\id 2SA उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h 2 समुएल \toc1 2 समुएल \toc2 2 समुएल \toc3 2 समू \mt1 2 समुएल \c 1 \s1 दाऊद को साऊल और यूनतन की मौत की ख़बर मिलती है \p \v 1 जब दाऊद अमालीक़ियों को शिकस्त देने से वापस आया तो साऊल बादशाह मर चुका था। वह अभी दो ही दिन सिक़लाज में ठहरा था \v 2 कि एक आदमी साऊल की लशकरगाह से पहुँचा। दुख के इज़हार के लिए उसने अपने कपड़ों को फाड़कर अपने सर पर ख़ाक डाल रखी थी। दाऊद के पास आकर वह बड़े एहतराम के साथ उसके सामने झुक गया। \v 3 दाऊद ने पूछा, “आप कहाँ से आए हैं?” आदमी ने जवाब दिया, “मैं बाल बाल बचकर इसराईली लशकरगाह से आया हूँ।” \v 4 दाऊद ने पूछा, “बताएँ, हालात कैसे हैं?” उसने बताया, “हमारे बहुत-से आदमी मैदाने-जंग में काम आए। बाक़ी भाग गए हैं। साऊल और उसका बेटा यूनतन भी हलाक हो गए हैं।” \p \v 5 दाऊद ने सवाल किया, “आपको कैसे मालूम हुआ कि साऊल और यूनतन मर गए हैं?” \v 6 जवान ने जवाब दिया, “इत्तफ़ाक़ से मैं जिलबुअ के पहाड़ी सिलसिले पर से गुज़र रहा था। वहाँ मुझे साऊल नज़र आया। वह नेज़े का सहारा लेकर खड़ा था। दुश्मन के रथ और घुड़सवार तक़रीबन उसे पकड़ने हीवाले थे \v 7 कि उसने मुड़कर मुझे देखा और अपने पास बुलाया। मैंने कहा, ‘जी, मैं हाज़िर हूँ।’ \v 8 उसने पूछा, ‘तुम कौन हो?’ मैंने जवाब दिया, ‘मैं अमालीक़ी हूँ।’ \v 9 फिर उसने मुझे हुक्म दिया, ‘आओ और मुझे मार डालो! क्योंकि गो मैं ज़िंदा हूँ मेरी जान निकल रही है।’ \v 10 चुनाँचे मैंने उसे मार दिया, क्योंकि मैं जानता था कि बचने का कोई इमकान नहीं रहा था। फिर मैं उसका ताज और बाज़ूबंद लेकर अपने मालिक के पास यहाँ ले आया हूँ।” \p \v 11 यह सब कुछ सुनकर दाऊद और उसके तमाम लोगों ने ग़म के मारे अपने कपड़े फाड़ लिए। \v 12 शाम तक उन्होंने रो रोकर और रोज़ा रखकर साऊल, उसके बेटे यूनतन और रब के उन बाक़ी लोगों का मातम किया जो मारे गए थे। \p \v 13 दाऊद ने उस जवान से जो उनकी मौत की ख़बर लाया था पूछा, “आप कहाँ के हैं?” उसने जवाब दिया, “मैं अमालीक़ी हूँ जो अजनबी के तौर पर आपके मुल्क में रहता हूँ।” \v 14 दाऊद बोला, “आपने रब के मसह किए हुए बादशाह को क़त्ल करने की जुर्रत कैसे की?” \v 15 उसने अपने किसी जवान को बुलाकर हुक्म दिया, “इसे मार डालो!” उसी वक़्त जवान ने अमालीक़ी को मार डाला। \v 16 दाऊद ने कहा, “आपने अपने आपको ख़ुद मुजरिम ठहराया है, क्योंकि आपने अपने मुँह से इक़रार किया है कि मैंने रब के मसह किए हुए बादशाह को मार दिया है।” \s1 साऊल और यूनतन पर मातम का गीत \p \v 17 फिर दाऊद ने साऊल और यूनतन पर मातम का गीत गाया। \v 18 उसने हिदायत दी कि यहूदाह के तमाम बाशिंदे यह गीत याद करें। गीत का नाम ‘कमान का गीत’ है और ‘याशर की किताब’ में दर्ज है। गीत यह है, \p \v 19 “हाय, ऐ इसराईल! तेरी शानो-शौकत तेरी बुलंदियों पर मारी गई है। हाय, तेरे सूरमे किस तरह गिर गए हैं! \p \v 20 जात में जाकर यह ख़बर मत सुनाना। अस्क़लून की गलियों में इसका एलान मत करना, वरना फ़िलिस्तियों की बेटियाँ ख़ुशी मनाएँगी, नामख़तूनों की बेटियाँ फ़तह के नारे लगाएँगी। \p \v 21 ऐ जिलबुअ के पहाड़ो! ऐ पहाड़ी ढलानो! आइंदा तुम पर न ओस पड़े, न बारिश बरसे। क्योंकि सूरमाओं की ढाल नापाक हो गई है। अब से साऊल की ढाल तेल मलकर इस्तेमाल नहीं की जाएगी। \b \p \v 22 यूनतन की कमान ज़बरदस्त थी, साऊल की तलवार कभी ख़ाली हाथ न लौटी। उनके हथियारों से हमेशा दुश्मन का ख़ून टपकता रहा, वह सूरमाओं की चरबी से चमकते रहे। \p \v 23 साऊल और यूनतन कितने प्यारे और मेहरबान थे! जीते-जी वह एक दूसरे के क़रीब रहे, और अब मौत भी उन्हें अलग न कर सकी। वह उक़ाब से तेज़ और शेरबबर से ताक़तवर थे। \p \v 24 ऐ इसराईल की ख़वातीन! साऊल के लिए आँसू बहाएँ। क्योंकि उसी ने आपको क़िरमिज़ी रंग के शानदार कपड़ों से मुलब्बस किया, उसी ने आपको सोने के ज़ेवरात से आरास्ता किया। \b \p \v 25 हाय, हमारे सूरमे लड़ते लड़ते शहीद हो गए हैं। हाय ऐ इसराईल, यूनतन मुरदा हालत में तेरी बुलंदियों पर पड़ा है। \p \v 26 ऐ यूनतन मेरे भाई, मैं तेरे बारे में कितना दुखी हूँ। तू मुझे कितना अज़ीज़ था। तेरी मुझसे मुहब्बत अनोखी थी, वह औरतों की मुहब्बत से भी अनोखी थी। \p \v 27 हाय, हाय! हमारे सूरमे किस तरह गिरकर शहीद हो गए हैं। जंग के हथियार तबाह हो गए हैं।” \c 2 \s1 दाऊद यहूदाह का बादशाह बन जाता है \p \v 1 इसके बाद दाऊद ने रब से दरियाफ़्त किया, “क्या मैं यहूदाह के किसी शहर में वापस चला जाऊँ?” रब ने जवाब दिया, “हाँ, वापस जा।” दाऊद ने सवाल किया, “मैं किस शहर में जाऊँ?” रब ने जवाब दिया, “हबरून में।” \v 2 चुनाँचे दाऊद अपनी दो बीवियों अख़ीनुअम यज़्रएली और नाबाल की बेवा अबीजेल करमिली के साथ हबरून में जा बसा। \p \v 3 दाऊद ने अपने आदमियों को भी उनके ख़ानदानों समेत हबरून और गिर्दो-नवाह की आबादियों में मुंतक़िल कर दिया। \v 4 एक दिन यहूदाह के आदमी हबरून में आए और दाऊद को मसह करके अपना बादशाह बना लिया। \p जब दाऊद को ख़बर मिल गई कि यबीस-जिलियाद के मर्दों ने साऊल को दफ़ना दिया है \v 5 तो उसने उन्हें पैग़ाम भेजा, “रब आपको इसके लिए बरकत दे कि आपने अपने मालिक साऊल को दफ़न करके उस पर मेहरबानी की है। \v 6 जवाब में रब आप पर अपनी मेहरबानी और वफ़ादारी का इज़हार करे। मैं भी इस नेक अमल का अज्र दूँगा। \v 7 अब मज़बूत और दिलेर हों। आपका आक़ा साऊल तो फ़ौत हुआ है, लेकिन यहूदाह के क़बीले ने मुझे उस की जगह चुन लिया है।” \s1 इशबोसत इसराईल का बादशाह बन जाता है \p \v 8 इतने में साऊल की फ़ौज के कमाँडर अबिनैर बिन नैर ने साऊल के बेटे इशबोसत को महनायम शहर में ले जाकर \v 9 बादशाह मुक़र्रर कर दिया। जिलियाद, यज़्रएल, आशर, इफ़राईम, बिनयमीन और तमाम इसराईल उसके क़ब्ज़े में रहे। \v 10 सिर्फ़ यहूदाह का क़बीला दाऊद के साथ रहा। इशबोसत 40 साल की उम्र में बादशाह बना, और उस की हुकूमत दो साल क़ायम रही। \v 11 दाऊद हबरून में यहूदाह पर साढ़े सात साल हुकूमत करता रहा। \s1 इसराईल और यहूदाह के दरमियान जंग \p \v 12 एक दिन अबिनैर इशबोसत बिन साऊल के मुलाज़िमों के साथ महनायम से निकलकर जिबऊन आया। \v 13 यह देखकर दाऊद की फ़ौज योआब बिन ज़रूयाह की राहनुमाई में उनसे लड़ने के लिए निकली। दोनों फ़ौजों की मुलाक़ात जिबऊन के तालाब पर हुई। अबिनैर की फ़ौज तालाब की उरली तरफ़ रुक गई और योआब की फ़ौज परली तरफ़। \v 14 अबिनैर ने योआब से कहा, “आओ, हमारे चंद जवान हमारे सामने एक दूसरे का मुक़ाबला करें।” योआब बोला, “ठीक है।” \v 15 चुनाँचे हर फ़ौज ने बारह जवानों को चुनकर मुक़ाबले के लिए पेश किया। इशबोसत और बिनयमीन के क़बीले के बारह जवान दाऊद के बारह जवानों के मुक़ाबले में खड़े हो गए। \v 16 जब मुक़ाबला शुरू हुआ तो हर एक ने एक हाथ से अपने मुख़ालिफ़ के बालों को पकड़कर दूसरे हाथ से अपनी तलवार उसके पेट में घोंप दी। सबके सब एक साथ मर गए। बाद में जिबऊन की इस जगह का नाम ख़िलक़त-हज़्ज़ूरीम पड़ गया। \p \v 17 फिर दोनों फ़ौजों के दरमियान निहायत सख़्त लड़ाई छिड़ गई। लड़ते लड़ते अबिनैर और उसके मर्द हार गए। \v 18 योआब के दो भाई अबीशै और असाहेल भी लड़ाई में हिस्सा ले रहे थे। असाहेल ग़ज़ाल की तरह तेज़ दौड़ सकता था। \v 19 जब अबिनैर शिकस्त खाकर भागने लगा तो असाहेल सीधा उसके पीछे पड़ गया और न दाईं, न बाईं तरफ़ हटा। \v 20 अबिनैर ने पीछे देखकर पूछा, “क्या आप ही हैं, असाहेल?” उसने जवाब दिया, “जी, मैं ही हूँ।” \v 21 अबिनैर बोला, “दाईं या बाईं तरफ़ हटकर किसी और को पकड़ें! जवानों में से किसी से लड़कर उसके हथियार और ज़िरा-बकतर उतारें।” \p लेकिन असाहेल उसका ताक़्क़ुब करने से बाज़ न आया। \v 22 अबिनैर ने उसे आगाह किया, “ख़बरदार। मेरे पीछे से हट जाएँ, वरना आपको मार देने पर मजबूर हो जाऊँगा। फिर आपके भाई योआब को किस तरह मुँह दिखाऊँगा?” \v 23 तो भी असाहेल ने पीछा न छोड़ा। यह देखकर अबिनैर ने अपने नेज़े का दस्ता इतने ज़ोर से उसके पेट में घोंप दिया कि उसका सिरा दूसरी तरफ़ निकल गया। असाहेल वहीं गिरकर जान-बहक़ हो गया। जिसने भी वहाँ से गुज़रकर यह देखा वह वहीं रुक गया। \p \v 24 लेकिन योआब और अबीशै अबिनैर का ताक़्क़ुब करते रहे। जब सूरज ग़ुरूब होने लगा तो वह एक पहाड़ी के पास पहुँच गए जिसका नाम अम्मा था। यह जियाह के मुक़ाबिल उस रास्ते के पास है जो मुसाफ़िर को जिबऊन से रेगिस्तान में पहुँचाता है। \v 25 बिनयमीन के क़बीले के लोग वहाँ पहाड़ी पर अबिनैर के पीछे जमा होकर दुबारा लड़ने के लिए तैयार हो गए। \v 26 अबिनैर ने योआब को आवाज़ दी, “क्या यह ज़रूरी है कि हम हमेशा तक एक दूसरे को मौत के घाट उतारते जाएँ? क्या आपको समझ नहीं आई कि ऐसी हरकतें सिर्फ़ तलख़ी पैदा करती हैं? आप कब अपने मर्दों को हुक्म देंगे कि वह अपने इसराईली भाइयों का ताक़्क़ुब करने से बाज़ आएँ?” \p \v 27 योआब ने जवाब दिया, “रब की हयात की क़सम, अगर आप लड़ने का हुक्म न देते तो मेरे लोग आज सुबह ही अपने भाइयों का ताक़्क़ुब करने से बाज़ आ जाते।” \v 28 उसने नरसिंगा बजा दिया, और उसके आदमी रुककर दूसरों का ताक़्क़ुब करने से बाज़ आए। यों लड़ाई ख़त्म हो गई। \p \v 29 उस पूरी रात के दौरान अबिनैर और उसके आदमी चलते गए। दरियाए-यरदन की वादी में से गुज़रकर उन्होंने दरिया को पार किया और फिर गहरी घाटी में से होकर महनायम पहुँच गए। \p \v 30 योआब भी अबिनैर और उसके लोगों को छोड़कर वापस चला गया। जब उसने अपने आदमियों को जमा करके गिना तो मालूम हुआ कि असाहेल के अलावा दाऊद के 19 आदमी मारे गए हैं। \v 31 इसके मुक़ाबले में अबिनैर के 360 आदमी हलाक हुए थे। सब बिनयमीन के क़बीले के थे। \v 32 योआब और उसके साथियों ने असाहेल की लाश उठाकर उसे बैत-लहम में उसके बाप की क़ब्र में दफ़न किया। फिर उसी रात अपना सफ़र जारी रखकर वह पौ फटते वक़्त हबरून पहुँच गए। \c 3 \p \v 1 साऊल के बेटे इशबोसत और दाऊद के दरमियान यह जंग बड़ी देर तक जारी रही। लेकिन आहिस्ता आहिस्ता दाऊद ज़ोर पकड़ता गया जबकि इशबोसत की ताक़त कम होती गई। \s1 दाऊद का ख़ानदान हबरून में \p \v 2 हबरून में दाऊद के बाज़ बेटे पैदा हुए। पहले का नाम अमनोन था। उस की माँ अख़ीनुअम यज़्रएली थी। \v 3 फिर किलियाब पैदा हुआ जिसकी माँ नाबाल की बेवा अबीजेल करमिली थी। तीसरा बेटा अबीसलूम था। उस की माँ माका थी जो जसूर के बादशाह तलमी की बेटी थी। \v 4 चौथे का नाम अदूनियाह था। उस की माँ हज्जीत थी। पाँचवाँ बेटा सफ़तियाह था। उस की माँ अबीताल थी। \v 5 छटे का नाम इतरियाम था। उस की माँ इजला थी। यह छः बेटे हबरून में पैदा हुए। \s1 अबिनैर इशबोसत से झगड़ता है \p \v 6 जितनी देर तक इशबोसत और दाऊद के दरमियान जंग रही, उतनी देर तक अबिनैर साऊल के घराने का वफ़ादार रहा। \p \v 7 लेकिन एक दिन इशबोसत अबिनैर से नाराज़ हुआ, क्योंकि वह साऊल मरहूम की एक दाश्ता से हमबिसतर हो गया था। औरत का नाम रिसफ़ा बिंत ऐयाह था। इशबोसत ने शिकायत की, “आपने मेरे बाप की दाश्ता से ऐसा सुलूक क्यों किया?” \v 8 अबिनैर बड़े ग़ुस्से में आकर गरजा, “क्या मैं यहूदाह का कुत्ता \f + \fr 3:8 \ft लफ़्ज़ी तरजुमा : कुत्ते का सर \f* हूँ कि आप मुझे ऐसा रवैया दिखाते हैं? आज तक मैं आपके बाप के घराने और उसके रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए लड़ता रहा हूँ। मेरी ही वजह से आप अब तक दाऊद के हाथ से बचे रहे हैं। क्या यह इसका मुआवज़ा है? क्या एक ऐसी औरत के सबब से आप मुझे मुजरिम ठहरा रहे हैं? \v 9-10 अल्लाह मुझे सख़्त सज़ा दे अगर अब से हर मुमकिन कोशिश न करूँ कि दाऊद पूरे इसराईल और यहूदाह पर बादशाह बन जाए, शिमाल में दान से लेकर जुनूब में बैर-सबा तक। आख़िर रब ने ख़ुद क़सम खाकर दाऊद से वादा किया है कि मैं बादशाही साऊल के घराने से छीनकर तुझे दूँगा।” \p \v 11 यह सुनकर इशबोसत अबिनैर से इतना डर गया कि मज़ीद कुछ कहने की जुर्रत जाती रही। \s1 अबिनैर के दाऊद से मुज़ाकरात \p \v 12 अबिनैर ने दाऊद को पैग़ाम भेजा, “मुल्क किसका है? मेरे साथ मुआहदा कर लें तो मैं पूरे इसराईल को आपके साथ मिला दूँगा।” \p \v 13 दाऊद ने जवाब दिया, “ठीक है, मैं आपके साथ मुआहदा करता हूँ। लेकिन एक ही शर्त पर, आप साऊल की बेटी मीकल को जो मेरी बीवी है मेरे घर पहुँचाएँ, वरना मैं आपसे नहीं मिलूँगा।” \v 14 दाऊद ने इशबोसत के पास भी क़ासिद भेजकर तक़ाज़ा किया, “मुझे मेरी बीवी मीकल जिससे शादी करने के लिए मैंने सौ फ़िलिस्तियों को मारा वापस कर दें।” \v 15 इशबोसत मान गया। उसने हुक्म दिया कि मीकल को उसके मौजूदा शौहर फ़लतियेल बिन लैस से लेकर दाऊद को भेजा जाए। \v 16 लेकिन फ़लतियेल उसे छोड़ना नहीं चाहता था। वह रोते रोते बहूरीम तक अपनी बीवी के पीछे चलता रहा। तब अबिनैर ने उससे कहा, “अब जाओ! वापस चले जाओ!” तब वह वापस चला। \p \v 17 अबिनैर ने इसराईल के बुज़ुर्गों से भी बात की, “आप तो काफ़ी देर से चाहते हैं कि दाऊद आपका बादशाह बन जाए। \v 18 अब क़दम उठाने का वक़्त आ गया है! क्योंकि रब ने दाऊद से वादा किया है, ‘अपने ख़ादिम दाऊद से मैं अपनी क़ौम इसराईल को फ़िलिस्तियों और बाक़ी तमाम दुश्मनों के हाथ से बचाऊँगा’।” \v 19 यही बात अबिनैर ने बिनयमीन के बुज़ुर्गों के पास जाकर भी की। इसके बाद वह हबरून में दाऊद के पास आया ताकि उसके सामने इसराईल और बिनयमीन के बुज़ुर्गों का फ़ैसला पेश करे। \p \v 20 बीस आदमी अबिनैर के साथ हबरून पहुँच गए। उनका इस्तक़बाल करके दाऊद ने ज़ियाफ़त की। \v 21 फिर अबिनैर ने दाऊद से कहा, “अब मुझे इजाज़त दें। मैं अपने आक़ा और बादशाह के लिए तमाम इसराईल को जमा कर लूँगा ताकि वह आपके साथ अहद बाँधकर आपको अपना बादशाह बना लें। फिर आप उस पूरे मुल्क पर हुकूमत करेंगे जिस तरह आपका दिल चाहता है।” फिर दाऊद ने अबिनैर को सलामती से रुख़सत कर दिया। \s1 अबिनैर को क़त्ल किया जाता है \p \v 22 थोड़ी देर के बाद योआब दाऊद के आदमियों के साथ किसी लड़ाई से वापस आया। उनके पास बहुत-सा लूटा हुआ माल था। लेकिन अबिनैर हबरून में दाऊद के पास नहीं था, क्योंकि दाऊद ने उसे सलामती से रुख़सत कर दिया था। \v 23 जब योआब अपने आदमियों के साथ शहर में दाख़िल हुआ तो उसे इत्तला दी गई, “अबिनैर बिन नैर बादशाह के पास था, और बादशाह ने उसे सलामती से रुख़सत कर दिया है।” \v 24 योआब फ़ौरन बादशाह के पास गया और बोला, “आपने यह क्या किया है? जब अबिनैर आपके पास आया तो आपने उसे क्यों सलामती से रुख़सत किया? अब उसे पकड़ने का मौक़ा जाता रहा है। \v 25 आप तो उसे जानते हैं। हक़ीक़त में वह इसलिए आया कि आपको मनवाकर आपके आने जाने और बाक़ी कामों के बारे में मालूमात हासिल करे।” \p \v 26 योआब ने दरबार से निकलकर क़ासिदों को अबिनैर के पीछे भेज दिया। वह अभी सफ़र करते करते सीरा के हौज़ पर से गुज़र रहा था कि क़ासिद उसके पास पहुँच गए। उनकी दावत पर वह उनके साथ वापस गया। लेकिन बादशाह को इसका इल्म न था। \v 27 जब अबिनैर दुबारा हबरून में दाख़िल होने लगा तो योआब शहर के दरवाज़े में उसका इस्तक़बाल करके उसे एक तरफ़ ले गया जैसे वह उसके साथ कोई ख़ुफ़िया बात करना चाहता हो। लेकिन अचानक उसने अपनी तलवार को मियान से खींचकर अबिनैर के पेट में घोंप दिया। इस तरह योआब ने अपने भाई असाहेल का बदला लेकर अबिनैर को मार डाला। \p \v 28 जब दाऊद को इसकी इत्तला मिली तो उसने एलान किया, “मैं रब के सामने क़सम खाता हूँ कि बेक़ुसूर हूँ। मेरा अबिनैर की मौत में हाथ नहीं था। इस नाते से मुझ पर और मेरी बादशाही पर कभी भी इलज़ाम न लगाया जाए, \v 29 क्योंकि योआब और उसके बाप का घराना क़ुसूरवार हैं। रब उसे और उसके बाप के घराने को मुनासिब सज़ा दे। अब से अबद तक उस की हर नसल में कोई न कोई हो जिसे ऐसे ज़ख़म लग जाएँ जो भर न पाएँ, किसी को कोढ़ लग जाए, किसी को बैसाखियों की मदद से चलना पड़े, कोई ग़ैरतबई मौत मर जाए, या किसी को ख़ुराक की मुसलसल कमी रहे।” \v 30 यों योआब और उसके भाई अबीशै ने अपने भाई असाहेल का बदला लिया। उन्होंने अबिनैर को इसलिए क़त्ल किया कि उसने असाहेल को जिबऊन के क़रीब लड़ते वक़्त मौत के घाट उतार दिया था। \s1 दाऊद अबिनैर का मातम करता है \p \v 31-32 दाऊद ने योआब और उसके साथियों को हुक्म दिया, “अपने कपड़े फाड़ दो और टाट ओढ़कर अबिनैर का मातम करो!” जनाज़े का बंदोबस्त हबरून में किया गया। दाऊद ख़ुद जनाज़े के ऐन पीछे चला। क़ब्र पर बादशाह