\id JOS उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h यशुअ \toc1 यशुअ \toc2 यशुअ \toc3 यशू \mt1 यशुअ \c 1 \s1 रब यशुअ को राहनुमाई की ज़िम्मादारी सौंपता है \p \v 1 रब के ख़ादिम मूसा की मौत के बाद रब मूसा के मददगार यशुअ बिन नून से हमकलाम हुआ। उसने कहा, \v 2 “मेरा ख़ादिम मूसा फ़ौत हो गया है। अब उठ, इस पूरी क़ौम के साथ दरियाए-यरदन को पार करके उस मुल्क में दाख़िल हो जा जो मैं इसराईलियों को देने को हूँ। \v 3 जिस ज़मीन पर भी तू अपना पाँव रखेगा उसे मैं मूसा के साथ किए गए वादे के मुताबिक़ तुझे दूँगा। \v 4 तुम्हारे मुल्क की सरहद्दें यह होंगी : जुनूब में नजब का रेगिस्तान, शिमाल में लुबनान, मशरिक़ में दरियाए-फ़ुरात और मग़रिब में बहीराए-रूम। हित्ती क़ौम का पूरा इलाक़ा इसमें शामिल होगा। \v 5 तेरे जीते-जी कोई तेरा सामना नहीं कर सकेगा। जिस तरह मैं मूसा के साथ था, उसी तरह तेरे साथ भी हूँगा। मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न तुझे तर्क करूँगा। \p \v 6 मज़बूत और दिलेर हो, क्योंकि तू ही इस क़ौम को मीरास में वह मुल्क देगा जिसका मैंने उनके बापदादा से क़सम खाकर वादा किया था। \v 7 लेकिन ख़बरदार, मज़बूत और बहुत दिलेर हो। एहतियात से उस पूरी शरीअत पर अमल कर जो मेरे ख़ादिम मूसा ने तुझे दी है। उससे न दाईं और न बाईं तरफ़ हटना। फिर जहाँ कहीं भी तू जाए कामयाब होगा। \v 8 जो बातें इस शरीअत की किताब में लिखी हैं वह तेरे मुँह से न हटें। दिन-रात उन पर ग़ौर करता रह ताकि तू एहतियात से इसकी हर बात पर अमल कर सके। फिर तू हर काम में कामयाब और ख़ुशहाल होगा। \p \v 9 मैं फिर कहता हूँ कि मज़बूत और दिलेर हो। न घबरा और न हौसला हार, क्योंकि जहाँ भी तू जाएगा वहाँ रब तेरा ख़ुदा तेरे साथ रहेगा।” \s1 मुल्क में दाख़िल होने की तैयारियाँ \p \v 10 फिर यशुअ क़ौम के निगहबानों से मुख़ातिब हुआ, \v 11 “ख़ैमागाह में हर जगह जाकर लोगों को इत्तला दें कि सफ़र के लिए खाने का बंदोबस्त कर लें। क्योंकि तीन दिन के बाद आप दरियाए-यरदन को पार करके उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करेंगे जो रब आपका ख़ुदा आपको विरसे में दे रहा है।” \p \v 12 फिर यशुअ रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले से मुख़ातिब हुआ, \v 13 “यह बात याद रखें जो रब के ख़ादिम मूसा ने आपसे कही थी, ‘रब तुम्हारा ख़ुदा तुमको दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर का यह इलाक़ा देता है ताकि तुम यहाँ अमनो-अमान के साथ रह सको।’ \v 14 अब जब हम दरियाए-यरदन को पार कर रहे हैं तो आपके बाल-बच्चे और मवेशी यहीं रह सकते हैं। लेकिन लाज़िम है कि आपके तमाम जंग करने के क़ाबिल मर्द मुसल्लह होकर अपने भाइयों के आगे आगे दरिया को पार करें। आपको उस वक़्त तक अपने भाइयों की मदद करना है \v 15 जब तक रब उन्हें वह आराम न दे जो आपको हासिल है और वह उस मुल्क पर क़ब्ज़ा न कर लें जो रब आपका ख़ुदा उन्हें दे रहा है। इसके बाद ही आपको अपने उस इलाक़े में वापस जाकर आबाद होने की इजाज़त होगी जो रब के ख़ादिम मूसा ने आपको दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर दिया था।” \p \v 16 उन्होंने जवाब में यशुअ से कहा, “जो भी हुक्म आपने हमें दिया है वह हम मानेंगे और जहाँ भी हमें भेजेंगे वहाँ जाएंगे। \v 17 जिस तरह हम मूसा की हर बात मानते थे उसी तरह आपकी भी हर बात मानेंगे। लेकिन रब आपका ख़ुदा उसी तरह आपके साथ हो जिस तरह वह मूसा के साथ था। \v 18 जो भी आपके हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी करके आपकी वह तमाम बातें न माने जो आप फ़रमाएँगे उसे सज़ाए-मौत दी जाए। लेकिन मज़बूत और दिलेर हों!” \c 2 \s1 यरीहू शहर में इसराईली जासूस \p \v 1 फिर यशुअ ने चुपके से दो जासूसों को शित्तीम से भेज दिया जहाँ इसराईली ख़ैमागाह थी। उसने उनसे कहा, “जाकर मुल्क का जायज़ा लें, ख़ासकर यरीहू शहर का।” वह रवाना हुए और चलते चलते एक कसबी के घर पहुँचे जिसका नाम राहब था। वहाँ वह रात के लिए ठहर गए। \v 2 लेकिन यरीहू के बादशाह को इत्तला मिली कि आज शाम को कुछ इसराईली मर्द यहाँ पहुँच गए हैं जो मुल्क की जासूसी करना चाहते हैं। \v 3 यह सुनकर बादशाह ने राहब को ख़बर भेजी, “उन आदमियों को निकाल दो जो तुम्हारे पास आकर ठहरे हुए हैं, क्योंकि यह पूरे मुल्क की जासूसी करने के लिए आए हैं।” \p \v 4 लेकिन राहब ने दोनों आदमियों को छुपा रखा था। उसने कहा, “जी, यह आदमी मेरे पास आए तो थे लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि कहाँ से आए हैं। \v 5 जब दिन ढलने लगा और शहर के दरवाज़ों को बंद करने का वक़्त आ गया तो वह चले गए। मुझे मालूम नहीं कि किस तरफ़ गए। अब जल्दी करके उनका पीछा करें। ऐन मुमकिन है कि आप उन्हें पकड़ लें।” \v 6 हक़ीक़त में राहब ने उन्हें छत पर ले जाकर वहाँ पर पड़े सन के डंठलों के नीचे छुपा दिया था। \v 7 राहब की बात सुनकर बादशाह के आदमी वहाँ से चले गए और शहर से निकलकर जासूसों के ताक़्क़ुब में उस रास्ते पर चलने लगे जो दरियाए-यरदन के उन कम-गहरे मक़ामों तक ले जाता है जहाँ उसे पैदल उबूर किया जा सकता था। और ज्योंही यह आदमी निकले, शहर का दरवाज़ा उनके पीछे बंद कर दिया गया। \p \v 8 जासूसों के सो जाने से पहले राहब ने छत पर आकर \v 9 उनसे कहा, “मैं जानती हूँ कि रब ने यह मुल्क आपको दे दिया है। आपके बारे में सुनकर हम पर दहशत छा गई है, और मुल्क के तमाम बाशिंदे हिम्मत हार गए हैं। \v 10 क्योंकि हमें ख़बर मिली है कि आपके मिसर से निकलते वक़्त रब ने बहरे-क़ुलज़ुम का पानी किस तरह आपके आगे ख़ुश्क कर दिया। यह भी हमारे सुनने में आया है कि आपने दरियाए-यरदन के मशरिक़ में रहनेवाले दो बादशाहों सीहोन और ओज के साथ क्या कुछ किया, कि आपने उन्हें पूरी तरह तबाह कर दिया। \v 11 यह सुनकर हमारी हिम्मत टूट गई। आपके सामने हम सब हौसला हार गए हैं, क्योंकि रब आपका ख़ुदा आसमानो-ज़मीन का ख़ुदा है। \v 12 अब रब की क़सम खाकर मुझसे वादा करें कि आप उसी तरह मेरे ख़ानदान पर मेहरबानी करेंगे जिस तरह कि मैंने आप पर की है। और ज़मानत के तौर पर मुझे कोई निशान दें \v 13 कि आप मेरे माँ-बाप, मेरे बहन-भाइयों और उनके घरवालों को ज़िंदा छोड़कर हमें मौत से बचाए रखेंगे।” \p \v 14 आदमियों ने कहा, “हम अपनी जानों को ज़मानत के तौर पर पेश करते हैं कि आप महफ़ूज़ रहेंगे। अगर आप किसी को हमारे बारे में इत्तला न दें तो हम आपसे ज़रूर मेहरबानी और वफ़ादारी से पेश आएँगे जब रब हमें यह मुल्क अता फ़रमाएगा।” \p \v 15 तब राहब ने शहर से निकलने में उनकी मदद की। चूँकि उसका घर शहर की चारदीवारी से मुलहिक़ था इसलिए आदमी खिड़की से निकलकर रस्से के ज़रीए बाहर की ज़मीन पर उतर आए। \v 16 उतरने से पहले राहब ने उन्हें हिदायत की, “पहाड़ी इलाक़े की तरफ़ चले जाएँ। जो आपका ताक़्क़ुब कर रहे हैं वह वहाँ आपको ढूँड नहीं सकेंगे। तीन दिन तक यानी जब तक वह वापस न आ जाएँ वहाँ छुपे रहना। इसके बाद जहाँ जाने का इरादा है चले जाना।” \p \v 17 आदमियों ने उससे कहा, “जो क़सम आपने हमें खिलाई है हम ज़रूर उसके पाबंद रहेंगे। लेकिन शर्त यह है \v 18 कि आप हमारे इस मुल्क में आते वक़्त क़िरमिज़ी रंग का यह रस्सा उस खिड़की के सामने बाँध दें जिसमें से आपने हमें उतरने दिया है। यह भी लाज़िम है कि उस वक़्त आपके माँ-बाप, भाई-बहनें और तमाम घरवाले आपके घर में हों। \v 19 अगर कोई आपके घर में से निकले और मार दिया जाए तो यह हमारा क़ुसूर नहीं होगा, हम ज़िम्मादार नहीं ठहरेंगे। लेकिन अगर किसी को हाथ लगाया जाए जो आपके घर के अंदर हो तो हम ही उस की मौत के ज़िम्मादार ठहरेंगे। \v 20 और किसी को हमारे मामले के बारे में इत्तला न देना, वरना हम उस क़सम से आज़ाद हैं जो आपने हमें खिलाई।” \p \v 21 राहब ने जवाब दिया, “ठीक है, ऐसा ही हो।” फिर उसने उन्हें रुख़सत किया और वह रवाना हुए। और राहब ने अपनी खिड़की के साथ मज़कूरा रस्सा बाँध दिया। \p \v 22 जासूस चलते चलते पहाड़ी इलाक़े में आ गए। वहाँ वह तीन दिन रहे। इतने में उनका ताक़्क़ुब करनेवाले पूरे रास्ते का खोज लगाकर ख़ाली हाथ लौटे। \v 23 फिर दोनों जासूसों ने पहाड़ी इलाक़े से उतरकर दरियाए-यरदन को पार किया और यशुअ बिन नून के पास आकर सब कुछ बयान किया जो उनके साथ हुआ था। \v 24 उन्होंने कहा, “यक़ीनन रब ने हमें पूरा मुल्क दे दिया है। हमारे बारे में सुनकर मुल्क के तमाम बाशिंदों पर दहशत तारी हो गई है।” \c 3 \s1 इसराईली दरियाए-यरदन को उबूर करते हैं \p \v 1 सुबह-सवेरे उठकर यशुअ और तमाम इसराईली शित्तीम से रवाना हुए। जब वह दरियाए-यरदन पर पहुँचे तो उसे उबूर न किया बल्कि रात के लिए किनारे पर रुक गए। \v 2 वह तीन दिन वहाँ रहे। फिर निगहबानों ने ख़ैमागाह में से गुज़रकर \v 3 लोगों को हुक्म दिया, “जब आप देखें कि लावी के क़बीले के इमाम रब आपके ख़ुदा के अहद का संदूक़ उठाए हुए हैं तो अपने अपने मक़ाम से रवाना होकर उसके पीछे हो लें। \v 4 फिर आपको पता चलेगा कि कहाँ जाना है, क्योंकि आप पहले कभी वहाँ नहीं गए। लेकिन संदूक़ के तक़रीबन एक किलोमीटर पीछे रहें और ज़्यादा क़रीब न जाएँ।” \p \v 5 यशुअ ने लोगों को बताया, “अपने आपको मख़सूसो-मुक़द्दस करें, क्योंकि कल रब आपके दरमियान हैरतअंगेज़ काम करेगा।” \p \v 6 अगले दिन यशुअ ने इमामों से कहा, “अहद का संदूक़ उठाकर लोगों के आगे आगे दरिया को पार करें।” चुनाँचे इमाम संदूक़ को उठाकर आगे आगे चल दिए। \v 7 और रब ने यशुअ से फ़रमाया, “मैं तुझे तमाम इसराईलियों के सामने सरफ़राज़ कर दूँगा, और आज ही मैं यह काम शुरू करूँगा ताकि वह जान लें कि जिस तरह मैं मूसा के साथ था उसी तरह तेरे साथ भी हूँ। \v 8 अहद का संदूक़ उठानेवाले इमामों को बता देना, ‘जब आप दरियाए-यरदन के किनारे पहुँचेंगे तो वहाँ पानी में रुक जाएँ’।” \p \v 9 यशुअ ने इसराईलियों से कहा, “मेरे पास आएँ और रब अपने ख़ुदा के फ़रमान सुन लें। \v 10 आज आप जान लेंगे कि ज़िंदा ख़ुदा आपके दरमियान है और कि वह यक़ीनन आपके आगे आगे जाकर दूसरी क़ौमों को निकाल देगा, ख़ाह वह कनानी, हित्ती, हिव्वी, फ़रिज़्ज़ी, जिरजासी, अमोरी या यबूसी हों। \v 11 यह यों ज़ाहिर होगा कि अहद का यह संदूक़ जो तमाम दुनिया के मालिक का है आपके आगे आगे दरियाए-यरदन में जाएगा। \v 12 अब ऐसा करें कि हर क़बीले में से एक एक आदमी को चुन लें ताकि बारह अफ़राद जमा हो जाएँ। \v 13 फिर इमाम तमाम दुनिया के मालिक रब के अहद का संदूक़ उठाकर दरिया में जाएंगे। और ज्योंही वह अपने पाँव पानी में रखेंगे तो पानी का बहाव रुक जाएगा और आनेवाला पानी ढेर बनकर खड़ा रहेगा।” \p \v 14 चुनाँचे इसराईली अपने ख़ैमों को समेटकर रवाना हुए, और अहद का संदूक़ उठानेवाले इमाम उनके आगे आगे चल दिए। \v 15 फ़सल की कटाई का मौसम था, और दरिया का पानी किनारों से बाहर आ गया था। लेकिन ज्योंही संदूक़ को उठानेवाले इमामों ने दरिया के किनारे पहुँचकर पानी में क़दम रखा \v 16 तो आनेवाले पानी का बहाव रुक गया। वह उनसे दूर एक शहर के क़रीब ढेर बन गया जिसका नाम आदम था और जो ज़रतान के नज़दीक है। जो पानी दूसरी यानी बहीराए-मुरदार की तरफ़ बह रहा था वह पूरी तरह उतर गया। तब इसराईलियों ने यरीहू शहर के मुक़ाबिल दरिया को पार किया। \v 17 रब का अहद का संदूक़ उठानेवाले इमाम दरियाए-यरदन के बीच में ख़ुश्क ज़मीन पर खड़े रहे जबकि बाक़ी लोग ख़ुश्क ज़मीन पर से गुज़र गए। इमाम उस वक़्त तक वहाँ खड़े रहे जब तक तमाम इसराईलियों ने ख़ुश्क ज़मीन पर चलकर दरिया को पार न कर लिया। \c 4 \s1 यादगार पत्थर \p \v 1 जब पूरी क़ौम ने दरियाए-यरदन को उबूर कर लिया तो रब यशुअ से हमकलाम हुआ, \v 2 “हर क़बीले में से एक एक आदमी को चुन ले। \v 3 फिर इन बारह आदमियों को हुक्म दे कि जहाँ इमाम दरियाए-यरदन के दरमियान खड़े हैं वहाँ से बारह पत्थर उठाकर उन्हें उस जगह रख दो जहाँ तुम आज रात ठहरोगे।” \p \v 4 चुनाँचे यशुअ ने उन बारह आदमियों को बुलाया जिन्हें उसने इसराईल के हर क़बीले से चुन लिया था \v 5 और उनसे कहा, “रब अपने ख़ुदा के संदूक़ के आगे आगे चलकर दरिया के दरमियान तक जाएँ। आपमें से हर आदमी एक एक पत्थर उठाकर अपने कंधे पर रखे और बाहर ले जाए। कुल बारह पत्थर होंगे, इसराईल के हर क़बीले के लिए एक। \v 6 यह पत्थर आपके दरमियान एक यादगार निशान रहेंगे। आइंदा जब आपके बच्चे आपसे पूछेंगे कि इन पत्थरों का क्या मतलब है \v 7 तो उन्हें बताना, ‘यह हमें याद दिलाते हैं कि दरियाए-यरदन का बहाव रुक गया जब रब का अहद का संदूक़ उसमें से गुज़रा।’ यह पत्थर अबद तक इसराईल को याद दिलाते रहेंगे कि यहाँ क्या कुछ हुआ था।” \p \v 8 इसराईलियों ने ऐसा ही किया। उन्होंने दरियाए-यरदन के बीच में से अपने क़बीलों की तादाद के मुताबिक़ बारह पत्थर उठाए, बिलकुल उसी तरह जिस तरह रब ने यशुअ को फ़रमाया था। फिर उन्होंने यह पत्थर अपने साथ लेकर उस जगह रख दिए जहाँ उन्हें रात के लिए ठहरना था। \v 9 साथ साथ यशुअ ने उस जगह भी बारह पत्थर खड़े किए जहाँ अहद का संदूक़ उठानेवाले इमाम दरियाए-यरदन के दरमियान खड़े थे। यह पत्थर आज तक वहाँ पड़े हैं। \v 10 संदूक़ को उठानेवाले इमाम दरिया के दरमियान खड़े रहे जब तक लोगों ने तमाम अहकाम जो रब ने यशुअ को दिए थे पूरे न कर लिए। यों सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा मूसा ने यशुअ को फ़रमाया था। \p लोग जल्दी जल्दी दरिया में से गुज़रे। \v 11 जब सब दूसरे किनारे पर थे तो इमाम भी रब का संदूक़ लेकर किनारे पर पहुँचे और दुबारा क़ौम के आगे आगे चलने लगे। \v 12 और जिस तरह मूसा ने फ़रमाया था, रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले के मर्द मुसल्लह होकर बाक़ी इसराईली क़बीलों से पहले दरिया के दूसरे किनारे पर पहुँच गए थे। \v 13 तक़रीबन 40,000 मुसल्लह मर्द उस वक़्त रब के सामने यरीहू के मैदान में पहुँच गए ताकि वहाँ जंग करें। \v 14 उस दिन रब ने यशुअ को पूरी इसराईली क़ौम के सामने सरफ़राज़ किया। उसके जीते-जी लोग उसका यों ख़ौफ़ मानते रहे जिस तरह पहले मूसा का। \p \v 15 फिर रब ने यशुअ से कहा, \v 16 “अहद का संदूक़ उठानेवाले इमामों को दरिया में से निकलने का हुक्म दे।” \v 17 यशुअ ने ऐसा ही किया \v 18 तो ज्योंही इमाम किनारे पर पहुँच गए पानी दुबारा बहकर दरिया के किनारों से बाहर आने लगा। \p \v 19 इसराईलियों ने पहले महीने के दसवें दिन \f + \fr 4:19 \ft यानी अप्रैल में। \f* दरियाए-यरदन को उबूर किया। उन्होंने अपने ख़ैमे यरीहू के मशरिक़ में वाक़े जिलजाल में खड़े किए। \v 20 वहाँ यशुअ ने दरिया में से चुने हुए बारह पत्थरों को खड़ा किया। \v 21 उसने इसराईलियों से कहा, “आइंदा जब आपके बच्चे अपने अपने बाप से पूछेंगे कि इन पत्थरों का क्या मतलब है \v 22 तो उन्हें बताना, ‘यह वह जगह है जहाँ इसराईली क़ौम ने ख़ुश्क ज़मीन पर दरियाए-यरदन को पार किया।’ \v 23 क्योंकि रब आपके ख़ुदा ने उस वक़्त तक आपके आगे आगे दरिया का पानी ख़ुश्क कर दिया जब तक आप वहाँ से गुज़र न गए, बिलकुल उसी तरह जिस तरह बहरे-क़ुलज़ुम के साथ किया था जब हम उसमें से गुज़रे। \v 24 उसने यह काम इसलिए किया ताकि ज़मीन की तमाम क़ौमें अल्लाह की क़ुदरत को जान लें और आप हमेशा रब अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानें।” \c 5 \p \v 1 यह ख़बर दरियाए-यरदन के मग़रिब में आबाद तमाम अमोरी बादशाहों और साहिली इलाक़े में आबाद तमाम कनानी बादशाहों तक पहुँच गई कि रब ने इसराईलियों के सामने दरिया को उस वक़्त तक ख़ुश्क कर दिया जब तक सबने पार न कर लिया था। तब उनकी हिम्मत टूट गई और उनमें इसराईलियों का सामना करने की जुर्रत न रही। \s1 जिलजाल में ख़तना \p \v 2 उस वक़्त रब ने यशुअ से कहा, “पत्थर की छुरियाँ बनाकर पहले की तरह इसराईलियों का ख़तना करवा दे।” \v 3 चुनाँचे यशुअ ने पत्थर की छुरियाँ बनाकर एक जगह पर इसराईलियों का ख़तना करवाया जिसका नाम बाद में ‘ख़तना पहाड़’ रखा गया। \v 4 बात यह थी कि जो मर्द मिसर से निकलते वक़्त जंग करने के क़ाबिल थे वह रेगिस्तान में चलते चलते मर चुके थे। \v 5 मिसर से रवाना होनेवाले इन तमाम मर्दों का ख़तना हुआ था, लेकिन जितने लड़कों की पैदाइश रेगिस्तान में हुई थी उनका ख़तना नहीं हुआ था। \v 6 चूँकि इसराईली रब के ताबे नहीं रहे थे इसलिए उसने क़सम खाई थी कि वह उस मुल्क को नहीं देखेंगे जिसमें दूध और शहद की कसरत है और जिसका वादा उसने क़सम खाकर उनके बापदादा से किया था। नतीजे में इसराईली फ़ौरन मुल्क में दाख़िल न हो सके बल्कि उन्हें उस वक़्त तक रेगिस्तान में फिरना पड़ा जब तक वह तमाम मर्द मर न गए जो मिसर से निकलते वक़्त जंग करने के क़ाबिल थे। \v 7 उनकी जगह रब ने उनके बेटों को खड़ा किया था। यशुअ ने उन्हीं का ख़तना करवाया। उनका ख़तना इसलिए हुआ कि रेगिस्तान में सफ़र के दौरान उनका ख़तना नहीं किया गया था। \p \v 8 पूरी क़ौम के मर्दों का ख़तना होने के बाद वह उस वक़्त तक ख़ैमागाह में रहे जब तक उनके ज़ख़म ठीक नहीं हो गए थे। \v 9 और रब ने यशुअ से कहा, “आज मैंने मिसर की रुसवाई तुमसे दूर कर दी है।” \f + \fr 5:9 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : लुढ़काकर दूर कर दी है। \f* इसलिए उस जगह का नाम आज तक जिलजाल यानी लुढ़काना रहा है। \p \v 10 जब इसराईली यरीहू के मैदानी इलाक़े में वाक़े जिलजाल में ख़ैमाज़न थे तो उन्होंने फ़सह की ईद भी मनाई। महीने का चौधवाँ दिन था, \v 11 और अगले ही दिन वह पहली दफ़ा उस मुल्क की पैदावार में से बेख़मीरी रोटी और अनाज के भुने हुए दाने खाने लगे। \v 12 उसके बाद के दिन मन का सिलसिला ख़त्म हुआ और इसराईलियों के लिए यह सहूलत न रही। उस साल से वह कनान की पैदावार से खाने लगे। \s1 फ़रिश्ते से यशुअ की मुलाक़ात \p \v 13 एक दिन यशुअ यरीहू शहर के क़रीब था। अचानक एक आदमी उसके सामने खड़ा नज़र आया जिसके हाथ में नंगी तलवार थी। यशुअ ने उसके पास जाकर पूछा, “क्या आप हमारे साथ या हमारे दुश्मनों के साथ हैं?” \p \v 14 आदमी ने कहा, “नहीं, मैं रब के लशकर का सरदार हूँ और अभी अभी तेरे पास पहुँचा हूँ।” \p यह सुनकर यशुअ ने गिरकर उसे सिजदा किया और पूछा, “मेरे आक़ा अपने ख़ादिम को क्या फ़रमाना चाहते हैं?” \p \v 15 रब के लशकर के सरदार ने जवाब में कहा, “अपने जूते उतार दे, क्योंकि जिस जगह पर तू खड़ा है वह मुक़द्दस है।” यशुअ ने ऐसा ही किया। \c 6 \s1 यरीहू की तबाही \p \v 1 उन दिनों में इसराईलियों की वजह से यरीहू के दरवाज़े बंद ही रहे। न कोई बाहर निकला, न कोई अंदर गया। \v 2 रब ने यशुअ से कहा, “मैंने यरीहू को उसके बादशाह और फ़ौजी अफ़सरों समेत तेरे हाथ में कर दिया है। \v 3 जो इसराईली जंग के लिए तेरे साथ निकलेंगे उनके साथ शहर की फ़सील के साथ साथ चलकर एक चक्कर लगाओ और फिर ख़ैमागाह में वापस आ जाओ। छः दिन तक ऐसा ही करो। \v 4 सात इमाम एक एक नरसिंगा उठाए अहद के संदूक़ के आगे आगे चलें। फिर सातवें दिन शहर के गिर्द सात चक्कर लगाओ। साथ साथ इमाम नरसिंगे बजाते रहें। \v 5 जब वह नरसिंगों को बजाते बजाते लंबी-सी फूँक मारेंगे तो फिर तमाम इसराईली बड़े ज़ोर से जंग का नारा लगाएँ। इस पर शहर की फ़सील गिर जाएगी और तेरे लोग हर जगह सीधे शहर में दाख़िल हो सकेंगे।” \p \v 6 यशुअ बिन नून ने इमामों को बुलाकर उनसे कहा, “रब के अहद का संदूक़ उठाकर मेरे साथ चलें। और सात इमाम एक एक नरसिंगा उठाए संदूक़ के आगे आगे चलें।” \v 7 फिर उसने बाक़ी लोगों से कहा, “आएँ, शहर की फ़सील के साथ साथ चलकर एक चक्कर लगाएँ। मुसल्लह आदमी रब के संदूक़ के आगे आगे चलें।” \p \v 8 सब कुछ यशुअ की हिदायात के मुताबिक़ हुआ। सात इमाम नरसिंगे बजाते हुए रब के आगे आगे चले जबकि रब के अहद का संदूक़ उनके पीछे पीछे था। \v 9 मुसल्लह आदमियों में से कुछ बजानेवाले इमामों के आगे आगे और कुछ संदूक़ के पीछे पीछे चलने लगे। इतने में इमाम नरसिंगे बजाते रहे। \v 10 लेकिन यशुअ ने बाक़ी लोगों को हुक्म दिया था कि उस दिन जंग का नारा न लगाएँ। उसने कहा, “जब तक मैं हुक्म न दूँ उस वक़्त तक एक लफ़्ज़ भी न बोलना। जब मैं इशारा दूँगा तो फिर ही ख़ूब नारा लगाना।” \v 11 इसी तरह रब के संदूक़ ने शहर की फ़सील के साथ साथ चलकर चक्कर लगाया। फिर लोगों ने ख़ैमागाह में लौटकर वहाँ रात गुज़ारी। \p \v 12-13 अगले दिन यशुअ सुबह-सवेरे उठा, और इमामों और फ़ौजियों ने दूसरी मरतबा शहर का चक्कर लगाया। उनकी वही तरतीब थी। पहले कुछ मुसल्लह आदमी, फिर सात नरसिंगे बजानेवाले इमाम, फिर रब के अहद का संदूक़ उठानेवाले इमाम और आख़िर में मज़ीद कुछ मुसल्लह आदमी थे। चक्कर लगाने के दौरान इमाम नरसिंगे बजाते रहे। \v 14 इस दूसरे दिन भी वह शहर का चक्कर लगाकर ख़ैमागाह में लौट आए। उन्होंने छः दिन तक ऐसा ही किया। \p \v 15 सातवें दिन उन्होंने सुबह-सवेरे उठकर शहर का चक्कर यों लगाया जैसे पहले छः दिनों में, लेकिन इस दफ़ा उन्होंने कुल सात चक्कर लगाए। \v 16 सातवें चक्कर पर इमामों ने नरसिंगों को बजाते हुए लंबी-सी फूँक मारी। तब यशुअ ने लोगों से कहा, “जंग का नारा लगाएँ, क्योंकि रब ने आपको यह शहर दे दिया है। \v 17 शहर को और जो कुछ उसमें है तबाह करके रब के लिए मख़सूस करना है। सिर्फ़ राहब कसबी को उन लोगों समेत बचाना है जो उसके घर में हैं। क्योंकि उसने हमारे उन जासूसों को छुपा दिया जिनको हमने यहाँ भेजा था। \v 18 लेकिन अल्लाह के लिए मख़सूस चीज़ों को हाथ न लगाना, क्योंकि अगर आप उनमें से कुछ ले लें तो अपने आपको तबाह करेंगे बल्कि इसराईली ख़ैमागाह पर भी तबाही और आफ़त लाएँगे। \v 19 जो कुछ भी चाँदी, सोने, पीतल या लोहे से बना है वह रब के लिए मख़सूस है। उसे रब के ख़ज़ाने में डालना है।” \p \v 20 जब इमामों ने लंबी फूँक मारी तो इसराईलियों ने जंग के ज़ोरदार नारे लगाए। अचानक यरीहू की फ़सील गिर गई, और हर शख़्स अपनी अपनी जगह पर सीधा शहर में दाख़िल हुआ। यों शहर इसराईल के क़ब्ज़े में आ गया। \v 21 जो कुछ भी शहर में था उसे उन्होंने तलवार से मारकर रब के लिए मख़सूस किया, ख़ाह मर्द या औरत, जवान या बुज़ुर्ग, गाय-बैल, भेड़-बकरी या गधा था। \p \v 22 जिन दो आदमियों ने मुल्क की जासूसी की थी उनसे यशुअ ने कहा, “अब अपनी क़सम का वादा पूरा करें। कसबी के घर में जाकर उसे और उसके तमाम घरवालों को निकाल लाएँ।” \v 23 चुनाँचे यह जवान आदमी गए और राहब, उसके माँ-बाप, भाइयों और बाक़ी रिश्तेदारों को उस की मिलकियत समेत निकालकर ख़ैमागाह से बाहर कहीं बसा दिया। \v 24 फिर उन्होंने पूरे शहर को और जो कुछ उसमें था भस्म कर दिया। लेकिन चाँदी, सोने, पीतल और लोहे का तमाम माल उन्होंने रब के घर के ख़ज़ाने में डाल दिया। \v 25 यशुअ ने सिर्फ़ राहब कसबी और उसके घरवालों को बचाए रखा, क्योंकि उसने उन आदमियों को छुपा दिया था जिन्हें यशुअ ने यरीहू भेजा था। राहब आज तक इसराईलियों के दरमियान रहती है। \p \v 26 उस वक़्त यशुअ ने क़सम खाई, “रब की लानत उस पर हो जो यरीहू का शहर नए सिरे से तामीर करने की कोशिश करे। शहर की बुनियाद रखते वक़्त वह अपने पहलौठे से महरूम हो जाएगा, और उसके दरवाज़ों को खड़ा करते वक़्त वह अपने सबसे छोटे बेटे से हाथ धो बैठेगा।” \p \v 27 यों रब यशुअ के साथ था, और उस की शोहरत पूरे मुल्क में फैल गई। \c 7 \s1 अकन का गुनाह \p \v 1 लेकिन जहाँ तक रब के लिए मख़सूस चीज़ों का ताल्लुक़ था इसराईलियों ने बेवफ़ाई की। यहूदाह के क़बीले के एक आदमी ने उनमें से कुछ अपने लिए ले लिया। उसका नाम अकन बिन करमी बिन ज़बदी बिन ज़ारह था। तब रब का ग़ज़ब इसराईलियों पर नाज़िल हुआ। \p \v 2 यह यों ज़ाहिर हुआ कि यशुअ ने कुछ आदमियों को यरीहू से अई शहर को भेज दिया जो बैतेल के मशरिक़ में बैत-आवन के क़रीब है। उसने उनसे कहा, “उस इलाक़े में जाकर उस की जासूसी करें।” चुनाँचे वह जाकर ऐसा ही करने लगे। \v 3 जब वापस आए तो उन्होंने यशुअ से कहा, “इसकी ज़रूरत नहीं कि तमाम लोग अई पर हमला करें। उसे शिकस्त देने के लिए दो या तीन हज़ार मर्द काफ़ी हैं। बाक़ी लोगों को न भेजें वरना वह ख़ाहमख़ाह थक जाएंगे, क्योंकि दुश्मन के लोग कम हैं।” \v 4 चुनाँचे तक़रीबन तीन हज़ार आदमी अई से लड़ने गए। लेकिन वह अई के मर्दों से शिकस्त खाकर फ़रार हुए, \v 5 और उनके 36 अफ़राद शहीद हुए। अई के आदमियों ने शहर के दरवाज़े से लेकर शबरीम तक उनका ताक़्क़ुब करके वहाँ की ढलान पर उन्हें मार डाला। तब इसराईली सख़्त घबरा गए, और उनकी हिम्मत जवाब दे गई। \p \v 6 यशुअ ने रंजिश का इज़हार करके अपने कपड़ों को फाड़ दिया और रब के संदूक़ के सामने मुँह के बल गिर गया। वहाँ वह शाम तक पड़ा रहा। इसराईल के बुज़ुर्गों ने भी ऐसा ही किया और अपने सर पर ख़ाक डाल ली। \v 7 यशुअ ने कहा, “हाय, ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़! तूने इस क़ौम को दरियाए-यरदन में से गुज़रने क्यों दिया अगर तेरा मक़सद सिर्फ़ यह था कि हमें अमोरियों के हवाले करके हलाक करे? काश हम दरिया के मशरिक़ी किनारे पर रहने के लिए तैयार होते! \v 8 ऐ रब, अब मैं क्या कहूँ जब इसराईल अपने दुश्मनों के सामने से भाग आया है? \v 9 कनानी और मुल्क की बाक़ी क़ौमें यह सुनकर हमें घेर लेंगी और हमारा नामो-निशान मिटा देंगी। अगर ऐसा होगा तो फिर तू ख़ुद अपना अज़ीम नाम क़ायम रखने के लिए क्या करेगा?” \p \v 10 जवाब में रब ने यशुअ से कहा, “उठकर खड़ा हो जा! तू क्यों मुँह के बल पड़ा है? \v 11 इसराईल ने गुनाह किया है। उन्होंने मेरे अहद की ख़िलाफ़वरज़ी की है जो मैंने उनके साथ बाँधा था। उन्होंने मख़सूसशुदा चीज़ों में से कुछ ले लिया है, और चोरी करके चुपके से अपने सामान में मिला लिया है। \v 12 इसी लिए इसराईली अपने दुश्मनों के सामने क़ायम नहीं रह सकते बल्कि पीठ फेरकर भाग रहे हैं। क्योंकि इस हरकत से इसराईल ने अपने आपको भी हलाकत के लिए मख़सूस कर लिया है। जब तक तुम अपने दरमियान से वह कुछ निकालकर तबाह न कर लो जो तबाही के लिए मख़सूस है उस वक़्त तक मैं तुम्हारे साथ नहीं हूँगा। \v 13 अब उठ और लोगों को मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस कर। उन्हें बता देना, ‘अपने आपको कल के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करना, क्योंकि रब जो इसराईल का ख़ुदा है फ़रमाता है कि ऐ इसराईल, तेरे दरमियान ऐसा माल है जो मेरे लिए मख़सूस है। जब तक तुम उसे अपने दरमियान से निकाल न दो अपने दुश्मनों के सामने क़ायम नहीं रह सकोगे।’ \p \v 14 कल सुबह को हर एक क़बीला अपने आपको पेश करे। रब ज़ाहिर करेगा कि क़ुसूरवार शख़्स कौन-से क़बीले का है। फिर उस क़बीले के कुंबे बारी बारी सामने आएँ। जिस कुंबे को रब क़ुसूरवार ठहराएगा उसके मुख़्तलिफ़ ख़ानदान सामने आएँ। और जिस ख़ानदान को रब क़ुसूरवार ठराएगा उसके मुख़्तलिफ़ अफ़राद सामने आएँ। \v 15 जो रब के लिए मख़सूस माल के साथ पकड़ा जाएगा उसे उस की मिलकियत समेत जला देना है, क्योंकि उसने रब के अहद की ख़िलाफ़वरज़ी करके इसराईल में शर्मनाक काम किया है।” \p \v 16 अगले दिन सुबह-सवेरे यशुअ ने क़बीलों को बारी बारी अपने पास आने दिया। जब यहूदाह के क़बीले की बारी आई तो रब ने उसे क़ुसूरवार ठहराया। \v 17 जब उस क़बीले के मुख़्तलिफ़ कुंबे सामने आए तो रब ने ज़ारह के कुंबे को क़ुसूरवार ठहराया। जब ज़ारह के मुख़्तलिफ़ ख़ानदान सामने आए तो रब ने ज़बदी का ख़ानदान क़ुसूरवार ठहराया। \v 18 आख़िरकार यशुअ ने उस ख़ानदान को फ़रदन फ़रदन अपने पास आने दिया, और अकन बिन करमी बिन ज़बदी बिन ज़ारह पकड़ा गया। \v 19 यशुअ ने उससे कहा, “बेटा, रब इसराईल के ख़ुदा को जलाल दो और उस की सताइश करो। मुझे बता दो कि तुमने क्या किया। कोई भी बात मुझसे मत छुपाना।” \p \v 20 अकन ने जवाब दिया, “वाक़ई मैंने रब इसराईल के ख़ुदा का गुनाह किया है। \v 21 मैंने लूटे हुए माल में से बाबल का एक शानदार चोग़ा, तक़रीबन सवा दो किलोग्राम चाँदी और आधे किलोग्राम से ज़ायद सोने की ईंट ले ली थी। यह चीज़ें देखकर मैंने उनका लालच किया और उन्हें ले लिया। अब वह मेरे ख़ैमे की ज़मीन में दबी हुई हैं। चाँदी को मैंने बाक़ी चीज़ों के नीचे छुपा दिया।” \p \v 22 यह सुनकर यशुअ ने अपने बंदों को अकन के ख़ैमे के पास भेज दिया। वह दौड़कर वहाँ पहुँचे तो देखा कि यह माल वाक़ई ख़ैमे की ज़मीन में छुपाया हुआ है और कि चाँदी दूसरी चीज़ों के नीचे पड़ी है। \v 23 वह यह सब कुछ ख़ैमे से निकालकर यशुअ और तमाम इसराईलियों के पास ले आए और रब के सामने रख दिया। \v 24 फिर यशुअ और तमाम इसराईली अकन बिन ज़ारह को पकड़कर वादीए-अकूर में ले गए। उन्होंने चाँदी, लिबास, सोने की ईंट, अकन के बेटे-बेटियों, गाय-बैलों, गधों, भेड़-बकरियों और उसके ख़ैमे ग़रज़ उस की पूरी मिलकियत को उस वादी में पहुँचा दिया। \p \v 25 यशुअ ने कहा, “तुम यह आफ़त हम पर क्यों लाए हो? आज रब तुम पर ही आफ़त लाएगा।” फिर पूरे इसराईल ने अकन को उसके घरवालों समेत संगसार करके जला दिया। \v 26 अकन के ऊपर उन्होंने पत्थरों का बड़ा ढेर लगा दिया जो आज तक वहाँ मौजूद है। यही वजह है कि आज तक उसका नाम वादीए-अकूर यानी आफ़त की वादी रहा है। \p इसके बाद रब का सख़्त ग़ज़ब ठंडा हो गया। \c 8 \s1 अई की शिकस्त \p \v 1 फिर रब ने यशुअ से कहा, “मत डर और मत घबरा बल्कि तमाम फ़ौजी अपने साथ लेकर अई शहर पर हमला कर। क्योंकि मैंने अई के बादशाह, उस की क़ौम, उसके शहर और मुल्क को तेरे हाथ में कर दिया है। \v 2 लाज़िम है कि तू अई और उसके बादशाह के साथ वह कुछ करे जो तूने यरीहू और उसके बादशाह के साथ किया था। लेकिन इस मरतबा तुम उसका माल और मवेशी अपने पास रख सकते हो। हमला करते वक़्त शहर के पीछे घात लगा।” \p \v 3 चुनाँचे यशुअ पूरे लशकर के साथ अई पर हमला करने के लिए निकला। उसने अपने सबसे अच्छे फ़ौजियों में से 30,000 को चुन लिया और उन्हें रात के वक़्त अई के ख़िलाफ़ भेजकर \v 4 हुक्म दिया, “ध्यान दें कि आप शहर के पीछे घात लगाएँ। सबके सब शहर के क़रीब ही तैयार रहें। \v 5 इतने में मैं बाक़ी मर्दों के साथ शहर के क़रीब आ जाऊँगा। और जब शहर के लोग पहले की तरह हमारे साथ लड़ने के लिए निकलेंगे तो हम उनके आगे आगे भाग जाएंगे। \v 6 वह हमारे पीछे पड़ जाएंगे और यों हम उन्हें शहर से दूर ले जाएंगे, क्योंकि वह समझेंगे कि हम इस दफ़ा भी पहले की तरह उनसे भाग रहे हैं। \v 7 फिर आप उस जगह से निकलें जहाँ आप घात में बैठे होंगे और शहर पर क़ब्ज़ा कर लें। रब आपका ख़ुदा उसे आपके हाथ में कर देगा। \v 8 जब शहर आपके क़ब्ज़े में होगा तो उसे जला देना। वही करें जो रब ने फ़रमाया है। मेरी इन हिदायात पर ध्यान दें।” \p \v 9 यह कहकर यशुअ ने उन्हें अई की तरफ़ भेज दिया। वह रवाना होकर अई के मग़रिब में घात में बैठ गए। यह जगह बैतेल और अई के दरमियान थी। लेकिन यशुअ ने यह रात बाक़ी लोगों के साथ ख़ैमागाह में गुज़ारी। \v 10 अगले दिन सुबह-सवेरे यशुअ ने आदमियों को जमा करके उनका जायज़ा लिया। फिर वह इसराईल के बुज़ुर्गों के साथ उनके आगे आगे अई की तरफ़ चल दिया। \v 11 जो लशकर उसके साथ था वह चलते चलते अई के सामने पहुँच गया। उन्होंने शहर के शिमाल में अपने ख़ैमे लगाए। उनके और शहर के दरमियान वादी थी। \p \v 12 जो शहर के मग़रिब में अई और बैतेल के दरमियान घात लगाए बैठे थे वह तक़रीबन 5,000 मर्द थे। \v 13 यों शहर के मग़रिब और शिमाल में आदमी लड़ने के लिए तैयार हुए। रात के वक़्त यशुअ वादी में पहुँच गया। \p \v 14 जब अई के बादशाह ने शिमाल में इसराईलियों को देखा तो उसने जल्दी जल्दी तैयारियाँ कीं। अगले दिन सुबह-सवेरे वह अपने आदमियों के साथ शहर से निकला ताकि इसराईलियों के साथ लड़े। यह जगह वादीए-यरदन की तरफ़ थी। बादशाह को मालूम न हुआ कि इसराईली शहर के पीछे घात में बैठे हैं। \v 15 जब अई के मर्द निकले तो यशुअ और उसका लशकर शिकस्त का इज़हार करके रेगिस्तान की तरफ़ भागने लगे। \p \v 16 तब अई के तमाम मर्दों को इसराईलियों का ताक़्क़ुब करने के लिए बुलाया गया, और यशुअ के पीछे भागते भागते वह शहर से दूर निकल गए। \v 17 एक मर्द भी अई या बैतेल में न रहा बल्कि सबके सब इसराईलियों के पीछे पड़ गए। न सिर्फ़ यह बल्कि उन्होंने शहर का दरवाज़ा खुला छोड़ दिया। \p \v 18 फिर रब ने यशुअ से कहा, “जो शमशेर तेरे हाथ में है उसे अई के ख़िलाफ़ उठाए रख, क्योंकि मैं यह शहर तेरे हाथ में कर दूँगा।” यशुअ ने ऐसा ही किया, \v 19 और ज्योंही उसने अपनी शमशेर से अई की तरफ़ इशारा किया घात में बैठे आदमी जल्दी से अपनी जगह से निकल आए और दौड़ दौड़कर शहर पर झपट पड़े। उन्होंने उस पर क़ब्ज़ा करके जल्दी से उसे जला दिया। \p \v 20 जब अई के आदमियों ने मुड़कर नज़र डाली तो देखा कि शहर से धुएँ के बादल उठ रहे हैं। लेकिन अब उनके लिए भी बचने का कोई रास्ता न रहा, क्योंकि जो इसराईली अब तक उनके आगे आगे रेगिस्तान की तरफ़ भाग रहे थे वह अचानक मुड़कर ताक़्क़ुब करनेवालों पर टूट पड़े। \v 21 क्योंकि जब यशुअ और उसके साथ के आदमियों ने देखा कि घात में बैठे इसराईलियों ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया है और कि शहर से धुआँ उठ रहा है तो उन्होंने मुड़कर अई के आदमियों पर हमला कर दिया। \v 22 साथ साथ शहर में दाख़िल हुए इसराईली शहर से निकलकर पीछे से उनसे लड़ने लगे। चुनाँचे अई के आदमी बीच में फँस गए। इसराईलियों ने सबको क़त्ल कर दिया, और न कोई बचा, न कोई फ़रार हो सका। \v 23 सिर्फ़ अई के बादशाह को ज़िंदा पकड़ा और यशुअ के पास लाया गया। \p \v 24 अई के मर्दों का ताक़्क़ुब करते करते उन सबको खुले मैदान और रेगिस्तान में तलवार से मार देने के बाद इसराईलियों ने अई शहर में वापस आकर तमाम बाशिंदों को हलाक कर दिया। \v 25 उस दिन अई के तमाम मर्द और औरतें मारे गए, कुल 12,000 अफ़राद। \v 26 क्योंकि यशुअ ने उस वक़्त तक अपनी शमशेर उठाए रखी जब तक अई के तमाम बाशिंदों को हलाक न कर दिया गया। \v 27 सिर्फ़ शहर के मवेशी और लूटा हुआ माल बच गया, क्योंकि इस दफ़ा रब ने हिदायत की थी कि इसराईली उसे ले जा सकते हैं। \p \v 28 यशुअ ने अई को जलाकर उसे हमेशा के लिए मलबे का ढेर बना दिया। यह मक़ाम आज तक वीरान है। \v 29 अई के बादशाह की लाश उसने शाम तक दरख़्त से लटकाए रखी। फिर जब सूरज डूबने लगा तो यशुअ ने अपने लोगों को हुक्म दिया कि बादशाह की लाश को दरख़्त से उतार दें। तब उन्होंने उसे शहर के दरवाज़े के पास फेंककर उस पर पत्थर का बड़ा ढेर लगा दिया। यह ढेर आज तक मौजूद है। \s1 ऐबाल पहाड़ पर अहद की तजदीद \p \v 30 उस वक़्त यशुअ ने रब इसराईल के ख़ुदा की ताज़ीम में ऐबाल पहाड़ पर क़ुरबानगाह बनाई \v 31 जिस तरह रब के ख़ादिम मूसा ने इसराईलियों को हुक्म दिया था। उसने उसे मूसा की शरीअत की किताब में दर्ज हिदायात के मुताबिक़ बनाया। क़ुरबानगाह के पत्थर तराशे बग़ैर लगाए गए, और उन पर लोहे का आला न चलाया गया। उस पर उन्होंने रब को भस्म होनेवाली और सलामती की क़ुरबानियाँ पेश कीं। \p \v 32 वहाँ यशुअ ने इसराईलियों की मौजूदगी में पत्थरों पर मूसा की शरीअत दुबारा लिख दी। \v 33 फिर बुज़ुर्गों, निगहबानों और क़ाज़ियों के साथ मिलकर तमाम इसराईली दो गुरोहों में तक़सीम हुए। परदेसी भी उनमें शामिल थे। एक गुरोह गरिज़ीम पहाड़ के सामने खड़ा हुआ और दूसरा ऐबाल पहाड़ के सामने। दोनों गुरोह एक दूसरे के मुक़ाबिल खड़े रहे जबकि लावी के क़बीले के इमाम उनके दरमियान खड़े हुए। उन्होंने रब के अहद का संदूक़ उठा रखा था। सब कुछ उन हिदायात के ऐन मुताबिक़ हुआ जो रब के ख़ादिम मूसा ने इसराईलियों को बरकत देने के लिए दी थीं। \p \v 34 फिर यशुअ ने शरीअत की तमाम बातों की तिलावत की, उस की बरकात भी और उस की लानतें भी। सब कुछ उसने वैसा ही पढ़ा जैसा कि शरीअत की किताब में दर्ज था। \v 35 जो भी हुक्म मूसा ने दिया था उसका एक भी लफ़्ज़ न रहा जिसकी तिलावत यशुअ ने तमाम इसराईलियों की पूरी जमात के सामने न की हो। और सबने यह बातें सुनीं। इसमें औरतें, बच्चे और उनके दरमियान रहनेवाले परदेसी सब शामिल थे। \c 9 \s1 जिबऊनी यशुअ को धोका देते हैं \p \v 1 इन बातों की ख़बर दरियाए-यरदन के मग़रिब के तमाम बादशाहों तक पहुँची, ख़ाह वह पहाड़ी इलाक़े, मग़रिब के नशेबी पहाड़ी इलाक़े या साहिली इलाक़े में लुबनान तक रहते थे। उनकी यह क़ौमें थीं : हित्ती, अमोरी, कनानी, फ़रिज़्ज़ी, हिव्वी और यबूसी। \v 2 अब यह यशुअ और इसराईलियों से लड़ने के लिए जमा हुए। \p \v 3 लेकिन जब जिबऊन शहर के बाशिंदों को पता चला कि यशुअ ने यरीहू और अई के साथ क्या किया है \v 4 तो उन्होंने एक चाल चली। अपने साथ सफ़र के लिए खाना लेकर वह यशुअ के पास चल पड़े। उनके गधों पर ख़स्ताहाल बोरियाँ और मै की ऐसी पुरानी और घिसी-फटी मशकें लदी हुई थीं जिनकी बार बार मरम्मत हुई थी। \v 5 मर्दों ने ऐसे पुराने जूते पहन रखे थे जिन पर जगह जगह पैवंद लगे हुए थे। उनके कपड़े भी घिसे-फटे थे, और सफ़र के लिए जो रोटी उनके पास थी वह ख़ुश्क और टुकड़े टुकड़े हो गई थी। \v 6 ऐसी हालत में वह यशुअ के पास जिलजाल की ख़ैमागाह में पहुँच गए। उन्होंने उससे और बाक़ी इसराईली मर्दों से कहा, “हम एक दूर-दराज़ मुल्क से आए हैं। आएँ, हमारे साथ मुआहदा करें।” \p \v 7 लेकिन इसराईलियों ने हिव्वियों से कहा, “शायद आप हमारे इलाक़े के बीच में कहीं बसते हैं। अगर ऐसा है तो हम किस तरह आपसे मुआहदा कर सकते हैं?” \p \v 8 वह यशुअ से बोले, “हम आपकी ख़िदमत के लिए हाज़िर हैं।” \p यशुअ ने पूछा, “आप कौन हैं और कहाँ से आए हैं?” \v 9 उन्होंने जवाब दिया, “आपके ख़ादिम आपके ख़ुदा के नाम के बाइस एक निहायत दूर-दराज़ मुल्क से आए हैं। क्योंकि उस की ख़बर हम तक पहुँच गई है, और हमने वह सब कुछ सुन लिया है जो उसने मिसर में \v 10 और दरियाए-यरदन के मशरिक़ में रहनेवाले दो बादशाहों के साथ किया यानी हसबोन के बादशाह सीहोन और बसन के बादशाह ओज के साथ जो अस्तारात में रहता था। \v 11 तब हमारे बुज़ुर्गों बल्कि हमारे मुल्क के तमाम बाशिंदों ने हमसे कहा, ‘सफ़र के लिए खाना लेकर उनसे मिलने जाएँ। उनसे बात करें कि हम आपकी ख़िदमत के लिए हाज़िर हैं। आएँ, हमारे साथ मुआहदा करें।’ \v 12 हमारी यह रोटी अभी गरम थी जब हम इसे सफ़र के लिए अपने साथ लेकर आपसे मिलने के लिए अपने घरों से रवाना हुए। और अब आप ख़ुद देख सकते हैं कि यह ख़ुश्क और टुकड़े टुकड़े हो गई है। \v 13 और मै की इन मशकों की घिसी-फटी हालत देखें। भरते वक़्त यह नई और लचकदार थीं। यही हमारे कपड़ों और जूतों की हालत भी है। सफ़र करते करते यह ख़त्म हो गए हैं।” \p \v 14 इसराईलियों ने मुसाफ़िरों का कुछ खाना लिया। अफ़सोस, उन्होंने रब से हिदायत न माँगी। \v 15 फिर यशुअ ने उनके साथ सुलह का मुआहदा किया और जमात के राहनुमाओं ने क़सम खाकर उस की तसदीक़ की। मुआहदे में इसराईल ने वादा किया कि जिबऊनियों को जीने देगा। \p \v 16 तीन दिन गुज़रे तो इसराईलियों को पता चला कि जिबऊनी हमारे क़रीब ही और हमारे इलाक़े के ऐन बीच में रहते हैं। \v 17 इसराईली रवाना हुए और तीसरे दिन उनके शहरों के पास पहुँचे जिनके नाम जिबऊन, कफ़ीरा, बैरोत और क़िरियत-यारीम थे। \v 18 लेकिन चूँकि जमात के राहनुमाओं ने रब इसराईल के ख़ुदा की क़सम खाकर उनसे वादा किया था इसलिए उन्होंने जिबऊनियों को हलाक न किया। पूरी जमात राहनुमाओं पर बुड़बुड़ाने लगी, \v 19 लेकिन उन्होंने जवाब में कहा, “हमने रब इसराईल के ख़ुदा की क़सम खाकर उनसे वादा किया, और अब हम उन्हें छेड़ नहीं सकते। \v 20 चुनाँचे हम उन्हें जीने देंगे और वह क़सम न तोड़ेंगे जो हमने उनके साथ खाई। ऐसा न हो कि अल्लाह का ग़ज़ब हम पर नाज़िल हो जाए। \v 21 उन्हें जीने दो।” फिर फ़ैसला यह हुआ कि जिबऊनी लकड़हारे और पानी भरनेवाले बनकर पूरी जमात की ख़िदमत करें। यों इसराईली राहनुमाओं का उनके साथ वादा क़ायम रहा। \p \v 22 यशुअ ने जिबऊनियों को बुलाकर कहा, “तुमने हमें धोका देकर क्यों कहा कि हम आपसे निहायत दूर रहते हैं हालाँकि तुम हमारे इलाक़े के बीच में ही रहते हो? \v 23 चुनाँचे अब तुम पर लानत हो। तुम लकड़हारे और पानी भरनेवाले बनकर हमेशा के लिए मेरे ख़ुदा के घर की ख़िदमत करोगे।” \p \v 24 उन्होंने जवाब दिया, “आपके ख़ादिमों को साफ़ बताया गया था कि रब आपके ख़ुदा ने अपने ख़ादिम मूसा को क्या हुक्म दिया था, कि उसे आपको पूरा मुल्क देना और आपके आगे आगे तमाम बाशिंदों को हलाक करना है। यह सुनकर हम बहुत डर गए कि हमारी जान नहीं बचेगी। इसी लिए हमने यह सब कुछ किया। \v 25 अब हम आपके हाथ में हैं। हमारे साथ वह कुछ करें जो आपको अच्छा और ठीक लगता है।” \p \v 26 चुनाँचे यशुअ ने उन्हें इसराईलियों से बचाया, और उन्होंने जिबऊनियों को हलाक न किया। \v 27 उसी दिन उसने जिबऊनियों को लकड़हारे और पानी भरनेवाले बना दिया ताकि वह जमात और रब की उस क़ुरबानगाह की ख़िदमत करें जिसका मक़ाम रब को अभी चुनना था। और यह लोग आज तक यही कुछ करते हैं। \c 10 \s1 अमोरियों की शिकस्त \p \v 1 यरूशलम के बादशाह अदूनी-सिद्क़ को ख़बर मिली कि यशुअ ने अई पर यों क़ब्ज़ा करके उसे मुकम्मल तौर पर तबाह कर दिया है जिस तरह उसने यरीहू और उसके बादशाह के साथ भी किया था। उसे यह इत्तला भी दी गई कि जिबऊन के बाशिंदे इसराईलियों के साथ सुलह का मुआहदा करके उनके दरमियान रह रहे हैं। \v 2 यह सुनकर वह और उस की क़ौम निहायत डर गए, क्योंकि जिबऊन बड़ा शहर था। वह अहमियत के लिहाज़ से उन शहरों के बराबर था जिनके बादशाह थे, बल्कि वह अई शहर से भी बड़ा था, और उसके तमाम मर्द बेहतरीन फ़ौजी थे। \p \v 3 चुनाँचे यरूशलम के बादशाह अदूनी-सिद्क़ ने अपने क़ासिद हबरून के बादशाह हूहाम, यरमूत के बादशाह पीराम, लकीस के बादशाह यफ़ीअ और इजलून के बादशाह दबीर के पास भेज दिए। \v 4 पैग़ाम यह था, “आएँ और जिबऊन पर हमला करने में मेरी मदद करें, क्योंकि उसने यशुअ और इसराईलियों के साथ सुलह का मुआहदा कर लिया है।” \v 5 यरूशलम, हबरून, यरमूत, लकीस और इजलून के यह पाँच अमोरी बादशाह मुत्तहिद हुए। वह अपने तमाम फ़ौजियों को लेकर चल पड़े और जिबऊन का मुहासरा करके उससे जंग करने लगे। \p \v 6 उस वक़्त यशुअ ने अपने ख़ैमे जिलजाल में लगाए थे। जिबऊन के लोगों ने उसे पैग़ाम भेज दिया, “अपने ख़ादिमों को तर्क न करें। जल्दी से हमारे पास आकर हमें बचाएँ! हमारी मदद कीजिए, क्योंकि पहाड़ी इलाक़े के तमाम अमोरी बादशाह हमारे ख़िलाफ़ मुत्तहिद हो गए हैं।” \p \v 7 यह सुनकर यशुअ अपनी पूरी फ़ौज के साथ जिलजाल से निकला और जिबऊन के लिए रवाना हुआ। उसके बेहतरीन फ़ौजी भी सब उसके साथ थे। \v 8 रब ने यशुअ से कहा, “उनसे मत डरना, क्योंकि मैं उन्हें तेरे हाथ में कर चुका हूँ। उनमें से एक भी तेरा मुक़ाबला नहीं करने पाएगा।” \v 9 और यशुअ ने जिलजाल से सारी रात सफ़र करते करते अचानक दुश्मन पर हमला किया। \v 10 उस वक़्त रब ने इसराईलियों के देखते देखते दुश्मन में अबतरी पैदा कर दी, और उन्होंने जिबऊन के क़रीब दुश्मन को ज़बरदस्त शिकस्त दी। इसराईली बैत-हौरून तक पहुँचानेवाले रास्ते पर अमोरियों का ताक़्क़ुब करते करते उन्हें अज़ीक़ा और