\id JHN उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h यूहन्ना \toc1 यूहन्ना \toc2 यूहन्ना \toc3 यूह \mt1 यूहन्ना \c 1 \s1 ज़िंदगी का कलाम \p \v 1 इब्तिदा में कलाम था। कलाम अल्लाह के साथ था और कलाम अल्लाह था। \v 2 यही इब्तिदा में अल्लाह के साथ था। \v 3 सब कुछ कलाम के वसीले से पैदा हुआ। मख़लूक़ात की एक भी चीज़ उसके बग़ैर पैदा नहीं हुई। \v 4 उसमें ज़िंदगी थी, और यह ज़िंदगी इनसानों का नूर थी। \v 5 यह नूर तारीकी में चमकता है, और तारीकी ने उस पर क़ाबू न पाया। \p \v 6 एक दिन अल्लाह ने अपना पैग़ंबर भेज दिया, एक आदमी जिसका नाम यहया था। \v 7 वह नूर की गवाही देने के लिए आया। मक़सद यह था कि लोग उस की गवाही की बिना पर ईमान लाएँ। \v 8 वह ख़ुद तो नूर न था बल्कि उसे सिर्फ़ नूर की गवाही देनी थी। \v 9 हक़ीक़ी नूर जो हर शख़्स को रौशन करता है दुनिया में आने को था। \p \v 10 गो कलाम दुनिया में था और दुनिया उसके वसीले से पैदा हुई तो भी दुनिया ने उसे न पहचाना। \v 11 वह उसमें आया जो उसका अपना था, लेकिन उसके अपनों ने उसे क़बूल न किया। \v 12 तो भी कुछ उसे क़बूल करके उसके नाम पर ईमान लाए। उन्हें उसने अल्लाह के फ़रज़ंद बनने का हक़ बख़्श दिया, \v 13 ऐसे फ़रज़ंद जो न फ़ितरी तौर पर, न किसी इनसान या मर्द के मनसूबे से पैदा हुए बल्कि अल्लाह से। \p \v 14 कलाम इनसान बनकर हमारे दरमियान रिहाइशपज़ीर हुआ और हमने उसके जलाल का मुशाहदा किया। वह फ़ज़ल और सच्चाई से मामूर था और उसका जलाल बाप के इकलौते फ़रज़ंद का-सा था। \p \v 15 यहया उसके बारे में गवाही देकर पुकार उठा, “यह वही है जिसके बारे में मैंने कहा, एक मेरे बाद आनेवाला है जो मुझसे बड़ा है, क्योंकि वह मुझसे पहले था।” \p \v 16 उस की कसरत से हम सबने फ़ज़ल पर फ़ज़ल पाया। \v 17 क्योंकि शरीअत मूसा की मारिफ़त दी गई, लेकिन अल्लाह का फ़ज़ल और सच्चाई ईसा मसीह के वसीले से क़ायम हुई। \v 18 किसी ने कभी भी अल्लाह को नहीं देखा। लेकिन इकलौता फ़रज़ंद जो अल्लाह की गोद में है उसी ने अल्लाह को हम पर ज़ाहिर किया है। \s1 यहया बपतिस्मा देनेवाले का पैग़ाम \p \v 19 यह यहया की गवाही है जब यरूशलम के यहूदियों ने इमामों और लावियों को उसके पास भेजकर पूछा, “आप कौन हैं?” \p \v 20 उसने इनकार न किया बल्कि साफ़ तसलीम किया, “मैं मसीह नहीं हूँ।” \p \v 21 उन्होंने पूछा, “तो फिर आप कौन हैं? क्या आप इलियास हैं?” \p उसने जवाब दिया, “नहीं, मैं वह नहीं हूँ।” \p उन्होंने सवाल किया, “क्या आप आनेवाला नबी हैं?” \p उसने कहा, “नहीं।” \p \v 22 “तो फिर हमें बताएँ कि आप कौन हैं? जिन्होंने हमें भेजा है उन्हें हमें कोई न कोई जवाब देना है। आप ख़ुद अपने बारे में क्या कहते हैं?” \p \v 23 यहया ने यसायाह नबी का हवाला देकर जवाब दिया, “मैं रेगिस्तान में वह आवाज़ हूँ जो पुकार रही है, रब का रास्ता सीधा बनाओ।” \p \v 24 भेजे गए लोग फ़रीसी फ़िरक़े से ताल्लुक़ रखते थे। \v 25 उन्होंने पूछा, “अगर आप न मसीह हैं, न इलियास या आनेवाला नबी तो फिर आप बपतिस्मा क्यों दे रहे हैं?” \p \v 26 यहया ने जवाब दिया, “मैं तो पानी से बपतिस्मा देता हूँ, लेकिन तुम्हारे दरमियान ही एक खड़ा है जिसको तुम नहीं जानते। \v 27 वही मेरे बाद आनेवाला है और मैं उसके जूतों के तसमे भी खोलने के लायक़ नहीं।” \p \v 28 यह यरदन के पार बैत-अनियाह में हुआ जहाँ यहया बपतिस्मा दे रहा था। \s1 अल्लाह का लेला \p \v 29 अगले दिन यहया ने ईसा को अपने पास आते देखा। उसने कहा, “देखो, यह अल्लाह का लेला है जो दुनिया का गुनाह उठा ले जाता है। \v 30 यह वही है जिसके बारे में मैंने कहा, ‘एक मेरे बाद आनेवाला है जो मुझसे बड़ा है, क्योंकि वह मुझसे पहले था।’ \v 31 मैं तो उसे नहीं जानता था, लेकिन मैं इसलिए आकर पानी से बपतिस्मा देने लगा ताकि वह इसराईल पर ज़ाहिर हो जाए।” \p \v 32 और यहया ने यह गवाही दी, “मैंने देखा कि रूहुल-क़ुद्स कबूतर की तरह आसमान पर से उतरकर उस पर ठहर गया। \v 33 मैं तो उसे नहीं जानता था, लेकिन जब अल्लाह ने मुझे बपतिस्मा देने के लिए भेजा तो उसने मुझे बताया, ‘तू देखेगा कि रूहुल-क़ुद्स उतरकर किसी पर ठहर जाएगा। यह वही होगा जो रूहुल-क़ुद्स से बपतिस्मा देगा।’ \v 34 अब मैंने देखा है और गवाही देता हूँ कि यह अल्लाह का फ़रज़ंद है।” \s1 ईसा के पहले शागिर्द \p \v 35 अगले दिन यहया दुबारा वहीं खड़ा था। उसके दो शागिर्द साथ थे। \v 36 उसने ईसा को वहाँ से गुज़रते हुए देखा तो कहा, “देखो, यह अल्लाह का लेला है!” \p \v 37 उस की यह बात सुनकर उसके दो शागिर्द ईसा के पीछे हो लिए। \v 38 ईसा ने मुड़कर देखा कि यह मेरे पीछे चल रहे हैं तो उसने पूछा, “तुम क्या चाहते हो?” \p उन्होंने कहा, “उस्ताद, आप कहाँ ठहरे हुए हैं?” \p \v 39 उसने जवाब दिया, “आओ, ख़ुद देख लो।” चुनाँचे वह उसके साथ गए। उन्होंने वह जगह देखी जहाँ वह ठहरा हुआ था और दिन के बाक़ी वक़्त उसके पास रहे। शाम के तक़रीबन चार बज गए थे। \p \v 40 शमौन पतरस का भाई अंदरियास उन दो शागिर्दों में से एक था जो यहया की बात सुनकर ईसा के पीछे हो लिए थे। \v 41 अब उस की पहली मुलाक़ात उसके अपने भाई शमौन से हुई। उसने उसे बताया, “हमें मसीह मिल गया है।” (मसीह का मतलब ‘मसह किया हुआ शख़्स’ है।) \v 42 फिर वह उसे ईसा के पास ले गया। \p उसे देखकर ईसा ने कहा, “तू यूहन्ना का बेटा शमौन है। तू कैफ़ा कहलाएगा।” (इसका यूनानी तरजुमा पतरस यानी पत्थर है।) \s1 ईसा फ़िलिप्पुस और नतनेल को बुलाता है \p \v 43 अगले दिन ईसा ने गलील जाने का इरादा किया। फ़िलिप्पुस से मिला तो उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” \v 44 अंदरियास और पतरस की तरह फ़िलिप्पुस का वतनी शहर बैत-सैदा था। \v 45 फ़िलिप्पुस नतनेल से मिला, और उसने उससे कहा, “हमें वही शख़्स मिल गया जिसका ज़िक्र मूसा ने तौरेत और नबियों ने अपने सहीफ़ों में किया है। उसका नाम ईसा बिन यूसुफ़ है और वह नासरत का रहनेवाला है।” \p \v 46 नतनेल ने कहा, “नासरत? क्या नासरत से कोई अच्छी चीज़ निकल सकती है?” \p फ़िलिप्पुस ने जवाब दिया, “आ और ख़ुद देख ले।” \p \v 47 जब ईसा ने नतनेल को आते देखा तो उसने कहा, “लो, यह सच्चा इसराईली है जिसमें मकर नहीं।” \p \v 48 नतनेल ने पूछा, “आप मुझे कहाँ से जानते हैं?” \p ईसा ने जवाब दिया, “इससे पहले कि फ़िलिप्पुस ने तुझे बुलाया मैंने तुझे देखा। तू अंजीर के दरख़्त के साये में था।” \p \v 49 नतनेल ने कहा, “उस्ताद, आप अल्लाह के फ़रज़ंद हैं, आप इसराईल के बादशाह हैं।” \p \v 50 ईसा ने उससे पूछा, “अच्छा, मेरी यह बात सुनकर कि मैंने तुझे अंजीर के दरख़्त के साये में देखा तू ईमान लाया है? तू इससे कहीं बड़ी बातें देखेगा।” \v 51 उसने बात जारी रखी, “मैं तुमको सच बताता हूँ कि तुम आसमान को खुला और अल्लाह के फ़रिश्तों को ऊपर चढ़ते और इब्ने-आदम पर उतरते देखोगे।” \c 2 \s1 क़ाना में शादी \p \v 1 तीसरे दिन गलील के गाँव क़ाना में एक शादी हुई। ईसा की माँ वहाँ थी \v 2 और ईसा और उसके शागिर्दों को भी दावत दी गई थी। \v 3 मै ख़त्म हो गई तो ईसा की माँ ने उससे कहा, “उनके पास मै नहीं रही।” \p \v 4 ईसा ने जवाब दिया, “ऐ ख़ातून, मेरा आपसे क्या वास्ता? मेरा वक़्त अभी नहीं आया।” \p \v 5 लेकिन उस की माँ ने नौकरों को बताया, “जो कुछ वह तुमको बताए वह करो।” \v 6 वहाँ पत्थर के छः मटके पड़े थे जिन्हें यहूदी दीनी ग़ुस्ल के लिए इस्तेमाल करते थे। हर एक में तक़रीबन 100 लिटर की गुंजाइश थी। \v 7 ईसा ने नौकरों से कहा, “मटकों को पानी से भर दो।” चुनाँचे उन्होंने उन्हें लबालब भर दिया। \v 8 फिर उसने कहा, “अब कुछ निकालकर ज़ियाफ़त का इंतज़ाम चलानेवाले के पास ले जाओ।” उन्होंने ऐसा ही किया। \v 9 ज्योंही ज़ियाफ़त का इंतज़ाम चलानेवाले ने वह पानी चखा जो मै में बदल गया था तो उसने दूल्हे को बुलाया। (उसे मालूम न था कि यह कहाँ से आई है, अगरचे उन नौकरों को पता था जो उसे निकालकर लाए थे।) \v 10 उसने कहा, “हर मेज़बान पहले अच्छी क़िस्म की मै पीने के लिए पेश करता है। फिर जब लोगों को नशा चढ़ने लगे तो वह निसबतन घटिया क़िस्म की मै पिलाने लगता है। लेकिन आपने अच्छी मै अब तक रख छोड़ी है।” \p \v 11 यों ईसा ने गलील के क़ाना में यह पहला इलाही निशान दिखाकर अपने जलाल का इज़हार किया। यह देखकर उसके शागिर्द उस पर ईमान लाए। \p \v 12 इसके बाद वह अपनी माँ, अपने भाइयों और अपने शागिर्दों के साथ कफ़र्नहूम को चला गया। वहाँ वह थोड़े दिन रहे। \s1 ईसा बैतुल-मुक़द्दस में जाता है \p \v 13 जब यहूदी ईदे-फ़सह क़रीब आ गई तो ईसा यरूशलम चला गया। \v 14 बैतुल-मुक़द्दस में जाकर उसने देखा कि कई लोग उसमें गाय-बैल, भेड़ें और कबूतर बेच रहे हैं। दूसरे मेज़ पर बैठे ग़ैरमुल्की सिक्के बैतुल-मुक़द्दस के सिक्कों में बदल रहे हैं। \v 15 फिर ईसा ने रस्सियों का कोड़ा बनाकर सबको बैतुल-मुक़द्दस से निकाल दिया। उसने भेड़ों और गाय-बैलों को बाहर हाँक दिया, पैसे बदलनेवालों के सिक्के बिखेर दिए और उनकी मेज़ें उलट दीं। \v 16 कबूतर बेचनेवालों को उसने कहा, “इसे ले जाओ। मेरे बाप के घर को मंडी में मत बदलो।” \v 17 यह देखकर ईसा के शागिर्दों को कलामे-मुक़द्दस का यह हवाला याद आया कि “तेरे घर की ग़ैरत मुझे खा जाएगी।” \p \v 18 यहूदियों ने जवाब में पूछा, “आप हमें क्या इलाही निशान दिखा सकते हैं ताकि हमें यक़ीन आए कि आपको यह करने का इख़्तियार है?” \p \v 19 ईसा ने जवाब दिया, “इस मक़दिस को ढा दो तो मैं इसे तीन दिन के अंदर दुबारा तामीर कर दूँगा।” \p \v 20 यहूदियों ने कहा, “बैतुल-मुक़द्दस को तामीर करने में 46 साल लग गए थे और आप उसे तीन दिन में तामीर करना चाहते हैं?” \p \v 21 लेकिन जब ईसा ने “इस मक़दिस” के अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए तो इसका मतलब उसका अपना बदन था। \v 22 उसके मुरदों में से जी उठने के बाद उसके शागिर्दों को उस की यह बात याद आई। फिर वह कलामे-मुक़द्दस और उन बातों पर ईमान लाए जो ईसा ने की थीं। \s1 ईसा इनसानी फ़ितरत से वाक़िफ़ है \p \v 23 जब ईसा फ़सह की ईद के लिए यरूशलम में था तो बहुत-से लोग उसके पेशकरदा इलाही निशानों को देखकर उसके नाम पर ईमान लाने लगे। \v 24 लेकिन उसको उन पर एतमाद नहीं था, क्योंकि वह सबको जानता था। \v 25 और उसे इनसान के बारे में किसी की गवाही की ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि वह जानता था कि इनसान के अंदर क्या कुछ है। \c 3 \s1 नीकुदेमुस के साथ मुलाक़ात \p \v 1 फ़रीसी फ़िरक़े का एक आदमी बनाम नीकुदेमुस था जो यहूदी अदालते-आलिया का रुकन था। \v 2 वह रात के वक़्त ईसा के पास आया और कहा, “उस्ताद, हम जानते हैं कि आप ऐसे उस्ताद हैं जो अल्लाह की तरफ़ से आए हैं, क्योंकि जो इलाही निशान आप दिखाते हैं वह सिर्फ़ ऐसा शख़्स ही दिखा सकता है जिसके साथ अल्लाह हो।” \p \v 3 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुझे सच बताता हूँ, सिर्फ़ वह शख़्स अल्लाह की बादशाही को देख सकता है जो नए सिरे से पैदा हुआ हो।” \p \v 4 नीकुदेमुस ने एतराज़ किया, “क्या मतलब? बूढ़ा आदमी किस तरह नए सिरे से पैदा हो सकता है? क्या वह दुबारा अपनी माँ के पेट में जाकर पैदा हो सकता है?” \p \v 5 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुझे सच बताता हूँ, सिर्फ़ वह शख़्स अल्लाह की बादशाही में दाख़िल हो सकता है जो पानी और रूह से पैदा हुआ हो। \v 6 जो कुछ जिस्म से पैदा होता है वह जिस्मानी है, लेकिन जो रूह से पैदा होता है वह रूहानी है। \v 7 इसलिए तू ताज्जुब न कर कि मैं कहता हूँ, ‘तुम्हें नए सिरे से पैदा होना ज़रूर है।’ \v 8 हवा जहाँ चाहे चलती है। तू उस की आवाज़ तो सुनता है, लेकिन यह नहीं जानता कि कहाँ से आती और कहाँ को जाती है। यही हालत हर उस शख़्स की है जो रूह से पैदा हुआ है।” \p \v 9 नीकुदेमुस ने पूछा, “यह किस तरह हो सकता है?” \p \v 10 ईसा ने जवाब दिया, “तू तो इसराईल का उस्ताद है। क्या इसके बावुजूद भी यह बातें नहीं समझता? \v 11 मैं तुझको सच बताता हूँ, हम वह कुछ बयान करते हैं जो हम जानते हैं और उस की गवाही देते हैं जो हमने ख़ुद देखा है। तो भी तुम लोग हमारी गवाही क़बूल नहीं करते। \v 12 मैंने तुमको दुनियावी बातें सुनाई हैं और तुम उन पर ईमान नहीं रखते। तो फिर तुम क्योंकर ईमान लाओगे अगर तुम्हें आसमानी बातों के बारे में बताऊँ? \v 13 आसमान पर कोई नहीं चढ़ा सिवाए इब्ने-आदम के, जो आसमान से उतरा है। \p \v 14 और जिस तरह मूसा ने रेगिस्तान में साँप को लकड़ी पर लटकाकर ऊँचा कर दिया उसी तरह ज़रूर है कि इब्ने-आदम को भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए, \v 15 ताकि हर एक को जो उस पर ईमान लाएगा अबदी ज़िंदगी मिल जाए। \v 16 क्योंकि अल्लाह ने दुनिया से इतनी मुहब्बत रखी कि उसने अपने इकलौते फ़रज़ंद को बख़्श दिया, ताकि जो भी उस पर ईमान लाए हलाक न हो बल्कि अबदी ज़िंदगी पाए। \v 17 क्योंकि अल्लाह ने अपने फ़रज़ंद को इसलिए दुनिया में नहीं भेजा कि वह दुनिया को मुजरिम ठहराए बल्कि इसलिए कि वह उसे नजात दे। \p \v 18 जो भी उस पर ईमान लाया है उसे मुजरिम नहीं क़रार दिया जाएगा, लेकिन जो ईमान नहीं रखता उसे मुजरिम ठहराया जा चुका है। वजह यह है कि वह अल्लाह के इकलौते फ़रज़ंद के नाम पर ईमान नहीं लाया। \v 19 और लोगों को मुजरिम ठहराने का सबब यह है कि गो अल्लाह का नूर इस दुनिया में आया, लेकिन लोगों ने नूर की निसबत अंधेरे को ज़्यादा प्यार किया, क्योंकि उनके काम बुरे थे। \v 20 जो भी ग़लत काम करता है वह नूर से दुश्मनी रखता है और उसके क़रीब नहीं आता ताकि उसके बुरे कामों का पोल न खुल जाए। \v 21 लेकिन जो सच्चा काम करता है वह नूर के पास आता है ताकि ज़ाहिर हो जाए कि उसके काम अल्लाह के वसीले से हुए हैं।” \s1 ईसा और यहया \p \v 22 इसके बाद ईसा अपने शागिर्दों के साथ यहूदिया के इलाक़े में गया। वहाँ वह कुछ देर के लिए उनके साथ ठहरा और लोगों को बपतिस्मा देने लगा। \v 23 उस वक़्त यहया भी शालेम के क़रीब वाक़े मक़ाम ऐनोन में बपतिस्मा दे रहा था, क्योंकि वहाँ पानी बहुत था। उस जगह पर लोग बपतिस्मा लेने के लिए आते रहे। \v 24 (यहया को अब तक जेल में नहीं डाला गया था।) \p \v 25 एक दिन यहया के शागिर्दों का किसी यहूदी के साथ मुबाहसा छिड़ गया। ज़ेरे-ग़ौर मज़मून दीनी ग़ुस्ल था। \v 26 वह यहया के पास आए और कहने लगे, “उस्ताद, जिस आदमी से आपकी दरियाए-यरदन के पार मुलाक़ात हुई और जिसके बारे में आपने गवाही दी कि वह मसीह है, वह भी लोगों को बपतिस्मा दे रहा है। अब सब लोग उसी के पास जा रहे हैं।” \p \v 27 यहया ने जवाब दिया, “हर एक को सिर्फ़ वह कुछ मिलता है जो उसे आसमान से दिया जाता है। \v 28 तुम ख़ुद इसके गवाह हो कि मैंने कहा, ‘मैं मसीह नहीं हूँ बल्कि मुझे उसके आगे आगे भेजा गया है।’ \v 29 दूल्हा ही दुलहन से शादी करता है, और दुलहन उसी की है। उसका दोस्त सिर्फ़ साथ खड़ा होता है। और दूल्हे की आवाज़ सुन सुनकर दोस्त की ख़ुशी की इंतहा नहीं होती। मैं भी ऐसा ही दोस्त हूँ जिसकी ख़ुशी पूरी हो गई है। \v 30 लाज़िम है कि वह बढ़ता जाए जबकि मैं घटता जाऊँ। \s1 आसमान से आनेवाला \p \v 31 जो आसमान पर से आया है उसका इख़्तियार सब पर है। जो दुनिया से है उसका ताल्लुक़ दुनिया से ही है और वह दुनियावी बातें करता है। लेकिन जो आसमान पर से आया है उसका इख़्तियार सब पर है। \v 32 जो कुछ उसने ख़ुद देखा और सुना है उसी की गवाही देता है। तो भी कोई उस की गवाही को क़बूल नहीं करता। \v 33 लेकिन जिसने उसे क़बूल किया उसने इसकी तसदीक़ की है कि अल्लाह सच्चा है। \v 34 जिसे अल्लाह ने भेजा है वह अल्लाह की बातें सुनाता है, क्योंकि अल्लाह अपना रूह नाप-तोलकर नहीं देता। \v 35 बाप अपने फ़रज़ंद को प्यार करता है, और उसने सब कुछ उसके सुपुर्द कर दिया है। \v 36 चुनाँचे जो अल्लाह के फ़रज़ंद पर ईमान लाता है अबदी ज़िंदगी उस की है। लेकिन जो फ़रज़ंद को रद्द करे वह इस ज़िंदगी को नहीं देखेगा बल्कि अल्लाह का ग़ज़ब उस पर ठहरा रहेगा।” \c 4 \s1 ईसा और सामरी औरत \p \v 1 फ़रीसियों को इत्तला मिली कि ईसा यहया की निसबत ज़्यादा शागिर्द बना रहा और लोगों को बपतिस्मा दे रहा है, \v 2 हालाँकि वह ख़ुद बपतिस्मा नहीं देता था बल्कि उसके शागिर्द। \v 3 जब ख़ुदावंद ईसा को यह बात मालूम हुई तो वह यहूदिया को छोड़कर गलील को वापस चला गया। \v 4 वहाँ पहुँचने के लिए उसे सामरिया में से गुज़रना था। \p \v 5 चलते चलते वह एक शहर के पास पहुँच गया जिसका नाम सूख़ार था। यह उस ज़मीन के क़रीब था जो याक़ूब ने अपने बेटे यूसुफ़ को दी थी। \v 6 वहाँ याक़ूब का कुआँ था। ईसा सफ़र से थक गया था, इसलिए वह कुएँ पर बैठ गया। दोपहर के तक़रीबन बारह बज गए थे। \p \v 7 एक सामरी औरत पानी भरने आई। ईसा ने उससे कहा, “मुझे ज़रा पानी पिला।” \v 8 (उसके शागिर्द खाना ख़रीदने के लिए शहर गए हुए थे।) \p \v 9 सामरी औरत ने ताज्जुब किया, क्योंकि यहूदी सामरियों के साथ ताल्लुक़ रखने से इनकार करते हैं। उसने कहा, “आप तो यहूदी हैं, और मैं सामरी औरत हूँ। आप किस तरह मुझसे पानी पिलाने की दरख़ास्त कर सकते हैं?” \p \v 10 ईसा ने जवाब दिया, “अगर तू उस बख़्शिश से वाक़िफ़ होती जो अल्लाह तुझको देना चाहता है और तू उसे जानती जो तुझसे पानी माँग रहा है तो तू उससे माँगती और वह तुझे ज़िंदगी का पानी देता।” \p \v 11 ख़ातून ने कहा, “ख़ुदावंद, आपके पास तो बालटी नहीं है और यह कुआँ गहरा है। आपको ज़िंदगी का यह पानी कहाँ से मिला? \v 12 क्या आप हमारे बाप याक़ूब से बड़े हैं जिसने हमें यह कुआँ दिया और जो ख़ुद भी अपने बेटों और रेवड़ों समेत उसके पानी से लुत्फ़अंदोज़ हुआ?” \p \v 13 ईसा ने जवाब दिया, “जो भी इस पानी में से पिए उसे दुबारा प्यास लगेगी। \v 14 लेकिन जिसे मैं पानी पिला दूँ उसे बाद में कभी भी प्यास नहीं लगेगी। बल्कि जो पानी मैं उसे दूँगा वह उसमें एक चश्मा बन जाएगा जिससे पानी फूटकर अबदी ज़िंदगी मुहैया करेगा।” \p \v 15 औरत ने उससे कहा, “ख़ुदावंद, मुझे यह पानी पिला दें। फिर मुझे कभी भी प्यास नहीं लगेगी और मुझे बार बार यहाँ आकर पानी भरना नहीं पड़ेगा।” \p \v 16 ईसा ने कहा, “जा, अपने ख़ाविंद को बुला ला।” \p \v 17 औरत ने जवाब दिया, “मेरा कोई ख़ाविंद नहीं है।” \p ईसा ने कहा, “तूने सहीह कहा कि मेरा ख़ाविंद नहीं है, \v 18 क्योंकि तेरी शादी पाँच मर्दों से हो चुकी है और जिस आदमी के साथ तू अब रह रही है वह तेरा शौहर नहीं है। तेरी बात बिलकुल दुरुस्त है।” \p \v 19 औरत ने कहा, “ख़ुदावंद, मैं देखती हूँ कि आप नबी हैं। \v 20 हमारे बापदादा तो इसी पहाड़ पर इबादत करते थे जबकि आप यहूदी लोग इसरार करते हैं कि यरूशलम वह मरकज़ है जहाँ हमें इबादत करनी है।” \p \v 21 ईसा ने जवाब दिया, “ऐ ख़ातून, यक़ीन जान कि वह वक़्त आएगा जब तुम न तो इस पहाड़ पर बाप की इबादत करोगे, न यरूशलम में। \v 22 तुम सामरी उस की परस्तिश करते हो जिसे नहीं जानते। इसके मुक़ाबले में हम उस की परस्तिश करते हैं जिसे जानते हैं, क्योंकि नजात यहूदियों में से है। \v 23 लेकिन वह वक़्त आ रहा है बल्कि पहुँच चुका है जब हक़ीक़ी परस्तार रूह और सच्चाई से बाप की परस्तिश करेंगे, क्योंकि बाप ऐसे ही परस्तार चाहता है। \v 24 अल्लाह रूह है, इसलिए लाज़िम है कि उसके परस्तार रूह और सच्चाई से उस की परस्तिश करें।” \p \v 25 औरत ने उससे कहा, “मुझे मालूम है कि मसीह यानी मसह किया हुआ शख़्स आ रहा है। जब वह आएगा तो हमें सब कुछ बता देगा।” \p \v 26 इस पर ईसा ने उसे बताया, “मैं ही मसीह हूँ जो तेरे साथ बात कर रहा हूँ।” \p \v 27 उसी लमहे शागिर्द पहुँच गए। उन्होंने जब देखा कि ईसा एक औरत से बात कर रहा है तो ताज्जुब किया। लेकिन किसी ने पूछने की जुर्रत न की कि “आप क्या चाहते हैं?” या “आप इस औरत से क्यों बातें कर रहे हैं?” \p \v 28 औरत अपना घड़ा छोड़कर शहर में चली गई और वहाँ लोगों से कहने लगी, \v 29 “आओ, एक आदमी को देखो जिसने मुझे सब कुछ बता दिया है जो मैंने किया है। वह मसीह तो नहीं है?” \v 30 चुनाँचे वह शहर से निकलकर ईसा के पास आए। \p \v 31 इतने में शागिर्द ज़ोर देकर ईसा से कहने लगे, “उस्ताद, कुछ खाना खा लें।” \p \v 32 लेकिन उसने जवाब दिया, “मेरे पास खाने की ऐसी चीज़ है जिससे तुम वाक़िफ़ नहीं हो।” \p \v 33 शागिर्द आपस में कहने लगे, “क्या कोई उसके पास खाना लेकर आया?” \p \v 34 लेकिन ईसा ने उनसे कहा, “मेरा खाना यह है कि उस की मरज़ी पूरी करूँ जिसने मुझे भेजा है और उसका काम तकमील तक पहुँचाऊँ। \v 35 तुम तो ख़ुद कहते हो, ‘मज़ीद चार महीने तक फ़सल पक जाएगी।’ लेकिन मैं तुमको बताता हूँ, अपनी नज़र उठाकर खेतों पर ग़ौर करो। फ़सल पक गई है और कटाई के लिए तैयार है। \v 36 फ़सल की कटाई शुरू हो चुकी है। कटाई करनेवाले को मज़दूरी मिल रही है और वह फ़सल को अबदी ज़िंदगी के लिए जमा कर रहा है ताकि बीज बोनेवाला और कटाई करनेवाला दोनों मिलकर ख़ुशी मना सकें। \v 37 यों यह कहावत दुरुस्त साबित हो जाती है कि ‘एक बीज बोता और दूसरा फ़सल काटता है।’ \v 38 मैंने तुमको उस फ़सल की कटाई करने के लिए भेज दिया है जिसे तैयार करने के लिए तुमने मेहनत नहीं की। औरों ने ख़ूब मेहनत की है और तुम इससे फ़ायदा उठाकर फ़सल जमा कर सकते हो।” \p \v 39 उस शहर के बहुत-से सामरी ईसा पर ईमान लाए। वजह यह थी कि उस औरत ने उसके बारे में यह गवाही दी थी, “उसने मुझे सब कुछ बता दिया जो मैंने किया है।” \v 40 जब वह उसके पास आए तो उन्होंने मिन्नत की, “हमारे पास ठहरें।” चुनाँचे वह दो दिन वहाँ रहा। \p \v 41 और उस की बातें सुनकर मज़ीद बहुत-से लोग ईमान लाए। \v 42 उन्होंने औरत से कहा, “अब हम तेरी बातों की बिना पर ईमान नहीं रखते बल्कि इसलिए कि हमने ख़ुद सुन और जान लिया है कि वाक़ई दुनिया का नजातदहिंदा यही है।” \s1 अफ़सर के बेटे की शफ़ा \p \v 43 वहाँ दो दिन गुज़ारने के बाद ईसा गलील को चला गया। \v 44 उसने ख़ुद गवाही देकर कहा था कि नबी की उसके अपने वतन में इज़्ज़त नहीं होती। \v 45 अब जब वह गलील पहुँचा तो मक़ामी लोगों ने उसे ख़ुशआमदीद कहा, क्योंकि वह फ़सह की ईद मनाने के लिए यरूशलम आए थे और उन्होंने सब कुछ देखा जो ईसा ने वहाँ किया था। \p \v 46 फिर वह दुबारा क़ाना में आया जहाँ उसने पानी को मै में बदल दिया था। उस इलाक़े में एक शाही अफ़सर था जिसका बेटा कफ़र्नहूम में बीमार पड़ा था। \v 47 जब उसे इत्तला मिली कि ईसा यहूदिया से गलील पहुँच गया है तो वह उसके पास गया और गुज़ारिश की, “क़ाना से मेरे पास उतर आएँ और मेरे बेटे को शफ़ा दें। क्योंकि वह मरने को है।” \v 48 ईसा ने उससे कहा, “जब तक तुम लोग इलाही निशान और मोजिज़े नहीं देखते ईमान नहीं लाते।” \p \v 49 शाही अफ़सर ने कहा, “ख़ुदावंद आएँ, इससे पहले कि मेरा लड़का मर जाए।” \p \v 50 ईसा ने जवाब दिया, “जा, तेरा बेटा ज़िंदा रहेगा।” \p आदमी ईसा की बात पर ईमान लाया और अपने घर चला गया। \v 51 वह अभी उतर रहा था कि उसके नौकर उससे मिले। उन्होंने उसे इत्तला दी कि बेटा ज़िंदा है। \p \v 52 उसने उनसे पूछ-गछ की कि उस की तबियत किस वक़्त से बेहतर होने लगी थी। उन्होंने जवाब दिया, “बुख़ार कल दोपहर एक बजे उतर गया।” \v 53 फिर बाप ने जान लिया कि उसी वक़्त ईसा ने उसे बताया था, “तुम्हारा बेटा ज़िंदा रहेगा।” और वह अपने पूरे घराने समेत उस पर ईमान लाया। \p \v 54 यों ईसा ने अपना दूसरा इलाही निशान उस वक़्त दिखाया जब वह यहूदिया से गलील में आया था। \c 5 \s1 बैतुल-मुक़द्दस के हौज़ पर शफ़ा \p \v 1 कुछ देर के बाद ईसा किसी यहूदी ईद के मौक़े पर यरूशलम गया। \v 2 शहर में एक हौज़ था जिसका नाम अरामी ज़बान में बैत-हसदा था। उसके पाँच बड़े बरामदे थे और वह शहर के उस दरवाज़े के क़रीब था जिसका नाम ‘भेड़ों का दरवाज़ा’ है। \v 3 इन बरामदों में बेशुमार माज़ूर लोग पड़े रहते थे। यह अंधे, लँगड़े और मफ़लूज पानी के हिलने के इंतज़ार में रहते थे। \v 4 [क्योंकि गाहे बगाहे रब का फ़रिश्ता उतरकर पानी को हिला देता था। जो भी उस वक़्त उसमें पहले दाख़िल हो जाता उसे शफ़ा मिल जाती थी ख़ाह उस की बीमारी कोई भी क्यों न होती।] \v 5 मरीज़ों में से एक आदमी 38 साल से माज़ूर था। \v 6 जब ईसा ने उसे वहाँ पड़ा देखा और उसे मालूम हुआ कि यह इतनी देर से इस हालत में है तो उसने पूछा, “क्या तू तनदुरुस्त होना चाहता है?” \p \v 7 उसने जवाब दिया, “ख़ुदावंद, यह मुश्किल है। मेरा कोई साथी नहीं जो मुझे उठाकर पानी में जब उसे हिलाया जाता है ले जाए। इसलिए मेरे वहाँ पहुँचने में इतनी देर लग जाती है कि कोई और मुझसे पहले पानी में उतर जाता है।” \p \v 8 ईसा ने कहा, “उठ, अपना बिस्तर उठाकर चल-फिर!” \v 9 वह आदमी फ़ौरन बहाल हो गया। उसने अपना बिस्तर उठाया और चलने-फिरने लगा। \p यह वाक़िया सबत के दिन हुआ। \v 10 इसलिए यहूदियों ने शफ़ायाब आदमी को बताया, “आज सबत का दिन है। आज बिस्तर उठाना मना है।” \p \v 11 लेकिन उसने जवाब दिया, “जिस आदमी ने मुझे शफ़ा दी उसने मुझे बताया, ‘अपना बिस्तर उठाकर चल-फिर’।” \p \v 12 उन्होंने सवाल किया, “वह कौन है जिसने तुझे यह कुछ बताया?” \v 13 लेकिन शफ़ायाब आदमी को मालूम न था, क्योंकि ईसा हुजूम के सबब से चुपके से वहाँ से चला गया था। \p \v 14 बाद में ईसा उसे बैतुल-मुक़द्दस में मिला। उसने कहा, “अब तू बहाल हो गया है। फिर गुनाह न करना, ऐसा न हो कि तेरा हाल पहले से भी बदतर हो जाए।” \p \v 15 उस आदमी ने उसे छोड़कर यहूदियों को इत्तला दी, “ईसा ने मुझे शफ़ा दी।” \v 16 इस पर यहूदी उसको सताने लगे, क्योंकि उसने उस आदमी को सबत के दिन बहाल किया था। \v 17 लेकिन ईसा ने उन्हें जवाब दिया, “मेरा बाप आज तक काम करता आया है, और मैं भी ऐसा करता हूँ।” \p \v 18 यह सुनकर यहूदी उसे क़त्ल करने की मज़ीद कोशिश करने लगे, क्योंकि उसने न सिर्फ़ सबत के दिन को मनसूख़ क़रार दिया था बल्कि अल्लाह को अपना बाप कहकर अपने आपको अल्लाह के बराबर ठहराया था। \s1 फ़रज़ंद का इख़्तियार \p \v 19 ईसा ने उन्हें जवाब दिया, “मैं तुमको सच बताता हूँ कि फ़रज़ंद अपनी मरज़ी से कुछ नहीं कर सकता। वह सिर्फ़ वह कुछ करता है जो वह बाप को करते देखता है। जो कुछ बाप करता है वही फ़रज़ंद भी करता है, \v 20 क्योंकि बाप फ़रज़ंद को प्यार करता और उसे सब कुछ दिखाता है जो वह ख़ुद करता है। हाँ, वह फ़रज़ंद को इनसे भी अज़ीम काम दिखाएगा। फिर तुम और भी ज़्यादा हैरतज़दा होगे। \v 21 क्योंकि जिस तरह बाप मुरदों को ज़िंदा करता है उसी तरह फ़रज़ंद भी जिन्हें चाहता है ज़िंदा कर देता है। \v 22 और बाप किसी की भी अदालत नहीं करता बल्कि उसने अदालत का पूरा इंतज़ाम फ़रज़ंद के सुपुर्द कर दिया है \v 23 ताकि सब उसी तरह फ़रज़ंद की इज़्ज़त करें जिस तरह वह बाप की इज़्ज़त करते हैं। जो फ़रज़ंद की इज़्ज़त नहीं करता वह बाप की भी इज़्ज़त नहीं करता जिसने उसे भेजा है। \p \v 24 मैं तुमको सच बताता हूँ, जो भी मेरी बात सुनकर उस पर ईमान लाता है जिसने मुझे भेजा है अबदी ज़िंदगी उस की है। उसे मुजरिम नहीं ठहराया जाएगा बल्कि वह मौत की गिरिफ़्त से निकलकर ज़िंदगी में दाख़िल हो गया है। \v 25 मैं तुमको सच बताता हूँ कि एक वक़्त आनेवाला है बल्कि आ चुका है जब मुरदे अल्लाह के फ़रज़ंद की आवाज़ सुनेंगे। और जितने सुनेंगे वह ज़िंदा हो जाएंगे। \v 26 क्योंकि जिस तरह बाप ज़िंदगी का मंबा है उसी तरह उसने अपने फ़रज़ंद को ज़िंदगी का मंबा बना दिया है। \v 27 साथ साथ उसने उसे अदालत करने का इख़्तियार भी दे दिया है, क्योंकि वह इब्ने-आदम है। \v 28 यह सुनकर ताज्जुब न करो क्योंकि एक वक़्त आ रहा है जब तमाम मुरदे उस की आवाज़ सुनकर \v 29 क़ब्रों में से निकल आएँगे। जिन्होंने नेक काम किया वह जी उठकर ज़िंदगी पाएँगे जबकि जिन्होंने बुरा काम किया वह जी तो उठेंगे लेकिन उनकी अदालत की जाएगी। \s1 ईसा के गवाह \p \v 30 मैं अपनी मरज़ी से कुछ नहीं कर सकता बल्कि जो कुछ बाप से सुनता हूँ उसके मुताबिक़ अदालत करता हूँ। और मेरी अदालत रास्त है क्योंकि मैं अपनी मरज़ी करने की कोशिश नहीं करता बल्कि उसी की जिसने मुझे भेजा है। \p \v 31 अगर मैं ख़ुद अपने बारे में गवाही देता तो मेरी गवाही मोतबर न होती। \v 32 लेकिन एक और है जो मेरे बारे में गवाही दे रहा है और मैं जानता हूँ कि मेरे बारे में उस की गवाही सच्ची और मोतबर है। \v 33 तुमने पता करने के लिए अपने लोगों को यहया के पास भेजा है और उसने हक़ीक़त की तसदीक़ की है। \v 34 बेशक मुझे किसी इनसानी गवाह की ज़रूरत नहीं है, लेकिन मैं यह इसलिए बता रहा हूँ ताकि तुमको नजात मिल जाए। \v 35 यहया एक जलता हुआ चराग़ था जो रौशनी देता था, और कुछ देर के लिए तुमने उस की रौशनी में ख़ुशी मनाना पसंद किया। \v 36 लेकिन मेरे पास एक और गवाह है जो यहया की निसबत ज़्यादा अहम है—वह काम जो बाप ने मुझे मुकम्मल करने के लिए दे दिया। यही काम जो मैं कर रहा हूँ मेरे बारे में गवाही देता है कि बाप ने मुझे भेजा है। \v 37 इसके अलावा बाप ने ख़ुद जिसने मुझे भेजा है मेरे बारे में गवाही दी है। अफ़सोस, तुमने कभी उस की आवाज़ नहीं सुनी, न उस की शक्लो-सूरत देखी, \v 38 और उसका कलाम तुम्हारे अंदर नहीं रहता, क्योंकि तुम उस पर ईमान नहीं रखते जिसे उसने भेजा है। \v 39 तुम अपने सहीफ़ों में ढूँडते रहते हो क्योंकि समझते हो कि उनसे तुम्हें अबदी ज़िंदगी हासिल है। लेकिन यही मेरे बारे में गवाही देते हैं! \v 40 तो भी तुम ज़िंदगी पाने के लिए मेरे पास आना नहीं चाहते। \p \v 41 मैं इनसानों से इज़्ज़त नहीं चाहता, \v 42 लेकिन मैं तुमको जानता हूँ कि तुममें अल्लाह की मुहब्बत नहीं। \v 43 अगरचे मैं अपने बाप के नाम में आया हूँ तो भी तुम मुझे क़बूल नहीं करते। इसके मुक़ाबले में अगर कोई अपने नाम में आएगा तो तुम उसे क़बूल करोगे। \v 44 कोई अजब नहीं कि तुम ईमान नहीं ला सकते। क्योंकि तुम एक दूसरे से इज़्ज़त चाहते हो जबकि तुम वह इज़्ज़त पाने की कोशिश ही नहीं करते जो वाहिद ख़ुदा से मिलती है। \v 45 लेकिन यह न समझो कि मैं बाप के सामने तुम पर इलज़ाम लगाऊँगा। एक और है जो तुम पर इलज़ाम लगा रहा है—मूसा, जिससे तुम उम्मीद रखते हो। \v 46 अगर तुम वाक़ई मूसा पर ईमान रखते तो ज़रूर मुझ पर भी ईमान रखते, क्योंकि उसने मेरे ही बारे में लिखा। \v 47 लेकिन चूँकि तुम वह कुछ नहीं मानते जो उसने लिखा है तो मेरी बातें क्योंकर मान सकते हो!” \c 6 \s1 ईसा बड़े हुजूम को खाना खिलाता है \p \v 1 इसके बाद ईसा ने गलील की झील को पार किया। (झील का दूसरा नाम तिबरियास था।) \v 2 एक बड़ा हुजूम उसके पीछे लग गया था, क्योंकि उसने इलाही निशान दिखाकर मरीज़ों को शफ़ा दी थी और लोगों ने इसका मुशाहदा किया था। \v 3 फिर ईसा पहाड़ पर चढ़कर अपने शागिर्दों के साथ बैठ गया। \v 4 (यहूदी ईदे-फ़सह क़रीब आ गई थी।) \v 5 वहाँ बैठे ईसा ने अपनी नज़र उठाई तो देखा कि एक बड़ा हुजूम पहुँच रहा है। उसने फ़िलिप्पुस से पूछा, “हम कहाँ से खाना ख़रीदें ताकि उन्हें खिलाएँ?” \v 6 (यह उसने फ़िलिप्पुस को आज़माने के लिए कहा। ख़ुद तो वह जानता था कि क्या करेगा।) \p \v 7 फ़िलिप्पुस ने जवाब दिया, “अगर हर एक को सिर्फ़ थोड़ा-सा मिले तो भी चाँदी के 200 सिक्के काफ़ी नहीं होंगे।” \p \v 8 फिर शमौन पतरस का भाई अंदरियास बोल उठा, \v 9 “यहाँ एक लड़का है जिसके पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं। मगर इतने लोगों में यह क्या हैं!” \p \v 10 ईसा ने कहा, “लोगों को बिठा दो।” उस जगह बहुत घास थी। चुनाँचे सब बैठ गए। (सिर्फ़ मर्दों की तादाद 5,000 थी।) \v 11 ईसा ने रोटियाँ लेकर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उन्हें बैठे हुए लोगों में तक़सीम करवाया। यही कुछ उसने मछलियों के साथ भी किया। और सबने जी भरकर रोटी खाई। \v 12 जब सब सेर हो गए तो ईसा ने शागिर्दों को बताया, “अब बचे हुए टुकड़े जमा करो ताकि कुछ ज़ाया न हो जाए।” \v 13 जब उन्होंने बचा हुआ खाना इकट्ठा किया तो जौ की पाँच रोटियों के टुकड़ों से बारह टोकरे भर गए। \p \v 14 जब लोगों ने ईसा को यह इलाही निशान दिखाते देखा तो उन्होंने कहा, “यक़ीनन यह वही नबी है जिसे दुनिया में आना था।” \v 15 ईसा को मालूम हुआ कि वह आकर उसे ज़बरदस्ती बादशाह बनाना चाहते हैं, इसलिए वह दुबारा उनसे अलग होकर अकेला ही किसी पहाड़ पर चढ़ गया। \s1 ईसा पानी पर चलता है \p \v 16 शाम को शागिर्द झील के पास गए \v 17 और कश्ती पर सवार होकर झील के पार शहर कफ़र्नहूम के लिए रवाना हुए। अंधेरा हो चुका था और ईसा अब तक उनके पास वापस नहीं आया था। \v 18 तेज़ हवा के बाइस झील में लहरें उठने लगीं। \v 19 कश्ती को खेते खेते शागिर्द चार या पाँच किलोमीटर का सफ़र तय कर चुके थे कि अचानक ईसा नज़र आया। वह पानी पर चलता हुआ कश्ती की तरफ़ बढ़ रहा था। शागिर्द दहशतज़दा हो गए। \v 20 लेकिन उसने उनसे कहा, “मैं ही हूँ। ख़ौफ़ न करो।” \v 21 वह उसे कश्ती में बिठाने पर आमादा हुए। और कश्ती उसी लमहे उस जगह पहुँच गई जहाँ वह जाना चाहते थे। \s1 लोग ईसा को ढूँडते हैं \p \v 22 हुजूम तो झील के पार रह गया था। अगले दिन लोगों को