\id JER - Biblica® Open Hindi Contemporary Version (Updated 2021) \ide UTF-8 \h येरेमियाह \toc1 येरेमियाह \toc2 येरेमियाह \toc3 येरे \mt1 येरेमियाह \c 1 \p \v 1 पुरोहितों में से बिन्यामिन प्रदेश के अनाथोथवासी हिलकियाह के पुत्र येरेमियाह का वचन. \v 2 जिन्हें यहूदिया के राजा अमोन के पुत्र योशियाह के राज्य-काल के तेरहवें वर्ष में याहवेह का संदेश प्रगट किया गया, \v 3 उन्हें याहवेह का संदेश यहूदिया के राजा योशियाह के पुत्र यहोइयाकिम के राज्य-काल से लेकर, यहूदिया के राजा योशियाह के पुत्र सीदकियाहू के राज्य-काल के ग्यारहवें वर्ष के अंत तक, पांचवें माह में येरूशलेम के निवासी तक भी प्रगट किया जाता रहा. \b \s1 येरेमियाह का आह्वान एवं आयोग \p \v 4 मुझे याहवेह का संदेश प्राप्‍त हुआ, \q1 \v 5 “गर्भ में तुम्हें कोई स्वरूप देने के पूर्व मैं तुम्हें जानता था, \q2 तुम्हारे जन्म के पूर्व ही मैं तुम्हें नियुक्त कर चुका था; \q2 मैंने तुम्हें राष्ट्रों के लिए भविष्यद्वक्ता नियुक्त किया है.” \p \v 6 यह सुन मैंने कहा, “ओह, प्रभु याहवेह, बात करना तो मुझे आता ही नहीं; क्योंकि मैं तो निरा लड़का ही हूं.” \p \v 7 किंतु याहवेह ने मुझसे कहा, “मत कहो, ‘मैं तो निरा लड़का ही हूं.’ क्योंकि मैं तुम्हें जहां कहीं भेजा करूं तुम वहां जाओगे. \v 8 तब उनसे भयभीत मत होना, क्योंकि तुम्हें छुड़ाने के लिए मैं तुम्हारे साथ हूं,” यह याहवेह की वाणी है. \p \v 9 तब याहवेह ने हाथ बढ़ाकर मेरे मुख को स्पर्श किया और याहवेह ने मुझसे कहा, “देखो, मैंने तुम्हारे मुख में अपने शब्द स्थापित कर दिए हैं. \v 10 यह समझ लो कि आज मैंने तुम्हें उन राष्ट्रों तथा राज्यों पर इसलिये नियुक्त किया है कि तुम तोड़ो तथा चूर-चूर करो, नष्ट करो तथा सत्ता पलट दो, निर्माण करो तथा रोपित करो.” \p \v 11 मुझे याहवेह का यह संदेश प्रगट किया गया: “येरेमियाह, तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?” \p “मैंने उत्तर दिया, मुझे बादाम के वृक्ष की एक छड़ी दिखाई दे रही है.” \p \v 12 याहवेह ने मुझसे कहा, “तुम्हारा देखना सही है, इसका आशय यह है कि मैं यह देखने के लिए जागृत हूं कि मेरा वचन पूरा हो!” \p \v 13 याहवेह का संदेश पुनः मुझे प्रगट किया गया: “तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?” \p मैंने उत्तर दिया, “मुझे भोजन पकाने का एक बर्तन दिखाई दे रहा है, उत्तर दिशा से हमारी ओर झुका दिया गया है.” \p \v 14 तब याहवेह ने मुझ पर प्रकट किया, “इस देश के निवासियों पर उत्तर दिशा से संकट टूट पड़ेगा. \v 15 क्योंकि देख लेना, मैं उत्तरी राज्यों के सारे परिवारों को आह्वान कर रहा हूं,” यह याहवेह की वाणी है. \q1 “वे आएंगे तथा उनमें से हर एक येरूशलेम के प्रवेश द्वार पर, इसकी सभी शहरपनाह के चारों \q2 ओर तथा यहूदिया के सभी नगरों पर अपना अपना सिंहासन स्थापित कर लेंगे. \q1 \v 16 मैं अपने न्याय-दंड की घोषणा करूंगा, उनकी सभी बुराइयों पर \q2 जिनके अंतर्गत उन्होंने मेरा परित्याग कर दिया, \q1 पराये देवताओं को बलि अर्पित किया \q2 तथा स्वयं अपने द्वारा निर्मित मूर्तियों की उपासना की है. \p \v 17 “अब उठो! तैयार हो जाओ और उन सभी से बात करो जिनके विषय में मैं तुम्हें आदेश दे रहा हूं. उनके समक्ष जाकर निराश न हो जाना, अन्यथा मैं तुम्हें उनके समक्ष निराश कर दूंगा. \v 18 अब यह समझ लो आज मैंने तुम्हें सारे देश के लिए, यहूदिया के राजाओं के लिए, इसके उच्चाधिकारियों के लिए, इसके पुरोहितों के लिए तथा देशवासियों के लिए एक गढ़नगर, एक लौह स्तंभ तथा कांस्य दीवारों सदृश बना दिया है. \v 19 वे तुम पर आक्रमण तो करेंगे किंतु तुम्हें पराजित नहीं कर सकेंगे, क्योंकि तुम्हारा बचाने वाला मैं तुम्हारे साथ हूं,” यह याहवेह की वाणी है. \c 2 \s1 यहूदिया का विश्वासघात \p \v 1 तब मुझे याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \v 2 “जाओ, येरूशलेम की प्रजा के कानों में वाणी करो: \b \p “यह याहवेह का संदेश है: \q1 “ ‘तुम्हारे विषय में मुझे स्मरण है: जवानी की तुम्हारी निष्ठा, \q2 दुल्हिन सा तुम्हारा प्रेम \q1 और निर्जन प्रदेश में तुम्हारे द्वारा मेरा अनुसरण, \q2 ऐसे देश में, जहां बीज बोया नहीं जाता था. \q1 \v 3 इस्राएल याहवेह के लिए पवित्र किया हुआ था, \q2 याहवेह की पहली उपज; \q1 जिस किसी ने इस उपज का उपभोग किया, \q2 वे दोषी हो गए; वे संकट से ग्रसित हो गए,’ ” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 4 याकोब के वंशजों, याहवेह का संदेश सुनो, इस्राएल के सारे गोत्रों, \q2 तुम भी. \p \v 5 याहवेह का संदेश यह है: \q1 “तुम्हारे पूर्वजों ने मुझमें कौन सा अन्याय पाया, \q2 कि वे मुझसे दूर हो गए? \q1 निकम्मी वस्तुओं के पीछे होकर \q2 वे स्वयं निकम्मे बन गए. \q1 \v 6 उन्होंने यह प्रश्न ही न किया, ‘कहां हैं याहवेह, \q2 जिन्होंने हमें मिस्र देश से मुक्त किया \q1 और जो हमें निर्जन प्रदेश में होकर यहां लाया. मरुभूमि \q2 तथा गड्ढों की भूमि में से, \q1 उस भूमि में से, जहां निर्जल तथा अंधकार व्याप्‍त था, \q2 उस भूमि में से जिसके पार कोई नहीं गया था, जिसमें कोई निवास नहीं करता था?’ \q1 \v 7 मैं तुम्हें उपजाऊ भूमि पर ले आया \q2 कि तुम इसकी उपज का सेवन करो और इसकी उत्तम वस्तुओं का उपयोग करो. \q1 किंतु तुमने आकर मेरी भूमि को अशुद्ध कर दिया \q2 और तुमने मेरे इस निज भाग को घृणास्पद बना दिया. \q1 \v 8 पुरोहितों ने यह समझने का प्रयास कभी नहीं किया, \q2 ‘याहवेह कहां हैं?’ \q1 आचार्य तो मुझे जानते ही न थे; \q2 उच्च अधिकारी ने मेरे विरोध में विद्रोह किया. \q1 भविष्यवक्ताओं ने बाल के द्वारा भविष्यवाणी की, \q2 तथा उस उपक्रम में लग गए जो निरर्थक है. \b \q1 \v 9 “तब मैं पुनः तुम्हारे समक्ष अपना सहायक प्रस्तुत करूंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q2 “मैं तुम्हारी संतान की संतान के समक्ष अपना सहायक प्रस्तुत करूंगा. \q1 \v 10 सागर पार कर कित्तिम के तटवर्ती क्षेत्रों में देखो, \q2 किसी को केदार देश भेजकर सूक्ष्म अवलोकन करो; \q2 और ज्ञात करो कि कभी ऐसा हुआ है: \q1 \v 11 क्या किसी राष्ट्र ने अपने देवता परिवर्तित किए हैं? \q2 (जबकि देवता कुछ भी नहीं हुआ करते.) \q1 किंतु मेरी प्रजा ने अपने गौरव का विनिमय उससे कर लिया है \q2 जो सर्वथा निरर्थक है. \q1 \v 12 आकाश, इस पर अपना भय अभिव्यक्त करो, \q2 कांप जाओ और अत्यंत सुनसान हो जाओ,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 13 “मेरी प्रजा ने दो बुराइयां की हैं: \q1 उन्होंने मुझ जीवन्त स्रोत का \q2 परित्याग कर दिया है, \q1 उन्होंने ऐसे हौद बना लिए हैं, \q2 जो टूटे हुए हैं, जो पानी को रोक नहीं सकते. \q1 \v 14 क्या इस्राएल दास है, अथवा घर में ही जन्मा सेवक? \q2 तब उसका शिकार क्यों किया जा रहा है? \q1 \v 15 जवान सिंह उस पर दहाड़ते रहे हैं; \q2 अत्यंत सशक्त रही है उनकी दहाड़. \q1 उन्होंने उसके देश को उजाड़ बना दिया है; \q2 उसके नगरों को नष्ट कर दिया है और उसके नगर निर्जन रह गए हैं. \q1 \v 16 मैमफिस तथा ताहपनहेस के लोगों ने \q2 तुम्हारी उपज की बालें नोच डाली हैं. \q1 \v 17 क्या यह स्वयं तुम्हारे ही द्वारा लाई हुई स्थिति नहीं है, \q2 जब याहवेह तुम्हें लेकर आ रहे थे, \q2 तुमने याहवेह अपने परमेश्वर का परित्याग कर दिया? \q1 \v 18 किंतु अब तुम मिस्र की ओर क्यों देखते हो? \q2 नील नदी के जल पीना तुम्हारा लक्ष्य है? \q1 अथवा तुम अश्शूर के मार्ग पर क्या कर रहे हो? \q2 क्या तुम्हारा लक्ष्य है, फरात नदी के जल का सेवन करना? \q1 \v 19 तुम्हारी अपनी बुराई ही तुम्हें सुधारेगी; \q2 याहवेह के प्रति श्रद्धा से तुम्हारा भटक जाना ही तुम्हें प्रताड़ित करेगा. \q1 तब यह समझ लो \q2 तथा यह बात पहचान लो \q1 याहवेह अपने परमेश्वर का परित्याग करना हानिकर एवं पीड़ादायी है, \q2 तुममें मेरे प्रति भय-भाव है ही नहीं,” \q2 यह सेनाओं के प्रभु परमेश्वर की वाणी है. \b \q1 \v 20 “वर्षों पूर्व मैंने तुम्हारा जूआ भंग कर दिया \q2 तथा तुम्हारे बंधन तोड़ डाले; \q2 किंतु तुमने कह दिया, ‘सेवा मैं नहीं करूंगा!’ \q1 क्योंकि, हर एक उच्च पर्वत पर \q2 और हर एक हरे वृक्ष के नीचे \q2 तुमने वेश्या-सदृश मेरे साथ विश्वासघात किया है. \q1 \v 21 फिर भी मैंने तुम्हें एक उत्कृष्ट द्राक्षलता सदृश, पूर्णतः, \q2 विशुद्ध बीज सदृश रोपित किया. \q1 तब ऐसा क्या हो गया जो तुम विकृत हो गए \q2 और वन्य लता के निकृष्ट अंकुर में, परिवर्तित हो गए? \q1 \v 22 यद्यपि तुम साबुन के साथ स्वयं को स्वच्छ करते हो \q2 तथा भरपूरी से साबुन का प्रयोग करते हो, \q2 फिर भी तुम्हारा अधर्म मेरे समक्ष बना हुआ है,” \q2 यह प्रभु याहवेह की वाणी है. \q1 \v 23 “तुम यह दावा कैसे कर सकते हो, ‘मैं अशुद्ध नहीं हुआ हूं; \q2 मैं बाल देवताओं के प्रति निष्ठ नहीं हुआ हूं’? \q1 उस घाटी में अपने आचार-व्यवहार को स्मरण करो; \q2 यह पहचानो कि तुम क्या कर बैठे हो. \q1 तुम तो उस ऊंटनी सदृश हो जो दिशाहीन लक्ष्य की \q2 ओर तीव्र गति से दौड़ती हुई उत्तरोत्तर उलझती जा रही है, \q1 \v 24 तुम वनों में पली-बढ़ी उस वन्य गधी के सदृश हो, \q2 जो अपनी लालसा में वायु की गंध लेती रहती है— \q2 उत्तेजना के समय में कौन उसे नियंत्रित कर सकता है? \q1 वे सब जो उसे खोजते हैं व्यर्थ न हों; \q2 उसकी उस समागम ऋतु में वे उसे पा ही लेंगे. \q1 \v 25 तुम्हारे पांव जूते-विहीन न रहें \q2 और न तुम्हारा गला प्यास से सूखने पाए. \q1 किंतु तुमने कहा, ‘निरर्थक होगा यह प्रयास! नहीं! \q2 मैंने अपरिचितों से प्रेम किया है, \q2 मैं तो उन्हीं के पास जाऊंगी.’ \b \q1 \v 26 “जैसे चोर चोरी पकड़े जाने पर लज्जित हो जाता है, \q2 वैसे ही इस्राएल वंशज लज्जित हुए हैं— \q1 वे, उनके राजा, उनके उच्च अधिकारी, \q2 उनके पुरोहित और उनके भविष्यद्वक्ता. \q1 \v 27 वे वृक्ष से कहते हैं, ‘तुम मेरे पिता हो,’ \q2 तथा पत्थर से, ‘तुमने मुझे जन्म दिया है.’ \q1 यह इसलिये कि उन्होंने अपनी पीठ मेरी ओर कर दी है \q2 अपना मुख नहीं; \q1 किंतु अपने संकट के समय, वे कहेंगे, \q2 ‘उठिए और हमारी रक्षा कीजिए!’ \q1 \v 28 किंतु वे देवता जो तुमने अपने लिए निर्मित किए हैं, कहां हैं? \q2 यदि उनमें तुम्हारी रक्षा करने की क्षमता है \q2 तो वे तुम्हारे संकट के समय तैयार हो जाएं! \q1 क्योंकि यहूदिया, जितनी संख्या तुम्हारे नगरों की है \q2 उतने ही हैं तुम्हारे देवता. \b \q1 \v 29 “तुम मुझसे वाद-विवाद क्यों कर रहे हो? \q2 तुम सभी ने मेरे विरुद्ध बलवा किया है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 30 “व्यर्थ हुई मेरे द्वारा तुम्हारी संतान की ताड़ना; \q2 उन्होंने इसे स्वीकार ही नहीं किया. \q1 हिंसक सिंह सदृश \q2 तुम्हारी ही तलवार तुम्हारे भविष्यवक्ताओं को निगल कर गई. \p \v 31 “इस पीढ़ी के लोगो, याहवेह के वचन पर ध्यान दो: \q1 “क्या इस्राएल के लिए मैं निर्जन प्रदेश सदृश रहा हूं \q2 अथवा गहन अंधकार के क्षेत्र सदृश? \q1 क्या कारण है कि मेरी प्रजा यह कहती है, ‘हम ध्यान करने के लिए स्वतंत्र हैं; \q2 क्या आवश्यकता है कि हम आपकी शरण में आएं’? \q1 \v 32 क्या कोई नवयुवती अपने आभूषणों की उपेक्षा कर सकती है, \q2 अथवा क्या किसी वधू के लिए उसका श्रृंगार महत्वहीन होता है? \q1 फिर भी मेरी प्रजा ने मुझे भूलना पसंद कर दिया है, \q2 वह भी दीर्घ काल से. \q1 \v 33 अपने प्रिय बर्तन तक पहुंचने के लिए तुम कैसी कुशलतापूर्वक युक्ति कर लेते हो! \q2 तब तुमने तो बुरी स्त्रियों को भी अपनी युक्तियां सिखा दी हैं. \q1 \v 34 तुम्हारे वस्त्र पर तो \q2 निर्दोष गरीब का जीवन देनेवाला रक्त पाया गया है, \q2 तुम्हें तो पता ही न चला कि वे कब तुम्हारे आवास में घुस आए. \q1 \v 35 यह सब होने पर भी तुमने दावा किया, ‘मैं निस्सहाय हूं; \q2 निश्चय उनका क्रोध मुझ पर से टल चुका है.’ \q1 किंतु यह समझ लो कि मैं तुम्हारा न्याय कर रहा हूं \q2 क्योंकि तुमने दावा किया है, ‘मैं निस्सहाय हूं.’ \q1 \v 36 तुम अपनी नीतियां परिवर्तित क्यों करते रहते हो, \q2 यह भी स्मरण रखना? \q1 तुम जिस प्रकार अश्शूर के समक्ष लज्जित हुए थे \q2 उसी प्रकार ही तुम्हें मिस्र के समक्ष भी लज्जित होना पड़ेगा. \q1 \v 37 इस स्थान से भी तुम्हें निराश होना होगा. \q2 उस समय तुम्हारे हाथ तुम्हारे सिर पर होंगे, \q1 क्योंकि जिन पर तुम्हारा भरोसा था उन्हें याहवेह ने अस्वीकृत कर दिया है; \q2 उनके साथ तुम्हारी समृद्धि संभव नहीं है. \b \b \c 3 \q1 \v 1 “यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री से तलाक कर लेता है \q2 और वह उसे त्याग कर चली जाती है और वह किसी अन्य पुरुष के साथ रहने लगती है, \q1 क्या वह पहला पुरुष फिर भी उसके पास लौटेगा? \q2 क्या वह देश पूर्णतः अशुद्ध नहीं हो जाएगा? \q1 किंतु तुम वह व्यभिचारी हो जिसके बर्तन अनेक हैं— \q2 यह होने पर भी तुम अब मेरे पास लौट आए हो?” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 2 “अपनी दृष्टि वनस्पतिहीन पर्वतों की ओर उठाओ और देखो. \q2 कौन सा ऐसा स्थान है जहां तुम्हारे साथ कुकर्म नहीं हुआ है? \q1 मरुभूमि में चलवासी\f + \fr 3:2 \fr*\fq चलवासी \fq*\ft मूल भाषा में \ft*\fqa अरबी\fqa*\f* के सदृश, \q2 तुम मार्ग के किनारे उनकी प्रतीक्षा करती रही. \q1 अपनी दुर्वृत्ति से तथा अपने स्वच्छंद कुकर्म के द्वारा \q2 तुमने देश को अशुद्ध कर दिया है. \q1 \v 3 तब वृष्टि अशुद्ध रखी गई है, \q2 वसन्त काल में वृष्टि हुई नहीं. \q1 फिर भी तुम्हारा माथा व्यभिचारी सदृश झलकता रहा; \q2 तुमने लज्जा को स्थान ही न दिया. \q1 \v 4 क्या तुमने अभी-अभी मुझे इस प्रकार संबोधित नहीं किया: \q2 ‘मेरे पिता; आप तो बचपन से मेरे साथी रहे हैं, \q1 \v 5 क्या आप मुझसे सदैव ही नाराज बने रहेंगे? \q2 क्या यह आक्रोश चिरस्थायी बना रहेगा?’ \q1 स्मरण रहे, यह तुम्हारा वचन है और तुमने कुकर्म भी किए हैं, \q2 तुमने जितनी चाही उतनी मनमानी कर ली है.” \s1 विश्वासघाती इस्राएल \p \v 6 तत्पश्चात राजा योशियाह के राज्य-काल में, याहवेह ने मुझसे बात की, “देखा तुमने, विश्वासहीन इस्राएल ने क्या किया है? उसने हर एक उच्च पर्वत पर तथा हर एक हरे वृक्ष के नीचे वेश्या-सदृश मेरे साथ विश्वासघात किया है. \v 7 मेरा विचार था यह सब करने के बाद इस्राएली प्रजा मेरे पास लौट आएगी किंतु वह नहीं लौटी, उसकी विश्वासघाती बहन यहूदिया यह सब देख रही थी. \v 8 मैं देख रहा था कि विश्वासहीन इस्राएल के सारे स्वच्छंद कुकर्म के कारण मैंने उसे निराश कर तलाक पत्र भी दे दिया था. फिर भी उसकी विश्वासघाती बहन यहूदिया भयभीत न हुई; बल्कि वह भी व्यभिचारी बन गई. \v 9 इसलिये कि उसकी दृष्टि में यह स्वच्छंद कुकर्म कोई गंभीर विषय न था, उसने सारे देश को अशुद्ध कर दिया और पत्थरों एवं वृक्षों के साथ व्यभिचार किया. \v 10 यह सब होने पर भी, यह घोर विश्वासघाती बहन यहूदिया अपने संपूर्ण हृदय से मेरे पास नहीं लौटी, वह मात्र कपट ही करती रही,” यह याहवेह की वाणी है. \p \v 11 याहवेह ने मुझसे कहा, “विश्वासहीन इस्राएल ने स्वयं को विश्वासघाती यहूदिया से अधिक कम दोषी प्रमाणित कर दिया है. \v 12 जाओ, उत्तर दिशा की ओर यह संदेश वाणी घोषित करो: \q1 “ ‘विश्वासहीन इस्राएल, लौट आओ,’ यह याहवेह की वाणी है, \q2 ‘मैं तुम पर क्रोधपूर्ण दृष्टि नहीं डालूंगा, \q1 क्योंकि मैं कृपालु हूं,’ यह याहवेह की वाणी है, \q2 ‘मैं सर्वदा क्रोधी नहीं रहूंगा. \q1 \v 13 तुम मात्र इतना ही करो: अपना अधर्म स्वीकार कर लो— \q2 कि तुमने याहवेह, अपने परमेश्वर के प्रति अतिक्रमण का अपराध किया है, \q1 तुम हर एक हरे वृक्ष के नीचे \q2 अपरिचितों को प्रसन्‍न करती रही हो, \q2 यह भी, कि तुमने मेरे आदेश की अवज्ञा की है,’ ” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \p \v 14 “विश्वासहीनो, लौट आओ,” यह याहवेह का आदेश है, “क्योंकि तुम्हारे प्रति मैं एक स्वामी हूं. तब मैं तुम्हें, नगर में से एक को तथा परिवार में से दो को ज़ियोन में ले आऊंगा. \v 15 तब मैं तुम्हें ऐसे चरवाहे प्रदान करूंगा जो मेरे हृदय के अनुरूप होंगे, जो तुम्हें ज्ञान और समझ से प्रेषित करेंगे. \v 16 यह उस समय होगा, जब तुम उस देश में असंख्य और समृद्ध हो जाओगे,” यह याहवेह की वाणी है, “तब वे यह कहना छोड़ देंगे, ‘याहवेह की वाचा का संदूक.’ तब उनके हृदय में न तो इसका विचार आएगा न वे इसका स्मरण करेंगे; यहां तक कि उन्हें इसकी आवश्यकता तक न होगी, वे एक और संदूक का निर्माण भी नहीं करेंगे. \v 17 उस समय वे येरूशलेम को याहवेह का सिंहासन नाम देंगे, सभी जनता यहां एकत्र होंगे. वे याहवेह की प्रतिष्ठा के लिए येरूशलेम में एकत्र होंगे तब वे अपने बुरे हृदय की कठोरता के अनुरूप आचरण नहीं करेंगे. \v 18 उन दिनों में यहूदाह गोत्रज इस्राएल वंशज के साथ संयुक्त हो जाएगा, वे एक साथ उत्तर के देश से उस देश में आ जाएंगे जो मैंने तुम्हारे पूर्वजों को निज भाग स्वरूप में प्रदान किया है. \p \v 19 “तब मैंने कहा, \q1 “ ‘मेरी अभिलाषा रही कि मैं तुम्हें अपनी सन्तति पुत्रों में सम्मिलित करूं \q2 और तुम्हें एक सुखद देश प्रदान करूं, \q2 राष्ट्रों में सबसे अधिक मनोहर यह निज भाग.’ \q1 और मैंने यह भी कहा तुम मुझे ‘मेरे पिता’ \q2 कहकर संबोधित करोगे, और मेरा अनुसरण करना न छोड़ोगे. \q1 \v 20 इस्राएल वंशजों निश्चय तुमने मुझसे वैसे ही विश्वासघात किया है, \q2 जैसे स्त्री अपने बर्तन से विश्वासघात कर अलग हो जाती है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 21 वनस्पतिहीन उच्च पर्वतों पर एक स्वर सुनाई दे रहा है, \q2 इस्राएल वंशजों का विलाप एवं उनके गिड़गिड़ाने का, \q1 वे अपने विश्वासमत से दूर हो चुके हैं \q2 और उन्होंने याहवेह अपने परमेश्वर को भूलना पसंद किया है. \b \q1 \v 22 “विश्वासविहीन वंशजों, लौट आओ; \q2 तुम्हारी विश्वासहीनता का उपचार मैं करूंगा.” \b \q1 “देखिए, हम आपके निकट आ रहे हैं, \q2 क्योंकि आप याहवेह हमारे परमेश्वर हैं. \q1 \v 23 यह सुनिश्चित है कि पहाड़ियों पर छल है \q2 और पर्वतों पर उपद्रव है; \q1 निःसंदेह याहवेह \q2 हमारे परमेश्वर में ही इस्राएल की सुरक्षा है. \q1 \v 24 हमारे बचपन से इस लज्जास्पद आचरण ने \q2 हमारे पूर्वजों के उपक्रम को— \q1 उनके पशुओं को तथा \q2 उनकी संतान को निगल कर रखा है. \q1 \v 25 उपयुक्त होगा कि हमारी लज्जा में समावेश हो जाएं, \q2 कि हमारी लज्जा हमें ढांप ले. \q1 क्योंकि हमने अपने बाल्यकाल से \q2 आज तक याहवेह हमारे परमेश्वर के विरुद्ध पाप ही किया है; \q1 हमने याहवेह, \q2 हमारे परमेश्वर की अवज्ञा की है.” \b \c 4 \q1 \v 1 याहवेह की यह वाणी है, \q2 “इस्राएल, यदि तुम लौटो, तो तुम्हारा मेरे पास लौट आना उपयुक्त होगा, \q1 यदि तुम वे घृणास्पद वस्तुएं मेरे समक्ष से दूर कर दो \q2 और यदि तुम अपने संकल्प से विचलित न हो, \q1 \v 2 और तुम पूर्ण निष्ठा में, न्यायपूर्णता में तथा पूर्वजों में यह शपथ लो, \q2 ‘जीवित याहवेह की शपथ,’ \q1 तब जनता स्वयं ही याहवेह द्वारा आशीषित की जाएंगी \q2 तथा याहवेह में उनका गौरव हो जाएगा.” \p \v 3 यहूदिया एवं येरूशलेम के निवासियों के लिए याहवेह का आदेश है: \q1 “उस भूमि पर हल चला दो, \q2 कंटीली भूमि में बीजारोपण न करो. \q1 \v 4 यहूदिया तथा येरूशलेम के वासियो, \q2 याहवेह के लिए अपना ख़तना करो, \q2 ख़तना अपने हृदय की खाल का करो, \q1 अन्यथा मेरा कोप अग्नि-समान भड़क उठेगा और यह ज्वाला ऐसी होगी, \q2 जिसे अलग करना किसी के लिए संभव न होगा— \q2 क्योंकि यह तुम्हारे दुष्कर्मों का परिणाम है. \s1 उत्तर दिशा से आनेवाली आपत्ति \q1 \v 5 “यहूदिया में प्रचार करो और येरूशलेम में यह वाणी कहो: \q2 ‘सारे देश में नरसिंगा का नाद करो!’ \q1 उच्च स्वर में यह कहा जाए: \q2 ‘सब एकत्र हों! \q2 तथा हम सब गढ़ नगरों में शरण ले लें!’ \q1 \v 6 ज़ियोन की ओर झंडा ऊंचा किया जाए! \q2 चुपचाप खड़े न रहो, आश्रय की खोज करो! \q1 क्योंकि मैं उत्तर दिशा से महा संकट ला रहा हूं, \q2 यह पूरा विनाश होगा.” \b \q1 \v 7 झाड़ियों में छिपा सिंह बाहर निकल आया है; \q2 राष्ट्रों का विनाशक प्रस्थित हो चुका है. \q1 वह अपने आवास से बाहर आ चुका है \q2 कि वह तुम्हारे देश को निर्जन बना दे. \q1 तुम्हारे नगर खंडहर रह जाएंगे \q2 उनमें कोई भी निवासी न रह जाएगा. \q1 \v 8 तब साधारण वस्त्र धारण करो, \q2 रोओ और विलाप करो, \q1 क्योंकि याहवेह का प्रचंड क्रोध हमसे \q2 दूर नहीं हटा है. \b \q1 \v 9 “उस दिन ऐसा होगा,” यह याहवेह की वाणी है, \q2 “राजा का तथा उच्चाधिकारी का साहस शून्य हो जाएगा, \q1 तब पुरोहित भयभीत एवं, \q2 भविष्यद्वक्ता अचंभित रह जाएंगे.” \p \v 10 इस पर मैं कह उठा, “प्रभु याहवेह! आपने तो येरूशलेम के निवासियों को यह आश्वासन देते हुए पूर्णतः धोखे में रखा हुआ है, ‘तुम शांत एवं सुरक्षित रहोगे,’ जबकि उनके गर्दन पर तलवार रखी हुई है!” \p \v 11-12 उस समय इस प्रजा एवं येरूशलेम से कहा जाएगा, “मरुभूमि की वनस्पतिहीन ऊंचाइयों से मेरे आदेश पर एक प्रबल उष्ण वायु प्रवाह उठेगा, उसका लक्ष्य होगा मेरी प्रजा की पुत्री; यह वायु सुनसान तथा समाप्‍ति के लिए नहीं है. अब मैं उनके विरुद्ध न्याय-दंड घोषित करूंगा.” \q1 \v 13 देखो! वह घुमड़ते मेघों के सदृश बढ़ा चला आ रहा है, \q2 उसके रथ बवंडर सदृश हैं, \q1 उसके घोड़े गरुड़ों से अधिक द्रुतगामी हैं. \q2 धिक्कार है हम पर! हम मिट गए है! \q1 \v 14 येरूशलेम, अपने दुष्ट हृदय को धोकर साफ़ करो, कि तुम सुरक्षित रह सको. \q2 और कब तक तुममें कुविचारों का निवास रहेगा? \q1 \v 15 दान से एक स्वर कह रहा है, \q2 एफ्राईम पर्वत से बुराई का प्रचार किया जा रहा है. \q1 \v 16 “इसी समय राष्ट्रों में सूचना प्रसारित की जाए, \q2 येरूशलेम में इसका प्रचार किया जाए: \q1 ‘जो नगर की घेराबंदी करेंगे वे दूर देश से आ रहे हैं, \q2 वे यहूदिया के नगरों के विरुद्ध अपने स्वर उठाएंगे. \q1 \v 17 खेत के प्रहरियों सदृश वे अपना घेरा छोटा करते जा रहे हैं, \q2 यह इसलिये कि उसने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया है,’ ” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 18 “तुम्हारे आचरण एवं तुम्हारे कार्यों के \q2 कारण यह स्थिति आई है. \q1 तुम्हारा है यह संकट. \q2 कितना कड़वा! \q2 इसने तुम्हारे हृदय को बेध दिया है!” \q1 \v 19 मेरे प्राण, ओ मेरे प्राण! \q2 मैं अकाल पीड़ा में हूं. \q1 आह