\id MAT \ide UTF-8 \ide UTF-8 \rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License \h मत्ती \toc1 मत्ती रचित सुसमाचार \toc2 मत्ती \toc3 मत्ती \mt मत्ती रचित सुसमाचार \is लेखक \ip इस पुस्तक का लेखक मत्ती, चुंगी लेनेवाला मनुष्य था, जिसने यीशु के अनुसरण हेतु अपना यह व्यवसाय त्याग दिया था (9:9-13)। मरकुस और लूका उसे अपनी पुस्तकों में लेवी नाम से पुकारते हैं। उसके नाम का अर्थ है, “परमेश्वर का वरदान”। \ip आरम्भिक कलीसिया के प्राचीन, मत्ती को जो बारह शिष्यों में से एक था, इस पुस्तक का एकमत होकर लेखक मानते थे। मत्ती यीशु की सेवा की सब घटनाओं का आँखों देखा गवाह था। अन्य शुभ सन्देश वृत्तान्तों के साथ मत्ती की पुस्तक की तुलना करने पर स्पष्ट प्रकट होता है कि प्रेरितों द्वारा दी गई मसीह की गवाही, अखण्ड एवं सत्य है। \is लेखन तिथि एवं स्थान \ip लगभग ई.स. 50 - 70 \ip मत्ती की पुस्तक का यहूदी स्वरूप देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह पुस्तक पलिश्तीन या सीरिया में लिखी गई थी। परन्तु अनेकों के विचार में इसकी रचना अन्ताकिया में की गई थी। \is प्रापक \ip इस पुस्तक की भाषा यूनानी है, इसलिए मत्ती का अभिप्राय सम्भवतः यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों के लिए सुसमाचार लिखने का रहा होगा। इस कारण पुस्तक की सामग्री के अधिकांश भाग यहूदी पाठकों की ओर संकेत करते हैं। मत्ती के विषय हैं: पुराने नियम की पूर्ति, यीशु की वंशावली का अब्राहम से आरम्भ (1:1-17), उसके द्वारा यहूदियों की शब्दावली का उपयोग (उदाहरणार्थ, “स्वर्ग का राज्य”, जहाँ स्वर्ग शब्द का उपयोग परमेश्वर के नाम के उपयोग में संकोच को प्रकट करता है और यीशु को “दाऊद का पुत्र” कहना- 1:1, 9:27; 12:23; 15:22; 20:30-31; 21:9,15; 22:41-45) आदि बातों से प्रकट होता है कि मत्ती के ध्यान में यहूदी समुदाय अधिक था। \is उद्देश्य \ip अपनी पुस्तक में शुभ सन्देश लिखने का मत्ती का अभिप्राय यह था कि यहूदी पाठक यीशु को मसीह स्वीकार करें। यहाँ मत्ती का मुख्य उद्देश्य है कि परमेश्वर के राज्य को मानवजाति के मध्य लाने पर बल दिया जाए। वह बल देता है कि यीशु एक राजा है जो पुराने नियम की भविष्यद्वाणियों और आशाओं को पूरा करता है (मत्ती 1:1; 6:16; 20:28)। \is मूल विषय \ip यीशु—यहूदियों का राजा \iot रूपरेखा \io1 1. यीशु का जन्म — 1:1-2:23 \io1 2. यीशु की गलील क्षेत्र में सेवा — 3:1-18:35 \io1 3. यीशु की यहूदिया में सेवा — 19:1-20:34 \io1 4. यहूदिया में यीशु के अन्तिम दिन — 21:1-27:66 \io1 5. अन्तिम घटनाएँ — 28:1-20 \c 1 \s यीशु मसीह की वंशावली \p \v 1 अब्राहम की सन्तान, दाऊद की सन्तान, \it यीशु मसीह\it*\f + \fr 1:1 \fr*\fq यीशु मसीह: \fq*\ft यीशु शब्द का अर्थ है “प्रभु उद्धारकर्ता” (मसीह, इब्रानी शब्द) है, जिसका अर्थ है “अभिषिक्त”\ft*\f* की \it वंशावली\it*\f + \fr 1:1 \fr*\fq वंशावली: \fq*\ft अर्थात् पीढ़ियाँ-वंशजों का पारिवारिक अभिलेख।\ft*\f*। \p \v 2 अब्राहम से इसहाक उत्पन्न हुआ, इसहाक से याकूब उत्पन्न हुआ, और याकूब से यहूदा और उसके भाई उत्पन्न हुए। \v 3 यहूदा और तामार से पेरेस व जेरह उत्पन्न हुए, और पेरेस से हेस्रोन उत्पन्न हुआ, और हेस्रोन से एराम उत्पन्न हुआ। \v 4 एराम से अम्मीनादाब उत्पन्न हुआ, और अम्मीनादाब से नहशोन, और नहशोन से सलमोन उत्पन्न हुआ। \bdit (रूत 4:19,20) \bdit* \v 5 सलमोन और राहाब से बोअज उत्पन्न हुआ, और बोअज और रूत से ओबेद उत्पन्न हुआ, और ओबेद से यिशै उत्पन्न हुआ। \v 6 और यिशै से दाऊद राजा उत्पन्न हुआ। \p और दाऊद से सुलैमान उस स्त्री से उत्पन्न हुआ जो पहले ऊरिय्याह की पत्नी थी। \bdit (2 शमू. 12:24) \bdit* \v 7 सुलैमान से रहबाम उत्पन्न हुआ, और रहबाम से अबिय्याह उत्पन्न हुआ, और अबिय्याह से आसा उत्पन्न हुआ। \v 8 आसा से यहोशाफात उत्पन्न हुआ, और यहोशाफात से योराम उत्पन्न हुआ, और योराम से उज्जियाह उत्पन्न हुआ। \v 9 उज्जियाह से योताम उत्पन्न हुआ, योताम से आहाज उत्पन्न हुआ, और आहाज से हिजकिय्याह उत्पन्न हुआ। \v 10 हिजकिय्याह से मनश्शे उत्पन्न हुआ, मनश्शे से आमोन उत्पन्न हुआ, और आमोन से योशिय्याह उत्पन्न हुआ। \v 11 और बन्दी होकर बाबेल जाने के समय में योशिय्याह से \it यकुन्याह\it*\f + \fr 1:11 \fr*\fq यकुन्याह: \fq*\ft या कोन्याह या यहोयाकीम जो 597 ई. पू. में, यिर्मयाह के समय, यहूदा का राजा था जिसे नबूकदनेस्सर बन्दी बनाकर ले गया था (यिर्म. 22: 24, 28; 37:1) \ft*\f*, और उसके भाई उत्पन्न हुए। \bdit (यिर्म. 27:20) \bdit* \p \v 12 बन्दी होकर बाबेल पहुँचाए जाने के बाद यकुन्याह से शालतीएल उत्पन्न हुआ, और शालतीएल से जरुब्बाबेल उत्पन्न हुआ। \v 13 जरुब्बाबेल से अबीहूद उत्पन्न हुआ, अबीहूद से एलयाकीम उत्पन्न हुआ, और एलयाकीम से अजोर उत्पन्न हुआ। \v 14 अजोर से सादोक उत्पन्न हुआ, सादोक से अखीम उत्पन्न हुआ, और अखीम से एलीहूद उत्पन्न हुआ। \v 15 एलीहूद से एलीआजर उत्पन्न हुआ, एलीआजर से मत्तान उत्पन्न हुआ, और मत्तान से याकूब उत्पन्न हुआ। \v 16 याकूब से यूसुफ उत्पन्न हुआ, जो मरियम का पति था, और \it मरियम से\it*\f + \fr 1:16 \fr*\fq मरियम से: \fq*\ft यह एक स्त्रीलिंग शब्द है, जो स्पष्ट करता है कि यीशु केवल मरियम द्वारा जन्मा था, न कि मरियम और यूसुफ से, यह यीशु का कुँवारी से जन्म का एक स्पष्ट और ठोस सबूत है।\ft*\f* यीशु उत्पन्न हुआ जो मसीह कहलाता है। \p \v 17 अब्राहम से दाऊद तक सब चौदह पीढ़ी हुई, और दाऊद से बाबेल को बन्दी होकर पहुँचाए जाने तक चौदह पीढ़ी, और बन्दी होकर बाबेल को पहुँचाए जाने के समय से लेकर मसीह तक चौदह पीढ़ी हुई। \s यीशु मसीह का जन्म \p \v 18 अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उसकी माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उनके इकट्ठे होने के पहले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। \v 19 अतः उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की। \v 20 जब वह इन बातों की सोच ही में था तो परमेश्वर का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा, “हे यूसुफ! दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ ले आने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। \v 21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम \it यीशु\it*\f + \fr 1:21 \fr*\fq यीशु: \fq*\ft उद्धारकर्ता\ft*\f* रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।” \p \v 22 यह सब कुछ इसलिए हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था, वह पूरा हो \bdit (यशा. 7:14) \bdit* \v 23 “देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा,” जिसका अर्थ है - परमेश्वर हमारे साथ। \v 24 तब यूसुफ नींद से जागकर परमेश्वर के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्नी को अपने यहाँ ले आया। \v 25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उसने उसका नाम यीशु रखा। \c 2 \s ज्योतिषियों का पूरब से आगमन \p \v 1 हेरोदेस राजा के दिनों में जब यहूदिया के \it बैतलहम\it*\f + \fr 2:1 \fr*\fq बैतलहम: \fq*\ft एक शहर जो यरूशलेम के दक्षिण से पाँच मील दूर है \ft*\f* में यीशु का जन्म हुआ, तब, पूर्व से कई ज्योतिषी यरूशलेम में आकर पूछने लगे, \v 2 “यहूदियों का राजा जिसका जन्म हुआ है, कहाँ है? क्योंकि हमने पूर्व में उसका तारा देखा है और उसको झुककर प्रणाम करने आए हैं।” \bdit (गिन. 24:17) \bdit* \v 3 यह सुनकर हेरोदेस राजा और उसके साथ सारा यरूशलेम घबरा गया। \v 4 और उसने लोगों के सब प्रधान याजकों और \it शास्त्रियों\it*\f + \fr 2:4 \fr*\fq शास्त्रियों: \fq*\ft मुख्य रूप से फरीसियों का एक पंथ समझा जाता था। वे व्यवस्था के रक्षक थे। उन्हें व्यवस्थापक भी कहा जाता था क्योंकि वे महासभा में व्यवस्थापालन का दायित्व निभाते थे।\ft*\f* को इकट्ठा करके उनसे पूछा, “मसीह का जन्म कहाँ होना चाहिए?” \v 5 उन्होंने उससे कहा, “यहूदिया के बैतलहम में; क्योंकि भविष्यद्वक्ता के द्वारा लिखा गया है: \p \v 6 “हे बैतलहम, यहूदा के प्रदेश, तू किसी भी रीति से यहूदा के अधिकारियों में सबसे छोटा नहीं; क्योंकि तुझ में से एक अधिपति निकलेगा, जो मेरी प्रजा इस्राएल का चरवाहा बनेगा।” \bdit (मीका 5:2) \bdit* \p \v 7 तब हेरोदेस ने ज्योतिषियों को चुपके से बुलाकर उनसे पूछा, कि तारा ठीक किस समय दिखाई दिया था। \v 8 और उसने यह कहकर उन्हें बैतलहम भेजा, “जाकर उस बालक के विषय में ठीक-ठीक मालूम करो और जब वह मिल जाए तो मुझे समाचार दो ताकि मैं भी आकर उसको प्रणाम करूँ।” \p \v 9 वे राजा की बात सुनकर चले गए, और जो तारा उन्होंने पूर्व में देखा था, वह उनके आगे-आगे चला; और जहाँ बालक था, उस जगह के ऊपर पहुँचकर ठहर गया। \v 10 उस तारे को देखकर वे अति आनन्दित हुए। \bdit (लूका 2:20) \bdit* \v 11 और उस घर में पहुँचकर उस बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा, और दण्डवत् होकर \it बालक\it*\f + \fr 2:11 \fr*\fq बालक: \fq*\ft इसका मतलब “बालक” है न कि एक “शिशु” जैसा लूका 2:16 वर्णन करता है, ज्योतिषियों के आगमन के समय यीशु चरनी में नहीं था, अति सम्भव है कि वह कई महीनों का या एक वर्ष से भी अधिक आयु का हो चुका था। (देखें पद 7, 16) \ft*\f* की आराधना की, और अपना-अपना थैला खोलकर उसे सोना, और लोबान, और गन्धरस की भेंट चढ़ाई। \v 12 और स्वप्न में यह चेतावनी पाकर कि हेरोदेस के पास फिर न जाना, वे दूसरे मार्ग से होकर अपने देश को चले गए। \s मिस्र देश को भागना \p \v 13 उनके चले जाने के बाद, परमेश्वर के एक दूत ने स्वप्न में प्रकट होकर यूसुफ से कहा, “उठ! उस बालक को और उसकी माता को लेकर मिस्र देश को भाग जा; और जब तक मैं तुझ से न कहूँ, तब तक वहीं रहना; क्योंकि हेरोदेस इस बालक को ढूँढ़ने पर है कि इसे मरवा डाले।” \p \v 14 तब वह रात ही को उठकर बालक और उसकी माता को लेकर मिस्र को चल दिया। \v 15 और हेरोदेस के मरने तक वहीं रहा। इसलिए कि वह वचन जो प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था पूरा हो “मैंने अपने पुत्र को मिस्र से बुलाया।” \bdit (होशे 11:1) \bdit* \s हेरोदेस द्वारा छोटे बालकों को मरवाना \p \v 16 जब हेरोदेस ने यह देखा, कि ज्योतिषियों ने उसके साथ धोखा किया है, तब वह क्रोध से भर गया, और लोगों को भेजकर ज्योतिषियों से ठीक-ठीक पूछे हुए समय के अनुसार बैतलहम और उसके आस-पास के स्थानों के सब लड़कों को जो दो वर्ष के या उससे छोटे थे, मरवा डाला। \v 17 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हुआ \q \v 18 “रामाह में एक करुण-नाद सुनाई दिया, \q रोना और बड़ा विलाप, \q राहेल अपने बालकों के लिये रो रही थी; \q और शान्त होना न चाहती थी, क्योंकि वे अब नहीं रहे।” \bdit (यिर्म. 31:15) \bdit* \s मिस्र देश से वापसी \p \v 19 हेरोदेस के मरने के बाद, प्रभु के दूत ने मिस्र में यूसुफ को स्वप्न में प्रकट होकर कहा, \v 20 “उठ, बालक और उसकी माता को लेकर इस्राएल के देश में चला जा; क्योंकि जो बालक के प्राण लेना चाहते थे, वे मर गए।” \bdit (निर्ग. 4:19) \bdit* \v 21 वह उठा, और बालक और उसकी माता को साथ लेकर इस्राएल के देश में आया। \v 22 परन्तु यह सुनकर कि \it अरखिलाउस\it*\f + \fr 2:22 \fr*\fq अरखिलाउस: \fq*\ft हेरोदेस महान का पुत्र- यहूदा और सामरिया का शासक।\ft*\f* अपने पिता हेरोदेस की जगह यहूदिया पर राज्य कर रहा है, वहाँ जाने से डरा; और स्वप्न में परमेश्वर से चेतावनी पाकर गलील प्रदेश में चला गया। \v 23 और नासरत नामक नगर में जा बसा, ताकि वह वचन पूरा हो, जो भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा गया थाः “वह \it नासरी\it*\f + \fr 2:23 \fr*\fq नासरी: \fq*\ft सम्भवतः प्रथम शताब्दी के शास्त्रियों तथा “तिरस्कार या घृणा” को दर्शाने वाला एक शब्द होता था (यूह. 1:46) नासरत से मसीह का आना किसी प्रकार भी एक सम्भावित स्थान नहीं था (तुलना करे यशा.53: 3; भजन 22:6) \ft*\f* कहलाएगा।” \bdit (लूका 18:7) \bdit* \c 3 \s यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का प्रचार \p \v 1 उन दिनों में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला आकर यहूदिया के \it जंगल\it*\f + \fr 3:1 \fr*\fq यहूदिया के जंगल: \fq*\ft मृत सागर के पश्चिमी तट तक एक विस्तृत अनुपजाऊ, बंजर भूमि।\ft*\f* में यह प्रचार करने लगा: \v 2 “मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” \v 3 यह वही है जिसके बारे में यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा था: \q “जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हो रहा है, कि प्रभु का मार्ग तैयार करो, \q उसकी सड़कें सीधी करो।” \bdit (यशा. 40:3) \bdit* \p \v 4 यह यूहन्ना ऊँट के रोम का वस्त्र पहने था, और अपनी कमर में चमड़े का कमरबन्द बाँधे हुए था, और उसका भोजन टिड्डियाँ और वनमधु था। \bdit (2 राजा. 1:8) \bdit* \v 5 तब यरूशलेम के और सारे यहूदिया के, और यरदन के आस-पास के सारे क्षेत्र के लोग उसके पास निकल आए। \v 6 और अपने-अपने पापों को मानकर यरदन नदी में उससे बपतिस्मा लिया। \p \v 7 जब उसने बहुत से \it फरीसियों\it*\f + \fr 3:7 \fr*\fq फरीसियों: \fq*\ft यीशु के दिनों में सबसे प्रभावशाली यहूदी सम्प्रदाय। मूसा की व्यवस्था यानी रूढ़िवादी दृष्टिकोण अर्थात् मूसा की व्यवस्था का कठोरता से पालन करनेवाले फरीसी।\ft*\f* और \it सदूकियों\it*\f + \fr 3:7 \fr*\fq सदूकियों: \fq*\ft यह भी पुरोहितों और उच्च वर्ग से सम्बंधित एक यहूदी के संप्रदाय था। यीशु के दिनों में वे आत्मिक संसार में विश्वास नहीं करते थे।\ft*\f* को बपतिस्मा के लिये अपने पास आते देखा, तो उनसे कहा, “हे साँप के बच्चों, तुम्हें किसने चेतावनी दी कि आनेवाले क्रोध से भागो? \v 8 मन फिराव के योग्य फल लाओ; \v 9 और अपने-अपने मन में यह न सोचो, कि हमारा पिता अब्राहम है; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिये सन्तान उत्पन्न कर सकता है। \v 10 और अब कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिए जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है। \p \v 11 “मैं तो पानी से तुम्हें मन फिराव का बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु जो मेरे बाद आनेवाला है, वह मुझसे शक्तिशाली है; मैं उसकी जूती उठाने के योग्य नहीं, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा। \v 12 उसका सूप उसके हाथ में है, और वह अपना खलिहान अच्छी रीति से साफ करेगा, और अपने गेहूँ को तो खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नहीं।” \s यूहन्ना द्वारा यीशु मसीह का बपतिस्मा \p \v 13 उस समय यीशु गलील से यरदन के किनारे पर यूहन्ना के पास उससे बपतिस्मा लेने आया। \v 14 परन्तु यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा, “मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और तू मेरे पास आया है?” \v 15 यीशु ने उसको यह उत्तर दिया, \wj “अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है।”\wj* तब उसने उसकी बात मान ली। \v 16 \it और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया, और उसके लिये आकाश खुल गया; और उसने परमेश्वर की आत्मा को कबूतर के समान उतरते और अपने ऊपर आते देखा।\it* \v 17 \it और यह आकाशवाणी हुई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ\it*।”\f + \fr 3:17 \fr*\ft त्रिएक परमेश्वर की अवधारणा की प्रथम और स्पष्ट अभिव्यक्ति है।\ft*\f* \bdit (भज. 2:7) \bdit* \c 4 \s शैतान द्वारा यीशु मसीह की परीक्षा \p \v 1 \it तब उस समय पवित्र आत्मा यीशु को एकांत में ले गया ताकि शैतान से उसकी परीक्षा हो\it*।\f + \fr 4:1: \fr*\ft यीशु की परीक्षा लेने में शैतान की मंशा थी कि मसीह को विवश करके उससे पाप करवाए जिससे की वह उद्धारकर्ता के रूप में अयोग्‍य ठहरे और मनुष्य की मुक्ति, परमेश्वर की योजना में नाकाम हो जाए।\ft*\f* \v 2 वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी। \bdit (निर्ग. 34:28) \bdit* \v 3 तब परखनेवाले ने पास आकर उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियाँ बन जाएँ।” \v 4 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “लिखा है, \wj* \q1 \wj ‘मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं,\wj* \q2 \wj परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।’”\wj* \p \v 5 तब शैतान उसे पवित्र नगर में ले गया और मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया। \bdit (लूका 4:9) \bdit* \v 6 \it और उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने आपको नीचे गिरा दे; क्योंकि लिखा है, ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, और वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे; कहीं ऐसा न हो कि तेरे पाँवों में पत्थर से ठेस लगे\it*\f + \fr 4:6: \fr*\ft शैतान भी बाइबल का उदाहरण देता है, लेकिन गलत ढंग से जिसमें वह बाइबल अंश (इस सन्दर्भ में, भजन 91:11-12) छोड़ दिया क्योंकि वह यहाँ उपयुक्त नहीं था।\ft*\f*।’” \bdit (भज. 91:11,12) \bdit* \v 7 यीशु ने उससे कहा, \wj “यह भी लिखा है, ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।’”\wj* \bdit (व्यव. 6:16) \bdit* \p \v 8 फिर शैतान उसे एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया और सारे जगत के राज्य और उसका वैभव दिखाकर \v 9 उससे कहा, “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो \it मैं यह सब कुछ तुझे दे दूँगा\it*\f + \fr 4:9 \fr*\fq मैं यह सब कुछ तुझे दे दूँगा: \fq*\ft शैतान, इस जगत का राजकुमार, अधिकार रखता था कि यीशु के सामने यह प्रस्ताव रखे। (यूह 12: 31) \ft*\f*।” \v 10 तब यीशु ने उससे कहा, \wj “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।’”\wj* \bdit (व्यव. 6:13) \bdit* \p \v 11 तब शैतान उसके पास से चला गया, और स्वर्गदूत आकर उसकी सेवा करने लगे। \s यीशु के उपदेश का आरम्भ \p \v 12 जब उसने यह सुना कि यूहन्ना पकड़वा दिया गया, तो वह गलील को चला गया। \v 13 और नासरत को छोड़कर कफरनहूम में जो झील के किनारे जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र में है जाकर रहने लगा। \v 14 ताकि जो यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो। \q \v 15 “जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र, \q झील के मार्ग से यरदन के पास अन्यजातियों का गलील- \q \v 16 जो लोग अंधकार में बैठे थे उन्होंने बड़ी ज्योति देखी; \q और जो मृत्यु के क्षेत्र और छाया में बैठे थे, उन पर ज्योति चमकी।” \p \v 17 उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, \wj “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।”\wj* \s प्रथम चेलों का बुलाया जाना \p \v 18 उसने गलील की झील के किनारे फिरते हुए दो भाइयों अर्थात् शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछुए थे। \v 19 और उनसे कहा, \wj “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊँगा।”\wj* \v 20 वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। \p \v 21 और वहाँ से आगे बढ़कर, उसने और दो भाइयों अर्थात् \it जब्दी के पुत्र\it*\f + \fr 4:21 \fr*\fq जब्दी के पुत्र: \fq*\ft यह यूहन्ना का भाई प्रेरित याकूब है, जो हेरोदेस अग्रिप्पा के हाथों शहीद हो गया था, (प्रेरि 12:2) \ft*\f* याकूब और उसके भाई यूहन्ना को अपने पिता जब्दी के साथ नाव पर अपने जालों को सुधारते देखा; और उन्हें भी बुलाया। \v 22 वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। \s गलील में रोगियों को चंगा करना \p \v 23 और यीशु सारे गलील में फिरता हुआ उनके आराधनालयों में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और लोगों की हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। \v 24 और सारे सीरिया देश में उसका यश फैल गया; और लोग सब बीमारों को, जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों और दुःखों में जकड़े हुए थे, और जिनमें दुष्टात्माएँ थीं और मिर्गीवालों और लकवे के रोगियों को उसके पास लाए और उसने उन्हें चंगा किया। \v 25 और गलील, \it दिकापुलिस\it*\f + \fr 4:25 \fr*\fq दिकापुलिस: \fq*\ft गलील सागर के दक्षिण में दस शहरों का एक जिला था।\ft*\f*, यरूशलेम, यहूदिया और यरदन के पार से भीड़ की भीड़ उसके पीछे हो ली। \c 5 \s यीशु मसीह का पहाड़ी उपदेश \p \v 1 वह भीड़ को देखकर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए। \v 2 और वह अपना मुँह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा: \s धन्य वचन \q \v 3 \wj “धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं,\wj* \q2 \wj क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। \wj* \q \v 4 \wj “धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं,\wj* \q2 \wj क्योंकि वे शान्ति पाएँगे।\wj* \q1 \v 5 \wj “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं,\wj* \q2 \wj क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।\wj* \bdit (भज. 37:11) \bdit* \q1 \v 6 \wj “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं,\wj* \q2 \wj क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे।\wj* \q1 \v 7 \wj “धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं,\wj* \q2 \wj क्योंकि उन पर दया की जाएगी।\wj* \q \v 8 \wj “धन्य हैं वे, जिनके मन शुद्ध हैं, \wj* \q2 \wj क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।\wj* \q \v 9 \wj “धन्य हैं वे, जो मेल करवानेवाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएँगे।\wj* \q \v 10 \wj “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं,\wj* \q \wj क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।\wj* \p \v 11 \wj “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।\wj* \v 12 \wj आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। इसलिए कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था।\wj* \s नमक और ज्योति से तुलना \p \v 13 \wj “तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए।\wj* \v 14 \wj तुम जगत की ज्योति हो। जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता।\wj* \v 15 \wj और लोग दीया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उससे घर के सब लोगों को प्रकाश पहुँचता है।\wj* \v 16 \wj उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें।\wj* \s व्यवस्था का पूरा होना \p \v 17 \wj “यह न समझो, कि मैं\wj* \it \+wj व्यवस्था\+wj*\it*\f + \fr 5:17 \fr*\fq व्यवस्था: \fq*\ft यह बाइबल की पहली पाँच पुस्तकों के सन्दर्भ में है जिनमें परमेश्वर की आज्ञाओं और नियमों का संकलन किया गया है। व्यवस्था के इस सम्पूर्ण संग्रह को तोराह कहा जाता था, इसमें परमेश्वर प्रदत्त नैतिकता और अनुष्ठान सम्बंधित नियम निहित थे।