पता चला कि शागिर्द एक ही कश्ती लेकर चले गए हैं और कि उस वक़्त ईसा कश्ती में नहीं था। \v 23 फिर कुछ कश्तियाँ तिबरियास से उस मक़ाम के क़रीब पहुँचीं जहाँ ख़ुदावंद ईसा ने रोटी के लिए शुक्रगुज़ारी की दुआ करके उसे लोगों को खिलाया था। \v 24 जब लोगों ने देखा कि न ईसा और न उसके शागिर्द वहाँ हैं तो वह कश्तियों पर सवार होकर ईसा को ढूँडते ढूँडते कफ़र्नहूम पहुँचे। \s1 ईसा ज़िंदगी की रोटी है \p \v 25 जब उन्होंने उसे झील के पार पाया तो पूछा, “उस्ताद, आप किस तरह यहाँ पहुँच गए?” \p \v 26 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुमको सच बताता हूँ, तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँड रहे कि इलाही निशान देखे हैं बल्कि इसलिए कि तुमने जी भरकर रोटी खाई है। \v 27 ऐसी ख़ुराक के लिए जिद्दो-जहद न करो जो गल-सड़ जाती है, बल्कि ऐसी के लिए जो अबदी ज़िंदगी तक क़ायम रहती है और जो इब्ने-आदम तुमको देगा, क्योंकि ख़ुदा बाप ने उस पर अपनी तसदीक़ की मुहर लगाई है।” \p \v 28 इस पर उन्होंने पूछा, “हमें क्या करना चाहिए ताकि अल्लाह का मतलूबा काम करें?” \p \v 29 ईसा ने जवाब दिया, “अल्लाह का काम यह है कि तुम उस पर ईमान लाओ जिसे उसने भेजा है।” \p \v 30 उन्होंने कहा, “तो फिर आप क्या इलाही निशान दिखाएँगे जिसे देखकर हम आप पर ईमान लाएँ? आप क्या काम सरंजाम देंगे? \v 31 हमारे बापदादा ने तो रेगिस्तान में मन खाया। चुनाँचे कलामे-मुक़द्दस में लिखा है कि मूसा ने उन्हें आसमान से रोटी खिलाई।” \p \v 32 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुमको सच बताता हूँ कि ख़ुद मूसा ने तुमको आसमान से रोटी नहीं खिलाई बल्कि मेरे बाप ने। वही तुमको आसमान से हक़ीक़ी रोटी देता है। \v 33 क्योंकि अल्लाह की रोटी वह शख़्स है जो आसमान पर से उतरकर दुनिया को ज़िंदगी बख़्शता है।” \p \v 34 उन्होंने कहा, “ख़ुदावंद, हमें यह रोटी हर वक़्त दिया करें।” \p \v 35 जवाब में ईसा ने कहा, “मैं ही ज़िंदगी की रोटी हूँ। जो मेरे पास आए उसे फिर कभी भूक नहीं लगेगी। और जो मुझ पर ईमान लाए उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगी। \v 36 लेकिन जिस तरह मैं तुमको बता चुका हूँ, तुमने मुझे देखा और फिर भी ईमान नहीं लाए। \v 37 जितने भी बाप ने मुझे दिए हैं वह मेरे पास आएँगे और जो भी मेरे पास आएगा उसे मैं हरगिज़ निकाल न दूँगा। \v 38 क्योंकि मैं अपनी मरज़ी पूरी करने के लिए आसमान से नहीं उतरा बल्कि उस की जिसने मुझे भेजा है। \v 39 और जिसने मुझे भेजा उस की मरज़ी यह है कि जितने भी उसने मुझे दिए हैं उनमें से मैं एक को भी खो न दूँ बल्कि सबको क़ियामत के दिन मुरदों में से फिर ज़िंदा करूँ। \v 40 क्योंकि मेरे बाप की मरज़ी यही है कि जो भी फ़रज़ंद को देखकर उस पर ईमान लाए उसे अबदी ज़िंदगी हासिल हो। ऐसे शख़्स को मैं क़ियामत के दिन मुरदों में से फिर ज़िंदा करूँगा।” \p \v 41 यह सुनकर यहूदी इसलिए बुड़बुड़ाने लगे कि उसने कहा था, “मैं ही वह रोटी हूँ जो आसमान पर से उतर आई है।” \v 42 उन्होंने एतराज़ किया, “क्या यह ईसा बिन यूसुफ़ नहीं, जिसके बाप और माँ से हम वाक़िफ़ हैं? वह क्योंकर कह सकता है कि ‘मैं आसमान से उतरा हूँ’?” \p \v 43 ईसा ने जवाब में कहा, “आपस में मत बुड़बुड़ाओ। \v 44 सिर्फ़ वह शख़्स मेरे पास आ सकता है जिसे बाप जिसने मुझे भेजा है मेरे पास खींच लाया है। ऐसे शख़्स को मैं क़ियामत के दिन मुरदों में से फिर ज़िंदा करूँगा। \v 45 नबियों के सहीफ़ों में लिखा है, ‘सब अल्लाह से तालीम पाएँगे।’ जो भी अल्लाह की सुनकर उससे सीखता है वह मेरे पास आ जाता है। \v 46 इसका मतलब यह नहीं कि किसी ने कभी बाप को देखा। सिर्फ़ एक ही ने बाप को देखा है, वही जो अल्लाह की तरफ़ से है। \v 47 मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो ईमान रखता है उसे अबदी ज़िंदगी हासिल है। \v 48 ज़िंदगी की रोटी मैं हूँ। \v 49 तुम्हारे बापदादा रेगिस्तान में मन खाते रहे, तो भी वह मर गए। \v 50 लेकिन यहाँ आसमान से उतरनेवाली ऐसी रोटी है जिसे खाकर इनसान नहीं मरता। \v 51 मैं ही ज़िंदगी की वह रोटी हूँ जो आसमान से उतर आई है। जो इस रोटी से खाए वह अबद तक ज़िंदा रहेगा। और यह रोटी मेरा गोश्त है जो मैं दुनिया को ज़िंदगी मुहैया करने की ख़ातिर पेश करूँगा।” \p \v 52 यहूदी बड़ी सरगरमी से एक दूसरे से बहस करने लगे, “यह आदमी हमें किस तरह अपना गोश्त खिला सकता है?” \p \v 53 ईसा ने उनसे कहा, “मैं तुमको सच बताता हूँ कि सिर्फ़ इब्ने-आदम का गोश्त खाने और उसका ख़ून पीने ही से तुममें ज़िंदगी होगी। \v 54 जो मेरा गोश्त खाए और मेरा ख़ून पिए अबदी ज़िंदगी उस की है और मैं उसे क़ियामत के दिन मुरदों में से फिर ज़िंदा करूँगा। \v 55 क्योंकि मेरा गोश्त हक़ीक़ी ख़ुराक और मेरा ख़ून हक़ीक़ी पीने की चीज़ है। \v 56 जो मेरा गोश्त खाता और मेरा ख़ून पीता है वह मुझमें क़ायम रहता है और मैं उसमें। \v 57 मैं उस ज़िंदा बाप की वजह से ज़िंदा हूँ जिसने मुझे भेजा। इसी तरह जो मुझे खाता है वह मेरी ही वजह से ज़िंदा रहेगा। \v 58 यही वह रोटी है जो आसमान से उतरी है। तुम्हारे बापदादा मन खाने के बावुजूद मर गए, लेकिन जो यह रोटी खाएगा वह अबद तक ज़िंदा रहेगा।” \p \v 59 ईसा ने यह बातें उस वक़्त कीं जब वह कफ़र्नहूम में यहूदी इबादतख़ाने में तालीम दे रहा था। \s1 अबदी ज़िंदगी की बातें \p \v 60 यह सुनकर उसके बहुत-से शागिर्दों ने कहा, “यह बातें ना-गवार हैं। कौन इन्हें सुन सकता है!” \p \v 61 ईसा को मालूम था कि मेरे शागिर्द मेरे बारे में बुड़बुड़ा रहे हैं, इसलिए उसने कहा, “क्या तुमको इन बातों से ठेस लगी है? \v 62 तो फिर तुम क्या सोचोगे जब इब्ने-आदम को ऊपर जाते देखोगे जहाँ वह पहले था? \v 63 अल्लाह का रूह ही ज़िंदा करता है जबकि जिस्मानी ताक़त का कोई फ़ायदा नहीं होता। जो बातें मैंने तुमको बताई हैं वह रूह और ज़िंदगी हैं। \v 64 लेकिन तुममें से कुछ हैं जो ईमान नहीं रखते।” (ईसा तो शुरू से ही जानता था कि कौन कौन ईमान नहीं रखते और कौन मुझे दुश्मन के हवाले करेगा।) \v 65 फिर उसने कहा, “इसलिए मैंने तुमको बताया कि सिर्फ़ वह शख़्स मेरे पास आ सकता है जिसे बाप की तरफ़ से यह तौफ़ीक़ मिले।” \p \v 66 उस वक़्त से उसके बहुत-से शागिर्द उलटे पाँव फिर गए और आइंदा को उसके साथ न चले। \v 67 तब ईसा ने बारह शागिर्दों से पूछा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” \p \v 68 शमौन पतरस ने जवाब दिया, “ख़ुदावंद, हम किसके पास जाएँ? अबदी ज़िंदगी की बातें तो आप ही के पास हैं। \v 69 और हमने ईमान लाकर जान लिया है कि आप अल्लाह के क़ुद्दूस हैं।” \p \v 70 जवाब में ईसा ने कहा, “क्या मैंने तुम बारह को नहीं चुना? तो भी तुममें से एक शख़्स शैतान है।” \v 71 (वह शमौन इस्करियोती के बेटे यहूदाह की तरफ़ इशारा कर रहा था जो बारह शागिर्दों में से एक था और जिसने बाद में उसे दुश्मन के हवाले कर दिया।) \c 7 \s1 ईसा और उसके भाई \p \v 1 इसके बाद ईसा ने गलील के इलाक़े में इधर-उधर सफ़र किया। वह यहूदिया में फिरना नहीं चाहता था क्योंकि वहाँ के यहूदी उसे क़त्ल करने का मौक़ा ढूँड रहे थे। \v 2 लेकिन जब यहूदी ईद बनाम झोंपड़ियों की ईद क़रीब आई \v 3 तो उसके भाइयों ने उससे कहा, “यह जगह छोड़कर यहूदिया चला जा ताकि तेरे पैरोकार भी वह मोजिज़े देख लें जो तू करता है। \v 4 जो शख़्स चाहता है कि अवाम उसे जाने वह पोशीदगी में काम नहीं करता। अगर तू इस क़िस्म का मोजिज़ाना काम करता है तो अपने आपको दुनिया पर ज़ाहिर कर।” \v 5 (असल में ईसा के भाई भी उस पर ईमान नहीं रखते थे।) \p \v 6 ईसा ने उन्हें बताया, “अभी वह वक़्त नहीं आया जो मेरे लिए मौज़ूँ है। लेकिन तुम जा सकते हो, तुम्हारे लिए हर वक़्त मौज़ूँ है। \v 7 दुनिया तुमसे दुश्मनी नहीं रख सकती। लेकिन मुझसे वह दुश्मनी रखती है, क्योंकि मैं उसके बारे में यह गवाही देता हूँ कि उसके काम बुरे हैं। \v 8 तुम ख़ुद ईद पर जाओ। मैं नहीं जाऊँगा, क्योंकि अभी वह वक़्त नहीं आया जो मेरे लिए मौज़ूँ है।” \v 9 यह कहकर वह गलील में ठहरा रहा। \s1 ईसा झोंपड़ियों की ईद पर \p \v 10 लेकिन बाद में, जब उसके भाई ईद पर जा चुके थे तो वह भी गया, अगरचे अलानिया नहीं बल्कि ख़ुफ़िया तौर पर। \v 11 यहूदी ईद के मौक़े पर उसे तलाश कर रहे थे। वह पूछते रहे, “वह आदमी कहाँ है?” \p \v 12 हुजूम में से कई लोग ईसा के बारे में बुड़बुड़ा रहे थे। बाज़ ने कहा, “वह अच्छा बंदा है।” लेकिन दूसरों ने एतराज़ किया, “नहीं, वह अवाम को बहकाता है।” \v 13 लेकिन किसी ने भी उसके बारे में खुलकर बात न की, क्योंकि वह यहूदियों से डरते थे। \p \v 14 ईद का आधा हिस्सा गुज़र चुका था जब ईसा बैतुल-मुक़द्दस में जाकर तालीम देने लगा। \v 15 उसे सुनकर यहूदी हैरतज़दा हुए और कहा, “यह आदमी किस तरह इतना इल्म रखता है हालाँकि इसने कहीं से भी तालीम हासिल नहीं की!” \p \v 16 ईसा ने जवाब दिया, “जो तालीम मैं देता हूँ वह मेरी अपनी नहीं बल्कि उस की है जिसने मुझे भेजा। \v 17 जो उस की मरज़ी पूरी करने के लिए तैयार है वह जान लेगा कि मेरी तालीम अल्लाह की तरफ़ से है या कि मेरी अपनी तरफ़ से। \v 18 जो अपनी तरफ़ से बोलता है वह अपनी ही इज़्ज़त चाहता है। लेकिन जो अपने भेजनेवाले की इज़्ज़तो-जलाल बढ़ाने की कोशिश करता है वह सच्चा है और उसमें नारास्ती नहीं है। \v 19 क्या मूसा ने तुमको शरीअत नहीं दी? तो फिर तुम मुझे क़त्ल करने की कोशिश क्यों कर रहे हो?” \p \v 20 हुजूम ने जवाब दिया, “तुम किसी बदरूह की गिरिफ़्त में हो। कौन तुम्हें क़त्ल करने की कोशिश कर रहा है?” \p \v 21 ईसा ने उनसे कहा, “मैंने सबत के दिन एक ही मोजिज़ा किया और तुम सब हैरतज़दा हुए। \v 22 लेकिन तुम भी सबत के दिन काम करते हो। तुम उस दिन अपने बच्चों का ख़तना करवाते हो। और यह रस्म मूसा की शरीअत के मुताबिक़ ही है, अगरचे यह मूसा से नहीं बल्कि हमारे बापदादा इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से शुरू हुई। \v 23 क्योंकि शरीअत के मुताबिक़ लाज़िम है कि बच्चे का ख़तना आठवें दिन करवाया जाए, और अगर यह दिन सबत हो तो तुम फिर भी अपने बच्चे का ख़तना करवाते हो ताकि शरीअत की ख़िलाफ़वरज़ी न हो जाए। तो फिर तुम मुझसे क्यों नाराज़ हो कि मैंने सबत के दिन एक आदमी के पूरे जिस्म को शफ़ा दी? \v 24 ज़ाहिरी सूरत की बिना पर फ़ैसला न करो बल्कि बातिनी हालत पहचानकर मुंसिफ़ाना फ़ैसला करो।” \s1 क्या ईसा ही मसीह है? \p \v 25 उस वक़्त यरूशलम के कुछ रहनेवाले कहने लगे, “क्या यह वह आदमी नहीं है जिसे लोग क़त्ल करने की कोशिश कर रहे हैं? \v 26 ताहम वह यहाँ खुलकर बात कर रहा है और कोई भी उसे रोकने की कोशिश नहीं कर रहा। क्या हमारे राहनुमाओं ने हक़ीक़त में जान लिया है कि यह मसीह है? \v 27 लेकिन जब मसीह आएगा तो किसी को भी मालूम नहीं होगा कि वह कहाँ से है। यह आदमी फ़रक़ है। हम तो जानते हैं कि यह कहाँ से है।” \p \v 28 ईसा बैतुल-मुक़द्दस में तालीम दे रहा था। अब वह पुकार उठा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ से हूँ। लेकिन मैं अपनी तरफ़ से नहीं आया। जिसने मुझे भेजा है वह सच्चा है और उसे तुम नहीं जानते। \v 29 लेकिन मैं उसे जानता हूँ, क्योंकि मैं उस की तरफ़ से हूँ और उसने मुझे भेजा है।” \p \v 30 तब उन्होंने उसे गिरिफ़्तार करने की कोशिश की। लेकिन कोई भी उसको हाथ न लगा सका, क्योंकि अभी उसका वक़्त नहीं आया था। \v 31 तो भी हुजूम के कई लोग उस पर ईमान लाए, क्योंकि उन्होंने कहा, “जब मसीह आएगा तो क्या वह इस आदमी से ज़्यादा इलाही निशान दिखाएगा?” \s1 पहरेदार उसे गिरिफ़्तार करने आते हैं \p \v 32 फ़रीसियों ने देखा कि हुजूम में इस क़िस्म की बातें धीमी धीमी आवाज़ के साथ फैल रही हैं। चुनाँचे उन्होंने राहनुमा इमामों के साथ मिलकर बैतुल-मुक़द्दस के पहरेदार ईसा को गिरिफ़्तार करने के लिए भेजे। \v 33 लेकिन ईसा ने कहा, “मैं सिर्फ़ थोड़ी देर और तुम्हारे साथ रहूँगा, फिर मैं उसके पास वापस चला जाऊँगा जिसने मुझे भेजा है। \v 34 उस वक़्त तुम मुझे ढूँडोगे, मगर नहीं पाओगे, क्योंकि जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।” \p \v 35 यहूदी आपस में कहने लगे, “यह कहाँ जाना चाहता है जहाँ हम उसे नहीं पा सकेंगे? क्या वह बैरूने-मुल्क जाना चाहता है, वहाँ जहाँ हमारे लोग यूनानियों में बिखरी हालत में रहते हैं? क्या वह यूनानियों को तालीम देना चाहता है? \v 36 मतलब क्या है जब वह कहता है, ‘तुम मुझे ढूँडोगे मगर नहीं पाओगे’ और ‘जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते’।” \s1 ज़िंदगी के पानी की नहरें \p \v 37 ईद के आख़िरी दिन जो सबसे अहम है ईसा खड़ा हुआ और ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “जो प्यासा हो वह मेरे पास आए, \v 38 और जो मुझ पर ईमान लाए वह पिए। कलामे-मुक़द्दस के मुताबिक़ ‘उसके अंदर से ज़िंदगी के पानी की नहरें बह निकलेंगी’।” \v 39 (‘ज़िंदगी के पानी’ से वह रूहुल-क़ुद्स की तरफ़ इशारा कर रहा था जो उनको हासिल होता है जो ईसा पर ईमान लाते हैं। लेकिन वह उस वक़्त तक नाज़िल नहीं हुआ था, क्योंकि ईसा अब तक अपने जलाल को न पहुँचा था।) \s1 सुननेवालों में नाइत्तफ़ाक़ी \p \v 40 ईसा की यह बातें सुनकर हुजूम के कुछ लोगों ने कहा, “यह आदमी वाक़ई वह नबी है जिसके इंतज़ार में हम हैं।” \p \v 41 दूसरों ने कहा, “यह मसीह है।” \p लेकिन बाज़ ने एतराज़ किया, “मसीह गलील से किस तरह आ सकता है! \v 42 पाक कलाम तो बयान करता है कि मसीह दाऊद के ख़ानदान और बैत-लहम से आएगा, उस गाँव से जहाँ दाऊद बादशाह पैदा हुआ।” \v 43 यों ईसा की वजह से लोगों में फूट पड़ गई। \v 44 कुछ तो उसे गिरिफ़्तार करना चाहते थे, लेकिन कोई भी उसको हाथ न लगा सका। \s1 यहूदी राहनुमा ईसा पर ईमान नहीं रखते \p \v 45 इतने में बैतुल-मुक़द्दस के पहरेदार राहनुमा इमामों और फ़रीसियों के पास वापस आए। वह ईसा को लेकर नहीं आए थे, इसलिए राहनुमाओं ने पूछा, “तुम उसे क्यों नहीं लाए?” \p \v 46 पहरेदारों ने जवाब दिया, “किसी ने कभी इस आदमी की तरह बात नहीं की।” \p \v 47 फ़रीसियों ने तंज़न कहा, “क्या तुमको भी बहका दिया गया है? \v 48 क्या राहनुमाओं या फ़रीसियों में कोई है जो उस पर ईमान लाया हो? कोई भी नहीं! \v 49 लेकिन शरीअत से नावाक़िफ़ यह हुजूम लानती है!” \p \v 50 इन राहनुमाओं में नीकुदेमुस भी शामिल था जो कुछ देर पहले ईसा के पास गया था। अब वह बोल उठा, \v 51 “क्या हमारी शरीअत किसी पर यों फ़ैसला देने की इजाज़त देती है? नहीं, लाज़िम है कि उसे पहले अदालत में पेश किया जाए ताकि मालूम हो जाए कि उससे क्या कुछ सरज़द हुआ है।” \p \v 52 दूसरों ने एतराज़ किया, “क्या तुम भी गलील के रहनेवाले हो? कलामे-मुक़द्दस में तफ़तीश करके ख़ुद देख लो कि गलील से कोई नबी नहीं आएगा।” \v 53 यह कहकर हर एक अपने अपने घर चला गया। \c 8 \s1 ज़िनाकार औरत पर पहला पत्थर \p \v 1 ईसा ख़ुद ज़ैतून के पहाड़ पर चला गया। \v 2 अगले दिन पौ फटते वक़्त वह दुबारा बैतुल-मुक़द्दस में आया। वहाँ सब लोग उसके गिर्द जमा हुए और वह बैठकर उन्हें तालीम देने लगा। \v 3 इस दौरान शरीअत के उलमा और फ़रीसी एक औरत को लेकर आए जिसे ज़िना करते वक़्त पकड़ा गया था। उसे बीच में खड़ा करके \v 4 उन्होंने ईसा से कहा, “उस्ताद, इस औरत को ज़िना करते वक़्त पकड़ा गया है। \v 5 मूसा ने शरीअत में हमें हुक्म दिया है कि ऐसे लोगों को संगसार करना है। आप क्या कहते हैं?” \v 6 इस सवाल से वह उसे फँसाना चाहते थे ताकि उस पर इलज़ाम लगाने का कोई बहाना उनके हाथ आ जाए। लेकिन ईसा झुक गया और अपनी उँगली से ज़मीन पर लिखने लगा। \p \v 7 जब वह उससे जवाब का तक़ाज़ा करते रहे तो वह खड़ा होकर उनसे मुख़ातिब हुआ, “तुममें से जिसने कभी गुनाह नहीं किया, वह पहला पत्थर मारे।” \v 8 फिर वह दुबारा झुककर ज़मीन पर लिखने लगा। \v 9 यह जवाब सुनकर इलज़ाम लगानेवाले यके बाद दीगरे वहाँ से खिसक गए, पहले बुज़ुर्ग, फिर बाक़ी सब। आख़िरकार ईसा और दरमियान में खड़ी वह औरत अकेले रह गए। \v 10 फिर उसने खड़े होकर कहा, “ऐ औरत, वह सब कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर फ़तवा नहीं लगाया?” \p \v 11 औरत ने जवाब दिया, “नहीं ख़ुदावंद।” \p ईसा ने कहा, “मैं भी तुझ पर फ़तवा नहीं लगाता। जा, आइंदा गुनाह न करना।” \s1 ईसा दुनिया का नूर है \p \v 12 फिर ईसा दुबारा लोगों से मुख़ातिब हुआ, “दुनिया का नूर मैं हूँ। जो मेरी पैरवी करे वह तारीकी में नहीं चलेगा, क्योंकि