\id EXO उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h ख़ुरूज \toc1 ख़ुरूज \toc2 ख़ुरूज \toc3 ख़ुर \mt1 ख़ुरूज \c 1 \s1 याक़ूब का ख़ानदान मिसर में \p \v 1 ज़ैल में उन बेटों के नाम हैं जो अपने बाप याक़ूब और अपने ख़ानदानों समेत मिसर में आए थे : \v 2 रूबिन, शमौन, लावी, यहूदाह, \v 3 इशकार, ज़बूलून, बिनयमीन, \v 4 दान, नफ़ताली, जद और आशर। \v 5 उस वक़्त याक़ूब की औलाद की तादाद 70 थी। यूसुफ़ तो पहले ही मिसर आ चुका था। \p \v 6 मिसर में रहते हुए बहुत दिन गुज़र गए। इतने में यूसुफ़, उसके तमाम भाई और उस नसल के तमाम लोग मर गए। \v 7 इसराईली फले-फूले और तादाद में बहुत बढ़ गए। नतीजे में वह निहायत ही ताक़तवर हो गए। पूरा मुल्क उनसे भर गया। \s1 इसराईलियों को दबाया जाता है \p \v 8 होते होते एक नया बादशाह तख़्तनशीन हुआ जो यूसुफ़ से नावाक़िफ़ था। \v 9 उसने अपने लोगों से कहा, “इसराईलियों को देखो। वह तादाद और ताक़त में हमसे बढ़ गए हैं। \v 10 आओ, हम हिकमत से काम लें, वरना वह मज़ीद बढ़ जाएंगे। ऐसा न हो कि वह किसी जंग के मौक़े पर दुश्मन का साथ देकर हमसे लड़ें और मुल्क को छोड़ जाएँ।” \p \v 11 चुनाँचे मिसरियों ने इसराईलियों पर निगरान मुक़र्रर किए ताकि बेगार में उनसे काम करवाकर उन्हें दबाते रहें। उस वक़्त उन्होंने पितोम और रामसीस के शहर तामीर किए। इन शहरों में फ़िरौन बादशाह के बड़े बड़े गोदाम थे। \v 12 लेकिन जितना इसराईलियों को दबाया गया उतना ही वह तादाद में बढ़ते और फैलते गए। आख़िरकार मिसरी उनसे दहशत खाने लगे, \v 13 और वह बड़ी बेरहमी से उनसे काम करवाते रहे। \v 14 इसराईलियों का गुज़ारा निहायत मुश्किल हो गया। उन्हें गारा तैयार करके ईंटें बनाना और खेतों में मुख़्तलिफ़ क़िस्म के काम करना पड़े। इसमें मिसरी उनसे बड़ी बेरहमी से पेश आते रहे। \s1 दाइयाँ अल्लाह की राह पर चलती हैं \p \v 15 इसराईलियों की दो दाइयाँ थीं जिनके नाम सिफ़रा और फ़ुआ थे। मिसर के बादशाह ने उनसे कहा, \v 16 “जब इबरानी औरतें तुम्हें मदद के लिए बुलाएँ तो ख़बरदार रहो। अगर लड़का पैदा हो तो उसे जान से मार दो, अगर लड़की हो तो उसे जीता छोड़ दो।” \v 17 लेकिन दाइयाँ अल्लाह का ख़ौफ़ मानती थीं। उन्होंने मिसर के बादशाह का हुक्म न माना बल्कि लड़कों को भी जीने दिया। \p \v 18 तब मिसर के बादशाह ने उन्हें दुबारा बुलाकर पूछा, “तुमने यह क्यों किया? तुम लड़कों को क्यों जीता छोड़ देती हो?” \v 19 उन्होंने जवाब दिया, “इबरानी औरतें मिसरी औरतों से ज़्यादा मज़बूत हैं। बच्चे हमारे पहुँचने से पहले ही पैदा हो जाते हैं।” \p \v 20 चुनाँचे अल्लाह ने दाइयों को बरकत दी, और इसराईली क़ौम तादाद में बढ़कर बहुत ताक़तवर हो गई। \v 21 और चूँकि दाइयाँ अल्लाह का ख़ौफ़ मानती थीं इसलिए उसने उन्हें औलाद देकर उनके ख़ानदानों को क़ायम रखा। \p \v 22 आख़िरकार बादशाह ने अपने तमाम हमवतनों से बात की, “जब भी इबरानियों के लड़के पैदा हों तो उन्हें दरियाए-नील में फेंक देना। सिर्फ़ लड़कियों को ज़िंदा रहने दो।” \c 2 \s1 मूसा की पैदाइश और बचाव \p \v 1 उन दिनों में लावी के एक आदमी ने अपने ही क़बीले की एक औरत से शादी की। \v 2 औरत हामिला हुई और बच्चा पैदा हुआ। माँ ने देखा कि लड़का ख़ूबसूरत है, इसलिए उसने उसे तीन माह तक छुपाए रखा। \v 3 जब वह उसे और ज़्यादा न छुपा सकी तो उसने आबी नरसल से टोकरी बनाकर उस पर तारकोल चढ़ाया। फिर उसने बच्चे को टोकरी में रखकर टोकरी को दरियाए-नील के किनारे पर उगे हुए सरकंडों में रख दिया। \v 4 बच्चे की बहन कुछ फ़ासले पर खड़ी देखती रही कि उसका क्या बनेगा। \p \v 5 उस वक़्त फ़िरौन की बेटी नहाने के लिए दरिया पर आई। उस की नौकरानियाँ दरिया के किनारे टहलने लगीं। तब उसने सरकंडों में टोकरी देखी और अपनी लौंडी को उसे लाने भेजा। \v 6 उसे खोला तो छोटा लड़का दिखाई दिया जो रो रहा था। फ़िरौन की बेटी को उस पर तरस आया। उसने कहा, “यह कोई इबरानी बच्चा है।” \p \v 7 अब बच्चे की बहन फ़िरौन की बेटी के पास गई और पूछा, “क्या मैं बच्चे को दूध पिलाने के लिए कोई इबरानी औरत ढूँड लाऊँ?” \v 8 फ़िरौन की बेटी ने कहा, “हाँ, जाओ।” लड़की चली गई और बच्चे की सगी माँ को लेकर वापस आई। \v 9 फ़िरौन की बेटी ने माँ से कहा, “बच्चे को ले जाओ और उसे मेरे लिए दूध पिलाया करो। मैं तुम्हें इसका मुआवज़ा दूँगी।” चुनाँचे बच्चे की माँ ने उसे दूध पिलाने के लिए ले लिया। \p \v 10 जब बच्चा बड़ा हुआ तो उस की माँ उसे फ़िरौन की बेटी के पास ले गई, और वह उसका बेटा बन गया। फ़िरौन की बेटी ने उसका नाम मूसा यानी ‘निकाला गया’ रखकर कहा, “मैं उसे पानी से निकाल लाई हूँ।” \s1 मूसा फ़रार होता है \p \v 11 जब मूसा जवान हुआ तो एक दिन वह घर से निकलकर अपने लोगों के पास गया जो जबरी काम में मसरूफ़ थे। मूसा ने देखा कि एक मिसरी मेरे एक इबरानी भाई को मार रहा है। \v 12 मूसा ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। जब मालूम हुआ कि कोई नहीं देख रहा तो उसने मिसरी को जान से मार दिया और उसे रेत में छुपा दिया। \p \v 13 अगले दिन भी मूसा घर से निकला। इस दफ़ा दो इबरानी मर्द आपस में लड़ रहे थे। जो ग़लती पर था उससे मूसा ने पूछा, “तुम अपने भाई को क्यों मार रहे हो?” \v 14 आदमी ने जवाब दिया, “किसने आपको हम पर हुक्मरान और क़ाज़ी मुक़र्रर किया है? क्या आप मुझे भी क़त्ल करना चाहते हैं जिस तरह मिसरी को मार डाला था?” तब मूसा डर गया। उसने सोचा, “हाय, मेरा भेद खुल गया है!” \p \v 15 बादशाह को भी पता लगा तो उसने मूसा को मरवाने की कोशिश की। लेकिन मूसा मिदियान के मुल्क को भाग गया। वहाँ वह एक कुएँ के पास बैठ गया। \v 16 मिदियान में एक इमाम था जिसकी सात बेटियाँ थीं। यह लड़कियाँ अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए कुएँ पर आईं और पानी निकालकर हौज़ भरने लगीं। \v 17 लेकिन कुछ चरवाहों ने आकर उन्हें भगा दिया। यह देखकर मूसा उठा और लड़कियों को चरवाहों से बचाकर उनके रेवड़ को पानी पिलाया। \p \v 18 जब लड़कियाँ अपने बाप रऊएल के पास वापस आईं तो बाप ने पूछा, “आज तुम इतनी जल्दी से क्यों वापस आ गई हो?” \v 19 लड़कियों ने जवाब दिया, “एक मिसरी आदमी ने हमें चरवाहों से बचाया। न सिर्फ़ यह बल्कि उसने हमारे लिए पानी भी निकालकर रेवड़ को पिला दिया।” \v 20 रऊएल ने कहा, “वह आदमी कहाँ है? तुम उसे क्यों छोड़कर आई हो? उसे बुलाओ ताकि वह हमारे साथ खाना खाए।” \p \v 21 मूसा रऊएल के घर में ठहरने के लिए राज़ी हो गया। बाद में उस की शादी रऊएल की बेटी सफ़्फ़ूरा से हुई। \v 22 सफ़्फ़ूरा के बेटा पैदा हुआ तो मूसा ने कहा, “इसका नाम जैरसोम यानी ‘अजनबी मुल्क में परदेसी’ हो, क्योंकि मैं अजनबी मुल्क में परदेसी हूँ।” \p \v 23 काफ़ी अरसा गुज़र गया। इतने में मिसर का बादशाह इंतक़ाल कर गया। इसराईली अपनी ग़ुलामी तले कराहते और मदद के लिए पुकारते रहे, और उनकी चीख़ें अल्लाह तक पहुँच गईं। \v 24 अल्लाह ने उनकी आहें सुनीं और उस अहद को याद किया जो उसने इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से बाँधा था। \v 25 अल्लाह इसराईलियों की हालत देखकर उनका ख़याल करने लगा। \c 3 \s1 जलती हुई झाड़ी \p \v 1 मूसा अपने सुसर यितरो की भेड़-बकरियों की निगहबानी करता था (मिदियान का इमाम रऊएल यितरो भी कहलाता था)। एक दिन मूसा रेवड़ को रेगिस्तान की परली जानिब ले गया और चलते चलते अल्लाह के पहाड़ होरिब यानी सीना तक पहुँच गया। \v 2 वहाँ रब का फ़रिश्ता आग के शोले में उस पर ज़ाहिर हुआ। यह शोला एक झाड़ी में भड़क रहा था। मूसा ने देखा कि झाड़ी जल रही है लेकिन भस्म नहीं हो रही। \v 3 मूसा ने सोचा, “यह तो अजीब बात है। क्या वजह है कि जलती हुई झाड़ी भस्म नहीं हो रही? मैं ज़रा वहाँ जाकर यह हैरतअंगेज़ मंज़र देखूँ।” \p \v 4 जब रब ने देखा कि मूसा झाड़ी को देखने आ रहा है तो उसने उसे झाड़ी में से पुकारा, “मूसा, मूसा!” मूसा ने कहा, “जी, मैं हाज़िर हूँ।” \v 5 रब ने कहा, “इससे ज़्यादा क़रीब न आना। अपनी जूतियाँ उतार, क्योंकि तू मुक़द्दस ज़मीन पर खड़ा है। \v 6 मैं तेरे बाप का ख़ुदा, इब्राहीम का ख़ुदा, इसहाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा हूँ।” यह सुनकर मूसा ने अपना मुँह ढाँक लिया, क्योंकि वह अल्लाह को देखने से डरा। \p \v 7 रब ने कहा, “मैंने मिसर में अपनी क़ौम की बुरी हालत देखी और ग़ुलामी में उनकी चीख़ें सुनी हैं, और मैं उनके दुखों को ख़ूब जानता हूँ। \v 8 अब मैं उन्हें मिसरियों के क़ाबू से बचाने के लिए उतर आया हूँ। मैं उन्हें मिसर से निकालकर एक अच्छे वसी मुल्क में ले जाऊँगा, एक ऐसे मुल्क में जहाँ दूध और शहद की कसरत है, गो इस वक़्त कनानी, हित्ती, अमोरी, फ़रिज़्ज़ी, हिव्वी और यबूसी उसमें रहते हैं। \v 9 इसराईलियों की चीख़ें मुझ तक पहुँची हैं। मैंने देखा है कि मिसरी उन पर किस तरह का ज़ुल्म ढा रहे हैं। \v 10 चुनाँचे अब जा। मैं तुझे फ़िरौन के पास भेजता हूँ, क्योंकि तुझे मेरी क़ौम इसराईल को मिसर से निकालकर लाना है।” \p \v 11 लेकिन मूसा ने अल्लाह से कहा, “मैं कौन हूँ कि फ़िरौन के पास जाकर इसराईलियों को मिसर से निकाल लाऊँ?” \v 12 अल्लाह ने कहा, “मैं तो तेरे साथ हूँगा। और इसका सबूत कि मैं तुझे भेज रहा हूँ यह होगा कि लोगों के मिसर से निकलने के बाद तुम यहाँ आकर इस पहाड़ पर मेरी इबादत करोगे।” \p \v 13 लेकिन मूसा ने एतराज़ किया, “अगर मैं इसराईलियों के पास जाकर उन्हें बताऊँ कि तुम्हारे बापदादा के ख़ुदा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है तो वह पूछेंगे, ‘उसका नाम क्या है?’ फिर मैं उनको क्या जवाब दूँ?” \p \v 14 अल्लाह ने कहा, “मैं जो हूँ सो मैं हूँ। उनसे कहना, ‘मैं हूँ ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। \v 15 रब जो तुम्हारे बापदादा का ख़ुदा, इब्राहीम का ख़ुदा, इसहाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।’ यह अबद तक मेरा नाम रहेगा। लोग यही नाम लेकर मुझे नसल-दर-नसल याद करेंगे। \p \v 16 अब जा और इसराईल के बुज़ुर्गों को जमा करके उनको बता दे कि रब तुम्हारे बापदादा इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब का ख़ुदा मुझ पर ज़ाहिर हुआ है। वह फ़रमाता है, ‘मैंने ख़ूब देख लिया है कि मिसर में तुम्हारे साथ क्या सुलूक हो रहा है। \v 17 इसलिए मैंने फ़ैसला किया है कि तुम्हें मिसर की मुसीबत से निकालकर कनानियों, हित्तियों, अमोरियों, फ़रिज़्ज़ियों, हिव्वियों और यबूसियों के मुल्क में ले जाऊँ, ऐसे मुल्क में जहाँ दूध और शहद की कसरत है।’ \v 18 बुज़ुर्ग तेरी सुनेंगे। फिर उनके साथ मिसर के बादशाह के पास जाकर उससे कहना, ‘रब इबरानियों का ख़ुदा हम पर ज़ाहिर हुआ है। इसलिए हमें इजाज़त दें कि हम तीन दिन का सफ़र करके रेगिस्तान में रब अपने ख़ुदा के लिए क़ुरबानियाँ चढ़ाएँ।’ \p \v 19 लेकिन मुझे मालूम है कि मिसर का बादशाह सिर्फ़ इस सूरत में तुम्हें जाने देगा कि कोई ज़बरदस्ती तुम्हें ले जाए। \v 20 इसलिए मैं अपनी क़ुदरत ज़ाहिर करके अपने मोजिज़ों की मारिफ़त मिसरियों को मारूँगा। फिर वह तुम्हें जाने देगा। \v 21 उस वक़्त मैं मिसरियों के दिलों को तुम्हारे लिए नरम कर दूँगा। तुम्हें ख़ाली हाथ नहीं जाना पड़ेगा। \v 22 तमाम इबरानी औरतें अपनी मिसरी पड़ोसनों और अपने घर में रहनेवाली मिसरी औरतों से चाँदी और सोने के ज़ेवरात और नफ़ीस कपड़े माँगकर अपने बच्चों को पहनाएँगी। यों मिसरियों को लूट लिया जाएगा।” \c 4 \p \v 1 मूसा ने एतराज़ किया, “लेकिन इसराईली न मेरी बात का यक़ीन करेंगे, न मेरी सुनेंगे। वह तो कहेंगे, ‘रब तुम पर ज़ाहिर नहीं हुआ’।” \v 2 जवाब में रब ने मूसा से कहा, “तूने हाथ में क्या पकड़ा हुआ है?” मूसा ने कहा, “लाठी।” \v 3 रब ने कहा, “उसे ज़मीन पर डाल दे।” मूसा ने ऐसा किया तो लाठी साँप बन गई, और मूसा डरकर भागा। \v 4 रब ने कहा, “अब साँप की दुम को पकड़ ले।” मूसा ने ऐसा किया तो साँप फिर लाठी बन गया। \p \v 5 रब ने कहा, “यह देखकर लोगों को यक़ीन आएगा कि रब जो उनके बापदादा का ख़ुदा, इब्राहीम का ख़ुदा, इसहाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा है तुझ पर ज़ाहिर हुआ है। \v 6 अब अपना हाथ अपने लिबास में डाल दे।” मूसा ने ऐसा किया। जब उसने अपना हाथ निकाला तो वह बर्फ़ की मानिंद सफ़ेद हो गया था। कोढ़ जैसी बीमारी लग गई थी। \v 7 तब रब ने कहा, “अब अपना हाथ दुबारा अपने लिबास में डाल।” मूसा ने ऐसा किया। जब उसने अपना हाथ दुबारा निकाला तो वह फिर सेहतमंद था। \p \v 8 रब ने कहा, “अगर लोगों को पहला मोजिज़ा देखकर यक़ीन न आए और वह तेरी न सुनें तो शायद उन्हें दूसरा मोजिज़ा देखकर यक़ीन आए। \v 9 अगर उन्हें फिर भी यक़ीन न आए और वह तेरी न सुनें तो दरियाए-नील से कुछ पानी निकालकर उसे ख़ुश्क ज़मीन पर उंडेल दे। यह पानी ज़मीन पर गिरते ही ख़ून बन जाएगा।” \p \v 10 लेकिन मूसा ने कहा, “मेरे आक़ा, मैं माज़रत चाहता हूँ, मैं अच्छी तरह बात नहीं कर सकता बल्कि मैं कभी भी यह लियाक़त नहीं रखता था। इस वक़्त भी जब मैं तुझसे बात कर रहा हूँ मेरी यही हालत है। मैं रुक रुककर बोलता हूँ।” \v 11 रब ने कहा, “किसने इनसान का मुँह बनाया? कौन एक को गूँगा और दूसरे को बहरा बना देता है? कौन एक को देखने की क़ाबिलियत देता है और दूसरे को इससे महरूम रखता है? क्या मैं जो रब हूँ यह सब कुछ नहीं करता? \v 12 अब जा! तेरे बोलते वक़्त मैं ख़ुद तेरे साथ हूँगा और तुझे वह कुछ सिखाऊँगा जो तुझे कहना है।” \p \v 13 लेकिन मूसा ने इल्तिजा की, “मेरे आक़ा, मेहरबानी करके किसी और को भेज दे।” \p \v 14 तब रब मूसा से सख़्त ख़फ़ा हुआ। उसने कहा, “क्या तेरा लावी भाई हारून ऐसे काम के लिए हाज़िर नहीं है? मैं जानता हूँ कि वह अच्छी तरह बोल सकता है। देख, वह तुझसे मिलने के लिए निकल चुका है। तुझे देखकर वह निहायत ख़ुश होगा। \v 15 उसे वह कुछ बता जो उसे कहना है। तुम्हारे बोलते वक़्त मैं तेरे और उसके साथ हूँगा और तुम्हें वह कुछ सिखाऊँगा जो तुम्हें करना होगा। \v 16 हारून तेरी जगह क़ौम से बात करेगा जबकि तू मेरी तरह उसे वह कुछ बताएगा जो उसे कहना है। \v 17 लेकिन यह लाठी भी साथ ले जाना, क्योंकि इसी के ज़रीए तू यह मोजिज़े करेगा।” \s1 मूसा मिसर को लौट जाता है \p \v 18 फिर मूसा अपने सुसर यितरो के घर वापस चला गया। उसने कहा, “मुझे ज़रा अपने अज़ीज़ों के पास वापस जाने दें जो मिसर में हैं। मैं मालूम करना चाहता हूँ कि वह अभी तक ज़िंदा हैं कि नहीं।” यितरो ने जवाब दिया, “ठीक है, सलामती से जाएँ।” \v 19 मूसा अभी मिदियान में था कि रब ने उससे कहा, “मिसर को वापस चला जा, क्योंकि जो आदमी तुझे क़त्ल करना चाहते थे वह मर गए हैं।” \v 20 चुनाँचे मूसा अपनी बीवी और बेटों को गधे पर सवार करके मिसर को लौटने लगा। अल्लाह की लाठी उसके हाथ में थी। \p \v 21 रब ने उससे यह भी कहा, “मिसर जाकर फ़िरौन के सामने वह तमाम मोजिज़े दिखा जिनका मैंने तुझे इख़्तियार दिया है। लेकिन मेरे कहने पर वह अड़ा रहेगा। वह इसराईलियों को जाने की इजाज़त नहीं देगा। \v 22 उस वक़्त फ़िरौन को बता देना, ‘रब फ़रमाता है कि इसराईल मेरा पहलौठा है। \v 23 मैं तुझे बता चुका हूँ कि मेरे बेटे को जाने दे ताकि वह मेरी इबादत करे। अगर तू मेरे बेटे को जाने से मना करे तो मैं तेरे पहलौठे को जान से मार दूँगा’।” \p \v 24 एक दिन जब मूसा अपने ख़ानदान के साथ रास्ते में किसी सराय में ठहरा हुआ था तो रब ने उस पर हमला करके उसे मार देने की कोशिश की। \v 25 यह देखकर सफ़्फ़ूरा ने एक तेज़ पत्थर से अपने बेटे का ख़तना किया और काटे हुए हिस्से से मूसा के पैर छुए। उसने कहा, “यक़ीनन तुम मेरे ख़ूनी दूल्हा हो।” \v 26 तब अल्लाह ने मूसा को छोड़ दिया। सफ़्फ़ूरा ने उसे ख़तने के बाइस ही ‘ख़ूनी दूल्हा’ कहा था। \p \v 27 रब ने हारून से भी बात की, “रेगिस्तान में मूसा से मिलने जा।” हारून चल पड़ा और अल्लाह के पहाड़ के पास मूसा से मिला। उसने उसे बोसा दिया। \v 28 मूसा ने हारून को सब कुछ सुना दिया जो रब ने उसे कहने के लिए भेजा था। उसने उसे उन मोजिज़ों के बारे में भी बताया जो उसे दिखाने थे। \p \v 29 फिर दोनों मिलकर मिसर गए। वहाँ पहुँचकर उन्होंने इसराईल के तमाम बुज़ुर्गों को जमा किया। \v 30 हारून ने उन्हें वह तमाम बातें सुनाईं जो रब ने मूसा को बताई थीं। उसने मज़कूरा मोजिज़े भी लोगों के सामने दिखाए। \v 31 फिर उन्हें यक़ीन आया। और जब उन्होंने सुना कि रब को तुम्हारा ख़याल है और वह तुम्हारी मुसीबत से आगाह है तो उन्होंने रब को सिजदा किया। \c 5 \s1 मूसा और हारून फ़िरौन के दरबार में \p \v 1 फिर मूसा और हारून फ़िरौन के पास गए। उन्होंने कहा, “रब इसराईल का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘मेरी क़ौम को रेगिस्तान में जाने दे ताकि वह मेरे लिए ईद मनाएँ’।” \v 2 फ़िरौन ने जवाब दिया, “यह रब कौन है? मैं क्यों उसका हुक्म मानकर इसराईलियों को जाने दूँ? न मैं रब को जानता हूँ, न इसराईलियों को जाने दूँगा।” \p \v 3 हारून और मूसा ने कहा, “इबरानियों का ख़ुदा हम पर ज़ाहिर हुआ है। इसलिए मेहरबानी करके हमें इजाज़त दें कि रेगिस्तान में तीन दिन का सफ़र करके रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर क़ुरबानियाँ पेश करें। कहीं वह हमें किसी बीमारी या तलवार से न मारे।” \p \v 4 लेकिन मिसर के बादशाह ने इनकार किया, “मूसा और हारून, तुम लोगों को काम से क्यों रोक रहे हो? जाओ, जो काम हमने तुमको दिया है उस पर लग जाओ! \v 5 इसराईली वैसे भी तादाद में बहुत बढ़ गए हैं, और तुम उन्हें काम करने से रोक रहे हो।” \s1 जवाब में फ़िरौन का सख़्त दबाव \p \v 6 उसी दिन फ़िरौन ने मिसरी निगरानों और उनके तहत के इसराईली निगरानों को हुक्म दिया, \v 7 “अब से इसराईलियों को ईंटें बनाने के लिए भूसा मत देना, बल्कि वह ख़ुद जाकर भूसा जमा करें। \v 8 तो भी वह उतनी ही ईंटें बनाएँ जितनी पहले बनाते थे। वह सुस्त हो गए हैं और इसी लिए चीख़ रहे हैं कि हमें जाने दें ताकि अपने ख़ुदा को क़ुरबानियाँ पेश करें। \v 9 उनसे और ज़्यादा सख़्त काम कराओ, उन्हें काम में लगाए रखो। उनके पास इतना वक़्त ही न हो कि वह झूटी बातों पर ध्यान दें।” \p \v 10 मिसरी निगरान और उनके तहत के इसराईली निगरानों ने लोगों के पास जाकर उनसे कहा, “फ़िरौन का हुक्म है कि तुम्हें भूसा न दिया जाए। \v 11 इसलिए ख़ुद जाओ और भूसा ढूँडकर जमा करो। लेकिन ख़बरदार! उतनी ही ईंटें बनाओ जितनी पहले बनाते थे।” \p \v 12 यह सुनकर इसराईली भूसा जमा करने के लिए पूरे मुल्क में फैल गए। \v 13 मिसरी निगरान यह कहकर उन पर दबाव डालते रहे कि उतनी ईंटें बनाओ जितनी पहले बनाते थे। \v 14 जो इसराईली निगरान उन्होंने मुक़र्रर किए थे उन्हें वह पीटते और कहते रहे, “तुमने कल और आज उतनी ईंटें क्यों नहीं बनवाईं जितनी पहले बनवाते थे?” \p \v 15 फिर इसराईली निगरान फ़िरौन के पास गए। उन्होंने शिकायत करके कहा, “आप अपने ख़ादिमों के साथ ऐसा सुलूक क्यों कर रहे हैं? \v 16 हमें भूसा नहीं दिया जा रहा और साथ साथ यह कहा गया है कि उतनी ईंटें बनाओ जितनी पहले बनाते थे। नतीजे में हमें मारा पीटा भी जा रहा है हालाँकि ऐसा करने में आपके अपने लोग ग़लती पर हैं।” \p \v 17 फ़िरौन ने जवाब दिया, “तुम लोग सुस्त हो, तुम काम करना नहीं चाहते। इसलिए तुम यह जगह छोड़ना और रब को क़ुरबानियाँ पेश करना चाहते हो। \v 18 अब जाओ, काम करो। तुम्हें भूसा नहीं दिया जाएगा, लेकिन ख़बरदार! उतनी ही ईंटें बनाओ जितनी पहले बनाते थे।” \p \v 19 जब इसराईली निगरानों को बताया गया कि ईंटों की मतलूबा तादाद कम न करो तो वह समझ गए कि हम फँस गए हैं। \v 20 फ़िरौन के महल से निकलकर उनकी मुलाक़ात मूसा और हारून से हुई जो उनके इंतज़ार में थे। \v 21 उन्होंने मूसा और हारून से कहा, “रब ख़ुद आपकी अदालत करे। क्योंकि आपके सबब से फ़िरौन और उसके मुलाज़िमों को हमसे घिन आती है। आपने उन्हें हमें मार देने का मौक़ा दे दिया है।” \s1 मूसा की शिकायत और रब का जवाब \p \v 22 यह सुनकर मूसा रब के पास वापस आया और कहा, “ऐ आक़ा, तूने इस क़ौम से ऐसा बुरा सुलूक क्यों किया? क्या तूने इसी मक़सद से मुझे यहाँ भेजा है? \v 23 जब से मैंने फ़िरौन के पास जाकर उसे तेरी मरज़ी बताई है वह इसराईली क़ौम से बुरा सुलूक कर रहा है। और तूने अब तक उन्हें बचाने का कोई क़दम नहीं उठाया।” \c 6 \p \v 1 रब ने जवाब दिया, “अब तू देखेगा कि मैं फ़िरौन के साथ क्या कुछ करता हूँ। मेरी अज़ीम क़ुदरत का तजरबा करके वह मेरे लोगों को जाने देगा बल्कि उन्हें जाने पर मजबूर करेगा।” \p \v 2 अल्लाह ने मूसा से यह भी कहा, “मैं रब हूँ। \v 3 मैं इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब पर ज़ाहिर हुआ। वह मेरे नाम अल्लाह क़ादिरे-मुतलक़ \f + \fr 6:3 \ft इबरानी में एल-शदई। \f* से वाक़िफ़ हुए, लेकिन मैंने उन पर अपने नाम रब \f + \fr 6:3 \ft इबरानी में यहवे। \f* का इनकिशाफ़ नहीं किया। \v 4 मैंने उनसे अहद करके वादा किया कि उन्हें मुल्के-कनान दूँगा जिसमें वह अजनबी के तौर पर रहते थे। \v 5 अब मैंने सुना है कि इसराईली किस तरह मिसरियों की ग़ुलामी में कराह रहे हैं, और मैंने अपना अहद याद किया है। \v 6 चुनाँचे इसराईलियों को बताना, ‘मैं रब हूँ। मैं तुम्हें मिसरियों के जुए से आज़ाद करूँगा और उनकी ग़ुलामी से बचाऊँगा। मैं बड़ी क़ुदरत के साथ तुम्हें छुड़ाऊँगा और उनकी अदालत करूँगा। \v 7 मैं तुम्हें अपनी क़ौम बनाऊँगा और तुम्हारा ख़ुदा हूँगा। तब तुम जान लोगे कि मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ जिसने तुम्हें मिसरियों के जुए से आज़ाद कर दिया है। \v 8 मैं तुम्हें उस मुल्क में ले जाऊँगा जिसका वादा मैंने क़सम खाकर इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से किया है। वह मुल्क तुम्हारी अपनी मिलकियत होगा। मैं रब हूँ’।” \p \v 9 मूसा ने यह सब कुछ इसराईलियों को बता दिया, लेकिन उन्होंने उस की बात न मानी, क्योंकि वह सख़्त काम के बाइस हिम्मत हार गए थे। \v 10 तब रब ने मूसा से कहा, \v 11 “जा, मिसर के बादशाह फ़िरौन को बता देना कि इसराईलियों को अपने मुल्क से जाने दे।” \v 12 लेकिन मूसा ने एतराज़ किया, “इसराईली मेरी बात सुनना नहीं चाहते तो फ़िरौन क्यों मेरी बात माने जबकि मैं रुक रुककर बोलता हूँ?” \p \v 13 लेकिन रब ने मूसा और हारून को हुक्म दिया, “इसराईलियों और मिसर के बादशाह फ़िरौन से बात करके इसराईलियों को मिसर से निकालो।” \s1 मूसा और हारून के आबा-ओ-अजदाद \p \v 14 इसराईल के आबाई घरानों के सरबराह यह थे : इसराईल के पहलौठे रूबिन के चार बेटे हनूक, फ़ल्लू, हसरोन और करमी थे। इनसे रूबिन की चार शाख़ें निकलीं। \p \v 15 शमौन के पाँच बेटे यमुएल, यमीन, उहद, यकीन, सुहर और साऊल थे। (साऊल कनानी औरत का बच्चा था)। इनसे शमौन की पाँच शाख़ें निकलीं। \p \v 16 लावी के तीन बेटे जैरसोन, क़िहात और मिरारी थे। (लावी 137 साल की उम्र में फ़ौत हुआ)। \p \v 17 जैरसोन के दो बेटे लिबनी और सिमई थे। इनसे जैरसोन की दो शाख़ें निकलीं। \v 18 क़िहात के चार बेटे अमराम, इज़हार, हबरून और उज़्ज़ियेल थे। (क़िहात 133 साल की उम्र में फ़ौत हुआ)। \v 19 मिरारी के दो बेटे महली और मूशी थे। इन सबसे लावी की मुख़्तलिफ़ शाख़ें निकलीं। \p \v 20 अमराम ने अपनी फूफी यूकबिद से शादी की। उनके दो बेटे हारून और मूसा पैदा हुए। (अमराम 137 साल की उम्र में फ़ौत हुआ)। \v 21 इज़हार के तीन बेटे क़ोरह, नफ़ज और ज़िकरी थे। \v 22 उज़्ज़ियेल के तीन बेटे मीसाएल, इल्सफ़न और सितरी थे। \p \v 23 हारून ने इलीसिबा से शादी की। (इलीसिबा अम्मीनदाब की बेटी और नहसोन की बहन थी)। उनके चार बेटे नदब, अबीहू, इलियज़र और इतमर थे। \v 24 क़ोरह के तीन बेटे अस्सीर, इलक़ाना और अबियासफ़ थे। उनसे क़ोरहियों की तीन शाख़ें निकलीं। \v 25 हारून के बेटे इलियज़र ने फ़ूतियेल की एक बेटी से शादी की। उनका एक बेटा फ़ीनहास था। \p यह सब लावी के आबाई घरानों के सरबराह थे। \p \v 26 रब ने अमराम के दो बेटों हारून और मूसा को हुक्म दिया कि मेरी क़ौम को उसके ख़ानदानों की तरतीब के मुताबिक़ मिसर से निकालो। \v 27 इन्हीं दो आदमियों ने मिसर के बादशाह फ़िरौन से बात की कि इसराईलियों को मिसर से जाने दे। \s1 रब दुबारा मूसा