\id JDG उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h क़ुज़ात \toc1 क़ुज़ात \toc2 क़ुज़ात \toc3 क़ुज़ा \mt1 क़ुज़ात \c 1 \s1 जुनूबी कनान पर मुकम्मल क़ाबू नहीं पाया जाता \p \v 1 यशुअ की मौत के बाद इसराईलियों ने रब से पूछा, “कौन-सा क़बीला पहले निकलकर कनानियों पर हमला करे?” \v 2 रब ने जवाब दिया, “यहूदाह का क़बीला शुरू करे। मैंने मुल्क को उनके क़ब्ज़े में कर दिया है।” \p \v 3 तब यहूदाह के क़बीले ने अपने भाइयों शमौन के क़बीले से कहा, “आएँ, हमारे साथ निकलें ताकि हम मिलकर कनानियों को उस इलाक़े से निकाल दें जो क़ुरा ने यहूदाह के क़बीले के लिए मुक़र्रर किया है। इसके बदले हम बाद में आपकी मदद करेंगे जब आप अपने इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने के लिए निकलेंगे।” चुनाँचे शमौन के मर्द यहूदाह के साथ निकले। \v 4 जब यहूदाह ने दुश्मन पर हमला किया तो रब ने कनानियों और फ़रिज़्ज़ियों को उसके क़ाबू में कर दिया। बज़क़ के पास उन्होंने उन्हें शिकस्त दी, गो उनके कुल 10,000 आदमी थे। \p \v 5 वहाँ उनका मुक़ाबला एक बादशाह से हुआ जिसका नाम अदूनी-बज़क़ था। जब उसने देखा कि कनानी और फ़रिज़्ज़ी हार गए हैं \v 6 तो वह फ़रार हुआ। लेकिन इसराईलियों ने उसका ताक़्क़ुब करके उसे पकड़ लिया और उसके हाथों और पैरों के अंगूठों को काट लिया। \v 7 तब अदूनी-बज़क़ ने कहा, “मैंने ख़ुद सत्तर बादशाहों के हाथों और पैरों के अंगूठों को कटवाया, और उन्हें मेरी मेज़ के नीचे गिरे हुए खाने के रद्दी टुकड़े जमा करने पड़े। अब अल्लाह मुझे इसका बदला दे रहा है।” उसे यरूशलम लाया गया जहाँ वह मर गया। \p \v 8 यहूदाह के मर्दों ने यरूशलम पर भी हमला किया। उस पर फ़तह पाकर उन्होंने उसके बाशिंदों को तलवार से मार डाला और शहर को जला दिया। \v 9 इसके बाद वह आगे बढ़कर उन कनानियों से लड़ने लगे जो पहाड़ी इलाक़े, दश्ते-नजब और मग़रिब के नशेबी पहाड़ी इलाक़े में रहते थे। \v 10 उन्होंने हबरून शहर पर हमला किया जो पहले क़िरियत-अरबा कहलाता था। वहाँ उन्होंने सीसी, अख़ीमान और तलमी की फ़ौजों को शिकस्त दी। \v 11 फिर वह आगे दबीर के बाशिंदों से लड़ने चले गए। दबीर का पुराना नाम क़िरियत-सिफ़र था। \p \v 12 कालिब ने कहा, “जो क़िरियत-सिफ़र पर फ़तह पाकर क़ब्ज़ा करेगा उसके साथ मैं अपनी बेटी अकसा का रिश्ता बाँधूँगा।” \v 13 कालिब के छोटे भाई ग़ुतनियेल बिन क़नज़ ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। चुनाँचे कालिब ने उसके साथ अपनी बेटी अकसा की शादी कर दी। \v 14 जब अकसा ग़ुतनियेल के हाँ जा रही थी तो उसने उसे उभारा कि वह कालिब से कोई खेत पाने की दरख़ास्त करे। अचानक वह गधे से उतर गई। कालिब ने पूछा, “क्या बात है?” \v 15 अकसा ने जवाब दिया, “जहेज़ के लिए मुझे एक चीज़ से नवाज़ें। आपने मुझे दश्ते-नजब में ज़मीन दे दी है। अब मुझे चश्मे भी दे दीजिए।” चुनाँचे कालिब ने उसे अपनी मिलकियत में से ऊपर और नीचेवाले चश्मे भी दे दिए। \p \v 16 जब यहूदाह का क़बीला खजूरों के शहर से रवाना हुआ था तो क़ीनी भी उनके साथ यहूदाह के रेगिस्तान में आए थे। (क़ीनी मूसा के सुसर यितरो की औलाद थे)। वहाँ वह दश्ते-नजब में अराद शहर के क़रीब दूसरे लोगों के दरमियान ही आबाद हुए। \p \v 17 यहूदाह का क़बीला अपने भाइयों शमौन के क़बीले के साथ आगे बढ़ा। उन्होंने कनानी शहर सफ़त पर हमला किया और उसे अल्लाह के लिए मख़सूस करके मुकम्मल तौर पर तबाह कर दिया। इसलिए उसका नाम हुरमा यानी अल्लाह के लिए तबाही पड़ा। \v 18 फिर यहूदाह के फ़ौजियों ने ग़ज़्ज़ा, अस्क़लून और अक़रून के शहरों पर उनके गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत फ़तह पाई। \v 19 रब उनके साथ था, इसलिए वह पहाड़ी इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर सके। लेकिन वह समुंदर के साथ के मैदानी इलाक़े में आबाद लोगों को निकाल न सके। वजह यह थी कि इन लोगों के पास लोहे के रथ थे। \v 20 मूसा के वादे के मुताबिक़ कालिब को हबरून शहर मिल गया। उसने उसमें से अनाक़ के तीन बेटों को उनके घरानों समेत निकाल दिया। \p \v 21 लेकिन बिनयमीन का क़बीला यरूशलम के रहनेवाले यबूसियों को निकाल न सका। आज तक यबूसी वहाँ बिनयमीनियों के साथ आबाद हैं। \s1 शिमाली कनान पर मुकम्मल क़ाबू नहीं पाया जाता \p \v 22-23 इफ़राईम और मनस्सी के क़बीले बैतेल पर क़ब्ज़ा करने के लिए निकले (बैतेल का पुराना नाम लूज़ था)। जब उन्होंने अपने जासूसों को शहर की तफ़तीश करने के लिए भेजा तो रब उनके साथ था। \v 24 उनके जासूसों की मुलाक़ात एक आदमी से हुई जो शहर से निकल रहा था। उन्होंने उससे कहा, “हमें शहर में दाख़िल होने का रास्ता दिखाएँ तो हम आप पर रहम करेंगे।” \v 25 उसने उन्हें अंदर जाने का रास्ता दिखाया, और उन्होंने उसमें घुसकर तमाम बाशिंदों को तलवार से मार डाला सिवाए मज़कूरा आदमी और उसके ख़ानदान के। \v 26 बाद में वह हित्तियों के मुल्क में गया जहाँ उसने एक शहर तामीर करके उसका नाम लूज़ रखा। यह नाम आज तक रायज है। \p \v 27 लेकिन मनस्सी ने हर शहर के बाशिंदे न निकाले। बैत-शान, तानक, दोर, इबलियाम, मजिद्दो और उनके गिर्दो-नवाह की आबादियाँ रह गईं। कनानी पूरे अज़म के साथ उनमें टिके रहे। \v 28 बाद में जब इसराईल की ताक़त बढ़ गई तो इन कनानियों को बेगार में काम करना पड़ा। लेकिन इसराईलियों ने उस वक़्त भी उन्हें मुल्क से न निकाला। \p \v 29 इसी तरह इफ़राईम के क़बीले ने भी जज़र के बाशिंदों को न निकाला, और यह कनानी उनके दरमियान आबाद रहे। \p \v 30 ज़बूलून के क़बीले ने भी क़ितरोन और नहलाल के बाशिंदों को न निकाला बल्कि यह उनके दरमियान आबाद रहे, अलबत्ता उन्हें बेगार में काम करना पड़ा। \p \v 31 आशर के क़बीले ने न अक्को के बाशिंदों को निकाला, न सैदा, अहलाब, अकज़ीब, हिलबा, अफ़ीक़ या रहोब के बाशिंदों को। \v 32 इस वजह से आशर के लोग कनानी बाशिंदों के दरमियान रहने लगे। \p \v 33 नफ़ताली के क़बीले ने बैत-शम्स और बैत-अनात के बाशिंदों को न निकाला बल्कि वह भी कनानियों के दरमियान रहने लगे। लेकिन बैत-शम्स और बैत-अनात के बाशिंदों को बेगार में काम करना पड़ा। \p \v 34 दान के क़बीले ने मैदानी इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश तो की, लेकिन अमोरियों ने उन्हें आने न दिया बल्कि पहाड़ी इलाक़े तक महदूद रखा। \v 35 अमोरी पूरे अज़म के साथ हरिस पहाड़, ऐयालोन और सालबीम में टिके रहे। लेकिन जब इफ़राईम और मनस्सी की ताक़त बढ़ गई तो अमोरियों को बेगार में काम करना पड़ा। \p \v 36 अमोरियों की सरहद दर्राए-अक़्रब्बीम से लेकर सिला से परे तक थी। \c 2 \s1 रब का फ़रिश्ता इसराईल को मलामत करता है \p \v 1 रब का फ़रिश्ता जिलजाल से चढ़कर बोकीम पहुँचा। वहाँ उसने इसराईलियों से कहा, “मैं तुम्हें मिसर से निकालकर उस मुल्क में लाया जिसका वादा मैंने क़सम खाकर तुम्हारे बापदादा से किया था। उस वक़्त मैंने कहा कि मैं तुम्हारे साथ अपना अहद कभी नहीं तोड़ूँगा। \v 2 और मैंने हुक्म दिया, ‘इस मुल्क की क़ौमों के साथ अहद मत बाँधना बल्कि उनकी क़ुरबानगाहों को गिरा देना।’ लेकिन तुमने मेरी न सुनी। यह तुमने क्या किया? \v 3 इसलिए अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि मैं उन्हें तुम्हारे आगे से नहीं निकालूँगा। वह तुम्हारे पहलुओं में काँटे बनेंगे, और उनके देवता तुम्हारे लिए फंदा बने रहेंगे।” \p \v 4 रब के फ़रिश्ते की यह बात सुनकर इसराईली ख़ूब रोए। \v 5 यही वजह है कि उस जगह का नाम बोकीम यानी रोनेवाले पड़ गया। फिर उन्होंने वहाँ रब के हुज़ूर क़ुरबानियाँ पेश कीं। \s1 इसराईल बेवफ़ा हो जाता है \p \v 6 यशुअ के क़ौम को रुख़सत करने के बाद हर एक क़बीला अपने इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने के लिए रवाना हुआ था। \v 7 जब तक यशुअ और वह बुज़ुर्ग ज़िंदा रहे जिन्होंने वह अज़ीम काम देखे हुए थे जो रब ने इसराईलियों के लिए किए थे उस वक़्त तक इसराईली रब की वफ़ादारी से ख़िदमत करते रहे। \v 8 फिर रब का ख़ादिम यशुअ बिन नून इंतक़ाल कर गया। उस की उम्र 110 साल थी। \v 9 उसे तिमनत-हरिस में उस की अपनी मौरूसी ज़मीन में दफ़नाया गया। (यह शहर इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े में जास पहाड़ के शिमाल में है।) \p \v 10 जब हमअसर इसराईली सब मरकर अपने बापदादा से जा मिले तो नई नसल उभर आई जो न तो रब को जानती, न उन कामों से वाक़िफ़ थी जो रब ने इसराईल के लिए किए थे। \v 11 उस वक़्त वह ऐसी हरकतें करने लगे जो रब को बुरी लगीं। उन्होंने बाल देवता के बुतों की पूजा करके \v 12 रब अपने बापदादा के ख़ुदा को तर्क कर दिया जो उन्हें मिसर से निकाल लाया था। वह गिर्दो-नवाह की क़ौमों के दीगर माबूदों के पीछे लग गए और उनकी पूजा भी करने लगे। इससे रब का ग़ज़ब उन पर भड़का, \v 13 क्योंकि उन्होंने उस की ख़िदमत छोड़कर बाल देवता और अस्तारात देवी की पूजा की। \v 14 रब यह देखकर इसराईलियों से नाराज़ हुआ और उन्हें डाकुओं के हवाले कर दिया जिन्होंने उनका माल लूटा। उसने उन्हें इर्दगिर्द के दुश्मनों के हाथ बेच डाला, और वह उनका मुक़ाबला करने के क़ाबिल न रहे। \v 15 जब भी इसराईली लड़ने के लिए निकले तो रब का हाथ उनके ख़िलाफ़ था। नतीजतन वह हारते गए जिस तरह उसने क़सम खाकर फ़रमाया था। \p जब वह इस तरह बड़ी मुसीबत में थे \v 16 तो रब उनके दरमियान क़ाज़ी बरपा करता जो उन्हें लूटनेवालों के हाथ से बचाते। \v 17 लेकिन वह उनकी न सुनते बल्कि ज़िना करके दीगर माबूदों के पीछे लगे और उनकी पूजा करते रहते। गो उनके बापदादा रब के अहकाम के ताबे रहे थे, लेकिन वह ख़ुद बड़ी जल्दी से उस राह से हट जाते जिस पर उनके बापदादा चले थे। \v 18 लेकिन जब भी वह दुश्मन के ज़ुल्म और दबाव तले कराहने लगते तो रब को उन पर तरस आ जाता, और वह किसी क़ाज़ी को बरपा करता और उस की मदद करके उन्हें बचाता। \p जितने अरसे तक क़ाज़ी ज़िंदा रहता उतनी देर तक इसराईली दुश्मनों के हाथ से महफ़ूज़ रहते। \v 19 लेकिन उसके मरने पर वह दुबारा अपनी पुरानी राहों पर चलने लगते, बल्कि जब वह मुड़कर दीगर माबूदों की पैरवी और पूजा करने लगते तो उनकी रविश बापदादा की रविश से भी बुरी होती। वह अपनी शरीर हरकतों और हटधर्म राहों से बाज़ आने के लिए तैयार ही न होते। \v 20 इसलिए अल्लाह को इसराईल पर बड़ा ग़ुस्सा आया। उसने कहा, “इस क़ौम ने वह अहद तोड़ दिया है जो मैंने इसके बापदादा से बाँधा था। यह मेरी नहीं सुनती, \v 21 इसलिए मैं उन क़ौमों को नहीं निकालूँगा जो यशुअ की मौत से लेकर आज तक मुल्क में रह गई हैं। यह क़ौमें इसमें आबाद रहेंगी, \v 22 और मैं उनसे इसराईलियों को आज़माकर देखूँगा कि आया वह अपने बापदादा की तरह रब की राह पर चलेंगे या नहीं।” \p \v 23 चुनाँचे रब ने इन क़ौमों को न यशुअ के हवाले किया, न फ़ौरन निकाला बल्कि उन्हें मुल्क में ही रहने दिया। \c 3 \s1 अल्लाह इसराईल को कनानी क़ौमों से आज़माता है \p \v 1 रब ने कई एक क़ौमों को मुल्के-कनान में रहने दिया ताकि उन तमाम इसराईलियों को आज़माए जो ख़ुद कनान की जंगों में शरीक नहीं हुए थे। \v 2 नीज़, वह नई नसल को जंग करना सिखाना चाहता था, क्योंकि वह जंग करने से नावाक़िफ़ थी। ज़ैल की क़ौमें कनान में रह गई थीं : \v 3 फ़िलिस्ती उनके पाँच हुक्मरानों समेत, तमाम कनानी, सैदानी और लुबनान के पहाड़ी इलाक़े में रहनेवाले हिव्वी जो बाल-हरमून पहाड़ से लेकर लबो-हमात तक आबाद थे। \v 4 उनसे रब इसराईलियों को आज़माना चाहता था। वह देखना चाहता था कि क्या यह मेरे उन अहकाम पर अमल करते हैं या नहीं जो मैंने मूसा की मारिफ़त उनके बापदादा को दिए थे। \s1 ग़ुतनियेल क़ाज़ी \p \v 5 चुनाँचे इसराईली कनानियों, हित्तियों, अमोरियों, फ़रिज़्ज़ियों, हिव्वियों और यबूसियों के दरमियान ही आबाद हो गए। \v 6 न सिर्फ़ यह बल्कि वह इन क़ौमों से अपने बेटे-बेटियों का रिश्ता बाँधकर उनके देवताओं की पूजा भी करने लगे। \v 7 इसराईलियों ने ऐसी हरकतें कीं जो रब की नज़र में बुरी थीं। रब को भूलकर उन्होंने बाल देवता और यसीरत देवी की ख़िदमत की। \p \v 8 तब रब का ग़ज़ब उन पर नाज़िल हुआ, और उसने उन्हें मसोपुतामिया के बादशाह कूशन-रिसअतैम के हवाले कर दिया। इसराईली आठ साल तक कूशन के ग़ुलाम रहे। \v 9 लेकिन जब उन्होंने मदद के लिए रब को पुकारा तो उसने उनके लिए एक नजातदहिंदा बरपा किया। कालिब के छोटे भाई ग़ुतनियेल बिन क़नज़ ने उन्हें दुश्मन के हाथ से बचाया। \v 10 उस वक़्त ग़ुतनियेल पर रब का रूह नाज़िल हुआ, और वह इसराईल का क़ाज़ी बन गया। जब वह जंग करने के लिए निकला तो रब ने मसोपुतामिया के बादशाह कूशन-रिसअतैम को उसके हवाले कर दिया, और वह उस पर ग़ालिब आ गया। \p \v 11 तब मुल्क में चालीस साल तक अमनो-अमान क़ायम रहा। लेकिन जब ग़ुतनियेल बिन क़नज़ फ़ौत हुआ \v 12 तो इसराईली दुबारा वह कुछ करने लगे जो रब की नज़र में बुरा था। इसलिए उसने मोआब के बादशाह इजलून को इसराईल पर ग़ालिब आने दिया। \v 13 इजलून ने अम्मोनियों और अमालीक़ियों के साथ मिलकर इसराईलियों से जंग की और उन्हें शिकस्त दी। उसने खजूरों के शहर पर क़ब्ज़ा किया, \v 14 और इसराईल 18 साल तक उस की ग़ुलामी में रहा। \s1 अहूद क़ाज़ी की चालाकी \p \v 15 इसराईलियों ने दुबारा मदद के लिए रब को पुकारा, और दुबारा उसने उन्हें नजातदहिंदा अता किया यानी बिनयमीन के क़बीले का अहूद बिन जीरा जो बाएँ हाथ से काम करने का आदी था। इसी शख़्स को इसराईलियों ने इजलून बादशाह के पास भेज दिया ताकि वह उसे ख़राज के पैसे अदा करे। \v 16 अहूद ने अपने लिए एक दोधारी तलवार बना ली जो तक़रीबन डेढ़ फ़ुट लंबी थी। जाते वक़्त उसने उसे अपनी कमर के दाईं तरफ़ बाँधकर अपने लिबास में छुपा लिया। \v 17 जब वह इजलून के दरबार में पहुँच गया तो उसने मोआब के बादशाह को ख़राज पेश किया। इजलून बहुत मोटा आदमी था। \v 18 फिर अहूद ने उन आदमियों को रुख़सत कर दिया जिन्होंने उसके साथ ख़राज उठाकर उसे दरबार तक पहुँचाया था। \v 19-20 अहूद भी वहाँ से रवाना हुआ, लेकिन जिलजाल के बुतों के क़रीब वह मुड़कर इजलून के पास वापस गया। \p इजलून बालाख़ाने में बैठा था जो ज़्यादा ठंडा था और उसके ज़ाती इस्तेमाल के लिए मख़सूस था। अहूद ने अंदर जाकर बादशाह से कहा, “मेरी आपके लिए ख़ुफ़िया ख़बर है।” बादशाह ने कहा, “ख़ामोश!” बाक़ी तमाम हाज़िरीन कमरे से चले गए तो अहूद