\id 2CH उर्दू जियो वर्झ़न \ide UTF-8 \h 2 तवारीख़ \toc1 2 तवारीख़ \toc2 2 तवारीख़ \toc3 2 तवा \mt1 2 तवारीख़ \c 1 \s1 सुलेमान रब से हिकमत माँगता है \p \v 1 सुलेमान बिन दाऊद की हुकूमत मज़बूत हो गई। रब उसका ख़ुदा उसके साथ था, और वह उस की ताक़त बढ़ाता रहा। \p \v 2 एक दिन सुलेमान ने तमाम इसराईल को अपने पास बुलाया। उनमें हज़ार हज़ार और सौ सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर अफ़सर, क़ाज़ी, तमाम बुज़ुर्ग और कुंबों के सरपरस्त शामिल थे। \v 3 फिर सुलेमान उनके साथ जिबऊन की उस पहाड़ी पर गया जहाँ अल्लाह का मुलाक़ात का ख़ैमा था, वही जो रब के ख़ादिम मूसा ने रेगिस्तान में बनवाया था। \v 4 अहद का संदूक़ उसमें नहीं था, क्योंकि दाऊद ने उसे क़िरियत-यारीम से यरूशलम लाकर एक ख़ैमे में रख दिया था जो उसने वहाँ उसके लिए तैयार कर रखा था। \v 5 लेकिन पीतल की जो क़ुरबानगाह बज़लियेल बिन ऊरी बिन हूर ने बनाई थी वह अब तक जिबऊन में रब के ख़ैमे के सामने थी। अब सुलेमान और इसराईल उसके सामने जमा हुए ताकि रब की मरज़ी दरियाफ़्त करें। \v 6 वहाँ रब के हुज़ूर सुलेमान ने पीतल की उस क़ुरबानगाह पर भस्म होनेवाली 1,000 क़ुरबानियाँ चढ़ाईं। \p \v 7 उसी रात रब सुलेमान पर ज़ाहिर हुआ और फ़रमाया, “तेरा दिल क्या चाहता है? मुझे बता दे तो मैं तेरी ख़ाहिश पूरी करूँगा।” \v 8 सुलेमान ने जवाब दिया, “तू मेरे बाप दाऊद पर बड़ी मेहरबानी कर चुका है, और अब तूने उस की जगह मुझे तख़्त पर बिठा दिया है। \v 9 तूने मुझे एक ऐसी क़ौम पर बादशाह बना दिया है जो ज़मीन की ख़ाक की तरह बेशुमार है। चुनाँचे ऐ रब ख़ुदा, वह वादा पूरा कर जो तूने मेरे बाप दाऊद से किया है। \v 10 मुझे हिकमत और समझ अता फ़रमा ताकि मैं इस क़ौम की राहनुमाई कर सकूँ। क्योंकि कौन तेरी इस अज़ीम क़ौम का इनसाफ़ कर सकता है?” \p \v 11 अल्लाह ने सुलेमान से कहा, “मैं ख़ुश हूँ कि तू दिल से यही कुछ चाहता है। तूने न मालो-दौलत, न इज़्ज़त, न अपने दुश्मनों की हलाकत और न उम्र की दराज़ी बल्कि हिकमत और समझ माँगी है ताकि मेरी उस क़ौम का इनसाफ़ कर सके जिस पर मैंने तुझे बादशाह बना दिया है। \v 12 इसलिए मैं तेरी यह दरख़ास्त पूरी करके तुझे हिकमत और समझ अता करूँगा। साथ साथ मैं तुझे उतना मालो-दौलत और उतनी इज़्ज़त दूँगा जितनी न माज़ी में किसी बादशाह को हासिल थी, न मुस्तक़बिल में कभी किसी को हासिल होगी।” \p \v 13 इसके बाद सुलेमान जिबऊन की उस पहाड़ी से उतरा जिस पर मुलाक़ात का ख़ैमा था और यरूशलम वापस चला गया जहाँ वह इसराईल पर हुकूमत करता था। \s1 सुलेमान की दौलत \p \v 14 सुलेमान के 1,400 रथ और 12,000 घोड़े थे। कुछ उसने रथों के लिए मख़सूस किए गए शहरों में और कुछ यरूशलम में अपने पास रखे। \v 15 बादशाह की सरगरमियों के बाइस चाँदी पत्थर जैसी आम हो गई और देवदार की क़ीमती लकड़ी मग़रिब के नशेबी पहाड़ी इलाक़े की अंजीर-तूत की सस्ती लकड़ी जैसी आम हो गई। \v 16 बादशाह अपने घोड़े मिसर और क़ुए यानी किलिकिया से दरामद करता था। उसके ताजिर इन जगहों पर जाकर उन्हें ख़रीद लाते थे। \v 17 बादशाह के रथ मिसर से दरामद होते थे। हर रथ की क़ीमत चाँदी के 600 सिक्के और हर घोड़े की क़ीमत चाँदी के 150 सिक्के थी। सुलेमान के ताजिर यह घोड़े बरामद करते हुए तमाम हित्ती और अरामी बादशाहों तक भी पहुँचाते थे। \c 2 \s1 रब के घर की तामीर की तैयारियाँ \p \v 1 फिर सुलेमान ने रब के लिए घर और अपने लिए शाही महल बनाने का हुक्म दिया। \v 2 इसके लिए उसने 1,50,000 आदमियों की भरती की। 80,000 को उसने पहाड़ी कानों में लगाया ताकि वह पत्थर निकालें जबकि 70,000 अफ़राद की ज़िम्मादारी यह पत्थर यरूशलम लाना थी। इन सब पर सुलेमान ने 3,600 निगरान मुक़र्रर किए। \v 3 उसने सूर के बादशाह हीराम को इत्तला दी, “जिस तरह आप मेरे बाप दाऊद को देवदार की लकड़ी भेजते रहे जब वह अपने लिए महल बना रहे थे उसी तरह मुझे भी देवदार की लकड़ी भेजें। \v 4 मैं एक घर तामीर करके उसे रब अपने ख़ुदा के नाम के लिए मख़सूस करना चाहता हूँ। क्योंकि हमें ऐसी जगह की ज़रूरत है जिसमें उसके हुज़ूर ख़ुशबूदार बख़ूर जलाया जाए, रब के लिए मख़सूस रोटियाँ बाक़ायदगी से मेज़ पर रखी जाएँ और ख़ास मौक़ों पर भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ पेश की जाएँ यानी हर सुबहो-शाम, सबत के दिन, नए चाँद की ईदों और रब हमारे ख़ुदा की दीगर मुक़र्ररा ईदों पर। यह इसराईल का दायमी फ़र्ज़ है। \p \v 5 जिस घर को मैं बनाने को हूँ वह निहायत अज़ीम होगा, क्योंकि हमारा ख़ुदा दीगर तमाम माबूदों से कहीं अज़ीम है। \v 6 लेकिन कौन उसके लिए ऐसा घर बना सकता है जो उसके लायक़ हो? बुलंदतरीन आसमान भी उस की रिहाइश के लिए छोटा है। तो फिर मेरी क्या हैसियत है कि उसके लिए घर बनाऊँ? मैं सिर्फ़ ऐसी जगह बना सकता हूँ जिसमें उसके लिए क़ुरबानियाँ चढ़ाई जा सकें। \p \v 7 चुनाँचे मेरे पास किसी ऐसे समझदार कारीगर को भेज दें जो महारत से सोने-चाँदी, पीतल और लोहे का काम जानता हो। वह नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का कपड़ा बनाने और कंदाकारी का उस्ताद भी हो। ऐसा शख़्स यरूशलम और यहूदाह में मेरे उन कारीगरों का इंचार्ज बने जिन्हें मेरे बाप दाऊद ने काम पर लगाया है। \v 8 इसके अलावा मुझे लुबनान से देवदार, जूनीपर और दीगर क़ीमती दरख़्तों की लकड़ी भेज दें। क्योंकि मैं जानता हूँ कि आपके लोग उम्दा क़िस्म के लकड़हारे हैं। मेरे आदमी आपके लोगों के साथ मिलकर काम करेंगे। \v 9 हमें बहुत-सी लकड़ी की ज़रूरत होगी, क्योंकि जो घर मैं बनाना चाहता हूँ वह बड़ा और शानदार होगा। \v 10 आपके लकड़हारों के काम के मुआवज़े में मैं 32,75,000 किलोग्राम गंदुम, 27,00,000 किलोग्राम जौ, 4,40,000 लिटर मै और 4,40,000 लिटर ज़ैतून का तेल दूँगा।” \p \v 11 सूर के बादशाह हीराम ने ख़त लिखकर सुलेमान को जवाब दिया, “रब अपनी क़ौम को प्यार करता है, इसलिए उसने आपको उसका बादशाह बनाया है। \v 12 रब इसराईल के ख़ुदा की हम्द हो जिसने आसमानो-ज़मीन को ख़लक़ किया है कि उसने दाऊद बादशाह को इतना दानिशमंद बेटा अता किया है। उस की तमजीद हो कि यह अक़्लमंद और समझदार बेटा रब के लिए घर और अपने लिए महल तामीर करेगा। \v 13 मैं आपके पास एक माहिर और समझदार कारीगर को भेज देता हूँ जिसका नाम हीराम-अबी है। \v 14 उस की इसराईली माँ, दान के क़बीले की है जबकि उसका बाप सूर का है। हीराम सोने-चाँदी, पीतल, लोहे, पत्थर और लकड़ी की चीज़ें बनाने में महारत रखता है। वह नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग का कपड़ा और कतान का बारीक कपड़ा बना सकता है। वह हर क़िस्म की कंदाकारी में भी माहिर है। जो भी मनसूबा उसे पेश किया जाए उसे वह पायाए-तकमील तक पहुँचा सकता है। यह आदमी आपके और आपके मुअज़्ज़ज़ बाप दाऊद के कारीगरों के साथ मिलकर काम करेगा। \v 15 चुनाँचे जिस गंदुम, जौ, ज़ैतून के तेल और मै का ज़िक्र मेरे आक़ा ने किया वह अपने ख़ादिमों को भेज दें। \v 16 मुआवज़े में हम आपके लिए दरकार दरख़्तों को लुबनान में कटवाएँगे और उनके बेड़े बाँधकर समुंदर के ज़रीए याफ़ा शहर तक पहुँचा देंगे। वहाँ से आप उन्हें यरूशलम ले जा सकेंगे।” \p \v 17 सुलेमान ने इसराईल में आबाद तमाम ग़ैरमुल्कियों की मर्दुमशुमारी करवाई। (उसके बाप दाऊद ने भी उनकी मर्दुमशुमारी करवाई थी।) मालूम हुआ कि इसराईल में 1,53,600 ग़ैरमुल्की रहते हैं। \v 18 इनमें से उसने 80,000 को पहाड़ी कानों में लगाया ताकि वह पत्थर निकालें जबकि 70,000 अफ़राद की ज़िम्मादारी यह पत्थर यरूशलम लाना थी। इन सब पर सुलेमान ने 3,600 निगरान मुक़र्रर किए। \c 3 \s1 रब के घर की तामीर \p \v 1 सुलेमान ने रब के घर को यरूशलम की पहाड़ी मोरियाह पर तामीर किया। उसका बाप दाऊद यह मक़ाम मुक़र्रर कर चुका था। यहीं जहाँ पहले उरनान यानी अरौनाह यबूसी अपना अनाज गाहता था रब दाऊद पर ज़ाहिर हुआ था। \v 2 तामीर का यह काम सुलेमान की हुकूमत के चौथे साल के दूसरे माह और उसके दूसरे दिन शुरू हुआ। \p \v 3 मकान की लंबाई 90 फ़ुट और चौड़ाई 30 फ़ुट थी। \v 4 सामने एक बरामदा बनाया गया जो इमारत जितना चौड़ा यानी 30 फ़ुट और 30 फ़ुट ऊँचा था। उस की अंदरूनी दीवारों पर उसने ख़ालिस सोना चढ़ाया। \v 5 बड़े हाल की दीवारों पर उसने ऊपर से लेकर नीचे तक जूनीपर की लकड़ी के तख़्ते लगाए, फिर तख़्तों पर ख़ालिस सोना मँढवाकर उन्हें खजूर के दरख़्तों और ज़ंजीरों की तस्वीरों से आरास्ता किया। \v 6 सुलेमान ने रब के घर को जवाहर से भी सजाया। जो सोना इस्तेमाल हुआ वह परवायम से मँगवाया गया था। \v 7 सोना मकान, तमाम शहतीरों, दहलीज़ों, दीवारों और दरवाज़ों पर मँढा गया। दीवारों पर करूबी फ़रिश्तों की तस्वीरें भी कंदा की गईं। \s1 मुक़द्दसतरीन कमरा \p \v 8 इमारत का सबसे अंदरूनी कमरा बनाम मुक़द्दसतरीन कमरा इमारत जैसा चौड़ा यानी 30 फ़ुट था। उस की लंबाई भी 30 फ़ुट थी। इस कमरे की तमाम दीवारों पर 20,000 किलोग्राम से ज़ायद सोना मँढा गया। \v 9 सोने की कीलों का वज़न तक़रीबन 600 ग्राम था। बालाख़ानों की दीवारों पर भी सोना मँढा गया। \p \v 10 फिर सुलेमान ने करूबी फ़रिश्तों के दो मुजस्समे बनवाए जिन्हें मुक़द्दसतरीन कमरे में रखा गया। उन पर भी सोना चढ़ाया गया। \v 11-13 जब दोनों फ़रिश्तों को एक दूसरे के साथ मुक़द्दसतरीन कमरे में खड़ा किया गया तो उनके चार परों की मिलकर लंबाई 30 फ़ुट थी। हर एक के दो पर थे, और हर पर की लंबाई साढ़े सात सात फ़ुट थी। उन्हें मुक़द्दसतरीन कमरे में यों एक दूसरे के साथ खड़ा किया गया कि हर फ़रिश्ते का एक पर दूसरे के पर से लगता जबकि दाईं और बाईं तरफ़ हर एक का दूसरा पर दीवार के साथ लगता था। वह अपने पाँवों पर खड़े बड़े हाल की तरफ़ देखते थे। \v 14 मुक़द्दसतरीन कमरे के दरवाज़े पर सुलेमान ने बारीक कतान से बुना हुआ परदा लगवाया। वह नीले, अरग़वानी और क़िरमिज़ी रंग के धागे से सजा हुआ था, और उस पर करूबी फ़रिश्तों की तस्वीरें थीं। \s1 रब के घर के दरवाज़े पर दो सतून \p \v 15 सुलेमान ने दो सतून ढलवाकर रब के घर के दरवाज़े के सामने खड़े किए। हर एक 27 फ़ुट लंबा था, और हर एक पर एक बालाई हिस्सा रखा गया जिसकी ऊँचाई साढ़े 7 फ़ुट थी। \v 16 इन बालाई हिस्सों को ज़ंजीरों से सजाया गया जिनसे सौ अनार लटके हुए थे। \v 17 दोनों सतूनों को सुलेमान ने रब के घर के दरवाज़े के दाईं और बाईं तरफ़ खड़ा किया। दहने हाथ के सतून का नाम उसने ‘यकीन’ और बाएँ हाथ के सतून का नाम ‘बोअज़’ रखा। \c 4 \s1 क़ुरबानगाह और समुंदर नामी हौज़ \p \v 1 सुलेमान ने पीतल की एक क़ुरबानगाह भी बनवाई जिसकी लंबाई 30 फ़ुट, चौड़ाई 30 फ़ुट और ऊँचाई 15 फ़ुट थी। \p \v 2 इसके बाद उसने पीतल का बड़ा गोल हौज़ ढलवाया जिसका नाम ‘समुंदर’ रखा गया। उस की ऊँचाई साढ़े 7 फ़ुट, उसका मुँह 15 फ़ुट चौड़ा और उसका घेरा तक़रीबन 45 फ़ुट था। \v 3 हौज़ के किनारे के नीचे बैलों की दो क़तारें थीं। फ़ी फ़ुट तक़रीबन 6 बैल थे। बैल और हौज़ मिलकर ढाले गए थे। \v 4 हौज़ को बैलों के 12 मुजस्समों पर रखा गया। तीन बैलों का रुख़ शिमाल की तरफ़, तीन का रुख़ मग़रिब की तरफ़, तीन का रुख़ जुनूब की तरफ़ और तीन का रुख़ मशरिक़ की तरफ़ था। उनके पिछले हिस्से हौज़ की तरफ़ थे, और हौज़ उनके कंधों पर पड़ा था। \v 5 हौज़ का किनारा प्याले बल्कि सोसन के फूल की तरह बाहर की तरफ़ मुड़ा हुआ था। उस की दीवार तक़रीबन तीन इंच मोटी थी, और हौज़ में पानी के तक़रीबन 66,000 लिटर समा जाते थे। \p \v 6 सुलेमान ने 10 बासन ढलवाए। पाँच को रब के घर के दाएँ हाथ और पाँच को उसके बाएँ हाथ खड़ा किया गया। इन बासनों में गोश्त के वह टुकड़े धोए जाते जिन्हें भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर जलाना था। लेकिन ‘समुंदर’ नामी हौज़ इमामों के इस्तेमाल के लिए था। उसमें वह नहाते थे। \s1 सोने के शमादान और मेज़ें \p \v 7 सुलेमान ने सोने के 10 शमादान मुक़र्ररा तफ़सीलात के मुताबिक़ बनवाकर रब के घर में रख दिए, पाँच को दाईं तरफ़ और पाँच को बाईं तरफ़। \v 8 दस मेज़ें भी बनाकर रब के घर में रखी गईं, पाँच को दाईं तरफ़ और पाँच को बाईं तरफ़। इन चीज़ों के अलावा सुलेमान ने छिड़काव के सोने के 100 कटोरे बनवाए। \s1 सहन \p \v 9 फिर सुलेमान ने वह अंदरूनी सहन बनवाया जिसमें सिर्फ़ इमामों को दाख़िल होने की इजाज़त थी। उसने बड़ा सहन भी उसके दरवाज़ों समेत बनवाया। दरवाज़ों के किवाड़ों पर पीतल चढ़ाया गया। \v 10 ‘समुंदर’ नामी हौज़ को सहन के जुनूब-मशरिक़ में रखा गया। \s1 उस सामान की फ़हरिस्त जो हीराम ने तैयार किया \p \v 11 हीराम ने बासन, बेलचे और छिड़काव के कटोरे भी बनाए। यों उसने अल्लाह के घर में वह सारा काम मुकम्मल किया जिसके लिए सुलेमान बादशाह ने उसे बुलाया था। उसने ज़ैल की चीज़ें बनाईं : \p \v 12 दो सतून, \p सतूनों पर लगे प्यालानुमा बालाई हिस्से, \p बालाई हिस्सों पर लगी ज़ंजीरों का डिज़ायन, \p \v 13 ज़ंजीरों के ऊपर लगे अनार (फ़ी बालाई हिस्सा 200 अदद), \p \v 14 हथगाड़ियाँ, \p इन पर के पानी के बासन, \p \v 15 हौज़ बनाम समुंदर, \p इसे उठानेवाले बैल के 12 मुजस्समे, \p \v 16 बालटियाँ, बेलचे, गोश्त के काँटे। \p तमाम सामान जो हीराम-अबी ने सुलेमान के हुक्म पर रब के घर के लिए बनाया पीतल से ढालकर पालिश किया गया था। \v 17 बादशाह ने उसे वादीए-यरदन में सुक्कात और ज़रतान के दरमियान ढलवाया। वहाँ एक फ़ौंडरी थी जहाँ हीराम ने गारे से साँचे बनाकर हर चीज़ ढाल दी। \v 18 इस सामान के लिए सुलेमान बादशाह ने इतना ज़्यादा पीतल इस्तेमाल किया कि उसका कुल वज़न मालूम न हो सका। \s1 रब के घर के अंदर सोने का सामान \p \v 19 अल्लाह के घर के अंदर के लिए सुलेमान ने दर्जे-ज़ैल सामान बनवाया : \p सोने की क़ुरबानगाह, \p सोने की वह मेज़ें जिन पर रब के लिए मख़सूस रोटियाँ पड़ी रहती थीं, \p \v 20 ख़ालिस सोने के वह शमादान और चराग़ जिनको क़वायद के मुताबिक़ मुक़द्दसतरीन कमरे के सामने जलना था, \p \v 21 ख़ालिस सोने के वह फूल जिनसे शमादान आरास्ता थे, \p ख़ालिस सोने के चराग़ और बत्ती को बुझाने के औज़ार, \p \v 22 चराग़ को कतरने के ख़ालिस सोने के औज़ार, छिड़काव के ख़ालिस सोने के कटोरे और प्याले, \p जलते हुए कोयले के लिए ख़ालिस सोने के बरतन, \p मुक़द्दसतरीन कमरे और बड़े हाल के दरवाज़े। \c 5 \p \v 1 रब के घर की तकमील पर सुलेमान ने वह सोना-चाँदी और बाक़ी तमाम क़ीमती चीज़ें रब के घर के ख़ज़ानों में रखवा दीं जो उसके बाप दाऊद ने अल्लाह के लिए मख़सूस की थीं। \s1 अहद का संदूक़ रब के घर में लाया जाता है \p \v 2 फिर सुलेमान ने इसराईल के तमाम बुज़ुर्गों और क़बीलों और कुंबों के तमाम सरपरस्तों को अपने पास यरूशलम में बुलाया, क्योंकि रब के अहद का संदूक़ अब तक यरूशलम के उस हिस्से में था जो ‘दाऊद का शहर’ या सिय्यून कहलाता है। सुलेमान चाहता था कि क़ौम के नुमाइंदे हाज़िर हों जब संदूक़ को वहाँ से रब के घर में पहुँचाया जाए। \v 3 चुनाँचे इसराईल के तमाम मर्द साल के सातवें महीने \f + \fr 5:3 \ft सितंबर ता अक्तूबर \f* में बादशाह के पास यरूशलम में जमा हुए। इसी महीने में झोंपड़ियों की ईद मनाई जाती थी। \p \v 4 जब सब जमा हुए तो लावी रब के संदूक़ को उठाकर \v 5 रब के घर में लाए। इमामों के साथ मिलकर उन्होंने मुलाक़ात के ख़ैमे को भी उसके तमाम मुक़द्दस सामान समेत रब के घर में पहुँचाया। \v 6 वहाँ संदूक़ के सामने सुलेमान बादशाह और बाक़ी तमाम जमाशुदा इसराईलियों ने इतनी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल क़ुरबान किए कि उनकी तादाद गिनी नहीं जा सकती थी। \p \v 7 इमामों ने रब के अहद का संदूक़ पिछले यानी मुक़द्दसतरीन कमरे में लाकर करूबी फ़रिश्तों के परों के नीचे रख दिया। \v 8 फ़रिश्तों के पर पूरे संदूक़ पर उस की उठाने की लकड़ियों समेत फैले रहे। \v 9 तो भी उठाने की यह लकड़ियाँ इतनी लंबी थीं कि उनके सिरे सामनेवाले यानी मुक़द्दस कमरे से नज़र आते थे। लेकिन वह बाहर से देखे नहीं जा सकते थे। आज तक वह वहीं मौजूद हैं। \v 10 संदूक़ में सिर्फ़ पत्थर की वह दो तख़्तियाँ थीं जिनको मूसा ने होरिब यानी कोहे-सीना के दामन में उसमें रख दिया था, उस वक़्त जब रब ने मिसर से निकले हुए इसराईलियों के साथ अहद बाँधा था। \v 11 फिर इमाम मुक़द्दस कमरे से निकलकर सहन में आए। \p जितने इमाम आए थे उन सबने अपने आपको पाक-साफ़ किया हुआ था, ख़ाह उस वक़्त उनके गुरोह की रब के घर में ड्यूटी थी या नहीं। \v 12 लावियों के तमाम गुलूकार भी हाज़िर थे। उनके राहनुमा आसफ़, हैमान और यदूतून अपने बेटों और रिश्तेदारों समेत सब बारीक कतान के लिबास पहने हुए क़ुरबानगाह के मशरिक़ में खड़े थे। वह झाँझ, सितार और सरोद बजा रहे थे, जबकि उनके साथ 120 इमाम तुरम फूँक रहे थे। \v 13 गानेवाले और तुरम बजानेवाले मिलकर रब की सताइश कर रहे थे। तुरमों, झाँझों और बाक़ी साज़ों के साथ उन्होंने बुलंद आवाज़ से रब की तमजीद में गीत गाया, “वह भला है, और उस की शफ़क़त अबदी है।” \p तब रब का घर एक बादल से भर गया। \v 14 इमाम रब के घर में अपनी ख़िदमत अंजाम न दे सके, क्योंकि अल्लाह का घर उसके जलाल के बादल से मामूर हो गया था। \c 6 \p \v 1 यह देखकर सुलेमान ने दुआ की, “रब ने फ़रमाया है कि मैं घने बादल के अंधेरे में रहूँगा। \v 2 मैंने तेरे लिए अज़ीम सुकूनतगाह बनाई है, एक मक़ाम जो तेरी अबदी सुकूनत के लायक़ है।” \s1 रब के घर की मख़सूसियत पर सुलेमान की तक़रीर \p \v 3 फिर बादशाह ने मुड़कर रब के घर के सामने खड़ी इसराईल की पूरी जमात की तरफ़ रुख़ किया। उसने उन्हें बरकत देकर कहा, \p \v 4 “रब इसराईल के ख़ुदा की तारीफ़ हो जिसने वह वादा पूरा किया है जो उसने मेरे बाप दाऊद से किया था। क्योंकि उसने फ़रमाया, \v 5 ‘जिस दिन मैं अपनी क़ौम को मिसर से निकाल लाया उस दिन से लेकर आज तक मैंने न कभी फ़रमाया कि इसराईली क़बीलों के किसी शहर में मेरे नाम की ताज़ीम में घर बनाया जाए, न किसी को मेरी क़ौम इसराईल पर हुकूमत करने के लिए मुक़र्रर किया। \v 6 लेकिन अब मैंने यरूशलम को अपने नाम की सुकूनतगाह और दाऊद को अपनी क़ौम इसराईल का बादशाह बनाया है।’ \p \v 7 मेरे बाप दाऊद की बड़ी ख़ाहिश थी कि रब इसराईल के ख़ुदा के नाम की ताज़ीम में घर बनाए। \v 8 लेकिन रब ने एतराज़ किया, ‘मैं ख़ुश हूँ कि तू मेरे नाम की ताज़ीम में घर तामीर करना चाहता है, \v 9 लेकिन तू नहीं बल्कि तेरा बेटा ही उसे बनाएगा।’ \p \v 10 और वाक़ई, रब ने अपना वादा पूरा किया है। मैं रब के वादे के ऐन मुताबिक़ अपने बाप दाऊद की जगह इसराईल का बादशाह बनकर तख़्त पर बैठ गया हूँ। और अब मैंने रब इसराईल के ख़ुदा के नाम की ताज़ीम में घर भी बनाया है। \v 11 उसमें मैंने वह संदूक़ रख दिया है जिसमें शरीअत की तख़्तियाँ पड़ी हैं, उस अहद की तख़्तियाँ जो रब ने इसराईलियों से बाँधा था।” \s1 रब के घर की मख़सूसियत पर सुलेमान की दुआ \p \v 12 फिर सुलेमान ने इसराईल की पूरी जमात के देखते देखते रब की क़ुरबानगाह के सामने खड़े होकर अपने हाथ आसमान की तरफ़ उठाए। \v 13 उसने इस मौक़े के लिए पीतल का एक चबूतरा बनवाकर उसे बैरूनी सहन के बीच में रखवा दिया था। चबूतरा साढ़े 7 फ़ुट लंबा, साढ़े 7 फ़ुट चौड़ा और साढ़े 4 फ़ुट ऊँचा था। अब सुलेमान उस पर चढ़कर पूरी जमात के देखते देखते झुक गया। अपने हाथों को आसमान की तरफ़ उठाकर \v 14 उसने दुआ की, \p “ऐ रब इसराईल के ख़ुदा, तुझ जैसा कोई ख़ुदा नहीं है, न आसमान और न ज़मीन पर। तू अपना वह अहद क़ायम रखता है जिसे तूने अपनी क़ौम के साथ बाँधा है और अपनी मेहरबानी उन सब पर ज़ाहिर करता है जो पूरे दिल से तेरी राह पर चलते हैं। \v 15 तूने अपने ख़ादिम दाऊद से किया हुआ वादा पूरा किया है। जो बात तूने अपने मुँह से मेरे बाप से की वह तूने अपने हाथ से आज ही पूरी की है। \v 16 ऐ रब इसराईल के ख़ुदा, अब अपनी दूसरी बात भी पूरी कर जो तूने अपने ख़ादिम दाऊद से की थी। क्योंकि तूने मेरे बाप से वादा किया था, ‘अगर तेरी औलाद तेरी तरह अपने चाल-चलन पर ध्यान देकर मेरी शरीअत के मुताबिक़ मेरे हुज़ूर चलती रहे तो इसराईल पर उस की हुकूमत हमेशा तक क़ायम रहेगी।’ \v 17 ऐ रब इसराईल के ख़ुदा, अब बराहे-करम अपना यह वादा पूरा कर जो तूने अपने ख़ादिम दाऊद से किया है। \p \v 18 लेकिन क्या अल्लाह वाक़ई ज़मीन पर इनसान के दरमियान सुकूनत करेगा? नहीं, तू तो बुलंदतरीन आसमान में भी समा नहीं सकता! तो फिर यह मकान जो मैंने बनाया है किस तरह तेरी सुकूनतगाह बन सकता है? \v 19 ऐ रब मेरे ख़ुदा, तो भी अपने ख़ादिम की दुआ और इल्तिजा सुन जब मैं तेरे हुज़ूर पुकारते हुए इलतमास करता हूँ \v 20 कि बराहे-करम दिन-रात इस इमारत की निगरानी कर! क्योंकि यह वह जगह है जिसके बारे में तूने ख़ुद फ़रमाया, ‘यहाँ मेरा नाम सुकूनत करेगा।’ चुनाँचे अपने ख़ादिम की गुज़ारिश सुन जो मैं इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ किए हुए करता हूँ। \v 21 जब हम इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके दुआ करें तो अपने ख़ादिम और अपनी क़ौम की इल्तिजाएँ सुन। आसमान पर अपने तख़्त से हमारी सुन। और जब सुनेगा तो हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर! \p \v 22 अगर किसी पर इलज़ाम लगाया जाए और उसे यहाँ तेरी क़ुरबानगाह के सामने लाया जाए ताकि हलफ़ उठाकर वादा करे कि मैं बेक़ुसूर हूँ \v 23 तो बराहे-करम आसमान पर से सुनकर अपने ख़ादिमों का इनसाफ़ कर। क़ुसूरवार को सज़ा देकर उसके अपने सर पर वह कुछ आने दे जो उससे सरज़द हुआ है, और बेक़ुसूर को बेइलज़ाम क़रार दे और उस की रास्तबाज़ी का बदला दे। \p \v 24 हो सकता है किसी वक़्त तेरी क़ौम इसराईल तेरा गुनाह करे और नतीजे में दुश्मन के सामने शिकस्त खाए। अगर इसराईली आख़िरकार तेरे पास लौट आएँ और तेरे नाम की तमजीद करके यहाँ इस घर में तेरे हुज़ूर दुआ और इलतमास करें \v 25 तो आसमान पर से उनकी फ़रियाद सुन लेना। अपनी क़ौम इसराईल का गुनाह मुआफ़ करके उन्हें दुबारा उस मुल्क में वापस लाना जो तूने उन्हें और उनके बापदादा को दे दिया था। \p \v 26 हो सकता है इसराईली तेरा इतना संगीन गुनाह करें कि काल पड़े और बड़ी देर तक बारिश न बरसे। अगर वह आख़िरकार इस घर की तरफ़ रुख़ करके तेरे नाम की तमजीद करें और तेरी सज़ा के बाइस अपना गुनाह छोड़कर लौट आएँ \v 27 तो आसमान पर से उनकी फ़रियाद सुन लेना। अपने ख़ादिमों और अपनी क़ौम इसराईल को मुआफ़ कर, क्योंकि तू ही उन्हें अच्छी राह की तालीम देता है। तब उस मुल्क पर दुबारा बारिश बरसा दे जो तूने अपनी क़ौम को मीरास में दे दिया है। \p \v 28 हो सकता है इसराईल में काल पड़ जाए, अनाज की फ़सल किसी बीमारी, फफूँदी, टिड्डियों या कीड़ों से मुतअस्सिर हो जाए, या दुश्मन किसी शहर का मुहासरा करे। जो भी मुसीबत या बीमारी हो, \v 29 अगर कोई इसराईली या तेरी पूरी क़ौम उसका सबब जानकर अपने हाथों को इस घर की तरफ़ बढ़ाए और तुझसे इलतमास करे \v 30 तो आसमान पर अपने तख़्त से उनकी फ़रियाद सुन लेना। उन्हें मुआफ़ करके हर एक को उस की तमाम हरकतों का बदला दे, क्योंकि सिर्फ़ तू ही हर इनसान के दिल को जानता है। \v 31 फिर जितनी देर वह उस मुल्क में ज़िंदगी गुज़ारेंगे जो तूने हमारे बापदादा को दिया था उतनी देर वह तेरा ख़ौफ़ मानकर तेरी राहों पर चलते रहेंगे। \p \v 32 आइंदा परदेसी भी तेरे अज़ीम नाम, तेरी बड़ी क़ुदरत और तेरे ज़बरदस्त कामों के सबब से आएँगे और इस घर की तरफ़ रुख़ करके दुआ करेंगे। अगरचे वह तेरी क़ौम इसराईल के नहीं होंगे \v 33 तो भी आसमान पर से उनकी फ़रियाद सुन लेना। जो भी दरख़ास्त वह पेश करें वह पूरी करना ताकि दुनिया की तमाम अक़वाम तेरा नाम जानकर तेरी क़ौम इसराईल की तरह ही तेरा ख़ौफ़ मानें और जान लें कि जो इमारत मैंने तामीर की है उस पर तेरे ही नाम का ठप्पा लगा है। \p \v 34 हो सकता है तेरी क़ौम के मर्द तेरी हिदायत के मुताबिक़ अपने दुश्मन से लड़ने के लिए निकलें। अगर वह तेरे चुने हुए शहर और उस इमारत की तरफ़ रुख़ करके दुआ करें जो मैंने तेरे नाम के लिए तामीर की है \v 35 तो आसमान पर से उनकी दुआ और इलतमास सुनकर उनके हक़ में इनसाफ़ क़ायम रखना। \p \v 36 हो सकता है वह तेरा गुनाह करें, ऐसी हरकतें तो हम सबसे सरज़द होती रहती हैं, और नतीजे में तू नाराज़ होकर उन्हें दुश्मन के हवाले कर दे जो उन्हें क़ैद करके किसी दूर-दराज़ या क़रीबी मुल्क में ले जाए। \v 37 शायद वह जिलावतनी में तौबा करके दुबारा तेरी तरफ़ रुजू करें और तुझसे इलतमास करें, ‘हमने गुनाह किया है, हमसे ग़लती हुई है, हमने बेदीन हरकतें की हैं।’ \p \v 38 अगर वह ऐसा करके अपनी क़ैद के मुल्क में अपने पूरे दिलो-जान से दुबारा तेरी तरफ़ रुजू करें और तेरी तरफ़ से बापदादा को दिए गए मुल्क, तेरे चुने हुए शहर और उस इमारत की तरफ़ रुख़ करके दुआ करें जो मैंने तेरे नाम के लिए तामीर की है \v 39 तो आसमान पर अपने तख़्त से उनकी दुआ और इलतमास सुन लेना। उनके हक़ में इनसाफ़ क़ायम करना, और अपनी क़ौम के गुनाहों को मुआफ़ कर देना। \v 40 ऐ मेरे ख़ुदा, तेरी आँखें और तेरे कान उन दुआओं के लिए खुले रहें जो इस जगह पर की जाती हैं। \p \v 41 ऐ रब ख़ुदा, उठकर अपनी आरामगाह के पास आ, तू और अहद का संदूक़ जो तेरी क़ुदरत का इज़हार है। ऐ रब ख़ुदा, तेरे इमाम नजात से मुलब्बस हो जाएँ, और तेरे ईमानदार तेरी भलाई की ख़ुशी मनाएँ। \v 42 ऐ रब ख़ुदा, अपने मसह किए हुए ख़ादिम को रद्द न कर बल्कि उस शफ़क़त को याद कर जो तूने अपने ख़ादिम दाऊद पर की है।” \c 7 \s1 रब के घर की मख़सूसियत पर जशन \p \v 1 सुलेमान की इस दुआ के इख़्तिताम पर आग ने आसमान पर से नाज़िल होकर भस्म होनेवाली और ज़बह की क़ुरबानियों को भस्म कर दिया। साथ साथ रब का घर उसके जलाल से यों मामूर हुआ \v 2 कि इमाम उसमें दाख़िल न हो सके। \v 3 जब इसराईलियों ने देखा कि आसमान पर से आग नाज़िल हुई है और घर रब के जलाल से मामूर हो गया है तो वह मुँह के बल झुककर रब की हम्दो-सना करके गीत गाने लगे, “वह भला है, और उस की शफ़क़त अबदी है।” \p \v 4-5 फिर बादशाह और तमाम क़ौम ने रब के हुज़ूर क़ुरबानियाँ पेश करके अल्लाह के घर को मख़सूस किया। इस सिलसिले में सुलेमान ने 22,000 गाय-बैलों और 1,20,000 भेड़-बकरियों को क़ुरबान किया। \v 6 इमाम और लावी अपनी अपनी ज़िम्मादारियों के मुताबिक़ खड़े थे। लावी उन साज़ों को बजा रहे थे जो दाऊद ने रब की सताइश करने के लिए बनवाए थे। साथ साथ वह हम्द का वह गीत गा रहे थे जो उन्होंने दाऊद से सीखा था, “उस की शफ़क़त अबदी है।” लावियों के मुक़ाबिल इमाम तुरम बजा रहे थे जबकि बाक़ी तमाम लोग खड़े थे। \v 7 सुलेमान ने सहन का दरमियानी हिस्सा क़ुरबानियाँ चढ़ाने के लिए मख़सूस किया। वजह यह थी कि पीतल की क़ुरबानगाह इतनी क़ुरबानियाँ पेश करने के लिए छोटी थी, क्योंकि भस्म होनेवाली क़ुरबानियों और ग़ल्ला की नज़रों की तादाद बहुत ज़्यादा थी। इसके अलावा सलामती की बेशुमार क़ुरबानियों की चरबी को भी जलाना था। \p \v 8-9 ईद 14 दिनों तक मनाई गई। पहले हफ़ते में सुलेमान और तमाम इसराईल ने क़ुरबानगाह की मख़सूसियत मनाई और दूसरे हफ़ते में झोंपड़ियों की ईद। इस ईद में बहुत ज़्यादा लोग शरीक हुए। वह दूर-दराज़ इलाक़ों से यरूशलम आए थे, शिमाल में लबो-हमात से लेकर जुनूब में उस वादी तक जो मिसर की सरहद थी। आख़िरी दिन पूरी जमात ने इख़्तितामी जशन मनाया। \v 10 यह सातवें माह के 23वें दिन वुक़ूपज़ीर हुआ। इसके बाद सुलेमान ने इसराईलियों को रुख़सत किया। सब शादमान और दिल से ख़ुश थे कि रब ने दाऊद, सुलेमान और अपनी क़ौम इसराईल पर इतनी मेहरबानी की है। \s1 रब सुलेमान से हमकलाम होता है \p \v 11 चुनाँचे सुलेमान ने रब के घर और शाही महल को तकमील तक पहुँचाया। जो कुछ भी उसने ठान लिया था वह पूरा हुआ। \v 12 एक रात रब उस पर ज़ाहिर हुआ और कहा, \p “मैंने तेरी दुआ को सुनकर तय कर लिया है कि यह घर वही जगह हो जहाँ तुम मुझे क़ुरबानियाँ पेश कर सको। \v 13 जब कभी मैं बारिश का सिलसिला रोकूँ, या फ़सलें ख़राब करने के लिए टिड्डियाँ भेजूँ या अपनी क़ौम में वबा फैलने दूँ \v 14 तो अगर मेरी क़ौम जो मेरे नाम से कहलाती है अपने आपको पस्त करे और दुआ करके मेरे चेहरे की तालिब हो और अपनी शरीर राहों से बाज़ आए तो फिर मैं आसमान पर से उस की सुनकर उसके गुनाहों को मुआफ़ कर दूँगा और मुल्क को बहाल करूँगा। \v 15 अब से जब भी यहाँ दुआ माँगी जाए तो मेरी आँखें खुली रहेंगी और मेरे कान उस पर ध्यान देंगे। \v 16 क्योंकि मैंने इस घर को चुनकर मख़सूसो-मुक़द्दस कर रखा है ताकि मेरा नाम हमेशा तक यहाँ क़ायम रहे। मेरी आँखें और दिल हमेशा इसमें हाज़िर रहेंगे। \v 17 जहाँ तक तेरा ताल्लुक़ है, अपने बाप दाऊद की तरह मेरे हुज़ूर चलता रह। क्योंकि अगर तू मेरे तमाम अहकाम और हिदायात की पैरवी करता रहे \v 18 तो मैं तेरी इसराईल पर हुकूमत क़ायम रखूँगा। फिर मेरा वह वादा क़ायम रहेगा जो मैंने तेरे बाप दाऊद से अहद बाँधकर किया था कि इसराईल पर तेरी औलाद की हुकूमत हमेशा तक क़ायम रहेगी। \p \v 19 लेकिन ख़बरदार! अगर तू मुझसे दूर होकर मेरे दिए गए अहकाम और हिदायात को तर्क करे बल्कि दीगर माबूदों की तरफ़ रुजू करके उनकी ख़िदमत और परस्तिश करे \v 20 तो मैं इसराईल को जड़ से उखाड़कर उस मुल्क से निकाल दूँगा जो मैंने उनको दे दिया है। न सिर्फ़ यह बल्कि मैं इस घर को भी रद्द कर दूँगा जो मैंने अपने नाम के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस कर लिया है। उस वक़्त मैं इसराईल को तमाम अक़वाम में मज़ाक़ और लान-तान का निशाना बना दूँगा। \v 21 इस शानदार घर की बुरी हालत देखकर यहाँ से गुज़रनेवाले तमाम लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएंगे, और वह पूछेंगे, ‘रब ने इस मुल्क और इस घर से ऐसा सुलूक क्यों किया?’ \v 22 तब लोग जवाब देंगे, ‘इसलिए कि गो रब उनके बापदादा का ख़ुदा उन्हें मिसर से निकालकर यहाँ लाया तो भी यह लोग उसे तर्क करके दीगर माबूदों से चिमट गए हैं। चूँकि वह उनकी परस्तिश और ख़िदमत करने से बाज़ न आए इसलिए उसने उन्हें इस सारी मुसीबत में डाल दिया है’।” \c 8 \s1 सुलेमान की मुख़्तलिफ़ मुहिमात \p \v 1 रब के घर और शाही महल को तामीर करने में 20 साल लग गए थे। \v 2 इसके बाद सुलेमान ने वह आबादियाँ नए सिरे से तामीर कीं जो हीराम ने उसे दे दी थीं। इनमें उसने इसराईलियों को बसा दिया। \p \v 3 एक फ़ौजी मुहिम के दौरान उसने हमात-ज़ोबाह पर हमला करके उस पर क़ब्ज़ा कर लिया। \v 4 इसके अलावा उसने हमात के इलाक़े में गोदाम के शहर बनाए। रेगिस्तान के शहर तदमूर में उसने बहुत-सा तामीरी काम कराया \v 5-6 और इसी तरह बालाई और नशेबी बैत-हौरून और बालात में भी। इन शहरों के लिए उसने फ़सील और कुंडेवाले दरवाज़े बनवाए। सुलेमान ने अपने गोदामों के लिए और अपने रथों और घोड़ों को रखने के लिए भी शहर बनवाए। \p जो कुछ भी वह यरूशलम, लुबनान या अपनी सलतनत की किसी और जगह बनवाना चाहता था वह उसने बनवाया। \v 7-8 जिन आदमियों की सुलेमान ने बेगार पर भरती की वह इसराईली नहीं थे बल्कि हित्ती, अमोरी, फ़रिज़्ज़ी, हिव्वी और यबूसी यानी कनान के पहले बाशिंदों की वह औलाद थे जो बाक़ी रह गए थे। मुल्क पर क़ब्ज़ा करते वक़्त इसराईली इन क़ौमों को पूरे तौर पर मिटा न सके, और आज तक इनकी औलाद को इसराईल के लिए बेगार में काम करना पड़ता है। \v 9 लेकिन सुलेमान ने इसराईलियों को ऐसे काम करने पर मजबूर न किया बल्कि वह उसके फ़ौजी और रथों के फ़ौजियों के अफ़सर बन गए, और उन्हें रथों और घोड़ों पर मुक़र्रर किया गया। \v 10 सुलेमान के तामीरी काम पर भी 250 इसराईली मुक़र्रर थे जो ज़िलों पर मुक़र्रर अफ़सरों के ताबे थे। यह लोग तामीरी काम करनेवालों की निगरानी करते थे। \p \v 11 फ़िरौन की बेटी यरूशलम के पुराने हिस्से बनाम ‘दाऊद का शहर’ से उस महल में मुंतक़िल हुई जो सुलेमान ने उसके लिए तामीर किया था, क्योंकि सुलेमान ने कहा, “लाज़िम है कि मेरी अहलिया इसराईल के बादशाह दाऊद के महल में न रहे। चूँकि रब का संदूक़ यहाँ से गुज़रा है, इसलिए यह जगह मुक़द्दस है।” \s1 रब के घर में ख़िदमत की तरतीब \p \v 12 उस वक़्त से सुलेमान रब को रब के घर के बड़े हाल के सामने की क़ुरबानगाह पर भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ पेश करता था। \v 13 जो कुछ भी मूसा ने रोज़ाना की क़ुरबानियों के मुताल्लिक़ फ़रमाया था उसके मुताबिक़ बादशाह क़ुरबानियाँ चढ़ाता था। इनमें वह क़ुरबानियाँ भी शामिल थीं जो सबत के दिन, नए चाँद की ईद पर और साल की तीन बड़ी ईदों पर यानी फ़सह की ईद, हफ़तों की ईद और झोंपड़ियों की ईद पर पेश की जाती थीं। \v 14 सुलेमान ने इमामों के मुख़्तलिफ़ गुरोहों को वह ज़िम्मादारियाँ सौंपीं जो उसके बाप दाऊद ने मुक़र्रर की थीं। लावियों की ज़िम्मादारियाँ भी मुक़र्रर की गईं। उनकी एक ज़िम्मादारी रब की हम्दो-सना करने में परस्तारों की राहनुमाई करनी थी। नीज़, उन्हें रोज़ाना की ज़रूरियात के मुताबिक़ इमामों की मदद करनी थी। रब के घर के दरवाज़ों की पहरादारी भी लावियों की एक ख़िदमत थी। हर दरवाज़े पर एक अलग गुरोह की ड्यूटी लगाई गई। यह भी मर्दे-ख़ुदा दाऊद की हिदायात के मुताबिक़ हुआ। \v 15 जो भी हुक्म दाऊद ने इमामों, लावियों और ख़ज़ानों के मुताल्लिक़ दिया था वह उन्होंने पूरा किया। \p \v 16 यों सुलेमान के तमाम मनसूबे रब के घर की बुनियाद रखने से लेकर उस की तकमील तक पूरे हुए। \p \v 17 बाद में सुलेमान अस्यून-जाबर और ऐलात गया। यह शहर अदोम के साहिल पर वाक़े थे। \v 18 वहाँ हीराम बादशाह ने अपने जहाज़ और तजरबाकार मल्लाह भेजे ताकि वह सुलेमान के आदमियों के साथ मिलकर जहाज़ों को चलाएँ। उन्होंने ओफ़ीर तक सफ़र किया और वहाँ से सुलेमान के लिए तक़रीबन 15,000 किलोग्राम सोना लेकर आए। \c 9 \s1 सबा की मलिका सुलेमान से मिलती है \p \v 1 सुलेमान की शोहरत सबा की मलिका तक पहुँच गई। जब उसने उसके बारे में सुना तो वह सुलेमान से मिलने के लिए रवाना हुई ताकि उसे मुश्किल पहेलियाँ पेश करके उस की दानिशमंदी जाँच ले। वह निहायत बड़े क़ाफ़िले के साथ यरूशलम पहुँची जिसके ऊँट बलसान, कसरत के सोने और क़ीमती जवाहर से लदे हुए थे। \p मलिका की सुलेमान से मुलाक़ात हुई तो उसने उससे वह तमाम मुश्किल सवालात पूछे जो उसके ज़हन में थे। \v 2 सुलेमान उसके हर सवाल का जवाब दे सका। कोई भी बात इतनी पेचीदा नहीं थी कि वह उसका मतलब मलिका को बता न सकता। \v 3 सबा की मलिका सुलेमान की हिकमत और उसके नए महल से बहुत मुतअस्सिर हुई। \v 4 उसने बादशाह की मेज़ों पर के मुख़्तलिफ़ खाने देखे और यह कि उसके अफ़सर किस तरतीब से उस पर बिठाए जाते थे। उसने बैरों की ख़िदमत, उनकी शानदार वरदियों और साक़ियों की शानदार वरदियों पर भी ग़ौर किया। जब उसने इन बातों के अलावा भस्म होनेवाली वह क़ुरबानियाँ भी देखीं जो सुलेमान रब के घर में चढ़ाता था तो मलिका हक्का-बक्का रह गई। \p \v 5 वह बोल उठी, “वाक़ई, जो कुछ मैंने अपने मुल्क में आपके शाहकारों और हिकमत के बारे में सुना था वह दुरुस्त है। \v 6 जब तक मैंने ख़ुद आकर यह सब कुछ अपनी आँखों से न देखा मुझे यक़ीन नहीं आता था। लेकिन हक़ीक़त में मुझे आपकी ज़बरदस्त हिकमत के बारे में आधा भी नहीं बताया गया था। वह उन रिपोर्टों से कहीं ज़्यादा है जो मुझ तक पहुँची थीं। \v 7 आपके लोग कितने मुबारक हैं! आपके अफ़सर कितने मुबारक हैं जो मुसलसल आपके सामने खड़े रहते और आपकी दानिश भरी बातें सुनते हैं! \v 8 रब आपके ख़ुदा की तमजीद हो जिसने आपको पसंद करके अपने तख़्त पर बिठाया ताकि रब अपने ख़ुदा की ख़ातिर हुकूमत करें। आपका ख़ुदा इसराईल से मुहब्बत रखता है, और वह उसे अबद तक क़ायम रखना चाहता है, इसी लिए उसने आपको उनका बादशाह बना दिया है ताकि इनसाफ़ और रास्तबाज़ी क़ायम रखें।” \p \v 9 फिर मलिका ने सुलेमान को तक़रीबन 4,000 किलोग्राम सोना, बहुत ज़्यादा बलसान और जवाहर दे दिए। पहले कभी भी उतना बलसान इसराईल में नहीं लाया गया था जितना उस वक़्त सबा की मलिका लाई। \p \v 10 हीराम और सुलेमान के आदमी ओफ़ीर से न सिर्फ़ सोना लाए बल्कि उन्होंने क़ीमती लकड़ी और जवाहर भी इसराईल तक पहुँचाए। \v 11 जितनी क़ीमती लकड़ी उन दिनों में यहूदाह में दरामद हुई उतनी पहले कभी वहाँ लाई नहीं गई थी। इस लकड़ी से बादशाह ने रब के घर और अपने महल के लिए सीढ़ियाँ बनवाईं। यह मौसीक़ारों के सरोद और सितार बनाने के लिए भी इस्तेमाल हुई। \p \v 12 सुलेमान बादशाह ने अपनी तरफ़ से सबा की मलिका को बहुत-से तोह्फ़े दिए। यह उन चीज़ों से ज़्यादा थे जो मलिका अपने मुल्क से उसके पास लाई थी। जो भी मलिका चाहती थी या उसने माँगा वह उसे दिया गया। फिर वह अपने नौकर-चाकरों और अफ़सरों के हमराह अपने वतन वापस चली गई। \s1 सुलेमान की दौलत और शोहरत \p \v 13 जो सोना सुलेमान को सालाना मिलता था उसका वज़न तक़रीबन 23,000 किलोग्राम था। \v 14 इसमें वह टैक्स शामिल नहीं थे जो उसे सौदागरों, ताजिरों, अरब बादशाहों और ज़िलों के अफ़सरों से मिलते थे। यह उसे सोना और चाँदी देते थे। \p \v 15-16 सुलेमान बादशाह ने 200 बड़ी और 300 छोटी ढालें बनवाईं। उन पर सोना मँढा गया। हर बड़ी ढाल के लिए तक़रीबन 7 किलोग्राम सोना इस्तेमाल हुआ और हर छोटी ढाल के लिए साढ़े 3 किलोग्राम। सुलेमान ने उन्हें ‘लुबनान का जंगल’ नामी महल में महफ़ूज़ रखा। \p \v 17 इनके अलावा बादशाह ने हाथीदाँत से आरास्ता एक बड़ा तख़्त बनवाया जिस पर ख़ालिस सोना चढ़ाया गया। \v 18-19 उसके हर बाज़ू के साथ शेरबबर का मुजस्समा था। तख़्त कुछ ऊँचा था, और बादशाह छः पाएवाली सीढ़ी पर चढ़कर उस पर बैठता था। दाईं और बाईं तरफ़ हर पाए पर शेरबबर का मुजस्समा था। पाँवों के लिए सोने की चौकी बनाई गई थी। इस क़िस्म का तख़्त किसी और सलतनत में नहीं पाया जाता था। \p \v 20 सुलेमान के तमाम प्याले सोने के थे, बल्कि ‘लुबनान का जंगल’ नामी महल में तमाम बरतन ख़ालिस सोने के थे। कोई भी चीज़ चाँदी की नहीं थी, क्योंकि सुलेमान के ज़माने में चाँदी की कोई क़दर नहीं थी। \v 21 बादशाह के अपने बहरी जहाज़ थे जो हीराम के बंदों के साथ मिलकर मुख़्तलिफ़ जगहों पर जाते थे। हर तीन साल के बाद वह सोने-चाँदी, हाथीदाँत, बंदरों और मोरों से लदे हुए वापस आते थे। \p \v 22 सुलेमान की दौलत और हिकमत दुनिया के तमाम बादशाहों से कहीं ज़्यादा थी। \v 23 दुनिया के तमाम बादशाह उससे मिलने की कोशिश करते रहे ताकि वह हिकमत सुन लें जो अल्लाह ने उसके दिल में डाल दी थी। \v 24 साल बसाल जो भी सुलेमान के दरबार में आता वह कोई न कोई तोह्फ़ा लाता। यों उसे सोने-चाँदी के बरतन, क़ीमती लिबास, हथियार, बलसान, घोड़े और ख़च्चर मिलते रहे। \p \v 25 घोड़ों और रथों को रखने के लिए सुलेमान के 4,000 थान थे। उसके 12,000 घोड़े थे। कुछ उसने रथों के लिए मख़सूस किए गए शहरों में और कुछ यरूशलम में अपने पास रखे। \v 26 सुलेमान उन तमाम बादशाहों का हुक्मरान था जो दरियाए-फ़ुरात से लेकर फ़िलिस्तियों के मुल्क की मिसरी सरहद तक हुकूमत करते थे। \v 27 बादशाह की सरगरमियों के बाइस चाँदी पत्थर जैसी आम हो गई और देवदार की क़ीमती लकड़ी मग़रिब के नशेबी पहाड़ी इलाक़े की अंजीर-तूत की सस्ती लकड़ी जैसी आम हो गई। \v 28 बादशाह के घोड़े मिसर और दीगर कई मुल्कों से दरामद होते थे। \s1 सुलेमान की मौत \p \v 29 सुलेमान की ज़िंदगी के बारे में मज़ीद बातें शुरू से लेकर आख़िर तक ‘नातन नबी की तारीख़,’ सैला के रहनेवाले नबी अख़ियाह की किताब ‘अख़ियाह की नबुव्वत’ और यरुबियाम बिन नबात से मुताल्लिक़ किताब ‘इद्दू ग़ैबबीन की रोयाएँ’ में दर्ज हैं। \p \v 30 सुलेमान 40 साल के दौरान पूरे इसराईल पर हुकूमत करता रहा। उसका दारुल-हुकूमत यरूशलम था। \v 31 जब वह मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे यरूशलम के उस हिस्से में दफ़न किया गया जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है। फिर उसका बेटा रहुबियाम तख़्तनशीन हुआ। \c 10 \s1 शिमाली क़बीले अलग हो जाते हैं \p \v 1 रहुबियाम सिकम गया, क्योंकि वहाँ तमाम इसराईली उसे बादशाह मुक़र्रर करने के लिए जमा हो गए थे। \v 2 यरुबियाम बिन नबात यह ख़बर सुनते ही मिसर से जहाँ उसने सुलेमान बादशाह से भागकर पनाह ली थी इसराईल वापस आया। \v 3 इसराईलियों ने उसे बुलाया ताकि उसके साथ सिकम जाएँ। जब पहुँचा तो इसराईल की पूरी जमात यरुबियाम के साथ मिलकर रहुबियाम से मिलने गई। उन्होंने बादशाह से कहा, \v 4 “जो जुआ आपके बाप ने हम पर डाल दिया था उसे उठाना मुश्किल था, और जो वक़्त और पैसे हमें बादशाह की ख़िदमत में सर्फ़ करने थे वह नाक़ाबिले-बरदाश्त थे। अब दोनों को कम कर दें। फिर हम ख़ुशी से आपकी ख़िदमत करेंगे।” \p \v 5 रहुबियाम ने जवाब दिया, “मुझे तीन दिन की मोहलत दें, फिर दुबारा मेरे पास आएँ।” चुनाँचे लोग चले गए। \v 6 फिर रहुबियाम बादशाह ने उन बुज़ुर्गों से मशवरा किया जो सुलेमान के जीते-जी बादशाह की ख़िदमत करते रहे थे। उसने पूछा, “आपका क्या ख़याल है? मैं इन लोगों को क्या जवाब दूँ?” \v 7 बुज़ुर्गों ने जवाब दिया, “हमारा मशवरा है कि इस वक़्त उनसे मेहरबानी से पेश आकर उनसे अच्छा सुलूक करें और नरम जवाब दें। अगर आप ऐसा करें तो वह हमेशा आपके वफ़ादार ख़ादिम बने रहेंगे।” \p \v 8 लेकिन रहुबियाम ने बुज़ुर्गों का मशवरा रद्द करके उस की ख़िदमत में हाज़िर उन जवानों से मशवरा किया जो उसके साथ परवान चढ़े थे। \v 9 उसने पूछा, “मैं इस क़ौम को क्या जवाब दूँ? यह तक़ाज़ा कर रहे हैं कि मैं वह जुआ हलका कर दूँ जो मेरे बाप ने उन पर डाल दिया।” \v 10 जो जवान उसके साथ परवान चढ़े थे उन्होंने कहा, “अच्छा, यह लोग तक़ाज़ा कर रहे हैं कि आपके बाप का जुआ हलका किया जाए? उन्हें बता देना, ‘मेरी छोटी उँगली मेरे बाप की कमर से ज़्यादा मोटी है! \v 11 बेशक जो जुआ उसने आप पर डाल दिया उसे उठाना मुश्किल था, लेकिन मेरा जुआ और भी भारी होगा। जहाँ मेरे बाप ने आपको कोड़े लगाए वहाँ मैं आपकी बिच्छुओं से तादीब करूँगा’!” \p \v 12 तीन दिन के बाद जब यरुबियाम तमाम इसराईलियों के साथ रहुबियाम का फ़ैसला सुनने के लिए वापस आया \v 13 तो बादशाह ने उन्हें सख़्त जवाब दिया। बुज़ुर्गों का मशवरा रद्द करके \v 14 उसने उन्हें जवानों का जवाब दिया, “बेशक जो जुआ मेरे बाप ने आप पर डाल दिया उसे उठाना मुश्किल था, लेकिन मेरा जुआ और भी भारी होगा। जहाँ मेरे बाप ने आपको कोड़े लगाए वहाँ मैं आपकी बिच्छुओं से तादीब करूँगा!” \v 15 यों रब की मरज़ी पूरी हुई कि रहुबियाम लोगों की बात नहीं मानेगा। क्योंकि अब रब की वह पेशगोई पूरी हुई जो सैला के नबी अख़ियाह ने यरुबियाम बिन नबात को बताई थी। \p \v 16 जब इसराईलियों ने देखा कि बादशाह हमारी बात सुनने के लिए तैयार नहीं है तो उन्होंने उससे कहा, “न हमें दाऊद से मीरास में कुछ मिलेगा, न यस्सी के बेटे से कुछ मिलने की उम्मीद है। ऐ इसराईल, सब अपने अपने घर वापस चलें! ऐ दाऊद, अब अपना घर ख़ुद सँभाल लो!” यह कहकर वह सब चले गए। \p \v 17 सिर्फ़ यहूदाह के क़बीले के शहरों में रहनेवाले इसराईली रहुबियाम के तहत रहे। \v 18 फिर रहुबियाम बादशाह ने बेगारियों पर मुक़र्रर अफ़सर अदूनीराम को शिमाली क़बीलों के पास भेज दिया, लेकिन उसे देखकर लोगों ने उसे संगसार किया। तब रहुबियाम जल्दी से अपने रथ पर सवार हुआ और भागकर यरूशलम पहुँच गया। \p \v 19 यों इसराईल के शिमाली क़बीले दाऊद के शाही घराने से अलग हो गए और आज तक उस की हुकूमत नहीं मानते। \c 11 \s1 रहुबियाम को इसराईल से लड़ने की इजाज़त नहीं मिलती \p \v 1 जब रहुबियाम यरूशलम पहुँचा तो उसने यहूदाह और बिनयमीन के क़बीलों के चीदा चीदा फ़ौजियों को इसराईल से जंग करने के लिए बुलाया। 