे यहूदी अदालते-आलिया में पेश किया। \v 67 उन्होंने कहा, “अगर तू मसीह है तो हमें बता!” \p ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं तुमको बताऊँ तो तुम मेरी बात नहीं मानोगे, \v 68 और अगर तुमसे पूछूँ तो तुम जवाब नहीं दोगे। \v 69 लेकिन अब से इब्ने-आदम अल्लाह तआला के दहने हाथ बैठा होगा।” \p \v 70 सबने पूछा, “तो फिर क्या तू अल्लाह का फ़रज़ंद है?” \p उसने जवाब दिया, “जी, तुम ख़ुद कहते हो।” \p \v 71 इस पर उन्होंने कहा, “अब हमें किसी और गवाही की क्या ज़रूरत रही? क्योंकि हमने यह बात उसके अपने मुँह से सुन ली है।” \c 23 \s1 पीलातुस के सामने \p \v 1 फिर पूरी मजलिस उठी और उसे पीलातुस के पास ले आई। \v 2 वहाँ वह उस पर इलज़ाम लगाकर कहने लगे, “हमने मालूम किया है कि यह आदमी हमारी क़ौम को गुमराह कर रहा है। यह शहनशाह को टैक्स देने से मना करता और दावा करता है कि मैं मसीह और बादशाह हूँ।” \p \v 3 पीलातुस ने उससे पूछा, “अच्छा, तुम यहूदियों के बादशाह हो?” \p ईसा ने जवाब दिया, “जी, आप ख़ुद कहते हैं।” \p \v 4 फिर पीलातुस ने राहनुमा इमामों और हुजूम से कहा, “मुझे इस आदमी पर इलज़ाम लगाने की कोई वजह नज़र नहीं आती।” \p \v 5 लेकिन वह अड़े रहे। उन्होंने कहा, “वह पूरे यहूदिया में तालीम देते हुए क़ौम को उकसाता है। वह गलील से शुरू करके यहाँ तक आ पहुँचा है।” \s1 हेरोदेस के सामने \p \v 6 यह सुनकर पीलातुस ने पूछा, “क्या यह शख़्स गलील का है?” \v 7 जब उसे मालूम हुआ कि ईसा गलील यानी उस इलाक़े से है जिस पर हेरोदेस अंतिपास की हुकूमत है तो उसने उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्योंकि वह भी उस वक़्त यरूशलम में था। \v 8 हेरोदेस ईसा को देखकर बहुत ख़ुश हुआ, क्योंकि उसने उसके बारे में बहुत कुछ सुना था और इसलिए काफ़ी देर से उससे मिलना चाहता था। अब उस की बड़ी ख़ाहिश थी कि ईसा को कोई मोजिज़ा करते हुए देख सके। \v 9 उसने उससे बहुत सारे सवाल किए, लेकिन ईसा ने एक का भी जवाब न दिया। \v 10 राहनुमा इमाम और शरीअत के उलमा साथ खड़े बड़े जोश से उस पर इलज़ाम लगाते रहे। \v 11 फिर हेरोदेस और उसके फ़ौजियों ने उस की तहक़ीर करते हुए उसका मज़ाक़ उड़ाया और उसे चमकदार लिबास पहनाकर पीलातुस के पास वापस भेज दिया। \v 12 उसी दिन हेरोदेस और पीलातुस दोस्त बन गए, क्योंकि इससे पहले उनकी दुश्मनी चल रही थी। \s1 सज़ाए-मौत का फ़ैसला \p \v 13 फिर पीलातुस ने राहनुमा इमामों, सरदारों और अवाम को जमा करके \v 14 उनसे कहा, “तुमने इस शख़्स को मेरे पास लाकर इस पर इलज़ाम लगाया है कि यह क़ौम को उकसा रहा है। मैंने तुम्हारी मौजूदगी में इसका जायज़ा लेकर ऐसा कुछ नहीं पाया जो तुम्हारे इलज़ामात की तसदीक़ करे। \v 15 हेरोदेस भी कुछ नहीं मालूम कर सका, इसलिए उसने इसे हमारे पास वापस भेज दिया है। इस आदमी से कोई भी ऐसा क़ुसूर नहीं हुआ कि यह सज़ाए-मौत के लायक़ है। \v 16 इसलिए मैं इसे कोड़ों की सज़ा देकर रिहा कर देता हूँ।” \p \v 17 [असल में यह उसका फ़र्ज़ था कि वह ईद के मौक़े पर उनकी ख़ातिर एक क़ैदी को रिहा कर दे।] \p \v 18 लेकिन सब मिलकर शोर मचाकर कहने लगे, “इसे ले जाएँ! इसे नहीं