ऊँची आवाज़ से रो पड़ा, और बाक़ी सब लोग भी रोने लगे। \v 33 फिर दाऊद ने अबिनैर के बारे में मातमी गीत गाया, \p \v 34 “हाय, अबिनैर क्यों बेदीन की तरह मारा गया? तेरे हाथ बँधे हुए न थे, तेरे पाँव ज़ंजीरों में जकड़े हुए न थे। जिस तरह कोई शरीरों के हाथ में आकर मर जाता है उसी तरह तू हलाक हुआ।” \p तब तमाम लोग मज़ीद रोए। \v 35 दाऊद ने जनाज़े के दिन रोज़ा रखा। सबने मिन्नत की कि वह कुछ खाए, लेकिन उसने क़सम खाकर कहा, “अल्लाह मुझे सख़्त सज़ा दे अगर मैं सूरज के ग़ुरूब होने से पहले रोटी का एक टुकड़ा भी खा लूँ।” \v 36 बादशाह का यह रवैया लोगों को बहुत पसंद आया। वैसे भी दाऊद का हर अमल लोगों को पसंद आता था। \v 37 यों तमाम हाज़िरीन बल्कि तमाम इसराईलियों ने जान लिया कि बादशाह का अबिनैर को क़त्ल करने में हाथ न था। \v 38 दाऊद ने अपने दरबारियों से कहा, “क्या आपको समझ नहीं आई कि आज इसराईल का बड़ा सूरमा फ़ौत हुआ है? \v 39 मुझे अभी अभी मसह करके बादशाह बनाया गया है, इसलिए मेरी इतनी ताक़त नहीं कि ज़रूयाह के इन दो बेटों योआब और अबीशै को कंट्रोल करूँ। रब उन्हें उनकी इस शरीर हरकत की मुनासिब सज़ा दे!” \c 4 \s1 इशबोसत को क़त्ल किया जाता है \p \v 1 जब साऊल के बेटे इशबोसत को इत्तला मिली कि अबिनैर को हबरून में क़त्ल किया गया है तो वह हिम्मत हार गया, और तमाम इसराईल सख़्त घबरा गया। \v 2 इशबोसत के दो आदमी थे जिनके नाम बाना और रैकाब थे। जब कभी इशबोसत के फ़ौजी छापा मारने के लिए निकलते तो यह दो भाई उन पर मुक़र्रर थे। उनका बाप रिम्मोन बिनयमीन के क़बायली इलाक़े के शहर बैरोत का रहनेवाला था। बैरोत भी बिनयमीन में शुमार किया जाता है, \v 3 अगरचे उसके बाशिंदों को हिजरत करके जित्तैम में बसना पड़ा जहाँ वह आज तक परदेसी की हैसियत से रहते हैं। \p \v 4 यूनतन का एक बेटा ज़िंदा रह गया था जिसका नाम मिफ़ीबोसत था। पाँच साल की उम्र में यज़्रएल से ख़बर आई थी कि साऊल और यूनतन मारे गए हैं। तब उस की आया उसे लेकर कहीं पनाह लेने के लिए भाग गई थी। लेकिन जल्दी की वजह से मिफ़ीबोसत गिरकर लँगड़ा हो गया था। उस वक़्त से उस की दोनों टाँगें मफ़लूज थीं। \p \v 5 एक दिन रिम्मोन बैरोती के बेटे रैकाब और बाना दोपहर के वक़्त इशबोसत के घर गए। गरमी उरूज पर थी, इसलिए इशबोसत आराम कर रहा था। \v 6-7 दोनों आदमी यह बहाना पेश करके घर के अंदरूनी कमरे में गए कि हम कुछ अनाज ले जाने के लिए आए हैं। जब इशबोसत के कमरे में पहुँचे तो वह चारपाई पर लेटा सो रहा था। यह देखकर उन्होंने उसके पेट में तलवार घोंप दी और फिर उसका सर काटकर वहाँ से सलामती से निकल आए। \p पूरी रात सफ़र करते करते वह दरियाए-यरदन की वादी में से गुज़रकर \v 8 हबरून पहुँच गए। वहाँ उन्होंने दाऊद को इशबोसत का सर दिखाकर कहा, “यह देखें, साऊल के बेटे इशबोसत का सर। आपका दुश्मन साऊल बार बार आपको मार देने की कोशिश करता रहा, लेकिन आज रब ने उससे और उस की औलाद से आपका बदला लिया है।” \s1 दाऊद क़ातिलों को सज़ा देता है \p \v 9 लेकिन दाऊद ने जवाब दिया, “रब की हयात की क़सम जिसने फ़िद्या देकर मुझे हर मुसीबत से बचाया है, \v 10 जिस आदमी ने मुझे उस वक़्त सिक़लाज में साऊल की मौत की इत्तला दी वह भी समझता था कि मैं दाऊद को अच्छी ख़बर पहुँचा रहा हूँ। लेकिन मैंने उसे पकड़कर सज़ाए-मौत दे दी। यही था वह अज्र जो उसे ऐसी ख़बर पहुँचाने के एवज़ मिला! \v 11 अब तुम शरीर लोगों ने इससे बढ़कर किया। तुमने बेक़ुसूर आदमी को उसके अपने घर में उस की अपनी चारपाई पर क़त्ल कर दिया है। तो क्या मेरा फ़र्ज़ नहीं कि तुमको इस क़त्ल की सज़ा देकर तुम्हें मुल्क में से मिटा दूँ?” \p \v 12 दाऊद ने दोनों को मार देने का हुक्म दिया। उसके मुलाज़िमों ने उन्हें मारकर उनके हाथों और पैरों को काट डाला और उनकी लाशों को हबरून के तालाब के क़रीब कहीं लटका दिया। इशबोसत के सर को उन्होंने अबिनैर की क़ब्र में दफ़नाया। \c 5 \s1 दाऊद पूरे इसराईल का बादशाह बन जाता है \p \v 1 उस वक़्त इसराईल के तमाम क़बीले हबरून में दाऊद के पास आए और कहा, “हम आप ही की क़ौम और आप ही के रिश्तेदार हैं। \v 2 माज़ी में भी जब साऊल बादशाह था तो आप ही फ़ौजी मुहिमों में इसराईल की क़ियादत करते रहे। और रब ने आपसे वादा भी किया है कि तू मेरी क़ौम इसराईल का चरवाहा बनकर उस पर हुकूमत करेगा।” \v 3 जब इसराईल के तमाम बुज़ुर्ग हबरून पहुँचे तो दाऊद बादशाह ने रब के हुज़ूर उनके साथ अहद बाँधा, और उन्होंने उसे मसह करके इसराईल का बादशाह बना दिया। \p \v 4 दाऊद 30 साल की उम्र में बादशाह बन गया। उस की हुकूमत 40 साल तक जारी रही। \v 5 पहले साढ़े सात साल वह सिर्फ़ यहूदाह का बादशाह था और उसका दारुल-हुकूमत हबरून रहा। बाक़ी 33 साल वह यरूशलम में रहकर यहूदाह और इसराईल दोनों पर हुकूमत करता रहा। \s1 दाऊद यरूशलम पर क़ब्ज़ा करता है \p \v 6 बादशाह बनने के बाद दाऊद अपने फ़ौजियों के साथ यरूशलम गया ताकि उस पर हमला करे। वहाँ अब तक यबूसी आबाद थे। दाऊद को देखकर यबूसियों ने उसका मज़ाक़ उड़ाया, “आप हमारे शहर में कभी दाख़िल नहीं हो पाएँगे! आपको रोकने के लिए हमारे लँगड़े और अंधे काफ़ी हैं।” उन्हें पूरा यक़ीन था कि दाऊद शहर में किसी भी तरीक़े से नहीं आ सकेगा। \p \v 7 तो भी दाऊद ने सिय्यून के क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया जो आजकल ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है। \v 8 जिस दिन उन्होंने शहर पर हमला किया उसने एलान किया, “जो भी यबूसियों पर फ़तह पाना चाहे उसे पानी की सुरंग में से गुज़रकर शहर में घुसना पड़ेगा ताकि उन लँगड़ों और अंधों को मारे जिनसे मेरी जान नफ़रत करती है।” इसलिए आज तक कहा जाता है, “लँगड़ों और अंधों को घर में जाने की इजाज़त नहीं।” \p \v 9 यरूशलम पर फ़तह पाने के बाद दाऊद क़िले में रहने लगा। उसने उसे ‘दाऊद का शहर’ क़रार दिया और उसके इर्दगिर्द शहर को बढ़ाने लगा। यह तामीरी काम इर्दगिर्द के चबूतरों से शुरू हुआ और होते होते क़िले तक पहुँच गया। \p \v 10 यों दाऊद ज़ोर पकड़ता गया, क्योंकि रब्बुल-अफ़वाज उसके साथ था। \s1 दाऊद की तरक़्क़ी \p \v 11 एक दिन सूर के बादशाह हीराम ने दाऊद के पास वफ़द भेजा। बढ़ई और राज भी साथ थे। उनके पास देवदार की लकड़ी थी, और उन्होंने दाऊद के लिए महल बना दिया। \v 12 यों दाऊद ने जान लिया कि रब ने मुझे इसराईल का बादशाह बनाकर मेरी बादशाही अपनी क़ौम इसराईल की ख़ातिर सरफ़राज़ कर दी है। \p \v 13 हबरून से यरूशलम में मुंतक़िल होने के बाद दाऊद ने मज़ीद बीवियों और दाश्ताओं से शादी की। नतीजे में यरूशलम में उसके कई बेटे-बेटियाँ पैदा हुए। \v 14 जो बेटे वहाँ पैदा हुए वह यह थे : सम्मुअ, सोबाब, नातन, सुलेमान, \v 15 इबहार, इलीसुअ, नफ़ज, यफ़ीअ, \v 16 इलीसमा, इलियदा और इलीफ़लत। \s1 फ़िलिस्तियों पर फ़तह \p \v 17 जब फ़िलिस्तियों को इत्तला मिली कि दाऊद को मसह करके इसराईल का बादशाह बनाया गया है तो उन्होंने अपने फ़ौजियों को इसराईल में भेज दिया ताकि उसे पकड़ लें। लेकिन दाऊद को पता चल गया, और उसने एक पहाड़ी क़िले में पनाह ले ली। \p \v 18 जब फ़िलिस्ती इसराईल में पहुँचकर वादीए-रफ़ाईम में फैल गए \v 19 तो दाऊद ने रब से दरियाफ़्त किया, “क्या मैं फ़िलिस्तियों पर हमला करूँ? क्या तू मुझे उन पर फ़तह बख़्शेगा?” रब ने जवाब दिया, “हाँ, उन पर हमला कर! मैं उन्हें ज़रूर तेरे क़ब्ज़े में कर दूँगा।” \v 20 चुनाँचे दाऊद अपने फ़ौजियों को लेकर बाल-पराज़ीम गया। वहाँ उसने फ़िलिस्तियों को शिकस्त दी। बाद में उसने गवाही दी, “जितने ज़ोर से बंद के टूट जाने पर पानी उससे फूट निकलता है उतने ज़ोर से आज रब मेरे देखते देखते दुश्मन की सफ़ों में से फूट निकला है।” चुनाँचे उस जगह का नाम बाल-पराज़ीम यानी ‘फूट निकलने का मालिक’ पड़ गया। \v 21 फ़िलिस्ती अपने बुत छोड़कर भाग गए, और वह दाऊद और उसके आदमियों के क़ब्ज़े में आ गए। \p \v 22 एक बार फिर फ़िलिस्ती आकर वादीए-रफ़ाईम में फैल गए। \v 23 जब दाऊद ने रब से दरियाफ़्त किया तो उसने जवाब दिया, “इस मरतबा उनका सामना मत करना बल्कि उनके पीछे जाकर बका के दरख़्तों के सामने उन पर हमला कर। \v 24 जब उन दरख़्तों की चोटियों से क़दमों की चाप सुनाई दे तो ख़बरदार! यह इसका इशारा होगा कि रब ख़ुद तेरे आगे आगे चलकर फ़िलिस्तियों को मारने के लिए निकल आया है।” \p \v 25 दाऊद ने ऐसा ही किया और नतीजे में फ़िलिस्तियों को शिकस्त देकर जिबऊन से लेकर जज़र तक उनका ताक़्क़ुब किया। \c 6 \s1 दाऊद अहद का संदूक़ यरूशलम में ले आता है \p \v 1 एक बार फिर दाऊद ने इसराईल के चुनीदा आदमियों को जमा किया। 30,000 अफ़राद थे। \v 2 उनके साथ मिलकर वह यहूदाह के बाला पहुँच गया ताकि अल्लाह का संदूक़ उठाकर यरूशलम ले जाएँ, वही संदूक़ जिस पर रब्बुल-अफ़वाज के नाम का ठप्पा लगा है और जहाँ वह संदूक़ के ऊपर करूबी फ़रिश्तों के दरमियान तख़्तनशीन है। \v 3-4 लोगों ने अल्लाह के संदूक़ को पहाड़ी पर वाक़े अबीनदाब के घर से निकालकर एक नई बैलगाड़ी पर रख दिया, और अबीनदाब के दो बेटे उज़्ज़ा और अख़ियो उसे यरूशलम की तरफ़ ले जाने लगे। अख़ियो गाड़ी के आगे आगे \v 5 और दाऊद बाक़ी तमाम लोगों के साथ पीछे चल रहा था। सब रब के हुज़ूर पूरे ज़ोर से ख़ुशी मनाने और गीत गाने लगे। मुख़्तलिफ़ साज़ भी बजाए जा रहे थे। फ़िज़ा सितारों, सरोदों, दफ़ों, ख़ंजरियों \f + \fr 6:5 \ft इबरानी में इससे मुराद झुनझुने जैसा कोई साज़ है। \f* और झाँझों की आवाज़ों से गूँज उठी। \p \v 6 वह गंदुम गाहने की एक जगह पर पहुँच गए जिसके मालिक का नाम नकोन था। वहाँ बैल अचानक बेकाबू हो गए। उज़्ज़ा ने जल्दी से अल्लाह का संदूक़ पकड़ लिया ताकि वह गिर न जाए। \v 7 उसी लमहे रब का ग़ज़ब उस पर नाज़िल हुआ, क्योंकि उसने अल्लाह के संदूक़ को छूने की जुर्रत की थी। वहीं अल्लाह के संदूक़ के पास ही उज़्ज़ा गिरकर हलाक हो गया। \v 8 दाऊद को बड़ा रंज हुआ कि रब का ग़ज़ब उज़्ज़ा पर यों टूट पड़ा है। उस वक़्त से उस जगह का नाम परज़-उज़्ज़ा यानी ‘उज़्ज़ा पर टूट पड़ना’ है। \p \v 9 उस दिन दाऊद को रब से ख़ौफ़ आया। उसने सोचा, “रब का संदूक़ किस तरह मेरे पास पहुँच सकेगा?” \v 10 चुनाँचे उसने फ़ैसला किया कि हम रब का संदूक़ यरूशलम नहीं ले जाएंगे बल्कि उसे ओबेद-अदोम जाती के घर में महफ़ूज़ रखेंगे। \v 11 वहाँ वह तीन माह तक पड़ा रहा। \p इन तीन महीनों के दौरान रब ने ओबेद-अदोम और उसके पूरे घराने को बरकत दी। \v 12 एक दिन दाऊद को इत्तला दी गई, “जब से अल्लाह का संदूक़ ओबेद-अदोम के घर में है उस वक़्त से रब ने उसके घराने और उस की पूरी मिलकियत को बरकत दी है।” यह सुनकर दाऊद ओबेद-अदोम के घर गया और ख़ुशी मनाते हुए अल्लाह के संदूक़ को दाऊद के शहर ले आया। \v 13 छः क़दमों के बाद दाऊद ने रब का संदूक़ उठानेवालों को रोककर एक साँड और एक मोटा-ताज़ा बछड़ा क़ुरबान किया। \v 14 जब जुलूस आगे निकला तो दाऊद पूरे ज़ोर के साथ रब के हुज़ूर नाचने लगा। वह कतान का बालापोश पहने हुए था। \v 15 ख़ुशी के नारे लगा लगाकर और नरसिंगे फूँक फूँककर दाऊद और तमाम इसराईली रब का संदूक़ यरूशलम ले आए। \p \v 16 रब का संदूक़ दाऊद के शहर में दाख़िल हुआ तो दाऊद की बीवी मीकल बिंत साऊल खिड़की में से जुलूस को देख रही थी। जब बादशाह रब के हुज़ूर कूदता और नाचता हुआ नज़र आया तो मीकल ने दिल में उसे हक़ीर जाना। \p \v 17 रब का संदूक़ उस तंबू के दरमियान में रखा गया जो दाऊद ने उसके लिए लगवाया था। फिर दाऊद ने रब के हुज़ूर भस्म होनेवाली और सलामती की क़ुरबानियाँ पेश कीं। \v 18 इसके बाद उसने क़ौम को रब्बुल-अफ़वाज के नाम से बरकत देकर \v 19 हर इसराईली मर्द और औरत को एक रोटी, खजूर की एक टिक्की और किशमिश की एक टिक्की दे दी। फिर तमाम लोग अपने अपने घरों को वापस चले गए। \p \v 20 दाऊद भी अपने घर लौटा ताकि अपने ख़ानदान को बरकत देकर सलाम करे। वह अभी महल के अंदर नहीं पहुँचा था कि मीकल निकलकर उससे मिलने आई। उसने तंज़न कहा, “वाह जी वाह। आज इसराईल का बादशाह कितनी शान के साथ लोगों को नज़र आया है! अपने लोगों की लौंडियों के सामने ही उसने अपने कपड़े उतार दिए, बिलकुल उसी तरह जिस तरह गँवार करते हैं।” \v 21 दाऊद ने जवाब दिया, “मैं रब ही के हुज़ूर नाच रहा था, जिसने आपके बाप और उसके ख़ानदान को तर्क करके मुझे चुन लिया और इसराईल का बादशाह बना दिया है। उसी की ताज़ीम में मैं आइंदा भी नाचूँगा। \v 22 हाँ, मैं इससे भी ज़्यादा ज़लील होने के लिए तैयार हूँ। जहाँ तक लौंडियों का ताल्लुक़ है, वह ज़रूर मेरी इज़्ज़त करेंगी।” \p \v 23 जीते-जी मीकल बेऔलाद रही। \c 7 \s1 रब दाऊद से अबदी बादशाही का वादा करता है \p \v 1 दाऊद बादशाह सुकून से अपने महल में रहने लगा, क्योंकि रब ने इर्दगिर्द के दुश्मनों को उस पर हमला करने से रोक दिया था। \v 2 एक दिन दाऊद ने नातन नबी से बात की, “देखें, मैं यहाँ देवदार के महल में रहता हूँ जबकि अल्लाह का संदूक़ अब तक तंबू में पड़ा है। यह मुनासिब नहीं है!” \p \v 3 नातन ने बादशाह की हौसलाअफ़्ज़ाई की, “जो कुछ भी आप करना चाहते हैं वह करें। रब आपके साथ है।” \p \v 4 लेकिन उसी रात रब नातन से हमकलाम हुआ, \v 5 “मेरे ख़ादिम दाऊद के पास जाकर उसे बता दे कि रब फ़रमाता है, ‘क्या तू मेरी रिहाइश के लिए मकान तामीर करेगा? हरगिज़ नहीं! \v 6 आज तक मैं किसी मकान में नहीं रहा। जब से मैं इसराईलियों को मिसर से निकाल लाया उस वक़्त से मैं ख़ैमे में रहकर जगह बजगह फिरता रहा हूँ। \v 7 जिस दौरान मैं तमाम इसराईलियों के साथ इधर-उधर फिरता रहा क्या मैंने इसराईल के उन राहनुमाओं से कभी इस नाते से शिकायत की जिन्हें मैंने अपनी क़ौम की गल्लाबानी करने का हुक्म दिया था? क्या मैंने उनमें से किसी से कहा कि तुमने मेरे लिए देवदार का घर क्यों नहीं बनाया?’ \p \v 8 चुनाँचे मेरे ख़ादिम दाऊद को बता दे, ‘रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है कि मैं ही ने तुझे चरागाह में भेड़ों की गल्लाबानी करने से फ़ारिग़ करके अपनी क़ौम इसराईल का बादशाह बना दिया है। \v 9 जहाँ भी तूने क़दम रखा वहाँ मैं तेरे साथ रहा हूँ। तेरे देखते देखते मैंने तेरे तमाम दुश्मनों को हलाक कर दिया है। अब मैं तेरा नाम सरफ़राज़ कर दूँगा, वह दुनिया के सबसे अज़ीम आदमियों के नामों के बराबर ही होगा। \v 10 और मैं अपनी क़ौम इसराईल के लिए एक वतन मुहैया करूँगा, पौदे की तरह उन्हें यों लगा दूँगा कि वह जड़ पकड़कर महफ़ूज़ रहेंगे और कभी बेचैन नहीं होंगे। बेदीन क़ौमें उन्हें उस तरह नहीं दबाएँगी जिस तरह माज़ी में किया करती थीं, \v 11 उस वक़्त से जब मैं क़ौम पर क़ाज़ी मुक़र्रर करता था। मैं तेरे दुश्मनों को तुझसे दूर रखकर तुझे अमनो-अमान अता करूँगा। आज रब फ़रमाता है कि मैं ही तेरे लिए घर बनाऊँगा। \p \v 12 जब तू बूढ़ा होकर कूच कर जाएगा और अपने बापदादा के साथ आराम करेगा तो मैं तेरी जगह तेरे बेटों में से एक को तख़्त पर बिठा दूँगा। उस की बादशाही को मैं मज़बूत बना दूँगा। \v 13 वही मेरे नाम के लिए घर तामीर करेगा, और मैं उस की बादशाही का तख़्त अबद तक क़ायम रखूँगा। \v 14 मैं उसका बाप हूँगा, और वह मेरा बेटा होगा। जब कभी उससे ग़लती होगी तो मैं उसे यों छड़ी से सज़ा दूँगा जिस तरह इनसानी बाप अपने बेटे की तरबियत करता है। \v 15 लेकिन मेरी नज़रे-करम कभी उससे नहीं हटेगी। उसके साथ मैं वह सुलूक नहीं करूँगा जो मैंने साऊल के साथ किया जब उसे तेरे सामने से हटा दिया। \v 16 तेरा घराना और तेरी बादशाही हमेशा मेरे हुज़ूर क़ायम रहेगी, तेरा तख़्त हमेशा मज़बूत रहेगा’।” \s1 दाऊद की शुक्रगुज़ारी \p \v 17 नातन ने दाऊद के पास जाकर उसे सब कुछ सुनाया जो रब ने उसे रोया में बताया था। \v 18 तब दाऊद अहद के संदूक़ के पास गया और रब के हुज़ूर बैठकर दुआ करने लगा, \p “ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, मैं कौन हूँ और मेरा ख़ानदान क्या हैसियत रखता है कि तूने मुझे यहाँ तक पहुँचाया है? \v 19 और अब ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, तू मुझे और भी ज़्यादा अता करने को है, क्योंकि तूने अपने ख़ादिम के घराने के मुस्तक़बिल के बारे में भी वादा किया है। क्या तू आम तौर पर इनसान के साथ ऐसा सुलूक करता है? हरगिज़ नहीं! \v 20 लेकिन मैं मज़ीद क्या कहूँ? ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, तू तो अपने ख़ादिम को जानता है। \v 21 तूने अपने फ़रमान की ख़ातिर और अपनी मरज़ी के मुताबिक़ यह अज़ीम काम करके अपने ख़ादिम को इत्तला दी है। \p \v 22 ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, तू कितना अज़ीम है! तुझ जैसा कोई नहीं है। हमने अपने कानों से सुन लिया है कि तेरे सिवा कोई और ख़ुदा नहीं है। \v 23 दुनिया में कौन-सी क़ौम तेरी उम्मत इसराईल की मानिंद है? तूने इसी एक क़ौम का फ़िद्या देकर उसे ग़ुलामी से छुड़ाया और अपनी क़ौम बना लिया। तूने इसराईल के वास्ते बड़े और हैबतनाक काम करके अपने नाम की शोहरत फैला दी। हमें मिसर से रिहा करके तूने क़ौमों और उनके देवताओं को हमारे आगे से निकाल दिया। \v 24 ऐ रब, तू इसराईल को हमेशा के लिए अपनी क़ौम बनाकर उनका ख़ुदा बन गया है। \v 25 चुनाँचे ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, जो बात तूने अपने ख़ादिम और उसके घराने के बारे में की है उसे अबद तक क़ायम रख और अपना वादा पूरा कर। \v 26 तब तेरा नाम अबद तक मशहूर रहेगा और लोग तसलीम करेंगे कि रब्बुल-अफ़वाज इसराईल का ख़ुदा है। फिर तेरे ख़ादिम दाऊद का घराना भी तेरे हुज़ूर क़ायम रहेगा। \p \v 27 ऐ रब्बुल-अफ़वाज, इसराईल के ख़ुदा, तूने अपने ख़ादिम के कान को इस बात के लिए खोल दिया है। तू ही ने फ़रमाया, ‘मैं तेरे लिए घर तामीर करूँगा।’ सिर्फ़ इसी लिए तेरे ख़ादिम ने यों तुझसे दुआ करने की जुर्रत की है। \v 28 ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़, तू ही ख़ुदा है, और तेरी ही बातों पर एतमाद किया जा सकता है। तूने अपने ख़ादिम से इन अच्छी चीज़ों का वादा किया है। \v 29 अब अपने ख़ादिम के घराने को बरकत देने पर राज़ी हो ताकि वह हमेशा तक तेरे हुज़ूर क़ायम रहे। क्योंकि तू ही ने यह फ़रमाया है, और चूँकि तू ऐ रब क़ादिरे-मुतलक़ ने बरकत दी है इसलिए तेरे ख़ादिम का घराना अबद तक मुबारक रहेगा।” \c 8 \s1 दाऊद की जंगें \p \v 1 फिर ऐसा वक़्त आया कि दाऊद ने फ़िलिस्तियों को शिकस्त देकर उन्हें अपने ताबे कर लिया और हुकूमत की बागडोर उनके हाथों से छीन ली। \p \v 2 उसने मोआबियों पर भी फ़तह पाई। मोआबी क़ैदियों की क़तार बनाकर उसने उन्हें ज़मीन पर लिटा दिया। फिर रस्सी का टुकड़ा लेकर उसने क़तार का नाप लिया। जितने लोग रस्सी की लंबाई में आ गए वह एक गुरोह बन गए। यों दाऊद ने लोगों को गुरोहों में तक़सीम किया। फिर उसने गुरोहों के तीन हिस्से बनाकर दो हिस्सों के सर क़लम किए और एक हिस्से को ज़िंदा छोड़ दिया। लेकिन जितने क़ैदी छूट गए वह दाऊद के ताबे रहकर उसे ख़राज देते रहे। \p \v 3 दाऊद ने शिमाली शाम के शहर ज़ोबाह के बादशाह हददअज़र बिन रहोब को भी हरा दिया जब हददअज़र दरियाए-फ़ुरात पर दुबारा क़ाबू पाने के लिए निकल आया था। \v 4 दाऊद ने 1,700 घुड़सवारों और 20,000 प्यादा सिपाहियों को गिरिफ़्तार कर लिया। रथों के 100 घोड़ों को उसने अपने लिए महफ़ूज़ रखा, जबकि बाक़ियों की उसने कोंचें काट दीं ताकि वह आइंदा जंग के लिए इस्तेमाल न हो सकें। \p \v 5 जब दमिश्क़ के अरामी बाशिंदे ज़ोबाह के बादशाह हददअज़र की मदद करने आए तो दाऊद ने उनके 22,000 अफ़राद हलाक कर दिए। \v 6 फिर उसने दमिश्क़ के इलाक़े में अपनी फ़ौजी चौकियाँ क़ायम कीं। अरामी उसके ताबे हो गए और उसे ख़राज देते रहे। जहाँ भी दाऊद गया वहाँ रब ने उसे कामयाबी बख़्शी। \v 7 सोने की जो ढालें हददअज़र के अफ़सरों के पास थीं उन्हें दाऊद यरूशलम ले गया। \v 8 हददअज़र के दो शहरों बताह और बेरोती से उसने कसरत का पीतल छीन लिया। \p \v 9 जब हमात के बादशाह तूई को इत्तला मिली कि दाऊद ने हददअज़र की पूरी फ़ौज पर फ़तह पाई है \v 10 तो उसने अपने बेटे यूराम को दाऊद के पास भेजा ताकि उसे सलाम कहे। यूराम ने दाऊद को हददअज़र पर फ़तह के लिए मुबारकबाद दी, क्योंकि हददअज़र तूई का दुश्मन था, और उनके दरमियान जंग रही थी। यूराम ने दाऊद को सोने, चाँदी और पीतल के तोह्फ़े भी पेश किए। \v 11 दाऊद ने यह चीज़ें रब के लिए मख़सूस कर दीं। जहाँ भी वह दूसरी क़ौमों पर ग़ालिब आया वहाँ की सोना-चाँदी उसने रब के लिए मख़सूस कर दी। \v 12 यों अदोम, मोआब, अम्मोन, फिलिस्तिया, अमालीक़ और ज़ोबाह के बादशाह हददअज़र बिन रहोब की सोना-चाँदी रब को पेश की गई। \p \v 13 जब दाऊद ने नमक की वादी में अदोमियों पर फ़तह पाई तो उस की शोहरत मज़ीद फैल गई। उस जंग में दुश्मन के 18,000 अफ़राद हलाक हुए। \v 14 दाऊद ने अदोम के पूरे मुल्क में अपनी फ़ौजी चौकियाँ क़ायम कीं, और तमाम अदोमी दाऊद के ताबे हो गए। दाऊद जहाँ भी जाता रब उस की मदद करके उसे फ़तह बख़्शता। \s1 दाऊद के आला अफ़सर \p \v 15 जितनी देर दाऊद पूरे इसराईल पर हुकूमत करता रहा उतनी देर तक उसने ध्यान दिया कि क़ौम के हर एक शख़्स को इनसाफ़ मिल जाए। \v 16 योआब बिन ज़रूयाह फ़ौज पर मुक़र्रर था। यहूसफ़त बिन अख़ीलूद बादशाह का मुशीरे-ख़ास था। \v 17 सदोक़ बिन अख़ीतूब और अख़ीमलिक बिन अबियातर इमाम थे। सिरायाह मीरमुंशी था। \v 18 बिनायाह बिन यहोयदा दाऊद के ख़ास दस्ते बनाम करेतीओ-फ़लेती का कप्तान था। दाऊद के बेटे इमाम थे। \c 9 \s1 दाऊद यूनतन के बेटे पर मेहरबानी करता है \p \v 1 एक दिन दाऊद पूछने लगा, “क्या साऊल के ख़ानदान का कोई फ़रद बच गया है? मैं यूनतन की ख़ातिर उस पर अपनी मेहरबानी का इज़हार करना चाहता हूँ।” \p \v 2 एक आदमी को बुलाया गया जो साऊल के घराने का मुलाज़िम था। उसका नाम ज़ीबा था। दाऊद ने सवाल किया, “क्या आप ज़ीबा हैं?” ज़ीबा ने जवाब दिया, “जी, आपका ख़ादिम हाज़िर है।” \v 3 बादशाह ने दरियाफ़्त किया, “क्या साऊल के ख़ानदान का कोई फ़रद ज़िंदा रह गया है? मैं उस पर अल्लाह की मेहरबानी का इज़हार करना चाहता हूँ।” ज़ीबा ने कहा, “यूनतन का एक बेटा अब तक ज़िंदा है। वह दोनों टाँगों से मफ़लूज है।” \v 4 दाऊद ने पूछा, “वह कहाँ है?” ज़ीबा ने जवाब दिया, “वह लो-दिबार में मकीर बिन अम्मियेल के हाँ रहता है।” \v 5 दाऊद ने उसे फ़ौरन दरबार में बुला लिया। \p \v 6 यूनतन के जिस बेटे का ज़िक्र ज़ीबा ने किया वह मिफ़ीबोसत था। जब उसे दाऊद के सामने लाया गया तो उसने मुँह के बल झुककर उस की इज़्ज़त की। दाऊद ने कहा, “मिफ़ीबोसत!” उसने जवाब दिया, “जी, आपका ख़ादिम हाज़िर है।” \v 7 दाऊद बोला, “डरें मत। आज मैं आपके बाप यूनतन के साथ किया हुआ वादा पूरा करके आप पर अपनी मेहरबानी का इज़हार करना चाहता हूँ। अब सुनें! मैं आपको आपके दादा साऊल की तमाम ज़मीनें वापस कर देता हूँ। इसके अलावा मैं चाहता हूँ कि आप रोज़ाना मेरे साथ खाना खाया करें।” \p \v 8 मिफ़ीबोसत ने दुबारा झुककर बादशाह की ताज़ीम की, “मैं कौन हूँ कि आप मुझ जैसे मुरदा कुत्ते पर ध्यान देकर ऐसी मेहरबानी फ़रमाएँ!” \v 9 दाऊद ने साऊल के पुराने मुलाज़िम ज़ीबा को बुलाकर उसे हिदायत दी, “मैंने आपके मालिक के पोते को साऊल और उसके ख़ानदान की तमाम मिलकियत दे दी है। \v 10 अब आपकी ज़िम्मादारी यह है कि आप अपने बेटों और नौकरों के साथ उसके खेतों को सँभालें ताकि उसका ख़ानदान ज़मीनों की पैदावार से गुज़ारा कर सके। लेकिन मिफ़ीबोसत ख़ुद यहाँ रहकर मेरे बेटों की तरह मेरे साथ खाना खाया करेगा।” (ज़ीबा के 15 बेटे और 20 नौकर थे)। \p \v 11 ज़ीबा ने जवाब दिया, “मैं आपकी ख़िदमत में हाज़िर हूँ। जो भी हुक्म आप देंगे मैं करने के लिए तैयार हूँ।” \v 12-13 उस दिन से ज़ीबा के घराने के तमाम अफ़राद मिफ़ीबोसत के मुलाज़िम हो गए। मिफ़ीबोसत ख़ुद जो दोनों टाँगों से मफ़लूज था यरूशलम में रिहाइशपज़ीर हुआ और रोज़ाना दाऊद बादशाह के साथ खाना खाता रहा। उसका एक छोटा बेटा था जिसका नाम मीका था। \c 10 \s1 अम्मोनी दाऊद की बेइज़्ज़ती करते हैं \p \v 1 कुछ देर के बाद अम्मोनियों का बादशाह फ़ौत हुआ, और उसका बेटा हनून तख़्तनशीन हुआ। \v 2 दाऊद ने सोचा, “नाहस ने हमेशा मुझ पर मेहरबानी की थी, इसलिए अब मैं भी उसके बेटे हनून पर मेहरबानी करूँगा।” उसने बाप की वफ़ात का अफ़सोस करने के लिए हनून के पास वफ़द भेजा। \p लेकिन जब दाऊद के सफ़ीर अम्मोनियों के दरबार में पहुँच गए \v 3 तो उस मुल्क के बुज़ुर्ग हनून बादशाह के कान में मनफ़ी बातें भरने लगे, “क्या दाऊद ने इन आदमियों को वाक़ई सिर्फ़ इसलिए भेजा है कि वह अफ़सोस करके आपके बाप का एहतराम करें? हरगिज़ नहीं! यह सिर्फ़ बहाना है। असल में यह जासूस हैं जो हमारे दारुल-हुकूमत के बारे में मालूमात हासिल करना चाहते हैं ताकि उस पर क़ब्ज़ा कर सकें।” \v 4 चुनाँचे हनून ने दाऊद के आदमियों को पकड़वाकर उनकी दाढ़ियों का आधा हिस्सा मुँडवा दिया और उनके लिबास को कमर से लेकर पाँव तक काटकर उतरवाया। इसी हालत में बादशाह ने उन्हें फ़ारिग़ कर दिया। \p \v 5 जब दाऊद को इसकी ख़बर मिली तो उसने अपने क़ासिदों को उनसे मिलने के लिए भेजा ताकि उन्हें बताएँ, “यरीहू में उस वक़्त तक ठहरे रहें जब तक आपकी दाढ़ियाँ दुबारा बहाल न हो जाएँ।” क्योंकि वह अपनी दाढ़ियों की वजह से बड़ी शरमिंदगी महसूस कर रहे थे। \s1 अम्मोनियों से जंग \p \v 6 अम्मोनियों को ख़ूब मालूम था कि इस हरकत से हम दाऊद के दुश्मन बन गए हैं। इसलिए उन्होंने किराए पर कई जगहों से फ़ौजी तलब किए। बैत-रहोब और ज़ोबाह के 20,000 अरामी प्यादा सिपाही, माका का बादशाह 1,000 फ़ौजियों समेत और मुल्के-तोब के 12,000 सिपाही उनकी मदद करने आए। \v 7 जब दाऊद को इसका इल्म हुआ तो उसने योआब को पूरी फ़ौज के साथ उनका मुक़ाबला करने के लिए भेज दिया। \v 8 अम्मोनी अपने दारुल-हुकूमत रब्बा से निकलकर शहर के दरवाज़े के सामने ही सफ़आरा हुए जबकि उनके अरामी इत्तहादी ज़ोबाह और रहोब मुल्के-तोब और माका के मर्दों समेत कुछ फ़ासले पर खुले मैदान में खड़े हो गए। \p \v 9 जब योआब ने जान लिया कि सामने और पीछे दोनों तरफ़ से हमले का ख़तरा है तो उसने अपनी फ़ौज को दो हिस्सों में तक़सीम कर दिया। सबसे अच्छे फ़ौजियों के साथ वह ख़ुद शाम के सिपाहियों से लड़ने के लिए तैयार हुआ। \v 10 बाक़ी आदमियों को उसने अपने भाई अबीशै के हवाले कर दिया ताकि वह अम्मोनियों से लड़ें। \v 11 एक दूसरे से अलग होने से पहले योआब ने अबीशै से कहा, “अगर शाम के फ़ौजी मुझ पर ग़ालिब आने लगें तो मेरे पास आकर मेरी मदद करना। लेकिन अगर आप अम्मोनियों पर क़ाबू न पा सकें तो मैं आकर आपकी मदद करूँगा। \v 12 हौसला रखें! हम दिलेरी से अपनी क़ौम और अपने ख़ुदा के शहरों के लिए लड़ें। और रब वह कुछ होने दे जो उस की नज़र में ठीक है।” \p \v 13 योआब ने अपनी फ़ौज के साथ शाम के फ़ौजियों पर हमला किया तो वह उसके सामने से भागने लगे। \v 14 यह देखकर अम्मोनी अबीशै से फ़रार होकर शहर में दाख़िल हुए। फिर योआब अम्मोनियों से लड़ने से बाज़ आया और यरूशलम वापस चला गया। \s1 शाम के ख़िलाफ़ जंग \p \v 15 जब शाम के फ़ौजियों को शिकस्त की बेइज़्ज़ती का एहसास हुआ तो वह दुबारा जमा हो गए। \v 16 हददअज़र ने दरियाए-फ़ुरात के पार मसोपुतामिया में आबाद अरामियों को बुलाया ताकि वह उस की मदद करें। फिर सब हिलाम पहुँच गए। हददअज़र की फ़ौज पर मुक़र्रर अफ़सर सोबक उनकी राहनुमाई कर रहा था। \v 17 जब दाऊद को ख़बर मिली तो उसने इसराईल के तमाम लड़ने के क़ाबिल आदमियों को जमा किया और दरियाए-यरदन को पार करके हिलाम पहुँच गया। शाम के फ़ौजी सफ़आरा होकर इसराईलियों का मुक़ाबला करने लगे। \v 18 लेकिन उन्हें दुबारा शिकस्त मानकर फ़रार होना पड़ा। इस दफ़ा उनके 700 रथबानों के अलावा 40,000 प्यादा सिपाही हलाक हुए। दाऊद ने फ़ौज के कमाँडर सोबक को इतना ज़ख़मी कर दिया कि वह मैदाने-जंग में हलाक हो गया। \p \v 19 जो अरामी बादशाह पहले हददअज़र के ताबे थे उन्होंने अब हार मानकर इसराईलियों से सुलह कर ली और उनके ताबे हो गए। उस वक़्त से अरामियों ने अम्मोनियों की मदद करने की फिर जुर्रत न की। \c 11 \s1 दाऊद और बत-सबा \p \v 1 बहार का मौसम आ गया, वह वक़्त जब बादशाह जंग के लिए निकलते हैं। दाऊद बादशाह ने भी अपने फ़ौजियों को लड़ने के लिए भेज दिया। योआब की राहनुमाई में उसके अफ़सर और पूरी फ़ौज अम्मोनियों से लड़ने के लिए रवाना हुए। वह दुश्मन को तबाह करके दारुल-हुकूमत रब्बा का मुहासरा करने लगे। दाऊद ख़ुद यरूशलम में रहा। \p \v 2 एक दिन वह दोपहर के वक़्त सो गया। जब शाम के वक़्त जाग उठा तो महल की छत पर टहलने लगा। अचानक उस की नज़र एक औरत पर पड़ी जो अपने सहन में नहा रही थी। औरत निहायत ख़ूबसूरत थी। \v 3 दाऊद ने किसी को उसके बारे में मालूमात हासिल करने के लिए भेज दिया। वापस आकर उसने इत्तला दी, “औरत का नाम बत-सबा है। वह इलियाम की बेटी और ऊरियाह हित्ती की बीवी है।” \v 4 तब दाऊद ने क़ासिदों को बत-सबा के पास भेजा ताकि उसे महल में ले आएँ। औरत आई तो दाऊद उससे हमबिसतर हुआ। फिर बत-सबा अपने घर वापस चली गई। (थोड़ी देर पहले उसने वह रस्म अदा की थी जिसका तक़ाज़ा शरीअत माहवारी के बाद करती है ताकि औरत दुबारा पाक-साफ़ हो जाए)। \p \v 5 कुछ देर के बाद उसे मालूम हुआ कि मेरा पाँव भारी हो गया है। उसने दाऊद को इत्तला दी, “मेरा पाँव भारी हो गया है।” \v 6 यह सुनते ही दाऊद ने योआब को पैग़ाम भेजा, “ऊरियाह हित्ती को मेरे पास भेज दें!” योआब ने उसे भेज दिया। \v 7 जब ऊरियाह दरबार में पहुँचा तो दाऊद ने उससे योआब और फ़ौज का हाल मालूम किया और पूछा कि जंग किस तरह चल रही है? \p \v 8 फिर उसने ऊरियाह को बताया, “अब अपने घर जाएँ और पाँव धोकर आराम करें।” ऊरियाह अभी महल से दूर नहीं गया था कि एक मुलाज़िम ने उसके पीछे भागकर उसे बादशाह की तरफ़ से तोह्फ़ा दिया। \v 9 लेकिन ऊरियाह अपने घर न गया बल्कि रात के लिए बादशाह के मुहाफ़िज़ों के साथ ठहरा रहा जो महल के दरवाज़े के पास सोते थे। \p \v 10 दाऊद को इस बात का पता चला तो उसने अगले दिन उसे दुबारा बुलाया। उसने पूछा, “क्या बात है? आप तो बड़ी दूर से आए हैं। आप अपने घर क्यों न गए?” \v 11 ऊरियाह ने जवाब दिया, “अहद का संदूक़ और इसराईल और यहूदाह के फ़ौजी झोंपड़ियों में रह रहे हैं। योआब और बादशाह के अफ़सर भी खुले मैदान में ठहरे हुए हैं तो क्या मुनासिब है कि मैं अपने घर जाकर आराम से खाऊँ पियूँ और अपनी बीवी से हमबिसतर हो जाऊँ? हरगिज़ नहीं! आपकी हयात की क़सम, मैं कभी ऐसा नहीं करूँगा।” \p \v 12 दाऊद ने उसे कहा, “एक और दिन यहाँ ठहरें। कल मैं आपको वापस जाने दूँगा।” चुनाँचे ऊरियाह एक और दिन यरूशलम में ठहरा रहा। \p \v 13 शाम के वक़्त दाऊद ने उसे खाने की दावत दी। उसने उसे इतनी मै पिलाई कि ऊरियाह नशे में धुत हो गया, लेकिन इस मरतबा भी वह अपने घर न गया बल्कि दुबारा महल में मुहाफ़िज़ों के साथ सो गया। \s1 दाऊद ऊरियाह को क़त्ल करवाता है \p \v 14 अगले दिन सुबह दाऊद ने योआब को ख़त लिखकर ऊरियाह के हाथ भेज दिया। \v 15 उसमें लिखा था, “ऊरियाह को सबसे अगली सफ़ में खड़ा करें, जहाँ लड़ाई सबसे सख़्त होती है। फिर अचानक पीछे की तरफ़ हटकर उसे छोड़ दें ताकि दुश्मन उसे मार दे।” \p \v 16 यह पढ़कर योआब ने ऊरियाह को एक ऐसी जगह पर खड़ा किया जिसके बारे में उसे इल्म था कि दुश्मन के सबसे ज़बरदस्त फ़ौजी वहाँ लड़ते हैं। \v 17 जब अम्मोनियों ने शहर से निकलकर उन पर हमला किया तो कुछ इसराईली शहीद हुए। ऊरियाह हित्ती भी उनमें शामिल था। \p \v 18 योआब ने लड़ाई की पूरी रिपोर्ट भेज दी। \v 19 दाऊद को यह पैग़ाम पहुँचानेवाले को उसने बताया, “जब आप बादशाह को तफ़सील से लड़ाई का सारा सिलसिला सुनाएँगे \v 20 तो हो सकता है वह ग़ुस्से होकर कहे, ‘आप शहर के इतने क़रीब क्यों गए? क्या आपको मालूम न था कि दुश्मन फ़सील से तीर चलाएँगे? \v 21 क्या आपको याद नहीं कि क़दीम ज़माने में जिदौन के बेटे अबीमलिक के साथ क्या हुआ? तैबिज़ शहर में एक औरत ही ने उसे मार डाला। और वजह यह थी कि वह क़िले के इतने क़रीब आ गया था कि औरत दीवार पर से चक्की का ऊपर का पाट उस पर फेंक सकी। शहर की फ़सील के इस क़दर क़रीब लड़ने की क्या ज़रूरत थी?’ अगर बादशाह आप पर ऐसे इलज़ामात लगाएँ तो जवाब में बस इतना ही कह देना, ‘ऊरियाह हित्ती भी मारा गया है’।” \p \v 22 क़ासिद रवाना हुआ। जब यरूशलम पहुँचा तो उसने दाऊद को योआब का पूरा पैग़ाम सुना दिया, \v 23 “दुश्मन हमसे ज़्यादा ताक़तवर थे। वह शहर से निकलकर खुले मैदान में हम पर टूट पड़े। लेकिन हमने उनका सामना यों किया कि वह पीछे हट गए, बल्कि हमने उनका ताक़्क़ुब शहर के दरवाज़े तक किया। \v 24 लेकिन अफ़सोस कि फिर कुछ तीरअंदाज़ हम पर फ़सील पर से तीर बरसाने लगे। आपके कुछ ख़ादिम खेत आए और ऊरियाह हित्ती भी उनमें शामिल है।” \v 25 दाऊद ने जवाब दिया, “योआब को बता देना कि यह मामला आपको हिम्मत हारने न दे। जंग तो ऐसी ही होती है। कभी कोई यहाँ तलवार का लुक़मा हो जाता है, कभी वहाँ। पूरे अज़म के साथ शहर से जंग जारी रखकर उसे तबाह कर दें। यह कहकर योआब की हौसलाअफ़्ज़ाई करें।” \p \v 26 जब बत-सबा को इत्तला मिली कि ऊरियाह नहीं रहा तो उसने उसका मातम किया। \v 27 मातम का वक़्त पूरा हुआ तो दाऊद ने उसे अपने घर बुलाकर उससे शादी कर ली। फिर उसके बेटा पैदा हुआ। \p लेकिन दाऊद की यह हरकत रब को निहायत बुरी लगी। \c 12 \s1 नातन दाऊद को मुजरिम ठहराता है \p \v 1 रब ने नातन नबी को दाऊद के पास भेज दिया। बादशाह के पास पहुँचकर वह कहने लगा, “किसी शहर में दो आदमी रहते थे। एक अमीर था, दूसरा ग़रीब। \v 2 अमीर की बहुत भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल थे, \v 3 लेकिन ग़रीब के पास कुछ नहीं था, सिर्फ़ भेड़ की नन्ही-सी बच्ची जो उसने ख़रीद रखी थी। ग़रीब उस की परवरिश करता रहा, और वह घर में उसके बच्चों के साथ साथ बड़ी होती गई। वह उस की प्लेट से खाती, उसके प्याले से पीती और रात को उसके बाज़ुओं में सो जाती। ग़रज़ भेड़ ग़रीब के लिए बेटी की-सी हैसियत रखती थी। \v 4 एक दिन अमीर के हाँ मेहमान आया। जब उसके लिए खाना पकाना था तो अमीर का दिल नहीं करता था कि अपने रेवड़ में से किसी जानवर को ज़बह करे, इसलिए उसने ग़रीब आदमी से उस की नन्ही-सी भेड़ लेकर उसे मेहमान के लिए तैयार किया।” \p \v 5 यह सुनकर दाऊद को बड़ा ग़ुस्सा आया। वह पुकारा, “रब की हयात की क़सम, जिस आदमी ने यह किया वह सज़ाए-मौत के लायक़ है। \v 6 लाज़िम है कि वह भेड़ की बच्ची के एवज़ ग़रीब को भेड़ के चार बच्चे दे। यही उस की मुनासिब सज़ा है, क्योंकि उसने ऐसी हरकत करके ग़रीब पर तरस न खाया।” \p \v 7 नातन ने दाऊद से कहा, “आप ही वह आदमी हैं! रब इसराईल का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘मैंने तुझे मसह करके इसराईल का बादशाह बना दिया, और मैं ही ने तुझे साऊल से महफ़ूज़ रखा। \v 8 साऊल का घराना उस की बीवियों समेत मैंने तुझे दे दिया। हाँ, पूरा इसराईल और यहूदाह भी तेरे तहत आ गए हैं। और अगर यह तेरे लिए कम होता तो मैं तुझे मज़ीद देने के लिए भी तैयार होता। \v 9 अब मुझे बता कि तूने मेरी मरज़ी को हक़ीर जानकर ऐसी हरकत क्यों की है जिससे मुझे नफ़रत है? तूने ऊरियाह हित्ती को क़त्ल करवा के उस की बीवी को छीन लिया है। हाँ, तू क़ातिल है, क्योंकि तूने हुक्म दिया कि ऊरियाह को अम्मोनियों से लड़ते लड़ते मरवाना है। \v 10 चूँकि तूने मुझे हक़ीर जानकर ऊरियाह हित्ती की बीवी को उससे छीन लिया इसलिए आइंदा तलवार तेरे घराने से नहीं हटेगी।’ \p \v 11 रब फ़रमाता है, ‘मैं होने दूँगा कि तेरे अपने ख़ानदान में से मुसीबत तुझ पर आएगी। तेरे देखते देखते मैं तेरी बीवियों को तुझसे छीनकर तेरे क़रीब के आदमी के हवाले कर दूँगा, और वह अलानिया उनसे हमबिसतर होगा। \v 12 तूने चुपके से गुनाह किया, लेकिन जो कुछ मैं जवाब में होने दूँगा वह अलानिया और पूरे इसराईल के देखते देखते होगा’।” \p \v 13 तब दाऊद ने इक़रार किया, “मैंने रब का गुनाह किया है।” नातन ने जवाब दिया, “रब ने आपको मुआफ़ कर दिया है और आप नहीं मरेंगे। \v 14 लेकिन इस हरकत से आपने रब के दुश्मनों को कुफ़र बकने का मौक़ा फ़राहम किया है, इसलिए बत-सबा से होनेवाला बेटा मर जाएगा।” \p \v 15 तब नातन अपने घर चला गया। \s1 दाऊद का बेटा मर जाता है \p फिर रब ने बत-सबा के बेटे को छू दिया, और वह सख़्त बीमार हो गया। \v 16 दाऊद ने अल्लाह से इलतमास की कि बच्चे को बचने दे। रोज़ा रखकर वह रात के वक़्त नंगे फ़र्श पर सोने लगा। \v 17 घर के बुज़ुर्ग उसके इर्दगिर्द खड़े कोशिश करते रहे कि वह फ़र्श से उठ जाए, लेकिन बेफ़ायदा। वह उनके साथ खाने के लिए भी तैयार नहीं था। \p \v 18 सातवें दिन बेटा फ़ौत हो गया। दाऊद के मुलाज़िमों ने उसे ख़बर पहुँचाने की जुर्रत न की, क्योंकि उन्होंने सोचा, “जब बच्चा अभी ज़िंदा था तो हमने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उसने हमारी एक भी न सुनी। अब अगर बच्चे की मौत की ख़बर दें तो ख़तरा है कि वह कोई नुक़सानदेह क़दम उठाए।” \p \v 19 लेकिन दाऊद ने देखा कि मुलाज़िम धीमी आवाज़ में एक दूसरे से बात कर रहे हैं। उसने पूछा, “क्या बेटा मर गया है?” उन्होंने जवाब दिया, “जी, वह मर गया है।” \p \v 20 यह सुनकर दाऊद फ़र्श पर से उठ गया। वह नहाया और जिस्म को ख़ुशबूदार तेल से मलकर साफ़ कपड़े पहन लिए। फिर उसने रब के घर में जाकर उस की परस्तिश की। इसके बाद वह महल में वापस गया और खाना मँगवाकर खाया। \v 21 उसके मुलाज़िम हैरान हुए और बोले, “जब बच्चा ज़िंदा था तो आप रोज़ा रखकर रोते रहे। अब बच्चा जान-बहक़ हो गया है तो आप उठकर दुबारा खाना खा रहे हैं। क्या वजह है?” \v 22 दाऊद ने जवाब दिया, “जब तक बच्चा ज़िंदा था तो मैं रोज़ा रखकर रोता रहा। ख़याल यह था कि शायद रब मुझ पर रहम करके उसे ज़िंदा छोड़ दे। \v 23 लेकिन जब वह कूच कर गया है तो अब रोज़ा रखने का क्या फ़ायदा? क्या मैं इससे उसे वापस ला सकता हूँ? हरगिज़ नहीं! एक दिन मैं ख़ुद ही उसके पास पहुँचूँगा। लेकिन उसका यहाँ मेरे पास वापस आना नामुमकिन है।” \p \v 24 फिर दाऊद ने अपनी बीवी बत-सबा के पास जाकर उसे तसल्ली दी और उससे हमबिसतर हुआ। तब उसके एक और बेटा पैदा हुआ। दाऊद ने उसका नाम सुलेमान यानी अमनपसंद रखा। यह बच्चा रब को प्यारा था, \v 25 इसलिए उसने नातन नबी की मारिफ़त इत्तला दी कि उसका नाम यदीदियाह यानी ‘रब को प्यारा’ रखा जाए। \s1 रब्बा शहर पर फ़तह \p \v 26 अब तक योआब अम्मोनी दारुल-हुकूमत रब्बा का मुहासरा किए हुए था। फिर वह शहर के एक हिस्से बनाम ‘शाही शहर’ पर क़ब्ज़ा करने में कामयाब हो गया। \v 27 उसने दाऊद को इत्तला दी, “मैंने रब्बा पर हमला करके उस जगह पर क़ब्ज़ा कर लिया है जहाँ पानी दस्तयाब है। \v 28 चुनाँचे अब फ़ौज के बाक़ी अफ़राद को लाकर ख़ुद शहर पर क़ब्ज़ा कर लें। वरना लोग समझेंगे कि मैं ही शहर का फ़ातेह हूँ।” \p \v 29 चुनाँचे दाऊद फ़ौज के बाक़ी अफ़राद को लेकर रब्बा पहुँचा। जब शहर पर हमला किया तो वह उसके क़ब्ज़े में आ गया। \v 30 दाऊद ने हनून बादशाह का ताज उसके सर से उतारकर अपने सर पर रख लिया। सोने के इस ताज का वज़न 34 किलोग्राम था, और उसमें एक बेशक़ीमत जौहर जड़ा हुआ था। दाऊद ने शहर से बहुत-सा लूटा हुआ माल लेकर \v 31 उसके बाशिंदों को ग़ुलाम बना लिया। उन्हें पत्थर काटने की आरियाँ, लोहे की कुदालें और कुल्हाड़ियाँ दी गईं ताकि वह मज़दूरी करें और भट्टों पर काम करें। यही सुलूक बाक़ी अम्मोनी शहरों के बाशिंदों के साथ भी किया गया। \p जंग के इख़्तिताम पर दाऊद पूरी फ़ौज के साथ यरूशलम लौट आया। \c 13 \s1 तमर की इसमतदरी \p \v 1 दाऊद के बेटे अबीसलूम की ख़ूबसूरत बहन थी जिसका नाम तमर था। उसका सौतेला भाई अमनोन तमर से शदीद मुहब्बत करने लगा। \v 2 वह तमर को इतनी शिद्दत से चाहने लगा कि रंजिश के बाइस बीमार हो गया, क्योंकि तमर कुँवारी थी, और अमनोन को उसके क़रीब आने का कोई रास्ता नज़र न आया। \p \v 3 अमनोन का एक दोस्त था जिसका नाम यूनदब था। वह दाऊद के भाई सिमआ का बेटा था और बड़ा ज़हीन था। \v 4 उसने अमनोन से पूछा, “बादशाह के बेटे, क्या मसला है? रोज़ बरोज़ आप ज़्यादा बुझे हुए नज़र आ रहे हैं। क्या आप मुझे नहीं बताएँगे कि बात क्या है?” अमनोन बोला, “मैं अबीसलूम की बहन तमर से शदीद मुहब्बत करता हूँ।” \v 5 यूनदब ने अपने दोस्त को मशवरा दिया, “बिस्तर पर लेट जाएँ और ऐसा ज़ाहिर करें गोया बीमार हैं। जब आपके वालिद आपका हाल पूछने आएँगे तो उनसे दरख़ास्त करना, ‘मेरी बहन तमर आकर मुझे मरीज़ों का खाना खिलाए। वह मेरे सामने खाना तैयार करे ताकि मैं उसे देखकर उसके हाथ से खाना खाऊँ’।” \p \v 6 चुनाँचे अमनोन ने बिस्तर पर लेटकर बीमार होने का बहाना किया। जब बादशाह उसका हाल पूछने आया तो अमनोन ने गुज़ारिश की, “मेरी बहन तमर मेरे पास आए और मेरे सामने मरीज़ों का खाना बनाकर मुझे अपने हाथ से खिलाए।” \p \v 7 दाऊद ने तमर को इत्तला दी, “आपका भाई अमनोन बीमार है। उसके पास जाकर उसके लिए मरीज़ों का खाना तैयार करें।” \v 8 तमर ने अमनोन के पास आकर उस की मौजूदगी में मैदा गूँधा और खाना तैयार करके पकाया। अमनोन बिस्तर पर लेटा उसे देखता रहा। \v 9 जब खाना पक गया तो तमर ने उसे अमनोन के पास लाकर पेश किया। लेकिन उसने खाने से इनकार कर दिया। उसने हुक्म दिया, “तमाम नौकर कमरे से बाहर निकल जाएँ!” जब सब चले गए \v 10 तो उसने तमर से कहा, “खाने को मेरे सोने के कमरे में ले आएँ ताकि मैं आपके हाथ से खा सकूँ।” तमर खाने को लेकर सोने के कमरे में अपने भाई के पास आई। \p \v 11 जब वह उसे खाना खिलाने लगी तो अमनोन ने उसे पकड़कर कहा, “आ मेरी बहन, मेरे साथ हमबिसतर हो!” \v 12 वह पुकारी, “नहीं, मेरे भाई! मेरी इसमतदरी न करें। ऐसा अमल इसराईल में मना है। ऐसी बेदीन हरकत मत करना! \v 13 और ऐसी बेहुरमती के बाद मैं कहाँ जाऊँ? जहाँ तक आपका ताल्लुक़ है इसराईल में आपकी बुरी तरह बदनामी हो जाएगी, और सब समझेंगे कि आप निहायत शरीर आदमी हैं। आप बादशाह से बात क्यों नहीं करते? यक़ीनन वह आपको मुझसे शादी करने से नहीं रोकेंगे।” \v 14 लेकिन अमनोन ने उस की न सुनी बल्कि उसे पकड़कर उस की इसमतदरी की। \p \v 15 लेकिन फिर अचानक उस की मुहब्बत सख़्त नफ़रत में बदल गई। पहले तो वह तमर से शदीद मुहब्बत करता था, लेकिन अब वह इससे बढ़कर उससे नफ़रत करने लगा। उसने हुक्म दिया, “उठ, दफ़ा हो जा!” \v 16 तमर ने इलतमास की, “हाय, ऐसा मत करना। अगर आप मुझे निकालेंगे तो यह पहले गुनाह से ज़्यादा संगीन जुर्म होगा।” लेकिन अमनोन उस की सुनने के लिए तैयार न था। \v 17 उसने अपने नौकर को बुलाकर हुक्म दिया, “इस औरत को यहाँ से निकाल दो और इसके पीछे दरवाज़ा बंद करके कुंडी लगाओ!” \v 18 नौकर तमर को बाहर ले गया और फिर उसके पीछे दरवाज़ा बंद करके कुंडी लगा दी। \p तमर एक लंबे बाज़ुओंवाला फ़्राक पहने हुए थी। बादशाह की तमाम कुँवारी बेटियाँ यही लिबास पहना करती थीं। \v 19 बड़ी रंजिश के आलम में उसने अपना यह लिबास फाड़कर अपने सर पर राख डाल ली। फिर अपना हाथ सर पर रखकर वह चीख़ती-चिल्लाती वहाँ से चली गई। \v 20 जब घर पहुँच गई तो अबीसलूम ने उससे पूछा, “मेरी बहन, क्या अमनोन ने आपसे ज़्यादती की है? अब ख़ामोश हो जाएँ। वह तो आपका भाई है। इस मामले को हद से ज़्यादा अहमियत मत देना।” उस वक़्त से तमर अकेली ही अपने भाई अबीसलूम के घर में रही। \p \v 21 जब दाऊद को इस वाक़िये की ख़बर मिली तो उसे सख़्त ग़ुस्सा आया। \v 22 अबीसलूम ने अमनोन से एक भी बात न की। न उसने उस पर कोई इलज़ाम लगाया, न कोई अच्छी बात की, क्योंकि तमर की इसमतदरी की वजह से वह अपने भाई से सख़्त नफ़रत करने लगा था। \s1 अबीसलूम का इंतक़ाम \p \v 23 दो साल गुज़र गए। अबीसलूम की भेड़ें इफ़राईम के क़रीब के बाल-हसूर में लाई गईं ताकि उनके बाल कतरे जाएँ। इस मौक़े पर अबीसलूम ने बादशाह के तमाम बेटों को दावत दी कि वह वहाँ ज़ियाफ़त में शरीक हों। \v 24 वह दाऊद बादशाह के पास भी गया और कहा, “इन दिनों में मैं अपनी भेड़ों के बाल कतरा रहा हूँ। बादशाह और उनके अफ़सरों को भी मेरे साथ ख़ुशी मनाने की दावत है।” \p \v 25 लेकिन दाऊद ने इनकार किया, “नहीं, मेरे बेटे, हम सब तो नहीं आ सकते। इतने लोग आपके लिए बोझ का बाइस बन जाएंगे।” अबीसलूम बहुत इसरार करता रहा, लेकिन दाऊद ने दावत को क़बूल न किया बल्कि उसे बरकत देकर रुख़सत करना चाहता था। \p \v 26 आख़िरकार अबीसलूम ने दरख़ास्त की, “अगर आप हमारे साथ जा न सकें तो फिर कम अज़ कम मेरे भाई अमनोन को आने दें।” बादशाह ने पूछा, “ख़ासकर अमनोन को क्यों?” \v 27 लेकिन अबीसलूम इतना ज़ोर देता रहा कि दाऊद ने अमनोन को बाक़ी बेटों समेत बाल-हसूर जाने की इजाज़त दे दी। \p \v 28 ज़ियाफ़त से पहले अबीसलूम ने अपने मुलाज़िमों को हुक्म दिया, “सुनें! जब अमनोन मै पी पीकर ख़ुश हो जाएगा तो मैं आपको अमनोन को मारने का हुक्म दूँगा। फिर आपको उसे मार डालना है। डरें मत, क्योंकि मैं ही ने आपको यह हुक्म दिया है। मज़बूत और दिलेर हों!” \p \v 29 मुलाज़िमों ने ऐसा ही किया। उन्होंने अमनोन को मार डाला। यह देखकर बादशाह के दूसरे बेटे उठकर अपने ख़च्चरों पर सवार हुए और भाग गए। \v 30 वह अभी रास्ते में ही थे कि अफ़वाह दाऊद तक पहुँची, “अबीसलूम ने आपके तमाम बेटों को क़त्ल कर दिया है। एक भी नहीं बचा।” \p \v 31 बादशाह उठा और अपने कपड़े फाड़कर फ़र्श पर लेट गया। उसके दरबारी भी दुख में अपने कपड़े फाड़ फाड़कर उसके पास खड़े रहे। \v 32 फिर दाऊद का भतीजा यूनदब बोल उठा, “मेरे आक़ा, आप न सोचें कि उन्होंने तमाम शहज़ादों को मार डाला है। सिर्फ़ अमनोन मर गया होगा, क्योंकि जब से उसने तमर की इसमतदरी की उस वक़्त से अबीसलूम का यही इरादा था। \v 33 लिहाज़ा इस ख़बर को इतनी अहमियत न दें कि तमाम बेटे हलाक हुए हैं। सिर्फ़ अमनोन मर गया होगा।” \p \v 34 इतने में अबीसलूम फ़रार हो गया था। फिर यरूशलम की फ़सील पर खड़े पहरेदार ने अचानक देखा कि मग़रिब से लोगों का बड़ा गुरोह शहर की तरफ़ बढ़ रहा है। वह पहाड़ी के दामन में चले आ रहे थे। \v 35 तब यूनदब ने बादशाह से कहा, “लो, बादशाह के बेटे आ रहे हैं, जिस तरह आपके ख़ादिम ने कहा था।” \v 36 वह अभी अपनी बात ख़त्म कर ही रहा था कि शहज़ादे अंदर आए और ख़ूब रो पड़े। बादशाह और उसके अफ़सर भी रोने लगे। \p \v 37 दाऊद बड़ी देर तक अमनोन का मातम करता रहा। लेकिन अबीसलूम ने फ़रार होकर जसूर के बादशाह तलमी बिन अम्मीहूद के पास पनाह ली जो उसका नाना था। \v 38 वहाँ वह तीन साल तक रहा। \v 39 फिर एक वक़्त आ गया कि दाऊद का अमनोन के लिए दुख दूर हो गया, और उसका अबीसलूम पर ग़ुस्सा थम गया। \c 14 \s1 योआब अबीसलूम की सिफ़ारिश करता है \p \v 1 योआब बिन ज़रूयाह को मालूम हुआ कि बादशाह अपने बेटे अबीसलूम को चाहता है, \v 2 इसलिए उसने तक़ुअ से एक दानिशमंद औरत को बुलाया। योआब ने उसे हिदायत दी, “मातम का रूप भरें जैसे आप देर से किसी का मातम कर रही हों। मातम के कपड़े पहनकर ख़ुशबूदार तेल मत लगाना। \v 3 बादशाह के पास जाकर उससे बात करें।” फिर योआब ने औरत को लफ़्ज़ बलफ़्ज़ वह कुछ सिखाया जो उसे बादशाह को बताना था। \p \v 4 दाऊद के दरबार में आकर औरत ने औंधे मुँह झुककर इलतमास की, “ऐ बादशाह, मेरी मदद करें!” \v 5 दाऊद ने दरियाफ़्त किया, “क्या मसला है?” औरत ने जवाब दिया, “मैं बेवा हूँ, मेरा शौहर फ़ौत हो गया है। \v 6 और मेरे दो बेटे थे। एक दिन वह बाहर खेत में एक दूसरे से उलझ पड़े। और चूँकि कोई मौजूद नहीं था जो दोनों को अलग करता इसलिए एक ने दूसरे को मार डाला। \v 7 उस वक़्त से पूरा कुंबा मेरे ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ है। वह तक़ाज़ा करते हैं कि मैं अपने बेटे को उनके हवाले करूँ। वह कहते हैं, ‘उसने अपने भाई को मार दिया है, इसलिए हम बदले में उसे सज़ाए-मौत देंगे। इस तरह वारिस भी नहीं रहेगा।’ यों वह मेरी उम्मीद की आख़िरी किरण को ख़त्म करना चाहते हैं। क्योंकि अगर मेरा यह बेटा भी मर जाए तो मेरे शौहर का नाम क़ायम नहीं रहेगा, और उसका ख़ानदान रूए-ज़मीन पर से मिट जाएगा।” \v 8 बादशाह ने औरत से कहा, “अपने घर चली जाएँ और फ़िकर न करें। मैं मामला हल कर दूँगा।” \p \v 9 लेकिन औरत ने गुज़ारिश की, “ऐ बादशाह, डर है कि लोग फिर भी मुझे मुजरिम ठहराएँगे अगर मेरे बेटे को सज़ाए-मौत न दी जाए। आप पर तो वह इलज़ाम नहीं लगाएँगे।” \v 10 दाऊद ने इसरार किया, “अगर कोई आपको तंग करे तो उसे मेरे पास ले आएँ। फिर वह आइंदा आपको नहीं सताएगा!” \v 11 औरत को तसल्ली न हुई। उसने गुज़ारिश की, “ऐ बादशाह, बराहे-करम रब अपने ख़ुदा की क़सम खाएँ कि आप किसी को भी मौत का बदला नहीं लेने देंगे। वरना नुक़सान में इज़ाफ़ा होगा और मेरा दूसरा बेटा भी हलाक हो जाएगा।” दाऊद ने जवाब दिया, “रब की हयात की क़सम, आपके बेटे का एक बाल भी बीका नहीं होगा।” \p \v 12 फिर औरत असल बात पर आ गई, “मेरे आक़ा, बराहे-करम अपनी ख़ादिमा को एक और बात करने की इजाज़त दें।” बादशाह बोला, “करें बात।” \v 13 तब औरत ने कहा, “आप ख़ुद क्यों अल्लाह की क़ौम के ख़िलाफ़ ऐसा इरादा रखते हैं जिसे आपने अभी अभी ग़लत क़रार दिया है? आपने ख़ुद फ़रमाया है कि यह ठीक नहीं, और यों आपने अपने आपको ही मुजरिम ठहराया है। क्योंकि आपने अपने बेटे को रद्द करके उसे वापस आने नहीं दिया। \v 14 बेशक हम सबको किसी वक़्त मरना है। हम सब ज़मीन पर उंडेले गए पानी की मानिंद हैं जिसे ज़मीन जज़ब कर लेती है और जो दुबारा जमा नहीं किया जा सकता। लेकिन अल्लाह हमारी ज़िंदगी को बिलावजह मिटा नहीं देता बल्कि ऐसे मनसूबे तैयार रखता है जिनके ज़रीए मरदूद शख़्स भी उसके पास वापस आ सके और उससे दूर न रहे। \v 15 ऐ बादशाह मेरे आक़ा, मैं इस वक़्त इसलिए आपके हुज़ूर आई हूँ कि मेरे लोग मुझे डराने की कोशिश कर रहे हैं। मैंने सोचा, मैं बादशाह से बात करने की जुर्रत करूँगी, शायद वह मेरी सुनें \v 16 और मुझे उस आदमी से बचाएँ जो मुझे और मेरे बेटे को उस मौरूसी ज़मीन से महरूम रखना चाहता है जो अल्लाह ने हमें दे दी है। \v 17 ख़याल यह था कि अगर बादशाह मामला हल कर दें तो फिर मुझे दुबारा सुकून मिलेगा, क्योंकि आप अच्छी और बुरी बातों का इम्तियाज़ करने में अल्लाह के फ़रिश्ते जैसे हैं। रब आपका ख़ुदा आपके साथ हो।” \p \v 18 यह सब कुछ सुनकर दाऊद बोल उठा, “अब मुझे एक बात बताएँ। इसका सहीह जवाब दें।” औरत ने जवाब दिया, “जी मेरे आक़ा, बात फ़रमाइए।” दाऊद ने पूछा, “क्या योआब ने आपसे यह काम करवाया?” \v 19 औरत पुकारी, “बादशाह की हयात की क़सम, जो कुछ भी मेरे आक़ा फ़रमाते हैं वह निशाने पर लग जाता है, ख़ाह बंदा बाईं या दाईं तरफ़ हटने की कोशिश क्यों न करे। जी हाँ, आपके ख़ादिम योआब ने मुझे आपके हुज़ूर भेज दिया। उसने मुझे लफ़्ज़ बलफ़्ज़ सब कुछ बताया जो मुझे आपको अर्ज़ करना था, \v 20 क्योंकि वह आपको यह बात बराहे-रास्त नहीं पेश करना चाहता था। लेकिन मेरे आक़ा को अल्लाह के फ़रिश्ते की-सी हिकमत हासिल है। जो कुछ भी मुल्क में वुक़ू में आता है उसका आपको पता चल जाता है।” \s1 अबीसलूम की वापसी \p \v 21 दाऊद ने योआब को बुलाकर उससे कहा, “ठीक है, मैं आपकी दरख़ास्त पूरी करूँगा। जाएँ, मेरे बेटे अबीसलूम को वापस ले आएँ।” \v 22 योआब औंधे मुँह झुक गया और बोला, “रब बादशाह को बरकत दे! मेरे आक़ा, आज मुझे मालूम हुआ है कि मैं आपको मंज़ूर हूँ, क्योंकि आपने अपने ख़ादिम की दरख़ास्त को पूरा किया है।” \v 23 योआब रवाना होकर जसूर चला गया और वहाँ से अबीसलूम को वापस लाया। \v 24 लेकिन जब वह यरूशलम पहुँचे तो बादशाह ने हुक्म दिया, “उसे अपने घर में रहने की इजाज़त है, लेकिन वह कभी मुझे नज़र न आए।” चुनाँचे अबीसलूम अपने घर में दुबारा रहने लगा, लेकिन बादशाह से कभी मुलाक़ात न हो सकी। \p \v 25 पूरे इसराईल में अबीसलूम जैसा ख़ूबसूरत आदमी नहीं था। सब उस की ख़ास तारीफ़ करते थे, क्योंकि सर से लेकर पाँव तक उसमें कोई नुक़्स नज़र नहीं आता था। \v 26 साल में वह एक ही मरतबा अपने बाल कटवाता था, क्योंकि इतने में उसके बाल हद से ज़्यादा वज़नी हो जाते थे। जब उन्हें तोला जाता तो उनका वज़न तक़रीबन सवा दो किलोग्राम होता था। \v 27 अबीसलूम के तीन बेटे और एक बेटी थी। बेटी का नाम तमर था और वह निहायत ख़ूबसूरत थी। \p \v 28 दो साल गुज़र गए, फिर भी अबीसलूम को बादशाह से मिलने की इजाज़त न मिली। \v 29 फिर उसने योआब को इत्तला भेजी कि वह उस की सिफ़ारिश करे। लेकिन योआब ने आने से इनकार किया। अबीसलूम ने उसे दुबारा बुलाने की कोशिश की, लेकिन इस बार भी योआब उसके पास न आया। \v 30 तब अबीसलूम ने अपने नौकरों को हुक्म दिया, “देखो, योआब का खेत मेरे खेत से मुलहिक़ है, और उसमें जौ की फ़सल पक रही है। जाओ, उसे आग लगा दो!” नौकर गए और ऐसा ही किया। \p \v 31 जब खेत में आग लग गई तो योआब भागकर अबीसलूम के पास आया और शिकायत की, “आपके नौकरों ने मेरे खेत को आग क्यों लगाई है?” \v 32 अबीसलूम ने जवाब दिया, “देखें, आप नहीं आए जब मैंने आपको बुलाया। क्योंकि मैं चाहता हूँ कि आप बादशाह के पास जाकर उनसे पूछें कि मुझे जसूर से क्यों लाया गया। बेहतर होता कि मैं वहीं रहता। अब बादशाह मुझसे मिलें या अगर वह अब तक मुझे क़ुसूरवार ठहराते हैं तो मुझे सज़ाए-मौत दें।” \p \v 33 योआब ने बादशाह के पास जाकर उसे यह पैग़ाम पहुँचाया। फिर दाऊद ने अपने बेटे को बुलाया। अबीसलूम अंदर आया और बादशाह के सामने औंधे मुँह झुक गया। फिर बादशाह ने अबीसलूम को बोसा दिया। \c 15 \s1 अबीसलूम की साज़िश \p \v 1 कुछ देर के बाद अबीसलूम ने रथ और घोड़े ख़रीदे और साथ साथ 50 मुहाफ़िज़ भी रखे जो उसके आगे आगे दौड़ें। \v 2 रोज़ाना वह सुबह-सवेरे उठकर शहर के दरवाज़े पर जाता। जब कभी कोई शख़्स इस मक़सद से शहर में दाख़िल होता कि बादशाह उसके किसी मुक़दमे का फ़ैसला करे तो अबीसलूम उससे मुख़ातिब होकर पूछता, “आप किस शहर से हैं?” अगर वह जवाब देता, “मैं इसराईल के फ़ुलाँ क़बीले से हूँ,” \v 3 तो अबीसलूम कहता, “बेशक आप इस मुक़दमे को जीत सकते हैं, लेकिन अफ़सोस! बादशाह का कोई भी बंदा इस पर सहीह ध्यान नहीं देगा।” \v 4 फिर वह बात जारी रखता, “काश मैं ही मुल्क पर आला क़ाज़ी मुक़र्रर किया गया होता! फिर सब लोग अपने मुक़दमे मुझे पेश कर सकते और मैं उनका सहीह इनसाफ़ कर देता।” \v 5 और अगर कोई क़रीब आकर अबीसलूम के सामने झुकने लगता तो वह उसे रोककर उसको गले लगाता और बोसा देता। \v 6 यह उसका उन तमाम इसराईलियों के साथ सुलूक था जो अपने मुक़दमे बादशाह को पेश करने के लिए आते थे। यों उसने इसराईलियों के दिलों को अपनी तरफ़ मायल कर लिया। \p \v 7 यह सिलसिला चार साल जारी रहा। एक दिन अबीसलूम ने दाऊद से बात की, “मुझे हबरून जाने की इजाज़त दीजिए, क्योंकि मैंने रब से ऐसी मन्नत मानी है जिसके लिए ज़रूरी है कि हबरून जाऊँ। \v 8 क्योंकि जब मैं जसूर में था तो मैंने क़सम खाकर वादा किया था, ‘ऐ रब, अगर तू मुझे यरूशलम वापस लाए तो मैं हबरून में तेरी परस्तिश करूँगा’।” \v 9 बादशाह ने जवाब दिया, “ठीक है। सलामती से जाएँ।” \p \v 10 लेकिन हबरून पहुँचकर अबीसलूम ने ख़ुफ़िया तौर पर अपने क़ासिदों को इसराईल के तमाम क़बायली इलाक़ों में भेज दिया। जहाँ भी वह गए उन्होंने एलान किया, “ज्योंही नरसिंगे की आवाज़ सुनाई दे आप सबको कहना है, ‘अबीसलूम हबरून में बादशाह बन गया है’!” \v 11 अबीसलूम के साथ 200 मेहमान यरूशलम से हबरून आए थे। वह बेलौस थे, और उन्हें इसके बारे में इल्म ही न था। \p \v 12 जब हबरून में क़ुरबानियाँ चढ़ाई जा रही थीं तो अबीसलूम ने दाऊद के एक मुशीर को बुलाया जो जिलोह का रहनेवाला था। उसका नाम अख़ीतुफ़ल जिलोनी था। वह आया और अबीसलूम के साथ मिल गया। यों अबीसलूम के पैरोकारों में इज़ाफ़ा होता गया और उस की साज़िशें ज़ोर पकड़ने लगीं। \s1 दाऊद यरूशलम से हिजरत करता है \p \v 13 एक क़ासिद ने दाऊद के पास पहुँचकर उसे इत्तला दी, “अबीसलूम आपके ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ है, और तमाम इसराईल उसके पीछे लग गया है।” \v 14 दाऊद ने अपने मुलाज़िमों से कहा, “आओ, हम फ़ौरन हिजरत करें, वरना अबीसलूम के क़ब्ज़े में आ जाएंगे। जल्दी करें ताकि हम फ़ौरन रवाना हो सकें, क्योंकि वह कोशिश करेगा कि जितनी जल्दी हो सके यहाँ पहुँचे। अगर हम उस वक़्त शहर से निकले न हों तो वह हम पर आफ़त लाकर शहर के बाशिंदों को मार डालेगा।” \v 15 बादशाह के मुलाज़िमों ने जवाब दिया, “जो भी फ़ैसला हमारे आक़ा और बादशाह करें हम हाज़िर हैं।” \p \v 16 बादशाह अपने पूरे ख़ानदान के साथ रवाना हुआ। सिर्फ़ दस दाश्ताएँ महल को सँभालने के लिए पीछे रह गईं। \v 17 जब दाऊद अपने तमाम लोगों के साथ शहर के आख़िरी घर तक पहुँचा तो वह रुक गया। \v 18 उसने अपने तमाम पैरोकारों को आगे निकलने दिया, पहले शाही दस्ते करेतीओ-फ़लेती को, फिर उन 600 जाती आदमियों को जो उसके साथ जात से यहाँ आए थे और आख़िर में बाक़ी तमाम लोगों को। \v 19 जब फ़िलिस्ती शहर जात का आदमी इत्ती दाऊद के सामने से गुज़रने लगा तो बादशाह उससे मुख़ातिब हुआ, “आप हमारे साथ क्यों जाएँ? नहीं, वापस चले जाएँ और नए बादशाह के साथ रहें। आप तो ग़ैरमुल्की हैं और इसलिए इसराईल में रहते हैं कि आपको जिलावतन कर दिया गया है। \v 20 आपको यहाँ आए थोड़ी देर हुई है, तो क्या मुनासिब है कि आपको दुबारा मेरी वजह से कभी इधर कभी इधर घूमना पड़े? क्या पता है कि मुझे कहाँ कहाँ जाना पड़े। इसलिए वापस चले जाएँ, और अपने हमवतनों को भी अपने साथ ले जाएँ। रब आप पर अपनी मेहरबानी और वफ़ादारी का इज़हार करे।” \p \v 21 लेकिन इत्ती ने एतराज़ किया, “मेरे आक़ा, रब और बादशाह की हयात की क़सम, मैं आपको कभी नहीं छोड़ सकता, ख़ाह मुझे अपनी जान भी क़ुरबान करनी पड़े।” \v 22 तब दाऊद मान गया। “चलो, फिर आगे निकलें!” चुनाँचे इत्ती अपने लोगों और उनके ख़ानदानों के साथ आगे निकला। \v 23 आख़िर में दाऊद ने वादीए-क़िदरोन को पार करके रेगिस्तान की तरफ़ रुख़ किया। गिर्दो-नवाह के तमाम लोग बादशाह को उसके पैरोकारों समेत रवाना होते हुए देखकर फूट फूटकर रोने लगे। \p \v 24 सदोक़ इमाम और तमाम लावी भी दाऊद के साथ शहर से निकल आए थे। लावी अहद का संदूक़ उठाए चल रहे थे। अब उन्होंने उसे शहर से बाहर ज़मीन पर रख दिया, और अबियातर वहाँ क़ुरबानियाँ चढ़ाने लगा। लोगों के शहर से निकलने के पूरे अरसे के दौरान वह क़ुरबानियाँ चढ़ाता रहा। \v 25 फिर दाऊद सदोक़ से मुख़ातिब हुआ, “अल्लाह का संदूक़ शहर में वापस ले जाएँ। अगर रब की नज़रे-करम मुझ पर हुई तो वह किसी दिन मुझे शहर में वापस लाकर अहद के संदूक़ और उस की सुकूनतगाह को दुबारा देखने की इजाज़त देगा। \v 26 लेकिन अगर वह फ़रमाए कि तू मुझे पसंद नहीं है, तो मैं यह भी बरदाश्त करने के लिए तैयार हूँ। वह मेरे साथ वह कुछ करे जो उसे मुनासिब लगे। \p \v 27 जहाँ तक आपका ताल्लुक़ है, अपने बेटे अख़ीमाज़ को साथ लेकर सहीह-सलामत शहर में वापस चले जाएँ। अबियातर और उसका बेटा यूनतन भी साथ जाएँ। \v 28 मैं ख़ुद रेगिस्तान में दरियाए-यरदन की उस जगह रुक जाऊँगा जहाँ हम आसानी से दरिया को पार कर सकेंगे। वहाँ आप मुझे यरूशलम के हालात के बारे में पैग़ाम भेज सकते हैं। मैं आपके इंतज़ार में रहूँगा।” \p \v 29 चुनाँचे सदोक़ और अबियातर अहद का संदूक़ शहर में वापस ले जाकर वहीं रहे। \v 30 दाऊद रोते रोते ज़ैतून के पहाड़ पर चढ़ने लगा। उसका सर ढाँपा हुआ था, और वह नंगे पाँव चल रहा था। बाक़ी सबके सर भी ढाँपे हुए थे, सब रोते रोते चढ़ने लगे। \v 31 रास्ते में दाऊद को इत्तला दी गई, “अख़ीतुफ़ल भी अबीसलूम के साथ मिल गया है।” यह सुनकर दाऊद ने दुआ की, “ऐ रब, बख़्श दे कि अख़ीतुफ़ल के मशवरे नाकाम हो जाएँ।” \p \v 32 चलते चलते दाऊद पहाड़ की चोटी पर पहुँच गया जहाँ अल्लाह की परस्तिश की जाती थी। वहाँ हूसी अरकी उससे मिलने आया। उसके कपड़े फटे हुए थे, और सर पर ख़ाक थी। \v 33 दाऊद ने उससे कहा, “अगर आप मेरे साथ जाएँ तो आप सिर्फ़ बोझ का बाइस बनेंगे। \v 34 बेहतर है कि आप लौटकर शहर में जाएँ और अबीसलूम से कहें, ‘ऐ बादशाह, मैं आपकी ख़िदमत में हाज़िर हूँ। पहले मैं आपके बाप की ख़िदमत करता था, और अब आप ही की ख़िदमत करूँगा।’ अगर आप ऐसा करें तो आप अख़ीतुफ़ल के मशवरे नाकाम बनाने में मेरी बड़ी मदद करेंगे। \v 35-36 आप अकेले नहीं होंगे। दोनों इमाम सदोक़ और अबियातर भी यरूशलम में पीछे रह गए हैं। दरबार में जो भी मनसूबे बाँधे जाएंगे वह उन्हें बताएँ। सदोक़ का बेटा अख़ीमाज़ और अबियातर का बेटा यूनतन मुझे हर ख़बर पहुँचाएँगे, क्योंकि वह भी शहर में ठहरे हुए हैं।” \p \v 37 तब दाऊद का दोस्त हूसी वापस चला गया। वह उस वक़्त पहुँच गया जब अबीसलूम यरूशलम में दाख़िल हो रहा था। \c 16 \s1 ज़ीबा मिफ़ीबोसत के बारे में झूट बोलता है \p \v 1 दाऊद अभी पहाड़ की चोटी से कुछ आगे निकल गया था कि मिफ़ीबोसत का मुलाज़िम ज़ीबा उससे मिलने आया। उसके पास दो गधे थे जिन पर ज़ीनें कसी हुई थीं। उन पर 200 रोटियाँ, किशमिश की 100 टिक्कियाँ, 100 ताज़ा फल और मै की एक मशक लदी हुई थी। \v 2 बादशाह ने पूछा, “आप इन चीज़ों के साथ क्या करना चाहते हैं?” ज़ीबा ने जवाब दिया, “गधे बादशाह के ख़ानदान के लिए हैं, वह इन पर बैठकर सफ़र करें। रोटी और फल जवानों के लिए हैं, और मै उनके लिए जो रेगिस्तान में चलते चलते थक जाएँ।” \v 3 बादशाह ने सवाल किया, “आपके पुराने मालिक का पोता मिफ़ीबोसत कहाँ है?” ज़ीबा ने कहा, “वह यरूशलम में ठहरा हुआ है। वह सोचता है कि आज इसराईली मुझे बादशाह बना देंगे, क्योंकि मैं साऊल का पोता हूँ।” \v 4 यह सुनकर दाऊद बोला, “आज ही मिफ़ीबोसत की तमाम मिलकियत आपके नाम मुंतक़िल की जाती है!” ज़ीबा ने कहा, “मैं आपके सामने अपने घुटने टेकता हूँ। रब करे कि मैं अपने आक़ा और बादशाह का मंज़ूरे-नज़र रहूँ।” \s1 सिमई दाऊद को लान-तान करता है \p \v 5 जब दाऊद बादशाह बहूरीम के क़रीब पहुँचा तो एक आदमी वहाँ से निकलकर उस पर लानतें भेजने लगा। आदमी का नाम सिमई बिन जीरा था, और वह साऊल का रिश्तेदार था। \v 6 वह दाऊद और उसके अफ़सरों पर पत्थर भी फेंकने लगा, अगरचे दाऊद के बाएँ और दाएँ हाथ उसके मुहाफ़िज़ और बेहतरीन फ़ौजी चल रहे थे। \v 7 लानत करते करते सिमई चीख़ रहा था, “चल, दफ़ा हो जा! क़ातिल! बदमाश! \v 8 यह तेरा ही क़ुसूर था कि साऊल और उसका ख़ानदान तबाह हुए। अब रब तुझे जो साऊल की जगह तख़्तनशीन हो गया है इसकी मुनासिब सज़ा दे रहा है। उसने तेरे बेटे अबीसलूम को तेरी जगह तख़्तनशीन करके तुझे तबाह कर दिया है। क़ातिल को सहीह मुआवज़ा मिल गया है!” \p \v 9 अबीशै बिन ज़रूयाह बादशाह से कहने लगा, “यह कैसा मुरदा कुत्ता है जो मेरे आक़ा बादशाह पर लानत करे? मुझे इजाज़त दें, तो मैं जाकर उसका सर क़लम कर दूँ।” \v 10 लेकिन बादशाह ने उसे रोक दिया, “मेरा आप और आपके भाई योआब से क्या वास्ता? नहीं, उसे लानत करने दें। हो सकता है रब ने उसे यह करने का हुक्म दिया है। तो फिर हम कौन हैं कि उसे रोकें।” \v 11 फिर दाऊद तमाम अफ़सरों से भी मुख़ातिब हुआ, “जबकि मेरा अपना बेटा मुझे क़त्ल करने की कोशिश कर रहा है तो साऊल का यह रिश्तेदार ऐसा क्यों न करे? इसे छोड़ दो, क्योंकि रब ने इसे यह करने का हुक्म दिया है। \v 12 शायद रब मेरी मुसीबत का लिहाज़ करके सिमई की लानतें बरकत में बदल दे।” \p \v 13 दाऊद और उसके लोगों ने सफ़र जारी रखा। सिमई क़रीब की पहाड़ी ढलान पर उसके बराबर चलते चलते उस पर लानतें भेजता और पत्थर और मिट्टी के ढेले फेंकता रहा। \v 14 सब थकेमाँदे दरियाए-यरदन को पहुँच गए। वहाँ दाऊद ताज़ादम हो गया। \s1 अबीसलूम यरूशलम में \p \v 15 इतने में अबीसलूम अपने पैरोकारों के साथ यरूशलम में दाख़िल हुआ था। अख़ीतुफ़ल भी उनके साथ मिल गया था। \v 16 थोड़ी देर के बाद दाऊद का दोस्त हूसी अरकी अबीसलूम के दरबार में हाज़िर होकर पुकारा, “बादशाह ज़िंदाबाद! बादशाह ज़िंदाबाद!” \v 17 यह सुनकर अबीसलूम ने उससे तंज़न कहा, “यह कैसी वफ़ादारी है जो आप अपने दोस्त दाऊद को दिखा रहे हैं? आप अपने दोस्त के साथ रवाना क्यों न हुए?” \v 18 हूसी ने जवाब दिया, “नहीं, जिस आदमी को रब और तमाम इसराईलियों ने मुक़र्रर किया है, वही मेरा मालिक है, और उसी की ख़िदमत में मैं हाज़िर रहूँगा। \v 19 दूसरे, अगर किसी की ख़िदमत करनी है तो क्या दाऊद के बेटे की ख़िदमत करना मुनासिब नहीं है? जिस तरह मैं आपके बाप की ख़िदमत करता रहा हूँ उसी तरह अब आपकी ख़िदमत करूँगा।” \p \v 20 फिर अबीसलूम अख़ीतुफ़ल से मुख़ातिब हुआ, “आगे क्या करना चाहिए? मुझे अपना मशवरा पेश करें।” \v 21 अख़ीतुफ़ल ने जवाब दिया, “आपके बाप ने अपनी कुछ दाश्ताओं को महल सँभालने के लिए यहाँ छोड़ दिया है। उनके साथ हमबिसतर हो जाएँ। फिर तमाम इसराईल को मालूम हो जाएगा कि आपने अपने बाप की ऐसी बेइज़्ज़ती की है कि सुलह का रास्ता बंद हो गया है। यह देखकर सब जो आपके साथ हैं मज़बूत हो जाएंगे।” \v 22 अबीसलूम मान गया, और महल की छत पर उसके लिए ख़ैमा लगाया गया। उसमें वह पूरे इसराईल के देखते देखते अपने बाप की दाश्ताओं से हमबिसतर हुआ। \p \v 23 उस वक़्त अख़ीतुफ़ल का हर मशवरा अल्लाह के फ़रमान जैसा माना जाता था। दाऊद और अबीसलूम दोनों यों ही उसके मशवरों की क़दर करते थे। \c 17 \s1 हूसी और अख़ीतुफ़ल \p \v 1 अख़ीतुफ़ल ने अबीसलूम को एक और मशवरा भी दिया। “मुझे इजाज़त दें तो मैं 12,000 फ़ौजियों के साथ इसी रात दाऊद का ताक़्क़ुब करूँ। \v 2 मैं उस पर हमला करूँगा जब वह थकामाँदा और बेदिल है। तब वह घबरा जाएगा, और उसके तमाम फ़ौजी भाग जाएंगे। नतीजतन मैं सिर्फ़ बादशाह ही को मार दूँगा \v 3 और बाक़ी तमाम लोगों को आपके पास वापस