1,80,000 मर्द जमा हुए ताकि रहुबियाम के लिए इसराईल पर दुबारा क़ाबू पाएँ। \v 2 लेकिन ऐन उस वक़्त मर्दे-ख़ुदा समायाह को रब की तरफ़ से पैग़ाम मिला, \v 3 “यहूदाह के बादशाह रहुबियाम बिन सुलेमान और यहूदाह और बिनयमीन के तमाम अफ़राद को इत्तला दे, \v 4 ‘रब फ़रमाता है कि अपने भाइयों से जंग मत करना। हर एक अपने अपने घर वापस चला जाए, क्योंकि जो कुछ हुआ है वह मेरे हुक्म पर हुआ है’।” \p तब वह रब की सुनकर यरुबियाम से लड़ने से बाज़ आए। \s1 रहुबियाम की क़िलाबंदी \p \v 5 रहुबियाम का दारुल-हुकूमत यरूशलम रहा। यहूदाह में उसने ज़ैल के शहरों की क़िलाबंदी की : \v 6 बैत-लहम, ऐताम, तक़ुअ, \v 7 बैत-सूर, सोका, अदुल्लाम, \v 8 जात, मरेसा, ज़ीफ़, \v 9 अदूराईम, लकीस, अज़ीक़ा, \v 10 सुरआ, ऐयालोन और हबरून। यहूदाह और बिनयमीन के इन क़िलाबंद शहरों को \v 11 मज़बूत करके रहुबियाम ने हर शहर पर अफ़सर मुक़र्रर किए। उनमें उसने ख़ुराक, ज़ैतून के तेल और मै का ज़ख़ीरा कर लिया \v 12 और साथ साथ उनमें ढालें और नेज़े भी रखे। इस तरह उसने उन्हें बहुत मज़बूत बनाकर यहूदाह और बिनयमीन पर अपनी हुकूमत महफ़ूज़ कर ली। \s1 इमाम और लावी यहूदाह में मुंतक़िल हो जाते हैं \p \v 13 गो इमाम और लावी तमाम इसराईल में बिखरे रहते थे तो भी उन्होंने रहुबियाम का साथ दिया। \v 14 अपनी चरागाहों और मिलकियत को छोड़कर वह यहूदाह और यरूशलम में आबाद हुए, क्योंकि यरुबियाम और उसके बेटों ने उन्हें इमाम की हैसियत से रब की ख़िदमत करने से रोक दिया था। \v 15 उनकी जगह उसने अपने ज़ाती इमाम मुक़र्रर किए जो ऊँची जगहों पर के मंदिरों को सँभालते हुए बकरे के देवताओं और बछड़े के बुतों की ख़िदमत करते थे। \v 16 लावियों की तरह तमाम क़बीलों के बहुत-से ऐसे लोग यहूदाह में मुंतक़िल हुए जो पूरे दिल से रब इसराईल के ख़ुदा के तालिब रहे थे। वह यरूशलम आए ताकि रब अपने बापदादा के ख़ुदा को क़ुरबानियाँ पेश कर सकें। \v 17 यहूदाह की सलतनत ने ऐसे लोगों से तक़वियत पाई। वह रहुबियाम बिन सुलेमान के लिए तीन साल तक मज़बूती का सबब थे, क्योंकि तीन साल तक यहूदाह दाऊद और सुलेमान के अच्छे नमूने पर चलता रहा। \s1 रहुबियाम का ख़ानदान \p \v 18 रहुबियाम की शादी महलत से हुई जो यरीमोत और अबीख़ैल की बेटी थी। यरीमोत दाऊद का बेटा और अबीख़ैल इलियाब बिन यस्सी की बेटी थी। \v 19 महलत के तीन बेटे यऊस, समरियाह और ज़हम पैदा हुए। \v 20 बाद में रहुबियाम की माका बिंत अबीसलूम से शादी हुई। इस रिश्ते से चार बेटे अबियाह, अत्ती, ज़ीज़ा और सलूमीत पैदा हुए। \v 21 रहुबियाम की 18 बीवियाँ और 60 दाश्ताएँ थीं। इनके कुल 28 बेटे और 60 बेटियाँ पैदा हुईं। लेकिन माका बिंत अबीसलूम रहुबियाम को सबसे ज़्यादा प्यारी थी। \v 22 उसने माका के पहलौठे अबियाह को उसके भाइयों का सरबराह बना दिया और मुक़र्रर किया कि यह बेटा मेरे बाद बादशाह बनेगा। \v 23 रहुबियाम ने अपने बेटों से बड़ी समझदारी के साथ सुलूक किया, क्योंकि उसने उन्हें अलग अलग करके यहूदाह और बिनयमीन के पूरे क़बायली इलाक़े और तमाम क़िलाबंद शहरों में बसा दिया। साथ साथ वह उन्हें कसरत की ख़ुराक और बीवियाँ मुहैया करता रहा। \c 12 \s1 मिसर की यहूदाह पर फ़तह \p \v 1 जब रहुबियाम की सलतनत ज़ोर पकड़कर मज़बूत हो गई तो उसने तमाम इसराईल समेत रब की शरीअत को तर्क कर दिया। \v 2 उनकी रब से बेवफ़ाई का नतीजा यह निकला कि रहुबियाम की हुकूमत के पाँचवें साल में मिसर के बादशाह सीसक़ ने यरूशलम पर हमला किया। \v 3 उस की फ़ौज बहुत बड़ी थी। 1,200 रथों के अलावा 60,000 घुड़सवार और लिबिया, सुक्कियों के मुल्क और एथोपिया के बेशुमार प्यादा सिपाही थे। \v 4 यके बाद दीगरे यहूदाह के क़िलाबंद शहरों पर क़ब्ज़ा करते करते मिसरी बादशाह यरूशलम तक पहुँच गया। \p \v 5 तब समायाह नबी रहुबियाम और यहूदाह के उन बुज़ुर्गों के पास आया जिन्होंने सीसक़ के आगे आगे भागकर यरूशलम में पनाह ली थी। उसने उनसे कहा, “रब फ़रमाता है, ‘तुमने मुझे तर्क कर दिया है, इसलिए अब मैं तुम्हें तर्क करके सीसक़ के हवाले कर दूँगा’।” \v 6 यह पैग़ाम सुनकर रहुबियाम और यहूदाह के बुज़ुर्गों ने बड़ी इंकिसारी के साथ तसलीम किया कि रब ही आदिल है। \v 7 उनकी यह आजिज़ी देखकर रब ने समायाह से कहा, “चूँकि उन्होंने बड़ी ख़ाकसारी से अपना ग़लत रवैया तसलीम कर लिया है इसलिए मैं उन्हें तबाह नहीं करूँगा बल्कि जल्द ही उन्हें रिहा करूँगा। मेरा ग़ज़ब सीसक़ के ज़रीए यरूशलम पर नाज़िल नहीं होगा। \v 8 लेकिन वह इस क़ौम को ज़रूर अपने ताबे कर रखेगा। तब वह समझ लेंगे कि मेरी ख़िदमत करने और दीगर ममालिक के बादशाहों की ख़िदमत करने में क्या फ़रक़ है।” \p \v 9 मिसर के बादशाह सीसक़ ने यरूशलम पर हमला करते वक़्त रब के घर और शाही महल के तमाम ख़ज़ाने लूट लिए। सोने की वह ढालें भी छीन ली गईं जो सुलेमान ने बनवाई थीं। \v 10 इनकी जगह रहुबियाम ने पीतल की ढालें बनवाईं और उन्हें उन मुहाफ़िज़ों के अफ़सरों के सुपुर्द किया जो शाही महल के दरवाज़े की पहरादारी करते थे। \v 11 जब भी बादशाह रब के घर में जाता तब मुहाफ़िज़ यह ढालें उठाकर साथ ले जाते। इसके बाद वह उन्हें पहरेदारों के कमरे में वापस ले जाते थे। \p \v 12 चूँकि रहुबियाम ने बड़ी इंकिसारी से अपना ग़लत रवैया तसलीम किया इसलिए रब का उस पर ग़ज़ब ठंडा हो गया, और वह पूरे तौर पर तबाह न हुआ। दर-हक़ीक़त यहूदाह में अब तक कुछ न कुछ पाया जाता था जो अच्छा था। \s1 रहुबियाम की मौत \p \v 13 रहुबियाम की सलतनत ने दुबारा तक़वियत पाई, और यरूशलम में रहकर वह अपनी हुकूमत जारी रख सका। 41 साल की उम्र में वह तख़्तनशीन हुआ था, और वह 17 साल बादशाह रहा। उसका दारुल-हुकूमत यरूशलम था, वह शहर जिसे रब ने तमाम इसराईली क़बीलों में से चुन लिया ताकि उसमें अपना नाम क़ायम करे। उस की माँ नामा अम्मोनी थी। \v 14 रहुबियाम ने अच्छी ज़िंदगी न गुज़ारी, क्योंकि वह पूरे दिल से रब का तालिब न रहा था। \p \v 15 बाक़ी जो कुछ रहुबियाम की हुकूमत के दौरान शुरू से लेकर आख़िर तक हुआ उसका समायाह नबी और ग़ैबबीन इद्दू की तारीख़ी किताब में बयान है। वहाँ उसके नसबनामे का ज़िक्र भी है। दोनों बादशाहों रहुबियाम और यरुबियाम के जीते-जी उनके दरमियान जंग जारी रही। \v 16 जब रहुबियाम मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे यरूशलम के उस हिस्से में दफ़नाया गया जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है। फिर उसका बेटा अबियाह तख़्तनशीन हुआ। \c 13 \s1 यहूदाह का बादशाह अबियाह \p \v 1 अबियाह इसराईल के बादशाह यरुबियाम अव्वल की हुकूमत के 18वें साल में यहूदाह का बादशाह बना। \v 2 वह तीन साल बादशाह रहा, और उसका दारुल-हुकूमत यरूशलम था। उस की माँ माका बिंत ऊरियेल जिबिया की रहनेवाली थी। \p एक दिन अबियाह और यरुबियाम के दरमियान जंग छिड़ गई। \v 3 4,00,000 तजरबाकार फ़ौजियों को जमा करके अबियाह यरुबियाम से लड़ने के लिए निकला। यरुबियाम 8,00,000 तजरबाकार फ़ौजियों के साथ उसके मुक़ाबिल सफ़आरा हुआ। \v 4 फिर अबियाह ने इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े के पहाड़ समरैम पर चढ़कर बुलंद आवाज़ से पुकारा, \p “यरुबियाम और तमाम इसराईलियो, मेरी बात सुनें! \v 5 क्या आपको नहीं मालूम कि रब इसराईल के ख़ुदा ने दाऊद से नमक का अबदी अहद बाँधकर उसे और उस की औलाद को हमेशा के लिए इसराईल की सलतनत अता की है? \v 6 तो भी सुलेमान बिन दाऊद का मुलाज़िम यरुबियाम बिन नबात अपने मालिक के ख़िलाफ़ उठकर बाग़ी हो गया। \v 7 उसके इर्दगिर्द कुछ बदमाश जमा हुए और रहुबियाम बिन सुलेमान की मुख़ालफ़त करने लगे। उस वक़्त वह जवान और नातजरबाकार था, इसलिए उनका सहीह मुक़ाबला न कर सका। \p \v 8 और अब आप वाक़ई समझते हैं कि हम रब की बादशाही पर फ़तह पा सकते हैं, उसी बादशाही पर जो दाऊद की औलाद के हाथ में है। आप समझते हैं कि आपकी फ़ौज बहुत ही बड़ी है, और कि सोने के बछड़े आपके साथ हैं, वही बुत जो यरुबियाम ने आपकी पूजा के लिए तैयार कर रखे हैं। \v 9 लेकिन आपने रब के इमामों यानी हारून की औलाद को लावियों समेत मुल्क से निकालकर उनकी जगह ऐसे पुजारी ख़िदमत के लिए मुक़र्रर किए जैसे बुतपरस्त क़ौमों में पाए जाते हैं। जो भी चाहता है कि उसे मख़सूस करके इमाम बनाया जाए उसे सिर्फ़ एक जवान बैल और सात मेंढे पेश करने की ज़रूरत है। यह इन नाम-निहाद ख़ुदाओं का पुजारी बनने के लिए काफ़ी है। \p \v 10 लेकिन जहाँ तक हमारा ताल्लुक़ है रब ही हमारा ख़ुदा है। हमने उसे तर्क नहीं किया। सिर्फ़ हारून की औलाद ही हमारे इमाम हैं। सिर्फ़ यह और लावी रब की ख़िदमत करते हैं। \v 11 यही सुबह-शाम उसे भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ और ख़ुशबूदार बख़ूर पेश करते हैं। पाक मेज़ पर रब के लिए मख़सूस रोटियाँ रखना और सोने के शमादान के चराग़ जलाना इन्हीं की ज़िम्मादारी रही है। ग़रज़, हम रब अपने ख़ुदा की हिदायात पर अमल करते हैं जबकि आपने उसे तर्क कर दिया है। \v 12 चुनाँचे अल्लाह हमारे साथ है। वही हमारा राहनुमा है, और उसके इमाम तुरम बजाकर आपसे लड़ने का एलान करेंगे। इसराईल के मर्दो, ख़बरदार! रब अपने बापदादा के ख़ुदा से मत लड़ना। यह जंग आप जीत ही नहीं सकते!” \p \v 13 इतने में यरुबियाम ने चुपके से कुछ दस्तों को यहूदाह की फ़ौज के पीछे भेज दिया ताकि वहाँ ताक में बैठ जाएँ। यों उस की फ़ौज का एक हिस्सा यहूदाह की फ़ौज के सामने और दूसरा हिस्सा उसके पीछे था। \v 14 अचानक यहूदाह के फ़ौजियों को पता चला कि दुश्मन सामने और पीछे से हम पर हमला कर रहा है। चीख़ते-चिल्लाते हुए उन्होंने रब से मदद माँगी। इमामों ने अपने तुरम बजाए \v 15 और यहूदाह के मर्दों ने जंग का नारा लगाया। जब उनकी आवाज़ें बुलंद हुईं तो अल्लाह ने यरुबियाम और तमाम इसराईलियों को शिकस्त देकर अबियाह और यहूदाह की फ़ौज के सामने से भगा दिया। \v 16 इसराईली फ़रार हुए, लेकिन अल्लाह ने उन्हें यहूदाह के हवाले कर दिया। \v 17 अबियाह और उसके लोग उन्हें बड़ा नुक़सान पहुँचा सके। इसराईल के 5,00,000 तजरबाकार फ़ौजी मैदाने-जंग में मारे गए। \v 18 उस वक़्त इसराईल की बड़ी बेइज़्ज़ती हुई जबकि यहूदाह को तक़वियत मिली। क्योंकि वह रब अपने बापदादा के ख़ुदा पर भरोसा रखते थे। \p \v 19 अबियाह ने यरुबियाम का ताक़्क़ुब करते करते उससे तीन शहर गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत छीन लिए, बैतेल, यसाना और इफ़रोन। \v 20 अबियाह के जीते-जी यरुबियाम दुबारा तक़वियत न पा सका, और थोड़ी देर के बाद रब ने उसे मार दिया। \v 21 उसके मुक़ाबले में अबियाह की ताक़त बढ़ती गई। उस की 14 बीवियों के 22 बेटे और 16 बेटियाँ पैदा हुईं। \p \v 22 बाक़ी जो कुछ अबियाह की हुकूमत के दौरान हुआ और जो कुछ उसने किया और कहा, वह इद्दू नबी की किताब में बयान किया गया है। \c 14 \p \v 1 जब अबियाह मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे यरूशलम के उस हिस्से में दफ़नाया गया जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है। फिर उसका बेटा आसा तख़्तनशीन हुआ। \s1 यहूदाह का बादशाह आसा \p आसा की हुकूमत के तहत मुल्क में 10 साल तक अमनो-अमान क़ायम रहा। \v 2 आसा वह कुछ करता रहा जो रब उसके ख़ुदा के नज़दीक अच्छा और ठीक था। \v 3 उसने अजनबी माबूदों की क़ुरबानगाहों को ऊँची जगहों के मंदिरों समेत गिराकर देवताओं के लिए मख़सूस किए गए सतूनों को टुकड़े टुकड़े कर दिया और यसीरत देवी के खंबे काट डाले। \v 4 साथ साथ उसने यहूदाह के बाशिंदों को हिदायत दी कि वह रब अपने बापदादा के ख़ुदा के तालिब हों और उसके अहकाम के ताबे रहें। \v 5 यहूदाह के तमाम शहरों से उसने बख़ूर की क़ुरबानगाहें और ऊँची जगहों के मंदिर दूर कर दिए। चुनाँचे उस की हुकूमत के दौरान बादशाही में सुकून रहा। \p \v 6 अमनो-अमान के इन सालों के दौरान आसा यहूदाह में कई शहरों की क़िलाबंदी कर सका। जंग का ख़तरा नहीं था, क्योंकि रब ने उसे सुकून मुहैया किया। \v 7 बादशाह ने यहूदाह के बाशिंदों से कहा, “आएँ, हम इन शहरों की क़िलाबंदी करें! हम इनके इर्दगिर्द फ़सीलें बनाकर उन्हें बुर्जों, दरवाज़ों और कुंडों से मज़बूत करें। क्योंकि अब तक मुल्क हमारे हाथ में है। चूँकि हम रब अपने ख़ुदा के तालिब रहे हैं इसलिए उसने हमें चारों तरफ़ सुलह-सलामती मुहैया की है।” चुनाँचे क़िलाबंदी का काम शुरू हुआ बल्कि तकमील तक पहुँच सका। \s1 एथोपिया पर फ़तह \p \v 8 आसा की फ़ौज में बड़ी ढालों और नेज़ों से लैस यहूदाह के 3,00,000 अफ़राद थे। इसके अलावा छोटी ढालों और कमानों से मुसल्लह बिनयमीन के 2,80,000 अफ़राद थे। सब तजरबाकार फ़ौजी थे। \p \v 9 एक दिन एथोपिया के बादशाह ज़ारह ने यहूदाह पर हमला किया। उसके बेशुमार फ़ौजी और 300 रथ थे। बढ़ते बढ़ते वह मरेसा तक पहुँच गया। \v 10 आसा उसका मुक़ाबला करने के लिए निकला। वादीए-सफ़ाता में दोनों फ़ौजें लड़ने के लिए सफ़आरा हुईं। \v 11 आसा ने रब अपने ख़ुदा से इलतमास की, “ऐ रब, सिर्फ़ तू ही बेबसों को ताक़तवरों के हमलों से महफ़ूज़ रख सकता है। ऐ रब हमारे ख़ुदा, हमारी मदद कर! क्योंकि हम तुझ पर भरोसा रखते हैं। तेरा ही नाम लेकर हम इस बड़ी फ़ौज का मुक़ाबला करने के लिए निकले हैं। ऐ रब, तू ही हमारा ख़ुदा है। ऐसा न होने दे कि इनसान तेरी मरज़ी की ख़िलाफ़वरज़ी करने में कामयाब हो जाए।” \p \v 12 तब रब ने आसा और यहूदाह के देखते देखते दुश्मन को शिकस्त दी। एथोपिया के फ़ौजी फ़रार हुए, \v 13 और आसा ने अपने फ़ौजियों के साथ जिरार तक उनका ताक़्क़ुब किया। दुश्मन के इतने अफ़राद हलाक हुए कि उस की फ़ौज बाद में बहाल न हो सकी। रब ख़ुद और उस की फ़ौज ने दुश्मन को तबाह कर दिया था। यहूदाह के मर्दों ने बहुत-सा माल लूट लिया। \v 14 वह जिरार के इर्दगिर्द के शहरों पर भी क़ब्ज़ा करने में कामयाब हुए, क्योंकि मक़ामी लोगों में रब की दहशत फैल गई थी। नतीजे में इन शहरों से भी बहुत-सा माल छीन लिया गया। \v 15 इस मुहिम के दौरान उन्होंने गल्लाबानों की ख़ैमागाहों पर भी हमला किया और उनसे कसरत की भेड़-बकरियाँ और ऊँट लूटकर अपने साथ यरूशलम ले आए। \c 15 \s1 आसा रब से अहद की तजदीद करता है \p \v 1 अल्लाह का रूह अज़रियाह बिन ओदीद पर नाज़िल हुआ, \v 2 और वह आसा से मिलने के लिए निकला और कहा, “ऐ आसा और यहूदाह और बिनयमीन के तमाम बाशिंदो, मेरी बात सुनो! रब तुम्हारे साथ है अगर तुम उसी के साथ रहो। अगर तुम उसके तालिब रहो तो उसे पा लोगे। लेकिन जब भी तुम उसे तर्क करो तो वह तुम्हीं को तर्क करेगा। \v 3 लंबे अरसे तक इसराईली हक़ीक़ी ख़ुदा के बग़ैर ज़िंदगी गुज़ारते रहे। न कोई इमाम था जो उन्हें अल्लाह की राह सिखाता, न शरीअत। \v 4 लेकिन जब कभी वह मुसीबत में फँस जाते तो दुबारा रब इसराईल के ख़ुदा के पास लौट आते। वह उसे तलाश करते और नतीजे में उसे पा लेते। \v 5 उस ज़माने में सफ़र करना ख़तरनाक होता था, क्योंकि अमनो-अमान कहीं नहीं था। \v 6 एक क़ौम दूसरी क़ौम के साथ और एक शहर दूसरे के साथ लड़ता रहता था। इसके पीछे अल्लाह का हाथ था। वही उन्हें हर क़िस्म की मुसीबत में डालता रहा। \v 7 लेकिन जहाँ तक तुम्हारा ताल्लुक़ है, मज़बूत हो और हिम्मत न हारो। अल्लाह ज़रूर तुम्हारी मेहनत का अज्र देगा।” \p \v 8 जब आसा ने ओदीद के बेटे अज़रियाह नबी की पेशगोई सुनी तो उसका हौसला बढ़ गया, और उसने अपने पूरे इलाक़े के घिनौने बुतों को दूर कर दिया। इसमें यहूदाह और बिनयमीन के अलावा इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े के वह शहर शामिल थे जिन पर उसने क़ब्ज़ा कर लिया था। साथ साथ उसने उस क़ुरबानगाह की मरम्मत करवाई जो रब के घर के दरवाज़े के सामने थी। \v 9 फिर उसने यहूदाह और बिनयमीन के तमाम लोगों को यरूशलम बुलाया। उन इसराईलियों को भी दावत मिली जो इफ़राईम, मनस्सी और शमौन के क़बायली इलाक़ों से मुंतक़िल होकर यहूदाह में आबाद हुए थे। क्योंकि बेशुमार लोग यह देखकर कि रब आसा का ख़ुदा उसके साथ है इसराईल से निकलकर यहूदाह में जा बसे थे। \p \v 10 आसा बादशाह की हुकूमत के 15वें साल और तीसरे महीने में सब यरूशलम में जमा हुए। \v 11 वहाँ उन्होंने लूटे हुए माल में से रब को 700 बैल और 7,000 भेड़-बकरियाँ क़ुरबान कर दीं। \v 12 उन्होंने अहद बाँधा, ‘हम पूरे दिलो-जान से रब अपने बापदादा के ख़ुदा के तालिब रहेंगे। \v 13 और जो रब इसराईल के ख़ुदा का तालिब नहीं रहेगा उसे सज़ाए-मौत दी जाएगी, ख़ाह वह छोटा हो या बड़ा, मर्द हो या औरत।’ \v 14 बुलंद आवाज़ से उन्होंने क़सम खाकर रब से अपनी वफ़ादारी का एलान किया। साथ साथ तुरम और नरसिंगे बजते रहे। \v 15 यह अहद तमाम यहूदाह के लिए ख़ुशी का बाइस था, क्योंकि उन्होंने पूरे दिल से क़सम खाकर उसे बाँधा था। और चूँकि वह पूरे दिल से ख़ुदा के तालिब थे इसलिए वह उसे पा भी सके। नतीजे में रब ने उन्हें चारों तरफ़ अमनो-अमान मुहैया किया। \p \v 16 आसा की माँ माका बादशाह की माँ होने के बाइस बहुत असरो-रसूख़ रखती थी। लेकिन आसा ने यह ओहदा ख़त्म कर दिया जब माँ ने यसीरत देवी का घिनौना खंबा बनवा लिया। आसा ने यह बुत कटवाकर टुकड़े टुकड़े कर दिया और वादीए-क़िदरोन में जला दिया। \v 17 अफ़सोस कि उसने इसराईल की ऊँची जगहों के मंदिरों को दूर न किया। तो भी आसा अपने जीते-जी पूरे दिल से रब का वफ़ादार रहा। \v 18 सोना-चाँदी और बाक़ी जितनी चीज़ें उसके बाप और उसने रब के लिए मख़सूस की थीं उन सबको वह रब के घर में लाया। \p \v 19 आसा की हुकूमत के 35वें साल तक जंग दुबारा न छिड़ी। \c 16 \s1 शाम के साथ आसा का मुआहदा \p \v 1 आसा की हुकूमत के 36वें साल में इसराईल के बादशाह बाशा ने यहूदाह पर हमला करके रामा शहर की क़िलाबंदी की। मक़सद यह था कि न कोई यहूदाह के मुल्क में दाख़िल हो सके, न कोई वहाँ से निकल सके। \p \v 2 जवाब में आसा ने शाम के बादशाह बिन-हदद के पास वफ़द भेजा जिसका दारुल-हुकूमत दमिश्क़ था। उसने रब के घर और शाही महल के ख़ज़ानों की सोना-चाँदी वफ़द के सुपुर्द करके दमिश्क़ के बादशाह को पैग़ाम भेजा, \v 3 “मेरा आपके साथ अहद है जिस तरह मेरे बाप का आपके बाप के साथ अहद था। गुज़ारिश है कि आप सोने-चाँदी का यह तोह्फ़ा क़बूल करके इसराईल के बादशाह बाशा के साथ अपना अहद मनसूख़ कर दें ताकि वह मेरे मुल्क से निकल जाए।” \p \v 4 बिन-हदद मुत्तफ़िक़ हुआ। उसने अपने फ़ौजी अफ़सरों को इसराईल के शहरों पर हमला करने के लिए भेज दिया तो उन्होंने ऐय्यून, दान, अबील-मायम और नफ़ताली के उन तमाम शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया जिनमें शाही गोदाम थे। \v 5 जब बाशा को इसकी ख़बर मिली तो उसने रामा की क़िलाबंदी करने से बाज़ आकर अपनी यह मुहिम छोड़ दी। \p \v 6 फिर आसा बादशाह ने यहूदाह के तमाम मर्दों की भरती करके उन्हें रामा भेज दिया ताकि वह उन तमाम पत्थरों और शहतीरों को उठाकर ले जाएँ जिनसे बाशा बादशाह रामा की क़िलाबंदी करना चाहता था। इस सामान से आसा ने जिबा और मिसफ़ाह शहरों की क़िलाबंदी की। \s1 आसा के आख़िरी साल और मौत \p \v 7 उस वक़्त हनानी ग़ैबबीन यहूदाह के बादशाह आसा को मिलने आया। उसने कहा, “अफ़सोस कि आपने रब अपने ख़ुदा पर एतमाद न किया बल्कि अराम के बादशाह पर, क्योंकि इसका बुरा नतीजा निकला है। रब शाम के बादशाह की फ़ौज को आपके हवाले करने के लिए तैयार था, लेकिन अब यह मौक़ा जाता रहा है। \v 8 क्या आप भूल गए हैं कि एथोपिया और लिबिया की कितनी बड़ी फ़ौज आपसे लड़ने आई थी? उनके साथ कसरत के रथ और घुड़सवार भी थे। लेकिन उस वक़्त आपने रब पर एतमाद किया, और जवाब में उसने उन्हें आपके हवाले कर दिया। \v 9 रब तो अपनी नज़र पूरी रूए-ज़मीन पर दौड़ाता रहता है ताकि उनकी तक़वियत करे जो पूरी वफ़ादारी से उससे लिपटे रहते हैं। आपकी अहमक़ाना हरकत की वजह से आपको अब से मुतवातिर जंगें तंग करती रहेंगी।” \v 10 यह सुनकर आसा ग़ुस्से से लाल-पीला हो गया। आपे से बाहर होकर उसने हुक्म दिया कि नबी को गिरिफ़्तार करके उसके पाँव काठ में ठोंको। उस वक़्त से आसा अपनी क़ौम के कई लोगों पर ज़ुल्म करने लगा। \p \v 11 बाक़ी जो कुछ शुरू से लेकर आख़िर तक आसा की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहाने-यहूदाहो-इसराईल की तारीख़’ की किताब में बयान किया गया है। \v 12 हुकूमत के 39वें साल में उसके पाँवों को बीमारी लग गई। गो उस की बुरी हालत थी तो भी उसने रब को तलाश न किया बल्कि सिर्फ़ डाक्टरों के पीछे पड़ गया। \v 13 