\ft*\f* \wj या भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षाओं को लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ।\wj* \bdit (रोम. 10:4) \bdit* \v 18 \wj क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएँ, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।\wj* \v 19 \wj इसलिए जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उनका पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।\wj* \v 20 \wj क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे।\wj* \s हत्या और क्रोध का दण्ड \p \v 21 \wj “तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि ‘हत्या न करना’, और ‘जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।’\wj* \bdit (निर्ग. 20:13) \bdit* \v 22 \wj परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा और जो कोई अपने भाई को\wj* \it \+wj निकम्मा \+wj*\it*\f + \fr 5:22 \fr*\fq निकम्मा: \fq*\ft इसका मतलब “खाली सिर” है, यह दूसरे व्यक्ति के तिरस्कार के लिए इस्तेमाल में आनेवाला एक अपमान जनक उपनाम था।\ft*\f* \wj कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे ‘अरे मूर्ख’ वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा।\wj* \v 23 \wj इसलिए यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहाँ तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है,\wj* \v 24 \wj तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे, और जाकर पहले अपने भाई से मेल मिलाप कर, और तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।\wj* \v 25 \wj जब तक तू अपने मुद्दई के साथ मार्ग में है, उससे झटपट मेल मिलाप कर ले कहीं ऐसा न हो कि मुद्दई तुझे न्यायाधीश को सौंपे, और न्यायाधीश तुझे सिपाही को सौंप दे और तू बन्दीगृह में डाल दिया जाए।\wj* \v 26 \wj मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तू पाई-पाई चुका न दे तब तक वहाँ से छूटने न पाएगा।\wj* \s व्यभिचार के विषय में शिक्षा \p \v 27 \wj “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘व्यभिचार न करना।’\wj* \bdit (व्यव. 5:18, निर्ग. 20:14) \bdit* \v 28 \wj परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका।\wj* \v 29 \wj यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर अपने पास से फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।\wj* \v 30 \wj और यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए, तो उसको काटकर अपने पास से फेंक दे, क्योंकि तेरे लिये यही भला है, कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।\wj* \s तलाक के विषय में शिक्षा \p \v 31 \wj “यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्नी को त्याग दे, तो उसे त्यागपत्र दे।’\wj* \bdit (व्यव. 24:1-14) \bdit* \v 32 \wj परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ कि जो कोई अपनी पत्नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से तलाक दे, तो वह उससे व्यभिचार करवाता है; और जो कोई उस त्यागी हुई से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है।\wj* \s शपथ न खाना \p \v 33 \wj “फिर तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था, ‘झूठी शपथ न खाना, परन्तु परमेश्वर के लिये अपनी शपथ को पूरी करना।’\wj* \bdit (व्यव. 23:21) \bdit* \v 34 \wj परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि कभी शपथ न खाना; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है।\wj* \bdit (यशा. 66:1) \bdit* \v 35 \wj न धरती की, क्योंकि वह उसके पाँवों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजा का नगर है।\wj* \bdit (यशा. 66:1) \bdit* \v 36 \wj अपने सिर की भी शपथ न खाना क्योंकि तू एक बाल को भी न उजला, न काला कर सकता है।\wj* \v 37 \wj परन्तु तुम्हारी बात हाँ की हाँ, या नहीं की नहीं हो; क्योंकि जो कुछ इससे अधिक होता है वह बुराई से होता है।\wj* \s प्रतिशोध ना लेना \p \v 38 \wj “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत।\wj* \bdit (व्यव. 19:21) \bdit* \v 39 \wj परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी ओर दूसरा भी फेर दे।\wj* \v 40 \wj और यदि कोई तुझ पर मुकद्दमा करके तेरा\wj* \it \+wj कुर्ता \+wj*\it*\f + \fr 5:40 \fr*\fq कुर्ता: \fq*\ft यह लम्बी बाँह का घुटनों तक का अधोवस्त्र होता था, जैसे आज के समय में पहनी जानेवाली कमीज़।\ft*\f* \wj लेना चाहे, तो उसे\wj* \it \+wj अंगरखा\+wj*\it*\f + \fr 5:40 \fr*\fq अंगरखा: \fq*\ft अर्थात् ऊपरी परिधान, एक बड़ा वर्गाकार ऊनी बागा। गरीब लोग केवल कुर्ता पहनते थे। अमीरों में कई लोग ऊपरी परिधान के अलावा दो कुर्ते पहनते थे। \ft*\f* \wj भी ले लेने दे।\wj* \v 41 \wj और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।\wj* \v 42 \wj जो कोई तुझ से माँगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उससे मुँह न मोड़।\wj* \p \v 43 \wj “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।\wj* \bdit (लैव्य. 19:18) \bdit* \v 44 \wj परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो।\wj* \bdit (रोम. 12:14) \bdit* \v 45 \wj जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी पर मेंह बरसाता है।\wj* \v 46 \wj क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या लाभ होगा? क्या चुंगी लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते?\wj* \p \v 47 \wj “और यदि तुम केवल अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते?\wj* \v 48 \wj इसलिए चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।\wj* \bdit (लैव्य. 19:2) \bdit* \c 6 \s दान के विषय में शिक्षा \p \v 1 \wj “सावधान रहो! तुम मनुष्यों को दिखाने के लिये अपने धार्मिकता के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्गीय पिता से कुछ भी फल न पाओगे।\wj* \p \v 2 \wj “इसलिए जब तू दान करे, तो अपना ढिंढोरा न पिटवा, जैसे\wj* \it \+wj कपटी\+wj*\it*\f + \fr 6:2 \fr*\fq कपटी: \fq*\ft ऐसा व्यक्ति जो नैतिक सद्गुण या धर्म का झूठा दिखावा करता है।\ft*\f*, \wj आराधनालयों और गलियों में करते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करें, मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके।\wj* \v 3 \wj परन्तु जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायाँ हाथ न जानने पाए।\wj* \v 4 \wj ताकि तेरा दान गुप्त रहे; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।\wj* \s प्रार्थना की शिक्षा \p \v 5 \wj “और जब तू प्रार्थना करे, तो कपटियों के समान न हो क्योंकि लोगों को दिखाने के लिये आराधनालयों में और सड़कों के चौराहों पर खड़े होकर प्रार्थना करना उनको अच्छा लगता है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके।\wj* \v 6 \wj परन्तु जब तू प्रार्थना करे, तो अपनी कोठरी में जा; और द्वार बन्द करके अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।\wj* \v 7 \wj प्रार्थना करते समय अन्यजातियों के समान बक-बक न करो; क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बार बार बोलने से उनकी सुनी जाएगी।\wj* \v 8 \wj इसलिए तुम उनके समान न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या-क्या आवश्यकताएँ है।\wj* \p \v 9 \wj “अतः तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो:\wj* \q \wj ‘हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम\wj* \it \+wj पवित्र \+wj*\it*\f + \fr 6:9 \fr*\fq पवित्र: \fq*\ft इसका मतलब सम्मान देने या भय मानने से है परन्तु इसके साथ आराधना और महिमा करना भी हैं \ft*\f* \wj माना जाए।\wj* \bdit (लूका 11:2) \bdit* \q \v 10 \it \+wj ‘तेरा राज्य आए।\+wj*\it*\f + \fr 6:10 \fr*\fq तेरा राज्य आए: \fq*\ft यह परमेश्वर के राज्य की अंतिम और सिद्ध स्थापना को व्यक्त करता है।\ft*\f* \wj तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।\wj* \q2 \v 11 \wj ‘हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे।\wj* \q2 \v 12 \wj ‘और जिस प्रकार हमने अपने अपराधियों को क्षमा किया है,\wj* \q3 \wj वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर।\wj* \q2 \v 13 \wj ‘और हमें परीक्षा में न ला,\wj* \q \wj परन्तु बुराई से बचा; [क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही हैं।’ आमीन।]\wj* \p \v 14 \wj “इसलिए यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा।\wj* \v 15 \wj और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा।\wj* \s उपवास की शिक्षा \p \v 16 \wj “जब तुम उपवास करो, तो कपटियों के समान तुम्हारे मुँह पर उदासी न छाई रहे, क्योंकि वे अपना मुँह बनाए रहते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके।\wj* \v 17 \wj परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल और मुँह धो।\wj* \v 18 \wj ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने। इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।\wj* \s स्वर्ग में धन इकट्ठा करो \p \v 19 \wj “अपने लिये पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो; जहाँ कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर सेंध लगाते और चुराते हैं।\wj* \v 20 \wj परन्तु अपने लिये स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, जहाँ न तो कीड़ा, और न काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं।\wj* \v 21 \wj क्योंकि जहाँ तेरा धन है वहाँ तेरा मन भी लगा रहेगा।\wj* \s शरीर का दीया \p \v 22 \wj “शरीर का दीया आँख है: इसलिए यदि तेरी आँख अच्छी हो, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला होगा।\wj* \v 23 \wj परन्तु यदि तेरी आँख बुरी हो, तो तेरा सारा शरीर भी अंधियारा होगा; इस कारण वह उजियाला जो तुझ में है यदि अंधकार हो तो वह अंधकार कैसा बड़ा होगा!\wj* \s किसी बात की चिंता ना करना \p \v 24 \wj “कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा, या एक से निष्ठावान रहेगा और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।\wj* \v 25 \wj इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएँगे, और क्या पीएँगे, और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहनेंगे, क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं?\wj* \v 26 \wj आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; तो भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है। क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते?\wj* \v 27 \wj तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपने जीवनकाल में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?\wj* \p \v 28 \wj “और वस्त्र के लिये क्यों चिन्ता करते हो? सोसनों के फूलों पर ध्यान करो, कि वे कैसे बढ़ते हैं, वे न तो परिश्रम करते हैं, न काटते हैं।\wj* \v 29 \wj तो भी मैं तुम से कहता हूँ, कि सुलैमान भी, अपने सारे वैभव में उनमें से किसी के समान वस्त्र पहने हुए न था।\wj* \v 30 \wj इसलिए जब परमेश्वर मैदान की घास को, जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा वस्त्र पहनाता है, तो हे अल्पविश्वासियों, तुम को वह क्यों न पहनाएगा?\wj* \p \v 31 \wj “इसलिए तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएँगे, या क्या पीएँगे, या क्या पहनेंगे?\wj* \v 32 \wj क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएँ चाहिए।\wj* \v 33 \wj इसलिए पहले तुम परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ तुम्हें मिल जाएँगी।\wj* \bdit (लूका 12:31) \bdit* \v 34 \wj अतः कल के लिये चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुःख बहुत है।\wj* \c 7 \s दोष मत लगाओ \p \v 1 \wj “दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए।\wj* \p \v 2 \wj क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।\wj* \v 3 \wj “तू क्यों अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है, और अपनी आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता?\wj* \v 4 \wj जब तेरी ही आँख में लट्ठा है, तो तू अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘ला मैं तेरी आँख से तिनका निकाल दूँ?’\wj* \v 5 \wj हे कपटी, पहले अपनी आँख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई की आँख का तिनका भली भाँति देखकर निकाल सकेगा।\wj* \p \v 6 \wj “पवित्र वस्तु कुत्तों को न दो, और अपने मोती सूअरों के आगे मत डालो; ऐसा न हो कि वे उन्हें पाँवों तले रौंदें और पलटकर तुम को फाड़ डालें।\wj* \s परमेश्वर से माँगना और पाना \p \v 7 \wj “माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा।\wj* \v 8 \wj क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा।\wj* \p \v 9 \wj “तुम में से ऐसा कौन मनुष्य है, कि यदि उसका पुत्र उससे रोटी माँगे, तो वह उसे पत्थर दे?\wj* \v 10 \wj या मछली माँगे, तो उसे साँप दे?\wj* \v 11 \wj अतः जब तुम बुरे होकर, अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने माँगनेवालों को अच्छी वस्तुएँ क्यों न देगा?\wj* \bdit (लूका 11:13) \bdit* \v 12 \wj इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा यही है।\wj* \s सरल और कठिन मार्ग \p \v 13 \wj “सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश की ओर ले जाता है; और बहुत सारे लोग हैं जो उससे प्रवेश करते हैं।\wj* \v 14 \wj क्योंकि संकरा है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुँचाता है, और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।\wj* \s फलों से पेड़ की पहचान \p \v 15 \wj “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में फाड़नेवाले भेड़िए हैं।\wj* \bdit (यहे. 22:27) \bdit* \v 16 \wj उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या लोग झाड़ियों से अंगूर, या ऊँटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं?\wj* \v 17 \wj इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है।\wj* \v 18 \wj अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है।\wj* \v 19 \wj जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है।\wj* \v 20 \wj अतः उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे।\wj* \p \v 21 \wj “जो मुझसे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।\wj* \v 22 \wj उस दिन बहुत लोग मुझसे कहेंगे; ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हमने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए?’\wj* \v 23 \wj तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ।’\wj* \bdit (लूका 13:27) \bdit* \s बुद्धिमान और मूर्ख मनुष्य \p \v 24 \wj “इसलिए जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है वह उस बुद्धिमान मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया।\wj* \v 25 \wj और बारिश और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गई थी।\wj* \v 26 \wj परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस मूर्ख मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर रेत पर बनाया।\wj* \v 27 \wj और बारिश, और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।”\wj* \p \v 28 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो ऐसा हुआ कि भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई। \v 29 क्योंकि वह उनके शास्त्रियों के समान नहीं परन्तु अधिकारी के समान उन्हें उपदेश देता था। \c 8 \s कोढ़ के रोगी को छूकर चंगा करना \p \v 1 जब यीशु उस पहाड़ से उतरा, तो एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। \v 2 और, एक \it कोढ़ी\it*\f + \fr 8:2 \fr*\fq कोढ़ी: \fq*\ft कोढ़ एक संक्रामक रोग है जो त्वचा, श्लेष्मा झिल्ली, और तंत्रिकाओं को ग्रसित करता है, इस्राएल में कोढ़ी को समाज से बहिष्कृत और अशुद्ध माना जाता था।\ft*\f* ने पास आकर उसे प्रणाम किया और कहा, “हे प्रभु यदि तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” \v 3 यीशु ने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ, और कहा, \wj “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा”\wj* और वह तुरन्त कोढ़ से शुद्ध हो गया। \v 4 यीशु ने उससे कहा, \wj “देख, किसी से न कहना, परन्तु जाकर अपने आपको याजक को दिखा और जो चढ़ावा मूसा ने ठहराया है उसे चढ़ा, ताकि उनके लिये गवाही हो।”\wj* \bdit (लैव्य. 14:2,32) \bdit* \s सूबेदार के विश्वास पर यीशु की प्रशंसा \p \v 5 और जब वह \it कफरनहूम\it*\f + \fr 8:5 \fr*\fq कफरनहूम: \fq*\ft यह गलील सागर के उत्तरी सिरे पर स्थित एक शहर है।\ft*\f* में आया तो एक सूबेदार ने उसके पास आकर उससे विनती की, \v 6 “हे प्रभु, मेरा सेवक घर में लकवे का मारा बहुत दुःखी पड़ा है।” \v 7 उसने उससे कहा, \wj “मैं आकर उसे चंगा करूँगा।”\wj* \v 8 सूबेदार ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए, पर केवल मुँह से कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। \v 9 क्योंकि मैं भी पराधीन मनुष्य हूँ, और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक से कहता हूँ, जा, तो वह जाता है; और दूसरे को कि आ, तो वह आता है; और अपने दास से कहता हूँ, कि यह कर, तो वह करता है।” \p \v 10 यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और जो उसके पीछे आ रहे थे उनसे कहा, \wj “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया।\wj* \v 11 \wj और मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत सारे पूर्व और पश्चिम से आकर अब्राहम और इसहाक और याकूब के साथ स्वर्ग के राज्य में बैठेंगे।\wj* \v 12 \wj परन्तु \wj* \it \+wj राज्य के सन्तान\f + \fr 8:12 \fr*\fq राज्य के सन्तान: \fq*\ft यहूदी सोचते थे कि उनकी परंपरा और धर्म का पालन उन्हें परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करवाएगा\ft*\f*\+wj*\it* \wj बाहर अंधकार में डाल दिए जाएँगे: वहाँ रोना और दाँतों का पीसना होगा।”\wj* \v 13 और यीशु ने सूबेदार से कहा, \wj “जा, जैसा तेरा विश्वास है, वैसा ही तेरे लिये हो।”\wj* और उसका सेवक उसी समय चंगा हो गया। \s पतरस के घर में अनेक रोगियों की चंगाई \p \v 14 और यीशु ने पतरस के घर में आकर उसकी सास को तेज बुखार में पड़ा देखा। \v 15 उसने उसका हाथ छुआ और उसका ज्वर उतर गया; और वह उठकर उसकी सेवा करने लगी। \v 16 जब संध्या हुई तब वे उसके पास बहुत से लोगों को लाए जिनमें दुष्टात्माएँ थीं और उसने उन आत्माओं को अपने वचन से निकाल दिया, और सब बीमारों को चंगा किया। \v 17 ताकि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हो: “उसने आप हमारी दुर्बलताओं को ले लिया और हमारी बीमारियों को उठा लिया।” \bdit (1 पत. 2:24) \bdit* \s यीशु का शिष्य बनने का मूल्य \p \v 18 यीशु ने अपने चारों ओर एक बड़ी भीड़ देखकर झील के उस पार जाने की आज्ञा दी। \v 19 और एक शास्त्री ने पास आकर उससे कहा, “हे गुरु, जहाँ कहीं तू जाएगा, मैं तेरे पीछे-पीछे हो लूँगा।” \v 20 यीशु ने उससे कहा, \wj “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं; परन्तु\wj* \it \+wj मनुष्य के पुत्र\f + \fr 8:20 \fr*\fq मनुष्य के पुत्र: \fq*\ft मनुष्य का पुत्र यीशु के सन्दर्भ में काम में लिया गया है, वह तो “मनुष्य का पुत्र”, इस उक्ति से प्रकट होता है कि यीशु मसीह है और वह तत्व में मनुष्य है। (यूह.1:14; 1यूह.4:2) \ft*\f*\+wj*\it* \wj के लिये सिर धरने की भी जगह नहीं है।”\wj* \v 21 एक और चेले ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे, कि अपने पिता को गाड़ दूँ।” \bdit (1 राजा. 19:20,21) \bdit* \v 22 यीशु ने उससे कहा, \wj “तू मेरे पीछे हो ले; और\wj* \it \+wj मुर्दों को अपने मुर्दे गाड़ने दे।”\f + \fr 8:22 \fr*\fq मुर्दों को अपने मुर्दे गाड़ने दे: \fq*\ft यहाँ वह शिष्य अपनी आत्मिक जिम्मेदारियों से बचने के लिए एक बहाना खोज रहा था कि वह अपने वृद्ध पिता की मृत्यु तक उनके पास रह पाए परन्तु यीशु की प्रतिक्रिया के अनुसार आत्मिकता की सर्वोच्च बुलाहट को टालना नहीं है क्योंकि सुसमाचार सुनाने से महत्त्वपूर्ण और कुछ नहीं है,\ft*\f*\+wj*\it* \s आँधी और तूफान को शान्त करना \p \v 23 जब वह नाव पर चढ़ा, तो उसके चेले उसके पीछे हो लिए। \v 24 और, झील में एक ऐसा बड़ा तूफान उठा कि नाव लहरों से ढँपने लगी; और वह सो रहा था। \v 25 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “हे प्रभु, हमें बचा, हम नाश हुए जाते हैं।” \v 26 उसने उनसे कहा, \wj “हे अल्पविश्वासियों, क्यों डरते हो?”\wj* तब उसने उठकर आँधी और पानी को डाँटा, और सब शान्त हो गया। \v 27 और वे अचम्भा करके कहने लगे, “यह कैसा मनुष्य है, कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं।” \s दुष्टात्माओं को सूअरों के झुण्ड में भेजना \p \v 28 जब वह उस पार गदरेनियों के क्षेत्र में पहुँचा, तो दो मनुष्य जिनमें दुष्टात्माएँ थीं कब्रों से निकलते हुए उसे मिले, जो इतने प्रचण्ड थे, कि कोई उस मार्ग से जा नहीं सकता था। \v 29 और, उन्होंने चिल्लाकर कहा, “हे परमेश्वर के पुत्र, हमारा तुझ से क्या काम? क्या तू समय से पहले हमें दुःख देने यहाँ आया है?” \bdit (लूका 4:34) \bdit* \v 30 उनसे कुछ दूर बहुत से सूअरों का झुण्ड चर रहा था। \v 31 दुष्टात्माओं ने उससे यह कहकर विनती की, “यदि तू हमें निकालता है, तो सूअरों के झुण्ड में भेज दे।” \v 32 उसने उनसे कहा, \wj “जाओ!” \wj* और वे निकलकर सूअरों में घुस गई और सारा झुण्ड टीले पर से झपटकर पानी में जा पड़ा और डूब मरा। \v 33 और चरवाहे भागे, और नगर में जाकर ये सब बातें और जिनमें दुष्टात्माएँ थीं; उनका सारा हाल कह सुनाया। \v 34 और सारे नगर के लोग यीशु से भेंट करने को निकल आए और उसे देखकर विनती की, कि हमारे क्षेत्र से बाहर निकल जा। \c 9 \s एक लकवे के रोगी को चंगा करना \p \v 1 फिर वह नाव पर चढ़कर पार गया, और अपने नगर में आया। \v 2 और कई लोग एक लकवे के मारे हुए को खाट पर रखकर उसके पास लाए। यीशु ने उनका विश्वास देखकर, उस लकवे के मारे हुए से कहा, \wj “हे पुत्र, धैर्य रख; तेरे पाप क्षमा हुए।”\wj* \v 3 और कई शास्त्रियों ने सोचा, “यह तो परमेश्वर की \it निन्दा\it*\f + \fr 9:3 \fr*\fq निन्दा: \fq*\ft परमेश्वर के प्रति अपमान या अवमानना या श्रद्धा का अभाव (मर 2:7; लूका 5:21) \ft*\f* करता है।” \v 4 यीशु ने उनके मन की बातें जानकर कहा, \wj “तुम लोग अपने-अपने मन में बुरा विचार क्यों कर रहे हो?