\id LEV - Biblica® Open Hindi Contemporary Version (Updated 2021) \ide UTF-8 \h लेवी \toc1 लेवी व्यवस्था \toc2 लेवी \toc3 लेवी \mt1 लेवी व्यवस्था \c 1 \s1 होमबलि के लिए विधान \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को आह्वान कर उन्हें मिलनवाले तंबू में से यह आदेश दिया, \v 2 “इस्राएल की प्रजा को यह आदेश दो: ‘जब कभी तुममें से कोई व्यक्ति याहवेह के लिए बलि अर्पण करें, वह यह बलि किसी गाय-बैलों या भेड़-बकरियों में से लेकर आए. \p \v 3 “ ‘यदि उसकी होमबलि ढोरों से है, तो वह एक निर्दोष नर पशु को बलि करे, वह इस निर्दोष नर पशु को मिलनवाले तंबू के प्रवेश द्वार पर बलि करे कि वह याहवेह द्वारा स्वीकृत हो. \v 4 वह व्यक्ति अपना हाथ इस पशु के सिर पर रखे कि यह उसके पक्ष में प्रायश्चित बलि के रूप में स्वीकार की जाए. \v 5 वह याहवेह के सामने इस बछड़े को बलि करे और अहरोन के पुत्र, जो पुरोहित हैं, इसके रक्त को उस वेदी के चारों ओर छिड़क दें, जो मिलनवाले तंबू के प्रवेश पर स्थित है. \v 6 फिर तुम इस पशु की खाल उतारकर इसे टुकड़ों में काट देना. \v 7 अहरोन के पुत्र, जो पुरोहित हैं, वेदी पर अग्नि रखें और इस अग्नि पर लकड़ियों को सजाकर रखें. \v 8 अहरोन के पुत्र, जो पुरोहित हैं; टुकड़ों, सिर और चर्बी को जलती हुई लकड़ियों पर, जो वेदी पर हैं, सजाकर रखें. \v 9 किंतु तुम उस पशु की आंतों और टांगों को जल से धोना और पुरोहित इन सभी को होमबलि के लिए वेदी पर दहन करे. यह याहवेह के लिए सुखद-सुगंध की होमबलि होगी. \p \v 10 “ ‘किंतु यदि उसकी होमबलि भेड़-बकरियों में से है, तो वह एक निर्दोष नर पशु को अर्पण करे. \v 11 वह उसका वध याहवेह के सामने वेदी के उस ओर करे, जो उत्तरी दिशा की ओर है, और अहरोन के पुत्र, जो पुरोहित हैं, इसके रक्त को वेदी के चारों ओर छिड़क दें. \v 12 फिर वह इसके सिर और इसकी चर्बी को टुकड़ों में काट दे, और पुरोहित इन्हें उन लकड़ियों पर जो अग्नि पर हैं, सजाकर रखें, \v 13 किंतु आंतों और पैरों को वह जल से धोए और पुरोहित इन सभी को होमबलि के लिए वेदी पर जलाए, यह याहवेह के लिए सुखद-सुगंध की होमबलि होगी. \p \v 14 “ ‘किंतु यदि वह याहवेह के लिए पक्षियों की होमबलि चढ़ाता है, तो वह अपनी बलि के लिए कपोत अथवा कबूतर के बच्‍चे लेकर आए. \v 15 पुरोहित इसे वेदी पर लाए; उसका सिर मरोड़ कर उसका वध करे, तथा उसे वेदी पर जलाए. इसका रक्त वेदी की एक ओर बहाए जाए. \v 16 वह उसके गले की थैली और परों को वेदी के पूर्वी ओर, जो राख डालने का स्थान है, फेंक दे. \v 17 फिर वह उसके पंख पकड़कर फाड़े, किंतु उसे अलग न करे और पुरोहित इन सभी को होमबलि के लिए वेदी पर जलाए. यह याहवेह के लिए सुखद-सुगंध की होमबलि होगी. \c 2 \s1 अन्‍नबलि के लिए विधान \p \v 1 “ ‘जब याहवेह के लिए बलि के रूप में कोई अन्‍नबलि लेकर आए, तो यह भेंट महीन आटे की हो. वह इस पर तेल उण्डेले और लोबान रखे. \v 2 फिर वह इसे अहरोन के पुत्रों के पास, जो पुरोहित हैं, लाए. वह उसमें से एक मुट्ठी भर महीन आटा, तेल एवं लोबान ले. पुरोहित उसको स्मरण दिलाने वाले भाग के रूप में वेदी पर जलाए. यह अग्निबलि याहवेह के लिए सुखद-सुगंध होगी. \v 3 अन्‍नबलि का बचा हुआ भाग अहरोन व उनके पुत्रों के लिए निर्धारित है; यह याहवेह के लिए अग्निबलियों का परम पवित्र भाग है. \p \v 4 “ ‘यदि तुम्हारी बलि भट्टी में पकी हुई अन्‍नबलि हो, तो यह सबसे अच्छे आटे से बनी हो. यह तेल में गूंधी हुई, खमीर रहित रोटी या तेल से चुपड़ी हुई खमीर रहित पपड़ी हो. \v 5 यदि तुम्हारी बलि तवे पर पकी हुई अन्‍नबलि है, तो यह तेल में गूंधे हुए खमीर रहित, महीन आटे की हो. \v 6 तुम इसे टुकड़े-टुकड़े कर इस पर तेल उण्डेलना. यह एक अन्‍नबलि है. \v 7 यदि तुम्हारी बलि कड़ाही में पकी हुई अन्‍नबलि है, तो यह तेल में गूंधे हुए महीन आटे की हो. \v 8 जब तुम याहवेह के सामने इन वस्तुओं से बनी अन्‍नबलि लेकर आओ, तो यह पुरोहित के पास लाया जाए और वह इसे वेदी पर लेकर आए. \v 9 फिर पुरोहित इस अन्‍नबलि से इसका स्मरण दिलाने वाला भाग लेकर वेदी पर अग्निबलि के रूप में जलाए. यह याहवेह के लिए सुखद-सुगंध की अग्निबलि होगी. \v 10 अन्‍नबलि का बचा हुआ भाग अहरोन व उनके पुत्रों के लिए निर्धारित है; यह याहवेह के लिए अग्निबलियों का परम पवित्र भाग है. \p \v 11 “ ‘कोई भी अन्‍नबलि, जो तुम याहवेह के सामने लेकर आओ, वह खमीर के साथ न बनाई जाये, क्योंकि तुम याहवेह को न तो खमीर की और न ही मधु की अग्निबलि भेंट करना. \v 12 तुम इन्हें याहवेह के सामने पहली उपज की बलि के रूप में भेंट करना. किंतु ये वेदी पर याहवेह को सुखद-सुगंध के लिए भेंट न की जाएं. \v 13 तुम अपनी सब अन्‍न बलियों में नमक चढ़ाना. तुम्हारी अन्‍नबलि से तुम्हारे परमेश्वर की वाचा का नमक अलग न रहे, अपनी सब बलियों के साथ तुम नमक भेंट करना. \p \v 14 “ ‘यदि तुम याहवेह को पहले फल की बलि भेंट करो, तो अपनी पहले फल बलि में अग्निबलि के लिए अग्नि में भुने गए नए अन्‍न की बालें लेकर आना. \v 15 तुम इस पर तेल लगाना और लोबान रखना; यह एक अन्‍नबलि है. \v 16 पुरोहित इसके स्मरण के लिए निर्धारित अंश, छिलका निकाला गया अन्‍न, तेल और इसके सारे लोबान के साथ जलाकर अग्निबलि के रूप में याहवेह को भेंट कर दे. \c 3 \s1 मेल बलि के लिए विधान \p \v 1 “ ‘यदि उसकी बलि एक मेल बलि है और यदि वह गाय-बैलों से एक पशु की बलि करता है, चाहे वह नर हो अथवा मादा, तो वह निर्दोष पशु को याहवेह के सामने भेंट करे. \v 2 वह अपना हाथ इस बलि के सिर पर रखे और मिलनवाले तंबू के द्वार पर इसका वध करे, फिर अहरोन के पुत्र, जो पुरोहित हैं, इसका रक्त वेदी के चारों ओर छिड़क दें. \v 3 मेल बलि के अर्पण द्वारा वह याहवेह को अग्निबलि स्वरूप यह अर्पित करे; अर्थात् वह चर्बी जो आंतों को ढांपती है और वह चर्बी, जो आंतों पर लिपटी हुई है, \v 4 दोनों गुर्दों के साथ उनकी चर्बी जो कमर पर होती है, तथा कलेजे के ऊपर की झिल्ली, इन्हें वह गुर्दों सहित अलग कर दे. \v 5 फिर अहरोन के पुत्र इसे वेदी पर अग्निबलि के ऊपर रखकर जलाएं जो आग पर रखी हुई है. यह याहवेह के लिए सुखद-सुगंध की अग्निबलि है. \p \v 6 “ ‘किंतु यदि याहवेह के लिए मेल बलि के रूप में उसकी बलि भेड़-बकरियों में से है, तो वह इसमें से निर्दोष नर अथवा मादा को बलि करे. \v 7 यदि वह बलि के लिए एक मेमने को भेंट कर रहा है, तो वह इसे याहवेह को इस प्रकार भेंट करें: \v 8 वह इस बलि के सिर पर अपना हाथ रखे और मिलनवाले तंबू के सामने इसका वध करे, अहरोन के पुत्र इसके रक्त को वेदी के चारों ओर छिड़क दें. \v 9 मेल बलि की बलि से वह याहवेह के लिए अग्निबलि के रूप में यह अर्पित करे: इसकी चर्बी व मोटी पूंछ को वह रीढ़ से अलग करेगा, वह चर्बी जो आंतों को ढांपती है, वह संपूर्ण चर्बी, जो आंतों पर है, \v 10 दोनों गुर्दे उस चर्बी के साथ जो कमर पर है तथा कलेजे के ऊपर की झिल्ली जिसे वह गुर्दों सहित अलग करेगा. \v 11 फिर पुरोहित इसे वेदी पर अग्नि में आहार स्वरूप जलाए. यह याहवेह के लिए अग्निबलि है. \p \v 12 “ ‘यदि वह बलि में एक बकरी भेंट कर रहा है, तो वह इसे याहवेह के सामने भेंट करे, \v 13 वह अपना हाथ इसके सिर पर रखे और मिलनवाले तंबू के सामने इसका वध करे, अहरोन के पुत्र इसके रक्त को वेदी के चारों ओर छिड़क दें. \v 14 इसमें से वह याहवेह के लिए अग्निबलि के रूप में ये प्रस्तुत करे: वह चर्बी जो आंतों को ढांपती है, वह पूरी चर्बी जो आंतों पर है, \v 15 दोनों गुर्दे उस चर्बी के साथ जो कमर पर है, तथा कलेजे के ऊपर की झिल्ली जिसे वह गुर्दों सहित अलग करेगा. \v 16 फिर पुरोहित इसे वेदी पर आहार स्वरूप, जलते हुए धुएं में भेंट करे; सुखद-सुगंध के लिए एक अग्निबलि. पूरी चर्बी याहवेह की है. \p \v 17 “ ‘यह तुम्हारी पीढ़ियों तथा तुम्हारे निवासों में एक हमेशा की विधि है, तुम चर्बी को और रक्त को कभी न खाओगे.’ ” \c 4 \s1 पापबलि के लिए विधान \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को आज्ञा दी: \v 2 “इस्राएल की प्रजा को यह आज्ञा दो, ‘यदि कोई व्यक्ति अनजाने में उन कार्यों को करता है, जो याहवेह की व्यवस्थाओं में मना हैं— \p \v 3 “ ‘यदि कोई अभिषिक्त पुरोहित पाप करता है, जिससे कि वह प्रजा पर भी दोष ले आता है, तब वह उस पाप के लिए, जो उसने किया है, याहवेह के सामने एक निर्दोष बछड़े को पापबलि\f + \fr 4:3 \fr*\fq पापबलि \fq*\ft या \ft*\fqa पाप निवारण का अर्पण\fqa*\f* के रूप में भेंट करे! \v 4 उस बैल को वह याहवेह के सामने, मिलनवाले तंबू के द्वार पर, लेकर आए, अपना हाथ उस बैल के सिर पर रखे और याहवेह के सामने उसका वध करे. \v 5 फिर वह अभिषिक्त पुरोहित उस बैल के रक्त में से कुछ रक्त लेकर उसे मिलनवाले तंबू में लेकर आए, \v 6 पुरोहित अपनी उंगली उस रक्त में डुबोकर उसमें से कुछ रक्त को सात बार याहवेह के सामने पवित्र स्थान के पर्दे के सामने छिड़के. \v 7 पुरोहित कुछ रक्त को सुगंधधूप वेदी के सींगों पर भी डाले, जो याहवेह के सामने मिलनवाले तंबू में है. पुरोहित बैल के पूरे रक्त को होमबलि की वेदी के आधार पर उंडेल दे, जो मिलनवाले तंबू के द्वार पर है. \v 8 वह पापबलि के लिए प्रयोग किए जानेवाले बैल की पूरी चर्बी उससे हटा दे; वह चर्बी, जो आंतों को ढकती है, वह पूरी चर्बी, जो आंतों पर है, \v 9 दोनों गुर्दे उस चर्बी के साथ, जो कमर पर है तथा कलेजे के ऊपर की झिल्ली, जिसे वह गुर्दों सहित अलग करेगा. \v 10 ठीक वैसे ही जैसे वह मेल बलि के लिए प्रयोग किए जानेवाले बैल से हटाई गई; पुरोहित होमबलि की वेदी पर इसे धुएं में भेंट करे, \v 11 किंतु बैल की खाल और इसका सारा मांस, सिर, टांगें, आंतें तथा इस प्रक्रिया में उत्पन्‍न गंदगी, \v 12 तथा बैल के शेष अंश को छावनी के बाहर, एक साफ़ स्थान पर, जहां राख फेंक दी जाती है, लेकर आए. यहां वह लकड़ियों पर इसको जलाए. \p \v 13 “ ‘यदि इस्राएली प्रजा कोई विसंगत कार्य करे, जिसके विषय में सभा अनजान है, और वे उन कार्यों के कारण दोषी ठहरें, जो याहवेह की ओर से मना हैं; \v 14 जब सभा के सामने पाप प्रकट हो जाए, तब सभा पापबलि के लिए ढोरों में से एक बैल को मिलनवाले तंबू के सामने लेकर आए. \v 15 सभा के प्रधान याहवेह के सामने अपना हाथ बैल के सिर पर रखें और वह याहवेह के सामने बैल का वध करे. \v 16 अभिषिक्त पुरोहित बैल के रक्त में से कुछ रक्त मिलनवाले तंबू में लेकर आए. \v 17 पुरोहित अपनी उंगली बैल के रक्त में डुबाकर उसमें से कुछ रक्त को सात बार याहवेह के सामने पवित्र स्थान के पर्दे के सामने छिड़के. \v 18 पुरोहित कुछ रक्त को उस वेदी की सींगों पर भी डाले, जो याहवेह के सामने मिलनवाले तंबू में है, पुरोहित बैल के सारे रक्त को होमबलि की वेदी के आधार पर उंडेल दे, जो मिलनवाले तंबू के द्वार पर है. \v 19 वह उस बैल से उसकी सारी चर्बी को हटाकर उस चर्बी को वेदी पर जलाए. \v 20 वह इस बैल के साथ भी ठीक वैसा ही करे, जैसा उसने पापबलि के बैल के साथ किया था. पुरोहित प्रजा के लिए प्रायश्चित करे; और उन्हें क्षमा की जाएगी. \v 21 फिर वह इस बैल को छावनी के बाहर लेकर आए और इसको उसी प्रकार जलाए, जैसे उसने पहले बैल को जलाया था; यह सभा के लिए पापबलि है. \p \v 22 “ ‘जब कोई प्रधान पुरुष अनजाने में पाप करता है, यानी वे कार्य करता है, जो याहवेह अपने परमेश्वर की ओर से मना हैं, और जब उसे पाप-बोध होता है, \v 23 और जो पाप उसने किया है, वह प्रकट हो जाता है, तो वह अपनी बलि के लिए एक निर्दोष रोमयुक्त बकरा लेकर आए, \v 24 वह अपना हाथ उस बकरे के सिर पर रखे और उस स्थान पर उसको बलि कर दे, जहां वे याहवेह के सामने होमबलि के पशु को बलि करते हैं; यह एक पापबलि है. \v 25 फिर पुरोहित अपनी उंगली से उस पापबलि से कुछ रक्त लेकर होमबलि की वेदी की सींगों पर लगाए और इसके बचे हुए रक्त को वह होमबलि की वेदी के आधार पर उंडेल दे. \v 26 वह इसकी सारी चर्बी को ठीक वैसे ही वेदी पर जला दे, जैसे उसने मेल बलि को की थी. इस प्रकार पुरोहित उस प्रधान द्वारा किए गए पाप के लिए प्रायश्चित करे; और उसे क्षमा प्रदान कर दी जाएगी. \p \v 27 “ ‘जब कोई जनसाधारण व्यक्ति अनजाने में उन कार्यों को करने के द्वारा पाप करता है, जो याहवेह ने न करने की आज्ञा दी है, और इसके द्वारा वह दोषी हो जाता है, \v 28 तथा उसका वह पाप, जो उससे हो गया है उस पर प्रकट कर दिया जाता है, तो वह अपने उस पाप की बलि के लिए, जो उसने किया है, एक निर्दोष बकरी लेकर आए. \v 29 वह अपना हाथ उस पापबलि के सिर पर रखे तथा होमबलि के स्थान पर इस पापबलि का बलिदान करे दे. \v 30 फिर पुरोहित अपनी उंगली से इसके कुछ रक्त को लेकर होमबलि वेदी की सींगों पर लगाए और इसके बचे हुए रक्त को होमबलि की वेदी के आधार पर उंडेल दे. \v 31 फिर वह इसकी सारी चर्बी को हटा दे, ठीक जैसे मेल बलि पर से चर्बी हटाई गई थी, पुरोहित याहवेह को सुखद-सुगंध के लिए इसे वेदी पर अग्नि में भेंट कर दे. इस प्रकार पुरोहित उसके लिए प्रायश्चित करेंगे, और उसे पाप क्षमा दी जाएगी. \p \v 32 “ ‘किंतु यदि वह बलि स्वरूप एक मेमना पापबलि के लिए लेकर आता है, तो यह एक निर्दोष मादा हो. \v 33 वह अपना हाथ उस पशु के सिर पर रखे तथा पापबलि के लिए इसकी बलि उस स्थान पर कर दे, जहां होमबलि पशु को बलि किया जाता है. \v 34 पुरोहित इस पापबलि के कुछ रक्त में से अपनी उंगली से होमबलि की वेदी के सींगों पर लगाए और इसके बचे हुए रक्त को वह वेदी के आधार पर उंडेल दे. \v 35 फिर वह इसकी सारी चर्बी को हटा दे, ठीक जैसे मेल बलि के मेमने से चर्बी हटाई गई थी, पुरोहित इसे याहवेह को होमबलि के लिए वेदी पर अग्नि में भेंट कर दे. इस प्रकार पुरोहित उसके इस पाप के लिए उसका प्रायश्चित करेगा और उसे क्षमा दे दी जाएगी. \c 5 \p \v 1 “ ‘यदि कोई व्यक्ति किसी पाप का गवाह है, जिसे उसने होते हुए देखा है, अथवा उसे इसका अहसास है और सार्वजनिक रूप से शपथ दिए जाने के बाद भी वह इसके विषय में मौन रहता है, तो वह उस अपराध का भार स्वयं उठाएगा. \p \v 2 “ ‘यदि कोई व्यक्ति किसी अशुद्ध वस्तु का स्पर्श करे, चाहे वह किसी अशुद्ध जंगली पशु का शव हो, अथवा किसी अन्य पालतू पशु का शव अथवा किसी ऐसे अशुद्ध जीव का शव हो जो रेंगता हो, और यदि वह इससे अनजान है कि वह अशुद्ध हो चुका है, किंतु इसके बाद उसे इसका अहसास हो जाता है, तो वह दोषी हो जाएगा. \v 3 यदि वह किसी मानव मलिनता का स्पर्श करे, चाहे वह किसी भी प्रकार की मलिनता हो और वह इससे अशुद्ध हो जाता है और वह इससे अनजान है, किंतु इसके बाद उसे इसका अहसास हो जाता है, तो वह दोषी हो जाएगा. \v 4 अथवा यदि कोई व्यक्ति बिना सोचे विचारे, भले अथवा बुरे की शपथ लेता है, चाहे कोई भी विषय हो, कोई व्यक्ति बिना सोचे विचारे, शपथ लेता है तथा यह उसे मालूम नहीं है, और इसके बाद यह उस पर प्रकट हो जाता है, तो इसमें से किसी एक विषय में वह दोषी हो जाएगा. \v 5 जब इसमें से किसी भी विषय के दोष का उसे अहसास होता है, और वह उस पाप को स्वीकार करे, जो उसने किया है, \v 6 तो जो पाप उसने किया है, उसके लिए वह याहवेह के सामने अपनी दोष बलि लेकर आए. वह भेड़-बकरियों से एक मादा मेमना, अथवा एक बकरी पापबलि\f + \fr 5:6 \fr*\ft या \ft*\fqa पाप निवारण का अर्पण\fqa*\f* के लिए लेकर आए कि पुरोहित उसके द्वारा उसके पाप के लिए प्रायश्चित करे. \p \v 7 “ ‘किंतु यदि उसके लिए एक मेमना भेंट करना संभव नहीं है, तो जो पाप उसने किया है, उसके लिए वह याहवेह के सामने अपनी दोष बलि के लिए दो कपोत अथवा दो कबूतर के बच्‍चे लेकर आए; एक पापबलि के लिए और दूसरा होमबलि के लिए. \v 8 वह इसे पुरोहित के पास लाए, वह सर्वप्रथम उसे भेंट करे, जो पापबलि के लिए निर्धारित है. वह इसका सिर इसके गर्दन के पास से मरोड़ दे, किंतु पूरी तरह अलग न करे. \v 9 वह पापबलि का कुछ रक्त वेदी के दूसरे सिरे पर छिड़क दे, जबकि बचा हुआ रक्त वेदी के आधार पर बहा दिया जाए. यह एक पापबलि है. \v 10 फिर वह विधि के अनुसार होमबलि के रूप में दूसरे पक्षी को तैयार करे, कि पुरोहित उसके द्वारा उसके पाप के लिए, जो उस व्यक्ति ने किया है, प्रायश्चित करे, और उसका यह पाप क्षमा कर दिया जाएगा. \p \v 11 “ ‘किंतु यदि उसके लिए दो कपोत अथवा दो कबूतर के बच्‍चे भी भेंट करने के लिए पर्याप्‍त साधन नहीं हैं, तो जो पाप उसने किया है, उसकी बलि के लिए वह डेढ़ किलो\f + \fr 5:11 \fr*\fq डेढ़ किलो \fq*\ft मूल में \ft*\fqa एफाह का दसवां भाग\fqa*\f* महीन आटा पापबलि के लिए लेकर आए. किंतु इस पर तेल न लगाए और न ही इस पर लोबान रखे, क्योंकि यह एक पापबलि है. \v 12 वह इसे पुरोहित के पास लेकर आए और पुरोहित इसमें से मुट्ठी भर महीन आटे को इसके स्मरण दिलाने वाले भाग के रूप में लेकर याहवेह की अन्य अग्निबलियों के साथ वेदी पर जलाए. यह एक पापबलि है. \v 13 इस प्रकार पुरोहित इनमें से किसी भी पाप के लिए, जो उस व्यक्ति ने किया है, प्रायश्चित करे, और उसका यह पाप क्षमा कर दिया जाएगा. इसका शेष भाग अन्‍नबलि के समान पुरोहित का होगा.’ ” \s1 दोष बलि \p \v 14 फिर याहवेह ने मोशेह को यह आदेश दिया: \v 15 “यदि कोई व्यक्ति विश्वासघात करे तथा अनजाने में याहवेह की पवित्र वस्तुओं के संदर्भ में पाप करे, तो वह अपने द्वारा किए गए विश्वासघात के लिए याहवेह के सामने दोष बलि के रूप में भेड़-बकरियों में से एक निर्दोष मेढ़े भेंट करे, जिसका मूल्य पवित्र स्थान के शेकेल के अनुसार चांदी का एक शेकेल हो; यह दोष बलि है. \v 16 उसने जिस पवित्र वस्तु के संदर्भ में पाप किया है, उसके लिए वह नुकसान की भरपाई करे. वह इसमें इसके पांचवें भाग को जोड़कर पुरोहित को सौंप दे. पुरोहित दोष बलि के मेढ़े के साथ उसके लिए प्रायश्चित करे, और उसका यह पाप क्षमा कर दिया जाएगा. \p \v 17 “यदि कोई व्यक्ति पाप करता है, और कोई भी वह कार्य करता है, जो याहवेह की ओर से मना किया गया है, यद्यपि वह इससे अनजान है, तो भी वह दोषी है और अपने दंड का भार उठाएगा. \v 18 फिर वह दोष बलि के लिए भेड़-बकरियों में से उपयुक्त मूल्य का एक निर्दोष मेंढ़ा ले आए कि पुरोहित उस व्यक्ति द्वारा किए गए उस विश्वासघात के लिए, जो उसने अनजाने में किया है, प्रायश्चित करे, और उसका यह विश्वासघात क्षमा कर दिया जाएगा. \v 19 यह एक दोष बलि है; निःसंदेह वह याहवेह की दृष्टि में दोषी था.” \c 6 \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को कहा, \v 2 “जब कोई व्यक्ति पाप करे, याहवेह के विरुद्ध विश्वासघात करे, तथा अपने पड़ोसी द्वारा सौंपी गई धरोहर अथवा सुरक्षा के संदर्भ में उससे छल करे, अथवा उसे लूटे, अथवा अपने पड़ोसी को सताए, \v 3 अथवा उसे कोई खोई हुई वस्तु प्राप्‍त हुई हो और वह इसके विषय में झूठ बोल कर झूठी शपथ खाए, यानी इनमें से किसी भी कार्य को करने के द्वारा पाप करे; \v 4 इसका प्रावधान यह होगा: जब वह पाप करे और उसे इसका अहसास हो जाए, तब वह लूटी गई सामग्री, अथवा वह जो उत्पीड़न से प्राप्‍त किया गया है, अथवा जो धरोहर उसे सौंपी गई थी, अथवा जो खोई हुई वस्तु उसे प्राप्‍त हुई थी, \v 5 अथवा किसी ऐसी वस्तु के संदर्भ में जिसके लिए उसने झूठी शपथ खाई थी; उसे इसकी पूरी भरपाई करनी होगी, और उसे इसका पांचवां भाग अतिरिक्त देना होगा. जिस दिन वह अपनी दोष बलि भेंट करे, उस दिन वह उस व्यक्ति को ये सब वस्तुएं लौटा दे जिसकी ये वस्तुएं थीं. \v 6 तब वह उपयुक्त मूल्य का निर्दोष मेढ़ा दोष बलि के रूप में याहवेह के लिए भेड़-बकरियों में से पुरोहित के पास लेकर आए, यह दोष बलि है, \v 7 और पुरोहित याहवेह के सामने उसके लिए प्रायश्चित सम्पन्‍न करे. इस प्रकार उसे इनमें से किसी भी दोष के लिए क्षमा प्रदान कर दी जाएगी.” \s1 पुरोहित और बलियां \p \v 8 याहवेह ने मोशेह को यह आदेश दिया, \v 9 “अहरोन और उनके पुत्रों को यह आदेश दो, ‘होमबलि के लिए विधि यह है: होमबलि पूरी रात से लेकर सुबह तक वेदी वेदी के चूल्हे पर ही रहे, और वेदी पर अग्नि जलती रहे. \v 10 पुरोहित अपने सफ़ेद मलमल के वस्त्र और अपनी देह पर मलमल की जांघिया पहने; वह वेदी की राख, जो अग्नि द्वारा जलाई गई है, उठाए और उसे वेदी की एक ओर रख दे. \v 11 इसके बाद वह अपने ये वस्त्र उतार दूसरे वस्त्र पहने और राख को छावनी के बाहर एक स्वच्छ स्थान पर ले जाए. \v 12 वेदी पर अग्नि जलती रहे. यह बुझने न पाए, किंतु पुरोहित हर सुबह इस पर लकड़ियां रख दे; इन पर होमबलि को रखे, और इस पर मेल बलि के चर्बी वाले भाग को अग्नि में जलाया करे. \v 13 वेदी पर अग्नि लगातार जलती रहे. यह बुझने न पाए. \s1 अन्‍नबलि \p \v 14 “ ‘अन्‍नबलि के लिए विधि यह है: अहरोन के पुत्र इसे याहवेह के लिए वेदी के सामने प्रस्तुत करें. \v 15 उनमें से एक पुरोहित इस अन्‍नबलि में से एक मुट्ठी भर आटा, तेल तथा इस पर रखे सारे लोबान को ले, और इसे वेदी की अग्नि में जलाए. यह याहवेह को स्मरण बलि के लिए भेंट की गई सुखद-सुगंध है. \v 16 इसमें से जो भाग बच जाए, अहरोन और उसके पुत्र उसका इस्तेमाल करें. इसका इस्तेमाल पवित्र स्थान में बिना खमीर की रोटी के रूप में किया जाए; उन्हें इसका इस्तेमाल मिलनवाले तंबू के आंगन में ही करना है. \v 17 इसे खमीर के साथ पकाया न जाए; मैंने इसे उनके भाग के रूप में अपनी होमबलि में से प्रदान किया है, यह पापबलि तथा दोष बलि के समान परम पवित्र है. \v 18 अहरोन के पुत्रों में से हर एक इसका इस्तेमाल करे; याहवेह को भेंट की गई होमबलियों में से तुम्हारी पीढ़ियों के लिए यह हमेशा की विधि है. जो कोई इन बलियों को छुएगा, वह अपने आप पवित्र हो जाएगा\f + \fr 6:18 \fr*\fq पवित्र हो जाएगा \fq*\ft या \ft*\fqa पवित्र होना ज़रूरी है; 27 में भी इसके समान\fqa*\f*.’ ” \p \v 19 याहवेह ने मोशेह को यह भी आदेश दिया, \v 20 “जब कभी अहरोन की पौरोहितिक परंपरा के अंतर्गत किसी पुरोहित का अभिषेक किया जाए, तो अहरोन और उनके पुत्र याहवेह को यह बलि भेंट करें; उस बलि में नियमित अन्‍नबलि के रूप में सबसे उत्तम डेढ़ किलो\f + \fr 6:20 \fr*\ft मूल: \ft*\fqa एफाह का दसवां भाग\fqa*\f* आटा भेंट किया जाए; आधा सुबह और आधा शाम को. \v 21 इसे तवे पर तेल के साथ पकाया जाए. जब यह पूरी तरह पक जाए, तब तुम उसे लाकर टुकड़ों में याहवेह को सुखद-सुगंध के रूप में अन्‍नबलि चढ़ाना. \v 22 उसके पुत्रों में से जो उसके स्थान पर पुरोहित अभिषिक्त किया जाएगा, वह उस भेंट चढ़ाए. यह याहवेह के लिए अग्नि में जलाई हुई हमेशा की विधि के रूप में भेंट पूरी अन्‍नबलि भेंट हो. \v 23 पुरोहित की हर एक अन्‍नबलि; यह पूरी तरह से जलाई जाए. इसको खाया न जाए.” \s1 पापबलि \p \v 24 याहवेह ने मोशेह को यह आदेश दिया, \v 25 “अहरोन और उसके पुत्रों को यह आदेश दो, ‘पापबलि के लिए विधि यह है: जिस स्थान पर होमबलि के लिए निर्धारित पशु का वध किया जाता है, उसी स्थान पर याहवेह के सामने पापबलि के लिए निर्धारित पशु का वध किया जाए; यह परम पवित्र है. \v 26 इसको वही पुरोहित खाए, जो इसे पाप के लिए भेंट करता है. ज़रूरी है कि इसको सिर्फ़ पवित्र स्थान में ही खाया जाए; मिलाप वाले तंबू के आंगन में ही. \v 27 जो कोई इसके मांस को छू लेगा, वह पवित्र हो जाएगा; यदि उसके रक्त के छींटे किसी वस्त्र पर आ पड़ें, तो ज़रूरी है कि इसे किसी पवित्र स्थान में ही धो दिया जाए. \v 28 मिट्टी के जिस बर्तन में इसे पकाया गया था, उसे तोड़ दिया जाए; यदि इसे पीतल के बर्तन में पकाया गया हो, तो उस पात्र को रगड़-रगड़ कर पानी से धो दिया जाए. \v 29 अहरोन के पुत्रों में से हर एक पुरुष इसको खा सकता है; यह परम पवित्र है. \v 30 किंतु, किसी पापबलि को न खाया जाए, जिसका रक्त पवित्र स्थान के मिलनवाले तंबू में प्रायश्चित के लिए लाया गया है, उसको, इस अग्नि में जला दिया जाए. \c 7 \s1 दोष बलि \p \v 1 “ ‘दोष बलि जो कि परम पवित्र है, उसके लिए तय की गयी विधि यह है: \v 2 जिस स्थान पर वे होमबलि के लिए निर्धारित पशु का वध करते हैं, उसी स्थान पर दोष बलि के लिए निर्धारित पशु का भी वध किया जाए और वह उसके रक्त को वेदी के चारों ओर छिड़क दे. \v 3 फिर वह इसकी सारी चर्बी अर्थात् मोटी पूंछ तथा वह चर्बी, जो आंतों को ढकती है, \v 4 दोनों गुर्दे चर्बी के साथ, जो कमर पर है, तथा कलेजे की ऊपर की झिल्ली, गुर्दों सहित अलग कर भेंट करें. \v 5 पुरोहित याहवेह को इसे होमबलि के रूप में वेदी पर अग्नि में जला दे; यह दोष बलि है. \v 6 पुरोहितों में से हर एक पुरुष इसको खा सकता है. इसको पवित्र स्थान में ही खाया जाए; यह परम पवित्र है. \p \v 7 “ ‘दोष बलि पापबलि के ही समान है, उनके लिए एक ही विधि है; इसको वही पुरोहित खाए, जो इसके द्वारा प्रायश्चित पूरा करता है. \v 8 वह पुरोहित, जो किसी व्यक्ति के लिए होमबलि भेंट करता है, होमबलि के उस पशु की खाल, जो उसने भेंट की है, स्वयं के लिए रख ले. \v 9 उसी प्रकार हर एक अन्‍नबलि, जो तंदूर या कड़ाही में, अथवा तवे पर पकाया गया है, वे सभी कुछ उसी पुरोहित की होगी, जो उसे भेंट करता है. \v 10 हर एक अन्‍नबलि, चाहे तेल मिली हो, या तेल रहित, अहरोन के सभी पुत्रों को समान मात्रा में मिलेगी. \s1 मेल बलि \p \v 11 “ ‘उन मेल बलियों के लिए, जो याहवेह के सामने चढ़ाई जाएं, उनके लिए विधि यह है: \p \v 12 “ ‘यदि वह इसे आभार के रूप में भेंट करता है, तो वह आभार-बलि के साथ तेल से सनी हुई खमीर रहित रोटी, तेल से चुपड़ी पपड़ी तथा तेल से सनी हुई मैदे की रोटी भेंट करे. \v 13 आभार के रूप में भेंट की गई अपनी मेल बलियों के बलि पशु के साथ वह खमीर युक्त रोटी भी भेंट करे. \v 14 वह ऐसी हर एक बलि में से एक-एक रोटी याहवेह को अंशदान के रूप में भेंट करे; यह उसी पुरोहित की होगी, जो मेल बलि के पशु के रक्त को छिड़कता है. \v 15 आभार के रूप में भेंट की गई मेल बलियों की बलि के मांस को उसकी बलि के दिन ही खा लिया जाए. वह प्रातः तक इसमें से कुछ भी बचाकर न रखे. \p \v 16 “ ‘किंतु यदि उसकी बलि एक मन्नत अथवा स्वेच्छा बलि है, तो उसको उस दिन खाया जाए जिस दिन उसने इसे अर्पित किया हो, तथा शेष अंश को अगले दिन खाया जा सकता है. \v 17 किंतु यदि उस बलि के मांस में से तीसरे दिन कुछ बचा रह गया है, तो अग्नि में उसे जला दिया जाए. \v 18 इसलिये यदि वह मेल बलि के पशु के मांस को तीसरे दिन खा लेता है, जिसने उसे भेंट किया है, न तो वह बलि स्वीकार होगी और न ही उसके लिए लाभदायक. यह एक आपत्तिजनक कार्य है, और जो कोई व्यक्ति इसको खाता है, वह स्वयं अपना दोष उठाएगा. \p \v 19 “ ‘जिस मांस का स्पर्श किसी अपवित्र वस्तु से हो जाए, उसको खाया न जाए; इसे अग्नि में जला दिया जाए. हर एक, जो शुद्ध है इसको खा सकता है, \v 20 किंतु अपनी अशुद्धता में कोई व्यक्ति मेल बलियों की बलि के उस मांस को खा लेता है, जो याहवेह का है, तो उसे लोगों के मध्य से हटा दिया जाए. \v 21 यदि कोई व्यक्ति किसी अशुद्ध वस्तु का स्पर्श कर लेता है; चाहे वह मानव मलिनता हो अथवा कोई अशुद्ध पशु अथवा कोई अशुद्ध घृणित वस्तु हो, और वह मेल बलियों की बलि के उस मांस को खा लेता है, जो याहवेह को अर्पित है, तो उसे उसके लोगों के मध्य से हटा दिया जाए.’ ” \s1 चर्बी खाना मना है \p \v 22 याहवेह ने मोशेह को यह आदेश दिया, \v 23 “इस्राएल की प्रजा को यह आदेश दो, ‘तुम किसी बैल, भेड़ अथवा बकरी की चर्बी को न खाना. \v 24 उस पशु की चर्बी को भी, जिसकी स्वाभाविक मृत्यु हो चुकी है, या जो वन-पशुओं द्वारा मार डाला गया है. तुम उसे किसी अन्य उपयोग के लिए तो रख सकते हो, किंतु निश्चयतः उसको खाना मना है. \v 25 जो व्यक्ति उस पशु की चर्बी को खाता है, जिसे याहवेह को अग्निबलि के रूप में भेंट किया गया है, उसे उसके लोगों के मध्य से हटा दिया जाए. \v 26 तुम अपने घर में किसी पशु अथवा पक्षी के रक्त को न खाना. \v 27 जो भी व्यक्ति किसी भी रक्त को खाता है, उसे भी उसके लोगों के मध्य से हटा दिया जाए.’ ” \s1 पुरोहित का हिस्सा \p \v 28 याहवेह ने मोशेह को यह आदेश दिया, \v 29 “इस्राएल की प्रजा को यह आदेश दो, ‘वह व्यक्ति, जो याहवेह को अपनी मेल बलियां भेंट करता है, याहवेह को उसी मेल बलि में से एक हिस्सा अपनी भेंट के रूप में चढ़ाए, \v 30 और वह स्वयं अपने हाथों में याहवेह को होमबलि के लिए चर्बी एवं छाती लेकर आए, कि छाती याहवेह के सामने लहराने की बलि के रूप में भेंट की जाए. \v 31 पुरोहित चर्बी को तो वेदी पर अग्नि में जला दे, किंतु छाती अहरोन और उनके पुत्रों की है. \v 32 तुम अपनी मेल बलियों की बलियों में से दाहिनी जांघ पुरोहित को दे देना. \v 33 अहरोन के पुत्रों के मध्य से जो पुत्र मेल बलियों के रक्त और चर्बी को भेंट करता है, दाहिनी जांघ उसके अंशदान के रूप में उसी की होगी. \v 34 क्योंकि इस्राएल की प्रजा से मैंने उनकी मेल बलियों की बलियों में से लहराने की बलि के रूप में भेंट की गई छाती, और अंशदान की जांघ को लेकर उसे पुरोहित अहरोन और उनके पुत्रों को दिया गया है. यह इस्राएल की प्रजा से सर्वदा के लिए पुरोहित अहरोन और उनके पुत्रों को अधिकार के रूप में दे दिया है.’ ” \p \v 35 यह वह अंश है, जो याहवेह की अग्निबलियों में से अहरोन और उनके पुत्रों के लिए है; जिस दिन से उसने उन्हें याहवेह के सामने पौरोहितिक सेवा के लिए प्रस्तुत किया. \v 36 जिस दिन उनका अभिषेक किया गया, उस दिन याहवेह ने इस्राएल की प्रजा से उन्हें यह वस्तुएं देने का आदेश दिया है. पीढ़ियों से पीढ़ियों तक सर्वदा के लिए यह उनका अधिकार है. \p \v 37 उपरोक्त विधि; होमबलि, अन्‍नबलि, पापबलि, दोष बलि, संस्कार बलि तथा मेल बलियों के भेंट के लिए है. \v 38 इसके विषय में आदेश याहवेह ने मोशेह को सीनायी पर्वत पर उस दिन दिए थे, जिस दिन याहवेह ने इस्राएल की प्रजा को सीनायी की मरुभूमि में याहवेह के लिए अपनी बलियां प्रस्तुत करने का आदेश दिया था. \c 8 \s1 अहरोन और उनके पुत्रों का अभिषेक \p \v 1 फिर याहवेह ने मोशेह को यह आदेश दिया कि \v 2 वह अपने साथ अहरोन और उनके पुत्र, और साथ में उनके वस्त्र, अभिषेक का तेल, पापबलि के लिए निर्धारित बैल, दो मेढ़े और एक टोकरी में खमीर रहित रोटी ले, \v 3 और मिलनवाले तंबू के द्वार पर सारी सभा को इकट्ठा करे. \v 4 तब मोशेह ने याहवेह के आदेश के अनुसार वैसा ही किया. जब सभा मिलनवाले तंबू के द्वार पर इकट्ठी हुई, \p \v 5 तब मोशेह ने सभा को इस प्रकार संबोधित किया, “जिस कार्य को पूरा करने का आदेश याहवेह ने दिया है, वह यह है.” \v 6 फिर मोशेह ने अहरोन और उनके पुत्रों को अपने निकट बुलाया और जल से उनको नहलाया. \v 7 मोशेह ने अहरोन को कुर्ता तथा एफ़ोद पहनाकर उस पर कलात्मक रूप से बुनी हुई कोष बांध दी. \v 8 फिर उन्होंने अहरोन को सीनाबंद पहनाया और उसमें उरीम एवं थुम्मीम लगा दिए. \v 9 उन्होंने उसके सिर पर पगड़ी भी पहना दी, और उस पगड़ी के सामने की ओर सोने के टीके अर्थात् पवित्र मुकुट को लगाया, ठीक जैसा आदेश याहवेह ने मोशेह को दिया था. \p \v 10 मोशेह ने अभिषेक का तेल लेकर पवित्र स्थान और उसके भीतर जो कुछ भी था, उसका अभिषेक कर उन्हें परम पवित्र किया. \v 11 उन्होंने कुछ तेल वेदी पर सात बार छिड़क दिया, वेदी और इसके सारे पात्रों, चिलमची और उसके आधार को पवित्र करने के लिए उनका अभिषेक किया. \v 12 फिर उन्होंने अभिषेक का कुछ तेल अहरोन के सिर पर उंडेलकर उन्हें पवित्र करने के लिए उनका अभिषेक किया. \v 13 इसके बाद मोशेह ने अहरोन के पुत्रों को अपने पास बुलाया और उन्हें अंगरखे पहनाकर उन पर कटिबंध बांधे तथा उन्हें टोपियां पहना दीं; ठीक वैसा ही, जैसा आदेश याहवेह ने मोशेह को दिया था. \p \v 14 मोशेह पापबलि के लिए निर्धारित बैल लेकर आए और अहरोन और उनके पुत्रों ने पापबलि के इस बैल के सिर पर अपने हाथ रखे. \v 15 मोशेह ने इस बैल का वध किया और वेदी को पाप दोष से हटाने के लिए अपनी उंगली से उसका कुछ रक्त लेकर वेदी के सींगों पर लगाया. उसके बाद इसके बचे हुए रक्त को वेदी के आधार पर उंडेल दिया और प्रायश्चित पूरा करने के लिए उसे परम पवित्र किया. \v 16 मोशेह ने आंतों की सारी चर्बी, कलेजे के ऊपर की झिल्ली तथा दोनों गुर्दों के साथ उनकी चर्बी को लिया और उसे वेदी पर अग्नि में जलाकर भेंट कर दिया. \v 17 किंतु बैल, उसकी खाल, मांस और इस प्रक्रिया में उत्पन्‍न गोबर इन चीज़ों को छावनी के बाहर अग्नि में जला दिया; ठीक जैसा आदेश याहवेह ने मोशेह को दिया था, वैसा ही. \p \v 18 फिर मोशेह ने होमबलि के लिए तय मेढ़े को प्रस्तुत किया. अहरोन और उनके पुत्रों ने उस मेढ़े के सिर पर अपने हाथ रखे. \v 19 मोशेह ने मेढ़े को बलि की, और इसके रक्त को वेदी के चारों ओर छिड़क दिया. \v 20 उन्होंने इस मेढ़े को टुकड़े किए और इसके सिर, टुकड़ों और ठोस चर्बी को जला दिया. \v 21 मोशेह ने आंतों और टांगों को जल से धोकर पूरे मेढ़े को वेदी पर अग्नि में जलाकर भेंट कर दिया. सुखद-सुगंध के लिए यह एक होमबलि; हां याहवेह को भेंट एक अग्निबलि थी; ठीक जैसा आदेश याहवेह ने मोशेह को दिया था, वैसा ही. \p \v 22 इसके बाद मोशेह ने दूसरा मेढ़ा, अर्थात् संस्कार का मेढ़ा प्रस्तुत किया, और अहरोन और उनके पुत्रों ने उस मेढ़े के सिर पर अपने हाथ रखे. \v 23 मोशेह ने मेढ़े को बलि किया; और अहरोन के दायें कान, उनके दायें हाथ और दायें पैर के अंगूठे पर उसका कुछ रक्त लगा दिया. \v 24 मोशेह ने अहरोन के पुत्रों को भी पास बुलाकर उनके दायें कान, उनके दायें हाथ के अंगूठे और दायें पैर के अंगूठे पर उसका कुछ रक्त लगा दिया. उसके बाद मोशेह ने शेष रक्त को वेदी के चारों ओर छिड़क दिया. \v 25 मोशेह ने उस मेढ़े की चर्बी, मोटी पूंछ, आंतों पर की चर्बी, कलेजे के ऊपर की झिल्ली, दोनों गुर्दे तथा उनकी चर्बी और दायीं जांघ ली; \v 26 उन्होंने याहवेह के सामने रखी खमीर रहित रोटी की टोकरी से एक खमीर रहित रोटी, तेल सनी हुई रोटी और एक पपड़ी ली और उन्हें चर्बी के भाग एवं दायीं जांघ पर रख दिया. \v 27 ये सभी वस्तुएं अहरोन एवं उसके पुत्रों के हाथों में रखकर इन्हें याहवेह को चढ़ाने की भेंट मानकर याहवेह के आगे लहराया. \v 28 मोशेह ने इन्हें उनके हाथों से लेकर होमबलि के साथ इन्हें वेदी पर जला दिया. ये याहवेह को भेंट की गयी सुखद-सुगंध के लिए अग्निबलि के रूप में संस्कार की बलि थी. \v 29 मोशेह ने मेढ़े की छाती भी ली, यह संस्कार के मेढ़े में से मोशेह का अंश था, और इसे याहवेह के सामने लहराने की बलि के रूप में प्रस्तुत किया; ठीक जैसा आदेश याहवेह ने मोशेह को दिया था, वैसा ही. \p \v 30 मोशेह ने अभिषेक के तेल और वेदी पर के रक्त में से कुछ रक्त लेकर इसे अहरोन, उनके वस्त्रों, उनके पुत्रों और उनके वस्त्रों पर छिड़क दिया. इस प्रकार मोशेह ने अहरोन, उनके वस्त्रों, उनके पुत्रों और उनके पुत्रों के वस्त्रों को परम पवित्र किया. \p \v 31 इसके बाद मोशेह ने अहरोन और उनके पुत्रों को यह आदेश दिया “मिलनवाले तंबू के द्वार पर मांस को उबालो और इसे उस रोटी के साथ खाओ, जो रोटी संस्कार बलि की टोकरी में है, ठीक जैसा आदेश मैंने दिया था कि, अहरोन और उनके पुत्र इसको खाएं. \v 32 शेष मांस और रोटी को तुम अग्नि में जला देना. \v 33 सात दिनों के लिए तुम मिलनवाले तंबू के द्वार के बाहर न जाना, जब तक तुम्हारा संस्कार का क्रिया काल पूरा न हो जाए; क्योंकि तुम्हारा संस्कार का क्रिया काल सात दिन का होगा. \v 34 तुम्हारे लिए प्रायश्चित पूरा करने के लिए वही किया जाना ज़रूरी है, जैसा आज किया गया है, ठीक जैसा आदेश याहवेह ने दिया है. \v 35 इसके अतिरिक्त तुम्हें मिलनवाले तंबू के द्वार पर सात दिनों के लिए दिन-रात ठहरे रहना है, याहवेह द्वारा दिए गए आदेशों का पालन करना ज़रूरी है कि तुम्हारी मृत्यु न हो, क्योंकि मुझे ऐसा ही आदेश दिया गया है.” \p \v 36 इस प्रकार अहरोन और उनके पुत्रों ने वे सारे कार्य किए, जिनका आदेश याहवेह ने मोशेह के द्वारा दिया था. \c 9 \s1 अहरोन द्वारा बलि अर्पण \p \v 1 फिर आठवें दिन मोशेह ने अहरोन, उनके पुत्रों और इस्राएल के प्रधानों को बुलाया. \v 2 मोशेह ने अहरोन को यह आदेश दिया, “अपने लिए गाय-बैलों से पापबलि के लिए एक निर्दोष बछड़ा और होमबलि के लिए एक निर्दोष मेढ़ा लो, और उन्हें याहवेह को भेंट करो. \v 3 उसके बाद तुम इस्राएल की प्रजा को यह आदेश दो, ‘पापबलि के लिए एक बकरा और होमबलि के लिए एक साल का निर्दोष बछड़ा और एक निर्दोष मेमना, \v 4 मेल बलि के लिए याहवेह के सम्मुख भेंट चढ़ाने के हेतु एक बैल व एक मेढ़ा तथा तेल से सनी हुई अन्‍नबलि लो; क्योंकि आज याहवेह तुम पर प्रकट होंगे.’ ” \p \v 5 फिर वे उन सब वस्तुओं को मिलनवाले तंबू के सामने ले आए, जिसका आदेश मोशेह ने उन्हें दिया था, और सारी सभा निकट आकर याहवेह के सामने खड़ी हो गई. \v 6 मोशेह ने उन्हें संबोधित किया, “ये हैं वे कार्य, जिन्हें करने का आदेश याहवेह ने तुम्हें दिया है कि याहवेह के प्रताप का तुम पर प्रकाशन हो.” \p \v 7 इसके बाद मोशेह ने अहरोन को यह आदेश दिया, “वेदी के निकट आ जाओ, और अपनी पापबलि और होमबलि भेंट करो कि तुम स्वयं के लिए और प्रजा के लिए प्रायश्चित पूरा कर सको; इसके बाद प्रजा के लिए बलि अर्पण करो कि उनके लिए प्रायश्चित पूरा कर सको, ठीक जैसा आदेश याहवेह ने दिया है.” \p \v 8 फिर अहरोन ने वेदी के निकट आकर अपनी पापबलि के लिए निर्धारित उस बछड़े का वध किया. \v 9 अहरोन के पुत्रों ने उनके सामने रक्त प्रस्तुत किया और उन्होंने इसमें अपनी उंगली डुबोकर कुछ रक्त वेदी की सींगों पर लगाया और शेष रक्त को वेदी के आधार पर उंडेल दिया. \v 10 फिर उन्होंने पापबलि के लिए निर्धारित चर्बी, गुर्दे, और कलेजे के ऊपर की झिल्ली को वेदी पर अग्नि में जला दिया, ठीक जैसा आदेश याहवेह ने मोशेह को दिया था. \v 11 किंतु उन्होंने खाल और मांस को छावनी के बाहर अग्नि में जला दिया. \p \v 12 इसके बाद उन्होंने होमबलि के पशु का वध किया; अहरोन के पुत्रों ने उन्हें रक्त सौंप दिया और उन्होंने इसे वेदी के चारों ओर छिड़क दिया. \v 13 उन्होंने होमबलि के पशु को टुकड़ों में उसके सिर के साथ अहरोन को सौंप दिया और अहरोन ने उन्हें वेदी पर अग्नि में जलाकर भेंट कर दिया. \v 14 उन्होंने आंतों और टांगों को भी धो करके उन्हें होमबलि के साथ वेदी पर अग्नि में जलाकर भेंट कर दिया. \p \v 15 फिर उन्होंने प्रजा के लिए निर्धारित बलि को प्रस्तुत किया. उन्होंने उस बकरे को लेकर, जो प्रजा के लिए निर्धारित पापबलि के लिए था, इसका वध करके पहले बलि के पशु समान भेंट कर दिया. \p \v 16 उन्होंने होमबलि के पशु को भी प्रस्तुत कर विधि के अनुसार इसे भेंट किया. \v 17 इसके बाद उन्होंने अन्‍नबलि को प्रस्तुत किया, प्रातःकाल की होमबलि के अतिरिक्त उन्होंने इसमें से भी मुट्ठी भर भाग लेकर वेदी पर अग्नि में जलाकर भेंट किया. \p \v 18 इसके बाद उन्होंने प्रजा के लिए मेल बलि के लिए निर्धारित बैल और मेढ़े का वध किया, और अहरोन के पुत्रों ने अहरोन को रक्त सौंप दिया, जिसे उन्होंने वेदी के चारों ओर छिड़क दिया. \v 19 उन्होंने बैल तथा मेढ़े की चर्बी के भाग, मोटी पूंछ, वह चर्बी जो आंतों को ढकती है, गुर्दे और कलेजे के ऊपर की झिल्ली भी उन्हें सौंप दी, \v 20 उन्होंने चर्बी के भाग को छाती पर रखा और अहरोन ने उन्हें वेदी पर अग्नि में जलाकर भेंट कर दिया. \v 21 किंतु छाती और दायीं जांघ को अहरोन ने लहराने की बलि के रूप याहवेह के सामने प्रस्तुत किया; ठीक जैसा मोशेह ने आदेश दिया था. \p \v 22 इसके बाद अहरोन ने प्रजा की ओर अपने हाथ उठाकर उनके लिए आशीष वचन बोले और पापबलि, होमबलि और मेल बलि भेंट करने के बाद नीचे उतर आए. \p \v 23 मोशेह और अहरोन मिलनवाले तंबू में चले गए, और जब उन्होंने मिलनवाले तंबू से बाहर आकर प्रजा के लिए आशीष वचन बोले, तो याहवेह का प्रताप सारी प्रजा को दिखाई दिया. \v 24 तब याहवेह की उपस्थिति की अग्नि ने प्रकट होकर होमबलि और वेदी पर की चर्बी के भागों को भस्म कर दिया. यह देख सारी प्रजा जय जयकार के नारे के साथ भूमि की ओर नतमस्तक हो गई. \c 10 \s1 नादाब और अबीहू का पाप \p \v 1 अहरोन के पुत्र नादाब और अबीहू ने अपने-अपने धूपदान लिए और उनमें अग्नि रखने के बाद लोबान भी रखा. इस प्रकार उन्होंने याहवेह के सामने बिना आज्ञा की अपवित्र अग्नि भेंट की; याहवेह की ओर से इसका आदेश न था. \v 2 याहवेह की उपस्थिति से अग्नि निकलकर उन्हें भस्म कर दिया, और याहवेह के सामने ही उनकी मृत्यु हो गई. \v 3 मोशेह ने अहरोन से कहा, “याहवेह के यही विचार थे, \q1 “ ‘उनके द्वारा, जो मेरे निकट आते हैं, \q2 मैं पवित्र ठहराया जाऊं, \q1 तथा सारी प्रजा के सामने \q2 मेरी महिमा हो.’ ” \m इस पर अहरोन शांत ही रहे. \p \v 4 मोशेह ने अहरोन के चाचा उज्ज़िएल के पुत्र मिषाएल और एलज़ाफन को भी बुलाकर उन्हें यह आदेश दिया, “निकट आ जाओ और अपने भाइयों के लाश पवित्र स्थान के सामने से हटा लो और छावनी के बाहर ले जाओ.” \v 5 तब वे निकट आए और लाशों को उनके अंगरखों सहित छावनी से बाहर ले गए, ठीक जैसा मोशेह ने आदेश दिया था. \p \v 6 इसके बाद मोशेह ने अहरोन और उनके पुत्र एलिएज़र और इथामार को यह आदेश दिया, “अपने सिर के बालों को न मुंडाओ\f + \fr 10:6 \fr*\fq बालों को न मुंडाओ \fq*\ft या \ft*\fqa अपने सिर उजागर मत करो\fqa*\f* और न ही अपने वस्त्र फाड़ो, ऐसा न हो कि तुम्हारी मृत्यु हो जाए और याहवेह का क्रोध सारी सभा पर भड़क उठे. केवल तुम्हारे भाई अर्थात् इस्राएल की सारी प्रजा याहवेह के द्वारा लगाई हुई इस आग के लिए विलाप करे. \v 7 तुम तो मिलनवाले तंबू के द्वार से बाहर भी न जाना, अन्यथा तुम्हारी भी मृत्यु हो जाएगी, क्योंकि तुम पर याहवेह के तेल का अभिषेक है.” तब उन्होंने मोशेह के आदेश के अनुसार ही किया. \p \v 8 इसके बाद याहवेह ने अहरोन को यह आदेश दिया, \v 9 “जब तुम मिलनवाले तंबू में प्रवेश करो, तो न तो तुम और न ही तुम्हारे पुत्र दाखरस अथवा दाखमधु का उपभोग करें, कि तुम्हारी मृत्यु न हो जाए. यह तुम्हारी आनेवाली सारी पीढ़ियों के लिए हमेशा के लिए विधि है, \v 10 कि तुम पवित्र और अपवित्र के बीच, शुद्ध और अशुद्ध के बीच भेद कर सको. \v 11 इस्राएल की प्रजा को उन सारी विधियों की शिक्षा देनी अनिवार्य है, जिनको याहवेह ने तुम्हें मोशेह के द्वारा दिया है.” \p \v 12 फिर मोशेह ने अहरोन और उनके दोनों बचे हुए पुत्रों, एलिएज़र और इथामार को यह आदेश दिया, “याहवेह को अग्नि में अर्पित अन्‍नबलि में से शेष रह गए भाग, जो खमीर रहित है, उसको लेकर वेदी के निकट ही खाओ, क्योंकि यह परम पवित्र है. \v 13 तुम इसको पवित्र स्थान में ही खाना, क्योंकि यह याहवेह को अर्पित बलि में से तुम्हारा और तुम्हारे पुत्रों के लिए निर्धारित भाग है, क्योंकि मुझे ऐसा ही आदेश दिया गया है. \v 14 किंतु तुम तथा तुम्हारी सन्तति लहराने की बलि स्वरूप भेंट, छाती और जांघ को किसी स्वच्छ स्थान में खा सकते हो; क्योंकि यह इस्राएल की प्रजा की मेल बलियों में से तुम्हारे और तुम्हारे पुत्रों एवं पुत्रियों के लिए निर्धारित भाग के रूप में तुम्हें दिया गया है. \v 15 वे अग्निबलि के लिए निर्धारित चर्बी के भाग के साथ जांघ को ऊंचा उठाते, और छाती को लहराते हुए याहवेह के सामने लहराने की बलि के रूप में लाएंगे; यह तुम्हारे और तुम्हारे पुत्रों के लिए स्थायी भाग है, ठीक जैसा आदेश याहवेह ने दिया था वैसा ही.” \p \v 16 किंतु मोशेह ने पापबलि के लिए निर्धारित बकरे के विषय में खोजबीन की, तो मालूम हुआ कि उसको तो जलाया जा चुका है! इसलिये मोशेह अहरोन के बचे हुए पुत्रों एलिएज़र तथा इथामार पर क्रोधित हो गए. मोशेह ने उनसे यह प्रश्न किया, \v 17 “तुमने पापबलि के पशु को पवित्र स्थान में क्यों नहीं खाया? क्योंकि यह तो परम पवित्र है, तथा याहवेह ने यह तुम्हें प्रजा के दोष अपने ऊपर उठाकर और याहवेह के सामने उनके लिए प्रायश्चित पूरा करने के लिए दिया था. \v 18 इसका तो रक्त तक पवित्र स्थान के भीतरी कक्ष में नहीं लाया गया, ज़रूरी था कि तुम इसको पवित्र स्थान में खाते; ठीक जैसा आदेश मैंने दिया था.” \p \v 19 किंतु अहरोन ने मोशेह को उत्तर दिया, “सुनिए, आज ही उन्होंने याहवेह के सामने अपनी पापबलि और होमबलि चढ़ाई है, फिर भी मेरे साथ यह सब घटित हो गया है! यदि आज मैं पापबलि के पशु को खा लेता, तो क्या यह याहवेह की दृष्टि में भला होता?” \v 20 जब मोशेह ने यह सुना, तो यह उन्हें सही ही जान पड़ा. \c 11 \s1 भोज्य तथा अभोज्य प्राणी \p \v 1 याहवेह ने मोशेह और अहरोन को आदेश दिया, \v 2 “इस्राएल की प्रजा को यह आदेश दो, ‘पृथ्वी पर के सारे पशुओं में से \v 3 कोई भी पशु, जिसके खुर अलग हैं, जिसके खुर फटे हों और वह पागुर करता है, तुम्हारे लिए भोज्य है. \p \v 4 “ ‘परंतु वे पशु, जो पागुर करते हैं अथवा जिनके खुर चिरे हैं, उनमें से ये पशु तुम्हारे खाने योग्य नहीं हैं: ऊंट, क्योंकि यह पागुर तो करता है, किंतु इसके खुर चिरे नहीं, यह तुम्हारे लिए अशुद्ध है; \v 5 इसी प्रकार चट्टानी बिज्जू क्योंकि यद्यपि यह पागुर करता है, परंतु इसके खुर चिरे नहीं होते, यह तुम्हारे लिए अशुद्ध है; \v 6 इसी प्रकार खरगोश भी, यह पागुर तो करता है, परंतु इसके खुर चिरे नहीं होते, यह तुम्हारे लिए अशुद्ध है, \v 7 और सूअर क्योंकि यद्यपि इसके खुर चिरे अर्थात् इसके खुर दो भागों में तो हैं, किंतु यह पागुर नहीं करता; तब यह तुम्हारे लिए अशुद्ध है. \v 8 तुम्हें न तो उनके मांस को खाना है और न ही उनके शवों का स्पर्श; वे तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं. \p \v 9 “ ‘तुम इन जलचरों को खा सकते हो: समुद्र अथवा नदियों के वे सारे जलचर जिनके पक्ष और शल्क हैं, तुम उनको खा सकते हो. \v 10 किंतु समुद्र और नदियों के वे जलचर, अर्थात् जल के वे जंतु, जो समूहों में रहते हैं और जल के समस्त प्राणी, जिनके न तो पंख हैं और न छिलके, वे तुम्हारे लिए घृणित हैं, \v 11 और क्योंकि वे तुम्हारे लिए घृणित हैं, तुम उनके मांस को खा नहीं सकते और उनके शव तुम्हारे लिए घृणित वस्तु हों. \v 12 जल के कोई भी जीव, जिसके पक्ष और शल्क नहीं हैं, वह तुम्हारे लिए घृणित है. \p \v 13 “ ‘पक्षियों में से तुम्हारे लिए घृणित ये हैं; और जिनको खाना मना है; वे ये है: गरुड़, गिद्ध, काला गिद्ध, \v 14 लाल चील और काली चील और समस्त प्रकार की चीलें, \v 15 समस्त प्रकार के कौवे, \v 16 शुतुरमुर्ग, उल्लू, सागर काक और शिकारे की सभी प्रजातियां, \v 17 छोटी प्रजाति के उल्लू, जलकौए और बड़ी प्रजाति के उल्लू, \v 18 बख़ारी उल्लू, जल मुर्गी और शवभक्षी गिद्ध, \v 19 छोटा गरुड़, सभी प्रकार के बगुले, टिटिहरी और चमगादड़. \p \v 20 “ ‘सभी प्रकार के पंख वाले कीड़े, जो अपने चारों पैरों पर चलते हैं, तुम्हारे लिए घृणित हैं. \v 21 फिर भी वे उड़ते हुए कीड़े, जो अपने चारों पैरों पर चलते हैं, तथा जिनके पैरों के ऊपर एक मुड़ी हुई टांग होती है, जिसके बल पर वे भूमि पर कूदते हैं, उनको तुम खा सकते हो. \v 22 तुम उनमें से इनको खा सकते हो: सभी प्रकार की टिड्डियां, सभी प्रकार के पतंगे, सभी प्रकार के झींगुर और सभी प्रकार के टिड्डे. \v 23 किंतु सभी प्रकार के उड़ते हुए कीड़े, जो चार पैरों पर चलते हैं, वे तुम्हारे लिए घृणित हैं. \p \v 24 “ ‘इन सभी जीवों के कारण भी तुम अशुद्ध हो जाओगे; जो कोई इनके शव को छू लेगा, वह संध्या तक अशुद्ध रहेगा, \v 25 और जो कोई इनके शव को हटाता है, वह अपने वस्त्रों को धो डाले, वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \p \v 26 “ ‘उन पशुओं के विषय में, जिनके खुर चिरे तो हैं किंतु पूरी तरह दो भागों में नहीं हैं, और पागुर भी नहीं करते, वे तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं. जो कोई उनको छू लेगा, वह अशुद्ध हो जाएगा. \v 27 सभी चौपायों में वे प्राणी, जो अपने पंजों पर चलते हैं, तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं, जो कोई उनके शव को छू लेगा, वह शाम तक अशुद्ध रहेगा, \v 28 और जो कोई इनके शव को हटाता है, वह अपने वस्त्रों को धो ले. वह शाम तक अशुद्ध रहेगा; वे पशु तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं. \p \v 29 “ ‘भूमि पर जो जंतु रेंगते हैं, वे तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं. वे ये है: छछूंदर, चूहा, सभी प्रकार की गोह, \v 30 छिपकली, मगरमच्छ, टिकटिक, साण्डा और गिरगिट. \v 31 वे जंतु, जो रेंगते हैं, इनमें से वे सभी तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं. जो कोई इनके शव को छू लेता है, वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \v 32 इनमें से उनका शव यदि किसी वस्तु पर गिर जाता है, तो वह वस्तु अशुद्ध हो जाएगी, चाहे वह लकड़ी की हो अथवा वस्त्र, खाल अथवा टाट की और किसी भी कार्य में इस्तेमाल की जाती हो. इसे जल में रख देना और शाम तक यह अशुद्ध रहे, इसके बाद यह वस्तु शुद्ध मानी जाए. \v 33 यदि किसी मिट्टी के पात्र में इन जंतुओं का शव गिर जाता है, उस पात्र में जो कुछ भी हो, वह अशुद्ध हो जाएगा. उस पात्र को तोड़ दिया जाए. \v 34 यदि इस पात्र का जल किसी भी खाने की वस्तु पर गिर जाए, तो वह खाना अशुद्ध माना जाएगा, और इसी प्रकार यदि यह जल किसी पीने के पदार्थ पर गिर जाए, तो वह पीने का पदार्थ अशुद्ध माना जाएगा. \v 35 कोई भी वस्तु, जिस पर इन जंतुओं के शव का भाग गिर जाए, वह वस्तु अशुद्ध मानी जाएगी; चाहे वह कोई भट्टी हो अथवा चूल्हा, इसे चूर-चूर कर दिया जाए; वे अशुद्ध हैं, और तुम्हारे लिए अशुद्ध बनी रहेंगी. \v 36 फिर भी झरना अथवा जल कुंड, जहां जल इकट्ठा किया जाता है, वह तो शुद्ध रहेगा, किंतु जो कोई इनके शव को छू लेगा, वह अशुद्ध होगा. \v 37 जिस बीज को बोया जाना है, यदि इन जंतुओं के शव का कोई भाग उन बीजों में गिर जाता है, तो उस बीज को स्वच्छ ही माना जाएगा. \v 38 किंतु यदि उन बीजों पर जल डाला गया है और इन जंतुओं के शव का कोई भाग उस पर गिर जाता है, तो वे बीज तुम्हारे लिए अशुद्ध होंगे. \p \v 39 “ ‘यदि उन पशुओं में से, जो तुम्हारे लिए खाने योग्य हैं, किसी पशु की मृत्यु हो जाए और कोई उसके शव को छू ले, तो वह व्यक्ति शाम तक अशुद्ध रहेगा. \v 40 जो इस पशु के शव में से कुछ भाग को खा लेता है, वह व्यक्ति भी अपने वस्त्रों को धो डाले और वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. जो इसके शव को हटाए, वह व्यक्ति भी अपने वस्त्रों को धो डाले और वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \p \v 41 “ ‘हर एक जंतु, जो भूमि पर रेंगता है, वह तुम्हारे लिए घृणित है और उसको खाया न जाए. \v 42 वे जंतु, जो भूमि पर रेंगते हैं, उसमें से हर एक जो अपने पेट पर रेंगता है, जो चार पैरों पर चलता है और जो बहुत पैर वाले हैं, तुम उनको न खाना, क्योंकि वे घृणित हैं. \v 43 कोई भी जंतु, जो रेंगता है, उसके द्वारा तुम स्वयं को घृणित न करना और न ही स्वयं को अशुद्ध करना, जिससे कि तुम अशुद्ध हो जाओ. \v 44 क्योंकि मैं वही याहवेह, तुम्हारा परमेश्वर हूं, इसलिये स्वयं को शुद्ध करो और पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूं. उन जंतुओं के द्वारा स्वयं को अशुद्ध न करना, जो भूमि पर रेंगते हैं. \v 45 क्योंकि मैं ही याहवेह हूं, जिसने तुम्हें मिस्र देश से इसलिये निकाला, कि तुम्हारा परमेश्वर हो जाऊं; इसलिये ज़रूरी है, कि तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूं. \p \v 46 “ ‘पशुओं तथा पक्षियों और हर एक प्राणी, जो जल में हैं तथा जो भूमि पर रेंगते हैं, उनके लिए यही विधि है, \v 47 जिससे शुद्ध अथवा अशुद्ध और खाने तथा न खाने की वस्तुओं में भेद किया जा सके.’ ” \c 12 \s1 प्रसूता का शुद्धीकरण \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को कहा, \v 2 “इस्राएल की प्रजा को यह आदेश दो: ‘जब कोई स्त्री पुत्र को जन्म दे, तो वह सात दिन के लिए अशुद्ध रहेगी, जैसे ऋतुस्राव में अशुद्ध रहती है. \v 3 आठवें दिन उस बालक के खाल का ख़तना कर दिया जाए. \v 4 वह स्त्री रक्तस्राव के नियत तैंतीस दिन तक शुद्ध होने की क्रिया में रहेगी, जब तक उसके शुद्ध होने के दिन पूरे न हो जाएं, वह न तो किसी पवित्र वस्तु को छुएगी और न ही पवित्र स्थान में प्रवेश करेगी. \v 5 किंतु यदि वह पुत्री को जन्म दे, तो वह दो सप्‍ताह तक अशुद्ध रहेगी, जैसे वह ऋतुस्राव में होती है. वह स्त्री रक्तस्राव के नियत छियासठ दिन तक शुद्ध होने की क्रिया में रहेगी. \p \v 6 “ ‘जब उस स्त्री की शुद्ध होने की क्रिया पूर्ण हो जाए, चाहे वह पुत्र के लिए हो अथवा पुत्री के लिए, वह मिलनवाले तंबू के द्वार पर पुरोहित के सामने होमबलि के लिए एक वर्ष का मेमना तथा पापबलि के लिए एक कबूतर का बच्चा अथवा एक कपोत का बच्चा लेकर आए. \v 7 तब पुरोहित इसे उस स्त्री के प्रायश्चित्त पूरा करने के लिए याहवेह को भेंट करे. और वह अपने रक्तस्राव से शुद्ध हो जाएगी. \p “ ‘यह विधि हर एक प्रसूता के लिए है, चाहे वह पुत्र को जन्मे अथवा पुत्री को. \v 8 किंतु यदि वह स्त्री एक मेमना खरीदने में असमर्थ है, तो वह दो कपोत अथवा दो कबूतर के बच्‍चे लेकर आए; एक होमबलि के लिए और अन्य पापबलि के लिए. इस प्रकार पुरोहित उस स्त्री के लिए प्रायश्चित्त पूरा करे और वह स्त्री पवित्र हो जाएगी.’ ” \c 13 \s1 त्वचा के रोगों के बारे में नियम \p \v 1 याहवेह ने मोशेह और अहरोन को यह आदेश दिया, \v 2 “यदि किसी व्यक्ति की त्वचा पर सूजन, चकत्ते अथवा कोई चमकीला धब्बा हो, और यदि यह उसकी त्वचा पर कोढ़ का संक्रमण बन जाए, तब उस व्यक्ति को पुरोहित अहरोन अथवा उनके किसी पुरोहित पुत्र के सामने लाया जाए. \v 3 पुरोहित उस व्यक्ति की त्वचा पर के धब्बे का निरीक्षण करेगा और यदि उस संक्रमित स्थान के रोएं सफेद हो गए हों, और संक्रमण त्वचा से गहरा ज्ञात होता हो, तो यह निश्चित ही कोढ़ का संक्रमण है. फिर जब पुरोहित उस व्यक्ति का निरीक्षण पूरा कर ले, तब उसे अशुद्ध घोषित कर दे. \v 4 यदि त्वचा पर का धब्बा सफेद तो है, किंतु संक्रमण त्वचा से गहरा मालूम नहीं होता है, और इस स्थान के रोएं भी सफेद नहीं हुए हैं, तो पुरोहित उस संक्रमित व्यक्ति को सात दिन के लिए अलग रखे. \v 5 सातवें दिन पुरोहित उस व्यक्ति का निरीक्षण करे और यदि उसे प्रतीत हो कि संक्रमण तो ज्यों का त्यों है, किंतु वह त्वचा में फैला नहीं है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को और सात दिन के लिए अलग रखे. \v 6 सातवें दिन पुरोहित दोबारा उस व्यक्ति का निरीक्षण करे; यदि संक्रमित स्थान का सुधार होने के कारण उसका रंग हल्का हो गया है, और वह त्वचा पर नहीं फैला है; तो पुरोहित उसे शुद्ध घोषित कर दे; यह एक चकत्ते मात्र है. वह व्यक्ति अपने वस्त्र धो ले और शुद्ध हो जाए. \v 7 किंतु यदि पुरोहित के सामने शुद्ध प्रमाणित होने के बाद वह धब्बा त्वचा पर फैलने लगे, तो वह व्यक्ति स्वयं को दोबारा पुरोहित के सामने प्रस्तुत करे. \v 8 पुरोहित इसका निरीक्षण करे और यदि उसे यह जान पड़े कि त्वचा पर धब्बा फैल रहा है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; यह कोढ़ का रोग है. \p \v 9 “यदि कोढ़ का संक्रमण किसी पुरुष पर है, तो उसे पुरोहित के सामने लाया जाए. \v 10 पुरोहित उसका निरीक्षण करे. यदि उसकी त्वचा में सफेद रंग की सूजन है और उसके उस स्थान के रोएं भी सफेद हो गए हैं तथा सूजन में खुला घाव है, \v 11 तो यह उस व्यक्ति की त्वचा पर पुराना कोढ़ का रोग है, पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे, किंतु वह उस व्यक्ति को इसलिये दूसरे लोगों से अलग न करे, कि वह अशुद्ध है. \p \v 12 “यदि कोढ़ त्वचा में और अधिक फूट जाए और कोढ़ उस व्यक्ति के सिर से लेकर पांव तक पूरी देह में फैल जाए, जहां तक पुरोहित इसको देख सके, \v 13 जब पुरोहित इसको बारीकी से देख ले कि कोढ़ उस व्यक्ति के पूरे शरीर में फैल गया है, तो वह उस व्यक्ति को इस रोग से शुद्ध घोषित कर दे; क्योंकि यह पूरी तरह से सफेद रंग का हो गया है, इसलिये वह व्यक्ति शुद्ध होगा. \v 14 किंतु यदि उसे त्वचा पर घाव दिखाई दें, तो वह व्यक्ति अशुद्ध होगा. \v 15 पुरोहित त्वचा के उस घाव को ध्यान से देखे और उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; बिना चमड़ी का मांस अशुद्ध है और यह कोढ़ का रोग है. \v 16 किंतु यदि त्वचा का घाव दोबारा सफेद रंग का हो जाए, तो वह व्यक्ति पुरोहित के सामने आए, \v 17 पुरोहित इसको ध्यान से देखे और यदि वह धब्बा सफेद रंग का हो गया है, तो पुरोहित उस संक्रमित व्यक्ति को शुद्ध घोषित कर दे; वह शुद्ध है. \p \v 18 “जब किसी व्यक्ति की त्वचा पर फोड़ा हो गया है और वह फोड़ा स्वस्थ हो जाए, \v 19 तथा उस फोड़े के स्थान पर सफेद अथवा लालिमा युक्त सफेद रंग की सूजन हो जाए, तब पुरोहित को इसको दिखवाया जाए; \v 20 पुरोहित इसको ध्यान से देखे; यदि उसे यह लगे कि यह त्वचा में फैल रहा है और इसके रोएं भी सफेद हो गए हैं, तब पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; यह कोढ़ का संक्रमण है, जिसकी शुरुआत फोड़े से हुई है. \v 21 किंतु यदि पुरोहित इसको ध्यान से देखे और पाए, कि त्वचा के रोएं सफेद नहीं हुए हैं, और यह