हुकूमत के 41वें साल में आसा मरकर अपने बापदादा से जा मिला। \v 14 उसने यरूशलम के उस हिस्से में जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है अपने लिए चट्टान में क़ब्र तराशी थी। अब उसे इसमें दफ़न किया गया। जनाज़े के वक़्त लोगों ने लाश को एक पलंग पर लिटा दिया जो बलसान के तेल और मुख़्तलिफ़ क़िस्म के ख़ुशबूदार मरहमों से ढाँपा गया था। फिर उसके एहतराम में लकड़ी का ज़बरदस्त ढेर जलाया गया। \c 17 \s1 यहूदाह का बादशाह यहूसफ़त \p \v 1 आसा के बाद उसका बेटा यहूसफ़त तख़्तनशीन हुआ। उसने यहूदाह की ताक़त बढ़ाई ताकि वह इसराईल का मुक़ाबला कर सके। \v 2 यहूदाह के तमाम क़िलाबंद शहरों में उसने दस्ते बिठाए। यहूदाह के पूरे क़बायली इलाक़े में उसने चौकियाँ तैयार कर रखीं और इसी तरह इफ़राईम के उन शहरों में भी जो उसके बाप आसा ने इसराईल से छीन लिए थे। \v 3 रब यहूसफ़त के साथ था, क्योंकि वह दाऊद के नमूने पर चलता था और बाल देवताओं के पीछे न लगा। \v 4 इसराईल के बादशाहों के बरअक्स वह अपने बाप के ख़ुदा का तालिब रहा और उसके अहकाम पर अमल करता रहा। \v 5 इसी लिए रब ने यहूदाह पर यहूसफ़त की हुकूमत को ताक़तवर बना दिया। लोग तमाम यहूदाह से आकर उसे तोह्फ़े देते रहे, और उसे बड़ी दौलत और इज़्ज़त मिली। \v 6 रब की राहों पर चलते चलते उसे बड़ा हौसला हुआ और नतीजे में उसने ऊँची जगहों के मंदिरों और यसीरत देवी के खंबों को यहूदाह से दूर कर दिया। \p \v 7 अपनी हुकूमत के तीसरे साल के दौरान यहूसफ़त ने अपने मुलाज़िमों को यहूदाह के तमाम शहरों में भेजा ताकि वह लोगों को रब की शरीअत की तालीम दें। इन अफ़सरों में बिन-ख़ैल, अबदियाह, ज़करियाह, नतनियेल और मीकायाह शामिल थे। \v 8 उनके साथ 9 लावी बनाम समायाह, नतनियाह, ज़बदियाह, असाहेल, समीरामोत, यहूनतन, अदूनियाह, तूबियाह, और तूब-अदूनियाह थे। इमामों की तरफ़ से इलीसमा और यहूराम साथ गए। \v 9 रब की शरीअत की किताब अपने साथ लेकर इन आदमियों ने यहूदाह में शहर बशहर जाकर लोगों को तालीम दी। \p \v 10 उस वक़्त यहूदाह के पड़ोसी ममालिक पर रब का ख़ौफ़ छा गया, और उन्होंने यहूसफ़त से जंग करने की जुर्रत न की। \v 11 ख़राज के तौर पर उसे फ़िलिस्तियों से हदिये और चाँदी मिलती थी, जबकि अरब उसे 7,700 मेंढे और 7,700 बकरे दिया करते थे। \v 12 यों यहूसफ़त की ताक़त बढ़ती गई। यहूदाह की कई जगहों पर उसने क़िले और शाही गोदाम के शहर तामीर किए। \v 13 साथ साथ उसने यहूदाह के शहरों में ज़रूरियाते-ज़िंदगी के बड़े ज़ख़ीरे जमा किए और यरूशलम में तजरबाकार फ़ौजी रखे। \p \v 14 यहूसफ़त की फ़ौज को कुंबों के मुताबिक़ तरतीब दिया गया था। यहूदाह के क़बीले का कमाँडर अदना था। उसके तहत 3,00,000 तजरबाकार फ़ौजी थे। \v 15 उसके अलावा यूहनान था जिसके तहत 2,80,000 अफ़राद थे \v 16 और अमसियाह बिन ज़िकरी जिसके तहत 2,00,000 अफ़राद थे। अमसियाह ने अपने आपको रज़ाकाराना तौर पर रब की ख़िदमत के लिए वक़्फ़ कर दिया था। \v 17 बिनयमीन के क़बीले का कमाँडर इलियदा था जो ज़बरदस्त फ़ौजी था। उसके तहत कमान और ढालों से लैस 2,00,000 फ़ौजी थे। \v 18 उसके अलावा यहूज़बद था जिसके 1,80,000 मुसल्लह आदमी थे। \p \v 19 सब फ़ौज में बादशाह की ख़िदमत सरंजाम देते थे। उनमें वह फ़ौजी नहीं शुमार किए जाते थे जिन्हें बादशाह ने पूरे यहूदाह के क़िलाबंद शहरों में रखा हुआ था। \c 18 \s1 झूटे नबियों और मीकायाह का मुक़ाबला \p \v 1 ग़रज़ यहूसफ़त को बड़ी दौलत और इज़्ज़त हासिल हुई। उसने अपने पहलौठे की शादी इसराईल के बादशाह अख़ियब की बेटी से कराई। \p \v 2 कुछ साल के बाद वह अख़ियब से मिलने के लिए सामरिया गया। इसराईल के बादशाह ने यहूसफ़त और उसके साथियों के लिए बहुत-सी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल ज़बह किए। फिर उसने यहूसफ़त को अपने साथ रामात-जिलियाद से जंग करने पर उकसाया। \v 3 अख़ियब ने यहूसफ़त से सवाल किया, “क्या आप मेरे साथ रामात-जिलियाद जाएंगे ताकि उस पर क़ब्ज़ा करें?” उसने जवाब दिया, “जी ज़रूर, हम तो भाई हैं, मेरी क़ौम को अपनी क़ौम समझें! हम आपके साथ मिलकर लड़ने के लिए निकलेंगे। \v 4 लेकिन मेहरबानी करके पहले रब की मरज़ी मालूम कर लें।” \p \v 5 इसराईल के बादशाह ने 400 नबियों को बुलाकर उनसे पूछा, “क्या हम रामात-जिलियाद पर हमला करें या मैं इस इरादे से बाज़ रहूँ?” नबियों ने जवाब दिया, “जी, करें, क्योंकि अल्लाह उसे बादशाह के हवाले कर देगा।” \p \v 6 लेकिन यहूसफ़त मुतमइन न हुआ। उसने पूछा, “क्या यहाँ रब का कोई नबी नहीं जिससे हम दरियाफ़्त कर सकें?” \v 7 इसराईल का बादशाह बोला, “हाँ, एक तो है जिसके ज़रीए हम रब की मरज़ी मालूम कर सकते हैं। लेकिन मैं उससे नफ़रत करता हूँ, क्योंकि वह मेरे बारे में कभी भी अच्छी पेशगोई नहीं करता। वह हमेशा बुरी पेशगोइयाँ सुनाता है। उसका नाम मीकायाह बिन इमला है।” यहूसफ़त ने एतराज़ किया, “बादशाह ऐसी बात न कहे!” \v 8 तब इसराईल के बादशाह ने किसी मुलाज़िम को बुलाकर हुक्म दिया, “मीकायाह बिन इमला को फ़ौरन हमारे पास पहुँचा देना!” \p \v 9 अख़ियब और यहूसफ़त अपने शाही लिबास पहने हुए सामरिया के दरवाज़े के क़रीब अपने अपने तख़्त पर बैठे थे। यह ऐसी खुली जगह थी जहाँ अनाज गाहा जाता था। तमाम 400 नबी वहाँ उनके सामने अपनी पेशगोइयाँ पेश कर रहे थे। \v 10 एक नबी बनाम सिदक़ियाह बिन कनाना ने अपने लिए लोहे के सींग बनाकर एलान किया, “रब फ़रमाता है कि इन सींगों से तू शाम के फ़ौजियों को मार मारकर हलाक कर देगा।” \p \v 11 दूसरे नबी भी इस क़िस्म की पेशगोइयाँ कर रहे थे, “रामात-जिलियाद पर हमला करें, क्योंकि आप ज़रूर कामयाब हो जाएंगे। रब शहर को आपके हवाले कर देगा।” \p \v 12 जिस मुलाज़िम को मीकायाह को बुलाने के लिए भेजा गया था उसने रास्ते में उसे समझाया, “देखें, बाक़ी तमाम नबी मिलकर कह रहे हैं कि बादशाह को कामयाबी हासिल होगी। आप भी ऐसी ही बातें करें, आप भी फ़तह की पेशगोई करें!” \v 13 लेकिन मीकायाह ने एतराज़ किया, “रब की हयात की क़सम, मैं बादशाह को सिर्फ़ वही कुछ बताऊँगा जो मेरा ख़ुदा फ़रमाएगा।” \p \v 14 जब मीकायाह अख़ियब के सामने खड़ा हुआ तो बादशाह ने पूछा, “मीकायाह, क्या हम रामात-जिलियाद पर हमला करें या मैं इस इरादे से बाज़ रहूँ?” \p मीकायाह ने जवाब दिया, “उस पर हमला करें, क्योंकि उन्हें आपके हवाले कर दिया जाएगा, और आपको कामयाबी हासिल होगी।” \v 15 बादशाह नाराज़ हुआ, “मुझे कितनी दफ़ा आपको समझाना पड़ेगा कि आप क़सम खाकर मुझे रब के नाम में सिर्फ़ वह कुछ सुनाएँ जो हक़ीक़त है।” \p \v 16 तब मीकायाह ने जवाब में कहा, “मुझे तमाम इसराईल गल्लाबान से महरूम भेड़-बकरियों की तरह पहाड़ों पर बिखरा हुआ नज़र आया। फिर रब मुझसे हमकलाम हुआ, ‘इनका कोई मालिक नहीं है। हर एक सलामती से अपने घर वापस चला जाए’।” \p \v 17 इसराईल के बादशाह ने यहूसफ़त से कहा, “लो, क्या मैंने आपको नहीं बताया था कि यह शख़्स हमेशा मेरे बारे में बुरी पेशगोइयाँ करता है?” \p \v 18 लेकिन मीकायाह ने अपनी बात जारी रखी, “रब का फ़रमान सुनें! मैंने रब को उसके तख़्त पर बैठे देखा। आसमान की पूरी फ़ौज उसके दाएँ और बाएँ हाथ खड़ी थी। \v 19 रब ने पूछा, ‘कौन इसराईल के बादशाह अख़ियब को रामात-जिलियाद पर हमला करने पर उकसाएगा ताकि वह वहाँ जाकर मर जाए?’ एक ने यह मशवरा दिया, दूसरे ने वह। \v 20 आख़िरकार एक रूह रब के सामने खड़ी हुई और कहने लगी, ‘मैं उसे उकसाऊँगी’। रब ने सवाल किया, ‘किस तरह?’ \v 21 रूह ने जवाब दिया, ‘मैं निकलकर उसके तमाम नबियों पर यों क़ाबू पाऊँगी कि वह झूट ही बोलेंगे।’ रब ने फ़रमाया, ‘तू कामयाब होगी। जा और यों ही कर!’ \v 22 ऐ बादशाह, रब ने आप पर आफ़त लाने का फ़ैसला कर लिया है, इसलिए उसने झूटी रूह को आपके इन तमाम नबियों के मुँह में डाल दिया है।” \p \v 23 तब सिदक़ियाह बिन कनाना ने आगे बढ़कर मीकायाह के मुँह पर थप्पड़ मारा और बोला, “रब का रूह किस तरह मुझसे निकल गया ताकि तुझसे बात करे?” \v 24 मीकायाह ने जवाब दिया, “जिस दिन आप कभी इस कमरे में, कभी उसमें खिसककर छुपने की कोशिश करेंगे उस दिन आपको पता चलेगा।” \p \v 25 तब अख़ियब बादशाह ने हुक्म दिया, “मीकायाह को शहर पर मुक़र्रर अफ़सर अमून और मेरे बेटे युआस के पास वापस भेज दो! \v 26 उन्हें बता देना, ‘इस आदमी को जेल में डालकर मेरे सहीह-सलामत वापस आने तक कम से कम रोटी और पानी दिया करें’।” \v 27 मीकायाह बोला, “अगर आप सहीह-सलामत वापस आएँ तो मतलब होगा कि रब ने मेरी मारिफ़त बात नहीं की।” फिर वह साथ खड़े लोगों से मुख़ातिब हुआ, “तमाम लोग ध्यान दें!” \s1 अख़ियब रामात के क़रीब मर जाता है \p \v 28 इसके बाद इसराईल का बादशाह अख़ियब और यहूदाह का बादशाह यहूसफ़त मिलकर रामात-जिलियाद पर हमला करने के लिए रवाना हुए। \v 29 जंग से पहले अख़ियब ने यहूसफ़त से कहा, “मैं अपना भेस बदलकर मैदाने-जंग में जाऊँगा। लेकिन आप अपना शाही लिबास न उतारें।” चुनाँचे इसराईल का बादशाह अपना भेस बदलकर मैदाने-जंग में आया। \v 30 शाम के बादशाह ने रथों पर मुक़र्रर अपने अफ़सरों को हुक्म दिया था, “सिर्फ़ और सिर्फ़ बादशाह पर हमला करें। किसी और से मत लड़ना, ख़ाह वह छोटा हो या बड़ा।” \p \v 31 जब लड़ाई छिड़ गई तो रथों के अफ़सर यहूसफ़त पर टूट पड़े, क्योंकि उन्होंने कहा, “यही इसराईल का बादशाह है!” लेकिन जब यहूसफ़त मदद के लिए चिल्ला उठा तो रब ने उस की सुनी। उसने उनका ध्यान यहूसफ़त से खींच लिया, \v 32 क्योंकि जब दुश्मनों को मालूम हुआ कि यह अख़ियब बादशाह नहीं है तो वह उसका ताक़्क़ुब करने से बाज़ आए। \v 33 लेकिन किसी ने ख़ास निशाना बाँधे बग़ैर अपना तीर चलाया तो वह अख़ियब को ऐसी जगह जा लगा जहाँ ज़िरा-बकतर का जोड़ था। बादशाह ने अपने रथबान को हुक्म दिया, “रथ को मोड़कर मुझे मैदाने-जंग से बाहर ले जाओ! मुझे चोट लग गई है।” \v 34 लेकिन चूँकि उस पूरे दिन शदीद क़िस्म की लड़ाई जारी रही, इसलिए बादशाह अपने रथ में टेक लगाकर दुश्मन के मुक़ाबिल खड़ा रहा। जब सूरज ग़ुरूब होने लगा तो वह मर गया। \c 19 \p \v 1 लेकिन यहूदाह का बादशाह यहूसफ़त सहीह-सलामत यरूशलम और अपने महल में पहुँचा। \v 2 उस वक़्त याहू बिन हनानी जो ग़ैबबीन था उसे मिलने के लिए निकला और बादशाह से कहा, “क्या यह ठीक है कि आप शरीर की मदद करें? आप क्यों उनको प्यार करते हैं जो रब से नफ़रत करते हैं? यह देखकर रब का ग़ज़ब आप पर नाज़िल हुआ है। \v 3 तो भी आपमें अच्छी बातें भी पाई जाती हैं। आपने यसीरत देवी के खंबों को मुल्क से दूर करके अल्लाह के तालिब होने का पक्का इरादा कर रखा है।” \s1 यहूसफ़त क़ानूनी काररवाई की इसलाह करता है \p \v 4 इसके बाद यहूसफ़त यरूशलम में रहा। लेकिन एक दिन वह दुबारा निकला। इस बार उसने जुनूब में बैर-सबा से लेकर शिमाल में इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े तक पूरे यहूदाह का दौरा किया। हर जगह वह लोगों को रब उनके बापदादा के ख़ुदा के पास वापस लाया। \v 5 उसने यहूदाह के तमाम क़िलाबंद शहरों में क़ाज़ी भी मुक़र्रर किए। \v 6 उन्हें समझाते हुए उसने कहा, “अपनी रविश पर ध्यान दें! याद रहे कि आप इनसान के जवाबदेह नहीं हैं बल्कि रब के। वही आपके साथ होगा जब आप फ़ैसले करेंगे। \v 7 चुनाँचे अल्लाह का ख़ौफ़ मानकर एहतियात से लोगों का इनसाफ़ करें। क्योंकि जहाँ रब हमारा ख़ुदा है वहाँ बेइनसाफ़ी, जानिबदारी और रिश्वतख़ोरी हो ही नहीं सकती।” \p \v 8 यरूशलम में यहूसफ़त ने कुछ लावियों, इमामों और ख़ानदानी सरपरस्तों को इनसाफ़ करने की ज़िम्मादारी दी। रब की शरीअत से मुताल्लिक़ किसी मामले या यरूशलम के बाशिंदों के दरमियान झगड़े की सूरत में उन्हें फ़ैसला करना था। \v 9 यहूसफ़त ने उन्हें समझाते हुए कहा, “रब का ख़ौफ़ मानकर अपनी ख़िदमत को वफ़ादारी और पूरे दिल से सरंजाम दें। \v 10 आपके भाई शहरों से आकर आपके सामने अपने झगड़े पेश करेंगे ताकि आप उनका फ़ैसला करें। आपको क़त्ल के मुक़दमों का फ़ैसला करना पड़ेगा। ऐसे मामलात भी होंगे जो रब की शरीअत, किसी हुक्म, हिदायत या उसूल से ताल्लुक़ रखेंगे। जो भी हो, लाज़िम है कि आप उन्हें समझाएँ ताकि वह रब का गुनाह न करें। वरना उसका ग़ज़ब आप और आपके भाइयों पर नाज़िल होगा। अगर आप यह करें तो आप बेक़ुसूर रहेंगे। \v 11 इमामे-आज़म अमरियाह रब की शरीअत से ताल्लुक़ रखनेवाले मामलात का हतमी फ़ैसला करेगा। जो मुक़दमे बादशाह से ताल्लुक़ रखते हैं उनका हतमी फ़ैसला यहूदाह के क़बीले का सरबराह ज़बदियाह बिन इसमाईल करेगा। अदालत का इंतज़ाम चलाने में लावी आपकी मदद करेंगे। अब हौसला रखकर अपनी ख़िदमत सरंजाम दें। जो भी सहीह काम करेगा उसके साथ रब होगा।” \c 20 \s1 अम्मोनियों का यहूदाह पर हमला \p \v 1 कुछ देर के बाद मोआबी, अम्मोनी और कुछ मऊनी यहूसफ़त से जंग करने के लिए निकले। \v 2 एक क़ासिद ने आकर बादशाह को इत्तला दी, “मुल्के-अदोम से एक बड़ी फ़ौज आपसे लड़ने के लिए आ रही है। वह बहीराए-मुरदार के दूसरे किनारे से बढ़ती बढ़ती इस वक़्त हससून-तमर पहुँच चुकी है” (हससून ऐन-जदी का दूसरा नाम है)। \p \v 3 यह सुनकर यहूसफ़त घबरा गया। उसने रब से राहनुमाई माँगने का फ़ैसला करके एलान किया कि तमाम यहूदाह रोज़ा रखे। \v 4 यहूदाह के तमाम शहरों से लोग यरूशलम आए ताकि मिलकर मदद के लिए रब से दुआ माँगें। \v 5 वह रब के घर के नए सहन में जमा हुए और यहूसफ़त ने सामने आकर \v 6 दुआ की, \p “ऐ रब, हमारे बापदादा के ख़ुदा! तू ही आसमान पर तख़्तनशीन ख़ुदा है, और तू ही दुनिया के तमाम ममालिक पर हुकूमत करता है। तेरे हाथ में क़ुदरत और ताक़त है। कोई भी तेरा मुक़ाबला नहीं कर सकता। \v 7 ऐ हमारे ख़ुदा, तूने इस मुल्क के पुराने बाशिंदों को अपनी क़ौम इसराईल के आगे से निकाल दिया। इब्राहीम तेरा दोस्त था, और उस की औलाद को तूने यह मुल्क हमेशा के लिए दे दिया। \v 8 इसमें तेरी क़ौम आबाद हुई। तेरे नाम की ताज़ीम में मक़दिस बनाकर उन्होंने कहा, \v 9 ‘जब भी आफ़त हम पर आए तो हम यहाँ तेरे हुज़ूर आ सकेंगे, चाहे जंग, वबा, काल या कोई और सज़ा हो। अगर हम उस वक़्त इस घर के सामने खड़े होकर मदद के लिए तुझे पुकारें तो तू हमारी सुनकर हमें बचाएगा, क्योंकि इस इमारत पर तेरे ही नाम का ठप्पा लगा है।’ \p \v 10 अब अम्मोन, मोआब और पहाड़ी मुल्क सईर की हरकतों को देख! जब इसराईल मिसर से निकला तो तूने उसे इन क़ौमों पर हमला करने और इनके इलाक़े में से गुज़रने की इजाज़त न दी। इसराईल को मुतबादिल रास्ता इख़्तियार करना पड़ा, क्योंकि उसे इन्हें हलाक करने की इजाज़त न मिली। \v 11 अब ध्यान दे कि यह बदले में क्या कर रहे हैं। यह हमें उस मौरूसी ज़मीन से निकालना चाहते हैं जो तूने हमें दी थी। \v 12 ऐ हमारे ख़ुदा, क्या तू उनकी अदालत नहीं करेगा? हम तो इस बड़ी फ़ौज के मुक़ाबले में बेबस हैं। इसके हमले से बचने का रास्ता हमें नज़र नहीं आता, लेकिन हमारी आँखें मदद के लिए तुझ पर लगी हैं।” \p \v 13 यहूदाह के तमाम मर्द, औरतें और बच्चे वहाँ रब के हुज़ूर खड़े रहे। \v 14 तब रब का रूह एक लावी बनाम यहज़ियेल पर नाज़िल हुआ जब वह जमात के दरमियान खड़ा था। यह आदमी आसफ़ के ख़ानदान का था, और उसका पूरा नाम यहज़ियेल बिन ज़करियाह बिन बिनायाह बिन यइयेल बिन मत्तनियाह था। \v 15 उसने कहा, “यहूदाह और यरूशलम के लोगो, मेरी बात सुनें! ऐ बादशाह, आप भी इस पर ध्यान दें। रब फ़रमाता है कि डरो मत, और इस बड़ी फ़ौज को देखकर मत घबराना। क्योंकि यह जंग तुम्हारा नहीं बल्कि मेरा मामला है। \v 16 कल उनके मुक़ाबले के लिए निकलो। उस वक़्त वह दर्राए-सीस से होकर तुम्हारी तरफ़ बढ़ रहे होंगे। तुम्हारा उनसे मुक़ाबला उस वादी के सिरे पर होगा जहाँ यरुएल का रेगिस्तान शुरू होता है। \v 17 लेकिन तुम्हें लड़ने की ज़रूरत नहीं होगी। बस दुश्मन के आमने-सामने खड़े होकर रुक जाओ और देखो कि रब किस तरह तुम्हें छुटकारा देगा। लिहाज़ा मत डरो, ऐ यहूदाह और यरूशलम, और दहशत मत खाओ। कल उनका सामना करने के लिए निकलो, क्योंकि रब तुम्हारे साथ होगा।” \p \v 18 यह सुनकर यहूसफ़त मुँह के बल झुक गया। यहूदाह और यरूशलम के तमाम लोगों ने भी औंधे मुँह झुककर रब की परस्तिश की। \v 19 फिर क़िहात और क़ोरह के ख़ानदानों के कुछ लावी खड़े होकर बुलंद आवाज़ से रब इसराईल के ख़ुदा की हम्दो-सना करने लगे। \s1 अम्मोनियों पर फ़तह \p \v 20 अगले दिन सुबह-सवेरे यहूदाह की फ़ौज तक़ुअ के रेगिस्तान के लिए रवाना हुई। निकलते वक़्त यहूसफ़त ने उनके सामने खड़े होकर कहा, “यहूदाह और यरूशलम के मर्दो, मेरी बात सुनें! रब अपने ख़ुदा पर भरोसा रखें तो आप क़ायम रहेंगे। उसके नबियों की बातों का यक़ीन करें तो आपको कामयाबी हासिल होगी।” \v 21 लोगों से मशवरा करके यहूसफ़त ने कुछ मर्दों को रब की ताज़ीम में गीत गाने के लिए मुक़र्रर किया। मुक़द्दस लिबास पहने हुए वह फ़ौज के आगे आगे चलकर हम्दो-सना का यह गीत गाते रहे, “रब की सताइश करो, क्योंकि उस की शफ़क़त अबदी है।” \p \v 22 उस वक़्त रब हमलाआवर फ़ौज के मुख़ालिफ़ों को खड़ा कर चुका था। अब जब यहूदाह के मर्द हम्द के गीत गाने लगे तो वह ताक में से निकलकर बढ़ती हुई फ़ौज पर टूट पड़े और उसे शिकस्त दी। \v 23 फिर अम्मोनियों और मोआबियों ने मिलकर पहाड़ी मुल्क सईर के मर्दों पर हमला किया ताकि उन्हें मुकम्मल तौर पर ख़त्म कर दें। जब यह हलाक हुए तो अम्मोनी और मोआबी एक दूसरे को मौत के घाट उतारने लगे। \v 24 यहूदाह के फ़ौजियों को इसका इल्म नहीं था। चलते चलते वह उस मक़ाम तक पहुँच गए जहाँ से रेगिस्तान नज़र आता है। वहाँ वह दुश्मन को तलाश करने लगे, लेकिन लाशें ही लाशें ज़मीन पर बिखरी नज़र आईं। एक भी दुश्मन नहीं बचा था। \v 25 यहूसफ़त और उसके लोगों के लिए सिर्फ़ दुश्मन को लूटने का काम बाक़ी रह गया था। कसरत के जानवर, क़िस्म क़िस्म का सामान, कपड़े और कई क़ीमती चीज़ें थीं। इतना सामान था कि वह उसे एक वक़्त में उठाकर अपने साथ ले जा नहीं सकते थे। सारा माल जमा करने में तीन दिन लगे। \p \v 26 चौथे दिन वह क़रीब की एक वादी में जमा हुए ताकि रब की तारीफ़ करें। उस वक़्त से वादी का नाम ‘तारीफ़ की वादी’ पड़ गया। \v 27 इसके बाद यहूदाह और यरूशलम के तमाम मर्द यहूसफ़त की राहनुमाई में ख़ुशी मनाते हुए यरूशलम वापस आए। क्योंकि रब ने उन्हें दुश्मन की शिकस्त से ख़ुशी का सुनहरा मौक़ा अता किया था। \v 28 सितार, सरोद और तुरम बजाते हुए वह यरूशलम में दाख़िल हुए और रब के घर के पास जा पहुँचे। \v 29 जब इर्दगिर्द के ममालिक ने सुना कि किस तरह रब इसराईल के दुश्मनों से लड़ा है तो उनमें अल्लाह की दहशत फैल गई। \v 30 उस वक़्त से यहूसफ़त सुकून से हुकूमत कर सका, क्योंकि अल्लाह ने उसे चारों तरफ़ के ममालिक के हमलों से महफ़ूज़ रखा था। \s1 यहूसफ़त के आख़िरी साल और मौत \p \v 31 यहूसफ़त 35 साल की उम्र में बादशाह बना, और वह यरूशलम में रहकर 25 साल हुकूमत करता रहा। उस की माँ अज़ूबा बिंत सिलही थी। \v 32 वह अपने बाप आसा के नमूने पर चलता और वह कुछ करता रहा जो रब को पसंद था। \v 33 लेकिन उसने भी ऊँचे मक़ामों के मंदिरों को ख़त्म न किया, और लोगों के दिल अपने बापदादा के ख़ुदा की तरफ़ मायल न हुए। \p \v 34 बाक़ी जो कुछ यहूसफ़त की हुकूमत के दौरान हुआ वह शुरू से लेकर आख़िर तक याहू बिन हनानी की तारीख़ में बयान किया गया है। बाद में सब कुछ ‘शाहाने-इसराईल की तारीख़’ की किताब में दर्ज किया गया। \p \v 35 बाद में यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त ने इसराईल के बादशाह अख़ज़ियाह से इत्तहाद किया, गो उसका रवैया बेदीनी का था। \v 36 दोनों ने मिलकर तिजारती जहाज़ों का ऐसा बेड़ा बनवाया जो तरसीस तक पहुँच सके। जब यह जहाज़ बंदरगाह अस्यून-जाबर में तैयार हुए \v 37 तो मरेसा का रहनेवाला इलियज़र बिन दूदावाहू ने यहूसफ़त के ख़िलाफ़ पेशगोई की, “चूँकि आप अख़ज़ियाह के साथ मुत्तहिद हो गए हैं इसलिए रब आपका काम तबाह कर देगा!” और वाक़ई, यह जहाज़ कभी अपनी मनज़िले-मक़सूद तरसीस तक पहुँच न सके, क्योंकि वह पहले ही टुकड़े टुकड़े हो गए। \c 21 \p \v 1 जब यहूसफ़त मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे यरूशलम के उस हिस्से में जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है ख़ानदानी क़ब्र में दफ़न किया गया। फिर उसका बेटा यहूराम तख़्तनशीन हुआ। \s1 यहूदाह का बादशाह यहूराम \p \v 2 यहूसफ़त के बाक़ी बेटे अज़रियाह, यहियेल, ज़करियाह, अज़रियाहू, मीकाएल और सफ़तियाह थे। \v 3 यहूसफ़त ने उन्हें बहुत सोना-चाँदी और दीगर क़ीमती चीज़ें देकर यहूदाह के क़िलाबंद शहरों पर मुक़र्रर किया था। लेकिन यहूराम को उसने पहलौठा होने के बाइस अपना जा-नशीन बनाया था। \v 4 बादशाह बनने के बाद जब यहूदाह की हुकूमत मज़बूती से उसके हाथ में थी तो यहूराम ने अपने तमाम भाइयों को यहूदाह के कुछ राहनुमाओं समेत क़त्ल कर दिया। \p \v 5 यहूराम 32 साल की उम्र में बादशाह बना, और वह यरूशलम में रहकर 8 साल तक हुकूमत करता रहा। \v 6 उस की शादी इसराईल के बादशाह अख़ियब की बेटी से हुई थी, और वह इसराईल के बादशाहों और ख़ासकर अख़ियब के ख़ानदान के बुरे नमूने पर चलता रहा। उसका चाल-चलन रब को नापसंद था। \v 7 तो भी वह दाऊद के घराने को तबाह नहीं करना चाहता था, क्योंकि उसने दाऊद से अहद बाँधकर वादा किया था कि तेरा और तेरी औलाद का चराग़ हमेशा तक जलता रहेगा। \p \v 8 यहूराम की हुकूमत के दौरान