ने कहा, “जो ख़बर मेरे पास आपके लिए है वह अल्लाह की तरफ़ से है!” यह सुनकर इजलून खड़ा होने लगा, \v 21 लेकिन अहूद ने उसी लमहे अपने बाएँ हाथ से कमर के दाईं तरफ़ बँधी हुई तलवार को पकड़कर उसे मियान से निकाला और इजलून के पेट में धँसा दिया। \v 22 तलवार इतनी धँस गई कि उसका दस्ता भी चरबी में ग़ायब हो गया और उस की नोक टाँगों में से निकली। तलवार को उसमें छोड़कर \v 23 अहूद ने कमरे के दरवाज़ों को बंद करके कुंडी लगाई और साथवाले कमरे में से निकलकर चला गया। \p \v 24 थोड़ी देर के बाद बादशाह के नौकरों ने आकर देखा कि दरवाज़ों पर कुंडी लगी है। उन्होंने एक दूसरे से कहा, “वह हाजत रफ़ा कर रहे होंगे,” \v 25 इसलिए कुछ देर के लिए ठहरे। लेकिन दरवाज़ा न खुला। इंतज़ार करते करते वह थक गए, लेकिन बेसूद, बादशाह ने दरवाज़ा न खोला। आख़िरकार उन्होंने चाबी ढूँडकर दरवाज़ों को खोल दिया और देखा कि मालिक की लाश फ़र्श पर पड़ी हुई है। \p \v 26 नौकरों के झिजकने की वजह से अहूद बच निकला और जिलजाल के बुतों से गुज़रकर सईरा पहुँच गया जहाँ वह महफ़ूज़ था। \v 27 वहाँ इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े में उसने नरसिंगा फूँक दिया ताकि इसराईली लड़ने के लिए जमा हो जाएँ। वह इकट्ठे हुए और उस की राहनुमाई में वादीए-यरदन में उतर गए। \v 28 अहूद बोला, “मेरे पीछे हो लें, क्योंकि अल्लाह ने आपके दुश्मन मोआब को आपके हवाले कर दिया है।” चुनाँचे वह उसके पीछे पीछे वादी में उतर गए। पहले उन्होंने दरियाए-यरदन के कम-गहरे मक़ामों पर क़ब्ज़ा करके किसी को दरिया पार करने न दिया। \v 29 उस वक़्त उन्होंने मोआब के 10,000 ताक़तवर और जंग करने के क़ाबिल आदमियों को मार डाला। एक भी न बचा। \p \v 30 उस दिन इसराईल ने मोआब को ज़ेर कर दिया, और 80 साल तक मुल्क में अमनो-अमान क़ायम रहा। \s1 शमजर क़ाज़ी \p \v 31 अहूद के दौर के बाद इसराईल का एक और नजातदहिंदा उभर आया, शमजर बिन अनात। उसने बैल के आँकुस से 600 फ़िलिस्तियों को मार डाला। \c 4 \s1 दबोरा नबिया और लशकर का सरदार बरक़ \p \v 1 जब अहूद फ़ौत हुआ तो इसराईली दुबारा ऐसी हरकतें करने लगे जो रब के नज़दीक बुरी थीं। \v 2-3 इसलिए रब ने उन्हें कनान के बादशाह याबीन के हवाले कर दिया। याबीन का दारुल-हुकूमत हसूर था, और उसके पास 900 लोहे के रथ थे। उसके लशकर का सरदार सीसरा था जो हरूसत-हगोयम में रहता था। याबीन ने 20 साल इसराईलियों पर बहुत ज़ुल्म किया, इसलिए उन्होंने मदद के लिए रब को पुकारा। \p \v 4 उन दिनों में दबोरा नबिया इसराईल की क़ाज़ी थी। उसका शौहर लफ़ीदोत था, \v 5 और वह ‘दबोरा के खजूर’ के पास रहती थी जो इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े में रामा और बैतेल के दरमियान था। इस दरख़्त के साये में वह इसराईलियों के मामलात के फ़ैसले किया करती थी। \v 6 एक दिन दबोरा ने बरक़ बिन अबीनुअम को बुलाया। बरक़ नफ़ताली के क़बायली इलाक़े के शहर क़ादिस में रहता था। दबोरा ने बरक़ से कहा, “रब इसराईल का ख़ुदा आपको हुक्म देता है, ‘नफ़ताली और ज़बूलून के क़बीलों में से 10,000 मर्दों को जमा करके उनके साथ तबूर पहाड़ पर चढ़ जा! \v 7 मैं याबीन के लशकर के सरदार सीसरा को उसके रथों और फ़ौज समेत तेरे क़रीब की क़ैसोन नदी के पास खींच लाऊँगा। वहाँ मैं उसे तेरे हाथ में कर दूँगा’।” \p \v 8 बरक़ ने जवाब दिया, “मैं सिर्फ़ इस सूरत में जाऊँगा कि आप भी साथ जाएँ। आपके बग़ैर मैं नहीं जाऊँगा।” \v 9 दबोरा ने कहा, “ठीक है, मैं ज़रूर आपके साथ जाऊँगी। लेकिन इस सूरत में आपको सीसरा पर ग़ालिब आने की इज़्ज़त हासिल नहीं होगी बल्कि एक औरत को। क्योंकि रब सीसरा को एक औरत के हवाले कर देगा।” \p चुनाँचे दबोरा बरक़ के साथ क़ादिस गई। \v 10 वहाँ बरक़ ने ज़बूलून और नफ़ताली के क़बीलों को अपने पास बुला लिया। 10,000 आदमी उस की राहनुमाई में तबूर पहाड़ पर चले गए। दबोरा भी साथ गई। \p \v 11 उन दिनों में एक क़ीनी बनाम हिबर ने अपना ख़ैमा क़ादिस के क़रीब ऐलोन-ज़ाननीम में लगाया हुआ था। क़ीनी मूसा के साले होबाब की औलाद में से था। लेकिन हिबर दूसरे क़ीनियों से अलग रहता था। \p \v 12 अब सीसरा को इत्तला दी गई कि बरक़ बिन अबीनुअम फ़ौज लेकर पहाड़ तबूर पर चढ़ गया है। \v 13 यह सुनकर वह हरूसत-हगोयम से रवाना होकर अपने 900 रथों और बाक़ी लशकर के साथ क़ैसोन नदी पर पहुँच गया। \p \v 14 तब दबोरा ने बरक़ से बात की, “हमला के लिए तैयार हो जाएँ, क्योंकि रब ने आज ही सीसरा को आपके क़ाबू में कर दिया है। रब आपके आगे आगे चल रहा है।” चुनाँचे बरक़ अपने 10,000 आदमियों के साथ तबूर पहाड़ से उतर आया। \v 15 जब उन्होंने दुश्मन पर हमला किया तो रब ने कनानियों के पूरे लशकर में रथों समेत अफ़रा-तफ़री पैदा कर दी। सीसरा अपने रथ से उतरकर पैदल ही फ़रार हो गया। \p \v 16 बरक़ के आदमियों ने भागनेवाले फ़ौजियों और उनके रथों का ताक़्क़ुब करके उनको हरूसत-हगोयम तक मारते गए। एक भी न बचा। \s1 सीसरा का अंजाम \p \v 17 इतने में सीसरा पैदल चलकर क़ीनी आदमी हिबर की बीवी याएल के ख़ैमे के पास भाग आया था। वजह यह थी कि हसूर के बादशाह याबीन के हिबर के घराने के साथ अच्छे ताल्लुक़ात थे। \v 18 याएल ख़ैमे से निकलकर सीसरा से मिलने गई। उसने कहा, “आएँ मेरे आक़ा, अंदर आएँ और न डरें।” चुनाँचे वह अंदर आकर लेट गया, और याएल ने उस पर कम्बल डाल दिया। \p \v 19 सीसरा ने कहा, “मुझे प्यास लगी है, कुछ पानी पिला दो।” याएल ने दूध का मशकीज़ा खोलकर उसे पिला दिया और उसे दुबारा छुपा दिया। \v 20 सीसरा ने दरख़ास्त की, “दरवाज़े में खड़ी हो जाओ! अगर कोई आए और पूछे कि क्या ख़ैमे में कोई है तो बोलो कि नहीं, कोई नहीं है।” \p \v 21 यह कहकर सीसरा गहरी नींद सो गया, क्योंकि वह निहायत थका हुआ था। तब याएल ने मेख़ और हथोड़ा पकड़ लिया और दबे पाँव सीसरा के पास जाकर मेख़ को इतने ज़ोर से उस की कनपटी में ठोंक दिया कि मेख़ ज़मीन में धँस गई और वह मर गया। \p \v 22 कुछ देर के बाद बरक़ सीसरा के ताक़्क़ुब में वहाँ से गुज़रा। याएल ख़ैमे से निकलकर उससे मिलने आई और बोली, “आएँ, मैं आपको वह आदमी दिखाती हूँ जिसे आप ढूँड रहे हैं।” बरक़ उसके साथ ख़ैमे में दाख़िल हुआ तो क्या देखा कि सीसरा की लाश ज़मीन पर पड़ी है और मेख़ उस की कनपटी में से गुज़रकर ज़मीन में गड़ गई है। \p \v 23 उस दिन अल्लाह ने कनानी बादशाह याबीन को इसराईलियों के सामने ज़ेर कर दिया। \v 24 इसके बाद उनकी ताक़त बढ़ती गई जबकि याबीन कमज़ोर होता गया और आख़िरकार इसराईलियों के हाथों तबाह हो गया। \c 5 \s1 दबोरा और बरक़ का गीत \p \v 1 फ़तह के दिन दबोरा ने बरक़ बिन अबीनुअम के साथ यह गीत गाया, \p \v 2 “अल्लाह की सताइश हो! क्योंकि इसराईल के सरदारों ने राहनुमाई की, और अवाम निकलने के लिए तैयार हुए। \p \v 3 ऐ बादशाहो, सुनो! ऐ हुक्मरानो, मेरी बात पर तवज्जुह दो! मैं रब की तमजीद में गीत गाऊँगी, रब इसराईल के ख़ुदा की मद्हसराई करूँगी। \b \p \v 4 ऐ रब, जब तू सईर से निकल आया और अदोम के खुले मैदान से रवाना हुआ तो ज़मीन काँप उठी और आसमान से पानी टपकने लगा, बादलों से बारिश बरसने लगी। \p \v 5 कोहे-सीना के रब के हुज़ूर पहाड़ हिलने लगे, रब इसराईल के ख़ुदा के सामने वह कपकपाने लगे। \b \p \v 6 शमजर बिन अनात और याएल के दिनों में सफ़र के पक्के और सीधे रास्ते ख़ाली रहे और मुसाफ़िर उनसे हटकर बल खाते हुए छोटे छोटे रास्तों पर चलकर अपनी मनज़िल तक पहुँचते थे। \p \v 7 देहात की ज़िंदगी सूनी हो गई। गाँव में रहना मुश्किल था जब तक मैं, दबोरा जो इसराईल की माँ हूँ खड़ी न हुई। \p \v 8 शहर के दरवाज़ों पर जंग छिड़ गई जब उन्होंने नए माबूदों को चुन लिया। उस वक़्त इसराईल के 40,000 मर्दों के पास एक भी ढाल या नेज़ा न था। \p \v 9 मेरा दिल इसराईल के सरदारों के साथ है और उनके साथ जो ख़ुशी से जंग के लिए निकले। रब की सताइश करो! \p \v 10 ऐ तुम जो सफ़ेद गधों पर कपड़े बिछाकर उन पर सवार हो, अल्लाह की तमजीद करो! ऐ तुम जो पैदल चल रहे हो, अल्लाह की तारीफ़ करो! \p \v 11 सुनो! जहाँ जानवरों को पानी पिलाया जाता है वहाँ लोग रब के नजातबख़्श कामों की तारीफ़ कर रहे हैं, उन नजातबख़्श कामों की जो उसने इसराईल के देहातियों की ख़ातिर किए। तब रब के लोग शहर के दरवाज़ों के पास उतर आए। \b \p \v 12 ऐ दबोरा, उठें, उठें! उठें, हाँ उठें और गीत गाएँ! ऐ बरक़, खड़े हो जाएँ! ऐ अबीनुअम के बेटे, अपने क़ैदियों को बाँधकर ले जाएँ! \b \p \v 13 फिर बचे हुए फ़ौजी पहाड़ी इलाक़े से उतरकर क़ौम के शुरफ़ा के पास आए, रब की क़ौम सूरमाओं के साथ मेरे पास उतर आई। \p \v 14 इफ़राईम से जिसकी जड़ें अमालीक़ में हैं वह उतर आए, और बिनयमीन के मर्द उनके पीछे हो लिए। मकीर से हुक्मरान और ज़बूलून से सिपहसालार उतर आए। \p \v 15 इशकार के रईस भी दबोरा के साथ थे, और उसके फ़ौजी बरक़ के पीछे होकर वादी में दौड़ आए। लेकिन रूबिन का क़बीला अपने इलाक़े में रहकर सोच-बिचार में उलझा रहा। \p \v 16 तू क्यों अपने ज़ीन के दो बोरों के दरमियान बैठा रहा? क्या गल्लों के दरमियान चरवाहों की बाँसरियों की आवाज़ें सुनने के लिए? रूबिन का क़बीला अपने इलाक़े में रहकर सोच-बिचार में उलझा रहा। \p \v 17 जिलियाद के घराने दरियाए-यरदन के मशरिक़ में ठहरे रहे। और दान का क़बीला, वह क्यों बहरी जहाज़ों के पास रहा? आशर का क़बीला भी साहिल पर बैठा रहा, वह आराम से अपनी बंदरगाहों के पास ठहरा रहा, \p \v 18 जबकि ज़बूलून और नफ़ताली अपनी जान पर खेलकर मैदाने-जंग में आ गए। \b \p \v 19 बादशाह आए और लड़े, कनान के बादशाह मजिद्दो नदी पर तानक के पास इसराईल से लड़े। लेकिन वहाँ से वह चाँदी का लूटा हुआ माल वापस न लाए। \p \v 20 आसमान से सितारों ने सीसरा पर हमला किया, अपनी आसमानी राहों को छोड़कर वह उससे और उस की क़ौम से लड़ने आए। \p \v 21 क़ैसोन नदी उन्हें उड़ा ले गई, वह नदी जो क़दीम ज़माने से बहती है। ऐ मेरी जान, मज़बूती से आगे चलती जा! \p \v 22 उस वक़्त टापों का बड़ा शोर सुनाई दिया। दुश्मन के ज़बरदस्त घोड़े सरपट दौड़ रहे थे। \b \p \v 23 रब के फ़रिश्ते ने कहा, ‘मीरोज़ शहर पर लानत करो, उसके बाशिंदों पर ख़ूब लानत करो! क्योंकि वह रब की मदद करने न आए, वह सूरमाओं के ख़िलाफ़ रब की मदद करने न आए।’ \b \p \v 24 हिबर क़ीनी की बीवी मुबारक है! ख़ैमों में रहनेवाली औरतों में से वह सबसे मुबारक है! \p \v 25 जब सीसरा ने पानी माँगा तो याएल ने उसे दूध पिलाया। शानदार प्याले में लस्सी डालकर वह उसे उसके पास लाई। \p \v 26 लेकिन फिर उसने अपने हाथ से मेख़ और अपने दहने हाथ से मज़दूरों का हथोड़ा पकड़कर सीसरा का सर फोड़ दिया, उस की खोपड़ी टुकड़े टुकड़े करके उस की कनपटी को छेद दिया। \p \v 27 उसके पाँवों में वह तड़प उठा। वह गिरकर वहीं पड़ा रहा। हाँ, वह उसके पाँवों में गिरकर हलाक हुआ। \p \v 28 सीसरा की माँ ने खिड़की में से झाँका और दरीचे में से देखती देखती रोती रही, ‘उसके रथ के पहुँचने में इतनी देर क्यों हो रही है? रथों की आवाज़ अब तक क्यों सुनाई नहीं दे रही?’ \p \v 29 उस की दानिशमंद ख़वातीन उसे तसल्ली देती हैं और वह ख़ुद उनकी बात दोहराती है, \v 30 ‘वह लूटा हुआ माल आपस में बाँट रहे होंगे। हर मर्द के लिए एक दो लड़कियाँ और सीसरा के लिए रंगदार लिबास होगा। हाँ, वह रंगदार लिबास और मेरी गरदन को सजाने के लिए दो नफ़ीस रंगदार कपड़े ला रहे होंगे।’ \b \p \v 31 ऐ रब, तेरे तमाम दुश्मन सीसरा की तरह हलाक हो जाएँ! लेकिन जो तुझसे प्यार करते हैं वह पूरे ज़ोर से तुलू होनेवाले सूरज की मानिंद हों।” \b \p बरक़ की इस फ़तह के बाद इसराईल में 40 साल अमनो-अमान क़ायम रहा। \c 6 \s1 मिदियानी इसराईलियों को दबाते हैं \p \v 1 फिर इसराईली दुबारा वह कुछ करने लगे जो रब को बुरा लगा, और उसने उन्हें सात साल तक मिदियानियों के हवाले कर दिया। \v 2 मिदियानियों का दबाव इतना ज़्यादा बढ़ गया कि इसराईलियों ने उनसे पनाह लेने के लिए पहाड़ी इलाक़े में शिगाफ़, ग़ार और गढ़ियाँ बना लीं। \v 3 क्योंकि जब भी वह अपनी फ़सलें लगाते तो मिदियानी, अमालीक़ी और मशरिक़ के दीगर फ़ौजी उन पर हमला करके \v 4 मुल्क को घेर लेते और फ़सलों को ग़ज़्ज़ा शहर तक तबाह करते। वह खानेवाली कोई भी चीज़ नहीं छोड़ते थे, न कोई भेड़, न कोई बैल, और न कोई गधा। \v 5 और जब वह अपने मवेशियों और ख़ैमों के साथ पहुँचते तो टिड्डियों के दलों की मानिंद थे। इतने मर्द और ऊँट थे कि उनको गिना नहीं जा सकता था। यों वह मुल्क पर चढ़ आते थे ताकि उसे तबाह करें। \v 6 इसराईली मिदियान के सबब से इतने पस्तहाल हुए कि आख़िरकार मदद के लिए रब को पुकारने लगे। \p \v 7-8 तब उसने उनमें एक नबी भेज दिया जिसने कहा, “रब इसराईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि मैं ही तुम्हें मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया। \v 9 मैंने तुम्हें मिसर के हाथ से और उन तमाम ज़ालिमों के हाथ से बचा लिया जो तुम्हें दबा रहे थे। मैं उन्हें तुम्हारे आगे आगे निकालता गया और उनकी ज़मीन तुम्हें दे दी। \v 10 उस वक़्त मैंने तुम्हें बताया, ‘मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। जिन अमोरियों के मुल्क में तुम रह रहे हो उनके देवताओं का ख़ौफ़ मत मानना। लेकिन तुमने मेरी न सुनी’।” \s1 रब जिदौन को बुलाता है \p \v 11 एक दिन रब का फ़रिश्ता आया और उफ़रा में बलूत के एक दरख़्त के साये में बैठ गया। यह दरख़्त अबियज़र के ख़ानदान के एक आदमी का था जिसका नाम युआस था। वहाँ अंगूर का रस निकालने का हौज़ था, और उसमें युआस का बेटा जिदौन छुपकर गंदुम झाड़ रहा था, हौज़ में इसलिए कि गंदुम मिदियानियों से महफ़ूज़ रहे। \v 12 रब का फ़रिश्ता जिदौन पर ज़ाहिर हुआ और कहा, “ऐ ज़बरदस्त सूरमे, रब तेरे साथ है!” \p \v 13 जिदौन ने जवाब दिया, “नहीं जनाब, अगर रब हमारे साथ हो तो यह सब कुछ हमारे साथ क्यों हो रहा है? उसके वह तमाम मोजिज़े आज कहाँ नज़र आते हैं जिनके बारे में हमारे बापदादा हमें बताते रहे हैं? क्या वह नहीं कहते थे कि रब हमें मिसर से निकाल लाया? नहीं, जनाब। अब ऐसा नहीं है। अब रब ने हमें तर्क करके मिदियान के हवाले कर दिया है।” \p \v 14 रब ने उस की तरफ़ मुड़कर कहा, “अपनी इस ताक़त में जा और इसराईल को मिदियान के हाथ से बचा। मैं ही तुझे भेज रहा हूँ।” \p \v 15 लेकिन जिदौन ने एतराज़ किया, “ऐ रब, मैं इसराईल को किस तरह बचाऊँ? मेरा ख़ानदान मनस्सी के क़बीले का सबसे कमज़ोर ख़ानदान है, और मैं अपने बाप के घर में सबसे छोटा हूँ।” \p \v 16 रब ने जवाब दिया, “मैं तेरे साथ हूँगा, और तू मिदियानियों को यों मारेगा जैसे एक ही आदमी को।” \p \v 17 तब जिदौन ने कहा, “अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र हो तो मुझे कोई इलाही निशान दिखा ताकि साबित हो जाए कि वाक़ई रब ही मेरे साथ बात कर रहा है। \v 18 मैं अभी जाकर क़ुरबानी तैयार करता हूँ और फिर वापस आकर उसे तुझे पेश करूँगा। उस वक़्त तक रवाना न हो जाना।” \p रब ने कहा, “ठीक है, मैं तेरी वापसी का इंतज़ार करके ही जाऊँगा।” \p \v 19 जिदौन चला गया। उसने बकरी का बच्चा ज़बह करके तैयार किया और पूरे 16 किलोग्राम मैदे से बेख़मीरी रोटी बनाई। फिर गोश्त को टोकरी में रखकर और उसका शोरबा अलग बरतन में डालकर वह सब कुछ रब के फ़रिश्ते के पास लाया और उसे बलूत के साये में पेश किया। \p \v 20 रब के फ़रिश्ते ने कहा, “गोश्त और बेख़मीरी रोटी को लेकर इस पत्थर पर रख दे, फिर शोरबा उस पर उंडेल दे।” जिदौन ने ऐसा ही किया। \v 21 रब के फ़रिश्ते के हाथ में लाठी थी। अब उसने लाठी के सिरे से गोश्त और बेख़मीरी रोटी को छू दिया। अचानक पत्थर से आग भड़क उठी और ख़ुराक भस्म हो गई। साथ साथ रब का फ़रिश्ता ओझल हो गया। \p \v 22 फिर जिदौन को यक़ीन आया कि यह वाक़ई रब का फ़रिश्ता था, और वह बोल उठा, “हाय रब क़ादिरे-मुतलक़! मुझ पर अफ़सोस, क्योंकि मैंने रब के फ़रिश्ते को रूबरू देखा है।” \p \v 23 लेकिन रब उससे हमकलाम हुआ और कहा, “तेरी सलामती हो। मत डर, तू नहीं मरेगा।” \p \v 24 वहीं जिदौन ने रब के लिए क़ुरबानगाह बनाई और उसका नाम ‘रब सलामत है’ रखा। यह आज तक अबियज़र के ख़ानदान के शहर उफ़रा में मौजूद है। \s1 जिदौन बाल की क़ुरबानगाह गिरा देता है \p \v 25 उसी रात रब जिदौन से हमकलाम हुआ, “अपने बाप के बैलों में से दूसरे बैल को जो सात साल का है चुन ले। फिर अपने बाप की वह क़ुरबानगाह गिरा दे जिस पर बाल देवता को क़ुरबानियाँ चढ़ाई जाती हैं, और यसीरत देवी का वह खंबा काट डाल जो साथ खड़ा है। \v 26 इसके बाद उसी पहाड़ी क़िले की चोटी पर रब अपने ख़ुदा के लिए सहीह क़ुरबानगाह बना दे। यसीरत के खंबे की कटी हुई लकड़ी और बैल को उस पर रखकर मुझे भस्म होनेवाली क़ुरबानी पेश कर।” \p \v 27 चुनाँचे जिदौन ने अपने दस नौकरों को साथ लेकर वह कुछ किया जिसका हुक्म रब ने उसे दिया था। लेकिन वह अपने ख़ानदान और शहर के लोगों से डरता था, इसलिए उसने यह काम दिन के बजाए रात के वक़्त किया। \p \v 28 सुबह के वक़्त जब शहर के लोग उठे तो देखा कि बाल की क़ुरबानगाह ढा दी गई है और यसीरत देवी का साथवाला खंबा काट दिया गया है। इनकी जगह एक नई क़ुरबानगाह बनाई गई है जिस पर बैल को चढ़ाया गया है। \v 29 उन्होंने एक दूसरे से पूछा, “किसने यह किया?” जब वह इस बात की तफ़तीश करने लगे तो किसी ने उन्हें बताया कि जिदौन बिन युआस ने यह सब कुछ किया है। \p \v 30 तब वह युआस के घर गए और तक़ाज़ा किया, “अपने बेटे को घर से निकाल लाएँ। लाज़िम है कि वह मर जाए, क्योंकि उसने बाल की क़ुरबानगाह को गिराकर साथवाला यसीरत देवी का खंबा भी काट डाला है।” \p \v 31 लेकिन युआस ने उनसे जो उसके सामने खड़े थे कहा, “क्या आप बाल के दिफ़ा में लड़ना चाहते हैं? जो भी बाल के लिए लड़ेगा उसे कल सुबह तक मार दिया जाएगा। अगर बाल वाक़ई ख़ुदा है तो वह ख़ुद अपने दिफ़ा में लड़े जब कोई उस की क़ुरबानगाह को ढा दे।” \p \v 32 चूँकि जिदौन ने बाल की क़ुरबानगाह गिरा दी थी इसलिए उसका नाम यरुब्बाल यानी ‘बाल उससे लड़े’ पड़ गया। \s1 जिदौन अल्लाह से निशान माँगता है \p \v 33 कुछ देर के बाद तमाम मिदियानी, अमालीक़ी और दूसरी मशरिक़ी क़ौमें जमा हुईं और दरियाए-यरदन को पार करके अपने डेरे मैदाने-यज़्रएल में लगाए। \v 34 फिर रब का रूह जिदौन पर नाज़िल हुआ। उसने नरसिंगा फूँककर अबियज़र के ख़ानदान के मर्दों को अपने पीछे हो लेने के लिए बुलाया। \v 35 साथ साथ उसने अपने क़ासिदों को मनस्सी के क़बीले और आशर, ज़बूलून और नफ़ताली के क़बीलों के पास भी भेज दिया। तब वह भी आए और जिदौन के मर्दों के साथ मिलकर उसके पीछे हो लिए। \p \v 36 जिदौन ने अल्लाह से दुआ की, “अगर तू वाक़ई इसराईल को अपने वादे के मुताबिक़ मेरे ज़रीए बचाना चाहता है \v 37 तो मुझे यक़ीन दिला। मैं रात को ताज़ा कतरी हुई ऊन गंदुम गाहने के फ़र्श पर रख दूँगा। कल सुबह अगर सिर्फ़ ऊन पर ओस पड़ी हो और इर्दगिर्द का सारा फ़र्श ख़ुश्क हो तो मैं जान लूँगा कि वाक़ई तू अपने वादे के मुताबिक़ इसराईल को मेरे ज़रीए बचाएगा।” \p \v 38 वही कुछ हुआ जिसकी दरख़ास्त जिदौन ने की थी। अगले दिन जब वह सुबह-सवेरे उठा तो ऊन ओस से तर थी। जब उसने उसे निचोड़ा तो इतना पानी था कि बरतन भर गया। \p \v 39 फिर जिदौन ने अल्लाह से कहा, “मुझसे ग़ुस्से न हो जाना अगर मैं तुझसे एक बार फिर दरख़ास्त करूँ। मुझे एक आख़िरी दफ़ा ऊन के ज़रीए तेरी मरज़ी जाँचने की इजाज़त दे। इस दफ़ा ऊन ख़ुश्क रहे और इर्दगिर्द के सारे फ़र्श पर ओस पड़ी हो।” \v 40 उस रात अल्लाह ने ऐसा ही किया। सिर्फ़ ऊन ख़ुश्क रही जबकि इर्दगिर्द के सारे फ़र्श पर ओस पड़ी थी। \c 7 \s1 अल्लाह जिदौन के साथियों को चुन लेता है \p \v 1 सुबह-सवेरे यरुब्बाल यानी जिदौन अपने तमाम लोगों को साथ लेकर हरोद चश्मे के पास आया। वहाँ उन्होंने अपने डेरे लगाए। मिदियानियों ने अपनी ख़ैमागाह उनके शिमाल में मोरिह पहाड़ के दामन में लगाई हुई थी। \p \v 2 रब ने जिदौन से कहा, “तेरे पास ज़्यादा लोग हैं! मैं इस क़िस्म के बड़े लशकर को मिदियानियों पर फ़तह नहीं दूँगा, वरना इसराईली मेरे सामने डींगें मारकर कहेंगे, ‘हमने अपनी ही ताक़त से अपने आपको बचाया है!’ \v 3 इसलिए लशकरगाह में एलान कर कि जो डर के मारे परेशान हो वह अपने घर वापस चला जाए।” जिदौन ने यों किया तो 22,000 मर्द वापस चले गए जबकि 10,000 जिदौन के पास रहे। \p \v 4 लेकिन रब ने दुबारा जिदौन से बात की, “अभी तक ज़्यादा लोग हैं! इनके साथ उतरकर चश्मे के पास जा। वहाँ मैं उन्हें जाँचकर उनको मुक़र्रर करूँगा जिन्हें तेरे साथ जाना है।” \v 5 चुनाँचे जिदौन अपने आदमियों के साथ चश्मे के पास उतर आया। रब ने उसे हुक्म दिया, “जो भी अपना हाथ पानी से भरकर उसे कुत्ते की तरह चाट ले उसे एक तरफ़ खड़ा कर। दूसरी तरफ़ उन्हें खड़ा कर जो घुटने टेककर पानी पीते हैं।” \v 6 300 आदमियों ने अपना हाथ पानी से भरकर उसे चाट लिया जबकि बाक़ी सब पीने के लिए झुक गए। \p \v 7 फिर रब ने जिदौन से फ़रमाया, “मैं इन 300 चाटनेवाले आदमियों के ज़रीए इसराईल को बचाकर मिदियानियों को तेरे हवाले कर दूँगा। बाक़ी तमाम मर्दों को फ़ारिग़ कर। वह सब अपने अपने घर वापस चले जाएँ।” \v 8 चुनाँचे जिदौन ने बाक़ी तमाम आदमियों को फ़ारिग़ कर दिया। सिर्फ़ मुक़र्ररा 300 मर्द रह गए। अब यह दूसरों की ख़ुराक और नरसिंगे अपने पास रखकर जंग के लिए तैयार हुए। उस वक़्त मिदियानी ख़ैमागाह इसराईलियों के नीचे वादी में थी। \s1 मिदियानियों पर जिदौन की फ़तह \p \v 9 जब रात हुई तो रब जिदौन से हमकलाम हुआ, “उठ, मिदियानी ख़ैमागाह के पास उतरकर उस पर हमला कर, क्योंकि मैं उसे तेरे हाथ में दे दूँगा। \v 10 लेकिन अगर तू इससे डरता है तो पहले अपने नौकर फ़ूराह के साथ उतरकर \v 11 वह बातें सुन ले जो वहाँ के लोग कह रहे हैं। तब उन पर हमला करने की जुर्रत बढ़ जाएगी।” \p जिदौन फ़ूराह के साथ ख़ैमागाह के किनारे के पास उतर आया। \v 12 मिदियानी, अमालीक़ी और मशरिक़ के दीगर फ़ौजी टिड्डियों के दल की तरह वादी में फैले हुए थे। उनके ऊँट साहिल की रेत की तरह बेशुमार थे। \v 13 जिदौन दबे पाँव दुश्मन के इतने क़रीब पहुँच गया कि उनकी बातें सुन सकता था। ऐन उस वक़्त एक फ़ौजी दूसरे को अपना ख़ाब सुना रहा था, “मैंने ख़ाब में देखा कि जौ की बड़ी रोटी लुढ़कती लुढ़कती हमारी ख़ैमागाह में उतर आई। यहाँ वह इतनी शिद्दत से ख़ैमे से टकरा गई कि ख़ैमा उलटकर ज़मीनबोस हो गया।” \v 14 दूसरे ने जवाब दिया, “इसका सिर्फ़ यह मतलब हो सकता है कि इसराईली मर्द जिदौन बिन युआस की तलवार ग़ालिब आएगी! अल्लाह उसे मिदियानियों और पूरी लशकरगाह पर फ़तह देगा।” \p \v 15 ख़ाब और उस की ताबीर सुनकर जिदौन ने अल्लाह को सिजदा किया। फिर उसने इसराईली ख़ैमागाह में वापस आकर एलान किया, “उठें! रब ने मिदियानी लशकरगाह को तुम्हारे हवाले कर दिया है।” \v 16 उसने अपने 300 मर्दों को सौ सौ के तीन गुरोहों में तक़सीम करके हर एक को एक नरसिंगा और एक घड़ा दे दिया। हर घड़े में मशाल थी। \v 17-18 उसने हुक्म दिया, “जो कुछ मैं करूँगा उस पर ग़ौर करके वही कुछ करें। पूरी ख़ैमागाह को घेर लें और ऐन वही कुछ करें जो मैं करूँगा। जब मैं अपने सौ लोगों के साथ ख़ैमागाह के किनारे पहुँचूँगा तो हम अपने नरसिंगों को बजा देंगे। यह सुनते ही आप भी यही कुछ करें और साथ साथ नारा लगाएँ, ‘रब के लिए और जिदौन के लिए’!” \p \v 19 तक़रीबन आधी रात को जिदौन अपने सौ मर्दों के साथ मिदियानी ख़ैमागाह के किनारे पहुँच गया। थोड़ी देर पहले पहरेदार बदल गए थे। अचानक इसराईलियों ने अपने नरसिंगों को बजाया और अपने घड़ों को टुकड़े टुकड़े कर दिया। \v 20 फ़ौरन सौ सौ के दूसरे दो गुरोहों ने भी ऐसा ही किया। अपने दहने हाथ में नरसिंगा और बाएँ हाथ में भड़कती मशाल पकड़कर वह नारा लगाते रहे, “रब के लिए और जिदौन के लिए!” \v 21 लेकिन वह ख़ैमागाह में दाख़िल न हुए बल्कि वहीं उसके इर्दगिर्द खड़े रहे। दुश्मन में बड़ी अफ़रा-तफ़री मच गई। चीख़ते-चिल्लाते सब भाग जाने की कोशिश करने लगे। \v 22 जिदौन के 300 आदमी अपने नरसिंगे बजाते रहे जबकि रब ने ख़ैमागाह में ऐसी गड़बड़ पैदा की कि लोग एक दूसरे से लड़ने लगे। आख़िरकार पूरा लशकर बैत-सित्ता, सरीरात और अबील-महूला की सरहद तक फ़रार हुआ जो तब्बात के क़रीब है। \p \v 23 फिर जिदौन ने नफ़ताली, आशर और पूरे मनस्सी के मर्दों को बुला लिया, और उन्होंने मिलकर मिदियानियों का ताक़्क़ुब किया। \v 24 उसने अपने क़ासिदों के ज़रीए इफ़राईम के पूरे पहाड़ी इलाक़े के बाशिंदों को भी पैग़ाम भेज दिया, “उतर आएँ और मिदियानियों को भाग जाने से रोकें! बैत-बारा तक उन तमाम जगहों पर क़ब्ज़ा कर लें जहाँ दुश्मन दरियाए-यरदन को पा-प्यादा पार कर सकता है।” \p इफ़राईमी मान गए, \v 25 और उन्होंने दो मिदियानी सरदारों को पकड़कर उनके सर क़लम कर दिए। सरदारों के नाम ओरेब और ज़एब थे, और जहाँ उन्हें पकड़ा गया उन जगहों के नाम ‘ओरेब की चट्टान’ और ‘ज़एब का अंगूर का रस निकालनेवाला हौज़’ पड़ गया। इसके बाद वह दुबारा मिदियानियों का ताक़्क़ुब करने लगे। दरियाए-यरदन को पार करने पर उनकी मुलाक़ात जिदौन से हुई, और उन्होंने दोनों सरदारों के सर उसके सुपुर्द कर दिए। \c 8 \s1 इफ़राईम नाराज़ हो जाता है \p \v 1 लेकिन इफ़राईम के मर्दों ने शिकायत की, “आपने हमसे कैसा सुलूक किया? आपने हमें क्यों नहीं बुलाया जब मिदियान से लड़ने गए?” ऐसी बातें करते करते उन्होंने जिदौन के साथ सख़्त बहस की। \v 2 लेकिन जिदौन ने जवाब दिया, “क्या आप मुझसे कहीं ज़्यादा कामयाब न हुए? और जो अंगूर फ़सल जमा करने के बाद इफ़राईम के बाग़ों में रह जाते हैं क्या वह मेरे छोटे ख़ानदान अबियज़र की पूरी फ़सल से ज़्यादा नहीं होते? \v 3 अल्लाह ने तो मिदियान के सरदारों ओरेब और ज़एब को आपके हवाले कर दिया। इसकी निसबत मुझसे क्या कामयाबी हासिल हुई है?” यह सुनकर इफ़राईम के मर्दों का ग़ुस्सा ठंडा हो गया। \s1 सुक्कात और फ़नुएल जिदौन की मदद नहीं करते \p \v 4 जिदौन अपने 300 मर्दों समेत दरियाए-यरदन को पार कर चुका था। दुश्मन का ताक़्क़ुब करते करते वह थक गए थे। \v 5 इसलिए जिदौन ने क़रीब के शहर सुक्कात के बाशिंदों से गुज़ारिश की, “मेरे फ़ौजियों को कुछ रोटी दे दें। वह थक गए हैं, क्योंकि हम मिदियानी सरदार ज़िबह और ज़लमुन्ना का ताक़्क़ुब कर रहे हैं।” \v 6 लेकिन सुक्कात के बुज़ुर्गों ने जवाब दिया, “हम आपके फ़ौजियों को रोटी क्यों दें? क्या आप ज़िबह और ज़लमुन्ना को पकड़ चुके हैं कि हम ऐसा करें?” \v 7 यह सुनकर जिदौन ने कहा, “ज्योंही रब इन दो सरदारों ज़िबह और ज़लमुन्ना को मेरे हाथ में कर देगा मैं तुमको रेगिस्तान की काँटेदार झाड़ियों और ऊँटकटारों से गाहकर तबाह कर दूँगा।” \p \v 8 वह आगे निकलकर फ़नुएल शहर पहुँच गया। वहाँ भी उसने रोटी माँगी, लेकिन फ़नुएल के बाशिंदों ने सुक्कात का-सा जवाब दिया। \v 9 यह सुनकर उसने कहा, “जब मैं सलामती से वापस आऊँगा तो तुम्हारा यह बुर्ज गिरा दूँगा!” \s1 मिदियानियों पर पूरी फ़तह \p \v 10 अब ज़िबह और ज़लमुन्ना क़रक़ूर पहुँच गए थे। 15,000 अफ़राद उनके साथ रह गए थे, क्योंकि मशरिक़ी इत्तहादियों के 1,20,000 तलवारों से लैस फ़ौजी हलाक हो गए थे। \v 11 जिदौन ने मिदियानियों के पीछे चलते हुए ख़ानाबदोशों का वह रास्ता इस्तेमाल किया जो नूबह और युगबहा के मशरिक़ में है। इस तरीक़े से उसने उनकी लशकरगाह पर उस वक़्त हमला किया जब वह अपने आपको महफ़ूज़ समझ रहे थे। \v 12 दुश्मन में अफ़रा-तफ़री पैदा हुई और ज़िबह और ज़लमुन्ना फ़रार हो गए। लेकिन जिदौन ने उनका ताक़्क़ुब करते करते उन्हें पकड़ लिया। \p \v 13 इसके बाद जिदौन लौटा। वह अभी हरिस के दर्रा से उतर रहा था \v 14 कि सुक्कात के एक जवान आदमी से मिला। जिदौन ने उसे पकड़कर मजबूर किया कि वह शहर के राहनुमाओं और बुज़ुर्गों की फ़हरिस्त लिखकर दे। 