मक़्क़ेदा तक मौत के घाट उतारते गए। \v 11 और जब अमोरी इस रास्ते पर अज़ीक़ा की तरफ़ भाग रहे थे तो रब ने आसमान से उन पर बड़े बड़े ओले बरसाए जिन्होंने इसराईलियों की निसबत ज़्यादा दुश्मनों को हलाक कर दिया। \p \v 12 उस दिन जब रब ने अमोरियों को इसराईल के हाथ में कर दिया तो यशुअ ने इसराईलियों की मौजूदगी में रब से कहा, \q1 “ऐ सूरज, जिबऊन के ऊपर रुक जा! \q1 ऐ चाँद, वादीए-ऐयालोन पर ठहर जा!” \p \v 13 तब सूरज रुक गया, और चाँद ने आगे हरकत न की। जब तक कि इसराईल ने अपने दुश्मनों से पूरा बदला न ले लिया उस वक़्त तक वह रुके रहे। इस बात का ज़िक्र याशर की किताब में किया गया है। सूरज आसमान के बीच में रुक गया और तक़रीबन एक पूरे दिन के दौरान ग़ुरूब न हुआ। \v 14 यह दिन मुन्फ़रिद था। रब ने इनसान की इस तरह की दुआ न कभी इससे पहले, न कभी इसके बाद सुनी। क्योंकि रब ख़ुद इसराईल के लिए लड़ रहा था। \v 15 इसके बाद यशुअ पूरे इसराईल समेत जिलजाल की ख़ैमागाह में लौट आया। \s1 पाँच अमोरी बादशाहों की गिरिफ़्तारी \p \v 16 लेकिन पाँचों अमोरी बादशाह फ़रार होकर मक़्क़ेदा के एक ग़ार में छुप गए थे। \v 17 यशुअ को इत्तला दी गई \v 18 तो उसने कहा, “कुछ बड़े बड़े पत्थर लुढ़काकर ग़ार का मुँह बंद करना, और कुछ आदमी उस की पहरादारी करें। \v 19 लेकिन बाक़ी लोग न रुकें बल्कि दुश्मनों का ताक़्क़ुब करके पीछे से उन्हें मारते जाएँ। उन्हें दुबारा अपने शहरों में दाख़िल होने का मौक़ा मत देना, क्योंकि रब आपके ख़ुदा ने उन्हें आपके हाथ में कर दिया है।” \v 20 चुनाँचे यशुअ और बाक़ी इसराईली उन्हें हलाक करते रहे, और कम ही अपने शहरों की फ़सील में दाख़िल हो सके। \v 21 इसके बाद पूरी फ़ौज सहीह-सलामत यशुअ के पास मक़्क़ेदा की लशकरगाह में वापस पहुँच गई। \p अब से किसी में भी इसराईलियों को धमकी देने की जुर्रत न रही। \p \v 22 फिर यशुअ ने कहा, “ग़ार के मुँह को खोलकर यह पाँच बादशाह मेरे पास निकाल लाएँ।” \v 23 लोग ग़ार को खोलकर यरूशलम, हबरून, यरमूत, लकीस और इजलून के बादशाहों को यशुअ के पास निकाल लाए। \v 24 यशुअ ने इसराईल के मर्दों को बुलाकर अपने साथ खड़े फ़ौजी अफ़सरों से कहा, “इधर आकर अपने पैरों को बादशाहों की गरदनों पर रख दें।” अफ़सरों ने ऐसा ही किया। \v 25 फिर यशुअ ने उनसे कहा, “न डरें और न हौसला हारें। मज़बूत और दिलेर हों। रब यही कुछ उन तमाम दुश्मनों के साथ करेगा जिनसे आप लड़ेंगे।” \v 26 यह कहकर उसने बादशाहों को हलाक करके उनकी लाशें पाँच दरख़्तों से लटका दीं। वहाँ वह शाम तक लटकी रहीं। \v 27 जब सूरज डूबने लगा तो लोगों ने यशुअ के हुक्म पर लाशें उतारकर उस ग़ार में फेंक दीं जिसमें बादशाह छुप गए थे। फिर उन्होंने ग़ार के मुँह को बड़े बड़े पत्थरों से बंद कर दिया। यह पत्थर आज तक वहाँ पड़े हुए हैं। \s1 मज़ीद अमोरी शहरों पर क़ब्ज़ा \p \v 28 उस दिन मक़्क़ेदा यशुअ के क़ब्ज़े में आ गया। उसने पूरे शहर को तलवार से रब के लिए मख़सूस करके तबाह कर दिया। बादशाह समेत सब हलाक हुए और एक भी न बचा। शहर के बादशाह के साथ उसने वह सुलूक किया जो उसने यरीहू के बादशाह के साथ किया था। \p \v 29 फिर यशुअ ने तमाम इसराईलियों के साथ वहाँ से आगे निकलकर लिबना पर हमला किया। \v 30 रब ने उस शहर और उसके बादशाह को भी इसराईल के हाथ में कर दिया। यशुअ ने तलवार से शहर के तमाम बाशिंदों को हलाक किया, और एक भी न बचा। बादशाह के साथ उसने वही सुलूक किया जो उसने यरीहू के बादशाह के साथ किया था। \p \v 31 इसके बाद उसने तमाम इसराईलियों के साथ लिबना से आगे बढ़कर लकीस का मुहासरा किया। जब उसने उस पर हमला किया \v 32 तो रब ने यह शहर उसके बादशाह समेत इसराईल के हाथ में कर दिया। दूसरे दिन वह यशुअ के क़ब्ज़े में आ गया। शहर के सारे बाशिंदों को उसने तलवार से हलाक किया, जिस तरह कि उसने लिबना के साथ भी किया था। \v 33 साथ साथ यशुअ ने जज़र के बादशाह हूरम और उसके लोगों को भी शिकस्त दी जो लकीस की मदद करने के लिए आए थे। उनमें से एक भी न बचा। \p \v 34 फिर यशुअ ने तमाम इसराईलियों के साथ लकीस से आगे बढ़कर इजलून का मुहासरा कर लिया। उसी दिन उन्होंने उस पर हमला करके \v 35 उस पर क़ब्ज़ा कर लिया। जिस तरह लकीस के साथ हुआ उसी तरह इजलून के साथ भी किया गया यानी शहर के तमाम बाशिंदे तलवार से हलाक हुए। \p \v 36 इसके बाद यशुअ ने तमाम इसराईलियों के साथ इजलून से आगे बढ़कर हबरून पर हमला किया। \v 37 शहर पर क़ब्ज़ा करके उन्होंने बादशाह, इर्दगिर्द की आबादियाँ और बाशिंदे सबके सब तहे-तेग़ कर दिए। कोई न बचा। इजलून की तरह उन्होंने उसे पूरे तौर पर तमाम बाशिंदों समेत रब के लिए मख़सूस करके तबाह कर दिया। \p \v 38 फिर यशुअ तमाम इसराईलियों के साथ मुड़कर दबीर की तरफ़ बढ़ गया। उस पर हमला करके \v 39 उसने शहर, उसके बादशाह और इर्दगिर्द की आबादियों पर क़ब्ज़ा कर लिया। सबको नेस्त कर दिया गया, एक भी न बचा। यों दबीर के साथ वह कुछ हुआ जो पहले हबरून और लिबना उसके बादशाह समेत हुआ था। \p \v 40 इस तरह यशुअ ने जुनूबी कनान के तमाम बादशाहों को शिकस्त देकर उनके पूरे मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया यानी मुल्क के पहाड़ी इलाक़े पर, जुनूब के दश्ते-नजब पर, मग़रिब के नशेबी पहाड़ी इलाक़े पर और वादीए-यरदन के मग़रिब में वाक़े पहाड़ी ढलानों पर। उसने किसी को भी बचने न दिया बल्कि हर जानदार को रब के लिए मख़सूस करके हलाक कर दिया। यह सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा रब इसराईल के ख़ुदा ने हुक्म दिया था। \p \v 41 यशुअ ने उन्हें क़ादिस-बरनीअ से लेकर ग़ज़्ज़ा तक और जुशन के पूरे इलाक़े से लेकर जिबऊन तक शिकस्त दी। \v 42 इन तमाम बादशाहों और उनके ममालिक पर यशुअ ने एक ही वक़्त फ़तह पाई, क्योंकि इसराईल का ख़ुदा इसराईल के लिए लड़ा। \p \v 43 इसके बाद यशुअ तमाम इसराईलियों के साथ जिलजाल की ख़ैमागाह में लौट आया। \c 11 \s1 शिमाली इत्तहादियों पर फ़तह \p \v 1 जब हसूर के बादशाह याबीन को इन वाक़ियात की ख़बर मिली तो उसने मदून के बादशाह यूबाब और सिमरोन और अकशाफ़ के बादशाहों को पैग़ाम भेजे। \v 2 इसके अलावा उसने उन बादशाहों को पैग़ाम भेजे जो शिमाल में थे यानी शिमाली पहाड़ी इलाक़े में, वादीए-यरदन के उस हिस्से में जो किन्नरत यानी गलील के जुनूब में है, मग़रिब के नशेबी पहाड़ी इलाक़े में, मग़रिब में वाक़े नाफ़त-दोर में \v 3 और कनान के मशरिक़ और मग़रिब में। याबीन ने अमोरियों, हित्तियों, फ़रिज़्ज़ियों, पहाड़ी इलाक़े के यबूसियों और हरमून पहाड़ के दामन में वाक़े मुल्के-मिसफ़ाह के हिव्वियों को भी पैग़ाम भेजे। \p \v 4 चुनाँचे यह अपनी तमाम फ़ौजों को लेकर जंग के लिए निकले। उनके आदमी समुंदर के साहिल की रेत की मानिंद बेशुमार थे। उनके पास मुतअद्दिद घोड़े और रथ भी थे। \v 5 इन तमाम बादशाहों ने इसराईल से लड़ने के लिए मुत्तहिद होकर अपने ख़ैमे मरूम के चश्मे पर लगा दिए। \p \v 6 रब ने यशुअ से कहा, “उनसे मत डरना, क्योंकि कल इसी वक़्त तक मैंने उन सबको हलाक करके इसराईल के हवाले कर दिया होगा। तुझे उनके घोड़ों की कोंचों को काटना और उनके रथों को जला देना है।” \p \v 7 चुनाँचे यशुअ अपने तमाम फ़ौजियों को लेकर मरूम के चश्मे पर आया और अचानक दुश्मन पर हमला किया। \v 8 और रब ने दुश्मनों को इसराईलियों के हवाले कर दिया। इसराईलियों ने उन्हें शिकस्त दी और उनका ताक़्क़ुब करते करते शिमाल में बड़े शहर सैदा और मिस्रफ़ात-मायम तक जा पहुँचे। इसी तरह उन्होंने मशरिक़ में वादीए-मिसफ़ाह तक भी उनका ताक़्क़ुब किया। आख़िर में एक भी न बचा। \v 9 रब की हिदायत के मुताबिक़ यशुअ ने दुश्मन के घोड़ों की कोंचों को कटवाकर उसके रथों को जला दिया। \s1 शिमाली कनान पर क़ब्ज़ा \p \v 10 फिर यशुअ वापस आया और हसूर को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। हसूर उन तमाम बादशाहतों का सदर मक़ाम था जिन्हें उन्होंने शिकस्त दी थी। इसराईलियों ने शहर के बादशाह को मार दिया \v 11 और शहर के हर जानदार को अल्लाह के हवाले करके हलाक कर दिया। एक भी न बचा। फिर यशुअ ने शहर को जला दिया। \p \v 12 इसी तरह यशुअ ने उन बाक़ी बादशाहों के शहरों पर भी क़ब्ज़ा कर लिया जो इसराईल के ख़िलाफ़ मुत्तहिद हो गए थे। हर शहर को उसने रब के ख़ादिम मूसा के हुक्म के मुताबिक़ तबाह कर दिया। बादशाहों समेत सब कुछ नेस्त कर दिया गया। \v 13 लेकिन यशुअ ने सिर्फ़ हसूर को जलाया। पहाड़ियों पर के बाक़ी शहरों को उसने रहने दिया। \v 14 लूट का जो भी माल जानवरों समेत उनमें पाया गया उसे इसराईलियों ने अपने पास रख लिया। लेकिन तमाम बाशिंदों को उन्होंने मार डाला और एक भी न बचने दिया। \v 15 क्योंकि रब ने अपने ख़ादिम मूसा को यही हुक्म दिया था, और यशुअ ने सब कुछ वैसे ही किया जैसे रब ने मूसा को हुक्म दिया था। \p \v 16 यों यशुअ ने पूरे कनान पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसमें पहाड़ी इलाक़ा, पूरा दश्ते-नजब, जुशन का पूरा इलाक़ा, मग़रिब का नशेबी पहाड़ी इलाक़ा, वादीए-यरदन और इसराईल के पहाड़ उनके दामन की पहाड़ियों समेत शामिल थे। \v 17 अब यशुअ की पहुँच जुनूब में सईर की तरफ़ बढ़नेवाले पहाड़ ख़लक़ से लेकर लुबनान के मैदानी इलाक़े के शहर बाल-जद तक थी जो हरमून पहाड़ के दामन में था। यशुअ ने इन इलाक़ों के तमाम बादशाहों को पकड़कर मार डाला। \v 18 लेकिन इन बादशाहों से जंग करने में बहुत वक़्त लगा, \v 19 क्योंकि जिबऊन में रहनेवाले हिव्वियों के अलावा किसी भी शहर ने इसराईलियों से सुलह न की। इसलिए इसराईल को उन सब पर जंग करके ही क़ब्ज़ा करना पड़ा। \v 20 रब ही ने उन्हें अकड़ने दिया था ताकि वह इसराईल से जंग करें और उन पर रहम न किया जाए बल्कि उन्हें पूरे तौर पर रब के हवाले करके हलाक किया जाए। लाज़िम था कि उन्हें यों नेस्तो-नाबूद किया जाए जिस तरह रब ने मूसा को हुक्म दिया था। \p \v 21 उस वक़्त यशुअ ने उन तमाम अनाक़ियों को हलाक कर दिया जो हबरून, दबीर, अनाब और उन तमाम जगहों में रहते थे जो यहूदाह और इसराईल के पहाड़ी इलाक़े में थीं। उसने उन सबको उनके शहरों समेत अल्लाह के हवाले करके तबाह कर दिया। \v 22 इसराईल के पूरे इलाक़े में अनाक़ियों में से एक भी न बचा। सिर्फ़ ग़ज़्ज़ा, जात और अशदूद में कुछ ज़िंदा रहे। \p \v 23 ग़रज़ यशुअ ने पूरे मुल्क पर यों क़ब्ज़ा किया जिस तरह रब ने मूसा को बताया था। फिर उसने उसे क़बीलों में तक़सीम करके इसराईल को मीरास में दे दिया। जंग ख़त्म हुई, और मुल्क में अमनो-अमान क़ायम हो गया। \c 12 \s1 मूसा की फ़ुतूहात का ख़ुलासा \p \v 1 दर्जे-ज़ैल दरियाए-यरदन के मशरिक़ में उन बादशाहों की फ़हरिस्त है जिन्हें इसराईलियों ने शिकस्त दी थी और जिनके इलाक़े पर उन्होंने क़ब्ज़ा किया था। यह इलाक़ा जुनूब में वादीए-अरनोन से लेकर शिमाल में हरमून पहाड़ तक था, और उसमें वादीए-यरदन का पूरा मशरिक़ी हिस्सा शामिल था। \p \v 2 पहले का नाम सीहोन था। वह अमोरियों का बादशाह था और उसका दारुल-हुकूमत हसबोन था। अरोईर शहर यानी वादीए-अरनोन के दरमियान से लेकर अम्मोनियों की सरहद दरियाए-यब्बोक़ तक सारा इलाक़ा उस की गिरिफ़्त में था। इसमें जिलियाद का आधा हिस्सा भी शामिल था। \v 3 इसके अलावा सीहोन का क़ब्ज़ा दरियाए-यरदन के पूरे मशरिक़ी किनारे पर किन्नरत यानी गलील की झील से लेकर बहीराए-मुरदार के पास शहर बैत-यसीमोत तक बल्कि उसके जुनूब में पहाड़ी सिलसिले पिसगा के दामन तक था। \p \v 4 दूसरा बादशाह जिसने शिकस्त खाई थी बसन का बादशाह ओज था। वह रफ़ाइयों के देवक़ामत क़बीले में से बाक़ी रह गया था, और उस की हुकूमत के मरकज़ अस्तारात और इदरई थे। \v 5 शिमाल में उस की सलतनत की सरहद हरमून पहाड़ थी और मशरिक़ में सलका शहर। बसन का तमाम इलाक़ा जसूरियों और माकातियों की सरहद तक उसके हाथ में था और इसी तरह जिलियाद का शिमाली हिस्सा बादशाह सीहोन की सरहद तक। \p \v 6 इसराईल ने रब के ख़ादिम मूसा की राहनुमाई में इन दो बादशाहों पर फ़तह पाई थी, और मूसा ने यह इलाक़ा रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले के सुपुर्द किया था। \s1 यशुअ की फ़ुतूहात का ख़ुलासा \p \v 7 दर्जे-ज़ैल दरियाए-यरदन के मग़रिब के उन बादशाहों की फ़हरिस्त है जिन्हें इसराईलियों ने यशुअ की राहनुमाई में शिकस्त दी थी और जिनकी सलतनत वादीए-लुबनान के शहर बाल-जद से लेकर सईर की तरफ़ बढ़नेवाले पहाड़ ख़लक़ तक थी। बाद में यशुअ ने यह सारा मुल्क इसराईल के क़बीलों में तक़सीम करके उन्हें मीरास में दे दिया \v 8 यानी पहाड़ी इलाक़ा, मग़रिब का नशेबी पहाड़ी इलाक़ा, यरदन की वादी, उसके मग़रिब में वाक़े पहाड़ी ढलानें, यहूदाह का रेगिस्तान और दश्ते-नजब। पहले यह सब कुछ हित्तियों, अमोरियों, कनानियों, फ़रिज़्ज़ियों, हिव्वियों और यबूसियों के हाथ में था। ज़ैल के हर शहर का अपना बादशाह था, और हर एक ने शिकस्त खाई : \v 9 यरीहू, अई नज़्द बैतेल, \v 10 यरूशलम, हबरून, \v 11 यरमूत, लकीस, \v 12 इजलून, जज़र, \v 13 दबीर, जिदर, \v 14 हुरमा, अराद, \v 15 लिबना, अदुल्लाम, \v 16 मक़्क़ेदा, बैतेल, \v 17 तफ़्फ़ुअह, हिफ़र, \v 18 अफ़ीक़, लश्शरून, \v 19 मदून, हसूर, \v 20 सिमरोन-मरोन, अकशाफ़, \v 21 तानक, मजिद्दो, \v 22 क़ादिस, करमिल का युक़नियाम, \v 23 नाफ़त-दोर में वाक़े दोर, जिलजाल का गोयम \v 24 और तिरज़ा। बादशाहों की कुल तादाद 31 थी। \c 13 \s1 कनान के बाक़ी इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करने का हुक्म \p \v 1 जब यशुअ बूढ़ा था तो रब ने उससे कहा, “तू बहुत बूढ़ा हो चुका है, लेकिन अभी काफ़ी कुछ बाक़ी रह गया है जिस पर क़ब्ज़ा करने की ज़रूरत है। \v 2-3 इसमें फ़िलिस्तियों के तमाम इलाक़े उनके शाही शहरों ग़ज़्ज़ा, अशदूद, अस्क़लून, जात और अक़रून समेत शामिल हैं और इसी तरह जसूर का इलाक़ा जिसकी जुनूबी सरहद वादीए-सैहूर है जो मिसर के मशरिक़ में है और जिसकी शिमाली सरहद अक़रून है। उसे भी मुल्के-कनान का हिस्सा क़रार दिया जाता है। अव्वियों का इलाक़ा भी \v 4 जो जुनूब में है अब तक इसराईल के क़ब्ज़े में नहीं आया। यही बात शिमाल पर भी सादिक़ आती है। सैदानियों के शहर मआरा से लेकर अफ़ीक़ शहर और अमोरियों की सरहद तक सब कुछ अब तक इसराईल की हुकूमत से बाहर है। \v 5 इसके अलावा जबलियों का मुल्क और मशरिक़ में