\id LEV उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h अहबार \toc1 अहबार \toc2 अहबार \toc3 अहबा \mt1 अहबार \c 1 \s1 भस्म होनेवाली क़ुरबानी \p \v 1 रब ने मुलाक़ात के ख़ैमे में से मूसा को बुलाकर कहा \v 2 कि इसराईलियों को इत्तला दे, \p “अगर तुममें से कोई रब को क़ुरबानी पेश करना चाहे तो वह अपने गाय-बैलों या भेड़-बकरियों में से जानवर चुन ले। \p \v 3 अगर वह अपने गाय-बैलों में से भस्म होनेवाली क़ुरबानी चढ़ाना चाहे तो वह बेऐब बैल चुनकर उसे मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर पेश करे ताकि रब उसे क़बूल करे। \v 4 क़ुरबानी पेश करनेवाला अपना हाथ जानवर के सर पर रखे तो यह क़ुरबानी मक़बूल होकर उसका कफ़्फ़ारा देगी। \v 5 क़ुरबानी पेश करनेवाला बैल को वहाँ रब के सामने ज़बह करे। फिर हारून के बेटे जो इमाम हैं उसका ख़ून रब को पेश करके उसे दरवाज़े पर की क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़कें। \v 6 इसके बाद क़ुरबानी पेश करनेवाला खाल उतारकर जानवर के टुकड़े टुकड़े करे। \v 7 इमाम क़ुरबानगाह पर आग लगाकर उस पर तरतीब से लकड़ियाँ चुनें। \v 8 उस पर वह जानवर के टुकड़े सर और चरबी समेत रखें। \v 9 लाज़िम है कि क़ुरबानी पेश करनेवाला पहले जानवर की अंतड़ियाँ और पिंडलियाँ धोए, फिर इमाम पूरे जानवर को क़ुरबानगाह पर जला दे। इस जलनेवाली क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद है। \p \v 10 अगर भस्म होनेवाली क़ुरबानी भेड़-बकरियों में से चुनी जाए तो वह बेऐब नर हो। \v 11 पेश करनेवाला उसे रब के सामने क़ुरबानगाह की शिमाली सिम्त में ज़बह करे। फिर हारून के बेटे जो इमाम हैं उसका ख़ून क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़कें। \v 12 इसके बाद पेश करनेवाला जानवर के टुकड़े टुकड़े करे और इमाम यह टुकड़े सर और चरबी समेत क़ुरबानगाह की जलती हुई लकड़ियों पर तरतीब से रखे। \v 13 लाज़िम है कि क़ुरबानी पेश करनेवाला पहले जानवर की अंतड़ियाँ और पिंडलियाँ धोए, फिर इमाम पूरे जानवर को रब को पेश करके क़ुरबानगाह पर जला दे। इस जलनेवाली क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद है। \p \v 14 अगर भस्म होनेवाली क़ुरबानी परिंदा हो तो वह क़ुम्री या जवान कबूतर हो। \v 15 इमाम उसे क़ुरबानगाह के पास ले आए और उसका सर मरोड़कर क़ुरबानगाह पर जला दे। वह उसका ख़ून यों निकलने दे कि वह क़ुरबानगाह की एक तरफ़ से नीचे टपके। \v 16 वह उसका पोटा और जो उसमें है दूर करके क़ुरबानगाह की मशरिक़ी सिम्त में फेंक दे, वहाँ जहाँ राख फेंकी जाती है। \v 17 उसे पेश करते वक़्त इमाम उसके पर पकड़कर परिंदे को फाड़ डाले, लेकिन यों कि वह बिलकुल टुकड़े टुकड़े न हो जाए। फिर इमाम उसे क़ुरबानगाह पर जलती हुई लकड़ियों पर जला दे। इस जलनेवाली क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद है। \c 2 \s1 ग़ल्ला की नज़र \p \v 1 अगर कोई रब को ग़ल्ला की नज़र पेश करना चाहे तो वह इसके लिए बेहतरीन मैदा इस्तेमाल करे। उस पर वह ज़ैतून का तेल उंडेले और लुबान रखकर \v 2 उसे हारून के बेटों के पास ले आए जो इमाम हैं। इमाम तेल से मिलाया गया मुट्ठी-भर मैदा और तमाम लुबान लेकर क़ुरबानगाह पर जला दे। यह यादगार का हिस्सा है, और उस की ख़ुशबू रब को पसंद है। \v 3 बाक़ी मैदा और तेल हारून और उसके बेटों का हिस्सा है। वह रब की जलनेवाली क़ुरबानियों में से एक निहायत मुक़द्दस हिस्सा है। \p \v 4 अगर यह क़ुरबानी तनूर में पकाई हुई रोटी हो तो उसमें ख़मीर न हो। इसकी दो क़िस्में हो सकती हैं, रोटियाँ जो बेहतरीन मैदे और तेल से बनी हुई हों और रोटियाँ जिन पर तेल लगाया गया हो। \p \v 5 अगर यह क़ुरबानी तवे पर पकाई हुई रोटी हो तो वह बेहतरीन मैदे और तेल की हो। उसमें ख़मीर न हो। \v 6 चूँकि वह ग़ल्ला की नज़र है इसलिए रोटी को टुकड़े टुकड़े करना और उस पर तेल डालना। \p \v 7 अगर यह क़ुरबानी कड़ाही में पकाई हुई रोटी हो तो वह बेहतरीन मैदे और तेल की हो। \p \v 8 अगर तू इन चीज़ों की बनी हुई ग़ल्ला की नज़र रब के हुज़ूर लाना चाहे तो उसे इमाम को पेश करना। वही उसे क़ुरबानगाह के पास ले आए। \v 9 फिर इमाम यादगार का हिस्सा अलग करके उसे क़ुरबानगाह पर जला दे। ऐसी क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद है। \v 10 क़ुरबानी का बाक़ी हिस्सा हारून और उसके बेटों के लिए है। वह रब की जलनेवाली क़ुरबानियों में से एक निहायत मुक़द्दस हिस्सा है। \p \v 11 ग़ल्ला की जितनी नज़रें तुम रब को पेश करते हो उनमें ख़मीर न हो, क्योंकि लाज़िम है कि तुम रब को जलनेवाली क़ुरबानी पेश करते वक़्त न ख़मीर, न शहद जलाओ। \v 12 यह चीज़ें फ़सल के पहले फलों के साथ रब को पेश की जा सकती हैं, लेकिन उन्हें क़ुरबानगाह पर न जलाया जाए, क्योंकि वहाँ रब को उनकी ख़ुशबू पसंद नहीं है। \v 13 ग़ल्ला की हर नज़र में नमक हो, क्योंकि नमक उस अहद की नुमाइंदगी करता है जो तेरे ख़ुदा ने तेरे साथ बाँधा है। तुझे हर क़ुरबानी में नमक डालना है। \p \v 14 अगर तू ग़ल्ला की नज़र के लिए फ़सल के पहले फल पेश करना चाहे तो कुचली हुई कच्ची बालियाँ भूनकर पेश करना। \v 15 चूँकि वह ग़ल्ला की नज़र है इसलिए उस पर तेल उंडेलना और लुबान रखना। \v 16 कुचले हुए दानों और तेल का जो हिस्सा रब का है यानी यादगार का हिस्सा उसे इमाम तमाम लुबान के साथ जला दे। यह नज़र रब के लिए जलनेवाली क़ुरबानी है। \c 3 \s1 सलामती की क़ुरबानी \p \v 1 अगर कोई रब को सलामती की क़ुरबानी पेश करने के लिए गाय या बैल चढ़ाना चाहे तो वह जानवर बेऐब हो। \v 2 वह अपना हाथ जानवर के सर पर रखकर उसे मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर ज़बह करे। हारून के बेटे जो इमाम हैं उसका ख़ून क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़कें। \v 3-4 पेश करनेवाला अंतड़ियों पर की सारी चरबी, गुरदे उस चरबी समेत जो उन पर और कमर के क़रीब होती है और जोड़कलेजी जलनेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब को पेश करे। इन चीज़ों को गुरदों के साथ ही अलग करना है। \v 5 फिर हारून के बेटे यह सब कुछ भस्म होनेवाली क़ुरबानी के साथ क़ुरबानगाह की लकड़ियों पर जला दें। यह जलनेवाली क़ुरबानी है, और इसकी ख़ुशबू रब को पसंद है। \p \v 6 अगर सलामती की क़ुरबानी के लिए भेड़-बकरियों में से जानवर चुना जाए तो वह बेऐब नर या मादा हो। \p \v 7 अगर वह भेड़ का बच्चा चढ़ाना चाहे तो वह उसे रब के सामने ले आए। \v 8 वह अपना हाथ उसके सर पर रखकर उसे मुलाक़ात के ख़ैमे के सामने ज़बह करे। हारून के बेटे उसका ख़ून क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़कें। \v 9-10 पेश करनेवाला चरबी, पूरी दुम, अंतड़ियों पर की सारी चरबी, गुरदे उस चरबी समेत जो उन पर और कमर के क़रीब होती है और जोड़कलेजी जलनेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब को पेश करे। इन चीज़ों को गुरदों के साथ ही अलग करना है। \v 11 इमाम यह सब कुछ रब को पेश करके क़ुरबानगाह पर जला दे। यह ख़ुराक जलनेवाली क़ुरबानी है। \p \v 12 अगर सलामती की क़ुरबानी बकरी की हो \v 13 तो पेश करनेवाला उस पर हाथ रखकर उसे मुलाक़ात के ख़ैमे के सामने ज़बह करे। हारून के बेटे जानवर का ख़ून क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़कें। \v 14-15 पेश करनेवाला अंतड़ियों पर की सारी चरबी, गुरदे उस चरबी समेत जो उन पर और कमर के क़रीब होती है और जोड़कलेजी जलनेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब को पेश करे। इन चीज़ों को गुरदों के साथ ही अलग करना है। \v 16 इमाम यह सब कुछ रब को पेश करके क़ुरबानगाह पर जला दे। यह ख़ुराक जलनेवाली क़ुरबानी है, और इसकी ख़ुशबू रब को पसंद है। \p सारी चरबी रब की है। \v 17 तुम्हारे लिए ख़ून या चरबी खाना मना है। यह न सिर्फ़ तुम्हारे लिए मना है बल्कि तुम्हारी औलाद के लिए भी, न सिर्फ़ यहाँ बल्कि हर जगह जहाँ तुम रहते हो।” \c 4 \s1 गुनाह की क़ुरबानी \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि जो भी ग़ैरइरादी तौर पर गुनाह करके रब के किसी हुक्म को तोड़े वह यह करे : \s1 इमाम के लिए गुनाह की क़ुरबानी \p \v 3 अगर इमामे-आज़म गुनाह करे और नतीजे में पूरी क़ौम क़ुसूरवार ठहरे तो फिर वह रब को एक बेऐब जवान बैल लेकर गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर पेश करे। \v 4 वह जवान बैल को मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े के पास ले आए और अपना हाथ उसके सर पर रखकर उसे रब के सामने ज़बह करे। \v 5 फिर वह जानवर के ख़ून में से कुछ लेकर ख़ैमे में जाए। \v 6 वहाँ वह अपनी उँगली उसमें डालकर उसे सात बार रब के सामने यानी मुक़द्दसतरीन कमरे के परदे पर छिड़के। \v 7 फिर वह ख़ैमे के अंदर की उस क़ुरबानगाह के चारों सींगों पर ख़ून लगाए जिस पर बख़ूर जलाया जाता है। बाक़ी ख़ून वह बाहर ख़ैमे के दरवाज़े पर की उस क़ुरबानगाह के पाए पर उंडेले जिस पर जानवर जलाए जाते हैं। \v 8 जवान बैल की सारी चरबी, अंतड़ियों पर की सारी चरबी, \v 9 गुरदे उस चरबी समेत जो उन पर और कमर के क़रीब होती है और जोड़कलेजी को गुरदों के साथ ही अलग करना है। \v 10 यह बिलकुल उसी तरह किया जाए जिस तरह उस बैल के साथ किया गया जो सलामती की क़ुरबानी के लिए पेश किया जाता है। इमाम यह सब कुछ उस क़ुरबानगाह पर जला दे जिस पर जानवर जलाए जाते हैं। \v 11 लेकिन वह उस की खाल, उसका सारा गोश्त, सर और पिंडलियाँ, अंतड़ियाँ और उनका गोबर \v 12 ख़ैमागाह के बाहर ले जाए। यह चीज़ें उस पाक जगह पर जहाँ क़ुरबानियों की राख फेंकी जाती है लकड़ियों पर रखकर जला देनी हैं। \s1 क़ौम के लिए गुनाह की क़ुरबानी \p \v 13 अगर इसराईल की पूरी जमात ने ग़ैरइरादी तौर पर गुनाह करके रब के किसी हुक्म से तजावुज़ किया है और जमात को मालूम नहीं था तो भी वह क़ुसूरवार है। \v 14 जब लोगों को पता लगे कि हमने गुनाह किया है तो जमात मुलाक़ात के ख़ैमे के पास एक जवान बैल ले आए और उसे गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर पेश करे। \v 15 जमात के बुज़ुर्ग रब के सामने अपने हाथ उसके सर पर रखें, और वह वहीं ज़बह किया जाए। \v 16 फिर इमामे-आज़म जानवर के ख़ून में से कुछ लेकर मुलाक़ात के ख़ैमे में जाए। \v 17 वहाँ वह अपनी उँगली उसमें डालकर उसे सात बार रब के सामने यानी मुक़द्दसतरीन कमरे के परदे पर छिड़के। \v 18 फिर वह ख़ैमे के अंदर की उस क़ुरबानगाह के चारों सींगों पर ख़ून लगाए जिस पर बख़ूर जलाया जाता है। बाक़ी ख़ून वह बाहर ख़ैमे के दरवाज़े की उस क़ुरबानगाह के पाए पर उंडेले जिस पर जानवर जलाए जाते हैं। \v 19 इसके बाद वह उस की तमाम चरबी निकालकर क़ुरबानगाह पर जला दे। \v 20 उस बैल के साथ वह सब कुछ करे जो उसे अपने ज़ाती ग़ैरइरादी गुनाह के लिए करना होता है। यों वह लोगों का कफ़्फ़ारा देगा और उन्हें मुआफ़ी मिल जाएगी। \v 21 आख़िर में वह बैल को ख़ैमागाह के बाहर ले जाकर उस तरह जला दे जिस तरह उसे अपने लिए बैल को जला देना होता है। यह जमात का गुनाह दूर करने की क़ुरबानी है। \s1 क़ौम के राहनुमा के लिए गुनाह की क़ुरबानी \p \v 22 अगर कोई सरदार ग़ैरइरादी तौर पर गुनाह करके रब के किसी हुक्म से तजावुज़ करे और यों क़ुसूरवार ठहरे तो \v 23 जब भी उसे पता लगे कि मुझसे गुनाह हुआ है तो वह क़ुरबानी के लिए एक बेऐब बकरा ले आए। \v 24 वह अपना हाथ बकरे के सर पर रखकर उसे वहाँ ज़बह करे जहाँ भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ ज़बह की जाती हैं। यह गुनाह की क़ुरबानी है। \v 25 इमाम अपनी उँगली ख़ून में डालकर उसे उस क़ुरबानगाह के चारों सींगों पर लगाए जिस पर जानवर जलाए जाते हैं। बाक़ी ख़ून वह क़ुरबानगाह के पाए पर उंडेले। \v 26 फिर वह उस की सारी चरबी क़ुरबानगाह पर उस तरह जला दे जिस तरह वह सलामती की क़ुरबानियों की चरबी जला देता है। यों इमाम उस आदमी का कफ़्फ़ारा देगा और उसे मुआफ़ी हासिल हो जाएगी। \s1 आम लोगों के लिए गुनाह की क़ुरबानी \p \v 27 अगर कोई आम शख़्स ग़ैरइरादी तौर पर गुनाह करके रब के किसी हुक्म से तजावुज़ करे और यों क़ुसूरवार ठहरे तो \v 28 जब भी उसे पता लगे कि मुझसे गुनाह हुआ है तो वह क़ुरबानी के लिए एक बेऐब बकरी ले आए। \v 29 वह अपना हाथ बकरी के सर पर रखकर उसे वहाँ ज़बह करे जहाँ भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ ज़बह की जाती हैं। \v 30 इमाम अपनी उँगली ख़ून में डालकर उसे उस क़ुरबानगाह के चारों सींगों पर लगाए जिस पर जानवर जलाए जाते हैं। बाक़ी ख़ून वह क़ुरबानगाह के पाए पर उंडेले। \v 31 फिर वह उस की सारी चरबी उस तरह निकाले जिस तरह वह सलामती की क़ुरबानियों की चरबी निकालता है। इसके बाद वह उसे क़ुरबानगाह पर जला दे। ऐसी क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद है। यों इमाम उस आदमी का कफ़्फ़ारा देगा और उसे मुआफ़ी हासिल हो जाएगी। \p \v 32 अगर वह गुनाह की क़ुरबानी के लिए भेड़ का बच्चा लाना चाहे तो वह बेऐब मादा हो। \v 33 वह अपना हाथ उसके सर पर रखकर उसे वहाँ ज़बह करे जहाँ भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ ज़बह की जाती हैं। \v 34 इमाम अपनी उँगली ख़ून में डालकर उसे उस क़ुरबानगाह के चारों सींगों पर लगाए जिस पर जानवर जलाए जाते हैं। बाक़ी ख़ून वह क़ुरबानगाह के पाए पर उंडेले। \v 35 फिर वह उस की तमाम चरबी उस तरह निकाले जिस तरह सलामती की क़ुरबानी के लिए ज़बह किए गए जवान मेंढे की चरबी निकाली जाती है। इसके बाद इमाम चरबी को क़ुरबानगाह पर उन क़ुरबानियों समेत जला दे जो रब के लिए जलाई जाती हैं। यों इमाम उस आदमी का कफ़्फ़ारा देगा और उसे मुआफ़ी मिल जाएगी। \c 5 \s1 गुनाह की क़ुरबानियों के बारे में ख़ास हिदायात \p \v 1 हो सकता है कि किसी ने यों गुनाह किया कि उसने कोई जुर्म देखा या वह उसके बारे में कुछ जानता है। तो भी जब गवाहों को क़सम के लिए बुलाया जाता है तो वह गवाही देने के लिए सामने नहीं आता। इस सूरत में वह क़ुसूरवार ठहरता है। \p \v 2 हो सकता है कि किसी ने ग़ैरइरादी तौर पर किसी नापाक चीज़ को छू लिया है, ख़ाह वह किसी जंगली जानवर, मवेशी या रेंगनेवाले जानवर की लाश क्यों न हो। इस सूरत में वह नापाक है और क़ुसूरवार ठहरता है। \p \v 3 हो सकता है कि किसी ने ग़ैरइरादी तौर पर किसी शख़्स की नापाकी को छू लिया है यानी उस की कोई ऐसी चीज़ जिससे वह नापाक हो गया है। जब उसे मालूम हो जाता है तो वह क़ुसूरवार ठहरता है। \p \v 4 हो सकता है कि किसी ने बेपरवाई से कुछ करने की क़सम खाई है, चाहे वह अच्छा काम था या ग़लत। जब वह जान लेता है कि उसने क्या किया है तो वह क़ुसूरवार ठहरता है। \p \v 5 जो इस तरह के किसी गुनाह की बिना पर क़ुसूरवार हो, लाज़िम है कि वह अपना गुनाह तसलीम करे। \v 6 फिर वह गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर एक भेड़ या बकरी पेश करे। यों इमाम उसका कफ़्फ़ारा देगा। \p \v 7 अगर क़ुसूरवार शख़्स ग़ुरबत के बाइस भेड़ या बकरी न दे सके तो वह रब को दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर पेश करे, एक गुनाह की क़ुरबानी के लिए और एक भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए। \v 8 वह उन्हें इमाम के पास ले आए। इमाम पहले गुनाह की क़ुरबानी के लिए परिंदा पेश करे। वह उस की गरदन मरोड़ डाले लेकिन ऐसे कि सर जुदा न हो जाए। \v 9 फिर वह उसके ख़ून में से कुछ क़ुरबानगाह के एक पहलू पर छिड़के। बाक़ी ख़ून वह यों निकलने दे कि वह क़ुरबानगाह के पाए पर टपके। यह गुनाह की क़ुरबानी है। \v 10 फिर इमाम दूसरे परिंदे को क़वायद के मुताबिक़ भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करे। यों इमाम उस आदमी का कफ़्फ़ारा देगा और उसे मुआफ़ी मिल जाएगी। \p \v 11 अगर वह शख़्स ग़ुरबत के बाइस दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर भी न दे सके तो फिर वह गुनाह की क़ुरबानी के लिए डेढ़ किलोग्राम बेहतरीन मैदा पेश करे। वह उस पर न तेल उंडेले, न लुबान रखे, क्योंकि यह ग़ल्ला की नज़र नहीं बल्कि गुनाह की क़ुरबानी है। \v 12 वह उसे इमाम के पास ले आए जो यादगार का हिस्सा यानी मुट्ठी-भर उन क़ुरबानियों के साथ जला दे जो रब के लिए जलाई जाती हैं। यह गुनाह की क़ुरबानी है। \v 13 यों इमाम उस आदमी का कफ़्फ़ारा देगा और उसे मुआफ़ी मिल जाएगी। ग़ल्ला की नज़र की तरह बाक़ी मैदा इमाम का हिस्सा है।” \s1 क़ुसूर की क़ुरबानी \p \v 14 रब ने मूसा से कहा, \v 15 “अगर किसी ने बेईमानी करके ग़ैरइरादी तौर पर रब की मख़सूस और मुक़द्दस चीज़ों के सिलसिले में गुनाह किया हो, ऐसा शख़्स क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर रब को बेऐब और क़ीमत के लिहाज़ से मुनासिब मेंढा या बकरा पेश करे। उस की क़ीमत मक़दिस की शरह के मुताबिक़ मुक़र्रर की जाए। \v 16 जितना नुक़सान मक़दिस को हुआ है उतना ही वह दे। इसके अलावा वह मज़ीद 20 फ़ीसद अदा करे। वह उसे इमाम को दे दे और इमाम जानवर को क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर पेश करके उसका कफ़्फ़ारा दे। यों उसे मुआफ़ी मिल जाएगी। \p \v 17 अगर कोई