77 बुज़ुर्ग थे। \v 15 जिदौन उनके पास गया और कहा, “देखो, यह हैं ज़िबह और ज़लमुन्ना! तुमने इन्हीं की वजह से मेरा मज़ाक़ उड़ाकर कहा था कि हम आपके थकेहारे फ़ौजियों को रोटी क्यों दें? क्या आप ज़िबह और ज़लमुन्ना को पकड़ चुके हैं कि हम ऐसा करें?” \v 16 फिर जिदौन ने शहर के बुज़ुर्गों को गिरिफ़्तार करके उन्हें काँटेदार झाड़ियों और ऊँटकटारों से गाहकर सबक़ सिखाया। \v 17 फिर वह फ़नुएल गया और वहाँ का बुर्ज गिराकर शहर के मर्दों को मार डाला। \p \v 18 इसके बाद जिदौन ज़िबह और ज़लमुन्ना से मुख़ातिब हुआ। उसने पूछा, “उन आदमियों का हुलिया कैसा था जिन्हें तुमने तबूर पहाड़ पर क़त्ल किया?” \p उन्होंने जवाब दिया, “वह आप जैसे थे, हर एक शहज़ादा लग रहा था।” \p \v 19 जिदौन बोला, “वह मेरे सगे भाई थे। रब की हयात की क़सम, अगर तुम उनको ज़िंदा छोड़ते तो मैं तुम्हें हलाक न करता।” \p \v 20 फिर वह अपने पहलौठे यतर से मुख़ातिब होकर बोला, “इनको मार डालो!” लेकिन यतर अपनी तलवार मियान से निकालने से झिजका, क्योंकि वह अभी बच्चा था और डरता था। \v 21 तब ज़िबह और ज़लमुन्ना ने कहा, “आप ही हमें मार दें! क्योंकि जैसा आदमी वैसी उस की ताक़त!” जिदौन ने खड़े होकर उन्हें तलवार से मार डाला और उनके ऊँटों की गरदनों पर लगे तावीज़ उतारकर अपने पास रखे। \s1 जिदौन के सबब से इसराईल बुतपरस्ती में उलझ जाता है \p \v 22 इसराईलियों ने जिदौन के पास आकर कहा, “आपने हमें मिदियानियों से बचा लिया है, इसलिए हम पर हुकूमत करें, आप, आपके बाद आपका बेटा और उसके बाद आपका पोता।” \p \v 23 लेकिन जिदौन ने जवाब दिया, “न मैं आप पर हुकूमत करूँगा, न मेरा बेटा। रब ही आप पर हुकूमत करेगा। \v 24 मेरी सिर्फ़ एक गुज़ारिश है। हर एक मुझे अपने लूटे हुए माल में से एक एक बाली दे दे।” बात यह थी कि दुश्मन के तमाम अफ़राद ने सोने की बालियाँ पहन रखी थीं, क्योंकि वह इसमाईली थे। \p \v 25 इसराईलियों ने कहा, “हम ख़ुशी से बाली देंगे।” एक चादर ज़मीन पर बिछाकर हर एक ने एक एक बाली उस पर फेंक दी। \v 26 सोने की इन बालियों का वज़न तक़रीबन 20 किलोग्राम था। इसके अलावा इसराईलियों ने मुख़्तलिफ़ तावीज़, कान के आवेज़े, अरग़वानी रंग के शाही लिबास और ऊँटों की गरदनों में लगी क़ीमती ज़ंजीरें भी दे दीं। \p \v 27 इस सोने से जिदौन ने एक अफ़ोद \f + \fr 8:27 \ft आम तौर पर इबरानी में अफ़ोद का मतलब इमामे-आज़म का बालापोश था (देखिए ख़ुरूज 28:4), लेकिन यहाँ इससे मुराद बुतपरस्ती की कोई चीज़ है। \f* बनाकर उसे अपने आबाई शहर उफ़रा में खड़ा किया जहाँ वह उसके और तमाम ख़ानदान के लिए फंदा बन गया। न सिर्फ़ यह बल्कि पूरा इसराईल ज़िना करके बुत की पूजा करने लगा। \p \v 28 उस वक़्त मिदियान ने ऐसी शिकस्त खाई कि बाद में इसराईल के लिए ख़तरे का बाइस न रहा। और जितनी देर जिदौन ज़िंदा रहा यानी 40 साल तक मुल्क में अमनो-अमान क़ायम रहा। \p \v 29 जंग के बाद जिदौन बिन युआस दुबारा उफ़रा में रहने लगा। \v 30 उस की बहुत-सी बीवियाँ और 70 बेटे थे। \v 31 उस की एक दाश्ता भी थी जो सिकम शहर में रिहाइशपज़ीर थी और जिसके एक बेटा पैदा हुआ। जिदौन ने बेटे का नाम अबीमलिक रखा। \v 32 जिदौन उम्ररसीदा था जब फ़ौत हुआ। उसे अबियज़रियों के शहर उफ़रा में उसके बाप युआस की क़ब्र में दफ़नाया गया। \p \v 33 जिदौन के मरते ही इसराईली दुबारा ज़िना करके बाल के बुतों की पूजा करने लगे। वह बाल-बरीत को अपना ख़ास देवता बनाकर \v 34 रब अपने ख़ुदा को भूल गए जिसने उन्हें इर्दगिर्द के दुश्मनों से बचा लिया था। \v 35 उन्होंने यरुब्बाल यानी जिदौन के ख़ानदान को भी उस एहसान के लिए कोई मेहरबानी न दिखाई जो जिदौन ने उन पर किया था। \c 9 \s1 अबीमलिक बादशाह बन जाता है \p \v 1 एक दिन यरुब्बाल यानी जिदौन का बेटा अबीमलिक अपने मामुओं और माँ के बाक़ी रिश्तेदारों से मिलने के लिए सिकम गया। उसने उनसे कहा, \v 2 “सिकम शहर के तमाम बाशिंदों से पूछें, क्या आप अपने आप पर जिदौन के 70 बेटों की हुकूमत ज़्यादा पसंद करेंगे या एक ही शख़्स की? याद रहे कि मैं आपका ख़ूनी रिश्तेदार हूँ!” \v 3 अबीमलिक के मामुओं ने सिकम के तमाम बाशिंदों के सामने यह बातें दोहराईं। सिकम के लोगों ने सोचा, “अबीमलिक हमारा भाई है” इसलिए वह उसके पीछे लग गए। \v 4 उन्होंने उसे बाल-बरीत देवता के मंदिर से चाँदी के 70 सिक्के भी दे दिए। \p इन पैसों से अबीमलिक ने अपने इर्दगिर्द आवारा और बदमाश आदमियों का गुरोह जमा किया। \v 5 उन्हें अपने साथ लेकर वह उफ़रा पहुँचा जहाँ बाप का ख़ानदान रहता था। वहाँ उसने अपने तमाम भाइयों यानी जिदौन के 70 बेटों को एक ही पत्थर पर क़त्ल कर दिया। सिर्फ़ यूताम जो जिदौन का सबसे छोटा बेटा था कहीं छुपकर बच निकला। \v 6 इसके बाद सिकम और बैत-मिल्लो के तमाम लोग उस बलूत के साये में जमा हुए जो सिकम के सतून के पास था। वहाँ उन्होंने अबीमलिक को अपना बादशाह मुक़र्रर किया। \s1 यूताम की अबीमलिक और सिकम पर लानत \p \v 7 जब यूताम को इसकी इत्तला मिली तो वह गरिज़ीम पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया और ऊँची आवाज़ से चिल्लाया, “ऐ सिकम के बाशिंदो, सुनें मेरी बात! सुनें अगर आप चाहते हैं कि अल्लाह आपकी भी सुने। \v 8 एक दिन दरख़्तों ने फ़ैसला किया कि हम पर कोई बादशाह होना चाहिए। वह उसे चुनने और मसह करने के लिए निकले। पहले उन्होंने ज़ैतून के दरख़्त से बात की, ‘हमारे बादशाह बन जाएँ!’ \v 9 लेकिन ज़ैतून के दरख़्त ने जवाब दिया, ‘क्या मैं अपना तेल पैदा करने से बाज़ आऊँ जिसकी अल्लाह और इनसान इतनी क़दर करते हैं ताकि दरख़्तों पर हुकूमत करूँ? हरगिज़ नहीं!’ \v 10 इसके बाद दरख़्तों ने अंजीर के दरख़्त से बात की, ‘आएँ, हमारे बादशाह बन जाएँ!’ \v 11 लेकिन अंजीर के दरख़्त ने जवाब दिया, ‘क्या मैं अपना मीठा और अच्छा फल लाने से बाज़ आऊँ ताकि दरख़्तों पर हुकूमत करूँ? हरगिज़ नहीं!’ \v 12 फिर दरख़्तों ने अंगूर की बेल से बात की, ‘आएँ, हमारे बादशाह बन जाएँ!’ \v 13 लेकिन अंगूर की बेल ने जवाब दिया, ‘क्या मैं अपना रस पैदा करने से बाज़ आऊँ जिससे अल्लाह और इनसान ख़ुश हो जाते हैं ताकि दरख़्तों पर हुकूमत करूँ? हरगिज़ नहीं!’ \v 14 आख़िरकार दरख़्त काँटेदार झाड़ी के पास आए और कहा, ‘आएँ और हमारे बादशाह बन जाएँ!’ \v 15 काँटेदार झाड़ी ने जवाब दिया, ‘अगर तुम वाक़ई मुझे मसह करके अपना बादशाह बनाना चाहते हो तो आओ और मेरे साये में पनाह लो। अगर तुम ऐसा नहीं करना चाहते तो झाड़ी से आग निकलकर लुबनान के देवदार के दरख़्तों को भस्म कर दे’।” \p \v 16 यूताम ने बात जारी रखकर कहा, “अब मुझे बताएँ, क्या आपने वफ़ादारी और सच्चाई का इज़हार किया जब आपने अबीमलिक को अपना बादशाह बना लिया? क्या आपने जिदौन और उसके ख़ानदान के साथ अच्छा सुलूक किया? क्या आपने उस पर शुक्रगुज़ारी का वह इज़हार किया जिसके लायक़ वह था? \v 17 मेरे बाप ने आपकी ख़ातिर जंग की। आपको मिदियानियों से बचाने के लिए उसने अपनी जान ख़तरे में डाल दी। \v 18 लेकिन आज आप जिदौन के घराने के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं। आपने उसके 70 बेटों को एक ही पत्थर पर ज़बह करके उस की लौंडी के बेटे अबीमलिक को सिकम का बादशाह बना लिया है, और यह सिर्फ़ इसलिए कि वह आपका रिश्तेदार है। \v 19 अब सुनें! अगर आपने जिदौन और उसके ख़ानदान के साथ वफ़ादारी और सच्चाई का इज़हार किया है तो फिर अल्लाह करे कि अबीमलिक आपके लिए ख़ुशी का बाइस हो और आप उसके लिए। \v 20 लेकिन अगर ऐसा नहीं था तो अल्लाह करे कि अबीमलिक से आग निकलकर आप सबको भस्म कर दे जो सिकम और बैत-मिल्लो में रहते हैं! और आग आपसे निकलकर अबीमलिक को भी भस्म कर दे!” \v 21 यह कहकर यूताम ने भागकर बैर में पनाह ली, क्योंकि वह अपने भाई अबीमलिक से डरता था। \s1 सिकम के बाशिंदे अबीमलिक के ख़िलाफ़ हो जाते हैं \p \v 22 अबीमलिक की इसराईल पर हुकूमत तीन साल तक रही। \v 23 लेकिन फिर अल्लाह ने एक बुरी रूह भेज दी जिसने अबीमलिक और सिकम के बाशिंदों में नाइत्तफ़ाक़ी पैदा कर दी। नतीजे में सिकम के लोगों ने बग़ावत की। \v 24 यों अल्लाह ने उसे इसकी सज़ा दी कि उसने अपने भाइयों यानी जिदौन के 70 बेटों को क़त्ल किया था। सिकम के बाशिंदों को भी सज़ा मिली, क्योंकि उन्होंने इसमें अबीमलिक की मदद की थी। \p \v 25 उस वक़्त सिकम के लोग इर्दगिर्द की चोटियों पर चढ़कर अबीमलिक की ताक में बैठ गए। जो भी वहाँ से गुज़रा उसे उन्होंने लूट लिया। इस बात की ख़बर अबीमलिक तक पहुँच गई। \p \v 26 उन दिनों में एक आदमी अपने भाइयों के साथ सिकम आया जिसका नाम जाल बिन अबद था। सिकम के लोगों से उसका अच्छा-ख़ासा ताल्लुक़ बन गया, और वह उस पर एतबार करने लगे। \v 27 अंगूर की फ़सल पक गई थी। लोग शहर से निकले और अपने बाग़ों में अंगूर तोड़कर उनसे रस निकालने लगे। फिर उन्होंने अपने देवता के मंदिर में जशन मनाया। जब वह ख़ूब खा-पी रहे थे तो अबीमलिक पर लानत करने लगे। \v 28 जाल बिन अबद ने कहा, “सिकम का अबीमलिक के साथ क्या वास्ता कि हम उसके ताबे रहें? वह तो सिर्फ़ यरुब्बाल का बेटा है, जिसका नुमाइंदा ज़बूल है। उस की ख़िदमत मत करना बल्कि सिकम के बानी हमोर के लोगों की! हम अबीमलिक की ख़िदमत क्यों करें? \v 29 काश शहर का इंतज़ाम मेरे हाथ में होता! फिर मैं अबीमलिक को जल्द ही निकाल देता। मैं उसे चैलेंज देता कि आओ, अपने फ़ौजियों को जमा करके हमसे लड़ो!” \s1 अबीमलिक सिकम से लड़ता है \p \v 30 जाल बिन अबद की बात सुनकर सिकम का सरदार ज़बूल बड़े ग़ुस्से में आ गया। \v 31 अपने क़ासिदों की मारिफ़त उसने अबीमलिक को चुपके से इत्तला दी, “जाल बिन अबद अपने भाइयों के साथ सिकम आ गया है जहाँ वह पूरे शहर को आपके ख़िलाफ़ खड़े हो जाने के लिए उकसा रहा है। \v 32 अब ऐसा करें कि रात के वक़्त अपने फ़ौजियों समेत इधर आएँ और खेतों में ताक में रहें। \v 33 सुबह-सवेरे जब सूरज तुलू होगा तो शहर पर हमला करें। जब जाल अपने आदमियों के साथ आपके ख़िलाफ़ लड़ने आएगा तो उसके साथ वह कुछ करें जो आप मुनासिब समझते हैं।” \v 34 यह सुनकर अबीमलिक रात के वक़्त अपने फ़ौजियों समेत रवाना हुआ। उसने उन्हें चार गुरोहों में तक़सीम किया जो सिकम को घेरकर ताक में बैठ गए। \p \v 35 सुबह के वक़्त जब जाल घर से निकलकर शहर के दरवाज़े में खड़ा हुआ तो अबीमलिक और उसके फ़ौजी अपनी छुपने की जगहों से निकल आए। \v 36 उन्हें देखकर जाल ने ज़बूल से कहा, “देखो, लोग पहाड़ों की चोटियों से उतर रहे हैं!” ज़बूल ने जवाब दिया, “नहीं, नहीं, जो आपको आदमी लग रहे हैं वह सिर्फ़ पहाड़ों के साये हैं।” \v 37 लेकिन जाल को तसल्ली न हुई। वह दुबारा बोल उठा, “देखो, लोग दुनिया की नाफ़ \f + \fr 9:37 \ft मतलब ग़ालिबन कोहे-गरिज़ीम है। \f* से उतर रहे हैं। और एक और गुरोह रम्मालों के बलूत से होकर आ रहा है।” \v 38 फिर ज़बूल ने उससे कहा, “अब तेरी बड़ी बड़ी बातें कहाँ रहीं? क्या तूने नहीं कहा था, ‘अबीमलिक कौन है कि हम उसके ताबे रहें?’ अब यह लोग आ गए हैं जिनका मज़ाक़ तूने उड़ाया। जा, शहर से निकलकर उनसे लड़!” \p \v 39 तब जाल सिकम के मर्दों के साथ शहर से निकला और अबीमलिक से लड़ने लगा। \v 40 लेकिन वह हार गया, और अबीमलिक ने शहर के दरवाज़े तक उसका ताक़्क़ुब किया। भागते भागते सिकम के बहुत-से अफ़राद रास्ते में गिरकर हलाक हो गए। \v 41 फिर अबीमलिक अरूमा चला गया जबकि ज़बूल ने पीछे रहकर जाल और उसके भाइयों को शहर से निकाल दिया। \p \v 42 अगले दिन सिकम के लोग शहर से निकलकर मैदान में आना चाहते थे। जब अबीमलिक को यह ख़बर मिली \v 43-44 तो उसने अपनी फ़ौज को तीन गुरोहों में तक़सीम किया। यह गुरोह दुबारा सिकम को घेरकर घात में बैठ गए। जब लोग शहर से निकले तो अबीमलिक अपने गुरोह के साथ छुपने की जगह से निकल आया और शहर के दरवाज़े में खड़ा हो गया। बाक़ी दो गुरोह मैदान में मौजूद अफ़राद पर टूट पड़े और सबको हलाक कर दिया। \v 45 फिर अबीमलिक ने शहर पर हमला किया। लोग पूरा दिन लड़ते रहे, लेकिन आख़िरकार अबीमलिक ने शहर पर क़ब्ज़ा करके तमाम बाशिंदों को मौत के घाट उतार दिया। उसने शहर को तबाह किया और खंडरात पर नमक बिखेरकर उस की हतमी तबाही ज़ाहिर कर दी। \p \v 46 जब सिकम के बुर्ज के रहनेवालों को यह इत्तला मिली तो वह एल-बरीत देवता के मंदिर के तहख़ाने में छुप गए। \v 47 जब अबीमलिक को पता चला \v 48 तो वह अपने फ़ौजियों समेत ज़लमोन पहाड़ पर चढ़ गया। वहाँ उसने कुल्हाड़ी से शाख़ काटकर अपने कंधों पर रख ली और अपने फ़ौजियों को हुक्म दिया, “जल्दी करो! सब ऐसा ही करो।” \v 49 फ़ौजियों ने भी शाख़ें काटीं और फिर अबीमलिक के पीछे लगकर मंदिर के पास वापस आए। वहाँ उन्होंने तमाम लकड़ी तहख़ाने की छत पर जमा करके उसे जला दिया। यों सिकम के बुर्ज के तक़रीबन 1,000 मर्दो-ख़वातीन सब भस्म हो गए। \s1 अबीमलिक की मौत \p \v 50 वहाँ से अबीमलिक तैबिज़ के ख़िलाफ़ बढ़ गया। उसने शहर का मुहासरा करके उस पर क़ब्ज़ा कर लिया। \v 51 लेकिन शहर के बीच में एक मज़बूत बुर्ज था। तमाम मर्दो-ख़वातीन उसमें फ़रार हुए और बुर्ज के दरवाज़ों पर कुंडी लगाकर छत पर चढ़ गए। \p \v 52 अबीमलिक लड़ते लड़ते बुर्ज के दरवाज़े के क़रीब पहुँच गया। वह उसे जलाने की कोशिश करने लगा \v 53 तो एक औरत ने चक्की का ऊपर का पाट उसके सर पर फेंक दिया, और उस की खोपड़ी फट गई। \v 54 जल्दी से अबीमलिक ने अपने सिलाहबरदार को बुलाया। उसने कहा, “अपनी तलवार खींचकर मुझे मार दो! वरना लोग कहेंगे कि एक औरत ने मुझे मार डाला।” चुनाँचे नौजवान ने अपनी तलवार उसके बदन में से गुज़ार दी और वह मर गया। \v 55 जब फ़ौजियों ने देखा कि अबीमलिक मर गया है तो वह अपने अपने घर चले गए। \p \v 56 यों अल्लाह ने अबीमलिक को उस बदी का बदला दिया जो उसने अपने 70 भाइयों को क़त्ल करके अपने बाप के ख़िलाफ़ की थी। \v 57 और अल्लाह ने सिकम के बाशिंदों को भी उनकी शरीर हरकतों की मुनासिब सज़ा दी। यूताम बिन यरुब्बाल की लानत पूरी हुई। \c 10 \s1 तोला और याईर \p \v 1 अबीमलिक की मौत के बाद तोला बिन फ़ुव्वा बिन दोदो इसराईल को बचाने के लिए उठा। वह इशकार के क़बीले से था और इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े के शहर समीर में रिहाइशपज़ीर था। \v 2 तोला 23 साल इसराईल का क़ाज़ी रहा। फिर वह फ़ौत हुआ और समीर में दफ़नाया गया। \p \v 3 उसके बाद जिलियाद का रहनेवाला याईर क़ाज़ी बन गया। उसने 22 साल इसराईल की राहनुमाई की। \v 4 याईर के 30 बेटे थे। हर बेटे का एक एक गधा और जिलियाद में एक एक आबादी थी। आज तक इनका नाम ‘हव्वोत-याईर’ यानी याईर की बस्तियाँ है। \v 5 जब याईर इंतक़ाल कर गया तो उसे क़ामोन में दफ़नाया गया। \s1 इसराईल दुबारा रब से दूर हो जाता है \p \v 6 याईर की मौत के बाद इसराईली दुबारा ऐसी हरकतें करने लगे जो रब को बुरी लगीं। वह कई देवताओं के पीछे लग गए जिनमें बाल देवता, अस्तारात देवी और शाम, सैदा, मोआब, अम्मोनियों और फ़िलिस्तियों के देवता शामिल थे। यों वह रब की परस्तिश और ख़िदमत करने से बाज़ आए। \v 7 तब उसका ग़ज़ब उन पर नाज़िल हुआ, और उसने उन्हें फ़िलिस्तियों और अम्मोनियों के हवाले कर दिया। \v 8 उसी साल के दौरान इन क़ौमों ने जिलियाद में इसराईलियों के उस इलाक़े पर क़ब्ज़ा किया जिसमें पुराने ज़माने में अमोरी आबाद थे और जो