पूरा लुबनान हरमून पहाड़ के दामन में बाल-जद से लेकर लबो-हमात तक बाक़ी रह गया है। \v 6 इसमें उन सैदानियों का तमाम इलाक़ा भी शामिल है जो लुबनान के पहाड़ों और मिस्रफ़ात-मायम के दरमियान के पहाड़ी इलाक़े में आबाद हैं। इसराईलियों के बढ़ते बढ़ते मैं ख़ुद ही इन लोगों को उनके सामने से निकाल दूँगा। लेकिन लाज़िम है कि तू क़ुरा डालकर यह पूरा मुल्क मेरे हुक्म के मुताबिक़ इसराईलियों में तक़सीम करे। \v 7 उसे नौ बाक़ी क़बीलों और मनस्सी के आधे क़बीले को विरासत में दे दे।” \s1 यरदन के मशरिक़ में मुल्क की तक़सीम \p \v 8 रब का ख़ादिम मूसा रूबिन, जद और मनस्सी के बाक़ी आधे क़बीले को दरियाए-यरदन का मशरिक़ी इलाक़ा दे चुका था। \v 9-10 यों हसबोन के अमोरी बादशाह सीहोन के तमाम शहर उनके क़ब्ज़े में आ गए थे यानी जुनूबी वादीए-अरनोन के किनारे पर शहर अरोईर और उसी वादी के बीच के शहर से लेकर शिमाल में अम्मोनियों की सरहद तक। दीबोन और मीदबा के दरमियान का मैदाने-मुरतफ़ा भी इसमें शामिल था \v 11 और इसी तरह जिलियाद, जसूरियों और माकातियों का इलाक़ा, हरमून का पहाड़ी इलाक़ा और सलका शहर तक बसन का सारा इलाक़ा भी। \p \v 12 पहले यह सारा इलाक़ा बसन के बादशाह ओज के क़ब्ज़े में था जिसकी हुकूमत के मरकज़ अस्तारात और इदरई थे। रफ़ाइयों के देवक़ामत क़बीले से सिर्फ़ ओज बाक़ी रह गया था। मूसा की राहनुमाई के तहत इसराईलियों ने उस इलाक़े पर फ़तह पाकर तमाम बाशिंदों को निकाल दिया था। \v 13 सिर्फ़ जसूरी और माकाती बाक़ी रह गए थे, और यह आज तक इसराईलियों के दरमियान रहते हैं। \p \v 14 सिर्फ़ लावी के क़बीले को कोई ज़मीन न मिली, क्योंकि उनका मौरूसी हिस्सा जलनेवाली वह क़ुरबानियाँ हैं जो रब इसराईल के ख़ुदा के लिए चढ़ाई जाती हैं। रब ने यही कुछ मूसा को बताया था। \s1 रूबिन का क़बायली इलाक़ा \p \v 15 मूसा ने रूबिन के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ ज़ैल का इलाक़ा दिया। \v 16 वादीए-अरनोन के किनारे पर शहर अरोईर और उसी वादी के बीच के शहर से लेकर मीदबा \v 17 और हसबोन तक। वहाँ के मैदाने-मुरतफ़ा पर वाक़े तमाम शहर भी रूबिन के सुपुर्द किए गए यानी दीबोन, बामात-बाल, बैत-बाल-मऊन, \v 18 यहज़, क़दीमात, मिफ़ात, \v 19 क़िरियतायम, सिबमाह, ज़िरतुस-सहर जो बहीराए-मुरदार के मशरिक़ में वाक़े पहाड़ी इलाक़े में है, \v 20 बैत-फ़ग़ूर, पिसगा के पहाड़ी सिलसिले पर मौजूद आबादियाँ और बैत-यसीमोत। \v 21 मैदाने-मुरतफ़ा के तमाम शहर रूबिन के क़बीले को दिए गए यानी अमोरियों के बादशाह सीहोन की पूरी बादशाही जिसका दारुल-हुकूमत हसबोन शहर था। मूसा ने सीहोन को मार डाला था और उसके साथ पाँच मिदियानी रईसों को भी जिन्हें सीहोन ने अपने मुल्क में मुक़र्रर किया था। इन रईसों के नाम इवी, रक़म, सूर, हूर और रबा थे। \v 22 जिन लोगों को उस वक़्त मारा गया उनमें से बिलाम बिन बओर भी था जो ग़ैबदान था। \v 23 रूबिन के क़बीले की मग़रिबी सरहद दरियाए-यरदन थी। यही शहर और आबादियाँ रूबिन के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ दी गईं, और वह उस की मीरास ठहरीं। \s1 जद के क़बीले का इलाक़ा \p \v 24 मूसा ने जद के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ ज़ैल का इलाक़ा दिया। \v 25 याज़ेर का इलाक़ा, जिलियाद के तमाम शहर, अम्मोनियों का आधा हिस्सा रब्बा के क़रीब शहर अरोईर तक \v 26-27 और हसबोन के बादशाह सीहोन की बादशाही का बाक़ी शिमाली हिस्सा यानी हसबोन, रामतुल-मिसफ़ाह और बतूनीम के दरमियान का इलाक़ा और महनायम और दबीर के दरमियान का इलाक़ा। इसके अलावा जद को वादीए-यरदन का वह मशरिक़ी हिस्सा भी मिल गया जो बैत-हारम, बैत-निमरा, सुक्कात और सफ़ोन पर मुश्तमिल था। यों उस की शिमाली सरहद किन्नरत यानी गलील की झील का जुनूबी किनारा था। \v 28 यही शहर और आबादियाँ जद के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ दी गईं, और वह उस की मीरास ठहरीं। \s1 मनस्सी के मशरिक़ी हिस्से का इलाक़ा \p \v 29 जो इलाक़ा मूसा ने मनस्सी के आधे हिस्से को उसके कुंबों के मुताबिक़ दिया था \v 30 वह महनायम से लेकर शिमाल में ओज बादशाह की तमाम बादशाही पर मुश्तमिल था। उसमें मुल्के-बसन और वह 60 आबादियाँ शामिल थीं जिन पर याईर ने फ़तह पाई थी। \v 31 जिलियाद का आधा हिस्सा ओज की हुकूमत के दो मराकिज़ अस्तारात और इदरई समेत मकीर बिन मनस्सी की औलाद को उसके कुंबों के मुताबिक़ दिया गया। \v 32 मूसा ने इन मौरूसी ज़मीनों की तक़सीम उस वक़्त की थी जब वह दरियाए-यरदन के मशरिक़ में मोआब के मैदानी इलाक़े में यरीहू शहर के मुक़ाबिल था। \p \v 33 लेकिन लावी को मूसा से कोई मौरूसी ज़मीन नहीं मिली थी, क्योंकि रब इसराईल का ख़ुदा उनका मौरूसी हिस्सा है जिस तरह उसने उनसे वादा किया था। \c 14 \s1 कनान की तक़सीम \p \v 1 इसराईल के बाक़ी साढ़े नौ क़बीलों को दरियाए-यरदन के मग़रिब में यानी मुल्के-कनान में ज़मीन मिल गई। इसके लिए इलियज़र इमाम, यशुअ बिन नून और क़बीलों के आबाई घरानों के सरबराहों ने \v 2 क़ुरा डालकर मुक़र्रर किया कि हर क़बीले को कौन कौन-सा इलाक़ा मिल जाए। यों वैसा ही हुआ जिस तरह रब ने मूसा को हुक्म दिया था। \v 3-4 मूसा अढ़ाई क़बीलों को उनकी मौरूसी ज़मीन दरियाए-यरदन के मशरिक़ में दे चुका था, क्योंकि यूसुफ़ की औलाद के दो क़बीले मनस्सी और इफ़राईम वुजूद में आए थे। लेकिन लावियों को उनके दरमियान ज़मीन न मिली। इसराईलियों ने लावियों को ज़मीन न दी बल्कि उन्हें सिर्फ़ रिहाइश के लिए शहर और रेवड़ों के लिए चरागाहें दीं। \v 5 यों उन्होंने ज़मीन को उन्हीं हिदायात के मुताबिक़ तक़सीम किया जो रब ने मूसा को दी थीं। \s1 कालिब हबरून पाने की गुज़ारिश करता है \p \v 6 जिलजाल में यहूदाह के क़बीले के मर्द यशुअ के पास आए। यफ़ुन्ना क़निज़्ज़ी का बेटा कालिब भी उनके साथ था। उसने यशुअ से कहा, “आपको याद है कि रब ने मर्दे-ख़ुदा मूसा से आपके और मेरे बारे में क्या कुछ कहा जब हम क़ादिस-बरनीअ में थे। \v 7 मैं 40 साल का था जब रब के ख़ादिम मूसा ने मुझे मुल्के-कनान का जायज़ा लेने के लिए क़ादिस-बरनीअ से भेज दिया। जब वापस आया तो मैंने मूसा को दियानतदारी से सब कुछ बताया जो देखा था। \v 8 अफ़सोस कि जो भाई मेरे साथ गए थे उन्होंने लोगों को डराया। लेकिन मैं रब अपने ख़ुदा का वफ़ादार रहा। \v 9 उस दिन मूसा ने क़सम खाकर मुझसे वादा किया, ‘जिस ज़मीन पर तेरे पाँव चले हैं वह हमेशा तक तेरी और तेरी औलाद की विरासत में रहेगी। क्योंकि तू रब मेरे ख़ुदा का वफ़ादार रहा है।’ \v 10 और अब ऐसा ही हुआ है जिस तरह रब ने वादा किया था। उसने मुझे अब तक ज़िंदा रहने दिया है। रब को मूसा से यह बात किए 45 साल गुज़र गए हैं। उस सारे अरसे में हम रेगिस्तान में घुमते-फिरते रहे हैं। आज मैं 85 साल का हूँ, \v 11 और अब तक उतना ही ताक़तवर हूँ जितना कि उस वक़्त था जब मैं जासूस था। अब तक मेरी बाहर निकलने और जंग करने की वही क़ुव्वत क़ायम है। \v 12 अब मुझे वह पहाड़ी इलाक़ा दे दें जिसका वादा रब ने उस दिन मुझसे किया था। आपने ख़ुद सुना है कि अनाक़ी वहाँ बड़े क़िलाबंद शहरों में बसते हैं। लेकिन शायद रब मेरे साथ हो और मैं उन्हें निकाल दूँ जिस तरह उसने फ़रमाया है।” \p \v 13 तब यशुअ ने कालिब बिन यफ़ुन्ना को बरकत देकर उसे विरासत में हबरून दे दिया। \v 14-15 पहले हबरून क़िरियत-अरबा यानी अरबा का शहर कहलाता था। अरबा अनाक़ियों का सबसे बड़ा आदमी था। आज तक यह शहर कालिब की औलाद की मिलकियत रही है। वजह यह है कि कालिब रब इसराईल के ख़ुदा का वफ़ादार रहा। फिर जंग ख़त्म हुई, और मुल्क में अमनो-अमान क़ायम हो गया। \c 15 \s1 यहूदाह की सरहद्दें \p \v 1 जब इसराईलियों ने क़ुरा डालकर मुल्क को तक़सीम किया तो यहूदाह के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ कनान का जुनूबी हिस्सा मिल गया। इस इलाक़े की सरहद मुल्के-अदोम और इंतहाई जुनूब में सीन का रेगिस्तान था। \p \v 2 यहूदाह की जुनूबी सरहद बहीराए-मुरदार के जुनूबी सिरे से शुरू होकर \v 3 जुनूब की तरफ़ चलती चलती दर्राए-अक़्रब्बीम पहुँच गई। वहाँ से वह सीन की तरफ़ जारी हुई और क़ादिस-बरनीअ के जुनूब में से आगे निकलकर हसरोन तक पहुँच गई। हसरोन से वह अद्दार की तरफ़ चढ़ गई और फिर क़रक़ा की तरफ़ मुड़ी। \v 4 इसके बाद वह अज़मून से होकर मिसर की सरहद पर वाक़े वादीए-मिसर तक पहुँच गई जिसके साथ साथ चलती हुई वह समुंदर पर ख़त्म हुई। यह यहूदाह की जुनूबी सरहद थी। \p \v 5 मशरिक़ में उस की सरहद बहीराए-मुरदार के साथ साथ चलकर वहाँ ख़त्म हुई जहाँ दरियाए-यरदन बहीराए-मुरदार में बहता है। \p यहूदाह की शिमाली सरहद यहीं से शुरू होकर \v 6 बैत-हुजलाह की तरफ़ चढ़ गई, फिर बैत-अराबा के शिमाल में से गुज़रकर रूबिन के बेटे बोहन के पत्थर तक पहुँच गई। \v 7 वहाँ से सरहद वादीए-अकूर में उतर गई और फिर दुबारा दबीर की तरफ़ चढ़ गई। दबीर से वह शिमाल यानी जिलजाल की तरफ़ जो दर्राए-अदुम्मीम के मुक़ाबिल है मुड़ गई (यह दर्रा वादी के जुनूब में है)। यों वह चलती चलती शिमाली सरहद ऐन-शम्स और ऐन-राजिल तक पहुँच गई। \v 8 वहाँ से वह वादीए-बिन-हिन्नूम में से गुज़रती हुई यबूसियों के शहर यरूशलम के जुनूब में से आगे निकल गई और फिर उस पहाड़ पर चढ़ गई जो वादीए-बिन-हिन्नूम के मग़रिब और मैदाने-रफ़ाईम के शिमाली किनारे पर है। \v 9 वहाँ सरहद मुड़कर चश्मा बनाम निफ़तूह की तरफ़ बढ़ गई और फिर पहाड़ी इलाक़े इफ़रोन के शहरों के पास से गुज़रकर बाला यानी क़िरियत-यारीम तक पहुँच गई। \v 10 बाला से मुड़कर यहूदाह की यह सरहद मग़रिब में सईर के पहाड़ी इलाक़े की तरफ़ बढ़ गई और यारीम पहाड़ यानी कसलून के शिमाली दामन के साथ साथ चलकर बैत-शम्स की तरफ़ उतरकर तिमनत पहुँच गई। \v 11 वहाँ से वह अक़रून के शिमाल में से गुज़र गई और फिर मुड़कर सिक्करून और बाला पहाड़ की तरफ़ बढ़कर यबनियेल पहुँच गई। वहाँ यह शिमाली सरहद समुंदर पर ख़त्म हुई। \p \v 12 समुंदर मुल्के-यहूदाह की मग़रिबी सरहद थी। यही वह इलाक़ा था जो यहूदाह के क़बीले को उसके ख़ानदानों के मुताबिक़ मिल गया। \s1 हबरून और दबीर पर फ़तह \p \v 13 रब के हुक्म के मुताबिक़ यशुअ ने कालिब बिन यफ़ुन्ना को उसका हिस्सा यहूदाह में दे दिया। वहाँ उसे हबरून शहर मिल गया। उस वक़्त उसका नाम क़िरियत-अरबा था (अरबा अनाक़ का बाप था)। \v 14 हबरून में तीन अनाक़ी बनाम सीसी, अख़ीमान और तलमी अपने घरानों समेत रहते थे। कालिब ने तीनों को हबरून से निकाल दिया। \v 15 फिर वह आगे दबीर के बाशिंदों से लड़ने चला गया। दबीर का पुराना नाम क़िरियत-सिफ़र था। \v 16 कालिब ने कहा, “जो क़िरियत-सिफ़र पर फ़तह पाकर क़ब्ज़ा करेगा उसके साथ मैं अपनी बेटी अकसा का रिश्ता बाँधूँगा।” \v 17 कालिब के भाई ग़ुतनियेल बिन क़नज़ ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। चुनाँचे कालिब ने उसके साथ अपनी बेटी अकसा की शादी कर दी। \p \v 18 जब अकसा ग़ुतनियेल के हाँ जा रही थी तो उसने उसे उभारा कि वह कालिब से कोई खेत पाने की दरख़ास्त करे। अचानक वह गधे से उतर गई। कालिब ने पूछा, “क्या बात है?” \v 19 अकसा ने जवाब दिया, “जहेज़ के लिए मुझे एक चीज़ से नवाज़ें। आपने मुझे दश्ते-नजब में ज़मीन दे दी है। अब मुझे चश्मे भी दे दीजिए।” चुनाँचे कालिब ने उसे अपनी मिलकियत में से ऊपर और नीचेवाले चश्मे भी दे दिए। \s1 यहूदाह के क़बीले के शहर \p \v 20 जो मौरूसी ज़मीन यहूदाह के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ मिली \v 21 उसमें ज़ैल के शहर शामिल थे। जुनूब में मुल्के-अदोम की सरहद की तरफ़ यह शहर थे : क़बज़ियेल, इदर, यजूर, \v 22 क़ीना, दीमूना, अदअदा, \v 23 क़ादिस, हसूर, इतनान, \v 24 ज़ीफ़, तलम, बालोत, \v 25 हसूर-हदत्ता, क़रियोत-हसरोन यानी हसूर, \v 26 अमाम, समा, मोलादा, \v 27 हसार-जद्दा, हिशमोन, बैत-फ़लत, \v 28 हसार-सुआल, बैर-सबा, बिज़योतियाह, \v 29 बाला, इय्यीम, अज़म, \v 30 इलतोलद, कसील, हुरमा, \v 31 सिक़लाज, मदमन्ना, सनसन्ना, \v 32 लबाओत, सिलहीम, ऐन और रिम्मोन। इन शहरों की तादाद 29 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \p \v 33 मग़रिब के नशेबी पहाड़ी इलाक़े में यह शहर थे : इस्ताल, सुरआ, अस्ना, \v 34 ज़नूह, ऐन-जन्नीम, तफ़्फ़ुअह, ऐनाम, \v 35 यरमूत, अदुल्लाम, सोका, अज़ीक़ा, \v 36 शारैम, अदितैम और जदीरा यानी जदीरतैम। इन शहरों की तादाद 14 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \p \v 37 इनके अलावा यह शहर भी थे : ज़नान, हदाशा, मिजदल-जद, \v 38 दिलान, मिसफ़ाह, युक़तियेल, \v 39 लकीस, बुसक़त, इजलून, \v 40 कब्बून, लहमास, कितलीस, \v 41 जदीरोत, बैत-दजून, नामा और मक़्क़ेदा। इन शहरों की तादाद 16 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \p \v 42 इस इलाक़े में यह शहर भी थे : लिबना, इतर, असन, \v 43 यिफ़ताह, अस्ना, नसीब, \v 44 क़ईला, अकज़ीब और मरेसा। इन शहरों की तादाद 9 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \p \v 45 इनके अलावा यह शहर भी थे : अक़रून उसके गिर्दो-नवाह की आबादियों और देहातों समेत, \v 46 फिर अक़रून से लेकर मग़रिब की तरफ़ अशदूद तक तमाम क़सबे और आबादियाँ। \v 47 अशदूद ख़ुद भी उसके गिर्दो-नवाह की आबादियों और देहातों समेत इसमें शामिल था और इसी तरह ग़ज़्ज़ा उसके गिर्दो-नवाह की आबादियों और देहातों समेत यानी तमाम आबादियाँ मिसर की सरहद पर वाक़े वादीए-मिसर और समुंदर के साहिल तक। \p \v 48 पहाड़ी इलाक़े के यह शहर यहूदाह के क़बीले के थे : समीर, यत्तीर, सोका, \v 49 दन्ना, क़िरियत-सन्ना यानी दबीर, \v 50 अनाब, इस्तमोह, अनीम, \v 51 जुशन, हौलून और जिलोह। इन शहरों की तादाद 11 थी, और उनके गिर्दो-नवाह की आबादियाँ भी उनके साथ गिनी जाती थीं। \p \v 52 इनके अलावा यह शहर भी थे : अराब, दूमा, इशआन, \v 53 यनूम, बैत-तफ़्फ़ुअह, अफ़ीक़ा, \v 54 हुमता, क़िरियत-अरबा यानी हबरून और सीऊर। इन शहरों की तादाद 9 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसमें गिनी जाती थीं। \p \v 55 इनके अलावा यह शहर भी थे : मऊन, करमिल, ज़ीफ़, यूत्ता, \v 56 यज़्रएल, युक़दियाम, ज़नूह, \v 57 क़ैन, जिबिया और तिमनत। इन शहरों की तादाद 10 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \p \v 58 इनके अलावा यह शहर भी थे : हलहूल, बैत-सूर, जदूर, \v 59 मारात, बैत-अनोत और इल्तक़ोन। इन शहरों की तादाद 6 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \p \v 60 फिर क़िरियत-बाल यानी क़िरियत-यारीम और रब्बा भी यहूदाह के पहाड़ी इलाक़े में शामिल थे। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \p \v 61 रेगिस्तान में यह शहर यहूदाह के क़बीले के थे : बैत-अराबा, मिद्दीन, सकाका, \v 62 निबसान, नमक का शहर और ऐन-जदी। इन शहरों की तादाद 6 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \p \v 63 लेकिन यहूदाह का क़बीला यबूसियों को यरूशलम से निकालने में नाकाम रहा। इसलिए उनकी औलाद आज तक यहूदाह के क़बीले के दरमियान रहती है। \c 16 \s1 इफ़राईम और मनस्सी की जुनूबी सरहद \p \v 1 क़ुरा डालने से यूसुफ़ की औलाद का इलाक़ा मुक़र्रर किया गया। उस की सरहद यरीहू के क़रीब दरियाए-यरदन से शुरू हुई, शहर के मशरिक़ में चश्मों के पास से गुज़री और रेगिस्तान में से चलती चलती बैतेल के पहाड़ी इलाक़े तक पहुँची। \v 2 लूज़ यानी बैतेल से आगे निकलकर वह अरकियों के इलाक़े में अतारात पहुँची। \v 3 वहाँ से वह मग़रिब की तरफ़ उतरती उतरती यफ़लीतियों के इलाक़े में दाख़िल हुई जहाँ वह नशेबी बैत-हौरून में से गुज़रकर जज़र के पीछे समुंदर पर ख़त्म हुई। \v 4 यह उस इलाक़े की जुनूबी सरहद थी जो यूसुफ़ की औलाद इफ़राईम और मनस्सी के क़बीलों को विरासत में दिया गया। \s1 इफ़राईम का इलाक़ा \p \v 5 इफ़राईम के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ यह इलाक़ा मिल गया : उस की जुनूबी सरहद अतारात-अद्दार और बालाई बैत-हौरून से होकर \v 6-8 समुंदर पर ख़त्म हुई। उस की शिमाली सरहद मग़रिब में समुंदर से शुरू हुई और क़ाना नदी के साथ चलती चलती तफ़्फ़ुअह तक पहुँची। वहाँ से वह शिमाल की तरफ़ मुड़ी और मिक्मताह तक पहुँचकर दुबारा मशरिक़ की तरफ़ चलने लगी। फिर वह तानत-सैला से होकर यानूह पहुँची। मशरिक़ी सरहद शिमाल में यानूह से शुरू हुई और अतारात से होकर दरियाए-यरदन के मग़रिबी किनारे तक उतरी और फिर किनारे के साथ जुनूब की तरफ़ चलती चलती नारा और इसके बाद यरीहू पहुँची। वहाँ वह दरियाए-यरदन पर ख़त्म हुई। यही इफ़राईम और उसके कुंबों की सरहद्दें थीं। \p \v 9 इसके अलावा कुछ शहर और उनके गिर्दो-नवाह की आबादियाँ इफ़राईम के लिए मुक़र्रर की गईं जो मनस्सी के इलाक़े में थीं। \v 10 इफ़राईम के मर्दों ने जज़र में आबाद कनानियों को न निकाला। इसलिए उनकी औलाद आज तक वहाँ रहती है, अलबत्ता उसे बेगार में काम करना पड़ता है। \c 17 \s1 मनस्सी का इलाक़ा \p \v 1 यूसुफ़ के पहलौठे मनस्सी की औलाद को दो इलाक़े मिल गए। दरियाए-यरदन के मशरिक़ में मकीर के घराने को जिलियाद और बसन दिए गए। मकीर मनस्सी का पहलौठा और जिलियाद का बाप था, और उस की औलाद माहिर फ़ौजी थी। \v 2 अब क़ुरा डालने से दरियाए-यरदन के मग़रिब में वह इलाक़ा मुक़र्रर किया गया जहाँ मनस्सी के बाक़ी बेटों की औलाद को आबाद होना था। इनके छः कुंबे थे जिनके नाम अबियज़र, ख़लक़, असरियेल, सिकम, हिफ़र और समीदा थे। \p \v 3 सिलाफ़िहाद बिन हिफ़र बिन जिलियाद बिन मकीर बिन मनस्सी के बेटे नहीं थे बल्कि सिर्फ़ बेटियाँ। उनके नाम महलाह, नुआह, हुजलाह, मिलकाह और तिरज़ा थे। \v 4 यह ख़वातीन इलियज़र इमाम, यशुअ बिन नून और क़ौम के बुज़ुर्गों के पास आईं और कहने लगीं, “रब ने मूसा को हुक्म दिया था कि वह हमें भी क़बायली इलाक़े का कोई हिस्सा दे।” यशुअ ने रब का हुक्म मानकर न सिर्फ़ मनस्सी की नरीना औलाद को ज़मीन दी बल्कि उन्हें भी। \v 5 नतीजे में मनस्सी के क़बीले को दरियाए-यरदन के मग़रिब में ज़मीन के दस हिस्से मिल गए और मशरिक़ में जिलियाद और बसन। \v 6 मग़रिब में न सिर्फ़ मनस्सी की नरीना औलाद के ख़ानदानों को ज़मीन मिली बल्कि बेटियों के ख़ानदानों को भी। इसके बरअक्स मशरिक़ में जिलियाद की ज़मीन सिर्फ़ नरीना औलाद में तक़सीम की गई। \p \v 7 मनस्सी के क़बीले के इलाक़े की सरहद आशर से शुरू हुई और सिकम के मशरिक़ में वाक़े मिक्मताह से होकर जुनूब की तरफ़ चलती हुई ऐन-तफ़्फ़ुअह की आबादी तक पहुँची। \v 8 तफ़्फ़ुअह के गिर्दो-नवाह की ज़मीन इफ़राईम की मिलकियत थी, लेकिन मनस्सी की सरहद पर के यह शहर मनस्सी की अपनी मिलकियत थे। \v 9 वहाँ से सरहद क़ाना नदी के जुनूबी किनारे तक उतरी। फिर नदी के साथ चलती चलती वह समुंदर पर ख़त्म हुई। नदी के जुनूबी किनारे पर कुछ शहर इफ़राईम की मिलकियत थे अगरचे वह मनस्सी के इलाक़े में थे। \v 10 लेकिन मजमूई तौर पर मनस्सी का क़बायली इलाक़ा क़ाना नदी के शिमाल में था और इफ़राईम का इलाक़ा उसके जुनूब में। दोनों क़बीलों का इलाक़ा मग़रिब में समुंदर पर ख़त्म हुआ। मनस्सी के इलाक़े के शिमाल में आशर का क़बायली इलाक़ा था और मशरिक़ में इशकार का। \p \v 11 आशर और इशकार के इलाक़ों के दर्जे-ज़ैल शहर मनस्सी की मिलकियत थे : बैत-शान, इबलियाम, दोर यानी नाफ़त-दोर, ऐन-दोर, तानक और मजिद्दो उनके गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत। \v 12 लेकिन मनस्सी का क़बीला वहाँ के कनानियों को निकाल न सका बल्कि वह वहाँ बसते रहे। \v 13 बाद में भी जब इसराईल की ताक़त बढ़ गई तो कनानियों को निकाला न गया बल्कि उन्हें बेगार में काम करना पड़ा। \s1 इफ़राईम और मनस्सी मज़ीद ज़मीन का तक़ाज़ा करते हैं \p \v 14 यूसुफ़ के क़बीले इफ़राईम और मनस्सी दरियाए-यरदन के मग़रिब में ज़मीन पाने के बाद यशुअ के पास आए और कहने लगे, “आपने हमारे लिए क़ुरा डालकर ज़मीन का सिर्फ़ एक हिस्सा क्यों मुक़र्रर किया? हम तो बहुत ज़्यादा लोग हैं, क्योंकि रब ने हमें बरकत देकर बड़ी क़ौम बनाया है।” \p \v 15 यशुअ ने जवाब दिया, “अगर आप इतने ज़्यादा हैं और आपके लिए इफ़राईम का पहाड़ी इलाक़ा काफ़ी नहीं है तो फिर फ़रिज़्ज़ियों और रफ़ाइयों के पहाड़ी जंगलों में जाएँ और उन्हें काटकर काश्त के क़ाबिल बना लें।” \p \v 16 यूसुफ़ के क़बीलों ने कहा, “पहाड़ी इलाक़ा हमारे लिए काफ़ी नहीं है, और मैदानी इलाक़े में आबाद कनानियों के पास लोहे के रथ हैं, उनके पास भी जो वादीए-यज़्रएल में हैं और उनके पास भी जो बैत-शान और उसके गिर्दो-नवाह की आबादियों में रहते हैं।” \p \v 17 लेकिन यशुअ ने जवाब में कहा, “आप इतनी बड़ी और ताक़तवर क़ौम हैं कि आपका इलाक़ा एक ही हिस्से पर महदूद नहीं रहेगा \v 18 बल्कि जंगल का पहाड़ी इलाक़ा भी आपकी मिलकियत में आएगा। उसके जंगलों को काटकर काश्त के क़ाबिल बना लें तो यह तमाम इलाक़ा आप ही का होगा। आप बाक़ी इलाक़े पर भी क़ब्ज़ा करके कनानियों को निकाल देंगे अगरचे वह ताक़तवर हैं और उनके पास लोहे के रथ हैं।” \c 18 \s1 बाक़ी सात क़बीलों को ज़मीन मिलती है \p \v 1 कनान पर ग़ालिब आने के बाद इसराईल की पूरी जमात सैला शहर में जमा हुई। वहाँ उन्होंने मुलाक़ात का ख़ैमा खड़ा किया। \p \v 2 अब तक सात क़बीलों को ज़मीन नहीं मिली थी। \v 3 यशुअ ने इसराईलियों को समझाकर कहा, “आप कितनी देर तक सुस्त रहेंगे? आप कब तक उस मुल्क पर क़ब्ज़ा नहीं करेंगे जो रब आपके बापदादा के ख़ुदा ने आपको दे दिया है? \v 4 अब हर क़बीले के तीन तीन आदमियों को चुन लें। उन्हें मैं मुल्क का दौरा करने के लिए भेज दूँगा ताकि वह तमाम क़बायली इलाक़ों की फ़हरिस्त तैयार करें। इसके बाद वह मेरे पास वापस आकर \v 5 मुल्क को सात इलाक़ों में तक़सीम करें। लेकिन ध्यान रखें कि जुनूब में यहूदाह का इलाक़ा और शिमाल में इफ़राईम और मनस्सी का इलाक़ा है। उनकी सरहद्दें मत छेड़ना! \v 6 वह आदमी लिख लें कि सात नए क़बायली इलाक़ों की सरहद्दें कहाँ कहाँ तक हैं और फिर इनकी फ़हरिस्तें पेश करें। फिर मैं रब आपके ख़ुदा के हुज़ूर मुक़द्दस क़ुरा डालकर हर एक की ज़मीन मुक़र्रर करूँगा। \v 7 याद रहे कि लावियों को कोई इलाक़ा नहीं मिलना है। उनका हिस्सा यह है कि वह रब के इमाम हैं। और जद, रूबिन और मनस्सी के आधे क़बीले को भी मज़ीद कुछ नहीं मिलना है, क्योंकि उन्हें रब के ख़ादिम मूसा से दरियाए-यरदन के मशरिक़ में उनका हिस्सा मिल चुका है।” \p \v 8 तब वह आदमी रवाना होने के लिए तैयार हुए जिन्हें मुल्क का दौरा करने के लिए चुना गया था। यशुअ ने उन्हें हुक्म दिया, “पूरे मुल्क में से गुज़रकर तमाम शहरों की फ़हरिस्त बनाएँ। जब फ़हरिस्त मुकम्मल हो जाए तो उसे मेरे पास ले आएँ। फिर मैं सैला में रब के हुज़ूर आपके लिए क़ुरा डाल दूँगा।” \v 9 आदमी चले गए और पूरे मुल्क में से गुज़रकर तमाम शहरों की फ़हरिस्त बना ली। उन्होंने मुल्क को सात हिस्सों में तक़सीम करके तमाम तफ़सीलात किताब में दर्ज कीं और यह किताब सैला की ख़ैमागाह में यशुअ को दे दी। \v 10 फिर यशुअ ने रब के हुज़ूर क़ुरा डालकर यह इलाक़े बाक़ी सात क़बीलों और उनके कुंबों में तक़सीम कर दिए। \s1 बिनयमीन का इलाक़ा \p \v 11 जब क़ुरा डाला गया तो बिनयमीन के क़बीले और उसके कुंबों को पहला हिस्सा मिल गया। उस की ज़मीन यहूदाह और यूसुफ़ के क़बीलों के दरमियान थी। \v 12 उस की शिमाली सरहद दरियाए-यरदन से शुरू हुई और यरीहू के शिमाल में पहाड़ी ढलान पर चढ़कर पहाड़ी इलाक़े में से मग़रिब की तरफ़ गुज़री। बैत-आवन के बयाबान को पहुँचने पर \v 13 वह लूज़ यानी बैतेल की तरफ़ बढ़कर शहर के जुनूब में पहाड़ी ढलान पर चलती चलती आगे निकल गई। वहाँ से वह अतारात-अद्दार और उस पहाड़ी तक पहुँची जो नशेबी बैत-हौरून के जुनूब में है। \v 14 फिर वह जुनूब की तरफ़ मुड़कर मग़रिबी सरहद के तौर पर क़िरियत-बाल यानी क़िरियत-यारीम के पास आई जो यहूदाह के क़बीले की मिलकियत थी। \v 15 बिनयमीन की जुनूबी सरहद क़िरियत-यारीम के मग़रिबी किनारे से शुरू होकर निफ़तूह चश्मा तक पहुँची। \v 16 फिर वह उस पहाड़ के दामन पर उतर आई जो वादीए-बिन-हिन्नूम के मग़रिब में और मैदाने-रफ़ाईम के शिमाल में वाक़े है। इसके बाद सरहद यबूसियों के शहर के जुनूब में से गुज़री और यों वादीए-हिन्नूम को पार करके ऐन-राजिल के पास आई। \v 17 फिर वह शिमाल की तरफ़ मुड़कर ऐन-शम्स के पास से गुज़री और दर्राए-अदुम्मीम के मुक़ाबिल शहर जलीलोत तक पहुँचकर रूबिन के बेटे बोहन के पत्थर के पास उतर आई। \v 18 वहाँ से वह उस ढलान के शिमाली रुख़ पर से गुज़री जो वादीए-यरदन के मग़रिबी किनारे पर है। फिर वह वादी में उतरकर \v 19 बैत-हुजलाह की शिमाली पहाड़ी ढलान से गुज़री और बहीराए-मुरदार के शिमाली किनारे पर ख़त्म हुई, वहाँ जहाँ दरियाए-यरदन उसमें बहता है। यह थी बिनयमीन की जुनूबी सरहद। \v 20 उस की मशरिक़ी सरहद दरियाए-यरदन थी। यही वह इलाक़ा था जो बिनयमीन के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ दिया गया। \p \v 21 ज़ैल के शहर इस इलाक़े में शामिल थे : यरीहू, बैत-हुजलाह, इमक़-क़सीस, \v 22 बैत-अराबा, समरैम, बैतेल, \v 23 अव्वीम, फ़ारा, उफ़रा, \v 24 कफ़रुल-अम्मोनी, उफ़नी और जिबा। यह कुल 12 शहर थे। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \v 25 इनके अलावा यह शहर भी थे : जिबऊन, रामा, बैरोत, \v 26 मिसफ़ाह, कफ़ीरा, मौज़ा, \v 27 रक़म, इर्फ़एल, तराला, \v 28 ज़िला, अलिफ़, यबूसियों का शहर यरूशलम, जिबिया और क़िरियत-यारीम। इन शहरों की तादाद 14 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। यह तमाम शहर बिनयमीन और उसके कुंबों की मिलकियत थे। \c 19 \s1 शमौन का इलाक़ा \p \v 1 जब क़ुरा डाला गया तो शमौन के क़बीले और उसके कुंबों को दूसरा हिस्सा मिल गया। उस की ज़मीन यहूदाह के क़बीले के इलाक़े के दरमियान थी। \v 2 उसे यह शहर मिल गए : बैर-सबा (सबा), मोलादा, \v 3 हसार-सुआल, बाला, अज़म, \v 4 इलतोलद, बतूल, हुरमा, \v 5 सिक़लाज, बैत-मर्कबोत, हसार-सूसा, \v 6 बैत-लबाओत और सारूहन। इन शहरों की तादाद 13 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \v 7 इनके अलावा यह चार शहर भी शमौन के थे : ऐन, रिम्मोन, इतर और असन। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। \v 8 इन शहरों के गिर्दो-नवाह की तमाम आबादियाँ बालात-बैर यानी नजब के रामा तक उनके साथ गिनी जाती थीं। यह थी शमौन और उसके कुंबों की मिलकियत। \v 9 यह जगहें इसलिए यहूदाह के क़बीले के इलाक़े से ली गईं कि यहूदाह का इलाक़ा उसके लिए बहुत ज़्यादा था। यही वजह है कि शमौन का इलाक़ा यहूदाह के बीच में है। \s1 ज़बूलून का इलाक़ा \p \v 10-12 जब क़ुरा डाला गया तो ज़बूलून के क़बीले और उसके कुंबों को तीसरा हिस्सा मिल गया। उस की जुनूबी सरहद युक़नियाम की नदी से शुरू हुई और फिर मशरिक़ की तरफ़ दबासत, मरअला और सारीद से होकर किसलोत-तबूर के इलाक़े तक पहुँची। इसके बाद वह मुड़कर मशरिक़ी सरहद के तौर पर दाबरत के पास आई और चढ़ती चढ़ती यफ़ीअ पहुँची। \v 13 वहाँ से वह मज़ीद मशरिक़ की तरफ़ बढ़ती हुई जात-हिफ़र, एत-क़ाज़ीन और रिम्मोन से होकर नेआ के पास आई। \v 14 ज़बूलून की शिमाली और मग़रिबी सरहद हन्नातोन में से गुज़रती गुज़रती वादीए-इफ़ताहेल पर ख़त्म हुई। \v 15 बारह शहर उनके गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत ज़बूलून की मिलकियत में आए जिनमें क़त्तात, नहलाल, सिमरोन, इदाला और बैत-लहम शामिल थे। \v 16 ज़बूलून के क़बीले को यही कुछ उसके कुंबों के मुताबिक़ मिल गया। \s1 इशकार का इलाक़ा \p \v 17 जब क़ुरा डाला गया तो इशकार के क़बीले और उसके कुंबों को चौथा हिस्सा मिल गया। \v 18 उसका इलाक़ा यज़्रएल से लेकर शिमाल की तरफ़ फैल गया। यह शहर उसमें शामिल थे : कसूलोत, शूनीम, \v 19 हफ़ारैम, शियून, अनाख़रत, \v 20 रब्बीत, क़िसियोन, इबज़, \v 21 रैमत, ऐन-जन्नीम, ऐन-हद्दा और बैत-फ़स्सीस। \v 22 शिमाल में यह सरहद तबूर पहाड़ से शुरू हुई और शख़सूमा और बैत-शम्स से होकर दरियाए-यरदन तक उतर आई। 