त्वचा में फैल नहीं रहा है तथा त्वचा का रंग हल्का हो रहा है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को सात दिन अलग रखे; \v 22 यदि यह त्वचा में और अधिक फैल रहा है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; यह एक संक्रमण है. \v 23 किंतु यदि सफेद रंग का धब्बा त्वचा पर तो है, परंतु यह त्वचा में फैल नहीं रहा है, तो यह फोड़े का चिन्ह मात्र है, तब पुरोहित उस व्यक्ति को शुद्ध घोषित कर दे. \p \v 24 “यदि किसी की त्वचा अग्नि से जल गई है, और त्वचा पर घाव से एक सफेद अथवा लालिमा युक्त सफेद धब्बा हो गया है, \v 25 तो पुरोहित इसको ध्यान से देखे और यदि इस धब्बे पर के रोएं सफेद हो गए हैं और संक्रमण त्वचा से गहरा मालूम होता हो, तो यह कोढ़ का रोग है. जिसकी शुरुआत जलने के घाव से हुई है, पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; यह कोढ़ का संक्रमण है. \v 26 किंतु यदि पुरोहित इसको जांचता है और यह पाता है कि उस धब्बे पर के रोएं सफेद नहीं हुए हैं और संक्रमण त्वचा से गहरा नहीं है, परंतु इसका रंग हल्का पड़ गया है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को सात दिन अलग रखे. \v 27 सातवें दिन पुरोहित उसको दोबारा जांचे. यदि यह त्वचा में फैल रहा है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; यह कोढ़ का संक्रमण है. \v 28 किंतु यदि धब्बा तो त्वचा पर ज्यों का त्यों है, परंतु वह त्वचा में फैला नहीं हैं परंतु उसका रंग हल्का पड़ गया है, तो यह जलने के घाव से उत्पन्‍न सूजन है; पुरोहित उस व्यक्ति को तब शुद्ध घोषित कर दे, क्योंकि यह तो जलने से उत्पन्‍न हुआ चिन्ह मात्र है. \p \v 29 “यदि किसी पुरुष अथवा महिला के सिर या दाढ़ी पर रोग का संक्रमण हो, \v 30 तो पुरोहित इसका निरीक्षण करे और यदि संक्रमण त्वचा में गहरा मालूम हो और उस स्थान के रोम महीन भूरे रंग के हो गए हों, तो पुरोहित उसे अशुद्ध घोषित कर दे, यह सेहुंआ है, सिर एवं दाढ़ी का कोढ़. \v 31 किंतु यदि पुरोहित इस घाव के संक्रमण की जांच करे और यह पाए कि संक्रमण त्वचा से गहरा नहीं है और न ही उस स्थान में काले रोएं हैं, तो पुरोहित उस व्यक्ति को घाव के संक्रमण के कारण सात दिन अलग रखे. \v 32 सातवें दिन पुरोहित संक्रमण की जांच करे और यदि सेहुंआ त्वचा में नहीं फैला है और उस स्थान पर भूरे रोएं भी नहीं हैं, तथा सेहुंए के कारण संक्रमण त्वचा से गहरा नहीं है, \v 33 तो वह व्यक्ति अपना सिर मुंड़ा ले किंतु वह अपने सेहुंए पर उस्तरा न चलाए. तब पुरोहित उस व्यक्ति को सात दिन और अलग रखे. \v 34 फिर सातवें दिन पुरोहित उस सेहुंए की जांच करे; यदि सेहुंआ त्वचा में और अधिक नहीं फैल रहा है और यह त्वचा में गहरा मालूम नहीं होता, तो पुरोहित उस व्यक्ति को शुद्ध घोषित कर दे; वह व्यक्ति अपने वस्त्रों को धोकर शुद्ध हो जाए. \v 35 किंतु यदि उसके शुद्ध होने के बाद वह सेहुंआ उसकी त्वचा में और अधिक फैलता जाता है, \v 36 तो पुरोहित उसकी जांच करे और यदि यह पाए कि यह त्वचा में फैल गया है, तो वह रोम के भूरे होने की प्रतीक्षा न करे; वह व्यक्ति अशुद्ध है. \v 37 किंतु यदि उसकी जांच के अनुसार सेहुंए में कोई बदलाव नहीं है, किंतु उसमें काले रोएं उग आए हैं, तो वह सेहुंआ स्वस्थ हो गया है, वह व्यक्ति शुद्ध है और पुरोहित उसे शुद्ध घोषित कर दे. \p \v 38 “जब किसी पुरुष अथवा स्त्री की त्वचा पर सफेद चमकदार धब्बे हों, \v 39 तो पुरोहित इसकी जांच करे और यदि त्वचा पर यह चमकदार धब्बे हल्के सफेद रंग के हों, तो यह दाद हैं, जो त्वचा में फूट निकले हैं; वह व्यक्ति शुद्ध है. \p \v 40 “यदि किसी पुरुष के बाल झड़ गए हों, तो वह गंजापन है, किंतु वह शुद्ध है. \v 41 किंतु यदि उसके सिर के सामने के और सिर के दोनों ओर के बाल झड़ गए हैं और उसका माथा चंदला हो गया है, तो वह शुद्ध है. \v 42 परंतु यदि उसका सिर अथवा माथा चंदला हो गया है और उस पर लालिमा युक्त सफेद रंग का संक्रमण हो गया है, तो यह कोढ़ है, जो उसके चंदूले माथे और सिर से फूट निकला है. \v 43 तब पुरोहित इसकी जांच करे और यदि सिर अथवा बाल के संक्रमण की सूजन त्वचा पर कोढ़ की लालिमा युक्त सफेद रंग की सूजन के समान है, \v 44 तो वह व्यक्ति कोढ़ का रोगी है, तब अशुद्ध है. निश्चित ही पुरोहित उसे अशुद्ध घोषित कर दे; क्योंकि संक्रमण उसके सिर पर हुआ है. \p \v 45 “वह व्यक्ति, जो कोढ़ के रोग से संक्रमित हुआ है, उसके वस्त्र फाड़ दिए जाएं, उसका सिर उघाड़ दिया जाए और वह अपने मुख का निचला भाग ढक कर ऊंचे स्वर में कहे, ‘अशुद्ध! अशुद्ध!’ \v 46 अपने संक्रमण की पूरी अवधि में वह अशुद्धि की स्थिति में ही होगा; वह अशुद्ध है तथा अकेले में रहेगा; उसका निवास छावनी के बाहर ही होगा. \s1 वस्त्र में कोढ़ की फफूंदी \p \v 47 “यदि किसी वस्त्र में कोढ़ की फफूंदी पाई जाती है, चाहे वह वस्त्र ऊनी हो अथवा मलमल का, \v 48 मलमल अथवा ऊन के ताने-बाने का हो, चमड़ा हो या चमड़े से बनी कोई वस्तु हो, \v 49 यदि यह संक्रमण वस्त्र अथवा चमड़े के वस्त्र में अथवा ताने में अथवा बाने में हो, या चमड़े से बनी किसी वस्तु में हरे रंग की अथवा लालिमा हो, तो यह कोढ़ है और इसे पुरोहित को दिखाया जाना आवश्यक है. \v 50 तब पुरोहित उस चिन्ह की जांच करे और इस संक्रमित वस्तु को सात दिन अलग रखे. \v 51 सातवें दिन पुरोहित इस चिन्ह की दोबारा जांच करे और यदि संक्रमण वस्त्र में, ताने में अथवा बाने में अथवा चमड़े में फैल गया हो और चाहे वह चमड़ा किसी भी काम के लिए इस्तेमाल किया जाता हो, तो यह असाध्य कुष्ठ रोग का लक्षण है. यह अशुद्ध है. \v 52 जिस वस्त्र, ताने-बाने, ऊन, मलमल अथवा चमड़े की किसी वस्तु में यह संक्रमण पाया जाए, तो आवश्यक है कि उसको जला दिया जाए, क्योंकि यह असाध्य कोढ़ है; आवश्यक है कि इसको अग्नि में जला दिया जाए. \p \v 53 “किंतु यदि पुरोहित इसकी जांच करे और यह पाए कि संक्रमण वस्त्र में, ताने-बाने में अथवा चमड़े की वस्तु में नहीं फैला है, \v 54 तो पुरोहित उस संक्रमित वस्त्र को धोने का आदेश दे तथा और सात दिन के लिए उसे अलग कर दे. \v 55 जब जिस वस्त्र में संक्रमण पाया गया है और उसको धो लिया गया है, तो पुरोहित इसकी दोबारा जांच करे और यदि इस वस्तु में मौजूद धब्बे में कोई बदलाव नहीं हुआ है और यह फैला भी नहीं है, तो यह अशुद्ध ही माना जाएगा, और आवश्यक है कि तुम अग्नि में इसको जला दे, चाहे यह फफूंद पीछे के भाग में हो अथवा आगे. \v 56 यदि पुरोहित इसकी जांच करे और उसे यह मालूम हो कि धोने के बाद इसकी चमक कम नहीं हुई है, तब पुरोहित उसे उस वस्त्र या चमड़े में से फाड़कर निकाल दे; \v 57 किंतु यदि यह चिन्ह वस्त्र, ताने अथवा बाने और चमड़े पर दोबारा उभर आए, तो यह उसमें फैल रहा है. आवश्यक है कि उस संक्रमित वस्तु को आग में जला दिया जाए. \v 58 जब तुमने उस संक्रमित वस्त्र, ताने अथवा बाने अथवा चमड़े की वस्तु को धो दिया है, तो इसको दूसरी बार धो दिया जाए और यह शुद्ध माना जाएगा.” \p \v 59 यह किसी कोढ़ से संक्रमित ऊन या मलमल के वस्त्र, ताने अथवा बाने अथवा चमड़े की किसी वस्तु को शुद्ध अथवा अशुद्ध घोषित करने की विधि है. \c 14 \s1 कोढ़ी को शुद्ध ठहराने की विधि \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को यह आदेश दिया, \v 2 “किसी कोढ़ी के शुद्ध हो जाने की पुष्टि की विधि यह है: जब उसे पुरोहित के सामने लाया जाए, \v 3 पुरोहित छावनी के बाहर जाकर इसकी जांच करे और यदि उस कोढ़ी की व्याधि स्वस्थ हो गयी है, \v 4 तब पुरोहित उस व्यक्ति के लिए, जिसको शुद्ध किया जाना है, दो जीवित शुद्ध पक्षी, देवदार की लकड़ी, जूफ़ा\f + \fr 14:4 \fr*\fq जूफ़ा \fq*\ft लगभग 3 फीट ऊंचे होनेवाला एक पौधा. इसका उपयोग कूंचा की तरह हो सके\ft*\f* और लाल डोरी लाने का आदेश दे. \v 5 फिर पुरोहित बहते हुए जल पर मिट्टी के एक पात्र में एक पक्षी को बलि करने का आदेश भी दे. \v 6 इसके बाद वह उस जीवित पक्षी को देवदार की लकड़ी, लाल डोरी और जूफ़ा के साथ लेकर उन्हें, तथा उस जीवित पक्षी को उस पक्षी के लहू में डूबा दे, जिसे बहते हुए जल पर बलि किया गया था. \v 7 पुरोहित इसे सात बार उस व्यक्ति पर छिड़क दे, जिसे कोढ़ से शुद्ध किया जा रहा है. फिर पुरोहित उस व्यक्ति को शुद्ध घोषित कर दे और उस जीवित पक्षी को खुले मैदान में छोड़ दे. \p \v 8 “फिर वह व्यक्ति जिसे शुद्ध किया जा रहा है, अपने वस्त्रों को धो डाले, अपने सारे बाल मुंडवा ले और स्‍नान करके शुद्ध हो जाए. इसके बाद वह छावनी में तो प्रवेश कर सकता है किंतु सात दिन तक वह अपने घर से बाहर ही निवास करे. \v 9 सातवें दिन वह अपने सिर के बाल, दाढ़ी तथा भौंहें, और हां, अपने समस्त बाल मुंडवा ले; अपने वस्त्रों को धो डाले और स्‍नान कर स्वच्छ हो जाए. \p \v 10 “आठवें दिन वह एक वर्षीय दो निर्दोष नर मेमने, एक वर्षीय निर्दोष मादा भेड़, अन्‍नबलि के लिए तेल मिला हुआ पांच किलो\f + \fr 14:10 \fr*\ft मूल: \ft*\fqa एफाह का तीन दसवां भाग\fqa*\f* मैदा और एक तिहाई लीटर\f + \fr 14:10 \fr*\fq एक तिहाई लीटर \fq*\ft मूल: एक लोग\ft*\f* तेल ले; \v 11 फिर जो पुरोहित उस व्यक्ति को शुद्ध घोषित कर रहा है, वह मिलनवाले तंबू के प्रवेश स्थल पर उस व्यक्ति और इन वस्तुओं को याहवेह के सामने भेंट करे. \p \v 12 “फिर पुरोहित एक नर मेमने और एक तिहाई लीटर तेल को दोष बलि स्वरूप लेकर लहराने की बलि के रूप में याहवेह के सामने भेंट करे. \v 13 इसके बाद पुरोहित उस नर मेमने का पवित्र स्थान के उस स्थान में वध करे, जहां पापबलि और होमबलि वध की जाती हैं; क्योंकि दोष बलि, पापबलि के समान पुरोहित का निर्धारित अंश है; यह परम पवित्र है. \v 14 पुरोहित उस दोष बलि के रक्त का कुछ भाग लेकर उसे उस व्यक्ति के दाएं कान के सिरे पर, दाएं हाथ के अंगूठे और दाएं पांव के अंगूठे पर लगा दे, जिसको शुद्ध किया जा रहा है. \v 15 इसके बाद पुरोहित उस एक तिहाई तेल में से कुछ भाग लेकर उसे अपने बायीं हथेली पर उंडेल दे; \v 16 फिर पुरोहित अपनी बायीं हथेली में रखे बचे हुए तेल में अपने दाएं हाथ की उंगली डुबाकर याहवेह के सामने उस तेल में से कुछ तेल को सात बार छिड़क दे. \v 17 अब जो तेल उसकी हथेली में बचा रह गया है, पुरोहित शुद्ध होनेवाले व्यक्ति के दाएं कान के सिरे पर, दाएं हाथ के अंगूठे और दाएं पांव के अंगूठे पर लगा दे, जिन पर दोष बलि का रक्त लगा हुआ है; \v 18 जबकि पुरोहित की हथेली में रखे बचे हुए तेल को पुरोहित उस व्यक्ति के सिर पर भी लगा दे, जिसे शुद्ध किया जा रहा है. फिर पुरोहित उस व्यक्ति की ओर से याहवेह के सामने प्रायश्चित करे. \p \v 19 “इसके बाद पुरोहित पापबलि भेंट करे, और उस व्यक्ति के लिए प्रायश्चित करे, जिसे उसकी अशुद्धता से परिशोधन किया जा रहा है. यह सब करने के बाद वह होमबलि पशु का वध कर दे. \v 20 पुरोहित उस होमबलि एवं अन्‍नबलि को वेदी पर भेंट कर दे. इस प्रकार पुरोहित उस व्यक्ति के लिए प्रायश्चित करे, और वह व्यक्ति शुद्ध हो जाएगा. \p \v 21 “किंतु यदि वह व्यक्ति दरिद्र और लाने के लायक न हो, तो वह अपने लिए प्रायश्चित के लिए, हिलाने की बलि के रूप में भेंट दोष बलि के लिए एक नर मेमना और अन्‍नबलि के लिए तेल मिला हुआ डेढ़ किलो मैदा और एक तिहाई लीटर तेल, \v 22 दो कबूतर अथवा दो कबूतर के बच्‍चे; एक पापबलि के लिए तथा एक होमबलि के लिए, इनमें से वह जो कुछ भी देने में समर्थ हो, ले लें. \p \v 23 “आठवें दिन अपने शुद्ध होने के लिए वह इन्हें मिलनवाले तंबू के द्वार पर याहवेह के सामने पुरोहित के पास लेकर आए. \v 24 पुरोहित दोष बलि के इस मेमने और एक तिहाई लीटर तेल को ले और याहवेह के सामने लहराने की बलि के रूप में भेंट करे. \v 25 फिर पुरोहित दोष बलि के इस मेमने का वध करे; पुरोहित इस दोष बलि के लहू में से कुछ लहू को लेकर उस व्यक्ति के दाएं कान के सिरे पर, दाएं हाथ के अंगूठे और दाएं पांव के अंगूठे पर लगा दे, जिसको शुद्ध किया जाना है. \v 26 पुरोहित अपनी बायीं हथेली में कुछ तेल उण्डेले; \v 27 और अपनी दाएं हाथ की उंगली से अपनी बायीं हथेली में रखे तेल में से कुछ तेल को सात बार याहवेह के सामने छिड़के. \v 28 अब पुरोहित जो तेल उसकी हथेली में बचा रह गया है, उससे कुछ तेल जिस व्यक्ति को शुद्ध किया जा रहा है उसके दाएं कान के सिरे पर लगाएगा, कुछ तेल व्यक्ति के दाएं हाथ के अंगूठे और उसके दाएं पैर के अंगूठे पर लगाएगा. दोष बलि के खून लगे स्थान पर ही पुरोहित तेल लगाएगा. \v 29 पुरोहित की हथेली में रखे बचे हुए तेल को पुरोहित उस व्यक्ति के सिर पर लगा दे, जिसको शुद्ध किया जा रहा है कि पुरोहित उस व्यक्ति की ओर से याहवेह के सामने प्रायश्चित करे. \v 30 इसके बाद पुरोहित एक कबूतर अथवा एक युवा कबूतर, जो भी वह व्यक्ति देने में समर्थ हो, भेंट करे; \v 31 अन्‍नबलि के साथ, पापबलि के लिए एक तथा होमबलि के लिए एक. फिर पुरोहित उस व्यक्ति की ओर से याहवेह के सामने प्रायश्चित करे, जिसको शुद्ध किया जाना है. \p \v 32 “यह उस व्यक्ति के लिए एक विधि है, जिसमें कोढ़ रोग का संक्रमण है और जिसके अपने शुद्ध होने की आवश्यकताओं के लिए साधन सीमित हैं.” \s1 फफूंदी से शुद्धीकरण \p \v 33 फिर याहवेह ने मोशेह और अहरोन को यह आदेश दिया \v 34 “जब तुम कनान देश में प्रवेश करो, जिसका अधिकारी मैंने तुम्हें बनाया है, तुम्हारे आधिपत्य देश के एक आवास में कोढ़ रोग की फफूंदी मैं लगा दूंगा, \v 35 तब वह गृहस्वामी पुरोहित के पास आकर यह सूचना देगा, ‘मुझे अपने घर में कोढ़ रोग के समान एक चिन्ह दिखाई दिया है.’ \v 36 इससे पहले कि पुरोहित उस घर में जाकर उस चिन्ह की जांच करे, वह यह आदेश दे कि वे उस घर को खाली कर दें, ऐसा न हो कि उस आवास में मौजूद सारी वस्तुएं अशुद्ध हो जाएं. उसके बाद पुरोहित उस आवास में प्रवेश कर उसकी जांच करे. \v 37 वह उस चिन्ह की जांच करे और यदि घर की दीवारों पर यह चिन्ह हरी अथवा लाल सतह से नीचे दबी हुई प्रतीत हो, \v 38 तो पुरोहित उस घर से बाहर निकलकर प्रवेश द्वार पर आकर उस घर को सात दिन के लिए उसे बंद कर दे. \v 39 सातवें दिन पुरोहित उसको दोबारा जांचे. यदि वास्तव में वह चिन्ह घर की दीवारों में फैल गया है, \v 40 तो पुरोहित उन्हें यह आदेश दे कि वे उन चिन्हयुक्त पत्थरों को निकालकर नगर से बाहर कूड़े के ढेर पर फेंक दें. \v 41 इसके बाद पुरोहित उस संपूर्ण घर को भीतर से खुरचवा दे और वे उस खुरचन को नगर के बाहर अशुद्ध स्थान पर फेंक दें. \v 42 फिर वे दूसरे पत्थर लेकर उन्हें निकाले गए पत्थरों के स्थान पर लगा दें और गारा लेकर उस आवास की पुनः लीपाई-पोताई कर दें. \p \v 43 “किंतु यदि उसके द्वारा पत्थरों को निकालवाए जाने, घर को खुरचे जाने तथा पुनः पलस्तर लीपे पोते जाने के बाद उस घर में वह फफूंदी फूट पड़ती है, \v 44 तो पुरोहित उसमें प्रवेश कर उसकी जांच करे. यदि उसे यह प्रतीत होता है कि वास्तव में वह चिन्ह आवास में फैल गया है, तो यह उस आवास में एक असाध्य रोग है; यह अशुद्ध है. \v 45 इसलिये उस आवास को ढाह दिया जाए, वह उसके पत्थर, लकड़ी और संपूर्ण पलस्तर को नगर के बाहर अशुद्ध स्थान पर ले जाए. \p \v 46 “इसके अतिरिक्त, यदि कोई व्यक्ति उस समय में उस घर में प्रवेश कर ले, जिसे पुरोहित ने बंद कर दिया था, तो वह व्यक्ति शाम तक अशुद्ध रहेगा. \v 47 इसी प्रकार जो कोई व्यक्ति उस घर में विश्राम करता है, या भोजन कर लेता है, वह भी अपने वस्त्रों को शुद्ध करे. \p \v 48 “यदि इसके विपरीत, पुरोहित उस आवास में प्रवेश कर निरीक्षण करे, और यह पाए कि उस घर की पुनः पलस्तर करने के बाद वह फफूंदी वास्तव में नहीं फैली है, तो पुरोहित उस आवास को शुद्ध घोषित कर दे, क्योंकि यह रोग उसमें पुनः प्रकट नहीं हुआ है. \v 49 तब पुरोहित उस आवास को शुद्ध करने के लिए दो पक्षी, देवदार की लकड़ी, जूफ़ा और लाल डोरी लेकर, \v 50 एक पक्षी को बहते हुए जल पर मिट्टी के एक पात्र में बलि करे. \v 51 इसके बाद वह उस जीवित पक्षी के साथ देवदार की लकड़ी, जूफ़ा और लाल डोरी को उस बलि किए हुए पक्षी के रक्त तथा बहते हुए जल में डुबाकर उस घर पर सात बार छिड़के. \v 52 इस प्रकार वह उस घर का शुद्धीकरण उस पक्षी के लहू तथा बहते हुए जल के साथ साथ देवदार की लकड़ी, जूफ़ा तथा लाल डोरी के साथ करे. \v 53 फिर वह उस जीवित पक्षी को नगर के बाहर खुले मैदान में छोड़ दे. इस प्रकार वह उस घर के लिए प्रायश्चित पूरा करे और वह आवास शुद्ध हो जाएगा.” \p \v 54 किसी भी प्रकार के कोढ़ के रोग के लिए यही विधि है; सेहुंआ के लिए, \v 55 कोढ़ से संक्रमित वस्त्र अथवा घर के लिए, \v 56 सूजन के लिए, पपड़ी के लिए अथवा किसी भी प्रकार के चमकदार धब्बे के लिए; \v 57 उन पर यह प्रकट हो जाए कि क्या अशुद्ध है अथवा क्या शुद्ध. \p कोढ़ रोग के लिए यही विधि है. \c 15 \s1 शारीरिक स्रावों से संबंधित विधि \p \v 1 याहवेह ने मोशेह और अहरोन को ये आदेश दिए: \v 2 “इस्राएल वंशजों को यह आदेश दो, ‘यदि किसी व्यक्ति की देह से कोई स्राव हो रहा हो, वह स्राव अशुद्ध है. \v 3 यह उसकी अशुद्धता ही मानी जाएगी, चाहे उसकी देह से स्राव हो रहा हो, अथवा स्राव रुक गया हो. \p \v 4 “ ‘स्रावग्रस्त व्यक्ति जिस बिछौने पर विश्राम करता है, वह बिछौना अशुद्ध हो जाता है, और हर एक वस्तु जिस पर वह बैठ जाता है, वह भी अशुद्ध हो जाती है. \v 5 इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति उसके बिछौने को छू लेता है, तो वह व्यक्ति अपने वस्त्रों को धोकर स्‍नान करे और वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \v 6 यदि कोई व्यक्ति उस वस्तु पर बैठ जाता है जिस पर वह स्रावग्रस्त व्यक्ति बैठता रहा है, तो वह अपने वस्त्रों को धोकर स्‍नान करे तथा वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \p \v 7 “ ‘और यदि कोई व्यक्ति उस स्रावग्रस्त व्यक्ति को छू लेता है, तो वह व्यक्ति अपने वस्त्रों को धोकर स्‍नान करे, तथा वह शाम तक अशुद्ध रहे. \p \v 8 “ ‘अथवा वह स्रावग्रस्त व्यक्ति किसी शुद्ध व्यक्ति पर थूक देता है, तो वह शुद्ध व्यक्ति भी अपने वस्त्रों को धोकर स्‍नान करे तथा वह शाम तक अशुद्ध रहे. \p \v 9 “ ‘हर एक काठी, जिस पर वह सवारी करता है, वह काठी अशुद्ध हो जाती है. \v 10 यदि कोई व्यक्ति उन वस्तुओं में से किसी को भी छू लेता है, जो स्रावग्रस्त व्यक्ति के नीचे रही हैं, तो वह शाम तक अशुद्ध रहेगा और जो कोई व्यक्ति उनका वहन करता है, तो वह अपने वस्त्रों को धो डाले, स्‍नान करे तथा वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \p \v 11 “ ‘इसी प्रकार स्रावग्रस्त व्यक्ति अपने हाथों को बिना धोए यदि किसी व्यक्ति को छू लेता है, तो वह व्यक्ति अपने वस्त्रों को धोकर स्‍नान करे तथा वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \p \v 12 “ ‘यदि स्रावग्रस्त व्यक्ति किसी मिट्टी के पात्र को छू लेता है, तो उस पात्र को तोड़ डाला जाए, किंतु यदि पात्र लकड़ी का है, तो उसे जल में धोया जाए. \p \v 13 “ ‘जब स्रावग्रस्त व्यक्ति