उसे ज़िंदगी का नूर हासिल होगा।” \p \v 13 फ़रीसियों ने एतराज़ किया, “आप तो अपने बारे में गवाही दे रहे हैं। ऐसी गवाही मोतबर नहीं होती।” \p \v 14 ईसा ने जवाब दिया, “अगरचे मैं अपने बारे में ही गवाही दे रहा हूँ तो भी वह मोतबर है। क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ को जा रहा हूँ। लेकिन तुमको तो मालूम नहीं कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। \v 15 तुम इनसानी सोच के मुताबिक़ लोगों का फ़ैसला करते हो, लेकिन मैं किसी का भी फ़ैसला नहीं करता। \v 16 और अगर फ़ैसला करूँ भी तो मेरा फ़ैसला दुरुस्त है, क्योंकि मैं अकेला नहीं हूँ। बाप जिसने मुझे भेजा है मेरे साथ है। \v 17 तुम्हारी शरीअत में लिखा है कि दो आदमियों की गवाही मोतबर है। \v 18 मैं ख़ुद अपने बारे में गवाही देता हूँ जबकि दूसरा गवाह बाप है जिसने मुझे भेजा।” \p \v 19 उन्होंने पूछा, “आपका बाप कहाँ है?” ईसा ने जवाब दिया, “तुम न मुझे जानते हो, न मेरे बाप को। अगर तुम मुझे जानते तो फिर मेरे बाप को भी जानते।” \p \v 20 ईसा ने यह बातें उस वक़्त कीं जब वह उस जगह के क़रीब तालीम दे रहा था जहाँ लोग अपना हदिया डालते थे। लेकिन किसी ने उसे गिरिफ़्तार न किया क्योंकि अभी उसका वक़्त नहीं आया था। \s1 जहाँ मैं जा रहा हूँ तुम वहाँ नहीं जा सकते \p \v 21 एक और बार ईसा उनसे मुख़ातिब हुआ, “मैं जा रहा हूँ और तुम मुझे ढूँड ढूँडकर अपने गुनाह में मर जाओगे। जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं पहुँच सकते।” \p \v 22 यहूदियों ने पूछा, “क्या वह ख़ुदकुशी करना चाहता है? क्या वह इसी वजह से कहता है, ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं पहुँच सकते’?” \p \v 23 ईसा ने अपनी बात जारी रखी, “तुम नीचे से हो जबकि मैं ऊपर से हूँ। तुम इस दुनिया के हो जबकि मैं इस दुनिया का नहीं हूँ। \v 24 मैं तुमको बता चुका हूँ कि तुम अपने गुनाहों में मर जाओगे। क्योंकि अगर तुम ईमान नहीं लाते कि मैं वही हूँ तो तुम यक़ीनन अपने गुनाहों में मर जाओगे।” \p \v 25 उन्होंने सवाल किया, “आप कौन हैं?” \p ईसा ने जवाब दिया, “मैं वही हूँ जो मैं शुरू से ही बताता आया हूँ। \v 26 मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ कह सकता हूँ। बहुत-सी ऐसी बातें हैं जिनकी बिना पर मैं तुमको मुजरिम ठहरा सकता हूँ। लेकिन जिसने मुझे भेजा है वही सच्चा और मोतबर है और मैं दुनिया को सिर्फ़ वह कुछ सुनाता हूँ जो मैंने उससे सुना है।” \p \v 27 सुननेवाले न समझे कि ईसा बाप का ज़िक्र कर रहा है। \v 28 चुनाँचे उसने कहा, “जब तुम इब्ने-आदम को ऊँचे पर चढ़ाओगे तब ही तुम जान लोगे कि मैं वही हूँ, कि मैं अपनी तरफ़ से कुछ नहीं करता बल्कि सिर्फ़ वही सुनाता हूँ जो बाप ने मुझे सिखाया है। \v 29 और जिसने मुझे भेजा है वह मेरे साथ है। उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, क्योंकि मैं हर वक़्त वही कुछ करता हूँ जो उसे पसंद आता है।” \p \v 30 यह बातें सुनकर बहुत-से लोग उस पर ईमान लाए। \s1 सच्चाई तुमको आज़ाद करेगी \p \v 31 जो यहूदी उसका यक़ीन करते थे ईसा अब उनसे हमकलाम हुआ, “अगर तुम मेरी तालीम के ताबे रहोगे तब ही तुम मेरे सच्चे शागिर्द होगे। \v 32 फिर तुम सच्चाई को जान लोगे और सच्चाई तुमको आज़ाद कर देगी।” \p \v 33 उन्होंने एतराज़ किया, “हम तो इब्राहीम की औलाद हैं, हम कभी भी किसी के ग़ुलाम नहीं रहे। फिर आप किस तरह कह सकते हैं कि हम आज़ाद हो जाएंगे?” \p \v 34 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो भी गुनाह करता है वह गुनाह का ग़ुलाम है। \v 35 ग़ुलाम तो आरिज़ी तौर पर घर में रहता है, लेकिन मालिक का बेटा हमेशा तक। \v 36 इसलिए अगर फ़रज़ंद तुमको आज़ाद करे तो तुम हक़ीक़तन आज़ाद होगे। \v 37 मुझे मालूम है कि तुम इब्राहीम की औलाद हो। लेकिन तुम मुझे क़त्ल करने के दरपै हो, क्योंकि तुम्हारे अंदर मेरे पैग़ाम के लिए गुंजाइश नहीं है। \v 38 मैं तुमको वही कुछ बताता हूँ जो मैंने बाप के हाँ देखा है, जबकि तुम वही कुछ सुनाते हो जो तुमने अपने बाप से सुना है।” \p \v 39 उन्होंने कहा, “हमारा बाप इब्राहीम है।” ईसा ने जवाब दिया, “अगर तुम इब्राहीम की औलाद होते तो तुम उसके नमूने पर चलते। \v 40 इसके बजाए तुम मुझे क़त्ल करने की तलाश में हो, इसलिए कि मैंने तुमको वही सच्चाई सुनाई है जो मैंने अल्लाह के हुज़ूर सुनी है। इब्राहीम ने कभी भी इस क़िस्म का काम न किया। \v 41 नहीं, तुम अपने बाप का काम कर रहे हो।” \p उन्होंने एतराज़ किया, “हम हरामज़ादे नहीं हैं। अल्लाह ही हमारा वाहिद बाप है।” \p \v 42 ईसा ने उनसे कहा, “अगर अल्लाह तुम्हारा बाप होता तो तुम मुझसे मुहब्बत रखते, क्योंकि मैं अल्लाह में से निकल आया हूँ। मैं अपनी तरफ़ से नहीं आया बल्कि उसी ने मुझे भेजा है। \v 43 तुम मेरी ज़बान क्यों नहीं समझते? इसलिए कि तुम मेरी बात सुन नहीं सकते। \v 44 तुम अपने बाप इबलीस से हो और अपने बाप की ख़ाहिशों पर अमल करने के ख़ाहाँ रहते हो। वह शुरू ही से क़ातिल है और सच्चाई पर क़ायम न रहा, क्योंकि उसमें सच्चाई है नहीं। जब वह झूट बोलता है तो यह फ़ितरी बात है, क्योंकि वह झूट बोलनेवाला और झूट का बाप है। \v 45 लेकिन मैं सच्ची बातें सुनाता हूँ और यही वजह है कि तुमको मुझ पर यक़ीन नहीं आता। \v 46 क्या तुममें से कोई साबित कर सकता है कि मुझसे कोई गुनाह सरज़द हुआ है? मैं तो तुमको हक़ीक़त बता रहा हूँ। फिर तुमको मुझ पर यक़ीन क्यों नहीं आता? \v 47 जो अल्लाह से है वह अल्लाह की बातें सुनता है। तुम यह इसलिए नहीं सुनते कि तुम अल्लाह से नहीं हो।” \s1 ईसा और इब्राहीम \p \v 48 यहूदियों ने जवाब दिया, “क्या हमने ठीक नहीं कहा कि तुम सामरी हो और किसी बदरूह के क़ब्ज़े में हो?” \p \v 49 ईसा ने कहा, “मैं बदरूह के क़ब्ज़े में नहीं हूँ बल्कि अपने बाप की इज़्ज़त करता हूँ जबकि तुम मेरी बेइज़्ज़ती करते हो। \v 50 मैं ख़ुद अपनी इज़्ज़त का ख़ाहाँ नहीं हूँ। लेकिन एक है जो मेरी इज़्ज़त और जलाल का ख़याल रखता और इनसाफ़ करता है। \v 51 मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो भी मेरे कलाम पर अमल करता रहे वह मौत को कभी नहीं देखेगा।” \p \v 52 यह सुनकर लोगों ने कहा, “अब हमें पता चल गया है कि तुम किसी बदरूह के क़ब्ज़े में हो। इब्राहीम और नबी सब इंतक़ाल कर गए जबकि तुम दावा करते हो, ‘जो भी मेरे कलाम पर अमल करता रहे वह मौत का मज़ा कभी नहीं चखेगा।’ \v 53 क्या तुम हमारे बाप इब्राहीम से बड़े हो? वह मर गया, और नबी भी मर गए। तुम अपने आपको क्या समझते हो?” \p \v 54 ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं अपनी इज़्ज़त और जलाल बढ़ाता तो मेरा जलाल बातिल होता। लेकिन मेरा बाप ही मेरी इज़्ज़तो-जलाल बढ़ाता है, वही जिसके बारे में तुम दावा करते हो कि ‘वह हमारा ख़ुदा है।’ \v 55 लेकिन हक़ीक़त में तुमने उसे नहीं जाना जबकि मैं उसे जानता हूँ। अगर मैं कहता कि मैं उसे नहीं जानता तो मैं तुम्हारी तरह झूटा होता। लेकिन मैं उसे जानता और उसके कलाम पर अमल करता हूँ। \v 56 तुम्हारे बाप इब्राहीम ने ख़ुशी मनाई जब उसे मालूम हुआ कि वह मेरी आमद का दिन देखेगा, और वह उसे देखकर मसरूर हुआ।” \p \v 57 यहूदियों ने एतराज़ किया, “तुम्हारी उम्र तो अभी पचास साल भी नहीं, तो फिर तुम किस तरह कह सकते हो कि तुमने इब्राहीम को देखा है?” \p \v 58 ईसा ने उनसे कहा, “मैं तुमको सच बताता हूँ, इब्राहीम की पैदाइश से पेशतर ‘मैं हूँ’।” \p \v 59 इस पर लोग उसे संगसार करने के लिए पत्थर उठाने लगे। लेकिन ईसा ग़ायब होकर बैतुल-मुक़द्दस से निकल गया। \c 9 \s1 अंधे की शफ़ा \p \v 1 चलते चलते ईसा ने एक आदमी को देखा जो पैदाइश का अंधा था। \v 2 उसके शागिर्दों ने उससे पूछा, “उस्ताद, यह आदमी अंधा क्यों पैदा हुआ? क्या इसका कोई गुनाह है या इसके वालिदैन का?” \p \v 3 ईसा ने जवाब दिया, “न इसका कोई गुनाह है और न इसके वालिदैन का। यह इसलिए हुआ कि इसकी ज़िंदगी में अल्लाह का काम ज़ाहिर हो जाए। \v 4 अभी दिन है। लाज़िम है कि हम जितनी देर तक दिन है उसका काम करते रहें जिसने मुझे भेजा है। क्योंकि रात आनेवाली है, उस वक़्त कोई काम नहीं कर सकेगा। \v 5 लेकिन जितनी देर तक मैं दुनिया में हूँ उतनी देर तक मैं दुनिया का नूर हूँ।” \p \v 6 यह कहकर उसने ज़मीन पर थूककर मिट्टी सानी और उस की आँखों पर लगा दी। \v 7 उसने उससे कहा, “जा, शिलोख़ के हौज़ में नहा ले।” (शिलोख़ का मतलब ‘भेजा हुआ’ है।) अंधे ने जाकर नहा लिया। जब वापस आया तो वह देख सकता था। \p \v 8 उसके हमसाये और वह जिन्होंने पहले उसे भीक माँगते देखा था पूछने लगे, “क्या यह वही नहीं जो बैठा भीक माँगा करता था?” \p \v 9 बाज़ ने कहा, “हाँ, वही है।” \p औरों ने इनकार किया, “नहीं, यह सिर्फ़ उसका हमशक्ल है।” \p लेकिन आदमी ने ख़ुद इसरार किया, “मैं वही हूँ।” \p \v 10 उन्होंने उससे सवाल किया, “तेरी आँखें किस तरह बहाल हुईं?” \p \v 11 उसने जवाब दिया, “वह आदमी जो ईसा कहलाता है उसने मिट्टी सानकर मेरी आँखों पर लगा दी। फिर उसने मुझे कहा, ‘शिलोख़ के हौज़ पर जा और नहा ले।’ मैं वहाँ गया और नहाते ही मेरी आँखें बहाल हो गईं।” \p \v 12 उन्होंने पूछा, “वह कहाँ है?” \p उसने जवाब दिया, “मुझे नहीं मालूम।” \s1 फ़रीसी शफ़ा की तफ़तीश करते हैं \p \v 13 तब वह शफ़ायाब अंधे को फ़रीसियों के पास ले गए। \v 14 जिस दिन ईसा ने मिट्टी सानकर उस की आँखों को बहाल किया था वह सबत का दिन था। \v 15 इसलिए फ़रीसियों ने भी उससे पूछ-गछ की कि उसे किस तरह बसारत मिल गई। आदमी ने जवाब दिया, “उसने मेरी आँखों पर मिट्टी लगा दी, फिर मैंने नहा लिया और अब देख सकता हूँ।” \p \v 16 फ़रीसियों में से बाज़ ने कहा, “यह शख़्स अल्लाह की तरफ़ से नहीं है, क्योंकि सबत के दिन काम करता है।” \p दूसरों ने एतराज़ किया, “गुनाहगार इस क़िस्म के इलाही निशान किस तरह दिखा सकता है?” यों उनमें फूट पड़ गई। \p \v 17 फिर वह दुबारा उस आदमी से मुख़ातिब हुए जो पहले अंधा था, “तू ख़ुद इसके बारे में क्या कहता है? उसने तो तेरी ही आँखों को बहाल किया है।” \p उसने जवाब दिया, “वह नबी है।” \p \v 18 यहूदियों को यक़ीन नहीं आ रहा था कि वह वाक़ई अंधा था और फिर बहाल हो गया है। इसलिए उन्होंने उसके वालिदैन को बुलाया। \v 19 उन्होंने उनसे पूछा, “क्या यह तुम्हारा बेटा है, वही जिसके बारे में तुम कहते हो कि वह अंधा पैदा हुआ था? अब यह किस तरह देख सकता है?” \p \v 20 उसके वालिदैन ने जवाब दिया, “हम जानते हैं कि यह हमारा बेटा है और कि यह पैदा होते वक़्त अंधा था। \v 21 लेकिन हमें मालूम नहीं कि अब यह किस तरह देख सकता है या कि किसने इसकी आँखों को बहाल किया है। इससे ख़ुद पता करें, यह बालिग़ है। यह ख़ुद अपने बारे में बता सकता है।” \v 22 उसके वालिदैन ने यह इसलिए कहा कि वह यहूदियों से डरते थे। क्योंकि वह फ़ैसला कर चुके थे कि जो भी ईसा को मसीह क़रार दे उसे यहूदी जमात से निकाल दिया जाए। \v 23 यही वजह थी कि उसके वालिदैन ने कहा था, “यह बालिग़ है, इससे ख़ुद पूछ लें।” \p \v 24 एक बार फिर उन्होंने शफ़ायाब अंधे को बुलाया, “अल्लाह को जलाल दे, हम तो जानते हैं कि यह आदमी गुनाहगार है।” \p \v 25 आदमी ने जवाब दिया, “मुझे क्या पता है कि वह गुनाहगार है या नहीं, लेकिन एक बात मैं जानता हूँ, पहले मैं अंधा था, और अब मैं देख सकता हूँ!” \p \v 26 फिर उन्होंने उससे सवाल किया, “उसने तेरे साथ क्या किया? उसने किस तरह तेरी आँखों को बहाल कर दिया?” \p \v 27 उसने जवाब दिया, “मैं पहले भी आपको बता चुका हूँ और आपने सुना नहीं। क्या आप भी उसके शागिर्द बनना चाहते हैं?” \p \v 28 इस पर उन्होंने उसे बुरा-भला कहा, “तू ही उसका शागिर्द है, हम तो मूसा के शागिर्द हैं। \v 29 हम तो जानते हैं कि अल्लाह ने मूसा से बात की है, लेकिन इसके बारे में हम यह भी नहीं जानते कि वह कहाँ से आया है।” \p \v 30 आदमी ने जवाब दिया, “अजीब बात है, उसने मेरी आँखों को शफ़ा दी है और फिर भी आप नहीं जानते कि वह कहाँ से है। \v 31 हम जानते हैं कि अल्लाह गुनाहगारों की नहीं सुनता। वह तो उस की सुनता है जो उसका ख़ौफ़ मानता और उस की मरज़ी के मुताबिक़ चलता है। \v 32 इब्तिदा ही से यह बात सुनने में नहीं आई कि किसी ने पैदाइशी अंधे की आँखों को बहाल कर दिया हो। \v 33 अगर यह आदमी अल्लाह की तरफ़ से न होता तो कुछ न कर सकता।” \p \v 34 जवाब में उन्होंने उसे बताया, “तू जो गुनाहआलूदा हालत में पैदा हुआ है क्या तू हमारा उस्ताद बनना चाहता है?” यह कहकर उन्होंने उसे जमात में से निकाल दिया। \s1 रूहानी अंधापन \p \v 35 जब ईसा को पता चला कि उसे निकाल दिया गया है तो वह उसको मिला और पूछा, “क्या तू इब्ने-आदम पर ईमान रखता है?” \p \v 36 उसने कहा, “ख़ुदावंद, वह कौन है? मुझे बताएँ ताकि मैं उस पर ईमान लाऊँ।” \p \v 37 ईसा ने जवाब दिया, “तूने उसे देख लिया है बल्कि वह तुझसे बात कर रहा है।” \p \v 38 उसने कहा, “ख़ुदावंद, मैं ईमान रखता हूँ” और उसे सिजदा किया। \p \v 39 ईसा ने कहा, “मैं अदालत करने के लिए इस दुनिया में आया हूँ, इसलिए कि अंधे देखें और देखनेवाले अंधे हो जाएँ।” \p \v 40 कुछ फ़रीसी जो साथ खड़े थे यह कुछ सुनकर पूछने लगे, “अच्छा, हम भी अंधे हैं?” \p \v 41 ईसा ने उनसे कहा, “अगर तुम अंधे होते तो तुम क़ुसूरवार न ठहरते। लेकिन अब चूँकि तुम दावा करते हो कि हम देख सकते हैं इसलिए तुम्हारा गुनाह क़ायम रहता है। \c 10 \s1 चरवाहे की तमसील \p \v 1 मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो दरवाज़े से भेड़ों के बाड़े में दाख़िल नहीं होता बल्कि फलाँगकर अंदर घुस आता है वह चोर और डाकू है। \v 2 लेकिन जो दरवाज़े से दाख़िल होता है वह भेड़ों का चरवाहा है। \v 3 चौकीदार उसके लिए दरवाज़ा खोल देता है और भेड़ें उस की आवाज़ सुनती हैं। वह अपनी हर एक भेड़ का नाम लेकर उन्हें बुलाता और बाहर ले जाता है। \v 4 अपने पूरे गल्ले को बाहर निकालने के बाद वह उनके आगे आगे चलने लगता है और भेड़ें उसके पीछे पीछे चल पड़ती हैं, क्योंकि वह उस की आवाज़ पहचानती हैं। \v 5 लेकिन वह किसी अजनबी के पीछे नहीं चलेंगी बल्कि उससे भाग जाएँगी, क्योंकि वह उस की आवाज़ नहीं पहचानतीं।” \p \v 6 ईसा ने उन्हें यह तमसील पेश की, लेकिन वह न समझे कि वह उन्हें क्या बताना चाहता है। \s1 अच्छा चरवाहा \p \v 7 इसलिए ईसा दुबारा इस पर बात करने लगा, “मैं तुमको सच बताता हूँ कि भेड़ों के लिए दरवाज़ा मैं हूँ। \v 8 जितने भी मुझसे पहले आए वह चोर और डाकू हैं। लेकिन भेड़ों ने उनकी न सुनी। \v 9 मैं ही दरवाज़ा हूँ। जो भी मेरे ज़रीए अंदर आए उसे नजात मिलेगी। वह आता जाता और हरी चरागाहें पाता रहेगा। \v 10 चोर तो सिर्फ़ चोरी करने, ज़बह करने और तबाह करने आता है। लेकिन मैं इसलिए आया हूँ कि वह ज़िंदगी पाएँ, बल्कि कसरत की ज़िंदगी पाएँ। \p \v 11 अच्छा चरवाहा मैं हूँ। अच्छा चरवाहा अपनी भेड़ों के लिए अपनी जान देता है। \v 12 मज़दूर चरवाहे का किरदार अदा नहीं करता, क्योंकि भेड़ें उस की अपनी नहीं होतीं। इसलिए ज्योंही कोई भेड़िया आता है तो मज़दूर उसे देखते ही भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है। नतीजे में भेड़िया कुछ भेड़ें पकड़ लेता और बाक़ियों को मुंतशिर कर देता है। \v 13 वजह यह है कि वह मज़दूर ही है और भेड़ों की फ़िकर नहीं करता। \v 14 अच्छा चरवाहा मैं हूँ। मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और वह मुझे जानती हैं, \v 15 बिलकुल उसी तरह जिस तरह बाप मुझे जानता है और मैं बाप को जानता हूँ। और मैं भेड़ों के लिए अपनी जान देता हूँ। \v 16 मेरी और भी भेड़ें हैं जो इस बाड़े में नहीं हैं। लाज़िम है कि उन्हें भी ले आऊँ। वह भी मेरी आवाज़ सुनेंगी। फिर एक ही गल्ला और एक ही गल्लाबान होगा। \p \v 17 मेरा बाप मुझे इसलिए प्यार करता है कि मैं अपनी जान देता हूँ ताकि उसे फिर ले लूँ। \v 18 कोई मेरी जान मुझसे छीन नहीं सकता बल्कि मैं उसे अपनी मरज़ी से दे देता हूँ। मुझे उसे देने का इख़्तियार है और उसे वापस लेने का भी। यह हुक्म मुझे अपने बाप की तरफ़ से मिला है।” \p \v 19 इन बातों पर यहूदियों में दुबारा फूट पड़ गई। \v 20 बहुतों ने कहा, “यह बदरूह की गिरिफ़्त में है, यह दीवाना है। इसकी क्यों सुनें!” \p \v 21 लेकिन औरों ने कहा, “यह ऐसी बातें नहीं हैं जो बदरूह-गिरिफ़्ता शख़्स कर सके। क्या बदरूहें अंधों की आँखें बहाल कर सकती हैं?” \s1 ईसा को रद्द किया जाता है \p \v 22 सर्दियों