दरियाए-यरदन के मशरिक़ में था। फ़िलिस्ती और अम्मोनी 18 साल तक इसराईलियों को कुचलते और दबाते रहे। \v 9 न सिर्फ़ यह बल्कि अम्मोनियों ने दरियाए-यरदन को पार करके यहूदाह, बिनयमीन और इफ़राईम के क़बीलों पर भी हमला किया। \p जब इसराईली बड़ी मुसीबत में थे \v 10 तो आख़िरकार उन्होंने मदद के लिए रब को पुकारा और इक़रार किया, “हमने तेरा गुनाह किया है। अपने ख़ुदा को तर्क करके हमने बाल के बुतों की पूजा की है।” \v 11 रब ने जवाब में कहा, “जब मिसरी, अमोरी, अम्मोनी, फ़िलिस्ती, \v 12 सैदानी, अमालीक़ी और माओनी तुम पर ज़ुल्म करते थे और तुम मदद के लिए मुझे पुकारने लगे तो क्या मैंने तुम्हें न बचाया? \v 13 इसके बावुजूद तुम बार बार मुझे तर्क करके दीगर माबूदों की पूजा करते रहे हो। इसलिए अब से मैं तुम्हारी मदद नहीं करूँगा। \v 14 जाओ, उन देवताओं के सामने चीख़ते-चिल्लाते रहो जिन्हें तुमने चुन लिया है! वही तुम्हें मुसीबत से निकालें।” \p \v 15 लेकिन इसराईलियों ने रब से फ़रियाद की, “हमसे ग़लती हुई है। जो कुछ भी तू मुनासिब समझता है वह हमारे साथ कर। लेकिन तू ही हमें आज बचा।” \v 16 वह अजनबी माबूदों को अपने बीच में से निकालकर रब की दुबारा ख़िदमत करने लगे। तब वह इसराईल का दुख बरदाश्त न कर सका। \s1 इफ़ताह क़ाज़ी बन जाता है \p \v 17 उन दिनों में अम्मोनी अपने फ़ौजियों को जमा करके जिलियाद में ख़ैमाज़न हुए। जवाब में इसराईली भी जमा हुए और मिसफ़ाह में अपने ख़ैमे लगाए। \v 18 जिलियाद के राहनुमाओं ने एलान किया, “हमें ऐसे आदमी की ज़रूरत है जो हमारे आगे चलकर अम्मोनियों पर हमला करे। जो कोई ऐसा करे वह जिलियाद के तमाम बाशिंदों का सरदार बनेगा।” \c 11 \p \v 1 उस वक़्त जिलियाद में एक ज़बरदस्त सूरमा बनाम इफ़ताह था। बाप का नाम जिलियाद था जबकि माँ कसबी थी। \v 2 लेकिन बाप की बीवी के बेटे भी थे। जब बालिग़ हुए तो उन्होंने इफ़ताह से कहा, “हम मीरास तेरे साथ नहीं बाँटेंगे, क्योंकि तू हमारा सगा भाई नहीं है।” उन्होंने उसे भगा दिया, \v 3 और वह वहाँ से हिजरत करके मुल्के-तोब में जा बसा। वहाँ कुछ आवारा लोग उसके पीछे हो लिए जो उसके साथ इधर-उधर घुमते-फिरते रहे। \p \v 4 जब कुछ देर के बाद अम्मोनी फ़ौज इसराईल से लड़ने आई \v 5 तो जिलियाद के बुज़ुर्ग इफ़ताह को वापस लाने के लिए मुल्के-तोब में आए। \v 6 उन्होंने गुज़ारिश की, “आएँ, अम्मोनियों से लड़ने में हमारी राहनुमाई करें।” \v 7 लेकिन इफ़ताह ने एतराज़ किया, “आप इस वक़्त मेरे पास क्यों आए हैं जब मुसीबत में हैं? आप ही ने मुझसे नफ़रत करके मुझे बाप के घर से निकाल दिया था।” \p \v 8 बुज़ुर्गों ने जवाब दिया, “हम इसलिए आपके पास वापस आए हैं कि आप अम्मोनियों के साथ जंग में हमारी मदद करें। अगर आप ऐसा करें तो हम आपको पूरे जिलियाद का हुक्मरान बना लेंगे।” \v 9 इफ़ताह ने पूछा, “अगर मैं आपके साथ अम्मोनियों के ख़िलाफ़ लड़ूँ और रब मुझे उन पर फ़तह दे तो क्या आप वाक़ई मुझे अपना हुक्मरान बना लेंगे?” \v 10 उन्होंने जवाब दिया, “रब हमारा गवाह है! वही हमें सज़ा दे अगर हम अपना वादा पूरा न करें।” \p \v 11 यह सुनकर इफ़ताह जिलियाद के बुज़ुर्गों के साथ मिसफ़ाह गया। वहाँ लोगों ने उसे अपना सरदार और फ़ौज का कमाँडर बना लिया। मिसफ़ाह में उसने रब के हुज़ूर वह तमाम बातें दोहराईं जिनका फ़ैसला उसने बुज़ुर्गों के साथ किया था। \s1 जंग से गुरेज़ करने की कोशिश \p \v 12 फिर इफ़ताह ने अम्मोनी बादशाह के पास अपने क़ासिदों को भेजकर पूछा, “हमारा आपसे क्या वास्ता कि आप हमसे लड़ने आए हैं?” \v 13 बादशाह ने जवाब दिया, “जब इसराईली मिसर से निकले तो उन्होंने अरनोन, यब्बोक़ और यरदन के दरियाओं के दरमियान का इलाक़ा मुझसे छीन लिया। अब उसे झगड़ा किए बग़ैर मुझे वापस कर दो।” \p \v 14 फिर इफ़ताह ने अपने क़ासिदों को दुबारा अम्मोनी बादशाह के पास भेजकर \v 15 कहा, “इसराईल ने न तो मोआबियों से और न अम्मोनियों से ज़मीन छीनी। \v 16 हक़ीक़त यह है कि जब हमारी क़ौम मिसर से निकली तो वह रेगिस्तान में से गुज़रकर बहरे-क़ुलज़ुम और वहाँ से होकर क़ादिस पहुँच गई। \v 17 क़ादिस से उन्होंने अदोम के बादशाह के पास क़ासिद भेजकर गुज़ारिश की, ‘हमें अपने मुल्क में से गुज़रने दें।’ लेकिन उसने इनकार किया। फिर इसराईलियों ने मोआब के बादशाह से दरख़ास्त की, लेकिन उसने भी अपने मुल्क में से गुज़रने की इजाज़त न दी। इस पर हमारी क़ौम कुछ देर के लिए क़ादिस में रही। \v 18 आख़िरकार वह रेगिस्तान में वापस जाकर अदोम और मोआब के जुनूब में चलते चलते मोआब के मशरिक़ी किनारे पर पहुँची, वहाँ जहाँ दरियाए-अरनोन उस की सरहद है। लेकिन वह मोआब के इलाक़े में दाख़िल न हुए बल्कि दरिया के मशरिक़ में ख़ैमाज़न हुए। \v 19 वहाँ से इसराईलियों ने हसबोन के रहनेवाले अमोरी बादशाह सीहोन को पैग़ाम भिजवाया, ‘हमें अपने मुल्क में से गुज़रने दें ताकि हम अपने मुल्क में दाख़िल हो सकें।’ \v 20 लेकिन सीहोन को शक हुआ। उसे यक़ीन नहीं था कि वह मुल्क में से गुज़रकर आगे बढ़ेंगे। उसने न सिर्फ़ इनकार किया बल्कि अपने फ़ौजियों को जमा करके यहज़ शहर में ख़ैमाज़न हुआ और इसराईलियों के साथ लड़ने लगा। \p \v 21 लेकिन रब इसराईल के ख़ुदा ने सीहोन और उसके तमाम फ़ौजियों को इसराईल के हवाले कर दिया। उन्होंने उन्हें शिकस्त देकर अमोरियों के पूरे मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया। \v 22 यह तमाम इलाक़ा जुनूब में दरियाए-अरनोन से लेकर शिमाल में दरियाए-यब्बोक़ तक और मशरिक़ के रेगिस्तान से लेकर मग़रिब में दरियाए-यरदन तक हमारे क़ब्ज़े में आ गया। \v 23 देखें, रब इसराईल के ख़ुदा ने अपनी क़ौम के आगे आगे अमोरियों को निकाल दिया है। तो फिर आपका इस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने का क्या हक़ है? \v 24 आप भी समझते हैं कि जिसे आपके देवता कमोस ने आपके आगे से निकाल दिया है उसके मुल्क पर क़ब्ज़ा करने का आपका हक़ है। इसी तरह जिसे रब हमारे ख़ुदा ने हमारे आगे आगे निकाल दिया है उसके मुल्क पर क़ब्ज़ा करने का हक़ हमारा है। \v 25 क्या आप अपने आपको मोआबी बादशाह बलक़ बिन सफ़ोर से बेहतर समझते हैं? उसने तो इसराईल से लड़ने बल्कि झगड़ने तक की हिम्मत न की। \v 26 अब इसराईली 300 साल से हसबोन और अरोईर के शहरों में उनके गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत आबाद हैं और इसी तरह दरियाए-अरनोन के किनारे पर के शहरों में। आपने इस दौरान इन जगहों पर क़ब्ज़ा क्यों न किया? \v 27 चुनाँचे मैंने आपसे ग़लत सुलूक नहीं किया बल्कि आप ही मेरे साथ ग़लत सुलूक कर रहे हैं। क्योंकि मुझसे जंग छेड़ना ग़लत है। रब जो मुंसिफ़ है वही आज इसराईल और अम्मोन के झगड़े का फ़ैसला करे!” \p \v 28 लेकिन अम्मोनी बादशाह ने इफ़ताह के पैग़ाम पर ध्यान न दिया। \s1 इफ़ताह की फ़तह \p \v 29 फिर रब का रूह इफ़ताह पर नाज़िल हुआ, और वह जिलियाद और मनस्सी में से गुज़र गया, फिर जिलियाद के मिसफ़ाह के पास वापस आया। वहाँ से वह अपनी फ़ौज लेकर अम्मोनियों से लड़ने निकला। \p \v 30 पहले उसने रब के सामने क़सम खाई, “अगर तू मुझे अम्मोनियों पर फ़तह दे \v 31 और मैं सहीह-सलामत लौटूँ तो जो कुछ भी पहले मेरे घर के दरवाज़े से निकलकर मुझसे मिले वह तेरे लिए मख़सूस किया जाएगा। मैं उसे भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करूँगा।” \p \v 32 फिर इफ़ताह अम्मोनियों से लड़ने गया, और रब ने उसे उन पर फ़तह दी। \v 33 इफ़ताह ने अरोईर में दुश्मन को शिकस्त दी और इसी तरह मिन्नीत और अबील-करामीम तक मज़ीद बीस शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया। यों इसराईल ने अम्मोन को ज़ेर कर दिया। \s1 इफ़ताह की वापसी \p \v 34 इसके बाद इफ़ताह मिसफ़ाह वापस चला गया। वह अभी घर के क़रीब था कि उस की इकलौती बेटी दफ़ बजाती और नाचती हुई घर से निकल आई। इफ़ताह का कोई और बेटा या बेटी नहीं थी। \v 35 अपनी बेटी को देखकर वह रंज के मारे अपने कपड़े फाड़कर चीख़ उठा, “हाय मेरी बेटी! तूने मुझे ख़ाक में दबाकर तबाह कर दिया है, क्योंकि मैंने रब के सामने ऐसी क़सम खाई है जो बदली नहीं जा सकती।” \p \v 36 बेटी ने कहा, “अब्बू, आपने क़सम खाकर रब से वादा किया है, इसलिए लाज़िम है कि मेरे साथ वह कुछ करें जिसकी क़सम आपने खाई है। आख़िर उसी ने आपको दुश्मन से बदला लेने की कामयाबी बख़्श दी है। \v 37 लेकिन मेरी एक गुज़ारिश है। मुझे दो माह की मोहलत दें ताकि मैं अपनी सहेलियों के साथ पहाड़ों में जाकर अपनी ग़ैरशादीशुदा हालत पर मातम करूँ।” \p \v 38 इफ़ताह ने इजाज़त दी। फिर बेटी दो माह के लिए अपनी सहेलियों के साथ पहाड़ों में चली गई और अपनी ग़ैरशादीशुदा हालत पर मातम किया। \v 39 फिर वह अपने बाप के पास वापस आई, और उसने अपनी क़सम का वादा पूरा किया। बेटी ग़ैरशादीशुदा थी। \p उस वक़्त से इसराईल में दस्तूर रायज है \v 40 कि इसराईल की जवान औरतें सालाना चार दिन के लिए अपने घरों से निकलकर इफ़ताह की बेटी की याद में जशन मनाती हैं। \c 12 \s1 इफ़राईम का क़बीला इफ़ताह पर हमला करता है \p \v 1 अम्मोनियों पर फ़तह के बाद इफ़राईम के क़बीले के आदमी जमा हुए और दरियाए-यरदन को पार करके इफ़ताह के पास आए जो सफ़ोन में था। उन्होंने शिकायत की, “आप क्यों हमें बुलाए बग़ैर अम्मोनियों से लड़ने गए? अब हम आपको आपके घर समेत जला देंगे!” \p \v 2 इफ़ताह ने एतराज़ किया, “जब मेरी और मेरी क़ौम का अम्मोनियों के साथ सख़्त झगड़ा छिड़ गया तो मैंने आपको बुलाया, लेकिन आपने मुझे उनके हाथ से न बचाया। \v 3 जब मैंने देखा कि आप मदद नहीं करेंगे तो अपनी जान ख़तरे में डालकर आपके बग़ैर ही अम्मोनियों से लड़ने गया। और रब ने मुझे उन पर फ़तह बख़्शी। अब मुझे बताएँ कि आप क्यों मेरे पास आकर मुझ पर हमला करना चाहते हैं?” \p \v 4 इफ़राईमियों ने जवाब दिया, “तुम जो जिलियाद में रहते हो बस इफ़राईम और मनस्सी के क़बीलों से निकले हुए भगोड़े हो।” तब इफ़ताह ने जिलियाद के मर्दों को जमा किया और इफ़राईमियों से लड़कर उन्हें शिकस्त दी। \p \v 5 फिर जिलियादियों ने दरियाए-यरदन के कम-गहरे मक़ामों पर क़ब्ज़ा कर लिया। जब कोई गुज़रना चाहता तो वह पूछते, “क्या आप इफ़राईमी हैं?” अगर वह इनकार करता \v 6 तो जिलियाद के मर्द कहते, “तो फिर लफ़्ज़ ‘शिब्बोलेत’ \f + \fr 12:6 \ft यानी नदी। \f* बोलें।” अगर वह इफ़राईमी होता तो इसके बजाए “सिब्बोलेत” कहता। फिर जिलियादी उसे पकड़कर वहीं मार डालते। उस वक़्त कुल 42,000 इफ़राईमी हलाक हुए। \p \v 7 इफ़ताह ने छः साल इसराईल की राहनुमाई की। जब फ़ौत हुआ तो उसे जिलियाद के किसी शहर में दफ़नाया गया। \s1 इबज़ान, ऐलोन और अबदोन \p \v 8 इफ़ताह के बाद इबज़ान इसराईल का क़ाज़ी बना। वह बैत-लहम में आबाद था, \v 9 और उसके 30 बेटे और 30 बेटियाँ थीं। उस की तमाम बेटियाँ शादीशुदा थीं और इस वजह से बाप के घर में नहीं रहती थीं। लेकिन उसे 30 बेटों के लिए बीवियाँ मिल गई थीं, और सब उसके घर में रहते थे। इबज़ान ने सात साल के दौरान इसराईल की राहनुमाई की। \v 10 फिर वह इंतक़ाल कर गया और बैत-लहम में दफ़नाया गया। \p \v 11 उसके बाद ऐलोन क़ाज़ी बना। वह ज़बूलून के क़बीले से था और 10 साल के दौरान इसराईल की राहनुमाई करता रहा। \v 12 जब वह कूच कर गया तो उसे ज़बूलून के ऐयालोन में दफ़न किया गया। \p \v 13 फिर अबदोन बिन हिल्लेल क़ाज़ी बना। वह शहर फ़िरआतोन का था। \v 14 उसके 40 बेटे और 30 पोते थे जो 70 गधों पर सफ़र किया करते थे। अबदोन ने आठ साल के दौरान इसराईल की राहनुमाई की। \v 15 फिर वह भी जान-बहक़ हो गया, और उसे अमालीक़ियों के पहाड़ी इलाक़े के शहर फ़िरआतोन में दफ़नाया गया, जो उस वक़्त इफ़राईम का हिस्सा था। \c 13 \s1 समसून की पैदाइश की पेशगोई \p \v 1 फिर इसराईली दुबारा ऐसी हरकतें करने लगे जो रब को बुरी लगीं। इसलिए उसने उन्हें फ़िलिस्तियों के हवाले कर दिया जो उन्हें 40 साल दबाते रहे। \v 2 उस वक़्त एक आदमी सुरआ शहर में रहता था जिसका नाम मनोहा था। दान के क़बीले का यह आदमी बेऔलाद था, क्योंकि उस की बीवी बाँझ थी। \p \v 3 एक दिन रब का फ़रिश्ता मनोहा की बीवी पर ज़ाहिर हुआ और कहा, “गो तुझसे बच्चे पैदा नहीं हो सकते, अब तू हामिला होगी, और तेरे बेटा पैदा होगा। \v 4 मै या कोई और नशा-आवर चीज़ मत पीना, न कोई नापाक चीज़ खाना। \v 5 क्योंकि जो बेटा पैदा होगा वह पैदाइश से ही अल्लाह के लिए मख़सूस होगा। लाज़िम है कि उसके बाल कभी न काटे जाएँ। यही बच्चा इसराईल को फ़िलिस्तियों से बचाने लगेगा।” \p \v 6 बीवी अपने शौहर मनोहा के पास गई और उसे सब कुछ बताया, “अल्लाह का एक बंदा मेरे पास आया। वह अल्लाह का फ़रिश्ता लग रहा था, यहाँ तक कि मैं सख़्त घबरा गई। मैंने उससे न पूछा कि वह कहाँ से है, और ख़ुद उसने मुझे अपना नाम न बताया। \v 7 लेकिन उसने मुझे बताया, ‘तू हामिला होगी, और तेरे बेटा पैदा होगा। अब मै या कोई और नशा-आवर चीज़ मत पीना, न कोई नापाक चीज़ खाना। क्योंकि बेटा पैदाइश से ही मौत तक अल्लाह के लिए मख़सूस होगा’।” \p \v 8 यह सुनकर मनोहा ने रब से दुआ की, “ऐ रब, बराहे-करम मर्दे-ख़ुदा को दुबारा हमारे पास भेज ताकि वह हमें सिखाए कि हम उस बेटे के साथ क्या करें जो पैदा होनेवाला है।” \v 9 अल्लाह ने उस की सुनी और अपने फ़रिश्ते को दुबारा उस की बीवी के पास भेज दिया। उस वक़्त वह शौहर के बग़ैर खेत में थी। \v 10 फ़रिश्ते को देखकर वह जल्दी से मनोहा के पास आई और उसे इत्तला दी, “जो आदमी पिछले दिनों में मेरे पास आया वह दुबारा मुझ पर ज़ाहिर हुआ है!” \p \v 11 मनोहा उठकर अपनी बीवी के पीछे पीछे फ़रिश्ते के पास आया। उसने पूछा, “क्या आप वही आदमी हैं जिसने पिछले दिनों में मेरी बीवी से बात की थी?” फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “जी, मैं ही था।” \v 12 फिर मनोहा ने सवाल किया, “जब आपकी पेशगोई पूरी हो जाएगी तो हमें बेटे के तर्ज़े-ज़िंदगी और सुलूक के सिलसिले में किन किन बातों का ख़याल करना है?” \p \v 13 रब के फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “लाज़िम है कि तेरी बीवी उन तमाम चीज़ों से परहेज़ करे जिनका ज़िक्र मैंने किया। \v 14 वह अंगूर की कोई भी पैदावार न खाए। न वह मै, न कोई और नशा-आवर चीज़ पिए। नापाक चीज़ें खाना भी मना है। वह मेरी हर हिदायत पर अमल करे।” \p \v 15 मनोहा ने रब के फ़रिश्ते से गुज़ारिश की, “मेहरबानी