16 शहर उनके गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत इशकार की मिलकियत में आए। \v 23 उसे यह पूरा इलाक़ा उसके कुंबों के मुताबिक़ मिल गया। \s1 आशर का इलाक़ा \p \v 24 जब क़ुरा डाला गया तो आशर के क़बीले और उसके कुंबों को पाँचवाँ हिस्सा मिल गया। \v 25 उसके इलाक़े में यह शहर शामिल थे : ख़िलक़त, हली, बतन, अकशाफ़, \v 26 अलम्मलिक, अमआद और मिसाल। उस की सरहद समुंदर के साथ साथ चलती हुई करमिल के पहाड़ी सिलसिले के दामन में से गुज़री और उतरती उतरती सैहूर-लिबनात तक पहुँची। \v 27 वहाँ वह मशरिक़ में बैत-दजून की तरफ़ मुड़कर ज़बूलून के इलाक़े तक पहुँची और उस की मग़रिबी सरहद के साथ चलती चलती शिमाल में वादीए-इफ़ताहेल तक पहुँची। आगे बढ़ती हुई वह बैत-इमक़ और नइयेल से होकर शिमाल की तरफ़ मुड़ी जहाँ काबूल था। \v 28 फिर वह इबरून, रहोब, हम्मून और क़ाना से होकर बड़े शहर सैदा तक पहुँची। \v 29 इसके बाद आशर की सरहद रामा की तरफ़ मुड़कर फ़सीलदार शहर सूर के पास आई। वहाँ वह हूसा की तरफ़ मुड़ी और चलती चलती अकज़ीब के क़रीब समुंदर पर ख़त्म हुई। \v 30 22 शहर उनके गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत आशर की मिलकियत में आए। इनमें उम्मा, अफ़ीक़ और रहोब शामिल थे। \v 31 आशर को उसके कुंबों के मुताबिक़ यही कुछ मिला। \s1 नफ़ताली का इलाक़ा \p \v 32 जब क़ुरा डाला गया तो नफ़ताली के क़बीले और उसके कुंबों को छटा हिस्सा मिल गया। \v 33-34 जुनूब में उस की सरहद दरियाए-यरदन पर लक़्क़ूम से शुरू हुई और मग़रिब की तरफ़ चलती चलती यबनियेल, अदामी-नक़ब, ऐलोन-ज़ाननीम और हलफ़ से होकर अज़नूत-तबूर तक पहुँची। वहाँ से वह मग़रिबी सरहद की हैसियत से हुक़्क़ोक़ के पास आई। नफ़ताली की जुनूबी सरहद ज़बूलून की शिमाली सरहद और मग़रिब में आशर की मशरिक़ी सरहद थी। दरियाए-यरदन और यहूदाह \f + \fr 19:33-34 \ft यहाँ यहूदाह का मतलब मुल्के-बसन हो सकता है जो मनस्सी के इलाक़े में था लेकिन जिस पर यहूदाह के क़बीले के मर्द याईर ने फ़तह पाई थी। \f* उस की मशरिक़ी सरहद थी। \v 35 ज़ैल के फ़सीलदार शहर नफ़ताली की मिलकियत में आए : सद्दीम, सैर, हम्मत, रक़्क़त, किन्नरत, \v 36 अदामा, रामा, हसूर, \v 37 क़ादिस, इदरई, ऐन-हसूर, \v 38 इरून, मिजदलेल, हुरीम, बैत-अनात और बैत-शम्स। ऐसे 19 शहर थे। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ भी उसके साथ गिनी जाती थीं। \v 39 नफ़ताली को यही कुछ उसके कुंबों के मुताबिक़ मिला। \s1 दान का इलाक़ा \p \v 40 जब क़ुरा डाला गया तो दान के क़बीले और उसके कुंबों को सातवाँ हिस्सा मिला। \v 41 उसके इलाक़े में यह शहर शामिल थे : सुरआ, इस्ताल, ईर-शम्स, \v 42 शालब्बीन, ऐयालोन, इतला, \v 43 ऐलोन, तिमनत, अक़रून, \v 44 इल्तक़िह, जिब्बतून, बालात, \v 45 यहूद, बनी-बरक़, जात-रिम्मोन, \v 46 मे-यरक़ून और रक़्क़ून उस इलाक़े समेत जो याफ़ा के मुक़ाबिल है। \v 47 अफ़सोस, दान का क़बीला अपने इस इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने में कामयाब न हुआ, इसलिए उसके मर्दों ने लशम शहर पर हमला करके उस पर फ़तह पाई और उसके बाशिंदों को तलवार से मार डाला। फिर वह ख़ुद वहाँ आबाद हुए। उस वक़्त लशम शहर का नाम दान में तबदील हुआ। (दान उनके क़बीले का बाप था।) \v 48 लेकिन यशुअ के ज़माने में दान के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ मज़कूरा तमाम शहर और उनके गिर्दो-नवाह की आबादियाँ मिल गईं। \s1 यशुअ को भी ज़मीन मिलती है \p \v 49 पूरे मुल्क को तक़सीम करने के बाद इसराईलियों ने यशुअ बिन नून को भी अपने दरमियान कुछ मौरूसी ज़मीन दे दी। \v 50 रब के हुक्म पर उन्होंने उसे इफ़राईम का शहर तिमनत-सिरह दे दिया। यशुअ ने ख़ुद इसकी दरख़ास्त की थी। वहाँ जाकर उसने शहर को अज़ सरे-नौ तामीर किया और उसमें आबाद हुआ। \p \v 51 ग़रज़ यह वह तमाम ज़मीनें हैं जो इलियज़र इमाम, यशुअ बिन नून और क़बीलों के आबाई घरानों के सरबराहों ने सैला में मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर क़ुरा डालकर तक़सीम की थीं। यों तक़सीम करने का यह काम मुकम्मल हुआ। \c 20 \s1 पनाह के छः शहर \p \v 1 रब ने यशुअ से कहा, \v 2 “इसराईलियों को हुक्म दे कि उन हिदायात के मुताबिक़ पनाह के शहर चुन लो जिन्हें मैं तुम्हें मूसा की मारिफ़त दे चुका हूँ। \v 3 इन शहरों में वह लोग फ़रार हो सकते हैं जिनसे कोई इत्तफ़ाक़न यानी ग़ैरइरादी तौर पर हलाक हुआ हो। यह उन्हें मरे हुए शख़्स के उन रिश्तेदारों से पनाह देंगे जो बदला लेना चाहेंगे। \v 4 लाज़िम है कि ऐसा शख़्स पनाह के शहर के पास पहुँचने पर शहर के दरवाज़े के पास बैठे बुज़ुर्गों को अपना मामला पेश करे। उस की बात सुनकर बुज़ुर्ग उसे अपने शहर में दाख़िल होने की इजाज़त दें और उसे अपने दरमियान रहने के लिए जगह दे दें। \v 5 अब अगर बदला लेनेवाला उसके पीछे पड़कर वहाँ पहुँचे तो बुज़ुर्ग मुलज़िम को उसके हाथ में न दें, क्योंकि यह मौत ग़ैरइरादी तौर पर और नफ़रत रखे बग़ैर हुई है। \v 6 वह उस वक़्त तक शहर में रहे जब तक मक़ामी अदालत मामले का फ़ैसला न कर दे। अगर अदालत उसे बेगुनाह क़रार दे तो वह उस वक़्त के इमामे-आज़म की मौत तक उस शहर में रहे। इसके बाद उसे अपने उस शहर और घर को वापस जाने की इजाज़त है जिससे वह फ़रार होकर आया है।” \p \v 7 इसराईलियों ने पनाह के यह शहर चुन लिए : नफ़ताली के पहाड़ी इलाक़े में गलील का क़ादिस, इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े में सिकम और यहूदाह के पहाड़ी इलाक़े में क़िरियत-अरबा यानी हबरून। \v 8 दरियाए-यरदन के मशरिक़ में उन्होंने बसर को चुन लिया जो यरीहू से काफ़ी दूर मैदाने-मुरतफ़ा में है और रूबिन के क़बीले की मिलकियत है। मुल्के-जिलियाद में रामात जो जद के क़बीले का है और बसन में जौलान जो मनस्सी के क़बीले का है चुना गया। \p \v 9 यह शहर तमाम इसराईलियों और इसराईल में रहनेवाले अजनबियों के लिए मुक़र्रर किए गए। जिससे भी ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ उसे इनमें पनाह लेने की इजाज़त थी। इनमें वह उस वक़्त तक बदला लेनेवालों से महफ़ूज़ रहता था जब तक मक़ामी अदालत फ़ैसला नहीं कर देती थी। \c 21 \s1 लावियों के शहर और चरागाहें \p \v 1 फिर लावी के क़बीले के आबाई घरानों के सरबराह इलियज़र इमाम, यशुअ बिन नून और इसराईल के बाक़ी क़बीलों के आबाई घरानों के सरबराहों के पास आए \v 2 जो उस वक़्त सैला में जमा थे। लावियों ने कहा, “रब ने मूसा की मारिफ़त हुक्म दिया था कि हमें बसने के लिए शहर और रेवड़ों को चराने के लिए चरागाहें दी जाएँ।” \v 3 चुनाँचे इसराईलियों ने रब की यह बात मानकर अपने इलाक़ों में से शहर और चरागाहें अलग करके लावियों को दे दीं। \p \v 4 क़ुरा डाला गया तो लावी के घराने क़िहात को उसके कुंबों के मुताबिक़ पहला हिस्सा मिल गया। पहले हारून के कुंबे को यहूदाह, शमौन और बिनयमीन के क़बीलों के 13 शहर दिए गए। \v 5 बाक़ी क़िहातियों को दान, इफ़राईम और मग़रिबी मनस्सी के क़बीलों के 10 शहर मिल गए। \p \v 6 जैरसोन के घराने को इशकार, आशर, नफ़ताली और मनस्सी के क़बीलों के 13 शहर दिए गए। यह मनस्सी का वह इलाक़ा था जो दरियाए-यरदन के मशरिक़ में मुल्के-बसन में था। \p \v 7 मिरारी के घराने को उसके कुंबों के मुताबिक़ रूबिन, जद और ज़बूलून के क़बीलों के 12 शहर मिल गए। \p \v 8 यों इसराईलियों ने क़ुरा डालकर लावियों को मज़कूरा शहर और उनके गिर्दो-नवाह की चरागाहें दे दीं। वैसा ही हुआ जैसा रब ने मूसा की मारिफ़त हुक्म दिया था। \s1 क़िहात के घराने के शहर \p \v 9-10 क़ुरा डालते वक़्त लावी के घराने क़िहात में से हारून के कुंबे को पहला हिस्सा मिल गया। उसे यहूदाह और शमौन के क़बीलों के यह शहर दिए गए : \v 11 पहला शहर अनाक़ियों के बाप का शहर क़िरियत-अरबा था जो यहूदाह के पहाड़ी इलाक़े में है और जिसका मौजूदा नाम हबरून है। उस की चरागाहें भी दी गईं, \v 12 लेकिन हबरून के इर्दगिर्द की आबादियाँ और खेत कालिब बिन यफ़ुन्ना की मिलकियत रहे। \v 13 हारून के कुंबे का यह शहर पनाह का शहर भी था जिसमें हर वह शख़्स पनाह ले सकता था जिससे कोई ग़ैरइरादी तौर पर हलाक हुआ था। इसके अलावा हारून के कुंबे को लिबना, \v 14 यत्तीर, इस्तिमुअ, \v 15 हौलून, दबीर, \v 16 ऐन, यूत्ता और बैत-शम्स के शहर भी मिल गए। उसे यहूदाह और शमौन के क़बीलों के कुल 9 शहर उनकी चरागाहों समेत मिल गए। \v 17-18 इनके अलावा बिनयमीन के क़बीले के चार शहर उस की मिलकियत में आए यानी जिबऊन, जिबा, अनतोत और अलमोन। \v 19 ग़रज़ हारून के कुंबे को 13 शहर उनकी चरागाहों समेत मिल गए। \v 20 लावी के क़बीले के घराने क़िहात के बाक़ी कुंबों को क़ुरा डालते वक़्त इफ़राईम के क़बीले के शहर मिल गए। \v 21 इनमें इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े का शहर सिकम शामिल था जिसमें हर वह शख़्स पनाह ले सकता था जिससे कोई ग़ैरइरादी तौर पर हलाक हुआ था, फिर जज़र, \v 22 क़िबज़ैम और बैत-हौरून। इन चार शहरों की चरागाहें भी मिल गईं। \v 23-24 दान के क़बीले ने भी उन्हें चार शहर उनकी चरागाहों समेत दिए यानी इल्तक़िह, जिब्बतून, ऐयालोन और जात-रिम्मोन। \v 25 मनस्सी के मग़रिबी हिस्से से उन्हें दो शहर तानक और जात-रिम्मोन उनकी चरागाहों समेत मिल गए। \v 26 ग़रज़ क़िहात के बाक़ी कुंबों को कुल 10 शहर उनकी चरागाहों समेत मिले। \s1 जैरसोन के घराने के शहर \p \v 27 लावी के क़बीले के घराने जैरसोन को मनस्सी के मशरिक़ी हिस्से के दो शहर उनकी चरागाहों समेत दिए गए : मुल्के-बसन में जौलान जिसमें हर वह शख़्स पनाह ले सकता था जिससे कोई ग़ैरइरादी तौर पर हलाक हुआ था, और बइस्तराह। \v 28-29 इशकार के क़बीले ने उसे चार शहर उनकी चरागाहों समेत दिए : क़िसियोन, दाबरत, यरमूत और ऐन-जन्नीम। \v 30-31 इसी तरह उसे आशर के क़बीले के भी चार शहर उनकी चरागाहों समेत दिए गए : मिसाल, अबदोन, ख़िलक़त और रहोब। \v 32 नफ़ताली के क़बीले ने तीन शहर उनकी चरागाहों समेत दिए : गलील का क़ादिस जिसमें हर वह शख़्स पनाह ले सकता था जिससे कोई ग़ैरइरादी तौर पर हलाक हुआ था, फिर हम्मात-दोर और क़रतान। \v 33 ग़रज़ जैरसोन के घराने को 13 शहर उनकी चरागाहों समेत मिल गए। \s1 मिरारी के घराने के शहर \p \v 34-35 अब रह गया लावी के क़बीले का घराना मिरारी। उसे ज़बूलून के क़बीले के चार शहर उनकी चरागाहों समेत मिल गए : युक़नियाम, क़रता, दिम्ना और नहलाल। \v 36-37 इसी तरह उसे रूबिन के क़बीले के भी चार शहर उनकी चरागाहों समेत मिल गए : बसर, यहज़, क़दीमात और मिफ़ात। \v 38-39 जद के क़बीले ने उसे चार शहर उनकी चरागाहों समेत दिए : मुल्के-जिलियाद का रामात जिसमें हर वह शख़्स पनाह ले सकता था जिससे कोई ग़ैरइरादी तौर पर हलाक हुआ था, फिर महनायम, हसबोन और याज़ेर। \v 40 ग़रज़ मिरारी के घराने को कुल 12 शहर उनकी चरागाहों समेत मिल गए। \p \v 41 इसराईल के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में जो लावियों के शहर उनकी चरागाहों समेत थे उनकी कुल तादाद 48 थी। \v 42 हर शहर के इर्दगिर्द चरागाहें थीं। \s1 अल्लाह ने अपना वादा पूरा किया \p \v 43 यों रब ने इसराईलियों को वह पूरा मुल्क दे दिया जिसका वादा उसने उनके बापदादा से क़सम खाकर किया था। वह उस पर क़ब्ज़ा करके उसमें रहने लगे। \v 44 और रब ने चारों तरफ़ अमनो-अमान मुहैया किया जिस तरह उसने उनके बापदादा से क़सम खाकर वादा किया था। उसी की मदद से इसराईली तमाम दुश्मनों पर ग़ालिब आए थे। \v 45 जो अच्छे वादे रब ने इसराईल से किए थे उनमें से एक भी नामुकम्मल न रहा बल्कि सबके सब पूरे हो गए। \c 22 \s1 मशरिक़ी क़बीलों को घर वापस जाने की इजाज़त \p \v 1 फिर यशुअ ने रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले के मर्दों को अपने पास बुलाकर \v 2 कहा, “जो भी हुक्म रब के ख़ादिम मूसा ने आपको दिया था उसे आपने पूरा किया। और आपने मेरी हर बात मानी है। \v 3 आपने काफ़ी अरसे से आज तक अपने भाइयों को तर्क नहीं किया बल्कि बिलकुल वही कुछ किया है जो रब की मरज़ी थी। \v 4 अब रब आपके ख़ुदा ने आपके भाइयों को मौऊदा मुल्क दे दिया है, और वह सलामती के साथ उसमें रह रहे हैं। इसलिए अब वक़्त आ गया है कि आप अपने घर वापस चले जाएँ, उस मुल्क में जो रब के ख़ादिम मूसा ने आपको दरियाए-यरदन के पार दे दिया है। \v 5 लेकिन ख़बरदार, एहतियात से उन हिदायात पर चलते रहें जो रब के ख़ादिम मूसा ने आपको दे दीं। रब अपने ख़ुदा से प्यार करें, उस की तमाम राहों पर चलें, उसके अहकाम मानें, उसके साथ लिपटे रहें, और पूरे दिलो-जान से उस की ख़िदमत करें।” \v 6 यह कहकर यशुअ ने उन्हें बरकत देकर रुख़सत कर दिया, और वह अपने घर चले गए। \p \v 7 मनस्सी के आधे क़बीले को मूसा से मुल्के-बसन में ज़मीन मिल गई थी। दूसरे हिस्से को यशुअ से ज़मीन मिल गई थी, यानी दरियाए-यरदन के मग़रिब में जहाँ बाक़ी क़बीले आबाद हुए थे। मनस्सी के मर्दों को रुख़सत करते वक़्त यशुअ ने उन्हें बरकत देकर \v 8 कहा, “आप बड़ी दौलत के साथ अपने घर लौट रहे हैं। आपको बड़े रेवड़, सोना, चाँदी, लोहा और बहुत-से कपड़े मिल गए हैं। जब आप अपने घर पहुँचेंगे तो माले-ग़नीमत उनके साथ बाँटें जो घर में रह गए हैं।” \p \v 9 फिर रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले के मर्द बाक़ी इसराईलियों को सैला में छोड़कर मुल्के-जिलियाद की तरफ़ रवाना हुए जो दरियाए-यरदन के मशरिक़ में है। वहाँ उनके अपने इलाक़े थे जिनमें उनके क़बीले रब के उस हुक्म के मुताबिक़ आबाद हुए थे जो उसने मूसा की मारिफ़त दिया था। \s1 मशरिक़ी क़बीले क़ुरबानगाह बना लेते हैं \p \v 10 यह मर्द चलते चलते दरियाए-यरदन के मग़रिब में एक जगह पहुँचे जिसका नाम गलीलोत था। वहाँ यानी मुल्के-कनान में ही उन्होंने एक बड़ी और शानदार क़ुरबानगाह बनाई। \v 11 इसराईलियों को ख़बर दी गई, “रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले ने कनान की सरहद पर गलीलोत में क़ुरबानगाह बना ली है। यह क़ुरबानगाह दरियाए-यरदन के मग़रिब में यानी हमारे ही इलाक़े में है!” \p \v 12 तब इसराईल की पूरी जमात मशरिक़ी क़बीलों से लड़ने के लिए सैला में जमा हुई। \v 13 लेकिन पहले उन्होंने इलियज़र इमाम के बेटे फ़ीनहास को मुल्के-जिलियाद को भेजा जहाँ रूबिन, जद और मनस्सी का आधा क़बीला आबाद थे। \v 14 उसके साथ 10 आदमी यानी हर मग़रिबी क़बीले का एक नुमाइंदा था। हर एक अपने आबाई घराने और कुंबे का सरबराह था। \v 15 जिलियाद में पहुँचकर उन्होंने मशरिक़ी क़बीलों से बात की। \v 16 “रब की पूरी जमात आपसे पूछती है कि आप इसराईल के ख़ुदा से बेवफ़ा क्यों हो गए हैं? आपने रब से अपना मुँह फेरकर यह क़ुरबानगाह क्यों बनाई है? इससे आपने रब से सरकशी की है। \v 17 क्या यह काफ़ी नहीं था कि हमसे फ़ग़ूर के बुत की पूजा करने का गुनाह सरज़द हुआ? हम तो आज तक पूरे तौर पर उस गुनाह से पाक-साफ़ नहीं हुए गो उस वक़्त रब की जमात को वबा की सूरत में सज़ा मिल गई थी। \v 18 तो फिर आप क्या कर रहे हैं? आप दुबारा रब से अपना मुँह फेरकर दूर हो रहे हैं। देखें, अगर आप आज रब से सरकशी करें तो कल वह इसराईल की पूरी जमात के साथ नाराज़ होगा। \v 19 अगर आप समझते हैं कि आपका मुल्क नापाक है और आप इसलिए उसमें रब की ख़िदमत नहीं कर सकते तो हमारे पास रब के मुल्क में आएँ जहाँ रब की सुकूनतगाह है, और हमारी ज़मीनों में शरीक हो जाएँ। लेकिन रब से या हमसे सरकशी मत करना। रब हमारे ख़ुदा की क़ुरबानगाह के अलावा अपने लिए कोई और क़ुरबानगाह न बनाएँ! \v 20 क्या इसराईल की पूरी जमात पर अल्लाह का ग़ज़ब नाज़िल न हुआ जब अकन बिन ज़ारह ने माले-ग़नीमत में से कुछ चोरी किया जो रब के लिए मख़सूस था? उसके गुनाह की सज़ा सिर्फ़ उस तक ही महदूद न रही बल्कि और भी हलाक हुए।” \p \v 21 रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले के मर्दों ने इसराईली कुंबों के सरबराहों को जवाब दिया, \v 22 “रब क़ादिरे-मुतलक़ ख़ुदा, हाँ रब क़ादिरे-मुतलक़ ख़ुदा हक़ीक़त जानता है, और इसराईल भी यह बात जान ले! न हम सरकश हुए हैं, न रब से बेवफ़ा। अगर हम झूट बोलें तो आज ही हमें मार डालें! \v 23 हमने यह क़ुरबानगाह इसलिए नहीं बनाई कि रब से दूर हो जाएँ। हम उस पर कोई भी क़ुरबानी चढ़ाना नहीं चाहते, न भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ, न ग़ल्ला की नज़रें और न ही सलामती की क़ुरबानियाँ। अगर हम झूट बोलें तो रब ख़ुद हमारी अदालत करे। \v 24 हक़ीक़त में हमने यह क़ुरबानगाह इसलिए तामीर की कि हम डरते हैं कि मुस्तक़बिल में किसी दिन आपकी औलाद हमारी औलाद से कहे, ‘आपका रब इसराईल के ख़ुदा के साथ क्या वास्ता है? \v 25 आख़िर रब ने हमारे और आपके दरमियान दरियाए-यरदन की सरहद मुक़र्रर की है। चुनाँचे आपको रब की इबादत करने का कोई हक़ नहीं!’ ऐसा करने से आपकी औलाद हमारी औलाद को रब की ख़िदमत करने से रोकेगी। \v 26 यही वजह है कि हमने यह क़ुरबानगाह बनाई, भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ या ज़बह की कोई और क़ुरबानी चढ़ाने के लिए नहीं \v 27 बल्कि आपको और आनेवाली नसलों को इस बात की याद दिलाने के लिए कि हमें भी रब के ख़ैमे में भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ, ज़बह की क़ुरबानियाँ और सलामती की क़ुरबानियाँ चढ़ाने का हक़ है। यह क़ुरबानगाह हमारे और आपके दरमियान गवाह रहेगी। अब आपकी औलाद कभी भी हमारी औलाद से नहीं कह सकेगी, ‘आपको रब की जमात के हुक़ूक़ हासिल नहीं।’ \v 28 और अगर वह किसी वक़्त यह बात करे तो हमारी औलाद कह सकेगी, ‘यह क़ुरबानगाह देखें जो रब की क़ुरबानगाह की हूबहू नक़ल है। हमारे बापदादा ने इसे बनाया था, लेकिन इसलिए नहीं कि हम इस पर भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ और ज़बह की क़ुरबानियाँ चढ़ाएँ बल्कि आपको और हमें गवाही देने के लिए कि हमें मिलकर रब की इबादत करने का हक़ है।’ \v 29 हालात कभी भी यहाँ तक न पहुँचें कि हम रब से सरकशी करके अपना मुँह उससे फेर लें। नहीं, हमने यह क़ुरबानगाह भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ, ग़ल्ला की नज़रें और ज़बह की क़ुरबानियाँ चढ़ाने के लिए नहीं बनाई। हम सिर्फ़ रब अपने ख़ुदा की सुकूनतगाह के सामने की क़ुरबानगाह पर ही अपनी क़ुरबानियाँ पेश करना चाहते हैं।” \p \v 30 जब फ़ीनहास और इसराईली जमात के कुंबों के सरबराहों ने जिलियाद में रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले की यह बातें सुनीं तो वह मुतमइन हुए। \v 31 फ़ीनहास ने उनसे कहा, “अब हम जानते हैं कि रब आइंदा भी हमारे दरमियान रहेगा, क्योंकि आप उससे बेवफ़ा नहीं हुए हैं। आपने इसराईलियों को रब की सज़ा से बचा लिया है।” \p \v 32 इसके बाद फ़ीनहास और बाक़ी इसराईली सरदार रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले को मुल्के-जिलियाद में छोड़कर मुल्के-कनान में लौट आए। वहाँ उन्होंने सब कुछ बताया जो हुआ था। \v 33 बाक़ी इसराईलियों को यह बात पसंद आई, और वह अल्लाह की तमजीद करके रूबिन और जद से जंग करने और उनका इलाक़ा तबाह करने के इरादे से बाज़ आए। \v 34 रूबिन और जद के क़बीलों ने नई क़ुरबानगाह का नाम गवाह रखा, क्योंकि उन्होंने कहा, “यह क़ुरबानगाह हमारे और दूसरे क़बीलों के दरमियान गवाह है कि रब हमारा भी ख़ुदा है।” \c 23 \s1 यशुअ की आख़िरी नसीहतें \p \v 1 अब इसराईली काफ़ी देर से सलामती से अपने मुल्क में रहते थे, क्योंकि रब ने उन्हें इर्दगिर्द के दुश्मनों के हमलों से महफ़ूज़ रखा। जब यशुअ बहुत बूढ़ा हो गया था \v 2 तो उसने इसराईल के तमाम बुज़ुर्गों, सरदारों, क़ाज़ियों और निगहबानों को अपने पास बुलाकर कहा, “अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ। \v 3 आपने अपनी आँखों से देखा कि रब ने इस इलाक़े की तमाम क़ौमों के साथ क्या कुछ किया है। रब आपके ख़ुदा ही ने आपके लिए जंग की। \v 4 याद रखें कि मैंने मशरिक़ में दरियाए-यरदन से लेकर मग़रिब में समुंदर तक सारा मुल्क आपके क़बीलों में तक़सीम कर दिया है। बहुत-सी क़ौमों पर मैंने फ़तह पाई, लेकिन चंद एक अब तक बाक़ी रह गई हैं। \v 5 लेकिन रब आपका ख़ुदा आपके आगे आगे चलते हुए उन्हें भी निकालकर भगा देगा। आप उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर लेंगे जिस तरह रब आपके ख़ुदा ने वादा किया है। \p \v 6 अब पूरी हिम्मत से हर बात पर अमल करें जो मूसा की शरीअत की किताब में लिखी हुई है। न दाईं और न बाईं तरफ़ हटें। \v 7 उन दीगर क़ौमों से रिश्ता मत बाँधना जो अब तक मुल्क में बाक़ी रह गई हैं। उनके बुतों के नाम अपनी ज़बान पर न लाना, न उनके नाम लेकर क़सम खाना। न उनकी ख़िदमत करना, न उन्हें सिजदा करना। \v 8 रब अपने ख़ुदा के साथ यों लिपटे रहना जिस तरह आज तक लिपटे रहे हैं। \p \v 9 रब ने आपके आगे आगे चलकर बड़ी बड़ी और ताक़तवर क़ौमें निकाल दी हैं। आज तक आपके सामने कोई नहीं खड़ा रह सका। \v 10 आपमें से एक शख़्स हज़ार दुश्मनों को भगा देता है, क्योंकि रब आपका ख़ुदा ख़ुद आपके लिए लड़ता है जिस तरह उसने वादा किया था। \v 11 चुनाँचे संजीदगी से ध्यान दें कि आप रब अपने ख़ुदा से प्यार करें, क्योंकि आपकी ज़िंदगी इसी पर मुनहसिर है। \v 12 अगर आप उससे दूर होकर उन दीगर क़ौमों से लिपट जाएँ जो अब तक मुल्क में बाक़ी हैं और उनके साथ रिश्ता बाँधें \v 13 तो रब आपका ख़ुदा यक़ीनन इन क़ौमों को आपके आगे से नहीं निकालेगा। इसके बजाए यह आपको फँसाने के लिए फंदा और जाल बनेंगे। यह यक़ीनन आपकी पीठों के लिए कोड़े और आँखों के लिए काँटे बन जाएंगे। आख़िर में आप उस अच्छे मुल्क में से मिट जाएंगे जो रब आपके ख़ुदा ने आपको दे दिया है। \p \v 14 आज मैं वहाँ जा रहा हूँ जहाँ किसी न किसी दिन दुनिया के हर शख़्स को जाना होता है। लेकिन आपने पूरे दिलो-जान से जान लिया है कि जो भी वादा रब आपके ख़ुदा ने आपके साथ किया वह पूरा हुआ है। एक भी अधूरा नहीं रह गया। \v 15 लेकिन जिस तरह रब ने हर वादा पूरा किया है बिलकुल उसी तरह वह तमाम आफ़तें आप पर नाज़िल करेगा जिनके बारे में उसने आपको ख़बरदार किया है अगर आप उसके ताबे न रहें। फिर वह आपको उस अच्छे मुल्क में से मिटा देगा जो उसने आपको दे दिया है। \v 16 अगर आप उस अहद को तोड़ें जो उसने आपके साथ बाँधा है और दीगर माबूदों की पूजा करके उन्हें सिजदा करें तो फिर रब का पूरा ग़ज़ब आप पर नाज़िल होगा और आप जल्द ही उस अच्छे मुल्क में से मिट जाएंगे जो उसने आपको दे दिया है।” \c 24 \s1 अल्लाह और इसराईल के दरमियान अहद की तजदीद \p \v 1 फिर यशुअ ने इसराईल के तमाम क़बीलों को सिकम शहर में जमा किया। उसने इसराईल के बुज़ुर्गों, सरदारों, क़ाज़ियों और निगहबानों को बुलाया, और वह मिलकर अल्लाह के हुज़ूर हाज़िर हुए। \p \v 2 फिर यशुअ इसराईली क़ौम से मुख़ातिब हुआ। “रब इसराईल का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘क़दीम ज़माने में तुम्हारे बापदादा दरियाए-फ़ुरात के पार बसते और दीगर माबूदों की पूजा करते थे। इब्राहीम और नहूर का बाप तारह भी वहाँ आबाद था। \v 3 लेकिन मैं तुम्हारे बाप इब्राहीम को वहाँ से लेकर यहाँ लाया और उसे पूरे मुल्के-कनान में से गुज़रने दिया। मैंने उसे बहुत औलाद दी। मैंने उसे इसहाक़ दिया \v 4 और इसहाक़ को याक़ूब और एसौ। एसौ को मैंने पहाड़ी इलाक़ा सईर अता किया, लेकिन याक़ूब अपने बेटों के साथ मिसर चला गया। \p \v 5 बाद में मैंने मूसा और हारून को मिसर भेज दिया और मुल्क पर बड़ी मुसीबतें नाज़िल करके तुम्हें वहाँ से निकाल लाया। \v 6 चलते चलते तुम्हारे बापदादा बहरे-क़ुलज़ुम पहुँच गए। लेकिन मिसरी अपने रथों और घुड़सवारों से उनका ताक़्क़ुब करने लगे। \v 7 तुम्हारे बापदादा ने मदद के लिए रब को पुकारा, और मैंने उनके और मिसरियों के दरमियान अंधेरा पैदा किया। मैं समुंदर उन पर चढ़ा लाया, और वह उसमें ग़रक़ हो गए। तुम्हारे बापदादा ने अपनी ही आँखों से देखा कि मैंने मिसरियों के साथ क्या कुछ किया। \p तुम बड़े अरसे तक रेगिस्तान में घूमते फिरे। \v 8 आख़िरकार मैंने तुम्हें उन अमोरियों के मुल्क में पहुँचाया जो दरियाए-यरदन के मशरिक़ में आबाद थे। गो उन्होंने तुमसे जंग की, लेकिन मैंने उन्हें तुम्हारे हाथ में कर दिया। तुम्हारे आगे आगे चलकर मैंने उन्हें नेस्तो-नाबूद कर दिया, इसलिए तुम उनके मुल्क पर क़ब्ज़ा कर सके। \v 9 मोआब के बादशाह बलक़ बिन सफ़ोर ने भी इसराईल के साथ जंग छेड़ी। इस मक़सद के तहत उसने बिलाम बिन बओर को बुलाया ताकि वह तुम पर लानत भेजे। \v 10 लेकिन मैं बिलाम की बात मानने के लिए तैयार नहीं था बल्कि वह तुम्हें बरकत देने पर मजबूर हुआ। यों मैंने तुम्हें उसके हाथ से महफ़ूज़ रखा। \p \v 11 फिर तुम दरियाए-यरदन को पार करके यरीहू के पास पहुँच गए। इस शहर के बाशिंदे और अमोरी, फ़रिज़्ज़ी, कनानी, हित्ती, जिरजासी, हिव्वी और यबूसी तुम्हारे ख़िलाफ़ लड़ते रहे, लेकिन मैंने उन्हें तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया। \v 12 मैंने तुम्हारे आगे ज़ंबूर भेज दिए जिन्होंने अमोरियों के दो बादशाहों को मुल्क से निकाल दिया। \p यह सब कुछ तुम्हारी अपनी तलवार और कमान से नहीं हुआ बल्कि मेरे ही हाथ से। \v 13 मैंने तुम्हें बीज बोने के लिए ज़मीन दी जिसे तैयार करने के लिए तुम्हें मेहनत न करनी पड़ी। मैंने तुम्हें शहर दिए जो तुम्हें तामीर करने न पड़े। उनमें रहकर तुम अंगूर और ज़ैतून के ऐसे बाग़ों का फल खाते हो जो तुमने नहीं लगाए थे’।” \p \v 14 यशुअ ने बात जारी रखते हुए कहा, “चुनाँचे रब का ख़ौफ़ मानें और पूरी वफ़ादारी के साथ उस की ख़िदमत करें। उन बुतों को निकाल फेंकें जिनकी पूजा आपके बापदादा दरियाए-फ़ुरात के पार और मिसर में करते रहे। अब रब ही की ख़िदमत करें! \v 15 लेकिन अगर रब की ख़िदमत करना आपको बुरा लगे तो आज ही फ़ैसला करें कि किसकी ख़िदमत करेंगे, उन देवताओं की जिनकी पूजा आपके बापदादा ने दरियाए-फ़ुरात के पार की या अमोरियों के देवताओं की जिनके मुल्क में आप रह रहे हैं। लेकिन जहाँ तक मेरा और मेरे ख़ानदान का ताल्लुक़ है हम रब ही की ख़िदमत करेंगे।” \p \v 16 अवाम ने जवाब दिया, “ऐसा कभी न हो कि हम रब को तर्क करके दीगर माबूदों की पूजा करें। \v 17 रब हमारा ख़ुदा ही हमारे बापदादा को मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया और हमारी आँखों के सामने ऐसे अज़ीम निशान पेश किए। जब हमें बहुत क़ौमों में से गुज़रना पड़ा तो उसी ने हर वक़्त हमारी हिफ़ाज़त की। \v 18 और रब ही ने हमारे आगे आगे चलकर इस मुल्क में आबाद अमोरियों और बाक़ी क़ौमों को निकाल दिया। हम भी उसी की ख़िदमत करेंगे, क्योंकि वही हमारा ख़ुदा है!” \p \v 19 यह सुनकर यशुअ ने कहा, “आप रब की ख़िदमत कर ही नहीं सकते, क्योंकि वह क़ुद्दूस और ग़यूर ख़ुदा है। वह आपकी सरकशी और गुनाहों को मुआफ़ नहीं करेगा। \v 20 बेशक वह आप पर मेहरबानी करता रहा है, लेकिन अगर आप रब को तर्क करके अजनबी माबूदों की पूजा करें तो वह आपके ख़िलाफ़ होकर आप पर बलाएँ लाएगा और आपको नेस्तो-नाबूद कर देगा।” \p \v 21 लेकिन इसराईलियों ने इसरार किया, “जी नहीं, हम रब की ख़िदमत करेंगे!” \v 22 फिर यशुअ ने कहा, “आप ख़ुद इसके गवाह हैं कि आपने रब की ख़िदमत करने का फ़ैसला कर लिया है।” उन्होंने जवाब दिया, “जी हाँ, हम इसके गवाह हैं!” \v 23 यशुअ ने कहा, “तो फिर अपने दरमियान मौजूद बुतों को तबाह कर दें और अपने दिलों को रब इसराईल के ख़ुदा के ताबे रखें।” \v 24 अवाम ने यशुअ से कहा, “हम रब अपने ख़ुदा की ख़िदमत करेंगे और उसी की सुनेंगे।” \p \v 25 उस दिन यशुअ ने इसराईलियों के लिए रब से अहद बाँधा। वहाँ सिकम में उसने उन्हें अहकाम और क़वायद देकर \v 26 अल्लाह की शरीअत की किताब में दर्ज किए। फिर उसने एक बड़ा पत्थर लेकर उसे उस बलूत के साये में खड़ा किया जो रब के मक़दिस के पास था। \v 27 उसने तमाम लोगों से कहा, “इस पत्थर को देखें! यह गवाह है, क्योंकि इसने सब कुछ सुन लिया है जो रब ने हमें बता दिया है। अगर आप कभी अल्लाह का इनकार करें तो यह आपके ख़िलाफ़ गवाही देगा।” \p \v 28 फिर यशुअ ने इसराईलियों को फ़ारिग़ कर दिया, और हर एक अपने अपने क़बायली इलाक़े में चला गया। \s1 यशुअ और इलियज़र का इंतक़ाल \p \v 29 कुछ देर के बाद रब का ख़ादिम यशुअ बिन नून फ़ौत हुआ। उस की उम्र 110 साल थी। \v 30 उसे उस की मौरूसी ज़मीन में दफ़नाया गया, यानी तिमनत-सिरह में जो इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े में जास पहाड़ के शिमाल में है। \p \v 31 जब तक यशुअ और वह बुज़ुर्ग ज़िंदा रहे जिन्होंने अपनी आँखों से सब कुछ देखा था जो रब ने इसराईल के लिए किया था उस वक़्त तक इसराईल रब का वफ़ादार रहा। \p \v 32 मिसर को छोड़ते वक़्त इसराईली यूसुफ़ की हड्डियाँ अपने साथ लाए थे। अब उन्होंने उन्हें सिकम शहर की उस ज़मीन में दफ़न कर दिया जो याक़ूब ने सिकम के बाप हमोर की औलाद से चाँदी के सौ सिक्कों के बदले ख़रीद ली थी। यह ज़मीन यूसुफ़ की औलाद की विरासत में आ गई थी। \p \v 33 इलियज़र बिन हारून भी फ़ौत हुआ। उसे जिबिया में दफ़नाया गया। इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े का यह शहर उसके बेटे फ़ीनहास को दिया गया था।