का मौसम था और ईसा बैतुल-मुक़द्दस की मख़सूसियत की ईद बनाम हनूका के दौरान यरूशलम में था। \v 23 वह बैतुल-मुक़द्दस के उस बरामदे में फिर रहा था जिसका नाम सुलेमान का बरामदा था। \v 24 यहूदी उसे घेरकर कहने लगे, “आप हमें कब तक उलझन में रखेंगे? अगर आप मसीह हैं तो हमें साफ़ साफ़ बता दें।” \p \v 25 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुमको बता चुका हूँ, लेकिन तुमको यक़ीन नहीं आया। जो काम मैं अपने बाप के नाम से करता हूँ वह मेरे गवाह हैं। \v 26 लेकिन तुम ईमान नहीं रखते क्योंकि तुम मेरी भेड़ें नहीं हो। \v 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वह मेरे पीछे चलती हैं। \v 28 मैं उन्हें अबदी ज़िंदगी देता हूँ, इसलिए वह कभी हलाक नहीं होंगी। कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा, \v 29 क्योंकि मेरे बाप ने उन्हें मेरे सुपुर्द किया है और वही सबसे बड़ा है। कोई उन्हें बाप के हाथ से छीन नहीं सकता। \v 30 मैं और बाप एक हैं।” \p \v 31 यह सुनकर यहूदी दुबारा पत्थर उठाने लगे ताकि ईसा को संगसार करें। \v 32 उसने उनसे कहा, “मैंने तुम्हें बाप की तरफ़ से कई इलाही निशान दिखाए हैं। तुम मुझे इनमें से किस निशान की वजह से संगसार कर रहे हो?” \p \v 33 यहूदियों ने जवाब दिया, “हम तुमको किसी अच्छे काम की वजह से संगसार नहीं कर रहे बल्कि कुफ़र बकने की वजह से। तुम जो सिर्फ़ इनसान हो अल्लाह होने का दावा करते हो।” \p \v 34 ईसा ने कहा, “क्या यह तुम्हारी शरीअत में नहीं लिखा है कि अल्लाह ने फ़रमाया, ‘तुम ख़ुदा हो’? \v 35 उन्हें ‘ख़ुदा’ कहा गया जिन तक अल्लाह का यह पैग़ाम पहुँचाया गया। और हम जानते हैं कि कलामे-मुक़द्दस को मनसूख़ नहीं किया जा सकता। \v 36 तो फिर तुम कुफ़र बकने की बात क्यों करते हो जब मैं कहता हूँ कि मैं अल्लाह का फ़रज़ंद हूँ? आख़िर बाप ने ख़ुद मुझे मख़सूस करके दुनिया में भेजा है। \v 37 अगर मैं अपने बाप के काम न करूँ तो मेरी बात न मानो। \v 38 लेकिन अगर उसके काम करूँ तो बेशक मेरी बात न मानो, लेकिन कम अज़ कम उन कामों की गवाही तो मानो। फिर तुम जान लोगे और समझ जाओगे कि बाप मुझमें है और मैं बाप में हूँ।” \p \v 39 एक बार फिर उन्होंने उसे गिरिफ़्तार करने की कोशिश की, लेकिन वह उनके हाथ से निकल गया। \p \v 40 फिर ईसा दुबारा दरियाए-यरदन के पार उस जगह चला गया जहाँ यहया शुरू में बपतिस्मा दिया करता था। वहाँ वह कुछ देर ठहरा। \v 41 बहुत-से लोग उसके पास आते रहे। उन्होंने कहा, “यहया ने कभी कोई इलाही निशान न दिखाया, लेकिन जो कुछ उसने इसके बारे में बयान किया, वह बिलकुल सहीह निकला।” \v 42 और वहाँ बहुत-से लोग ईसा पर ईमान लाए। \c 11 \s1 लाज़र की मौत \p \v 1 उन दिनों में एक आदमी बीमार पड़ गया जिसका नाम लाज़र था। वह अपनी बहनों मरियम और मर्था के साथ बैत-अनियाह में रहता था। \v 2 यह वही मरियम थी जिसने बाद में ख़ुदावंद पर ख़ुशबू उंडेलकर उसके पाँव अपने बालों से ख़ुश्क किए थे। उसी का भाई लाज़र बीमार था। \v 3 चुनाँचे बहनों ने ईसा को इत्तला दी, “ख़ुदावंद, जिसे आप प्यार करते हैं वह बीमार है।” \p \v 4 जब ईसा को यह ख़बर मिली तो उसने कहा, “इस बीमारी का अंजाम मौत नहीं है, बल्कि यह अल्लाह के जलाल के वास्ते हुआ है, ताकि इससे अल्लाह के फ़रज़ंद को जलाल मिले।” \p \v 5 ईसा मर्था, मरियम और लाज़र से मुहब्बत रखता था। \v 6 तो भी वह लाज़र के बारे में इत्तला मिलने के बाद दो दिन और वहीं ठहरा। \v 7 फिर उसने अपने शागिर्दों से बात की, “आओ, हम दुबारा यहूदिया चले जाएँ।” \p \v 8 शागिर्दों ने एतराज़ किया, “उस्ताद, अभी अभी वहाँ के यहूदी आपको संगसार करने की कोशिश कर रहे थे, फिर भी आप वापस जाना चाहते हैं?” \p \v 9 ईसा ने जवाब दिया, “क्या दिन में रौशनी के बारह घंटे नहीं होते? जो शख़्स दिन के वक़्त चलता-फिरता है वह किसी भी चीज़ से नहीं टकराएगा, क्योंकि वह इस दुनिया की रौशनी के ज़रीए देख सकता है। \v 10 लेकिन जो रात के वक़्त चलता है वह चीज़ों से टकरा जाता है, क्योंकि उसके पास रौशनी नहीं है।” \v 11 फिर उसने कहा, “हमारा दोस्त लाज़र सो गया है। लेकिन मैं जाकर उसे जगा दूँगा।” \p \v 12 शागिर्दों ने कहा, “ख़ुदावंद, अगर वह सो रहा है तो वह बच जाएगा।” \p \v 13 उनका ख़याल था कि ईसा लाज़र की फ़ितरी नींद का ज़िक्र कर रहा है जबकि हक़ीक़त में वह उस की मौत की तरफ़ इशारा कर रहा था। \v 14 इसलिए उसने उन्हें साफ़ बता दिया, “लाज़र वफ़ात पा गया है। \v 15 और तुम्हारी ख़ातिर मैं ख़ुश हूँ कि मैं उसके मरते वक़्त वहाँ नहीं था, क्योंकि अब तुम ईमान लाओगे। आओ, हम उसके पास जाएँ।” \p \v 16 तोमा ने जिसका लक़ब जुड़वाँ था अपने साथी शागिर्दों से कहा, “चलो, हम भी वहाँ जाकर उसके साथ मर जाएँ।” \s1 ईसा क़ियामत और ज़िंदगी है \p \v 17 वहाँ पहुँचकर ईसा को मालूम हुआ कि लाज़र को क़ब्र में रखे चार दिन हो गए हैं। \v 18 बैत-अनियाह का यरूशलम से फ़ासला तीन किलोमीटर से कम था, \v 19 और बहुत-से यहूदी मर्था और मरियम को उनके भाई के बारे में तसल्ली देने के लिए आए हुए थे। \p \v 20 यह सुनकर कि ईसा आ रहा है मर्था उसे मिलने गई। लेकिन मरियम घर में बैठी रही। \v 21 मर्था ने कहा, “ख़ुदावंद, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता। \v 22 लेकिन मैं जानती हूँ कि अब भी अल्लाह आपको जो भी माँगेंगे देगा।” \p \v 23 ईसा ने उसे बताया, “तेरा भाई जी उठेगा।” \p \v 24 मर्था ने जवाब दिया, “जी, मुझे मालूम है कि वह क़ियामत के दिन जी उठेगा, जब सब जी उठेंगे।” \p \v 25 ईसा ने उसे बताया, “क़ियामत और ज़िंदगी तो मैं हूँ। जो मुझ पर ईमान रखे वह ज़िंदा रहेगा, चाहे वह मर भी जाए। \v 26 और जो ज़िंदा है और मुझ पर ईमान रखता है वह कभी नहीं मरेगा। मर्था, क्या तुझे इस बात का यक़ीन है?” \p \v 27 मर्था ने जवाब दिया, “जी ख़ुदावंद, मैं ईमान रखती हूँ कि आप ख़ुदा के फ़रज़ंद मसीह हैं, जिसे दुनिया में आना था।” \s1 ईसा रोता है \p \v 28 यह कहकर मर्था वापस चली गई और चुपके से मरियम को बुलाया, “उस्ताद आ गए हैं, वह तुझे बुला रहे हैं।” \v 29 यह सुनते ही मरियम उठकर ईसा के पास गई। \v 30 वह अभी गाँव के बाहर उसी जगह ठहरा था जहाँ उस की मुलाक़ात मर्था से हुई थी। \v 31 जो यहूदी घर में मरियम के साथ बैठे उसे तसल्ली दे रहे थे, जब उन्होंने देखा कि वह जल्दी से उठकर निकल गई है तो वह उसके पीछे हो लिए। क्योंकि वह समझ रहे थे कि वह मातम करने के लिए अपने भाई की क़ब्र पर जा रही है। \p \v 32 मरियम ईसा के पास पहुँच गई। उसे देखते ही वह उसके पाँवों में गिर गई और कहने लगी, “ख़ुदावंद, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता।” \p \v 33 जब ईसा ने मरियम और उसके साथियों को रोते देखा तो उसे बड़ी रंजिश हुई। मुज़तरिब हालत में \v 34 उसने पूछा, “तुमने उसे कहाँ रखा है?” \p उन्होंने जवाब दिया, “आएँ ख़ुदावंद, और देख लें।” \p \v 35 ईसा रो पड़ा। \v 36 यहूदियों ने कहा, “देखो, वह उसे कितना अज़ीज़ था।” \p \v 37 लेकिन उनमें से बाज़ ने कहा, “इस आदमी ने अंधे को शफ़ा दी। क्या यह लाज़र को मरने से नहीं बचा सकता था?” \s1 लाज़र को ज़िंदा कर दिया जाता है \p \v 38 फिर ईसा दुबारा निहायत रंजीदा होकर क़ब्र पर आया। क़ब्र एक ग़ार थी जिसके मुँह पर पत्थर रखा गया था। \v 39 ईसा ने कहा, “पत्थर को हटा दो।” \p लेकिन मरहूम की बहन मर्था ने एतराज़ किया, “ख़ुदावंद, बदबू आएगी, क्योंकि उसे यहाँ पड़े चार दिन हो गए हैं।” \p \v 40 ईसा ने उससे कहा, “क्या मैंने तुझे नहीं बताया कि अगर तू ईमान रखे तो अल्लाह का जलाल देखेगी?” \v 41 चुनाँचे उन्होंने पत्थर को हटा दिया। फिर ईसा ने अपनी नज़र उठाकर कहा, “ऐ बाप, मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि तूने मेरी सुन ली है। \v 42 मैं तो जानता हूँ कि तू हमेशा मेरी सुनता है। लेकिन मैंने यह बात पास खड़े लोगों की ख़ातिर की, ताकि वह ईमान लाएँ कि तूने मुझे भेजा है।” \v 43 फिर ईसा ज़ोर से पुकार उठा, “लाज़र, निकल आ!” \v 44 और मुरदा निकल आया। अभी तक उसके हाथ और पाँव पट्टियों से बँधे हुए थे जबकि उसका चेहरा कपड़े में लिपटा हुआ था। ईसा ने उनसे कहा, “इसके कफ़न को खोलकर इसे जाने दो।” \s1 ईसा के ख़िलाफ़ मनसूबाबंदी \p \v 45 उन यहूदियों में से जो मरियम के पास आए थे बहुत-से ईसा पर ईमान लाए जब उन्होंने वह देखा जो उसने किया। \v 46 लेकिन बाज़ फ़रीसियों के पास गए और उन्हें बताया कि ईसा ने क्या किया है। \v 47 तब राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदी अदालते-आलिया का इजलास मुनअक़िद किया। उन्होंने एक दूसरे से पूछा, “हम क्या कर रहे हैं? यह आदमी बहुत-से इलाही निशान दिखा रहा है। \v 48 अगर हम उसे खुला छोड़ें तो आख़िरकार सब उस पर ईमान ले आएँगे। फिर रोमी आकर हमारे बैतुल-मुक़द्दस और हमारे मुल्क को तबाह कर देंगे।” \p \v 49 उनमें से एक कायफ़ा था जो उस साल इमामे-आज़म था। उसने कहा, “आप कुछ नहीं समझते \v 50 और इसका ख़याल भी नहीं करते कि इससे पहले कि पूरी क़ौम हलाक हो जाए बेहतर यह है कि एक आदमी उम्मत के लिए मर जाए।” \v 51 उसने यह बात अपनी तरफ़ से नहीं की थी। उस साल के इमामे-आज़म की हैसियत से ही उसने यह पेशगोई की कि ईसा यहूदी क़ौम के लिए मरेगा। \v 52 और न सिर्फ़ इसके लिए बल्कि अल्लाह के बिखरे हुए फ़रज़ंदों को जमा करके एक करने के लिए भी। \p \v 53 उस दिन से उन्होंने ईसा को क़त्ल करने का इरादा कर लिया। \v 54 इसलिए उसने अब से अलानिया यहूदियों के दरमियान वक़्त न गुज़ारा, बल्कि उस जगह को छोड़कर रेगिस्तान के क़रीब एक इलाक़े में गया। वहाँ वह अपने शागिर्दों समेत एक गाँव बनाम इफ़राईम में रहने लगा। \p \v 55 फिर यहूदियों की ईदे-फ़सह क़रीब आ गई। देहात से बहुत-से लोग अपने आपको पाक करवाने के लिए ईद से पहले पहले यरूशलम पहुँचे। \v 56 वहाँ वह ईसा का पता करते और बैतुल-मुक़द्दस में खड़े आपस में बात करते रहे, “क्या ख़याल है? क्या वह तहवार पर नहीं आएगा?” \v 57 लेकिन राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने हुक्म दिया था, “अगर किसी को मालूम हो जाए कि ईसा कहाँ है तो वह इत्तला दे ताकि हम उसे गिरिफ़्तार कर लें।” \c 12 \s1 ईसा को बैत-अनियाह में मसह किया जाता है \p \v 1 फ़सह की ईद में अभी छः दिन बाक़ी थे कि ईसा बैत-अनियाह पहुँचा। यह वह जगह थी जहाँ उस लाज़र का घर था जिसे ईसा ने मुरदों में से ज़िंदा किया था। \v 2 वहाँ उसके लिए एक ख़ास खाना बनाया गया। मर्था खानेवालों की ख़िदमत कर रही थी जबकि लाज़र ईसा और बाक़ी मेहमानों के साथ खाने में शरीक था। \v 3 फिर मरियम ने आधा लिटर ख़ालिस जटामासी का निहायत क़ीमती इत्र लेकर ईसा के पाँवों पर उंडेल दिया और उन्हें अपने बालों से पोंछकर ख़ुश्क किया। ख़ुशबू पूरे घर में फैल गई। \v 4 लेकिन ईसा के शागिर्द यहूदाह इस्करियोती ने एतराज़ किया (बाद में उसी ने ईसा को दुश्मन के हवाले कर दिया)। उसने कहा, \v 5 “इस इत्र की क़ीमत चाँदी के 300 सिक्के थी। इसे क्यों नहीं बेचा गया ताकि इसके पैसे ग़रीबों को दिए जाते?” \v 6 उसने यह बात इसलिए नहीं की कि उसे ग़रीबों की फ़िकर थी। असल में वह चोर था। वह शागिर्दों का ख़ज़ानची था और जमाशुदा पैसों में से बददियानती करता रहता था। \p \v 7 लेकिन ईसा ने कहा, “उसे छोड़ दे! उसने मेरी तदफ़ीन की तैयारी के लिए यह किया है। \v 8 ग़रीब तो हमेशा तुम्हारे पास रहेंगे, लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे पास नहीं रहूँगा।” \s1 लाज़र के ख़िलाफ़ मनसूबाबंदी \p \v 9 इतने में यहूदियों की बड़ी तादाद को मालूम हुआ कि ईसा वहाँ है। वह न सिर्फ़ ईसा से मिलने के लिए आए बल्कि लाज़र से भी जिसे उसने मुरदों में से ज़िंदा किया था। \v 10 इसलिए राहनुमा इमामों ने लाज़र को भी क़त्ल करने का मनसूबा बनाया। \v 11 क्योंकि उस की वजह से बहुत-से यहूदी उनमें से चले गए और ईसा पर ईमान ले आए थे। \s1 यरूशलम में ईसा का पुरजोश इस्तक़बाल \p \v 12 अगले दिन ईद के लिए आए हुए लोगों को पता चला कि ईसा यरूशलम आ रहा है। एक बड़ा हुजूम \v 13 खजूर की डालियाँ पकड़े शहर से निकलकर उससे मिलने आया। चलते चलते वह चिल्लाकर नारे लगा रहे थे, \p “होशाना! \f + \fr 12:13 \ft होशाना (इबरानी : मेहरबानी करके हमें बचा)। यहाँ इसमें हम्दो-सना का उनसुर भी पाया जाता है। \f* \p मुबारक है वह जो रब के नाम से आता है! \p इसराईल का बादशाह मुबारक है!” \p \v 14 ईसा को कहीं से एक जवान गधा मिल गया और वह उस पर बैठ गया, जिस तरह कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, \p \v 15 “ऐ सिय्यून बेटी, मत डर! \p देख, तेरा बादशाह गधे के बच्चे पर सवार आ रहा है।” \p \v 16 उस वक़्त उसके शागिर्दों को इस बात की समझ न आई। लेकिन बाद में जब ईसा अपने जलाल को पहुँचा तो उन्हें याद आया कि लोगों ने उसके साथ यह कुछ किया था और वह समझ गए कि कलामे-मुक़द्दस में इसका ज़िक्र भी है। \p \v 17 जो हुजूम उस वक़्त ईसा के साथ था जब उसने लाज़र को मुरदों में से ज़िंदा किया था, वह दूसरों को इसके बारे में बताता रहा था। \v 18 इसी वजह से इतने लोग ईसा से मिलने के लिए आए थे, उन्होंने उसके इस इलाही निशान के बारे में सुना था। \v 19 यह देखकर फ़रीसी आपस में कहने लगे, “आप देख रहे हैं कि बात नहीं बन रही। देखो, तमाम दुनिया उसके पीछे हो ली है।” \s1 कुछ यूनानी ईसा को तलाश करते हैं \p \v 20 कुछ यूनानी भी उनमें थे जो फ़सह की ईद के मौक़े पर परस्तिश करने के लिए आए हुए थे। \v 21 अब वह फ़िलिप्पुस से मिलने आए जो गलील के बैत-सैदा से था। उन्होंने कहा, “जनाब, हम ईसा से मिलना चाहते हैं।” \p \v 22 फ़िलिप्पुस ने अंदरियास को यह बात बताई और फिर वह मिलकर ईसा के पास गए और उसे यह ख़बर पहुँचाई। \v 23 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “अब वक़्त आ गया है कि इब्ने-आदम को जलाल मिले। \v 24 मैं तुमको सच बताता हूँ कि जब तक गंदुम का दाना ज़मीन में गिरकर मर न जाए वह अकेला ही रहता है। लेकिन जब वह मर जाता है तो बहुत-सा फल लाता है। \v 25 जो अपनी जान को प्यार करता है वह उसे खो देगा, और जो इस दुनिया में अपनी जान से दुश्मनी रखता है वह उसे अबद तक महफ़ूज़ रखेगा। \v 26 अगर कोई मेरी ख़िदमत करना चाहे तो वह मेरे पीछे हो ले, क्योंकि जहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा ख़ादिम भी होगा। और जो मेरी ख़िदमत करे मेरा बाप उस की इज़्ज़त करेगा। \s1 ईसा अपनी मौत का ज़िक्र करता है \p \v 27 अब मेरा दिल मुज़तरिब है। मैं क्या कहूँ? क्या मैं कहूँ, ‘ऐ बाप, मुझे इस वक़्त से बचाए रख’? नहीं, मैं तो इसी लिए आया हूँ। \v 28 ऐ बाप, अपने नाम को जलाल दे।” \p तब आसमान से एक आवाज़ सुनाई दी, “मैं उसे जलाल दे चुका हूँ और दुबारा भी जलाल दूँगा।” \p \v 29 हुजूम के जो लोग वहाँ खड़े थे उन्होंने यह सुनकर कहा, “बादल गरज रहे हैं।” औरों ने ख़याल पेश किया, “कोई फ़रिश्ता उससे हमकलाम हुआ है।” \p \v 30 ईसा ने उन्हें बताया, “यह आवाज़ मेरे वास्ते नहीं बल्कि तुम्हारे वास्ते थी। \v 31 अब दुनिया की अदालत करने का वक़्त आ गया है, अब दुनिया के हुक्मरान को निकाल दिया जाएगा। \v 32 और मैं ख़ुद ज़मीन से ऊँचे पर चढ़ाए जाने के बाद सबको अपने पास खींच लूँगा।” \v 33 इन अलफ़ाज़ से उसने इस तरफ़ इशारा किया कि वह किस तरह की मौत मरेगा। \p \v 34 हुजूम बोल उठा, “कलामे-मुक़द्दस से हमने सुना है कि मसीह अबद तक क़ायम रहेगा। तो फिर आपकी यह कैसी बात है कि इब्ने-आदम को ऊँचे पर चढ़ाया जाना है? आख़िर इब्ने-आदम है कौन?” \p \v 35 ईसा ने जवाब दिया, “नूर थोड़ी देर और तुम्हारे पास रहेगा। जितनी देर वह मौजूद है इस नूर में चलते रहो ताकि तारीकी तुम पर छा न जाए। जो अंधेरे में चलता है उसे नहीं मालूम कि वह कहाँ जा रहा है। \v 36 नूर के तुम्हारे पास से चले जाने से पहले पहले उस पर ईमान लाओ ताकि तुम नूर के फ़रज़ंद बन जाओ।” \s1 लोग ईमान नहीं रखते \p यह कहने के बाद ईसा चला गया और ग़ायब हो गया। \v 37 अगरचे ईसा ने यह तमाम इलाही निशान उनके सामने ही दिखाए तो भी वह उस पर ईमान न लाए। \v 38 यों यसायाह नबी की पेशगोई पूरी हुई, \p “ऐ रब, कौन हमारे पैग़ाम पर ईमान लाया? \p और रब की क़ुदरत किस पर ज़ाहिर हुई?” \p \v 39 चुनाँचे वह ईमान न ला सके, जिस तरह यसायाह नबी ने कहीं और फ़रमाया है, \p \v 40 “अल्लाह ने उनकी आँखों को अंधा \p और उनके दिल को बेहिस कर दिया है, \p ऐसा न हो कि वह अपनी आँखों से देखें, \p अपने दिल से