\id ACT उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h आमाल \toc1 आमाल \toc2 आमाल \toc3 आमा \mt1 आमाल \c 1 \p \v 1 मुअज़्ज़ज़ थियुफ़िलुस, पहली किताब में मैंने सब कुछ बयान किया जो ईसा ने शुरू से लेकर \v 2 उस दिन तक किया और सिखाया, जब उसे आसमान पर उठाया गया। जाने से पहले उसने अपने चुने हुए रसूलों को रूहुल-क़ुद्स की मारिफ़त मज़ीद हिदायात दीं। \v 3 अपने दुख उठाने और मौत सहने के बाद उसने अपने आपको ज़ाहिर करके उन्हें बहुत-सी दलीलों से क़ायल किया कि वह वाक़ई ज़िंदा है। वह चालीस दिन के दौरान उन पर ज़ाहिर होता और उन्हें अल्लाह की बादशाही के बारे में बताता रहा। \v 4 जब वह अभी उनके साथ था उसने उन्हें हुक्म दिया, “यरूशलम को न छोड़ना बल्कि इस इंतज़ार में यहीं ठहरो कि बाप का वादा पूरा हो जाए, वह वादा जिसके बारे में मैंने तुमको आगाह किया है। \v 5 क्योंकि यहया ने तो पानी से बपतिस्मा दिया, लेकिन तुमको थोड़े दिनों के बाद रूहुल-क़ुद्स से बपतिस्मा दिया जाएगा।” \s1 ईसा को उठाया जाता है \p \v 6 जो वहाँ जमा थे उन्होंने उससे पूछा, “ख़ुदावंद, क्या आप इसी वक़्त इसराईल के लिए उस की बादशाही दुबारा क़ायम करेंगे?” \p \v 7 ईसा ने जवाब दिया, “यह जानना तुम्हारा काम नहीं है बल्कि सिर्फ़ बाप का जो ऐसे औक़ात और तारीखें मुक़र्रर करने का इख़्तियार रखता है। \v 8 लेकिन तुम्हें रूहुल-क़ुद्स की क़ुव्वत मिलेगी जो तुम पर नाज़िल होगा। फिर तुम यरूशलम, पूरे यहूदिया और सामरिया बल्कि दुनिया की इंतहा तक मेरे गवाह होगे।” \v 9 यह कहकर वह उनके देखते देखते उठा लिया गया। और एक बादल ने उसे उनकी नज़रों से ओझल कर दिया। \p \v 10 वह अभी आसमान की तरफ़ देख ही रहे थे कि अचानक दो आदमी उनके पास आ खड़े हुए। दोनों सफ़ेद लिबास पहने हुए थे। \v 11 उन्होंने कहा, “गलील के मर्दो, आप क्यों खड़े आसमान की तरफ़ देख रहे हैं? यही ईसा जिसे आपके पास से आसमान पर उठाया गया है उसी तरह वापस आएगा जिस तरह आपने उसे ऊपर जाते हुए देखा है।” \s1 यहूदाह का जा-नशीन \p \v 12 फिर वह ज़ैतून के पहाड़ से यरूशलम शहर वापस चले गए। (यह पहाड़ शहर से तक़रीबन एक किलोमीटर दूर है।) \v 13 वहाँ पहुँचकर वह उस बालाख़ाने में दाख़िल हुए जिसमें वह ठहरे हुए थे, यानी पतरस, यूहन्ना, याक़ूब और अंदरियास, फ़िलिप्पुस और तोमा, बरतुलमाई और मत्ती, याक़ूब बिन हलफ़ई, शमौन मुजाहिद और यहूदाह बिन याक़ूब। \v 14 यह सब यकदिल होकर दुआ में लगे रहे। कुछ औरतें, ईसा की माँ मरियम और उसके भाई भी साथ थे। \p \v 15 उन दिनों में पतरस भाइयों में खड़ा हुआ। उस वक़्त तक़रीबन 120 लोग जमा थे। उसने कहा, \v 16 “भाइयो, लाज़िम था कि कलामे-मुक़द्दस की वह पेशगोई पूरी हो जो रूहुल-क़ुद्स ने दाऊद की मारिफ़त यहूदाह के बारे में की। यहूदाह उनका राहनुमा बन गया जिन्होंने ईसा को गिरिफ़्तार किया, \v 17 गो उसे हममें शुमार किया जाता था और वह इसी ख़िदमत में हमारे साथ शरीक था।” \p \v 18 (जो पैसे यहूदाह को उसके ग़लत काम के लिए मिल गए थे उनसे उसने एक खेत ख़रीद लिया था। वहाँ वह सर के बल गिर गया, उसका पेट फट गया और उस की तमाम अंतड़ियाँ बाहर निकल पडीं। \v 19 इसका चर्चा यरूशलम के तमाम बाशिंदों में फैल गया, इसलिए यह खेत उनकी मादरी ज़बान में हक़ल-दमा के नाम से मशहूर हुआ जिसका मतलब है ख़ून का खेत।) \p \v 20 पतरस ने अपनी बात जारी रखी, “यही बात ज़बूर की किताब में लिखी है, ‘उस की रिहाइशगाह सुनसान हो जाए, कोई उसमें आबाद न हो।’ यह भी लिखा है, ‘कोई और उस की ज़िम्मादारी उठाए।’ \v 21 चुनाँचे अब ज़रूरी है कि हम यहूदाह की जगह किसी और को चुन लें। यह शख़्स उन मर्दों में से एक हो जो उस पूरे वक़्त के दौरान हमारे साथ सफ़र करते रहे जब ख़ुदावंद ईसा हमारे साथ था, \v 22 यानी उसके यहया के हाथ से बपतिस्मा लेने से लेकर उस वक़्त तक जब उसे हमारे पास से उठाया गया। लाज़िम है कि उनमें से एक हमारे साथ ईसा के जी उठने का गवाह हो।” \p \v 23 चुनाँचे उन्होंने दो आदमी पेश किए, यूसुफ़ जो बरसब्बा कहलाता था (उसका दूसरा नाम यूसतुस था) और मत्तियाह। \v 24 फिर उन्होंने दुआ की, “ऐ ख़ुदावंद, तू हर एक के दिल से वाक़िफ़ है। हम पर ज़ाहिर कर कि तूने इन दोनों में से किस को चुना है \v 25 ताकि वह उस ख़िदमत की ज़िम्मादारी उठाए जो यहूदाह छोड़कर वहाँ चला गया जहाँ उसे जाना ही था।” \v 26 यह कहकर उन्होंने दोनों का नाम लेकर क़ुरा डाला तो मत्तियाह का नाम निकला। लिहाज़ा उसे भी ग्यारह रसूलों में शामिल कर लिया गया। \c 2 \s1 रूहुल-क़ुद्स की आमद \p \v 1 फिर ईदे-पंतिकुस्त का दिन आया। सब एक जगह जमा थे \v 2 कि अचानक आसमान से ऐसी आवाज़ आई जैसे शदीद आँधी चल रही हो। पूरा मकान जिसमें वह बैठे थे इस आवाज़ से गूँज उठा। \v 3 और उन्हें शोले की लौएँ जैसी नज़र आईं जो अलग अलग होकर उनमें से हर एक पर उतरकर ठहर गईं। \v 4 सब रूहुल-क़ुद्स से भर गए और मुख़्तलिफ़ ग़ैरमुल्की ज़बानों में बोलने लगे, हर एक उस ज़बान में जो बोलने की रूहुल-क़ुद्स ने उसे तौफ़ीक़ दी। \p \v 5 उस वक़्त यरूशलम में ऐसे ख़ुदातरस यहूदी ठहरे हुए थे जो आसमान तले की हर क़ौम में से थे। \v 6 जब यह आवाज़ सुनाई दी तो एक बड़ा हुजूम जमा हुआ। सब घबरा गए क्योंकि हर एक ने ईमानदारों को अपनी मादरी ज़बान में बोलते सुना। \v 7 सख़्त हैरतज़दा होकर वह कहने लगे, “क्या यह सब गलील के रहनेवाले नहीं हैं? \v 8 तो फिर यह किस तरह हो सकता है कि हममें से हर एक उन्हें अपनी मादरी ज़बान में बातें करते सुन रहा है \v 9 जबकि हमारे ममालिक यह हैं : पारथिया, मादिया, ऐलाम, मसोपुतामिया, यहूदिया, कप्पदुकिया, पुंतुस, आसिया, \v 10 फ़रूगिया, पंफ़ीलिया, मिसर और लिबिया का वह इलाक़ा जो कुरेन के इर्दगिर्द है। रोम से भी लोग मौजूद हैं। \v 11 यहाँ यहूदी भी हैं और ग़ैरयहूदी नौमुरीद भी, क्रेते के लोग और अरब के बाशिंदे भी। और अब हम सबके सब इनको अपनी अपनी ज़बान में अल्लाह के अज़ीम कामों का ज़िक्र करते सुन रहे हैं।” \v 12 सब दंग रह गए। उलझन में पड़कर वह एक दूसरे से पूछने लगे, “इसका क्या मतलब है?” \p \v 13 लेकिन कुछ लोग उनका मज़ाक़ उड़ाकर कहने लगे, “यह बस नई मै पीकर नशे में धुत हो गए हैं।” \s1 पतरस का पैग़ाम \p \v 14 फिर पतरस बाक़ी ग्यारह रसूलों समेत खड़ा होकर ऊँची आवाज़ से उनसे मुख़ातिब हुआ, “सुनें, यहूदी भाइयो और यरूशलम के तमाम रहनेवालो! जान लें और ग़ौर से मेरी बात सुन लें! \v 15 आपका ख़याल है कि यह लोग नशे में हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। देखें, अभी तो सुबह के नौ बजे का वक़्त है। \v 16 अब वह कुछ हो रहा है जिसकी पेशगोई योएल नबी ने की थी, \p \v 17 ‘अल्लाह फ़रमाता है कि आख़िरी दिनों में \p मैं अपने रूह को तमाम इनसानों पर उंडेल दूँगा। \p तुम्हारे बेटे-बेटियाँ नबुव्वत करेंगे, \p तुम्हारे नौजवान रोयाएँ और तुम्हारे बुज़ुर्ग ख़ाब देखेंगे। \p \v 18 उन दिनों में \p मैं अपने रूह को अपने ख़ादिमों और ख़ादिमाओं पर भी उंडेल दूँगा, \p और वह नबुव्वत करेंगे। \p \v 19 मैं ऊपर आसमान पर मोजिज़े दिखाऊँगा \p और नीचे ज़मीन पर इलाही निशान ज़ाहिर करूँगा, \p ख़ून, आग और धुएँ के बादल। \p \v 20 सूरज तारीक हो जाएगा, \p चाँद का रंग ख़ून-सा हो जाएगा, \p और फिर रब का अज़ीम और जलाली दिन आएगा। \p \v 21 उस वक़्त जो भी रब का नाम लेगा \p नजात पाएगा।’ \p \v 22 इसराईल के मर्दो, मेरी बात सुनें! अल्लाह ने आपके सामने ही ईसा नासरी की तसदीक़ की, क्योंकि उसने उसके वसीले से आपके दरमियान अजूबे, मोजिज़े और इलाही निशान दिखाए। आप ख़ुद इस बात से वाक़िफ़ हैं। \v 23 लेकिन अल्लाह को पहले ही इल्म था कि क्या होना है, क्योंकि उसने ख़ुद अपनी मरज़ी से मुक़र्रर किया था कि ईसा को दुश्मन के हवाले कर दिया जाए। चुनाँचे आपने बेदीन लोगों के ज़रीए उसे सलीब पर चढ़वाकर क़त्ल किया। \v 24 लेकिन अल्लाह ने उसे मौत की अज़ियतनाक गिरिफ़्त से आज़ाद करके ज़िंदा कर दिया, क्योंकि मुमकिन ही नहीं था कि मौत उसे अपने क़ब्ज़े में रखे। \v 25 चुनाँचे दाऊद ने उसके बारे में कहा, \p ‘रब हर वक़्त मेरी आँखों के सामने रहा। \p वह मेरे दहने हाथ रहता है \p ताकि मैं न डगमगाऊँ। \p \v 26 इसलिए मेरा दिल शादमान है, \p और मेरी ज़बान ख़ुशी के नारे लगाती है। \p हाँ, मेरा बदन पुरउम्मीद ज़िंदगी गुज़ारेगा। \p \v 27 क्योंकि तू मेरी जान को पाताल में नहीं छोड़ेगा, \p और न अपने मुक़द्दस को गलने-सड़ने की नौबत तक पहुँचने देगा। \p \v 28 तूने मुझे ज़िंदगी की राहों से आगाह कर दिया है, \p और तू अपने हुज़ूर मुझे ख़ुशी से सरशार करेगा।’ \p \v 29 मेरे भाइयो, अगर इजाज़त हो तो मैं आपको दिलेरी से अपने बुज़ुर्ग दाऊद के बारे में कुछ बताऊँ। वह तो फ़ौत होकर दफ़नाया गया और उस की क़ब्र आज तक हमारे दरमियान मौजूद है। \v 30 लेकिन वह नबी था और जानता था कि अल्लाह ने क़सम खाकर मुझसे वादा किया है कि वह मेरी औलाद में से एक को मेरे तख़्त पर बिठाएगा। \v 31 मज़कूरा आयात में दाऊद मुस्तक़बिल में देखकर मसीह के जी उठने का ज़िक्र कर रहा है, यानी कि न उसे पाताल में छोड़ा गया, न उसका बदन गलने-सड़ने की नौबत तक पहुँचा। \v 32 अल्लाह ने इसी ईसा को ज़िंदा कर दिया है और हम सब इसके गवाह हैं। \v 33 अब उसे सरफ़राज़ करके ख़ुदा के दहने हाथ बिठाया गया और बाप की तरफ़ से उसे मौऊदा रूहुल-क़ुद्स मिल गया है। इसी को उसने हम पर उंडेल दिया, जिस तरह आप देख और सुन रहे हैं। \v 34 दाऊद ख़ुद तो आसमान पर नहीं चढ़ा, तो भी उसने फ़रमाया, \p ‘रब ने मेरे रब से कहा, \p मेरे दहने हाथ बैठ \p \v 35 जब तक मैं तेरे दुश्मनों को \p तेरे पाँवों की चौकी न बना दूँ।’ \p \v 36 चुनाँचे पूरा इसराईल यक़ीन जाने कि जिस ईसा को आपने मसलूब किया है उसे ही अल्लाह ने ख़ुदावंद और मसीह बना दिया है।” \p \v 37 पतरस की यह बातें सुनकर लोगों के दिल छिद गए। उन्होंने पतरस और बाक़ी रसूलों से पूछा, “भाइयो, फिर हम क्या करें?” \p \v 38 पतरस ने जवाब दिया, “आपमें से हर एक तौबा करके ईसा के नाम पर बपतिस्मा ले ताकि आपके गुनाह मुआफ़ कर दिए जाएँ। फिर आपको रूहुल-क़ुद्स की नेमत मिल जाएगी। \v 39 क्योंकि यह देने का वादा आपसे और आपके बच्चों से किया गया है, बल्कि उनसे भी जो दूर के हैं, उन सबसे जिन्हें रब हमारा ख़ुदा अपने पास बुलाएगा।” \p \v 40 पतरस ने मज़ीद बहुत-सी बातों से उन्हें नसीहत की और समझाया कि “इस टेढ़ी नसल से निकलकर नजात पाएँ।” \v 41 जिन्होंने पतरस की बात क़बूल की उनका बपतिस्मा हुआ। यों उस दिन जमात में तक़रीबन 3,000 अफ़राद का इज़ाफ़ा हुआ। \v 42 यह ईमानदार रसूलों से तालीम पाने, रिफ़ाक़त रखने और रिफ़ाक़ती खानों और दुआओं में शरीक होते रहे। \s1 ईमानदारों की हैरतअंगेज़ ज़िंदगी \p \v 43 सब पर ख़ौफ़ छा गया और रसूलों की तरफ़ से बहुत-से मोजिज़े और इलाही निशान दिखाए गए। \v 44 जो भी ईमान लाते थे वह एक जगह जमा होते थे। उनकी हर चीज़ मुश्तरका होती थी। \v 45 अपनी मिलकियत और माल फ़रोख़्त करके उन्होंने हर एक को उस की ज़रूरत के मुताबिक़ दिया। \v 46 रोज़ाना वह यकदिली से बैतुल-मुक़द्दस में जमा होते रहे। साथ साथ वह मसीह की याद में अपने घरों में रोटी तोड़ते, बड़ी ख़ुशी और सादगी से रिफ़ाक़ती खाना खाते \v 47 और अल्लाह की तमजीद करते रहे। उस वक़्त वह तमाम लोगों के मंज़ूरे-नज़र थे। और ख़ुदावंद रोज़ बरोज़ जमात में नजातयाफ़्ता लोगों का इज़ाफ़ा करता रहा। \c 3 \s1 लँगड़े आदमी की शफ़ा \p \v 1 एक दोपहर पतरस और यूहन्ना दुआ करने के लिए बैतुल-मुक़द्दस की तरफ़ चल पड़े। तीन बज गए थे। \v 2 उस वक़्त लोग एक पैदाइशी लँगड़े को उठाकर वहाँ ला रहे थे। रोज़ाना उसे सहन के उस दरवाज़े के पास लाया जाता था जो ‘ख़ूबसूरत दरवाज़ा’ कहलाता था ताकि वह बैतुल-मुक़द्दस के सहनों में दाख़िल होनेवालों से भीक माँग सके। \v 3 पतरस और यूहन्ना बैतुल-मुक़द्दस में दाख़िल होनेवाले थे तो लँगड़ा उनसे भीक माँगने लगा। \v 4 पतरस और यूहन्ना ग़ौर से उस की तरफ़ देखने लगे। फिर पतरस ने कहा, “हमारी तरफ़ देखें।” \v 5 इस तवक़्क़ो से कि उसे कुछ मिलेगा लँगड़ा उनकी तरफ़ मुतवज्जिह हुआ। \v 6 लेकिन पतरस ने कहा, “मेरे पास न तो चाँदी है, न सोना, लेकिन जो कुछ है वह आपको दे देता हूँ। नासरत के ईसा मसीह के नाम से उठें और चलें-फिरें!” \v 7 उसने उसका दहना हाथ पकड़कर उसे खड़ा किया। उसी वक़्त लँगड़े के पाँव और टख़ने मज़बूत हो गए। \v 8 वह उछलकर खड़ा हुआ और चलने-फिरने लगा। फिर वह चलते, कूदते और अल्लाह की तमजीद करते हुए उनके साथ बैतुल-मुक़द्दस में दाख़िल हुआ। \v 9 और तमाम लोगों ने उसे चलते-फिरते और अल्लाह की तमजीद करते हुए देखा। \v 10 जब उन्होंने जान लिया कि यह वही आदमी है जो ख़ूबसूरत नामी दरवाज़े पर बैठा भीक माँगा करता था तो वह उस की तबदीली देखकर दंग रह गए। \s1 बैतुल-मुक़द्दस में पतरस का पैग़ाम \p \v 11 वह सब दौड़कर सुलेमान के बरामदे में आए जहाँ भीक माँगनेवाला अब तक पतरस और यूहन्ना से लिपटा हुआ था। \v 12 यह देखकर पतरस उनसे मुख़ातिब हुआ, “इसराईल के हज़रात, आप यह देखकर क्यों हैरान हैं? आप क्यों घूर घूरकर हमारी तरफ़ देख रहे हैं गोया हमने अपनी ज़ाती ताक़त या दीनदारी के बाइस यह किया है कि यह आदमी चल-फिर सके? \v 13 यह हमारे बापदादा के ख़ुदा, इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब के ख़ुदा की तरफ़ से है जिसने अपने बंदे ईसा को जलाल दिया है। यह वही ईसा है जिसे आपने दुश्मन के हवाले करके पीलातुस के सामने रद्द किया, अगरचे वह उसे रिहा करने का फ़ैसला कर चुका था। \v 14 आपने उस क़ुद्दूस और रास्तबाज़ को रद्द करके तक़ाज़ा किया कि पीलातुस उसके एवज़ एक क़ातिल को रिहा करके आपको दे दे। \v 15 आपने ज़िंदगी के सरदार को क़त्ल किया, लेकिन अल्लाह ने उसे मुरदों में से ज़िंदा कर दिया। हम इस बात के गवाह हैं। \v 16 आप तो इस आदमी से वाक़िफ़ हैं जिसे देख रहे हैं। अब वह ईसा के नाम पर ईमान लाने से बहाल हो गया है, क्योंकि जो ईमान ईसा के ज़रीए मिलता है उसी ने इस आदमी को आपके सामने पूरी सेहतमंदी अता की। \p \v 17 मेरे भाइयो, मैं जानता हूँ कि आप और आपके राहनुमाओं को सहीह इल्म नहीं था, इसलिए आपने ऐसा किया। \v 18 लेकिन अल्लाह ने वह कुछ पूरा किया जिसकी पेशगोई उसने तमाम नबियों की मारिफ़त की थी, यानी यह कि उसका मसीह दुख उठाएगा। \v 19 अब तौबा करें और अल्लाह की तरफ़ रुजू लाएँ ताकि आपके गुनाहों को मिटाया जाए। \v 20 फिर आपको रब के हुज़ूर से ताज़गी के दिन मुयस्सर आएँगे और वह दुबारा ईसा यानी मसीह को भेज देगा जिसे आपके लिए मुक़र्रर किया गया है। \v 21 लाज़िम है कि वह उस वक़्त तक आसमान पर रहे जब तक अल्लाह सब कुछ बहाल न कर दे, जिस तरह वह इब्तिदा से अपने मुक़द्दस नबियों की ज़बानी फ़रमाता आया है। \v 22 क्योंकि मूसा ने कहा, ‘रब तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारे वास्ते तुम्हारे भाइयों में से मुझ जैसे नबी को बरपा करेगा। जो भी बात वह कहे उस की सुनना। \v 23 जो नहीं सुनेगा उसे मिटाकर क़ौम से निकाल दिया जाएगा।’ \v 24 और समुएल से लेकर हर नबी ने इन दिनों की पेशगोई की है। \v 25 आप तो इन नबियों की औलाद और उस अहद के वारिस हैं जो अल्लाह ने आपके बापदादा से क़ायम किया था, क्योंकि उसने इब्राहीम से कहा था, ‘तेरी औलाद से दुनिया की तमाम क़ौमें बरकत पाएँगी।’ \v 26 जब अल्लाह ने अपने बंदे ईसा को बरपा किया तो पहले उसे आपके पास भेज दिया ताकि वह आपमें से हर एक को उस की बुरी राहों से फेरकर बरकत दे।” \c 4 \s1 पतरस और यूहन्ना यहूदी अदालते-आलिया के सामने \p \v 1 पतरस और यूहन्ना लोगों से बात कर ही रहे थे कि इमाम, बैतुल-मुक़द्दस के पहरेदारों का कप्तान और सदूक़ी उनके पास पहुँचे। \v 2 वह नाराज़ थे कि रसूल ईसा के जी उठने की मुनादी करके लोगों को मुरदों में से जी उठने की तालीम दे रहे हैं। \v 3 उन्होंने उन्हें गिरिफ़्तार करके अगले दिन तक जेल में डाल दिया, क्योंकि शाम हो चुकी थी। \v 4 लेकिन जिन्होंने उनका पैग़ाम सुन लिया था उनमें से बहुत-से लोग ईमान लाए। यों ईमानदारों में मर्दों की तादाद बढ़कर तक़रीबन 5,000 तक पहुँच गई। \p \v 5 अगले दिन यरूशलम में यहूदी अदालते-आलिया के सरदारों, बुज़ुर्गों और शरीअत के उलमा का इजलास मुनअक़िद हुआ। \v 6 इमामे-आज़म हन्ना और इसी तरह कायफ़ा, यूहन्ना, सिकंदर और इमामे-आज़म के ख़ानदान के दीगर मर्द भी शामिल थे। \v 7 उन्होंने दोनों को अपने दरमियान खड़ा करके पूछा, “तुमने यह काम किस क़ुव्वत और नाम से किया?” \p \v 8 पतरस ने रूहुल-क़ुद्स से मामूर होकर उनसे कहा, “क़ौम के राहनुमाओ और बुज़ुर्गो, \v 9 आज हमारी पूछ-गछ की जा रही है कि हमने माज़ूर आदमी पर रहम का इज़हार किसके वसीले से किया कि उसे शफ़ा मिल गई है। \v 10 तो फिर आप सब और पूरी क़ौम इसराईल जान ले कि यह नासरत के ईसा मसीह के नाम से हुआ है, जिसे आपने मसलूब किया और जिसे अल्लाह ने मुरदों में से ज़िंदा कर दिया। यह आदमी उसी के वसीले से सेहत पाकर यहाँ आपके सामने खड़ा है। \v 11 ईसा वह पत्थर है जिसके बारे में कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, ‘जिस पत्थर को मकान बनानेवालों ने रद्द किया वह कोने का बुनियादी पत्थर बन गया।’ और आप ही ने उसे रद्द कर दिया है। \v 12 किसी दूसरे के वसीले से नजात हासिल नहीं होती, क्योंकि आसमान के तले हम इनसानों को कोई और नाम नहीं बख़्शा गया जिसके वसीले से हम नजात पा सकें।” \p \v 13 पतरस और यूहन्ना की बातें सुनकर लोग हैरान हुए क्योंकि वह दिलेरी से बात कर रहे थे अगरचे वह न तो आलिम थे, न उन्होंने शरीअत की ख़ास तालीम पाई थी। साथ साथ सुननेवालों ने यह भी जान लिया कि दोनों ईसा के साथी हैं। \v 14 लेकिन चूँकि वह अपनी आँखों से उस आदमी को देख रहे थे जो शफ़ा पाकर उनके साथ खड़ा था इसलिए वह इसके ख़िलाफ़ कोई बात न कर सके। \v 15 चुनाँचे उन्होंने उन दोनों को इजलास में से बाहर जाने को कहा और आपस में सलाह-मशवरा करने लगे, \v 16 “हम इन लोगों के साथ क्या सुलूक करें? बात वाज़िह है कि उनके ज़रीए एक इलाही निशान दिखाया गया है। इसका यरूशलम के तमाम बाशिंदों को इल्म हुआ है। हम इसका इनकार नहीं कर सकते। \v 17 लेकिन लाज़िम है कि उन्हें धमकी देकर हुक्म दें कि वह किसी भी शख़्स से यह नाम लेकर बात न करें, वरना यह मामला क़ौम में मज़ीद फैल जाएगा।” \p \v 18 चुनाँचे उन्होंने दोनों को बुलाकर हुक्म दिया कि वह आइंदा ईसा के नाम से न कभी बोलें और न तालीम दें। \p \v 19 लेकिन पतरस और यूहन्ना ने जवाब में कहा, “आप ख़ुद फ़ैसला कर लें, क्या यह अल्लाह के नज़दीक ठीक है कि हम उस की निसबत आपकी बात मानें? \v 20 मुमकिन ही नहीं कि जो कुछ हमने देख और सुन लिया है उसे दूसरों को सुनाने से बाज़ रहें।” \p \v 21 तब इजलास के मेंबरान ने दोनों को मज़ीद धमकियाँ देकर छोड़ दिया। वह फ़ैसला न कर सके कि क्या सज़ा दें, क्योंकि तमाम लोग पतरस और यूहन्ना के इस काम की वजह से अल्लाह की तमजीद कर रहे थे। \v 22 क्योंकि जिस आदमी को मोजिज़ाना तौर पर शफ़ा मिली थी वह चालीस साल से ज़्यादा लँगड़ा रहा था। \s1 दिलेरी के लिए दुआ \p \v 23 उनकी रिहाई के बाद पतरस और यूहन्ना अपने साथियों के पास वापस गए और सब कुछ सुनाया जो राहनुमा इमामों और बुज़ुर्गों ने उन्हें बताया था। \v 24 यह सुनकर तमाम ईमानदारों ने मिलकर ऊँची आवाज़ से दुआ की, “ऐ आक़ा, तूने आसमानो-ज़मीन और समुंदर को और जो कुछ उनमें है ख़लक़ किया है। \v 25 और तूने अपने ख़ादिम हमारे बाप दाऊद के मुँह से रूहुल-क़ुद्स की मारिफ़त कहा, \p ‘अक़वाम क्यों तैश में आ गई हैं? \p उम्मतें क्यों बेकार साज़िशें कर रही हैं? \p \v 26 दुनिया के बादशाह उठ खड़े हुए, \p हुक्मरान रब और उसके मसीह के ख़िलाफ़ जमा हो गए हैं।’ \p \v 27 और वाक़ई यही कुछ इस शहर में हुआ। हेरोदेस अंतिपास, पुंतियुस पीलातुस, ग़ैरयहूदी और यहूदी सब तेरे मुक़द्दस ख़ादिम ईसा के ख़िलाफ़ जमा हुए जिसे तूने मसह किया था। \v 28 लेकिन जो कुछ उन्होंने किया वह तूने अपनी क़ुदरत और मरज़ी से पहले ही से मुक़र्रर किया था। \v 29 ऐ रब, अब उनकी धमकियों पर ग़ौर कर। अपने ख़ादिमों को अपना कलाम सुनाने की बड़ी दिलेरी अता फ़रमा। \v 30 अपनी क़ुदरत का इज़हार कर ताकि हम तेरे मुक़द्दस ख़ादिम ईसा के नाम से शफ़ा, इलाही निशान और मोजिज़े दिखा सकें।” \p \v 31 दुआ के इख़्तिताम पर वह जगह हिल गई जहाँ वह जमा थे। सब रूहुल-क़ुद्स से मामूर हो गए और दिलेरी से अल्लाह का कलाम सुनाने लगे। \s1 ईमानदारों की मुश्तरका मिलकियत \p \v 32 ईमानदारों की पूरी जमात यकदिल थी। किसी ने भी अपनी मिलकियत की किसी चीज़ के बारे में नहीं कहा कि यह मेरी है बल्कि उनकी हर चीज़ मुश्तरका थी। \v 33 और रसूल बड़े इख़्तियार के साथ ख़ुदावंद ईसा के जी उठने की गवाही देते रहे। अल्लाह की बड़ी मेहरबानी उन सब पर थी। \v 34 उनमें से कोई भी ज़रूरतमंद नहीं था, क्योंकि जिसके पास भी ज़मीनें या मकान थे उसने उन्हें फ़रोख़्त करके रक़म \v 35 रसूलों के पाँवों में रख दी। यों जमाशुदा पैसों में से हर एक को उतने दिए जाते जितनों की उसे ज़रूरत होती थी। \p \v 36 मसलन यूसुफ़ नामी एक आदमी था जिसका नाम रसूलों ने बरनबास (हौसलाअफ़्ज़ाई का बेटा) रखा था। वह लावी क़बीले से और जज़ीराए-क़ुबरुस का रहनेवाला था। \v 37 उसने अपना एक खेत फ़रोख़्त करके पैसे रसूलों के पाँवों में रख दिए। \c 5 \s1 हननियाह और सफ़ीरा \p \v 1 एक और आदमी था जिसने अपनी बीवी के साथ मिलकर अपनी कोई ज़मीन बेच दी। उनके नाम हननियाह और सफ़ीरा थे। \v 2 लेकिन हननियाह पूरी रक़म रसूलों के पास न लाया बल्कि उसमें से कुछ अपने लिए रख छोड़ा और बाक़ी रसूलों के पाँवों में रख दिया। उस की बीवी भी इस बात से वाक़िफ़ थी। \v 3 लेकिन पतरस ने कहा, “हननियाह, इबलीस ने आपके दिल को यों क्यों भर दिया है कि आपने रूहुल-क़ुद्स से झूट बोला है? क्योंकि आपने ज़मीन की रक़म के कुछ पैसे अपने पास रख लिए हैं। \v 4 क्या यह ज़मीन फ़रोख़्त करने से पहले आपकी नहीं थी? और उसे बेचकर क्या आप पैसे जैसे चाहते इस्तेमाल नहीं कर सकते थे? आपने क्यों अपने दिल में यह ठान लिया? आपने हमें नहीं बल्कि अल्लाह को धोका दिया है।” \p \v 5 यह सुनते ही हननियाह फ़र्श पर गिरकर मर गया। और तमाम सुननेवालों पर बड़ी दहशत तारी हो गई। \v 6 जमात के नौजवानों ने उठकर लाश को कफ़न में लपेट दिया और उसे बाहर ले जाकर दफ़न कर दिया। \p \v 7 तक़रीबन तीन घंटे गुज़र गए तो उस की बीवी अंदर आई। उसे मालूम न था कि शौहर को क्या हुआ है। \p \v 8 पतरस ने उससे पूछा, “मुझे बताएँ, क्या आपको अपनी ज़मीन के लिए इतनी ही रक़म मिली थी?” \p सफ़ीरा ने जवाब दिया, “जी, इतनी ही रक़म थी।” \p \v 9 पतरस ने कहा, “क्यों आप दोनों रब के रूह को आज़माने पर मुत्तफ़िक़ हुए? देखो, जिन्होंने आपके ख़ाविंद को दफ़नाया है वह दरवाज़े पर खड़े हैं और आपको भी उठाकर बाहर ले जाएंगे।” \v 10 उसी लमहे सफ़ीरा पतरस के पाँवों में गिरकर मर गई। नौजवान अंदर आए तो उस की लाश देखकर उसे भी बाहर ले गए और उसके शौहर के पास दफ़न कर दिया। \v 11 पूरी जमात बल्कि हर सुननेवाले पर बड़ा ख़ौफ़ तारी हो गया। \s1 मोजिज़े \p \v 12 रसूलों की मारिफ़त अवाम में बहुत-से इलाही निशान और मोजिज़े ज़ाहिर हुए। उस वक़्त तमाम ईमानदार यकदिली से बैतुल-मुक़द्दस में सुलेमान के बरामदे में जमा हुआ करते थे। \v 13 बाक़ी लोग उनसे क़रीबी ताल्लुक़ रखने की जुर्रत नहीं करते थे, अगरचे अवाम उनकी बहुत इज़्ज़त करते थे। \v 14 तो भी ख़ुदावंद पर ईमान रखनेवाले मर्दो-ख़वातीन की तादाद बढ़ती गई। \v 15 लोग अपने मरीज़ों को चारपाइयों और चटाइयों पर रखकर सड़कों पर लाते थे ताकि जब पतरस वहाँ से गुज़रे तो कम अज़ कम उसका साया किसी न किसी पर पड़ जाए। \v 16 बहुत-से लोग यरूशलम के इर्दगिर्द की आबादियों से भी अपने मरीज़ों और बदरूह-गिरिफ़्ता अज़ीज़ों को लाते, और सब शफ़ा पाते थे। \s1 रसूलों की ईज़ारसानी \p \v 17 फिर इमामे-आज़म सदूक़ी फ़िरक़े के तमाम साथियों के साथ हरकत में आया। हसद से जलकर \v 18 उन्होंने रसूलों को गिरिफ़्तार करके अवामी जेल में डाल दिया। \v 19 लेकिन रात को रब का एक फ़रिश्ता क़ैदख़ाने के दरवाज़ों को खोलकर उन्हें बाहर लाया। उसने कहा, \v 20 “जाओ, बैतुल-मुक़द्दस में खड़े होकर लोगों को इस नई ज़िंदगी से मुताल्लिक़ सब बातें सुनाओ।” \v 21 फ़रिश्ते की सुनकर रसूल सुबह-सवेरे बैतुल-मुक़द्दस में जाकर तालीम देने लगे। \p अब ऐसा हुआ कि इमामे-आज़म अपने साथियों समेत पहुँचा और यहूदी अदालते-आलिया का इजलास मुनअक़िद किया। इसमें इसराईल के तमाम बुज़ुर्ग शरीक हुए। फिर उन्होंने अपने मुलाज़िमों को क़ैदख़ाने में भेज दिया ताकि रसूलों को लाकर उनके सामने पेश किया जाए। \v 22 लेकिन जब वह वहाँ पहुँचे तो पता चला कि रसूल जेल में नहीं हैं। वह वापस आए और कहने लगे, \v 23 “जब हम पहुँचे तो जेल बड़ी एहतियात से बंद थी और दरवाज़ों पर पहरेदार खड़े थे। लेकिन जब हम दरवाज़ों को खोलकर अंदर गए तो वहाँ कोई नहीं था!” \v 24 यह सुनकर बैतुल-मुक़द्दस के पहरेदारों का कप्तान और राहनुमा इमाम बड़ी उलझन में पड़ गए और सोचने लगे कि अब क्या होगा? \v 25 इतने में कोई आकर कहने लगा, “बात सुनें, जिन आदमियों को आपने जेल में डाला था वह बैतुल-मुक़द्दस में खड़े लोगों को तालीम दे रहे हैं।” \v 26 तब बैतुल-मुक़द्दस के पहरेदारों का कप्तान अपने मुलाज़िमों के साथ रसूलों के पास गया और उन्हें लाया, लेकिन ज़बरदस्ती नहीं, क्योंकि वह डरते थे कि जमाशुदा लोग उन्हें संगसार न कर दें। \p \v 27 चुनाँचे उन्होंने रसूलों को लाकर इजलास के सामने खड़ा किया। इमामे-आज़म उनसे मुख़ातिब हुआ, \v 28 “हमने तो तुमको सख़्ती से मना किया था कि इस आदमी का नाम लेकर तालीम न दो। इसके बरअक्स तुमने न सिर्फ़ अपनी तालीम यरूशलम की हर जगह तक पहुँचा दी है बल्कि हमें इस आदमी की मौत के ज़िम्मादार भी ठहराना चाहते हो।” \p \v 29 पतरस और बाक़ी रसूलों ने जवाब दिया, “लाज़िम है कि हम पहले अल्लाह की सुनें, फिर इनसान की। \v 30 हमारे बापदादा के ख़ुदा ने ईसा को ज़िंदा कर दिया, उसी शख़्स को जिसे आपने सलीब पर चढ़वाकर मार डाला था। \v 31 अल्लाह ने उसी को हुक्मरान और नजातदहिंदा की हैसियत से सरफ़राज़ करके अपने दहने हाथ बिठा लिया ताकि वह इसराईल को तौबा और गुनाहों की मुआफ़ी का मौक़ा फ़राहम करे। \v 32 हम ख़ुद इन बातों के गवाह हैं और रूहुल-क़ुद्स भी, जिसे अल्लाह ने अपने फ़रमाँबरदारों को दे दिया है।” \p \v 33 यह सुनकर अदालत के लोग तैश में आकर उन्हें क़त्ल करना चाहते थे। \v 34 लेकिन एक फ़रीसी आलिम इजलास में खड़ा हुआ जिसका नाम जमलियेल था। पूरी क़ौम में वह इज़्ज़तदार था। उसने हुक्म दिया कि रसूलों को थोड़ी देर के लिए इजलास से निकाल दिया जाए। \v 35 फिर उसने कहा, “मेरे इसराईली भाइयो, ग़ौर से सोचें कि आप इन आदमियों के साथ क्या करेंगे। \v 36 क्योंकि कुछ देर हुई थियूदास उठकर कहने लगा कि मैं कोई ख़ास शख़्स हूँ। तक़रीबन 400 आदमी उसके पीछे लग गए। लेकिन उसे क़त्ल किया गया और उसके पैरोकार बिखर गए। उनकी सरगरमियों से कुछ न हुआ। \v 37 इसके बाद मर्दुमशुमारी के दिनों में यहूदाह गलीली उठा। उसने भी काफ़ी लोगों को अपने पैरोकार बनाकर बग़ावत करने पर उकसाया। लेकिन उसे भी मार दिया गया और उसके पैरोकार मुंतशिर हुए। \v 38 यह पेशे-नज़र रखकर मेरा मशवरा यह है कि इन लोगों को छोड़ दें, इन्हें जाने दें। अगर इनका इरादा या सरगरमियाँ इनसानी हैं तो सब कुछ ख़ुद बख़ुद ख़त्म हो जाएगा। \v 39 लेकिन अगर यह अल्लाह की तरफ़ से है तो आप इन्हें ख़त्म नहीं कर सकेंगे। ऐसा न हो कि आख़िरकार आप अल्लाह ही के ख़िलाफ़ लड़ रहे हों।” \p हाज़िरीन ने उस की बात मान ली। \v 40 उन्होंने रसूलों को बुलाकर उनको कोड़े लगवाए। फिर उन्होंने उन्हें ईसा का नाम लेकर बोलने से मना किया और फिर जाने दिया। \v 41 रसूल यहूदी अदालते-आलिया से निकलकर चले गए। यह बात उनके लिए बड़ी ख़ुशी का बाइस थी कि अल्लाह ने हमें इस लायक़ समझा है कि ईसा के नाम की ख़ातिर बेइज़्ज़त हो जाएँ। \v 42 इसके बाद भी वह रोज़ाना बैतुल-मुक़द्दस और मुख़्तलिफ़ घरों में जा जाकर सिखाते और इस ख़ुशख़बरी की मुनादी करते रहे कि ईसा ही मसीह है। \c 6 \s1 रसूलों के सात मददगार \p \v 1 उन दिनों में जब ईसा के शागिर्दों की तादाद बढ़ती गई तो यूनानी ज़बान बोलनेवाले ईमानदार इबरानी बोलनेवाले ईमानदारों के बारे में बुड़बुड़ाने लगे। उन्होंने कहा, “जब रोज़मर्रा का खाना तक़सीम होता है तो हमारी बेवाओं को नज़रंदाज़ किया जाता है।” \v 2 तब बारह रसूलों ने शागिर्दों की पूरी जमात को इकट्ठा करके कहा, “यह ठीक नहीं कि हम अल्लाह का कलाम सिखाने की ख़िदमत को छोड़कर खाना तक़सीम करने में मसरूफ़ रहें। \v 3 भाइयो, यह बात पेशे-नज़र रखकर अपने में से सात आदमी चुन लें, जिनके नेक किरदार की आप तसदीक़ कर सकते हैं और जो रूहुल-क़ुद्स और हिकमत से मामूर हैं। फिर हम उन्हें खाना तक़सीम करने की यह ज़िम्मादारी देकर \v 4 अपना पूरा वक़्त दुआ और कलाम की ख़िदमत में सर्फ़ कर सकेंगे।” \p \v 5 यह बात पूरी जमात को पसंद आई और उन्होंने सात आदमी चुन लिए : स्तिफ़नुस (जो ईमान और रूहुल-क़ुद्स से मामूर था), फ़िलिप्पुस, प्रुख़ुरुस, नीकानोर, तीमोन, परमिनास और अंताकिया का नीकुलाउस। (नीकुलाओस ग़ैरयहूदी था जिसने ईसा पर ईमान लाने से पहले यहूदी मज़हब को अपना लिया था।) \v 6 इन सात आदमियों को रसूलों के सामने पेश किया गया तो उन्होंने इन पर हाथ रखकर दुआ की। \p \v 7 यों अल्लाह का पैग़ाम फैलता गया। यरूशलम में ईमानदारों की तादाद निहायत बढ़ती गई और बैतुल-मुक़द्दस के बहुत-से इमाम भी ईमान ले आए। \s1 स्तिफ़नुस की गिरिफ़्तारी \p \v 8 स्तिफ़नुस अल्लाह के फ़ज़ल और क़ुव्वत से मामूर था और लोगों के दरमियान बड़े बड़े मोजिज़े और इलाही निशान दिखाता था। \v 9 एक दिन कुछ यहूदी स्तिफ़नुस से बहस करने लगे। (वह कुरेन, इस्कंदरिया, किलिकिया और सूबा आसिया के रहनेवाले थे और उनके इबादतख़ाने का नाम लिबरतीनियोँ यानी आज़ाद किए गए ग़ुलामों का इबादतख़ाना था।) \v 10 लेकिन वह न उस की हिकमत का सामना कर सके, न उस रूह का जो कलाम करते वक़्त उस की मदद करता था। \v 11 इसलिए उन्होंने बाज़ आदमियों को यह कहने को उकसाया कि “इसने मूसा और अल्लाह के बारे में कुफ़र बका है। हम ख़ुद इसके गवाह हैं।” \v 12 यों आम लोगों, बुज़ुर्गों और शरीअत के उलमा में हलचल मच गई। वह स्तिफ़नुस पर चढ़ आए और उसे घसीटकर यहूदी अदालते-आलिया के पास लाए। \v 13 वहाँ उन्होंने झूटे गवाह खड़े किए जिन्होंने कहा, “यह आदमी बैतुल-मुक़द्दस और शरीअत के ख़िलाफ़ बातें करने से बाज़ नहीं आता। \v 14 हमने इसके मुँह से सुना है कि ईसा नासरी यह मक़ाम तबाह करेगा और वह रस्मो-रिवाज बदल देगा जो मूसा ने हमारे सुपुर्द किए हैं।” \v 15 जब इजलास में बैठे तमाम लोग घूर घूरकर स्तिफ़नुस की तरफ़ देखने लगे तो उसका चेहरा फ़रिश्ते का-सा नज़र आया। \c 7 \s1 स्तिफ़नुस की तक़रीर \p \v 1 इमामे-आज़म ने पूछा, “क्या यह सच है?” \p \v 2 स्तिफ़नुस ने जवाब दिया, “भाइयो और बुज़ुर्गो, मेरी बात सुनें। जलाल का ख़ुदा हमारे बाप इब्राहीम पर ज़ाहिर हुआ जब वह अभी मसोपुतामिया में आबाद था। उस वक़्त वह हारान में मुंतक़िल नहीं हुआ था। \v 3 अल्लाह ने उससे कहा, ‘अपने वतन और अपनी क़ौम को छोड़कर इस मुल्क में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा।’ \v 4 चुनाँचे वह कसदियों के मुल्क को छोड़कर हारान में रहने लगा। वहाँ उसका बाप फ़ौत हुआ तो अल्लाह ने उसे इस मुल्क में मुंतक़िल किया जिसमें आप आज तक आबाद हैं। \v 5 उस वक़्त अल्लाह ने उसे इस मुल्क में कोई भी मौरूसी ज़मीन न दी थी, एक मुरब्बा फ़ुट तक भी नहीं। लेकिन उसने उससे वादा किया, ‘मैं इस मुल्क को तेरे और तेरी औलाद के क़ब्ज़े में कर दूँगा,’ अगरचे उस वक़्त इब्राहीम के हाँ कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ था। \v 6 अल्लाह ने उसे यह भी बताया, ‘तेरी औलाद ऐसे मुल्क में रहेगी जो उसका नहीं होगा। वहाँ वह अजनबी और ग़ुलाम होगी, और उस पर 400 साल तक बहुत ज़ुल्म किया जाएगा। \v 7 लेकिन मैं उस क़ौम की अदालत करूँगा जिसने उसे ग़ुलाम बनाया होगा। इसके बाद वह उस मुल्क में से निकलकर इस मक़ाम पर मेरी इबादत करेंगे।’ \v 8 फिर अल्लाह ने इब्राहीम को ख़तना का अहद दिया। चुनाँचे जब इब्राहीम का बेटा इसहाक़ पैदा हुआ तो बाप ने आठवें दिन उसका ख़तना किया। यह सिलसिला जारी रहा जब इसहाक़ का बेटा याक़ूब पैदा हुआ और याक़ूब के बारह बेटे, हमारे बारह क़बीलों के सरदार। \p \v 9 यह सरदार अपने भाई यूसुफ़ से हसद करने लगे और इसलिए उसे बेच दिया। यों वह ग़ुलाम बनकर मिसर पहुँचा। लेकिन अल्लाह उसके साथ रहा \v 10 और उसे उस की तमाम मुसीबतों से रिहाई दी। उसने उसे दानाई अता करके इस क़ाबिल बना दिया कि वह मिसर के बादशाह फ़िरौन का मंज़ूरे-नज़र हो जाए। यों फ़िरौन ने उसे मिसर और अपने पूरे घराने पर हुक्मरान मुक़र्रर किया। \v 11 फिर तमाम मिसर और कनान में काल पड़ा। लोग बड़ी मुसीबत में पड़ गए और हमारे बापदादा के पास भी ख़ुराक ख़त्म हो गई। \v 12 याक़ूब को पता चला कि मिसर में अब तक अनाज है, इसलिए उसने अपने बेटों को अनाज ख़रीदने को वहाँ भेज दिया। \v 13 जब उन्हें दूसरी बार वहाँ जाना पड़ा तो यूसुफ़ ने अपने आपको अपने भाइयों पर ज़ाहिर किया, और फ़िरौन को यूसुफ़ के ख़ानदान के बारे में आगाह किया गया। \v 14 इसके बाद यूसुफ़ ने अपने बाप याक़ूब और तमाम रिश्तेदारों को बुला लिया। कुल 75 अफ़राद आए। \v 15 यों याक़ूब मिसर पहुँचा। वहाँ वह और हमारे बापदादा मर गए। \v 16 उन्हें सिकम में लाकर उस क़ब्र में दफ़नाया गया जो इब्राहीम ने हमोर की औलाद से पैसे देकर ख़रीदी थी। \p \v 17 फिर वह वक़्त क़रीब आ गया जिसका वादा अल्लाह ने इब्राहीम से किया था। मिसर में हमारी क़ौम की तादाद बहुत बढ़ चुकी थी। \v 18 लेकिन होते होते एक नया बादशाह तख़्तनशीन हुआ जो यूसुफ़ से नावाक़िफ़ था। \v 19 उसने हमारी क़ौम का इस्तेह्साल करके उनसे बदसुलूकी की और उन्हें अपने शीरख़ार बच्चों को ज़ाया करने पर मजबूर किया। \v 20 उस वक़्त मूसा पैदा हुआ। वह अल्लाह के नज़दीक ख़ूबसूरत बच्चा था और तीन माह तक अपने बाप के घर में पाला गया। \v 21 इसके बाद वालिदैन को उसे छोड़ना पड़ा, लेकिन फ़िरौन की बेटी ने उसे लेपालक बनाकर अपने बेटे के तौर पर पाला। \v 22 और मूसा को मिसरियों की हिकमत के हर शोबे में तरबियत मिली। उसे बोलने और अमल करने की ज़बरदस्त क़ाबिलियत हासिल थी। \p \v 23 जब वह चालीस साल का था तो उसे अपनी क़ौम इसराईल के लोगों से मिलने का ख़याल आया। \v 24 जब उसने उनके पास जाकर देखा कि एक मिसरी किसी इसराईली पर तशद्दुद कर रहा है तो उसने इसराईली की हिमायत करके मज़लूम का बदला लिया और मिसरी को मार डाला। \v 25 उसका ख़याल तो यह था कि मेरे भाइयों को समझ आएगी कि अल्लाह मेरे वसीले से उन्हें रिहाई देगा, लेकिन ऐसा नहीं था। \v 26 अगले दिन वह दो इसराईलियों के पास से गुज़रा जो आपस में लड़ रहे थे। उसने सुलह कराने की कोशिश में कहा, ‘मर्दो, आप तो भाई हैं। आप क्यों एक दूसरे से ग़लत सुलूक कर रहे हैं?’ \v 27 लेकिन जो आदमी दूसरे से बदसुलूकी कर रहा था उसने मूसा को एक तरफ़ धकेलकर कहा, ‘किसने आपको हम पर हुक्मरान और क़ाज़ी मुक़र्रर किया है? \v 28 क्या आप मुझे भी क़त्ल करना चाहते हैं जिस तरह कल मिसरी को मार डाला था?’ \v 29 यह सुनकर मूसा फ़रार होकर मुल्के-मिदियान में अजनबी के तौर पर रहने लगा। वहाँ उसके दो बेटे पैदा हुए। \p \v 30 चालीस साल के बाद एक फ़रिश्ता जलती हुई काँटेदार झाड़ी के शोले में उस पर ज़ाहिर हुआ। उस वक़्त मूसा सीना पहाड़ के क़रीब रेगिस्तान में था। \v 31 यह मंज़र देखकर मूसा हैरान हुआ। जब वह उसका मुआयना करने के लिए क़रीब पहुँचा तो रब की आवाज़ सुनाई दी, \v 32 ‘मैं तेरे बापदादा का ख़ुदा, इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब का ख़ुदा हूँ।’ मूसा थरथराने लगा और उस तरफ़ देखने की जुर्रत न की। \v 33 फिर रब ने उससे कहा, ‘अपनी जूतियाँ उतार, क्योंकि तू मुक़द्दस ज़मीन पर खड़ा है। \v 34 मैंने मिसर में अपनी क़ौम की बुरी हालत देखी और उनकी आहें सुनी हैं, इसलिए उन्हें बचाने के लिए उतर आया हूँ। अब जा, मैं तुझे मिसर भेजता हूँ।’ \p \v 35 यों अल्लाह ने उस शख़्स को उनके पास भेज दिया जिसे वह यह कहकर रद्द कर चुके थे कि ‘किसने आपको हम पर हुक्मरान और क़ाज़ी मुक़र्रर किया है?’ जलती हुई काँटेदार झाड़ी में मौजूद फ़रिश्ते की मारिफ़त अल्लाह ने मूसा को उनके पास भेज दिया ताकि वह उनका हुक्मरान और नजातदहिंदा बन जाए। \v 36 और वह मोजिज़े और इलाही निशान दिखाकर उन्हें मिसर से निकाल लाया, फिर बहरे-क़ुलज़ुम से गुज़रकर 40 साल के दौरान रेगिस्तान में उनकी राहनुमाई की। \v 37 मूसा ने ख़ुद इसराईलियों को बताया, ‘अल्लाह तुम्हारे वास्ते तुम्हारे भाइयों में से मुझ जैसे नबी को बरपा करेगा।’ \v 38 मूसा रेगिस्तान में क़ौम की जमात में शरीक था। एक तरफ़ वह उस फ़रिश्ते के साथ था जो सीना पहाड़ पर उससे बातें करता था, दूसरी तरफ़ हमारे बापदादा के साथ। फ़रिश्ते से उसे ज़िंदगीबख़्श बातें मिल गईं जो उसे हमारे सुपुर्द करनी थीं। \p \v 39 लेकिन हमारे बापदादा ने उस की सुनने से इनकार करके उसे रद्द कर दिया। दिल ही दिल में वह मिसर की तरफ़ रुजू कर चुके थे। \v 40 वह हारून से कहने लगे, ‘आएँ, हमारे लिए देवता बना दें जो हमारे आगे आगे चलते हुए हमारी राहनुमाई करें। क्योंकि क्या मालूम कि उस बंदे मूसा को क्या हुआ है जो हमें मिसर से निकाल लाया।’ \v 41 उसी वक़्त उन्होंने बछड़े का बुत बनाकर उसे क़ुरबानियाँ पेश कीं और अपने हाथों के काम की ख़ुशी मनाई। \v 42 इस पर अल्लाह ने अपना मुँह फेर लिया और उन्हें सितारों की पूजा की गिरिफ़्त में छोड़ दिया, बिलकुल उसी तरह जिस तरह नबियों के सहीफ़े में लिखा है, \p ‘ऐ इसराईल के घराने, \p जब तुम रेगिस्तान में घुमते-फिरते थे \p तो क्या तुमने उन 40 सालों के दौरान \p कभी मुझे ज़बह और ग़ल्ला की क़ुरबानियाँ पेश कीं? \p \v 43 नहीं, उस वक़्त भी तुम मलिक देवता का ताबूत \p और रिफ़ान देवता का सितारा उठाए फिरते थे, \p गो तुमने अपने हाथों से यह बुत \p पूजा करने के लिए बना लिए थे। \p इसलिए मैं तुम्हें जिलावतन करके \p बाबल के पार बसा दूँगा।’ \p \v 44 रेगिस्तान में हमारे बापदादा के पास मुलाक़ात का ख़ैमा था। उसे उस नमूने के मुताबिक़ बनाया गया था जो अल्लाह ने मूसा को दिखाया था। \v 45 मूसा की मौत के बाद हमारे बापदादा ने उसे विरसे में पाकर अपने साथ ले लिया जब उन्होंने यशुअ की राहनुमाई में इस मुल्क में दाख़िल होकर उस पर क़ब्ज़ा कर लिया। उस वक़्त अल्लाह उसमें आबाद क़ौमों को उनके आगे आगे निकालता गया। यों मुलाक़ात का ख़ैमा दाऊद बादशाह के ज़माने तक मुल्क में रहा। \v 46 दाऊद अल्लाह का मंज़ूरे-नज़र था। उसने याक़ूब के ख़ुदा को एक सुकूनतगाह मुहैया करने की इजाज़त माँगी। \v 47 लेकिन सुलेमान को उसके लिए मकान बनाने का एज़ाज़ हासिल हुआ। \p \v 48 हक़ीक़त में अल्लाह तआला इनसान के हाथ के बनाए हुए मकानों में नहीं रहता। नबी रब का फ़रमान यों बयान करता है, \p \v 49 ‘आसमान मेरा तख़्त है \p और ज़मीन मेरे पाँवों की चौकी, \p तो फिर तुम मेरे लिए किस क़िस्म का घर बनाओगे? \p वह जगह कहाँ है जहाँ मैं आराम करूँगा? \p \v 50 क्या मेरे हाथ ने यह सब कुछ नहीं बनाया?’ \p \v 51 ऐ गरदनकश लोगो! बेशक आपका ख़तना हुआ है जो अल्लाह की क़ौम का ज़ाहिरी निशान है। लेकिन उसका आपके दिलों और कानों पर कुछ भी असर नहीं हुआ। आप अपने बापदादा की तरह हमेशा रूहुल-क़ुद्स की मुख़ालफ़त करते रहते हैं। \v 52 क्या कभी कोई नबी था जिसे आपके बापदादा ने न सताया? उन्होंने उन्हें भी क़त्ल किया जिन्होंने रास्तबाज़ मसीह की पेशगोई की, उस शख़्स की जिसे आपने दुश्मनों के हवाले करके मार डाला। \v 53 आप ही को फ़रिश्तों के हाथ से अल्लाह की शरीअत हासिल हुई मगर उस पर अमल नहीं किया।” \s1 स्तिफ़नुस को संगसार किया जाता है \p \v 54 स्तिफ़नुस की यह बातें सुनकर इजलास के लोग तैश में आकर दाँत पीसने लगे। \v 55 लेकिन स्तिफ़नुस रूहुल-क़ुद्स से मामूर अपनी नज़र उठाकर आसमान की तरफ़ तकने लगा। वहाँ उसे अल्लाह का जलाल नज़र आया, और ईसा अल्लाह के दहने हाथ खड़ा था। \v 56 उसने कहा, “देखो, मुझे आसमान खुला हुआ दिखाई दे रहा है और इब्ने-आदम अल्लाह के दहने हाथ खड़ा है!” \p \v 57 यह सुनते ही उन्होंने चीख़ चीख़कर हाथों से अपने कानों को बंद कर लिया और मिलकर उस पर झपट पड़े। \v 58 फिर वह उसे शहर से निकालकर संगसार करने लगे। और जिन लोगों ने उसके ख़िलाफ़ गवाही दी थी उन्होंने अपनी चादरें उतारकर एक जवान आदमी के पाँवों में रख दीं। उस आदमी का नाम साऊल था। \v 59 जब वह स्तिफ़नुस को संगसार कर रहे थे तो उसने दुआ करके कहा, “ऐ ख़ुदावंद ईसा, मेरी रूह को क़बूल कर।” \v 60 फिर घुटने टेककर उसने ऊँची आवाज़ से कहा, “ऐ ख़ुदावंद, उन्हें इस गुनाह के ज़िम्मादार न ठहरा।” यह कहकर वह इंतक़ाल कर गया। \c 8 \p \v 1 और साऊल को भी स्तिफ़नुस का क़त्ल मंज़ूर था। \s1 साऊल जमात को सताता है \p उस दिन यरूशलम में मौजूद जमात सख़्त ईज़ारसानी की ज़द में आ गई। इसलिए सिवाए रसूलों के तमाम ईमानदार यहूदिया और सामरिया के इलाक़ों में तित्तर-बित्तर हो गए। \v 2 कुछ ख़ुदातरस आदमियों ने स्तिफ़नुस को दफ़न करके रो रोकर उसका मातम किया। \p \v 3 लेकिन साऊल ईसा की जमात को तबाह करने पर तुला हुआ था। उसने घर घर जाकर ईमानदार मर्दो-ख़वातीन को निकाल दिया और उन्हें घसीटकर क़ैदख़ाने में डलवा दिया। \s1 ख़ुशख़बरी सामरिया में फैल जाती है \p \v 4 जो ईमानदार बिखर गए थे वह जगह जगह जाकर अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाते फिरे। \v 5 इस तरह फ़िलिप्पुस सामरिया के किसी शहर को गया और वहाँ के लोगों को मसीह के बारे में बताया। \v 6 जो कुछ भी फ़िलिप्पुस ने कहा और जो भी इलाही निशान उसने दिखाए, उस पर सुननेवाले हुजूम ने यकदिल होकर तवज्जुह दी। \v 7 बहुत-से लोगों में से बदरूहें ज़ोरदार चीख़ें मार मारकर निकल गईं, और बहुत-से मफ़लूजों और लँगड़ों को शफ़ा मिल गई। \v 8 यों उस शहर में बड़ी शादमानी फैल गई। \p \v 9 वहाँ काफ़ी अरसे से एक आदमी रहता था जिसका नाम शमौन था। वह जादूगर था और उसके हैरतअंगेज़ काम से सामरिया के लोग बहुत मुतअस्सिर थे। उसका अपना दावा था कि मैं कोई ख़ास शख़्स हूँ। \v 10 इसलिए सब लोग छोटे से लेकर बड़े तक उस पर ख़ास तवज्जुह देते थे। उनका कहना था, ‘यह आदमी वह इलाही क़ुव्वत है जो अज़ीम कहलाती है।’ \v 11 वह इसलिए उसके पीछे लग गए थे कि उसने उन्हें बड़ी देर से अपने हैरतअंगेज़ कामों से मुतअस्सिर कर रखा था। \v 12 लेकिन अब लोग फ़िलिप्पुस की अल्लाह की बादशाही और ईसा के नाम के बारे में ख़ुशख़बरी पर ईमान ले आए, और मर्दो-ख़वातीन ने बपतिस्मा लिया। \v 13 ख़ुद शमौन ने भी ईमान लाकर बपतिस्मा लिया और फ़िलिप्पुस के साथ रहा। जब उसने वह बड़े इलाही निशान और मोजिज़े देखे जो फ़िलिप्पुस के हाथ से ज़ाहिर हुए तो वह हक्का-बक्का रह गया। \p \v 14 जब यरूशलम में रसूलों ने सुना कि सामरिया ने अल्लाह का कलाम क़बूल कर लिया है तो उन्होंने पतरस और यूहन्ना को उनके पास भेज दिया। \v 15 वहाँ पहुँचकर उन्होंने उनके लिए दुआ की कि उन्हें रूहुल-क़ुद्स मिल जाए, \v 16 क्योंकि अभी रूहुल-क़ुद्स उन पर नाज़िल नहीं हुआ था बल्कि उन्हें सिर्फ़ ख़ुदावंद ईसा के नाम में बपतिस्मा दिया गया था। \v 17 अब जब पतरस और यूहन्ना ने अपने हाथ उन पर रखे तो उन्हें रूहुल-क़ुद्स मिल गया। \p \v 18 शमौन ने देखा कि जब रसूल लोगों पर हाथ रखते हैं तो उनको रूहुल-क़ुद्स मिलता है। इसलिए उसने उन्हें पैसे पेश करके \v 19 कहा, “मुझे भी यह इख़्तियार दे दें कि जिस पर मैं हाथ रखूँ उसे रूहुल-क़ुद्स मिल जाए।” \p \v 20 लेकिन पतरस ने जवाब दिया, “आपके पैसे आपके साथ ग़ारत हो जाएँ, क्योंकि आपने सोचा कि अल्लाह की नेमत पैसों से ख़रीदी जा सकती है। \v 21 इस ख़िदमत में आपका कोई हिस्सा नहीं है, क्योंकि आपका दिल अल्लाह के सामने ख़ालिस नहीं है। \v 22 अपनी इस शरारत से तौबा करके ख़ुदावंद से दुआ करें। शायद वह आपको इस इरादे की मुआफ़ी दे जो आपने दिल में रखा है। \v 23 क्योंकि मैं देखता हूँ कि आप कड़वे पित से भरे और नारास्ती के बंधन में जकड़े हुए हैं।” \p \v 24 शमौन ने कहा, “फिर ख़ुदावंद से मेरे लिए दुआ करें कि आपकी मज़कूरा मुसीबतों में से मुझ पर कोई न आए।” \p \v 25 ख़ुदावंद के कलाम की गवाही देने और उस की मुनादी करने के बाद पतरस और यूहन्ना वापस यरूशलम के लिए रवाना हुए। रास्ते में उन्होंने सामरिया के बहुत-से देहातों में अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाई। \s1 फ़िलिप्पुस और एथोपिया का अफ़सर \p \v 26 एक दिन रब के फ़रिश्ते ने फ़िलिप्पुस से कहा, “उठकर जुनूब की तरफ़ उस राह पर जा जो रेगिस्तान में से गुज़रकर यरूशलम से ग़ज़्ज़ा को जाती है।” \v 27 फ़िलिप्पुस उठकर रवाना हुआ। चलते चलते उस की मुलाक़ात एथोपिया की मलिका कंदाके के एक ख़्वाजासरा से हुई। मलिका के पूरे ख़ज़ाने पर मुक़र्रर यह दरबारी इबादत करने के लिए यरूशलम गया था \v 28 और अब अपने मुल्क में वापस जा रहा था। उस वक़्त वह रथ में सवार यसायाह नबी की किताब की तिलावत कर रहा था। \v 29 रूहुल-क़ुद्स ने फ़िलिप्पुस से कहा, “उसके पास जाकर रथ के साथ हो ले।” \v 30 फ़िलिप्पुस दौड़कर रथ के पास पहुँचा तो सुना कि वह यसायाह नबी की किताब की तिलावत कर रहा है। उसने पूछा, “क्या आपको उस सबकी समझ आती है जो आप पढ़ रहे हैं?” \p \v 31 दरबारी ने जवाब दिया, “मैं क्योंकर समझूँ जब तक कोई मेरी राहनुमाई न करे?” और उसने फ़िलिप्पुस को रथ में सवार होने की दावत दी। \v 32 कलामे-मुक़द्दस का जो हवाला वह पढ़ रहा था यह था, \p ‘उसे भेड़ की तरह ज़बह करने के लिए ले गए। \p जिस तरह लेला बाल कतरनेवाले के सामने ख़ामोश रहता है, \p उसी तरह उसने अपना मुँह न खोला। \p \v 33 उस की तज़लील की गई और उसे इनसाफ़ न मिला। \p कौन उस की नसल बयान कर सकता है? \p क्योंकि उस की जान दुनिया से छीन ली गई।’ \p \v 34 दरबारी ने फ़िलिप्पुस से पूछा, “मेहरबानी करके मुझे बता दीजिए कि नबी यहाँ किसका ज़िक्र कर रहा है, अपना या किसी और का?” \v 35 जवाब में फ़िलिप्पुस ने कलामे-मुक़द्दस के इसी हवाले से शुरू करके उसे ईसा के बारे में ख़ुशख़बरी सुनाई। \v 36 सड़क पर सफ़र करते करते वह एक जगह से गुज़रे जहाँ पानी था। ख़्वाजासरा ने कहा, “देखें, यहाँ पानी है। अब मुझे बपतिस्मा लेने से कौन-सी चीज़ रोक सकती है?” \v 37 [फ़िलिप्पुस ने कहा, “अगर आप पूरे दिल से ईमान लाएँ तो ले सकते हैं।” उसने जवाब दिया, “मैं ईमान रखता हूँ कि ईसा मसीह अल्लाह का फ़रज़ंद है।”] \p \v 38 उसने रथ को रोकने का हुक्म दिया। दोनों पानी में उतर गए और फ़िलिप्पुस ने उसे बपतिस्मा दिया। \v 39 जब वह पानी से निकल आए तो ख़ुदावंद का रूह फ़िलिप्पुस को उठा ले गया। इसके बाद ख़्वाजासरा ने उसे फिर कभी न देखा, लेकिन उसने ख़ुशी मनाते हुए अपना सफ़र जारी रखा। \v 40 इतने में फ़िलिप्पुस को अशदूद शहर में पाया गया। वह वहाँ और क़ैसरिया तक के तमाम शहरों में से गुज़रकर अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाता गया। \c 9 \s1 पौलुस की तबदीली \p \v 1 अब तक साऊल ख़ुदावंद के शागिर्दों को धमकाने और क़त्ल करने के दरपै था। उसने इमामे-आज़म के पास जाकर \v 2 उससे गुज़ारिश की कि “मुझे दमिश्क़ में यहूदी इबादतख़ानों के लिए सिफ़ारिशी ख़त लिखकर दें ताकि वह मेरे साथ तावुन करें। क्योंकि मैं वहाँ मसीह की राह पर चलनेवालों को ख़ाह वह मर्द हों या ख़वातीन ढूँडकर और बाँधकर यरूशलम लाना चाहता हूँ।” \p \v 3 वह इस मक़सद से सफ़र करके दमिश्क़ के क़रीब पहुँचा ही था कि अचानक आसमान की तरफ़ से एक तेज़ रौशनी उसके गिर्द चमकी। \v 4 वह ज़मीन पर गिर पड़ा तो एक आवाज़ सुनाई दी, “साऊल, साऊल, तू मुझे क्यों सताता है?” \p \v 5 उसने पूछा, “ख़ुदावंद, आप कौन हैं?” \p आवाज़ ने जवाब दिया, “मैं ईसा हूँ जिसे तू सताता है। \v 6 अब उठकर शहर में जा। वहाँ तुझे बताया जाएगा कि तुझे क्या करना है।” \p \v 7 साऊल के पास खड़े हमसफ़र दम बख़ुद रह गए। आवाज़ तो वह सुन रहे थे, लेकिन उन्हें कोई नज़र न आया। \v 8 साऊल ज़मीन पर से उठा, लेकिन जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो मालूम हुआ कि वह अंधा है। चुनाँचे उसके साथी उसका हाथ पकड़कर उसे दमिश्क़ ले गए। \v 9 वहाँ तीन दिन के दौरान वह अंधा रहा। इतने में उसने न कुछ खाया, न पिया। \p \v 10 उस वक़्त दमिश्क़ में ईसा का एक शागिर्द रहता था जिसका नाम हननियाह था। अब ख़ुदावंद रोया में उससे हमकलाम हुआ, “हननियाह!” \p उसने जवाब दिया, “जी ख़ुदावंद, मैं हाज़िर हूँ।” \p \v 11 ख़ुदावंद ने फ़रमाया, “उठ, उस गली में जा जो ‘सीधी’ कहलाती है। वहाँ यहूदाह के घर में तरसुस के एक आदमी का पता करना जिसका नाम साऊल है। क्योंकि देख, वह दुआ कर रहा है। \v 12 और रोया में उसने देख लिया है कि एक आदमी बनाम हननियाह मेरे पास आकर अपने हाथ मुझ पर रखेगा। इससे मेरी आँखें बहाल हो जाएँगी।” \p \v 13 हननियाह ने एतराज़ किया, “ऐ ख़ुदावंद, मैंने बहुत-से लोगों से उस शख़्स की शरीर हरकतों के बारे में सुना है। यरूशलम में उसने तेरे मुक़द्दसों के साथ बहुत ज़्यादती की है। \v 14 अब उसे राहनुमा इमामों से इख़्तियार मिल गया है कि यहाँ भी हर एक को गिरिफ़्तार करे जो तेरी इबादत करता है।” \p \v 15 लेकिन ख़ुदावंद ने कहा, “जा, यह आदमी मेरा चुना हुआ वसीला है जो मेरा नाम ग़ैरयहूदियों, बादशाहों और इसराईलियों तक पहुँचाएगा। \v 16 और मैं उसे दिखा दूँगा कि उसे मेरे नाम की ख़ातिर कितना दुख उठाना पड़ेगा।” \p \v 17 चुनाँचे हननियाह मज़कूरा घर के पास गया, उसमें दाख़िल हुआ और अपने हाथ साऊल पर रख दिए। उसने कहा, “साऊल भाई, ख़ुदावंद ईसा जो आप पर ज़ाहिर हुआ जब आप यहाँ आ रहे थे उसी ने मुझे भेजा है ताकि आप दुबारा देख पाएँ और रूहुल-क़ुद्स से मामूर हो जाएँ।” \v 18 यह कहते ही छिलकों जैसी कोई चीज़ साऊल की आँखों पर से गिरी और वह दुबारा देखने लगा। उसने उठकर बपतिस्मा लिया, \v 19 फिर कुछ खाना खाकर नए सिरे से तक़वियत पाई। \s1 साऊल दमिश्क़ में अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाता है \p साऊल कई दिन शागिर्दों के साथ दमिश्क़ में रहा। \v 20 उसी वक़्त वह सीधा यहूदी इबादतख़ानों में जाकर एलान करने लगा कि ईसा अल्लाह का फ़रज़ंद है। \p \v 21 और जिसने भी उसे सुना वह हैरान रह गया और पूछा, “क्या यह वह आदमी नहीं जो यरूशलम में ईसा की इबादत करनेवालों को हलाक कर रहा था? और क्या वह इस मक़सद से यहाँ नहीं आया कि ऐसे लोगों को बाँधकर राहनुमा इमामों के पास ले जाए?” \p \v 22 लेकिन साऊल रोज़ बरोज़ ज़ोर पकड़ता गया, और चूँकि उसने साबित किया कि ईसा वादा किया हुआ मसीह है इसलिए दमिश्क़ में आबाद यहूदी उलझन में पड़ गए। \p \v 23 चुनाँचे काफ़ी दिनों के बाद उन्होंने मिलकर उसे क़त्ल करने का मनसूबा बनाया। \v 24 लेकिन साऊल को पता चल गया। यहूदी दिन-रात शहर के दरवाज़ों की पहरादारी करते रहे ताकि उसे क़त्ल करें, \v 25 इसलिए उसके शागिर्दों ने उसे रात के वक़्त टोकरे में बिठाकर शहर की चारदीवारी के एक सूराख़ में से उतार दिया। \s1 साऊल यरूशलम में \p \v 26 साऊल यरूशलम वापस चला गया। वहाँ उसने शागिर्दों से राबिता करने की कोशिश की, लेकिन सब उससे डरते थे, क्योंकि उन्हें यक़ीन नहीं आया था कि वह वाक़ई ईसा का शागिर्द बन गया है। \v 27 फिर बरनबास उसे रसूलों के पास ले आया। उसने उन्हें साऊल के बारे में सब कुछ बताया, कि उसने दमिश्क़ की तरफ़ सफ़र करते वक़्त रास्ते में ख़ुदावंद को देखा, कि ख़ुदावंद उससे हमकलाम हुआ था और उसने दमिश्क़ में दिलेरी से ईसा के नाम से बात की थी। \v 28 चुनाँचे साऊल उनके साथ रहकर आज़ादी से यरूशलम में फिरने और दिलेरी से ख़ुदावंद ईसा के नाम से कलाम करने लगा। \v 29 उसने यूनानी ज़बान बोलनेवाले यहूदियों से भी मुख़ातिब होकर बहस की, लेकिन जवाब में वह उसे क़त्ल करने की कोशिश करने लगे। \v 30 जब भाइयों को मालूम हुआ तो उन्होंने उसे क़ैसरिया पहुँचा दिया और जहाज़ में बिठाकर तरसुस के लिए रवाना कर दिया। \p \v 31 इस पर यहूदिया, गलील और सामरिया के पूरे इलाक़े में फैली हुई जमात को अमनो-अमान हासिल हुआ। रूहुल-क़ुद्स की हिमायत से उस की तामीरो-तक़वियत हुई, वह ख़ुदा का ख़ौफ़ मानकर चलती रही और तादाद में भी बढ़ती गई। \s1 पतरस लुद्दा और याफ़ा में \p \v 32 एक दिन जब पतरस जगह जगह सफ़र कर रहा था तो वह लुद्दा में आबाद मुक़द्दसों के पास भी आया। \v 33 वहाँ उस की मुलाक़ात एक आदमी बनाम ऐनियास से हुई। ऐनियास मफ़लूज था। वह आठ साल से बिस्तर से उठ न सका था। \v 34 पतरस ने उससे कहा, “ऐनियास, ईसा मसीह आपको शफ़ा देता है। उठकर अपना बिस्तर समेट लें।” ऐनियास फ़ौरन उठ खड़ा हुआ। \v 35 जब लुद्दा और मैदानी इलाक़े शारून के तमाम रहनेवालों ने उसे देखा तो उन्होंने ख़ुदावंद की तरफ़ रुजू किया। \p \v 36 याफ़ा में एक औरत थी जो शागिर्द थी और नेक काम करने और ख़ैरात देने में बहुत आगे थी। उसका नाम तबीता (ग़ज़ाला) था। \v 37 उन्हीं दिनों में वह बीमार होकर फ़ौत हो गई। लोगों ने उसे ग़ुस्ल देकर बालाख़ाने में रख दिया। \v 38 लुद्दा याफ़ा के क़रीब है, इसलिए जब शागिर्दों ने सुना कि पतरस लुद्दा में है तो उन्होंने उसके पास दो आदमियों को भेजकर इलतमास की, “सीधे हमारे पास आएँ और देर न करें।” \v 39 पतरस उठकर उनके साथ चला गया। वहाँ पहुँचकर लोग उसे बालाख़ाने में ले गए। तमाम बेवाओं ने उसे घेर लिया और रोते चिल्लाते वह सारी क़मीसें और बाक़ी लिबास दिखाने लगीं जो तबीता ने उनके लिए बनाए थे जब वह अभी ज़िंदा थी। \v 40 लेकिन पतरस ने उन सबको कमरे से निकाल दिया और घुटने टेककर दुआ की। फिर लाश की तरफ़ मुड़कर उसने कहा, “तबीता, उठें!” औरत ने अपनी आँखें खोल दीं। पतरस को देखकर वह बैठ गई। \v 41 पतरस ने उसका हाथ पकड़ लिया और उठने में उस की मदद की। फिर उसने मुक़द्दसों और बेवाओं को बुलाकर तबीता को ज़िंदा उनके सुपुर्द किया। \v 42 यह वाक़िया पूरे याफ़ा में मशहूर हुआ, और बहुत-से लोग ख़ुदावंद ईसा पर ईमान लाए। \v 43 पतरस काफ़ी दिनों तक याफ़ा में रहा। वहाँ वह चमड़ा रंगनेवाले एक आदमी के घर ठहरा जिसका नाम शमौन था। \c 10 \s1 पतरस और कुरनेलियुस \p \v 1 क़ैसरिया में एक रोमी अफ़सर \f + \fr 10:1 \ft सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़सर। \f* रहता था जिसका नाम कुरनेलियुस था। वह उस पलटन के सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर था जो इतालवी कहलाती थी। \v 2 कुरनेलियुस अपने पूरे घराने समेत दीनदार और ख़ुदातरस था। वह फ़ैयाज़ी से ख़ैरात देता और मुतवातिर दुआ में लगा रहता था। \v 3 एक दिन उसने तीन बजे दोपहर के वक़्त रोया देखी। उसमें उसने साफ़ तौर पर अल्लाह का एक फ़रिश्ता देखा जो उसके पास आया और कहा, “कुरनेलियुस!” \p \v 4 वह घबरा गया और उसे ग़ौर से देखते हुए कहा, “मेरे आक़ा, फ़रमाएँ।” \p फ़रिश्ते ने कहा, “तुम्हारी दुआओं और ख़ैरात की क़ुरबानी अल्लाह के हुज़ूर पहुँच गई है और मंज़ूर है। \v 5 अब कुछ आदमी याफ़ा भेज दो। वहाँ एक आदमी बनाम शमौन है जो पतरस कहलाता है। उसे बुलाकर ले आओ। \v 6 पतरस एक चमड़ा रंगनेवाले का मेहमान है जिसका नाम शमौन है। उसका घर समुंदर के क़रीब वाक़े है।” \p \v 7 ज्योंही फ़रिश्ता चला गया कुरनेलियुस ने दो नौकरों और अपने ख़िदमतगार फ़ौजियों में से एक ख़ुदातरस आदमी को बुलाया। \v 8 सब कुछ सुनाकर उसने उन्हें याफ़ा भेज दिया। \p \v 9 अगले दिन पतरस दोपहर तक़रीबन बारह बजे दुआ करने के लिए छत पर चढ़ गया। उस वक़्त कुरनेलियुस के भेजे हुए आदमी याफ़ा शहर के क़रीब पहुँच गए थे। \v 10 पतरस को भूक लगी और वह कुछ खाना चाहता था। जब उसके लिए खाना तैयार किया जा रहा था तो वह वज्द की हालत में आ गया। \v 11 उसने देखा कि आसमान खुल गया है और एक चीज़ ज़मीन पर उतर रही है, कतान की बड़ी चादर जैसी जो अपने चार कोनों से नीचे उतारी जा रही है। \v 12 चादर में तमाम क़िस्म के जानवर हैं : चार पाँव रखनेवाले, रेंगनेवाले और परिंदे। \v 13 फिर एक आवाज़ उससे मुख़ातिब हुई, “उठ, पतरस। कुछ ज़बह करके खा!” \p \v 14 पतरस ने एतराज़ किया, “हरगिज़ नहीं ख़ुदावंद, मैंने कभी भी हराम या नापाक खाना नहीं खाया।” \p \v 15 लेकिन यह आवाज़ दुबारा उससे हमकलाम हुई, “जो कुछ अल्लाह ने पाक कर दिया है उसे नापाक क़रार न दे।” \v 16 यही कुछ तीन मरतबा हुआ, फिर चादर को अचानक आसमान पर वापस उठा लिया गया। \p \v 17 पतरस बड़ी उलझन में पड़ गया। वह अभी सोच रहा था कि इस रोया का क्या मतलब है तो कुरनेलियुस के भेजे हुए आदमी शमौन के घर का पता करके उसके गेट पर पहुँच गए। \v 18 आवाज़ देकर उन्होंने पूछा, “क्या शमौन जो पतरस कहलाता है आपके मेहमान हैं?” \p \v 19 पतरस अभी रोया पर ग़ौर कर ही रहा था कि रूहुल-क़ुद्स उससे हमकलाम हुआ, “शमौन, तीन मर्द तेरी तलाश में हैं। \v 20 उठ और छत से उतरकर उनके साथ चला जा। मत झिजकना, क्योंकि मैं ही ने उन्हें तेरे पास भेजा है।” \v 21 चुनाँचे पतरस उन आदमियों के पास गया और उनसे कहा, “मैं वही हूँ जिसे आप ढूँड रहे हैं। आप क्यों मेरे पास आए हैं?” \p \v 22 उन्होंने जवाब दिया, “हम सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर अफ़सर कुरनेलियुस के घर से आए हैं। वह इनसाफ़परवर और ख़ुदातरस आदमी हैं। पूरी यहूदी क़ौम इसकी तसदीक़ कर सकती है। एक मुक़द्दस फ़रिश्ते ने उन्हें हिदायत दी कि वह आपको अपने घर बुलाकर आपका पैग़ाम सुनें।” \v 23 यह सुनकर पतरस उन्हें अंदर ले गया और उनकी मेहमान-नवाज़ी की। अगले दिन वह उठकर उनके साथ रवाना हुआ। याफ़ा के कुछ भाई भी साथ गए। \v 24 एक दिन के बाद वह क़ैसरिया पहुँच गया। कुरनेलियुस उनके इंतज़ार में था। उसने अपने रिश्तेदारों और क़रीबी दोस्तों को भी अपने घर जमा कर रखा था। \v 25 जब पतरस घर में दाख़िल हुआ तो कुरनेलियुस ने उसके सामने गिरकर उसे सिजदा किया। \v 26 लेकिन पतरस ने उसे उठाकर कहा, “उठें। मैं भी इनसान ही हूँ।” \v 27 और उससे बातें करते करते वह अंदर गया और देखा कि बहुत-से लोग जमा हो गए हैं। \v 28 उसने उनसे कहा, “आप जानते हैं कि किसी यहूदी के लिए किसी ग़ैरयहूदी से रिफ़ाक़त रखना या उसके घर में जाना मना है। लेकिन अल्लाह ने मुझे दिखाया है कि मैं किसी को भी हराम या नापाक क़रार न दूँ। \v 29 इस वजह से जब मुझे बुलाया गया तो मैं एतराज़ किए बग़ैर चला आया। अब मुझे बता दीजिए कि आपने मुझे क्यों बुलाया है?” \p \v 30 कुरनेलियुस ने जवाब दिया, “चार दिन की बात है कि मैं इसी वक़्त दोपहर तीन बजे दुआ कर रहा था। अचानक एक आदमी मेरे सामने आ खड़ा हुआ। उसके कपड़े चमक रहे थे। \v 31 उसने कहा, ‘कुरनेलियुस, अल्लाह ने तुम्हारी दुआ सुन ली और तुम्हारी ख़ैरात का ख़याल किया है। \v 32 अब किसी को याफ़ा भेजकर शमौन को बुला लो जो पतरस कहलाता है। वह चमड़ा रंगनेवाले शमौन का मेहमान है। शमौन का घर समुंदर के क़रीब वाक़े है।’ \v 33 यह सुनते ही मैंने अपने लोगों को आपको बुलाने के लिए भेज दिया। अच्छा हुआ कि आप आ गए हैं। अब हम सब अल्लाह के हुज़ूर हाज़िर हैं ताकि वह कुछ सुनें जो रब ने आपको हमें बताने को कहा है।” \s1 पतरस की तक़रीर \p \v 34 फिर पतरस बोल उठा, “अब मैं समझ गया हूँ कि अल्लाह वाक़ई जानिबदार नहीं, \v 35 बल्कि हर किसी को क़बूल करता है जो उसका ख़ौफ़ मानता और रास्त काम करता है। \v 36 आप अल्लाह की उस ख़ुशख़बरी से वाक़िफ़ हैं जो उसने इसराईलियों को भेजी, यह ख़ुशख़बरी कि ईसा मसीह के वसीले से सलामती आई है। ईसा मसीह सबका ख़ुदावंद है। \v 37 आपको वह कुछ मालूम है जो गलील से शुरू होकर यहूदिया के पूरे इलाक़े में हुआ यानी उस बपतिस्मे के बाद जिसकी मुनादी यहया ने की। \v 38 और आप जानते हैं कि अल्लाह ने ईसा नासरी को रूहुल-क़ुद्स और क़ुव्वत से मसह किया और कि इस पर उसने जगह जगह जाकर नेक काम किया और इबलीस के दबे हुए तमाम लोगों को शफ़ा दी, क्योंकि अल्लाह उसके साथ था। \v 39 जो कुछ भी उसने मुल्के-यहूद और यरूशलम में किया, उसके गवाह हम ख़ुद हैं। गो लोगों ने उसे लकड़ी पर लटकाकर क़त्ल कर दिया \v 40 लेकिन अल्लाह ने तीसरे दिन उसे मुरदों में से ज़िंदा किया और उसे लोगों पर ज़ाहिर किया। \v 41 वह पूरी क़ौम पर तो ज़ाहिर नहीं हुआ बल्कि हम पर जिनको अल्लाह ने पहले से चुन लिया था ताकि हम उसके गवाह हों। हमने उसके जी उठने के बाद उसके साथ खाने-पीने की रिफ़ाक़त भी रखी। \v 42 उस वक़्त उसने हमें हुक्म दिया कि मुनादी करके क़ौम को गवाही दो कि ईसा वही है जिसे अल्लाह ने ज़िंदों और मुरदों पर मुंसिफ़ मुक़र्रर किया है। \v 43 तमाम नबी उस की गवाही देते हैं कि जो भी उस पर ईमान लाए उसे उसके नाम के वसीले से गुनाहों की मुआफ़ी मिल जाएगी।” \s1 रूहुल-क़ुद्स ग़ैरयहूदियों पर नाज़िल होता है \p \v 44 पतरस अभी यह बात कर ही रहा था कि तमाम सुननेवालों पर रूहुल-क़ूदस नाज़िल हुआ। \v 45 जो यहूदी ईमानदार पतरस के साथ आए थे वह हक्का-बक्का रह गए कि रूहुल-क़ुद्स की नेमत ग़ैरयहूदियों पर भी उंडेली गई है, \v 46 क्योंकि उन्होंने देखा कि वह ग़ैरज़बानें बोल रहे और अल्लाह की तमजीद कर रहे हैं। तब पतरस ने कहा, \v 47 “अब कौन इनको बपतिस्मा लेने से रोक सकता है? इन्हें तो हमारी तरह रूहुल-क़ुद्स हासिल हुआ है।” \v 48 और उसने हुक्म दिया कि उन्हें ईसा मसीह के नाम से बपतिस्मा दिया जाए। इसके बाद उन्होंने पतरस से गुज़ारिश की कि कुछ दिन हमारे पास ठहरें। \c 11 \s1 यरूशलम की जमात में पतरस की रिपोर्ट \p \v 1 यह ख़बर रसूलों और यहूदिया के बाक़ी भाइयों तक पहुँची कि ग़ैरयहूदियों ने भी अल्लाह का कलाम क़बूल किया है। \v 2 चुनाँचे जब पतरस यरूशलम वापस आया तो यहूदी ईमानदार उस पर एतराज़ करने लगे, \v 3 “आप ग़ैरयहूदियों के घर में गए और उनके साथ खाना भी खाया।” \v 4 फिर पतरस ने उनके सामने तरतीब से सब कुछ बयान किया जो हुआ था। \p \v 5 “मैं याफ़ा शहर में दुआ कर रहा था कि वज्द की हालत में आकर रोया देखी। आसमान से एक चीज़ ज़मीन पर उतर रही है, कतान की बड़ी चादर जैसी जो अपने चारों कोनों से उतारी जा रही है। उतरती उतरती वह मुझ तक पहुँच गई। \v 6 जब मैंने ग़ौर से देखा तो पता चला कि उसमें तमाम क़िस्म के जानवर हैं : चार पाँववाले, रेंगनेवाले और परिंदे। \v 7 फिर एक आवाज़ मुझसे मुख़ातिब हुई, ‘पतरस, उठ! कुछ ज़बह करके खा!’ \v 8 मैंने एतराज़ किया, ‘हरगिज़ नहीं, ख़ुदावंद, मैंने कभी भी हराम या नापाक खाना नहीं खाया।’ \v 9 लेकिन यह आवाज़ दुबारा मुझसे हमकलाम हुई, ‘जो कुछ अल्लाह ने पाक कर दिया है उसे नापाक क़रार न दे।’ \v 10 तीन मरतबा ऐसा हुआ, फिर चादर को जानवरों समेत वापस आसमान पर उठा लिया गया। \v 11 उसी वक़्त तीन आदमी उस घर के सामने रुक गए जहाँ मैं ठहरा हुआ था। उन्हें क़ैसरिया से मेरे पास भेजा गया था। \v 12 रूहुल-क़ुद्स ने मुझे बताया कि मैं बग़ैर झिजके उनके साथ चला जाऊँ। यह मेरे छः भाई भी मेरे साथ गए। हम रवाना होकर उस आदमी के घर में दाख़िल हुए जिसने मुझे बुलाया था। \v 13 उसने हमें बताया कि एक फ़रिश्ता घर में उस पर ज़ाहिर हुआ था जिसने उसे कहा था, ‘किसी को याफ़ा भेजकर शमौन को बुला लो जो पतरस कहलाता है। \v 14 उसके पास वह पैग़ाम है जिसके ज़रीए तुम अपने पूरे घराने समेत नजात पाओगे।’ \v 15 जब मैं वहाँ बोलने लगा तो रूहुल-क़ुद्स उन पर नाज़िल हुआ, बिलकुल उसी तरह जिस तरह वह शुरू में हम पर हुआ था। \v 16 फिर मुझे वह बात याद आई जो ख़ुदावंद ने कही थी, ‘यहया ने तुमको पानी से बपतिस्मा दिया, लेकिन तुम्हें रूहुल-क़ुद्स से बपतिस्मा दिया जाएगा।’ \v 17 अल्लाह ने उन्हें वही नेमत दी जो उसने हमें भी दी थी जो ख़ुदावंद ईसा मसीह पर ईमान लाए थे। तो फिर मैं कौन था कि अल्लाह को रोकता?” \p \v 18 पतरस की यह बातें सुनकर यरूशलम के ईमानदार एतराज़ करने से बाज़ आए और अल्लाह की तमजीद करने लगे। उन्होंने कहा, “तो इसका मतलब है कि अल्लाह ने ग़ैरयहूदियों को भी तौबा करने और अबदी ज़िंदगी पाने का मौक़ा दिया है।” \s1 अंताकिया में जमात \p \v 19 जो ईमानदार स्तिफ़नुस की मौत के बाद की ईज़ारसानी से बिखर गए थे वह फ़ेनीके, क़ुबरुस और अंताकिया तक पहुँच गए। जहाँ भी वह जाते वहाँ अल्लाह का पैग़ाम सुनाते अलबत्ता सिर्फ़ यहूदियों को। \v 20 लेकिन उनमें से कुरेन और क़ुबरुस के कुछ आदमी अंताकिया शहर जाकर यूनानियों को भी ख़ुदावंद ईसा के बारे में ख़ुशख़बरी सुनाने लगे। \v 21 ख़ुदावंद की क़ुदरत उनके साथ थी, और बहुत-से लोगों ने ईमान लाकर ख़ुदावंद की तरफ़ रुजू किया। \v 22 इसकी ख़बर यरूशलम की जमात तक पहुँच गई तो उन्होंने बरनबास को अंताकिया भेज दिया। \v 23 जब वह वहाँ पहुँचा और देखा कि अल्लाह के फ़ज़ल से क्या कुछ हुआ है तो वह ख़ुश हुआ। उसने उन सबकी हौसलाअफ़्ज़ाई की कि वह पूरी लग्न से ख़ुदावंद के साथ लिपटे रहें। \v 24 बरनबास नेक आदमी था जो रूहुल-क़ुद्स और ईमान से मामूर था। चुनाँचे उस वक़्त बहुत-से लोग ख़ुदावंद की जमात में शामिल हुए। \p \v 25 इसके बाद वह साऊल की तलाश में तरसुस चला गया। \v 26 जब उसे मिला तो वह उसे अंताकिया ले आया। वहाँ वह दोनों एक पूरे साल तक जमात में शामिल होते और बहुत-से लोगों को सिखाते रहे। अंताकिया पहला मक़ाम था जहाँ ईमानदार मसीही कहलाने लगे। \p \v 27 उन दिनों कुछ नबी यरूशलम से आकर अंताकिया पहुँच गए। \v 28 एक का नाम अगबुस था। वह खड़ा हुआ और रूहुल-क़ुद्स की मारिफ़त पेशगोई की कि रोम की पूरी ममलकत में सख़्त काल पड़ेगा। (यह बात उस वक़्त पूरी हुई जब शहनशाह क्लौदियुस की हुकूमत थी।) \v 29 अगबुस की बात सुनकर अंताकिया के शागिर्दों ने फ़ैसला किया कि हममें से हर एक अपनी माली गुंजाइश के मुताबिक़ कुछ दे ताकि उसे यहूदिया में रहनेवाले भाइयों की इमदाद के लिए भेजा जा सके। \v 30 उन्होंने अपने इस हदिये को बरनबास और साऊल के सुपुर्द करके वहाँ के बुज़ुर्गों को भेज दिया। \c 12 \s1 मज़ीद ईज़ारसानी \p \v 1 उन दिनों में बादशाह हेरोदेस अग्रिप्पा जमात के कुछ ईमानदारों को गिरिफ़्तार करके उनसे बदसुलूकी करने लगा। \v 2 इस सिलसिले में उसने याक़ूब रसूल (यूहन्ना के भाई) को तलवार से क़त्ल करवाया। \v 3 जब उसने देखा कि यह हरकत यहूदियों को पसंद आई है तो उसने पतरस को भी गिरिफ़्तार कर लिया। उस वक़्त बेख़मीरी रोटी की ईद मनाई जा रही थी। \v 4 उसने उसे जेल में डालकर चार दस्तों के हवाले कर दिया कि उस की पहरादारी करें (हर दस्ते में चार फ़ौजी थे)। ख़याल था कि ईद के बाद ही पतरस को अवाम के सामने खड़ा करके उस की अदालत की जाए। \v 5 यों पतरस क़ैदख़ाने में रहा। लेकिन ईमानदारों की जमात लगातार उसके लिए दुआ करती रही। \s1 पतरस की रिहाई \p \v 6 फिर अदालत का दिन क़रीब आ गया। पतरस रात के वक़्त सो रहा था। अगले दिन हेरोदेस उसे पेश करना चाहता था। पतरस दो फ़ौजियों के दरमियान लेटा हुआ था जो दो ज़ंजीरों से उसके साथ बँधे हुए थे। दीगर फ़ौजी दरवाज़े के सामने पहरा दे रहे थे। \v 7 अचानक एक तेज़ रौशनी कोठड़ी में चमक उठी और रब का एक फ़रिश्ता पतरस के सामने आ खड़ा हुआ। उसने उसके पहलू को झटका देकर उसे जगा दिया और कहा, “जल्दी करो! उठो!” तब पतरस की कलाइयों पर की ज़ंजीरें गिर गईं। \v 8 फिर फ़रिश्ते ने उसे बताया, “अपने कपड़े और जूते पहन लो।” पतरस ने ऐसा ही किया। फ़रिश्ते ने कहा, “अब अपनी चादर ओढ़कर मेरे पीछे हो लो।” \v 9 चुनाँचे पतरस कोठड़ी से निकलकर फ़रिश्ते के पीछे हो लिया अगरचे उसे अब तक समझ नहीं आई थी कि जो कुछ हो रहा है हक़ीक़ी है। उसका ख़याल था कि मैं रोया देख रहा हूँ। \v 10 दोनों पहले पहरे से गुज़र गए, फिर दूसरे से और यों शहर में पहुँचानेवाले लोहे के गेट के पास आए। यह ख़ुद बख़ुद खुल गया और वह दोनों निकलकर एक गली में चलने लगे। चलते चलते फ़रिश्ते ने अचानक पतरस को छोड़ दिया। \p \v 11 फिर पतरस होश में आ गया। उसने कहा, “वाक़ई, ख़ुदावंद ने अपने फ़रिश्ते को मेरे पास भेजकर मुझे हेरोदेस के हाथ से बचाया है। अब यहूदी क़ौम की तवक़्क़ो पूरी नहीं होगी।” \p \v 12 जब यह बात उसे समझ आई तो वह यूहन्ना मरक़ुस की माँ मरियम के घर चला गया। वहाँ बहुत-से अफ़राद जमा होकर दुआ कर रहे थे। \v 13 पतरस ने गेट खटखटाया तो एक नौकरानी देखने के लिए आई। उसका नाम रुदी था। \v 14 जब उसने पतरस की आवाज़ पहचान ली तो वह ख़ुशी के मारे गेट को खोलने के बजाए दौड़कर अंदर चली गई और बताया, “पतरस गेट पर खड़े हैं!” \v 15 हाज़िरीन ने कहा, “होश में आओ!” लेकिन वह अपनी बात पर अड़ी रही। फिर उन्होंने कहा, “यह उसका फ़रिश्ता होगा।” \p \v 16 अब तक पतरस बाहर खड़ा खटखटा रहा था। चुनाँचे उन्होंने गेट को खोल दिया। पतरस को देखकर वह हैरान रह गए। \v 17 लेकिन उसने अपने हाथ से ख़ामोश रहने का इशारा किया और उन्हें सारा वाक़िया सुनाया कि ख़ुदावंद मुझे किस तरह जेल से निकाल लाया है। “याक़ूब और बाक़ी भाइयों को भी यह बताना,” यह कहकर वह कहीं और चला गया। \p \v 18 अगली सुबह जेल के फ़ौजियों में बड़ी हलचल मच गई कि पतरस का क्या हुआ है। \v 19 जब हेरोदेस ने उसे ढूँडा और न पाया तो उसने पहरेदारों का बयान लेकर उन्हें सज़ाए-मौत दे दी। \p इसके बाद वह यहूदिया से चला गया और क़ैसरिया में रहने लगा। \s1 हेरोदेस अग्रिप्पा की मौत \p \v 20 उस वक़्त वह सूर और सैदा के बाशिंदों से निहायत नाराज़ था। इसलिए दोनों शहरों के नुमाइंदे मिलकर सुलह की दरख़ास्त करने के लिए उसके पास आए। वजह यह थी कि उनकी ख़ुराक हेरोदेस के मुल्क से हासिल होती थी। उन्होंने बादशाह के महल के इंचार्ज ब्लस्तुस को इस पर आमादा किया कि वह उनकी मदद करे \v 21 और बादशाह से मिलने का दिन मुक़र्रर किया। जब वह दिन आया तो हेरोदेस अपना शाही लिबास पहनकर तख़्त पर बैठ गया और एक अलानिया तक़रीर की। \v 22 अवाम ने नारे लगा लगाकर पुकारा, “यह अल्लाह की आवाज़ है, इनसान की नहीं।” \v 23 वह अभी यह कह रहे थे कि रब के फ़रिश्ते ने हेरोदेस को मारा, क्योंकि उसने लोगों की परस्तिश क़बूल करके अल्लाह को जलाल नहीं दिया था। वह बीमार हुआ और कीड़ों ने उसके जिस्म को खा खाकर ख़त्म कर दिया। इसी हालत में वह मर गया। \p \v 24 लेकिन अल्लाह का कलाम बढ़ता और फैलता गया। \p \v 25 इतने में बरनबास और साऊल अंताकिया का हदिया लेकर यरूशलम पहुँच चुके थे। उन्होंने पैसे वहाँ के बुज़ुर्गों के सुपुर्द कर दिए और फिर यूहन्ना मरक़ुस को साथ लेकर वापस चले गए। \c 13 \s1 बरनबास और साऊल को तबलीग़ी ख़िदमत के लिए चुना जाता है \p \v 1 अंताकिया की जमात में कई नबी और उस्ताद थे : बरनबास, शमौन जो काला कहलाता था, लूकियुस कुरेनी, मनाहेम जिसने बादशाह हेरोदेस अंतिपास के साथ परवरिश पाई थी और साऊल। \v 2 एक दिन जब वह रोज़ा रखकर ख़ुदावंद की परस्तिश कर रहे थे तो रूहुल-क़ुद्स उनसे हमकलाम हुआ, “बरनबास और साऊल को उस ख़ास काम के लिए अलग करो जिसके लिए मैंने उन्हें बुलाया है।” \p \v 3 इस पर उन्होंने मज़ीद रोज़े रखे और दुआ की, फिर उन पर अपने हाथ रखकर उन्हें रुख़सत कर दिया। \s1 क़ुबरुस में \p \v 4 यों बरनबास और साऊल को रूहुल-क़ुद्स की तरफ़ से भेजा गया। पहले वह साहिली शहर सलूकिया गए और वहाँ जहाज़ में बैठकर जज़ीराए-क़ुबरुस के लिए रवाना हुए। \v 5 जब वह सलमीस शहर पहुँचे तो उन्होंने यहूदियों के इबादतख़ानों में जाकर अल्लाह का कलाम सुनाया। यूहन्ना मरक़ुस मददगार के तौर पर उनके साथ था। \p \v 6 पूरे जज़ीरे में से सफ़र करते करते वह पाफ़ुस शहर तक पहुँच गए। वहाँ उनकी मुलाक़ात एक यहूदी जादूगर से हुई जिसका नाम बर-ईसा था। वह झूटा नबी था \v 7 और जज़ीरे के गवर्नर सिरगियुस पौलुस की ख़िदमत के लिए हाज़िर रहता था। सिरगियुस एक समझदार आदमी था। उसने बरनबास और साऊल को अपने पास बुला लिया क्योंकि वह अल्लाह का कलाम सुनने का ख़ाहिशमंद था। \v 8 लेकिन जादूगर इलीमास (बर-ईसा का दूसरा नाम) ने उनकी मुख़ालफ़त करके गवर्नर को ईमान से बाज़ रखने की कोशिश की। \v 9 फिर साऊल जो पौलुस भी कहलाता है रूहुल-क़ुद्स से मामूर हुआ और ग़ौर से उस की तरफ़ देखने लगा। \v 10 उसने कहा, “इबलीस के फ़रज़ंद! तू हर क़िस्म के धोके और बदी से भरा हुआ है और हर इनसाफ़ का दुश्मन है। क्या तू ख़ुदावंद की सीधी राहों को बिगाड़ने की कोशिश से बाज़ न आएगा? \v 11 अब ख़ुदावंद तुझे सज़ा देगा। तू अंधा होकर कुछ देर के लिए सूरज की रौशनी नहीं देखेगा।” \p उसी लमहे धुंध और तारीकी जादूगर पर छा गई और वह टटोल टटोलकर किसी को तलाश करने लगा जो उस की राहनुमाई करे। \v 12 यह माजरा देखकर गवर्नर ईमान लाया, क्योंकि ख़ुदावंद की तालीम ने उसे हैरतज़दा कर दिया था। \s1 पिसिदिया के शहर अंताकिया में मुनादी \p \v 13 फिर पौलुस और उसके साथी जहाज़ पर सवार हुए और पाफ़ुस से रवाना होकर पिरगा शहर पहुँच गए जो पंफ़ीलिया में है। वहाँ यूहन्ना मरक़ुस उन्हें छोड़कर यरूशलम वापस चला गया। \v 14 लेकिन पौलुस और बरनबास आगे निकलकर पिसिदिया में वाक़े शहर अंताकिया पहुँचे जहाँ वह सबत के दिन यहूदी इबादतख़ाने में जाकर बैठ गए। \v 15 तौरेत और नबियों के सहीफ़ों की तिलावत के बाद इबादतख़ाने के राहनुमाओं ने उन्हें कहला भेजा, “भाइयो, अगर आपके पास लोगों के लिए कोई नसीहत की बात है तो उसे पेश करें।” \v 16 पौलुस खड़ा हुआ और हाथ का इशारा करके बोलने लगा, \p “इसराईल के मर्दो और ख़ुदातरस ग़ैरयहूदियो, मेरी बात सुनें! \v 17 इस क़ौम इसराईल के ख़ुदा ने हमारे बापदादा को चुनकर उन्हें मिसर में ही ताक़तवर बना दिया जहाँ वह अजनबी थे। फिर वह उन्हें बड़ी क़ुदरत के साथ वहाँ से निकाल लाया। \v 18 जब वह रेगिस्तान में फिर रहे थे तो वह चालीस साल तक उन्हें बरदाश्त करता रहा। \v 19 इसके बाद उसने मुल्के-कनान में सात क़ौमों को तबाह करके उनकी ज़मीन इसराईल को विरसे में दी। \v 20 इतने में तक़रीबन 450 साल गुज़र गए। \p यशुअ की मौत पर अल्लाह ने उन्हें समुएल नबी के दौर तक क़ाज़ी दिए ताकि उनकी राहनुमाई करें। \v 21 फिर इनसे तंग आकर उन्होंने बादशाह माँगा, इसलिए उसने उन्हें साऊल बिन क़ीस दे दिया जो बिनयमीन के क़बीले का था। साऊल चालीस साल तक उनका बादशाह रहा, \v 22 फिर अल्लाह ने उसे हटाकर दाऊद को तख़्त पर बिठा दिया। दाऊद वही आदमी है जिसके बारे में अल्लाह ने गवाही दी, ‘मैंने दाऊद बिन यस्सी में एक ऐसा आदमी पाया है जो मेरी सोच रखता है। जो कुछ भी मैं चाहता हूँ उसे वह करेगा।’ \v 23 इसी बादशाह की औलाद में से ईसा निकला जिसका वादा अल्लाह कर चुका था और जिसे उसने इसराईल को नजात देने के लिए भेज दिया। \v 24 उसके आने से पेशतर यहया बपतिस्मा देनेवाले ने एलान किया कि इसराईल की पूरी क़ौम को तौबा करके बपतिस्मा लेने की ज़रूरत है। \v 25 अपनी ख़िदमत के इख़्तिताम पर उसने कहा, ‘तुम्हारे नज़दीक मैं कौन हूँ? मैं वह नहीं हूँ जो तुम समझते हो। लेकिन मेरे बाद वह आ रहा है जिसके जूतों के तसमे मैं खोलने के लायक़ भी नहीं हूँ।’ \p \v 26 भाइयो, इब्राहीम के फ़रज़ंदो और ख़ुदा का ख़ौफ़ माननेवाले ग़ैरयहूदियो! नजात का पैग़ाम हमें ही भेज दिया गया है। \v 27 यरूशलम के रहनेवालों और उनके राहनुमाओं ने ईसा को न पहचाना बल्कि उसे मुजरिम ठहराया। यों उनकी मारिफ़त नबियों की वह पेशगोइयाँ पूरी हुईं जिनकी तिलावत हर सबत को की जाती है। \v 28 और अगरचे उन्हें सज़ाए-मौत देने की वजह न मिली तो भी उन्होंने पीलातुस से गुज़ारिश की कि वह उसे सज़ाए-मौत दे। \v 29 जब उनकी मारिफ़त ईसा के बारे में तमाम पेशगोइयाँ पूरी हुईं तो उन्होंने उसे सलीब से उतारकर क़ब्र में रख दिया। \v 30 लेकिन अल्लाह ने उसे मुरदों में से ज़िंदा कर दिया \v 31 और वह बहुत दिनों तक अपने उन पैरोकारों पर ज़ाहिर होता रहा जो उसके साथ गलील से यरूशलम आए थे। यह अब हमारी क़ौम के सामने उसके गवाह हैं। \v 32 और अब हम आपको यह ख़ुशख़बरी सुनाने आए हैं कि जो वादा अल्लाह ने हमारे बापदादा के साथ किया, \v 33 उसे उसने ईसा को ज़िंदा करके हमारे लिए जो उनकी औलाद हैं पूरा कर दिया है। यों दूसरे ज़बूर में लिखा है, ‘तू मेरा फ़रज़ंद है, आज मैं तेरा बाप बन गया हूँ।’ \v 34 इस हक़ीक़त का ज़िक्र भी कलामे-मुक़द्दस में किया गया है कि अल्लाह उसे मुरदों में से ज़िंदा करके कभी गलने-सड़ने नहीं देगा : ‘मैं तुम्हें उन मुक़द्दस और अनमिट मेहरबानियों से नवाज़ूँगा जिनका वादा दाऊद से किया था।’ \v 35 यह बात एक और हवाले में पेश की गई है, ‘तू अपने मुक़द्दस को गलने-सड़ने की नौबत तक पहुँचने नहीं देगा।’ \v 36 इस हवाले का ताल्लुक़ दाऊद के साथ नहीं है, क्योंकि दाऊद अपने ज़माने में अल्लाह की मरज़ी की ख़िदमत करने के बाद फ़ौत होकर अपने बापदादा से जा मिला। उस की लाश गलकर ख़त्म हो गई। \v 37 बल्कि यह हवाला किसी और का ज़िक्र करता है, उसका जिसे अल्लाह ने ज़िंदा कर दिया और जिसका जिस्म गलने-सड़ने से दोचार न हुआ। \v 38 भाइयो, अब मेरी यह बात जान लें, हम इसकी मुनादी करने आए हैं कि आपको इस शख़्स ईसा के वसीले से अपने गुनाहों की मुआफ़ी मिलती है। मूसा की शरीअत आपको किसी तरह भी रास्तबाज़ क़रार नहीं दे सकती थी, \v 39 लेकिन अब जो भी ईसा पर ईमान लाए उसे हर लिहाज़ से रास्तबाज़ क़रार दिया जाता है। \v 40 इसलिए ख़बरदार! ऐसा न हो कि वह बात आप पर पूरी उतरे जो नबियों के सहीफ़ों में लिखी है, \p \v 41 ‘ग़ौर करो, मज़ाक़ उड़ानेवालो! \p हैरतज़दा होकर हलाक हो जाओ। \p क्योंकि मैं तुम्हारे जीते-जी एक ऐसा काम करूँगा \p जिसकी जब ख़बर सुनोगे \p तो तुम्हें यक़ीन नहीं आएगा’।” \p \v 42 जब पौलुस और बरनबास इबादतख़ाने से निकलने लगे तो लोगों ने उनसे गुज़ारिश की, “अगले सबत हमें इन बातों के बारे में मज़ीद कुछ बताएँ।” \v 43 इबादत के बाद बहुत-से यहूदी और यहूदी ईमान के नौमुरीद पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए, और दोनों ने उनसे बात करके उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई की कि अल्लाह के फ़ज़ल पर क़ायम रहें। \p \v 44 अगले सबत के दिन तक़रीबन तमाम शहर ख़ुदावंद का कलाम सुनने को जमा हुआ। \v 45 लेकिन जब यहूदियों ने हुजूम को देखा तो वह हसद से जल गए और पौलुस की बातों की तरदीद करके कुफ़र बकने लगे। \v 46 इस पर पौलुस और बरनबास ने उनसे साफ़ साफ़ कह दिया, “लाज़िम था कि अल्लाह का कलाम पहले आपको सुनाया जाए। लेकिन चूँकि आप उसे मुस्तरद करके अपने आपको अबदी ज़िंदगी के लायक़ नहीं समझते इसलिए हम अब ग़ैरयहूदियों की तरफ़ रुख़ करते हैं। \v 47 क्योंकि ख़ुदावंद ने हमें यही हुक्म दिया जब उसने फ़रमाया, ‘मैंने तुझे दीगर अक़वाम की रौशनी बना दी है ताकि तू मेरी नजात को दुनिया की इंतहा तक पहुँचाए’।” \p \v 48 यह सुनकर ग़ैरयहूदी ख़ुश हुए और ख़ुदावंद के कलाम की तमजीद करने लगे। और जितने अबदी ज़िंदगी के लिए मुक़र्रर किए गए थे वह ईमान लाए। \p \v 49 यों ख़ुदावंद का कलाम पूरे इलाक़े में फैल गया। \v 50 फिर यहूदियों ने शहर के लीडरों और यहूदी ईमान रखनेवाली कुछ बारसूख ग़ैरयहूदी ख़वातीन को उकसाकर लोगों को पौलुस और बरनबास को सताने पर उभारा। आख़िरकार उन्हें शहर की सरहद्दों से निकाल दिया गया। \v 51 इस पर वह उनके ख़िलाफ़ गवाही के तौर पर अपने जूतों से गर्द झाड़कर आगे बढ़े और इकुनियुम शहर पहुँच गए। \v 52 और अंताकिया के शागिर्द ख़ुशी और रूहुल-क़ुद्स से भरे रहे। \c 14 \s1 इकुनियुम में \p \v 1 इकुनियुम में पौलुस और बरनबास यहूदी इबादतख़ाने में जाकर इतने इख़्तियार से बोले कि यहूदियों और ग़ैरयहूदियों की बड़ी तादाद ईमान ले आई। \v 2 लेकिन जिन यहूदियों ने ईमान लाने से इनकार किया उन्होंने ग़ैरयहूदियों को उकसाकर भाइयों के बारे में उनके ख़यालात ख़राब कर दिए। \v 3 तो भी रसूल काफ़ी देर तक वहाँ ठहरे। उन्होंने दिलेरी से ख़ुदावंद के बारे में तालीम दी और ख़ुदावंद ने अपने फ़ज़ल के पैग़ाम की तसदीक़ की। उसने उनके हाथों इलाही निशान और मोजिज़े रूनुमा होने दिए। \v 4 लेकिन शहर में आबाद लोग दो गुरोहों में बट गए। कुछ यहूदियों के हक़ में थे और कुछ रसूलों के हक़ में। \p \v 5 फिर कुछ ग़ैरयहूदियों और यहूदियों में जोश आ गया। उन्होंने अपने लीडरों समेत फ़ैसला किया कि हम पौलुस और बरनबास की तज़लील करके उन्हें संगसार करेंगे। \v 6 लेकिन जब रसूलों को पता चला तो वह हिजरत करके लुकाउनिया के शहरों लुस्तरा, दिरबे और इर्दगिर्द के इलाक़े में \v 7 अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाते रहे। \s1 लुस्तरा और दिरबे \p \v 8 लुस्तरा में पौलुस और बरनबास की मुलाक़ात एक आदमी से हुई जिसके पाँवों में ताक़त नहीं थी। वह पैदाइश ही से लँगड़ा था और कभी भी चल-फिर न सका था। वह वहाँ बैठा \v 9 उनकी बातें सुन रहा था कि पौलुस ने ग़ौर से उस की तरफ़ देखा। उसने जान लिया कि उस आदमी में रिहाई पाने के लायक़ ईमान है। \v 10 इसलिए वह ऊँची आवाज़ से बोला, “अपने पाँवों पर खड़े हो जाएँ!” वह उछलकर खड़ा हुआ और चलने-फिरने लगा। \v 11 पौलुस का यह काम देखकर हुजूम अपनी मक़ामी ज़बान में चिल्ला उठा, “इन आदमियों की शक्ल में देवता हमारे पास उतर आए हैं।” \v 12 उन्होंने बरनबास को यूनानी देवता ज़ियूस क़रार दिया और पौलुस को देवता हिरमेस, क्योंकि कलाम सुनाने की ख़िदमत ज़्यादातर वह अंजाम देता था। \v 13 इस पर शहर से बाहर वाक़े ज़ियूस के मंदिर का पुजारी शहर के दरवाज़े पर बैल और फूलों के हार ले आया और हुजूम के साथ क़ुरबानियाँ चढ़ाने की तैयारियाँ करने लगा। \p \v 14 यह सुनकर बरनबास और साऊल रसूल अपने कपड़ों को फाड़कर हुजूम में जा घुसे और चिल्लाने लगे, \v 15 “मर्दो, यह आप क्या कर रहे हैं? हम भी आप जैसे इनसान हैं। हम तो आपको अल्लाह की यह ख़ुशख़बरी सुनाने आए हैं कि आप इन बेकार चीज़ों को छोड़कर ज़िंदा ख़ुदा की तरफ़ रुजू फ़रमाएँ जिसने आसमानो-ज़मीन, समुंदर और जो कुछ उनमें है पैदा किया है। \v 16 माज़ी में उसने तमाम ग़ैरयहूदी क़ौमों को खुला छोड़ दिया था कि वह अपनी अपनी राह पर चलें। \v 17 तो भी उसने ऐसी चीज़ें आपके पास रहने दी हैं जो उस की गवाही देती हैं। उस की मेहरबानी इससे ज़ाहिर होती है कि वह आपको बारिश भेजकर हर मौसम की फ़सलें मुहैया करता है और आप सेर होकर ख़ुशी से भर जाते हैं।” \v 18 इन अलफ़ाज़ के बावुजूद पौलुस और बरनबास ने बड़ी मुश्किल से हुजूम को उन्हें क़ुरबानियाँ चढ़ाने से रोका। \p \v 19 फिर कुछ यहूदी पिसिदिया के अंताकिया और इकुनियुम से वहाँ आए और हुजूम को अपनी तरफ़ मायल किया। उन्होंने पौलुस को संगसार किया और शहर से बाहर घसीटकर ले गए। उनका ख़याल था कि वह मर गया है, \v 20 लेकिन जब शागिर्द उसके गिर्द जमा हुए तो वह उठकर शहर की तरफ़ वापस चल पड़ा। अगले दिन वह बरनबास समेत दिरबे चला गया। \s1 शाम के अंताकिया में वापसी \p \v 21 दिरबे में उन्होंने अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाकर बहुत-से शागिर्द बनाए। फिर वह मुड़कर लुस्तरा, इकुनियुम और पिसिदिया के अंताकिया वापस आए। \v 22 हर जगह उन्होंने शागिर्दों के दिल मज़बूत करके उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई की कि वह ईमान में साबितक़दम रहें। उन्होंने कहा, “लाज़िम है कि हम बहुत-सी मुसीबतों में से गुज़रकर अल्लाह की बादशाही में दाख़िल हों।” \v 23 पौलुस और बरनबास ने हर जमात में बुज़ुर्ग भी मुक़र्रर किए। उन्होंने रोज़े रखकर दुआ की और उन्हें उस ख़ुदावंद के सुपुर्द किया जिस पर वह ईमान लाए थे। \p \v 24 यों पिसिदिया के इलाक़े में से सफ़र करते करते वह पंफ़ीलिया पहुँचे। \v 25 उन्होंने पिरगा में कलामे-मुक़द्दस सुनाया और फिर उतरकर अत्तलिया पहुँचे। \v 26 वहाँ से वह जहाज़ में बैठकर शाम के शहर अंताकिया के लिए रवाना हुए, उस शहर के लिए जहाँ ईमानदारों ने उन्हें इस तबलीग़ी सफ़र के लिए अल्लाह के फ़ज़ल के सुपुर्द किया था। यों उन्होंने अपनी इस ख़िदमत को पूरा किया। \p \v 27 अंताकिया पहुँचकर उन्होंने ईमानदारों को जमा करके उन तमाम कामों का बयान किया जो अल्लाह ने उनके वसीले से किए थे। साथ साथ उन्होंने यह भी बताया कि अल्लाह ने किस तरह ग़ैरयहूदियों के लिए भी ईमान का दरवाज़ा खोल दिया है। \v 28 और वह काफ़ी देर तक वहाँ के शागिर्दों के पास ठहरे रहे। \c 15 \s1 यरूशलम में मुशावरती इजतिमा \p \v 1 उस वक़्त कुछ आदमी यहूदिया से आकर शाम के अंताकिया में भाइयों को यह तालीम देने लगे, “लाज़िम है कि आपका मूसा की शरीअत के मुताबिक़ ख़तना किया जाए, वरना आप नजात नहीं पा सकेंगे।” \v 2 इससे उनके और बरनबास और पौलुस के दरमियान नाइत्तफ़ाक़ी पैदा हो गई और दोनों उनके साथ ख़ूब बहस-मुबाहसा करने लगे। आख़िरकार जमात ने पौलुस और बरनबास को मुक़र्रर किया कि वह