\wj* \v 5 \wj सहज क्या है? यह कहना, ‘तेरे पाप क्षमा हुए’, या यह कहना, ‘उठ और चल फिर।’\wj* \v 6 \wj परन्तु इसलिए कि तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है।”\wj* उसने लकवे के मारे हुए से कहा, \wj “उठ, अपनी खाट उठा, और अपने घर चला जा।”\wj* \v 7 वह उठकर अपने घर चला गया। \v 8 लोग यह देखकर डर गए और परमेश्वर की महिमा करने लगे जिसने मनुष्यों को ऐसा अधिकार दिया है। \s यीशु के द्वारा मत्ती का बुलाया जाना \p \v 9 वहाँ से आगे बढ़कर यीशु ने \it मत्ती\it*\f + \fr 9:9 \fr*\fq मत्ती: \fq*\ft मतलब “यहोवा का उपहार”, वह एक लेवी एवं पेशे से चुंगी लेनेवाला था, वह उठा और यीशु के पीछे हो लिया\ft*\f* नामक एक मनुष्य को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, \wj “मेरे पीछे हो ले।”\wj* वह उठकर उसके पीछे हो लिया। \p \v 10 और जब वह घर में भोजन करने के लिये बैठा तो बहुत सारे चुंगी लेनेवाले और पापी आकर यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे। \v 11 यह देखकर फरीसियों ने उसके चेलों से कहा, “तुम्हारा गुरु चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाता है?” \v 12 यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा, \wj “वैद्य भले चंगों को नहीं परन्तु बीमारों के लिए आवश्यक है।\wj* \v 13 \wj इसलिए तुम जाकर इसका अर्थ सीख लो, कि मैं बलिदान नहीं परन्तु दया चाहता हूँ; क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ।”\wj* \bdit (होशे 6:6) \bdit* \s यूहन्ना के चेलों का उपवास का प्रश्न \p \v 14 तब यूहन्ना के चेलों ने उसके पास आकर कहा, “क्या कारण है कि हम और फरीसी इतना उपवास करते हैं, पर तेरे चेले उपवास नहीं करते?” \v 15 यीशु ने उनसे कहा, \wj “क्या बाराती, जब तक दूल्हा उनके साथ है शोक कर सकते हैं? पर वे दिन आएँगे कि दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा, उस समय वे उपवास करेंगे।\wj* \v 16 \wj नये कपड़े का पैबन्द पुराने वस्त्र पर कोई नहीं लगाता, क्योंकि वह पैबन्द वस्त्र से और कुछ खींच लेता है, और वह अधिक फट जाता है।\wj* \v 17 \wj और लोग नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरते हैं; क्योंकि ऐसा करने से मशकें फट जाती हैं, और दाखरस बह जाता है और मशकें नाश हो जाती हैं, परन्तु नया दाखरस नई मशकों में भरते हैं और वह दोनों बची रहती हैं।”\wj* \s मृत लड़की का जी उठना \p \v 18 वह उनसे ये बातें कह ही रहा था, कि एक सरदार ने आकर उसे प्रणाम किया और कहा, “मेरी पुत्री अभी मरी है; परन्तु चलकर अपना हाथ उस पर रख, तो वह जीवित हो जाएगी।” \v 19 यीशु उठकर अपने चेलों समेत उसके पीछे हो लिया। \v 20 और देखो, एक स्त्री ने जिसके बारह वर्ष से लहू बहता था, उसके पीछे से आकर उसके वस्त्र के कोने को छू लिया। \bdit (मत्ती 14:36) \bdit* \v 21 क्योंकि वह अपने मन में कहती थी, “यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी तो चंगी हो जाऊँगी।” \v 22 यीशु ने मुड़कर उसे देखा और कहा, \wj “पुत्री धैर्य रख; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।”\wj* अतः वह स्त्री उसी समय चंगी हो गई। \v 23 जब यीशु उस सरदार के घर में पहुँचा और बाँसुरी बजानेवालों और भीड़ को हुल्लड़ मचाते देखा, \v 24 तब कहा, \wj “हट जाओ, लड़की मरी नहीं, पर सोती है।”\wj* इस पर वे उसकी हँसी उड़ाने लगे। \v 25 परन्तु जब भीड़ निकाल दी गई, तो उसने भीतर जाकर लड़की का हाथ पकड़ा, और वह जी उठी। \v 26 और इस बात की चर्चा उस सारे देश में फैल गई। \s अंधों का विश्वास \p \v 27 जब यीशु वहाँ से आगे बढ़ा, तो दो अंधे उसके पीछे यह पुकारते हुए चले, “हे दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” \v 28 जब वह घर में पहुँचा, तो वे अंधे उसके पास आए, और यीशु ने उनसे कहा, \wj “क्या तुम्हें विश्वास है, कि मैं यह कर सकता हूँ?”\wj* उन्होंने उससे कहा, “हाँ प्रभु।” \v 29 तब उसने उनकी आँखें छूकर कहा, \wj “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिये हो।”\wj* \v 30 और उनकी आँखें खुल गई और यीशु ने उन्हें सख्‍ती के साथ सचेत किया और कहा, \wj “सावधान, कोई इस बात को न जाने।”\wj* \v 31 पर उन्होंने निकलकर सारे क्षेत्र में उसका यश फैला दिया। \s एक गूँगे को चंगाई \p \v 32 जब वे बाहर जा रहे थे, तब, लोग एक गूँगे को जिसमें दुष्टात्मा थी उसके पास लाए। \v 33 और जब दुष्टात्मा निकाल दी गई, तो गूँगा बोलने लगा। और भीड़ ने अचम्भा करके कहा, “इस्राएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया।” \v 34 परन्तु फरीसियों ने कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।” \s मजदूरों को भेजने के लिए विनती \p \v 35 और यीशु सब नगरों और गाँवों में फिरता रहा और उनके \it आराधनालयों\it*\f + \fr 9:35 \fr*\fq आराधनालयों: \fq*\ft यहूदियों की आराधना या धर्म की शिक्षा के लिए समागम स्थल या भवन।\ft*\f* में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। \v 36 जब उसने भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान जिनका कोई चरवाहा न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे। \bdit (1 राजा. 22:17) \bdit* \v 37 तब उसने अपने चेलों से कहा, \wj “फसल तो बहुत है पर मजदूर थोड़े हैं।\wj* \v 38 \wj इसलिए फसल के स्वामी से विनती करो कि वह अपने खेत में काम करने के लिये मजदूर भेज दे।”\wj* \c 10 \s बारह प्रेरित \p \v 1 फिर उसने अपने बारह चेलों को पास बुलाकर, उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया, कि उन्हें निकालें और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करें। \p \v 2 इन बारह \it प्रेरितों\it*\f + \fr 10:2 \fr*\fq प्रेरितों: \fq*\ft प्रेरित शब्द यूनानी भाषा “अपोसतोलॉस” शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ, “वह जो भेजा जाता है।”\ft*\f* के नाम ये हैं: पहला शमौन, जो पतरस कहलाता है, और उसका भाई अन्द्रियास; जब्दी का पुत्र याकूब, और उसका भाई यूहन्ना; \v 3 फिलिप्पुस और बरतुल्मै, थोमा, और चुंगी लेनेवाला मत्ती, हलफईस का पुत्र याकूब और तद्दै। \v 4 \it शमौन कनानी\it*\f + \fr 10:4 \fr*\fq शमौन कनानी: \fq*\ft वह एक प्राचीन यहूदी समुदाय का सदस्य था, इस समुदाय का लक्ष्य विश्व यहूदी साम्राज्य की स्थापना करना और इसी कारण वे सन 70 तक रोमी साम्राज्य के कट्टर विरोधी थे।\ft*\f*, और यहूदा इस्करियोती, जिसने उसे पकड़वाया। \s चेलों को सेवा के लिए भेजा जाना \p \v 5 इन बारहों को यीशु ने यह निर्देश देकर भेजा, \wj “अन्यजातियों की ओर न जाना, और सामरियों के किसी नगर में प्रवेश न करना।\wj* \bdit (यिर्म. 50:6) \bdit* \v 6 \wj परन्तु इस्राएल के घराने ही की खोई हुई भेड़ों के पास जाना।\wj* \v 7 \wj और चलते-चलते प्रचार करके कहो कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।\wj* \v 8 \wj बीमारों को चंगा करो: मरे हुओं को जिलाओ, कोढ़ियों को शुद्ध करो, दुष्टात्माओं को निकालो। तुम ने सेंत-मेंत पाया है, सेंत-मेंत दो।\wj* \v 9 \wj अपने बटुओं में न तो सोना, और न रूपा, और न तांबा रखना।\wj* \v 10 \wj मार्ग के लिये न झोली रखो, न दो कुर्ता, न जूते और न लाठी लो, क्योंकि मजदूर को उसका भोजन मिलना चाहिए।\wj* \p \v 11 \wj “जिस किसी नगर या गाँव में जाओ तो पता लगाओ कि वहाँ कौन योग्य है? और जब तक वहाँ से न निकलो, उसी के यहाँ रहो।\wj* \v 12 \wj और घर में प्रवेश करते हुए उसे आशीष देना।\wj* \v 13 \wj यदि उस घर के लोग योग्य होंगे तो तुम्हारा कल्याण उन पर पहुँचेगा परन्तु यदि वे योग्य न हों तो तुम्हारा कल्याण तुम्हारे पास लौट आएगा।\wj* \v 14 \wj और जो कोई तुम्हें ग्रहण न करे, और तुम्हारी बातें न सुने, उस घर या उस नगर से निकलते हुए अपने पाँवों की धूल झाड़ डालो।\wj* \v 15 \wj मैं तुम से सच कहता हूँ, कि न्याय के दिन उस नगर की दशा से सदोम और गमोरा के नगरों की दशा अधिक सहने योग्य होगी।\wj* \s आनेवाला कठिन समय \p \v 16 \wj “देखो, मैं तुम्हें भेड़ों की तरह भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ इसलिए साँपों की तरह बुद्धिमान और कबूतरों की तरह भोले बनो।\wj* \v 17 \wj परन्तु लोगों से सावधान रहो, क्योंकि वे तुम्हें सभाओं में सौंपेंगे, और अपने आराधनालयों में तुम्हें कोड़े मारेंगे।\wj* \v 18 \wj तुम मेरे लिये राज्यपालों और राजाओं के सामने उन पर, और अन्यजातियों पर गवाह होने के लिये पेश किए जाओगे।\wj* \v 19 \wj जब वे तुम्हें पकड़वाएँगे तो यह चिन्ता न करना, कि तुम कैसे बोलोगे और क्या कहोगे; क्योंकि जो कुछ तुम को कहना होगा, वह उसी समय तुम्हें बता दिया जाएगा।\wj* \v 20 \wj क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं हो परन्तु तुम्हारे पिता का आत्मा तुम्हारे द्वारा बोलेगा।\wj* \p \v 21 \wj “भाई अपने भाई को और पिता अपने पुत्र को, मरने के लिये सौंपेंगे, और बच्चे माता-पिता के विरोध में उठकर उन्हें मरवा डालेंगे।\wj* \bdit (मीका 7:6) \bdit* \v 22 \wj मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, पर जो अन्त तक धीरज धरेगा उसी का उद्धार होगा।\wj* \v 23 \wj जब वे तुम्हें एक नगर में सताएँ, तो दूसरे को भाग जाना। मैं तुम से सच कहता हूँ, तुम मनुष्य के पुत्र के आने से पहले इस्राएल के सब नगरों में से गए भी न होंगे।\wj* \s चेला होने का अर्थ \p \v 24 \wj “चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं; और न ही दास अपने स्वामी से।\wj* \v 25 \wj चेले का गुरु के, और दास का स्वामी के बराबर होना ही बहुत है; जब उन्होंने घर के स्वामी को\wj* \it \+wj शैतान\f + \fr 10:25 \fr*\fq शैतान: \fq*\ft “दुष्टात्माओं का राजकुमार” (मत्ती 12:24)। उसे बाल-जबूल भी कहा गया है- एक्रोनियों का मक्खी देवता।\ft*\f*\+wj*\it* \wj कहा तो उसके घरवालों को क्यों न कहेंगे?\wj* \s किस से डरे? \p \v 26 \wj “इसलिए उनसे मत डरना, क्योंकि कुछ ढँका नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा।\wj* \v 27 \wj जो मैं तुम से अंधियारे में कहता हूँ, उसे उजियाले में कहो; और जो कानों कान सुनते हो, उसे छतों पर से प्रचार करो।\wj* \v 28 \wj जो शरीर को मार सकते हैं, पर आत्मा को मार नहीं सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है।\wj* \v 29 \wj क्या एक पैसे में दो गौरैये नहीं बिकती? फिर भी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उनमें से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती।\wj* \v 30 \wj तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं।\wj* \bdit (लूका 12:7) \bdit* \v 31 \wj इसलिए, डरो नहीं; तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर मूल्यवान हो।\wj* \s यीशु को स्वीकार या अस्वीकार करना \p \v 32 \wj “जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने मान लूँगा।\wj* \v 33 \wj पर जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करेगा उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इन्कार करूँगा।\wj* \p \v 34 \wj “यह न समझो, कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने को आया हूँ; मैं मिलाप कराने को नहीं, पर तलवार चलवाने आया हूँ।\wj* \v 35 \wj मैं तो आया हूँ, कि मनुष्य को उसके पिता से, और बेटी को उसकी माँ से, और बहू को उसकी सास से अलग कर दूँ।\wj* \v 36 \wj मनुष्य के बैरी उसके घर ही के लोग होंगे।\wj* \p \v 37 \wj “जो माता या पिता को मुझसे अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं और जो बेटा या बेटी को मुझसे अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं।\wj* \bdit (लूका 14:26) \bdit* \v 38 \wj और जो\wj* \it \+wj अपना क्रूस लेकर\f + \fr 10:38 \fr*\fq अपना क्रूस लेकर: \fq*\ft “क्रूस उठाना” एक मुहावरा है जिसका अभिप्राय है, किसी बोझिल काम को करना या उसका यत्न करना या मसीह के अनुसरण में अपमान जनक माना जाता है।\ft*\f*\+wj*\it* \wj मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं।\wj* \v 39 \wj जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा।\wj* \s प्रतिफल \p \v 40 \wj “जो तुम्हें ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।\wj* \v 41 \wj जो भविष्यद्वक्ता को भविष्यद्वक्ता जानकर ग्रहण करे, वह भविष्यद्वक्ता का बदला पाएगा; और जो धर्मी जानकर धर्मी को ग्रहण करे, वह धर्मी का बदला पाएगा।\wj* \v 42 \wj जो कोई इन छोटों में से एक को चेला जानकर केवल एक कटोरा ठंडा पानी पिलाए, मैं तुम से सच कहता हूँ, वह अपना पुरस्कार कभी नहीं खोएगा।”\wj* \c 11 \s यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का प्रश्न \p \v 1 जब यीशु अपने बारह चेलों को निर्देश दे चुका, तो वह उनके नगरों में उपदेश और प्रचार करने को वहाँ से चला गया। \p \v 2 यूहन्ना ने बन्दीगृह में मसीह के कामों का समाचार सुनकर अपने चेलों को उससे यह पूछने भेजा, \v 3 “क्या आनेवाला तू ही है, या हम दूसरे की प्रतीक्षा करें?” \v 4 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “जो कुछ तुम सुनते हो और देखते हो, वह सब जाकर यूहन्ना से कह दो।\wj* \v 5 \wj कि अंधे देखते हैं और लँगड़े चलते फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं और बहरे सुनते हैं, मुर्दे जिलाए जाते हैं, और गरीबों को सुसमाचार सुनाया जाता है।\wj* \v 6 \wj और धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।”\wj* \s यीशु के द्वारा यूहन्ना का सम्मान \p \v 7 जब वे वहाँ से चल दिए, तो यीशु यूहन्ना के विषय में लोगों से कहने लगा, \wj “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकण्डे को?\wj* \v 8 \wj फिर तुम क्या देखने गए थे? जो कोमल वस्त्र पहनते हैं, वे राजभवनों में रहते हैं।\wj* \v 9 \wj तो फिर क्यों गए थे? क्या किसी भविष्यद्वक्ता को देखने को? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, वरन् भविष्यद्वक्ता से भी बड़े को।\wj* \v 10 \wj यह वही है, जिसके विषय में लिखा है, कि\wj* \q \wj ‘देख, मैं अपने दूत को तेरे आगे भेजता हूँ,\wj* \q \wj जो तेरे आगे तेरा मार्ग तैयार करेगा।’\wj* \bdit (मला. 3:1) \bdit* \p \v 11 \wj “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं हुआ; पर जो स्वर्ग के राज्य में छोटे से छोटा है\wj* \it \+wj वह उससे बड़ा\f + \fr 11:11 \fr*\fq वह उससे बड़ा: \fq*\ft स्वर्ग के राज्य में छोटे से छोटा इस जगत के सबसे बड़े की तुलना में उससे बड़ा है (मत्ती 18:4) \ft*\f*\+wj*\it* \wj है।\wj* \v 12 \wj यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के दिनों से अब तक स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश होता रहा है, और बलवान उसे छीन लेते हैं।\wj* \v 13 \wj यूहन्ना तक सारे भविष्यद्वक्ता और व्यवस्था भविष्यद्वाणी करते रहे।\wj* \v 14 \wj और चाहो तो मानो,\wj* \it \+wj एलिय्याह जो आनेवाला था, वह यही है।\f + \fr 11:14 \fr*\fq एलिय्याह जो आनेवाला था, वह यही है: \fq*\ft भविष्यद्वक्ता मलाकी ने (मला 4:5-6) भविष्यद्वाणी की थी कि मसीह के आने से पहले मार्ग तैयार करने के लिए “एलिय्याह” भेजा जाएगा।\ft*\f*\+wj*\it* \bdit (मला. 4:5) \bdit* \v 15 \wj जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले।\wj* \p \v 16 \wj “मैं इस समय के लोगों की उपमा किस से दूँ? वे उन बालकों के समान हैं, जो बाजारों में बैठे हुए एक दूसरे से पुकारकर कहते हैं,\wj* \v 17 \wj कि हमने तुम्हारे लिये बाँसुरी बजाई, और तुम न नाचे; हमने विलाप किया, और तुम ने छाती नहीं पीटी।\wj* \v 18 \wj क्योंकि यूहन्ना न खाता आया और न ही पीता, और वे कहते हैं कि उसमें दुष्टात्मा है।\wj* \v 19 \wj मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया, और वे कहते हैं कि देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों और पापियों का मित्र! पर ज्ञान अपने कामों में सच्चा ठहराया गया है।”\wj* \s मन नहीं फिराने वालों पर हाय \p \v 20 तब वह उन नगरों को उलाहना देने लगा, जिनमें उसने बहुत सारे सामर्थ्य के काम किए थे; क्योंकि उन्होंने अपना मन नहीं फिराया था। \v 21 \wj “हाय,\wj* \it \+wj खुराजीन!\f + \fr 11:21 \fr*\fq खुराजीन: \fq*\ft यह शहर तीन प्रमुख शहरों में से एक के रूप में याद किया जाता है जिसमें यीशु ने अपनी सेवकाई का अधिक समय बिताया था।\ft*\f*\+wj*\it* \wj हाय, बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सोर और सीदोन में किए जाते, तो टाट ओढ़कर, और राख में बैठकर, वे कब के मन फिरा लेते। \wj* \v 22 \wj परन्तु मैं तुम से कहता हूँ; कि न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सोर और सीदोन की दशा अधिक सहने योग्य होगी।\wj* \v 23 \wj और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा; जो सामर्थ्य के काम तुझ में किए गए है, यदि सदोम में किए जाते, तो वह आज तक बना रहता।\wj* \v 24 \wj पर मैं तुम से कहता हूँ, कि न्याय के दिन तेरी दशा से सदोम के नगर की दशा अधिक सहने योग्य होगी।”\wj* \s यीशु के पास विश्राम \p \v 25 उसी समय यीशु ने कहा, \wj “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया है।\wj* \v 26 \wj हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा।\wj* \p \v 27 \wj “मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है, और कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता; और कोई पिता को नहीं जानता, केवल पुत्र और वह जिस पर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे।\wj* \p \v 28 \wj “हे सब\wj* \it \+wj परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे\f + \fr 11:28 \fr*\fq परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे: \fq*\ft जीवन की चिंताओं, पापों या धार्मिक संस्कारों की अनिवार्यता के कारण थके-हारे हुए।\ft*\f*\+wj*\it* \wj लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।\wj* \v 29 \wj मेरा \wj* \it \+wj जूआ\f + \fr 11:29 \fr*\fq जूआ: \fq*\ft उचित रेखा में हल चलाने के लिए बैलों की गर्दन पर रखा जानेवाला लकड़ी का साधन (गिनती 19:2; व्यवस्था 21:3) \ft*\f* \+wj*\it* \wj अपने ऊपर उठा लो; और मुझसे सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।\wj* \v 30 \wj क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।”\wj* \c 12 \s यीशु सब्त का प्रभु \p \v 1 उस समय यीशु सब्त के दिन खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेलों को भूख लगी, और वे बालें तोड़-तोड़कर खाने लगे। \v 2 फरीसियों ने यह देखकर उससे कहा, “देख, तेरे चेले वह काम कर रहे हैं, जो सब्त के दिन करना उचित नहीं।” \v 3 उसने उनसे कहा, \wj “क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने, जब वह और उसके साथी भूखे हुए तो क्या किया?\wj* \v 4 \wj वह कैसे परमेश्वर के घर में गया, और\wj* \it \+wj भेंट की रोटियाँ\f + \fr 12:4 \fr*\fq भेंट की रोटियाँ: \fq*\ft अशुद्धता से पृथक समर्पित की गई।\ft*\f*\+wj*\it* \wj खाई, जिन्हें खाना न तो उसे और न उसके साथियों को, पर केवल याजकों को उचित था?\wj* \v 5 \wj या क्या तुम ने व्यवस्था में नहीं पढ़ा, कि याजक सब्त के दिन मन्दिर में सब्त के दिन की विधि को तोड़ने पर भी निर्दोष ठहरते हैं?\wj* \bdit (गिन. 28:9,10, यूह. 7:22,23) \bdit* \v 6 \wj पर मैं तुम से कहता हूँ, कि यहाँ वह है, जो मन्दिर से भी महान है।\wj* \v 7 \wj यदि तुम इसका अर्थ जानते कि मैं दया से प्रसन्न होता हूँ, बलिदान से नहीं, तो तुम निर्दोष को दोषी न ठहराते।\wj* \bdit (होशे 6:6) \bdit* \v 8 \wj मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।”\wj* \bdit (मर. 2:28) \bdit* \s सूखे हाथ वाला मनुष्य \p \v 9 वहाँ से चलकर वह उनके आराधनालय में आया। \v 10 वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूखा हुआ था; और उन्होंने उस पर दोष लगाने के लिए उससे पूछा, “क्या \it सब्त के दिन चंगा करना\it*\f + \fr 12:10 \fr*\fq सब्त के दिन चंगा करना: \fq*\ft सब्त का दिन यहूदियों के लिए सप्ताह का सातवाँ दिन था उस दिन उन्हें किसी भी प्रकार का काम नहीं करना था केवल विश्राम करना था अत: उनके धर्मगुरुओं और फरीसियों द्वारा उपचार कार्य वर्जित था।\ft*\f* उचित है?” \v 11 उसने उनसे कहा, \wj “तुम में ऐसा कौन है, जिसकी एक भेड़ हो, और वह सब्त के दिन गड्ढे में गिर जाए, तो वह उसे पकड़कर न निकाले?\wj* \v 12 \wj भला, मनुष्य का मूल्य भेड़ से कितना बढ़कर है! इसलिए सब्त के दिन भलाई करना उचित है।”\wj* \v 13 तब यीशु ने उस मनुष्य से कहा, \wj “अपना हाथ बढ़ा।”\wj* उसने बढ़ाया, और वह फिर दूसरे हाथ के समान अच्छा हो गया। \v 14 तब फरीसियों ने बाहर जाकर उसके विरोध में सम्मति की, कि उसे किस प्रकार मार डाले? \s परमेश्वर का चुना हुआ सेवक \p \v 15 यह जानकर यीशु वहाँ से चला गया। और बहुत लोग उसके पीछे हो लिये, और उसने सब को चंगा किया। \v 16 और उन्हें चेतावनी दी, कि मुझे प्रगट न करना। \v 17 कि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो: \q \v 18 “देखो, यह मेरा सेवक है, जिसे मैंने चुना है; \q मेरा प्रिय, जिससे मेरा मन प्रसन्न है: \q मैं अपना आत्मा उस पर डालूँगा; \q और वह अन्यजातियों को न्याय का समाचार देगा। \q \v 19 वह न झगड़ा करेगा, और न चिल्लाएगा; \q और न बाजारों में कोई उसका शब्द सुनेगा। \q \v 20 वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा; \q और धुआँ देती हुई बत्ती को न बुझाएगा, \q जब तक न्याय को प्रबल न कराए। \q \v 21 और अन्यजातियाँ उसके नाम पर आशा रखेंगी।” \s यीशु और दुष्टात्माओं के शासक \p \v 22 तब लोग एक अंधे-गूँगे को जिसमें दुष्टात्मा थी, उसके पास लाए; और उसने उसे अच्छा किया; और वह गूँगा बोलने और देखने लगा। \v 23 इस पर सब लोग चकित होकर कहने लगे, “यह क्या दाऊद की सन्तान है?” \v 24 परन्तु फरीसियों ने यह सुनकर कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के सरदार शैतान की सहायता के बिना दुष्टात्माओं को नहीं निकालता।” \v 25 उसने उनके मन की बात जानकर उनसे कहा, \wj “जिस किसी राज्य में फूट होती है, वह उजड़ जाता है, और कोई नगर या घराना जिसमें फूट होती है, बना न रहेगा।\wj* \v 26 \wj और यदि शैतान ही शैतान को निकाले, तो वह अपना ही विरोधी हो गया है; फिर उसका राज्य कैसे बना रहेगा?\wj* \v 27 \wj भला, यदि मैं शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो तुम्हारे वंश किसकी सहायता से निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारा न्याय करेंगे।\wj* \v 28 \wj पर यदि मैं परमेश्वर के आत्मा की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुँचा है।\wj* \v 29 \wj या कैसे कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट सकता है जब तक कि पहले उस बलवन्त को न बाँध ले? और तब वह उसका घर लूट लेगा।