करके थोड़ी देर हमारे पास ठहरें ताकि हम बकरी का बच्चा ज़बह करके आपके लिए खाना तैयार कर सकें।” \v 16 अब तक मनोहा ने यह बात नहीं पहचानी थी कि मेहमान असल में रब का फ़रिश्ता है। फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “ख़ाह तू मुझे रोके भी मैं कुछ नहीं खाऊँगा। लेकिन अगर तू कुछ करना चाहे तो बकरी का बच्चा रब को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश कर।” \p \v 17 मनोहा ने उससे पूछा, “आपका क्या नाम है? क्योंकि जब आपकी यह बातें पूरी हो जाएँगी तो हम आपकी इज़्ज़त करना चाहेंगे।” \v 18 फ़रिश्ते ने सवाल किया, “तू मेरा नाम क्यों जानना चाहता है? वह तो तेरी समझ से बाहर है।” \v 19 फिर मनोहा ने एक बड़े पत्थर पर रब को बकरी का बच्चा और ग़ल्ला की नज़र पेश की। तब रब ने मनोहा और उस की बीवी के देखते देखते एक हैरतअंगेज़ काम किया। \v 20 जब आग के शोले आसमान की तरफ़ बुलंद हुए तो रब का फ़रिश्ता शोले में से ऊपर चढ़कर ओझल हो गया। मनोहा और उस की बीवी मुँह के बल गिर गए। \p \v 21 जब रब का फ़रिश्ता दुबारा मनोहा और उस की बीवी पर ज़ाहिर न हुआ तो मनोहा को समझ आई कि रब का फ़रिश्ता ही था। \v 22 वह पुकार उठा, “हाय, हम मर जाएंगे, क्योंकि हमने अल्लाह को देखा है!” \v 23 लेकिन उस की बीवी ने एतराज़ किया, “अगर रब हमें मार डालना चाहता तो वह हमारी क़ुरबानी क़बूल न करता। फिर न वह हम पर यह सब कुछ ज़ाहिर करता, न हमें ऐसी बातें बताता।” \p \v 24 कुछ देर के बाद मनोहा के हाँ बेटा पैदा हुआ। बीवी ने उसका नाम समसून रखा। बच्चा बड़ा होता गया, और रब ने उसे बरकत दी। \v 25 अल्लाह का रूह पहली बार महने-दान में जो सुरआ और इस्ताल के दरमियान है उस पर नाज़िल हुआ। \c 14 \s1 समसून की फ़िलिस्ती औरत से शादी \p \v 1 एक दिन समसून तिमनत में फ़िलिस्तियों के पास ठहरा हुआ था। वहाँ उसने एक फ़िलिस्ती औरत देखी जो उसे पसंद आई। \v 2 अपने घर लौटकर उसने अपने वालिदैन को बताया, “मुझे तिमनत की एक फ़िलिस्ती औरत पसंद आई है। उसके साथ मेरा रिश्ता बाँधने की कोशिश करें।” \v 3 उसके वालिदैन ने जवाब दिया, “क्या आपके रिश्तेदारों और क़ौम में कोई क़ाबिले-क़बूल औरत नहीं है? आपको नामख़तून और बेदीन फ़िलिस्तियों के पास जाकर उनमें से कोई औरत ढूँडने की क्या ज़रूरत थी?” लेकिन समसून बज़िद रहा, “उसी के साथ मेरी शादी कराएँ! वही मुझे ठीक लगती है।” \p \v 4 उसके माँ-बाप को मालूम नहीं था कि यह सब कुछ रब की तरफ़ से है जो फ़िलिस्तियों से लड़ने का मौक़ा तलाश कर रहा था। क्योंकि उस वक़्त फ़िलिस्ती इसराईल पर हुकूमत कर रहे थे। \p \v 5 चुनाँचे समसून अपने माँ-बाप समेत तिमनत के लिए रवाना हुआ। जब वह तिमनत के अंगूर के बाग़ों के क़रीब पहुँचे तो समसून अपने माँ-बाप से अलग हो गया। अचानक एक जवान शेरबबर दहाड़ता हुआ उस पर टूट पड़ा। \v 6 तब अल्लाह का रूह इतने ज़ोर से समसून पर नाज़िल हुआ कि उसने अपने हाथों से शेर को यों फाड़ डाला, जिस तरह आम आदमी बकरी के छोटे बच्चे को फाड़ डालता है। लेकिन उसने अपने वालिदैन को इसके बारे में कुछ न बताया। \v 7 आगे निकलकर वह तिमनत पहुँच गया। मज़कूरा फ़िलिस्ती औरत से बात हुई और वह उसे ठीक लगी। \p \v 8 कुछ देर के बाद वह शादी करने के लिए दुबारा तिमनत गए। शहर पहुँचने से पहले समसून रास्ते से हटकर शेरबबर की लाश को देखने गया। वहाँ क्या देखता है कि शहद की मक्खियों ने शेर के पिंजर में अपना छत्ता बना लिया है। \v 9 समसून ने उसमें हाथ डालकर शहद को निकाल लिया और उसे खाते हुए चला। जब वह अपने माँ-बाप के पास पहुँचा तो उसने उन्हें भी कुछ दिया, मगर यह न बताया कि कहाँ से मिल गया है। \p \v 10 तिमनत पहुँचकर समसून का बाप दुलहन के ख़ानदान से मिला जबकि समसून ने दूल्हे की हैसियत से ऐसी ज़ियाफ़त की जिस तरह उस ज़माने में दस्तूर था। \s1 फ़िलिस्ती समसून को धोका देते हैं \p \v 11 जब दुलहन के घरवालों को पता चला कि समसून तिमनत पहुँच गया है तो उन्होंने उसके पास 30 जवान आदमी भेज दिए कि उसके साथ ख़ुशी मनाएँ। \v 12 समसून ने उनसे कहा, “मैं आपसे पहेली पूछता हूँ। अगर आप ज़ियाफ़त के सात दिनों के दौरान इसका हल बता सकें तो मैं आपको कतान के 30 क़ीमती कुरते और 30 शानदार सूट दे दूँगा। \v 13 लेकिन अगर आप मुझे इसका सहीह मतलब न बता सकें तो आपको मुझे 30 क़ीमती कुरते और 30 शानदार सूट देने पड़ेंगे।” उन्होंने जवाब दिया, “अपनी पहेली सुनाएँ।” \p \v 14 समसून ने कहा, “खानेवाले में से खाना निकला और ज़ोरावर में से मिठास।” \p तीन दिन गुज़र गए। जवान पहेली का मतलब न बता सके। \v 15 चौथे दिन उन्होंने दुलहन के पास जाकर उसे धमकी दी, “अपने शौहर को हमें पहेली का मतलब बताने पर उकसाओ, वरना हम तुम्हें तुम्हारे ख़ानदान समेत जला देंगे। क्या तुम लोगों ने हमें सिर्फ़ इसलिए दावत दी कि हमें लूट लो?” \p \v 16 दुलहन समसून के पास गई और आँसू बहा बहाकर कहने लगी, “तू मुझे प्यार नहीं करता! हक़ीक़त में तू मुझसे नफ़रत करता है। तूने मेरी क़ौम के लोगों से पहेली पूछी है लेकिन मुझे इसका मतलब नहीं बताया।” समसून ने जवाब दिया, “मैंने अपने माँ-बाप को भी इसका मतलब नहीं बताया तो तुझे क्यों बताऊँ?” \v 17 ज़ियाफ़त के पूरे हफ़ते के दौरान दुलहन उसके सामने रोती रही। \p सातवें दिन समसून दुलहन की इल्तिजाओं से इतना तंग आ गया कि उसने उसे पहेली का हल बता दिया। तब दुलहन ने फुरती से सब कुछ फ़िलिस्तियों को सुना दिया। \v 18 सूरज के ग़ुरूब होने से पहले पहले शहर के मर्दों ने समसून को पहेली का मतलब बताया, “क्या कोई चीज़ शहद से ज़्यादा मीठी और शेरबबर से ज़्यादा ज़ोरावर होती है?” समसून ने यह सुनकर कहा, “आपने मेरी जवान गाय लेकर हल चलाया है, वरना आप कभी भी पहेली का हल न निकाल सकते।” \v 19 फिर रब का रूह उस पर नाज़िल हुआ। उसने अस्क़लून शहर में जाकर 30 फ़िलिस्तियों को मार डाला और उनके लिबास लेकर उन आदमियों को दे दिए जिन्होंने उसे पहेली का मतलब बता दिया था। \p इसके बाद वह बड़े ग़ुस्से में अपने माँ-बाप के घर चला गया। \v 20 लेकिन उस की बीवी की शादी समसून के शहबाले से कराई गई जो 30 जवान फ़िलिस्तियों में से एक था। \c 15 \s1 समसून फ़िलिस्तियों से बदला लेता है \p \v 1 कुछ दिन गुज़र गए। जब गंदुम की कटाई होने लगी तो समसून बकरी का बच्चा अपने साथ लेकर अपनी बीवी से मिलने गया। सुसर के घर पहुँचकर उसने बीवी के कमरे में जाने की दरख़ास्त की। लेकिन बाप ने इनकार किया। \v 2 उसने कहा, “यह नहीं हो सकता! मैंने बेटी की शादी आपके शहबाले से करा दी है। असल में मुझे यक़ीन हो गया था कि अब आप उससे सख़्त नफ़रत करते हैं। लेकिन कोई बात नहीं। उस की छोटी बहन से शादी कर लें। वह ज़्यादा ख़ूबसूरत है।” \p \v 3 समसून बोला, “इस दफ़ा मैं फ़िलिस्तियों से ख़ूब बदला लूँगा, और कोई नहीं कह सकेगा कि मैं हक़ पर नहीं हूँ।” \v 4 वहाँ से निकलकर उसने 300 लोमड़ियों को पकड़ लिया। दो दो की दुमों को बाँधकर उसने हर जोड़े की दुमों के साथ मशाल लगा दी \v 5 और फिर मशालों को जलाकर लोमड़ियों को फ़िलिस्तियों के अनाज के खेतों में भगा दिया। खेतों में पड़े पूले उस अनाज समेत भस्म हुए जो अब तक काटा नहीं गया था। अंगूर और ज़ैतून के बाग़ भी तबाह हो गए। \p \v 6 फ़िलिस्तियों ने दरियाफ़्त किया कि यह किसका काम है। पता चला कि समसून ने यह सब कुछ किया है, और कि वजह यह है कि तिमनत में उसके सुसर ने उस की बीवी को उससे छीनकर उसके शहबाले को दे दिया है। यह सुनकर फ़िलिस्ती तिमनत गए और समसून के सुसर को उस की बेटी समेत पकड़कर जला दिया। \v 7 तब समसून ने उनसे कहा, “यह तुमने क्या किया है! जब तक मैंने पूरा बदला न लिया मैं नहीं रुकूँगा।” \v 8 वह इतने ज़ोर से उन पर टूट पड़ा कि बेशुमार फ़िलिस्ती हलाक हुए। फिर वह उस जगह से उतरकर ऐताम की चट्टान के ग़ार में रहने लगा। \s1 लही में समसून फ़िलिस्तियों से लड़ता है \p \v 9 जवाब में फ़िलिस्ती फ़ौज यहूदाह के क़बायली इलाक़े में दाख़िल हुई। वहाँ वह लही शहर के पास ख़ैमाज़न हुए। \v 10 यहूदाह के बाशिंदों ने पूछा, “क्या वजह है कि आप हमसे लड़ने आए हैं?” फ़िलिस्तियों ने जवाब दिया, “हम समसून को पकड़ने आए हैं ताकि उसके साथ वह कुछ करें जो उसने हमारे साथ किया है।” \p \v 11 तब यहूदाह के 3,000 मर्द ऐताम पहाड़ के ग़ार के पास आए और समसून से कहा, “यह आपने हमारे साथ क्या किया? आपको तो पता है कि फ़िलिस्ती हम पर हुकूमत करते हैं।” समसून ने जवाब दिया, “मैंने उनके साथ सिर्फ़ वह कुछ किया जो उन्होंने मेरे साथ किया था।” \p \v 12 यहूदाह के मर्द बोले, “हम आपको बाँधकर फ़िलिस्तियों के हवाले करने आए हैं।” समसून ने कहा, “ठीक है, लेकिन क़सम खाएँ कि आप ख़ुद मुझे क़त्ल नहीं करेंगे।” \p \v 13 उन्होंने जवाब दिया, “हम आपको हरगिज़ क़त्ल नहीं करेंगे बल्कि आपको सिर्फ़ बाँधकर उनके हवाले कर देंगे।” चुनाँचे वह उसे दो ताज़ा ताज़ा रस्सों से बाँधकर फ़िलिस्तियों के पास ले गए। \p \v 14 समसून अभी लही से दूर था कि फ़िलिस्ती नारे लगाते हुए उस की तरफ़ दौड़े आए। तब रब का रूह बड़े ज़ोर से उस पर नाज़िल हुआ। उसके बाज़ुओं से बँधे हुए रस्से सन के जले हुए धागे जैसे कमज़ोर हो गए, और वह पिघलकर हाथों से गिर गए। \v 15 कहीं से गधे का ताज़ा जबड़ा पकड़कर उसने उसके ज़रीए हज़ार अफ़राद को मार डाला। \p \v 16 उस वक़्त उसने नारा लगाया, “गधे के जबड़े से मैंने उनके ढेर लगाए हैं! गधे के जबड़े से मैंने हज़ार मर्दों को मार डाला है!” \v 17 इसके बाद उसने गधे का यह जबड़ा फेंक दिया। उस जगह का नाम रामत-लही यानी जबड़ा पहाड़ी पड़ गया। \p \v 18 समसून को वहाँ बड़ी प्यास लगी। उसने रब को पुकारकर कहा, “तू ही ने अपने ख़ादिम के हाथ से इसराईल को यह बड़ी नजात दिलाई है। लेकिन अब मैं प्यास से मरकर नामख़तून दुश्मन के हाथ में आ जाऊँगा।” \v 19 तब अल्लाह ने लही में ज़मीन को छेदा, और गढ़े से पानी फूट निकला। समसून उसका पानी पीकर दुबारा ताज़ादम हो गया। यों उस चश्मे का नाम ऐन-हक़्क़ोरे यानी पुकारनेवाले का चश्मा पड़ गया। आज भी वह लही में मौजूद है। \p \v 20 फ़िलिस्तियों के दौर में समसून 20 साल तक इसराईल का क़ाज़ी रहा। \c 16 \s1 समसून ग़ज़्ज़ा का दरवाज़ा उठा ले जाता है \p \v 1 एक दिन समसून फ़िलिस्ती शहर ग़ज़्ज़ा में आया। वहाँ वह एक कसबी को देखकर उसके घर में दाख़िल हुआ। \v 2 जब शहर के बाशिंदों को इत्तला मिली कि समसून शहर में है तो उन्होंने कसबी के घर को घेर लिया। साथ साथ वह रात के वक़्त शहर के दरवाज़े पर ताक में रहे। फ़ैसला यह हुआ, “रात के वक़्त हम कुछ नहीं करेंगे, जब पौ फटेगी तब उसे मार डालेंगे।” \p \v 3 समसून अब तक कसबी के घर में सो रहा था। लेकिन आधी रात को वह उठकर शहर के दरवाज़े के पास गया और दोनों किवाड़ों को कुंडे और दरवाज़े के दोनों बाज़ुओं समेत उखाड़कर अपने कंधों पर रख लिया। यों चलते चलते वह सब कुछ उस पहाड़ी की चोटी पर ले गया जो हबरून के मुक़ाबिल है। \s1 समसून और दलीला \p \v 4 कुछ देर के बाद समसून एक औरत की मुहब्बत में गिरिफ़्तार हो गया जो वादीए-सूरिक़ में रहती थी। उसका नाम दलीला था। \v 5 यह सुनकर फ़िलिस्ती सरदार उसके पास आए और कहने लगे, “समसून को उकसाएँ कि वह आपको अपनी बड़ी ताक़त का भेद बताए। हम जानना चाहते हैं कि हम किस तरह उस पर ग़ालिब आकर उसे यों बाँध सकें कि वह हमारे क़ब्ज़े में रहे। अगर आप यह मालूम कर सकें तो हममें से हर एक आपको चाँदी के 1,100 सिक्के देगा।” \p \v 6 चुनाँचे दलीला ने समसून से सवाल किया, “मुझे अपनी बड़ी ताक़त का भेद बताएँ। क्या आपको किसी ऐसी चीज़ से बाँधा जा सकता है जिसे आप तोड़ नहीं सकते?” \v 7 समसून ने जवाब दिया, “अगर मुझे जानवरों की सात ताज़ा नसों से बाँधा जाए तो फिर मैं आम आदमी जैसा कमज़ोर हो जाऊँगा।” \v 8 फ़िलिस्ती सरदारों ने दलीला को सात ताज़ा नसें मुहैया कर दीं, और उसने समसून को उनसे बाँध लिया। \v 9 कुछ फ़िलिस्ती आदमी साथवाले कमरे में छुप गए। फिर दलीला चिल्ला उठी, “समसून, फ़िलिस्ती आपको पकड़ने आए हैं!” यह सुनकर समसून ने नसों को यों तोड़ दिया जिस तरह डोरी टूट जाती है जब आग में से गुज़रती है। चुनाँचे उस की ताक़त का पोल न खुला। \p \v 10 दलीला का मुँह लटक गया। “आपने झूट बोलकर मुझे बेवुक़ूफ़ बनाया है। अब आएँ, मेहरबानी करके मुझे बताएँ कि आपको किस तरह बाँधा जा सकता है।” \v 11 समसून ने जवाब दिया, “अगर मुझे ग़ैरइस्तेमालशुदा रस्सों से बाँधा जाए तो फिर ही मैं आम आदमी जैसा कमज़ोर हो जाऊँगा।” \v 12 दलीला ने नए रस्से लेकर उसे उनसे बाँध लिया। इस मरतबा भी फ़िलिस्ती साथवाले कमरे में छुप गए थे। फिर दलीला चिल्ला उठी, “समसून, फ़िलिस्ती आपको पकड़ने आए हैं!” लेकिन इस बार भी समसून ने रस्सों को यों तोड़ लिया जिस तरह आम आदमी डोरी को तोड़ लेता है। \p \v 13 दलीला ने शिकायत की, “आप बार बार झूट बोलकर मेरा मज़ाक़ उड़ा रहे हैं। अब मुझे बताएँ कि आपको किस तरह बाँधा जा सकता है।” समसून ने जवाब दिया, “लाज़िम है कि आप मेरी सात ज़ुल्फ़ों को खड्डी के ताने के साथ बुनें। फिर ही आम आदमी जैसा कमज़ोर हो जाऊँगा।” \v 14 जब समसून सो रहा था तो दलीला ने ऐसा ही किया। उस की सात ज़ुल्फ़ों को ताने के साथ बुनकर उसने उसे शटल के ज़रीए खड्डी के साथ लगाया। फिर वह चिल्ला उठी, “समसून, फ़िलिस्ती आपको पकड़ने आए हैं!” समसून जाग उठा और अपने बालों को शटल समेत खड्डी से निकाल लिया। \p \v 15 यह देखकर दलीला ने मुँह फूलाकर मलामत की, “आप किस तरह दावा कर सकते हैं कि मुझसे मुहब्बत रखते हैं? अब आपने तीन मरतबा मेरा मज़ाक़ उड़ाकर मुझे अपनी बड़ी ताक़त का भेद नहीं बताया।” \v 16 रोज़ बरोज़ वह अपनी बातों से उस की नाक में दम करती रही। आख़िरकार समसून इतना तंग आ गया कि उसका जीना दूभर हो गया। \v 17 फिर उसने उसे खुलकर बात बताई, “मैं पैदाइश ही से अल्लाह के लिए मख़सूस हूँ, इसलिए मेरे बालों को कभी नहीं काटा गया। अगर सर को मुँडवाया जाए तो मेरी ताक़त जाती रहेगी और मैं हर दूसरे आदमी जैसा कमज़ोर हो जाऊँगा।” \p \v 18 दलीला ने जान लिया कि अब समसून ने मुझे पूरी हक़ीक़त बताई है। उसने फ़िलिस्ती सरदारों को इत्तला दी, “आओ, क्योंकि इस मरतबा उसने मुझे अपने दिल की हर बात बताई है।” यह सुनकर वह मुक़र्ररा चाँदी अपने साथ लेकर दलीला के पास आए। \p \v 19 दलीला ने समसून का सर अपनी गोद में रखकर उसे सुला दिया। फिर उसने