\id PSA - Biblica® Open Hindi Contemporary Version (Updated 2021) \ide UTF-8 \h स्तोत्र \toc1 स्तोत्र संहिता \toc2 स्तोत्र \toc3 स्तोत्र \mt1 स्तोत्र संहिता \c 1 \ms प्रथम पुस्तक \mr स्तोत्र 1–41 \cl स्तोत्र 1 \q1 \v 1 कैसा धन्य है वह पुरुष \q2 जो दुष्टों की सम्मति का आचरण नहीं करता, \q1 न पापियों के मार्ग पर खड़ा रहता \q2 और न ही उपहास करनेवालों की बैठक में बैठता है, \q1 \v 2 इसके विपरीत उसका उल्लास याहवेह की व्यवस्था का पालन करने में है, \q2 उसी का मनन वह दिन-रात करता रहता है. \q1 \v 3 वह बहती जलधाराओं के तट पर लगाए गए उस वृक्ष के समान है, \q2 जो उपयुक्त ऋतु में फल देता है \q1 जिसकी पत्तियां कभी मुरझाती नहीं. \q2 ऐसा पुरुष जो कुछ करता है उसमें सफल होता है. \b \q1 \v 4 किंतु दुष्ट ऐसे नहीं होते! \q2 वे उस भूसे के समान होते हैं, \q2 जिसे पवन उड़ा ले जाती है. \q1 \v 5 तब दुष्ट न्याय में टिक नहीं पाएंगे, \q2 और न ही पापी धर्मियों के मण्डली में. \b \q1 \v 6 निश्चयतः याहवेह धर्मियों के आचरण को सुख समृद्धि से सम्पन्‍न करते हैं, \q2 किंतु दुष्टों को उनका आचरण ही नष्ट कर डालेगा. \c 2 \cl स्तोत्र 2 \q1 \v 1 क्यों मचा रहे हैं राष्ट्र यह खलबली? \q2 क्यों देश-देश जुटे हैं विफल षड़्‍यंत्र की रचना में? \q1 \v 2 याहवेह तथा उनके अभिषिक्त के विरोध में \q2 संसार के राजाओं ने एका किया है \q2 एकजुट होकर शासक सम्मति कर रहे हैं: \q1 \v 3 “चलो, तोड़ फेंकें उनके द्वारा डाली गई ये बेड़ियां, \q2 उतार डालें उनके द्वारा बांधी गई ये रस्सियां.” \b \q1 \v 4 वह, जो स्वर्गिक सिंहासन पर विराजमान हैं, \q2 उन पर हंसते हैं, प्रभु उनका उपहास करते हैं. \q1 \v 5 तब वह उन्हें अपने प्रकोप से डराकर अपने रोष में \q2 उन्हें संबोधित करते हैं, \q1 \v 6 “अपने पवित्र पर्वत ज़ियोन पर स्वयं \q2 मैंने अपने राजा को बसा दिया है.” \p \v 7 मैं याहवेह की राजाज्ञा की घोषणा करूंगा: \q1 उन्होंने मुझसे कहा है, “तुम मेरे पुत्र हो; \q2 आज मैं तुम्हारा जनक हो गया हूं. \q1 \v 8 मुझसे मांगो, \q2 तो मैं तुम्हें राष्ट्र दे दूंगा तथा संपूर्ण पृथ्वी को \q2 तुम्हारी निज संपत्ति बना दूंगा. \q1 \v 9 तुम उन्हें लोहे के छड़ से टुकड़े-टुकड़े कर डालोगे; \q2 मिट्टी के पात्रों समान चूर-चूर कर दोगे.” \b \q1 \v 10 तब राजाओ, बुद्धिमान बनो; \q2 पृथ्वी के न्यायियों, सचेत हो जाओ. \q1 \v 11 श्रद्धा भाव में याहवेह की आराधना करो; \q2 थरथराते हुए आनंद मनाओ. \q1 \v 12 पूर्ण सच्चाई में पुत्र को सम्मान दो, ऐसा न हो कि वह क्रोधित हो जाए \q2 और तुम मार्ग में ही नष्ट हो जाओ, \q1 क्योंकि उसका क्रोध शीघ्र भड़कता है. \q2 धन्य होते हैं वे सभी, जो उनका आश्रय लेते हैं. \c 3 \cl स्तोत्र 3 \d दावीद का एक स्तोत्र. जब वह अपने पुत्र अबशालोम से बचकर भाग रहे थे. \q1 \v 1 याहवेह! कितने सारे हैं मेरे शत्रु! \q2 कितने हैं जो मेरे विरोध में उठ खड़े हुए हैं! \q1 \v 2 वे मेरे विषय में कहने लगे हैं, \q2 “परमेश्वर उसे उद्धार प्रदान नहीं करेंगे.” \b \q1 \v 3 किंतु, याहवेह, आप सदैव ही जोखिम में मेरी ढाल हैं, \q2 आप ही हैं मेरी महिमा, आप मेरा मस्तक ऊंचा करते हैं. \q1 \v 4 याहवेह! मैंने उच्च स्वर में आपको पुकारा है, \q2 और आपने अपने पवित्र पर्वत से मुझे उत्तर दिया. \b \q1 \v 5 मैं लेटता और निश्चिंत सो जाता हूं; \q2 मैं पुनः सकुशल जाग उठता हूं, क्योंकि याहवेह मेरी रक्षा कर रहे थे. \q1 \v 6 मुझे उन असंख्य शत्रुओं का कोई भय नहीं \q2 जिन्होंने मुझे चारों ओर से घेर लिया है. \b \q1 \v 7 उठिए याहवेह! \q2 मेरे परमेश्वर, आकर मुझे बचाइए! \q1 निःसंदेह आप मेरे समस्त शत्रुओं के जबड़े पर प्रहार करें; \q2 आप उन दुष्टों के दांत तोड़ डालें. \b \q1 \v 8 उद्धार तो याहवेह में ही है, \q2 आपकी प्रजा पर आपकी कृपादृष्टि बनी रहे! \c 4 \cl स्तोत्र 4 \d संगीत निर्देशक के लिये. तार वाद्यों की संगत के साथ. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 हे मेरे धर्ममय परमेश्वर, \q2 जब मैं पुकारूं, मुझे उत्तर दें! \q1 आपने मेरे संकट के समय मेरी सहायता की; \q2 अब अपने अनुग्रह में मेरी प्रार्थना का उत्तर दें. \b \q1 \v 2 मनुष्यो! कब तक तुम मेरा अपमान करते रहोगे? \q2 कब तक तुम छल से प्रेम और उसकी खोज करते रहोगे, जो निरर्थक है, जो मात्र झूठी ही है? \q1 \v 3 यह स्मरण रखो कि याहवेह ने अपने भक्त को अपने निमित्त अलग कर रखा है; \q2 जब मैं पुकारूं याहवेह मेरी सुनेंगे. \b \q1 \v 4 श्रद्धा में पाप का परित्याग कर दो; \q2 शांत हो जाओ, \q2 बिछौने पर लेटे हुए आत्म-परीक्षण करो. \q1 \v 5 व्यवस्था द्वारा निर्धारित बलि अर्पण करो \q2 और याहवेह पर भरोसा करो. \b \q1 \v 6 अनेक हैं, जो कहते हैं, “कौन है, जो हमें यह दर्शाएगा कि क्या है उपयुक्त और क्या है भला?” \q2 याहवेह, हम पर अपने मुख का प्रकाश चमकाएं. \q1 \v 7 जिन्हें अन्‍न और दाखमधु की बड़ी उपज प्राप्‍त हुई है, \q2 उनसे भी अधिक आनंद से आपने मेरे हृदय भर दिया है. \b \q1 \v 8 मैं शांतिपूर्वक लेटूंगा और सो जाऊंगा, \q2 क्योंकि याहवेह, मात्र आप ही मुझे, \q2 सुरक्षापूर्ण विश्राम प्रदान करते हैं. \c 5 \cl स्तोत्र 5 \d संगीत निर्देशक के लिये. बांसुरी वाद्यों के लिए. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, मेरे वचनों पर ध्यान दें, \q2 मेरे शब्दों की आहों पर विचार करें. \q1 \v 2 मेरे परमेश्वर, मेरे राजा, \q2 सहायता के लिए मेरी पुकार पर ध्यान दें, \q2 क्योंकि याहवेह, मेरी यह प्रार्थना आपसे है. \b \q1 \v 3 याहवेह, आप प्रातःकाल मेरी वाणी सुनेंगे; \q2 सूर्योदय के समय मैं आपको बलि अर्पित करूंगा \q2 और आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करूंगा. \q1 \v 4 निःसंदेह आप वह परमेश्वर नहीं, जो दुष्टता का समर्थन करें; \q2 वस्तुतः बुराई आपके साथ नहीं रह सकती. \q1 \v 5 घमंडी आपकी उपस्थिति में \q2 ठहर नहीं सकते, \q1 दुष्ट आपके लिए घृणास्पद हैं; \q2 \v 6 झूठ बोलने वालों का आप विनाश करते हैं. \q1 हत्यारों और धूर्तों से, \q2 याहवेह, को घृणा है. \q1 \v 7 किंतु आपके, अपार प्रेम के बाहुल्य के परिणामस्वरूप मैं, \q2 आपके आवास में प्रवेश कर सकूंगा; \q1 पूर्ण श्रद्धा में झुककर मैं \q2 आपके पवित्र मंदिर में आराधना करूंगा. \b \q1 \v 8 याहवेह, मेरे शत्रुओं के कारण अपने \q2 धर्ममय मार्ग पर मेरी अगुवाई करें; \q2 मेरे आगे-आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा. \q1 \v 9 मेरे शत्रुओं का एक भी शब्द सच्चा नहीं है; \q2 उनके हृदय बुराई से भरे हैं. \q1 उनका गला खुली हुई कब्र समान है; \q2 उनकी जीभ चिकनी-चुपड़ी बातें करती है. \q1 \v 10 प्रभु परमेश्वर! आप उन पर दंड-आज्ञा प्रसारित करें, \q2 कि अपनी ही युक्तियों के जाल में फंसकर उनका नाश हो जाए, \q1 उनके अपराधों की अधिकता के कारण आप उन्हें अपनी उपस्थिति से दूर करें, \q2 क्योंकि उन्होंने आपके विरुद्ध बलवा किया है. \q1 \v 11 आनंदित हों आपके सभी शरणागत; \q2 सदैव हो उनका आनंद. \q1 आप उन्हें सुरक्षित रखें, \q2 जो आपसे प्रेम रखते हैं, वे सदैव उल्‍लसित रहें. \b \q1 \v 12 याहवेह, धर्मियों पर आपकी कृपादृष्टि बनी रहती है; \q2 आप अपने अनुग्रह में उन्हें ढाल के समान सुरक्षा प्रदान करते हैं. \c 6 \cl स्तोत्र 6 \d संगीत निर्देशक के लिये. तार वाद्यों के संगत के साथ. \tl शेमिनिथ.\tl*\f + \fr 6:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* पर आधारित. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, अपने क्रोध में मुझे न डांटें, \q2 झुंझलाहट में मेरी ताड़ना न करें. \q1 \v 2 कृपा करें, याहवेह, मैं शिथिल हो चुका हूं; \q2 मुझमें शक्ति का संचार करें, मेरी हड्डियों को भी पीड़ा ने जकड़ लिया है. \q1 \v 3 मेरे प्राण घोर पीड़ा में हैं. \q2 याहवेह, आप कब तक ठहरे रहेंगे? \b \q1 \v 4 याहवेह, आकर मुझे बचा लीजिए; \q2 अपने करुणा-प्रेम\f + \fr 6:4 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* के निमित्त मुझे बचा लीजिए. \q1 \v 5 क्योंकि मृत अवस्था में आपका स्मरण करना संभव नहीं. \q2 अधोलोक में कौन आपका स्तवन कर सकता है? \b \q1 \v 6 कराहते-कराहते मैं थक चुका हूं, \b \q1 प्रति रात्रि मेरे आंसुओं से मेरा बिछौना भीग जाता है, \q2 मेरे आंसू मेरा तकिया भिगोते रहते हैं. \q1 \v 7 शोक से मेरी आंखें निस्तेज हो गई हैं; \q2 मेरे शत्रुओं के कारण मेरी आंखें क्षीण हो चुकी हैं. \b \q1 \v 8 दुष्टो, दूर रहो मुझसे, \q2 याहवेह ने मेरे रोने का शब्द सुन लिया है. \q1 \v 9 याहवेह ने मेरा गिड़गिड़ाना सुना है; \q2 याहवेह मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लेंगे. \q1 \v 10 मेरे समस्त शत्रु लज्जित किए जाएंगे, वे पूर्णतः निराश हो जाएंगे; \q2 वे पीठ दिखाएंगे और तत्काल ही लज्जित किए जाएंगे! \c 7 \cl स्तोत्र 7 \d दावीद का \tl शिग्गायोन\tl*\f + \fr 7:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* जिसे दावीद ने बिन्यामिन गोत्र के कूश के संदर्भ में याहवेह के सामने गाया. \q1 \v 1 याहवेह, मेरे परमेश्वर! मैं आपके ही आश्रय में आया हूं; \q2 उन सबसे मुझे बचा लीजिए, जो मेरा पीछा कर रहे हैं, उन सबसे मेरी रक्षा कीजिए, \q1 \v 2 अन्यथा वे मेरे प्राण को सिंह की नाई फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगे, \q2 जबकि मुझे छुड़ाने के लिए वहां कोई भी न होगा. \b \q1 \v 3 याहवेह, मेरे परमेश्वर, यदि मैंने वह किया है, जैसा वे कह रहे हैं, \q2 यदि मैं किसी अनुचित कार्य का दोषी हूं, \q1 \v 4 यदि मैंने उसकी बुराई की है, जिसके साथ मेरे शान्तिपूर्ण संबंध थे, \q2 अथवा मैंने अपने शत्रु को अकारण ही मुक्त कर दिया है, \q1 \v 5 तो शत्रु मेरा पीछा करे और मुझे पकड़ ले; \q2 वह मुझे पैरों से कुचलकर मार डाले \q2 और मेरी महिमा को धूल में मिला दे. \b \q1 \v 6 याहवेह, कोप में उठिए; \q2 मेरे शत्रुओं के विरुद्ध अत्यंत झुंझलाहट के साथ उठिये. \q2 अपने निर्धारित न्याय-दंड के अनुरूप मेरे पक्ष में सहायता कीजिए. \q1 \v 7 आपके चारों ओर विश्व के समस्त राष्ट्र एकत्र हों \q2 और आप पुनः उनके मध्य अपने निर्धारित उच्चासन पर विराजमान हो जाइए, \q2 \v 8 याहवेह ही राष्ट्रों के न्यायाध्यक्ष हैं. \q1 याहवेह, मेरी सच्चाई, \q2 एवं ईमानदारी के कारण मेरा न्याय करें, \q1 \v 9 दुष्ट के दुष्कर्म समाप्‍त हो जाएं \q2 आप ईमानदारी को स्थिर करें, \q1 आप ही युक्त परमेश्वर हैं. \q2 आप ही हैं, जो मन के विचारों एवं मर्म की विवेचना करते हैं. \b \q1 \v 10 परमेश्वर मेरी सुरक्षा की ढाल हैं, \q2 वही सीधे मनवालों को बचाते हैं. \q1 \v 11 परमेश्वर युक्त न्यायाध्यक्ष हैं, ऐसे परमेश्वर, \q2 जो सदैव ही बुराई से क्रोध करते हैं. \q1 \v 12 यदि मनुष्य पश्चात्ताप न करे, \q2 परमेश्वर अपनी तलवार की धार तीक्ष्ण करते हैं; \q2 वह अपना धनुष साध बाण डोरी पर चढ़ा लेते हैं. \q1 \v 13 परमेश्वर ने अपने घातक शस्त्र तैयार कर लिए हैं; \q2 उन्होंने अपने बाणों को अग्निबाण बना लिया है. \b \q1 \v 14 दुष्ट जन विनाश की योजनाओं को अपने गर्भ में धारण किए हुए हैं, \q2 वे झूठ का जन्म देते हैं. \q1 \v 15 उसने भूमि खोदी और गड्ढा बनाया और \q2 वह अपने ही खोदे हुए गड्ढे में जा गिरा. \q1 \v 16 उसकी विनाशक युक्तियां लौटकर उसी के सिर पर आ पड़ेंगी; \q2 उसकी हिंसा उसी की खोपड़ी पर आ उतरेगी. \b \q1 \v 17 मैं याहवेह को उनके धर्म के अनुसार धन्यवाद दूंगा; \q2 मैं सर्वोच्च याहवेह के नाम का स्तवन करूंगा. \c 8 \cl स्तोत्र 8 \d संगीत निर्देशक के लिये. \tl गित्तीथ\tl*\f + \fr 8:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* पर आधारित. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, हमारे प्रभु, \q2 समस्त पृथ्वी पर कितना तेजमय है आपका नाम! \b \q1 स्वर्ग पर आपने \q2 अपने वैभव को प्रदर्शित किया है. \q1 \v 2 आपने अपने शत्रुओं के कारण बालकों एवं शिशुओं \q2 के मुख से अपना बल बसा लिया, \q2 कि आपके विरोधियों तथा शत्रु का अंत हो जाए. \q1 \v 3 जब मैं आपकी उंगलियों, \q2 द्वारा रचा आकाश, \q1 चंद्रमा और नक्षत्रों को, \q2 जिन्हें आपने यथास्थान पर स्थापित किया, देखता हूं, \q1 \v 4 तब मैं विचार करता हूं: मनुष्य है ही क्या, कि आप उसकी ओर ध्यान दें? \q2 क्या विशेषता है मानव में कि आप उसके विषय में विचार भी करें? \b \q1 \v 5 आपने मनुष्य को सम्मान और वैभव का मुकुट पहनाया, \q2 क्योंकि आपने उसे स्वर्गदूतों से थोड़ा ही कम बनाया है. \q1 \v 6 आपने उसे अपनी सृष्टि का प्रशासक बनाया; \q2 आपने सभी कुछ उसके अधिकार में दे दिया: \q1 \v 7 भेड़-बकरी, गाय-बैल, \q2 तथा वन्य पशु, \q1 \v 8 आकाश के पक्षी, \q2 एवं समुद्र की मछलियां, \q2 तथा समुद्री धाराओं में चलते फिरते सभी जलचर भी. \b \q1 \v 9 याहवेह, हमारे प्रभु, \q2 समस्त पृथ्वी पर कितना तेजमय है आपका नाम! \c 9 \cl स्तोत्र 9\f + \fr 9:0 \fr*\ft मूल पाण्डुलिपि में 9 और 10 एक गीत है. ये अक्षरबद्ध कविता है जिसकी पंक्तियां हिब्री वर्णमाला के क्रमिक अक्षरों से आरंभ होती हैं\ft*\f* \d संगीत निर्देशक के लिये. \tl मूथलब्बेन\tl* धुन पर आधारित. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, मैं संपूर्ण हृदय से आपका आभार मानूंगा; \q2 मैं आपके हर एक आश्चर्य कर्मों का वर्णन करूंगा. \q1 \v 2 मैं आप में उल्‍लसित होकर आनंद मनाता हूं; \q2 सर्वोच्च प्रभु, मैं आपका भजन गाता हूं. \b \q1 \v 3 जब मेरे शत्रु पीठ दिखाकर भागे; \q2 वे आपकी उपस्थिति के कारण नाश होकर लड़खड़ा कर गिर पड़े. \q1 \v 4 आपने न्याय किया और मेरे पक्ष में निर्णय दिया, \q2 आपने अपने सिंहासन पर बैठ सच्चाई में न्याय किया. \q1 \v 5 आपने जनताओं को डांटा और दुष्टों को नष्ट कर दिया; \q2 आपने सदा के लिए उनका नाम मिटा दिया. \q1 \v 6 कोई भी शत्रु शेष न रहा, \q2 उनके नगर अब स्थायी विध्वंस मात्र रह गए हैं; \q2 शत्रु का नाम भी शेष न रहा. \b \q1 \v 7 परंतु याहवेह सदैव सिंहासन पर विराजमान हैं; \q2 उन्होंने अपना सिंहासन न्याय के लिए स्थापित किया है. \q1 \v 8 वह संसार का न्याय \q2 तथा राष्ट्रों का निर्णय धार्मिकता से करते हैं. \q1 \v 9 याहवेह ही दुःखित को शरण देते हैं, \q2 संकट के समय वही ऊंचा गढ़ हैं. \q1 \v 10 जिन्होंने आपकी महिमा को पहचान लिया है, वे आप पर भरोसा करेंगे, \q2 याहवेह, जिन्होंने आपसे प्रार्थना की, आपने उन्हें निराश न होने दिया. \b \q1 \v 11 याहवेह का गुणगान करो, जो ज़ियोन में सिंहासन पर विराजमान हैं; \q2 राष्ट्रों में उनके आश्चर्य कार्यों की उद्घोषणा करो. \q1 \v 12 वह, जो पीड़ितों के बदला लेनेवाले हैं, उन्हें स्मरण रखते हैं; \q2 दीनों की वाणी को वह अनसुनी नहीं करते. \b \q1 \v 13 हे याहवेह, मुझ पर कृपादृष्टि कीजिए! मेरी पीड़ा पर दृष्टि कीजिए. \q2 आप ही हैं, जो मुझे मृत्यु-द्वार के निकट से झपटकर उठा सकते हैं, \q1 \v 14 कि मैं ज़ियोन की पुत्री के द्वारों \q2 के भीतर आपके हर एक गुण का वर्णन करूं, \q2 कि मैं आपके द्वारा किए उद्धार में उल्‍लसित होऊं. \b \q1 \v 15 अन्य जनता उसी गड्ढे में जा गिरे, जिसे स्वयं उन्हीं ने खोदा था; \q2 उनके पैर उसी जाल में जा फंसे, जिसे उन्होंने बिछाया था. \q1 \v 16 याहवेह ने स्वयं को प्रकट किया, उन्होंने न्याय सम्पन्‍न किया; \q2 दुष्ट अपने ही फंदे में उलझ कर रह गए. \q1 \v 17 दुष्ट अधोलोक में लौट जाएंगे, यही नियति है उन सभी राष्ट्रों की भी, \q2 जिन्होंने परमेश्वर की उपेक्षा की है. \q1 \v 18 दीन दरिद्र सदा भुला नहीं दिए जाएंगे; \q2 पीड़ितों की आशा सदा के लिए चूर नहीं होगी. \b \q1 \v 19 याहवेह, आप उठ जाएं, कि कोई मनुष्य प्रबल न हो जाए; \q2 जनताओं का न्याय आपके सामने हो. \q1 \v 20 याहवेह, आप उन्हें भयभीत कर दें; \q2 जनताओं को यह बोध हो जाए कि वे मात्र मनुष्य हैं. \c 10 \cl स्तोत्र 10 \q1 \v 1 याहवेह, आप दूर क्यों खड़े हैं? \q2 संकट के समय आप स्वयं को क्यों छिपा लेते हैं? \b \q1 \v 2 दुर्जन अपने अहंकार में असहाय निर्धन को खदेड़ते हैं, \q2 दुर्जन अपनी ही रची गई युक्तियों में फंसकर रह जाएं. \q1 \v 3 दुर्जन की मनोकामना पूर्ण होती जाती है, तब वह इसका घमंड करता है; \q2 लालची पुरुष याहवेह की निंदा करता तथा उनसे अलग हो जाता है. \q1 \v 4 दुष्ट अपने अहंकार में परमेश्वर की कामना ही नहीं करता; \q2 वह अपने मन में मात्र यही विचार करता रहता है: परमेश्वर है ही नहीं. \q1 \v 5 दुष्ट के प्रयास सदैव सफल होते जाते हैं; \q2 उसके सामने आपके आदेशों का कोई महत्व है ही नहीं; \q2 उसके समस्त विरोधी उसके सामने तुच्छ हैं. \q1 \v 6 वह स्वयं को आश्वासन देता रहता है: “मैं विचलित न होऊंगा, \q2 मेरी किसी भी पीढ़ी में कोई भी विपदा नहीं आ सकती.” \b \q1 \v 7 उसका मुख शाप, छल तथा अत्याचार से भरा रहता है; \q2 उसकी जीभ उत्पात और दुष्टता छिपाए रहती है. \q1 \v 8 वह गांवों के निकट घात लगाए बैठा रहता है; \q2 वह छिपकर निर्दोष की हत्या करता है. \q1 उसकी आंखें चुपचाप असहाय की ताक में रहती हैं; \q2 \v 9 वह प्रतीक्षा में घात लगाए हुए बैठा रहता है, जैसे झाड़ी में सिंह. \q1 घात में बैठे हुए उसका लक्ष्य होता है निर्धन-दुःखी, \q2 वह उसे अपने जाल में फंसा घसीटकर ले जाता है. \q1 \v 10 वह दुःखी दब कर झुक जाता; \q2 और उसकी शक्ति के सामने पराजित हो जाता है. \q1 \v 11 उस दुष्ट की यह मान्यता है, “परमेश्वर सब भूल चुके हैं; \q2 उन्होंने अपना मुख छिपा लिया है, वह यह सब कभी नहीं देखेंगे.” \b \q1 \v 12 याहवेह, उठिए, अपना हाथ उठाइये, परमेश्वर! \q2 इन दुष्टों को दंड दीजिए, दुःखितों को भुला न दीजिए. \q1 \v 13 दुष्ट परमेश्वर का तिरस्कार करते हुए \q2 अपने मन में क्यों कहता रहता है, \q2 “परमेश्वर इसका लेखा लेंगे ही नहीं”? \q1 \v 14 किंतु निःसंदेह आपने सब कुछ देखा है, आपने यातना और उत्पीड़न पर ध्यान दिया है; \q2 आप स्थिति को अपने नियंत्रण में ले लें. दुःखी और \q1 लाचार स्वयं को आपके हाथों में सौंप रहे हैं; \q2 क्योंकि आप ही सहायक हैं अनाथों के. \q1 \v 15 कुटिल और दुष्ट का भुजबल तोड़ दीजिए; \q2 उसकी दुष्टता का लेखा उस समय तक लेते रहिए \q2 जब तक कुछ भी दुष्टता शेष न रह जाए. \b \q1 \v 16 सदा-सर्वदा के लिए याहवेह महाराजाधिराज हैं; \q2 उनके राज्य में से अन्य जनता मिट गए हैं. \q1 \v 17 याहवेह, आपने विनीत की अभिलाषा पर दृष्टि की है; \q2 आप उनके हृदय को आश्वासन प्रदान करेंगे, \q1 \v 18 अनाथ तथा दुःखित की रक्षा के लिए, \q2 आपका ध्यान उनकी वाणी पर लगा रहेगा \q2 कि मिट्टी से बना मानव अब से पुनः आतंक प्रसारित न करे. \c 11 \cl स्तोत्र 11 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना \q1 \v 1 मैंने याहवेह में आश्रय लिया है, \q2 फिर तुम मुझसे यह क्यों कह रहे हो: \q2 “पंछी के समान अपने पर्वत को उड़ जा. \q1 \v 2 सावधान! दुष्ट ने अपना धनुष साध लिया है; \q2 और उसने धनुष पर बाण भी चढ़ा लिया है, \q1 कि अंधकार में \q2 सीधे लोगों की हत्या कर दे. \q1 \v 3 यदि आधार ही नष्ट हो जाए, \q2 तो धर्मी के पास कौन सा विकल्प शेष रह जाता है?” \b \q1 \v 4 याहवेह अपने पवित्र मंदिर में हैं; \q2 उनका सिंहासन स्वर्ग में बसा है. \q1 उनकी दृष्टि सर्वत्र मनुष्यों को देखती है; \q2 उनकी सूक्ष्मदृष्टि हर एक को परखती रहती है. \q1 \v 5 याहवेह की दृष्टि धर्मी एवं दुष्ट दोनों को परखती है, \q2 याहवेह के आत्मा हिंसा \q2 प्रिय पुरुषों से घृणा करते हैं. \q1 \v 6 दुष्टों पर वह फन्दों की वृष्टि करेंगे, \q2 उनके प्याले में उनका अंश होगा अग्नि; \q2 गंधक तथा प्रचंड हवा. \b \q1 \v 7 याहवेह युक्त हैं, \q2 धर्मी ही उन्हें प्रिय हैं; \q2 धर्मी जन उनका मुंह देखने पाएंगे. \c 12 \cl स्तोत्र 12 \d संगीत निर्देशक के लिये. \tl शेमिनिथ\tl*\f + \fr 12:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* पर आधारित. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, हमारी रक्षा कीजिए, कोई भक्त अब शेष न रहा; \q2 मनुष्यों के मध्य से विश्वासयोग्य पुरुष नहीं रहे. \q1 \v 2 मनुष्य मनुष्य से झूठी बातें कर रहा है; \q2 वे चापलूसी करते हुए \q2 एक दूसरे का छल करते हैं. \b \q1 \v 3 अच्छा होगा यदि याहवेह चापलूसी होंठों \q2 तथा घमंडी जीभ को काट डालें. \q1 \v 4 वे डींग मारते हुए कहते हैं, \q2 “शक्ति हमारी जीभ में मगन है; \q2 ओंठ हमारे वश में हैं. कौन हो सकता है हमारा स्वामी?” \b \q1 \v 5 किंतु अब याहवेह का कहना है, “दुःखितों के प्रति की गई हिंसा के कारण, \q2 निर्धनों की करुण वाणी के कारण मैं उनके पक्ष में उठ खड़ा होऊंगा. \q2 मैं उन्हें वही सुरक्षा प्रदान करूंगा, वे जिसकी कामना कर रहे हैं.” \q1 \v 6 याहवेह का वचन शुद्ध है, \q2 उस चांदी-समान हैं, \q2 जिसे भट्टी में सात बार तपा कर शुद्ध किया गया है. \b \q1 \v 7 याहवेह, उन्हें अपनी सुरक्षा में बनाए रखेंगे \q2 उन्हें इस पीढ़ी से सर्वदा सुरक्षा प्रदान करेंगे, \q1 \v 8 जब मनुष्यों द्वारा नीचता का आदर किया जाता है, \q2 तब दुष्ट चारों और अकड़ कर चलते फिरते हैं. \c 13 \cl स्तोत्र 13 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 कब तक, याहवेह? कब तक आप मुझे भुला रखेंगे, क्या सदा के लिए? \q2 कब तक आप मुझसे अपना मुख छिपाए रहेंगे? \q1 \v 2 कब तक मैं अपने मन को समझाता रहूं? \q2 कब तक दिन-रात मेरा हृदय वेदना सहता रहेगा? \q2 कब तक मेरे शत्रु मुझ पर प्रबल होते रहेंगे? \b \q1 \v 3 याहवेह, मेरे परमेश्वर, मेरी ओर ध्यान दे मुझे उत्तर दीजिए. \q2 मेरी आंखों को ज्योतिर्मय कीजिए, ऐसा न हो कि मैं मृत्यु की नींद में समा जाऊं, \q1 \v 4 तब तो निःसंदेह मेरे शत्रु यह घोषणा करेंगे, “हमने उसे नाश कर दिया,” \q2 ऐसा न हो कि मेरा लड़खड़ाना मेरे विरोधियों के लिए आनंद का विषय बन जाए. \b \q1 \v 5 जहां तक मेरा संबंध है, याहवेह, मुझे आपके करुणा-प्रेम\f + \fr 13:5 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* पर भरोसा है; \q2 तब मेरा हृदय आपके द्वारा किए उद्धार में मगन होगा. \q1 \v 6 मैं याहवेह का भजन गाऊंगा, \q2 क्योंकि उन्होंने मुझ पर अनेकानेक उपकार किए हैं. \c 14 \cl स्तोत्र 14 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना \q1 \v 1 मूर्ख\f + \fr 14:1 \fr*\fq मूर्ख \fq*\ft स्तोत्र संहिता के मुताबिक वह जिसमें नैतिकता की कमी है\ft*\f* मन ही मन में कहते हैं, \q2 “परमेश्वर है ही नहीं.” \q1 वे सभी भ्रष्‍ट हैं और उनके काम घिनौने हैं; \q2 ऐसा कोई भी नहीं, जो भलाई करता हो. \b \q1 \v 2 स्वर्ग से याहवेह \q2 मनुष्यों पर दृष्टि डालते हैं \q1 इस आशा में कि कोई तो होगा, जो बुद्धिमान है, \q2 जो परमेश्वर की खोज करता हो. \q1 \v 3 सभी मनुष्य भटक गए हैं, सभी नैतिक रूप से भ्रष्‍ट हो चुके हैं; \q2 कोई भी सत्कर्म परोपकार नहीं करता, \q2 हां, एक भी नहीं. \b \q1 \v 4 मेरी प्रजा के ये भक्षक, ये दुष्ट पुरुष, क्या ऐसे निर्बुद्धि हैं? \b \q1 जो उसे ऐसे खा जाते हैं, जैसे रोटी को; \q2 क्या उन्हें याहवेह की उपासना का कोई ध्यान नहीं? \q1 \v 5 वहां वे अत्यंत घबरा गये हैं, \q2 क्योंकि परमेश्वर धर्मी पीढ़ी के पक्ष में होते हैं. \q1 \v 6 तुम दुःखित को लज्जित करने की युक्ति कर रहे हो, \q2 किंतु उनका आश्रय याहवेह हैं. \b \q1 \v 7 कैसा उत्तम होता यदि इस्राएल का उद्धार ज़ियोन से प्रगट होता! \q2 याकोब के लिए वह हर्षोल्लास का अवसर होगा, \q2 जब याहवेह अपनी प्रजा को दासत्व से लौटा लाएंगे, तब इस्राएल आनंदित हो जाएगा! \c 15 \cl स्तोत्र 15 \d दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, कौन आपके तंबू में रह सकेगा? \q2 कौन आपके पवित्र पर्वत पर निवास कर सकेगा? \b \q1 \v 2 वही, जिसका आचरण निष्कलंक है, \q2 जो धार्मिकता का आचरण करता है, \q2 जो हृदय से सच बोलता है; \q1 \v 3 जिसकी जीभ से निंदा के शब्द नहीं निकलते, \q2 जो न तो अपने पड़ोसी की बुराई करता है, \q2 और न अपने किसी मित्र की, \q1 \v 4 जिसके लिए याहवेह की दृष्टि में निकम्मा पुरुष घृणित है, \q2 किंतु याहवेह का भय माननेवाले पुरुष सम्मान्य; \q1 जो हर मूल्य पर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करता है, \q2 चाहे उसकी हानि ही क्यों न हो; \q1 \v 5 जो ऋण देकर ब्याज नहीं लेता; \q2 और निर्दोष के विरुद्ध झूठी गवाही देने के उद्देश्य से घूस नहीं लेता. \b \q1 इस प्रकार के आचरण का पुरुष सदैव स्थिर रहेगा \q2 वह कभी न डगमगाएगा. \c 16 \cl स्तोत्र 16 \d दावीद की \tl मिकताम\tl*\f + \fr 16:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना. \q1 \v 1 परमेश्वर, मुझे सुरक्षा प्रदान कीजिए, \q2 क्योंकि मैंने आप में आश्रय लिया है. \b \q1 \v 2 याहवेह से मैंने कहा, “आप ही प्रभु हैं; \q2 वस्तुतः आपको छोड़ मेरा हित संभव ही नहीं.” \q1 \v 3 पृथ्वी पर आपके लोग पवित्र महिमामय हैं, \q2 “वे ही मेरे सुख एवं आनंद का स्रोत हैं.” \q1 \v 4 वे, जो अन्य देवताओं के पीछे भागते हैं, उनके क्लेशों में वृद्धि होती जाएगी. \q2 मैं उन देवताओं के लिए न तो रक्त की पेय बलि उंडेलूंगा \q2 और न मैं उनका नाम अपने होंठों पर लाऊंगा. \b \q1 \v 5 याहवेह, आप मेरा हिस्सा हैं, आप ही मेरा भाग हैं; \q2 आप ही मुझे सुरक्षा प्रदान करते हैं. \q1 \v 6 माप की डोर ने मेरे लिए रमणीय स्थान निर्धारित किए हैं; \q2 निःसंदेह मेरा भाग आकर्षक है. \q1 \v 7 मैं याहवेह को स्तुत्य कहूंगा, जिन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया है; \q2 रात्रि में भी मेरा अंतःकरण मुझे शिक्षा देता है. \q1 \v 8 मैंने सदैव ही याहवेह की उपस्थिति का बोध अपने सामने बनाए रखा है. \q2 जब वह नित मेरे दायें पक्ष में रहते हैं, तो भला मैं कैसे लड़खड़ा सकता हूं. \b \q1 \v 9 इसलिये मेरा हृदय आनंदित और मेरी जीभ मगन हुई; \q2 मेरा शरीर भी सुरक्षा में विश्राम करेगा, \q1 \v 10 क्योंकि आप मेरे प्राण को अधोलोक में सड़ने नहीं छोड़ देंगे, \q2 और न अपने मनचाहे प्रिय पात्र को मृत्यु के क्षय में. \q1 \v 11 आप मुझ पर सर्वदा जीवन का मार्ग प्रकाशित करेंगे; \q2 आपकी उपस्थिति में परम आनंद है, \q2 आपके दाहिने हाथ में सर्वदा सुख बना रहता है. \c 17 \cl स्तोत्र 17 \d दावीद की एक प्रार्थना \q1 \v 1 याहवेह, मेरा न्याय संगत, अनुरोध सुनिए; \q2 मेरी पुकार पर ध्यान दीजिए. \q1 मेरी प्रार्थना को सुन लीजिए, \q2 जो कपटी होंठों से निकले शब्द नहीं हैं. \q1 \v 2 आपके द्वारा मेरा न्याय किया जाए; \q2 आपकी दृष्टि में वही आए जो धर्ममय है. \b \q1 \v 3 आप मेरे हृदय को परख चुके हैं, \q2 रात्रि में आपने मेरा ध्यान रखा है, \q1 आपने मुझे परखकर निर्दोष पाया है; \q2 मैंने यह निश्चय किया है कि मेरे मुख से कोई अपराध न होगा. \q1 \v 4 मनुष्यों के आचरण के संदर्भ में, \q2 ठीक आपके ही आदेश के अनुरूप \q2 मैं हिंसक मनुष्यों के मार्गों से दूर ही दूर रहा हूं. \q1 \v 5 मेरे पांव आपके मार्गों पर दृढ़ रहें; \q2 और मेरे पांव लड़खड़ाए नहीं. \b \q1 \v 6 मैंने आपको ही पुकारा है, क्योंकि परमेश्वर, आप मुझे उत्तर देंगे; \q2 मेरी ओर कान लगाकर मेरी बिनती को सुनिए. \q1 \v 7 अपने शत्रुओं के पास से आपके दायें पक्ष \q2 में आए हुए शरणागतों के रक्षक, \q2 उन पर अपने करुणा-प्रेम\f + \fr 17:7 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द का अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये शामिल हैं\ft*\f* का आश्चर्य प्रदर्शन कीजिए. \q1 \v 8 अपने आंखों की पुतली के समान मेरी सुरक्षा कीजिए; \q2 अपने पंखों की आड़ में मुझे छिपा लीजिए \q1 \v 9 उन दुष्टों से, जो मुझ पर प्रहार करते रहते हैं, \q2 उन प्राणघातक शत्रुओं से, जिन्होंने मुझे घेर लिया है. \b \q1 \v 10 उनके हृदय कठोर हो चुके हैं, \q2 उनके शब्द घमंडी हैं. \q1 \v 11 वे मेरा पीछा करते रहे हैं और अब उन्होंने मुझे घेर लिया है. \q2 उनकी आंखें मुझे खोज रही हैं, कि वे मुझे धरती पर पटक दें. \q1 \v 12 वह उस सिंह के समान है जो फाड़ खाने को तत्पर है, \q2 उस जवान सिंह के समान जो घात लगाए छिपा बैठा है. \b \q1 \v 13 उठिए, याहवेह, उसका सामना कीजिए, उसे नाश कीजिए; \q2 अपनी तलवार के द्वारा दुर्जन से मेरे प्राण बचा लीजिए, \q1 \v 14 याहवेह, अपने हाथों द्वारा, उन मनुष्यों से, उन सांसारिक मनुष्यों से \q2 जिनका भाग मात्र इसी जीवन में मगन है. \q1 उनका पेट आप अपनी निधि से परिपूर्ण कर देते हैं; \q2 संतान पाकर वे प्रसन्‍न हैं, \q2 और वे अपनी समृद्धि अपनी संतान के लिए छोड़ जाते हैं. \b \q1 \v 15 अपनी धार्मिकता के कारण मैं आपके मुख का दर्शन करूंगा; \q2 जब मैं प्रातः आंखें खोलूं, तो आपके स्वरूप का दर्शन मुझे आनंद से तृप्‍त कर देगा. \c 18 \cl स्तोत्र 18 \d संगीत निर्देशक के लिये. याहवेह के सेवक दावीद की रचना. दावीद ने यह गीत याहवेह के सामने गाया जब याहवेह ने दावीद को उनके शत्रुओं तथा शाऊल के आक्रमण से बचा लिया था. दावीद ने कहा: \q1 \v 1 याहवेह, मेरे सामर्थ्य, मैं आपसे प्रेम करता हूं. \b \q1 \v 2 याहवेह मेरी चट्टान, मेरा गढ़ और मेरे छुड़ानेवाले हैं; \q2 मेरे परमेश्वर, मेरे लिए चट्टान हैं, जिनमें मैं आसरा लेता हूं, \q2 वह मेरी ढाल और मेरे उद्धार का सींग, वह मेरा गढ़. \b \q1 \v 3 मैं दोहाई याहवेह की देता हूं, सिर्फ वही स्तुति के योग्य हैं, \q2 और मैं शत्रुओं से छुटकारा पा लेता हूं. \q1 \v 4 मृत्यु की लहरों में घिर चुका था; \q2 मुझ पर विध्वंस की तेज धारा का वार हो रहा था. \q1 \v 5 अधोलोक के तंतुओं ने मुझे उलझा लिया था; \q2 मैं मृत्यु के जाल के आमने-सामने आ गया था. \b \q1 \v 6 अपनी वेदना में मैंने याहवेह की दोहाई दी; \q2 मैंने अपने ही परमेश्वर को पुकारा. \q1 अपने मंदिर में उन्होंने मेरी आवाज सुन ली, \q2 उनके कानों में मेरा रोना जा पड़ा. \q1 \v 7 पृथ्वी झूलकर कांपने लगी, \q2 पहाड़ों की नींव थरथरा उठी; \q2 और कांपने लगी. क्योंकि प्रभु क्रुद्ध थे. \q1 \v 8 उनके नथुनों से धुआं उठ रहा था; \q2 उनके मुख की आग चट करती जा रही थी, \q2 उसने कोयलों को दहका रखा था. \q1 \v 9 उन्होंने आकाशमंडल को झुकाया और उतर आए; \q2 उनके पैरों के नीचे घना अंधकार था. \q1 \v 10 वह करूब पर चढ़कर उड़ गए; \q2 वह हवा के पंखों पर चढ़कर उड़ गये! \q1 \v 11 उन्होंने अंधकार ओढ़ लिया, वह उनका छाता बन गया, \q2 घने-काले वर्षा के मेघ में घिरे हुए. \q1 \v 12 उनकी उपस्थिति के तेज से मेघ ओलों \q2 और बिजलियां के साथ आगे बढ़ रहे थे. \q1 \v 13 स्वर्ग से याहवेह ने गर्जन की \q2 और परम प्रधान ने अपने शब्द सुनाए. \q1 \v 14 उन्होंने बाण छोड़े और उन्हें बिखरा दिया, \q2 बिजलियों ने उनके पैर उखाड़ दिए. \q1 \v 15 याहवेह की प्रताड़ना से, \q2 नथुनों से उनके सांस के झोंके से \q1 सागर के जलमार्ग दिखाई देने लगे; \q2 संसार की नीवें खुल गईं. \b \q1 \v 16 उन्होंने स्वर्ग से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया; \q2 प्रबल जल प्रवाह से उन्होंने मुझे बाहर निकाल लिया. \q1 \v 17 उन्होंने मुझे मेरे प्रबल शत्रु से मुक्त किया, \q2 उनसे, जिन्हें मुझसे घृणा थी, वे मुझसे कहीं अधिक शक्तिमान थे. \q1 \v 18 संकट के दिन उन्होंने मुझ पर आक्रमण कर दिया था, \q2 किंतु मेरी सहायता याहवेह में मगन थी. \q1 \v 19 वह मुझे खुले स्थान पर ले आए; \q2 मुझसे अपनी प्रसन्‍नता के कारण उन्होंने मुझे छुड़ाया है. \b \q1 \v 20 मेरी भलाई के अनुसार ही याहवेह ने मुझे प्रतिफल दिया है; \q2 मेरे हाथों की स्वच्छता के अनुसार उन्होंने मुझे ईनाम दिया है. \q1 \v 21 मैं याहवेह की नीतियों का पालन करता रहा हूं; \q2 मैंने परमेश्वर के विरुद्ध कोई दुराचार नहीं किया है. \q1 \v 22 उनकी सारी नियम संहिता मेरे सामने बनी रही; \q2 उनके नियमों से मैं कभी भी विचलित नहीं हुआ. \q1 \v 23 मैं उनके सामने निर्दोष बना रहा, \q2 दोष भाव मुझसे दूर ही दूर रहा. \q1 \v 24 इसलिये याहवेह ने मुझे मेरी भलाई के अनुसार ही प्रतिफल दिया है, \q2 उनकी नज़रों में मेरे हाथों की शुद्धता के अनुसार. \b \q1 \v 25 सच्चे लोगों के प्रति आप स्वयं विश्वासयोग्य साबित होते हैं, \q2 निर्दोष व्यक्ति पर आप स्वयं को निर्दोष ही प्रकट करते हैं. \q1 \v 26 वह, जो निर्मल है, उस पर अपनी निर्मलता प्रकट करते हैं, \q2 कुटिल व्यक्ति पर आप अपनी चतुरता प्रगट करते हैं. \q1 \v 27 आप विनम्र को सुरक्षा प्रदान करते हैं, \q2 किंतु आप नीचा उनको कर देते हैं, जिनकी आंखें अहंकार से चढ़ी होती हैं. \q1 \v 28 याहवेह, आप मेरे दीपक को जलाते रहिये, \q2 मेरे परमेश्वर, आप मेरे अंधकार को ज्योतिर्मय कर देते हैं. \q1 \v 29 जब आप मेरी ओर हैं, तो मैं सेना से टक्कर ले सकता हूं; \q2 मेरे परमेश्वर के कारण मैं दीवार तक फांद सकता हूं. \b \q1 \v 30 यह वह परमेश्वर हैं, जिनकी नीतियां खरी हैं: \q2 ताया हुआ है याहवेह का वचन; \q2 अपने सभी शरणागतों के लिए वह ढाल बन जाते हैं. \q1 \v 31 क्योंकि याहवेह के अलावा कोई परमेश्वर है? \q2 और हमारे परमेश्वर के अलावा कोई चट्टान है? \q1 \v 32 वही परमेश्वर मेरे मजबूत आसरा हैं; \q2 वह निर्दोष व्यक्ति को अपने मार्ग पर चलाते हैं. \q1 \v 33 उन्हीं ने मेरे पांवों को हिरण के पांवों के समान बना दिया है; \q2 ऊंचे स्थानों पर वह मुझे सुरक्षा देते हैं. \q1 \v 34 वह मेरे हाथों को युद्ध के लिए \q1 प्रशिक्षित करते हैं; \q2 अब मेरी बांहें कांसे के धनुष को भी इस्तेमाल कर लेती हैं. \q1 \v 35 आपने मुझे उद्धार की ढाल प्रदान की है, \q2 आपका दायां हाथ मुझे थामे हुए है; \q2 आपकी सौम्यता ने मुझे महिमा प्रदान की है. \q1 \v 36 मेरे पांवों के लिए आपने चौड़ा रास्ता दिया है, \q2 इसमें मेरे पगों के लिए कोई फिसलन नहीं है. \b \q1 \v 37 मैंने अपने शत्रुओं का पीछा कर उन्हें नाश कर दिया है; \q2 जब तक वे पूरी तरह नाश न हो गए मैं लौटकर नहीं आया. \q1 \v 38 मैंने उन्हें ऐसा कुचल दिया कि वे पुनः सिर न उठा सकें; \q2 वे तो मेरे पैरों में आ गिरे. \q1 \v 39 आपने मुझे युद्ध के लिए आवश्यक शक्ति से भर दिया; \q2 आपने उन्हें, जो मेरे विरुद्ध उठ खड़े हुए थे, मेरे सामने झुका दिया. \q1 \v 40 आपने मेरे शत्रुओं को पीठ दिखाकर भागने पर विवश कर दिया, वे मेरे विरोधी थे. \q2 मैंने उन्हें नष्ट कर दिया. \q1 \v 41 उन्होंने मदद के लिए पुकारा, मगर उनकी रक्षा के लिए कोई भी न आया. \q2 उन्होंने याहवेह की भी दोहाई दी, मगर उन्होंने भी उन्हें उत्तर न दिया. \q1 \v 42 मैंने उन्हें ऐसा कुचला कि वे पवन में उड़ती धूल से हो गए; \q2 मैंने उन्हें मार्ग के कीचड़ के समान अपने पैरों से रौंद डाला. \q1 \v 43 आपने मुझे मेरे सजातियों के द्वारा उठाए कलह से छुटकारा दिया है; \q2 आपने मुझे सारे राष्ट्रों पर सबसे ऊपर बनाए रखा; \q1 अब वे लोग मेरी सेवा कर रहे हैं, जिनसे मैं पूरी तरह अपरिचित हूं. \q2 \v 44 विदेशी मेरी उपस्थिति में दास की तरह व्यवहार करते आए; \q2 जैसे ही उन्हें मेरे विषय में मालूम हुआ, वे मेरे प्रति आज्ञाकारी हो गए. \q1 \v 45 विदेशियों का मनोबल जाता रहा; \q2 वे कांपते हुए अपने गढ़ों से बाहर आ गए. \b \q1 \v 46 जीवित हैं याहवेह! धन्य हैं मेरी चट्टान! \q2 मेरे छुटकारे की चट्टान, मेरे परमेश्वर प्रतिष्ठित हों! \q1 \v 47 परमेश्वर, जिन्होंने मुझे प्रतिफल दिया मेरा बदला लिया, \q2 और जनताओं को मेरे अधीन कर दिया. \q2 \v 48 जो मुझे मेरे शत्रुओं से मुक्त करते हैं, \q1 आप ही ने मुझे मेरे शत्रुओं के ऊपर ऊंचा किया है; \q2 आप ही ने हिंसक पुरुषों से मेरी रक्षा की है. \q1 \v 49 इसलिये, याहवेह, मैं राष्ट्रों के सामने आपकी स्तुति करूंगा; \q2 आपके नाम का गुणगान करूंगा. \b \q1 \v 50 “अपने राजा के लिए वही हैं छुटकारे का खंभा; \q2 अपने अभिषिक्त पर दावीद और उनके वंशजों पर, \q2 वह हमेशा अपार प्रेम प्रकट करते रहते हैं.” \c 19 \cl स्तोत्र 19 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 स्वर्ग परमेश्वर की महिमा को प्रगट करता है; \q2 अंतरीक्ष उनकी हस्तकृति का प्रघोषण करता है. \q1 \v 2 हर एक दिन आगामी दिन से इस विषय में वार्तालाप करता है; \q2 हर एक रात्रि आगामी रात्रि को ज्ञान की शक्ति प्रगट करती है. \q1 \v 3 इस प्रक्रिया में न तो कोई बोली है, न ही कोई शब्द; \q2 यहां तक कि इसमें कोई आवाज़ भी नहीं है. \q1 \v 4 इनका स्वर संपूर्ण पृथ्वी पर गूंजता रहता है, \q2 इनका संदेश पृथ्वी के छोर तक जा पहुंचता है. \q1 परमेश्वर ने स्वर्ग में सूर्य के लिए एक मंडप तैयार किया है. \q2 \v 5 और सूर्य एक वर के समान है, जो अपने मंडप से बाहर आ रहा है, \q2 एक बड़े शूरवीर के समान, जिसके लिए दौड़ एक आनन्दप्रदायी कृत्य है. \q1 \v 6 वह आकाश के एक सिरे से उदय होता है, \q2 तथा दूसरे सिरे तक चक्कर मारता है; \q2 उसके ताप से कुछ भी छुपा नहीं रहता. \b \q1 \v 7 संपूर्ण है याहवेह की व्यवस्था, \q2 जो आत्मा की संजीवनी है. \q1 विश्वासयोग्य हैं याहवेह के अधिनियम, \q2 जो साधारण लोगों को बुद्धिमान बनाते हैं. \q1 \v 8 धर्ममय हैं याहवेह के नीति सूत्र, \q2 जो हृदय का उल्लास हैं. \q1 शुद्ध हैं याहवेह के आदेश, \q2 जो आंखों में ज्योति ले आते हैं. \q1 \v 9 निर्मल है याहवेह की श्रद्धा, \q2 जो अमर है. \q1 सत्य हैं याहवेह के नियम, \q2 जो पूर्णतः धर्ममय हैं. \b \q1 \v 10 वे स्वर्ण से भी अधिक मूल्यवान हैं, \q2 हां, उत्तम कुन्दन से भी अधिक, \q1 वे मधु से अधिक मधुर हैं, \q2 हां, मधुछत्ते से टपकते मधु से भी अधिक मधुर. \q1 \v 11 इन्हीं के द्वारा आपके सेवक को चेतावनी मिलती हैं; \q2 इनके पालन करने से बड़ा प्रतिफल प्राप्‍त होता है. \q1 \v 12 अपनी भूल-चूक का ज्ञान किसे होता है? \q2 अज्ञानता में किए गए मेरे पापों को क्षमा कर दीजिए. \q1 \v 13 अपने सेवक को ढिठाई के पाप करने से रोके रहिए; \q2 वे मुझे अधीन करने न पाएं. \q1 तब मैं निरपराध बना रहूंगा, \q2 मैं बड़े अपराधों का दोषी न रहूंगा. \b \q1 \v 14 याहवेह, मेरी चट्टान और मेरे उद्धारक, \q2 मेरे मुख का वचन तथा मेरे हृदय का चिंतन \q2 आपको स्वीकार्य हो. \c 20 \cl स्तोत्र 20 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 संकट के समय याहवेह आपकी प्रार्थना का उत्तर दें; \q2 याकोब के परमेश्वर में आपकी सुरक्षा हो. \q1 \v 2 वह अपने पवित्र आवास में से आपके लिए सहायता प्रदान करें, \q2 ज़ियोन से आपकी सहायता का प्रबंध हो. \q1 \v 3 परमेश्वर आपकी समस्त बलियों का स्मरण रखें, \q2 आपकी अग्निबलि उन्हें स्वीकार्य हो. \q1 \v 4 वह आपके हृदय का मनोरथ पूर्ण करें, \q2 आपकी समस्त योजनाएं सफल हों! \q1 \v 5 आपके उद्धार होने पर हम हर्षोल्लास में जय जयकार करेंगे, \q2 तथा अपने परमेश्वर के नाम में ध्वजा ऊंची करेंगे. \b \q1 हमारी कामना है कि याहवेह आपकी सारी प्रार्थनाएं सुनकर उन्हें पूर्ण करें. \b \q1 \v 6 अब मुझे यह आश्वासन प्राप्‍त हो गया है: \q2 कि याहवेह अपने अभिषिक्त को सुरक्षा प्रदान करते हैं. \q1 वह अपने पवित्र स्वर्ग से अपनी भुजा \q2 के सुरक्षा देनेवाले सामर्थ्य के द्वारा उन्हें प्रत्युत्तर देते हैं. \q1 \v 7 कुछ को रथों का, तो कुछ को अपने घोड़ों पर भरोसा हैं, \q2 किंतु हमें भरोसा है याहवेह, हमारे परमेश्वर के नाम पर. \q1 \v 8 वे लड़खड़ाते हैं और उनका पतन हो जाता है, \q2 किंतु हमारा जय होता है और हम स्थिर रहते हैं. \q1 \v 9 याहवेह, महाराजा को विजय प्रदान करें! \q2 हम जब भी पुकारें, हमें प्रत्युत्तर दें! \c 21 \cl स्तोत्र 21 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, आपकी शक्ति पर राजा हर्षित है. \q2 आपके द्वारा प्रदान किये गये उद्धार से राजा का हर्षातिरेक देखते ही बनता है! \b \q1 \v 2 आपने उसके हृदय का मनोरथ पूर्ण किया है, \q2 आपने उसके अनुरोध को पूर्ण करने में अस्वीकार नहीं किया. \q1 \v 3 आपने उत्कृष्ट आशीषों के साथ उसका स्वागत किया है, \q2 आपने उसके सिर को कुन्दन के मुकुट से सुशोभित किया है. \q1 \v 4 राजा ने आपसे जीवन की प्रार्थना की, आपने उसे जीवनदान किया— \q2 हां, सदैव का जीवन. \q1 \v 5 आपके द्वारा दिए गये विजय से राजा की महिमा ऊंची हुई है; \q2 आपने उसे ऐश्वर्य एवं तेज से विभूषित किया है. \q1 \v 6 निःसंदेह आपने उसे सर्वदा के लिये आशीषें प्रदान की हैं, \q2 अपनी उपस्थिति के आनंद से आपने उसे उल्‍लसित किया है. \q1 \v 7 यह इसलिये कि महाराज का भरोसा याहवेह पर है; \q2 सर्वोच्च परमेश्वर की करुणा, प्रेम के कारण \q2 राजा अटल रहेगा. \b \q1 \v 8 आप समस्त शत्रुओं को ढूंढ़ निकालेंगे; \q2 आपका बाहुबल उन सभी को कैद कर लाएगा, जो आपसे घृणा करते हैं. \q1 \v 9 आपके प्रकट होने पर, \q2 वे सभी जलते भट्टी में जल जाएंगे. \q1 अपने कोप में याहवेह उन्हें निगल जाएगा, \q2 उनकी अग्नि उन्हें भस्म कर देगी. \q1 \v 10 आप उनकी सन्तति को पृथ्वी से मिटा देंगे, \q2 उनके वंशज मनुष्यों के मध्य नहीं रह जाएंगे. \q1 \v 11 यद्यपि आपके विरुद्ध उनकी योजना बुराई करने की है \q2 तथा वे युक्ति भी रचेंगे, वे सफल न हो पाएंगे. \q1 \v 12 क्योंकि जब आप धनुष से उन पर निशाना लगाएंगे, \q2 आपके कारण वे पीठ दिखाकर भाग खड़े होंगे. \b \q1 \v 13 अपनी शक्ति में, याहवेह, आप ऊंचे होते जाएं; \q2 हम आपके सामर्थ्य का गुणगान करेंगे. \c 22 \cl स्तोत्र 22 \d संगीत निर्देशक के लिये. “सबेरे की हिरणी” धुन पर आधारित. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 मेरे परमेश्वर, मेरे परमेश्वर, क्यों आपने मेरा परित्याग कर दिया? \q2 मुझे मुक्त करने में इतना विलंब क्यों हो रहा है? \q2 क्यों मेरे कराहने का स्वर आप सुन नहीं पा रहे? \q1 \v 2 मेरे परमेश्वर, मैं दिन में पुकारता हूं पर आप उत्तर नहीं देते, \q2 रात्रि में भी मुझे शांति प्राप्‍त नहीं हो पाती. \b \q1 \v 3 जबकि पवित्र हैं आप; \q2 जो इस्राएल के स्तवन पर विराजमान हैं. \q1 \v 4 हमारे पूर्वजों ने आप पर भरोसा किया; \q2 उन्होंने आप पर भरोसा किया और आपने उनका उद्धार किया. \q1 \v 5 उन्होंने आपको पुकारा और आपने उनका उद्धार किया; \q2 आप में उनके विश्वास ने उन्हें लज्जित होने न दिया. \b \q1 \v 6 अब मैं मनुष्य नहीं, कीड़ा मात्र रह गया हूं, \q2 मनुष्यों के लिए लज्जित, जनसाधारण के लिए अपमानित. \q1 \v 7 वे सभी, जो मुझे देखते हैं, मेरा उपहास करते हैं; \q2 वे मेरा अपमान करते हुए सिर हिलाते हुए कहते हैं, \q1 \v 8 “उसने याहवेह में भरोसा किया है, \q2 याहवेह ही उसे मुक्त कराएं. \q1 वही उसे बचाएं, \q2 क्योंकि वह याहवेह में ही मगन रहता है.” \b \q1 \v 9 आप ही हैं, जिन्होंने मुझे गर्भ से सुरक्षित निकाला; \q2 जब मैं अपनी माता की गोद में ही था, आपने मुझमें अपने प्रति विश्वास जगाया. \q1 \v 10 जन्म के समय से ही मुझे आपकी सुरक्षा में छोड़ दिया गया; \q2 आप उस क्षण से मेरे परमेश्वर हैं, जिस क्षण से मैं माता के गर्भ में आया. \b \q1 \v 11 प्रभु, मुझसे दूर न रहें, \q2 क्योंकि संकट निकट दिखाई दे रहा है \q2 और मेरा सहायक कोई नहीं. \b \q1 \v 12 अनेक सांड़ मुझे घेरे हुए हैं; \q2 बाशान के सशक्त सांड़ों ने मुझे घेर रखा है. \q1 \v 13 उन्होंने अपने मुंह ऐसे फाड़ रखे हैं \q2 जैसे गरजनेवाले हिंसक सिंह अपने शिकार को देख मुख फाड़ते हैं. \q1 \v 14 मुझे जल के समान उंडेल दिया गया है, \q2 मेरी हड्डियां जोड़ों से उखड़ गई हैं. \q1 मेरा हृदय मोम समान हो चुका है; \q2 वह भी मेरे भीतर ही भीतर पिघल चुका है. \q1 \v 15 मेरा मुंह ठीकरे जैसा शुष्क हो चुका है, \q2 मेरी जीभ तालू से चिपक गई है; \q2 आपने मुझे मृत्यु की मिट्टी में छोड़ दिया है. \b \q1 \v 16 कुत्ते मुझे घेरकर खड़े हुए हैं, \q2 दुष्टों का समूह मेरे चारों ओर खड़ा हुआ है; \q2 उन्होंने मेरे हाथ और पांव छेद दिए हैं. \q1 \v 17 अब मैं अपनी एक-एक हड्डी गिन सकता हूं; \q2 लोग मुझे ताकते हुए मुझ पर कुदृष्टि डालते हैं. \q1 \v 18 उन्होंने मेरा बाहरी कपड़ा आपस में बांट लिया, \q2 और मेरे अंदर के वस्त्र के लिए पासा फेंका. \b \q1 \v 19 किंतु, याहवेह, आप मुझसे दूर न रहें. \q2 आप मेरी शक्ति के स्रोत हैं; मेरी सहायता के लिए देर मत लगाइए. \q1 \v 20 तलवार के प्रहार से तथा कुत्तों के आक्रमण से, \q2 मेरे जीवन की रक्षा करें. \q1 \v 21 सिंहों के मुंह से तथा वन्य सांड़ों के सीगों से, \q2 मेरी रक्षा करें. \b \q1 \v 22 तब मैं स्वजनों में आपकी महिमा का प्रचार करूंगा; \q2 सभा में मैं आपका स्तवन करूंगा. \q1 \v 23 याहवेह के श्रद्धालुओ, उनका स्तवन करो! \q2 याकोब के वंशजो, उनका सम्मान करो! \q2 समस्त इस्राएल वंशजो, उनकी वंदना करो! \q1 \v 24 क्योंकि याहवेह ने दुःखितों की शोचनीय, \q2 करुण स्थिति को न तो तुच्छ जाना और न ही उससे घृणा की. \q1 वह पीड़ितों की यातनाएं देखकर उनसे दूर न हुए, \q2 परंतु उन्होंने उनकी सहायता के लिए उनकी वाणी सुनी. \b \q1 \v 25 महासभा में आपके गुणगान के लिए मेरे प्रेरणास्रोत आप ही हैं; \q2 आपके श्रद्धालुओं के सामने मैं अपने प्रण पूर्ण करूंगा. \q1 \v 26 नम्र पुरुष भोजन कर तृप्‍त हो जाएगा; \q2 जो याहवेह के खोजी हैं, वे उनका स्तवन करेंगे. \q2 सर्वदा सजीव रहे तुम्हारा हृदय! \b \q1 \v 27 पृथ्वी की छोर तक \q2 सभी मनुष्य याहवेह को स्मरण कर उनकी ओर उन्मुख होंगे, \q1 राष्ट्रों के समस्त परिवार \q2 उनके सामने नतमस्तक होंगे. \q1 \v 28 क्योंकि राज्य याहवेह ही का है, \q2 समस्त राष्ट्रों के अधिपति वही हैं. \b \q1 \v 29 खा-पीकर पृथ्वी के समस्त हृष्ट-पुष्ट उनके सामने नतमस्तक हो उनकी वंदना करेंगे; \q2 सभी नश्वर मनुष्य उनके सामने घुटने टेक देंगे, \q2 जो अपने ही प्राण जीवित रख नहीं सकते. \q1 \v 30 यह संपूर्ण पीढ़ी उनकी सेवा करेगी; \q2 भावी पीढ़ी को प्रभु के विषय में बताया जाएगा. \q1 \v 31 वे परमेश्वर की धार्मिकता तथा उनके द्वारा किए गए महाकार्य की घोषणा \q2 उस पीढ़ी के सामने करेंगे, \q2 जो अभी अजन्मी ही है. \c 23 \cl स्तोत्र 23 \d दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह मेरे चरवाहा हैं, मुझे कोई घटी न होगी. \q2 \v 2 वह मुझे हरी-हरी चराइयों में विश्रान्ति प्रदान करते हैं, \q1 वह मुझे शांत स्फूर्ति देनेवाली जलधाराओं के निकट ले जाते हैं. \q2 \v 3 वह मेरे प्राण में नवजीवन का संचार करते हैं. \q1 वह अपनी ही महिमा के निमित्त \q2 मुझे धर्म के मार्ग पर लिए चलते हैं. \q1 \v 4 यद्यपि मैं भयानक अंधकारमय घाटी \q2 में से होकर आगे बढ़ता हूं, \q1 तौभी मैं किसी बुराई से भयभीत नहीं होता, \q2 क्योंकि आप मेरे साथ होते हैं, \q1 आपकी लाठी और आपकी छड़ी, \q2 मेरे आश्वासन हैं. \b \q1 \v 5 आप मेरे शत्रुओं के सामने \q2 मेरे लिए उत्कृष्ट भोजन परोसते हैं. \q1 आप तेल से मेरे सिर को मला करते हैं; \q2 मेरा प्याला उमड़ रहा है. \q1 \v 6 निश्चयतः कुशल मंगल और करुणा-प्रेम\f + \fr 23:6 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* \q2 आजीवन मेरे साथ साथ बने रहेंगे, \q1 और मैं सदा-सर्वदा याहवेह के आवास में, \q2 निवास करता रहूंगा. \c 24 \cl स्तोत्र 24 \d दावीद की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 पृथ्वी और पृथ्वी में जो कुछ भी है, सभी कुछ याहवेह का ही है. \q2 संसार और वे सभी, जो इसमें निवास करते हैं, उन्हीं के हैं; \q1 \v 2 क्योंकि उन्हीं ने महासागर पर इसकी नींव रखी \q2 तथा जलप्रवाहों पर इसे स्थिर किया. \b \q1 \v 3 कौन चढ़ सकेगा याहवेह के पर्वत पर? \q2 कौन खड़ा रह सकेगा उनके पवित्र स्थान में? \q1 \v 4 वही, जिसके हाथ निर्मल और हृदय शुद्ध है, \q2 जो मूर्तियों पर भरोसा नही रखता, \q2 जो झूठी शपथ नहीं करता. \b \q1 \v 5 उस पर याहवेह की आशीष स्थायी रहेगी. \q2 परमेश्वर, उसका छुड़ाने वाला, उसे धर्मी घोषित करेंगे. \q1 \v 6 यही है वह पीढ़ी, जो याहवेह की कृपादृष्टि खोजने वाली, \q2 जो आपके दर्शन की अभिलाषी है, हे याकोब के परमेश्वर! \b \q1 \v 7 प्रवेश द्वारो, ऊंचे करो अपने मस्तक; \q2 प्राचीन किवाड़ो, ऊंचे हो जाओ, \q2 कि महातेजस्वी महाराज प्रवेश कर सकें. \q1 \v 8 यह महातेजस्वी राजा हैं कौन? \q2 याहवेह, तेजी और समर्थ, \q2 याहवेह, युद्ध में पराक्रमी. \q1 \v 9 प्रवेश द्वारों, ऊंचा करो अपने मस्तक; \q2 प्राचीन किवाड़ों, ऊंचे हो जाओ, \q2 कि महातेजस्वी महाराज प्रवेश कर सकें. \q1 \v 10 यह महातेजस्वी राजा कौन है? \q2 सर्वशक्तिमान याहवेह! \q2 वही हैं महातेजस्वी महाराजा. \c 25 \cl स्तोत्र 25 \d दावीद की रचना. \q1 \v 1 याहवेह, मैंने आप पर \q2 अपनी आत्मा समर्पित की है. \b \q1 \v 2 मेरे परमेश्वर, मैंने आप पर भरोसा किया है; \q2 मुझे लज्जित होने न दीजिए, \q2 और न मेरे शत्रु मेरा पीछा करने पाएं. \q1 \v 3 कोई भी, जिसने आप पर अपनी आशा रखी है \q2 लज्जित कदापि नहीं किया जा सकता, \q1 लज्जित वे किए जाएंगे, \q2 जो विश्वासघात करते हैं. \b \q1 \v 4 याहवेह, मुझे अपने मार्ग दिखा, \q2 मुझे अपने मार्गों की शिक्षा दीजिए. \q1 \v 5 अपने सत्य की ओर मेरी अगुवाई कीजिए और मुझे शिक्षा दीजिए, \q2 क्योंकि आप मेरे छुड़ानेवाले परमेश्वर हैं, \q2 दिन भर मैं आपकी ही प्रतीक्षा करता रहता हूं. \q1 \v 6 याहवेह, अपनी असीम दया तथा अपने करुणा-प्रेम\f + \fr 25:6 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द का अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये शामिल हैं\ft*\f* का स्मरण कीजिए, \q2 जो अनंत काल से होते आए हैं. \q1 \v 7 युवावस्था में किए गए मेरे अपराधों का \q2 तथा मेरे हठीले आचरण का लेखा न रखिए; \q1 परंतु, याहवेह, अपनी करुणा में मेरा स्मरण रखिए, \q2 क्योंकि याहवेह, आप भले हैं! \b \q1 \v 8 याहवेह भले एवं सत्य हैं, \q2 तब वह पापियों को अपनी नीतियों की शिक्षा देते हैं. \q1 \v 9 विनीत को वह धर्ममय मार्ग पर ले चलते हैं, \q2 तथा उसे अपने मार्ग की शिक्षा देते हैं. \q1 \v 10 जो याहवेह की वाचा एवं व्यवस्था का पालन करते हैं, \q2 उनके सभी मार्ग उनके लिए प्रेमपूर्ण एवं विश्वासयोग्य हैं. \q1 \v 11 याहवेह, अपनी महिमा के निमित्त, \q2 मेरा अपराध क्षमा करें, यद्यपि मेरा अपराध घोर है. \b \q1 \v 12 तब कौन है वह मनुष्य, जो याहवेह से डरता है? \q2 याहवेह उस पर वह मार्ग प्रकट करेंगे, जिस पर उसका चलना भला है. \q1 \v 13 तब समृद्ध होगा उसका जीवन, \q2 और उसकी सन्तति उस देश पर शासन करेगी. \q1 \v 14 अपने श्रद्धालुओं पर ही याहवेह अपने रहस्य प्रकाशित करते हैं; \q2 उन्हीं पर वह अपनी वाचा प्रगट करते हैं. \q1 \v 15 मेरी आंखें एकटक याहवेह को देख रहीं हैं, \q2 क्योंकि वही मेरे पैरों को फंदे से मुक्त करेंगे. \b \q1 \v 16 हे याहवेह, मेरी ओर मुड़कर मुझ पर कृपादृष्टि कीजिए, \q2 क्योंकि मैं अकेला तथा पीड़ित हूं. \q1 \v 17 मेरे हृदय का संताप बढ़ गया है, \q2 मुझे मेरी यातनाओं से बचा लीजिए. \q1 \v 18 मेरी पीड़ा और यातना पर दृष्टि कीजिए, \q2 और मेरे समस्त पाप क्षमा कर दीजिए. \q1 \v 19 देखिए, मेरे शत्रुओं की संख्या कितनी बड़ी है, \q2 यह भी देखिए कि मेरे प्रति कितनी उग्र है उनकी घृणा! \b \q1 \v 20 मेरे जीवन की रक्षा कीजिए और मुझे बचा लीजिए; \q2 मुझे लज्जित न होना पड़े, \q2 क्योंकि मैं आपके आश्रय में आया हूं. \q1 \v 21 खराई तथा सच्चाई मुझे सुरक्षित रखें, \q2 क्योंकि मैंने आप पर ही भरोसा किया है. \b \q1 \v 22 हे परमेश्वर, इस्राएल को बचा लीजिए, \q2 समस्त संकटों से इस्राएल को मुक्त कीजिए! \c 26 \cl स्तोत्र 26 \d दावीद की रचना. \q1 \v 1 याहवेह, मुझे निर्दोष प्रमाणित कीजिए, \q2 क्योंकि मैं सीधा हूं; \q1 याहवेह पर से मेरा भरोसा \q2 कभी नहीं डगमगाया. \q1 \v 2 याहवेह, मुझे परख लीजिए, मेरा परीक्षण कर लीजिए, \q2 मेरे हृदय और मेरे मन को परख लीजिए; \q1 \v 3 आपके करुणा-प्रेम\f + \fr 26:3 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द का अर्थ में “अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा” ये सब शामिल हैं\ft*\f* का बोध मुझमें सदैव बना रहता है, \q2 आपकी सत्यता मेरे मार्ग का आश्वासन है. \b \q1 \v 4 मैं न तो निकम्मी चाल चलने वालों की संगत करता हूं, \q2 और न मैं कपटियों से सहमत होता हूं. \q1 \v 5 कुकर्मियों की समस्त सभाएं मेरे लिए घृणित हैं \q2 और मैं दुष्टों की संगत में नहीं बैठता. \q1 \v 6 मैं अपने हाथ धोकर निर्दोषता प्रमाणित करूंगा \q2 और याहवेह, मैं आपकी वेदी की परिक्रमा करूंगा, \q1 \v 7 कि मैं उच्च स्वर में आपके प्रति आभार व्यक्त कर सकूं \q2 और आपके आश्चर्य कार्यों को बता सकूं. \b \q1 \v 8 याहवेह, मुझे आपके आवास, पवित्र मंदिर से प्रेम है, \q2 यही वह स्थान है, जहां आपकी महिमा का निवास है. \q1 \v 9 पापियों की नियति में मुझे सम्मिलित न कीजिए, \q2 हिंसक पुरुषों के साथ मुझे दंड न दीजिए. \q1 \v 10 उनके हाथों में दुष्ट युक्ति है, \q2 जिनके दायें हाथ घूस से भरे हुए हैं. \q1 \v 11 किंतु मैं अपने आचरण में सदैव खरा रहूंगा; \q2 मुझ पर कृपा कर मुझे मुक्त कर दीजिए. \b \q1 \v 12 मेरे पैर चौरस भूमि पर स्थिर हैं; \q2 श्रद्धालुओं की महासभा में मैं याहवेह की वंदना करूंगा. \c 27 \cl स्तोत्र 27 \d दावीद की रचना. \q1 \v 1 याहवेह मेरी ज्योति और उद्धार हैं; \q2 मुझे किसका भय हो सकता है? \q1 याहवेह मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ हैं, \q2 तो मुझे किसका भय? \b \q1 \v 2 जब दुर्जन मुझे निगलने के लिए \q2 मुझ पर आक्रमण करते हैं, \q1 जब मेरे विरोधी तथा मेरे शत्रु मेरे विरुद्ध उठ खड़े होते हैं, \q2 वे ठोकर खाकर गिर जाते हैं. \q1 \v 3 यदि एक सेना भी मुझे घेर ले, \q2 तब भी मेरा हृदय भयभीत न होगा; \q1 यदि मेरे विरुद्ध युद्ध भी छिड़ जाए, \q2 तब भी मैं पूर्णतः निश्चिंत बना रहूंगा. \b \q1 \v 4 याहवेह से मैंने एक ही प्रार्थना की है, \q2 यही मेरी आकांक्षा है: \q1 मैं आजीवन याहवेह के आवास में निवास कर सकूं, \q1 कि याहवेह के सौंदर्य को देखता रहूं \q2 और उनके मंदिर में मनन करता रहूं. \q1 \v 5 क्योंकि वही हैं जो संकट काल में \q2 मुझे आश्रय देंगे; \q1 वही मुझे अपने गुप्‍त-मंडप के आश्रय में छिपा लेंगे \q2 और एक उच्च चट्टान में मुझे सुरक्षा प्रदान करेंगे. \b \q1 \v 6 तब जिन शत्रुओं ने मुझे घेरा हुआ है, \q2 उनके सामने मेरा मस्तक ऊंचा हो जाएगा. \q1 तब उच्च हर्षोल्लास के साथ मैं याहवेह के गुप्‍त-मंडप में बलि अर्पित करूंगा; \q2 मैं गाऊंगा, हां, मैं याहवेह की वंदना करूंगा. \b \q1 \v 7 याहवेह, मेरी वाणी सुनिए; \q2 मुझ पर कृपा कर मुझे उत्तर दीजिए. \q1 \v 8 आपने कहा, “मेरे खोजी बनो!” मेरा हृदय आपसे यह कहता है, \q2 याहवेह, मैं आपका ही खोजी बनूंगा. \q1 \v 9 मुझसे अपना मुखमंडल न छिपाइए, \q2 क्रोध में अपने सेवक को दूर न कीजिए; \q2 आप ही मेरे सहायक रहे हैं. \q1 मेरे परमेश्वर, मेरे उद्धारक \q2 मुझे अस्वीकार न कीजिए और न मेरा परित्याग कीजिए. \q1 \v 10 मेरे माता-पिता भले ही मेरा परित्याग कर दें, \q2 किंतु याहवेह मुझे स्वीकार कर लेंगे. \q1 \v 11 याहवेह, मुझे अपने आचरण की शिक्षा दें; \q2 मेरे शत्रुओं के मध्य सुरक्षित \q2 मार्ग पर मेरी अगुवाई करें. \q1 \v 12 मुझे मेरे शत्रुओं की इच्छापूर्ति का साधन होने के लिए न छोड़ दें, \q2 मेरे विरुद्ध झूठे साक्ष्य उठ खड़े हुए हैं, \q2 वे सभी हिंसा पर उतारू हैं. \b \q1 \v 13 मुझे यह पूर्ण निश्चय है: \q2 कि मैं इसी जीवन में, \q2 याहवेह की कृपादृष्टि का अनुभव करूंगा. \q1 \v 14 याहवेह में अपनी आशा स्थिर रखो; \q2 दृढ़ रहकर साहसी बनो, \q2 हां, याहवेह पर भरोसा रखो. \c 28 \cl स्तोत्र 28 \d दावीद की रचना \q1 \v 1 याहवेह, मैं आपको पुकार रहा हूं; \q2 आप मेरी सुरक्षा की चट्टान हैं, \q2 मेरी अनसुनी न कीजिए. \q1 कहीं ऐसा न हो कि आपके प्रत्युत्तर न देने पर मैं उनके समान हो जाऊं, \q2 जो मृतक लोक में उतर रहे हैं. \q1 \v 2 जब मैं परम पवित्र स्थान \q2 की ओर अपने हाथ उठाऊं, \q1 जब मैं सहायता के लिए आपको पुकारूं, \q2 तो मेरी पुकार सुन लीजिए. \b \q1 \v 3 दुष्टों के लिए निर्धारित दंड में मुझे सम्मिलित न कीजिए, \q2 वे अधर्म करते रहते हैं, \q1 पड़ोसियों के साथ उनका वार्तालाप अत्यंत मेल-मिलाप का होता है \q2 किंतु उनके हृदय में उनके लिए बुराई की युक्तियां ही उपजती रहती हैं. \q1 \v 4 उन्हें उनके आचरण के अनुकूल ही प्रतिफल दीजिए, \q2 उन्होंने जो कुछ किया है बुराई की है; \q1 उन्हें उनके सभी कार्यों के अनुरूप दंड दीजिए, \q2 उन्हें वही दंड दीजिए, जिसके वे अधिकारी हैं. \b \q1 \v 5 क्योंकि याहवेह के महाकार्य का, \q2 याहवेह की कृतियों के लिए ही, उनकी दृष्टि में कोई महत्व नहीं! \q1 याहवेह उन्हें नष्ट कर देंगे, \q2 इस रीति से कि वे कभी उठ न पाएंगे. \b \q1 \v 6 याहवेह का स्तवन हो, \q2 उन्होंने सहायता के लिए मेरी पुकार सुन ली है. \q1 \v 7 याहवेह मेरा बल एवं मेरी ढाल हैं; \q2 उन पर ही मेरा भरोसा है, उन्होंने मेरी सहायता की है. \q1 मेरा हृदय हर्षोल्लास में उछल रहा है, \q2 मैं अपने गीत के द्वारा उनके लिए आभार व्यक्त करूंगा. \b \q1 \v 8 याहवेह अपनी प्रजा का बल हैं, \q2 अपने अभिषिक्त के लिए उद्धार का दृढ़ गढ़ हैं. \q1 \v 9 आप अपनी मीरास को उद्धार प्रदान कीजिए और उसे आशीष दीजिए; \q2 उनके चरवाहा होकर उन्हें सदा-सर्वदा संभालते रहिए. \c 29 \cl स्तोत्र 29 \d दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 स्वर्गदूत, याहवेह की महिमा करो, \q2 उनके तेज तथा सामर्थ्य की महिमा करो. \q1 \v 2 याहवेह को उनके नाम के अनुरूप महिमा प्रदान करो; \q2 उनकी पवित्रता की भव्यता में याहवेह की आराधना करो. \b \q1 \v 3 महासागर की सतह पर याहवेह का स्वर प्रतिध्वनित होता है; \q2 महिमामय परमेश्वर का स्वर गर्जन समान है, \q2 याहवेह प्रबल लहरों के ऊपर गर्जन करते हैं. \q1 \v 4 शक्तिशाली है याहवेह का स्वर; \q2 भव्य है याहवेह का स्वर. \q1 \v 5 याहवेह का स्वर देवदार वृक्ष को उखाड़ फेंकता है; \q2 याहवेह लबानोन के देवदार वृक्षों को टुकड़े-टुकड़े कर डालते हैं. \q1 \v 6 याहवेह लबानोन को बछड़े जैसे उछलने, \q2 तथा हर्मोन को वन्य सांड़ जैसे, उछलने के लिए प्रेरित करते हैं. \q1 \v 7 याहवेह के स्वर का प्रहार, \q2 बिजलियों के समान होता है. \q1 \v 8 याहवेह का स्वर वन को हिला देता है; \q2 याहवेह कादेश के बंजर भूमि को हिला देते हैं. \q1 \v 9 याहवेह के स्वर से हिरणियों का गर्भपात हो जाता है; \q2 उनके स्वर से बंजर भूमि में पतझड़ हो जाता है. \q1 तब उनके मंदिर में सभी पुकार उठते हैं, “याहवेह की महिमा ही महिमा!” \b \q1 \v 10 ढेर जल राशि पर याहवेह का सिंहासन बसा है; \q2 सर्वदा महाराजा होकर वह सिंहासन पर विराजमान हैं. \q1 \v 11 याहवेह अपनी प्रजा को बल प्रदान करते हैं; \q2 याहवेह अपनी प्रजा को शांति की आशीष प्रदान करते हैं. \c 30 \cl स्तोत्र 30 \d एक स्तोत्र. मंदिर के समर्पणोत्सव के लिए एक गीत, दावीद की रचना. \q1 \v 1 याहवेह, मैं आपकी महिमा और प्रशंसा करूंगा, \q2 क्योंकि आपने मुझे गहराई में से बचा लिया है \q2 अब मेरे शत्रुओं को मुझ पर हंसने का संतोष प्राप्‍त न हो सकेगा. \q1 \v 2 याहवेह, मेरे परमेश्वर, मैंने सहायता के लिए आपको पुकारा, \q2 आपने मुझे पुनःस्वस्थ कर दिया. \q1 \v 3 याहवेह, आपने मुझे अधोलोक से ऊपर खींच लिया; \q2 आपने मुझे जीवनदान दिया, उनमें से बचा लिया, जो अधोलोक-कब्र में हैं. \b \q1 \v 4 याहवेह के भक्तो, उनके स्तवन गान गाओ; \q2 उनकी महिमा में जय जयकार करो. \q1 \v 5 क्योंकि क्षण मात्र का होता है उनका कोप, \q2 किंतु आजीवन स्थायी रहती है उनकी कृपादृष्टि; \q1 यह संभव है रोना रात भर रहे, \q2 किंतु सबेरा उल्लास से भरा होता है. \b \q1 \v 6 अपनी समृद्धि की स्थिति में मैं कह उठा, \q2 “अब मुझ पर विषमता की स्थिति कभी न आएगी.” \q1 \v 7 याहवेह, आपने ही मुझ पर कृपादृष्टि कर, \q2 मुझे पर्वत समान स्थिर कर दिया; \q1 किंतु जब आपने मुझसे अपना मुख छिपा लिया, \q2 तब मैं निराश हो गया. \b \q1 \v 8 याहवेह, मैंने आपको पुकारा; \q2 मेरे प्रभु, मैंने आपसे कृपा की प्रार्थना की: \q1 \v 9 “क्या लाभ होगा मेरी मृत्यु से, \q2 मेरे अधोलोक में जाने से? \q1 क्या मिट्टी आपकी स्तुति करेगी? \q2 क्या वह आपकी सच्चाई की साक्ष्य देगी? \q1 \v 10 याहवेह, मेरी विनती सुनिए, मुझ पर कृपा कीजिए; \q2 याहवेह, मेरी सहायता कीजिए.” \b \q1 \v 11 आपने मेरे विलाप को उल्‍लास-नृत्य में बदल दिया; \q2 आपने मेरे शोक-वस्त्र टाट उतारकर मुझे हर्ष का आवरण दे दिया, \q1 \v 12 कि मेरा हृदय सदा आपका गुणगान करता रहे और कभी चुप न रहे. \q2 याहवेह, मेरे परमेश्वर, मैं सदा-सर्वदा आपके प्रति आभार व्यक्त करता रहूंगा. \c 31 \cl स्तोत्र 31 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, मैंने आप में ही शरण ली है; \q2 मुझे कभी लज्जित न होने दीजिए; \q2 अपनी धार्मिकता के कारण हे परमेश्वर, मेरा बचाव कीजिए. \q1 \v 2 मेरी पुकार सुनकर, \q2 तुरंत मुझे छुड़ा लीजिए; \q1 मेरी आश्रय-चट्टान होकर मेरे उद्धार का, \q2 दृढ़ गढ़ बनकर मेरी रक्षा कीजिए. \q1 \v 3 इसलिये कि आप मेरी चट्टान और मेरा गढ़ हैं, \q2 अपनी ही महिमा के निमित्त मेरे मार्ग में अगुवाई एवं संचालन कीजिए. \q1 \v 4 मुझे उस जाल से बचा लीजिए जो मेरे लिए बिछाया गया है, \q2 क्योंकि आप ही मेरा आश्रय-स्थल हैं. \q1 \v 5 अपनी आत्मा मैं आपके हाथों में सौंप रहा हूं; \q2 याहवेह, सत्य के परमेश्वर, आपने ही मुझे मुक्त किया है. \b \q1 \v 6 मुझे घृणा है व्यर्थ प्रतिमाओं के उपासकों से; \q2 किंतु मेरी, आस्था है याहवेह में. \q1 \v 7 मैं हर्षित होकर आपके करुणा-प्रेम\f + \fr 31:7 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द का अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये शामिल हैं\ft*\f* में उल्‍लसित होऊंगा, \q2 आपने मेरी पीड़ा पर ध्यान दिया \q2 और मेरे प्राण की वेदना को पहचाना है. \q1 \v 8 आपने मुझे शत्रु के हाथों में नहीं सौंपा \q2 और आपने मेरे पैरों को एक विशाल स्थान पर स्थापित किया है\f + \fr 31:8 \fr*\ft अर्थात् \ft*\fqa “मुझे स्वतंत्र चलने फिरने की स्थिति प्रदान की”\fqa*\f*. \b \q1 \v 9 याहवेह, मुझ पर अनुग्रह कीजिए, मैं इस समय संकट में हूं; \q2 शोक से मेरी आंखें धुंधली पड़ चुकी हैं, \q2 मेरे प्राण तथा मेरी देह भी शिथिल हो चुकी है. \q1 \v 10 वेदना में मेरा जीवन समाप्‍त हुआ जा रहा है; \q2 आहें भरते-भरते मेरी आयु नष्ट हो रही है; \q1 अपराधों ने मेरी शक्ति को खत्म कर दिया है, \q2 मेरी हड्डियां तक जीर्ण हो चुकी हैं. \q1 \v 11 विरोधियों के कारण, \q2 मैं अपने पड़ोसियों के सामने घृणास्पद बन गया हूं, \q1 मैं अपने परिचितों के सामने भयास्पद बन गया हूं, \q2 सड़क पर मुझे देख वे छिपने लगते हैं. \q1 \v 12 उन्होंने मुझे ऐसे भुला दिया है मानो मैं एक मृत पुरुष हूं; \q2 मैं वैसा ही व्यर्थ हो गया हूं जैसे एक टूटा पात्र. \q1 \v 13 अनेकों का फुसफुस करना मैं सुन रहा हूं; \q2 “आतंक ने मुझे चारों ओर से घेर लिया है!” \q1 वे मेरे विरुद्ध सम्मति रच रहे हैं, \q2 वे मेरे प्राण लेने के लिए तैयार हो गए हैं. \b \q1 \v 14 किंतु याहवेह, मैंने आप पर भरोसा रखा है; \q2 यह मेरी साक्षी है, “आप ही मेरे परमेश्वर हैं.” \q1 \v 15 मेरा जीवन आपके ही हाथों में है; \q2 मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ा लीजिए, \q2 उन सबसे मेरी रक्षा कीजिए, जो मेरा पीछा कर रहे हैं. \q1 \v 16 अपने मुखमंडल का प्रकाश अपने सेवक पर चमकाईए; \q2 अपने करुणा-प्रेम के कारण मेरा उद्धार कीजिए. \q1 \v 17 याहवेह, मुझे लज्जित न होना पड़े, \q2 मैं बार-बार आपको पुकारता रहा हूं; \q1 लज्जित हों दुष्ट और अधोलोक हो उनकी नियति, \q2 जहां जाकर वे चुपचाप हो जाएं. \q1 \v 18 उनके झूठ भाषी ओंठ मूक हो जाएं, \q2 क्योंकि वे घृणा एवं घमण्ड से प्रेरित हो, \q2 धर्मियों के विरुद्ध अहंकार करते रहते हैं. \b \q1 \v 19 कैसी महान है आपकी भलाई, \q2 जो आपने अपने श्रद्धालुओं के निमित्त आरक्षित रखी है, \q1 जो आपने अपने शरणागतों के लिए \q2 सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित की है. \q1 \v 20 अपनी उपस्थिति के आश्रय-स्थल में आप उन्हें \q2 मनुष्यों के षड़्‍यंत्रों से सुरक्षा प्रदान करते हैं; \q1 अपने आवास में आप उन्हें शत्रुओं के झगड़ालू जीभ से \q2 सुरक्षा प्रदान करते हैं. \b \q1 \v 21 स्तुत्य हैं, याहवेह! \q2 जब शत्रुओं ने मुझे घेर लिया था, \q2 उन्होंने मुझ पर अपना करुणा-प्रेम प्रदर्शित किया. \q1 \v 22 घबराहट में मैं कह उठा था, \q2 “मैं आपकी दृष्टि से दूर हो चुका हूं!” \q1 किंतु जब मैंने सहायता के लिए आपको आवाज दी \q2 तब आपने मेरी पुकार सुन ली. \b \q1 \v 23 याहवेह के सभी भक्तो, उनसे प्रेम करो! \q2 सच्चे लोगों को याहवेह सुरक्षा प्रदान करते हैं, \q2 किंतु अहंकारी को पूरा-पूरा दंड. \q1 \v 24 तुम सभी, जिन्होंने याहवेह पर भरोसा रखा है, \q2 दृढ़ रहते हुए साहसी बनो. \c 32 \cl स्तोत्र 32 \d दावीद की \tl मसकील\tl*\f + \fr 32:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना \q1 \v 1 धन्य हैं वे, \q2 जिनके अपराध क्षमा कर दिए गए, \q2 जिनके पापों को ढांप दिया गया है. \q1 \v 2 धन्य है वह व्यक्ति, \q2 जिसके पापों का हिसाब याहवेह कभी न लेंगे. \q2 तथा जिसके हृदय में कोई कपट नहीं है. \b \q1 \v 3 जब तक मैंने अपना पाप छिपाए रखा, \q2 दिन भर कराहते रहने के कारण, \q2 मेरी हड्डियां क्षीण होती चली गईं, \q1 \v 4 क्योंकि दिन-रात \q2 आपका हाथ मुझ पर भारी था; \q1 मेरा बल मानो ग्रीष्मकाल की \q2 ताप से सूख गया. \b \q1 \v 5 तब मैंने अपना पाप अंगीकार किया, \q2 मैंने अपना अपराध नहीं छिपाया. \q1 मैंने निश्चय किया, \q2 “मैं याहवेह के सामने अपने अपराध स्वीकार करूंगा.” \q1 जब मैंने आपके सामने अपना पाप स्वीकार किया \q2 तब आपने मेरे अपराध का दोष क्षमा किया. \b \q1 \v 6 इसलिये आपके सभी श्रद्धालु, \q2 जब तक संभव है आपसे प्रार्थना करते रहें. \q1 तब, जब संकट का प्रबल जल प्रवाह आएगा, \q2 वह उनको स्पर्श न कर सकेगा. \q1 \v 7 आप मेरे आश्रय-स्थल हैं; \q2 आप ही मुझे संकट से बचाएंगे \q2 और मुझे उद्धार के विजय घोष से घेर लेंगे. \b \q1 \v 8 याहवेह ने कहा, मैं तुम्हें सद्बुद्धि प्रदान करूंगा तथा उपयुक्त मार्ग के लिए तुम्हारी अगुवाई करूंगा; \q2 मैं तुम्हें सम्मति दूंगा और तुम्हारी रक्षा करता रहूंगा. \q1 \v 9 तुम्हारी मनोवृत्ति न तो घोड़े समान हो, न खच्चर समान, \q2 जिनमें समझ ही नहीं होती. \q1 उन्हें तो रास और लगाम द्वारा नियंत्रित करना पड़ता है, \q2 अन्यथा वे तुम्हारे निकट नहीं आते. \q1 \v 10 दुष्ट अपने ऊपर अनेक संकट ले आते हैं, \q2 किंतु याहवेह का करुणा-प्रेम\f + \fr 32:10 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द का अर्थ में \ft*\ft अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \ft*\ft ये शामिल हैं\ft*\f* \q2 उनके सच्चे लोगों को घेरे हुए उसकी सुरक्षा करता रहता है. \b \q1 \v 11 याहवेह में उल्‍लसित होओ और आनंद मनाओ, धर्मियो गाओ; \q2 तुम सभी, जो सीधे मनवाले हो, हर्षोल्लास में जय जयकार करो! \c 33 \cl स्तोत्र 33 \q1 \v 1 धर्मियों, याहवेह के लिए हर्षोल्लास में गाओ; \q2 उनका स्तवन करना सीधे लोगों के लिए शोभनीय होता है. \q1 \v 2 किन्‍नोर की संगत पर याहवेह का धन्यवाद करो; \q2 दस तंतुओं के नेबेल पर उनके लिए संगीत गाओ. \q1 \v 3 उनके स्तवन में एक नया गीत गाओ; \q2 कुशलतापूर्वक वादन करते हुए तन्मय होकर गाओ. \b \q1 \v 4 क्योंकि याहवेह का वचन सत्य और खरा है; \q2 अपने हर एक कार्य में वह विश्वासयोग्य हैं. \q1 \v 5 उन्हें धर्म तथा न्याय प्रिय हैं; \q2 समस्त पृथ्वी में याहवेह का करुणा-प्रेम व्याप्‍त है. \b \q1 \v 6 स्वर्ग याहवेह के आदेश से ही अस्तित्व में आया, \q2 तथा समस्त नक्षत्र उनके ही मुख के उच्छ्वास के द्वारा बनाए गए. \q1 \v 7 वे महासागर के जल को एक ढेर जल राशि के रूप में एकत्र कर देते हैं; \q2 और गहिरे सागरों को भण्डारगृह में रखते हैं. \q1 \v 8 समस्त पृथ्वी याहवेह को डरे; \q2 पृथ्वी के समस्त वासी उनके भय में निस्तब्ध खड़े हो जाएं. \q1 \v 9 क्योंकि उन्हीं के आदेश मात्र से यह पृथ्वी अस्तित्व में आई; \q2 उन्हीं के आदेश से यह स्थिर भी हो गई. \b \q1 \v 10 याहवेह राष्ट्रों की युक्तियां व्यर्थ कर देते हैं; \q2 वह लोगों की योजनाओं को विफल कर देते हैं. \q1 \v 11 इसके विपरीत याहवेह की योजनाएं सदा-सर्वदा स्थायी बनी रहती हैं, \q2 उनके हृदय के विचार पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहते हैं. \b \q1 \v 12 धन्य है वह राष्ट्र, जिसके परमेश्वर याहवेह हैं, \q2 वह प्रजा, जिसे उन्होंने अपना निज भाग चुन लिया. \q1 \v 13 याहवेह स्वर्ग से पृथ्वी पर दृष्टि करते हैं, \q2 वह समस्त मनुष्यों को निहारते हैं; \q1 \v 14 वह अपने आवास से पृथ्वी के \q2 समस्त निवासियों का निरीक्षण करते रहते हैं. \q1 \v 15 उन्हीं ने सब मनुष्यों के हृदय की रचना की, \q2 वही उनके सारे कार्यों को परखते रहते हैं. \b \q1 \v 16 किसी भी राजा का उद्धार उसकी सेना की सामर्थ्य से नहीं होता; \q2 किसी भी शूर योद्धा का शौर्य उसको नहीं बचाता. \q1 \v 17 विजय के लिए अश्व पर भरोसा करना निरर्थक है; \q2 वह कितना भी शक्तिशाली हो, उद्धार का कारण नहीं हो सकता. \q1 \v 18 सुनो, याहवेह की दृष्टि उन सब पर स्थिर रहती है, \q2 जो उनके श्रद्धालु होते हैं, जिनका भरोसा उनके करुणा-प्रेम में बना रहता है, \q1 \v 19 कि वही उन्हें मृत्यु से उद्धार देकर \q2 अकाल में जीवित रखें. \b \q1 \v 20 हम धैर्यपूर्वक याहवेह पर भरोसा रखे हुए हैं; \q2 वही हमारे सहायक एवं ढाल हैं. \q1 \v 21 उनमें ही हमारा हृदय आनंदित रहता है, \q2 उनकी पवित्र महिमा में ही हमें भरोसा है. \q1 \v 22 याहवेह, आपका करुणा-प्रेम\f + \fr 33:22 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* हम पर बना रहे, \q2 हमने आप पर ही भरोसा रखा है. \c 34 \cl स्तोत्र 34 \d दावीद की रचना. जब दावीद ने राजा अबीमेलेक के सामने पागल होने का स्वांग रचा था और अबीमेलेक ने उन्हें बाहर निकाल दिया जिससे वह वहां से पलायन कर सके थे. \q1 \v 1 हर एक स्थिति में मैं याहवेह को योग्य कहता रहूंगा; \q2 मेरे होंठों पर उनकी स्तुति-प्रशंसा के उद्गार सदैव ही बने रहेंगे. \q1 \v 2 मेरी आत्मा याहवेह में गर्व करती है; \q2 पीड़ित यह सुनें और उल्‍लसित हों. \q1 \v 3 मेरे साथ याहवेह का गुणगान करो; \q2 हम सब मिलकर याहवेह की महिमा को ऊंचा करें. \b \q1 \v 4 मैंने याहवेह से प्रार्थना की और उन्होंने प्रत्युत्तर दिया; \q2 उन्होंने मुझे सब प्रकार के भय से मुक्त किया. \q1 \v 5 जिन्होंने उनसे अपेक्षा की, वे उल्‍लसित ही हुए; \q2 इसमें उन्हें कभी लज्जित न होना पड़ा. \q1 \v 6 इस दुःखी पुरुष ने सहायता के लिए पुकारा और याहवेह ने प्रत्युत्तर दिया; \q2 उन्होंने उसे उसके समस्त संकटों से छुड़ा लिया है. \q1 \v 7 याहवेह का दूत उनके श्रद्धालुओं के चारों ओर उनकी चौकसी करता रहता है \q2 और उनको बचाता है. \b \q1 \v 8 स्वयं चखकर देख लो कि कितने भले हैं याहवेह; \q2 कैसा धन्य है वे, जो उनका आश्रय लेते हैं. \q1 \v 9 सभी भक्तो, याहवेह के प्रति श्रद्धा रखो. \q2 जो उन पर श्रद्धा रखते हैं, उन्हें कोई भी घटी नहीं होती. \q1 \v 10 युवा सिंह दुर्बल हो सकते हैं और वे भूखे भी रह जाते हैं, \q2 किंतु जो याहवेह के खोजी हैं, उन्हें किसी उपयुक्त वस्तु की घटी नहीं होगी. \q1 \v 11 मेरे बालको, निकट आकर ध्यान से सुनो; \q2 मैं तुम्हें याहवेह के प्रति श्रद्धा सिखाऊंगा. \q1 \v 12 तुममें से जिस किसी को जीवन के मूल्य का बोध है \q2 और जिसे सुखद दीर्घायु की आकांक्षा है, \q1 \v 13 वह अपनी जीभ को बुरा बोलने से \q2 तथा अपने होंठों को झूठ से मुक्त रखे; \q1 \v 14 बुराई में रुचि लेना छोड़कर परोपकार करे; \q2 मेल-मिलाप का यत्न करे और इसी के लिए पीछा करे. \b \q1 \v 15 क्योंकि याहवेह की दृष्टि धर्मियों पर \q2 तथा उनके कान उनकी विनती पर लगे रहते हैं, \q1 \v 16 परंतु याहवेह बुराई करनेवालों से दूर रहते हैं; \q2 कि उनका नाम ही पृथ्वी से मिटा डालें. \b \q1 \v 17 धर्मी की पुकार को याहवेह अवश्य सुनते हैं; \q2 वह उन्हें उनके संकट से छुड़ाते हैं. \q1 \v 18 याहवेह टूटे हृदय के निकट होते हैं, \q2 वह उन्हें छुड़ा लेते हैं, जो आत्मा में पीसे हुए है. \b \q1 \v 19 यह संभव है कि धर्मी पर अनेक-अनेक विपत्तियां आ पड़ें, \q2 किंतु याहवेह उसे उन सभी से बचा लेते हैं; \q1 \v 20 वह उसकी हर एक हड्डी को सुरक्षित रखते हैं, \q2 उनमें से एक भी नहीं टूटती. \b \q1 \v 21 दुष्टता ही दुष्ट की मृत्यु का कारण होती है; \q2 धर्मी के शत्रु दंडित किए जाएंगे. \q1 \v 22 याहवेह अपने सेवकों को छुड़ा लेते हैं; \q2 जो कोई उनमें आश्रय लेता है, वह दोषी घोषित नहीं किया जाएगा. \c 35 \cl स्तोत्र 35 \d दावीद की रचना \q1 \v 1 याहवेह, आप उनसे न्याय-विन्याय करें, जो मुझसे न्याय-विन्याय कर रहे हैं; \q2 आप उनसे युद्ध करें, जो मुझसे युद्ध कर रहे हैं. \q1 \v 2 ढाल और कवच के साथ; \q2 मेरी सहायता के लिए आ जाइए. \q1 \v 3 उनके विरुद्ध, जो मेरा पीछा कर रहे हैं, \q2 बर्छी और भाला उठाइये. \q1 मेरे प्राण को यह आश्वासन दीजिए, \q2 “मैं हूं तुम्हारा उद्धार.” \b \q1 \v 4 वे, जो मेरे प्राणों के प्यासे हैं, \q2 वे लज्जित और अपमानित हों; \q1 जो मेरे विनाश की योजना बना रहे हैं, \q2 पराजित हो भाग खड़े हों. \q1 \v 5 जब याहवेह का दूत उनका पीछा करे, \q2 वे उस भूसे समान हो जाएं, जिसे पवन उड़ा ले जाता है; \q1 \v 6 उनका मार्ग ऐसा हो जाए, जिस पर अंधकार और फिसलन है. \q2 और उस पर याहवेह का दूत उनका पीछा करता जाए. \b \q1 \v 7 उन्होंने अकारण ही मेरे लिए जाल बिछाया \q2 और अकारण ही उन्होंने मेरे लिए गड्ढा खोदा है, \q1 \v 8 उनका विनाश उन पर अचानक ही आ पड़े, \q2 वे उसी जाल में जा फंसे, जो उन्होंने बिछाया था, \q2 वे स्वयं उस गड्ढे में गिरकर नष्ट हो जाएं. \q1 \v 9 तब याहवेह में मेरा प्राण उल्‍लसित होगा \q2 और उनके द्वारा किया गया उद्धार मेरे हर्षोल्लास का विषय होगा. \q1 \v 10 मेरी हड्डियां तक कह उठेंगी, \q2 “कौन है याहवेह के तुल्य? \q1 आप ही हैं जो दुःखी को बलवान से, \q2 तथा दरिद्र और दीन को लुटेरों से छुड़ाते हैं.” \b \q1 \v 11 क्रूर साक्ष्य मेरे विरुद्ध उठ खड़े हुए हैं; \q2 वे मुझसे उन विषयों की पूछताछ कर रहे हैं, जिनका मुझे कोई ज्ञान ही नहीं है. \q1 \v 12 वे मेरे उपकार का प्रतिफल अपकार में दे रहे हैं, \q2 मैं शोकित होकर रह गया हूं. \q1 \v 13 जब वे दुःखी थे, मैंने सहानुभूति में शोक-वस्त्र धारण किए, \q2 यहां तक कि मैंने दीन होकर उपवास भी किया. \q1 जब मेरी प्रार्थनाएं बिना कोई उत्तर के मेरे पास लौट आईं, \q2 \v 14 मैं इस भाव में विलाप करता चला गया \q2 मानो मैं अपने मित्र अथवा भाई के लिए विलाप कर रहा हूं. \q1 मैं शोक में ऐसे झुक गया \q2 मानो मैं अपनी माता के लिए शोक कर रहा हूं. \q1 \v 15 किंतु यहां जब मैं ठोकर खाकर गिर पड़ा हूं, वे एकत्र हो आनंद मना रहे हैं; \q2 इसके पूर्व कि मैं कुछ समझ पाता, वे मुझ पर आक्रमण करने के लिए एकजुट हो गए हैं. \q2 वे लगातार मेरी निंदा कर रहे हैं. \q1 \v 16 जब वे नास्तिक जैसे मेरा उपहास कर रहे थे, उसमें क्रूरता का समावेश था; \q2 वे मुझ पर दांत भी पीस रहे थे. \b \q1 \v 17 याहवेह, आप कब तक यह सब चुपचाप ही देखते रहेंगे? \q2 उनके विनाशकारी कार्य से मेरा बचाव कीजिए, \q2 सिंहों समान इन दुष्टों से मेरी रक्षा कीजिए. \q1 \v 18 महासभा के सामने मैं आपका आभार व्यक्त करूंगा; \q2 जनसमूह में मैं आपका स्तवन करूंगा. \q1 \v 19 जो अकारण ही मेरे शत्रु बन गए हैं, \q2 अब उन्हें मेरा उपहास करने का संतोष प्राप्‍त न हो; \q1 अब अकारण ही मेरे विरोधी बन गए \q2 पुरुषों को आंखों ही आंखों में मेरी निंदा में निर्लज्जतापूर्ण संकेत करने का अवसर प्राप्‍त न हो. \q1 \v 20 उनके वार्तालाप शांति प्रेरक नहीं होते, \q2 वे शांति प्रिय नागरिकों के लिए \q2 झूठे आरोप सोचने में लगे रहते हैं. \q1 \v 21 मुख फाड़कर वे मेरे विरुद्ध यह कहते हैं, “आहा! आहा! \q2 हमने अपनी ही आंखों से सब देख लिया है.” \b \q1 \v 22 याहवेह, सत्य आपकी दृष्टि में है; अब आप शांत न रहिए. \q2 याहवेह, अब मुझसे दूर न रहिए. \q1 \v 23 मेरी रक्षा के लिए उठिए! \q2 मेरे परमेश्वर और मेरे स्वामी, मेरे पक्ष में न्याय प्रस्तुत कीजिए. \q1 \v 24 याहवेह, मेरे परमेश्वर, अपनी सच्चाई में मुझे निर्दोष प्रमाणित कीजिए; \q2 मेरी स्थिति से उन्हें कोई आनंद प्राप्‍त न हो. \q1 \v 25 वे मन ही मन यह न कह सकें, “देखा, यही तो हम चाहते थे!” \q2 अथवा वे यह न कह सकें, “हम उसे निगल गए.” \b \q1 \v 26 वे सभी, जो मेरी दुखद स्थिति पर आनंदित हो रहे हैं, \q2 लज्जित और निराश हो जाएं; \q1 वे सभी, जिन्होंने मुझे नीच प्रमाणित करना चाहा था \q2 स्वयं निंदा और लज्जा में दब जाएं. \q1 \v 27 वे सभी, जो मुझे दोष मुक्त हुआ देखने की कामना करते रहे, \q2 आनंद में उल्‍लसित हो जय जयकार करें; \q1 उनका स्थायी नारा यह हो जाए, “ऊंची हो याहवेह की महिमा, \q2 वह अपने सेवक के कल्याण में उल्‍लसित होते हैं.” \b \q1 \v 28 मेरी जीभ सर्वदा आपकी धार्मिकता की घोषणा, \q2 तथा आपकी वंदना करती रहेगी. \c 36 \cl स्तोत्र 36 \d संगीत निर्देशक के लिये. याहवेह के सेवक दावीद की रचना \q1 \v 1 दुष्ट के हृदय में \q2 उसका दोष भाव उसे कहते रहता है: \q1 उसकी दृष्टि में \q2 परमेश्वर के प्रति कोई भय है ही नहीं. \b \q1 \v 2 अपनी ही नज़रों में वह खुद की चापलूसी करता है. \q2 ऐसे में उसे न तो अपना पाप दिखाई देता है, न ही उसे पाप से घृणा होती है. \q1 \v 3 उसका बोलना छलपूर्ण एवं बुराई का है; \q2 बुद्धि ने उसका साथ छोड़ दिया है तथा उपकार भाव अब उसमें रहा ही नहीं. \q1 \v 4 यहां तक कि बिछौने पर लेटे हुए वह बुरी युक्ति रचता रहता है; \q2 उसने स्वयं को अधर्म के लिए समर्पित कर दिया है. \q2 वह बुराई को अस्वीकार नहीं कर पाता. \b \q1 \v 5 याहवेह, आपका करुणा-प्रेम स्वर्ग तक, \q2 तथा आपकी विश्वासयोग्यता आकाशमंडल तक व्याप्‍त है. \q1 \v 6 आपकी धार्मिकता विशाल पर्वत समान, \q2 तथा आपकी सच्चाई अथाह महासागर तुल्य है. \q2 याहवेह, आप ही मनुष्य एवं पशु, दोनों के परिरक्षक हैं. \q1 \v 7 कैसा अप्रतिम है आपका करुणा-प्रेम! \q2 आपके पंखों की छाया में साधारण और विशिष्ट, सभी मनुष्य आश्रय लेते हैं. \q1 \v 8 वे आपके आवास के उत्कृष्ट भोजन से तृप्‍त होते हैं; \q2 आप सुख की नदी से उनकी प्यास बुझाते हैं. \q1 \v 9 आप ही जीवन के स्रोत हैं; \q2 आपके प्रकाश के द्वारा ही हमें ज्योति का भास होता है. \b \q1 \v 10 जिनमें आपके प्रति श्रद्धा है, उन पर आप अपना करुणा-प्रेम \q2 एवं जिनमें आपके प्रति सच्चाई है, उन पर अपनी धार्मिकता बनाए रखें. \q1 \v 11 मुझे अहंकारी का पैर कुचल न पाए, \q2 और न दुष्ट का हाथ मुझे बाहर धकेल सके. \q1 \v 12 कुकर्मियों का अंत हो चुका है, वे ज़मीन-दोस्त हो चुके हैं, \q2 वे ऐसे फेंक दिए गए हैं, कि अब वे उठ नहीं पा रहे! \c 37 \cl स्तोत्र 37 \d दावीद की रचना \q1 \v 1 दुष्टों के कारण मत कुढ़ो, \q2 कुकर्मियों से डाह मत करो; \q1 \v 2 क्योंकि वे तो घास के समान शीघ्र मुरझा जाएंगे, \q2 वे हरे पौधे के समान शीघ्र नष्ट हो जाएंगे. \b \q1 \v 3 याहवेह में भरोसा रखते हुए वही करो, जो उपयुक्त है; \q2 कि तुम सुरक्षित होकर स्वदेश में खुशहाल निवास कर सको. \q1 \v 4 तुम्हारा आनंद याहवेह में मगन हो, \q2 वही तुम्हारे मनोरथ पूर्ण करेंगे. \b \q1 \v 5 याहवेह को अपने जीवन की योजनाएं सौंप दो; \q2 उन पर भरोसा करो और वे तुम्हारे लिए ये सब करेंगे: \q1 \v 6 वे तुम्हारी धार्मिकता को सबेरे के सूर्य के समान \q2 तथा तुम्हारी सच्चाई को मध्याह्न के सूर्य समान चमकाएंगे. \b \q1 \v 7 याहवेह के सामने चुपचाप रहकर \q2 धैर्यपूर्वक उन पर भरोसा करो; \q1 जब दुष्ट पुरुषों की युक्तियां सफल होने लगें \q2 अथवा जब वे अपनी बुराई की योजनाओं में सफल होने लगें तो मत कुढ़ो! \b \q1 \v 8 क्रोध से दूर रहो, कोप का परित्याग कर दो; \q2 कुढ़ो मत! इससे बुराई ही होती है. \q1 \v 9 कुकर्मी तो काट डाले जाएंगे, \q2 किंतु याहवेह के श्रद्धालुओं के लिए भाग आरक्षित है. \b \q1 \v 10 कुछ ही समय शेष है जब दुष्ट का अस्तित्व न रहेगा; \q2 तुम उसे खोजने पर भी न पाओगे. \q1 \v 11 किंतु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, \q2 वे बड़ी समृद्धि में आनंदित रहेंगे. \b \q1 \v 12 दुष्ट धर्मियों के विरुद्ध बुरी युक्ति रचते रहते हैं, \q2 उन्हें देख दांत पीसते रहते हैं; \q1 \v 13 किंतु प्रभु दुष्ट पर हंसते हैं, \q2 क्योंकि वह जानते हैं कि उसके दिन समाप्‍त हो रहे हैं. \b \q1 \v 14 दुष्ट तलवार खींचते हैं \q2 और धनुष पर डोरी चढ़ाते हैं \q1 कि दुःखी और दीन दरिद्र को मिटा दें, \q2 उनका वध कर दें, जो सीधे हैं. \q1 \v 15 किंतु उनकी तलवार उन्हीं के हृदय को छेदेगी \q2 और उनके धनुष टूट जाएंगे. \b \q1 \v 16 दुष्ट की विपुल संपत्ति की अपेक्षा \q2 धर्मी की सीमित राशि ही कहीं उत्तम है; \q1 \v 17 क्योंकि दुष्ट की भुजाओं का तोड़ा जाना निश्चित है, \q2 किंतु याहवेह धर्मियों का बल हैं. \b \q1 \v 18 याहवेह निर्दोष पुरुषों की आयु पर दृष्टि रखते हैं, \q2 उनका निज भाग सर्वदा स्थायी रहेगा. \q1 \v 19 संकट काल में भी उन्हें लज्जा का सामना नहीं करना पड़ेगा; \q2 अकाल में भी उनके पास भरपूर रहेगा. \b \q1 \v 20 दुष्टों का विनाश सुनिश्चित है: \q2 याहवेह के शत्रुओं की स्थिति घास के वैभव के समान है, \q2 वे धुएं के समान विलीन हो जाएंगे. \b \q1 \v 21 दुष्ट ऋण लेकर उसे लौटाता नहीं, \q2 किंतु धर्मी उदारतापूर्वक देता रहता है; \q1 \v 22 याहवेह द्वारा आशीषित पुरुष पृथ्वी के भागी होंगे, \q2 याहवेह द्वारा शापित पुरुष नष्ट कर दिए जाएंगे. \b \q1 \v 23 जिस पुरुष के कदम याहवेह द्वारा नियोजित किए जाते हैं, \q2 उसके आचरण से याहवेह प्रसन्‍न होते हैं; \q1 \v 24 तब यदि वह लड़खड़ा भी जाए, वह गिरेगा नहीं, \q2 क्योंकि याहवेह उसका हाथ थामे हुए हैं. \b \q1 \v 25 मैंने युवावस्था देखी और अब मैं प्रौढ़ हूं, \q2 किंतु आज तक मैंने न तो धर्मी को शोकित होते देखा है \q2 और न उसकी संतान को भीख मांगते. \q1 \v 26 धर्मी सदैव उदार ही होते हैं तथा उदारतापूर्वक देते रहते हैं; \q2 आशीषित रहती है उनकी संतान. \b \q1 \v 27 बुराई से परे रहकर परोपकार करो; \q2 तब तुम्हारा जीवन सदैव सुरक्षित बना रहेगा. \q1 \v 28 क्योंकि याहवेह को सच्चाई प्रिय है \q2 और वे अपने भक्तों का परित्याग कभी नहीं करते. \b \q1 वह चिरकाल के लिए सुरक्षित हो जाते हैं; \q2 किंतु दुष्ट की सन्तति मिटा दी जाएगी. \q1 \v 29 धर्मी पृथ्वी के भागी होंगे \q2 तथा उसमें सर्वदा निवास करेंगे. \b \q1 \v 30 धर्मी अपने मुख से ज्ञान की बातें कहता है, \q2 तथा उसकी जीभ न्याय संगत वचन ही उच्चारती है. \q1 \v 31 उसके हृदय में उसके परमेश्वर की व्यवस्था बसी है; \q2 उसके कदम फिसलते नहीं. \b \q1 \v 32 दुष्ट, जो धर्मी के प्राणों का प्यासा है, \q2 उसकी घात लगाए बैठा रहता है; \q1 \v 33 किंतु याहवेह धर्मी को दुष्ट के अधिकार में जाने नहीं देंगे \q2 और न ही न्यायालय में उसे दोषी प्रमाणित होने देंगे. \b \q1 \v 34 याहवेह की सहायता की प्रतीक्षा करो \q2 और उन्हीं के सन्मार्ग पर चलते रहो. \q1 वही तुमको ऐसा ऊंचा करेंगे, कि तुम्हें उस भूमि का अधिकारी कर दें; \q2 दुष्टों की हत्या तुम स्वयं अपनी आंखों से देखोगे. \b \q1 \v 35 मैंने एक दुष्ट एवं क्रूर पुरुष को देखा है \q2 जो उपजाऊ भूमि के हरे वृक्ष के समान ऊंचा था, \q1 \v 36 किंतु शीघ्र ही उसका अस्तित्व समाप्‍त हो गया; \q2 खोजने पर भी मैं उसे न पा सका. \b \q1 \v 37 निर्दोष की ओर देखो, खरे को देखते रहो; \q2 उज्जवल होता है शांत पुरुष का भविष्य. \q1 \v 38 किंतु समस्त अपराधी नाश ही होंगे; \q2 दुष्टों की सन्तति ही मिटा दी जाएगी. \b \q1 \v 39 याहवेह धर्मियों के उद्धार का उगम स्थान हैं; \q2 वही विपत्ति के अवसर पर उनके आश्रय होते हैं. \q1 \v 40 याहवेह उनकी सहायता करते हुए उनको बचाते हैं; \q2 इसलिये कि धर्मी याहवेह का आश्रय लेते हैं, \q2 याहवेह दुष्ट से उनकी रक्षा करते हुए उनको बचाते हैं. \c 38 \cl स्तोत्र 38 \d दावीद का एक स्तोत्र. अभ्यर्थना. \q1 \v 1 याहवेह, अपने क्रोध में मुझे न डांटिए \q2 और न अपने कोप में मुझे दंड दीजिए. \q1 \v 2 क्योंकि आपके बाण मुझे लग चुके हैं, \q2 और आपके हाथ के बोझ ने मुझे दबा रखा है. \q1 \v 3 आपके प्रकोप ने मेरी देह को स्वस्थ नहीं छोड़ा; \q2 मेरे ही पाप के परिणामस्वरूप मेरी हड्डियों में अब बल नहीं रहा. \q1 \v 4 मैं अपने अपराधों में डूब चुका हूं; \q2 एक अतिशय बोझ के समान वे मेरी उठाने की क्षमता से परे हैं. \b \q1 \v 5 मेरे घाव सड़ चुके हैं, वे अत्यंत घृणास्पद हैं \q2 यह सभी मेरी पापमय मूर्खता का ही परिणाम है. \q1 \v 6 मैं झुक गया हूं, दुर्बलता के शोकभाव से अत्यंत नीचा हो गया हूं; \q2 सारे दिन मैं विलाप ही करता रहता हूं. \q1 \v 7 मेरी कमर में जलती-चुभती-सी पीड़ा हो रही है; \q2 मेरी देह अत्यंत रुग्ण हो गई है. \q1 \v 8 मैं दुर्बल हूं और टूट चुका हूं; \q2 मैं हृदय की पीड़ा में कराह रहा हूं. \b \q1 \v 9 प्रभु, आपको यह ज्ञात है कि मेरी आकांक्षा क्या है; \q2 मेरी आहें आपसे छुपी नहीं हैं. \q1 \v 10 मेरे हृदय की धड़कने तीव्र हो गई हैं, मुझमें बल शेष न रहा; \q2 यहां तक कि मेरी आंखों की ज्योति भी जाती रही. \q1 \v 11 मेरे मित्र तथा मेरे साथी मेरे घावों के कारण मेरे निकट नहीं आना चाहते; \q2 मेरे संबंधी मुझसे दूर ही दूर रहते हैं. \q1 \v 12 मेरे प्राणों के प्यासे लोगों ने मेरे लिए जाल बिछाया है, \q2 जिन्हें मेरी दुर्गति की कामना है; मेरे विनाश की योजना बना रहे हैं, \q2 वे सारे दिन छल की बुरी युक्ति रचते रहते हैं. \b \q1 \v 13 मैं बधिर मनुष्य जैसा हो चुका हूं, जिसे कुछ सुनाई नहीं देता, \q2 मैं मूक पुरुष-समान हो चुका हूं, जो बातें नहीं कर सकता; \q1 \v 14 हां, मैं उस पुरुष-सा हो चुका हूं, जिसकी सुनने की शक्ति जाती रही, \q2 जिसका मुख बोलने के योग्य नहीं रह गया. \q1 \v 15 याहवेह, मैंने आप पर ही भरोसा किया है; \q2 कि प्रभु मेरे परमेश्वर उत्तर आपसे ही प्राप्‍त होगा. \q1 \v 16 मैंने आपसे अनुरोध किया था, “यदि मेरे पैर फिसलें, \q2 तो उन्हें मुझ पर हंसने और प्रबल होने का सुख न देना.” \b \q1 \v 17 अब मुझे मेरा अंत निकट आता दिख रहा है, \q2 मेरी पीड़ा सतत मेरे सामने बनी रहती है. \q1 \v 18 मैं अपना अपराध स्वीकार कर रहा हूं; \q2 मेरे पाप ने मुझे अत्यंत व्याकुल कर रखा है. \q1 \v 19 मेरे शत्रु प्रबल, सशक्त तथा अनेक हैं; \q2 जो अकारण ही मुझसे घृणा करते हैं. \q1 \v 20 वे मेरे उपकारों का प्रतिफल अपकार में देते हैं; \q2 जब मैं उपकार करना चाहता हूं, \q2 वे मेरा विरोध करते हैं. \b \q1 \v 21 याहवेह, मेरा परित्याग न कीजिए; \q2 मेरे परमेश्वर, मुझसे दूर न रहिए. \q1 \v 22 तुरंत मेरी सहायता कीजिए, \q2 मेरे प्रभु, मेरे उद्धारकर्ता. \c 39 \cl स्तोत्र 39 \d संगीत निर्देशक के लिये. यदूथून के लिए. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 मैंने निश्चय किया, “मैं पाप करने से अपने आचरण \q2 एवं जीभ से अपने बोलने की चौकसी करूंगा; \q1 यदि मैं दुष्टों की उपस्थिति में हूं, \q2 मैं अपने वचनों पर नियंत्रण रखूंगा.” \q1 \v 2 तब मैंने मौन धारण कर लिया, \q2 यहां तक कि मैंने भली बातों पर भी नियंत्रण लगा दिया, \q1 तब मेरी व्याकुलता बढ़ती चली गई; \q2 \v 3 भीतर ही भीतर मेरा हृदय जलता गया \q1 और इस विषय पर अधिक विचार करने पर मेरे भीतर अग्नि भड़कने लगी; \q2 तब मैंने अपना मौन तोड़ दिया और जीभ से बोल उठा: \b \q1 \v 4 “याहवेह, मुझ पर मेरे जीवन का अंत प्रकट कर दीजिए. \q2 मुझे बताइए कि कितने दिन शेष हैं मेरे जीवन के; \q2 मुझ पर स्पष्ट कीजिए कि कितना है मेरा क्षणभंगुर जीवन. \q1 \v 5 आपने मेरी आयु क्षणिक मात्र ही निर्धारित की है; \q2 आपकी तुलना में मेरी आयु के वर्ष नगण्य हैं. \q1 वैसे भी मनुष्य का जीवन-श्वास मात्र ही होता है, \q2 वह शक्तिशाली व्यक्ति का भी. \b \q1 \v 6 “एक छाया के समान, जो चलती-फिरती रहती है; \q2 उसकी सारी भाग दौड़ निरर्थक ही होती है. \q2 वह धन संचित करता जाता है, किंतु उसे यह ज्ञात ही नहीं होता, कि उसका उपभोग कौन करेगा. \b \q1 \v 7 “तो प्रभु, अब मैं किस बात की प्रतीक्षा करूं? \q2 मेरी एकमात्र आशा आप ही हैं. \q1 \v 8 मुझे मेरे समस्त अपराधों से उद्धार प्रदान कीजिए; \q2 मुझे मूर्खों की घृणा का पात्र होने से बचाइए. \q1 \v 9 मैं मूक बन गया; मैंने कुछ भी न कहना उपयुक्त समझा, \q2 क्योंकि आप उठे थे. \q1 \v 10 अब मुझ पर प्रहार करना रोक दीजिए; \q2 आपके प्रहार से मैं टूट चुका हूं. \q1 \v 11 मनुष्यों द्वारा किए गए अपराध के लिए आप उन्हें ताड़ना के साथ दंड देते हैं, \q2 आप उनकी अमूल्य संपत्ति ऐसे नष्ट कर देते हैं, मानो उसे कीड़ा खा गया. \q2 निश्चयतः मनुष्य मात्र एक श्वास है. \b \q1 \v 12 “याहवेह, मेरी प्रार्थना सुनिए, \q2 मेरी सहायता की पुकार पर ध्यान दीजिए; \q2 मेरे आंसुओं की अनसुनी न कीजिए. \q1 मैं अल्पकाल के लिए आपका परदेशी हूं, \q2 ठीक जिस प्रकार मेरे समस्त पूर्वज प्रवासी थे. \q1 \v 13 इसके पूर्व कि मैं चला जाऊं, अपनी कोपदृष्टि मुझ पर से हटा लीजिए, \q2 कि कुछ समय के लिए ही मुझे आनंद का सुख प्राप्‍त हो सके.” \c 40 \cl स्तोत्र 40 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 मैं धैर्यपूर्वक याहवेह की प्रतीक्षा करता रहा; \q2 उन्होंने मेरी ओर झुककर मेरा रोना सुना. \q1 \v 2 उन्होंने मुझे सत्यानाश के गड्ढे में से बचा लिया, \q2 दलदल और कीच के गड्ढे से निकाला; \q1 उन्होंने मुझे एक चट्टान पर ले जा खड़ा कर दिया \q2 अब मेरे पांव स्थिर स्थान पर है. \q1 \v 3 उन्होंने मुझे हमारे परमेश्वर के स्तवन में, \q2 एक नए गीत को सिखाया. \q1 अनेक यह देखेंगे, श्रद्धा से भयभीत हो जाएंगे \q2 और याहवेह में विश्वास करेंगे. \b \q1 \v 4 धन्य है वह पुरुष, \q2 जो याहवेह पर भरोसा रखता है, \q1 जो अभिमानियों से कोई आशा नहीं रखता, अथवा उनसे, \q2 जो झूठे देवताओं की शरण में हैं. \q1 \v 5 याहवेह, मेरे परमेश्वर, \q2 आपके द्वारा किए गए चमत्कार चिन्ह अनेक-अनेक हैं, \q2 और हमारे लिए आपके द्वारा योजित योजनाएं. \q1 आपके तुल्य कोई भी नहीं है; \q2 यदि मैं उनका वर्णन करना प्रारंभ भी करूं, \q2 तो उनके असंख्य होने के कारण उनकी गिनती करना असंभव होगा. \b \q1 \v 6 आपको बलि और भेंट की कोई अभिलाषा नहीं, \q2 किंतु आपने मेरे कान खोल दिए. \q2 आपने अग्निबलि और पापबलि की भी चाहत नहीं की. \q1 \v 7 तब मैंने यह कहा, “देखिए मैं आ रहा हूं; \q2 पुस्तिका में यह मेरे ही विषय में लिखा है. \q1 \v 8 मेरे परमेश्वर, मुझे प्रिय है आपकी ही इच्छापूर्ति; \q2 आपकी व्यवस्था मेरे हृदय में बसी है.” \b \q1 \v 9 विशाल सभा में मैंने आपके धर्ममय शुभ संदेश का प्रचार किया है; \q2 देख लीजिए, याहवेह, आप जानते हैं \q2 कि मैं इस विषय में चुप न रहूंगा. \q1 \v 10 मैंने अपने परमेश्वर की धार्मिकता को अपने हृदय में ही सीमित नहीं रखा; \q2 मैं आपकी विश्वासयोग्यता तथा आपके द्वारा प्रदान किए गए उद्धार की चर्चा करता रहता हूं. \q1 विशाल सभा के सामने \q2 मैं आपके सत्य एवं आपके करुणा-प्रेम\f + \fr 40:10 \fr*\ft करुणा-प्रेम \ft*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* को छुपाता नहीं. \b \q1 \v 11 याहवेह, आप अपनी कृपा से मुझे दूर न करिये; \q2 आपका करुणा-प्रेम तथा आपकी सत्यता निरंतर मुझे सुरक्षित रखेंगे. \q1 \v 12 मैं असंख्य बुराइयों से घिर चुका हूं; मेरे अपराधों ने बढ़कर मुझे दबा दिया है; \q2 परिणामस्वरूप अब मैं देख भी नहीं पा रहा. \q1 ये अपराध संख्या में मेरे सिर के बालों से भी अधिक हैं, \q2 मेरा साहस अब टूटा जा रहा है. \q1 \v 13 याहवेह, कृपा कर मुझे उद्धार प्रदान कीजिए; \q2 याहवेह, तुरंत मेरी सहायता कीजिए. \b \q1 \v 14 वे, जो मेरे प्राणों के प्यासे हैं, \q2 लज्जित और निराश किए जाएं; \q1 वे जिनका आनंद मेरी पीड़ा में है, \q2 पीठ दिखाकर भागें तथा अपमानित किए जाएं. \q1 \v 15 वे सभी, जो मेरी स्थिति को देख, “आहा! आहा!” \q2 कर रहे हैं, अपनी ही लज्जास्पद स्थिति को देख विस्मित हो जाएं. \q1 \v 16 किंतु वे सभी, जो आपकी खोज करते हैं \q2 हर्षोल्लास में मगन हों; \q1 वे सभी, जिन्हें आपके उद्धार की आकांक्षा है, यही कहें, \q2 “अति महान हैं याहवेह!” \b \q1 \v 17 प्रभु, मैं गरीब और ज़रूरतमंद हूं; \q2 इस कारण मुझ पर कृपादृष्टि कीजिए. \q1 आप ही मेरे सहायक तथा छुड़ानेवाले हैं; \q2 मेरे परमेश्वर, अब विलंब न कीजिए. \c 41 \cl स्तोत्र 41 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 धन्य है वह मनुष्य, जो दरिद्र एवं दुर्बल की सुधि लेता है; \q2 याहवेह विपत्ति की स्थिति से उसका उद्धार करते हैं. \q1 \v 2 याहवेह उसे सुरक्षा प्रदान कर उसके जीवन की रक्षा करेंगे. \q2 वह अपने देश में आशीषित होगा. \q2 याहवेह उसे उसके शत्रुओं की इच्छापूर्ति के लिए नहीं छोड़ देंगे. \q1 \v 3 रोगशय्या पर याहवेह उसे संभालते रहेंगे, \q2 और उसे पुनःस्वस्थ करेंगे. \b \q1 \v 4 मैंने पुकारा, “याहवेह, मुझ पर कृपा कीजिए; \q2 यद्यपि मैंने आपके विरुद्ध पाप किया है, फिर भी मुझे रोगमुक्त कीजिए.” \q1 \v 5 बुराई भाव में मेरे शत्रु मेरे विषय में कामना करते हैं, \q2 “कब मरेगा वह और कब उसका नाम मिटेगा?” \q1 \v 6 जब कभी उनमें से कोई मुझसे भेंट करने आता है, \q2 वह खोखला दिखावा मात्र करता है, जबकि मन ही मन वह मेरे विषय में अधर्म की बातें संचय करता है; \q2 बाहर जाकर वह इनके आधार पर मेरी निंदा करता है. \b \q1 \v 7 मेरे समस्त शत्रु मिलकर मेरे विरुद्ध में कानाफूसी करते रहते हैं; \q2 वे मेरे संबंध में बुराई की योजना सोचते रहते हैं. \q1 \v 8 वे कहते हैं, “उसे एक घृणित रोग का संक्रमण हो गया है; \q2 अब वह इस रोगशय्या से कभी उठ न सकेगा.” \q1 \v 9 यहां तक कि जो मेरा परम मित्र था, \q2 जिस पर मैं भरोसा करता था, \q1 जिसके साथ मैं भोजन करता था, \q2 उसी ने मुझ पर लात उठाई है. \b \q1 \v 10 किंतु याहवेह, आप मुझ पर कृपा करें; \q2 मुझमें पुनः बल-संचार करें कि मैं उनसे प्रतिशोध ले सकूं. \q1 \v 11 इसलिये कि मेरा शत्रु मुझे नाश न कर सका, \q2 मैं समझ गया हूं कि आप मुझसे अप्रसन्‍न नहीं हैं. \q1 \v 12 मेरी सच्चाई के कारण मुझे स्थिर रखते हुए, \q2 सदा-सर्वदा के लिए अपनी उपस्थिति में मुझे बसा लीजिए. \b \b \q1 \v 13 सर्वदा से सर्वदा तक इस्राएल के परमेश्वर, \q2 याहवेह का स्तवन होता रहे. \qc आमेन और आमेन. \c 42 \ms द्वितीय पुस्तक \mr स्तोत्र 42–72 \cl स्तोत्र 42 \d संगीत निर्देशक के लिये. कोराह के पुत्रों की \tl मसकील\tl*\f + \fr 42:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना. \q1 \v 1 जैसे हिरणी को बहते झरनों की उत्कट लालसा होती है, \q2 वैसे ही परमेश्वर, मेरे प्राण को आपकी लालसा रहती है. \q1 \v 2 मेरा प्राण परमेश्वर के लिए, हां, जीवन्त परमेश्वर के लिए प्यासा है. \q2 मैं कब जाकर परमेश्वर से भेंट कर सकूंगा? \q1 \v 3 दिन और रात, \q2 मेरे आंसू ही मेरा आहार बन गए हैं. \q1 सारे दिन लोग मुझसे एक ही प्रश्न कर रहे हैं, \q2 “कहां है तुम्हारा परमेश्वर?” \q1 \v 4 जब मैं अपने प्राण आपके सम्मुख उंडेल रहा हूं, \q2 मुझे उन सारी घटनाओं का स्मरण आ रहा है; \q1 क्योंकि मैं ही परमेश्वर के भवन की ओर अग्रगामी, \q2 विशाल जनसमूह की शोभायात्रा का अधिनायक हुआ करता था. \q1 उस समय उत्सव के वातावरण में जय जयकार \q2 तथा धन्यवाद की ध्वनि गूंज रही होती थी. \b \q1 \v 5 मेरे प्राण, तुम ऐसे खिन्‍न क्यों हो? \q2 क्यों मेरे हृदय में तुम ऐसे व्याकुल हो गए हो? \q1 परमेश्वर पर भरोसा रखो, \q2 क्योंकि यह सब होने पर मैं पुनः उनकी उपस्थिति \q2 के आश्वासन के लिए उनका स्तवन करूंगा. \b \q1 \v 6 मेरे परमेश्वर! मेरे अंदर खिन्‍न है मेरा प्राण; \q2 तब मैं यरदन प्रदेश से तथा हरमोन, \q1 मित्सार पर्वत से \q2 आपका स्मरण करूंगा. \q1 \v 7 आपके झरने की गर्जना के ऊपर से \q2 सागर सागर का आह्वान करता है; \q1 सागर की लहरें तथा तट पर टकराती लहरें \q2 मुझ पर होती हुई निकल गईं. \b \q1 \v 8 दिन के समय याहवेह अपना करुणा-प्रेम प्रगट करते हैं, \q2 रात्रि में उनका गीत जो मेरे जीवन के लिए परमेश्वर को संबोधित \q2 एक प्रार्थना है, उसे मैं गाया करूंगा. \b \q1 \v 9 परमेश्वर, मेरी चट्टान\f + \fr 42:9 \fr*\ft अर्थात् \ft*\fqa आश्रय\fqa*\f* से मैं प्रश्न करूंगा, \q2 “आप मुझे क्यों भूल गए? \q1 मेरे शत्रुओं द्वारा दी जा रही यातनाओं के कारण, \q2 क्यों मुझे शोकित होना पड़ रहा है?” \q1 \v 10 जब सारे दिन मेरे दुश्मन \q2 यह कहते हुए मुझ पर ताना मारते हैं, \q1 “कहां है तुम्हारा परमेश्वर?” \q2 तब मेरी हड्डियां मृत्यु वेदना सह रहीं हैं. \b \q1 \v 11 मेरे प्राण, तुम ऐसे खिन्‍न क्यों हो? \q2 क्यों मेरे हृदय में तुम ऐसे व्याकुल हो गए हो? \q1 परमेश्वर पर भरोसा रखो, \q2 क्योंकि यह सब होते हुए भी \q2 मैं याहवेह का स्तवन करूंगा. \c 43 \cl स्तोत्र 43 \q1 \v 1 परमेश्वर, मुझे निर्दोष प्रमाणित कीजिए, \q2 श्रद्धाहीन पीढ़ी के विरुद्ध \q2 मेरे पक्ष में निर्णय दीजिए. \q1 मुझे झूठ बोलने वालों से एवं दुष्ट लोगों \q2 से मुक्त कीजिए. \q1 \v 2 क्योंकि आप वह परमेश्वर हैं, जिनमें मेरा बल है. \q2 आप मुझे भूल क्यों गए? \q1 मेरे शत्रुओं द्वारा दी जा रही यातनाओं के कारण, \q2 मुझे शोकित क्यों होना पड़ रहा है? \q1 \v 3 अपनी ज्योति तथा अपना सत्य भेज दीजिए, \q2 उन्हें ही मेरी अगुवाई करने दीजिए; \q1 कि मैं आपके पवित्र पर्वत तक पहुंच सकूं, \q2 जो आपका आवास है. \q1 \v 4 तब मैं परमेश्वर की वेदी के निकट जा सकूंगा, \q2 वही परमेश्वर, जो मेरे परमानंद हैं. \q1 तब परमेश्वर, मेरे परमेश्वर, \q2 मैं किन्‍नोर की संगत पर आपकी वंदना करूंगा. \b \q1 \v 5 मेरे प्राण, तुम ऐसे खिन्‍न क्यों हो? \q2 क्यों मेरे हृदय में तुम ऐसे व्याकुल हो गए हो? \q1 परमेश्वर पर भरोसा रखो, \q2 क्योंकि यह सब होते हुए भी \q2 मैं याहवेह का स्तवन करूंगा. \c 44 \cl स्तोत्र 44 \d संगीत निर्देशक के लिये. कोराह के पुत्रों की रचना. एक \tl मसकील.\tl*\f + \fr 44:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* \q1 \v 1 हे परमेश्वर, हमने अपने कानों से सुना है, \q2 पूर्वजों ने उसका उल्लेख किया है, \q1 कि प्राचीन काल में, \q2 हमारे पूर्वजों के समय में \q1 आपने जो कुछ किया है: \q1 \v 2 अपने भुजबल से आपने जनताओं को निकाल दिया \q2 और उनके स्थान पर हमारे पूर्वजों को बसा दिया; \q1 आपने उन लोगों को कुचल दिया \q2 और हमारे पूर्वजों को समृद्ध बना दिया. \q1 \v 3 यह अधिकार उन्होंने अपनी तलवार के बल पर नहीं किया, \q2 और न ही यह उनके भुजबल का परिणाम था; \q1 यह परिणाम था आपके दायें हाथ, \q2 उसकी सामर्थ्य तथा \q2 आपके मुख के प्रकाश का, क्योंकि वे आपकी प्रीति के पात्र थे. \b \q1 \v 4 मेरे परमेश्वर, आप मेरे राजा हैं, \q2 याकोब की विजय का आदेश दीजिए. \q1 \v 5 आपके द्वारा ही हम अपने शत्रुओं पर प्रबल हो सकेंगे; \q2 आप ही के महिमामय नाम से हम अपने शत्रुओं को कुचल डालेंगे. \q1 \v 6 मुझे अपने धनुष पर भरोसा नहीं है, \q2 मेरी तलवार भी मेरी विजय का साधन नहीं है; \q1 \v 7 हमें अपने शत्रुओं पर विजय आपने ही प्रदान की है, \q2 आपने ही हमारे शत्रुओं को लज्जित किया है. \q1 \v 8 हम निरंतर परमेश्वर में गर्व करते रहे, \q2 हम सदा-सर्वदा आपकी महिमा का धन्यवाद करते रहेंगे. \b \q1 \v 9 किंतु अब आपने हमें लज्जित होने के लिए शोकित छोड़ दिया है; \q2 आप हमारी सेना के साथ भी नहीं चल रहे. \q1 \v 10 आपके दूर होने के कारण, हमें शत्रुओं को पीठ दिखानी पड़ी. \q2 यहां तक कि हमारे विरोधी हमें लूटकर चले गए. \q1 \v 11 आपने हमें वध के लिए निर्धारित भेड़ों समान छोड़ दिया है. \q2 आपने हमें अनेक राष्ट्रों में बिखेर दिया है. \q1 \v 12 आपने अपनी प्रजा को मिट्टी के मोल बेच दिया, \q2 और ऊपर से आपने इसमें लाभ मिलने की भी बात नहीं की. \b \q1 \v 13 अपने पड़ोसियों के लिए अब हम निंदनीय हो गए हैं, \q2 सबके सामने घृणित एवं उपहास पात्र. \q1 \v 14 राष्ट्रों में हम उपमा होकर रह गए हैं; \q2 हमारे नाम पर वे सिर हिलाने लगते हैं. \q1 \v 15 सारे दिन मेरा अपमान मेरे सामने झूलता रहता है, \q2 तथा मेरी लज्जा ने मुझे भयभीत कर रखा है. \q1 \v 16 उस शत्रु की वाणी, जो मेरी निंदा एवं मुझे कलंकित करता है, \q2 उसकी उपस्थिति के कारण जो शत्रु तथा बदला लेनेवाले है. \b \q1 \v 17 हमने न तो आपको भुला दिया था, \q2 और न हमने आपकी वाचा ही भंग की; \q2 फिर भी हमें यह सब सहना पड़ा. \q1 \v 18 हमारे हृदय आपसे बहके नहीं; \q2 हमारे कदम आपके मार्ग से भटके नहीं. \q1 \v 19 फिर भी आपने हमें उजाड़ कर गीदड़ों का बसेरा बना दिया; \q2 और हमें गहन अंधकार में छिपा दिया. \b \q1 \v 20 यदि हम अपने परमेश्वर को भूल ही जाते \q2 अथवा हमने अन्य देवताओं की ओर हाथ बढ़ाया होता, \q1 \v 21 क्या परमेश्वर को इसका पता न चल गया होता, \q2 उन्हें तो हृदय के सभी रहस्यों का ज्ञान होता है? \q1 \v 22 फिर भी आपके निमित्त हम दिन भर मृत्यु का सामना करते रहते हैं; \q2 हमारी स्थिति वध के लिए निर्धारित भेड़ों के समान है. \b \q1 \v 23 जागिए, प्रभु! सो क्यों रहे हैं? \q2 उठ जाइए! हमें सदा के लिए शोकित न छोड़िए. \q1 \v 24 आपने हमसे अपना मुख क्यों छिपा लिया है \q2 हमारी दुर्दशा और उत्पीड़न को अनदेखा न कीजिए? \b \q1 \v 25 हमारे प्राण धूल में मिल ही चुके हैं; \q2 हमारा पेट भूमि से जा लगा है. \q1 \v 26 उठकर हमारी सहायता कीजिए; \q2 अपने करुणा-प्रेम के निमित्त हमें मुक्त कीजिए. \c 45 \cl स्तोत्र 45 \d संगीत निर्देशक के लिये. “कुमुदिनी” धुन पर आधारित. कोराह के पुत्रों की रचना. एक \tl मसकील.\tl*\f + \fr 45:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* एक विवाह गीत. \q1 \v 1 राजा के सम्मान में कविता पाठ करते हुए \q2 मेरे हृदय में मधुर भाव उमड़ रहा हैं; \q2 मेरी जीभ कुशल लेखक की लेखनी बन गई है. \b \q1 \v 2 आप ही पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ हैं, \q2 आपके होंठों में अनुग्रह भरा होता है, \q2 क्योंकि स्वयं परमेश्वर द्वारा आपको सदैव के लिए आशीषित किया गया है. \b \q1 \v 3 परमवीर योद्धा, तलवार से सुसज्जित हो जाइए; \q2 ऐश्वर्य और तेज धारण कर लीजिए. \q1 \v 4 सत्य, विनम्रता तथा धार्मिकता की रक्षा करते हुए, \q2 आपके समृद्ध यश में, ऐश्वर्य के साथ अपने अश्व पर सवार हो जाइए! \q2 आपका दायां हाथ अद्भुत कार्य कर दिखाए! \q1 \v 5 आपके तीक्ष्ण बाण राजा के शत्रुओं के हृदय बेध दें; \q2 राष्ट्र आपसे नाश हो आपके चरणों में गिर पड़ें. \q1 \v 6 परमेश्वर, आपका सिंहासन अमर है; \q2 आपके राज्य का राजदंड वही होगा, जो सच्चाई का राजदंड है. \q1 \v 7 धार्मिकता आपको प्रिय है तथा दुष्टता घृणास्पद; \q2 यही कारण है कि परमेश्वर, \q2 आपके परमेश्वर ने हर्ष के तेल से आपको अभिषिक्त करके आपके समस्त साथियों से ऊंचे स्थान पर बसा दिया है. \q1 \v 8 आपके सभी वस्त्र गन्धरस, अगरू तथा तेजपात से सुगंधित किए गए हैं; \q2 हाथी-दांत से जड़ित राजमहल \q2 से मधुर तन्तु वाद्यों का संगीत आपको मगन करता रहता है. \q1 \v 9 आपके राज्य में आदरणीय स्त्रियों के पद पर राजकुमारियां हैं; \q2 आपके दायें पक्ष में ओफीर राज्य के कुन्दन से सजी राज-वधू विराजमान हैं. \b \q1 \v 10 राजकन्या, सुनिए, ध्यान दीजिए और विचार कीजिए: \q2 अब आपका राज्य और आपके पिता का परिवार प्राचीन काल का विषय हो गया. \q1 \v 11 तब महाराज आपके सौंदर्य की कामना करेंगे; \q2 क्योंकि वह आपके स्वामी हैं, अब आप उनके सामने नतमस्तक हों. \q1 \v 12 सोर देश की राजकन्या उपहार लेकर आएंगी, \q2 धनी पुरुष आपकी कृपादृष्टि की कामना करेंगे. \q1 \v 13 अंतःपुर में राजकन्या ने भव्य शृंगार किया है; \q2 उसके वस्त्र पर सोने के धागों से कढ़ाई की गई है. \q1 \v 14 कढ़ाई किए गए वस्त्र धारण किए हुए उन्हें राजा के निकट ले जाया जा रहा है; \q2 उनके पीछे कुंवारी वधू सहेलियों की पंक्तियां चल रही हैं, \q2 यह समूह अब आपके निकट पहुंच रहा है. \q1 \v 15 ये सभी आनंद एवं उल्लास के भाव में यहां आ पहुंचे हैं, \q2 अब उन्होंने राजमहल में प्रवेश किया है. \b \q1 \v 16 आपके पुत्र पूर्वजों के स्थान पर होंगे; \q2 आप उन्हें समस्त देश के शासक बना देंगे. \b \q1 \v 17 सभी पीढ़ियों के लिए मैं आपकी महिमा सजीव रखूंगा; \q2 तब समस्त राष्ट्र सदा-सर्वदा आपका धन्यवाद करेंगे. \c 46 \cl स्तोत्र 46 \d संगीत निर्देशक के लिये. कोराह के पुत्रों की रचना. \tl अलामोथ\tl*\f + \fr 46:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* धुन पर आधारित. एक गीत. \q1 \v 1 परमेश्वर हमारे आश्रय-स्थल एवं शक्ति हैं, \q2 संकट की स्थिति में सदैव उपलब्ध सहायक. \q1 \v 2 तब हम भयभीत न होंगे, चाहे पृथ्वी विस्थापित हो जाए, \q2 चाहे पर्वत महासागर के गर्भ में जा पड़ें, \q1 \v 3 हां, तब भी जब समुद्र गरजना करते हुए फेन उठाने लगें \q2 और पर्वत इस उत्तेजना के कारण थर्रा जाएं. \b \q1 \v 4 परमेश्वर के नगर में एक नदी है, जिसकी जलधारा में इस नगर का उल्लास है, \q2 यह नगर वह पवित्र स्थान है, जहां सर्वोच्च परमेश्वर निवास करते हैं. \q1 \v 5 परमेश्वर इस नगर में निवास करते हैं, इस नगर की क्षति न होगी; \q2 हर एक अरुणोदय में उसके लिए परमेश्वर की सहायता मिलती रहेगी. \q1 \v 6 राष्ट्रों में खलबली मची हुई है, राज्य के लोग डगमगाने लगे; \q2 परमेश्वर के एक आह्वान पर, पृथ्वी पिघल जाती है. \b \q1 \v 7 सर्वशक्तिमान याहवेह हमारे पक्ष में हैं; \q2 याकोब के परमेश्वर में हमारी सुरक्षा है. \b \q1 \v 8 यहां आकर याहवेह के कार्यों पर विचार करो, \q2 पृथ्वी पर उन्होंने कैसा विध्वंस किया है. \q1 \v 9 उन्हीं के आदेश से पृथ्वी के छोर तक \q2 युद्ध थम जाते हैं. \q1 वही धनुष को भंग और भाले को टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं; \q2 वह रथों को अग्नि में भस्म कर देते हैं. \q1 \v 10 परमेश्वर कहते हैं, “समस्त प्रयास छोड़कर यह समझ लो कि परमेश्वर मैं हूं; \q2 समस्त राष्ट्रों में मेरी महिमा होगी, \q2 समस्त पृथ्वी पर मेरी महिमा होगी.” \b \q1 \v 11 सर्वशक्तिमान याहवेह हमारे पक्ष में हैं; \q2 याकोब के परमेश्वर में हमारी सुरक्षा है. \c 47 \cl स्तोत्र 47 \d संगीत निर्देशक के लिये. कोराह के पुत्रों की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 समस्त राष्ट्रो, तालियां बजाओ; \q2 हर्षोल्लास में परमेश्वर का जय जयकार करो. \b \q1 \v 2 याहवेह, सर्वोच्च परमेश्वर भय-योग्य हैं, \q2 वही समस्त पृथ्वी के ऊपर पराक्रमी राजा हैं. \q1 \v 3 उन्हीं ने जनताओं को हमारे अधीन कर दिया है, \q2 लोग हमारे पैरों के नीचे हो गए हैं. \q1 \v 4 उन्हीं ने हमारे लिए निज भाग को निर्धारित किया है, \q2 यही याकोब का गौरव है, जो उनका प्रिय है. \b \q1 \v 5 जय जयकार की ध्वनि के मध्य से परमेश्वर ऊपर उठाए गए, \q2 तुरही नाद के मध्य याहवेह ऊपर उठाए गए. \q1 \v 6 स्तुति गान में परमेश्वर की वंदना करो, वंदना करो; \q2 स्तुति गान में हमारे राजाधिराज की वंदना करो, वंदना करो. \q1 \v 7 परमेश्वर संपूर्ण पृथ्वी के राजाधिराज हैं; \q2 उनके सम्मान में एक स्तवन गीत प्रस्तुत करो. \b \q1 \v 8 संपूर्ण राष्ट्रों पर परमेश्वर का शासन है; \q2 परमेश्वर अपने महान सिंहासन पर विराजमान हैं. \q1 \v 9 अब्राहाम के परमेश्वर की प्रजा के रूप में \q2 जनताओं के अध्यक्ष एकत्र हुए हैं, \q1 क्योंकि पृथ्वी की ढालों पर परमेश्वर का अधिकार है; \q2 परमेश्वर अत्यंत ऊंचे हैं. \c 48 \cl स्तोत्र 48 \d एक गीत. कोराह के पुत्रों की एक स्तोत्र रचना. \q1 \v 1 महान हैं याहवेह, हमारे परमेश्वर के नगर में, \q2 उनके पवित्र पर्वत में, सर्वोच्च वंदना और प्रशंसा के योग्य. \b \q1 \v 2 मनोहर हैं इसके शिखर, \q2 जिसमें समस्त पृथ्वी आनन्दमग्न है, \q1 ज़ियोन पर्वत उत्तर के उच्च पर्वत ज़ेफोन के समान है, \q2 जो राजाधिराज का नगर है. \q1 \v 3 इसके राजमहलों में परमेश्वर निवास करते हैं; \q2 उन्होंने स्वयं को इसका गढ़ प्रमाणित कर दिया है. \b \q1 \v 4 जब राजाओं ने अपनी सेनाएं संयुक्त की, \q2 जब उन्होंने इस पर आक्रमण किया, \q1 \v 5 तब वे इसे देख चकित रह गए; \q2 वे भयभीत हो भाग खड़े हुए. \q1 \v 6 भय के कारण उन्हें वहां ऐसी कंपकंपी होने लगी, \q2 जैसी प्रसव पीड़ा में प्रसूता को होती है. \q1 \v 7 आपने उनका ऐसा विध्वंस किया, \q2 जैसे तरशीश के जलयानों का पूर्वी हवा के कारण हुआ था. \b \q1 \v 8 जैसा हमने सुना था, \q2 और जैसा हमने देखा है \q1 सर्वशक्तिमान याहवेह के नगर में, \q2 हमारे परमेश्वर के नगर में: \q1 परमेश्वर उसे सर्वदा महिमा \q2 प्रदान करेंगे. \b \q1 \v 9 परमेश्वर, आपके मंदिर में, \q2 हमने आपके करुणा-प्रेम पर चिंतन किया है. \q1 \v 10 जैसी आपकी महिमा है, \q2 वैसी ही आपकी स्तुति-प्रशंसा भी पृथ्वी के छोर तक पहुंच रही है; \q2 आपका दायां हाथ धार्मिकता से भरा है. \q1 \v 11 ज़ियोन पर्वत उल्‍लसित है, \q2 यहूदाह प्रदेश के नगर आपके निष्पक्ष \q2 न्याय के कारण हर्षित हो रहे हैं. \b \q1 \v 12 ज़ियोन की परिक्रमा करते हुए, \q2 उसके स्तंभों की गणना करो. \q1 \v 13 उसकी शहरपनाह पर दृष्टि लगाओ, \q2 उसके महलों का भ्रमण करो, \q1 कि तत्पश्चात तुम अगली पीढ़ी \q2 को इनके विषय में बता सको. \b \q1 \v 14 यही हैं वह परमेश्वर, जो युगानुयुग के लिए हमारे परमेश्वर हैं; \q2 वही अंत तक हमारी अगुवाई करते रहेंगे. \c 49 \cl स्तोत्र 49 \d संगीत निर्देशक के लिये. कोराह के पुत्रों की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 विभिन्‍न देशों के निवासियो, यह सुनो; \q2 धरती के वासियो, यह सुनो, \q1 \v 2 सुनो अरे उच्च और निम्न, \q2 सुनो अरे दीन जनो और अमीरो, \q1 \v 3 मैं बुद्धिमानी की बातें करने पर हूं; \q2 तथा मेरे हृदय का चिंतन समझ से परिपूर्ण होगा. \q1 \v 4 मैं नीतिवचन पर ध्यान दूंगा; \q2 मैं किन्‍नोर की संगत पर पहेली स्पष्ट करूंगा: \b \q1 \v 5 क्या आवश्यकता है विपत्ति के समय मुझे भयभीत होने की, \q2 जब दुष्ट धोखेबाज मुझे आ घेरते हैं; \q1 \v 6 हां, वे जिनका भरोसा उनकी संपत्ति पर है, \q2 तथा जिन्हें अपनी सम्पन्‍नता का गर्व है? \q1 \v 7 कोई भी मनुष्य किसी अन्य मनुष्य के प्राणों का उद्धार नहीं कर सकता, \q2 और न ही वह परमेश्वर को किसी के प्राणों के लिए छुड़ौती दे सकता है. \q1 \v 8 क्योंकि उसके प्राणों का मूल्य अत्यंत ऊंचा है, \q2 कि कोई मूल्य पर्याप्‍त नहीं है, \q1 \v 9 कि मनुष्य सर्वदा जीवित रहे, \q2 वह कभी कब्र का अनुभव न करे. \q1 \v 10 सभी के सामने यह स्पष्ट है, कि सभी बुद्धिमानो की भी मृत्यु होती है; \q2 वैसे ही मूर्खों और अज्ञानियों की भी, \q2 ये सभी अपनी संपत्ति दूसरों के लिए छोड़ जाते हैं. \q1 \v 11 उनकी आत्मा में उनका विचार है, कि उनके आवास अमर हैं, \q2 तथा उनके निवास सभी पीढ़ियों के लिए हो गए हैं, \q2 वे तो अपने देशों को भी अपने नाम से पुकारने लगे हैं. \b \q1 \v 12 अपने ऐश्वर्य के बावजूद मनुष्य अमरत्व प्राप्‍त नहीं कर सकता; \q2 वह तो फिर भी नश्वर पशु समान ही है. \b \q1 \v 13 यह नियति उनकी है, जो बुद्धिहीन हैं तथा उनकी, \q2 जो उनके विचारों से सहमत होते हैं. \q1 \v 14 भेड़ों के समान अधोलोक ही उनकी नियति है; \q2 मृत्यु ही उनका चरवाहा होगा. \q1 प्रातःकाल सीधे लोग उन पर शासन करेंगे \q1 तथा उनकी देह अधोलोक की ग्रास हो जाएंगी, \q2 परिणामस्वरूप उनका कोई आधार शेष न रह जाएगा. \q1 \v 15 मेरे प्राण परमेश्वर द्वारा अधोलोक की सामर्थ्य से मुक्त किए जाएंगे; \q2 निश्चयतः वह मुझे स्वीकार कर लेंगे. \q1 \v 16 किसी पुरुष की विकसित होती जा रही समृद्धि को देख डर न जाना, \q2 जब उसकी जीवनशैली वैभवशाली होने लगे; \q1 \v 17 क्योंकि मृत्यु होने पर वह इनमें से कुछ भी अपने साथ नहीं ले जाएगा, \q2 उसका वैभव उसके साथ कब्र में नहीं उतरेगा. \q1 \v 18 यद्यपि जब वह जीवित था, \q2 उसने प्रशंसा ही प्राप्‍त की, क्योंकि मनुष्य समृद्ध होने पर उनकी प्रशंसा करते ही हैं, \q1 \v 19 वह पुरुष अंततः अपने पूर्वजों में ही जा मिलेगा, \q2 जिनके लिए जीवन प्रकाश देखना नियत नहीं है. \b \q1 \v 20 एक धनवान मनुष्य को सुबुद्धि खो गया है, \q2 तो उसमें और उस नाशमान पशु में कोई अंतर नहीं रह गया! \c 50 \cl स्तोत्र 50 \d आसफ का एक स्तोत्र. \p \v 1 वह, जो सर्वशक्तिमान हैं, याहवेह, परमेश्वर, \q2 सूर्योदय से सूर्यास्त तक \q2 पृथ्वी को संबोधित करते हैं. \q1 \v 2 ज़ियोन के परम सौंदर्य में, \q2 परमेश्वर तेज दिखा रहे हैं. \q1 \v 3 हमारे परमेश्वर आ रहे हैं, \q2 वह निष्क्रिय नहीं रह सकते; \q1 उनके आगे-आगे भस्मकारी अग्नि चलती है, \q2 और उनके चारों ओर है प्रचंड आंधी. \q1 \v 4 उन्होंने आकाश तथा पृथ्वी को आह्वान किया, \q2 कि वे अपनी प्रजा की न्याय-प्रक्रिया प्रारंभ करें. \q1 \v 5 उन्होंने आदेश दिया, “मेरे पास मेरे भक्तों को एकत्र करो, \q2 जिन्होंने बलि अर्पण के द्वारा मुझसे वाचा स्थापित की है.” \q1 \v 6 आकाश उनकी धार्मिकता की पुष्टि करता है, \q2 क्योंकि परमेश्वर ही न्यायाध्यक्ष हैं. \b \q1 \v 7 “मेरी प्रजा, मेरी सुनो, मैं कुछ कह रहा हूं; \q2 इस्राएल, मैं तुम्हारे विरुद्ध साक्ष्य दे रहा हूं, \q2 परमेश्वर मैं हूं, तुम्हारा परमेश्वर. \q1 \v 8 तुम्हारी बलियों के कारण मैं तुम्हें डांट नहीं रहा \q2 और न मैं तुम्हारी अग्निबलियों की आलोचना कर रहा हूं, जो नित मुझे अर्पित की जा रही हैं. \q1 \v 9 मुझे न तो तुम्हारे पशुशाले से बैल की आवश्यकता है \q2 और न ही तुम्हारे झुंड से किसी बकरे की, \q1 \v 10 क्योंकि हर एक वन्य पशु मेरा है, \q2 वैसे ही हजारों पहाड़ियों पर चर रहे पशु भी मेरे ही हैं. \q1 \v 11 पर्वतों में बसे समस्त पक्षियों को मैं जानता हूं, \q2 मैदान में चलते फिरते सब प्राणी भी मेरे ही हैं. \q1 \v 12 तब यदि मैं भूखा होता तो तुमसे नहीं कहता, \q2 क्योंकि समस्त संसार तथा इसमें मगन सभी वस्तुएं मेरी ही हैं. \q1 \v 13 क्या बैलों का मांस मेरा आहार है \q2 और बकरों का रक्त मेरा पेय? \b \q1 \v 14 “परमेश्वर को धन्यवाद का बलि अर्पित करो, \q2 सर्वोच्च परमेश्वर के लिए अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करो, \q1 \v 15 तब संकट काल में मुझे पुकारो; \q2 तो मैं तुम्हारा उद्धार करूंगा और तुम मुझे सम्मान दोगे.” \p \v 16 किंतु दुष्ट से, परमेश्वर कहते हैं: \q1 “जब तुम मेरी शिक्षाओं से घृणा करते, \q2 और मेरे निर्देशों को हेय मानते हो? \q1 \v 17 तो क्या अधिकार है तुम्हें मेरी व्यवस्था का वाचन करने, \q2 अथवा मेरी वाचा को बोलने का? \q1 \v 18 चोर को देखते ही तुम उसके साथ हो लेते हो; \q2 वैसे ही तुम व्यभिचारियों के साथ व्यभिचार में सम्मिलित हो जाते हो. \q1 \v 19 तुमने अपने मुख को बुराई के लिए समर्पित कर दिया है, \q2 तुम्हारी जीभ छल-कपट के लिए तत्पर रहती है. \q1 \v 20 तुम निरंतर अपने ही भाई की निंदा करते रहते हो, \q2 अपने ही सगे भाई के विरुद्ध चुगली लगाते रहते हो. \q1 \v 21 तुम यह सब करते रहे, किंतु मैं चुप रहा, \q2 और तुम यह समझते रहे कि मैं तुमसे सहमत हूं. \q1 किंतु मैं अब तुम्ही पर शासन करूंगा \q2 और तुम्हारे ही सम्मुख तुम पर आरोप लगाऊंगा. \b \q1 \v 22 “तुम, जो परमेश्वर को भूलनेवाले हो गए हो, विचार करो, \q2 ऐसा न हो कि मैं तुम्हें टुकड़े-टुकड़े कर नष्ट कर दूं और कोई तुम्हारी रक्षा न कर सके: \q1 \v 23 जो कोई मुझे धन्यवाद की बलि अर्पित करता है, मेरा सम्मान करता है, \q2 मैं उसे, जो सन्मार्ग का आचरण करता है, परमेश्वर के उद्धार का अनुभव करवाऊंगा.” \c 51 \cl स्तोत्र 51 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद का एक स्तोत्र. यह उस अवसर का लिखा है जब दावीद ने बैथशेबा से व्यभिचार किया और भविष्यद्वक्ता नाथान ने दावीद का सामना किया था. \q1 \v 1 परमेश्वर, अपने करुणा-प्रेम\f + \fr 51:1 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* में, \q2 अपनी बड़ी करुणा में; \q1 मुझ पर दया कीजिए, \q2 मेरे अपराधों को मिटा दीजिए. \q1 \v 2 मेरे समस्त अधर्म को धो दीजिए \q2 और मुझे मेरे पाप से शुद्ध कर दीजिए. \b \q1 \v 3 मैंने अपने अपराध पहचान लिए हैं, \q2 और मेरा पाप मेरे दृष्टि पर छाया रहता है. \q1 \v 4 वस्तुतः मैंने आपके, मात्र आपके विरुद्ध ही पाप किया है, \q2 मैंने ठीक वही किया है, जो आपकी दृष्टि में बुरा है; \q1 तब जब आप अपने न्याय के अनुरूप दंड देते हैं, \q2 यह हर दृष्टि से न्याय संगत एवं उपयुक्त है. \q1 \v 5 इसमें भी संदेह नहीं कि मैं जन्म के समय से ही पापी हूं, \q2 हां, उसी क्षण से, जब मेरी माता ने मुझे गर्भ में धारण किया था. \q1 \v 6 यह भी बातें हैं कि आपकी यह अभिलाषा है, कि हमारी आत्मा में सत्य हो; \q2 तब आप मेरे अंतःकरण में भलाई प्रदान करेंगे. \b \q1 \v 7 जूफ़ा पौधे की टहनी से मुझे स्वच्छ करें, तो मैं शुद्ध हो जाऊंगा; \q2 मुझे धो दीजिए, तब मैं हिम से भी अधिक श्वेत हो जाऊंगा. \q1 \v 8 मुझमें हर्षोल्लास एवं आनंद का संचार कीजिए; \q2 कि मेरी हड्डियां जिन्हें आपने कुचल दी हैं, मगन हो उठें. \q1 \v 9 मेरे पापों को अपनी दृष्टि से दूर कर दीजिए \q2 और मेरे समस्त अपराध मिटा दीजिए. \b \q1 \v 10 परमेश्वर, मुझमें एक शुद्ध हृदय को उत्पन्‍न कीजिए, \q2 और मेरे अंदर में सुदृढ़ आत्मा की पुनःस्थापना कीजिए. \q1 \v 11 मुझे अपने सान्‍निध्य से दूर न कीजिए \q2 और मुझसे आपके पवित्रात्मा को न छीनिए. \q1 \v 12 अपने उद्धार का उल्लास मुझमें पुनः संचारित कीजिए, \q2 और एक तत्पर आत्मा प्रदान कर मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए. \b \q1 \v 13 तब मैं अपराधियों को आपकी नीतियों की शिक्षा दे सकूंगा, \q2 कि पापी आपकी ओर पुनः फिर सकें. \q1 \v 14 परमेश्वर, मेरे छुड़ानेवाले परमेश्वर, \q2 मुझे रक्तपात के दोष से मुक्त कर दीजिए, \q2 कि मेरी जीभ आपकी धार्मिकता का स्तुति गान कर सके. \q1 \v 15 प्रभु, मेरे होंठों को खोल दीजिए, \q2 कि मेरे मुख से आपकी स्तुति-प्रशंसा हो सके. \q1 \v 16 आपकी प्रसन्‍नता बलियों में नहीं है, अन्यथा मैं बलि अर्पित करता, \q2 अग्निबलि में भी आप प्रसन्‍न नहीं हैं. \q1 \v 17 टूटी आत्मा ही परमेश्वर को स्वीकार्य योग्य बलि है; \q2 टूटे और पछताये हृदय से, \q2 हे परमेश्वर, आप घृणा नहीं करते हैं. \b \q1 \v 18 आपकी कृपादृष्टि से ज़ियोन की समृद्धि हो, \q2 येरूशलेम की शहरपनाह का पुनर्निर्माण हो. \q1 \v 19 तब धर्मी की अग्निबलि \q2 तथा सर्वांग पशुबलि अर्पण से आप प्रसन्‍न होंगे; \q2 और आपकी वेदी पर बैल अर्पित किए जाएंगे. \c 52 \cl स्तोत्र 52 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की \tl मसकील\tl*\f + \fr 52:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना. इसका संदर्भ: एदोमवासी दोएग ने जाकर शाऊल को सूचित किया कि दावीद अहीमेलेख के आवास में ठहरे हैं. \q1 \v 1 हे बलवान घमंडी, अपनी बुराई का अहंकार क्यों करता है? \q2 तू दिन भर क्यों घमंड करता है, \q2 तू जो परमेश्वर की नजर में एक अपमान है? \q1 \v 2 तेज उस्तरे जैसी \q2 तुम्हारी जीभ विनाश की बुरी युक्ति रचती रहती है, \q2 और तुम छल के कार्य में लिप्‍त रहते हो. \q1 \v 3 तुम्हें भलाई से ज्यादा अधर्म, \q2 और सत्य से अधिक झूठाचार पसंद है. \q1 \v 4 हे छली जीभ, \q2 तुझे तो हर एक बुरा शब्द प्रिय है! \b \q1 \v 5 यह सुनिश्चित है कि परमेश्वर ने तेरे लिए स्थायी विनाश निर्धारित किया है: \q2 वह तुझे उखाड़कर तेरे निवास से दूर कर देंगे; \q2 परमेश्वर तुझे जीव-लोक से उखाड़ देंगे. \q1 \v 6 यह देख धर्मी भयभीत हो जाएंगे; \q2 वे उसे देख यह कहते हुए उपहास करेंगे, \q1 \v 7 “उस पुरुष को देखो, \q2 जिसने परमेश्वर को अपना आश्रय बनाना उपयुक्त न समझा \q1 परंतु उसने अपनी धन-संपत्ति पर भरोसा किया \q2 और अन्यों पर दुष्कर्म करते हुए सशक्त होता गया!” \b \q1 \v 8 किंतु मैं परमेश्वर के निवास के \q2 हरे-भरे जैतून वृक्ष के समान हूं; \q1 मैं परमेश्वर के करुणा-प्रेम पर \q2 सदा-सर्वदा भरोसा रखता हूं. \q1 \v 9 परमेश्वर, मैं आपके द्वारा किए गए कार्यों के लिए सदा-सर्वदा आपका धन्यवाद करता रहूंगा. \q2 आपके नाम मेरी आशा रहेगी, \q1 क्योंकि वह उत्तम है, \q2 आपके भक्तों के उपस्थिति में मैं आपकी वंदना करता रहूंगा. \c 53 \cl स्तोत्र 53 \d संगीत निर्देशक के लिये. \tl माख़लथ\tl*\f + \fr 53:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* पर आधारित दावीद की \tl मसकील\tl*\f + \fr 53:0 \fr*\ft एक संगीत संबंधित शब्द\ft*\f* गीत रचना \q1 \v 1 मूर्ख मन ही मन में कहते हैं, \q2 “परमेश्वर है ही नहीं.” \q1 वे सभी भ्रष्‍ट हैं और उनकी जीवनशैली घिनौनी है; \q2 ऐसा कोई भी नहीं, जो भलाई करता हो. \b \q1 \v 2 स्वर्ग से परमेश्वर \q2 मनुष्यों पर दृष्टि डालते हैं \q1 इस आशा में कि कोई तो होगा, जो बुद्धिमान है, \q2 जो परमेश्वर की खोज करता हो. \q1 \v 3 सभी मनुष्य भटक गए हैं, सभी नैतिक रूप से भ्रष्‍ट हो चुके हैं; \q2 कोई भी सत्कर्म परोपकार नहीं करता, \q2 हां, एक भी नहीं. \b \q1 \v 4 मेरी प्रजा के ये भक्षक, ये दुष्ट पुरुष, क्या ऐसे निर्बुद्धि हैं? \b \q1 जो उसे ऐसे खा जाते हैं, जैसे रोटी को; \q2 क्या उन्हें परमेश्वर की उपासना का कोई ध्यान नहीं? \q1 \v 5 जहां भय का कोई कारण ही न था, \q2 वहां वे अत्यंत भयभीत हो गए. \q1 परमेश्वर ने उनकी हड्डियों को बिखरा दिया, जो तेरे विरुद्ध छावनी डाले हुए थे; \q2 तुमने उन्हें लज्जित कर डाला, क्योंकि वे परमेश्वर द्वारा लज्जित किये गये थे. \b \q1 \v 6 कैसा उत्तम होता यदि इस्राएल का उद्धार ज़ियोन से प्रगट होता! \q2 याकोब के लिए वह हर्षोल्लास का अवसर होगा, \q2 जब परमेश्वर अपनी प्रजा को दासत्व से लौटा लाएंगे, तब इस्राएल आनंदित हो जाएगा! \c 54 \cl स्तोत्र 54 \d संगीत निर्देशक के लिये. तार वाद्यों की संगत के साथ. दावीद की \tl मसकील\tl*\f + \fr 54:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना. यह उस स्थिति के संदर्भ में है, जब ज़िफियों ने जाकर शाऊल को सूचना दी थी: “दावीद हमारे यहां छिपे हैं.” \q1 \v 1 परमेश्वर, अपने नाम के द्वारा मेरा उद्धार कीजिए; \q2 अपनी सामर्थ्य के द्वारा मुझे निर्दोष प्रमाणित कीजिए. \q1 \v 2 परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुनिए; \q2 मेरे मुख के वचनों पर ध्यान दीजिए. \b \q1 \v 3 ऐसे अपरिचित पुरुषों ने मुझ पर आक्रमण कर दिया है; \q2 कुकर्मी पुरुष अब मेरे प्राण के प्यासे हो गए हैं, \q2 जिनके हृदय में आपके प्रति कोई श्रद्धा नहीं है. \b \q1 \v 4 कोई संदेह नहीं कि परमेश्वर मेरी सहायता के लिए तत्पर हैं; \q2 प्रभु ही हैं, जो मुझमें बल देते हैं. \b \q1 \v 5 ऐसा हो कि बुराई मेरे निंदकों पर ही जा पड़े; \q2 परमेश्वर अपनी विश्वासयोग्यता के कारण उनका विनाश कर दीजिए. \b \q1 \v 6 मैं आपको स्वेच्छा बलि अर्पित करूंगा; \q2 याहवेह, मैं आपकी महान महिमा की सराहना करूंगा, क्योंकि यह शोभनीय है. \q1 \v 7 आपने समस्त संकटों से मेरा छुटकारा किया है, \q2 मैंने स्वयं अपनी आंखों से, अपने शत्रुओं की पराजय देखी है. \c 55 \cl स्तोत्र 55 \d संगीत निर्देशक के लिये. तार वाद्यों की संगत के साथ. दावीद की \tl मसकील\tl*\f + \fr 55:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना \q1 \v 1 परमेश्वर, मेरी प्रार्थना पर ध्यान दीजिए, \q2 मेरी गिड़गिड़ाहट को न ठुकराईए; \q2 \v 2 मेरी गिड़गिड़ाहट सुनकर, मुझे उत्तर दीजिए. \q1 मेरे विचारों ने मुझे व्याकुल कर दिया है. \q2 \v 3 शत्रुओं की ललकार ने \q2 मुझे निराश कर छोड़ा है; \q1 उन्हीं के द्वारा मुझ पर कष्ट उण्डेले गए हैं \q2 और वे क्रोध में मुझे खरीखोटी सुना रहे हैं. \b \q1 \v 4 भीतर ही भीतर मेरा हृदय वेदना में भर रहा है; \q2 मुझमें मृत्यु का भय समा गया है. \q1 \v 5 भय और कंपकंपी ने मुझे भयभीत कर लिया है; \q2 मैं आतंक से घिर चुका हूं. \q1 \v 6 तब मैं विचार करने लगा, “कैसा होता यदि कबूतर समान मेरे पंख होते! \q2 और मैं उड़कर दूर शांति में विश्राम कर पाता. \q1 \v 7 हां, मैं उड़कर दूर चला जाता, \q2 और निर्जन प्रदेश में निवास बना लेता. \q1 \v 8 मैं बवंडर और आंधी से दूर, \q2 अपने आश्रय-स्थल को लौटने की शीघ्रता करता.” \b \q1 \v 9 प्रभु, दुष्टों के मध्य फूट डाल दीजिए, उनकी भाषा में गड़बड़ी कर दीजिए, \q2 यह स्पष्ट ही है कि नगर में हिंसा और कलह फूट पड़े हैं. \q1 \v 10 दिन-रात वे शहरपनाह पर छिप-छिप कर घूमते रहते हैं; \q2 नगर में वैमनस्य और अधर्म का साम्राज्य है. \q1 \v 11 वहां विनाशकारी शक्तियां प्रबल हो रही हैं; \q2 गलियों में धमकियां और छल समाप्‍त ही नहीं होते. \b \q1 \v 12 यदि शत्रु मेरी निंदा करता तो यह, \q2 मेरे लिए सहनीय है; \q1 यदि मेरा विरोधी मेरे विरुद्ध उठ खड़ा हो तो, \q2 मैं उससे छिप सकता हूं. \q1 \v 13 किंतु यहां तो तुम, मेरे साथी, मेरे परम मित्र, \q2 मेरे शत्रु हो गए हैं, जो मेरे साथ साथ रहे हैं, \q1 \v 14 तुम्हारे ही साथ मैंने संगति के मेल-मिलाप अवसरों का आनंद लिया था, \q2 अन्य आराधकों के साथ \q1 हम भी साथ साथ \q2 परमेश्वर के भवन को जाते थे. \b \q1 \v 15 अब उत्तम वही होगा कि अचानक ही मेरे शत्रुओं पर मृत्यु आ पड़े; \q2 वे जीवित ही अधोलोक में उतर जाएं, \q2 क्योंकि बुराई उनके घर में आ बसी है, उनकी आत्मा में भी. \b \q1 \v 16 यहां मैं तो परमेश्वर को ही पुकारूंगा, \q2 याहवेह ही मेरा उद्धार करेंगे. \q1 \v 17 प्रातः, दोपहर और संध्या \q2 मैं पीड़ा में कराहता रहूंगा, \q2 और वह मेरी पुकार सुनेंगे. \q1 \v 18 उन्होंने मुझे उस युद्ध से \q2 बिना किसी हानि के सुरक्षित निकाल लिया, \q2 जो मेरे विरुद्ध किया जा रहा था जबकि मेरे अनेक विरोधी थे. \q1 \v 19 सर्वदा के सिंहासन पर विराजमान परमेश्वर, \q2 मेरी विनती सुनकर उन्हें ताड़ना करेंगे. \q1 वे ऐसे हैं, जिनका हृदय परिवर्तित नहीं होता; \q2 उनमें परमेश्वर का कोई भय नहीं. \b \q1 \v 20 मेरा साथी ही अपने मित्रों पर प्रहार कर रहा है; \q2 उसने अपनी वाचा भंग कर दी है. \q1 \v 21 मक्खन जैसी चिकनी हैं उसकी बातें, \q2 फिर भी युद्ध उसके दिल में है; \q1 उसके शब्दों में तेल से अधिक कोमलता थी, \q2 फिर भी वे नंगी तलवार थे. \b \q1 \v 22 अपने दायित्वों का बोझ याहवेह को सौंप दो, \q2 तुम्हारे बल का स्रोत वही हैं; \q1 यह हो ही नहीं सकता कि वह किसी धर्मी पुरुष को \q2 पतन के लिए शोकित छोड़ दें. \q1 \v 23 किंतु परमेश्वर, आपने दुष्टों के लिए विनाश \q2 के गड्ढे को निर्धारित किया है; \q1 रक्त पिपासु और कपटी मनुष्य अपनी \q2 आधी आयु तक भी पहुंच न पाएंगे. \b \q1 किंतु मेरा भरोसा आप पर अटल बना रहेगा. \c 56 \cl स्तोत्र 56 \d संगीत निर्देशक के लिये. “दूर के बांज वृक्ष पर बैठा कबूतरी” धुन पर आधारित. दावीद की \tl मिकताम\tl*\f + \fr 56:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना. यह उस घटना का संदर्भ है, जब गाथ देश में फिलिस्तीनियों ने दावीद को पकड़ लिया था. \q1 \v 1 परमेश्वर, मुझ पर कृपा कीजिए, \q2 क्योंकि शत्रु मुझे कुचल रहे हैं; \q2 दिन भर उनका आक्रमण मुझ पर प्रबल होता जा रहा है. \q1 \v 2 मेरे निंदक सारे दिन मेरा पीछा करते हैं; \q2 अनेक हैं, जो मुझ पर अपने अहंकार से प्रहार कर रहे हैं. \b \q1 \v 3 भयभीत होने की स्थिति में, मैं आप पर ही भरोसा करूंगा. \q2 \v 4 परमेश्वर, आपकी प्रतिज्ञा स्तुति प्रशंसनीय है, \q1 परमेश्वर, मैं आप पर ही भरोसा रखूंगा और पूर्णतः निर्भय हो जाऊंगा. \q2 नश्वर मनुष्य मेरा क्या बिगाड़ लेगा? \b \q1 \v 5 दिन भर मेरे वचन को उलटा कर प्रसारित किया जाता है; \q2 मेरी हानि की युक्तियां सोचना उनकी दिनचर्या हो गई है. \q1 \v 6 वे बुरी युक्ति रचते हैं, वे घात लगाए बैठे रहते हैं, \q2 वे मेरे हर कदम पर दृष्टि बनाए रखते हैं, \q2 कि कब मेरे प्राण ले सकें. \q1 \v 7 उनकी दुष्टता को देखकर उन्हें बचकर न जाने दें; \q2 परमेश्वर, अपने क्रोध के द्वारा इन लोगों को मिटा दीजिए. \b \q1 \v 8 आपने मेरे भटकने का लेखा रखा है; \q2 आपने मेरे आंसू अपनी कुप्पी में जमा कर रखें हैं. \q2 आपने इनका लेखा भी अपनी पुस्तक में रखा है? \q1 \v 9 तब जैसे ही मैं आपको पुकारूंगा, \q2 मेरे शत्रु पीठ दिखाकर भाग खड़े होंगे. \q2 तब यह प्रमाणित हो जाएगा कि परमेश्वर मेरे पक्ष में हैं. \b \q1 \v 10 वही परमेश्वर, जिनकी प्रतिज्ञा स्तुति प्रशंसनीय है, \q2 वही याहवेह, जिनकी प्रतिज्ञा स्तुति प्रशंसनीय है. \q1 \v 11 मैं परमेश्वर पर ही भरोसा रखूंगा, तब मुझे किसी का भय न होगा. \q2 मनुष्य मेरा क्या बिगाड़ सकता है? \b \q1 \v 12 परमेश्वर, मुझे आपके प्रति की गई मन्‍नतें पूर्ण करनी हैं; \q2 मैं आपको अपनी आभार-बलि अर्पण करूंगा. \q1 \v 13 क्योंकि आपने मृत्यु से मेरे प्राणों की रक्षा की है, \q2 मेरे पांवों को आपने फिसलने से बचाया है कि \q1 मैं, परमेश्वर, आपके साथ साथ \q2 जीवन ज्योति में चल सकूं. \c 57 \cl स्तोत्र 57 \d संगीत निर्देशक के लिये. “अलतशख़ेथ” धुन पर आधारित. दावीद की \tl मिकताम\tl*\f + \fr 57:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना. यह उस घटना का संदर्भ है, जब दावीद शाऊल की उपस्थिति से भागकर कन्दरा में जा छिपे थे. \q1 \v 1 मुझ पर कृपा कीजिए, हे मेरे परमेश्वर, कृपा कीजिए, \q2 क्योंकि मैंने आपको ही अपना आश्रय-स्थल बनाया है. \q1 मैं आपके पंखों के नीचे आश्रय लिए रहूंगा, \q2 जब तक विनाश मुझ पर से टल न जाए. \b \q1 \v 2 मैं सर्वोच्च परमेश्वर को पुकारता हूं, \q2 वही परमेश्वर, जो मुझे निर्दोष ठहराते हैं. \q1 \v 3 वह स्वर्ग से सहायता भेजकर मेरा उद्धार करेंगे; \q2 जो मुझे कुचलते हैं उनसे उन्हें घृणा है. \q2 परमेश्वर अपना करुणा-प्रेम\f + \fr 57:3 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* तथा अपना सत्य प्रेषित करेंगे. \b \q1 \v 4 मैं सिंहों से घिर गया हूं; \q2 मैं हिंसक पशुओं समान मनुष्यों के मध्य पड़ा हुआ हूं. \q1 उनके दांत भालों और बाणों समान, \q2 तथा जीभें तलवार समान तीक्ष्ण हैं. \b \q1 \v 5 परमेश्वर, आप सर्वोच्च स्वर्ग में बसे हैं; \q2 आपका तेज समस्त पृथ्वी को भयभीत करें. \b \q1 \v 6 उन्होंने मेरे मार्ग में जाल बिछाया है; \q2 मेरा प्राण डूबा जा रहा था. \q1 उन्होंने मेरे मार्ग में गड्ढा भी खोद रखा था, \q2 किंतु वे स्वयं उसी में जा गिरे हैं. \b \q1 \v 7 मेरा हृदय निश्चिंत है, परमेश्वर, \q2 मेरा हृदय निश्चिंत है; \q2 मैं स्तुति करते हुए गाऊंगा और संगीत बजाऊंगा. \q1 \v 8 मेरी आत्मा, जागो! \q2 नेबेल और किन्‍नोर जागो! \q2 मैं उषःकाल को जागृत करूंगा. \b \q1 \v 9 प्रभु, मैं लोगों के मध्य आपका आभार व्यक्त करूंगा; \q2 राष्ट्रों के मघ्य मैं आपका स्तवन करूंगा. \q1 \v 10 क्योंकि आपका करुणा-प्रेम आकाश से भी महान है; \q2 आपकी सच्चाई अंतरीक्ष तक जा पहुंचती है. \b \q1 \v 11 परमेश्वर, आप सर्वोच्च स्वर्ग में बसे हैं; \q2 आपका तेज समस्त पृथ्वी को भयभीत करें. \c 58 \cl स्तोत्र 58 \d संगीत निर्देशक के लिये. “अलतशख़ेथ” धुन पर आधारित. दावीद की \tl मिकताम\tl*\f + \fr 58:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना. \q1 \v 1 न्यायाधीशो, क्या वास्तव में तुम्हारा निर्णय न्याय संगत होता है? \q2 क्या, तुम्हारा निर्णय वास्तव में निष्पक्ष ही होता है? \q1 \v 2 नहीं, मन ही मन तुम अन्यायपूर्ण युक्ति करते रहते हो, \q2 पृथ्वी पर तुम हिंसा परोसते हो. \b \q1 \v 3 दुष्ट लोग जन्म से ही फिसलते हैं, गर्भ से ही; \q2 परमेश्वर से झूठ बोलते हुए भटक जाते है. \q1 \v 4 उनका विष विषैले सर्प का विष है, \q2 उस बहरे सर्प के समान, जिसने अपने कान बंद कर रखे हैं. \q1 \v 5 कि अब उसे संपेरे की धुन सुनाई न दे, \q2 चाहे वह कितना ही मधुर संगीत प्रस्तुत करे. \b \q1 \v 6 परमेश्वर, उनके मुख के भीतर ही उनके दांत तोड़ दीजिए; \q2 याहवेह, इन सिंहों के दाढों को ही उखाड़ दीजिए! \q1 \v 7 वे जल के जैसे बहकर विलीन हो जाएं; \q2 जब वे धनुष तानें, उनके बाण निशाने तक नहीं पहुंचें. \q1 \v 8 वे उस घोंघे के समान हो जाएं, जो सरकते-सरकते ही गल जाता है, \q2 अथवा उस मृत जन्मे शिशु के समान, जिसके लिए सूर्य प्रकाश का अनुभव असंभव है. \b \q1 \v 9 इसके पूर्व कि कंटीली झाड़ियों में लगाई अग्नि का ताप पकाने के पात्र तक पहुंचे, \q2 वह जले अथवा अनजले दोनों ही को बवंडर में उड़ा देंगे. \q1 \v 10 धर्मी के लिए ऐसा पलटा आनन्द-दायक होगा, \q2 वह दुष्टों के रक्त में अपने पांव धोएगा. \q1 \v 11 तब मनुष्य यह कह उठेंगे, \q2 “निश्चय धर्मी उत्तम प्रतिफल प्राप्‍त करते हैं; \q2 यह सत्य है कि परमेश्वर हैं और वह पृथ्वी पर न्याय करते हैं.” \c 59 \cl स्तोत्र 59 \d संगीत निर्देशक के लिये. “अलतशख़ेथ” धुन पर आधारित. दावीद की \tl मिकताम\tl*\f + \fr 59:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना. यह उस घटना के संदर्भ में है, जब शाऊल ने दावीद का वध करने के उद्देश्य से सैनिक भेज उनके आवास पर घेरा डलवाया था. \q1 \v 1 परमेश्वर, मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ा लीजिए; \q2 मुझे उनसे सुरक्षा प्रदान कीजिए, जो मेरे विरुद्ध उठ खड़े हुए हैं. \q1 \v 2 मुझे कुकर्मियों से छुड़ा लीजिए \q2 तथा हत्यारे पुरुषों से मुझे सुरक्षा प्रदान कीजिए. \b \q1 \v 3 देखिए, वे कैसे मेरे लिए घात लगाए बैठे हैं! \q2 जो मेरे लिए बुरी युक्ति रच रहे हैं वे हिंसक पुरुष हैं. \q2 याहवेह, न मैंने कोई अपराध किया है और न कोई पाप. \q1 \v 4 मुझसे कोई भूल भी नहीं हुई, फिर भी वे आक्रमण के लिए तत्पर हैं. \q2 मेरी दुर्गति पर दृष्टि कर, मेरी सहायता के लिए आ जाइए! \q1 \v 5 याहवेह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, \q2 इस्राएल के परमेश्वर, \q1 इन समस्त राष्ट्रों को दंड देने के लिए उठ जाइए; \q2 दुष्ट विश्‍वासघातियों पर कोई कृपा न कीजिए. \b \q1 \v 6 वे संध्या को लौटते, \q2 कुत्तों के समान चिल्लाते, \q2 और नगर में घूमते रहते हैं. \q1 \v 7 आप देखिए कि वे अपने मुंह से क्या-क्या उगल रहे हैं, \q2 उनके होंठों में से तलवार बाहर आती है, \q2 तब वे कहते हैं, “कौन सुन सकता है हमें?” \q1 \v 8 किंतु, याहवेह, आप उन पर हंसते हैं; \q2 ये सारे राष्ट्र आपके उपहास के विषय हैं. \b \q1 \v 9 मेरी शक्ति, मुझे आपकी ही प्रतीक्षा है; \q2 मेरे परमेश्वर, आप मेरे आश्रय-स्थल हैं, \q2 \v 10 आप मेरे प्रेममय परमेश्वर हैं. \b \q1 परमेश्वर मेरे आगे-आगे जाएंगे, \q2 तब मैं अपने निंदकों के ऊपर संतोष के साथ व्यंग्य पूर्ण दृष्टि डाल सकूंगा. \q1 \v 11 किंतु मेरे प्रभु, मेरी ढाल, उनकी हत्या न कीजिए, \q2 अन्यथा मेरी प्रजा उन्हें भूल जाएगी. \q1 अपने सामर्थ्य में उन्हें तितर-बितर भटकाने के लिए छोड़ दीजिए, \q2 कि उनमें मनोबल ही शेष न रह जाए. \q1 \v 12 उनके मुख के वचन द्वारा किए गए पापों के कारण, \q2 उनके होंठों द्वारा किए गए अनाचार के लिए \q2 तथा उनके द्वारा दिए गए शाप तथा झूठाचार के कारण, \q1 उन्हें अपने ही अहंकार में फंस जाने दीजिए. \q2 \v 13 उन्हें अपनी क्रोध अग्नि में भस्म कर दीजिए, \q2 उन्हें इस प्रकार भस्म कीजिए, कि उनका कुछ भी शेष न रह जाए. \q1 तब यह पृथ्वी की छोर तक सर्वविदित बातें हो जाएगी, \q2 कि परमेश्वर ही वस्तुतः याकोब के शासक हैं. \b \q1 \v 14 वे संध्या को लौटते, \q2 कुत्तों के समान चिल्लाते \q2 और नगर में घूमते रहते हैं. \q1 \v 15 वे भोजन की खोज में घूमते रहते हैं \q2 और संतोष न होने पर सियारों जैसे चिल्लाने लगते हैं. \q1 \v 16 किंतु मैं आपकी सामर्थ्य का गुणगान करूंगा, \q2 प्रातःकाल मेरे गीत का विषय होगा आपका करुणा-प्रेम\f + \fr 59:16 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* \q1 क्योंकि मेरा दृढ़ आश्रय-स्थल आप हैं, \q2 संकट काल में शरण स्थल हैं. \b \q1 \v 17 मेरा बल, मैं आपका गुणगान करता हूं; \q2 परमेश्वर, आप मेरे आश्रय-स्थल हैं, \q2 आप ही करुणा-प्रेममय मेरे परमेश्वर हैं. \c 60 \cl स्तोत्र 60 \d संगीत निर्देशक के लिये. “शूशन एदूथ” धुन पर आधारित. दावीद की \tl मिकताम\tl*\f + \fr 60:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* गीत रचना. यह सिखाए जाने के लिए. लिखा गया है. यह उस स्थिति का संदर्भ है जब दावीद अरम-नहरयिम और अरम-ज़ोबाह देशों से युद्धरत थे. उसी समय सेनापति योआब ने नमक की घाटी में लौटते हुए बारह हजार एदोमी सैनिकों को नाश किया था. \q1 \v 1 परमेश्वर, आपने हमें शोकित छोड़ दिया, मानो आप हम पर टूट पड़े हैं; \q2 आप हमसे क्रोधित हो गए हैं. अब हमें पुनः अपना लीजिए! \q1 \v 2 आपने पृथ्वी को कंपाया था, धरती फट गई थी; \q2 अब जोड़कर इसे शांत कर दीजिए, क्योंकि यह कांप रही है. \q1 \v 3 आपने अपनी प्रजा को विषम परिस्थितियों का अनुभव कराया; \q2 आपने हमें पीने के लिए वह दाखमधु दी, जिसके सेवन से हमारे पांव लड़खड़ा गए, \q1 \v 4 किंतु अपने श्रद्धालुओं के लिए आपने एक ध्वजा ऊंची उठाई है, \q2 कि वह सत्य के प्रतीक स्वरूप प्रदर्शित की जाए. \b \q1 \v 5 अपने दायें हाथ से हमें छुड़ाकर हमें उत्तर दीजिए, \q2 कि आपके प्रिय पात्र छुड़ाए जा सकें. \q1 \v 6 परमेश्वर ने अपने पवित्र स्थान में घोषणा की है: \q2 “अपने विजय में मैं शेकेम को विभाजित करूंगा \q2 तथा मैं सुक्कोथ घाटी को नाप कर बंटवारा कर दूंगा. \q1 \v 7 गिलआद पर मेरा अधिकार है, मनश्शेह पर मेरा अधिकार है; \q2 एफ्राईम मेरे सिर का रखवाला है, \q2 यहूदाह मेरा राजदंड है. \q1 \v 8 मोआब राष्ट्र मेरे हाथ धोने का पात्र है, \q2 और एदोम राष्ट्र पर मैं अपनी पादुका फेंकूंगा; \q2 फिलिस्तिया के ऊपर उच्च स्वर में जयघोष करूंगा.” \b \q1 \v 9 कौन ले जाएगा मुझे सुदृढ़-सुरक्षित नगर तक? \q2 कौन पहुंचाएगा मुझे एदोम नगर तक? \q1 \v 10 परमेश्वर, क्या आप ही नहीं, जिन्होंने हमें अब शोकित छोड़ दिया है \q2 और हमारी सेनाओं को साथ देना भी छोड़ दिया है? \q1 \v 11 शत्रु के विरुद्ध हमारी सहायता कीजिए, \q2 क्योंकि किसी भी मनुष्य द्वारा लायी गयी सहायता निरर्थक है. \q1 \v 12 परमेश्वर के साथ मिलकर हमारी विजय सुनिश्चित होती है, \q2 वही हमारे शत्रुओं को कुचल डालेगा. \c 61 \cl स्तोत्र 61 \d संगीत निर्देशक के लिये. तार वाद्यों की संगत के साथ. दावीद की रचना \q1 \v 1 परमेश्वर, मेरे चिल्लाने को सुनिए; \q2 मेरी प्रार्थना पर ध्यान दीजिए. \b \q1 \v 2 मैं पृथ्वी की छोर से आपको पुकार रहा हूं, \q2 आपको पुकारते-पुकारते मेरा हृदय डूबा जा रहा है; \q2 मुझे उस उच्च, अगम्य चट्टान पर खड़ा कीजिए जिसमें मेरी सुरक्षा है. \q1 \v 3 शत्रुओं के विरुद्ध मेरे लिए आप एक सुदृढ़ स्तंभ, \q2 एक आश्रय-स्थल रहे हैं. \b \q1 \v 4 मेरी लालसा है कि मैं आपके आश्रय में चिरकाल निवास करूं \q2 और आपके पंखों की छाया में मेरी सुरक्षा रहे. \q1 \v 5 परमेश्वर, आपने मेरी मन्‍नतें सुनी हैं; \q2 आपने मुझे वह सब प्रदान किया है, जो आपके श्रद्धालुओं का निज भाग होता है. \b \q1 \v 6 आप राजा को आयुष्मान करेंगे, \q2 उनकी आयु के वर्ष अनेक पीढ़ियों के तुल्य हो जाएंगे. \q1 \v 7 परमेश्वर की उपस्थिति में वह सदा-सर्वदा सिंहासन पर विराजमान रहेंगे; \q2 उनकी सुरक्षा के निमित्त आप अपने करुणा-प्रेम एवं सत्य को प्रगट करें. \b \q1 \v 8 तब मैं आपकी महिमा का गुणगान करूंगा \q2 और दिन-प्रतिदिन अपनी मन्‍नतें पूरी करता रहूंगा. \c 62 \cl स्तोत्र 62 \d संगीत निर्देशक के लिये. यदूथून धुन पर आधारित. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 मात्र परमेश्वर में मेरे प्राणों की विश्रान्ति है; \q2 वही मेरे उद्धार के कारण हैं. \q1 \v 2 वही मेरे लिए एक स्थिर चट्टान और मेरा उद्धार हैं; \q2 वह मेरे सुरक्षा-दुर्ग हैं, अब मेरा विचलित होना संभव नहीं. \b \q1 \v 3 तुम कब तक उस पुरुष पर प्रहार करते रहोगे, \q2 मैं जो झुकी हुई दीवार अथवा गिरते बाड़े समान हूं? \q2 क्या तुम मेरी हत्या करोगे? \q1 \v 4 उन्होंने मुझे मेरी उन्‍नत जगह से \q2 उखाड़ डालने का निश्चय कर लिया है. \q2 झूठाचार में ही उनका संतोष मगन होता है. \q1 अपने मुख से वे आशीर्वचन उच्चारते तो हैं, \q2 किंतु मन ही मन वे उसे शाप देते रहते हैं. \b \q1 \v 5 मेरे प्राण, शांत होकर परमेश्वर के उठने की प्रतीक्षा कर; \q2 उन्हीं में तुम्हारी एकमात्र आशा मगन है. \q1 \v 6 वही मेरे लिए एक स्थिर चट्टान और मेरा उद्धार हैं; \q2 वह मेरे सुरक्षा-रच हैं, अब मेरा विचलित होना संभव नहीं. \q1 \v 7 मेरा उद्धार और मेरा सम्मान परमेश्वर पर अवलंबित हैं; \q2 मेरे लिए वह सुदृढ़ चट्टान तथा आश्रय-स्थल है. \q1 \v 8 मेरे लोगो, हर एक परिस्थिति में उन्हीं पर भरोसा रखो; \q2 उन्हीं के सम्मुख अपना हृदय उंडेल दो, \q2 क्योंकि परमेश्वर ही हमारा आश्रय-स्थल हैं. \b \q1 \v 9 साधारण पुरुष श्वास मात्र हैं, \q2 विशिष्ट पुरुष मात्र भ्रान्ति. \q1 इन्हें तुला पर रखकर तौला जाए तो वे नगण्य उतरेंगे; \q2 एक श्वास मात्र. \q1 \v 10 न तो हिंसा-अत्याचार से कुछ उपलब्ध होगा, \q2 न लूटमार से प्राप्‍त संपत्ति कोई गर्व का विषय है; \q1 जब तुम्हारी समृद्धि में बढ़ती होने लगे, \q2 तो संपत्ति से मन न जोड़ लेना. \b \q1 \v 11 परमेश्वर ने एक बात प्रकाशित की, \q2 मैंने दो बातें ग्रहण की: \q1 “परमेश्वर, आप सर्वसामर्थ्यी हैं. \q2 \v 12 तथा प्रभु, आपका प्रेम अमोघ”; \q1 इसमें संदेह नहीं, “आप हर एक पुरुष को \q2 उसके कर्मों के अनुरूप प्रतिफल प्रदान करेंगे.” \c 63 \cl स्तोत्र 63 \d दावीद का एक स्तोत्र. जब वह यहूदिया प्रदेश के निर्जन प्रदेश में था. \q1 \v 1 परमेश्वर, आप मेरे अपने परमेश्वर हैं, \q2 अत्यंत उत्कटतापूर्वक मैं आपके सान्‍निध्य की कामना करता हूं; \q1 सूखी और प्यासी भूमि में, \q2 जहां जल है ही नहीं, \q1 मेरा प्राण आपके लिए प्यासा \q2 एवं मेरी देह आपकी अभिलाषी है. \b \q1 \v 2 आपके पवित्र स्थान में मैंने आपका दर्शन किया है, \q2 कि आपके सामर्थ्य तथा तेज को निहारूं. \q1 \v 3 इसलिये कि आपका करुणा-प्रेम मेरे जीवन की अपेक्षा कहीं अधिक श्रेष्ठ है, \q2 मेरे होंठ आपके स्तवन करते रहेंगे. \q1 \v 4 मैं आजीवन आपका धन्यवाद करता रहूंगा, \q2 आपकी महिमा का ध्यान करके मैं अपने हाथ उठाऊंगा. \q1 \v 5 होंठों पर गीत और मुख से स्तुति के वचनों \q2 से मेरे प्राण ऐसे तृप्‍त हो जाएंगे, जैसे उत्कृष्ट भोजन से. \b \q1 \v 6 जब मैं बिछौने पर होता हूं, तब आपका स्मरण करता हूं; \q2 मैं रात्रि के प्रहरों में आपके विषय में चिंतन करता रहूंगा. \q1 \v 7 क्योंकि आप ही मेरे सहायक हैं, \q2 आपके पंखों की छाया मुझे गीत गाने के लिए प्रेरित करती है. \q1 \v 8 मैं आपके निकट रहना चाहता हूं; \q2 आपका दायां हाथ मुझे संभाले रहता है. \b \q1 \v 9 जो मेरे प्राणों के प्यासे हैं, उनका विनाश निश्चित है; \q2 वे पृथ्वी की गहराई में समा जाएंगे. \q1 \v 10 वे तलवार से घात किए जाने के लिए सौंप दिए जाएंगे, \q2 कि वे सियारों का आहार बन जाएं. \b \q1 \v 11 परंतु राजा तो परमेश्वर में उल्‍लसित रहेगा; \q2 वे सभी, जिन्होंने परमेश्वर में श्रद्धा रखी है, उनका स्तवन करेंगे, \q2 जबकि झूठ बोलने वालों के मुख चुप कर दिए जाएंगे. \c 64 \cl स्तोत्र 64 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुनिए, जब आपके सामने मैं अपनी शिकायत प्रस्तुत कर रहा हूं; \q2 शत्रु के आतंक से मेरे जीवन को सुरक्षित रखिए. \b \q1 \v 2 कुकर्मियों के षड़्‍यंत्र से, \q2 दुष्टों की बुरी युक्ति से सुरक्षा के लिए मुझे अपनी आड़ में ले लीजिए. \q1 \v 3 उन्होंने तलवार के समान अपनी जीभ तेज कर रखी है \q2 और अपने शब्दों को वे लक्ष्य पर ऐसे छोड़ते हैं, जैसे घातक बाणों को. \q1 \v 4 वे निर्दोष पुरुष की घात में बैठकर बाण चलाते हैं; \q2 वे निडर होकर अचानक रूप से प्रहार करते हैं. \b \q1 \v 5 वे एकजुट हो दुष्ट युक्तियों के लिए एक दूसरे को उकसाते हैं, \q2 वे छिपकर जाल बिछाने की योजना बनाते हैं; \q2 वे कहते हैं, “कौन देख सकेगा हमें?” \q1 \v 6 वे कुटिल योजना बनाकर कहते हैं, \q2 “अब हमने सत्य योजना तैयार कर ली है!” \q2 इसमें कोई संदेह नहीं कि मानव हृदय और अंतःकरण को समझ पाना कठिन कार्य है. \b \q1 \v 7 परमेश्वर उन पर अपने बाण छोड़ेंगे; \q2 एकाएक वे घायल हो गिर पड़ेंगे. \q1 \v 8 परमेश्वर उनकी जीभ को उन्हीं के विरुद्ध कर देंगे \q2 और उनका विनाश हो जाएगा; \q2 वे सभी, जो उन्हें देखेंगे, घृणा में अपने सिर हिलाएंगे. \q1 \v 9 समस्त मनुष्यों पर आतंक छा जाएगा; \q2 वे परमेश्वर के महाकार्य की घोषणा करेंगे, \q2 वे परमेश्वर के महाकार्य पर विचार करते रहेंगे. \b \q1 \v 10 धर्मी याहवेह में हर्षित होकर, \q2 उनका आश्रय लेंगे \q2 और सभी सीधे मनवाले उनका स्तवन करें! \c 65 \cl स्तोत्र 65 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद का एक स्तोत्र. एक गीत. \q1 \v 1 परमेश्वर, ज़ियोन में आपका स्तवन अपेक्षित है; \q2 आपके सामने की गई मन्‍नतें पूर्ण किए जाएंगे. \q1 \v 2 सभी मनुष्य आपके निकट आएंगे, \q2 आप जो प्रार्थनाएं सुनकर उनका उत्तर देते हैं. \q1 \v 3 मेरे पाप के अपराधों की बहुलता ने मुझे दबा रखा है, \q2 हमारे अपराधों पर आपने आवरण डाल दिया है. \q1 \v 4 धन्य होता है वह पुरुष जिसे आप चुन लेते हैं, \q2 कि वह आपके आंगन में आपके सामने में रहे! \q1 हम आपके आवास, \q2 आपके मंदिर के पवित्र स्थान के उत्कृष्ट पदार्थों से तृप्‍त किए जाएंगे. \b \q1 \v 5 आपके प्रत्युत्तर हमें चकित कर देते हैं, \q2 ये आपकी धार्मिकता होने का प्रमाण हैं. \q1 परमेश्वर, हमारे उद्धारकर्ता, \q2 पृथ्वी के छोर तक तथा दूर-दूर महासागर तक आप सभी श्रद्धालुओं की आशा हैं. \q1 \v 6 आप स्वयं सामर्थ्य से सुसज्जित हैं, \q2 आपने ही अपनी सामर्थ्य से पर्वतों की रचना की. \q1 \v 7 आप समुद्र की लहरों को, \q2 उसके गर्जनों को शांत कर देते हैं, \q2 आप राष्ट्रों की हलचल को भी शांत करते हैं. \q1 \v 8 सीमांत देशों के निवासी आपके महाकार्य से घबराए हुए; \q2 उदयाचल और अस्ताचल को \q2 आप हर्षगान के लिए प्रेरित करते हैं. \b \q1 \v 9 आप भूमि का ध्यान रख उसकी सिंचाई का प्रबंध करते हैं; \q2 आप उसे अत्यंत उपजाऊ बनाते हैं; \q1 परमेश्वर के जल प्रवाह कभी नहीं सूखते. \q2 क्योंकि परमेश्वर, आपने यह निर्धारित किया है, \q2 कि मनुष्यों के आहार के लिए अन्‍न सदैव उपलब्ध रहे. \q1 \v 10 आप नालियों को आर्द्र बनाए रखते हैं तथा कूटक को वर्षा द्वारा समतल कर देते हैं; \q2 वृष्टि से आप इसे कोमल बना देते हैं, आप इसकी उपज को आशीष देते हैं. \q1 \v 11 आप वर्ष को विपुल उपज के द्वारा गौरवान्वित करते हैं, \q2 जिससे अन्‍न उत्तम-उत्तम पदार्थ से भंडार परिपूर्ण पाए जाते हैं. \q1 \v 12 बंजर ज़मीन तक घास से सम्पन्‍न हो जाती है; \q2 पहाड़ियां आनंद का स्रोत हो जाती हैं. \q1 \v 13 हरे घास पशुओं से आच्छादित हो जाते हैं; \q2 घाटियां उपज से परिपूर्ण हैं; \q2 वे उल्‍लसित हो उच्च स्वर में गाने लगती हैं. \c 66 \cl स्तोत्र 66 \d संगीत निर्देशक के लिये. एक गीत. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 संपूर्ण पृथ्वी हर्षोल्लास में, परमेश्वर का जय जयकार करे! \q2 \v 2 परमेश्वर की महिमा के तेज का गुणगान करो; \q2 महिमा का भजन गाकर उनका स्तवन करो. \q1 \v 3 परमेश्वर से कहो, “कैसे आश्चर्यजनक हैं आपके महाकार्य! \q2 ऐसी अतुलनीय है आपकी सामर्थ्य, \q2 कि आपके शत्रु आपके सामने संकुचित होकर झुक जाते हैं. \q1 \v 4 संपूर्ण पृथ्वी आपके सामने नतमस्तक हो जाती है; \q2 सभी देश आपका स्तवन गान करते हैं, \q2 वे आपकी महिमा का स्तवन गान करते हैं.” \b \q1 \v 5 आकर स्वयं देख लो कि परमेश्वर ने क्या-क्या किया है, \q2 कैसे शोभायमान हैं मनुष्य के हित में किए गए उनके कार्य! \q1 \v 6 उन्होंने समुद्र को सूखी भूमि में बदल दिया, \q2 जब वे नदी पार कर रहे थे तो उनके पांव सूखी भूमि पर पड़ रहे थे. \q2 आओ, हम प्रभु में आनंद मनाएं. \q1 \v 7 सामर्थ्य में किया गया उनका शासन सर्वदा है, \q2 सभी राष्ट्र उनकी दृष्टि में बने रहते हैं, \q2 कोई भी उनके विरुद्ध विद्रोह का विचार न करे. \b \q1 \v 8 सभी जातियों, हमारे परमेश्वर का स्तवन करो, \q2 उनके स्तवन का नाद सर्वत्र सुनाई दे; \q1 \v 9 उन्होंने ही हमारे जीवन की रक्षा की है \q2 तथा हमारे पांवों को फिसलने से बचाया है. \q1 \v 10 परमेश्वर, आपने हमारी परीक्षा ली; \q2 आपने हमें चांदी जैसे परिशुद्ध किया है. \q1 \v 11 आपने हमें उलझन की परिस्थिति में डालकर, \q2 हमारी पीठ पर बोझ लाद दिए. \q1 \v 12 आपने हमारे शत्रुओं को हमारे सिर कुचलते हुए जाने दिया; \q2 हमें अग्नि और जलधारा में से होकर जाना पड़ा, \q2 किंतु अंततः आपने हमें समृद्ध भूमि पर ला बसाया. \b \q1 \v 13 मैं आपके मंदिर में अग्निबलि के साथ प्रवेश करूंगा, \q2 और आपसे की गई अपनी प्रतिज्ञाएं पूर्ण करूंगा. \q1 \v 14 वे सभी प्रतिज्ञाएं, \q2 जो विपत्ति के अवसर पर स्वयं मैंने अपने मुख से की थी. \q1 \v 15 मैं आपको पुष्ट पशुओं की बलि अर्पण करूंगा, \q2 मैं मेढ़ों, बछड़ों और बकरों \q2 की बलि अर्पण करूंगा. \b \q1 \v 16 परमेश्वर के सभी श्रद्धालुओ, आओ और सुनो; \q2 मैं उन महाकार्य को लिखा करूंगा, जो मेरे हित में परमेश्वर द्वारा किए गए हैं. \q1 \v 17 मैंने उन्हें पुकारा, \q2 मेरे होंठों पर उनका गुणगान था. \q1 \v 18 यदि मैंने अपने हृदय में अपराध को संजोए रखकर, \q2 उसे पोषित किया होता, तो परमेश्वर ने मेरी पुकार न सुनी होती; \q1 \v 19 किंतु परमेश्वर ने न केवल मेरी प्रार्थना सुनी; \q2 उन्होंने उसका उत्तर भी दिया है. \q1 \v 20 धन्य हैं परमेश्वर, \q2 जिन्होंने मेरी प्रार्थना सुनकर उसे अस्वीकार नहीं किया, \q2 और न मुझे अपने करुणा-प्रेम से छीन लिया! \c 67 \cl स्तोत्र 67 \d संगीत निर्देशक के लिये. तार वाद्यों की संगत के साथ. एक स्तोत्र. एक गीत. \q1 \v 1 परमेश्वर हम पर अनुग्रह करें, और आशीष दें, \q2 और उनका मुख हम पर प्रकाशित करते रहें. \q1 \v 2 पृथ्वी पर आपकी इच्छा प्रकाशित होती रहे, \q2 तथा समस्त राष्ट्रों को आपके उद्धार का परिचय प्राप्‍त हो. \b \q1 \v 3 हे परमेश्वर, मनुष्य आपका स्तवन करते रहें; \q2 सभी मनुष्यों द्वारा आपका स्तवन होता रहे. \q1 \v 4 हर एक राष्ट्र उल्‍लसित होकर हर्षोल्लास में गाने लगे, \q2 क्योंकि आपका न्याय सभी के लिए खरा है \q2 और आप पृथ्वी के हर एक राष्ट्र की अगुवाई करते हैं. \q1 \v 5 हे परमेश्वर, मनुष्य आपका स्तवन करते रहें; \q2 सभी मनुष्यों द्वारा आपका स्तवन होता रहे. \b \q1 \v 6 पृथ्वी ने अपनी उपज प्रदान की है; \q2 परमेश्वर, हमारे परमेश्वर, हम पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखें. \q1 \v 7 परमेश्वर हम पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखेंगे, \q2 कि पृथ्वी के दूर-दूर तक उनके लिए श्रद्धा प्रसारित हो जाए. \c 68 \cl स्तोत्र 68 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना. एक स्तोत्र. एक गीत. \q1 \v 1 परमेश्वर उठे, कि उनके शत्रु बिखर जाएं; \q2 उनके शत्रु उनके सम्मुख से भाग खड़े हों. \q1 \v 2 आप उन्हें वैसे ही उड़ा दें, जैसे हवा धुएं को उड़ा ले जाती है, \q2 वे परमेश्वर के सामने उसी प्रकार नष्ट हो जाएं \q2 जिस प्रकार अग्नि के सम्मुख आने पर मोम. \q1 \v 3 धर्मी हर्षित हों और वे परमेश्वर की उपस्थिति में \q2 हर्षोल्लास में मगन हों; \q2 वे आनंद में उल्‍लसित हों. \b \q1 \v 4 परमेश्वर का गुणगान करो, जो मेघों पर विराजमान होकर आगे बढ़ते हैं, \q2 उनकी महिमा का स्तवन करो, उनका नाम है याहवेह. \q2 उपयुक्त है कि उनके सामने उल्‍लसित रहा जाए. \q1 \v 5 परमेश्वर अपने पवित्र आवास में अनाथों \q2 के पिता तथा विधवाओं के रक्षक हैं. \q1 \v 6 वह एकाकियों के लिए स्थायी परिवार निर्धारित करते \q2 तथा बंदियों को मुक्त कर देते हैं तब वे हर्ष गीत गाने लगते हैं; \q2 किंतु हठीले तपते, सूखे भूमि में निवास करने के लिए छोड़ दिए जाते हैं. \b \q1 \v 7 परमेश्वर, जब आप अपनी प्रजा के आगे-आगे चलने के लिए निकल पड़े, \q2 जब आप बंजर ज़मीन में से होकर जा रहे थे, \q1 \v 8 पृथ्वी कांप उठी, आकाश ने वृष्टि भेजी, \q2 परमेश्वर के सामने, वह जो सीनायी पर्वत के परमेश्वर हैं, \q2 परमेश्वर के सामने, जो इस्राएल के परमेश्वर हैं. \q1 \v 9 परमेश्वर, आपने समृद्ध वृष्टि प्रदान की; \q2 आपने अपने थके हुए विरासत को ताज़ा किया. \q1 \v 10 आपकी प्रजा उस देश में बस गई; \q2 हे परमेश्वर, आपने अपनी दया के भंडार से असहाय प्रजा की आवश्यकता की व्यवस्था की. \b \q1 \v 11 प्रभु ने आदेश दिया और बड़ी संख्या में \q2 स्त्रियों ने यह शुभ संदेश प्रसारित कर दिया: \q1 \v 12 “राजा और सेना पलायन कर रहे हैं; हां, वे पलायन कर रहे हैं, \q2 और वह जो घर पर रह गई है लूट की सामग्री को वितरित करेगी. \q1 \v 13 जब तुम भेड़शाला में लेटते हो, \q2 तुम ऐसे लगते हो, मानो कबूतरी के पंखों पर चांदी, \q2 तथा उसके पैरों पर प्रकाशमान स्वर्ण मढ़ा गया हो.” \q1 \v 14 जब सर्वशक्तिमान ने राजाओं को वहां तितर-बितर किया, \q2 ज़लमोन में हिमपात हो रहा था. \b \q1 \v 15 ओ देवताओं का\f + \fr 68:15 \fr*\fq देवताओं का \fq*\fqa परमेश्वर का पर्वत \fqa*\ft ऐसे भी अर्थ है\ft*\f* पर्वत, बाशान पर्वत, \q2 ओ अनेक शिखरयुक्त पर्वत, बाशान पर्वत, \q1 \v 16 ओ अनेक शिखरयुक्त पर्वत, तुम उस पर्वत की ओर डाह की दृष्टि क्यों डाल रहे हो, \q2 जिसे परमेश्वर ने अपना आवास बनाना चाहा है, \q2 निश्चयतः वहां याहवेह सदा-सर्वदा निवास करेंगे? \q1 \v 17 परमेश्वर के रथ दस दस हजार, \q2 और हजारों हजार हैं; \q2 प्रभु अपनी पवित्रता में उनके मध्य हैं, जैसे सीनायी पर्वत पर. \q1 \v 18 जब आप ऊंचाइयों पर चढ़ गए, \q2 और आप अपने साथ बड़ी संख्या में युद्धबन्दी ले गए; \q2 आपने मनुष्यों से, हां, \q1 हठीले मनुष्यों से भी भेंट स्वीकार की, \q2 कि आप, याहवेह परमेश्वर वहां निवास करें. \b \q1 \v 19 परमेश्वर, हमारे प्रभु, हमारे उद्धारक का स्तवन हो, \q2 जो प्रतिदिन के जीवन में हमारे सहायक हैं. \q1 \v 20 हमारे परमेश्वर वह परमेश्वर हैं, जो हमें उद्धार प्रदान करते हैं; \q2 मृत्यु से उद्धार सर्वसत्ताधारी अधिराज याहवेह से ही होता है. \q1 \v 21 इसमें कोई संदेह नहीं, कि परमेश्वर अपने शत्रुओं के सिर कुचल देंगे, \q2 केश युक्त सिर, जो पापों में लिप्‍त रहते हैं. \q1 \v 22 प्रभु ने घोषणा की, “मैं तुम्हारे शत्रुओं को बाशान से भी खींच लाऊंगा; \q2 मैं उन्हें सागर की गहराइयों तक से निकाल लाऊंगा, \q1 \v 23 कि तुम अपने पांव अपने शत्रुओं के रक्त में डूबा सको, \q2 और तुम्हारे कुत्ते भी अपनी जीभ तृप्‍त कर सकें.” \b \q1 \v 24 हे परमेश्वर, आपकी शोभायात्रा अब दिखने लगी है; \q2 वह शोभायात्रा, जो मेरे परमेश्वर और मेरे राजा की है, जो मंदिर की ओर बढ़ रही है! \q1 \v 25 इस शोभायात्रा में सबसे आगे चल रहा है गायक-वृन्द, उसके पीछे है वाद्य-वृन्द; \q2 जिनमें युवतियां भी हैं जो डफ़ बजा रही हैं. \q1 \v 26 विशाल जनसभा में परमेश्वर का स्तवन किया जाए; \q2 इस्राएल राष्ट्र की महासभा में याहवेह का स्तवन किया जाए. \q1 \v 27 बिन्यामिन का छोटा गोत्र उनके आगे-आगे चल रहा है, \q2 वहीं यहूदी गोत्र के न्यायियों का विशाल समूह है, \q2 ज़ेबुलून तथा नफताली गोत्र के प्रधान भी उनमें सम्मिलित हैं. \b \q1 \v 28 हे परमेश्वर, अपनी सामर्थ्य को आदेश दीजिए, \q2 हम पर अपनी शक्ति प्रदर्शित कीजिए, हे परमेश्वर, जैसा आपने पहले भी किये हैं! \q1 \v 29 येरूशलेम में आपके मंदिर की महिमा के कारण, \q2 राजा अपनी भेंटें आपको समर्पित करेंगे. \q1 \v 30 सरकंडों के मध्य घूमते हिंसक पशुओं को, \q2 राष्ट्रों के बछड़ों के मध्य सांड़ों के झुंड को आप फटकार लगाइए. \q1 उन्हें रौंद डालिए, जिन्हें भेंट पाने की लालसा रहती है. \q2 युद्ध के लिए प्रसन्‍न राष्ट्रों की एकता भंग कर दीजिए. \q1 \v 31 मिस्र देश से राजदूत आएंगे; \q2 तथा कूश देश परमेश्वर के सामने समर्पित हो जाएगा. \b \q1 \v 32 पृथ्वी के समस्त राज्यो, परमेश्वर का गुणगान करो, \q2 प्रभु का स्तवन करो. \q1 \v 33 उन्हीं का स्तवन, जो सनातन काल से स्वर्ग में चलते फिरते रहे हैं, \q2 जिनका स्वर मेघ के गर्जन समान है. \q1 \v 34 उन परमेश्वर के सामर्थ्य की घोषणा करो, \q2 जिनका वैभव इस्राएल राष्ट्र पर छाया है, \q2 जिनका नियंत्रण समस्त स्वर्ग पर प्रगट है. \q1 \v 35 परमेश्वर, अपने मंदिर में आप कितने शोभायमान लगते हैं; \q2 इस्राएल के परमेश्वर अपनी प्रजा को अधिकार एवं सामर्थ्य प्रदान करते हैं. \b \q1 परमेश्वर का स्तवन होता रहे! \c 69 \cl स्तोत्र 69 \d संगीत निर्देशक के लिये. “शोशनीम” धुन पर आधारित. दावीद की रचना. \q1 \v 1 परमेश्वर, मेरी रक्षा कीजिए, \q2 क्योंकि जल स्तर मेरे गले तक आ पहुंचा है. \q1 \v 2 मैं गहरे दलदल में डूब जा रहा हूं, \q2 यहां मैं पैर तक नहीं टिक पा रहा हूं. \q1 मैं गहरे जल में आ पहुंचा हूं; \q2 और चारों ओर से जल मुझे डूबा रहा है. \q1 \v 3 सहायता के लिए पुकारते-पुकारते मैं थक चुका हूं; \q2 मेरा गला सूख चुका है. \q1 अपने परमेश्वर की प्रतीक्षा \q2 करते-करते मेरी दृष्टि धुंधली हो चुकी है. \q1 \v 4 जो अकारण ही मुझसे बैर करते हैं \q2 उनकी संख्या मेरे सिर के केशों से भी बढ़कर है; \q1 बलवान हैं वे, जो अकारण ही मेरे शत्रु हो गए हैं, \q2 वे सभी मुझे मिटा देने पर सामर्थ्यी हैं. \q1 जो मैंने चुराया ही नहीं, \q2 उसी की भरपाई मुझसे ली जा रही है. \b \q1 \v 5 परमेश्वर, आप मेरी मूर्खतापूर्ण त्रुटियों से परिचित हैं; \q2 मेरे दोष आपसे छिपे नहीं हैं. \b \q1 \v 6 मेरी प्रार्थना है कि मेरे कारण \q2 आपके विश्वासियों को लज्जित न होना पड़े. \q2 प्रभु, सर्वशक्तिमान याहवेह, \q1 मेरे कारण, \q2 इस्राएल के परमेश्वर, \q2 आपके खोजियों को लज्जित न होना पड़े. \q1 \v 7 मैं यह लज्जा आपके निमित्त सह रहा हूं, \q2 मेरा मुखमंडल ही घृणास्पद हो चुका है. \q1 \v 8 मैं अपने परिवार के लिए अपरिचित हो चुका हूं; \q2 अपने ही भाइयों के लिए मैं परदेशी हो गया हूं. \q1 \v 9 आपके भवन की धुन में जलते जलते मैं भस्म हुआ, \q2 तथा आपके निंदकों द्वारा की जा रही निंदा मुझ पर पड़ रही है. \q1 \v 10 जब मैंने उपवास करते हुए विलाप किया, \q2 तो मैं उनके लिए घृणा का पात्र बन गया; \q1 \v 11 जब मैंने शोक-वस्त्र धारण किए, \q2 तो लोग मेरी निंदा करने लगे. \q1 \v 12 नगर द्वार पर बैठे हुए पुरुष मुझ पर ताना मारते हैं, \q2 मैं पियक्कड़ पुरुषों के गीतों का विषय बन चुका हूं. \b \q1 \v 13 किंतु याहवेह, आपसे मेरी गिड़गिड़ाहट है, \q2 अपने करुणा-प्रेम\f + \fr 69:13 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* के कारण, \q1 अपनी कृपादृष्टि के अवसर पर, \q2 परमेश्वर, अपने निश्चित उद्धार के द्वारा मुझे प्रत्युत्तर दीजिए. \q1 \v 14 मुझे इस दलदल से बचा लीजिए, \q2 इस गहरे जल में मुझे डूबने न दीजिए; \q2 मुझे मेरे शत्रुओं से बचा लीजिए. \q1 \v 15 बाढ़ का जल मुझे समेट न ले \q2 और मैं गहराई में न जा पड़ूं \q2 और पाताल मुझे निगल न ले. \b \q1 \v 16 याहवेह, अपने करुणा-प्रेम की भलाई के कारण मुझे प्रत्युत्तर दीजिए; \q2 अपनी कृपादृष्टि में अपना मुख मेरी ओर कीजिए. \q1 \v 17 अपने सेवक से मुंह न मोड़िए; \q2 मुझे शीघ्र उत्तर दीजिए, क्योंकि मैं संकट में पड़ा हुआ हूं. \q1 \v 18 पास आकर मुझे इस स्थिति से बचा लीजिए; \q2 मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ा लीजिए. \b \q1 \v 19 आपको सब कुछ ज्ञात है, किस प्रकार मुझसे घृणा की जा रही है, मुझे लज्जित एवं अपमानित किया जा रहा है; \q2 आप मेरे सभी शत्रुओं को भी जानते हैं. \q1 \v 20 निंदा ने मेरा हृदय तोड़ दिया है \q2 और अब मैं दुःखी रह गया हूं; \q1 मुझे सहानुभूति की आवश्यकता थी, किंतु यह कहीं भी न मिली, \q2 तब मैंने सांत्वना खोजी, किंतु वह भी कहीं न थी. \q1 \v 21 उन्होंने मेरे भोजन में विष मिला दिया, \q2 और पीने के लिए मुझे सिरका दिया गया. \b \q1 \v 22 उनके लिए सजाई गई मेज़ ही उनके लिए फंदा बन जाए; \q2 और जब वे शान्तिपूर्ण स्थिति में हैं, यही उनके लिए जाल सिद्ध हो जाए. \q1 \v 23 उनके आंखों की ज्योति जाती रहे और वे देख न सकें, \q2 उनकी कमर स्थायी रूप से झुक जाए. \q1 \v 24 अपना क्रोध उन पर उंडेल दीजिए; \q2 आपका भस्मकारी क्रोध उन्हें समेट ले. \q1 \v 25 उनकी छावनी निर्जन हो जाए; \q2 उनके मण्डपों में निवास करने के लिए कोई शेष न रह जाए. \q1 \v 26 ये उन्हें दुःखित करते हैं, जिन्हें आपने घायल किया था, \q2 और उनकी पीड़ा पर वार्तालाप करते हैं, जिस पर आपने प्रहार किया है. \q1 \v 27 उनके समस्त पापों के लिए उन्हें दोषी घोषित कीजिए; \q2 वे कभी आपकी धार्मिकता में सम्मिलित न होने पाएं. \q1 \v 28 उनके नाम जीवन-पुस्तक से मिटा दिए जाएं; \q2 उनका लिखा धर्मियों के साथ कभी न हो. \b \q1 \v 29 मैं पीड़ा और संकट में पड़ा हुआ हूं, \q2 परमेश्वर, आपके उद्धार में ही मेरी सुरक्षा हो. \b \q1 \v 30 मैं परमेश्वर की महिमा गीत के द्वारा करूंगा, \q2 मैं धन्यवाद के साथ उनके तेज की बड़ाई करूंगा. \q1 \v 31 इससे याहवेह बछड़े के बलि अर्पण से अधिक प्रसन्‍न होंगे; \q2 अथवा सींग और खुरयुक्त सांड़ की बलि से. \q1 \v 32 दरिद्रों के लिए यह हर्ष का विषय होगा. \q2 तुम, जो परमेश्वर के खोजी हो, इससे नया बल प्राप्‍त करो! \q1 \v 33 याहवेह असहायों की सुनते हैं, \q2 उन्हें बंदियों से घृणा नहीं है. \b \q1 \v 34 आकाश और पृथ्वी उनकी वंदना करें, हां, \q2 महासागर और उसमें चलते फिरते सभी प्राणी भी, \q1 \v 35 क्योंकि परमेश्वर ज़ियोन की रक्षा करेंगे; \q2 वह यहूदिया प्रदेश के नगरों का पुनःनिर्माण करेंगे. \q1 तब प्रभु की प्रजा वहां बस जाएगी और उस क्षेत्र पर अधिकार कर लेगी. \q1 \v 36 यह भूमि प्रभु के सेवकों की संतान का भाग हो जाएगी, \q2 तथा जो प्रभु पर श्रद्धा रखते हैं, वहां निवास करेंगे. \c 70 \cl स्तोत्र 70 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना. अभ्यर्थना. \q1 \v 1 हे परमेश्वर, कृपा कर मुझे उद्धार प्रदान कीजिए; \q2 याहवेह, तुरंत मेरी सहायता कीजिए. \b \q1 \v 2 वे, जो मेरे प्राणों के प्यासे हैं, \q2 लज्जित और निराश किए जाएं; \q1 वे जिनका आनंद मेरी पीड़ा में है, \q2 पीठ दिखाकर भागें तथा अपमानित किए जाएं. \q1 \v 3 वे सभी, जो मेरी स्थिति को देख, “आहा! आहा!” करते हैं! \q2 लज्जा में अपना मुख छिपा लें. \q1 \v 4 किंतु वे सभी, जो आपकी खोज करते हैं \q2 हर्षोल्लास में मगन हों; \q1 वे सभी, जिन्हें आपके उद्धार की आकांक्षा है, यही कहें, \q2 “अति महान हैं परमेश्वर!” \b \q1 \v 5 मैं दरिद्र और दुःखी पुरुष हूं; \q2 परमेश्वर, मेरी सहायता के लिए विलंब न कीजिए. \q1 आप ही मेरे सहायक और छुड़ानेवाले हैं; \q2 याहवेह, विलंब न कीजिए. \c 71 \cl स्तोत्र 71 \q1 \v 1 याहवेह, मैंने आपका आश्रय लिया है; \q2 मुझे कभी लज्जित न होने दीजिएगा. \q1 \v 2 अपनी धार्मिकता में हे परमेश्वर, मुझे बचाकर छुड़ा लीजिए; \q2 मेरी पुकार सुनकर मेरा उद्धार कीजिए. \q1 \v 3 आप मेरे आश्रय की चट्टान बन जाइए, \q2 जहां मैं हर एक परिस्थिति में शरण ले सकूं; \q1 मेरे उद्धार का आदेश प्रसारित कीजिए, \q2 आप ही मेरे लिए चट्टान और गढ़ हैं. \q1 \v 4 मुझे दुष्ट के शिकंजे से मुक्त कर दीजिए, \q2 परमेश्वर, उन पुरुषों के हाथों से जो कुटिल तथा क्रूर हैं. \b \q1 \v 5 प्रभु याहवेह, आप ही मेरी आशा हैं, \q2 बचपन से ही मैंने आप पर भरोसा रखा है. \q1 \v 6 वस्तुतः गर्भ ही से आप मुझे संभालते आ रहे हैं; \q2 मेरे जन्म की प्रक्रिया भी आपके द्वारा पूर्ण की गई. \q2 मैं सदा-सर्वदा आपका स्तवन करता रहूंगा. \q1 \v 7 अनेकों के लिए मैं एक उदाहरण बन गया हूं; \q2 मेरे लिए आप दृढ़ आश्रय प्रमाणित हुए हैं. \q1 \v 8 मेरा मुख आपका गुणगान करते हुए नहीं थकता, \q2 आपका वैभव एवं तेज सारे दिन मेरे गीतों के विषय होते हैं. \b \q1 \v 9 मेरी वृद्धावस्था में मेरा परित्याग न कीजिए; \q2 अब, जब मेरा बल घटता जा रहा है, मुझे भूल न जाइए, \q1 \v 10 क्योंकि मेरे शत्रुओं ने मेरे विरुद्ध स्वर उठाना प्रारंभ कर दिया है; \q2 जो मेरे प्राण लेने चाहते हैं, वे मेरे विरुद्ध षड़्‍यंत्र रच रहे हैं. \q1 \v 11 वे कहते फिर रहे हैं, “परमेश्वर तो उसे छोड़ चुके हैं, \q2 उसे खदेड़ो और उसे जा पकड़ो, \q2 कोई नहीं रहा उसे बचाने के लिए.” \q1 \v 12 परमेश्वर, मुझसे दूर न रहिए; \q2 तुरंत मेरी सहायता के लिए आ जाइए. \q1 \v 13 वे, जो मुझ पर आरोप लगाते हैं, लज्जा में ही नष्ट हो जाएं; \q2 जो मेरी हानि करने पर सामर्थ्यी हैं, \q2 लज्जा और अपमान में समा जाएं. \b \q1 \v 14 जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं आशा कभी न छोड़ूंगा; \q2 आपका स्तवन मैं अधिक-अधिक करता जाऊंगा. \b \q1 \v 15 सारे दिन मैं अपने मुख से आपके धर्ममय कृत्यों के \q2 तथा आपके उद्धार के बारे में बताता रहूंगा; \q2 यद्यपि मुझे इनकी सीमाओं का कोई ज्ञान नहीं है. \q1 \v 16 मैं प्रभु याहवेह के विलक्षण कार्यों की घोषणा करता हुआ आऊंगा; \q2 मेरी घोषणा का विषय होगा मात्र आपकी धार्मिकता, हां, मात्र आपकी. \q1 \v 17 परमेश्वर, मेरे बचपन से ही आप मुझे शिक्षा देते आए हैं, \q2 आज तक मैं आपके महाकार्य की घोषणा कर रहा हूं. \q1 \v 18 आज जब मैं वृद्ध हो चुका हूं, मेरे केश पक चुके हैं, \q2 परमेश्वर, मुझे उस समय तक न छोड़ना, \q1 जब तक मैं अगली पीढ़ी को आपके सामर्थ्य \q2 तथा आपके पराक्रम के विषय में शिक्षा न दे दूं. \b \q1 \v 19 परमेश्वर आपकी धार्मिकता आकाश तक ऊंची है, \q2 आपने महाकार्य किए हैं. \q2 परमेश्वर, कौन है आपके तुल्य? \q1 \v 20 यद्यपि आप मुझे अनेक विकट संकटों में से \q2 लेकर यहां तक ले आए हैं, \q2 आप ही मुझमें पुनः जीवन का संचार करेंगे, \q1 आप पृथ्वी की गहराइयों से \q2 मुझे ऊपर ले आएंगे. \q1 \v 21 आप ही मेरी महिमा को ऊंचा करेंगे \q2 तथा आप ही मुझे पुनः सांत्वना प्रदान करेंगे. \b \q1 \v 22 मेरे परमेश्वर, आपकी विश्वासयोग्यता के लिए, \q2 मैं वीणा\f + \fr 71:22 \fr*\ft मूल में नेबेल\ft*\f* के साथ आपका स्तवन करूंगा; \q1 इस्राएल के परम पवित्र, मैं किन्‍नोर की संगत पर, \q2 आपका गुणगान करूंगा. \q1 \v 23 अपने होंठों से मैं हर्षोल्लास में नारे लगाऊंगा, \q2 जब मैं आपके स्तवन गीत गाऊंगा; \q2 मैं वही हूं, जिसका आपने उद्धार किया है. \q1 \v 24 आपके युक्त कृत्यों का वर्णन मेरी जीभ से \q2 सदा होता रहेगा, \q1 क्योंकि जो मेरी हानि के इच्छुक थे \q2 आपने उन्हें लज्जित और निराश कर छोड़ा है. \c 72 \cl स्तोत्र 72 \d शलोमोन का \q1 \v 1 परमेश्वर, राजा को अपना न्याय, \q2 तथा राजपुत्र को अपनी धार्मिकता प्रदान कीजिए, \q1 \v 2 कि वह आपकी प्रजा का न्याय धार्मिकता-पूर्वक, \q2 तथा पीड़ितों का शासन न्याय संगत रीति से करे. \b \q1 \v 3 तब प्रजा के लिए पर्वतों से समृद्धि, \q2 तथा घाटियों से धार्मिकता की उपज उत्पन्‍न होने लगेगी. \q1 \v 4 तब राजा प्रजा में पीड़ितों की रक्षा करेगा, \q2 दरिद्रों की संतानों का उद्धार करेगा; \q2 और सतानेवाले को कुचल डालेगा. \q1 \v 5 पीढ़ी से पीढ़ी जब तक सूर्य और चंद्रमा का अस्तित्व रहेगा, \q2 प्रजा में आपके प्रति श्रद्धा बनी रहेगी. \q1 \v 6 उसका प्रगट होना वैसा ही होगा, \q2 जैसा घास पर वर्षा का तथा शुष्क भूमि पर वृष्टि का. \q1 \v 7 उसके शासनकाल में धर्मी फूले फलेंगे, \q2 और जब तक चंद्रमा रहेगा समृद्धि बढ़ती जाएगी. \b \q1 \v 8 उसके साम्राज्य का विस्तार एक सागर से दूसरे सागर तक \q2 तथा फ़रात नदी से पृथ्वी के छोर तक होगा. \q1 \v 9 वन में रहनेवाले लोग भी उसके सामने झुकेंगे \q2 और वह शत्रुओं को धूल का सेवन कराएगा. \q1 \v 10 तरशीश तथा दूर तट के देशों के राजा \q2 उसके लिए भेंटें लेकर आएंगे, \q1 शीबा और सेबा देश के राजा भी \q2 उसे उपहार प्रस्तुत करेंगे. \q1 \v 11 समस्त राजा उनके सामने नतमस्तक होंगे \q2 और समस्त राष्ट्र उनके अधीन. \b \q1 \v 12 क्योंकि वह दुःखी की पुकार सुनकर उसे मुक्त कराएगा, \q2 ऐसे पीड़ितों को, जिनका कोई सहायक नहीं. \q1 \v 13 वह दरिद्रों तथा दुर्बलों पर तरस खाएगा \q2 तथा वह दुःखी को मृत्यु से बचा लेगा. \q1 \v 14 वह उनके प्राणों को अंधेर और हिंसा से बचा लेगा, \q2 क्योंकि उसकी दृष्टि में उनका रक्त मूल्यवान है. \b \q1 \v 15 वह दीर्घायु हो! \q2 उसे भेंट में शीबा देश का स्वर्ण प्रदान किया जाए. \q1 प्रजा उसके लिए प्रार्थना करती रहे \q2 और निरंतर उसके हित की कामना करती रहे. \q1 \v 16 संपूर्ण देश में अन्‍न विपुलता में बना रहे; \q2 पहाड़ियां तक उपज से भर जाएं. \q1 देश में फलों की उपज लबानोन की उपजाऊ भूमि जैसी हो \q2 और नगरवासियों की समृद्धि ऐसी हो, जैसी भूमि की वनस्पति. \q1 \v 17 उसकी ख्याति चिरस्थाई हो; \q2 जब तक सूर्य में प्रकाश है, उसकी महिमा नई हो. \b \q1 उसके द्वारा समस्त राष्ट्र आशीषित हों,\f + \fr 72:17 \fr*\ft \+xt उत्प 48:20\+xt*\ft*\f* \q2 वे उसे धन्य कहें. \b \b \q1 \v 18 इस्राएल के परमेश्वर, याहवेह परमेश्वर का स्तवन हो, \q2 केवल वही हैं, जो महाकार्य करते हैं. \q1 \v 19 उनका महिमामय नाम सदा-सर्वदा धन्य हो; \q2 संपूर्ण पृथ्वी उनके तेज से भयभीत हो जाए. \qc आमेन और आमेन. \b \b \q1 \v 20 यिशै के पुत्र दावीद की प्रार्थनाएं यहां समाप्‍त हुईं. \c 73 \ms तृतीय पुस्तक \mr स्तोत्र 73–89 \cl स्तोत्र 73 \d आसफ का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 इसमें कोई संदेह नहीं कि परमेश्वर इस्राएल के प्रति, \q2 उनके प्रति, जिनके हृदय निर्मल हैं, हितकारी हैं. \b \q1 \v 2 वैसे मैं लगभग इस स्थिति तक पहुंच चुका था; \q2 कि मेरे पैर फिसलने पर ही थे, मेरे कदम लड़खड़ाने पर ही थे. \q1 \v 3 मुझे दुर्जनों की समृद्धि से डाह होने लगी थी \q2 क्योंकि मेरा ध्यान उनके घमंड पर था. \b \q1 \v 4 मृत्यु तक उनमें पीड़ा के प्रति कोई संवेदना न थी; \q2 उनकी देह स्वस्थ तथा बलवान थी. \q1 \v 5 उन्हें अन्य मनुष्यों के समान सामान्य समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता; \q2 उन्हें परिश्रम भी नहीं करना पड़ता. \q1 \v 6 अहंकार उनके गले का हार है; \q2 तथा हिंसा उनका वस्त्र. \q1 \v 7 उनके संवेदन शून्य हृदय से अपराध ही निकलता है; \q2 उनके मस्तिष्क में घुमड़ती दुष्कल्पनाओं की कोई सीमा ही नहीं है. \q1 \v 8 वे उपहास करते रहते हैं, बुराई करने की वार्तालाप करते हैं; \q2 तथा अहंकार के साथ वे उत्पीड़न की धमकी देते हैं. \q1 \v 9 उनकी डींगे आकाश तक ऊंची होती हैं, \q2 और वे दावा करते हैं कि वे पृथ्वी के अधिकारी हैं. \q1 \v 10 इसलिये उनके लोग इस स्थान पर लौट आते हैं, \q2 और वे भरे हुए जल में से पान करते हैं. \q1 \v 11 वे कहते हैं, “यह कैसे हो सकता है, कि यह परमेश्वर को ज्ञात हो जाए? \q2 क्या परम प्रधान को इसका बोध है?” \b \q1 \v 12 ऐसे होते हैं दुष्ट पुरुष—सदैव निश्चिंत; \q2 और उनकी संपत्ति में वृद्धि होती रहती है. \b \q1 \v 13 क्या लाभ हुआ मुझे अपने हृदय को शुद्ध रखने का? \q2 व्यर्थ ही मैंने अपने हाथ निर्दोष रखे. \q1 \v 14 सारे दिन मैं यातनाएं सहता रहा, \q2 प्रति भोर मुझे दंड दिया जाता रहा. \b \q1 \v 15 अब मेरा बोलना उन्हीं के जैसा होगा, \q2 तो यह आपकी प्रजा के साथ विश्वासघात होता. \q1 \v 16 मैंने इस मर्म को समझने का प्रयास किया, \q2 तो यह अत्यंत कठिन लगा. \q1 \v 17 तब मैं परमेश्वर के पवित्र स्थान में जा पहुंचा; \q2 और वहां मुझ पर दुष्टों की नियति का प्रकाशन हुआ. \b \q1 \v 18 सचमुच में, आपने दुष्टों को फिसलने वाली भूमि पर रखा है; \q2 विनाश होने के लिए आपने उन्हें निर्धारित कर रखा है. \q1 \v 19 अचानक ही आ पड़ेगा \q2 उन पर विनाश, आतंक उन्हें एकाएक ही ले उड़ेगा! \q1 \v 20 जब दुस्वप्न के कारण निद्रा से जागने पर एक व्यक्ति \q2 दुस्वप्न के रूप से घृणा करता है, \q1 हे प्रभु, उसी प्रकार आपके जागने पर \q2 उनके स्वरूप से आप घृणा करेंगे! \b \q1 \v 21 जब मेरा हृदय खेदित था \q2 तथा मेरी आत्मा कड़वाहट से भर गई थी, \q1 \v 22 उस समय मैं नासमझ और अज्ञानी ही था; \q2 आपके सामने मैं पशु समान था. \b \q1 \v 23 किंतु मैं सदैव आपके निकट रहा हूं; \q2 और आप मेरा दायां हाथ थामे रहे. \q1 \v 24 आप अपनी सम्मति द्वारा मेरी अगुवाई करते हैं, \q2 और अंत में आप मुझे अपनी महिमा में सम्मिलित कर लेंगे. \q1 \v 25 स्वर्ग में आपके अतिरिक्त मेरा कौन है? \q2 आपकी उपस्थिति में मुझे पृथ्वी की किसी भी वस्तु की कामना नहीं रह जाती. \q1 \v 26 यह संभव है कि मेरी देह मेरा साथ न दे और मेरा हृदय क्षीण हो जाए, \q2 किंतु मेरा बल स्वयं परमेश्वर हैं; \q2 वही मेरी निधि हैं. \b \q1 \v 27 क्योंकि वे, जो आपसे दूर हैं, नष्ट हो जाएंगे; \q2 आपने उन सभी को नष्ट कर दिया है, जो आपके प्रति विश्वासघाती हैं. \q1 \v 28 मेरा अपना अनुभव यह है, कि मनोरम है परमेश्वर का सान्‍निध्य. \q2 मैंने प्रभु याहवेह को अपना आश्रय-स्थल बना लिया है; \q2 कि मैं आपके समस्त महाकार्य को लिख सकूं. \c 74 \cl स्तोत्र 74 \d आसफ का \tl मसकील.\tl*\f + \fr 74:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* \q1 \v 1 परमेश्वर! आपने क्यों हमें सदा के लिए शोकित छोड़ दिया है? \q2 आपकी चराई की भेड़ों के प्रति आपके क्रोध की अग्नि का धुआं क्यों उठ रहा है? \q1 \v 2 स्मरण कीजिए उन लोगों को, जिन्हें आपने मोल लिया था, \q2 उस कुल को, आपने अपना भागी बनाने के लिए जिसका उद्धार किया था; \q2 स्मरण कीजिए ज़ियोन पर्वत को, जो आपका आवास है. \q1 \v 3 इन चिरस्थाई विध्वंस अवशेषों के मध्य चलते फिरते रहिए, \q2 पवित्र स्थान में शत्रु ने सभी कुछ नष्ट कर दिया है. \b \q1 \v 4 एक समय जहां आप हमसे भेंटकरते थे, वहां शत्रु के जयघोष के नारे गूंज रहे हैं; \q2 उन्होंने वहां प्रमाण स्वरूप अपने ध्वज गाड़ दिए हैं. \q1 \v 5 उनका व्यवहार वृक्षों और झाड़ियों पर \q2 कुल्हाड़ी चलाते हुए आगे बढ़ते पुरुषों के समान होता है. \q1 \v 6 उन्होंने कुल्हाड़ियों और हथौड़ों से \q2 द्वारों के उकेरे गए नक़्कशीदार कामों को चूर-चूर कर डाला है. \q1 \v 7 उन्होंने आपके मंदिर को भस्म कर धूल में मिला दिया है; \q2 उस स्थान को, जहां आपकी महिमा का वास था, उन्होंने भ्रष्‍ट कर दिया है. \q1 \v 8 उन्होंने यह कहते हुए संकल्प किया, “इन्हें हम पूर्णतः कुचल देंगे!” \q2 संपूर्ण देश में ऐसे स्थान, जहां-जहां परमेश्वर की वंदना की जाती थी, भस्म कर दिए गए. \b \q1 \v 9 अब कहीं भी आश्चर्य कार्य नहीं देखे जा रहे; \q2 कहीं भी भविष्यद्वक्ता शेष न रहे, \q2 हममें से कोई भी यह नहीं बता सकता, कि यह सब कब तक होता रहेगा. \q1 \v 10 परमेश्वर, शत्रु कब तक आपका उपहास करता रहेगा? \q2 क्या शत्रु आपकी महिमा पर सदैव ही कीचड़ उछालता रहेगा? \q1 \v 11 आपने क्यों अपना हाथ रोके रखा है, आपका दायां हाथ? \q2 अपने वस्त्रों में छिपे हाथ को बाहर निकालिए और कर दीजिए अपने शत्रुओं का अंत! \b \q1 \v 12 परमेश्वर, आप युग-युग से मेरे राजा रहे हैं; \q2 पृथ्वी पर उद्धार के काम करनेवाले आप ही हैं. \b \q1 \v 13 आप ही ने अपनी सामर्थ्य से समुद्र को दो भागों में विभक्त किया था; \q2 आप ही ने विकराल जल जंतु के सिर कुचल डाले. \q1 \v 14 लिवयाथान\f + \fr 74:14 \fr*\ft बड़ा मगरमच्छ हो सकता है\ft*\f* के सिर भी आपने ही कुचले थे, \q2 कि उसका मांस वन के पशुओं को खिला दिया जाए. \q1 \v 15 आपने ही झरने और धाराएं प्रवाहित की; \q2 और आपने ही सदा बहने वाली नदियों को सुखा दिया. \q1 \v 16 दिन तो आपका है ही, साथ ही रात्रि भी आपकी ही है; \q2 सूर्य, चंद्रमा की स्थापना भी आपके द्वारा की गई है. \q1 \v 17 पृथ्वी की समस्त सीमाएं आपके द्वारा निर्धारित की गई हैं; \q2 ग्रीष्मऋतु एवं शरद ऋतु दोनों ही आपकी कृति हैं. \b \q1 \v 18 याहवेह, स्मरण कीजिए शत्रु ने कैसे आपका उपहास किया था, \q2 कैसे मूर्खों ने आपकी निंदा की थी. \q1 \v 19 अपने कबूतरी का जीवन हिंसक पशुओं के हाथ में न छोड़िए; \q2 अपनी पीड़ित प्रजा के जीवन को सदा के लिए भूल न जाइए. \q1 \v 20 अपनी वाचा की लाज रख लीजिए, \q2 क्योंकि देश के अंधकारमय स्थान हिंसा के अड्डे बन गए हैं. \q1 \v 21 दमित प्रजा को लज्जित होकर लौटना न पड़े; \q2 कि दरिद्र और दुःखी आपका गुणगान करें. \q1 \v 22 परमेश्वर, उठ जाइए और अपने पक्ष की रक्षा कीजिए; \q2 स्मरण कीजिए कि मूर्ख कैसे निरंतर आपका उपहास करते रहे हैं. \q1 \v 23 अपने विरोधियों के आक्रोश की अनदेखी न कीजिए, \q2 आपके शत्रुओं का वह कोलाहल, जो निरंतर बढ़ता जा रहा है. \c 75 \cl स्तोत्र 75 \d संगीत निर्देशक के लिये. “अलतशख़ेथ” धुन पर आधारित. आसफ का एक स्तोत्र. एक गीत. \q1 \v 1 हे परमेश्वर, हम आपकी स्तुति करते हैं, \q2 हम आपकी स्तुति करते हैं क्योंकि आपका नाम हमारे निकट है; \q2 लोग आपके महाकार्य का वर्णन कर रहे हैं. \b \q1 \v 2 आपका कथन है, “उपयुक्त समय का निर्धारण मैं करता हूं; \q2 निष्पक्ष न्याय भी मेरा ही होता है. \q1 \v 3 जब भूकंप होता है और पृथ्वी के निवासी भयभीत हो कांप उठते हैं, \q2 तब मैं ही हूं, जो पृथ्वी के स्तंभों को दृढतापूर्वक थामे रखता हूं. \q1 \v 4 अहंकारी से मैंने कहा, ‘घमंड न करो,’ \q2 और दुष्ट से, ‘अपने सींग ऊंचे न करो, \q1 \v 5 स्वर्ग की ओर सींग उठाने का साहस न करना; \q2 अपना सिर ऊंचा कर बातें न करना.’ ” \b \q1 \v 6 न तो पूर्व से, न पश्चिम से और न ही दक्षिण के वन से, \q2 कोई किसी मनुष्य को ऊंचा कर सकता है. \q1 \v 7 मात्र परमेश्वर ही न्याय करते हैं: \q2 वह किसी को ऊंचा करते हैं और किसी को नीचा. \q1 \v 8 याहवेह के हाथों में एक कटोरा है, \q2 उसमें मसालों से मिली उफनती दाखमधु है; \q1 वह इसे उण्डेलते हैं और पृथ्वी के समस्त दुष्ट \q2 तलछट तक इसका पान करते हैं. \b \q1 \v 9 मेरी ओर से सर्वदा यही घोषणा होगी; \q2 मैं याकोब के परमेश्वर का गुणगान करूंगा; \q1 \v 10 आप का, जो कहते हैं, “मैं समस्त दुष्टों के सींग काट डालूंगा, \q2 किंतु धर्मियों के सींग ऊंचे किए जाएंगे.” \c 76 \cl स्तोत्र 76 \d संगीत निर्देशक के लिये. तार वाद्यों की संगत के साथ. आसफ का एक स्तोत्र. एक गीत. \q1 \v 1 यहूदिया प्रदेश में लोग परमेश्वर को जानते हैं; \q2 इस्राएल देश में उनका नाम बसा है. \q1 \v 2 शालेम नगर में उनका आवास है, \q2 और उनका मुख्यालय ज़ियोन नगर में. \q1 \v 3 यह वह स्थान है, जहां उन्होंने आग्नेय बाणों को, \q2 ढाल और तलवारों को तोड़ डाला. \b \q1 \v 4 आप अत्युज्जवल ज्योति से उज्जवल हैं, \q2 प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण पर्वतों से कहीं अधिक भव्य. \q1 \v 5 शूरवीरों से सब कुछ छीन लिया गया, \q2 वे चिर-निद्रा में समा गए; \q1 एक भी योद्धा में \q2 इतना सामर्थ्य शेष न रहा कि इसे रोक पाए. \q1 \v 6 याकोब के परमेश्वर, ऐसी प्रचंड थी आपकी फटकार, \q2 कि अश्व और रथ दोनों ही नष्ट हो गए. \b \q1 \v 7 मात्र आप ही इस योग्य हैं कि आपके प्रति श्रद्धा रखा जाए. \q2 जब आप उदास होते हैं तब किसमें आपके सामने ठहरने की क्षमता होती है? \q1 \v 8 जब स्वर्ग से आपने अपने निर्णय प्रसारित किए, \q2 तो पृथ्वी भयभीत होकर चुप हो गई. \q1 \v 9 परमेश्वर, आप उस समय न्याय के लिए सामर्थ्यी हुए, \q2 कि पृथ्वी के पीड़ित लोगों को छुड़ा लिया जाए. \q1 \v 10 निःसंदेह दुष्टों के प्रति आपका रोष आपके प्रति प्रशंसा प्रेरित करता है, \q2 तब वे, जो आपके रोष के बाद शेष रह गए थे, आप उन्हें नियंत्रित एवं धर्ममय करेंगे. \b \q1 \v 11 जब तुम मन्नत मानो, तो परमेश्वर, अपने याहवेह के लिए पूर्ण करो; \q2 सभी निकटवर्ती राष्ट्र उन्हें भेंट अर्पित करें, \q2 जो श्रद्धा-भय के अधिकारी हैं. \q1 \v 12 वह शासकों का मनोबल तोड़ देते हैं; \q2 समस्त पृथ्वी के राजाओं के लिए वह आतंक हैं. \c 77 \cl स्तोत्र 77 \d संगीत निर्देशक के लिये. यदूथून के लिए. आसफ का एक स्तोत्र. एक गीत. \q1 \v 1 मैं परमेश्वर को पुकारता हूं—उच्च स्वर में परमेश्वर की दुहाई दे रहा हूं; \q2 कि वह मेरी प्रार्थना पर ध्यान दें. \q1 \v 2 अपनी संकट की स्थिति में, मैंने प्रभु की सहायता की कामना की; \q2 रात्रि के समय थकावट की अनदेखी कर मैं उनकी ओर हाथ बढ़ाए रहा \q2 किंतु, मेरे प्राण को थोडी भी सांत्वना प्राप्‍त न हुई. \b \q1 \v 3 परमेश्वर, कराहते हुए मैं आपको स्मरण करता रहा; \q2 आपका ध्यान करते हुए मेरी आत्मा क्षीण हो गई. \q1 \v 4 जब मैं संकट में निराश हो चुका था; \q2 आपने मेरी आंख न लगने दी. \q1 \v 5 मेरे विचार प्राचीन काल में चले गए, \q2 और फिर मैं प्राचीन काल में दूर चला गया. \q1 \v 6 जब रात्रि में मैं अपनी गीत रचनाएं स्मरण कर रहा था, \q2 मेरा हृदय उन पर विचार करने लगा, तब मेरी आत्मा में यह प्रश्न उभर आया. \b \q1 \v 7 “क्या प्रभु स्थाई रूप से हमारा परित्याग कर देंगे? \q2 क्या हमने स्थाई रूप से उनकी कृपादृष्टि खो दी है? \q1 \v 8 क्या उनका बड़ा प्रेम अब पूर्णतः शून्य हो गया? \q2 क्या उनकी प्रतिज्ञा पूर्णतः विफल प्रमाणित हो गई? \q1 \v 9 क्या परमेश्वर की कृपालुता अब जाती रही? \q2 क्या अपने क्रोध के कारण वह दया नहीं करेंगे?” \b \q1 \v 10 तब मैंने विचार किया, “वस्तुतः मेरे दुःख का कारण यह है: \q2 कि सर्वोच्च प्रभु परमेश्वर ने अपना दायां हाथ खींच लिया है. \q1 \v 11 मैं याहवेह के महाकार्य स्मरण करूंगा; \q2 हां, प्रभु पूर्व युगों में आपके द्वारा किए गए आश्चर्य कार्यों का मैं स्मरण करूंगा. \q1 \v 12 आपके समस्त महाकार्य मेरे मनन का विषय होंगे \q2 और आपके आश्चर्य कार्य मेरी सोच का विषय.” \b \q1 \v 13 परमेश्वर, पवित्र हैं, आपके मार्ग. \q2 और कौन सा ईश्वर हमारे परमेश्वर के तुल्य महान है? \q1 \v 14 आप तो वह परमेश्वर हैं, जो आश्चर्य कार्य करते हैं; \q2 समस्त राष्ट्रों पर आप अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करते हैं. \q1 \v 15 आपने अपने भुजबल से अपने लोगों को, \q2 याकोब और योसेफ़ के वंशजों को, छुड़ा लिया. \b \q1 \v 16 परमेश्वर, महासागर ने आपकी ओर दृष्टि की, \q2 महासागर ने आपकी ओर दृष्टि की और छटपटाने लगा; \q2 महासागर की गहराइयों तक में उथल-पुथल हो गई. \q1 \v 17 मेघों ने जल वृष्टि की, \q2 स्वर्ग में मेघ की गरजना गूंज उठी; \q2 आपके बाण इधर-उधर-सर्वत्र बरसने लगे. \q1 \v 18 आपकी गरजना का स्वर बवंडर में सुनाई पड़ रहा था, \q2 आपकी बिजली की चमक से समस्त संसार प्रकाशित हो उठा; \q2 पृथ्वी कांपी और हिल उठी. \q1 \v 19 आपका मार्ग सागर में से होकर गया है, \q2 हां, महासागर में होकर आपका मार्ग गया है, \q2 किंतु आपके पदचिन्ह अदृश्य ही रहे. \b \q1 \v 20 एक चरवाहे के समान आप अपनी प्रजा को लेकर आगे बढ़ते गए. \q2 मोशेह और अहरोन आपके प्रतिनिधि थे. \c 78 \cl स्तोत्र 78 \d आसफ का \tl मसकील\tl*\f + \fr 78:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* \q1 \v 1 मेरी प्रजा, मेरी शिक्षा पर ध्यान दो; \q2 जो शिक्षा मैं दे रहा हूं उसे ध्यान से सुनो. \q1 \v 2 मैं अपनी शिक्षा दृष्टान्तों में दूंगा; \q2 मैं पूर्वकाल से गोपनीय रखी गई बातों को प्रकाशित करूंगा— \q1 \v 3 वे बातें जो हम सुन चुके थे, जो हमें मालूम थीं, \q2 वे बातें, जो हमने अपने पूर्वजों से प्राप्‍त की थीं. \q1 \v 4 याहवेह द्वारा किए गए स्तुत्य कार्य, \q2 जो उनके सामर्थ्य के अद्भुत कार्य हैं, \q1 इन्हें हम इनकी संतानों से गुप्‍त नहीं रखेंगे; \q2 उनका लिखा भावी पीढ़ी तक किया जायेगा. \q1 \v 5 प्रभु ने याकोब के लिए नियम स्थापित किया \q2 तथा इस्राएल में व्यवस्था स्थापित कर दिया, \q1 इनके संबंध में परमेश्वर का आदेश था \q2 कि हमारे पूर्वज अगली पीढ़ी को इनकी शिक्षा दें, \q1 \v 6 कि आगामी पीढ़ी इनसे परिचित हो जाए, यहां तक कि वे बालक भी, \q2 जिनका अभी जन्म भी नहीं हुआ है, \q2 कि अपने समय में वे भी अपनी अगली पीढ़ी तक इन्हें बताते जाए. \q1 \v 7 तब वे परमेश्वर में अपना भरोसा स्थापित करेंगे \q2 और वे परमेश्वर के महाकार्य भूल न सकेंगे, \q2 तथा उनके आदेशों का पालन करेंगे. \q1 \v 8 तब उनका आचरण उनके पूर्वजों के समान न रहेगा, \q2 जो हठी और हठीली पीढ़ी प्रमाणित हुई, \q1 जिनका हृदय परमेश्वर को समर्पित न था, \q2 उनकी आत्माएं उनके प्रति सच्ची नहीं थीं. \b \q1 \v 9 एफ्राईम के सैनिक यद्यपि धनुष से सुसज्जित थे, \q2 युद्ध के दिन वे फिरकर भाग गए; \q1 \v 10 उन्होंने परमेश्वर से स्थापित वाचा को भंग कर दिया, \q2 उन्होंने उनकी व्यवस्था की अधीनता भी अस्वीकार कर दी. \q1 \v 11 परमेश्वर द्वारा किए गए महाकार्य, वे समस्त आश्चर्य कार्य, \q2 जो उन्हें प्रदर्शित किए गए थे, वे भूल गए. \q1 \v 12 ये आश्चर्यकर्म परमेश्वर ने उनके पूर्वजों के देखते उनके सामने किए थे, \q2 ये सब मिस्र देश तथा ज़ोअन क्षेत्र में किए गए थे. \q1 \v 13 परमेश्वर ने समुद्र जल को विभक्त कर दिया और इसमें उनके लिए मार्ग निर्मित किया; \q2 इसके लिए परमेश्वर ने समुद्र जल को दीवार समान खड़ा कर दिया. \q1 \v 14 परमेश्वर दिन के समय उनकी अगुवाई बादल के द्वारा \q2 तथा संपूर्ण रात्रि में अग्निप्रकाश के द्वारा करते रहे. \q1 \v 15 परमेश्वर ने बंजर भूमि में चट्टानों को फाड़कर उन्हें इतना जल प्रदान किया, \q2 जितना जल समुद्र में होता है; \q1 \v 16 उन्होंने चट्टान में से जलधाराएं प्रवाहित कर दीं, \q2 कि जल नदी समान प्रवाहित हो चला. \b \q1 \v 17 यह सब होने पर भी वे परमेश्वर के विरुद्ध पाप करते ही रहे, \q2 बंजर भूमि में उन्होंने सर्वोच्च परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया. \q1 \v 18 जिस भोजन के लिए वे लालायित थे, \q2 उसके लिए हठ करके उन्होंने मन ही मन परमेश्वर की परीक्षा ली. \q1 \v 19 वे यह कहते हुए परमेश्वर की निंदा करते रहे; \q2 “क्या परमेश्वर बंजर भूमि में भी \q2 हमें भोजन परोस सकते हैं? \q1 \v 20 जब उन्होंने चट्टान पर प्रहार किया \q2 तो जल-स्रोत फूट पड़े \q2 तथा विपुल जलधाराएं बहने लगीं; \q1 किंतु क्या वह हमें भोजन भी दे सकते हैं? \q2 क्या वह संपूर्ण प्रजा के लिए मांस भोजन का भी प्रबंध कर सकते हैं?” \q1 \v 21 यह सुन याहवेह अत्यंत उदास हो गए; \q2 याकोब के विरुद्ध उनकी अग्नि भड़क उठी, \q2 उनका क्रोध इस्राएल के विरुद्ध भड़क उठा, \q1 \v 22 क्योंकि उन्होंने न तो परमेश्वर में विश्वास किया \q2 और न उनके उद्धार पर भरोसा किया. \q1 \v 23 यह होने पर भी उन्होंने आकाश को आदेश दिया \q2 और स्वर्ग के झरोखे खोल दिए; \q1 \v 24 उन्होंने उनके भोजन के लिए मन्‍ना वृष्टि की, \q2 उन्होंने उन्हें स्वर्गिक अन्‍न प्रदान किया. \q1 \v 25 मनुष्य वह भोजन कर रहे थे, जो स्वर्गदूतों के लिए निर्धारित था; \q2 परमेश्वर ने उन्हें भरपेट भोजन प्रदान किया. \q1 \v 26 स्वर्ग से उन्होंने पूर्वी हवा प्रवाहित की, \q2 अपने सामर्थ्य में उन्होंने दक्षिणी हवा भी प्रवाहित की. \q1 \v 27 उन्होंने उनके लिए मांस की ऐसी वृष्टि की, मानो वह धूलि मात्र हो, \q2 पक्षी ऐसे उड़ रहे थे, जैसे सागर तट पर रेत कण उड़ते हैं. \q1 \v 28 परमेश्वर ने पक्षियों को उनके मण्डपों में घुस जाने के लिए बाध्य कर दिया, \q2 वे मंडप के चारों ओर छाए हुए थे. \q1 \v 29 उन्होंने तृप्‍त होने के बाद भी इन्हें खाया. \q2 परमेश्वर ने उन्हें वही प्रदान कर दिया था, जिसकी उन्होंने कामना की थी. \q1 \v 30 किंतु इसके पूर्व कि वे अपने कामना किए भोजन से तृप्‍त होते, \q2 जब भोजन उनके मुख में ही था, \q1 \v 31 परमेश्वर का रोष उन पर भड़क उठा; \q2 परमेश्वर ने उनके सबसे सशक्तों को मिटा डाला, \q2 उन्होंने इस्राएल के युवाओं को मिटा डाला. \b \q1 \v 32 इतना सब होने पर भी वे पाप से दूर न हुए; \q2 समस्त आश्चर्य कार्यों को देखने के बाद भी उन्होंने विश्वास नहीं किया. \q1 \v 33 तब परमेश्वर ने उनके दिन व्यर्थता में \q2 तथा उनके वर्ष आतंक में समाप्‍त कर दिए. \q1 \v 34 जब कभी परमेश्वर ने उनमें से किसी को मारा, वे बाकी परमेश्वर को खोजने लगे; \q2 वे दौड़कर परमेश्वर की ओर लौट गये. \q1 \v 35 उन्हें यह स्मरण आया कि परमेश्वर उनके लिए चट्टान हैं, \q2 उन्हें यह स्मरण आया कि सर्वोच्च परमेश्वर उनके उद्धारक हैं. \q1 \v 36 किंतु उन्होंने अपने मुख से परमेश्वर की चापलूसी की, \q2 अपनी जीभ से उन्होंने उनसे झूठाचार किया; \q1 \v 37 उनके हृदय में सच्चाई नहीं थी, \q2 वे उनके साथ बांधी गई वाचा के प्रतिनिष्ठ न रहे. \q1 \v 38 फिर भी परमेश्वर उनके प्रति कृपालु बने रहे; \q2 परमेश्वर ही ने उनके अपराधों को क्षमा कर दिया \q2 और उनका विनाश न होने दिया. \q1 बार-बार वह अपने कोप पर नियंत्रण करते रहे \q2 और उन्होंने अपने समग्र प्रकोप को प्रगट न होने दिया. \q1 \v 39 परमेश्वर को यह स्मरण रहा कि वे मात्र मनुष्य ही हैं—पवन के समान, \q2 जो बहने के बाद लौटकर नहीं आता. \b \q1 \v 40 बंजर भूमि में कितनी ही बार उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया, \q2 कितनी ही बार उन्होंने उजाड़ भूमि में उन्हें उदास किया! \q1 \v 41 बार-बार वे परीक्षा लेकर परमेश्वर को उकसाते रहे; \q2 वे इस्राएल के पवित्र परमेश्वर को क्रोधित करते रहे. \q1 \v 42 वे परमेश्वर की सामर्थ्य को भूल गए, \q2 जब परमेश्वर ने उन्हें अत्याचारी की अधीनता से छुड़ा लिया था. \q1 \v 43 जब परमेश्वर ने मिस्र देश में चमत्कार चिन्ह प्रदर्शित किए, \q2 जब ज़ोअन प्रदेश में आश्चर्य कार्य किए थे. \q1 \v 44 परमेश्वर ने नदी को रक्त में बदल दिया; \q2 वे जलधाराओं से जल पीने में असमर्थ हो गए. \q1 \v 45 परमेश्वर ने उन पर कुटकी के समूह भेजे, जो उन्हें निगल गए. \q2 मेंढकों ने वहां विध्वंस कर डाला. \q1 \v 46 परमेश्वर ने उनकी उपज हासिल टिड्डों को, \q2 तथा उनके उत्पाद अरबेह टिड्डियों को सौंप दिए. \q1 \v 47 उनकी द्राक्षा उपज ओलों से नष्ट कर दी गई, \q2 तथा उनके गूलर-अंजीर पाले में नष्ट हो गए. \q1 \v 48 उनका पशु धन भी ओलों द्वारा नष्ट कर दिया गया, \q2 तथा उनकी भेड़-बकरियों को बिजलियों द्वारा. \q1 \v 49 परमेश्वर का उत्तप्‍त क्रोध, \q2 प्रकोप तथा आक्रोश उन पर टूट पड़ा, \q2 ये सभी उनके विनाशक दूत थे. \q1 \v 50 परमेश्वर ने अपने प्रकोप का पथ तैयार किया था; \q2 उन्होंने उन्हें मृत्यु से सुरक्षा प्रदान नहीं की \q2 परंतु उन्हें महामारी को सौंप दिया. \q1 \v 51 मिस्र के सभी पहलौठों को परमेश्वर ने हत्या कर दी, \q2 हाम के मण्डपों में पौरुष के प्रथम फलों का. \q1 \v 52 किंतु उन्होंने भेड़ के झुंड के समान अपनी प्रजा को बचाया; \q2 बंजर भूमि में वह भेड़ का झुंड के समान उनकी अगुवाई करते रहे. \q1 \v 53 उनकी अगुवाई ने उन्हें सुरक्षा प्रदान की, फलस्वरूप वे अभय आगे बढ़ते गए; \q2 जबकि उनके शत्रुओं को समुद्र ने समेट लिया. \q1 \v 54 यह सब करते हुए परमेश्वर उन्हें अपनी पवित्र भूमि की सीमा तक, \q2 उस पर्वतीय भूमि तक ले आए जिस पर उनके दायें हाथ ने अपने अधीन किया था. \q1 \v 55 तब उन्होंने जनताओं को वहां से काटकर अलग कर दिया \q2 और उनकी भूमि अपनी प्रजा में भाग स्वरूप बाट दिया; \q2 इस्राएल के समस्त गोत्रों को उनके आवास प्रदान करके उन्हें वहां बसा दिया. \b \q1 \v 56 इतना सब होने के बाद भी उन्होंने परमेश्वर की परीक्षा ली, \q2 उन्होंने सर्वोच्च परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया; \q2 उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं को भंग कर दिया. \q1 \v 57 अपने पूर्वजों के जैसे वे भी अकृतज्ञ तथा विश्वासघाती हो गए; \q2 वैसे ही अयोग्य, जैसा एक दोषपूर्ण धनुष होता है. \q1 \v 58 उन्होंने देवताओं के लिए निर्मित वेदियों के द्वारा परमेश्वर के क्रोध को भड़काया है; \q2 उन प्रतिमाओं ने परमेश्वर में डाह भाव उत्तेजित किया. \q1 \v 59 उन्हें सुन परमेश्वर को अत्यंत झुंझलाहट सी हो गई; \q2 उन्होंने इस्राएल को पूर्णतः छोड़ दिया. \q1 \v 60 उन्होंने शीलो के निवास-मंडप का परित्याग कर दिया, \q2 जिसे उन्होंने मनुष्य के मध्य बसा दिया था. \q1 \v 61 परमेश्वर ने अपने सामर्थ्य के संदूक को बन्दीत्व में भेज दिया, \q2 उनका वैभव शत्रुओं के वश में हो गया. \q1 \v 62 उन्होंने अपनी प्रजा तलवार को भेंट कर दी; \q2 अपने ही निज भाग पर वह अत्यंत उदास थे. \q1 \v 63 अग्नि उनके युवाओं को निगल कर गई, \q2 उनकी कन्याओं के लिए कोई भी वैवाहिक गीत-संगीत शेष न रह गया. \q1 \v 64 उनके पुरोहितों का तलवार से वध कर दिया गया, \q2 उनकी विधवाएं आंसुओं के लिए असमर्थ हो गईं. \b \q1 \v 65 तब मानो प्रभु की नींद भंग हो गई, कुछ वैसे ही, \q2 जैसे कोई वीर दाखमधु की होश से बाहर आ गया हो. \q1 \v 66 परमेश्वर ने अपने शत्रुओं को ऐसे मार भगाया; \q2 कि उनकी लज्जा चिरस्थाई हो गई. \q1 \v 67 तब परमेश्वर ने योसेफ़ के मण्डपों को अस्वीकार कर दिया, \q2 उन्होंने एफ्राईम के गोत्र को नहीं चुना; \q1 \v 68 किंतु उन्होंने यहूदाह गोत्र को चुन लिया, \q2 अपने प्रिय ज़ियोन पर्वत को. \q1 \v 69 परमेश्वर ने अपना पवित्र आवास उच्च पर्वत जैसा निर्मित किया, \q2 पृथ्वी-सा चिरस्थाई. \q1 \v 70 उन्होंने अपने सेवक दावीद को चुन लिया, \q2 इसके लिए उन्होंने उन्हें भेड़शाला से बाहर निकाल लाया; \q1 \v 71 भेड़ों के चरवाहे से उन्हें लेकर परमेश्वर ने \q2 उन्हें अपनी प्रजा याकोब का रखवाला बना दिया, \q2 इस्राएल का, जो उनके निज भाग हैं. \q1 \v 72 दावीद उनकी देखभाल हृदय की सच्चाई में करते रहे; \q2 उनके कुशल हाथों ने उनकी अगुवाई की. \c 79 \cl स्तोत्र 79 \d आसफ का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 परमेश्वर, जनताओं ने आपके निज भाग में अतिक्रमण किया है; \q2 आपके पवित्र मंदिर को उन्होंने दूषित कर दिया है, \q2 येरूशलेम अब खंडहर मात्र रह गया है. \q1 \v 2 उन्होंने आपके सेवकों के शव \q2 आकाश के पक्षियों के आहार के लिए छोड़ दिए हैं; \q2 आपके भक्तों का मांस वन्य पशुओं का आहार बन गया है. \q1 \v 3 येरूशलेम के चारों ओर \q2 उन्होंने रक्त को जलधारा समान बहा दिया है, \q2 मृतकों को भूमिस्थ करने के लिए कोई शेष न रहा. \q1 \v 4 हमारे पड़ोसियों के लिए हम तिरस्कार के पात्र हो गए हैं. \q2 उनके लिए, जो हमारे आस-पास होते हैं, हम घृणा और ठट्ठा का विषय बन गए हैं. \b \q1 \v 5 याहवेह, कब तक? क्या हम पर आपका क्रोध लगातार रहेगा? \q2 कब तक आपकी डाह अग्नि के जैसी दहकती रहेगी? \q1 \v 6 अब तो उन जनताओं पर अपना क्रोध उंडेल दीजिए, \q2 जो आपकी अवमानना करते हैं, \q1 उन राष्ट्रों पर, \q2 जो आपकी महिमा को मान्यता नहीं देते; \q1 \v 7 उन्होंने याकोब को निगल लिया है \q2 तथा उसकी मातृभूमि को ध्वस्त कर दिया है. \b \q1 \v 8 हमारे पूर्वजों के पापों का दंड हमें न दीजिए; \q2 हम पर आपकी कृपा तुरंत पहुंच जाए, \q2 क्योंकि हमारी स्थिति अत्यंत गंभीर हो गई है. \q1 \v 9 परमेश्वर, हमारे छुड़ानेवाले, \q2 अपनी महिमा के तेज के निमित्त हमारी सहायता कीजिए; \q1 अपनी महिमा के निमित्त \q2 हमारे पाप क्षमा कर हमारा उद्धार कीजिए. \q1 \v 10 भला जनताओं को यह कहने का अवसर क्यों दिया जाए, \q2 “कहां है उनका परमेश्वर?” \b \q1 हमारे देखते-देखते राष्ट्रों पर यह प्रकट कर दीजिए, \q2 कि आप अपने सेवकों के बहे रक्त का प्रतिशोध लेते हैं. \q1 \v 11 बंदियों का कराहना आप तक पहुंचे; \q2 अपने महा सामर्थ्य के द्वारा उनकी रक्षा कीजिए, जो मृत्यु के लिए सौंपे जा चुके हैं. \q1 \v 12 प्रभु, पड़ोसी राष्ट्रों ने जो आपकी निंदा की है, \q2 उसका सात गुणा प्रतिशोध उनके झोली में डाल दीजिए. \q1 \v 13 तब, हम आपकी प्रजा, आपके चरागाह की भेड़ें, \q2 सदा-सर्वदा आपका धन्यवाद करेंगे; \q1 एक पीढ़ी से दूसरी तक \q2 हम आपका गुणगान करते रहेंगे. \c 80 \cl स्तोत्र 80 \d संगीत निर्देशक के लिये. “वाचा की कुमुदिनी” धुन पर आधारित. आसफ की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 इस्राएल के चरवाहे, हमारी सुनिए, आप ही हैं, \q2 जो योसेफ़ की अगुवाई भेड़ों के वृन्द की रीति से करते हैं. \q1 आप, जो करूबों के मध्य विराजमान हैं, \q2 प्रकाशमान हों! \v 2 एफ्राईम, बिन्यामिन तथा मनश्शेह \q1 के सामने अपने सामर्थ्य को प्रगट कीजिए; \q2 और हमारी रक्षा कीजिए. \b \q1 \v 3 परमेश्वर, हमें हमारी पूर्व स्थिति प्रदान कीजिए; \q2 हम पर अपना मुख प्रकाशित कीजिए, \q2 कि हमारा उद्धार हो जाए. \b \q1 \v 4 याहवेह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, \q2 कब तक आपकी प्रजा की प्रार्थनाओं के प्रति, \q2 आपका कोप भीतर ही भीतर सुलगता रहेगा? \q1 \v 5 आपने आंसुओं को उनका आहार बना छोड़ा है; \q2 आपने उन्हें विवश कर दिया है, कि वे कटोरे भर-भर आंसू पिएं. \q1 \v 6 आपने हमें अपने पड़ोसियों के लिए विवाद का कारण बना दिया है, \q2 हमारे शत्रु हमारा उपहास करते हैं. \b \q1 \v 7 सर्वशक्तिमान परमेश्वर, हमें हमारी पूर्व स्थिति प्रदान कर दीजिए; \q2 हम पर अपना मुख प्रकाशित कीजिए, \q2 कि हमारा उद्धार हो जाए. \b \q1 \v 8 मिस्र देश से आप एक द्राक्षालता ले आए; \q2 आपने जनताओं को काटकर इसे वहां रोप दिया. \q1 \v 9 आपने इसके लिए भूमि तैयार की, \q2 इस लता ने जड़ पकड़ी और इसने समस्त भूमि आच्छादित कर दी. \q1 \v 10 इसकी छाया ने तथा मजबूत देवदार की शाखाओं ने, \q2 पर्वतों को ढंक लिया था. \q1 \v 11 वह अपनी शाखाएं समुद्र तक, \q2 तथा किशलय नदी तक फैली हुई थी. \b \q1 \v 12 आपने इसकी सुरक्षा की दीवारें क्यों ढाह दीं, \q2 कि आते जाते लोग इसके द्राक्षा तोड़ते जाएं? \q1 \v 13 जंगली सूअर इसे निगल जाते, \q2 तथा मैदान के पशु इसे अपना आहार बनाते हैं. \q1 \v 14 सर्वशक्तिमान परमेश्वर, हम आग्रह करते हैं, आप लौट आइए! \q2 स्वर्ग से दृष्टिपात कीजिए! \q1 और इस ओर ध्यान दीजिए, \q2 \v 15 और इस द्राक्षालता की हां उस पौधे की जिसे आपके दायें हाथ ने लगाया है, \q2 तथा उस पुत्र को देखिए, जिसे आपने स्वयं सशक्त बनाया है. \b \q1 \v 16 आपकी इस द्राक्षालता को काट डाला गया है, इसे अग्नि में भस्म कर दिया गया है; \q2 आपकी फटकार-मात्र आपकी प्रजा को नष्ट करने के लिए काफ़ी है. \q1 \v 17 उस पुरुष पर आपके दायें हाथ का आश्वासन स्थिर रहे, जो आपके दायें पक्ष में उपस्थित है, \q2 वह मनुष्य का पुत्र जिसे आपने अपने लिए तैयार किया है. \q1 \v 18 तब हम आपसे दूर न होंगे; \q2 हमें जिलाइए, हम आपके ही नाम को पुकारेंगे. \b \q1 \v 19 याहवेह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, हमें पुनर्स्थापित कीजिए; \q2 अपना मुख हम पर प्रकाशित कीजिए \q2 कि हम सुरक्षित रहेंगे. \c 81 \cl स्तोत्र 81 \d संगीत निर्देशक के लिये. \tl गित्तीथ\tl*\f + \fr 81:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* पर आधारित. आसफ की रचना. \q1 \v 1 परमेश्वर के लिए, जो हमारा बल हैं, आनंद के साथ गाओ; \q2 याकोब के परमेश्वर के लिए उच्च स्वरनाद करो! \q1 \v 2 संगीत प्रारंभ हो, किन्‍नोर के साथ नेबेल के वादन से, \q2 मधुर ध्वनि उत्पन्‍न की जाए. \b \q1 \v 3 नवचंद्र के अवसर पर शोफ़ार बजाओ, \q2 वैसे ही पूर्णिमा के अवसर पर, जब हमारा उत्सव होता है; \q1 \v 4 इस्राएल के लिए यह विधि है, \q2 यह याकोब के परमेश्वर का नियम है. \q1 \v 5 जब परमेश्वर मिस्र देश के विरुद्ध प्रतिकार के लिए कटिबद्ध हुए, \q2 उन्होंने इसे योसेफ़ के लिए अधिनियम स्वरूप बसा दिया. \b \q1 जहां हमने वह भाषा सुनी, जो हमारी समझ से परे थी: \b \q1 \v 6 “प्रभु ने कहा, मैंने उनके कांधों से बोझ उतार दिया; \q2 टोकरी ढोने के कार्य से वे स्वतंत्र हो गए. \q1 \v 7 जब तुम पर संकट का अवसर आया, तुमने मुझे पुकारा और मैंने तुम्हें छुड़ा लिया, \q2 मेघ गरजना में से मैंने तुम्हें उत्तर दिया; \q2 मेरिबाह जल पर मैंने तुम्हारी परीक्षा ली. \q1 \v 8 मेरी प्रजा, मेरी सुनो, कि मैं तुम्हें चिता सकूं, \q2 इस्राएल, यदि तुम मात्र मेरी ओर ध्यान दे सको! \q1 \v 9 तुम्हारे मध्य वे देवता न पाए जाएं, जो वस्तुतः अनुपयुक्त हैं; \q2 तुम उन देवताओं की वंदना न करना. \q1 \v 10 मैं, याहवेह, तुम्हारा परमेश्वर हूं, \q2 जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ाकर लाया हूं. \q1 तुम अपना मुख पूरा-पूरा खोलो कि मैं उसे भर दूं. \b \q1 \v 11 “किंतु मेरी प्रजा ने मेरी नहीं सुनी; \q2 इस्राएल ने मेरी आज्ञा नहीं मानी. \q1 \v 12 तब मैंने उसे उसी के हठीले हृदय के अधीन छोड़ दिया, \q2 कि वह अपनी ही युक्तियों की पूर्ति करती रहे. \b \q1 \v 13 “यदि मेरी प्रजा मात्र मेरी आज्ञा का पालन कर ले, \q2 यदि इस्राएल मेरी शिक्षा का पालन कर ले, \q1 \v 14 शीघ्र मैं उसके शत्रुओं का पीछा करूंगा, \q2 और उसके शत्रुओं पर मेरा प्रहार होगा! \q1 \v 15 जो याहवेह से घृणा करते हैं, \q2 वे आज्ञाकारिता का दिखावा करेंगे और उनको बड़ा दंड होगा. \q1 \v 16 किंतु तुम्हारा आहार होगा सर्वोत्तम गेहूं; \q2 मैं तुम्हें चट्टान के उत्कृष्ट मधु से तृप्‍त करूंगा.” \c 82 \cl स्तोत्र 82 \d आसफ का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 स्वर्गिक महासभा में परमेश्वर ने अपना स्थान ग्रहण किया है; \q2 उन्होंने “देवताओं” के सामने अपना निर्णय सुना दिया है: \b \q1 \v 2 कब तक तुम अन्यायी को समर्थन करते रहोगे, \q2 कब तक तुम अन्याय का पक्षपात करते रहोगे? \q1 \v 3 दुःखी तथा पितृहीन का पक्ष दृढ़ करो; \q2 दरिद्रों एवं दुःखितों के अधिकारों की रक्षा करो. \q1 \v 4 दुर्बल एवं दीनों को छुड़ा लो; \q2 दुष्ट के फंदे से उन्हें बचा लो. \b \q1 \v 5 “वे कुछ नहीं जानते, वे कुछ नहीं समझते. \q2 वे अंधकार में आगे बढ़ रहे हैं; \q2 पृथ्वी के समस्त आधार डगमगा गए हैं. \b \q1 \v 6 “मैंने कहा, ‘तुम “ईश्वर” हो; \q2 तुम सभी सर्वोच्च परमेश्वर की संतान हो.’ \q1 \v 7 किंतु तुम सभी की मृत्यु दूसरे मनुष्यों सी होगी; \q2 तुम्हारा पतन भी अन्य शासकों के समान ही होगा.” \b \q1 \v 8 परमेश्वर, उठकर पृथ्वी का न्याय कीजिए, \q2 क्योंकि समस्त राष्ट्रों पर आपका प्रभुत्व है. \c 83 \cl स्तोत्र 83 \d एक गीत. आसफ का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 परमेश्वर, शांत न रहिए; \q2 न हमारी उपेक्षा कीजिए, \q2 और न निष्क्रिय बैठिए, परमेश्वर, \q1 \v 2 देखिए, आपके शत्रुओं में कैसी हलचल हो रही है, \q2 कैसे वे सिर उठा रहे हैं. \q1 \v 3 वे आपकी प्रजा के विरुद्ध चतुराई से बुरी युक्ति रच रहे हैं; \q2 वे आपके प्रियों के विरुद्ध परस्पर सम्मति कर रहे हैं. \q1 \v 4 वे कहते हैं, “आओ, हम इस संपूर्ण राष्ट्र को ही नष्ट कर दें, \q2 यहां तक कि इस्राएल राष्ट्र का नाम ही शेष न रहे.” \b \q1 \v 5 वे एकजुट होकर, एकचित्त युक्ति रच रहे हैं; \q2 वे सब आपके विरुद्ध संगठित हो गए हैं— \q1 \v 6 एदोम तथा इशमाएलियों के मंडप, \q2 मोआब और हग्रियों के वंशज, \q1 \v 7 गेबल, अम्मोन तथा अमालेक, \q2 फिलिस्ती तथा सोर के निवासी. \q1 \v 8 यहां तक कि अश्शूरी भी उनके साथ सम्मिलित हो गए हैं \q2 कि लोत के वंशजों की सेना को सशक्त बनाएं. \b \q1 \v 9 उनके साथ आप वही कीजिए, जो आपने मिदियान के साथ किया था, \q2 जो आपने सीसरा के साथ किया था, जो आपने कीशोन नदी पर याबीन के साथ किया था, \q1 \v 10 जिनका विनाश एन-दोर में हुआ, \q2 जो भूमि पर पड़े गोबर जैसे हो गए थे. \q1 \v 11 उनके रईसों को ओरेब तथा ज़ेब समान, \q2 तथा उनके न्यायियों को ज़ेबह तथा ज़लमुन्‍ना समान बना दीजिए, \q1 \v 12 जिन्होंने कहा था, \q2 “चलो, हम परमेश्वर की चराइयों के अधिकारी बन जाए.” \b \q1 \v 13 मेरे परमेश्वर उन्हें बवंडर में उड़ती धूल समान, \q2 पवन में उड़ते भूसे समान बना दीजिए. \q1 \v 14 जैसे अग्नि वन को निगल जाती है \q2 अथवा जैसे चिंगारी पर्वत को ज्वालामय कर देती है, \q1 \v 15 उसी प्रकार अपनी आंधी से उनका पीछा कीजिए \q2 तथा अपने तूफान से उन्हें घबरा दीजिए. \q1 \v 16 वे लज्जा में डूब जाएं, कि याहवेह, \q2 लोग आपकी महिमा की खोज करने लगें. \b \q1 \v 17 वे सदा के लिए लज्जित तथा भयभीत हो जाएं; \q2 अपमान में ही उनकी मृत्यु हो. \q1 \v 18 वे यह जान लें कि आप, जिनका नाम याहवेह है, \q2 मात्र आप ही समस्त पृथ्वी पर सर्वोच्च हैं. \c 84 \cl स्तोत्र 84 \d संगीत निर्देशक के लिये. \tl गित्तीथ\tl*\f + \fr 84:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* पर आधारित. कोराह के पुत्रों की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 सर्वशक्तिमान याहवेह, \q2 कैसा मनोरम है आपका निवास स्थान! \q1 \v 2 मेरे प्राण याहवेह के आंगनों की उत्कट अभिलाषा करते हुए \q2 मूर्छित तक हो जाते हैं; \q1 मेरा हृदय तथा मेरी देह \q2 जीवन्त परमेश्वर का स्तवन करने लगती है. \q1 \v 3 सर्वशक्तिमान याहवेह, मेरे राजा, मेरे परमेश्वर, \q2 आपकी वेदी के निकट ही गौरैयों को आवास, \q1 तथा अबाबील को अपने बच्चों को रखने के लिए, \q2 घोसले के लिए, स्थान प्राप्‍त हो गया है. \q1 \v 4 धन्य होते हैं वे, जो आपके आवास में निवास करते हैं; \q2 वे निरंतर आपका स्तवन करते रहते हैं. \b \q1 \v 5 धन्य होते हैं वे, जिनकी शक्ति के स्रोत आप हैं, \q2 जिनके हृदय में ज़ियोन का राजमार्ग हैं. \q1 \v 6 जब वे बाका घाटी\f + \fr 84:6 \fr*\fq बाका घाटी \fq*\ft आंसू की घाटी\ft*\f* में से होकर आगे बढ़ते हैं, उसमें झरने फूट पड़ते हैं; \q2 शरदकालीन वर्षा से जलाशय भर जाते हैं. \q2 शरदकालीन वृष्टि उस क्षेत्र को आशीषों से भरपूर कर देती है. \q1 \v 7 तब तक उनके बल उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है, \q2 जब तक फिर ज़ियोन पहुंचकर उनमें से हर एक परमेश्वर के सामने उपस्थित हो जायें. \b \q1 \v 8 याहवेह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुनिए; \q2 याकोब के परमेश्वर, मेरी सुनिए. \q1 \v 9 परमेश्वर, हमारी ढाल पर दृष्टि कीजिए; \q2 अपने अभिषिक्त पर कृपादृष्टि कीजिए. \b \q1 \v 10 आपके परिसर में एक दिन, \q2 अन्यत्र के हजार दिनों से उत्तमतर है; \q1 दुष्टों के मंडप में निवास की अपेक्षा मैं, \q2 आपके भवन का द्वारपाल होना उपयुक्त समझता हूं. \q1 \v 11 मेरे लिए याहवेह परमेश्वर सूर्य एवं ढाल हैं; \q2 महिमा एवं सम्मान याहवेह ही के अनुग्रह हैं; \q1 निष्कलंक पुरुष को वह किसी भी \q2 उत्तम वस्तु से रोक कर नहीं रखते. \b \q1 \v 12 सर्वशक्तिमान याहवेह, धन्य होता है वह, \q2 जिसने आप पर भरोसा रखा है. \c 85 \cl स्तोत्र 85 \d संगीत निर्देशक के लिये. कोराह के पुत्रों की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, आपने अपने देश पर कृपादृष्टि की है; \q2 आपने याकोब की समृद्धि को पुनःस्थापित किया है. \q1 \v 2 आपने अपनी प्रजा के अपराध क्षमा कर दिए हैं \q2 तथा उनके सभी पापों को ढांप दिया है. \q1 \v 3 आपने अपना संपूर्ण कोप शांत कर दिया \q2 तथा आप अपने घोर रोष से दूर हो गए हैं. \b \q1 \v 4 परमेश्वर, हमारे उद्धारकर्ता, हमारी समृद्धि पुनःस्थापित कर दीजिए, \q2 हमारे विरुद्ध अपने कोप को मिटा दीजिए. \q1 \v 5 क्या हमारे प्रति आपका क्रोध सदैव स्थायी रहेगा? \q2 क्या आप अपने क्रोध को सभी पीढ़ियों तक बनाए रखेंगे? \q1 \v 6 क्या आप हमें पुनः जिलाएंगे नहीं, \q2 कि आपकी प्रजा आप में प्रफुल्लित हो सके? \q1 \v 7 याहवेह, हम पर अपना करुणा-प्रेम\f + \fr 85:7 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* प्रदर्शित कीजिए, \q2 और हमें अपना उद्धार प्रदान कीजिए. \b \q1 \v 8 जो कुछ याहवेह परमेश्वर कहेंगे, वह मैं सुनूंगा; \q2 उन्होंने अपनी प्रजा, अपने भक्तों के निमित्त शांति की प्रतिज्ञा की है. \q2 किंतु उपयुक्त यह होगा कि वे पुनः मूर्खता न करें. \q1 \v 9 इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी ओर से उद्धार उन्हीं के लिए निर्धारित है, \q2 जो उनके श्रद्धालु हैं, कि हमारे देश में उनका तेज भर जाए. \b \q1 \v 10 करुणा-प्रेम तथा सच्चाई आपस में मिल गई हैं; \q2 धार्मिकता तथा शांति ने एक दूसरे का चुंबन ले लिया. \q1 \v 11 पृथ्वी से सच्चाई उगती रही है, \q2 धार्मिकता स्वर्ग से यह देख रही है. \q1 \v 12 इसमें कोई संदेह नहीं कि याहवेह वही प्रदान करेंगे, जो उत्तम है, \q2 और धरती अपनी उपज देगी. \q1 \v 13 धार्मिकता आगे-आगे चलेगी \q2 और वही हमारे कदम के लिए मार्ग तैयार करती है. \c 86 \cl स्तोत्र 86 \d दावीद की एक प्रार्थना \q1 \v 1 याहवेह, मेरी बिनती सुनकर मुझे उत्तर दीजिए, \q2 क्योंकि मैं दरिद्र तथा दीन हूं. \q1 \v 2 मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए, क्योंकि मैं आपके प्रति समर्पित हूं; \q2 अपने इस सेवक को बचा लीजिए, जिसने आप पर भरोसा रखा है. \q1 आप मेरे परमेश्वर हैं; \v 3 प्रभु, मुझ पर कृपा कीजिए, \q2 क्योंकि मैं सारा दिन आपको पुकारता रहता हूं. \q1 \v 4 अपने सेवक के प्राणों में आनंद का संचार कीजिए, \q2 क्योंकि, प्रभु, मैं अपना प्राण आपकी ओर उठाता हूं. \b \q1 \v 5 प्रभु, आप कृपानिधान एवं क्षमा शील हैं, उन सभी के प्रति, \q2 जो आपको पुकारते हैं, आपका करुणा-प्रेम महान है. \q1 \v 6 याहवेह, मेरी प्रार्थना सुनिए; \q2 कृपा कर मेरी पुकार पर ध्यान दीजिए. \q1 \v 7 संकट के अवसर पर मैं आपको पुकारूंगा, \q2 क्योंकि आप मुझे उत्तर देंगे. \b \q1 \v 8 प्रभु, देवताओं में कोई भी आपके तुल्य नहीं है; \q2 आपके कृत्यों की तुलना किसी अन्य से नहीं की जा सकती. \q1 \v 9 आपके द्वारा बनाए गए समस्त राष्ट्रों के लोग, \q2 हे प्रभु, आपके सामने आकर आपकी वंदना करेंगे; \q2 वे आपकी महिमा का आदर करेंगे. \q1 \v 10 क्योंकि आप महान हैं और अद्भुत हैं आपके कृत्य; \q2 मात्र आप ही परमेश्वर हैं. \b \q1 \v 11 हे याहवेह, मुझे अपनी राह की शिक्षा दीजिए, \q2 कि मैं आपके सत्य का आचरण करूं; \q1 मुझे एकचित्त हृदय प्रदान कीजिए, \q2 कि मैं आपकी महिमा के प्रति श्रद्धा बनाए रखूं. \q1 \v 12 मेरे प्रभु परमेश्वर, मैं संपूर्ण हृदय से आपका स्तवन करूंगा; \q2 मैं आपकी महिमा का आदर सदैव करता रहूंगा. \q1 \v 13 क्योंकि मेरे प्रति आपका करुणा-प्रेम अधिक है; \q2 अधोलोक के गहरे गड्ढे से, \q2 आपने मेरे प्राण छुड़ा लिए हैं. \b \q1 \v 14 परमेश्वर, अहंकारी मुझ पर आक्रमण कर रहे हैं; \q2 क्रूर पुरुषों का समूह मेरे प्राणों का प्यासा है, \q2 ये वे हैं, जिनके हृदय में आपके लिए कोई सम्मान नहीं है. \q1 \v 15 किंतु प्रभु, आप कृपालु और दयालु परमेश्वर हैं, \q2 आप विलंब से क्रोध करनेवाले तथा अति करुणामय एवं सत्य से परिपूर्ण हैं. \q1 \v 16 मेरी ओर फिरकर मुझ पर कृपा कीजिए; \q2 अपने सेवक को अपनी ओर से शक्ति प्रदान कीजिए; \q2 अपनी दासी के पुत्र को बचा लीजिए. \q1 \v 17 मुझे अपनी खराई का चिन्ह दिखाइए, कि इसे देख मेरे शत्रु लज्जित हो सकें, \q2 क्योंकि वे देखेंगे, कि याहवेह, आपने मेरी सहायता की है, \q2 तथा आपने ही मुझे सहारा भी दिया है. \c 87 \cl स्तोत्र 87 \d कोराह के पुत्रों की रचना. एक स्तोत्र. एक गीत. \q1 \v 1 पवित्र पर्वत पर उन्होंने अपनी नींव डाली है; \q1 \v 2 याकोब के समस्त आवासों की अपेक्षा, \q2 याहवेह को ज़ियोन के द्वार कहीं अधिक प्रिय हैं. \b \q1 \v 3 परमेश्वर के नगर, \q2 तुम्हारे विषय में यशस्वी बातें लिखी गई हैं, \q1 \v 4 “अपने परिचितों के मध्य मैं \q2 राहाब\f + \fr 87:4 \fr*\fq राहाब \fq*\ft मिस्र देश के लिए एक काव्य नाम\ft*\f* और बाबेल का लेखा करूंगा, \q1 साथ ही फिलिस्तिया, सोर और कूश\f + \fr 87:4 \fr*\fq कूश \fq*\ft यानी \ft*\fqa इथियोपिया\fqa*\f* का भी, \q2 और फिर मैं कहूंगा, ‘यही है वह, जिसकी उत्पत्ति ज़ियोन में हुई है.’ ” \q1 \v 5 ज़ियोन के विषय में यही घोषणा की जाएगी, \q2 “इसका भी जन्म ज़ियोन में हुआ और उसका भी, \q2 सर्वोच्च परमेश्वर ही ने ज़ियोन को बसाया है.” \q1 \v 6 याहवेह अपनी प्रजा की गणना करते समय लिखेगा: \q2 “इसका जन्म ज़ियोन में हुआ था.” \b \q1 \v 7 संगीत की संगत पर वे गाएंगे, \q2 “तुम्हीं में मेरे आनंद का समस्त उगम हैं.” \c 88 \cl स्तोत्र 88 \d एक गीत. कोराह के पुत्रों की स्तोत्र रचना. संगीत निर्देशक के लिये. \tl माहलाथ लान्‍नोथ\tl*\f + \fr 88:0 \fr*\ft हो सकता है कि यह एक राग का नाम है. अर्थ: “परेशानी का पीड़ा”\ft*\f* धुन पर आधारित. एज़्रावंश हेमान का \tl मसकील\tl*\f + \fr 88:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* \q1 \v 1 हे याहवेह, मेरे उद्धारकर्ता परमेश्वर; \q2 मैं दिन-रात आपको पुकारता रहता हूं. \q1 \v 2 मेरी प्रार्थना आप तक पहुंच सके; \q2 और आप मेरी पुकार सुनें. \b \q1 \v 3 मेरा प्राण क्लेश में डूब चुका है \q2 तथा मेरा जीवन अधोलोक के निकट आ पहुंचा है. \q1 \v 4 मेरी गणना उनमें होने लगी है, जो कब्र में पड़े हैं; \q2 मैं दुःखी पुरुष के समान हो गया हूं. \q1 \v 5 मैं मृतकों के मध्य छोड़ दिया गया हूं, \q2 उन वध किए गए पुरुषों के समान, \q1 जो कब्र में पड़े हैं, जिन्हें अब आप स्मरण नहीं करते, \q2 जो आपकी हितचिंता के योग्य नहीं रह गए. \b \q1 \v 6 आपने मुझे अधोलोक में डाल दिया है ऐसी गहराई में, \q2 जहां अंधकार ही अंधकार है. \q1 \v 7 आपका कोप मुझ पर अत्यंत भारी पड़ा है; \q2 मानो मैं लहरों में दबा दिया गया हूं. \q1 \v 8 मेरे निकटतम मित्रों को आपने मुझसे दूर कर दिया है, \q2 आपने मुझे उनकी घृणा का पात्र बना दिया है. \q1 मैं ऐसा बंध गया हूं कि मुक्त ही नहीं हो पा रहा; \q2 \v 9 वेदना से मेरी आंखें धुंधली हो गई हैं. \b \q1 याहवेह, मैं प्रतिदिन आपको पुकारता हूं; \q2 मैं आपके सामने हाथ फैलाए रहता हूं. \q1 \v 10 क्या आप अपने अद्भुत कार्य मृतकों के सामने प्रदर्शित करेंगे? \q2 क्या वे, जो मृत हैं, जीवित होकर आपकी महिमा करेंगे? \q1 \v 11 क्या आपके करुणा-प्रेम\f + \fr 88:11 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* की घोषणा कब्र में की जाती है? \q2 क्या विनाश में आपकी सच्चाई प्रदर्शित होगी? \q1 \v 12 क्या अंधकारमय स्थान में आपके आश्चर्य कार्य पहचाने जा सकेंगे, \q2 अथवा क्या विश्वासघात के स्थान में आपकी धार्मिकता प्रदर्शित की जा सकेगी? \b \q1 \v 13 किंतु, हे याहवेह, सहायता के लिए मैं आपको ही पुकारता हूं; \q2 प्रातःकाल ही मैं अपनी मांग आपके सामने प्रस्तुत कर देता हूं. \q1 \v 14 हे याहवेह, आप क्यों मुझे अस्वीकार करते रहते हैं, \q2 क्यों मुझसे अपना मुख छिपाते रहते हैं? \b \q1 \v 15 मैं युवावस्था से आक्रांत और मृत्यु के निकट रहा हूं; \q2 मैं आपके आतंक से ताड़ना भोग रहा हूं तथा मैं अब दुःखी रह गया हूं. \q1 \v 16 आपके कोप ने मुझे भयभीत कर लिया है; \q2 आपके आतंक ने मुझे नष्ट कर दिया है. \q1 \v 17 सारे दिन ये मुझे बाढ़ के समान भयभीत किए रहते हैं; \q2 इन्होंने पूरी रीति से मुझे अपने में समाहित कर रखा है. \q1 \v 18 आपने मुझसे मेरे मित्र तथा मेरे प्रिय पात्र छीन लिए हैं; \q2 अब तो अंधकार ही मेरा घनिष्ठ मित्र हो गया है. \c 89 \cl स्तोत्र 89 \d एज़्रावंश के एथन का एक \tl मसकील\tl*\f + \fr 89:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* \q1 \v 1 मैं याहवेह के करुणा-प्रेम का सदा गुणगान करूंगा; \q2 मैं पीढ़ी से पीढ़ी \q2 अपने मुख से आपकी सच्चाई को बताता रहूंगा. \q1 \v 2 मेरी उद्घोषणा होगी कि आपका करुणा-प्रेम सदा-सर्वदा अटल होगी, \q2 स्वर्ग में आप अपनी सच्चाई को स्थिर करेंगे. \q1 \v 3 आपने कहा, “मैंने अपने चुने हुए के साथ एक वाचा स्थापित की है, \q2 मैंने अपने सेवक दावीद से यह शपथ खाई है, \q1 \v 4 ‘मैं तुम्हारे वंश को युगानुयुग अटल रखूंगा. \q2 मैं तुम्हारे सिंहासन को पीढ़ी से पीढ़ी स्थिर बनाए रखूंगा.’ ” \b \q1 \v 5 याहवेह, स्वर्ग मंडल आपके अद्भुत कार्यों का गुणगान करता है. \q2 भक्तों की सभा में आपकी सच्चाई की स्तुति की जाती है. \q1 \v 6 स्वर्ग में कौन याहवेह के तुल्य हो सकता है? \q2 स्वर्गदूतों में कौन याहवेह के समान है? \q1 \v 7 जब सात्विक एकत्र होते हैं, वहां परमेश्वर के प्रति गहन श्रद्धा व्याप्‍त होता है; \q2 सभी के मध्य वही सबसे अधिक श्रद्धा योग्य हैं. \q1 \v 8 याहवेह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, कौन है आपके समान सर्वशक्तिमान याहवेह? \q2 आप सच्चाई को धारण किए हुए हैं. \b \q1 \v 9 उमड़ता सागर आपके नियंत्रण में है; \q2 जब इसकी लहरें उग्र होने लगती हैं, आप उन्हें शांत कर देते हैं. \q1 \v 10 आपने ही विकराल जल जंतु रहब को ऐसे कुचल डाला मानो वह एक खोखला शव हो; \q2 यह आपका ही भुजबल था, कि आपने अपने शत्रुओं को पछाड़ दिया. \q1 \v 11 स्वर्ग के स्वामी आप हैं तथा पृथ्वी भी आपकी ही है; \q2 आपने ही संसार संस्थापित किया और वह सब भी बनाया जो, संसार में है. \q1 \v 12 उत्तर दिशा आपकी रचना है और दक्षिण दिशा भी; \q2 आपकी महिमा में ताबोर और हरमोन पर्वत उल्लास में गाने लगते हैं. \q1 \v 13 सामर्थ्य आपकी भुजा में व्याप्‍त है; \q2 बलवंत है आपका हाथ तथा प्रबल है आपका दायां हाथ. \b \q1 \v 14 धार्मिकता तथा खराई आपके सिंहासन के आधार हैं; \q2 करुणा-प्रेम तथा सच्चाई आपके आगे-आगे चलते हैं. \q1 \v 15 याहवेह, धन्य होते हैं वे, जिन्होंने आपका जयघोष करना सीख लिया है, \q2 जो आपकी उपस्थिति की ज्योति में आचरण करते हैं. \q1 \v 16 आपके नाम पर वे दिन भर खुशी मनाते हैं \q2 वे आपकी धार्मिकता का उत्सव मनाते हैं. \q1 \v 17 क्योंकि आप ही उनके गौरव तथा बल हैं, \q2 आपकी ही कृपादृष्टि के द्वारा हमारा बल आधारित रहता है. \q1 \v 18 वस्तुतः याहवेह ही हमारी सुरक्षा ढाल हैं, \q2 हमारे राजा इस्राएल के पवित्र परमेश्वर के ही हैं. \b \q1 \v 19 वर्षों पूर्व आपने दर्शन में \q2 अपने सच्चे लोगों से वार्तालाप किया था: \q1 “एक योद्धा को मैंने शक्ति-सम्पन्‍न किया है; \q2 अपनी प्रजा में से मैंने एक युवक को खड़ा किया है. \q1 \v 20 मुझे मेरा सेवक, दावीद, मिल गया है; \q2 अपने पवित्र तेल से मैंने उसका अभिषेक किया है. \q1 \v 21 मेरा ही हाथ उसे स्थिर रखेगा; \q2 निश्चयतः मेरी भुजा उसे सशक्त करती जाएगी. \q1 \v 22 कोई भी शत्रु उसे पराजित न करेगा; \q2 कोई भी दुष्ट उसे दुःखित न करेगा. \q1 \v 23 उसके देखते-देखते मैं उसके शत्रुओं को नष्ट कर दूंगा \q2 और उसके विरोधियों को नष्ट कर डालूंगा. \q1 \v 24 मेरी सच्चाई तथा मेरा करुणा-प्रेम उस पर बना रहेगा, \q2 मेरी महिमा उसकी कीर्ति को ऊंचा रखेगी. \q1 \v 25 मैं उसे समुद्र पर अधिकार दूंगा, \q2 उसका दायां हाथ नदियों पर शासन करेगा. \q1 \v 26 वह मुझे संबोधित करेगा, ‘आप मेरे पिता हैं, \q2 मेरे परमेश्वर, मेरे उद्धार की चट्टान.’ \q1 \v 27 मैं उसे अपने प्रथमजात का पद भी प्रदान करूंगा, \q2 उसका पद पृथ्वी के समस्त राजाओं से उच्च होगा—सर्वोच्च. \q1 \v 28 उसके प्रति मैं अपना करुणा-प्रेम सदा-सर्वदा बनाए रखूंगा, \q2 उसके साथ स्थापित की गई मेरी वाचा कभी भंग न होगी. \q1 \v 29 मैं उसके वंश को सदैव सुस्थापित रखूंगा, \q2 जब तक आकाश का अस्तित्व रहेगा, उसका सिंहासन भी स्थिर बना रहेगा. \b \q1 \v 30 “यदि उसकी संतान मेरी व्यवस्था का परित्याग कर देती है \q2 तथा मेरे अधिनियमों के अनुसार नहीं चलती, \q1 \v 31 यदि वे मेरी विधियों को भंग करते हैं \q2 तथा मेरे आदेशों का पालन करने से चूक जाते हैं, \q1 \v 32 तो मैं उनके अपराध का दंड उन्हें लाठी के प्रहार से \q2 तथा उनके अपराधों का दंड कोड़ों के प्रहार से दूंगा; \q1 \v 33 किंतु मैं अपना करुणा-प्रेम उसके प्रति कभी कम न होने दूंगा \q2 और न मैं अपनी सच्चाई का घात करूंगा. \q1 \v 34 मैं अपनी वाचा भंग नहीं करूंगा \q2 और न अपने शब्द परिवर्तित करूंगा. \q1 \v 35 एक ही बार मैंने सदा-सर्वदा के लिए अपनी पवित्रता की शपथ खाई है, \q2 मैं दावीद से झूठ नहीं बोलूंगा; \q1 \v 36 उसका वंश सदा-सर्वदा अटल बना रहेगा \q2 और उसका सिंहासन मेरे सामने सूर्य के समान सदा-सर्वदा ठहरे रहेगा; \q1 \v 37 यह आकाश में विश्वासयोग्य साक्ष्य होकर, \q2 चंद्रमा के समान सदा-सर्वदा ठहरे रहेगा.” \b \q1 \v 38 किंतु आप अपने अभिषिक्त से अत्यंत उदास हो गए, \q2 आपने उसकी उपेक्षा की, आपने उसका परित्याग कर दिया. \q1 \v 39 आपने अपने सेवक से की गई वाचा की उपेक्षा की है; \q2 आपने उसके मुकुट को धूल में फेंक दूषित कर दिया. \q1 \v 40 आपने उसकी समस्त दीवारें तोड़ उन्हें ध्वस्त कर दिया \q2 और उसके समस्त रचों को खंडहर बना दिया. \q1 \v 41 आते जाते समस्त लोग उसे लूटते चले गए; \q2 वह पड़ोसियों के लिए घृणा का पात्र होकर रह गया है. \q1 \v 42 आपने उसके शत्रुओं का दायां हाथ सशक्त कर दिया; \q2 आपने उसके समस्त शत्रुओं को आनंद विभोर कर दिया. \q1 \v 43 उसकी तलवार की धार आपने समाप्‍त कर दी \q2 और युद्ध में आपने उसकी कोई सहायता नहीं की. \q1 \v 44 आपने उसके वैभव को समाप्‍त कर दिया \q2 और उसके सिंहासन को धूल में मिला दिया. \q1 \v 45 आपने उसकी युवावस्था के दिन घटा दिए हैं; \q2 आपने उसे लज्जा के वस्त्रों से ढांक दिया है. \b \q1 \v 46 और कब तक, याहवेह? क्या आपने स्वयं को सदा के लिए छिपा लिया है? \q2 कब तक आपका कोप अग्नि-सा दहकता रहेगा? \q1 \v 47 मेरे जीवन की क्षणभंगुरता का स्मरण कीजिए, \q2 किस व्यर्थता के लिए आपने समस्त मनुष्यों की रचना की! \q1 \v 48 ऐसा कौन सा मनुष्य है जो सदा जीवित रहे, और मृत्यु को न देखे? \q2 ऐसा कौन है, अपने प्राणों को अधोलोक के अधिकार से मुक्त कर सकता है? \q1 \v 49 प्रभु, अब आपका वह करुणा-प्रेम कहां गया, \q2 जिसकी शपथ आपने अपनी सच्चाई में दावीद से ली थी? \q1 \v 50 प्रभु, स्मरण कीजिए, कितना अपमान हुआ है आपके सेवक का, \q2 कैसे मैं समस्त राष्ट्रों द्वारा किए गए अपमान अपने हृदय में लिए हुए जी रहा हूं. \q1 \v 51 याहवेह, ये सभी अपमान, जो मेरे शत्रु मुझ पर करते रहे, \q2 इनका प्रहार आपके अभिषिक्त के हर एक कदम पर किया गया. \b \b \q1 \v 52 याहवेह का स्तवन सदा-सर्वदा होता रहे! \qc आमेन और आमेन. \c 90 \ms चतुर्थ पुस्तक \mr स्तोत्र 90–106 \cl स्तोत्र 90 \d परमेश्वर के प्रिय पात्र मोशेह की एक प्रार्थना \q1 \v 1 प्रभु, समस्त पीढ़ियों में \q2 आप हमारे आश्रय-स्थल बने रहे हैं. \q1 \v 2 इसके पूर्व कि पर्वत अस्तित्व में आते \q2 अथवा पृथ्वी तथा संसार की रचना की जाती, \q2 अनादि से अनंत तक परमेश्वर आप ही हैं. \b \q1 \v 3 आप मनुष्य को यह कहकर पुनः धूल में लौटा देते हैं, \q2 “मानव-पुत्र, लौट जा.” \q1 \v 4 आपके लिए एक हजार वर्ष वैसे ही होते हैं, \q2 जैसे गत कल का दिन; \q2 अथवा रात्रि का एक प्रहर. \q1 \v 5 आप मनुष्यों को ऐसे समेट ले जाते हैं, जैसे बाढ़; वे स्वप्न मात्र होते हैं— \q2 प्रातःकाल में बढ़ने वाली कोमल घास के समान: \q1 \v 6 जो प्रातःकाल फूलती है, उसमें बढ़ती है, \q2 किंतु संध्या होते-होते यह मुरझाती और सूख जाती है. \b \q1 \v 7 आपका कोप हमें मिटा डालता है, \q2 आपकी अप्रसन्‍नता हमें घबरा देती है. \q1 \v 8 हमारे अपराध आपके सामने खुले हैं, \q2 आपकी उपस्थिति में हमारे गुप्‍त पाप प्रकट हो जाते हैं. \q1 \v 9 हमारे जीवन के दिन आपके क्रोध की छाया में ही व्यतीत होते हैं; \q2 हम कराहते हुए ही अपने वर्ष पूर्ण करते हैं. \q1 \v 10 हमारी जीवन अवधि सत्तर वर्ष है—संभवतः \q2 अस्सी वर्ष, यदि हम बलिष्ठ हैं; \q1 हमारी आयु का अधिकांश हम दुःख और कष्ट में व्यतीत करते हैं, \q2 हां, ये तीव्र गति से समाप्‍त हो जाते हैं और हम कूच कर जाते हैं. \q1 \v 11 आपके कोप की शक्ति की जानकारी कौन ले सका है! \q2 आपका कोप उतना ही व्यापक है जितना कि लोगों के द्वारा आपका भय मानना. \q1 \v 12 हमें जीवन की न्यूनता की धर्ममय विवेचना करने की अंतर्दृष्टि प्रदान कीजिए, \q2 कि हमारा हृदय बुद्धिमान हो जाए. \b \q1 \v 13 याहवेह! मृदु हो जाइए, और कितना विलंब? \q2 कृपा कीजिए-अपने सेवकों पर. \q1 \v 14 प्रातःकाल में ही हमें अपने करुणा-प्रेम\f + \fr 90:14 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द के अर्थ में \ft*\fqa अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \fqa*\ft ये सब शामिल हैं\ft*\f* से संतुष्ट कर दीजिए, \q2 कि हम आजीवन उल्‍लसित एवं हर्षित रहें. \q1 \v 15 हमारे उतने ही दिनों को आनंद से तृप्‍त कर दीजिए, जितने दिन आपने हमें ताड़ना दी थी, \q2 उतने ही दिन, जितने वर्ष हमने दुर्दशा में व्यतीत किए हैं. \q1 \v 16 आपके सेवकों के सामने आपके महाकार्य स्पष्ट हो जाएं \q2 और उनकी संतान पर आपका वैभव. \b \q1 \v 17 हम पर प्रभु, हमारे परमेश्वर की मनोहरता स्थिर रहे; \q2 तथा हमारे लिए हमारे हाथों के परिश्रम को स्थायी कीजिए— \q2 हां, हमारे हाथों का परिश्रम स्थायी रहे. \c 91 \cl स्तोत्र 91 \q1 \v 1 वह, जिसका निवास सर्वोच्च परमेश्वर के आश्रय में है, \q2 सर्वशक्तिमान के छाया कुंज में सुरक्षित निवास करेगा. \q1 \v 2 याहवेह के विषय में मेरी घोषणा है, “वह मेरे आश्रय, मेरे गढ़ हैं, \q2 मेरे शरणस्थान परमेश्वर हैं, जिनमें मेरा भरोसा है.” \b \q1 \v 3 वह तुम्हें सभी फंदे से बचाएंगे, \q2 वही घातक महामारी \q2 से तुम्हारी रक्षा करेंगे. \q1 \v 4 वह तुम्हें अपने परों में छिपा लेंगे, \q2 उनके पंखों के नीचे तुम्हारा आश्रय होगा; \q2 उनकी सच्चाई ढाल और गढ़ हैं. \q1 \v 5 तुम न तो रात्रि के आतंक से भयभीत होगे, \q2 न ही दिन में छोड़े गए बाण से, \q1 \v 6 वैसे ही न उस महामारी से, जो अंधकार में छिपी रहती है, \q2 अथवा उस विनाश से, जो दिन-दोपहरी में प्रहार करता है. \q1 \v 7 संभव है कि तुम्हारे निकट हजार \q2 तथा तुम्हारी दायीं ओर दस हजार आ गिरें, \q2 किंतु वह तुम तक नहीं पहुंचेगा. \q1 \v 8 तुम स्वयं अपनी आंखों से देखते रहोगे \q2 और देखोगे कि कैसा होता है कुकर्मियों का दंड. \b \q1 \v 9 याहवेह, आप, जिन्होंने सर्वोच्च स्थान को अपना निवास बनाया है, \q2 “मेरे आश्रय हैं.” \q1 \v 10 कोई भी विपत्ति तुम पर आने न पाएगी \q2 और न कोई विपत्ति ही तुम्हारे मंडप के निकट आएगी. \q1 \v 11 क्योंकि वह अपने स्वर्गदूतों को तुम्हारी हर एक \q2 गतिविधि में तुम्हारी सुरक्षा का आदेश देंगे; \q1 \v 12 वे तुम्हें अपने हाथों में उठा लेंगे, \q2 कि कहीं तुम्हारे पांव को पत्थर से ठोकर न लग जाए. \q1 \v 13 तुम सिंह और नाग को कुचल दोगे; \q2 तुम पुष्ट सिंह और सर्प