समझें, \p मेरी तरफ़ रुजू करें \p और मैं उन्हें शफ़ा दूँ।” \p \v 41 यसायाह ने यह इसलिए फ़रमाया क्योंकि उसने ईसा का जलाल देखकर उसके बारे में बात की। \p \v 42 तो भी बहुत-से लोग ईसा पर ईमान रखते थे। उनमें कुछ राहनुमा भी शामिल थे। लेकिन वह इसका अलानिया इक़रार नहीं करते थे, क्योंकि वह डरते थे कि फ़रीसी हमें यहूदी जमात से ख़ारिज कर देंगे। \v 43 असल में वह अल्लाह की इज़्ज़त की निसबत इनसान की इज़्ज़त को ज़्यादा अज़ीज़ रखते थे। \s1 ईसा का कलाम लोगों की अदालत करेगा \p \v 44 फिर ईसा पुकार उठा, “जो मुझ पर ईमान रखता है वह न सिर्फ़ मुझ पर बल्कि उस पर ईमान रखता है जिसने मुझे भेजा है। \v 45 और जो मुझे देखता है वह उसे देखता है जिसने मुझे भेजा है। \v 46 मैं नूर की हैसियत से इस दुनिया में आया हूँ ताकि जो भी मुझ पर ईमान लाए वह तारीकी में न रहे। \v 47 जो मेरी बातें सुनकर उन पर अमल नहीं करता मैं उस की अदालत नहीं करूँगा, क्योंकि मैं दुनिया की अदालत करने के लिए नहीं आया बल्कि उसे नजात देने के लिए। \v 48 तो भी एक है जो उस की अदालत करता है। जो मुझे रद्द करके मेरी बातें क़बूल नहीं करता मेरा पेश किया गया कलाम ही क़ियामत के दिन उस की अदालत करेगा। \v 49 क्योंकि जो कुछ मैंने बयान किया है वह मेरी तरफ़ से नहीं है। मेरे भेजनेवाले बाप ही ने मुझे हुक्म दिया कि क्या कहना और क्या सुनाना है। \v 50 और मैं जानता हूँ कि उसका हुक्म अबदी ज़िंदगी तक पहुँचाता है। चुनाँचे जो कुछ मैं सुनाता हूँ वही कुछ है जो बाप ने मुझे बताया है।” \c 13 \s1 ईसा अपने शागिर्दों के पाँव धोता है \p \v 1 फ़सह की ईद अब शुरू होनेवाली थी। ईसा जानता था कि वह वक़्त आ गया है कि मुझे इस दुनिया को छोड़कर बाप के पास जाना है। गो उसने हमेशा दुनिया में अपने लोगों से मुहब्बत रखी थी, लेकिन अब उसने आख़िरी हद तक उन पर अपनी मुहब्बत का इज़हार किया। \p \v 2 फिर शाम का खाना तैयार हुआ। उस वक़्त इबलीस शमौन इस्करियोती के बेटे यहूदाह के दिल में ईसा को दुश्मन के हवाले करने का इरादा डाल चुका था। \v 3 ईसा जानता था कि बाप ने सब कुछ मेरे सुपुर्द कर दिया है और कि मैं अल्लाह में से निकल आया और अब उसके पास वापस जा रहा हूँ। \v 4 चुनाँचे उसने दस्तरख़ान से उठकर अपना लिबास उतार दिया और कमर पर तौलिया बाँध लिया। \v 5 फिर वह बासन में पानी डालकर शागिर्दों के पाँव धोने और बँधे हुए तौलिये से पोंछकर ख़ुश्क करने लगा। \v 6 जब पतरस की बारी आई तो उसने कहा, “ख़ुदावंद, आप मेरे पाँव धोना चाहते हैं?” \p \v 7 ईसा ने जवाब दिया, “इस वक़्त तू नहीं समझता कि मैं क्या कर रहा हूँ, लेकिन बाद में यह तेरी समझ में आ जाएगा।” \p \v 8 पतरस ने एतराज़ किया, “मैं कभी भी आपको मेरे पाँव धोने नहीं दूँगा!” \p ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं तुझे न धोऊँ तो मेरे साथ तेरा कोई हिस्सा नहीं होगा।” \p \v 9 यह सुनकर पतरस ने कहा, “तो फिर ख़ुदावंद, न सिर्फ़ मेरे पाँवों बल्कि मेरे हाथों और सर को भी धोएँ!” \p \v 10 ईसा ने जवाब दिया, “जिस शख़्स ने नहा लिया है उसे सिर्फ़ अपने पाँवों को धोने की ज़रूरत होती है, क्योंकि वह पूरे तौर पर पाक-साफ़ है। तुम पाक-साफ़ हो, लेकिन सबके सब नहीं।” \v 11 (ईसा को मालूम था कि कौन उसे दुश्मन के हवाले करेगा। इसलिए उसने कहा कि सबके सब पाक-साफ़ नहीं हैं।) \p \v 12 उन सबके पाँव धोने के बाद ईसा दुबारा अपना लिबास पहनकर बैठ गया। उसने सवाल किया, “क्या तुम समझते हो कि मैंने तुम्हारे लिए क्या किया है? \v 13 तुम मुझे ‘उस्ताद’ और ‘ख़ुदावंद’ कहकर मुख़ातिब करते हो और यह सहीह है, क्योंकि मैं यही कुछ हूँ। \v 14 मैं, तुम्हारे ख़ुदावंद और उस्ताद ने तुम्हारे पाँव धोए। इसलिए अब तुम्हारा फ़र्ज़ भी है कि एक दूसरे के पाँव धोया करो। \v 15 मैंने तुमको एक नमूना दिया है ताकि तुम भी वही करो जो मैंने तुम्हारे साथ किया है। \v 16 मैं तुमको सच बताता हूँ कि ग़ुलाम अपने मालिक से बड़ा नहीं होता, न पैग़ंबर अपने भेजनेवाले से। \v 17 अगर तुम यह जानते हो तो इस पर अमल भी करो, फिर ही तुम मुबारक होगे। \p \v 18 मैं तुम सबकी बात नहीं कर रहा। जिन्हें मैंने चुन लिया है उन्हें मैं जानता हूँ। लेकिन कलामे-मुक़द्दस की उस बात का पूरा होना ज़रूर है, ‘जो मेरी रोटी खाता है उसने मुझ पर लात उठाई है।’ \v 19 मैं तुमको इससे पहले कि वह पेश आए यह अभी बता रहा हूँ, ताकि जब वह पेश आए तो तुम ईमान लाओ कि मैं वही हूँ। \v 20 मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो शख़्स उसे क़बूल करता है जिसे मैंने भेजा है वह मुझे क़बूल करता है। और जो मुझे क़बूल करता है वह उसे क़बूल करता है जिसने मुझे भेजा है।” \s1 ईसा को दुश्मन के हवाले किया जाता है \p \v 21 इन अलफ़ाज़ के बाद ईसा निहायत मुज़तरिब हुआ और कहा, “मैं तुमको सच बताता हूँ कि तुममें से एक मुझे दुश्मन के हवाले कर देगा।” \p \v 22 शागिर्द उलझन में एक दूसरे को देखकर सोचने लगे कि ईसा किसकी बात कर रहा है। \v 23 एक शागिर्द जिसे ईसा प्यार करता था उसके क़रीबतरीन बैठा था। \v 24 पतरस ने उसे इशारा किया कि वह उससे दरियाफ़्त करे कि वह किसकी बात कर रहा है। \p \v 25 उस शागिर्द ने ईसा की तरफ़ सर झुकाकर पूछा, “ख़ुदावंद, यह कौन है?” \p \v 26 ईसा ने जवाब दिया, “जिसे मैं रोटी का लुक़मा शोर्ब में डुबोकर दूँ, वही है।” फिर लुक़मे को डुबोकर उसने शमौन इस्करियोती के बेटे यहूदाह को दे दिया। \v 27 ज्योंही यहूदाह ने यह लुक़मा ले लिया इबलीस उसमें समा गया। ईसा ने उसे बताया, “जो कुछ करना है वह जल्दी से कर ले।” \v 28 लेकिन मेज़ पर बैठे लोगों में से किसी को मालूम न हुआ कि ईसा ने यह क्यों कहा। \v 29 बाज़ का ख़याल था कि चूँकि यहूदाह ख़ज़ानची था इसलिए वह उसे बता रहा है कि ईद के लिए दरकार चीज़ें ख़रीद ले या ग़रीबों में कुछ तक़सीम कर दे। \p \v 30 चुनाँचे ईसा से यह लुक़मा लेते ही यहूदाह बाहर निकल गया। रात का वक़्त था। \s1 ईसा का नया हुक्म \p \v 31 यहूदाह के चले जाने के बाद ईसा ने कहा, “अब इब्ने-आदम ने जलाल पाया और अल्लाह ने उसमें जलाल पाया है। \v 32 हाँ, चूँकि अल्लाह को उसमें जलाल मिल गया है इसलिए अल्लाह अपने में फ़रज़ंद को जलाल देगा। और वह यह जलाल फ़ौरन देगा। \v 33 मेरे बच्चो, मैं थोड़ी देर और तुम्हारे पास ठहरूँगा। तुम मुझे तलाश करोगे, और जो कुछ मैं यहूदियों को बता चुका हूँ वह अब तुमको भी बताता हूँ, जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते। \v 34 मैं तुमको एक नया हुक्म देता हूँ, यह कि एक दूसरे से मुहब्बत रखो। जिस तरह मैंने तुमसे मुहब्बत रखी उसी तरह तुम भी एक दूसरे से मुहब्बत करो। \v 35 अगर तुम एक दूसरे से मुहब्बत रखोगे तो सब जान लेंगे कि तुम मेरे शागिर्द हो।” \s1 पतरस के इनकार की पेशगोई \p \v 36 पतरस ने पूछा, “ख़ुदावंद, आप कहाँ जा रहे हैं?” \p ईसा ने जवाब दिया, “जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तू मेरे पीछे नहीं आ सकता। लेकिन बाद में तू मेरे पीछे आ जाएगा।” \p \v 37 पतरस ने सवाल किया, “ख़ुदावंद, मैं आपके पीछे अभी क्यों नहीं जा सकता? मैं आपके लिए अपनी जान तक देने को तैयार हूँ।” \p \v 38 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “तू मेरे लिए अपनी जान देना चाहता है? मैं तुझे सच बताता हूँ कि मुरग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन मरतबा मुझे जानने से इनकार कर चुका होगा। \c 14 \s1 ईसा बाप के पास जाने की राह है \p \v 1 तुम्हारा दिल न घबराए। तुम अल्लाह पर ईमान रखते हो, मुझ पर भी ईमान रखो। \v 2 मेरे बाप के घर में बेशुमार मकान हैं। अगर ऐसा न होता तो क्या मैं तुमको बताता कि मैं तुम्हारे लिए जगह तैयार करने के लिए वहाँ जा रहा हूँ? \v 3 और अगर मैं जाकर तुम्हारे लिए जगह तैयार करूँ तो वापस आकर तुमको अपने साथ ले जाऊँगा ताकि जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम भी हो। \v 4 और जहाँ मैं जा रहा हूँ उस की राह तुम जानते हो।” \p \v 5 तोमा बोल उठा, “ख़ुदावंद, हमें मालूम नहीं कि आप कहाँ जा रहे हैं। तो फिर हम उस की राह किस तरह जानें?” \p \v 6 ईसा ने जवाब दिया, “राह और हक़ और ज़िंदगी मैं हूँ। कोई मेरे वसीले के बग़ैर बाप के पास नहीं आ सकता। \v 7 अगर तुमने मुझे जान लिया है तो इसका मतलब है कि तुम मेरे बाप को भी जान लोगे। और अब से ऐसा है भी। तुम उसे जानते हो और तुमने उसको देख लिया है।” \p \v 8 फ़िलिप्पुस ने कहा, “ऐ ख़ुदावंद, बाप को हमें दिखाएँ। बस यही हमारे लिए काफ़ी है।” \p \v 9 ईसा ने जवाब दिया, “फ़िलिप्पुस, मैं इतनी देर से तुम्हारे साथ हूँ, क्या इसके बावुजूद तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा उसने बाप को देखा है। तो फिर तू क्योंकर कहता है, ‘बाप को हमें दिखाएँ’? \v 10 क्या तू ईमान नहीं रखता कि मैं बाप में हूँ और बाप मुझमें है? जो बातें में तुमको बताता हूँ वह मेरी नहीं बल्कि मुझमें रहनेवाले बाप की तरफ़ से हैं। वही अपना काम कर रहा है। \v 11 मेरी बात का यक़ीन करो कि मैं बाप में हूँ और बाप मुझमें है। या कम अज़ कम उन कामों की बिना पर यक़ीन करो जो मैंने किए हैं। \v 12 मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो मुझ पर ईमान रखे वह वही कुछ करेगा जो मैं करता हूँ। न सिर्फ़ यह बल्कि वह इनसे भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं बाप के पास जा रहा हूँ। \v 13 और जो कुछ तुम मेरे नाम में माँगो मैं दूँगा ताकि बाप को फ़रज़ंद में जलाल मिल जाए। \v 14 जो कुछ तुम मेरे नाम में मुझसे चाहो वह मैं करूँगा। \s1 रूहुल-क़ुद्स देने का वादा \p \v 15 अगर तुम मुझे प्यार करते हो तो मेरे अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारोगे। \v 16 और मैं बाप से गुज़ारिश करूँगा तो वह तुमको एक और मददगार देगा जो अबद तक तुम्हारे साथ रहेगा \v 17 यानी सच्चाई का रूह, जिसे दुनिया पा नहीं सकती, क्योंकि वह न तो उसे देखती न जानती है। लेकिन तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है और आइंदा तुम्हारे अंदर रहेगा। \p \v 18 मैं तुमको यतीम छोड़कर नहीं जाऊँगा बल्कि तुम्हारे पास वापस आऊँगा। \v 19 थोड़ी देर के बाद दुनिया मुझे नहीं देखेगी, लेकिन तुम मुझे देखते रहोगे। चूँकि मैं ज़िंदा हूँ इसलिए तुम भी ज़िंदा रहोगे। \v 20 जब वह दिन आएगा तो तुम जान लोगे कि मैं अपने बाप में हूँ, तुम मुझमें हो और मैं तुममें। \p \v 21 जिसके पास मेरे अहकाम हैं और जो उनके मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारता है, वही मुझे प्यार करता है। और जो मुझे प्यार करता है उसे मेरा बाप प्यार करेगा। मैं भी उसे प्यार करूँगा और अपने आपको उस पर ज़ाहिर करूँगा।” \p \v 22 यहूदाह (यहूदाह इस्करियोती नहीं) ने पूछा, “ख़ुदावंद, क्या वजह है कि आप अपने आपको सिर्फ़ हम पर ज़ाहिर करेंगे और दुनिया पर नहीं?” \p \v 23 ईसा ने जवाब दिया, “अगर कोई मुझे प्यार करे तो वह मेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारेगा। मेरा बाप ऐसे शख़्स को प्यार करेगा और हम उसके पास आकर उसके साथ सुकूनत करेंगे। \v 24 जो मुझसे मुहब्बत नहीं करता वह मेरी बातों के मुताबिक़ ज़िंदगी नहीं गुज़ारता। और जो कलाम तुम मुझसे सुनते हो वह मेरा अपना कलाम नहीं है बल्कि बाप का है जिसने मुझे भेजा है। \p \v 25 यह सब कुछ मैंने तुम्हारे साथ रहते हुए तुमको बताया है। \v 26 लेकिन बाद में रूहुल-क़ुद्स, जिसे बाप मेरे नाम से भेजेगा तुमको सब कुछ सिखाएगा। यह मददगार तुमको हर बात की याद दिलाएगा जो मैंने तुमको बताई है। \p \v 27 मैं तुम्हारे पास सलामती छोड़े जाता हूँ, अपनी ही सलामती तुमको दे देता हूँ। और मैं इसे यों नहीं देता जिस तरह दुनिया देती है। तुम्हारा दिल न घबराए और न डरे। \v 28 तुमने मुझसे सुन लिया है कि ‘मैं जा रहा हूँ और तुम्हारे पास वापस आऊँगा।’ अगर तुम मुझसे मुहब्बत रखते तो तुम इस बात पर ख़ुश होते कि मैं बाप के पास जा रहा हूँ, क्योंकि बाप मुझसे बड़ा है। \v 29 मैंने तुमको पहले से बता दिया है, इससे पेशतर कि यह हो, ताकि जब पेश आए तो तुम ईमान लाओ। \v 30 अब से मैं तुमसे ज़्यादा बातें नहीं करूँगा, क्योंकि इस दुनिया का हुक्मरान आ रहा है। उसे मुझ पर कोई क़ाबू नहीं है, \v 31 लेकिन दुनिया यह जान ले कि मैं बाप को प्यार करता हूँ और वही कुछ करता हूँ जिसका हुक्म वह मुझे देता है। \p अब उठो, हम यहाँ से चलें। \c 15 \s1 ईसा अंगूर की हक़ीक़ी बेल है \p \v 1 मैं अंगूर की हक़ीक़ी बेल हूँ और मेरा बाप माली है। \v 2 वह मेरी हर शाख़ को जो फल नहीं लाती काटकर फेंक देता है। लेकिन जो शाख़ फल लाती है उस की वह काँट-छाँट करता है ताकि ज़्यादा फल लाए। \v 3 उस कलाम के ज़रीए जो मैंने तुमको सुनाया है तुम तो पाक-साफ़ हो चुके हो। \v 4 मुझमें क़ायम रहो तो मैं भी तुममें क़ायम रहूँगा। जो शाख़ बेल से कट गई है वह फल नहीं ला सकती। बिलकुल इसी तरह तुम भी अगर तुम मुझमें क़ायम नहीं रहते फल नहीं ला सकते। \p \v 5 मैं ही अंगूर की बेल हूँ, और तुम उस की शाख़ें हो। जो मुझमें क़ायम रहता है और मैं उसमें वह बहुत-सा फल लाता है, क्योंकि मुझसे अलग होकर तुम कुछ नहीं कर सकते। \v 6 जो मुझमें क़ायम नहीं रहता और न मैं उसमें उसे बेफ़ायदा शाख़ की तरह बाहर फेंक दिया जाता है। ऐसी शाख़ें सूख जाती हैं और लोग उनका ढेर लगाकर उन्हें आग में झोंक देते हैं जहाँ वह जल जाती हैं। \v 7 अगर तुम मुझमें क़ायम रहो और मैं तुममें तो जो जी चाहे माँगो, वह तुमको दिया जाएगा। \v 8 जब तुम बहुत-सा फल लाते और यों मेरे शागिर्द साबित होते हो तो इससे मेरे बाप को जलाल मिलता है। \v 9 जिस तरह बाप ने मुझसे मुहब्बत रखी है उसी तरह मैंने तुमसे भी मुहब्बत रखी है। अब मेरी मुहब्बत में क़ायम रहो। \v 10 जब तुम मेरे अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते हो तो तुम मेरी मुहब्बत में क़ायम रहते हो। मैं भी इसी तरह अपने बाप के अहकाम के मुताबिक़ चलता हूँ और यों उस की मुहब्बत में क़ायम रहता हूँ। \p \v 11 मैंने तुमको यह इसलिए बताया है ताकि मेरी ख़ुशी तुममें हो बल्कि तुम्हारा दिल ख़ुशी से भरकर छलक उठे। \v 12 मेरा हुक्म यह है कि एक दूसरे को वैसे प्यार करो जैसे मैंने तुमको प्यार किया है। \v 13 इससे बड़ी मुहब्बत है नहीं कि कोई अपने दोस्तों के लिए अपनी जान दे दे। \v 14 तुम मेरे दोस्त हो अगर तुम वह कुछ करो जो मैं तुमको बताता हूँ। \v 15 अब से मैं नहीं कहता कि तुम ग़ुलाम हो, क्योंकि ग़ुलाम नहीं जानता कि उसका मालिक क्या करता है। इसके बजाए मैंने कहा है कि तुम दोस्त हो, क्योंकि मैंने तुमको सब कुछ बताया है जो मैंने अपने बाप से सुना है। \v 16 तुमने मुझे नहीं चुना बल्कि मैंने तुमको चुन लिया है। मैंने तुमको मुक़र्रर किया कि जाकर फल लाओ, ऐसा फल जो क़ायम रहे। फिर बाप तुमको वह कुछ देगा जो तुम मेरे नाम में माँगोगे। \v 17 मेरा हुक्म यही है कि एक दूसरे से मुहब्बत रखो। \s1 दुनिया की दुश्मनी \p \v 18 अगर दुनिया तुमसे दुश्मनी रखे तो यह बात ज़हन में रखो कि उसने तुमसे पहले मुझसे दुश्मनी रखी है। \v 19 अगर तुम दुनिया के होते तो दुनिया तुमको अपना समझकर प्यार करती। लेकिन तुम दुनिया के नहीं हो। मैंने तुमको दुनिया से अलग करके चुन लिया है। इसलिए दुनिया तुमसे दुश्मनी रखती है। \v 20 वह बात याद करो जो मैंने तुमको बताई कि ग़ुलाम अपने मालिक से बड़ा नहीं होता। अगर उन्होंने मुझे सताया है तो तुम्हें भी सताएँगे। और अगर उन्होंने मेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारी तो वह तुम्हारी बातों पर भी अमल करेंगे। \v 21 लेकिन तुम्हारे साथ जो कुछ भी करेंगे, मेरे नाम की वजह से करेंगे, क्योंकि वह उसे नहीं जानते जिसने मुझे भेजा है। \v 22 अगर मैं आया न होता और उनसे बात न की होती तो वह क़ुसूरवार न ठहरते। लेकिन अब उनके गुनाह का कोई भी उज़्र बाक़ी नहीं रहा। \v 23 जो मुझसे दुश्मनी रखता है वह मेरे बाप से भी दुश्मनी रखता है। \v 24 अगर मैंने उनके दरमियान ऐसा काम न किया होता जो किसी और ने नहीं किया तो वह क़ुसूरवार न ठहरते। लेकिन अब उन्होंने सब कुछ देखा है और फिर भी मुझसे और मेरे बाप से दुश्मनी रखी है। \v 25 और ऐसा होना भी था ताकि कलामे-मुक़द्दस की यह पेशगोई पूरी हो जाए कि ‘उन्होंने बिलावजह मुझसे कीना रखा है।’ \p \v 26 जब वह मददगार आएगा जिसे मैं बाप की तरफ़ से तुम्हारे पास भेजूँगा तो वह मेरे बारे में गवाही देगा। वह सच्चाई का रूह है जो बाप में से निकलता है। \v 27 तुमको भी मेरे बारे में गवाही देना है, क्योंकि तुम इब्तिदा से मेरे साथ रहे हो। \c 16 \p \v 1 मैंने तुमको यह इसलिए बताया है ताकि तुम गुमराह न हो जाओ। \v 2 वह तुमको यहूदी जमातों से निकाल देंगे, बल्कि वह वक़्त भी आनेवाला है कि जो भी तुमको मार डालेगा वह समझेगा, ‘मैंने अल्लाह की ख़िदमत की है।’ \v 3 वह इस क़िस्म की हरकतें इसलिए करेंगे कि उन्होंने न बाप को जाना है, न मुझे। \v 4 मैंने तुमको यह बातें इसलिए बताई हैं कि जब उनका वक़्त आ जाए तो तुमको याद आए कि मैंने तुम्हें आगाह कर दिया था। \s1 रूहुल-क़ुद्स की ख़िदमत \p मैंने अब तक तुमको यह नहीं बताया क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था। \v 5 लेकिन अब मैं उसके पास जा रहा हूँ जिसने मुझे भेजा है। तो भी तुममें से कोई मुझसे नहीं पूछता, ‘आप कहाँ जा रहे हैं?’ \v 6 इसके बजाए तुम्हारे दिल ग़मज़दा हैं कि मैंने तुमको ऐसी बातें बताई हैं। \v 7 लेकिन मैं तुमको सच बताता हूँ कि तुम्हारे लिए फ़ायदामंद है कि मैं जा रहा हूँ। अगर मैं न जाऊँ तो मददगार तुम्हारे पास नहीं आएगा। लेकिन अगर मैं जाऊँ तो मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा। \v 8 और जब वह आएगा तो गुनाह, रास्तबाज़ी और अदालत के बारे में दुनिया की ग़लती को बेनिक़ाब करके यह ज़ाहिर करेगा : \v 9 गुनाह के बारे में यह कि लोग मुझ पर ईमान नहीं रखते, \v 10 रास्तबाज़ी के बारे में यह कि मैं बाप के पास जा रहा हूँ और तुम मुझे अब से नहीं देखोगे, \v 11 और अदालत के बारे में यह कि इस दुनिया के हुक्मरान की अदालत हो चुकी है। \p \v 12 मुझे तुमको मज़ीद बहुत कुछ बताना है, लेकिन इस वक़्त तुम उसे बरदाश्त नहीं कर सकते। \v 13 जब सच्चाई का रूह आएगा तो वह पूरी सच्चाई की तरफ़ तुम्हारी राहनुमाई करेगा। वह अपनी मरज़ी से बात नहीं करेगा बल्कि सिर्फ़ वही कुछ कहेगा जो वह ख़ुद सुनेगा। वही तुमको मुस्तक़बिल के बारे में भी बताएगा। \v 14 और वह इसमें मुझे जलाल देगा कि वह तुमको वही कुछ सुनाएगा जो उसे मुझसे मिला होगा। \v 15 जो कुछ भी बाप का है वह मेरा है। इसलिए मैंने कहा, ‘रूह तुमको वही कुछ सुनाएगा जो उसे मुझसे मिला होगा।’ \s1 अब दुख फिर सुख \p \v 16 थोड़ी देर के बाद तुम मुझे नहीं देखोगे। फिर थोड़ी देर के बाद तुम मुझे दुबारा देख लोगे।” \p \v 17 उसके कुछ शागिर्द आपस में बात करने लगे, “ईसा के यह कहने से क्या मुराद है कि ‘थोड़ी देर के बाद तुम मुझे नहीं देखोगे, फिर थोड़ी देर के बाद मुझे दुबारा देख लोगे’? और इसका क्या मतलब है, ‘मैं बाप के पास जा रहा हूँ’?” \v 18 और वह सोचते रहे, “यह किस क़िस्म की ‘थोड़ी देर’ है जिसका ज़िक्र वह कर रहे हैं? हम उनकी बात नहीं समझते।” \p \v 19 ईसा ने जान लिया कि वह मुझसे इसके बारे में सवाल करना चाहते हैं। इसलिए उसने कहा, “क्या तुम एक दूसरे से पूछ रहे हो कि मेरी इस बात का क्या मतलब है कि ‘थोड़ी देर के बाद तुम मुझे नहीं देखोगे, फिर थोड़ी देर के बाद मुझे दुबारा देख लोगे’? \v 20 मैं तुमको सच बताता हूँ कि तुम रो रोकर मातम करोगे जबकि दुनिया ख़ुश होगी। तुम ग़म करोगे, लेकिन तुम्हारा ग़म ख़ुशी में बदल जाएगा। \v 21 जब किसी औरत के बच्चा पैदा होनेवाला होता है तो उसे ग़म और तकलीफ़ होती है क्योंकि उसका वक़्त आ गया है। लेकिन ज्योंही बच्चा पैदा हो जाता है तो माँ ख़ुशी के मारे कि एक इनसान दुनिया में आ गया है अपनी तमाम मुसीबत भूल जाती है। \v 22 यही तुम्हारी हालत है। क्योंकि अब तुम ग़मज़दा हो, लेकिन मैं तुमसे दुबारा मिलूँगा। उस वक़्त तुमको ख़ुशी होगी, ऐसी ख़ुशी जो तुमसे कोई छीन न लेगा। \p \v 23 उस दिन तुम मुझसे कुछ नहीं पूछोगे। मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो कुछ तुम मेरे नाम में बाप से माँगोगे वह तुमको देगा। \v 24 अब तक तुमने मेरे नाम में कुछ नहीं माँगा। माँगो तो तुमको मिलेगा। फिर तुम्हारी ख़ुशी पूरी हो जाएगी। \s1 दुनिया पर फ़तह \p \v 25 मैंने तुमको यह तमसीलों में बताया है। लेकिन एक दिन आएगा जब मैं ऐसा नहीं करूँगा। उस वक़्त मैं तमसीलों में बात नहीं करूँगा बल्कि तुमको बाप के बारे में साफ़ साफ़ बता दूँगा। \v 26 उस दिन तुम मेरा नाम लेकर माँगोगे। मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि मैं ही तुम्हारी ख़ातिर बाप से दरख़ास्त करूँगा। \v 27 क्योंकि बाप ख़ुद तुमको प्यार करता है, इसलिए कि तुमने मुझे प्यार किया है और ईमान लाए हो कि मैं अल्लाह में से निकल आया हूँ। \v 28 मैं बाप में से निकलकर दुनिया में आया हूँ। और अब मैं दुनिया को छोड़कर बाप के पास वापस जाता हूँ।” \p \v 29 इस पर उसके शागिर्दों ने कहा, “अब आप तमसीलों में नहीं बल्कि साफ़ साफ़ बात कर रहे हैं। \v 30 अब हमें समझ आई है कि आप सब कुछ जानते हैं और कि इसकी ज़रूरत नहीं कि कोई आपकी पूछ-गछ करे। इसलिए हम ईमान रखते हैं कि आप अल्लाह में से निकलकर आए हैं।” \p \v 31 ईसा ने जवाब दिया, “अब तुम ईमान रखते हो? \v 32 देखो, वह वक़्त आ रहा है बल्कि आ चुका है जब तुम तित्तर-बित्तर हो जाओगे। मुझे अकेला छोड़कर हर एक अपने घर चला जाएगा। तो भी मैं अकेला नहीं हूँगा क्योंकि बाप मेरे साथ है। \v 33 मैंने तुमको इसलिए यह बात बताई ताकि तुम मुझमें सलामती पाओ। दुनिया में तुम मुसीबत में फँसे रहते हो। लेकिन हौसला रखो, मैं दुनिया पर ग़ालिब आया हूँ।” \c 17 \s1 ईसा अपने शागिर्दों के लिए दुआ करता है \p \v 1 यह कहकर ईसा ने अपनी नज़र आसमान की तरफ़ उठाई और दुआ की, “ऐ बाप, वक़्त आ गया है। अपने फ़रज़ंद को जलाल दे ताकि फ़रज़ंद तुझे जलाल दे। \v 2 क्योंकि तूने उसे तमाम इनसानों पर इख़्तियार दिया है ताकि वह उन सबको अबदी ज़िंदगी दे जो तूने उसे दिए हैं। \v 3 और अबदी ज़िंदगी यह है कि वह तुझे जान लें जो वाहिद और सच्चा ख़ुदा है और ईसा मसीह को भी जान लें जिसे तूने भेजा है। \v 4 मैंने तुझे ज़मीन पर जलाल दिया और उस काम की तकमील की जिसकी ज़िम्मादारी तूने मुझे दी थी। \v 5 और अब मुझे अपने हुज़ूर जलाल दे, ऐ बाप, वही जलाल जो मैं दुनिया की तख़लीक़ से पेशतर तेरे हुज़ूर रखता था। \p \v 6 मैंने तेरा नाम उन लोगों पर ज़ाहिर किया जिन्हें तूने दुनिया से अलग करके मुझे दिया है। वह तेरे ही थे। तूने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारी है। \v 7 अब उन्होंने जान लिया है कि जो कुछ भी तूने मुझे दिया है वह तेरी तरफ़ से है। \v 8 क्योंकि जो बातें तूने मुझे दीं मैंने उन्हें दी हैं। नतीजे में उन्होंने यह बातें क़बूल करके हक़ीक़ी तौर पर जान लिया कि मैं तुझमें से निकलकर आया हूँ। साथ साथ वह ईमान भी लाए कि तूने मुझे भेजा है। \p \v 9 मैं उनके लिए दुआ करता हूँ, दुनिया के लिए नहीं बल्कि उनके लिए जिन्हें तूने मुझे दिया है, क्योंकि वह तेरे ही हैं। \v 10 जो भी मेरा है वह तेरा है और जो तेरा है वह मेरा है। चुनाँचे मुझे उनमें जलाल मिला है। \v 11 अब से मैं दुनिया में नहीं हूँगा। लेकिन यह दुनिया में रह गए हैं जबकि मैं तेरे पास आ रहा हूँ। क़ुद्दूस बाप, अपने नाम में उन्हें महफ़ूज़ रख, उस नाम में जो तूने मुझे दिया है, ताकि वह एक हों जैसे हम एक हैं। \v 12 जितनी देर मैं उनके साथ रहा मैंने उन्हें तेरे नाम में महफ़ूज़ रखा, उसी नाम में जो तूने मुझे दिया था। मैंने यों उनकी निगहबानी की कि उनमें से एक भी हलाक नहीं हुआ सिवाए हलाकत के फ़रज़ंद के। यों कलाम की पेशगोई पूरी हुई। \v 13 अब तो मैं तेरे पास आ रहा हूँ। लेकिन मैं दुनिया में होते हुए यह बयान कर रहा हूँ ताकि उनके दिल मेरी ख़ुशी से भरकर छलक उठें। \v 14 मैंने उन्हें तेरा कलाम दिया है और दुनिया ने उनसे दुश्मनी रखी, क्योंकि यह दुनिया के नहीं हैं, जिस तरह मैं भी दुनिया का नहीं हूँ। \v 15 मेरी दुआ यह नहीं है कि तू उन्हें दुनिया से उठा ले बल्कि यह कि उन्हें इबलीस से महफ़ूज़ रखे। \v 16 वह दुनिया के नहीं हैं जिस तरह मैं भी दुनिया का नहीं हूँ। \v 17 उन्हें सच्चाई के वसीले से मख़सूसो-मुक़द्दस कर। तेरा कलाम ही सच्चाई है। \v 18 जिस तरह तूने मुझे दुनिया में भेजा है उसी तरह मैंने भी उन्हें दुनिया में भेजा है। \v 19 उनकी ख़ातिर मैं अपने आपको मख़सूस करता हूँ, ताकि उन्हें भी सच्चाई के वसीले से मख़सूसो-मुक़द्दस किया जाए। \p \v 20 मेरी दुआ न सिर्फ़ इन्हीं के लिए है, बल्कि उन सबके लिए भी जो इनका पैग़ाम सुनकर मुझ पर ईमान लाएँगे \v 21 ताकि सब एक हों। जिस तरह तू ऐ बाप, मुझमें है और मैं तुझमें हूँ उसी तरह वह भी हममें हों ताकि दुनिया यक़ीन करे कि तूने मुझे भेजा है। \v 22 मैंने उन्हें वह जलाल दिया है जो तूने मुझे दिया है ताकि वह एक हों जिस तरह हम एक हैं, \v 23 मैं उनमें और तू मुझमें। वह कामिल तौर पर एक हों ताकि दुनिया जान ले कि तूने मुझे भेजा और कि तूने उनसे मुहब्बत रखी है जिस तरह मुझसे रखी है। \p \v 24 ऐ बाप, मैं चाहता हूँ कि जो तूने मुझे दिए हैं वह भी मेरे साथ हों, वहाँ जहाँ मैं हूँ, कि वह मेरे जलाल को देखें, वह जलाल जो तूने इसलिए मुझे दिया है कि तूने मुझे दुनिया की तख़लीक़ से पेशतर प्यार किया है। \v 25 ऐ रास्त बाप, दुनिया तुझे नहीं जानती, लेकिन मैं तुझे जानता हूँ। और यह शागिर्द जानते हैं कि तूने मुझे भेजा है। \v 26 मैंने तेरा नाम उन पर ज़ाहिर किया और इसे ज़ाहिर करता रहूँगा ताकि तेरी मुझसे मुहब्बत उनमें हो और मैं उनमें हूँ।” \c 18 \s1 ईसा की गिरिफ़्तारी \p \v 1 यह कहकर ईसा अपने शागिर्दों के साथ निकला और वादीए-क़िदरोन को पार करके एक बाग़ में दाख़िल हुआ। \v 2 यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करनेवाला था वह भी इस जगह से वाक़िफ़ था, क्योंकि ईसा वहाँ अपने शागिर्दों के साथ जाया करता था। \v 3 राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदाह को रोमी फ़ौजियों का दस्ता और बैतुल-मुक़द्दस के कुछ पहरेदार दिए थे। अब यह मशालें, लालटैन और हथियार लिए बाग़ में पहुँचे। \v 4 ईसा को मालूम था कि उसे क्या पेश आएगा। चुनाँचे उसने निकलकर उनसे पूछा, “तुम किस को ढूँड रहे हो?” \p \v 5 उन्होंने जवाब दिया, “ईसा नासरी को।” \p ईसा ने उन्हें बताया, “मैं ही हूँ।” \p यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करना चाहता था, वह भी उनके साथ खड़ा था। \v 6 जब ईसा ने एलान किया, “मैं ही हूँ,” तो सब पीछे हटकर ज़मीन पर गिर पड़े। \v 7 एक और बार ईसा ने उनसे सवाल किया, “तुम किस को ढूँड रहे हो?” \p उन्होंने जवाब दिया, “ईसा नासरी को।” \p \v 8 उसने कहा, “मैं तुमको बता चुका हूँ कि मैं ही हूँ। अगर तुम मुझे ढूँड रहे हो तो इनको जाने दो।” \v 9 यों उस की यह बात पूरी हुई, “मैंने उनमें से जो तूने मुझे दिए हैं एक को भी नहीं खोया।” \p \v 10 शमौन पतरस के पास तलवार थी। अब उसने उसे मियान से निकालकर इमामे-आज़म के ग़ुलाम का दहना कान उड़ा दिया (ग़ुलाम का नाम मलख़ुस था)। \v 11 लेकिन ईसा ने पतरस से कहा, “तलवार को मियान में रख। क्या मैं वह प्याला न पियूँ जो बाप ने मुझे दिया है?” \s1 ईसा हन्ना के सामने \p \v 12 फिर फ़ौजी दस्ते, उनके अफ़सर और बैतुल-मुक़द्दस के यहूदी पहरेदारों ने ईसा को गिरिफ़्तार करके बाँध लिया। \v 13 पहले वह उसे हन्ना के पास ले गए। हन्ना उस साल के इमामे-आज़म कायफ़ा का सुसर था। \v 14 कायफ़ा ही ने यहूदियों को यह मशवरा दिया था कि बेहतर यह है कि एक ही आदमी उम्मत के लिए मर जाए। \s1 पतरस ईसा को जानने से इनकार करता है \p \v 15 शमौन पतरस किसी और शागिर्द के साथ ईसा के पीछे हो लिया था। यह दूसरा शागिर्द इमामे-आज़म का जाननेवाला था, इसलिए वह ईसा के साथ इमामे-आज़म के सहन में दाख़िल हुआ। \v 16 पतरस बाहर दरवाज़े पर खड़ा रहा। फिर इमामे-आज़म का जाननेवाला शागिर्द दुबारा निकल आया। उसने गेट की निगरानी करनेवाली औरत से बात की तो उसे पतरस को अपने साथ अंदर ले जाने की इजाज़त मिली। \v 17 उस औरत ने पतरस से पूछा, “तुम भी इस आदमी के शागिर्द हो कि नहीं?” \p उसने जवाब दिया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।” \p \v 18 ठंड थी, इसलिए ग़ुलामों और पहरेदारों ने लकड़ी के कोयलों से आग जलाई। अब वह उसके पास खड़े ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ खड़ा ताप रहा था। \s1 इमामे-आज़म ईसा की पूछ-गछ करता है \p \v 19 इतने में इमामे-आज़म ईसा की पूछ-गछ करके उसके शागिर्दों और तालीम के बारे में तफ़तीश करने लगा। \v 20 ईसा ने जवाब में कहा, “मैंने दुनिया में खुलकर बात की है। मैं हमेशा यहूदी इबादतख़ानों और बैतुल-मुक़द्दस में तालीम देता रहा, वहाँ जहाँ तमाम यहूदी जमा हुआ करते हैं। पोशीदगी में तो मैंने कुछ नहीं कहा। \v 21 आप मुझसे क्यों पूछ रहे हैं? उनसे दरियाफ़्त करें जिन्होंने मेरी बातें सुनी हैं। उनको मालूम है कि मैंने क्या कुछ कहा है।” \p \v 22 इस पर साथ खड़े बैतुल-मुक़द्दस के पहरेदारों में से एक ने ईसा के मुँह पर थप्पड़ मारकर कहा, “क्या यह इमामे-आज़म से बात करने का तरीक़ा है जब वह तुमसे कुछ पूछे?” \p \v 23 ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैंने बुरी बात की है तो साबित कर। लेकिन अगर सच कहा, तो तूने मुझे क्यों मारा?” \p \v 24 फिर हन्ना ने ईसा को बँधी हुई हालत में इमामे-आज़म कायफ़ा के पास भेज दिया। \s1 पतरस दुबारा ईसा को जानने से इनकार करता है \p \v 25 शमौन पतरस अब तक आग के पास खड़ा ताप रहा था। इतने में दूसरे उससे पूछने लगे, “तुम भी उसके शागिर्द हो कि नहीं?” \p लेकिन पतरस ने इनकार किया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।” \p \v 26 फिर इमामे-आज़म का एक ग़ुलाम बोल उठा जो उस आदमी का रिश्तेदार था जिसका कान पतरस ने उड़ा दिया था, “क्या मैंने तुमको बाग़ में उसके साथ नहीं देखा था?” \p \v 27 पतरस ने एक बार फिर इनकार किया, और इनकार करते ही मुरग़ की बाँग सुनाई दी। \s1 ईसा को पीलातुस के सामने पेश किया जाता है \p \v 28 फिर यहूदी ईसा को कायफ़ा से लेकर रोमी गवर्नर के महल बनाम प्रैटोरियुम के पास पहुँच गए। अब सुबह हो चुकी थी और चूँकि यहूदी फ़सह की ईद के खाने में शरीक होना चाहते थे, इसलिए वह महल में दाख़िल न हुए, वरना वह नापाक हो जाते। \v 29 चुनाँचे पीलातुस निकलकर उनके पास आया और पूछा, “तुम इस आदमी पर क्या इलज़ाम लगा रहे हो?” \p \v 30 उन्होंने जवाब दिया, “अगर यह मुजरिम न होता तो हम इसे आपके हवाले न करते।” \p \v 31 पीलातुस ने कहा, “फिर इसे ले जाओ और अपनी शरई अदालतों में पेश करो।” \p लेकिन यहूदियों ने एतराज़ किया, “हमें किसी को सज़ाए-मौत देने की इजाज़त नहीं।” \v 32 ईसा ने इस तरफ़ इशारा किया था कि वह किस तरह मरेगा और अब उस की यह बात पूरी हुई। \p \v 33 तब पीलातुस फिर अपने महल में गया। वहाँ से उसने ईसा को बुलाया और उससे पूछा, “क्या तुम यहूदियों के बादशाह हो?” \p \v 34 ईसा ने पूछा, “क्या आप अपनी तरफ़ से यह सवाल कर रहे हैं, या औरों ने आपको मेरे बारे में बताया है?” \p \v 35 पीलातुस ने जवाब दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारी अपनी क़ौम और राहनुमा इमामों ही ने तुम्हें मेरे हवाले किया है। तुमसे क्या कुछ सरज़द हुआ है?” \p \v 36 ईसा ने कहा, “मेरी बादशाही इस दुनिया की नहीं है। अगर वह इस दुनिया की होती तो मेरे ख़ादिम सख़्त जिद्दो-जहद करते ताकि मुझे यहूदियों के हवाले न किया जाता। लेकिन ऐसा नहीं है। अब मेरी बादशाही यहाँ की नहीं है।” \p \v 37 पीलातुस ने कहा, “तो फिर तुम वाक़ई बादशाह हो?” \p ईसा ने जवाब दिया, “आप सहीह कहते हैं, मैं बादशाह हूँ। मैं इसी मक़सद के लिए पैदा होकर दुनिया में आया कि सच्चाई की गवाही दूँ। जो भी सच्चाई की तरफ़ से है वह मेरी सुनता है।” \p \v 38 पीलातुस ने पूछा, “सच्चाई क्या है?” \s1 ईसा को सज़ाए-मौत सुनाई जाती है \p फिर वह दुबारा निकलकर यहूदियों के पास गया। उसने एलान किया, “मुझे उसे मुजरिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली। \v 39 लेकिन तुम्हारी एक रस्म है जिसके मुताबिक़ मुझे ईदे-फ़सह के मौक़े पर तुम्हारे लिए एक क़ैदी को रिहा करना है। क्या तुम चाहते हो कि मैं ‘यहूदियों के बादशाह’ को रिहा कर दूँ?” \p \v 40 लेकिन जवाब में लोग चिल्लाने लगे, “नहीं, इसको नहीं बल्कि बर-अब्बा को।” (बर-अब्बा डाकू था।) \c 19 \p \v 1 फिर पीलातुस ने ईसा को कोड़े लगवाए। \v 2 फ़ौजियों ने काँटेदार टहनियों का एक ताज बनाकर उसके सर पर रख दिया। उन्होंने उसे अरग़वानी रंग का लिबास भी पहनाया। \v 3 फिर उसके सामने आकर वह कहते, “ऐ यहूदियों के बादशाह, आदाब!” और उसे थप्पड़ मारते थे। \p \v 4 एक बार फिर पीलातुस निकल आया और यहूदियों से बात करने लगा, “देखो, मैं इसे तुम्हारे पास बाहर ला रहा हूँ ताकि तुम जान लो कि मुझे इसे मुजरिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली।” \v 5 फिर ईसा काँटेदार ताज और अरग़वानी रंग का लिबास पहने बाहर आया। पीलातुस ने उनसे कहा, “लो यह है वह आदमी।” \p \v 6 उसे देखते ही राहनुमा इमाम और उनके मुलाज़िम चीख़ने लगे, “इसे मसलूब करें, इसे मसलूब करें!” \p पीलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही इसे ले जाकर मसलूब करो। क्योंकि मुझे इसे मुजरिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली।” \p \v 7 यहूदियों ने इसरार किया, “हमारे पास शरीअत है और इस शरीअत के मुताबिक़ लाज़िम है कि वह मारा जाए। क्योंकि इसने अपने आपको अल्लाह का फ़रज़ंद क़रार दिया है।” \p \v 8 यह सुनकर पीलातुस मज़ीद डर गया। \v 9 दुबारा महल में जाकर ईसा से पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?” \p लेकिन ईसा ख़ामोश रहा। \v 10 पीलातुस ने उससे कहा, “अच्छा, तुम मेरे साथ बात नहीं करते? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मुझे तुम्हें रिहा करने और मसलूब करने का इख़्तियार है?” \p \v 11 ईसा ने जवाब दिया, “आपको मुझ पर इख़्तियार न होता अगर वह आपको ऊपर से न दिया गया होता। इस वजह से उस शख़्स से ज़्यादा संगीन गुनाह हुआ है जिसने मुझे दुश्मन के हवाले कर दिया है।” \p \v 12 इसके बाद पीलातुस ने उसे आज़ाद करने की कोशिश की। लेकिन यहूदी चीख़ चीख़कर कहने लगे, “अगर आप इसे रिहा करें तो आप रोमी शहनशाह क़ैसर के दोस्त साबित नहीं होंगे। जो भी बादशाह होने का दावा करे वह शहनशाह की मुख़ालफ़त करता है।” \p \v 13 इस तरह की बातें सुनकर पीलातुस ईसा को बाहर ले आया। फिर वह जज की कुरसी पर बैठ गया। उस जगह का नाम “पच्चीकारी” था। (अरामी ज़बान में वह गब्बता कहलाती थी।) \v 14 अब दोपहर के तक़रीबन बारह बज गए थे। उस दिन ईद के लिए तैयारियाँ की जाती थीं, क्योंकि अगले दिन ईद का आग़ाज़ था। पीलातुस बोल उठा, “लो, तुम्हारा बादशाह!” \p \v 15 लेकिन वह चिल्लाते रहे, “ले जाएँ इसे, ले जाएँ! इसे मसलूब करें!” \p पीलातुस ने सवाल किया, “क्या मैं तुम्हारे बादशाह को सलीब पर चढ़ाऊँ?” \p राहनुमा इमामों ने जवाब दिया, “सिवाए शहनशाह के हमारा कोई बादशाह नहीं है।” \p \v 16 फिर पीलातुस ने ईसा को उनके हवाले कर दिया ताकि उसे मसलूब किया जाए। \s1 ईसा को मसलूब किया जाता है \p चुनाँचे वह ईसा को लेकर चले गए। \v 17 वह अपनी सलीब उठाए शहर से निकला और उस जगह पहुँचा जिसका नाम खोपड़ी (अरामी ज़बान में गुलगुता) था। \v 18 वहाँ उन्होंने उसे सलीब पर चढ़ा दिया। साथ साथ उन्होंने उसके बाएँ और दाएँ हाथ दो और आदमियों को मसलूब किया। \v 19 पीलातुस ने एक तख़्ती बनवाकर उसे ईसा की सलीब पर लगवा दिया। तख़्ती पर लिखा था, ‘ईसा नासरी, यहूदियों का बादशाह।’ \v 20 बहुत-से यहूदियों ने यह पढ़ लिया, क्योंकि मसलूबियत का मक़ाम शहर के क़रीब था और यह जुमला अरामी, लातीनी और यूनानी ज़बानों में लिखा था। \v 21 यह देखकर यहूदियों के राहनुमा इमामों ने एतराज़ किया, “‘यहूदियों का बादशाह’ न लिखें बल्कि यह कि ‘इस आदमी ने यहूदियों का बादशाह होने का दावा किया’।” \p \v 22 पीलातुस ने जवाब दिया, “जो कुछ मैंने लिख दिया सो लिख दिया।” \p \v 23 ईसा को सलीब पर चढ़ाने के बाद फ़ौजियों ने उसके कपड़े लेकर चार हिस्सों में बाँट लिए, हर फ़ौजी के लिए एक हिस्सा। लेकिन चोग़ा बेजोड़ था। वह ऊपर से लेकर नीचे तक बुना हुआ एक ही टुकड़े का था। \v 24 इसलिए फ़ौजियों ने कहा, “आओ, इसे फाड़कर तक़सीम न करें बल्कि इस पर क़ुरा डालें।” यों कलामे-मुक़द्दस की यह पेशगोई पूरी हुई, “उन्होंने आपस में मेरे कपड़े बाँट लिए और मेरे लिबास पर क़ुरा डाला।” फ़ौजियों ने यही कुछ किया। \p \v 25 कुछ ख़वातीन भी ईसा की सलीब के क़रीब खड़ी थीं : उस की माँ, उस की ख़ाला, क्लोपास की बीवी मरियम और मरियम मग्दलीनी। \v 26 जब ईसा ने अपनी माँ को उस शागिर्द के साथ खड़े देखा जो उसे प्यारा था तो उसने कहा, “ऐ ख़ातून, देखें आपका बेटा यह है।” \p \v 27 और उस शागिर्द से उसने कहा, “देख, तेरी माँ यह है।” उस वक़्त से उस शागिर्द ने ईसा की माँ को अपने घर रखा। \s1 ईसा की मौत \p \v 28 इसके बाद जब ईसा ने जान लिया कि मेरा मिशन तकमील तक पहुँच चुका है तो उसने कहा, “मुझे प्यास लगी है।” (इससे भी कलामे-मुक़द्दस की एक पेशगोई पूरी हुई।) \p \v 29 क़रीब मै के सिरके से भरा बरतन पड़ा था। उन्होंने एक इस्पंज सिरके में डुबोकर उसे ज़ूफ़े की शाख़ पर लगा दिया और उठाकर ईसा के मुँह तक पहुँचाया। \v 30 यह सिरका पीने के बाद ईसा बोल उठा, “काम मुकम्मल हो गया है।” और सर झुकाकर उसने अपनी जान अल्लाह के सुपुर्द कर दी। \s1 ईसा का पहलू छेदा जाता है \p \v 31 फ़सह की तैयारी का दिन था और अगले दिन ईद का आग़ाज़ और एक ख़ास सबत था। इसलिए यहूदी नहीं चाहते थे कि मसलूब हुई लाशें अगले दिन तक सलीबों पर लटकी रहें। चुनाँचे उन्होंने पीलातुस से गुज़ारिश की कि वह उनकी टाँगें तुड़वाकर उन्हें सलीबों से उतारने दे। \v 32 तब फ़ौजियों ने आकर ईसा के साथ मसलूब किए जानेवाले आदमियों की टाँगें तोड़ दीं, पहले एक की फिर दूसरे की। \v 33 जब वह ईसा के पास आए तो उन्होंने देखा कि वह फ़ौत हो चुका है, इसलिए उन्होंने उस की टाँगें न तोड़ीं। \v 34 इसके बजाए एक ने नेज़े से ईसा का पहलू छेद दिया। ज़ख़म से फ़ौरन ख़ून और पानी बह निकला। \v 35 (जिसने यह देखा है उसने गवाही दी है और उस की गवाही सच्ची है। वह जानता है कि वह हक़ीक़त बयान कर रहा है और उस की गवाही का मक़सद यह है कि आप भी ईमान लाएँ।) \v 36 यह यों हुआ ताकि कलामे-मुक़द्दस की यह पेशगोई पूरी हो जाए, “उस की एक हड्डी भी तोड़ी नहीं जाएगी।” \v 37 कलामे-मुक़द्दस में यह भी लिखा है, “वह उस पर नज़र डालेंगे जिसे उन्होंने छेदा है।” \s1 ईसा को दफ़नाया जाता है \p \v 38 बाद में अरिमतियाह के रहनेवाले यूसुफ़ ने पीलातुस से ईसा की लाश उतारने की इजाज़त माँगी। (यूसुफ़ ईसा का ख़ुफ़िया शागिर्द था, क्योंकि वह यहूदियों से डरता था।) इसकी इजाज़त मिलने पर वह आया और लाश को उतार लिया। \v 39 नीकुदेमुस भी साथ था, वह आदमी जो गुज़रे दिनों में रात के वक़्त ईसा से मिलने आया था। नीकुदेमुस अपने साथ मुर और ऊद की तक़रीबन 34 किलोग्राम ख़ुशबू लेकर आया था। \v 40 यहूदी जनाज़े की रुसूमात के मुताबिक़ उन्होंने लाश पर ख़ुशबू लगाकर उसे पट्टियों से लपेट दिया। \v 41 सलीबों के क़रीब एक बाग़ था और बाग़ में एक नई क़ब्र थी जो अब तक इस्तेमाल नहीं की गई थी। \v 42 उसके क़रीब होने के सबब से उन्होंने ईसा को उसमें रख दिया, क्योंकि फ़सह की तैयारी का दिन था और अगले दिन ईद का आग़ाज़ था। \c 20 \s1 ख़ाली क़ब्र \p \v 1 हफ़ते का दिन गुज़र गया तो इतवार को मरियम मग्दलीनी सुबह-सवेरे क़ब्र के पास आई। अभी अंधेरा था। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि क़ब्र के मुँह पर का पत्थर एक तरफ़ हटाया गया है। \v 2 मरियम दौड़कर शमौन पतरस और ईसा को प्यारे शागिर्द के पास आई। उसने इत्तला दी, “वह ख़ुदावंद को क़ब्र से ले गए हैं, और हमें मालूम नहीं कि उन्होंने उसे कहाँ रख दिया है।” \p \v 3 तब पतरस दूसरे शागिर्द समेत क़ब्र की तरफ़ चल पड़ा। \v 4 दोनों दौड़ रहे थे, लेकिन दूसरा शागिर्द ज़्यादा तेज़रफ़्तार था। वह पहले क़ब्र पर पहुँच गया। \v 5 उसने झुककर अंदर झाँका तो कफ़न की पट्टियाँ वहाँ पड़ी नज़र आईं। लेकिन वह अंदर न गया। \v 6 फिर शमौन पतरस उसके पीछे पहुँचकर क़ब्र में दाख़िल हुआ। उसने भी देखा कि कफ़न की पट्टियाँ वहाँ पड़ी हैं \v 7 और साथ वह कपड़ा भी जिसमें ईसा का सर लिपटा हुआ था। यह कपड़ा तह किया गया था और पट्टियों से अलग पड़ा था। \v 8 फिर दूसरा शागिर्द जो पहले पहुँच गया था, वह भी दाख़िल हुआ। जब उसने यह देखा तो वह ईमान लाया। \v 9 (लेकिन अब भी वह कलामे-मुक़द्दस की यह पेशगोई नहीं समझते थे कि उसे मुरदों में से जी उठना है।) \v 10 फिर दोनों शागिर्द घर वापस चले गए। \s1 ईसा मरियम मग्दलीनी पर ज़ाहिर होता है \p \v 11 लेकिन मरियम रो रोकर क़ब्र के सामने खड़ी रही। और रोते हुए उसने झुककर क़ब्र में झाँका \v 12 तो क्या देखती है कि दो फ़रिश्ते सफ़ेद लिबास पहने हुए वहाँ बैठे हैं जहाँ पहले ईसा की लाश पड़ी थी, एक उसके सिरहाने और दूसरा वहाँ जहाँ पहले उसके पाँव थे। \v 13 उन्होंने मरियम से पूछा, “ऐ ख़ातून, तू क्यों रो रही है?” \p उसने कहा, “वह मेरे ख़ुदावंद को ले गए हैं, और मालूम नहीं कि उन्होंने उसे कहाँ रख दिया है।” \p \v 14 फिर उसने पीछे मुड़कर ईसा को वहाँ खड़े देखा, लेकिन उसने उसे न पहचाना। \v 15 ईसा ने पूछा, “ऐ ख़ातून, तू क्यों रो रही है, किस को ढूँड रही है?” \p यह सोचकर कि वह माली है उसने कहा, “जनाब, अगर आप उसे ले गए हैं तो मुझे बता दें कि उसे कहाँ रख दिया है ताकि उसे ले जाऊँ।” \p \v 16 ईसा ने उससे कहा, “मरियम!” \p वह उस की तरफ़ मुड़ी और बोल उठी, “रब्ब्बूनी!” (इसका मतलब अरामी ज़बान में उस्ताद है।) \p \v 17 ईसा ने कहा, “मेरे साथ चिमटी न रह, क्योंकि अभी मैं ऊपर, बाप के पास नहीं गया। लेकिन भाइयों के पास जा और उन्हें बता, ‘मैं अपने बाप और तुम्हारे बाप के पास वापस जा रहा हूँ, अपने ख़ुदा और तुम्हारे ख़ुदा के पास’।” \p \v 18 चुनाँचे मरियम मग्दलीनी शागिर्दों के पास गई और उन्हें इत्तला दी, “मैंने ख़ुदावंद को देखा है और उसने मुझसे यह बातें कहीं।” \s1 ईसा अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर होता है \p \v 19 उस इतवार की शाम को शागिर्द जमा थे। उन्होंने दरवाज़ों पर ताले लगा दिए थे क्योंकि वह यहूदियों से डरते थे। अचानक ईसा उनके दरमियान आ खड़ा हुआ और कहा, “तुम्हारी सलामती हो,” \v 20 और उन्हें अपने हाथों और पहलू को दिखाया। ख़ुदावंद को देखकर वह निहायत ख़ुश हुए। \v 21 ईसा ने दुबारा कहा, “तुम्हारी सलामती हो! जिस तरह बाप ने मुझे भेजा उसी तरह मैं तुमको भेज रहा हूँ।” \v 22 फिर उन पर फूँककर उसने फ़रमाया, “रूहुल-क़ुद्स को पा लो। \v 23 अगर तुम किसी के गुनाहों को मुआफ़ करो तो वह मुआफ़ किए जाएंगे। और अगर तुम उन्हें मुआफ़ न करो तो वह मुआफ़ नहीं किए जाएंगे।” \s1 तोमा शक करता है \p \v 24 बारह शागिर्दों में से तोमा जिसका लक़ब जुड़वाँ था ईसा के आने पर मौजूद न था। \v 25 चुनाँचे दूसरे शागिर्दों ने उसे बताया, “हमने ख़ुदावंद को देखा है!” लेकिन तोमा ने कहा, “मुझे यक़ीन नहीं आता। पहले मुझे उसके हाथों में कीलों के निशान नज़र आएँ और मैं उनमें अपनी उँगली डालूँ, पहले मैं अपने हाथ को उसके पहलू के ज़ख़म में डालूँ। फिर ही मुझे यक़ीन आएगा।” \p \v 26 एक हफ़ता गुज़र गया। शागिर्द दुबारा मकान में जमा थे। इस मरतबा तोमा भी साथ था। अगरचे दरवाज़ों पर ताले लगे थे फिर भी ईसा उनके दरमियान आकर खड़ा हुआ। उसने कहा, “तुम्हारी सलामती हो!” \v 27 फिर वह तोमा से मुख़ातिब हुआ, “अपनी उँगली को मेरे हाथों और अपने हाथ को मेरे पहलू के ज़ख़म में डाल और बेएतक़ाद न हो बल्कि ईमान रख।” \p \v 28 तोमा ने जवाब में उससे कहा, “ऐ मेरे ख़ुदावंद! ऐ मेरे ख़ुदा!” \p \v 29 फिर ईसा ने उसे बताया, “क्या तू इसलिए ईमान लाया है कि तूने मुझे देखा है? मुबारक हैं वह जो मुझे देखे बग़ैर मुझ पर ईमान लाते हैं।” \s1 इस किताब का मक़सद \p \v 30 ईसा ने अपने शागिर्दों की मौजूदगी में मज़ीद बहुत-से ऐसे इलाही निशान दिखाए जो इस किताब में दर्ज नहीं हैं। \v 31 लेकिन जितने दर्ज हैं उनका मक़सद यह है कि आप ईमान लाएँ कि ईसा ही मसीह यानी अल्लाह का फ़रज़ंद है और आपको इस ईमान के वसीले से उसके नाम से ज़िंदगी हासिल हो। \c 21 \s1 ईसा झील पर शागिर्दों पर ज़ाहिर होता है \p \v 1 इसके बाद ईसा एक बार फिर अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर हुआ जब वह तिबरियास यानी गलील की झील पर थे। यह यों हुआ। \v 2 कुछ शागिर्द शमौन पतरस के साथ जमा थे, तोमा जो जुड़वाँ कहलाता था, नतनेल जो गलील के क़ाना से था, ज़बदी के दो बेटे और मज़ीद दो शागिर्द। \p \v 3 शमौन पतरस ने कहा, “मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ।” \p दूसरों ने कहा, “हम भी साथ जाएंगे।” चुनाँचे वह निकलकर कश्ती पर सवार हुए। लेकिन उस पूरी रात एक भी मछली हाथ न आई। \v 4 सुबह-सवेरे ईसा झील के किनारे पर आ खड़ा हुआ। लेकिन शागिर्दों को मालूम नहीं था कि वह ईसा ही है। \v 5 उसने उनसे पूछा, “बच्चो, क्या तुम्हें खाने के लिए कुछ मिल गया?” \p उन्होंने जवाब दिया, “नहीं।” \p \v 6 उसने कहा, “अपना जाल कश्ती के दाएँ हाथ डालो, फिर तुमको कुछ मिलेगा।” उन्होंने ऐसा किया तो मछलियों की इतनी बड़ी तादाद थी कि वह जाल कश्ती तक न ला सके। \p \v 7 इस पर ख़ुदावंद के प्यारे शागिर्द ने पतरस से कहा, “यह तो ख़ुदावंद है।” यह सुनते ही कि ख़ुदावंद है शमौन पतरस अपनी चादर ओढ़कर पानी में कूद पड़ा (उसने चादर को काम करने के लिए उतार लिया था।) \v 8 दूसरे शागिर्द कश्ती पर सवार उसके पीछे आए। वह किनारे से ज़्यादा दूर नहीं थे, तक़रीबन सौ मीटर के फ़ासले पर थे। इसलिए वह मछलियों से भरे जाल को पानी में खींच खींचकर ख़ुश्की तक लाए। \v 9 जब वह कश्ती से उतरे तो देखा कि लकड़ी के कोयलों की आग पर मछलियाँ भुनी जा रही हैं और साथ रोटी भी है। \v 10 ईसा ने उनसे कहा, “उन मछलियों में से कुछ ले आओ जो तुमने अभी पकड़ी हैं।” \p \v 11 शमौन पतरस कश्ती पर गया और जाल को ख़ुश्की पर घसीट लाया। यह जाल 153 बड़ी मछलियों से भरा हुआ था, तो भी वह न फटा। \v 12 ईसा ने उनसे कहा, “आओ, नाश्ता कर लो।” किसी भी शागिर्द ने सवाल करने की जुर्रत न की कि “आप कौन हैं?” क्योंकि वह तो जानते थे कि यह ख़ुदावंद ही है। \v 13 फिर ईसा आया और रोटी लेकर उन्हें दी और इसी तरह मछली भी उन्हें खिलाई। \p \v 14 ईसा के जी उठने के बाद यह तीसरी बार थी कि वह अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर हुआ। \s1 ईसा का पतरस से सवाल \p \v 15 नाश्ते के बाद ईसा शमौन पतरस से मुख़ातिब हुआ, “यूहन्ना के बेटे शमौन, क्या तू इनकी निसबत मुझसे ज़्यादा मुहब्बत करता है?” \p उसने जवाब दिया, “जी ख़ुदावंद, आप तो जानते हैं कि मैं आपको प्यार करता हूँ।” \p ईसा बोला, “फिर मेरे लेलों को चरा।” \v 16 तब ईसा ने एक और मरतबा पूछा, “शमौन यूहन्ना के बेटे, क्या तू मुझसे मुहब्बत करता है?” \p उसने जवाब दिया, “जी ख़ुदावंद, आप तो जानते हैं कि मैं आपको प्यार करता हूँ।” \p ईसा बोला, “फिर मेरी भेड़ों की गल्लाबानी कर।” \v 17 तीसरी बार ईसा ने उससे पूछा, “शमौन यूहन्ना के बेटे, क्या तू मुझे प्यार करता है?” \p तीसरी दफ़ा यह सवाल सुनने से पतरस को बड़ा दुख हुआ। उसने कहा, “ख़ुदावंद, आपको सब कुछ मालूम है। आप तो जानते हैं कि मैं आपको प्यार करता हूँ।” \p ईसा ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा। \p \v 18 मैं तुझे सच बताता हूँ कि जब तू जवान था तो तू ख़ुद अपनी कमर बाँधकर जहाँ जी चाहता घुमता-फिरता था। लेकिन जब तू बूढ़ा होगा तो तू अपने हाथों को आगे बढ़ाएगा और कोई और तेरी कमर बाँधकर तुझे ले जाएगा जहाँ तेरा दिल नहीं करेगा।” \v 19 (ईसा की यह बात इस तरफ़ इशारा थी कि पतरस किस क़िस्म की मौत से अल्लाह को जलाल देगा।) फिर उसने उसे बताया, “मेरे पीछे चल।” \s1 ईसा और दूसरा शागिर्द \p \v 20 पतरस ने मुड़कर देखा कि जो शागिर्द ईसा को प्यारा था वह उनके पीछे चल रहा है। यह वही शागिर्द था जिसने शाम के खाने के दौरान ईसा की तरफ़ सर झुकाकर पूछा था, “ख़ुदावंद, कौन आपको दुश्मन के हवाले करेगा?” \v 21 अब उसे देखकर पतरस ने सवाल किया, “ख़ुदावंद, इसके साथ क्या होगा?” \p \v 22 ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं चाहूँ कि यह मेरे वापस आने तक ज़िंदा रहे तो तुझे क्या? बस तू मेरे पीछे चलता रह।” \p \v 23 नतीजे में भाइयों में यह ख़याल फैल गया कि यह शागिर्द नहीं मरेगा। लेकिन ईसा ने यह बात नहीं की थी। उसने सिर्फ़ यह कहा था, “अगर मैं चाहूँ कि यह मेरे वापस आने तक ज़िंदा रहे तो तुझे क्या?” \p \v 24 यह वह शागिर्द है जिसने इन बातों की गवाही देकर इन्हें क़लमबंद कर दिया है। और हम जानते हैं कि उस की गवाही सच्ची है। \s1 ख़ुलासा \p \v 25 ईसा ने इसके अलावा भी बहुत कुछ किया। अगर उसका हर काम क़लमबंद किया जाता तो मेरे ख़याल में पूरी दुनिया में यह किताबें रखने की गुंजाइश न होती।