\id DEU उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h इस्तिसना \toc1 इस्तिसना \toc2 इस्तिसना \toc3 इस्ति \mt1 इस्तिसना \c 1 \s1 मूसा इसराईलियों से मुख़ातिब होता है \p \v 1 इस किताब में वह बातें दर्ज हैं जो मूसा ने तमाम इसराईलियों से कहीं जब वह दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर बयाबान में थे। वह यरदन की वादी में सूफ़ के क़रीब थे। एक तरफ़ फ़ारान शहर था और दूसरी तरफ़ तोफ़ल, लाबन, हसीरात और दीज़हब के शहर थे। \v 2 अगर अदोम के पहाड़ी इलाक़े से होकर जाएँ तो होरिब यानी सीना पहाड़ से क़ादिस-बरनीअ तक का सफ़र 11 दिन में तय किया जा सकता है। \p \v 3 इसराईलियों को मिसर से निकले 40 साल हो गए थे। इस साल के ग्यारहवें माह के पहले दिन मूसा ने उन्हें सब कुछ बताया जो रब ने उसे उन्हें बताने को कहा था। \v 4 उस वक़्त वह अमोरियों के बादशाह सीहोन को शिकस्त दे चुका था जिसका दारुल-हुकूमत हसबोन था। बसन के बादशाह ओज पर भी फ़तह हासिल हो चुकी थी जिसकी हुकूमत के मरकज़ अस्तारात और इदरई थे। \p \v 5 वहाँ, दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर जो मोआब के इलाक़े में था मूसा अल्लाह की शरीअत की तशरीह करने लगा। उसने कहा, \p \v 6 जब तुम होरिब यानी सीना पहाड़ के पास थे तो रब हमारे ख़ुदा ने हमसे कहा, “तुम काफ़ी देर से यहाँ ठहरे हुए हो। \v 7 अब इस जगह को छोड़कर आगे मुल्के-कनान की तरफ़ बढ़ो। अमोरियों के पहाड़ी इलाक़े और उनके पड़ोस की क़ौमों के पास जाओ जो यरदन के मैदानी इलाक़े में आबाद हैं। पहाड़ी इलाक़े में, मग़रिब के नशेबी पहाड़ी इलाक़े में, जुनूब के दश्ते-नजब में, साहिली इलाक़े में, मुल्के-कनान में और लुबनान में दरियाए-फ़ुरात तक चले जाओ। \v 8 मैंने तुम्हें यह मुल्क दे दिया है। अब जाकर उस पर क़ब्ज़ा कर लो। क्योंकि रब ने क़सम खाकर तुम्हारे बापदादा इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से वादा किया था कि मैं यह मुल्क तुम्हें और तुम्हारी औलाद को दूँगा।” \s1 राहनुमा मुक़र्रर किए गए \p \v 9 उस वक़्त मैंने तुमसे कहा, “मैं अकेला तुम्हारी राहनुमाई करने की ज़िम्मादारी नहीं उठा सकता। \v 10 रब तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारी तादाद इतनी बढ़ा दी है कि आज तुम आसमान के सितारों की मानिंद बेशुमार हो। \v 11 और रब तुम्हारे बापदादा का ख़ुदा करे कि तुम्हारी तादाद मज़ीद हज़ार गुना बढ़ जाए। वह तुम्हें वह बरकत दे जिसका वादा उसने किया है। \v 12 लेकिन मैं अकेला ही तुम्हारा बोझ उठाने और झगड़ों को निपटाने की ज़िम्मादारी नहीं उठा सकता। \v 13 इसलिए अपने हर क़बीले में से कुछ ऐसे दानिशमंद और समझदार आदमी चुन लो जिनकी लियाक़त को लोग मानते हैं। फिर मैं उन्हें तुम पर मुक़र्रर करूँगा।” \p \v 14 यह बात तुम्हें पसंद आई। \v 15 तुमने अपने में से ऐसे राहनुमा चुन लिए जो दानिशमंद थे और जिनकी लियाक़त को लोग मानते थे। फिर मैंने उन्हें हज़ार हज़ार, सौ सौ और पचास पचास मर्दों पर मुक़र्रर किया। यों वह क़बीलों के निगहबान बन गए। \v 16 उस वक़्त मैंने उन क़ाज़ियों से कहा, “अदालत करते वक़्त हर एक की बात ग़ौर से सुनकर ग़ैरजानिबदार फ़ैसले करना, चाहे दो इसराईली फ़रीक़ एक दूसरे से झगड़ा कर रहे हों या मामला किसी इसराईली और परदेसी के दरमियान हो। \v 17 अदालत करते वक़्त जानिबदारी न करना। छोटे और बड़े की बात सुनकर दोनों के साथ एक जैसा सुलूक करना। किसी से मत डरना, क्योंकि अल्लाह ही ने तुम्हें अदालत करने की ज़िम्मादारी दी है। अगर किसी मामले में फ़ैसला करना तुम्हारे लिए मुश्किल हो तो उसे मुझे पेश करो। फिर मैं ही उसका फ़ैसला करूँगा।” \v 18 उस वक़्त मैंने तुम्हें सब कुछ बताया जो तुम्हें करना था। \s1 मुल्के-कनान में जासूस \p \v 19 हमने वैसा ही किया जैसा रब ने हमें कहा था। हम होरिब से रवाना होकर अमोरियों के पहाड़ी इलाक़े की तरफ़ बढ़े। सफ़र करते करते हम उस वसी और हौलनाक रेगिस्तान में से गुज़र गए जिसे तुमने देख लिया है। आख़िरकार हम क़ादिस-बरनीअ पहुँच गए। \v 20 वहाँ मैंने तुमसे कहा, “तुम अमोरियों के पहाड़ी इलाक़े तक पहुँच गए हो जो रब हमारा ख़ुदा हमें देनेवाला है। \v 21 देख, रब तेरे ख़ुदा ने तुझे यह मुल्क दे दिया है। अब जाकर उस पर क़ब्ज़ा कर ले जिस तरह रब तेरे बापदादा के ख़ुदा ने तुझे बताया है। मत डरना और बेदिल न हो जाना!” \p \v 22 लेकिन तुम सब मेरे पास आए और कहा, “क्यों न हम जाने से पहले कुछ आदमी भेजें जो मुल्क के हालात दरियाफ़्त करें और वापस आकर हमें उस रास्ते के बारे में बताएँ जिस पर हमें जाना है और उन शहरों के बारे में इत्तला दें जिनके पास हम पहुँचेंगे।” \v 23 यह बात मुझे पसंद आई। मैंने इस काम के लिए हर क़बीले के एक आदमी को चुनकर भेज दिया। \v 24 जब यह बारह आदमी पहाड़ी इलाक़े में जाकर वादीए-इसकाल में पहुँचे तो उस की तफ़तीश की। \v 25 फिर वह मुल्क का कुछ फल लेकर लौट आए और हमें मुल्क के बारे में इत्तला देकर कहा, “जो मुल्क रब हमारा ख़ुदा हमें देनेवाला है वह अच्छा है।” \p \v 26 लेकिन तुम जाना नहीं चाहते थे बल्कि सरकशी करके रब अपने ख़ुदा का हुक्म न माना। \v 27 तुमने अपने ख़ैमों में बुड़बुड़ाते हुए कहा, “रब हमसे नफ़रत रखता है। वह हमें मिसर से निकाल लाया है ताकि हमें अमोरियों के हाथों हलाक करवाए। \v 28 हम कहाँ जाएँ? हमारे भाइयों ने हमें बेदिल कर दिया है। वह कहते हैं, ‘वहाँ के लोग हमसे ताक़तवर और दराज़क़द हैं। उनके बड़े बड़े शहरों की फ़सीलें आसमान से बातें करती हैं। वहाँ हमने अनाक़ की औलाद भी देखी जो देवक़ामत हैं’।” \p \v 29 मैंने कहा, “न घबराओ और न उनसे ख़ौफ़ खाओ। \v 30 रब तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारे आगे आगे चलता हुआ तुम्हारे लिए लड़ेगा। तुम ख़ुद देख चुके हो कि वह किस तरह मिसर \v 31 और रेगिस्तान में तुम्हारे लिए लड़ा। यहाँ भी वह ऐसा ही करेगा। तू ख़ुद गवाह है कि बयाबान में पूरे सफ़र के दौरान रब तुझे यों उठाए फिरा जिस तरह बाप अपने बेटे को उठाए फिरता है। इस तरह चलते चलते तुम यहाँ तक पहुँच गए।” \v 32 इसके बावुजूद तुमने रब अपने ख़ुदा पर भरोसा न रखा। \v 33 तुमने यह बात नज़रंदाज़ की कि वह सफ़र के दौरान रात के वक़्त आग और दिन के वक़्त बादल की सूरत में तुम्हारे आगे आगे चलता रहा ताकि तुम्हारे लिए ख़ैमे लगाने की जगहें मालूम करे और तुम्हें रास्ता दिखाए। \p \v 34 जब रब ने तुम्हारी यह बातें सुनीं तो उसे ग़ुस्सा आया और उसने क़सम खाकर कहा, \v 35 “इस शरीर नसल का एक मर्द भी उस अच्छे मुल्क को नहीं देखेगा अगरचे मैंने क़सम खाकर तुम्हारे बापदादा से वादा किया था कि मैं उसे उन्हें दूँगा। \v 36 सिर्फ़ कालिब बिन यफ़ुन्ना उसे देखेगा। मैं उसे और उस की औलाद को वह मुल्क दूँगा जिसमें उसने सफ़र किया है, क्योंकि उसने पूरे तौर पर रब की पैरवी की।” \p \v 37 तुम्हारी वजह से रब मुझसे भी नाराज़ हुआ और कहा, “तू भी उसमें दाख़िल नहीं होगा। \v 38 लेकिन तेरा मददगार यशुअ बिन नून दाख़िल होगा। उस की हौसलाअफ़्ज़ाई कर, क्योंकि वह मुल्क पर क़ब्ज़ा करने में इसराईल की राहनुमाई करेगा।” \v 39 तुमसे रब ने कहा, “तुम्हारे बच्चे जो अभी अच्छे और बुरे में इम्तियाज़ नहीं कर सकते, वही मुल्क में दाख़िल होंगे, वही बच्चे जिनके बारे में तुमने कहा कि दुश्मन उन्हें मुल्के-कनान में छीन लेंगे। उन्हें मैं मुल्क दूँगा, और वह उस पर क़ब्ज़ा करेंगे। \v 40 लेकिन तुम ख़ुद आगे न बढ़ो। पीछे मुड़कर दुबारा रेगिस्तान में बहरे-क़ुलज़ुम की तरफ़ सफ़र करो।” \p \v 41 तब तुमने कहा, “हमने रब का गुनाह किया है। अब हम मुल्क में जाकर लड़ेंगे, जिस तरह रब हमारे ख़ुदा ने हमें हुक्म दिया है।” चुनाँचे यह सोचते हुए कि उस पहाड़ी इलाक़े पर हमला करना आसान होगा, हर एक मुसल्लह हुआ। \v 42 लेकिन रब ने मुझसे कहा, “उन्हें बताना कि वहाँ जंग करने के लिए न जाओ, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ नहीं हूँगा। तुम अपने दुश्मनों के हाथों शिकस्त खाओगे।” \p \v 43 मैंने तुम्हें यह बताया, लेकिन तुमने मेरी न सुनी। तुमने सरकशी करके रब का हुक्म न माना बल्कि मग़रूर होकर पहाड़ी इलाक़े में दाख़िल हुए। \v 44 वहाँ के अमोरी बाशिंदे तुम्हारा सामना करने निकले। वह शहद की मक्खियों के ग़ोल की तरह तुम पर टूट पड़े और तुम्हारा ताक़्क़ुब करके तुम्हें सईर से हुरमा तक मारते गए। \p \v 45 तब तुम वापस आकर रब के सामने ज़ारो-क़तार रोने लगे। लेकिन उसने तवज्जुह न दी बल्कि तुम्हें नज़रंदाज़ किया। \v 46 इसके बाद तुम बहुत दिनों तक क़ादिस-बरनीअ में रहे। \c 2 \s1 रेगिस्तान में दुबारा सफ़र \p \v 1 फिर जिस तरह रब ने मुझे हुक्म दिया था हम पीछे मुड़कर रेगिस्तान में बहरे-क़ुलज़ुम की तरफ़ सफ़र करने लगे। काफ़ी देर तक हम सईर यानी अदोम के पहाड़ी इलाक़े के किनारे किनारे फिरते रहे। \p \v 2 एक दिन रब ने मुझसे कहा, \v 3 “तुम बहुत देर से इस पहाड़ी इलाक़े के किनारे किनारे फिर रहे हो। अब शिमाल की तरफ़ सफ़र करो। \v 4 क़ौम को बताना, अगले दिनों में तुम सईर के मुल्क में से गुज़रोगे जहाँ तुम्हारे भाई एसौ की औलाद आबाद है। वह तुमसे डरेंगे। तो भी बड़ी एहतियात से गुज़रना। \v 5 उनके साथ जंग न छेड़ना, क्योंकि मैं तुम्हें उनके मुल्क का एक मुरब्बा फ़ुट भी नहीं दूँगा। मैंने सईर का पहाड़ी इलाक़ा एसौ और उस की औलाद को दिया है। \v 6 लाज़िम है कि तुम खाने और पीने की तमाम ज़रूरियात पैसे देकर ख़रीदो।” \p \v 7 जो भी काम तूने किया है रब ने उस पर बरकत दी है। इस वसी रेगिस्तान में पूरे सफ़र के दौरान उसने तेरी निगहबानी की। इन 40 सालों के दौरान रब तेरा ख़ुदा तेरे साथ था, और तेरी तमाम ज़रूरियात पूरी होती रहीं। \p \v 8 चुनाँचे हम सईर को छोड़कर जहाँ हमारे भाई एसौ की औलाद आबाद थी दूसरे रास्ते से आगे निकले। हमने वह रास्ता छोड़ दिया जो ऐलात और अस्यून-जाबर के शहरों से बहीराए-मुरदार तक पहुँचाता है और मोआब के बयाबान की तरफ़ बढ़ने लगे। \v 9 वहाँ रब ने मुझसे कहा, “मोआब के बाशिंदों की मुख़ालफ़त न करना और न उनके साथ जंग छेड़ना, क्योंकि मैं उनके मुल्क का कोई भी हिस्सा तुझे नहीं दूँगा। मैंने आर शहर को लूत की औलाद को दिया है।” \p \v 10 पहले ऐमी वहाँ रहते थे जो अनाक़ की औलाद की तरह ताक़तवर, दराज़क़द और तादाद में ज़्यादा थे। \v 11 अनाक़ की औलाद की तरह वह रफ़ाइयों में शुमार किए जाते थे, लेकिन मोआबी उन्हें ऐमी कहते थे। \p \v 12 इसी तरह क़दीम ज़माने में होरी सईर में आबाद थे, लेकिन एसौ की औलाद ने उन्हें वहाँ से निकाल दिया था। जिस तरह इसराईलियों ने बाद में उस मुल्क में किया जो रब ने उन्हें दिया था उसी तरह एसौ की औलाद बढ़ते बढ़ते होरियों को तबाह करके उनकी जगह आबाद हुए थे। \p \v 13 रब ने कहा, “अब जाकर वादीए-ज़िरद को उबूर करो।” हमने ऐसा ही किया। \v 14 हमें क़ादिस-बरनीअ से रवाना हुए 38 साल हो गए थे। अब वह तमाम आदमी मर चुके थे जो उस वक़्त जंग करने के क़ाबिल थे। वैसा ही हुआ था जैसा रब ने क़सम खाकर कहा था। \v 15 रब की मुख़ालफ़त के बाइस आख़िरकार ख़ैमागाह में उस नसल का एक मर्द भी न रहा। \v 16 जब वह सब मर गए थे \v 17 तब रब ने मुझसे कहा, \v 18 “आज तुम्हें आर शहर से होकर मोआब के इलाक़े में से गुज़रना है। \v 19 फिर तुम अम्मोनियों के इलाक़े तक पहुँचोगे। उनकी भी मुख़ालफ़त न करना, और न उनके साथ जंग छेड़ना, क्योंकि मैं उनके मुल्क का कोई भी हिस्सा तुम्हें नहीं दूँगा। मैंने यह मुल्क लूत की औलाद को दिया है।” \p \v 20 हक़ीक़त में अम्मोनियों का मुल्क भी रफ़ाइयों का मुल्क समझा जाता था जो क़दीम ज़माने में वहाँ आबाद थे। अम्मोनी उन्हें ज़मज़ुमी कहते थे, \v 21 और वह देवक़ामत थे, ताक़तवर और तादाद में ज़्यादा। वह अनाक़ की औलाद जैसे दराज़क़द थे। जब अम्मोनी मुल्क में आए तो रब ने रफ़ाइयों को उनके आगे आगे तबाह कर दिया। चुनाँचे अम्मोनी बढ़ते बढ़ते उन्हें निकालते गए और उनकी जगह आबाद हुए, \v 22 बिलकुल उसी तरह जिस तरह रब ने एसौ की औलाद के आगे आगे होरियों को तबाह कर दिया था जब वह सईर के मुल्क में आए थे। वहाँ भी वह बढ़ते बढ़ते होरियों को निकालते गए और उनकी जगह आबाद हुए। \v 23 इसी तरह एक और क़दीम क़ौम बनाम अव्वी को भी उसके मुल्क से निकाला गया। अव्वी ग़ज़्ज़ा तक आबाद थे, लेकिन जब कफ़तूरी कफ़तूर यानी क्रेते से आए तो उन्होंने उन्हें तबाह कर दिया और उनकी जगह आबाद हो गए। \s1 सीहोन बादशाह से जंग \p \v 24 रब ने मूसा से कहा, “अब जाकर वादीए-अरनोन को उबूर करो। यों समझो कि मैं हसबोन के अमोरी बादशाह सीहोन को उसके मुल्क समेत तुम्हारे हवाले कर चुका हूँ। उस पर क़ब्ज़ा करना शुरू करो और उसके साथ जंग करने का मौक़ा ढूँडो। \v 25 इसी दिन से मैं तमाम क़ौमों में तुम्हारे बारे में दहशत और ख़ौफ़ पैदा करूँगा। वह तुम्हारी ख़बर सुनकर ख़ौफ़ के मारे थरथराएँगी और काँपेंगी।” \p \v 26 मैंने दश्ते-क़दीमात से हसबोन के बादशाह सीहोन के पास क़ासिद भेजे। मेरा पैग़ाम नफ़रत और मुख़ालफ़त से ख़ाली था। वह यह था, \v 27 “हमें अपने मुल्क में से गुज़रने दें। हम शाहराह पर ही रहेंगे और उससे न बाईं, न दाईं तरफ़ हटेंगे। \v 28 हम खाने और पीने की तमाम ज़रूरियात के लिए मुनासिब पैसे देंगे। हमें पैदल अपने मुल्क में से गुज़रने दें, \v 29 जिस तरह सईर के बाशिंदों एसौ की औलाद और आर के रहनेवाले मोआबियों ने हमें गुज़रने दिया। क्योंकि हमारी मनज़िल दरियाए-यरदन के मग़रिब में है, वह मुल्क जो रब हमारा ख़ुदा हमें देनेवाला है।” \p \v 30 लेकिन हसबोन के बादशाह सीहोन ने हमें गुज़रने न दिया, क्योंकि रब तुम्हारे ख़ुदा ने उसे बे-लचक और हमारी बात से इनकार करने पर आमादा कर दिया था ताकि सीहोन हमारे क़ाबू में आ जाए। और बाद में ऐसा ही हुआ। \v 31 रब ने मुझसे कहा, “यों समझ ले कि मैं सीहोन और उसके मुल्क को तेरे हवाले करने लगा हूँ। अब निकलकर उस पर क़ब्ज़ा करना शुरू करो।” \p \v 32 जब सीहोन अपनी सारी फ़ौज लेकर हमारा मुक़ाबला करने के लिए यहज़ आया \v 33 तो रब हमारे ख़ुदा ने हमें पूरी फ़तह बख़्शी। हमने सीहोन, उसके बेटों और पूरी क़ौम को शिकस्त दी। \v 34 उस वक़्त हमने उसके तमाम शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया और उनके तमाम मर्दों, औरतों और बच्चों को मार डाला। कोई भी न बचा। \v 35 हमने सिर्फ़ मवेशी और शहरों का लूटा हुआ माल अपने लिए बचाए रखा। \p \v 36 वादीए-अरनोन के किनारे पर वाक़े अरोईर से लेकर जिलियाद तक हर शहर को शिकस्त माननी पड़ी। इसमें वह शहर भी शामिल था जो वादीए-अरनोन में था। रब हमारे ख़ुदा ने उन सबको हमारे हवाले कर दिया। \v 37 लेकिन तुमने अम्मोनियों का मुल्क छोड़ दिया और न दरियाए-यब्बोक़ के इर्दगिर्द के इलाक़े, न उसके पहाड़ी इलाक़े के शहरों को छेड़ा, क्योंकि रब हमारे ख़ुदा ने ऐसा करने से तुम्हें मना किया था। \c 3 \s1 बसन के बादशाह ओज की शिकस्त \p \v 1 इसके बाद हम शिमाल में बसन की तरफ़ बढ़ गए। बसन का बादशाह ओज अपनी तमाम फ़ौज के साथ निकलकर हमारा मुक़ाबला करने के लिए इदरई आया। \v 2 रब ने मुझसे कहा, “उससे मत डर। मैं उसे, उस की पूरी फ़ौज और उसका मुल्क तेरे हवाले कर चुका हूँ। उसके साथ वह कुछ कर जो तूने अमोरी बादशाह सीहोन के साथ किया जो हसबोन में हुकूमत करता था।” \p \v 3 ऐसा ही हुआ। रब हमारे ख़ुदा की मदद से हमने बसन के बादशाह ओज और उस की तमाम क़ौम को शिकस्त दी। हमने सबको हलाक कर दिया। कोई भी न बचा। \v 4 उसी वक़्त हमने उसके तमाम शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया। हमने कुल 60 शहरों पर यानी अरजूब के सारे इलाक़े पर क़ब्ज़ा किया जिस पर ओज की हुकूमत थी। \v 5 इन तमाम शहरों की हिफ़ाज़त ऊँची ऊँची फ़सीलों और कुंडेवाले दरवाज़ों से की गई थी। देहात में बहुत-सी ऐसी आबादियाँ भी मिल गईं जिनकी फ़सीलें नहीं थीं। \v 6 हमने उनके साथ वह कुछ किया जो हमने हसबोन के बादशाह सीहोन के इलाक़े के साथ किया था। हमने सब कुछ रब के हवाले करके हर शहर को और तमाम मर्दों, औरतों और बच्चों को हलाक कर डाला। \v 7 हमने सिर्फ़ तमाम मवेशी और शहरों का लूटा हुआ माल अपने लिए बचाए रखा। \p \v 8 यों हमने उस वक़्त अमोरियों के इन दो बादशाहों से दरियाए-यरदन का मशरिक़ी इलाक़ा वादीए-अरनोन से लेकर हरमून पहाड़ तक छीन लिया। \v 9 (सैदा के बाशिंदे हरमून को सिरयून कहते हैं जबकि अमोरियों ने उसका नाम सनीर रखा)। \v 10 हमने ओज बादशाह के पूरे इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसमें मैदाने-मुरतफ़ा के तमाम शहर शामिल थे, नीज़ सलका और इदरई तक जिलियाद और बसन के पूरे इलाक़े। \p \v 11 बादशाह ओज देवक़ामत क़बीले रफ़ाई का आख़िरी मर्द था। उसका लोहे का ताबूत 13 से ज़ायद फ़ुट लंबा और छः फ़ुट चौड़ा था और आज तक अम्मोनियों के शहर रब्बा में देखा जा सकता है। \s1 यरदन के मशरिक़ में मुल्क की तक़सीम \p \v 12 जब हमने दरियाए-यरदन के मशरिक़ी इलाक़े पर क़ब्ज़ा किया तो मैंने रूबिन और जद के क़बीलों को उसका जुनूबी हिस्सा शहरों समेत दिया। इस इलाक़े की जुनूबी सरहद दरियाए-अरनोन पर वाक़े शहर अरोईर है जबकि शिमाल में इसमें जिलियाद के पहाड़ी इलाक़े का आधा हिस्सा भी शामिल है। \v 13 जिलियाद का शिमाली हिस्सा और बसन का मुल्क मैंने मनस्सी के आधे क़बीले को दिया। \p (बसन में अरजूब का इलाक़ा है जहाँ पहले ओज बादशाह की हुकूमत थी और जो रफ़ाइयों यानी देवक़ामत अफ़राद का मुल्क कहलाता था। \v 14 मनस्सी के क़बीले के एक आदमी बनाम याईर ने अरजूब पर जसूरियों और माकातियों की सरहद तक क़ब्ज़ा कर लिया था। उसने इस इलाक़े की बस्तियों को अपना नाम दिया। आज तक यही नाम हव्वोत-याईर यानी याईर की बस्तियाँ चलता है।) \p \v 15 मैंने जिलियाद का शिमाली हिस्सा मनस्सी के कुंबे मकीर को दिया \v 16 लेकिन जिलियाद का जुनूबी हिस्सा रूबिन और जद के क़बीलों को दिया। इस हिस्से की एक सरहद जुनूब में वादीए-अरनोन के बीच में से गुज़रती है जबकि दूसरी सरहद दरियाए-यब्बोक़ है जिसके पार अम्मोनियों की हुकूमत है। \v 17 उस की मग़रिबी सरहद दरियाए-यरदन है यानी किन्नरत (गलील) की झील से लेकर बहीराए-मुरदार तक जो पिसगा के पहाड़ी सिलसिले के दामन में है। \p \v 18 उस वक़्त मैंने रूबिन, जद और मनस्सी के क़बीलों से कहा, “रब तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हें मीरास में यह मुल्क दे दिया है। लेकिन शर्त यह है कि तुम्हारे तमाम जंग करने के क़ाबिल मर्द मुसल्लह होकर तुम्हारे इसराईली भाइयों के आगे आगे दरियाए-यरदन को पार करें। \v 19 सिर्फ़ तुम्हारी औरतें और बच्चे पीछे रहकर उन शहरों में इंतज़ार कर सकते हैं जो मैंने तुम्हारे लिए मुक़र्रर किए हैं। तुम अपने मवेशियों को भी पीछे छोड़ सकते हो, क्योंकि मुझे पता है कि तुम्हारे बहुत ज़्यादा जानवर हैं। \v 20 अपने भाइयों के साथ चलते हुए उनकी मदद करते रहो। जब रब तुम्हारा ख़ुदा उन्हें दरियाए-यरदन के मग़रिब में वाक़े मुल्क देगा और वह तुम्हारी तरह आराम और सुकून से वहाँ आबाद हो जाएंगे तब तुम अपने मुल्क में वापस जा सकते हो।” \s1 मूसा को यरदन पार करने की इजाज़त नहीं मिलती \p \v 21 साथ साथ मैंने यशुअ से कहा, “तूने अपनी आँखों से सब कुछ देख लिया है जो रब तुम्हारे ख़ुदा ने इन दोनों बादशाहों सीहोन और ओज से किया। वह यही कुछ हर उस बादशाह के साथ करेगा जिसके मुल्क पर तू दरिया को पार करके हमला करेगा। \v 22 उनसे न डरो। तुम्हारा ख़ुदा ख़ुद तुम्हारे लिए जंग करेगा।” \p \v 23 उस वक़्त मैंने रब से इल्तिजा करके कहा, \v 24 “ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, तू अपने ख़ादिम को अपनी अज़मत और क़ुदरत दिखाने लगा है। क्या आसमान या ज़मीन पर कोई और ख़ुदा है जो तेरी तरह के अज़ीम काम कर सकता है? हरगिज़ नहीं! \v 25 मेहरबानी करके मुझे भी दरियाए-यरदन को पार करके उस अच्छे मुल्क यानी उस बेहतरीन पहाड़ी इलाक़े को लुबनान तक देखने की इजाज़त दे।” \p \v 26 लेकिन तुम्हारे सबब से रब मुझसे नाराज़ था। उसने मेरी न सुनी बल्कि कहा, “बस कर! आइंदा मेरे साथ इसका ज़िक्र न करना। \v 27 पिसगा की चोटी पर चढ़कर चारों तरफ़ नज़र दौड़ा। वहाँ से ग़ौर से देख, क्योंकि तू ख़ुद दरियाए-यरदन को उबूर नहीं करेगा। \v 28 अपनी जगह यशुअ को मुक़र्रर कर। उस की हौसलाअफ़्ज़ाई कर और उसे मज़बूत कर, क्योंकि वही इस क़ौम को दरियाए-यरदन के मग़रिब में ले जाएगा और क़बीलों में उस मुल्क को तक़सीम करेगा जिसे तू पहाड़ से देखेगा।” \p \v 29 चुनाँचे हम बैत-फ़ग़ूर के क़रीब वादी में ठहरे। \c 4 \s1 फ़रमाँबरदारी की अशद्द ज़रूरत \p \v 1 ऐ इसराईल, अब वह तमाम अहकाम ध्यान से सुन ले जो मैं तुम्हें सिखाता हूँ। उन पर अमल करो ताकि तुम ज़िंदा रहो और जाकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करो जो रब तुम्हारे बापदादा का ख़ुदा तुम्हें देनेवाला है। \v 2 जो अहकाम मैं तुम्हें सिखाता हूँ उनमें न किसी बात का इज़ाफ़ा करो और न उनसे कोई बात निकालो। रब अपने ख़ुदा के तमाम अहकाम पर अमल