अपने स्राव से शुद्ध हो गए है, तो वह अपने शुद्ध होने के लिए सात दिनों की गिनती कर ले; तब वह अपने वस्त्रों को धो डाले और बहते हुए जल में स्‍नान करे, तब वह शुद्ध हो जाएगा. \v 14 आठवें दिन वह अपने लिए दो कपोत अथवा कबूतर के दो बच्‍चे लेकर मिलनवाले तंबू के द्वार पर याहवेह के सामने आए और इन्हें पुरोहित को दे दे; \v 15 पुरोहित इनमें से एक को पापबलि के लिए तथा दूसरे को होमबलि के लिए भेंट करे. इस प्रकार पुरोहित उसके लिए उसके स्राव के कारण याहवेह के सामने प्रायश्चित पूरा करे. \p \v 16 “ ‘यदि किसी व्यक्ति का वीर्य-उत्सर्जन हो गया है, तो वह स्‍नान के द्वारा सारे शरीर को धो डाले और वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \v 17 जहां तक वस्त्र अथवा चर्मवस्त्र का संबंध है, जिस पर वीर्य गिरा हुआ हो, उस वस्त्र को जल से धो डाला जाए तथा वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \v 18 यदि कोई पुरुष किसी स्त्री से संभोग करे और इस प्रक्रिया में उसका वीर्य-उत्सर्जन हुआ हो, तो वे दोनों स्‍नान करें-वे शाम तक अशुद्ध रहेंगे. \p \v 19 “ ‘जब किसी स्त्री से स्राव हो रहा हो, और यदि वह स्राव रक्त है, तो वह स्त्री अपनी ऋतुस्राव-अशुद्धता की अवधि में सात दिन के लिए होगी, और जो कोई उस स्त्री को छुए, वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \p \v 20 “ ‘हर एक वह वस्तु अशुद्ध होगी जिस पर वह अपने ऋतुस्राव-अशुद्धता की अवधि में लेटती है, तथा वह वस्तु भी जिस पर वह बैठती है. \v 21 जो कोई भी उसके बिछौने को छू लेता है, वह अपने वस्त्रों को धोकर स्‍नान करे, वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \v 22 जो कोई उस वस्तु को छू लेता है जिस पर वह बैठती है, तो वह अपने वस्त्रों को धो डाले तथा स्‍नान करे, वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \v 23 चाहे यह उसका बिछौना अथवा कोई भी वस्तु है जिस पर वह बैठती है, यदि कोई उसको छू लेता है, तो वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \p \v 24 “ ‘यदि कोई पुरुष उसके साथ वास्तव में संभोग कर लेता है, और इस प्रकार उस स्त्री की ऋतुस्राव की अशुद्धता उस पुरुष पर आ जाती है, तो वह सात दिनों के लिए अशुद्ध होगा, और हर एक बिछौना जिस पर वह लेटता है, अशुद्ध हो जाएगा. \p \v 25 “ ‘यदि किसी स्त्री को रक्त का स्राव उसके ऋतुस्राव-अशुद्धता की अवधि में ही नहीं बल्कि उसके अलावा भी अनेक दिनों तक होता रहे, तो वह ऋतुस्राव की अशुद्धता की अवधि के समान अपने इस अशुद्ध स्राव में भी अशुद्ध रहेगी. \v 26 कोई भी वह बिछौना जिस पर वह अपने स्राव के पूरे दिनों में लेटती है, वह उसके ऋतुस्राव के अशुद्ध बिछौने के समान होगा और हर एक वह वस्तु जिस पर वह बैठती है, वह उसके ऋतुस्राव के समान अशुद्ध होगी. \v 27 उसी प्रकार जो कोई उसको छू लेता है, वह अशुद्ध होगा और वह अपने वस्त्रों को धो डाले तथा स्‍नान करे, वह शाम तक अशुद्ध रहेगा. \p \v 28 “ ‘जब वह स्त्री अपने स्राव से शुद्ध हो जाती है, तो वह अपने शुद्ध होने के लिए सात दिनों की गिनती कर ले, उसके बाद वह शुद्ध होगी. \v 29 आठवें दिन वह अपने लिए दो कपोत अथवा दो कबूतर के बच्‍चे लेकर उन्हें मिलनवाले तंबू के द्वार पर पुरोहित के सामने लाए. \v 30 पुरोहित उनमें से एक को पापबलि तथा दूसरे को होमबलि के लिए भेंट करे. इस प्रकार उसके स्राव के कारण पुरोहित उसके लिए याहवेह के सामने प्रायश्चित करे.’ \p \v 31 “ ‘इस प्रकार तुम इस्राएल वंशजों को उनकी अशुद्धता से अलग रखोगे, ऐसा न हो कि वे मेरे मिलनवाले तंबू को, जो उनके बीच में है, अशुद्ध करें और उनकी अशुद्धता के कारण उनकी मृत्यु हो जाए.’ ” \p \v 32 यह विधि उस व्यक्ति के लिए है, जिसका स्राव हो रहा है और जिस व्यक्ति का वीर्य-उत्सर्जन हो गया है; जिससे वह अशुद्ध हो जाता है, \v 33 और उस स्त्री के लिए भी, जो अपनी ऋतुस्राव-अशुद्धता के कारण अस्वस्थ है. हां, उसके लिए, जिससे स्राव हो रहा हो, चाहे वह पुरुष हो अथवा स्त्री; अथवा उस पुरुष के लिए भी, जो उस स्त्री से संभोग कर लेता है, जो अशुद्धता की स्थिति में है. \c 16 \s1 प्रायश्चित के लिए व्यवस्था विधि \p \v 1 जब अहरोन के दोनों पुत्रों की मृत्यु के बाद, उनके याहवेह की उपस्थिति में प्रवेश के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी, तब मोशेह को याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ. \v 2 याहवेह ने मोशेह से कहा, “अपने भाई अहरोन को चेता दो कि वह पर्दे के भीतर परम पवित्र स्थान में संदूक के ऊपर के करुणासन\f + \fr 16:2 \fr*\fq करुणासन \fq*\ft संदूक का ढकना जिसे मूल भाषा में \ft*\fqa प्रायश्चित का ढकना \fqa*\ft अर्थात् \ft*\fqa पापों को ढांपने का स्थान \fqa*\ft भी कहलाता था\ft*\f* के सामने कभी भी अपनी इच्छा से प्रवेश न करे; नहीं तो उसकी मृत्यु हो जाएगी; क्योंकि मैं करुणासन पर बादलों में प्रकट हुआ करूंगा. \p \v 3 “इन निर्देशों का पूरी तरह से पालन करने के बाद ही अहरोन परम पवित्र स्थान में प्रवेश करेगा: पापबलि के लिए एक बछड़ा और होमबलि के लिए एक मेढ़ा लाना है. \v 4 वह मलमल का पवित्र अंगरखा पहने, अपनी देह पर मलमल की जांघिया पहने, मलमल का कमरबंध कसे और मलमल की पगड़ी बांधे. ये पवित्र वस्त्र हैं. पुरोहित इन्हें पूर्ण स्‍नान के बाद ही पहने. \v 5 वह इस्राएली सभा से पापबलि के लिए दो बकरे और होमबलि के लिए एक मेढ़ा ले. \p \v 6 “इसके बाद अहरोन उस बछड़े को पापबलि के लिए भेंट करे, जो उसके स्वयं के लिए तय की गई है कि इसके द्वारा वह स्वयं के लिए तथा अपने परिवार के लिए प्रायश्चित पूरा करे. \v 7 इसके बाद वह दो बकरे ले, और उन्हें मिलनवाले तंबू के प्रवेश पर याहवेह के सामने प्रस्तुत करे. \v 8 अहरोन उन दोनों बकरों के लिए पासे फेंके, एक पासा तो याहवेह के लिए तथा दूसरा अज़ाज़ेल\f + \fr 16:8 \fr*\fq अज़ाज़ेल \fq*\ft हो सकता है कि यह पाप और दोष का अपनी छावनी से संपूर्ण निवारण का एक प्रतीक\ft*\f* बकरे के लिए. \v 9 फिर अहरोन उस बकरे को, जिस पर याहवेह के लिए पासा पड़ा था पापबलि के रूप में भेंट कर दे. \v 10 किंतु वह बकरा, जिस पर अज़ाज़ेल बकरे के लिए पासा पड़ा, वह याहवेह के सामने जीवित लाया जाए कि उस पर प्रायश्चित पूरा करके उसे निर्जन प्रदेश में अज़ाज़ेल के लिए छोड़ दिया जाए. \p \v 11 “फिर अहरोन पापबलि के बछड़े को, जो स्वयं उसके लिए तय है, भेंट करे और वह स्वयं के लिए एवं अपने परिवार के लिए प्रायश्चित पूरा करे. वह पापबलि के इस बछड़े का वध करे, जो स्वयं उसके लिए तय है. \v 12 वह याहवेह के सामने वेदी पर से कोयलों से भरा हुआ धूपदान और दो मुट्ठी भर बहुत ही महीन पीसा हुआ सुगंधधूप पर्दे के अंदर लेकर आए. \v 13 वह इस धूप को याहवेह के सामने आग पर डाल दे कि धुएं का बादल करुणासन को ढांक ले, जो साक्षी पट्टिया की संदूक पर है, नहीं तो उसकी मृत्यु हो जाएगी. \v 14 इसके अलावा वह इस बैल का लहू लेकर उसे पूर्व दिशा की ओर करुणासन के सामने अपनी उंगली से छिड़क दे; हां, करुणासन के समक्ष इसके कुछ रक्त को अपनी उंगली से सात बार छिड़क दे. \p \v 15 “फिर अहरोन पापबलि के उस बकरे की बलि करे, जो प्रजा के लिए है और इसके लहू को पर्दे के भीतर लाकर इसके साथ वैसा ही करे, जैसा उसने बछड़े के लहू के साथ किया था; इसे करुणासन के सामने लाकर करुणासन पर छिड़क दे. \v 16 वह परम पवित्र स्थान के लिए इस्राएल वंशजों की अशुद्धता तथा उनके सारे पापों के संबंध में किए गए अपराध के लिए प्रायश्चित पूरा करे, और इसी प्रकार वह मिलनवाले तंबू के लिए भी करे, जो उनकी अशुद्धताओं के बीच उनके साथ रहता है. \v 17 जब वह प्रायश्चित पूरा करने के लिए परम पवित्र स्थान में जाता है, तब तक मिलनवाले तंबू में कोई भी व्यक्ति न रहने पाए, जब तक वह बाहर न आ जाए कि वह अपने लिए, अपने परिवार तथा इस्राएल की सारी सभा के लिए प्रायश्चित पूरा कर सके. \p \v 18 “फिर वह बाहर उस वेदी के पास जाए, जो याहवेह के सामने है, और इसके लिए प्रायश्चित पूरा करे. वह बछड़े का कुछ लहू और बकरे का कुछ लहू लेकर इसे वेदी के सभी सींगों पर लगा दे, \v 19 तथा अपनी उंगली से इस पर सात बार लहू को छिड़क कर इसको पवित्र करे, और इस प्रकार वह इस्राएल वंशजों की अशुद्धियों की स्थिति में से इसे पवित्र करे. \p \v 20 “वह परम पवित्र स्थान, मिलनवाले तंबू तथा वेदी के लिए प्रायश्चित पूरा करने के बाद, एक जीवित बकरे को भेंट करे. \v 21 अहरोन उस जीवित बकरे के सिर पर अपने दोनों हाथ रखकर इस्राएल वंशजों के सारे अधर्म के कामों और उनके सारे अपराधों, और पापों को स्वीकार करे और इन्हें इस बकरे के सिर पर लादकर इसे इस कार्य के लिए नियुक्त व्यक्ति के द्वारा निर्जन प्रदेश में छोड़ दे. \v 22 यह बकरा बीहड़ जगह में उनके सारे अधर्म के कामों को उठा लेगा; वह व्यक्ति उस बकरे को निर्जन प्रदेश में छोड़कर आए. \p \v 23 “इसके बाद अहरोन मिलनवाले तंबू में आकर उन मलमल के कपड़ों को उतार दे, जो उसने परम पवित्र स्थान में प्रवेश करने के पहले पहने थे, वह उन वस्त्रों को वहीं छोड़ दे. \v 24 वह पवित्र स्थान में ही स्‍नान कर अपने वस्त्र पहन ले और पवित्र स्थान से बाहर आकर अपने लिए तय होमबलि और प्रजा के लिए तय होमबलि चढ़ाकर स्वयं के लिए तथा प्रजा के लिए प्रायश्चित पूरा करे. \v 25 फिर वह पापबलि की चर्बी को वेदी पर आग में जलाकर भेंट कर दे. \p \v 26 “वह व्यक्ति, जो अज़ाज़ेल को छोड़कर आया था, अपने वस्त्रों को धो डाले, स्‍नान करे; इसके बाद वह छावनी में प्रवेश करे. \v 27 ज़रूरी है कि पापबलि के बैल को तथा पापबलि के बकरे को, जिनका लहू परम पवित्र स्थान में प्रायश्चित पूरा करने के लिए लाया गया था, छावनी से बाहर ले जाए. वे उनकी खाल, उनके मांस और उनके गोबर को आग में जला दें. \v 28 वह व्यक्ति, जो उनको जलाता है, अपने वस्त्रों को धो डाले, स्‍नान करे; इसके बाद ही छावनी में प्रवेश करे. \p \v 29 “तुम्हारे लिए सदा की विधि यह होगी: सातवें महीने में, उस महीने के दसवें दिन अपने-अपने जीव को दुःख देने के अंतर्गत तुम—स्वदेशी अथवा विदेशी जो तुम्हारे बीच में रहते हैं—कोई भी कार्य न करना; \v 30 क्योंकि यही वह दिन है, जिस दिन तुम्हारे शुद्ध करने के लिए प्रायश्चित पूरा किया जाएगा, और तुम याहवेह के सामने अपने सारे पापों से शुद्ध हो जाओगे. \v 31 यह तुम्हारे लिए एक विशेष विश्राम शब्बाथ\f + \fr 16:31 \fr*\fq शब्बाथ \fq*\fqa सातवां दिन \fqa*\ft जो पवित्र दिन है\ft*\f* होगा कि तुम अपने-अपने जीव को दुःख दो; यह एक सदा की विधि है. \v 32 मलमल के पवित्र वस्त्र पहनकर प्रायश्चित प्रक्रिया वह पुरोहित पूरा करेगा, जिसे उसके पिता के स्थान पर पुरोहित सेवा के लिए संस्कृत तथा अभिषिक्त किया गया है. \v 33 वह परम पवित्र स्थान के लिए, मिलनवाले तंबू के लिए और वेदी के लिए प्रायश्चित पूरा करेगा. वही पुरोहित, सभी पुरोहितों और सभा की सारी प्रजा के लिए भी प्रायश्चित पूरा करेगा. \p \v 34 “यह तुम्हारे लिए सदा की विधि होगी कि इस्राएली प्रजा के लिए उसके सभी पापों के कारण वर्ष में एक बार प्रायश्चित पूरा किया जाए.” \p मोशेह ने ठीक वैसा ही किया, जैसा याहवेह ने आदेश दिया था. \c 17 \s1 प्रायश्चित के लिए रक्त \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को यह आज्ञा दी: \v 2 “अहरोन, उसके पुत्रों तथा इस्राएल वंशजों को यह संदेश दो, ‘यह वह आदेश है, जो याहवेह के द्वारा निकाला गया है: \v 3 इस्राएल वंशजों में से कोई भी पुरुष, जो किसी बछड़े, मेमने अथवा किसी बकरे का वध छावनी के भीतर अथवा छावनी के बाहर करे, \v 4 और वह इसे मिलनवाले तंबू के द्वार पर याहवेह के तंबू के सामने याहवेह के लिए बलि के रूप में भेंट करने के लिए न लाए, तो उस व्यक्ति को हत्या का आरोपी माना जाएगा. उस व्यक्ति ने लहू बहाया है और उस व्यक्ति को प्रजा से बाहर निकाल दिया जाए. \v 5 ऐसा करने का कारण यह है कि इस्राएल वंशज उनकी वे बलियां, जिनका बलिदान वे खुले मैदान में कर रहे थे, इन बलियों को पुरोहित के पास मिलनवाले तंबू के द्वार पर याहवेह के सामने लाकर उन्हें याहवेह को मेल बलि के रूप में भेंट करें. \v 6 पुरोहित लहू को मिलनवाले तंबू के द्वार पर स्थित याहवेह की वेदी पर छिड़क दे और चर्बी को सुखद-सुगंध के रूप में आग में जलाकर याहवेह को भेंट कर दे. \v 7 अब इसके बाद वे अपना बलि बकरा-देवता\f + \fr 17:7 \fr*\fq बकरा-देवता \fq*\ft यानी \ft*\fqa भूत\fqa*\f* को भेंट न किया करें, जिनका यह काम व्यभिचार के समान था. यह उनके लिए तथा उनकी सारी पीढ़ियों के लिए सदा की एक विधि होगी.’ \p \v 8 “तुम उन्हें यह संदेश देना, ‘इस्राएल वंशजों में से, अथवा विदेशियों में से यदि कोई व्यक्ति, जो उनके बीच में रहते हैं, बलि अथवा होमबलि भेंट करें, \v 9 और उसे मिलनवाले तंबू के द्वार पर याहवेह के लिए भेंट करने के लिए न लाए, तो उस व्यक्ति को भी प्रजा से बाहर निकाल दिया जाए. \p \v 10 “ ‘इस्राएल वंशजों में से अथवा विदेशियों में से कोई व्यक्ति, जो उनके बीच में रहता है, तथा लहू को खाता हो, मैं उस व्यक्ति के विरुद्ध हो जाऊंगा, जिसने लहू को खाया है, तथा उसे प्रजा से बाहर कर दूंगा, \v 11 क्योंकि देह का जीवन लहू में रहता है और मैंने तुम्हें यह इसलिये दिया है कि, तुम इसके द्वारा वेदी पर प्रायश्चित पूरा कर सको.’ \v 12 अतःएव, मैंने इस्राएल वंशजों को यह आदेश दिया, ‘न तुममें से कोई, और न ही कोई विदेशी, जो तुम्हारे बीच में रहता है, लहू को खाए.’ \p \v 13 “इस्राएल वंशजों में से अथवा विदेशियों में से किसी व्यक्ति के हाथ में, जो उनके बीच में रहते हैं, यदि शिकार में कोई खाने योग्य पक्षी अथवा खाने योग्य पशु आ जाए, तो वह उसके लहू को बह जाने दे, तथा इस लहू को धूलि से ढांक दे. \v 14 क्योंकि सभी प्राणियों की देह का जीवन लहू में रहता है. इसलिए मैंने इस्राएल वंशजों को यह आदेश दिया है, ‘यह ज़रूरी है कि तुम किसी भी देह के लहू को न खाया करो, क्योंकि देह का जीवन लहू में ही रहता है; उसे, जो इसको खाएगा, वह बाहर कर दिया जाएगा.’ \p \v 15 “ ‘यदि कोई व्यक्ति, स्वदेशी अथवा विदेशी, उस पशु को खा ले, जिसे वन्य पशुओं द्वारा फाड़ डाला गया हो, तो वह अपने वस्त्रों को धोकर, स्‍नान करे, वह शाम तक अशुद्ध रहेगा; इसके बाद वह शुद्ध हो जाएगा. \v 16 किंतु यदि वह उनको न ही धोता और न ही स्‍नान करता है, तो वह अपने दोष का भार स्वयं उठाएगा.’ ” \c 18 \s1 अनैतिक संबंध के विषय में \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को यह आदेश दिया, \v 2 “इस्राएल वंशजों को यह संदेश दो, ‘मैं याहवेह, तुम्हारा परमेश्वर हूं. \v 3 तुम मिस्र देश के कार्यों के अनुसार व्यवहार नहीं करोगे, जहां तुम रहा करते थे, और न ही कनान देश के कार्यों का, जहां मैं तुम्हें लिए जा रहा हूं; तुम उनकी विधियों का पालन नहीं करोगे. \v 4 तुम मेरे नियमों का पालन करना, और मेरी विधियों का पालन करते हुए उनका अनुसरण करना. मैं याहवेह, तुम्हारा परमेश्वर हूं. \v 5 तुम मेरे नियमों और विधियों का पालन करोगे; जो इनका अनुसरण करेगा, वह इनके कारण जीवित रहेगा; मैं ही वह याहवेह हूं. \p \v 6 “ ‘तुममें से कोई भी अपने कुटुंबी से संभोग न करे; मैं ही वह याहवेह हूं. \p \v 7 “ ‘अपनी माता से संभोग करके तुम अपने पिता का अपमान न करना. वह तुम्हारी जन्म देनेवाली माता है; तुम उससे संभोग न करना. \p \v 8 “ ‘तुम अपने पिता की पत्नी से संभोग न करना; यह तुम्हारे पिता का अपमान होगा. \p \v 9 “ ‘तुम अपनी बहन से संभोग न करना, चाहे वह तुम्हारे पिता से पैदा हुई हो अथवा तुम्हारी माता से पैदा हुई हो, चाहे उसका पालन पोषण तुम्हारे साथ हुआ हो अथवा किसी अन्य परिवार में; तुम उनसे संभोग न करना. \p \v 10 “ ‘अपनी पोती अथवा अपनी नातिन से संभोग न करना, तुम उनसे संभोग न करना क्योंकि यह तुम्हारा स्वयं का ही अपमान होगा. \p \v 11 “ ‘तुम अपनी सौतेली माता की कन्या से संभोग न करना, तुम्हारे पिता से जन्मी कन्या से, वह तुम्हारी सौतेली बहन है, तुम उससे संभोग न करना. \p \v 12 “ ‘तुम अपने पिता की बहन से संभोग न करना; वह तुम्हारे पिता की कुटुंबी है. \p \v 13 “ ‘तुम अपनी मौसी से संभोग न करना क्योंकि वह तुम्हारी माता की कुटुंबी है. \p \v 14 “ ‘तुम अपने पिता के भाई का अपमान उसकी पत्नी से संभोग करने के द्वारा न करना, न इसका प्रयास ही करना, वह तुम्हारी चाची है. \p \v 15 “ ‘तुम अपनी बहू से संभोग न करना; वह तुम्हारे पुत्र की पत्नी है, तुम उससे संभोग न करना. \p \v 16 “ ‘तुम अपने भाई की पत्नी से संभोग न करना; यह तुम्हारे भाई का अपमान होगा. \p \v 17 “ ‘तुम किसी महिला और उसकी पुत्री से भी संभोग न करना और न ही उसके पुत्र की कन्या से और न ही उसकी पुत्री की कन्या से संभोग करना; वे कुटुंबी हैं. यह व्यभिचार है. \p \v 18 “ ‘तुम अपनी पत्नी की बहन से विवाह न करना, जब तक तुम्हारी पत्नी जीवित है, तुम उससे संभोग न करना. \p \v 19 “ ‘तुम किसी महिला के मासिक स्राव की अशुद्धता के काल में संभोग के उद्देश्य से न जाना. \p \v 20 “ ‘तुम अपने पड़ोसी की पत्नी के साथ संभोग करके उसके साथ स्वयं को भ्रष्‍ट न करना. \p \v 21 “ ‘तुम अपनी संतानों में से किसी को भी मोलेख को भेंट न करना और न ही अपने परमेश्वर के नाम को कलंकित करना; मैं ही वह याहवेह हूं. \p \v 22 “ ‘तुम स्त्री से संभोग करने के समान किसी पुरुष से संभोग न करना; यह एक घृणित कार्य है. \p \v 23 “ ‘तुम किसी पशु से भी संभोग करके स्वयं को भ्रष्‍ट न करना और न ही कोई स्त्री संभोग के उद्देश्य से किसी पशु के सम्मुख जाए; यह अनर्थ है. \p \v 24 “ ‘इन कार्यों में से किसी भी कार्य को करने के द्वारा तुम स्वयं को भ्रष्‍ट न करना; क्योंकि इन्हीं कार्यों के कारण सभी जनता ने, जिन्हें मैं तुम्हारे सामने से खदेड़ने पर हूं, स्वयं को भ्रष्‍ट कर लिया है. \v 25 क्योंकि देश भ्रष्‍ट हो गया है, इसलिये मैं इसकी दण्डाज्ञा इस पर ले आया और देश ने इसके निवासियों को निकाल फेंका. \v 26 किंतु तुम मेरी विधियों और नियमों का पालन करना और ये घृणित कार्य न करना, न तो स्वदेशी और न ही तुम्हारे बीच रह रहे विदेशी, जो तुम्हारे बीच में रहते हैं; \v 27 क्योंकि तुम्हारे सामने इस देश के निवासियों ने ये समस्त घृणित कार्य किए हैं, और देश भ्रष्‍ट हो गया है; \v 28 ऐसा न हो कि तुम इसे भ्रष्‍ट कर दो और यह तुम्हें निकाल फेंके, जिस प्रकार इसने उस जनता को निकाल फेंका था, जो तुम्हारे सामने था. \p \v 29 “ ‘यदि कोई इन घृणित कार्यों में से कोई भी कार्य करता है, तो उन्हें जो ऐसा करते हैं, प्रजा से बाहर कर दिया जाए. \v 30 तब तुम मेरे आदेश का पालन करो कि तुम किसी भी घिनौनी रीति का पालन न करो, जिनका पालन तुम्हारे सामने होता रहा था, कि तुम उनसे स्वयं को अशुद्ध न कर बैठो; मैं ही वह याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं.’ ” \c 19 \s1 पवित्रता एवं न्याय के विषय में \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को यह आदेश दिया, \v 2 “इस्राएल वंशजों की पूरी सभा को यह आदेश दो, ‘पवित्र बनो, क्योंकि मैं याहवेह, तुम्हारा परमेश्वर पवित्र हूं. \p \v 3 “ ‘तुममें से हर एक अपने माता-पिता का सम्मान करे और मेरे शब्बाथों का पालन करे; मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं. \p \v 4 “ ‘मूरतों की ओर न फिरना, और न स्वयं के लिए धातु के देवता गढ़ना; मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं. \p \v 5 “ ‘जब तुम याहवेह को मेल बलि भेंट करो, तो इसे इस रीति से भेंट करो कि वह स्वीकार किए जाओ. \v 6 जिस दिन तुम इसे भेंट करो, उसी दिन तथा उसके अगले दिन इसको खाया जाए, किंतु जो तीसरे दिन तक बचा हुआ है, उसको आग में जला दिया जाए. \v 7 पर तीसरे दिन तक बचा हुआ मांस को खाया जाना स्वीकार नही किया जाएगा, क्योंकि यह अशुद्ध है. \v 8 ऐसा हर एक व्यक्ति, जो इसको खाता है, वह अपने अधर्म का भार स्वयं उठाएगा, क्योंकि उसने याहवेह की पवित्र वस्तु को अशुद्ध किया है, तब उस व्यक्ति को प्रजा से बाहर निकाल दिया जाए. \p \v 9 “ ‘जब तुम अपने देश में पहुंचने के बाद, उपज इकट्ठा करोगे, तो तुम अपने खेतों के कोने-कोने तक की उपज इकट्ठा न कर लेना, न ही उपज की सिल्ला. \v 10 न ही अपनी अंगूर की बारी से सारे अंगूर इकट्ठा कर लेना, और न ही अपनी अंगूर की बारी के नीचे गिरे हुए फलों को इकट्ठा करना; तुम उन्हें दरिद्रों तथा विदेशियों के लिए छोड़ देना. मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं. \p \v 11 “ ‘तुम चोरी न करना. \p “ ‘न ही धोखा देना. \p “ ‘न एक दूसरे से झूठ बोलना. \p \v 12 “ ‘तुम मेरे नाम की झूठी शपथ न लेना और इस प्रकार अपने परमेश्वर का नाम अशुद्ध न करना; मैं ही याहवेह हूं. \p \v 13 “ ‘तुम अपने पड़ोसी को न लूटना. \p “ ‘न ही उसकी किसी वस्तु को ज़बरदस्ती छीनना. भाड़े पर लाए गए किसी मज़दूर की मजदूरी तुम्हारे पास रात से सुबह तक रखी न रह जाए. \p \v 14 “ ‘तुम किसी बहिरे को शाप न देना, न ही अंधे के सामने ठोकर का पत्थर रखना, परंतु अपने परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना; मैं ही याहवेह हूं. \p \v 15 “ ‘तुम निर्णय देने में अन्याय न करना; तुम दरिद्र के प्रति भेद-भाव न करना, न ही ऊंचे लोगों का सम्मान तुम्हारे निर्णय को प्रभावित करने पाए, परंतु तुम अपने पड़ोसी का सही प्रकार से न्याय करना. \p \v 16 “ ‘तुम अपने लोगों के बीच निंदा करते न फिरना. \p “ ‘यदि तुम्हारे पड़ोसी का जीवन खतरे में हो तो तुम शांत न बने रहना; मैं ही याहवेह हूं. \p \v 17 “ ‘अपने भाई से घृणा न करना; तुम अपने पड़ोसी को फटकार अवश्य लगाना; ऐसा न हो कि उसके पाप के दोष तुम पर आ जाए. \p \v 18 “ ‘बदला न लेना, और न ही अपने लोगों की संतान से कोई बैर रखना, परंतु तुम अपने पड़ोसी से वैसा ही प्रेम करना, जैसा प्रेम तुम्हें स्वयं से है; मैं ही याहवेह हूं. \p \v 19 “ ‘मेरी विधियों का पालन करना. \p “ ‘तुम अपने पशुओं में दो भिन्‍न प्रकार के पशुओं का मेल न कराना; \p “ ‘तुम अपने खेत में दो भिन्‍न प्रकार के बीज न बोना. \p “ ‘न ही वह वस्त्र पहनना, जिसमें दो प्रकार की सामग्रियों का मिश्रण किया गया हो. \p \v 20 “ ‘यदि कोई व्यक्ति उस स्त्री से, जो दासी है और किसी अन्य की मंगेतर है, तथा किसी भी प्रकार से उसका दाम नहीं चुकाया गया, न ही उसे स्वतंत्र किया गया है, सहवास कर लेता है, तब उन्हें दंड तो दिया जाएगा किंतु मृत्यु दंड नहीं, क्योंकि वह स्त्री उस समय दासत्व में थी. \v 21 वह व्यक्ति मिलनवाले तंबू के द्वार पर दोष बलि के लिए एक मेढ़ा याहवेह को भेंट करे. \v 22 फिर पुरोहित दोष बलि के उस मेढ़े के साथ याहवेह के सामने उस व्यक्ति तथा उसके द्वारा किए गए पाप के लिए प्रायश्चित पूरा करे, तब उसके द्वारा किया गया पाप क्षमा कर दिया जाएगा. \p \v 23 “ ‘जब तुम उस देश में प्रवेश करके सभी प्रकार के खानेवाले फलों के वृक्षों को उगाओगे, तो याद रहे कि इन बोए हुए वृक्षों के फल तुम्हारे लिए वर्जित होंगे. पहले तीन वर्षों के लिए ये फल तुम्हारे लिए वर्जित होंगे; इनको न खाया जाए. \v 24 किंतु चौथे वर्ष इसके सारे फल याहवेह की स्तुति में भेंट पवित्र फल होंगे. \v 25 पांचवें वर्ष तुम इनको खा सकते हो कि यह तुम्हें बहुत मात्रा में फल दे सके; याहवेह तुम्हारा परमेश्वर मैं ही हूं. \p \v 26 “ ‘तुम किसी भी वस्तु को लहू के साथ न खाना. \p “ ‘न ही शकुन विचारना अथवा जादू-टोना करना. \p \v 27 “ ‘तुम अपनी कनपटी के बाल न कतरना और न अपनी दाढ़ी को किनारों से काटना. \p \v 28 “ ‘मृतकों के लिए तुम अपनी देह में कोई चीरा न लगवाना, न ही कोई चिन्ह गुदवाना: मैं ही याहवेह हूं. \p \v 29 “ ‘अपनी पुत्री को वेश्या बनाकर उसे भ्रष्‍ट न करना, ऐसा न हो कि देश में वेश्यावृत्ति भर जाए, और यह कामुकता से परिपूर्ण हो जाए. \p \v 30 “ ‘तुम मेरे शब्बाथों का पालन करो और मेरे पवित्र स्थान का सम्मान; मैं ही याहवेह हूं. \p \v 31 “ ‘तुम ओझाओं और तांत्रिकों की ओर न फिरना; उनकी खोज करने के द्वारा तुम स्वयं को दूषित न कर लेना. मैं ही याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं. \p \v 32 “ ‘तुम बूढ़े व्यक्ति के सामने खड़े हुआ करो, और बूढ़ों की उपस्थिति का सम्मान करना, तथा अपने परमेश्वर का भय मानना; मैं ही याहवेह हूं. \p \v 33 “ ‘जब कोई अपरिचित तुम्हारे बीच तुम्हारे देश में रहता है, तो तुम उसके साथ अन्याय न करना. \v 34 जो अपरिचित तुम्हारे बीच में रह रहा है, तुम्हारे लिए वह तुम्हारे मध्य एक स्वदेशी के समान हो, और तुम उससे वैसा ही प्रेम करना; जैसा तुम स्वयं से करते हो, क्योंकि मिस्र देश में तुम परदेशी थे; मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं. \p \v 35 “ ‘तुम न्याय करने, नापतोल तथा मात्रा में अन्याय न करना. \v 36 तुम्हारी तुला, बाट, किलो और लीटर यथार्थ हों; मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं, जो तुम्हें मिस्र देश से निकालकर लाया हूं. \p \v 37 “ ‘फिर तुम मेरी विधियों और सभी नियमों का पालन करना और उनको मानते रहना; मैं ही याहवेह हूं.’ ” \c 20 \s1 मानव बलि तथा अनैतिकताओं के विषय \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को यह आज्ञा दी, \v 2 “इस्राएल वंशजों को तुम ये आदेश भी देना: ‘इस्राएल वंशजों में से कोई भी व्यक्ति अथवा इस्राएल में रह रहे परदेशियों में से कोई भी, जो अपनी संतान में से किसी को भी मोलेख को भेंट करता है, निश्चयतः उसका वध कर दिया जाए; उस देश के निवासी उस पर पथराव करें. \v 3 मैं भी उस व्यक्ति से मुंह फेर लूंगा और उसे प्रजा से निकाल बाहर कर दूंगा, क्योंकि उसने अपनी संतानों में से कुछ को मेरे पवित्र स्थान को अशुद्ध और मेरे पवित्र नाम को भ्रष्‍ट करने के लिए मोलेख के लिए भेंट किया है. \v 4 यदि उस देश के निवासी उस व्यक्ति को अनदेखा कर दें, जिसने अपनी संतान में से किसी को मोलेख को भेंट किया है, और उसका वध न करें, \v 5 तो मैं स्वयं उस व्यक्ति एवं उसके परिवार से मुंह फेर लूंगा और उन्हें प्रजा से निकाल बाहर कर दूंगा; उस व्यक्ति को और उन सभी लोगों को, जो मोलेख के प्रति श्रद्धा दिखा करके मेरे साथ विश्वास को तोड़ने में उस व्यक्ति का साथ देते हैं. \p \v 6 “ ‘जहां तक उस व्यक्ति का प्रश्न है, जो तांत्रिकों और ओझाओं की ओर फिर गया हो, मेरे साथ विश्वास तोड़ने में उनका साथ देता है, मैं उस व्यक्ति से भी मुंह फेर लूंगा और उसे मेरी प्रजा से अलग कर दूंगा. \p \v 7 “ ‘इसलिये तुम स्वयं को शुद्ध करो और पवित्र बनो, क्योंकि मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं. \v 8 तुम मेरी विधियों का पालन करते हुए उनको मानना; मैं ही वह याहवेह हूं, जो तुम्हें शुद्ध करता हूं. \p \v 9 “ ‘यदि कोई ऐसा व्यक्ति है, जो अपने पिता अथवा अपनी माता को शाप देता है, तो निश्चय ही उसका वध कर दिया जाए; उसने अपने पिता और माता को शाप दिया है; उसके लहू का दोष उसी पर होगा. \p \v 10 “ ‘यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी से व्यभिचार करता है, तो जिसने अपने मित्र की पत्नी के साथ व्यभिचार किया है, निश्चय ही उस व्यभिचारी और उस व्यभिचारिणी दोनों का वध किये जाए. \p \v 11 “ ‘यदि कोई व्यक्ति अपने पिता की पत्नी से सहवास कर लेता है, तो उसने अपने पिता का अपमान किया है; इसलिये अवश्य है कि उन दोनों का वध कर दिया जाए; उन दोनों के लहू का दोष उन्हीं पर होगा. \p \v 12 “ ‘यदि कोई व्यक्ति अपनी बहू से सहवास करता है, तो निश्चय ही उन दोनों का वध कर दिया जाए; उन्होंने पारिवारिक व्यभिचार किया है, उनके लहू का दोष उन्हीं पर होगा. \p \v 13 “ ‘यदि कोई पुरुष किसी पुरुष के साथ वैसा ही सहवास करता है जैसा किसी स्त्री के साथ, तो उन्होंने एक घृणित काम किया है; निश्चित ही उन दोनों का वध कर दिया जाए. उनके लहू का दोष उन्हीं पर होगा. \p \v 14 “ ‘यदि कोई पुरुष किसी स्त्री एवं उसकी माता से विवाह करता है, तो यह महापाप है; उसको एवं उन दोनों स्त्रियों को आग में जला दिया जाए, कि तुम्हारे बीच कोई महापाप न रह जाए. \p \v 15 “ ‘यदि कोई व्यक्ति किसी पशु से सहवास करता है, तो निश्चित ही उस व्यक्ति का वध कर दिया जाए, और निश्चित ही उस पशु का भी. \p \v 16 “ ‘यदि कोई स्त्री किसी पशु से सहवास करती है, तो तुम उस स्त्री एवं पशु का वध कर देना; निश्चित ही उनका वध कर दिया जाए. उनके लहू का दोष उन्हीं पर होगा. \p \v 17 “ ‘यदि कोई अपनी बहन से अर्थात् अपने पिता की पुत्री अथवा अपनी सौतेली माता की पुत्री से विवाह करता है, जिसके कारण वह उस कन्या को बिना वस्त्र के देख लेता है, तथा वह कन्या उसको बिना वस्त्र के देख लेती है, तो यह लज्जा जनक कार्य है, और उन्हें लोगों के बीच में से निकाल दिया जाए. वह व्यक्ति, जिसने अपनी बहन की लज्जा को उघाड़ा है; अपने अधर्म का बोझ स्वयं उठाएगा. \p \v 18 “ ‘यदि कोई व्यक्ति किसी ऋतुमती से संभोग कर उसकी लज्जा को उघाड़ता है, उसने उसके ऋतुस्राव के स्रोत को उघाड़ा है और उस स्त्री ने अपने रक्त प्रवाह को उघाड़ा है, उन दोनों को लोगों के बीच में से निकाल दिया जाए. \p \v 19 “ ‘तुम अपनी मौसी अथवा अपनी फूफी की लज्जा को न उघाड़ना, क्योंकि ऐसे व्यक्ति ने अपने कुटुंबी को नग्न किया है; वे अपने अधर्म का बोझ स्वयं उठाएंगे. \p \v 20 “ ‘यदि कोई व्यक्ति अपनी चाची से संभोग करता है, तो उसने अपने चाचा की लज्जा को उघाड़ा है; वे अपने पाप का बोझ स्वयं उठाएंगे. उनकी मृत्यु निसंतान होगी. \p \v 21 “ ‘यदि कोई व्यक्ति अपनी भाभी से विवाह करता है, यह घिनौना काम है, उसने अपने भाई की लज्जा को उघाड़ा है. वे निसंतान ही रह जाएंगे. \p \v 22 “ ‘तुम मेरी सभी विधियों और मेरे सभी नियमों का पालन करते हुए उनका अनुसरण करना, कि वह देश तुम्हें निकाल न फेंके, जिसमें मैं तुम्हें बस जाने के लिए ले जा रहा हूं. \v 23 इसके अलावा तुम उन जनताओं की रीति रस्मों पर मत चलना, जिन्हें मैं तुम्हारे सामने से निकाल दूंगा, क्योंकि उन्होंने ये सब कुकर्म किए, इसलिये मैंने उनसे घृणा की है. \v 24 अतःएव मैंने तुम्हें आदेश दिया, “तुम्हें उनके देश पर अधिकार कर लेना है, मैं स्वयं इस देश को तुम्हारे अधिकार में कर दूंगा, जहां दूध और शहद की बहुतायत है.” मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं, जिसने तुम्हें उन लोगों से अलग किया है. \p \v 25 “ ‘तुम्हें शुद्ध एवं अशुद्ध पशुओं, शुद्ध एवं अशुद्ध पक्षियों के बीच भेद स्पष्ट रखना होगा; किसी पशु, पक्षी अथवा कोई भी प्राणी, जो भूमि पर रेंगता है, जिसे मैंने उसकी अशुद्धता के कारण तुमसे अलग किया है, उसके कारण तुम स्वयं को अशुद्ध न करना. \v 26 इस प्रकार ज़रूरी है कि तुम मेरे प्रति पवित्र रहो, क्योंकि मैं ही याहवेह हूं, जो पवित्र हूं; मैंने तुम्हें मेरी प्रजा होने के लिए लोगों से अलग किया है. \p \v 27 “ ‘यदि कोई तांत्रिक एवं ओझा है, तो निश्चित ही उसका वध कर दिया जाए. उन पर पथराव किया जाए, उनके लहू का दोष उन्हीं पर है.’ ” \c 21 \s1 पुरोहितों के लिए नियम \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को यह आज्ञा दी, “अहरोनवंशी पुरोहितों को यह आज्ञा दो: ‘कोई पुरोहित अपने लोगों के बीच किसी मृतक के लिए स्वयं को अशुद्ध न करे, \v 2 केवल उसके निकटतम संबंधियों के अर्थात् माता, पिता, उसके पुत्र, पुत्री, भाई, \v 3 तथा उसकी कुंवारी बहन, जो उस पर आश्रित है, क्योंकि अब तक उसके कोई पति हुआ ही नहीं; इनके लिए वह पुरोहित स्वयं को अशुद्ध कर सकता है. \v 4 घर का मालिक होने के कारण वह स्वयं को अशुद्ध न करे; हां, इस प्रकार वह स्वयं को भ्रष्‍ट न करे. \p \v 5 “ ‘वे अपना सिर न मुंडवाएं, न ही अपनी दाढ़ी के किनारे कतरें, न ही अपनी देह में चीरा लगायें. \v 6 वे अपने परमेश्वर के प्रति पवित्र रहें और अपने परमेश्वर के नाम को अशुद्ध न करें क्योंकि वे आग के बीच से याहवेह, अपने परमेश्वर का भोजन अर्थात् बलि भेंट कर रहे होते हैं; इसलिये ज़रूरी है कि वे पवित्र रहें. \p \v 7 “ ‘वे वेश्यावृत्ति से अशुद्ध स्त्री से विवाह न करे, न ही उस स्त्री से जिसका उसके पति से तलाक हो गया है, क्योंकि पुरोहित उसके परमेश्वर के लिए पवित्र है. \v 8 तुम उसे पवित्र करना, क्योंकि वह तुम्हारे परमेश्वर को भोजन भेंट करता है, वह तुम्हारे लिए पवित्र रहे, क्योंकि मैं याहवेह, जो तुम्हें पवित्र करता हूं, पवित्र हूं. \p \v 9 “ ‘पुरोहित की कोई पुत्री, यदि स्वयं को वेश्यावृत्ति से अशुद्ध करती है, तो वह अपने पिता को अशुद्ध करती है; उसे आग में जला दिया जाए. \p \v 10 “ ‘वह पुरोहित, जो अपने भाइयों में प्रधान है, जिसके सिर पर अभिषेक का तेल उंडेला गया है, जिसे पुरोहित वस्त्र धारण करने के लिए पवित्र किया गया है, वह पुरोहित अपने सिर को न उघाड़े, न ही अपने वस्त्र फाड़े; \v 11 न ही वह किसी शव के निकट जाए, न ही स्वयं को अपने पिता और अपनी माता के लिए अशुद्ध करे; \v 12 वह पवित्र स्थान से बाहर न जाए और न अपने परमेश्वर के पवित्र स्थान को अपवित्र करे क्योंकि परमेश्वर के अभिषेक का तेल उस पर है; मैं ही याहवेह हूं. \p \v 13 “ ‘वह कुंवारी कन्या से ही विवाह करे. \v 14 वह इनमें किसी से विवाह न करे: एक विधवा अथवा जिसका तलाक हो गया हो, अथवा उस कन्या से जो वेश्यावृत्ति द्वारा अशुद्ध हो गई हो, परंतु वह अपने लोगों में से ही किसी कुंवारी से विवाह करे, \v 15 कि वह अपने लोगों में अपनी संतानों को अशुद्ध न कर दे; क्योंकि मैं ही याहवेह हूं, जो उसे पवित्र करता हूं.’ ” \p \v 16 इसके बाद याहवेह ने मोशेह को आज्ञा दी, \v 17 “अहरोन को यह संदेश दो, ‘तुम्हारी संतानों में से उनकी पीढ़ियों तक कोई भी व्यक्ति, जिसमें कोई अंग खराब पाया जाता है, वह अपने परमेश्वर को भोजन भेंट करने का प्रयास न करे. \v 18 हां, इनमें से कोई भी व्यक्ति, यह प्रयास न करे: अंधा, लंगड़ा, चपटी नाक वाला, या अधिक अंग वाला हो, \v 19 जिसका पांव अथवा बांह की कोई हड्डी टूटी हो, \v 20 कुबड़ा, बौना, जिसकी आंख में कोई खराबी हो, जो खुजली से पीड़ित हो अथवा उसकी त्वचा पर चकते हों तथा जिसके अंडकोश कुचले हुए हों. \v 21 अहरोन की संतानों में से कोई व्यक्ति, जिसमें कोई खराबी हो, वह आग में याहवेह को बलि भेंट करने का प्रयास न करे; इसलिये कि उस व्यक्ति में वह खराबी है, वह अपने परमेश्वर के भोजन को भेंट करने का प्रयास न करे. \v 22 वह परम पवित्र तथा पवित्र स्थान, दोनों ही स्थानों के अपने परमेश्वर के भोजन को खा तो सकता है, \v 23 किंतु वह पर्दे के भीतर न जाए और न ही वेदी के निकट, क्योंकि उसके अंगों में खराबी है, और इसके द्वारा वह मेरे पवित्र स्थानों को अशुद्ध न कर बैठे. क्योंकि मैं ही याहवेह हूं, जो उन्हें पवित्र करता हूं.’ ” \p \v 24 इस प्रकार मोशेह ने अहरोन, उनके पुत्रों और सारे इस्राएल के घराने को ये आज्ञाएं दीं. \c 22 \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को ये आदेश दिए, \v 2 “अहरोन और उसके पुत्रों को इस्राएल के घराने के उन उपहारों के प्रति, जो उपहार वे मुझे भेंट करते हैं, सावधान रहने को बता दो; कि इसके द्वारा वे मेरे पवित्र नाम को अपवित्र न कर दें; मैं ही याहवेह हूं. \p \v 3 “उन्हें यह आज्ञा दो, ‘तुम्हारी सारी पीढ़ियों तक, यदि तुम्हारे बीच में से कोई भी व्यक्ति जब वह अशुद्ध है, तब उन भेंटों के समीप आ जाता है, जो इस्राएल के घराने के द्वारा मुझे भेंट किए गए थे, तो उस व्यक्ति को मेरे सामने से अलग कर दिया जाए; मैं ही वह याहवेह हूं. \p \v 4 “ ‘अहरोन के घराने में से कोई भी व्यक्ति, जो कोढ़ी है, अथवा जिसे किसी प्रकार का स्राव हो रहा हो, तब तक मेरी पवित्र भेंटों में से कुछ न खाए, जब तक वह शुद्ध न हो जाए. और यदि कोई व्यक्ति उस वस्तु को छू लेता है, जो किसी शव को छूने के द्वारा अशुद्ध हो गई है, अथवा यदि किसी व्यक्ति का वीर्य स्खलन हुआ है, \v 5 अथवा यदि कोई व्यक्ति किसी अशुद्ध वस्तु को छू लेता है और उसके द्वारा वह अशुद्ध हो जाता है, अथवा वह किसी अन्य अशुद्ध व्यक्ति के द्वारा अशुद्ध हो जाता है, तो चाहे उसकी कैसी भी अशुद्धता हो; \v 6 तो वह व्यक्ति, जो ऐसी किसी भी वस्तु को छू लेता है, वह शाम तक अशुद्ध रहेगा और स्‍नान करने तक वह पवित्र भेंटों में से किसी वस्तु को न खाए. \v 7 किंतु सूर्य अस्त होने पर वह व्यक्ति शुद्ध हो जाएगा; इसके बाद वह पवित्र भेंटों में से खा सकता है, क्योंकि यह उसका भोजन है. \v 8 वह उस मरे हुए पशु के मांस को न खाए, जिसकी स्वाभाविक मृत्यु हुई हो, अथवा जिसे किसी जंगली जानवर ने फाड़ डाला हो, ऐसा करके वह स्वयं को अशुद्ध न बनाए; क्योंकि मैं ही याहवेह हूं. \p \v 9 “ ‘वे मेरे इस नियम का पालन करें कि उन्हें पाप का भार न उठाना पड़े और मेरे नियम को अपवित्र करने के द्वारा उनकी मृत्यु न हो जाए; क्योंकि मैं ही याहवेह हूं, जो उन्हें पवित्र करता हूं. \p \v 10 “ ‘कोई भी, जो पुरोहित के परिवार के बाहर का हो, किसी पवित्र भेंट को न खाए; किसी पुरोहित के साथ रह रहा कोई पराए कुल का रहवासी, अथवा किराये पर लिया गया कोई मज़दूर पवित्र भेंट में से न खाए. \v 11 किंतु यदि कोई पुरोहित धन देकर किसी दास को खरीद लेता है, तो वह दास पवित्र भेंट में से खा सकता है, और वे सब भी जिनका जन्म उसके परिवार में हुआ है, उसके भोजन से खा सकते हैं. \v 12 यदि किसी पुरोहित की पुत्री का विवाह किसी ऐसे व्यक्ति से हो जाए, जो पुरोहित न हो, तो वह कन्या उन चढ़ाई हुई भेंटों में से न खाए. \v 13 किंतु यदि किसी पुरोहित की पुत्री विधवा हो जाए, अथवा उसका तलाक हो जाए, और वह युवावस्था में ही निःसंतान ही अपने पिता के घर लौट आए, तो वह अपने पिता के भोजन में से खा सकती है; किंतु कोई व्यक्ति जो पुरोहित न हो वह इसमें से न खाए. \p \v 14 “ ‘यदि कोई व्यक्ति अनजाने में पवित्र भेंटों में से खा ले, तो वह इसका पांच गुणा मिलाकर उस पवित्र भेंट को पुरोहित को दे दे. \v 15 वे इस्राएल के घराने द्वारा याहवेह को चढ़ाई हुई पवित्र भेंटों को अपवित्र न करें \v 16 और इस प्रकार उनकी पवित्र भेंटों को खाने के द्वारा दंड उठाने का कारण न बनें; क्योंकि मैं ही याहवेह हूं, जो उन्हें पवित्र करता हूं.’ ” \s1 ग्रहण योग्य बलियां \p \v 17 याहवेह ने मोशेह को आज्ञा दी, \v 18 “अहरोन, उसके पुत्रों और सारे इस्राएल के घराने को यह आज्ञा दो, ‘इस्राएल के घराने में से कोई व्यक्ति अथवा इस्राएल में कोई परदेशी जब बलि चढ़ाए, चाहे यह बलि किसी शपथ के लिए हो, अथवा उनकी स्वेच्छा बलि हो, वे याहवेह को वह होमबलि के रूप में चढ़ाएं. \v 19 वह तुम्हारे लिए ग्रहण योग्य हो सके, तो ज़रूरी है कि यह बलि निर्दोष नर पशु की हो, चाहे बछड़ा अथवा मेढ़ा अथवा बकरा. \v 20 उस पशु को न चढ़ाया जाए, जिसमें कोई खराबी हो, क्योंकि तुम्हारे पक्ष में यह याहवेह द्वारा ग्रहण नहीं होगा. \v 21 जब कोई व्यक्ति बैलों अथवा भेड़-बकरियों में से किसी विशेष शपथ को पूरा करने, अथवा स्वेच्छा बलि के लिए याहवेह को मेल बलि चढ़ाता है, तो ज़रूरी है कि ग्रहण करने के लिए यह निर्दोष हो; ध्यान रहे कि इसमें कोई खराबी न हो. \v 22 ऐसे पशुओं को, जो अंधे हों, जिनकी हड्डी टूटी हो, जो विकलांग हों, जिसके घावों से स्राव हो रहा हो, जिन्हें चकते हो गए अथवा खाज-खुजली वाले हों, याहवेह को न चढ़ाना और न ही उन्हें वेदी पर अग्निबलि स्वरूप याहवेह के लिए चढ़ाना. \v 23 तुम किसी ऐसे बछड़े अथवा मेमने को स्वेच्छा बलि के लिए चढ़ा सकते हो, जिसका कोई अंग बड़ा अथवा छोटा हो गया हो, किंतु किसी शपथ के लिए यह ग्रहण नहीं होगा. \v 24 किसी भी ऐसे पशु को जिसके अंडकोश चोटिल, कुचले, फटे अथवा कटे हों, याहवेह को न चढ़ाना, और न ही अपने देश में उनकी बलि देना, \v 25 और न ही किसी विदेशी से इसे परमेश्वर के भोजन के रूप में चढ़ाने के लिए ग्रहण करना; क्योंकि उनमें तो उनका बिगड़ा आकार है ही. उनमें दोष है वे तुम्हारे पक्ष में ग्रहण नहीं होंगे.’ ” \p \v 26 याहवेह ने मोशेह को आज्ञा दी, \v 27 “जब किसी बछड़े, भेड़ अथवा बकरी का जन्म हो, यह सात दिन तक अपनी माता के साथ में रहे, और आठवें दिन के बाद से यह याहवेह के लिए अग्निबलि के रूप में ग्रहण हो जाएगा. \v 28 किंतु चाहे यह बछड़ा हो अथवा भेड़, तुम माता तथा उसके बच्‍चे दोनों का एक ही दिन में वध न करना. \p \v 29 “जब तुम याहवेह को आभार-बलि चढ़ाओ, तो तुम इसे इस प्रकार भेंट करो कि यह याहवेह को ग्रहण हो. \v 30 इसको उसी दिन खा लिया जाए, तुम सुबह तक इसमें से कुछ भी बचाकर न रखना; मैं ही याहवेह हूं. \p \v 31 “तुम मेरी आज्ञाओं का पालन कर उनका अनुसरण करना; मैं ही याहवेह हूं. \v 32 तुम मेरे पवित्र नाम को अशुद्ध न करना; मैं इस्राएल के घराने में पवित्र किया जाऊंगा; मैं ही याहवेह हूं, जो तुम्हें पवित्र करता हूं, \v 33 तुम्हें मिस्र से निकालकर लाया हूं, कि तुम्हारे लिए तुम्हारा परमेश्वर हो जाऊं; मैं ही याहवेह हूं.” \c 23 \s1 इस्राएल के लिए ठहराए गए उत्सव \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को दोबारा आज्ञा दी, \v 2 “इस्राएल के घराने को यह आज्ञा दो: ‘ये याहवेह के वे ठहराए हुए उत्सव हैं, जिन्हें तुम पवित्र समारोह घोषित करोगे; मेरे द्वारा निर्धारित उत्सव ये हैं: \s2 शब्बाथ—विश्राम का दिन \p \v 3 “ ‘छः दिन तो कार्य किया जा सकता है, किंतु सातवां दिन पूर्ण विश्राम का दिन, शब्बाथ है, एक पवित्र समारोह. तुम कोई कार्य न करना; यह तुम्हारे सारे घराने में याहवेह के लिए एक शब्बाथ होगा. \s2 फ़सह और अखमीरी रोटी का उत्सव \p \v 4 “ ‘ये याहवेह के ठहराए गए उत्सव हैं—पवित्र समारोह, जिनकी घोषणा तुम्हें उनके तय किए गए समय पर करनी है. \v 5 याहवेह के फ़सह का निर्धारित समय पहले माह के चौदहवें दिन संध्या समय है. \v 6 उसी माह के पन्द्रहवें दिन याहवेह के लिए खमीर रहित रोटी का उत्सव होगा; सात दिन तक खमीर रहित रोटी ही खाई जाए. \v 7 पहले दिन पवित्र सभा होगी तथा तुम किसी भी प्रकार की मेहनत न करना. \v 8 किंतु सातों दिनों तुम याहवेह को अग्निबलि चढ़ाना. सातवें दिन पवित्र सभा होगी, इस दिन तुम किसी भी प्रकार की मेहनत न करना.’ ” \s2 प्रथम फल का उत्सव \p \v 9 याहवेह ने मोशेह को आज्ञा दी, \v 10 “इस्राएल के घराने को यह आज्ञा दो, ‘जब तुम उस देश में प्रवेश करो, जो मैं तुम्हें देनेवाला हूं तथा उसकी उपज इकट्ठी करो, तो तुम अपनी पहली उपज की पूलियों को पुरोहित के सामने लेकर आना. \v 11 पुरोहित इन पूलियों को याहवेह के सामने हिलाने की बलि के रूप में चढ़ाए कि यह तुम्हारे लिए ग्रहण किया जाए; पुरोहित इसे शब्बाथ के अगले दिन हिलाए. \v 12 उसी दिन, जिस दिन पूलियों को हिलाने की मुद्रा बलि के रूप में चढ़ाया जाए, एक वर्षीय नर मेमने की होमबलि याहवेह को चढ़ाई जाए. \v 13 इसके साथ अन्‍नबलि में तेल और तीन किलो\f + \fr 23:13 \fr*\ft मूल में 2 ओमेर, जो एफा का 2/10 है\ft*\f* मैदा मिलाकर याहवेह के लिए सुखदायी सुगंध के रूप में आग में चढ़ाया जाए. इसके अलावा उसके साथ पेय बलि के लिए एक लीटर\f + \fr 23:13 \fr*\fq एक लीटर \fq*\ft 1/4 हीन\ft*\f* दाखरस भी. \v 14 उस दिन तक तथा जब तक तुम्हारे परमेश्वर के लिए निर्धारित बलि न चढ़ा दी जाए, तब तक न तो रोटी और न ही भुने अथवा कच्चे अन्‍न को खाया जाए. यह तुम्हारे सारे घराने में तुम्हारी सारी पीढ़ियों के लिए सदा-सर्वदा के लिए एक विधि है. \s2 सप्‍ताहों का उत्सव \p \v 15 “ ‘तुम शब्बाथ के अगले दिन से, जब लहराने की बलि के रूप में चढ़ाने के लिए पुलियां लाई जाएं, गिनती करना; ये पूरे सात शब्बाथ होंगे. \v 16 सातवें शब्बाथ के अगले दिन से पचास दिनों की गिनती करना; फिर याहवेह को नया अन्‍नबलि चढ़ाया जाए. \v 17 तुम अपने निवास स्थानों से लहराने की बलि के रूप में चढ़ाने के लिए दो किलो मैदे की रोटियां लाना; जो याहवेह को प्रथम फल के रूप में चढ़ाने के लिए खमीर के साथ बनाई जाएं. \v 18 रोटियों के साथ साथ सात एक-एक वर्षीय निर्दोष मेमने, पशुओं से एक बछड़ा और दो मेढ़े चढ़ाना; ये सब याहवेह के लिए होमबलि हैं, जो उनकी अन्‍नबलि तथा उनकी पेय बलि सहित अग्निबलि द्वारा याहवेह को सुखद-सुगंध होंगे. \v 19 पापबलि के लिए एक बकरा और मेल बलि के लिए एक-एक वर्षीय दो मेमने भी अर्पित करना. \v 20 पुरोहित इन्हें लहराने की बलि के समान बलि चढ़ाने के लिए पहली उपज की रोटियों और मेमनों के साथ याहवेह के सामने लहराए. ये याहवेह के लिए पवित्र तथा पुरोहित का ठहराया हुआ भाग हैं. \v 21 उसी दिन तुम एक पवित्र समारोह भी मनाने की घोषणा करना. उस दिन किसी भी प्रकार का परिश्रम न करना. यह तुम्हारे सारे घरानों में तुम्हारी सारी पीढ़ियों के लिए सदा-सर्वदा के लिए एक विधि है. \p \v 22 “ ‘जब तुम अपने देश में उपज इकट्ठी करो, तो तुम अपने खेतों से कोने-कोने तक की उपज इकट्ठा न करना, न ही अपनी उपज की सिल्ला इकट्ठी करना; तुम उन्हें दीनों तथा विदेशियों के लिए छोड़ देना. मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं.’ ” \s2 तुरही का उत्सव \p \v 23 याहवेह ने मोशेह को दोबारा आज्ञा दी, \v 24 “इस्राएल के घराने को यह आज्ञा दो, ‘सातवें माह का प्रथम दिन शब्बाथ का विश्राम दिन होगा, तुरही फूंकने के द्वारा इसका स्मरण दिलाना. यह एक पवित्र समारोह है. \v 25 इस दिन तुम किसी प्रकार का परिश्रम न करना, और याहवेह को अग्निबलि चढ़ाना.’ ” \s2 प्रायश्चित दिवस \p \v 26 याहवेह ने मोशेह को निर्देश दिया, \v 27 “इस माह का दसवां दिन प्रायश्चित का दिन होगा, यह तुम्हारे लिए पवित्र समारोह होगा और इस दिन अपने हृदयों को नम्र बनाकर याहवेह को अग्निबलि चढ़ाई जाए. \v 28 इस दिन तुम किसी भी प्रकार का परिश्रम न करना, क्योंकि यह प्रायश्चित का दिन है कि याहवेह तुम्हारे परमेश्वर के सामने तुम्हारे लिए प्रायश्चित पूरा किया जाए. \v 29 जो व्यक्ति इस दिन स्वयं को नम्र नहीं करता, उसे उसके परिवार से बाहर निकाल दिया जाए. \v 30 जो व्यक्ति इस दिन परिश्रम करता है, मैं उस व्यक्ति को उसके परिवार के बीच से नाश कर दूंगा. \v 31 तुम इस दिन किसी भी प्रकार का परिश्रम नहीं करोगे. यह तुम्हारे सारे घरानों में तुम्हारी सारी पीढ़ियों के लिए हमेशा के लिए एक विधि है. \v 32 यह तुम्हारे लिए संपूर्ण विश्राम का शब्बाथ है, इस दिन तुम अपने हृदयों को नम्र करोगे; माह के नौवें दिन शाम से शाम तक शब्बाथ का पालन करोगे.” \s2 झोपड़ी का उत्सव \p \v 33 याहवेह ने मोशेह को दोबारा आज्ञा दी, \v 34 “इस्राएल के घराने को यह आज्ञा दो, ‘सातवें माह के पन्द्रहवें दिन से याहवेह के लिए सात दिनों के लिए झोपड़ी का उत्सव होगा. \v 35 प्रथम दिवस पवित्र समारोह होगा; तुम इस दिन किसी भी प्रकार का परिश्रम नहीं करोगे. \v 36 तुम इन सातों दिन याहवेह को अग्निबलि चढ़ाना. आठवें दिन तुम पवित्र समारोह का आयोजन करोगे और इस दिन याहवेह को एक अग्निबलि चढ़ाओगे; यह एक औपचारिक आयोजन होगा. तुम किसी भी प्रकार का परिश्रम नहीं करोगे. \p \v 37 “ ‘ये याहवेह के वे नियत उत्सव हैं, जिन्हें तुम याहवेह के लिए अग्निबलियां प्रस्तुत करने के लिए पवित्र सभा घोषित करना. होमबलियां, अन्‍नबलियां, अन्य बलियां तथा पेय बलियां, हर एक अपने-अपने नियत दिन पर अर्पित करने के लिए हैं. \v 38 ये दिन याहवेह के शब्बाथों के अलावा तथा ये बलियां तुम्हारी उन भेंटों, शपथ और स्वेच्छा बलि के अतिरिक्त हैं, जो तुम याहवेह के लिए चढ़ाते हो. \p \v 39 “ ‘सातवें माह के पन्द्रहवें दिन, जब तुम देश की उपज इकट्ठी कर चुकोगे, तब सात दिनों के लिए याहवेह के लिए उत्सव मनाना. इसमें प्रथम दिन तथा आठवां दिन शब्बाथ होगा. \v 40 प्रथम दिन तुम स्वयं अपने लिए हरे-भरे वृक्षों के फल, खजूर वृक्ष की शाखाएं, घने वृक्षों की शाखा और नदी के किनारे के मजनूं वृक्ष लेकर सात दिन तक याहवेह तुम्हारे परमेश्वर के सामने आनंद करना. \v 41 तुम हर साल याहवेह के लिए सात दिन यह उत्सव मनाओगे. यह उत्सव सातवें माह में मनाया जाए. यह तुम्हारी सारी पीढ़ियों में हमेशा के लिए एक विधि है. \v 42 तुम सात दिन झोंपड़ियों में रहोगे; इस्राएल के सारे मूल निवासी झोंपड़ियों में रहेंगे, \v 43 ताकि तुम्हारी आनेवाली पीढ़ियों को यह अहसास हो जाए कि जब मैंने इस्राएल के घराने को मिस्र से निकाला था, मैंने उन्हें झोंपड़ियों में टिकाया था. मैं ही याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं.’ ” \p \v 44 इस प्रकार मोशेह ने इस्राएल के घराने के सामने याहवेह के निर्धारित उत्सवों का विवरण दिया. \c 24 \s1 पवित्र स्थान की रोटी और दीपक \p \v 1 फिर याहवेह ने मोशेह को यह आज्ञा दी, \v 2 “इस्राएलियों को कहना कि वे दीये के लिए जैतून का निकाला हुआ शुद्ध तेल लायें, जिससे दिया हमेशा जलता रहे, \v 3 अहरोन इसे शाम से सुबह तक नियमित रूप से मिलनवाले तंबू में साक्षी पर्दे के बाहर याहवेह के सामने सजाकर रखा करे; यह तुम्हारी सारी पीढ़ियों के लिए हमेशा के लिए एक विधि है. \v 4 अहरोन दीपकों को याहवेह के सामने कुन्दन के दीपदान पर सजाकर नियमित रूप से रखे. \p \v 5 “इसके बाद तुम मैदा लेकर इससे बारह बाटियां बनाना; हर एक बाटी दो किलो\f + \fr 24:5 \fr*\fq दो किलो \fq*\ft मूल में 2 ओमेर, जो एफा का 2/10 है\ft*\f* मैदे से बनाई जाए. \v 6 तुम इन्हें याहवेह के सामने कुन्दन की मेज़ पर क्रमानुसार दो पंक्तियों में रखना; हर एक पंक्ति में छः-छः. \v 7 हर एक पंक्ति पर शुद्ध लोबान रखना कि यह बाटी के लिए स्मरण दिलाने वाली याहवेह के लिए अग्निबलि हो जाए. \v 8 वह हर एक शब्बाथ इसे याहवेह के सामने सुव्यवस्थित रीति से नियमित रूप से रखे; इस्राएल के घराने के लिए यह एक हमेशा की विधि है. \v 9 यह भोजन अहरोन तथा उनके पुत्रों के लिए होगा, और वे इसको पवित्र स्थान में ही खाएंगे क्योंकि यह याहवेह की अग्निबलियों में से उनके लिए परम पवित्र है, उनका सदैव का भाग है.” \s1 परमेश्वर-निंदा की योग्य सजा \p \v 10 तभी अचानक यह हुआ कि एक इस्राएली स्त्री का पुत्र, जिसका पिता एक मिस्री था, इस्राएल के घराने के बीच जा पहुंचा और छावनी में ही उस इस्राएली स्त्री के पुत्र और एक इस्राएली पुरुष के बीच मार-पीट हो गई. \v 11 उस इस्राएली स्त्री के पुत्र ने परमेश्वर की निंदा करके परमेश्वर को शाप दिया. तब उसे मोशेह के सामने लाया गया. उस युवक की माता का नाम शेलोमीथ था, जो दान के गोत्र के दिबरी की पुत्री थी. \v 12 उन्होंने उसे हवालात में रख लिया कि उसके सामने याहवेह की आज्ञा स्पष्ट की जा सके. \p \v 13 इसके बाद याहवेह ने मोशेह को आज्ञा दी, \v 14 “जिसने परमेश्वर को शाप दिया है, उसे छावनी से बाहर लाया जाए, और जिन्होंने उसे ऐसा कहते हुए सुना है, वे उसके सिर पर अपने हाथ रखें; इसके बाद सारी सभा उसका पथराव करे. \v 15 इस्राएल के घराने को यह आज्ञा दी जाए, ‘जो अपने परमेश्वर को शाप देता है, वह स्वयं अपने पाप का बोझ उठाएगा. \v 16 उसे, जो याहवेह के नाम की निंदा करता है; निश्चित ही मृत्यु दंड दिया जाए; निःसंदेह सारी सभा उसका पथराव करे. चाहे कोई परदेशी हो या देशी, इस प्रकार जब कोई याहवेह के नाम की निंदा करता है, तो उसे मृत्यु दंड दिया ही जाएगा. \p \v 17 “ ‘यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे मनुष्य की हत्या कर देता है, तो निश्चित ही उसे मृत्यु दंड दिया जाए. \v 18 यदि कोई व्यक्ति किसी पशु की हत्या कर देता है, तो वह इसके नुकसान की भरपाई करे, प्राण के बदले प्राण. \v 19 यदि कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी को चोट पहुंचाता है, तो जैसा उसने किया है, उसके साथ ठीक वैसा ही किया जाए: \v 20 अंग-भंग के बदले अंग-भंग; आंख के बदले आंख, दांत के बदले दांत; जैसे उसने एक व्यक्ति को चोट पहुंचाई है, उसे भी ठीक वैसे ही चोट पहुंचाई जाए. \v 21 इसी प्रकार वह व्यक्ति जिसने किसी पशु की हत्या की थी, वह इसके नुकसान की भरपाई करेगा, किंतु उसे, जो किसी मनुष्य की हत्या कर देता है, मृत्यु दंड दिया जाए. \v 22 तुम्हारे बीच एक ही नियम हो, परदेशी तथा देशी, दोनों के लिए एक, क्योंकि मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं.’ ” \p \v 23 इसके बाद मोशेह ने इस्राएल के घराने को आदेश दिया और वे उस व्यक्ति को छावनी के बाहर ले आए, जिसने परमेश्वर को शाप दिया था, उसका पथराव किया. इस प्रकार इस्राएल के घराने ने वैसा ही किया, ठीक जैसी आज्ञा याहवेह ने मोशेह को दी थी. \c 25 \s1 विश्राम का सातवां वर्ष \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को सीनायी पर्वत पर आज्ञा दी, \v 2 “इस्राएल के घराने को यह आज्ञा दो: ‘जब तुम उस देश में प्रवेश करोगे, जो मैं तुम्हें दूंगा, तब याहवेह के लिए उस देश में एक शब्बाथ होगा. \v 3 तुम छः वर्ष तो अपने खेत में बीज बोओगे और अंगूर की बारी की छंटाई तथा उसकी उपज इकट्ठा करोगे, \v 4 किंतु सातवें वर्ष में भूमि के लिए शब्बाथ-विश्राम होगा याहवेह के लिए शब्बाथ; न तो तुम अपने खेतों में बीज बोना और न ही अपनी अंगूर की बारी की छंटाई करना. \v 5 उपज इकट्ठा करने के बाद अपने आप उगी हुई उपज इकट्ठा न करना; यह भूमि के लिए शब्बाथ वर्ष होगा. \v 6-7 शब्बाथ काल में भूमि से उत्पन्‍न उपज तुम सभी के भोजन के लिए होंगी—तुम्हारे लिए, तुम्हारे दासों और दासियों के लिए, मजदूरों के लिए, तुम्हारे बीच रह रहे विदेशियों के लिए, तुम्हारे पशुओं और तुम्हारे देश के जंगली पशुओं के लिए; यह उपज सभी के भोजन के लिए होगी. \s1 योवेल वर्ष \p \v 8 “ ‘तुम सात शब्बाथ वर्षों की भी गिनती करना; सात गुणा सात वर्ष, कि ये सात शब्बाथ वर्ष अर्थात् उनचास वर्ष हों. \v 9 सातवें माह के दसवें दिन ऊंची आवाज से तुरही फूंकोगे. प्रायश्चित दिवस पर पूरे देश में तुरही फूंकोगे. \v 10 तुम्हें पचासवें वर्ष को पवित्र करना होगा और सारे देश के निवासियों के लिए छुटकारे की घोषणा करनी होगी. यह वर्ष तुम्हारे लिए योवेल वर्ष कहलाएगा और तुममें से हर एक की पैतृक संपत्ति अपने-अपने परिवार को लौट आएगा. \v 11 पचासवां वर्ष योवेल वर्ष के रूप में मनाया जाए; इस वर्ष न तो तुम बीज बोना, न अपने आप उगी हुई फसल इकट्ठी करोगे और न उन अंगूर की लताओं से अंगूर इकट्ठा करोगे, जिन्हें छांटा न गया हो. \v 12 क्योंकि यह योवेल है; यह तुम्हारे लिए पवित्र होगा. तुम खेतों की उपज को खा सकते हो. \p \v 13 “ ‘इस योवेल वर्ष में तुममें से हर एक अपनी पैतृक भूमि को लौट जाएगा. \p \v 14 “ ‘यदि तुम अपने पड़ोसी को कुछ भी बेचो अथवा उससे कुछ भी खरीदो, तो तुम एक दूसरे से छल न करना. \v 15 जब तुम अपने पड़ोसी से भूमि खरीदो, तो उसका मूल्य पिछले योवेल के बाद के वर्षों के अनुसार होना आवश्यक है, तथा बेचनेवाला भी इसका मूल्य अगले योवेल के पहले के वर्षों का ध्यान रखकर करे. \v 16 यदि अगले योवेल तक के वर्षों की संख्या अधिक है, तो मूल्य बढ़ेगा, यदि वर्षों की संख्या कम है, तो मूल्य भी कम होगा. वस्तुतः वह व्यक्ति, जो भूमि को बेच रहा है, तुम्हें कटनियों की संख्या बेच रहा है. \v 17 इसलिये तुम एक दूसरे से छल न करना, परंतु अपने परमेश्वर के प्रति श्रद्धा की भावना रखना; क्योंकि मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं. \p \v 18 “ ‘इसलिये तुम मेरी विधियों को मानना और मेरी आज्ञाओं का पालन कर उन्हें व्यवहार में लाना कि इस प्रकार तुम इस देश में सुरक्षापूर्वक निवास कर सको. \v 19 तब भूमि अपनी उपज उत्पन्‍न करेगी, ताकि तुम इसको भरपेट खाया करो, और इस प्रकार तुम इस देश में सुरक्षापूर्वक रह सको. \v 20 किंतु यदि तुम्हारा विचार यह हो, “यदि हमने सातवें वर्ष बीज नहीं बोया और उपज इकट्ठा नहीं की तो हम उस वर्ष क्या खाएंगे?” \v 21 तब छठे वर्ष में मैं तुम्हारे लिए अपनी आशीषों को आदेश दूंगा कि भूमि तीन वर्षों के लिए पर्याप्‍त उपज उत्पन्‍न करे. \v 22 जब तुम आठवें वर्ष बीज बोओगे, तो तब भी तुम बीते वर्षों में इकट्ठा की गई उपज को खा सकोगे, आठवें वर्ष की उपज आने पर भी तुम नौवें वर्ष तक इसको खा सकोगे. \p \v 23 “ ‘भूमि सदा के लिए बेची न जाए, क्योंकि भूमि तो मेरी है; तुम तो मेरे साथ परदेशी और बाहरी मात्र हो. \v 24 जब भी भूमि को खरीदो, तो खरीददार यह ध्यान रखे कि बेचनेवाले को इसके छुड़ाने का अधिकार है. \p \v 25 “ ‘यदि तुम्हारा कोई संबंधी इतना निर्धन हो जाता है कि उसे अपनी संपत्ति के अंश को बेचना पड़ता है, तो उसके नज़दीकी छुड़ाने वाला आकर उस संपत्ति को खरीद ले, जो उसके संबंधी द्वारा बेची गई है. \v 26 और यदि उस व्यक्ति का कोई छुड़ाने वाला नहीं है, किंतु वह स्वयं ही इतना समृद्ध हो गया है, और अपनी भूमि को छुड़ाने के लिए उसके पास पर्याप्‍त धन है, \v 27 तो वह इसके बेचे गए वर्षों से गिनती करे और जिस व्यक्ति को उसने यह बेचा था, उसे इसका बाकी मूल्य चुका दे, और इस प्रकार उसे अपनी संपत्ति दोबारा प्राप्‍त हो जाएगी. \v 28 किंतु, यदि उसके पास इसे दोबारा प्राप्‍त करने के लिए पर्याप्‍त धन नहीं है, तब जो कुछ उसने बेचा है, वह सब योवेल वर्ष तक उसके