से हमकलाम होता है \p \v 28 मिसर में रब ने मूसा से कहा, \v 29 “मैं रब हूँ। मिसर के बादशाह को वह सब कुछ बता देना जो मैं तुझे बताता हूँ।” \v 30 मूसा ने एतराज़ किया, “मैं तो रुक रुककर बोलता हूँ। फ़िरौन किस तरह मेरी बात मानेगा?” \c 7 \p \v 1 लेकिन रब ने कहा, “देख, मेरे कहने पर तू फ़िरौन के लिए अल्लाह की हैसियत रखेगा और तेरा भाई हारून तेरा पैग़ंबर होगा। \v 2 जो भी हुक्म मैं तुझे दूँगा उसे तू हारून को बता दे। फिर वह सब कुछ फ़िरौन को बताए ताकि वह इसराईलियों को अपने मुल्क से जाने दे। \v 3 लेकिन मैं फ़िरौन को अड़ जाने दूँगा। अगरचे मैं मिसर में बहुत-से निशानों और मोजिज़ों से अपनी क़ुदरत का मुज़ाहरा करूँगा \v 4 तो भी फ़िरौन तुम्हारी नहीं सुनेगा। तब मिसरियों पर मेरा हाथ भारी हो जाएगा, और मैं उनको सख़्त सज़ा देकर अपनी क़ौम इसराईल को ख़ानदानों की तरतीब के मुताबिक़ मिसर से निकाल लाऊँगा। \v 5 जब मैं मिसर के ख़िलाफ़ अपनी क़ुदरत का इज़हार करके इसराईलियों को वहाँ से निकालूँगा तो मिसरी जान लेंगे कि मैं रब हूँ।” \p \v 6 मूसा और हारून ने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब ने उन्हें हुक्म दिया। \v 7 फ़िरौन से बात करते वक़्त मूसा 80 साल का और हारून 83 साल का था। \s1 मूसा की लाठी साँप बन जाती है \p \v 8 रब ने मूसा और हारून से कहा, \v 9 “जब फ़िरौन तुम्हें मोजिज़ा दिखाने को कहेगा तो मूसा हारून से कहे कि अपनी लाठी ज़मीन पर डाल दे। इस पर वह साँप बन जाएगी।” \p \v 10 मूसा और हारून ने फ़िरौन के पास जाकर ऐसा ही किया। हारून ने अपनी लाठी फ़िरौन और उसके ओहदेदारों के सामने डाल दी तो वह साँप बन गई। \v 11 यह देखकर फ़िरौन ने अपने आलिमों और जादूगरों को बुलाया। जादूगरों ने भी अपने जादू से ऐसा ही किया। \v 12 हर एक ने अपनी लाठी ज़मीन पर फेंकी तो वह साँप बन गई। लेकिन हारून की लाठी ने उनकी लाठियों को निगल लिया। \p \v 13 ताहम फ़िरौन इससे मुतअस्सिर न हुआ। उसने मूसा और हारून की बात सुनने से इनकार किया। वैसा ही हुआ जैसा रब ने कहा था। \s1 पानी ख़ून में बदल जाता है \p \v 14 फिर रब ने मूसा से कहा, “फ़िरौन अड़ गया है। वह मेरी क़ौम को मिसर छोड़ने से रोकता है। \v 15 कल सुबह-सवेरे जब वह दरियाए-नील पर आएगा तो उससे मिलने के लिए दरिया के किनारे पर खड़े हो जाना। उस लाठी को थामे रखना जो साँप बन गई थी। \v 16 जब वह वहाँ पहुँचे तो उससे कहना, ‘रब इबरानियों के ख़ुदा ने मुझे आपको यह बताने के लिए भेजा है कि मेरी क़ौम को मेरी इबादत करने के लिए रेगिस्तान में जाने दे। लेकिन आपने अभी तक उस की नहीं सुनी। \v 17 चुनाँचे अब आप जान लेंगे कि वह रब है। मैं इस लाठी को जो मेरे हाथ में है लेकर दरियाए-नील के पानी को मारूँगा। फिर वह ख़ून में बदल जाएगा। \v 18 दरियाए-नील की मछलियाँ मर जाएँगी, दरिया से बदबू उठेगी और मिसरी दरिया का पानी नहीं पी सकेंगे’।” \p \v 19 रब ने मूसा से कहा, “हारून को बता देना कि वह अपनी लाठी लेकर अपना हाथ उन तमाम जगहों की तरफ़ बढ़ाए जहाँ पानी जमा होता है। तब मिसर की तमाम नदियों, नहरों, जोहड़ों और तालाबों का पानी ख़ून में बदल जाएगा। पूरे मुल्क में ख़ून ही ख़ून होगा, यहाँ तक कि लकड़ी और पत्थर के बरतनों का पानी भी ख़ून में बदल जाएगा।” \p \v 20 चुनाँचे मूसा और हारून ने फ़िरौन और उसके ओहदेदारों के सामने अपनी लाठी उठाकर दरियाए-नील के पानी पर मारी। इस पर दरिया का सारा पानी ख़ून में बदल गया। \v 21 दरिया की मछलियाँ मर गईं, और उससे इतनी बदबू उठने लगी कि मिसरी उसका पानी न पी सके। मिसर में चारों तरफ़ ख़ून ही ख़ून था। \p \v 22 लेकिन जादूगरों ने भी अपने जादू के ज़रीए ऐसा ही किया। इसलिए फ़िरौन अड़ गया और मूसा और हारून की बात न मानी। वैसा ही हुआ जैसा रब ने कहा था। \v 23 फ़िरौन पलटकर अपने घर वापस चला गया। उसे उस की परवा नहीं थी जो मूसा और हारून ने किया था। \v 24 लेकिन मिसरी दरिया से पानी न पी सके, और उन्होंने पीने का पानी हासिल करने के लिए दरिया के किनारे किनारे गढ़े खोदे। \v 25 पानी के बदल जाने के बाद सात दिन गुज़र गए। \c 8 \s1 मेंढक \p \v 1 फिर रब ने मूसा से कहा, “फ़िरौन के पास जाकर उसे बता देना कि रब फ़रमाता है, ‘मेरी क़ौम को मेरी इबादत करने के लिए जाने दे, \v 2 वरना मैं पूरे मिसर को मेंढकों से सज़ा दूँगा। \v 3 दरियाए-नील मेंढकों से इतना भर जाएगा कि वह दरिया से निकलकर तेरे महल, तेरे सोने के कमरे और तेरे बिस्तर में जा घुसेंगे। वह तेरे ओहदेदारों और तेरी रिआया के घरों में आएँगे बल्कि तेरे तनूरों और आटा गूँधने के बरतनों में भी फुदकते फिरेंगे। \v 4 मेंढक तुझ पर, तेरी क़ौम पर और तेरे ओहदेदारों पर चढ़ जाएंगे’।” \p \v 5 रब ने मूसा से कहा, “हारून को बता देना कि वह अपनी लाठी को हाथ में लेकर उसे दरियाओं, नहरों और जोहड़ों के ऊपर उठाए ताकि मेंढक बाहर निकलकर मिसर के मुल्क में फैल जाएँ।” \v 6 हारून ने मुल्के-मिसर के पानी के ऊपर अपनी लाठी उठाई तो मेंढकों के ग़ोल पानी से निकलकर पूरे मुल्क पर छा गए। \v 7 लेकिन जादूगरों ने भी अपने जादू से ऐसा ही किया। वह भी दरिया से मेंढक निकाल लाए। \p \v 8 फ़िरौन ने मूसा और हारून को बुलाकर कहा, “रब से दुआ करो कि वह मुझसे और मेरी क़ौम से मेंढकों को दूर करे। फिर मैं तुम्हारी क़ौम को जाने दूँगा ताकि वह रब को क़ुरबानियाँ पेश करें।” \p \v 9 मूसा ने जवाब दिया, “वह वक़्त मुक़र्रर करें जब मैं आपके ओहदेदारों और आपकी क़ौम के लिए दुआ करूँ। फिर जो मेंढक आपके पास और आपके घरों में हैं उसी वक़्त ख़त्म हो जाएंगे। मेंढक सिर्फ़ दरिया में पाए जाएंगे।” \p \v 10 फ़िरौन ने कहा, “ठीक है, कल उन्हें ख़त्म करो।” मूसा ने कहा, “जैसा आप कहते हैं वैसा ही होगा। इस तरह आपको मालूम होगा कि हमारे ख़ुदा की मानिंद कोई नहीं है। \v 11 मेंढक आप, आपके घरों, आपके ओहदेदारों और आपकी क़ौम को छोड़कर सिर्फ़ दरिया में रह जाएंगे।” \p \v 12 मूसा और हारून फ़िरौन के पास से चले गए, और मूसा ने रब से मिन्नत की कि वह मेंढकों के वह ग़ोल दूर करे जो उसने फ़िरौन के ख़िलाफ़ भेजे थे। \v 13 रब ने उस की दुआ सुनी। घरों, सहनों और खेतों में मेंढक मर गए। \v 14 लोगों ने उन्हें जमा करके उनके ढेर लगा दिए। उनकी बदबू पूरे मुल्क में फैल गई। \p \v 15 लेकिन जब फ़िरौन ने देखा कि मसला हल हो गया है तो वह फिर अकड़ गया और उनकी न सुनी। यों रब की बात दुरुस्त निकली। \s1 जुएँ \p \v 16 फिर रब ने मूसा से कहा, “हारून से कहना कि वह अपनी लाठी से ज़मीन की गर्द को मारे। जब वह ऐसा करेगा तो पूरे मिसर की गर्द जुओं में बदल जाएगी।” \p \v 17 उन्होंने ऐसा ही किया। हारून ने अपनी लाठी से ज़मीन की गर्द को मारा तो पूरे मुल्क की गर्द जुओं में बदल गई। उनके ग़ोल जानवरों और आदमियों पर छा गए। \v 18 जादूगरों ने भी अपने जादू से ऐसा करने की कोशिश की, लेकिन वह गर्द से जुएँ न बना सके। जुएँ आदमियों और जानवरों पर छा गईं। \v 19 जादूगरों ने फ़िरौन से कहा, “अल्लाह की क़ुदरत ने यह किया है।” लेकिन फ़िरौन ने उनकी न सुनी। यों रब की बात दुरुस्त निकली। \s1 काटनेवाली मक्खियाँ \p \v 20 फिर रब ने मूसा से कहा, “जब फ़िरौन सुबह-सवेरे दरिया पर जाए तो तू उसके रास्ते में खड़ा हो जाना। उसे कहना कि रब फ़रमाता है, ‘मेरी क़ौम को जाने दे ताकि वह मेरी इबादत कर सकें। \v 21 वरना मैं तेरे और तेरे ओहदेदारों के पास, तेरी क़ौम के पास और तेरे घरों में काटनेवाली मक्खियाँ भेज दूँगा। मिसरियों के घर मक्खियों से भर जाएंगे बल्कि जिस ज़मीन पर वह खड़े हैं वह भी मक्खियों से ढाँकी जाएगी। \v 22 लेकिन उस वक़्त मैं अपनी क़ौम के साथ जो जुशन में रहती है फ़रक़ सुलूक करूँगा। वहाँ एक भी काटनेवाली मक्खी नहीं होगी। इस तरह तुझे पता लगेगा कि इस मुल्क में मैं ही रब हूँ। \v 23 मैं अपनी क़ौम और तेरी क़ौम में इम्तियाज़ करूँगा। कल ही मेरी क़ुदरत का इज़हार होगा’।” \p \v 24 रब ने ऐसा ही किया। काटनेवाली मक्खियों के ग़ोल फ़िरौन के महल, उसके ओहदेदारों के घरों और पूरे मिसर में फैल गए। मुल्क का सत्यानास हो गया। \p \v 25 फिर फ़िरौन ने मूसा और हारून को बुलाकर कहा, “चलो, इसी मुल्क में अपने ख़ुदा को क़ुरबानियाँ पेश करो।” \v 26 लेकिन मूसा ने कहा, “यह मुनासिब नहीं है। जो क़ुरबानियाँ हम रब अपने ख़ुदा को पेश करेंगे वह मिसरियों की नज़र में घिनौनी हैं। अगर हम यहाँ ऐसा करें तो क्या वह हमें संगसार नहीं करेंगे? \v 27 इसलिए लाज़िम है कि हम तीन दिन का सफ़र करके रेगिस्तान में ही रब अपने ख़ुदा को क़ुरबानियाँ पेश करें जिस तरह उसने हमें हुक्म भी दिया है।” \p \v 28 फ़िरौन ने जवाब दिया, “ठीक है, मैं तुम्हें जाने दूँगा ताकि तुम रेगिस्तान में रब अपने ख़ुदा को क़ुरबानियाँ पेश करो। लेकिन तुम्हें ज़्यादा दूर नहीं जाना है। और मेरे लिए भी दुआ करना।” \p \v 29 मूसा ने कहा, “ठीक, मैं जाते ही रब से दुआ करूँगा। कल ही मक्खियाँ फ़िरौन, उसके ओहदेदारों और उस की क़ौम से दूर हो जाएँगी। लेकिन हमें दुबारा फ़रेब न देना बल्कि हमें जाने देना ताकि हम रब को क़ुरबानियाँ पेश कर सकें।” \p \v 30 फिर मूसा फ़िरौन के पास से चला गया और रब से दुआ की। \v 31 रब ने मूसा की दुआ सुनी। काटनेवाली मक्खियाँ फ़िरौन, उसके ओहदेदारों और उस की क़ौम से दूर हो गईं। एक भी मक्खी न रही। \v 32 लेकिन फ़िरौन फिर अकड़ गया। उसने इसराईलियों को जाने न दिया। \c 9 \s1 मवेशियों में वबा \p \v 1 फिर रब ने मूसा से कहा, “फ़िरौन के पास जाकर उसे बता कि रब इबरानियों का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘मेरी क़ौम को जाने दे ताकि वह मेरी इबादत कर सकें।’ \v 2 अगर आप इनकार करें और उन्हें रोकते रहें \v 3 तो रब अपनी क़ुदरत का इज़हार करके आपके मवेशियों में भयानक वबा फैला देगा जो आपके घोड़ों, गधों, ऊँटों, गाय-बैलों, भेड़-बकरियों और मेंढों में फैल जाएगी। \v 4 लेकिन रब इसराईल और मिसर के मवेशियों में इम्तियाज़ करेगा। इसराईलियों का एक भी जानवर नहीं मरेगा। \v 5 रब ने फ़ैसला कर लिया है कि वह कल ही ऐसा करेगा।” \p \v 6 अगले दिन रब ने ऐसा ही किया। मिसर के तमाम मवेशी मर गए, लेकिन इसराईलियों का एक भी जानवर न मरा। \v 7 फ़िरौन ने कुछ लोगों को उनके पास भेज दिया तो पता चला कि एक भी जानवर नहीं मरा। ताहम फ़िरौन अड़ा रहा। उसने इसराईलियों को जाने न दिया। \s1 फोड़े-फुंसियाँ \p \v 8 फिर रब ने मूसा और हारून से कहा, “अपनी मुट्ठियाँ किसी भट्टी की राख से भरकर फ़िरौन के पास जाओ। फिर मूसा फ़िरौन के सामने यह राख हवा में उड़ा दे। \v 9 यह राख बारीक धूल का बादल बन जाएगी जो पूरे मुल्क पर छा जाएगा। उसके असर से लोगों और जानवरों के जिस्मों पर फोड़े-फुंसियाँ फूट निकलेंगे।” \p \v 10 मूसा और हारून ने ऐसा ही किया। वह किसी भट्टी से राख लेकर फ़िरौन के सामने खड़े हो गए। मूसा ने राख को हवा में उड़ा दिया तो इनसानों और जानवरों के जिस्मों पर फोड़े-फुंसियाँ निकल आए। \v 11 इस मरतबा जादूगर मूसा के सामने खड़े भी न हो सके क्योंकि उनके जिस्मों पर भी फोड़े निकल आए थे। तमाम मिसरियों का यही हाल था। \v 12 लेकिन रब ने फ़िरौन को ज़िद्दी बनाए रखा, इसलिए उसने मूसा और हारून की न सुनी। यों वैसा ही हुआ जैसा रब ने मूसा को बताया था। \s1 ओले \p \v 13 इसके बाद रब ने मूसा से कहा, “सुबह-सवेरे उठ और फ़िरौन के सामने खड़े होकर उसे बता कि रब इबरानियों का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘मेरी क़ौम को जाने दे ताकि वह मेरी इबादत कर सकें। \v 14 वरना मैं अपनी तमाम आफ़तें तुझ पर, तेरे ओहदेदारों पर और तेरी क़ौम पर आने दूँगा। फिर तू जान लेगा कि तमाम दुनिया में मुझ जैसा कोई नहीं है। \v 15 अगर मैं चाहता तो अपनी क़ुदरत से ऐसी वबा फैला सकता कि तुझे और तेरी क़ौम को दुनिया से मिटा दिया जाता। \v 16 लेकिन मैंने तुझे इसलिए बरपा किया है कि तुझ पर अपनी क़ुदरत का इज़हार करूँ और यों तमाम दुनिया में मेरे नाम का प्रचार किया जाए। \v 17 तू अभी तक अपने आपको सरफ़राज़ करके मेरी क़ौम के ख़िलाफ़ है और उन्हें जाने नहीं देता। \v 18 इसलिए कल मैं इसी वक़्त भयानक क़िस्म के ओलों का तूफ़ान भेज दूँगा। मिसरी क़ौम की इब्तिदा से लेकर आज तक मिसर में ओलों का ऐसा तूफ़ान कभी नहीं आया होगा। \v 19 अपने बंदों को अभी भेजना ताकि वह तेरे मवेशियों को और खेतों में पड़े तेरे माल को लाकर महफ़ूज़ कर लें। क्योंकि जो भी खुले मैदान में रहेगा वह ओलों से मर जाएगा, ख़ाह इनसान हो या हैवान’।” \p \v 20 फ़िरौन के कुछ ओहदेदार रब का पैग़ाम सुनकर डर गए और भागकर अपने जानवरों और ग़ुलामों को घरों में ले आए। \v 21 लेकिन दूसरों ने रब के पैग़ाम की परवा न की। उनके जानवर और ग़ुलाम बाहर खुले मैदान में रहे। \p \v 22 रब ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आसमान की तरफ़ बढ़ा दे। फिर मिसर के तमाम इनसानों, जानवरों और खेतों के पौदों पर ओले पड़ेंगे।” \v 23 मूसा ने अपनी लाठी आसमान की तरफ़ उठाई तो रब ने एक ज़बरदस्त तूफ़ान भेज दिया। ओले पड़े, बिजली गिरी और बादल गरजते रहे। \v 24 ओले पड़ते रहे और बिजली चमकती रही। मिसरी क़ौम की इब्तिदा से लेकर अब तक ऐसे ख़तरनाक ओले कभी नहीं पड़े थे। \v 25 इनसानों से लेकर हैवानों तक खेतों में सब कुछ बरबाद हो गया। ओलों ने खेतों में तमाम पौदे और दरख़्त भी तोड़ दिए। \v 26 वह सिर्फ़ जुशन के इलाक़े में न पड़े जहाँ इसराईली आबाद थे। \p \v 27 तब फ़िरौन ने मूसा और हारून को बुलाया। उसने कहा, “इस मरतबा मैंने गुनाह किया है। रब हक़ पर है। मुझसे और मेरी क़ौम से ग़लती हुई है। \v 28 ओले और अल्लाह की गरजती आवाज़ें हद से ज़्यादा हैं। रब से दुआ करो ताकि ओले रुक जाएँ। अब मैं तुम्हें जाने दूँगा। अब से तुम्हें यहाँ रहना नहीं पड़ेगा।” \p \v 29 मूसा ने फ़िरौन से कहा, “मैं शहर से निकलकर दोनों हाथ रब की तरफ़ उठाकर दुआ करूँगा। फिर गरज और ओले रुक जाएंगे और आप जान लेंगे कि पूरी दुनिया रब की है। \v 30 लेकिन मैं जानता हूँ कि आप और आपके ओहदेदार अभी तक रब ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं मानते।” \p \v 31 उस वक़्त सन के फूल निकल चुके थे और जौ की बालें लग गई थीं। इसलिए यह फ़सलें तबाह हो गईं। \v 32 लेकिन गेहूँ और एक और क़िस्म की गंदुम जो बाद में पकती है बरबाद न हुई। \p \v 33 मूसा फ़िरौन को छोड़कर शहर से निकला। उसने रब की तरफ़ अपने हाथ उठाए तो गरज, ओले और बारिश का तूफ़ान रुक गया। \v 34 जब फ़िरौन ने देखा कि तूफ़ान ख़त्म हो गया है तो वह और उसके ओहदेदार दुबारा गुनाह करके अकड़ गए। \v 35 फ़िरौन अड़ा रहा और इसराईलियों को जाने न दिया। वैसा ही हुआ जैसा रब ने मूसा से कहा था। \c 10 \s1 टिड्डियाँ \p \v 1 फिर रब ने मूसा से कहा, “फ़िरौन के पास जा, क्योंकि मैंने उसका और उसके दरबारियों का दिल सख़्त कर दिया है ताकि उनके दरमियान अपने मोजिज़ों और अपनी क़ुदरत का इज़हार कर सकूँ \v 2 और तुम अपने बेटे-बेटियों और पोते-पोतियों को सुना सको कि मैंने मिसरियों के साथ क्या सुलूक किया है और उनके दरमियान किस तरह के मोजिज़े करके अपनी क़ुदरत का इज़हार किया है। यों तुम जान लोगे कि मैं रब हूँ।” \p \v 3 मूसा और हारून फ़िरौन के पास गए। उन्होंने उससे कहा, “रब इबरानियों के ख़ुदा का फ़रमान है, ‘तू कब तक मेरे सामने हथियार डालने से इनकार करेगा? मेरी क़ौम को मेरी इबादत करने के लिए जाने दे, \v 4 वरना मैं कल तेरे मुल्क में टिड्डियाँ लाऊँगा। \v 5 उनके ग़ोल ज़मीन पर यों छा जाएंगे कि ज़मीन नज़र ही नहीं आएगी। जो कुछ ओलों ने तबाह नहीं किया उसे वह चट कर जाएँगी। बचे हुए दरख़्तों के पत्ते भी ख़त्म हो जाएंगे। \v 6 तेरे महल, तेरे ओहदेदारों और बाक़ी लोगों के घर उनसे भर जाएंगे। जब से मिसरी इस मुल्क में आबाद हुए हैं तुमने कभी टिड्डियों का ऐसा सख़्त हमला नहीं देखा होगा’।” यह कहकर मूसा पलटकर वहाँ से चला गया। \p \v 7 इस पर दरबारियों ने फ़िरौन से बात की, “हम कब तक इस मर्द के जाल में फँसे रहें? इसराईलियों को रब अपने ख़ुदा की इबादत करने के लिए जाने दें। क्या आपको अभी तक मालूम नहीं कि मिसर बरबाद हो गया है?” \p \v 8 तब मूसा और हारून को फ़िरौन के पास बुलाया गया। उसने उनसे कहा, “जाओ, अपने ख़ुदा की इबादत करो। लेकिन यह बताओ कि कौन कौन साथ जाएगा?” \v 9 मूसा ने जवाब दिया, “हमारे जवान और बूढ़े साथ जाएंगे। हम अपने बेटे-बेटियों, भेड़-बकरियों और गाय-बैलों को भी साथ लेकर जाएंगे। हम सबके सब जाएंगे, क्योंकि हमें रब की ईद मनानी है।” \p \v 10 फ़िरौन ने तंज़न कहा, “ठीक है, जाओ और रब तुम्हारे साथ हो। नहीं, मैं किस तरह तुम सबको बाल-बच्चों समेत जाने दे सकता हूँ? तुमने कोई बुरा मनसूबा बनाया है। \v 11 नहीं, सिर्फ़ मर्द जाकर रब की इबादत कर सकते हैं। तुमने तो यही दरख़ास्त की थी।” तब मूसा और हारून को फ़िरौन के सामने से निकाल दिया गया। \p \v 12 फिर रब ने मूसा से कहा, “मिसर पर अपना हाथ उठा ताकि टिड्डियाँ आकर मिसर की सरज़मीन पर फैल जाएँ। जो कुछ भी खेतों में ओलों से बच गया है उसे वह खा जाएँगी।” \p \v 13 मूसा ने अपनी लाठी मिसर पर उठाई तो रब ने मशरिक़ से आँधी चलाई जो सारा दिन और सारी रात चलती रही और अगली सुबह तक मिसर में टिड्डियाँ पहुँचाईं। \v 14 बेशुमार टिड्डियाँ पूरे मुल्क पर हमला करके हर जगह बैठ गईं। इससे पहले या बाद में कभी भी टिड्डियों का इतना सख़्त हमला न हुआ था। \v 15 उन्होंने ज़मीन को यों ढाँक लिया कि वह काली नज़र आने लगी। जो कुछ भी ओलों से बच गया था चाहे खेतों के पौदे या दरख़्तों के फल थे उन्होंने खा लिया। मिसर में एक भी दरख़्त या पौदा न रहा जिसके पत्ते बच गए हों। \p \v 16 तब फ़िरौन ने मूसा और हारून को जल्दी से बुलवाया। उसने कहा, “मैंने तुम्हारे ख़ुदा का और तुम्हारा गुनाह किया है। \v 17 अब एक और मरतबा मेरा गुनाह मुआफ़ करो और रब अपने ख़ुदा से दुआ करो ताकि मौत की यह हालत मुझसे दूर हो जाए।” \p \v 18 मूसा ने महल से निकलकर रब से दुआ की। \v 19 जवाब में रब ने हवा का रुख़ बदल दिया। उसने मग़रिब से तेज़ आँधी चलाई जिसने टिड्डियों को उड़ाकर बहरे-क़ुलज़ुम में डाल दिया। मिसर में एक भी टिड्डी न रही। \v 20 लेकिन रब ने होने दिया कि फ़िरौन फिर अड़ गया। उसने इसराईलियों को जाने न दिया। \s1 अंधेरा \p \v 21 इसके बाद रब ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आसमान की तरफ़ उठा तो मिसर पर अंधेरा छा जाएगा। इतना अंधेरा होगा कि बंदा उसे छू सकेगा।” \v 22 मूसा ने अपना हाथ आसमान की तरफ़ उठाया तो तीन दिन तक मिसर पर गहरा अंधेरा छाया रहा। \v 23 तीन दिन तक लोग न एक दूसरे को देख सके, न कहीं जा सके। लेकिन जहाँ इसराईली रहते थे वहाँ रौशनी थी। \p \v 24 तब फ़िरौन ने मूसा को फिर बुलवाया और कहा, “जाओ, रब की इबादत करो! तुम अपने साथ बाल-बच्चों को भी ले जा सकते हो। सिर्फ़ अपनी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल पीछे छोड़ देना।” \v 25 मूसा ने जवाब दिया, “क्या आप ही हमें क़ुरबानियों के लिए जानवर देंगे ताकि उन्हें रब अपने ख़ुदा को पेश करें? \v 26 यक़ीनन नहीं। इसलिए लाज़िम है कि हम अपने जानवरों को साथ लेकर जाएँ। एक खुर भी पीछे नहीं छोड़ा जाएगा, क्योंकि अभी तक हमें मालूम नहीं कि रब की इबादत के लिए किन किन जानवरों की ज़रूरत होगी। यह उस वक़्त ही पता चलेगा जब हम मनज़िले-मक़सूद पर पहुँचेंगे। इसलिए ज़रूरी है कि हम सबको अपने साथ लेकर जाएँ।” \p \v 27 लेकिन रब की मरज़ी के मुताबिक़ फ़िरौन अड़ गया। उसने उन्हें जाने न दिया। \v 28 उसने मूसा से कहा, “दफ़ा हो जा। ख़बरदार! फिर कभी अपनी शक्ल न दिखाना, वरना तुझे मौत के हवाले कर दिया जाएगा।” \v 29 मूसा ने कहा, “ठीक है, आपकी मरज़ी। मैं फिर कभी आपके सामने नहीं आऊँगा।” \c 11 \s1 आख़िरी सज़ा का एलान \p \v 1 तब रब ने मूसा से कहा, “अब मैं फ़िरौन और मिसर पर आख़िरी आफ़त लाने को हूँ। इसके बाद वह तुम्हें जाने देगा बल्कि तुम्हें ज़बरदस्ती निकाल देगा। \v 2 इसराईलियों को बता देना कि हर मर्द अपने पड़ोसी और हर औरत अपनी पड़ोसन से सोने-चाँदी की चीज़ें माँग ले।” \v 3 (रब ने मिसरियों के दिल इसराईलियों की तरफ़ मायल कर दिए थे। वह फ़िरौन के ओहदेदारों समेत ख़ासकर मूसा की बड़ी इज़्ज़त करते थे)। \p \v 4 मूसा ने कहा, “रब फ़रमाता है, ‘आज आधी रात के वक़्त मैं मिसर में से गुज़रूँगा। \v 5 तब बादशाह के पहलौठे से लेकर चक्की पीसनेवाली नौकरानी के पहलौठे तक मिसरियों का हर पहलौठा मर जाएगा। चौपाइयों के पहलौठे भी मर जाएंगे। \v 6 मिसर की सरज़मीन पर ऐसा रोना पीटना होगा कि न माज़ी में कभी हुआ, न मुस्तक़बिल में कभी होगा। \v 7 लेकिन इसराईली और उनके जानवर बचे रहेंगे। कुत्ता भी उन पर नहीं भौंकेगा। इस तरह तुम जान लोगे कि रब इसराईलियों की निसबत मिसरियों से फ़रक़ सुलूक करता है’।” \v 8 मूसा ने यह कुछ फ़िरौन को बताया फिर कहा, “उस वक़्त आपके तमाम ओहदेदार आकर मेरे सामने झुक जाएंगे और मिन्नत करेंगे, ‘अपने पैरोकारों के साथ चले जाएँ।’ तब मैं चला ही जाऊँगा।” यह कहकर मूसा फ़िरौन के पास से चला गया। वह बड़े ग़ुस्से में था। \p \v 9 रब ने मूसा से कहा था, “फ़िरौन तुम्हारी नहीं सुनेगा। क्योंकि लाज़िम है कि मैं मिसर में अपनी क़ुदरत का मज़ीद इज़हार करूँ।” \v 10 गो मूसा और हारून ने फ़िरौन के सामने यह तमाम मोजिज़े दिखाए, लेकिन रब ने फ़िरौन को ज़िद्दी बनाए रखा, इसलिए उसने इसराईलियों को मुल्क छोड़ने न दिया। \c 12 \s1 फ़सह की ईद \p \v 1 फिर रब ने मिसर में मूसा और हारून से कहा, \v 2 “अब से यह महीना तुम्हारे लिए साल का पहला महीना हो।” \v 3 इसराईल की पूरी जमात को बताना कि इस महीने के दसवें दिन हर ख़ानदान का सरपरस्त अपने घराने के लिए लेला यानी भेड़ या बकरी का बच्चा हासिल करे। \v 4 अगर घराने के अफ़राद पूरा जानवर खाने के लिए कम हों तो वह अपने सबसे क़रीबी पड़ोसी के साथ मिलकर लेला हासिल करें। इतने लोग उसमें से खाएँ कि सबके लिए काफ़ी हो और पूरा जानवर खाया जाए। \v 5 इसके लिए एक साल का नर बच्चा चुन लेना जिसमें नुक़्स न हो। वह भेड़ या बकरी का बच्चा हो सकता है। \p \v 6 महीने के 14वें दिन तक उस की देख-भाल करो। उस दिन तमाम इसराईली सूरज के ग़ुरूब होते वक़्त अपने लेले ज़बह करें। \v 7 हर ख़ानदान अपने जानवर का कुछ ख़ून जमा करके उसे उस घर के दरवाज़े की चौखट पर लगाए जहाँ लेला खाया जाएगा। यह ख़ून चौखट के ऊपरवाले हिस्से और दाएँ बाएँ के बाज़ुओं पर लगाया जाए। \v 8 लाज़िम है कि लोग जानवर को भूनकर उसी रात खाएँ। साथ ही वह कड़वा साग-पात और बेख़मीरी रोटियाँ भी खाएँ। \v 9 लेले का गोश्त कच्चा न खाना, न उसे पानी में उबालना बल्कि पूरे जानवर को सर, पैरों और अंदरूनी हिस्सों समेत आग पर भूनना। \v 10 लाज़िम है कि पूरा गोश्त उसी रात खाया जाए। अगर कुछ सुबह तक बच जाए तो उसे जलाना है। \v 11 खाना खाते वक़्त ऐसा लिबास पहनना जैसे तुम सफ़र पर जा रहे हो। अपने जूते पहने रखना और हाथ में सफ़र के लिए लाठी लिए हुए तुम उसे जल्दी जल्दी खाना। रब के फ़सह की ईद यों मनाना। \p \v 12 मैं आज रात मिसर में से गुज़रूँगा और हर पहलौठे को जान से मार दूँगा, ख़ाह इनसान का हो या हैवान का। यों मैं जो रब हूँ मिसर के तमाम देवताओं की अदालत करूँगा। \v 13 लेकिन तुम्हारे घरों पर लगा हुआ ख़ून तुम्हारा ख़ास निशान होगा। जिस जिस घर के दरवाज़े पर मैं वह ख़ून देखूँगा उसे छोड़ता जाऊँगा। जब मैं मिसर पर हमला करूँगा तो मोहलक वबा तुम तक नहीं पहुँचेगी। \v 14 आज की रात को हमेशा याद रखना। इसे नसल-दर-नसल और हर साल रब की ख़ास ईद के तौर पर मनाना। \s1 बेख़मीरी रोटी की ईद \p \v 15 सात दिन तक बेख़मीरी रोटी खाना है। पहले दिन अपने घरों से तमाम ख़मीर निकाल देना। अगर कोई इन सात दिनों के दौरान ख़मीर खाए तो उसे क़ौम में से मिटाया जाए। \v 16 इस ईद के पहले और आख़िरी दिन मुक़द्दस इजतिमा मुनअक़िद करना। इन तमाम दिनों के दौरान काम न करना। सिर्फ़ एक काम की इजाज़त है और वह है अपना खाना तैयार करना। \v 17 बेख़मीरी रोटी की ईद मनाना लाज़िम है, क्योंकि उस दिन मैं तुम्हारे मुतअद्दिद ख़ानदानों को मिसर से निकाल लाया। इसलिए यह दिन नसल-दर-नसल हर साल याद रखना। \v 18 पहले महीने के 14वें दिन की शाम से लेकर 21वें दिन की शाम तक सिर्फ़ बेख़मीरी रोटी खाना। \v 19 सात दिन तक तुम्हारे घरों में ख़मीर न पाया जाए। जो भी इस दौरान ख़मीर खाए उसे इसराईल की जमात में से मिटाया जाए, ख़ाह वह इसराईली शहरी हो या अजनबी। \v 20 ग़रज़, इस ईद के दौरान ख़मीर न खाना। जहाँ भी तुम रहते हो वहाँ बेख़मीरी रोटी ही खाना है। \s1 पहलौठों की हलाकत \p \v 21 फिर मूसा ने तमाम इसराईली बुज़ुर्गों को बुलाकर उनसे कहा, “जाओ, अपने ख़ानदानों के लिए भेड़ या बकरी के बच्चे चुनकर उन्हें फ़सह की ईद के लिए ज़बह करो। \v 22 ज़ूफ़े का गुच्छा लेकर उसे ख़ून से भरे हुए बासन में डुबो देना। फिर उसे लेकर ख़ून को चौखट के ऊपरवाले हिस्से और दाएँ बाएँ के बाज़ुओं पर लगा देना। सुबह तक कोई अपने घर से न निकले। \v 23 जब रब मिसरियों को मार डालने के लिए मुल्क में से गुज़रेगा तो वह चौखट के ऊपरवाले हिस्से और दाएँ बाएँ के बाज़ुओं पर लगा हुआ ख़ून देखकर उन घरों को छोड़ देगा। वह हलाक करनेवाले फ़रिश्ते को इजाज़त नहीं देगा कि वह तुम्हारे घरों में जाकर तुम्हें हलाक करे। \p \v 24 तुम अपनी औलाद समेत हमेशा इन हिदायात पर अमल करना। \v 25 यह रस्म उस वक़्त भी अदा करना जब तुम उस मुल्क में पहुँचोगे जो रब तुम्हें देगा। \v 26 और जब तुम्हारे बच्चे तुमसे पूछें कि हम यह ईद क्यों मनाते हैं \v 27 तो उनसे कहो, ‘यह फ़सह की क़ुरबानी है जो हम रब को पेश करते हैं। क्योंकि जब रब मिसरियों को हलाक कर रहा था तो उसने हमारे घरों को छोड़ दिया था’।” \p यह सुनकर इसराईलियों ने अल्लाह को सिजदा किया। \v 28 फिर उन्होंने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा और हारून को बताया था। \p \v 29 आधी रात को रब ने बादशाह के पहलौठे से लेकर जेल के क़ैदी के पहलौठे तक मिसरियों के तमाम पहलौठों को जान से मार दिया। चौपाइयों के पहलौठे भी मर गए। \v 30 उस रात मिसर के हर घर में कोई न कोई मर गया। फ़िरौन, उसके ओहदेदार और मिसर के तमाम लोग जाग उठे और ज़ोर ज़ोर से रोने और चीख़ने लगे। \s1 इसराईलियों की हिजरत \p \v 31 अभी रात थी कि फ़िरौन ने मूसा और हारून को बुलाकर कहा, “अब तुम और बाक़ी इसराईली मेरी क़ौम में से निकल जाओ। अपनी दरख़ास्त के मुताबिक़ रब की इबादत करो। \v 32 जिस तरह तुम चाहते हो अपनी भेड़-बकरियों को भी अपने साथ ले जाओ। और मुझे भी बरकत देना।” \v 33 बाक़ी मिसरियों ने भी इसराईलियों पर ज़ोर देकर कहा, “जल्दी जल्दी मुल्क से निकल जाओ, वरना हम सब मर जाएंगे।” \p \v 34 इसराईलियों के गूँधे हुए आटे में ख़मीर नहीं था। उन्होंने उसे गूँधने के बरतनों में रखकर अपने कपड़ों में लपेट लिया और सफ़र करते वक़्त अपने कंधों पर रख लिया। \v 35 इसराईली मूसा की हिदायत पर अमल करके अपने मिसरी पड़ोसियों के पास गए और उनसे कपड़े और सोने-चाँदी की चीज़ें माँगीं। \v 36 रब ने मिसरियों के दिलों को इसराईलियों की तरफ़ मायल कर दिया था, इसलिए उन्होंने उनकी हर दरख़ास्त पूरी की। यों इसराईलियों ने मिसरियों को लूट लिया। \p \v 37 इसराईली रामसीस से रवाना होकर सुक्कात पहुँच गए। औरतों और बच्चों को छोड़कर उनके 6 लाख मर्द थे। \v 38 वह अपने भेड़-बकरियों और गाय-बैलों के बड़े बड़े रेवड़ भी साथ ले गए। बहुत-से ऐसे लोग भी उनके साथ निकले जो इसराईली नहीं थे। \v 39 रास्ते में उन्होंने उस बेख़मीरी आटे से रोटियाँ बनाईं जो वह साथ लेकर निकले थे। आटे में इसलिए ख़मीर नहीं था कि उन्हें इतनी जल्दी से मिसर से निकाल दिया गया था कि खाना तैयार करने का वक़्त ही न मिला था। \p \v 40 इसराईली 430 साल तक मिसर में रहे थे। \v 41 430 साल के ऐन बाद, उसी दिन रब के यह तमाम ख़ानदान मिसर से निकले। \v 42 उस ख़ास रात रब ने ख़ुद पहरा दिया ताकि इसराईली मिसर से निकल सकें। इसलिए तमाम इसराईलियों के लिए लाज़िम है कि वह नसल-दर-नसल इस रात रब की ताज़ीम में जागते रहें, वह भी और उनके बाद की औलाद भी। \s1 फ़सह की ईद की हिदायात \p \v 43 रब ने मूसा और हारून से कहा, “फ़सह की ईद के यह उसूल हैं : \p किसी भी परदेसी को फ़सह की ईद का खाना खाने की इजाज़त नहीं है। \v 44 अगर तुमने किसी ग़ुलाम को ख़रीदकर उसका ख़तना किया है तो वह फ़सह का खाना खा सकता है। \v 45 लेकिन ग़ैरशहरी या मज़दूर को फ़सह का खाना खाने की इजाज़त नहीं है। \v 46 यह खाना एक ही घर के अंदर खाना है। न गोश्त घर से बाहर ले जाना, न लेले की किसी हड्डी को तोड़ना। \v 47 लाज़िम है कि इसराईल की पूरी जमात यह ईद मनाए। \v 48 अगर कोई परदेसी तुम्हारे साथ रहता है जो फ़सह की ईद में शिरकत करना चाहे तो लाज़िम है कि पहले उसके घराने के हर मर्द का ख़तना किया जाए। तब वह इसराईली की तरह खाने में शरीक हो सकता है। लेकिन जिसका ख़तना न हुआ उसे फ़सह का खाना खाने की इजाज़त नहीं है। \v 49 यही उसूल हर एक पर लागू होगा, ख़ाह वह इसराईली हो या परदेसी।” \p \v 50 तमाम इसराईलियों ने वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा और हारून से कहा था। \v 51 उसी दिन रब तमाम इसराईलियों को ख़ानदानों की तरतीब के मुताबिक़ मिसर से निकाल लाया। \c 13 \s1 यह ईद नजात की याद दिलाती है \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों के हर पहलौठे को मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करना है। हर पहला नर बच्चा मेरा ही है, ख़ाह इनसान का हो या हैवान का।” \v 3 फिर मूसा ने लोगों से कहा, “इस दिन को याद रखो जब तुम रब की अज़ीम क़ुदरत के बाइस मिसर की ग़ुलामी से निकले। इस दिन कोई चीज़ न खाना जिसमें ख़मीर हो। \v 4 आज ही अबीब के महीने \f + \fr 13:4 \ft मार्च ता अप्रैल। \f* में तुम मिसर से रवाना हो रहे हो। \v 5 रब ने तुम्हारे बापदादा से क़सम खाकर वादा किया है कि वह तुमको कनानी, हित्ती, अमोरी, हिव्वी और यबूसी क़ौमों का मुल्क देगा, एक ऐसा मुल्क जिसमें दूध और शहद की कसरत है। जब रब तुम्हें उस मुल्क में पहुँचा देगा तो लाज़िम है कि तुम इसी महीने में यह रस्म मनाओ। \v 6 सात दिन बेख़मीरी रोटी खाओ। सातवें दिन रब की ताज़ीम में ईद मनाओ। \v 7 सात दिन ख़मीरी रोटी न खाना। कहीं भी ख़मीर न पाया जाए। पूरे मुल्क में ख़मीर का नामो-निशान तक न हो। \p \v 8 उस दिन अपने बेटे से यह कहो, ‘मैं यह ईद उस काम की ख़ुशी में मनाता हूँ जो रब ने मेरे लिए किया जब मैं मिसर से निकला।’ \v 9 यह ईद तुम्हारे हाथ या पेशानी पर निशान की मानिंद हो जो तुम्हें याद दिलाए कि रब की शरीअत को तुम्हारे होंटों पर रहना है। क्योंकि रब तुम्हें अपनी अज़ीम क़ुदरत से मिसर से निकाल लाया। \v 10 इस दिन की याद हर साल ठीक वक़्त पर मनाना। \s1 पहलौठों की मख़सूसियत \p \v 11 रब तुम्हें कनानियों के उस मुल्क में ले जाएगा जिसका वादा उसने क़सम खाकर तुम और तुम्हारे बापदादा से किया है। \v 12 लाज़िम है कि वहाँ पहुँचकर तुम अपने तमाम पहलौठों को रब के लिए मख़सूस करो। तुम्हारे मवेशियों के तमाम पहलौठे भी रब की मिलकियत हैं। \v 13 अगर तुम अपना पहलौठा गधा ख़ुद रखना चाहो तो रब को उसके बदले भेड़ या बकरी का बच्चा पेश करो। लेकिन अगर तुम उसे रखना नहीं चाहते तो उस की गरदन तोड़ डालो। लेकिन इनसान के पहलौठों के लिए हर सूरत में एवज़ी देना है। \p \v 14 आनेवाले दिनों में जब तुम्हारा बेटा पूछे कि इसका क्या मतलब है तो उसे जवाब देना, ‘रब अपनी अज़ीम क़ुदरत से हमें मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया। \v 15 जब फ़िरौन ने अकड़कर हमें जाने न दिया तो रब ने मिसर के तमाम इनसानों और हैवानों के पहलौठों को मार डाला। इस वजह से मैं अपने जानवरों का हर पहला बच्चा रब को क़ुरबान करता और अपने हर पहलौठे के लिए एवज़ी देता हूँ’। \v 16 यह दस्तूर तुम्हारे हाथ और पेशानी पर निशान की मानिंद हो जो तुम्हें याद दिलाए कि रब हमें अपनी क़ुदरत से मिसर से निकाल लाया।” \s1 मिसर से निकलने का रास्ता \p \v 17 जब फ़िरौन ने इसराईली क़ौम को जाने दिया तो अल्लाह उन्हें फ़िलिस्तियों के इलाक़े में से गुज़रनेवाले रास्ते से लेकर न गया, अगरचे उस पर चलते हुए वह जल्द ही मुल्के-कनान पहुँच जाते। बल्कि रब ने कहा, “अगर उस रास्ते पर चलेंगे तो उन्हें दूसरों से लड़ना पड़ेगा। ऐसा न हो कि वह इस वजह से अपना इरादा बदलकर मिसर लौट जाएँ।” \v 18 इसलिए अल्लाह उन्हें दूसरे रास्ते से लेकर गया, और वह रेगिस्तान के रास्ते से बहरे-क़ुलज़ुम की तरफ़ बढ़े। मिसर से निकलते वक़्त मर्द मुसल्लह थे। \v 19 मूसा यूसुफ़ का ताबूत भी अपने साथ ले गया, क्योंकि यूसुफ़ ने इसराईलियों को क़सम दिलाकर कहा था, “अल्लाह यक़ीनन तुम्हारी देख-भाल करके वहाँ ले जाएगा। उस वक़्त मेरी हड्डियों को भी उठाकर साथ ले जाना।” \p \v 20 इसराईलियों ने सुक्कात को छोड़कर एताम में अपने ख़ैमे लगाए। एताम रेगिस्तान के किनारे पर था। \v 21 रब उनके आगे आगे चलता गया, दिन के वक़्त बादल के सतून में ताकि उन्हें रास्ते का पता लगे और रात के वक़्त आग के सतून में ताकि उन्हें रौशनी मिले। यों वह दिन और रात सफ़र कर सकते थे। \v 22 दिन के वक़्त बादल का सतून और रात के वक़्त आग का सतून उनके सामने रहा। वह कभी भी अपनी जगह से न हटा। \c 14 \s1 इसराईल समुंदर में से गुज़रता है \p \v 1 तब रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को कह देना कि वह पीछे मुड़कर मिजदाल और समुंदर के बीच यानी फ़ी-हख़ीरोत के नज़दीक रुक जाएँ। वह बाल-सफ़ोन के मुक़ाबिल साहिल पर अपने ख़ैमे लगाएँ। \v 3 यह देखकर फ़िरौन समझेगा कि इसराईली रास्ता भूलकर आवारा फिर रहे हैं और कि रेगिस्तान ने चारों तरफ़ उन्हें घेर रखा है। \v 4 फिर मैं फ़िरौन को दुबारा अड़ जाने दूँगा, और वह इसराईलियों का पीछा करेगा। लेकिन मैं फ़िरौन और उस की पूरी फ़ौज पर अपना जलाल ज़ाहिर करूँगा। मिसरी जान लेंगे कि मैं ही रब हूँ।” इसराईलियों ने ऐसा ही किया। \p \v 5 जब मिसर के बादशाह को इत्तला दी गई कि इसराईली हिजरत कर गए हैं तो उसने और उसके दरबारियों ने अपना ख़याल बदलकर कहा, “हमने क्या किया है? हमने उन्हें जाने दिया है, और अब हम उनकी ख़िदमत से महरूम हो गए हैं।” \v 6 चुनाँचे बादशाह ने अपना जंगी रथ तैयार करवाया और अपनी फ़ौज को लेकर निकला। \v 7 वह 600 बेहतरीन क़िस्म के रथ और मिसर के बाक़ी तमाम रथों को साथ ले गया। तमाम रथों पर अफ़सरान मुक़र्रर थे। \v 8 रब ने मिसर के बादशाह फ़िरौन को दुबारा अड़ जाने दिया था, इसलिए जब इसराईली बड़े इख़्तियार के साथ निकल रहे थे तो वह उनका ताक़्क़ुब करने लगा। \v 9 इसराईलियों का पीछा करते करते फ़िरौन के तमाम घोड़े, रथ, सवार और फ़ौजी उनके क़रीब पहुँचे। इसराईली बहरे-क़ुलज़ुम के साहिल पर बाल-सफ़ोन के मुक़ाबिल फ़ी-हख़ीरोत के नज़दीक ख़ैमे लगा चुके थे। \p \v 10 जब इसराईलियों ने फ़िरौन और उस की फ़ौज को अपनी तरफ़ बढ़ते देखा तो वह सख़्त घबरा गए और मदद के लिए रब के सामने चीख़ने-चिल्लाने लगे। \v 11 उन्होंने मूसा से कहा, “क्या मिसर में क़ब्रों की कमी थी कि आप हमें रेगिस्तान में ले आए हैं? हमें मिसर से निकालकर आपने हमारे साथ क्या किया है? \v 12 क्या हमने मिसर में आपसे दरख़ास्त नहीं की थी कि मेहरबानी करके हमें छोड़ दें, हमें मिसरियों की ख़िदमत करने दें? यहाँ आकर रेगिस्तान में मर जाने की निसबत बेहतर होता कि हम मिसरियों के ग़ुलाम रहते।” \p \v 13 लेकिन मूसा ने जवाब दिया, “मत घबराओ। आराम से खड़े रहो और देखो कि रब तुम्हें आज किस तरह बचाएगा। आज के बाद तुम इन मिसरियों को फिर कभी नहीं देखोगे। \v 14 रब तुम्हारे लिए लड़ेगा। तुम्हें बस, चुप रहना है।” \p \v 15 फिर रब ने मूसा से कहा, “तू मेरे सामने क्यों चीख़ रहा है? इसराईलियों को आगे बढ़ने का हुक्म दे। \v 16 अपनी लाठी को पकड़कर उसे समुंदर के ऊपर उठा तो वह दो हिस्सों में बट जाएगा। इसराईली ख़ुश्क ज़मीन पर समुंदर में से गुज़रेंगे। \v 17 मैं मिसरियों को अड़े रहने दूँगा ताकि वह इसराईलियों का पीछा करें। फिर मैं फ़िरौन, उस की सारी फ़ौज, उसके रथों और उसके सवारों पर अपना जलाल ज़ाहिर करूँगा। \v 18 जब मैं फ़िरौन, उसके रथों और उसके सवारों पर अपना जलाल ज़ाहिर करूँगा तो मिसरी जान लेंगे कि मैं ही रब हूँ।” \p \v 19 अल्लाह का फ़रिश्ता इसराईली लशकर के आगे आगे चल रहा था। अब वह वहाँ से हटकर उनके पीछे खड़ा हो गया। बादल का सतून भी लोगों के आगे से हटकर उनके पीछे जा खड़ा हुआ। \v 20 इस तरह बादल मिसरियों और इसराईलियों के लशकरों के दरमियान आ गया। पूरी रात मिसरियों की तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा था जबकि इसराईलियों की तरफ़ रौशनी थी। इसलिए मिसरी पूरी रात के दौरान इसराईलियों के क़रीब न आ सके। \p \v 21 मूसा ने अपना हाथ समुंदर के ऊपर उठाया तो रब ने मशरिक़ से तेज़ आँधी चलाई। आँधी तमाम रात चलती रही। उसने समुंदर को पीछे हटाकर उस की तह ख़ुश्क कर दी। समुंदर दो हिस्सों में बट गया \v 22 तो इसराईली समुंदर में से ख़ुश्क ज़मीन पर चलते हुए गुज़र गए। उनके दाईं और बाईं तरफ़ पानी दीवार की तरह खड़ा रहा। \p \v 23 जब मिसरियों को पता चला तो फ़िरौन के तमाम घोड़े, रथ और घुड़सवार भी उनके पीछे पीछे समुंदर में चले गए। \v 24 सुबह-सवेरे ही रब ने बादल और आग के सतून से मिसर की फ़ौज पर निगाह की और उसमें अबतरी पैदा कर दी। \v 25 उनके रथों के पहिये निकल गए तो उन पर क़ाबू पाना मुश्किल हो गया। मिसरियों ने कहा, “आओ, हम इसराईलियों से भाग जाएँ, क्योंकि रब उनके साथ है। वही मिसर का मुक़ाबला कर रहा है।” \p \v 26 तब रब ने मूसा से कहा, “अपना हाथ समुंदर के ऊपर उठा। फिर पानी वापस आकर मिसरियों, उनके रथों और घुड़सवारों को डुबो देगा।” \v 27 मूसा ने अपना हाथ समुंदर के ऊपर उठाया तो दिन निकलते वक़्त पानी मामूल के मुताबिक़ बहने लगा, और जिस तरफ़ मिसरी भाग रहे थे वहाँ पानी ही पानी था। यों रब ने उन्हें समुंदर में बहाकर ग़रक़ कर दिया। \v 28 पानी वापस आ गया। उसने रथों और घुड़सवारों को ढाँक लिया। फ़िरौन की पूरी फ़ौज जो इसराईलियों का ताक़्क़ुब कर रही थी डूबकर तबाह हो गई। उनमें से एक भी न बचा। \v 29 लेकिन इसराईली ख़ुश्क ज़मीन पर समुंदर में से गुज़रे। उनके दाईं और बाईं तरफ़ पानी दीवार की तरह खड़ा रहा। \p \v 30 उस दिन रब ने इसराईलियों को मिसरियों से बचाया। मिसरियों की लाशें उन्हें साहिल पर नज़र आईं। \v 31 जब इसराईलियों ने रब की यह अज़ीम क़ुदरत देखी जो उसने मिसरियों पर ज़ाहिर की थी तो रब का ख़ौफ़ उन पर छा गया। वह उस पर और उसके ख़ादिम मूसा पर एतमाद करने लगे। \c 15 \s1 मूसा का गीत \p \v 1 तब मूसा और इसराईलियों ने रब के लिए यह गीत गाया, \p “मैं रब की तमजीद में गीत गाऊँगा, क्योंकि वह निहायत अज़ीम है। घोड़े और उसके सवार को उसने समुंदर में पटख़ दिया है। \b \p \v 2 रब मेरी क़ुव्वत और मेरा गीत है, वह मेरी नजात बन गया है। वही मेरा ख़ुदा है, और मैं उस की तारीफ़ करूँगा। वही मेरे बाप का ख़ुदा है, और मैं उस की ताज़ीम करूँगा। \p \v 3 रब सूरमा है, रब उसका नाम है। \p \v 4 फ़िरौन के रथों और फ़ौज को उसने समुंदर में पटख़ दिया तो बादशाह के बेहतरीन अफ़सरान बहरे-क़ुलज़ुम में डूब गए। \p \v 5 गहरे पानी ने उन्हें ढाँक लिया, और वह पत्थर की तरह समुंदर की तह तक उतर गए। \b \p \v 6 ऐ रब, तेरे दहने हाथ का जलाल बड़ी क़ुदरत से ज़ाहिर होता है। ऐ रब, तेरा दहना हाथ दुश्मन को चकनाचूर कर देता है। \p \v 7 जो तेरे ख़िलाफ़ उठ खड़े होते हैं उन्हें तू अपनी अज़मत का इज़हार करके ज़मीन पर पटख़ देता है। तेरा ग़ज़ब उन पर आन पड़ता है तो वह आग में भूसे की तरह जल जाते हैं। \p \v 8 तूने ग़ुस्से में आकर फूँक मारी तो पानी ढेर की सूरत में जमा हो गया। बहता पानी ठोस दीवार बन गया, समुंदर गहराई तक जम गया। \p \v 9 दुश्मन ने डींग मारकर कहा, ‘मैं उनका पीछा करके उन्हें पकड़ लूँगा, मैं उनका लूटा हुआ माल तक़सीम करूँगा। मेरी लालची जान उनसे सेर हो जाएगी, मैं अपनी तलवार खींचकर उन्हें हलाक करूँगा।’ \p \v 10 लेकिन तूने उन पर फूँक मारी तो समुंदर ने उन्हें ढाँक लिया, और वह सीसे की तरह ज़ोरदार मौजों में डूब गए। \b \p \v 11 ऐ रब, कौन-सा माबूद तेरी मानिंद है? कौन तेरी तरह जलाली और क़ुद्दूस है? कौन तेरी तरह हैरतअंगेज़ काम करता और अज़ीम मोजिज़े दिखाता है? कोई भी नहीं। \p \v 12 तूने अपना दहना हाथ उठाया तो ज़मीन हमारे दुश्मनों को निगल गई। \p \v 13 अपनी शफ़क़त से तूने एवज़ाना देकर अपनी क़ौम को छुटकारा दिया और उस की राहनुमाई की है, अपनी क़ुदरत से तूने उसे अपनी मुक़द्दस सुकूनतगाह तक पहुँचाया है। \p \v 14 यह सुनकर दीगर क़ौमें काँप उठीं, फ़िलिस्ती डर के मारे पेचो-ताब खाने लगे। \p \v 15 अदोम के रईस सहम गए, मोआब के राहनुमाओं पर कपकपी तारी हो गई, और कनान के तमाम बाशिंदे हिम्मत हार गए। \p \v 16 दहशत और ख़ौफ़ उन पर छा गया। तेरी अज़ीम क़ुदरत के बाइस वह पत्थर की तरह जम गए। ऐ रब, वह न हिले जब तक तेरी क़ौम गुज़र न गई। वह बेहिसो-हरकत रहे जब तक तेरी ख़रीदी हुई क़ौम गुज़र न गई। \p \v 17 ऐ रब, तू अपने लोगों को लेकर पौदों की तरह अपने मौरूसी पहाड़ पर लगाएगा, उस जगह पर जो तूने अपनी सुकूनत के लिए चुन ली है, जहाँ तूने अपने हाथों से अपना मक़दिस तैयार किया है। \p \v 18 रब अबद तक बादशाह है!” \b \p \v 19 जब फ़िरौन के घोड़े, रथ और घुड़सवार समुंदर में चले गए तो रब ने उन्हें समुंदर के पानी से ढाँक लिया। लेकिन इसराईली ख़ुश्क ज़मीन पर समुंदर में से गुज़र गए। \v 20 तब हारून की बहन मरियम जो नबिया थी ने दफ़ लिया, और बाक़ी तमाम औरतें भी दफ़ लेकर उसके पीछे हो लीं। सब गाने और नाचने लगीं। मरियम ने यह गाकर उनकी राहनुमाई की, \p \v 21 “रब की तमजीद में गीत गाओ, क्योंकि वह निहायत अज़ीम है। घोड़े और उसके सवार को उसने समुंदर में पटख़ दिया है।” \s1 मारा और एलीम के चश्मे \p \v 22 मूसा के कहने पर इसराईली बहरे-क़ुलज़ुम से रवाना होकर दश्ते-शूर में चले गए। वहाँ वह तीन दिन तक सफ़र करते रहे। इस दौरान उन्हें पानी न मिला। \v 23 आख़िरकार वह मारा पहुँचे जहाँ पानी दस्तयाब था। लेकिन वह कड़वा था, इसलिए मक़ाम का नाम मारा यानी कड़वाहट पड़ गया। \v 24 यह देखकर लोग मूसा के ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाकर कहने लगे, “हम क्या पिएँ?” \v 25 मूसा ने मदद के लिए रब से इल्तिजा की तो उसने उसे लकड़ी का एक टुकड़ा दिखाया। जब मूसा ने यह लकड़ी पानी में डाली तो पानी की कड़वाहट ख़त्म हो गई। \p मारा में रब ने अपनी क़ौम को क़वानीन दिए। वहाँ उसने उन्हें आज़माया भी। \v 26 उसने कहा, “ग़ौर से रब अपने ख़ुदा की आवाज़ सुनो! जो कुछ उस की नज़र में दुरुस्त है वही करो। उसके अहकाम पर ध्यान दो और उस की तमाम हिदायात पर अमल करो। फिर मैं तुम पर वह बीमारियाँ नहीं लाऊँगा जो मिसरियों पर लाया था, क्योंकि मैं रब हूँ जो तुझे शफ़ा देता हूँ।” \v 27 फिर इसराईली रवाना होकर एलीम पहुँचे जहाँ 12 चश्मे और खजूर के 70 दरख़्त थे। वहाँ उन्होंने पानी के क़रीब अपने ख़ैमे लगाए। \c 16 \s1 मन और बटेरें \p \v 1 इसके बाद इसराईल की पूरी जमात एलीम से सफ़र करके सीन के रेगिस्तान में पहुँची जो एलीम और सीना के दरमियान है। वह मिसर से निकलने के बाद दूसरे महीने के 15वें दिन पहुँचे। \v 2 रेगिस्तान में तमाम लोग फिर मूसा और हारून के ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाने लगे। \v 3 उन्होंने कहा, “काश रब हमें मिसर में ही मार डालता! वहाँ हम कम अज़ कम जी भरकर गोश्त और रोटी तो खा सकते थे। आप हमें सिर्फ़ इसलिए रेगिस्तान में ले आए हैं कि हम सब भूके मर जाएँ।” \p \v 4 तब रब ने मूसा से कहा, “मैं आसमान से तुम्हारे लिए रोटी बरसाऊँगा। हर रोज़ लोग बाहर जाकर उसी दिन की ज़रूरत के मुताबिक़ खाना जमा करें। इससे मैं उन्हें आज़माकर देखूँगा कि आया वह मेरी सुनते हैं कि नहीं। \v 5 हर रोज़ वह सिर्फ़ उतना खाना जमा करें जितना कि एक दिन के लिए काफ़ी हो। लेकिन छटे दिन जब वह खाना तैयार करेंगे तो वह अगले दिन के लिए भी काफ़ी होगा।” \p \v 6 मूसा और हारून ने इसराईलियों से कहा, “आज शाम को तुम जान लोगे कि रब ही तुम्हें मिसर से निकाल लाया है। \v 7 और कल सुबह तुम रब का जलाल देखोगे। उसने तुम्हारी शिकायतें सुन ली हैं, क्योंकि असल में तुम हमारे ख़िलाफ़ नहीं बल्कि रब के ख़िलाफ़ बुड़बुड़ा रहे हो। \v 8 फिर भी रब तुमको शाम के वक़्त गोश्त और सुबह के वक़्त वाफ़िर रोटी देगा, क्योंकि उसने तुम्हारी शिकायतें सुन ली हैं। तुम्हारी शिकायतें हमारे ख़िलाफ़ नहीं बल्कि रब के ख़िलाफ़ हैं।” \p \v 9 मूसा ने हारून से कहा, “इसराईलियों को बताना, ‘रब के सामने हाज़िर हो जाओ, क्योंकि उसने तुम्हारी शिकायतें सुन ली हैं’।” \v 10 जब हारून पूरी जमात के सामने बात करने लगा तो लोगों ने पलटकर रेगिस्तान की तरफ़ देखा। वहाँ रब का जलाल बादल में ज़ाहिर हुआ। \v 11 रब ने मूसा से कहा, \v 12 “मैंने इसराईलियों की शिकायत सुन ली है। उन्हें बता, ‘आज जब सूरज ग़ुरूब होने लगेगा तो तुम गोश्त खाओगे और कल सुबह पेट भरकर रोटी। फिर तुम जान लोगे कि मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ’।” \p \v 13 उसी शाम बटेरों के ग़ोल आए जो पूरी ख़ैमागाह पर छा गए। और अगली सुबह ख़ैमे के चारों तरफ़ ओस पड़ी थी। \v 14 जब ओस सूख गई तो बर्फ़ के गालों जैसे पतले दाने पाले की तरह ज़मीन पर पड़े थे। \v 15 जब इसराईलियों ने उसे देखा तो एक दूसरे से पूछने लगे, “मन हू?” यानी “यह क्या है?” क्योंकि वह नहीं जानते थे कि यह क्या चीज़ है। मूसा ने उनको समझाया, “यह वह रोटी है जो रब ने तुम्हें खाने के लिए दी है। \v 16 रब का हुक्म है कि हर एक उतना जमा करे जितना उसके ख़ानदान को ज़रूरत हो। अपने ख़ानदान के हर फ़रद के लिए दो लिटर जमा करो।” \p \v 17 इसराईलियों ने ऐसा ही किया। बाज़ ने ज़्यादा और बाज़ ने कम जमा किया। \v 18 लेकिन जब उसे नापा गया तो हर एक आदमी के लिए काफ़ी था। जिसने ज़्यादा जमा किया था उसके पास कुछ न बचा। लेकिन जिसने कम जमा किया था उसके पास भी काफ़ी था। \v 19 मूसा ने हुक्म दिया, “अगले दिन के लिए खाना न बचाना।” \p \v 20 लेकिन लोगों ने मूसा की बात न मानी बल्कि बाज़ ने खाना बचा लिया। लेकिन अगली सुबह मालूम हुआ कि बचे हुए खाने में कीड़े पड़ गए हैं और उससे बहुत बदबू आ रही है। यह सुनकर मूसा उनसे नाराज़ हुआ। \p \v 21 हर सुबह हर कोई उतना जमा कर लेता जितनी उसे ज़रूरत होती थी। जब धूप तेज़ होती तो जो कुछ ज़मीन पर रह जाता वह पिघलकर ख़त्म हो जाता था। \p \v 22 छटे दिन जब लोग यह ख़ुराक जमा करते तो वह मिक़दार में दुगनी होती थी यानी हर फ़रद के लिए चार लिटर। जब जमात के बुज़ुर्गों ने मूसा के पास आकर उसे इत्तला दी \v 23 तो उसने उनसे कहा, “रब का फ़रमान है कि कल आराम का दिन है, मुक़द्दस सबत का दिन जो अल्लाह की ताज़ीम में मनाना है। आज तुम जो तनूर में पकाना चाहते हो पका लो और जो उबालना चाहते हो उबाल लो। जो बच जाए उसे कल के लिए महफ़ूज़ रखो।” \p \v 24 लोगों ने मूसा के हुक्म के मुताबिक़ अगले दिन के लिए खाना महफ़ूज़ कर लिया तो न खाने से बदबू आई, न उसमें कीड़े पड़े। \v 25 मूसा ने कहा, “आज यही बचा हुआ खाना खाओ, क्योंकि आज सबत का दिन है, रब की ताज़ीम में आराम का दिन। आज तुम्हें रेगिस्तान में कुछ नहीं मिलेगा। \v 26 छः दिन के दौरान यह ख़ुराक जमा करना है, लेकिन सातवाँ दिन आराम का दिन है। उस दिन ज़मीन पर खाने के लिए कुछ नहीं होगा।” \p \v 27 तो भी कुछ लोग हफ़ते को खाना जमा करने के लिए निकले, लेकिन उन्हें कुछ न मिला। \v 28 तब रब ने मूसा से कहा, “तुम लोग कब तक मेरे अहकाम और हिदायात पर अमल करने से इनकार करोगे? \v 29 देखो, रब ने तुम्हारे लिए मुक़र्रर किया है कि सबत का दिन आराम का दिन है। इसलिए वह तुम्हें जुमे को दो दिन के लिए ख़ुराक देता है। हफ़ते को सबको अपने ख़ैमों में रहना है। कोई भी अपने घर से बाहर न निकले।” \p \v 30 चुनाँचे लोग सबत के दिन आराम करते थे। \p \v 31 इसराईलियों ने इस ख़ुराक का नाम ‘मन’ रखा। उसके दाने धनिये की मानिंद सफ़ेद थे, और उसका ज़ायक़ा शहद से बने केक की मानिंद था। \p \v 32 मूसा ने कहा, “रब फ़रमाता है, ‘दो लिटर मन एक मरतबान में रखकर उसे आनेवाली नसलों के लिए महफ़ूज़ रखना। फिर वह देख सकेंगे कि मैं तुम्हें क्या खाना खिलाता रहा जब तुम्हें मिसर से निकाल लाया’।” \v 33 मूसा