करो जो मैंने तुम्हें दिए हैं। \v 3 तुमने ख़ुद देखा है कि रब ने बाल-फ़ग़ूर से क्या कुछ किया। वहाँ रब तेरे ख़ुदा ने हर एक को हलाक कर डाला जिसने फ़ग़ूर के बाल देवता की पूजा की। \v 4 लेकिन तुममें से जितने रब अपने ख़ुदा के साथ लिपटे रहे वह सब आज तक ज़िंदा हैं। \p \v 5 मैंने तुम्हें तमाम अहकाम यों सिखा दिए हैं जिस तरह रब मेरे ख़ुदा ने मुझे बताया। क्योंकि लाज़िम है कि तुम उस मुल्क में इनके ताबे रहो जिस पर तुम क़ब्ज़ा करनेवाले हो। \v 6 इन्हें मानो और इन पर अमल करो तो दूसरी क़ौमों को तुम्हारी दानिशमंदी और समझ नज़र आएगी। फिर वह इन तमाम अहकाम के बारे में सुनकर कहेंगी, “वाह, यह अज़ीम क़ौम कैसी दानिशमंद और समझदार है!” \v 7 कौन-सी अज़ीम क़ौम के माबूद इतने क़रीब हैं जितना हमारा ख़ुदा हमारे क़रीब है? जब भी हम मदद के लिए पुकारते हैं तो रब हमारा ख़ुदा मौजूद होता है। \v 8 कौन-सी अज़ीम क़ौम के पास ऐसे मुंसिफ़ाना अहकाम और हिदायात हैं जैसे मैं आज तुम्हें पूरी शरीअत सुनाकर पेश कर रहा हूँ? \p \v 9 लेकिन ख़बरदार, एहतियात करना और वह तमाम बातें न भूलना जो तेरी आँखों ने देखी हैं। वह उम्र-भर तेरे दिल में से मिट न जाएँ बल्कि उन्हें अपने बच्चों और पोते-पोतियों को भी बताते रहना। \v 10 वह दिन याद कर जब तू होरिब यानी सीना पहाड़ पर रब अपने ख़ुदा के सामने हाज़िर था और उसने मुझे बताया, “क़ौम को यहाँ मेरे पास जमा कर ताकि मैं उनसे बात करूँ और वह उम्र-भर मेरा ख़ौफ़ मानें और अपने बच्चों को मेरी बातें सिखाते रहें।” \p \v 11 उस वक़्त तुम क़रीब आकर पहाड़ के दामन में खड़े हुए। वह जल रहा था, और उस की आग आसमान तक भड़क रही थी जबकि काले बादलों और गहरे अंधेरे ने उसे नज़रों से छुपा दिया। \v 12 फिर रब आग में से तुमसे हमकलाम हुआ। तुमने उस की बातें सुनीं लेकिन उस की कोई शक्ल न देखी। सिर्फ़ उस की आवाज़ सुनाई दी। \v 13 उसने तुम्हारे लिए अपने अहद यानी उन 10 अहकाम का एलान किया और हुक्म दिया कि इन पर अमल करो। फिर उसने उन्हें पत्थर की दो तख़्तियों पर लिख दिया। \v 14 रब ने मुझे हिदायत की, “उन्हें वह तमाम अहकाम सिखा जिनके मुताबिक़ उन्हें चलना होगा जब वह दरियाए-यरदन को पार करके कनान पर क़ब्ज़ा करेंगे।” \s1 बुतपरस्ती के बारे में आगाही \p \v 15 जब रब होरिब यानी सीना पहाड़ पर तुमसे हमकलाम हुआ तो तुमने उस की कोई शक्ल न देखी। चुनाँचे ख़बरदार रहो \v 16 कि तुम ग़लत काम करके अपने लिए किसी भी शक्ल का बुत न बनाओ। न मर्द, औरत, \v 17 ज़मीन पर चलनेवाले जानवर, परिंदे, \v 18 रेंगनेवाले जानवर या मछली का बुत बनाओ। \v 19 जब तू आसमान की तरफ़ नज़र उठाकर आसमान का पूरा लशकर देखे तो सूरज, चाँद और सितारों की परस्तिश और ख़िदमत करने की आज़माइश में न पड़ना। रब तेरे ख़ुदा ने इन चीज़ों को बाक़ी तमाम क़ौमों को अता किया है, \v 20 लेकिन तुम्हें उसने मिसर के भड़कते भट्टे से निकाला है ताकि तुम उस की अपनी क़ौम और उस की मीरास बन जाओ। और आज ऐसा ही हुआ है। \p \v 21 तुम्हारे सबब से रब ने मुझसे नाराज़ होकर क़सम खाई कि तू दरियाए-यरदन को पार करके उस अच्छे मुल्क में दाख़िल नहीं होगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में देनेवाला है। \v 22 मैं यहीं इसी मुल्क में मर जाऊँगा और दरियाए-यरदन को पार नहीं करूँगा। लेकिन तुम दरिया को पार करके उस बेहतरीन मुल्क पर क़ब्ज़ा करोगे। \v 23 हर सूरत में वह अहद याद रखना जो रब तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे साथ बाँधा है। अपने लिए किसी भी चीज़ की मूरत न बनाना। यह रब का हुक्म है, \v 24 क्योंकि रब तेरा ख़ुदा भस्म कर देनेवाली आग है, वह ग़यूर ख़ुदा है। \p \v 25 तुम मुल्क में जाकर वहाँ रहोगे। तुम्हारे बच्चे और पोते-नवासे उसमें पैदा हो जाएंगे। जब इस तरह बहुत वक़्त गुज़र जाएगा तो ख़तरा है कि तुम ग़लत काम करके किसी चीज़ की मूरत बनाओ। ऐसा कभी न करना। यह रब तुम्हारे ख़ुदा की नज़र में बुरा है और उसे ग़ुस्सा दिलाएगा। \v 26 आज आसमान और ज़मीन मेरे गवाह हैं कि अगर तुम ऐसा करो तो जल्दी से उस मुल्क में से मिट जाओगे जिस पर तुम दरियाए-यरदन को पार करके क़ब्ज़ा करोगे। तुम देर तक वहाँ जीते नहीं रहोगे बल्कि पूरे तौर पर हलाक हो जाओगे। \v 27 रब तुम्हें मुल्क से निकालकर मुख़्तलिफ़ क़ौमों में मुंतशिर कर देगा, और वहाँ सिर्फ़ थोड़े ही अफ़राद बचे रहेंगे। \v 28 वहाँ तुम इनसान के हाथों से बने हुए लकड़ी और पत्थर के बुतों की ख़िदमत करोगे, जो न देख सकते, न सुन सकते, न खा सकते और न सूँघ सकते हैं। \p \v 29 वहीं तू रब अपने ख़ुदा को तलाश करेगा, और अगर उसे पूरे दिलो-जान से ढूँडे तो वह तुझे मिल भी जाएगा। \v 30 जब तू इस तकलीफ़ में मुब्तला होगा और यह सारा कुछ तुझ पर से गुज़रेगा फिर आख़िरकार रब अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू करके उस की सुनेगा। \v 31 क्योंकि रब तेरा ख़ुदा रहीम ख़ुदा है। वह तुझे न तर्क करेगा और न बरबाद करेगा। वह उस अहद को नहीं भूलेगा जो उसने क़सम खाकर तेरे बापदादा से बाँधा था। \s1 रब ही हमारा ख़ुदा है \p \v 32 दुनिया में इनसान की तख़लीक़ से लेकर आज तक माज़ी की तफ़तीश कर। आसमान के एक सिरे से दूसरे सिरे तक खोज लगा। क्या इससे पहले कभी इस तरह का मोजिज़ाना काम हुआ है? क्या किसी ने इससे पहले इस क़िस्म के अज़ीम काम की ख़बर सुनी है? \v 33 तूने आग में से बोलती हुई अल्लाह की आवाज़ सुनी तो भी जीता बचा! क्या किसी और क़ौम के साथ ऐसा हुआ है? \v 34 क्या किसी और माबूद ने कभी जुर्रत की है कि रब की तरह पूरी क़ौम को एक मुल्क से निकालकर अपनी मिलकियत बनाया हो? उसने ऐसा ही तुम्हारे साथ किया। उसने तुम्हारे देखते देखते मिसरियों को आज़माया, उन्हें बड़े मोजिज़े दिखाए, उनके साथ जंग की, अपनी बड़ी क़ुदरत और इख़्तियार का इज़हार किया और हौलनाक कामों से उन पर ग़ालिब आ गया। \p \v 35 तुझे यह सब कुछ दिखाया गया ताकि तू जान ले कि रब ख़ुदा है। उसके सिवा कोई और नहीं है। \v 36 उसने तुझे नसीहत देने के लिए आसमान से अपनी आवाज़ सुनाई। ज़मीन पर उसने तुझे अपनी अज़ीम आग दिखाई जिसमें से तूने उस की बातें सुनीं। \v 37 उसे तेरे बापदादा से प्यार था, और उसने तुझे जो उनकी औलाद हैं चुन लिया। इसलिए वह ख़ुद हाज़िर होकर अपनी अज़ीम क़ुदरत से तुझे मिसर से निकाल लाया। \v 38 उसने तेरे आगे से तुझसे ज़्यादा बड़ी और ताक़तवर क़ौमें निकाल दीं ताकि तुझे उनका मुल्क मीरास में मिल जाए। आज ऐसा ही हो रहा है। \p \v 39 चुनाँचे आज जान ले और ज़हन में रख कि रब आसमान और ज़मीन का ख़ुदा है। कोई और माबूद नहीं है। \v 40 उसके अहकाम पर अमल कर जो मैं तुझे आज सुना रहा हूँ। फिर तू और तेरी औलाद कामयाब होंगे, और तू देर तक उस मुल्क में जीता रहेगा जो रब तुझे हमेशा के लिए दे रहा है। \s1 यरदन के मशरिक़ में पनाह के शहर \p \v 41 यह कहकर मूसा ने दरियाए-यरदन के मशरिक़ में पनाह के तीन शहर चुन लिए। \v 42 उनमें वह शख़्स पनाह ले सकता था जिसने दुश्मनी की बिना पर नहीं बल्कि ग़ैरइरादी तौर पर किसी को जान से मार दिया था। ऐसे शहर में पनाह लेने के सबब से उसे बदले में क़त्ल नहीं किया जा सकता था। \v 43 इसके लिए रूबिन के क़बीले के लिए मैदाने-मुरतफ़ा का शहर बसर, जद के क़बीले के लिए जिलियाद का शहर रामात और मनस्सी के क़बीले के लिए बसन का शहर जौलान चुना गया। \s1 शरीअत का पेशलफ़्ज़ \p \v 44 दर्जे-ज़ैल वह शरीअत है जो मूसा ने इसराईलियों को पेश की। \v 45 मूसा ने यह अहकाम और हिदायात उस वक़्त पेश कीं जब वह मिसर से निकल कर \v 46 दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर थे। बैत-फ़ग़ूर उनके मुक़ाबिल था, और वह अमोरी बादशाह सीहोन के मुल्क में ख़ैमाज़न थे। सीहोन की रिहाइश हसबोन में थी और उसे इसराईलियों से शिकस्त हुई थी जब वह मूसा की राहनुमाई में मिसर से निकल आए थे। \v 47 उसके मुल्क पर क़ब्ज़ा करके उन्होंने बसन के मुल्क पर भी फ़तह पाई थी जिसका बादशाह ओज था। इन दोनों अमोरी बादशाहों का यह पूरा इलाक़ा उनके हाथ में आ गया था। यह इलाक़ा दरियाए-यरदन के मशरिक़ में था। \v 48 उस की जुनूबी सरहद दरियाए-अरनोन के किनारे पर वाक़े शहर अरोईर थी जबकि उस की शिमाली सरहद सिरयून यानी हरमून पहाड़ थी। \v 49 दरियाए-यरदन का पूरा मशरिक़ी किनारा पिसगा के पहाड़ी सिलसिले के दामन में वाक़े बहीराए-मुरदार तक उसमें शामिल था। \c 5 \s1 दस अहकाम \p \v 1 मूसा ने तमाम इसराईलियों को जमा करके कहा, \p ऐ इसराईल, ध्यान से वह हिदायात और अहकाम सुन जो मैं तुम्हें आज पेश कर रहा हूँ। उन्हें सीखो और बड़ी एहतियात से उन पर अमल करो। \v 2 रब हमारे ख़ुदा ने होरिब यानी सीना पहाड़ पर हमारे साथ अहद बाँधा। \v 3 उसने यह अहद हमारे बापदादा के साथ नहीं बल्कि हमारे ही साथ बाँधा है, जो आज इस जगह पर ज़िंदा हैं। \v 4 रब पहाड़ पर आग में से रूबरू होकर तुमसे हमकलाम हुआ। \v 5 उस वक़्त मैं तुम्हारे और रब के दरमियान खड़ा हुआ ताकि तुम्हें रब की बातें सुनाऊँ। क्योंकि तुम आग से डरते थे और इसलिए पहाड़ पर न चढ़े। उस वक़्त रब ने कहा, \p \v 6 “मैं रब तेरा ख़ुदा हूँ जो तुझे मुल्के-मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया। \v 7 मेरे सिवा किसी और माबूद की परस्तिश न करना। \p \v 8 अपने लिए बुत न बनाना। किसी भी चीज़ की मूरत न बनाना, चाहे वह आसमान में, ज़मीन पर या समुंदर में हो। \v 9 न बुतों की परस्तिश, न उनकी ख़िदमत करना, क्योंकि मैं तेरा रब ग़यूर ख़ुदा हूँ। जो मुझसे नफ़रत करते हैं उन्हें मैं तीसरी और चौथी पुश्त तक सज़ा दूँगा। \v 10 लेकिन जो मुझसे मुहब्बत रखते और मेरे अहकाम पूरे करते हैं उन पर मैं हज़ार पुश्तों तक मेहरबानी करूँगा। \p \v 11 रब अपने ख़ुदा का नाम बेमक़सद या ग़लत मक़सद के लिए इस्तेमाल न करना। जो भी ऐसा करता है उसे रब सज़ा दिए बग़ैर नहीं छोड़ेगा। \p \v 12 सबत के दिन का ख़याल रखना। उसे इस तरह मनाना कि वह मख़सूसो-मुक़द्दस हो, उसी तरह जिस तरह रब तेरे ख़ुदा ने तुझे हुक्म दिया है। \v 13 हफ़ते के पहले छः दिन अपना काम-काज कर, \v 14 लेकिन सातवाँ दिन रब तेरे ख़ुदा का आराम का दिन है। उस दिन किसी तरह का काम न करना। न तू, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा नौकर, न तेरी नौकरानी, न तेरा बैल, न तेरा गधा, न तेरा कोई और मवेशी। जो परदेसी तेरे दरमियान रहता है वह भी काम न करे। तेरे नौकर और तेरी नौकरानी को तेरी तरह आराम का मौक़ा मिलना है। \v 15 याद रखना कि तू मिसर में ग़ुलाम था और कि रब तेरा ख़ुदा ही तुझे बड़ी क़ुदरत और इख़्तियार से वहाँ से निकाल लाया। इसलिए उसने तुझे हुक्म दिया है कि सबत का दिन मनाना। \p \v 16 अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना जिस तरह रब तेरे ख़ुदा ने तुझे हुक्म दिया है। फिर तू उस मुल्क में जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देनेवाला है ख़ुशहाल होगा और देर तक जीता रहेगा। \p \v 17 क़त्ल न करना। \p \v 18 ज़िना न करना। \p \v 19 चोरी न करना। \p \v 20 अपने पड़ोसी के बारे में झूटी गवाही न देना। \p \v 21 अपने पड़ोसी की बीवी का लालच न करना। न उसके घर का, न उस की ज़मीन का, न उसके नौकर का, न उस की नौकरानी का, न उसके बैल और न उसके गधे का बल्कि उस की किसी भी चीज़ का लालच न करना।” \p \v 22 रब ने तुम सबको यह अहकाम दिए जब तुम सीना पहाड़ के दामन में जमा थे। वहाँ तुमने आग, बादल और गहरे अंधेरे में से उस की ज़ोरदार आवाज़ सुनी। यही कुछ उसने कहा और बस। फिर उसने उन्हें पत्थर की दो तख़्तियों पर लिखकर मुझे दे दिया। \s1 लोग रब से डरते हैं \p \v 23 जब तुमने तारीकी से यह आवाज़ सुनी और पहाड़ की जलती हुई हालत देखी तो तुम्हारे क़बीलों के राहनुमा और बुज़ुर्ग मेरे पास आए। \v 24 उन्होंने कहा, “रब हमारे ख़ुदा ने हम पर अपना जलाल और अज़मत ज़ाहिर की है। आज हमने आग में से उस की आवाज़ सुनी है। हमने देख लिया है कि जब अल्लाह इनसान से हमकलाम होता है तो ज़रूरी नहीं कि वह मर जाए। \v 25 लेकिन अब हम क्यों अपनी जान ख़तरे में डालें? अगर हम मज़ीद रब अपने ख़ुदा की आवाज़ सुनें तो यह बड़ी आग हमें भस्म कर देगी और हम अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे। \v 26 क्योंकि फ़ानी इनसानों में से कौन हमारी तरह ज़िंदा ख़ुदा को आग में से बातें करते हुए सुनकर ज़िंदा रहा है? कोई भी नहीं! \v 27 आप ही क़रीब जाकर उन तमाम बातों को सुनें जो रब हमारा ख़ुदा हमें बताना चाहता है। फिर लौटकर हमें वह बातें सुनाएँ। हम उन्हें सुनेंगे और उन पर अमल करेंगे।” \p \v 28 जब रब ने यह सुना तो उसने मुझसे कहा, “मैंने इन लोगों की यह बातें सुन ली हैं। वह ठीक कहते हैं। \v 29 काश उनकी सोच हमेशा ऐसी ही हो! काश वह हमेशा इसी तरह मेरा ख़ौफ़ मानें और मेरे अहकाम पर अमल करें! अगर वह ऐसा करेंगे तो वह और उनकी औलाद हमेशा कामयाब रहेंगे। \v 30 जा, उन्हें बता दे कि अपने ख़ैमों में लौट जाओ। \v 31 लेकिन तू यहाँ मेरे पास रह ताकि मैं तुझे तमाम क़वानीन और अहकाम दे दूँ। उनको लोगों को सिखाना ताकि वह उस मुल्क में उनके मुताबिक़ चलें जो मैं उन्हें दूँगा।” \p \v 32 चुनाँचे एहतियात से उन अहकाम पर अमल करो जो रब तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हें दिए हैं। उनसे न दाईं तरफ़ हटो न बाईं तरफ़। \v 33 हमेशा उस राह पर चलते रहो जो रब तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हें बताई है। फिर तुम कामयाब होगे और उस मुल्क में देर तक जीते रहोगे जिस पर तुम क़ब्ज़ा करोगे। \c 6 \s1 सबसे बड़ा हुक्म \p \v 1 यह वह तमाम अहकाम हैं जो रब तुम्हारे ख़ुदा ने मुझे तुम्हें सिखाने के लिए कहा। उस मुल्क में इन पर अमल करना जिसमें तुम जानेवाले हो ताकि उस पर क़ब्ज़ा करो। \v 2 उम्र-भर तू, तेरे बच्चे और पोते-नवासे रब अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानें और उसके उन तमाम अहकाम पर चलें जो मैं तुझे दे रहा हूँ। तब तू देर तक जीता रहेगा। \v 3 ऐ इसराईल, यह मेरी बातें सुन और बड़ी एहतियात से इन पर अमल कर! फिर रब तेरे ख़ुदा का वादा पूरा हो जाएगा कि तू कामयाब रहेगा और तेरी तादाद उस मुल्क में ख़ूब बढ़ती जाएगी जिसमें दूध और शहद की कसरत है। \p \v 4 सुन ऐ इसराईल! रब हमारा ख़ुदा एक ही रब है। \v 5 रब अपने ख़ुदा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपनी पूरी ताक़त से प्यार करना। \v 6 जो अहकाम मैं तुझे आज बता रहा हूँ उन्हें अपने दिल पर नक़्श कर। \v 7 उन्हें अपने बच्चों के ज़हननशीन करा। यही बातें हर वक़्त और हर जगह तेरे लबों पर हों ख़ाह तू घर में बैठा या रास्ते पर चलता हो, लेटा हो या खड़ा हो। \v 8 उन्हें निशान के तौर पर और याददिहानी के लिए अपने बाज़ुओं और माथे पर लगा। \v 9 उन्हें अपने घरों की चौखटों और अपने शहरों के दरवाज़ों पर लिख। \p \v 10 रब तेरे ख़ुदा का वादा पूरा होगा जो उसने क़सम खाकर तेरे बापदादा इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब के साथ किया कि मैं तुझे कनान में ले जाऊँगा। जो बड़े और शानदार शहर उसमें हैं वह तूने ख़ुद नहीं बनाए। \v 11 जो मकान उसमें हैं वह ऐसी अच्छी चीज़ों से भरे हुए हैं जो तूने उनमें नहीं रखीं। जो कुएँ उसमें हैं उनको तूने नहीं खोदा। जो अंगूर और ज़ैतून के बाग़ उसमें हैं उन्हें तूने नहीं लगाया। यह हक़ीक़त याद रख। जब तू उस मुल्क में कसरत का खाना खाकर सेर हो जाएगा \v 12 तो ख़बरदार! रब को न भूलना जो तुझे मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया। \p \v 13 रब अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना। सिर्फ़ उसी की इबादत करना और उसी का नाम लेकर क़सम खाना। \v 14 दीगर माबूदों की पैरवी न करना। इसमें तमाम पड़ोसी अक़वाम के देवता भी शामिल हैं। \v 15 वरना रब तेरे ख़ुदा का ग़ज़ब तुझ पर नाज़िल होकर तुझे मुल्क में से मिटा डालेगा। क्योंकि वह ग़यूर ख़ुदा है और तेरे दरमियान ही रहता है। \p \v 16 रब अपने ख़ुदा को उस तरह न आज़माना जिस तरह तुमने मस्सा में किया था। \v 17 ध्यान से रब अपने ख़ुदा के अहकाम के मुताबिक़ चलो, उन तमाम हिदायात और क़वानीन पर जो उसने तुझे दिए हैं। \v 18 जो कुछ रब की नज़र में दुरुस्त और अच्छा है वह कर। फिर तू कामयाब रहेगा, तू जाकर उस अच्छे मुल्क पर क़ब्ज़ा करेगा जिसका वादा रब ने तेरे बापदादा से क़सम खाकर किया था। \v 19 तब रब की बात पूरी हो जाएगी कि तू अपने दुश्मनों को अपने आगे आगे निकाल देगा। \p \v 20 आनेवाले दिनों में तेरे बच्चे पूछेंगे, “रब हमारे ख़ुदा ने आपको इन तमाम अहकाम पर अमल करने को क्यों कहा?” \v 21 फिर उन्हें जवाब देना, “हम मिसर के बादशाह फ़िरौन के ग़ुलाम थे, लेकिन रब हमें बड़ी क़ुदरत का इज़हार करके मिसर से निकाल लाया। \v 22 हमारे देखते देखते उसने बड़े बड़े निशान और मोजिज़े किए और मिसर, फ़िरौन और उसके पूरे घराने पर हौलनाक मुसीबतें भेजीं। \v 23 उस वक़्त वह हमें वहाँ से निकाल लाया ताकि हमें लेकर वह मुल्क दे जिसका वादा उसने क़सम खाकर हमारे बापदादा के साथ किया था। \v 24 रब हमारे ख़ुदा ही ने हमें कहा कि इन तमाम अहकाम के मुताबिक़ चलो और रब अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानो। क्योंकि अगर हम ऐसा करें तो फिर हम हमेशा कामयाब और ज़िंदा रहेंगे। और आज तक ऐसा ही रहा है। \v 25 अगर हम रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर रहकर एहतियात से उन तमाम बातों पर अमल करेंगे जो उसने हमें करने को कही हैं तो वह हमें रास्तबाज़ क़रार देगा।” \c 7 \s1 दूसरी कनानी क़ौमों को निकालना है \p \v 1 रब तेरा ख़ुदा तुझे उस मुल्क में ले जाएगा जिस पर तू जाकर क़ब्ज़ा करेगा। वह तेरे सामने से बहुत-सी क़ौमें भगा देगा। गो यह सात क़ौमें यानी हित्ती, जिरजासी, अमोरी, कनानी, फ़रिज़्ज़ी, हिव्वी और यबूसी तादाद और ताक़त के लिहाज़ से तुझसे बड़ी होंगी \v 2 तो भी रब तेरा ख़ुदा उन्हें तेरे हवाले करेगा। जब तू उन्हें शिकस्त देगा तो उन सबको उसके लिए मख़सूस करके हलाक कर देना है। न उनके साथ अहद बाँधना और न उन पर रहम करना। \v 3 उनमें से किसी से शादी न करना। न अपनी बेटियों का रिश्ता उनके बेटों को देना, न अपने बेटों का रिश्ता उनकी बेटियों से करना। \v 4 वरना वह तुम्हारे बच्चों को मेरी पैरवी से दूर करेंगे और वह मेरी नहीं बल्कि उनके देवताओं की ख़िदमत करेंगे। तब रब का ग़ज़ब तुम पर नाज़िल होकर जल्दी से तुम्हें हलाक कर देगा। \v 5 इसलिए उनकी क़ुरबानगाहें ढा देना। जिन पत्थरों की वह पूजा करते हैं उन्हें चकनाचूर कर देना, उनके यसीरत देवी के खंबे काट डालना और उनके बुत जला देना। \p \v 6 क्योंकि तू रब अपने ख़ुदा के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस है। उसने दुनिया की तमाम क़ौमों में से तुझे चुनकर अपनी क़ौम और ख़ास मिलकियत बनाया। \v 7 रब ने क्यों तुम्हारे साथ ताल्लुक़ क़ायम किया और तुम्हें चुन लिया? क्या इस वजह से कि तुम तादाद में दीगर क़ौमों की निसबत ज़्यादा थे? हरगिज़ नहीं! तुम तो बहुत कम थे। \v 8 बल्कि वजह यह थी कि रब ने तुम्हें प्यार किया और वह वादा पूरा किया जो उसने क़सम खाकर तुम्हारे बापदादा के साथ किया था। इसी लिए वह फ़िद्या देकर तुम्हें बड़ी क़ुदरत से मिसर की ग़ुलामी और उस मुल्क के बादशाह के हाथ से बचा लाया। \v 9 चुनाँचे जान ले कि सिर्फ़ रब तेरा ख़ुदा ही ख़ुदा है। वह वफ़ादार ख़ुदा है। जो उससे मुहब्बत रखते और उसके अहकाम पर अमल करते हैं उनके साथ वह अपना अहद क़ायम रखेगा और उन पर हज़ार पुश्तों तक मेहरबानी करेगा। \v 10 लेकिन उससे नफ़रत करनेवालों को वह उनके रूबरू मुनासिब सज़ा देकर बरबाद करेगा। हाँ, जो उससे नफ़रत करते हैं, उनके रूबरू वह मुनासिब सज़ा देगा और झिजकेगा नहीं। \p \v 11 चुनाँचे ध्यान से उन तमाम अहकाम पर अमल कर जो मैं आज तुझे दे रहा हूँ ताकि तू उनके मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारे। \v 12 अगर तू उन पर तवज्जुह दे और एहतियात से उन पर चले तो फिर रब तेरा ख़ुदा तेरे साथ अपना अहद क़ायम रखेगा और तुझ पर मेहरबानी करेगा, बिलकुल उस वादे के मुताबिक़ जो उसने क़सम खाकर तेरे बापदादा से किया था। \v 13 वह तुझे प्यार करेगा और तुझे उस मुल्क में बरकत देगा जो तुझे देने का वादा उसने क़सम खाकर तेरे बापदादा से किया था। तुझे बहुत औलाद बख़्शने के अलावा वह तेरे खेतों को बरकत देगा, और तुझे कसरत का अनाज, अंगूर और ज़ैतून हासिल होगा। वह तेरे रेवड़ों को भी बरकत देगा, और तेरे गाय-बैलों और भेड़-बकरियों की तादाद बढ़ती जाएगी। \v 14 तुझे दीगर तमाम क़ौमों की निसबत कहीं ज़्यादा बरकत मिलेगी। न तुझमें और न तेरे मवेशियों में बाँझपन पाया जाएगा। \v 15 रब हर बीमारी को तुझसे दूर रखेगा। वह तुझमें वह ख़तरनाक वबाएँ फैलने नहीं देगा जिनसे तू मिसर में वाक़िफ़ हुआ बल्कि उन्हें उनमें फैलाएगा जो तुझसे नफ़रत रखते हैं। \p \v 16 जो भी क़ौमें रब तेरा ख़ुदा तेरे हाथ में कर देगा उन्हें तबाह करना लाज़िम है। उन पर