लाऊँगा। जो आदमी आप पकड़ना चाहते हैं उस की मौत पर सब वापस आ जाएंगे। और क़ौम में अमनो-अमान क़ायम हो जाएगा।” \p \v 4 यह मशवरा अबीसलूम और इसराईल के तमाम बुज़ुर्गों को पसंद आया। \v 5 ताहम अबीसलूम ने कहा, “पहले हम हूसी अरकी से भी मशवरा लें। कोई उसे बुला लाए।” \v 6 हूसी आया तो अबीसलूम ने उसके सामने अख़ीतुफ़ल का मनसूबा बयान करके पूछा, “आपका क्या ख़याल है? क्या हमें ऐसा करना चाहिए, या आपकी कोई और राय है?” \p \v 7 हूसी ने जवाब दिया, “जो मशवरा अख़ीतुफ़ल ने दिया है वह इस दफ़ा ठीक नहीं। \v 8 आप तो अपने वालिद और उनके आदमियों से वाक़िफ़ हैं। वह सब माहिर फ़ौजी हैं। वह उस रीछनी की-सी शिद्दत से लड़ेंगे जिससे उसके बच्चे छीन लिए गए हैं। यह भी ज़हन में रखना चाहिए कि आपका बाप तजरबाकार फ़ौजी है। इमकान नहीं कि वह रात को अपने फ़ौजियों के दरमियान गुज़ारेगा। \v 9 ग़ालिबन वह इस वक़्त भी गहरी खाई या कहीं और छुप गया है। हो सकता है वह वहाँ से निकलकर आपके दस्तों पर हमला करे और इब्तिदा ही में आपके थोड़े-बहुत अफ़राद मर जाएँ। फिर अफ़वाह फैल जाएगी कि अबीसलूम के दस्तों में क़त्ले-आम शुरू हो गया है। \v 10 यह सुनकर आपके तमाम अफ़राद डर के मारे बेदिल हो जाएंगे, ख़ाह वह शेरबबर जैसे बहादुर क्यों न हों। क्योंकि तमाम इसराईल जानता है कि आपका बाप बेहतरीन फ़ौजी है और कि उसके साथी भी दिलेर हैं। \p \v 11 यह पेशे-नज़र रखकर मैं आपको एक और मशवरा देता हूँ। शिमाल में दान से लेकर जुनूब में बैर-सबा तक लड़ने के क़ाबिल तमाम इसराईलियों को बुलाएँ। इतने जमा करें कि वह साहिल की रेत की मानिंद होंगे, और आप ख़ुद उनके आगे चलकर लड़ने के लिए निकलें। \v 12 फिर हम दाऊद का खोज लगाकर उस पर हमला करेंगे। हम उस तरह उस पर टूट पड़ेंगे जिस तरह ओस ज़मीन पर गिरती है। सबके सब हलाक हो जाएंगे, और न वह और न उसके आदमी बच पाएँगे। \v 13 अगर दाऊद किसी शहर में पनाह ले तो तमाम इसराईली फ़सील के साथ रस्से लगाकर पूरे शहर को वादी में घसीट ले जाएंगे। पत्थर पर पत्थर बाक़ी नहीं रहेगा!” \p \v 14 अबीसलूम और तमाम इसराईलियों ने कहा, “हूसी का मशवरा अख़ीतुफ़ल के मशवरे से बेहतर है।” हक़ीक़त में अख़ीतुफ़ल का मशवरा कहीं बेहतर था, लेकिन रब ने उसे नाकाम होने दिया ताकि अबीसलूम को मुसीबत में डाले। \s1 दाऊद को अबीसलूम का मनसूबा बताया जाता है \p \v 15 हूसी ने दोनों इमामों सदोक़ और अबियातर को वह मनसूबा बताया जो अख़ीतुफ़ल ने अबीसलूम और इसराईल के बुज़ुर्गों को पेश किया था। साथ साथ उसने उन्हें अपने मशवरे के बारे में भी आगाह किया। \v 16 उसने कहा, “अब फ़ौरन दाऊद को इत्तला दें कि किसी सूरत में भी इस रात को दरियाए-यरदन की उस जगह पर न गुज़ारें जहाँ लोग दरिया को पार करते हैं। लाज़िम है कि आप आज ही दरिया को उबूर कर लें, वरना आप तमाम साथियों समेत बरबाद हो जाएंगे।” \p \v 17 यूनतन और अख़ीमाज़ यरूशलम से बाहर के चश्मे ऐन-राजिल के पास इंतज़ार कर रहे थे, क्योंकि वह शहर में दाख़िल होकर किसी को नज़र आने का ख़तरा मोल नहीं ले सकते थे। एक नौकरानी शहर से निकल आई और उन्हें हूसी का पैग़ाम दे दिया ताकि वह आगे निकलकर उसे दाऊद तक पहुँचाएँ। \v 18 लेकिन एक जवान ने उन्हें देखा और भागकर अबीसलूम को इत्तला दी। दोनों जल्दी जल्दी वहाँ से चले गए और एक आदमी के घर में छुप गए जो बहूरीम में रहता था। उसके सहन में कुआँ था। उसमें वह उतर गए। \v 19 आदमी की बीवी ने कुएँ के मुँह पर कपड़ा बिछाकर उस पर अनाज के दाने बिखेर दिए ताकि किसी को मालूम न हो कि वहाँ कुआँ है। \p \v 20 अबीसलूम के सिपाही उस घर में पहुँचे और औरत से पूछने लगे, “अख़ीमाज़ और यूनतन कहाँ हैं?” औरत ने जवाब दिया, “वह आगे निकल चुके हैं, क्योंकि वह नदी को पार करना चाहते थे।” सिपाही दोनों आदमियों का खोज लगाते लगाते थक गए। आख़िरकार वह ख़ाली हाथ यरूशलम लौट गए। \p \v 21 जब चले गए तो अख़ीमाज़ और यूनतन कुएँ से निकलकर सीधे दाऊद बादशाह के पास चले गए ताकि उसे पैग़ाम सुनाएँ। उन्होंने कहा, “लाज़िम है कि आप दरिया को फ़ौरन पार करें!” फिर उन्होंने दाऊद को अख़ीतुफ़ल का पूरा मनसूबा बताया। \v 22 दाऊद और उसके तमाम साथी जल्द ही रवाना हुए और उसी रात दरियाए-यरदन को उबूर किया। पौ फटते वक़्त एक भी पीछे नहीं रह गया था। \p \v 23 जब अख़ीतुफ़ल ने देखा कि मेरा मशवरा रद्द किया गया है तो वह अपने गधे पर ज़ीन कसकर अपने वतनी शहर वापस चला गया। वहाँ उसने घर के तमाम मामलात का बंदोबस्त किया, फिर जाकर फाँसी ले ली। उसे उसके बाप की क़ब्र में दफ़नाया गया। \p \v 24 जब दाऊद महनायम पहुँच गया तो अबीसलूम इसराईली फ़ौज के साथ दरियाए-यरदन को पार करने लगा। \v 25 उसने अमासा को फ़ौज पर मुक़र्रर किया था, क्योंकि योआब तो दाऊद के साथ था। अमासा एक इसमाईली बनाम इतरा का बेटा था। उस की माँ अबीजेल बिंत नाहस थी, और वह योआब की माँ ज़रूयाह की बहन थी। \v 26 अबीसलूम और उसके साथियों ने मुल्के-जिलियाद में पड़ाव डाला। \p \v 27 जब दाऊद महनायम पहुँचा तो तीन आदमियों ने उसका इस्तक़बाल किया। सोबी बिन नाहस अम्मोनियों के दारुल-हुकूमत रब्बा से, मकीर बिन अम्मियेल लो-दिबार से और बरज़िल्ली जिलियादी राजिलीम से आए। \v 28 तीनों ने दाऊद और उसके लोगों को बिस्तर, बासन, मिट्टी के बरतन, गंदुम, जौ, मैदा, अनाज के भुने हुए दाने, लोबिया, मसूर, \v 29 शहद, दही, भेड़-बकरियाँ और गाय के दूध का पनीर मुहैया किया। क्योंकि उन्होंने सोचा, “यह लोग रेगिस्तान में चलते चलते ज़रूर भूके, प्यासे और थकेमाँदे हो गए होंगे।” \c 18 \s1 जंग के लिए तैयारियाँ \p \v 1 दाऊद ने अपने फ़ौजियों का मुआयना करके हज़ार हज़ार और सौ सौ अफ़राद पर आदमी मुक़र्रर किए। \v 2 फिर उसने उन्हें तीन हिस्सों में तक़सीम करके एक हिस्से पर योआब को, दूसरे पर उसके भाई अबीशै बिन ज़रूयाह को और तीसरे पर इत्ती जाती को मुक़र्रर किया। \p उसने फ़ौजियों को बताया, “मैं ख़ुद भी आपके साथ लड़ने के लिए निकलूँगा।” \v 3 लेकिन उन्होंने एतराज़ किया, “ऐसा न करें! अगर हमें भागना भी पड़े या हमारा आधा हिस्सा मारा भी जाए तो अबीसलूम के फ़ौजियों के लिए इतना कोई फ़रक़ नहीं पड़ेगा। वह आप ही को पकड़ना चाहते हैं, क्योंकि आप उनके नज़दीक हममें से 10,000 अफ़राद से ज़्यादा अहम हैं। चुनाँचे बेहतर है कि आप शहर ही में रहें और वहाँ से हमारी हिमायत करें।” \p \v 4 बादशाह ने जवाब दिया, “ठीक है, जो कुछ आपको माक़ूल लगता है वही करूँगा।” वह शहर के दरवाज़े पर खड़ा हुआ, और तमाम मर्द सौ सौ और हज़ार हज़ार के गुरोहों में उसके सामने से गुज़रकर बाहर निकले। \v 5 योआब, अबीशै और इत्ती को उसने हुक्म दिया, “मेरी ख़ातिर जवान अबीसलूम से नरमी से पेश आना!” तमाम फ़ौजियों ने तीनों कमाँडरों से यह बात सुनी। \s1 अबीसलूम की शिकस्त \p \v 6 दाऊद के लोग खुले मैदान में इसराईलियों से लड़ने गए। इफ़राईम के जंगल में उनकी टक्कर हुई, \v 7 और दाऊद के फ़ौजियों ने मुख़ालिफ़ों को शिकस्ते-फ़ाश दी। उनके 20,000 अफ़राद हलाक हुए। \v 8 लड़ाई पूरे जंगल में फैलती गई। यह जंगल इतना ख़तरनाक था कि उस दिन तलवार की निसबत ज़्यादा लोग उस की ज़द में आकर हलाक हो गए। \p \v 9 अचानक दाऊद के कुछ फ़ौजियों को अबीसलूम नज़र आया। वह ख़च्चर पर सवार बलूत के एक बड़े दरख़्त के साये में से गुज़रने लगा तो उसके बाल दरख़्त की शाख़ों में उलझ गए। उसका ख़च्चर आगे निकल गया जबकि अबीसलूम वहीं आसमानो-ज़मीन के दरमियान लटका रहा। \v 10 जिन आदमियों ने यह देखा उनमें से एक योआब के पास गया और इत्तला दी, “मैंने अबीसलूम को देखा है। वह बलूत के एक दरख़्त में लटका हुआ है।” \p \v 11 योआब पुकारा, “क्या आपने उसे देखा? तो उसे वहीं क्यों न मार दिया? फिर मैं आपको इनाम के तौर पर चाँदी के दस सिक्के और एक कमरबंद दे देता।” \v 12 लेकिन आदमी ने एतराज़ किया, “अगर आप मुझे चाँदी के हज़ार सिक्के भी देते तो भी मैं बादशाह के बेटे को हाथ न लगाता। हमारे सुनते सुनते बादशाह ने आप, अबीशै और इत्ती को हुक्म दिया, ‘मेरी ख़ातिर अबीसलूम को नुक़सान न पहुँचाएँ।’ \v 13 और अगर मैं चुपके से भी उसे क़त्ल करता तो भी इसकी ख़बर किसी न किसी वक़्त बादशाह के कानों तक पहुँचती। क्योंकि कोई भी बात बादशाह से पोशीदा नहीं रहती। अगर मुझे इस सूरत में पकड़ा जाता तो आप मेरी हिमायत न करते।” \p \v 14 योआब बोला, “मेरा वक़्त मज़ीद ज़ाया मत करो।” उसने तीन नेज़े लेकर अबीसलूम के दिल में घोंप दिए जब वह अभी ज़िंदा हालत में दरख़्त से लटका हुआ था। \v 15 फिर योआब के दस सिलाहबरदारों ने अबीसलूम को घेरकर उसे हलाक कर दिया। \p \v 16 तब योआब ने नरसिंगा बजा दिया, और उसके फ़ौजी दूसरों का ताक़्क़ुब करने से बाज़ आकर वापस आ गए। \v 17 बाक़ी इसराईली अपने अपने घर भाग गए। योआब के आदमियों ने अबीसलूम की लाश को एक गहरे गढ़े में फेंककर उस पर पत्थरों का बड़ा ढेर लगा दिया। \p \v 18 कुछ देर पहले अबीसलूम इस ख़याल से बादशाह की वादी में अपनी याद में एक सतून खड़ा कर चुका था कि मेरा कोई बेटा नहीं है जो मेरा नाम क़ायम रखे। आज तक यह ‘अबीसलूम की यादगार’ कहलाता है। \s1 दाऊद को अबीसलूम की मौत की ख़बर मिलती है \p \v 19 अख़ीमाज़ बिन सदोक़ ने योआब से दरख़ास्त की, “मुझे दौड़कर बादशाह को ख़ुशख़बरी सुनाने दें कि रब ने उसे दुश्मनों से बचा लिया है।” \v 20 लेकिन योआब ने इनकार किया, “जो पैग़ाम आपको बादशाह तक पहुँचाना है वह उसके लिए ख़ुशख़बरी नहीं है, क्योंकि उसका बेटा मर गया है। किसी और वक़्त मैं ज़रूर आपको उसके पास भेज दूँगा, लेकिन आज नहीं।” \v 21 उसने एथोपिया के एक आदमी को हुक्म दिया, “जाएँ और बादशाह को बताएँ।” आदमी योआब के सामने औंधे मुँह झुक गया और फिर दौड़कर चला गया। \p \v 22 लेकिन अख़ीमाज़ ख़ुश नहीं था। वह इसरार करता रहा, “कुछ भी हो जाए, मेहरबानी करके मुझे उसके पीछे दौड़ने दें!” एक और बार योआब ने उसे रोकने की कोशिश की, “बेटे, आप जाने के लिए क्यों तड़पते हैं? जो ख़बर पहुँचानी है उसके लिए आपको इनाम नहीं मिलेगा।” \v 23 अख़ीमाज़ ने जवाब दिया, “कोई बात नहीं। कुछ भी हो जाए, मैं हर सूरत में दौड़कर बादशाह के पास जाना चाहता हूँ।” तब योआब ने उसे जाने दिया। अख़ीमाज़ ने दरियाए-यरदन के खुले मैदान का रास्ता लिया, इसलिए वह एथोपिया के आदमी से पहले बादशाह के पास पहुँच गया। \p \v 24 उस वक़्त दाऊद शहर के बाहर और अंदरवाले दरवाज़ों के दरमियान बैठा इंतज़ार कर रहा था। जब पहरेदार दरवाज़े के ऊपर की फ़सील पर चढ़ा तो उसे एक तनहा आदमी नज़र आया जो दौड़ता हुआ उनकी तरफ़ आ रहा था। \v 25 पहरेदार ने आवाज़ देकर बादशाह को इत्तला दी। दाऊद बोला, “अगर अकेला हो तो ज़रूर ख़ुशख़बरी लेकर आ रहा होगा।” यह आदमी भागता भागता क़रीब आ गया, \v 26 लेकिन इतने में पहरेदार को एक और आदमी नज़र आया जो शहर की तरफ़ दौड़ता हुआ आ रहा था। उसने शहर के दरवाज़े के दरबान को आवाज़ दी, “एक और आदमी दौड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। वह भी अकेला ही आ रहा है।” दाऊद ने कहा, “वह भी अच्छी ख़बर लेकर आ रहा है।” \v 27 फिर पहरेदार पुकारा, “लगता है कि पहला आदमी अख़ीमाज़ बिन सदोक़ है, क्योंकि वही यों चलता है।” दाऊद को तसल्ली हुई, “अख़ीमाज़ अच्छा बंदा है। वह ज़रूर अच्छी ख़बर लेकर आ रहा होगा।” \p \v 28 दूर से अख़ीमाज़ ने बादशाह को आवाज़ दी, “बादशाह की सलामती हो!” वह औंधे मुँह बादशाह के सामने झुककर बोला, “रब आपके ख़ुदा की तमजीद हो! उसने आपको उन लोगों से बचा लिया है जो मेरे आक़ा और बादशाह के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए थे।” \v 29 दाऊद ने पूछा, “और मेरा बेटा अबीसलूम? क्या वह महफ़ूज़ है?” अख़ीमाज़ ने जवाब दिया, “जब योआब ने मुझे और बादशाह के दूसरे ख़ादिम को आपके पास रुख़सत किया तो उस वक़्त बड़ी अफ़रा-तफ़री थी। मुझे तफ़सील से मालूम न हुआ कि क्या हो रहा है।” \v 30 बादशाह ने हुक्म दिया, “एक तरफ़ होकर मेरे पास खड़े हो जाएँ!” अख़ीमाज़ ने ऐसा ही किया। \p \v 31 फिर एथोपिया का आदमी पहुँच गया। उसने कहा, “मेरे बादशाह, मेरी ख़ुशख़बरी सुनें! आज रब ने आपको उन सब लोगों से नजात दिलाई है जो आपके ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए थे।” \v 32 बादशाह ने सवाल किया, “और मेरा बेटा अबीसलूम? क्या वह महफ़ूज़ है?” एथोपिया के आदमी ने जवाब दिया, “मेरे आक़ा, जिस तरह उसके साथ हुआ है, उस तरह आपके तमाम दुश्मनों के साथ हो जाए, उन सबके साथ जो आपको नुक़सान पहुँचाना चाहते हैं!” \p \v 33 यह सुनकर बादशाह लरज़ उठा। शहर के दरवाज़े के ऊपर की फ़सील पर एक कमरा था। अब बादशाह रोते रोते सीढ़ियों पर चढ़ने लगा और चीख़ते-चिल्लाते उस कमरे में चला गया, “हाय मेरे बेटे अबीसलूम! मेरे बेटे, मेरे बेटे अबीसलूम! काश मैं ही तेरी जगह मर जाता। हाय अबीसलूम, मेरे बेटे, मेरे बेटे!” \c 19 \s1 योआब दाऊद को समझाता है \p \v 1 योआब को इत्तला दी गई, “बादशाह रोते रोते अबीसलूम का मातम कर रहा है।” \v 2 जब फ़ौजियों को ख़बर मिली कि बादशाह अपने बेटे का मातम कर रहा है तो फ़तह पाने पर उनकी सारी ख़ुशी काफ़ूर हो गई। हर तरफ़ मातम और ग़म का समाँ था। \v 3 उस दिन दाऊद के आदमी चोरी चोरी शहर में घुस आए, ऐसे लोगों की तरह जो मैदाने-जंग से फ़रार होने पर शरमाते हुए चुपके से शहर में आ जाते हैं। \p \v 4 बादशाह अभी कमरे में बैठा था। अपने मुँह को ढाँपकर वह चीख़ता-चिल्लाता रहा, “हाय मेरे बेटे अबीसलूम! हाय अबीसलूम, मेरे बेटे, मेरे बेटे!” \v 5 तब योआब उसके पास जाकर उसे समझाने लगा, “आज आपके ख़ादिमों ने न सिर्फ़ आपकी जान बचाई है बल्कि आपके बेटों, बेटियों, बीवियों और दाश्ताओं की जान भी। तो भी आपने उनका मुँह काला कर दिया है। \v 6 जो आपसे नफ़रत करते हैं उनसे आप मुहब्बत रखते हैं जबकि जो आपसे प्यार करते हैं उनसे आप नफ़रत करते हैं। आज आपने साफ़ ज़ाहिर कर दिया है कि आपके कमाँडर और दस्ते आपकी नज़र में कोई हैसियत नहीं रखते। हाँ, आज मैंने जान लिया है कि अगर अबीसलूम ज़िंदा होता तो आप ख़ुश होते, ख़ाह हम बाक़ी तमाम लोग हलाक क्यों न हो जाते। \v 7 अब उठकर बाहर जाएँ और अपने ख़ादिमों की हौसलाअफ़्ज़ाई करें। रब की क़सम, अगर आप बाहर न निकलेंगे तो रात तक एक भी आपके साथ नहीं रहेगा। फिर आप पर ऐसी मुसीबत आएगी जो आपकी जवानी से लेकर आज तक आप पर नहीं आई है।” \p \v 8 तब दाऊद उठा और शहर के दरवाज़े के पास उतर आया। जब फ़ौजियों को बताया गया कि बादशाह शहर के दरवाज़े में बैठा है तो वह सब उसके सामने जमा हुए। \s1 दाऊद यरूशलम वापस आता है \p इतने में इसराईली अपने घर भाग गए थे। \v 9 इसराईल के तमाम क़बीलों में लोग आपस में बहस-मुबाहसा करने लगे, “दाऊद बादशाह ने हमें हमारे दुश्मनों से बचाया, और उसी ने हमें फ़िलिस्तियों के हाथ से आज़ाद कर दिया। लेकिन अबीसलूम की वजह से वह मुल्क से हिजरत कर गया है। \v 10 अब जब अबीसलूम जिसे हमने मसह करके बादशाह बनाया था मर गया है तो आप बादशाह को वापस लाने से क्यों झिजकते हैं?” \p \v 11 दाऊद ने सदोक़ और अबियातर इमामों की मारिफ़त यहूदाह के बुज़ुर्गों को इत्तला दी, “यह बात मुझ तक पहुँच गई है कि तमाम इसराईल अपने बादशाह का इस्तक़बाल करके उसे महल में वापस लाना चाहता है। तो फिर आप क्यों देर कर रहे हैं? क्या आप मुझे वापस लाने में सबसे आख़िर में आना चाहते हैं? \v 12 आप मेरे भाई, मेरे क़रीबी रिश्तेदार हैं। तो फिर आप बादशाह को वापस लाने में आख़िर में क्यों आ रहे हैं?” \v 13 और अबीसलूम के कमाँडर अमासा को दोनों इमामों ने दाऊद का यह पैग़ाम पहुँचाया, “सुनें, आप मेरे भतीजे हैं, इसलिए अब से आप ही योआब की जगह मेरी फ़ौज के कमाँडर होंगे। अल्लाह मुझे सख़्त सज़ा दे अगर मैं अपना यह वादा पूरा न करूँ।” \p \v 14 इस तरह दाऊद यहूदाह के तमाम दिलों को जीत सका, और सबके सब उसके पीछे लग गए। उन्होंने उसे पैग़ाम भेजा, “वापस आएँ, आप भी और आपके तमाम लोग भी।” \v 15 तब दाऊद यरूशलम वापस चलने लगा। जब वह दरियाए-यरदन तक पहुँचा तो यहूदाह के लोग जिलजाल में आए ताकि उससे मिलें और उसे दरिया के दूसरे किनारे तक पहुँचाएँ। \s1 दाऊद सिमई को मुआफ़ कर देता है \p \v 16 बिनयमीनी शहर बहूरीम का सिमई बिन जीरा भी भागकर यहूदाह के आदमियों के साथ दाऊद से मिलने आया। \v 17 बिनयमीन के क़बीले के हज़ार आदमी उसके साथ थे। साऊल का पुराना नौकर ज़ीबा भी अपने 15 बेटों और 20 नौकरों समेत उनमें शामिल था। बादशाह के यरदन के किनारे तक पहुँचने से पहले पहले \v 18 वह जल्दी से दरिया को उबूर करके उसके पास आए ताकि बादशाह के घराने को दरिया के दूसरे किनारे तक पहुँचाएँ और हर तरह से बादशाह को ख़ुश रखें। \p दाऊद दरिया को पार करने को था कि सिमई औंधे मुँह उसके सामने गिर गया। \v 19 उसने इलतमास की, “मेरे आक़ा, मुझे मुआफ़ करें। जो ज़्यादती मैंने उस दिन आपसे की जब आपको यरूशलम को छोड़ना पड़ा वह याद न करें। बराहे-करम यह बात अपने ज़हन से निकाल दें। \v 20 मैंने जान लिया है कि मुझसे बड़ा जुर्म सरज़द हुआ है, इसलिए आज मैं यूसुफ़ के घराने के तमाम अफ़राद से पहले ही अपने आक़ा और बादशाह के हुज़ूर आ गया हूँ।” \p \v 21 अबीशै बिन ज़रूयाह बोला, “सिमई सज़ाए-मौत के लायक़ है! उसने रब के मसह किए हुए बादशाह पर लानत की है।” \v 22 लेकिन दाऊद ने उसे डाँटा, “मेरा आप और आपके भाई योआब के साथ क्या वास्ता? ऐसी बातों से आप इस दिन मेरे मुख़ालिफ़ बन गए हैं! आज तो इसराईल में किसी को सज़ाए-मौत देने का नहीं बल्कि ख़ुशी का दिन है। देखें, इस दिन मैं दुबारा इसराईल का बादशाह बन गया हूँ!” \v 23 फिर बादशाह सिमई से मुख़ातिब हुआ, “रब की क़सम, आप नहीं मरेंगे।” \s1 मिफ़ीबोसत दाऊद से मिलने आता है \p \v 24 साऊल का पोता मिफ़ीबोसत भी बादशाह से मिलने आया। उस दिन से जब दाऊद को यरूशलम को छोड़ना पड़ा आज तक जब वह सलामती से वापस पहुँचा मिफ़ीबोसत मातम की हालत में रहा था। न उसने अपने पाँव न अपने कपड़े धोए थे, न अपनी मूँछों की काँट-छाँट की थी। \v 25 जब वह बादशाह से मिलने के लिए यरूशलम से निकला तो बादशाह ने उससे सवाल किया, “मिफ़ीबोसत, आप मेरे साथ क्यों नहीं गए थे?” \p \v 26 उसने जवाब दिया, “मेरे आक़ा और बादशाह, मैं जाने के लिए तैयार था, लेकिन मेरा नौकर ज़ीबा मुझे धोका देकर अकेला ही चला गया। मैंने तो उसे बताया था, ‘मेरे गधे पर ज़ीन कसो ताकि मैं बादशाह के साथ रवाना हो सकूँ।’ और मेरा जाने का कोई और वसीला था नहीं, क्योंकि मैं दोनों टाँगों से माज़ूर हूँ। \v 27 ज़ीबा ने मुझ पर तोहमत लगाई है। लेकिन मेरे आक़ा और बादशाह अल्लाह के फ़रिश्ते जैसे हैं। मेरे साथ वही कुछ करें जो आपको मुनासिब लगे। \v 28 मेरे दादा के पूरे घराने को आप हलाक कर सकते थे, लेकिन फिर भी आपने मेरी इज़्ज़त करके उन मेहमानों में शामिल कर लिया जो रोज़ाना आपकी मेज़ पर खाना खाते हैं। चुनाँचे मेरा क्या हक़ है कि मैं बादशाह से मज़ीद अपील करूँ।” \p \v 29 बादशाह बोला, “अब बस करें। मैंने फ़ैसला कर लिया है कि आपकी ज़मीनें आप और ज़ीबा में बराबर तक़सीम की जाएँ।” \v 30 मिफ़ीबोसत ने जवाब दिया, “वह सब कुछ ले ले। मेरे लिए यही काफ़ी है कि आज मेरे आक़ा और बादशाह सलामती से अपने महल में वापस आ पहुँचे हैं।” \s1 दाऊद और बरज़िल्ली \p \v 31 बरज़िल्ली जिलियादी राजिलीम से आया था ताकि बादशाह के साथ दरियाए-यरदन को पार करके उसे रुख़सत करे। \v 32 बरज़िल्ली 80 साल का था। महनायम में रहते वक़्त उसी ने दाऊद की मेहमान-नवाज़ी की थी, क्योंकि वह बहुत अमीर था। \v 33 अब दाऊद ने बरज़िल्ली को दावत दी, “मेरे साथ यरूशलम जाकर वहाँ रहें! मैं आपका हर तरह से ख़याल रखूँगा।” \p \v 34 लेकिन बरज़िल्ली ने इनकार किया, “मेरी ज़िंदगी के थोड़े दिन बाक़ी हैं, मैं क्यों यरूशलम में जा बसूँ? \v 35 मेरी उम्र 80 साल है। न मैं अच्छी और बुरी चीज़ों में इम्तियाज़ कर सकता, न मुझे खाने-पीने की चीज़ों का मज़ा आता है। गीत गानेवालों की आवाज़ें भी मुझसे सुनी नहीं जातीं। नहीं मेरे आक़ा और बादशाह, अगर मैं आपके साथ जाऊँ तो आपके लिए सिर्फ़ बोझ का बाइस हूँगा। \v 36 इसकी ज़रूरत नहीं कि आप मुझे इस क़िस्म का मुआवज़ा दें। मैं बस आपके साथ दरियाए-यरदन को पार करूँगा \v 37 और फिर अगर इजाज़त हो तो वापस चला जाऊँगा। मैं अपने ही शहर में मरना चाहता हूँ, जहाँ मेरे माँ-बाप की क़ब्र है। लेकिन मेरा बेटा किमहाम आपकी ख़िदमत में हाज़िर है। वह आपके साथ चला जाए तो आप उसके लिए वह कुछ करें जो आपको मुनासिब लगे।” \p \v 38 दाऊद ने जवाब दिया, “ठीक है, किमहाम मेरे साथ जाए। और जो कुछ भी आप चाहेंगे मैं उसके लिए करूँगा। अगर कोई काम है जो मैं आपके लिए कर सकता हूँ तो मैं हाज़िर हूँ।” \p \v 39 फिर दाऊद ने अपने साथियों समेत दरिया को उबूर किया। बरज़िल्ली को बोसा देकर उसने उसे बरकत दी। बरज़िल्ली अपने शहर वापस चल पड़ा \v 40 जबकि दाऊद जिलजाल की तरफ़ बढ़ गया। किमहाम भी साथ गया। इसके अलावा यहूदाह के सब और इसराईल के आधे लोग उसके साथ चले। \s1 इसराईल और यहूदाह आपस में झगड़ते हैं \p \v 41 रास्ते में इसराईल के मर्द बादशाह के पास आकर शिकायत करने लगे, “हमारे भाइयों यहूदाह के लोगों ने आपको आपके घराने और फ़ौजियों समेत चोरी चोरी क्यों दरियाए-यरदन के मग़रिबी किनारे तक पहुँचाया? यह ठीक नहीं है।” \p \v 42 यहूदाह के मर्दों ने जवाब दिया, “बात यह है कि हम बादशाह के क़रीबी रिश्तेदार हैं। आपको यह देखकर ग़ुस्सा क्यों आ गया है? न हमने बादशाह का खाना खाया, न उससे कोई तोह्फ़ा पाया है।” \p \v 43 तो भी इसराईल के मर्दों ने एतराज़ किया, “हमारे दस क़बीले हैं, इसलिए हमारा बादशाह की ख़िदमत करने का दस गुना ज़्यादा हक़ है। तो फिर आप हमें हक़ीर क्यों जानते हैं? हमने तो पहले अपने बादशाह को वापस लाने की बात की थी।” यों बहस-मुबाहसा जारी रहा, लेकिन यहूदाह के मर्दों की बातें ज़्यादा सख़्त थीं। \c 20 \s1 सबा दाऊद के ख़िलाफ़ उठ खड़ा होता है \p \v 1 झगड़नेवालों में से एक बदमाश था जिसका नाम सबा बिन बिक्री था। वह बिनयमीनी था। अब उसने नरसिंगा बजाकर एलान किया, “न हमें दाऊद से मीरास में कुछ मिलेगा, न यस्सी के बेटे से कुछ मिलने की उम्मीद है। ऐ इसराईल, हर एक अपने घर वापस चला जाए!” \v 2 तब तमाम इसराईली दाऊद को छोड़कर सबा बिन बिक्री के पीछे लग गए। सिर्फ़ यहूदाह के मर्द अपने बादशाह के साथ लिपटे रहे और उसे यरदन से लेकर यरूशलम तक पहुँचाया। \p \v 3 जब दाऊद अपने महल में दाख़िल हुआ तो उसने उन दस दाश्ताओं का बंदोबस्त कराया जिनको उसने महल को सँभालने के लिए पीछे छोड़ दिया था। वह उन्हें एक ख़ास घर में अलग रखकर उनकी तमाम ज़रूरियात पूरी करता रहा लेकिन उनसे कभी हमबिसतर न हुआ। वह कहीं जा न सकीं, और उन्हें ज़िंदगी के आख़िरी लमहे तक बेवा की-सी ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ी। \p \v 4 फिर दाऊद ने अमासा को हुक्म दिया, “यहूदाह के तमाम फ़ौजियों को मेरे पास बुला लाएँ। तीन दिन के अंदर अंदर उनके साथ हाज़िर हो जाएँ।” \v 5 अमासा रवाना हुआ। लेकिन जब तीन दिन के बाद लौट न आया \v 6 तो दाऊद अबीशै से मुख़ातिब हुआ, “आख़िर में सबा बिन बिक्री हमें अबीसलूम की निसबत ज़्यादा नुक़सान पहुँचाएगा। जल्दी करें, मेरे दस्तों को लेकर उसका ताक़्क़ुब करें। ऐसा न हो कि वह क़िलाबंद शहरों को क़ब्ज़े में ले ले और यों हमारा बड़ा नुक़सान हो जाए।” \v 7 तब योआब के सिपाही, बादशाह का दस्ता करेतीओ-फ़लेती और तमाम माहिर फ़ौजी यरूशलम से निकलकर सबा बिन बिक्री का ताक़्क़ुब करने लगे। \p \v 8 जब वह जिबऊन की बड़ी चट्टान के पास पहुँचे तो उनकी मुलाक़ात अमासा से हुई जो थोड़ी देर पहले वहाँ पहुँच गया था। योआब अपना फ़ौजी लिबास पहने हुए था, और उस पर उसने कमर में अपनी तलवार की पेटी बाँधी हुई थी। अब जब वह अमासा से मिलने गया तो उसने अपने बाएँ हाथ से तलवार को चोरी चोरी मियान से निकाल लिया। \v 9 उसने सलाम करके कहा, “भाई, क्या सब ठीक है?” और फिर अपने दहने हाथ से अमासा की दाढ़ी को यों पकड़ लिया जैसे उसे बोसा देना चाहता हो। \v 10 अमासा ने योआब के दूसरे हाथ में तलवार पर ध्यान न दिया, और अचानक योआब ने उसे इतने ज़ोर से पेट में घोंप दिया कि उस की अंतड़ियाँ फूटकर ज़मीन पर गिर गईं। तलवार को दुबारा इस्तेमाल करने की ज़रूरत ही नहीं थी, क्योंकि अमासा फ़ौरन मर गया। \p फिर योआब और अबीशै सबा का ताक़्क़ुब करने के लिए आगे बढ़े। \v 11 योआब का एक फ़ौजी अमासा की लाश के पास खड़ा रहा और गुज़रनेवाले फ़ौजियों को आवाज़ देता रहा, “जो योआब और दाऊद के साथ है वह योआब के पीछे हो ले!” \v 12 लेकिन जितने वहाँ से गुज़रे वह अमासा का ख़ूनआलूदा और तड़पता हुआ जिस्म देखकर रुक गए। जब आदमी ने देखा कि लाश रुकावट का बाइस बन गई है तो उसने उसे रास्ते से हटाकर खेत में घसीट लिया और उस पर कपड़ा डाल दिया। \v 13 लाश के ग़ायब हो जाने पर सब लोग योआब के पीछे चले गए और सबा का ताक़्क़ुब करने लगे। \p \v 14 इतने में सबा पूरे इसराईल से गुज़रते गुज़रते शिमाल के शहर अबील-बैत-माका तक पहुँच गया था। बिक्री के ख़ानदान के तमाम मर्द भी उसके पीछे लगकर वहाँ पहुँच गए थे। \v 15 तब योआब और उसके फ़ौजी वहाँ पहुँचकर शहर का मुहासरा करने लगे। उन्होंने शहर की बाहरवाली दीवार के साथ साथ मिट्टी का बड़ा तोदा लगाया और उस पर से गुज़रकर अंदरवाली बड़ी दीवार तक पहुँच गए। वहाँ वह दीवार की तोड़-फोड़ करने लगे ताकि वह गिर जाए। \p \v 16 तब शहर की एक दानिशमंद औरत ने फ़सील से योआब के लोगों को आवाज़ दी, “सुनें! योआब को यहाँ बुला लें ताकि मैं उससे बात कर सकूँ।” \v 17 जब योआब दीवार के पास आया तो औरत ने सवाल किया, “क्या आप योआब हैं?” योआब ने जवाब दिया, “मैं ही हूँ।” औरत ने दरख़ास्त की, “ज़रा मेरी बातों पर ध्यान दें।” योआब बोला, “ठीक है, मैं सुन रहा हूँ।” \v 18 फिर औरत ने अपनी बात पेश की, “पुराने ज़माने में कहा जाता था कि अबील शहर से मशवरा लो तो बात बनेगी। \v 19 देखें, हमारा शहर इसराईल का सबसे ज़्यादा अमनपसंद और वफ़ादार शहर है। आप एक ऐसा शहर तबाह करने की कोशिश कर रहे हैं जो ‘इसराईल की माँ’ कहलाता है। आप रब की मीरास को क्यों हड़प कर लेना चाहते हैं?” \p \v 20 योआब ने जवाब दिया, “अल्लाह न करे कि मैं आपके शहर को हड़प या तबाह करूँ। \v 21 मेरे आने का एक और मक़सद है। इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े का एक आदमी दाऊद बादशाह के ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ है जिसका नाम सबा बिन बिक्री है। उसे ढूँड रहे हैं। उसे हमारे हवाले करें तो हम शहर को छोड़कर चले जाएंगे।” \p औरत ने कहा, “ठीक है, हम दीवार पर से उसका सर आपके पास फेंक देंगे।” \v 22 उसने अबील-बैत-माका के बाशिंदों से बात की और अपनी हिकमत से उन्हें क़ायल किया कि ऐसा ही करना चाहिए। उन्होंने सबा का सर क़लम करके योआब के पास फेंक दिया। तब योआब ने नरसिंगा बजाकर शहर को छोड़ने का हुक्म दिया, और तमाम फ़ौजी अपने अपने घर वापस चले गए। योआब ख़ुद यरूशलम में दाऊद बादशाह के पास लौट गया। \s1 दाऊद के आला अफ़सर \p \v 23 योआब पूरी इसराईली फ़ौज पर, बिनायाह बिन यहोयदा शाही दस्ते करेतीओ-फ़लेती पर \v 24 और अदोराम बेगारियों पर मुक़र्रर था। यहूसफ़त बिन अख़ीलूद बादशाह का मुशीरे-ख़ास था। \v 25 सिवा मीरमुंशी था और सदोक़ और अबियातर इमाम थे। \v 26 ईरा याईरी दाऊद का ज़ाती इमाम था। \c 21 \s1 साऊल के जुर्म का कफ़्फ़ारा \p \v 1 दाऊद की हुकूमत के दौरान काल पड़ गया जो तीन साल तक जारी रहा। जब दाऊद ने इसकी वजह दरियाफ़्त की तो रब ने जवाब दिया, “काल इसलिए ख़त्म नहीं हो रहा कि साऊल ने जिबऊनियों को क़त्ल किया था।” \p \v 2 तब बादशाह ने जिबऊनियों को बुला लिया ताकि उनसे बात करे। असल में वह इसराईली नहीं बल्कि अमोरियों का बचा-खुचा हिस्सा थे। मुल्के-कनान पर क़ब्ज़ा करते वक़्त इसराईलियों ने क़सम खाकर वादा किया था कि हम आपको हलाक नहीं करेंगे। लेकिन साऊल ने इसराईल और यहूदाह के लिए जोश में आकर उन्हें हलाक करने की कोशिश की थी। \p \v 3 दाऊद ने जिबऊनियों से पूछा, “मैं उस ज़्यादती का कफ़्फ़ारा किस तरह दे सकता हूँ जो आपसे हुई है? मैं आपके लिए क्या करूँ ताकि आप दुबारा उस ज़मीन को बरकत दें जो रब ने हमें मीरास में दी है?” \v 4 उन्होंने जवाब दिया, “जो साऊल ने हमारे और हमारे ख़ानदानों के साथ किया है उसका इज़ाला सोने-चाँदी से नहीं किया जा सकता। यह भी मुनासिब नहीं कि हम इसके एवज़ किसी इसराईली को मार दें।” दाऊद ने सवाल किया, “तो फिर मैं आपके लिए क्या करूँ?” \v 5 जिबऊनियों ने कहा, “साऊल ही ने हमें हलाक करने का मनसूबा बनाया था, वही हमें तबाह करना चाहता था ताकि हम इसराईल की किसी भी जगह क़ायम न रह सकें। \v 6 इसलिए साऊल की औलाद में से सात मर्दों को हमारे हवाले कर दें। हम उन्हें रब के चुने हुए बादशाह साऊल के वतनी शहर जिबिया में रब के पहाड़ पर मौत के घाट उतारकर उसके हुज़ूर लटका दें।” \p बादशाह ने जवाब दिया, “मैं उन्हें आपके हवाले कर दूँगा।” \v 7 यूनतन का बेटा मिफ़ीबोसत साऊल का पोता तो था, लेकिन बादशाह ने उसे न छेड़ा, क्योंकि उसने रब की क़सम खाकर यूनतन से वादा किया था कि मैं आपकी औलाद को कभी नुक़सान नहीं पहुँचाऊँगा। \v 8 चुनाँचे उसने साऊल की दाश्ता रिसफ़ा बिंत ऐयाह के दो बेटों अरमोनी और मिफ़ीबोसत को और इसके अलावा साऊल की बेटी मीरब के पाँच बेटों को चुन लिया। मीरब बरज़िल्ली महूलाती के बेटे अदरियेल की बीवी थी। \v 9 इन सात आदमियों को दाऊद ने जिबऊनियों के हवाले कर दिया। \p सातों आदमियों को मज़कूरा पहाड़ पर लाया गया। वहाँ जिबऊनियों ने उन्हें क़त्ल करके रब के हुज़ूर लटका दिया। वह सब एक ही दिन मर गए। उस वक़्त जौ की फ़सल की कटाई शुरू हुई थी। \p \v 10 तब रिसफ़ा बिंत ऐयाह सातों लाशों के पास गई और पत्थर पर अपने लिए टाट का कपड़ा बिछाकर लाशों की हिफ़ाज़त करने लगी। दिन के वक़्त वह परिंदों को भगाती और रात के वक़्त जंगली जानवरों को लाशों से दूर रखती रही। वह बहार के मौसम में फ़सल की कटाई के पहले दिनों से लेकर उस वक़्त तक वहाँ ठहरी रही जब तक बारिश न हुई। \p \v 11 जब दाऊद को मालूम हुआ कि साऊल की दाश्ता रिसफ़ा ने क्या किया है \v 12-14 तो वह यबीस-जिलियाद के बाशिंदों के पास गया और उनसे साऊल और उसके बेटे यूनतन की हड्डियों को लेकर साऊल के बाप क़ीस की क़ब्र में दफ़नाया। (जब फ़िलिस्तियों ने जिलबुअ के पहाड़ी इलाक़े में इसराईलियों को शिकस्त दी थी तो उन्होंने साऊल और यूनतन की लाशों को बैत-शान के चौक में लटका दिया था। तब यबीस-जिलियाद के आदमी चोरी चोरी वहाँ आकर लाशों को अपने पास ले गए थे।) दाऊद ने जिबिया में अब तक लटकी सात लाशों को भी उतारकर ज़िला में क़ीस की क़ब्र में दफ़नाया। ज़िला बिनयमीन के क़बीले की आबादी है। \p जब सब कुछ दाऊद के हुक्म के मुताबिक़ किया गया था तो रब ने मुल्क के लिए दुआएँ सुन लीं। \s1 फ़िलिस्तियों से जंगें \p \v 15 एक और बार फ़िलिस्तियों और इसराईलियों के दरमियान जंग छिड़ गई। दाऊद अपनी फ़ौज समेत फ़िलिस्तियों से लड़ने के लिए निकला। जब वह लड़ता लड़ता निढाल हो गया था \v 16 तो एक फ़िलिस्ती ने उस पर हमला किया जिसका नाम इशबी-बनोब था। यह आदमी देवक़ामत मर्द रफ़ा की नसल से था। उसके पास नई तलवार और इतना लंबा नेज़ा था कि सिर्फ़ उस की पीतल की नोक का वज़न तक़रीबन साढ़े 3 किलोग्राम था। \v 17 लेकिन अबीशै बिन ज़रूयाह दौड़कर दाऊद की मदद करने आया और फ़िलिस्ती को मार डाला। इसके बाद दाऊद के फ़ौजियों ने क़सम खाई, “आइंदा आप लड़ने के लिए हमारे साथ नहीं निकलेंगे। ऐसा न हो कि इसराईल का चराग़ बुझ जाए।” \p \v 18 इसके बाद इसराईलियों को जूब के क़रीब भी फ़िलिस्तियों से लड़ना पड़ा। वहाँ सिब्बकी हूसाती ने देवक़ामत म्रद रफ़ा की औलाद में से एक आदमी को मार डाला जिसका नाम सफ़ था। \p \v 19 जूब के क़रीब एक और लड़ाई छिड़ गई। इसके दौरान बैत-लहम के इल्हनान बिन यारे-उरजीम ने जाती जालूत को मौत के घाट उतार दिया। जालूत का नेज़ा खड्डी के शहतीर जैसा बड़ा था। \v 20 एक और दफ़ा जात के पास लड़ाई हुई। फ़िलिस्तियों का एक फ़ौजी जो रफ़ा की नसल का था बहुत लंबा था। उसके हाथों और पैरों की छः छः उँगलियाँ यानी मिलकर 24 उँगलियाँ थीं। \v 21 जब वह इसराईलियों का मज़ाक़ उड़ाने लगा तो दाऊद के भाई सिमआ के बेटे यूनतन ने उसे मार डाला। \v 22 जात के यह देवक़ामत मर्द रफ़ा की औलाद थे, और वह दाऊद और उसके फ़ौजियों के हाथों हलाक हुए। \c 22 \s1 दाऊद का गीत \p \v 1 जिस दिन रब ने दाऊद को तमाम दुश्मनों और साऊल के हाथ से बचाया उस दिन बादशाह ने गीत गाया, \p \v 2 “रब मेरी चट्टान, मेरा क़िला और मेरा नजातदहिंदा है। \p \v 3 मेरा ख़ुदा मेरी चट्टान है जिसमें मैं पनाह लेता हूँ। वह मेरी ढाल, मेरी नजात का पहाड़, मेरा बुलंद हिसार और मेरी पनाहगाह है। तू मेरा नजातदहिंदा है जो मुझे