अदोमियों ने बग़ावत की और यहूदाह की हुकूमत को रद्द करके अपना बादशाह मुक़र्रर किया। \v 9 तब यहूराम अपने अफ़सरों और तमाम रथों को लेकर उनके पास पहुँचा। जब जंग छिड़ गई तो अदोमियों ने उसे और उसके रथों पर मुक़र्रर अफ़सरों को घेर लिया, लेकिन रात को बादशाह घेरनेवालों की सफ़ों को तोड़ने में कामयाब हो गया। \v 10 तो भी मुल्के-अदोम आज तक दुबारा यहूदाह की हुकूमत के तहत नहीं आया। उसी वक़्त लिबना शहर भी सरकश होकर ख़ुदमुख़तार हो गया। यह सब कुछ इसलिए हुआ कि यहूराम ने रब अपने बापदादा के ख़ुदा को तर्क कर दिया था, \v 11 यहाँ तक कि उसने यहूदाह के पहाड़ी इलाक़े में कई ऊँची जगहों पर मंदिर बनवाए और यरूशलम के बाशिंदों को रब से बेवफ़ा हो जाने पर उकसाया। पूरे यहूदाह को वह बुतपरस्ती की ग़लत राह पर ले आया। \p \v 12 तब यहूराम को इलियास नबी से ख़त मिला जिसमें लिखा था, “रब आपके बाप दाऊद का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘तू अपने बाप यहूसफ़त और अपने दादा आसा बादशाह के अच्छे नमूने पर नहीं चला \v 13 बल्कि इसराईल के बादशाहों की ग़लत राहों पर। बिलकुल अख़ियब के ख़ानदान की तरह तू यरूशलम और पूरे यहूदाह के बाशिंदों को बुतपरस्ती की राह पर लाया है। और यह तेरे लिए काफ़ी नहीं था, बल्कि तूने अपने सगे भाइयों को भी जो तुझसे बेहतर थे क़त्ल कर दिया। \v 14 इसलिए रब तेरी क़ौम, तेरे बेटों और तेरी बीवियों को तेरी पूरी मिलकियत समेत बड़ी मुसीबत में डालने को है। \v 15 तू ख़ुद बीमार हो जाएगा। लाइलाज मरज़ की ज़द में आकर तुझे बड़ी देर तक तकलीफ़ होगी। आख़िरकार तेरी अंतड़ियाँ जिस्म से निकलेंगी’।” \p \v 16 उन दिनों में रब ने फ़िलिस्तियों और एथोपिया के पड़ोस में रहनेवाले अरब क़बीलों को यहूराम पर हमला करने की तहरीक दी। \v 17 यहूदाह में घुसकर वह यरूशलम तक पहुँच गए और बादशाह के महल को लूटने में कामयाब हुए। तमाम मालो-असबाब के अलावा उन्होंने बादशाह के बेटों और बीवियों को भी छीन लिया। सिर्फ़ सबसे छोटा बेटा यहुआख़ज़ यानी अख़ज़ियाह बच निकला। \p \v 18 इसके बाद रब का ग़ज़ब बादशाह पर नाज़िल हुआ। उसे लाइलाज बीमारी लग गई जिससे उस की अंतड़ियाँ मुतअस्सिर हुईं। \v 19 बादशाह की हालत बहुत ख़राब होती गई। दो साल के बाद अंतड़ियाँ जिस्म से निकल गईं। यहूराम शदीद दर्द की हालत में कूच कर गया। जनाज़े पर उस की क़ौम ने उसके एहतराम में लकड़ी का बड़ा ढेर न जलाया, गो उन्होंने यह उसके बापदादा के लिए किया था। \p \v 20 यहूराम 32 साल की उम्र में बादशाह बना और यरूशलम में रहकर 8 साल तक हुकूमत करता रहा था। जब फ़ौत हुआ तो किसी को भी अफ़सोस न हुआ। उसे यरूशलम शहर के उस हिस्से में दफ़न तो किया गया जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है, लेकिन शाही क़ब्रों में नहीं। \c 22 \s1 यहूदाह का बादशाह अख़ज़ियाह \p \v 1 यरूशलम के बाशिंदों ने यहूराम के सबसे छोटे बेटे अख़ज़ियाह को तख़्त पर बिठा दिया। बाक़ी तमाम बेटों को उन लुटेरों ने क़त्ल किया था जो अरबों के साथ शाही लशकरगाह में घुस आए थे। यही वजह थी कि यहूदाह के बादशाह यहूराम का बेटा अख़ज़ियाह बादशाह बना। \v 2 वह 22 साल की उम्र में तख़्तनशीन हुआ और यरूशलम में रहकर एक साल बादशाह रहा। उस की माँ अतलियाह इसराईल के बादशाह उमरी की पोती थी। \v 3 अख़ज़ियाह भी अख़ियब के ख़ानदान के ग़लत नमूने पर चल पड़ा, क्योंकि उस की माँ उसे बेदीन राहों पर चलने पर उभारती रही। \v 4 बाप की वफ़ात पर वह अख़ियब के घराने के मशवरे पर चलने लगा। नतीजे में उसका चाल-चलन रब को नापसंद था। आख़िरकार यही लोग उस की हलाकत का सबब बन गए। \p \v 5 इन्हीं के मशवरे पर वह इसराईल के बादशाह यूराम बिन अख़ियब के साथ मिलकर शाम के बादशाह हज़ाएल से लड़ने के लिए निकला। जब रामात-जिलियाद के क़रीब जंग छिड़ गई तो यूराम शाम के फ़ौजियों के हाथों ज़ख़मी हुआ \v 6 और मैदाने-जंग को छोड़कर यज़्रएल वापस आया ताकि ज़ख़म भर जाएँ। जब वह वहाँ ठहरा हुआ था तो यहूदाह का बादशाह अख़ज़ियाह बिन यहूराम उसका हाल पूछने के लिए यज़्रएल आया। \v 7 लेकिन अल्लाह की मरज़ी थी कि यह मुलाक़ात अख़ज़ियाह की हलाकत का बाइस बने। वहाँ पहुँचकर वह यूराम के साथ याहू बिन निमसी से मिलने के लिए निकला, वही याहू जिसे रब ने मसह करके अख़ियब के ख़ानदान को नेस्तो-नाबूद करने के लिए मख़सूस किया था। \v 8 अख़ियब के ख़ानदान की अदालत करते करते याहू की मुलाक़ात यहूदाह के कुछ अफ़सरों और अख़ज़ियाह के बाज़ रिश्तेदारों से हुई जो अख़ज़ियाह की ख़िदमत में उसके साथ आए थे। इन्हें क़त्ल करके \v 9 याहू अख़ज़ियाह को ढूँडने लगा। पता चला कि वह सामरिया शहर में छुप गया है। उसे याहू के पास लाया गया जिसने उसे क़त्ल कर दिया। तो भी उसे इज़्ज़त के साथ दफ़न किया गया, क्योंकि लोगों ने कहा, “आख़िर वह यहूसफ़त का पोता है जो पूरे दिल से रब का तालिब रहा।” उस वक़्त अख़ज़ियाह के ख़ानदान में कोई न पाया गया जो बादशाह का काम सँभाल सकता। \s1 अतलियाह की ज़ालिमाना हुकूमत \p \v 10 जब अख़ज़ियाह की माँ अतलियाह को मालूम हुआ कि मेरा बेटा मर गया है तो वह यहूदाह के पूरे शाही ख़ानदान को क़त्ल करने लगी। \v 11 लेकिन अख़ज़ियाह की सगी बहन यहूसबा ने अख़ज़ियाह के छोटे बेटे युआस को चुपके से उन शहज़ादों में से निकाल लिया जिन्हें क़त्ल करना था और उसे उस की दाया के साथ एक स्टोर में छुपा दिया जिसमें बिस्तर वग़ैरा महफ़ूज़ रखे जाते थे। वहाँ वह अतलियाह की गिरिफ़्त से महफ़ूज़ रहा। यहूसबा यहोयदा इमाम की बीवी थी। \v 12 बाद में युआस को रब के घर में मुंतक़िल किया गया जहाँ वह उनके साथ उन छः सालों के दौरान छुपा रहा जब अतलियाह मलिका थी। \c 23 \s1 अतलियाह का अंजाम और युआस की हुकूमत \p \v 1 अतलियाह की हुकूमत के सातवें साल में यहोयदा ने जुर्रत करके सौ सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर पाँच अफ़सरों से अहद बाँधा। उनके नाम अज़रियाह बिन यरोहाम, इसमाईल बिन यूहनान, अज़रियाह बिन ओबेद, मासियाह बिन अदायाह और इलीसाफ़त बिन ज़िकरी थे। \v 2 इन आदमियों ने चुपके से यहूदाह के तमाम शहरों में से गुज़रकर लावियों और इसराईली ख़ानदानों के सरपरस्तों को जमा किया और फिर उनके साथ मिलकर यरूशलम आए। \v 3 अल्लाह के घर में पूरी जमात ने जवान बादशाह युआस के साथ अहद बाँधा। \p यहोयदा उनसे मुख़ातिब हुआ, “हमारे बादशाह का बेटा ही हम पर हुकूमत करे, क्योंकि रब ने मुक़र्रर किया है कि दाऊद की औलाद यह ज़िम्मादारी सँभाले। \v 4 चुनाँचे अगले सबत के दिन आप इमामों और लावियों में से जितने ड्यूटी पर आएँगे वह तीन हिस्सों में तक़सीम हो जाएँ। एक हिस्सा रब के घर के दरवाज़ों पर पहरा दे, \v 5 दूसरा शाही महल पर और तीसरा बुनियाद नामी दरवाज़े पर। बाक़ी सब आदमी रब के घर के सहनों में जमा हो जाएँ। \v 6 ख़िदमत करनेवाले इमामों और लावियों के सिवा कोई और रब के घर में दाख़िल न हो। सिर्फ़ यही अंदर जा सकते हैं, क्योंकि रब ने उन्हें इस ख़िदमत के लिए मख़सूस किया है। लाज़िम है कि पूरी क़ौम रब की हिदायात पर अमल करे। \v 7 बाक़ी लावी बादशाह के इर्दगिर्द दायरा बनाकर अपने हथियारों को पकड़े रखें और जहाँ भी वह जाए उसे घेरे रखें। जो भी रब के घर में घुसने की कोशिश करे उसे मार डालना।” \p \v 8 लावी और यहूदाह के इन तमाम मर्दों ने ऐसा ही किया। अगले सबत के दिन सब अपने बंदों समेत उसके पास आए, वह भी जिनकी ड्यूटी थी और वह भी जिनकी अब छुट्टी थी। क्योंकि यहोयदा ने ख़िदमत करनेवालों में से किसी को भी जाने की इजाज़त नहीं दी थी। \v 9 इमाम ने सौ सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर अफ़सरों को दाऊद बादशाह के वह नेज़े और छोटी और बड़ी ढालें दीं जो अब तक रब के घर में महफ़ूज़ रखी हुई थीं। \v 10 फिर उसने फ़ौजियों को बादशाह के इर्दगिर्द खड़ा किया। हर एक अपने हथियार पकड़े तैयार था। क़ुरबानगाह और रब के घर के दरमियान उनका दायरा रब के घर की जुनूबी दीवार से लेकर उस की शिमाली दीवार तक फैला हुआ था। \v 11 फिर वह युआस को बाहर लाए और उसके सर पर ताज रखकर उसे क़वानीन की किताब दे दी। यों युआस को बादशाह बना दिया गया। उन्होंने उसे मसह किया और बुलंद आवाज़ से नारा लगाने लगे, “बादशाह ज़िंदाबाद!” \p \v 12 लोगों का शोर अतलियाह तक पहुँचा, क्योंकि सब दौड़कर जमा हो रहे और बादशाह की ख़ुशी में नारे लगा रहे थे। वह रब के घर के सहन में उनके पास आई \v 13 तो क्या देखती है कि नया बादशाह दरवाज़े के क़रीब उस सतून के पास खड़ा है जहाँ बादशाह रिवाज के मुताबिक़ खड़ा होता है, और वह अफ़सरों और तुरम बजानेवालों से घिरा हुआ है। तमाम उम्मत भी साथ खड़ी तुरम बजा बजाकर ख़ुशी मना रही है। साथ साथ गुलूकार अपने साज़ बजाकर हम्द के गीत गाने में राहनुमाई कर रहे हैं। अतलियाह रंजिश के मारे अपने कपड़े फाड़कर चीख़ उठी, “ग़द्दारी, ग़द्दारी!” \p \v 14 यहोयदा इमाम ने सौ सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर उन अफ़सरों को बुलाया जिनके सुपुर्द फ़ौज की गई थी और उन्हें हुक्म दिया, “उसे बाहर ले जाएँ, क्योंकि मुनासिब नहीं कि उसे रब के घर के पास मारा जाए। और जो भी उसके पीछे आए उसे तलवार से मार देना।” \v 15 वह अतलियाह को पकड़कर वहाँ से बाहर ले गए और उसे घोड़ों के दरवाज़े पर मार दिया जो शाही महल के पास था। \p \v 16 फिर यहोयदा ने क़ौम और बादशाह के साथ मिलकर रब से अहद बाँधकर वादा किया कि हम रब की क़ौम रहेंगे। \v 17 इसके बाद सब बाल के मंदिर पर टूट पड़े और उसे ढा दिया। उस की क़ुरबानगाहों और बुतों को टुकड़े टुकड़े करके उन्होंने बाल के पुजारी मत्तान को क़ुरबानगाहों के सामने ही मार डाला। \p \v 18 यहोयदा ने इमामों और लावियों को दुबारा रब के घर को सँभालने की ज़िम्मादारी दी। दाऊद ने उन्हें ख़िदमत के लिए गुरोहों में तक़सीम किया था। उस की हिदायात के मुताबिक़ उन्हीं को ख़ुशी मनाते और गीत गाते हुए भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ पेश करनी थीं, जिस तरह मूसा की शरीअत में लिखा है। \v 19 रब के घर के दरवाज़ों पर यहोयदा ने दरबान खड़े किए ताकि ऐसे लोगों को अंदर आने से रोका जाए जो किसी भी वजह से नापाक हों। \p \v 20 फिर वह सौ सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर अफ़सरों, असरो-रसूख़वालों, क़ौम के हुक्मरानों और बाक़ी पूरी उम्मत के हमराह जुलूस निकालकर बादशाह को बालाई दरवाज़े से होकर शाही महल में ले गया। वहाँ उन्होंने बादशाह को तख़्त पर बिठा दिया, \v 21 और तमाम उम्मत ख़ुशी मनाती रही। यों यरूशलम शहर को सुकून मिला, क्योंकि अतलियाह को तलवार से मार दिया गया था। \c 24 \s1 युआस रब के घर की मरम्मत करवाता है \p \v 1 युआस 7 साल की उम्र में बादशाह बना, और यरूशलम में उस की हुकूमत का दौरानिया 40 साल था। उस की माँ ज़िबियाह बैर-सबा की रहनेवाली थी। \v 2 यहोयदा के जीते-जी युआस वह कुछ करता रहा जो रब को पसंद था। \v 3 यहोयदा ने उस की शादी दो ख़वातीन से कराई जिनके बेटे-बेटियाँ पैदा हुए। \p \v 4 कुछ देर के बाद युआस ने रब के घर की मरम्मत कराने का फ़ैसला किया। \v 5 इमामों और लावियों को अपने पास बुलाकर उसने उन्हें हुक्म दिया, “यहूदाह के शहरों में से गुज़रकर तमाम लोगों से पैसे जमा करें ताकि आप साल बसाल अपने ख़ुदा के घर की मरम्मत करवाएँ। अब जाकर जल्दी करें।” लेकिन लावियों ने बड़ी देर लगाई। \p \v 6 तब बादशाह ने इमामे-आज़म यहोयदा को बुलाकर पूछा, “आपने लावियों से मुतालबा क्यों नहीं किया कि वह यहूदाह के शहरों और यरूशलम से रब के घर की मरम्मत के पैसे जमा करें? यह तो कोई नई बात नहीं है, क्योंकि रब का ख़ादिम मूसा भी मुलाक़ात का ख़ैमा ठीक रखने के लिए इसराईली जमात से टैक्स लेता रहा। \v 7 आपको ख़ुद मालूम है कि उस बेदीन औरत अतलियाह ने अपने पैरोकारों के साथ रब के घर में नक़ब लगाकर रब के लिए मख़सूस हदिये छीन लिए और बाल के अपने बुतों की ख़िदमत के लिए इस्तेमाल किए थे।” \p \v 8 बादशाह के हुक्म पर एक संदूक़ बनवाया गया जो बाहर, रब के घर के सहन के दरवाज़े पर रखा गया। \v 9 पूरे यहूदाह और यरूशलम में एलान किया गया कि रब के लिए वह टैक्स अदा किया जाए जिसका ख़ुदा के ख़ादिम मूसा ने रेगिस्तान में इसराईलियों से मुतालबा किया था। \v 10 यह सुनकर तमाम राहनुमा बल्कि पूरी क़ौम ख़ुश हुई। अपने हदिये रब के घर के पास लाकर वह उन्हें संदूक़ में डालते रहे। जब कभी वह भर जाता \v 11 तो लावी उसे उठाकर बादशाह के अफ़सरों के पास ले जाते। अगर उसमें वाक़ई बहुत पैसे होते तो बादशाह का मीरमुंशी और इमामे-आज़म का एक अफ़सर आकर उसे ख़ाली कर देते। फिर लावी उसे उस की जगह वापस रख देते थे। यह सिलसिला रोज़ाना जारी रहा, और आख़िरकार बहुत बड़ी रक़म इकट्ठी हो गई। \p \v 12 बादशाह और यहोयदा यह पैसे उन ठेकेदारों को दिया करते थे जो रब के घर की मरम्मत करवाते थे। यह पैसे पत्थर तराशनेवालों, बढ़इयों और उन कारीगरों की उजरत के लिए सर्फ़ हुए जो लोहे और पीतल का काम करते थे। \v 13 रब के घर की मरम्मत के निगरानों ने मेहनत से काम किया, और उनके ज़ेरे-निगरानी तरक़्क़ी होती गई। आख़िर में रब के घर की हालत पहले की-सी हो गई थी बल्कि उन्होंने उसे मज़ीद मज़बूत बना दिया। \v 14 काम के इख़्तिताम पर ठेकेदार बाक़ी पैसे युआस बादशाह और यहोयदा के पास लाए। इनसे उन्होंने रब के घर की ख़िदमत के लिए दरकार प्याले, सोने और चाँदी के बरतन और दीगर कई चीज़ें जो क़ुरबानियाँ चढ़ाने के लिए इस्तेमाल होती थीं बनवाईं। यहोयदा के जीते-जी रब के घर में बाक़ायदगी से भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ पेश की जाती रहीं। \p \v 15 यहोयदा निहायत बूढ़ा हो गया। 130 साल की उम्र में वह फ़ौत हुआ। \v 16 उसे यरूशलम के उस हिस्से में शाही क़ब्रिस्तान में दफ़नाया गया जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है, क्योंकि उसने इसराईल में अल्लाह और उसके घर की अच्छी ख़िदमत की थी। \s1 युआस बादशाह रब को तर्क करता है \p \v 17 यहोयदा की मौत के बाद यहूदाह के बुज़ुर्ग युआस के पास आकर मुँह के बल झुक गए। उस वक़्त से वह उनके मशवरों पर अमल करने लगा। \v 18 इसका एक नतीजा यह निकला कि वह उनके साथ मिलकर रब अपने बाप के ख़ुदा के घर को छोड़कर यसीरत देवी के खंबों और बुतों की पूजा करने लगा। इस गुनाह की वजह से अल्लाह का ग़ज़ब यहूदाह और यरूशलम पर नाज़िल हुआ। \v 19 उसने अपने नबियों को लोगों के पास भेजा ताकि वह उन्हें समझाकर रब के पास वापस लाएँ। लेकिन कोई भी उनकी बात सुनने के लिए तैयार न हुआ। \v 20 फिर अल्लाह का रूह यहोयदा इमाम के बेटे ज़करियाह पर नाज़िल हुआ, और उसने क़ौम के सामने खड़े होकर कहा, “अल्लाह फ़रमाता है, ‘तुम रब के अहकाम की ख़िलाफ़वरज़ी क्यों करते हो? तुम्हें कामयाबी हासिल नहीं होगी। चूँकि तुमने रब को तर्क कर दिया है इसलिए उसने तुम्हें तर्क कर दिया है’!” \p \v 21 जवाब में लोगों ने ज़करियाह के ख़िलाफ़ साज़िश करके उसे बादशाह के हुक्म पर रब के घर के सहन में संगसार कर दिया। \v 22 यों युआस बादशाह ने उस मेहरबानी का ख़याल न किया जो यहोयदा ने उस पर की थी बल्कि उसे नज़रंदाज़ करके उसके बेटे को क़त्ल किया। मरते वक़्त ज़करियाह बोला, “रब ध्यान देकर मेरा बदला ले!” \p \v 23 अगले साल के आग़ाज़ में शाम की फ़ौज युआस से लड़ने आई। यहूदाह में घुसकर उन्होंने यरूशलम पर फ़तह पाई और क़ौम के तमाम बुज़ुर्गों को मार डाला। सारा लूटा हुआ माल दमिश्क़ को भेजा गया जहाँ बादशाह था। \v 24 अगरचे शाम की फ़ौज यहूदाह की फ़ौज की निसबत बहुत छोटी थी तो भी रब ने उसे फ़तह बख़्शी। चूँकि यहूदाह ने रब अपने बापदादा के ख़ुदा को तर्क कर दिया था इसलिए युआस को शाम के हाथों सज़ा मिली। \v 25 जंग के दौरान यहूदाह का बादशाह शदीद ज़ख़मी हुआ। जब दुश्मन ने मुल्क को छोड़ दिया तो युआस के अफ़सरों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की। यहोयदा इमाम के बेटे के क़त्ल का इंतक़ाम लेकर उन्होंने उसे मार डाला जब वह बीमार हालत में बिस्तर पर पड़ा था। बादशाह को यरूशलम के उस हिस्से में दफ़न किया गया जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है। लेकिन शाही क़ब्रिस्तान में नहीं दफ़नाया गया। \v 26 साज़िश करनेवालों के नाम ज़बद और यहूज़बद थे। पहले की माँ सिमआत अम्मोनी थी जबकि दूसरे की माँ सिमरीत मोआबी थी। \p \v 27 युआस के बेटों, उसके ख़िलाफ़ नबियों के फ़रमानों और अल्लाह के घर की मरम्मत के बारे में मज़ीद मालूमात ‘शाहान की किताब’ में दर्ज हैं। युआस के बाद उसका बेटा अमसियाह तख़्तनशीन हुआ। \c 25 \s1 यहूदाह का बादशाह अमसियाह \p \v 1 अमसियाह 25 साल की उम्र में बादशाह बना और यरूशलम में उस की हुकूमत का दौरानिया 29 साल था। उस की माँ यहुअद्दान यरूशलम की रहनेवाली थी। \v 2 जो कुछ अमसियाह ने किया वह रब को पसंद था, लेकिन वह पूरे दिल से रब की पैरवी नहीं करता था। \v 3 ज्योंही उसके पाँव मज़बूती से जम गए उसने उन अफ़सरों को सज़ाए-मौत दी जिन्होंने बाप को क़त्ल कर दिया था। \v 4 लेकिन उनके बेटों को उसने ज़िंदा रहने दिया और यों मूसवी शरीअत के ताबे रहा जिसमें रब फ़रमाता है, “वालिदैन को उनके बच्चों के जरायम के सबब से सज़ाए-मौत न दी जाए, न बच्चों को उनके वालिदैन के जरायम के सबब से। अगर किसी को सज़ाए-मौत देनी हो तो उस गुनाह के सबब से जो उसने ख़ुद किया है।” \s1 अदोम से जंग \p \v 5 अमसियाह ने यहूदाह और बिनयमीन के क़बीलों के तमाम मर्दों को बुलाकर उन्हें ख़ानदानों के मुताबिक़ तरतीब दिया। उसने हज़ार हज़ार और सौ सौ फ़ौजियों पर अफ़सर मुक़र्रर किए। जितने भी मर्द 20 या इससे ज़ायद साल के थे उन सबकी भरती हुई। इस तरह 3,00,000 फ़ौजी जमा हुए। सब बड़ी ढालों और नेज़ों से लैस थे। \v 6 इसके अलावा अमसियाह ने इसराईल के 1,00,000 तजरबाकार फ़ौजियों को उजरत पर भरती किया ताकि वह जंग में मदद करें। उन्हें उसने चाँदी के तक़रीबन 3,400 किलोग्राम दिए। \p \v 7 लेकिन एक मर्दे-ख़ुदा ने अमसियाह के पास आकर उसे समझाया, “बादशाह सलामत, लाज़िम है कि यह इसराईली फ़ौजी आपके साथ मिलकर लड़ने के लिए न निकलें। क्योंकि रब उनके साथ नहीं है, वह इफ़राईम के किसी भी रहनेवाले के साथ नहीं है। \v 8 अगर आप उनके साथ मिलकर निकलें ताकि मज़बूती से दुश्मन से लड़ें तो अल्लाह आपको दुश्मन के सामने गिरा देगा। क्योंकि अल्लाह को आपकी मदद करने और आपको गिराने की क़ुदरत हासिल है।” \v 9 अमसियाह ने एतराज़ किया, “लेकिन मैं इसराईलियों को चाँदी के 3,400 किलोग्राम अदा कर चुका हूँ। इन पैसों का क्या बनेगा?” मर्दे-ख़ुदा ने जवाब दिया, “रब आपको इससे कहीं ज़्यादा अता कर सकता है।” \v 10 चुनाँचे अमसियाह ने इफ़राईम से आए हुए तमाम फ़ौजियों को फ़ारिग़ करके वापस भेज दिया, और वह यहूदाह से बहुत नाराज़ हुए। हर एक बड़े तैश में अपने अपने घर चला गया। \p \v 11 तो भी अमसियाह जुर्रत करके जंग के लिए निकला। अपनी फ़ौज को नमक की वादी में ले जाकर उसने अदोमियों पर फ़तह पाई। उनके 10,000 मर्द मैदाने-जंग में मारे गए। \v 12 दुश्मन के मज़ीद 10,000 आदमियों को गिरिफ़्तार कर लिया गया। यहूदाह के फ़ौजियों ने क़ैदियों को एक ऊँची चट्टान की चोटी पर ले जाकर नीचे गिरा दिया। इस तरह सब पाश पाश होकर हलाक हुए। \p \v 13 इतने में फ़ारिग़ किए गए इसराईली फ़ौजियों ने सामरिया और बैत-हौरून के बीच में वाक़े यहूदाह के शहरों पर हमला किया था। लड़ते लड़ते उन्होंने 3,000 मर्दों को मौत के घाट उतार दिया और बहुत-सा माल लूट लिया था। \s1 अमसियाह की बुतपरस्ती \p \v 14 अदोमियों को शिकस्त देने के बाद अमसियाह सईर के बाशिंदों के बुतों को लूटकर अपने घर वापस लाया। वहाँ उसने उन्हें खड़ा किया और उनके सामने औंधे मुँह झुककर उन्हें क़ुरबानियाँ पेश कीं। \v 15 यह देखकर रब उससे बहुत नाराज़ हुआ। उसने एक नबी को उसके पास भेजा जिसने कहा, “तू इन देवताओं की तरफ़ क्यों रुजू कर रहा है? यह तो अपनी क़ौम को तुझसे नजात न दिला सके।” \v 16 अमसियाह ने नबी की बात काटकर कहा, “हमने कब से तुझे बादशाह का मुशीर बना दिया है? ख़ामोश, वरना तुझे मार दिया जाएगा।” नबी ने ख़ामोश होकर इतना ही कहा, “मुझे मालूम है कि अल्लाह ने आपको आपकी इन हरकतों की वजह से और इसलिए कि आपने मेरा मशवरा क़बूल नहीं किया तबाह करने का फ़ैसला कर लिया है।” \s1 अमसियाह इसराईल के बादशाह युआस से लड़ता है \p \v 17 एक दिन यहूदाह के बादशाह अमसियाह ने अपने मुशीरों से मशवरा करने के बाद युआस बिन यहुआख़ज़ बिन याहू को पैग़ाम भेजा, “आएँ, हम एक दूसरे का मुक़ाबला करें!” \v 18 लेकिन इसराईल के बादशाह युआस ने जवाब दिया, “लुबनान में एक काँटेदार झाड़ी ने देवदार के एक दरख़्त से बात की, ‘मेरे बेटे के साथ अपनी बेटी का रिश्ता बान्धो।’ लेकिन उसी वक़्त लुबनान के जंगली जानवरों ने उसके ऊपर से गुज़रकर उसे पाँवों तले कुचल डाला। \v 19 अदोम पर फ़तह पाने के सबब से आपका दिल मग़रूर होकर मज़ीद शोहरत हासिल करना चाहता है। लेकिन मेरा मशवरा है कि आप अपने घर में रहें। आप ऐसी मुसीबत को क्यों दावत देते हैं जो आप और यहूदाह की तबाही का बाइस बन जाए?” \v 20 लेकिन अमसियाह मानने के लिए तैयार नहीं था। अल्लाह उसे और उस की क़ौम को इसराईलियों के हवाले करना चाहता था, क्योंकि उन्होंने अदोमियों के देवताओं की तरफ़ रुजू किया था। \p \v 21 तब इसराईल का बादशाह युआस अपनी फ़ौज लेकर यहूदाह पर चढ़ आया। बैत-शम्स के पास उसका यहूदाह के बादशाह अमसियाह के साथ मुक़ाबला हुआ। \v 22 इसराईली फ़ौज ने यहूदाह की फ़ौज को शिकस्त दी, और हर एक अपने अपने घर भाग गया। \v 23 इसराईल के बादशाह युआस ने यहूदाह के बादशाह अमसियाह बिन युआस बिन अख़ज़ियाह को वहीं बैत-शम्स में गिरिफ़्तार कर लिया। फिर वह उसे यरूशलम लाया और शहर की फ़सील इफ़राईम नामी दरवाज़े से लेकर कोने के दरवाज़े तक गिरा दी। इस हिस्से की लंबाई तक़रीबन 600 फ़ुट थी। \v 24 जितना भी सोना, चाँदी और क़ीमती सामान रब के घर और शाही महल के ख़ज़ानों में था उसे उसने पूरे का पूरा छीन लिया। उस वक़्त ओबेद-अदोम रब के घर के ख़ज़ाने सँभालता था। युआस लूटा हुआ माल और बाज़ यरग़मालों को लेकर सामरिया वापस चला गया। \s1 अमसियाह की मौत \p \v 25 इसराईल के बादशाह युआस बिन यहुआख़ज़ की मौत के बाद यहूदाह का बादशाह अमसियाह बिन युआस मज़ीद 15 साल जीता रहा। \v 26 बाक़ी जो कुछ अमसियाह की हुकूमत के दौरान हुआ वह शुरू से लेकर आख़िर तक ‘शाहाने-इसराईलो-यहूदाह’ की किताब में दर्ज है। \v 27 जब से वह रब की पैरवी करने से बाज़ आया उस वक़्त से लोग यरूशलम में उसके ख़िलाफ़ साज़िश करने लगे। आख़िरकार उसने फ़रार होकर लकीस में पनाह ली, लेकिन साज़िश करनेवालों ने अपने लोगों को उसके पीछे भेजा, और वह वहाँ उसे क़त्ल करने में कामयाब हो गए। \v 28 उस की लाश घोड़े पर उठाकर यहूदाह के शहर यरूशलम लाई गई जहाँ उसे ख़ानदानी क़ब्र में दफ़नाया गया। \c 26 \s1 यहूदाह का बादशाह उज़्ज़ियाह \p \v 1 यहूदाह के तमाम लोगों ने अमसियाह की जगह उसके बेटे उज़्ज़ियाह को तख़्त पर बिठा दिया। उस की उम्र 16 साल थी \v 2 जब उसका बाप मरकर अपने बापदादा से जा मिला। बादशाह बनने के बाद उज़्ज़ियाह ने ऐलात शहर पर क़ब्ज़ा करके उसे दुबारा यहूदाह का हिस्सा बना लिया। उसने शहर में बहुत तामीरी काम करवाया। \p \v 3 उज़्ज़ियाह 16 साल की उम्र में बादशाह बना और यरूशलम में रहकर 52 साल हुकूमत करता रहा। उस की माँ यकूलियाह यरूशलम की रहनेवाली थी। \v 4 अपने बाप अमसियाह की तरह उसका चाल-चलन रब को पसंद था। \v 5 इमामे-आज़म ज़करियाह के जीते-जी उज़्ज़ियाह रब का तालिब रहा, क्योंकि ज़करियाह उसे अल्लाह का ख़ौफ़ मानने की तालीम देता रहा। जब तक बादशाह रब का तालिब रहा उस वक़्त तक अल्लाह उसे कामयाबी बख़्शता रहा। \p \v 6 उज़्ज़ियाह ने फ़िलिस्तियों से जंग करके जात, यबना और अशदूद की फ़सीलों को ढा दिया। दीगर कई शहरों को उसने नए सिरे से तामीर किया जो अशदूद के क़रीब और फ़िलिस्तियों के बाक़ी इलाक़े में थे। \v 7 लेकिन अल्लाह ने न सिर्फ़ फ़िलिस्तियों से लड़ते वक़्त उज़्ज़ियाह की मदद की बल्कि उस वक़्त भी जब जूर-बाल में रहनेवाले अरबों और मऊनियों से जंग छिड़ गई। \v 8 अम्मोनियों को उज़्ज़ियाह को ख़राज अदा करना पड़ा, और वह इतना ताक़तवर बना कि उस की शोहरत मिसर तक फैल गई। \p \v 9 यरूशलम में उज़्ज़ियाह ने कोने के दरवाज़े, वादी के दरवाज़े और फ़सील के मोड़ पर मज़बूत बुर्ज बनवाए। \v 10 उसने बयाबान में भी बुर्ज तामीर किए और साथ साथ पत्थर के बेशुमार हौज़ तराशे, क्योंकि मग़रिबी यहूदाह के नशेबी पहाड़ी इलाक़े और मैदानी इलाक़े में उसके बड़े बड़े रेवड़ चरते थे। बादशाह को काश्तकारी का काम ख़ास पसंद था। बहुत लोग पहाड़ी इलाक़ों और ज़रख़ेज़ वादियों में उसके खेतों और अंगूर के बाग़ों की निगरानी करते थे। \p \v 11 उज़्ज़ियाह की ताक़तवर फ़ौज थी। बादशाह के आला अफ़सर हननियाह की राहनुमाई में मीरमुंशी यइयेल ने अफ़सर मासियाह के साथ फ़ौज की भरती करके उसे तरतीब दिया था। \v 12 इन दस्तों पर कुंबों के 2,600 सरपरस्त मुक़र्रर थे। \v 13 फ़ौज 3,07,500 जंग लड़ने के क़ाबिल मर्दों पर मुश्तमिल थी। जंग में बादशाह उन पर पूरा भरोसा कर सकता था। \v 14 उज़्ज़ियाह ने अपने तमाम फ़ौजियों को ढालों, नेज़ों, ख़ोदों, ज़िरा-बकतरों, कमानों और फ़लाख़न के सामान से मुसल्लह किया। \v 15 और यरूशलम के बुर्जों और फ़सील के कोनों पर उसने ऐसी मशीनें लगाएँ जो तीर चला सकती और बड़े बड़े पत्थर फेंक सकती थीं। \s1 उज़्ज़ियाह मग़रूर हो जाता है \p ग़रज़, अल्लाह की मदद से उज़्ज़ियाह की शोहरत दूर दूर तक फैल गई, और उस की ताक़त बढ़ती गई। \p \v 16 लेकिन इस ताक़त ने उसे मग़रूर कर दिया, और नतीजे में वह ग़लत राह पर आ गया। रब अपने ख़ुदा का बेवफ़ा होकर वह एक दिन रब के घर में घुस गया ताकि बख़ूर की क़ुरबानगाह पर बख़ूर जलाए। \v 17 लेकिन इमामे-आज़म अज़रियाह रब के मज़ीद 80 बहादुर इमामों को अपने साथ लेकर उसके पीछे पीछे गया। \v 18 उन्होंने बादशाह उज़्ज़ियाह का सामना करके कहा, “मुनासिब नहीं कि आप रब को बख़ूर की क़ुरबानी पेश करें। यह हारून की औलाद यानी इमामों की ज़िम्मादारी है जिन्हें इसके लिए मख़सूस किया गया है। मक़दिस से निकल जाएँ, क्योंकि आप अल्लाह से बेवफ़ा हो गए हैं, और आपकी यह हरकत रब ख़ुदा के सामने इज़्ज़त का बाइस नहीं बनेगी।” \v 19 उज़्ज़ियाह बख़ूरदान को पकड़े बख़ूर को पेश करने को था कि इमामों की बातें सुनकर आग-बगूला हो गया। लेकिन उसी लमहे उसके माथे पर कोढ़ फूट निकला। \v 20 यह देखकर इमामे-आज़म अज़रियाह और दीगर इमामों ने उसे जल्दी से रब के घर से निकाल दिया। उज़्ज़ियाह ने ख़ुद भी वहाँ से निकलने की जल्दी की, क्योंकि रब ही ने उसे सज़ा दी थी। \p \v 21 उज़्ज़ियाह जीते-जी इस बीमारी से शफ़ा न पा सका। उसे अलहदा घर में रहना पड़ा, और उसे रब के घर में दाख़िल होने की इजाज़त नहीं थी। उसके बेटे यूताम को महल पर मुक़र्रर किया गया, और वही उम्मत पर हुकूमत करने लगा। \p \v 22 बाक़ी जो कुछ उज़्ज़ियाह की हुकूमत के दौरान शुरू से लेकर आख़िर तक हुआ वह आमूस के बेटे यसायाह नबी ने क़लमबंद किया है। \v 23 जब उज़्ज़ियाह मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे कोढ़ की वजह से दूसरे बादशाहों के साथ नहीं दफ़नाया गया बल्कि क़रीब के एक खेत में जो शाही ख़ानदान का था। फिर उसका बेटा यूताम तख़्तनशीन हुआ। \c 27 \s1 यहूदाह का बादशाह यूताम \p \v 1 यूताम 25 साल की उम्र में बादशाह बना और यरूशलम में रहकर 16 साल तक हुकूमत करता रहा। उस की माँ यरूसा बिंत सदोक़ थी। \v 2 यूताम ने वह कुछ किया जो रब को पसंद था। वह अपने बाप उज़्ज़ियाह के नमूने पर चलता रहा, अगरचे उसने कभी भी बाप की तरह रब के घर में घुस जाने की कोशिश न की। लेकिन आम लोग अपनी ग़लत राहों से न हटे। \p \v 3 यूताम ने रब के घर का बालाई दरवाज़ा तामीर किया। ओफ़ल पहाड़ी जिस पर रब का घर था उस की दीवार को उसने बहुत जगहों पर मज़बूत बना दिया। \v 4 यहूदाह के पहाड़ी इलाक़े में उसने शहर तामीर किए और जंगली इलाक़ों में क़िले और बुर्ज बनाए। \v 5 जब अम्मोनी बादशाह के साथ जंग छिड़ गई तो उसने अम्मोनियों को शिकस्त दी। तीन साल तक उन्हें उसे सालाना ख़राज के तौर पर तक़रीबन 3,400 किलोग्राम चाँदी, 16,00,000 किलोग्राम गंदुम और 13,50,000 किलोग्राम जौ अदा करना पड़ा। \v 6 यों यूताम की ताक़त बढ़ती गई। और वजह यह थी कि वह साबितक़दमी से रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर चलता रहा। \p \v 7 बाक़ी जो कुछ यूताम की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहाने-इसराईलो-यहूदाह’ की किताब में क़लमबंद है। उसमें उस की तमाम जंगों और बाक़ी कामों का ज़िक्र है। \v 8 वह 25 साल की उम्र में बादशाह बना और यरूशलम में रहकर 16 साल हुकूमत करता रहा। \v 9 जब वह मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे यरूशलम के उस हिस्से में जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है दफ़नाया गया। फिर उसका बेटा आख़ज़ तख़्तनशीन हुआ। \c 28 \s1 यहूदाह का बादशाह आख़ज़ \p \v 1 आख़ज़ 20 साल की उम्र में बादशाह बना और यरूशलम में रहकर 16 साल हुकूमत करता रहा। वह अपने बाप दाऊद के नमूने पर न चला बल्कि वह कुछ करता रहा जो रब को नापसंद था। \v 2 क्योंकि उसने इसराईल के बादशाहों का चाल-चलन अपनाया। बाल के बुत ढलवाकर \v 3 उसने न सिर्फ़ वादीए-बिन-हिन्नूम में बुतों को क़ुरबानियाँ पेश कीं बल्कि अपने बेटों को भी क़ुरबानी के तौर पर जला दिया। यों वह उन क़ौमों के घिनौने रस्मो-रिवाज अदा करने लगा जिन्हें रब ने इसराईलियों के आगे मुल्क से निकाल दिया था। \v 4 आख़ज़ बख़ूर जलाकर अपनी क़ुरबानियाँ ऊँचे मक़ामों, पहाड़ियों की चोटियों और हर घने दरख़्त के साये में चढ़ाता था। \p \v 5 इसी लिए रब उसके ख़ुदा ने उसे शाम के बादशाह के हवाले कर दिया। शाम की फ़ौज ने उसे शिकस्त दी और यहूदाह के बहुत-से लोगों को क़ैदी बनाकर दमिश्क़ ले गई। आख़ज़ को इसराईल के बादशाह फ़िक़ह बिन रमलियाह के हवाले भी कर दिया गया जिसने उसे शदीद नुक़सान पहुँचाया। \v 6 एक ही दिन में यहूदाह के 1,20,000 तजरबाकार फ़ौजी शहीद हुए। यह सब कुछ इसलिए हुआ कि क़ौम ने रब अपने बापदादा के ख़ुदा को तर्क कर दिया था। \v 7 उस वक़्त इफ़राईम के क़बीले के पहलवान ज़िकरी ने आख़ज़ के बेटे मासियाह, महल के इंचार्ज अज़रीक़ाम और बादशाह के बाद सबसे आला अफ़सर इलक़ाना को मार डाला। \v 8 इसराईलियों ने यहूदाह की 2,00,000 औरतें और बच्चे छीन लिए और कसरत का माल लूटकर सामरिया ले गए। \s1 इसराईल क़ैदियों को रिहा कर देता है \p \v 9 सामरिया में रब का एक नबी बनाम ओदीद रहता था। जब इसराईली फ़ौजी मैदाने-जंग से वापस आए तो ओदीद उनसे मिलने के लिए निकला। उसने उनसे कहा, “देखें, रब आपके बापदादा का ख़ुदा यहूदाह से नाराज़ था, इसलिए उसने उन्हें आपके हवाले कर दिया। लेकिन आप लोग तैश में आकर उन पर यों टूट पड़े कि उनका क़त्ले-आम आसमान तक पहुँच गया है। \v 10 लेकिन यह काफ़ी नहीं था। अब आप यहूदाह और यरूशलम के बचे हुओं को अपने ग़ुलाम बनाना चाहते हैं। क्या आप समझते हैं कि हम उनसे अच्छे हैं? नहीं, आपसे भी रब अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ गुनाह सरज़द हुए हैं। \v 11 चुनाँचे मेरी बात सुनें! इन क़ैदियों को वापस करें जो आपने अपने भाइयों से छीन लिए हैं। क्योंकि रब का सख़्त ग़ज़ब आप पर नाज़िल होनेवाला है।” \p \v 12 इफ़राईम के क़बीले के कुछ सरपरस्तों ने भी फ़ौजियों का सामना किया। उनके नाम अज़रियाह बिन यूहनान, बरकियाह बिन मसिल्लमोत, यहिज़क़ियाह बिन सल्लूम और अमासा बिन ख़दली थे। \v 13 उन्होंने कहा, “इन क़ैदियों को यहाँ मत ले आएँ, वरना हम रब के सामने क़ुसूरवार ठहरेंगे। क्या आप चाहते हैं कि हम अपने गुनाहों में इज़ाफ़ा करें? हमारा क़ुसूर पहले ही बहुत बड़ा है। हाँ, रब इसराईल पर सख़्त ग़ुस्से है।” \p \v 14 तब फ़ौजियों ने अपने क़ैदियों को आज़ाद करके उन्हें लूटे हुए माल के साथ बुज़ुर्गों और पूरी जमात के हवाले कर दिया। \v 15 मज़कूरा चार आदमियों ने सामने आकर क़ैदियों को अपने पास महफ़ूज़ रखा। लूटे हुए माल में से कपड़े निकालकर उन्होंने उन्हें उनमें तक़सीम किया जो बरहना थे। इसके बाद उन्होंने तमाम क़ैदियों को कपड़े और जूते दे दिए, उन्हें खाना खिलाया, पानी पिलाया और उनके ज़ख़मों की मरहम-पट्टी की। जितने थकावट की वजह से चल न सकते थे उन्हें उन्होंने गधों पर बिठाया, फिर चलते चलते सबको खजूर के शहर यरीहू तक पहुँचाया जहाँ उनके अपने लोग थे। फिर वह सामरिया लौट आए। \s1 आख़ज़ असूर के बादशाह से मदद लेता है \p \v 16 उस वक़्त आख़ज़ बादशाह ने असूर के बादशाह से इलतमास की, “हमारी मदद करने आएँ।” \v 17 क्योंकि अदोमी यहूदाह में घुसकर कुछ लोगों को गिरिफ़्तार करके अपने साथ ले गए थे। \v 18 साथ साथ फ़िलिस्ती मग़रिबी यहूदाह के नशेबी पहाड़ी इलाक़े और जुनूबी इलाक़े में घुस आए थे और ज़ैल के शहरों पर क़ब्ज़ा करके उनमें रहने लगे थे : बैत-शम्स, ऐयालोन, जदीरोत, नीज़ सोका, तिमनत और जिमज़ू गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत। \v 19 इस तरह रब ने यहूदाह को आख़ज़ की वजह से ज़ेर कर दिया, क्योंकि बादशाह ने यहूदाह में बेलगाम बेराहरवी फैलने दी और रब से अपनी बेवफ़ाई का साफ़ इज़हार किया था। \p \v 20 असूर के बादशाह तिग्लत-पिलेसर अपनी फ़ौज लेकर मुल्क में आया, लेकिन आख़ज़ की मदद करने के बजाए उसने उसे तंग किया। \v 21 आख़ज़ ने रब के घर, शाही महल और अपने आला अफ़सरों के ख़ज़ानों को लूटकर सारा माल असूर के बादशाह को भेज दिया, लेकिन बेफ़ायदा। इससे उसे सहीह मदद न मिली। \p \v 22 गो वह उस वक़्त बड़ी मुसीबत में था तो भी रब से और दूर हो गया। \v 23 वह शाम के देवताओं को क़ुरबानियाँ पेश करने लगा, क्योंकि उसका ख़याल था कि इन्हीं ने मुझे शिकस्त दी है। उसने सोचा, “शाम के देवता अपने बादशाहों की मदद करते हैं! अब से मैं उन्हें क़ुरबानियाँ पेश करूँगा ताकि वह मेरी भी मदद करें।” लेकिन यह देवता बादशाह आख़ज़ और पूरी क़ौम के लिए तबाही का बाइस बन गए। \v 24 आख़ज़ ने हुक्म दिया कि अल्लाह के घर का सारा सामान निकालकर टुकड़े टुकड़े कर दिया जाए। फिर उसने रब के घर के दरवाज़ों पर ताला लगा दिया। उस की जगह उसने यरूशलम के कोने कोने में क़ुरबानगाहें खड़ी कर दीं। \v 25 साथ साथ उसने दीगर माबूदों को क़ुरबानियाँ पेश करने के लिए यहूदाह के हर शहर की ऊँची जगहों पर मंदिर तामीर किए। ऐसी हरकतों से वह रब अपने बापदादा के ख़ुदा को तैश दिलाता रहा। \p \v 26 बाक़ी जो कुछ उस की हुकूमत के दौरान हुआ और जो कुछ उसने किया वह शुरू से लेकर आख़िर तक ‘शाहाने-यहूदाहो-इसराईल’ की किताब में दर्ज है। \v 27 जब आख़ज़ मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे यरूशलम में दफ़न किया गया, लेकिन शाही क़ब्रिस्तान में नहीं। फिर उसका बेटा हिज़क़ियाह तख़्तनशीन हुआ। \c 29 \s1 हिज़क़ियाह बादशाह रब के घर को दुबारा खोल देता है \p \v 1 जब हिज़क़ियाह बादशाह बना तो उस की उम्र 25 साल थी। यरूशलम में रहकर वह 29 साल हुकूमत करता रहा। उस की माँ अबियाह बिंत ज़करियाह थी। \p \v 2 अपने बाप दाऊद की तरह उसने ऐसा काम किया जो रब को पसंद था। \v 3 अपनी हुकूमत के पहले साल के पहले महीने में उसने रब के घर के दरवाज़ों को खोलकर उनकी मरम्मत करवाई। \v 4 लावियों और इमामों को बुलाकर उसने उन्हें रब के घर के मशरिक़ी सहन में जमा किया \v 5 और कहा, \p “ऐ लावियो, मेरी बात सुनें! अपने आपको ख़िदमत के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करें, और रब अपने बापदादा के ख़ुदा के घर को भी मख़सूसो-मुक़द्दस करें। तमाम नापाक चीज़ें मक़दिस से निकालें! \v 6 हमारे बापदादा बेवफ़ा होकर वह कुछ करते गए जो रब हमारे ख़ुदा को नापसंद था। उन्होंने उसे छोड़ दिया, अपने मुँह को रब की सुकूनतगाह से फेरकर दूसरी तरफ़ चल पड़े। \v 7 रब के घर के सामनेवाले बरामदे के दरवाज़ों पर उन्होंने ताला लगाकर चराग़ों को बुझा दिया। न इसराईल के ख़ुदा के लिए बख़ूर जलाया जाता, न भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ मक़दिस में पेश की जाती थीं। \v 8 इसी वजह से रब का ग़ज़ब यहूदाह और यरूशलम पर नाज़िल हुआ है। हमारी हालत को देखकर लोग घबरा गए, उनके रोंगटे खड़े हो गए हैं। हम दूसरों के लिए मज़ाक़ का निशाना बन गए हैं। आप ख़ुद इसके गवाह हैं। \v 9 हमारी बेवफ़ाई की वजह से हमारे बाप तलवार की ज़द में आकर मारे गए और हमारे बेटे-बेटियाँ और बीवियाँ हमसे छीन ली गई हैं। \v 10 लेकिन अब मैं रब इसराईल के ख़ुदा के साथ अहद बाँधना चाहता हूँ ताकि उसका सख़्त क़हर हमसे टल जाए। \v 11 मेरे बेटो, अब सुस्ती न दिखाएँ, क्योंकि रब ने आपको चुनकर अपने ख़ादिम बनाया है। आपको उसके हुज़ूर खड़े होकर उस की ख़िदमत करने और बख़ूर जलाने की ज़िम्मादारी दी गई है।” \p \v 12 फिर ज़ैल के लावी ख़िदमत के लिए तैयार हुए : \p क़िहात के ख़ानदान का महत बिन अमासी और योएल बिन अज़रियाह, \p मिरारी के ख़ानदान का क़ीस बिन अबदी और अज़रियाह बिन यहल्ललेल, \p जैरसोन के ख़ानदान का युआख़ बिन ज़िम्मा और अदन बिन युआख़, \p \v 13 इलीसफ़न के ख़ानदान का सिमरी और यइयेल, \p आसफ़ के ख़ानदान का ज़करियाह और मत्तनियाह, \p \v 14 हैमान के ख़ानदान का यहियेल और सिमई, \p यदूतून के ख़ानदान का समायाह और उज़्ज़ियेल। \p \v 15 बाक़ी लावियों को बुलाकर उन्होंने अपने आपको रब की ख़िदमत के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस किया। फिर वह बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ रब के घर को पाक-साफ़ करने लगे। काम करते करते उन्होंने इसका ख़याल किया कि सब कुछ रब की हिदायात के मुताबिक़ हो रहा हो। \v 16 इमाम रब के घर में दाख़िल हुए और उसमें से हर नापाक चीज़ निकालकर उसे सहन में लाए। वहाँ से लावियों ने सब कुछ उठाकर शहर से बाहर वादीए-क़िदरोन में फेंक दिया। \v 17 रब के घर की क़ुद्दूसियत बहाल करने का काम पहले महीने के पहले दिन शुरू हुआ, और एक हफ़ते के बाद वह सामनेवाले बरामदे तक पहुँच गए थे। एक और हफ़ता पूरे घर को मख़सूसो-मुक़द्दस करने में लग गया। \p पहले महीने के 16वें दिन काम मुकम्मल हुआ। \v 18 हिज़क़ियाह बादशाह के पास जाकर उन्होंने कहा, “हमने रब के पूरे घर को पाक-साफ़ कर दिया है। इसमें जानवरों को जलाने की क़ुरबानगाह उसके सामान समेत और वह मेज़ जिस पर रब के लिए मख़सूस रोटियाँ रखी जाती हैं उसके सामान समेत शामिल है। \v 19 और जितनी चीज़ें आख़ज़ ने बेवफ़ा बनकर अपनी हुकूमत के दौरान रद्द कर दी थीं उन सबको हमने ठीक करके दुबारा मख़सूसो-मुक़द्दस कर दिया है। अब वह रब की क़ुरबानगाह के सामने पड़ी हैं।” \s1 रब के घर की दुबारा मख़सूसियत \p \v 20 अगले दिन हिज़क़ियाह बादशाह सुबह-सवेरे शहर के तमाम बुज़ुर्गों को बुलाकर उनके साथ रब के घर के पास गया। \v 21 सात जवान बैल, सात मेंढे और भेड़ के सात बच्चे भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए सहन में लाए गए, नीज़ सात बकरे जिन्हें गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर शाही ख़ानदान, मक़दिस और यहूदाह के लिए पेश करना था। हिज़क़ियाह ने हारून की औलाद यानी इमामों को हुक्म दिया कि इन जानवरों को रब की क़ुरबानगाह पर चढ़ाएँ। \v 22 पहले बैलों को ज़बह किया गया। इमामों ने उनका ख़ून जमा करके उसे क़ुरबानगाह पर छिड़का। इसके बाद मेंढों को ज़बह किया गया। इस बार भी इमामों ने उनका ख़ून क़ुरबानगाह पर छिड़का। भेड़ के बच्चों के ख़ून के साथ भी यही कुछ किया गया। \v 23 आख़िर में गुनाह की क़ुरबानी के लिए मख़सूस बकरों को बादशाह और जमात के सामने लाया गया, और उन्होंने अपने हाथों को बकरों के सरों पर रख दिया। \v 24 फिर इमामों ने उन्हें ज़बह करके उनका ख़ून गुनाह की क़ुरबानी के तौर पर क़ुरबानगाह पर छिड़का ताकि इसराईल का कफ़्फ़ारा दिया जाए। क्योंकि बादशाह ने हुक्म दिया था कि भस्म होनेवाली और गुनाह की क़ुरबानी तमाम इसराईल के लिए पेश की जाए। \p \v 25 हिज़क़ियाह ने लावियों को झाँझ, सितार और सरोद थमाकर उन्हें रब के घर में खड़ा किया। सब कुछ उन हिदायात के मुताबिक़ हुआ जो रब ने दाऊद बादशाह, उसके ग़ैबबीन जाद और नातन नबी की मारिफ़त दी थीं। \v 26 लावी उन साज़ों के साथ खड़े हो गए जो दाऊद ने बनवाए थे, और इमाम अपने तुरमों को थामे उनके साथ खड़े हुए। \v 27 फिर हिज़क़ियाह ने हुक्म दिया कि भस्म होनेवाली क़ुरबानी क़ुरबानगाह पर पेश की जाए। जब इमाम यह काम करने लगे तो लावी रब की तारीफ़ में गीत गाने लगे। साथ साथ तुरम और दाऊद बादशाह के बनवाए हुए साज़ बजने लगे। \v 28 तमाम जमात औंधे मुँह झुक गई जबकि लावी गीत गाते और इमाम तुरम बजाते रहे। यह सिलसिला इस क़ुरबानी की तकमील तक जारी रहा। \v 29 इसके बाद हिज़क़ियाह और तमाम हाज़िरीन दुबारा मुँह के बल झुक गए। \v 30 बादशाह और बुज़ुर्गों ने लावियों को कहा, “दाऊद और आसफ़ ग़ैबबीन के ज़बूर गाकर रब की सताइश करें।” चुनाँचे लावियों ने बड़ी ख़ुशी से हम्दो-सना के गीत गाए। वह भी औंधे मुँह झुक गए। \p \v 31 फिर हिज़क़ियाह लोगों से मुख़ातिब हुआ, “आज आपने अपने आपको रब के लिए वक़्फ़ कर दिया है। अब वह कुछ रब के घर के पास ले आएँ जो आप ज़बह और सलामती की क़ुरबानी के तौर पर पेश करना चाहते हैं।” तब लोग ज़बह और सलामती की अपनी क़ुरबानियाँ ले आए। नीज़, जिसका भी दिल चाहता था वह भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ लाया। \v 32 इस तरह भस्म होनेवाली क़ुरबानी के लिए 70 बैल, 100 मेंढे और भेड़ के 200 बच्चे जमा करके रब को पेश किए गए। \v 33 उनके अलावा 600 बैल और 3,000 भेड़-बकरियाँ रब के घर के लिए मख़सूस की गईं। \v 34 लेकिन इतने जानवरों की खालों को उतारने के लिए इमाम कम थे, इसलिए लावियों को उनकी मदद करनी पड़ी। इस काम के इख़्तिताम तक बल्कि जब तक मज़ीद इमाम ख़िदमत के लिए तैयार और पाक नहीं हो गए थे लावी मदद करते रहे। इमामों की निसबत ज़्यादा लावी पाक-साफ़ हो गए थे, क्योंकि उन्होंने ज़्यादा लग्न से अपने आपको रब के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस किया था। \v 35 भस्म होनेवाली बेशुमार क़ुरबानियों के अलावा इमामों ने सलामती की क़ुरबानियों की चरबी भी जलाई। साथ साथ उन्होंने मै की नज़रें पेश कीं। \p यों रब के घर में ख़िदमत का नए सिरे से आग़ाज़ हुआ। \v 36 हिज़क़ियाह और पूरी क़ौम ने ख़ुशी मनाई कि अल्लाह ने यह सब कुछ इतनी जल्दी से हमें मुहैया किया है। \c 30 \s1 फ़सह की ईद के लिए दावत \p \v 1 हिज़क़ियाह ने इसराईल और यहूदाह की हर जगह अपने क़ासिदों