ने हारून से कहा, “एक मरतबान लो और उसे दो लिटर मन से भरकर रब के सामने रखो ताकि वह आनेवाली नसलों के लिए महफ़ूज़ रहे।” \v 34 हारून ने ऐसा ही किया। उसने मन के इस मरतबान को अहद के संदूक़ के सामने रखा ताकि वह महफ़ूज़ रहे। \p \v 35 इसराईलियों को 40 साल तक मन मिलता रहा। वह उस वक़्त तक मन खाते रहे जब तक रेगिस्तान से निकलकर कनान की सरहद पर न पहुँचे। \v 36 (जो पैमाना इसराईली मन के लिए इस्तेमाल करते थे वह दो लिटर का एक बरतन था जिसका नाम ओमर था।) \c 17 \s1 चट्टान से पानी \p \v 1 फिर इसराईल की पूरी जमात सीन के रेगिस्तान से निकली। रब जिस तरह हुक्म देता रहा वह एक जगह से दूसरी जगह सफ़र करते रहे। रफ़ीदीम में उन्होंने ख़ैमे लगाए। वहाँ पीने के लिए पानी न मिला। \v 2 इसलिए वह मूसा के साथ यह कहकर झगड़ने लगे, “हमें पीने के लिए पानी दो।” मूसा ने जवाब दिया, “तुम मुझसे क्यों झगड़ रहे हो? रब को क्यों आज़मा रहे हो?” \v 3 लेकिन लोग बहुत प्यासे थे। वह मूसा के ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाने से बाज़ न आए बल्कि कहा, “आप हमें मिसर से क्यों लाए हैं? क्या इसलिए कि हम अपने बच्चों और रेवड़ों समेत प्यासे मर जाएँ?” \p \v 4 तब मूसा ने रब के हुज़ूर फ़रियाद की, “मैं इन लोगों के साथ क्या करूँ? हालात ज़रा भी और बिगड़ जाएँ तो वह मुझे संगसार कर देंगे।” \v 5 रब ने मूसा से कहा, “कुछ बुज़ुर्ग साथ लेकर लोगों के आगे आगे चल। वह लाठी भी साथ ले जा जिससे तूने दरियाए-नील को मारा था। \v 6 मैं होरिब यानी सीना पहाड़ की एक चट्टान पर तेरे सामने खड़ा हूँगा। लाठी से चट्टान को मारना तो उससे पानी निकलेगा और लोग पी सकेंगे।” \p मूसा ने इसराईल के बुज़ुर्गों के सामने ऐसा ही किया। \v 7 उसने उस जगह का नाम मस्सा और मरीबा यानी ‘आज़माना और झगड़ना’ रखा, क्योंकि वहाँ इसराईली बुड़बुड़ाए और यह पूछकर रब को आज़माया कि क्या रब हमारे दरमियान है कि नहीं? \s1 अमालीक़ियों की शिकस्त \p \v 8 रफ़ीदीम वह जगह भी थी जहाँ अमालीक़ी इसराईलियों से लड़ने आए। \v 9 मूसा ने यशुअ से कहा, “लड़ने के क़ाबिल आदमियों को चुन लो और निकलकर अमालीक़ियों का मुक़ाबला करो। कल मैं अल्लाह की लाठी पकड़े हुए पहाड़ की चोटी पर खड़ा हो जाऊँगा।” \p \v 10 यशुअ मूसा की हिदायत के मुताबिक़ अमालीक़ियों से लड़ने गया जबकि मूसा, हारून और हूर पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए। \v 11 और यों हुआ कि जब मूसा के हाथ उठाए हुए थे तो इसराईली जीतते रहे, और जब वह नीचे थे तो अमालीक़ी जीतते रहे। \v 12 कुछ देर के बाद मूसा के बाज़ू थक गए। इसलिए हारून और हूर एक चट्टान ले आए ताकि वह उस पर बैठ जाए। फिर उन्होंने उसके दाईं और बाईं तरफ़ खड़े होकर उसके बाज़ुओं को ऊपर उठाए रखा। सूरज के ग़ुरूब होने तक उन्होंने यों मूसा की मदद की। \v 13 इस तरह यशुअ ने अमालीक़ियों से लड़ते लड़ते उन्हें शिकस्त दी। \p \v 14 तब रब ने मूसा से कहा, “यह वाक़िया यादगारी के लिए किताब में लिख ले। लाज़िम है कि यह सब कुछ यशुअ की याद में रहे, क्योंकि मैं दुनिया से अमालीक़ियों का नामो-निशान मिटा दूँगा।” \v 15 उस वक़्त मूसा ने क़ुरबानगाह बनाकर उसका नाम ‘रब मेरा झंडा है’ रखा। \v 16 उसने कहा, “रब के तख़्त के ख़िलाफ़ हाथ उठाया गया है, इसलिए रब की अमालीक़ियों से हमेशा तक जंग रहेगी।” \c 18 \s1 यितरो से मुलाक़ात \p \v 1 मूसा का सुसर यितरो अब तक मिदियान में इमाम था। जब उसने सब कुछ सुना जो अल्लाह ने मूसा और अपनी क़ौम के लिए किया है, कि वह उन्हें मिसर से निकाल लाया है \v 2 तो वह मूसा के पास आया। वह उस की बीवी सफ़्फ़ूरा को अपने साथ लाया, क्योंकि मूसा ने उसे अपने बेटों समेत मैके भेज दिया था। \v 3 यितरो मूसा के दोनों बेटों को भी साथ लाया। पहले बेटे का नाम जैरसोम यानी ‘अजनबी मुल्क में परदेसी’ था, क्योंकि जब वह पैदा हुआ तो मूसा ने कहा था, “मैं अजनबी मुल्क में परदेसी हूँ।” \v 4 दूसरे बेटे का नाम इलियज़र यानी ‘मेरा ख़ुदा मददगार है’ था, क्योंकि जब वह पैदा हुआ तो मूसा ने कहा था, “मेरे बाप के ख़ुदा ने मेरी मदद करके मुझे फ़िरौन की तलवार से बचाया है।” \p \v 5 यितरो मूसा की बीवी और बेटे साथ लेकर उस वक़्त मूसा के पास पहुँचा जब उसने रेगिस्तान में अल्लाह के पहाड़ यानी सीना के क़रीब ख़ैमा लगाया हुआ था। \v 6 उसने मूसा को पैग़ाम भेजा था, “मैं, आपका सुसर यितरो आपकी बीवी और दो बेटों को साथ लेकर आपके पास आ रहा हूँ।” \p \v 7 मूसा अपने सुसर के इस्तक़बाल के लिए बाहर निकला, उसके सामने झुका और उसे बोसा दिया। दोनों ने एक दूसरे का हाल पूछा, फिर ख़ैमे में चले गए। \v 8 मूसा ने यितरो को तफ़सील से बताया कि रब ने इसराईलियों की ख़ातिर फ़िरौन और मिसरियों के साथ क्या कुछ किया है। उसने रास्ते में पेश आई तमाम मुश्किलात का ज़िक्र भी किया कि रब ने हमें किस तरह उनसे बचाया है। \p \v 9 यितरो उन सारे अच्छे कामों के बारे में सुनकर ख़ुश हुआ जो रब ने इसराईलियों के लिए किए थे जब उसने उन्हें मिसरियों के हाथ से बचाया था। \v 10 उसने कहा, “रब की तमजीद हो जिसने आपको मिसरियों और फ़िरौन के क़ब्ज़े से नजात दिलाई है। उसी ने क़ौम को ग़ुलामी से छुड़ाया है! \v 11 अब मैंने जान लिया है कि रब तमाम माबूदों से अज़ीम है, क्योंकि उसने यह सब कुछ उन लोगों के साथ किया जिन्होंने अपने ग़ुरूर में इसराईलियों के साथ बुरा सुलूक किया था।” \v 12 फिर यितरो ने अल्लाह को भस्म होनेवाली क़ुरबानी और दीगर कई क़ुरबानियाँ पेश कीं। तब हारून और तमाम बुज़ुर्ग मूसा के सुसर यितरो के साथ अल्लाह के हुज़ूर खाना खाने बैठे। \s1 70 बुज़ुर्गों को मुक़र्रर किया जाता है \p \v 13 अगले दिन मूसा लोगों का इनसाफ़ करने के लिए बैठ गया। उनकी तादाद इतनी ज़्यादा थी कि वह सुबह से लेकर शाम तक मूसा के सामने खड़े रहे। \v 14 जब यितरो ने यह सब कुछ देखा तो उसने पूछा, “यह क्या है जो आप लोगों के साथ कर रहे हैं? सारा दिन वह आपको घेरे रहते और आप उनकी अदालत करते रहते हैं। आप यह सब कुछ अकेले ही क्यों कर रहे हैं?” \p \v 15 मूसा ने जवाब दिया, “लोग मेरे पास आकर अल्लाह की मरज़ी मालूम करते हैं। \v 16 जब कभी कोई तनाज़ा या झगड़ा होता है तो दोनों पार्टियाँ मेरे पास आती हैं। मैं फ़ैसला करके उन्हें अल्लाह के अहकाम और हिदायात बताता हूँ।” \p \v 17 मूसा के सुसर ने उससे कहा, “आपका तरीक़ा अच्छा नहीं है। \v 18 काम इतना वसी है कि आप उसे अकेले नहीं सँभाल सकते। इससे आप और वह लोग जो आपके पास आते हैं बुरी तरह थक जाते हैं। \v 19 मेरी बात सुनें! मैं आपको एक मशवरा देता हूँ। अल्लाह उसमें आपकी मदद करे। लाज़िम है कि आप अल्लाह के सामने क़ौम के नुमाइंदे रहें और उनके मामलात उसके सामने पेश करें। \v 20 यह भी ज़रूरी है कि आप उन्हें अल्लाह के अहकाम और हिदायात सिखाएँ, कि वह किस तरह ज़िंदगी गुज़ारें और क्या क्या करें। \v 21 लेकिन साथ साथ क़ौम में से क़ाबिले-एतमाद आदमी चुनें। वह ऐसे लोग हों जो अल्लाह का ख़ौफ़ मानते हों, रास्तदिल हों और रिश्वत से नफ़रत करते हों। उन्हें हज़ार हज़ार, सौ सौ, पचास पचास और दस दस आदमियों पर मुक़र्रर करें। \v 22 उन आदमियों की ज़िम्मादारी यह होगी कि वह हर वक़्त लोगों का इनसाफ़ करें। अगर कोई बहुत ही पेचीदा मामला हो तो वह फ़ैसले के लिए आपके पास आएँ, लेकिन दीगर मामलों का फ़ैसला वह ख़ुद करें। यों वह काम में आपका हाथ बटाएँगे और आपका बोझ हलका हो जाएगा। \p \v 23 अगर मेरा यह मशवरा अल्लाह की मरज़ी के मुताबिक़ हो और आप ऐसा करें तो आप अपनी ज़िम्मादारी निभा सकेंगे और यह तमाम लोग इनसाफ़ के मिलने पर सलामती के साथ अपने अपने घर जा सकेंगे।” \p \v 24 मूसा ने अपने सुसर का मशवरा मान लिया और ऐसा ही किया। \v 25 उसने इसराईलियों में से क़ाबिले-एतमाद आदमी चुने और उन्हें हज़ार हज़ार, सौ सौ, पचास पचास और दस दस आदमियों पर मुक़र्रर किया। \v 26 यह मर्द क़ाज़ी बनकर मुस्तक़िल तौर पर लोगों का इनसाफ़ करने लगे। आसान मसलों का फ़ैसला वह ख़ुद करते और मुश्किल मामलों को मूसा के पास ले आते थे। \p \v 27 कुछ अरसे बाद मूसा ने अपने सुसर को रुख़सत किया तो यितरो अपने वतन वापस चला गया। \c 19 \s1 कोहे-सीना \p \v 1 इसराईलियों को मिसर से सफ़र करते हुए दो महीने हो गए थे। तीसरे महीने के पहले ही दिन वह सीना के रेगिस्तान में पहुँचे। \v 2 उस दिन वह रफ़ीदीम को छोड़कर दश्ते-सीना में आ पहुँचे। वहाँ उन्होंने रेगिस्तान में पहाड़ के क़रीब डेरे डाले। \p \v 3 तब मूसा पहाड़ पर चढ़कर अल्लाह के पास गया। अल्लाह ने पहाड़ पर से मूसा को पुकारकर कहा, “याक़ूब के घराने बनी इसराईल को बता, \v 4 ‘तुमने देखा है कि मैंने मिसरियों के साथ क्या कुछ किया, और कि मैं तुमको उक़ाब के परों पर उठाकर यहाँ अपने पास लाया हूँ। \v 5 चुनाँचे अगर तुम मेरी सुनो और मेरे अहद के मुताबिक़ चलो तो फिर तमाम क़ौमों में से मेरी ख़ास मिलकियत होगे। गो पूरी दुनिया मेरी ही है, \v 6 लेकिन तुम मेरे लिए मख़सूस इमामों की बादशाही और मुक़द्दस क़ौम होगे।’ अब जाकर यह सारी बातें इसराईलियों को बता।” \p \v 7 मूसा ने पहाड़ से उतरकर और क़ौम के बुज़ुर्गों को बुलाकर उन्हें वह तमाम बातें बताईं जो कहने के लिए रब ने उसे हुक्म दिया था। \v 8 जवाब में पूरी क़ौम ने मिलकर कहा, “हम रब की हर बात पूरी करेंगे जो उसने फ़रमाई है।” मूसा ने पहाड़ पर लौटकर रब को क़ौम का जवाब बताया। \v 9 जब वह पहुँचा तो रब ने मूसा से कहा, “मैं घने बादल में तेरे पास आऊँगा ताकि लोग मुझे तुझसे हमकलाम होते हुए सुनें। फिर वह हमेशा तुझ पर भरोसा रखेंगे।” तब मूसा ने रब को वह तमाम बातें बताईं जो लोगों ने की थीं। \p \v 10 रब ने मूसा से कहा, “अब लोगों के पास लौटकर आज और कल उन्हें मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस कर। वह अपने लिबास धोकर \v 11 तीसरे दिन के लिए तैयार हो जाएँ, क्योंकि उस दिन रब लोगों के देखते देखते कोहे-सीना पर उतरेगा। \v 12 लोगों की हिफ़ाज़त के लिए चारों तरफ़ पहाड़ की हद्दें मुक़र्रर कर। उन्हें ख़बरदार कर कि हुदूद को पार न करो। न पहाड़ पर चढ़ो, न उसके दामन को छुओ। जो भी उसे छुए वह ज़रूर मारा जाए। \v 13 और उसे हाथ से छूकर नहीं मारना है बल्कि पत्थरों या तीरों से। ख़ाह इनसान हो या हैवान, वह ज़िंदा नहीं रह सकता। जब तक नरसिंगा देर तक फूँका न जाए उस वक़्त तक लोगों को पहाड़ पर चढ़ने की इजाज़त नहीं है।” \p \v 14 मूसा ने पहाड़ से उतरकर लोगों को अल्लाह के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस किया। उन्होंने अपने लिबास भी धोए। \v 15 उसने उनसे कहा, “तीसरे दिन के लिए तैयार हो जाओ। मर्द औरतों से हमबिसतर न हों।” \p \v 16 तीसरे दिन सुबह पहाड़ पर घना बादल छा गया। बिजली चमकने लगी, बादल गरजने लगा और नरसिंगे की निहायत ज़ोरदार आवाज़ सुनाई दी। ख़ैमागाह में लोग लरज़ उठे। \v 17 तब मूसा लोगों को अल्लाह से मिलने के लिए ख़ैमागाह से बाहर पहाड़ की तरफ़ ले गया, और वह पहाड़ के दामन में खड़े हुए। \v 18 सीना पहाड़ धुएँ से ढका हुआ था, क्योंकि रब आग में उस पर उतर आया। पहाड़ से धुआँ इस तरह उठ रहा था जैसे किसी भट्टे से उठता है। पूरा पहाड़ शिद्दत से लरज़ने लगा। \v 19 नरसिंगे की आवाज़ तेज़ से तेज़तर होती गई। मूसा बोलने लगा और अल्लाह उसे ऊँची आवाज़ में जवाब देता रहा। \p \v 20 रब सीना पहाड़ की चोटी पर उतरा और मूसा को ऊपर आने के लिए कहा। मूसा ऊपर चढ़ा। \v 21 रब ने मूसा से कहा, “फ़ौरन नीचे उतरकर लोगों को ख़बरदार कर कि वह मुझे देखने के लिए पहाड़ की हुदूद में ज़बरदस्ती दाख़िल न हों। अगर वह ऐसा करें तो बहुत-से हलाक हो जाएंगे। \v 22 इमाम भी जो रब के हुज़ूर आते हैं अपने आपको मख़सूसो-मुक़द्दस करें, वरना मेरा ग़ज़ब उन पर टूट पड़ेगा।” \p \v 23 लेकिन मूसा ने रब से कहा, “लोग पहाड़ पर नहीं आ सकते, क्योंकि तूने ख़ुद ही हमें ख़बरदार किया कि हम पहाड़ की हद्दें मुक़र्रर करके उसे मख़सूसो-मुक़द्दस करें।” \p \v 24 रब ने जवाब दिया, “तो भी उतर जा और हारून को साथ लेकर वापस आ। लेकिन इमामों और लोगों को मत आने दे। अगर वह ज़बरदस्ती मेरे पास आएँ तो मेरा ग़ज़ब उन पर टूट पड़ेगा।” \p \v 25 मूसा ने लोगों के पास उतरकर उन्हें यह बातें बता दीं। \c 20 \s1 दस अहकाम \p \v 1 तब अल्लाह ने यह तमाम बातें फ़रमाईं, \v 2 “मैं रब तेरा ख़ुदा हूँ जो तुझे मुल्के-मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया। \v 3 मेरे सिवा किसी और माबूद की परस्तिश न करना। \v 4 अपने लिए बुत न बनाना। किसी भी चीज़ की मूरत न बनाना, चाहे वह आसमान में, ज़मीन पर या समुंदर में हो। \v 5 न बुतों की परस्तिश, न उनकी ख़िदमत करना, क्योंकि मैं तेरा रब ग़यूर ख़ुदा हूँ। जो मुझसे नफ़रत करते हैं उन्हें मैं तीसरी और चौथी पुश्त तक सज़ा दूँगा। \v 6 लेकिन जो मुझसे मुहब्बत रखते और मेरे अहकाम पूरे करते हैं उन पर मैं हज़ार पुश्तों तक मेहरबानी करूँगा। \p \v 7 रब अपने ख़ुदा का नाम बेमक़सद या ग़लत मक़सद के लिए इस्तेमाल न करना। जो भी ऐसा करता है उसे रब सज़ा दिए बग़ैर नहीं छोड़ेगा। \p \v 8 सबत के दिन का ख़याल रखना। उसे इस तरह मनाना कि वह मख़सूसो-मुक़द्दस हो। \v 9 हफ़ते के पहले छः दिन अपना काम-काज कर, \v 10 लेकिन सातवाँ दिन रब तेरे ख़ुदा का आराम का दिन है। उस दिन किसी तरह का काम न करना। न तू, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा नौकर, न तेरी नौकरानी और न तेरे मवेशी। जो परदेसी तेरे दरमियान रहता है वह भी काम न करे। \v 11 क्योंकि रब ने पहले छः दिन में आसमानो-ज़मीन, समुंदर और जो कुछ उनमें है बनाया लेकिन सातवें दिन आराम किया। इसलिए रब ने सबत के दिन को बरकत देकर मुक़र्रर किया कि वह मख़सूस और मुक़द्दस हो। \p \v 12 अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना। फिर तू उस मुल्क में जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देनेवाला है देर तक जीता रहेगा। \p \v 13 क़त्ल न करना। \p \v 14 ज़िना न करना। \p \v 15 चोरी न करना। \p \v 16 अपने पड़ोसी के बारे में झूटी गवाही न देना। \p \v 17 अपने पड़ोसी के घर का लालच न करना। न उस की बीवी का, न उसके नौकर का, न उस की नौकरानी का, न उसके बैल और न उसके गधे का बल्कि उस की किसी भी चीज़ का लालच न करना।” \s1 लोग घबरा जाते हैं \p \v 18 जब बाक़ी तमाम लोगों ने बादल की गरज और नरसिंगे की आवाज़ सुनी और बिजली की चमक और पहाड़ से उठते हुए धुएँ को देखा तो वह ख़ौफ़ के मारे काँपने लगे और पहाड़ से दूर खड़े हो गए। \v 19 उन्होंने मूसा से कहा, “आप ही हमसे बात करें तो हम सुनेंगे। लेकिन अल्लाह को हमसे बात न करने दें वरना हम मर जाएंगे।” \p \v 20 लेकिन मूसा ने उनसे कहा, “मत डरो, क्योंकि रब तुम्हें जाँचने के लिए आया है, ताकि उसका ख़ौफ़ तुम्हारी आँखों के सामने रहे और तुम गुनाह न करो।” \v 21 लोग दूर ही रहे जबकि मूसा उस गहरी तारीकी के क़रीब गया जहाँ अल्लाह था। \p \v 22 तब रब ने मूसा से कहा, “इसराईलियों को बता, ‘तुमने ख़ुद देखा कि मैंने आसमान पर से तुम्हारे साथ बातें की हैं। \v 23 चुनाँचे मेरी परस्तिश के साथ साथ अपने लिए सोने या चाँदी के बुत न बनाओ। \v 24 मेरे लिए मिट्टी की क़ुरबानगाह बनाकर उस पर अपनी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों की भस्म होनेवाली और सलामती की क़ुरबानियाँ चढ़ाना। मैं तुझे वह जगहें दिखाऊँगा जहाँ मेरे नाम की ताज़ीम में क़ुरबानियाँ पेश करनी हैं। ऐसी तमाम जगहों पर मैं तेरे पास आकर तुझे बरकत दूँगा। \p \v 25 अगर तू मेरे लिए क़ुरबानगाह बनाने की ख़ातिर पत्थर इस्तेमाल करना चाहे तो तराशे हुए पत्थर इस्तेमाल न करना। क्योंकि तू तराशने के लिए इस्तेमाल होनेवाले औज़ार से उस की बेहुरमती करेगा। \v 26 क़ुरबानगाह को सीढ़ियों के बग़ैर बनाना है ताकि उस पर चढ़ने से तेरे लिबास के नीचे से तेरा नंगापन नज़र न आए।’ \c 21 \p \v 1 इसराईलियों को यह अहकाम बता, \s1 इबरानी ग़ुलाम के हुक़ूक़ \p \v 2 ‘अगर तू इबरानी ग़ुलाम ख़रीदे तो वह छः साल तेरा ग़ुलाम रहे। इसके बाद लाज़िम है कि उसे आज़ाद कर दिया जाए। आज़ाद होने के लिए उसे पैसे देने की ज़रूरत नहीं होगी। \p \v 3 अगर ग़ुलाम ग़ैरशादीशुदा हालत में मालिक के घर आया हो तो वह आज़ाद होकर अकेला ही चला जाए। अगर वह शादीशुदा हालत में आया हो तो लाज़िम है कि वह अपनी बीवी समेत आज़ाद होकर जाए। \v 4 अगर मालिक ने ग़ुलाम की शादी कराई और बच्चे पैदा हुए हैं तो उस की बीवी और बच्चे मालिक की मिलकियत होंगे। छः साल के बाद जब ग़ुलाम आज़ाद होकर जाए तो उस की बीवी और बच्चे मालिक ही के पास रहें। \p \v 5 अगर ग़ुलाम कहे, “मैं अपने मालिक और अपने बीवी बच्चों से मुहब्बत रखता हूँ, मैं आज़ाद नहीं होना चाहता” \v 6 तो ग़ुलाम का मालिक उसे अल्लाह के सामने लाए। वह उसे दरवाज़े या उस की चौखट के पास ले जाए और सुताली यानी तेज़ औज़ार से उसके कान की लौ छेद दे। तब वह ज़िंदगी-भर उसका ग़ुलाम बना रहेगा। \p \v 7 अगर कोई अपनी बेटी को ग़ुलामी में बेच डाले तो उसके लिए आज़ादी मिलने की शरायत मर्द से फ़रक़ हैं। \v 8 अगर उसके मालिक ने उसे मुंतख़ब किया कि वह उस की बीवी बन जाए, लेकिन बाद में वह उसे पसंद न आए तो लाज़िम है कि वह मुनासिब मुआवज़ा लेकर उसे उसके रिश्तेदारों को वापस कर दे। उसे औरत को ग़ैरमुल्कियों के हाथ बेचने का इख़्तियार नहीं है, क्योंकि उसने उसके साथ बेवफ़ा सुलूक किया है। \p \v 9 अगर लौंडी का मालिक उस की अपने बेटे के साथ शादी कराए तो औरत को बेटी के हुक़ूक़ हासिल होंगे। \p \v 10 अगर मालिक ने उससे शादी करके बाद में दूसरी औरत से भी शादी की तो लाज़िम है कि वह पहली को भी खाना और कपड़े देता रहे। इसके अलावा उसके साथ हमबिसतर होने का फ़र्ज़ भी अदा करना है। \v 11 अगर वह यह तीन फ़रायज़ अदा न करे तो उसे औरत को आज़ाद करना पड़ेगा। इस सूरत में उसे मुफ़्त आज़ाद करना होगा। \s1 ज़ख़मी करने की सज़ा \p \v 12 जो किसी को जान-बूझकर इतना सख़्त मारता हो कि वह मर जाए तो उसे ज़रूर सज़ाए-मौत देना है। \v 13 लेकिन अगर उसने उसे जान-बूझकर न मारा बल्कि यह इत्तफ़ाक़ से हुआ और अल्लाह ने यह होने दिया, तो मारनेवाला एक ऐसी जगह पनाह ले सकता है जो मैं मुक़र्रर करूँगा। वहाँ उसे क़त्ल किए जाने की इजाज़त नहीं होगी। \v 14 लेकिन जो दीदा-दानिस्ता और चालाकी से किसी को मार डालता है उसे मेरी क़ुरबानगाह से भी छीनकर सज़ाए-मौत देना है। \p \v 15 जो अपने बाप या अपनी माँ को मारता पीटता है उसे सज़ाए-मौत दी जाए। \p \v 16 जिसने किसी को इग़वा कर लिया है उसे सज़ाए-मौत दी जाए, चाहे वह उसे ग़ुलाम बनाकर बेच चुका हो या उसे अब तक अपने पास रखा हुआ हो। \p \v 17 जो अपने बाप या माँ पर लानत करे उसे सज़ाए-मौत दी जाए। \p \v 18 हो सकता है कि आदमी झगड़ें और एक शख़्स दूसरे को पत्थर या मुक्के से इतना ज़ख़मी कर दे कि गो वह बच जाए वह बिस्तर से उठ न सकता हो। \v 19 अगर बाद में मरीज़ यहाँ तक शफ़ा पाए कि दुबारा उठकर लाठी के सहारे चल-फिर सके तो चोट पहुँचानेवाले को सज़ा नहीं मिलेगी। उसे सिर्फ़ उस वक़्त के लिए मुआवज़ा देना पड़ेगा जब तक मरीज़ पैसे न कमा सके। साथ ही उसे उसका पूरा इलाज करवाना है। \p \v 20 जो अपने ग़ुलाम या लौंडी को लाठी से यों मारे कि वह मर जाए उसे सज़ा दी जाए। \v 21 लेकिन अगर ग़ुलाम या लौंडी पिटाई के बाद एक या दो दिन ज़िंदा रहे तो मालिक को सज़ा न दी जाए। क्योंकि जो रक़म उसने उसके लिए दी थी उसका नुक़सान उसे ख़ुद उठाना पड़ेगा। \p \v 22 हो सकता है कि लोग आपस में लड़ रहे हों और लड़ते लड़ते किसी हामिला औरत से यों टकरा जाएँ कि उसका बच्चा ज़ाया हो जाए। अगर कोई और नुक़सान न हुआ हो तो ज़रब पहुँचानेवाले को जुरमाना देना पड़ेगा। औरत का शौहर यह जुरमाना मुक़र्रर करे, और अदालत में इसकी तसदीक़ हो। \p \v 23 लेकिन अगर उस औरत को और नुक़सान भी पहुँचा हो तो फिर ज़रब पहुँचानेवाले को इस उसूल के मुताबिक़ सज़ा दी जाए कि जान के बदले जान, \v 24 आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, हाथ के बदले हाथ, पाँव के बदले पाँव, \v 25 जलने के ज़ख़म के बदले जलने का ज़ख़म, मार के बदले मार, काट के बदले काट। \p \v 26 अगर कोई मालिक अपने ग़ुलाम की आँख पर यों मारे कि वह ज़ाया हो जाए तो उसे ग़ुलाम को आँख के बदले आज़ाद करना पड़ेगा, चाहे ग़ुलाम मर्द हो या औरत। \v 27 अगर मालिक के पीटने से ग़ुलाम का दाँत टूट जाए तो उसे ग़ुलाम को दाँत के बदले आज़ाद करना पड़ेगा, चाहे ग़ुलाम मर्द हो या औरत। \s1 नुक़सान का मुआवज़ा \p \v 28 अगर कोई बैल किसी मर्द या औरत को ऐसा मारे कि वह मर जाए तो उस बैल को संगसार किया जाए। उसका गोश्त खाने की इजाज़त नहीं है। इस सूरत में बैल के मालिक को सज़ा न दी जाए। \v 29 लेकिन हो सकता है कि मालिक को पहले आगाह किया गया था कि बैल लोगों को मारता है, तो भी उसने बैल को खुला छोड़ा था जिसके नतीजे में उसने किसी को मार डाला। ऐसी सूरत में न सिर्फ़ बैल को बल्कि उसके मालिक को भी संगसार करना है। \v 30 लेकिन अगर फ़ैसला किया जाए कि वह अपनी जान का फ़िद्या दे तो जितना मुआवज़ा भी मुक़र्रर किया जाए उसे देना पड़ेगा। \p \v 31 सज़ा में कोई फ़रक़ नहीं है, चाहे बेटे को मारा जाए या बेटी को। \v 32 लेकिन अगर बैल किसी ग़ुलाम या लौंडी को मार दे तो उसका मालिक ग़ुलाम के मालिक को चाँदी के 30 सिक्के दे और बैल को संगसार किया जाए। \p \v 33 हो सकता है कि किसी ने अपने हौज़ को खुला रहने दिया या हौज़ बनाने के लिए गढ़ा खोदकर उसे खुला रहने दिया और कोई बैल या गधा उसमें गिरकर मर गया। \v 34 ऐसी सूरत में हौज़ का मालिक मुरदा जानवर के लिए पैसे दे। वह जानवर के मालिक को उस की पूरी क़ीमत अदा करे और मुरदा जानवर ख़ुद ले ले। \p \v 35 अगर किसी का बैल किसी दूसरे के बैल को ऐसे मारे कि वह मर जाए तो दोनों मालिक ज़िंदा बैल को बेचकर उसके पैसे आपस में बराबर बाँट लें। इसी तरह वह मुरदा बैल को भी बराबर तक़सीम करें। \v 36 लेकिन हो सकता है कि मालिक को मालूम था कि मेरा बैल दूसरे जानवरों पर हमला करता है, इसके बावुजूद उसने उसे आज़ाद छोड़ दिया था। ऐसी सूरत में उसे मुरदा बैल के एवज़ उसके मालिक को नया बैल देना पड़ेगा, और वह मुरदा बैल ख़ुद ले ले। \c 22 \s1 मिलकियत की हिफ़ाज़त \p \v 1 जिसने कोई बैल या भेड़ चोरी करके उसे ज़बह किया या बेच डाला है उसे हर चोरी के बैल के एवज़ पाँच बैल और हर चोरी की भेड़ के एवज़ चार भेड़ें वापस करना है। \p \v 2 हो सकता है कि कोई चोर नक़ब लगा रहा हो और लोग उसे पकड़कर यहाँ तक मारते पीटते रहें कि वह मर जाए। अगर रात के वक़्त ऐसा हुआ हो तो वह उसके ख़ून के ज़िम्मादार नहीं ठहर सकते। \v 3 लेकिन अगर सूरज के तुलू होने के बाद ऐसा हुआ हो तो जिसने उसे मारा वह क़ातिल ठहरेगा। \p चोर को हर चुराई हुई चीज़ का एवज़ाना देना है। अगर उसके पास देने के लिए कुछ न हो तो उसे ग़ुलाम बनाकर बेचना है। जो पैसे उसे बेचने के एवज़ मिलें वह चुराई हुई चीज़ों के बदले में दिए जाएँ। \p \v 4 अगर चोरी का जानवर चोर के पास ज़िंदा पाया जाए तो उसे हर जानवर के एवज़ दो देने पड़ेंगे, चाहे वह बैल, भेड़, बकरी या गधा हो। \p \v 5 हो सकता है कि कोई अपने मवेशी को अपने खेत या अंगूर के बाग़ में छोड़कर चरने दे और होते होते वह किसी दूसरे के खेत या अंगूर के बाग़ में जाकर चरने लगे। ऐसी सूरत में लाज़िम है कि मवेशी का मालिक नुक़सान के एवज़ अपने अंगूर के बाग़ और खेत की बेहतरीन पैदावार में से दे। \p \v 6 हो सकता है कि किसी ने आग जलाई हो और वह काँटेदार झाड़ियों के ज़रीए पड़ोसी के खेत तक फैलकर उसके अनाज के पूलों को, उस की पकी हुई फ़सल को या खेत की किसी और पैदावार को बरबाद कर दे। ऐसी सूरत में जिसने आग जलाई हो उसे उस की पूरी क़ीमत अदा करनी है। \p \v 7 हो सकता है कि किसी ने कुछ पैसे या कोई और माल अपने किसी वाक़िफ़कार के सुपुर्द कर दिया हो ताकि वह उसे महफ़ूज़ रखे। अगर यह चीज़ें उसके घर से चोरी हो जाएँ और बाद में चोर को पकड़ा जाए तो चोर को उस की दुगनी क़ीमत अदा करनी पड़ेगी। \v 8 लेकिन अगर चोर पकड़ा न जाए तो लाज़िम है कि उस घर का मालिक जिसके सुपुर्द यह चीज़ें की गई थीं अल्लाह के हुज़ूर खड़ा हो ताकि मालूम किया जाए कि उसने ख़ुद यह माल चोरी