ग़ैरइरादी तौर पर गुनाह करके रब के किसी हुक्म से तजावुज़ करे तो वह क़ुसूरवार है, और वह उसका ज़िम्मादार ठहरेगा। \v 18 वह क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर इमाम के पास एक बेऐब और क़ीमत के लिहाज़ से मुनासिब मेंढा ले आए। उस की क़ीमत मक़दिस की शरह के मुताबिक़ मुक़र्रर की जाए। फिर इमाम यह क़ुरबानी उस गुनाह के लिए चढ़ाए जो क़ुसूरवार शख़्स ने ग़ैरइरादी तौर पर किया है। यों उसे मुआफ़ी मिल जाएगी। \v 19 यह क़ुसूर की क़ुरबानी है, क्योंकि वह रब का गुनाह करके क़ुसूरवार ठहरा है।” \c 6 \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “हो सकता है किसी ने गुनाह करके बेईमानी की है, मसलन उसने अपने पड़ोसी की कोई चीज़ वापस नहीं की जो उसके सुपुर्द की गई थी या जो उसे गिरवी के तौर पर मिली थी, या उसने उस की कोई चीज़ चोरी की, या उसने किसी से कोई चीज़ छीन ली, \v 3 या उसने किसी की गुमशुदा चीज़ के बारे में झूट बोला जब उसे मिल गई, या उसने क़सम खाकर झूट बोला है, या इस तरह का कोई और गुनाह किया है। \v 4 अगर वह इस तरह का गुनाह करके क़ुसूरवार ठहरे तो लाज़िम है कि वह वही चीज़ वापस करे जो उसने चोरी की या छीन ली या जो उसके सुपुर्द की गई या जो गुमशुदा होकर उसके पास आ गई है \v 5 या जिसके बारे में उसने क़सम खाकर झूट बोला है। वह उसका उतना ही वापस करके 20 फ़ीसद ज़्यादा दे। और वह यह सब कुछ उस दिन वापस करे जब वह अपनी क़ुसूर की क़ुरबानी पेश करता है। \v 6 क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर वह एक बेऐब और क़ीमत के लिहाज़ से मुनासिब मेंढा इमाम के पास ले आए और रब को पेश करे। उस की क़ीमत मक़दिस की शरह के मुताबिक़ मुक़र्रर की जाए। \v 7 फिर इमाम रब के सामने उसका कफ़्फ़ारा देगा तो उसे मुआफ़ी मिल जाएगी।” \s1 भस्म होनेवाली क़ुरबानी \p \v 8 रब ने मूसा से कहा, \v 9 “हारून और उसके बेटों को भस्म होनेवाली क़ुरबानियों के बारे में ज़ैल की हिदायात देना : भस्म होनेवाली क़ुरबानी पूरी रात सुबह तक क़ुरबानगाह की उस जगह पर रहे जहाँ आग जलती है। आग को बुझने न देना। \v 10 सुबह को इमाम कतान का लिबास और कतान का पाजामा पहनकर क़ुरबानी से बची हुई राख क़ुरबानगाह के पास ज़मीन पर डाले। \v 11 फिर वह अपने कपड़े बदलकर राख को ख़ैमागाह के बाहर किसी पाक जगह पर छोड़ आए। \v 12 क़ुरबानगाह पर आग जलती रहे। वह कभी भी न बुझे। हर सुबह इमाम लकड़ियाँ चुनकर उस पर भस्म होनेवाली क़ुरबानी तरतीब से रखे और उस पर सलामती की क़ुरबानी की चरबी जला दे। \v 13 आग हमेशा जलती रहे। वह कभी न बुझने पाए। \s1 ग़ल्ला की नज़र \p \v 14 ग़ल्ला की नज़र के बारे में हिदायात यह हैं : हारून के बेटे उसे क़ुरबानगाह के सामने रब को पेश करें। \v 15 फिर इमाम यादगार का हिस्सा यानी तेल से मिलाया गया मुट्ठी-भर बेहतरीन मैदा और क़ुरबानी का तमाम लुबान लेकर क़ुरबानगाह पर जला दे। इसकी ख़ुशबू रब को पसंद है। \v 16 हारून और उसके बेटे क़ुरबानी का बाक़ी हिस्सा खा लें। लेकिन वह उसे मुक़द्दस जगह पर यानी मुलाक़ात के ख़ैमे की चारदीवारी के अंदर खाएँ, और उसमें ख़मीर न हो। \v 17 उसे पकाने के लिए उसमें ख़मीर न डाला जाए। मैंने जलनेवाली क़ुरबानियों में से यह हिस्सा उनके लिए मुक़र्रर किया है। यह गुनाह की क़ुरबानी और क़ुसूर की क़ुरबानी की तरह निहायत मुक़द्दस है। \v 18 हारून की औलाद के तमाम मर्द उसे खाएँ। यह उसूल अबद तक क़ायम रहे। जो भी उसे छुएगा वह मख़सूसो-मुक़द्दस हो जाएगा।” \p \v 19 रब ने मूसा से कहा, \v 20 “जब हारून और उसके बेटों को इमाम की ज़िम्मादारी उठाने के लिए मख़सूस करके तेल से मसह किया जाएगा तो वह डेढ़ किलोग्राम बेहतरीन मैदा पेश करें। उसका आधा हिस्सा सुबह को और आधा हिस्सा शाम के वक़्त पेश किया जाए। वह ग़ल्ला की यह नज़र रोज़ाना पेश करें। \v 21 उसे तेल के साथ मिलाकर तवे पर पकाना है। फिर उसे टुकड़े टुकड़े करके ग़ल्ला की नज़र के तौर पर पेश करना। उस की ख़ुशबू रब को पसंद है। \v 22 यह क़ुरबानी हमेशा हारून की नसल का वह आदमी पेश करे जिसे मसह करके इमामे-आज़म का ओहदा दिया गया है, और वह उसे पूरे तौर पर रब के लिए जला दे। \v 23 इमाम की ग़ल्ला की नज़र हमेशा पूरे तौर पर जलाना। उसे न खाना।” \s1 गुनाह की क़ुरबानी \p \v 24 रब ने मूसा से कहा, \v 25 “हारून और उसके बेटों को गुनाह की क़ुरबानी के बारे में ज़ैल की हिदायात देना : गुनाह की क़ुरबानी को रब के सामने वहीं ज़बह करना है जहाँ भस्म होनेवाली क़ुरबानी ज़बह की जाती है। वह निहायत मुक़द्दस है। \v 26 उसे पेश करनेवाला इमाम उसे मुक़द्दस जगह पर यानी मुलाक़ात के ख़ैमे की चारदीवारी के अंदर खाए। \v 27 जो भी इस क़ुरबानी के गोश्त को छू लेता है वह मख़सूसो-मुक़द्दस हो जाता है। अगर क़ुरबानी के ख़ून के छींटे किसी लिबास पर पड़ जाएँ तो उसे मुक़द्दस जगह पर धोना है। \v 28 अगर गोश्त को हंडिया में पकाया गया हो तो उस बरतन को बाद में तोड़ देना है। अगर उसके लिए पीतल का बरतन इस्तेमाल किया गया हो तो उसे ख़ूब माँझकर पानी से साफ़ करना। \v 29 इमामों के ख़ानदानों में से तमाम मर्द उसे खा सकते हैं। यह खाना निहायत मुक़द्दस है। \v 30 लेकिन गुनाह की हर वह क़ुरबानी खाई न जाए जिसका ख़ून मुलाक़ात के ख़ैमे में इसलिए लाया गया है कि मक़दिस में किसी का कफ़्फ़ारा दिया जाए। उसे जलाना है। \c 7 \s1 क़ुसूर की क़ुरबानी \p \v 1 क़ुसूर की क़ुरबानी जो निहायत मुक़द्दस है उसके बारे में हिदायात यह हैं : \p \v 2 क़ुसूर की क़ुरबानी वहीं ज़बह करनी है जहाँ भस्म होनेवाली क़ुरबानी ज़बह की जाती है। उसका ख़ून क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़का जाए। \v 3 उस की तमाम चरबी निकालकर क़ुरबानगाह पर चढ़ानी है यानी उस की दुम, अंतड़ियों पर की चरबी, \v 4 गुरदे उस चरबी समेत जो उन पर और कमर के क़रीब होती है और जोड़कलेजी। इन चीज़ों को गुरदों के साथ ही अलग करना है। \v 5 इमाम यह सब कुछ रब को क़ुरबानगाह पर जलनेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करे। यह क़ुसूर की क़ुरबानी है। \v 6 इमामों के ख़ानदानों में से तमाम मर्द उसे खा सकते हैं। लेकिन उसे मुक़द्दस जगह पर खाया जाए। यह निहायत मुक़द्दस है। \p \v 7 गुनाह और क़ुसूर की क़ुरबानी के लिए एक ही उसूल है, जो इमाम क़ुरबानी को पेश करके कफ़्फ़ारा देता है उसको उसका गोश्त मिलता है। \v 8 इस तरह जो इमाम किसी जानवर को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाता है उसी को जानवर की खाल मिलती है। \v 9 और इसी तरह तनूर में, कड़ाही में या तवे पर पकाई गई ग़ल्ला की हर नज़र उस इमाम को मिलती है जिसने उसे पेश किया है। \v 10 लेकिन हारून के तमाम बेटों को ग़ल्ला की बाक़ी नज़रें बराबर बराबर मिलती रहें, ख़ाह उनमें तेल मिलाया गया हो या वह ख़ुश्क हों। \s1 सलामती की क़ुरबानी \p \v 11 सलामती की क़ुरबानी जो रब को पेश की जाती है उसके बारे में ज़ैल की हिदायात हैं : \p \v 12 अगर कोई इस क़ुरबानी से अपनी शुक्रगुज़ारी का इज़हार करना चाहे तो वह जानवर के साथ बेख़मीरी रोटी जिसमें तेल डाला गया हो, बेख़मीरी रोटी जिस पर तेल लगाया गया हो और रोटी जिसमें बेहतरीन मैदा और तेल मिलाया गया हो पेश करे। \v 13 इसके अलावा वह ख़मीरी रोटी भी पेश करे। \v 14 पेश करनेवाला क़ुरबानी की हर चीज़ का एक हिस्सा उठाकर रब के लिए मख़सूस करे। यह उस इमाम का हिस्सा है जो जानवर का ख़ून क़ुरबानगाह पर छिड़कता है। \v 15 गोश्त उसी दिन खाया जाए जब जानवर को ज़बह किया गया हो। अगली सुबह तक कुछ नहीं बचना चाहिए। \p \v 16 इस क़ुरबानी का गोश्त सिर्फ़ इस सूरत में अगले दिन खाया जा सकता है जब किसी ने मन्नत मानकर या अपनी ख़ुशी से उसे पेश किया है। \v 17 अगर कुछ गोश्त तीसरे दिन तक बच जाए तो उसे जलाना है। \v 18 अगर उसे तीसरे दिन भी खाया जाए तो रब यह क़ुरबानी क़बूल नहीं करेगा। उसका कोई फ़ायदा नहीं होगा बल्कि उसे नापाक क़रार दिया जाएगा। जो भी उससे खाएगा वह क़ुसूरवार ठहरेगा। \v 19 अगर यह गोश्त किसी नापाक चीज़ से लग जाए तो उसे नहीं खाना है बल्कि उसे जलाया जाए। अगर गोश्त पाक है तो हर शख़्स जो ख़ुद पाक है उसे खा सकता है। \v 20 लेकिन अगर नापाक शख़्स रब को पेश की गई सलामती की क़ुरबानी का यह गोश्त खाए तो उसे उस की क़ौम में से मिटा डालना है। \v 21 हो सकता है कि किसी ने किसी नापाक चीज़ को छू लिया है चाहे वह नापाक शख़्स, जानवर या कोई और घिनौनी और नापाक चीज़ हो। अगर ऐसा शख़्स रब को पेश की गई सलामती की क़ुरबानी का गोश्त खाए तो उसे उस की क़ौम में से मिटा डालना है।” \s1 चरबी और ख़ून खाना मना है \p \v 22 रब ने मूसा से कहा, \v 23 “इसराईलियों को बता देना कि गाय-बैल और भेड़-बकरियों की चरबी खाना तुम्हारे लिए मना है। \v 24 तुम फ़ितरी तौर पर मरे हुए जानवरों और फाड़े हुए जानवरों की चरबी दीगर कामों के लिए इस्तेमाल कर सकते हो, लेकिन उसे खाना मना है। \v 25 जो भी उस चरबी में से खाए जो जलाकर रब को पेश की जाती है उसे उस की क़ौम में से मिटा डालना है। \v 26 जहाँ भी तुम रहते हो वहाँ परिंदों या दीगर जानवरों का ख़ून खाना मना है। \v 27 जो भी ख़ून खाए उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए।” \s1 क़ुरबानियों में से इमाम का हिस्सा \p \v 28 रब ने मूसा से कहा, \v 29 “इसराईलियों को बताना कि जो रब को सलामती की क़ुरबानी पेश करे वह रब के लिए एक हिस्सा मख़सूस करे। \v 30 वह जलनेवाली यह क़ुरबानी अपने हाथों से रब को पेश करे। इसके लिए वह जानवर की चरबी और सीना रब के सामने पेश करे। सीना हिलानेवाली क़ुरबानी हो। \v 31 इमाम चरबी को क़ुरबानगाह पर जला दे जबकि सीना हारून और उसके बेटों का हिस्सा है। \v 32 क़ुरबानी की दहनी रान इमाम को उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर दी जाए। \v 33 वह उस इमाम का हिस्सा है जो सलामती की क़ुरबानी का ख़ून और चरबी चढ़ाता है। \p \v 34 इसराईलियों की सलामती की क़ुरबानियों में से मैंने हिलानेवाला सीना और उठानेवाली रान इमामों को दी है। यह चीज़ें हमेशा के लिए इसराईलियों की तरफ़ से इमामों का हक़ हैं।” \p \v 35 यह उस दिन जलनेवाली क़ुरबानियों में से हारून और उसके बेटों का हिस्सा बन गईं जब उन्हें मक़दिस में रब की ख़िदमत में पेश किया गया। \v 36 रब ने उस दिन जब उन्हें तेल से मसह किया गया हुक्म दिया था कि इसराईली यह हिस्सा हमेशा इमामों को दिया करें। \p \v 37 ग़रज़ यह हिदायात तमाम क़ुरबानियों के बारे में हैं यानी भस्म होनेवाली क़ुरबानी, ग़ल्ला की नज़र, गुनाह की क़ुरबानी, क़ुसूर की क़ुरबानी, इमाम को मक़दिस में ख़िदमत के लिए मख़सूस करने की क़ुरबानी और सलामती की क़ुरबानी के बारे में। \v 38 रब ने मूसा को यह हिदायात सीना पहाड़ पर दीं, उस दिन जब उसने इसराईलियों को हुक्म दिया कि वह दश्ते-सीना में रब को अपनी क़ुरबानियाँ पेश करें। \c 8 \s1 हारून और उसके बेटों की मख़सूसियत \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “हारून और उसके बेटों को मेरे हुज़ूर ले आना। नीज़ इमामों के लिबास, मसह का तेल, गुनाह की क़ुरबानी के लिए जवान बैल, दो मेंढे और बेख़मीरी रोटियों की टोकरी ले आना। \v 3 फिर पूरी जमात को ख़ैमे के दरवाज़े पर जमा करना।” \p \v 4 मूसा ने ऐसा ही किया। जब पूरी जमात इकट्ठी हो गई तो \v 5 उसने उनसे कहा, “अब मैं वह कुछ करता हूँ जिसका हुक्म रब ने दिया है।” \v 6 मूसा ने हारून और उसके बेटों को सामने लाकर ग़ुस्ल कराया। \v 7 उसने हारून को कतान का ज़ेरजामा पहनाकर कमरबंद लपेटा। फिर उसने चोग़ा पहनाया जिस पर उसने बालापोश को महारत से बुने हुए पटके से बाँधा। \v 8 इसके बाद उसने सीने का कीसा लगाकर उसमें दोनों क़ुरे बनाम ऊरीम और तुम्मीम रखे। \v 9 फिर उसने हारून के सर पर पगड़ी रखी जिसके सामनेवाले हिस्से पर उसने मुक़द्दस ताज यानी सोने की तख़्ती लगा दी। सब कुछ उस हुक्म के ऐन मुताबिक़ हुआ जो रब ने मूसा को दिया था। \p \v 10 इसके बाद मूसा ने मसह के तेल से मक़दिस को और जो कुछ उसमें था मसह करके उसे मख़सूसो-मुक़द्दस किया। \v 11 उसने यह तेल सात बार जानवर चढ़ाने की क़ुरबानगाह और उसके सामान पर छिड़क दिया। इसी तरह उसने सात बार धोने के हौज़ और उस ढाँचे पर तेल छिड़क दिया जिस पर हौज़ रखा हुआ था। यों यह चीज़ें मख़सूसो-मुक़द्दस हुईं। \v 12 उसने हारून के सर पर मसह का तेल उंडेलकर उसे मसह किया। यों वह मख़सूसो-मुक़द्दस हुआ। \p \v 13 फिर मूसा ने हारून के बेटों को सामने लाकर उन्हें ज़ेरजामे पहनाए, कमरबंद लपेटे और उनके सरों पर पगड़ियाँ बाँधीं। सब कुछ उस हुक्म के ऐन मुताबिक़ हुआ जो रब ने मूसा को दिया था। \p \v 14 अब मूसा ने गुनाह की क़ुरबानी के लिए जवान बैल को पेश किया। हारून और उसके बेटों ने अपने हाथ उसके सर पर रखे। \v 15 मूसा ने उसे ज़बह करके उसके ख़ून में से कुछ लेकर अपनी उँगली से क़ुरबानगाह के सींगों पर लगा दिया ताकि वह गुनाहों से पाक हो जाए। बाक़ी ख़ून उसने क़ुरबानगाह के पाए पर उंडेल दिया। यों उसने उसे मख़सूसो-मुक़द्दस करके उसका कफ़्फ़ारा दिया। \v 16 मूसा ने अंतड़ियों पर की तमाम चरबी, जोड़कलेजी और दोनों गुरदे उनकी चरबी समेत लेकर क़ुरबानगाह पर जला दिए। \v 17 लेकिन बैल की खाल, गोश्त और अंतड़ियों के गोबर को उसने ख़ैमागाह के बाहर ले जाकर जला दिया। सब कुछ उस हुक्म के मुताबिक़ हुआ जो रब ने मूसा को दिया था। \p \v 18 इसके बाद उसने भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए पहला मेंढा पेश किया। हारून और उसके बेटों ने अपने हाथ उसके सर पर रख दिए। \v 19 मूसा ने उसे ज़बह करके उसका ख़ून क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़क दिया। \v 20 उसने मेंढे को टुकड़े टुकड़े करके सर, टुकड़े और चरबी जला दी। \v 21 उसने अंतड़ियाँ और पिंडलियाँ पानी से साफ़ करके पूरे मेंढे को क़ुरबानगाह पर जला दिया। सब कुछ उस हुक्म के ऐन मुताबिक़ हुआ जो रब ने मूसा को दिया था। रब के लिए जलनेवाली यह क़ुरबानी भस्म होनेवाली क़ुरबानी थी, और उस की ख़ुशबू रब को पसंद थी। \p \v 22 इसके बाद मूसा ने दूसरे मेंढे को पेश किया। इस क़ुरबानी का मक़सद इमामों को मक़दिस में ख़िदमत के लिए मख़सूस करना था। हारून और उसके बेटों ने अपने हाथ मेंढे के सर पर रख दिए। \v 23 मूसा ने उसे ज़बह करके उसके ख़ून में से कुछ लेकर हारून के दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ और दहने पाँव के अंगूठों पर लगाया। \v 24 यही उसने हारून के बेटों के साथ भी किया। उसने उन्हें सामने लाकर उनके दहने कान की लौ पर और उनके दहने हाथ और दहने पाँव के अंगूठों पर ख़ून लगाया। बाक़ी ख़ून उसने क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़क दिया। \v 25 उसने मेंढे की चरबी, दुम, अंतड़ियों पर की सारी चरबी, जोड़कलेजी, दोनों गुरदे उनकी चरबी समेत और दहनी रान अलग की। \v 26 फिर वह रब के सामने पड़ी बेख़मीरी रोटियों की टोकरी में से एक सादा रोटी, एक रोटी जिसमें तेल डाला गया था और एक रोटी जिस पर तेल लगाया गया था लेकर चरबी और रान पर रख दी। \v 27 उसने यह सब कुछ हारून और उसके बेटों के हाथों पर रखकर उसे हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब को पेश किया। \v 28 फिर उसने यह चीज़ें उनसे वापस लेकर क़ुरबानगाह पर जला दीं जिस पर पहले भस्म होनेवाली क़ुरबानी रखी गई थी। रब के लिए जलनेवाली यह क़ुरबानी इमामों को मख़सूस करने के लिए चढ़ाई गई, और उस की ख़ुशबू रब को पसंद थी। \p \v 29 मूसा ने सीना भी लिया और उसे हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब के सामने हिलाया। यह मख़सूसियत के मेंढे में से मूसा का हिस्सा था। मूसा ने इसमें भी सब कुछ रब के हुक्म के ऐन मुताबिक़ किया। \p \v 30 फिर उसने मसह के तेल और क़ुरबानगाह पर के ख़ून में से कुछ लेकर हारून, उसके बेटों और उनके कपड़ों पर छिड़क दिया। यों उसने उन्हें और उनके कपड़ों को मख़सूसो-मुक़द्दस किया। \p \v 31 मूसा ने उनसे कहा, “गोश्त को मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर उबालकर उसे उन रोटियों के साथ खाना जो मख़सूसियत की क़ुरबानियों की टोकरी में पड़ी हैं। क्योंकि रब ने मुझे यही हुक्म दिया है। \v 32 गोश्त और रोटियों का बक़ाया जला देना। \v 33 सात दिन तक मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े में से न निकलना, क्योंकि मक़दिस में ख़िदमत के लिए तुम्हारी मख़सूसियत के इतने ही दिन हैं। \v 34 जो कुछ आज हुआ है वह रब के हुक्म के मुताबिक़ हुआ ताकि तुम्हारा कफ़्फ़ारा दिया जाए। \v 35 तुम्हें सात रात और दिन तक ख़ैमे के दरवाज़े के अंदर रहना है। रब की इस हिदायत को मानो वरना तुम मर जाओगे, क्योंकि यह हुक्म मुझे रब की तरफ़ से दिया गया है।” \p \v 36 हारून और उसके बेटों ने उन तमाम हिदायात पर अमल किया जो रब ने मूसा की मारिफ़त उन्हें दी थीं। \c 9 \s1 हारून क़ुरबानियाँ चढ़ाता है \p \v 1 मख़सूसियत के सात दिन के बाद मूसा ने आठवें दिन हारून, उसके बेटों और इसराईल के बुज़ुर्गों को बुलाया। \v 2 उसने हारून से कहा, “एक बेऐब बछड़ा और एक बेऐब मेंढा चुनकर रब को