को रौंद डालोगे. \b \q1 \v 14 यह याहवेह का आश्वासन है, “मैं उसे छुड़ाऊंगा, क्योंकि वह मुझसे प्रेम करता है; \q2 मैं उसे सुरक्षित रखूंगा, क्योंकि उसने मेरी महिमा पहचानी है. \q1 \v 15 जब वह मुझे पुकारेगा, मैं उसे उत्तर दूंगा; \q2 संकट की स्थिति में मैं उसके साथ रहूंगा, \q2 उसे छुड़ाकर मैं उसका सम्मान बढ़ाऊंगा. \q1 \v 16 मैं उसे दीर्घायु से तृप्‍त करूंगा \q2 और मैं उसे अपने उद्धार का अनुभव कराऊंगा.” \c 92 \cl स्तोत्र 92 \d एक स्तोत्र. एक गीत. शब्बाथ दिन के लिए निर्धारित. \q1 \v 1 भला है याहवेह के प्रति धन्यवाद, \q2 सर्वोच्च परमेश्वर, आपकी महिमा का गुणगान करना उपयुक्त है. \q1 \v 2-3 दस तारों के आसोर, नेबेल \q2 तथा किन्‍नोर\f + \fr 92:2-3 \fr*\fq आसोर, नेबेल तथा किन्‍नोर \fq*\ft विभिन्‍न प्रकार के वाद्य यंत्र\ft*\f* की संगत पर \q1 प्रातःकाल ही आपके करुणा-प्रेम की उद्घोषणा करना \q2 तथा रात्रि में आपकी सच्चाई का वर्णन करना अच्छा है. \b \q1 \v 4 याहवेह, आपने मुझे अपने कार्यों के उल्लास से तृप्‍त कर दिया है; \q2 आपके कार्यों के लिए मैं हर्षोल्लास के गीत गाता हूं. \q1 \v 5 याहवेह, कैसे अद्भुत हैं, आपके द्वारा निष्पन्‍न कार्य! \q2 गहन हैं आपके विचार! \q1 \v 6 अज्ञानी के लिए असंभव है इनका अनुभव करना, \q2 निर्बुद्धि के लिए ये बातें निरर्थक हैं. \q1 \v 7 यद्यपि दुष्ट घास के समान अंकुरित तो होते हैं \q2 और समस्त दुष्ट उन्‍नति भी करते हैं, \q2 किंतु उनकी नियति अनंत विनाश ही है. \b \q1 \v 8 किंतु, याहवेह, आप सदा-सर्वदा सर्वोच्च ही हैं. \b \q1 \v 9 निश्चयतः आपके शत्रु, याहवेह, \q2 आपके शत्रु नाश हो जाएंगे; \q2 समस्त दुष्ट बिखरा दिए जाएंगे. \q1 \v 10 किंतु मेरी शक्ति को आपने वन्य सांड़ समान ऊंचा कर दिया है; \q2 आपने मुझ पर नया नया तेल उंडेल दिया है. \q1 \v 11 स्वयं मैंने अपनी ही आंखों से अपने शत्रुओं का पतन देखा है; \q2 स्वयं मैंने अपने कानों से अपने दुष्ट शत्रुओं के कोलाहल को सुना है. \b \q1 \v 12 धर्मी खजूर वृक्ष समान फलते जाएंगे, \q2 उनका विकास लबानोन के देवदार के समान होगा; \q1 \v 13 याहवेह के आवास में लगाए \q2 वे परमेश्वर के आंगन में समृद्ध होते जाएंगे! \q1 \v 14 वृद्धावस्था में भी वे फलदार बने रहेंगे, \q2 उनकी नवीनता और उनकी कान्ति वैसी ही बनी रहेगी, \q1 \v 15 कि वे यह घोषणा कर सकें कि, “याहवेह सीधे हैं; \q2 वह मेरे लिए चट्टान हैं, उनमें कहीं भी, किसी भी दुष्टता की छाया तक नहीं है.” \c 93 \cl स्तोत्र 93 \q1 \v 1 याहवेह, राज्य करते हैं, उन्होंने वैभवशाली परिधान धारण किए हैं; \q2 याहवेह ने तेज के परिधान धारण किए हैं और वह शक्ति से सुसज्जित हैं; \q2 विश्व सुदृढ़ नींव पर स्थापित है, जो अटल है. \q1 \v 2 सनातन काल से आपका सिंहासन बसा है; \q2 स्वयं आप सनातन काल से हैं. \b \q1 \v 3 याहवेह, जल स्तर उठता जा रहा है, \q2 लहरों की ध्वनि ऊंची होती जा रही है; \q2 समुद्र की प्रचंड लहरों का प्रहार उग्र होता जा रहा है. \q1 \v 4 विशालकाय लहरों की गर्जन से कहीं अधिक शक्तिशाली, \q2 उद्वेलित लहरों के प्रहार से कहीं अधिक प्रचंड हैं, \q2 महान सर्वशक्तिमान याहवेह. \b \q1 \v 5 अटल हैं आपके अधिनियम; \q2 पवित्रता, आपके आवास की शोभा; \q2 याहवेह, ये सदा-सर्वदा स्थिर रहेंगे. \c 94 \cl स्तोत्र 94 \q1 \v 1 याहवेह, बदला लेनेवाले परमेश्वर, \q2 बदला लेनेवाले परमेश्वर, अपने तेज को प्रकट कीजिए. \q1 \v 2 पृथ्वी का न्यायाध्यक्ष, उठ जाइए; \q2 अहंकारियों को वही प्रतिफल दीजिए, जिसके वे योग्य हैं. \q1 \v 3 दुष्ट कब तक, याहवेह, \q2 कब तक आनंद मनाते रहेंगे? \b \q1 \v 4 वे डींग मारते चले जा रहे हैं; \q2 समस्त दुष्ट अहंकार में फूले जा रहे हैं. \q1 \v 5 वे आपकी प्रजा को कुचल रहे हैं, याहवेह; \q2 वे आपकी निज भाग को दुःखित कर रहे हैं. \q1 \v 6 वे विधवा और प्रवासी की हत्या कर रहे हैं; \q2 वे अनाथों की हत्या कर रहे हैं. \q1 \v 7 वे कहे जा रहे हैं, “कुछ नहीं देखता याहवेह; \q2 याकोब के परमेश्वर ने इसकी ओर ध्यान नहीं देते है.” \b \q1 \v 8 मन्दमतियो, थोड़ा विचार तो करो; \q2 निर्बुद्धियो, तुममें बुद्धिमत्ता कब जागेगी? \q1 \v 9 जिन्होंने कान लगाए हैं, क्या वे सुनते नहीं? \q2 क्या वे, जिन्होंने आंखों को आकार दिया है, देखते नहीं? \q1 \v 10 क्या वे, जो राष्ट्रों को ताड़ना देते हैं, वे दंड नहीं देंगे? \q2 क्या वे, जो मनुष्यों को शिक्षा देते हैं, उनके पास ज्ञान की कमी है? \q1 \v 11 याहवेह मनुष्य के विचारों को जानते हैं; \q2 कि वे विचार मात्र श्वास ही हैं. \b \q1 \v 12 याहवेह, धन्य होता है वह पुरुष, जो आपके द्वारा प्रताड़ित किया जाता है, \q2 जिसे आप अपनी व्यवस्था से शिक्षा देते हैं; \q1 \v 13 विपत्ति के अवसर पर आप उसे चैन प्रदान करते हैं, \q2 दुष्ट के लिए गड्ढा खोदे जाने तक. \q1 \v 14 कारण यह है कि याहवेह अपनी प्रजा का परित्याग नहीं करेंगे; \q2 वह कभी भी अपनी निज भाग को भूलते नहीं. \q1 \v 15 धर्मियों को न्याय अवश्य प्राप्‍त होगा \q2 और सभी सीधे हृदय इसका अनुसरण करेंगे. \b \q1 \v 16 मेरी ओर से बुराई करनेवाले के विरुद्ध कौन खड़ा होगा? \q2 कुकर्मियों के विरुद्ध मेरा साथ कौन देगा? \q1 \v 17 यदि स्वयं याहवेह ने मेरी सहायता न की होती, \q2 शीघ्र ही मृत्यु की चिर-निद्रा मेरा आवास हो गई होती. \q1 \v 18 यदि मैंने कहा, “मेरा पांव फिसल गया है,” \q2 याहवेह, आपका करुणा-प्रेम मुझे थाम लेगा. \q1 \v 19 जब मेरा हृदय अत्यंत व्याकुल हो गया था, \q2 आपकी ही सांत्वना ने मुझे हर्षित किया है. \b \q1 \v 20 क्या दुष्ट शासक के आपके साथ संबंध हो सकते हैं, \q2 जो राजाज्ञा की आड़ में प्रजा पर अन्याय करते हैं? \q1 \v 21 वे सभी धर्मी के विरुद्ध एकजुट हो गए हैं \q2 और उन्होंने निर्दोष को मृत्यु दंड दे दिया है. \q1 \v 22 किंतु स्थिति यह है कि अब याहवेह मेरा गढ़ बन गए हैं, \q2 तथा परमेश्वर अब मेरे आश्रय की चट्टान हैं. \q1 \v 23 वही उनकी दुष्टता का बदला लेंगे, \q2 वही उनकी दुष्टता के कारण उनका विनाश कर देंगे; \q2 याहवेह हमारे परमेश्वर निश्चयतः उन्हें नष्ट कर देंगे. \c 95 \cl स्तोत्र 95 \q1 \v 1 चलो, हम याहवेह के स्तवन में आनंदपूर्वक गाएं; \q2 अपने उद्धार की चट्टान के लिए उच्च स्वर में मनोहारी संगीत प्रस्तुत करें. \q1 \v 2 हम धन्यवाद के भाव में उनकी उपस्थिति में आएं \q2 स्तवन गीतों में हम मनोहारी संगीत प्रस्तुत करें. \b \q1 \v 3 इसलिये कि याहवेह महान परमेश्वर हैं, \q2 समस्त देवताओं के ऊपर सर्वोच्च राजा हैं. \q1 \v 4 पृथ्वी की गहराइयों पर उनका नियंत्रण है, \q2 पर्वत शिखर भी उनके अधिकार में हैं. \q1 \v 5 समुद्र उन्हीं का है, क्योंकि यह उन्हीं की रचना है, \q2 सूखी भूमि भी उन्हीं की हस्तकृति है. \b \q1 \v 6 आओ, हम नतमस्तक होकर आराधना करें, \q2 हम याहवेह, हमारे सृजनहार के सामने घुटने टेकें! \q1 \v 7 क्योंकि वह हमारे परमेश्वर हैं \q2 और हम उनके चराई की प्रजा हैं, \q2 उनकी अपनी संरक्षित\f + \fr 95:7 \fr*\ft मूल भाषा में \ft*\fqa हाथ की\fqa*\f* भेड़ें. \b \q1 यदि आज तुम उनका स्वर सुनते हो, \q1 \v 8 “अपने हृदय कठोर न कर लेना. जैसे तुमने मेरिबाह\f + \fr 95:8 \fr*\ft अर्थ: झगड़ा, \+xt निर्ग 17:7\+xt* देखें\ft*\f* में किया था, \q2 जैसे तुमने उस समय बंजर भूमि में मस्साह\f + \fr 95:8 \fr*\ft अर्थ: परीक्षा, \+xt निर्ग 17:7\+xt* देखें\ft*\f* नामक स्थान पर किया था, \q1 \v 9 जहां तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे परखा और मेरे धैर्य की परीक्षा ली थी; \q2 जबकि वे उस सबके गवाह थे, जो मैंने उनके सामने किया था. \q1 \v 10 उस पीढ़ी से मैं चालीस वर्ष उदास रहा; \q2 मैंने कहा, ‘ये ऐसे लोग हैं जिनके हृदय फिसलते जाते हैं, \q2 वे मेरे मार्ग समझ ही न सके हैं.’ \q1 \v 11 तब अपने क्रोध में मैंने शपथ ली, \q2 ‘मेरे विश्राम में उनका प्रवेश कभी न होगा.’ ” \c 96 \cl स्तोत्र 96 \q1 \v 1 सारी पृथ्वी याहवेह की स्तुति में नया गीत गाए; \q2 हर रोज़ उनके द्वारा दी गई छुड़ौती की घोषणा की जाए. \q1 \v 2 याहवेह के लिये गाओ. उनके नाम की प्रशंसा करो; \q2 प्रत्येक दिन उनका सुसमाचार सुनाओ कि याहवेह बचाने वाला है. \q1 \v 3 देशों में उनके प्रताप की चर्चा की जाए, \q2 और उनके अद्भुत कामों की घोषणा हर जगह. \b \q1 \v 4 क्योंकि महान हैं याहवेह और सर्वाधिक योग्य हैं स्तुति के; \q2 अनिवार्य है कि उनके ही प्रति सभी देवताओं से अधिक श्रद्धा रखी जाए. \q1 \v 5 क्योंकि अन्य जनताओं के समस्त देवता मात्र प्रतिमाएं ही हैं, \q2 किंतु स्वर्ग मंडल के बनानेवाले याहवेह हैं. \q1 \v 6 वैभव और ऐश्वर्य उनके चारों ओर हैं; \q2 सामर्थ्य और महिमा उनके पवित्र स्थान में बसे हुए हैं. \b \q1 \v 7 राष्ट्रों के समस्त गोत्रो, याहवेह को पहचानो, \q2 याहवेह को पहचानकर उनके तेज और सामर्थ्य को देखो. \q1 \v 8 याहवेह के नाम की सुयोग्य महिमा करो; \q2 उनकी उपस्थिति में भेंट लेकर जाओ; \q1 \v 9 उनकी वंदना पवित्रता के ऐश्वर्य में की जाए. \q2 उनकी उपस्थिति में सारी पृथ्वी में कंपकंपी दौड़ जाए. \q1 \v 10 राष्ट्रों के सामने यह घोषणा की जाए, “याहवेह ही शासक हैं.” \q2 यह एक सत्य है कि संसार दृढ़ रूप में स्थिर हो गया है, यह हिल ही नहीं सकता; \q2 वह खराई से राष्ट्रों का न्याय करेंगे. \b \q1 \v 11 स्वर्ग आनंदित हो और पृथ्वी मगन; \q2 समुद्र और उसमें मगन सब कुछ इसी हर्षोल्लास को प्रतिध्वनित करें. \q1 \v 12 समस्त मैदान और उनमें चलते फिरते रहे सभी प्राणी उल्‍लसित हों; \q2 तब वन के समस्त वृक्ष आनंद में गुणगान करने लगेंगे. \q1 \v 13 वे सभी याहवेह की उपस्थिति में गाएं, क्योंकि याहवेह आनेवाला हैं \q2 और पृथ्वी पर उनके आने का उद्देश्य है पृथ्वी का न्याय करना. \q1 उनका न्याय धार्मिकतापूर्ण होगा; \q2 वह मनुष्यों का न्याय अपनी ही सच्चाई के अनुरूप करेंगे. \c 97 \cl स्तोत्र 97 \q1 \v 1 यह याहवेह का शासन है, पृथ्वी उल्‍लसित हो; \q2 दूर के तटवर्ती क्षेत्र आनंद मनाएं. \q1 \v 2 प्रभु के आस-पास मेघ और गहन अंधकार छाया हुआ है; \q2 उनके सिंहासन का आधार धार्मिकता और सच्चाई है. \q1 \v 3 जब वह आगे बढ़ते हैं, \q2 अग्नि उनके आगे-आगे बढ़ते हुए उनके समस्त शत्रुओं को भस्म करती जाती है. \q1 \v 4 उनकी बिजलियां समस्त विश्व को प्रकाशित कर देती हैं; \q2 यह देख पृथ्वी कांप उठती है. \q1 \v 5 याहवेह की उपस्थिति में पर्वत मोम समान पिघल जाते हैं, \q2 उनके सामने, जो समस्त पृथ्वी के अधिकारी हैं. \q1 \v 6 आकाशमंडल उनके सत्य की घोषणा करती है, \q2 समस्त मनुष्य उनके तेज के दर्शक हैं. \b \q1 \v 7 मूर्तियों के उपासक लज्जित कर दिए गए, \q2 वे सभी, जो व्यर्थ प्रतिमाओं का गर्व करते हैं; \q2 समस्त देवताओ, याहवेह की आराधना करो! \b \q1 \v 8 यह सब सुनकर ज़ियोन आनंदित हुआ, \q2 याहवेह, आपके निर्णयों के \q2 कारण यहूदिया प्रदेश के समस्त नगर हर्षित हो गए. \q1 \v 9 क्योंकि याहवेह, आप समस्त रचना में सर्वोच्च हैं; \q2 समस्त देवताओं से आप कहीं अधिक महान एवं उत्तम ठहरे हैं. \q1 \v 10 यह उपयुक्त है कि वे सभी, जिन्हें याहवेह से प्रेम है, बुराई से घृणा करें, \q2 प्रभु अपने भक्तों के प्राणों की रक्षा करते हैं, \q2 वह उन्हें दुष्टों की युक्ति से छुड़ाते हैं. \q1 \v 11 धर्मियों के जीवन प्रकाशित किए जाते हैं \q2 तथा निष्ठों के हृदय आनन्दविभोर. \q1 \v 12 समस्त धर्मियो, याहवेह में प्रफुल्लित हो \q2 और उनके पवित्र नाम का स्तवन करो. \c 98 \cl स्तोत्र 98 \d एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह के लिए एक नया गीत गाओ, \q2 क्योंकि उन्होंने अद्भुत कार्य किए हैं; \q1 उनके दायें हाथ तथा उनकी पवित्र भुजा ने \q2 जय प्राप्‍त की है. \q1 \v 2 याहवेह ने राष्ट्रों पर अपना उद्धार \q2 तथा अपनी धार्मिकता परमेश्वर ने प्रकाशित की है. \q1 \v 3 इस्राएल वंश के लिए उन्होंने अपना करुणा-प्रेम \q2 तथा सच्चाई को भूला नहीं; \q1 पृथ्वी के छोर-छोर तक लोगों ने हमारे \q2 परमेश्वर के उद्धार को देख लिया है. \b \q1 \v 4 याहवेह के लिए समस्त पृथ्वी का आनंद उच्च स्वर में प्रस्तुत हो, \q2 संगीत की संगत पर हर्षोल्लास के गीत उमड़ पड़ें; \q1 \v 5 सारंगी पर याहवेह का स्तवन करे, \q2 हां, किन्‍नोर की संगत पर मधुर धुन के गीत के द्वारा. \q1 \v 6 तुरहियों तथा शोफ़ार के उच्च नाद के साथ याहवेह, \q2 हमारे राजा, के लिए उच्च स्वर में हर्षोल्लास का घोष किया जाए. \b \q1 \v 7 समुद्र तथा इसमें मगन सभी कुछ उसका हर्षनाद करें, \q2 साथ ही संसार और इसके निवासी भी. \q1 \v 8 नदियां तालियां बजाएं, \q2 पर्वत मिलकर हर्षगान गाएं; \q1 \v 9 वे सभी याहवेह की उपस्थिति में गाएं, \q2 क्योंकि याहवेह आनेवाले हैं. पृथ्वी का न्याय करने के लिए वे आ रहे हैं. \q1 उनका न्याय धार्मिकता में पूर्ण होगा; \q2 वह मनुष्यों का न्याय अपनी ही सच्चाई के अनुरूप करेंगे. \c 99 \cl स्तोत्र 99 \q1 \v 1 याहवेह शासक हैं, \q2 राष्ट्र कांपते रहें; \q1 उन्होंने अपना आसन करूबों के मध्य स्थापित किया है, \q2 पृथ्वी कांप जाए. \q1 \v 2 ज़ियोन में याहवेह तेजस्वी हैं; \q2 वह समस्त राष्ट्रों के ऊपर बसे हैं. \q1 \v 3 उपयुक्त है उनका आपके महान और भय-योग्य नाम की वंदना करना— \q2 पवित्र हैं वह. \b \q1 \v 4 राजा शक्ति-सम्पन्‍न हैं, वह जो न्याय को प्रिय मानता है, \q2 उन्होंने इस्राएल में समता की स्थापना की है; \q2 जो न्याय संगत और उचित है. \q1 \v 5 याहवेह, हमारे परमेश्वर की महिमा की जाए, \q2 उनके चरणों में गिर आराधना की जाए; \q2 वह पवित्र हैं. \b \q1 \v 6 मोशेह और अहरोन उनके पुरोहित थे, \q2 शमुएल उनके आराधक थे; \q1 ये सभी याहवेह को पुकारते थे \q2 और वह उन्हें उत्तर देते थे. \q1 \v 7 मेघ-स्तंभ में से याहवेह ने उनसे वार्तालाप किया; \q2 उन्होंने उनके अधिनियमों तथा उनके द्वारा सौंपे गए आदेशों का पालन किया. \b \q1 \v 8 याहवेह, हमारे परमेश्वर, \q2 आप उन्हें उत्तर देते थे; \q1 इस्राएल के लिए आप क्षमा शील परमेश्वर रहे, \q2 यद्यपि आप उनके अपराधों का दंड देते रहे. \q1 \v 9 याहवेह, हमारे परमेश्वर की महिमा को ऊंचा करो, \q2 उनके पवित्र पर्वत पर उनकी आराधना करो, \q2 क्योंकि पवित्र हैं हमारे याहवेह परमेश्वर. \c 100 \cl स्तोत्र 100 \d एक स्तोत्र. धन्यवाद के लिए गीत \q1 \v 1 याहवेह के स्तवन में समस्त पृथ्वी उच्च स्वर में जयघोष करे. \q2 \v 2 याहवेह की आराधना आनंदपूर्वक की जाए; \q2 हर्ष गीत गाते हुए उनकी उपस्थिति में प्रवेश किया जाए. \q1 \v 3 यह समझ लो कि स्वयं याहवेह ही परमेश्वर हैं. \q2 हमारी रचना उन्हीं ने की है, स्वयं हमने नहीं; हम पर उन्हीं का स्वामित्व है. \q2 हम उनकी प्रजा, उनकी चराई की भेड़ें हैं. \b \q1 \v 4 धन्यवाद के भाव में उनके द्वारों में \q2 और स्तवन भाव में उनके आंगनों में प्रवेश करो; \q2 उनकी महिमा को धन्य कहो. \q1 \v 5 याहवेह भले हैं; उनकी करुणा सदा की है; \q2 उनकी सच्चाई का प्रसरण समस्त पीढ़ियों में होता जाता है. \c 101 \cl स्तोत्र 101 \d दावीद की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 मेरे गीत का विषय है आपका करुणा-प्रेम तथा आपका न्याय; \q2 याहवेह, मैं आपका स्तवन करूंगा. \q1 \v 2 निष्कलंक जीवन मेरा लक्ष्य है, \q2 आप कब मेरे पास आएंगे? \b \q1 अपने आवास में मेरा आचरण \q2 निष्कलंक रहेगा. \q1 \v 3 मैं किसी भी अनुचित वस्तु की \q2 ओर दृष्टि न उठाऊंगा. \b \q1 मुझे घृणा है भ्रष्टाचारी पुरुषों के आचार-व्यवहार से; \q2 मैं उनसे कोई संबंध नहीं रखूंगा. \q1 \v 4 कुटिल हृदय मुझसे दूर रहेगा; \q2 बुराई से मेरा कोई संबंध न होगा. \b \q1 \v 5 जो कोई गुप्‍त में अपने पड़ोसी की निंदा करता है, \q2 मैं उसे नष्ट कर दूंगा; \q1 जिस किसी की आंखें अहंकार से चढ़ी हुई हैं तथा जिसका हृदय घमंडी है, \q2 वह मेरे लिए असह्य होगा. \b \q1 \v 6 पृथ्वी पर मेरी दृष्टि उन्हीं पर रहेगी जो विश्वासयोग्य हैं, \q2 कि वे मेरे साथ निवास कर सकें; \q1 मेरा सेवक वही होगा, \q2 जिसका आचरण निष्कलंक है. \b \q1 \v 7 किसी भी झूठों का निवास \q2 मेरे आवास में न होगा, \q1 कोई भी झूठ बोलने वाला, \q2 मेरी उपस्थिति में ठहर न सकेगा. \b \q1 \v 8 प्रति प्रभात मैं अपने राज्य के \q2 समस्त दुर्जनों को नष्ट करूंगा; \q1 याहवेह के नगर में से \q2 मैं हर एक दुष्ट को मिटा दूंगा. \c 102 \cl स्तोत्र 102 \d संकट में पुकारा आक्रांत पुरुष की अभ्यर्थना. वह अत्यंत उदास है और याहवेह के सामने अपनी हृदय-पीड़ा का वर्णन कर रहा है \q1 \v 1 याहवेह, मेरी प्रार्थना सुनिए; \q2 सहायता के लिए मेरी पुकार आप तक पहुंचे. \q1 \v 2 मेरी पीड़ा के समय मुझसे अपना मुखमंडल छिपा न लीजिए. \q2 जब मैं पुकारूं. \q1 अपने कान मेरी ओर कीजिए; \q2 मुझे शीघ्र उत्तर दीजिए. \b \q1 \v 3 धुएं के समान मेरा समय विलीन होता जा रहा है; \q2 मेरी हड्डियां दहकते अंगारों जैसी सुलग रही हैं. \q1 \v 4 घास के समान मेरा हृदय झुलस कर मुरझा गया है; \q2 मुझे स्मरण ही नहीं रहता कि मुझे भोजन करना है. \q1 \v 5 मेरी सतत कराहटों ने मुझे मात्र हड्डियों \q2 एवं त्वचा का ढांचा बनाकर छोड़ा है. \q1 \v 6 मैं वन के उल्लू समान होकर रह गया हूं, \q2 उस उल्लू के समान, जो खंडहरों में निवास करता है. \q1 \v 7 मैं सो नहीं पाता, \q2 मैं छत के एकाकी पक्षी-सा हो गया हूं. \q1 \v 8 दिन भर मैं शत्रुओं के ताने सुनता रहता हूं; \q2 जो मेरी निंदा करते हैं, वे मेरा नाम शाप के रूप में जाहिर करते हैं. \q1 \v 9 राख ही अब मेरा आहार हो गई है \q2 और मेरे आंसू मेरे पेय के साथ मिश्रित होते रहते हैं. \q1 \v 10 यह सब आपके क्रोध, \q2 उग्र कोप का परिणाम है क्योंकि आपने मुझे ऊंचा उठाया और आपने ही मुझे अलग फेंक दिया है. \q1 \v 11 मेरे दिन अब ढलती छाया-समान हो गए हैं; \q2 मैं घास के समान मुरझा रहा हूं. \b \q1 \v 12 किंतु, याहवेह, आप सदा-सर्वदा सिंहासन पर विराजमान हैं; \q2 आपका नाम पीढ़ी से पीढ़ी स्थायी रहता है. \q1 \v 13 आप उठेंगे और ज़ियोन पर मनोहरता करेंगे, \q2 क्योंकि यही सुअवसर है कि आप उस पर अपनी कृपादृष्टि प्रकाशित करें. \q2 वह ठहराया हुआ अवसर आ गया है. \q1 \v 14 इस नगर का पत्थर-पत्थर आपके सेवकों को प्रिय है; \q2 यहां तक कि यहां की धूल तक उन्हें द्रवित कर देती है. \q1 \v 15 समस्त राष्ट्रों पर आपके नाम का आतंक छा जाएगा, \q2 पृथ्वी के समस्त राजा आपकी महिमा के सामने नतमस्तक हो जाएंगे. \q1 \v 16 क्योंकि याहवेह ने ज़ियोन का पुनर्निर्माण किया है; \q2 वे अपने तेज में प्रकट हुए हैं. \q1 \v 17 याहवेह लाचार की प्रार्थना का प्रत्युत्तर देते हैं; \q2 उन्होंने उनकी गिड़गिड़ाहट का तिरस्कार नहीं किया. \b \q1 \v 18 भावी पीढ़ी के हित में यह लिखा जाए, \q2 कि वे, जो अब तक अस्तित्व में ही नहीं आए हैं, याहवेह का स्तवन कर सकें: \q1 \v 19 “याहवेह ने अपने महान मंदिर से नीचे की ओर दृष्टि की, \q2 उन्होंने स्वर्ग से पृथ्वी पर दृष्टि की, \q1 \v 20 कि वह बंदियों का कराहना सुनें और उन्हें मुक्त कर दें, \q2 जिन्हें मृत्यु दंड दिया गया है.” \q1 \v 21 कि मनुष्य ज़ियोन में याहवेह की महिमा की घोषणा कर सकें \q2 तथा येरूशलेम में उनका स्तवन, \q1 \v 22 जब लोग तथा राज्य \q2 याहवेह की वंदना के लिए एकत्र होंगे. \b \q1 \v 23 मेरी जीवन यात्रा पूर्ण भी न हुई थी, कि उन्होंने मेरा बल शून्य कर दिया; \q2 उन्होंने मेरी आयु घटा दी. \q1 \v 24 तब मैंने आग्रह किया: \q1 “मेरे परमेश्वर, मेरे जीवन के दिनों के पूर्ण होने के पूर्व ही मुझे उठा न लीजिए; \q2 आप तो पीढ़ी से पीढ़ी स्थिर ही रहते हैं. \q1 \v 25 प्रभु, आपने प्रारंभ में ही पृथ्वी की नींव रखी, \q2 तथा आकाशमंडल आपके ही हाथों की कारीगरी है. \q1 \v 26 वे तो नष्ट हो जाएंगे किंतु आप अस्तित्व में ही रहेंगे; \q2 वे सभी वस्त्र समान पुराने हो जाएंगे. \q1 आप उन्हें वस्त्रों के ही समान परिवर्तित कर देंगे \q2 उनका अस्तित्व समाप्‍त हो जाएगा. \q1 \v 27 आप न बदलनेवाले हैं, \q2 आपकी आयु का कोई अंत नहीं. \q1 \v 28 आपके सेवकों की सन्तति आपकी उपस्थिति में निवास करेंगी; \q2 उनके वंशज आपके सम्मुख स्थिर रहेंगे.” \c 103 \cl स्तोत्र 103 \d दावीद की रचना \q1 \v 1 मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो; \q2 मेरी संपूर्ण आत्मा उनके पवित्र नाम का स्तवन करे. \q1 \v 2 मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो, \q2 उनके किसी भी उपकार को न भूलो. \q1 \v 3 वह तेरे सब अपराध क्षमा करते \q2 तथा तेरे सब रोग को चंगा करते हैं. \q1 \v 4 वही तेरे जीवन को गड्ढे से छुड़ा लेते हैं \q2 तथा तुझे करुणा-प्रेम एवं मनोहरता से सुशोभित करते हैं. \q1 \v 5 वह तेरी अभिलाषाओं को मात्र उत्कृष्ट वस्तुओं से ही तृप्‍त करते हैं, \q2 जिसके परिणामस्वरूप तेरी जवानी गरुड़-समान नई हो जाती है. \b \q1 \v 6 याहवेह सभी दुःखितों के निमित्त धर्म \q2 एवं न्यायसंगतता के कार्य करते हैं. \b \q1 \v 7 उन्होंने मोशेह को अपनी नीति स्पष्ट की, \q2 तथा इस्राएल राष्ट्र के सामने अपना अद्भुत कृत्य: \q1 \v 8 याहवेह करुणामय, कृपानिधान, \q2 क्रोध में विलंबी तथा करुणा-प्रेम में समृद्ध हैं. \q1 \v 9 वह हम पर निरंतर आरोप नहीं लगाते रहेंगे, \q2 और न ही हम पर उनकी अप्रसन्‍नता स्थायी बनी रहेगी; \q1 \v 10 उन्होंने हमें न तो हमारे अपराधों के लिए निर्धारित दंड दिया \q2 और न ही उन्होंने हमारे अधर्मों का प्रतिफल हमें दिया है. \q1 \v 11 क्योंकि आकाश पृथ्वी से जितना ऊपर है, \q2 उतना ही महान है उनका करुणा-प्रेम उनके श्रद्धालुओं के लिए. \q1 \v 12 पूर्व और पश्चिम के मध्य जितनी दूरी है, \q2 उन्होंने हमारे अपराध हमसे उतने ही दूर कर दिए हैं. \b \q1 \v 13 जैसे पिता की मनोहरता उसकी संतान पर होती है, \q2 वैसे ही याहवेह की मनोहरता उनके श्रद्धालुओं पर स्थिर रहती है; \q1 \v 14 क्योंकि उन्हें हमारी सृष्टि ज्ञात है, \q2 उन्हें स्मरण रहता है कि हम मात्र धूल ही हैं. \q1 \v 15 मनुष्य से संबंधित बातें यह है, कि उसका जीवन घास समान है, \q2 वह मैदान के पुष्प समान खिलता है, \q1 \v 16 उस पर उष्ण हवा का प्रवाह होता है और वह नष्ट हो जाता है, \q2 किसी को यह स्मरण तक नहीं रह जाता, कि पुष्प किस स्थान पर खिला था, \q1 \v 17 किंतु याहवेह का करुणा-प्रेम उनके श्रद्धालुओं \q2 पर अनादि से अनंत तक, \q2 तथा परमेश्वर की धार्मिकता उनकी संतान की संतान पर स्थिर बनी रहती है. \q1 \v 18 जो उनकी वाचा का पालन करते \q2 तथा उनके आदेशों का पालन करना याद रखते हैं. \b \q1 \v 19 याहवेह ने अपना सिंहासन स्वर्ग में स्थापित किया है, \q2 समस्त बनाई वस्तुओं पर उनका शासन है. \b \q1 \v 20 तुम, जो उनके स्वर्गदूत हो, याहवेह का स्तवन करो, \q2 तुम जो शक्तिशाली हो, तुम उनके आदेशों का पालन करते हो, \q2 उनके मुख से निकले वचन को पूर्ण करते हो. \q1 \v 21 स्वर्ग की संपूर्ण सेना और तुम, जो उनके सेवक हो, \q2 और जो उनकी इच्छा की पूर्ति करते हो, याहवेह का स्तवन करो. \q1 \v 22 उनकी समस्त सृष्टि, जो समस्त रचना में व्याप्‍त हैं, \q2 याहवेह का स्तवन करें. \b \q1 मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो. \c 104 \cl स्तोत्र 104 \q1 \v 1 मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो. \b \q1 याहवेह, मेरे परमेश्वर, अत्यंत महान हैं आप; \q2 वैभव और तेज से विभूषित हैं आप. \b \q1 \v 2 आपने ज्योति को वस्त्र समान धारण किया हुआ है; \q2 आपने वस्त्र समान आकाश को विस्तीर्ण किया है. \q2 \v 3 आपने आकाश के जल के ऊपर ऊपरी कक्ष की धरनें स्थापित की हैं, \q1 मेघ आपके रथ हैं \q2 तथा आप पवन के पंखों पर यात्रा करते हैं. \q1 \v 4 हवा को आपने अपना संदेशवाहक बनाया है, \q2 अग्निशिखाएं आपकी परिचारिकाएं हैं. \b \q1 \v 5 आपने ही पृथ्वी को इसकी नींव पर स्थापित किया है; \q2 इसे कभी भी सरकाया नहीं जा सकता. \q1 \v 6 आपने गहन जल के आवरण से इसे परिधान समान सुशोभित किया; \q2 जल स्तर पर्वतों से ऊंचा उठ गया था. \q1 \v 7 किंतु जब आपने फटकार लगाई, तब जल हट गया, \q2 आपके गर्जन समान आदेश से जल-राशियां भाग खड़ी हुई; \q1 \v 8 जब पर्वतों की ऊंचाई बढ़ी, \q2 तो घाटियां गहरी होती गईं, \q2 ठीक आपके नियोजन के अनुरूप निर्धारित स्थान पर. \q1 \v 9 आपके द्वारा उनके लिए निर्धारित सीमा ऐसी थी; \q2 जिसका अतिक्रमण उनके लिए संभव न था; और वे पृथ्वी को पुनः जलमग्न न कर सकें. \b \q1 \v 10 आप ही के सामर्थ्य से घाटियों में झरने फूट पड़ते हैं; \q2 और पर्वतों के मध्य से जलधाराएं बहने लगती हैं. \q1 \v 11 इन्हीं से मैदान के हर एक पशु को पेय जल प्राप्‍त होता है; \q2 तथा वन्य गधे भी प्यास बुझा लेते हैं. \q1 \v 12 इनके तट पर आकाश के पक्षियों का बसेरा होता है; \q2 शाखाओं के मध्य से उनकी आवाज निकलती है. \q1 \v 13 वही अपने आवास के ऊपरी कक्ष से पर्वतों की सिंचाई करते हैं; \q2 आप ही के द्वारा उपजाए फलों से पृथ्वी तृप्‍त है. \q1 \v 14 वह पशुओं के लिए घास उत्पन्‍न करते हैं, \q2 तथा मनुष्य के श्रम के लिए वनस्पति, \q2 कि वह पृथ्वी से आहार प्राप्‍त कर सके: \q1 \v 15 मनुष्य के हृदय मगन करने के निमित्त द्राक्षारस, \q2 मुखमंडल को चमकीला करने के निमित्त तेल, \q2 तथा मनुष्य के जीवन को संभालने के निमित्त आहार उत्पन्‍न होता है. \q1 \v 16 याहवेह द्वारा लगाए वृक्षों के लिए अर्थात् लबानोन में \q2 लगाए देवदार के वृक्षों के लिए जल बड़ी मात्रा में होता है. \q1 \v 17 पक्षियों ने इन वृक्षों में अपने घोंसले बनाए हैं; \q2 सारस ने अपना घोंसला चीड़ के वृक्ष में बनाया है. \q1 \v 18 ऊंचे पर्वतों में वन्य बकरियों का निवास है; \q2 चट्टानों में चट्टानी बिज्जुओं ने आश्रय लिया है. \b \q1 \v 19 आपने नियत समय के लिए चंद्रमा बनाया है, \q2 सूर्य को अपने अस्त होने का स्थान ज्ञात है. \q1 \v 20 आपने अंधकार का प्रबंध किया, कि रात्रि हो, \q2 जिस समय वन्य पशु चलने फिरने को निकल पड़ते हैं. \q1 \v 21 अपने शिकार के लिए पुष्ट सिंह गरजनेवाले हैं, \q2 वे परमेश्वर से अपने भोजन खोजते हैं. \q1 \v 22 सूर्योदय के साथ ही वे चुपचाप छिप जाते हैं; \q2 और अपनी-अपनी मांदों में जाकर सो जाते हैं. \q1 \v 23 इस समय मनुष्य अपने-अपने कार्यों के लिए निकल पड़ते हैं, \q2 वे संध्या तक अपने कार्यों में परिश्रम करते रहते हैं. \b \q1 \v 24 याहवेह! असंख्य हैं आपके द्वारा निष्पन्‍न कार्य, \q2 आपने अपने अद्भुत ज्ञान में इन सब की रचना की है; \q2 समस्त पृथ्वी आपके द्वारा रचे प्राणियों से परिपूर्ण हो गई है. \q1 \v 25 एक ओर समुद्र है, विस्तृत और गहरा, \q2 उसमें भी असंख्य प्राणी चलते फिरते हैं— \q2 समस्त जीवित प्राणी हैं, सूक्ष्म भी और विशालकाय भी. \q1 \v 26 इसमें जलयानों का आगमन होता रहता है, \q2 साथ ही इसमें विशालकाय जंतु हैं, लिवयाथान\f + \fr 104:26 \fr*\ft बड़ा मगरमच्छ हो सकता है\ft*\f*, जिसे आपने समुद्र में खेलने के लिए बनाया है. \b \q1 \v 27 इन सभी की दृष्टि आपकी ओर इसी आशा में लगी रहती है, \q2 कि इन्हें आपकी ओर से उपयुक्त अवसर पर आहार प्राप्‍त होगा. \q1 \v 28 जब आप उन्हें आहार प्रदान करते हैं, \q2 वे इसे एकत्र करते हैं; \q1 जब आप अपनी मुट्ठी खोलते हैं, \q2 उन्हें उत्तम वस्तुएं प्राप्‍त हो जाती हैं. \q1 \v 29 जब आप उनसे अपना मुख छिपा लेते हैं, \q2 वे घबरा जाते हैं; \q1 जब आप उनकी श्वास छीन लेते हैं, \q2 उनके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं और वे उसी धूलि में लौट जाते हैं. \q1 \v 30 जब आप अपना पवित्रात्मा प्रेषित करते हैं, \q2 उनका उद्भव होता है, \q2 उस समय आप पृथ्वी के स्वरूप को नया बना देते हैं. \b \q1 \v 31 याहवेह का तेज सदा-सर्वदा स्थिर रहे; \q2 याहवेह की कृतियां उन्हें प्रफुल्लित करती रहें. \q1 \v 32 जब वह पृथ्वी की ओर दृष्टिपात करते हैं, वह थरथरा उठती है, \q2 वह पर्वतों का स्पर्श मात्र करते हैं और उनसे धुआं उठने लगता है. \b \q1 \v 33 मैं आजीवन याहवेह का गुणगान करता रहूंगा; \q2 जब तक मेरा अस्तित्व है, मैं अपने परमेश्वर का स्तवन गान करूंगा. \q1 \v 34 मेरा मनन-चिन्तन उनको प्रसन्‍न करनेवाला हो, \q2 क्योंकि याहवेह मेरे परम आनंद का उगम हैं. \q1 \v 35 पृथ्वी से पापी समाप्‍त हो जाएं, \q2 दुष्ट फिर देखे न जाएं. \b \q1 मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो. \b \q1 याहवेह का स्तवन हो. \c 105 \cl स्तोत्र 105 \q1 \v 1 याहवेह के प्रति आभार व्यक्त करो, उनको पुकारो; \q2 सभी जनताओं के सामने उनके द्वारा किए कार्यों की घोषणा करो. \q1 \v 2 उनकी प्रशंसा में गाओ, उनका गुणगान करो; \q2 उनके सभी अद्भुत कार्यों का वर्णन करो. \q1 \v 3 उनके पवित्र नाम पर गर्व करो; \q2 उनके हृदय, जो याहवेह के खोजी हैं, उल्‍लसित हों. \q1 \v 4 याहवेह और उनकी सामर्थ्य की खोज करो; \q2 उनकी उपस्थिति के सतत खोजी बने रहो. \b \q1 \v 5 उनके द्वारा किए अद्भुत कार्य स्मरण रखो \q2 तथा उनके द्वारा हुईं अद्भुत बातें एवं निर्णय भी, \q1 \v 6 उनके सेवक अब्राहाम के वंश, \q2 उनके द्वारा चुने हुए याकोब की संतान. \q1 \v 7 वह याहवेह हैं, हमारे परमेश्वर; \q2 समस्त पृथ्वी पर उनके द्वारा किया गया न्याय स्पष्ट है. \b \q1 \v 8 उन्हें अपनी वाचा सदैव स्मरण रहती है, \q2 वह आदेश जो उन्होंने हजार पीढ़ियों को दिया, \q1 \v 9 वह वाचा, जो उन्होंने अब्राहाम के साथ स्थापित की, \q2 प्रतिज्ञा की वह शपथ, जो उन्होंने यित्सहाक से खाई थी, \q1 \v 10 जिसकी पुष्टि उन्होंने याकोब से अधिनियम स्वरूप की, \q2 अर्थात् इस्राएल से स्थापित अमर यह वाचा: \q1 \v 11 “कनान देश तुम्हें मैं प्रदान करूंगा. \q2 यह वह भूखण्ड है, जो तुम निज भाग में प्राप्‍त करोगे.” \b \q1 \v 12 जब परमेश्वर की प्रजा की संख्या अल्प ही थी, जब उनकी संख्या बहुत ही कम थी, \q2 और वे उस देश में परदेशी थे, \q1 \v 13 जब वे एक देश से दूसरे देश में भटकते फिर रहे थे, \q2 वे एक राज्य में से होकर दूसरे में यात्रा कर रहे थे, \q1 \v 14 परमेश्वर ने किसी भी राष्ट्र को उन्हें दुःखित न करने दिया; \q2 उनकी ओर से स्वयं परमेश्वर उन राजाओं को डांटते रहे: \q1 \v 15 “मेरे अभिषिक्तों का स्पर्श तक न करना; \q2 मेरे भविष्यवक्ताओं को कोई हानि न पहुंचे!” \b \q1 \v 16 तब परमेश्वर ने उस देश में अकाल की स्थिति उत्पन्‍न कर दी. \q2 उन्होंने ही समस्त आहार तृप्‍ति नष्ट कर दी; \q1 \v 17 तब परमेश्वर ने एक पुरुष, योसेफ़ को, \q2 जिनको दास बनाकर उस देश में पहले भेज दिया. \q1 \v 18 उन्होंने योसेफ़ के पैरों में बेड़ियां डालकर उन पैरों को ज़ख्मी किया था, \q2 उनकी गर्दन में भी बेड़ियां डाल दी गई थीं. \q1 \v 19 तब योसेफ़ की पूर्वोक्ति सत्य प्रमाणित हुई, उनके विषय में, \q2 याहवेह के वक्तव्य ने उन्हें सत्य प्रमाणित कर दिया. \q1 \v 20 राजा ने उन्हें मुक्त करने के आदेश दिए, \q2 प्रजा के शासक ने उन्हें मुक्त कर दिया. \q1 \v 21 उसने उन्हें अपने भवन का प्रधान \q2 तथा संपूर्ण संपत्ति का प्रशासक बना दिया, \q1 \v 22 कि वह उनके प्रधानों को अपनी इच्छापूर्ति के निमित्त आदेश दे सकें \q2 और उनके मंत्रियों को सुबुद्धि सिखा सकें. \b \q1 \v 23 तब इस्राएल ने मिस्र में पदार्पण किया; \q2 तब हाम की धरती पर याकोब एक प्रवासी होकर रहने लगे. \q1 \v 24 याहवेह ने अपने चुने हुओं को अत्यंत समृद्ध कर दिया; \q2 यहां तक कि उन्हें उनके शत्रुओं से अधिक प्रबल बना दिया, \q1 \v 25 जिनके हृदय में स्वयं परमेश्वर ने अपनी प्रजा के प्रति घृणा उत्पन्‍न कर दी, \q2 वे परमेश्वर के सेवकों के विरुद्ध बुरी युक्ति रचने लगे. \q1 \v 26 तब परमेश्वर ने अपने चुने हुए सेवक मोशेह को उनके पास भेजा, \q2 और अहरोन को भी. \q1 \v 27 उन्होंने परमेश्वर की ओर से उनके सामने आश्चर्य कार्य प्रदर्शित किए, \q2 हाम की धरती पर उन्होंने अद्भुत कार्य प्रदर्शित किए. \q1 \v 28 उनके आदेश ने सारे देश को अंधकारमय कर दिया; \q2 क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के आदेशों की अवहेलना की. \q1 \v 29 परमेश्वर ही के आदेश से देश का समस्त जल रक्त में बदल गया, \q2 परिणामस्वरूप समस्त मछलियां मर गईं. \q1 \v 30 उनके समस्त देश में असंख्य मेंढक उत्पन्‍न हो गए, \q2 यहां तक कि उनके न्यायियों के शयनकक्ष में भी पहुंच गए. \q1 \v 31 परमेश्वर ने आदेश दिया और मक्खियों के समूह देश पर छा गए, \q2 इसके साथ ही समस्त देश में मच्छर भी समा गए. \q1 \v 32 उनके आदेश से वर्षा ने ओलों का रूप ले लिया, \q2 समस्त देश में आग्नेय विद्युज्ज्वाला बरसने लगी. \q1 \v 33 तब परमेश्वर ने उनकी द्राक्षालताओं तथा अंजीर के वृक्षों पर भी आक्रमण किया, \q2 और तब उन्होंने उनके देश के वृक्षों का अंत कर दिया. \q1 \v 34 उनके आदेश से अरबेह टिड्डियों ने आक्रमण कर दिया, \q2 ये यालेक टिड्डियां असंख्य थीं; \q1 \v 35 उन्होंने देश की समस्त वनस्पति को निगल लिया, \q2 भूमि की समस्त उपज समाप्‍त हो गई. \q1 \v 36 तब परमेश्वर ने उनके देश के हर एक पहलौठे की हत्या की, \q2 उन समस्त पहिलौठों का, जो उनके पौरुष का प्रमाण थे. \q1 \v 37 परमेश्वर ने स्वर्ण और चांदी के बड़े धन के साथ इस्राएल को मिस्र देश से बचाया, \q2 उसके समस्त गोत्रों में से कोई भी कुल नहीं लड़खड़ाया. \q1 \v 38 मिस्र निवासी प्रसन्‍न ही थे, जब इस्राएली देश छोड़कर जा रहे थे, \q2 क्योंकि उन पर इस्राएल का आतंक छा गया था. \b \q1 \v 39 उन पर आच्छादन के निमित्त परमेश्वर ने एक मेघ निर्धारित कर दिया था, \q2 और रात्रि में प्रकाश के लिए अग्नि भी. \q1 \v 40 उन्होंने प्रार्थना की और परमेश्वर ने उनके निमित्त आहार के लिए बटेरें भेज दीं; \q2 और उन्हें स्वर्गिक आहार से भी तृप्‍त किया. \q1 \v 41 उन्होंने चट्टान को ऐसे खोल दिया, कि उसमें से उनके निमित्त जल बहने लगा; \q2 यह जल वन में नदी जैसे बहने लगा. \b \q1 \v 42 क्योंकि उन्हें अपने सेवक अब्राहाम से \q2 की गई अपनी पवित्र प्रतिज्ञा स्मरण की. \q1 \v 43 आनंद के साथ उनकी प्रजा वहां से बाहर लाई गई, \q2 उनके चुने हर्षनाद कर रहे थे; \q1 \v 44 परमेश्वर ने उनके लिए अनेक राष्ट्रों की भूमि दे दी, \q2 वे उस संपत्ति के अधिकारी हो गए जिसके लिए किसी अन्य ने परिश्रम किया था. \q1 \v 45 कि वे परमेश्वर के अधिनियमों का पालन कर सकें \q2 और उनके नियमों को पूरा कर सकें. \b \q1 याहवेह का स्तवन हो. \c 106 \cl स्तोत्र 106 \q1 \v 1 याहवेह की स्तुति हो! \b \q1 याहवेह का धन्यवाद करो-वे भले हैं; \q2 उनकी करुणा सदा की है. \b \q1 \v 2 किसमें क्षमता है याहवेह के महाकार्य को लिखने की \q2 अथवा उनका तृप्‍त स्तवन करने की? \q1 \v 3 प्रशंसनीय हैं वे, जो न्याय का पालन करते हैं, \q2 जो सदैव वही करते हैं, जो न्याय संगत ही होता है. \b \q1 \v 4 याहवेह, जब आप अपनी प्रजा पर कृपादृष्टि करें, तब मुझे स्मरण रखिए, \q2 जब आप उन्हें उद्धार दिलाएं, तब मेरा भी ध्यान रखें. \q1 \v 5 कि मैं आपके चुने हुओं की समृद्धि देख सकूं, \q2 कि मैं आपके राष्ट्र के आनंद में उल्‍लसित हो सकूं, \q2 कि मैं आपके निज भाग के साथ गर्व कर सकूं. \b \q1 \v 6 हमने अपने पूर्वजों के समान पाप किए हैं; \q2 हमने अपराध किया है, हमारे आचरण में अधर्म था. \q1 \v 7 जब हमारे पूर्वज मिस्र देश में थे, \q2 उन्होंने आपके द्वारा किए गए आश्चर्य कार्यों की गहनता को मन में ग्रहण नहीं किया; \q1 उनके लिए आपके करुणा-प्रेम में किए गए वे अनेक हितकार्य नगण्य ही रहे, \q2 सागर, लाल सागर के तट पर उन्होंने विद्रोह कर दिया. \q1 \v 8 फिर भी परमेश्वर ने अपनी महिमा के निमित्त उनकी रक्षा की, \q2 कि उनका अतुलनीय सामर्थ्य प्रख्यात हो जाए. \q1 \v 9 परमेश्वर ने लाल सागर को डांटा और वह सूख गया; \q2 परमेश्वर उन्हें उस गहराई में से इस प्रकार लेकर आगे बढ़ते गए मानो वे वन के मार्ग पर चल रहे हों. \q1 \v 10 परमेश्वर ने शत्रुओं से उनकी सुरक्षा की; \q2 उन्हें शत्रुओं के अधिकार से मुक्त कर दिया. \q1 \v 11 उनके प्रतिरोधी जल में डूब गए; \q2 उनमें से एक भी जीवित न रहा. \q1 \v 12 तब उन्होंने परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास किया \q2 और उनकी वंदना की. \b \q1 \v 13 किंतु शीघ्र ही वह परमेश्वर के महाकार्य को भूल गए; \q2 यहां तक कि उन्होंने परमेश्वर के निर्देशों की प्रतीक्षा भी नहीं की. \q1 \v 14 जब वे बंजर भूमि में थे, वे अपने अनियंत्रित आवेगों में बह गए; \q2 उजाड़ क्षेत्र में उन्होंने परमेश्वर की परीक्षा ली. \q1 \v 15 तब परमेश्वर ने उनकी अभिलाषा की पूर्ति कर दी; \q2 इसके अतिरिक्त परमेश्वर ने उन पर महामारी भेज दी. \b \q1 \v 16 मंडप निवासकाल में वे मोशेह \q2 और अहरोन से, जो याहवेह के अभिषिक्त थे, डाह करने लगे. \q1 \v 17 तब भूमि फट गई और दाथान को निगल गई; \q2 अबीराम के दल को उसने गाड़ दिया. \q1 \v 18 उनके अनुयायियों पर अग्निपात हुआ; \q2 आग ने कुकर्मियों को भस्म कर दिया. \q1 \v 19 होरेब पर्वत पर उन्होंने बछड़े की प्रतिमा ढाली \q2 और इस धातु प्रतिमा की आराधना की. \q1 \v 20 उन्होंने परमेश्वर की महिमा का विनिमय \q2 उस बैल की प्रतिमा से कर लिया, जो घास चरता है. \q1 \v 21 वे उस परमेश्वर को भूल गए, जिन्होंने उनकी रक्षा की थी, \q2 जिन्होंने मिस्र देश में असाधारण कार्य किए थे, \q1 \v 22 हाम के क्षेत्र में आश्चर्य कार्य \q2 तथा लाल सागर के तट पर भयंकर कार्य किए थे. \q1 \v 23 तब परमेश्वर ने निश्चय किया कि वह उन्हें नष्ट कर देंगे. \q2 वह उन्हें नष्ट कर चुके होते, यदि परमेश्वर के चुने मोशेह उनके \q1 और परमेश्वर के सत्यानाश प्रकोप के मध्य आकर, \q2 जलजलाहट को ठंडा न करते. \b \q1 \v 24 इसके बाद इस्राएलियों ने उस सुखदायी भूमि को निकम्मी समझा; \q2 उन्होंने परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास नहीं किया. \q1 \v 25 अपने-अपने तंबुओं में वे कुड़कुड़ाते रहे, \q2 उन्होंने याहवेह की आज्ञाएं नहीं मानीं. \q1 \v 26 तब याहवेह ने शपथ खाई, \q2 कि वह उन्हें बंजर भूमि में ही मिटा देंगे, \q1 \v 27 कि वह उनके वंशजों को अन्य जनताओं के मध्य नष्ट कर देंगे \q2 और उन्हें समस्त पृथ्वी पर बिखरा देंगे. \b \q1 \v 28 उन्होंने पओर के देवता बाल की पूजा-अर्चना की. \q2 उन्होंने उस बलि में से खाया, जो निर्जीव देवताओं को अर्पित की गई थी. \q1 \v 29 अपने अधर्म के द्वारा उन्होंने याहवेह के क्रोध को भड़का दिया, \q2 परिणामस्वरूप उनके मध्य महामारी फैल गई. \q1 \v 30 तब फिनिहास ने सामने आकर मध्यस्थ का कार्य किया, \q2 और महामारी थम गई. \q1 \v 31 उनकी इस भूमिका को पीढ़ी से पीढ़ी के लिए \q2 युक्त घोषित किया गया. \q1 \v 32 मेरिबाह जलाशय के निकट उन्होंने याहवेह के कोप को भड़काया, \q2 उनके कारण मोशेह पर संकट आ पड़ा, \q1 \v 33 क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के आत्मा के विरुद्ध बलवा किया था, \q2 और मोशेह ने बिन सोचे शब्द बोल डाले थे. \b \q1 \v 34 याहवेह के आदेश के अनुरूप \q2 उन्होंने उन लोगों की हत्या नहीं की, \q1 \v 35 परंतु वे अन्य जनताओं से घुल-मिल गए \q2 और उन्होंने उनकी प्रथाएं भी अपना लीं. \q1 \v 36 उन्होंने उनकी प्रतिमाओं की आराधना की, \q2 जो उनके लिए फंदा बन गईं. \q1 \v 37 उन्होंने अपने पुत्र-पुत्रियों को प्रेतों \q2 के लिए बलि कर दिया. \q1 \v 38 उन्होंने निर्दोषों का रक्त बहाया, \q2 अपने ही पुत्रों और पुत्रियों का रक्त, \q1 जिनकी उन्होंने कनान देश की प्रतिमाओं को बलि अर्पित की, \q2 और उनके रक्त से भूमि दूषित हो गई. \q1 \v 39 अपने कार्यों से उन्होंने स्वयं को भ्रष्‍ट कर डाला; \q2 उन्होंने अपने ही कार्यों के द्वारा विश्वासघात किया. \b \q1 \v 40 ये सभी वे कार्य थे, जिनके कारण याहवेह अपने ही लोगों से क्रोधित हो गए \q2 और उनको अपना निज भाग उनके लिए घृणास्पद हो गया. \q1 \v 41 परमेश्वर ने उन्हें अन्य राष्ट्रों के अधीन कर दिया, \q2 उनके विरोधी ही उन पर शासन करने लगे. \q1 \v 42 उनके शत्रु उन पर अधिकार करते रहे \q2 और उन्हें उनकी शक्ति के सामने समर्पण करना पड़ा. \q1 \v 43 कितनी ही बार उन्होंने उन्हें मुक्त किया, \q2 किंतु वे थे विद्रोह करने पर ही अटल, \q2 तब वे अपने ही अपराध में नष्ट होते चले गए. \q1 \v 44 किंतु उनका संकट परमेश्वर की दृष्टि में था. \q2 तब उन्होंने उनकी पुकार सुनी; \q1 \v 45 उनके कल्याण के निमित्त परमेश्वर ने अपनी वाचा का स्मरण किया, \q2 और अपने करुणा-प्रेम की परिणामता में परमेश्वर ने उन पर कृपा की. \q1 \v 46 परमेश्वर ने उनके प्रति, जिन्होंने उन्हें बंदी बना रखा था, \q2 उनके हृदय में कृपाभाव उत्पन्‍न किया. \b \q1 \v 47 याहवेह, हमारे परमेश्वर, हमारी रक्षा कीजिए, \q2 और हमें विभिन्‍न राष्ट्रों में से एकत्र कर लीजिए, \q1 कि हम आपके पवित्र नाम के प्रति आभार व्यक्त कर सकें \q2 और आपका स्तवन हमारे गर्व का विषय बन जाए. \b \b \q1 \v 48 आदि से अनंत काल तक धन्य हैं. \q2 याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर, \b \q1 इस पर सारी प्रजा कहे, “आमेन,” \b \q1 याहवेह की स्तुति हो. \c 107 \ms पांचवीं पुस्तक \mr स्तोत्र 107–150 \cl स्तोत्र 107 \q1 \v 1 याहवेह का धन्यवाद करो, वे भले हैं; \q2 उनकी करुणा सदा की है. \b \q1 \v 2 यह नारा उन सबका हो, जो याहवेह द्वारा उद्धारित हैं, \q2 जिन्हें उन्होंने विरोधियों से मुक्त किया है, \q1 \v 3 जिन्हें उन्होंने पूर्व और पश्चिम से, उत्तर और दक्षिण से, \q2 विभिन्‍न देशों से एकत्र कर एकजुट किया है. \b \q1 \v 4 कुछ निर्जन वन में भटक रहे थे, \q2 जिन्हें नगर की ओर जाता हुआ कोई मार्ग न मिल सका. \q1 \v 5 वे भूखे और प्यासे थे, \q2 वे दुर्बल होते जा रहे थे. \q1 \v 6 अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा, \q2 याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया. \q1 \v 7 उन्होंने उन्हें सीधे-समतल पथ से ऐसे नगर में पहुंचा दिया \q2 जहां वे जाकर बस सकते थे. \q1 \v 8 उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम के लिए \q2 तथा उनके द्वारा मनुष्यों के लिए किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें, \q1 \v 9 क्योंकि वह प्यासी आत्मा के प्यास को संतुष्ट करते \q2 तथा भूखे को उत्तम आहार से तृप्‍त करते हैं. \b \q1 \v 10 कुछ ऐसे थे, जो अंधकार में, \q2 गहनतम मृत्यु की छाया में बैठे हुए थे, वे बंदी लोहे की बेड़ियों में यातना सह रहे थे, \q1 \v 11 क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के आदेशों के विरुद्ध विद्रोह किया था \q2 और सर्वोच्च परमेश्वर के निर्देशों को तुच्छ समझा था. \q1 \v 12 तब परमेश्वर ने उन्हें कठोर श्रम के कार्यों में लगा दिया; \q2 वे लड़खड़ा जाते थे किंतु कोई उनकी सहायता न करता था. \q1 \v 13 अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा, \q2 याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया. \q1 \v 14 परमेश्वर ने उन्हें अंधकार और मृत्यु-छाया से बाहर निकाल लिया, \q2 और उनकी बेड़ियों को तोड़ डाला. \q1 \v 15 उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम के लिए \q2 तथा उनके द्वारा मनुष्यों के हित में किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें, \q1 \v 16 क्योंकि वही कांस्य द्वारों को तोड़ देते \q2 तथा लोहे की छड़ों को काटकर विभक्त कर डालते हैं. \b \q1 \v 17 कुछ ऐसे भी थे, जो विद्रोह का मार्ग अपनाकर मूर्ख प्रमाणित हुए, \q2 जिसका परिणाम यह हुआ, कि उन्हें अपने अपराधों के कारण ही पीड़ा सहनी पड़ी. \q1 \v 18 उन्हें सभी प्रकार के भोजन से घृणा हो गई \q2 और वे मृत्यु-द्वार तक पहुंच गए. \q1 \v 19 अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा, \q2 याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया. \q1 \v 20 उन्होंने आदेश दिया और वे स्वस्थ हो गए \q2 और उन्होंने उन्हें उनके विनाश से बचा लिया. \q1 \v 21 उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम\f + \fr 107:21 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द का अर्थ में \ft*\ft अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \ft*\ft ये शामिल हैं\ft*\f* के लिए \q2 तथा उनके द्वारा मनुष्यों के हित में किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें. \q1 \v 22 वे धन्यवाद बलि अर्पित करें \q2 और हर्षगीतों के माध्यम से उनके कार्यों का वर्णन करें. \b \q1 \v 23 कुछ वे थे, जो जलयानों में समुद्री यात्रा पर चले गए; \q2 वे महासागर पार जाकर व्यापार करते थे. \q1 \v 24 उन्होंने याहवेह के महाकार्य देखे, \q2 वे अद्भुत कार्य, जो समुद्र में किए गए थे. \q1 \v 25 याहवेह आदेश देते थे और बवंडर उठ जाता था, \q2 जिसके कारण समुद्र पर ऊंची-ऊंची लहरें उठने लगती थीं. \q1 \v 26 वे जलयान आकाश तक ऊंचे उठकर गहराइयों तक पहुंच जाते थे; \q2 जोखिम की इस बुराई की स्थिति में उनका साहस जाता रहा. \q1 \v 27 वे मतवालों के समान लुढ़कते और लड़खड़ा जाते थे; \q2 उनकी मति भ्रष्‍ट हो चुकी थी. \q1 \v 28 अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा, \q2 याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया. \q1 \v 29 याहवेह ने बवंडर को शांत किया \q2 और समुद्र की लहरें स्तब्ध हो गईं. \q1 \v 30 लहरों के शांत होने पर उनमें हर्ष की लहर दौड़ गई, \q2 याहवेह ने उन्हें उनके मनचाहे बंदरगाह तक पहुंचा दिया. \q1 \v 31 उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम के लिए \q2 तथा उनके द्वारा मनुष्यों के हित में किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें. \q1 \v 32 वे जनसमूह के सामने याहवेह का भजन करें, \q2 वे अगुओं की सभा में उनकी महिमा करें. \b \q1 \v 33 परमेश्वर ने नदियां मरुभूमि में बदल दीं, \q2 परमेश्वर ने झरनों के प्रवाह को रोका. \q1 \v 34 वहां के निवासियों की दुष्टता के कारण याहवेह नदियों को वन में, \q2 नदी को शुष्क भूमि में और उर्वर भूमि को निर्जन भूमि में बदल देते हैं. \q1 \v 35 याहवेह ही वन को जलाशय में बदल देते हैं \q2 और शुष्क भूमि को झरनों में; \q1 \v 36 वहां वह भूखों को बसने देते हैं, \q2 कि वे वहां बसने के लिये एक नगर स्थापित कर दें, \q1 \v 37 कि वे वहां कृषि करें, द्राक्षावाटिका का रोपण करें \q2 तथा इनसे उन्हें बड़ा उपज प्राप्‍त हो. \q1 \v 38 याहवेह ही की कृपादृष्टि में उनकी संख्या में बहुत वृद्धि होने लगती है, \q2 याहवेह उनके पशु धन की हानि नहीं होने देते. \b \q1 \v 39 जब उनकी संख्या घटने लगती है और पीछे, \q2 क्लेश और शोक के कारण उनका मनोबल घटता और दब जाता है, \q1 \v 40 परमेश्वर उन अधिकारियों पर निंदा-वृष्टि करते हैं, \q2 वे मार्ग रहित वन में भटकाने के लिए छोड़ दिए जाते हैं. \q1 \v 41 किंतु याहवेह दुःखी को पीड़ा से बचाकर \q2 उनके परिवारों को भेड़ों के झुंड समान वृद्धि करते हैं. \q1 \v 42 यह सब देख सीधे लोग उल्‍लसित होते हैं, \q2 और दुष्टों को चुप रह जाना पड़ता है. \b \q1 \v 43 जो कोई बुद्धिमान है, इन बातों का ध्यान रखे \q2 और याहवेह के करुणा-प्रेम पर विचार करता रहे. \c 108 \cl स्तोत्र 108 \d एक गीत. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 परमेश्वर, मेरा हृदय निश्चिंत है; \q2 मैं संपूर्ण हृदय से संगीत बनाऊंगा, और गाऊंगा. \q1 \v 2 नेबेल और किन्‍नोर जागो! \q2 मैं सुबह को जागृत करूंगा. \q1 \v 3 याहवेह, मैं लोगों के मध्य आपका आभार व्यक्त करूंगा; \q2 राष्ट्रों के मघ्य मैं आपका स्तवन करूंगा. \q1 \v 4 क्योंकि आपका करुणा-प्रेम आकाश से भी महान है; \q2 आपकी सच्चाई अंतरीक्ष तक जा पहुंचती है. \q1 \v 5 परमेश्वर, आप सर्वोच्च स्वर्ग में बसे हैं; \q2 आपकी महिमा समस्त पृथ्वी को तेजोमय करें. \b \q1 \v 6 अपने दायें हाथ से हमें छुड़ाकर हमें उत्तर दीजिए, \q2 कि आपके प्रिय पात्र छुड़ाए जा सकें. \q1 \v 7 परमेश्वर ने अपने पवित्र स्थान में घोषणा की है: \q2 “अपने विजय में मैं शेकेम को विभाजित करूंगा, \q2 तथा मैं सुक्कोथ घाटी को नाप कर बंटवारा कर दूंगा. \q1 \v 8 गिलआद पर मेरा अधिकार है, मनश्शेह पर मेरा अधिकार है; \q2 एफ्राईम मेरे सिर का रखवाला है, \q2 यहूदाह मेरा राजदंड है. \q1 \v 9 मोआब राष्ट्र मेरे हाथ धोने का पात्र है, \q2 और एदोम राष्ट्र पर मैं अपनी पादुका फेंकूंगा; \q2 फिलिस्तिया के ऊपर उच्च स्वर में जयघोष करूंगा.” \b \q1 \v 10 कौन ले जाएगा मुझे सुदृढ़-सुरक्षित नगर तक? \q2 कौन पहुंचाएगा मुझे एदोम नगर तक? \q1 \v 11 परमेश्वर, क्या आप ही नहीं, जिन्होंने हमें शोकित छोड़ दिया है \q2 और हमारी सेनाओं को साथ देना भी छोड़ दिया है? \q1 \v 12 शत्रु के विरुद्ध हमारी सहायता कीजिए, \q2 क्योंकि किसी भी मनुष्य द्वारा लायी गयी सहायता निरर्थक है. \q1 \v 13 परमेश्वर के साथ मिलकर हमारी विजय सुनिश्चित होती है, \q2 वही हमारे शत्रुओं को कुचल डालेगा. \c 109 \cl स्तोत्र 109 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 परमेश्वर, मेरे स्तुति पात्र, \q2 निष्क्रिय और चुप न रहिए. \q1 \v 2 दुष्ट और झूठे पुरुषों ने मेरी निंदा \q2 करना प्रारंभ कर दिया है; \q2 वे जो कुछ कहकर मेरी निंदा कर रहे हैं, वह सभी झूठ है. \q1 \v 3 उन्होंने मुझ पर घिनौने शब्दों की बौछार कर दी; \q2 अकारण ही उन्होंने मुझ पर आक्रमण कर दिया है. \q1 \v 4 उन्होंने मेरी मैत्री के बदले मुझ पर आरोप लगाये, \q2 किंतु मैं प्रार्थना का आदमी\f + \fr 109:4 \fr*\fq प्रार्थना का आदमी \fq*\ft अर्थात् \ft*\fqa निरंतर प्रार्थना करनेवाला व्यक्ति\fqa*\f* हूं! \q1 \v 5 उन्होंने मेरे हित का प्रतिफल बुराई में दिया है, \q2 तथा मेरी मैत्री का प्रतिफल घृणा में. \b \q1 \v 6 आप उसका प्रतिरोध करने के लिए किसी दुष्ट पुरुष को ही बसा लीजिए; \q2 उसके दायें पक्ष पर कोई विरोधी खड़ा हो जाए. \q1 \v 7 जब उस पर न्याय चलाया जाए तब वह दोषी पाया जाए, \q2 उसकी प्रार्थनाएं उसके लिए दंड-आज्ञा हो जाएं. \q1 \v 8 उसकी आयु कम हो जाए; \q2 उसके पद को कोई अन्य हड़प ले. \q1 \v 9 उसकी संतान पितृहीन हो जाए \q2 तथा उसकी पत्नी विधवा. \q1 \v 10 उसकी संतान भटकें और भीख मांगें; \q2 वे अपने उजड़े घर से दूर जाकर भोजन के लिए तरस जाएं. \q1 \v 11 महाजन उसका सर्वस्व हड़प लें; \q2 उसके परिश्रम की संपूर्ण निधि परदेशी लोग लूट लें. \q1 \v 12 उसे किसी की भी कृपा प्राप्‍त न हो \q2 और न कोई उसकी पितृहीन संतान पर करुणा प्रदर्शित करे. \q1 \v 13 उसका वंश ही मिट जाए, \q2 आगामी पीढ़ी की सूची से उनका नाम मिट जाए. \q1 \v 14 याहवेह के सामने उसके पूर्वजों का अपराध स्मरण दिलाया जाए; \q2 उसकी माता का पाप कभी क्षमा न किया जाए. \q1 \v 15 याहवेह के सामने उन सभी के पाप बने रहें, \q2 कि वह उन सबका नाम पृथ्वी पर से ही मिटा दें. \b \q1 \v 16 करुणाभाव उसके मन में कभी आया ही नहीं, \q2 वह खोज कर निर्धनों, \q2 दीनों तथा खेदितमनवालों की हत्या करता है. \q1 \v 17 शाप देना उसे अत्यंत प्रिय है, \q2 वही शाप उस पर आ पड़े. \q1 किसी की हितकामना करने में उसे कोई आनंद प्राप्‍त नहीं होता— \q2 उत्तम यही होगा कि हित उससे ही दूर-दूर बना रहे. \q1 \v 18 उसके लिए वस्त्र धारण करने जैसे ही हो गया शाप देना; \q2 जैसा जल शरीर का अंश होता है; वैसे ही हो गया शाप, \q2 हां, जैसे तेल हड्डियों का अंश हो जाता है! \q1 \v 19 शाप ही उसका वस्त्र बन जाए, \q2 कटिबंध समान, जो सदैव समेटे रहता है. \q1 \v 20 याहवेह की ओर से मेरे विरोधियों के लिए यही प्रतिफल हो, \q2 उनके लिए, जो मेरी निंदा करते रहते हैं. \b \q1 \v 21 किंतु आप, सर्वसत्ताधारी याहवेह, \q2 अपनी महिमा के अनुरूप मुझ पर कृपा कीजिए; \q2 अपने करुणा-प्रेम के कारण मेरा उद्धार कीजिए. \q1 \v 22 मैं दीन और दरिद्र हूं, \q2 और मेरा हृदय घायल है. \q1 \v 23 संध्याकालीन छाया-समान मेरा अस्तित्व समाप्‍ति पर है; \q2 मुझे ऐसे झाड़ दिया जाता है मानो मैं अरबेह टिड्डी हूं. \q1 \v 24 उपवास के कारण मेरे घुटने दुर्बल हो चुके हैं; \q2 मेरा शरीर क्षीण और कमजोर हो गया है. \q1 \v 25 मेरे विरोधियों के लिए मैं घृणास्पद हो चुका हूं; \q2 मुझे देखते ही वे सिर हिलाने लगते हैं. \b \q1 \v 26 याहवेह मेरे परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए; \q2 अपने करुणा-प्रेम के कारण मेरा उद्धार कीजिए. \q1 \v 27 उनको यह स्पष्ट हो जाए कि, वह आपके बाहुबल के कारण ही हो रहा है, \q2 यह कि याहवेह, यह सब आपने ही किया है. \q1 \v 28 वे शाप देते रहें, किंतु आप आशीर्वचन ही कहें; \q2 तब जब वे, आक्रमण करेंगे, उन्हें लज्जित होना पड़ेगा, \q2 यह आपके सेवक के लिए आनंद का विषय होगा. \q1 \v 29 मेरे विरोधियों को अनादर के वस्त्रों के समान धारण करनी होगी, \q2 वे अपनी ही लज्जा को कंबल जैसे लपेट लेंगे. \b \q1 \v 30 मेरे मुख की वाणी याहवेह के सम्मान में उच्चतम धन्यवाद होगी; \q2 विशाल जनसमूह के सामने मैं उनका स्तवन करूंगा, \q1 \v 31 क्योंकि याहवेह दुःखितों के निकट दायें पक्ष पर आ खड़े रहते हैं, \q2 कि वह उनके जीवन को उन सबसे सुरक्षा प्रदान करें, जिन्होंने उसके लिए मृत्यु दंड निर्धारित किया था. \c 110 \cl स्तोत्र 110 \d दावीद की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह मेरे प्रभु ने, राजा से कहा: \b \q1 “मेरे दायें पक्ष में विराजमान हो जाओ. \q2 तुम्हारे शत्रुओं को मैं \q2 तुम्हारे चरणों की चौकी बना रहा हूं.” \b \q1 \v 2 याहवेह ही ज़ियोन से आपके सामर्थ्यवान राजदंड का विस्तार करेंगे, \q2 “आपका शासन आपके शत्रुओं के मध्य बसा होगा!” \q1 \v 3 आपकी सेना आपकी लड़ाई के समय \q2 स्वेच्छा से आपका साथ देगी, \q1 सबेरे के गर्भ से जन्मी हुई ओस के समान \q2 पवित्रता से सुशोभित होकर \q2 आपके पास आएंगे आपके जवान. \b \q1 \v 4 यह याहवेह की शपथ है, \q2 जो अपने वक्तव्य से दूर नहीं होते: \q1 “तुम मेलखीज़ेदेक की शृंखला \q2 में सनातन पुरोहित हो.” \b \q1 \v 5 प्रभु आपके दायें पक्ष में तत्पर हैं; \q2 वह उदास होकर राजाओं को कुचल डालेंगे. \q1 \v 6 वह राष्ट्रों पर अपने न्याय का निर्णय घोषित करेंगे, \q2 मृतकों का ढेर लग जाएगा और संपूर्ण पृथ्वी के न्यायियों की हत्या कर दी जाएगी. \q1 \v 7 तब महाराज मार्ग के किनारे के झरने से जल का पान करेंगे, \q2 उनका सिर गर्व से ऊंचा होगा. \c 111 \cl स्तोत्र 111 \q1 \v 1 याहवेह का स्तवन हो. \b \q1 मैं संपूर्ण हृदय से याहवेह का स्तवन करूंगा, \q2 सीधे मनवालों की समिति और सभा में. \b \q1 \v 2 अति उदात्त हैं याहवेह के कृत्य; \q2 वे उनकी प्रसन्‍नता का कारण हैं, जो इनको मनन करते हैं. \q1 \v 3 महिमामय और भव्य हैं याहवेह के ये कृत्य, \q2 उनकी धार्मिकता सर्वदा है. \q1 \v 4 याहवेह ने अपने इन कृत्यों को अविस्मरणीय बना दिया है; \q2 वह उदार एवं कृपालु हैं. \q1 \v 5 अपने श्रद्धालुओं के लिए वह आहार का प्रबंध करते हैं; \q2 वह अपनी वाचा सदा-सर्वदा स्मरण रखते हैं. \b \q1 \v 6 उन्होंने अपनी प्रजा पर इन कृत्यों की सामर्थ्य प्रकट कर दी, \q2 जब उन्होंने उन्हें अन्य राष्ट्रों की भूमि प्रदान की. \q1 \v 7 उनके द्वारा निष्पन्‍न समस्त कार्य विश्वासयोग्य और न्याय के हैं; \q2 विश्वासयोग्य हैं उनके सभी उपदेश. \q1 \v 8 वे सदा-सर्वदा के लिए अटल हैं, \q2 कि इनका पालन सच्चाई एवं न्याय में किया जाए. \q1 \v 9 याहवेह ने अपनी प्रजा का उद्धार किया; \q2 उन्होंने अपनी वाचा सदा-सर्वदा के लिए स्थापित कर दी है. \q2 उनका नाम सबसे अलग तथा पवित्र और भय-योग्य है. \b \q1 \v 10 याहवेह के प्रति श्रद्धा बुद्धि का मूल है; \q2 उन सभी में, जो इसे मानते हैं, उत्तम समझ रहते है. \q2 याहवेह ही हैं सर्वदा वंदना के योग्य. \c 112 \cl स्तोत्र 112 \q1 \v 1 याहवेह का स्तवन हो. \b \q1 धन्य है वह पुरुष, जो याहवेह के प्रति श्रद्धा रखता है, \q2 जिसने उनके आदेशों के पालन में अधिक आनंद पाया है. \b \q1 \v 2 उसके वंशजों का तेज समस्त पृथ्वी पर होगा; \q2 सीधे पुरुष की हर एक पीढ़ी धन्य होगी. \q1 \v 3 उसके परिवार में संपत्ति और समृद्धि का वास है, \q2 सदा बनी रहती है उसकी सच्चाई और धार्मिकता \q1 \v 4 सीधे लोगों के लिए अंधकार में भी प्रकाश का उदय होता है, \q2 वह उदार, कृपालु और नीतियुक्त है. \q1 \v 5 उत्तम होगा उन लोगों का प्रतिफल, जो उदार है, जो उदारतापूर्वक ऋण देता है, \q2 जो अपने लेनदेन में सीधा है. \b \q1 \v 6 यह सुनिश्चित है, कि वह कभी पथभ्रष्ट न होगा; \q2 धर्मी अपने पीछे स्थायी नाम छोड़ जाता है. \q1 \v 7 उसे किसी बुराई के समाचार से भय नहीं होता; \q2 याहवेह पर भरोसा करते हुए उसका हृदय शांत और स्थिर बना रहता है. \q1 \v 8 उसका हृदय सुरक्षा में स्थापित है, तब उसे कोई भय नहीं होता; \q2 अंततः वही शत्रुओं पर जयन्त होकर दृष्टि करेगा. \q1 \v 9 उन्होंने कंगालों को उदारतापूर्वक दान दिया है, \q2 उनकी सच्चाई और धार्मिकता युगानुयुग बनी रहती है. \q2 उनकी महिमा सदैव ऊंची होती रहती है. \b \q1 \v 10 यह सब देखकर दुष्ट अत्यंत कुपित हो जाता है, \q2 वह दांत पीसता है और गल जाता है; \q2 दुष्ट की अभिलाषाएं अपूर्ण ही रह जाएंगी. \c 113 \cl स्तोत्र 113 \q1 \v 1 याहवेह का स्तवन हो. \b \q1 याहवेह के सेवको, स्तवन करो; \q2 याहवेह की महिमा का स्तवन करो. \q1 \v 2 आज से सदा-सर्वदा \q2 याहवेह के नाम का स्तवन होता रहे. \q1 \v 3 उपयुक्त है कि सूर्योदय से सूर्यास्त के क्षण तक, \q2 याहवेह के नाम का स्तवन हो. \b \q1 \v 4 याहवेह समस्त राष्ट्रों के ऊपर हैं, \q2 उनका तेज स्वर्ग से भी महान है. \q1 \v 5 और कौन है याहवेह हमारे परमेश्वर के तुल्य, \q2 जो सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान हैं, \q1 \v 6 जिन्हें स्वर्ग एवं पृथ्वी को देखने के लिए \q2 झुककर दृष्टिपात करना पड़ता है? \b \q1 \v 7 याहवेह ही कंगाल को धूलि से उठाकर बसाते हैं, \q2 वही दरिद्र को राख के ढेर से उठाकर ऊंचा करते हैं. \q1 \v 8 वही उन्हें प्रधानों के साथ लाकर, \q2 अपनी प्रजा के प्रधानों के साथ विराजमान करते हैं. \q1 \v 9 वही बांझ स्त्री को बच्चों की माता का आनंद प्रदान करके \q2 परिवार में सम्मान प्रदान करते हैं. \b \q1 याहवेह का स्तवन हो. \c 114 \cl स्तोत्र 114 \q1 \v 1 जब इस्राएली मिस्र देश से बाहर आए, \q2 जब याकोब के वंशज विदेशी भाषा-भाषी देश से बाहर आए, \q1 \v 2 तब यहूदिया उनका पवित्र स्थान \q2 और इस्राएल प्रदेश उनका शासित राष्ट्र हो गया. \b \q1 \v 3 यह देख समुद्र पलायन कर गया, \q2 और यरदन नदी विपरीत दिशा में प्रवाहित होने लगी; \q1 \v 4 पर्वत मेढ़ों के तथा पहाड़ियां मेमनों के समान, \q2 छलांग लगाने लगीं. \b \q1 \v 5 समुद्र, यह बताओ, तुमने पलायन क्यों किया? \q2 और यरदन, तुम्हें उलटा क्यों बहना पड़ा? \q1 \v 6 पर्वतो, तुम मेढ़ों के समान तथा पहाड़ियो, \q2 तुम मेमनों के समान छलांगें क्यों लगाने लगे? \b \q1 \v 7 पृथ्वी, तुम याहवेह की उपस्थिति में थरथराओ, \q2 याकोब के परमेश्वर की उपस्थिति में, \q1 \v 8 जिन्होंने चट्टान को ताल में बदल दिया, \q2 और उस कठोर पत्थर को जल के सोते में. \c 115 \cl स्तोत्र 115 \q1 \v 1 हमारी नहीं, याहवेह, हमारी नहीं, \q2 परंतु आपकी ही महिमा हो, \q2 आपके करुणा-प्रेम\f + \fr 115:1 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द का अर्थ में \ft*\ft अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \ft*\ft ये शामिल हैं\ft*\f* और आपकी सच्चाई के निमित्त. \b \q1 \v 2 अन्य जनता यह क्यों कह रहे हैं, \q2 “कहां है उनका परमेश्वर?” \q1 \v 3 स्वर्ग में हैं हमारे परमेश्वर और वह वही सब करते हैं; \q2 जिसमें उनकी चाहत है. \q1 \v 4 किंतु इन राष्ट्रों की प्रतिमाएं मात्र स्वर्ण और चांदी हैं, \q2 मनुष्यों की हस्तकृति मात्र. \q1 \v 5 हां, उनका मुख अवश्य है, किंतु ये बोल नहीं सकतीं, \q2 उनकी आंखें अवश्य हैं, किंतु ये देख नहीं सकतीं. \q1 \v 6 उनके कान हैं, किंतु ये सुन नहीं सकतीं, \q2 नाक तो है, किंतु ये सूंघ नहीं सकती. \q1 \v 7 इनके हाथ हैं, किंतु ये स्पर्श नहीं कर सकतीं, \q2 पैर भी हैं, किंतु ये चल फिर नहीं सकतीं, \q2 न ही ये अपने कण्ठ से कोई स्वर ही उच्चार सकती हैं. \q1 \v 8 इनके समान ही हो जाएंगे इनके निर्माता, \q2 साथ ही वे सभी, जो इन पर भरोसा करते हैं. \b \q1 \v 9 इस्राएल के वंशजो, याहवेह पर भरोसा करो; \q2 वही हैं तुम्हारे सहायक तथा रक्षक. \q1 \v 10 अहरोन के वंशजो, याहवेह पर भरोसा करो; \q2 वही हैं तुम्हारे सहायक तथा रक्षक. \q1 \v 11 याहवेह के भय माननेवालो, याहवेह में भरोसा रखो, \q2 याहवेह सहारा देता है और अपने अनुयायियों की रक्षा करता है. \b \q1 \v 12 याहवेह को हमारा स्मरण रहता है, हम पर उनकी कृपादृष्टि रहेगी: \q2 याहवेह अपने लोग इस्राएल को आशीर्वाद देंगे, \q2 उनकी कृपादृष्टि अहरोन के वंश पर रहेगी. \q1 \v 13 उनकी कृपादृष्टि उन सभी पर रहेगी, जिनमें याहवेह के प्रति श्रद्धा है— \q2 चाहे वे साधारण हों अथवा विशिष्ट. \b \q1 \v 14 याहवेह तुम्हें ऊंचा करें, \q2 तुम्हें और तुम्हारी संतान को. \q1 \v 15 याहवेह की कृपादृष्टि तुम पर स्थिर रहे, \q2 जो स्वर्ग और पृथ्वी के रचनेवाले हैं. \b \q1 \v 16 सर्वोच्च स्वर्ग के स्वामी याहवेह हैं, \q2 किंतु पृथ्वी उन्होंने मनुष्य को सौंपी है. \q1 \v 17 वे मृतक नहीं हैं, जो याहवेह का स्तवन करते हैं, \q2 न ही जो चिर-निद्रा में समा जाते हैं; \q1 \v 18 किंतु जहां तक हमारा प्रश्न है, हम याहवेह का गुणगान करते रहेंगे, \q2 इस समय तथा सदा-सर्वदा. \b \q1 याहवेह का स्तवन हो. \c 116 \cl स्तोत्र 116 \q1 \v 1 मुझे याहवेह से प्रेम है, क्योंकि उन्होंने मेरी पुकार सुन ली; \q2 उन्होंने मेरी प्रार्थना सुन ली. \q1 \v 2 इसलिये कि उन्होंने मेरी पुकार सुन ली, \q2 मैं आजीवन उन्हें ही पुकारता रहूंगा. \b \q1 \v 3 मृत्यु के डोर मुझे कसे जा रहे थे, \q2 अधोलोक की वेदना से मैं भयभीत हो चुका था; \q2 भय और संकट में मैं पूर्णतः डूब चुका था. \q1 \v 4 इस स्थिति में मैंने याहवेह के नाम को पुकारा: \q2 “याहवेह, मेरा अनुरोध है, मुझे बचाइए!” \b \q1 \v 5 याहवेह उदार एवं धर्ममय हैं; \q2 हां, हमारे परमेश्वर करुणानिधान हैं. \q1 \v 6 याहवेह भोले लोगों की रक्षा करते हैं; \q2 मेरी विषम परिस्थिति में उन्होंने मेरा उद्धार किया. \b \q1 \v 7 ओ मेरे प्राण, लौट आ अपने विश्राम स्थान पर, \q2 क्योंकि याहवेह ने तुझ पर उपकार किया है. \b \q1 \v 8 याहवेह, आपने मेरे प्राण को मृत्यु से मुक्त किया है, \q2 मेरे आंखों को अश्रुओं से, \q2 तथा मेरे पांवों को लड़खड़ाने से सुरक्षित रखा है, \q1 \v 9 कि मैं जीवितों के लोक में \q2 याहवेह के साथ चल फिर सकूं. \b \q1 \v 10 उस स्थिति में भी, जब मैं यह कह रहा था, \q2 “असह्य है मेरी पीड़ा” विश्वास मुझमें बना था; \q1 \v 11 अपनी खलबली में मैंने यह कह दिया था, \q2 “सभी मनुष्य झूठ बोलनेवाले हैं.” \b \q1 \v 12 याहवेह के इन समस्त उपकारों का \q2 प्रतिफल मैं उन्हें कैसे दे सकूंगा? \b \q1 \v 13 मैं उद्धार का प्याला ऊंचा उठाऊंगा \q2 और याहवेह की महिमा का गुणगान करूंगा. \q1 \v 14 याहवेह की प्रजा के सामने \q2 मैं याहवेह से की गई अपनी प्रतिज्ञाएं पूर्ण करूंगा. \b \q1 \v 15 याहवेह की दृष्टि में \q2 उनके भक्तों की मृत्यु मूल्यवान होती है. \q1 \v 16 याहवेह, निःसंदेह, मैं आपका सेवक हूं; \q2 आपका सेवक, आपकी सेविका का पुत्र. \q2 आपने मुझे मेरे बंधनों से छुड़ा दिया है. \b \q1 \v 17 मैं आपको आभार-बलि अर्पित करूंगा, \q2 मैं याहवेह की वंदना करूंगा. \q1 \v 18 मैं याहवेह से की गई अपनी प्रतिज्ञाएं \q2 उनकी संपूर्ण प्रजा के सामने पूर्ण करूंगा. \q1 \v 19 येरूशलेम, तुम्हारे मध्य, \q2 याहवेह के भवन के आंगनों में पूर्ण करूंगा. \b \q1 याहवेह का स्तवन हो. \c 117 \cl स्तोत्र 117 \q1 \v 1 समस्त राष्ट्रो, याहवेह का स्तवन करो; \q2 सभी उनका गुणगान करें. \q1 \v 2 इसलिये कि हमारे प्रति उनका करुणा-प्रेम अप्रतिम है, \q2 तथा उनकी सच्चाई सर्वदा है. \b \q1 याहवेह का स्तवन हो. \c 118 \cl स्तोत्र 118 \q1 \v 1 याहवेह का धन्यवाद करो, \q2 क्योंकि वे भले हैं, सनातन है उनकी करुणा. \b \q1 \v 2 इस्राएल यह नारा लगाए: \q2 “सनातन है उनकी करुणा.” \q1 \v 3 अहरोन के परिवार का यह नारा हो: \q2 “सनातन है उनकी करुणा” \q1 \v 4 याहवेह के समस्त श्रद्धालुओं का यह नारा हो: \q2 “सनातन है उनकी करुणा.” \b \q1 \v 5 अपने संकट की स्थिति में मैंने याहवेह को पुकारा; \q2 और प्रत्युत्तर में वे मुझे एक विशाल स्थान पर ले आये\f + \fr 118:5 \fr*\ft अर्थात् मुझे उद्धार किया.\ft*\f*. \q1 \v 6 मुझे कोई भय न होगा, क्योंकि याहवेह मेरे साथ हैं. \q2 मनुष्य मेरा क्या बिगाड़ सकता है? \q1 \v 7 मेरे साथ याहवेह हैं; वह मेरे सहायक हैं. \q2 मैं स्वयं अपने शत्रुओं का पराजय देखूंगा. \b \q1 \v 8 मनुष्य पर भरोसा करने की अपेक्षा \q2 याहवेह का आश्रय लेना उत्तम है. \q1 \v 9 न्यायियों पर भरोसा करने की अपेक्षा से \q2 याहवेह का आश्रय लेना उत्तम है. \q1 \v 10 सब राष्ट्रों ने मुझे घेर लिया था, \q2 किंतु याहवेह के नाम में मैंने उन्हें नाश कर दिया. \q1 \v 11 मैं चारों ओर से घिर चुका था, \q2 किंतु याहवेह के नाम में मैंने उन्हें नाश कर दिया. \q1 \v 12 उन्होंने मुझे उसी प्रकार घेर लिया था, जिस प्रकार मधुमक्खियां किसी को घेर लेती हैं, \q2 किंतु मेरे सब शत्रु वैसे ही शीघ्र नाश हो गए जैसे अग्नि में जलती कंटीली झाड़ी; \q2 याहवेह के नाम में मैंने उन्हें नाश कर दिया. \q1 \v 13 इस सीमा तक मेरा पीछा किया गया, कि मैं टूटने पर ही था, \q2 किंतु याहवेह ने आकर मेरी सहायता की. \q1 \v 14 मेरा बल और मेरा गीत याहवेह हैं; \q2 वे मेरा उद्धार बन गए हैं. \b \q1 \v 15 धर्मियों के मंडप से \q2 ये उल्‍लासपूर्ण जयघोष प्रतिध्वनित हो रही हैं: \q1 “याहवेह के दायें हाथ ने महाकार्य किए हैं! \q2 \v 16 याहवेह का दायां हाथ ऊंचा उठा हुआ है; \q2 याहवेह के दायें हाथ ने महाकार्य किए हैं!” \q1 \v 17 मैं जीवित रहूंगा, मेरी मृत्यु नहीं होगी, \q2 और मैं याहवेह के महाकार्य की उद्घोषणा करता रहूंगा. \q1 \v 18 कठोर थी मुझ पर याहवेह की प्रताड़ना, \q2 किंतु उन्होंने मुझे मृत्यु के हाथों में नहीं सौंप दिया. \q1 \v 19 मेरे लिए धार्मिकता के द्वार खोल दिए जाएं; \q2 कि मैं उनमें से प्रवेश करके याहवेह को आभार भेंट अर्पित कर सकूं. \q1 \v 20 यह याहवेह का प्रवेश द्वार है, \q2 जिसमें से धर्मी ही प्रवेश करेंगे. \q1 \v 21 याहवेह, मैं आपको आभार भेंट अर्पित करूंगा; \q2 क्योंकि आपने मेरी प्रार्थना सुन ली; आप मेरे उद्धारक हो गए हैं. \b \q1 \v 22 भवन निर्माताओं द्वारा \q2 अयोग्य घोषित शिला ही आधारशिला बन गई है; \q1 \v 23 यह कार्य याहवेह का है, \q2 हमारी दृष्टि में अद्भुत. \q1 \v 24 यह याहवेह द्वारा बनाया गया दिन है; \q2 आओ, हम आनंद में उल्‍लसित हों. \b \q1 \v 25 याहवेह, हमारी रक्षा कीजिए! \q2 याहवेह, हमें समृद्धि दीजिए! \b \q1 \v 26 स्तुत्य हैं वह, जो याहवेह के नाम में आ रहे हैं. \q2 हम याहवेह के आवास से आपका अभिनंदन करते हैं. \q1 \v 27 याहवेह ही परमेश्वर हैं, \q2 उन्होंने हम पर अपनी रोशनी डाली है. \q1 उत्सव के बलि पशु को \q2 वेदी के सींगों से बांध दो. \b \q1 \v 28 आप ही मेरे परमेश्वर हैं, मैं आपके प्रति आभार व्यक्त करूंगा; \q2 आप ही मेरे परमेश्वर हैं, मैं आपका गुणगान करूंगा. \b \q1 \v 29 याहवेह का धन्यवाद करो, \q2 क्योंकि वे भले हैं, सनातन है उनकी करुणा. \c 119 \cl स्तोत्र 119\f + \fr 119:0 \fr*\ft यह एक अक्षरबद्ध कविता है जिसकी पंक्तियां हिब्री वर्णमाला के क्रमिक अक्षरों से आरंभ होती हैं\ft*\f* \qa א आलेफ़ \q1 \v 1 कैसे धन्य हैं वे, जिनका आचार-व्यवहार निर्दोष है, \q2 जिनका आचरण याहवेह की शिक्षाओं के अनुरूप है. \q1 \v 2 कैसे धन्य हैं वे, जो उनके अधिनियमों का पालन करते हैं \q2 तथा जो पूर्ण मन से उनके खोजी हैं. \q1 \v 3 वे याहवेह के मार्गों में चलते हैं, \q2 और उनसे कोई अन्याय नहीं होता. \q1 \v 4 आपने ये आदेश इसलिये दिए हैं, \q2 कि हम इनका पूरी तरह पालन करें. \q1 \v 5 मेरी कामना है कि आपके आदेशों का पालन करने में \q2 मेरा आचरण दृढ़ रहे! \q1 \v 6 मैं आपके आदेशों पर विचार करता रहूंगा, \q2 तब मुझे कभी लज्जित होना न पड़ेगा. \q1 \v 7 जब मैं आपकी धर्ममय व्यवस्था का मनन करूंगा, \q2 तब मैं निष्कपट हृदय से आपका स्तवन करूंगा. \q1 \v 8 मैं आपकी विधियों का पालन करूंगा; \q2 आप मेरा परित्याग कभी न कीजिए. \qa ב बैथ \q1 \v 9 युवा अपना आचरण कैसे स्वच्छ रखे? \q2 आपके वचन पालन के द्वारा. \q1 \v 10 मैं आपको संपूर्ण हृदय से खोजता हूं; \q2 आप मुझे अपने आदेशों से भटकने न दीजिए. \q1 \v 11 आपके वचन को मैंने अपने हृदय में इसलिये रख छोड़ा है, \q2 कि मैं आपके विरुद्ध पाप न कर बैठूं. \q1 \v 12 याहवेह, आपका स्तवन हो; \q2 मुझे अपनी विधियों की शिक्षा दीजिए. \q1 \v 13 जो व्यवस्था आपके मुख द्वारा निकली हैं, \q2 मैं उन्हें अपने मुख से दोहराता रहता हूं. \q1 \v 14 आपके अधिनियमों का पालन करना मेरा आनंद है, \q2 ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कोई विशाल धनराशि पर आनंदित होता है. \q1 \v 15 आपके नीति-सिद्धांत मेरे चिंतन का विषय हैं, \q2 मैं आपकी सम्विधियों की विवेचना करता रहता हूं. \q1 \v 16 आपकी विधियां मुझे मगन कर देती हैं, \q2 आपके वचनों को मैं कभी न भूलूंगा. \qa ג गिमेल \q1 \v 17 अपने सेवक पर उपकार कीजिए कि मैं जीवित रह सकूं, \q2 मैं आपके वचन का पालन करूंगा. \q1 \v 18 मुझे आपकी व्यवस्था की गहन और अद्भुत बातों को \q2 ग्रहण करने की दृष्टि प्रदान कीजिए. \q1 \v 19 पृथ्वी पर मैं प्रवासी मात्र हूं; \q2 मुझसे अपने निर्देश न छिपाइए. \q1 \v 20 सारा समय आपकी व्यवस्था की \q2 अभिलाषा करते-करते मेरे प्राण डूब चले हैं. \q1 \v 21 आपकी प्रताड़ना उन पर पड़ती है, जो अभिमानी हैं, शापित हैं, \q2 और जो आपके आदेशों का परित्याग कर भटकते रहते हैं. \q1 \v 22 मुझ पर लगे घृणा और तिरस्कार के कलंक को मिटा दीजिए, \q2 क्योंकि मैं आपके अधिनियमों का पालन करता हूं. \q1 \v 23 यद्यपि प्रशासक साथ बैठकर मेरी निंदा करते हैं, \q2 आपका यह सेवक आपकी विधियों पर मनन करेगा. \q1 \v 24 आपके अधिनियमों में मगन है मेरा आनंद; \q2 वे ही मेरे सलाहकार हैं. \qa ד दालेथ \q1 \v 25 मेरा प्राण नीचे धूलि में जा पड़ा है; \q2 अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए. \q1 \v 26 जब मैंने आपके सामने अपने आचरण का वर्णन किया, आपने मुझे उत्तर दिया; \q2 याहवेह, अब मुझे अपनी विधियां सिखा दीजिए. \q1 \v 27 मुझे अपने उपदेशों की प्रणाली की समझ प्रदान कीजिए, \q2 कि मैं आपके अद्भुत कार्यों पर मनन कर सकूं. \q1 \v 28 शोक अतिरेक में मेरा प्राण डूबा जा रहा है; \q2 अपने वचन से मुझमें बल दीजिए. \q1 \v 29 झूठे मार्ग से मुझे दूर रखिए; \q2 और अपनी कृपा में मुझे अपनी व्यवस्था की शिक्षा दीजिए. \q1 \v 30 मैंने सच्चाई के मार्ग को अपनाया है; \q2 मैंने आपके नियमों को अपना आदर्श बनाया है. \q1 \v 31 याहवेह, मैंने आपके नियमों को दृढतापूर्वक थाम रखा है; \q2 मुझे लज्जित न होने दीजिए. \q1 \v 32 आपने मेरे हृदय में साहस का संचार किया है, \q2 तब मैं अब आपके आदेशों के पथ पर दौड़ रहा हूं. \qa ה हे \q1 \v 33 याहवेह, मुझे आपकी विधियों का आचरण करने की शिक्षा दीजिए, \q2 कि मैं आजीवन उनका पालन करता रहूं. \q1 \v 34 मुझे वह समझ प्रदान कीजिए, कि मैं आपकी व्यवस्था का पालन कर सकूं \q2 और संपूर्ण हृदय से इसमें मगन आज्ञाओं का पालन कर सकूं. \q1 \v 35 अपने आदेशों के मार्ग में मेरा संचालन कीजिए, \q2 क्योंकि इन्हीं में मेरा आनंद है. \q1 \v 36 मेरे हृदय को स्वार्थी लाभ की ओर नहीं, \q2 परंतु अपने नियमों की ओर फेर दीजिए. \q1 \v 37 अपने वचन के द्वारा मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए; \q2 मेरी रुचि निरर्थक वस्तुओं से हटा दीजिए. \q1 \v 38 अपने सेवक से की गई प्रतिज्ञा पूर्ण कीजिए, \q2 कि आपके प्रति मेरी श्रद्धा स्थायी रहे. \q1 \v 39 उस लज्जा को मुझसे दूर रखिए, जिसकी मुझे आशंका है, \q2 क्योंकि आपके नियम उत्तम हैं. \q1 \v 40 कैसी तीव्र है आपके उपदेशों के प्रति मेरी अभिलाषा! \q2 अपनी धार्मिकता के द्वारा मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए. \qa ו वाव \q1 \v 41 याहवेह, आपका करुणा-प्रेम\f + \fr 119:41 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द का अर्थ में \ft*\ft अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \ft*\ft ये शामिल हैं\ft*\f* मुझ पर प्रगट हो जाए, \q2 और आपकी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझे आपका उद्धार प्राप्‍त हो; \q1 \v 42 कि मैं उसे उत्तर दे सकूं, जो मेरा अपमान करता है, \q2 आपके वचन पर मेरा भरोसा है. \q1 \v 43 सत्य के वचन मेरे मुख से न छीनिए, \q2 मैं आपकी व्यवस्था पर आशा रखता हूं. \q1 \v 44 मैं सदा-सर्वदा निरंतर, \q2 आपकी व्यवस्था का पालन करता रहूंगा. \q1 \v 45 मेरा जीवन स्वतंत्र हो जाएगा, \q2 क्योंकि मैं आपके उपदेशों का खोजी हूं. \q1 \v 46 राजाओं के सामने मैं आपके अधिनियमों पर व्याख्यान दूंगा \q2 और मुझे लज्जित नहीं होना पड़ेगा. \q1 \v 47 क्योंकि आपका आदेश मेरे आनंद का उगम हैं, \q2 और वे मुझे प्रिय हैं. \q1 \v 48 मैं आपके आदेशों की ओर हाथ बढ़ाऊंगा, जो मुझे प्रिय हैं, \q2 और आपकी विधियां मेरे मनन का विषय हैं. \qa ז ज़ईन \q1 \v 49 याहवेह, अपने सेवक से की गई प्रतिज्ञा को स्मरण कीजिए, \q2 क्योंकि आपने मुझमें आशा का संचार किया है. \q1 \v 50 मेरी पीड़ा में मुझे इस बातों से सांत्वना प्राप्‍त होती है: \q2 आपकी प्रतिज्ञाएं मेरे नवजीवन का स्रोत हैं. \q1 \v 51 अहंकारी बेधड़क मेरा उपहास करते हैं, \q2 किंतु मैं आपकी व्यवस्था से दूर नहीं होता. \q1 \v 52 याहवेह, जब प्राचीन काल से प्रगट आपकी व्यवस्था पर मैं विचार करता हूं, \q2 तब मुझे उनमें सांत्वना प्राप्‍त होती है. \q1 \v 53 दुष्ट मुझमें कोप उकसाते हैं, ये वे हैं, \q2 जिन्होंने आपकी व्यवस्था त्याग दी है. \q1 \v 54 आपकी विधियां मेरे गीत की विषय-वस्तु हैं \q2 चाहे मैं किसी भी स्थिति में रहूं. \q1 \v 55 याहवेह, मैं आपकी व्यवस्था का पालन करता हूं, \q2 रात्रि में मैं आपका स्मरण करता हूं. \q1 \v 56 आपके उपदेशों का पालन करते \q2 जाना ही मेरी चर्या है. \qa ח ख़ेथ \q1 \v 57 याहवेह, आप मेरे जीवन का अंश बन गए हैं; \q2 आपके आदेशों के पालन के लिए मैंने शपथ की है. \q1 \v 58 सारे मन से मैंने आपसे आग्रह किया है; \q2 अपनी ही प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझ पर कृपा कीजिए. \q1 \v 59 मैंने अपनी जीवनशैली का विचार किया है \q2 और मैंने आपके अधिनियमों के पालन की दिशा में अपने कदम बढ़ा दिए हैं. \q1 \v 60 अब मैं विलंब न करूंगा \q2 और शीघ्रता से आपके आदेशों को मानना प्रारंभ कर दूंगा. \q1 \v 61 मैं आपकी व्यवस्था से दूर न होऊंगा, \q2 यद्यपि दुर्जनों ने मुझे रस्सियों से बांध भी रखा हो. \q1 \v 62 आपकी युक्ति संगत व्यवस्था के प्रति आभार अभिव्यक्त करने के लिए, \q2 मैं मध्य रात्रि को ही जाग जाता हूं. \q1 \v 63 मेरी मैत्री उन सभी से है, जिनमें आपके प्रति श्रद्धा है, \q2 उन सभी से, जो आपके उपदेशों पर चलते हैं. \q1 \v 64 याहवेह, पृथ्वी आपके करुणा-प्रेम से तृप्‍त है; \q2 मुझे अपनी विधियों की शिक्षा दीजिए. \qa ט टेथ \q1 \v 65 याहवेह, अपनी ही प्रतिज्ञा के अनुरूप \q2 अपने सेवक का कल्याण कीजिए. \q1 \v 66 मुझे ज्ञान और धर्ममय परख सीखाइए, \q2 क्योंकि मैं आपकी आज्ञाओं पर भरोसा करता हूं. \q1 \v 67 अपनी पीड़ाओं में रहने के पूर्व मैं भटक गया था, \q2 किंतु अब मैं आपके वचन के प्रति आज्ञाकारी हूं. \q1 \v 68 आप धन्य हैं, और जो कुछ आप करते हैं भला ही होता है; \q2 मुझे अपनी विधियों की शिक्षा दीजिए. \q1 \v 69 यद्यपि अहंकारियों ने मुझे झूठी बातों से कलंकित कर दिया है, \q2 मैं पूर्ण सच्चाई में आपके आदेशों को थामे हुए हूं. \q1 \v 70 उनके हृदय कठोर तथा संवेदनहीन हो चुके हैं, \q2 किंतु आपकी व्यवस्था ही मेरा आनंद है. \q1 \v 71 यह मेरे लिए भला ही रहा कि मैं प्रताड़ित किया गया, \q2 इससे मैं आपकी विधियों से सीख सकूं. \q1 \v 72 आपके मुख से निकली व्यवस्था मेरे लिए \q2 स्वर्ण और चांदी की हजारों मुद्राओं से कहीं अधिक मूल्यवान हैं. \qa י योध \q1 \v 73 आपके हाथों ने मेरा निर्माण किया और मुझे आकार दिया; \q2 मुझे अपने आदेशों को समझने की सद्बुद्धि प्रदान कीजिए. \q1 \v 74 मुझे देख आपके भक्त उल्‍लसित हो सकें, \q2 क्योंकि आपका वचन ही मेरी आशा है. \q1 \v 75 याहवेह, यह मैं जानता हूं कि आपकी व्यवस्था धर्ममय है, \q2 और आपके द्वारा मेरा क्लेश न्याय संगत था. \q1 \v 76 अब अपने सेवक से की गई प्रतिज्ञा के अनुरूप, \q2 आपका करुणा-प्रेम ही मेरी शांति है! \q1 \v 77 आपकी व्यवस्था में मेरा आनन्दमग्न है, \q2 तब मुझे आपकी मनोहरता में जीवन प्राप्‍त हो. \q1 \v 78 अहंकारियों को लज्जित होना पड़े क्योंकि उन्होंने अकारण ही मुझसे छल किया है; \q2 किंतु मैं आपके उपदेशों पर मनन करता रहूंगा. \q1 \v 79 आपके श्रद्धालु, जिन्होंने आपके अधिनियमों को समझ लिया है, \q2 पुनः मेरे पक्ष में हो जाएं, \q1 \v 80 मेरा हृदय पूर्ण सिद्धता में आपकी विधियों का पालन करता रहे, \q2 कि मुझे लज्जित न होना पड़े. \qa כ काफ़ \q1 \v 81 आपके उद्धार की तीव्र अभिलाषा करते हुए मेरा प्राण बेचैन हुआ जा रहा है, \q2 अब आपका वचन ही मेरी आशा का आधार है. \q1 \v 82 आपकी प्रतिज्ञा-पूर्ति की प्रतीक्षा में मेरी आंखें थक चुकी हैं; \q2 मैं पूछ रहा हूं, “कब मुझे आपकी ओर से सांत्वना प्राप्‍त होगी?” \q1 \v 83 यद्यपि मैं धुएं में संकुचित द्राक्षारस की कुप्पी के समान हो गया हूं, \q2 फिर भी आपकी विधियां मेरे मन से लुप्‍त नहीं हुई हैं. \q1 \v 84 और कितनी प्रतीक्षा करनी होगी आपके सेवक को? \q2 आप कब मेरे सतानेवालों को दंड देंगे? \q1 \v 85 अहंकारियों ने मेरे लिए गड्ढे खोद रखे हैं, \q2 उनका आचरण आपकी व्यवस्था के विपरीत है. \q1 \v 86 विश्वासयोग्य हैं आपके आदेश; \q2 मेरी सहायता कीजिए, झूठ बोलनेवाले मुझे दुःखित कर रहे हैं. \q1 \v 87 उन्होंने मुझे धरती पर से लगभग मिटा ही डाला था, \q2 फिर भी मैं आपके नीति सूत्रों से दूर न हुआ. \q1 \v 88 मैं आपके मुख से बोले हुए नियमों का पालन करता रहूंगा, \q2 अपने करुणा-प्रेम के अनुरूप मेरे जीवन की रक्षा कीजिए. \qa ל लामेध \q1 \v 89 याहवेह, सर्वदा है आपका वचन; \q2 यह स्वर्ग में दृढतापूर्वक बसा है. \q1 \v 90 पीढ़ी से पीढ़ी आपकी सच्चाई बनी रहती है; \q2 आपके द्वारा ही पृथ्वी की स्थापना की गई और यह स्थायी बनी हुई है. \q1 \v 91 आप के नियम सभी आज तक अस्तित्व में हैं, \q2 और सभी कुछ आपकी सेवा कर रहे हैं. \q1 \v 92 यदि आपकी व्यवस्था में मैं उल्लास मगन न होता, \q2 तो इन पीड़ाओं को सहते सहते मेरी मृत्यु हो जाती. \q1 \v 93 आपके उपदेश मेरे मन से कभी नष्ट न होंगे, \q2 क्योंकि इन्हीं के द्वारा आपने मुझे जीवन प्रदान किया है, \q1 \v 94 तब मुझ पर आपका ही स्वामित्व है, मेरी रक्षा कीजिए; \q2 मैं आपके ही उपदेशों का खोजी हूं. \q1 \v 95 दुष्ट मुझे नष्ट करने के उद्देश्य से घात लगाए बैठे हैं, \q2 किंतु आपकी चेतावनियों पर मैं विचार करता रहूंगा. \q1 \v 96 हर एक सिद्धता में मैंने कोई न कोई सीमा ही पाई है, \q2 किंतु आपके आदेश असीमित हैं. \qa מ मेम \q1 \v 97 आह, कितनी अधिक प्रिय है मुझे आपकी व्यवस्था! \q2 इतना, कि मैं दिन भर इसी पर विचार करता रहता हूं. \q1 \v 98 आपके आदेशों ने तो मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान बना दिया है \q2 क्योंकि ये कभी मुझसे दूर नहीं होते. \q1 \v 99 मुझमें तो अपने सभी शिक्षकों से अधिक समझ है, \q2 क्योंकि आपके उपदेश मेरे चिंतन का विषय हैं. \q1 \v 100 आपके उपदेशों का पालन करने का ही परिणाम यह है, \q2 कि मुझमें बुजुर्गों से अधिक समझ है. \q1 \v 101 आपकी आज्ञा का पालन करने के लक्ष्य से, \q2 मैंने अपने कदम हर एक अधर्म के पथ पर चलने से बचा रखे हैं. \q1 \v 102 आप ही के द्वारा दी गई शिक्षा के कारण, \q2 मैं आपके नियम तोड़ने से बच सका हूं. \q1 \v 103 कैसा मधुर है आपकी प्रतिज्ञाओं का आस्वादन करना, \q2 आपकी प्रतिज्ञाएं मेरे मुख में मधु से भी अधिक मीठी हैं! \q1 \v 104 हर एक झूठा मार्ग मेरी दृष्टि में घृणास्पद है; \q2 क्योंकि आपके उपदेशों से मुझे समझदारी प्राप्‍त होती है. \qa נ नून \q1 \v 105 आपका वचन मेरे पांवों के लिए दीपक, \q2 और मेरे मार्ग के लिए प्रकाश है. \q1 \v 106 मैंने यह शपथ ली है और यह सुनिश्चित किया है, \q2 कि मैं आपके धर्ममय नियमों का ही पालन करता जाऊंगा. \q1 \v 107 याहवेह, मेरी पीड़ा असह्य है; \q2 अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए. \q1 \v 108 याहवेह, मेरे मुख से निकले स्वैच्छिक स्तवन वचनों को स्वीकार कीजिए, \q2 और मुझे अपने नियमों की शिक्षा दीजिए. \q1 \v 109 आपकी व्यवस्था से मैं कभी दूर न होऊंगा, \q2 यद्यपि मैं लगातार अपने जीवन को हथेली पर लिए फिरता हूं. \q1 \v 110 दुष्टों ने मेरे लिए जाल बिछाया हुआ है, \q2 किंतु मैं आपके उपदेशों से नहीं भटका. \q1 \v 111 आपके नियमों को मैंने सदा-सर्वदा के लिए निज भाग में प्राप्‍त कर लिया है; \q2 वे ही मेरे हृदय का आनंद हैं. \q1 \v 112 आपकी विधियों का अंत तक \q2 पालन करने के लिए मेरा हृदय तैयार है. \qa ס सामेख \q1 \v 113 दुविधा से ग्रस्त मन का पुरुष मेरे लिए घृणास्पद है, \q2 मुझे प्रिय है आपकी व्यवस्था. \q1 \v 114 आप मेरे आश्रय हैं, मेरी ढाल हैं; \q2 मेरी आशा का आधार है आपका वचन. \q1 \v 115 अधर्मियो, दूर रहो मुझसे, \q2 कि मैं परमेश्वर के आदेशों का पालन कर सकूं! \q1 \v 116 याहवेह, अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझे सम्भालिए, कि मैं जीवित रहूं; \q2 मेरी आशा भंग न होने पाए. \q1 \v 117 मुझे थाम लीजिए कि मैं सुरक्षित रहूं; \q2 मैं सदैव आपकी विधियों पर भरोसा करता रहूंगा. \q1 \v 118 वे सभी, जो आपके नियमों से भटक जाते हैं, आपकी उपेक्षा के पात्र हो जाते हैं, \q2 क्योंकि निरर्थक होती है उनकी चालाकी. \q1 \v 119 संसार के सभी दुष्टों को आप मैल के समान फेंक देते हैं; \q2 यही कारण है कि मुझे आपकी चेतावनियां प्रिय हैं. \q1 \v 120 आपके भय से मेरी देह कांप जाती है; \q2 आपके निर्णयों का विचार मुझमें भय का संचार कर देता है. \qa ע अयिन \q1 \v 121 मैंने वही किया है, जो न्याय संगत तथा धर्ममय है; \q2 मुझे सतानेवालों के सामने न छोड़ दीजिएगा. \q1 \v 122 अपने सेवक का हित निश्चित कर दीजिए; \q2 अहंकारियों को मुझ पर अत्याचार न करने दीजिए. \q1 \v 123 आपके उद्धार की प्रतीक्षा में, \q2 आपकी निष्ठ प्रतिज्ञाओं की प्रतीक्षा में मेरी आंखें थक चुकी हैं. \q1 \v 124 अपने करुणा-प्रेम के अनुरूप अपने सेवक से व्यवहार कीजिए \q2 और मुझे अपने अधिनियमों की शिक्षा दीजिए. \q1 \v 125 मैं आपका सेवक हूं, मुझे समझ प्रदान कीजिए, \q2 कि मैं आपकी विधियों को समझ सकूं. \q1 \v 126 याहवेह, आपके नियम तोड़े जा रहे हैं; \q2 समय आ गया है कि आप अपना कार्य करें. \q1 \v 127 इसलिये कि मुझे आपके आदेश स्वर्ण से अधिक प्रिय हैं, \q2 शुद्ध कुन्दन से अधिक, \q1 \v 128 मैं आपके उपदेशों को धर्ममय मानता हूं, \q2 तब मुझे हर एक गलत मार्ग से घृणा है. \qa פ पे \q1 \v 129 अद्भुत हैं आपके अधिनियम; \q2 इसलिये मैं उनका पालन करता हूं. \q1 \v 130 आपके वचन के खुलने से ज्योति उत्पन्‍न होती है; \q2 परिणामस्वरूप भोले पुरुषों को सबुद्धि प्राप्‍त होती है. \q1 \v 131 मेरा मुख खुला है और मैं हांफ रहा हूं, \q2 क्योंकि मुझे प्यास है आपके आदेशों की. \q1 \v 132 मेरी ओर ध्यान दीजिए और मुझ पर कृपा कीजिए, \q2 जैसी आपकी नीति उनके प्रति है, जिन्हें आपसे प्रेम है. \q1 \v 133 अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मेरे पांव को स्थिर कर दीजिए; \q2 कोई भी दुष्टता मुझ पर प्रभुता न करने पाए. \q1 \v 134 मुझे मनुष्यों के अत्याचार से छुड़ा लीजिए, \q2 कि मैं आपके उपदेशों का पालन कर सकूं. \q1 \v 135 अपने सेवक पर अपना मुख प्रकाशित कीजिए \q2 और मुझे अपने नियमों की शिक्षा दीजिए. \q1 \v 136 मेरी आंखों से अश्रुप्रवाह हो रहा है, \q2 क्योंकि लोग आपकी व्यवस्था का पालन नहीं कर रहे. \qa צ त्सादे \q1 \v 137 याहवेह, आप धर्मी हैं, \q2 सच्चे हैं आपके नियम. \q1 \v 138 जो अधिनियम आपने प्रगट किए हैं, वे धर्ममय हैं; \q2 वे हर एक दृष्टिकोण से विश्वासयोग्य हैं. \q1 \v 139 मैं भस्म हो रहा हूं, \q2 क्योंकि मेरे शत्रु आपके वचनों को भूल गए हैं. \q1 \v 140 आपकी प्रतिज्ञाओं का उचित परीक्षण किया जा चुका है, \q2 वे आपके सेवक को अत्यंत प्रिय हैं. \q1 \v 141 यद्यपि मैं छोटा, यहां तक कि लोगों की दृष्टि में घृणास्पद हूं, \q2 फिर भी मैं आपके अधिनियमों को नहीं भूलता. \q1 \v 142 अनंत है आपकी धार्मिकता, परमेश्वर \q2 तथा यथार्थ है आपकी व्यवस्था. \q1 \v 143 क्लेश और संकट मुझ पर टूट पड़े हैं, \q2 किंतु आपके आदेश मुझे मगन रखे हुए हैं. \q1 \v 144 आपके अधिनियम सदा-सर्वदा धर्ममय ही प्रमाणित हुए हैं; \q2 मुझे इनके विषय में ऐसी समझ प्रदान कीजिए कि मैं जीवित रह सकूं. \qa ק क़ौफ़ \q1 \v 145 याहवेह, मैं संपूर्ण हृदय से आपको पुकार रहा हूं, \q2 मुझे उत्तर दीजिए, कि मैं आपकी विधियों का पालन कर सकूं. \q1 \v 146 मैं आपको पुकार रहा हूं; मेरी रक्षा कीजिए, \q2 कि मैं आपके अधिनियमों का पालन कर सकूं. \q1 \v 147 मैं सूर्योदय से पूर्व ही जाग कर सहायता के लिये पुकारता हूं; \q2 मेरी आशा आपके वचन पर आधारित है. \q1 \v 148 रात्रि के समस्त प्रहरों में मेरी आंखें खुली रहती हैं, \q2 कि मैं आपकी प्रतिज्ञाओं पर मनन कर सकूं. \q1 \v 149 अपने करुणा-प्रेम के कारण मेरी पुकार सुनिए; \q2 याहवेह, अपने ही नियमों के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए. \q1 \v 150 जो मेरे विरुद्ध बुराई की युक्ति रच रहे हैं, मेरे निकट आ गए हैं, \q2 किंतु वे आपकी व्यवस्था से दूर हैं. \q1 \v 151 फिर भी, याहवेह, आप मेरे निकट हैं, \q2 और आपके सभी आदेश प्रामाणिक हैं. \q1 \v 152 अनेक-अनेक वर्ष पूर्व मैंने आपके अधिनियमों से यह अनुभव कर लिया था \q2 कि आपने इनकी स्थापना ही इसलिये की है कि ये सदा-सर्वदा स्थायी बने रहें. \qa ר रेश \q1 \v 153 मेरे दुःख पर ध्यान दीजिए और मुझे इससे बचा लीजिए, \q2 क्योंकि आपकी व्यवस्था को मैं भुला नहीं. \q1 \v 154 मेरे पक्ष का समर्थन करके मेरा उद्धार कीजिए; \q2 अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए. \q1 \v 155 कठिन है दुष्टों का उद्धार होना, \q2 क्योंकि उन्हें आपकी विधियों की महानता ही ज्ञात नहीं. \q1 \v 156 याहवेह, अनुपम है आपकी मनोहरता; \q2 अपने ही नियमों के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए. \q1 \v 157 मेरे सतानेवाले तथा शत्रु अनेक हैं, \q2 किंतु मैं आपके अधिनियमों से दूर नहीं हुआ हूं. \q1 \v 158 विश्वासघाती आपके आदेशों का पालन नहीं करते, \q2 तब मेरी दृष्टि में वे घृणास्पद हैं. \q1 \v 159 आप ही देख लीजिए: कितने प्रिय हैं मुझे आपके नीति-सिद्धांत; \q2 याहवेह, अपने करुणा-प्रेम के अनुरूप मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए. \q1 \v 160 वस्तुतः सत्य आपके वचन का सार है; \q2 तथा आपके धर्ममय नियम सदा-सर्वदा स्थायी रहते हैं. \qa ש शीन \q1 \v 161 प्रधान मुझे बिना किसी कारण के दुःखित कर रहे हैं, \q2 किंतु आपके वचन का ध्यान कर मेरा हृदय कांप उठता है. \q1 \v 162 आपकी प्रतिज्ञाओं से मुझे ऐसा उल्लास प्राप्‍त होता है; \q2 जैसा किसी को बड़ी लूट प्राप्‍त हुई है. \q1 \v 163 झूठ से मुझे घृणा है, बैर है \q2 किंतु मुझे प्रेम है आपकी व्यवस्था से. \q1 \v 164 आपकी धर्ममय व्यवस्था का \q2 ध्यान कर मैं दिन में सात-सात बार आपका स्तवन करता हूं. \q1 \v 165 जिन्हें आपकी व्यवस्था से प्रेम है, उनको बड़ी शांति मिलती रहती है, \q2 वे किसी रीति से विचलित नहीं हो सकते. \q1 \v 166 याहवेह, मैं आपके उद्धार का प्रत्याशी हूं, \q2 मैं आपके आदेशों का पालन करता हूं. \q1 \v 167 मैं आपके अधिनियमों का पालन करता हूं, \q2 क्योंकि वे मुझे अत्यंत प्रिय हैं. \q1 \v 168 मैं आपके उपदेशों तथा नियमों का पालन करता हूं, \q2 आपके सामने मेरा संपूर्ण आचरण प्रगट है. \qa ת ताव \q1 \v 169 याहवेह, मेरी पुकार आप तक पहुंचे; \q2 मुझे अपने वचन को समझने की क्षमता प्रदान कीजिए. \q1 \v 170 मेरा गिड़गिड़ाना आप तक पहुंचे; \q2 अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करते हुए मुझे छुड़ा लीजिए. \q1 \v 171 मेरे होंठों से आपका स्तवन छलक उठे, \q2 क्योंकि आपने मुझे अपनी विधियों की शिक्षा दी है. \q1 \v 172 मेरी जीभ आपके वचन का गान करेगी, \q2 क्योंकि आपके सभी आदेश आदर्श हैं. \q1 \v 173 आपकी भुजा मेरी सहायता के लिए तत्पर रहे, \q2 मैंने आपके उपदेशों को अपनाया है. \q1 \v 174 आपसे उद्धार की प्राप्‍ति की मुझे उत्कंठा है, \q2 याहवेह, आपकी व्यवस्था में मेरा आनंद है. \q1 \v 175 मुझे आयुष्मान कीजिए कि मैं आपका स्तवन करता रहूं, \q2 और आपकी व्यवस्था मुझे संभाले रहे. \q1 \v 176 मैं खोई हुई भेड़ के समान हो गया था. \q2 आप ही अपने सेवक को खोज लीजिए, \q2 क्योंकि मैं आपके आदेशों को भूला नहीं. \c 120 \cl स्तोत्र 120 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. \q1 \v 1 मैंने अपनी पीड़ा में याहवेह को पुकारा, \q2 और उन्होंने मेरी सुन ली. \q1 \v 2 याहवेह, मेरी रक्षा कीजिए, \q2 झूठ बोलनेवाले होंठों से, \q2 और छली जीभ से! \b \q1 \v 3 तुम्हारे साथ परमेश्वर क्या करेंगे, \q2 और उसके भी अतिरिक्त और क्या करेंगे, \q2 ओ छली जीभ? \q1 \v 4 वह तुझे योद्धा के तीक्ष्ण बाणों से दंड देंगे, \q2 वह तुझे वृक्ष की लकड़ी के प्रज्वलित कोयलों से दंड देंगे. \b \q1 \v 5 धिक्कार है मुझ पर, जो मैं मेशेख देश में जा निवास करूं, \q2 जो मैं केदार देश के मण्डपों में जा रहूं! \q1 \v 6 बहुत समय मैंने उनके साथ व्यतीत की है, \q2 जिन्हें शांति से घृणा हैं. \q1 \v 7 मैं खड़ा शांति प्रिय पुरुष; \q2 किंतु जब मैं कुछ कहता हूं, वे युद्ध पर उतारू हो जाते हैं. \c 121 \cl स्तोत्र 121 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. \q1 \v 1 मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर उठाता— \q2 क्या