\wj* \v 30 \wj जो मेरे साथ नहीं, वह मेरे विरोध में है; और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह बिखेरता है।\wj* \v 31 \wj इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, पर पवित्र आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी।\wj* \v 32 \wj जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस युग में और न ही आनेवाले युग में क्षमा किया जाएगा।\wj* \s एक पेड़ अपने फल से पहचाना जाता हैं \p \v 33 \wj “यदि पेड़ को अच्छा कहो, तो उसके फल को भी अच्छा कहो, या पेड़ को निकम्मा कहो, तो उसके फल को भी निकम्मा कहो; क्योंकि पेड़ फल ही से पहचाना जाता है।\wj* \v 34 \wj हे साँप के बच्चों, तुम बुरे होकर कैसे अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुँह पर आता है।\wj* \v 35 \wj भला मनुष्य मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है।\wj* \v 36 \wj और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो-जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे।\wj* \v 37 \wj क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा।”\wj* \s यीशु से चिन्ह की माँग \p \v 38 इस पर कुछ शास्त्रियों और फरीसियों ने उससे कहा, “हे गुरु, हम तुझ से एक \it चिन्ह\it*\f + \fr 12:38 \fr*\fq चिन्ह: \fq*\ft किसी अलौकिक शक्ति द्वारा किया गया कार्य या किसी कार्य में अलौकिक शक्ति का साथ होना फरीसियों ने यीशु के अनेक आश्चर्यकर्मों पर विश्वास नहीं किया वे यीशु से और भी अधिक स्वर्गीय चिन्ह की माँग करते थे।\ft*\f* देखना चाहते हैं।” \v 39 उसने उन्हें उत्तर दिया, \wj “इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूँढ़ते हैं; परन्तु योना भविष्यद्वक्ता के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उनको न दिया जाएगा।\wj* \v 40 \wj योना तीन रात-दिन महा मच्छ के पेट में रहा, वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात-दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा।\wj* \v 41 \wj नीनवे के लोग न्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएँगे, क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर, मन फिराया और यहाँ वह है जो\wj* \it \+wj योना से भी बड़ा\f + \fr 12:41 \fr*\fq योना से भी बड़ा: \fq*\ft योना ने नीनवे जाकर वहाँ के निवासियों को परमेश्वर के आनेवाले दण्ड की चेतावनी दी, परिणामस्वरूप उन्होंने अपने सांसारिक जीवन से मन फिराया और पश्चाताप किया। यहाँ यीशु के कहने का अर्थ है कि क्रूस पर उसकी मृत्यु और तीसरे दिन फिर जी उठने के बाद मनुष्य जानेंगे कि वह वास्तव में मसीह है (यूह 3:5) \ft*\f*\+wj*\it* \wj है।\wj* \v 42 \it \+wj दक्षिण की रानी\f + \fr 12:42 \fr*\fq दक्षिण की रानी: \fq*\ft शिबा की रानी (1 राजा 10:1,2 इतिहास 9:1) \ft*\f*\+wj*\it* \wj न्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने के लिये पृथ्वी के छोर से आई, और यहाँ वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है।\wj* \s अशुद्ध आत्मा को घर की तलाश \p \v 43 \wj “जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है, तो सूखी जगहों में विश्राम ढूँढ़ती फिरती है, और पाती नहीं।\wj* \v 44 \wj तब कहती है, कि मैं अपने उसी घर में जहाँ से निकली थी, लौट जाऊँगी, और आकर उसे सूना, झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है।\wj* \v 45 \wj तब वह जाकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उसमें पैठकर वहाँ वास करती हैं, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहले से भी बुरी हो जाती है। इस युग के बुरे लोगों की दशा भी ऐसी ही होगी।”\wj* \s यीशु का सच्चा परिवार \p \v 46 जब वह भीड़ से बातें कर ही रहा था, तो उसकी माता और भाई बाहर खड़े थे, और उससे बातें करना चाहते थे। \v 47 किसी ने उससे कहा, “देख तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हैं, और तुझ से बातें करना चाहते हैं।” \v 48 यह सुन उसने कहनेवाले को उत्तर दिया, \wj “कौन हैं मेरी माता? और कौन हैं मेरे भाई?”\wj* \v 49 और अपने चेलों की ओर अपना हाथ बढ़ाकर कहा, \wj “मेरी माता और मेरे भाई ये हैं।\wj* \v 50 \wj क्योंकि जो कोई मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई, और बहन, और माता है।”\wj* \c 13 \s केवल अच्छी भूमि में फलों के उत्पादन का दृष्टान्त \p \v 1 उसी दिन यीशु घर से निकलकर झील के किनारे जा बैठा। \v 2 और उसके पास ऐसी बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई कि वह नाव पर चढ़ गया, और सारी भीड़ किनारे पर खड़ी रही। \v 3 और उसने उनसे \it दृष्टान्तों\it*\f + \fr 13:3 \fr*\fq दृष्टान्तों: \fq*\ft मतलब सरल कहानी जो नैतिक या आध्यात्मिक पाठ सिखाता है।\ft*\f* में बहुत सी बातें कहीं \wj “एक बोनेवाला बीज बोने निकला।\wj* \v 4 \wj बोते समय कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे और पक्षियों ने आकर उन्हें चुग लिया।\wj* \v 5 \wj कुछ बीज पत्थरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें बहुत मिट्टी न मिली और नरम मिट्टी न मिलने के कारण वे जल्द उग आए।\wj* \v 6 \wj पर सूरज निकलने पर वे जल गए, और जड़ न पकड़ने से सूख गए।\wj* \v 7 \wj कुछ बीज झाड़ियों में गिरे, और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा डाला।\wj* \v 8 \wj पर कुछ अच्छी भूमि पर गिरे, और फल लाए, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।\wj* \v 9 \wj जिसके कान हों वह सुन ले।”\wj* \s दृष्टान्तों का उद्देश्य \p \v 10 और चेलों ने पास आकर उससे कहा, “तू उनसे दृष्टान्तों में क्यों बातें करता है?” \v 11 उसने उत्तर दिया, \wj “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उनको नहीं।\wj* \v 12 \wj क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा; पर जिसके पास कुछ नहीं है, उससे जो कुछ उसके पास है, वह भी ले लिया जाएगा।\wj* \v 13 \wj मैं उनसे दृष्टान्तों में इसलिए बातें करता हूँ, कि वे देखते हुए नहीं देखते; और सुनते हुए नहीं सुनते; और नहीं समझते।\wj* \v 14 \wj और उनके विषय में यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी होती है:\wj* \q \wj ‘तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं;\wj* \q \wj और आँखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा।\wj* \q \v 15 \wj क्योंकि इन लोगों के मन सुस्त हो गए है,\wj* \q \wj और वे कानों से ऊँचा सुनते हैं \wj* \q \wj और उन्होंने अपनी आँखें मूँद लीं हैं;\wj* \q \wj कहीं ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें,\wj* \q \wj और कानों से सुनें और मन से समझें,\wj* \q \wj और फिर जाएँ, और मैं उन्हें चंगा करूँ।’\wj* \p \v 16 \wj “पर धन्य है तुम्हारी आँखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान, कि वे सुनते हैं।\wj* \v 17 \wj क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और धर्मियों ने चाहा कि जो बातें तुम देखते हो, देखें पर न देखीं; और जो बातें तुम सुनते हो, सुनें, पर न सुनीं।\wj* \s अच्छी भूमि के दृष्टान्त की व्याख्या \p \v 18 \wj “अब तुम बोनेवाले का दृष्टान्त सुनो\wj* \v 19 \wj जो कोई राज्य का\wj* \it \+wj वचन\f + \fr 13:19 \fr*\fq वचन: \fq*\ft का अर्थ है “सुसमाचार या परमेश्वर का वचन” (मर 4:15, लूका 8:12) \ft*\f* \+wj*\it* \wj सुनकर नहीं समझता, उसके मन में जो कुछ बोया गया था, उसे वह दुष्ट आकर छीन ले जाता है; यह वही है, जो मार्ग के किनारे बोया गया था।\wj* \v 20 \wj और जो पत्थरीली भूमि पर बोया गया, यह वह है, जो वचन सुनकर तुरन्त आनन्द के साथ मान लेता है।\wj* \v 21 \wj पर अपने में जड़ न रखने के कारण वह थोड़े ही दिन रह पाता है, और जब वचन के कारण क्लेश या उत्पीड़न होता है, तो तुरन्त ठोकर खाता है।\wj* \v 22 \wj जो झाड़ियों में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनता है, पर इस संसार की चिन्ता और धन का धोखा वचन को दबाता है, और वह फल नहीं लाता।\wj* \v 23 \wj जो अच्छी भूमि में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनकर समझता है, और फल लाता है कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।”\wj* \s गेहूँ और जंगली बीज का दृष्टान्त \p \v 24 यीशु ने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया, \wj “स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के समान है जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया।\wj* \v 25 \wj पर जब लोग सो रहे थे तो उसका बैरी आकर गेहूँ के बीच जंगली बीज बोकर चला गया।\wj* \v 26 \wj जब अंकुर निकले और बालें लगी, तो जंगली दाने के पौधे भी दिखाई दिए।\wj* \v 27 \wj इस पर गृहस्थ के दासों ने आकर उससे कहा, ‘हे स्वामी, क्या तूने अपने खेत में अच्छा बीज न बोया था? फिर जंगली दाने के पौधे उसमें कहाँ से आए?’\wj* \v 28 \wj उसने उनसे कहा, ‘यह किसी शत्रु का काम है।’ दासों ने उससे कहा, ‘क्या तेरी इच्छा है, कि हम जाकर उनको बटोर लें?’\wj* \v 29 \wj उसने कहा, ‘नहीं, ऐसा न हो कि जंगली दाने के पौधे बटोरते हुए तुम उनके साथ गेहूँ भी उखाड़ लो।\wj* \v 30 \wj कटनी तक दोनों को एक साथ बढ़ने दो, और कटनी के समय मैं काटनेवालों से कहूँगा; पहले जंगली दाने के पौधे बटोरकर जलाने के लिये उनके गट्ठे बाँध लो, और गेहूँ को मेरे खत्ते में इकट्ठा करो।’”\wj* \s राई के बीज का दृष्टान्त \p \v 31 उसने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया, \wj “स्वर्ग का राज्य राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपने खेत में बो दिया।\wj* \v 32 \wj वह सब बीजों से छोटा तो है पर जब बढ़ जाता है तब सब साग-पात से बड़ा होता है; और ऐसा पेड़ हो जाता है, कि आकाश के पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं।”\wj* \s ख़मीर का दृष्टान्त \p \v 33 उसने एक और दृष्टान्त उन्हें सुनाया, \wj “स्वर्ग का राज्य ख़मीर के समान है जिसको किसी स्त्री ने लेकर तीन पसेरी आटे में मिला दिया और होते-होते वह सब ख़मीर हो गया।”\wj* \s दृष्टान्तों का प्रयोग \p \v 34 ये सब बातें यीशु ने दृष्टान्तों में लोगों से कहीं, और बिना दृष्टान्त वह उनसे कुछ न कहता था। \v 35 कि जो वचन भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो: “मैं दृष्टान्त कहने को अपना मुँह खोलूँगा मैं उन बातों को जो जगत की उत्पत्ति से गुप्त रही हैं प्रगट करूँगा।” \s जंगली बीज के दृष्टान्त की व्याख्या \p \v 36 तब वह भीड़ को छोड़कर घर में आया, और उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “खेत के जंगली दाने का दृष्टान्त हमें समझा दे।” \v 37 उसने उनको उत्तर दिया, \wj “अच्छे बीज का बोनेवाला मनुष्य का पुत्र है।\wj* \v 38 \wj खेत संसार है, अच्छा बीज राज्य के सन्तान, और जंगली बीज दुष्ट के सन्तान हैं।\wj* \v 39 \wj जिस शत्रु ने उनको बोया वह शैतान है; कटनी जगत का अन्त है: और काटनेवाले स्वर्गदूत हैं।\wj* \v 40 \wj अतः जैसे जंगली दाने बटोरे जाते और जलाए जाते हैं वैसा ही जगत के अन्त में होगा।\wj* \v 41 \wj मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को और कुकर्म करनेवालों को इकट्ठा करेंगे।\wj* \v 42 \wj और उन्हें\wj* \it \+wj आग के कुण्ड\f + \fr 13:42 \fr*\fq आग के कुण्ड: \fq*\ft यह परमेश्वर के प्रकोप को व्यक्त करता है, जो दुष्ट लोगों पर आ पड़ेगा, और अनन्तकाल तक के लिये होगा, यह नरक की आग के रूप में भी जाना जाता है। (मत्ती 8:12; 22:13) \ft*\f*\+wj*\it* \wj में डालेंगे, वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।\wj* \v 43 \wj उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य के समान चमकेंगे। जिसके कान हों वह सुन ले।\wj* \s गुप्त धन \p \v 44 \wj “स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए धन के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने पाकर छिपा दिया, और आनन्द के मारे जाकर अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल लिया।\wj* \s अनमोल मोती \p \v 45 \wj “फिर स्वर्ग का राज्य एक व्यापारी के समान है जो अच्छे मोतियों की खोज में था।\wj* \v 46 \wj जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उसने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।\wj* \s जाल का दृष्टान्त \p \v 47 \wj “फिर स्वर्ग का राज्य उस बड़े जाल के समान है, जो समुद्र में डाला गया, और हर प्रकार की मछलियों को समेट लाया।\wj* \v 48 \wj और जब जाल भर गया, तो मछुए किनारे पर खींच लाए, और बैठकर अच्छी-अच्छी तो बरतनों में इकट्ठा कीं और बेकार-बेकार फेंक दीं।\wj* \v 49 \wj जगत के अन्त में ऐसा ही होगा; स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे,\wj* \v 50 \wj और उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे। वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।\wj* \s नई और पुरानी शिक्षा का महत्त्व \p \v 51 \wj “क्या तुम ये सब बातें समझ गए?”\wj* चेलों ने उत्तर दिया, “हाँ।” \v 52 फिर यीशु ने उनसे कहा, \wj “इसलिए हर एक शास्त्री जो स्वर्ग के राज्य का चेला बना है, उस गृहस्थ के समान है जो अपने भण्डार से नई और पुरानी वस्तुएँ निकालता है।”\wj* \s यीशु का नासरत में फिर से आना \p \v 53 जब यीशु ये सब दृष्टान्त कह चुका, तो वहाँ से चला गया। \v 54 और अपने नगर में आकर उनके आराधनालय में उन्हें ऐसा उपदेश देने लगा; कि वे चकित होकर कहने लगे, “इसको यह ज्ञान और सामर्थ्य के काम कहाँ से मिले? \v 55 क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं? और क्या इसकी माता का नाम मरियम और इसके भाइयों के नाम याकूब, यूसुफ, शमौन और यहूदा नहीं? \v 56 और क्या इसकी सब बहनें हमारे बीच में नहीं रहती? फिर इसको यह सब कहाँ से मिला?” \p \v 57 इस प्रकार उन्होंने उसके कारण ठोकर खाई, पर यीशु ने उनसे कहा, \wj “भविष्यद्वक्ता का अपने नगर और अपने घर को छोड़ और कहीं निरादर नहीं होता।”\wj* \v 58 और उसने वहाँ उनके अविश्वास के कारण बहुत सामर्थ्य के काम नहीं किए। \c 14 \s हेरोदेस का यीशु के बारे में सुनना \p \v 1 उस समय \it चौथाई देश के राजा\it*\f + \fr 14:1 \fr*\fq चौथाई देश के राजा: \fq*\ft का अर्थ है एक राजकुमार या शासक जो एक प्रदेश या राज्य के एक चौथाई भाग को नियंत्रित करता है।\ft*\f* हेरोदेस ने यीशु की चर्चा सुनी। \v 2 और अपने सेवकों से कहा, “यह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला है: वह मरे हुओं में से जी उठा है, इसलिए उससे सामर्थ्य के काम प्रगट होते हैं।” \s यूहन्ना की हत्या \p \v 3 क्योंकि हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास के कारण, यूहन्ना को पकड़कर बाँधा, और जेलखाने में डाल दिया था। \v 4 क्योंकि यूहन्ना ने उससे कहा था, कि इसको रखना तुझे उचित नहीं है। \v 5 और वह उसे मार डालना चाहता था, पर लोगों से डरता था, क्योंकि वे उसे भविष्यद्वक्ता मानते थे। \p \v 6 पर जब हेरोदेस का जन्मदिन आया, तो हेरोदियास की बेटी ने उत्सव में नाच दिखाकर हेरोदेस को खुश किया। \v 7 इसलिए उसने शपथ खाकर वचन दिया, “जो कुछ तू माँगेगी, मैं तुझे दूँगा।” \v 8 वह अपनी माता के उकसाने से बोली, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर थाल में यहीं मुझे मँगवा दे।” \v 9 राजा दुःखित हुआ, पर अपनी शपथ के, और साथ बैठनेवालों के कारण, आज्ञा दी, कि दे दिया जाए। \v 10 और उसने जेलखाने में लोगों को भेजकर यूहन्ना का सिर कटवा दिया। \v 11 और उसका सिर थाल में लाया गया, और लड़की को दिया गया; और वह उसको अपनी माँ के पास ले गई। \v 12 और उसके चेलों ने आकर उसके शव को ले जाकर गाड़ दिया और जाकर यीशु को समाचार दिया। \s पाँच हजार लोगों को खिलाना \p \v 13 जब यीशु ने यह सुना, तो नाव पर चढ़कर वहाँ से किसी सुनसान जगह को, एकान्त में चला गया; और लोग यह सुनकर नगर-नगर से पैदल उसके पीछे हो लिए। \v 14 उसने निकलकर एक बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, और उसने उनके बीमारों को चंगा किया। \p \v 15 जब साँझ हुई, तो उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “यह तो सुनसान जगह है और देर हो रही है, लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें।” \v 16 यीशु ने उनसे कहा, \wj “उनका जाना आवश्यक नहीं! तुम ही इन्हें खाने को दो।”\wj* \v 17 उन्होंने उससे कहा, “यहाँ हमारे पास पाँच रोटी और दो मछलियों को छोड़ और कुछ नहीं है।” \v 18 उसने कहा, \wj “उनको यहाँ मेरे पास ले आओ।”\wj* \v 19 तब उसने लोगों को घास पर बैठने को कहा, और उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को लिया; और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़-तोड़कर चेलों को दीं, और चेलों ने लोगों को। \v 20 और सब खाकर तृप्त हो गए, और उन्होंने बचे हुए टुकड़ों से भरी हुई बारह टोकरियाँ उठाई। \v 21 और खानेवाले \it स्त्रियों और बालकों को छोड़कर\it*\f + \fr 14:21 \fr*\fq स्त्रियों और बालकों को छोड़कर: \fq*\ft यहूदी संस्कृति के अनुसार पुरुष और महिला सार्वजनिक रूप से अलग-अलग खाया करते थे और बच्चे महिलाओं के साथ खाया करते थे यही कारण है कि मत्ती ने पुरुषों की संख्या के बारे में उल्लेख किया है।\ft*\f* पाँच हजार पुरुषों के लगभग थे। \s पानी पर यीशु का चलना \p \v 22 और उसने तुरन्त अपने चेलों को नाव पर चढ़ाया, कि वे उससे पहले पार चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। \v 23 वह लोगों को विदा करके, प्रार्थना करने को अलग पहाड़ पर चढ़ गया; और साँझ को वह वहाँ अकेला था। \v 24 उस समय नाव झील के बीच लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि हवा सामने की थी। \v 25 और वह रात के \it चौथे पहर\it*\f + \fr 14:25 \fr*\fq चौथे पहर: \fq*\ft यहूदी, साथ ही साथ रोमी, आमतौर पर रात को चार पहर में प्रत्येक पहर को तीन घंटे में विभाजित करते है पहला पहर शाम छः बजे से शुरू होता है और चौथा पहर रात तीन बजे से शुरू होता है।\ft*\f* झील पर चलते हुए उनके पास आया। \v 26 चेले उसको झील पर चलते हुए देखकर घबरा गए, और कहने लगे, “वह भूत है,” और डर के मारे चिल्ला उठे। \v 27 यीशु ने तुरन्त उनसे बातें की, और कहा, \wj “धैर्य रखो, मैं हूँ; डरो मत।”\wj* \v 28 पतरस ने उसको उत्तर दिया, “हे प्रभु, यदि तू ही है, तो मुझे अपने पास पानी पर चलकर आने की आज्ञा दे।” \v 29 उसने कहा, \wj “आ!”\wj* तब पतरस नाव पर से उतरकर यीशु के पास जाने को पानी पर चलने लगा। \v 30 पर हवा को देखकर डर गया, और जब डूबने लगा तो चिल्लाकर कहा, “हे प्रभु, मुझे बचा।” \v 31 यीशु ने तुरन्त हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया, और उससे कहा, \wj “हे अल्प विश्वासी, तूने क्यों सन्देह किया?”\wj* \v 32 जब वे नाव पर चढ़ गए, तो हवा थम गई। \v 33 इस पर जो नाव पर थे, उन्होंने उसकी आराधना करके कहा, “सचमुच, तू परमेश्वर का पुत्र है।” \s यीशु द्वारा गन्नेसरत में अनेक रोगियों को चंगाई \p \v 34 वे पार उतरकर गन्नेसरत प्रदेश में पहुँचे। \v 35 और वहाँ के लोगों ने उसे पहचानकर आस-पास के सारे क्षेत्र में कहला भेजा, और सब बीमारों को उसके पास लाए। \v 36 और उससे विनती करने लगे कि वह उन्हें अपने वस्त्र के कोने ही को छूने दे; और जितनों ने उसे छुआ, वे चंगे हो गए। \c 15 \s परम्परा और आज्ञा उल्लंघन का प्रश्न \p \v 1 तब यरूशलेम से कुछ फरीसी और शास्त्री यीशु के पास आकर कहने लगे, \v 2 “तेरे चेले \it प्राचीनों की परम्पराओं\it*\f + \fr 15:2 \fr*\fq प्राचीनों की परम्पराओं: \fq*\ft परम्परा सामान्य तौर पर पूर्वजों द्वारा दी गई विधियों को सिखाते हैं। परम्पराओं के साथ परमेश्वर के वचन (पत्र और उसकी भावना) के सही अर्थ को बदलने के लिए वहाँ एक वास्तविक खतरा है।\ft*\f* को क्यों टालते हैं, कि बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं?” \v 3 उसने उनको उत्तर दिया, \wj “तुम भी अपनी परम्पराओं के कारण क्यों परमेश्वर की आज्ञा टालते हो?\wj* \v 4 \wj क्योंकि परमेश्वर ने कहा, ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’, और ‘जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह मार डाला जाए।’\wj* \v 5 \wj पर तुम कहते हो, कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, ‘जो कुछ तुझे मुझसे लाभ पहुँच सकता था, वह परमेश्वर को भेंट चढ़ाया जा चुका’\wj* \v 6 \wj तो वह अपने पिता का आदर न करे, इस प्रकार तुम ने अपनी परम्परा के कारण परमेश्वर का वचन टाल दिया।\wj* \v 7 \wj हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक ही की है:\wj* \q \v 8 \wj ‘ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं,\wj* \q \wj पर उनका मन मुझसे दूर रहता है।\wj* \q \v 9 \wj और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं,\wj* \q \wj क्योंकि मनुष्य की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।’”\wj* \s अशुद्ध करनेवाली बातें \p \v 10 और उसने लोगों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, \wj “सुनो, और समझो।\wj* \v 11 \wj जो मुँह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुँह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।”\wj* \v 12 तब चेलों ने आकर उससे कहा, “क्या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई?” \v 13 उसने उत्तर दिया, \wj “हर पौधा जो मेरे स्वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, उखाड़ा जाएगा।\wj* \v 14 \wj उनको जाने दो; वे अंधे मार्ग दिखानेवाले हैं और अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड्ढे में गिर पड़ेंगे।”\wj* \p \v 15 यह सुनकर पतरस ने उससे कहा, “यह दृष्टान्त हमें समझा दे।” \v 16 उसने कहा, \wj “क्या तुम भी अब तक नासमझ हो?\wj* \v 17 \wj क्या तुम नहीं समझते, कि जो कुछ मुँह में जाता, वह पेट में पड़ता है, और शौच से निकल जाता है?\wj* \v 18 \wj पर जो कुछ मुँह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।\wj* \v 19 \wj क्योंकि बुरे विचार, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती है।\wj* \v 20 \wj यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।”\wj* \s कनानी जाति की स्त्री का विश्वास \p \v 21 यीशु वहाँ से निकलकर, \it सोर\it*\f + \fr 15:21 \fr*\fq सोर: \fq*\ft यह यूनानी/लैटिन नाम है प्रसिद्ध सुरूफ‍िनीकी शहर के लिये अक्सर सीदोन के साथ उल्लेख हैं। (यहोशू 10:29) यह आज भी, लबानोन के दक्षिण तट पर, ठीक इस्राएल के उत्तरी दिशा में मौजूद हैं।\ft*\f* और सीदोन के देशों की ओर चला गया। \v 22 और देखो, उस प्रदेश से एक \it कनानी\it*\f + \fr 15:22 \fr*\fq कनानी: \fq*\ft का अर्थ हैं सामी लोगों के एक समूह का सदस्य जो प्रागैतिहासिक काल से कनान में निवास करते हैं इसमें इस्राएली और सुरूफ‍िनीकी भी शामिल हैं।