\id HEB उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h इबरानियों \toc1 इबरानियों \toc2 इबरानियों \toc3 इब्र \mt1 इबरानियों \c 1 \s1 अल्लाह का अपने फ़रज़ंद के ज़रीए कलाम \p \v 1 माज़ी में अल्लाह मुख़्तलिफ़ मौक़ों पर और कई तरीक़ों से हमारे बापदादा से हमकलाम हुआ। उस वक़्त उसने यह नबियों के वसीले से किया \v 2 लेकिन इन आख़िरी दिनों में वह अपने फ़रज़ंद के वसीले से हमसे हमकलाम हुआ, उसी के वसीले से जिसे उसने सब चीज़ों का वारिस बना दिया और जिसके वसीले से उसने कायनात को भी ख़लक़ किया। \v 3 फ़रज़ंद अल्लाह का शानदार जलाल मुनअकिस करता और उस की ज़ात की ऐन शबीह \f + \fr 1:3 \ft या नक़्श। \f* है। वह अपने क़वी कलाम से सब कुछ सँभाले रखता है। जब वह दुनिया में था तो उसने हमारे लिए गुनाहों से पाक-साफ़ हो जाने का इंतज़ाम क़ायम किया। इसके बाद वह आसमान पर क़ादिरे-मुतलक़ के दहने हाथ जा बैठा। \s1 अल्लाह के फ़रज़ंद की अज़मत \p \v 4 फ़रज़ंद फ़रिश्तों से कहीं अज़ीम है, इतना जितना उसका मीरास में पाया हुआ नाम उनके नामों से अज़ीम है। \v 5 क्योंकि अल्लाह ने किस फ़रिश्ते से कभी कहा, \p “तू मेरा फ़रज़ंद है, \p आज मैं तेरा बाप बन गया हूँ।” \p यह भी उसने किसी फ़रिश्ते के बारे में कभी नहीं कहा, \p “मैं उसका बाप हूँगा \p और वह मेरा फ़रज़ंद होगा।” \p \v 6 और जब अल्लाह अपने पहलौठे फ़रज़ंद को आसमानी दुनिया में लाता है तो वह फ़रमाता है, \p “अल्लाह के तमाम फ़रिश्ते उस की परस्तिश करें।” \p \v 7 फ़रिश्तों के बारे में वह फ़रमाता है, \p “वह अपने फ़रिश्तों को हवाएँ \p और अपने ख़ादिमों को आग के शोले बना देता है।” \p \v 8 लेकिन फ़रज़ंद के बारे में वह कहता है, \p “ऐ ख़ुदा, तेरा तख़्त अज़ल से अबद तक क़ायमो-दायम रहेगा, \p और इनसाफ़ का शाही असा तेरी बादशाही पर हुकूमत करेगा। \p \v 9 तूने रास्तबाज़ी से मुहब्बत \p और बेदीनी से नफ़रत की, \p इसलिए अल्लाह तेरे ख़ुदा ने तुझे ख़ुशी के तेल से मसह करके \p तुझे तेरे साथियों से कहीं ज़्यादा सरफ़राज़ कर दिया।” \p \v 10 वह यह भी फ़रमाता है, \p “ऐ रब, तूने इब्तिदा में दुनिया की बुनियाद रखी, \p और तेरे ही हाथों ने आसमानों को बनाया। \p \v 11 यह तो तबाह हो जाएंगे, \p लेकिन तू क़ायम रहेगा। \p यह सब लिबास की तरह घिस फट जाएंगे \p \v 12 और तू इन्हें चादर की तरह लपेटेगा, \p पुराने कपड़े की तरह यह बदले जाएंगे। \p लेकिन तू वही का वही रहता है, \p और तेरी ज़िंदगी कभी ख़त्म नहीं होती।” \p \v 13 अल्लाह ने कभी भी अपने किसी फ़रिश्ते से यह बात न कही, \p “मेरे दहने हाथ बैठ, \p जब तक मैं तेरे दुश्मनों को \p तेरे पाँवों की चौकी न बना दूँ।” \p \v 14 फिर फ़रिश्ते क्या हैं? वह तो सब ख़िदमतगुज़ार रूहें हैं जिन्हें अल्लाह उनकी ख़िदमत करने के लिए भेज देता है जिन्हें मीरास में नजात पानी है। \c 2 \s1 नजात की अज़मत \p \v 1 इसलिए लाज़िम है कि हम और ज़्यादा ध्यान से कलामे-मुक़द्दस की उन बातों पर ग़ौर करें जो हमने सुन ली हैं। ऐसा न हो कि हम समुंदर पर बेकाबू कश्ती की तरह बेमक़सद इधर-उधर फिरें। \v 2 जो कलाम फ़रिश्तों ने इनसान तक पहुँचाया वह तो अनमिट रहा, और जिससे भी कोई ख़ता या नाफ़रमानी हुई उसे उस की मुनासिब सज़ा मिली। \v 3 तो फिर हम किस तरह अल्लाह के ग़ज़ब से बच सकेंगे अगर हम मसीह की इतनी अज़ीम नजात को नज़रंदाज़ करें? पहले ख़ुदावंद ने ख़ुद इस नजात का एलान किया, और फिर ऐसे लोगों ने हमारे पास आकर इसकी तसदीक़ की जिन्होंने उसे सुन लिया था। \v 4 साथ साथ अल्लाह ने इस बात की इस तरह तसदीक़ भी की कि उसने अपनी मरज़ी के मुताबिक़ इलाही निशान, मोजिज़े और मुख़्तलिफ़ क़िस्म के ज़ोरदार काम दिखाए और रूहुल-क़ुद्स की नेमतें लोगों में तक़सीम कीं। \s1 मसीह का नजातबख़्श काम \p \v 5 अब ऐसा है कि अल्लाह ने मज़कूरा आनेवाली दुनिया को फ़रिश्तों के ताबे नहीं किया। \v 6 क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में किसी ने कहीं यह गवाही दी है, \p “इनसान कौन है कि तू उसे याद करे \p या आदमज़ाद कि तू उसका ख़याल रखे? \p \v 7 तूने उसे थोड़ी देर के लिए फ़रिश्तों से कम कर दिया, \p तूने उसे जलाल और इज़्ज़त का ताज पहनाकर \p \v 8 सब कुछ उसके पाँवों के नीचे कर दिया।” \p जब लिखा है कि सब कुछ उसके पाँवों तले कर दिया गया तो इसका मतलब है कि कोई चीज़ न रही जो उसके ताबे नहीं है। बेशक हमें हाल में यह बात नज़र नहीं आती कि सब कुछ उसके ताबे है, \v 9 लेकिन हम उसे ज़रूर देखते हैं जो “थोड़ी देर के लिए फ़रिश्तों से कम” था यानी ईसा को जिसे उस की मौत तक के दुख की वजह से “जलाल और इज़्ज़त का ताज” पहनाया गया है। हाँ, अल्लाह के फ़ज़ल से उसने सबकी ख़ातिर मौत बरदाश्त की। \v 10 क्योंकि यही मुनासिब था कि अल्लाह जिसके लिए और जिसके वसीले से सब कुछ है यों बहुत-से बेटों को अपने जलाल में शरीक करे कि वह उनकी नजात के बानी ईसा को दुख उठाने से कामिलियत तक पहुँचाए। \p \v 11 ईसा और वह जिन्हें वह मख़सूसो-मुक़द्दस कर देता है दोनों का एक ही बाप है। यही वजह है कि ईसा यह कहने से नहीं शर्माता कि मुक़द्दसीन मेरे भाई हैं। \v 12 मसलन वह अल्लाह से कहता है, \p “मैं अपने भाइयों के सामने तेरे नाम का एलान करूँगा, \p जमात के दरमियान ही तेरी मद्हसराई करूँगा।” \p \v 13 वह यह भी कहता है, “मैं उस पर भरोसा रखूँगा।” और फिर “मैं हाज़िर हूँ, मैं और वह बच्चे जो अल्लाह ने मुझे दिए हैं।” \p \v 14 अब चूँकि यह बच्चे गोश्त-पोस्त और ख़ून के इनसान हैं इसलिए ईसा ख़ुद उनकी मानिंद बन गया और उनकी इनसानी फ़ितरत में शरीक हुआ। क्योंकि इस तरह ही वह अपनी मौत से मौत के मालिक इबलीस को तबाह कर सका, \v 15 और इस तरह ही वह उन्हें छुड़ा सका जो मौत से डरने की वजह से ज़िंदगी-भर ग़ुलामी में थे। \v 16 ज़ाहिर है कि जिनकी मदद वह करता है वह फ़रिश्ते नहीं हैं बल्कि इब्राहीम की औलाद। \v 17 इसलिए लाज़िम था कि वह हर लिहाज़ से अपने भाइयों की मानिंद बन जाए। सिर्फ़ इससे उसका यह मक़सद पूरा हो सका कि वह अल्लाह के हुज़ूर एक रहीम और वफ़ादार इमामे-आज़म बनकर लोगों के गुनाहों का कफ़्फ़ारा दे सके। \v 18 और अब वह उनकी मदद कर सकता है जो आज़माइश में उलझे हुए हैं, क्योंकि उस की भी आज़माइश हुई और उसने ख़ुद दुख उठाया है। \c 3 \s1 ईसा मूसा से बड़ा है \p \v 1 मुक़द्दस भाइयो, जो मेरे साथ अल्लाह के बुलाए हुए हैं! ईसा पर ग़ौरो-ख़ौज़ करते रहें जो अल्लाह का पैग़ंबर और इमामे-आज़म है और जिसका हम इक़रार करते हैं। \v 2 ईसा अल्लाह का वफ़ादार रहा जब उसने उसे यह काम करने के लिए मुक़र्रर किया, बिलकुल उसी तरह जिस तरह मूसा भी वफ़ादार रहा जब अल्लाह का पूरा घर उसके सुपुर्द किया गया। \v 3 अब जो किसी घर को तामीर करता है उसे घर की निसबत ज़्यादा इज़्ज़त हासिल होती है। इसी तरह ईसा मूसा की निसबत ज़्यादा इज़्ज़त के लायक़ है। \v 4 क्योंकि हर घर को किसी न किसी ने बनाया होता है, जबकि अल्लाह ने सब कुछ बनाया है। \v 5 मूसा तो अल्लाह के पूरे घर में ख़िदमत करते वक़्त वफ़ादार रहा, लेकिन मुलाज़िम की हैसियत से ताकि कलामे-मुक़द्दस की आनेवाली बातों की गवाही देता रहे। \v 6 मसीह फ़रक़ है। उसे फ़रज़ंद की हैसियत से अल्लाह के घर पर इख़्तियार है और इसी में वह वफ़ादार है। हम उसका घर हैं बशर्तेकि हम अपनी दिलेरी और वह उम्मीद क़ायम रखें जिस पर हम फ़ख़र करते हैं। \s1 अल्लाह की क़ौम के लिए सुकून \p \v 7 चुनाँचे जिस तरह रूहुल-क़ुद्स फ़रमाता है, \p “अगर तुम आज अल्लाह की आवाज़ सुनो \p \v 8 तो अपने दिलों को सख़्त न करो जिस तरह बग़ावत के दिन हुआ, \p जब तुम्हारे बापदादा ने रेगिस्तान में मुझे आज़माया। \p \v 9 वहाँ उन्होंने मुझे आज़माया और जाँचा, \p हालाँकि उन्होंने चालीस साल के दौरान मेरे काम देख लिए थे। \p \v 10 इसलिए मुझे उस नसल पर ग़ुस्सा आया और मैं बोला, \p ‘उनके दिल हमेशा सहीह राह से हट जाते हैं \p और वह मेरी राहें नहीं जानते।’ \p \v 11 अपने ग़ज़ब में मैंने क़सम खाई, \p ‘यह कभी उस मुल्क में दाख़िल नहीं होंगे \p जहाँ मैं उन्हें सुकून देता’।” \p \v 12 भाइयो, ख़बरदार रहें ताकि आपमें से किसी का दिल बुराई और कुफ़र से भरकर ज़िंदा ख़ुदा से बरगश्ता न हो जाए। \v 13 इसके बजाए जब तक अल्लाह का यह फ़रमान क़ायम है रोज़ाना एक दूसरे की हौसलाअफ़्ज़ाई करें ताकि आपमें से कोई भी गुनाह के फ़रेब में आकर सख़्तदिल न हो। \v 14 बात यह है कि हम मसीह के शरीके-कार बन गए हैं। लेकिन इस शर्त पर कि हम आख़िर तक वह एतमाद मज़बूती से क़ायम रखें जो हम आग़ाज़ में रखते थे। \p \v 15 मज़कूरा कलाम में लिखा है, \p “अगर तुम आज अल्लाह की आवाज़ सुनो, \p तो अपने दिलों को सख़्त न करो जिस तरह बग़ावत के दिन हुआ।” \p \v 16 यह कौन थे जो अल्लाह की आवाज़ सुनकर बाग़ी हो गए? वह सब जिन्हें मूसा मिसर से निकालकर बाहर लाया। \v 17 और यह कौन थे जिनसे अल्लाह चालीस साल के दौरान नाराज़ रहा? यह वही थे जिन्होंने गुनाह किया और जो रेगिस्तान में मरकर वहीं पड़े रहे। \v 18 अल्लाह ने किनकी बाबत क़सम खाई कि “यह कभी भी उस मुल्क में दाख़िल नहीं होंगे जहाँ मैं उन्हें सुकून देता”? ज़ाहिर है उनकी बाबत जिन्होंने नाफ़रमानी की थी। \v 19 चुनाँचे हम देखते हैं कि वह ईमान न रखने की वजह से मुल्क में दाख़िल न हो सके। \c 4 \p \v 1 देखें, अब तक अल्लाह का यह वादा क़ायम है, और अब तक हम सुकून के मुल्क में दाख़िल हो सकते हैं। इसलिए आएँ, हम ख़बरदार रहें। ऐसा न हो कि आपमें से कोई पीछे रहकर उसमें दाख़िल न होने पाए। \v 2 क्योंकि हमें भी उनकी तरह एक ख़ुशख़बरी सुनाई गई। लेकिन यह पैग़ाम उनके लिए बेफ़ायदा था, क्योंकि वह उसे सुनकर ईमान न लाए। \v 3 उनकी निसबत हम जो ईमान लाए हैं सुकून के इस मुल्क में दाख़िल हो सकते हैं। \p ग़रज़, यह ऐसा ही है जिस तरह अल्लाह ने फ़रमाया, \p “अपने ग़ज़ब में मैंने क़सम खाई, \p ‘यह कभी उस मुल्क में दाख़िल नहीं होंगे \p जहाँ मैं उन्हें सुकून देता’।” \p अब ग़ौर करें कि उसने यह कहा अगरचे उसका काम दुनिया की तख़लीक़ पर इख़्तिताम तक पहुँच गया था। \v 4 क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में सातवें दिन के बारे में लिखा है, “सातवें दिन अल्लाह का सारा काम तकमील तक पहुँच गया। इससे फ़ारिग़ होकर उसने आराम किया।” \v 5 अब इसका मुक़ाबला मज़कूरा आयत से करें, \p “यह कभी उस मुल्क में दाख़िल नहीं होंगे \p जहाँ मैं उन्हें सुकून देता।” \p \v 6 जिन्होंने पहले अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनी उन्हें नाफ़रमान होने की वजह से यह सुकून न मिला। तो भी यह बात क़ायम रही कि कुछ तो सुकून के इस मुल्क में दाख़िल हो जाएंगे। \v 7 यह मद्दे-नज़र रखकर अल्लाह ने एक और दिन मुक़र्रर किया, मज़कूरा “आज” का दिन। कई सालों के बाद ही उसने दाऊद की मारिफ़त वह बात की जिस पर हम ग़ौर कर रहे हैं, \p “अगर तुम आज अल्लाह की आवाज़ सुनो \p तो अपने दिलों को सख़्त न करो।” \p \v 8 जब यशुअ उन्हें मुल्के-कनान में लाया तब उसने इसराईलियों को यह सुकून न दिया, वरना अल्लाह इसके बाद के किसी और दिन का ज़िक्र न करता। \v 9 चुनाँचे अल्लाह की क़ौम के लिए एक ख़ास सुकून बाक़ी रह गया है, ऐसा सुकून जो अल्लाह के सातवें दिन आराम करने से मुताबिक़त रखता है। \v 10 क्योंकि जो भी वह सुकून पाता है जिसका वादा अल्लाह ने किया वह अल्लाह की तरह अपने कामों से फ़ारिग़ होकर आराम करेगा। \v 11 इसलिए आएँ, हम इस सुकून में दाख़िल होने की पूरी कोशिश करें ताकि हममें से कोई भी बापदादा के नाफ़रमान नमूने पर चलकर गुनाह में न गिर जाए। \p \v 12 क्योंकि अल्लाह का कलाम ज़िंदा, मुअस्सिर और हर दोधारी तलवार से ज़्यादा तेज़ है। वह इनसान में से गुज़रकर उस की जान रूह से और उसके जोड़ों को गूदे से अलग कर लेता है। वही दिल के ख़यालात और सोच को जाँचकर उन पर फ़ैसला करने के क़ाबिल है। \v 13 कोई मख़लूक़ भी अल्लाह की नज़र से नहीं छुप सकती। उस की आँखों के सामने जिसके जवाबदेह हम होते हैं सब कुछ अयाँ और बेनिक़ाब है। \s1 ईसा हमारा इमामे-आज़म है \p \v 14 ग़रज़ आएँ, हम उस ईमान से लिपटे रहें जिसका इक़रार हम करते हैं। क्योंकि हमारा ऐसा अज़ीम इमामे-आज़म है जो आसमानों में से गुज़र गया यानी ईसा अल्लाह का फ़रज़ंद। \v 15 और वह ऐसा इमामे-आज़म नहीं है जो हमारी कमज़ोरियों को देखकर हमदर्दी न दिखाए बल्कि अगरचे वह बेगुनाह रहा तो भी हमारी तरह उसे हर क़िस्म की आज़माइश का सामना करना पड़ा। \v 16 अब आएँ, हम पूरे एतमाद के साथ अल्लाह के तख़्त के सामने हाज़िर हो जाएँ जहाँ फ़ज़ल पाया जाता है। क्योंकि वहीं हम वह रहम और फ़ज़ल पाएँगे जो ज़रूरत के वक़्त हमारी मदद कर सकता है। \c 5 \p \v 1 अब इनसानों में से चुने गए इमामे-आज़म को इसलिए मुक़र्रर किया जाता है कि वह उनकी ख़ातिर अल्लाह की ख़िदमत करे, ताकि वह गुनाहों के लिए नज़राने और क़ुरबानियाँ पेश करे। \v 2 वह जाहिल और आवारा लोगों के साथ नरम सुलूक रख सकता है, क्योंकि वह ख़ुद कई तरह की कमज़ोरियों की गिरिफ़्त में होता है। \v 3 यही वजह है कि उसे न सिर्फ़ क़ौम के गुनाहों के लिए बल्कि अपने गुनाहों के लिए भी क़ुरबानियाँ चढ़ानी पड़ती हैं। \v 4 और कोई अपनी मरज़ी से इमामे-आज़म का पुरवक़ार ओहदा नहीं अपना सकता बल्कि लाज़िम है कि अल्लाह उसे हारून की तरह बुलाकर मुक़र्रर करे। \p \v 5 इसी तरह मसीह ने भी अपनी मरज़ी से इमामे-आज़म का पुरवक़ार ओहदा नहीं अपनाया। इसके बजाए अल्लाह ने उससे कहा, \p “तू मेरा फ़रज़ंद है, \p आज मैं तेरा बाप बन गया हूँ।” \p \v 6 कहीं और वह फ़रमाता है, \p “तू अबद तक इमाम है, \p ऐसा इमाम जैसा मलिके-सिद्क़ था।” \p \v 7 जब ईसा इस दुनिया में था तो उसने ज़ोर ज़ोर से पुकारकर और आँसू बहा बहाकर उसे दुआएँ और इल्तिजाएँ पेश कीं \f + \fr 5:7 \ft यानी इमाम की हैसियत से उसने यह दुआएँ और इल्तिजाएँ क़ुरबानी के तौर पर पेश कीं। \f* जो उसे मौत से बचा सकता था। और अल्लाह ने उस की सुनी, क्योंकि वह ख़ुदा का ख़ौफ़ रखता था। \v 8 वह अल्लाह का फ़रज़ंद तो था, तो भी उसने दुख उठाने से फ़रमाँबरदारी सीखी। \v 9 जब वह कामिलियत तक पहुँच गया तो वह उन सबकी अबदी नजात का सरचश्मा बन गया जो उस की सुनते हैं। \v 10 उस वक़्त अल्लाह ने उसे इमामे-आज़म भी मुतैयिन किया, ऐसा इमाम जैसा मलिके-सिद्क़ था। \s1 ईमान तर्क करने की बाबत आगाही \p \v 11 इसके बारे में हम मज़ीद बहुत कुछ कह सकते हैं, लेकिन हम मुश्किल से इसकी तशरीह कर सकते हैं, क्योंकि आप सुनने में सुस्त हैं। \v 12 असल में इतना वक़्त गुज़र गया है कि अब आपको ख़ुद उस्ताद होना चाहिए। अफ़सोस कि ऐसा नहीं है बल्कि आपको इसकी ज़रूरत है कि कोई आपके पास आकर आपको अल्लाह के कलाम की बुनियादी सच्चाइयाँ दुबारा सिखाए। आप अब तक ठोस खाना नहीं खा सकते बल्कि आपको दूध की ज़रूरत है। \v 13 जो दूध ही पी सकता है वह अभी छोटा बच्चा ही है और वह रास्तबाज़ी की तालीम से नावाक़िफ़ है। \v 14 इसके मुक़ाबले में ठोस खाना बालिग़ों के लिए है जिन्होंने अपनी बलूग़त के बाइस अपनी रूहानी बसारत को इतनी तरबियत दी है कि वह भलाई और बुराई में इम्तियाज़ कर सकते हैं। \c 6 \p \v 1 इसलिए आएँ, हम मसीह के बारे में बुनियादी तालीम को छोड़कर बलूग़त की तरफ़ आगे बढ़ें। क्योंकि ऐसी बातें दोहराने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए जिनसे ईमान की बुनियाद रखी जाती है, मसलन मौत तक पहुँचानेवाले काम से तौबा, \v 2 बपतिस्मा क्या है, किसी पर हाथ रखने की तालीम, मुरदों के जी उठने और अबदी सज़ा पाने की तालीम। \v 3 चुनाँचे अल्लाह की मरज़ी हुई तो हम यह छोड़कर आगे बढ़ेंगे। \p \v 4 नामुमकिन है कि उन्हें बहाल करके दुबारा तौबा तक पहुँचाया जाए जिन्होंने अपना ईमान तर्क कर दिया हो। उन्हें तो एक बार अल्लाह के नूर में लाया गया था, उन्होंने आसमान की नेमत चख ली थी, वह रूहुल-क़ुद्स में शरीक हुए, \v 5 उन्होंने अल्लाह के कलाम की भलाई और आनेवाले ज़माने की कुव्वतों का तजरबा किया था। \v 6 और फिर उन्होंने अपना ईमान तर्क कर दिया! ऐसे लोगों को बहाल करके दुबारा तौबा तक पहुँचाना नामुमकिन है। क्योंकि ऐसा करने से वह अल्लाह के फ़रज़ंद को दुबारा मसलूब करके उसे लान-तान का निशाना बना देते हैं। \p \v 7 अल्लाह उस ज़मीन को बरकत देता है जो अपने पर बार बार पड़नेवाली बारिश को जज़ब करके ऐसी फ़सल पैदा करती है जो खेतीबाड़ी करनेवाले के लिए मुफ़ीद हो। \v 8 लेकिन अगर वह सिर्फ़ ख़ारदार पौदे और ऊँटकटारे पैदा करे तो वह बेकार है और इस ख़तरे में है कि उस पर लानत भेजी जाए। अंजामे-कार उस पर का सब कुछ जलाया जाएगा। \p \v 9 अज़ीज़ो, गो हम इस तरह की बातें कर रहे हैं तो भी हमारा एतमाद यह है कि आपको वह बेहतरीन बरकतें हासिल हैं जो नजात से मिलती हैं। \v 10 क्योंकि अल्लाह बेइनसाफ़ नहीं है। वह आपका काम और वह मुहब्बत नहीं भूलेगा जो आपने उसका नाम लेकर ज़ाहिर की जब आपने मुक़द्दसीन की ख़िदमत की बल्कि आज तक कर रहे हैं। \v 11 लेकिन हमारी बड़ी ख़ाहिश यह है कि आपमें से हर एक इसी सरगरमी का इज़हार आख़िर तक करता रहे ताकि जिन बातों की उम्मीद आप रखते हैं वह वाक़ई पूरी हो जाएँ। \v 12 हम नहीं चाहते कि आप सुस्त हो जाएँ बल्कि यह कि आप उनके नमूने पर चलें जो ईमान और सब्र से वह कुछ मीरास में पा रहे हैं जिसका वादा अल्लाह ने किया है। \s1 अल्लाह का यक़ीनी वादा \p \v 13 जब अल्लाह ने क़सम खाकर इब्राहीम से वादा किया तो उसने अपनी ही क़सम खाकर यह वादा किया। क्योंकि कोई और नहीं था जो उससे बड़ा था जिसकी क़सम वह खा सकता। \v 14 उस वक़्त उसने कहा, “मैं ज़रूर तुझे बहुत बरकत दूँगा, और मैं यक़ीनन तुझे कसरत की औलाद दूँगा।” \v 15 इस पर इब्राहीम ने सब्र से इंतज़ार करके वह कुछ पाया जिसका वादा किया गया था। \v 16 क़सम खाते वक़्त लोग उस की क़सम खाते हैं जो उनसे बड़ा होता है। इस तरह से क़सम में बयानकरदा बात की तसदीक़ बहस-मुबाहसा की हर गुंजाइश को ख़त्म कर देती है। \v 17 अल्लाह ने भी क़सम खाकर अपने वादे की तसदीक़ की। क्योंकि वह अपने वादे के वारिसों पर साफ़ ज़ाहिर करना चाहता था कि उसका इरादा कभी नहीं बदलेगा। \v 18 ग़रज़, यह दो बातें क़ायम रही हैं, अल्लाह का वादा और उस की क़सम। वह इन्हें न तो बदल सकता न इनके बारे में झूट बोल सकता है। यों हम जिन्होंने उसके पास पनाह ली है बड़ी तसल्ली पाकर उस उम्मीद को मज़बूती से थामे रख सकते हैं जो हमें पेश की गई है। \v 19 क्योंकि यह उम्मीद हमारी जान के लिए मज़बूत लंगर है। और यह आसमानी बैतुल-मुक़द्दस के मुक़द्दसतरीन कमरे के परदे में से गुज़रकर उसमें दाख़िल होती है। \v 20 वहीं ईसा हमारे आगे आगे जाकर हमारी ख़ातिर दाख़िल हुआ है। यों वह मलिके-सिद्क़ की मानिंद हमेशा के लिए इमामे-आज़म बन गया है। \c 7 \s1 मलिके-सिद्क़ \p \v 1 यह मलिके-सिद्क़, सालिम का बादशाह और अल्लाह तआला का इमाम था। जब इब्राहीम चार बादशाहों को शिकस्त देने के बाद वापस आ रहा था तो मलिके-सिद्क़ उससे मिला और उसे बरकत दी। \v 2 इस पर इब्राहीम ने उसे तमाम लूट के माल का दसवाँ हिस्सा दे दिया। अब मलिके-सिद्क़ का मतलब “रास्तबाज़ी का बादशाह” है। दूसरे, “सालिम का बादशाह” का मतलब “सलामती का बादशाह” है। \v 3 न उसका बाप या माँ है, न कोई नसबनामा। उस की ज़िंदगी का न तो आग़ाज़ है, न इख़्तिताम। अल्लाह के फ़रज़ंद की तरह वह अबद तक इमाम रहता है। \p \v 4 ग़ौर करें कि वह कितना अज़ीम था। हमारे बापदादा इब्राहीम ने उसे लूटे हुए माल का दसवाँ हिस्सा दे दिया। \v 5 अब शरीअत तलब करती है कि लावी की वह औलाद जो इमाम बन जाती है क़ौम यानी अपने भाइयों से पैदावार का दसवाँ हिस्सा ले, हालाँकि उनके भाई इब्राहीम की औलाद हैं। \v 6 लेकिन मलिके-सिद्क़ लावी की औलाद में से नहीं था। तो भी उसने इब्राहीम से दसवाँ हिस्सा लेकर उसे बरकत दी जिससे अल्लाह ने वादा किया था। \v 7 इसमें कोई शक नहीं कि कमहैसियत शख़्स को उससे बरकत मिलती है जो ज़्यादा हैसियत का हो। \v 8 जहाँ लावी इमामों का ताल्लुक़ है फ़ानी इनसान दसवाँ हिस्सा लेते हैं। लेकिन मलिके-सिद्क़ के मामले में यह हिस्सा उसको मिला जिसके बारे में गवाही दी गई है कि वह ज़िंदा रहता है। \v 9 यह भी कहा जा सकता है कि जब इब्राहीम ने माल का दसवाँ हिस्सा दे दिया तो लावी ने उसके ज़रीए भी यह हिस्सा दिया, हालाँकि वह ख़ुद दसवाँ हिस्सा लेता है। \v 10 क्योंकि गो लावी उस वक़्त पैदा नहीं हुआ था तो भी वह एक तरह से इब्राहीम के जिस्म में मौजूद था जब मलिके-सिद्क़ उससे मिला। \p \v 11 अगर लावी की कहानत (जिस पर शरीअत मबनी थी) कामिलियत पैदा कर सकती तो फिर एक और क़िस्म के इमाम की क्या ज़रूरत होती, उस की जो हारून जैसा न हो बल्कि मलिके-सिद्क़ जैसा? \v 12 क्योंकि जब भी कहानत बदल जाती है तो लाज़िम है कि शरीअत में भी तबदीली आए। \v 13 और हमारा