मेरी सहायता का स्रोत वहां है? \q1 \v 2 मेरी सहायता का स्रोत तो याहवेह हैं, \q2 स्वर्ग और पृथ्वी के कर्ता. \b \q1 \v 3 वह तुम्हारा पैर फिसलने न देंगे; \q2 वह, जो तुम्हें सुरक्षित रखते हैं, झपकी नहीं लेते. \q1 \v 4 निश्चयतः इस्राएल के रक्षक न तो झपकी लेंगे \q2 और न सो जाएंगे. \b \q1 \v 5 याहवेह तुम्हें सुरक्षित रखते हैं— \q2 तुम्हारे दायें पक्ष में उपस्थित याहवेह तुम्हारी सुरक्षा की छाया हैं; \q1 \v 6 न तो दिन के समय सूर्य से तुम्हारी कोई हानि होगी, \q2 और न रात्रि में चंद्रमा से. \b \q1 \v 7 सभी प्रकार की बुराई से याहवेह तुम्हारी रक्षा करेंगे, \q2 वह तुम्हारे जीवन की रक्षा करेंगे; \q1 \v 8 तुम्हारे आने जाने में याहवेह तुम्हें सुरक्षित रखेंगे, \q2 वर्तमान में और सदा-सर्वदा. \c 122 \cl स्तोत्र 122 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. दावीद की रचना. \q1 \v 1 जब यात्रियों ने मेरे सामने यह प्रस्ताव रखा, \q2 “चलो, याहवेह के आवास को चलें,” मैं अत्यंत उल्‍लसित हुआ. \q1 \v 2 येरूशलेम, हम तुम्हारे द्वार पर \q2 खड़े हुए हैं. \b \q1 \v 3 येरूशलेम उस नगर के समान निर्मित है, \q2 जो संगठित रूप में बसा हुआ है. \q1 \v 4 यही है वह स्थान, जहां विभिन्‍न कुल, \q2 याहवेह के कुल, \q1 याहवेह के नाम के प्रति आभार प्रदर्शित करने के लिए जाया करते हैं \q2 जैसा कि उन्हें आदेश दिया गया था. \q1 \v 5 यहीं न्याय-सिंहासन स्थापित हैं, \q2 दावीद के वंश के सिंहासन. \b \q1 \v 6 येरूशलेम की शांति के निमित्त यह प्रार्थना की जाए: \q2 “समृद्ध हों वे, जिन्हें तुझसे प्रेम है. \q1 \v 7 तुम्हारी प्राचीरों की सीमा के भीतर शांति व्याप्‍त रहे \q2 तथा तुम्हारे राजमहलों में तुम्हारे लिए सुरक्षा बनी रहें.” \q1 \v 8 अपने भाइयों और मित्रों के निमित्त मेरी यही कामना है, \q2 “तुम्हारे मध्य शांति स्थिर रहे.” \q1 \v 9 याहवेह, हमारे परमेश्वर के भवन के निमित्त, \q2 मैं तुम्हारी समृद्धि की अभिलाषा करता हूं. \c 123 \cl स्तोत्र 123 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. \q1 \v 1 मैं अपनी आंखें आपकी ओर उठाए हुए हूं, \q2 आपकी ओर, जिनका सिंहासन स्वर्ग में स्थापित है. \q1 \v 2 वैसे ही जिस प्रकार दासों की दृष्टि अपने स्वामी के हाथ की ओर लगी रहती है, \q2 जैसी दासी की दृष्टि अपनी स्वामिनी के हाथ की ओर लगी रहती है. \q1 ठीक इसी प्रकार हमारी दृष्टि याहवेह, हमारे परमेश्वर की ओर लगी रहती है, \q2 जब तक वह हम पर कृपादृष्टि नहीं करते. \b \q1 \v 3 हम पर कृपा कीजिए, याहवेह, हम पर कृपा कीजिए, \q2 हमने बहुत तिरस्कार सहा है. \q1 \v 4 हमने अहंकारियों द्वारा घोर उपहास भी सहा है, \q2 हम अहंकारियों के घोर घृणा \q2 के पात्र होकर रह गए हैं. \c 124 \cl स्तोत्र 124 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. दावीद की रचना. \q1 \v 1 यदि हमारे पक्ष में याहवेह न होते— \q2 इस्राएली राष्ट्र यही कहे— \q1 \v 2 यदि हमारे पक्ष में याहवेह न होते \q2 जब मनुष्यों ने हम पर आक्रमण किया था, \q1 \v 3 जब उनका क्रोध हम पर भड़क उठा था \q2 वे हमें जीवित ही निगल गए होते; \q1 \v 4 बाढ़ ने हमें जलमग्न कर दिया होता, \q2 जल प्रवाह हमें बहा ले गया होता, \q1 \v 5 उग्र जल प्रवाह \q2 हमें दूर बहा ले गया होता. \b \q1 \v 6 स्तवन हो याहवेह का, \q2 जिन्होंने हमें उनके दांतों से फाड़े जाने से बचा लिया है. \q1 \v 7 हम उस पक्षी के समान हैं, \q2 जो बहेलिए के जाल से बच निकला है; \q1 वह जाल टूट गया, \q2 और हम बच निकले. \q1 \v 8 हमारी सहायता याहवेह के नाम से है, \q2 जो स्वर्ग और पृथ्वी के कर्ता हैं. \c 125 \cl स्तोत्र 125 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. \q1 \v 1 जिन्होंने याहवेह पर भरोसा किया है, वे ज़ियोन पर्वत समान हैं, \q2 जिसे हिलाया नहीं जा सकता, जो सदा-सर्वदा स्थायी है. \q1 \v 2 जिस प्रकार पर्वतों ने येरूशलेम को घेरा हुआ है, \q2 उसी प्रकार याहवेह भी अपनी प्रजा को घेरे हुए हैं \q2 आज भी और सदा-सर्वदा. \b \q1 \v 3 धर्मियों को आवंटित भूमि पर \q2 दुष्टों का राजदंड स्थायी न रहेगा, \q1 कहीं ऐसा न हो कि धर्मियों के हाथ \q2 बुराई की ओर बढ़ जाएं. \b \q1 \v 4 याहवेह, धर्मियों का कल्याण कीजिए, \q2 उनका, जिनके हृदय निष्ठ हैं. \q1 \v 5 उन्हें, जो दुष्टता के मार्ग की ओर मुड़ जाते हैं, \q2 याहवेह उन्हें दुष्टों के साथ काट देंगे. \b \q1 इस्राएल राष्ट्र में शांति व्याप्‍त हो. \c 126 \cl स्तोत्र 126 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. \q1 \v 1 जब याहवेह ने बंदियों को ज़ियोन लौटा लाया, \q2 हम उन पुरुषों के समान थे, जिन्होंने स्वप्न देखा था. \q1 \v 2 हमारे मुख से हंसी छलक रही थी, \q2 हमारी जीभ पर हर्षगान थे. \q1 राष्ट्रों में यह बात जाहिर हो चुकी थी, \q2 “उनके लिए याहवेह ने अद्भुत कार्य किए हैं.” \q1 \v 3 हां, याहवेह ने हमारे लिए अद्भुत कार्य किए, \q2 हम हर्ष से भरे हुए थे. \b \q1 \v 4 याहवेह, नेगेव की नदी समान, \q2 हमारी समृद्धि लौटा लाइए\f + \fr 126:4 \fr*\fq समृद्धि लौटा लाइए \fq*\ft अर्थात् \ft*\fqa हमारे बंदियों को ज़ियोन लौटा लाइए\fqa*\f*. \q1 \v 5 जो अश्रु बहाते हुए रोपण करते हैं, \q2 वे हर्ष गीत गाते हुए उपज एकत्र करेंगे. \q1 \v 6 वह, जो रोते हुए बीजारोपण \q2 के लिए बाहर निकलता है, \q1 अपने साथ पूले लेकर \q2 हर्ष गीत गाता हुआ लौटेगा. \c 127 \cl स्तोत्र 127 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. शलोमोन की रचना. \q1 \v 1 यदि गृह-निर्माण याहवेह द्वारा न किया गया हो तो, \q2 श्रमिकों का परिश्रम निरर्थक होता है. \q1 यदि नगर की सुरक्षा याहवेह न करें, \q2 तो रखवाले द्वारा की गई चौकसी व्यर्थ होती है. \q1 \v 2 तुम्हारा सुबह जाग उठना \q2 देर तक जागे रहना, \q1 संकटपूर्ण श्रम का भोजन करना व्यर्थ है; \q2 क्योंकि याहवेह द्वारा नींद का अनुदान उनके लिए है, जिनसे वह प्रेम करते हैं. \b \q1 \v 3 संतान याहवेह के दिए हुए निज भाग होते हैं, \q2 तथा बालक उनका दिया हुआ उपहार. \q1 \v 4 युवावस्था में उत्पन्‍न हुई संतान वैसी ही होती है, \q2 जैसे योद्धा के हाथों में बाण. \q1 \v 5 कैसा धन्य होता है वह पुरुष, \q2 जिसका तरकश इन बाणों से भरा हुआ है! \q1 नगर द्वार पर शत्रुओं का प्रतिकार करते हुए \q2 उन्हें लज्जित नहीं होना पड़ेगा. \c 128 \cl स्तोत्र 128 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. \q1 \v 1 वे सभी धन्य हैं, जिनमें याहवेह के प्रति श्रद्धा पायी जाती है, \q2 जो उनकी नीतियों का आचरण करते हैं. \q1 \v 2 जिसके लिए तुम अपने हाथों से श्रम करते रहे हो, तुम्हें उसका प्रतिफल प्राप्‍त होगा; \q2 तुम धन्य होगे और कल्याण होगा तुम्हारा. \q1 \v 3 तुम्हारे परिवार में \q2 तुम्हारी पत्नी फलदायी दाखलता समान होगी; \q1 तुम्हारी मेज़ के चारों \q2 ओर तुम्हारी संतान जैतून के अंकुर समान होगी. \q1 \v 4 धन्य होता है वह जिसमें याहवेह के \q2 प्रति श्रद्धा पाई जाती है. \b \q1 \v 5 ज़ियोन से याहवेह तुमको तुम्हारे जीवन \q2 के हर एक दिन आशीषों से भरते रहें, \q2 तुम आजीवन येरूशलेम की समृद्धि देखो. \q1 \v 6 वस्तुतः, तुम अपनी संतान की भी संतान देखने के लिए जीवित रहो. \q2 इस्राएल राष्ट्र में शांति स्थिर रहे. \c 129 \cl स्तोत्र 129 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. \q1 \v 1 “मेरे बचपन से वे मुझ पर घोर अत्याचार करते आए हैं,” \q2 इस्राएल राष्ट्र यही कहे; \q1 \v 2 “मेरे बचपन से वे मुझ पर घोर अत्याचार करते आए हैं, \q2 किंतु वे मुझ पर प्रबल न हो सके हैं. \q1 \v 3 हल चलानेवालों ने मेरे पीठ पर हल चलाया है, \q2 और लम्बी-लम्बी हल रेखाएं खींच दी हैं. \q1 \v 4 किंतु याहवेह युक्त है; \q2 उन्हीं ने मुझे दुष्टों के बंधनों से मुक्त किया है.” \b \q1 \v 5 वे सभी, जिन्हें ज़ियोन से बैर है, \q2 लज्जित हो लौट जाएं. \q1 \v 6 उनकी नियति भी वही हो, जो घर की छत पर उग आई घास की होती है, \q2 वह विकसित होने के पूर्व ही मुरझा जाती है; \q1 \v 7 किसी के हाथों में कुछ भी नहीं आता, \q2 और न उसकी पुलियां बांधी जा सकती हैं. \q1 \v 8 आते जाते पुरुष यह कभी न कह पाएं, \q2 “तुम पर याहवेह की कृपादृष्टि हो; \q2 हम याहवेह के नाम में तुम्हारे लिए मंगल कामना करते हैं.” \c 130 \cl स्तोत्र 130 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. \q1 \v 1 याहवेह, गहराइयों में से मैं आपको पुकार रहा हूं; \q2 \v 2 हे प्रभु, मेरा स्वर सुन लीजिए, \q1 कृपा के लिए मेरी नम्र विनती की \q2 ओर आपके कान लगे रहें. \b \q1 \v 3 याहवेह, यदि आप अपराधों का लेखा रखने लगें, \q2 तो प्रभु, कौन ठहर सकेगा? \q1 \v 4 किंतु आप क्षमा शील हैं, \q2 तब आप श्रद्धा के योग्य हैं. \b \q1 \v 5 मुझे, मेरे प्राणों को, याहवेह की प्रतीक्षा रहती है, \q2 उनके वचन पर मैंने आशा रखी है. \q1 \v 6 मुझे प्रभु की प्रतीक्षा है \q2 उन रखवालों से भी अधिक, जिन्हें सूर्योदय की प्रतीक्षा रहती है, \q2 वस्तुतः उन रखवालों से कहीं अधिक जिन्हें भोर की प्रतीक्षा रहती है. \b \q1 \v 7 इस्राएल, याहवेह पर भरोसा रखो, \q2 क्योंकि जहां याहवेह हैं वहां करुणा-प्रेम भी है \q2 और वही पूरा छुटकारा देनेवाले हैं. \q1 \v 8 स्वयं वही इस्राएल को, \q2 उनके अपराधों को क्षमा करेंगे. \c 131 \cl स्तोत्र 131 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. दावीद की रचना. \q1 \v 1 याहवेह, मेरा हृदय न तो अहंकार से फूल रहा है, \q2 और न मेरी आंखें घमंड में चढ़ी हुई हैं; \q1 मेरी रुचि न तो असाधारण उपलब्धियों में है, \q2 न चमत्कारों में. \q1 \v 2 मैंने अपने प्राणों को शांत और चुप कर लिया है, \q2 जैसे माता की गोद में तृप्‍त शिशु; \q2 मेरा प्राण अब ऐसे ही शिशु-समान शांत है. \b \q1 \v 3 इस्राएल, याहवेह पर भरोसा रखो \q2 इस समय और सदा-सर्वदा. \c 132 \cl स्तोत्र 132 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. \q1 \v 1 याहवेह, दावीद को और उनके द्वारा झेली गई \q2 समस्त विषमताओं को स्मरण कीजिए. \b \q1 \v 2 उन्होंने याहवेह की शपथ खाई, \q2 तथा याकोब के सर्वशक्तिमान से शपथ की थी: \q1 \v 3 “मैं न तो तब तक घर में प्रवेश करूंगा \q2 और न मैं अपने बिछौने पर जाऊंगा, \q1 \v 4 न तो मैं अपनी आंखों में नींद आने दूंगा \q2 और न पलकों में झपकी, \q1 \v 5 जब तक मुझे याहवेह के लिए एक स्थान उपलब्ध न हो जाए, \q2 याकोब के सर्वशक्तिमान के आवास के लिए.” \b \q1 \v 6 इसके विषय में हमने एफ़राथा में सुना, \q2 याअर के मैदान में भी यही पाया गया: \q1 \v 7 “आओ, हम उनके आवास को चलें; \q2 हम उनके चरणों में जाकर आराधना करें. \q1 \v 8 ‘याहवेह, अब उठकर अपने विश्राम स्थल पर आ जाइए, \q2 आप और आपकी सामर्थ्य का संदूक भी. \q1 \v 9 आपके पुरोहित धर्म के वस्त्र पहिने हुए हों; \q2 और आपके सात्विक हर्ष गीत गाएं.’ ” \b \q1 \v 10 अपने सेवक दावीद के निमित्त, \q2 अपने अभिषिक्त को न ठुकराईए. \b \q1 \v 11 याहवेह ने दावीद से शपथ खाई थी, \q2 एक ऐसी शपथ, जिसे वह तोड़ेंगे नहीं: \q1 “तुम्हारे ही अपने वंशजों में से \q2 एक को मैं तुम्हारे सिंहासन पर विराजमान करूंगा. \q1 \v 12 यदि तुम्हारे वंशज मेरी वाचा का पालन करेंगे \q2 तथा मेरे द्वारा सिखाए गए उपदेशों का पालन करेंगे, \q1 तब उनकी संतान भी तुम्हारे सिंहासन पर \q2 सदा-सर्वदा के लिए विराजमान होगी.” \b \q1 \v 13 क्योंकि ज़ियोन याहवेह द्वारा ही निर्धारित किया गया है, \q2 अपने आवास के लिए याहवेह की यही अभिलाषा है. \q1 \v 14 “यह सदा-सर्वदा के लिए मेरा विश्रान्ति स्थल है; \q2 मैं यहीं सिंहासन पर विराजमान रहूंगा, क्योंकि यही मेरी अभिलाषा है. \q1 \v 15 उसके लिए मेरी आशीष बड़ी योजना होगी; \q2 मैं इसके दरिद्रों को भोजन से तृप्‍त करूंगा. \q1 \v 16 उसके पुरोहितों को मैं उद्धार के परिधानों से सुसज्जित करूंगा, \q2 और उसके निवासी सात्विक सदैव हर्षगान गाते रहेंगे. \b \q1 \v 17 “यहां मैं दावीद के वंश को बढाऊंगा, \q2 मैं अपने अभिषिक्त के लिए एक दीप स्थापित करूंगा. \q1 \v 18 मैं उसके शत्रुओं को लज्जा के वस्त्र पहनाऊंगा, \q2 किंतु उसके अपने सिर का मुकुट उज्जवल रहेगा.” \c 133 \cl स्तोत्र 133 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. दावीद की रचना. \q1 \v 1 कैसी आदर्श और मनोरम है \q2 वह स्थिति जब भाइयों में परस्पर एकता होती है! \b \q1 \v 2 यह वैसी ही मनोरम स्थिति है, जब सुगंध द्रव्य पुरोहित के सिर पर उंडेला जाता है, \q2 और बहता हुआ दाढ़ी तक पहुंच जाता है, \q1 हां, अहरोन की दाढ़ी पर बहता हुआ, \q2 उसके वस्त्र की छोर तक जा पहुंचता है. \q1 \v 3 हरमोन पर्वत की ओस के समान, \q2 जो ज़ियोन पर्वत पर पड़ती है. \q1 क्योंकि वही है वह स्थान, \q2 जहां याहवेह सर्वदा जीवन की आशीष प्रदान करते हैं. \c 134 \cl स्तोत्र 134 \d आराधना के लिए यात्रियों का गीत. \q1 \v 1 तुम सभी, जो याहवेह के सेवक हो, याहवेह का स्तवन करो, \q2 तुम, जो रात्रि में याहवेह के आवास में सेवारत रहते हो. \q1 \v 2 पवित्र स्थान में अपने हाथ ऊंचे उठाओ, \q2 और याहवेह का स्तवन करो. \b \q1 \v 3 याहवेह—स्वर्ग और पृथ्वी के कर्ता, \q2 तुम्हें ज़ियोन से आशीष प्रदान करें. \c 135 \cl स्तोत्र 135 \q1 \v 1 याहवेह का स्तवन करो. \b \q1 याहवेह की महिमा का स्तवन करो; \q2 तुम, जो याहवेह के सेवक हो, उनका स्तवन करो. \q1 \v 2 तुम, जो याहवेह के आवास में सेवारत हो, \q2 जो परमेश्वर के आवास के आंगनों में सेवारत हो. \b \q1 \v 3 याहवेह का स्तवन करो क्योंकि याहवेह धन्य हैं; \q2 उनकी महिमा का गुणगान करो, क्योंकि यह सुखद है. \q1 \v 4 याहवेह को यह उपयुक्त लगा, कि वह याकोब को अपना बना लें, \q2 इस्राएल को अपनी अमूल्य संपत्ति के लिये चुन लिया है. \b \q1 \v 5 मैं यह जानता हूं कि याहवेह सर्वश्रेष्ठ हैं, \q2 हमारे परमेश्वर समस्त देवताओं से महान हैं. \q1 \v 6 याहवेह वही करते हैं जो उनकी दृष्टि में उपयुक्त होता है, \q2 स्वर्ग में तथा पृथ्वी पर, \q2 समुद्रों में तथा उनकी गहराइयों में. \q1 \v 7 पृथ्वी के छोर से उन्हीं के द्वारा बादल उठाए जाते हैं; \q2 वही वृष्टि के साथ बिजलियां उत्पन्‍न करते हैं \q2 तथा अपने भण्डार-गृहों से हवा को प्रवाहित कर देते हैं. \b \q1 \v 8 उन्होंने मिस्र के पहिलौठों की हत्या की, \q2 मनुष्यों तथा पशुओं के पहिलौठों की. \q1 \v 9 उन्हीं ने, हे मिस्र, तुम्हारे मध्य अपने आश्चर्य कार्य एवं चमत्कार प्रदर्शित किए, \q2 जो फ़रोह और उसके सभी सेवकों के विरुद्ध थे. \q1 \v 10 उन्हीं ने अनेक जनताओं की हत्या की \q2 और अनेक शक्तिशाली राजाओं का वध भी किया. \q1 \v 11 अमोरियों के राजा सीहोन का, \q2 बाशान के राजा ओग का \q2 तथा कनान देश के समस्त राजाओं का. \q1 \v 12 तत्पश्चात उन्होंने इन सब की भूमि निज भाग स्वरूप दे दी, \q2 अपनी प्रजा इस्राएल को, निज भाग स्वरूप. \b \q1 \v 13 याहवेह, सदा के लिए है, आपकी महिमा. \q2 आपकी ख्याति, याहवेह, पीढ़ी से पीढ़ी स्थायी रहती है. \q1 \v 14 याहवेह अपनी प्रजा को निर्दोष प्रमाणित करेंगे, \q2 वह अपने सेवकों पर करुणा प्रदर्शित करेंगे. \b \q1 \v 15 अन्य जनताओं की प्रतिमाएं मात्र स्वर्ण और चांदी हैं, \q2 मनुष्यों की हस्तकृति मात्र. \q1 \v 16 हां, उनका मुख अवश्य है, किंतु ये बोल नहीं सकती, \q2 उनकी आंखें अवश्य हैं, किंतु ये देख नहीं सकतीं. \q1 \v 17 उनके कान अवश्य हैं, किंतु ये सुन नहीं सकते, \q2 और न उनके नाक में श्वास है. \q1 \v 18 इनके समान ही हो जाएंगे इनके निर्माता, \q2 साथ ही वे सभी, जो इन पर भरोसा करते हैं. \b \q1 \v 19 इस्राएल वंश, याहवेह का स्तवन करो; \q2 अहरोन के वंशजो, याहवेह का स्तवन करो; \q1 \v 20 लेवी के वंशजो, याहवेह का स्तवन करो; \q2 तुम सभी, जिनमें याहवेह के प्रति श्रद्धा है, याहवेह का स्तवन हो. \q1 \v 21 ज़ियोन से याहवेह का, \q2 जो येरूशलेम में निवास करते हैं, स्तवन हो. \b \q1 याहवेह का स्तवन हो. \c 136 \cl स्तोत्र 136 \q1 \v 1 याहवेह का धन्यवाद करो, क्योंकि वे भले हैं, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 2 परम परमेश्वर के प्रति आभार अभिव्यक्त करो. \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 3 उनके प्रति, जो प्रधानों के प्रधान हैं, आभार अभिव्यक्त करो: \qr सनातन है उनकी करुणा. \b \q1 \v 4 उनके प्रति, जिनके अतिरिक्त अन्य कोई अद्भुत कार्य कर ही नहीं सकता, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 5 जिन्होंने अपनी सुबुद्धि से स्वर्ग का निर्माण किया, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 6 जिन्होंने जल के ऊपर पृथ्वी का विस्तार कर दिया, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 7 जिन्होंने प्रखर प्रकाश पुंजों की रचना की, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 8 दिन के प्रभुत्व के लिए सूर्य का, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 9 रात्रि के लिए चंद्रमा और तारों का; \qr सनातन है उनकी करुणा. \b \q1 \v 10 उन्हीं के प्रति, जिन्होंने मिस्र देश के पहलौठों की हत्या की, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 11 और उनके मध्य से इस्राएल राष्ट्र को बाहर निकाल लिया, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 12 सशक्त भुजा और ऊंची उठी हुई बांह के द्वारा; \qr सनातन है उनकी करुणा. \b \q1 \v 13 उन्हीं के प्रति, जिन्होंने लाल सागर को विभक्त कर दिया था \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 14 और उसके मध्य की भूमि से इस्राएलियों को पार करवा दिया, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 15 किंतु फ़रोह और उसकी सेना को सागर ही में डुबो दिया; \qr सनातन है उनकी करुणा. \b \q1 \v 16 उन्हीं के प्रति, जिन्होंने अपनी प्रजा को बंजर भूमि से पार कराया; \qr सनातन है उनकी करुणा. \b \q1 \v 17 जिन्होंने प्रख्यात राजाओं की हत्या की, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 18 जिन्होंने सशक्त राजाओं का वध कर दिया, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 19 अमोरियों के राजा सीहोन का, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 20 बाशान के राजा ओग का, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 21 तथा उनकी भूमि निज भाग में दे दी, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 22 अपने सेवक इस्राएल को, निज भाग में दे दी, \qr सनातन है उनकी करुणा. \b \q1 \v 23 उन्हीं के प्रति, जिन्होंने हमारी दुर्दशा में हमारी सुधि ली, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 24 और हमें हमारे शत्रुओं से मुक्त किया, \qr सनातन है उनकी करुणा. \q1 \v 25 जो सब प्राणियों के आहार का प्रबंध करते हैं, \qr सनातन है उनकी करुणा. \b \q1 \v 26 स्वर्गिक परमेश्वर के प्रति आभार अभिव्यक्त करो, \qr सनातन है उनकी करुणा. \c 137 \cl स्तोत्र 137 \q1 \v 1 बाबेल की नदी के तट पर बैठे हुए \q2 ज़ियोन का स्मरण कर हम रो रहे थे. \q1 \v 2 वहां मजनू वृक्षों पर हमने \q2 अपने वाद्य टांग दिए थे. \q1 \v 3 क्योंकि जिन्होंने हमें बंदी बनाया था, \q2 वे हमारा गायन सुनना चाह रहे थे और जो हमें दुःख दे रहे थे; \q2 वे हमसे हर्षगान सुनने की चाह कर रहे थे, “हमें ज़ियोन का कोई गीत सुनाओ!” \b \q1 \v 4 प्रवास में हमारे लिए \q2 याहवेह का स्तवन गान गाना कैसे संभव हो सकता था? \q1 \v 5 येरूशलेम, यदि मैं तुम्हें भूल जाऊं, \q2 तो मेरे दायें हाथ का कौशल जाता रहेगा. \q1 \v 6 यदि मैं तुम्हारा स्मरण न करूं, \q2 यदि मैं येरूशलेम को अपना सर्वोच्च आनंद न मानूं, \q2 मेरी जीभ तालू से जा चिपके. \b \q1 \v 7 याहवेह, वह दिन स्मरण कीजिए जब एदोम के वंशज \q2 येरूशलेम के विरुद्ध एकत्र हो गए थे. \q1 वे कैसे चिल्ला रहे थे, “ढा दो इसे, \q2 इसे नींव तक ढा दो!” \q1 \v 8 बाबेल की पुत्री, तेरा विनाश तो निश्चित है, \q2 धन्य होगा वह पुरुष, जो तुझसे उन अत्याचारों का प्रतिशोध लेगा \q2 जो तूने हम पर किए. \q1 \v 9 धन्य होगा वह पुरुष, \q2 जो तेरे शिशुओं को उठाकर चट्टान पर पटक देगा. \c 138 \cl स्तोत्र 138 \d दावीद की रचना. \q1 \v 1 याहवेह, मैं हृदय की गहराई से आपका स्तवन करूंगा; \q2 मैं “देवताओं” के सामने आपका स्तवन करूंगा. \q1 \v 2 आपके पवित्र मंदिर की ओर मुख कर मैं नतमस्तक हूं, \q2 आपके करुणा-प्रेम के लिए; आपकी सच्चाई के लिए मैं \q2 आपके नाम का आभार मानता हूं; \q1 आपने अपने वचन को अपनी महिमा \q2 के भी ऊपर ऊंचा किया है. \q1 \v 3 जिस समय मैंने आपको पुकारा, आपने प्रत्युत्तर दिया; \q2 आपने मेरे प्राणों में बल के संचार से धैर्य दिया. \b \q1 \v 4 पृथ्वी के समस्त राजा, याहवेह, आपके कृतज्ञ होंगे, \q2 क्योंकि उन्होंने आपके मुख से निकले वचन सुने हैं, \q1 \v 5 वे याहवेह की नीतियों का गुणगान करेंगे, \q2 क्योंकि याहवेह का तेज बड़ा है. \b \q1 \v 6 यद्यपि याहवेह स्वयं महान हैं, वह नगण्यों का ध्यान रखते हैं; \q2 किंतु अहंकारी को वह दूर से ही पहचान लेते हैं. \q1 \v 7 यद्यपि इस समय मेरा विषम समय चल रहा है, \q2 आप मेरे जीवन के रक्षक हैं. \q1 आप ही अपना हाथ बढ़ाकर मेरे शत्रुओं के प्रकोप से मेरी रक्षा करते हैं; \q2 आपका दायां हाथ मेरा उद्धार करता है. \q1 \v 8 याहवेह मेरे लिए निर्धारित उद्देश्य को पूरा करेंगे; \q2 याहवेह, सर्वदा है आपका करुणा-प्रेम. \q2 अपनी ही हस्तकृति का परित्याग न कीजिए. \c 139 \cl स्तोत्र 139 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना. एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, आपने मुझे परखा है, \q2 और जान लिया है. \q1 \v 2 मैं कब उठता हूं और मैं कब बैठता हूं, यह सब आपको ज्ञात रहता है; \q2 दूरदर्शिता में आप मेरे विचारों को समझ लेते हैं. \q1 \v 3 आप मेरे आने जाने और विश्रान्ति का परीक्षण करते रहते हैं; \q2 तथा मेरे समस्त आचार-व्यवहार से आप भली-भांति परिचित हैं. \q1 \v 4 इसके पूर्व कि कोई शब्द मेरी जीभ पर आए, \q2 याहवेह, आप, उसे पूरी-पूरी रीति से जान लेते हैं. \q1 \v 5 आप मुझे आगे-पीछे, चारों ओर से घेरे रहते हैं, \q2 आपका हाथ सदैव मुझ पर स्थिर रहता है. \q1 \v 6 आपका ज्ञान मेरी परख-शक्ति से सर्वथा परे हैं, \q2 मैं इसकी जानकारी लेने में स्वयं को पूर्णतः कमजोर पाता हूं. \b \q1 \v 7 आपके आत्मा से बचकर मैं कहां जा सकता हूं? \q2 आपकी उपस्थिति से बचने के लिए मैं कहां भाग सकता हूं? \q1 \v 8 यदि मैं स्वर्ग तक आरोहण करूं तो आप वहां हैं; \q2 यदि मैं अधोलोक में जा लेटूं, आप वहां भी हैं. \q1 \v 9 यदि मैं उषा के पंखों पर बैठ दूर उड़ चला जाऊं, \q2 और समुद्र के दूसरे तट पर बस जाऊं, \q1 \v 10 वहां भी आपका हाथ मेरी अगुवाई करेगा, \q2 आपका दायां हाथ मुझे थामे रहेगा. \q1 \v 11 यदि मैं यह विचार करूं, “निश्चयतः मैं अंधकार में छिप जाऊंगा \q2 और मेरे चारों ओर का प्रकाश रात्रि में बदल जाएगा,” \q1 \v 12 अंधकार भी आपकी दृष्टि के लिए अंधकार नहीं; \q2 आपके लिए तो रात्रि भी दिन के समान ज्योतिर्मय है, \q2 आपके सामने अंधकार और प्रकाश एक समान हैं. \b \q1 \v 13 आपने ही मेरे आन्तरिक अंगों की रचना की; \q2 मेरी माता के गर्भ में आपने मेरी देह की रचना की. \q1 \v 14 मैं आपके प्रति कृतज्ञ हूं, क्योंकि आपने मेरी रचना भयानक एवं अद्भुत ढंग से की है; \q2 आश्चर्य हैं आपके कार्य, \q2 मेरे प्राणों को इसका पूर्ण बोध है. \q1 \v 15 मेरा ढांचा उस समय आपके लिए रहस्य नहीं था \q2 जब सभी अवस्था में मेरा निर्माण हो रहा था, \q2 जब मैं पृथ्वी की गहराइयों में जटिल कौशल में तैयार किया जा रहा था. \q1 \v 16 आपकी दृष्टि मेरे विकासोन्मुख भ्रूण पर थी; \q2 मेरे लिए निर्धारित समस्त दिनों का कुल लेखा आपके ग्रंथ में अंकित था, \q2 जबकि वे उस समय अस्तित्व में भी न थे. \q1 \v 17 परमेश्वर, मेरे लिए निर्धारित आपकी योजनाएं कितनी अमूल्य हैं! \q2 कितना विशाल है उनका कुल योग! \q1 \v 18 यदि मैं उनकी गणना प्रारंभ करूं, \q2 तो वे धूल के कणों से भी अधिक होंगी. \q2 जब मैं जागता हूं, आपको अपने निकट पाता हूं. \b \q1 \v 19 परमेश्वर, अच्छा होता कि आप दुष्ट की हत्या कर देते! \q2 हे रक्त पिपासु, दूर हो जाओ मुझसे! \q1 \v 20 ये वे हैं, जो आपके विरुद्ध कुयुक्ति की बातें करते हैं; \q2 आपके ये शत्रु आपका नाम गलत ढंग से लेते हैं. \q1 \v 21 याहवेह, क्या मुझे भी उनसे घृणा नहीं है, जिन्हें आपसे घृणा है? \q2 क्या आपके शत्रु मेरे लिए भी घृणास्पद नहीं हैं? \q1 \v 22 उनके प्रति मेरी घृणा अखण्ड है; \q2 वे मेरे भी शत्रु हैं. \q1 \v 23 परमेश्वर, परीक्षण करके मेरे हृदय को पहचान लीजिए; \q2 मुझे परखकर मेरे चिंतापूर्ण विचारों को जान लीजिए. \q1 \v 24 यह देखिए कि मुझमें कहीं कोई बुरी प्रवृत्ति तो नहीं है, \q2 अनंत काल के मार्ग पर मेरी अगुवाई कीजिए. \c 140 \cl स्तोत्र 140 \d संगीत निर्देशक के लिये. दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, दुष्ट पुरुषों से मुझे उद्धार प्रदान कीजिए; \q2 हिंसक पुरुषों से मेरी रक्षा कीजिए, \q1 \v 2 वे मन ही मन अनर्थ षड़्‍यंत्र रचते रहते हैं \q2 और सदैव युद्ध ही भड़काते रहते हैं. \q1 \v 3 उन्होंने अपनी जीभ सर्प सी तीखी बना रखी है; \q2 उनके होंठों के नीचे नाग का विष भरा है. \b \q1 \v 4 याहवेह, दुष्टों से मेरी रक्षा कीजिए; \q2 मुझे उन हिंसक पुरुषों से सुरक्षा प्रदान कीजिए, \q2 जिन्होंने, मेरे पैरों को उखाड़ने के लिए युक्ति की है. \q1 \v 5 उन अहंकारियों ने मेरे पैरों के लिए एक फंदा बनाकर छिपा दिया है; \q2 तथा रस्सियों का एक जाल भी बिछा दिया है, \q2 मार्ग के किनारे उन्होंने मेरे ही लिए फंदे लगा रखे हैं. \b \q1 \v 6 मैं याहवेह से कहता हूं, “आप ही मेरे परमेश्वर हैं.” \q2 याहवेह, कृपा करके मेरी पुकार पर ध्यान दीजिए. \q1 \v 7 याहवेह, मेरे प्रभु, आप ही मेरे उद्धार का बल हैं, \q2 युद्ध के समय आप ही मेरे सिर का आवरण बने. \q1 \v 8 दुष्टों की अभिलाषा पूर्ण न होने दें, याहवेह; \q2 उनकी बुरी युक्ति आगे बढ़ने न पाए अन्यथा वे गर्व में ऊंचे हो जाएंगे. \b \q1 \v 9 जिन्होंने इस समय मुझे घेरा हुआ है; \q2 उनके होंठों द्वारा उत्पन्‍न कार्य उन्हीं के सिर पर आ पड़े. \q1 \v 10 उनके ऊपर जलते हुए कोयलों की वृष्टि हो; \q2 वे आग में फेंक दिए जाएं, \q2 वे दलदल के गड्ढे में डाल दिए जाएं, कि वे उससे बाहर ही न निकल सकें. \q1 \v 11 निंदक इस भूमि पर अपने पैर ही न जमा सकें; \q2 हिंसक पुरुष अति शीघ्र बुराई द्वारा पकड़े जाएं. \b \q1 \v 12 मैं जानता हूं कि याहवेह दुखित का पक्ष अवश्य लेंगे \q2 तथा दीन को न्याय भी दिलाएंगे. \q1 \v 13 निश्चयतः धर्मी आपके नाम का आभार मानेंगे, \q2 सीधे आपकी उपस्थिति में निवास करेंगे. \c 141 \cl स्तोत्र 141 \d दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, मैं आपको पुकार रहा हूं, मेरे पास शीघ्र ही आइए; \q2 जब मैं आपको पुकारूं, मेरी पुकार पर ध्यान दीजिए. \q1 \v 2 आपके सामने मेरी प्रार्थना सुगंधधूप; \q2 तथा मेरे हाथ उठाना, सान्ध्य बलि समर्पण जैसा हो जाए. \b \q1 \v 3 याहवेह, मेरे मुख पर पहरा बैठा दीजिए; \q2 मेरे होंठों के द्वार की चौकसी कीजिए. \q1 \v 4 मेरे हृदय को किसी भी अनाचार की ओर जाने न दीजिए, \q2 मुझे कुकृत्यों में शामिल होने से रोक लीजिए, \q1 मुझे दुष्टों की संगति से बचाइए; \q2 मुझे उनके उत्कृष्ट भोजन को चखने से बचाइए. \b \q1 \v 5 कोई नीतिमान पुरुष मुझे ताड़ना करे, मैं इसे कृपा के रूप में स्वीकार करूंगा; \q2 वह मुझे डांट लगाए, यह मेरे सिर के अभ्यंजन तुल्य है. \q1 इसे अस्वीकार करना मेरे लिए उपयुक्त नहीं, \q2 फिर भी मैं निरंतर दुष्टों की बुराई के कार्यों के विरुद्ध प्रार्थना करता रहूंगा. \b \q1 \v 6 जब उनके प्रधानों को ऊंची चट्टान से नीचे फेंक दिया जाएगा तब उन्हें मेरे इस वक्तव्य पर स्मरण आएगा कि वह व्यर्थ न था, \q2 कि यह कितना सांत्वनापूर्ण एवं सुखदाई वक्तव्य है: \q1 \v 7 “जैसे हल चलाने के बाद भूमि टूटकर बिखर जाती है, \q2 वैसे ही हमारी हड्डियों को टूटे अधोलोक के मुख पर बिखरा दिया जाएगा.” \b \q1 \v 8 मेरे प्रभु, मेरे याहवेह, मेरी दृष्टि आप ही पर लगी हुई है; \q2 आप ही मेरा आश्रय हैं, मुझे असुरक्षित न छोड़िएगा. \q1 \v 9 मुझे उन फन्दों से सुरक्षा प्रदान कीजिए, जो उन्होंने मेरे लिए बिछाए हैं, \q2 उन फन्दों से, जो दुष्टों द्वारा मेरे लिए तैयार किए गए हैं. \q1 \v 10 दुर्जन अपने ही जाल में फंस जाएं, \q2 और मैं सुरक्षित पार निकल जाऊं. \c 142 \cl स्तोत्र 142 \d दावीद की \tl मसकील\tl*\f + \fr 142:0 \fr*\ft शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द\ft*\f* रचना इस समय वह कन्दरा में थे. एक अभ्यर्थना \q1 \v 1 मैं अपना स्वर उठाकर याहवेह से प्रार्थना कर रहा हूं; \q2 अपने शब्दों के द्वारा में याहवेह से कृपा का अनुरोध कर रहा हूं. \q1 \v 2 मैं उनके सामने अपने संकट को उंडेल रहा हूं; \q2 मैंने अपने कष्ट उनके सामने रख दिए हैं. \b \q1 \v 3 जब मैं पूर्णतः टूट चुका हूं, \q2 आपके सामने मेरी नियति स्पष्ट रहती है. \q1 वह पथ जिस पर मैं चल रहा हूं \q2 उन्होंने उसी पर फंदे बिछा दिए हैं. \q1 \v 4 दायीं ओर दृष्टि कीजिए और देखिए \q2 किसी को भी मेरा ध्यान नहीं है; \q1 कोई भी आश्रय अब शेष नहीं रह गया है, \q2 किसी को भी मेरे प्राणों की हितचिंता नहीं है. \b \q1 \v 5 याहवेह, मैं आपको ही पुकार रहा हूं; \q2 मैं विचार करता रहता हूं, “मेरा आश्रय आप हैं, \q2 जीवितों के लोक में मेरा अंश.” \b \q1 \v 6 मेरी पुकार पर ध्यान दीजिए, \q2 क्योंकि मैं अब थक चुका हूं; \q1 मुझे उनसे छुड़ा लीजिए, जो मुझे दुःखित कर रहे हैं, \q2 वे मुझसे कहीं अधिक बलवान हैं. \q1 \v 7 मुझे इस कारावास से छुड़ा दीजिए, \q2 कि मैं आपकी महिमा के प्रति मुक्त कण्ठ से आभार व्यक्त कर सकूं. \q1 तब मेरी संगति धर्मियों के संग हो सकेगी \q2 क्योंकि मेरे प्रति यह आपका स्तुत्य उपकार होगा. \c 143 \cl स्तोत्र 143 \d दावीद का एक स्तोत्र. \q1 \v 1 याहवेह, मेरी प्रार्थना सुन लीजिए, \q2 कृपा करके मेरे गिड़गिड़ाने पर ध्यान दीजिए; \q1 अपनी सच्चाई में, अपनी नीतिमत्त में \q2 मुझे उत्तर दीजिए. \q1 \v 2 अपने सेवक का न्याय कर उसे दंड न दीजिए, \q2 क्योंकि आपके सामने कोई भी मनुष्य धर्मी नहीं है. \q1 \v 3 शत्रु मेरा पीछा कर रहा है, \q2 उसने मुझे कुचलकर मेरे प्राण को धूल में मिला दिया है. \q1 उसने मुझे ऐसे अंधकार में ला बैठाया है, \q2 जैसा दीर्घ काल से मृत पुरुष के लिए होता है. \q1 \v 4 मैं पूर्णतः दुर्बल हो चुका हूं; \q2 मेरे हृदय को भय ने भीतर ही भीतर भयभीत कर दिया है. \q1 \v 5 मुझे प्राचीन काल स्मरण आ रहा है; \q2 आपके वे समस्त महाकार्य मेरे विचारों का विषय हैं, \q2 आपके हस्तकार्य मेरे मनन का विषय हैं. \q1 \v 6 अपने हाथ मैं आपकी ओर बढ़ाता हूं; \q2 आपके लिए मेरी लालसा वैसी है जैसी शुष्क वन में एक प्यासे पुरुष की होती है. \b \q1 \v 7 याहवेह, शीघ्र ही मुझे उत्तर दीजिए; \q2 मेरी आत्मा दुर्बल हो चुकी है. \q1 अपना मुख मुझसे छिपा न लीजिए \q2 अन्यथा मेरी भी नियति वही हो जाएगी, जो उनकी होती है, जो कब्र में समा जाते हैं. \q1 \v 8 मैंने आप पर ही भरोसा किया है, \q2 तब अरुणोदय मेरे लिए आपके करुणा-प्रेम\f + \fr 143:8 \fr*\fq करुणा-प्रेम \fq*\ft मूल में \ft*\fqa ख़ेसेद \fqa*\ft इस हिब्री शब्द का अर्थ में \ft*\ft अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा \ft*\ft ये शामिल हैं\ft*\f* का संदेश लेकर आए. \q1 मुझे मेरे लिए निर्धारित मार्ग पर चलना है वह बताइए, \q2 क्योंकि मेरे प्राणों की पुकार आपके ही ओर लगी है. \q1 \v 9 हे याहवेह, मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ा लीजिए, \q2 आश्रय के लिए मैं दौड़ा हुआ आपके निकट आया हूं. \q1 \v 10 मुझे अपनी इच्छा के आज्ञापालन की शिक्षा दीजिए, \q2 क्योंकि मेरे परमेश्वर आप हैं; \q1 आपका धन्य आत्मा \q2 मुझे धर्म पथ की ओर ले जाए. \b \q1 \v 11 याहवेह, अपनी महिमा के निमित्त मेरे प्राणों का परिरक्षण कीजिए; \q2 अपनी धार्मिकता में मेरे प्राणों को संकट से बचा लीजिए. \q1 \v 12 अपने करुणा-प्रेम में मेरे शत्रुओं की हत्या कीजिए; \q2 मेरे समस्त विरोधियों को भी नष्ट कर दीजिए, \q2 क्योंकि मैं आपका सेवक हूं. \c 144 \cl स्तोत्र 144 \d दावीद की रचना. \q1 \v 1 स्तुत्य हैं याहवेह, जो मेरी चट्टान हैं, \q2 जो मेरी भुजाओं को युद्ध के लिए, \q2 तथा मेरी उंगलियों को लड़ने के लिए प्रशिक्षित करते हैं. \q1 \v 2 वह मेरे प्रेमी परमेश्वर, मेरे किला हैं, \q2 वह मेरे लिए दृढ़ गढ़ तथा आश्रय हैं, वह मेरे उद्धारक हैं, \q1 वह ऐसी ढाल है जहां मैं आश्रय के लिए जा छिपता हूं, \q2 वह प्रजा को मेरे अधीन बनाए रखते हैं. \b \q1 \v 3 याहवेह, मनुष्य है ही क्या, जो आप उसकी ओर ध्यान दें? \q2 क्या है मनुष्य की सन्तति, कि आप उसकी हितचिंता करें? \q1 \v 4 मनुष्य श्वास समान है; \q2 उसकी आयु विलीन होती छाया-समान है. \b \q1 \v 5 याहवेह, स्वर्ग को खोलकर आप नीचे आ जाइए; \q2 पर्वतों का स्पर्श कीजिए कि उनमें से धुआं उठने लगे. \q1 \v 6 विद्युज्ज्वाला भेजकर मेरे शत्रुओं को बिखरा दीजिए; \q2 अपने बाण चला कर उनका आगे बढ़ना रोक दीजिए. \q1 \v 7 अपने उच्चासन से अपना हाथ बढ़ाइए; \q2 ढेर जल राशि में से मुझे \q1 बचाकर मेरा उद्धार कीजिए, \q2 उनसे जो विदेशी और प्रवासी हैं. \q1 \v 8 उनके मुख से झूठ बातें ही निकलती हैं, \q2 जिनका दायां हाथ धोखे के काम करनेवाला दायां हाथ है. \b \q1 \v 9 परमेश्वर, मैं आपके लिए मैं एक नया गीत गाऊंगा; \q2 मैं दस तार वाली वीणा पर आपके लिए स्तवन संगीत बनाऊंगा. \q1 \v 10 राजाओं की जय आपके द्वारा प्राप्‍त होती है, \q2 आप ही अपने सेवक दावीद को सुरक्षा प्रदान करते हैं, \b \q1 तलवार के क्रूर प्रहार से \v 11 मुझे छुड़ाइए; \q2 विदेशियों के हाथों से मुझे छुड़ा लीजिए. \q1 उनके ओंठ झूठ बातें ही करते हैं, \q2 जिनका दायां हाथ झूठी बातें करने का दायां हाथ है. \b \q1 \v 12 हमारे पुत्र अपनी युवावस्था में \q2 परिपक्व पौधों के समान हों, \q1 और हमारी पुत्रियां कोने के उन स्तंभों के समान, \q2 जो राजमहल की सुंदरता के लिए सजाये गए हैं. \q1 \v 13 हमारे अन्‍नभण्डार परिपूर्ण बने रहें, \q2 उनसे सब प्रकार की तृप्‍ति होती रहे. \q1 हमारी भेड़ें हजारों मेमने उत्पन्‍न करें, \q2 हमारे मैदान दस हजारों से भर जाएं; \q2 \v 14 सशक्त बने रहें हमारे पशु; \q1 उनके साथ कोई दुर्घटना न हो, \q2 वे प्रजनन में कभी विफल न हों, \q2 हमारी गलियों में वेदना की कराहट कभी न सुनी जाए. \q1 \v 15 धन्य है वह प्रजा, जिन पर कृपादृष्टि की ऐसी वृष्टि होती है; \q2 धन्य हैं वे लोग, जिनके परमेश्वर याहवेह हैं. \c 145 \cl स्तोत्र 145 \d एक स्तवन गीत. दावीद की रचना. \q1 \v 1 परमेश्वर, मेरे महाराजा, मैं आपका स्तवन करता हूं; \q2 मैं सदा-सर्वदा आपके नाम का गुणगान करूंगा. \q1 \v 2 प्रतिदिन मैं आपकी वंदना करूंगा, \q2 मैं सदा-सर्वदा आपके नाम का गुणगान करूंगा. \b \q1 \v 3 सर्वोच्च हैं याहवेह, स्तुति के सर्वाधिक योग्य; \q2 अगम है उनकी सर्वोच्चता. \q1 \v 4 आपके कार्य एक पीढ़ी से दूसरी को बताए जाएंगे; \q2 वे आपके महाकार्य की उद्घोषणा करेंगे. \q1 \v 5 आपकी प्रभुसत्ता के भव्य प्रताप पर \q2 तथा आपके अद्भुत कार्यों पर मैं मनन करता रहूंगा. \q1 \v 6 मनुष्य आपके अद्भुत कार्यों की सामर्थ्य की घोषणा करेंगे, \q2 मैं आपके महान कार्यों की उद्घोषणा करूंगा. \q1 \v 7 लोग आपकी बड़ी भलाई की कीर्ति का वर्णन करेंगे \q2 तथा उच्च स्वर में आपकी धार्मिकता का गुणगान करेंगे. \b \q1 \v 8 याहवेह उदार एवं कृपालु हैं, \q2 वह शीघ्र क्रोधित नहीं होते और बड़ी है उनकी करुणा. \b \q1 \v 9 याहवेह सभी के प्रति भले हैं; \q2 तथा उनकी कृपा उनकी हर एक कृति पर स्थिर रहती है. \q1 \v 10 याहवेह, आपके द्वारा बनाए गए समस्त सृष्टि आपके प्रति आभार व्यक्त करेंगे, \q2 और आपके समस्त सात्विक आपका स्तवन करेंगे. \q1 \v 11 वे आपके साम्राज्य की महिमा का वर्णन \q2 तथा आपके सामर्थ्य की उद्घोषणा करेंगे. \q1 \v 12 कि समस्त मनुष्यों को आपके महाकार्य ज्ञात हो जाएं \q2 और उन्हें आपके साम्राज्य के अप्रतिम वैभव का बोध हो जाए. \q1 \v 13 आपका साम्राज्य अनंत साम्राज्य है, \q2 तथा आपका प्रभुत्व पीढ़ी से पीढ़ी बना रहता है. \b \q1 याहवेह अपनी समस्त प्रतिज्ञाओं में निष्ठ हैं; \q2 उनके समस्त कार्यों में उनकी कृपा बनी रहती है. \q1 \v 14 उन सभी को, जो गिरने पर होते हैं, याहवेह संभाल लेते हैं \q2 और जो झुके जा रहे हैं, उन्हें वह थाम कर सीधे खड़ा कर देते हैं. \q1 \v 15 सभी की दृष्टि अपेक्षा में आपकी ओर लगी रहती है, \q2 और आप उपयुक्त अवसर पर उन्हें आहार प्रदान करते हैं. \q1 \v 16 आप अपना हाथ उदारतापूर्वक खोलते हैं; \q2 आप हर एक जीवित प्राणी की इच्छा को पूरी करते हैं. \b \q1 \v 17 याहवेह अपनी समस्त नीतियों में सीधे हैं, \q2 उनकी सभी गतिविधियों में सच्चा हैं. \q1 \v 18 याहवेह उन सभी के निकट होते हैं, जो उन्हें पुकारते हैं, \q2 उनके निकट, जो सच्चाई में उन्हें पुकारते हैं. \q1 \v 19 वह अपने श्रद्धालुओं की अभिलाषा पूर्ण करते हैं; \q2 वह उनकी पुकार सुनकर उनकी रक्षा भी करते हैं. \q1 \v 20 याहवेह उन सभी की रक्षा करते हैं, जिन्हें उनसे प्रेम है, \q2 किंतु वह दुष्टों को नष्ट कर देंगे. \b \q1 \v 21 मेरा मुख याहवेह का गुणगान करेगा. \q2 सभी सदा-सर्वदा \q2 उनके पवित्र नाम का स्तवन करते रहें. \c 146 \cl स्तोत्र 146 \q1 \v 1 याहवेह का स्तवन हो. \b \q1 मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो. \b \q1 \v 2 जीवन भर मैं याहवेह का स्तवन करूंगा; \q2 जब तक मेरा अस्तित्व है, मैं अपने परमेश्वर का स्तुति गान करता रहूंगा. \q1 \v 3 प्रधानों पर अपना भरोसा आधारित न करो—उस नश्वर मनुष्य पर, \q2 जिसमें किसी को छुड़ाने की कोई सामर्थ्य नहीं है. \q1 \v 4 जब उसके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं, वह भूमि में लौट जाता है; \q2 और ठीक उसी समय उसकी योजनाएं भी नष्ट हो जाती हैं. \q1 \v 5 धन्य होता है वह पुरुष, जिसकी सहायता का उगम याकोब के परमेश्वर में है, \q2 जिसकी आशा याहवेह, उसके परमेश्वर पर आधारित है. \b \q1 \v 6 वही स्वर्ग और पृथ्वी के, \q2 समुद्र तथा उसमें चलते फिरते सभी प्राणियों के कर्ता हैं; \q2 वह सदा-सर्वदा विश्वासयोग्य रहते हैं. \q1 \v 7 वही दुःखितों के पक्ष में न्याय निष्पन्‍न करते हैं, \q2 भूखों को भोजन प्रदान करते हैं. \q1 याहवेह बंदी को छुड़ाते हैं, \q2 \v 8 वह अंधों की आंखें खोल दृष्टि प्रदान करते हैं, \q1 याहवेह झुके हुओं को उठाकर सीधा खड़ा करते हैं, \q2 उन्हें नीतिमान पुरुष प्रिय हैं. \q1 \v 9 याहवेह प्रवासियों की हितचिंता कर उनकी रक्षा करते हैं \q2 वही हैं, जो विधवा तथा अनाथों को संभालते हैं, \q2 किंतु वह दुष्टों की युक्तियों को नष्ट कर देते हैं. \b \q1 \v 10 याहवेह का साम्राज्य सदा के लिए है, \q2 ज़ियोन, पीढ़ी से पीढ़ी तक तेरा परमेश्वर राजा हैं. \b \q1 याहवेह का स्तवन करो. \c 147 \cl स्तोत्र 147 \q1 \v 1 याहवेह का स्तवन करो. \b \q1 शोभनीय है हमारे परमेश्वर का गुणगान करना, \q2 क्योंकि यह सुखद है और स्तवन गान एक धर्ममय कार्य है! \b \q1 \v 2 येरूशलेम के निर्माता याहवेह हैं; \q2 वह इस्राएल में से ठुकराए हुओं को एकत्र करते हैं. \q1 \v 3 जिनके हृदय भग्न हैं, वह उन्हें चंगा करते हैं, \q2 वह उनके घावों पर पट्टी बांधते हैं. \q1 \v 4 उन्होंने ही तारों की संख्या निर्धारित की है; \q2 उन्होंने ही हर एक को नाम दिया है. \q1 \v 5 पराक्रमी हैं हमारे प्रभु और अपार है उनका सामर्थ्य; \q2 बड़ी है उनकी समझ. \q1 \v 6 याहवेह विनम्रों को ऊंचा उठाते \q2 तथा दुर्जनों को धूल में मिला देते हैं. \b \q1 \v 7 धन्यवाद के साथ याहवेह का स्तवन गान करो; \q2 किन्‍नोर की संगत पर परमेश्वर की वंदना करो. \b \q1 \v 8 वही आकाश को बादलों से ढांक देते हैं; \q2 वह पृथ्वी के लिए वर्षा की तैयारी करते \q2 और पहाड़ियों पर घास उपजाते हैं. \q1 \v 9 वही पशुओं के लिए आहार नियोजन \q2 तथा चिल्लाते हुए कौवे के बच्चों के लिए भोजन का प्रबंध करते हैं. \b \q1 \v 10 घोड़े के बल में उन्हें कोई रुचि नहीं है, \q2 और न ही किसी मनुष्य के शक्तिशाली पैरों में. \q1 \v 11 याहवेह को प्रसन्‍न करते हैं वे, जिनमें उनके प्रति श्रद्धा है, \q2 जिन्होंने उनके करुणा-प्रेम को अपनी आशा का आधार बनाया है. \b \q1 \v 12 येरूशलेम, याहवेह की महिमा करो; \q2 ज़ियोन, अपने परमेश्वर की वंदना करो. \b \q1 \v 13 क्योंकि याहवेह ने तुम्हारे द्वार के खंभों को सुदृढ़ बना दिया है; \q2 उन्होंने नगर के भीतर तुम्हारी संतान पर कृपादृष्टि की है. \q1 \v 14 तुम्हारी सीमाओं के भीतर वह शांति की स्थापना करते \q2 तथा तुमको सर्वोत्तम गेहूं से तृप्‍त करते हैं. \b \q1 \v 15 वह अपना आदेश पृथ्वी के लिए भेजा करते हैं; \q2 और उनका वचन अति गति से प्रसारित होता है. \q1 \v 16 वह हिमवृष्टि करते हैं, जो ऊन समान दिखता है; \q2 जब पाला पड़ता है, वह बिखरे हुए भस्म समान लगता है. \q1 \v 17 जब वह ओले के छोटे-छोटे टुकड़े से वृष्टि करते हैं, \q2 तो किसमें उस शीत को सहने की क्षमता है? \q1 \v 18 वह अपना आदेश भेजकर उसे पिघला देते हैं; \q2 वह हवा और जल में प्रवाह उत्पन्‍न करते हैं. \b \q1 \v 19 उन्होंने याकोब के लिए अपना संदेश \q2 तथा इस्राएल के लिए अपने अधिनियम तथा व्यवस्था स्पष्ट कर दिए. \q1 \v 20 ऐसा उन्होंने किसी भी अन्य राष्ट्र के लिए नहीं किया; \q2 वे उनकी व्यवस्था से अनजान हैं. \b \q1 याहवेह का स्तवन हो. \c 148 \cl स्तोत्र 148 \q1 \v 1 याहवेह का स्तवन हो. \b \q1 आकाशमंडल में याहवेह का स्तवन हो; \q2 उच्च स्थानों में उनका स्तवन हो. \q1 \v 2 उनके समस्त स्वर्गदूत उनका स्तवन करें; \q2 स्वर्गिक सेनाएं उनका स्तवन करें. \q1 \v 3 सूर्य और चंद्रमा उनका स्तवन करें; \q2 टिमटिमाते समस्त तारे उनका स्तवन करें. \q1 \v 4 सर्वोच्च आकाश, उनका स्तवन करे और वह जल भी, \q2 जो स्वर्ग के ऊपर संचित है. \b \q1 \v 5 ये सभी याहवेह की महिमा का स्तवन करें, \q2 क्योंकि इन सब की रचना, आदेश मात्र से हुई है. \q1 \v 6 उन्होंने इन्हें सदा-सर्वदा के लिए स्थापित किया है; \q2 उन्होंने राजाज्ञा प्रसारित की, जिसको टाला नहीं जा सकता. \b \q1 \v 7 पृथ्वी से याहवेह का स्तवन किया जाए, \q2 महासागर तथा उनके समस्त विशालकाय प्राणी, \q1 \v 8 अग्नि और ओले, हिम और धुंध, \q2 प्रचंड बवंडर उनका आदेश पालन करते हैं, \q1 \v 9 पर्वत और पहाड़ियां, \q2 फलदायी वृक्ष तथा सभी देवदार, \q1 \v 10 वन्य पशु और पालतू पशु, \q2 रेंगते जंतु और उड़ते पक्षी, \q1 \v 11 पृथ्वी के राजा और राज्य के लोग, \q2 प्रधान और पृथ्वी के समस्त शासक, \q1 \v 12 युवक और युवतियां, \q2 वृद्ध और बालक. \b \q1 \v 13 सभी याहवेह की महिमा का गुणगान करें, \q2 क्योंकि मात्र उन्हीं की महिमा सर्वोच्च है; \q2 उनका ही तेज पृथ्वी और आकाश से महान है. \q1 \v 14 अपनी प्रजा के लिए उन्होंने एक सामर्थ्यी राजा का उद्भव किया है, \q2 जो उनके सभी भक्तों के गुणगान का पात्र हैं, \q2 इस्राएली प्रजा के लिए, जो उनकी अत्यंत प्रिय है. \b \q1 याहवेह की स्तुति हो. \c 149 \cl स्तोत्र 149 \q1 \v 1 याहवेह का स्तवन हो. \b \q1 याहवेह के लिए एक नया गीत गाओ, \q2 भक्तों की सभा में उनका स्तवन किया जाए. \b \q1 \v 2 इस्राएल अपने कर्ता में आनंदित हो; \q2 ज़ियोन की सन्तति अपने राजा में उल्‍लसित हो. \q1 \v 3 वे उनकी महिमा में नृत्य के साथ स्तवन करें; \q2 वे खंजरी और किन्‍नोर की संगत पर संगीत गाया करें. \q1 \v 4 क्योंकि याहवेह का आनंद उनकी प्रजा में मगन है; \q2 वह भोले पुरुष को उद्धार से सुशोभित करते हैं. \q1 \v 5 सात्विक उनके पराक्रम में प्रफुल्लित रहें, \q2 यहां तक कि वे अपने बिछौने पर भी हर्षोल्लास में गाते रहें. \b \q1 \v 6 उनके कण्ठ में परमेश्वर के लिए सर्वोत्कृष्ट वंदना \q2 तथा उनके हाथों में दोधारी तलवार हो. \q1 \v 7 वे अन्य राष्ट्रों पर प्रतिशोध \q2 तथा उनकी प्रजा पर दंड के लिए तत्पर रहें, \q1 \v 8 कि उनके राजा बेड़ियों में बंदी बनाए जाएं \q2 और उनके अधिकारी लोहे की जंजीरों में, \q1 \v 9 कि उनके लिए निर्धारित दंड दिया जाए, \q2 यह उनके समस्त भक्तों का सम्मान होगा. \b \q1 याहवेह का स्तवन हो. \c 150 \cl स्तोत्र 150 \q1 \v 1 याहवेह का स्तवन हो. \b \q1 परमेश्वर का उनके मंदिर में स्तवन हो; \q2 अत्यंत विशाल आकाश में उनका स्तवन हो. \q1 \v 2 उनके अद्भुत कार्यों के लिए उनका स्तवन हो; \q2 उनके सर्वोत्कृष्ट महानता के योग्य उनका स्तवन हो. \q1 \v 3 तुरही के साथ उनका स्तवन हो, \q2 वीणा तथा किन्‍नोर की संगत पर उनका स्तवन हो, \q1 \v 4 खंजरी और नृत्य के साथ उनका स्तवन हो, \q2 तन्तु एवं बांसुरी के साथ उनका स्तवन हो, \q1 \v 5 झांझ की ध्वनि की संगत पर उनका स्तवन हो, \q2 झांझ की उच्च झंकार में उनका स्तवन हो. \b \q1 \v 6 हर एक प्राणी, जिसमें जीवन का श्वास है, याहवेह का स्तवन करे. \b \q1 याहवेह का स्तवन हो!