रहम की निगाह से न देखना, न उनके देवताओं की ख़िदमत करना, वरना तू फँस जाएगा। \p \v 17 गो तेरा दिल कहे, “यह क़ौमें हमसे ताक़तवर हैं। हम किस तरह इन्हें निकाल सकते हैं?” \v 18 तो भी उनसे न डर। वही कुछ ज़हन में रख जो रब तेरे ख़ुदा ने फ़िरौन और पूरे मिसर के साथ किया। \v 19 क्योंकि तूने अपनी आँखों से रब अपने ख़ुदा की वह बड़ी आज़मानेवाली मुसीबतें और मोजिज़े, उसका वह अज़ीम इख़्तियार और क़ुदरत देखी जिससे वह तुझे वहाँ से निकाल लाया। वही कुछ रब तेरा ख़ुदा उन क़ौमों के साथ भी करेगा जिनसे तू इस वक़्त डरता है। \v 20 न सिर्फ़ यह बल्कि रब तेरा ख़ुदा उनके दरमियान ज़ंबूर भी भेजेगा ताकि वह भी तबाह हो जाएँ जो पहले हमलों से बचकर छुप गए हैं। \v 21 उनसे दहशत न खा, क्योंकि रब तेरा ख़ुदा तेरे दरमियान है। वह अज़ीम ख़ुदा है जिससे सब ख़ौफ़ खाते हैं। \v 22 वह रफ़्ता रफ़्ता उन क़ौमों को तेरे आगे से भगा देगा। तू उन्हें एकदम ख़त्म नहीं कर सकेगा, वरना जंगली जानवर तेज़ी से बढ़कर तुझे नुक़सान पहुचाएँगे। \p \v 23 रब तेरा ख़ुदा उन्हें तेरे हवाले कर देगा। वह उनमें इतनी सख़्त अफ़रा-तफ़री पैदा करेगा कि वह बरबाद हो जाएंगे। \v 24 वह उनके बादशाहों को भी तेरे क़ाबू में कर देगा, और तू उनका नामो-निशान मिटा देगा। कोई भी तेरा सामना नहीं कर सकेगा बल्कि तू उन सबको बरबाद कर देगा। \p \v 25 उनके देवताओं के मुजस्समे जला देना। जो चाँदी और सोना उन पर चढ़ाया हुआ है उसका लालच न करना। उसे न लेना वरना तू फँस जाएगा। क्योंकि इन चीज़ों से रब तेरे ख़ुदा को घिन आती है। \v 26 इस तरह की मकरूह चीज़ अपने घर में न लाना, वरना तुझे भी उसके साथ अलग करके बरबाद किया जाएगा। तेरे दिल में उससे शदीद नफ़रत और घिन हो, क्योंकि उसे पूरे तौर पर बरबाद करने के लिए मख़सूस किया गया है। \c 8 \s1 रब को न भूलना \p \v 1 एहतियात से उन तमाम अहकाम पर अमल करो जो मैं आज तुझे दे रहा हूँ। क्योंकि ऐसा करने से तुम जीते रहोगे, तादाद में बढ़ोगे और जाकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करोगे जिसका वादा रब ने तुम्हारे बापदादा से क़सम खाकर किया था। \p \v 2 वह पूरा वक़्त याद रख जब रब तेरा ख़ुदा रेगिस्तान में 40 साल तक तेरी राहनुमाई करता रहा ताकि तुझे आजिज़ करके आज़माए और मालूम करे कि क्या तू उसके अहकाम पर चलेगा कि नहीं। \v 3 उसने तुझे आजिज़ करके भूके होने दिया, फिर तुझे मन खिलाया जिससे न तू और न तेरे बापदादा वाक़िफ़ थे। क्योंकि वह तुझे सिखाना चाहता था कि इनसान की ज़िंदगी सिर्फ़ रोटी पर मुनहसिर नहीं होती बल्कि हर उस बात पर जो रब के मुँह से निकलती है। \p \v 4 इन 40 सालों के दौरान तेरे कपड़े न घिसे न फटे, न तेरे पाँव सूजे। \v 5 चुनाँचे दिल में जान ले कि जिस तरह बाप अपने बेटे की तरबियत करता है उसी तरह रब हमारा ख़ुदा हमारी तरबियत करता है। \p \v 6 रब अपने ख़ुदा के अहकाम पर अमल करके उस की राहों पर चल और उसका ख़ौफ़ मान। \v 7 क्योंकि वह तुझे एक बेहतरीन मुल्क में ले जा रहा है जिसमें नहरें और ऐसे चश्मे हैं जो पहाड़ियों और वादियों की ज़मीन से फूट निकलते हैं। \v 8 उस की पैदावार अनाज, जौ, अंगूर, अंजीर, अनार, ज़ैतून और शहद है। \v 9 उसमें रोटी की कमी नहीं होगी, और तू किसी चीज़ से महरूम नहीं रहेगा। उसके पत्थरों में लोहा पाया जाता है, और खुदाई से तू उस की पहाड़ियों से ताँबा हासिल कर सकेगा। \p \v 10 जब तू कसरत का खाना खाकर सेर हो जाएगा तो फिर रब अपने ख़ुदा की तमजीद करना जिसने तुझे यह शानदार मुल्क दिया है। \v 11 ख़बरदार, रब अपने ख़ुदा को न भूल और उसके उन अहकाम पर अमल करने से गुरेज़ न कर जो मैं आज तुझे दे रहा हूँ। \v 12 क्योंकि जब तू कसरत का खाना खाकर सेर हो जाएगा, तू शानदार घर बनाकर उनमें रहेगा \v 13 और तेरे रेवड़, सोने-चाँदी और बाक़ी तमाम माल में इज़ाफ़ा होगा \v 14 तो कहीं तू मग़रूर होकर रब अपने ख़ुदा को भूल न जाए जो तुझे मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया। \v 15 जब तू उस वसी और हौलनाक रेगिस्तान में सफ़र कर रहा था जिसमें ज़हरीले साँप और बिच्छू थे तो वही तेरी राहनुमाई करता रहा। पानी से महरूम उस इलाक़े में वही सख़्त पत्थर में से पानी निकाल लाया। \v 16 रेगिस्तान में वही तुझे मन खिलाता रहा, जिससे तेरे बापदादा वाक़िफ़ न थे। इन मुश्किलात से वह तुझे आजिज़ करके आज़माता रहा ताकि आख़िरकार तू कामयाब हो जाए। \p \v 17 जब तुझे कामयाबी हासिल होगी तो यह न कहना कि मैंने अपनी ही क़ुव्वत और ताक़त से यह सब कुछ हासिल किया है। \v 18 बल्कि रब अपने ख़ुदा को याद करना जिसने तुझे दौलत हासिल करने की क़ाबिलियत दी है। क्योंकि वह आज भी उसी अहद पर क़ायम है जो उसने तेरे बापदादा से किया था। \p \v 19 रब अपने ख़ुदा को न भूलना, और न दीगर माबूदों के पीछे पड़कर उन्हें सिजदा और उनकी ख़िदमत करना। वरना मैं ख़ुद गवाह हूँ कि तुम यक़ीनन हलाक हो जाओगे। \v 20 अगर तुम रब अपने ख़ुदा की इताअत नहीं करोगे तो फिर वह तुम्हें उन क़ौमों की तरह तबाह कर देगा जो तुमसे पहले इस मुल्क में रहती थीं। \c 9 \s1 मुल्क मिलने का सबब इसराईल की रास्ती नहीं है \p \v 1 सुन ऐ इसराईल! आज तू दरियाए-यरदन को पार करनेवाला है। दूसरी तरफ़ तू ऐसी क़ौमों को भगा देगा जो तुझसे बड़ी और ताक़तवर हैं और जिनके शानदार शहरों की फ़सीलें आसमान से बातें करती हैं। \v 2 वहाँ अनाक़ी बसते हैं जो ताक़तवर और दराज़क़द हैं। तू ख़ुद जानता है कि उनके बारे में कहा जाता है, “कौन अनाक़ियों का सामना कर सकता है?” \v 3 लेकिन आज जान ले कि रब तेरा ख़ुदा तेरे आगे आगे चलते हुए उन्हें भस्म कर देनेवाली आग की तरह हलाक करेगा। वह तेरे आगे आगे उन पर क़ाबू पाएगा, और तू उन्हें निकालकर जल्दी मिटा देगा, जिस तरह रब ने वादा किया है। \p \v 4 जब रब तेरा ख़ुदा उन्हें तेरे सामने से निकाल देगा तो तू यह न कहना, “मैं रास्तबाज़ हूँ, इसी लिए रब मुझे लायक़ समझकर यहाँ लाया और यह मुल्क मीरास में दे दिया है।” यह बात हरगिज़ दुरुस्त नहीं है। रब उन क़ौमों को उनकी ग़लत हरकतों की वजह से तेरे सामने से निकाल देगा। \v 5 तू अपनी रास्तबाज़ी और दियानतदारी की बिना पर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा नहीं करेगा बल्कि रब उन्हें उनकी शरीर हरकतों के बाइस तेरे सामने से निकाल देगा। दूसरे, जो वादा उसने तेरे बापदादा इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब के साथ क़सम खाकर किया था उसे पूरा होना है। \p \v 6 चुनाँचे जान ले कि रब तेरा ख़ुदा तुझे तेरी रास्ती के बाइस यह अच्छा मुल्क नहीं दे रहा। हक़ीक़त तो यह है कि तू हटधर्म क़ौम है। \s1 सोने का बछड़ा \p \v 7 याद रख और कभी न भूल कि तूने रेगिस्तान में रब अपने ख़ुदा को किस तरह नाराज़ किया। मिसर से निकलते वक़्त से लेकर यहाँ पहुँचने तक तुम रब से सरकश रहे हो। \v 8 ख़ासकर होरिब यानी सीना के दामन में तुमने रब को इतना ग़ुस्सा दिलाया कि वह तुम्हें हलाक करने को था। \v 9 उस वक़्त मैं पहाड़ पर चढ़ गया था ताकि पत्थर की तख़्तियाँ यानी उस अहद की तख़्तियाँ मिल जाएँ जो रब ने तुम्हारे साथ बाँधा था। कुछ खाए पिए बग़ैर मैं 40 दिन और रात वहाँ रहा। \p \v 10-11 जो कुछ रब ने आग में से कहा था जब तुम पहाड़ के दामन में जमा थे वही कुछ उसने अपनी उँगली से दोनों तख़्तियों पर लिखकर मुझे दिया। \v 12 उसने मुझसे कहा, “फ़ौरन यहाँ से उतर जा। तेरी क़ौम जिसे तू मिसर से निकाल लाया बिगड़ गई है। वह कितनी जल्दी से मेरे अहकाम से हट गए हैं। उन्होंने अपने लिए बुत ढाल लिया है। \v 13 मैंने जान लिया है कि यह क़ौम कितनी ज़िद्दी है। \v 14 अब मुझे छोड़ दे ताकि मैं उन्हें तबाह करके उनका नामो-निशान दुनिया में से मिटा डालूँ। उनकी जगह मैं तुझसे एक क़ौम बना लूँगा जो उनसे बड़ी और ताक़तवर होगी।” \p \v 15 मैं मुड़कर पहाड़ से उतरा जो अब तक भड़क रहा था। मेरे हाथों में अहद की दोनों तख़्तियाँ थीं। \v 16 तुम्हें देखते ही मुझे मालूम हुआ कि तुमने रब अपने ख़ुदा का गुनाह किया है। तुमने अपने लिए बछड़े का बुत ढाल लिया था। तुम कितनी जल्दी से रब की मुक़र्ररा राह से हट गए थे। \p \v 17 तब मैंने तुम्हारे देखते देखते दोनों तख़्तियों को ज़मीन पर पटख़कर टुकड़े टुकड़े कर दिया। \v 18 एक और बार मैं रब के सामने मुँह के बल गिरा। मैंने न कुछ खाया, न कुछ पिया। 40 दिन और रात मैं तुम्हारे तमाम गुनाहों के बाइस इसी हालत में रहा। क्योंकि जो कुछ तुमने किया था वह रब को निहायत बुरा लगा, इसलिए वह ग़ज़बनाक हो गया था। \v 19 वह तुमसे इतना नाराज़ था कि मैं बहुत डर गया। यों लग रहा था कि वह तुम्हें हलाक कर देगा। लेकिन इस बार भी उसने मेरी सुन ली। \v 20 मैंने हारून के लिए भी दुआ की, क्योंकि रब उससे भी निहायत नाराज़ था और उसे हलाक कर देना चाहता था। \p \v 21 जो बछड़ा तुमने गुनाह करके बनाया था उसे मैंने जला दिया, फिर जो कुछ बाक़ी रह गया उसे कुचल दिया और पीस पीसकर पौडर बना दिया। यह पौडर मैंने उस चश्मे में फेंक दिया जो पहाड़ पर से बह रहा था। \p \v 22 तुमने रब को तबएरा, मस्सा और क़ब्रोत-हत्तावा में भी ग़ुस्सा दिलाया। \v 23 क़ादिस-बरनीअ में भी ऐसा ही हुआ। वहाँ से रब ने तुम्हें भेजकर कहा था, “जाओ, उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करो जो मैंने तुम्हें दे दिया है।” लेकिन तुमने सरकश होकर रब अपने ख़ुदा के हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी की। तुमने उस पर एतमाद न किया, न उस की सुनी। \v 24 जब से मैं तुम्हें जानता हूँ तुम्हारा रब के साथ रवैया बाग़ियाना ही रहा है। \p \v 25 मैं 40 दिन और रात रब के सामने ज़मीन पर मुँह के बल रहा, क्योंकि रब ने कहा था कि वह तुम्हें हलाक कर देगा। \v 26 मैंने उससे मिन्नत करके कहा, “ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, अपनी क़ौम को तबाह न कर। वह तो तेरी ही मिलकियत है जिसे तूने फ़िद्या देकर अपनी अज़ीम क़ुदरत से बचाया और बड़े इख़्तियार के साथ मिसर से निकाल लाया। \v 27 अपने ख़ादिमों इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब को याद कर, और इस क़ौम की ज़िद, शरीर हरकतों और गुनाह पर तवज्जुह न दे। \v 28 वरना मिसरी कहेंगे, ‘रब उन्हें उस मुल्क में लाने के क़ाबिल नहीं था जिसका वादा उसने किया था, बल्कि वह उनसे नफ़रत करता था। हाँ, वह उन्हें हलाक करने के लिए रेगिस्तान में ले आया।’ \v 29 वह तो तेरी क़ौम हैं, तेरी मिलकियत जिसे तू अपनी अज़ीम क़ुदरत और इख़्तियार से मिसर से निकाल लाया।” \c 10 \s1 मूसा को नई तख़्तियाँ मिलती हैं \p \v 1 उस वक़्त रब ने मुझसे कहा, “पत्थर की दो और तख़्तियाँ तराशना जो पहली तख़्तियों की मानिंद हों। उन्हें लेकर मेरे पास पहाड़ पर चढ़ आ। लकड़ी का संदूक़ भी बनाना। \v 2 फिर मैं इन तख़्तियों पर दुबारा वही बातें लिखूँगा जो मैं उन तख़्तियों पर लिख चुका था जो तूने तोड़ डालीं। तुम्हें उन्हें संदूक़ में महफ़ूज़ रखना है।” \p \v 3 मैंने कीकर की लकड़ी का संदूक़ बनवाया और दो तख़्तियाँ तराशीं जो पहली तख़्तियों की मानिंद थीं। फिर मैं दोनों तख़्तियाँ लेकर पहाड़ पर चढ़ गया। \v 4 रब ने उन तख़्तियों पर दुबारा वह दस अहकाम लिख दिए जो वह पहली तख़्तियों पर लिख चुका था। (उन्हीं अहकाम का एलान उसने पहाड़ पर आग में से किया था जब तुम उसके दामन में जमा थे।) फिर उसने यह तख़्तियाँ मेरे सुपुर्द कीं। \v 5 मैं लौटकर उतरा और तख़्तियों को उस संदूक़ में रखा जो मैंने बनाया था। वहाँ वह अब तक हैं। सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा रब ने हुक्म दिया था। \s1 इमामों और लावियों की ख़िदमत \p \v 6 (इसके बाद इसराईली बनी-याक़ान के कुओं से रवाना होकर मौसीरा पहुँचे। वहाँ हारून फ़ौत हुआ। उसे दफ़न करने के बाद उसका बेटा इलियज़र उस की जगह इमाम बना। \v 7 फिर वह आगे सफ़र करते करते जुदजूदा, फिर युतबाता पहुँचे जहाँ नहरें हैं। \p \v 8 उन दिनों में रब ने लावी के क़बीले को अलग करके उसे रब के अहद के संदूक़ को उठाकर ले जाने, रब के हुज़ूर ख़िदमत करने और उसके नाम से बरकत देने की ज़िम्मादारी दी। आज तक यह उनकी ज़िम्मादारी रही है। \v 9 इस वजह से लावियों को दीगर क़बीलों की तरह न हिस्सा न मीरास मिली। रब तेरा ख़ुदा ख़ुद उनकी मीरास है। उसने ख़ुद उन्हें यह फ़रमाया है।) \p \v 10 जब मैंने दूसरी मरतबा 40 दिन और रात पहाड़ पर गुज़ारे तो रब ने इस दफ़ा भी मेरी सुनी और तुझे हलाक न करने पर आमादा हुआ। \v 11 उसने कहा, “जा, क़ौम की राहनुमाई कर ताकि वह जाकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करें जिसका वादा मैंने क़सम खाकर उनके बापदादा से किया था।” \s1 रब का ख़ौफ़ \p \v 12 ऐ इसराईल, अब मेरी बात सुन! रब तेरा ख़ुदा तुझसे क्या तक़ाज़ा करता है? सिर्फ़ यह कि तू उसका ख़ौफ़ माने, उस की तमाम राहों पर चले, उसे प्यार करे, अपने पूरे दिलो-जान से उस की ख़िदमत करे \v 13 और उसके तमाम अहकाम पर अमल करे। आज मैं उन्हें तुझे तेरी बेहतरी के लिए दे रहा हूँ। \p \v 14 पूरा आसमान, ज़मीन और जो कुछ उस पर है, सबका मालिक रब तेरा ख़ुदा है। \v 15 तो भी उसने तेरे बापदादा पर ही अपनी ख़ास शफ़क़त का इज़हार करके उनसे मुहब्बत की। और उसने तुम्हें चुनकर दूसरी तमाम क़ौमों पर तरजीह दी जैसा कि आज ज़ाहिर है। \v 16 ख़तना उस की क़ौम का निशान है, लेकिन ध्यान रखो कि वह न सिर्फ़ ज़ाहिरी बल्कि बातिनी भी हो। आइंदा अड़ न जाओ। \p \v 17 क्योंकि रब तुम्हारा ख़ुदा ख़ुदाओं का ख़ुदा और रब्बों का रब है। वह अज़ीम और ज़ोरावर ख़ुदा है जिससे सब ख़ौफ़ खाते हैं। वह जानिबदारी नहीं करता और रिश्वत नहीं लेता। \v 18 वह यतीमों और बेवाओं का इनसाफ़ करता है। वह परदेसी से प्यार करता और उसे ख़ुराक और पोशाक मुहैया करता है। \v 19 तुम भी उनके साथ मुहब्बत से पेश आओ, क्योंकि तुम भी मिसर में परदेसी थे। \p \v 20 रब अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मान और उस की ख़िदमत कर। उससे लिपटा रह और उसी के नाम की क़सम खा। \v 21 वही तेरा फ़ख़र है। वह तेरा ख़ुदा है जिसने वह तमाम अज़ीम और डरावने काम किए जो तूने ख़ुद देखे। \v 22 जब तेरे बापदादा मिसर गए थे तो 70 अफ़राद थे। और अब रब तेरे ख़ुदा ने तुझे सितारों की मानिंद बेशुमार बना दिया है। \c 11 \s1 रब से मुहब्बत रख और उस की सुन \p \v 1 रब अपने ख़ुदा से प्यार कर और हमेशा उसके अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ार। \v 2 आज जान लो कि तुम्हारे बच्चों ने नहीं बल्कि तुम्हीं ने रब अपने ख़ुदा से तरबियत पाई। तुमने उस की अज़मत, बड़े इख़्तियार और क़ुदरत को देखा, \v 3 और तुम उन मोजिज़ों के गवाह हो जो उसने मिसर के बादशाह फ़िरौन और उसके पूरे मुल्क के सामने किए। \v 4 तुमने देखा कि रब ने किस तरह मिसरी फ़ौज को उसके घोड़ों और रथों समेत बहरे-क़ुलज़ुम में ग़रक़ कर दिया जब वह तुम्हारा ताक़्क़ुब कर रहे थे। उसने उन्हें यों तबाह किया कि वह आज तक बहाल नहीं हुए। \p \v 5 तुम्हारे बच्चे नहीं बल्कि तुम ही गवाह हो कि यहाँ पहुँचने से पहले रब ने रेगिस्तान में तुम्हारी किस तरह देख-भाल की। \v 6 तुमने उसका इलियाब के बेटों दातन और अबीराम के साथ सुलूक देखा जो रूबिन के क़बीले के थे। उस दिन ज़मीन ने ख़ैमागाह के अंदर मुँह खोलकर उन्हें उनके घरानों, डेरों और तमाम जानदारों समेत हड़प कर लिया। \p \v 7 तुमने अपनी ही आँखों से रब के यह तमाम अज़ीम काम देखे हैं। \v 8 चुनाँचे उन तमाम अहकाम पर अमल करते रहो जो मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ ताकि तुम्हें वह ताक़त हासिल हो जो दरकार होगी जब तुम दरियाए-यरदन को पार करके मुल्क पर क़ब्ज़ा करोगे। \v 9 अगर तुम फ़रमाँबरदार रहो तो देर तक उस मुल्क में जीते रहोगे जिसका वादा रब ने क़सम खाकर तुम्हारे बापदादा से किया था और जिसमें दूध और शहद की कसरत है। \p \v 10 क्योंकि यह मुल्क मिसर की मानिंद नहीं है जहाँ से तुम निकल आए हो। वहाँ के खेतों में तुझे बीज बोकर बड़ी मेहनत से उस की आबपाशी करनी पड़ती थी \v 11 जबकि जिस मुल्क पर तुम क़ब्ज़ा करोगे उसमें पहाड़ और वादियाँ हैं जिन्हें सिर्फ़ बारिश का पानी सेराब करता है। \v 12 रब तेरा ख़ुदा ख़ुद उस मुल्क का ख़याल रखता है। रब तेरे ख़ुदा की आँखें साल के पहले दिन से लेकर आख़िर तक मुतवातिर उस पर लगी रहती हैं। \p \v 13 चुनाँचे उन अहकाम के ताबे रहो जो मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ। रब अपने ख़ुदा से प्यार करो और अपने पूरे दिलो-जान से उस की ख़िदमत करो। \v 14 फिर वह ख़रीफ़ और बहार की सालाना बारिश वक़्त पर भेजेगा। अनाज, अंगूर और ज़ैतून की फ़सलें पकेंगी, और तू उन्हें जमा कर लेगा। \v 15 नीज़, अल्लाह तेरी चरागाहों में तेरे रेवड़ों के लिए घास मुहैया करेगा, और तू खाकर सेर हो जाएगा। \p \v 16 लेकिन ख़बरदार, कहीं तुम्हें वरग़लाया न जाए। ऐसा न हो कि तुम रब की राह से हट जाओ और दीगर माबूदों को सिजदा करके उनकी ख़िदमत करो। \v 17 वरना रब का ग़ज़ब तुम पर आन पड़ेगा, और वह मुल्क में बारिश होने नहीं देगा। तुम्हारी फ़सलें नहीं पकेंगी, और तुम्हें जल्द ही उस अच्छे मुल्क में से मिटा दिया जाएगा जो रब तुम्हें दे रहा है। \p \v 18 चुनाँचे मेरी यह बातें अपने दिलों पर नक़्श कर लो। उन्हें निशान के तौर पर और याददिहानी के लिए अपने हाथों और माथों पर लगाओ। \v 19 उन्हें अपने बच्चों को सिखाओ। हर जगह और हमेशा उनके बारे में बात करो, ख़ाह तू घर में बैठा या रास्ते पर चलता हो, लेटा हो या खड़ा हो। \v 20 उन्हें अपने घरों की चौखटों और अपने शहरों के दरवाज़ों पर लिख \v 21 ताकि जब तक ज़मीन पर आसमान क़ायम है तुम और तुम्हारी औलाद उस मुल्क में जीते रहें जिसका वादा रब ने क़सम खाकर तुम्हारे बापदादा से किया था। \p \v 22 एहतियात से उन अहकाम की पैरवी करो जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ। रब अपने ख़ुदा से प्यार करो, उसके तमाम अहकाम पर अमल करो और उसके साथ लिपटे रहो। \v 23 फिर वह तुम्हारे आगे आगे यह तमाम क़ौमें निकाल देगा और तुम ऐसी क़ौमों की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करोगे जो तुमसे बड़ी और ताक़तवर हैं। \v 24 तुम जहाँ भी क़दम रखोगे वह तुम्हारा ही होगा, जुनूबी रेगिस्तान से लेकर लुबनान तक, दरियाए-फ़ुरात से बहीराए-रूम तक। \v 25 कोई भी तुम्हारा सामना नहीं कर सकेगा। तुम उस मुल्क में जहाँ भी जाओगे वहाँ रब तुम्हारा ख़ुदा अपने वादे के मुताबिक़ तुम्हारी दहशत और ख़ौफ़ पैदा कर देगा। \v 26 आज तुम ख़ुद फ़ैसला करो। क्या तुम रब की बरकत या उस की लानत पाना चाहते हो? \v 27 अगर तुम रब अपने ख़ुदा के उन अहकाम पर अमल करो जो मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ तो वह तुम्हें बरकत देगा। \v 28 लेकिन अगर तुम उनके ताबे न रहो बल्कि मेरी पेशकरदा राह से हटकर दीगर माबूदों की पैरवी करो तो वह तुम पर लानत भेजेगा। \p \v 29 जब रब तेरा ख़ुदा तुझे उस मुल्क में ले जाएगा जिस पर तू क़ब्ज़ा करेगा तो लाज़िम है कि गरिज़ीम पहाड़ पर चढ़कर बरकत का एलान करे और ऐबाल पहाड़ पर लानत का। \v 30 यह दो पहाड़ दरियाए-यरदन के मग़रिब में उन कनानियों के इलाक़े में वाक़े हैं जो वादीए-यरदन में आबाद हैं। वह मग़रिब की तरफ़ जिलजाल शहर के सामने मोरिह के बलूत के दरख़्तों के नज़दीक हैं। \v 31 अब तुम दरियाए-यरदन को पार करके उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करनेवाले हो जो रब तुम्हारा ख़ुदा तुम्हें दे रहा है। जब तुम उसे अपनाकर उसमें आबाद हो जाओगे \v 32 तो एहतियात से उन तमाम अहकाम पर अमल करते रहो जो मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ। \c 12 \s1 मुल्क में रब के अहकाम \p \v 1 ज़ैल में वह अहकाम और क़वानीन हैं जिन पर तुम्हें ध्यान से अमल करना होगा जब तुम उस मुल्क में आबाद होगे जो रब तेरे बापदादा का ख़ुदा तुझे दे रहा है ताकि तू उस पर क़ब्ज़ा करे। मुल्क में रहते हुए उम्र-भर उनके ताबे रहो। \s1 मुल्क में एक ही जगह पर मक़दिस हो \p \v 2 उन तमाम जगहों को बरबाद करो जहाँ वह क़ौमें जिन्हें तुम्हें निकालना है अपने देवताओं की पूजा करती हैं, ख़ाह वह ऊँचे पहाड़ों, पहाड़ियों या घने दरख़्तों के साये में क्यों न हों। \v 3 उनकी क़ुरबानगाहों को ढा देना। जिन पत्थरों की पूजा वह करते हैं उन्हें चकनाचूर कर देना। यसीरत देवी के खंबे जला देना। उनके देवताओं के मुजस्समे काट डालना। ग़रज़ इन जगहों से उनका नामो-निशान मिट जाए। \p \v 4 रब अपने ख़ुदा की परस्तिश करने के लिए उनके तरीक़े न अपनाना। \v 5 रब तुम्हारा ख़ुदा क़बीलों में से अपने नाम की सुकूनत के लिए एक जगह चुन लेगा। इबादत के लिए वहाँ जाया करो, \v 6 और वहाँ अपनी तमाम क़ुरबानियाँ लाकर पेश करो, ख़ाह वह भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ, ज़बह की क़ुरबानियाँ, पैदावार का दसवाँ हिस्सा, उठानेवाली क़ुरबानियाँ, मन्नत के हदिये, ख़ुशी से पेश की गई क़ुरबानियाँ या मवेशियों के पहलौठे