\ft*\f* स्त्री निकली, और चिल्लाकर कहने लगी, “हे प्रभु! दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर, मेरी बेटी को दुष्टात्मा बहुत सता रहा है।” \v 23 पर उसने उसे कुछ उत्तर न दिया, और उसके चेलों ने आकर उससे विनती करके कहा, “इसे विदा कर; क्योंकि वह हमारे पीछे चिल्लाती आती है।” \v 24 उसने उत्तर दिया, \wj “इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों को छोड़ मैं किसी के पास नहीं भेजा गया।”\wj* \v 25 पर वह आई, और उसे प्रणाम करके कहने लगी, “हे प्रभु, मेरी सहायता कर।” \v 26 उसने उत्तर दिया, \wj “\wj*\it \+wj बच्चों की\+wj*\it*\f + \fr 15:26 \fr*\fq बच्चों की: \fq*\ft इस्राएलियों से संदर्भित\ft*\f* \wj रोटी लेकर कुत्तों के आगे डालना अच्छा नहीं।”\wj* \v 27 उसने कहा, “सत्य है प्रभु, पर कुत्ते भी वह चूर चार खाते हैं, जो उनके स्वामियों की मेज से गिरते हैं।” \v 28 इस पर यीशु ने उसको उत्तर देकर कहा, \wj “हे स्त्री, तेरा विश्वास बड़ा है; जैसा तू चाहती है, तेरे लिये वैसा ही हो”\wj* और उसकी बेटी उसी समय चंगी हो गई। \s अनेक रोगियों को चंगा करना \p \v 29 यीशु वहाँ से चलकर, गलील की झील के पास आया, और पहाड़ पर चढ़कर वहाँ बैठ गया। \v 30 और भीड़ पर भीड़ उसके पास आई, वे अपने साथ लँगड़ों, अंधों, गूँगों, टुण्डों, और बहुतों को लेकर उसके पास आए; और उन्हें उसके पाँवों पर डाल दिया, और उसने उन्हें चंगा किया। \v 31 अतः जब लोगों ने देखा, कि गूँगे बोलते और टुण्डे चंगे होते और लँगड़े चलते और अंधे देखते हैं, तो अचम्भा करके इस्राएल के परमेश्वर की बड़ाई की। \s चार हजार लोगों को खिलाना \p \v 32 यीशु ने अपने चेलों को बुलाकर कहा, \wj “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है; क्योंकि वे तीन दिन से मेरे साथ हैं और उनके पास कुछ खाने को नहीं; और मैं उन्हें भूखा विदा करना नहीं चाहता; कहीं ऐसा न हो कि मार्ग में थककर गिर जाएँ।”\wj* \v 33 चेलों ने उससे कहा, “हमें इस निर्जन स्थान में कहाँ से इतनी रोटी मिलेगी कि हम इतनी बड़ी भीड़ को तृप्त करें?” \v 34 यीशु ने उनसे पूछा, \wj “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?”\wj* उन्होंने कहा, “सात और थोड़ी सी छोटी मछलियाँ।” \v 35 तब उसने लोगों को भूमि पर बैठने की आज्ञा दी। \v 36 और उन सात रोटियों और मछलियों को ले धन्यवाद करके तोड़ा और अपने चेलों को देता गया, और चेले लोगों को। \v 37 इस प्रकार सब खाकर तृप्त हो गए और बचे हुए टुकड़ों से भरे हुए सात टोकरे उठाए। \v 38 और खानेवाले स्त्रियों और बालकों को छोड़ चार हजार पुरुष थे। \v 39 तब वह भीड़ को विदा करके नाव पर चढ़ गया, और \it मगदन\it*\f + \fr 15:39 \fr*\fq मगदन: \fq*\ft एक मीनार, मगदला संशोधित किया गया एक नाम हैं।\ft*\f* क्षेत्र में आया। \c 16 \s फरीसियों द्वारा यीशु का परखा जाना \p \v 1 और फरीसियों और \it सदूकियों\it*\f + \fr 16:1 \fr*\fq सदूकियों: \fq*\ft अध्याय 3:7 में टिप्पणी का उल्लेख देखें\ft*\f* ने यीशु के पास आकर उसे परखने के लिये उससे कहा, “हमें स्वर्ग का कोई चिन्ह दिखा।” \v 2 उसने उनको उत्तर दिया, \wj “साँझ को तुम कहते हो, कि मौसम अच्छा रहेगा, क्योंकि आकाश लाल है।\wj* \v 3 \wj और भोर को कहते हो, कि आज आँधी आएगी क्योंकि आकाश लाल और धुमला है; तुम आकाश का लक्षण देखकर भेद बता सकते हो, पर समय के चिन्हों का भेद क्यों नहीं बता सकते?\wj* \v 4 \wj इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूँढ़ते हैं पर योना के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा।”\wj* और वह उन्हें छोड़कर चला गया। \s फरीसियों और सदूकियों का ख़मीर \p \v 5 और चेले झील के उस पार जाते समय रोटी लेना भूल गए थे। \v 6 यीशु ने उनसे कहा, \wj “देखो, फरीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहना।”\wj* \v 7 वे आपस में विचार करने लगे, “हम तो रोटी नहीं लाए। इसलिए वह ऐसा कहता है।” \v 8 यह जानकर, यीशु ने उनसे कहा, \wj “हे अल्पविश्वासियों, तुम आपस में क्यों विचार करते हो कि हमारे पास रोटी नहीं?\wj* \v 9 \wj क्या तुम अब तक नहीं समझे? और उन पाँच हजार की पाँच रोटी स्मरण नहीं करते, और न यह कि कितनी टोकरियाँ उठाई थीं?\wj* \v 10 \wj और न उन चार हजार की सात रोटियाँ, और न यह कि कितने टोकरे उठाए गए थे?\wj* \v 11 \wj तुम क्यों नहीं समझते कि मैंने तुम से रोटियों के विषय में नहीं कहा? परन्तु फरीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहना।”\wj* \v 12 तब उनको समझ में आया, कि उसने रोटी के ख़मीर से नहीं, पर फरीसियों और सदूकियों की शिक्षा से सावधान रहने को कहा था। \s पतरस का यीशु को मसीह स्वीकारना \p \v 13 यीशु \it कैसरिया फिलिप्पी\it*\f + \fr 16:13 \fr*\fq कैसरिया फिलिप्पी: \fq*\ft गलील के सागर के उत्तर में 25 मील और हेर्मोन पर्वत के आधार पर स्थित।\ft*\f* के प्रदेश में आकर अपने चेलों से पूछने लगा, \wj “लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?”\wj* \v 14 उन्होंने कहा, “कुछ तो यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला कहते हैं और कुछ एलिय्याह, और कुछ यिर्मयाह या भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक कहते हैं।” \v 15 उसने उनसे कहा, \wj “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?”\wj* \v 16 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “तू जीविते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।” \v 17 यीशु ने उसको उत्तर दिया, \wj “हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है; क्योंकि माँस और लहू ने नहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है।\wj* \v 18 \wj और मैं भी तुझ से कहता हूँ, कि तू\wj* \it \+wj पतरस \+wj*\it*\f + \fr 16:18 \fr*\fq पतरस: \fq*\ft यूनानी में, चट्टान के एक टुकड़े के लिये पेत्रोस शब्द का इस्तेमाल होता हैं। पतरस 12 प्रेरितों में प्रमुख था।\ft*\f* \wj है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे।\wj* \v 19 \wj मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुँजियाँ दूँगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बँधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।”\wj* \v 20 तब उसने चेलों को चेतावनी दी, \wj “किसी से न कहना! कि मैं मसीह हूँ।” \wj* \s अपनी मृत्यु के विषय यीशु की भविष्यद्वाणी \p \v 21 उस समय से यीशु अपने चेलों को बताने लगा, \wj “मुझे अवश्य है, कि यरूशलेम को जाऊँ, और प्राचीनों और प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ से बहुत दुःख उठाऊँ; और मार डाला जाऊँ; और तीसरे दिन जी उठूँ।”\wj* \v 22 इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर डाँटने लगा, “हे प्रभु, परमेश्वर न करे! तुझ पर ऐसा कभी न होगा।” \v 23 उसने फिरकर पतरस से कहा, \wj “हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो! तू मेरे लिये ठोकर का कारण है; क्योंकि तू परमेश्वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।”\wj* \s यीशु के पीछे चलने का मतलब \p \v 24 तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, \wj “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आपका इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले।\wj* \v 25 \wj क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा।\wj* \v 26 \wj यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले में क्या देगा?\wj* \v 27 \wj मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा, और उस समय ‘वह हर एक को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा।’\wj* \v 28 \wj मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कितने ऐसे हैं, कि जब तक मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते हुए न देख लेंगे, तब तक मृत्यु का स्वाद कभी न चखेंगे।”\wj* \c 17 \s यीशु का रूपान्तर \p \v 1 छः दिन के बाद यीशु ने पतरस और याकूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लिया, और उन्हें एकान्त में किसी ऊँचे पहाड़ पर ले गया। \v 2 और वहाँ उनके सामने उसका रूपान्तरण हुआ और उसका मुँह सूर्य के समान चमका और उसका वस्त्र ज्योति के समान उजला हो गया। \v 3 और \it मूसा और एलिय्याह\it*\f + \fr 17:3 \fr*\fq मूसा और एलिय्याह: \fq*\ft मूसा इस्राएल के महान अगुओं में से एक था जिसने इस्राएलियों को मिस्र देश से बाहर निकालने की अगुआई की थी। एलिय्याह पुराने नियम में एक भविष्यद्वक्ता था जिसने मूर्तियों की पूजा का विरोध किया।\ft*\f* उसके साथ बातें करते हुए उन्हें दिखाई दिए। \p \v 4 इस पर पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, हमारा यहाँ रहना अच्छा है; यदि तेरी इच्छा हो तो मैं यहाँ तीन तम्बू बनाऊँ; एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” \v 5 वह बोल ही रहा था, कि एक उजले बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं प्रसन्न हूँ: इसकी सुनो।” \v 6 चेले यह सुनकर मुँह के बल गिर गए और अत्यन्त डर गए। \v 7 यीशु ने पास आकर उन्हें छुआ, और कहा, \wj “उठो, डरो मत।”\wj* \v 8 तब उन्होंने अपनी आँखें उठाकर यीशु को छोड़ और किसी को न देखा। \p \v 9 जब वे पहाड़ से उतर रहे थे तब यीशु ने उन्हें यह निर्देश दिया, \wj “जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से न जी उठे, तब तक जो कुछ तुम ने देखा है किसी से न कहना।”\wj* \v 10 और उसके चेलों ने उससे पूछा, “फिर शास्त्री क्यों कहते हैं, कि एलिय्याह का पहले आना अवश्य है?” \v 11 उसने उत्तर दिया, \wj “एलिय्याह तो अवश्य आएगा और सब कुछ सुधारेगा।\wj* \v 12 \wj परन्तु मैं तुम से कहता हूँ, कि\wj* \it \+wj एलिय्याह आ चुका;\f + \fr 17:12 \fr*\fq एलिय्याह आ चुका: \fq*\ft यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के बारे में चर्चा करते हुए जो एलिय्याह की आत्मा और शक्ति में आया था\ft*\f*\+wj*\it* \wj और उन्होंने उसे नहीं पहचाना; परन्तु जैसा चाहा वैसा ही उसके साथ किया।\wj* \it \+wj इसी प्रकार से\f + \fr 17:12 \fr*\fq इसी प्रकार से: \fq*\ft जिस तरह से वे यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले को अस्वीकार और अन्त में मार डालने के द्वारा उसके साथ व्यवहार किया, उसी रीति से मसीह भी अस्वीकार और मार डाला जाएगा\ft*\f*\+wj*\it* \wj मनुष्य का पुत्र भी उनके हाथ से दुःख उठाएगा।”\wj* \v 13 तब चेलों ने समझा कि उसने हम से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के विषय में कहा है। \s मिर्गी से पीड़ित बालक को चंगाई \p \v 14 जब वे भीड़ के पास पहुँचे, तो एक मनुष्य उसके पास आया, और घुटने टेककर कहने लगा। \v 15 “हे प्रभु, मेरे पुत्र पर दया कर! क्योंकि उसको मिर्गी आती है, और वह बहुत दुःख उठाता है; और बार बार आग में और बार बार पानी में गिर पड़ता है। \v 16 और मैं उसको तेरे चेलों के पास लाया था, पर वे उसे अच्छा नहीं कर सके।” \v 17 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “हे अविश्वासी और हठीले लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे यहाँ मेरे पास लाओ।”\wj* \v 18 तब यीशु ने उसे डाँटा, और दुष्टात्मा उसमें से निकला; और लड़का उसी समय अच्छा हो गया। \p \v 19 तब चेलों ने एकान्त में यीशु के पास आकर कहा, “हम इसे क्यों नहीं निकाल सके?” \v 20 उसने उनसे कहा, \wj “अपने विश्वास की कमी के कारण: क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम्हारा विश्वास\wj* \it \+wj राई के दाने के बराबर\f + \fr 17:20 \fr*\fq राई के दाने के बराबर: \fq*\ft उनका कहने का मतलब है कि यदि आपको वास्तविक छोटे से छोटा या मन्द विश्वास हैं तो आप सब कुछ कर सकते हैं। सभी जड़ी बूटियों से सबसे बड़ा सरसों का बीज उत्पादन करता हैं।\ft*\f*\+wj*\it* \wj भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, ‘यहाँ से सरककर वहाँ चला जा’, तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिये अनहोनी न होगी।\wj* \v 21 \wj [पर यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के नहीं निकलती।]”\wj* \s अपनी मृत्यु के विषय यीशु की पुनः भविष्यद्वाणी \p \v 22 जब वे गलील में थे, तो यीशु ने उनसे कहा, \wj “मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा।\wj* \v 23 \wj और वे उसे मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।”\wj* इस पर वे बहुत उदास हुए। \s मन्दिर का कर लेना \p \v 24 जब वे कफरनहूम में पहुँचे, तो मन्दिर के लिये कर लेनेवालों ने पतरस के पास आकर पूछा, “क्या तुम्हारा गुरु मन्दिर का कर नहीं देता?” \v 25 उसने कहा, “हाँ, देता है।” जब वह घर में आया, तो यीशु ने उसके पूछने से पहले उससे कहा, \wj “हे शमौन तू क्या समझता है? पृथ्वी के राजा चुंगी या कर किन से लेते हैं? अपने पुत्रों से या परायों से?”\wj* \v 26 पतरस ने उनसे कहा, “परायों से।” यीशु ने उससे कहा, \wj “तो पुत्र बच गए।\wj* \v 27 \wj फिर भी हम उन्हें ठोकर न खिलाएँ, तू झील के किनारे जाकर बंसी डाल, और जो मछली पहले निकले, उसे ले; तो तुझे उसका मुँह खोलने पर एक सिक्का मिलेगा, उसी को लेकर मेरे और अपने बदले उन्हें दे देना।”\wj* \c 18 \s स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन? \p \v 1 उसी समय चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन है?” \v 2 इस पर उसने एक बालक को पास बुलाकर उनके बीच में खड़ा किया, \v 3 और कहा, \wj “मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे।\wj* \v 4 \wj जो कोई अपने आपको इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा।\wj* \v 5 \wj और जो कोई मेरे नाम से एक ऐसे बालक को ग्रहण करता है वह मुझे ग्रहण करता है।\wj* \s ठोकर खिलाने वालों पर हाय \p \v 6 \wj “पर जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं एक को ठोकर खिलाए, उसके लिये भला होता, कि बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह गहरे समुद्र में डुबाया जाता।\wj* \v 7 \wj ठोकरों के कारण संसार पर हाय! ठोकरों का लगना अवश्य है; पर हाय उस मनुष्य पर जिसके द्वारा ठोकर लगती है।\wj* \p \v 8 \wj “यदि तेरा हाथ या तेरा पाँव तुझे ठोकर खिलाए, तो काटकर फेंक दे; टुण्डा या लँगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो हाथ या दो पाँव रहते हुए तू अनन्त आग में डाला जाए।\wj* \v 9 \wj और यदि तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर फेंक दे। काना होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो आँख रहते हुए तू नरक की आग में डाला जाए।\wj* \s खोई हुई भेड़ का दृष्टान्त \p \v 10 \wj “देखो, तुम इन छोटों में से किसी को तुच्छ न जानना; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि स्वर्ग में उनके स्वर्गदूत मेरे स्वर्गीय पिता का मुँह सदा देखते हैं।\wj* \v 11 \wj [क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को बचाने आया है।]\wj* \p \v 12 \wj “तुम क्या समझते हो? यदि किसी मनुष्य की सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक भटक जाए, तो क्या निन्यानवे को छोड़कर, और पहाड़ों पर जाकर, उस भटकी हुई को न ढूँढ़ेगा?\wj* \p \v 13 \wj और यदि ऐसा हो कि उसे पाए, तो मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वह उन निन्यानवे भेड़ों के लिये जो भटकी नहीं थीं इतना आनन्द नहीं करेगा, जितना कि इस भेड़ के लिये करेगा।\wj* \v 14 \wj ऐसा ही तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है यह इच्छा नहीं, कि इन छोटों में से एक भी नाश हो।\wj* \s अपराधियों के प्रति व्यवहार \p \v 15 \wj “यदि तेरा भाई तेरे विरुद्ध अपराध करे, तो जा और अकेले में बातचीत करके उसे समझा; यदि वह तेरी सुने तो तूने अपने भाई को पा लिया।\wj* \v 16 \wj और यदि वह न सुने, तो और एक दो जन को अपने साथ ले जा, कि हर एक बात दो या तीन गवाहों के मुँह से ठहराई जाए।\wj* \v 17 \wj यदि वह उनकी भी न माने, तो कलीसिया से कह दे, परन्तु यदि वह कलीसिया की भी न माने, तो तू उसे अन्यजाति और चुंगी लेनेवाले के जैसा जान।\wj* \s रोकना और अवसर देना \p \v 18 \wj “मैं तुम से सच कहता हूँ, जो कुछ तुम पृथ्वी पर बाँधोगे, वह स्वर्ग पर बँधेगा और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे, वह स्वर्ग में खुलेगा।\wj* \v 19 \wj फिर मैं तुम से कहता हूँ, यदि तुम में से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिये जिसे वे माँगें, एक मन के हों, तो वह मेरे पिता की ओर से जो स्वर्ग में है उनके लिये हो जाएगी।\wj* \v 20 \wj क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ।”\wj* \s क्षमा न करनेवाले दास का दृष्टान्त \p \v 21 तब पतरस ने पास आकर, उससे कहा, “हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ, क्या सात बार तक?” \v 22 यीशु ने उससे कहा, \wj “मैं तुझ से यह नहीं कहता, कि सात बार, वरन्\wj* \it \+wj सात बार के सत्तर गुने\f + \fr 18:22 \fr*\fq सात बार के सत्तर गुने: \fq*\ft अर्थात् जब तक क्षमा माँगने की आवश्यकता हो, आपको ऐसी स्थिति में कभी नहीं होना है कि सत्यनिष्ठा में जो क्षमा माँगी जा रही है उससे विमुख हों। (लूका. 17:3, 4) \ft*\f*\+wj*\it* \wj तक।\wj* \p \v 23 \wj “इसलिए स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने दासों से लेखा लेना चाहा।\wj* \v 24 \wj जब वह लेखा लेने लगा, तो एक जन उसके सामने लाया गया जो दस हजार तोड़े का कर्जदार था।\wj* \v 25 \wj जबकि चुकाने को उसके पास कुछ न था, तो उसके स्वामी ने कहा, कि यह और इसकी पत्नी और बाल-बच्चे और जो कुछ इसका है सब बेचा जाए, और वह कर्ज चुका दिया जाए।\wj* \v 26 \wj इस पर उस दास ने गिरकर उसे प्रणाम किया, और कहा, ‘हे स्वामी, धीरज धर, मैं सब कुछ भर दूँगा।’\wj* \v 27 \wj तब उस दास के स्वामी ने तरस खाकर उसे छोड़ दिया, और उसका कर्ज क्षमा किया।\wj* \p \v 28 \wj “परन्तु जब वह दास बाहर निकला, तो उसके संगी दासों में से एक उसको मिला, जो उसके\wj* \it \+wj सौ दीनार\f + \fr 18:28 \fr*\fq सौ दीनार: \fq*\ft एक दीनार (या “पैसा”) जो कि एक कृषि कार्यकर्ता को आमतौर पर एक दिन के श्रम के लिए भुगतान किया गया था।\ft*\f*\+wj*\it* \wj का कर्जदार था; उसने उसे पकड़कर उसका गला घोंटा और कहा, ‘जो कुछ तुझ पर कर्ज है भर दे।’\wj* \v 29 \wj इस पर उसका संगी दास गिरकर, उससे विनती करने लगा; कि धीरज धर मैं सब भर दूँगा।\wj* \v 30 \wj उसने न माना, परन्तु जाकर उसे बन्दीगृह में डाल दिया; कि जब तक कर्ज को भर न दे, तब तक वहीं रहे।\wj* \v 31 \wj उसके संगी दास यह जो हुआ था देखकर बहुत उदास हुए, और जाकर अपने स्वामी को पूरा हाल बता दिया।\wj* \v 32 \wj तब उसके स्वामी ने उसको बुलाकर उससे कहा, ‘हे दुष्ट दास, तूने जो मुझसे विनती की, तो मैंने तो तेरा वह पूरा कर्ज क्षमा किया।\wj* \v 33 \wj इसलिए जैसा मैंने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था?’\wj* \v 34 \wj और उसके स्वामी ने क्रोध में आकर उसे दण्ड देनेवालों के हाथ में सौंप दिया, कि जब तक वह सब कर्जा भर न दे, तब तक उनके हाथ में रहे।\wj* \p \v 35 \wj “इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा।”\wj* \c 19 \s तलाक का प्रश्न \p \v 1 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो गलील से चला गया; और यहूदिया के प्रदेश में यरदन के पार आया। \v 2 और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली, और उसने उन्हें वहाँ चंगा किया। \p \v 3 तब फरीसी उसकी परीक्षा करने के लिये पास आकर कहने लगे, “क्या हर एक कारण से अपनी पत्नी को त्यागना उचित है?” \v 4 उसने उत्तर दिया, \wj “क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि जिसने उन्हें बनाया, उसने आरम्भ से नर और नारी बनाकर कहा,\wj* \p \v 5 \wj ‘इस कारण मनुष्य अपने माता पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे?’\wj* \v 6 \wj अतः वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।”\wj* \v 7 उन्होंने यीशु से कहा, “फिर मूसा ने क्यों यह ठहराया, कि त्यागपत्र देकर उसे छोड़ दे?” \v 8 उसने उनसे कहा, \wj “मूसा ने तुम्हारे मन की कठोरता के कारण तुम्हें अपनी पत्नी को छोड़ देने की अनुमति दी, परन्तु आरम्भ में ऐसा नहीं था।\wj* \v 9 \wj और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो कोई व्यभिचार को छोड़ और किसी कारण से अपनी पत्नी को त्याग कर, दूसरी से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है: और जो उस छोड़ी हुई से विवाह करे, वह भी व्यभिचार करता है।”\wj* \p \v 10 चेलों ने उससे कहा, “यदि पुरुष का स्त्री के साथ ऐसा सम्बंध है, तो विवाह करना अच्छा नहीं।” \v 11 उसने उनसे कहा, \wj “सब यह वचन ग्रहण नहीं कर सकते, केवल वे जिनको यह दान दिया गया है।\wj* \v 12 \wj क्योंकि कुछ नपुंसक ऐसे हैं जो माता के गर्भ ही से ऐसे जन्मे; और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्हें मनुष्य ने नपुंसक बनाया: और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्होंने स्वर्ग के राज्य के लिये अपने आपको नपुंसक बनाया है, जो इसको ग्रहण कर सकता है, वह ग्रहण करे।”\wj* \s बच्चों को आशीर्वाद \p \v 13 तब लोग बालकों को उसके पास लाए, कि वह उन पर हाथ रखे और प्रार्थना करे; पर चेलों ने उन्हें डाँटा। \v 14 यीशु ने कहा, \wj “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है।”\wj* \v 15 और वह उन पर हाथ रखकर, वहाँ से चला गया। \s धनी नवयुवक का महत्त्वपूर्ण प्रश्न \p \v 16 और एक मनुष्य ने पास आकर उससे कहा, “हे गुरु, मैं कौन सा भला काम करूँ, कि अनन्त जीवन पाऊँ?” \v 17 उसने उससे कहा, \wj “तू मुझसे भलाई के विषय में क्यों पूछता है? भला तो एक ही है; पर यदि तू जीवन में प्रवेश करना चाहता है, तो आज्ञाओं को माना कर।”\wj* \v 18 उसने उससे कहा, “कौन सी आज्ञाएँ?” यीशु ने कहा, \p \wj “यह कि हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना;\wj* \v 19 \wj अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, और अपने\wj* \it \+wj पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।”\f + \fr 19:19 \fr*\fq पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना: \fq*\ft इसका मतलब सभी व्यक्तियों से प्रेम रखना, हर जगह न कि सिर्फ हमारे नजदीकी लोगों से, जिसमें हमारे दुश्मन भी शामिल है।\ft*\f*\+wj*\it* \v 20 उस जवान ने उससे कहा, “इन सब को तो मैंने माना है अब मुझ में किस बात की कमी है?” \v 21 यीशु ने उससे कहा, \wj “यदि तू\wj* \it \+wj सिद्ध\f + \fr 19:21 \fr*\fq सिद्ध: \fq*\ft “सिद्ध” शब्द का अर्थ सभी भागो में पूर्ण, सम्पूर्ण, लेशमात्र भी कमी न रह जाए।\ft*\f*\+wj*\it* \wj होना चाहता है; तो जा, अपना सब कुछ बेचकर गरीबों को बाँट दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा; और आकर मेरे पीछे हो ले।”