किया है या नहीं। \p \v 9 हो सकता है कि दो लोगों का आपस में झगड़ा हो, और दोनों किसी चीज़ के बारे में दावा करते हों कि यह मेरी है। अगर कोई क़ीमती चीज़ हो मसलन बैल, गधा, भेड़, बकरी, कपड़े या कोई खोई हुई चीज़ तो मामला अल्लाह के हुज़ूर लाया जाए। जिसे अल्लाह क़ुसूरवार क़रार दे उसे दूसरे को ज़ेरे-बहस चीज़ की दुगनी क़ीमत अदा करनी है। \p \v 10 हो सकता है कि किसी ने अपना कोई गधा, बैल, भेड़, बकरी या कोई और जानवर किसी वाक़िफ़कार के सुपुर्द कर दिया ताकि वह उसे महफ़ूज़ रखे। वहाँ जानवर मर जाए या ज़ख़मी हो जाए, या कोई उस पर क़ब्ज़ा करके उसे उस वक़्त ले जाए जब कोई न देख रहा हो। \v 11 यह मामला यों हल किया जाए कि जिसके सुपुर्द जानवर किया गया था वह रब के हुज़ूर क़सम खाकर कहे कि मैंने अपने वाक़िफ़कार के जानवर के लालच में यह काम नहीं किया। जानवर के मालिक को यह क़बूल करना पड़ेगा, और दूसरे को इसके बदले कुछ नहीं देना होगा। \v 12 लेकिन अगर वाक़ई जानवर को चोरी किया गया है तो जिसके सुपुर्द जानवर किया गया था उसे उस की क़ीमत अदा करनी पड़ेगी। \v 13 अगर किसी जंगली जानवर ने उसे फाड़ डाला हो तो वह सबूत के तौर पर फाड़ी हुई लाश को ले आए। फिर उसे उस की क़ीमत अदा नहीं करनी पड़ेगी। \p \v 14 हो सकता है कि कोई अपने वाक़िफ़कार से इजाज़त लेकर उसका जानवर इस्तेमाल करे। अगर जानवर को मालिक की ग़ैरमौजूदगी में चोट लगे या वह मर जाए तो उस शख़्स को जिसके पास जानवर उस वक़्त था उसका मुआवज़ा देना पड़ेगा। \v 15 लेकिन अगर जानवर का मालिक उस वक़्त साथ था तो दूसरे को मुआवज़ा देने की ज़रूरत नहीं होगी। अगर उसने जानवर को किराए पर लिया हो तो उसका नुक़सान किराए से पूरा हो जाएगा। \s1 लड़की को वरग़लाने का जुर्म \p \v 16 अगर किसी कुँवारी की मँगनी नहीं हुई और कोई मर्द उसे वरग़लाकर उससे हमबिसतर हो जाए तो वह महर देकर उससे शादी करे। \v 17 लेकिन अगर लड़की का बाप उस की उस मर्द के साथ शादी करने से इनकार करे, इस सूरत में भी मर्द को कुँवारी के लिए मुक़र्ररा रक़म देनी पड़ेगी। \s1 सज़ाए-मौत के लायक़ जरायम \p \v 18 जादूगरनी को जीने न देना। \p \v 19 जो शख़्स किसी जानवर के साथ जिंसी ताल्लुक़ात रखता हो उसे सज़ाए-मौत दी जाए। \p \v 20 जो न सिर्फ़ रब को क़ुरबानियाँ पेश करे बल्कि दीगर माबूदों को भी उसे क़ौम से निकालकर हलाक किया जाए। \s1 कमज़ोरों की हिफ़ाज़त के लिए अहकाम \p \v 21 जो परदेसी तेरे मुल्क में मेहमान है उसे न दबाना और न उससे बुरा सुलूक करना, क्योंकि तुम भी मिसर में परदेसी थे। \p \v 22 किसी बेवा या यतीम से बुरा सुलूक न करना। \v 23 अगर तू ऐसा करे और वह चिल्लाकर मुझसे फ़रियाद करें तो मैं ज़रूर उनकी सुनूँगा। \v 24 मैं बड़े ग़ुस्से में आकर तुम्हें तलवार से मार डालूँगा। फिर तुम्हारी बीवियाँ ख़ुद बेवाएँ और तुम्हारे बच्चे ख़ुद यतीम बन जाएंगे। \p \v 25 अगर तूने मेरी क़ौम के किसी ग़रीब को क़र्ज़ दिया है तो उससे सूद न लेना। \p \v 26 अगर तुझे किसी से उस की चादर गिरवी के तौर पर मिली हो तो उसे सूरज डूबने से पहले ही वापस कर देना है, \v 27 क्योंकि इसी को वह सोने के लिए इस्तेमाल करता है। वरना वह क्या चीज़ ओढ़कर सोएगा? अगर तू चादर वापस न करे और वह शख़्स चिल्लाकर मुझसे फ़रियाद करे तो मैं उस की सुनूँगा, क्योंकि मैं मेहरबान हूँ। \s1 अल्लाह से मुताल्लिक़ फ़रायज़ \p \v 28 अल्लाह को न कोसना, न अपनी क़ौम के किसी सरदार पर लानत करना। \p \v 29 मुझे वक़्त पर अपने खेत और कोल्हुओं की पैदावार में से नज़राने पेश करना। अपने पहलौठे मुझे देना। \v 30 अपने बैलों, भेड़ों और बकरियों के पहलौठों को भी मुझे देना। जानवर का पहलौठा पहले सात दिन अपनी माँ के साथ रहे। आठवें दिन वह मुझे दिया जाए। \p \v 31 अपने आपको मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस रखना। इसलिए ऐसे जानवर का गोश्त मत खाना जिसे किसी जंगली जानवर ने फाड़ डाला है। ऐसे गोश्त को कुत्तों को खाने देना। \c 23 \s1 अदालत में इनसाफ़ और दूसरों से मुहब्बत \p \v 1 ग़लत अफ़वाहें न फैलाना। किसी शरीर आदमी का साथ देकर झूटी गवाही देना मना है। \v 2 अगर अकसरियत ग़लत काम कर रही हो तो उसके पीछे न हो लेना। अदालत में गवाही देते वक़्त अकसरियत के साथ मिलकर ऐसी बात न करना जिससे ग़लत फ़ैसला किया जाए। \v 3 लेकिन अदालत में किसी ग़रीब की तरफ़दारी भी न करना। \p \v 4 अगर तुझे तेरे दुश्मन का बैल या गधा आवारा फिरता हुआ नज़र आए तो उसे हर सूरत में वापस कर देना। \v 5 अगर तुझसे नफ़रत करनेवाले का गधा बोझ तले गिर गया हो और तुझे पता लगे तो उसे न छोड़ना बल्कि ज़रूर उस की मदद करना। \p \v 6 अदालत में ग़रीब के हुक़ूक़ न मारना। \v 7 ऐसे मामले से दूर रहना जिसमें लोग झूट बोलते हैं। जो बेगुनाह और हक़ पर है उसे सज़ाए-मौत न देना, क्योंकि मैं क़ुसूरवार को हक़-बजानिब नहीं ठहराऊँगा। \v 8 रिश्वत न लेना, क्योंकि रिश्वत देखनेवाले को अंधा कर देती है और उस की बात बनने नहीं देती जो हक़ पर है। \p \v 9 जो परदेसी तेरे मुल्क में मेहमान है उस पर दबाव न डालना। तुम ऐसे लोगों की हालत से ख़ूब वाक़िफ़ हो, क्योंकि तुम ख़ुद मिसर में परदेसी रहे हो। \s1 सबत का साल और सबत \p \v 10 छः साल तक अपनी ज़मीन में बीज बोकर उस की पैदावार जमा करना। \v 11 लेकिन सातवें साल ज़मीन को इस्तेमाल न करना बल्कि उसे पड़े रहने देना। जो कुछ भी उगे वह क़ौम के ग़रीब लोग खाएँ। जो उनसे बच जाए उसे जंगली जानवर खाएँ। अपने अंगूर और ज़ैतून के बाग़ों के साथ भी ऐसा ही करना है। \p \v 12 छः दिन अपना काम-काज करना, लेकिन सातवें दिन आराम करना। फिर तेरा बैल और तेरा गधा भी आराम कर सकेंगे, तेरी लौंडी का बेटा और तेरे साथ रहनेवाला परदेसी भी ताज़ादम हो जाएंगे। \p \v 13 जो भी हिदायत मैंने दी है उस पर अमल कर। दीगर माबूदों की परस्तिश न करना। मैं तेरे मुँह से उनके नामों तक का ज़िक्र न सुनूँ। \s1 तीन ख़ास ईदें \p \v 14 साल में तीन दफ़ा मेरी ताज़ीम में ईद मनाना। \v 15 पहले, बेख़मीरी रोटी की ईद मनाना। अबीब के महीने \f + \fr 23:15 \ft मार्च ता अप्रैल। \f* में सात दिन तक तेरी रोटी में ख़मीर न हो जिस तरह मैंने हुक्म दिया है, क्योंकि इस महीने में तू मिसर से निकला। इन दिनों में कोई मेरे हुज़ूर ख़ाली हाथ न आए। \v 16 दूसरे, फ़सलकटाई की ईद उस वक़्त मनाना जब तू अपने खेत में बोई हुई पहली फ़सल काटेगा। तीसरे, जमा करने की ईद फ़सल की कटाई के इख़्तिताम \f + \fr 23:16 \ft सितंबर ता अक्तूबर। \f* पर मनाना है जब तूने अंगूर और बाक़ी बाग़ों के फल जमा किए होंगे। \v 17 यों तेरे तमाम मर्द तीन मरतबा रब क़ादिरे-मुतलक़ के हुज़ूर हाज़िर हुआ करें। \p \v 18 जब तू किसी जानवर को ज़बह करके क़ुरबानी के तौर पर पेश करे तो उसके ख़ून के साथ ऐसी रोटी पेश न करना जिसमें ख़मीर हो। और जो जानवर तू मेरी ईदों पर चढ़ाए उनकी चरबी अगली सुबह तक बाक़ी न रहे। \p \v 19 अपनी ज़मीन की पहली पैदावार का बेहतरीन हिस्सा रब अपने ख़ुदा के घर में लाना। \p भेड़ या बकरी के बच्चे को उस की माँ के दूध में न पकाना। \s1 रब का फ़रिश्ता राहनुमाई करेगा \p \v 20 मैं तेरे आगे आगे फ़रिश्ता भेजता हूँ जो रास्ते में तेरी हिफ़ाज़त करेगा और तुझे उस जगह तक ले जाएगा जो मैंने तेरे लिए तैयार की है। \v 21 उस की मौजूदगी में एहतियात बरतना। उस की सुनना, और उस की ख़िलाफ़वरज़ी न करना। अगर तू सरकश हो जाए तो वह तुझे मुआफ़ नहीं करेगा, क्योंकि मेरा नाम उसमें हाज़िर होगा। \v 22 लेकिन अगर तू उस की सुने और सब कुछ करे जो मैं तुझे बताता हूँ तो मैं तेरे दुश्मनों का दुश्मन और तेरे मुख़ालिफ़ों का मुख़ालिफ़ हूँगा। \p \v 23 क्योंकि मेरा फ़रिश्ता तेरे आगे आगे चलेगा और तुझे मुल्के-कनान तक पहुँचा देगा जहाँ अमोरी, हित्ती, फ़रिज़्ज़ी, कनानी, हिव्वी और यबूसी आबाद हैं। तब मैं उन्हें रूए-ज़मीन पर से मिटा दूँगा। \v 24 उनके माबूदों को सिजदा न करना, न उनकी ख़िदमत करना। उनके रस्मो-रिवाज भी न अपनाना बल्कि उनके बुतों को तबाह कर देना। जिन सतूनों के सामने वह इबादत करते हैं उनको भी टुकड़े टुकड़े कर डालना। \v 25 रब अपने ख़ुदा की ख़िदमत करना। फिर मैं तेरी ख़ुराक और पानी को बरकत देकर तमाम बीमारियाँ तुझसे दूर करूँगा। \v 26 फिर तेरे मुल्क में न किसी का बच्चा ज़ाया होगा, न कोई बाँझ होगी। साथ ही मैं तुझे तवील ज़िंदगी अता करूँगा। \p \v 27 मैं तेरे आगे आगे दहशत फैलाऊँगा। जहाँ भी तू जाएगा वहाँ मैं तमाम क़ौमों में अबतरी पैदा करूँगा। मेरे सबब से तेरे सारे दुश्मन पलटकर भाग जाएंगे। \v 28 मैं तेरे आगे ज़ंबूर भेज दूँगा जो हिव्वी, कनानी और हित्ती को मुल्क छोड़ने पर मजबूर करेंगे। \v 29 लेकिन जब तू वहाँ पहुँचेगा तो मैं उन्हें एक ही साल में मुल्क से नहीं निकालूँगा। वरना पूरा मुल्क वीरान हो जाएगा और जंगली जानवर फैलकर तेरे लिए नुक़सान का बाइस बन जाएंगे। \v 30 इसलिए मैं तेरे पहुँचने पर मुल्क के बाशिंदों को थोड़ा थोड़ा करके निकालता जाऊँगा। इतने में तेरी तादाद बढ़ेगी और तू रफ़्ता रफ़्ता मुल्क पर क़ब्ज़ा कर सकेगा। \p \v 31 मैं तेरी सरहद्दें मुक़र्रर करूँगा। बहरे-क़ुलज़ुम एक हद होगी और फ़िलिस्तियों का समुंदर दूसरी, जुनूब का रेगिस्तान एक होगी और दरियाए-फ़ुरात दूसरी। मैं मुल्क के बाशिंदों को तेरे क़ब्ज़े में कर दूँगा, और तू उन्हें अपने आगे आगे मुल्क से दूर करता जाएगा। \v 32 लाज़िम है कि तू उनके साथ या उनके माबूदों के साथ अहद न बाँधे। \v 33 उनका तेरे मुल्क में रहना मना है, वरना तू उनके सबब से मेरा गुनाह करेगा। अगर तू उनके माबूदों की इबादत करेगा तो यह तेरे लिए फंदा बन जाएगा’।” \c 24 \s1 रब इसराईल से अहद बाँधता है \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, “तू, हारून, नदब, अबीहू और इसराईल के 70 बुज़ुर्ग मेरे पास ऊपर आएँ। कुछ फ़ासले पर खड़े होकर मुझे सिजदा करो। \v 2 सिर्फ़ तू अकेला ही मेरे क़रीब आ, दूसरे दूर रहें। और क़ौम के बाक़ी लोग तेरे साथ पहाड़ पर न चढ़ें।” \p \v 3 तब मूसा ने क़ौम के पास जाकर रब की तमाम बातें और अहकाम पेश किए। जवाब में सबने मिलकर कहा, “हम रब की इन तमाम बातों पर अमल करेंगे।” \p \v 4 तब मूसा ने रब की तमाम बातें लिख लीं। अगले दिन वह सुबह-सवेरे उठा और पहाड़ के पास गया। उसके दामन में उसने क़ुरबानगाह बनाई। साथ ही उसने इसराईल के हर एक क़बीले के लिए एक एक पत्थर का सतून खड़ा किया। \v 5 फिर उसने कुछ इसराईली नौजवानों को क़ुरबानी पेश करने के लिए बुलाया ताकि वह रब की ताज़ीम में भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ चढ़ाएँ और जवान बैलों को सलामती की क़ुरबानी के तौर पर पेश करें। \v 6 मूसा ने क़ुरबानियों का ख़ून जमा किया। उसका आधा हिस्सा उसने बासनों में डाल दिया और आधा हिस्सा क़ुरबानगाह पर छिड़क दिया। \p \v 7 फिर उसने वह किताब ली जिसमें रब के साथ अहद की तमाम शरायत दर्ज थीं और उसे क़ौम को पढ़कर सुनाया। जवाब में उन्होंने कहा, “हम रब की इन तमाम बातों पर अमल करेंगे। हम उस की सुनेंगे।” \v 8 इस पर मूसा ने बासनों में से ख़ून लेकर उसे लोगों पर छिड़का और कहा, “यह ख़ून उस अहद की तसदीक़ करता है जो रब ने तुम्हारे साथ किया है और जो उस की तमाम बातों पर मबनी है।” \p \v 9 इसके बाद मूसा, हारून, नदब, अबीहू और इसराईल के 70 बुज़ुर्ग सीना पहाड़ पर चढ़े। \v 10 वहाँ उन्होंने इसराईल के ख़ुदा को देखा। लगता था कि उसके पाँवों के नीचे संगे-लाजवर्द का-सा तख़्ता था। वह आसमान की मानिंद साफ़ो-शफ़्फ़ाफ़ था। \v 11 अगरचे इसराईल के राहनुमाओं ने यह सब कुछ देखा तो भी रब ने उन्हें हलाक न किया, बल्कि वह अल्लाह को देखते रहे और उसके हुज़ूर अहद का खाना खाते और पीते रहे। \s1 पत्थर की तख़्तियाँ \p \v 12 पहाड़ से उतरने के बाद रब ने मूसा से कहा, “मेरे पास पहाड़ पर आकर कुछ देर के लिए ठहरे रहना। मैं तुझे पत्थर की तख़्तियाँ दूँगा जिन पर मैंने अपनी शरीअत और अहकाम लिखे हैं और जो इसराईल की तालीमो-तरबियत के लिए ज़रूरी हैं।” \p \v 13 मूसा अपने मददगार यशुअ के साथ चल पड़ा और अल्लाह के पहाड़ पर चढ़ गया। \v 14 पहले उसने बुज़ुर्गों से कहा, “हमारी वापसी के इंतज़ार में यहाँ ठहरे रहो। हारून और हूर तुम्हारे पास रहेंगे। कोई भी मामला हो तो लोग उन्हीं के पास जाएँ।” \s1 मूसा रब से मिलता है \p \v 15 जब मूसा चढ़ने लगा तो पहाड़ पर बादल छा गया। \v 16 रब का जलाल कोहे-सीना पर उतर आया। छः दिन तक बादल उस पर छाया रहा। सातवें दिन रब ने बादल में से मूसा को बुलाया। \v 17 रब का जलाल इसराईलियों को भी नज़र आता था। उन्हें यों लगा जैसा कि पहाड़ की चोटी पर तेज़ आग भड़क रही हो। \v 18 चढ़ते चढ़ते मूसा बादल में दाख़िल हुआ। वहाँ वह चालीस दिन और चालीस रात रहा। \c 25 \s1 मुलाक़ात का ख़ैमा बनाने के लिए हदिये \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, \v 2 “इसराईलियों को बता कि वह हदिये लाकर मुझे उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करें। लेकिन सिर्फ़ उनसे हदिये क़बूल करो जो दिली ख़ुशी से दें। \v 3 उनसे यह चीज़ें हदिये के तौर पर क़बूल करो : सोना, चाँदी, पीतल; \v 4 नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा, बारीक कतान, बकरी के बाल, \v 5 मेंढों की सुर्ख़ रँगी हुई खालें, तख़स \f + \fr 25:5 \ft ग़ालिबन इस मतरूक इबरानी लफ़्ज़ से मुराद कोई समुंदरी जानवर है। \f* की खालें, कीकर की लकड़ी, \v 6 शमादान के लिए ज़ैतून का तेल, मसह करने के लिए तेल और ख़ुशबूदार बख़ूर के लिए मसाले, \v 7 अक़ीक़े-अहमर और दीगर जवाहर जो इमामे-आज़म के बालापोश और सीने के कीसे में जड़े जाएंगे। \v 8 इन चीज़ों से लोग मेरे लिए मक़दिस बनाएँ ताकि मैं उनके दरमियान रहूँ। \v 9 मैं तुझे मक़दिस और उसके तमाम सामान का नमूना दिखाऊँगा, क्योंकि तुम्हें सब कुछ ऐन उसी के मुताबिक़ बनाना है। \s1 अहद का संदूक़ \p \v 10-12 लोग कीकर की लकड़ी का संदूक़ बनाएँ। उस की लंबाई पौने चार फ़ुट हो जबकि उस की चौड़ाई और ऊँचाई सवा दो दो फ़ुट हो। पूरे संदूक़ पर अंदर और बाहर से ख़ालिस सोना चढ़ाना। ऊपर की सतह के इर्दगिर्द सोने की झालर लगाना। संदूक़ को उठाने के लिए सोने के चार कड़े ढालकर उन्हें संदूक़ के चारपाइयों पर लगाना। दोनों तरफ़ दो दो कड़े हों। \v 13 फिर कीकर की दो लकड़ियाँ संदूक़ को उठाने के लिए तैयार करना। उन पर सोना चढ़ाकर \v 14 उनको दोनों तरफ़ के कड़ों में डालना ताकि उनसे संदूक़ को उठाया जाए। \v 15 यह लकड़ियाँ संदूक़ के इन कड़ों में पड़ी रहें। उन्हें कभी भी दूर न किया जाए। \v 16 संदूक़ में शरीअत की वह दो तख़्तियाँ रखना जो मैं तुझे दूँगा। \p \v 17 संदूक़ का ढकना ख़ालिस सोने का बनाना। उस की लंबाई पौने चार फ़ुट और चौड़ाई सवा दो फ़ुट हो। उसका नाम कफ़्फ़ारे का ढकना है। \v 18-19 सोने से घड़कर दो करूबी फ़रिश्ते बनाए जाएँ जो ढकने के दोनों सिरों पर खड़े हों। यह दो फ़रिश्ते और ढकना एक ही टुकड़े से बनाने हैं। \v 20 फ़रिश्तों के पर यों ऊपर की तरफ़ फैले हुए हों कि वह ढकने को पनाह दें। उनके मुँह एक दूसरे की तरफ़ किए हुए हों, और वह ढकने की तरफ़ देखें। \p \v 21 ढकने को संदूक़ पर लगा, और संदूक़ में शरीअत की वह दो तख़्तियाँ रख जो मैं तुझे दूँगा। \v 22 वहाँ ढकने के ऊपर दोनों फ़रिश्तों के दरमियान से मैं अपने आपको तुझ पर ज़ाहिर करके तुझसे हमकलाम हूँगा और तुझे इसराईलियों के लिए तमाम अहकाम दूँगा। \s1 मख़सूस रोटियों की मेज़ \p \v 23 कीकर की लकड़ी की मेज़ बनाना। उस की लंबाई तीन फ़ुट, चौड़ाई डेढ़ फ़ुट और ऊँचाई सवा दो फ़ुट हो। \v 24 उस पर ख़ालिस सोना चढ़ाना, और उसके इर्दगिर्द सोने की झालर लगाना। \v 25 मेज़ की ऊपर की सतह पर चौखटा लगाना जिसकी ऊँचाई तीन इंच हो और जिस पर सोने की झालर लगी हो। \v 26 सोने के चार कड़े ढालकर उन्हें चारों कोनों पर लगाना जहाँ मेज़ के पाए लगे हैं। \v 27 यह कड़े मेज़ की सतह पर लगे चौखटे के नीचे लगाए जाएँ। उनमें वह लकड़ियाँ डालनी हैं जिनसे मेज़ को उठाया जाएगा। \v 28 यह लकड़ियाँ भी कीकर की हों और उन पर सोना चढ़ाया जाए। उनसे मेज़ को उठाना है। \p \v 29 उसके थाल, प्याले, मरतबान और मै की नज़रें पेश करने के बरतन ख़ालिस सोने से बनाना है। \v 30 मेज़ पर वह रोटियाँ हर वक़्त मेरे हुज़ूर पड़ी रहें जो मेरे लिए मख़सूस हैं। \s1 शमादान \p \v 31 ख़ालिस सोने का शमादान भी बनाना। उसका पाया और डंडी घड़कर बनाना है। उस की प्यालियाँ जो फूलों और कलियों की शक्ल की होंगी पाए और डंडी के साथ एक ही टुकड़ा हों। \v 32 डंडी से दाईं और बाईं तरफ़ तीन तीन शाख़ें निकलें। \v 33 हर शाख़ पर तीन प्यालियाँ लगी हों जो बादाम की कलियों और फूलों की शक्ल की हों। \v 34 शमादान की डंडी पर भी इस क़िस्म की प्यालियाँ लगी हों, लेकिन तादाद में चार। \v 35 इनमें से तीन प्यालियाँ दाएँ बाएँ की छः शाख़ों के नीचे लगी हों। वह यों लगी हों कि हर प्याली से दो शाख़ें निकलें। \v 36 शाख़ें और प्यालियाँ बल्कि पूरा शमादान ख़ालिस सोने के एक ही टुकड़े से घड़कर बनाना है। \p \v 37 शमादान के लिए सात चराग़ बनाकर उन्हें यों शाख़ों पर रखना कि वह सामने की जगह रौशन करें। \v 38 बत्ती कतरने की क़ैंचियाँ और जलते कोयले के लिए छोटे बरतन भी ख़ालिस सोने से बनाए जाएँ। \v 39 शमादान और उस सारे सामान के लिए पूरे 34 किलोग्राम ख़ालिस सोना इस्तेमाल किया जाए। \v 40 ग़ौर कर कि सब कुछ ऐन उस नमूने के मुताबिक़ बनाया जाए जो मैं तुझे यहाँ पहाड़ पर दिखाता हूँ। \c 26 \s1 मुलाक़ात का ख़ैमा \p \v 1 मुक़द्दस ख़ैमे के लिए दस परदे बनाना। उनके लिए बारीक कतान और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा इस्तेमाल करना। परदों में किसी माहिर कारीगर के कढ़ाई के काम से करूबी फ़रिश्तों का डिज़ायन बनवाना। \v 2 हर परदे की लंबाई 42 फ़ुट और चौड़ाई 6 फ़ुट हो। \v 3 पाँच परदों के लंबे हाशिये एक दूसरे के साथ जोड़े जाएँ और इसी तरह बाक़ी पाँच भी। यों दो बड़े टुकड़े बन जाएंगे। \v 4 दोनों टुकड़ों को एक दूसरे के साथ मिलाने के लिए नीले धागे के हलक़े बनाना। यह हलक़े हर टुकड़े के 42 फ़ुटवाले एक किनारे पर लगाए जाएँ, \v 5 एक टुकड़े के हाशिये पर 50 हलक़े और दूसरे पर भी उतने ही हलक़े। इन दो हाशियों के हलक़े एक दूसरे के आमने-सामने हों। \v 6 फिर सोने की 50 हुकें बनाकर उनसे आमने-सामने के हलक़े एक दूसरे के साथ मिलाना। यों दोनों टुकड़े जुड़कर ख़ैमे का काम देंगे। \p \v 7 बकरी के बालों से भी 11 परदे बनाना जिन्हें कपड़ेवाले ख़ैमे के ऊपर रखा जाए। \v 8 हर परदे की लंबाई 45 फ़ुट और चौड़ाई 6 फ़ुट हो। \v 9 पाँच परदों के लंबे हाशिये एक दूसरे के साथ जोड़े जाएँ और इसी तरह बाक़ी छः भी। इन छः परदों के छटे परदे को एक दफ़ा तह करना। यह सामनेवाले हिस्से से लटके। \p \v 10 बकरी के बाल के इन दोनों टुकड़ों को भी मिलाना है। इसके लिए हर टुकड़े के 45 फ़ुटवाले एक किनारे पर पचास पचास हलक़े लगाना। \v 11 फिर पीतल की 50 हुकें बनाकर उनसे दोनों हिस्से मिलाना। \v 12 जब बकरियों के बालों का यह ख़ैमा कपड़े के ख़ैमे के ऊपर लगाया जाएगा तो आधा परदा बाक़ी रहेगा। वह ख़ैमे की पिछली तरफ़ लटका रहे। \v 13 ख़ैमे के दाईं और बाईं तरफ़ बकरी के बालों का ख़ैमा कपड़े के ख़ैमे की निसबत डेढ़ डेढ़ फ़ुट लंबा होगा। यों वह दोनों तरफ़ लटके हुए कपड़े के ख़ैमे को महफ़ूज़ रखेगा। \p \v 14 एक दूसरे के ऊपर के इन दोनों ख़ैमों की हिफ़ाज़त के लिए दो ग़िलाफ़ बनाने हैं। बकरी के बालों के ख़ैमे पर मेंढों की सुर्ख़ रँगी हुई खालें जोड़कर रखी जाएँ और उन पर तख़स की खालें मिलाकर रखी जाएँ। \p \v 15 कीकर की लकड़ी के तख़्ते बनाना जो खड़े किए जाएँ ताकि ख़ैमे की दीवारों का काम दें। \v 16 हर तख़्ते की ऊँचाई 15 फ़ुट हो और चौड़ाई सवा दो फ़ुट। \v 17 हर तख़्ते के नीचे दो दो चूलें हों। यह चूलें हर तख़्ते को उसके पाइयों के साथ जोड़ेंगी ताकि तख़्ता खड़ा रहे। \v 18 ख़ैमे की जुनूबी दीवार के लिए 20 तख़्तों की ज़रूरत है \v 19 और साथ ही चाँदी के 40 पाइयों की। उन पर तख़्ते खड़े किए जाएंगे। हर तख़्ते के नीचे दो पाए होंगे, और हर पाए में एक चूल लगेगी। \v 20 इसी तरह ख़ैमे की शिमाली दीवार के लिए भी 20 तख़्तों की ज़रूरत है \v 21 और साथ ही चाँदी के 40 पाइयों की। वह भी तख़्तों को खड़ा करने के लिए हैं। हर तख़्ते के नीचे दो पाए होंगे। \v 22 ख़ैमे की पिछली यानी मग़रिबी दीवार के लिए छः तख़्ते बनाना। \v 23 इस दीवार को शिमाली और जुनूबी दीवारों के साथ जोड़ने के लिए कोनेवाले दो तख़्ते बनाना। \v 24 इन दो तख़्तों में नीचे से लेकर ऊपर तक कोना हो ताकि एक से शिमाली दीवार मग़रिबी दीवार के साथ जुड़ जाए और दूसरे से जुनूबी दीवार मग़रिबी दीवार के साथ। इनके ऊपर के सिरे कड़ों से मज़बूत किए जाएँ। \v 25 यों पिछले यानी मग़रिबी तख़्तों की पूरी तादाद 8 होगी और इनके लिए चाँदी के पाइयों की तादाद 16, हर तख़्ते के नीचे दो दो पाए होंगे। \p \v 26-27 इसके अलावा कीकर की लकड़ी के शहतीर बनाना, तीनों दीवारों के लिए पाँच पाँच शहतीर। वह हर दीवार के तख़्तों पर यों लगाए जाएँ कि वह उन्हें एक दूसरे के साथ मिलाएँ। \v 28 दरमियानी शहतीर दीवार की आधी ऊँचाई पर दीवार के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लगाया जाए। \v 29 शहतीरों को तख़्तों के साथ लगाने के लिए सोने के कड़े बनाकर तख़्तों में लगाना। तमाम तख़्तों और शहतीरों पर सोना चढ़ाना। \p \v 30 पूरे मुक़द्दस ख़ैमे को उसी नमूने के मुताबिक़ बनाना जो मैं तुझे पहाड़ पर दिखाता हूँ। \s1 मुक़द्दस ख़ैमे के परदे \p \v 31 अब एक और परदा बनाना। इसके लिए भी बारीक कतान और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा इस्तेमाल करना। उस पर भी किसी माहिर कारीगर के कढ़ाई के काम से करूबी फ़रिश्तों का डिज़ायन बनवाना। \v 32 इसे सोने की हुकों से कीकर की लकड़ी के चार सतूनों से लटकाना। इन सतूनों पर सोना चढ़ाया जाए और वह चाँदी के पाइयों पर खड़े हों। \v 33 यह परदा मुक़द्दस कमरे को मुक़द्दसतरीन कमरे से अलग करेगा जिसमें अहद का संदूक़ पड़ा रहेगा। परदे को लटकाने के बाद उसके पीछे मुक़द्दसतरीन कमरे में अहद का संदूक़ रखना। \v 34 फिर अहद के संदूक़ पर कफ़्फ़ारे का ढकना रखना। \p \v 35 जिस मेज़ पर मेरे लिए मख़सूस की गई रोटियाँ पड़ी रहती हैं वह परदे के बाहर मुक़द्दस कमरे में शिमाल की तरफ़ रखी जाए। उसके मुक़ाबिल जुनूब की तरफ़ शमादान रखा जाए। \p \v 36 फिर ख़ैमे के दरवाज़े के लिए भी परदा बनाया जाए। इसके लिए भी बारीक कतान और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा इस्तेमाल किया जाए। इस पर कढ़ाई का काम किया जाए। \v 37 इस परदे को सोने की हुकों से कीकर की लकड़ी के पाँच सतूनों से लटकाना। इन सतूनों पर भी सोना चढ़ाया जाए, और वह पीतल के पाइयों पर खड़े हों। \c 27 \s1 जानवरों को चढ़ाने की क़ुरबानगाह \p \v 1 कीकर की लकड़ी की क़ुरबानगाह बनाना। उस की ऊँचाई साढ़े चार फ़ुट हो जबकि उस की लंबाई और चौड़ाई साढ़े सात सात फ़ुट हो। \v 2 उसके ऊपर चारों कोनों में से एक एक सींग निकले। सींग और क़ुरबानगाह एक ही टुकड़े के हों। सब पर पीतल चढ़ाना। \v 3 उसका तमाम साज़ो-सामान और बरतन भी पीतल के हों यानी राख को उठाकर ले जाने की बालटियाँ, बेलचे, काँटे, जलते हुए कोयले के लिए बरतन और छिड़काव के कटोरे। \p \v 4 क़ुरबानगाह को उठाने के लिए पीतल का जंगला बनाना जो ऊपर से खुला हो। जंगले के चारों कोनों पर कड़े लगाए जाएँ। \v 5 क़ुरबानगाह की आधी ऊँचाई पर किनारा लगाना, और क़ुरबानगाह को जंगले में इस किनारे तक रखा जाए। \v 6 उसे उठाने के लिए कीकर की दो लकड़ियाँ बनाना जिन पर पीतल चढ़ाना है। \v 7 उनको क़ुरबानगाह के दोनों तरफ़ के कड़ों में डाल देना। \p \v 8 पूरी क़ुरबानगाह लकड़ी की हो, लेकिन अंदर से खोखली हो। उसे ऐन उस नमूने के मुताबिक़ बनाना जो मैं तुझे पहाड़ पर दिखाता हूँ। \s1 ख़ैमे का सहन \p \v 9 मुक़द्दस ख़ैमे के लिए सहन बनाना। उस की चारदीवारी बारीक कतान के कपड़े से बनाई जाए। चारदीवारी की लंबाई जुनूब की तरफ़ 150 फ़ुट हो। \v 10 कपड़े को चाँदी की हुकों और पट्टियों से लकड़ी के 20 खंबों के साथ लगाया जाए। हर खंबा पीतल के पाए पर खड़ा हो। \v 11 