मेरा हृदय! मेरे अंदर में हृदय धड़क रहा है, \q2 मैं शांत नहीं रह सकता. \q1 क्योंकि मेरे प्राण, मैंने नरसिंगा नाद, \q2 युद्ध की ललकार, सुनी है. \q1 \v 20 विध्वंस पर विध्वंस की वाणी की गई है; \q2 क्योंकि देश उध्वस्त किया जा चुका है. \q1 अचानक मेरे तंबू ध्वस्त हो गए हैं, \q2 मेरे पर्दे क्षण मात्र में नष्ट हो गए हैं. \q1 \v 21 मैं कब तक झंडा-पताका को देखता रहूं \q2 और कब तक नरसिंगा नाद मेरे कानों में पड़ता रहेगा? \b \q1 \v 22 “क्योंकि निर्बुद्धि है मेरी प्रजा; \q2 वह मुझे नहीं जानती. \q1 वे मूर्ख बालक हैं; \q2 उनमें समझ का अभाव है. \q1 अधर्म के लिए उनमें बुद्धि अवश्य है; \q2 किंतु सत्कर्म उनसे किया नहीं जाता है.” \b \q1 \v 23 मैंने पृथ्वी पर दृष्टि की, \q2 और पाया कि वह आकार रहित तथा रिक्त थी; \q1 मैंने आकाश की ओर दृष्टि उठाई और मैंने पाया, \q2 कि वहां कोई ज्योति-स्रोत न था. \q1 \v 24 मैंने पर्वतों की ओर दृष्टि की, \q2 और देखा कि वे कांप रहे थे; \q2 और पहाड़ियां इधर-उधर सरक रही थी. \q1 \v 25 मैंने ध्यान दिया, कि वहां कोई मनुष्य नहीं था; \q2 तथा आकाश के सारे पक्षी पलायन कर चुके थे. \q1 \v 26 मैंने देखा, और यह पाया कि फलदायी देश अब निर्जन प्रदेश हो चुका था; \q2 तथा इस देश के सारे नगर याहवेह \q2 तथा उनके उग्र कोप के समक्ष ध्वस्त हो चुके थे. \p \v 27 यह याहवेह की वाणी है: \q1 “सारा देश निर्जन हो जाएगा, \q2 फिर भी मैं इसका पूरा विनाश न करूंगा. \q1 \v 28 इसके लिए पृथ्वी विलाप करेगी \q2 तथा ऊपर आकाश काला पड़ जाएगा, \q1 इसलिये कि मैं यह कह चुका हूं और मैं निर्धारित कर चुका हूं, \q2 मैं न अपना विचार परिवर्तित करूंगा और न ही मैं पीछे हटूंगा.” \b \q1 \v 29 घुड़सवार एवं धनुर्धारियों की ध्वनि सुन हर एक \q2 नगर भागने लगता है. \q1 वे झाड़ियों में जा छिपते हैं; \q2 वे चट्टानों पर चढ़ जाते हैं. \q1 सभी नगर छोड़े जा चुके हैं; \q2 उनमें कोई भी निवास नहीं कर रहा. \b \q1 \v 30 और तुम जो निर्जन हो, अब क्या करोगी? \q2 यद्यपि तुम भड़कीले वस्त्र धारण किए हुए हो, \q2 यद्यपि तुमने स्वयं को स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित किया है? \q1 यद्यपि तुमने अपने नेत्रों का श्रृंगार कर उन्हें सजाया है? \q2 स्वयं को ऐसा सुरम्य स्वरूप देना व्यर्थ है. \q1 तुम्हारे प्रेमियों के लिए तो तुम अब घृणित हो गई हो; \q2 वे तो अब तुम्हारे प्राणों के प्यासे हैं. \b \q1 \v 31 मुझे ऐसी कराहट सुनाई दी मानो कोई प्रसूता की कराहट हो ऐसी वेदना का स्वर, \q2 जैसा उस स्त्री को होता है जिसका पहला प्रसव हो रहा हो. \q1 यह पुकार ज़ियोन की पुत्री की चिल्लाहट है जिसका श्वांस फूल रहा है, \q2 वह अपने हाथ फैलाकर कह रही है, \q1 “हाय! धिक्कार है मुझ पर; \q2 मुझे तो हत्यारों के समक्ष मूर्च्छा आ रही है.” \c 5 \s1 परमेश्वर की प्रजा का पूर्ण भ्रष्टाचार \q1 \v 1 “येरूशलेम के मार्गों पर इधर-उधर ध्यान करो, \q2 इसी समय देखो और ध्यान दो, \q2 उसके खुले चौकों में खोज कर देख लो. \q1 यदि वहां एक भी ऐसा मनुष्य है \q2 जो अपने आचार-व्यवहार में खरा है और जो सत्य का खोजी है, \q2 तो मैं सारे नगर को क्षमा कर दूंगा. \q1 \v 2 यद्यपि वे अपनी शपथ में यह अवश्य कहते हैं, ‘जीवित याहवेह की शपथ,’ \q2 वस्तुस्थिति यह है कि उनकी शपथ झूठी होती है.” \b \q1 \v 3 याहवेह, क्या आपके नेत्र सत्य की अपेक्षा नहीं करते? \q2 आपने उन्हें दंड अवश्य दिया, किंतु उन्हें वेदना नहीं हुई; \q2 आपने उन्हें कुचल भी दिया, किंतु फिर भी उन्होंने अपने आचरण में सुधार करना अस्वीकार कर दिया. \q1 उन्होंने अपने मुखमंडल वज्र सदृश कठोर बना लिए हैं \q2 और उन्होंने प्रायश्चित करना अस्वीकार कर दिया है. \q1 \v 4 तब मैंने विचार किया, “वे तो मात्र निर्धन हैं; \q2 वे निर्बुद्धि हैं, \q1 क्योंकि उन्हें याहवेह की नीतियों का ज्ञान ही नहीं है, \q2 अथवा अपने परमेश्वर के नियम वे जानते नहीं हैं. \q1 \v 5 मैं उनके अगुए से भेंट करूंगा; \q1 क्योंकि उन्हें तो याहवेह की नीतियों का बोध है, \q2 वे अपने परमेश्वर के नियम जानते हैं.” \q1 किंतु उन्होंने भी एक मत होकर जूआ उतार दिया है \q2 तथा उन्होंने बंधन तोड़ फेंके हैं. \q1 \v 6 तब वन से एक सिंह आकर उनका वध करेगा, \q2 मरुभूमि का भेड़िया उन्हें नष्ट कर देगा, \q1 एक चीता उनके नगरों को ताक रहा है, जो कोई नगर से बाहर निकलता है \q2 वह फाड़ा जाकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाएगा, \q1 क्योंकि बड़ी संख्या है उनके अपराधों की \q2 और असंख्य हैं उनके मन के विचार. \b \q1 \v 7 “मैं भला तुम्हें क्षमा क्यों करूं? \q2 तुम्हारे बालकों ने मुझे भूलना पसंद कर दिया है. \q2 उन्होंने उनकी शपथ खाई है जो देवता ही नहीं हैं. \q1 यद्यपि मैं उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करता रहा, \q2 फिर भी उन्होंने व्यभिचार किया, \q2 उनका जनसमूह यात्रा करते हुए वेश्यालयों को जाता रहा है. \q1 \v 8 वे उन घोड़ों के सदृश हैं, जो पुष्ट हैं तथा जिनमें काम-वासना समाई हुई है, \q2 हर एक अपने पड़ोसी की पत्नी को देख हिनहिनाने लगता है. \q1 \v 9 क्या मैं ऐसे लोगों को दंड न दूं?” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 “क्या मैं स्वयं ऐसे राष्ट्र से \q2 बदला न लूं? \b \q1 \v 10 “जाओ इस देश की द्राक्षालता की पंक्तियों के मध्य जाकर उन्हें नष्ट कर दो, \q2 किंतु यह सर्वनाश न हो. \q1 उसकी शाखाएं तोड़ डालो, \q2 क्योंकि वे याहवेह की नहीं हैं. \q1 \v 11 क्योंकि इस्राएल वंश तथा यहूदाह गोत्र ने \q2 मेरे साथ घोर विश्वासघात किया है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 12 उन्होंने याहवेह के विषय में झूठी अफवाएं प्रसारित की हैं; \q2 उन्होंने कहा, “वह कुछ नहीं करेंगे! \q1 हम पर न अकाल की विपत्ति आएगी; \q2 हम पर न अकाल का प्रहार होगा, न तलवार का. \q1 \v 13 उनके भविष्यद्वक्ता मात्र वायु हैं \q2 उनमें परमेश्वर का आदेश है ही नहीं; \q2 यही किया जाएगा उनके साथ.” \p \v 14 तब याहवेह सेनाओं के परमेश्वर की बात यह है: \q1 “इसलिये कि तुमने ऐसा कहा है, \q2 यह देखना कि तुम्हारे मुख में मेरा संदेश अग्नि में परिवर्तित हो जाएगा \q2 तथा ये लोग लकड़ी में, जिन्हें अग्नि निगल जाएगी. \q1 \v 15 इस्राएल वंश यह देखना,” यह याहवेह की वाणी है, \q2 “मैं दूर से तुम्हारे विरुद्ध आक्रमण करने के लिए एक राष्ट्र को लेकर आऊंगा— \q1 यह सशक्त, स्थिर तथा प्राचीन राष्ट्र है, \q2 उस देश की भाषा से तुम अपरिचित हो, \q2 उनकी बात को समझना तुम्हारे लिए संभव नहीं. \q1 \v 16 उनका तरकश रिक्त कब्र सदृश है; \q2 वे सभी शूर योद्धा हैं. \q1 \v 17 वे तुम्हारी उपज तथा तुम्हारा भोजन निगल जाएंगे, \q2 वे तुम्हारे पुत्र-पुत्रियों को निगल जाएंगे; \q1 वे तुम्हारी भेड़ों एवं पशुओं को निगल जाएंगे, \q2 वे तुम्हारी द्राक्षालताओं तथा अंजीर वृक्षों को निगल जाएंगे. \q1 वे तुम्हारे उन गढ़ नगरों को, जिनकी सुरक्षा में तुम्हारा भरोसा टिका है, \q2 तलवार से ध्वस्त कर देंगे. \p \v 18 “फिर भी उन दिनों में,” यह याहवेह की वाणी है, “मैं तुम्हें पूर्णतः नष्ट नहीं करूंगा. \v 19 यह उस समय होगा जब वे यह कह रहे होंगे, ‘याहवेह हमारे परमेश्वर ने हमारे साथ यह सब क्यों किया है?’ तब तुम्हें उनसे यह कहना होगा, ‘इसलिये कि तुमने मुझे भूलना पसंद कर दिया है तथा अपने देश में तुमने परकीय देवताओं की उपासना की है, तब तुम ऐसे देश में अपरिचितों की सेवा करोगे जो देश तुम्हारा नहीं है.’ \q1 \v 20 “याकोब वंशजों में यह प्रचार करो \q2 और यहूदाह गोत्रजों में यह घोषणा करो: \q1 \v 21 मूर्ख और अज्ञानी लोगों, यह सुन लो, \q2 तुम्हारे नेत्र तो हैं किंतु उनमें दृष्टि नहीं है, \q2 तुम्हारे कान तो हैं किंतु उनमें सुनने कि क्षमता है ही नहीं: \q1 \v 22 क्या तुम्हें मेरा कोई भय नहीं?” यह याहवेह की वाणी है. \q2 “क्या मेरी उपस्थिति में तुम्हें थरथराहट नहीं हो जाती? \q1 सागर की सीमा-निर्धारण के लिए मैंने बांध का प्रयोग किया है, \q2 यह एक सनातन आदेश है, तब वह सीमा तोड़ नहीं सकता. \q1 लहरें थपेड़े अवश्य मारती रहती हैं, किंतु वे सीमा पर प्रबल नहीं हो सकती; \q2 वे कितनी ही गरजना करे, वे सीमा पार नहीं कर सकती. \q1 \v 23 किंतु इन लोगों का हृदय हठी एवं विद्रोही है; \q2 वे पीठ दिखाकर अपने ही मार्ग पर आगे बढ़ गए हैं. \q1 \v 24 यह विचार उनके हृदय में आता ही नहीं, \q2 ‘अब हम याहवेह हमारे परमेश्वर के प्रति श्रद्धा रखेंगे, \q1 याहवेह जो उपयुक्त अवसर पर वृष्टि करते हैं, शरत्कालीन वर्षा एवं वसन्तकालीन वर्षा, \q2 जो हमारे हित में निर्धारित कटनी के सप्‍ताह भी लाते हैं.’ \q1 \v 25 तुम्हारे अधर्म ने इन्हें दूर कर दिया है; \q2 तुम्हारे पापों ने हित को तुमसे दूर रख दिया है. \b \q1 \v 26 “मेरी प्रजा में दुष्ट व्यक्ति भी बसे हुए हैं \q2 वे छिपे बैठे चिड़ीमार सदृश ताक लगाए रहते है \q2 और वे फंदा डालते हैं, वे मनुष्यों को पकड़ लेते हैं. \q1 \v 27 जैसे पक्षी से पिंजरा भर जाता है, \q2 वैसे ही उनके आवास छल से परिपूर्ण हैं; \q1 वे धनिक एवं सम्मान्य बने बैठे हैं \q2 \v 28 और वे मोटे हैं और वे चिकने हैं. \q1 वे अधर्म में भी बढ़-चढ़ कर हैं; \q2 वे निर्सहायक का न्याय नहीं करते. \q1 वे पितृहीनों के पक्ष में निर्णय इसलिये नहीं देते कि अपनी समृद्धि होती रहे; \q2 वे गरीबों के अधिकारों की रक्षा नहीं करते. \q1 \v 29 क्या मैं ऐसे व्यक्तियों को दंड न दूं?” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 “क्या मैं इस प्रकार के राष्ट्र से \q2 अपना बदला न लूं? \b \q1 \v 30 “देश में भयावह \q2 तथा रोमांचित स्थिति देखी गई है: \q1 \v 31 भविष्यद्वक्ता झूठी भविष्यवाणी करते हैं, \q2 पुरोहित अपने ही अधिकार का प्रयोग कर राज्य-काल कर रहे है, \q1 मेरी प्रजा को यही प्रिय लग रहा है. \q2 यह सब घटित हो चुकने पर तुम क्या करोगे? \c 6 \s1 येरूशलेम की घेराबंदी \q1 \v 1 “बिन्यामिन के वंशजों, \q2 अपनी सुरक्षा के लिए, येरूशलेम में से पलायन करो! \q1 तकोआ नगर में नरसिंगा नाद किया जाए! \q2 तथा बेथ-हक्‍केरेम में संकेत प्रसारित किया जाए! \q1 उत्तर दिशा से संकट बड़ा है, \q2 घोर विनाश. \q1 \v 2 ज़ियोन की सुंदर एवं सुरुचिपूर्ण, \q2 पुत्री को मैं नष्ट कर दूंगा. \q1 \v 3 चरवाहे एवं उनकी भेड़-बकरियां उसके निकट आएंगे; \q2 वे अपने तंबू उसके चारों ओर खड़े कर देंगे, \q2 उनमें से हर एक अपने-अपने स्थान पर पशुओं को चराएगा.” \b \q1 \v 4 “उसके विरुद्ध युद्ध की तैयारी की जाए! \q2 उठो, हम मध्याह्न के अवसर पर आक्रमण करेंगे! \q1 धिक्कार है हम पर! दिन ढल चला है, \q2 क्योंकि संध्या के कारण छाया लंबी होती जा रही है. \q1 \v 5 उठो, अब हम रात्रि में आक्रमण करेंगे \q2 और हम उसके महलों को ध्वस्त कर देंगे!” \p \v 6 क्योंकि सेनाओं के याहवेह का यह आदेश है: \q1 “काट डालो उसके वृक्ष \q2 और येरूशलेम की घेराबंदी करो. \q1 आवश्यक है कि इस नगर को दंड दिया जाए; \q2 जिसके मध्य अत्याचार ही अत्याचार भरा है. \q1 \v 7 जिस प्रकार कुंआ अपने पानी को ढालता रहता है, \q2 उसी प्रकार वह भी अपनी बुराई को निकालती रहती है. \q1 उसकी