पेश कर। बछड़ा गुनाह की क़ुरबानी के लिए और मेंढा भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए हो। \v 3 फिर इसराईलियों को कह देना कि गुनाह की क़ुरबानी के लिए एक बकरा जबकि भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए एक बेऐब यकसाला बछड़ा और एक बेऐब यकसाला भेड़ का बच्चा पेश करो। \v 4 साथ ही सलामती की क़ुरबानी के लिए एक बैल और एक मेंढा चुनो। तेल के साथ मिलाई हुई ग़ल्ला की नज़र भी लेकर सब कुछ रब को पेश करो। क्योंकि आज ही रब तुम पर ज़ाहिर होगा।” \p \v 5 इसराईली मूसा की मतलूबा तमाम चीज़ें मुलाक़ात के ख़ैमे के सामने ले आए। पूरी जमात क़रीब आकर रब के सामने खड़ी हो गई। \v 6 मूसा ने उनसे कहा, “तुम्हें वही करना है जिसका हुक्म रब ने तुम्हें दिया है। क्योंकि आज ही रब का जलाल तुम पर ज़ाहिर होगा।” \p \v 7 फिर उसने हारून से कहा, “क़ुरबानगाह के पास जाकर गुनाह की क़ुरबानी और भस्म होनेवाली क़ुरबानी चढ़ाकर अपना और अपनी क़ौम का कफ़्फ़ारा देना। रब के हुक्म के मुताबिक़ क़ौम के लिए भी क़ुरबानी पेश करना ताकि उसका कफ़्फ़ारा दिया जाए।” \p \v 8 हारून क़ुरबानगाह के पास आया। उसने बछड़े को ज़बह किया। यह उसके लिए गुनाह की क़ुरबानी था। \v 9 उसके बेटे बछड़े का ख़ून उसके पास ले आए। उसने अपनी उँगली ख़ून में डुबोकर उसे क़ुरबानगाह के सींगों पर लगाया। बाक़ी ख़ून को उसने क़ुरबानगाह के पाए पर उंडेल दिया। \v 10 फिर उसने उस की चरबी, गुरदों और जोड़कलेजी को क़ुरबानगाह पर जला दिया। जैसे रब ने मूसा को हुक्म दिया था वैसे ही हारून ने किया। \v 11 बछड़े का गोश्त और खाल उसने ख़ैमागाह के बाहर ले जाकर जला दी। \p \v 12 इसके बाद हारून ने भस्म होनेवाली क़ुरबानी को ज़बह किया। उसके बेटों ने उसे उसका ख़ून दिया, और उसने उसे क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़क दिया। \v 13 उन्होंने उसे क़ुरबानी के मुख़्तलिफ़ टुकड़े सर समेत दिए, और उसने उन्हें क़ुरबानगाह पर जला दिया। \v 14 फिर उसने उस की अंतड़ियाँ और पिंडलियाँ धोकर भस्म होनेवाली क़ुरबानी की बाक़ी चीज़ों पर रखकर जला दीं। \p \v 15 अब हारून ने क़ौम के लिए क़ुरबानी चढ़ाई। उसने गुनाह की क़ुरबानी के लिए बकरा ज़बह करके उसे पहली क़ुरबानी की तरह चढ़ाया। \v 16 उसने भस्म होनेवाली क़ुरबानी भी क़वायद के मुताबिक़ चढ़ाई। \v 17 उसने ग़ल्ला की नज़र पेश की और उसमें से मुट्ठी-भर क़ुरबानगाह पर जला दिया। यह ग़ल्ला की उस नज़र के अलावा थी जो सुबह को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के साथ चढ़ाई गई थी। \v 18 फिर उसने सलामती की क़ुरबानी के लिए बैल और मेंढे को ज़बह किया। यह भी क़ौम के लिए थी। उसके बेटों ने उसे जानवरों का ख़ून दिया, और उसने उसे क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़क दिया। \v 19 लेकिन उन्होंने बैल और मेंढे को चरबी, दुम, अंतड़ियों पर की चरबी और जोड़कलेजी निकालकर \v 20 सीने के टुकड़ों पर रख दिया। हारून ने चरबी का हिस्सा क़ुरबानगाह पर जला दिया। \v 21 सीने के टुकड़े और दहनी रानें उसने हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब के सामने हिलाईं। उसने सब कुछ मूसा के हुक्म के मुताबिक़ ही किया। \p \v 22 तमाम क़ुरबानियाँ पेश करने के बाद हारून ने अपने हाथ उठाकर क़ौम को बरकत दी। फिर वह क़ुरबानगाह से उतरकर \v 23 मूसा के साथ मुलाक़ात के ख़ैमे में दाख़िल हुआ। जब दोनों बाहर आए तो उन्होंने क़ौम को बरकत दी। तब रब का जलाल पूरी क़ौम पर ज़ाहिर हुआ। \v 24 रब के हुज़ूर से आग निकलकर क़ुरबानगाह पर उतरी और भस्म होनेवाली क़ुरबानी और चरबी के टुकड़े भस्म कर दिए। यह देखकर लोग ख़ुशी के नारे मारने लगे और मुँह के बल गिर गए। \c 10 \s1 नदब और अबीहू का गुनाह \p \v 1 हारून के बेटे नदब और अबीहू ने अपने अपने बख़ूरदान लेकर उनमें जलते हुए कोयले डाले। उन पर बख़ूर डालकर वह रब के सामने आए ताकि उसे पेश करें। लेकिन यह आग नाजायज़ थी। रब ने यह पेश करने का हुक्म नहीं दिया था। \v 2 अचानक रब के हुज़ूर से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। वहीं रब के सामने वह मर गए। \p \v 3 मूसा ने हारून से कहा, “अब वही हुआ है जो रब ने फ़रमाया था कि जो मेरे क़रीब हैं उनसे मैं अपनी क़ुद्दूसियत ज़ाहिर करूँगा, मैं तमाम क़ौम के सामने ही अपने जलाल का इज़हार करूँगा।” \p हारून ख़ामोश रहा। \v 4 मूसा ने हारून के चचा उज़्ज़ियेल के बेटों मीसाएल और इल्सफ़न को बुलाकर कहा, “इधर आओ और अपने रिश्तेदारों को मक़दिस के सामने से उठाकर ख़ैमागाह के बाहर ले जाओ।” \v 5 वह आए और मूसा के हुक्म के ऐन मुताबिक़ उन्हें उनके ज़ेरजामों समेत उठाकर ख़ैमागाह के बाहर ले गए। \p \v 6 मूसा ने हारून और उसके दीगर बेटों इलियज़र और इतमर से कहा, “मातम का इज़हार न करो। न अपने बाल बिखरने दो, न अपने कपड़े फाड़ो। वरना तुम मर जाओगे और रब पूरी जमात से नाराज़ हो जाएगा। लेकिन तुम्हारे रिश्तेदार और बाक़ी तमाम इसराईली ज़रूर इनका मातम करें जिनको रब ने आग से हलाक कर दिया है। \v 7 मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े के बाहर न निकलो वरना तुम मर जाओगे, क्योंकि तुम्हें रब के तेल से मसह किया गया है।” चुनाँचे उन्होंने ऐसा ही किया। \s1 इमामों के लिए हिदायात \p \v 8 रब ने हारून से कहा, \v 9 “जब भी तुझे या तेरे बेटों को मुलाक़ात के ख़ैमे में दाख़िल होना है तो मै या कोई और नशा-आवर चीज़ पीना मना है, वरना तुम मर जाओगे। यह उसूल आनेवाली नसलों के लिए भी अबद तक अनमिट है। \v 10 यह भी लाज़िम है कि तुम मुक़द्दस और ग़ैरमुक़द्दस चीज़ों में, पाक और नापाक चीज़ों में इम्तियाज़ करो। \v 11 तुम्हें इसराईलियों को तमाम पाबंदियाँ सिखानी हैं जो मैंने तुम्हें मूसा की मारिफ़त बताई हैं।” \p \v 12 मूसा ने हारून और उसके बचे हुए बेटों इलियज़र और इतमर से कहा, “ग़ल्ला की नज़र का जो हिस्सा रब के सामने जलाया नहीं जाता उसे अपने लिए लेकर बेख़मीरी रोटी पकाना और क़ुरबानगाह के पास ही खाना। क्योंकि वह निहायत मुक़द्दस है। \v 13 उसे मुक़द्दस जगह पर खाना, क्योंकि वह रब की जलनेवाली क़ुरबानियों में से तुम्हारे और तुम्हारे बेटों का हिस्सा है। क्योंकि मुझे इसका हुक्म दिया गया है। \v 14 जो सीना हिलानेवाली क़ुरबानी और दहनी रान उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश की गई है, वह तुम और तुम्हारे बेटे-बेटियाँ खा सकते हैं। उन्हें मुक़द्दस जगह पर खाना है। इसराईलियों की सलामती की क़ुरबानियों में से यह टुकड़े तुम्हारा हिस्सा हैं। \v 15 लेकिन पहले इमाम रान और सीने को जलनेवाली क़ुरबानियों की चरबी के साथ पेश करें। वह उन्हें हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब के सामने हिलाएँ। रब फ़रमाता है कि यह टुकड़े अबद तक तुम्हारे और तुम्हारे बेटों का हिस्सा हैं।” \p \v 16 मूसा ने दरियाफ़्त किया कि उस बकरे के गोश्त का क्या हुआ जो गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाया गया था। उसे पता चला कि वह भी जल गया था। यह सुनकर उसे हारून के बेटों इलियज़र और इतमर पर ग़ुस्सा आया। उसने पूछा, \v 17 “तुमने गुनाह की क़ुरबानी का गोश्त क्यों नहीं खाया? तुम्हें उसे मुक़द्दस जगह पर खाना था। यह एक निहायत मुक़द्दस हिस्सा है जो रब ने तुम्हें दिया ताकि तुम जमात का क़ुसूर दूर करके रब के सामने लोगों का कफ़्फ़ारा दो। \v 18 चूँकि इस बकरे का ख़ून मक़दिस में न लाया गया इसलिए तुम्हें उसका गोश्त मक़दिस में खाना था जिस तरह मैंने तुम्हें हुक्म दिया था।” \p \v 19 हारून ने मूसा को जवाब देकर कहा, “देखें, आज लोगों ने अपने लिए गुनाह की क़ुरबानी और भस्म होनेवाली क़ुरबानी रब को पेश की है जबकि मुझ पर यह आफ़त गुज़री है। अगर मैं आज गुनाह की क़ुरबानी से खाता तो क्या यह रब को अच्छा लगता?” \v 20 यह बात मूसा को अच्छी लगी। \c 11 \s1 पाक और नापाक जानवर \p \v 1 रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि तुम्हें ज़मीन पर रहनेवाले जानवरों में से ज़ैल के जानवरों को खाने की इजाज़त है : \v 3 जिनके खुर या पाँव बिलकुल चिरे हुए हैं और जो जुगाली करते हैं उन्हें खाने की इजाज़त है। \v 4-6 ऊँट, बिज्जू या ख़रगोश खाना मना है। वह तुम्हारे लिए नापाक हैं, क्योंकि वह जुगाली तो करते हैं लेकिन उनके खुर या पाँव चिरे हुए नहीं हैं। \v 7 सुअर न खाना। वह तुम्हारे लिए नापाक है, क्योंकि उसके खुर तो चिरे हुए हैं लेकिन वह जुगाली नहीं करता। \v 8 न उनका गोश्त खाना, न उनकी लाशों को छूना। वह तुम्हारे लिए नापाक हैं। \p \v 9 समुंदरी और दरियाई जानवर खाने के लिए जायज़ हैं अगर उनके पर और छिलके हों। \v 10 लेकिन जिनके पर या छिलके नहीं हैं वह सब तुम्हारे लिए मकरूह हैं, ख़ाह वह बड़ी तादाद में मिलकर रहते हैं या नहीं। \v 11 इसलिए उनका गोश्त खाना मना है, और उनकी लाशों से भी घिन खाना है। \v 12 पानी में रहनेवाले तमाम जानवर जिनके पर या छिलके न हों तुम्हारे लिए मकरूह हैं। \p \v 13 ज़ैल के परिंदे तुम्हारे लिए क़ाबिले-घिन हों। इन्हें खाना मना है, क्योंकि वह मकरूह हैं : उक़ाब, दढ़ियल गिद्ध, काला गिद्ध, \v 14 लाल चील, हर क़िस्म की काली चील, \v 15 हर क़िस्म का कौवा, \v 16 उक़ाबी उल्लू, छोटे कानवाला उल्लू, बड़े कानवाला उल्लू, हर क़िस्म का बाज़, \v 17 छोटा उल्लू, क़ूक़, चिंघाड़नेवाला उल्लू, \v 18 सफ़ेद उल्लू, दश्ती उल्लू, मिसरी गिद्ध, \v 19 लक़लक़, हर क़िस्म का बूतीमार, हुदहुद और चमगादड़। \f + \fr 11:19 \ft याद रहे कि क़दीम ज़माने के इन परिंदों के अकसर नाम मतरूक हैं या उनका मतलब बदल गया है, इसलिए उनका मुख़्तलिफ़ तरजुमा हो सकता है। \f* \p \v 20 तमाम पर रखनेवाले कीड़े जो चार पाँवों पर चलते हैं तुम्हारे लिए मकरूह हैं, \v 21 सिवाए उनके जिनकी टाँगों के दो हिस्से हैं और जो फुदकते हैं। उनको तुम खा सकते हो। \v 22 इस नाते से तुम मुख़्तलिफ़ क़िस्म के टिड्डे खा सकते हो। \v 23 बाक़ी सब पर रखनेवाले कीड़े जो चार पाँवों पर चलते हैं तुम्हारे लिए मकरूह हैं। \p \v 24-28 जो भी ज़ैल के जानवरों की लाशें छुए वह शाम तक नापाक रहेगा : (अलिफ़) खुर रखनेवाले तमाम जानवर सिवाए उनके जिनके खुर या पाँव पूरे तौर पर चिरे हुए हैं और जो जुगाली करते हैं, (बे) तमाम जानवर जो अपने चार पंजों पर चलते हैं। यह जानवर तुम्हारे लिए नापाक हैं, और जो भी उनकी लाशें उठाए या छुए लाज़िम है कि वह अपने कपड़े धो ले। इसके बावुजूद भी वह शाम तक नापाक रहेगा। \p \v 29-30 ज़मीन पर रेंगनेवाले जानवरों में से छछूँदर, मुख़्तलिफ़ क़िस्म के चूहे और मुख़्तलिफ़ क़िस्म की छिपकलियाँ तुम्हारे लिए नापाक हैं। \v 31 जो भी उन्हें और उनकी लाशें छू लेता है वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 32 अगर उनमें से किसी की लाश किसी चीज़ पर गिर पड़े तो वह भी नापाक हो जाएगी। इससे कोई फ़रक़ नहीं पड़ता कि वह लकड़ी, कपड़े, चमड़े या टाट की बनी हो, न इससे कोई फ़रक़ पड़ता है कि वह किस काम के लिए इस्तेमाल की जाती है। उसे हर सूरत में पानी में डुबोना है। तो भी वह शाम तक नापाक रहेगी। \v 33 अगर ऐसी लाश मिट्टी के बरतन में गिर जाए तो जो कुछ भी उसमें है नापाक हो जाएगा और तुम्हें उस बरतन को तोड़ना है। \v 34 हर खानेवाली चीज़ जिस पर ऐसे बरतन का पानी डाला गया है नापाक है। इसी तरह उस बरतन से निकली हुई हर पीनेवाली चीज़ नापाक है। \v 35 जिस पर भी ऐसी लाश गिर पड़े वह नापाक हो जाता है। अगर वह तनूर या चूल्हे पर गिर पड़े तो उनको तोड़ देना है। वह नापाक हैं और तुम्हारे लिए नापाक रहेंगे। \v 36 लेकिन जिस चश्मे या हौज़ में ऐसी लाश गिरे वह पाक रहता है। सिर्फ़ वह जो लाश को छू लेता है नापाक हो जाता है। \v 37 अगर ऐसी लाश बीजों पर गिर पड़े जिनको अभी बोना है तो वह पाक रहते हैं। \v 38 लेकिन अगर बीजों पर पानी डाला गया हो और फिर लाश उन पर गिर पड़े तो वह नापाक हैं। \p \v 39 अगर ऐसा जानवर जिसे खाने की इजाज़त है मर जाए तो जो भी उस की लाश छुए शाम तक नापाक रहेगा। \v 40 जो उसमें से कुछ खाए या उसे उठाकर ले जाए उसे अपने कपड़ों को धोना है। तो भी वह शाम तक नापाक रहेगा। \p \v 41 हर जानवर जो ज़मीन पर रेंगता है क़ाबिले-घिन है। उसे खाना मना है, \v 42 चाहे वह अपने पेट पर चाहे चार या इससे ज़ायद पाँवों पर चलता हो। \v 43 इन तमाम रेंगनेवालों से अपने आपको घिन का बाइस और नापाक न बनाना, \v 44 क्योंकि मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। लाज़िम है कि तुम अपने आपको मख़सूसो-मुक़द्दस रखो, क्योंकि मैं क़ुद्दूस हूँ। अपने आपको ज़मीन पर रेंगनेवाले तमाम जानवरों से नापाक न बनाना। \v 45 मैं रब हूँ। मैं तुम्हें मिसर से निकाल लाया हूँ ताकि तुम्हारा ख़ुदा बनूँ। लिहाज़ा मुक़द्दस रहो, क्योंकि मैं क़ुद्दूस हूँ। \p \v 46 ज़मीन पर चलनेवाले जानवरों, परिंदों, आबी जानवरों और ज़मीन पर रेंगनेवाले जानवरों के बारे में शरअ यही है। \v 47 लाज़िम है कि तुम नापाक और पाक में इम्तियाज़ करो, ऐसे जानवरों में जो खाने के लिए जायज़ हैं और ऐसों में जो नाजायज़ हैं।” \c 12 \s1 बच्चे की पैदाइश के बाद माँ पर पाबंदियाँ \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बता कि जब किसी औरत के लड़का पैदा हो तो वह माहवारी के ऐयाम की तरह सात दिन तक नापाक रहेगी। \v 3 आठवें दिन लड़के का ख़तना करवाना है। \v 4 फिर माँ मज़ीद 33 दिन इंतज़ार करे। इसके बाद उस की वह नापाकी दूर हो जाएगी जो ख़ून बहने से पैदा हुई है। इस दौरान वह कोई मख़सूस और मुक़द्दस चीज़ न छुए, न मक़दिस के पास जाए। \p \v 5 अगर उसके लड़की पैदा हो जाए तो वह माहवारी के ऐयाम की तरह नापाक है। यह नापाकी 14 दिन तक रहेगी। फिर वह मज़ीद 66 दिन इंतज़ार करे। इसके बाद उस की वह नापाकी दूर हो जाएगी जो ख़ून बहने से पैदा हुई है। \p \v 6 जब लड़के या लड़की के सिलसिले में यह दिन गुज़र जाएँ तो वह मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर इमाम को ज़ैल की चीज़ें दे : भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए एक यकसाला भेड़ का बच्चा और गुनाह की क़ुरबानी के लिए एक जवान कबूतर या क़ुम्री। \v 7 इमाम यह जानवर रब को पेश करके उसका कफ़्फ़ारा दे। फिर ख़ून बहने के बाइस पैदा होनेवाली नापाकी दूर हो जाएगी। उसूल एक ही है, चाहे लड़का हो या लड़की। \p \v 8 अगर वह ग़ुरबत के बाइस भेड़ का बच्चा न दे सके तो फिर वह दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर ले आए, एक भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए और दूसरा गुनाह की क़ुरबानी के लिए। यों इमाम उसका कफ़्फ़ारा दे और वह पाक हो जाएगी।” \c 13 \s1 जिल्दी बीमारियाँ \p \v 1 रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 2 “अगर किसी की जिल्द में सूजन या पपड़ी या सफ़ेद दाग़ हो और ख़तरा है कि वबाई जिल्दी बीमारी हो तो उसे इमामों यानी हारून या उसके बेटों के पास ले आना है। \v 3 इमाम उस जगह का मुआयना करे। अगर उसके बाल सफ़ेद हो गए हों और वह जिल्द में धँसी हुई हो तो वबाई बीमारी है। जब इमाम को यह मालूम हो तो वह उसे नापाक क़रार दे। \v 4 लेकिन हो सकता है कि जिल्द की जगह सफ़ेद तो है लेकिन जिल्द में धँसी हुई नहीं है, न उसके बाल सफ़ेद हुए हैं। इस सूरत में इमाम उस शख़्स को सात दिन के लिए अलहदगी में रखे। \v 5 सातवें दिन इमाम दुबारा उसका मुआयना करे। अगर वह देखे कि मुतअस्सिरा जगह वैसी ही है और फैली नहीं तो वह उसे मज़ीद सात दिन अलहदगी में रखे। \v 6 सातवें दिन वह एक और मरतबा उसका मुआयना करे। अगर उस जगह का रंग दुबारा सेहतमंद जिल्द के रंग की मानिंद हो रहा हो और फैली न हो तो वह उसे पाक क़रार दे। इसका मतलब है कि यह मरज़ आम पपड़ी से ज़्यादा नहीं है। मरीज़ अपने कपड़े धो ले तो वह पाक हो जाएगा। \v 7 लेकिन अगर इसके बाद मुतअस्सिरा जगह फैलने लगे तो वह दुबारा अपने आपको इमाम को दिखाए। \v 8 इमाम उसका मुआयना करे। अगर जगह वाक़ई फैल गई हो तो इमाम उसे नापाक क़रार दे, क्योंकि यह वबाई जिल्दी मरज़ है। \p \v 9 अगर किसी के जिस्म पर वबाई जिल्दी मरज़ नज़र आए तो उसे इमाम के पास लाया जाए। \v 10 इमाम उसका मुआयना करे। अगर मुतअस्सिरा जिल्द में सफ़ेद सूजन हो, उसके बाल भी सफ़ेद हो गए हों, और उसमें कच्चा गोश्त मौजूद हो \v 11 तो इसका मतलब है कि वबाई जिल्दी बीमारी पुरानी है। इमाम उस शख़्स को सात दिन के लिए अलहदगी में रखकर इंतज़ार न करे बल्कि उसे फ़ौरन नापाक क़रार दे, क्योंकि यह उस की नापाकी का सबूत है। \v 12 लेकिन अगर बीमारी जल्दी से फैल गई हो, यहाँ तक कि सर से लेकर पाँव तक पूरी जिल्द मुतअस्सिर हुई हो \v 13 तो इमाम यह देखकर मरीज़ को पाक क़रार दे। चूँकि पूरी जिल्द सफ़ेद हो गई है इसलिए वह पाक है। \v 14 लेकिन जब भी कहीं कच्चा गोश्त नज़र आए उस वक़्त वह नापाक हो जाता है। \v 15 इमाम यह देखकर मरीज़ को नापाक क़रार दे। कच्चा गोश्त हर सूरत में नापाक है, क्योंकि इसका मतलब है कि वबाई जिल्दी बीमारी लग गई है। \v 16 अगर कच्चे गोश्त का यह ज़ख़म भर जाए और मुतअस्सिरा जगह की जिल्द सफ़ेद हो जाए तो मरीज़ इमाम के पास जाए। \v 17 अगर इमाम देखे कि वाक़ई ऐसा ही हुआ है और मुतअस्सिरा जिल्द सफ़ेद हो गई है तो वह उसे पाक क़रार दे। \p \v 18 अगर किसी की जिल्द पर फोड़ा हो लेकिन वह ठीक हो जाए \v 19 और उस की जगह सफ़ेद सूजन या सुरख़ी-मायल सफ़ेद दाग़ नज़र आए तो मरीज़ अपने आपको इमाम को दिखाए। \v 20 अगर वह उसका मुआयना करके देखे कि मुतअस्सिरा जगह जिल्द के अंदर धँसी हुई है और उसके बाल सफ़ेद हो गए हैं तो वह मरीज़ को नापाक क़रार दे। क्योंकि इसका मतलब है कि जहाँ पहले फोड़ा था वहाँ वबाई जिल्दी बीमारी पैदा हो गई है। \v 21 लेकिन अगर इमाम देखे कि मुतअस्सिरा जगह के बाल सफ़ेद नहीं हैं, वह जिल्द में धँसी हुई नज़र नहीं आती और उसका रंग दुबारा सेहतमंद जिल्द की मानिंद हो रहा है तो वह उसे सात दिन के लिए अलहदगी में रखे। \v 22 अगर इस दौरान बीमारी मज़ीद फैल जाए तो इमाम मरीज़ को नापाक क़रार दे, क्योंकि इसका मतलब है कि वबाई जिल्दी बीमारी लग गई है। \v 23 लेकिन अगर दाग़ न फैले तो इसका मतलब है कि यह सिर्फ़ उस भरे हुए ज़ख़म का निशान है जो फोड़े से पैदा हुआ था। इमाम मरीज़ को पाक क़रार दे। \p \v 24 अगर किसी की जिल्द पर जलने का ज़ख़म लग जाए और मुतअस्सिरा जगह पर सुरख़ी-मायल सफ़ेद दाग़ या सफ़ेद दाग़ पैदा हो जाए \v 25 तो इमाम मुतअस्सिरा जगह का मुआयना करे। अगर मालूम हो जाए कि मुतअस्सिरा जगह के बाल सफ़ेद हो गए हैं और वह जिल्द में धँसी हुई है तो इसका मतलब है कि चोट की जगह पर वबाई जिल्दी मरज़ लग गया है। इमाम उसे नापाक क़रार दे, क्योंकि वबाई जिल्दी बीमारी लग गई है। \v 26 लेकिन अगर इमाम ने मालूम किया है कि दाग़ में बाल सफ़ेद नहीं हैं, वह जिल्द में धँसा हुआ नज़र नहीं आता और उसका रंग सेहतमंद जिल्द की मानिंद हो रहा है तो वह मरीज़ को सात दिन तक अलहदगी में रखे। \v 27 अगर वह सातवें दिन मालूम करे कि मुतअस्सिरा जगह फैल गई है तो वह उसे नापाक क़रार दे। क्योंकि इसका मतलब है कि वबाई जिल्दी बीमारी लग गई है। \v 28 लेकिन अगर दाग़ फैला हुआ नज़र नहीं आता और मुतअस्सिरा जिल्द का रंग सेहतमंद जिल्द के रंग की मानिंद हो गया है तो इसका मतलब है कि यह सिर्फ़ उस भरे हुए ज़ख़म का निशान है जो जलने से पैदा हुआ था। इमाम मरीज़ को पाक क़रार दे। \p \v 29 अगर किसी के सर या दाढ़ी की जिल्द में निशान नज़र आए \v 30 तो इमाम मुतअस्सिरा जगह का मुआयना करे। अगर वह धँसी हुई नज़र आए और उसके बाल रंग के लिहाज़ से चमकते हुए सोने की मानिंद और बारीक हों तो इमाम मरीज़ को नापाक क़रार दे। इसका मतलब है कि ऐसी वबाई जिल्दी बीमारी सर या दाढ़ी की जिल्द पर लग गई है जो ख़ारिश पैदा करती है। \v 31 लेकिन अगर इमाम ने मालूम किया कि मुतअस्सिरा जगह जिल्द में धँसी हुई नज़र नहीं आती अगरचे उसके बालों का रंग बदल गया है तो वह उसे सात दिन के लिए अलहदगी में रखे। \v 32 सातवें दिन इमाम जिल्द की मुतअस्सिरा जगह का मुआयना करे। अगर वह फैली हुई नज़र नहीं आती और उसके बालों का रंग चमकदार सोने की मानिंद नहीं है, साथ ही वह जगह जिल्द में धँसी हुई भी दिखाई नहीं देती, \v 33 तो मरीज़ अपने बाल मुँडवाए। सिर्फ़ वह बाल रह जाएँ जो मुतअस्सिरा जगह से निकलते हैं। इमाम मरीज़ को मज़ीद सात दिन अलहदगी में रखे। \v 34 सातवें दिन वह उसका मुआयना करे। अगर मुतअस्सिरा जगह नहीं फैली और वह जिल्द में धँसी हुई नज़र नहीं आती तो इमाम उसे पाक क़रार दे। वह अपने कपड़े धो ले तो वह पाक हो जाएगा। \v 35 लेकिन अगर इसके बाद जिल्द की मुतअस्सिरा जगह फैलना शुरू हो जाए \v 36 तो इमाम दुबारा उसका मुआयना करे। अगर वह जगह वाक़ई फैली हुई नज़र आए तो मरीज़ नापाक है, चाहे मुतअस्सिरा जगह के बालों का रंग चमकते सोने की मानिंद हो या न हो। \v 37 लेकिन अगर उसके ख़याल में मुतअस्सिरा जगह फैली हुई नज़र नहीं आती बल्कि उसमें से काले रंग के बाल निकल रहे हैं तो इसका मतलब है कि मरीज़ की सेहत बहाल हो गई है। इमाम उसे पाक क़रार दे। \p \v 38 अगर किसी मर्द या औरत की जिल्द पर सफ़ेद दाग़ पैदा हो जाएँ \v 39 तो इमाम उनका मुआयना करे। अगर उनका सफ़ेद रंग हलका-सा हो तो यह सिर्फ़ बेज़रर पपड़ी है। मरीज़ पाक है। \p \v 40-41 अगर किसी मर्द का सर माथे की तरफ़ या पीछे की तरफ़ गंजा है तो वह पाक है। \v 42 लेकिन अगर उस जगह जहाँ वह गंजा है सुरख़ी-मायल सफ़ेद दाग़ हो तो इसका मतलब है कि वहाँ वबाई जिल्दी बीमारी लग गई है। \v 43 इमाम उसका मुआयना करे। अगर गंजी जगह पर सुरख़ी-मायल सफ़ेद सूजन हो जो वबाई जिल्दी बीमारी की मानिंद नज़र आए \v 44 तो मरीज़ को वबाई जिल्दी बीमारी लग गई है। इमाम उसे नापाक क़रार दे। \s1 नापाक मरीज़ का सुलूक \p \v 45 वबाई जिल्दी बीमारी का मरीज़ फटे कपड़े पहने। उसके बाल बिखरे रहें। वह अपनी मूँछों को किसी कपड़े से छुपाए और पुकारता रहे, ‘नापाक, नापाक।’ \v 46 जिस वक़्त तक वबाई जिल्दी बीमारी लगी रहे वह नापाक है। वह इस दौरान ख़ैमागाह के बाहर जाकर तनहाई में रहे। \s1 फफूँदी से निपटने का तरीक़ा \p \v 47 हो सकता है कि ऊन या कतान के किसी लिबास पर फफूँदी लग गई है, \v 48 या कि फफूँदी ऊन या कतान के किसी कपड़े के टुकड़े या किसी चमड़े या चमड़े की किसी चीज़ पर लग गई है। \v 49 अगर फफूँदी का रंग हरा या लाल-सा हो तो वह फैलनेवाली फफूँदी है, और लाज़िम है कि उसे इमाम को दिखाया जाए। \v 50 इमाम उसका मुआयना करके उसे सात दिन के लिए अलहदगी में रखे। \v 51 सातवें दिन वह दुबारा उसका मुआयना करे। अगर फफूँदी फैल गई हो तो इसका मतलब है कि वह नुक़सानदेह है। मुतअस्सिरा चीज़ नापाक है। \v 52 इमाम उसे जला दे, क्योंकि यह फफूँदी नुक़सानदेह है। लाज़िम है कि उसे जला दिया जाए। \v 53 लेकिन अगर इन सात दिनों के बाद फफूँदी फैली हुई नज़र नहीं आती \v 54 तो इमाम हुक्म दे कि मुतअस्सिरा चीज़ को धुलवाया जाए। फिर वह उसे मज़ीद सात दिन के लिए अलहदगी में रखे। \v 55 इसके बाद वह दुबारा उसका मुआयना करे। अगर वह मालूम करे कि फफूँदी तो फैली हुई नज़र नहीं आती लेकिन उसका रंग वैसे का वैसा है तो वह नापाक है। उसे जला देना, चाहे फफूँदी मुतअस्सिरा चीज़ के सामनेवाले हिस्से या पिछले हिस्से में लगी हो। \v 56 लेकिन अगर मालूम हो जाए कि फफूँदी का रंग माँद पड़ गया है तो इमाम कपड़े या चमड़े में से मुतअस्सिरा जगह फाड़कर निकाल दे। \v 57 तो भी हो सकता है कि फफूँदी दुबारा उसी कपड़े या चमड़े पर नज़र आए। इसका मतलब है कि वह फैल रही है और उसे जला देना लाज़िम है। \v 58 लेकिन अगर फफूँदी धोने के बाद ग़ायब हो जाए तो उसे एक और दफ़ा धोना है। फिर मुतअस्सिरा चीज़ पाक होगी। \p \v 59 इसी तरह फफूँदी से निपटना है, चाहे वह ऊन या कतान के किसी लिबास को लग गई हो, चाहे ऊन या कतान के किसी टुकड़े या चमड़े की किसी चीज़ को लग गई हो। इन्हीं उसूलों के तहत फ़ैसला करना है कि मुतअस्सिरा चीज़ पाक है या नापाक।” \c 14 \s1 वबाई जिल्दी बीमारी के मरीज़ की शफ़ा पर क़ुरबानी \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “अगर कोई शख़्स जिल्दी बीमारी से शफ़ा पाए और उसे पाक-साफ़ कराना है तो उसे इमाम के पास लाया जाए \v 3 जो ख़ैमागाह के बाहर जाकर उसका मुआयना करे। अगर वह देखे कि मरीज़ की सेहत वाक़ई बहाल हो गई है \v 4 तो इमाम उसके लिए दो ज़िंदा और पाक परिंदे, देवदार की लकड़ी, क़िरमिज़ी रंग का धागा और ज़ूफ़ा मँगवाए। \v 5 इमाम के हुक्म पर परिंदों में से एक को ताज़ा पानी से भरे हुए मिट्टी के बरतन के ऊपर ज़बह किया जाए। \v 6 इमाम ज़िंदा परिंदे को देवदार की लकड़ी, क़िरमिज़ी रंग के धागे और ज़ूफ़ा के साथ ज़बह किए गए परिंदे के उस ख़ून में डुबो दे जो मिट्टी के बरतन के पानी में आ गया है। \v 7 वह पानी से मिलाया हुआ ख़ून सात बार पाक होनेवाले शख़्स पर छिड़ककर उसे पाक क़रार दे, फिर ज़िंदा परिंदे को खुले मैदान में छोड़ दे। \v 8 जो अपने आपको पाक-साफ़ करा रहा है वह अपने कपड़े धोए, अपने तमाम बाल मुँडवाए और नहा ले। इसके बाद वह पाक है। अब वह ख़ैमागाह में दाख़िल हो सकता है अगरचे वह मज़ीद सात दिन अपने डेरे में नहीं जा सकता। \v 9 सातवें दिन वह दुबारा अपने सर के बाल, अपनी दाढ़ी, अपने अबरू और बाक़ी तमाम बाल मुँडवाए। वह अपने कपड़े धोए और नहा ले। तब वह पाक है। \p \v 10 आठवें दिन वह दो भेड़ के नर बच्चे और एक यकसाला भेड़ चुन ले जो बेऐब हों। साथ ही वह ग़ल्ला की नज़र के लिए तेल के साथ मिलाया गया साढ़े 4 किलोग्राम बेहतरीन मैदा और 300 मिलीलिटर तेल ले। \v 11 फिर जिस इमाम ने उसे पाक क़रार दिया वह उसे इन क़ुरबानियों समेत मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर रब को पेश करे। \v 12 भेड़ का एक नर बच्चा और 300 मिलीलिटर तेल क़ुसूर की क़ुरबानी के लिए है। इमाम उन्हें हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब के सामने हिलाए। \v 13 फिर वह भेड़ के इस बच्चे को ख़ैमे के दरवाज़े पर ज़बह करे जहाँ गुनाह की क़ुरबानियाँ और भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ ज़बह की जाती हैं। गुनाह की क़ुरबानियों की तरह क़ुसूर की यह क़ुरबानी इमाम का हिस्सा है और निहायत मुक़द्दस है। \v 14 इमाम ख़ून में से कुछ लेकर पाक होनेवाले के दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ और दहने पाँव के अंगूठों पर लगाए। \v 15 अब वह 300 मिलीलिटर तेल में से कुछ लेकर अपने बाएँ हाथ की हथेली पर डाले। \v 16 अपने दहने हाथ के अंगूठे के साथवाली उँगली इस तेल में डुबोकर वह उसे सात बार रब के सामने छिड़के। \v 17 वह अपनी हथेली पर के तेल में से कुछ और लेकर पाक होनेवाले के दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ और दहने पाँव के अंगूठों पर लगा दे यानी उन जगहों पर जहाँ वह क़ुसूर की क़ुरबानी का ख़ून लगा चुका है। \v 18 इमाम अपनी हथेली पर का बाक़ी तेल पाक होनेवाले के सर पर डालकर रब के सामने उसका कफ़्फ़ारा दे। \p \v 19 इसके बाद इमाम गुनाह की क़ुरबानी चढ़ाकर पाक होनेवाले का कफ़्फ़ारा दे। आख़िर में वह भस्म होनेवाली क़ुरबानी का जानवर ज़बह करे। \v 20 वह उसे ग़ल्ला की नज़र के साथ क़ुरबानगाह पर चढ़ाकर उसका कफ़्फ़ारा दे। तब वह पाक है। \p \v 21 अगर शफ़ायाब शख़्स ग़ुरबत के बाइस यह क़ुरबानियाँ नहीं चढ़ा सकता तो फिर वह क़ुसूर की क़ुरबानी के लिए भेड़ का सिर्फ़ एक नर बच्चा ले आए। काफ़ी है कि कफ़्फ़ारा देने के लिए यही रब के सामने हिलाया जाए। साथ साथ ग़ल्ला की नज़र के लिए डेढ़ किलोग्राम बेहतरीन मैदा तेल के साथ मिलाकर पेश किया जाए और 300 मिलीलिटर तेल। \v 22 इसके अलावा वह दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर पेश करे, एक को गुनाह की क़ुरबानी के लिए और दूसरे को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए। \v 23 आठवें दिन वह उन्हें मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर इमाम के पास और रब के सामने ले आए ताकि वह पाक-साफ़ हो जाए। \v 24 इमाम भेड़ के बच्चे को 300 मिलीलिटर तेल समेत लेकर हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब के सामने हिलाए। \v 25 वह क़ुसूर की क़ुरबानी के लिए भेड़ के बच्चे को ज़बह करे और उसके ख़ून में से कुछ लेकर पाक होनेवाले के दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ और दहने पाँव के अंगूठों पर लगाए। \v 26 अब वह 300 मिलीलिटर तेल में से कुछ अपने बाएँ हाथ की हथेली पर डाले \v 27 और अपने दहने हाथ के अंगूठे के साथवाली उँगली इस तेल में डुबोकर उसे सात बार रब के सामने छिड़क दे। \v 28 वह अपनी हथेली पर के तेल में से कुछ और लेकर पाक होनेवाले के दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ और दहने पाँव के अंगूठों पर लगा दे यानी उन जगहों पर जहाँ वह क़ुसूर की क़ुरबानी का ख़ून लगा चुका है। \v 29 अपनी हथेली पर का बाक़ी तेल वह पाक होनेवाले के सर पर डाल दे ताकि रब के सामने उसका कफ़्फ़ारा दे। \v 30 इसके बाद वह शफ़ायाब शख़्स की गुंजाइश के मुताबिक़ दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर चढ़ाए, \v 31 एक को गुनाह की क़ुरबानी के लिए और दूसरे को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए। साथ ही वह ग़ल्ला की नज़र पेश करे। यों इमाम रब के सामने उसका कफ़्फ़ारा देता है। \v 32 यह उसूल ऐसे शख़्स के लिए है जो वबाई जिल्दी बीमारी से शफ़ा पा गया है लेकिन अपनी ग़ुरबत के बाइस पाक हो जाने के लिए पूरी क़ुरबानी पेश नहीं कर सकता।” \s1 घरों में फफूँदी \p \v 33 रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 34 “जब तुम मुल्के-कनान में दाख़िल होगे जो मैं तुम्हें दूँगा तो वहाँ ऐसे मकान होंगे जिनमें मैंने फफूँदी फैलने दी है। \v 35 ऐसे घर का मालिक जाकर इमाम को बताए कि मैंने अपने घर में फफूँदी जैसी कोई चीज़ देखी है। \v 36 तब इमाम हुक्म दे कि घर का मुआयना करने से पहले घर का पूरा सामान निकाला जाए। वरना अगर घर को नापाक क़रार दिया जाए तो सामान को भी नापाक क़रार दिया जाएगा। इसके बाद इमाम अंदर जाकर मकान का मुआयना करे। \v 37 वह दीवारों के साथ लगी हुई फफूँदी का मुआयना करे। अगर मुतअस्सिरा जगहें हरी या लाल-सी हों और दीवार के अंदर धँसी हुई नज़र आएँ \v 38 तो फिर इमाम घर से निकलकर सात दिन के लिए ताला लगाए। \v 39 सातवें दिन वह वापस आकर मकान का मुआयना करे। अगर फफूँदी फैली हुई नज़र आए \v 40 तो वह हुक्म दे कि मुतअस्सिरा पत्थरों को निकालकर आबादी के बाहर किसी नापाक जगह पर फेंका जाए। \v 41 नीज़ वह हुक्म दे कि अंदर की दीवारों को कुरेदा जाए और कुरेदी हुई मिट्टी को आबादी के बाहर किसी नापाक जगह पर फेंका जाए। \v 42 फिर लोग नए पत्थर लगाकर घर को नए गारे से पलस्तर करें। \v 43 लेकिन अगर इसके बावुजूद फफूँदी दुबारा पैदा हो जाए \v 44 तो इमाम आकर दुबारा उसका मुआयना करे। अगर वह देखे कि फफूँदी घर में फैल गई है तो इसका मतलब है कि फफूँदी नुक़सानदेह है, इसलिए घर नापाक है। \v 45 लाज़िम है कि उसे पूरे तौर पर ढा दिया जाए और सब कुछ यानी उसके पत्थर, लकड़ी और पलस्तर को आबादी के बाहर किसी नापाक जगह पर फेंका जाए। \p \v 46 अगर इमाम ने किसी घर का मुआयना करके ताला लगा दिया है और फिर भी कोई उस घर में दाख़िल हो जाए तो वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 47 जो ऐसे घर में सोए या खाना खाए लाज़िम है कि वह अपने कपड़े धो ले। \v 48 लेकिन अगर घर को नए सिरे से पलस्तर करने के बाद इमाम आकर उसका दुबारा मुआयना करे और देखे कि फफूँदी दुबारा नहीं निकली तो इसका मतलब है कि फफूँदी ख़त्म हो गई है। वह उसे पाक क़रार दे। \v 49 उसे गुनाह से पाक-साफ़ कराने के लिए वह दो परिंदे, देवदार की लकड़ी, क़िरमिज़ी रंग का धागा और ज़ूफ़ा ले ले। \v 50 वह परिंदों में से एक को ताज़ा पानी से भरे हुए मिट्टी के बरतन के ऊपर ज़बह करे। \v 51 इसके बाद वह देवदार की लकड़ी, ज़ूफ़ा, क़िरमिज़ी रंग का धागा और ज़िंदा परिंदा लेकर उस ताज़ा पानी में डुबो दे जिसके साथ ज़बह किए हुए परिंदे का ख़ून मिलाया गया है और इस पानी को सात बार घर पर छिड़क दे। \v 52 इन चीज़ों से वह घर को गुनाह से पाक-साफ़ करता है। \v 53 आख़िर में वह ज़िंदा परिंदे को आबादी के बाहर खुले मैदान में छोड़ दे। यों वह घर का कफ़्फ़ारा देगा, और वह पाक-साफ़ हो जाएगा। \p \v 54-56 लाज़िम है कि हर क़िस्म की वबाई बीमारी से ऐसे निपटो जैसे बयान किया गया है, चाहे वह वबाई जिल्दी बीमारियाँ हों (मसलन ख़ारिश, सूजन, पपड़ी या सफ़ेद दाग़), चाहे कपड़ों या घरों में फफूँदी हो। \v 57 इन उसूलों के तहत फ़ैसला करना है कि कोई शख़्स या चीज़ पाक है या नापाक।” \c 15 \s1 मर्दों की नापाकी \p \v 1 रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि अगर किसी मर्द को जरयान का मरज़ हो तो वह ख़ारिज होनेवाले माए के सबब से नापाक है, \v 3 चाहे माए बहता रहता हो या रुक गया हो। \v 4 जिस चीज़ पर भी मरीज़ लेटता या बैठता है वह नापाक है। \v 5-6 जो भी उसके लेटने की जगह को छुए या उसके बैठने की जगह पर बैठ जाए वह अपने कपड़े धोकर नहा ले। वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 7 इसी तरह जो भी ऐसे मरीज़ को छुए वह अपने कपड़े धोकर नहा ले। वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 8 अगर मरीज़ किसी पाक शख़्स पर थूके तो यही कुछ करना है और वह शख़्स शाम तक नापाक रहेगा। \v 9 जब ऐसा मरीज़ किसी जानवर पर सवार होता है तो हर चीज़ जिस पर वह बैठ जाता है नापाक है। \v 10 जो भी ऐसी चीज़ छुए या उसे उठाकर ले जाए वह अपने कपड़े धोकर नहा ले। वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 11 जिस किसी को भी मरीज़ अपने हाथ धोए बग़ैर छुए वह अपने कपड़े धोकर नहा ले। वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 12 मिट्टी का जो बरतन ऐसा मरीज़ छुए उसे तोड़ दिया जाए। लकड़ी का जो बरतन वह छुए उसे ख़ूब धोया जाए। \p \v 13 जिसे इस मरज़ से शफ़ा मिली है वह सात दिन इंतज़ार करे। इसके बाद वह ताज़ा पानी से अपने कपड़े धोकर नहा ले। फिर वह पाक हो जाएगा। \v 14 आठवें दिन वह दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर लेकर मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर रब के सामने इमाम को दे। \v 15 इमाम उनमें से एक को गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर और दूसरे को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाए। यों वह रब के सामने उसका कफ़्फ़ारा देगा। \p \v 16 अगर किसी मर्द का नुतफ़ा ख़ारिज हो जाए तो वह अपने पूरे जिस्म को धो ले। वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 17 हर कपड़ा या चमड़ा जिससे नुतफ़ा लग गया हो उसे धोना है। वह भी शाम तक नापाक रहेगा। \v 18 अगर मर्द और औरत के हमबिसतर होने पर नुतफ़ा ख़ारिज हो जाए तो लाज़िम है कि दोनों नहा लें। वह शाम तक नापाक रहेंगे। \s1 औरतों की नापाकी \p \v 19 माहवारी के वक़्त औरत सात दिन तक नापाक है। जो भी उसे छुए वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 20 इस दौरान जिस चीज़ पर भी वह लेटती या बैठती है वह नापाक है। \v 21-23 जो भी उसके लेटने की जगह को छुए या उसके बैठने की जगह पर बैठ जाए वह अपने कपड़े धोकर नहा ले। वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 24 अगर मर्द औरत से हमबिसतर हो और उसी वक़्त माहवारी के दिन शुरू हो जाएँ तो मर्द ख़ून लगने के बाइस सात दिन तक नापाक रहेगा। जिस चीज़ पर भी वह लेटता है वह नापाक हो जाएगी। \p \v 25 अगर किसी औरत को माहवारी के दिन छोड़कर किसी और वक़्त कई दिनों तक ख़ून आए या ख़ून माहवारी के दिनों के बाद भी जारी रहे तो वह माहवारी के दिनों की तरह उस वक़्त तक नापाक रहेगी जब तक ख़ून रुक न जाए। \v 26 जिस चीज़ पर भी वह लेटती या बैठती है वह नापाक है। \v 27 जो भी ऐसी चीज़ को छुए वह अपने कपड़े धोकर नहा ले। वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 28 ख़ून के रुक जाने पर औरत मज़ीद सात दिन इंतज़ार करे। फिर वह पाक होगी। \v 29 आठवें दिन वह दो क़ुम्रियाँ या दो जवान कबूतर लेकर मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर इमाम के पास आए। \v 30 इमाम उनमें से एक को गुनाह की क़ुरबानी के लिए और दूसरे को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए चढ़ाए। यों वह रब के सामने उस की नापाकी का कफ़्फ़ारा देगा। \p \v 31 लाज़िम है कि इसराईलियों को ऐसी चीज़ों से दूर रखा जाए जिनसे वह नापाक हो जाएँ। वरना मेरा वह मक़दिस जो उनके दरमियान है उनसे नापाक हो जाएगा और वह हलाक हो जाएंगे। \p \v 32 लाज़िम है कि इस क़िस्म के मामलों से ऐसे निपटो जैसे बयान किया गया है। इसमें वह मर्द शामिल है जो जरयान का मरीज़ है और वह जो नुतफ़ा ख़ारिज होने के बाइस नापाक है। \v 33 इसमें वह औरत भी शामिल है जिसके माहवारी के ऐयाम हैं और वह मर्द जो नापाक औरत से हमबिसतर हो जाता है।” \c 16 \s1 यौमे-कफ़्फ़ारा \p \v 1 जब हारून के दो बेटे रब के क़रीब आकर हलाक हुए तो इसके बाद रब मूसा से हमकलाम हुआ। \v 2 उसने कहा, \p “अपने भाई हारून को बताना कि वह सिर्फ़ मुक़र्ररा वक़्त पर परदे के पीछे मुक़द्दसतरीन कमरे में दाख़िल होकर अहद के संदूक़ के ढकने के सामने खड़ा हो जाए, वरना वह मर जाएगा। क्योंकि मैं ख़ुद उस ढकने के ऊपर बादल की सूरत में ज़ाहिर होता हूँ। \v 3 और जब भी वह दाख़िल हो तो गुनाह की क़ुरबानी के लिए एक जवान बैल और भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए एक मेंढा पेश करे। \v 4 पहले वह नहाकर इमाम के कतान के मुक़द्दस कपड़े पहन ले यानी ज़ेरजामा, उसके नीचे पाजामा, फिर कमरबंद और पगड़ी। \v 5 इसराईल की जमात हारून को गुनाह की क़ुरबानी के लिए दो बकरे और भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए एक मेंढा दे। \p \v 6 पहले हारून अपने और अपने घराने के लिए जवान बैल को गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाए। \v 7 फिर वह दोनों बकरों को मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर रब के सामने ले आए। \v 8 वहाँ वह क़ुरा डालकर एक को रब के लिए चुने और दूसरे को अज़ाज़ेल के लिए। \v 9 जो बकरा रब के लिए है उसे वह गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर पेश करे। \v 10 दूसरा बकरा जो क़ुरे के ज़रीए अज़ाज़ेल के लिए चुना गया उसे ज़िंदा हालत में रब के सामने खड़ा किया जाए ताकि वह जमात का कफ़्फ़ारा दे। वहाँ से उसे रेगिस्तान में अज़ाज़ेल के पास भेजा जाए। \p \v 11 लेकिन पहले हारून जवान बैल को गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाकर अपना और अपने घराने का कफ़्फ़ारा दे। उसे ज़बह करने के बाद \v 12 वह बख़ूर की क़ुरबानगाह से जलते हुए कोयलों से भरा हुआ बरतन लेकर अपनी दोनों मुट्ठियाँ बारीक ख़ुशबूदार बख़ूर से भर ले और मुक़द्दसतरीन कमरे में दाख़िल हो जाए। \v 13 वहाँ वह रब के हुज़ूर बख़ूर को जलते हुए कोयलों पर डाल दे। इससे पैदा होनेवाला धुआँ अहद के संदूक़ का ढकना छुपा देगा ताकि हारून मर न जाए। \v 14 अब वह जवान बैल के ख़ून में से कुछ लेकर अपनी उँगली से ढकने के सामनेवाले हिस्से पर छिड़के, फिर कुछ अपनी उँगली से सात बार उसके सामने ज़मीन पर छिड़के। \v 15 इसके बाद वह उस बकरे को ज़बह करे जो क़ौम के लिए गुनाह की क़ुरबानी है। वह उसका ख़ून मुक़द्दसतरीन कमरे में ले आए और उसे बैल के ख़ून की तरह अहद के संदूक़ के ढकने पर और सात बार उसके सामने ज़मीन पर छिड़के। \v 16 यों वह मुक़द्दसतरीन कमरे का कफ़्फ़ारा देगा जो इसराईलियों की नापाकियों और तमाम गुनाहों से मुतअस्सिर होता रहता है। इससे वह मुलाक़ात के पूरे ख़ैमे का भी कफ़्फ़ारा देगा जो ख़ैमागाह के दरमियान होने के बाइस इसराईलियों की नापाकियों से मुतअस्सिर होता रहता है। \p \v 17 जितना वक़्त हारून अपना, अपने घराने का और इसराईल की पूरी जमात का कफ़्फ़ारा देने के लिए मुक़द्दसतरीन कमरे में रहेगा इस दौरान किसी दूसरे को मुलाक़ात के ख़ैमे में ठहरने की इजाज़त नहीं है। \v 18 फिर वह मुक़द्दसतरीन कमरे से निकलकर ख़ैमे में रब के सामने पड़ी क़ुरबानगाह का कफ़्फ़ारा दे। वह बैल और बकरे के ख़ून में से कुछ लेकर उसे क़ुरबानगाह के चारों सींगों पर लगाए। \v 19 कुछ ख़ून वह अपनी उँगली से सात बार उस पर छिड़क दे। यों वह उसे इसराईलियों की नापाकियों से पाक करके मख़सूसो-मुक़द्दस करेगा। \p \v 20 मुक़द्दसतरीन कमरे, मुलाक़ात के ख़ैमे और क़ुरबानगाह का कफ़्फ़ारा देने के बाद हारून ज़िंदा बकरे को सामने लाए। \v 21 वह अपने दोनों हाथ उसके सर पर रखे और इसराईलियों के तमाम क़ुसूर यानी उनके तमाम जरायम और गुनाहों का इक़रार करके उन्हें बकरे के सर पर डाल दे। फिर वह उसे रेगिस्तान में भेज दे। इसके लिए वह बकरे को एक आदमी के सुपुर्द करे जिसे यह ज़िम्मादारी दी गई है। \v 22 बकरा अपने आप पर उनका तमाम क़ुसूर उठाकर किसी वीरान जगह में ले जाएगा। वहाँ साथवाला आदमी उसे छोड़ आए। \p \v 23 इसके बाद हारून मुलाक़ात के ख़ैमे में जाए और कतान के वह कपड़े जो उसने मुक़द्दसतरीन कमरे में दाख़िल होने से पेशतर पहन लिए थे उतारकर वहीं छोड़ दे। \v 24 वह मुक़द्दस जगह पर नहाकर अपनी ख़िदमत के आम कपड़े पहन ले। फिर वह बाहर आकर अपने और अपनी क़ौम के लिए भस्म होनेवाली क़ुरबानी पेश करे ताकि अपना और अपनी क़ौम का कफ़्फ़ारा दे। \v 25 इसके अलावा वह गुनाह की क़ुरबानी की चरबी क़ुरबानगाह पर जला दे। \p \v 26 जो आदमी अज़ाज़ेल के लिए बकरे को रेगिस्तान में छोड़ आया है वह अपने कपड़े धोकर नहा ले। इसके बाद वह ख़ैमागाह में आ सकता है। \p \v 27 जिस बैल और बकरे को गुनाह की क़ुरबानी के लिए पेश किया गया और जिनका ख़ून कफ़्फ़ारा देने के लिए मुक़द्दसतरीन कमरे में लाया गया, लाज़िम है कि उनकी खालें, गोश्त और गोबर ख़ैमागाह के बाहर जला दिया जाए। \v 28 यह चीज़ें जलानेवाला बाद में अपने कपड़े धोकर नहा ले। फिर वह ख़ैमागाह में आ सकता है। \p \v 29 लाज़िम है कि सातवें महीने के दसवें दिन इसराईली और उनके दरमियान रहनेवाले परदेसी अपनी जान को दुख दें और काम न करें। यह उसूल तुम्हारे लिए अबद तक क़ायम रहे। \v 30 इस दिन तुम्हारा कफ़्फ़ारा दिया जाएगा ताकि तुम्हें पाक किया जाए। तब तुम रब के सामने अपने तमाम गुनाहों से पाक ठहरोगे। \v 31 पूरा दिन आराम करो और अपनी जान को दुख दो। यह उसूल अबद तक क़ायम रहे। \p \v 32 इस दिन इमामे-आज़म तुम्हारा कफ़्फ़ारा दे, वह इमाम जिसे उसके बाप की जगह मसह किया गया और इख़्तियार दिया गया है। वह कतान के मुक़द्दस कपड़े पहनकर \v 33 मुक़द्दसतरीन कमरे, मुलाक़ात के ख़ैमे, क़ुरबानगाह, इमामों और जमात के तमाम लोगों का कफ़्फ़ारा दे। \v 34 लाज़िम है कि साल में एक दफ़ा इसराईलियों के तमाम गुनाहों का कफ़्फ़ारा दिया जाए। यह उसूल तुम्हारे लिए अबद तक क़ायम रहे।” \p सब कुछ वैसे ही किया गया जैसा रब ने मूसा को हुक्म दिया था। \c 17 \s1 क़ुरबानी चढ़ाने का मक़ाम \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “हारून, उसके बेटों और तमाम इसराईलियों को हिदायत देना \v 3-4 कि जो भी इसराईली अपनी गाय या भेड़-बकरी मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर रब को क़ुरबानी के तौर पर पेश न करे बल्कि ख़ैमागाह के अंदर या बाहर किसी और जगह पर ज़बह करे वह ख़ून बहाने का क़ुसूरवार ठहरेगा। उसने ख़ून बहाया है, और लाज़िम है कि उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए। \v 5 इस हिदायत का मक़सद यह है कि इसराईली अब से अपनी क़ुरबानियाँ खुले मैदान में ज़बह न करें बल्कि रब को पेश करें। वह अपने जानवरों को मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर इमाम के पास लाकर उन्हें रब को सलामती की क़ुरबानी के तौर पर पेश करें। \v 6 इमाम उनका ख़ून मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर की क़ुरबानगाह पर छिड़के और उनकी चरबी उस पर जला दे। ऐसी क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद है। \v 7 अब से इसराईली अपनी क़ुरबानियाँ उन बकरों के देवताओं को पेश न करें जिनकी पैरवी करके उन्होंने ज़िना किया है। यह उनके लिए और उनके बाद आनेवाली नसलों के लिए एक दायमी उसूल है। \p \v 8 लाज़िम है कि हर इसराईली और तुम्हारे दरमियान रहनेवाला परदेसी अपनी भस्म होनेवाली क़ुरबानी या कोई और क़ुरबानी \v 9 मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर लाकर रब को पेश करे। वरना उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाएगा। \s1 ख़ून खाना मना है \p \v 10 ख़ून खाना बिलकुल मना है। जो भी इसराईली या तुम्हारे दरमियान रहनेवाला परदेसी ख़ून खाए मैं उसके ख़िलाफ़ हो जाऊँगा और उसे उस की क़ौम में से मिटा डालूँगा। \v 11 क्योंकि हर मख़लूक़ के ख़ून में उस की जान है। मैंने उसे तुम्हें दे दिया है ताकि वह क़ुरबानगाह पर तुम्हारा कफ़्फ़ारा दे। क्योंकि ख़ून ही उस जान के ज़रीए जो उसमें है तुम्हारा कफ़्फ़ारा देता है। \v 12 इसलिए मैं कहता हूँ कि न कोई इसराईली न कोई परदेसी ख़ून खाए। \p \v 13 अगर कोई भी इसराईली या परदेसी किसी जानवर या परिंदे का शिकार करके पकड़े जिसे खाने की इजाज़त है तो वह उसे ज़बह करने के बाद उसका पूरा ख़ून ज़मीन पर बहने दे और ख़ून पर मिट्टी डाले। \v 14 क्योंकि हर मख़लूक़ का ख़ून उस की जान है। इसलिए मैंने इसराईलियों को कहा है कि किसी भी मख़लूक़ का ख़ून न खाओ। हर मख़लूक़ का ख़ून उस की जान है, और जो भी उसे खाए उसे क़ौम में से मिटा देना है। \p \v 15 अगर कोई भी इसराईली या परदेसी ऐसे जानवर का गोश्त खाए जो फ़ितरी तौर पर मर गया या जिसे जंगली जानवरों ने फाड़ डाला हो तो वह अपने कपड़े धोकर नहा ले। वह शाम तक नापाक रहेगा। \v 16 जो ऐसा नहीं करता उसे अपने क़ुसूर की सज़ा भुगतनी पड़ेगी।” \c 18 \s1 नाजायज़ जिंसी ताल्लुक़ात \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \v 3 मिसरियों की तरह ज़िंदगी न गुज़ारना जिनमें तुम रहते थे। मुल्के-कनान के लोगों की तरह भी ज़िंदगी न गुज़ारना जिनके पास मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ। उनके रस्मो-रिवाज न अपनाना। \v 4 मेरे ही अहकाम पर अमल करो और मेरी हिदायात के मुताबिक़ चलो। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \v 5 मेरी हिदायात और अहकाम के मुताबिक़ चलना, क्योंकि जो यों करेगा वह जीता रहेगा। मैं रब हूँ। \p \v 6 तुममें से कोई भी अपनी क़रीबी रिश्तेदार से हमबिसतर न हो। मैं रब हूँ। \p \v 7 अपनी माँ से हमबिसतर न होना, वरना तेरे बाप की बेहुरमती हो जाएगी। वह तेरी माँ है, इसलिए उससे हमबिसतर न होना। \p \v 8 अपने बाप की किसी भी बीवी से हमबिसतर न होना, वरना तेरे बाप की बेहुरमती हो जाएगी। \p \v 9 अपनी बहन से हमबिसतर न होना, चाहे वह तेरे बाप या तेरी माँ की बेटी हो, चाहे वह तेरे ही घर में या कहीं और पैदा हुई हो। \p \v 10 अपनी पोती या नवासी से हमबिसतर न होना, वरना तेरी अपनी बेहुरमती हो जाएगी। \p \v 11 अपने बाप की बीवी की बेटी से हमबिसतर न होना। वह तेरी बहन है। \p \v 12 अपनी फूफी से हमबिसतर न होना। वह तेरे बाप की क़रीबी रिश्तेदार है। \p \v 13 अपनी ख़ाला से हमबिसतर न होना। वह तेरी माँ की क़रीबी रिश्तेदार है। \p \v 14 अपने बाप के भाई की बीवी से हमबिसतर न होना, वरना तेरे बाप के भाई की बेहुरमती हो जाएगी। उस की बीवी तेरी चची है। \p \v 15 अपनी बहू से हमबिसतर न होना। वह तेरे बेटे की बीवी है। \p \v 16 अपनी भाबी से हमबिसतर न होना, वरना तेरे भाई की बेहुरमती हो जाएगी। \p \v 17 अगर तेरा जिंसी ताल्लुक़ किसी औरत से हो तो उस की बेटी, पोती या नवासी से हमबिसतर होना मना है, क्योंकि वह उस की क़रीबी रिश्तेदार हैं। ऐसा करना बड़ी शर्मनाक हरकत है। \p \v 18 अपनी बीवी के जीते-जी उस की बहन से शादी न करना। \p \v 19 किसी औरत से उस की माहवारी के दिनों में हमबिसतर न होना। इस दौरान वह नापाक है। \p \v 20 किसी दूसरे मर्द की बीवी से हमबिसतर न होना, वरना तू अपने आपको नापाक करेगा। \p \v 21 अपने किसी भी बच्चे को मलिक देवता को क़ुरबानी के तौर पर पेश करके जला देना मना है। ऐसी हरकत से तू अपने ख़ुदा के नाम को दाग़ लगाएगा। मैं रब हूँ। \p \v 22 मर्द दूसरे मर्द के साथ जिंसी ताल्लुक़ात न रखे। ऐसी हरकत क़ाबिले-घिन है। \p \v 23 किसी जानवर से जिंसी ताल्लुक़ात न रखना, वरना तू नापाक हो जाएगा। औरतों के लिए भी ऐसा करना मना है। यह बड़ी शर्मनाक हरकत है। \p \v 24 ऐसी हरकतों से अपने आपको नापाक न करना। क्योंकि जो क़ौमें मैं तुम्हारे आगे मुल्क से निकालूँगा वह इसी तरह नापाक होती रहीं। \v 25 मुल्क ख़ुद भी नापाक हुआ। इसलिए मैंने उसे उसके क़ुसूर के सबब से सज़ा दी, और नतीजे में उसने अपने बाशिंदों को उगल दिया। \v 26 लेकिन तुम मेरी हिदायात और अहकाम के मुताबिक़ चलो। न देसी और न परदेसी ऐसी कोई घिनौनी हरकत करें। \v 27 क्योंकि यह तमाम क़ाबिले-घिन बातें उनसे हुईं जो तुमसे पहले इस मुल्क में रहते थे। यों मुल्क नापाक हुआ। \v 28 लिहाज़ा अगर तुम भी मुल्क को नापाक करोगे तो वह तुम्हें इसी तरह उगल देगा जिस तरह उसने तुमसे पहले मौजूद क़ौमों को उगल दिया। \v 29 जो भी मज़कूरा घिनौनी हरकतों में से एक करे उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए। \v 30 मेरे अहकाम के मुताबिक़ चलते रहो और ऐसे क़ाबिले-घिन रस्मो-रिवाज न अपनाना जो तुम्हारे आने से पहले रायज थे। इनसे अपने आपको नापाक न करना। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।” \c 19 \s1 मुक़द्दस क़ौम के लिए हिदायात \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों की पूरी जमात को बताना कि मुक़द्दस रहो, क्योंकि मैं रब तुम्हारा ख़ुदा क़ुद्दूस हूँ। \p \v 3 तुममें से हर एक अपने माँ-बाप की इज़्ज़त करे। हफ़ते के दिन काम न करना। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \v 4 न बुतों की तरफ़ रुजू करना, न अपने लिए देवता ढालना। मैं ही रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \p \v 5 जब तुम रब को सलामती की क़ुरबानी पेश करते हो तो उसे यों चढ़ाओ कि तुम मंज़ूर हो जाओ। \v 6 उसका गोश्त उसी दिन या अगले दिन खाया जाए। जो भी तीसरे दिन तक बच जाता है उसे जलाना है। \v 7 अगर कोई उसे तीसरे दिन खाए तो उसे इल्म होना चाहिए कि यह क़ुरबानी नापाक है और रब को पसंद नहीं है। \v 8 ऐसे शख़्स को अपने क़ुसूर की सज़ा उठानी पड़ेगी, क्योंकि उसने उस चीज़ की मुक़द्दस हालत ख़त्म की है जो रब के लिए मख़सूस की गई थी। उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए। \p \v 9 कटाई के वक़्त अपनी फ़सल पूरे तौर पर न काटना बल्कि खेत के किनारों पर कुछ छोड़ देना। इस तरह जो कुछ कटाई करते वक़्त खेत में बच जाए उसे छोड़ना। \v 10 अंगूर के बाग़ों में भी जो कुछ अंगूर तोड़ते वक़्त बच जाए उसे छोड़ देना। जो अंगूर ज़मीन पर गिर जाएँ उन्हें उठाकर न ले जाना। उन्हें ग़रीबों और परदेसियों के लिए छोड़ देना। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \p \v 11 चोरी न करना, झूट न बोलना, एक दूसरे को धोका न देना। \p \v 12 मेरे नाम की क़सम खाकर धोका न देना, वरना तुम मेरे नाम को दाग़ लगाओगे। मैं रब हूँ। \p \v 13 एक दूसरे को न दबाना और न लूटना। किसी की मज़दूरी उसी दिन की शाम तक दे देना और उसे अगली सुबह तक रोके न रखना। \p \v 14 बहरे को न कोसना, न अंधे के रास्ते में कोई चीज़ रखना जिससे वह ठोकर खाए। इसमें भी अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना। मैं रब हूँ। \p \v 15 अदालत में किसी की हक़तलफ़ी न करना। फ़ैसला करते वक़्त किसी की भी जानिबदारी न करना, चाहे वह ग़रीब या असरो-रसूख़वाला हो। इनसाफ़ से अपने पड़ोसी की अदालत कर। \p \v 16 अपनी क़ौम में इधर-उधर फिरते हुए किसी पर बुहतान न लगाना। कोई भी ऐसा काम न करना जिससे किसी की जान ख़तरे में पड़ जाए। मैं रब हूँ। \p \v 17 दिल में अपने भाई से नफ़रत न करना। अगर किसी की सरज़निश करनी है तो रूबरू करना, वरना तू उसके सबब से क़ुसूरवार ठहरेगा। \p \v 18 इंतक़ाम न लेना। अपनी क़ौम के किसी शख़्स पर देर तक तेरा ग़ुस्सा न रहे बल्कि अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है। मैं रब हूँ। \p \v 19 मेरी हिदायात पर अमल करो। दो मुख़्तलिफ़ क़िस्म के जानवरों को मिलाप न करने देना। अपने खेत में दो क़िस्म के बीज न बोना। ऐसा कपड़ा न पहनना जो दो मुख़्तलिफ़ क़िस्म के धागों का बुना हुआ हो। \p \v 20 अगर कोई आदमी किसी लौंडी से जिसकी मँगनी किसी और से हो चुकी हो हमबिसतर हो जाए और लौंडी को अब तक न पैसों से न वैसे ही आज़ाद किया गया हो तो मुनासिब सज़ा दी जाए। लेकिन उन्हें सज़ाए-मौत न दी जाए, क्योंकि उसे अब तक आज़ाद नहीं किया गया। \v 21 क़ुसूरवार आदमी मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर एक मेंढा ले आए ताकि वह रब को क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर पेश किया जाए। \v 22 इमाम इस क़ुरबानी से रब के सामने उसके गुनाह का कफ़्फ़ारा दे। यों उसका गुनाह मुआफ़ किया जाएगा। \v 23 जब मुल्के-कनान में दाख़िल होने के बाद तुम फलदार दरख़्त लगाओगे तो पहले तीन साल उनका फल न खाना बल्कि उसे ममनू \f + \fr 19:23 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : नामख़तून। \f* समझना। \v 24 चौथे साल उनका तमाम फल ख़ुशी के मुक़द्दस नज़राने के तौर पर रब के लिए मख़सूस किया जाए। \v 25 पाँचवें साल तुम उनका फल खा सकते हो। यों तुम्हारी फ़सल बढ़ाई जाएगी। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \p \v 26 ऐसा गोश्त न खाना जिसमें ख़ून हो। फ़ाल या शुगून न निकालना। \p \v 27 अपने सर के बाल गोल शक्ल में न कटवाना, न अपनी दाढ़ी को तराशना। \v 28 अपने आपको मुरदों के सबब से काटकर ज़ख़मी न करना, न अपनी जिल्द पर नुक़ूश गुदवाना। मैं रब हूँ। \p \v 29 अपनी बेटी को कसबी न बनाना, वरना उस की मुक़द्दस हालत जाती रहेगी और मुल्क ज़िनाकारी के बाइस हरामकारी से भर जाएगा। \p \v 30 हफ़ते के दिन आराम करना और मेरे मक़दिस का एहतराम करना। मैं रब हूँ। \p \v 31 ऐसे लोगों के पास न जाना जो मुरदों से राबिता करते हैं, न ग़ैबदानों की तरफ़ रुजू करना, वरना तुम उनसे नापाक हो जाओगे। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \p \v 32 बूढ़े लोगों के सामने उठकर खड़ा हो जाना, बुज़ुर्गों की इज़्ज़त करना और अपने ख़ुदा का एहतराम करना। मैं रब हूँ। \p \v 33 जो परदेसी तुम्हारे मुल्क में तुम्हारे दरमियान रहता है उसे न दबाना। \v 34 उसके साथ ऐसा सुलूक कर जैसा अपने हमवतनों के साथ करता है। जिस तरह तू अपने आपसे मुहब्बत रखता है उसी तरह उससे भी मुहब्बत रखना। याद रहे कि तुम ख़ुद मिसर में परदेसी थे। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \p \v 35 नाइनसाफ़ी न करना। न अदालत में, न लंबाई नापते वक़्त, न तोलते वक़्त और न किसी चीज़ की मिक़दार नापते वक़्त। \v 36 सहीह तराज़ू, सहीह बाट और सहीह पैमाना इस्तेमाल करना। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ जो तुम्हें मिसर से निकाल लाया हूँ। \p \v 37 मेरी तमाम हिदायात और तमाम अहकाम मानो और उन पर अमल करो। मैं रब हूँ।” \c 20 \s1 जरायम की सज़ाएँ \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि तुममें से जो भी अपने बच्चे को मलिक देवता को क़ुरबानी के तौर पर पेश करे उसे सज़ाए-मौत देनी है। इसमें कोई फ़रक़ नहीं कि वह इसराईली है या परदेसी। जमात के लोग उसे संगसार करें। \v 3 मैं ख़ुद ऐसे शख़्स के ख़िलाफ़ हो जाऊँगा और उसे उस की क़ौम में से मिटा डालूँगा। क्योंकि अपने बच्चों को मलिक को पेश करने से उसने मेरे मक़दिस को नापाक किया और मेरे नाम को दाग़ लगाया है। \v 4 अगर जमात के लोग अपनी आँखें बंद करके ऐसे शख़्स की हरकतें नज़रंदाज़ करें और उसे सज़ाए-मौत न दें \v 5 तो फिर मैं ख़ुद ऐसे शख़्स और उसके घराने के ख़िलाफ़ खड़ा हो जाऊँगा। मैं उसे और उन तमाम लोगों को क़ौम में से मिटा डालूँगा जिन्होंने उसके पीछे लगकर मलिक देवता को सिजदा करने से ज़िना किया है। \p \v 6 जो शख़्स मुरदों से राबिता करने और ग़ैबदानी करनेवालों की तरफ़ रुजू करता है मैं उसके ख़िलाफ़ हो जाऊँगा। उनकी पैरवी करने से वह ज़िना करता है। मैं उसे उस की क़ौम में से मिटा डालूँगा। \v 7 अपने आपको मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस रखो, क्योंकि मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \v 8 मेरी हिदायात मानो और उन पर अमल करो। मैं रब हूँ जो तुम्हें मख़सूसो-मुक़द्दस करता हूँ। \p \v 9 जिसने भी अपने बाप या माँ पर लानत भेजी है उसे सज़ाए-मौत दी जाए। इस हरकत से वह अपनी मौत का ख़ुद ज़िम्मादार है। \p \v 10 अगर किसी मर्द ने किसी की बीवी के साथ ज़िना किया है तो दोनों को सज़ाए-मौत देनी है। \p \v 11 जो मर्द अपने बाप की बीवी से हमबिसतर हुआ है उसने अपने बाप की बेहुरमती की है। दोनों को सज़ाए-मौत देनी है। वह अपनी मौत के ख़ुद ज़िम्मादार हैं। \p \v 12 अगर कोई मर्द अपनी बहू से हमबिसतर हुआ है तो दोनों को सज़ाए-मौत देनी है। जो कुछ उन्होंने किया है वह निहायत शर्मनाक है। वह अपनी मौत के ख़ुद ज़िम्मादार हैं। \p \v 13 अगर कोई मर्द किसी दूसरे मर्द से जिंसी ताल्लुक़ात रखे तो दोनों को इस घिनौनी हरकत के बाइस सज़ाए-मौत देनी है। वह अपनी मौत के ख़ुद ज़िम्मादार हैं। \p \v 14 अगर कोई आदमी अपनी बीवी के अलावा उस की माँ से भी शादी करे तो यह एक निहायत शर्मनाक बात है। दोनों को जला देना है ताकि तुम्हारे दरमियान कोई ऐसी ख़बीस बात न रहे। \p \v 15 जो मर्द किसी जानवर से जिंसी ताल्लुक़ात रखे उसे सज़ाए-मौत देना है। उस जानवर को भी मार दिया जाए। \v 16 जो औरत किसी जानवर से जिंसी ताल्लुक़ात रखे उसे सज़ाए-मौत देनी है। उस जानवर को भी मार दिया जाए। वह अपनी मौत के ख़ुद ज़िम्मादार हैं। \p \v 17 जिस मर्द ने अपनी बहन से शादी की है उसने शर्मनाक हरकत की है, चाहे वह बाप की बेटी हो या माँ की। उन्हें इसराईली क़ौम की नज़रों से मिटाया जाए। ऐसे शख़्स ने अपनी बहन की बेहुरमती की है। इसलिए उसे ख़ुद अपने क़ुसूर के नतीजे बरदाश्त करने पड़ेंगे। \p \v 18 अगर कोई मर्द माहवारी के ऐयाम में किसी औरत से हमबिसतर हुआ है तो दोनों को उनकी क़ौम में से मिटाना है। क्योंकि दोनों ने औरत के ख़ून के मंबा से परदा उठाया है। \p \v 19 अपनी ख़ाला या फूफी से हमबिसतर न होना। क्योंकि जो ऐसा करता है वह अपनी क़रीबी रिश्तेदार की बेहुरमती करता है। दोनों को अपने क़ुसूर के नतीजे बरदाश्त करने पड़ेंगे। \p \v 20 जो अपनी चची या ताई से हमबिसतर हुआ है उसने अपने चचा या ताया की बेहुरमती की है। दोनों को अपने क़ुसूर के नतीजे बरदाश्त करने पड़ेंगे। वह बेऔलाद मरेंगे। \p \v 21 जिसने अपनी भाबी से शादी की है उसने एक नजिस हरकत की है। उसने अपने भाई की बेहुरमती की है। वह बेऔलाद रहेंगे। \p \v 22 मेरी तमाम हिदायात और अहकाम को मानो और उन पर अमल करो। वरना जिस मुल्क में मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ वह तुम्हें उगल देगा। \v 23 उन क़ौमों के रस्मो-रिवाज के मुताबिक़ ज़िंदगी न गुज़ारना जिन्हें मैं तुम्हारे आगे से निकाल दूँगा। मुझे इस सबब से उनसे घिन आने लगी कि वह यह सब कुछ करते थे। \v 24 लेकिन तुमसे मैंने कहा, ‘तुम ही उनकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करोगे। मैं ही उसे तुम्हें दे दूँगा, ऐसा मुल्क जिसमें कसरत का दूध और शहद है।’ मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ, जिसने तुमको दीगर क़ौमों में से चुनकर अलग कर दिया है। \v 25 इसलिए लाज़िम है कि तुम ज़मीन पर चलनेवाले जानवरों और परिंदों में पाक और नापाक का इम्तियाज़ करो। अपने आपको नापाक जानवर खाने से क़ाबिले-घिन न बनाना, चाहे वह ज़मीन पर चलते या रेंगते हैं, चाहे हवा में उड़ते हैं। मैं ही ने उन्हें तुम्हारे लिए नापाक क़रार दिया है। \v 26 तुम्हें मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस होना है, क्योंकि मैं क़ुद्दूस हूँ, और मैंने तुम्हें दीगर क़ौमों में से चुनकर अपने लिए अलग कर लिया है। \p \v 27 तुममें से जो मुरदों से राबिता या ग़ैबदानी करता है उसे सज़ाए-मौत देनी है, ख़ाह औरत हो या मर्द। उन्हें संगसार करना। वह अपनी मौत के ख़ुद ज़िम्मादार हैं।” \c 21 \s1 इमामों के लिए हिदायात \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, “हारून के बेटों को जो इमाम हैं बता देना कि इमाम अपने आपको किसी इसराईली की लाश के क़रीब जाने से नापाक न करे \v 2 सिवाए अपने क़रीबी रिश्तेदारों के यानी माँ, बाप, बेटा, बेटी, भाई \v 3 और जो ग़ैरशादीशुदा बहन उसके घर में रहती है। \v 4 वह अपनी क़ौम में किसी और के बाइस अपने आपको नापाक न करे, वरना उस की मुक़द्दस हालत जाती रहेगी। \p \v 5 इमाम अपने सर को न मुँडवाएँ। वह न अपनी दाढ़ी को तराशें और न काटने से अपने आपको ज़ख़मी करें। \p \v 6 वह अपने ख़ुदा के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस रहें और अपने ख़ुदा के नाम को दाग़ न लगाएँ। चूँकि वह रब को जलनेवाली क़ुरबानियाँ यानी अपने ख़ुदा की रोटी पेश करते हैं इसलिए लाज़िम है कि वह मुक़द्दस रहें। \v 7 इमाम ज़िनाकार औरत, मंदिर की कसबी या तलाक़याफ़्ता औरत से शादी न करें, क्योंकि वह अपने रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस हैं। \v 8 इमाम को मुक़द्दस समझना, क्योंकि वह तेरे ख़ुदा की रोटी को क़ुरबानगाह पर चढ़ाता है। वह तेरे लिए मुक़द्दस ठहरे क्योंकि मैं रब क़ुद्दूस हूँ। मैं ही तुम्हें मुक़द्दस करता हूँ। \p \v 9 किसी इमाम की जो बेटी ज़िनाकारी से अपनी मुक़द्दस हालत को ख़त्म कर देती है वह अपने बाप की मुक़द्दस हालत को भी ख़त्म कर देती है। उसे जला दिया जाए। \p \v 10 इमामे-आज़म के सर पर मसह का तेल उंडेला गया है और उसे इमामे-आज़म के मुक़द्दस कपड़े पहनने का इख़्तियार दिया गया है। इसलिए वह रंज के आलम में अपने बालों को बिखरने न दे, न कभी अपने कपड़ों को फाड़े। \v 11 वह किसी लाश के क़रीब न जाए, चाहे वह उसके बाप या माँ की लाश क्यों न हो, वरना वह नापाक हो जाएगा। \v 12 जब तक कोई लाश उसके घर में पड़ी रहे वह मक़दिस को छोड़कर अपने घर न जाए, वरना वह मक़दिस को नापाक करेगा। क्योंकि उसे उसके ख़ुदा के तेल से मख़सूस किया गया है। मैं रब हूँ। \v 13 इमामे-आज़म को सिर्फ़ कुँवारी से शादी की इजाज़त है। \v 14 वह बेवा, तलाक़याफ़्ता औरत, मंदिर की कसबी या ज़िनाकार औरत से शादी न करे बल्कि सिर्फ़ अपने क़बीले की कुँवारी से, \v 15 वरना उस की औलाद मख़सूसो-मुक़द्दस नहीं होगी। क्योंकि मैं रब हूँ जो उसे अपने लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करता हूँ।” \p \v 16 रब ने मूसा से यह भी कहा, \v 17 “हारून को बताना कि तेरी औलाद में से कोई भी जिसके जिस्म में नुक़्स हो मेरे हुज़ूर आकर अपने ख़ुदा की रोटी न चढ़ाए। यह उसूल आनेवाली नसलों के लिए भी अटल है। \v 18 क्योंकि कोई भी माज़ूर मेरे हुज़ूर न आए, न अंधा, न लँगड़ा, न वह जिसकी नाक चिरी हुई हो या जिसके किसी अज़ु में कमी बेशी हो, \v 19 न वह जिसका पाँव या हाथ टूटा हुआ हो, \v 20 न कुबड़ा, न बौना, न वह जिसकी आँख में नुक़्स हो या जिसे वबाई जिल्दी बीमारी हो या जिसके ख़ुसिये कुचले हुए हों। \v 21 हारून इमाम की कोई भी औलाद जिसके जिस्म में नुक़्स हो मेरे हुज़ूर आकर रब को जलनेवाली क़ुरबानियाँ पेश न करे। चूँकि उसमें नुक़्स है इसलिए वह मेरे हुज़ूर आकर अपने ख़ुदा की रोटी न चढ़ाए। \v 22 उसे अल्लाह की मुक़द्दस बल्कि मुक़द्दसतरीन क़ुरबानियों में से भी इमामों का हिस्सा खाने की इजाज़त है। \v 23 लेकिन चूँकि उसमें नुक़्स है इसलिए वह मुक़द्दसतरीन कमरे के दरवाज़े के परदे के क़रीब न जाए, न क़ुरबानगाह के पास आए। वरना वह मेरी मुक़द्दस चीज़ों को नापाक करेगा। क्योंकि मैं रब हूँ जो उन्हें अपने लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करता हूँ।” \p \v 24 मूसा ने यह हिदायात हारून, उसके बेटों और तमाम इसराईलियों को दीं। \c 22 \s1 क़ुरबानी का गोश्त खाने की हिदायात \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “हारून और उसके बेटों को बताना कि इसराईलियों की उन क़ुरबानियों का एहतराम करो जो तुमने मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस की हैं, वरना तुम मेरे नाम को दाग़ लगाओगे। मैं रब हूँ। \v 3 जो इमाम नापाक होने के बावुजूद उन क़ुरबानियों के पास आ जाए जो इसराईलियों ने मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस की हैं उसे मेरे सामने से मिटाना है। यह उसूल आनेवाली नसलों के लिए भी अटल है। मैं रब हूँ। \p \v 4 हारून की औलाद में से जो भी वबाई जिल्दी बीमारी या जरयान का मरीज़ हो उसे मुक़द्दस क़ुरबानियों में से अपना हिस्सा खाने की इजाज़त नहीं है। पहले वह पाक हो जाए। जो ऐसी कोई भी चीज़ छुए जो लाश से नापाक हो गई हो या ऐसे आदमी को छुए जिसका नुतफ़ा निकला हो वह नापाक हो जाता है। \v 5 वह नापाक रेंगनेवाले जानवर या नापाक शख़्स को छूने से भी नापाक हो जाता है, ख़ाह वह किसी भी सबब से नापाक क्यों न हुआ हो। \v 6 जो ऐसी कोई भी चीज़ छुए वह शाम तक नापाक रहेगा। इसके अलावा लाज़िम है कि वह मुक़द्दस क़ुरबानियों में से अपना हिस्सा खाने से पहले नहा ले। \v 7 सूरज के ग़ुरूब होने पर वह पाक होगा और मुक़द्दस क़ुरबानियों में से अपना हिस्सा खा सकेगा। क्योंकि वह उस की रोज़ी हैं। \v 8 इमाम ऐसे जानवरों का गोश्त न खाए जो फ़ितरी तौर पर मर गए या जिन्हें जंगली जानवरों ने फाड़ डाला हो, वरना वह नापाक हो जाएगा। मैं रब हूँ। \p \v 9 इमाम मेरी हिदायात के मुताबिक़ चलें, वरना वह क़ुसूरवार बन जाएंगे और मुक़द्दस चीज़ों की बेहुरमती करने के सबब से मर जाएंगे। मैं रब हूँ जो उन्हें अपने लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करता हूँ। \p \v 10 सिर्फ़ इमाम के ख़ानदान के अफ़राद मुक़द्दस क़ुरबानियों में से खा सकते हैं। ग़ैरशहरी या मज़दूर को इजाज़त नहीं है। \v 11 लेकिन इमाम का ग़ुलाम या लौंडी उसमें से खा सकते हैं, चाहे उन्हें ख़रीदा गया हो या वह उसके घर में पैदा हुए हों। \v 12 अगर इमाम की बेटी ने किसी ऐसे शख़्स से शादी की है जो इमाम नहीं है तो उसे मुक़द्दस क़ुरबानियों में से खाने की इजाज़त नहीं है। \v 13 लेकिन हो सकता है कि वह बेवा या तलाक़याफ़्ता हो और उसके बच्चे न हों। जब वह अपने बाप के घर लौटकर वहाँ ऐसे रहेगी जैसे अपनी जवानी में तो वह अपने बाप के उस खाने में से खा सकती है जो क़ुरबानियों में से बाप का हिस्सा है। लेकिन जो इमाम के ख़ानदान का फ़रद नहीं है उसे खाने की इजाज़त नहीं है। \p \v 14 जिस शख़्स ने नादानिस्ता तौर पर मुक़द्दस क़ुरबानियों में से इमाम के हिस्से से कुछ खाया है वह इमाम को सब कुछ वापस करने के अलावा 20 फ़ीसद ज़्यादा दे। \v 15 इमाम रब को पेश की हुई क़ुरबानियों की मुक़द्दस हालत यों ख़त्म न करें \v 16 कि वह दूसरे इसराईलियों को यह मुक़द्दस चीज़ें खाने दें। ऐसी हरकत से वह उनको बड़ा क़ुसूरवार बना देंगे। मैं रब हूँ जो उन्हें अपने लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करता हूँ।” \s1 जानवरों की क़ुरबानियों के बारे में हिदायात \p \v 17 रब ने मूसा से कहा, \v 18 “हारून, उसके बेटों और इसराईलियों को बताना कि अगर तुममें से कोई इसराईली या परदेसी रब को भस्म होनेवाली क़ुरबानी पेश करना चाहे तो तरीक़े-कार में कोई फ़रक़ नहीं है, चाहे वह यह मन्नत मानकर या वैसे ही दिली ख़ुशी से कर रहा हो। \v 19 इसके लिए लाज़िम है कि तुम एक बेऐब बैल, मेंढा या बकरा पेश करो। फिर ही उसे क़बूल किया जाएगा। \v 20 क़ुरबानी के लिए कभी भी ऐसा जानवर पेश न करना जिसमें नुक़्स हो, वरना तुम उसके बाइस मंज़ूर नहीं होगे। \v 21 अगर कोई रब को सलामती की क़ुरबानी पेश करना चाहे तो तरीक़े-कार में कोई फ़रक़ नहीं है, चाहे वह यह मन्नत मानकर या वैसे ही दिली ख़ुशी से कर रहा हो। इसके लिए लाज़िम है कि वह गाय-बैलों या भेड़-बकरियों में से बेऐब जानवर चुने। फिर उसे क़बूल किया जाएगा। \v 22 रब को ऐसे जानवर पेश न करना जो अंधे हों, जिनके आज़ा टूटे या कटे हुए हों, जिनको रसौली हो या जिन्हें वबाई जिल्दी बीमारी लग गई हो। रब को उन्हें जलनेवाली क़ुरबानी