चारदीवारी शिमाल की तरफ़ भी इसी की मानिंद हो। \v 12 ख़ैमे के पीछे मग़रिब की तरफ़ चारदीवारी की चौड़ाई 75 फ़ुट हो और कपड़ा लकड़ी के 10 खंबों के साथ लगाया जाए। यह खंबे भी पीतल के पाइयों पर खड़े हों। \p \v 13 सामने, मशरिक़ की तरफ़ जहाँ से सूरज तुलू होता है चारदीवारी की चौड़ाई भी 75 फ़ुट हो। \v 14-15 यहाँ चारदीवारी का दरवाज़ा हो। कपड़ा दरवाज़े के दाईं तरफ़ साढ़े 22 फ़ुट चौड़ा हो और उसके बाईं तरफ़ भी उतना ही चौड़ा। उसे दोनों तरफ़ तीन तीन लकड़ी के खंबों के साथ लगाया जाए जो पीतल के पाइयों पर खड़े हों। \v 16 दरवाज़े का परदा 30 फ़ुट चौड़ा बनाना। वह नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे और बारीक कतान से बनाया जाए, और उस पर कढ़ाई का काम हो। यह कपड़ा लकड़ी के चार खंबों के साथ लगाया जाए। वह भी पीतल के पाइयों पर खड़े हों। \p \v 17 तमाम खंबे पीतल के पाइयों पर खड़े हों और कपड़ा चाँदी की हुकों और पट्टियों से हर खंबे के साथ लगाया जाए। \v 18 चारदीवारी की लंबाई 150 फ़ुट, चौड़ाई 75 फ़ुट और ऊँचाई साढ़े 7 फ़ुट हो। खंबों के तमाम पाए पीतल के हों। \v 19 जो भी साज़ो-सामान मुक़द्दस ख़ैमे में इस्तेमाल किया जाता है वह सब पीतल का हो। ख़ैमे और चारदीवारी की मेख़ें भी पीतल की हों। \s1 शमादान का तेल \p \v 20 इसराईलियों को हुक्म देना कि वह तेरे पास कूटे हुए ज़ैतूनों का ख़ालिस तेल लाएँ ताकि मुक़द्दस कमरे के शमादान के चराग़ मुतवातिर जलते रहें। \v 21 हारून और उसके बेटे शमादान को मुलाक़ात के ख़ैमे के मुक़द्दस कमरे में रखें, उस परदे के सामने जिसके पीछे अहद का संदूक़ है। उसमें वह तेल डालते रहें ताकि वह रब के सामने शाम से लेकर सुबह तक जलता रहे। इसराईलियों का यह उसूल अबद तक क़ायम रहे। \c 28 \s1 इमामों के लिबास \p \v 1 अपने भाई हारून और उसके बेटों नदब, अबीहू, इलियज़र और इतमर को बुला। मैंने उन्हें इसराईलियों में से चुन लिया है ताकि वह इमामों की हैसियत से मेरी ख़िदमत करें। \v 2 अपने भाई हारून के लिए मुक़द्दस लिबास बनवाना जो पुरवक़ार और शानदार हों। \v 3 लिबास बनाने की ज़िम्मादारी उन तमाम लोगों को देना जो ऐसे कामों में माहिर हैं और जिनको मैंने हिकमत की रूह से भर दिया है। क्योंकि जब हारून को मख़सूस किया जाएगा और वह मुक़द्दस ख़ैमे की ख़िदमत सरंजाम देगा तो उसे इन कपड़ों की ज़रूरत होगी। \p \v 4 उसके लिए यह लिबास बनाने हैं : सीने का कीसा, बालापोश, चोग़ा, बुना हुआ ज़ेरजामा, पगड़ी और कमरबंद। यह कपड़े अपने भाई हारून और उसके बेटों के लिए बनवाने हैं ताकि वह इमाम के तौर पर ख़िदमत कर सकें। \v 5 इन कपड़ों के लिए सोना और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा और बारीक कतान इस्तेमाल किया जाए। \s1 हारून का बालापोश \p \v 6 बालापोश को भी सोने और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे और बारीक कतान से बनाना है। उस पर किसी माहिर कारीगर से कढ़ाई का काम करवाया जाए। \v 7 उस की दो पट्टियाँ हों जो कंधों पर रखकर सामने और पीछे से बालापोश के साथ लगी हों। \v 8 इसके अलावा एक पटका बुनना है जिससे बालापोश को बाँधा जाए और जो बालापोश के साथ एक टुकड़ा हो। उसके लिए भी सोना, नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा और बारीक कतान इस्तेमाल किया जाए। \p \v 9 फिर अक़ीक़े-अहमर के दो पत्थर चुनकर उन पर इसराईल के बारह बेटों के नाम कंदा करना। \v 10 हर जौहर पर छः छः नाम उनकी पैदाइश की तरतीब के मुताबिक़ कंदा किए जाएँ। \v 11 यह नाम उस तरह जौहरों पर कंदा किए जाएँ जिस तरह मुहर कंदा की जाती है। फिर दोनों जौहर सोने के ख़ानों में जड़कर \v 12 बालापोश की दो पट्टियों पर ऐसे लगाना कि कंधों पर आ जाएँ। जब हारून मेरे हुज़ूर आएगा तो जौहरों पर के यह नाम उसके कंधों पर होंगे और मुझे इसराईलियों की याद दिलाएँगे। \p \v 13 सोने के ख़ाने बनाना \v 14 और ख़ालिस सोने की दो ज़ंजीरें जो डोरी की तरह गुंधी हुई हों। फिर इन दो ज़ंजीरों को सोने के ख़ानों के साथ लगाना। \s1 सीने का कीसा \p \v 15 सीने के लिए कीसा बनाना। उसमें वह क़ुरे पड़े रहें जिनकी मारिफ़त मेरी मरज़ी मालूम की जाएगी। माहिर कारीगर उसे उन्हीं चीज़ों से बनाए जिनसे हारून का बालापोश बनाया गया है यानी सोने और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे और बारीक कतान से। \v 16 जब कपड़े को एक दफ़ा तह किया गया हो तो कीसे की लंबाई और चौड़ाई नौ नौ इंच हो। \p \v 17 उस पर चार क़तारों में जवाहर जड़ना। हर क़तार में तीन तीन जौहर हों। पहली क़तार में लाल, \f + \fr 28:17 \ft या एक क़िस्म का सुर्ख़ अक़ीक़। याद रहे कि चूँकि क़दीम ज़माने के अकसर जवाहरात के नाम मतरूक हैं या उनका मतलब बदल गया है, इसलिए उनका मुख़्तलिफ़ तरजुमा हो सकता है। \f* ज़बरजद \f + \fr 28:17 \ft peridot \f* और ज़ुमुर्रद। \v 18 दूसरी में फ़ीरोज़ा, संगे-लाजवर्द \f + \fr 28:18 \ft lapis lazuli \f* और हजरुल-क़मर। \f + \fr 28:18 \ft moonstone \f* \v 19 तीसरी में ज़रक़ोन, \f + \fr 28:19 \ft hyacinth \f* अक़ीक़ \f + \fr 28:19 \ft agate \f* और याक़ूते-अरग़वानी। \f + \fr 28:19 \ft amethyst \f* \v 20 चौथी में पुखराज, \f + \fr 28:20 \ft topas \f* अक़ीक़े-अहमर \f + \fr 28:20 \ft carnelian \f* और यशब। \f + \fr 28:20 \ft jasper \f* हर जौहर सोने के ख़ाने में जड़ा हुआ हो। \v 21 यह बारह जवाहर इसराईल के बारह क़बीलों की नुमाइंदगी करते हैं। एक एक जौहर पर एक क़बीले का नाम कंदा किया जाए। यह नाम उस तरह कंदा किए जाएँ जिस तरह मुहर कंदा की जाती है। \p \v 22 सीने के कीसे पर ख़ालिस सोने की दो ज़ंजीरें लगाना जो डोरी की तरह गुंधी हुई हों। \v 23 उन्हें लगाने के लिए दो कड़े बनाकर कीसे के ऊपर के दो कोनों पर लगाना। \v 24 अब दोनों ज़ंजीरें उन दो कड़ों से लगाना। \v 25 उनके दूसरे सिरे बालापोश की कंधोंवाली पट्टियों के दो ख़ानों के साथ जोड़ देना, फिर सामने की तरफ़ लगाना। \v 26 कीसे के निचले दो कोनों पर भी सोने के दो कड़े लगाना। वह अंदर, बालापोश की तरफ़ लगे हों। \v 27 अब दो और कड़े बनाकर बालापोश की कंधोंवाली पट्टियों पर लगाना। यह भी सामने की तरफ़ लगे हों लेकिन नीचे, बालापोश के पटके के ऊपर ही। \v 28 सीने के कीसे के निचले कड़े नीली डोरी से बालापोश के इन निचले कड़ों के साथ बाँधे जाएँ। यों कीसा पटके के ऊपर अच्छी तरह सीने के साथ लगा रहेगा। \p \v 29 जब भी हारून मक़दिस में दाख़िल होकर रब के हुज़ूर आएगा वह इसराईली क़बीलों के नाम अपने दिल पर सीने के कीसे की सूरत में साथ ले जाएगा। यों वह क़ौम की याद दिलाता रहेगा। \p \v 30 सीने के कीसे में दोनों क़ुरे बनाम ऊरीम और तुम्मीम रखे जाएँ। वह भी मक़दिस में रब के सामने आते वक़्त हारून के दिल पर हों। यों जब हारून रब के हुज़ूर होगा तो रब की मरज़ी पूछने का वसीला हमेशा उसके दिल पर होगा। \s1 हारून का चोग़ा \p \v 31 चोग़ा भी बुनना। वह पूरी तरह नीले धागे से बनाया जाए। चोग़े को बालापोश से पहले पहना जाए। \v 32 उसके गरेबान को बुने हुए कालर से मज़बूत किया जाए ताकि वह न फटे। \v 33 नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे से अनार बनाकर उन्हें चोग़े के दामन में लगा देना। उनके दरमियान सोने की घंटियाँ लगाना। \v 34 दामन में अनार और घंटियाँ बारी बारी लगाना। \p \v 35 हारून ख़िदमत करते वक़्त हमेशा चोग़ा पहने। जब वह मक़दिस में रब के हुज़ूर आएगा और वहाँ से निकलेगा तो घंटियाँ सुनाई देंगी। फिर वह नहीं मरेगा। \s1 माथे पर छोटी तख़्ती, ज़ेरजामा और पगड़ी \p \v 36 ख़ालिस सोने की तख़्ती बनाकर उस पर यह अलफ़ाज़ कंदा करना, ‘रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस।’ यह अलफ़ाज़ यों कंदा किए जाएँ जिस तरह मुहर कंदा की जाती है। \v 37 उसे नीली डोरी से पगड़ी के सामनेवाले हिस्से से लगाया जाए \v 38 ताकि वह हारून के माथे पर पड़ी रहे। जब भी वह मक़दिस में जाए तो यह तख़्ती साथ हो। जब इसराईली अपने नज़राने लाकर रब के लिए मख़सूस करें लेकिन किसी ग़लती के बाइस क़ुसूरवार हों तो उनका यह क़ुसूर हारून पर मुंतक़िल होगा। इसलिए यह तख़्ती हर वक़्त उसके माथे पर हो ताकि रब इसराईलियों को क़बूल कर ले। \p \v 39 ज़ेरजामे को बारीक कतान से बुनना और इस तरह पगड़ी भी। फिर कमरबंद बनाना। उस पर कढ़ाई का काम किया जाए। \s1 बाक़ी लिबास \p \v 40 हारून के बेटों के लिए भी ज़ेरजामे, कमरबंद और पगड़ियाँ बनाना ताकि वह पुरवक़ार और शानदार नज़र आएँ। \v 41 यह सब अपने भाई हारून और उसके बेटों को पहनाना। उनके सरों पर तेल उंडेलकर उन्हें मसह करना। यों उन्हें उनके ओहदे पर मुक़र्रर करके मेरी ख़िदमत के लिए मख़सूस करना। \p \v 42 उनके लिए कतान के पाजामे भी बनाना ताकि वह ज़ेरजामे के नीचे नंगे न हों। उनकी लंबाई कमर से रान तक हो। \v 43 जब भी हारून और उसके बेटे मुलाक़ात के ख़ैमे में दाख़िल हों तो उन्हें यह पाजामे पहनने हैं। इसी तरह जब उन्हें मुक़द्दस कमरे में ख़िदमत करने के लिए क़ुरबानगाह के पास आना होता है तो वह यह पहनें, वरना वह क़ुसूरवार ठहरकर मर जाएंगे। यह हारून और उस की औलाद के लिए एक अबदी उसूल है। \c 29 \s1 इमामों की मख़सूसियत \p \v 1 इमामों को मक़दिस में मेरी ख़िदमत के लिए मख़सूस करने का यह तरीक़ा है : \p एक जवान बैल और दो बेऐब मेंढे चुन लेना। \v 2 बेहतरीन मैदे से तीन क़िस्म की चीज़ें पकाना जिनमें ख़मीर न हो। पहले, सादा रोटी। दूसरे, रोटी जिसमें तेल डाला गया हो। तीसरे, रोटी जिस पर तेल लगाया गया हो। \v 3 यह चीज़ें टोकरी में रखकर जवान बैल और दो मेंढों के साथ रब को पेश करना। \v 4 फिर हारून और उसके बेटों को मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर लाकर ग़ुस्ल कराना। \v 5 इसके बाद ज़ेरजामा, चोग़ा, बालापोश और सीने का कीसा लेकर हारून को पहनाना। बालापोश को उसके महारत से बुने हुए पटके के ज़रीए बाँधना। \v 6 उसके सर पर पगड़ी बाँधकर उस पर सोने की मुक़द्दस तख़्ती लगाना। \v 7 हारून के सर पर मसह का तेल उंडेलकर उसे मसह करना। \p \v 8 फिर उसके बेटों को आगे लाकर ज़ेरजामा पहनाना। \v 9 उनके पगड़ियाँ और कमरबंद बाँधना। यों तू हारून और उसके बेटों को उनके मंसब पर मुक़र्रर करना। सिर्फ़ वह और उनकी औलाद हमेशा तक मक़दिस में मेरी ख़िदमत करते रहें। \p \v 10 बैल को मुलाक़ात के ख़ैमे के सामने लाना। हारून और उसके बेटे उसके सर पर अपने हाथ रखें। \v 11 उसे ख़ैमे के दरवाज़े के सामने रब के हुज़ूर ज़बह करना। \v 12 बैल के ख़ून में से कुछ लेकर अपनी उँगली से क़ुरबानगाह के सींगों पर लगाना और बाक़ी ख़ून क़ुरबानगाह के पाए पर उंडेल देना। \v 13 अंतड़ियों पर की तमाम चरबी, जोड़कलेजी और दोनों गुरदे उनकी चरबी समेत लेकर क़ुरबानगाह पर जला देना। \v 14 लेकिन बैल के गोश्त, खाल और अंतड़ियों के गोबर को ख़ैमागाह के बाहर जला देना। यह गुनाह की क़ुरबानी है। \p \v 15 इसके बाद पहले मेंढे को ले आना। हारून और उसके बेटे अपने हाथ मेंढे के सर पर रखें। \v 16 उसे ज़बह करके उसका ख़ून क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़कना। \v 17 मेंढे को टुकड़े टुकड़े करके उस की अंतड़ियों और पिंडलियों को धोना। फिर उन्हें सर और बाक़ी टुकड़ों के साथ मिलाकर \v 18 पूरे मेंढे को क़ुरबानगाह पर जला देना। जलनेवाली यह क़ुरबानी रब के लिए भस्म होनेवाली क़ुरबानी है, और उस की ख़ुशबू रब को पसंद है। \p \v 19 अब दूसरे मेंढे को ले आना। हारून और उसके बेटे अपने हाथ मेंढे के सर पर रखें। \v 20 उसको ज़बह करना। उसके ख़ून में से कुछ लेकर हारून और उसके बेटों के दहने कान की लौ पर लगाना। इसी तरह ख़ून को उनके दहने हाथ और दहने पाँव के अंगूठों पर भी लगाना। बाक़ी ख़ून क़ुरबानगाह के चार पहलुओं पर छिड़कना। \v 21 जो ख़ून क़ुरबानगाह पर पड़ा है उसमें से कुछ लेकर और मसह के तेल के साथ मिलाकर हारून और उसके कपड़ों पर छिड़कना। इसी तरह उसके बेटों और उनके कपड़ों पर भी छिड़कना। यों वह और उसके बेटे ख़िदमत के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस हो जाएंगे। \p \v 22 इस मेंढे का ख़ास मक़सद यह है कि हारून और उसके बेटों को मक़दिस में ख़िदमत करने का इख़्तियार और ओहदा दिया जाए। मेंढे की चरबी, दुम, अंतड़ियों पर की सारी चरबी, जोड़कलेजी, दोनों गुरदे उनकी चरबी समेत और दहनी रान अलग करनी है। \v 23 उस टोकरी में से जो रब के हुज़ूर यानी ख़ैमे के दरवाज़े पर पड़ी है एक सादा रोटी, एक रोटी जिसमें तेल डाला गया हो और एक रोटी जिस पर तेल लगाया गया हो निकालना। \v 24 मेंढे से अलग की गई चीज़ें और बेख़मीरी रोटी की टोकरी की यह चीज़ें लेकर हारून और उसके बेटों के हाथों में देना, और वह उन्हें हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब के सामने हिलाएँ। \v 25 फिर यह चीज़ें उनसे वापस लेकर भस्म होनेवाली क़ुरबानी के साथ क़ुरबानगाह पर जला देना। यह रब के लिए जलनेवाली क़ुरबानी है, और उस की ख़ुशबू रब को पसंद है। \p \v 26 अब उस मेंढे का सीना लेना जिसकी मारिफ़त हारून को इमामे-आज़म का इख़्तियार दिया जाता है। सीने को भी हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर रब के सामने हिलाना। यह सीना क़ुरबानी का तेरा हिस्सा होगा। \v 27 यों तुझे हारून और उसके बेटों की मख़सूसियत के लिए मुस्तामल मेंढे के टुकड़े मख़सूसो-मुक़द्दस करने हैं। उसके सीने को रब के सामने हिलानेवाली क़ुरबानी के तौर पर हिलाया जाए और उस की रान को उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर उठाया जाए। \v 28 हारून और उस की औलाद को इसराईलियों की तरफ़ से हमेशा तक यह मिलने का हक़ है। जब भी इसराईली रब को अपनी सलामती की क़ुरबानियाँ पेश करें तो इमामों को यह दो टुकड़े मिलेंगे। \p \v 29 जब हारून फ़ौत हो जाएगा तो उसके मुक़द्दस लिबास उस की औलाद में से उस मर्द को देने हैं जिसे मसह करके हारून की जगह मुक़र्रर किया जाएगा। \v 30 जो बेटा उस की जगह मुक़र्रर किया जाएगा और मक़दिस में ख़िदमत करने के लिए मुलाक़ात के ख़ैमे में आएगा वह यह लिबास सात दिन तक पहने रहे। \p \v 31 जो मेंढा हारून और उसके बेटों की मख़सूसियत के लिए ज़बह किया गया है उसे मुक़द्दस जगह पर उबालना है। \v 32 फिर हारून और उसके बेटे मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर मेंढे का गोश्त और टोकरी की बेख़मीरी रोटियाँ खाएँ। \v 33 वह यह चीज़ें खाएँ जिनसे उन्हें गुनाहों का कफ़्फ़ारा और इमाम का ओहदा मिला है। लेकिन कोई और यह न खाए, क्योंकि यह मख़सूसो-मुक़द्दस हैं। \v 34 और अगर अगली सुबह तक इस गोश्त या रोटी में से कुछ बच जाए तो उसे जलाया जाए। उसे खाना मना है, क्योंकि वह मुक़द्दस है। \p \v 35 जब तू हारून और उसके बेटों को इमाम मुक़र्रर करेगा तो ऐन मेरी हिदायत पर अमल करना। यह तक़रीब सात दिन तक मनाई जाए। \v 36 इसके दौरान गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर रोज़ाना एक जवान बैल ज़बह करना। इससे तू क़ुरबानगाह का कफ़्फ़ारा देकर उसे हर तरह की नापाकी से पाक करेगा। इसके अलावा उस पर मसह का तेल उंडेलना। इससे वह मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस हो जाएगा। \v 37 सात दिन तक क़ुरबानगाह का कफ़्फ़ारा देकर उसे पाक-साफ़ करना और उसे तेल से मख़सूसो-मुक़द्दस करना। फिर क़ुरबानगाह निहायत मुक़द्दस होगी। जो भी उसे छुएगा वह भी मख़सूसो-मुक़द्दस हो जाएगा। \s1 रोज़मर्रा की क़ुरबानियाँ \p \v 38 रोज़ाना एक एक साल के दो भेड़ के नर बच्चे क़ुरबानगाह पर जला देना, \v 39 एक को सुबह के वक़्त, दूसरे को सूरज के ग़ुरूब होने के ऐन बाद। \v 40 पहले जानवर के साथ डेढ़ किलोग्राम बेहतरीन मैदा पेश किया जाए जो कूटे हुए ज़ैतूनों के एक लिटर तेल के साथ मिलाया गया हो। मै की नज़र के तौर पर एक लिटर मै भी क़ुरबानगाह पर उंडेलना। \v 41 दूसरे जानवर के साथ भी ग़ल्ला और मै की यह दो नज़रें पेश की जाएँ। ऐसी क़ुरबानी की ख़ुशबू रब को पसंद है। \p \v 42 लाज़िम है कि आनेवाली तमाम नसलें भस्म होनेवाली यह क़ुरबानी बाक़ायदगी से मुक़द्दस ख़ैमे के दरवाज़े पर रब के हुज़ूर चढ़ाएँ। वहाँ मैं तुमसे मिला करूँगा और तुमसे हमकलाम हूँगा। \v 43 वहाँ मैं इसराईलियों से भी मिला करूँगा, और वह जगह मेरे जलाल से मख़सूसो-मुक़द्दस हो जाएगी। \v 44 यों मैं मुलाक़ात के ख़ैमे और क़ुरबानगाह को मख़सूस करूँगा और हारून और उसके बेटों को मख़सूस करूँगा ताकि वह इमामों की हैसियत से मेरी ख़िदमत करें। \p \v 45 तब मैं इसराईलियों के दरमियान रहूँगा और उनका ख़ुदा हूँगा। \v 46 वह जान लेंगे कि मैं रब उनका ख़ुदा हूँ, कि मैं उन्हें मिसर से निकाल लाया ताकि उनके दरमियान सुकूनत करूँ। मैं रब उनका ख़ुदा हूँ। \c 30 \s1 बख़ूर जलाने की क़ुरबानगाह \p \v 1 कीकर की लकड़ी की क़ुरबानगाह बनाना जिस पर बख़ूर जलाया जाए। \v 2 वह डेढ़ फ़ुट लंबी, इतनी ही चौड़ी और तीन फ़ुट ऊँची हो। उसके चारों कोनों में से सींग निकलें जो क़ुरबानगाह के साथ एक ही टुकड़े से बनाए गए हों। \v 3 उस की ऊपर की सतह, उसके चार पहलुओं और उसके सींगों पर ख़ालिस सोना चढ़ाना। ऊपर की सतह के इर्दगिर्द सोने की झालर हो। \v 4 सोने के दो कड़े बनाकर इन्हें उस झालर के नीचे एक दूसरे के मुक़ाबिल पहलुओं पर लगाना। इन कड़ों में क़ुरबानगाह को उठाने की लकड़ियाँ डाली जाएँगी। \v 5 यह लकड़ियाँ कीकर की हों, और उन पर भी सोना चढ़ाना। \p \v 6 इस क़ुरबानगाह को ख़ैमे के मुक़द्दस कमरे में उस परदे के सामने रखना जिसके पीछे अहद का संदूक़ और उसका ढकना होंगे, वह ढकना जहाँ मैं तुझसे मिला करूँगा। \v 7 जब हारून हर सुबह शमादान के चराग़ तैयार करे उस वक़्त वह उस पर ख़ुशबूदार बख़ूर जलाए। \v 8 सूरज के ग़ुरूब होने के बाद भी जब वह दुबारा चराग़ों की देख-भाल करेगा तो वह साथ साथ बख़ूर जलाए। यों रब के सामने बख़ूर मुतवातिर जलता रहे। लाज़िम है कि बाद की नसलें भी इस उसूल पर क़ायम रहें। \p \v 9 इस क़ुरबानगाह पर सिर्फ़ जायज़ बख़ूर इस्तेमाल किया जाए। इस पर न तो जानवरों की क़ुरबानियाँ चढ़ाई जाएँ, न ग़ल्ला या मै की नज़रें पेश की जाएँ। \v 10 हारून साल में एक दफ़ा उसका कफ़्फ़ारा देकर उसे पाक करे। इसके लिए वह कफ़्फ़ारे के दिन उस क़ुरबानी का कुछ ख़ून सींगों पर लगाए। यह उसूल भी अबद तक क़ायम रहे। यह क़ुरबानगाह रब के लिए निहायत मुक़द्दस है।” \s1 मर्दुमशुमारी के पैसे \p \v 11 रब ने मूसा से कहा, \v 12 “जब भी तू इसराईलियों की मर्दुमशुमारी करे तो लाज़िम है कि जिनका शुमार किया गया हो वह रब को अपनी जान का फ़िद्या दें ताकि उनमें वबा न फैले। \v 13 जिस जिसका शुमार किया गया हो वह चाँदी के आधे सिक्के के बराबर रक़म उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर दे। सिक्के का वज़न मक़दिस के सिक्कों के बराबर हो। यानी चाँदी के सिक्के का वज़न 11 ग्राम हो, इसलिए छः ग्राम चाँदी देनी है। \v 14 जिसकी भी उम्र 20 साल या इससे ज़ायद हो वह रब को यह रक़म उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर दे। \v 15 अमीर और ग़रीब दोनों इतना ही दें, क्योंकि यही नज़राना रब को पेश करने से तुम्हारी जान का कफ़्फ़ारा दिया जाता है। \v 16 कफ़्फ़ारे की यह रक़म मुलाक़ात के ख़ैमे की ख़िदमत के लिए इस्तेमाल करना। फिर यह नज़राना रब को याद दिलाता रहेगा कि तुम्हारी जानों का कफ़्फ़ारा दिया गया है।” \s1 धोने का हौज़ \p \v 17 रब ने मूसा से कहा, \v 18 “पीतल का ढाँचा बनाना जिस पर पीतल का हौज़ बनाकर रखना है। यह हौज़ धोने के लिए है। उसे सहन में मुलाक़ात के ख़ैमे और जानवरों को चढ़ाने की क़ुरबानगाह के दरमियान रखकर पानी से भर देना। \v 19 हारून और उसके बेटे अपने हाथ-पाँव धोने के लिए उसका पानी इस्तेमाल करें। \v 20 मुलाक़ात के ख़ैमे में दाख़िल होने से पहले ही वह अपने आपको धोएँ वरना वह मर जाएंगे। इसी तरह जब भी वह ख़ैमे के बाहर की क़ुरबानगाह पर जानवरों की क़ुरबानियाँ चढ़ाएँ \v 21 तो लाज़िम है कि पहले हाथ-पाँव धो लें, वरना वह मर जाएंगे। यह उसूल हारून और उस की औलाद के लिए हमेशा तक क़ायम रहे।” \s1 मसह का तेल \p \v 22 रब ने मूसा से कहा, \v 23 “मसह के तेल के लिए उम्दा क़िस्म के मसाले इस्तेमाल करना। 6 किलोग्राम आबे-मुर, 3 किलोग्राम ख़ुशबूदार दारचीनी, 3 किलोग्राम ख़ुशबूदार बेद \v 24 और 6 किलोग्राम तेजपात। यह चीज़ें मक़दिस के बाटों के हिसाब से तोलकर चार लिटर ज़ैतून के तेल में डालना। \v 25 सब कुछ मिलाकर ख़ुशबूदार तेल तैयार करना। वह मुक़द्दस है और सिर्फ़ उस वक़्त इस्तेमाल किया जाए जब कोई चीज़ या शख़्स मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस किया जाए। \p \v 26 यही तेल लेकर मुलाक़ात का ख़ैमा और उसका सारा सामान मसह करना यानी ख़ैमा, अहद का संदूक़, \v 27 मेज़ और उसका सामान, शमादान और उसका सामान, बख़ूर जलाने की क़ुरबानगाह, \v 28 जानवरों को चढ़ाने की क़ुरबानगाह और उसका सामान, धोने का हौज़ और उसका ढाँचा। \v 29 यों तू यह तमाम चीज़ें मख़सूसो-मुक़द्दस करेगा। इससे वह निहायत मुक़द्दस हो जाएँगी। जो भी उन्हें छुएगा वह मुक़द्दस हो जाएगा। \p \v 30 हारून और उसके बेटों को भी इस तेल से मसह करना ताकि वह मुक़द्दस होकर मेरे लिए इमाम का काम सरंजाम दे सकें। \v 31 इसराईलियों को कह दे कि यह तेल हमेशा तक मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस है। \v 32 इसलिए इसे अपने लिए इस्तेमाल न करना और न इस तरकीब से अपने लिए तेल बनाना। यह तेल मख़सूसो-मुक़द्दस है और तुम्हें भी इसे यों ठहराना है। \v 33 जो इस तरकीब से आम इस्तेमाल के लिए तेल बनाता है या किसी आम शख़्स पर लगाता है उसे उस की क़ौम में से मिटा डालना है।” \s1 बख़ूर की क़ुरबानी \p \v 34 रब ने मूसा से कहा, “बख़ूर इस तरकीब से बनाना है : मस्तकी, ओनिका, \f + \fr 30:34 \ft onycha (unguis odoratus) \f* बिरीजा और ख़ालिस लुबान बराबर के हिस्सों में \v 35 मिलाकर ख़ुशबूदार बख़ूर बनाना। इत्रसाज़ का यह काम नमकीन, ख़ालिस और मुक़द्दस हो। \v 36 इसमें से कुछ पीसकर पौडर बनाना और मुलाक़ात के ख़ैमे में अहद के संदूक़ के सामने डालना जहाँ मैं तुझसे मिला करूँगा। \p इस बख़ूर को मुक़द्दसतरीन ठहराना। \v 37 इसी तरकीब के मुताबिक़ अपने लिए बख़ूर न बनाना। इसे रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस ठहराना है। \v 38 जो भी अपने ज़ाती इस्तेमाल के लिए इस क़िस्म का बख़ूर बनाए उसे उस की क़ौम में से मिटा डालना है।” \c 31 \s1 बज़लियेल और उहलियाब \p \v 1 फिर रब ने मूसा से कहा, \v 2 “मैंने यहूदाह के क़बीले के बज़लियेल बिन ऊरी बिन हूर को चुन लिया है ताकि वह मुक़द्दस ख़ैमे की तामीर में राहनुमाई करे। \v 3 मैंने उसे इलाही रूह से मामूर करके हिकमत, समझ और तामीर के हर काम के लिए दरकार इल्म दे दिया है। \v 4 वह नक़्शे बनाकर उनके मुताबिक़ सोने, चाँदी और पीतल की चीज़ें बना सकता है। \v 5 वह जवाहर को काटकर जड़ने की क़ाबिलियत रखता है। वह लकड़ी को तराशकर उससे मुख़्तलिफ़ चीज़ें बना सकता है। वह बहुत सारे और कामों में भी महारत रखता है। \p \v 6 साथ ही मैंने दान के क़बीले के उहलियाब बिन अख़ी-समक को मुक़र्रर किया है ताकि वह हर काम में उस की मदद करे। इसके अलावा मैंने तमाम समझदार कारीगरों को महारत दी है ताकि वह सब कुछ उन हिदायात के मुताबिक़ बना सकें जो मैंने तुझे दी हैं। \v 7 यानी मुलाक़ात का ख़ैमा, कफ़्फ़ारे के ढकने समेत अहद का संदूक़ और ख़ैमे का सारा दूसरा सामान, \v 8 मेज़ और उसका सामान, ख़ालिस सोने का शमादान और उसका सामान, बख़ूर जलाने की क़ुरबानगाह, \v 9 जानवरों को चढ़ाने की क़ुरबानगाह और उसका सामान, धोने का हौज़ उस ढाँचे समेत जिस पर वह रखा जाता है, \v 10 वह लिबास जो हारून और उसके बेटे मक़दिस में ख़िदमत करने के लिए पहनते हैं, \v 11 मसह का तेल और मक़दिस के लिए ख़ुशबूदार बख़ूर। यह सब कुछ वह वैसे ही बनाएँ जैसे मैंने तुझे हुक्म दिया है।” \s1 सबत यानी हफ़ते का दिन \p \v 12 रब ने मूसा से कहा, \v 13 “इसराईलियों को बता कि हर सबत का दिन ज़रूर मनाओ। क्योंकि सबत का दिन एक नुमायाँ निशान है जिससे जान लिया जाएगा कि मैं रब हूँ जो तुम्हें मख़सूसो-मुक़द्दस करता हूँ। और यह निशान मेरे और तुम्हारे दरमियान नसल-दर-नसल