\wj* \v 22 परन्तु वह जवान यह बात सुन उदास होकर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था। \p \v 23 तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, \wj “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि धनवान का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना कठिन है। \wj* \v 24 \wj फिर तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है।”\wj* \v 25 यह सुनकर, चेलों ने बहुत चकित होकर कहा, “फिर किसका उद्धार हो सकता है?” \v 26 यीशु ने उनकी ओर देखकर कहा, \wj “मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।”\wj* \v 27 इस पर पतरस ने उससे कहा, “देख, हम तो सब कुछ छोड़ के तेरे पीछे हो लिये हैं तो हमें क्या मिलेगा?” \v 28 यीशु ने उनसे कहा, \wj “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि नई उत्पत्ति में जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिये हो, बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे।\wj* \v 29 \wj और जिस किसी ने घरों या भाइयों या बहनों या पिता या माता या बाल-बच्चों या खेतों को मेरे नाम के लिये छोड़ दिया है, उसको सौ गुना मिलेगा, और वह अनन्त जीवन का अधिकारी होगा।\wj* \v 30 \wj परन्तु बहुत सारे जो पहले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, पहले होंगे।\wj* \c 20 \s दाख-वाटिका के मजदूरों का दृष्टान्त \p \v 1 \wj “स्वर्ग का राज्य किसी गृहस्थ के समान है, जो सवेरे निकला, कि अपनी दाख की बारी में मजदूरों को लगाए।\wj* \v 2 \wj और उसने मजदूरों से एक दीनार रोज पर ठहराकर, उन्हें अपने दाख की बारी में भेजा।\wj* \v 3 \it \+wj फिर पहर\+wj*\it*\f + \fr 20:3 \fr*\fq फिर पहर: \fq*\ft सुबह 9 बजे के रूप में।\ft*\f* \wj एक दिन चढ़े, निकलकर, अन्य लोगों को बाजार में बेकार खड़े देखा,\wj* \v 4 \wj और उनसे कहा, ‘तुम भी दाख की बारी में जाओ, और जो कुछ ठीक है, तुम्हें दूँगा।’ तब वे भी गए।\wj* \v 5 \wj फिर उसने दूसरे और तीसरे पहर के निकट निकलकर वैसा ही किया।\wj* \v 6 \wj और एक घंटा दिन रहे फिर निकलकर दूसरों को खड़े पाया, और उनसे कहा ‘तुम क्यों यहाँ दिन भर बेकार खड़े रहे?’ उन्होंने उससे कहा, ‘इसलिए, कि किसी ने हमें मजदूरी पर नहीं लगाया।’ \wj* \v 7 \wj उसने उनसे कहा, ‘तुम भी दाख की बारी में जाओ।’\wj* \p \v 8 \wj “साँझ को दाख की बारी के स्वामी ने अपने भण्डारी से कहा, ‘मजदूरों को बुलाकर पिछले से लेकर पहले तक उन्हें मजदूरी दे दे।’\wj* \v 9 \wj जब वे आए, जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उन्हें एक-एक दीनार मिला।\wj* \v 10 \wj जो पहले आए, उन्होंने यह समझा, कि हमें अधिक मिलेगा; परन्तु उन्हें भी एक ही एक दीनार मिला।\wj* \v 11 \wj जब मिला, तो वह गृह स्वामी पर कुड़कुड़ा के कहने लगे,\wj* \v 12 \wj ‘इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया, और तूने उन्हें हमारे बराबर कर दिया, जिन्होंने दिन भर का भार उठाया और धूप सही?’\wj* \v 13 \wj उसने उनमें से एक को उत्तर दिया, ‘हे मित्र, मैं तुझ से कुछ अन्याय नहीं करता; क्या तूने मुझसे एक दीनार न ठहराया?\wj* \v 14 \wj जो तेरा है, उठा ले, और चला जा; मेरी इच्छा यह है कि जितना तुझे, उतना ही इस पिछले को भी दूँ।\wj* \v 15 \wj क्या यह उचित नहीं कि मैं अपने माल से जो चाहूँ वैसा करूँ? क्या तू मेरे भले होने के कारण बुरी दृष्टि से देखता है?’\wj* \v 16 \wj इस प्रकार\wj* \it \+wj जो अन्तिम हैं, वे प्रथम हो जाएँगे\f + \fr 20:16 \fr*\fq जो अन्तिम हैं, वे प्रथम हो जाएँगे: \fq*\ft यह इस दृष्टान्त की नैतिक या व्यापकता है। बहुत से लोग समय के क्रमा अनुसार, स्वर्ग राज्य में अन्त में लाए गये, पुरस्कार में प्रथम होंगे। दूसरों की तुलना में उन्हें उच्चतम आनुपातिक पुरस्कार दिया जाएगा\ft*\f*\+wj*\it* \wj और जो प्रथम हैं वे अन्तिम हो जाएँगे।”\wj* \s अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के विषय पुनः भविष्यद्वाणी \p \v 17 यीशु यरूशलेम को जाते हुए बारह चेलों को एकान्त में ले गया, और मार्ग में उनसे कहने लगा। \v 18 \wj “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं; और मनुष्य का पुत्र प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा और वे उसको घात के योग्य ठहराएँगे।\wj* \v 19 \wj और उसको अन्यजातियों के हाथ सौंपेंगे, कि वे उसे उपहास में उड़ाएँ, और कोड़े मारें, और क्रूस पर चढ़ाएँ, और वह तीसरे दिन जिलाया जाएगा।”\wj* \s एक माँ का अपने बच्चों के लिए आग्रह \p \v 20 तब जब्दी के पुत्रों की माता ने अपने पुत्रों के साथ उसके पास आकर प्रणाम किया, और उससे कुछ माँगने लगी। \v 21 उसने उससे कहा, \wj “तू क्या चाहती है?”\wj* वह उससे बोली, “यह कह, कि मेरे ये दो पुत्र तेरे राज्य में एक तेरे दाहिने और एक तेरे बाएँ बैठे।” \v 22 यीशु ने उत्तर दिया, “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो। जो \it कटोरा मैं पीने\it*\f + \fr 20:22 \fr*\fq कटोरा मैं पीने: \fq*\ft मसीह की पीड़ा का उल्लेख करता हैं (यिर्म. 25:15, यहेजकेल 23: 31-32) \ft*\f* पर हूँ, क्या तुम पी सकते हो?” उन्होंने उससे कहा, “पी सकते हैं।” \v 23 उसने उनसे कहा, \wj “तुम मेरा कटोरा तो पीओगे पर अपने दाहिने बाएँ किसी को बैठाना मेरा काम नहीं, पर जिनके लिये मेरे पिता की ओर से तैयार किया गया, उन्हीं के लिये है।”\wj* \p \v 24 यह सुनकर, दसों चेले उन दोनों भाइयों पर क्रुद्ध हुए। \v 25 यीशु ने उन्हें पास बुलाकर कहा, \wj “तुम जानते हो, कि अन्यजातियों के अधिपति उन पर प्रभुता करते हैं; और जो बड़े हैं, वे उन पर अधिकार जताते हैं।\wj* \v 26 \wj परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने;\wj* \v 27 \wj और जो तुम में प्रधान होना चाहे वह तुम्हारा दास बने;\wj* \v 28 \wj जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिए नहीं आया कि अपनी सेवा करवाए, परन्तु इसलिए आया कि सेवा करे और बहुतों के छुटकारे के लिये अपने प्राण दे।”\wj* \s दो अंधों को दृष्टिदान \p \v 29 जब वे \it यरीहो\it*\f + \fr 20:29 \fr*\fq यरीहो: \fq*\ft पश्चिमी तट पर यरदन नदी के निकट स्थित एक शहर है\ft*\f* से निकल रहे थे, तो एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। \v 30 और दो अंधे, जो सड़क के किनारे बैठे थे, यह सुनकर कि यीशु जा रहा है, पुकारकर कहने लगे, “हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” \v 31 लोगों ने उन्हें डाँटा, कि चुप रहें, पर वे और भी चिल्लाकर बोले, “हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” \v 32 तब यीशु ने खड़े होकर, उन्हें बुलाया, और कहा, \wj “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूँ?”\wj* \v 33 उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, यह कि हमारी आँखें खुल जाएँ।” \v 34 यीशु ने तरस खाकर उनकी आँखें छूई, और वे तुरन्त देखने लगे; और उसके पीछे हो लिए। \c 21 \s यीशु का यरूशलेम में विजय प्रवेश \p \v 1 जब वे यरूशलेम के निकट पहुँचे और जैतून पहाड़ पर बैतफगे के पास आए, तो यीशु ने दो चेलों को यह कहकर भेजा, \v 2 \wj “अपने सामने के गाँव में जाओ, वहाँ पहुँचते ही एक गदही बंधी हुई, और उसके साथ बच्चा तुम्हें मिलेगा; उन्हें खोलकर, मेरे पास ले आओ।\wj* \v 3 \wj यदि तुम से कोई कुछ कहे, तो कहो, कि प्रभु को इनका प्रयोजन है: तब वह तुरन्त उन्हें भेज देगा।”\wj* \v 4 यह इसलिए हुआ, कि जो वचन भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो: \q \v 5 “सिय्योन की बेटी से कहो, \q ‘देख, तेरा राजा तेरे पास आता है; \q2 वह नम्र है और गदहे पर बैठा है; \q वरन् लादू के बच्चे पर।’” \p \v 6 चेलों ने जाकर, जैसा यीशु ने उनसे कहा था, वैसा ही किया। \v 7 और गदही और बच्चे को लाकर, उन पर अपने कपड़े डाले, और वह उन पर बैठ गया। \v 8 और बहुत सारे लोगों ने अपने कपड़े मार्ग में बिछाए, और लोगों ने पेड़ों से डालियाँ काटकर मार्ग में बिछाईं। \v 9 और जो भीड़ आगे-आगे जाती और पीछे-पीछे चली आती थी, पुकार पुकारकर कहती थी, “दाऊद के सन्तान को होशाना; धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है, आकाश में होशाना।” \v 10 जब उसने यरूशलेम में प्रवेश किया, तो सारे नगर में हलचल मच गई; और लोग कहने लगे, “यह कौन है?” \v 11 लोगों ने कहा, “यह गलील के नासरत का भविष्यद्वक्ता यीशु है।” \s मन्दिर से व्यापारियों का निकाला जाना \p \v 12 यीशु ने \it परमेश्वर के मन्दिर\it*\f + \fr 21:12 \fr*\fq परमेश्वर के मन्दिर: \fq*\ft मन्दिर के प्रांगण में व्यापार को चलते हुए देखकर यीशु ने यह कहा, “परमेश्वर का मन्दिर,” जो कि यह मन्दिर परमेश्वर की सेवा के लिये, समर्पित और अर्पित हैं।\ft*\f* में जाकर, उन सब को, जो मन्दिर में लेन-देन कर रहे थे, निकाल दिया; और सर्राफों के मेजें और कबूतरों के बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं। \v 13 और उनसे कहा, \wj “लिखा है, ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा’; परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो।”\wj* \p \v 14 और अंधे और लँगड़े, मन्दिर में उसके पास आए, और उसने उन्हें चंगा किया। \v 15 परन्तु जब प्रधान याजकों और शास्त्रियों ने इन अद्भुत कामों को, जो उसने किए, और लड़कों को मन्दिर में दाऊद की सन्तान को होशाना पुकारते हुए देखा, तो क्रोधित हुए, \v 16 और उससे कहने लगे, “क्या तू सुनता है कि ये क्या कहते हैं?” यीशु ने उनसे कहा, \wj “हाँ; \wj* \q \wj क्या तुम ने यह कभी नहीं पढ़ा:\wj* \q \wj ‘बालकों और दूध पीते बच्चों के मुँह से तूने स्तुति सिद्ध कराई?’”\wj* \v 17 तब वह उन्हें छोड़कर नगर के बाहर \it बैतनिय्याह\it*\f + \fr 21:17 \fr*\fq बैतनिय्याह: \fq*\ft बैतनिय्याह इब्रानी (बेत-ते-एनाह) से लिया गया हैं जिसका अर्थ हैं “अंजीर का घर” बैतनिय्याह के नगर में लाज़र और उसकी बहन मरियम और मार्था का घर था।\ft*\f* को गया, और वहाँ रात बिताई। \s अंजीर के पेड़ से शिक्षा \p \v 18 भोर को जब वह नगर को लौट रहा था, तो उसे भूख लगी। \v 19 और अंजीर के पेड़ को सड़क के किनारे देखकर वह उसके पास गया, और पत्तों को छोड़ उसमें और कुछ न पाकर उससे कहा, \wj “अब से तुझ में फिर कभी फल न लगे।”\wj* और अंजीर का पेड़ तुरन्त सूख गया। \v 20 यह देखकर चेलों ने अचम्भा किया, और कहा, “यह अंजीर का पेड़ तुरन्त कैसे सूख गया?” \v 21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, \wj “मैं तुम से सच कहता हूँ; यदि तुम विश्वास रखो, और सन्देह न करो; तो न केवल यह करोगे, जो इस अंजीर के पेड़ से किया गया है; परन्तु यदि इस पहाड़ से भी कहोगे, कि उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़, तो यह हो जाएगा।\wj* \v 22 \wj और जो कुछ तुम प्रार्थना में विश्वास से माँगोगे वह सब तुम को मिलेगा।”\wj* \s यहूदी अगुओं का यीशु के अधिकार पर संदेह \p \v 23 वह मन्दिर में जाकर उपदेश कर रहा था, कि प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों ने उसके पास आकर पूछा, “तू ये काम किसके अधिकार से करता है? और तुझे यह अधिकार किसने दिया है?” \v 24 यीशु ने उनको उत्तर दिया, \wj “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; यदि वह मुझे बताओगे, तो मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ।\wj* \v 25 \wj यूहन्ना का बपतिस्मा कहाँ से था? स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से था?”\wj* तब वे आपस में विवाद करने लगे, “यदि हम कहें ‘स्वर्ग की ओर से’, तो वह हम से कहेगा, ‘फिर तुम ने उसका विश्वास क्यों न किया?’ \v 26 और यदि कहें ‘मनुष्यों की ओर से’, तो हमें भीड़ का डर है, क्योंकि वे सब यूहन्ना को भविष्यद्वक्ता मानते हैं।” \v 27 अतः उन्होंने यीशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” उसने भी उनसे कहा, \wj “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता, कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ।\wj* \s दो पुत्रों का दृष्टान्त \p \v 28 \wj “तुम क्या समझते हो? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे; उसने पहले के पास जाकर कहा, ‘हे पुत्र, आज दाख की बारी में काम कर।’\wj* \v 29 \wj उसने उत्तर दिया, ‘मैं नहीं जाऊँगा’, परन्तु बाद में उसने अपना मन बदल दिया और चला गया।\wj* \v 30 \wj फिर दूसरे के पास जाकर ऐसा ही कहा, उसने उत्तर दिया, ‘जी हाँ जाता हूँ’, परन्तु नहीं गया।\wj* \v 31 \wj इन दोनों में से किसने पिता की इच्छा पूरी की?”\wj* उन्होंने कहा, “पहले ने।” यीशु ने उनसे कहा, \wj “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि चुंगी लेनेवाले और वेश्या तुम से पहले परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करते हैं।\wj* \v 32 \wj क्योंकि यूहन्ना धार्मिकता के मार्ग से तुम्हारे पास आया, और तुम ने उस पर विश्वास नहीं किया: पर चुंगी लेनेवालों और वेश्याओं ने उसका विश्वास किया: और तुम यह देखकर बाद में भी न पछताए कि उसका विश्वास कर लेते।\wj* \s दुष्ट किसानों का दृष्टान्त \p \v 33 \wj “एक और दृष्टान्त सुनो एक गृहस्थ था, जिसने दाख की बारी लगाई; और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा; और उसमें रस का कुण्ड खोदा; और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया।\wj* \v 34 \wj जब फल का समय निकट आया, तो उसने अपने दासों को उसका फल लेने के लिये किसानों के पास भेजा।\wj* \v 35 \wj पर किसानों ने उसके दासों को पकड़ के, किसी को पीटा, और किसी को मार डाला; और किसी को पथराव किया।\wj* \v 36 \wj फिर उसने और दासों को भेजा, जो पहले से अधिक थे; और उन्होंने उनसे भी वैसा ही किया।\wj* \v 37 \wj अन्त में उसने अपने पुत्र को उनके पास यह कहकर भेजा, कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे।\wj* \v 38 \wj परन्तु किसानों ने पुत्र को देखकर आपस में कहा, ‘यह तो वारिस है, आओ, उसे मार डालें: और उसकी विरासत ले लें।’\wj* \v 39 \wj और उन्होंने उसे पकड़ा और दाख की बारी से बाहर निकालकर मार डाला।\wj* \p \v 40 \wj “इसलिए जब दाख की बारी का स्वामी आएगा, तो उन किसानों के साथ क्या करेगा?”\wj* \v 41 उन्होंने उससे कहा, “वह उन बुरे लोगों को बुरी रीति से नाश करेगा; और दाख की बारी का ठेका और किसानों को देगा, जो समय पर उसे फल दिया करेंगे।” \v 42 यीशु ने उनसे कहा, \wj “क्या तुम ने कभी पवित्रशास्त्र में यह नहीं पढ़ा:\wj* \q \wj ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने बेकार समझा था,\wj* \q \wj वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया\wj* \q \wj यह प्रभु की ओर से हुआ, और हमारे \wj* \q \wj देखने में अद्भुत है।?’\wj* \p \v 43 \wj “इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा; और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा।\wj* \v 44 \wj जो इस पत्थर पर गिरेगा, वह चकनाचूर हो जाएगा: और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।”\wj* \v 45 प्रधान याजक और फरीसी उसके दृष्टान्तों को सुनकर समझ गए, कि वह हमारे विषय में कहता है। \v 46 और उन्होंने उसे पकड़ना चाहा, परन्तु लोगों से डर गए क्योंकि वे उसे भविष्यद्वक्ता मानते थे। \c 22 \s विवाह-भोज का दृष्टान्त \p \v 1 इस पर यीशु फिर उनसे दृष्टान्तों में कहने लगा। \v 2 \wj “स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने पुत्र का विवाह किया।\wj* \v 3 \wj और उसने अपने दासों को भेजा, कि निमंत्रित लोगों को विवाह के भोज में बुलाएँ; परन्तु उन्होंने आना न चाहा।\wj* \v 4 \wj फिर उसने और दासों को यह कहकर भेजा, ‘निमंत्रित लोगों से कहो: देखो, मैं भोज तैयार कर चुका हूँ, और मेरे बैल और पले हुए पशु मारे गए हैं और सब कुछ तैयार है; विवाह के भोज में आओ।’\wj* \v 5 \wj परन्तु वे उपेक्षा करके चल दिए: कोई अपने खेत को, कोई अपने व्यापार को।\wj* \v 6 \wj अन्य लोगों ने जो बच रहे थे उसके दासों को पकड़कर उनका अनादर किया और मार डाला।\wj* \v 7 \wj तब राजा को क्रोध आया, और उसने अपनी सेना भेजकर उन हत्यारों को नाश किया, और उनके नगर को फूँक दिया।\wj* \v 8 \wj तब उसने अपने दासों से कहा, ‘विवाह का भोज तो तैयार है, परन्तु निमंत्रित लोग योग्य न ठहरे।\wj* \v 9 \wj इसलिए चौराहों में जाओ, और जितने लोग तुम्हें मिलें, सब को विवाह के भोज में बुला लाओ।’\wj* \v 10 \wj अतः उन दासों ने सड़कों पर जाकर क्या बुरे, क्या भले, जितने मिले, सब को इकट्ठा किया; और विवाह का घर अतिथियों से भर गया।\wj* \p \v 11 \wj “जब राजा अतिथियों को देखने को भीतर आया; तो उसने वहाँ एक मनुष्य को देखा, जो\wj* \it \+wj विवाह का वस्त्र नहीं पहने था।\f + \fr 22:11 \fr*\fq विवाह का वस्त्र नहीं पहने था: \fq*\ft विवाह का वस्त्र देना यह मेजबान अतिथियों के लिये एक रिवाज था और विवाह का वस्त्र नहीं पहने हुए अतिथि मेजबान के लिये एक अपमान के रूप में माना जाता था।\ft*\f*\+wj*\it* \v 12 \wj उसने उससे पूछा, ‘हे मित्र; तू विवाह का वस्त्र पहने बिना यहाँ क्यों आ गया?’ और वह मनुष्य चुप हो गया। \wj* \v 13 \wj तब राजा ने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पाँव बाँधकर उसे बाहर अंधियारे में डाल दो, वहाँ रोना, और दाँत पीसना होगा।’\wj* \v 14 \wj क्योंकि बुलाए हुए तो बहुत हैं परन्तु चुने हुए थोड़े हैं।”\wj* \s कैसर को कर देना \p \v 15 तब फरीसियों ने जाकर आपस में विचार किया, कि उसको किस प्रकार बातों में फँसाएँ। \v 16 अतः उन्होंने अपने चेलों को हेरोदियों के साथ उसके पास यह कहने को भेजा, “हे गुरु, हम जानते हैं, कि तू सच्चा है, और परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है, और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू मनुष्यों का मुँह देखकर बातें नहीं करता। \v 17 इसलिए हमें बता तू क्या समझता है? कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं।” \v 18 यीशु ने उनकी दुष्टता जानकर कहा, \wj “हे कपटियों, मुझे क्यों परखते हो?\wj* \v 19 \wj कर का सिक्का मुझे दिखाओ।”\wj* तब वे उसके पास एक दीनार ले आए। \v 20 उसने, उनसे पूछा, \wj “यह आकृति और नाम किसका है?”\wj* \v 21 उन्होंने उससे कहा, “कैसर का।” तब उसने उनसे कहा, \wj “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।”\wj* \v 22 यह सुनकर उन्होंने अचम्भा किया, और उसे छोड़कर चले गए। \s पुनरुत्थान और विवाह \p \v 23 उसी दिन सदूकी जो कहते हैं कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं उसके पास आए, और उससे पूछा, \v 24 “हे गुरु, मूसा ने कहा था, कि यदि कोई बिना सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी को विवाह करके अपने भाई के लिये वंश उत्पन्न करे। \v 25 अब हमारे यहाँ सात भाई थे; पहला विवाह करके मर गया; और सन्तान न होने के कारण अपनी पत्नी को अपने भाई के लिये छोड़ गया। \v 26 इसी प्रकार दूसरे और तीसरे ने भी किया, और सातों तक यही हुआ। \v 27 सब के बाद वह स्त्री भी मर गई। \v 28 अतः जी उठने पर वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि वह सब की पत्नी हो चुकी थी।” \v 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, \wj “तुम पवित्रशास्त्र और परमेश्वर की सामर्थ्य नहीं जानते; इस कारण भूल में पड़ गए हो।\wj* \v 30 \wj क्योंकि जी उठने पर विवाह-शादी न होगी; परन्तु वे स्वर्ग में दूतों के समान होंगे।\wj* \v 31 \wj परन्तु मरे हुओं के जी उठने के विषय में क्या तुम ने यह वचन नहीं पढ़ा जो परमेश्वर ने तुम से कहा:\wj* \v 32 \wj ‘मैं अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूँ?’ वह तो मरे हुओं का नहीं, परन्तु जीवितों का परमेश्वर है।”\wj* \v 33 यह सुनकर लोग उसके उपदेश से चकित हुए। \s सबसे बड़ी आज्ञा \p \v 34 जब फरीसियों ने सुना कि यीशु ने सदूकियों का मुँह बन्द कर दिया; तो वे इकट्ठे हुए। \v 35 और उनमें से एक व्यवस्थापक ने परखने के लिये, उससे पूछा, \v 36 “हे गुरु, व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?” \v 37 उसने उससे कहा, \it \+wj “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।\+wj*\it*\f + \fr 22:37 \fr*\fq तू परमेश्वर .... प्रेम रख: \fq*\ft यहाँ यीशु यह कहते हैं कि हमें अपने परमेश्वर से सब कुछ से बढ़कर प्रेम करना चाहिए और उसे हमें अपने जीवन में प्रथम स्थान देना चाहिए, अपने सर्वस्व एवं अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व से प्रेम करना चाहिए (व्य 6:5) \ft*\f* \v 38 \wj बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है।\wj* \v 39 \wj और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।\wj* \v 40 \wj ये ही दो आज्ञाएँ सारी\wj* \it \+wj व्यवस्था एवं भविष्यद्वक्ताओं\f + \fr 22:40 \fr*\fq व्यवस्था एवं भविष्यद्वक्ताओं: \fq*\ft पूरा पुराना नियम के लिए संदर्भित\ft*\f*\+wj*\it* \wj का आधार हैं।”\wj* \s मसीह दाऊद का पुत्र या दाऊद का प्रभु है? \p \v 41 जब फरीसी इकट्ठे थे, तो यीशु ने उनसे पूछा, \v 42 \wj “मसीह के विषय में तुम क्या समझते हो? वह किसकी सन्तान है?”\wj* उन्होंने उससे कहा, “दाऊद की।” \v 43 उसने उनसे पूछा, \wj “तो दाऊद आत्मा में होकर उसे प्रभु क्यों कहता है?\wj* \v 44 \wj ‘प्रभु ने, मेरे प्रभु से कहा,\wj* \q \wj मेरे दाहिने बैठ,\wj* \q \wj जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों के नीचे की चौकी न कर दूँ।’\wj* \q \v 45 \wj भला, जब दाऊद उसे प्रभु कहता है, तो वह उसका पुत्र कैसे ठहरा?”\wj* \p \v 46 उसके उत्तर में कोई भी एक बात न कह सका। परन्तु उस दिन से किसी को फिर उससे कुछ पूछने का साहस न हुआ। \c 23 \s शास्त्रियों और फरीसियों की आलोचना \p \v 1 तब यीशु ने भीड़ से और अपने चेलों से कहा, \v 2 \wj “शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं;\wj* \v 3 \wj इसलिए वे तुम से जो कुछ कहें वह करना, और मानना, परन्तु उनके जैसा काम मत करना; क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं।\wj* \v 4 \wj वे एक ऐसे\wj* \it \+wj भारी बोझ को जिनको उठाना कठिन है, बाँधकर उन्हें मनुष्यों के कंधों पर रखते हैं;\f + \fr 23:4 \fr*\fq भारी बोझ .... मनुष्यों के कंधों पर रखते हैं: \fq*\ft धार्मिक अगुए लोगों से इतना अधिक माँग करते थे कि उनके लिए सभी धार्मिक अनुष्ठान करना भारी पड़ गया।\ft*\f*\+wj*\it* \wj परन्तु आप उन्हें अपनी उँगली से भी सरकाना नहीं चाहते।\wj* \v 5 \wj वे अपने सब काम लोगों को दिखाने के लिये करते हैं वे अपने\wj* \it \+wj तावीजों\f + \fr 23:5 \fr*\fq तावीजों: \fq*\ft चर्मपत्र पर इब्रानी ग्रंथों से युक्त एक छोटे चमड़े का डिब्बा, सुबह की प्रार्थना में व्यवस्था को चेतावनी के रूप में यहूदी पुरुषों द्वारा पहना जानेवाला। 23:7 रब्बी: एक यहूदी विद्वान या शिक्षक, विशेष रूप से जो यहूदी व्यवस्था की पढ़ाई करते या सिखाते है।\ft*\f*\+wj*\it* \wj को चौड़े करते, और अपने वस्त्रों की झालरों को बढ़ाते हैं।