खरीददार के पास ही रहेगा; किंतु योवेल वर्ष में यह छूटकर इसके असली स्वामी के पास लौट जाएगा. \p \v 29 “ ‘इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति शहरपनाह वाले नगर में अपने घर को बेचता है, तो उसके छुड़ाने का अधिकार उसके बेचने के दिन से एक वर्ष तक मान्य रहेगा; छुड़ाने का उसका अधिकार पूरे एक वर्ष तक बना रहेगा. \v 30 किंतु यदि पूरे एक वर्ष की अवधि में इसको नहीं खरीदा गया, तब उस शहरपनाह वाले नगर में उस घर का अधिकार स्थायी रूप से उसके खरीददार और उसकी आनेवाली सभी पीढ़ियों का हो जाएगा; यह घर योवेल वर्ष में छुड़ाया नहीं जाएगा. \v 31 किंतु बिना शहरपनाह वाले गांवों के घरों को खेतों के बराबर समझा जाए; इनको छुड़ाया जा सकता है, और वे योवेल वर्ष में छुड़ा दिए जाएंगे. \p \v 32 “ ‘जहां तक लेवियों के नगरों का संबंध है, लेवियों को अपने नगरों के घरों के, जो उनकी संपत्ति हैं, छुड़ाने का स्थायी अधिकार है. \v 33 इसलिये जो कुछ भी लेवियों का है, उसको छुड़ाया जा सकता है और नगर में उनकी संपत्ति से बेचा गया वह घर योवेल वर्ष में छुड़ा दिया जाएगा, क्योंकि इस्राएल के घराने के बीच लेवियों के नगरों के घर उनकी संपत्ति हैं. \v 34 किंतु उनके नगरों के चारों ओर की चराई की भूमि को न बेचा जाए, क्योंकि यह उनकी स्थायी संपत्ति है. \p \v 35 “ ‘यदि तुम्हारा कोई भाई-बन्धु कंगाल हो जाए, और यदि वह अपना हाथ तुम्हारे सामने फैलाए, तो तुम उसकी ठीक उसी प्रकार सहायता करना, मानो वह कोई विदेशी अथवा यात्री हो ताकि वह तुम्हारे साथ रह सके. \v 36 उससे ब्याज अथवा लाभ न लिया जाए, बल्कि तुम अपने परमेश्वर के प्रति श्रद्धा रखना कि तुम्हारा भाई-बन्धु तुम्हारे साथ रह सके. \v 37 तुम उसे न तो अपना धन ब्याज पर दोगे और न ही भोजन लाभ कमाने के लालच से. \v 38 मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं, जो तुम्हें मिस्र देश से इसलिये निकालकर लाया हूं, कि तुम्हें कनान देश प्रदान करूं, और तुम्हारे लिए तुम्हारा परमेश्वर हो जाऊं. \p \v 39 “ ‘यदि तुम्हारा कोई भाई-बन्धु इतना कंगाल हो जाए कि स्वयं को तुम्हें बेच दे, तो तुम उससे दास के समान सेवा न लेना. \v 40 वह तुम्हारे साथ मजदूरी पानेवाले व्यक्ति के समान रहे, मानो कि वह कोई यात्री हो. वह तुम्हारे साथ योवेल वर्ष तक काम करेगा. \v 41 फिर वह तुम्हारे अधिकार से मुक्त हो जाएगा, वह और उसके साथ उसकी संतान अपने गोत्र और अपने पूर्वजों की संपत्ति को लौट जाएगी. \v 42 क्योंकि इस्राएल तो मेरे सेवक हैं, जिन्हें मैं मिस्र से निकालकर लाया था; उनको दास के समान बेचा न जाए. \v 43 तुम उस पर कठोरता पूर्वक शासन न करना, बल्कि अपने परमेश्वर के प्रति श्रद्धा बनाए रखना. \p \v 44 “ ‘जहां तक तुम्हारे दास-दासियों का संबंध है, तुम अपने पड़ोसी गैर-यहूदी देशों से दास और दासियां प्राप्‍त कर सकते हो. \v 45 तुम अपने बीच रह रहे यात्रियों से भी दासों को कर सकते हो तथा उनके गोत्रों से भी जिनका जन्म तुम्हारे देश में ही हुआ है, और वे तुम्हारे बीच ही रह रहे हैं; वे भी तुम्हारी संपत्ति हो सकते हैं. \v 46 तुम उन्हें संपत्ति के समान अपने पुत्रों के अधिकार में स्थायी मीरास के रूप में भी दे सकते हो; तथा उनका प्रयोग स्थायी दासों के समान कर सकते हो. किंतु तुम इस्राएल के घराने में से अपने भाई-बंधुओं पर कठोरता पूर्वक शासन न करना. \p \v 47 “ ‘यदि तुम्हारे साथ का कोई विदेशी अथवा यात्री धनी हो जाए, और तुम्हारा कोई भाई-बन्धु कंगाल तथा वह स्वयं को उस विदेशी अथवा यात्री, या उस विदेशी के कुल को बेच दे, \v 48 तो उसके बिकने के बाद उसको निकाला जा सकता है. उसके भाई-बंधुओं में से कोई एक भाई उसको छुड़ा सकता है, \v 49 उसका चाचा अथवा उसके चाचा का पुत्र और उसके परिवार से कोई उसका कोई सगा संबंधी उसको छुड़ा सकता है, अथवा यदि वह धनी हो जाए, तो वह स्वयं को ही छुड़ा सकता है. \v 50 वह अपने खरीददार के साथ अपने बिकने के दिन से लेकर योवेल वर्ष तक के समय की गिनती करे; उसके बिकने का मूल्य उसके द्वारा पिछले वर्षों के अनुसार हो. उसके द्वारा उसके स्वामी के साथ बिताया गया समय किसी मज़दूर द्वारा बिताए गए समय के समान ही है. \v 51 किंतु यदि योवेल वर्ष तक अभी अनेक वर्ष बाकी हैं, तो वह अपने छुड़ाए जाने के लिए अपने बिकने के दाम के बराबर में लौटा दे. \v 52 और यदि योवेल वर्ष में अभी कुछ ही वर्ष बाकी रह गए हैं, तो वह अपने स्वामी के साथ इनकी गिनती करे और उन वर्षों के अनुसार अपने छुड़ाने के मूल्य को लौटा दे. \v 53 वह उसके साथ हर एक वर्ष मज़दूर के अनुसार ही रहेगा और वह तुम्हारे सामने उस पर कठोरता पूर्वक शासन न करे. \p \v 54 “ ‘किंतु यदि इनमें से किसी भी रीति से उसको छुड़ाया नहीं गया, तो योवेल वर्ष में वह छूट जाएगा; वह और उसके साथ उसकी संतान भी. \v 55 क्योंकि इस्राएल का घराना मेरा दास है; ये मेरे वे दास हैं, जिन्हें मैं मिस्र देश से छुड़ाकर लाया हूं. मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं. \c 26 \s1 आज्ञाकारिता की आशीषें \p \v 1 “ ‘न तो तुम अपने लिए मूरतें बनाओगे और न ही किसी खुदी हुई मूरत अथवा पवित्र पत्थर बनाओगे और न ही उसके सामने झुकने के उद्देश्य से किसी पत्थर में से मूरत गढ़ोगे; क्योंकि मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं. \p \v 2 “ ‘तुम मेरे शब्बाथों का पालन करो और मेरे पवित्र स्थान का सम्मान; मैं ही याहवेह हूं. \p \v 3 “ ‘यदि तुम मेरी विधियों का पालन करोगे और मेरी आज्ञाओं का पालन कर उन्हें व्यवहार में लाओगे, \v 4 तो मैं वर्षा ऋतु में तुम्हें बारिश दिया करूंगा, जिसके परिणामस्वरूप भूमि अपनी उपज और मैदान के वृक्ष फल उत्पन्‍न करेंगे. \v 5 तुम्हारी दांवनी तुम्हारी अंगूर की उपज इकट्ठा करने तक चलेगी और तुम्हारी अंगूर की उपज, बीज बोने तक. इस प्रकार तुम भरपेट भोजन करोगे और इस प्रकार तुम इस देश में सुरक्षापूर्वक निवास कर सकोगे. \p \v 6 “ ‘देश में मेरे द्वारा दी गई शांति बसेगी, जिससे कि तुम आराम कर सको. कोई तुम्हें भयभीत न करेगा. मैं उस देश से हिंसक पशुओं को भी दूर कर दूंगा और तुम्हारे देश में कोई भी तलवार से मारा न जाएगा. \v 7 किंतु तुम अपने शत्रुओं का पीछा करोगे और वे तलवार के वार से तुम्हारे सामने मारे जाएंगे; \v 8 तुममें से पांच एक सौ को और एक सौ दस हज़ार को खदेड़ डालेंगे और तुम्हारे शत्रु तलवार के वार से तुम्हारे सामने मारे जाएंगे. \p \v 9 “ ‘फिर मैं तुम्हारी ओर कृपादृष्टि करूंगा और तुम्हें फलवंत कर तुम्हारी संख्या बहुत बढ़ाऊंगा और तुम्हारे साथ की गई मेरी वाचा को पूरी करूंगा. \v 10 तुम पुरानी उपज को खाओगे और नई उपज को स्थान देने के उद्देश्य से पुरानी को हटा दोगे. \v 11 इसके अलावा मैं तुम्हारे बीच निवास करूंगा\f + \fr 26:11 \fr*\fq निवास करूंगा \fq*\ft यानी \ft*\fqa मिलाप का तंबू रखूंगा\fqa*\f* और मेरा प्राण तुमसे घृणा न करेगा. \v 12 मैं तुम्हारे बीच चला फिरा भी करूंगा. मैं तुम्हारा परमेश्वर हो जाऊंगा और तुम मेरी प्रजा. \v 13 मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं, जो तुम्हें मिस्र देश से निकालकर लाया है कि तुम मिस्रियों के दास न बने रह जाओ, मैंने तुम्हारे जूए की पट्टियों को तोड़ दिया है और तुम्हें सीधा होकर चलने में समर्थ किया है. \s1 अनाज्ञाकारिता का दंड \p \v 14 “ ‘किंतु यदि तुम मेरी न सुनोगे और इन सारी आज्ञाओं का पालन नहीं करोगे, \v 15 यदि तुम मेरी विधियों को नकार दोगे; तुम्हारे प्राण मेरे निर्णयों को इतना तुच्छ जानें कि तुम मेरी सारी आज्ञाओं का पालन करना ही छोड़ दो और इस प्रकार मेरी वाचा को तोड़ ही डालो, \v 16 तो निश्चित ही मैं तुम्हारे साथ यह करूंगा कि मैं तुमको अचानक ही आतंक, क्षय रोग और ज्वर-पीड़ित कर दूंगा, जिसके कारण तुम्हारी आंखें धुंधली हो जाएंगी तथा तुम्हारे प्राण मुरझा जाएंगे, तुम्हारा बीजारोपण भी व्यर्थ ही होगा क्योंकि तुम्हारे शत्रु इसको खा लेंगे. \v 17 मैं तुम्हारे विरुद्ध हो जाऊंगा, जिससे तुम्हारे शत्रु तुम्हें हरा देंगे और जो तुमसे घृणा करते हैं, वे तुम पर शासन करेंगे. जब तुम्हारा पीछा कोई भी न कर रहा होगा, तब भी तुम भागते रहोगे. \p \v 18 “ ‘इतना सब होने पर भी यदि तुम मेरी आज्ञा नहीं मानोगे, तो मैं तुम्हें तुम्हारे पापों का सात गुणा दंड दूंगा. \v 19 मैं तुम्हारे बल के घमण्ड़ को समाप्‍त कर दूंगा और तुम्हारे आकाश को लोहे के समान और तुम्हारी भूमि को कांसे के समान बना दूंगा. \v 20 तुम्हारे द्वारा की गई मेहनत बेकार होगी क्योंकि तुम्हारी भूमि अपनी उपज पैदा न करेगी और न ही देश के वृक्ष अपना फल उत्पन्‍न करेंगे. \p \v 21 “ ‘इतना होने पर भी यदि तुम अपना स्वभाव मेरे विरुद्ध ही रखोगे और मेरी आज्ञा न मानोगे, तो मैं तुम्हारे पापों के अनुसार तुम पर महामारी में सात गुणा वृद्धि कर दूंगा. \v 22 मैं तुम पर जंगली जानवर भेज दूंगा, जो तुम्हें संतानहीन बना डालेंगे और तुम्हारे पशुओं को नष्ट कर डालेंगे. वे तुम्हारी संख्या इतनी कम कर देंगे, कि तुम्हारे रास्ते निर्जन रह जाएंगे. \p \v 23 “ ‘यदि इस ताड़ना के बाद भी तुम मेरी ओर न मुड़े, बल्कि मेरे विरुद्ध शत्रुता भाव ही बनाए रखा, \v 24 तो मैं भी तुमसे शत्रुता भाव रखूंगा और मैं, हां मैं, तुम्हारे पापों के कारण तुम पर सात गुणा आक्रमण करूंगा. \v 25 मैं तुम पर एक तलवार भेजूंगा, जो वाचा को तोड़ने का पूरा बदला लेगी. जब तुम अपने नगरों में इकट्‍ठे होंगे, मैं तुम्हारे बीच महामारी भेजूंगा, और तुम शत्रुओं के अधीन कर दिए जाओ. \v 26 जब मैं तुम्हारे भोजन के आधार को दूर कर दूंगा, तब दस महिलाएं एक ही चूल्हे पर रोटी सेकेंगी और वे इन्हें तोल-तोल कर छोटी संख्या में बांट देंगी, कि तुम उनको खाओगे, परंतु तृप्‍त न होंगे. \p \v 27 “ ‘इतना सब होने पर भी यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं करोगे, बल्कि मेरे विरुद्ध शत्रु सा व्यवहार ही बनाए रखोगे, \v 28 तब मैं अत्यंत क्रोधित होकर तुमसे शत्रुता रखूंगा और मैं, हां मैं, तुम्हारे पापों के लिए तुम्हें सात गुणा दंड दूंगा. \v 29 तुम अपने पुत्रों के मांस को खाओगे और हां, तुम अपनी पुत्रियों के मांस को खाओगे. \v 30 मैं तुम्हारे ऊंचे पूजा स्थलों को नाश कर, तुम्हारी धूप वेदियों को तोड़ दूंगा, मैं तुम्हारे शवों को तुम्हारी मूर्तियों के ढेर पर फेंक दूंगा, और मेरा आत्मा तुमसे घृणा करेगा. \v 31 मैं तुम्हारे नगरों को भी उजाड़ दूंगा और तुम्हारे पवित्र स्थानों को सूना कर दूंगा, मैं तुम्हारी सुखद-सुगंध को स्वीकार नहीं करूंगा. \v 32 मैं तुम्हारे नगरों को सूना बना दूंगा जिससे कि तुम्हारे शत्रु जो वहां बसने आएंगे, इसे देख भयभीत हो जाएंगे. \v 33 तुम जाति-जाति के बीच बिखर जाओगे और तलवार तुम्हारा पीछा करेगी, तुम्हारा देश निर्जन और तुम्हारे नगर उजाड़ हो जाएंगे. \v 34-35 तुम्हारे इस भूमि पर निवास करने की स्थिति में, भूमि को जो विश्राम तुम्हारे शब्बाथों में प्राप्‍त नहीं हुआ था, वह उस विश्राम अब, इस पूरे खाली समय की अवधि में, प्राप्‍त होगा. इस प्रकार भूमि को अपने शब्बाथ प्राप्‍त हो जाएंगे. जब तुम अपने शत्रुओं के देश में जाओगे, तब सूनेपन की अवस्था में भूमि अपने शब्बाथों का आनंद उठाएगी. \p \v 36 “ ‘तुममें जो बचे रह गए होंगे, मैं उनके शत्रुओं के देश में उनका मनोबल इतना कमजोर कर दूंगा कि वे हवा के द्वारा छितराए पत्ते की खड़खड़ाहट सुनकर भाग खड़े होंगे. जब कोई उनका पीछा भी नहीं कर रहा होगा, तो भी वे भाग खड़े होंगे, मानो कोई तलवार लिए उनका पीछा कर रहा हो और वे गिर-गिर पड़ेंगे. \v 37 वे लड़खड़ा कर एक दूसरे पर ऐसे गिरेंगे, मानो वे तलवार से भाग रहे हों, जबकि कोई भी उनका पीछा नहीं कर रहा होगा; तुम्हारे शत्रुओं के सामने खड़ा होने के लिए तुम्हारे अंदर शक्ति न बचेगी. \v 38 तुम बंधुआई में देशों के बीच नाश हो जाओगे और तुम्हारे शत्रुओं का देश तुम्हें चट कर डालेगा; \v 39 तुममें से जो बचे रह जाएंगे, वे अपने और उनके पुरखों के अधर्म के कारण उनके शत्रुओं के देश में गल जाएंगे. \p \v 40 “ ‘यदि वे अपनी और अपने पूर्वजों के उन अधर्मों को स्वीकार कर लेंगे, जो उन्होंने अपने विश्वासघात और मेरे विरुद्ध शत्रु के भाव की स्थिति में की थी, \v 41 जिससे मैंने भी उनके विरुद्ध हो उन्हें उनके शत्रुओं के देश में बसा दिया; अथवा उनका खतना-रहित हृदय इस प्रकार दब जाए कि वे अपने अधर्मों के लिए प्रायश्चित्त कर लें, \v 42 तो मैं याकोब के साथ अपनी वाचा को, यित्सहाक के साथ अपनी वाचा को और अब्राहाम के साथ अपनी वाचा को, और इस देश को भी स्मरण करूंगा. \v 43 किंतु उनके निकल जाने के कारण यह देश सूना हो जाएगा, कि यह भूमि अपने शब्बाथों के नुकसान की पूर्ति कर ले. इसी अवधि में वे अपने अधर्मों के लिए प्रायश्चित करेंगे; क्योंकि उन्होंने मेरे नियमों को नकार दिया था और मेरी विधियों से घृणा की थी. \v 44 इतना होने पर भी, जब वे अपने शत्रुओं के देश में होंगे, तब भी मैं उनको नहीं छोडूंगा और न ही उनसे इतनी घृणा करूंगा कि मैं उनका नाश कर दूं और उनके साथ अपनी वाचा को भंग करूं. मैं ही याहवेह, उनका परमेश्वर हूं. \v 45 मैं उनके उन पूर्वजों से की गई वाचा को स्मरण करूंगा, जिन्हें मैं जातियों के देखते-देखते मिस्र से निकालकर लाया था कि मैं उनका परमेश्वर हो जाऊं. मैं ही याहवेह हूं.’ ” \p \v 46 यही वे विधियां, व्यवस्था और नियम हैं, जिन्हें याहवेह ने, मोशेह के द्वारा सीनायी पर्वत पर अपने और इस्राएल के घराने के बीच ठहराई. \c 27 \s1 मन्नत और छुटकारे के नियम \p \v 1 याहवेह ने मोशेह को यह आज्ञा दी, \v 2 “इस्राएल के घराने को यह आज्ञा दो: ‘जब कोई किसी व्यक्ति को याहवेह के लिए भेंट करने की विशेष मन्नत माने, तो उस व्यक्ति के ठहराए हुए मूल्य को इस प्रकार तय किया जाए: \v 3 बीस वर्ष से साठ वर्ष तक की आयु के पुरुष के लिए पवित्र स्थान के शेकेल\f + \fr 27:3 \fr*\fq शेकेल \fq*\ft करीब 11.5 ग्राम\ft*\f* के अनुसार चांदी के पचास शेकेल; \v 4 यदि कोई स्त्री है, तो उसके लिए तीस शेकेल; \v 5 पांच वर्ष से बीस वर्ष तक की आयु के युवक के लिए बीस शेकेल तथा युवती के लिए दस शेकेल; \v 6 एक माह से पांच वर्ष तक की आयु के बालक के लिए चांदी के पांच शेकेल तथा बालिका के लिए चांदी के तीन शेकेल; \v 7 साठ वर्ष और इससे ऊपर की आयु के पुरुष के लिए पन्द्रह शेकेल तथा स्त्री के लिए दस शेकेल. \v 8 किंतु यदि कोई इतना कंगाल है कि वह ठहराया हुआ मूल्य न दे पाए, तो उसे पुरोहित के सामने ले जाए और पुरोहित उसका मूल्य तय करे. पुरोहित उस व्यक्ति के साधनों के अनुसार ही उसका मूल्य तय करेगा, जिसने मन्नत मानी है. \p \v 9 “ ‘यदि मन्नत के रूप में याहवेह को एक पशु भेंट किया जाना है, तो याहवेह को चढ़ाया गया पशु पवित्र माना जाएगा. \v 10 वह न तो इसको बदले, न तो अच्छे के लिए बुरा और न ही बुरे के लिए अच्छा. किंतु यदि कोई ऐसा बदला कर भी लेता है, तो वह पशु और उसके बदले दूसरा पशु दोनों ही पवित्र माने जाएंगे. \v 11 किंतु यदि मन्नत का पशु अशुद्ध हो और याहवेह को बलि देने योग्य न हो, तो वह उस पशु को पुरोहित के सामने लाए. \v 12 पुरोहित उसे अच्छा या बुरा ठहराए और जो पुरोहित तय करेगा, वही मान्य होगा. \v 13 यदि वह उसको छुड़ाना चाहे, तो तय मूल्य के अलावा उसका पांचवा भाग भी चुकाए. \p \v 14 “ ‘यदि कोई अपना घर पवित्र कर याहवेह के लिए अलग करे, तो पुरोहित द्वारा इसको अच्छा या बुरा ठहराया जाए और जो पुरोहित तय करेगा, वह मान्य होगा. \v 15 यदि वह व्यक्ति, जिसने इसे पवित्र किया है, वह अपने घर को छुड़ाना चाहे, तो तय मूल्य के अलावा उसका पांचवा भाग भी चुकाए, जिससे वह घर उसका हो जाएगा. \p \v 16 “ ‘यदि कोई अपनी पैतृक संपत्ति के खेतों को याहवेह के लिए पवित्र करे, तो उसका मूल्य उसमें लगे बीज के अनुसार ठहराया जाए; बोने के लिए दस एफाह बीज के लिए चांदी के पचास शेकेल. \v 17 यदि वह योवेल वर्ष से ही अपना खेत पवित्र करे, तो ठहराया गया मूल्य पूरा-पूरा दिया जाए; \v 18 किंतु यदि वह योवेल वर्ष के बाद अपना खेत पवित्र करे, तो पुरोहित आनेवाले योवेल वर्ष तक जितने वर्ष बचे हैं, उनकी संख्या के अनुसार खेत का ठहराया हुआ मूल्य कम कर दे. \v 19 यदि वह व्यक्ति, जिसने इसे पवित्र किया है, स्वयं इसे छुड़ाना चाहता है, तो ठहराए गए मूल्य के अलावा उसका पांचवा अंश भी चुकाए, कि वह खेत उसे लौटा दिया जाए. \v 20 किंतु यदि वह उस खेत को नहीं छुड़ाना चाहता और उसे किसी दूसरे को बेच देता है, तब उस खेत को नहीं छुड़ाया जा सकता. \v 21 यदि योवेल वर्ष में वह खेत छूट जाता है, तो वह याहवेह के लिए पवित्र खेत के समान अलग माना जाएगा. वह खेत पुरोहित की संपत्ति हो जाएगा. \p \v 22 “ ‘यदि कोई व्यक्ति याहवेह के लिए ऐसा खेत पवित्र करे, जिसे उसने खरीदा हो और जो उसकी पैतृक संपत्ति का भाग न हो, \v 23 तो पुरोहित योवेल वर्ष तक जितने वर्ष रह गए हों, उसके आधार पर उस खेत का मूल्य तय करे. और उस दिन पुरोहित तुम्हारे इस बेचने के दाम को याहवेह के लिए पवित्र दान के स्वरूप दे दे. \v 24 योवेल वर्ष में वह खेत उस व्यक्ति को छोड़ दिया जाए जिससे उसने वह खेत खरीदा था, अर्थात् उस व्यक्ति को, जो उस खेत का असली स्वामी है. \v 25 तुम्हारा हर एक बेचने का दाम ठहराए गए पवित्र स्थान के शेकेल के अनुसार ही हो. और एक शेकेल बीस गेरा का हो. \p \v 26 “ ‘किंतु पशुओं के पहलौठे पर सिर्फ याहवेह का अधिकार है, कोई भी उसे समर्पण न करे; चाहे वह बैल हो अथवा मेढ़ा, उस पर याहवेह का अधिकार है. \v 27 किंतु अशुद्ध पशुओं के पहिलौठे के लिए वह ठहराए गए मूल्य के अलावा पांचवा अंश भी जोड़कर भुगतान कर उसको छुड़ा ले, यदि इसको छुड़ाया न गया हो, तो वह तुम्हारे ठहराए गए मूल्य पर बेच दिया जाए. \p \v 28 “ ‘परंतु यदि कोई व्यक्ति अपनी सारी संपत्ति में से, जो कुछ भी याहवेह के लिए अलग करता है—मनुष्य, पशु या पैतृक संपत्ति में से खेत; उसको न तो बेचा जाए और न ही उसको छुड़ाया जाए. जो कुछ याहवेह को पूरी तरह से समर्पित है, वह याहवेह के लिए परम पवित्र है. \p \v 29 “ ‘जो मनुष्य याहवेह के लिए अलग किया गया है, उसे छुड़ाया न जाए. ज़रूरी है कि उसका वध कर दिया जाए. \p \v 30 “ ‘भूमि का दसवां अंश, चाहे वह खेत की उपज का हो या वृक्षों के फलों का, उस पर याहवेह का अधिकार है. वह याहवेह के लिए पवित्र है. \v 31 इसलिये यदि कोई अपने दसवें अंश का कुछ छुड़ाना चाहे, तो वह उसमें उसके ठहराए गए मूल्य का पांचवा अंश भी जोड़ दे. \v 32 गाय-बैलों और भेड़-बकरियों का हर एक दसवां पशु, जो चरवाहे की लाठी के नीचे से निकलता है, वह याहवेह के लिए पवित्र है. \v 33 वह उनमें अच्छे और बुरे पशु में भेद न करे और न उनको बदले. किंतु यदि कोई ऐसे बदल भी लेता है, तो वह पशु और उसके बदले के पशु दोनों ही पवित्र माने जाएंगे. इनको छुड़ाये न जाए.’ ” \p \v 34 यही वे आदेश हैं, जिन्हें याहवेह ने मोशेह को इस्राएल के घराने के लिए सीनायी पर्वत पर दिए.