ख़ुदावंद जिसके बारे में यह बयान किया गया है वह एक फ़रक़ क़बीले का फ़रद था। उसके क़बीले के किसी भी फ़रद ने इमाम की ख़िदमत अदा नहीं की। \v 14 क्योंकि साफ़ मालूम है कि ख़ुदावंद मसीह यहूदाह क़बीले का फ़रद था, और मूसा ने इस क़बीले को इमामों की ख़िदमत में शामिल न किया। \s1 मलिके-सिद्क़ जैसा एक और इमाम \p \v 15 मामला मज़ीद साफ़ हो जाता है। एक फ़रक़ इमाम ज़ाहिर हुआ है जो मलिके-सिद्क़ जैसा है। \v 16 वह लावी के क़बीले का फ़रद होने से इमाम न बना जिस तरह शरीअत तक़ाज़ा करती थी, बल्कि वह लाफ़ानी ज़िंदगी की क़ुव्वत ही से इमाम बन गया। \v 17 क्योंकि कलामे-मुक़द्दस फ़रमाता है, \p “तू अबद तक इमाम है, \p ऐसा इमाम जैसा मलिके-सिद्क़ था।” \p \v 18 यों पुराने हुक्म को मनसूख़ कर दिया जाता है, क्योंकि वह कमज़ोर और बेकार था \v 19 (मूसा की शरीअत तो किसी चीज़ को कामिल नहीं बना सकती थी) और अब एक बेहतर उम्मीद मुहैया की गई है जिससे हम अल्लाह के क़रीब आ जाते हैं। \p \v 20 और यह नया निज़ाम अल्लाह की क़सम से क़ायम हुआ। ऐसी कोई क़सम न खाई गई जब दूसरे इमाम बने। \v 21 लेकिन ईसा एक क़सम के ज़रीए इमाम बन गया जब अल्लाह ने फ़रमाया, \p “रब ने क़सम खाई है \p और इससे पछताएगा नहीं, \p ‘तू अबद तक इमाम है’।” \p \v 22 इस क़सम की वजह से ईसा एक बेहतर अहद की ज़मानत देता है। \p \v 23 एक और फ़रक़, पुराने निज़ाम में बहुत-से इमाम थे, क्योंकि मौत ने हर एक की ख़िदमत महदूद किए रखी। \v 24 लेकिन चूँकि ईसा अबद तक ज़िंदा है इसलिए उस की कहानत कभी भी ख़त्म नहीं होगी। \v 25 यों वह उन्हें अबदी नजात दे सकता है जो उसके वसीले से अल्लाह के पास आते हैं, क्योंकि वह अबद तक ज़िंदा है और उनकी शफ़ाअत करता रहता है। \p \v 26 हमें ऐसे ही इमामे-आज़म की ज़रूरत थी। हाँ, ऐसा इमाम जो मुक़द्दस, बेक़ुसूर, बेदाग़, गुनाहगारों से अलग और आसमानों से बुलंद हुआ है। \v 27 उसे दूसरे इमामों की तरह इसकी ज़रूरत नहीं कि हर रोज़ क़ुरबानियाँ पेश करे, पहले अपने लिए फिर क़ौम के लिए। बल्कि उसने अपने आपको पेश करके अपनी इस क़ुरबानी से उनके गुनाहों को एक बार सदा के लिए मिटा दिया। \v 28 मूसवी शरीअत ऐसे लोगों को इमामे-आज़म मुक़र्रर करती है जो कमज़ोर हैं। लेकिन शरीअत के बाद अल्लाह की क़सम फ़रज़ंद को इमामे-आज़म मुक़र्रर करती है, और यह फ़रज़ंद अबद तक कामिल है। \c 8 \s1 ईसा हमारा इमामे-आज़म \p \v 1 जो कुछ हम कह रहे हैं उस की मरकज़ी बात यह है, हमारा एक ऐसा इमामे-आज़म है जो आसमान पर जलाली ख़ुदा के तख़्त के दहने हाथ बैठा है। \v 2 वहाँ वह मक़दिस में ख़िदमत करता है, उस हक़ीक़ी मुलाक़ात के ख़ैमे में जिसे इनसानी हाथों ने खड़ा नहीं किया बल्कि रब ने। \p \v 3 हर इमामे-आज़म को नज़राने और क़ुरबानियाँ पेश करने के लिए मुक़र्रर किया जाता है। इसलिए लाज़िम है कि हमारे इमामे-आज़म के पास भी कुछ हो जो वह पेश कर सके। \v 4 अगर यह दुनिया में होता तो इमामे-आज़म न होता, क्योंकि यहाँ इमाम तो हैं जो शरीअत के मतलूबा नज़राने पेश करते हैं। \v 5 जिस मक़दिस में वह ख़िदमत करते हैं वह उस मक़दिस की सिर्फ़ नक़ली सूरत और साया है जो आसमान पर है। यही वजह है कि अल्लाह ने मूसा को मुलाक़ात का ख़ैमा बनाने से पहले आगाह करके यह कहा, “ग़ौर कर कि सब कुछ ऐन उस नमूने के मुताबिक़ बनाया जाए जो मैं तुझे यहाँ पहाड़ पर दिखाता हूँ।” \v 6 लेकिन जो ख़िदमत ईसा को मिल गई है वह दुनिया के इमामों की ख़िदमत से कहीं बेहतर है, उतनी बेहतर जितना वह अहद जिसका दरमियानी ईसा है पुराने अहद से बेहतर है। क्योंकि यह अहद बेहतर वादों की बुनियाद पर बाँधा गया। \p \v 7 अगर पहला अहद बेइलज़ाम होता तो फिर नए अहद की ज़रूरत न होती। \v 8 लेकिन अल्लाह को अपनी क़ौम पर इलज़ाम लगाना पड़ा। उसने कहा, \p “रब का फ़रमान है, ऐसे दिन आ रहे हैं \p जब मैं इसराईल के घराने और यहूदाह के घराने से एक नया अहद बाँधूँगा। \p \v 9 यह उस अहद की मानिंद नहीं होगा \p जो मैंने उनके बापदादा के साथ \p उस दिन बाँधा था जब मैं उनका हाथ पकड़कर \p उन्हें मिसर से निकाल लाया। \p क्योंकि वह उस अहद के वफ़ादार न रहे \p जो मैंने उनसे बाँधा था। \p नतीजे में मेरी उनके लिए फ़िकर न रही। \p \v 10 ख़ुदावंद फ़रमाता है कि \p जो नया अहद मैं उन दिनों के बाद उनसे बाँधूँगा \p उसके तहत मैं अपनी शरीअत \p उनके ज़हनों में डालकर \p उनके दिलों पर कंदा करूँगा। \p तब मैं ही उनका ख़ुदा हूँगा, और वह मेरी क़ौम होंगे। \p \v 11 उस वक़्त से इसकी ज़रूरत नहीं रहेगी \p कि कोई अपने पड़ोसी या भाई को तालीम देकर कहे, \p ‘रब को जान लो।’ \p क्योंकि छोटे से लेकर बड़े तक \p सब मुझे जानेंगे, \p \v 12 क्योंकि मैं उनका क़ुसूर मुआफ़ करूँगा \p और आइंदा उनके गुनाहों को याद नहीं करूँगा।” \p \v 13 इन अलफ़ाज़ में अल्लाह एक नए अहद का ज़िक्र करता है और यों पुराने अहद को मतरूक क़रार देता है। और जो मतरूक और पुराना है उसका अंजाम क़रीब ही है। \c 9 \s1 दुनियावी और आसमानी इबादत \p \v 1 जब पहला अहद बाँधा गया तो इबादत करने के लिए हिदायात दी गईं। ज़मीन पर एक मक़दिस भी बनाया गया, \v 2 एक ख़ैमा जिसके पहले कमरे में शमादान, मेज़ और उस पर पड़ी मख़सूस की गई रोटियाँ थीं। उसका नाम “मुक़द्दस कमरा” था। \v 3 उसके पीछे एक और कमरा था जिसका नाम “मुक़द्दसतरीन कमरा” था। पहले और दूसरे कमरे के दरमियान वाक़े दरवाज़े पर परदा लगा था। \v 4 इस पिछले कमरे में बख़ूर जलाने के लिए सोने की क़ुरबानगाह और अहद का संदूक़ था। अहद के संदूक़ पर सोना मँढा हुआ था और उसमें तीन चीज़ें थीं : सोने का मरतबान जिसमें मन भरा था, हारून का वह असा जिससे कोंपलें फूट निकली थीं और पत्थर की वह दो तख़्तियाँ जिन पर अहद के अहकाम लिखे थे। \v 5 संदूक़ पर इलाही जलाल के दो करूबी फ़रिश्ते लगे थे जो संदूक़ के ढकने को साया देते थे जिसका नाम “कफ़्फ़ारा का ढकना” था। लेकिन इस जगह पर हम सब कुछ मज़ीद तफ़सील से बयान नहीं करना चाहते। \p \v 6 यह चीज़ें इसी तरतीब से रखी जाती हैं। जब इमाम अपनी ख़िदमत के फ़रायज़ अदा करते हैं तो बाक़ायदगी से पहले कमरे में जाते हैं। \v 7 लेकिन सिर्फ़ इमामे-आज़म ही दूसरे कमरे में दाख़िल होता है, और वह भी साल में सिर्फ़ एक दफ़ा। जब भी वह जाता है वह अपने साथ ख़ून लेकर जाता है जिसे वह अपने और क़ौम के लिए पेश करता है ताकि वह गुनाह मिट जाएँ जो लोगों ने ग़ैरइरादी तौर पर किए होते हैं। \v 8 इससे रूहुल-क़ुद्स दिखाता है कि मुक़द्दसतरीन कमरे तक रसाई उस वक़्त तक ज़ाहिर नहीं की गई थी जब तक पहला कमरा इस्तेमाल में था। \v 9 यह मजाज़न मौजूदा ज़माने की तरफ़ इशारा है। इसका मतलब यह है कि जो नज़राने और क़ुरबानियाँ पेश की जा रही हैं वह परस्तार के ज़मीर को पाक-साफ़ करके कामिल नहीं बना सकतीं। \v 10 क्योंकि इनका ताल्लुक़ सिर्फ़ खाने-पीनेवाली चीज़ों और ग़ुस्ल की मुख़्तलिफ़ रस्मों से होता है, ऐसी ज़ाहिरी हिदायात जो सिर्फ़ नए निज़ाम के आने तक लागू हैं। \p \v 11 लेकिन अब मसीह आ चुका है, उन अच्छी चीज़ों का इमामे-आज़म जो अब हासिल हुई हैं। जिस ख़ैमे में वह ख़िदमत करता है वह कहीं ज़्यादा अज़ीम और कामिल है। यह ख़ैमा इनसानी हाथों से नहीं बनाया गया यानी यह इस कायनात का हिस्सा नहीं है। \v 12 जब मसीह एक बार सदा के लिए ख़ैमे के मुक़द्दसतरीन कमरे में दाख़िल हुआ तो उसने क़ुरबानियाँ पेश करने के लिए बकरों और बछड़ों का ख़ून इस्तेमाल न किया। इसके बजाए उसने अपना ही ख़ून पेश किया और यों हमारे लिए अबदी नजात हासिल की। \v 13 पुराने निज़ाम में बैल-बकरों का ख़ून और जवान गाय की राख नापाक लोगों पर छिड़के जाते थे ताकि उनके जिस्म पाक-साफ़ हो जाएँ। \v 14 अगर इन चीज़ों का यह असर था तो फिर मसीह के ख़ून का क्या ज़बरदस्त असर होगा! अज़ली रूह के ज़रीए उसने अपने आपको बेदाग़ क़ुरबानी के तौर पर पेश किया। यों उसका ख़ून हमारे ज़मीर को मौत तक पहुँचानेवाले कामों से पाक-साफ़ करता है ताकि हम ज़िंदा ख़ुदा की ख़िदमत कर सकें। \p \v 15 यही वजह है कि मसीह एक नए अहद का दरमियानी है। मक़सद यह था कि जितने लोगों को अल्लाह ने बुलाया है उन्हें अल्लाह की मौऊदा और अबदी मीरास मिले। और यह सिर्फ़ इसलिए मुमकिन हुआ है कि मसीह ने मरकर फ़िद्या दिया ताकि लोग उन गुनाहों से छुटकारा पाएँ जो उनसे उस वक़्त सरज़द हुए जब वह पहले अहद के तहत थे। \p \v 16 जहाँ वसियत है वहाँ ज़रूरी है कि वसियत करनेवाले की मौत की तसदीक़ की जाए। \v 17 क्योंकि जब तक वसियत करनेवाला ज़िंदा हो वसियत बेअसर होती है। इसका असर वसियत करनेवाले की मौत ही से शुरू होता है। \v 18 यही वजह है कि पहला अहद बाँधते वक़्त भी ख़ून इस्तेमाल हुआ। \v 19 क्योंकि पूरी क़ौम को शरीअत का हर हुक्म सुनाने के बाद मूसा ने बछड़ों का ख़ून पानी से मिलाकर उसे ज़ूफ़े के गुच्छे और क़िरमिज़ी रंग के धागे के ज़रीए शरीअत की किताब और पूरी क़ौम पर छिड़का। \v 20 उसने कहा, “यह ख़ून उस अहद की तसदीक़ करता है जिसकी पैरवी करने का हुक्म अल्लाह ने तुम्हें दिया है।” \v 21 इसी तरह मूसा ने यह ख़ून मुलाक़ात के ख़ैमे और इबादत के तमाम सामान पर छिड़का। \v 22 न सिर्फ़ यह बल्कि शरीअत तक़ाज़ा करती है कि तक़रीबन हर चीज़ को ख़ून ही से पाक-साफ़ किया जाए बल्कि अल्लाह के हुज़ूर ख़ून पेश किए बग़ैर मुआफ़ी मिल ही नहीं सकती। \s1 मसीह की क़ुरबानी गुनाहों को मिटा देती है \p \v 23 ग़रज़, लाज़िम था कि यह चीज़ें जो आसमान की असली चीज़ों की नक़ली सूरतें हैं पाक-साफ़ की जाएँ। लेकिन आसमानी चीज़ें ख़ुद ऐसी क़ुरबानियों का मुतालबा करती हैं जो इनसे कहीं बेहतर हों। \v 24 क्योंकि मसीह सिर्फ़ इनसानी हाथों से बने मक़दिस में दाख़िल नहीं हुआ जो असली मक़दिस की सिर्फ़ नक़ली सूरत थी बल्कि वह आसमान में ही दाख़िल हुआ ताकि अब से हमारी ख़ातिर अल्लाह के सामने हाज़िर हो। \v 25 दुनिया का इमामे-आज़म तो सालाना किसी और (यानी जानवर) का ख़ून लेकर मुक़द्दसतरीन कमरे में दाख़िल होता है। लेकिन मसीह इसलिए आसमान में दाख़िल न हुआ कि वह अपने आपको बार बार क़ुरबानी के तौर पर पेश करे। \v 26 अगर ऐसा होता तो उसे दुनिया की तख़लीक़ से लेकर आज तक बहुत दफ़ा दुख सहना पड़ता। लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि अब वह ज़मानों के इख़्तिताम पर एक ही बार सदा के लिए ज़ाहिर हुआ ताकि अपने आपको क़ुरबान करने से गुनाह को दूर करे। \v 27 एक बार मरना और अल्लाह की अदालत में हाज़िर होना हर इनसान के लिए मुक़र्रर है। \v 28 इसी तरह मसीह को भी एक ही बार बहुतों के गुनाहों को उठाकर ले जाने के लिए क़ुरबान किया गया। दूसरी बार जब वह ज़ाहिर होगा तो गुनाहों को दूर करने के लिए ज़ाहिर नहीं होगा बल्कि उन्हें नजात देने के लिए जो शिद्दत से उसका इंतज़ार कर रहे हैं। \c 10 \p \v 1 मूसवी शरीअत आनेवाली अच्छी और असली चीज़ों की सिर्फ़ नक़ली सूरत और साया है। यह उन चीज़ों की असली शक्ल नहीं है। इसलिए यह उन्हें कभी भी कामिल नहीं कर सकती जो साल बसाल और बार बार अल्लाह के हुज़ूर आकर वही क़ुरबानियाँ पेश करते रहते हैं। \v 2 अगर वह कामिल कर सकती तो क़ुरबानियाँ पेश करने की ज़रूरत न रहती। क्योंकि इस सूरत में परस्तार एक बार सदा के लिए पाक-साफ़ हो जाते और उन्हें गुनाहगार होने का शऊर न रहता। \v 3 लेकिन इसके बजाए यह क़ुरबानियाँ साल बसाल लोगों को उनके गुनाहों की याद दिलाती हैं। \v 4 क्योंकि मुमकिन ही नहीं कि बैल-बकरों का ख़ून गुनाहों को दूर करे। \p \v 5 इसलिए मसीह दुनिया में आते वक़्त अल्लाह से कहता है, \p “तू क़ुरबानियाँ और नज़रें नहीं चाहता था \p लेकिन तूने मेरे लिए एक जिस्म तैयार किया। \p \v 6 भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ और गुनाह की क़ुरबानियाँ \p तुझे पसंद नहीं थीं। \p \v 7 फिर मैं बोल उठा, ‘ऐ ख़ुदा, मैं हाज़िर हूँ \p ताकि तेरी मरज़ी पूरी करूँ, \p जिस तरह मेरे बारे में कलामे-मुक़द्दस में \f + \fr 10:7 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : किताब के तूमार में। \f* लिखा है’।” \p \v 8 पहले मसीह कहता है, “न तू क़ुरबानियाँ, नज़रें, भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ या गुनाह की क़ुरबानियाँ चाहता था, न उन्हें पसंद करता था” गो शरीअत इन्हें पेश करने का मुतालबा करती है। \v 9 फिर वह फ़रमाता है, “मैं हाज़िर हूँ ताकि तेरी मरज़ी पूरी करूँ।” यों वह पहला निज़ाम ख़त्म करके उस की जगह दूसरा निज़ाम क़ायम करता है। \v 10 और उस की मरज़ी पूरी हो जाने से हमें ईसा मसीह के बदन के वसीले से मख़सूसो-मुक़द्दस किया गया है। क्योंकि उसे एक ही बार सदा के लिए हमारे लिए क़ुरबान किया गया। \p \v 11 हर इमाम रोज़ बरोज़ मक़दिस में खड़ा अपनी ख़िदमत के फ़रायज़ अदा करता है। रोज़ाना और बार बार वह वही क़ुरबानियाँ पेश करता रहता है जो कभी भी गुनाहों को दूर नहीं कर सकतीं। \v 12 लेकिन मसीह ने गुनाहों को दूर करने के लिए एक ही क़ुरबानी पेश की, एक ऐसी क़ुरबानी जिसका असर सदा के लिए रहेगा। फिर वह अल्लाह के दहने हाथ बैठ गया। \v 13 वहीं वह अब इंतज़ार करता है जब तक अल्लाह उसके दुश्मनों को उसके पाँवों की चौकी न बना दे। \v 14 यों उसने एक ही क़ुरबानी से उन्हें सदा के लिए कामिल बना दिया है जिन्हें मुक़द्दस किया जा रहा है। \p \v 15 रूहुल-क़ुद्स भी हमें इसके बारे में गवाही देता है। पहले वह कहता है, \p \v 16 “रब फ़रमाता है कि \p जो नया अहद मैं उन दिनों के बाद उनसे बाँधूँगा \p उसके तहत मैं अपनी शरीअत \p उनके दिलों में डालकर \p उनके ज़हनों पर कंदा करूँगा।” \p \v 17 फिर वह कहता है, “उस वक़्त से मैं उनके गुनाहों और बुराइयों को याद नहीं करूँगा।” \v 18 और जहाँ इन गुनाहों की मुआफ़ी हुई है वहाँ गुनाहों को दूर करने की क़ुरबानियों की ज़रूरत ही नहीं रही। \s1 आएँ, हम अल्लाह के हुज़ूर आएँ \p \v 19 चुनाँचे भाइयो, अब हम ईसा के ख़ून के वसीले से