\wj* \v 6 \wj भोज में मुख्य-मुख्य जगहें, और आराधनालयों में मुख्य-मुख्य आसन,\wj* \v 7 \wj और बाजारों में नमस्कार और मनुष्य में रब्बी कहलाना उन्हें भाता है।\wj* \v 8 \wj परन्तु तुम रब्बी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है: और तुम सब भाई हो।\wj* \v 9 \wj और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है।\wj* \v 10 \wj और स्वामी भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात् मसीह।\wj* \v 11 \wj जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने।\wj* \v 12 \wj जो कोई अपने आपको बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा: और जो कोई अपने आपको छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।\wj* \p \v 13 \wj “हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो आप ही उसमें प्रवेश करते हो और न उसमें प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो।\wj* \v 14 \wj [हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम विधवाओं के घरों को खा जाते हो, और दिखाने के लिए बड़ी देर तक प्रार्थना करते रहते हो: इसलिए तुम्हें अधिक दण्ड मिलेगा।]\wj* \p \v 15 \wj “हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है, तो उसे अपने से दुगना नारकीय बना देते हो।\wj* \p \v 16 \wj “हे अंधे अगुओं, तुम पर हाय, जो कहते हो कि यदि कोई मन्दिर की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु यदि कोई मन्दिर के सोने की सौगन्ध खाए तो उससे बन्ध जाएगा।\wj* \v 17 \wj हे मूर्खों, और अंधों, कौन बड़ा है, सोना या वह मन्दिर जिससे सोना पवित्र होता है?\wj* \v 18 \wj फिर कहते हो कि यदि कोई वेदी की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु जो भेंट उस पर है, यदि कोई उसकी शपथ खाए तो बन्ध जाएगा।\wj* \v 19 \wj हे अंधों, कौन बड़ा है, भेंट या वेदी जिससे भेंट पवित्र होती है?\wj* \v 20 \wj इसलिए जो वेदी की शपथ खाता है, वह उसकी, और जो कुछ उस पर है, उसकी भी शपथ खाता है।\wj* \v 21 \wj और जो मन्दिर की शपथ खाता है, वह उसकी और उसमें रहनेवालों की भी शपथ खाता है।\wj* \v 22 \wj और जो स्वर्ग की शपथ खाता है, वह परमेश्वर के सिंहासन की और उस पर बैठनेवाले की भी शपथ खाता है।\wj* \p \v 23 \wj “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम पोदीने और सौंफ और जीरे का दसवाँ अंश देते हो, परन्तु तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों अर्थात् न्याय, और दया, और विश्वास को छोड़ दिया है; चाहिये था कि इन्हें भी करते रहते, और उन्हें भी न छोड़ते।\wj* \v 24 \wj हे अंधे अगुओं, तुम मच्छर को तो छान डालते हो, परन्तु ऊँट को निगल जाते हो।\wj* \p \v 25 \wj “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम कटोरे और थाली को ऊपर-ऊपर से तो माँजते हो परन्तु वे भीतर अंधेर असंयम से भरे हुए हैं।\wj* \v 26 \wj हे अंधे फरीसी, पहले कटोरे और थाली को\wj* \it \+wj भीतर से माँज कि वे बाहर से भी स्वच्छ हों।\f + \fr 23:26 \fr*\fq भीतर से .... स्वच्छ हों: \fq*\ft यीशु ने उन्हें यह सिखाया कि पहले हृदय को साफ करना आवश्यक हैं, जिससे कि बाहरी आचरण वास्तव में शुद्ध और पवित्र हो सकता है।\ft*\f*\+wj*\it* \p \v 27 \wj “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम\wj* \it \+wj चूना फिरी हुई कब्रों\f + \fr 23:27 \fr*\fq चूना फिरी हुई कब्रों: \fq*\ft कब्र को एकदम साफ और बर्फ के समान सफेद रखा जाता था, व्यवस्था के अनुसार अगर कोई व्यक्ति मरे हुए व्यक्ति से सम्बंधित कोई भी सामान छूता हैं तो वह अशुद्ध हो जाता हैं, कब्र को चूने से पोता जाता था ताकि उसे अलग से देखा जा सके।\ft*\f*\+wj*\it* \wj के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं।\wj* \v 28 \wj इसी रीति से तुम भी ऊपर से मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते हो, परन्तु भीतर कपट और अधर्म से भरे हुए हो।\wj* \p \v 29 \wj “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम भविष्यद्वक्ताओं की कब्रें संवारते और धर्मियों की कब्रें बनाते हो।\wj* \v 30 \wj और कहते हो, ‘यदि हम अपने पूर्वजों के दिनों में होते तो भविष्यद्वक्ताओं की हत्या में उनके सहभागी न होते।’\wj* \v 31 \wj इससे तो तुम अपने पर आप ही गवाही देते हो, कि तुम भविष्यद्वक्ताओं के हत्यारों की सन्तान हो।\wj* \v 32 \wj अतः तुम अपने पूर्वजों के पाप का घड़ा भर दो।\wj* \v 33 \wj हे साँपों, हे करैतों के बच्चों, तुम नरक के दण्ड से कैसे बचोगे?\wj* \v 34 \wj इसलिए देखो, मैं तुम्हारे पास भविष्यद्वक्ताओं और बुद्धिमानों और शास्त्रियों को भेजता हूँ; और तुम उनमें से कुछ को मार डालोगे, और क्रूस पर चढ़ाओगे; और कुछ को अपने आराधनालयों में कोड़े मारोगे, और एक नगर से दूसरे नगर में खदेड़ते फिरोगे।\wj* \v 35 \wj जिससे धर्मी हाबिल से लेकर बिरिक्याह के पुत्र जकर्याह तक, जिसे तुम ने मन्दिर और वेदी के बीच में मार डाला था, जितने धर्मियों का लहू पृथ्वी पर बहाया गया है, वह सब तुम्हारे सिर पर पड़ेगा।\wj* \v 36 \wj मैं तुम से सच कहता हूँ, ये सब बातें इस पीढ़ी के लोगों पर आ पड़ेंगी।\wj* \s यीशु का यरूशलेम पर विलाप \p \v 37 \wj “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम! तू जो भविष्यद्वक्ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए, उन्हें पथराव करता है, कितनी ही बार मैंने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठा कर लूँ, परन्तु तुम ने न चाहा।\wj* \v 38 \wj देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।\wj* \v 39 \wj क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि अब से जब तक तुम न कहोगे, ‘धन्य है वह, जो प्रभु के नाम से आता है’ तब तक तुम मुझे फिर कभी न देखोगे।”\wj* \c 24 \s यीशु द्वारा मन्दिर के विनाश की भविष्यद्वाणी \p \v 1 जब यीशु मन्दिर से निकलकर जा रहा था, तो उसके चेले उसको मन्दिर की रचना दिखाने के लिये उसके पास आए। \v 2 उसने उनसे कहा, \wj “क्या तुम यह सब नहीं देखते? मैं तुम से सच कहता हूँ, यहाँ पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा, जो ढाया न जाएगा।”\wj* \s यीशु के वापस आने का चिन्ह \p \v 3 और जब वह \it जैतून पहाड़\it*\f + \fr 24:3 \fr*\fq जैतून पहाड़: \fq*\ft यरूशलेम के पुराने शहर के पूर्व में इस पहाड़ की चोटी हैं। इसे जैतून के पेड़ो के लिये नामित किया गया कि जैतून के पेड़ो से एक बार उसकी ढलानों को ढक दिया था।\ft*\f* पर बैठा था, तो चेलों ने अलग उसके पास आकर कहा, “हम से कह कि ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” \v 4 यीशु ने उनको उत्तर दिया, \wj “सावधान रहो! कोई तुम्हें न बहकाने पाए।\wj* \v 5 \wj क्योंकि बहुत से ऐसे होंगे जो मेरे नाम से आकर कहेंगे, ‘मैं मसीह हूँ’, और बहुतों को बहका देंगे।\wj* \v 6 \wj तुम लड़ाइयों और लड़ाइयों की चर्चा सुनोगे; देखो घबरा न जाना क्योंकि इनका होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा।\wj* \v 7 \wj क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह-जगह अकाल पड़ेंगे, और भूकम्प होंगे।\wj* \v 8 \wj ये सब बातें\wj* \it \+wj पीड़ाओं का आरम्भ\f + \fr 24:8 \fr*\fq पीड़ाओं का आरम्भ: \fq*\ft महान दु:ख की शुरुआत\ft*\f*\+wj*\it* \wj होंगी।\wj* \v 9 \wj तब वे क्लेश दिलाने के लिये तुम्हें पकड़वाएँगे, और तुम्हें मार डालेंगे और मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे।\wj* \v 10 \wj तब बहुत सारे ठोकर खाएँगे, और एक दूसरे को पकड़वाएँगे और एक दूसरे से बैर रखेंगे।\wj* \v 11 \wj बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बहुतों को बहकाएँगे।\wj* \v 12 \wj और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठंडा हो जाएगा।\wj* \v 13 \wj परन्तु जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।\wj* \v 14 \wj और राज्य का यह सुसमाचार\wj* \it \+wj सारे जगत में प्रचार\f + \fr 24:14 \fr*\fq सारे जगत में प्रचार: \fq*\ft सभी (यहूदियों और अन्यजातियों दोनों) के साथ सुसमाचार बाँटना\ft*\f*\+wj*\it* \wj किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।\wj* \s महासंकट का आरम्भ \p \v 15 \wj “इसलिए जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को जिसकी चर्चा दानिय्येल भविष्यद्वक्ता के द्वारा हुई थी, पवित्रस्थान में खड़ी हुई देखो,\wj* (जो पढ़े, वह समझे)। \v 16 \wj तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएँ।\wj* \v 17 \wj जो छत पर हो, वह अपने घर में से सामान लेने को न उतरे।\wj* \v 18 \wj और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने को पीछे न लौटे।\wj* \p \v 19 \wj “उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उनके लिये हाय, हाय।\wj* \v 20 \wj और प्रार्थना करो; कि तुम्हें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े।\wj* \v 21 \wj क्योंकि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।\wj* \v 22 \wj और यदि वे दिन घटाए न जाते, तो कोई प्राणी न बचता; परन्तु चुने हुओं के कारण वे दिन घटाए जाएँगे।\wj* \v 23 \wj उस समय यदि कोई तुम से कहे, कि देखो, मसीह यहाँ हैं! या वहाँ है! तो विश्वास न करना।\wj* \p \v 24 \wj “क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएँगे, कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी बहका दें।\wj* \v 25 \wj देखो, मैंने पहले से तुम से यह सब कुछ कह दिया है।\wj* \v 26 \wj इसलिए यदि वे तुम से कहें, ‘देखो, वह जंगल में है’, तो बाहर न निकल जाना; ‘देखो, वह कोठरियों में है’, तो विश्वास न करना।\wj* \p \v 27 \wj “क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती जाती है, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा।\wj* \v 28 \wj जहाँ लाश हो, वहीं गिद्ध इकट्ठे होंगे।\wj* \s मनुष्य के पुत्र का पुनरागमन \p \v 29 \wj “उन दिनों के क्लेश के बाद तुरन्त सूर्य अंधियारा हो जाएगा, और चाँद का प्रकाश जाता रहेगा, और तारे आकाश से गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी।\wj* \v 30 \wj तब मनुष्य के पुत्र का चिन्ह आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे।\wj* \v 31 \wj और वह तुरही के बड़े शब्द के साथ, अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे आकाश के इस छोर से उस छोर तक, चारों दिशा से उसके चुने हुओं को इकट्ठा करेंगे।\wj* \s अंजीर के पेड़ से शिक्षा \p \v 32 \wj “अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो जब उसकी डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है।\wj* \v 33 \wj इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो, कि वह निकट है, वरन् द्वार पर है।\wj* \v 34 \wj मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का अन्त नहीं होगा।\wj* \v 35 \wj आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरे शब्द कभी न टलेंगे।\wj* \s जागते रहो \p \v 36 \wj “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता।\wj* \v 37 \wj जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा।\wj* \v 38 \wj क्योंकि जैसे जल-प्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उनमें विवाह-शादी होती थी।\wj* \v 39 \wj और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उनको कुछ भी मालूम न पड़ा; वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा।\wj* \v 40 \wj उस समय दो जन खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा।\wj* \v 41 \wj दो स्त्रियाँ चक्की पीसती रहेंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी।\wj* \v 42 \wj इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।\wj* \v 43 \wj परन्तु यह जान लो कि यदि घर का स्वामी जानता होता कि चोर किस पहर आएगा, तो जागता रहता; और अपने घर में चोरी नहीं होने देता।\wj* \v 44 \wj इसलिए तुम भी\wj* \it \+wj तैयार रहो\f + \fr 24:44 \fr*\fq तैयार रहो: \fq*\ft इसका मतलब हर समय तैयार रहना क्योंकि मसीह किसी भी समय वापस आ सकता है। \ft*\f*\+wj*\it*\wj , क्योंकि जिस समय के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी समय मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।\wj* \s विश्वासयोग्य दास और दुष्ट दास \p \v 45 \wj “अतः वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर-चाकरों पर सरदार ठहराया, कि समय पर उन्हें भोजन दे?\wj* \v 46 \wj धन्य है, वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए।\wj* \v 47 \wj मैं तुम से सच कहता हूँ; वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी ठहराएगा।\wj* \v 48 \wj परन्तु यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे, कि मेरे स्वामी के आने में देर है।\wj* \v 49 \wj और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए-पीए।\wj* \v 50 \wj तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा, और ऐसी घड़ी कि जिसे वह न जानता हो,\wj* \v 51 \wj और उसे कठोर दण्ड देकर, उसका भाग कपटियों के साथ ठहराएगा: वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।\wj* \c 25 \s दूल्हे की प्रतीक्षा करती दस कुँवारियों का दृष्टान्त \p \v 1 \wj “तब स्वर्ग का राज्य उन दस कुँवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं।\wj* \v 2 \wj उनमें पाँच मूर्ख और पाँच समझदार थीं।\wj* \v 3 \wj मूर्खों ने अपनी मशालें तो लीं, परन्तु अपने साथ तेल नहीं लिया।\wj* \v 4 \wj परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया।\wj* \v 5 \wj जब दुल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब उँघने लगीं, और सो गई।\wj* \p \v 6 \wj “आधी रात को धूम मची, कि देखो, दूल्हा आ रहा है, उससे भेंट करने के लिये चलो।\wj* \v 7 \wj तब वे सब कुँवारियाँ उठकर अपनी मशालें ठीक करने लगीं।\wj* \v 8 \wj और मूर्खों ने समझदारों से कहा, ‘अपने तेल में से कुछ हमें भी दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं।’\wj* \v 9 \wj परन्तु समझदारों ने उत्तर दिया कि कही हमारे और तुम्हारे लिये पूरा न हो; भला तो यह है, कि तुम बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिये मोल ले लो।\wj* \v 10 \wj जब वे मोल लेने को जा रही थीं, तो दूल्हा आ पहुँचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ विवाह के घर में चलीं गई और द्वार बन्द किया गया।\wj* \v 11 \wj इसके बाद वे दूसरी कुँवारियाँ भी आकर कहने लगीं, ‘हे स्वामी, हे स्वामी, हमारे लिये द्वार खोल दे।’\wj* \v 12 \wj उसने उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता।\wj* \v 13 \wj इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस समय को।\wj* \s तीन दासों का दृष्टान्त \p \v 14 \wj “क्योंकि यह उस मनुष्य के समान दशा है जिसने परदेश को जाते समय अपने दासों को बुलाकर अपनी सम्पत्ति उनको सौंप दी।\wj* \v 15 \wj उसने एक को पाँच तोड़े, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उसकी सामर्थ्य के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया।\wj* \v 16 \wj तब, जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने तुरन्त जाकर उनसे लेन-देन किया, और पाँच तोड़े और कमाए।\wj* \v 17 \wj इसी रीति से जिसको दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए।\wj* \v 18 \wj परन्तु जिसको एक मिला था, उसने जाकर मिट्टी खोदी, और अपने स्वामी का धन छिपा दिया।\wj* \p \v 19 \wj “बहुत दिनों के बाद उन दासों का स्वामी आकर उनसे लेखा लेने लगा।\wj* \v 20 \wj जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने पाँच तोड़े और लाकर कहा, ‘हे स्वामी, तूने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे, देख मैंने पाँच तोड़े और कमाए हैं।’\wj* \v 21 \wj उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’\wj* \p \v 22 \wj “और जिसको दो तोड़े मिले थे, उसने भी आकर कहा, ‘हे स्वामी तूने मुझे दो तोड़े सौंपे थे, देख, मैंने दो तोड़े और कमाए।’\wj* \v 23 \wj उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा, मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’\wj* \p \v 24 \wj “तब जिसको एक तोड़ा मिला था, उसने आकर कहा, ‘हे स्वामी, मैं तुझे जानता था, कि तू कठोर मनुष्य है: तू जहाँ कहीं नहीं बोता वहाँ काटता है, और जहाँ नहीं छींटता वहाँ से बटोरता है।’\wj* \v 25 \wj इसलिए मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया; देख, ‘जो तेरा है, वह यह है।’\wj* \v 26 \wj उसके स्वामी ने उसे उत्तर दिया, कि हे दुष्ट और आलसी दास; जब तू यह जानता था, कि जहाँ मैंने नहीं बोया वहाँ से काटता हूँ; और जहाँ मैंने नहीं छींटा वहाँ से बटोरता हूँ।\wj* \v 27 \wj तो तुझे चाहिए था, कि मेरा धन सर्राफों को दे देता, तब मैं आकर अपना धन ब्याज समेत ले लेता।\wj* \v 28 \wj इसलिए वह तोड़ा उससे ले लो, और जिसके पास दस तोड़े हैं, उसको दे दो।\wj* \v 29 \wj क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा: परन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा।\wj* \v 30 \wj और इस निकम्मे दास को बाहर के अंधेरे में डाल दो, जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।\wj* \s यीशु संसार का न्याय करेगा \p \v 31 \wj “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा।\wj* \v 32 \wj और सब जातियाँ उसके सामने इकट्ठी की जाएँगी; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा।\wj* \v 33 \wj और वह\wj* \it \+wj भेड़ों को अपनी दाहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा\f + \fr 25:33 \fr*\fq भेड़ों को .... खड़ी करेगा: \fq*\ft यहाँ “भेड़” को धर्मी के रूप में चिन्हित किया गया हैं। यह नाम उन्हें इसलिए दिया गया क्योंकि भेड़ मासूमियत और हानिहीनता का प्रतीक हैं। (भज. 23:1-6, यूहन्ना. 10:7, 14-16) \ft*\f*\+wj*\it*\wj ।\wj* \v 34 \wj तब राजा अपनी दाहिनी ओर वालों से कहेगा, ‘हे मेरे पिता के धन्य लोगों, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है।\wj* \v 35 \wj क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को दिया; मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी पिलाया, मैं परदेशी था, तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया;\wj* \v 36 \wj मैं नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहनाए; मैं बीमार था, तुम ने मेरी सुधि ली, मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझसे मिलने आए।’\wj* \p \v 37 \wj “तब धर्मी उसको उत्तर देंगे, ‘हे प्रभु, हमने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया? या प्यासा देखा, और पानी पिलाया?\wj* \v 38 \wj हमने कब तुझे परदेशी देखा और अपने घर में ठहराया या नंगा देखा, और कपड़े पहनाए?\wj* \v 39 \wj हमने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझ से मिलने आए?’\wj* \v 40 \wj तब राजा उन्हें उत्तर देगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम ने जो मेरे इन\wj* \it \+wj छोटे से छोटे भाइयों में से\f + \fr 25:40 \fr*\fq छोटे से छोटे भाइयों में से: \fq*\ft छोटे से छोटा सबसे गरीब, तुच्छ और पीड़ित जाना जाता है।\ft*\f*\+wj*\it* \wj किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।’\wj* \p \v 41 \wj “तब वह बाईं ओर वालों से कहेगा, ‘हे श्रापित लोगों, मेरे सामने से उस\wj* \it \+wj अनन्त आग\f + \fr 25:41 \fr*\fq अनन्त आग: \fq*\ft यहाँ पर आग को दण्ड के रूप में प्रयोग किया गया है। इस छवि को अत्यधिक पीड़ा व्यक्त करने के लिए काम में लिया गया है।\ft*\f*\+wj*\it* \wj में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है।\wj* \v 42 \wj क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी नहीं पिलाया;\wj* \v 43 \wj मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नहीं ठहराया; मैं नंगा था, और तुम ने मुझे कपड़े नहीं पहनाए; बीमार और बन्दीगृह में था, और तुम ने मेरी सुधि न ली।’\wj* \p \v 44 \wj “तब वे उत्तर देंगे, ‘हे प्रभु, हमने तुझे कब भूखा, या प्यासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार, या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल न की?’\wj* \v 45 \wj तब वह उन्हें उत्तर देगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम ने जो इन छोटे से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया।’\wj* \v 46 \wj और ये अनन्त दण्ड भोगेंगे परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।”\wj* \c 26 \s यीशु की हत्या का षड्‍यंत्र \p \v 1 जब यीशु ये सब बातें कह चुका, तो अपने चेलों से कहने लगा। \v 2 \wj “तुम जानते हो, कि दो दिन के बाद\wj* \it \+wj फसह\f + \fr 26:2 \fr*\fq फसह: \fq*\ft फसह का पर्व यहूदियों के बीच मिस्र की दासता से उनकी मुक्ति की स्मृति बनाए रखने के लिए मनाया गया था, और उस रात में उनके पहलौठे जन्मे की सुरक्षा के लिये जब मिस्र के पहलौठे को नाश किया गया था, (निर्गमन. 12) \ft*\f*\+wj*\it* \wj का पर्व होगा; और मनुष्य का पुत्र क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिये पकड़वाया जाएगा।”\wj* \p \v 3 तब प्रधान याजक और प्रजा के पुरनिए कैफा नामक महायाजक के आँगन में इकट्ठे हुए। \v 4 और आपस में विचार करने लगे कि यीशु को छल से पकड़कर मार डालें। \v 5 परन्तु वे कहते थे, “पर्व के समय नहीं; कहीं ऐसा न हो कि लोगों में दंगा मच जाए।” \s यीशु पर बहुमूल्य इत्र का छिड़काव \p \v 6 जब यीशु बैतनिय्याह में शमौन कोढ़ी के घर में था। \v 7 तो \it एक स्त्री\it*\f + \fr 26:7 \fr*\fq एक स्त्री: \fq*\ft यह स्त्री लाज़र और मार्था की बहन, मरियम थी (यूह. 12:3) \ft*\f* संगमरमर के पात्र में बहुमूल्य इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वह भोजन करने बैठा था, तो उसके सिर पर उण्डेल दिया। \v 8 यह देखकर, उसके चेले झुँझला उठे और कहने लगे, “इसका क्यों सत्यानाश किया गया? \v 9 यह तो अच्छे दाम पर बेचकर गरीबों को बाँटा जा सकता था।” \v 10 यह जानकर यीशु ने उनसे कहा, \wj “स्त्री को क्यों सताते हो? उसने मेरे साथ भलाई की है।\wj* \v 11 \wj गरीब तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदैव न रहूँगा।\wj* \v 12 \wj उसने मेरी देह पर जो यह इत्र उण्डेला है, वह मेरे गाड़े जाने के लिये किया है।\wj* \v 13 \wj मैं तुम से सच कहता हूँ, कि सारे जगत में जहाँ कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके इस काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा।”