को भेजकर लोगों को रब के घर में आने की दावत दी, क्योंकि वह उनके साथ रब इसराईल के ख़ुदा की ताज़ीम में फ़सह की ईद मनाना चाहता था। उसने इफ़राईम और मनस्सी के क़बीलों को भी दावतनामे भेजे। \v 2 बादशाह ने अपने अफ़सरों और यरूशलम की पूरी जमात के साथ मिलकर फ़ैसला किया कि हम यह ईद दूसरे महीने में मनाएँगे। \v 3 आम तौर पर यह पहले महीने में मनाई जाती थी, लेकिन उस वक़्त तक ख़िदमत के लिए तैयार इमाम काफ़ी नहीं थे। क्योंकि अब तक सब अपने आपको पाक-साफ़ न कर सके। दूसरी बात यह थी कि लोग इतनी जल्दी से यरूशलम में जमा न हो सके। \v 4 इन बातों के पेशे-नज़र बादशाह और तमाम हाज़िरीन इस पर मुत्तफ़िक़ हुए कि फ़सह की ईद मुलतवी की जाए। \v 5 उन्होंने फ़ैसला किया कि हम तमाम इसराईलियों को जुनूब में बैर-सबा से लेकर शिमाल में दान तक दावत देंगे। सब यरूशलम आएँ ताकि हम मिलकर रब इसराईल के ख़ुदा की ताज़ीम में फ़सह की ईद मनाएँ। असल में यह ईद बड़ी देर से हिदायात के मुताबिक़ नहीं मनाई गई थी। \p \v 6 बादशाह के हुक्म पर क़ासिद इसराईल और यहूदाह में से गुज़रे। हर जगह उन्होंने लोगों को बादशाह और उसके अफ़सरों के ख़त पहुँचा दिए। ख़त में लिखा था, \p “ऐ इसराईलियो, रब इब्राहीम, इसहाक़ और इसराईल के ख़ुदा के पास वापस आएँ! फिर वह भी आपके पास जो असूरी बादशाहों के हाथ से बच निकले हैं वापस आएगा। \v 7 अपने बापदादा और भाइयों की तरह न बनें जो रब अपने बापदादा के ख़ुदा से बेवफ़ा हो गए थे। यही वजह है कि उसने उन्हें ऐसी हालत में छोड़ दिया कि जिसने भी उन्हें देखा उसके रोंगटे खड़े हो गए। आप ख़ुद इसके गवाह हैं। \v 8 उनकी तरह अड़े न रहें बल्कि रब के ताबे हो जाएँ। उसके मक़दिस में आएँ, जो उसने हमेशा के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस कर दिया है। रब अपने ख़ुदा की ख़िदमत करें ताकि आप उसके सख़्त ग़ज़ब का निशाना न रहें। \v 9 अगर आप रब के पास लौट आएँ तो जिन्होंने आपके भाइयों और उनके बाल-बच्चों को क़ैद कर लिया है वह उन पर रहम करके उन्हें इस मुल्क में वापस आने देंगे। क्योंकि रब आपका ख़ुदा मेहरबान और रहीम है। अगर आप उसके पास वापस आएँ तो वह अपना मुँह आपसे नहीं फेरेगा।” \p \v 10 क़ासिद इफ़राईम और मनस्सी के पूरे क़बायली इलाक़े में से गुज़रे और हर शहर को यह पैग़ाम पहुँचाया। फिर चलते चलते वह ज़बूलून तक पहुँच गए। लेकिन अकसर लोग उनकी बात सुनकर हँस पड़े और उनका मज़ाक़ उड़ाने लगे। \v 11 सिर्फ़ आशर, मनस्सी और ज़बूलून के चंद एक आदमी फ़रोतनी का इज़हार करके मान गए और यरूशलम आए। \v 12 यहूदाह में अल्लाह ने लोगों को तहरीक दी कि उन्होंने यकदिली से उस हुक्म पर अमल किया जो बादशाह और बुज़ुर्गों ने रब के फ़रमान के मुताबिक़ दिया था। \s1 हिज़क़ियाह और क़ौम फ़सह की ईद मनाते हैं \p \v 13 दूसरे महीने में बहुत ज़्यादा लोग बेख़मीरी रोटी की ईद मनाने के लिए यरूशलम पहुँचे। \v 14 पहले उन्होंने शहर से बुतों की तमाम क़ुरबानगाहों को दूर कर दिया। बख़ूर जलाने की छोटी क़ुरबानगाहों को भी उन्होंने उठाकर वादीए-क़िदरोन में फेंक दिया। \v 15 दूसरे महीने के 14वें दिन फ़सह के लेलों को ज़बह किया गया। इमामों और लावियों ने शरमिंदा होकर अपने आपको ख़िदमत के लिए पाक-साफ़ कर रखा था, और अब उन्होंने भस्म होनेवाली क़ुरबानियों को रब के घर में पेश किया। \v 16 वह ख़िदमत के लिए यों खड़े हो गए जिस तरह मर्दे-ख़ुदा मूसा की शरीअत में फ़रमाया गया है। लावी क़ुरबानियों का ख़ून इमामों के पास लाए जिन्होंने उसे क़ुरबानगाह पर छिड़का। \p \v 17 लेकिन हाज़िरीन में से बहुत-से लोगों ने अपने आपको सहीह तौर पर पाक-साफ़ नहीं किया था। उनके लिए लावियों ने फ़सह के लेलों को ज़बह किया ताकि उनकी क़ुरबानियों को भी रब के लिए मख़सूस किया जा सके। \v 18 ख़ासकर इफ़राईम, मनस्सी, ज़बूलून और इशकार के अकसर लोगों ने अपने आपको सहीह तौर पर पाक-साफ़ नहीं किया था। चुनाँचे वह फ़सह के खाने में उस हालत में शरीक न हुए जिसका तक़ाज़ा शरीअत करती है। लेकिन हिज़क़ियाह ने उनकी शफ़ाअत करके दुआ की, “रब जो मेहरबान है हर एक को मुआफ़ करे \v 19 जो पूरे दिल से रब अपने बापदादा के ख़ुदा का तालिब रहने का इरादा रखता है, ख़ाह उसे मक़दिस के लिए दरकार पाकीज़गी हासिल न भी हो।” \v 20 रब ने हिज़क़ियाह की दुआ सुनकर लोगों को बहाल कर दिया। \p \v 21 यरूशलम में जमाशुदा इसराईलियों ने बड़ी ख़ुशी से सात दिन तक बेख़मीरी रोटी की ईद मनाई। हर दिन लावी और इमाम अपने साज़ बजाकर बुलंद आवाज़ से रब की सताइश करते रहे। \v 22 लावियों ने रब की ख़िदमत करते वक़्त बड़ी समझदारी दिखाई, और हिज़क़ियाह ने इसमें उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई की। \p पूरे हफ़ते के दौरान इसराईली रब को सलामती की क़ुरबानियाँ पेश करके क़ुरबानी का अपना हिस्सा खाते और रब अपने बापदादा के ख़ुदा की तमजीद करते रहे। \p \v 23 इस हफ़ते के बाद पूरी जमात ने फ़ैसला किया कि ईद को मज़ीद सात दिन मनाया जाए। चुनाँचे उन्होंने ख़ुशी से एक और हफ़ते के दौरान ईद मनाई। \v 24 तब यहूदाह के बादशाह हिज़क़ियाह ने जमात के लिए 1,000 बैल और 7,000 भेड़-बकरियाँ पेश कीं जबकि बुज़ुर्गों ने जमात के लिए 1,000 बैल और 10,000 भेड़-बकरियाँ चढ़ाईं। इतने में मज़ीद बहुत-से इमामों ने अपने आपको रब की ख़िदमत के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस कर लिया था। \p \v 25 जितने भी आए थे ख़ुशी मना रहे थे, ख़ाह वह यहूदाह के बाशिंदे थे, ख़ाह इमाम, लावी, इसराईली या इसराईल और यहूदाह में रहनेवाले परदेसी मेहमान। \v 26 यरूशलम में बड़ी शादमानी थी, क्योंकि ऐसी ईद दाऊद बादशाह के बेटे सुलेमान के ज़माने से लेकर उस वक़्त तक यरूशलम में मनाई नहीं गई थी। \p \v 27 ईद के इख़्तिताम पर इमामों और लावियों ने खड़े होकर क़ौम को बरकत दी। और अल्लाह ने उनकी सुनी, उनकी दुआ आसमान पर उस की मुक़द्दस सुकूनतगाह तक पहुँची। \c 31 \s1 पूरे यहूदाह में बुतपरस्ती का ख़ातमा \p \v 1 ईद के बाद जमात के तमाम इसराईलियों ने यहूदाह के शहरों में जाकर पत्थर के बुतों को टुकड़े टुकड़े कर दिया, यसीरत देवी के खंबों को काट डाला, ऊँची जगहों के मंदिरों को ढा दिया और ग़लत क़ुरबानगाहों को ख़त्म कर दिया। जब तक उन्होंने यह काम यहूदाह, बिनयमीन, इफ़राईम और मनस्सी के पूरे इलाक़ों में तकमील तक नहीं पहुँचाया था उन्होंने आराम न किया। इसके बाद वह सब अपने अपने शहरों और घरों को चले गए। \s1 रब के घर में इंतज़ाम की इसलाह \p \v 2 हिज़क़ियाह ने इमामों और लावियों को दुबारा ख़िदमत के वैसे ही गुरोहों में तक़सीम किया जैसे पहले थे। उनकी ज़िम्मादारियाँ भस्म होनेवाली और सलामती की क़ुरबानियाँ चढ़ाना, रब के घर में मुख़्तलिफ़ क़िस्म की ख़िदमात अंजाम देना और हम्दो-सना के गीत गाना थीं। \p \v 3 जो जानवर बादशाह अपनी मिलकियत से रब के घर को देता रहा वह भस्म होनेवाली उन क़ुरबानियों के लिए मुक़र्रर थे जिनको रब की शरीअत के मुताबिक़ हर सुबह-शाम, सबत के दिन, नए चाँद की ईद और दीगर ईदों पर रब के घर में पेश की जाती थीं। \p \v 4 हिज़क़ियाह ने यरूशलम के बाशिंदों को हुक्म दिया कि अपनी मिलकियत में से इमामों और लावियों को कुछ दें ताकि वह अपना वक़्त रब की शरीअत की तकमील के लिए वक़्फ़ कर सकें। \v 5 बादशाह का यह एलान सुनते ही इसराईली फ़राख़दिली से ग़ल्ला, अंगूर के रस, ज़ैतून के तेल, शहद और खेतों की बाक़ी पैदावार का पहला फल रब के घर में लाए। बहुत कुछ इकट्ठा हुआ, क्योंकि लोगों ने अपनी पैदावार का पूरा दसवाँ हिस्सा वहाँ पहुँचाया। \v 6 यहूदाह के बाक़ी शहरों के बाशिंदे भी साथ रहनेवाले इसराईलियों समेत अपनी पैदावार का दसवाँ हिस्सा रब के घर में लाए। जो भी बैल, भेड़-बकरियाँ और बाक़ी चीज़ें उन्होंने रब अपने ख़ुदा के लिए वक़्फ़ की थीं वह रब के घर में पहुँचीं जहाँ लोगों ने उन्हें बड़े ढेर लगाकर इकट्ठा किया। \v 7 चीज़ें जमा करने का यह सिलसिला तीसरे महीने में शुरू हुआ और सातवें महीने में इख़्तिताम को पहुँचा। \v 8 जब हिज़क़ियाह और उसके अफ़सरों ने आकर देखा कि कितनी चीज़ें इकट्ठी हो गई हैं तो उन्होंने रब और उस की क़ौम इसराईल को मुबारक कहा। \p \v 9 जब हिज़क़ियाह ने इमामों और लावियों से इन ढेरों के बारे में पूछा \v 10 तो सदोक़ के ख़ानदान का इमामे-आज़म अज़रियाह ने जवाब दिया, “जब से लोग अपने हदिये यहाँ ले आते हैं उस वक़्त से हम जी भरकर खा सकते हैं बल्कि काफ़ी कुछ बच भी जाता है। क्योंकि रब ने अपनी क़ौम को इतनी बरकत दी है कि यह सब कुछ बाक़ी रह गया है।” \p \v 11 तब हिज़क़ियाह ने हुक्म दिया कि रब के घर में गोदाम बनाए जाएँ। जब ऐसा किया गया \v 12 तो रज़ाकाराना हदिये, पैदावार का दसवाँ हिस्सा और रब के लिए मख़सूस किए गए अतियात उनमें रखे गए। कूननियाह लावी इन चीज़ों का इंचार्ज बना जबकि उसका भाई सिमई उसका मददगार मुक़र्रर हुआ। \v 13 इमामे-आज़म अज़रियाह रब के घर के पूरे इंतज़ाम का इंचार्ज था, इसलिए हिज़क़ियाह बादशाह ने उसके साथ मिलकर दस निगरान मुक़र्रर किए जो कूननियाह और सिमई के तहत ख़िदमत अंजाम दें। उनके नाम यहियेल, अज़ज़ियाह, नहत, असाहेल, यरीमोत, यूज़बद, इलियेल, इसमाकियाह, महत और बिनायाह थे। \p \v 14 जो लावी मशरिक़ी दरवाज़े का दरबान था उसका नाम क़ोरे बिन यिमना था। अब उसे रब को रज़ाकाराना तौर पर दिए गए हदिये और उसके लिए मख़सूस किए गए अतीए तक़सीम करने का निगरान बनाया गया। \v 15 अदन, मिन्यमीन, यशुअ, समायाह, अमरियाह और सकनियाह उसके मददगार थे। उनकी ज़िम्मादारी लावियों के शहरों में रहनेवाले इमामों को उनका हिस्सा देना थी। बड़ी वफ़ादारी से वह ख़याल रखते थे कि ख़िदमत के मुख़्तलिफ़ गुरोहों के तमाम इमामों को वह हिस्सा मिल जाए जो उनका हक़ बनता था, ख़ाह वह बड़े थे या छोटे। \v 16 जो अपने गुरोह के साथ रब के घर में ख़िदमत करता था उसे उसका हिस्सा बराहे-रास्त मिलता था। इस सिलसिले में लावी के क़बीले के जितने मर्दों और लड़कों की उम्र तीन साल या इससे ज़ायद थी उनकी फ़हरिस्त बनाई गई। \v 17 इन फ़हरिस्तों में इमामों को उनके कुंबों के मुताबिक़ दर्ज किया गया। इसी तरह 20 साल या इससे ज़ायद के लावियों को उन ज़िम्मादारियों और ख़िदमत के मुताबिक़ जो वह अपने गुरोहों में सँभालते थे फ़हरिस्तों में दर्ज किया गया। \v 18 ख़ानदानों की औरतें और बेटे-बेटियाँ छोटे बच्चों समेत भी इन फ़हरिस्तों में दर्ज थीं। चूँकि उनके मर्द वफ़ादारी से रब के घर में ख़िदमत करते थे, इसलिए यह दीगर अफ़राद भी मख़सूसो-मुक़द्दस समझे जाते थे। \v 19 जो इमाम शहरों से बाहर उन चरागाहों में रहते थे जो उन्हें हारून की औलाद की हैसियत से मिली थीं उन्हें भी हिस्सा मिलता था। हर शहर के लिए आदमी चुने गए जो इमामों के ख़ानदानों के मर्दों और फ़हरिस्त में दर्ज तमाम लावियों को वह हिस्सा दिया करें जो उनका हक़ था। \p \v 20 हिज़क़ियाह बादशाह ने हुक्म दिया कि पूरे यहूदाह में ऐसा ही किया जाए। उसका काम रब के नज़दीक अच्छा, मुंसिफ़ाना और वफ़ादाराना था। \v 21 जो कुछ उसने अल्लाह के घर में इंतज़ाम दुबारा चलाने और शरीअत को क़ायम करने के सिलसिले में किया उसके लिए वह पूरे दिल से अपने ख़ुदा का तालिब रहा। नतीजे में उसे कामयाबी हासिल हुई। \c 32 \s1 असूरी यहूदाह में घुस आते हैं \p \v 1 हिज़क़ियाह ने वफ़ादारी से यह तमाम मनसूबे तकमील तक पहुँचाए। फिर एक दिन असूर का बादशाह सनहेरिब अपनी फ़ौज के साथ यहूदाह में घुस आया और क़िलाबंद शहरों का मुहासरा करने लगा ताकि उन पर क़ब्ज़ा करे। \v 2 जब हिज़क़ियाह को इत्तला मिली कि सनहेरिब आकर यरूशलम पर हमला करने की तैयारियाँ कर रहा है \v 3 तो उसने अपने सरकारी और फ़ौजी अफ़सरों से मशवरा किया। ख़याल यह पेश किया गया कि यरूशलम शहर के बाहर तमाम चश्मों को मलबे से बंद किया जाए। सब मुत्तफ़िक़ हो गए, \v 4 क्योंकि उन्होंने कहा, “असूर के बादशाह को यहाँ आकर कसरत का पानी क्यों मिले?” बहुत-से आदमी जमा हुए और मिलकर चश्मों को मलबे से बंद कर दिया। उन्होंने उस ज़मीनदोज़ नाले का मुँह भी बंद कर दिया जिसके ज़रीए पानी शहर में पहुँचता था। \p \v 5 इसके अलावा हिज़क़ियाह ने बड़ी मेहनत से फ़सील के टूटे-फूटे हिस्सों की मरम्मत करवाकर उस पर बुर्ज बनवाए। फ़सील के बाहर उसने एक और चारदीवारी तामीर की जबकि यरूशलम के उस हिस्से के चबूतरे मज़ीद मज़बूत करवाए जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है। साथ साथ उसने बड़ी मिक़दार में हथियार और ढालें बनवाईं। \v 6 हिज़क़ियाह ने लोगों पर फ़ौजी अफ़सर मुक़र्रर किए। \p फिर उसने सबको दरवाज़े के साथवाले चौक पर इकट्ठा करके उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई की, \v 7 “मज़बूत और दिलेर हों! असूर के बादशाह और उस की बड़ी फ़ौज को देखकर मत डरें, क्योंकि जो ताक़त हमारे साथ है वह उसे हासिल नहीं है। \v 8 असूर के बादशाह के लिए सिर्फ़ ख़ाकी आदमी लड़ रहे हैं जबकि रब हमारा ख़ुदा हमारे साथ है। वही हमारी मदद करके हमारे लिए लड़ेगा!” हिज़क़ियाह बादशाह के इन अलफ़ाज़ से लोगों की बड़ी हौसलाअफ़्ज़ाई हुई। \s1 असूरी यरूशलम का मुहासरा करते हैं \p \v 9 जब असूर का बादशाह सनहेरिब अपनी पूरी फ़ौज के साथ लकीस का मुहासरा कर रहा था तो उसने वहाँ से यरूशलम को वफ़द भेजा ताकि यहूदाह के बादशाह हिज़क़ियाह और यहूदाह के तमाम बाशिंदों को पैग़ाम पहुँचाए, \p \v 10 “शाहे-असूर सनहेरिब फ़रमाते हैं, तुम्हारा भरोसा किस चीज़ पर है कि तुम मुहासरे के वक़्त यरूशलम को छोड़ना नहीं चाहते? \v 11 जब हिज़क़ियाह कहता है, ‘रब हमारा ख़ुदा हमें असूर के बादशाह से बचाएगा’ तो वह तुम्हें ग़लत राह पर ला रहा है। इसका सिर्फ़ यह नतीजा निकलेगा कि तुम भूके और प्यासे मर जाओगे। \v 12 हिज़क़ियाह ने तो इस ख़ुदा की बेहुरमती की है। क्योंकि उसने उस की ऊँची जगहों के मंदिरों और क़ुरबानगाहों को ढाकर यहूदाह और यरूशलम से कहा है कि एक ही क़ुरबानगाह के सामने परस्तिश करें, एक ही क़ुरबानगाह पर क़ुरबानियाँ चढ़ाएँ। \v 13 क्या तुम्हें इल्म नहीं कि मैं और मेरे बापदादा ने दीगर ममालिक की तमाम क़ौमों के साथ क्या कुछ किया? क्या इन क़ौमों के देवता अपने मुल्कों को मुझसे बचाने के क़ाबिल रहे हैं? हरगिज़ नहीं! \v 14 मेरे बापदादा ने इन सबको तबाह कर दिया, और कोई भी देवता अपनी क़ौम को मुझसे बचा न सका। तो फिर तुम्हारा देवता तुम्हें किस तरह मुझसे बचाएगा? \v 15 हिज़क़ियाह से फ़रेब न खाओ! वह इस तरह तुम्हें ग़लत राह पर न लाए। उस की बात पर एतमाद मत करना, क्योंकि अब तक किसी भी क़ौम या सलतनत का देवता अपनी क़ौम को मेरे या मेरे बापदादा के क़ब्ज़े से छुटकारा न दिला सका। तो फिर तुम्हारा देवता तुम्हें मेरे क़ब्ज़े से किस तरह बचाएगा?” \p \v 16 ऐसी बातें करते करते सनहेरिब के अफ़सर रब इसराईल के ख़ुदा और उसके ख़ादिम हिज़क़ियाह पर कुफ़र बकते गए। \p \v 17 असूर के बादशाह ने वफ़द के हाथ ख़त भी भेजा जिसमें उसने रब इसराईल के ख़ुदा की इहानत की। ख़त में लिखा था, “जिस तरह दीगर ममालिक के देवता अपनी क़ौमों को मुझसे महफ़ूज़ न रख सके उसी तरह हिज़क़ियाह का देवता भी अपनी क़ौम को मेरे क़ब्ज़े से नहीं बचाएगा।” \p \v 18 असूरी अफ़सरों ने बुलंद आवाज़ से इबरानी ज़बान में बादशाह का पैग़ाम फ़सील पर खड़े यरूशलम के बाशिंदों तक पहुँचाया ताकि उनमें ख़ौफ़ो-हिरास फैल जाए और यों शहर पर क़ब्ज़ा करने में आसानी हो जाए। \v 19 इन अफ़सरों ने यरूशलम के ख़ुदा का यों तमस्ख़ुर उड़ाया जैसा वह दुनिया की दीगर क़ौमों के देवताओं का उड़ाया करते थे, हालाँकि दीगर माबूद सिर्फ़ इनसानी हाथों की पैदावार थे। \s1 रब सनहेरिब को सज़ा देता है \p \v 20 फिर हिज़क़ियाह बादशाह और आमूस के बेटे यसायाह नबी ने चिल्लाते हुए आसमान पर तख़्तनशीन ख़ुदा से इलतमास की। \v 21 जवाब में रब ने असूरियों की लशकरगाह में एक फ़रिश्ता भेजा जिसने तमाम बेहतरीन फ़ौजियों को अफ़सरों और कमाँडरों समेत मौत के घाट उतार दिया। चुनाँचे सनहेरिब शरमिंदा होकर अपने मुल्क लौट गया। वहाँ एक दिन जब वह अपने देवता के मंदिर में दाख़िल हुआ तो उसके कुछ बेटों ने उसे तलवार से क़त्ल कर दिया। \p \v 22 इस तरह रब ने हिज़क़ियाह और यरूशलम के बाशिंदों को शाहे-असूर सनहेरिब से छुटकारा दिलाया। उसने उन्हें दूसरी क़ौमों के हमलों से भी महफ़ूज़ रखा, और चारों तरफ़ अमनो-अमान फैल गया। \v 23 बेशुमार लोग यरूशलम आए ताकि रब को क़ुरबानियाँ पेश करें और हिज़क़ियाह बादशाह को क़ीमती तोह्फ़े दें। उस वक़्त से तमाम क़ौमें उसका बड़ा एहतराम करने लगीं। \s1 हिज़क़ियाह के आख़िरी साल \p \v 24 उन दिनों में हिज़क़ियाह इतना बीमार हुआ कि मरने की नौबत आ पहुँची। तब उसने रब से दुआ की, और रब ने उस की सुनकर एक इलाही निशान से इसकी तसदीक़ की। \v 25 लेकिन हिज़क़ियाह मग़रूर हुआ, और उसने इस मेहरबानी का मुनासिब जवाब न दिया। नतीजे में रब उससे और यहूदाह और यरूशलम से नाराज़ हुआ। \v 26 फिर हिज़क़ियाह और यरूशलम के बाशिंदों ने पछताकर अपना ग़ुरूर छोड़ दिया, इसलिए रब का ग़ज़ब हिज़क़ियाह के जीते-जी उन पर नाज़िल न हुआ। \p \v 27 हिज़क़ियाह को बहुत दौलत और इज़्ज़त हासिल हुई, और उसने अपनी सोने-चाँदी, जवाहर, बलसान के क़ीमती तेल, ढालों और बाक़ी क़ीमती चीज़ों के लिए ख़ास ख़ज़ाने बनवाए। \v 28 उसने ग़ल्ला, अंगूर का रस और ज़ैतून का तेल महफ़ूज़ रखने के लिए गोदाम तामीर किए और अपने गाय-बैलों और भेड़-बकरियों को रखने की बहुत-सी जगहें भी बनवा लीं। \v 29 उसके गाय-बैलों और भेड़-बकरियों में इज़ाफ़ा होता गया, और उसने कई नए शहरों की बुनियाद रखी, क्योंकि अल्लाह ने उसे निहायत ही अमीर बना दिया था। \v 30 हिज़क़ियाह ही ने जैहून चश्मे का मुँह बंद करके उसका पानी सुरंग के ज़रीए मग़रिब की तरफ़ यरूशलम के उस हिस्से में पहुँचाया जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है। जो भी काम उसने शुरू किया उसमें वह कामयाब रहा। \v 31 एक दिन बाबल के हुक्मरानों ने उसके पास वफ़द भेजा ताकि उस इलाही निशान के बारे में मालूमात हासिल करें जो यहूदाह में हुआ था। उस वक़्त अल्लाह ने उसे अकेला छोड़ दिया ताकि उसके दिल की हक़ीक़ी हालत जाँच ले। \p \v 32 बाक़ी जो कुछ हिज़क़ियाह की हुकूमत के दौरान हुआ और जो नेक काम उसने किया वह ‘आमूस के बेटे यसायाह नबी की रोया’ में क़लमबंद है जो ‘शाहाने-यहूदाहो-इसराईल’ की किताब में दर्ज है। \v 33 जब वह मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे शाही क़ब्रिस्तान की एक ऊँची जगह पर दफ़नाया गया। जब जनाज़ा निकला तो यहूदाह और यरूशलम के तमाम बाशिंदों ने उसका एहतराम किया। फिर उसका बेटा मनस्सी तख़्तनशीन हुआ। \c 33 \s1 यहूदाह का बादशाह मनस्सी \p \v 1 मनस्सी 12 साल की उम्र में बादशाह बना, और यरूशलम में उस की हुकूमत का दौरानिया 55 साल था। \v 2 मनस्सी का चाल-चलन रब को नापसंद था। उसने उन क़ौमों के क़ाबिले-घिन रस्मो-रिवाज अपना लिए जिन्हें रब ने इसराईलियों के आगे से निकाल दिया था। \v 3 ऊँची जगहों के जिन मंदिरों को उसके बाप हिज़क़ियाह ने ढा दिया था उन्हें उसने नए सिरे से तामीर किया। उसने बाल देवताओं की क़ुरबानगाहें बनवाईं और यसीरत देवी के खंबे खड़े किए। इनके अलावा वह सूरज, चाँद बल्कि आसमान के पूरे लशकर को सिजदा करके उनकी ख़िदमत करता था। \v 4 उसने रब के घर में भी अपनी क़ुरबानगाहें खड़ी कीं, हालाँकि रब ने इस मक़ाम के बारे में फ़रमाया था, “यरूशलम में मेरा नाम अबद तक क़ायम रहेगा।” \v 5 लेकिन मनस्सी ने परवा न की बल्कि रब के घर के दोनों सहनों में आसमान के पूरे लशकर के लिए क़ुरबानगाहें बनवाईं। \v 6 यहाँ तक कि उसने वादीए-बिन-हिन्नूम में अपने बेटों को भी क़ुरबान करके जला दिया। जादूगरी, ग़ैबदानी और अफ़सूँगरी करने के अलावा वह मुरदों की रूहों से राबिता करनेवालों और रम्मालों से भी मशवरा करता था। \p ग़रज़ उसने बहुत कुछ किया जो रब को नापसंद था और उसे तैश दिलाया। \v 7 देवी का बुत बनवाकर उसने उसे अल्लाह के घर में खड़ा किया, हालाँकि रब ने दाऊद और उसके बेटे सुलेमान से कहा था, “इस घर और इस शहर यरूशलम में जो मैंने तमाम इसराईली क़बीलों में से चुन लिया है मैं अपना नाम अबद तक क़ायम रखूँगा। \v 8 अगर इसराईली एहतियात से मेरे उन तमाम अहकाम और हिदायात की पैरवी करें जो मूसा ने शरीअत में उन्हें दिए तो मैं कभी नहीं होने दूँगा कि इसराईलियों को उस मुल्क से जिलावतन कर दिया जाए जो मैंने उनके बापदादा को अता किया था।” \v 9 लेकिन मनस्सी ने यहूदाह और यरूशलम के बाशिंदों को ऐसे ग़लत काम करने पर उकसाया जो उन क़ौमों से भी सरज़द नहीं हुए थे जिन्हें रब ने मुल्क में दाख़िल होते वक़्त उनके आगे से तबाह कर दिया था। \p \v 10 गो रब ने मनस्सी और अपनी क़ौम को समझाया, लेकिन उन्होंने परवा न की। \v 11 तब रब ने असूरी बादशाह के कमाँडरों को यहूदाह पर हमला करने दिया। उन्होंने मनस्सी को पकड़कर उस की नाक में नकेल डाली और उसे पीतल की ज़ंजीरों में जकड़कर बाबल ले गए। \v 12 जब वह यों मुसीबत में फँस गया तो मनस्सी रब अपने ख़ुदा का ग़ज़ब ठंडा करने की कोशिश करने लगा और अपने आपको अपने बापदादा के ख़ुदा के हुज़ूर पस्त कर दिया। \p \v 13 और रब ने उस की इलतमास पर ध्यान देकर उस की सुनी। उसे यरूशलम वापस लाकर उसने उस की हुकूमत बहाल कर दी। तब मनस्सी ने जान लिया कि रब ही