चंद एक और मक़ामी ईमानदारों के साथ यरूशलम जाएँ और वहाँ के रसूलों और बुज़ुर्गों को यह मामला पेश करें। \p \v 3 चुनाँचे जमात ने उन्हें रवाना किया और वह फ़ेनीके और सामरिया में से गुज़रे। रास्ते में उन्होंने मक़ामी ईमानदारों को तफ़सील से बताया कि ग़ैरयहूदी किस तरह ख़ुदावंद की तरफ़ रुजू ला रहे हैं। यह सुनकर तमाम भाई निहायत ख़ुश हुए। \v 4 जब वह यरूशलम पहुँच गए तो जमात ने अपने रसूलों और बुज़ुर्गों समेत उनका इस्तक़बाल किया। फिर पौलुस और बरनबास ने सब कुछ बयान किया जो उनकी मारिफ़त हुआ था। \v 5 यह सुनकर कुछ ईमानदार खड़े हुए जो फ़रीसी फ़िरक़े में से थे। उन्होंने कहा, “लाज़िम है कि ग़ैरयहूदियों का ख़तना किया जाए और उन्हें हुक्म दिया जाए कि वह मूसा की शरीअत के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारें।” \p \v 6 रसूल और बुज़ुर्ग इस मामले पर ग़ौर करने के लिए जमा हुए। \v 7 बहुत बहस-मुबाहसा के बाद पतरस खड़ा हुआ और कहा, “भाइयो, आप जानते हैं कि अल्लाह ने बहुत देर हुई आपमें से मुझे चुन लिया कि ग़ैरयहूदियों को अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाऊँ ताकि वह ईमान लाएँ। \v 8 और अल्लाह ने जो दिलों को जानता है इस बात की तसदीक़ की है, क्योंकि उसने उन्हें वही रूहुल-क़ुद्स बख़्शा है जो उसने हमें भी दिया था। \v 9 उसने हममें और उनमें कोई भी फ़रक़ न रखा बल्कि ईमान से उनके दिलों को भी पाक कर दिया। \v 10 चुनाँचे आप अल्लाह को इसमें क्यों आज़मा रहे हैं कि आप ग़ैरयहूदी शागिर्दों की गरदन पर एक ऐसा जुआ रखना चाहते हैं जो न हम और न हमारे बापदादा उठा सकते थे? \v 11 देखें, हम तो ईमान रखते हैं कि हम सब एक ही तरीक़े यानी ख़ुदावंद ईसा के फ़ज़ल ही से नजात पाते हैं।” \p \v 12 तमाम लोग चुप रहे तो पौलुस और बरनबास उन्हें उन इलाही निशानों और मोजिज़ों के बारे में बताने लगे जो अल्लाह ने उनकी मारिफ़त ग़ैरयहूदियों के दरमियान किए थे। \v 13 जब उनकी बात ख़त्म हुई तो याक़ूब ने कहा, “भाइयो, मेरी बात सुनें! \v 14 शमौन ने बयान किया है कि अल्लाह ने किस तरह पहला क़दम उठाकर ग़ैरयहूदियों पर अपनी फ़िकरमंदी का इज़हार किया और उनमें से अपने लिए एक क़ौम चुन ली। \v 15 और यह बात नबियों की पेशगोइयों के भी मुताबिक़ है। चुनाँचे लिखा है, \p \v 16 ‘इसके बाद मैं वापस आकर \p दाऊद के तबाहशुदा घर को नए सिरे से तामीर करूँगा, \p मैं उसके खंडरात दुबारा तामीर करके बहाल करूँगा \p \v 17 ताकि लोगों का बचा-खुचा हिस्सा और वह तमाम क़ौमें \p मुझे ढूँडें जिन पर मेरे नाम का ठप्पा लगा है। \p यह रब का फ़रमान है, और वह यह करेगा भी’ \p \v 18 बल्कि यह उसे अज़ल से मालूम है। \p \v 19 यही पेशे-नज़र रखकर मेरी राय यह है कि हम उन ग़ैरयहूदियों को जो अल्लाह की तरफ़ रुजू कर रहे हैं ग़ैरज़रूरी तकलीफ़ न दें। \v 20 इसके बजाए बेहतर यह है कि हम उन्हें लिखकर हिदायत दें कि वह इन चीज़ों से परहेज़ करें : ऐसे खानों से जो बुतों को पेश किए जाने से नापाक हैं, ज़िनाकारी से, ऐसे जानवरों का गोश्त खाने से जिन्हें गला घूँटकर मार दिया गया हो और ख़ून खाने से। \v 21 क्योंकि मूसवी शरीअत की मुनादी करनेवाले कई नसलों से हर शहर में रह रहे हैं। जिस शहर में भी जाएँ हर सबत के दिन शरीअत की तिलावत की जाती है।” \s1 ग़ैरयहूदी ईमानदारों के नाम ख़त \p \v 22 फिर रसूलों और बुज़ुर्गों ने पूरी जमात समेत फ़ैसला किया कि हम अपने में से कुछ आदमी चुनकर पौलुस और बरनबास के हमराह शाम के शहर अंताकिया भेज दें। दो को चुना गया जो भाइयों में राहनुमा थे, यहूदाह बरसब्बा और सीलास। \v 23 उनके हाथ उन्होंने यह ख़त भेजा, \p “यरूशलम के रसूलों और बुज़ुर्गों की तरफ़ से जो आपके भाई हैं। \p अज़ीज़ ग़ैरयहूदी भाइयो जो अंताकिया, शाम और किलिकिया में रहते हैं, अस्सलामु अलैकुम! \p \v 24 सुना है कि हममें से कुछ लोगों ने आपके पास आकर आपको परेशान करके बेचैन कर दिया है, हालाँकि हमने उन्हें नहीं भेजा था। \v 25 इसलिए हम सब इस पर मुत्तफ़िक़ हुए कि कुछ आदमियों को चुनकर अपने प्यारे भाइयों बरनबास और पौलुस के हमराह आपके पास भेजें। \v 26 बरनबास और पौलुस ऐसे लोग हैं जिन्होंने हमारे ख़ुदावंद ईसा मसीह की ख़ातिर अपनी जान ख़तरे में डाल दी है। \v 27 उनके साथी यहूदाह और सीलास हैं जिनको हमने इसलिए भेजा कि वह ज़बानी भी उन बातों की तसदीक़ करें जो हमने लिखी हैं। \p \v 28 हम और रूहुल-क़ुद्स इस पर मुत्तफ़िक़ हुए हैं कि आप पर सिवाए इन ज़रूरी बातों के कोई बोझ न डालें : \v 29 बुतों को पेश किया गया खाना मत खाना, ख़ून मत खाना, ऐसे जानवरों का गोश्त मत खाना जो गला घूँटकर मार दिए गए हों। इसके अलावा ज़िनाकारी न करें। इन चीज़ों से बाज़ रहेंगे तो अच्छा करेंगे। ख़ुदा हाफ़िज़।” \p \v 30 पौलुस, बरनबास और उनके साथी रुख़सत होकर अंताकिया चले गए। वहाँ पहुँचकर उन्होंने जमात इकट्ठी करके उसे ख़त दे दिया। \v 31 उसे पढ़कर ईमानदार उसके हौसलाअफ़्ज़ा पैग़ाम पर ख़ुश हुए। \v 32 यहूदाह और सीलास ने भी जो ख़ुद नबी थे भाइयों की हौसलाअफ़्ज़ाई और मज़बूती के लिए काफ़ी बातें कीं। \v 33 वह कुछ देर के लिए वहाँ ठहरे, फिर मक़ामी भाइयों ने उन्हें सलामती से अलविदा कहा ताकि वह भेजनेवालों के पास वापस जा सकें। \v 34 [लेकिन सीलास को वहाँ ठहरना अच्छा लगा।] \p \v 35 पौलुस और बरनबास ख़ुद कुछ और देर अंताकिया में रहे। वहाँ वह बहुत-से और लोगों के साथ ख़ुदावंद के कलाम की तालीम देते और उस की मुनादी करते रहे। \s1 पौलुस और बरनबास जुदा हो जाते हैं \p \v 36 कुछ दिनों के बाद पौलुस ने बरनबास से कहा, “आओ, हम मुड़कर उन तमाम शहरों में जाएँ जहाँ हमने ख़ुदावंद के कलाम की मुनादी की है और वहाँ के भाइयों से मुलाक़ात करके उनका हाल मालूम करें।” \v 37 बरनबास मुत्तफ़िक़ होकर यूहन्ना मरक़ुस को साथ ले जाना चाहता था, \v 38 लेकिन पौलुस ने इसरार किया कि वह साथ न जाए, क्योंकि यूहन्ना मरक़ुस पहले दौरे के दौरान ही पंफ़ीलिया में उन्हें छोड़कर उनके साथ ख़िदमत करने से बाज़ आया था। \v 39 इससे उनमें इतना सख़्त इख़्तिलाफ़ पैदा हुआ कि वह एक दूसरे से जुदा हो गए। बरनबास यूहन्ना मरक़ुस को साथ लेकर जहाज़ में बैठ गया और क़ुबरुस चला गया, \v 40 जबकि पौलुस ने सीलास को ख़िदमत के लिए चुन लिया। मक़ामी भाइयों ने उन्हें ख़ुदावंद के फ़ज़ल के सुपुर्द किया और वह रवाना हुए। \v 41 यों पौलुस जमातों को मज़बूत करते करते शाम और किलिकिया में से गुज़रा। \c 16 \s1 तीमुथियुस का चुनाव \p \v 1 चलते चलते वह दिरबे पहुँचा, फिर लुस्तरा। वहाँ एक शागिर्द बनाम तीमुथियुस रहता था। उस की यहूदी माँ ईमान लाई थी जबकि बाप यूनानी था। \v 2 लुस्तरा और इकुनियुम के भाइयों ने उस की अच्छी रिपोर्ट दी, \v 3 इसलिए पौलुस उसे सफ़र पर अपने साथ ले जाना चाहता था। उस इलाक़े के यहूदियों का लिहाज़ करके उसने तीमुथियुस का ख़तना करवाया, क्योंकि सब लोग इससे वाक़िफ़ थे कि उसका बाप यूनानी है। \v 4 फिर शहर बशहर जाकर उन्होंने मक़ामी जमातों को यरूशलम के रसूलों और बुज़ुर्गों के वह फ़ैसले पहुँचाए जिनके मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारनी थी। \v 5 यों जमातें ईमान में मज़बूत हुईं और तादाद में रोज़ बरोज़ बढ़ती गईं। \s1 त्रोआस में पौलुस की रोया \p \v 6 रूहुल-क़ुद्स ने उन्हें सूबा आसिया में कलामे-मुक़द्दस की मुनादी करने से रोक लिया, इसलिए वह फ़रूगिया और गलतिया के इलाक़े में से गुज़रे। \v 7 मूसिया के क़रीब आकर उन्होंने शिमाल की तरफ़ सूबा बिथुनिया में दाख़िल होने की कोशिश की। लेकिन ईसा के रूह ने उन्हें वहाँ भी जाने न दिया, \v 8 इसलिए वह मूसिया में से गुज़रकर बंदरगाह त्रोआस पहुँचे। \v 9 वहाँ पौलुस ने रात के वक़्त रोया देखी जिसमें शिमाली यूनान में वाक़े सूबा मकिदुनिया का एक आदमी खड़ा उससे इलतमास कर रहा था, “समुंदर को पार करके मकिदुनिया आएँ और हमारी मदद करें!” \v 10 ज्योंही उसने यह रोया देखी हम मकिदुनिया जाने की तैयारियाँ करने लगे। क्योंकि हमने रोया से यह नतीजा निकाला कि अल्लाह ने हमें उस इलाक़े के लोगों को ख़ुशख़बरी सुनाने के लिए बुलाया है। \s1 फ़िलिप्पी में लुदिया की तबदीली \p \v 11 हम त्रोआस में जहाज़ पर सवार होकर सीधे जज़ीराए-समुतराके के लिए रवाना हुए। फिर अगले दिन आगे निकलकर नयापुलिस पहुँचे। \v 12 वहाँ जहाज़ से उतरकर हम फ़िलिप्पी चले गए, जो सूबा मकिदुनिया के उस ज़िले का सदर शहर था और रोमी नौआबादी था। इस शहर में हम कुछ दिन ठहरे। \v 13 सबत के दिन हम शहर से निकलकर दरिया के किनारे गए, जहाँ हमारी तवक़्क़ो थी कि यहूदी दुआ के लिए जमा होंगे। वहाँ हम बैठकर कुछ ख़वातीन से बात करने लगे जो इकट्ठी हुई थीं। \v 14 उनमें से थुआतीरा शहर की एक औरत थी जिसका नाम लुदिया था। उसका पेशा क़ीमती अरग़वानी रंग के कपड़े की तिजारत था और वह अल्लाह की परस्तिश करनेवाली ग़ैरयहूदी थी। ख़ुदावंद ने उसके दिल को खोल दिया, और उसने पौलुस की बातों पर तवज्जुह दी। \v 15 उसके और उसके घरवालों के बपतिस्मा लेने के बाद उसने हमें अपने घर में ठहरने की दावत दी। उसने कहा, “अगर आप समझते हैं कि मैं वाक़ई ख़ुदावंद पर ईमान लाई हूँ तो मेरे घर आकर ठहरें।” यों उसने हमें मजबूर किया। \s1 फ़िलिप्पी की जेल में \p \v 16 एक दिन हम दुआ की जगह की तरफ़ जा रहे थे कि हमारी मुलाक़ात एक लौंडी से हुई जो एक बदरूह के ज़रीए लोगों की क़िस्मत का हाल बताती थी। इससे वह अपने मालिकों के लिए बहुत-से पैसे कमाती थी। \v 17 वह पौलुस और हमारे पीछे पड़कर चीख़ चीख़कर कहने लगी, “यह आदमी अल्लाह तआला के ख़ादिम हैं जो आपको नजात की राह बताने आए हैं।” \v 18 यह सिलसिला रोज़ बरोज़ जारी रहा। आख़िरकार पौलुस तंग आकर मुड़ा और बदरूह से कहा, “मैं तुझे ईसा मसीह के नाम से हुक्म देता हूँ कि लड़की में से निकल जा!” उसी लमहे वह निकल गई। \p \v 19 उसके मालिकों को मालूम हुआ कि पैसे कमाने की उम्मीद जाती रही तो वह पौलुस और सीलास को पकड़कर चौक में बैठे इक़तिदार रखनेवालों के सामने घसीट ले गए। \v 20 उन्हें मजिस्ट्रेटों के सामने पेश करके वह चिल्लाने लगे, “यह आदमी हमारे शहर में हलचल पैदा कर रहे हैं। यह यहूदी हैं \v 21 और ऐसे रस्मो-रिवाज का प्रचार कर रहे हैं जिन्हें क़बूल करना और अदा करना हम रोमियों के लिए जायज़ नहीं।” \v 22 हुजूम भी आ मिला और पौलुस और सीलास के ख़िलाफ़ बातें करने लगा। \p इस पर मजिस्ट्रेटों ने हुक्म दिया कि उनके कपड़े उतारे और उन्हें लाठी से मारा जाए। \v 23 उन्होंने उनकी ख़ूब पिटाई करवाकर उन्हें क़ैदख़ाने में डाल दिया और दारोग़े से कहा कि एहतियात से उनकी पहरादारी करो। \v 24 चुनाँचे उसने उन्हें जेल के सबसे अंदरूनी हिस्से में ले जाकर उनके पाँव काठ में डाल दिए। \p \v 25 अब ऐसा हुआ कि पौलुस और सीलास आधी रात के क़रीब दुआ कर रहे और अल्लाह की तमजीद के गीत गा रहे थे और बाक़ी क़ैदी सुन रहे थे। \v 26 अचानक बड़ा ज़लज़ला आया और क़ैदख़ाने की पूरी इमारत बुनियादों तक हिल गई। फ़ौरन तमाम दरवाज़े खुल गए और तमाम क़ैदियों की ज़ंजीरें खुल गईं। \v 27 दारोग़ा जाग उठा। जब उसने देखा कि जेल के दरवाज़े खुले हैं तो वह अपनी तलवार निकालकर ख़ुदकुशी करने लगा, क्योंकि ऐसा लग रहा था कि क़ैदी फ़रार हो गए हैं। \v 28 लेकिन पौलुस चिल्ला उठा, “मत करें! अपने आपको नुक़सान न पहुँचाएँ। हम सब यहीं हैं।” \p \v 29 दारोग़े ने चराग़ मँगवा लिया और भागकर अंदर आया। लरज़ते लरज़ते वह पौलुस और सीलास के सामने गिर गया। \v 30 फिर उन्हें बाहर ले जाकर उसने पूछा, “साहबो, मुझे नजात पाने के लिए क्या करना है?” \p \v 31 उन्होंने जवाब दिया, “ख़ुदावंद ईसा पर ईमान लाएँ तो आप और आपके घराने को नजात मिलेगी।” \v 32 फिर उन्होंने उसे और उसके तमाम घरवालों को ख़ुदावंद का कलाम सुनाया। \v 33 और रात की उसी घड़ी दारोग़े ने उन्हें ले जाकर उनके ज़ख़मों को धोया। इसके बाद उसका और उसके सारे घरवालों का बपतिस्मा हुआ। \v 34 फिर उसने उन्हें अपने घर में लाकर खाना खिलाया। अल्लाह पर ईमान लाने के बाइस उसने और उसके तमाम घरवालों ने बड़ी ख़ुशी मनाई। \p \v 35 जब दिन चढ़ा तो मजिस्ट्रेटों ने अपने अफ़सरों को दारोग़े के पास भिजवा दिया कि वह पौलुस और सीलास को रिहा करे। \p \v 36 चुनाँचे दारोग़े ने पौलुस को उनका पैग़ाम पहुँचा दिया, “मजिस्ट्रेटों ने हुक्म दिया है कि आप और सीलास को रिहा कर दिया जाए। अब निकलकर सलामती से चले जाएँ।” \p \v 37 लेकिन पौलुस ने एतराज़ किया। उसने उनसे कहा, “उन्होंने हमें अवाम के सामने ही और अदालत में पेश किए बग़ैर मारकर जेल में डाल दिया है हालाँकि हम रोमी शहरी हैं। और अब वह हमें चुपके से निकालना चाहते हैं? हरगिज़ नहीं! अब वह ख़ुद आएँ और हमें बाहर ले जाएँ।” \p \v 38 अफ़सरों ने मजिस्ट्रेटों को यह ख़बर पहुँचाई। जब उन्हें मालूम हुआ कि पौलुस और सीलास रोमी शहरी हैं तो वह घबरा गए। \v 39 वह ख़ुद उन्हें समझाने के लिए आए और जेल से बाहर लाकर गुज़ारिश की कि शहर को छोड़ दें। \v 40 चुनाँचे पौलुस और सीलास जेल से निकल आए। लेकिन पहले वह लुदिया के घर गए जहाँ वह भाइयों से मिले और उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई की। फिर वह चले गए। \c 17 \s1 थिस्सलुनीके में \p \v 1 अंफ़िपुलिस और अपुल्लोनिया से होकर पौलुस और सीलास थिस्सलुनीके शहर पहुँच गए जहाँ यहूदी इबादतख़ाना था। \v 2 अपनी आदत के मुताबिक़ पौलुस उसमें गया और लगातार तीन सबतों के दौरान कलामे-मुक़द्दस से दलायल दे देकर यहूदियों को क़ायल करने की कोशिश करता रहा। \v 3 उसने कलामे-मुक़द्दस की तशरीह करके साबित किया कि मसीह का दुख उठाना और मुरदों में से जी उठना लाज़िम था। उसने कहा, “जिस ईसा की मैं ख़बर दे रहा हूँ, वही मसीह है।” \v 4 यहूदियों में से कुछ क़ायल होकर पौलुस और सीलास से वाबस्ता हो गए, जिनमें ख़ुदातरस यूनानियों की बड़ी तादाद और बारसूख ख़वातीन भी शरीक थीं। \p \v 5 यह देखकर बाक़ी यहूदी हसद करने लगे। उन्होंने गलियों में आवारा फिरनेवाले कुछ शरीर आदमी इकट्ठे करके जुलूस निकाला और शहर में हलचल मचा दी। फिर यासोन के घर पर हमला करके उन्होंने पौलुस और सीलास को ढूँडा ताकि उन्हें अवामी इजलास के सामने पेश करें। \v 6 लेकिन वह वहाँ नहीं थे, इसलिए वह यासोन और चंद एक और ईमानदार भाइयों को शहर के मजिस्ट्रेटों के सामने लाए। उन्होंने चीख़कर कहा, “यह लोग पूरी दुनिया में गड़बड़ पैदा कर रहे हैं और अब यहाँ भी आ गए हैं। \v 7 यासोन ने उन्हें अपने घर में ठहराया है। यह सब शहनशाह के अहकाम की ख़िलाफ़वरज़ी कर रहे हैं, क्योंकि यह किसी और को बादशाह मानते हैं जिसका नाम ईसा है।” \v 8 इस तरह की बातों से उन्होंने हुजूम और मजिस्ट्रेटों में बड़ा हंगामा पैदा किया। \v 9 चुनाँचे मजिस्ट्रेटों ने यासोन और दूसरों से ज़मानत ली और फिर उन्हें छोड़ दिया। \s1 बेरिया में \p \v 10 उसी रात भाइयों ने पौलुस और सीलास को बेरिया भेज दिया। वहाँ पहुँचकर वह यहूदी इबादतख़ाने में गए। \v 11 यह लोग थिस्सलुनीके के यहूदियों की निसबत ज़्यादा खुले ज़हन के थे। यह बड़े शौक़ से पौलुस और सीलास की बातें सुनते और रोज़ बरोज़ कलामे-मुक़द्दस की तफ़तीश करते रहे कि क्या वाक़ई ऐसा है जैसा हमें बताया जा रहा है? \v 12 नतीजे में इनमें से बहुत-से यहूदी ईमान लाए और साथ साथ बहुत-सी बारसूख यूनानी ख़वातीन और मर्द भी। \v 13 लेकिन फिर थिस्सलुनीके के यहूदियों को यह ख़बर मिली कि पौलुस बेरिया में अल्लाह का कलाम सुना रहा है। वह वहाँ भी पहुँचे और लोगों को उकसाकर हलचल मचा दी। \v 14 इस पर भाइयों ने पौलुस को फ़ौरन साहिल पर भेज दिया, लेकिन सीलास और तीमुथियुस बेरिया में पीछे रह गए। \v 15 जो आदमी पौलुस को साहिल तक पहुँचाने आए थे वह उसके साथ अथेने तक गए। वहाँ वह उसे छोड़कर वापस चले गए। उनके हाथ पौलुस ने सीलास और तीमुथियुस को ख़बर भेजी कि जितनी जल्दी हो सके बेरिया को छोड़कर मेरे पास आ जाएँ। \s1 अथेने में \p \v 16 अथेने शहर में सीलास और तीमुथियुस का इंतज़ार करते करते पौलुस बड़े जोश में आ गया, क्योंकि उसने देखा कि पूरा शहर बुतों से भरा हुआ है। \v 17 वह यहूदी इबादतख़ाने में जाकर यहूदियों और ख़ुदातरस ग़ैरयहूदियों से बहस करने लगा। साथ साथ वह रोज़ाना चौक में भी जाकर वहाँ पर मौजूद लोगों से गुफ़्तगू करता रहा। \v 18 इपिकूरी और स्तोयकी फ़लसफ़ी \f + \fr 17:18 \ft यानी रवाक़ियत के फ़लसफ़ी। \f* भी उससे बहस करने लगे। जब पौलुस ने उन्हें ईसा और उसके जी उठने की ख़ुशख़बरी सुनाई तो बाज़ ने पूछा, “यह बकवासी इन बातों से क्या कहना चाहता है जो इसने इधर-उधर से चुनकर जोड़ दी हैं?” \p दूसरों ने कहा, “लगता है कि वह अजनबी देवताओं की ख़बर दे रहा है।” \v 19 वह उसे साथ लेकर शहर की मजलिसे-शूरा में गए जो अरियोपगुस नामी पहाड़ी पर मुनअक़िद होती थी। उन्होंने दरख़ास्त की, “क्या हमें मालूम हो सकता है कि आप कौन-सी नई तालीम पेश कर रहे हैं? \v 20 आप तो हमें अजीबो-ग़रीब बातें सुना रहे हैं। अब हम उनका सहीह मतलब जानना चाहते हैं।” \v 21 (बात यह थी कि अथेने के तमाम बाशिंदे शहर में रहनेवाले परदेसियों समेत अपना पूरा वक़्त इसमें सर्फ़ करते थे कि ताज़ा ताज़ा ख़यालात सुनें या सुनाएँ।) \p \v 22 पौलुस मजलिस में खड़ा हुआ और कहा, “अथेने के हज़रात, मैं देखता हूँ कि आप हर लिहाज़ से बहुत मज़हबी लोग हैं। \v 23 क्योंकि जब मैं शहर में से गुज़र रहा था तो उन चीज़ों पर ग़ौर किया जिनकी पूजा आप करते हैं। चलते चलते मैंने एक ऐसी क़ुरबानगाह भी देखी जिस पर लिखा था, ‘नामालूम ख़ुदा की क़ुरबानगाह।’ अब मैं आपको उस ख़ुदा की ख़बर देता हूँ जिसकी पूजा आप करते तो हैं मगर आप उसे जानते नहीं। \v 24 यह वह ख़ुदा है जिसने दुनिया और उसमें मौजूद हर चीज़ की तख़लीक़ की। वह आसमानो-ज़मीन का मालिक है, इसलिए वह इनसानी हाथों के बनाए हुए मंदिरों में सुकूनत नहीं करता। \v 25 और इनसानी हाथ उस की ख़िदमत नहीं कर सकते, क्योंकि उसे कोई भी चीज़ दरकार नहीं होती। इसके बजाए वही सबको ज़िंदगी और साँस मुहैया करके उनकी तमाम ज़रूरियात पूरी करता है। \v 26 उसी ने एक शख़्स को ख़लक़ किया ताकि दुनिया की तमाम क़ौमें उससे निकलकर पूरी दुनिया में फैल जाएँ। उसने हर क़ौम के औक़ात और सरहद्दें भी मुक़र्रर कीं। \v 27 मक़सद यह था कि वह ख़ुदा को तलाश करें। उम्मीद यह थी कि वह टटोल टटोलकर उसे पाएँ, अगरचे वह हममें से किसी से दूर नहीं होता। \v 28 क्योंकि उसमें हम जीते, हरकत करते और वुजूद रखते हैं। आपके अपने कुछ शायरों ने भी फ़रमाया है, ‘हम भी उसके फ़रज़ंद हैं।’ \v 29 अब चूँकि हम अल्लाह के फ़रज़ंद हैं इसलिए हमारा उसके बारे में तसव्वुर यह नहीं होना चाहिए कि वह सोने, चाँदी या पत्थर का कोई मुजस्समा हो जो इनसान की महारत और डिज़ायन से बनाया गया हो। \v 30 माज़ी में ख़ुदा ने इस क़िस्म की जहालत को नज़रंदाज़ किया, लेकिन अब वह हर जगह के लोगों को तौबा का हुक्म देता है। \v 31 क्योंकि उसने एक दिन मुक़र्रर किया है जब वह इनसाफ़ से दुनिया की अदालत करेगा। और वह यह अदालत एक शख़्स की मारिफ़त करेगा जिसको वह मुतैयिन कर चुका है और जिसकी तसदीक़ उसने इससे की है कि उसने उसे मुरदों में से ज़िंदा कर दिया है।” \p \v 32 मुरदों की क़ियामत का ज़िक्र सुनकर बाज़ ने पौलुस का मज़ाक़ उड़ाया। लेकिन बाज़ ने कहा, “हम किसी और वक़्त इसके बारे में आपसे मज़ीद सुनना चाहते हैं।” \v 33 फिर पौलुस मजलिस से निकलकर चला गया। \v 34 कुछ लोग उससे वाबस्ता होकर ईमान ले आए। उनमें से मजलिसे-शूरा का मेंबर दियोनीसियुस था और एक औरत बनाम दमरिस। कुछ और भी थे। \c 18 \s1 कुरिंथुस में \p \v 1 इसके बाद पौलुस अथेने को छोड़कर कुरिंथुस शहर आया। \v 2 वहाँ उस की मुलाक़ात एक यहूदी से हुई जिसका नाम अकविला था। वह पुंतुस का रहनेवाला था और थोड़ी देर पहले अपनी बीवी प्रिसकिल्ला समेत इटली से आया था। वजह यह थी कि शहनशाह क्लौदियुस ने हुक्म सादिर किया था कि तमाम यहूदी रोम को छोड़कर चले जाएँ। उन लोगों के पास पौलुस गया \v 3 और चूँकि उनका पेशा भी ख़ैमे सिलाई करना था इसलिए वह उनके घर ठहरकर रोज़ी कमाने लगा। \v 4 साथ साथ उसने हर सबत को यहूदी इबादतख़ाने में तालीम देकर यहूदियों और यूनानियों को क़ायल करने की कोशिश की। \p \v 5 जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया से आए तो पौलुस अपना पूरा वक़्त कलाम सुनाने में सर्फ़ करने लगा। उसने यहूदियों को गवाही दी कि ईसा कलामे-मुक़द्दस में बयान किया गया मसीह है। \v 6 लेकिन जब वह उस की मुख़ालफ़त करके उस की तज़लील करने लगे तो उसने एहतजाज में अपने कपड़ों से गर्द झाड़कर कहा, “आप ख़ुद अपनी हलाकत के ज़िम्मादार हैं, मैं बेक़ुसूर हूँ। अब से मैं ग़ैरयहूदियों के पास जाया करूँगा।” \v 7 फिर वह वहाँ से निकलकर इबादतख़ाने के साथवाले घर में गया। वहाँ तितुस यूसतुस रहता था जो यहूदी नहीं था, लेकिन ख़ुदा का ख़ौफ़ मानता था। \v 8 और क्रिसपुस जो इबादतख़ाने का राहनुमा था अपने घराने समेत ख़ुदावंद पर ईमान लाया। कुरिंथुस के बहुत सारे और लोगों ने भी जब पौलुस की बातें सुनीं तो ईमान लाए और बपतिस्मा लिया। \p \v 9 एक रात ख़ुदावंद रोया में पौलुस से हमकलाम हुआ, “मत डर! कलाम करता जा और ख़ामोश न हो, \v 10 क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ। कोई हमला करके तुझे नुक़सान नहीं पहुँचाएगा, क्योंकि इस शहर में मेरे बहुत-से लोग हैं।” \v 11 फिर पौलुस मज़ीद डेढ़ साल वहाँ ठहरकर लोगों को अल्लाह का कलाम सिखाता रहा। \p \v 12 उन दिनों में जब गल्लियो सूबा अख़या का गवर्नर था तो यहूदी मुत्तहिद होकर पौलुस के ख़िलाफ़ जमा हुए और उसे अदालत में गल्लियो के सामने लाए। \v 13 उन्होंने कहा, “यह आदमी लोगों को ऐसे तरीक़े से अल्लाह की इबादत करने पर उकसा रहा है जो हमारी शरीअत के ख़िलाफ़ है।” \p \v 14 पौलुस जवाब में कुछ कहने को था कि गल्लियो ख़ुद यहूदियों से मुख़ातिब हुआ, “सुनें, यहूदी मर्दो! अगर आपका इलज़ाम कोई नाइनसाफ़ी या संगीन जुर्म होता तो आपकी बात क़ाबिले-बरदाश्त होती। \v 15 लेकिन आपका झगड़ा मज़हबी तालीम, नामों और आपकी यहूदी शरीअत से ताल्लुक़ रखता है, इसलिए उसे ख़ुद हल करें। मैं इस मामले में फ़ैसला करने के लिए तैयार नहीं हूँ।” \v 16 यह कहकर उसने उन्हें अदालत से भगा दिया। \v 17 इस पर हुजूम ने यहूदी इबादतख़ाने के राहनुमा सोसथिनेस को पकड़कर अदालत के सामने उस की पिटाई की। लेकिन गल्लियो ने परवा न की। \s1 अंताकिया तक वापसी का सफ़र \p \v 18 इसके बाद भी पौलुस बहुत दिन कुरिंथुस में रहा। फिर भाइयों को ख़ैरबाद कहकर वह क़रीब के शहर किंख़रिया गया जहाँ उसने किसी मन्नत के पूरे होने पर अपने सर के बाल मुँडवा दिए। इसके बाद वह प्रिसकिल्ला और अकविला के साथ जहाज़ पर सवार होकर मुल्के-शाम के लिए रवाना हुआ। \v 19 पहले वह इफ़िसुस पहुँचे जहाँ पौलुस ने प्रिसकिल्ला और अकविला को छोड़ दिया। वहाँ भी उसने यहूदी इबादतख़ाने में जाकर यहूदियों से बहस की। \v 20 उन्होंने उससे दरख़ास्त की कि मज़ीद वक़्त उनके साथ गुज़ारे, लेकिन उसने इनकार किया \v 21 और उन्हें ख़ैरबाद कहकर कहा, “अगर अल्लाह की मरज़ी हो तो मैं आपके पास वापस आऊँगा।” फिर वह जहाज़ पर सवार होकर इफ़िसुस से रवाना हुआ। \p \v 22 सफ़र करते करते वह क़ैसरिया पहुँच गया, जहाँ से वह यरूशलम जाकर मक़ामी जमात से मिला। इसके बाद वह अंताकिया वापस चला गया \v 23 जहाँ वह कुछ देर ठहरा। फिर आगे निकलकर वह गलतिया और फ़रूगिया के इलाक़े में से गुज़रते हुए वहाँ के तमाम ईमानदारों को मज़बूत करता गया। \s1 अपुल्लोस इफ़िसुस और कुरिंथुस में \p \v 24 इतने में एक फ़सीह यहूदी जिसे कलामे-मुक़द्दस का ज़बरदस्त इल्म था इफ़िसुस पहुँच गया था। उसका नाम अपुल्लोस था। वह मिसर के शहर इस्कंदरिया का रहनेवाला था। \v 25 उसे ख़ुदावंद की राह के बारे में तालीम दी गई थी और वह बड़ी सरगरमी से लोगों को ईसा के बारे में सिखाता रहा। उस की यह तालीम सहीह थी अगरचे वह अभी तक सिर्फ़ यहया का बपतिस्मा जानता था। \v 26 इफ़िसुस के यहूदी इबादतख़ाने में वह बड़ी दिलेरी से कलाम करने लगा। यह सुनकर प्रिसकिल्ला और अकविला ने उसे एक तरफ़ ले जाकर उसके सामने अल्लाह की राह को मज़ीद तफ़सील से बयान किया। \v 27 अपुल्लोस सूबा अख़या जाने का ख़याल रखता था तो इफ़िसुस के भाइयों ने उस की हौसलाअफ़्ज़ाई की। उन्होंने वहाँ के शागिर्दों को ख़त लिखा कि वह उसका इस्तक़बाल करें। जब वह वहाँ पहुँचा तो उनके लिए बड़ी मदद का बाइस बना जो अल्लाह के फ़ज़ल से ईमान लाए थे, \v 28 क्योंकि वह अलानिया मुबाहसों में ज़बरदस्त दलायल से यहूदियों पर ग़ालिब आया और कलामे-मुक़द्दस से साबित किया कि ईसा मसीह है। \c 19 \s1 पौलुस इफ़िसुस में \p \v 1 जब अपुल्लोस कुरिंथुस में ठहरा हुआ था तो पौलुस एशियाए-कूचक के अंदरूनी इलाक़े में से सफ़र करते करते साहिली शहर इफ़िसुस में आया। वहाँ उसे कुछ शागिर्द मिले \v 2 जिनसे उसने पूछा, “क्या आपको ईमान लाते वक़्त रूहुल-क़ुद्स मिला?” \p उन्होंने जवाब दिया, “नहीं, हमने तो रूहुल-क़ुद्स का ज़िक्र तक नहीं सुना।” \p \v 3 उसने पूछा, “तो आपको कौन-सा बपतिस्मा दिया गया?” \p उन्होंने जवाब दिया, “यहया का।” \p \v 4 पौलुस ने कहा, “यहया ने बपतिस्मा दिया जब लोगों ने तौबा की। लेकिन उसने ख़ुद उन्हें बताया, ‘मेरे बाद आनेवाले पर ईमान लाओ, यानी ईसा पर’।” \p \v 5 यह सुनकर उन्होंने ख़ुदावंद ईसा के नाम पर बपतिस्मा लिया। \v 6 और जब पौलुस ने अपने हाथ उन पर रखे तो उन पर रूहुल-क़ूदस नाज़िल हुआ, और वह ग़ैरज़बानें बोलने और नबुव्वत करने लगे। \v 7 इन आदमियों की कुल तादाद तक़रीबन बारह थी। \p \v 8 पौलुस यहूदी इबादतख़ाने में गया और तीन महीने के दौरान यहूदियों से दिलेरी से बात करता रहा। उनके साथ बहस करके उसने उन्हें अल्लाह की बादशाही के बारे में क़ायल करने की कोशिश की। \v 9 लेकिन कुछ अड़ गए। वह अल्लाह के ताबे न हुए बल्कि अवाम के सामने ही अल्लाह की राह को बुरा-भला कहने लगे। इस पर पौलुस ने उन्हें छोड़ दिया। शागिर्दों को भी अलग करके वह उनके साथ तुरन्नुस के लैक्चर हाल में जमा हुआ करता था जहाँ वह रोज़ाना उन्हें तालीम देता रहा। \v 10 यह सिलसिला दो साल तक जारी रहा। यों सूबा आसिया के तमाम लोगों को ख़ुदावंद का कलाम सुनने का मौक़ा मिला, ख़ाह वह यहूदी थे या यूनानी। \s1 राहनुमा इमाम स्किवा के सात बेटे \p \v 11 अल्लाह ने पौलुस की मारिफ़त ग़ैरमामूली मोजिज़े किए, \v 12 यहाँ तक कि जब रूमाल या एप्रन उसके बदन से लगाने के बाद मरीज़ों पर रखे जाते तो उनकी बीमारियाँ जाती रहतीं और बदरूहें निकल जातीं। \v 13 वहाँ कुछ ऐसे यहूदी भी थे जो जगह जगह जाकर बदरूहें निकालते थे। अब वह बदरूहों के बंधन में फँसे लोगों पर ख़ुदावंद ईसा का नाम इस्तेमाल करने की कोशिश करके कहने लगे, “मैं तुझे उस ईसा के नाम से निकलने का हुक्म देता हूँ जिसकी मुनादी पौलुस करता है।” \v 14 एक यहूदी राहनुमा इमाम बनाम स्किवा के सात बेटे ऐसा करते थे। \p \v 15 लेकिन एक दफ़ा जब यही कोशिश कर रहे थे तो बदरूह ने जवाब दिया, “ईसा को तो मैं जानती हूँ और पौलुस को भी, लेकिन तुम कौन हो?” \p \v 16 फिर वह आदमी जिसमें बदरूह थी उन पर झपटकर सब पर ग़ालिब आ गया। उसका उन पर इतना सख़्त हमला हुआ कि वह नंगे और ज़ख़मी हालत में भागकर उस घर से निकल गए। \v 17 इस वाकिए की ख़बर इफ़िसुस के तमाम रहनेवाले यहूदियों और यूनानियों में फैल गई। उन पर ख़ौफ़ तारी हुआ और ख़ुदावंद ईसा के नाम की ताज़ीम हुई। \v 18 जो ईमान लाए थे उनमें से बहुतेरों ने आकर अलानिया अपने गुनाहों का इक़रार किया। \v 19 जादूगरी करनेवालों की बड़ी तादाद ने अपनी जादूमंत्र की किताबें इकट्ठी करके अवाम के सामने जला दीं। पूरी किताबों का हिसाब किया गया तो उनकी कुल रक़म चाँदी के पचास हज़ार सिक्के थी। \v 20 यों ख़ुदावंद का कलाम ज़बरदस्त तरीक़े से बढ़ता और ज़ोर पकड़ता गया। \s1 इफ़िसुस में हंगामा \p \v 21 इन वाक़ियात के बाद पौलुस ने मकिदुनिया और अख़या में से गुज़रकर यरूशलम जाने का फ़ैसला किया। उसने कहा, “इसके बाद लाज़िम है कि मैं रोम भी जाऊँ।” \v 22 उसने अपने दो मददगारों तीमुथियुस और इरास्तुस को आगे मकिदुनिया भेज दिया जबकि वह ख़ुद मज़ीद कुछ देर के लिए सूबा आसिया में ठहरा रहा। \p \v 23 तक़रीबन उस वक़्त अल्लाह की राह एक शदीद हंगामे का बाइस हो गई। \v 24 यह यों हुआ, इफ़िसुस में एक चाँदी की अशया बनानेवाला रहता था जिसका नाम देमेतरियुस था। वह चाँदी से अरतमिस देवी के मंदिर बनवाता था, और उसके काम से दस्तकारों का कारोबार ख़ूब चलता था। \v 25 अब उसने इस काम से ताल्लुक़ रखनेवाले दीगर दस्तकारों को जमा करके उनसे कहा, “हज़रात, आपको मालूम है कि हमारी दौलत इस कारोबार पर मुनहसिर है। \v 26 आपने यह भी देख और सुन लिया है कि इस आदमी पौलुस ने न सिर्फ़ इफ़िसुस बल्कि तक़रीबन पूरे सूबा आसिया में बहुत-से लोगों को भटकाकर क़ायल कर लिया है कि हाथों के बने देवता हक़ीक़त में देवता नहीं होते। \v 27 न सिर्फ़ यह ख़तरा है कि हमारे कारोबार की बदनामी हो बल्कि यह भी कि अज़ीम देवी अरतमिस के मंदिर का असरो-रसूख़ जाता रहेगा, कि अरतमिस ख़ुद जिसकी पूजा सूबा आसिया और पूरी दुनिया में की जाती है अपनी अज़मत खो बैठे।” \p \v 28 यह सुनकर वह तैश में आकर चीख़ने-चिल्लाने लगे, “इफ़िसियों की अरतमिस देवी अज़ीम है!” \v 29 पूरे शहर में हलचल मच गई। लोगों ने पौलुस के मकिदुनी हमसफ़र गयुस और अरिस्तरख़ुस को पकड़ लिया और मिलकर तमाशागाह में दौड़े आए। \v 30 यह देखकर पौलुस भी अवाम के इस इजलास में जाना चाहता था, लेकिन शागिर्दों ने उसे रोक लिया। \v 31 इसी तरह उसके कुछ दोस्तों ने भी जो सूबा आसिया के अफ़सर थे उसे ख़बर भेजकर मिन्नत की कि वह न जाए। \v 32 इजलास में बड़ी अफ़रा-तफ़री थी। कुछ यह चीख़ रहे थे, कुछ वह। ज़्यादातर लोग जमा होने की वजह जानते भी न थे। \v 33 यहूदियों ने सिकंदर को आगे कर दिया। साथ साथ हुजूम के कुछ लोग उसे हिदायात देते रहे। उसने हाथ से ख़ामोश हो जाने का इशारा किया ताकि वह इजलास के सामने अपना दिफ़ा करे। \v 34 लेकिन जब उन्होंने जान लिया कि वह यहूदी है तो वह तक़रीबन दो घंटों तक चिल्लाकर नारा लगाते रहे, “इफ़िसुस की अरतमिस देवी अज़ीम है!” \p \v 35 आख़िरकार बलदिया का चीफ़ सैक्रटरी उन्हें ख़ामोश कराने में कामयाब हुआ। फिर उसने कहा, “इफ़िसुस के हज़रात, किस को मालूम नहीं कि इफ़िसुस अज़ीम अरतमिस देवी के मंदिर का मुहाफ़िज़ है! पूरी दुनिया जानती है कि हम उसके उस मुजस्समे के निगरान हैं जो आसमान से गिरकर हमारे पास पहुँच गया। \v 36 यह हक़ीक़त तो नाक़ाबिले-इनकार है। चुनाँचे लाज़िम है कि आप चुप-चाप रहें और जल्दबाज़ी न करें। \v 37 आप यह आदमी यहाँ लाए हैं हालाँकि न तो वह मंदिरों को लूटनेवाले हैं, न उन्होंने देवी की बेहुरमती की है। \v 38 अगर देमेतरियुस और उसके साथवाले दस्तकारों का किसी पर इलज़ाम है तो इसके लिए कचहरियाँ और गवर्नर होते हैं। वहाँ जाकर वह एक दूसरे से मुक़दमा लड़ें। \v 39 अगर आप मज़ीद कोई मामला पेश करना चाहते हैं तो उसे हल करने के लिए क़ानूनी मजलिस होती है। \v 40 अब हम इस ख़तरे में हैं कि आज के वाक़ियात के बाइस हम पर फ़साद का इलज़ाम लगाया जाएगा। क्योंकि जब हमसे पूछा जाएगा तो हम इस क़िस्म के बेतरतीब और नाजायज़ इजतिमा का कोई जवाज़ पेश नहीं कर सकेंगे।” \v 41 यह कहकर उसने इजलास को बरख़ास्त कर दिया। \c 20 \s1 मकिदुनिया और अख़या में \p \v 1 जब शहर में अफ़रा-तफ़री ख़त्म हुई तो पौलुस ने शागिर्दों को बुलाकर उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई की। फिर वह उन्हें ख़ैरबाद कहकर मकिदुनिया के लिए रवाना हुआ। \v 2 वहाँ पहुँचकर उसने जगह बजगह जाकर बहुत-सी बातों से ईमानदारों की हौसलाअफ़्ज़ाई की। यों चलते चलते वह यूनान पहुँच गया \v 3 जहाँ वह तीन माह तक ठहरा। वह मुल्के-शाम के लिए जहाज़ पर सवार होनेवाला था कि पता चला कि यहूदियों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की है। इस पर उसने मकिदुनिया से होकर वापस जाने का फ़ैसला किया। \v 4 उसके कई हमसफ़र थे : बेरिया से पुरुस का बेटा सोपतरुस, थिस्सलुनीके से अरिस्तरख़ुस और सिकुंदुस, दिरबे से गयुस, तीमुथियुस और सूबा आसिया से तुख़िकुस और त्रुफ़िमुस। \v 5 यह आदमी आगे निकलकर त्रोआस चले गए जहाँ उन्होंने हमारा इंतज़ार किया। \v 6 बेख़मीरी रोटी की ईद के बाद हम फ़िलिप्पी के क़रीब जहाज़ पर सवार हुए और पाँच दिन के बाद उनके पास त्रोआस पहुँच गए। वहाँ हम सात दिन रहे। \s1 त्रोआस में पौलुस की अलविदाई मीटिंग \p \v 7 इतवार को हम अशाए-रब्बानी मनाने के लिए जमा हुए। पौलुस लोगों से बात करने लगा और चूँकि वह अगले दिन रवाना होनेवाला था इसलिए वह आधी रात तक बोलता रहा। \v 8 ऊपर की मनज़िल में जिस कमरे में हम जमा थे वहाँ बहुत-से चराग़ जल रहे थे। \v 9 एक जवान खिड़की की दहलीज़ पर बैठा था। उसका नाम यूतिख़ुस था। ज्यों-ज्यों पौलुस की बातें लंबी होती जा रही थीं उस पर नींद ग़ालिब आती जा रही थी। आख़िरकार वह गहरी नींद में तीसरी मनज़िल से ज़मीन पर गिर गया। जब लोगों ने नीचे पहुँचकर उसे ज़मीन पर से उठाया तो वह जान-बहक़ हो चुका था। \v 10 लेकिन पौलुस उतरकर उस पर झुक गया और उसे अपने बाज़ुओं में ले लिया। उसने कहा, “मत घबराएँ, वह ज़िंदा है।” \v 11 फिर वह वापस ऊपर आ गया, अशाए-रब्बानी मनाई और खाना खाया। उसने अपनी बातें पौ फटने तक जारी रखीं, फिर रवाना हुआ। \v 12 और उन्होंने जवान को ज़िंदा हालत में वहाँ से लेकर बहुत तसल्ली पाई। \s1 त्रोआस से मीलेतुस तक \p \v 13 हम आगे निकलकर अस्सुस के लिए जहाज़ पर सवार हुए। ख़ुद पौलुस ने इंतज़ाम करवाया था कि वह पैदल जाकर अस्सुस में हमारे जहाज़ पर आएगा। \v 14 वहाँ वह हमसे मिला और हम उसे जहाज़ पर लाकर मतुलेने पहुँचे। \v 15 अगले दिन हम ख़ियुस के जज़ीरे से गुज़रे। उससे अगले दिन हम सामुस के जज़ीरे के क़रीब आए। इसके बाद के दिन हम मीलेतुस पहुँच गए। \v 16 पौलुस पहले से फ़ैसला कर चुका था कि मैं इफ़िसुस में नहीं ठहरूँगा बल्कि आगे निकलूँगा, क्योंकि वह जल्दी में था। वह जहाँ तक मुमकिन था पंतिकुस्त की ईद से पहले पहले यरूशलम पहुँचना चाहता था। \s1 इफ़िसुस के बुज़ुर्गों के लिए पौलुस की अलविदाई तक़रीर \p \v 17 मीलेतुस से पौलुस ने इफ़िसुस की जमात के बुज़ुर्गों को बुला लिया। \v 18 जब वह पहुँचे तो उसने उनसे कहा, “आप जानते हैं कि मैं सूबा आसिया में पहला क़दम उठाने से लेकर पूरा वक़्त आपके साथ किस तरह रहा। \v 19 मैंने बड़ी इंकिसारी से ख़ुदावंद की ख़िदमत की है। मुझे बहुत आँसू बहाने पड़े और यहूदियों की साज़िशों से मुझ पर बहुत आज़माइशें आईं। \v 20 मैंने आपके फ़ायदे की कोई भी बात आपसे छुपाए न रखी बल्कि आपको अलानिया और घर घर जाकर तालीम देता रहा। \v 21 मैंने यहूदियों को यूनानियों समेत गवाही दी कि उन्हें तौबा करके अल्लाह की तरफ़ रुजू करने और हमारे ख़ुदावंद ईसा पर ईमान लाने की ज़रूरत है। \v 22 और अब मैं रूहुल-क़ुद्स से बँधा हुआ यरूशलम जा रहा हूँ। मैं नहीं जानता कि मेरे साथ क्या कुछ होगा, \v 23 लेकिन इतना मुझे मालूम है कि रूहुल-क़ुद्स मुझे शहर बशहर इस बात से आगाह कर रहा है कि मुझे क़ैद और मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। \v 24 ख़ैर, मैं अपनी ज़िंदगी को किसी तरह भी अहम नहीं समझता। अहम बात सिर्फ़ यह है कि मैं अपना वह मिशन और ज़िम्मादारी पूरी करूँ जो ख़ुदावंद ईसा ने मेरे सुपुर्द की है। और वह ज़िम्मादारी यह है कि मैं लोगों को गवाही देकर यह ख़ुशख़बरी सुनाऊँ कि अल्लाह ने अपने फ़ज़ल से उनके लिए क्या कुछ किया है। \p \v 25 और अब मैं जानता हूँ कि आप सब जिन्हें मैंने अल्लाह की बादशाही का पैग़ाम सुना दिया है मुझे इसके बाद कभी नहीं देखेंगे। \v 26 इसलिए मैं आज ही आपको बताता हूँ कि अगर आपमें से कोई भी हलाक हो जाए तो मैं बेक़ुसूर हूँ, \v 27 क्योंकि मैं आपको अल्लाह की पूरी मरज़ी बताने से न झिजका। \v 28 चुनाँचे ख़बरदार रहकर अपना और उस पूरे गल्ले का ख़याल रखना जिस पर रूहुल-क़ूदस ने आपको मुक़र्रर किया है। निगरानों और चरवाहों की हैसियत से अल्लाह की जमात की ख़िदमत करें, उस जमात की जिसे उसने अपने ही फ़रज़ंद के ख़ून से हासिल किया है। \v 29 मुझे मालूम है कि मेरे जाने के बाद वहशी भेड़िये आपमें घुस आएँगे जो गल्ले को नहीं छोड़ेंगे। \v 30 आपके दरमियान से भी आदमी उठकर सच्चाई को तोड़-मरोड़कर बयान करेंगे ताकि शागिर्दों को अपने पीछे लगा लें। \v 31 इसलिए जागते रहें! यह बात ज़हन में रखें कि मैं तीन साल के दौरान दिन-रात हर एक को समझाने से बाज़ न आया। मेरे आँसुओं को याद रखें जो मैंने आपके लिए बहाए हैं। \p \v 32 और अब मैं आपको अल्लाह और उसके फ़ज़ल के कलाम के सुपुर्द करता हूँ। यही कलाम आपकी तामीर करके आपको वह मीरास मुहैया करने के क़ाबिल है जो अल्लाह तमाम मुक़द्दस किए गए लोगों को देता है। \v 33 मैंने किसी के भी सोने, चाँदी या कपड़ों का लालच न किया। \v 34 आप ख़ुद जानते हैं कि मैंने अपने इन हाथों से काम करके न सिर्फ़ अपनी बल्कि अपने साथियों की ज़रूरियात भी पूरी कीं। \v 35 अपने हर काम में मैं आपको दिखाता रहा कि लाज़िम है कि हम इस क़िस्म की मेहनत करके कमज़ोरों की मदद करें। क्योंकि हमारे सामने ख़ुदावंद ईसा के यह अलफ़ाज़ होने चाहिएँ कि देना लेने से मुबारक है।” \p \v 36 यह सब कुछ कहकर पौलुस ने घुटने टेककर उन सबके साथ दुआ की। \v 37 सब ख़ूब रोए और उसको गले लगा लगाकर बोसे दिए। \v 38 उन्हें ख़ासकर पौलुस की इस बात से तकलीफ़ हुई कि ‘आप इसके बाद मुझे कभी नहीं देखेंगे।’ फिर वह उसके साथ जहाज़ तक गए। \c 21 \s1 पौलुस यरूशलम जाता है \p \v 1 मुश्किल से इफ़िसुस के बुज़ुर्गों से अलग होकर हम रवाना हुए और सीधे जज़ीराए-कोस पहुँच गए। अगले दिन हम रुदुस आए और वहाँ से पतरा पहुँचे। \v 2 पतरा में फ़ेनीके के लिए जहाज़ मिल गया तो हम उस पर सवार होकर रवाना हुए। \v 3 जब क़ुबरुस दूर से नज़र आया तो हम उसके जुनूब में से गुज़रकर शाम के शहर सूर पहुँच गए जहाँ जहाज़ को अपना सामान उतारना था। \v 4 जहाज़ से उतरकर हमने मक़ामी शागिर्दों को तलाश किया और सात दिन उनके साथ ठहरे। उन ईमानदारों ने रूहुल-क़ुद्स की हिदायत से पौलुस को समझाने की कोशिश की कि वह यरूशलम न जाए। \v 5 जब हम एक हफ़ते के बाद जहाज़ पर वापस चले गए तो पूरी जमात बाल-बच्चों समेत हमारे साथ शहर से निकलकर साहिल तक आई। वहीं हमने घुटने टेककर दुआ की \v 6 और एक दूसरे को अलविदा कहा। फिर हम दुबारा जहाज़ पर सवार हुए जबकि वह अपने घरों को लौट गए। \p \v 7 सूर से अपना सफ़र जारी रखकर हम पतुलिमयिस पहुँचे जहाँ हमने मक़ामी ईमानदारों को सलाम किया और एक दिन उनके साथ गुज़ारा। \v 8 अगले दिन हम रवाना होकर क़ैसरिया पहुँच गए। वहाँ हम फ़िलिप्पुस के घर ठहरे। यह वही फ़िलिप्पुस था जो अल्लाह की ख़ुशख़बरी का मुनाद था और जिसे इब्तिदाई दिनों में यरूशलम में खाना तक़सीम करने के लिए छः और आदमियों के साथ मुक़र्रर किया गया था। \v 9 उस की चार ग़ैरशादीशुदा बेटियाँ थीं जो नबुव्वत की नेमत रखती थीं। \v 10 कई दिन गुज़र गए तो यहूदिया से एक नबी आया जिसका नाम अगबुस था। \v 11 जब वह हमसे मिलने आया तो उसने पौलुस की पेटी लेकर अपने पाँवों और हाथों को बाँध लिया और कहा, “रूहुल-क़ुद्स फ़रमाता है कि यरूशलम में यहूदी इस पेटी के मालिक को यों बाँधकर ग़ैरयहूदियों के हवाले करेंगे।” \p \v 12 यह सुनकर हमने मक़ामी ईमानदारों समेत पौलुस को समझाने की ख़ूब कोशिश की कि वह यरूशलम न जाए। \v 13 लेकिन उसने जवाब दिया, “आप क्यों रोते और मेरा दिल तोड़ते हैं? देखें, मैं ख़ुदावंद ईसा के नाम की ख़ातिर यरूशलम में न सिर्फ़ बाँधे जाने बल्कि उसके लिए अपनी जान तक देने को तैयार हूँ।” \p \v 14 हम उसे क़ायल न कर सके, इसलिए हम यह कहते हुए ख़ामोश हो गए कि “ख़ुदावंद की मरज़ी पूरी हो।” \p \v 15 इसके बाद हम तैयारियाँ करके यरूशलम चले गए। \v 16 क़ैसरिया के कुछ शागिर्द भी हमारे साथ चले और हमें मनासोन के घर पहुँचा दिया जहाँ हमें ठहरना था। मनासोन क़ुबरुस का था और जमात के इब्तिदाई दिनों में ईमान लाया था। \s1 पौलुस याक़ूब से मिलता है \p \v 17 जब हम यरूशलम पहुँचे तो मक़ामी भाइयों ने गरमजोशी से हमारा इस्तक़बाल किया। \v 18 अगले दिन पौलुस हमारे साथ याक़ूब से मिलने गया। तमाम मक़ामी बुज़ुर्ग भी हाज़िर हुए। \v 19 उन्हें सलाम करके पौलुस ने तफ़सील से बयान किया कि अल्लाह ने उस की ख़िदमत की मारिफ़त ग़ैरयहूदियों में क्या किया था। \v 20 यह सुनकर उन्होंने अल्लाह की तमजीद की। फिर उन्होंने कहा, “भाई, आपको मालूम है कि हज़ारों यहूदी ईमान लाए हैं। और सब बड़ी सरगरमी से शरीअत पर अमल करते हैं। \v 21 उन्हें आपके बारे में ख़बर दी गई है कि आप ग़ैरयहूदियों के दरमियान रहनेवाले यहूदियों को तालीम देते हैं कि वह मूसा की शरीअत को छोड़कर न अपने बच्चों का ख़तना करवाएँ और न हमारे रस्मो-रिवाज के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारें। \v 22 अब हम क्या करें? वह तो ज़रूर सुनेंगे कि आप यहाँ आ गए हैं। \v 23 इसलिए हम चाहते हैं कि आप यह करें : हमारे पास चार मर्द हैं जिन्होंने मन्नत मानकर उसे पूरा कर लिया है। \v 24 अब उन्हें साथ लेकर उनकी तहारत की रुसूमात में शरीक हो जाएँ। उनके अख़राजात भी आप बरदाश्त करें ताकि वह अपने सरों को मुँडवा सकें। फिर सब जान लेंगे कि जो कुछ आपके बारे में कहा जाता है वह झूट है और कि आप भी शरीअत के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। \v 25 जहाँ तक ग़ैरयहूदी ईमानदारों की बात है हम उन्हें अपना फ़ैसला ख़त के ज़रीए भेज चुके हैं कि वह इन चीज़ों से परहेज़ करें : बुतों को पेश किया गया खाना, ख़ून, ऐसे जानवरों का गोश्त जिन्हें गला घूँटकर मार दिया गया हो और ज़िनाकारी।” \p \v 26 चुनाँचे अगले दिन पौलुस उन आदमियों को साथ लेकर उनकी तहारत की रुसूमात में शरीक हुआ। फिर वह बैतुल-मुक़द्दस में उस दिन का एलान करने गया जब तहारत के दिन पूरे हो जाएंगे और उन सबके लिए क़ुरबानी पेश की जाएगी। \s1 बैतुल-मुक़द्दस में पौलुस की गिरिफ़्तारी \p \v 27 इस रस्म के लिए मुक़र्ररा सात दिन ख़त्म होने को थे कि सूबा आसिया के कुछ यहूदियों ने पौलुस को बैतुल-मुक़द्दस में देखा। उन्होंने पूरे हुजूम में हलचल मचाकर उसे पकड़ लिया \v 28 और चीख़ने लगे, “इसराईल के हज़रात, हमारी मदद करें! यह