\wj* \s यहूदा इस्करियोती का विश्वासघात \p \v 14 तब यहूदा इस्करियोती ने, जो बारह चेलों में से एक था, प्रधान याजकों के पास जाकर कहा, \v 15 “यदि मैं उसे तुम्हारे हाथ पकड़वा दूँ, तो मुझे क्या दोगे?” उन्होंने उसे तीस चाँदी के सिक्के तौलकर दे दिए। \v 16 और वह उसी समय से उसे पकड़वाने का अवसर ढूँढ़ने लगा। \s चेलों के साथ फसह का अन्तिम भोज \p \v 17 अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करें?” \v 18 उसने कहा, \wj “नगर में फलाने के पास जाकर उससे कहो, कि गुरु कहता है, कि मेरा समय निकट है, मैं अपने चेलों के साथ तेरे यहाँ फसह मनाऊँगा।”\wj* \v 19 अतः चेलों ने यीशु की आज्ञा मानी, और फसह तैयार किया। \p \v 20 जब साँझ हुई, तो वह बारह चेलों के साथ भोजन करने के लिये बैठा। \v 21 जब वे खा रहे थे, तो उसने कहा, \wj “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।”\wj* \v 22 इस पर वे बहुत उदास हुए, और हर एक उससे पूछने लगा, “हे गुरु, क्या वह मैं हूँ?” \v 23 उसने उत्तर दिया, \wj “जिसने मेरे साथ थाली में हाथ डाला है, वही मुझे पकड़वाएगा।\wj* \v 24 \wj मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है; परन्तु उस मनुष्य के लिये शोक है जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है: यदि उस मनुष्य का जन्म न होता, तो उसके लिये भला होता।”\wj* \v 25 तब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने कहा, “हे रब्बी, क्या वह मैं हूँ?” उसने उससे कहा, \wj “तू कह चुका।”\wj* \s प्रभु भोज \p \v 26 जब वे खा रहे थे, तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष माँगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, \wj “लो, खाओ; यह मेरी देह है।”\wj* \v 27 फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, \wj “तुम सब इसमें से पीओ,\wj* \v 28 \wj क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के लिए बहाया जाता है।\wj* \v 29 \wj मैं तुम से कहता हूँ, कि दाख का यह रस उस दिन तक कभी न पीऊँगा, जब तक तुम्हारे साथ अपने पिता के राज्य में नया न पीऊँ।”\wj* \p \v 30 फिर वे भजन गाकर जैतून पहाड़ पर गए। \s पतरस के इन्कार की भविष्यद्वाणी \p \v 31 तब यीशु ने उनसे कहा, \wj “तुम सब आज ही रात को मेरे विषय में ठोकर खाओगे; क्योंकि लिखा है,\wj* \q \wj ‘मैं चरवाहे को मारूँगा; \wj* \q \wj और झुण्ड की भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’\wj* \p \v 32 \wj “परन्तु मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।”\wj* \v 33 इस पर पतरस ने उससे कहा, “यदि सब तेरे विषय में ठोकर खाएँ तो खाएँ, परन्तु मैं कभी भी ठोकर न खाऊँगा।” \v 34 यीशु ने उससे कहा, \wj “मैं तुझ से सच कहता हूँ, कि आज ही रात को मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझसे मुकर जाएगा।”\wj* \v 35 पतरस ने उससे कहा, “यदि मुझे तेरे साथ मरना भी हो, तो भी, मैं तुझ से कभी न मुकरूँगा।” और ऐसा ही सब चेलों ने भी कहा। \s गतसमनी के बगीचे में प्रार्थना \p \v 36 तब यीशु ने अपने चेलों के साथ \it गतसमनी\it*\f + \fr 26:36 \fr*\fq गतसमनी: \fq*\ft इब्रानी में गतसमनी का मतलब एक जैतून से दबाया हुआ है। वह जगह जहाँ यीशु ने अपनी कलवरी क्रूस की परीक्षा से पहले प्रार्थना की थी\ft*\f* नामक एक स्थान में आया और अपने चेलों से कहने लगा \wj “यहीं बैठे रहना, जब तक कि मैं वहाँ जाकर प्रार्थना करूँ।”\wj* \v 37 और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा। \v 38 तब उसने उनसे कहा, \wj “मेरा मन बहुत उदास है, यहाँ तक कि मेरा प्राण निकला जा रहा है। तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।”\wj* \v 39 फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुँह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, \wj “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह\wj* \it \+wj कटोरा\f + \fr 26:39 \fr*\fq कटोरा: \fq*\ft परिक्षण के नजदीक, कठिन दुःख के रूप में संदर्भित।\ft*\f*\+wj*\it* \wj मुझसे टल जाए, फिर भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” \wj* \v 40 फिर चेलों के पास आकर उन्हें सोते पाया, और पतरस से कहा, \wj “क्या तुम मेरे साथ एक घण्टे भर न जाग सके?\wj* \v 41 \wj जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो! आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।”\wj* \v 42 फिर उसने दूसरी बार जाकर यह प्रार्थना की, \wj “हे मेरे पिता, यदि यह मेरे पीए बिना नहीं हट सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो।”\wj* \v 43 तब उसने आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्योंकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं। \v 44 और उन्हें छोड़कर फिर चला गया, और वही बात फिर कहकर, तीसरी बार प्रार्थना की। \v 45 तब उसने चेलों के पास आकर उनसे कहा, \wj “अब सोते रहो, और विश्राम करो: देखो, समय आ पहुँचा है, और मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है।\wj* \v 46 \wj उठो, चलें; देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुँचा है।”\wj* \s यीशु को बन्दी बनाना \p \v 47 वह यह कह ही रहा था, कि यहूदा जो बारहों में से एक था, आया, और उसके साथ प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों की ओर से बड़ी भीड़, तलवारें और लाठियाँ लिए हुए आई। \v 48 उसके पकड़वानेवाले ने उन्हें यह पता दिया था: “जिसको मैं चूम लूँ वही है; उसे पकड़ लेना।” \v 49 और तुरन्त यीशु के पास आकर कहा, “हे रब्बी, नमस्कार!” और उसको बहुत चूमा। \v 50 यीशु ने उससे कहा, \wj “हे मित्र, जिस काम के लिये तू आया है, उसे कर ले।”\wj* तब उन्होंने पास आकर यीशु पर हाथ डाले और उसे पकड़ लिया। \v 51 तब यीशु के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार खींच ली और महायाजक के दास पर चलाकर उसका कान काट दिया। \v 52 तब यीशु ने उससे कहा, \wj “अपनी तलवार म्यान में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएँगे।\wj* \v 53 \wj क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से विनती कर सकता हूँ, और वह स्वर्गदूतों की बारह सैन्य-दल से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा?\wj* \v 54 \wj परन्तु पवित्रशास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, कैसे पूरी होंगी?”\wj* \v 55 उसी समय यीशु ने भीड़ से कहा, \wj “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू के समान पकड़ने के लिये निकले हो? मैं हर दिन मन्दिर में बैठकर उपदेश दिया करता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा।\wj* \v 56 \wj परन्तु यह सब इसलिए हुआ है, कि भविष्यद्वक्ताओं के वचन पूरे हों।”\wj* तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए। \s कैफा के सामने यीशु \p \v 57 और यीशु के पकड़नेवाले उसको कैफा नामक महायाजक के पास ले गए, जहाँ शास्त्री और पुरनिए इकट्ठे हुए थे। \v 58 और पतरस दूर से उसके पीछे-पीछे महायाजक के आँगन तक गया, और भीतर जाकर अन्त देखने को सेवकों के साथ बैठ गया। \v 59 प्रधान याजक और सारी \it महासभा\it*\f + \fr 26:59 \fr*\fq महासभा: \fq*\ft परिभाषा: महासभा प्राचीन इस्राएल में उच्च परिषद या अदालत थी। महासभा में महायाजक 70 पुरुषों को शामिल करते थे जो अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवा किया करते थे (मर 14:55)।\ft*\f* यीशु को मार डालने के लिये उसके विरोध में झूठी गवाही की खोज में थे। \v 60 परन्तु बहुत से झूठे गवाहों के आने पर भी न पाई। अन्त में दो जन आए, \v 61 और कहा, “इसने कहा कि मैं परमेश्वर के मन्दिर को ढा सकता हूँ और उसे तीन दिन में बना सकता हूँ।” \p \v 62 तब महायाजक ने खड़े होकर उससे कहा, “क्या तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं?” \v 63 परन्तु यीशु चुप रहा। तब महायाजक ने उससे कहा “\it मैं तुझे जीविते परमेश्वर की शपथ देता हूँ\it*\f + \fr 26:63 \fr*\fq मैं तुझे .... शपथ देता हूँ: \fq*\ft यह यहूदियों के बीच एक शपथ खाने का सामान्य रूप था। इसका तात्पर्य यह है कि जो कहा है परमेश्वर उसका साक्षी है।\ft*\f*, कि यदि तू परमेश्वर का पुत्र मसीह है, तो हम से कह दे।” \v 64 यीशु ने उससे कहा, \wj “तूने आप ही कह दिया; वरन् मैं तुम से यह भी कहता हूँ, कि अब से तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे।”\wj* \v 65 तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, “इसने परमेश्वर की निन्दा की है, अब हमें गवाहों का क्या प्रयोजन? देखो, तुम ने अभी यह निन्दा सुनी है! \v 66 तुम क्या समझते हो?” उन्होंने उत्तर दिया, “यह मृत्युदण्ड के योग्य है।” \v 67 तब उन्होंने उसके मुँह पर थूका और उसे घूँसे मारे, दूसरों ने थप्पड़ मार के कहा, \v 68 “हे मसीह, हम से भविष्यद्वाणी करके कह कि किसने तुझे मारा?” \s पतरस द्वारा यीशु को नकारना \p \v 69 पतरस बाहर आँगन में बैठा हुआ था कि एक दासी ने उसके पास आकर कहा, “तू भी यीशु गलीली के साथ था।” \v 70 उसने सब के सामने यह कहकर इन्कार किया और कहा, “मैं नहीं जानता तू क्या कह रही है।” \v 71 जब वह बाहर द्वार में चला गया, तो दूसरी दासी ने उसे देखकर उनसे जो वहाँ थे कहा, “यह भी तो यीशु नासरी के साथ था।” \v 72 उसने शपथ खाकर फिर इन्कार किया, “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता।” \v 73 थोड़ी देर के बाद, जो वहाँ खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर उससे कहा, “सचमुच तू भी उनमें से एक है; क्योंकि तेरी बोली तेरा भेद खोल देती है।” \v 74 तब वह कोसने और शपथ खाने लगा, “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता।” और तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी। \v 75 तब पतरस को यीशु की कही हुई बात स्मरण आई, \wj “मुर्गे के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।”\wj* और वह बाहर जाकर फूट फूटकर रोने लगा। \c 27 \s पिलातुस के सामने यीशु \p \v 1 जब भोर हुई, तो सब प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों ने यीशु के मार डालने की सम्मति की। \v 2 और उन्होंने उसे बाँधा और ले जाकर पिलातुस राज्यपाल के हाथ में सौंप दिया। \s यहूदा इस्करियोती की आत्महत्या \p \v 3 जब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने देखा कि वह दोषी ठहराया गया है तो वह पछताया और वे तीस चाँदी के सिक्के प्रधान याजकों और प्राचीनों के पास फेर लाया। \v 4 और कहा, “मैंने निर्दोषी को मृत्यु के लिये पकड़वाकर पाप किया है?” उन्होंने कहा, “हमें क्या? तू ही जाने।” \v 5 तब वह उन सिक्कों को मन्दिर में फेंककर चला गया, और जाकर अपने आपको फांसी दी। \p \v 6 प्रधान याजकों ने उन सिक्कों को लेकर कहा, “इन्हें, भण्डार में रखना उचित नहीं, क्योंकि यह लहू का दाम है।” \v 7 अतः उन्होंने सम्मति करके उन सिक्कों से परदेशियों के गाड़ने के लिये कुम्हार का खेत मोल ले लिया। \v 8 इस कारण वह खेत आज तक \it लहू का खेत\it*\f + \fr 27:8 \fr*\fq लहू का खेत: \fq*\ft खून की कीमत द्वारा खरीदा गया खेत\ft*\f* कहलाता है। \v 9 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हुआ “उन्होंने वे तीस सिक्के अर्थात् उस ठहराए हुए मूल्य को (जिसे इस्राएल की सन्तान में से कितनों ने ठहराया था) ले लिया। \v 10 और जैसे प्रभु ने मुझे आज्ञा दी थी वैसे ही उन्हें कुम्हार के खेत के मूल्य में दे दिया।” \s पिलातुस का यीशु से प्रश्न \p \v 11 जब यीशु राज्यपाल के सामने खड़ा था, तो राज्यपाल ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” यीशु ने उससे कहा, “तू आप ही कह रहा है।” \v 12 जब प्रधान याजक और पुरनिए उस पर दोष लगा रहे थे, तो उसने कुछ उत्तर नहीं दिया। \v 13 इस पर पिलातुस ने उससे कहा, “क्या तू नहीं सुनता, कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियाँ दे रहे हैं?” \v 14 परन्तु उसने उसको एक बात का भी उत्तर नहीं दिया, यहाँ तक कि राज्यपाल को बड़ा आश्चर्य हुआ। \s यीशु को छोड़ने में पिलातुस असफल \p \v 15 और राज्यपाल की यह रीति थी, कि उस पर्व में लोगों के लिये किसी एक बन्दी को जिसे वे चाहते थे, छोड़ देता था। \v 16 उस समय बरअब्बा नामक उन्हीं में का, एक नामी बन्धुआ था। \v 17 अतः जब वे इकट्ठा हुए, तो पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम किसको चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये छोड़ दूँ? बरअब्बा को, या यीशु को जो मसीह कहलाता है?” \v 18 क्योंकि वह जानता था कि उन्होंने उसे डाह से पकड़वाया है। \v 19 जब वह न्याय की गद्दी पर बैठा हुआ था तो उसकी पत्नी ने उसे कहला भेजा, “तू उस धर्मी के मामले में हाथ न डालना; क्योंकि मैंने आज स्वप्न में उसके कारण बहुत दुःख उठाया है।” \p \v 20 प्रधान याजकों और प्राचीनों ने लोगों को उभारा, कि वे बरअब्बा को माँग लें, और यीशु को नाश कराएँ। \v 21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “इन दोनों में से किसको चाहते हो, कि तुम्हारे लिये छोड़ दूँ?” उन्होंने कहा, “बरअब्बा को।” \v 22 पिलातुस ने उनसे पूछा, “फिर यीशु को जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?” सब ने उससे कहा, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।” \v 23 राज्यपाल ने कहा, “क्यों उसने क्या बुराई की है?” परन्तु वे और भी चिल्ला चिल्लाकर कहने लगे, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।” \v 24 जब पिलातुस ने देखा, कि कुछ बन नहीं पड़ता परन्तु इसके विपरीत उपद्रव होता जाता है, तो उसने पानी लेकर भीड़ के सामने अपने हाथ धोए, और कहा, “मैं इस धर्मी के लहू से निर्दोष हूँ; तुम ही जानो।” \v 25 सब लोगों ने उत्तर दिया, “इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो!” \s क्रूस पर चढ़ाने के लिए सौंपना \p \v 26 इस पर उसने बरअब्बा को उनके लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए। \s सिपाहियों द्वारा यीशु का अपमान \p \v 27 तब राज्यपाल के सिपाहियों ने यीशु को किले में ले जाकर सारे सैनिक उसके चारों ओर इकट्ठा किए। \v 28 और उसके कपड़े उतारकर उसे लाल चोगा पहनाया। \v 29 और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा; और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर उसे उपहास में उड़ाने लगे, “हे यहूदियों के राजा नमस्कार!” \v 30 और उस पर थूका; और वही सरकण्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे। \v 31 जब वे उसका उपहास कर चुके, तो वह चोगा उस पर से उतारकर फिर उसी के कपड़े उसे पहनाए, और क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले। \s यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना \p \v 32 बाहर जाते हुए उन्हें शमौन नामक एक कुरेनी मनुष्य मिला, उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले। \v 33 और उस स्थान पर जो गुलगुता नाम की जगह अर्थात् खोपड़ी का स्थान कहलाता है पहुँचकर \v 34 उन्होंने पित्त मिलाया हुआ दाखरस उसे पीने को दिया, परन्तु उसने चखकर पीना न चाहा। \v 35 तब उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया; और चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। \v 36 और वहाँ बैठकर उसका पहरा देने लगे। \v 37 और उसका दोषपत्र, उसके सिर के ऊपर लगाया, कि “यह यहूदियों का राजा यीशु है।” \v 38 तब उसके साथ दो डाकू एक दाहिने और एक बाएँ क्रूसों पर चढ़ाए गए। \v 39 और आने-जानेवाले सिर हिला-हिलाकर उसकी निन्दा करते थे। \v 40 और यह कहते थे, “हे मन्दिर के ढानेवाले और तीन दिन में बनानेवाले, अपने आपको तो बचा! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस पर से उतर आ।” \v 41 इसी रीति से प्रधान याजक भी शास्त्रियों और प्राचीनों समेत उपहास कर करके कहते थे, \v 42 “इसने दूसरों को बचाया, और अपने आपको नहीं बचा सकता। यह तो ‘इस्राएल का राजा’ है। अब क्रूस पर से उतर आए, तो हम उस पर विश्वास करें। \v 43 उसने परमेश्वर का भरोसा रखा है, यदि वह इसको चाहता है, तो अब इसे छुड़ा ले, क्योंकि इसने कहा था, कि ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’” \v 44 इसी प्रकार डाकू भी जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे उसकी निन्दा करते थे। \s यीशु का प्राण त्यागना \p \v 45 दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अंधेरा छाया रहा। \v 46 तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “\it \+wj एली, एली, लमा शबक्तनी\+wj*\it*\f + \fr 27:46 \fr*\fq एली, एली, लमा शबक्तनी: \fq*\ft इसका अर्थ है “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया”\ft*\f*?” अर्थात् “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” \v 47 जो वहाँ खड़े थे, उनमें से कितनों ने यह सुनकर कहा, “वह तो एलिय्याह को पुकारता है।” \v 48 उनमें से एक तुरन्त दौड़ा, और पनसोख्‍ता लेकर सिरके में डुबोया, और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया। \v 49 औरों ने कहा, “रह जाओ, देखें, एलिय्याह उसे बचाने आता है कि नहीं।” \v 50 तब यीशु ने फिर बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए। \v 51 तब, मन्दिर का \it परदा\it*\f + \fr 27:51 \fr*\fq परदा: \fq*\ft मन्दिर में जो पवित्रस्थान को महापवित्र स्थान से अलग करता है, मन्दिर को दो भागों में बाँटता हैं (निर्गमन. 26:31-33)।\ft*\f* ऊपर से नीचे तक फटकर दो टुकड़े हो गया: और धरती डोल गई और चट्टानें फट गईं। \v 52 और कब्रें खुल गईं, और सोए हुए पवित्र लोगों के बहुत शव जी उठे। \v 53 और उसके जी उठने के बाद वे कब्रों में से निकलकर पवित्र नगर में गए, और बहुतों को दिखाई दिए। \v 54 तब सूबेदार और जो उसके साथ यीशु का पहरा दे रहे थे, भूकम्प और जो कुछ हुआ था, देखकर अत्यन्त डर गए, और कहा, “सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था!” \v 55 वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ जो गलील से यीशु की सेवा करती हुईं उसके साथ आईं थीं, दूर से देख रही थीं। \v 56 उनमें मरियम मगदलीनी और याकूब और योसेस की माता मरियम और जब्दी के पुत्रों की माता थीं। \s यीशु का दफनाया जाना \p \v 57 जब साँझ हुई तो यूसुफ नामक अरिमतियाह का एक धनी मनुष्य जो आप ही यीशु का चेला था, आया। \v 58 उसने पिलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा। इस पर पिलातुस ने दे देने की आज्ञा दी। \v 59 यूसुफ ने शव को लेकर उसे साफ चादर में लपेटा। \v 60 और उसे अपनी नई कब्र में रखा, जो उसने चट्टान में खुदवाई थी, और कब्र के द्वार पर बड़ा पत्थर लुढ़काकर चला गया। \v 61 और मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहाँ कब्र के सामने बैठी थीं। \s यीशु की क्रब पर पहरा \p \v 62 दूसरे दिन जो तैयारी के दिन के बाद का दिन था, प्रधान याजकों और फरीसियों ने पिलातुस के पास इकट्ठे होकर कहा। \v 63 “हे स्वामी, हमें स्मरण है, कि उस भरमानेवाले ने अपने जीते जी कहा था, कि मैं तीन दिन के बाद जी उठूँगा। \v 64 अतः आज्ञा दे कि तीसरे दिन तक कब्र की रखवाली की जाए, ऐसा न हो कि उसके चेले आकर उसे चुरा ले जाएँ, और लोगों से कहने लगें, कि वह मरे हुओं में से जी उठा है: तब पिछला धोखा पहले से भी बुरा होगा।” \v 65 पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम्हारे पास पहरेदार तो हैं जाओ, अपनी समझ के अनुसार रखवाली करो।” \v 66 अतः वे पहरेदारों को साथ लेकर गए, और पत्थर पर मुहर लगाकर कब्र की रखवाली की। \c 28 \s यीशु का जी उठना \p \v 1 सब्त के दिन के बाद सप्ताह के पहले दिन पौ फटते ही मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम कब्र को देखने आईं। \v 2 तब एक बड़ा भूकम्प हुआ, क्योंकि परमेश्वर का एक दूत स्वर्ग से उतरा, और पास आकर उसने पत्थर को लुढ़का दिया, और उस पर बैठ गया। \v 3 उसका रूप बिजली के समान और उसका वस्त्र हिम के समान उज्‍ज्वल था। \v 4 उसके भय से पहरेदार काँप उठे, और मृतक समान हो गए। \v 5 स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा, “मत डरो, मैं जानता हूँ कि तुम यीशु को जो क्रूस पर चढ़ाया गया था ढूँढ़ती हो। \v 6 वह यहाँ नहीं है, परन्तु \it अपने वचन के अनुसार\it*\f + \fr 28:6 \fr*\fq अपने वचन के अनुसार: \fq*\ft यीशु अक्सर यह भविष्यद्वाणी करते थे कि वह जी उठेंगे, परन्तु उनके शिष्य नहीं समझे (मत्ती16:21;20:19) \ft*\f* जी उठा है; आओ, यह स्थान देखो, जहाँ प्रभु रखा गया था। \v 7 और शीघ्र जाकर उसके चेलों से कहो, कि वह मृतकों में से जी उठा है; और देखो वह तुम से पहले गलील को जाता है, वहाँ उसका दर्शन पाओगे, देखो, मैंने तुम से कह दिया।” \p \v 8 और वे भय और बड़े आनन्द के साथ कब्र से शीघ्र लौटकर उसके चेलों को समाचार देने के लिये दौड़ गईं। \s स्त्रियों को यीशु का दर्शन \p \v 9 तब, यीशु उन्हें मिला और कहा; \wj “सुखी रहो”\wj* और उन्होंने पास आकर और उसके पाँव पकड़कर उसको दण्डवत् किया। \v 10 तब यीशु ने उनसे कहा, \wj “मत डरो; मेरे भाइयों से जाकर कहो, कि गलील को चले जाएँ वहाँ मुझे देखेंगे।”\wj* \s पहरेदारों की सूचना \p \v 11 वे जा ही रही थी, कि पहरेदारों में से कितनों ने नगर में आकर पूरा हाल प्रधान याजकों से कह सुनाया। \v 12 तब उन्होंने प्राचीनों के साथ इकट्ठे होकर सम्मति की, और सिपाहियों को बहुत चाँदी देकर कहा। \v 13 “यह कहना कि रात को जब हम सो रहे थे, तो उसके चेले आकर उसे चुरा ले गए। \v 14 और यदि यह बात राज्यपाल के कान तक पहुँचेगी, तो हम उसे समझा लेंगे और तुम्हें जोखिम से बचा लेंगे।” \v 15 अतः उन्होंने रुपये लेकर जैसा सिखाए गए थे, वैसा ही किया; और यह बात आज तक यहूदियों में प्रचलित है। \s चेलों को दर्शन और अन्तिम आज्ञा \p \v 16 और ग्यारह चेले गलील में उस पहाड़ पर गए, जिसे यीशु ने उन्हें बताया था। \v 17 और उन्होंने उसके दर्शन पाकर उसे प्रणाम किया, पर \it किसी किसी\it*\f + \fr 28:17 \fr*\fq किसी किसी: \fq*\ft चेले उसके जी उठने की उम्मीद नहीं करते थे; वे इसलिए कि विश्वास करने में कमज़ोर थे, उदाहरण के लिए थोमा। (यूह 20:25) \ft*\f* को सन्देह हुआ। \v 18 यीशु ने उनके पास आकर कहा, \wj “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा\wj* \it \+wj अधिकार \f + \fr 28:18 \fr*\fq अधिकार: \fq*\ft स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार यीशु को दिया गया है, “परमेश्वर का पुत्र” “सृष्टिकर्ता” के रूप में, उन्हें सब कुछ को नियंत्रण और समाप्त करने का मूल अधिकार है। देखिए योना 1:3; कुलुस्सियों 1:16-17; इब्रानियों 1:8 \ft*\f*\+wj*\it* \wj मुझे दिया गया है।\wj* \v 19 \wj इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो,\wj* \v 20 \wj और उन्हें सब बातें जो मैंने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव\wj* \it \+wj तुम्हारे संग\f + \fr 28:20 \fr*\fq तुम्हारे संग: \fq*\ft यीशु हम से प्रतिज्ञा करते है कि वह हमें मजबूत बनाने, सहायता करने, और हमारी अगुआई करने के लिये, हमारे संग हर समय रहेंगे। \ft*\f*\+wj*\it* \wj हूँ।”\wj*