एक आदमी को बुलाकर समसून की सात ज़ुल्फ़ों को मुँडवाया। यों वह उसे पस्त करने लगी, और उस की ताक़त जाती रही। \v 20 फिर वह चिल्ला उठी, “समसून, फ़िलिस्ती आपको पकड़ने आए हैं!” समसून जाग उठा और सोचा, “मैं पहले की तरह अब भी अपने आपको बचाकर बंधन को तोड़ दूँगा।” अफ़सोस, उसे मालूम नहीं था कि रब ने उसे छोड़ दिया है। \v 21 फ़िलिस्तियों ने उसे पकड़कर उस की आँखें निकाल दीं। फिर वह उसे ग़ज़्ज़ा ले गए जहाँ उसे पीतल की ज़ंजीरों से बाँधा गया। वहाँ वह क़ैदख़ाने की चक्की पीसा करता था। \p \v 22 लेकिन होते होते उसके बाल दुबारा बढ़ने लगे। \s1 समसून का आख़िरी इंतक़ाम \p \v 23 एक दिन फ़िलिस्ती सरदार बड़ा जशन मनाने के लिए जमा हुए। उन्होंने अपने देवता दजून को जानवरों की बहुत-सी क़ुरबानियाँ पेश करके अपनी फ़तह की ख़ुशी मनाई। वह बोले, “हमारे देवता ने हमारे दुश्मन समसून को हमारे हवाले कर दिया है।” \v 24 समसून को देखकर अवाम ने दजून की तमजीद करके कहा, “हमारे देवता ने हमारे दुश्मन को हमारे हवाले कर दिया है! जिसने हमारे मुल्क को तबाह किया और हममें से इतने लोगों को मार डाला वह अब हमारे क़ाबू में आ गया है!” \v 25 इस क़िस्म की बातें करते करते उनकी ख़ुशी की इंतहा न रही। तब वह चिल्लाने लगे, “समसून को बुलाओ ताकि वह हमारे दिलों को बहलाए।” \p चुनाँचे उसे उनकी तफ़रीह के लिए जेल से लाया गया और दो सतूनों के दरमियान खड़ा कर दिया गया। \v 26 समसून उस लड़के से मुख़ातिब हुआ जो उसका हाथ पकड़कर उस की राहनुमाई कर रहा था, “मुझे छत को उठानेवाले सतूनों के पास ले जाओ ताकि मैं उनका सहारा लूँ।” \v 27 इमारत मर्दों और औरतों से भरी थी। फ़िलिस्ती सरदार भी सब आए हुए थे। सिर्फ़ छत पर समसून का तमाशा देखनेवाले तक़रीबन 3,000 अफ़राद थे। \p \v 28 फिर समसून ने दुआ की, “ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, मुझे याद कर। बस एक दफ़ा और मुझे पहले की तरह क़ुव्वत अता फ़रमा ताकि मैं एक ही वार से फ़िलिस्तियों से अपनी आँखों का बदला ले सकूँ।” \v 29 यह कहकर समसून ने उन दो मरकज़ी सतूनों को पकड़ लिया जिन पर छत का पूरा वज़न था। उनके दरमियान खड़े होकर उसने पूरी ताक़त से ज़ोर लगाया \v 30 और दुआ की, “मुझे फ़िलिस्तियों के साथ मरने दे!” अचानक सतून हिल गए और छत धड़ाम से फ़िलिस्तियों के तमाम सरदारों और बाक़ी लोगों पर गिर गई। इस तरह समसून ने पहले की निसबत मरते वक़्त कहीं ज़्यादा फ़िलिस्तियों को मार डाला। \p \v 31 समसून के भाई और बाक़ी घरवाले आए और उस की लाश को उठाकर उसके बाप मनोहा की क़ब्र के पास ले गए। वहाँ यानी सुरआ और इस्ताल के दरमियान उन्होंने उसे दफ़नाया। समसून 20 साल इसराईल का क़ाज़ी रहा। \c 17 \s1 मीकाह का बुत \p \v 1 इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े में एक आदमी रहता था जिसका नाम मीकाह था। \v 2 एक दिन उसने अपनी माँ से बात की, “आपके चाँदी के 1,100 सिक्के चोरी हो गए थे, ना? उस वक़्त आपने मेरे सामने ही चोर पर लानत भेजी थी। अब देखें, वह पैसे मेरे पास हैं। मैं ही चोर हूँ।” यह सुनकर माँ ने जवाब दिया, “मेरे बेटे, रब तुझे बरकत दे!” \v 3 मीकाह ने उसे तमाम पैसे वापस कर दिए, और माँ ने एलान किया, “अब से यह चाँदी रब के लिए मख़सूस हो! मैं आपके लिए तराशा और ढाला हुआ बुत बनवाकर चाँदी आपको वापस कर देती हूँ।” \p \v 4 चुनाँचे जब बेटे ने पैसे वापस कर दिए तो माँ ने उसके 200 सिक्के सुनार के पास ले जाकर लकड़ी का तराशा और ढाला हुआ बुत बनवाया। मीकाह ने यह बुत अपने घर में खड़ा किया, \v 5 क्योंकि उसका अपना मक़दिस था। उसने मज़ीद बुत और एक अफ़ोद \f + \fr 17:5 \ft आम तौर पर इबरानी में अफ़ोद का मतलब इमामे-आज़म का बालापोश था (देखिए ख़ुरूज 28:4), लेकिन यहाँ इससे मुराद बुतपरस्ती की कोई चीज़ है। \f* भी बनवाया और फिर एक बेटे को अपना इमाम बना लिया। \v 6 उस ज़माने में इसराईल का कोई बादशाह नहीं था बल्कि हर कोई वही कुछ करता जो उसे दुरुस्त लगता था। \p \v 7 उन दिनों में लावी के क़बीले का एक जवान आदमी यहूदाह के क़बीले के शहर बैत-लहम में आबाद था। \v 8 अब वह शहर को छोड़कर रिहाइश की कोई और जगह तलाश करने लगा। इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े में से सफ़र करते करते वह मीकाह के घर पहुँच गया। \v 9 मीकाह ने पूछा, “आप कहाँ से आए हैं?” जवान ने जवाब दिया, “मैं लावी हूँ। मैं यहूदाह के शहर बैत-लहम का रहनेवाला हूँ लेकिन रिहाइश की किसी और जगह की तलाश में हूँ।” \p \v 10 मीकाह बोला, “यहाँ मेरे पास अपना घर बनाकर मेरे बाप और इमाम बनें। तब आपको साल में चाँदी के दस सिक्के और ज़रूरत के मुताबिक़ कपड़े और ख़ुराक मिलेगी।” \p \v 11 लावी मुत्तफ़िक़ हुआ। वह वहाँ आबाद हुआ, और मीकाह ने उसके साथ बेटों का-सा सुलूक किया। \v 12 उसने उसे इमाम मुक़र्रर करके सोचा, \v 13 “अब रब मुझ पर मेहरबानी करेगा, क्योंकि लावी मेरा इमाम बन गया है।” \c 18 \s1 दान का क़बीला ज़मीन की तलाश करता है \p \v 1 उन दिनों में इसराईल का बादशाह नहीं था। और अब तक दान के क़बीले को अपना कोई क़बायली इलाक़ा नहीं मिला था, इसलिए उसके लोग कहीं आबाद होने की तलाश में रहे। \v 2 उन्होंने अपने ख़ानदानों में से सुरआ और इस्ताल के पाँच तजरबाकार फ़ौजियों को चुनकर उन्हें मुल्क की तफ़तीश करने के लिए भेज दिया। यह मर्द इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े में से गुज़रकर मीकाह के घर के पास पहुँच गए। जब वह वहाँ रात के लिए ठहरे हुए थे \v 3 तो उन्होंने देखा कि जवान लावी बैत-लहम की बोली बोलता है। उसके पास जाकर उन्होंने पूछा, “कौन आपको यहाँ लाया है? आप यहाँ क्या करते हैं? और आपका इस घर में रहने का क्या मक़सद है?” \v 4 लावी ने उन्हें अपनी कहानी सुनाई, “मीकाह ने मुझे नौकरी देकर अपना इमाम बना लिया है।” \v 5 फिर उन्होंने उससे गुज़ारिश की, “अल्लाह से दरियाफ़्त करें कि क्या हमारे सफ़र का मक़सद पूरा हो जाएगा या नहीं?” \v 6 लावी ने उन्हें तसल्ली दी, “सलामती से आगे बढ़ें। आपके सफ़र का मक़सद रब को क़बूल है, और वह आपके साथ है।” \p \v 7 तब यह पाँच आदमी आगे निकले और सफ़र करते करते लैस पहुँच गए। उन्होंने देखा कि वहाँ के लोग सैदानियों की तरह पुरसुकून और बेफ़िकर ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। कोई नहीं था जो उन्हें दबाता या उन पर ज़ुल्म करता। यह भी मालूम हुआ कि अगर उन पर हमला किया जाए तो उनका इत्तहादी शहर सैदा उनसे इतनी दूर है कि उनकी मदद नहीं कर सकेगा, और क़रीब कोई इत्तहादी नहीं है जो उनका साथ दे। \v 8 वह पाँच जासूस सुरआ और इस्ताल वापस चले गए। जब वहाँ पहुँचे तो दूसरों ने पूछा, “सफ़र कैसा रहा?” \v 9 जासूसों ने जवाब में कहा, “आएँ, हम जंग के लिए निकलें! हमें एक बेहतरीन इलाक़ा मिल गया है। आप क्यों झिजक रहे हैं? जल्दी करें, हम निकलें और उस मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लें! \v 10 वहाँ के लोग बेफ़िकर हैं और हमले की तवक़्क़ो ही नहीं करते। और ज़मीन वसी और ज़रख़ेज़ है, उसमें किसी भी चीज़ की कमी नहीं है। अल्लाह आपको वह मुल्क देने का इरादा रखता है।” \s1 दान के मर्द मीकाह का बुत इमाम समेत छीन लेते हैं \p \v 11 दान के क़बीले के 600 मुसल्लह आदमी सुरआ और इस्ताल से रवाना हुए। \v 12 रास्ते में उन्होंने अपनी लशकरगाह यहूदाह के शहर क़िरियत-यारीम के क़रीब लगाई। इसलिए यह जगह आज तक महने-दान यानी दान की ख़ैमागाह कहलाती है। \v 13 वहाँ से वह इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े में दाख़िल हुए और चलते चलते मीकाह के घर पहुँच गए। \p \v 14 जिन पाँच मर्दों ने लैस की तफ़तीश की थी उन्होंने अपने साथियों से कहा, “क्या आपको मालूम है कि इन घरों में एक अफ़ोद, एक तराशा और ढाला हुआ बुत और दीगर कई बुत हैं? अब सोच लें कि क्या किया जाए।” \p \v 15 पाँचों ने मीकाह के घर में दाख़िल होकर जवान लावी को सलाम किया \v 16 जबकि बाक़ी 600 मुसल्लह मर्द गेट पर खड़े रहे। \v 17 जब लावी बाहर खड़े मर्दों के पास गया तो इन पाँचों ने अंदर घुसकर तराशा और ढाला हुआ बुत, अफ़ोद और बाक़ी बुत छीन लिए। \v 18 यह देखकर लावी चीख़ने लगा, “क्या कर रहे हो!” \p \v 19 उन्होंने कहा, “चुप! कोई बात न करो बल्कि हमारे साथ जाकर हमारे बाप और इमाम बनो। हमारे साथ जाओगे तो पूरे क़बीले के इमाम बनोगे। क्या यह एक ही ख़ानदान की ख़िदमत करने से कहीं बेहतर नहीं होगा?” \v 20 यह सुनकर इमाम ख़ुश हुआ। वह अफ़ोद, तराशा हुआ बुत और बाक़ी बुतों को लेकर मुसाफ़िरों में शरीक हो गया। \v 21 फिर दान के मर्द रवाना हुए। उनके बाल-बच्चे, मवेशी और क़ीमती मालो-मता उनके आगे आगे था। \p \v 22 जब मीकाह को बात का पता चला तो वह अपने पड़ोसियों को जमा करके उनके पीछे दौड़ा। इतने में दान के लोग घर से दूर निकल चुके थे। \v 23 जब वह सामने नज़र आए तो मीकाह और उसके साथियों ने चीख़ते-चिल्लाते उन्हें रुकने को कहा। दान के मर्दों ने पीछे देखकर मीकाह से कहा, “क्या बात है? अपने इन लोगों को बुलाकर क्यों ले आए हो?” \v 24 मीकाह ने जवाब दिया, “तुम लोगों ने मेरे बुतों को छीन लिया गो मैंने उन्हें ख़ुद बनवाया है। मेरे इमाम को भी साथ ले गए हो। मेरे पास कुछ नहीं रहा तो अब तुम पूछते हो कि क्या बात है?” \p \v 25 दान के अफ़राद बोले, “ख़ामोश! ख़बरदार, हमारे कुछ लोग तेज़मिज़ाज हैं। ऐसा न हो कि वह ग़ुस्से में आकर तुमको तुम्हारे ख़ानदान समेत मार डालें।” \v 26 यह कहकर उन्होंने अपना सफ़र जारी रखा। मीकाह ने जान लिया कि मैं अपने थोड़े आदमियों के साथ उनका मुक़ाबला नहीं कर सकूँगा, इसलिए वह मुड़कर अपने घर वापस चला गया। \v 27 उसके बुत दान के क़ब्ज़े में रहे, और इमाम भी उनमें टिक गया। \s1 लैस पर क़ब्ज़ा और दान की बुतपरस्ती \p फिर वह लैस के इलाक़े में दाख़िल हुए जिसके बाशिंदे पुरसुकून और बेफ़िकर ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। दान के फ़ौजी उन पर टूट पड़े और सबको तलवार से क़त्ल करके शहर को भस्म कर दिया। \v 28 किसी ने भी उनकी मदद न की, क्योंकि सैदा बहुत दूर था, और क़रीब कोई इत्तहादी नहीं था जो उनका साथ देता। यह शहर बैत-रहोब की वादी में था। दान के अफ़राद शहर को अज़ सरे-नौ तामीर करके उसमें आबाद हुए। \v 29 और उन्होंने उसका नाम अपने क़बीले के बानी के नाम पर दान रखा (दान इसराईल का बेटा था)। \p \v 30 वहाँ उन्होंने तराशा हुआ बुत रखकर पूजा के इंतज़ाम पर यूनतन मुक़र्रर किया जो मूसा के बेटे जैरसोम की औलाद में से था। जब यूनतन फ़ौत हुआ तो उस की औलाद क़ौम की जिलावतनी तक दान के क़बीले में यही ख़िदमत करती रही। \p \v 31 मीकाह का बनवाया हुआ बुत तब तक दान में रहा जब तक अल्लाह का घर सैला में था। \c 19 \s1 एक लावी की अपनी दाश्ता के साथ सुलह \p \v 1 उस ज़माने में जब इसराईल का कोई बादशाह नहीं था एक लावी ने अपने घर में दाश्ता रखी जो यहूदाह के शहर बैत-लहम की रहनेवाली थी। आदमी इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े के किसी दूर-दराज़ कोने में आबाद था। \v 2 लेकिन एक दिन औरत मर्द से नाराज़ हुई और मैके वापस चली गई। चार माह के बाद \v 3 लावी दो गधे और अपने नौकर को लेकर बैत-लहम के लिए रवाना हुआ ताकि दाश्ता का ग़ुस्सा ठंडा करके उसे वापस आने पर आमादा करे। \p जब उस की मुलाक़ात दाश्ता से हुई तो वह उसे अपने बाप के घर में ले गई। उसे देखकर सुसर इतना ख़ुश हुआ \v 4 कि उसने उसे जाने न दिया। दामाद को तीन दिन वहाँ ठहरना पड़ा जिस दौरान सुसर ने उस की ख़ूब मेहमान-नवाज़ी की। \v 5 चौथे दिन लावी सुबह-सवेरे उठकर अपनी दाश्ता के साथ रवाना होने की तैयारियाँ करने लगा। लेकिन सुसर उसे रोककर बोला, “पहले थोड़ा-बहुत खाकर ताज़ादम हो जाएँ, फिर चले जाना।” \v 6 दोनों दुबारा खाने-पीने के लिए बैठ गए। \p सुसर ने कहा, “बराहे-करम एक और रात यहाँ ठहरकर अपना दिल बहलाएँ।” \v 7 मेहमान जाने की तैयारियाँ करने तो लगा, लेकिन सुसर ने उसे एक और रात ठहरने पर मजबूर किया। चुनाँचे वह हार मानकर रुक गया। \p \v 8 पाँचवें दिन आदमी सुबह-सवेरे उठा और जाने के लिए तैयार हुआ। सुसर ने ज़ोर दिया, “पहले कुछ खाना खाकर ताज़ादम हो जाएँ। आप दोपहर के वक़्त भी जा सकते हैं।” चुनाँचे दोनों खाने के लिए बैठ गए। \p \v 9 दोपहर के वक़्त लावी अपनी बीवी और नौकर के साथ जाने के लिए उठा। सुसर एतराज़ करने लगा, “अब देखें, दिन ढलनेवाला है। रात ठहरकर अपना दिल बहलाएँ। बेहतर है कि आप कल सुबह-सवेरे ही उठकर घर के लिए रवाना हो जाएँ।” \v 10-11 लेकिन अब लावी किसी भी सूरत में एक और रात ठहरना नहीं चाहता था। वह अपने गधों पर ज़ीन कसकर अपनी बीवी और नौकर के साथ रवाना हुआ। \p चलते चलते दिन ढलने लगा। वह यबूस यानी यरूशलम के क़रीब पहुँच गए थे। शहर को देखकर नौकर ने मालिक से कहा, “आएँ, हम यबूसियों के इस शहर में जाकर वहाँ रात गुज़ारें।” \v 12 लेकिन लावी ने एतराज़ किया, “नहीं, यह अजनबियों का शहर है। हमें ऐसी जगह रात नहीं गुज़ारना चाहिए जो इसराईली नहीं है। बेहतर है कि हम आगे जाकर जिबिया की तरफ़ बढ़ें। \v 13 अगर हम जल्दी करें तो हो सकता है कि जिबिया या उससे आगे रामा तक पहुँच सकें। वहाँ आराम से रात गुज़ार सकेंगे।” \p \v 14 चुनाँचे वह आगे निकले। जब सूरज ग़ुरूब होने लगा तो वह बिनयमीन के क़बीले के शहर जिबिया के क़रीब पहुँच गए \v 15 और रास्ते से हटकर शहर में दाख़िल हुए। लेकिन कोई उनकी मेहमान-नवाज़ी नहीं करना चाहता था, इसलिए वह शहर के चौक में रुक गए। \p \v 16 फिर अंधेरे में एक बूढ़ा आदमी वहाँ से गुज़रा। असल में वह इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े का रहनेवाला था और जिबिया में अजनबी था, क्योंकि बाक़ी बाशिंदे बिनयमीनी थे। अब वह खेत में अपने काम से फ़ारिग़ होकर शहर में वापस आया था। \v 17 मुसाफ़िरों को चौक में देखकर उसने पूछा, “आप कहाँ से आए और कहाँ जा रहे हैं?” \v 18 लावी ने जवाब दिया, “हम यहूदाह के बैत-लहम से आए हैं और इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े के एक दूर-दराज़ कोने तक सफ़र कर रहे हैं। वहाँ मेरा घर है और वहीं से मैं रवाना होकर बैत-लहम चला गया था। इस वक़्त मैं रब के घर जा रहा हूँ। लेकिन यहाँ जिबिया में कोई नहीं जो हमारी मेहमान-नवाज़ी करने के लिए तैयार हो, \v 19 हालाँकि हमारे पास खाने की तमाम चीज़ें मौजूद