वही आदमी है जो हर जगह तमाम लोगों को हमारी क़ौम, हमारी शरीअत और इस मक़ाम के ख़िलाफ़ तालीम देता है। न सिर्फ़ यह बल्कि इसने बैतुल-मुक़द्दस में ग़ैरयहूदियों को लाकर इस मुक़द्दस जगह की बेहुरमती भी की है।” \v 29 (यह आख़िरी बात उन्होंने इसलिए की क्योंकि उन्होंने शहर में इफ़िसुस के ग़ैरयहूदी त्रुफ़िमुस को पौलुस के साथ देखा और ख़याल किया था कि वह उसे बैतुल-मुक़द्दस में लाया है।) \p \v 30 पूरे शहर में हंगामा बरपा हुआ और लोग चारों तरफ़ से दौड़कर आए। पौलुस को पकड़कर उन्होंने उसे बैतुल-मुक़द्दस से बाहर घसीट लिया। ज्योंही वह निकल गए बैतुल-मुक़द्दस के सहन के दरवाज़ों को बंद कर दिया गया। \v 31 वह उसे मार डालने की कोशिश कर रहे थे कि रोमी पलटन के कमाँडर को ख़बर मिल गई, “पूरे यरूशलम में हलचल मच गई है।” \v 32 यह सुनते ही उसने अपने फ़ौजियों और अफ़सरों को इकट्ठा किया और दौड़कर उनके साथ हुजूम के पास उतर गया। जब हुजूम ने कमाँडर और उसके फ़ौजियों को देखा तो वह पौलुस की पिटाई करने से रुक गया। \v 33 कमाँडर ने नज़दीक आकर उसे गिरिफ़्तार किया और दो ज़ंजीरों से बाँधने का हुक्म दिया। फिर उसने पूछा, “यह कौन है? इसने क्या किया है?” \v 34 हुजूम में से बाज़ कुछ चिल्लाए और बाज़ कुछ। कमाँडर कोई यक़ीनी बात मालूम न कर सका, क्योंकि अफ़रा-तफ़री और शोर-शराबा बहुत था। इसलिए उसने हुक्म दिया कि पौलुस को क़िले में ले जाया जाए। \v 35 वह क़िले की सीढ़ी तक पहुँच तो गए, लेकिन फिर हुजूम इतना बेकाबू हो गया कि फ़ौजियों को उसे अपने कंधों पर उठाकर चलना पड़ा। \v 36 लोग उनके पीछे पीछे चलते और चीख़ते-चिल्लाते रहे, “उसे मार डालो! उसे मार डालो!” \s1 पौलुस अपना दिफ़ा करता है \p \v 37 वह पौलुस को क़िले में ले जा रहे थे कि उसने कमाँडर से पूछा, “क्या आपसे एक बात करने की इजाज़त है?” \p कमाँडर ने कहा, “अच्छा, आप यूनानी बोल लेते हैं? \v 38 तो क्या आप वही मिसरी नहीं हैं जो कुछ देर पहले हुकूमत के ख़िलाफ़ उठकर चार हज़ार दहशतगरदों को रेगिस्तान में लाया था?” \p \v 39 पौलुस ने जवाब दिया, “मैं यहूदी और किलिकिया के मरकज़ी शहर तरसुस का शहरी हूँ। मेहरबानी करके मुझे लोगों से बात करने दें।” \p \v 40 कमाँडर मान गया और पौलुस ने सीढ़ी पर खड़े होकर हाथ से इशारा किया। जब सब ख़ामोश हो गए तो पौलुस अरामी ज़बान में उनसे मुख़ातिब हुआ, \c 22 \p \v 1 “भाइयो और बुज़ुर्गो, मेरी बात सुनें कि मैं अपने दिफ़ा में कुछ बताऊँ।” \v 2 जब उन्होंने सुना कि वह अरामी ज़बान में बोल रहा है तो वह मज़ीद ख़ामोश हो गए। पौलुस ने अपनी बात जारी रखी। \p \v 3 “मैं यहूदी हूँ और किलिकिया के शहर तरसुस में पैदा हुआ। लेकिन मैंने इसी शहर यरूशलम में परवरिश पाई और जमलियेल के ज़ेरे-निगरानी तालीम हासिल की। उन्होंने मुझे तफ़सील और एहतियात से हमारे बापदादा की शरीअत सिखाई। उस वक़्त मैं भी आपकी तरह अल्लाह के लिए सरगरम था। \v 4 इसलिए मैंने इस नई राह के पैरोकारों का पीछा किया और मर्दों और ख़वातीन को गिरिफ़्तार करके जेल में डलवा दिया यहाँ तक कि मरवा भी दिया। \v 5 इमामे-आज़म और यहूदी अदालते-आलिया के मेंबरान इस बात की तसदीक़ कर सकते हैं। उन्हीं से मुझे दमिश्क़ में रहनेवाले यहूदी भाइयों के लिए सिफ़ारिशी ख़त मिल गए ताकि मैं वहाँ भी जाकर इस नए फ़िरक़े के लोगों को गिरिफ़्तार करके सज़ा देने के लिए यरूशलम लाऊँ। \s1 पौलुस की तबदीली का बयान \p \v 6 मैं इस मक़सद के लिए दमिश्क़ के क़रीब पहुँच गया था कि अचानक आसमान की तरफ़ से एक तेज़ रौशनी मेरे गिर्द चमकी। \v 7 मैं ज़मीन पर गिर पड़ा तो एक आवाज़ सुनाई दी, ‘साऊल, साऊल, तू मुझे क्यों सताता है?’ \v 8 मैंने पूछा, ‘ख़ुदावंद, आप कौन हैं?’ आवाज़ ने जवाब दिया, ‘मैं ईसा नासरी हूँ जिसे तू सताता है।’ \v 9 मेरे हमसफ़रों ने रौशनी को तो देखा, लेकिन मुझसे मुख़ातिब होनेवाले की आवाज़ न सुनी। \v 10 मैंने पूछा, ‘ख़ुदावंद, मैं क्या करूँ?’ ख़ुदावंद ने जवाब दिया, ‘उठकर दमिश्क़ में जा। वहाँ तुझे वह सारा काम बताया जाएगा जो अल्लाह तेरे ज़िम्मे लगाने का इरादा रखता है।’ \v 11 रौशनी की तेज़ी ने मुझे अंधा कर दिया था, इसलिए मेरे साथी मेरा हाथ पकड़कर मुझे दमिश्क़ ले गए। \p \v 12 वहाँ एक आदमी रहता था जिसका नाम हननियाह था। वह शरीअत का कटर पैरोकार था और वहाँ के रहनेवाले यहूदियों में नेकनाम। \v 13 वह आया और मेरे पास खड़े होकर कहा, ‘साऊल भाई, दुबारा बीना हो जाएँ!’ उसी लमहे मैं उसे देख सका। \v 14 फिर उसने कहा, ‘हमारे बापदादा के ख़ुदा ने आपको इस मक़सद के लिए चुन लिया है कि आप उस की मरज़ी जानकर उसके रास्त ख़ादिम को देखें और उसके अपने मुँह से उस की आवाज़ सुनें। \v 15 जो कुछ आपने देख और सुन लिया है उस की गवाही आप तमाम लोगों को देंगे। \v 16 चुनाँचे आप क्यों देर कर रहे हैं? उठें और उसके नाम में बपतिस्मा लें ताकि आपके गुनाह धुल जाएँ।’ \s1 पौलुस की ग़ैरयहूदियों में ख़िदमत का बुलावा \p \v 17 जब मैं यरूशलम वापस आया तो मैं एक दिन बैतुल-मुक़द्दस में गया। वहाँ दुआ करते करते मैं वज्द की हालत में आ गया \v 18 और ख़ुदावंद को देखा। उसने फ़रमाया, ‘जल्दी कर! यरूशलम को फ़ौरन छोड़ दे क्योंकि लोग मेरे बारे में तेरी गवाही को क़बूल नहीं करेंगे।’ \v 19 मैंने एतराज़ किया, ‘ऐ ख़ुदावंद, वह तो जानते हैं कि मैंने जगह बजगह इबादतख़ाने में जाकर तुझ पर ईमान रखनेवालों को गिरिफ़्तार किया और उनकी पिटाई करवाई। \v 20 और उस वक़्त भी जब तेरे शहीद स्तिफ़नुस को क़त्ल किया जा रहा था मैं साथ खड़ा था। मैं राज़ी था और उन लोगों के कपड़ों की निगरानी कर रहा था जो उसे संगसार कर रहे थे।’ \v 21 लेकिन ख़ुदावंद ने कहा, ‘जा, क्योंकि मैं तुझे दूर-दराज़ इलाक़ों में ग़ैरयहूदियों के पास भेज दूँगा’।” \p \v 22 यहाँ तक हुजूम पौलुस की बातें सुनता रहा। लेकिन अब वह चिल्ला उठे, “इसे हटा दो! इसे जान से मार दो! यह ज़िंदा रहने के लायक़ नहीं!” \v 23 वह चीख़ें मार मारकर अपनी चादरें उतारने और हवा में गर्द उड़ाने लगे। \v 24 इस पर कमाँडर ने हुक्म दिया कि पौलुस को क़िले में ले जाया जाए और कोड़े लगाकर उस की पूछ-गछ की जाए। क्योंकि वह मालूम करना चाहता था कि लोग किस वजह से पौलुस के ख़िलाफ़ यों चीख़ें मार रहे हैं। \v 25 जब वह उसे कोड़े लगाने के लिए लेकर जा रहे थे तो पौलुस ने साथ खड़े अफ़सर \f + \fr 22:25 \ft सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़सर। \f* से कहा, “क्या आपके लिए जायज़ है कि एक रोमी शहरी के कोड़े लगवाएँ और वह भी अदालत में पेश किए बग़ैर?” \p \v 26 अफ़सर ने जब यह सुना तो कमाँडर के पास जाकर उसे इत्तला दी, “आप क्या करने को हैं? यह आदमी तो रोमी शहरी है!” \p \v 27 कमाँडर पौलुस के पास आया और पूछा, “मुझे सहीह बताएँ, क्या आप रोमी शहरी हैं?” \p पौलुस ने जवाब दिया, “जी हाँ।” \p \v 28 कमाँडर ने कहा, “मैं तो बड़ी रक़म देकर शहरी बना हूँ।” \p पौलुस ने जवाब दिया, “लेकिन मैं तो पैदाइशी शहरी हूँ।” \p \v 29 यह सुनते ही वह फ़ौजी जो उस की पूछ-गछ करने को थे पीछे हट गए। कमाँडर ख़ुद घबरा गया कि मैंने एक रोमी शहरी को ज़ंजीरों में जकड़ रखा है। \s1 पौलुस यहूदी अदालते-आलिया के सामने \p \v 30 अगले दिन कमाँडर साफ़ मालूम करना चाहता था कि यहूदी पौलुस पर क्यों इलज़ाम लगा रहे हैं। इसलिए उसने राहनुमा इमामों और यहूदी अदालते-आलिया के तमाम मेंबरान का इजलास मुनअक़िद करने का हुक्म दिया। फिर पौलुस को आज़ाद करके क़िले से नीचे लाया और उनके सामने खड़ा किया। \c 23 \p \v 1 पौलुस ने ग़ौर से अदालते-आलिया के मेंबरान की तरफ़ देखकर कहा, “भाइयो, आज तक मैंने साफ़ ज़मीर के साथ अल्लाह के सामने ज़िंदगी गुज़ारी है।” \v 2 इस पर इमामे-आज़म हननियाह ने पौलुस के क़रीब खड़े लोगों से कहा कि वह उसके मुँह पर थप्पड़ मारें। \v 3 पौलुस ने उससे कहा, “मक्कार! \f + \fr 23:3 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : सफेदी की हुई दीवार। \f* अल्लाह तुमको ही मारेगा, क्योंकि तुम यहाँ बैठे शरीअत के मुताबिक़ मेरा फ़ैसला करना चाहते हो जबकि मुझे मारने का हुक्म देकर ख़ुद शरीअत की ख़िलाफ़वरज़ी कर रहे हो!” \p \v 4 पौलुस के क़रीब खड़े आदमियों ने कहा, “तुम अल्लाह के इमामे-आज़म को बुरा कहने की जुर्रत क्योंकर करते हो?” \p \v 5 पौलुस ने जवाब दिया, “भाइयो, मुझे मालूम न था कि वह इमामे-आज़म हैं, वरना ऐसे अलफ़ाज़ इस्तेमाल न करता। क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में लिखा है कि अपनी क़ौम के हाकिमों को बुरा-भला मत कहना।” \p \v 6 पौलुस को इल्म था कि अदालते-आलिया के कुछ लोग सदूक़ी हैं जबकि दीगर फ़रीसी हैं। इसलिए वह इजलास में पुकार उठा, “भाइयो, मैं फ़रीसी बल्कि फ़रीसी का बेटा भी हूँ। मुझे इसलिए अदालत में पेश किया गया है कि मैं मुरदों में से जी उठने की उम्मीद रखता हूँ।” \p \v 7 इस बात से फ़रीसी और सदूक़ी एक दूसरे से झगड़ने लगे और इजलास के अफ़राद दो गुरोहों में बट गए। \v 8 वजह यह थी कि सदूक़ी नहीं मानते कि हम जी उठेंगे। वह फ़रिश्तों और रूहों का भी इनकार करते हैं। इसके मुक़ाबले में फ़रीसी यह सब कुछ मानते हैं। \v 9 होते होते बड़ा शोर मच गया। फ़रीसी फ़िरक़े के कुछ आलिम खड़े होकर जोश से बहस करने लगे, “हमें इस आदमी में कोई ग़लती नज़र नहीं आती, शायद कोई रूह या फ़रिश्ता इससे हमकलाम हुआ हो।” \p \v 10 झगड़े ने इतना ज़ोर पकड़ा कि कमाँडर डर गया, क्योंकि ख़तरा था कि वह पौलुस के टुकड़े कर डालें। इसलिए उसने अपने फ़ौजियों को हुक्म दिया कि वह उतरें और पौलुस को यहूदियों के बीच में से छीनकर क़िले में वापस लाएँ। \p \v 11 उसी रात ख़ुदावंद पौलुस के पास आ खड़ा हुआ और कहा, “हौसला रख, क्योंकि जिस तरह तूने यरूशलम में मेरे बारे में गवाही दी है लाज़िम है कि इसी तरह रोम शहर में भी गवाही दे।” \s1 पौलुस के ख़िलाफ़ साज़िश \p \v 12 अगले दिन कुछ यहूदियों ने साज़िश करके क़सम खाई, “हम न तो कुछ खाएँगे, न पिएँगे जब तक पौलुस को क़त्ल न कर लें।” \v 13 चालीस से ज़्यादा मर्दों ने इस साज़िश में हिस्सा लिया। \v 14 वह राहनुमा इमामों और बुज़ुर्गों के पास गए और कहा, “हमने पक्की क़सम खाई है कि कुछ नहीं खाएँगे जब तक पौलुस को क़त्ल न कर लें। \v 15 अब ज़रा यहूदी अदालते-आलिया के साथ मिलकर कमाँडर से गुज़ारिश करें कि वह उसे दुबारा आपके पास लाएँ। बहाना यह पेश करें कि आप मज़ीद तफ़सील से उसके मामले का जायज़ा लेना चाहते हैं। जब उसे लाया जाएगा तो हम उसके यहाँ पहुँचने से पहले पहले उसे मार डालने के लिए तैयार होंगे।” \p \v 16 लेकिन पौलुस के भानजे को इस बात का पता चल गया। उसने क़िले में जाकर पौलुस को इत्तला दी। \v 17 इस पर पौलुस ने रोमी अफ़सरों \f + \fr 23:17 \ft सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़सर। \f* में से एक को बुलाकर कहा, “इस जवान को कमाँडर के पास ले जाएँ। इसके पास उनके लिए ख़बर है।” \v 18 अफ़सर भानजे को कमाँडर के पास ले गया और कहा, “क़ैदी पौलुस ने मुझे बुलाकर मुझसे गुज़ारिश की कि इस नौजवान को आपके पास ले आऊँ। उसके पास आपके लिए ख़बर है।” \p \v 19 कमाँडर नौजवान का हाथ पकड़कर दूसरों से अलग हो गया। फिर उसने पूछा, “क्या ख़बर है जो आप मुझे बताना चाहते हैं?” \p \v 20 उसने जवाब दिया, “यहूदी आपसे दरख़ास्त करने पर मुत्तफ़िक़ हो गए हैं कि आप कल पौलुस को दुबारा यहूदी अदालते-आलिया के सामने लाएँ। बहाना यह होगा कि वह और ज़्यादा तफ़सील से उसके बारे में मालूमात हासिल करना चाहते हैं। \v 21 लेकिन उनकी बात न मानें, क्योंकि उनमें से चालीस से ज़्यादा आदमी उस की ताक में बैठे हैं। उन्होंने क़सम खाई है कि हम न कुछ खाएँगे न पिएँगे जब तक उसे क़त्ल न कर लें। वह अभी तैयार बैठे हैं और सिर्फ़ इस इंतज़ार में हैं कि आप उनकी बात मानें।” \p \v 22 कमाँडर ने नौजवान को रुख़सत करके कहा, “जो कुछ आपने मुझे बता दिया है उसका किसी से ज़िक्र न करना।” \s1 पौलुस को गवर्नर फ़ेलिक्स के पास भेजा जाता है \p \v 23 फिर कमाँडर ने अपने अफ़सरों में से दो को बुलाया जो सौ सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर थे। उसने हुक्म दिया, “दो सौ फ़ौजी, सत्तर घुड़सवार और दो सौ नेज़ाबाज़ तैयार करें। उन्हें आज रात को नौ बजे क़ैसरिया जाना है। \v 24 पौलुस के लिए भी घोड़े तैयार रखना ताकि वह सहीह-सलामत गवर्नर के पास पहुँचे।” \v 25 फिर उसने यह ख़त लिखा, \p \v 26 “अज़ : क्लौदियुस लूसियास \p मुअज़्ज़ज़ गवर्नर फ़ेलिक्स को सलाम। \v 27 यहूदी इस आदमी को पकड़कर क़त्ल करने को थे। मुझे पता चला कि यह रोमी शहरी है, इसलिए मैंने अपने दस्तों के साथ आकर इसे निकालकर बचा लिया। \v 28 मैं मालूम करना चाहता था कि वह क्यों इस पर इलज़ाम लगा रहे हैं, इसलिए मैं उतरकर इसे उनकी अदालते-आलिया के सामने लाया। \v 29 मुझे मालूम हुआ कि उनका इलज़ाम उनकी शरीअत से ताल्लुक़ रखता है। लेकिन इसने ऐसा कुछ नहीं किया जिसकी बिना पर यह जेल में डालने या सज़ाए-मौत के लायक़ हो। \v 30 फिर मुझे इत्तला दी गई कि इस आदमी को क़त्ल करने की साज़िश की गई है, इसलिए मैंने इसे फ़ौरन आपके पास भेज दिया। मैंने इलज़ाम लगानेवालों को भी हुक्म दिया कि वह इस पर अपना इलज़ाम आपको ही पेश करें।” \p \v 31 फ़ौजियों ने उसी रात कमाँडर का हुक्म पूरा किया। पौलुस को साथ लेकर वह अंतीपतरिस तक पहुँच गए। \v 32 अगले दिन प्यादे क़िले को वापस चले जबकि घुड़सवारों ने पौलुस को लेकर सफ़र जारी रखा। \v 33 क़ैसरिया पहुँचकर उन्होंने पौलुस को ख़त समेत गवर्नर फ़ेलिक्स के सामने पेश किया। \v 34 उसने ख़त पढ़ लिया और फिर पौलुस से पूछा, “आप किस सूबे के हैं?” पौलुस ने कहा, “किलिकिया का।” \v 35 इस पर गवर्नर ने कहा, “मैं आपकी समाअत उस वक़्त करूँगा जब आप पर इलज़ाम लगानेवाले पहुँचेंगे।” और उसने हुक्म दिया कि हेरोदेस के महल में पौलुस की पहरादारी की जाए। \c 24 \s1 पौलुस पर मुक़दमा \p \v 1 पाँच दिन के बाद इमामे-आज़म हननियाह, कुछ यहूदी बुज़ुर्ग और एक वकील बनाम तिरतुल्लुस क़ैसरिया आए ताकि गवर्नर के सामने पौलुस पर अपना इलज़ाम पेश करें। \v 2 पौलुस को बुलाया गया तो तिरतुल्लुस ने फ़ेलिक्स को यहूदियों का इलज़ाम पेश किया, \p “आपके ज़ेरे-हुकूमत हमें बड़ा अमनो-अमान हासिल है, और आपकी दूरअंदेशी से इस मुल्क में बहुत तरक़्क़ी हुई है। \v 3 मुअज़्ज़ज़ फ़ेलिक्स, इन तमाम बातों के लिए हम आपके ख़ास ममनून हैं। \v 4 लेकिन मैं नहीं चाहता कि आप मेरी बातों से हद से ज़्यादा थक जाएँ। अर्ज़ सिर्फ़ यह है कि आप हम पर मेहरबानी का इज़हार करके एक लमहे के लिए हमारे मामले पर तवज्जुह दें। \v 5 हमने इस आदमी को अवाम दुश्मन पाया है जो पूरी दुनिया के यहूदियों में फ़साद पैदा करता रहता है। यह नासरी फ़िरक़े का एक सरग़ना है \v 6 और हमारे बैतुल-मुक़द्दस की बेहुरमती करने की कोशिश कर रहा था जब हमने इसे पकड़ा [ताकि अपनी शरीअत के मुताबिक़ इस पर मुक़दमा चलाएँ। \v 7 मगर लूसियास कमाँडर आकर इसे ज़बरदस्ती हमसे छीनकर ले गया और हुक्म दिया कि इसके मुद्दई आपके पास हाज़िर हों।] \v 8 इसकी पूछ-गछ करके आप ख़ुद हमारे इलज़ामात की तसदीक़ करा सकते हैं।” \v 9 फिर बाक़ी यहूदियों ने उस की हाँ में हाँ मिलाकर कहा कि यह वाक़ई ऐसा ही है। \s1 पौलुस का दिफ़ा \p \v 10 गवर्नर ने इशारा किया कि पौलुस अपनी बात पेश करे। उसने जवाब में कहा, \p “मैं जानता हूँ कि आप कई सालों से इस क़ौम के जज मुक़र्रर हैं, इसलिए ख़ुशी से आपको अपना दिफ़ा पेश करता हूँ। \v 11 आप ख़ुद मालूम कर सकते हैं कि मुझे यरूशलम गए सिर्फ़ बारह दिन हुए हैं। जाने का मक़सद इबादत में शरीक होना था। \v 12 वहाँ न मैंने बैतुल-मुक़द्दस में किसी से बहस-मुबाहसा किया, न शहर के किसी इबादतख़ाने में या किसी और जगह हलचल मचाई। इन लोगों ने भी मेरी कोई ऐसी हरकत नहीं देखी। \v 13 जो इलज़ाम यह मुझ पर लगा रहे हैं उसका कोई भी सबूत पेश नहीं कर सकते। \v 14 बेशक मैं तसलीम करता हूँ कि मैं उसी राह पर चलता हूँ जिसे यह बिदअत क़रार देते हैं। लेकिन मैं अपने बापदादा के ख़ुदा की परस्तिश करता हूँ। जो कुछ भी शरीअत और नबियों के सहीफ़ों में लिखा है उसे मैं मानता हूँ। \v 15 और मैं अल्लाह पर वही उम्मीद रखता हूँ जो यह भी रखते हैं, कि क़ियामत का एक दिन होगा जब वह रास्तबाज़ों और नारास्तों को मुरदों में से ज़िंदा कर देगा। \v 16 इसलिए मेरी पूरी कोशिश यही होती है कि हर वक़्त मेरा ज़मीर अल्लाह और इनसान के सामने साफ़ हो। \p \v 17 कई सालों के बाद मैं यरूशलम वापस आया। मेरे पास क़ौम के ग़रीबों के लिए ख़ैरात थी और मैं बैतुल-मुक़द्दस में क़ुरबानियाँ भी पेश करना चाहता था। \v 18 मुझ पर इलज़ाम लगानेवालों ने मुझे बैतुल-मुक़द्दस में देखा जब मैं तहारत की रुसूमात अदा कर रहा था। उस वक़्त न कोई हुजूम था, न फ़साद। \v 19 लेकिन सूबा आसिया के कुछ यहूदी वहाँ थे। अगर उन्हें मेरे ख़िलाफ़ कोई शिकायत है तो उन्हें ही यहाँ हाज़िर होकर मुझ पर इलज़ाम लगाना चाहिए। \v 20 या यह लोग ख़ुद बताएँ कि जब मैं यहूदी अदालते-आलिया के सामने खड़ा था तो उन्होंने मेरा क्या जुर्म मालूम किया। \v 21 सिर्फ़ यह एक जुर्म हो सकता है कि मैंने उस वक़्त उनके हुज़ूर पुकारकर यह बात बयान की, ‘आज मुझ पर इसलिए इलज़ाम लगाया जा रहा है कि मैं ईमान रखता हूँ कि मुरदे जी उठेंगे’।” \p \v 22 फ़ेलिक्स ने जो ईसा की राह से ख़ूब वाक़िफ़ था मुक़दमा मुलतवी कर दिया। उसने कहा, “जब कमाँडर लूसियास आएँगे फिर मैं फ़ैसला दूँगा।” \v 23 उसने पौलुस पर मुक़र्रर अफ़सर \f + \fr 24:23 \ft सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़सर। \f* को हुक्म दिया कि वह उस की पहरादारी तो करे लेकिन उसे कुछ सहूलियात भी दे और उसके अज़ीज़ों को उससे मिलने और उस की ख़िदमत करने से न रोके। \s1 पौलुस फ़ेलिक्स और द्रूसिल्ला के सामने \p \v 24 कुछ दिनों के बाद फ़ेलिक्स अपनी अहलिया द्रूसिल्ला के हमराह वापस आया। द्रूसिल्ला यहूदी थी। पौलुस को बुलाकर उन्होंने ईसा पर ईमान के बारे में उस की बातें सुनीं। \v 25 लेकिन जब रास्तबाज़ी, ज़ब्ते-नफ़स और आनेवाली अदालत के मज़ामीन छिड़ गए तो फ़ेलिक्स ने घबराकर उस की बात काटी, “फ़िलहाल काफ़ी है। अब इजाज़त है, जब मेरे पास वक़्त होगा मैं आपको बुला लूँगा।” \v 26 साथ साथ वह यह उम्मीद भी रखता था कि पौलुस रिश्वत देगा, इसलिए वह कई बार उसे बुलाकर उससे बात करता रहा। \p \v 27 दो साल गुज़र गए तो फ़ेलिक्स की जगह पुरकियुस फ़ेस्तुस आ गया। ताहम उसने पौलुस को क़ैदख़ाने में छोड़ दिया, क्योंकि वह यहूदियों के साथ रिआयत बरतना चाहता था। \c 25 \s1 पौलुस शहनशाह से अपील करता है \p \v 1 क़ैसरिया पहुँचने के तीन दिन बाद फ़ेस्तुस यरूशलम चला गया। \v 2 वहाँ राहनुमा इमामों और बाक़ी यहूदी राहनुमाओं ने उसके सामने पौलुस पर अपने इलज़ामात पेश किए। उन्होंने बड़े ज़ोर से \v 3 मिन्नत की कि वह उनकी रिआयत करके पौलुस को यरूशलम मुंतक़िल करे। वजह यह थी कि वह घात में बैठकर रास्ते में पौलुस को क़त्ल करना चाहते थे। \v 4 लेकिन फ़ेस्तुस ने जवाब दिया, “पौलुस को क़ैसरिया में रखा गया है और मैं ख़ुद वहाँ जाने को हूँ। \v 5 अगर उससे कोई जुर्म सरज़द हुआ है तो आपके कुछ राहनुमा मेरे साथ वहाँ जाकर उस पर इलज़ाम लगाएँ।” \p \v 6 फ़ेस्तुस ने मज़ीद आठ दस दिन उनके साथ गुज़ारे, फिर क़ैसरिया चला गया। अगले दिन वह अदालत करने के लिए बैठा और पौलुस को लाने का हुक्म दिया। \v 7 जब पौलुस पहुँचा तो यरूशलम से आए हुए यहूदी उसके इर्दगिर्द खड़े हुए और उस पर कई संजीदा इलज़ामात लगाए, लेकिन वह कोई भी बात साबित न कर सके। \v 8 पौलुस ने अपना दिफ़ा करके कहा, “मुझसे न यहूदी शरीअत, न बैतुल-मुक़द्दस और न शहनशाह के ख़िलाफ़ जुर्म सरज़द हुआ है।” \p \v 9 लेकिन फ़ेस्तुस यहूदियों के साथ रिआयत बरतना चाहता था, इसलिए उसने पूछा, “क्या आप यरूशलम जाकर वहाँ की अदालत में मेरे सामने पेश किए जाने के लिए तैयार हैं?” \p \v 10 पौलुस ने जवाब दिया, “मैं शहनशाह की रोमी अदालत में खड़ा हूँ और लाज़िम है कि यहीं मेरा फ़ैसला किया जाए। आप भी इससे ख़ूब वाक़िफ़ हैं कि मैंने यहूदियों से कोई नाइनसाफ़ी नहीं की। \v 11 अगर मुझसे कोई ऐसा काम सरज़द हुआ हो जो सज़ाए-मौत के लायक़ हो तो मैं मरने से इनकार नहीं करूँगा। लेकिन अगर बेक़ुसूर हूँ तो किसी को भी मुझे इन आदमियों के हवाले करने का हक़ नहीं है। मैं शहनशाह से अपील करता हूँ!” \p \v 12 यह सुनकर फ़ेस्तुस ने अपनी कौंसल से मशवरा करके कहा, “आपने शहनशाह से अपील की है, इसलिए आप शहनशाह ही के पास जाएंगे।” \s1 पौलुस अग्रिप्पा और बिरनीके के सामने \p \v 13 कुछ दिन गुज़र गए तो अग्रिप्पा बादशाह अपनी बहन बिरनीके के साथ फ़ेस्तुस से मिलने आया। \v 14 वह कई दिन वहाँ ठहरे रहे। इतने में फ़ेस्तुस ने पौलुस के मामले पर बादशाह के साथ बात की। उसने कहा, “यहाँ एक क़ैदी है जिसे फ़ेलिक्स छोड़कर चला गया है। \v 15 जब मैं यरूशलम गया तो राहनुमा इमामों और यहूदी बुज़ुर्गों ने उस पर इलज़ामात लगाकर उसे मुजरिम क़रार देने का तक़ाज़ा किया। \v 16 मैंने उन्हें जवाब दिया, ‘रोमी क़ानून किसी को अदालत में पेश किए बग़ैर मुजरिम क़रार नहीं देता। लाज़िम है कि उसे पहले इलज़ाम लगानेवालों का सामना करने का मौक़ा दिया जाए ताकि अपना दिफ़ा कर सके।’ \v 17 जब उस पर इलज़ाम लगानेवाले यहाँ पहुँचे तो मैंने ताख़ीर न की। मैंने अगले ही दिन अदालत मुनअक़िद करके पौलुस को पेश करने का हुक्म दिया। \v 18 लेकिन जब उसके मुख़ालिफ़ इलज़ाम लगाने के लिए खड़े हुए तो वह ऐसे जुर्म नहीं थे जिनकी तवक़्क़ो मैं कर रहा था। \v 19 उनका उसके साथ कोई और झगड़ा था जो उनके अपने मज़हब और एक मुरदा आदमी बनाम ईसा से ताल्लुक़ रखता है। इस ईसा के बारे में पौलुस दावा करता है कि वह ज़िंदा है। \v 20 मैं उलझन में पड़ गया क्योंकि मुझे मालूम नहीं था कि किस तरह इस मामले का सहीह जायज़ा लूँ। चुनाँचे मैंने पूछा, ‘क्या आप यरूशलम जाकर वहाँ अदालत में पेश किए जाने के लिए तैयार हैं?’ \v 21 लेकिन पौलुस ने अपील की, ‘शहनशाह ही मेरा फ़ैसला करे।’ फिर मैंने हुक्म दिया कि उसे उस वक़्त तक क़ैद में रखा जाए जब तक उसे शहनशाह के पास भेजने का इंतज़ाम न करवा सकूँ।” \p \v 22 अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा, “मैं भी उस शख़्स को सुनना चाहता हूँ।” \p उसने जवाब दिया, “कल ही आप उसको सुन लेंगे।” \p \v 23 अगले दिन अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूमधाम के साथ आए और बड़े फ़ौजी अफ़सरों और शहर के नामवर आदमियों के साथ दीवाने-आम में दाख़िल हुए। फ़ेस्तुस के हुक्म पर पौलुस को अंदर लाया गया। \v 24 फ़ेस्तुस ने कहा, “अग्रिप्पा बादशाह और तमाम ख़वातीनो-हज़रात! आप यहाँ एक आदमी को देखते हैं जिसके बारे में तमाम यहूदी ख़ाह वह यरूशलम के रहनेवाले हों, ख़ाह यहाँ के, शोर मचाकर सज़ाए-मौत का तक़ाज़ा कर रहे हैं। \v 25 मेरी दानिस्त में तो इसने कोई ऐसा काम नहीं किया जो सज़ाए-मौत के लायक़ हो। लेकिन इसने शहनशाह से अपील की है, इसलिए मैंने इसे रोम भेजने का फ़ैसला किया है। \v 26 लेकिन मैं शहनशाह को क्या लिख दूँ? क्योंकि इस पर कोई साफ़ इलज़ाम नहीं लगाया गया। इसलिए मैं इसे आप सबके सामने लाया हूँ, ख़ासकर अग्रिप्पा बादशाह आपके सामने, ताकि आप इसकी तफ़तीश करें और मैं कुछ लिख सकूँ। \v 27 क्योंकि मुझे बेतुकी-सी बात लग रही है कि हम एक क़ैदी को रोम भेजें जिस पर अब तक साफ़ इलज़ामात नहीं लगाए गए हैं।” \c 26 \s1 पौलुस का अग्रिप्पा के सामने दिफ़ा \p \v 1 अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “आपको अपने दिफ़ा में बोलने की इजाज़त है।” पौलुस ने हाथ से इशारा करके अपने दिफ़ा में बोलने का आग़ाज़ किया, \p \v 2 “अग्रिप्पा बादशाह, मैं अपने आपको ख़ुशनसीब समझता हूँ कि आज आप ही मेरा यह दिफ़ाई बयान सुन रहे हैं जो मुझे यहूदियों के तमाम इलज़ामात के जवाब में देना पड़ रहा है। \v 3 ख़ासकर इसलिए कि आप यहूदियों के रस्मो-रिवाज और तनाज़ों से वाक़िफ़ हैं। मेरी अर्ज़ है कि आप सब्र से मेरी बात सुनें। \p \v 4 तमाम यहूदी जानते हैं कि मैंने जवानी से लेकर अब तक अपनी क़ौम बल्कि यरूशलम में किस तरह ज़िंदगी गुज़ारी। \v 5 वह मुझे बड़ी देर से जानते हैं और अगर चाहें तो इसकी गवाही भी दे सकते हैं कि मैं फ़रीसी की ज़िंदगी गुज़ारता था, हमारे मज़हब के उसी फ़िरक़े की जो सबसे कटर है। \v 6 और आज मेरी अदालत इस वजह से की जा रही है कि मैं उस वादे पर उम्मीद रखता हूँ जो अल्लाह ने हमारे बापदादा से किया। \v 7 हक़ीक़त में यह वही उम्मीद है जिसकी वजह से हमारे बारह क़बीले दिन-रात और बड़ी लग्न से अल्लाह की इबादत करते रहते हैं और जिसकी तकमील के लिए वह तड़पते हैं। तो भी ऐ बादशाह, यह लोग मुझ पर यह उम्मीद रखने का इलज़ाम लगा रहे हैं। \v 8 लेकिन आप सबको यह ख़याल क्यों नाक़ाबिले-यक़ीन लगता है कि अल्लाह मुरदों को ज़िंदा कर देता है? \p \v 9 पहले मैं भी समझता था कि हर मुमकिन तरीक़े से ईसा नासरी की मुख़ालफ़त करना मेरा फ़र्ज़ है। \v 10 और यह मैंने यरूशलम में किया भी। राहनुमा इमामों से इख़्तियार लेकर मैंने वहाँ के बहुत-से मुक़द्दसों को जेल में डलवा दिया। और जब कभी उन्हें सज़ाए-मौत देने का फ़ैसला करना था तो मैंने भी इस हक़ में वोट दिया। \v 11 मैं तमाम इबादतख़ानों में गया और बहुत दफ़ा उन्हें सज़ा दिलाकर ईसा के बारे में कुफ़र बकने पर मजबूर करने की कोशिश करता रहा। मैं इतने तैश में आ गया था कि उनकी ईज़ारसानी की ग़रज़ से बैरूने-मुल्क भी गया। \s1 पौलुस अपनी तबदीली का ज़िक्र करता है \p \v 12 एक दिन मैं राहनुमा इमामों से इख़्तियार और इजाज़तनामा लेकर दमिश्क़ जा रहा था। \v 13 दोपहर तक़रीबन बारह बजे मैं सड़क पर चल रहा था कि एक रौशनी देखी जो सूरज से ज़्यादा तेज़ थी। वह आसमान से आकर मेरे और मेरे हमसफ़रों के गिर्दागिर्द चमकी। \v 14 हम सब ज़मीन पर गिर गए और मैंने अरामी ज़बान में एक आवाज़ सुनी, ‘साऊल, साऊल, तू मुझे क्यों सताता है? यों मेरे आँकुस के ख़िलाफ़ पाँव मारना तेरे लिए ही दुश्वारी का बाइस है।’ \v 15 मैंने पूछा, ‘ख़ुदावंद, आप कौन हैं?’ ख़ुदावंद ने जवाब दिया, ‘मैं ईसा हूँ, वही जिसे तू सताता है। \v 16 लेकिन अब उठकर खड़ा हो जा, क्योंकि मैं तुझे अपना ख़ादिम और गवाह मुक़र्रर करने के लिए तुझ पर ज़ाहिर हुआ हूँ। जो कुछ तूने देखा है उस की तुझे गवाही देनी है और उस की भी जो मैं आइंदा तुझ पर ज़ाहिर करूँगा। \v 17 मैं तुझे तेरी अपनी क़ौम से बचाए रखूँगा और उन ग़ैरयहूदी क़ौमों से भी जिनके पास तुझे भेजूँगा। \v 18 तू उनकी आँखों को खोल देगा ताकि वह तारीकी और इबलीस के इख़्तियार से नूर और अल्लाह की तरफ़ रुजू करें। फिर उनके गुनाहों को मुआफ़ कर दिया जाएगा और वह उनके साथ आसमानी मीरास में शरीक होंगे जो मुझ पर ईमान लाने से मुक़द्दस किए गए हैं।’ \s1 पौलुस अपनी ख़िदमत का बयान करता है \p \v 19 ऐ अग्रिप्पा बादशाह, जब मैंने यह सुना तो मैंने इस आसमानी रोया की नाफ़रमानी न की \v 20 बल्कि इस बात की मुनादी की कि लोग तौबा करके अल्लाह की तरफ़ रुजू करें और अपने अमल से अपनी तबदीली का इज़हार भी करें। मैंने इसकी तबलीग़ पहले दमिश्क़ में की, फिर यरूशलम और पूरे यहूदिया में और इसके बाद ग़ैरयहूदी क़ौमों में भी। \v 21 इसी वजह से यहूदियों ने मुझे बैतुल-मुक़द्दस में पकड़कर क़त्ल करने की कोशिश की। \v 22 लेकिन अल्लाह ने आज तक मेरी मदद की है, इसलिए मैं यहाँ खड़ा होकर छोटों और बड़ों को अपनी गवाही दे सकता हूँ। जो कुछ मैं सुनाता हूँ वह वही कुछ है जो मूसा और नबियों ने कहा है, \v 23 कि मसीह दुख उठाकर पहला शख़्स होगा जो मुरदों में से जी उठेगा और कि वह यों अपनी क़ौम और ग़ैरयहूदियों के सामने अल्लाह के नूर का प्रचार करेगा।” \p \v 24 अचानक फ़ेस्तुस पौलुस की बात काटकर चिल्ला उठा, “पौलुस, होश में आओ! इल्म की ज़्यादती ने तुम्हें दीवाना कर दिया है।” \p \v 25 पौलुस ने जवाब दिया, “मुअज़्ज़ज़ फ़ेस्तुस, मैं दीवाना नहीं हूँ। मेरी यह बातें हक़ीक़ी और माक़ूल हैं। \v 26 बादशाह सलामत इनसे वाक़िफ़ हैं, इसलिए मैं उनसे खुलकर बात कर सकता हूँ। मुझे यक़ीन है कि यह सब कुछ उनसे छुपा नहीं रहा, क्योंकि यह पोशीदगी में या किसी कोने में नहीं हुआ। \v 27 ऐ अग्रिप्पा बादशाह, क्या आप नबियों पर ईमान रखते हैं? बल्कि मैं जानता हूँ कि आप उन पर ईमान रखते हैं।” \p \v 28 अग्रिप्पा ने कहा, “आप तो बड़ी जल्दी से मुझे क़ायल करके मसीही बनाना चाहते हैं।” \p \v 29 पौलुस ने जवाब दिया, “जल्द या बदेर मैं अल्लाह से दुआ करता हूँ कि न सिर्फ़ आप बल्कि तमाम हाज़िरीन मेरी मानिंद बन जाएँ, सिवाए मेरी ज़ंजीरों के।” \p \v 30 फिर बादशाह, गवर्नर, बिरनीके और बाक़ी सब उठकर चले गए। \v 31 वहाँ से निकलकर वह एक दूसरे से बात करने लगे। सब इस पर मुत्तफ़िक़ थे कि “इस आदमी ने कुछ नहीं किया जो सज़ाए-मौत या क़ैद के लायक़ हो।” \v 32 और अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा, “अगर इसने शहनशाह से अपील न की होती तो इसे रिहा किया जा सकता था।” \c 27 \s1 पौलुस का रोम की तरफ़ सफ़र \p \v 1 जब हमारा इटली के लिए सफ़र मुतैयिन किया गया तो पौलुस को चंद एक और क़ैदियों समेत एक रोमी अफ़सर \f + \fr 27:1 \ft सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़सर। \f* के हवाले किया गया जिसका नाम यूलियुस था जो शाही पलटन पर मुक़र्रर था। \v 2 अरिस्तरख़ुस भी हमारे साथ था। वह थिस्सलुनीके शहर का मकिदुनी आदमी था। हम अद्रमित्तियुम शहर के एक जहाज़ पर सवार हुए जिसे सूबा आसिया की चंद बंदरगाहों को जाना था। \v 3 अगले दिन हम सैदा पहुँचे तो यूलियुस ने मेहरबानी करके पौलुस को शहर में उसके दोस्तों के पास जाने की इजाज़त दी ताकि वह उस की ज़रूरियात पूरी कर सकें। \v 4 जब हम वहाँ से रवाना हुए तो मुख़ालिफ़ हवाओं की वजह से जज़ीराए-क़ुबरुस और सूबा आसिया के दरमियान से गुज़रे। \v 5 फिर खुले समुंदर पर चलते चलते हम किलिकिया और पंफ़ीलिया के समुंदर से गुज़रकर सूबा लूकिया के शहर मूरा पहुँचे। \v 6 वहाँ क़ैदियों पर मुक़र्रर अफ़सर को पता चला कि इस्कंदरिया का एक मिसरी जहाज़ इटली जा रहा है। उस पर उसने हमें सवार किया। \p \v 7 कई दिन हम आहिस्ता आहिस्ता चले और बड़ी मुश्किल से कनिदुस के क़रीब पहुँचे। लेकिन मुख़ालिफ़ हवा की वजह से हमने जज़ीराए-क्रेते की तरफ़ रुख़ किया और सलमोने शहर के क़रीब से गुज़रकर क्रेते की आड़ में सफ़र किया। \v 8 लेकिन वहाँ हम साहिल के साथ साथ चलते हुए बड़ी मुश्किल से एक जगह पहुँचे जिसका नाम ‘हसीन- बंदर’ था। शहर लसया उसके क़रीब वाक़े था। \p \v 9 बहुत वक़्त ज़ाया हो गया था और अब बहरी सफ़र ख़तरनाक भी हो चुका था, क्योंकि कफ़्फ़ारा का दिन (तक़रीबन नवंबर के शुरू में) गुज़र चुका था। इसलिए पौलुस ने उन्हें आगाह किया, \v 10 “हज़रात, मुझे पता है कि आगे जाकर हम पर बड़ी मुसीबत आएगी। हमें जहाज़, मालो-असबाब और जानों का नुक़सान उठाना पड़ेगा।” \v 11 लेकिन क़ैदियों पर मुक़र्रर रोमी अफ़सर ने उस की बात नज़रंदाज़ करके जहाज़ के नाख़ुदा और मालिक की बात मानी। \v 12 चूँकि ‘हसीन- बंदर’ में जहाज़ को सर्दियों के मौसम के लिए रखना मुश्किल था इसलिए अकसर लोग आगे फ़ेनिक्स तक पहुँचकर सर्दियों का मौसम गुज़ारना चाहते थे। क्योंकि फ़ेनिक्स जज़ीराए-क्रेते की अच्छी बंदरगाह थी जो सिर्फ़ जुनूब-मग़रिब और शिमाल-मग़रिब की तरफ़ खुली थी। \s1 समुंदर पर तूफ़ान \p \v 13 चुनाँचे एक दिन जब जुनूब की सिम्त से हलकी-सी हवा चलने लगी तो मल्लाहों ने सोचा कि हमारा इरादा पूरा हो गया है। वह लंगर उठाकर क्रेते के साहिल के साथ साथ चलने लगे। \v 14 लेकिन थोड़ी ही देर के बाद मौसम बदल गया और उन पर जज़ीरे की तरफ़ से एक तूफ़ानी हवा टूट पड़ी जो बादे-शिमाल-मशरिक़ी कहलाती है। \v 15 जहाज़ हवा के क़ाबू में आ गया और हवा की तरफ़ रुख़ न कर सका, इसलिए हमने हार मानकर जहाज़ को हवा के साथ साथ चलने दिया। \v 16 जब हम एक छोटे जज़ीरा बनाम कौदा की आड़ में से गुज़रने लगे तो हमने बड़ी मुश्किल से बचाव-कश्ती को जहाज़ पर उठाकर महफ़ूज़ रखा। (अब तक वह रस्से से जहाज़ के साथ खींची जा रही थी।) \v 17 फिर मल्लाहों ने जहाज़ के ढाँचे को ज़्यादा मज़बूत बनाने की ख़ातिर उसके इर्दगिर्द रस्से बाँधे। ख़ौफ़ यह था कि जहाज़ शिमाली अफ़्रीक़ा के क़रीब पड़े चोरबालू में धँस जाए। (इन रेतों का नाम सूरतिस था।) इससे बचने के लिए उन्होंने लंगर डाल दिया \f + \fr 27:17 \ft लंगर यानी छोटा लंगर जिसकी मदद से जहाज़ का रुख़ एक ही सिम्त में रखा जाता है। \f* ताकि जहाज़ कुछ आहिस्ता चले। यों जहाज़ हवा के साथ चलते चलते आगे बढ़ा। \v 18 अगले दिन भी तूफ़ान जहाज़ को इतनी शिद्दत से झँझोड़ रहा था कि मल्लाह मालो-असबाब को समुंदर में फेंकने लगे। \v 19 तीसरे दिन उन्होंने अपने ही हाथों से जहाज़ चलाने का कुछ सामान समुंदर में फेंक दिया। \v 20 तूफ़ान की शिद्दत बहुत दिनों के बाद भी ख़त्म न हुई। न सूरज और न सितारे नज़र आए यहाँ तक कि आख़िरकार हमारे बचने की हर उम्मीद जाती रही। \p \v 21 काफ़ी देर से दिल नहीं चाहता था कि खाना खाया जाए। आख़िरकार पौलुस ने लोगों के बीच में खड़े होकर कहा, “हज़रात, बेहतर होता कि आप मेरी बात मानकर क्रेते से रवाना न होते। फिर आप इस मुसीबत और ख़सारे से बच जाते। \v 22 लेकिन अब मैं आपको नसीहत करता हूँ कि हौसला रखें। आपमें से एक भी नहीं मरेगा। सिर्फ़ जहाज़ तबाह हो जाएगा। \v 23 क्योंकि पिछली रात एक फ़रिश्ता मेरे पास आ खड़ा हुआ, उसी ख़ुदा का फ़रिश्ता जिसका मैं बंदा हूँ और जिसकी इबादत मैं करता हूँ। \v 24 उसने कहा, ‘पौलुस, मत डर। लाज़िम है कि तुझे शहनशाह के सामने पेश किया जाए। और अल्लाह अपनी मेहरबानी से तेरे वास्ते तमाम हमसफ़रों की जानें भी बचाए रखेगा।’ \v 25 इसलिए हौसला रखें, क्योंकि मेरा अल्लाह पर ईमान है कि ऐसा ही होगा जिस तरह उसने फ़रमाया है। \v 26 लेकिन जहाज़ को किसी जज़ीरे के साहिल पर चढ़ जाना है।” \p \v 27 तूफ़ान की चौधवीं रात जहाज़ बहीराए-अदरिया पर बहे चला जा रहा था कि तक़रीबन आधी रात को मल्लाहों ने महसूस किया कि साहिल नज़दीक आ रहा है। \v 28 पानी की गहराई की पैमाइश करके उन्हें मालूम हुआ कि वह 120 फ़ुट थी। थोड़ी देर के बाद उस की गहराई 90 फ़ुट हो चुकी थी। \v 29 वह डर गए, क्योंकि उन्होंने अंदाज़ा लगाया कि ख़तरा है कि हम साहिल पर पड़ी चट्टानों से टकरा जाएँ। इसलिए उन्होंने जहाज़ के पिछले हिस्से से चार लंगर डालकर दुआ की कि दिन जल्दी से चढ़ जाए। \v 30 उस वक़्त मल्लाहों ने जहाज़ से फ़रार होने की कोशिश की। उन्होंने यह बहाना बनाकर कि हम जहाज़ के सामने से भी लंगर डालना चाहते हैं बचाव-कश्ती पानी में उतरने दी। \v 31 इस पर पौलुस ने क़ैदियों पर मुक़र्रर अफ़सर और फ़ौजियों से कहा, “अगर यह आदमी जहाज़ पर न रहें तो आप सब मर जाएंगे।” \v 32 चुनाँचे उन्होंने बचाव-कश्ती के रस्से को काटकर उसे खुला छोड़ दिया। \p \v 33 पौ फटनेवाली थी कि पौलुस ने सबको समझाया कि वह कुछ खा लें। उसने कहा, “आपने चौदह दिन से इज़तिराब की हालत में रहकर कुछ नहीं खाया। \v 34 अब मेहरबानी करके कुछ खा लें। यह आपके बचाव के लिए ज़रूरी है, क्योंकि आप न सिर्फ़ बच जाएंगे बल्कि आपका एक बाल भी बीका नहीं होगा।” \v 35 यह कहकर उसने कुछ रोटी ली और उन सबके सामने अल्लाह से शुक्रगुज़ारी की दुआ की। फिर उसे तोड़कर खाने लगा। \v 36 इससे दूसरों की हौसलाअफ़्ज़ाई हुई और उन्होंने भी कुछ खाना खाया। \v 37 जहाज़ पर हम 276 अफ़राद थे। \v 38 जब सब सेर हो गए तो गंदुम को भी समुंदर में फेंका गया ताकि जहाज़ और हलका हो जाए। \s1 जहाज़ टुकड़े टुकड़े हो जाता है \p \v 39 जब दिन चढ़ गया तो मल्लाहों ने साहिली इलाक़े को न पहचाना। लेकिन एक ख़लीज नज़र आई जिसका साहिल अच्छा था। उन्हें ख़याल आया कि शायद हम जहाज़ को वहाँ ख़ुश्की पर चढ़ा सकें। \v 40 चुनाँचे उन्होंने लंगरों के रस्से काटकर उन्हें समुंदर में छोड़ दिया। फिर उन्होंने वह रस्से खोल दिए जिनसे पतवार बँधे होते थे और सामनेवाले बादबान को चढ़ाकर हवा के ज़ोर से साहिल की तरफ़ रुख़ किया। \v 41 लेकिन चलते चलते जहाज़ एक चोरबालू से टकराकर उस पर चढ़ गया। जहाज़ का माथा धँस गया यहाँ तक कि वह हिल भी न सका जबकि उसका पिछला हिस्सा मौजों की टक्करों से टुकड़े टुकड़े होने लगा। \p \v 42 फ़ौजी क़ैदियों को क़त्ल करना चाहते थे ताकि वह जहाज़ से तैरकर फ़रार न हो सकें। \v 43 लेकिन उन पर मुक़र्रर अफ़सर पौलुस को बचाना चाहता था, इसलिए उसने उन्हें ऐसा करने न दिया। उसने हुक्म दिया कि पहले वह सब जो तैर सकते हैं पानी में छलाँग लगाकर किनारे तक पहुँचें। \v 44 बाक़ियों को तख़्तों या जहाज़ के किसी टुकड़े को पकड़कर पहुँचना था। यों सब सहीह-सलामत साहिल तक पहुँचे। \c 28 \s1 जज़ीराए-मिलिते में \p \v 1 तूफ़ान से बचने पर हमें मालूम हुआ कि जज़ीरे का नाम मिलिते है। \v 2 मक़ामी लोगों ने हमें ग़ैरमामूली मेहरबानी दिखाई। उन्होंने आग जलाकर हमारा इस्तक़बाल किया, क्योंकि बारिश शुरू हो चुकी थी और ठंड थी। \v 3 पौलुस ने भी लकड़ी का ढेर जमा किया। लेकिन ज्योंही उसने उसे आग में फेंका एक ज़हरीला साँप आग की तपिश से भागकर निकल आया और पौलुस के हाथ से चिमटकर उसे डस लिया। \v 4 मक़ामी लोगों ने साँप को पौलुस के हाथ से लगे देखा तो एक दूसरे से कहने लगे, “यह आदमी ज़रूर क़ातिल होगा। गो यह समुंदर से बच गया, लेकिन इनसाफ़ की देवी इसे जीने नहीं देती।” \v 5 लेकिन पौलुस ने साँप को झटककर आग में फेंक दिया, और साँप का कोई बुरा असर उस पर न हुआ। \v 6 लोग इस इंतज़ार में रहे कि वह सूज जाए या अचानक गिर पड़े, लेकिन काफ़ी देर के बाद भी कुछ न हुआ। इस पर उन्होंने अपना ख़याल बदलकर उसे देवता क़रार दिया। \p \v 7 क़रीब ही जज़ीरे के सबसे बड़े आदमी की ज़मीनें थीं। उसका नाम पुबलियुस था। उसने अपने घर में हमारा इस्तक़बाल किया और तीन दिन तक हमारी ख़ूब मेहमान-नवाज़ी की। \v 8 उसका बाप बीमार पड़ा था, वह बुख़ार और पेचिश के मरज़ में मुब्तला था। पौलुस उसके कमरे में गया, उसके लिए दुआ की और अपने हाथ उस पर रख दिए। इस पर मरीज़ को शफ़ा मिली। \v 9 जब यह हुआ तो जज़ीरे के बाक़ी तमाम मरीज़ों ने पौलुस के पास आकर शफ़ा पाई। \v 10 नतीजे में उन्होंने कई तरह से हमारी इज़्ज़त की। और जब रवाना होने का वक़्त आ गया तो उन्होंने हमें वह सब कुछ मुहैया किया जो सफ़र के लिए दरकार था। \s1 जज़ीराए-मिलिते से रोम तक \p \v 11 जज़ीरे पर तीन माह गुज़र गए। फिर हम एक जहाज़ पर सवार हुए जो सर्दियों के मौसम के लिए वहाँ ठहर गया था। यह जहाज़ इस्कंदरिया का था और उसके माथे पर जुड़वाँ देवताओं ‘कास्टर’ और ‘पोल्लुक्स’ की मूरत नसब थी। हम वहाँ से रुख़सत होकर \v 12 सुरकूसा शहर पहुँचे। तीन दिन के बाद \v 13 हम वहाँ से रेगियुम शहर गए जहाँ हम सिर्फ़ एक दिन ठहरे। फिर जुनूब से हवा उठी, इसलिए हम अगले दिन पुतियोली पहुँचे। \v 14 इस शहर में हमारी मुलाक़ात कुछ भाइयों से हुई। उन्होंने हमें अपने पास एक हफ़ता रहने की दावत दी। यों हम रोम पहुँच गए। \v 15 रोम के भाइयों ने हमारे बारे में सुन रखा था, और कुछ हमारा इस्तक़बाल करने के लिए क़सबा बनाम अप्पियुस के चौक तक आए जबकि कुछ सिर्फ़ ‘तीन-सराय’ तक आ सके। उन्हें देखकर पौलुस ने अल्लाह का शुक्र किया और नया हौसला पाया। \s1 रोम में \p \v 16 हमारे रोम में पहुँचने पर पौलुस को अपने किराए के मकान में रहने की इजाज़त मिली, गो एक फ़ौजी उस की पहरादारी करने के लिए उसके साथ रहा। \p \v 17 तीन दिन गुज़र गए तो पौलुस ने यहूदी राहनुमाओं को बुलाया। जब वह जमा हुए तो उसने उनसे कहा, “भाइयो, मुझे यरूशलम में गिरिफ़्तार करके रोमियों के हवाले कर दिया गया हालाँकि मैंने अपनी क़ौम या अपने बापदादा के रस्मो-रिवाज के ख़िलाफ़ कुछ नहीं किया था। \v 18 रोमी मेरा जायज़ा लेकर मुझे रिहा करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें मुझे सज़ाए-मौत देने का कोई सबब न मिला था। \v 19 लेकिन यहूदियों ने एतराज़ किया और यों मुझे शहनशाह से अपील करने पर मजबूर कर दिया गया, गो मेरा यह इरादा नहीं है कि मैं अपनी क़ौम पर कोई इलज़ाम लगाऊँ। \v 20 मैंने इसलिए आपको बुलाया ताकि आपसे मिलूँ और गुफ़्तगू करूँ। मैं उस शख़्स की ख़ातिर इन ज़ंजीरों से जकड़ा हुआ हूँ जिसके आने की उम्मीद इसराईल रखता है।” \p \v 21 यहूदियों ने उसे जवाब दिया, “हमें यहूदिया से आपके बारे में कोई भी ख़त नहीं मिला। और जितने भाई वहाँ से आए हैं उनमें से एक ने भी आपके बारे में न तो कोई मनफ़ी रिपोर्ट दी न कोई बुरी बात बताई। \v 22 लेकिन हम आपसे सुनना चाहते हैं कि आपके ख़यालात क्या हैं, क्योंकि हम इतना जानते हैं कि हर जगह लोग इस फ़िरक़े के ख़िलाफ़ बातें कर रहे हैं।” \p \v 23 चुनाँचे उन्होंने मिलने का एक दिन मुक़र्रर किया। जब यहूदी दुबारा उस जगह आए जहाँ पौलुस रहता था तो उनकी तादाद बहुत ज़्यादा थी। सुबह से लेकर शाम तक उसने अल्लाह की बादशाही बयान की और उस की गवाही दी। उसने उन्हें मूसा की शरीअत और नबियों के हवालाजात पेश कर करके ईसा के बारे में क़ायल करने की कोशिश की। \v 24 कुछ तो क़ायल हो गए, लेकिन बाक़ी ईमान न लाए। \v 25 उनमें नाइत्तफ़ाक़ी पैदा हुई तो वह चले गए। जब वह जाने लगे तो पौलुस ने उनसे कहा, “रूहुल-क़ुद्स ने यसायाह नबी की मारिफ़त आपके बापदादा से ठीक कहा कि \p \v 26 जा, इस क़ौम को बता, \p ‘तुम अपने कानों से सुनोगे \p मगर कुछ नहीं समझोगे, \p तुम अपनी आँखों से देखोगे \p मगर कुछ नहीं जानोगे। \p \v 27 क्योंकि इस क़ौम का दिल बेहिस हो गया है। \p वह मुश्किल से अपने कानों से सुनते हैं, \p उन्होंने अपनी आँखों को बंद कर रखा है, \p ऐसा न हो कि वह अपनी आँखों से देखें, \p अपने कानों से सुनें, \p अपने दिल से समझें, \p मेरी तरफ़ रुजू करें \p और मैं उन्हें शफ़ा दूँ’।” \p \v 28 पौलुस ने अपनी बात इन अलफ़ाज़ से ख़त्म की, “अब जान लें कि अल्लाह की तरफ़ से यह नजात ग़ैरयहूदियों को भी पेश की गई है और वह सुनेंगे भी!” \p \v 29 [जब उसने यह कहा तो यहूदी आपस में बहस-मुबाहसा करते हुए चले गए।] \p \v 30 पौलुस पूरे दो साल अपने किराए के घर में रहा। जो भी उसके पास आया उसका उसने इस्तक़बाल करके \v 31 दिलेरी से अल्लाह की बादशाही की मुनादी की और ख़ुदावंद ईसा मसीह की तालीम दी। और किसी ने मुदाख़लत न की।