पूरे एतमाद के साथ मुक़द्दसतरीन कमरे में दाख़िल हो सकते हैं। \v 20 अपने बदन की क़ुरबानी से ईसा ने उस कमरे के परदे में से गुज़रने का एक नया और ज़िंदगीबख़्श रास्ता खोल दिया। \v 21 हमारा एक अज़ीम इमामे-आज़म है जो अल्लाह के घर पर मुक़र्रर है। \v 22 इसलिए आएँ, हम ख़ुलूसदिली और ईमान के पूरे एतमाद के साथ अल्लाह के हुज़ूर आएँ। क्योंकि हमारे दिलों पर मसीह का ख़ून छिड़का गया है ताकि हमारे मुजरिम ज़मीर साफ़ हो जाएँ। नीज़, हमारे बदनों को पाक-साफ़ पानी से धोया गया है। \v 23 आएँ, हम मज़बूती से उस उम्मीद को थामे रखें जिसका इक़रार हम करते हैं। हम डाँवाँडोल न हो जाएँ, क्योंकि जिसने इस उम्मीद का वादा किया है वह वफ़ादार है। \v 24 और आएँ, हम इस पर ध्यान दें कि हम एक दूसरे को किस तरह मुहब्बत दिखाने और नेक काम करने पर उभार सकें। \v 25 हम बाहम जमा होने से बाज़ न आएँ, जिस तरह बाज़ की आदत बन गई है। इसके बजाए हम एक दूसरे की हौसलाअफ़्ज़ाई करें, ख़ासकर यह बात मद्दे-नज़र रखकर कि ख़ुदावंद का दिन क़रीब आ रहा है। \p \v 26 ख़बरदार! अगर हम सच्चाई जान लेने के बाद भी जान-बूझकर गुनाह करते रहें तो मसीह की क़ुरबानी इन गुनाहों को दूर नहीं कर सकेगी। \v 27 फिर सिर्फ़ अल्लाह की अदालत की हौलनाक तवक़्क़ो बाक़ी रहेगी, उस भड़कती हुई आग की जो अल्लाह के मुख़ालिफ़ों को भस्म कर डालेगी। \v 28 जो मूसा की शरीअत रद्द करता है उस पर रहम नहीं किया जा सकता बल्कि अगर दो या इससे ज़ायद लोग इस जुर्म की गवाही दें तो उसे सज़ाए-मौत दी जाए। \v 29 तो फिर क्या ख़याल है, वह कितनी सख़्त सज़ा के लायक़ होगा जिसने अल्लाह के फ़रज़ंद को पाँवों तले रौंदा? जिसने अहद का वह ख़ून हक़ीर जाना जिससे उसे मख़सूसो-मुक़द्दस किया गया था? और जिसने फ़ज़ल के रूह की बेइज़्ज़ती की? \v 30 क्योंकि हम उसे जानते हैं जिसने फ़रमाया, “इंतक़ाम लेना मेरा ही काम है, मैं ही बदला लूँगा।” उसने यह भी कहा, “रब अपनी क़ौम का इनसाफ़ करेगा।” \v 31 यह एक हौलनाक बात है अगर ज़िंदा ख़ुदा हमें सज़ा देने के लिए पकड़े। \p \v 32 ईमान के पहले दिन याद करें जब अल्लाह ने आपको रौशन कर दिया था। उस वक़्त के सख़्त मुक़ाबले में आपको कई तरह का दुख सहना पड़ा, लेकिन आप साबितक़दम रहे। \v 33 कभी कभी आपकी बेइज़्ज़ती और अवाम के सामने ही ईज़ारसानी होती थी, कभी कभी आप उनके साथी थे जिनसे ऐसा सुलूक हो रहा था। \v 34 जिन्हें जेल में डाला गया आप उनके दुख में शरीक हुए और जब आपका मालो-मता लूटा गया तो आपने यह बात ख़ुशी से बरदाश्त की। क्योंकि आप जानते थे कि वह माल हमसे नहीं छीन लिया गया जो पहले की निसबत कहीं बेहतर है और हर सूरत में क़ायम रहेगा। \v 35 चुनाँचे अपने इस एतमाद को हाथ से जाने न दें क्योंकि इसका बड़ा अज्र मिलेगा। \v 36 लेकिन इसके लिए आपको साबितक़दमी की ज़रूरत है ताकि आप अल्लाह की मरज़ी पूरी कर सकें और यों आपको वह कुछ मिल जाए जिसका वादा उसने किया है। \v 37 क्योंकि कलामे-मुक़द्दस यह फ़रमाता है, \p “थोड़ी ही देर बाक़ी है \p तो आनेवाला पहुँचेगा, वह देर नहीं करेगा। \p \v 38 लेकिन मेरा रास्तबाज़ ईमान ही से जीता रहेगा, \p और अगर वह पीछे हट जाए \p तो मैं उससे ख़ुश नहीं हूँगा।” \p \v 39 लेकिन हम उनमें से नहीं हैं जो पीछे हटकर तबाह हो जाएंगे बल्कि हम उनमें से हैं जो ईमान रखकर नजात पाते हैं। \c 11 \s1 ईमान \p \v 1 ईमान क्या है? यह कि हम उसमें क़ायम रहें जिस पर हम उम्मीद रखते हैं और कि हम उसका यक़ीन रखें जो हम नहीं देख सकते। \v 2 ईमान ही से पुराने ज़मानों के लोगों को अल्लाह की क़बूलियत हासिल हुई। \p \v 3 ईमान के ज़रीए हम जान लेते हैं कि कायनात को अल्लाह के कलाम से ख़लक़ किया गया, कि जो कुछ हम देख सकते हैं नज़र आनेवाली चीज़ों से नहीं बना। \p \v 4 यह ईमान का काम था कि हाबील ने अल्लाह को एक ऐसी क़ुरबानी पेश की जो क़ाबील की क़ुरबानी से बेहतर थी। इस ईमान की बिना पर अल्लाह ने उसे रास्तबाज़ ठहराकर उस की अच्छी गवाही दी, जब उसने उस की क़ुरबानियों को क़बूल किया। और ईमान के ज़रीए वह अब तक बोलता रहता है हालाँकि वह मुरदा है। \v 5 यह ईमान का काम था कि हनूक न मरा बल्कि ज़िंदा हालत में आसमान पर उठाया गया। कोई भी उसे ढूँडकर पा न सका क्योंकि अल्लाह उसे आसमान पर उठा ले गया था। वजह यह थी कि उठाए जाने से पहले उसे यह गवाही मिली कि वह अल्लाह को पसंद आया। \v 6 और ईमान रखे बग़ैर हम अल्लाह को पसंद नहीं आ सकते। क्योंकि लाज़िम है कि अल्लाह के हुज़ूर आनेवाला ईमान रखे कि वह है और कि वह उन्हें अज्र देता है जो उसके तालिब हैं। \p \v 7 यह ईमान का काम था कि नूह ने अल्लाह की सुनी जब उसने उसे आनेवाली बातों के बारे में आगाह किया, ऐसी बातों के बारे में जो अभी देखने में नहीं आई थीं। नूह ने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानकर एक कश्ती बनाई ताकि उसका ख़ानदान बच जाए। यों उसने अपने ईमान के ज़रीए दुनिया को मुजरिम क़रार दिया और उस रास्तबाज़ी का वारिस बन गया जो ईमान से हासिल होती है। \p \v 8 यह ईमान का काम था कि इब्राहीम ने अल्लाह की सुनी जब उसने उसे बुलाकर कहा कि वह एक ऐसे मुल्क में जाए जो उसे बाद में मीरास में मिलेगा। हाँ, वह अपने मुल्क को छोड़कर रवाना हुआ, हालाँकि उसे मालूम न था कि वह कहाँ जा रहा है। \v 9 ईमान के ज़रीए वह वादा किए हुए मुल्क में अजनबी की हैसियत से रहने लगा। वह ख़ैमों में रहता था और इसी तरह इसहाक़ और याक़ूब भी जो उसके साथ उसी वादे के वारिस थे। \v 10 क्योंकि इब्राहीम उस शहर के इंतज़ार में था जिसकी मज़बूत बुनियाद है और जिसका नक़्श बनाने और तामीर करनेवाला ख़ुद अल्लाह है। \p \v 11 यह ईमान का काम था कि इब्राहीम बाप बनने के क़ाबिल हो गया, हालाँकि वह बुढ़ापे की वजह से बाप नहीं बन सकता था। इसी तरह सारा भी बच्चे जन्म नहीं दे सकती थी। लेकिन इब्राहीम समझता था कि अल्लाह जिसने वादा किया है वफ़ादार है। \v 12 गो इब्राहीम तक़रीबन मर चुका था तो भी उसी एक शख़्स से बेशुमार औलाद निकली, तादाद में आसमान पर के सितारों और साहिल पर की रेत के ज़र्रों के बराबर। \p \v 13 यह तमाम लोग ईमान रखते रखते मर गए। उन्हें वह कुछ न मिला जिसका वादा किया गया था। उन्होंने उसे सिर्फ़ दूर ही से देखकर ख़ुशआमदीद \f + \fr 11:13 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : सलामी दी। सलाम देकर इज़्ज़त का इज़हार किया। सल्यूट किया। \f* कहा। और उन्होंने तसलीम किया कि हम ज़मीन पर \f + \fr 11:13 \ft ज़मीन पर या मुल्क (यानी कनान) में। \f* सिर्फ़ मेहमान और आरिज़ी तौर पर रहनेवाले अजनबी हैं। \v 14 जो इस क़िस्म की बातें करते हैं वह ज़ाहिर करते हैं कि हम अब तक अपने वतन की तलाश में हैं। \v 15 अगर उनके ज़हन में वह मुल्क होता जिससे वह निकल आए थे तो वह अब भी वापस जा सकते थे। \v 16 इसके बजाए वह एक बेहतर मुल्क यानी एक आसमानी मुल्क की आरज़ू कर रहे थे। इसलिए अल्लाह उनका ख़ुदा