के तौर पर क़ुरबानगाह पर पेश न करना। \v 23 लेकिन जिस गाय-बैल या भेड़-बकरी के किसी अज़ु में कमी बेशी हो उसे पेश किया जा सकता है। शर्त यह है कि पेश करनेवाला उसे वैसे ही दिली ख़ुशी से चढ़ाए। अगर वह उसे अपनी मन्नत मानकर पेश करे तो वह क़बूल नहीं किया जाएगा। \v 24 रब को ऐसा जानवर पेश न करना जिसके ख़ुसिये कुचले, तोड़े या कटे हुए हों। अपने मुल्क में जानवरों को इस तरह ख़सी न बनाना, \v 25 न ऐसे जानवर किसी ग़ैरमुल्की से ख़रीदकर अपने ख़ुदा की रोटी के तौर पर पेश करना। तुम ऐसे जानवरों के बाइस मंज़ूर नहीं होगे, क्योंकि उनमें ख़राबी और नुक़्स है।” \p \v 26 रब ने मूसा से यह भी कहा, \v 27 “जब किसी गाय, भेड़ या बकरी का बच्चा पैदा होता है तो लाज़िम है कि वह पहले सात दिन अपनी माँ के पास रहे। आठवें दिन से पहले रब उसे जलनेवाली क़ुरबानी के तौर पर क़बूल नहीं करेगा। \v 28 किसी गाय, भेड़ या बकरी के बच्चे को उस की माँ समेत एक ही दिन ज़बह न करना। \v 29 जब तुम रब को सलामती की कोई क़ुरबानी चढ़ाना चाहते हो तो उसे यों पेश करना कि तुम मंज़ूर हो जाओ। \v 30 अगली सुबह तक कुछ बचा न रहे बल्कि उसे उसी दिन खाना है। मैं रब हूँ। \p \v 31 मेरे अहकाम मानो और उन पर अमल करो। मैं रब हूँ। \v 32 मेरे नाम को दाग़ न लगाना। लाज़िम है कि मुझे इसराईलियों के दरमियान क़ुद्दूस माना जाए। मैं रब हूँ जो तुम्हें अपने लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करता हूँ। \v 33 मैं तुम्हें मिसर से निकाल लाया हूँ ताकि तुम्हारा ख़ुदा हूँ। मैं रब हूँ।” \c 23 \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि यह मेरी, रब की ईदें हैं जिन पर तुम्हें लोगों को मुक़द्दस इजतिमा के लिए जमा करना है। \s1 सबत का दिन \p \v 3 हफ़ते में छः दिन काम करना, लेकिन सातवाँ दिन हर तरह से आराम का दिन है। उस दिन मुक़द्दस इजतिमा हो। जहाँ भी तुम रहते हो वहाँ काम न करना। यह दिन रब के लिए मख़सूस सबत है। \s1 फ़सह की ईद और बेख़मीरी रोटी की ईद \p \v 4 यह रब की ईदें हैं जिन पर तुम्हें लोगों को मुक़द्दस इजतिमा के लिए जमा करना है। \p \v 5 फ़सह की ईद पहले महीने के चौधवें दिन शुरू होती है। उस दिन सूरज के ग़ुरूब होने पर रब की ख़ुशी मनाई जाए। \v 6 अगले दिन रब की याद में बेख़मीरी रोटी की ईद शुरू होती है। सात दिन तक तुम्हारी रोटी में ख़मीर न हो। \v 7 इन सात दिनों के पहले दिन मुक़द्दस इजतिमा हो और लोग अपना हर काम छोड़ें। \v 8 इन सात दिनों में रोज़ाना रब को जलनेवाली क़ुरबानी पेश करो। सातवें दिन भी मुक़द्दस इजतिमा हो और लोग अपना हर काम छोड़ें।” \s1 पहले पूले की ईद \p \v 9 रब ने मूसा से कहा, \v 10 “इसराईलियों को बताना कि जब तुम उस मुल्क में दाख़िल होगे जो मैं तुम्हें दूँगा और वहाँ अनाज की फ़सल काटोगे तो तुम्हें इमाम को पहला पूला देना है। \v 11 इतवार को इमाम यह पूला रब के सामने हिलाए ताकि तुम मंज़ूर हो जाओ। \v 12 उस दिन भेड़ का एक यकसाला बेऐब बच्चा भी रब को पेश करना। उसे क़ुरबानगाह पर भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाना। \v 13 साथ ही ग़ल्ला की नज़र के लिए तेल से मिलाया गया 3 किलोग्राम बेहतरीन मैदा भी पेश करना। जलनेवाली यह क़ुरबानी रब को पसंद है। इसके अलावा मै की नज़र के लिए एक लिटर मै भी पेश करना। \v 14 पहले यह सब कुछ करो, फिर ही तुम्हें नई फ़सल के अनाज से खाने की इजाज़त होगी, ख़ाह वह भुना हुआ हो, ख़ाह कच्चा या रोटी की सूरत में पकाया गया हो। जहाँ भी तुम रहते हो वहाँ ऐसा ही करना है। यह उसूल अबद तक क़ायम रहे। \s1 हफ़तों की ईद यानी पंतिकुस्त \p \v 15 जिस दिन तुमने अनाज का पूला पेश किया उस दिन से पूरे सात हफ़ते गिनो। \v 16 पचासवें दिन यानी सातवें इतवार को रब को नए अनाज की क़ुरबानी चढ़ाना। \v 17 हर घराने की तरफ़ से रब को हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर दो रोटियाँ पेश की जाएँ। हर रोटी के लिए 3 किलोग्राम बेहतरीन मैदा इस्तेमाल किया जाए। उनमें ख़मीर डालकर पकाना है। यह फ़सल की पहली पैदावार की क़ुरबानी हैं। \v 18 इन रोटियों के साथ एक जवान बैल, दो मेंढे और भेड़ के सात बेऐब और यकसाला बच्चे पेश करो। उन्हें रब के हुज़ूर भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाना। इसके अलावा ग़ल्ला की नज़र और मै की नज़र भी पेश करनी है। जलनेवाली इस क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद है। \v 19 फिर गुनाह की क़ुरबानी के लिए एक बकरा और सलामती की क़ुरबानी के लिए दो यकसाला भेड़ के बच्चे चढ़ाओ। \v 20 इमाम भेड़ के यह दो बच्चे मज़कूरा रोटियों समेत हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब के सामने हिलाए। यह रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस हैं और क़ुरबानियों में से इमाम का हिस्सा हैं। \v 21 उसी दिन लोगों को मुक़द्दस इजतिमा के लिए जमा करो। कोई भी काम न करना। यह उसूल अबद तक क़ायम रहे, और इसे हर जगह मानना है। \p \v 22 कटाई के वक़्त अपनी फ़सल पूरे तौर पर न काटना बल्कि खेत के किनारों पर कुछ छोड़ देना। इस तरह जो कुछ कटाई करते वक़्त खेत में बच जाए उसे छोड़ना। बचा हुआ अनाज ग़रीबों और परदेसियों के लिए छोड़ देना। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।” \s1 नए साल की ईद \p \v 23 रब ने मूसा से कहा, \v 24 “इसराईलियों को बताना कि सातवें महीने का पहला दिन आराम का दिन है। उस दिन मुक़द्दस इजतिमा हो जिस पर याद दिलाने के लिए नरसिंगा फूँका जाए। \v 25 कोई भी काम न करना। रब को जलनेवाली क़ुरबानी पेश करना।” \s1 कफ़्फ़ारा का दिन \p \v 26 रब ने मूसा से कहा, \v 27 “सातवें महीने का दसवाँ दिन कफ़्फ़ारा का दिन है। उस दिन मुक़द्दस इजतिमा हो। अपनी जान को दुख देना और रब को जलनेवाली क़ुरबानी पेश करना। \v 28 उस दिन काम न करना, क्योंकि यह कफ़्फ़ारा का दिन है, जब रब तुम्हारे ख़ुदा के सामने तुम्हारा कफ़्फ़ारा दिया जाता है। \v 29 जो उस दिन अपनी जान को दुख नहीं देता उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए। \v 30 जो उस दिन काम करता है उसे मैं उस की क़ौम में से निकालकर हलाक करूँगा। \v 31 कोई भी काम न करना। यह उसूल अबद तक क़ायम रहे, और इसे हर जगह मानना है। \v 32 यह दिन आराम का ख़ास दिन है जिसमें तुम्हें अपनी जान को दुख देना है। इसे महीने के नवें दिन की शाम से लेकर अगली शाम तक मनाना।” \s1 झोंपड़ियों की ईद \p \v 33 रब ने मूसा से कहा, \v 34 “इसराईलियों को बताना कि सातवें महीने के पंद्रहवें दिन झोंपड़ियों की ईद शुरू होती है। इसका दौरानिया सात दिन है। \v 35 पहले दिन मुक़द्दस इजतिमा हो। इस दिन कोई काम न करना। \v 36 इन सात दिनों के दौरान रब को जलनेवाली क़ुरबानियाँ पेश करना। आठवें दिन मुक़द्दस इजतिमा हो। रब को जलनेवाली क़ुरबानी पेश करो। इस ख़ास इजतिमा के दिन भी काम नहीं करना है। \p \v 37 यह रब की ईदें हैं जिन पर तुम्हें मुक़द्दस इजतिमा करना है ताकि रब को रोज़मर्रा की मतलूबा जलनेवाली क़ुरबानियाँ और मै की नज़रें पेश की जाएँ यानी भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ, ग़ल्ला की नज़रें, ज़बह की क़ुरबानियाँ और मै की नज़रें। \v 38 यह क़ुरबानियाँ उन क़ुरबानियों के अलावा हैं जो सबत के दिन चढ़ाई जाती हैं और जो तुमने हदिये के तौर पर या मन्नत मानकर या अपनी दिली ख़ुशी से पेश की हैं। \p \v 39 चुनाँचे सातवें महीने के पंद्रहवें दिन फ़सल की कटाई के इख़्तिताम पर रब की यह ईद यानी झोंपड़ियों की ईद मनाओ। इसे सात दिन मनाना। पहला और आख़िरी दिन आराम के दिन हैं। \v 40 पहले दिन अपने लिए दरख़्तों के बेहतरीन फल, खजूर की डालियाँ और घने दरख़्तों और सफ़ेदा की शाख़ें तोड़ना। सात दिन तक रब अपने ख़ुदा के सामने ख़ुशी मनाओ। \v 41 हर साल सातवें महीने में रब की ख़ुशी में यह ईद मनाना। यह उसूल अबद तक क़ायम रहे। \v 42 ईद के हफ़ते के दौरान झोंपड़ियों में रहना। तमाम मुल्क में आबाद इसराईली ऐसा करें। \v 43 फिर तुम्हारी औलाद जानेगी कि इसराईलियों को मिसर से निकालते वक़्त मैंने उन्हें झोंपड़ियों में बसाया। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।” \p \v 44 मूसा ने इसराईलियों को रब की ईदों के बारे में यह बातें बताईं। \c 24 \s1 रब के सामने शमादान और रोटियाँ \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को हुक्म दे कि वह तेरे पास कूटे हुए ज़ैतूनों का ख़ालिस तेल ले आएँ ताकि मुक़द्दस कमरे के शमादान के चराग़ मुतवातिर जलते रहें। \v 3 हारून उन्हें मुसलसल, शाम से लेकर सुबह तक रब के हुज़ूर सँभाले यानी वहाँ जहाँ वह मुक़द्दसतरीन कमरे के परदे के सामने पड़े हैं, उस परदे के सामने जिसके पीछे अहद का संदूक़ है। यह उसूल अबद तक क़ायम रहे। \v 4 वह ख़ालिस सोने के शमादान पर लगे चराग़ों की देख-भाल यों करे कि यह हमेशा रब के सामने जलते रहें। \p \v 5 बारह रोटियाँ पकाना। हर रोटी के लिए 3 किलोग्राम बेहतरीन मैदा इस्तेमाल किया जाए। \v 6 उन्हें दो क़तारों में रब के सामने ख़ालिस सोने की मेज़ पर रखना। \v 7 हर क़तार पर ख़ालिस लुबान डालना। यह लुबान रोटी के लिए यादगारी की क़ुरबानी है जिसे बाद में रब के लिए जलाना है। \v 8 हर हफ़ते को रब के सामने ताज़ा रोटियाँ इसी तरतीब से मेज़ पर रखनी हैं। यह इसराईलियों के लिए अबदी अहद की लाज़िमी शर्त है। \v 9 मेज़ की रोटियाँ हारून और उसके बेटों का हिस्सा हैं, और वह उन्हें मुक़द्दस जगह पर खाएँ, क्योंकि वह जलनेवाली क़ुरबानियों का मुक़द्दसतरीन हिस्सा हैं। यह अबद तक उनका हक़ रहेगा।” \s1 अल्लाह की तौहीन, ख़ूनरेज़ी और ज़ख़मी करने की सज़ाएँ \p \v 10-11 ख़ैमागाह में एक आदमी था जिसका बाप मिसरी और माँ इसराईली थी। माँ का नाम सलूमीत था। वह दिबरी की बेटी और दान के क़बीले की थी। एक दिन यह आदमी ख़ैमागाह में किसी इसराईली से झगड़ने लगा। लड़ते लड़ते उसने रब के नाम पर कुफ़र बककर उस पर लानत भेजी। यह सुनकर लोग उसे मूसा के पास ले आए। \v 12 वहाँ उन्होंने उसे पहरे में बिठाकर रब की हिदायत का इंतज़ार किया। \p \v 13 तब रब ने मूसा से कहा, \v 14 “लानत करनेवाले को ख़ैमागाह के बाहर ले जाओ। जिन्होंने उस की यह बातें सुनी हैं वह सब अपने हाथ उसके सर पर रखें। फिर पूरी जमात उसे संगसार करे। \v 15 इसराईलियों से कहना कि जो भी अपने ख़ुदा पर लानत भेजे उसे अपने क़ुसूर के नतीजे बरदाश्त करने पड़ेंगे। \v 16 जो भी रब के नाम पर कुफ़र बके उसे सज़ाए-मौत दी जाए। पूरी जमात उसे संगसार करे। जिसने रब के नाम पर कुफ़र बका हो उसे ज़रूर सज़ाए-मौत देनी है, ख़ाह देसी हो या परदेसी। \p \v 17 जिसने किसी को मार डाला है उसे सज़ाए-मौत दी जाए। \v 18 जिसने किसी के जानवर को मार डाला है वह उसका मुआवज़ा दे। जान के बदले जान दी जाए। \v 19 अगर किसी ने किसी को ज़ख़मी कर दिया है तो वही कुछ उसके साथ किया जाए जो उसने दूसरे के साथ किया है। \v 20 अगर दूसरे की कोई हड्डी टूट जाए तो उस की वही हड्डी तोड़ी जाए। अगर दूसरे की आँख ज़ाया हो जाए तो उस की आँख ज़ाया कर दी जाए। अगर दूसरे का दाँत टूट जाए तो उसका वही दाँत तोड़ा जाए। जो भी ज़ख़म उसने दूसरे को पहुँचाया वही ज़ख़म उसे पहुँचाया जाए। \v 21 जिसने किसी जानवर को मार डाला है वह उसका मुआवज़ा दे, लेकिन जिसने किसी इनसान को मार दिया है उसे सज़ाए-मौत देनी है। \v 22 देसी और परदेसी के लिए तुम्हारा एक ही क़ानून हो। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।” \p \v 23 फिर मूसा ने इसराईलियों से बात की, और उन्होंने रब पर लानत भेजनेवाले को ख़ैमागाह से बाहर ले जाकर उसे संगसार किया। उन्होंने वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा को हुक्म दिया था। \c 25 \s1 ज़मीन के लिए सबत का साल \p \v 1 रब ने सीना पहाड़ पर मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि जब तुम उस मुल्क में दाख़िल होगे जो मैं तुम्हें दूँगा तो लाज़िम है कि रब की ताज़ीम में ज़मीन एक साल आराम करे। \v 3 छः साल के दौरान अपने खेतों में बीज बोना, अपने अंगूर के बाग़ों की काँट-छाँट करना और उनकी फ़सलें जमा करना। \v 4 लेकिन सातवाँ साल ज़मीन के लिए आराम का साल है, रब की ताज़ीम में सबत का साल। उस साल न अपने खेतों में बीज बोना, न अपने अंगूर के बाग़ों की काँट-छाँट करना। \v 5 जो अनाज ख़ुद बख़ुद उगता है उस की कटाई न करना और जो अंगूर उस साल लगते हैं उनको तोड़कर जमा न करना, क्योंकि ज़मीन को एक साल के लिए आराम करना है। \v 6 अलबत्ता जो भी यह ज़मीन आराम के साल में पैदा करेगी उससे तुम अपनी रोज़ाना की ज़रूरियात पूरी कर सकते हो यानी तू, तेरे ग़ुलाम और लौंडियाँ, तेरे मज़दूर, तेरे ग़ैरशहरी, तेरे साथ रहनेवाले परदेसी, \v 7 तेरे मवेशी और तेरी ज़मीन पर रहनेवाले जंगली जानवर। जो कुछ भी यह ज़मीन पैदा करती है वह खाया जा सकता है। \s1 बहाली का साल \p \v 8 सात सबत के साल यानी 49 साल के बाद एक और काम करना है। \v 9 पचासवें साल के सातवें महीने के दसवें दिन यानी कफ़्फ़ारा के दिन अपने मुल्क की हर जगह नरसिंगा बजाना। \v 10 पचासवाँ साल मख़सूसो-मुक़द्दस करो और पूरे मुल्क में एलान करो कि तमाम बाशिंदों को आज़ाद कर दिया जाए। यह बहाली का साल हो जिसमें हर शख़्स को उस की मिलकियत वापस की जाए और हर ग़ुलाम को आज़ाद किया जाए ताकि वह अपने रिश्तेदारों के पास वापस जा सके। \v 11 यह पचासवाँ साल बहाली का साल हो, इसलिए न अपने खेतों में बीज बोना, न ख़ुद बख़ुद उगनेवाले अनाज की कटाई करना, और न अंगूर तोड़कर जमा करना। \v 12 क्योंकि यह बहाली का साल है जो तुम्हारे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस है। रोज़ाना उतनी ही पैदावार लेना कि एक दिन की ज़रूरियात पूरी हो जाएँ। \v 13 बहाली के साल में हर शख़्स को उस की मिलकियत वापस की जाए। \p \v 14 चुनाँचे जब कभी तुम अपने किसी हमवतन भाई को ज़मीन बेचते या उससे ख़रीदते हो तो उससे नाजायज़ फ़ायदा न उठाना। \v 15 ज़मीन की क़ीमत इस हिसाब से मुक़र्रर की जाए कि वह अगले बहाली के साल तक कितने साल फ़सलें पैदा करेगी। \v 16 अगर बहुत साल रह गए हों तो उस की क़ीमत ज़्यादा होगी, और अगर कम साल रह गए हों तो उस की क़ीमत कम होगी। क्योंकि उन फ़सलों की तादाद बिक रही है जो ज़मीन अगले बहाली के साल तक पैदा कर सकती है। \p \v 17 अपने हमवतन से नाजायज़ फ़ायदा न उठाना बल्कि रब अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना, क्योंकि मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \p \v 18 मेरी हिदायात पर अमल करना और मेरे अहकाम को मानकर उनके मुताबिक़ चलना। तब तुम अपने मुल्क में महफ़ूज़ रहोगे। \v 19 ज़मीन अपनी पूरी पैदावार देगी, तुम सेर हो जाओगे और महफ़ूज़ रहोगे। \v 20 हो सकता है कोई पूछे, ‘हम सातवें साल में क्या खाएँगे जबकि हम बीज नहीं बोएँगे और फ़सल नहीं काटेंगे?’ \v 21 जवाब यह है कि मैं छटे साल में ज़मीन को इतनी बरकत दूँगा कि उस साल की पैदावार तीन साल के लिए काफ़ी होगी। \v 22 जब तुम आठवें साल बीज बोओगे तो तुम्हारे पास छटे साल की इतनी पैदावार बाक़ी होगी कि तुम फ़सल की कटाई तक गुज़ारा कर सकोगे। \s1 मौरूसी ज़मीन के हुक़ूक़ \p \v 23 कोई ज़मीन भी हमेशा के लिए न बेची जाए, क्योंकि मुल्क की तमाम ज़मीन मेरी ही है। तुम मेरे हुज़ूर सिर्फ़ परदेसी और ग़ैरशहरी हो। \v 24 मुल्क में जहाँ भी ज़मीन बिक जाए वहाँ मौरूसी मालिक का यह हक़ माना जाए कि वह अपनी ज़मीन वापस ख़रीद सकता है। \p \v 25 अगर तेरा कोई हमवतन भाई ग़रीब होकर अपनी कुछ ज़मीन बेचने पर मजबूर हो जाए तो लाज़िम है कि उसका सबसे क़रीबी रिश्तेदार उसे वापस ख़रीद ले। \v 26 हो सकता है कि ऐसे शख़्स का कोई क़रीबी रिश्तेदार न हो जो उस की ज़मीन वापस ख़रीद सके, लेकिन वह ख़ुद कुछ देर के बाद इतने पैसे जमा करता है कि वह अपनी ज़मीन वापस ख़रीद सकता है। \v 27 इस सूरत में वह हिसाब करे कि ख़रीदनेवाले के लिए अगले बहाली के साल तक कितने साल रह गए हैं। जितना नुक़सान ख़रीदनेवाले को ज़मीन को बहाली के साल से पहले वापस देने से पहुँचेगा उतने ही पैसे उसे देने हैं। \v 28 लेकिन अगर उसके पास इतने पैसे न हों तो ज़मीन अगले बहाली के साल तक ख़रीदनेवाले के हाथ में रहेगी। फिर उसे मौरूसी मालिक को वापस दिया जाएगा। \p \v 29 अगर किसी का घर फ़सीलदार शहर में है तो जब वह उसे बेचेगा तो अपना घर वापस ख़रीदने का हक़ सिर्फ़ एक साल तक रहेगा। \v 30 अगर पहला मालिक उसे पहले साल के अंदर अंदर न ख़रीदे तो वह हमेशा के लिए ख़रीदनेवाले की मौरूसी मिलकियत बन जाएगा। वह बहाली के साल में भी वापस नहीं किया जाएगा। \p \v 31 लेकिन जो घर ऐसी आबादी में है जिसकी फ़सील न हो वह देहात में शुमार किया जाता है। उसके मौरूसी मालिक को हक़ हासिल है कि हर वक़्त अपना घर वापस ख़रीद सके। बहाली के साल में इस घर को लाज़िमन वापस कर देना है। \p \v 32 लेकिन लावियों को यह हक़ हासिल है कि वह अपने वह घर हर वक़्त ख़रीद सकते हैं जो उनके लिए मुक़र्रर किए हुए शहरों में हैं। \v 33 अगर ऐसा घर किसी लावी के हाथ फ़रोख़्त किया जाए और वापस न ख़रीदा जाए तो उसे लाज़िमन बहाली के साल में वापस करना है। क्योंकि लावी के जो घर उनके मुक़र्ररा शहरों में होते हैं वह इसराईलियों में उनकी मौरूसी मिलकियत हैं। \v 34 लेकिन जो ज़मीनें शहरों के इर्दगिर्द मवेशी चराने के लिए मुक़र्रर हैं उन्हें बेचने की इजाज़त नहीं है। वह उनकी दायमी मिलकियत हैं। \s1 ग़रीबों के लिए क़र्ज़ा \p \v 35 अगर तेरा कोई हमवतन भाई ग़रीब हो जाए और गुज़ारा न कर सके तो उस की मदद कर। उस तरह उस की मदद करना जिस तरह परदेसी या ग़ैरशहरी की मदद करनी होती है ताकि वह तेरे साथ रहते हुए ज़िंदगी गुज़ार सके। \v 36 उससे किसी तरह का सूद न लेना बल्कि अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना ताकि तेरा भाई तेरे साथ ज़िंदगी गुज़ार सके। \v 37 अगर वह तेरा क़र्ज़दार हो तो उससे सूद न लेना। इसी तरह ख़ुराक बेचते वक़्त उससे नफ़ा न लेना। \v 38 मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। मैं तुम्हें इसलिए मिसर से निकाल लाया कि तुम्हें मुल्के-कनान दूँ और तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \s1 इसराईली ग़ुलामों के हुक़ूक़ \p \v 39 अगर तेरा कोई इसराईली भाई ग़रीब होकर अपने आपको तेरे हाथ बेच डाले तो उससे ग़ुलाम का-सा काम न कराना। \v 40 उसके साथ मज़दूर या ग़ैरशहरी का-सा सुलूक करना। वह तेरे लिए बहाली के साल तक काम करे। \v 41 फिर वह और उसके बाल-बच्चे आज़ाद होकर अपने रिश्तेदारों और मौरूसी ज़मीन के पास वापस जाएँ। \v 42 चूँकि इसराईली मेरे ख़ादिम हैं जिन्हें मैं मिसर से निकाल लाया इसलिए उन्हें ग़ुलामी में न बेचा जाए। \v 43 ऐसे लोगों पर सख़्ती से हुक्मरानी न करना बल्कि अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना। \p \v 44 तुम पड़ोसी ममालिक से अपने लिए ग़ुलाम और लौंडियाँ हासिल कर सकते हो। \v 45 जो परदेसी ग़ैरशहरी के तौर पर तुम्हारे मुल्क में आबाद हैं उन्हें भी तुम ख़रीद सकते हो। उनमें वह भी शामिल हैं जो तुम्हारे मुल्क में पैदा हुए हैं। वही तुम्हारी मिलकियत बनकर \v 46 तुम्हारे बेटों की मीरास में आ जाएँ और वही हमेशा तुम्हारे ग़ुलाम रहें। लेकिन अपने हमवतन भाइयों पर सख़्त हुक्मरानी न करना। \p \v 47 अगर तेरे मुल्क में रहनेवाला कोई परदेसी या ग़ैरशहरी अमीर हो जाए जबकि तेरा कोई हमवतन भाई ग़रीब होकर अपने आपको उस परदेसी या ग़ैरशहरी या उसके ख़ानदान के किसी फ़रद को बेच डाले \v 48 तो बिक जाने के बाद उसे आज़ादी ख़रीदने का हक़ हासिल है। कोई भाई, \v 49 चचा, ताया, चचा या ताया का बेटा या कोई और क़रीबी रिश्तेदार उसे वापस ख़रीद सकता है। वह ख़ुद भी अपनी आज़ादी ख़रीद सकता है अगर उसके पास पैसे काफ़ी हों। \v 50 इस सूरत में वह अपने मालिक से मिलकर वह साल गिने जो उसके ख़रीदने से लेकर अगले बहाली के साल तक बाक़ी हैं। उस की आज़ादी के पैसे उस क़ीमत पर मबनी हों जो मज़दूर को इतने सालों के लिए दिए जाते हैं। \v 51-52 जितने साल बाक़ी रह गए हैं उनके मुताबिक़ उस की बिक जाने की क़ीमत में से पैसे वापस कर दिए जाएँ। \v 53 उसके साथ साल बसाल मज़दूर का-सा सुलूक किया जाए। उसका मालिक उस पर सख़्त हुक्मरानी न करे। \v 54 अगर वह इस तरह के किसी तरीक़े से आज़ाद न हो जाए तो उसे और उसके बच्चों को हर हालत में अगले बहाली के साल में आज़ाद कर देना है, \v 55 क्योंकि इसराईली मेरे ही ख़ादिम हैं। वह मेरे ही ख़ादिम हैं जिन्हें मैं मिसर से निकाल लाया। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \c 26 \s1 फ़रमाँबरदारी का अज्र \p \v 1 अपने लिए बुत न बनाना। न अपने लिए देवता के मुजस्समे या पत्थर के मख़सूस किए हुए सतून खड़े करना, न सिजदा करने के लिए अपने मुल्क में ऐसे पत्थर रखना जिनमें देवता की तस्वीर कंदा की गई हो। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। \v 2 सबत का दिन मनाना और मेरे मक़दिस की ताज़ीम करना। मैं रब हूँ। \p \v 3 अगर तुम मेरी हिदायात पर चलो और मेरे अहकाम मानकर उन पर अमल करो \v 4 तो मैं वक़्त पर बारिश भेजूँगा, ज़मीन अपनी पैदावार देगी और दरख़्त अपने अपने फल लाएँगे। \v 5 कसरत के बाइस अनाज की फ़सल की कटाई अंगूर तोड़ते वक़्त तक जारी रहेगी और अंगूर की फ़सल उस वक़्त तक तोड़ी जाएगी जब तक बीज बोने का मौसम आएगा। इतनी ख़ुराक मिलेगी कि तुम कभी भूके नहीं होगे। और तुम अपने मुल्क में महफ़ूज़ रहोगे। \p \v 6 मैं मुल्क को अमनो-अमान बख़्शूँगा। तुम आराम से लेट जाओगे, क्योंकि किसी ख़तरे से डरने की ज़रूरत नहीं होगी। मैं वहशी जानवर मुल्क से दूर कर दूँगा, और वह तलवार की क़त्लो-ग़ारत से बचा रहेगा। \v 7 तुम अपने दुश्मनों पर ग़ालिब आकर उनका ताक़्क़ुब करोगे, और वह तुम्हारी तलवार से मारे जाएंगे। \v 8 तुम्हारे पाँच आदमी सौ दुश्मनों का पीछा करेंगे, और तुम्हारे सौ आदमी उनके दस हज़ार आदमियों को भगा देंगे। तुम्हारे दुश्मन तुम्हारी तलवार से मारे जाएंगे। \p \v 9 मेरी नज़रे-करम तुम पर होगी। मैं तुम्हारी औलाद की तादाद बढ़ाऊँगा और तुम्हारे साथ अपना अहद क़ायम रखूँगा। \v 10 एक साल इतनी फ़सल होगी कि जब अगली फ़सल की कटाई होगी तो नए अनाज के लिए जगह बनाने की ख़ातिर पुराने अनाज को फेंक देना पड़ेगा। \v 11 मैं तुम्हारे दरमियान अपना मसकन क़ायम करूँगा और तुमसे घिन नहीं खाऊँगा। \v 12 मैं तुममें फिरूँगा, और तुम मेरी क़ौम होगे। \p \v 13 मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ जो तुम्हें मिसर से निकाल लाया ताकि तुम्हारी ग़ुलामी की हालत ख़त्म हो जाए। मैंने तुम्हारे जुए को तोड़ डाला, और अब तुम आज़ाद और सीधे होकर चल सकते हो। \s1 फ़रमाँबरदार न होने की सज़ा \p \v 14 लेकिन अगर तुम मेरी नहीं सुनोगे और इन तमाम अहकाम पर नहीं चलोगे, \v 15 अगर तुम मेरी हिदायात को रद्द करके मेरे अहकाम से घिन खाओगे और उन पर अमल न करके मेरा अहद तोड़ोगे \v 16 तो मैं जवाब में तुम पर अचानक दहशत तारी कर दूँगा। जिस्म को ख़त्म करनेवाली बीमारियों और बुख़ार से तुम्हारी आँखें ज़ाया हो जाएँगी और तुम्हारी जान छिन जाएगी। जब तुम बीज बोओगे तो बेफ़ायदा, क्योंकि दुश्मन उस की फ़सल खा जाएगा। \v 17 मैं तुम्हारे ख़िलाफ़ हो जाऊँगा, इसलिए तुम अपने दुश्मनों के हाथ से शिकस्त खाओगे। तुमसे नफ़रत रखनेवाले तुम पर हुकूमत करेंगे। उस वक़्त भी जब कोई तुम्हारा ताक़्क़ुब नहीं करेगा तुम भाग जाओगे। \p \v 18 अगर तुम इसके बाद भी मेरी न सुनो तो मैं तुम्हारे गुनाहों के सबब से तुम्हें सात गुना ज़्यादा सज़ा दूँगा। \v 19 मैं तुम्हारा सख़्त ग़ुरूर ख़ाक में मिला दूँगा। तुम्हारे ऊपर आसमान लोहे जैसा और तुम्हारे नीचे ज़मीन पीतल जैसी होगी। \v 20 जितनी भी मेहनत करोगे वह बेफ़ायदा होगी, क्योंकि तुम्हारे खेतों में फ़सलें नहीं पकेंगी और तुम्हारे दरख़्त फल नहीं लाएँगे। \p \v 21 अगर तुम फिर भी मेरी मुख़ालफ़त करोगे और मेरी नहीं सुनोगे तो मैं इन गुनाहों के जवाब में तुम्हें इससे भी सात गुना ज़्यादा सज़ा दूँगा। \v 22 मैं तुम्हारे ख़िलाफ़ जंगली जानवर भेज दूँगा जो तुम्हारे बच्चों को फाड़ खाएँगे और तुम्हारे मवेशी बरबाद कर देंगे। आख़िर में तुम्हारी तादाद इतनी कम हो जाएगी कि तुम्हारी सड़कें वीरान हो जाएँगी। \p \v 23 अगर तुम फिर भी मेरी तरबियत क़बूल न करो बल्कि मेरे मुख़ालिफ़ रहो \v 24 तो मैं ख़ुद तुम्हारे ख़िलाफ़ हो जाऊँगा। इन गुनाहों के जवाब में मैं तुम्हें सात गुना ज़्यादा सज़ा दूँगा। \v 25 मैं तुम पर तलवार चलाकर इसका बदला लूँगा कि तुमने मेरे अहद को तोड़ा है। जब तुम अपनी हिफ़ाज़त के लिए शहरों में भागकर जमा होगे तो मैं तुम्हारे दरमियान वबाई बीमारियाँ फैलाऊँगा और तुम्हें दुश्मनों के हाथ में दे दूँगा। \v 26 अनाज की इतनी कमी होगी कि दस औरतें तुम्हारी पूरी रोटी एक ही तनूर में पका सकेंगी, और वह उसे बड़ी एहतियात से तोल तोलकर तक़सीम करेंगी। तुम खाकर भी भूके रहोगे। \p \v 27 अगर तुम फिर भी मेरी नहीं सुनोगे बल्कि मेरे मुख़ालिफ़ रहोगे \v 28 तो मेरा ग़ुस्सा भड़केगा और मैं तुम्हारे ख़िलाफ़ होकर तुम्हारे गुनाहों के जवाब में तुम्हें सात गुना ज़्यादा सज़ा दूँगा। \v 29 तुम मुसीबत के बाइस अपने बेटे-बेटियों का गोश्त खाओगे। \v 30 मैं तुम्हारी ऊँची जगहों की क़ुरबानगाहें और तुम्हारी बख़ूर की क़ुरबानगाहें बरबाद कर दूँगा। मैं तुम्हारी लाशों के ढेर तुम्हारे बेजान बुतों पर लगाऊँगा और तुमसे घिन खाऊँगा। \v 31 मैं तुम्हारे शहरों को खंडरात में बदलकर तुम्हारे मंदिरों को बरबाद करूँगा। तुम्हारी क़ुरबानियों की ख़ुशबू मुझे पसंद नहीं आएगी। \v 32 मैं तुम्हारे मुल्क का सत्यानास यों करूँगा कि जो दुश्मन उसमें आबाद हो जाएंगे उनके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। \v 33 मैं तुम्हें मुख़्तलिफ़ ममालिक में मुंतशिर कर दूँगा, लेकिन वहाँ भी अपनी तलवार को हाथ में लिए तुम्हारा पीछा करूँगा। तुम्हारी ज़मीन वीरान होगी और तुम्हारे शहर खंडरात बन जाएंगे। \v 34 उस वक़्त जब तुम अपने दुश्मनों के मुल्क में रहोगे तुम्हारी ज़मीन वीरान हालत में आराम के वह साल मना सकेगी जिनसे वह महरूम रही है। \v 35 उन तमाम दिनों में जब वह बरबाद रहेगी उसे वह आराम मिलेगा जो उसे न मिला जब तुम मुल्क में रहते थे। \p \v 36 तुममें से जो बचकर अपने दुश्मनों के ममालिक में रहेंगे उनके दिलों पर मैं दहशत तारी करूँगा। वह हवा के झोंकों से गिरनेवाले पत्ते की आवाज़ से चौंककर भाग जाएंगे। वह फ़रार होंगे गोया कोई हाथ में तलवार लिए उनका ताक़्क़ुब कर रहा हो। और वह गिरकर मर जाएंगे हालाँकि कोई उनका पीछा नहीं कर रहा होगा। \v 37 वह एक दूसरे से टकराकर लड़खड़ाएँगे गोया कोई तलवार लेकर उनके पीछे चल रहा हो हालाँकि कोई नहीं है। चुनाँचे तुम अपने दुश्मनों का सामना नहीं कर सकोगे। \v 38 तुम दीगर क़ौमों में मुंतशिर होकर हलाक हो जाओगे, और तुम्हारे दुश्मनों की ज़मीन तुम्हें हड़प कर लेगी। \p \v 39 तुममें से बाक़ी लोग अपने और अपने बापदादा के क़ुसूर के बाइस अपने दुश्मनों के ममालिक में गल-सड़ जाएंगे। \v 40 लेकिन एक वक़्त आएगा कि वह अपने और अपने बापदादा का क़ुसूर मान लेंगे। वह मेरे साथ अपनी बेवफ़ाई और वह मुख़ालफ़त तसलीम करेंगे \v 41 जिसके सबब से मैं उनके ख़िलाफ़ हुआ और उन्हें उनके दुश्मनों के मुल्क में धकेल दिया था। पहले उनका ख़तना सिर्फ़ ज़ाहिरी तौर पर हुआ था, लेकिन अब उनका दिल आजिज़ हो जाएगा और वह अपने क़ुसूर की क़ीमत अदा करेंगे। \v 42 फिर मैं इब्राहीम के साथ अपना अहद, इसहाक़ के साथ अपना अहद और याक़ूब के साथ अपना अहद याद करूँगा। मैं मुल्के-कनान भी याद करूँगा। \v 43 लेकिन पहले वह ज़मीन को छोड़ेंगे ताकि वह उनकी ग़ैरमौजूदगी में वीरान होकर आराम के साल मनाए। यों इसराईली अपने क़ुसूर के नतीजे भुगतेंगे, इस सबब से कि उन्होंने मेरे अहकाम रद्द किए और मेरी हिदायात से घिन खाई। \v 44 इसके बावुजूद भी मैं उन्हें दुश्मनों के मुल्क में छोड़कर रद्द नहीं करूँगा, न यहाँ तक उनसे घिन खाऊँगा कि वह बिलकुल तबाह हो जाएँ। क्योंकि मैं उनके साथ अपना अहद नहीं तोड़ने का। मैं रब उनका ख़ुदा हूँ। \v 45 मैं उनकी ख़ातिर उनके बापदादा के साथ बँधा हुआ अहद याद करूँगा, उन लोगों के साथ अहद जिन्हें मैं दूसरी क़ौमों के देखते देखते मिसर से निकाल लाया ताकि उनका ख़ुदा हूँ। मैं रब हूँ।” \p \v 46 रब ने मूसा को इसराईलियों के लिए यह तमाम हिदायात और अहकाम सीना पहाड़ पर दिए। \c 27 \s1 मख़सूस की हुई चीज़ों की वापसी \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बताना कि अगर किसी ने मन्नत मानकर किसी को रब के लिए मख़सूस किया हो तो वह उसे ज़ैल की रक़म देकर आज़ाद कर सकता है (मुस्तामल सिक्के मक़दिस के सिक्कों के बराबर हों) : \v 3 उस आदमी के लिए जिसकी उम्र 20 और 60 साल के दरमियान है चाँदी के 50 सिक्के, \v 4 इसी उम्र की औरत के लिए चाँदी के 30 सिक्के, \v 5 उस लड़के के लिए जिसकी उम्र 5 और 20 साल के दरमियान हो चाँदी के 20 सिक्के, इसी उम्र की लड़की के लिए चाँदी के 10 सिक्के, \v 6 एक माह से लेकर 5 साल तक के लड़के के लिए चाँदी के 5 सिक्के, इसी उम्र की लड़की के लिए चाँदी के 3 सिक्के, \v 7 साठ साल से बड़े आदमी के लिए चाँदी के 15 सिक्के और इसी उम्र की औरत के लिए चाँदी के 10 सिक्के। \p \v 8 अगर मन्नत माननेवाला मुक़र्ररा रक़म अदा न कर सके तो वह मख़सूस किए हुए शख़्स को इमाम के पास ले आए। फिर इमाम ऐसी रक़म मुक़र्रर करे जो मन्नत माननेवाला अदा कर सके। \p \v 9 अगर किसी ने मन्नत मानकर ऐसा जानवर मख़सूस किया जो रब की क़ुरबानियों के लिए इस्तेमाल हो सकता है तो ऐसा जानवर मख़सूसो-मुक़द्दस हो जाता है। \v 10 वह उसे बदल नहीं सकता। न वह अच्छे जानवर की जगह नाक़िस, न नाक़िस जानवर की जगह अच्छा जानवर दे। अगर वह एक जानवर दूसरे की जगह दे तो दोनों मख़सूसो-मुक़द्दस हो जाते हैं। \p \v 11 अगर किसी ने मन्नत मानकर कोई नापाक जानवर मख़सूस किया जो रब की क़ुरबानियों के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकता तो वह उसको इमाम के पास ले आए। \v 12 इमाम उस की रक़म उस की अच्छी और बुरी सिफ़्तों का लिहाज़ करके मुक़र्रर करे। इस मुक़र्ररा क़ीमत में कमी बेशी नहीं हो सकती। \v 13 अगर मन्नत माननेवाला उसे वापस ख़रीदना चाहे तो वह मुक़र्ररा क़ीमत जमा 20 फ़ीसद अदा करे। \p \v 14 अगर कोई अपना घर रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करे तो इमाम उस की अच्छी और बुरी सिफ़्तों का लिहाज़ करके उस की रक़म मुक़र्रर करे। इस मुक़र्ररा क़ीमत में कमी बेशी नहीं हो सकती। \v 15 अगर घर को मख़सूस करनेवाला उसे वापस ख़रीदना चाहे तो वह मुक़र्ररा रक़म जमा 20 फ़ीसद अदा करे। \p \v 16 अगर कोई अपनी मौरूसी ज़मीन में से कुछ रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करे तो उस की क़ीमत उस बीज की मिक़दार के मुताबिक़ मुक़र्रर की जाए जो उसमें बोना होता है। जिस खेत में 135 किलोग्राम जौ का बीज बोया जाए उस की क़ीमत चाँदी के 50 सिक्के होगी। \v 17 शर्त यह है कि वह अपनी ज़मीन बहाली के साल के ऐन बाद मख़सूस करे। फिर उस की यही क़ीमत मुक़र्रर की जाए। \v 18 अगर ज़मीन का मालिक उसे बहाली के साल के कुछ देर बाद मख़सूस करे तो इमाम अगले बहाली के साल तक रहनेवाले सालों के मुताबिक़ ज़मीन की क़ीमत मुक़र्रर करे। जितने कम साल बाक़ी हैं उतनी कम उस की क़ीमत होगी। \v 19 अगर मख़सूस करनेवाला अपनी ज़मीन वापस ख़रीदना चाहे तो वह मुक़र्ररा क़ीमत जमा 20 फ़ीसद अदा करे। \v 20 अगर मख़सूस करनेवाला अपनी ज़मीन को रब से वापस ख़रीदे बग़ैर उसे किसी और को बेचे तो उसे वापस ख़रीदने का हक़ ख़त्म हो जाएगा। \v 21 अगले बहाली के साल यह ज़मीन मख़सूसो-मुक़द्दस रहेगी और रब की दायमी मिलकियत हो जाएगी। चुनाँचे वह इमाम की मिलकियत होगी। \p \v 22 अगर कोई अपना मौरूसी खेत नहीं बल्कि अपना ख़रीदा हुआ खेत रब के लिए मख़सूस करे \v 23 तो इमाम अगले बहाली के साल तक रहनेवाले सालों का लिहाज़ करके उस की क़ीमत मुक़र्रर करे। खेत का मालिक उसी दिन उसके पैसे अदा करे। यह पैसे रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस होंगे। \v 24 बहाली के साल में यह खेत उस शख़्स के पास वापस आएगा जिसने उसे बेचा था। \p \v 25 वापस ख़रीदने के लिए मुस्तामल सिक्के मक़दिस के सिक्कों के बराबर हों। उसके चाँदी के सिक्कों का वज़न 11 ग्राम है। \p \v 26 लेकिन कोई भी किसी मवेशी का पहलौठा रब के लिए मख़सूस नहीं कर सकता। वह तो पहले से रब के लिए मख़सूस है। इसमें कोई फ़रक़ नहीं कि वह गाय, बैल या भेड़ हो। \v 27 अगर उसने कोई नापाक जानवर मख़सूस किया हो तो वह उसे मुक़र्ररा क़ीमत जमा 20 फ़ीसद के लिए वापस ख़रीद सकता है। अगर वह उसे वापस न ख़रीदे तो वह मुक़र्ररा क़ीमत के लिए बेचा जाए। \p \v 28 लेकिन अगर किसी ने अपनी मिलकियत में से कुछ ग़ैरमशरूत तौर पर रब के लिए मख़सूस किया है तो उसे बेचा या वापस नहीं ख़रीदा जा सकता, ख़ाह वह इनसान, जानवर या ज़मीन हो। जो इस तरह मख़सूस किया गया हो वह रब के लिए निहायत मुक़द्दस है। \v 29 इसी तरह जिस शख़्स को तबाही के लिए मख़सूस किया गया है उसका फ़िद्या नहीं दिया जा सकता। लाज़िम है कि उसे सज़ाए-मौत दी जाए। \p \v 30 हर फ़सल का दसवाँ हिस्सा रब का है, चाहे वह अनाज हो या फल। वह रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस है। \v 31 अगर कोई अपनी फ़सल का दसवाँ हिस्सा छुड़ाना चाहता है तो वह इसके लिए उस की मुक़र्ररा क़ीमत जमा 20 फ़ीसद दे। \v 32 इसी तरह गाय-बैलों और भेड़-बकरियों का दसवाँ हिस्सा भी रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस है, हर दसवाँ जानवर जो गल्लाबान के डंडे के नीचे से गुज़रेगा। \v 33 यह जानवर चुनने से पहले उनका मुआयना न किया जाए कि कौन-से जानवर अच्छे या कमज़ोर हैं। यह भी न करना कि दसवें हिस्से के किसी जानवर के बदले कोई और जानवर दिया जाए। अगर फिर भी उसे बदला जाए तो दोनों जानवर रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस होंगे। और उन्हें वापस ख़रीदा नहीं जा सकता।” \p \v 34 यह वह अहकाम हैं जो रब ने सीना पहाड़ पर मूसा को इसराईलियों के लिए दिए।