बल्कि बर-अब्बा को रिहा करके हमें दें।” \v 19 (बर-अब्बा को इसलिए जेल में डाला गया था कि वह क़ातिल था और उसने शहर में हुकूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी।) \p \v 20 पीलातुस ईसा को रिहा करना चाहता था, इसलिए वह दुबारा उनसे मुख़ातिब हुआ। \v 21 लेकिन वह चिल्लाते रहे, “इसे मसलूब करें, इसे मसलूब करें।” \p \v 22 फिर पीलातुस ने तीसरी दफ़ा उनसे कहा, “क्यों? उसने क्या जुर्म किया है? मुझे इसे सज़ाए-मौत देने की कोई वजह नज़र नहीं आती। इसलिए मैं इसे कोड़े लगवाकर रिहा कर देता हूँ।” \p \v 23 लेकिन वह बड़ा शोर मचाकर उसे मसलूब करने का तक़ाज़ा करते रहे, और आख़िरकार उनकी आवाज़ें ग़ालिब आ गईं। \v 24 फिर पीलातुस ने फ़ैसला किया कि उनका मुतालबा पूरा किया जाए। \v 25 उसने उस आदमी को रिहा कर दिया जो अपनी बाग़ियाना हरकतों और क़त्ल की वजह से जेल में डाल दिया गया था जबकि ईसा को उसने उनकी मरज़ी के मुताबिक़ उनके हवाले कर दिया। \s1 ईसा को मसलूब किया जाता है \p \v 26 जब फ़ौजी ईसा को ले जा रहे थे तो उन्होंने एक आदमी को पकड़ लिया जो लिबिया के शहर कुरेन का रहनेवाला था। उसका नाम शमौन था। उस वक़्त वह देहात से शहर में दाख़िल हो रहा था। उन्होंने सलीब को उसके कंधों पर रखकर उसे ईसा के पीछे चलने का हुक्म दिया। \p \v 27 एक बड़ा हुजूम उसके पीछे हो लिया जिसमें कुछ ऐसी औरतें भी शामिल थीं जो सीना पीट पीटकर उसका मातम कर रही थीं। \v 28 ईसा ने मुड़कर उनसे कहा, “यरूशलम की बेटियो! मेरे वास्ते न रोओ बल्कि अपने और अपने बच्चों के वास्ते रोओ। \v 29 क्योंकि ऐसे दिन आएँगे जब लोग कहेंगे, ‘मुबारक हैं वह जो बाँझ हैं, जिन्होंने न तो बच्चों को जन्म दिया, न दूध पिलाया।’ \v 30 फिर लोग पहाड़ों से कहने लगेंगे, ‘हम पर गिर पड़ो,’ और पहाड़ियों से कि ‘हमें छुपा लो।’ \v 31 क्योंकि अगर हरी लकड़ी से ऐसा सुलूक किया जाता है तो फिर सूखी लकड़ी का क्या बनेगा?” \p \v 32 दो और मर्दों को भी फाँसी देने के लिए बाहर ले जाया जा रहा था। दोनों मुजरिम थे। \v 33 चलते चलते वह उस जगह पहुँचे जिसका नाम खोपड़ी था। वहाँ उन्होंने ईसा को दोनों मुजरिमों समेत मसलूब किया। एक मुजरिम को उसके दाएँ हाथ और दूसरे को उसके बाएँ हाथ लटका दिया गया। \v 34 ईसा ने कहा, “ऐ बाप, इन्हें मुआफ़ कर, क्योंकि यह जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।” \p उन्होंने क़ुरा डालकर उसके कपड़े आपस में बाँट लिए। \v 35 हुजूम वहाँ खड़ा तमाशा देखता रहा जबकि क़ौम के सरदारों ने उसका मज़ाक़ भी उड़ाया। उन्होंने कहा, “उसने औरों को बचाया है। अगर यह अल्लाह का चुना हुआ और मसीह है तो अपने आपको बचाए।” \p \v 36 फ़ौजियों ने भी उसे लान-तान की। उसके पास आकर उन्होंने उसे मै का सिरका पेश किया \v 37 और कहा, “अगर तू यहूदियों का बादशाह है तो अपने आपको बचा ले।” \p \v 38 उसके सर के ऊपर एक तख़्ती लगाई गई थी जिस पर लिखा था, “यह यहूदियों का बादशाह है।” \p \v 39 जो मुजरिम उसके साथ मसलूब हुए थे उनमें से एक ने कुफ़र बकते हुए कहा, “क्या तू मसीह नहीं है? तो फिर अपने आपको और हमें भी बचा ले।” \p \v 40 लेकिन दूसरे ने यह सुनकर