सीमाओं के भीतर हिंसा तथा विध्वंस का ही उल्लेख होता रहता है; \q2 मुझे वहां बीमारी और घाव ही दिखाई देते रहते हैं. \q1 \v 8 येरूशलेम, चेत जाओ, \q2 ऐसा न हो कि तुम मेरे हृदय से उतर जाओ \q1 तथा मैं तुम्हें उजाड़ स्थान बना डालूं \q2 जहां किसी भी मनुष्य का निवास न होगा.” \p \v 9 यह सेनाओं के याहवेह की वाणी है: \q1 “जैसे गिरी हुई द्राक्षा भूमि पर से एकत्र की जाती है \q2 वैसे ही वे चुन-चुनकर इस्राएल के लोगों को एकत्र कर लेंगे; \q1 तब द्राक्ष तोड़नेवाले के सदृश द्राक्षलता की शाखाएं टटोल लो, \q2 कि शेष रह गई द्राक्षा को एकत्र कर सको.” \b \q1 \v 10 मैं किसे संबोधित करूं, \q2 किसे यह चेतावनी सुनाऊं कि वे इस पर ध्यान दें? \q1 आप ही देखिए उनके कान तो बंद हैं, \q2 सुनना उनके लिए असंभव है. \q1 यह भी देख लीजिए याहवेह का संदेश उनके लिए घृणास्पद बन चुका है; \q2 इसमें उनको थोड़ा भी उल्लास नहीं है. \q1 \v 11 मुझमें याहवेह का कोप समाया हुआ है, \q2 इसे नियंत्रित रखना मेरे लिए मुश्किल हुआ जा रहा है. \b \q1 “अपना यह कोप गली के बालकों पर उंडेल दो \q2 और उन एकत्र हो रहे जवानों की सभा पर; \q1 क्योंकि पति-पत्नी दोनों ही ले जा लिए जाएंगे, \q2 प्रौढ़ तथा अत्यंत वृद्ध भी. \q1 \v 12 उनके आवास अपरिचितों को दे दिए जाएंगे, \q2 यहां तक कि उनकी पत्नियां एवं खेत भी, \q1 क्योंकि मैं अपना हाथ देशवासियों के \q2 विरुद्ध बढ़ाऊंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 13 “क्योंकि उनमें छोटे से लेकर बड़े तक, \q2 हर एक लाभ के लिए लोभी है; \q1 यहां तक कि भविष्यद्वक्ता से लेकर पुरोहित तक भी, \q2 हर एक अपने व्यवहार में झूठे हैं. \q1 \v 14 उन्होंने मेरी प्रजा के घावों को \q2 मात्र गलत उपचार किया है. \q1 वे दावा करते रहे, ‘शांति है, शांति है,’ \q2 किंतु शांति वहां थी ही नहीं. \q1 \v 15 क्या अपने घृणास्पद कार्य के लिए उनमें थोड़ी भी लज्जा देखी गई? \q2 निश्चयतः थोड़ी भी नहीं; \q1 उन्हें तो लज्जा में गिर जाना आता ही नहीं. \q2 तब उनकी नियति वही होगी जो समावेश किए जा रहे व्यक्तियों की नियति है; \q1 जब मैं उन्हें दंड दूंगा, \q2 घोर होगा उनका पतन,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \p \v 16 याहवेह का संदेश यह है: \q1 “चौराहों पर जाकर ठहरो, वहां ठहर कर अवलोकन करो; \q2 और वहां प्राचीन काल मार्गों के विषय में ज्ञात करो, \q1 यह पूछ लो कि कौन सा है वह सर्वोत्तम मार्ग, और उसी पर चलो, \q2 तब तुम्हारे प्राण को चैन का अनुभव होगा. \q2 किंतु उन्होंने कहा, ‘हम उस पथ पर नहीं चलेंगे.’ \q1 \v 17 तब मैंने इस विचार से तुम पर प्रहरी नियुक्त किए, \q2 ‘नरसिंगा नाद सुनो!’ \q2 किंतु उन्होंने हठ किया, ‘हम नहीं सुनेंगे.’ \q1 \v 18 इसलिये राष्ट्रों, सुनो और यह जान लो; \q2 एकत्र जनसमूह, \q2 तुम भी यह समझ लो कि उनकी नियति क्या होगी. \q1 \v 19 पृथ्वी, तुम सुन लो: \q2 कि तुम इन लोगों पर लाया गया विनाश देखोगी, \q2 यह उन्हीं के द्वारा गढ़ी गई युक्तियों का परिणाम है, \q1 क्योंकि उन्होंने मेरे आदेश की अवज्ञा की है \q2 तथा उन्होंने मेरे नियमों को भी ठुकरा दिया है. \q1 \v 20 क्या लाभ है उस लोहबान का जो मेरे लिए शीबा देश से लाया जाता है, \q2 तथा दूर देश से लाए गए सुगंध द्रव्य का? \q1 तुम्हारे बलियों से मैं खुश नहीं हूं, \q2 न तुम्हारे अर्पण से मैं प्रसन्‍न!” \p \v 21 इसलिये याहवेह की यह वाणी है: \q1 “यह देख लो कि मैं इन लोगों के पथ में ठोकर के लिए लक्षित पत्थर रख रहा हूं. \q2 उन्हें इन पत्थरों से ठोकर लगेगी, पिता और पुत्र दोनों ही; \q2 उनके पड़ोसी एवं उनके मित्र नष्ट हो जाएंगे.” \p \v 22 यह याहवेह की वाणी है: \q1 “यह देखना, कि उत्तरी देश से \q2 एक जनसमूह आ रहा है; \q1 पृथ्वी के दूर क्षेत्रों में \q2 एक सशक्त राष्ट्र तैयार हो रहा है. \q1 \v 23 वे धनुष एवं भाला छीन रहे हैं; \q2 वे क्रूर एवं सर्वथा कृपाहीन हैं. \q1 उनका स्वर सागर गर्जन सदृश है, \q1 तथा वे युद्ध के लिए तैयार घुड़सवारों के सदृश आ रहे हैं. \q2 ज़ियोन की पुत्री, तुम हो उनका लक्ष्य.” \b \q1 \v 24 इसकी सूचना हमें प्राप्‍त हो चुकी है, \q2 हमारे हाथ ढीले पड़ चुके हैं. \q1 प्रसव पीड़ा ने हमें अपने अधीन कर रखा है, \q2 वैसी ही पीड़ा जैसी प्रसूता की होती है. \q1 \v 25 न तो बाहर खेत में जाना \q2 न ही मार्ग पर निकल पड़ना, \q1 क्योंकि शत्रु तलवार लिए हुए है, \q2 सर्वत्र आतंक छाया हुआ है. \q1 \v 26 अतः मेरी पुत्री, मेरी प्रजा, शोक-वस्त्र धारण करो, \q2 भस्म में लोटो; \q1 तुम्हारा शोक वैसा ही हो जैसा उसका होता है \q2 जिसने अपना एकमात्र पुत्र खो दिया है, अत्यंत गहन शोक, \q1 क्योंकि हम पर विनाशक का आक्रमण \q2 सहसा ही होगा. \b \q1 \v 27 “मैंने तुम्हें अपनी प्रजा के लिए परखने \q2 तथा जानने के लिए पारखी नियुक्त किया है, \q1 कि तुम उनकी जीवनशैली को \q2 परखकर जान लो. \q1 \v 28 वे सब हठी और विद्रोही हैं, \q2 बदनाम करते फिरते हैं. \q1 वे ऐसे कठोर हैं जैसे कांस्य एवं लौह; \q2 वे सबके सब भ्रष्‍ट हो चुके हैं. \q1 \v 29 धौंकनियों ने भट्टी को अत्यंत गर्म कर रखा है, \q2 अग्नि ने सीसे को भस्म कर दिया है, \q1 शुद्ध करने की प्रक्रिया व्यर्थ ही की जा रही है; \q2 जिससे बुरे लोगों को अलग नहीं किया जा सका! \q1 \v 30 उन्हें खोटी चांदी कहा गया है, \q2 क्योंकि उन्हें याहवेह ने त्याग दिया है.” \c 7 \s1 झूठी आराधना की व्यर्थता \p \v 1 वह संदेश जो याहवेह द्वारा येरेमियाह के लिए प्रगट किया गया: \v 2 “याहवेह के भवन के द्वार पर खड़े हो जाओ और वहां यह