क्यों न हों। \v 7 वहाँ रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर अपने घरानों समेत खाना खाकर उन कामयाबियों की ख़ुशी मनाओ जो तुझे रब तेरे ख़ुदा की बरकत के बाइस हासिल हुई हैं। \p \v 8 उस वक़्त तुम्हें वह नहीं करना जो हम करते आए हैं। आज तक हर कोई अपनी मरज़ी के मुताबिक़ इबादत करता है, \v 9 क्योंकि अब तक तुम आराम की उस जगह नहीं पहुँचे जो तुझे रब तेरे ख़ुदा से मीरास में मिलनी है। \v 10 लेकिन जल्द ही तुम दरियाए-यरदन को पार करके उस मुल्क में आबाद हो जाओगे जो रब तुम्हारा ख़ुदा तुम्हें मीरास में दे रहा है। उस वक़्त वह तुम्हें इर्दगिर्द के दुश्मनों से बचाए रखेगा, और तुम आराम और सुकून से ज़िंदगी गुज़ार सकोगे। \v 11 तब रब तुम्हारा ख़ुदा अपने नाम की सुकूनत के लिए एक जगह चुन लेगा, और तुम्हें सब कुछ जो मैं बताऊँगा वहाँ लाकर पेश करना है, ख़ाह वह भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ, ज़बह की क़ुरबानियाँ, पैदावार का दसवाँ हिस्सा, उठानेवाली क़ुरबानियाँ या मन्नत के ख़ास हदिये क्यों न हों। \v 12 वहाँ रब के सामने तुम, तुम्हारे बेटे-बेटियाँ, तुम्हारे ग़ुलाम और लौंडियाँ ख़ुशी मनाएँ। अपने शहरों में आबाद लावियों को भी अपनी ख़ुशी में शरीक करो, क्योंकि उनके पास मौरूसी ज़मीन नहीं होगी। \p \v 13 ख़बरदार, अपनी भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ हर जगह पर पेश न करना \v 14 बल्कि सिर्फ़ उस जगह पर जो रब क़बीलों में से चुनेगा। वहीं सब कुछ यों मना जिस तरह मैं तुझे बताता हूँ। \p \v 15 लेकिन वह जानवर इसमें शामिल नहीं हैं जो तू क़ुरबानी के तौर पर पेश नहीं करना चाहता बल्कि सिर्फ़ खाना चाहता है। ऐसे जानवर तू आज़ादी से अपने तमाम शहरों में ज़बह करके उस बरकत के मुताबिक़ खा सकता है जो रब तेरे ख़ुदा ने तुझे दी है। ऐसा गोश्त हिरन और ग़ज़ाल के गोश्त की मानिंद है यानी पाक और नापाक दोनों ही उसे खा सकते हैं। \v 16 लेकिन ख़ून न खाना। उसे पानी की तरह ज़मीन पर उंडेलकर ज़ाया कर देना। \p \v 17 जो भी चीज़ें रब के लिए मख़सूस की गई हैं उन्हें अपने शहरों में न खाना मसलन अनाज, अंगूर के रस और ज़ैतून के तेल का दसवाँ हिस्सा, मवेशियों के पहलौठे, मन्नत के हदिये, ख़ुशी से पेश की गई क़ुरबानियाँ और उठानेवाली क़ुरबानियाँ। \v 18 यह चीज़ें सिर्फ़ रब के हुज़ूर खाना यानी उस जगह पर जिसे वह मक़दिस के लिए चुनेगा। वहीं तू अपने बेटे-बेटियों, ग़ुलामों, लौंडियों और अपने क़बायली इलाक़े के लावियों के साथ जमा होकर ख़ुशी मना कि रब ने हमारी मेहनत को बरकत दी है। \v 19 अपने मुल्क में लावियों की ज़रूरियात उम्र-भर पूरी करने की फ़िकर रख। \p \v 20 जब रब तेरा ख़ुदा अपने वादे के मुताबिक़ तेरी सरहद्दें बढ़ा देगा और तू गोश्त खाने की ख़ाहिश रखेगा तो जिस तरह जी चाहे गोश्त खा सकेगा। \v 21 अगर तेरा घर उस मक़दिस से दूर हो जिसे रब तेरा ख़ुदा अपने नाम की सुकूनत के लिए चुनेगा तो तू जिस तरह जी चाहे अपने शहरों में रब से मिले हुए मवेशियों को ज़बह करके खा सकता है। लेकिन ऐसा ही करना जैसा मैंने हुक्म दिया है। \v 22 ऐसा गोश्त हिरन और ग़ज़ाल के गोश्त की मानिंद है यानी पाक और नापाक दोनों ही उसे खा सकते हैं। \v 23 अलबत्ता गोश्त के साथ ख़ून न खाना, क्योंकि ख़ून जानदार की जान है। उस की जान गोश्त के साथ न खाना। \v 24 ख़ून न खाना बल्कि उसे ज़मीन पर उंडेलकर ज़ाया कर देना। \v 25 उसे न खाना ताकि तुझे और तेरी औलाद को कामयाबी हासिल हो, क्योंकि ऐसा करने से तू रब की नज़र में सहीह काम करेगा। \p \v 26 लेकिन जो चीज़ें रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस हैं या जो तूने मन्नत मानकर उसके लिए मख़सूस की हैं लाज़िम है कि तू उन्हें उस जगह ले जाए जिसे रब मक़दिस के लिए चुनेगा। \v 27 वहीं, रब अपने ख़ुदा की क़ुरबानगाह पर अपनी भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ गोश्त और ख़ून समेत चढ़ा। ज़बह की क़ुरबानियों का ख़ून क़ुरबानगाह पर उंडेल देना, लेकिन उनका गोश्त तू खा सकता है। \p \v 28 जो भी हिदायात मैं तुझे दे रहा हूँ उन्हें एहतियात से पूरा कर। फिर तू और तेरी औलाद ख़ुशहाल रहेंगे, क्योंकि तू वह कुछ करेगा जो रब तेरे ख़ुदा की नज़र में अच्छा और दुरुस्त है। \p \v 29 रब तेरा ख़ुदा उन क़ौमों को मिटा देगा जिनकी तरफ़ तू बढ़ रहा है। तू उन्हें उनके मुल्क से निकालता जाएगा और ख़ुद उसमें आबाद हो जाएगा। \v 30 लेकिन ख़बरदार, उनके ख़त्म होने के बाद भी उनके देवताओं के बारे में मालूमात हासिल न कर, वरना तू फँस जाएगा। मत कहना कि यह क़ौमें किस तरीक़े से अपने देवताओं की पूजा करती हैं? हम भी ऐसा ही करें। \v 31 ऐसा मत कर! यह क़ौमें ऐसे घिनौने तरीक़े से पूजा करती हैं जिनसे रब नफ़रत करता है। वह अपने बच्चों को भी जलाकर अपने देवताओं को पेश करते हैं। \p \v 32 कलाम की जो भी बात मैं तुम्हें पेश करता हूँ उसके ताबे रहकर उस पर अमल करो। न किसी बात का इज़ाफ़ा करना, न कोई बात निकालना। \c 13 \s1 देवताओं की तरफ़ ले जानेवालों से सुलूक \p \v 1 तेरे दरमियान ऐसे लोग उठ खड़े होंगे जो अपने आपको नबी या ख़ाब देखनेवाले कहेंगे। हो सकता है कि वह किसी इलाही निशान या मोजिज़े का एलान करें \v 2 जो वाक़ई वुजूद में आए। साथ साथ वह कहें, “आ, हम दीगर माबूदों की पूजा करें, हम उनकी ख़िदमत करें जिनसे तू अब तक वाक़िफ़ नहीं है।” \v 3 ऐसे लोगों की न सुन। इससे रब तुम्हारा ख़ुदा तुम्हें आज़माकर मालूम कर रहा है कि क्या तुम वाक़ई अपने पूरे दिलो-जान से उससे प्यार करते हो। \v 4 तुम्हें रब अपने ख़ुदा की पैरवी करना और उसी का ख़ौफ़ मानना है। उसके अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारो, उस की सुनो, उस की ख़िदमत करो, उसके साथ लिपटे रहो। \v 5 ऐसे नबियों या ख़ाब देखनेवालों को सज़ाए-मौत देना, क्योंकि वह तुझे रब तुम्हारे ख़ुदा से बग़ावत करने पर उकसाना चाहते हैं, उसी से जिसने फ़िद्या देकर तुम्हें मिसर की ग़ुलामी से बचाया और वहाँ से निकाल लाया। चूँकि वह तुझे उस राह से हटाना चाहते हैं जिसे रब तेरे ख़ुदा ने तेरे लिए मुक़र्रर किया है इसलिए लाज़िम है कि उन्हें सज़ाए-मौत दी जाए। ऐसी बुराई अपने दरमियान से मिटा देना। \p \v 6 हो सकता है कि तेरा सगा भाई, तेरा बेटा या बेटी, तेरी बीवी या तेरा क़रीबी दोस्त तुझे चुपके से वरग़लाने की कोशिश करे कि आ, हम जाकर दीगर माबूदों की पूजा करें, ऐसे देवताओं की जिनसे न तू और न तेरे बापदादा वाक़िफ़ थे। \v 7 ख़ाह इर्दगिर्द की या दूर-दराज़ की क़ौमों के देवता हों, ख़ाह दुनिया के एक सिरे के या दूसरे सिरे के माबूद हों, \v 8 किसी सूरत में अपनी रज़ामंदी का इज़हार न कर, न उस की सुन। उस पर रहम न कर। न उसे बचाए रख, न उसे पनाह दे \v 9 बल्कि उसे सज़ाए-मौत दे। और उसे संगसार करते वक़्त पहले तेरा हाथ उस पर पत्थर फेंके, फिर ही बाक़ी तमाम लोग हिस्सा लें। \v 10 उसे ज़रूर पत्थरों से सज़ाए-मौत देना, क्योंकि उसने तुझे रब तेरे ख़ुदा से दूर करने की कोशिश की, उसी से जो तुझे मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया। \v 11 फिर तमाम इसराईल यह सुनकर डर जाएगा और आइंदा तेरे दरमियान ऐसी शरीर हरकत करने की जुर्रत नहीं करेगा। \p \v 12 जब तू उन शहरों में रहने लगेगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे दे रहा है तो शायद तुझे ख़बर मिल जाए \v 13 कि शरीर लोग तेरे दरमियान से उभर आए हैं जो अपने शहर के बाशिंदों को यह कहकर ग़लत राह पर लाए हैं कि आओ, हम दीगर माबूदों की पूजा करें, ऐसे माबूदों की जिनसे तुम वाक़िफ़ नहीं हो। \v 14 लाज़िम है कि तू दरियाफ़्त करके इसकी तफ़तीश करे और ख़ूब मालूम करे कि क्या हुआ है। अगर साबित हो जाए कि यह घिनौनी बात वाक़ई हुई है \v 15 तो फिर लाज़िम है कि तू शहर के तमाम बाशिंदों को हलाक करे। उसे रब के सुपुर्द करके सरासर तबाह करना, न सिर्फ़ उसके लोग बल्कि उसके मवेशी भी। \v 16 शहर का पूरा माले-ग़नीमत चौक में इकट्ठा कर। फिर पूरे शहर को उसके माल समेत रब के लिए मख़सूस करके जला देना। उसे दुबारा कभी न तामीर किया जाए बल्कि उसके खंडरात हमेशा तक रहें। \p \v 17 पूरा शहर रब के लिए मख़सूस किया गया है, इसलिए उस की कोई भी चीज़ तेरे पास न पाई जाए। सिर्फ़ इस सूरत में रब का ग़ज़ब ठंडा हो जाएगा, और वह तुझ पर रहम करके अपनी मेहरबानी का इज़हार करेगा और तेरी तादाद बढ़ाएगा, जिस तरह उसने क़सम खाकर तेरे बापदादा से वादा किया है। \v 18 लेकिन यह सब कुछ इस पर मबनी है कि तू रब अपने ख़ुदा की सुने और उसके उन तमाम अहकाम पर अमल करे जो मैं तुझे आज दे रहा हूँ। वही कुछ कर जो उस की नज़र में दुरुस्त है। \c 14 \s1 पाक और नापाक जानवर \p \v 1 तुम रब अपने ख़ुदा के फ़रज़ंद हो। अपने आपको मुरदों के सबब से न ज़ख़मी करो, न अपने सर के सामनेवाले बाल मुँडवाओ। \v 2 क्योंकि तू रब अपने ख़ुदा के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस क़ौम है। दुनिया की तमाम क़ौमों में से रब ने तुझे ही चुनकर अपनी मिलकियत बना लिया है। \p \v 3 कोई भी मकरूह चीज़ न खाना। \p \v 4 तुम बैल, भेड़-बकरी, \v 5 हिरन, ग़ज़ाल, मृग, \f + \fr 14:5 \ft यह हिरन के मुशाबेह होता है लेकिन फ़ितरतन मुख़्तलिफ़ होता है। इसके सींग खोखले, बेशाख़ और अनझड़ होते हैं। antelope। याद रहे कि क़दीम ज़माने के इन जानवरों के अकसर नाम मतरूक हैं या उनका मतलब बदल गया है, इसलिए उनका मुख़्तलिफ़ तरजुमा हो सकता है। \f* पहाड़ी बकरी, महात, \f + \fr 14:5 \ft महात। दराज़क़द हिरनों की एक नौ जिसके सींग चक्करदार होते हैं। addax। \f* ग़ज़ाले-अफ़्रीक़ा \f + \fr 14:5 \ft ग़ज़ाले-अफ़्रीक़ा। चिकारों की तीन इक़साम में से कोई जो अपने लंबे और हलक़ादार सींगों की वजह से मुमताज़ है। oryx। \f* और पहाड़ी बकरी खा सकते हो। \v 6 जिनके खुर या पाँव बिलकुल चिरे हुए हैं और जो जुगाली करते हैं उन्हें खाने की इजाज़त है। \v 7 ऊँट, बिज्जू या ख़रगोश खाना मना है। वह तुम्हारे लिए नापाक हैं, क्योंकि वह जुगाली तो करते हैं लेकिन उनके खुर या पाँव चिरे हुए नहीं हैं। \v 8 सुअर न खाना। वह तुम्हारे लिए नापाक है, क्योंकि उसके खुर तो चिरे हुए हैं लेकिन वह जुगाली नहीं करता। न उनका गोश्त खाना, न उनकी लाशों को छूना। \p \v 9 पानी में रहनेवाले जानवर खाने के लिए जायज़ हैं अगर उनके पर और छिलके हों। \v 10 लेकिन जिनके पर या छिलके नहीं हैं वह तुम्हारे लिए नापाक हैं। \p \v 11 तुम हर पाक परिंदा खा सकते हो। \v 12 लेकिन ज़ैल के परिंदे खाना मना है : उक़ाब, दढ़ियल गिद्ध, काला गिद्ध, \v 13 लाल चील, काली चील, हर क़िस्म का गिद्ध, \v 14 हर क़िस्म का कौवा, \v 15 उक़ाबी उल्लू, छोटे कानवाला उल्लू, बड़े कानवाला उल्लू, हर क़िस्म का बाज़, \v 16 छोटा उल्लू, चिंघाड़नेवाला उल्लू, सफ़ेद उल्लू, \v 17 दश्ती उल्लू, मिसरी गिद्ध, क़ूक़, \v 18 लक़लक़, हर क़िस्म का बूतीमार, हुदहुद और चमगादड़। \f + \fr 14:18 \ft याद रहे कि क़दीम ज़माने के इन परिंदों के अकसर नाम मतरूक हैं या उनका मतलब बदल गया है, इसलिए उनका मुख़्तलिफ़ तरजुमा हो सकता है। \f* \p \v 19 तमाम पर रखनेवाले कीड़े तुम्हारे लिए नापाक हैं। उन्हें खाना मना है। \v 20 लेकिन तुम हर पाक परिंदा खा सकते हो। \p \v 21 जो जानवर ख़ुद बख़ुद मर जाए उसे न खाना। तू उसे अपनी आबादी में रहनेवाले किसी परदेसी को दे या किसी अजनबी को बेच सकता है और वह उसे खा सकता है। लेकिन तू उसे मत खाना, क्योंकि तू रब अपने ख़ुदा के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस क़ौम है। \p बकरी के बच्चे को उस की माँ के दूध में पकाना मना है। \s1 अपनी पैदावार का दसवाँ हिस्सा मख़सूस करना \p \v 22 लाज़िम है कि तू हर साल अपने खेतों की पैदावार का दसवाँ हिस्सा रब के लिए अलग करे। \v 23 इसके लिए अपना अनाज, अंगूर का रस, ज़ैतून का तेल और मवेशी के पहलौठे रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर ले आना यानी उस जगह जो वह अपने नाम की सुकूनत के लिए चुनेगा। वहाँ यह चीज़ें क़ुरबान करके खा ताकि तू उम्र-भर रब अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना सीखे। \p \v 24 लेकिन हो सकता है कि जो जगह रब तेरा ख़ुदा अपने नाम की सुकूनत के लिए चुनेगा वह तेरे घर से हद से ज़्यादा दूर हो और रब तेरे ख़ुदा की बरकत के बाइस मज़कूरा दसवाँ हिस्सा इतना ज़्यादा हो कि तू उसे मक़दिस तक नहीं पहुँचा सकता। \v 25 इस सूरत में उसे बेचकर उसके पैसे उस जगह ले जा जो रब तेरा ख़ुदा अपने नाम की सुकूनत के लिए चुनेगा। \v 26 वहाँ पहुँचकर उन पैसों से जो जी चाहे ख़रीदना, ख़ाह गाय-बैल, भेड़-बकरी, मै या मै जैसी कोई और चीज़ क्यों न हो। फिर अपने घराने के साथ मिलकर रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर यह चीज़ें खाना और ख़ुशी मनाना। \v 27 ऐसे मौक़ों पर उन लावियों का ख़याल रखना जो तेरे क़बायली इलाक़े में रहते हैं, क्योंकि उन्हें मीरास में ज़मीन नहीं मिलेगी। \p \v 28 हर तीसरे साल अपनी पैदावार का दसवाँ हिस्सा अपने शहरों में जमा करना। \v 29 उसे लावियों को देना जिनके पास मौरूसी ज़मीन नहीं है, नीज़ अपने शहरों में आबाद परदेसियों, यतीमों और बेवाओं को देना। वह आएँ और खाना खाकर सेर हो जाएँ ताकि रब तेरा ख़ुदा तेरे हर काम में बरकत दे। \c 15 \s1 क़र्ज़दारों की बहाली का साल \p \v 1 हर सात साल के बाद एक दूसरे के कर्ज़े मुआफ़ कर देना। \v 2 उस वक़्त जिसने भी किसी इसराईली भाई को क़र्ज़ दिया है वह उसे मनसूख़ करे। वह अपने पड़ोसी या भाई को पैसे वापस करने पर मजबूर न करे, क्योंकि रब की ताज़ीम में क़र्ज़ मुआफ़ करने के साल का एलान किया गया है। \v 3 इस साल में तू सिर्फ़ ग़ैरमुल्की क़र्ज़दारों को पैसे वापस करने पर मजबूर कर सकता है। अपने इसराईली भाई के तमाम क़र्ज़ मुआफ़ कर देना। \p \v 4 तेरे दरमियान कोई भी ग़रीब नहीं होना चाहिए, क्योंकि जब तू उस मुल्क में रहेगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में देनेवाला है तो वह तुझे बहुत बरकत देगा। \v 5 लेकिन शर्त यह है कि तू पूरे तौर पर उस की सुने और एहतियात से उसके उन तमाम अहकाम पर अमल करे जो मैं तुझे आज दे रहा हूँ। \v 6 फिर रब तुम्हारा ख़ुदा तुझे अपने वादे के मुताबिक़ बरकत देगा। तू किसी भी क़ौम से उधार नहीं लेगा बल्कि बहुत-सी क़ौमों को उधार देगा। कोई भी क़ौम तुझ पर हुकूमत नहीं करेगी बल्कि तू बहुत-सी क़ौमों पर हुकूमत करेगा। \p \v 7 जब तू उस मुल्क में आबाद होगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देनेवाला है तो अपने दरमियान रहनेवाले ग़रीब भाई से सख़्त सुलूक न करना, न कंजूस होना। \v 8 खुले दिल से उस की मदद कर। जितनी उसे ज़रूरत है उसे उधार के तौर पर दे। \v 9 ख़बरदार, ऐसा मत सोच कि क़र्ज़ मुआफ़ करने का साल क़रीब है, इसलिए मैं उसे कुछ नहीं दूँगा। अगर तू ऐसी शरीर बात अपने दिल में सोचते हुए ज़रूरतमंद भाई को क़र्ज़ देने से इनकार करे और वह रब के सामने तेरी शिकायत करे तो तू क़ुसूरवार ठहरेगा। \v 10 उसे ज़रूर कुछ दे बल्कि ख़ुशी से दे। फिर रब तेरा ख़ुदा तेरे हर काम में बरकत देगा। \v 11 मुल्क में हमेशा ग़रीब और ज़रूरतमंद लोग पाए जाएंगे, इसलिए मैं तुझे हुक्म देता हूँ कि खुले दिल से अपने ग़रीब और ज़रूरतमंद भाइयों की मदद कर। \s1 ग़ुलामों को आज़ाद करने का फ़र्ज़ \p \v 12 अगर कोई इसराईली भाई या बहन अपने आपको बेचकर तेरा ग़ुलाम बन जाए तो वह छः साल तेरी ख़िदमत करे। लेकिन लाज़िम है कि सातवें साल उसे आज़ाद कर दिया जाए। \v 13 आज़ाद करते वक़्त उसे ख़ाली हाथ फ़ारिग़ न करना \v 14 बल्कि अपनी भेड़-बकरियों, अनाज, तेल और मै से उसे फ़ैयाज़ी से कुछ दे, यानी उन चीज़ों में से जिनसे रब तेरे ख़ुदा ने तुझे बरकत दी है। \v 15 याद रख कि तू भी मिसर में ग़ुलाम था और कि रब तेरे ख़ुदा ने फ़िद्या देकर तुझे छुड़ाया। इसी लिए मैं आज तुझे यह हुक्म देता हूँ। \p \v 16 लेकिन मुमकिन है कि तेरा ग़ुलाम तुझे छोड़ना न चाहे, क्योंकि वह तुझसे और तेरे ख़ानदान से मुहब्बत रखता है, और वह तेरे पास रहकर ख़ुशहाल है। \v 17 इस सूरत में उसे दरवाज़े के पास ले जा और उसके कान की लौ चौखट के साथ लगाकर उसे सुताली यानी तेज़ औज़ार से छेद दे। तब वह ज़िंदगी-भर तेरा ग़ुलाम बना रहेगा। अपनी लौंडी के साथ भी ऐसा ही करना। \p \v 18 अगर ग़ुलाम तुझे छः साल के बाद छोड़ना चाहे तो बुरा न मानना। आख़िर अगर उस की जगह कोई और वही काम तनख़ाह के लिए करता तो तेरे अख़राजात दुगने होते। उसे आज़ाद करना तो रब तेरा ख़ुदा तेरे हर काम में बरकत देगा। \s1 जानवरों के पहलौठे मख़सूस हैं \p \v 19 अपनी गायों और भेड़-बकरियों के नर पहलौठे रब अपने ख़ुदा के लिए मख़सूस करना। न गाय के पहलौठे को काम के लिए इस्तेमाल करना, न भेड़ के पहलौठे के बाल कतरना। \v 20 हर साल ऐसे बच्चे उस जगह ले जा जो रब अपने मक़दिस के लिए चुनेगा। वहाँ उन्हें रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर अपने पूरे ख़ानदान समेत खाना। \p \v 21 अगर ऐसे जानवर में कोई ख़राबी हो, वह अंधा या लँगड़ा हो या उसमें कोई और नुक़्स हो तो उसे रब अपने ख़ुदा के लिए क़ुरबान न करना। \v 22 ऐसे जानवर तू घर में ज़बह करके खा सकता है। वह हिरन और ग़ज़ाल की मानिंद हैं जिन्हें तू खा तो सकता है लेकिन क़ुरबानी के तौर पर पेश नहीं कर सकता। पाक और नापाक शख़्स दोनों उसे खा सकते हैं। \v 23 लेकिन ख़ून न खाना। उसे पानी की तरह ज़मीन पर उंडेलकर ज़ाया कर देना। \c 16 \s1 फ़सह की ईद \p \v 1 अबीब के महीने \f + \fr 16:1 \ft मार्च ता अप्रैल। \f* में रब अपने ख़ुदा की ताज़ीम में फ़सह की ईद मनाना, क्योंकि इस महीने में वह तुझे रात के वक़्त मिसर से निकाल लाया। \v 2 उस जगह जमा हो जा जो रब अपने नाम की सुकूनत के लिए चुनेगा। उसे क़ुरबानी के लिए भेड़-बकरियाँ या गाय-बैल पेश करना। \v 3 गोश्त के साथ बेख़मीरी रोटी खाना। सात दिन तक यही रोटी खा, बिलकुल उसी तरह जिस तरह तूने किया जब जल्दी जल्दी मिसर से निकला। मुसीबत की यह रोटी इसलिए खा ताकि वह दिन तेरे जीते-जी याद रहे जब तू मिसर से रवाना हुआ। \v 4 लाज़िम है कि ईद के हफ़ते के दौरान तेरे पूरे मुल्क में ख़मीर न पाया जाए। \p जो क़ुरबानी तू ईद के पहले दिन की शाम को पेश करे उसका गोश्त उसी वक़्त खा ले। अगली सुबह तक कुछ बाक़ी न रह जाए। \v 5 फ़सह की क़ुरबानी किसी भी शहर में जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देगा न चढ़ाना \v 6 बल्कि सिर्फ़ उस जगह जो वह अपने नाम की सुकूनत के लिए चुनेगा। मिसर से निकलते वक़्त की तरह क़ुरबानी के जानवर को सूरज डूबते वक़्त ज़बह कर। \v 7 फिर उसे भूनकर उस जगह खाना जो रब तेरा ख़ुदा चुनेगा। अगली सुबह अपने घर वापस चला जा। \v 8 ईद के पहले छः दिन बेख़मीरी रोटी खाता रह। सातवें दिन काम न करना बल्कि रब अपने ख़ुदा की इबादत के लिए जमा हो जाना। \s1 फ़सल की कटाई की ईद \p \v 9 जब अनाज की फ़सल की कटाई शुरू होगी तो पहले दिन के सात हफ़ते बाद \v 10 फ़सल की कटाई की ईद मनाना। रब अपने ख़ुदा को उतना पेश कर जितना जी चाहे। वह उस बरकत के मुताबिक़ हो जो उसने तुझे दी है। \v 11 इसके लिए भी उस जगह जमा हो जा जो रब अपने नाम की सुकूनत के लिए चुनेगा। वहाँ उसके हुज़ूर ख़ुशी मना। तेरे बाल-बच्चे, तेरे ग़ुलाम और लौंडियाँ और तेरे शहरों में रहनेवाले लावी, परदेसी, यतीम और बेवाएँ सब तेरी ख़ुशी में शरीक हों। \v 12 इन अहकाम पर ज़रूर अमल करना और मत भूलना कि तू मिसर में ग़ुलाम था। \s1 झोंपड़ियों की ईद \p \v 13 अनाज गाहने और अंगूर का रस निकालने के बाद झोंपड़ियों की ईद मनाना जिसका दौरानिया सात दिन हो। \v 14 ईद के मौक़े पर ख़ुशी मनाना। तेरे बाल-बच्चे, तेरे ग़ुलाम और लौंडियाँ और तेरे शहरों में बसनेवाले लावी, परदेसी, यतीम और बेवाएँ सब तेरी ख़ुशी में शरीक हों। \v 15 जो जगह रब तेरा ख़ुदा मक़दिस के लिए चुनेगा वहाँ उस की ताज़ीम में सात दिन तक यह ईद मनाना। क्योंकि रब तेरा ख़ुदा तेरी तमाम फ़सलों और मेहनत को बरकत देगा, इसलिए ख़ूब ख़ुशी मनाना। \p \v 16 इसराईल के तमाम मर्द साल में तीन मरतबा उस मक़दिस पर हाज़िर हो जाएँ जो रब तेरा ख़ुदा चुनेगा यानी बेख़मीरी रोटी की ईद, फ़सल की कटाई की ईद और झोंपड़ियों की ईद पर। कोई भी रब के हुज़ूर ख़ाली हाथ न आए। \v 17 हर कोई उस बरकत के मुताबिक़ दे जो रब तेरे ख़ुदा ने उसे दी है। \s1 क़ाज़ी मुक़र्रर करना \p \v 18 अपने अपने क़बायली इलाक़े में क़ाज़ी और निगहबान मुक़र्रर कर। वह हर उस शहर में हों जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देगा। वह इनसाफ़ से लोगों की अदालत करें। \v 19 न किसी के हुक़ूक़ मारना, न जानिबदारी दिखाना। रिश्वत क़बूल न करना, क्योंकि रिश्वत दानिशमंदों को अंधा कर देती और रास्तबाज़ की बातें पलट देती है। \v 20 सिर्फ़ और सिर्फ़ इनसाफ़ के मुताबिक़ चल ताकि तू जीता रहे और उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करे जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देगा। \s1 बुतपरस्ती की सज़ा \p \v 21 जहाँ तू रब अपने ख़ुदा के लिए क़ुरबानगाह बनाएगा वहाँ न यसीरत देवी की पूजा के लिए लकड़ी का खंबा \v 22 और न कोई ऐसा पत्थर खड़ा करना जिसकी पूजा लोग करते हैं। रब तेरा ख़ुदा इन चीज़ों से नफ़रत रखता है। \c 17 \p \v 1 रब अपने ख़ुदा को नाक़िस गाय-बैल या भेड़-बकरी पेश न करना, क्योंकि वह ऐसी क़ुरबानी से नफ़रत रखता है। \p \v 2 जब तू उन शहरों में आबाद हो जाएगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देगा तो हो सकता है कि तेरे दरमियान कोई मर्द या औरत रब तेरे ख़ुदा का अहद तोड़कर वह कुछ करे जो उसे बुरा लगे। \v 3 मसलन वह दीगर माबूदों को या सूरज, चाँद या सितारों के पूरे लशकर को सिजदा करे, हालाँकि मैंने यह मना किया है। \v 4 जब भी तुझे इस क़िस्म की ख़बर मिले तो इसका पूरा खोज लगा। अगर बात दुरुस्त निकले और ऐसी घिनौनी हरकत वाक़ई इसराईल में की गई हो \v 5 तो क़ुसूरवार को शहर के बाहर ले जाकर संगसार कर देना। \v 6 लेकिन लाज़िम है कि पहले कम अज़ कम दो या तीन लोग गवाही दें कि उसने ऐसा ही किया है। उसे सज़ाए-मौत देने के लिए एक गवाह काफ़ी नहीं। \v 7 पहले गवाह उस पर पत्थर फेंकें, इसके बाद बाक़ी तमाम लोग उसे संगसार करें। यों तू अपने दरमियान से बुराई मिटा देगा। \s1 मक़दिस में आलातरीन अदालत \p \v 8 अगर तेरे शहर के क़ाज़ियों के लिए किसी मुक़दमे का फ़ैसला करना मुश्किल हो तो उस मक़दिस में आकर अपना मामला पेश कर जो रब तेरा ख़ुदा चुनेगा, ख़ाह किसी को क़त्ल किया गया हो, उसे ज़ख़मी कर दिया गया हो या कोई और मसला हो। \v 9 लावी के क़बीले के इमामों और मक़दिस में ख़िदमत करनेवाले क़ाज़ी को अपना मुक़दमा पेश कर, और वह फ़ैसला करें। \v 10 जो फ़ैसला वह उस मक़दिस में करेंगे जो रब चुनेगा उसे मानना पड़ेगा। जो भी हिदायत वह दें उस पर एहतियात से अमल कर। \v 11 शरीअत की जो भी बात वह तुझे सिखाएँ और जो भी फ़ैसला वह दें उस पर अमल कर। जो कुछ भी वह तुझे बताएँ उससे न दाईं और न बाईं तरफ़ मुड़ना। \p \v 12 जो मक़दिस में रब तेरे ख़ुदा की ख़िदमत करनेवाले क़ाज़ी या इमाम को हक़ीर जानकर उनकी नहीं सुनता उसे सज़ाए-मौत दी जाए। यों तू इसराईल से बुराई मिटा देगा। \v 13 फिर तमाम लोग यह सुनकर डर जाएंगे और आइंदा ऐसी गुस्ताख़ी करने की जुर्रत नहीं करेंगे। \s1 बादशाह के बारे में उसूल \p \v 14 तू जल्द ही उस मुल्क में दाख़िल होगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देनेवाला है। जब तू उस पर क़ब्ज़ा करके उसमें आबाद हो जाएगा तो हो सकता है कि तू एक दिन कहे, “आओ हम इर्दगिर्द की तमाम क़ौमों की तरह बादशाह मुक़र्रर करें जो हम पर हुकूमत करे।” \v 15 अगर तू ऐसा करे तो सिर्फ़ वह शख़्स मुक़र्रर कर जिसे रब तेरा ख़ुदा चुनेगा। वह परदेसी न हो बल्कि तेरा अपना इसराईली भाई हो। \v 16 बादशाह बहुत ज़्यादा घोड़े न रखे, न अपने लोगों को उन्हें ख़रीदने के लिए मिसर भेजे। क्योंकि रब ने तुझसे कहा है कि कभी वहाँ वापस न जाना। \v 17 तेरा बादशाह ज़्यादा बीवियाँ भी न रखे, वरना उसका दिल रब से दूर हो जाएगा। और वह हद से ज़्यादा सोना-चाँदी जमा न करे। \p \v 18 तख़्तनशीन होते वक़्त वह लावी के क़बीले के इमामों के पास पड़ी इस शरीअत की नक़ल लिखवाए। \v 19 यह किताब उसके पास महफ़ूज़ रहे, और वह उम्र-भर रोज़ाना इसे पढ़ता रहे ताकि रब अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना सीखे। तब वह शरीअत की तमाम बातों की पैरवी करेगा, \v 20 अपने आपको अपने इसराईली भाइयों से ज़्यादा अहम नहीं समझेगा और किसी तरह भी शरीअत से हटकर काम नहीं करेगा। नतीजे में वह और उस की औलाद बहुत अरसे तक इसराईल पर हुकूमत करेंगे। \c 18 \s1 इमामों और लावियों का हिस्सा \p \v 1 इसराईल के हर क़बीले को मीरास में उसका अपना इलाक़ा मिलेगा सिवाए लावी के क़बीले के जिसमें इमाम भी शामिल हैं। वह जलनेवाली और दीगर क़ुरबानियों में से अपना हिस्सा लेकर गुज़ारा करें। \v 2 उनके पास दूसरों की तरह मौरूसी ज़मीन नहीं होगी बल्कि रब ख़ुद उनका मौरूसी हिस्सा होगा। यह उसने वादा करके कहा है। \p \v 3 जब भी किसी बैल या भेड़ को क़ुरबान किया जाए तो इमामों को उसका शाना, जबड़े और ओझड़ी मिलने का हक़ है। \v 4 अपनी फ़सलों का पहला फल भी उन्हें देना यानी अनाज, मै, ज़ैतून का तेल और भेड़ों की पहली कतरी हुई ऊन। \v 5 क्योंकि रब ने तेरे तमाम क़बीलों में से लावी के क़बीले को ही मक़दिस में रब के नाम में ख़िदमत करने के लिए चुना है। यह हमेशा के लिए उनकी और उनकी औलाद की ज़िम्मादारी रहेगी। \p \v 6 कुछ लावी मक़दिस के पास नहीं बल्कि इसराईल के मुख़्तलिफ़ शहरों में रहेंगे। अगर उनमें से कोई उस जगह आना चाहे जो रब मक़दिस के लिए चुनेगा \v 7 तो वह वहाँ के ख़िदमत करनेवाले लावियों की तरह मक़दिस में रब अपने ख़ुदा के नाम में ख़िदमत कर सकता है। \v 8 उसे क़ुरबानियों में से दूसरों के बराबर लावियों का हिस्सा मिलना है, ख़ाह उसे ख़ानदानी मिलकियत बेचने से पैसे मिल गए हों या नहीं। \s1 जादूगरी मना है \p \v 9 जब तू उस मुल्क में दाख़िल होगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे दे रहा है तो वहाँ की रहनेवाली क़ौमों के घिनौने दस्तूर न अपनाना। \v 10 तेरे दरमियान कोई भी अपने बेटे या बेटी को क़ुरबानी के तौर पर न जलाए। न कोई ग़ैबदानी करे, न फ़ाल या शुगून निकाले या जादूगरी करे। \v 11 इसी तरह मंत्र पढ़ना, हाज़िरात करना, क़िस्मत का हाल बताना या मुरदों की रूहों से राबिता करना सख़्त मना है। \v 12 जो भी ऐसा करे वह रब की नज़र में क़ाबिले-घिन है। इन्हीं मकरूह दस्तूरों की वजह से रब तेरा ख़ुदा तेरे आगे से उन क़ौमों को निकाल देगा। \v 13 इसलिए लाज़िम है कि तू रब अपने ख़ुदा के सामने बेक़ुसूर रहे। \s1 नबी का वादा \p \v 14 जिन क़ौमों को तू निकालनेवाला है वह उनकी सुनती हैं जो फ़ाल निकालते और ग़ैबदानी करते हैं। लेकिन रब तेरे ख़ुदा ने तुझे ऐसा करने की इजाज़त नहीं दी। \p \v 15 रब तेरा ख़ुदा तेरे वास्ते तेरे भाइयों में से मुझ जैसे नबी को बरपा करेगा। उस की सुनना। \v 16 क्योंकि होरिब यानी सीना पहाड़ पर जमा होते वक़्त तूने ख़ुद रब अपने ख़ुदा से दरख़ास्त की, “न मैं मज़ीद रब अपने ख़ुदा की आवाज़ सुनना चाहता, न यह भड़कती हुई आग देखना चाहता हूँ, वरना मर जाऊँगा।” \v 17 तब रब ने मुझसे कहा, “जो कुछ वह कहते हैं वह ठीक है। \v 18 आइंदा मैं उनमें से तुझ जैसा नबी खड़ा करूँगा। मैं अपने अलफ़ाज़ उसके मुँह में डाल दूँगा, और वह मेरी हर बात उन तक पहुँचाएगा। \v 19 जब वह नबी मेरे नाम में कुछ कहे तो लाज़िम है कि तू उस की सुन। जो नहीं सुनेगा उससे मैं ख़ुद जवाब तलब करूँगा। \v 20 लेकिन अगर कोई नबी गुस्ताख़ होकर मेरे नाम में कोई बात कहे जो मैंने उसे बताने को नहीं कहा था तो उसे सज़ाए-मौत देनी है। इसी तरह उस नबी को भी हलाक कर देना है जो दीगर माबूदों के नाम में बात करे।” \p \v 21 शायद तेरे ज़हन में सवाल उभर आए कि हम किस तरह मालूम कर सकते हैं कि कोई कलाम वाक़ई रब की तरफ़ से है या नहीं। \v 22 जवाब यह है कि अगर नबी रब के नाम में कुछ कहे और वह पूरा न हो जाए तो मतलब है कि नबी की बात रब की तरफ़ से नहीं है बल्कि उसने गुस्ताख़ी करके बात की है। इस सूरत में उससे मत डरना। \c 19 \s1 पनाह के शहर \p \v 1 रब तेरा ख़ुदा उस मुल्क में आबाद क़ौमों को तबाह करेगा जो वह तुझे दे रहा है। जब तू उन्हें भगाकर उनके शहरों और घरों में आबाद हो जाएगा \v 2-3 तो पूरे मुल्क को तीन हिस्सों में तक़सीम कर। हर हिस्से में एक मरकज़ी शहर मुक़र्रर कर। उन तक पहुँचानेवाले रास्ते साफ़-सुथरे रखना। इन शहरों में हर वह शख़्स पनाह ले सकता है जिसके हाथ से कोई ग़ैरइरादी तौर पर हलाक हुआ है। \v 4 वह ऐसे शहर में जाकर इंतक़ाम लेनेवालों से महफ़ूज़ रहेगा। शर्त यह है कि उसने न क़सदन और न दुश्मनी के बाइस किसी को मार दिया हो। \p \v 5 मसलन दो आदमी जंगल में दरख़्त काट रहे हैं। कुल्हाड़ी चलाते वक़्त एक की कुल्हाड़ी दस्ते से निकलकर उसके साथी को लग जाए और वह मर जाए। ऐसा शख़्स फ़रार होकर ऐसे शहर में पनाह ले सकता है ताकि बचा रहे। \v 6 इसलिए ज़रूरी है कि ऐसे शहरों का फ़ासला ज़्यादा न हो। क्योंकि जब इंतक़ाम लेनेवाला उसका ताक़्क़ुब करेगा तो ख़तरा है कि वह तैश में उसे पकड़कर मार डाले, अगरचे भागनेवाला बेक़ुसूर है। जो कुछ उसने किया वह दुश्मनी के सबब से नहीं बल्कि ग़ैरइरादी तौर पर हुआ। \v 7 इसलिए लाज़िम है कि तू पनाह के तीन शहर अलग कर ले। \p \v 8 बाद में रब तेरा ख़ुदा तेरी सरहद्दें मज़ीद बढ़ा देगा, क्योंकि यही वादा उसने क़सम खाकर तेरे बापदादा से किया है। अपने वादे के मुताबिक़ वह तुझे पूरा मुल्क देगा, \v 9 अलबत्ता शर्त यह है कि तू एहतियात से उन तमाम अहकाम की पैरवी करे जो मैं तुझे आज दे रहा हूँ। दूसरे अलफ़ाज़ में शर्त यह है कि तू रब अपने ख़ुदा को प्यार करे और हमेशा उस की राहों में चलता रहे। अगर तू ऐसा ही करे और नतीजतन रब का वादा पूरा हो जाए तो लाज़िम है कि तू पनाह के तीन और शहर अलग कर ले। \v 10 वरना तेरे मुल्क में जो रब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में दे रहा है बेक़ुसूर लोगों को जान से मारा जाएगा और तू ख़ुद ज़िम्मादार ठहरेगा। \p \v 11 लेकिन हो सकता है कोई दुश्मनी के बाइस किसी की ताक में बैठ जाए और उस पर हमला करके उसे मार डाले। अगर क़ातिल पनाह के किसी शहर में भागकर पनाह ले \v 12 तो उसके शहर के बुज़ुर्ग इत्तला दें कि उसे वापस लाया जाए। उसे इंतक़ाम लेनेवाले के हवाले किया जाए ताकि उसे सज़ाए-मौत मिले। \v 13 उस पर रहम मत करना। लाज़िम है कि तू इसराईल में से बेक़ुसूर की मौत का दाग़ मिटाए ताकि तू ख़ुशहाल रहे। \s1 ज़मीनों की हद्दें \p \v 14 जब तू उस मुल्क में रहेगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में देगा ताकि तू उस पर क़ब्ज़ा करे तो ज़मीन की वह हद्दें आगे पीछे न करना जो तेरे बापदादा ने मुक़र्रर कीं। \s1 अदालत में गवाह \p \v 15 तू किसी को एक ही गवाह के कहने पर क़ुसूरवार नहीं ठहरा सकता। जो भी जुर्म सरज़द हुआ है, कम अज़ कम दो या तीन गवाहों की ज़रूरत है। वरना तू उसे क़ुसूरवार नहीं ठहरा सकता। \p \v 16 अगर जिस पर इलज़ाम लगाया गया है इनकार करके दावा करे कि गवाह झूट बोल रहा है \v 17 तो दोनों मक़दिस में रब के हुज़ूर आकर ख़िदमत करनेवाले इमामों और क़ाज़ियों को अपना मामला पेश करें। \v 18 क़ाज़ी इसका ख़ूब खोज लगाएँ। अगर बात दुरुस्त निकले कि गवाह ने झूट बोलकर अपने भाई पर ग़लत इलज़ाम लगाया है \v 19 तो उसके साथ वह कुछ किया जाए जो वह अपने भाई के लिए चाह रहा था। यों तू अपने दरमियान से बुराई मिटा देगा। \v 20 फिर तमाम बाक़ी लोग यह सुनकर डर जाएंगे और आइंदा तेरे दरमियान ऐसी ग़लत हरकत करने की जुर्रत नहीं करेंगे। \v 21 क़ुसूरवार पर रहम न करना। उसूल यह हो कि जान के बदले जान, आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, हाथ के बदले हाथ, पाँव के बदले पाँव। \c 20 \s1 जंग के उसूल \p \v 1 जब तू जंग के लिए निकलकर देखता है कि दुश्मन तादाद में ज़्यादा हैं और उनके पास घोड़े और रथ भी हैं तो मत डरना। रब तेरा ख़ुदा जो तुझे मिसर से निकाल लाया अब भी तेरे साथ है। \v 2 जंग के लिए निकलने से पहले इमाम सामने आए और फ़ौज से मुख़ातिब होकर \v 3 कहे, “सुन ऐ इसराईल! आज तुम अपने दुश्मन से लड़ने जा रहे हो। उनके सबब से परेशान न हो। उनसे न ख़ौफ़ खाओ, न घबराओ, \v 4 क्योंकि रब तुम्हारा ख़ुदा ख़ुद तुम्हारे साथ जाकर दुश्मन से लड़ेगा। वही तुम्हें फ़तह बख़्शेगा।” \p \v 5 फिर निगहबान फ़ौज से मुख़ातिब हों, “क्या यहाँ कोई है जिसने हाल में अपना नया घर मुकम्मल किया लेकिन उसे मख़सूस करने का मौक़ा न मिला? वह अपने घर वापस चला जाए। ऐसा न हो कि वह जंग के दौरान मारा जाए और कोई और घर को मख़सूस करके उसमें बसने लगे। \v 6 क्या कोई है जिसने अंगूर का बाग़ लगाकर इस वक़्त उस की पहली फ़सल के इंतज़ार में है? वह अपने घर वापस चला जाए। ऐसा न हो कि वह जंग में मारा जाए और कोई और बाग़ का फ़ायदा उठाए। \v 7 क्या कोई है जिसकी मँगनी हुई है और जो इस वक़्त शादी के इंतज़ार में है? वह अपने घर वापस चला जाए। ऐसा न हो कि वह जंग में मारा जाए और कोई और उस की मंगेतर से शादी करे।” \p \v 8 निगहबान कहें, “क्या कोई ख़ौफ़ज़दा या परेशान है? वह अपने घर वापस चला जाए ताकि अपने साथियों को परेशान न करे।” \v 9 इसके बाद फ़ौजियों पर अफ़सर मुक़र्रर किए जाएँ। \p \v 10 किसी शहर पर हमला करने से पहले उसके बाशिंदों को हथियार डाल देने का मौक़ा देना। \v 11 अगर वह मान जाएँ और अपने दरवाज़े खोल दें तो वह तेरे लिए बेगार में काम करके तेरी ख़िदमत करें। \v 12 लेकिन अगर वह हथियार डालने से इनकार करें और जंग छिड़ जाए तो शहर का मुहासरा कर। \v 13 जब रब तेरा ख़ुदा तुझे शहर पर फ़तह देगा तो उसके तमाम मर्दों को हलाक कर देना। \v 14 तू तमाम माले-ग़नीमत औरतों, बच्चों और मवेशियों समेत रख सकता है। दुश्मन की जो चीज़ें रब ने तेरे हवाले कर दी हैं उन सबको तू इस्तेमाल कर सकता है। \v 15 यों उन शहरों से निपटना जो तेरे अपने मुल्क से बाहर हैं। \p \v 16 लेकिन जो शहर उस मुल्क में वाक़े हैं जो रब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में दे रहा है, उनके तमाम जानदारों को हलाक कर देना। \v 17 उन्हें रब के सुपुर्द करके मुकम्मल तौर पर हलाक करना, जिस तरह रब तेरे ख़ुदा ने तुझे हुक्म दिया है। इसमें हित्ती, अमोरी, कनानी, फ़रिज़्ज़ी, हिव्वी और यबूसी शामिल हैं। \v 18 अगर तू ऐसा न करे तो वह तुम्हें रब तुम्हारे ख़ुदा का गुनाह करने पर उकसाएँगे। जो घिनौनी हरकतें वह अपने देवताओं की पूजा करते वक़्त करते हैं उन्हें वह तुम्हें भी सिखाएँगे। \p \v 19 शहर का मुहासरा करते वक़्त इर्दगिर्द के फलदार दरख़्तों को काटकर तबाह न कर देना ख़ाह बड़ी देर भी हो जाए, वरना तू उनका फल नहीं खा सकेगा। उन्हें न काटना। क्या दरख़्त तेरे दुश्मन हैं जिनका मुहासरा करना है? हरगिज़ नहीं! \v 20 उन दरख़्तों की और बात है जो फल नहीं लाते। उन्हें तू काटकर मुहासरे के लिए इस्तेमाल कर सकता है जब तक शहर शिकस्त न खाए। \c 21 \s1 नामालूम क़त्ल का कफ़्फ़ारा \p \v 1 जब तू उस मुल्क में आबाद होगा जो रब तुझे मीरास में दे रहा है ताकि तू उस पर क़ब्ज़ा करे तो हो सकता है कि कोई लाश खुले मैदान में कहीं पड़ी पाई जाए। अगर मालूम न हो कि किसने उसे क़त्ल किया है \v 2 तो पहले इर्दगिर्द के शहरों के बुज़ुर्ग और क़ाज़ी आकर पता करें कि कौन-सा शहर लाश के ज़्यादा क़रीब है। \v 3 फिर उस शहर के बुज़ुर्ग एक जवान गाय चुन लें जो कभी काम के लिए इस्तेमाल नहीं हुई। \v 4 वह उसे एक ऐसी वादी में ले जाएँ जिसमें न कभी हल चलाया गया, न पौदे लगाए गए हों। वादी में ऐसी नहर हो जो पूरा साल बहती रहे। वहीं बुज़ुर्ग जवान गाय की गरदन तोड़ डालें। \p \v 5 फिर लावी के क़बीले के इमाम क़रीब आएँ। क्योंकि रब तुम्हारे ख़ुदा ने उन्हें चुन लिया है ताकि वह ख़िदमत करें, रब के नाम से बरकत दें और तमाम झगड़ों और हमलों का फ़ैसला करें। \v 6 उनके देखते देखते शहर के बुज़ुर्ग अपने हाथ गाय की लाश के ऊपर धो लें। \v 7 साथ साथ वह कहें, “हमने इस शख़्स को क़त्ल नहीं किया, न हमने देखा कि किसने यह किया। \v 8 ऐ रब, अपनी क़ौम इसराईल का यह कफ़्फ़ारा क़बूल फ़रमा जिसे तूने फ़िद्या देकर छुड़ाया है। अपनी क़ौम इसराईल को इस बेक़ुसूर के क़त्ल का क़ुसूरवार न ठहरा।” तब मक़तूल का कफ़्फ़ारा दिया जाएगा। \p \v 9 यों तू ऐसे बेक़ुसूर शख़्स के क़त्ल का दाग़ अपने दरमियान से मिटा देगा। क्योंकि तूने वही कुछ किया होगा जो रब की नज़र में दुरुस्त है। \s1 जंगी क़ैदी औरत से शादी \p \v 10 हो सकता है कि तू अपने दुश्मन से जंग करे और रब तुम्हारा ख़ुदा तुझे फ़तह बख़्शे। जंगी क़ैदियों को जमा करते वक़्त \v 11 तुझे उनमें से एक ख़ूबसूरत औरत नज़र आती है जिसके साथ तेरा दिल लग जाता है। तू उससे शादी कर सकता है। \v 12 उसे अपने घर में ले आ। वहाँ वह अपने सर के बालों को मुँडवाए, अपने नाख़ुन तराशे \v 13 और अपने वह कपड़े उतारे जो वह पहने हुए थी जब उसे क़ैद किया गया। वह पूरे एक महीने तक अपने वालिदैन के लिए मातम करे। फिर तू उसके पास जाकर उसके साथ शादी कर सकता है। \p \v 14 अगर वह तुझे किसी वक़्त पसंद न आए तो उसे जाने दे। वह वहाँ जाए जहाँ उसका जी चाहे। तुझे उसे बेचने या उससे लौंडी का-सा सुलूक करने की इजाज़त नहीं है, क्योंकि तूने उसे मजबूर करके उससे शादी की है। \s1 पहलौठे के हुक़ूक़ \p \v 15 हो सकता है किसी मर्द की दो बीवियाँ हों। एक को वह प्यार करता है, दूसरी को नहीं। दोनों बीवियों के बेटे पैदा हुए हैं, लेकिन जिस बीवी से शौहर मुहब्बत नहीं करता उसका बेटा सबसे पहले पैदा हुआ। \v 16 जब बाप अपनी मिलकियत वसियत में तक़सीम करता है तो लाज़िम है कि वह अपने सबसे बड़े बेटे का मौरूसी हक़ पूरा करे। उसे पहलौठे का यह हक़ उस बीवी के बेटे को मुंतक़िल करने की इजाज़त नहीं जिसे वह प्यार करता है। \v 17 उसे तसलीम करना है कि उस बीवी का बेटा सबसे बड़ा है, जिससे वह मुहब्बत नहीं करता। नतीजतन उसे उस बेटे को दूसरे बेटों की निसबत दुगना हिस्सा देना पड़ेगा, क्योंकि वह अपने बाप की ताक़त का पहला इज़हार है। उसे पहलौठे का हक़ हासिल है। \s1 सरकश बेटा \p \v 18 हो सकता है कि किसी का बेटा हटधर्म और सरकश हो। वह अपने वालिदैन की इताअत नहीं करता और उनके तंबीह करने और सज़ा देने पर भी उनकी नहीं सुनता। \v 19 इस सूरत में वालिदैन उसे पकड़कर शहर के दरवाज़े पर ले जाएँ जहाँ बुज़ुर्ग जमा होते हैं। \v 20 वह बुज़ुर्गों से कहें, “हमारा बेटा हटधर्म और सरकश है। वह हमारी इताअत नहीं करता बल्कि ऐयाश और शराबी है।” \v 21 यह सुनकर शहर के तमाम मर्द उसे संगसार करें। यों तू अपने दरमियान से बुराई मिटा देगा। तमाम इसराईल यह सुनकर डर जाएगा। \s1 सज़ाए-मौत पानेवाले को उसी दिन दफ़नाना है \p \v 22 जब तू किसी को सज़ाए-मौत देकर उस की लाश किसी लकड़ी या दरख़्त से लटकाता है \v 23 तो उसे अगली सुबह तक वहाँ न छोड़ना। हर सूरत में उसे उसी दिन दफ़ना देना, क्योंकि जिसे भी दरख़्त से लटकाया गया है उस पर अल्लाह की लानत है। अगर उसे उसी दिन दफ़नाया न जाए तो तू उस मुल्क को नापाक कर देगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में दे रहा है। \c 22 \s1 मदद करने के लिए तैयार रहना \p \v 1 अगर तुझे किसी हमवतन भाई का बैल या भेड़-बकरी भटकी हुई नज़र आए तो उसे नज़रंदाज़ न करना बल्कि मालिक के पास वापस ले जाना। \v 2 अगर मालिक का घर क़रीब न हो या तुझे मालूम न हो कि मालिक कौन है तो जानवर को अपने घर लाकर उस वक़्त तक सँभाले रखना जब तक कि मालिक उसे ढूँडने न आए। फिर जानवर को उसे वापस कर देना। \v 3 यही कुछ कर अगर तेरे हमवतन भाई का गधा भटका हुआ नज़र आए या उसका गुमशुदा कोट या कोई और चीज़ कहीं नज़र आए। उसे नज़रंदाज़ न करना। \p \v 4 अगर तू देखे कि किसी हमवतन का गधा या बैल रास्ते में गिर गया है तो उसे नज़रंदाज़ न करना। जानवर को खड़ा करने में अपने भाई की मदद कर। \s1 क़ुदरती इंतज़ाम के तहत रहना \p \v 5 औरत के लिए मर्दों के कपड़े पहनना मना है। इसी तरह मर्द के लिए औरतों के कपड़े पहनना भी मना है। जो ऐसा करता है उससे रब तेरे ख़ुदा को घिन आती है। \p \v 6 अगर तुझे कहीं रास्ते में, किसी दरख़्त में या ज़मीन पर घोंसला नज़र आए और परिंदा अपने बच्चों या अंडों पर बैठा हुआ हो तो माँ को बच्चों समेत न पकड़ना। \v 7 तुझे बच्चे ले जाने की इजाज़त है लेकिन माँ को छोड़ देना ताकि तू ख़ुशहाल और देर तक जीता रहे। \p \v 8 नया मकान तामीर करते वक़्त छत पर चारों तरफ़ दीवार बनाना। वरना तू उस शख़्स की मौत का ज़िम्मादार ठहरेगा जो तेरी छत पर से गिर जाए। \p \v 9 अपने अंगूर के बाग़ में दो क़िस्म के बीज न बोना। वरना सब कुछ मक़दिस के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस होगा, न सिर्फ़ वह फ़सल जो तुमने अंगूर के अलावा लगाई बल्कि अंगूर भी। \p \v 10 बैल और गधे को जोड़कर हल न चलाना। \p \v 11 ऐसे कपड़े न पहनना जिनमें बनते वक़्त ऊन और कतान मिलाए गए हैं। \p \v 12 अपनी चादर के चारों कोनों पर फुँदने लगाना। \s1 इज़दिवाजी ज़िंदगी की हिफ़ाज़त \p \v 13 अगर कोई आदमी शादी करने के थोड़ी देर बाद अपनी बीवी को पसंद न करे \v 14 और फिर उस की बदनामी करके कहे, “इस औरत से शादी करने के बाद मुझे पता चला कि वह कुँवारी नहीं है” \v 15 तो जवाब में बीवी के वालिदैन शहर के दरवाज़े पर जमा होनेवाले बुज़ुर्गों के पास सबूत \f + \fr 22:15 \ft यानी वह कपड़ा जिस पर नया जोड़ा सोया हुआ था। \f* ले आएँ कि बेटी शादी से पहले कुँवारी थी। \v 16 बीवी का बाप बुज़ुर्गों से कहे, “मैंने अपनी बेटी की शादी इस आदमी से की है, लेकिन यह उससे नफ़रत करता है। \v 17 अब इसने उस की बदनामी करके कहा है, ‘मुझे पता चला कि तुम्हारी बेटी कुँवारी नहीं है।’ लेकिन यहाँ सबूत है कि मेरी बेटी कुँवारी थी।” फिर वालिदैन शहर के बुज़ुर्गों को मज़कूरा कपड़ा दिखाएँ। \p \v 18 तब बुज़ुर्ग उस आदमी को पकड़कर सज़ा दें, \v 19 क्योंकि उसने एक इसराईली कुँवारी की बदनामी की है। इसके अलावा उसे जुर्माने के तौर पर बीवी के बाप को चाँदी के 100 सिक्के देने पड़ेंगे। लाज़िम है कि वह शौहर के फ़रायज़ अदा करता रहे। वह उम्र-भर उसे तलाक़ नहीं दे सकेगा। \p \v 20 लेकिन अगर आदमी की बात दुरुस्त निकले और साबित न हो सके कि बीवी शादी से पहले कुँवारी थी \v 21 तो उसे बाप के घर लाया जाए। वहाँ शहर के आदमी उसे संगसार कर दें। क्योंकि अपने बाप के घर में रहते हुए बदकारी करने से उसने इसराईल में एक अहमक़ाना और बेदीन हरकत की है। यों तू अपने दरमियान से बुराई मिटा देगा। \v 22 अगर कोई आदमी किसी की बीवी के साथ ज़िना करे और वह पकड़े जाएँ तो दोनों को सज़ाए-मौत देनी है। यों तू इसराईल से बुराई मिटा देगा। \p \v 23 अगर आबादी में किसी मर्द की मुलाक़ात किसी ऐसी कुँवारी से हो जिसकी किसी और के साथ मँगनी हुई है और वह उसके साथ हमबिसतर हो जाए \v 24 तो लाज़िम है कि तुम दोनों को शहर के दरवाज़े के पास लाकर संगसार करो। वजह यह है कि लड़की ने मदद के लिए न पुकारा अगरचे उस जगह लोग आबाद थे। मर्द का जुर्म यह था कि उसने किसी और की मंगेतर की इसमतदरी की है। यों तू अपने दरमियान से बुराई मिटा देगा। \p \v 25 लेकिन अगर मर्द ग़ैरआबाद जगह में किसी और की मंगेतर की इसमतदरी करे तो सिर्फ़ उसी को सज़ाए-मौत दी जाए। \v 26 लड़की को कोई सज़ा न देना, क्योंकि उसने कुछ नहीं किया जो मौत के लायक़ हो। ज़्यादती करनेवाले की हरकत उस शख़्स के बराबर है जिसने किसी पर हमला करके उसे क़त्ल कर दिया है। \v 27 चूँकि उसने लड़की को वहाँ पाया जहाँ लोग नहीं रहते, इसलिए अगरचे लड़की ने मदद के लिए पुकारा तो भी उसे कोई न बचा सका। \p \v 28 हो सकता है कोई आदमी किसी लड़की की इसमतदरी करे जिसकी मँगनी नहीं हुई है। अगर उन्हें पकड़ा जाए \v 29 तो वह लड़की के बाप को चाँदी के 50 सिक्के दे। लाज़िम है कि वह उसी लड़की से शादी करे, क्योंकि उसने उस की इसमतदरी की है। न सिर्फ़ यह बल्कि वह उम्र-भर उसे तलाक़ नहीं दे सकता। \p \v 30 अपने बाप की बीवी से शादी करना मना है। जो कोई यह करे वह अपने बाप की बेहुरमती करता है। \c 23 \s1 मुक़द्दस इजतिमा में शरीक होने की शरायत \p \v 1 जब इसराईली रब के मक़दिस के पास जमा होते हैं तो उसे हाज़िर होने की इजाज़त नहीं जो काटने या कुचलने से ख़ोजा बन गया है। \v 2 इसी तरह वह भी मुक़द्दस इजतिमा से दूर रहे जो नाजायज़ ताल्लुक़ात के नतीजे में पैदा हुआ है। उस की औलाद भी दसवीं पुश्त तक उसमें नहीं आ सकती। \p \v 3 कोई भी अम्मोनी या मोआबी मुक़द्दस इजतिमा में शरीक नहीं हो सकता। इन क़ौमों की औलाद दसवीं पुश्त तक भी इस जमात में हाज़िर नहीं हो सकती, \v 4 क्योंकि जब तुम मिसर से निकल आए तो वह रोटी और पानी लेकर तुमसे मिलने न आए। न सिर्फ़ यह बल्कि उन्होंने मसोपुतामिया के शहर फ़तोर में जाकर बिलाम बिन बओर को पैसे दिए ताकि वह तुझ पर लानत भेजे। \v 5 लेकिन रब तेरे ख़ुदा ने बिलाम की न सुनी बल्कि उस की लानत बरकत में बदल दी। क्योंकि रब तेरा ख़ुदा तुझसे प्यार करता है। \v 6 उम्र-भर कुछ न करना जिससे इन क़ौमों की सलामती और ख़ुशहाली बढ़ जाए। \p \v 7 लेकिन अदोमियों को मकरूह न समझना, क्योंकि वह तुम्हारे भाई हैं। इसी तरह मिसरियों को भी मकरूह न समझना, क्योंकि तू उनके मुल्क में परदेसी मेहमान था। \v 8 उनकी तीसरी नसल के लोग रब के मुक़द्दस इजतिमा में शरीक हो सकते हैं। \s1 ख़ैमागाह में नापाकी \p \v 9 अपने दुश्मनों से जंग करते वक़्त अपनी लशकरगाह में हर नापाक चीज़ से दूर रहना। \v 10 मसलन अगर कोई आदमी रात के वक़्त एहतलाम के बाइस नापाक हो जाए तो वह लशकरगाह के बाहर जाकर शाम तक वहाँ ठहरे। \v 11 दिन ढलते वक़्त वह नहा ले तो सूरज डूबने पर लशकरगाह में वापस आ सकता है। \p \v 12 अपनी हाजत रफ़ा करने के लिए लशकरगाह से बाहर कोई जगह मुक़र्रर कर। \v 13 जब किसी को हाजत के लिए बैठना हो तो वह इसके लिए गढ़ा खोदे और बाद में उसे मिट्टी से भर दे। इसलिए अपने सामान में खुदाई का कोई आला रखना ज़रूरी है। \p \v 14 रब तेरा ख़ुदा तेरी लशकरगाह में तेरे दरमियान ही घुमता-फिरता है ताकि तू महफ़ूज़ रहे और दुश्मन तेरे सामने शिकस्त खाए। इसलिए लाज़िम है कि तेरी लशकरगाह उसके लिए मख़सूसो-मुक़द्दस हो। ऐसा न हो कि अल्लाह वहाँ कोई शर्मनाक बात देखकर तुझसे दूर हो जाए। \s1 फ़रार हुए ग़ुलामों की मदद करना \p \v 15 अगर कोई ग़ुलाम तेरे पास पनाह ले तो उसे मालिक को वापस न करना। \v 16 वह तेरे साथ और तेरे दरमियान ही रहे, वहाँ जहाँ वह बसना चाहे, उस शहर में जो उसे पसंद आए। उसे न दबाना। \s1 मंदिर में इसमतफ़रोशी मना है \p \v 17 किसी देवता की ख़िदमत में इसमतफ़रोशी करना हर इसराईली औरत और मर्द के लिए मना है। \v 18 मन्नत मानते वक़्त न कसबी का अज्र, न कुत्ते के पैसे \f + \fr 23:18 \ft यक़ीन से नहीं कहा जा सकता कि ‘कुत्ते के पैसे’ से क्या मुराद है। ग़ालिबन इसके पीछे बुतपरस्ती का कोई दस्तूर है। \f* रब के मक़दिस में लाना, क्योंकि रब तेरे ख़ुदा को दोनों चीज़ों से घिन है। \s1 अपने हमवतनों से सूद न लेना \p \v 19 अगर कोई इसराईली भाई तुझसे क़र्ज़ ले तो उससे सूद न लेना, ख़ाह तूने उसे पैसे, खाना या कोई और चीज़ दी हो। \v 20 अपने इसराईली भाई से सूद न ले बल्कि सिर्फ़ परदेसी से। फिर जब तू मुल्क पर क़ब्ज़ा करके उसमें रहेगा तो रब तेरा ख़ुदा तेरे हर काम में बरकत देगा। \s1 अपनी मन्नत पूरी करना \p \v 21 जब तू रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर मन्नत माने तो उसे पूरा करने में देर न करना। रब तेरा ख़ुदा यक़ीनन तुझसे इसका मुतालबा करेगा। अगर तू उसे पूरा न करे तो क़ुसूरवार ठहरेगा। \v 22 अगर तू मन्नत मानने से बाज़ रहे तो क़ुसूरवार नहीं ठहरेगा, \v 23 लेकिन अगर तू अपनी दिली ख़ुशी से रब के हुज़ूर मन्नत माने तो हर सूरत में उसे पूरा कर। \s1 दूसरे के बाग़ में से गुज़रने का रवैया \p \v 24 किसी हमवतन के अंगूर के बाग़ में से गुज़रते वक़्त तुझे जितना जी चाहे उसके अंगूर खाने की इजाज़त है। लेकिन अपने किसी बरतन में फल जमा न करना। \v 25 इसी तरह किसी हमवतन के अनाज के खेत में से गुज़रते वक़्त तुझे अपने हाथों से अनाज की बालियाँ तोड़ने की इजाज़त है। लेकिन दराँती इस्तेमाल न करना। \c 24 \s1 तलाक़ और दुबारा शादी \p \v 1 हो सकता है कोई आदमी किसी औरत से शादी करे लेकिन बाद में उसे पसंद न करे, क्योंकि उसे बीवी के बारे में किसी शर्मनाक बात का पता चल गया है। वह तलाक़नामा लिखकर उसे औरत को देता और फिर उसे घर से वापस भेज देता है। \v 2 इसके बाद उस औरत की शादी किसी और मर्द से हो जाती है, \v 3 और वह भी बाद में उसे पसंद नहीं करता। वह भी तलाक़नामा लिखकर उसे औरत को देता और फिर उसे घर से वापस भेज देता है। ख़ाह दूसरा शौहर उसे वापस भेज दे या शौहर मर जाए, \v 4 औरत के पहले शौहर को उससे दुबारा शादी करने की इजाज़त नहीं है, क्योंकि वह औरत उसके लिए नापाक है। ऐसी हरकत रब की नज़र में क़ाबिले-घिन है। उस मुल्क को यों गुनाहआलूदा न करना जो रब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में दे रहा है। \s1 मज़ीद हिदायात \p \v 5 अगर किसी आदमी ने अभी अभी शादी की हो तो तू उसे भरती करके जंग करने के लिए नहीं भेज सकता। तू उसे कोई भी ऐसी ज़िम्मादारी नहीं दे सकता, जिससे वह घर से दूर रहने पर मजबूर हो जाए। एक साल तक वह ऐसी ज़िम्मादारियों से बरी रहे ताकि घर में रहकर अपनी बीवी को ख़ुश कर सके। \p \v 6 अगर कोई तुझसे उधार ले तो ज़मानत के तौर पर उससे न उस की छोटी चक्की, न उस की बड़ी चक्की का पाट लेना, क्योंकि ऐसा करने से तू उस की जान लेगा यानी तू वह चीज़ लेगा जिससे उसका गुज़ारा होता है। \p \v 7 अगर किसी आदमी को पकड़ा जाए जिसने अपने हमवतन को इग़वा करके ग़ुलाम बना लिया या बेच दिया है तो उसे सज़ाए-मौत देना है। यों तू अपने दरमियान से बुराई मिटा देगा। \p \v 8 अगर कोई वबाई जिल्दी बीमारी तुझे लग जाए तो बड़ी एहतियात से लावी के क़बीले के इमामों की तमाम हिदायात पर अमल करना। जो भी हुक्म मैंने उन्हें दिया उसे पूरा करना। \v 9 याद कर कि रब तेरे ख़ुदा ने मरियम के साथ क्या किया जब तुम मिसर से निकलकर सफ़र कर रहे थे। \s1 ग़रीबों के हुक़ूक़ \p \v 10 अपने हमवतन को उधार देते वक़्त उसके घर में न जाना ताकि ज़मानत की कोई चीज़ मिले \v 11 बल्कि बाहर ठहरकर इंतज़ार कर कि वह ख़ुद घर से ज़मानत की चीज़ निकालकर तुझे दे। \v 12 अगर वह इतना ज़रूरतमंद हो कि सिर्फ़ अपनी चादर दे सके तो रात के वक़्त ज़मानत तेरे पास न रहे। \v 13 उसे सूरज डूबने तक वापस करना ताकि क़र्ज़दार उसमें लिपटकर सो सके। फिर वह तुझे बरकत देगा और रब तेरा ख़ुदा तेरा यह क़दम रास्त क़रार देगा। \p \v 14 ज़रूरतमंद मज़दूर से ग़लत फ़ायदा न उठाना, चाहे वह इसराईली हो या परदेसी। \v 15 उसे रोज़ाना सूरज डूबने से पहले पहले उस की मज़दूरी दे देना, क्योंकि इससे उसका गुज़ारा होता है। कहीं वह रब के हुज़ूर तेरी शिकायत न करे और तू क़ुसूरवार ठहरे। \p \v 16 वालिदैन को उनके बच्चों के जरायम के सबब से सज़ाए-मौत न दी जाए, न बच्चों को उनके वालिदैन के जरायम के सबब से। अगर किसी को सज़ाए-मौत देनी हो तो उस गुनाह के सबब से जो उसने ख़ुद किया है। \p \v 17 परदेसियों और यतीमों के हुक़ूक़ क़ायम रखना। उधार देते वक़्त ज़मानत के तौर पर बेवा की चादर न लेना। \v 18 याद रख कि तू भी मिसर में ग़ुलाम था और कि रब तेरे ख़ुदा ने फ़िद्या देकर तुझे वहाँ से छुड़ाया। इसी वजह से मैं तुझे यह हुक्म देता हूँ। \p \v 19 अगर तू फ़सल की कटाई के वक़्त एक पूला भूलकर खेत में छोड़ आए तो उसे लाने के लिए वापस न जाना। उसे परदेसियों, यतीमों और बेवाओं के लिए वहीं छोड़ देना ताकि रब तेरा ख़ुदा तेरे हर काम में बरकत दे। \v 20 जब ज़ैतून की फ़सल पक गई हो तो दरख़्तों को मार मारकर एक ही बार उनमें से फल उतार। इसके बाद उन्हें न छेड़ना। बचा हुआ फल परदेसियों, यतीमों और बेवाओं के लिए छोड़ देना। \v 21 इसी तरह अपने अंगूर तोड़ने के लिए एक ही बार बाग़ में से गुज़रना। इसके बाद उसे न छेड़ना। बचा हुआ फल परदेसियों, यतीमों और बेवाओं के लिए छोड़ देना। \v 22 याद रख कि तू ख़ुद मिसर में ग़ुलाम था। इसी वजह से मैं तुझे यह हुक्म देता हूँ। \c 25 \s1 कोड़े लगाने की मुनासिब सज़ा \p \v 1 अगर लोग अपना एक दूसरे के साथ झगड़ा ख़ुद निपटा न सकें तो वह अपना मामला अदालत में पेश करें। क़ाज़ी फ़ैसला करे कि कौन बेक़ुसूर है और कौन मुजरिम। \v 2 अगर मुजरिम को कोड़े लगाने की सज़ा देनी है तो उसे क़ाज़ी के सामने ही मुँह के बल ज़मीन पर लिटाना। फिर उसे इतने कोड़े लगाए जाएँ जितनों के वह लायक़ है। \v 3 लेकिन उसको ज़्यादा से ज़्यादा 40 कोड़े लगाने हैं, वरना तेरे इसराईली भाई की सरे-आम बेइज़्ज़ती हो जाएगी। \s1 बैल का मुँह न बाँधना \p \v 4 जब तू फ़सल गाहने के लिए उस पर बैल चलने देता है तो उसका मुँह बाँधकर न रखना। \s1 मरहूम भाई की बीवी से शादी करने का हुक्म \p \v 5 अगर कोई शादीशुदा मर्द बेऔलाद मर जाए और उसका सगा भाई साथ रहे तो उसका फ़र्ज़ है कि बेवा से शादी करे। बेवा शौहर के ख़ानदान से हटकर किसी और से शादी न करे बल्कि सिर्फ़ अपने देवर से। \v 6 पहला बेटा जो इस रिश्ते से पैदा होगा पहले शौहर के बेटे की हैसियत रखेगा। यों उसका नाम क़ायम रहेगा। \p \v 7 लेकिन अगर देवर भाबी से शादी करना न चाहे तो भाबी शहर के दरवाज़े पर जमा होनेवाले बुज़ुर्गों के पास जाए और उनसे कहे, “मेरा देवर मुझसे शादी करने से इनकार करता है। वह अपना फ़र्ज़ अदा करने को तैयार नहीं कि अपने भाई का नाम क़ायम रखे।” \v 8 फिर शहर के बुज़ुर्ग देवर को बुलाकर उसे समझाएँ। अगर वह इसके बावुजूद भी उससे शादी करने से इनकार करे \v 9 तो उस की भाबी बुज़ुर्गों की मौजूदगी में उसके पास जाकर उस की एक चप्पल उतार ले। फिर वह उसके मुँह पर थूककर कहे, “उस आदमी से ऐसा सुलूक किया जाता है जो अपने भाई की नसल क़ायम रखने को तैयार नहीं।” \v 10 आइंदा इसराईल में देवर की नसल “नंगे पाँववाले की नसल” कहलाएगी। \s1 झगड़े में नाज़ेबा हरकतें \p \v 11 अगर दो आदमी लड़ रहे हों और एक की बीवी अपने शौहर को बचाने की ख़ातिर मुख़ालिफ़ के अज़ुए-तनासुल को पकड़ ले \v 12 तो लाज़िम है कि तू औरत का हाथ काट डाले। उस पर रहम न करना। \s1 धोका न देना \p \v 13 तोलते वक़्त अपने थैले में सहीह वज़न के बाट रख, और धोका देने के लिए हलके बाट साथ न रखना। \v 14 इसी तरह अपने घर में अनाज की पैमाइश करने का सहीह बरतन रख, और धोका देने के लिए छोटा बरतन साथ न रखना। \v 15 सहीह वज़न के बाट और पैमाइश करने के सहीह बरतन इस्तेमाल करना ताकि तू देर तक उस मुल्क में जीता रहे जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देगा। \v 16 क्योंकि उसे हर धोकेबाज़ से घिन है। \s1 अमालीक़ियों को सज़ा देना \p \v 17 याद रहे कि अमालीक़ियों ने तुझसे क्या कुछ किया जब तुम मिसर से निकलकर सफ़र कर रहे थे। \v 18 जब तू थकाहारा था तो वह तुझ पर हमला करके पीछे पीछे चलनेवाले तमाम कमज़ोरों को जान से मारते रहे। वह अल्लाह का ख़ौफ़ नहीं मानते थे। \v 19 चुनाँचे जब रब तेरा ख़ुदा तुझे इर्दगिर्द के तमाम दुश्मनों से सुकून देगा और तू उस मुल्क में आबाद होगा जो वह तुझे मीरास में दे रहा है ताकि तू उस पर क़ब्ज़ा करे तो अमालीक़ियों को यों हलाक कर कि दुनिया में उनका नामो-निशान न रहे। यह बात मत भूलना। \c 26 \s1 ज़मीन की पहली पैदावार रब को पेश करना \p \v 1 जब तू उस मुल्क में दाख़िल होगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में दे रहा है और तू उस पर क़ब्ज़ा करके उसमें आबाद हो जाएगा \v 2 तो जो भी फ़सल तू काटेगा उसके पहले फल में से कुछ टोकरे में रखकर उस जगह ले जा जो रब तेरा ख़ुदा अपने नाम की सुकूनत के लिए चुनेगा। \v 3 वहाँ ख़िदमत करनेवाले इमाम से कह, “आज मैं रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर एलान करता हूँ कि उस मुल्क में पहुँच गया हूँ जिसका हमें देने का वादा रब ने क़सम खाकर हमारे बापदादा से किया था।” \p \v 4 तब इमाम तेरा टोकरा लेकर उसे रब तेरे ख़ुदा की क़ुरबानगाह के सामने रख दे। \v 5 फिर रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर कह, “मेरा बाप आवारा फिरनेवाला अरामी था जो अपने लोगों को लेकर मिसर में आबाद हुआ। वहाँ पहुँचते वक़्त उनकी तादाद कम थी, लेकिन होते होते वह बड़ी और ताक़तवर क़ौम बन गए। \v 6 लेकिन मिसरियों ने हमारे साथ बुरा सुलूक किया और हमें दबाकर सख़्त ग़ुलामी में फँसा दिया। \v 7 फिर हमने चिल्लाकर रब अपने बापदादा के ख़ुदा से फ़रियाद की, और रब ने हमारी सुनी। उसने हमारा दुख, हमारी मुसीबत और दबी हुई हालत देखी \v 8 और बड़े इख़्तियार और क़ुदरत का इज़हार करके हमें मिसर से निकाल लाया। उस वक़्त उसने मिसरियों में दहशत फैलाकर बड़े मोजिज़े दिखाए। \v 9 वह हमें यहाँ ले आया और यह मुल्क दिया जिसमें दूध और शहद की कसरत है। \v 10 ऐ रब, अब मैं तुझे उस ज़मीन का पहला फल पेश करता हूँ जो तूने हमें बख़्शी है।” \p अपनी पैदावार का टोकरा रब अपने ख़ुदा के सामने रखकर उसे सिजदा करना। \v 11 ख़ुशी मनाना कि रब मेरे ख़ुदा ने मुझे और मेरे घराने को इतनी अच्छी चीज़ों से नवाज़ा है। इस ख़ुशी में अपने दरमियान रहनेवाले लावियों और परदेसियों को भी शामिल करना। \s1 फ़सल का ज़रूरतमंदों के लिए हिस्सा \p \v 12 हर तीसरे साल अपनी तमाम फ़सलों का दसवाँ हिस्सा लावियों, परदेसियों, यतीमों और बेवाओं को देना ताकि वह तेरे शहरों में खाना खाकर सेर हो जाएँ। \v 13 फिर रब अपने ख़ुदा से कह, “मैंने वैसा ही किया है जैसा तूने मुझे हुक्म दिया। मैंने अपने घर से तेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस हिस्सा निकालकर उसे लावियों, परदेसियों, यतीमों और बेवाओं को दिया है। मैंने सब कुछ तेरी हिदायात के ऐन मुताबिक़ किया है और कुछ नहीं भूला। \v 14 मातम करते वक़्त मैंने इस मख़सूसो-मुक़द्दस हिस्से से कुछ नहीं खाया। मैं इसे उठाकर घर से बाहर लाते वक़्त नापाक नहीं था। मैंने इसमें से मुरदों को भी कुछ पेश नहीं किया। मैंने रब अपने ख़ुदा की इताअत करके वह सब कुछ किया है जो तूने मुझे करने को फ़रमाया था। \v 15 चुनाँचे आसमान पर अपने मक़दिस से निगाह करके अपनी क़ौम इसराईल को बरकत दे। उस मुल्क को भी बरकत दे जिसका वादा तूने क़सम खाकर हमारे बापदादा से किया और जो तूने हमें बख़्श भी दिया है, उस मुल्क को जिसमें दूध और शहद की कसरत है।” \s1 तुम रब की क़ौम हो \p \v 16 आज रब तेरा ख़ुदा फ़रमाता है कि इन अहकाम और हिदायात की पैरवी कर। पूरे दिलो-जान से और बड़ी एहतियात से इन पर अमल कर। \p \v 17 आज तूने एलान किया है, “रब मेरा ख़ुदा है। मैं उस की राहों पर चलता रहूँगा, उसके अहकाम के ताबे रहूँगा और उस की सुनूँगा।” \v 18 और आज रब ने एलान किया है, “तू मेरी क़ौम और मेरी अपनी मिलकियत है जिस तरह मैंने तुझसे वादा किया है। अब मेरे तमाम अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ार। \v 19 जितनी भी क़ौमें मैंने ख़लक़ की हैं उन सब पर मैं तुझे सरफ़राज़ करूँगा और तुझे तारीफ़, शोहरत और इज़्ज़त अता करूँगा। तू रब अपने ख़ुदा के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस क़ौम होगा जिस तरह मैंने वादा किया है।” \c 27 \s1 ऐबाल पहाड़ पर क़ुरबानगाह बनाना है \p \v 1 फिर मूसा ने बुज़ुर्गों से मिलकर क़ौम से कहा, “तमाम हिदायात के ताबे रहो जो मैं तुम्हें आज दे रहा हूँ। \v 2 जब तुम दरियाए-यरदन को पार करके उस मुल्क में दाख़िल होगे जो रब तेरा ख़ुदा तुझे दे रहा है तो वहाँ बड़े पत्थर खड़े करके उन पर सफेदी कर। \v 3 उन पर लफ़्ज़ बलफ़्ज़ पूरी शरीअत लिख। दरिया को पार करने के बाद यही कुछ कर ताकि तू उस मुल्क में दाख़िल हो जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देगा और जिसमें दूध और शहद की कसरत है। क्योंकि रब तेरे बापदादा के ख़ुदा ने यह देने का तुझसे वादा किया है। \v 4 चुनाँचे यरदन को पार करके पत्थरों को ऐबाल पहाड़ पर खड़ा करो और उन पर सफेदी कर। \p \v 5 वहाँ रब अपने ख़ुदा के लिए क़ुरबानगाह बनाना। जो पत्थर तू उसके लिए इस्तेमाल करे उन्हें लोहे के किसी औज़ार से न तराशना। \v 6 सिर्फ़ सालिम पत्थर इस्तेमाल कर। क़ुरबानगाह पर रब अपने ख़ुदा को भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ पेश कर। \v 7 सलामती की क़ुरबानियाँ भी उस पर चढ़ा। उन्हें वहाँ रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर खाकर ख़ुशी मना। \v 8 वहाँ खड़े किए गए पत्थरों पर शरीअत के तमाम अलफ़ाज़ साफ़ साफ़ लिखे जाएँ।” \s1 ऐबाल पहाड़ पर से लानत \p \v 9 फिर मूसा ने लावी के क़बीले के इमामों से मिलकर तमाम इसराईलियों से कहा, “ऐ इसराईल, ख़ामोशी से सुन। अब तू रब अपने ख़ुदा की क़ौम बन गया है, \v 10 इसलिए उसका फ़रमाँबरदार रह और उसके उन अहकाम पर अमल कर जो मैं तुझे आज दे रहा हूँ।” \p \v 11 उसी दिन मूसा ने इसराईलियों को हुक्म देकर कहा, \v 12 “दरियाए-यरदन को पार करने के बाद शमौन, लावी, यहूदाह, इशकार, यूसुफ़ और बिनयमीन के क़बीले गरिज़ीम पहाड़ पर खड़े हो जाएँ। वहाँ वह बरकत के अलफ़ाज़ बोलें। \v 13 बाक़ी क़बीले यानी रूबिन, जद, आशर, ज़बूलून, दान और नफ़ताली ऐबाल पहाड़ पर खड़े होकर लानत के अलफ़ाज़ बोलें। \p \v 14 फिर लावी तमाम लोगों से मुख़ातिब होकर ऊँची आवाज़ से कहें, \p \v 15 ‘उस पर लानत जो बुत तराशकर या ढालकर चुपके से खड़ा करे। रब को कारीगर के हाथों से बनी हुई ऐसी चीज़ से घिन है।’ \p जवाब में सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 16 फिर लावी कहें, ‘उस पर लानत जो अपने बाप या माँ की तहक़ीर करे।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 17 ‘उस पर लानत जो अपने पड़ोसी की ज़मीन की हुदूद आगे पीछे करे।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 18 ‘उस पर लानत जो किसी अंधे की राहनुमाई करके उसे ग़लत रास्ते पर ले जाए।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 19 ‘उस पर लानत जो परदेसियों, यतीमों या बेवाओं के हुक़ूक़ क़ायम न रखे।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 20 ‘उस पर लानत जो अपने बाप की बीवी से हमबिसतर हो जाए, क्योंकि वह अपने बाप की बेहुरमती करता है।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 21 ‘उस पर लानत जो जानवर से जिंसी ताल्लुक़ रखे।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 22 ‘उस पर लानत जो अपनी सगी बहन, अपने बाप की बेटी या अपनी माँ की बेटी से हमबिसतर हो जाए।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 23 ‘उस पर लानत जो अपनी सास से हमबिसतर हो जाए।