ज़ुल्मो-तशद्दुद से बचाता है। \p \v 4 मैं रब को पुकारता हूँ, उस की तमजीद हो! तब वह मुझे दुश्मनों से छुटकारा देता है। \b \p \v 5 मौत की मौजों ने मुझे घेर लिया, हलाकत के सैलाब ने मेरे दिल पर दहशत तारी की। \p \v 6 पाताल के रस्सों ने मुझे जकड़ लिया, मौत ने मेरे रास्ते में अपने फंदे डाल दिए। \p \v 7 जब मैं मुसीबत में फँस गया तो मैंने रब को पुकारा। मैंने मदद के लिए अपने ख़ुदा से फ़रियाद की तो उसने अपनी सुकूनतगाह से मेरी आवाज़ सुनी, मेरी चीख़ें उसके कान तक पहुँच गईं। \b \p \v 8 तब ज़मीन लरज़ उठी और थरथराने लगी, आसमान की बुनियादें रब के ग़ज़ब के सामने काँपने और झूलने लगीं। \p \v 9 उस की नाक से धुआँ निकल आया, उसके मुँह से भस्म करनेवाले शोले और दहकते कोयले भड़क उठे। \p \v 10 आसमान को झुकाकर वह नाज़िल हुआ। जब उतर आया तो उसके पाँवों के नीचे अंधेरा ही अंधेरा था। \p \v 11 वह करूबी फ़रिश्ते पर सवार हुआ और उड़कर हवा के परों पर मँडलाने लगा। \p \v 12 उसने अंधेरे को अपनी छुपने की जगह बनाया, बारिश के काले और घने बादल ख़ैमे की तरह अपने इर्दगिर्द लगाए। \p \v 13 उसके हुज़ूर की तेज़ रौशनी से शोलाज़न कोयले फूट निकले। \p \v 14 रब आसमान से कड़कने लगा, अल्लाह तआला की आवाज़ गूँज उठी। \p \v 15 उसने अपने तीर चला दिए तो दुश्मन तित्तर-बित्तर हो गए। उस की बिजली इधर-उधर गिरती गई तो उनमें हलचल मच गई। \p \v 16 रब ने डाँटा तो समुंदर की वादियाँ ज़ाहिर हुईं, जब वह ग़ुस्से में गरजा तो उसके दम के झोंकों से ज़मीन की बुनियादें नज़र आईं। \b \p \v 17 बुलंदियों पर से अपना हाथ बढ़ाकर उसने मुझे पकड़ लिया, गहरे पानी में से खींचकर मुझे निकाल लाया। \p \v 18 उसने मुझे मेरे ज़बरदस्त दुश्मन से बचाया, उनसे जो मुझसे नफ़रत करते हैं, जिन पर मैं ग़ालिब न आ सका। \p \v 19 जिस दिन मैं मुसीबत में फँस गया उस दिन उन्होंने मुझ पर हमला किया, लेकिन रब मेरा सहारा बना रहा। \p \v 20 उसने मुझे तंग जगह से निकालकर छुटकारा दिया, क्योंकि वह मुझसे ख़ुश था। \b \p \v 21 रब मुझे मेरी रास्तबाज़ी का अज्र देता है। मेरे हाथ साफ़ हैं, इसलिए वह मुझे बरकत देता है। \p \v 22 क्योंकि मैं रब की राहों पर चलता रहा हूँ, मैं बदी करने से अपने ख़ुदा से दूर नहीं हुआ। \p \v 23 उसके तमाम अहकाम मेरे सामने रहे हैं, मैं उसके फ़रमानों से नहीं हटा। \p \v 24 उसके सामने ही मैं बेइलज़ाम रहा, गुनाह करने से बाज़ रहा हूँ। \p \v 25 इसलिए रब ने मुझे मेरी रास्तबाज़ी का अज्र दिया, क्योंकि उस की आँखों के सामने ही मैं पाक-साफ़ साबित हुआ। \b \p \v 26 ऐ अल्लाह, जो वफ़ादार है उसके साथ तेरा सुलूक वफ़ादारी का है, जो बेइलज़ाम है उसके साथ तेरा सुलूक बेइलज़ाम है। \p \v 27 जो पाक है उसके साथ तेरा सुलूक पाक है। लेकिन जो कजरौ है उसके साथ तेरा सुलूक भी कजरवी का है। \p \v 28 तू पस्तहालों को नजात देता है, और तेरी आँखें मग़रूरों पर लगी रहती हैं ताकि उन्हें पस्त करें। \b \p \v 29 ऐ रब, तू ही मेरा चराग़ है, रब ही मेरे अंधेरे को रौशन करता है। \p \v 30 क्योंकि तेरे साथ मैं फ़ौजी दस्ते पर हमला कर सकता, अपने ख़ुदा के साथ दीवार को फलाँग सकता हूँ। \b \p \v 31 अल्लाह की राह कामिल है, रब का फ़रमान ख़ालिस है। जो भी उसमें पनाह ले उस की वह ढाल है। \p \v 32 क्योंकि रब के सिवा कौन ख़ुदा है? हमारे ख़ुदा के सिवा कौन चट्टान है? \p \v 33 अल्लाह मुझे क़ुव्वत से कमरबस्ता करता, वह मेरी राह को कामिल कर देता है। \p \v 34 वह मेरे पाँवों को हिरन की-सी फुरती अता करता, मुझे मज़बूती से मेरी बुलंदियों पर खड़ा करता है। \p \v 35 वह मेरे हाथों को जंग करने की तरबियत देता है। अब मेरे बाज़ू पीतल की कमान को भी तान लेते हैं। \b \p \v 36 ऐ रब, तूने मुझे अपनी नजात की ढाल बख़्श दी है, तेरी नरमी ने मुझे बड़ा बना दिया है। \p \v 37 तू मेरे क़दमों के लिए रास्ता बना देता है, इसलिए मेरे टख़ने नहीं डगमगाते। \p \v 38 मैंने अपने दुश्मनों का ताक़्क़ुब करके उन्हें कुचल दिया, मैं बाज़ न आया जब तक वह ख़त्म न हो गए। \p \v 39 मैंने उन्हें तबाह करके यों पाश पाश कर दिया कि दुबारा उठ न सके बल्कि गिरकर मेरे पाँवों तले पड़े रहे। \p \v 40 क्योंकि तूने मुझे जंग करने के लिए क़ुव्वत से कमरबस्ता कर दिया, तूने मेरे मुख़ालिफ़ों को मेरे सामने झुका दिया। \p \v 41 तूने मेरे दुश्मनों को मेरे सामने से भगा दिया, और मैंने नफ़रत करनेवालों को तबाह कर दिया। \p \v 42 वह मदद के लिए चीख़ते-चिल्लाते रहे, लेकिन बचानेवाला कोई नहीं था। वह रब को पुकारते रहे, लेकिन उसने जवाब न दिया। \p \v 43 मैंने उन्हें चूर चूर करके गर्द की तरह हवा में उड़ा दिया। मैंने उन्हें गली में मिट्टी की तरह पाँवों तले रौंदकर रेज़ा रेज़ा कर दिया। \b \p \v 44 तूने मुझे मेरी क़ौम के झगड़ों से बचाकर अक़वाम पर मेरी हुकूमत क़ायम रखी है। जिस क़ौम से मैं नावाक़िफ़ था वह मेरी ख़िदमत करती है। \p \v 45 परदेसी दबककर मेरी ख़ुशामद करते हैं। ज्योंही मैं बात करता हूँ तो वह मेरी सुनते हैं। \p \v 46 वह हिम्मत हारकर काँपते हुए अपने क़िलों से निकल आते हैं। \b \p \v 47 रब ज़िंदा है! मेरी चट्टान की तमजीद हो! मेरे ख़ुदा की ताज़ीम हो जो मेरी नजात की चट्टान है। \p \v 48 वही ख़ुदा है जो मेरा इंतक़ाम लेता, अक़वाम को मेरे ताबे कर देता \p \v 49 और मुझे मेरे दुश्मनों से छुटकारा देता है। यक़ीनन तू मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों पर सरफ़राज़ करता, मुझे ज़ालिमों से बचाए रखता है। \b \p \v 50 ऐ रब, इसलिए मैं अक़वाम में तेरी हम्दो-सना करूँगा, तेरे नाम की तारीफ़ में गीत गाऊँगा। \p \v 51 क्योंकि रब अपने बादशाह को बड़ी नजात देता है, वह अपने मसह किए हुए बादशाह दाऊद और उस की औलाद पर हमेशा तक मेहरबान रहेगा।” \c 23 \s1 दाऊद के आख़िरी अलफ़ाज़ \p \v 1 दर्जे-ज़ैल दाऊद के आख़िरी अलफ़ाज़ हैं : \p “दाऊद बिन यस्सी का फ़रमान जिसे अल्लाह ने सरफ़राज़ किया, जिसे याक़ूब के ख़ुदा ने मसह करके बादशाह बना दिया था, और जिसकी तारीफ़ इसराईल के गीत करते हैं, \p \v 2 रब के रूह ने मेरी मारिफ़त बात की, उसका फ़रमान मेरी ज़बान पर था। \p \v 3 इसराईल के ख़ुदा ने फ़रमाया, इसराईल की चट्टान मुझसे हमकलाम हुई, ‘जो इनसाफ़ से हुकूमत करता है, जो अल्लाह का ख़ौफ़ मानकर हुक्मरानी करता है, \p \v 4 वह सुबह की रौशनी की मानिंद है, उस तुलूए-आफ़ताब की मानिंद जब बादल छाए नहीं होते। जब उस की किरणें बारिश के बाद ज़मीन पर पड़ती हैं तो पौदे फूट निकलते हैं।’ \p \v 5 यक़ीनन मेरा घराना मज़बूती से अल्लाह के साथ है, क्योंकि उसने मेरे साथ अबदी अहद बाँधा है, ऐसा अहद जिसका हर पहलू मुनज़्ज़म और महफ़ूज़ है। वह मेरी नजात तकमील तक पहुँचाएगा और मेरी हर आरज़ू पूरी करेगा। \p \v 6 लेकिन बेदीन ख़ारदार झाड़ियों की मानिंद हैं जो हवा के झोंकों से इधर-उधर बिखर गई हैं। काँटों की वजह से कोई भी हाथ नहीं लगाता। \p \v 7 लोग उन्हें लोहे के औज़ार या नेज़े के दस्ते से जमा करके वहीं के वहीं जला देते हैं।” \s1 दाऊद के सूरमा \p \v 8 दर्जे-ज़ैल दाऊद के सूरमाओं की फ़हरिस्त है। जो तीन अफ़सर योआब के भाई अबीशै के ऐन बाद आते थे उनमें योशेब-बशेबत तह्कमूनी पहले नंबर पर आता था। एक बार उसने अपने नेज़े से 800 आदमियों को मार दिया। \p \v 9 इन तीन अफ़सरों में से दूसरी जगह पर इलियज़र बिन दोदो बिन अख़ूही आता था। एक जंग में जब उन्होंने फ़िलिस्तियों को चैलेंज दिया था और इसराईली बाद में पीछे हट गए तो इलियज़र दाऊद के साथ \v 10 फ़िलिस्तियों का मुक़ाबला करता रहा। उस दिन वह फ़िलिस्तियों को मारते मारते इतना थक गया कि आख़िरकार तलवार उठा न सका बल्कि हाथ तलवार के साथ जम गया। रब ने उस की मारिफ़त बड़ी फ़तह बख़्शी। बाक़ी दस्ते सिर्फ़ लाशों को लूटने के लिए लौट आए। \p \v 11 उसके बाद तीसरी जगह पर सम्मा बिन अजी-हरारी आता था। एक मरतबा फ़िलिस्ती लही के क़रीब मसूर के खेत में इसराईल के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे। इसराईली फ़ौजी उनके सामने भागने लगे, \v 12 लेकिन सम्मा खेत के दरमियान तक बढ़ गया और वहाँ लड़ते लड़ते फ़िलिस्तियों को शिकस्त दी। रब ने उस की मारिफ़त बड़ी फ़तह बख़्शी। \p \v 13-14 एक और जंग के दौरान दाऊद अदुल्लाम के ग़ार के पहाड़ी क़िले में था जबकि फ़िलिस्ती फ़ौज ने वादीए-रफ़ाईम में अपनी लशकरगाह लगाई थी। उनके दस्तों ने बैत-लहम पर भी क़ब्ज़ा कर लिया था। फ़सल का मौसम था। दाऊद के तीस आला अफ़सरों में से तीन उससे मिलने आए। \v 15 दाऊद को शदीद प्यास लगी, और वह कहने लगा, “कौन मेरे लिए बैत-लहम के दरवाज़े पर के हौज़ से कुछ पानी लाएगा?” \v 16 यह सुनकर तीनों अफ़सर फ़िलिस्तियों की लशकरगाह पर हमला करके उसमें घुस गए और लड़ते लड़ते बैत-लहम के हौज़ तक पहुँच गए। उससे कुछ पानी भरकर वह उसे दाऊद के पास ले आए। लेकिन उसने पीने से इनकार कर दिया बल्कि उसे क़ुरबानी के तौर पर उंडेलकर रब को पेश किया \v 17 और बोला, “रब न करे कि मैं यह पानी पियूँ। अगर ऐसा करता तो उन आदमियों का ख़ून पीता जो अपनी जान पर खेलकर पानी लाए हैं।” इसलिए वह उसे पीना नहीं चाहता था। यह इन तीन सूरमाओं के ज़बरदस्त कामों की एक मिसाल है। \p \v 18-19 योआब बिन ज़रूयाह का भाई अबीशै मज़कूरा तीन सूरमाओं पर मुक़र्रर था। एक दफ़ा उसने अपने नेज़े से 300 आदमियों को मार डाला। तीनों की निसबत उस की दुगनी इज़्ज़त की जाती थी, लेकिन वह ख़ुद उनमें गिना नहीं जाता था। \p \v 20 बिनायाह बिन यहोयदा भी ज़बरदस्त फ़ौजी था। वह क़बज़ियेल का रहनेवाला था, और उसने बहुत दफ़ा अपनी मरदानगी दिखाई। मोआब के दो बड़े सूरमा उसके हाथों हलाक हुए। एक बार जब बहुत बर्फ़ पड़ गई तो उसने एक हौज़ में उतरकर एक शेरबबर को मार डाला जो उसमें गिर गया था। \v 21 एक और मौक़े पर उसका वास्ता एक देवक़ामत मिसरी से पड़ा। मिसरी के हाथ में नेज़ा था जबकि उसके पास सिर्फ़ लाठी थी। लेकिन बिनायाह ने उस पर हमला करके उसके हाथ से नेज़ा छीन लिया और उसे उसके अपने हथियार से मार डाला। \v 22 ऐसी बहादुरी दिखाने की बिना पर बिनायाह बिन यहोयदा मज़कूरा तीन आदमियों के बराबर मशहूर हुआ। \v 23 तीस अफ़सरों के दीगर मर्दों की निसबत उस की ज़्यादा इज़्ज़त की जाती थी, लेकिन वह मज़कूरा तीन आदमियों में गिना नहीं जाता था। दाऊद ने उसे अपने मुहाफ़िज़ों पर मुक़र्रर किया। \p \v 24 ज़ैल के आदमी बादशाह के 30 सूरमाओं में शामिल थे। \p योआब का भाई असाहेल, बैत-लहम का इल्हनान बिन दोदो, \v 25 सम्मा हरोदी, इलीक़ा हरोदी, \v 26 ख़लिस फ़लती, तक़ुअ का ईरा बिन अक़्क़ीस, \v 27 अनतोत का अबियज़र, मबून्नी हूसाती, \v 28 ज़लमोन अख़ूही, महरी नतूफ़ाती, \v 29 हलिब बिन बाना नतूफ़ाती, बिनयमीनी शहर जिबिया का इत्ती बिन रीबी, \v 30 बिनायाह फ़िरआतोनी, नहले-जास का हिद्दी, \v 31 अबियलबोन अरबाती, अज़मावत बरहूमी, \v 32-33 इलियहबा सालबूनी, बनी यसीन, यूनतन बिन सम्मा हरारी, अख़ियाम बिन सरार-हरारी, \v 34 इलीफ़लत बिन अहस्बी माकाती, इलियाम बिन अख़ीतुफ़ल जिलोनी, \v 35 हसरो करमिली, फ़ारी अरबी, \v 36 ज़ोबाह का इजाल बिन नातन, बानी जादी, \v 37 सिलक़ अम्मोनी, योआब बिन ज़रूयाह का सिलाहबरदार नहरी बैरोती, \v 38 ईरा इतरी, जरीब इतरी \v 39 और ऊरियाह हित्ती। आदमियों की कुल तादाद 37 थी। \c 24 \s1 दाऊद की मर्दुमशुमारी \p \v 1 एक बार फिर रब को इसराईल पर ग़ुस्सा आया, और उसने दाऊद को उन्हें मुसीबत में डालने पर उकसाकर उसके ज़हन में मर्दुमशुमारी करने का ख़याल डाल दिया। \p \v 2 चुनाँचे दाऊद ने फ़ौज के कमाँडर योआब को हुक्म दिया, “दान से लेकर बैर-सबा तक इसराईल के तमाम क़बीलों में से गुज़रते हुए जंग करने के क़ाबिल मर्दों को गिन लें ताकि मालूम हो जाए कि उनकी कुल तादाद क्या है।” \v 3 लेकिन योआब ने एतराज़ किया, “ऐ बादशाह मेरे आक़ा, काश रब आपका ख़ुदा आपके देखते देखते फ़ौजियों की तादाद सौ गुना बढ़ाए। लेकिन मेरे आक़ा और बादशाह उनकी मर्दुमशुमारी क्यों करना चाहते हैं?” \v 4 लेकिन बादशाह योआब और फ़ौज के बड़े अफ़सरों के एतराज़ात के बावुजूद अपनी बात पर डटा रहा। चुनाँचे वह दरबार से रवाना होकर इसराईल के मर्दों की फ़हरिस्त तैयार करने लगे। \p \v 5 दरियाए-यरदन को उबूर करके उन्होंने अरोईर और वादीए-अरनोन के बीच के शहर में शुरू किया। वहाँ से वह जद और याज़ेर से होकर \v 6 जिलियाद और हित्तियों के मुल्क के शहर क़ादिस तक पहुँचे। फिर आगे बढ़ते बढ़ते वह दान और सैदा के गिर्दो-नवाह के इलाक़े \v 7 और क़िलाबंद शहर सूर और हिव्वियों और कनानियों के तमाम शहरों तक पहुँच गए। आख़िरकार उन्होंने यहूदाह के जुनूब की मर्दुमशुमारी बैर-सबा तक की। \p \v 8 यों पूरे मुल्क में सफ़र करते करते वह 9 महीनों और 20 दिनों के बाद यरूशलम वापस आए। \v 9 योआब ने बादशाह को मर्दुमशुमारी की पूरी रिपोर्ट पेश की। इसराईल में तलवार चलाने के क़ाबिल 8 लाख अफ़राद थे जबकि यहूदाह के 5 लाख मर्द थे। \p \v 10 लेकिन अब दाऊद का ज़मीर उसको मलामत करने लगा। उसने रब से दुआ की, “मुझसे संगीन गुनाह सरज़द हुआ है। ऐ रब, अब अपने ख़ादिम का क़ुसूर मुआफ़ कर। मुझसे बड़ी हमाक़त हुई है।” \p \v 11 अगले दिन जब दाऊद सुबह के वक़्त उठा तो उसके ग़ैबबीन जाद नबी को रब की तरफ़ से पैग़ाम मिल गया, \v 12 “दाऊद के पास जाकर उसे बता देना, ‘रब तुझे तीन सज़ाएँ पेश करता है। इनमें से एक चुन ले’।” \v 13 जाद दाऊद के पास गया और उसे रब का पैग़ाम सुना दिया। उसने सवाल किया, “आप किस सज़ा को तरजीह देते हैं? अपने मुल्क में सात साल के दौरान काल? या यह कि आपके दुश्मन आपको भगाकर तीन माह तक आपका ताक़्क़ुब करते रहें? या यह कि आपके मुल्क में तीन दिन तक वबा फैल जाए? ध्यान से इसके बारे में सोचें ताकि मैं उसे आपका जवाब पहुँचा सकूँ जिसने मुझे भेजा है।” \p \v 14 दाऊद ने जवाब दिया, “हाय, मैं क्या कहूँ? मैं बहुत परेशान हूँ। लेकिन आदमियों के हाथ में पड़ने की निसबत बेहतर है कि मैं रब ही के हाथ में पड़ जाऊँ, क्योंकि उसका रहम अज़ीम है।” \p \v 15 तब रब ने इसराईल में वबा फैलने दी। वह उसी सुबह शुरू हुई और तीन दिन तक लोगों को मौत के घाट उतारती गई। शिमाल में दान से लेकर जुनूब में बैर-सबा तक कुल 70,000 अफ़राद हलाक हुए। \v 16 लेकिन जब वबा का फ़रिश्ता चलते चलते यरूशलम तक पहुँच गया और उस पर हाथ उठाने लगा तो रब ने लोगों की मुसीबत को देखकर तरस खाया और तबाह करनेवाले फ़रिश्ते को हुक्म दिया, “बस कर! अब बाज़ आ।” उस वक़्त रब का फ़रिश्ता वहाँ खड़ा था जहाँ अरौनाह यबूसी अपना अनाज गाहता था। \p \v 17 जब दाऊद ने फ़रिश्ते को लोगों को मारते हुए देखा तो उसने रब से इलतमास की, “मैं ही ने गुनाह किया है, यह मेरा ही क़ुसूर है। इन भेड़ों से क्या ग़लती हुई है? बराहे-करम इनको छोड़कर मुझे और मेरे ख़ानदान को सज़ा दे।” \p \v 18 उसी दिन जाद दाऊद के पास आया और उससे कहा, “अरौनाह यबूसी की गाहने की जगह के पास जाकर उस पर रब की क़ुरबानगाह बना ले।” \v 19 चुनाँचे दाऊद चढ़कर गाहने की जगह के पास आया जिस तरह रब ने जाद की मारिफ़त फ़रमाया था। \p \v 20 जब अरौनाह ने बादशाह और उसके दरबारियों को अपनी तरफ़ चढ़ता हुआ देखा तो वह निकलकर बादशाह के सामने औंधे मुँह झुक गया। \v 21 उसने पूछा, “मेरे आक़ा और बादशाह मेरे पास क्यों आ गए?” दाऊद ने जवाब दिया, “मैं आपकी गाहने की जगह ख़रीदना चाहता हूँ ताकि रब के लिए क़ुरबानगाह तामीर करूँ। क्योंकि यह करने से वबा रुक जाएगी।” \p \v 22 अरौनाह ने कहा, “मेरे आक़ा और बादशाह, जो कुछ आपको अच्छा लगे उसे लेकर चढ़ाएँ। यह बैल भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए हाज़िर हैं। और अनाज को गाहने और बैलों को जोतने का सामान क़ुरबानगाह पर रखकर जला दें। \v 23 बादशाह सलामत, मैं ख़ुशी से आपको यह सब कुछ दे देता हूँ। दुआ है कि आप रब अपने ख़ुदा को पसंद आएँ।” \p \v 24 लेकिन बादशाह ने इनकार किया, “नहीं, मैं ज़रूर हर चीज़ की पूरी क़ीमत अदा करूँगा। मैं रब अपने ख़ुदा को ऐसी कोई भस्म होनेवाली क़ुरबानी पेश नहीं करूँगा जो मुझे मुफ़्त में मिल जाए।” \p चुनाँचे दाऊद ने बैलों समेत गाहने की जगह चाँदी के 50 सिक्कों के एवज़ ख़रीद ली। \v 25 उसने वहाँ रब की ताज़ीम में क़ुरबानगाह तामीर करके उस पर भस्म होनेवाली और सलामती की क़ुरबानियाँ चढ़ाईं। तब रब ने मुल्क के लिए दुआ सुनकर वबा को रोक दिया।