उसे डाँटा, “क्या तू अल्लाह से भी नहीं डरता? जो सज़ा उसे दी गई है वह तुझे भी मिली है। \v 41 हमारी सज़ा तो वाजिबी है, क्योंकि हमें अपने कामों का बदला मिल रहा है, लेकिन इसने कोई बुरा काम नहीं किया।” \v 42 फिर उसने ईसा से कहा, “जब आप अपनी बादशाही में आएँ तो मुझे याद करें।” \p \v 43 ईसा ने उससे कहा, “मैं तुझे सच बताता हूँ कि तू आज ही मेरे साथ फ़िर्दौस में होगा।” \s1 ईसा की मौत \p \v 44 बारह बजे से दोपहर तीन बजे तक पूरा मुल्क अंधेरे में डूब गया। \v 45 सूरज तारीक हो गया और बैतुल-मुक़द्दस के मुक़द्दसतरीन कमरे के सामने लटका हुआ परदा दो हिस्सों में फट गया। \v 46 ईसा ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “ऐ बाप, मैं अपनी रूह तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” यह कहकर उसने दम छोड़ दिया। \p \v 47 यह देखकर वहाँ खड़े फ़ौजी अफ़सर \f + \fr 23:47 \ft सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़सर। \f* ने अल्लाह की तमजीद करके कहा, “यह आदमी वाक़ई रास्तबाज़ था।” \p \v 48 और हुजूम के तमाम लोग जो यह तमाशा देखने के लिए जमा हुए थे यह सब कुछ देखकर छाती पीटने लगे और शहर में वापस चले गए। \v 49 लेकिन ईसा के जाननेवाले कुछ फ़ासले पर खड़े देखते रहे। उनमें वह ख़वातीन भी शामिल थीं जो गलील में उसके पीछे चलकर यहाँ तक उसके साथ आई थीं। \s1 ईसा को दफ़न किया जाता है \p \v 50 वहाँ एक नेक और रास्तबाज़ आदमी बनाम यूसुफ़ था। वह यहूदी अदालते-आलिया का रुकन था \v 51 लेकिन दूसरों के फ़ैसले और हरकतों पर रज़ामंद नहीं हुआ था। यह आदमी यहूदिया के शहर अरिमतियाह का रहनेवाला था और इस इंतज़ार में था कि अल्लाह की बादशाही आए। \v 52 अब उसने पीलातुस के पास जाकर उससे ईसा की लाश ले जाने की इजाज़त माँगी। \v 53 फिर लाश को उतारकर उसने उसे कतान के कफ़न में लपेटकर चट्टान में तराशी हुई एक क़ब्र में रख दिया जिसमें अब तक किसी को दफ़नाया नहीं गया था। \v 54 यह तैयारी का दिन यानी जुमा था, लेकिन सबत का दिन शुरू होने को था। \f + \fr 23:54 \ft यहूदी दिन सूरज के ग़ुरूब होने से शुरू होता है। \f* \v 55 जो औरतें ईसा के साथ गलील से आई थीं वह यूसुफ़ के पीछे हो लीं। उन्होंने क़ब्र को देखा और यह भी कि ईसा की लाश किस तरह उसमें रखी गई है। \v 56 फिर वह शहर में वापस चली गईं और उस की लाश के लिए ख़ुशबूदार मसाले तैयार करने लगीं। लेकिन बीच में सबत का दिन शुरू हुआ, इसलिए उन्होंने शरीअत के मुताबिक़ आराम किया। \c 24 \s1 ईसा जी उठता है \p \v 1 इतवार के दिन यह औरतें अपने तैयारशुदा मसाले लेकर सुबह-सवेरे क़ब्र पर गईं। \v 2 वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि क़ब्र पर का पत्थर एक तरफ़ लुढ़का हुआ है। \v 3 लेकिन जब वह क़ब्र में गईं तो वहाँ ख़ुदावंद ईसा की लाश न पाई। \v 4 वह अभी उलझन में वहाँ खड़ी थीं कि अचानक दो मर्द उनके पास आ खड़े हुए जिनके लिबास बिजली की तरह चमक रहे थे। \v 5 औरतें दहशत खाकर मुँह के बल झुक गईं, लेकिन उन मर्दों ने कहा, “तुम क्यों ज़िंदा को मुरदों में ढूँड रही हो? \v 6 वह यहाँ नहीं है, वह तो जी उठा है। वह बात याद करो जो