क़ायम रहेगा। \v 14 सबत का दिन ज़रूर मनाना, क्योंकि वह तुम्हारे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस है। जो भी उस की बेहुरमती करे वह ज़रूर जान से मारा जाए। जो भी इस दिन काम करे उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए। \v 15 छः दिन काम करना, लेकिन सातवाँ दिन आराम का दिन है। वह रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस है। \p \v 16 इसराईलियों को हाल में और मुस्तक़बिल में सबत का दिन अबदी अहद समझकर मनाना है। \v 17 वह मेरे और इसराईलियों के दरमियान अबदी निशान होगा। क्योंकि रब ने छः दिन के दौरान आसमानो-ज़मीन को बनाया जबकि सातवें दिन उसने आराम किया और ताज़ादम हो गया।” \s1 रब शरीअत की तख़्तियाँ देता है \p \v 18 यह सब कुछ मूसा को बताने के बाद रब ने उसे सीना पहाड़ पर शरीअत की दो तख़्तियाँ दीं। अल्लाह ने ख़ुद पत्थर की इन तख़्तियों पर तमाम बातें लिखी थीं। \c 32 \s1 सोने का बछड़ा \p \v 1 पहाड़ के दामन में लोग मूसा के इंतज़ार में रहे, लेकिन बहुत देर हो गई। एक दिन वह हारून के गिर्द जमा होकर कहने लगे, “आएँ, हमारे लिए देवता बना दें जो हमारे आगे आगे चलते हुए हमारी राहनुमाई करें। क्योंकि क्या मालूम कि उस बंदे मूसा को क्या हुआ है जो हमें मिसर से निकाल लाया।” \p \v 2 जवाब में हारून ने कहा, “आपकी बीवियाँ, बेटे और बेटियाँ अपनी सोने की बालियाँ उतारकर मेरे पास ले आएँ।” \v 3 सब लोग अपनी बालियाँ उतार उतारकर हारून के पास ले आए \v 4 तो उसने यह ज़ेवरात लेकर बछड़ा ढाल दिया। बछड़े को देखकर लोग बोल उठे, “ऐ इसराईल, यह तेरे देवता हैं जो तुझे मिसर से निकाल लाए।” \p \v 5 जब हारून ने यह देखा तो उसने बछड़े के सामने क़ुरबानगाह बनाकर एलान किया, “कल हम रब की ताज़ीम में ईद मनाएँगे।” \v 6 अगले दिन लोग सुबह-सवेरे उठे और भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ और सलामती की क़ुरबानियाँ चढ़ाईं। वह खाने-पीने के लिए बैठ गए और फिर उठकर रंगरलियों में अपने दिल बहलाने लगे। \s1 मूसा अपनी क़ौम की शफ़ाअत करता है \p \v 7 उस वक़्त रब ने मूसा से कहा, “पहाड़ से उतर जा। तेरे लोग जिन्हें तू मिसर से निकाल लाया बड़ी शरारतें कर रहे हैं। \v 8 वह कितनी जल्दी से उस रास्ते से हट गए हैं जिस पर चलने के लिए मैंने उन्हें हुक्म दिया था। उन्होंने अपने लिए ढाला हुआ बछड़ा बनाकर उसे सिजदा किया है। उन्होंने उसे क़ुरबानियाँ पेश करके कहा है, ‘ऐ इसराईल, यह तेरे देवता हैं। यही तुझे मिसर से निकाल लाए हैं’।” \v 9 अल्लाह ने मूसा से कहा, “मैंने देखा है कि यह क़ौम बड़ी हटधर्म है। \v 10 अब मुझे रोकने की कोशिश न कर। मैं उन पर अपना ग़ज़ब उंडेलकर उनको रूए-ज़मीन पर से मिटा दूँगा। उनकी जगह मैं तुझसे एक बड़ी क़ौम बना दूँगा।” \p \v 11 लेकिन मूसा ने कहा, “ऐ रब, तू अपनी क़ौम पर अपना ग़ुस्सा क्यों उतारना चाहता है? तू ख़ुद अपनी अज़ीम क़ुदरत से उसे मिसर से निकाल लाया है। \v 12 मिसरी क्यों कहें, ‘रब इसराईलियों को सिर्फ़ इस बुरे मक़सद से हमारे मुल्क से निकाल ले गया है कि उन्हें पहाड़ी इलाक़े में मार डाले और यों उन्हें रूए-ज़मीन पर से मिटाए’? अपना ग़ुस्सा ठंडा होने दे और अपनी क़ौम के साथ बुरा सुलूक करने से बाज़ रह। \v 13 याद रख कि तूने अपने ख़ादिमों इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से अपनी ही क़सम खाकर कहा था, ‘मैं तुम्हारी औलाद की तादाद यों बढ़ाऊँगा कि वह आसमान के सितारों के बराबर हो जाएगी। मैं उन्हें वह मुल्क दूँगा जिसका वादा मैंने किया है, और वह उसे हमेशा के लिए मीरास में पाएँगे’।” \p \v 14 मूसा के कहने पर रब ने वह नहीं किया जिसका एलान उसने कर दिया था बल्कि वह अपनी क़ौम से बुरा सुलूक करने से बाज़ रहा। \s1 बुतपरस्ती के नतायज \p \v 15 मूसा मुड़कर पहाड़ से उतरा। उसके हाथों में शरीअत की दोनों तख़्तियाँ थीं। उन पर आगे पीछे लिखा गया था। \v 16 अल्लाह ने ख़ुद तख़्तियों को बनाकर उन पर अपने अहकाम कंदा किए थे। \p \v 17 उतरते उतरते यशुअ ने लोगों का शोर सुना और मूसा से कहा, “ख़ैमागाह में जंग का शोर मच रहा है!” \v 18 मूसा ने जवाब दिया, “न तो यह फ़तहमंदों के नारे हैं, न शिकस्त खाए हुओं की चीख़-पुकार। मुझे गानेवालों की आवाज़ सुनाई दे रही है।” \p \v 19 जब वह ख़ैमागाह के नज़दीक पहुँचा तो उसने लोगों को सोने के बछड़े के सामने नाचते हुए देखा। बड़े ग़ुस्से में आकर उसने तख़्तियों को ज़मीन पर पटख़ दिया, और वह टुकड़े टुकड़े होकर पहाड़ के दामन में गिर गईं। \v 20 मूसा ने इसराईलियों के बनाए हुए बछड़े को जला दिया। जो कुछ बच गया उसे उसने पीस पीसकर पौडर बना डाला और पौडर पानी पर छिड़ककर इसराईलियों को पिला दिया। \p \v 21 उसने हारून से पूछा, “इन लोगों ने तुम्हारे साथ क्या किया कि तुमने उन्हें ऐसे बड़े गुनाह में फँसा दिया?” \v 22 हारून ने कहा, “मेरे आक़ा। ग़ुस्से न हों। आप ख़ुद जानते हैं कि यह लोग बदी पर तुले रहते हैं। \v 23 उन्होंने मुझसे कहा, ‘हमारे लिए देवता बना दें जो हमारे आगे आगे चलते हुए हमारी राहनुमाई करें। क्योंकि क्या मालूम कि उस बंदे मूसा को क्या हुआ है जो हमें मिसर से निकाल लाया।’ \v 24 इसलिए मैंने उनको बताया, ‘जिसके पास सोने के ज़ेवरात हैं वह उन्हें उतार लाए।’ जो कुछ उन्होंने मुझे दिया उसे मैंने आग में फेंक दिया तो होते होते सोने का यह बछड़ा निकल आया।” \p \v 25 मूसा ने देखा कि लोग बेकाबू हो गए हैं। क्योंकि हारून ने उन्हें बेलगाम छोड़ दिया था, और यों वह इसराईल के दुश्मनों के लिए मज़ाक़ का निशाना बन गए थे। \v 26 मूसा ख़ैमागाह के दरवाज़े पर खड़े होकर बोला, “जो भी रब का बंदा है वह मेरे पास आए।” जवाब में लावी के क़बीले के तमाम लोग उसके पास जमा हो गए। \v 27 फिर मूसा ने उनसे कहा, “रब इसराईल का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘हर एक अपनी तलवार लेकर ख़ैमागाह में से गुज़रे। एक सिरे के दरवाज़े से शुरू करके दूसरे सिरे के दरवाज़े तक चलते चलते हर मिलनेवाले को जान से मार दो, चाहे वह तुम्हारा भाई, दोस्त या रिश्तेदार ही क्यों न हो। फिर मुड़कर मारते मारते पहले दरवाज़े पर वापस आ जाओ’।” \p \v 28 लावियों ने मूसा की हिदायत पर अमल किया तो उस दिन तक़रीबन 3,000 मर्द हलाक हुए। \v 29 यह देखकर मूसा ने लावियों से कहा, “आज अपने आपको मक़दिस में रब की ख़िदमत करने के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करो, क्योंकि तुम अपने बेटों और भाइयों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए तैयार थे। इसलिए रब तुमको आज बरकत देगा।” \p \v 30 अगले दिन मूसा ने इसराईलियों से बात की, “तुमने निहायत संगीन गुनाह किया है। तो भी मैं अब रब के पास पहाड़ पर जा रहा हूँ। शायद मैं तुम्हारे गुनाह का कफ़्फ़ारा दे सकूँ।” \p \v 31 चुनाँचे मूसा ने रब के पास वापस जाकर कहा, “हाय, इस क़ौम ने निहायत संगीन गुनाह किया है। उन्होंने अपने लिए सोने का देवता बना लिया। \v 32 मेहरबानी करके उन्हें मुआफ़ कर। लेकिन अगर तू उन्हें मुआफ़ न करे तो फिर मुझे भी अपनी उस किताब में से मिटा दे जिसमें तूने अपने लोगों के नाम दर्ज किए हैं।” \v 33 रब ने जवाब दिया, “मैं सिर्फ़ उसको अपनी किताब में से मिटाता हूँ जो मेरा गुनाह करता है। \v 34 अब जा, लोगों को उस जगह ले चल जिसका ज़िक्र मैंने किया है। मेरा फ़रिश्ता तेरे आगे आगे चलेगा। लेकिन जब सज़ा का मुक़र्ररा दिन आएगा तब मैं उन्हें सज़ा दूँगा।” \p \v 35 फिर रब ने इसराईलियों के दरमियान वबा फैलने दी, इसलिए कि उन्होंने उस बछड़े की पूजा की थी जो हारून ने बनाया था। \c 33 \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, “इस जगह से रवाना हो जा। उन लोगों को लेकर जिनको तू मिसर से निकाल लाया है उस मुल्क को जा जिसका वादा मैंने इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से किया है। उन्हीं से मैंने क़सम खाकर कहा था, ‘मैं यह मुल्क तुम्हारी औलाद को दूँगा।’ \v 2 मैं तेरे आगे आगे फ़रिश्ता भेजकर कनानी, अमोरी, हित्ती, फ़रिज़्ज़ी, हिव्वी और यबूसी अक़वाम को उस मुल्क से निकाल दूँगा। \v 3 उठ, उस मुल्क को जा जहाँ दूध और शहद की कसरत है। लेकिन मैं साथ नहीं जाऊँगा। तुम इतने हटधर्म हो कि अगर मैं साथ जाऊँ तो ख़तरा है कि तुम्हें वहाँ पहुँचने से पहले ही बरबाद कर दूँ।” \p \v 4 जब इसराईलियों ने यह सख़्त अलफ़ाज़ सुने तो वह मातम करने लगे। किसी ने भी अपने ज़ेवर न पहने, \v 5 क्योंकि रब ने मूसा से कहा था, “इसराईलियों को बता कि तुम हटधर्म हो। अगर मैं एक लमहा भी तुम्हारे साथ चलूँ तो ख़तरा है कि मैं तुम्हें तबाह कर दूँ। अब अपने ज़ेवरात उतार डालो। फिर मैं फ़ैसला करूँगा कि तुम्हारे साथ क्या किया जाए।” \p \v 6 इन अलफ़ाज़ पर इसराईलियों ने होरिब यानी सीना पहाड़ पर अपने ज़ेवर उतार दिए। \s1 मुलाक़ात का ख़ैमा \p \v 7 उस वक़्त मूसा ने ख़ैमा लेकर उसे कुछ फ़ासले पर ख़ैमागाह के बाहर लगा दिया। उसने उसका नाम ‘मुलाक़ात का ख़ैमा’ रखा। जो भी रब की मरज़ी दरियाफ़्त करना चाहता वह ख़ैमागाह से निकलकर वहाँ जाता। \v 8 जब भी मूसा ख़ैमागाह से निकलकर वहाँ जाता तो तमाम लोग अपने ख़ैमों के दरवाज़ों पर खड़े होकर मूसा के पीछे देखने लगते। उसके मुलाक़ात के ख़ैमे में ओझल होने तक वह उसे देखते रहते। \p \v 9 मूसा के ख़ैमे में दाख़िल होने पर बादल का सतून उतरकर ख़ैमे के दरवाज़े पर ठहर जाता। जितनी देर तक रब मूसा से बातें करता उतनी देर तक वह वहाँ ठहरा रहता। \v 10 जब इसराईली मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर बादल का सतून देखते तो वह अपने अपने ख़ैमे के दरवाज़े पर खड़े होकर सिजदा करते। \v 11 रब मूसा से रूबरू बातें करता था, ऐसे शख़्स की तरह जो अपने दोस्त से बातें करता है। इसके बाद मूसा निकलकर ख़ैमागाह को वापस चला जाता। लेकिन उसका जवान मददगार यशुअ बिन नून ख़ैमे को नहीं छोड़ता था। \s1 मूसा रब का जलाल देखता है \p \v 12 मूसा ने रब से कहा, “देख, तू मुझसे कहता आया है कि इस क़ौम को कनान ले चल। लेकिन तू मेरे साथ किस को भेजेगा? तूने अब तक यह बात मुझे नहीं बताई हालाँकि तूने कहा है, ‘मैं तुझे बनाम जानता हूँ, तुझे मेरा करम हासिल हुआ है।’ \v 13 अगर मुझे वाक़ई तेरा करम हासिल है तो मुझे अपने रास्ते दिखा ताकि मैं तुझे जान लूँ और तेरा करम मुझे हासिल होता रहे। इस बात का ख़याल रख कि यह क़ौम तेरी ही उम्मत है।” \p \v 14 रब ने जवाब दिया, “मैं ख़ुद तेरे साथ चलूँगा और तुझे आराम दूँगा।” \v 15 मूसा ने कहा, “अगर तू ख़ुद साथ नहीं चलेगा तो फिर हमें यहाँ से रवाना न करना। \v 16 अगर तू हमारे साथ न जाए तो किस तरह पता चलेगा कि मुझे और तेरी क़ौम को तेरा करम हासिल हुआ है? हम सिर्फ़ इसी वजह से दुनिया की दीगर क़ौमों से अलग और मुमताज़ हैं।” \p \v 17 रब ने मूसा से कहा, “मैं तेरी यह दरख़ास्त भी पूरी करूँगा, क्योंकि तुझे मेरा करम हासिल हुआ है और मैं तुझे बनाम जानता हूँ।” \p \v 18 फिर मूसा बोला, “बराहे-करम मुझे अपना जलाल दिखा।” \v 19 रब ने जवाब दिया, “मैं अपनी पूरी भलाई तेरे सामने से गुज़रने दूँगा और तेरे सामने ही अपने नाम रब का एलान करूँगा। मैं जिस पर मेहरबान होना चाहूँ उस पर मेहरबान होता हूँ, और जिस पर रहम करना चाहूँ उस पर रहम करता हूँ। \v 20 लेकिन तू मेरा चेहरा नहीं देख सकता, क्योंकि जो भी मेरा चेहरा देखे वह ज़िंदा नहीं रह सकता।” \v 21 फिर रब ने फ़रमाया, “देख, मेरे पास एक जगह है। वहाँ की चट्टान पर खड़ा हो जा। \v 22 जब मेरा जलाल वहाँ से गुज़रेगा तो मैं तुझे चट्टान के एक शिगाफ़ में रखूँगा और अपना हाथ तेरे ऊपर फैलाऊँगा ताकि तू मेरे गुज़रने के दौरान महफ़ूज़ रहे। \v 23 इसके बाद मैं अपना हाथ हटाऊँगा और तू मेरे पीछे देख सकेगा। लेकिन मेरा चेहरा देखा नहीं जा सकता।” \c 34 \s1 पत्थर की नई तख़्तियाँ \p \v 1 रब ने मूसा से कहा, “अपने लिए पत्थर की दो तख़्तियाँ तराश ले जो पहली दो की मानिंद हों। फिर मैं उन पर वह अलफ़ाज़ लिखूँगा जो पहली तख़्तियों पर लिखे थे जिन्हें तूने पटख़ दिया था। \v 2 सुबह तक तैयार होकर सीना पहाड़ पर चढ़ना। चोटी पर मेरे सामने खड़ा हो जा। \v 3 तेरे साथ कोई भी न आए बल्कि पूरे पहाड़ पर कोई और शख़्स नज़र न आए, यहाँ तक कि भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल भी पहाड़ के दामन में न चरें।” \p \v 4 चुनाँचे मूसा ने दो तख़्तियाँ तराश लीं जो पहली की मानिंद थीं। फिर वह सुबह-सवेरे उठकर सीना पहाड़ पर चढ़ गया जिस तरह रब ने उसे हुक्म दिया था। उसके हाथों में पत्थर की दोनों तख़्तियाँ थीं। \v 5 जब वह चोटी पर पहुँचा तो रब बादल में उतर आया और उसके पास खड़े होकर अपने नाम रब का एलान किया। \v 6 मूसा के सामने से गुज़रते हुए उसने पुकारा, “रब, रब, रहीम और मेहरबान ख़ुदा। तहम्मुल, शफ़क़त और वफ़ा से भरपूर। \v 7 वह हज़ारों पर अपनी शफ़क़त क़ायम रखता और लोगों का क़ुसूर, नाफ़रमानी और गुनाह मुआफ़ करता है। लेकिन वह हर एक को उस की मुनासिब सज़ा भी देता है। जब वालिदैन गुनाह करें तो उनकी औलाद को भी तीसरी और चौथी पुश्त तक सज़ा के नतायज भुगतने पड़ेंगे।” \p \v 8 मूसा ने जल्दी से झुककर सिजदा किया। \v 9 उसने कहा, “ऐ रब, अगर मुझ पर तेरा करम हो तो हमारे साथ चल। बेशक यह क़ौम हटधर्म है, तो भी हमारा क़ुसूर और गुनाह मुआफ़ कर और बख़्श दे कि हम दुबारा तेरे ही बन जाएँ।” \p \v 10 तब रब ने कहा, “मैं तुम्हारे साथ अहद बाँधूँगा। तेरी क़ौम के सामने ही मैं ऐसे मोजिज़े करूँगा जो अब तक दुनिया-भर की किसी भी क़ौम में नहीं किए गए। पूरी क़ौम जिसके दरमियान तू रहता है रब का काम देखेगी और उससे डर जाएगी जो मैं तेरे साथ करूँगा। \v 11 जो अहकाम मैं आज देता हूँ उन पर अमल करता रह। मैं अमोरी, कनानी, हित्ती, फ़रिज़्ज़ी, हिव्वी और यबूसी अक़वाम को तेरे आगे आगे मुल्क से निकाल दूँगा। \v 12 ख़बरदार, जो उस मुल्क में रहते हैं जहाँ तू जा रहा है उनसे अहद न बाँधना। वरना वह तेरे दरमियान रहते हुए तुझे गुनाहों में फँसाते रहेंगे। \v 13 उनकी क़ुरबानगाहें ढा देना, उनके बुतों के सतून टुकड़े टुकड़े कर देना और उनकी देवी यसीरत के खंबे काट डालना। \p \v 14 किसी और माबूद की परस्तिश न करना, क्योंकि रब का नाम ग़यूर है, अल्लाह ग़ैरतमंद है। \v 15 ख़बरदार, उस मुल्क के बाशिंदों से अहद न करना, क्योंकि तेरे दरमियान रहते हुए भी वह अपने माबूदों की पैरवी करके ज़िना करेंगे और उन्हें क़ुरबानियाँ चढ़ाएँगे। आख़िरकार वह तुझे भी अपनी क़ुरबानियों में शिरकत की दावत देंगे। \v 16 ख़तरा है कि तू उनकी बेटियों का अपने बेटों के साथ रिश्ता बाँधे। फिर जब यह अपने माबूदों की पैरवी करके ज़िना करेंगी तो उनके सबब से तेरे बेटे भी उनकी पैरवी करने लगेंगे। \p \v 17 अपने लिए देवता न ढालना। \s1 सालाना ईदें \p \v 18 बेख़मीरी रोटी की ईद मनाना। अबीब के महीने \f + \fr 34:18 \ft मार्च ता अप्रैल। \f* में सात दिन तक तेरी रोटी में ख़मीर न हो जिस तरह मैंने हुक्म दिया है। क्योंकि इस महीने में तू मिसर से निकला। \p \v 19 हर पहलौठा मेरा है। तेरे माल मवेशियों का हर पहलौठा मेरा है, चाहे बछड़ा हो या लेला। \v 20 लेकिन पहलौठे गधे के एवज़ भेड़ देना। अगर यह मुमकिन न हो तो उस की गरदन तोड़ डालना। अपने पहलौठे बेटों के लिए भी एवज़ी देना। कोई मेरे पास ख़ाली हाथ न आए। \p \v 21 छः दिन काम-काज करना, लेकिन सातवें दिन आराम करना। ख़ाह हल चलाना हो या फ़सल काटनी हो तो भी सातवें दिन आराम करना। \p \v 22 गंदुम की फ़सल की कटाई की ईद \f + \fr 34:22 \ft सितंबर ता अक्तूबर। \f* उस वक़्त मनाना जब तू गेहूँ की पहली फ़सल काटेगा। अंगूर और फल जमा करने की ईद इसराईली साल के इख़्तिताम पर मनानी है। \v 23 लाज़िम है कि तेरे तमाम मर्द साल में तीन मरतबा रब क़ादिरे-मुतलक़ के सामने जो इसराईल का ख़ुदा है हाज़िर हों। \v 24 मैं तेरे आगे आगे क़ौमों को मुल्क से निकाल दूँगा और तेरी सरहद्दें बढ़ाता जाऊँगा। फिर जब तू साल में तीन मरतबा रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर आएगा तो कोई भी तेरे मुल्क का लालच नहीं करेगा। \p \v 25 जब तू किसी जानवर को ज़बह करके क़ुरबानी के तौर पर पेश करता है तो उसके ख़ून के साथ ऐसी रोटी पेश न करना जिसमें ख़मीर हो। ईदे-फ़सह की क़ुरबानी से अगली सुबह तक कुछ बाक़ी न रहे। \p \v 26 अपनी ज़मीन की पहली पैदावार में से बेहतरीन हिस्सा रब अपने ख़ुदा के घर में ले आना। \p बकरी या भेड़ के बच्चे को उस की माँ के दूध में न पकाना।” \s1 मूसा के चेहरे पर चमक \p \v 27 रब ने मूसा से कहा, “यह तमाम बातें लिख ले, क्योंकि यह उस अहद की बुनियाद हैं जो मैंने तेरे और इसराईल के साथ बाँधा है।” \p \v 28 मूसा चालीस दिन और चालीस रात वहीं रब के हुज़ूर रहा। इस दौरान न उसने कुछ खाया न पिया। उसने पत्थर की तख़्तियों पर अहद के दस अहकाम लिखे। \p \v 29 इसके बाद मूसा शरीअत की दोनों तख़्तियों को हाथ में लिए हुए सीना पहाड़ से उतरा। उसके चेहरे की जिल्द चमक रही थी, क्योंकि उसने रब से बात की थी। लेकिन उसे ख़ुद इसका इल्म नहीं था। \v 30 जब हारून और तमाम इसराईलियों ने देखा कि मूसा का चेहरा चमक रहा है तो वह उसके पास आने से डर गए। \v 31 लेकिन उसने उन्हें बुलाया तो हारून और जमात के तमाम सरदार उसके पास आए, और उसने उनसे बात की। \v 32 बाद में बाक़ी इसराईली भी आए, और मूसा ने उन्हें तमाम अहकाम सुनाए जो रब ने उसे कोहे-सीना पर दिए थे। \p \v 33 यह सब कुछ कहने के बाद मूसा ने अपने चेहरे पर निक़ाब डाल लिया। \v 34 जब भी वह रब से बात करने के लिए मुलाक़ात के ख़ैमे में जाता तो निक़ाब को ख़ैमे से निकलते वक़्त तक उतार लेता। और जब वह निकलकर इसराईलियों को रब से मिले हुए अहकाम सुनाता \v 35 तो वह देखते कि उसके चेहरे की जिल्द चमक रही है। इसके बाद मूसा दुबारा निक़ाब को अपने चेहरे पर डाल लेता, और वह उस वक़्त तक चेहरे पर रहता जब तक मूसा रब से बात करने के लिए मुलाक़ात के ख़ैमे में न जाता था। \c 35 \s1 सबत का दिन \p \v 1 मूसा ने इसराईल की पूरी जमात को इकट्ठा करके कहा, “रब ने तुमको यह हुक्म दिए हैं : \v 2 छः दिन काम-काज किया जाए, लेकिन सातवाँ दिन मख़सूसो-मुक़द्दस हो। वह रब के लिए आराम का सबत है। जो भी इस दिन काम करे उसे सज़ाए-मौत दी जाए। \v 3 हफ़ते के दिन अपने तमाम घरों में आग तक न जलाना।” \s1 मुलाक़ात के ख़ैमे के लिए सामान \p \v 4 मूसा ने इसराईल की पूरी जमात से कहा, “रब ने हिदायत दी है \v 5 कि जो कुछ तुम्हारे पास है उसमें से हदिये लाकर रब को उठानेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश करो। जो भी दिली ख़ुशी से देना चाहे वह इन चीज़ों में से कुछ दे : सोना, चाँदी, पीतल; \v 6 नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा, बारीक कतान, बकरी के बाल, \v 7 मेंढों की सुर्ख़ रँगी हुई खालें, तख़स की खालें, कीकर की लकड़ी, \v 8 शमादान के लिए ज़ैतून का तेल, मसह करने के लिए तेल और ख़ुशबूदार बख़ूर के लिए मसाले, \v 9 अक़ीक़े-अहमर और दीगर जवाहर जो इमामे-आज़म के बालापोश और सीने के कीसे में जड़े जाएंगे। \p \v 10 तुममें से जितने माहिर कारीगर हैं वह आकर वह कुछ बनाएँ जो रब ने फ़रमाया \v 11 यानी ख़ैमा और वह ग़िलाफ़ जो उसके ऊपर लगाए जाएंगे, हुकें, दीवारों के तख़्ते, शहतीर, सतून और पाए, \v 12 अहद का संदूक़, उसे उठाने की लकड़ियाँ, उसके कफ़्फ़ारे का ढकना, मुक़द्दसतरीन कमरे के दरवाज़े का परदा, \v 13 मख़सूस रोटियों की मेज़, उसे उठाने की लकड़ियाँ, उसका सारा सामान और रोटियाँ, \v 14 शमादान और उस पर रखने के चराग़ उसके सामान समेत, शमादान के लिए तेल, \v 15 बख़ूर जलाने की क़ुरबानगाह, उसे उठाने की लकड़ियाँ, मसह का तेल, ख़ुशबूदार बख़ूर, मुक़द्दस ख़ैमे के दरवाज़े का परदा, \v 16 जानवरों को चढ़ाने की क़ुरबानगाह, उसका पीतल का जंगला, उसे उठाने की लकड़ियाँ और बाक़ी सारा सामान, धोने का हौज़ और वह ढाँचा जिस पर हौज़ रखा जाता है, \v 17 चारदीवारी के परदे उनके खंबों और पाइयों समेत, सहन के दरवाज़े का परदा, \v 18 ख़ैमे और चारदीवारी की मेख़ें और रस्से, \v 19 और वह मुक़द्दस लिबास जो हारून और उसके बेटे मक़दिस में ख़िदमत करने के लिए पहनते हैं।” \p \v 20 यह सुनकर इसराईल की पूरी जमात मूसा के पास से चली गई। \v 21 और जो जो दिली ख़ुशी से देना चाहता था वह मुलाक़ात के ख़ैमे, उसके सामान या इमामों के कपड़ों के लिए कोई हदिया लेकर वापस आया। \v 22 रब के हदिये के लिए मर्द और ख़वातीन दिली ख़ुशी से अपने सोने के ज़ेवरात मसलन जड़ाऊ पिनें, बालियाँ और छल्ले ले आए। \v 23 जिस जिसके पास दरकार चीज़ों में से कुछ था वह उसे मूसा के पास ले आया यानी नीले, क़िरमिज़ी और अरग़वानी रंग का धागा, बारीक कतान, बकरी के बाल, मेंढों की सुर्ख़ रँगी हुई खालें और तख़स की खालें। \v 24 चाँदी, पीतल और कीकर की लकड़ी भी हदिये के तौर पर लाई गई। \v 25 और जितनी औरतें कातने में माहिर थीं वह अपनी काती हुई चीज़ें ले आईं यानी नीले, क़िरमिज़ी और अरग़वानी रंग का धागा और बारीक कतान। \v 26 इसी तरह जो जो औरत बकरी के बाल कातने में माहिर थी और दिली ख़ुशी से मक़दिस के लिए काम करना चाहती थी वह यह कातकर ले आई। \v 27 सरदार अक़ीक़े-अहमर और दीगर जवाहर ले आए जो इमामे-आज़म के बालापोश और सीने के कीसे के लिए दरकार थे। \v 28 वह शमादान, मसह के तेल और ख़ुशबूदार बख़ूर के लिए मसाले और ज़ैतून का तेल भी ले आए। \p \v 29 यों इसराईल के तमाम मर्द और ख़वातीन जो दिली ख़ुशी से रब को कुछ देना चाहते थे उस सारे काम के लिए हदिये ले आए जो रब ने मूसा की मारिफ़त करने को कहा था। \s1 बज़लियेल और उहलियाब \p \v 30 फिर मूसा ने इसराईलियों से कहा, “रब ने यहूदाह के क़बीले के बज़लियेल बिन ऊरी बिन हूर को चुन लिया है। \v 31 उसने उसे इलाही रूह से मामूर करके हिकमत, समझ और तामीर के हर काम के लिए दरकार इल्म दे दिया है। \v 32 वह नक़्शे बनाकर उनके मुताबिक़ सोने, चाँदी और पीतल की चीज़ें बना सकता है। \v 33 वह जवाहर को काटकर जड़ने की क़ाबिलियत रखता है। वह लकड़ी को तराशकर उससे मुख़्तलिफ़ चीज़ें बना सकता है। वह बहुत सारे और कामों में भी महारत रखता है। \v 34 साथ ही रब ने उसे और दान के क़बीले के उहलियाब बिन अख़ी-समक को दूसरों को सिखाने की क़ाबिलियत भी दी है। \v 35 उसने उन्हें वह महारत और हिकमत दी है जो हर काम के लिए दरकार है यानी कारीगरी के हर काम के लिए, कढ़ाई के काम के लिए, नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे और बारीक कतान से कपड़ा बनाने के लिए और बुनाई के काम के लिए। वह माहिर कारीगर हैं और नक़्शे भी बना सकते हैं। \c 36 \p \v 1 लाज़िम है कि बज़लियेल, उहलियाब और बाक़ी कारीगर जिनको रब ने मक़दिस की तामीर के लिए हिकमत और समझ दी है सब कुछ ऐन उन हिदायात के मुताबिक़ बनाएँ जो रब ने दी हैं।” \s1 इसराईली दिली ख़ुशी से देते हैं \p \v 2 मूसा ने बज़लियेल और उहलियाब को बुलाया। साथ ही उसने हर उस कारीगर को भी बुलाया जिसे रब ने मक़दिस की तामीर के लिए हिकमत और महारत दी थी और जो ख़ुशी से आना और यह काम करना चाहता था। \v 3 उन्हें मूसा से तमाम हदिये मिले जो इसराईली मक़दिस की तामीर के लिए लाए थे। \p इसके बाद भी लोग रोज़ बरोज़ सुबह के वक़्त हदिये लाते रहे। \v 4 आख़िरकार तमाम कारीगर जो मक़दिस बनाने के काम में लगे थे अपना काम छोड़कर मूसा के पास आए। \v 5 उन्होंने कहा, “लोग हद से ज़्यादा ला रहे हैं। जिस काम का हुक्म रब ने दिया है उसके लिए इतने सामान की ज़रूरत नहीं है।” \v 6 तब मूसा ने पूरी ख़ैमागाह में एलान करवा दिया कि कोई मर्द या औरत मक़दिस की तामीर के लिए अब कुछ न लाए। \p यों उन्हें मज़ीद चीज़ें लाने से रोका गया, \v 7 क्योंकि काम के लिए सामान ज़रूरत से ज़्यादा हो गया था। \s1 मुलाक़ात का ख़ैमा \p \v 8 जो कारीगर महारत रखते थे उन्होंने ख़ैमे को बनाया। उन्होंने बारीक कतान और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी धागे से दस परदे बनाए। परदों पर किसी माहिर कारीगर के कढ़ाई के काम से करूबी फ़रिश्तों का डिज़ायन बनाया गया। \v 9 हर परदे की लंबाई 42 फ़ुट और चौड़ाई 6 फ़ुट थी। \v 10 पाँच परदों के लंबे हाशिये एक दूसरे के साथ जोड़े गए और इसी तरह