हैं। गधों के लिए भूसा और चारा है, और हमारे लिए भी काफ़ी रोटी और मै है। हमें किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं है।” \p \v 20 बूढ़े ने कहा, “फिर मैं आपको अपने घर में ख़ुशआमदीद कहता हूँ। अगर आपको कोई चीज़ दरकार हो तो मैं उसे मुहैया करूँगा। हर सूरत में चौक में रात मत गुज़ारना।” \v 21 वह मुसाफ़िरों को अपने घर ले गया और गधों को चारा खिलाया। मेहमानों ने अपने पाँव धोकर खाना खाया और मै पी। \s1 जिबिया के लोगों का जुर्म \p \v 22 वह यों खाने की रिफ़ाक़त से लुत्फ़अंदोज़ हो रहे थे कि जिबिया के कुछ शरीर मर्द घर को घेरकर दरवाज़े को ज़ोर से खटखटाने लगे। वह चिल्लाए, “उस आदमी को बाहर ला जो तेरे घर में ठहरा हुआ है ताकि हम उससे ज़्यादती करें!” \v 23 बूढ़ा आदमी बाहर गया ताकि उन्हें समझाए, “नहीं, भाइयो, ऐसा शैतानी अमल मत करना। यह अजनबी मेरा मेहमान है। ऐसी शर्मनाक हरकत मत करना! \v 24 इससे पहले मैं अपनी कुँवारी बेटी और मेहमान की दाश्ता को बाहर ले आता हूँ। उन्हीं से ज़्यादती करें। जो जी चाहे उनके साथ करें, लेकिन आदमी के साथ ऐसी शर्मनाक हरकत न करें।” \p \v 25 लेकिन बाहर के मर्दों ने उस की न सुनी। तब लावी अपनी दाश्ता को पकड़कर बाहर ले गया और उसके पीछे दरवाज़ा बंद कर दिया। शहर के आदमी पूरी रात उस की बेहुरमती करते रहे। जब पौ फटने लगी तो उन्होंने उसे फ़ारिग़ कर दिया। \v 26 सूरज के तुलू होने से पहले औरत उस घर के पास वापस आई जिसमें शौहर ठहरा हुआ था। दरवाज़े तक तो वह पहुँच गई लेकिन फिर गिरकर वहीं की वहीं पड़ी रही। \p जब दिन चढ़ गया \v 27 तो लावी जाग उठा और सफ़र करने की तैयारियाँ करने लगा। जब दरवाज़ा खोला तो क्या देखता है कि दाश्ता सामने ज़मीन पर पड़ी है और हाथ दहलीज़ पर रखे हैं। \v 28 वह बोला, “उठो, हम चलते हैं।” लेकिन दाश्ता ने जवाब न दिया। यह देखकर आदमी ने उसे गधे पर लाद लिया और अपने घर चला गया। \p \v 29 जब पहुँचा तो उसने छुरी लेकर औरत की लाश को 12 टुकड़ों में काट लिया, फिर उन्हें इसराईल की हर जगह भेज दिया। \v 30 जिसने भी यह देखा उसने घबराकर कहा, “ऐसा जुर्म हमारे दरमियान कभी नहीं हुआ। जब से हम मिसर से निकलकर आए हैं ऐसी हरकत देखने में नहीं आई। अब लाज़िम है कि हम ग़ौर से सोचें और एक दूसरे से मशवरा करके अगले क़दम के बारे में फ़ैसला करें।” \c 20 \s1 जिबिया को सज़ा देने का फ़ैसला \p \v 1 तमाम इसराईली एक दिल होकर मिसफ़ाह में रब के हुज़ूर जमा हुए। शिमाल के दान से लेकर जुनूब के बैर-सबा तक सब आए। दरियाए-यरदन के पार जिलियाद से भी लोग आए। \v 2 इसराईली क़बीलों के सरदार भी आए। उन्होंने मिलकर एक बड़ी फ़ौज तैयार की, तलवारों से लैस 4,00,000 मर्द जमा हुए। \v 3 बिनयमीनियों को इस जमात के बारे में इत्तला मिली। \p इसराईलियों ने पूछा, “हमें बताएँ कि यह हैबतनाक जुर्म किस तरह सरज़द हुआ?” \v 4 मक़तूला के शौहर ने उन्हें अपनी कहानी सुनाई, “मैं अपनी दाश्ता के साथ जिबिया में आ ठहरा जो बिनयमीनियों के इलाक़े में है। हम वहाँ रात गुज़ारना चाहते थे। \v 5 यह देखकर शहर के मर्दों ने मेरे मेज़बान के घर को घेर लिया ताकि मुझे क़त्ल करें। मैं तो बच गया, लेकिन मेरी दाश्ता से इतनी ज़्यादती हुई कि वह मर गई। \v 6 यह देखकर मैंने उस की लाश को टुकड़े टुकड़े करके यह टुकड़े इसराईल की मीरास की हर जगह भेज दिए ताकि हर एक को मालूम हो जाए कि हमारे मुल्क में कितना घिनौना जुर्म सरज़द हुआ है। \v 7 इस पर आप सब यहाँ जमा हुए हैं। इसराईल के मर्दो, अब लाज़िम है कि आप एक दूसरे से मशवरा करके फ़ैसला करें कि क्या करना चाहिए।” \p \v 8 तमाम मर्द एक दिल होकर खड़े हुए। सबका फ़ैसला था, “हममें से कोई भी अपने घर वापस नहीं जाएगा \v 9 जब तक जिबिया को मुनासिब सज़ा न दी जाए। लाज़िम है कि हम फ़ौरन शहर पर हमला करें और इसके लिए क़ुरा डालकर रब से हिदायत लें। \v 10 हम यह फ़ैसला भी करें कि कौन कौन हमारी फ़ौज के लिए खाने-पीने का बंदोबस्त कराएगा। इस काम के लिए हममें से हर दसवाँ आदमी काफ़ी है। बाक़ी सब लोग सीधे जिबिया से लड़ने जाएँ ताकि उस शर्मनाक जुर्म का मुनासिब बदला लें जो इसराईल में हुआ है।” \p \v 11 यों तमाम इसराईली मुत्तहिद होकर जिबिया से लड़ने के लिए गए। \v 12 रास्ते में उन्होंने बिनयमीन के हर कुंबे को पैग़ाम भिजवाया, “आपके दरमियान घिनौना जुर्म हुआ है। \v 13 अब जिबिया के इन शरीर आदमियों को हमारे हवाले करें ताकि हम उन्हें सज़ाए-मौत देकर इसराईल में से बुराई मिटा दें।” \p लेकिन बिनयमीनी इसके लिए तैयार न हुए। \v 14 वह पूरे क़बायली इलाक़े से आकर जिबिया में जमा हुए ताकि इसराईलियों से लड़ें। \v 15 उसी दिन उन्होंने अपनी फ़ौज का बंदोबस्त किया। जिबिया के 700 तजरबाकार फ़ौजियों के अलावा तलवारों से लैस 26,000 अफ़राद थे। \v 16 इन फ़ौजियों में से 700 ऐसे मर्द भी थे जो अपने बाएँ हाथ से फ़लाख़न चलाने की इतनी महारत रखते थे कि पत्थर बाल जैसे छोटे निशाने पर भी लग जाता था। \v 17 दूसरी तरफ़ इसराईल के 4,00,000 फ़ौजी खड़े हुए, और हर एक के पास तलवार थी। \p \v 18 पहले इसराईली बैतेल चले गए। वहाँ उन्होंने अल्लाह से दरियाफ़्त किया, “कौन-सा क़बीला हमारे आगे आगे चले जब हम बिनयमीनियों पर हमला करें?” रब ने जवाब दिया, “यहूदाह सबसे आगे चले।” \s1 बिनयमीन के ख़िलाफ़ जंग \p \v 19 अगले दिन इसराईली रवाना हुए और जिबिया के क़रीब पहुँचकर अपनी लशकरगाह लगाई। \v 20 फिर वह हमला के लिए निकले और तरतीब से लड़ने के लिए खड़े हो गए। \v 21 यह देखकर बिनयमीनी शहर से निकले और उन पर टूट पड़े। नतीजे में 22,000 इसराईली शहीद हो गए। \p \v 22-23 इसराईली बैतेल चले गए और शाम तक रब के हुज़ूर रोते रहे। उन्होंने रब से पूछा, “क्या हम दुबारा अपने बिनयमीनी भाइयों से लड़ने जाएँ?” रब ने जवाब दिया, “हाँ, उन पर हमला करो!” यह सुनकर इसराईलियों का हौसला बढ़ गया और वह अगले दिन वहीं खड़े हो गए जहाँ पहले दिन खड़े हुए थे। \v 24 लेकिन जब वह शहर के क़रीब पहुँचे \v 25 तो बिनयमीनी पहले की तरह शहर से निकलकर उन पर टूट पड़े। उस दिन तलवार से लैस 18,000 इसराईली शहीद हो गए। \p \v 26 फिर इसराईल का पूरा लशकर बैतेल चला गया। वहाँ वह शाम तक रब के हुज़ूर रोते और रोज़ा रखते रहे। उन्होंने रब को भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ और सलामती की क़ुरबानियाँ पेश करके \v 27 उससे दरियाफ़्त किया कि हम क्या करें। (उस वक़्त अल्लाह के अहद का संदूक़ बैतेल में था \v 28 जहाँ फ़ीनहास बिन इलियज़र बिन हारून इमाम था।) इसराईलियों ने पूछा, “क्या हम एक और मरतबा अपने बिनयमीनी भाइयों से लड़ने जाएँ या इससे बाज़ आएँ?” रब ने जवाब दिया, “उन पर हमला करो, क्योंकि कल ही मैं उन्हें तुम्हारे हवाले कर दूँगा।” \s1 बिनयमीन का सत्यानास \p \v 29 इस दफ़ा कुछ इसराईली जिबिया के इर्दगिर्द घात में बैठ गए। \v 30 बाक़ी अफ़राद पहले दो दिनों की-सी तरतीब के मुताबिक़ लड़ने के लिए खड़े हो गए। \v 31 बिनयमीनी दुबारा शहर से निकलकर उन पर टूट पड़े। जो रास्ते बैतेल और जिबिया की तरफ़ ले जाते हैं उन पर और खुले मैदान में उन्होंने तक़रीबन 30 इसराईलियों को मार डाला। यों लड़ते लड़ते वह शहर से दूर होते गए। \v 32 वह पुकारे, “अब हम उन्हें पहली दो मरतबा की तरह शिकस्त देंगे!” \p लेकिन इसराईलियों ने मनसूबा बाँध लिया था, “हम उनके आगे आगे भागते हुए उन्हें शहर से दूर रास्तों पर खींच लेंगे।” \v 33 यों वह भागने लगे और बिनयमीनी उनके पीछे पड़ गए। लेकिन बाल-तमर के क़रीब इसराईली रुककर मुड़ गए और उनका सामना करने लगे। अब बाक़ी इसराईली जो जिबा के इर्दगिर्द और खुले मैदान में घात में बैठे थे अपनी छुपने की जगहों से निकल आए। \v 34 अचानक जिबिया के बिनयमीनियों को 10,000 बेहतरीन फ़ौजियों का सामना करना पड़ा, उन मर्दों का जो पूरे इसराईल से चुने गए थे। बिनयमीनी उनसे ख़ूब लड़ने लगे, लेकिन उनकी आँखें अभी इस बात के लिए बंद थीं कि उनका अंजाम क़रीब आ गया है। \v 35 उस दिन इसराईलियों ने रब की मदद से फ़तह पाकर तलवार से लैस 25,100 बिनयमीनी फ़ौजियों को मौत के घाट उतार दिया। \v 36 तब बिनयमीनियों ने जान लिया कि दुश्मन हम पर ग़ालिब आ गए हैं। क्योंकि इसराईली फ़ौज ने अपने भाग जाने से उन्हें जिबिया से दूर खींच लिया था ताकि शहर के इर्दगिर्द घात में बैठे मर्दों को शहर पर हमला करने का मौक़ा मुहैया करें। \v 37 तब यह मर्द निकलकर शहर पर टूट पड़े और तलवार से तमाम बाशिंदों को मार डाला, \v 38-39 फिर मनसूबे के मुताबिक़ आग लगाकर धुएँ का बड़ा बादल पैदा किया ताकि भागनेवाले इसराईलियों को इशारा मिल जाए कि वह मुड़कर बिनयमीनियों का मुक़ाबला करें। \p उस वक़्त तक बिनयमीनियों ने तक़रीबन 30 इसराईलियों को मार डाला था, और उनका ख़याल था कि हम उन्हें पहले की तरह शिकस्त दे रहे हैं। \v 40 अचानक उनके पीछे धुएँ का बादल आसमान की तरफ़ उठने लगा। जब बिनयमीनियों ने मुड़कर देखा कि शहर के कोने कोने से धुआँ निकल रहा है \v 41 तो इसराईल के मर्द रुक गए और पलटकर उनका सामना करने लगे। \p बिनयमीनी सख़्त घबरा गए, क्योंकि उन्होंने जान लिया कि हम तबाह हो गए हैं। \v 42-43 तब उन्होंने मशरिक़ के रेगिस्तान की तरफ़ फ़रार होने की कोशिश की। लेकिन अब वह मर्द भी उनका ताक़्क़ुब करने लगे जिन्होंने घात में बैठकर जिबिया पर हमला किया था। यों इसराईलियों ने मफ़रूरों को घेरकर मार डाला। \v 44 उस वक़्त बिनयमीन के 18,000 तजरबाकार फ़ौजी हलाक हुए। \v 45 जो बच गए वह रेगिस्तान की चट्टान रिम्मोन की तरफ़ भाग निकले। लेकिन इसराईलियों ने रास्ते में उनके 5,000 अफ़राद को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद उन्होंने जिदओम तक उनका ताक़्क़ुब किया। मज़ीद 2,000 बिनयमीनी हलाक हुए। \v 46 इस तरह बिनयमीन के कुल 25,000 तलवार से लैस और तजरबाकार फ़ौजी मारे गए। \p \v 47 सिर्फ़ 600 मर्द बचकर रिम्मोन की चट्टान तक पहुँच गए। वहाँ वह चार महीने तक टिके रहे। \v 48 तब इसराईली ताक़्क़ुब करने से बाज़ आकर बिनयमीन के क़बायली इलाक़े में वापस आए। वहाँ उन्होंने जगह बजगह जाकर सब कुछ मौत के घाट उतार दिया। जो भी उन्हें मिला वह तलवार की ज़द में आ गया, ख़ाह इनसान था या हैवान। साथ साथ उन्होंने तमाम शहरों को आग लगा दी। \c 21 \s1 बिनयमीनियों को औरतें मिलती हैं \p \v 1 जब इसराईली मिसफ़ाह में जमा हुए थे तो सबने क़सम खाकर कहा था, “हम कभी भी अपनी बेटियों का किसी बिनयमीनी मर्द के साथ रिश्ता नहीं बाँधेंगे।” \v 2 अब वह बैतेल चले गए और शाम तक अल्लाह के हुज़ूर बैठे रहे। रो रोकर उन्होंने दुआ की, \v 3 “ऐ रब, इसराईल के ख़ुदा, हमारी क़ौम का एक पूरा क़बीला मिट गया है! यह मुसीबत इसराईल पर क्यों आई?” \p \v 4 अगले दिन वह सुबह-सवेरे उठे और क़ुरबानगाह बनाकर उस पर भस्म होनेवाली और सलामती की क़ुरबानियाँ चढ़ाईं। \v 5 फिर वह एक दूसरे से पूछने लगे, “जब हम मिसफ़ाह में रब के हुज़ूर जमा हुए तो हमारी क़ौम में से कौन कौन इजतिमा में शरीक न हुआ?” क्योंकि उस वक़्त उन्होंने क़सम खाकर एलान किया था, “जिसने यहाँ रब के हुज़ूर आने से इनकार किया उसे ज़रूर सज़ाए-मौत दी जाएगी।” \v 6 अब इसराईलियों को बिनयमीनियों पर अफ़सोस हुआ। उन्होंने कहा, “एक पूरा क़बीला मिट गया है। \v 7 अब हम उन थोड़े बचे-खुचे आदमियों को बीवियाँ किस तरह मुहैया कर सकते हैं? हमने तो रब के हुज़ूर क़सम खाई है कि अपनी बेटियों का उनके साथ रिश्ता नहीं बाँधेंगे। \v 8 लेकिन हो सकता है कोई ख़ानदान मिसफ़ाह के इजतिमा में न आया हो। आओ, हम पता करें।” मालूम हुआ कि यबीस-जिलियाद के बाशिंदे नहीं आए थे। \v 9 यह बात फ़ौजियों को गिनने से पता चली, क्योंकि गिनते वक़्त यबीस-जिलियाद का कोई भी शख़्स फ़ौज में नहीं था। \p \v 10 तब उन्होंने 12,000 फ़ौजियों को चुनकर उन्हें हुक्म दिया, “यबीस-जिलियाद पर हमला करके तमाम बाशिंदों को बाल-बच्चों समेत मार डालो। \v 11 सिर्फ़ कुँवारियों को ज़िंदा रहने दो।” \p \v 12 फ़ौजियों ने यबीस में 400 कुँवारियाँ पाईं। वह उन्हें सैला ले आए जहाँ इसराईलियों का लशकर ठहरा हुआ था। \v 13 वहाँ से उन्होंने अपने क़ासिदों को रिम्मोन की चट्टान के पास भेजकर बिनयमीनियों के साथ सुलह कर ली। \v 14 फिर बिनयमीन के 600 मर्द रेगिस्तान से वापस आए, और उनके साथ यबीस-जिलियाद की कुँवारियों की शादी हुई। लेकिन यह सबके लिए काफ़ी नहीं थीं। \p \v 15 इसराईलियों को बिनयमीन पर अफ़सोस हुआ, क्योंकि रब ने इसराईल के क़बीलों में ख़ला डाल दिया था। \v 16 जमात के बुज़ुर्गों ने दुबारा पूछा, “हमें बिनयमीन के बाक़ी मर्दों के लिए कहाँ से बीवियाँ मिलेंगी? उनकी तमाम औरतें तो हलाक हो गई हैं। \v 17 लाज़िम है कि उन्हें उनका मौरूसी इलाक़ा वापस मिल जाए। ऐसा न हो कि वह बिलकुल मिट जाएँ। \v 18 लेकिन हम अपनी बेटियों की उनके साथ शादी नहीं करा सकते, क्योंकि हमने क़सम खाकर एलान किया है, ‘जो अपनी बेटी का रिश्ता बिनयमीन के किसी मर्द से बाँधेगा उस पर अल्लाह की लानत हो’।” \p \v 19 यों सोचते सोचते उन्हें आख़िरकार यह तरकीब सूझी, “कुछ देर के बाद यहाँ सैला में रब की सालाना ईद मनाई जाएगी। सैला बैतेल के शिमाल में, लबूना के जुनूब में और उस रास्ते के मशरिक़ में है जो बैतेल से सिकम तक ले जाता है। \v 20 अब बिनयमीनी मर्दों के लिए हमारा मशवरा है कि ईद के दिनों में अंगूर के बाग़ों में छुपकर घात में बैठ जाएँ। \v 21 जब लड़कियाँ लोकनाच के लिए सैला से निकलेंगी तो फिर बाग़ों से निकलकर उन पर झपट पड़ना। हर आदमी एक लड़की को पकड़कर उसे अपने घर ले जाए। \v 22 जब उनके बाप और भाई हमारे पास आकर आपकी शिकायत करेंगे तो हम उनसे कहेंगे, ‘बिनयमीनियों पर तरस खाएँ, क्योंकि जब हमने यबीस पर फ़तह पाई तो हम उनके लिए काफ़ी औरतें हासिल न कर सके। आप बेक़ुसूर हैं, क्योंकि आपने उन्हें अपनी बेटियों को इरादतन तो नहीं दिया’।” \v 23 बिनयमीनियों ने बुज़ुर्गों की इस हिदायत पर अमल किया। ईद के दिनों में जब लड़कियाँ नाच रही थीं तो बिनयमीनियों ने उतनी पकड़ लीं कि उनकी कमी पूरी हो गई। फिर वह उन्हें अपने क़बायली इलाक़े में ले गए और शहरों को दुबारा तामीर करके उनमें बसने लगे। \v 24 बाक़ी इसराईली भी वहाँ से चले गए। हर एक अपने क़बायली इलाक़े में वापस चला गया। \v 25 उस ज़माने में इसराईल में कोई बादशाह नहीं था। हर एक वही कुछ करता जो उसे मुनासिब लगता था।