उसने तुमसे उस वक़्त कही जब वह गलील में था। \v 7 ‘लाज़िम है कि इब्ने-आदम को गुनाहगारों के हवाले कर दिया जाए, मसलूब किया जाए और कि वह तीसरे दिन जी उठे’।” \p \v 8 फिर उन्हें यह बात याद आई। \v 9 और क़ब्र से वापस आकर उन्होंने यह सब कुछ ग्यारह रसूलों और बाक़ी शागिर्दों को सुना दिया। \v 10 मरियम मग्दलीनी, युअन्ना, याक़ूब की माँ मरियम और चंद एक और औरतें उनमें शामिल थीं जिन्होंने यह बातें रसूलों को बताईं। \v 11 लेकिन उनको यह बातें बेतुकी-सी लग रही थीं, इसलिए उन्हें यक़ीन न आया। \v 12 तो भी पतरस उठा और भागकर क़ब्र के पास आया। जब पहुँचा तो झुककर अंदर झाँका, लेकिन सिर्फ़ कफ़न \f + \fr 24:12 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : कतान की पट्टियाँ जो कफ़न के लिए इस्तेमाल होती थीं। \f* ही नज़र आया। यह हालात देखकर वह हैरान हुआ और चला गया। \s1 इम्माउस के रास्ते में ईसा से मुलाक़ात \p \v 13 उसी दिन ईसा के दो पैरोकार एक गाँव बनाम इम्माउस की तरफ़ चल रहे थे। यह गाँव यरूशलम से तक़रीबन दस किलोमीटर दूर था। \v 14 चलते चलते वह आपस में उन वाक़ियात का ज़िक्र कर रहे थे जो हुए थे। \v 15 और ऐसा हुआ कि जब वह बातें और एक दूसरे के साथ बहस-मुबाहसा कर रहे थे तो ईसा ख़ुद क़रीब आकर उनके साथ चलने लगा। \v 16 लेकिन उनकी आँखों पर परदा डाला गया था, इसलिए वह उसे पहचान न सके। \v 17 ईसा ने कहा, “यह कैसी बातें हैं जिनके बारे में तुम चलते चलते तबादलाए-ख़याल कर रहे हो?” \p यह सुनकर वह ग़मगीन से खड़े हो गए। \v 18 उनमें से एक बनाम क्लियुपास ने उससे पूछा, “क्या आप यरूशलम में वाहिद शख़्स हैं जिसे मालूम नहीं कि इन दिनों में क्या कुछ हुआ है?” \p \v 19 उसने कहा, “क्या हुआ है?” \p उन्होंने जवाब दिया, “वह जो ईसा नासरी के साथ हुआ है। वह नबी था जिसे कलाम और काम में अल्लाह और तमाम क़ौम के सामने ज़बरदस्त क़ुव्वत हासिल थी। \v 20 लेकिन हमारे राहनुमा इमामों और सरदारों ने उसे हुक्मरानों के हवाले कर दिया ताकि उसे सज़ाए-मौत दी जाए, और उन्होंने उसे मसलूब किया। \v 21 लेकिन हमें तो उम्मीद थी कि वही इसराईल को नजात देगा। इन वाक़ियात को तीन दिन हो गए हैं। \v 22 लेकिन हममें से कुछ ख़वातीन ने भी हमें हैरान कर दिया है। वह आज सुबह-सवेरे क़ब्र पर गईं \v 23 तो देखा कि लाश वहाँ नहीं है। उन्होंने लौटकर हमें बताया कि हम पर फ़रिश्ते ज़ाहिर हुए जिन्होंने कहा कि ईसा ज़िंदा है। \v 24 हममें से कुछ क़ब्र पर गए और उसे वैसा ही पाया जिस तरह उन औरतों ने कहा था। लेकिन उसे ख़ुद उन्होंने नहीं देखा।” \p \v 25 फिर ईसा ने उनसे कहा, “अरे नादानो! तुम कितने कुंदज़हन हो कि तुम्हें उन तमाम बातों पर यक़ीन नहीं आया जो नबियों ने फ़रमाई हैं। \v 26 क्या लाज़िम नहीं था कि मसीह यह सब कुछ झेलकर अपने जलाल में दाख़िल हो जाए?” \v 27 फिर मूसा और तमाम नबियों से शुरू करके ईसा ने कलामे-मुक़द्दस की हर बात की तशरीह की जहाँ जहाँ उसका ज़िक्र है। \p \v 28 चलते चलते वह उस गाँव के क़रीब पहुँचे जहाँ उन्हें जाना था। ईसा ने ऐसा किया गोया कि वह आगे बढ़ना चाहता है, \v 29 लेकिन उन्होंने उसे मजबूर करके कहा, “हमारे