ख़ुदा है। \p \v 14 इसके बाद उसने ‘दाऊद के शहर’ की बैरूनी फ़सील नए सिरे से बनवाई। यह फ़सील जैहून चश्मे के मग़रिब से शुरू हुई और वादीए-क़िदरोन में से गुज़रकर मछली के दरवाज़े तक पहुँच गई। इस दीवार ने रब के घर की पूरी पहाड़ी बनाम ओफ़ल का इहाता कर लिया और बहुत बुलंद थी। इसके अलावा बादशाह ने यहूदाह के तमाम क़िलाबंद शहरों पर फ़ौजी अफ़सर मुक़र्रर किए। \v 15 उसने अजनबी माबूदों को बुत समेत रब के घर से निकाल दिया। जो क़ुरबानगाहें उसने रब के घर की पहाड़ी और बाक़ी यरूशलम में खड़ी की थीं उन्हें भी उसने ढाकर शहर से बाहर फेंक दिया। \v 16 फिर उसने रब की क़ुरबानगाह को नए सिरे से तामीर करके उस पर सलामती और शुक्रगुज़ारी की क़ुरबानियाँ चढ़ाईं। साथ साथ उसने यहूदाह के बाशिंदों से कहा कि रब इसराईल के ख़ुदा की ख़िदमत करें। \v 17 गो लोग इसके बाद भी ऊँची जगहों पर अपनी क़ुरबानियाँ पेश करते थे, लेकिन अब से वह इन्हें सिर्फ़ रब अपने ख़ुदा को पेश करते थे। \p \v 18 बाक़ी जो कुछ मनस्सी की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहाने-इसराईल की तारीख़’ की किताब में दर्ज है। वहाँ उस की अपने ख़ुदा से दुआ भी बयान की गई है और वह बातें भी जो ग़ैबबीनों ने रब इसराईल के ख़ुदा के नाम में उसे बताई थीं। \v 19 ग़ैबबीनों की किताब में भी मनस्सी की दुआ बयान की गई है और यह कि अल्लाह ने किस तरह उस की सुनी। वहाँ उसके तमाम गुनाहों और बेवफ़ाई का ज़िक्र है, नीज़ उन ऊँची जगहों की फ़हरिस्त दर्ज है जहाँ उसने अल्लाह के ताबे हो जाने से पहले मंदिर बनाकर यसीरत देवी के खंबे और बुत खड़े किए थे। \v 20 जब मनस्सी मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे उसके महल में दफ़न किया गया। फिर उसका बेटा अमून तख़्तनशीन हुआ। \s1 यहूदाह का बादशाह अमून \p \v 21 अमून 22 साल की उम्र में बादशाह बना और दो साल तक यरूशलम में हुकूमत करता रहा। \v 22 अपने बाप मनस्सी की तरह वह ऐसा ग़लत काम करता रहा जो रब को नापसंद था। जो बुत उसके बाप ने बनवाए थे उन्हीं की पूजा वह करता और उन्हीं को क़ुरबानियाँ पेश करता था। \v 23 लेकिन उसमें और मनस्सी में यह फ़रक़ था कि बेटे ने अपने आपको रब के सामने पस्त न किया बल्कि उसका क़ुसूर मज़ीद संगीन होता गया। \v 24 एक दिन अमून के कुछ अफ़सरों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश करके उसे महल में क़त्ल कर दिया। \v 25 लेकिन उम्मत ने तमाम साज़िश करनेवालों को मार डाला और अमून की जगह उसके बेटे यूसियाह को बादशाह बना दिया। \c 34 \s1 यूसियाह बादशाह बुतपरस्ती की मुख़ालफ़त करता है \p \v 1 यूसियाह 8 साल की उम्र में बादशाह बना, और यरूशलम में रहकर उस की हुकूमत का दौरानिया 31 साल था। \v 2 यूसियाह वह कुछ करता रहा जो रब को पसंद था। वह अपने बाप दाऊद के अच्छे नमूने पर चलता रहा और उससे न दाईं, न बाईं तरफ़ हटा। \p \v 3 अपनी हुकूमत के आठवें साल में वह अपने बाप दाऊद के ख़ुदा की मरज़ी तलाश करने लगा, गो उस वक़्त वह जवान ही था। अपनी हुकूमत के 12वें साल में वह ऊँची जगहों के मंदिरों, यसीरत देवी के खंबों और तमाम तराशे और ढाले हुए बुतों को पूरे मुल्क से दूर करने लगा। यों तमाम यरूशलम और यहूदाह इन चीज़ों से पाक-साफ़ हो गया। \v 4 बादशाह के ज़ेरे-निगरानी बाल देवताओं की क़ुरबानगाहों को ढा दिया गया। बख़ूर की जो क़ुरबानगाहें उनके ऊपर थीं उन्हें उसने टुकड़े टुकड़े कर दिया। यसीरत देवी के खंबों और तराशे और ढाले हुए बुतों को ज़मीन पर पटख़कर उसने उन्हें पीसकर उनकी क़ब्रों पर बिखेर दिया जिन्होंने जीते-जी उनको क़ुरबानियाँ पेश की थीं। \v 5 बुतपरस्त पुजारियों की हड्डियों को उनकी अपनी क़ुरबानगाहों पर जलाया गया। इस तरह से यूसियाह ने यरूशलम और यहूदाह को पाक-साफ़ कर दिया। \v 6-7 यह उसने न सिर्फ़ यहूदाह बल्कि मनस्सी, इफ़राईम, शमौन और नफ़ताली तक के शहरों में इर्दगिर्द के खंडरात समेत भी किया। उसने क़ुरबानगाहों को गिराकर यसीरत देवी के खंबों और बुतों को टुकड़े टुकड़े करके चकनाचूर कर दिया। तमाम इसराईल की बख़ूर की क़ुरबानगाहों को उसने ढा दिया। इसके बाद वह यरूशलम वापस चला गया। \s1 रब के घर की मरम्मत \p \v 8 अपनी हुकूमत के 18वें साल में यूसियाह ने साफ़न बिन असलियाह, यरूशलम पर मुक़र्रर अफ़सर मासियाह और बादशाह के मुशीरे-ख़ास युआख़ बिन युआख़ज़ को रब अपने ख़ुदा के घर के पास भेजा ताकि उस की मरम्मत करवाएँ। उस वक़्त मुल्क और रब के घर को पाक-साफ़ करने की मुहिम जारी थी। \v 9 इमामे-आज़म ख़िलक़ियाह के पास जाकर उन्होंने उसे वह पैसे दिए जो लावी के दरबानों ने रब के घर में जमा किए थे। यह हदिये मनस्सी और इफ़राईम के बाशिंदों, इसराईल के तमाम बचे हुए लोगों और यहूदाह, बिनयमीन और यरूशलम के रहनेवालों की तरफ़ से पेश किए गए थे। \p \v 10 अब यह पैसे उन ठेकेदारों के हवाले कर दिए गए जो रब के घर की मरम्मत करवा रहे थे। इन पैसों से ठेकेदारों ने उन कारीगरों की उजरत अदा की जो रब के घर की मरम्मत करके उसे मज़बूत कर रहे थे। \v 11 कारीगरों और तामीर करनेवालों ने इन पैसों से तराशे हुए पत्थर और शहतीरों की लकड़ी भी ख़रीदी। इमारतों में शहतीरों को बदलने की ज़रूरत थी, क्योंकि यहूदाह के बादशाहों ने उन पर ध्यान नहीं दिया था, लिहाज़ा वह गल गए थे। \v 12 इन आदमियों ने वफ़ादारी से ख़िदमत सरंजाम दी। चार लावी इनकी निगरानी करते थे जिनमें यहत और अबदियाह मिरारी के ख़ानदान के थे जबकि ज़करियाह और मसुल्लाम क़िहात के ख़ानदान के थे। जितने लावी साज़ बजाने में माहिर थे \v 13 वह मज़दूरों और तमाम दीगर कारीगरों पर मुक़र्रर थे। कुछ और लावी मुंशी, निगरान और दरबान थे। \s1 रब के घर में शरीअत की किताब मिल जाती है \p \v 14 जब वह पैसे बाहर लाए गए जो रब के घर में जमा हुए थे तो ख़िलक़ियाह को शरीअत की वह किताब मिली जो रब ने मूसा की मारिफ़त दी थी। \v 15 उसे मीरमुंशी साफ़न को देकर उसने कहा, “मुझे रब के घर में शरीअत की किताब मिली है।” \v 16 तब साफ़न किताब को लेकर बादशाह के पास गया और उसे इत्तला दी, “जो भी ज़िम्मादारी आपके मुलाज़िमों को दी गई उन्हें वह अच्छी तरह पूरा कर रहे हैं। \v 17 उन्होंने रब के घर में जमाशुदा पैसे मरम्मत पर मुक़र्रर ठेकेदारों और बाक़ी काम करनेवालों को दे दिए हैं।” \v 18 फिर साफ़न ने बादशाह को बताया, “ख़िलक़ियाह ने मुझे एक किताब दी है।” किताब को खोलकर वह बादशाह की मौजूदगी में उस की तिलावत करने लगा। \p \v 19 किताब की बातें सुनकर बादशाह ने रंजीदा होकर अपने कपड़े फाड़ लिए। \v 20 उसने ख़िलक़ियाह, अख़ीक़ाम बिन साफ़न, अब्दोन बिन मीकाह, मीरमुंशी साफ़न और अपने ख़ास ख़ादिम असायाह को बुलाकर उन्हें हुक्म दिया, \v 21 “जाकर मेरी और इसराईल और यहूदाह के बचे हुए अफ़राद की ख़ातिर रब से इस किताब में दर्ज बातों के बारे में दरियाफ़्त करें। रब का जो ग़ज़ब हम पर नाज़िल होनेवाला है वह निहायत सख़्त है, क्योंकि हमारे बापदादा न रब के फ़रमान के ताबे रहे, न उन हिदायात के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारी है जो किताब में दर्ज की गई हैं।” \p \v 22 चुनाँचे ख़िलक़ियाह बादशाह के भेजे हुए चंद आदमियों के साथ ख़ुलदा नबिया को मिलने गया। ख़ुलदा का शौहर सल्लूम बिन तोक़हत बिन ख़सरा रब के घर के कपड़े सँभालता था। वह यरूशलम के नए इलाक़े में रहते थे। \v 23-24 ख़ुलदा ने उन्हें जवाब दिया, \p “रब इसराईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि जिस आदमी ने तुम्हें भेजा है उसे बता देना, ‘रब फ़रमाता है कि मैं इस शहर और इसके बाशिंदों पर आफ़त नाज़िल करूँगा। वह तमाम लानतें पूरी हो जाएँगी जो बादशाह के हुज़ूर पढ़ी गई किताब में बयान की गई हैं। \v 25 क्योंकि मेरी क़ौम ने मुझे तर्क करके दीगर माबूदों को क़ुरबानियाँ पेश की हैं और अपने हाथों से बुत बनाकर मुझे तैश दिलाया है। मेरा ग़ज़ब इस मक़ाम पर नाज़िल हो जाएगा और कभी ख़त्म नहीं होगा।’ \v 26 लेकिन यहूदाह के बादशाह के पास जाएँ जिसने आपको रब से दरियाफ़्त करने के लिए भेजा है और उसे बता दें कि रब इसराईल का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘मेरी बातें सुनकर \v 27 तेरा दिल नरम हो गया है। जब तुझे पता चला कि मैंने इस मक़ाम और इसके बाशिंदों के ख़िलाफ़ बात की है तो तूने अपने आपको अल्लाह के सामने पस्त कर दिया। तूने बड़ी इंकिसारी से रंजीदा होकर अपने कपड़े फाड़ लिए और मेरे हुज़ूर फूट फूटकर रोया। रब फ़रमाता है कि यह देखकर मैंने तेरी सुनी है। \v 28 जब तू मेरे कहने पर मरकर अपने बापदादा से जा मिलेगा तो सलामती से दफ़न होगा। जो आफ़त मैं शहर और उसके बाशिंदों पर नाज़िल करूँगा वह तू ख़ुद नहीं देखेगा’।” \p अफ़सर बादशाह के पास वापस गए और उसे ख़ुलदा का जवाब सुना दिया। \s1 यूसियाह रब से अहद बाँधता है \p \v 29 तब बादशाह यहूदाह और यरूशलम के तमाम बुज़ुर्गों को बुलाकर \v 30 रब के घर में गया। सब लोग छोटे से लेकर बड़े तक उसके साथ गए यानी यहूदाह के आदमी, यरूशलम के बाशिंदे, इमाम और लावी। वहाँ पहुँचकर जमात के सामने अहद की उस पूरी किताब की तिलावत की गई जो रब के घर में मिली थी। \p \v 31 फिर बादशाह ने अपने सतून के पास खड़े होकर रब के हुज़ूर अहद बाँधा और वादा किया, “हम रब की पैरवी करेंगे, हम पूरे दिलो-जान से उसके अहकाम और हिदायात पूरी करके इस किताब में दर्ज अहद की बातें क़ायम रखेंगे।” \v 32 यूसियाह ने मुतालबा किया कि यरूशलम और यहूदाह के तमाम बाशिंदे अहद में शरीक हो जाएँ। उस वक़्त से यरूशलम के बाशिंदे अपने बापदादा के ख़ुदा के अहद के साथ लिपटे रहे। \p \v 33 यूसियाह ने इसराईल के पूरे मुल्क से तमाम घिनौने बुतों को दूर कर दिया। इसराईल के तमाम बाशिंदों को उसने ताकीद की, “रब अपने ख़ुदा की ख़िदमत करें।” चुनाँचे यूसियाह के जीते-जी वह रब अपने बापदादा की राह से दूर न हुए। \c 35 \s1 यूसियाह फ़सह की ईद मनाता है \p \v 1 फिर यूसियाह ने रब की ताज़ीम में फ़सह की ईद मनाई। पहले महीने के 14वें दिन फ़सह का लेला ज़बह किया गया। \v 2 बादशाह ने इमामों को काम पर लगाकर उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई की कि वह रब के घर में अपनी ख़िदमत अच्छी तरह अंजाम दें। \v 3 लावियों को तमाम इसराईलियों को शरीअत की तालीम देने की ज़िम्मादारी दी गई थी, और साथ साथ उन्हें रब की ख़िदमत के लिए मख़सूस किया गया था। उनसे यूसियाह ने कहा, \p “मुक़द्दस संदूक़ को उस इमारत में रखें जो इसराईल के बादशाह दाऊद के बेटे सुलेमान ने तामीर किया। उसे अपने कंधों पर उठाकर इधर-उधर ले जाने की ज़रूरत नहीं है बल्कि अब से अपना वक़्त रब अपने ख़ुदा और उस की क़ौम इसराईल की ख़िदमत में सर्फ़ करें। \v 4 उन ख़ानदानी गुरोहों के मुताबिक़ ख़िदमत के लिए तैयार रहें जिनकी तरतीब दाऊद बादशाह और उसके बेटे सुलेमान ने लिखकर मुक़र्रर की थी। \v 5 फिर मक़दिस में उस जगह खड़े हो जाएँ जो आपके ख़ानदानी गुरोह के लिए मुक़र्रर है और उन ख़ानदानों की मदद करें जो क़ुरबानियाँ चढ़ाने के लिए आते हैं और जिनकी ख़िदमत करने की ज़िम्मादारी आपको दी गई है। \v 6 अपने आपको ख़िदमत के लिए मख़सूस करें और फ़सह के लेले ज़बह करके अपने हमवतनों के लिए इस तरह तैयार करें जिस तरह रब ने मूसा की मारिफ़त हुक्म दिया था।” \p \v 7 ईद की ख़ुशी में यूसियाह ने ईद मनानेवालों को अपनी मिलकियत में से 30,000 भेड़-बकरियों के बच्चे दिए। यह जानवर फ़सह की क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाए गए जबकि बादशाह की तरफ़ से 3,000 बैल दीगर क़ुरबानियों के लिए इस्तेमाल हुए। \v 8 इसके अलावा बादशाह के अफ़सरों ने भी अपनी ख़ुशी से क़ौम, इमामों और लावियों को जानवर दिए। अल्लाह के घर के सबसे आला अफ़सरों ख़िलक़ियाह, ज़करियाह और यहियेल ने दीगर इमामों को फ़सह की क़ुरबानी के लिए 2,600 भेड़-बकरियों के बच्चे दिए, नीज़ 300 बैल। \v 9 इसी तरह लावियों के राहनुमाओं ने दीगर लावियों को फ़सह की क़ुरबानी के लिए 5,000 भेड़-बकरियों के बच्चे दिए, नीज़ 500 बैल। उनमें से तीन भाई बनाम कूननियाह, समायाह और नतनियेल थे जबकि दूसरों के नाम हसबियाह, यइयेल और यूज़बद थे। \v 10 जब हर एक ख़िदमत के लिए तैयार था तो इमाम अपनी अपनी जगह पर और लावी अपने अपने गुरोहों के मुताबिक़ खड़े हो गए जिस तरह बादशाह ने हिदायत दी थी। \v 11 लावियों ने फ़सह के लेलों को ज़बह करके उनकी खालें उतारीं जबकि इमामों ने लावियों से जानवरों का ख़ून लेकर क़ुरबानगाह पर छिड़का। \v 12 जो कुछ भस्म होनेवाली क़ुरबानियों के लिए मुक़र्रर था उसे क़ौम के मुख़्तलिफ़ ख़ानदानों के लिए एक तरफ़ रख दिया गया ताकि वह उसे बाद में रब को क़ुरबानी के तौर पर पेश कर सकें, जिस तरह मूसा की शरीअत में लिखा है। बैलों के साथ भी ऐसा ही किया गया। \v 13 फ़सह के लेलों को हिदायात के मुताबिक़ आग पर भूना गया जबकि बाक़ी गोश्त को मुख़्तलिफ़ क़िस्म की देगों में उबाला गया। ज्योंही गोश्त पक गया तो लावियों ने उसे जल्दी से हाज़िरीन में तक़सीम किया। \v 14 इसके बाद उन्होंने अपने और इमामों के लिए फ़सह के लेले तैयार किए, क्योंकि हारून की औलाद यानी इमाम भस्म होनेवाली क़ुरबानियों और चरबी को चढ़ाने में रात तक मसरूफ़ रहे। \p \v 15 ईद के पूरे दौरान आसफ़ के ख़ानदान के गुलूकार अपनी अपनी जगह पर खड़े रहे, जिस तरह दाऊद, आसफ़, हैमान और बादशाह के ग़ैबबीन यदूतून ने हिदायत दी थी। दरबान भी रब के घर के दरवाज़ों पर मुसलसल खड़े रहे। उन्हें अपनी जगहों को छोड़ने की ज़रूरत भी नहीं थी, क्योंकि बाक़ी लावियों ने उनके लिए भी फ़सह के लेले तैयार कर रखे। \v 16 यों उस दिन यूसियाह के हुक्म पर क़ुरबानियों के पूरे इंतज़ाम को तरतीब दिया गया ताकि आइंदा फ़सह की ईद मनाई जाए और भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ रब की क़ुरबानगाह पर पेश की जाएँ। \p \v 17 यरूशलम में जमा हुए इसराईलियों ने फ़सह की ईद और बेख़मीरी रोटी की ईद एक हफ़ते के दौरान मनाई। \v 18 फ़सह की ईद इसराईल में समुएल नबी के ज़माने से लेकर उस वक़्त तक इस तरह नहीं मनाई गई थी। इसराईल के किसी भी बादशाह ने उसे यों नहीं मनाया था जिस तरह यूसियाह ने उसे उस वक़्त इमामों, लावियों, यरूशलम और तमाम यहूदाह और इसराईल से आए हुए लोगों के साथ मिलकर मनाई। \v 19 यूसियाह बादशाह की हुकूमत के 18वें साल में पहली दफ़ा रब की ताज़ीम में ऐसी ईद मनाई गई। \s1 यूसियाह की मौत \p \v 20 रब के घर की बहाली की तकमील के बाद एक दिन मिसर का बादशाह निकोह दरियाए-फ़ुरात पर के शहर करकिमीस के लिए रवाना हुआ ताकि वहाँ दुश्मन से लड़े। लेकिन रास्ते में यूसियाह उसका मुक़ाबला करने के लिए निकला। \v 21 निकोह ने अपने क़ासिदों को यूसियाह के पास भेजकर उसे इत्तला दी, \p “ऐ यहूदाह के बादशाह, मेरा आपसे क्या वास्ता? इस वक़्त मैं आप पर हमला करने के लिए नहीं निकला बल्कि उस शाही ख़ानदान पर जिसके साथ मेरा झगड़ा है। अल्लाह ने फ़रमाया है कि मैं जल्दी करूँ। वह तो मेरे साथ है। चुनाँचे उसका मुक़ाबला करने से बाज़ आएँ, वरना वह आपको हलाक कर देगा।” \p \v 22 लेकिन यूसियाह बाज़ न आया बल्कि लड़ने के लिए तैयार हुआ। उसने निकोह की बात न मानी गो अल्लाह ने उसे उस की मारिफ़त आगाह किया था। चुनाँचे वह भेस बदलकर फ़िरौन से लड़ने के लिए मजिद्दो के मैदान में पहुँचा। \v 23 जब लड़ाई छिड़ गई तो यूसियाह तीरों से ज़ख़मी हुआ, और उसने अपने मुलाज़िमों को हुक्म दिया, “मुझे यहाँ से ले जाओ, क्योंकि मैं सख़्त ज़ख़मी हो गया हूँ।” \v 24 लोगों ने उसे उसके अपने रथ पर से उठाकर उसके एक और रथ में रखा जो उसे यरूशलम ले गया। लेकिन उसने वफ़ात पाई, और उसे अपने बापदादा के ख़ानदानी क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया। पूरे यहूदाह और यरूशलम ने उसका मातम किया। \p \v 25 यरमियाह ने यूसियाह की याद में मातमी गीत लिखे, और आज तक गीत गानेवाले मर्दो-ख़वातीन यूसियाह की याद में मातमी गीत गाते हैं, यह पक्का दस्तूर बन गया है। यह गीत ‘नोहा की किताब’ में दर्ज हैं। \p \v 26-27 बाक़ी जो कुछ शुरू से लेकर आख़िर तक यूसियाह की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहाने-यहूदाहो-इसराईल’ की किताब में बयान किया गया है। वहाँ उसके नेक कामों का ज़िक्र है और यह कि उसने किस तरह शरीअत के अहकाम पर अमल किया। \c 36 \s1 यहूदाह का बादशाह यहुआख़ज़ \p \v 1 उम्मत ने यूसियाह के बेटे यहुआख़ज़ को बाप के तख़्त पर बिठा दिया। \v 2 यहुआख़ज़ 23 साल की उम्र में बादशाह बना, और यरूशलम में उस की हुकूमत का दौरानिया तीन माह था। \v 3 फिर मिसर के बादशाह ने उसे तख़्त से उतार दिया, और मुल्के-यहूदाह को तक़रीबन 3,400 किलोग्राम चाँदी और 34 किलोग्राम सोना ख़राज के तौर पर अदा करना पड़ा। \v 4 मिसर के बादशाह ने यहुआख़ज़ के सगे भाई इलियाक़ीम को यहूदाह और यरूशलम का नया बादशाह बनाकर उसका नाम यहूयक़ीम में बदल दिया। यहुआख़ज़ को वह क़ैद करके अपने साथ मिसर ले गया। \s1 यहूदाह का बादशाह यहूयक़ीम \p \v 5 यहूयक़ीम 25 साल की उम्र में बादशाह बना, और यरूशलम में रहकर वह 11 साल तक हुकूमत करता रहा। उसका चाल-चलन रब उसके ख़ुदा को नापसंद था। \v 6 एक दिन बाबल के नबूकदनज़्ज़र ने यहूदाह पर हमला किया और यहूयक़ीम को पीतल की ज़ंजीरों में जकड़कर बाबल ले गया। \v 7 नबूकदनज़्ज़र रब के घर की कई क़ीमती चीज़ें भी छीनकर अपने साथ बाबल ले गया और वहाँ अपने मंदिर में रख दीं। \p \v 8 बाक़ी जो कुछ यहूयक़ीम की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहाने-यहूदाहो-इसराईल’ की किताब में दर्ज है। वहाँ यह बयान किया गया है कि उसने कैसी घिनौनी हरकतें कीं और कि क्या कुछ उसके साथ हुआ। उसके बाद उसका बेटा यहूयाकीन तख़्तनशीन हुआ। \s1 यहूयाकीन की हुकूमत \p \v 9 यहूयाकीन 18 साल की उम्र में बादशाह बना, और यरूशलम में उस की हुकूमत का दौरानिया तीन माह और दस दिन था। उसका चाल-चलन रब को नापसंद था। \v 10 बहार के मौसम में नबूकदनज़्ज़र बादशाह ने हुक्म दिया कि उसे गिरिफ़्तार करके बाबल ले जाया जाए। साथ साथ फ़ौजियों ने रब के घर की क़ीमती चीज़ें भी छीनकर बाबल पहुँचाईं। यहूयाकीन की जगह नबूकदनज़्ज़र ने यहूयाकीन के चचा सिदक़ियाह को यहूदाह और यरूशलम का बादशाह बना दिया। \s1 सिदक़ियाह बादशाह और यरूशलम की तबाही \p \v 11 सिदक़ियाह 21 साल की उम्र में तख़्तनशीन हुआ, और यरूशलम में उस की हुकूमत का दौरानिया 11 साल था। \v 12 उसका चाल-चलन रब उसके ख़ुदा को नापसंद था। जब यरमियाह नबी ने उसे रब की तरफ़ से आगाह किया तो उसने अपने आपको नबी के सामने पस्त न किया। \v 13 सिदक़ियाह को अल्लाह की क़सम खाकर नबूकदनज़्ज़र बादशाह का वफ़ादार रहने का वादा करना पड़ा। तो भी वह कुछ देर के बाद सरकश हो गया। वह अड़ गया, और उसका दिल इतना सख़्त हो गया कि वह रब इसराईल के ख़ुदा की तरफ़ दुबारा रुजू करने के लिए तैयार नहीं था। \p \v 14 लेकिन यहूदाह के राहनुमाओं, इमामों और क़ौम की बेवफ़ाई भी बढ़ती गई। पड़ोसी क़ौमों के घिनौने रस्मो-रिवाज अपनाकर उन्होंने रब के घर को नापाक कर दिया, गो उसने यरूशलम में यह इमारत अपने लिए मख़सूस की थी। \p \v 15 बार बार रब उनके बापदादा का ख़ुदा अपने पैग़ंबरों को उनके पास भेजकर उन्हें समझाता रहा, क्योंकि उसे अपनी क़ौम और सुकूनतगाह पर तरस आता था। \v 16 लेकिन लोगों ने अल्लाह के पैग़ंबरों का मज़ाक़ उड़ाया, उनके पैग़ाम हक़ीर जाने और नबियों को लान-तान की। आख़िरकार रब का ग़ज़ब उन पर नाज़िल हुआ, और बचने का कोई रास्ता न रहा। \v 17 उसने बाबल के बादशाह नबूकदनज़्ज़र को उनके ख़िलाफ़ भेजा तो दुश्मन यहूदाह के जवानों को तलवार से क़त्ल करने के लिए मक़दिस में घुसने से भी न झिजके। किसी पर भी रहम न किया गया, ख़ाह जवान मर्द या जवान ख़ातून, ख़ाह बुज़ुर्ग या उम्ररसीदा हो। रब ने सबको नबूकदनज़्ज़र के हवाले कर दिया। \v 18 नबूकदनज़्ज़र ने अल्लाह के घर की तमाम चीज़ें छीन लीं, ख़ाह वह बड़ी थीं या छोटी। वह रब के घर, बादशाह और उसके आला अफ़सरों के तमाम ख़ज़ाने भी बाबल ले गया। \v 19 फ़ौजियों ने रब के घर और तमाम महलों को जलाकर यरूशलम की फ़सील को गिरा दिया। जितनी भी क़ीमती चीज़ें रह गई थीं वह तबाह हुईं। \v 20 और जो तलवार से बच गए थे उन्हें बाबल का बादशाह क़ैद करके अपने साथ बाबल ले गया। वहाँ उन्हें उस की और उस की औलाद की ख़िदमत करनी पड़ी। उनकी यह हालत उस वक़्त तक जारी रही जब तक फ़ारसी क़ौम की सलतनत शुरू न हुई। \p \v 21 यों वह कुछ पूरा हुआ जिसकी पेशगोई रब ने यरमियाह नबी की मारिफ़त की थी, क्योंकि ज़मीन को आख़िरकार सबत का वह आराम मिल गया जो बादशाहों ने उसे नहीं दिया था। जिस तरह नबी ने कहा था, अब ज़मीन 70 साल तक तबाह और वीरान रही। \s1 जिलावतनी से वापसी \p \v 22 फ़ारस के बादशाह ख़ोरस की हुकूमत के पहले साल में रब ने वह कुछ पूरा होने दिया जिसकी पेशगोई उसने यरमियाह की मारिफ़त की थी। उसने ख़ोरस को ज़ैल का एलान करने की तहरीक दी। यह एलान ज़बानी और तहरीरी तौर पर पूरी बादशाही में किया गया। \p \v 23 “फ़ारस का बादशाह ख़ोरस फ़रमाता है, रब आसमान के ख़ुदा ने दुनिया के तमाम ममालिक मेरे हवाले कर दिए हैं। उसने मुझे यहूदाह के शहर यरूशलम में उसके लिए घर बनाने की ज़िम्मादारी दी है। आपमें से जितने उस की क़ौम के हैं यरूशलम के लिए रवाना हो जाएँ। रब आपका ख़ुदा आपके साथ हो।”