कहलाने से नहीं शर्माता, क्योंकि उसने उनके लिए एक शहर तैयार किया है। \p \v 17 यह ईमान का काम था कि इब्राहीम ने उस वक़्त इसहाक़ को क़ुरबानी के तौर पर पेश किया जब अल्लाह ने उसे आज़माया। हाँ, वह अपने इकलौते बेटे को क़ुरबान करने के लिए तैयार था अगरचे उसे अल्लाह के वादे मिल गए थे \v 18 कि “तेरी नसल इसहाक़ ही से क़ायम रहेगी।” \v 19 इब्राहीम ने सोचा, “अल्लाह मुरदों को भी ज़िंदा कर सकता है,” और मजाज़न उसे वाक़ई इसहाक़ मुरदों में से वापस मिल गया। \p \v 20 यह ईमान का काम था कि इसहाक़ ने आनेवाली चीज़ों के लिहाज़ से याक़ूब और एसौ को बरकत दी। \p \v 21 यह ईमान का काम था कि याक़ूब ने मरते वक़्त यूसुफ़ के दोनों बेटों को बरकत दी और अपनी लाठी के सिरे पर टेक लगाकर अल्लाह को सिजदा किया। \p \v 22 यह ईमान का काम था कि यूसुफ़ ने मरते वक़्त यह पेशगोई की कि इसराईली मिसर से निकलेंगे बल्कि यह भी कहा कि निकलते वक़्त मेरी हड्डियाँ भी अपने साथ ले जाओ। \p \v 23 यह ईमान का काम था कि मूसा के माँ-बाप ने उसे पैदाइश के बाद तीन माह तक छुपाए रखा, क्योंकि उन्होंने देखा कि वह ख़ूबसूरत है। वह बादशाह के हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी करने से न डरे। \p \v 24 यह ईमान का काम था कि मूसा ने परवान चढ़कर इनकार किया कि उसे फ़िरौन की बेटी का बेटा ठहराया जाए। \v 25 आरिज़ी तौर पर गुनाह से लुत्फ़अंदोज़ होने के बजाए उसने अल्लाह की क़ौम के साथ बदसुलूकी का निशाना बनने को तरजीह दी। \v 26 वह समझा कि जब मेरी मसीह की ख़ातिर रुसवाई की जाती है तो यह मिसर के तमाम ख़ज़ानों से ज़्यादा क़ीमती है, क्योंकि उस की आँखें आनेवाले अज्र पर लगी रहीं। \p \v 27 यह ईमान का काम था कि मूसा ने बादशाह के ग़ुस्से से डरे बग़ैर मिसर को छोड़ दिया, क्योंकि वह गोया अनदेखे ख़ुदा को मुसलसल अपनी आँखों के सामने रखता रहा। \v 28 यह ईमान का काम था कि उसने फ़सह की ईद मनाकर हुक्म दिया कि ख़ून को चौखटों पर लगाया जाए ताकि हलाक करनेवाला फ़रिश्ता उनके पहलौठे बेटों को न छुए। \p \v 29 यह ईमान का काम था कि इसराईली बहरे-क़ुलज़ुम में से यों गुज़र सके जैसे कि यह ख़ुश्क ज़मीन थी। जब मिसरियों ने यह करने की कोशिश की तो वह डूब गए। \p \v 30 यह ईमान का काम था कि सात दिन तक यरीहू शहर की फ़सील के गिर्द चक्कर लगाने के बाद पूरी दीवार गिर गई। \v 31 यह भी ईमान का काम था कि राहब फ़ाहिशा अपने शहर के बाक़ी नाफ़रमान बाशिंदों के साथ हलाक न हुई, क्योंकि उसने इसराईली जासूसों को सलामती के साथ ख़ुशआमदीद कहा था। \p \v 32 मैं मज़ीद क्या कुछ कहूँ? मेरे पास इतना वक़्त नहीं कि मैं जिदौन, बरक़, समसून, इफ़ताह, दाऊद, समुएल और नबियों के बारे में सुनाता रहूँ। \v 33 यह सब ईमान के सबब से ही कामयाब रहे। वह बादशाहियों पर ग़ालिब आए और इनसाफ़ करते रहे। उन्हें अल्लाह के वादे हासिल हुए। उन्होंने शेरबबरों के मुँह बंद कर दिए \v 34 और आग के भड़कते शोलों को बुझा दिया। वह तलवार की ज़द से बच निकले। वह कमज़ोर थे लेकिन उन्हें क़ुव्वत हासिल हुई। जब जंग छिड़ गई तो वह इतने ताक़तवर साबित हुए कि उन्होंने ग़ैरमुल्की लशकरों को शिकस्त दी। \v 35 ईमान रखने के बाइस ख़वातीन को उनके मुरदा अज़ीज़ ज़िंदा हालत में वापस मिले। \p लेकिन ऐसे भी थे जिन्हें तशद्दुद बरदाश्त करना पड़ा और जिन्होंने आज़ाद हो जाने से इनकार किया ताकि उन्हें एक बेहतर चीज़ यानी जी उठने का तजरबा हासिल हो जाए। \v 36 बाज़ को लान-तान और कोड़ों बल्कि ज़ंजीरों और क़ैद का भी सामना करना पड़ा। \v 37 उन्हें संगसार किया गया, उन्हें आरे से चीरा गया, उन्हें तलवार से मार डाला गया। बाज़ को भेड़-बकरियों की खालों में घूमना फिरना पड़ा। ज़रूरतमंद हालत में उन्हें दबाया और उन पर ज़ुल्म किया जाता रहा। \v 38 दुनिया उनके लायक़ नहीं थी! वह वीरान जगहों में, पहाड़ों पर, ग़ारों और गढ़ों में आवारा फिरते रहे। \p \v 39 इन सबको ईमान की वजह से अच्छी गवाही मिली। तो भी इन्हें वह कुछ हासिल न हुआ जिसका वादा अल्लाह ने किया था। \v 40 क्योंकि उसने हमारे लिए एक ऐसा मनसूबा बनाया था जो कहीं बेहतर है। वह चाहता था कि यह लोग हमारे बग़ैर कामिलियत तक न पहुँचें। \c 12 \s1 अल्लाह हमारा बाप \p \v 1 ग़रज़, हम गवाहों के इतने बड़े लशकर से घेरे रहते हैं! इसलिए आएँ, हम सब कुछ उतारें जो हमारे लिए रुकावट का बाइस बन गया है, हर गुनाह को जो हमें आसानी से उलझा लेता है। आएँ, हम साबितक़दमी से उस दौड़ में दौड़ते रहें जो हमारे लिए मुक़र्रर की गई है। \v 2 और दौड़ते हुए हम ईसा को तकते रहें, उसे जो ईमान का बानी भी है और उसे तकमील तक पहुँचानेवाला भी। याद रहे कि गो वह ख़ुशी हासिल कर सकता था तो भी उसने सलीबी मौत की शर्मनाक बेइज़्ज़ती की परवा न की बल्कि उसे बरदाश्त किया। और अब वह अल्लाह के तख़्त के दहने हाथ जा बैठा है! \p \v 3 उस पर ध्यान दें जिसने गुनाहगारों की इतनी मुख़ालफ़त बरदाश्त की। फिर आप थकते थकते बेदिल नहीं हो जाएंगे। \v 4 देखें, आप गुनाह से लड़े तो हैं, लेकिन अभी तक आपको जान देने तक इसकी मुख़ालफ़त नहीं करनी पड़ी। \v 5 क्या आप कलामे-मुक़द्दस की यह हौसलाअफ़्ज़ा बात भूल गए हैं जो आपको अल्लाह के फ़रज़ंद ठहराकर बयान करती है, \p “मेरे बेटे, रब की तरबियत को हक़ीर मत जान, \p जब वह तुझे डाँटे तो न बेदिल हो। \p \v 6 क्योंकि जो रब को प्यारा है उस की वह तादीब करता है, \p वह हर एक को सज़ा देता है \p जिसे उसने बेटे के तौर पर क़बूल किया है।” \p \v 7 अपनी मुसीबतों को इलाही तरबियत समझकर बरदाश्त करें। इसमें अल्लाह आपसे बेटों का-सा सुलूक कर रहा है। क्या कभी कोई बेटा था जिसकी उसके बाप ने तरबियत न की? \v 8 अगर आपकी तरबियत सबकी तरह न की जाती तो इसका मतलब यह होता कि आप अल्लाह के हक़ीक़ी फ़रज़ंद न होते बल्कि नाजायज़ औलाद। \v 9 देखें, जब हमारे इनसानी बाप ने हमारी तरबियत की तो हमने उस की इज़्ज़त की। अगर ऐसा है तो कितना ज़्यादा ज़रूरी है कि हम अपने रूहानी बाप के ताबे होकर ज़िंदगी पाएँ। \v 10 हमारे इनसानी बापों ने हमें अपनी समझ के मुताबिक़ थोड़ी देर के लिए तरबियत दी। लेकिन अल्लाह हमारी ऐसी तरबियत करता है जो फ़ायदे का बाइस है और जिससे हम उस की क़ुद्दूसियत में शरीक होने के क़ाबिल हो जाते हैं। \v 11 जब हमारी तरबियत की जाती है तो उस वक़्त हम ख़ुशी महसूस नहीं करते बल्कि ग़म। लेकिन जिनकी तरबियत इस तरह होती है वह बाद में रास्तबाज़ी और सलामती की फ़सल काटते हैं। \s1 हिदायात \p \v 12 चुनाँचे अपने थकेहारे बाज़ुओं और कमज़ोर घुटनों को मज़बूत करें। \v 13 अपने रास्ते चलने के क़ाबिल बना दें ताकि जो अज़ु लँगड़ा है उसका जोड़ उतर न जाए \f + \fr 12:13 \ft एक और मुमकिना तरजुमा : जो लँगड़ा है वह भटक न जाए। \f* बल्कि शफ़ा पाए। \p \v 14 सबके साथ मिलकर सुलह-सलामती और क़ुद्दूसियत के लिए जिद्दो-जहद करते रहें, क्योंकि जो मुक़द्दस नहीं है वह ख़ुदावंद