बाक़ी पाँच भी। यों दो बड़े टुकड़े बन गए। \v 11 दोनों टुकड़ों को एक दूसरे के साथ मिलाने के लिए उन्होंने नीले धागे के हलक़े बनाए। यह हलक़े हर टुकड़े के 42 फ़ुटवाले एक किनारे पर लगाए गए, \v 12 एक टुकड़े के हाशिये पर 50 हलक़े और दूसरे पर भी उतने ही हलक़े। इन दो हाशियों के हलक़े एक दूसरे के आमने-सामने थे। \v 13 फिर बज़लियेल ने सोने की 50 हुकें बनाकर उनसे आमने-सामने के हलक़ों को एक दूसरे के साथ मिलाया। यों दोनों टुकड़ों के जोड़ने से ख़ैमा बन गया। \p \v 14 उसने बकरी के बालों से भी 11 परदे बनाए जिन्हें कपड़ेवाले ख़ैमे के ऊपर रखना था। \v 15 हर परदे की लंबाई 45 फ़ुट और चौड़ाई 6 फ़ुट थी। \v 16 पाँच परदों के लंबे हाशिये एक दूसरे के साथ जोड़े गए और इस तरह बाक़ी छः भी। \v 17 इन दोनों टुकड़ों को मिलाने के लिए उसने हर टुकड़े के 45 फ़ुटवाले एक किनारे पर पचास पचास हलक़े लगाए। \v 18 फिर पीतल की 50 हुकें बनाकर उसने दोनों हिस्से मिलाए। \p \v 19 एक दूसरे के ऊपर के दोनों ख़ैमों की हिफ़ाज़त के लिए बज़लियेल ने दो और ग़िलाफ़ बनाए। बकरी के बालों के ख़ैमे पर रखने के लिए उसने मेंढों की सुर्ख़ रँगी हुई खालें जोड़ दीं और उसके ऊपर रखने के लिए तख़स की खालें मिलाईं। \p \v 20 इसके बाद उसने कीकर की लकड़ी के तख़्ते बनाए जो ख़ैमे की दीवारों का काम देते थे। \v 21 हर तख़्ते की ऊँचाई 15 फ़ुट थी और चौड़ाई सवा दो फ़ुट। \v 22 हर तख़्ते के नीचे दो दो चूलें थीं। इन चूलों से हर तख़्ते को उसके पाइयों के साथ जोड़ा जाता था ताकि तख़्ता खड़ा रहे। \v 23 ख़ैमे की जुनूबी दीवार के लिए 20 तख़्ते बनाए गए \v 24 और साथ ही चाँदी के 40 पाए भी जिन पर तख़्ते खड़े किए जाते थे। हर तख़्ते के नीचे दो पाए थे, और हर पाए में एक चूल लगती थी। \v 25 इसी तरह ख़ैमे की शिमाली दीवार के लिए भी 20 तख़्ते बनाए गए \v 26 और साथ ही चाँदी के 40 पाए जो तख़्तों को खड़ा करने के लिए थे। हर तख़्ते के नीचे दो पाए थे। \v 27 ख़ैमे की पिछली यानी मग़रिबी दीवार के लिए छः तख़्ते बनाए गए। \v 28 इस दीवार को शिमाली और जुनूबी दीवारों के साथ जोड़ने के लिए कोनेवाले दो तख़्ते बनाए गए। \v 29 इन दो तख़्तों में नीचे से लेकर ऊपर तक कोना था ताकि एक से शिमाली दीवार मग़रिबी दीवार के साथ जुड़ जाए और दूसरे से जुनूबी दीवार मग़रिबी दीवार के साथ। इनके ऊपर के सिरे कड़ों से मज़बूत किए गए। \v 30 यों पिछले यानी मग़रिबी तख़्तों की पूरी तादाद 8 थी और इनके लिए चाँदी के पाइयों की तादाद 16, हर तख़्ते के नीचे दो पाए। \p \v 31-32 फिर बज़लियेल ने कीकर की लकड़ी के शहतीर बनाए, तीनों दीवारों के लिए पाँच पाँच शहतीर। वह हर दीवार के तख़्तों पर यों लगाने के लिए थे कि उनसे तख़्ते एक दूसरे के साथ मिलाए जाएँ। \v 33 दरमियानी शहतीर यों बनाया गया कि वह दीवार की आधी ऊँचाई पर दीवार के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लग सकता था। \v 34 उसने तमाम तख़्तों और शहतीरों पर सोना चढ़ाया। शहतीरों को तख़्तों के साथ लगाने के लिए उसने सोने के कड़े बनाए जो तख़्तों में लगाने थे। \s1 मुक़द्दस ख़ैमे के परदे \p \v 35 अब बज़लियेल ने एक और परदा बनाया। उसके लिए भी बारीक कतान और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा इस्तेमाल हुआ। उस पर भी किसी माहिर कारीगर के कढ़ाई के काम से करूबी फ़रिश्तों का डिज़ायन बनाया गया। \v 36 फिर उसने परदे को लटकाने के लिए कीकर की लकड़ी के चार सतून, सोने की हुकें और चाँदी के चार पाए बनाए। सतूनों पर सोना चढ़ाया गया। \p \v 37 बज़लियेल ने ख़ैमे के दरवाज़े के लिए भी परदा बनाया। वह भी बारीक कतान और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे से बनाया गया, और उस पर कढ़ाई का काम किया गया। \v 38 इस परदे को लटकाने के लिए उसने सोने की हुकें और कीकर की लकड़ी के पाँच सतून बनाए। सतूनों के ऊपर के सिरों और पट्टियों पर सोना चढ़ाया गया जबकि उनके पाए पीतल के थे। \c 37 \s1 अहद का संदूक़ \p \v 1 बज़लियेल ने कीकर की लकड़ी का संदूक़ बनाया। उस की लंबाई पौने चार फ़ुट थी जबकि उस की चौड़ाई और ऊँचाई सवा दो दो फ़ुट थी। \v 2 उसने पूरे संदूक़ पर अंदर और बाहर से ख़ालिस सोना चढ़ाया। ऊपर की सतह के इर्दगिर्द उसने सोने की झालर लगाई। \v 3 संदूक़ को उठाने के लिए उसने सोने के चार कड़े ढालकर उन्हें संदूक़ के चारपाइयों पर लगाया। दोनों तरफ़ दो दो कड़े थे। \v 4 फिर उसने कीकर की दो लकड़ियाँ संदूक़ को उठाने के लिए तैयार कीं और उन पर सोना चढ़ाया। \v 5 उसने इन लकड़ियों को दोनों तरफ़ के कड़ों में डाल दिया ताकि उनसे संदूक़ को उठाया जा सके। \p \v 6 बज़लियेल ने संदूक़ का ढकना ख़ालिस सोने का बनाया। उस की लंबाई पौने चार फ़ुट और चौड़ाई सवा दो फ़ुट थी। \v 7-8 फिर उसने दो करूबी फ़रिश्ते सोने से घड़कर बनाए जो ढकने के दोनों सिरों पर खड़े थे। यह दो फ़रिश्ते और ढकना एक ही टुकड़े से बनाए गए। \v 9 फ़रिश्तों के पर यों ऊपर की तरफ़ फैले हुए थे कि वह ढकने को पनाह देते थे। उनके मुँह एक दूसरे की तरफ़ किए हुए थे, और वह ढकने की तरफ़ देखते थे। \s1 मख़सूस रोटियों की मेज़ \p \v 10 इसके बाद बज़लियेल ने कीकर की लकड़ी की मेज़ बनाई। उस की लंबाई तीन फ़ुट, चौड़ाई डेढ़ फ़ुट और ऊँचाई सवा दो फ़ुट थी। \v 11 उसने उस पर ख़ालिस सोना चढ़ाकर उसके इर्दगिर्द सोने की झालर लगाई। \v 12 मेज़ की ऊपर की सतह पर उसने चौखटा भी लगाया जिसकी ऊँचाई तीन इंच थी और जिस पर सोने की झालर लगी थी। \v 13 अब उसने सोने के चार कड़े ढालकर उन्हें चारों कोनों पर लगाया जहाँ मेज़ के पाए लगे थे। \v 14 यह कड़े मेज़ की सतह पर लगे चौखटे के नीचे लगाए गए। उनमें वह लकड़ियाँ डालनी थीं जिनसे मेज़ को उठाना था। \v 15 बज़लियेल ने यह लकड़ियाँ भी कीकर से बनाईं और उन पर सोना चढ़ाया। \p \v 16 आख़िरकार उसने ख़ालिस सोने के वह थाल, प्याले, मै की नज़रें पेश करने के बरतन और मरतबान बनाए जो उस पर रखे जाते थे। \s1 शमादान \p \v 17 फिर बज़लियेल ने ख़ालिस सोने का शमादान बनाया। उसका पाया और डंडी घड़कर बनाए गए। उस की प्यालियाँ जो फूलों और कलियों की शक्ल की थीं पाए और डंडी के साथ एक ही टुकड़ा थीं। \v 18 डंडी से दाईं और बाईं तरफ़ तीन तीन शाख़ें निकलती थीं। \v 19 हर शाख़ पर तीन प्यालियाँ लगी थीं जो बादाम की कलियों और फूलों की शक्ल की थीं। \v 20 शमादान की डंडी पर भी इस क़िस्म की प्यालियाँ लगी थीं, लेकिन तादाद में चार। \v 21 इनमें से तीन प्यालियाँ दाएँ बाएँ की छः शाख़ों के नीचे लगी थीं। वह यों लगी थीं कि हर प्याली से दो शाख़ें निकलती थीं। \v 22 शाख़ें और प्यालियाँ बल्कि पूरा शमादान ख़ालिस सोने के एक ही टुकड़े से घड़कर बनाया गया। \p \v 23 बज़लियेल ने शमादान के लिए ख़ालिस सोने के सात चराग़ बनाए। उसने बत्ती कतरने की क़ैंचियाँ और जलते कोयले के लिए छोटे बरतन भी ख़ालिस सोने से बनाए। \v 24 शमादान और उसके तमाम सामान के लिए पूरे 34 किलोग्राम ख़ालिस सोना इस्तेमाल हुआ। \s1 बख़ूर जलाने की क़ुरबानगाह \p \v 25 बज़लियेल ने कीकर की लकड़ी की क़ुरबानगाह बनाई जो बख़ूर जलाने के लिए थी। वह डेढ़ फ़ुट लंबी, इतनी ही चौड़ी और तीन फ़ुट ऊँची थी। उसके चार कोनों में से सींग निकलते थे जो क़ुरबानगाह के साथ एक ही टुकड़े से बनाए गए थे। \v 26 उस की ऊपर की सतह, उसके चार पहलुओं और उसके सींगों पर ख़ालिस सोना चढ़ाया गया। ऊपर की सतह के इर्दगिर्द बज़लियेल ने सोने की झालर बनाई। \v 27 सोने के दो कड़े बनाकर उसने उन्हें इस झालर के नीचे एक दूसरे के मुक़ाबिल पहलुओं पर लगाया। इन कड़ों में क़ुरबानगाह को उठाने की लकड़ियाँ डाली गईं। \v 28 यह लकड़ियाँ कीकर की थीं, और उन पर भी सोना चढ़ाया गया। \p \v 29 बज़लियेल ने मसह करने का मुक़द्दस तेल और ख़ुशबूदार ख़ालिस बख़ूर भी बनाया। यह इत्रसाज़ का काम था। \c 38 \s1 जानवरों को पेश करने की क़ुरबानगाह \p \v 1 बज़लियेल ने कीकर की लकड़ी की एक और क़ुरबानगाह बनाई जो भस्म होनेवाली क़ुरबानियों के लिए थी। उस की ऊँचाई साढ़े चार फ़ुट, उस की लंबाई और चौड़ाई साढ़े सात सात फ़ुट थी। \v 2 उसके ऊपर चारों कोनों में से सींग निकलते थे। सींग और क़ुरबानगाह एक ही टुकड़े के थे, और उस पर पीतल चढ़ाया गया। \v 3 उसका तमाम साज़ो-सामान और बरतन भी पीतल के थे यानी राख को उठाकर ले जाने की बालटियाँ, बेलचे, काँटे, जलते हुए कोयले के लिए बरतन और छिड़काव के कटोरे। \p \v 4 क़ुरबानगाह को उठाने के लिए उसने पीतल का जंगला बनाया। वह ऊपर से खुला था और यों बनाया गया कि जब क़ुरबानगाह उसमें रखी जाए तो वह उस किनारे तक पहुँचे जो क़ुरबानगाह की आधी ऊँचाई पर लगी थी। \v 5 उसने क़ुरबानगाह को उठाने के लिए चार कड़े बनाकर उन्हें जंगले के चार कोनों पर लगाया। \v 6 फिर उसने कीकर की दो लकड़ियाँ बनाकर उन पर पीतल चढ़ाया \v 7 और क़ुरबानगाह के दोनों तरफ़ लगे इन कड़ों में डाल दीं। यों उसे उठाया जा सकता था। क़ुरबानगाह लकड़ी की थी लेकिन खोखली थी। \p \v 8 बज़लियेल ने धोने का हौज़ और उसका ढाँचा भी पीतल से बनाया। उसका पीतल उन औरतों के आईनों से मिला था जो मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर ख़िदमत करती थीं। \s1 ख़ैमे का सहन \p \v 9 फिर बज़लियेल ने सहन बनाया। उस की चारदीवारी बारीक कतान के कपड़े से बनाई गई। चारदीवारी की लंबाई जुनूब की तरफ़ 150 फ़ुट थी। \v 10 कपड़े को लगाने के लिए चाँदी की हुकें, पट्टियाँ, लकड़ी के खंबे और उनके पाए बनाए गए। \v 11 चारदीवारी शिमाल की तरफ़ भी इसी तरह बनाई गई। \v 12 ख़ैमे के पीछे मग़रिब की तरफ़ चारदीवारी की चौड़ाई 75 फ़ुट थी। कपड़े के अलावा उसके लिए 10 खंबे, 10 पाए और कपड़ा लगाने के लिए चाँदी की हुकें और पट्टियाँ बनाई गईं। \v 13 सामने, मशरिक़ की तरफ़ जहाँ से सूरज तुलू होता है चारदीवारी की चौड़ाई भी 75 फ़ुट थी। \v 14-15 कपड़ा दरवाज़े के दाईं तरफ़ साढ़े 22 फ़ुट चौड़ा था और उसके बाईं तरफ़ भी उतना ही चौड़ा। उसे दोनों तरफ़ तीन तीन खंबों के साथ लगाया गया जो पीतल के पाइयों पर खड़े थे। \v 16 चारदीवारी के तमाम परदों के लिए बारीक कतान इस्तेमाल हुआ। \v 17 खंबे पीतल के पाइयों पर खड़े थे, और परदे चाँदी की हुकों और पट्टियों से खंबों के साथ लगे थे। खंबों के ऊपर के सिरों पर चाँदी चढ़ाई गई थी। सहन के तमाम खंबों पर चाँदी की पट्टियाँ लगी थीं। \p \v 18 चारदीवारी के दरवाज़े का परदा नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे और बारीक कतान से बनाया गया, और उस पर कढ़ाई का काम किया गया। वह 30 फ़ुट चौड़ा और चारदीवारी के दूसरे परदों की तरह साढ़े सात फ़ुट ऊँचा था। \v 19 उसके चार खंबे और पीतल के चार पाए थे। उस की हुकें और पट्टियाँ चाँदी की थीं, और खंबों के ऊपर के सिरों पर चाँदी चढ़ाई गई थी। \v 20 ख़ैमे और चारदीवारी की तमाम मेख़ें पीतल की थीं। \s1 ख़ैमे का तामीरी सामान \p \v 21 ज़ैल में उस सामान की फ़हरिस्त है जो मक़दिस की तामीर के लिए इस्तेमाल हुआ। मूसा के हुक्म पर इमामे-आज़म हारून के बेटे इतमर ने लावियों की मारिफ़त यह फ़हरिस्त तैयार की। \v 22 (यहूदाह के क़बीले के बज़लियेल बिन ऊरी बिन हूर ने वह सब कुछ बनाया जो रब ने मूसा को बताया था। \v 23 उसके साथ दान के क़बीले का उहलियाब बिन अख़ी-समक था जो कारीगरी के हर काम और कढ़ाई के काम में माहिर था। वह नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे और बारीक कतान से कपड़ा बनाने में भी माहिर था।) \p \v 24 उस सोने का वज़न जो लोगों के हदियों से जमा हुआ और मक़दिस की तामीर के लिए इस्तेमाल हुआ तक़रीबन 1,000 किलोग्राम था (उसे मक़दिस के बाटों के हिसाब से तोला गया)। \p \v 25 तामीर के लिए चाँदी जो मर्दुमशुमारी के हिसाब से वसूल हुई, उसका वज़न तक़रीबन 3,430 किलोग्राम था (उसे भी मक़दिस के बाटों के हिसाब से तोला गया)। \v 26 जिन मर्दों की उम्र 20 साल या इससे ज़ायद थी उन्हें चाँदी का आधा आधा सिक्का देना पड़ा। मर्दों की कुल तादाद 6,03,550 थी। \v 27 चूँकि दीवारों के तख़्तों के पाए और मुक़द्दसतरीन कमरे के दरवाज़े के सतूनों के पाए चाँदी के थे इसलिए तक़रीबन पूरी चाँदी इन 100 पाइयों के लिए सर्फ़ हुई। \v 28 तक़रीबन 30 किलोग्राम चाँदी बच गई। इससे चारदीवारी के खंबों की हुकें और पट्टियाँ बनाई गईं, और यह खंबों के ऊपर के सिरों पर भी चढ़ाई गई। \p \v 29 जो पीतल हदियों से जमा हुआ उसका वज़न तक़रीबन 2,425 किलोग्राम था। \v 30 ख़ैमे के दरवाज़े के पाए, जानवरों को चढ़ाने की क़ुरबानगाह, उसका जंगला, बरतन और साज़ो-सामान, \v 31 चारदीवारी के पाए, सहन के दरवाज़े के पाए और ख़ैमे और चारदीवारी की तमाम मेख़ें इसी से बनाई गईं। \c 39 \s1 हारून का बालापोश \p \v 1 बज़लियेल की हिदायत पर कारीगरों ने नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा लेकर मक़दिस में ख़िदमत के लिए लिबास बनाए। उन्होंने हारून के मुक़द्दस कपड़े उन हिदायात के ऐन मुताबिक़ बनाए जो रब ने मूसा को दी थीं। \v 2 उन्होंने इमामे-आज़म का बालापोश बनाने के लिए सोना, नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा और बारीक कतान इस्तेमाल किया। \v 3 उन्होंने सोने को कूट कूटकर वर्क़ बनाया और फिर उसे काटकर धागे बनाए। जब नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे और बारीक कतान से कपड़ा बनाया गया तो सोने का यह धागा महारत से कढ़ाई के काम में इस्तेमाल हुआ। \v 4 उन्होंने बालापोश के लिए दो पट्टियाँ बनाईं और उन्हें बालापोश के कंधों पर रखकर सामने और पीछे से बालापोश के साथ लगाइं। \v 5 पटका भी बनाया गया जिससे बालापोश को बाँधा जाता था। इसके लिए भी सोना, नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का धागा और बारीक कतान इस्तेमाल हुआ। यह उन हिदायात के ऐन मुताबिक़ हुआ जो रब ने मूसा को दी थीं। \v 6 फिर उन्होंने अक़ीक़े-अहमर के दो पत्थर चुन लिए और उन्हें सोने के ख़ानों में जड़कर उन पर इसराईल के बारह बेटों के नाम कंदा किए। यह नाम जौहरों पर उस तरह कंदा किए गए जिस तरह मुहर कंदा की जाती है। \v 7 उन्होंने पत्थरों को बालापोश की दो पट्टियों पर यों लगाया कि वह हारून के कंधों पर रब को इसराईलियों की याद दिलाते रहें। यह सब कुछ रब की दी गई हिदायात के ऐन मुताबिक़ हुआ। \s1 सीने का कीसा \p \v 8 इसके बाद उन्होंने सीने का कीसा बनाया। यह माहिर कारीगर का काम था और उन्हीं चीज़ों से बना जिनसे हारून का बालापोश भी बना था यानी सोने और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे और बारीक कतान से। \v 9 जब कपड़े को एक दफ़ा तह किया गया तो कीसे की लंबाई और चौड़ाई नौ नौ इंच थी। \v 10 उन्होंने उस पर चार क़तारों में जवाहर जड़े। हर क़तार में तीन तीन जौहर थे। पहली क़तार में लाल, ज़बरजद और ज़ुमुर्रद। \v 11 दूसरी में फ़ीरोज़ा, संगे-लाजवर्द और हजरुल-क़मर। \v 12 तीसरी में ज़रक़ोन, अक़ीक़ और याक़ूते-अरग़वानी। \v 13 चौथी में पुखराज, अक़ीक़े-अहमर और यशब। हर जौहर सोने के ख़ाने में जड़ा हुआ था। \v 14 यह बारह जवाहर इसराईल के बारह क़बीलों की नुमाइंदगी करते थे। एक एक जौहर पर एक क़बीले का नाम कंदा किया गया, और यह नाम उस तरह कंदा किए गए जिस तरह मुहर कंदा की जाती है। \p \v 15 अब उन्होंने सीने के कीसे के लिए ख़ालिस सोने की दो ज़ंजीरें बनाईं जो डोरी की तरह गुंधी हुई थीं। \v 16 साथ साथ उन्होंने सोने के दो ख़ाने और दो कड़े भी बनाए। उन्होंने यह कड़े कीसे के ऊपर के दो कोनों पर लगाए। \v 17 फिर दोनों ज़ंजीरें उन दो कड़ों के साथ लगाई गईं। \v 18 उनके दूसरे सिरे बालापोश की कंधोंवाली पट्टियों के दो ख़ानों के साथ जोड़ दिए गए, फिर सामने की तरफ़ लगाए गए। \v 19 उन्होंने कीसे के निचले दो कोनों पर भी सोने के दो कड़े लगाए। वह अंदर, बालापोश की तरफ़ लगे थे। \v 20 अब उन्होंने दो और कड़े बनाकर बालापोश की कंधोंवाली पट्टियों पर लगाए। यह भी सामने की तरफ़ लगे थे लेकिन नीचे, बालापोश के पटके के ऊपर ही। \v 21 उन्होंने सीने के कीसे के निचले कड़े नीली डोरी से बालापोश के इन निचले कड़ों के साथ बाँधे। यों कीसा पटके के ऊपर अच्छी तरह सीने के साथ लगा रहा। यह उन हिदायात के ऐन मुताबिक़ हुआ जो रब ने मूसा को दी थीं। \s1 हारून का चोग़ा \p \v 22 फिर कारीगरों ने चोग़ा बुना। वह पूरी तरह नीले धागे से बनाया गया। चोग़े को बालापोश से पहले पहनना था। \v 23 उसके गरेबान को बुने हुए कालर से मज़बूत किया गया ताकि वह न फटे। \v 24 उन्होंने नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे से अनार बनाकर उन्हें चोग़े के दामन में लगा दिया। \v 25 उनके दरमियान ख़ालिस सोने की घंटियाँ लगाई गईं। \v 26 दामन में अनार और घंटियाँ बारी बारी लगाई गईं। लाज़िम था कि हारून ख़िदमत करने के लिए हमेशा यह चोग़ा पहने। रब ने मूसा को यही हुक्म दिया था। \s1 ख़िदमत के लिए दीगर लिबास \p \v 27 कारीगरों ने हारून और उसके बेटों के लिए बारीक कतान के ज़ेरजामे बनाए। यह बुननेवाले का काम था। \v 28 साथ साथ उन्होंने बारीक कतान की पगड़ियाँ और बारीक कतान के पाजामे बनाए। \v 29 कमरबंद को बारीक कतान और नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे से बनाया गया। कढ़ाई करनेवालों ने इस पर काम किया। सब कुछ उन हिदायात के मुताबिक़ बनाया गया जो रब ने मूसा को दी थीं। \p \v 30 उन्होंने मुक़द्दस ताज यानी ख़ालिस सोने की तख़्ती बनाई और उस पर यह अलफ़ाज़ कंदा किए, ‘रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस।’ \v 31 फिर उन्होंने इसे नीली डोरी से पगड़ी के सामनेवाले हिस्से से लगा दिया। यह भी उन हिदायात के मुताबिक़ बनाया गया जो रब ने मूसा को दी थीं। \s1 सारा सामान मूसा को दिखाया जाता है \p \v 32 आख़िरकार मक़दिस का काम मुकम्मल हुआ। इसराईलियों ने सब कुछ उन हिदायात के मुताबिक़ बनाया था जो रब ने मूसा को दी थीं। \v 33 वह मक़दिस की तमाम चीज़ें मूसा के पास ले आए यानी मुक़द्दस ख़ैमा और उसका सारा सामान, उस की हुकें, दीवारों के तख़्ते, शहतीर, सतून और पाए, \v 34 ख़ैमे पर मेंढों की सुर्ख़ रँगी हुई खालों का ग़िलाफ़ और तख़स की खालों का ग़िलाफ़, मुक़द्दसतरीन कमरे के दरवाज़े का परदा, \v 35 अहद का संदूक़ जिसमें शरीअत की तख़्तियाँ रखनी थीं, उसे उठाने की लकड़ियाँ और उसका ढकना, \v 36 मख़सूस रोटियों की मेज़, उसका सारा सामान और रोटियाँ, \v 37 ख़ालिस सोने का शमादान और उस पर रखने के चराग़ उसके सारे सामान समेत, शमादान के लिए तेल, \v 38 बख़ूर जलाने की सोने की क़ुरबानगाह, मसह का तेल, ख़ुशबूदार बख़ूर, मुक़द्दस ख़ैमे के दरवाज़े का परदा, \v 39 जानवरों को चढ़ाने की पीतल की क़ुरबानगाह, उसका पीतल का जंगला, उसे उठाने की लकड़ियाँ और बाक़ी सारा सामान, धोने का हौज़ और वह ढाँचा जिस पर हौज़ रखना था, \v 40 चारदीवारी के परदे उनके खंबों और पाइयों समेत, सहन के दरवाज़े का परदा, चारदीवारी के रस्से और मेख़ें, मुलाक़ात के ख़ैमे में ख़िदमत करने का बाक़ी सारा सामान \v 41 और मक़दिस में ख़िदमत करने के वह मुक़द्दस लिबास जो हारून और उसके बेटों को पहनने थे। \p \v 42 सब कुछ उन हिदायात के मुताबिक़ बनाया गया था जो रब ने मूसा को दी थीं। \v 43 मूसा ने तमाम चीज़ों का मुआयना किया और मालूम किया कि उन्होंने सब कुछ रब की हिदायात के मुताबिक़ बनाया था। तब उसने उन्हें बरकत दी। \c 40 \s1 मक़दिस को खड़ा करने की हिदायात \p \v 1 फिर रब ने मूसा से कहा, \v 2 “पहले महीने की पहली तारीख़ को मुलाक़ात का ख़ैमा खड़ा करना। \v 3 अहद का संदूक़ जिसमें शरीअत की तख़्तियाँ हैं मुक़द्दसतरीन कमरे में रखकर उसके दरवाज़े का परदा लगाना। \v 4 इसके बाद मख़सूस रोटियों की मेज़ मुक़द्दस कमरे में लाकर उस पर तमाम ज़रूरी सामान रखना। उस कमरे में शमादान भी ले आना और उस पर उसके चराग़ रखना। \v 5 बख़ूर की सोने की क़ुरबानगाह उस परदे के सामने रखना जिसके पीछे अहद का संदूक़ है। फिर ख़ैमे में दाख़िल होने के दरवाज़े पर परदा लगाना। \v 6 जानवरों को चढ़ाने की क़ुरबानगाह सहन में ख़ैमे के दरवाज़े के सामने रखी जाए। \v 7 ख़ैमे और इस क़ुरबानगाह के दरमियान धोने का हौज़ रखकर उसमें पानी डालना। \v 8 सहन की चारदीवारी खड़ी करके उसके दरवाज़े का परदा लगाना। \p \v 9 फिर मसह का तेल लेकर उसे ख़ैमे और उसके सारे सामान पर छिड़क देना। यों तू उसे मेरे लिए मख़सूस करेगा और वह मुक़द्दस होगा। \v 10 फिर जानवरों को चढ़ाने की क़ुरबानगाह और उसके सामान पर मसह का तेल छिड़कना। यों तू उसे मेरे लिए मख़सूस करेगा और वह निहायत मुक़द्दस होगा। \v 11 इसी तरह हौज़ और उस ढाँचे को भी मख़सूस करना जिस पर हौज़ रखा गया है। \p \v 12 हारून और उसके बेटों को मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर लाकर ग़ुस्ल कराना। \v 13 फिर हारून को मुक़द्दस लिबास पहनाना और उसे मसह करके मेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करना ताकि इमाम के तौर पर मेरी ख़िदमत करे। \v 14 उसके बेटों को लाकर उन्हें ज़ेरजामे पहना देना। \v 15 उन्हें उनके वालिद की तरह मसह करना ताकि वह भी इमामों के तौर पर मेरी ख़िदमत करें। जब उन्हें मसह किया जाएगा तो वह और बाद में उनकी औलाद हमेशा तक मक़दिस में इस ख़िदमत के लिए मख़सूस होंगे।” \s1 मक़दिस को खड़ा किया जाता है \p \v 16 मूसा ने सब कुछ रब की हिदायात के मुताबिक़ किया। \v 17 पहले महीने की पहली तारीख़ को मुक़द्दस ख़ैमा खड़ा किया गया। उन्हें मिसर से निकले पूरा एक साल हो गया था। \v 18 मूसा ने दीवार के तख़्तों को उनके पाइयों पर खड़ा करके उनके साथ शहतीर लगाए। इसी तरह उसने सतूनों को भी खड़ा किया। \v 19 उसने रब की हिदायात के ऐन मुताबिक़ दीवारों पर कपड़े का ख़ैमा लगाया और उस पर दूसरे ग़िलाफ़ रखे। \p \v 20 उसने शरीअत की दोनों तख़्तियाँ लेकर अहद के संदूक़ में रख दीं, उठाने के लिए लकड़ियाँ संदूक़ के कड़ों में डाल दीं और कफ़्फ़ारे का ढकना उस पर लगा दिया। \v 21 फिर उसने रब की हिदायात के ऐन मुताबिक़ संदूक़ को मुक़द्दसतरीन कमरे में रखकर उसके दरवाज़े का परदा लगा दिया। यों अहद के संदूक़ पर परदा पड़ा रहा। \v 22 मूसा ने मख़सूस रोटियों की मेज़ मुक़द्दस कमरे के शिमाली हिस्से में उस परदे के सामने रख दी जिसके पीछे अहद का संदूक़ था। \v 23 उसने रब की हिदायत के ऐन मुताबिक़ रब के लिए मख़सूस की हुई रोटियाँ मेज़ पर रखीं। \v 24 उसी कमरे के जुनूबी हिस्से में उसने शमादान को मेज़ के मुक़ाबिल रख दिया। \v 25 उस पर उसने रब की हिदायत के ऐन मुताबिक़ रब के सामने चराग़ रख दिए। \v 26 उसने बख़ूर की सोने की क़ुरबानगाह भी उसी कमरे में रखी, उस परदे के बिलकुल सामने जिसके पीछे अहद का संदूक़ था। \v 27 उसने उस पर रब की हिदायत के ऐन मुताबिक़ ख़ुशबूदार बख़ूर जलाया। \p \v 28 फिर उसने ख़ैमे का दरवाज़ा लगा दिया। \v 29 बाहर जाकर उसने जानवरों को चढ़ाने की क़ुरबानगाह ख़ैमे के दरवाज़े के सामने रख दी। उस पर उसने रब की हिदायत के ऐन मुताबिक़ भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ और ग़ल्ला की नज़रें चढ़ाईं। \p \v 30 उसने धोने के हौज़ को ख़ैमे और उस क़ुरबानगाह के दरमियान रखकर उसमें पानी डाल दिया। \v 31 मूसा, हारून और उसके बेटे उसे अपने हाथ-पाँव धोने के लिए इस्तेमाल करते थे। \v 32 जब भी वह मुलाक़ात के ख़ैमे में दाख़िल होते या जानवरों को चढ़ाने की क़ुरबानगाह के पास आते तो रब की हिदायत के ऐन मुताबिक़ पहले ग़ुस्ल करते। \p \v 33 आख़िर में मूसा ने ख़ैमा, क़ुरबानगाह और चारदीवारी खड़ी करके सहन के दरवाज़े का परदा लगा दिया। यों मूसा ने मक़दिस की तामीर मुकम्मल की। \s1 ख़ैमे में रब का जलाल \p \v 34 फिर मुलाक़ात के ख़ैमे पर बादल छा गया और मक़दिस रब के जलाल से भर गया। \v 35 मूसा ख़ैमे में दाख़िल न हो सका, क्योंकि बादल उस पर ठहरा हुआ था और मक़दिस रब के जलाल से भर गया था। \p \v 36 तमाम सफ़र के दौरान जब भी मक़दिस के ऊपर से बादल उठता तो इसराईली सफ़र के लिए तैयार हो जाते। \v 37 अगर वह न उठता तो वह उस वक़्त तक ठहरे रहते जब तक बादल उठ न जाता। \v 38 दिन के वक़्त बादल मक़दिस के ऊपर ठहरा रहता और रात के वक़्त वह तमाम इसराईलियों को आग की सूरत में नज़र आता था। यह सिलसिला पूरे सफ़र के दौरान जारी रहा।