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 24 ‘उस पर लानत जो चुपके से अपने हमवतन को क़त्ल कर दे।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 25 ‘उस पर लानत जो पैसे लेकर किसी बेक़ुसूर शख़्स को क़त्ल करे।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \p \v 26 ‘उस पर लानत जो इस शरीअत की बातें क़ायम न रखे, न इन पर अमल करे।’ \p सब लोग कहें, ‘आमीन!’ \c 28 \s1 फ़रमाँबरदारी की बरकतें \p \v 1 रब तेरा ख़ुदा तुझे दुनिया की तमाम क़ौमों पर सरफ़राज़ करेगा। शर्त यह है कि तू उस की सुने और एहतियात से उसके उन तमाम अहकाम पर अमल करे जो मैं तुझे आज दे रहा हूँ। \v 2 रब अपने ख़ुदा का फ़रमाँबरदार रह तो तुझे हर तरह की बरकत हासिल होगी। \v 3 रब तुझे शहर और देहात में बरकत देगा। \v 4 तेरी औलाद फले-फूलेगी, तेरी अच्छी-ख़ासी फ़सलें पकेंगी, तेरे गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के बच्चे तरक़्क़ी करेंगे। \v 5 तेरा टोकरा फल से भरा रहेगा, और आटा गूँधने का तेरा बरतन आटे से ख़ाली नहीं होगा। \v 6 रब तुझे घर में आते और वहाँ से निकलते वक़्त बरकत देगा। \p \v 7 जब तेरे दुश्मन तुझ पर हमला करेंगे तो वह रब की मदद से शिकस्त खाएँगे। गो वह मिलकर तुझ पर हमला करें तो भी तू उन्हें चारों तरफ़ मुंतशिर कर देगा। \p \v 8 अल्लाह तेरे हर काम में बरकत देगा। अनाज की कसरत के सबब से तेरे गोदाम भरे रहेंगे। रब तेरा ख़ुदा तुझे उस मुल्क में बरकत देगा जो वह तुझे देनेवाला है। \v 9 रब अपनी क़सम के मुताबिक़ तुझे अपनी मख़सूसो-मुक़द्दस क़ौम बनाएगा अगर तू उसके अहकाम पर अमल करे और उस की राहों पर चले। \v 10 फिर दुनिया की तमाम क़ौमें तुझसे ख़ौफ़ खाएँगी, क्योंकि वह देखेंगी कि तू रब की क़ौम है और उसके नाम से कहलाता है। \p \v 11 रब तुझे बहुत औलाद देगा, तेरे रेवड़ बढ़ाएगा और तुझे कसरत की फ़सलें देगा। यों वह तुझे उस मुल्क में बरकत देगा जिसका वादा उसने क़सम खाकर तेरे बापदादा से किया। \v 12 रब आसमान के ख़ज़ानों को खोलकर वक़्त पर तेरी ज़मीन पर बारिश बरसाएगा। वह तेरे हर काम में बरकत देगा। तू बहुत-सी क़ौमों को उधार देगा लेकिन किसी का भी क़र्ज़दार नहीं होगा। \v 13 रब तुझे क़ौमों की दुम नहीं बल्कि उनका सर बनाएगा। तू तरक़्क़ी करता जाएगा और ज़वाल का शिकार नहीं होगा। लेकिन शर्त यह है कि तू रब अपने ख़ुदा के वह अहकाम मानकर उन पर अमल करे जो मैं तुझे आज दे रहा हूँ। \v 14 जो कुछ भी मैंने तुझे करने को कहा है उससे किसी तरह भी हटकर ज़िंदगी न गुज़ारना। न दीगर माबूदों की पैरवी करना, न उनकी ख़िदमत करना। \s1 नाफ़रमानी की लानतें \p \v 15 लेकिन अगर तू रब अपने ख़ुदा की न सुने और उसके उन तमाम अहकाम पर अमल न करे जो मैं आज तुझे दे रहा हूँ तो हर तरह की लानत तुझ पर आएगी। \v 16 शहर और देहात में तुझ पर लानत होगी। \v 17 तेरे टोकरे और आटा गूँधने के तेरे बरतन पर लानत होगी। \v 18 तेरी औलाद पर, तेरे गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के बच्चों पर और तेरे खेतों पर लानत होगी। \v 19 घर में आते और वहाँ से निकलते वक़्त तुझ पर लानत होगी। \v 20 अगर तू ग़लत काम करके रब को छोड़े तो जो कुछ भी तू करे वह तुझ पर लानतें, परेशानियाँ और मुसीबतें आने देगा। तब तेरा जल्दी से सत्यानास होगा, और तू हलाक हो जाएगा। \p \v 21 रब तुझमें वबाई बीमारियाँ फैलाएगा जिनके सबब से तुझमें से कोई उस मुल्क में ज़िंदा नहीं रहेगा जिस पर तू अभी क़ब्ज़ा करनेवाला है। \v 22 रब तुझे मोहलक बीमारियों, बुख़ार और सूजन से मारेगा। झुलसानेवाली गरमी, काल, पतरोग और फफूँदी तेरी फ़सलें ख़त्म करेगी। ऐसी मुसीबतों के बाइस तू तबाह हो जाएगा। \v 23 तेरे ऊपर आसमान पीतल जैसा सख़्त होगा जबकि तेरे नीचे ज़मीन लोहे की मानिंद होगी। \v 24 बारिश की जगह रब तेरे मुल्क पर गर्द और रेत बरसाएगा जो आसमान से तेरे मुल्क पर छाकर तुझे बरबाद कर देगी। \p \v 25 जब तू अपने दुश्मनों का सामना करे तो रब तुझे शिकस्त दिलाएगा। गो तू मिलकर उनकी तरफ़ बढ़ेगा तो भी उनसे भागकर चारों तरफ़ मुंतशिर हो जाएगा। दुनिया के तमाम ममालिक में लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएंगे जब वह तेरी मुसीबतें देखेंगे। \v 26 परिंदे और जंगली जानवर तेरी लाशों को खा जाएंगे, और उन्हें भगानेवाला कोई नहीं होगा। \v 27 रब तुझे उन्हीं फोड़ों से मारेगा जो मिसरियों को निकले थे। ऐसे जिल्दी अमराज़ फैलेंगे जिनका इलाज नहीं है। \v 28 तू पागलपन का शिकार हो जाएगा, रब तुझे अंधेपन और ज़हनी अबतरी में मुब्तला कर देगा। \v 29 दोपहर के वक़्त भी तू अंधे की तरह टटोल टटोलकर फिरेगा। जो कुछ भी तू करे उसमें नाकाम रहेगा। रोज़ बरोज़ लोग तुझे दबाते और लूटते रहेंगे, और तुझे बचानेवाला कोई नहीं होगा। \p \v 30 तेरी मँगनी किसी औरत से होगी तो कोई और आकर उस की इसमतदरी करेगा। तू अपने लिए घर बनाएगा लेकिन उसमें नहीं रहेगा। तू अपने लिए अंगूर का बाग़ लगाएगा लेकिन उसका फल नहीं खाएगा। \v 31 तेरे देखते देखते तेरा बैल ज़बह किया जाएगा, लेकिन तू उसका गोश्त नहीं खाएगा। तेरा गधा तुझसे छीन लिया जाएगा और वापस नहीं किया जाएगा। तेरी भेड़-बकरियाँ दुश्मन को दी जाएँगी, और उन्हें छुड़ानेवाला कोई नहीं होगा। \v 32 तेरे बेटे-बेटियों को किसी दूसरी क़ौम को दिया जाएगा, और तू कुछ नहीं कर सकेगा। रोज़ बरोज़ तू अपने बच्चों के इंतज़ार में उफ़क़ को तकता रहेगा, लेकिन देखते देखते तेरी आँखें धुँधला जाएँगी। \p \v 33 एक अजनबी क़ौम तेरी ज़मीन की पैदावार और तेरी मेहनतो-मशक़्क़त की कमाई ले जाएगी। तुझे उम्र-भर ज़ुल्म और दबाव बरदाश्त करना पड़ेगा। \p \v 34 जो हौलनाक बातें तेरी आँखें देखेंगी उनसे तू पागल हो जाएगा। \v 35 रब तुझे तकलीफ़देह और लाइलाज फोड़ों से मारेगा जो तल्वे से लेकर चाँदी तक पूरे जिस्म पर फैलकर तेरे घुटनों और टाँगों को मुतअस्सिर करेंगे। \p \v 36 रब तुझे और तेरे मुक़र्रर किए हुए बादशाह को एक ऐसे मुल्क में ले जाएगा जिससे न तू और न तेरे बापदादा वाक़िफ़ थे। वहाँ तू दीगर माबूदों यानी लकड़ी और पत्थर के बुतों की ख़िदमत करेगा। \v 37 जिस जिस क़ौम में रब तुझे हाँक देगा वहाँ तुझे देखकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएंगे और वह तेरा मज़ाक़ उड़ाएँगे। तू उनके लिए इबरतअंगेज़ मिसाल होगा। \p \v 38 तू अपने खेतों में बहुत बीज बोने के बावुजूद कम ही फ़सल काटेगा, क्योंकि टिड्डे उसे खा जाएंगे। \v 39 तू अंगूर के बाग़ लगाकर उन पर ख़ूब मेहनत करेगा लेकिन न उनके अंगूर तोड़ेगा, न उनकी मै पिएगा, क्योंकि कीड़े उन्हें खा जाएंगे। \v 40 गो तेरे पूरे मुल्क में ज़ैतून के दरख़्त होंगे तो भी तू उनका तेल इस्तेमाल नहीं कर सकेगा, क्योंकि ज़ैतून ख़राब होकर ज़मीन पर गिर जाएंगे। \p \v 41 तेरे बेटे-बेटियाँ तो होंगे, लेकिन तू उनसे महरूम हो जाएगा। क्योंकि उन्हें गिरिफ़्तार करके किसी अजनबी मुल्क में ले जाया जाएगा। \v 42 टिड्डियों के ग़ोल तेरे मुल्क के तमाम दरख़्तों और फ़सलों पर क़ब्ज़ा कर लेंगे। \v 43 तेरे दरमियान रहनेवाला परदेसी तुझसे बढ़कर तरक़्क़ी करता जाएगा जबकि तुझ पर ज़वाल आ जाएगा। \v 44 उसके पास तुझे उधार देने के लिए पैसे होंगे जबकि तेरे पास उसे उधार देने को कुछ नहीं होगा। आख़िर में वह सर और तू दुम होगा। \p \v 45 यह तमाम लानतें तुझ पर आन पड़ेंगी। जब तक तू तबाह न हो जाए वह तेरा ताक़्क़ुब करती रहेंगी, क्योंकि तूने रब अपने ख़ुदा की न सुनी और उसके अहकाम पर अमल न किया। \v 46 यों यह हमेशा तक तेरे और तेरी औलाद के लिए एक मोजिज़ाना और इबरतअंगेज़ इलाही निशान रहेंगी। \p \v 47 चूँकि तूने दिली ख़ुशी से उस वक़्त रब अपने ख़ुदा की ख़िदमत न की जब तेरे पास सब कुछ था \v 48 इसलिए तू उन दुश्मनों की ख़िदमत करेगा जिन्हें रब तेरे ख़िलाफ़ भेजेगा। तू भूका, प्यासा, नंगा और हर चीज़ का हाजतमंद होगा, और रब तेरी गरदन पर लोहे का जुआ रखकर तुझे मुकम्मल तबाही तक ले जाएगा। \p \v 49 रब तेरे ख़िलाफ़ एक क़ौम खड़ी करेगा जो दूर से बल्कि दुनिया की इंतहा से आकर उक़ाब की तरह तुझ पर झपट्टा मारेगी। वह ऐसी ज़बान बोलेगी जिससे तू वाक़िफ़ नहीं होगा। \v 50 वह सख़्त क़ौम होगी जो न बुज़ुर्गों का लिहाज़ करेगी और न बच्चों पर रहम करेगी। \v 51 वह तेरे मवेशी और फ़सलें खा जाएगी और तू भूके मर जाएगा। तू हलाक हो जाएगा, क्योंकि तेरे लिए कुछ नहीं बचेगा, न अनाज, न मै, न तेल, न गाय-बैलों या भेड़-बकरियों के बच्चे। \v 52 दुश्मन तेरे मुल्क के तमाम शहरों का मुहासरा करेगा। आख़िरकार जिन ऊँची और मज़बूत फ़सीलों पर तू एतमाद करेगा वह भी सब गिर पड़ेंगी। दुश्मन उस मुल्क का कोई भी शहर नहीं छोड़ेगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देनेवाला है। \p \v 53 जब दुश्मन तेरे शहरों का मुहासरा करेगा तो तू उनमें इतना शदीद भूका हो जाएगा कि अपने बच्चों को खा लेगा जो रब तेरे ख़ुदा ने तुझे दिए हैं। \v 54-55 मुहासरे के दौरान तुममें से सबसे शरीफ़ और शायस्ता आदमी भी अपने बच्चे को ज़बह करके खाएगा, क्योंकि उसके पास कोई और ख़ुराक नहीं होगी। उस की हालत इतनी बुरी होगी कि वह उसे अपने सगे भाई, बीवी या बाक़ी बच्चों के साथ तक़सीम करने के लिए तैयार नहीं होगा। \v 56-57 तुममें से सबसे शरीफ़ और शायस्ता औरत भी ऐसा ही करेगी, अगरचे पहले वह इतनी नाज़ुक थी कि फ़र्श को अपने तल्वे से छूने की जुर्रत नहीं करती थी। मुहासरे के दौरान उसे इतनी शदीद भूक होगी कि जब उसके बच्चा पैदा होगा तो वह छुप छुपकर उसे खाएगी। न सिर्फ़ यह बल्कि वह पैदाइश के वक़्त बच्चे के साथ ख़ारिज हुई आलाइश भी खाएगी और उसे अपने शौहर या अपने बाक़ी बच्चों में बाँटने के लिए तैयार नहीं होगी। इतनी मुसीबत तुझ पर मुहासरे के दौरान आएगी। \p \v 58 ग़रज़ एहतियात से शरीअत की उन तमाम बातों की पैरवी कर जो इस किताब में दर्ज हैं, और रब अपने ख़ुदा के पुरजलाल और बारोब नाम का ख़ौफ़ मानना। \v 59 वरना वह तुझ और तेरी औलाद में सख़्त और लाइलाज अमराज़ और ऐसी दहशतनाक वबाएँ फैलाएगा जो रोकी नहीं जा सकेंगी। \v 60 जिन तमाम वबाओं से तू मिसर में दहशत खाता था वह अब तेरे दरमियान फैलकर तेरे साथ चिमटी रहेंगी। \v 61 न सिर्फ़ शरीअत की इस किताब में बयान की हुई बीमारियाँ और मुसीबतें तुझ पर आएँगी बल्कि रब और भी तुझ पर भेजेगा, जब तक कि तू हलाक न हो जाए। \p \v 62 अगर तू रब अपने ख़ुदा की न सुने तो आख़िरकार तुममें से बहुत कम बचे रहेंगे, गो तुम पहले सितारों जैसे बेशुमार थे। \v 63 जिस तरह पहले रब ख़ुशी से तुम्हें कामयाबी देता और तुम्हारी तादाद बढ़ाता था उसी तरह अब वह तुम्हें बरबाद और तबाह करने में ख़ुशी महसूस करेगा। तुम्हें ज़बरदस्ती उस मुल्क से निकाला जाएगा जिस पर तू इस वक़्त दाख़िल होकर क़ब्ज़ा करनेवाला है। \v 64 तब रब तुझे दुनिया के एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक तमाम क़ौमों में मुंतशिर कर देगा। वहाँ तू दीगर माबूदों की पूजा करेगा, ऐसे देवताओं की जिनसे न तू और न तेरे बापदादा वाक़िफ़ थे। \p \v 65 उन ममालिक में भी न तू आरामो-सुकून पाएगा, न तेरे पाँव जम जाएंगे। रब होने देगा कि तेरा दिल थरथराता रहेगा, तेरी आँखें परेशानी के बाइस धुँधला जाएँगी और तेरी जान से उम्मीद की हर किरण जाती रहेगी। \v 66 तेरी जान हर वक़्त ख़तरे में होगी और तू दिन-रात दहशत खाते हुए मरने की तवक़्क़ो करेगा। \v 67 सुबह उठकर तू कहेगा, ‘काश शाम हो!’ और शाम के वक़्त, ‘काश सुबह हो!’ क्योंकि जो कुछ तू देखेगा उससे तेरे दिल को दहशत घेर लेगी। \p \v 68 रब तुझे जहाज़ों में बिठाकर मिसर वापस ले जाएगा अगरचे मैंने कहा था कि तू उसे दुबारा कभी नहीं देखेगा। वहाँ पहुँचकर तुम अपने दुश्मनों से बात करके अपने आपको ग़ुलाम के तौर पर बेचने की कोशिश करोगे, लेकिन कोई भी तुम्हें ख़रीदना नहीं चाहेगा।” \c 29 \s1 मोआब में रब के साथ नया अहद \p \v 1 जब इसराईली मोआब में थे तो रब ने मूसा को हुक्म दिया कि इसराईलियों के साथ एक और अहद बाँधे। यह उस अहद के अलावा था जो रब होरिब यानी सीना पर उनके साथ बाँध चुका था। \v 2 इस सिलसिले में मूसा ने तमाम इसराईलियों को बुलाकर कहा, “तुमने ख़ुद देखा कि रब ने मिसर के बादशाह फ़िरौन, उसके मुलाज़िमों और पूरे मुल्क के साथ क्या कुछ किया। \v 3 तुमने अपनी आँखों से वह बड़ी आज़माइशें, इलाही निशान और मोजिज़े देखे जिनके ज़रीए रब ने अपनी क़ुदरत का इज़हार किया। \p \v 4 मगर अफ़सोस, आज तक रब ने तुम्हें न समझदार दिल अता किया, न आँखें जो देख सकें या कान जो सुन सकें। \v 5 रेगिस्तान में मैंने 40 साल तक तुम्हारी राहनुमाई की। इस दौरान न तुम्हारे कपड़े फटे और न तुम्हारे जूते घिसे। \v 6 न तुम्हारे पास रोटी थी, न मै या मै जैसी कोई और चीज़। तो भी रब ने तुम्हारी ज़रूरियात पूरी कीं ताकि तुम सीख लो कि वही रब तुम्हारा ख़ुदा है। \p \v 7 फिर हम यहाँ आए तो हसबोन का बादशाह सीहोन और बसन का बादशाह ओज निकलकर हमसे लड़ने आए। लेकिन हमने उन्हें शिकस्त दी। \v 8 उनके मुल्क पर क़ब्ज़ा करके हमने उसे रूबिन, जद और मनस्सी के आधे क़बीले को मीरास में दिया। \v 9 अब एहतियात से इस अहद की तमाम शरायत पूरी करो ताकि तुम हर बात में कामयाब हो। \p \v 10 इस वक़्त तुम सब रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर खड़े हो, तुम्हारे क़बीलों के सरदार, तुम्हारे बुज़ुर्ग, निगहबान, मर्द, \v 11 औरतें और बच्चे। तेरे दरमियान रहनेवाले परदेसी भी लकड़हारों से लेकर पानी भरनेवालों तक तेरे साथ यहाँ हाज़िर हैं। \v 12 तू इसलिए यहाँ जमा हुआ है कि रब अपने ख़ुदा का वह अहद तसलीम करे जो वह आज क़सम खाकर तेरे साथ बाँध रहा है। \v 13 इससे वह आज इसकी तसदीक़ कर रहा है कि तू उस की क़ौम और वह तेरा ख़ुदा है यानी वही बात जिसका वादा उसने तुझसे और तेरे बापदादा इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से किया था। \v 14-15 लेकिन मैं यह अहद क़सम खाकर न सिर्फ़ तुम्हारे साथ जो हाज़िर हो बाँध रहा हूँ बल्कि तुम्हारी आनेवाली नसलों के साथ भी। \s1 बुतपरस्ती की सज़ा \p \v 16 तुम ख़ुद जानते हो कि हम मिसर में किस तरह ज़िंदगी गुज़ारते थे। यह भी तुम्हें याद है कि हम किस तरह मुख़्तलिफ़ ममालिक में से गुज़रते हुए यहाँ तक पहुँचे। \v 17 तुमने उनके नफ़रतअंगेज़ बुत देखे जो लकड़ी, पत्थर, चाँदी और सोने के थे। \v 18 ध्यान दो कि यहाँ मौजूद कोई भी मर्द, औरत, कुंबा या क़बीला रब अपने ख़ुदा से हटकर दूसरी क़ौमों के देवताओं की पूजा न करे। ऐसा न हो कि तुम्हारे दरमियान कोई जड़ फूटकर ज़हरीला और कड़वा फल लाए। \p \v 19 तुम सबने वह लानतें सुनी हैं जो रब नाफ़रमानों पर भेजेगा। तो भी हो सकता है कि कोई अपने आपको रब की बरकत का वारिस समझकर कहे, ‘बेशक मैं अपनी ग़लत राहों से हटने के लिए तैयार नहीं हूँ, लेकिन कोई बात नहीं। मैं महफ़ूज़ रहूँगा।’ ख़बरदार, ऐसी हरकत से वह न सिर्फ़ अपने ऊपर बल्कि पूरे मुल्क पर तबाही लाएगा। \f + \fr 29:19 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : सेराब ज़मीन ख़ुश्क ज़मीन के साथ तबाह हो जाएगी। \f* \v 20 रब कभी भी उसे मुआफ़ करने पर आमादा नहीं होगा बल्कि वह उसे अपने ग़ज़ब और ग़ैरत का निशाना बनाएगा। इस किताब में दर्ज तमाम लानतें उस पर आएँगी, और रब दुनिया से उसका नामो-निशान मिटा देगा। \v 21 वह उसे पूरी जमात से अलग करके उस पर अहद की वह तमाम लानतें लाएगा जो शरीअत की इस किताब में लिखी हुई हैं। \p \v 22 मुस्तक़बिल में तुम्हारी औलाद और दूर-दराज़ ममालिक से आनेवाले मुसाफ़िर उन मुसीबतों और अमराज़ का असर देखेंगे जिनसे रब ने मुल्क को तबाह किया होगा। \v 23 चारों तरफ़ ज़मीन झुलसी हुई और गंधक और नमक से ढकी हुई नज़र आएगी। बीज उसमें बोया नहीं जाएगा, क्योंकि ख़ुदरौ पौदों तक कुछ नहीं उगेगा। तुम्हारा मुल्क सदूम, अमूरा, अदमा और ज़बोईम की मानिंद होगा जिनको रब ने अपने ग़ज़ब में तबाह किया। \v 24 तमाम क़ौमें पूछेंगी, ‘रब ने इस मुल्क के साथ ऐसा क्यों किया? उसके सख़्त ग़ज़ब की क्या वजह थी?’ \v 25 उन्हें जवाब मिलेगा, ‘वजह यह है कि इस मुल्क के बाशिंदों ने रब अपने बापदादा के ख़ुदा का अहद तोड़ दिया जो उसने उन्हें मिसर से निकालते वक़्त उनसे बाँधा था। \v 26 उन्होंने जाकर दीगर माबूदों की ख़िदमत की और उन्हें सिजदा किया जिनसे वह पहले वाक़िफ़ नहीं थे और जो रब ने उन्हें नहीं दिए थे। \v 27 इसी लिए उसका ग़ज़ब इस मुल्क पर नाज़िल हुआ और वह उस पर वह तमाम लानतें लाया जिनका ज़िक्र इस किताब में है। \v 28 वह इतना ग़ुस्से हुआ कि उसने उन्हें जड़ से उखाड़कर एक अजनबी मुल्क में फेंक दिया जहाँ वह आज तक आबाद हैं।’ \p \v 29 बहुत कुछ पोशीदा है, और सिर्फ़ रब हमारा ख़ुदा उसका इल्म रखता है। लेकिन उसने हम पर अपनी शरीअत का इनकिशाफ़ कर दिया है। लाज़िम है कि हम और हमारी औलाद उसके फ़रमाँबरदार रहें। \c 30 \s1 तौबा के मुसबत नतीजे \p \v 1 मैंने तुझे बताया है कि तेरे लिए क्या कुछ बरकत का और क्या कुछ लानत का बाइस है। जब रब तेरा ख़ुदा तुझे तेरी ग़लत हरकतों के सबब से मुख़्तलिफ़ क़ौमों में मुंतशिर कर देगा तो तू मेरी बातें मान जाएगा। \v 2 तब तू और तेरी औलाद रब अपने ख़ुदा के पास वापस आएँगे और पूरे दिलो-जान से उस की सुनकर उन तमाम अहकाम पर अमल करेंगे जो मैं आज तुझे दे रहा हूँ। \v 3 फिर रब तेरा ख़ुदा तुझे बहाल करेगा और तुझ पर रहम करके तुझे उन तमाम क़ौमों से निकालकर जमा करेगा जिनमें उसने तुझे मुंतशिर कर दिया था। \v 4 हाँ, रब तेरा ख़ुदा तुझे हर जगह से जमा करके वापस लाएगा, चाहे तू सबसे दूर मुल्क में क्यों न पड़ा हो। \v 5 वह तुझे तेरे बापदादा के मुल्क में लाएगा, और तू उस पर क़ब्ज़ा करेगा। फिर वह तुझे तेरे बापदादा से ज़्यादा कामयाबी बख़्शेगा, और तेरी तादाद ज़्यादा बढ़ाएगा। \p \v 6 ख़तना रब की क़ौम का ज़ाहिरी निशान है। लेकिन उस वक़्त रब तेरा ख़ुदा तेरे और तेरी औलाद का बातिनी ख़तना करेगा ताकि तू उसे पूरे दिलो-जान से प्यार करे और जीता रहे। \v 7 जो लानतें रब तेरा ख़ुदा तुझ पर लाया था उन्हें वह अब तेरे दुश्मनों पर आने देगा, उन पर जो तुझसे नफ़रत रखते और तुझे ईज़ा पहुँचाते हैं। \v 8 क्योंकि तू दुबारा रब की सुनेगा और उसके तमाम अहकाम की पैरवी करेगा जो मैं तुझे आज दे रहा हूँ। \v 9 जो कुछ भी तू करेगा उसमें रब तुझे बड़ी कामयाबी बख़्शेगा, और तुझे कसरत की औलाद, मवेशी और फ़सलें हासिल होंगी। क्योंकि जिस तरह वह तेरे बापदादा को कामयाबी देने में ख़ुशी महसूस करता था उसी तरह वह तुझे भी कामयाबी देने में ख़ुशी महसूस करेगा। \p \v 10 शर्त सिर्फ़ यह है कि तू रब अपने ख़ुदा की सुने, शरीअत में दर्ज उसके अहकाम पर अमल करे और पूरे दिलो-जान से उस की तरफ़ रुजू लाए। \p \v 11 जो अहकाम मैं आज तुझे दे रहा हूँ न वह हद से ज़्यादा मुश्किल हैं, न तेरी पहुँच से बाहर। \v 12 वह आसमान पर नहीं हैं कि तू कहे, ‘कौन आसमान पर चढ़कर हमारे लिए यह अहकाम नीचे ले आए ताकि हम उन्हें सुन सकें और उन पर अमल कर सकें?’ \v 13 वह समुंदर के पार भी नहीं हैं कि तू कहे, ‘कौन समुंदर को पार करके हमारे लिए यह अहकाम लाएगा ताकि हम उन्हें सुन सकें और उन पर अमल कर सकें?’ \v 14 क्योंकि यह कलाम तेरे निहायत क़रीब बल्कि तेरे मुँह और दिल में मौजूद है। चुनाँचे उस पर अमल करने में कोई भी रुकावट नहीं है। \s1 ज़िंदगी या मौत का चुनाव \p \v 15 देख, आज मैं तुझे दो रास्ते पेश करता हूँ। एक ज़िंदगी और ख़ुशहाली की तरफ़ ले जाता है जबकि दूसरा मौत और हलाकत की तरफ़। \v 16 आज मैं तुझे हुक्म देता हूँ कि रब अपने ख़ुदा को प्यार कर, उस की राहों पर चल और उसके अहकाम के ताबे रह। फिर तू ज़िंदा रहकर तरक़्क़ी करेगा, और रब तेरा ख़ुदा तुझे उस मुल्क में बरकत देगा जिसमें तू दाख़िल होनेवाला है। \p \v 17 लेकिन अगर तेरा दिल इस रास्ते से हटकर नाफ़रमानी करे तो बरकत की तवक़्क़ो न कर। अगर तू आज़माइश में पड़कर दीगर माबूदों को सिजदा और उनकी ख़िदमत करे \v 18 तो तुम ज़रूर तबाह हो जाओगे। आज मैं एलान करता हूँ कि इस सूरत में तुम ज़्यादा देर तक उस मुल्क में आबाद नहीं रहोगे जिसमें तू दरियाए-यरदन को पार करके दाख़िल होगा ताकि उस पर क़ब्ज़ा करे। \p \v 19 आज आसमान और ज़मीन तुम्हारे ख़िलाफ़ मेरे गवाह हैं कि मैंने तुम्हें ज़िंदगी और बरकतों का रास्ता और मौत और लानतों का रास्ता पेश किया है। अब ज़िंदगी का रास्ता इख़्तियार कर ताकि तू और तेरी औलाद ज़िंदा रहे। \v 20 रब अपने ख़ुदा को प्यार कर, उस की सुन और उससे लिपटा रह। क्योंकि वही तेरी ज़िंदगी है और वही करेगा कि तू देर तक उस मुल्क में जीता रहेगा जिसका वादा उसने क़सम खाकर तेरे बापदादा इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से किया था।” \c 31 \s1 यशुअ को मूसा की जगह मुक़र्रर किया जाता है \p \v 1 मूसा ने जाकर तमाम इसराईलियों से मज़ीद कहा, \p \v 2 “अब मैं 120 साल का हो चुका हूँ। मेरा चलना-फिरना मुश्किल हो गया है। और वैसे भी रब ने मुझे बताया है, ‘तू दरियाए-यरदन को पार नहीं करेगा।’ \v 3 रब तेरा ख़ुदा ख़ुद तेरे आगे आगे जाकर यरदन को पार करेगा। वही तेरे आगे आगे इन क़ौमों को तबाह करेगा ताकि तू उनके मुल्क पर क़ब्ज़ा कर सके। दरिया को पार करते वक़्त यशुअ तेरे आगे चलेगा जिस तरह रब ने फ़रमाया है। \v 4 रब वहाँ के लोगों को बिलकुल उसी तरह तबाह करेगा जिस तरह वह अमोरियों को उनके बादशाहों सीहोन और ओज समेत तबाह कर चुका है। \v 5 रब तुम्हें उन पर ग़ालिब आने देगा। उस वक़्त तुम्हें उनके साथ वैसा सुलूक करना है जैसा मैंने तुम्हें बताया है। \v 6 मज़बूत और दिलेर हो। उनसे ख़ौफ़ न खाओ, क्योंकि रब तेरा ख़ुदा तेरे साथ चलता है। वह तुझे कभी नहीं छोड़ेगा, तुझे कभी तर्क नहीं करेगा।” \p \v 7 इसके बाद मूसा ने तमाम इसराईलियों के सामने यशुअ को बुलाया और उससे कहा, “मज़बूत और दिलेर हो, क्योंकि तू इस क़ौम को उस मुल्क में ले जाएगा जिसका वादा रब ने क़सम खाकर उनके बापदादा से किया था। लाज़िम है कि तू ही उसे तक़सीम करके हर क़बीले को उसका मौरूसी इलाक़ा दे। \v 8 रब ख़ुद तेरे आगे आगे चलते हुए तेरे साथ होगा। वह तुझे कभी नहीं छोड़ेगा, तुझे कभी नहीं तर्क करेगा। ख़ौफ़ न खाना, न घबराना।” \s1 हर सात साल के बाद शरीअत की तिलावत \p \v 9 मूसा ने यह पूरी शरीअत लिखकर इसराईल के तमाम बुज़ुर्गों और लावी के क़बीले के उन इमामों के सुपुर्द की जो सफ़र करते वक़्त अहद का संदूक़ उठाकर ले चलते थे। उसने उनसे कहा, \v 10-11 “हर सात साल के बाद इस शरीअत की तिलावत करना, यानी बहाली के साल में जब तमाम क़र्ज़ मनसूख़ किए जाते हैं। तिलावत उस वक़्त करना है जब इसराईली झोंपड़ियों की ईद के लिए रब अपने ख़ुदा के सामने उस जगह हाज़िर होंगे जो वह मक़दिस के लिए चुनेगा। \v 12 तमाम लोगों को मर्दों, औरतों, बच्चों और परदेसियों समेत वहाँ जमा करना ताकि वह सुनकर सीखें, रब तुम्हारे ख़ुदा का ख़ौफ़ मानें और एहतियात से इस शरीअत की बातों पर अमल करें। \v 13 लाज़िम है कि उनकी औलाद जो इस शरीअत से नावाक़िफ़ है इसे सुने और सीखे ताकि उम्र-भर उस मुल्क में रब तुम्हारे ख़ुदा का ख़ौफ़ माने जिस पर तुम दरियाए-यरदन को पार करके क़ब्ज़ा करोगे।” \s1 रब मूसा को आख़िरी हिदायात देता है \p \v 14 रब ने मूसा से कहा, “अब तेरी मौत क़रीब है। यशुअ को बुलाकर उसके साथ मुलाक़ात के ख़ैमे में हाज़िर हो जा। वहाँ मैं उसे उस की ज़िम्मादारियाँ सौंपूँगा।” \p मूसा और यशुअ आकर ख़ैमे में हाज़िर हुए \v 15 तो रब ख़ैमे के दरवाज़े पर बादल के सतून में ज़ाहिर हुआ। \v 16 उसने मूसा से कहा, “तू जल्द ही मरकर अपने बापदादा से जा मिलेगा। लेकिन यह क़ौम मुल्क में दाख़िल होने पर ज़िना करके उसके अजनबी देवताओं की पैरवी करने लग जाएगी। वह मुझे तर्क करके वह अहद तोड़ देगी जो मैंने उनके साथ बाँधा है। \v 17 फिर मेरा ग़ज़ब उन पर भड़केगा। मैं उन्हें छोड़कर अपना चेहरा उनसे छुपा लूँगा। तब उन्हें कच्चा चबा लिया जाएगा और बहुत सारी हैबतनाक मुसीबतें उन पर आएँगी। उस वक़्त वह कहेंगे, ‘क्या यह मुसीबतें इस वजह से हम पर नहीं आईं कि रब हमारे साथ नहीं है?’ \v 18 और ऐसा ही होगा। मैं ज़रूर अपना चेहरा उनसे छुपाए रखूँगा, क्योंकि दीगर माबूदों के पीछे चलने से उन्होंने एक निहायत शरीर क़दम उठाया होगा। \p \v 19 अब ज़ैल का गीत लिखकर इसराईलियों को यों सिखाओ कि वह ज़बानी याद रहे और मेरे लिए उनके ख़िलाफ़ गवाही दिया करे। \v 20 क्योंकि मैं उन्हें उस मुल्क में ले जा रहा हूँ जिसका वादा मैंने क़सम खाकर उनके बापदादा से किया था, उस मुल्क में जिसमें दूध और शहद की कसरत है। वहाँ इतनी ख़ुराक होगी कि उनकी भूक जाती रहेगी और वह मोटे हो जाएंगे। लेकिन फिर वह दीगर माबूदों के पीछे लग जाएंगे और उनकी ख़िदमत करेंगे। वह मुझे रद्द करेंगे और मेरा अहद तोड़ेंगे। \v 21 नतीजे में उन पर बहुत सारी हैबतनाक मुसीबतें आएँगी। फिर यह गीत जो उनकी औलाद को याद रहेगा उनके ख़िलाफ़ गवाही देगा। क्योंकि गो मैं उन्हें उस मुल्क में ले जा रहा हूँ जिसका वादा मैंने क़सम खाकर उनसे किया था तो भी मैं जानता हूँ कि वह अब तक किस तरह की सोच रखते हैं।” \p \v 22 मूसा ने उसी दिन यह गीत लिखकर इसराईलियों को सिखाया। \p \v 23 फिर रब ने यशुअ बिन नून से कहा, “मज़बूत और दिलेर हो, क्योंकि तू इसराईलियों को उस मुल्क में ले जाएगा जिसका वादा मैंने क़सम खाकर उनसे किया था। मैं ख़ुद तेरे साथ हूँगा।” \p \v 24 जब मूसा ने पूरी शरीअत को किताब में लिख लिया \v 25 तो वह उन लावियों से मुख़ातिब हुआ जो सफ़र करते वक़्त अहद का संदूक़ उठाकर ले जाते थे। \v 26 “शरीअत की यह किताब लेकर रब अपने ख़ुदा के अहद के संदूक़ के पास रखना। वहाँ वह पड़ी रहे और तेरे ख़िलाफ़ गवाही देती रहे। \v 27 क्योंकि मैं ख़ूब जानता हूँ कि तू कितना सरकश और हटधर्म है। मेरी मौजूदगी में भी तुमने कितनी दफ़ा रब से सरकशी की। तो फिर मेरे मरने के बाद तुम क्या कुछ नहीं करोगे! \v 28 अब मेरे सामने अपने क़बीलों के तमाम बुज़ुर्गों और निगहबानों को जमा करो ताकि वह ख़ुद मेरी यह बातें सुनें और आसमान और ज़मीन उनके ख़िलाफ़ गवाह हों। \v 29 क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरी मौत के बाद तुम ज़रूर बिगड़ जाओगे और उस रास्ते से हट जाओगे जिस पर चलने की मैंने तुम्हें ताकीद की है। आख़िरकार तुम पर मुसीबत आएगी, क्योंकि तुम वह कुछ करोगे जो रब को बुरा लगता है, तुम अपने हाथों के काम से उसे ग़ुस्सा दिलाओगे।” \p \v 30 फिर मूसा ने इसराईल की तमाम जमात के सामने यह गीत शुरू से लेकर आख़िर तक पेश किया, \c 32 \s1 मूसा का गीत \p \v 1 ऐ आसमान, मेरी बात पर ग़ौर कर! ऐ ज़मीन, मेरा गीत सुन! \p \v 2 मेरी तालीम बूँदा-बाँदी जैसी हो, मेरी बात शबनम की तरह ज़मीन पर पड़ जाए। वह बारिश की मानिंद हो जो हरियाली पर बरसती है। \p \v 3 मैं रब का नाम पुकारूँगा। हमारे ख़ुदा की अज़मत की तमजीद करो! \p \v 4 वह चट्टान है, और उसका काम कामिल है। उस की तमाम राहें रास्त हैं। वह वफ़ादार ख़ुदा है जिसमें फ़रेब नहीं है बल्कि जो आदिल और दियानतदार है। \b \p \v 5 एक टेढ़ी और कजरौ नसल ने उसका गुनाह किया। वह उसके फ़रज़ंद नहीं बल्कि दाग़ साबित हुए हैं। \p \v 6 ऐ मेरी अहमक़ और बेसमझ क़ौम, क्या तुम्हारा रब से ऐसा रवैया ठीक है? वह तो तुम्हारा बाप और ख़ालिक़ है, जिसने तुम्हें बनाया और क़ायम किया। \b \p \v 7 क़दीम ज़माने को याद करना, माज़ी की नसलों पर तवज्जुह देना। अपने बाप से पूछना तो वह तुझे बता देगा, अपने बुज़ुर्गों से पता करना तो वह तुझे इत्तला देंगे। \p \v 8 जब अल्लाह तआला ने हर क़ौम को उसका अपना अपना मौरूसी इलाक़ा देकर तमाम इनसानों को मुख़्तलिफ़ गुरोहों में अलग कर दिया तो उसने क़ौमों की सरहद्दें इसराईलियों की तादाद के मुताबिक़ मुक़र्रर कीं। \p \v 9 क्योंकि रब का हिस्सा उस की क़ौम है, याक़ूब को उसने मीरास में पाया है। \p \v 10 यह क़ौम उसे रेगिस्तान में मिल गई, वीरानो-सुनसान बयाबान में जहाँ चारों तरफ़ हौलनाक आवाज़ें गूँजती थीं। उसने उसे घेरकर उस की देख-भाल की, उसे अपनी आँख की पुतली की तरह बचाए रखा। \p \v 11 जब उक़ाब अपने बच्चों को उड़ना सिखाता है तो वह उन्हें घोंसले से निकालकर उनके साथ उड़ता है। अगर वह गिर भी जाएँ तो वह हाज़िर है और उनके नीचे अपने परों को फैलाकर उन्हें ज़मीन से टकरा जाने से बचाता है। रब का इसराईल के साथ यही सुलूक था। \p \v 12 रब ने अकेले ही उस की राहनुमाई की। किसी अजनबी माबूद ने शिरकत न की। \b \p \v 13 उसने उसे रथ पर सवार करके मुल्क की बुलंदियों पर से गुज़रने दिया और उसे खेत का फल खिलाकर उसे चट्टान से शहद और सख़्त पत्थर से ज़ैतून का तेल मुहैया किया। \f + \fr 32:13 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : चूसने दिया। \f* \p \v 14 उसने उसे गाय की लस्सी और भेड़-बकरी का दूध चीदा भेड़ के बच्चों समेत खिलाया और उसे बसन के मोटे-ताज़े मेंढे, बकरे और बेहतरीन अनाज अता किया। उस वक़्त तू आला अंगूर की उम्दा मै से लुत्फ़अंदोज़ हुआ। \b \p \v 15 लेकिन जब यसूरून \f + \fr 32:15 \ft यानी इसराईल। \f* मोटा हो गया तो वह दोलत्तियाँ झाड़ने लगा। जब वह हलक़ तक भरकर तनोमंद और फ़रबा हुआ तो उसने अपने ख़ुदा और ख़ालिक़ को रद्द किया, उसने अपनी नजात की चट्टान को हक़ीर जाना। \p \v 16 अपने अजनबी माबूदों से उन्होंने उस की ग़ैरत को जोश दिलाया, अपने घिनौने बुतों से उसे ग़ुस्सा दिलाया। \p \v 17 उन्होंने बदरूहों को क़ुरबानियाँ पेश कीं जो ख़ुदा नहीं हैं, ऐसे माबूदों को जिनसे न वह और न उनके बापदादा वाक़िफ़ थे, क्योंकि वह थोड़ी देर पहले वुजूद में आए थे। \b \p \v 18 तू वह चट्टान भूल गया जिसने तुझे पैदा किया, वही ख़ुदा जिसने तुझे जन्म दिया। \p \v 19 रब ने यह देखकर उन्हें रद्द किया, क्योंकि वह अपने बेटे-बेटियों से नाराज़ था। \p \v 20 उसने कहा, “मैं अपना चेहरा उनसे छुपा लूँगा। फिर पता लगेगा कि मेरे बग़ैर उनका क्या अंजाम होता है। क्योंकि वह सरासर बिगड़ गए हैं, उनमें वफ़ादारी पाई नहीं जाती। \p \v 21 उन्होंने उस की परस्तिश से जो ख़ुदा नहीं है मेरी ग़ैरत को जोश दिलाया, अपने बेकार बुतों से मुझे ग़ुस्सा दिलाया है। चुनाँचे मैं ख़ुद ही उन्हें ग़ैरत दिलाऊँगा, एक ऐसी क़ौम के ज़रीए जो हक़ीक़त में क़ौम नहीं है। एक नादान क़ौम के ज़रीए मैं उन्हें ग़ुस्सा दिलाऊँगा। \p \v 22 क्योंकि मेरे ग़ुस्से से आग भड़क उठी है जो पाताल की तह तक पहुँचेगी और ज़मीन और उस की पैदावार हड़प करके पहाड़ों की बुनियादों को जला देगी। \b \p \v 23 मैं उन पर मुसीबत पर मुसीबत आने दूँगा और अपने तमाम तीर उन पर चलाऊँगा। \p \v 24 भूक के मारे उनकी ताक़त जाती रहेगी, और वह बुख़ार और वबाई अमराज़ का लुक़मा बनेंगे। मैं उनके ख़िलाफ़ फाड़नेवाले जानवर और ज़हरीले साँप भेज दूँगा। \p \v 25 बाहर तलवार उन्हें बेऔलाद कर देगी, और घर में दहशत फैल जाएगी। शीरख़ार बच्चे, नौजवान लड़के-लड़कियाँ और बुज़ुर्ग सब उस की गिरिफ़्त में आ जाएंगे। \b \p \v 26 मुझे कहना चाहिए था कि मैं उन्हें चकनाचूर करके इनसानों में से उनका नामो-निशान मिटा दूँगा। \p \v 27 लेकिन अंदेशा था कि दुश्मन ग़लत मतलब निकालकर कहे, ‘हम ख़ुद उन पर ग़ालिब आए, इसमें रब का हाथ नहीं है’।” \p \v 28 क्योंकि यह क़ौम बेसमझ और हिकमत से ख़ाली है। \p \v 29 काश वह दानिशमंद होकर यह बात समझें! काश वह जान लें कि उनका क्या अंजाम है। \p \v 30 क्योंकि दुश्मन का एक आदमी किस तरह हज़ार इसराईलियों का ताक़्क़ुब कर सकता है? उसके दो मर्द किस तरह दस हज़ार इसराईलियों को भगा सकते हैं? वजह सिर्फ़ यह है कि उनकी चट्टान ने उन्हें दुश्मन के हाथ बेच दिया। रब ने ख़ुद उन्हें दुश्मन के क़ब्ज़े में कर दिया। \p \v 31 हमारे दुश्मन ख़ुद मानते हैं कि इसराईल की चट्टान हमारी चट्टान जैसी नहीं है। \p \v 32 उनकी बेल तो सदूम की बेल और अमूरा के बाग़ से है, उनके अंगूर ज़हरीले और उनके गुच्छे कड़वे हैं। \p \v 33 उनकी मै साँपों का मोहलक ज़हर है। \b \p \v 34 रब फ़रमाता है, “क्या मैंने इन बातों पर मुहर लगाकर उन्हें अपने ख़ज़ाने में महफ़ूज़ नहीं रखा? \p \v 35 इंतक़ाम लेना मेरा ही काम है, मैं ही बदला लूँगा। एक वक़्त आएगा कि उनका पाँव फिसलेगा। क्योंकि उनकी तबाही का दिन क़रीब है, उनका अंजाम जल्द ही आनेवाला है।” \b \p \v 36 यक़ीनन रब अपनी क़ौम का इनसाफ़ करेगा। वह अपने ख़ादिमों पर तरस खाएगा जब देखेगा कि उनकी ताक़त जाती रही है और कोई नहीं बचा। \p \v 37 उस वक़्त वह पूछेगा, “अब उनके देवता कहाँ हैं, वह चट्टान जिसकी पनाह उन्होंने ली? \p \v 38 वह देवता कहाँ हैं जिन्होंने उनके बेहतरीन जानवर खाए और उनकी मै की नज़रें पी लीं। वह तुम्हारी मदद के लिए उठें और तुम्हें पनाह दें। \p \v 39 अब जान लो कि मैं और सिर्फ़ मैं ख़ुदा हूँ। मेरे सिवा कोई और ख़ुदा नहीं है। मैं ही हलाक करता और मैं ही ज़िंदा कर देता हूँ। मैं ही ज़ख़मी करता और मैं ही शफ़ा देता हूँ। कोई मेरे हाथ से नहीं बचा सकता। \b \p \v 40 मैं अपना हाथ आसमान की तरफ़ उठाकर एलान करता हूँ कि मेरी अबदी हयात की क़सम, \p \v 41 जब मैं अपनी चमकती हुई तलवार को तेज़ करके अदालत के लिए पकड़ लूँगा तो अपने मुख़ालिफ़ों से इंतक़ाम और अपने नफ़रत करनेवालों से बदला लूँगा। \p \v 42 मेरे तीर ख़ून पी पीकर नशे में धुत हो जाएंगे, मेरी तलवार मक़तूलों और क़ैदियों के ख़ून और दुश्मन के सरदारों के सरों से सेर हो जाएगी।” \b \p \v 43 ऐ दीगर क़ौमो, उस की उम्मत के साथ ख़ुशी मनाओ! क्योंकि वह अपने ख़ादिमों के ख़ून का इंतक़ाम लेगा। वह अपने मुख़ालिफ़ों से बदला लेकर अपने मुल्क और क़ौम का कफ़्फ़ारा देगा। \b \p \v 44 मूसा और यशुअ बिन नून ने आकर इसराईलियों को यह पूरा गीत सुनाया। \v 45-46 फिर मूसा ने उनसे कहा, “आज मैंने तुम्हें इन तमाम बातों से आगाह किया है। लाज़िम है कि वह तुम्हारे दिलों में बैठ जाएँ। अपनी औलाद को भी हुक्म दो कि एहतियात से इस शरीअत की तमाम बातों पर अमल करे। \v 47 यह ख़ाली बातें नहीं बल्कि तुम्हारी ज़िंदगी का सरचश्मा हैं। इनके मुताबिक़ चलने के बाइस तुम देर तक उस मुल्क में जीते रहोगे जिस पर तुम दरियाए-यरदन को पार करके क़ब्ज़ा करनेवाले हो।” \s1 मूसा का नबू पहाड़ पर इंतक़ाल \p \v 48 उसी दिन रब ने मूसा से कहा, \v 49 “पहाड़ी सिलसिले अबारीम के पहाड़ नबू पर चढ़ जा जो यरीहू के सामने लेकिन यरदन के मशरिक़ी किनारे पर यानी मोआब के मुल्क में है। वहाँ से कनान पर नज़र डाल, उस मुल्क पर जो मैं इसराईलियों को दे रहा हूँ। \v 50 इसके बाद तू वहाँ मरकर अपने बापदादा से जा मिलेगा, बिलकुल उसी तरह जिस तरह तेरा भाई हारून होर पहाड़ पर मरकर अपने बापदादा से जा मिला है। \v 51 क्योंकि तुम दोनों इसराईलियों के रूबरू बेवफ़ा हुए। जब तुम दश्ते-सीन में क़ादिस के क़रीब थे और मरीबा के चश्मे पर इसराईलियों के सामने खड़े थे तो तुमने मेरी क़ुद्दूसियत क़ायम न रखी। \v 52 इस सबब से तू वह मुल्क सिर्फ़ दूर से देखेगा जो मैं इसराईलियों को दे रहा हूँ। तू ख़ुद उसमें दाख़िल नहीं होगा।” \c 33 \s1 मूसा क़बीलों को बरकत देता है \p \v 1 मरने से पेशतर मर्दे-ख़ुदा मूसा ने इसराईलियों को बरकत देकर \v 2 कहा, \p “रब सीना से आया, सईर \f + \fr 33:2 \ft अदोम। \f* से उसका नूर उन पर तुलू हुआ। वह कोहे-फ़ारान से रौशनी फैलाकर रिबबोत-क़ादिस से आया, वह अपने जुनूबी इलाक़े से रवाना होकर उनकी ख़ातिर पहाड़ी ढलानों के पास आया। \p \v 3 यक़ीनन वह क़ौमों से मुहब्बत करता है, तमाम मुक़द्दसीन तेरे हाथ में हैं। वह तेरे पाँवों के सामने झुककर तुझसे हिदायत पाते हैं। \p \v 4 मूसा ने हमें शरीअत दी यानी वह चीज़ जो याक़ूब की जमात की मौरूसी मिलकियत है। \p \v 5 इसराईल के राहनुमा अपने क़बीलों समेत जमा हुए तो रब यसूरून \f + \fr 33:5 \ft इसराईल। \f* का बादशाह बन गया। \b \p \v 6 रूबिन की बरकत : \p रूबिन मर न जाए बल्कि जीता रहे। वह तादाद में बढ़ जाए। \b \p \v 7 यहूदाह की बरकत : \p ऐ रब, यहूदाह की पुकार सुनकर उसे दुबारा उस की क़ौम में शामिल कर। उसके हाथ उसके लिए लड़ें। मुख़ालिफ़ों का सामना करते वक़्त उस की मदद कर। \b \p \v 8 लावी की बरकत : \p तेरी मरज़ी मालूम करने के क़ुरे बनाम ऊरीम और तुम्मीम तेरे वफ़ादार ख़ादिम लावी के पास होते हैं। तूने उसे मस्सा में आज़माया और मरीबा में उससे लड़ा। \v 9 उसने तेरा कलाम सँभालकर तेरा अहद क़ायम रखा, यहाँ तक कि उसने न अपने माँ-बाप का, न अपने सगे भाइयों या बच्चों का लिहाज़ किया। \p \v 10 वह याक़ूब को तेरी हिदायात और इसराईल को तेरी शरीअत सिखाकर तेरे सामने बख़ूर और तेरी क़ुरबानगाह पर भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ चढ़ाता है। \p \v 11 ऐ रब, उस की ताक़त को बढ़ाकर उसके हाथों का काम पसंद कर। उसके मुख़ालिफ़ों की कमर तोड़ और उससे नफ़रत रखनेवालों को ऐसा मार कि आइंदा कभी न उठें। \b \p \v 12 बिनयमीन की बरकत : \p बिनयमीन रब को प्यारा है। वह सलामती से उसके पास रहता है, क्योंकि रब दिन-रात उसे पनाह देता है। बिनयमीन उस की पहाड़ी ढलानों के दरमियान महफ़ूज़ रहता है। \b \p \v 13 यूसुफ़ की बरकत : \p रब उस की ज़मीन को बरकत दे। आसमान से क़ीमती ओस टपके और ज़मीन के नीचे से चश्मे फूट निकलें। \p \v 14 यूसुफ़ को सूरज की बेहतरीन पैदावार और हर महीने का लज़ीज़तरीन फल हासिल हो। \p \v 15 उसे क़दीम पहाड़ों और अबदी वादियों की बेहतरीन चीज़ों से नवाज़ा जाए। \p \v 16 ज़मीन के तमाम ज़ख़ीरे उसके लिए खुल जाएँ। वह उसको पसंद हो जो जलती हुई झाड़ी में सुकूनत करता था। यह तमाम बरकतें यूसुफ़ के सर पर ठहरें, उसके सर पर जो अपने भाइयों में शहज़ादा है। \p \v 17 यूसुफ़ साँड के पहलौठे जैसा अज़ीम है, और उसके सींग जंगली बैल के सींग हैं जिनसे वह दुनिया की इंतहा तक सब क़ौमों को मारेगा। इफ़राईम के बेशुमार अफ़राद ऐसे ही हैं, मनस्सी के हज़ारों अफ़राद ऐसे ही हैं। \b \p \v 18 ज़बूलून और इशकार की बरकत : \p ऐ ज़बूलून, घर से निकलते वक़्त ख़ुशी मना। ऐ इशकार, अपने ख़ैमों में रहते हुए ख़ुश हो। \p \v 19 वह दीगर क़ौमों को अपने पहाड़ पर आने की दावत देंगे और वहाँ रास्ती की क़ुरबानियाँ पेश करेंगे। वह समुंदर की कसरत और समुंदर की रेत में छुपे हुए ख़ज़ानों को जज़ब कर लेंगे। \b \p \v 20 जद की बरकत : \p मुबारक है वह जो जद का इलाक़ा वसी कर दे। जद शेरबबर की तरह दबककर किसी का बाज़ू या सर फाड़ डालने के लिए तैयार रहता है। \p \v 21 उसने अपने लिए सबसे अच्छी ज़मीन चुन ली, राहनुमा का हिस्सा उसी के लिए महफ़ूज़ रखा गया। जब क़ौम के राहनुमा जमा हुए तो उसने रब की रास्त मरज़ी पूरी की और इसराईल के बारे में उसके फ़ैसले अमल में लाया। \b \p \v 22 दान की बरकत : \p दान शेरबबर का बच्चा है जो बसन से निकलकर छलाँग लगाता है। \b \p \v 23 नफ़ताली की बरकत : \p नफ़ताली रब की मंज़ूरी से सेर है, उसे उस की पूरी बरकत हासिल है। वह गलील की झील और उसके जुनूब का इलाक़ा मीरास में पाएगा। \b \p \v 24 आशर की बरकत : \p आशर बेटों में सबसे मुबारक है। वह अपने भाइयों को पसंद हो। उसके पास ज़ैतून का इतना तेल हो कि वह अपने पाँव उसमें डुबो सके। \p \v 25 तेरे शहरों के दरवाज़ों के कुंडे लोहे और पीतल के हों, तेरी ताक़त उम्र-भर क़ायम रहे। \b \p \v 26 यसूरून \f + \fr 33:26 \ft इसराईल। \f* के ख़ुदा की मानिंद कोई नहीं है, जो आसमान पर सवार होकर, हाँ अपने जलाल में बादलों पर बैठकर तेरी मदद करने के लिए आता है। \p \v 27 अज़ली ख़ुदा तेरी पनाहगाह है, वह अपने अज़ली बाज़ू तेरे नीचे फैलाए रखता है। वह दुश्मन को तेरे सामने से भगाकर उसे हलाक करने को कहता है। \p \v 28 चुनाँचे इसराईल सलामती से ज़िंदगी गुज़ारेगा, याक़ूब का चश्मा अलग और महफ़ूज़ रहेगा। उस की ज़मीन अनाज और अंगूर की कसरत पैदा करेगी, और उसके ऊपर आसमान ज़मीन पर ओस पड़ने देगा। \p \v 29 ऐ इसराईल, तू कितना मुबारक है। कौन तेरी मानिंद है, जिसे रब ने बचाया है। वह तेरी मदद की ढाल और तेरी शान की तलवार है। तेरे दुश्मन शिकस्त खाकर तेरी ख़ुशामद करेंगे, और तू उनकी कमरें पाँवों तले कुचलेगा।” \c 34 \s1 मूसा की वफ़ात \p \v 1 यह बरकत देकर मूसा मोआब का मैदानी इलाक़ा छोड़कर यरीहू के मुक़ाबिल नबू पहाड़ पर चढ़ गया। नबू पिसगा के पहाड़ी सिलसिले की एक चोटी था। वहाँ से रब ने उसे वह पूरा मुल्क दिखाया जो वह इसराईल को देनेवाला था यानी जिलियाद के इलाक़े से लेकर दान के इलाक़े तक, \v 2 नफ़ताली का पूरा इलाक़ा, इफ़राईम और मनस्सी का इलाक़ा, यहूदाह का इलाक़ा बहीराए-रूम तक, \v 3 जुनूब में दश्ते-नजब और खजूर के शहर यरीहू की वादी से लेकर ज़ुग़र तक। \v 4 रब ने उससे कहा, “यह वह मुल्क है जिसका वादा मैंने क़सम खाकर इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से किया। मैंने उनसे कहा था कि उनकी औलाद को यह मुल्क मिलेगा। तू उसमें दाख़िल नहीं होगा, लेकिन मैं तुझे यहाँ ले आया हूँ ताकि तू उसे अपनी आँखों से देख सके।” \p \v 5 इसके बाद रब का ख़ादिम मूसा वहीं मोआब के मुल्क में फ़ौत हुआ, बिलकुल उसी तरह जिस तरह रब ने कहा था। \v 6 रब ने उसे बैत-फ़ग़ूर की किसी वादी में दफ़न किया, लेकिन आज तक किसी को भी मालूम नहीं कि उस की क़ब्र कहाँ है। \p \v 7 अपनी वफ़ात के वक़्त मूसा 120 साल का था। आख़िर तक न उस की आँखें धुँधलाईं, न उस की ताक़त कम हुई। \v 8 इसराईलियों ने मोआब के मैदानी इलाक़े में 30 दिन तक उसका मातम किया। \p \v 9 फिर यशुअ बिन नून मूसा की जगह खड़ा हुआ। वह हिकमत की रूह से मामूर था, क्योंकि मूसा ने अपने हाथ उस पर रख दिए थे। इसराईलियों ने उस की सुनी और वह कुछ किया जो रब ने उन्हें मूसा की मारिफ़त बताया था। \p \v 10 इसके बाद इसराईल में मूसा जैसा नबी कभी न उठा जिससे रब रूबरू बात करता था। \v 11 किसी और नबी ने ऐसे इलाही निशान और मोजिज़े नहीं किए जैसे मूसा ने फ़िरौन बादशाह, उसके मुलाज़िमों और पूरे मुल्क के सामने किए जब रब ने उसे मिसर भेजा। \v 12 किसी और नबी ने इस क़िस्म का बड़ा इख़्तियार न दिखाया, न ऐसे अज़ीम और हैबतनाक काम किए जैसे मूसा ने इसराईलियों के सामने किए।