को कभी नहीं देखेगा। \v 15 इस पर ध्यान देना कि कोई अल्लाह के फ़ज़ल से महरूम न रहे। ऐसा न हो कि कोई कड़वी जड़ फूट निकले और बढ़कर तकलीफ़ का बाइस बन जाए और बहुतों को नापाक कर दे। \v 16 ध्यान दें कि कोई भी ज़िनाकार या एसौ जैसा दुनियावी शख़्स न हो जिसने एक ही खाने के एवज़ अपने वह मौरूसी हुक़ूक़ बेच डाले जो उसे बड़े बेटे की हैसियत से हासिल थे। \v 17 आपको भी मालूम है कि बाद में जब वह यह बरकत विरासत में पाना चाहता था तो उसे रद्द किया गया। उस वक़्त उसे तौबा का मौक़ा न मिला हालाँकि उसने आँसू बहा बहाकर यह बरकत हासिल करने की कोशिश की। \p \v 18 आप उस तरह अल्लाह के हुज़ूर नहीं आए जिस तरह इसराईली जब वह सीना पहाड़ पर पहुँचे, उस पहाड़ के पास जिसे छुआ जा सकता था। वहाँ आग भड़क रही थी, अंधेरा ही अंधेरा था और आँधी चल रही थी। \v 19 जब नरसिंगे की आवाज़ सुनाई दी और अल्लाह उनसे हमकलाम हुआ तो सुननेवालों ने उससे इल्तिजा की कि हमें मज़ीद कोई बात न बता। \v 20 क्योंकि वह यह हुक्म बरदाश्त नहीं कर सकते थे कि “अगर कोई जानवर भी पहाड़ को छू ले तो उसे संगसार करना है।” \v 21 यह मंज़र इतना हैबतनाक था कि मूसा ने कहा, “मैं ख़ौफ़ के मारे काँप रहा हूँ।” \p \v 22 नहीं, आप सिय्यून पहाड़ के पास आ गए हैं, यानी ज़िंदा ख़ुदा के शहर आसमानी यरूशलम के पास। आप बेशुमार फ़रिश्तों और जशन मनानेवाली जमात के पास आ गए हैं, \v 23 उन पहलौठों की जमात के पास जिनके नाम आसमान पर दर्ज किए गए हैं। आप तमाम इनसानों के मुंसिफ़ अल्लाह के पास आ गए हैं और कामिल किए गए रास्तबाज़ों की रूहों के पास। \v 24 नीज़ आप नए अहद के दरमियानी ईसा के पास आ गए हैं और उस छिड़काए गए ख़ून के पास जो हाबील के ख़ून की तरह बदला लेने की बात नहीं करता बल्कि एक ऐसी मुआफ़ी देता है जो कहीं ज़्यादा मुअस्सिर है। \p \v 25 चुनाँचे ख़बरदार रहें कि आप उस की सुनने से इनकार न करें जो इस वक़्त आपसे हमकलाम हो रहा है। क्योंकि अगर इसराईली न बचे जब उन्होंने दुनियावी पैग़ंबर मूसा की सुनने से इनकार किया तो फिर हम किस तरह बचेंगे अगर हम उस की सुनने से इनकार करें जो आसमान से हमसे हमकलाम होता है। \v 26 जब अल्लाह सीना पहाड़ पर से बोल उठा तो ज़मीन काँप गई, लेकिन अब उसने वादा किया है, “एक बार फिर मैं न सिर्फ़ ज़मीन को हिला दूँगा बल्कि आसमान को भी।” \v 27 “एक बार फिर” के अलफ़ाज़ इस तरफ़ इशारा करते हैं कि ख़लक़ की गई चीज़ों को हिलाकर दूर किया जाएगा और नतीजे में सिर्फ़ वह चीज़ें क़ायम रहेंगी जिन्हें हिलाया नहीं जा सकता। \p \v 28 चुनाँचे आएँ, हम शुक्रगुज़ार हों। क्योंकि हमें एक ऐसी बादशाही हासिल हो रही है जिसे हिलाया नहीं जा सकता। हाँ, हम शुक्रगुज़ारी की इस रूह में एहतराम और ख़ौफ़ के साथ अल्लाह की पसंदीदा परस्तिश करें, \v 29 क्योंकि हमारा ख़ुदा हक़ीक़तन भस्म कर देनेवाली आग है। \c 13 \s1 हम अल्लाह को किस तरह पसंद आएँ \p \v 1 एक दूसरे से भाइयों की-सी मुहब्बत रखते रहें। \v 2 मेहमान-नवाज़ी मत भूलना, क्योंकि ऐसा करने से बाज़ ने नादानिस्ता तौर पर फ़रिश्तों की मेहमान-नवाज़ी की है। \v 3 जो क़ैद में हैं, उन्हें यों याद रखना जैसे आप ख़ुद उनके साथ क़ैद में हों। और जिनके साथ बदसुलूकी हो रही है उन्हें यों याद रखना जैसे आपसे यह बदसुलूकी हो रही हो। \p \v 4 लाज़िम है कि सबके सब इज़दिवाजी ज़िंदगी का एहतराम करें। शौहर और बीवी एक दूसरे के वफ़ादार रहें, क्योंकि अल्लाह ज़िनाकारों और शादी का बंधन तोड़नेवालों की अदालत करेगा। \p \v 5 आपकी ज़िंदगी पैसों के लालच से आज़ाद हो। उसी पर इकतिफ़ा करें जो आपके पास है, क्योंकि अल्लाह ने फ़रमाया है, “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, मैं तुझे कभी तर्क नहीं करूँगा।” \v 6 इसलिए हम एतमाद से कह सकते हैं, \p “रब मेरी मदद करनेवाला है, \p इसलिए मैं नहीं डरूँगा। \p इनसान मेरा क्या बिगाड़ सकता है?” \p \v 7 अपने राहनुमाओं को याद रखें जिन्होंने आपको अल्लाह का कलाम सुनाया। इस पर ग़ौर करें कि उनके चाल-चलन से कितनी भलाई पैदा हुई है, और उनके ईमान के नमूने पर चलें। \v 8 ईसा मसीह माज़ी में, आज और अबद तक यकसाँ है। \v 9 तरह तरह की और बेगाना तालीमात आपको इधर-उधर न भटकाएँ। आप तो अल्लाह के फ़ज़ल से तक़वियत पाते हैं और इससे नहीं कि आप मुख़्तलिफ़ खानों से परहेज़ करते हैं। इसमें कोई ख़ास फ़ायदा नहीं है। \p \v 10 हमारे पास एक ऐसी क़ुरबानगाह है जिसकी क़ुरबानी खाना मुलाक़ात के ख़ैमे में ख़िदमत करनेवालों के लिए मना है। \v 11 क्योंकि गो इमामे-आज़म जानवरों का ख़ून गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर मुक़द्दसतरीन कमरे में ले जाता है, लेकिन उनकी लाशों को ख़ैमागाह के बाहर जलाया जाता है। \v 12 इस वजह से ईसा को भी शहर के बाहर सलीबी मौत सहनी पड़ी ताकि क़ौम को अपने ख़ून से मख़सूसो-मुक़द्दस करे। \v 13 इसलिए आएँ, हम ख़ैमागाह से निकलकर उसके पास जाएँ और उस की बेइज़्ज़ती में शरीक हो जाएँ। \v 14 क्योंकि यहाँ हमारा कोई क़ायम रहनेवाला शहर नहीं है बल्कि हम आनेवाले शहर की शदीद आरज़ू रखते हैं। \v 15 चुनाँचे आएँ, हम ईसा के वसीले से अल्लाह को हम्दो-सना की क़ुरबानी पेश करें, यानी हमारे होंटों से उसके नाम की तारीफ़ करनेवाला फल निकले। \v 16 नीज़, भलाई करना और दूसरों को अपनी बरकात में शरीक करना मत भूलना, क्योंकि ऐसी क़ुरबानियाँ अल्लाह को पसंद हैं। \p \v 17 अपने राहनुमाओं की सुनें और उनकी बात मानें। क्योंकि वह आपकी देख-भाल करते करते जागते रहते हैं, और इसमें वह अल्लाह के सामने जवाबदेह हैं। उनकी बात मानें ताकि वह ख़ुशी से अपनी ख़िदमत सरंजाम दें। वरना वह कराहते कराहते अपनी ज़िम्मादारी निभाएँगे, और यह आपके लिए मुफ़ीद नहीं होगा। \p \v 18 हमारे लिए दुआ करें, गो हमें यक़ीन है कि हमारा ज़मीर साफ़ है और हम हर लिहाज़ से अच्छी ज़िंदगी गुज़ारने के ख़ाहिशमंद हैं। \p \v 19 मैं ख़ासकर इस पर ज़ोर देना चाहता हूँ कि आप दुआ करें कि अल्लाह मुझे आपके पास जल्द वापस आने की तौफ़ीक़ बख़्शे। \s1 आख़िरी दुआ \p \v 20 अब सलामती का ख़ुदा जो अबदी अहद के ख़ून से हमारे ख़ुदावंद और भेड़ों के अज़ीम चरवाहे ईसा को मुरदों में से वापस लाया \v 21 वह आपको हर अच्छी चीज़ से नवाज़े ताकि आप उस की मरज़ी पूरी कर सकें। और वह ईसा मसीह के ज़रीए हममें वह कुछ पैदा करे जो उसे पसंद आए। उसका जलाल अज़ल से अबद तक होता रहे! आमीन। \s1 आख़िरी अलफ़ाज़ \p \v 22 भाइयो, मेहरबानी करके नसीहत की इन बातों पर संजीदगी से ग़ौर करें, क्योंकि मैंने आपको सिर्फ़ चंद अलफ़ाज़ लिखे हैं। \v 23 यह बात आपके इल्म में होनी चाहिए कि हमारे भाई तीमुथियुस को रिहा कर दिया गया है। अगर वह जल्दी पहुँचे तो उसे साथ लेकर आपसे मिलने आऊँगा। \p \v 24 अपने तमाम राहनुमाओं और तमाम मुक़द्दसीन को मेरा सलाम कहना। इटली के ईमानदार आपको सलाम कहते हैं। \p \v 25 अल्लाह का फ़ज़ल आप सबके साथ रहे।