पास ठहरें, क्योंकि शाम होने को है और दिन ढल गया है।” चुनाँचे वह उनके साथ ठहरने के लिए अंदर गया। \v 30 और ऐसा हुआ कि जब वह खाने के लिए बैठ गए तो उसने रोटी लेकर उसके लिए शुक्रगुज़ारी की दुआ की। फिर उसने उसे टुकड़े करके उन्हें दिया। \v 31 अचानक उनकी आँखें खुल गईं और उन्होंने उसे पहचान लिया। लेकिन उसी लमहे वह ओझल हो गया। \v 32 फिर वह एक दूसरे से कहने लगे, “क्या हमारे दिल जोश से न भर गए थे जब वह रास्ते में हमसे बातें करते करते हमें सहीफ़ों का मतलब समझा रहा था?” \p \v 33 और वह उसी वक़्त उठकर यरूशलम वापस चले गए। जब वह वहाँ पहुँचे तो ग्यारह रसूल अपने साथियों समेत पहले से जमा थे \v 34 और यह कह रहे थे, “ख़ुदावंद वाक़ई जी उठा है! वह शमौन पर ज़ाहिर हुआ है।” \p \v 35 फिर इम्माउस के दो शागिर्दों ने उन्हें बताया कि गाँव की तरफ़ जाते हुए क्या हुआ था और कि ईसा के रोटी तोड़ते वक़्त उन्होंने उसे कैसे पहचाना। \s1 ईसा अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर होता है \p \v 36 वह अभी यह बातें सुना रहे थे कि ईसा ख़ुद उनके दरमियान आ खड़ा हुआ और कहा, “तुम्हारी सलामती हो।” \p \v 37 वह घबराकर बहुत डर गए, क्योंकि उनका ख़याल था कि कोई भूत-प्रेत देख रहे हैं। \v 38 उसने उनसे कहा, “तुम क्यों परेशान हो गए हो? क्या वजह है कि तुम्हारे दिलों में शक उभर आया है? \v 39 मेरे हाथों और पाँवों को देखो कि मैं ही हूँ। मुझे टटोलकर देखो, क्योंकि भूत के गोश्त और हड्डियाँ नहीं होतीं जबकि तुम देख रहे हो कि मेरा जिस्म है।” \p \v 40 यह कहकर उसने उन्हें अपने हाथ और पाँव दिखाए। \v 41 जब उन्हें ख़ुशी के मारे यक़ीन नहीं आ रहा था और ताज्जुब कर रहे थे तो ईसा ने पूछा, “क्या यहाँ तुम्हारे पास कोई खाने की चीज़ है?” \v 42 उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया। \v 43 उसने उसे लेकर उनके सामने ही खा लिया। \p \v 44 फिर उसने उनसे कहा, “यही है जो मैंने तुमको उस वक़्त बताया था जब तुम्हारे साथ था कि जो कुछ भी मूसा की शरीअत, नबियों के सहीफ़ों और ज़बूर की किताब में मेरे बारे में लिखा है उसे पूरा होना है।” \p \v 45 फिर उसने उनके ज़हन को खोल दिया ताकि वह अल्लाह का कलाम समझ सकें। \v 46 उसने उनसे कहा, “कलामे-मुक़द्दस में यों लिखा है, मसीह दुख उठाकर तीसरे दिन मुरदों में से जी उठेगा। \v 47 फिर यरूशलम से शुरू करके उसके नाम में यह पैग़ाम तमाम क़ौमों को सुनाया जाएगा कि वह तौबा करके गुनाहों की मुआफ़ी पाएँ। \v 48 तुम इन बातों के गवाह हो। \v 49 और मैं तुम्हारे पास उसे भेज दूँगा जिसका वादा मेरे बाप ने किया है। फिर तुमको आसमान की क़ुव्वत से मुलब्बस किया जाएगा। उस वक़्त तक शहर से बाहर न निकलना।” \s1 ईसा को आसमान पर उठाया जाता है \p \v 50 फिर वह शहर से निकलकर उन्हें बैत-अनियाह तक ले गया। वहाँ उसने अपने हाथ उठाकर उन्हें बरकत दी। \v 51 और ऐसा हुआ कि बरकत देते हुए वह उनसे जुदा होकर आसमान पर उठा लिया गया। \v 52 उन्होंने उसे सिजदा किया और फिर बड़ी ख़ुशी से यरूशलम वापस चले गए। \v 53 वहाँ वह अपना पूरा वक़्त बैतुल-मुक़द्दस में गुज़ारकर अल्लाह की तमजीद करते रहे।