संदेश घोषित करो: \p “ ‘संपूर्ण यहूदिया याहवेह का यह संदेश सुनो, तुम जो याहवेह की आराधना करने इस द्वार से प्रवेश किया करते हो. \v 3 इस्राएल के परमेश्वर, स्वर्गीय याहवेह का आदेश यह है: अपने आचार-व्यवहार तथा अपने कार्यों की सुधारना करो, तब मैं तुम्हें इस स्थान पर निवास करने दूंगा. \v 4 इस झूठे आश्वासन के धोखे में न रहना, “यह तो याहवेह का मंदिर है, याहवेह का मंदिर है, याहवेह का मंदिर है!” \v 5 यदि तुम वास्तव में अपने आचारों को तथा कार्यों को सुधारोगे, यदि तुम एक दूसरे के साथ न्याय में व्यवहार करोगे, \v 6 यदि तुम परदेशी, पितृहीन तथा विधवा पर अत्याचार न करोगे, इस स्थान पर निःसहायक का रक्तपात न करोगे और परकीय देवताओं का अनुसरण न करोगे, जो तुम्हारे अपने ही विनाश का कारण है, \v 7 तब मैं तुम्हें इस स्थान पर निवास करने दूंगा, इस देश में, जो मैंने तुम्हारे पूर्वजों को सदा-सर्वदा के लिए प्रदान किया है. \v 8 इस विषय पर ध्यान दो, कि तुम निरर्थक ही झूठे आश्वासनों के भरोसे पर बैठे हुए हो. \p \v 9 “ ‘क्या तुम चोरी, हत्या, व्यभिचार करके ओर झूठी साक्ष्य देकर, बाल को बलि अर्पित करके तथा उन परकीय देवताओं का अनुसरण करने के बाद जिन्हें तुम जानते ही नहीं, \v 10 इस भवन में, जो मेरे नाम से प्रख्यात है, आकर मेरे समक्ष इसलिये खड़े होकर यह कहते, “अब हम सुरक्षित हैं”—कि तुम इन घृणित कार्यों में स्थिर बने रह सको? \v 11 क्या तुम्हारी दृष्टि में यह भवन, जो मेरे नाम से प्रख्यात है, डाकुओं की गुफा बन गया है? सुनो, मैंने, हां, मैंने सब देखा है! यह याहवेह की वाणी है. \p \v 12 “ ‘किंतु अब तुम शीलो जाओ जो इसके पूर्व मेरी आराधना के लिए निर्धारित स्थल था, और देखो कि मैंने अपनी प्रजा इस्राएल की बुराई के कारण उसकी स्थिति कैसी बना दी है. \v 13 और अब इसलिये कि तुमने ये सारे कुकृत्य किए हैं, यह याहवेह की वाणी है, मैंने तुमसे तुरंत उठकर बात की, किंतु तुमने मेरी ओर ध्यान ही न दिया; मैंने तुम्हारा आह्वान भी किया, किंतु तुमने प्रत्युत्तर ही न दिया. \v 14 इसलिये मैं उस भवन के साथ जो मेरे नाम से प्रख्यात है, जिस पर तुमने अपनी आस्था रखी है तथा जो स्थान मैंने तुम्हें तथा तुम्हारे पूर्वजों को प्रदान किया है, वही करूंगा जो मैंने शीलो के साथ किया था. \v 15 मैं तुम्हें अपनी दृष्टि से दूर कर दूंगा, जैसा मैंने तुम्हारे भाइयों को अपनी दृष्टि से दूर कर दिया है, अर्थात् एफ्राईम के सारे वंशजों को.’ \p \v 16 “जहां तक तुम्हारा प्रश्न है तुम इन लोगों के लिए प्रार्थना न करो; न उनके लिए गिड़गिड़ाने दो, न प्रार्थना में मुझसे उनकी मध्यस्थता ही करो, क्योंकि मैं तुम्हारी नहीं सुनूंगा. \v 17 क्या तुम्हें यह नहीं दिख रहा कि वे यहूदिया के नगरों में तथा येरूशलेम की गलियों में क्या-क्या कर रहे हैं? \v 18 बालक लकड़ियां एकत्र करते हैं और पितागण आग जलाते हैं, स्त्रियां आटा गूंधती हैं कि वे स्वर्ग की रानी के लिए मिष्ठान्‍न तैयार करें. वे परकीय देवताओं को पेय बलि भी अर्पित करते हैं कि वे मेरे कोप को उकसाएं. \v 19 क्या वे इसके द्वारा मेरे प्रति अपना क्रोध व्यक्त कर रहे हैं? यह याहवेह की वाणी है. यह तो वे स्वयं अपनी ही लज्जा के लिए कर रहे हैं, अपनी ही लज्जा के लिए? \p \v 20 “ ‘इसलिये प्रभु याहवेह का संदेश यह है: तुम देख लेना कि मेरा कोप और मेरा आक्रोश इस स्थान पर उंडेला जाएगा, चाहे मनुष्य हो अथवा पशु, मैदान के वृक्ष हों अथवा भूमि के फल, यह प्रज्वलित रहेगा तथा यह बूझ न सकेगा. \p \v 21 “ ‘इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह का यह आदेश है: अपनी होमबलियों के साथ अन्य बलियों को भी सम्मिलित कर लो और तुम ही उस मांस को सेवन भी कर लो! \v 22 क्योंकि मिस्र देश से तुम्हारे पूर्वजों को निराश करने के अवसर पर मैंने उनसे न तो होमबलियों का और न हनन बलियों का उल्लेख किया था और न ही इनके लिए आदेश ही दिया था, \v 23 किंतु मैंने उन्हें आदेश यह दिया था: मेरे आदेशों का पालन करो, तो मैं तुम्हारा परमेश्वर बना रहूंगा तथा तुम मेरी प्रजा बनी रहोगी. मेरी नीतियों का आचरण करो जिनका मैंने तुम्हें आदेश दिया है, कि तुम्हारा कल्याण हो. \v 24 फिर भी उन्होंने न तो मेरे आदेशों का पालन किया, न उनकी ओर ध्यान ही दिया. उन्होंने अपने बुरे दिलों की जिद्दी इच्छा का पालन किया. तब वे आगे बढ़ने की अपेक्षा में पीछे ही हटते चले गए. \v 25 जिस दिन से तुम्हारे पूर्वज मिस्र देश से निराश हुए तब से आज तक, मैंने अपने सेवक अर्थात् भविष्यवक्ताओं को दिन-प्रतिदिन तुम्हारे लिए भेजा है. \v 26 फिर भी न तो उन्होंने मेरी सुनी और न ही मेरे संदेश की ओर ध्यान ही दिया. बल्कि उन्होंने अपनी गर्दन और भी अधिक कठोर बना ली, उन्होंने तो अपने पूर्वजों से भी अधिक बुरे कार्य किए.’ \p \v 27 “अनिवार्य है कि तुम मेरा संपूर्ण वचन उनके समक्ष दोहराओ, हां, वे तुम्हारी सुनेंगे नहीं; तुम उनको आह्वान तो करोगे, किंतु वे इसका प्रत्युत्तर कदापि न देंगे. \v 28 तुम्हें उनसे यह कहना होगा, ‘यह वह राष्ट्र है जिसने न तो याहवेह अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन किया और न ही उनके द्वारा किए जा रहे आदेश को स्वीकार किया. सत्यता नष्ट हो चुकी और उनके मुख से दूर की जा चुकी है. \p \v 29 “ ‘अपने केश काट डालो और उन्हें फेंक दो; वनस्पतिहीन पर्वतों पर जाकर विलाप करो, क्योंकि याहवेह ने उस पीढ़ी को अस्वीकार करके उसका परित्याग कर दिया है और जिसने उनका कोप भड़काया है. \s1 वध की घाटी \p \v 30 “ ‘यहूदाह के वंशजों ने वह किया है जो मेरी दृष्टि में बुरा है, यह याहवेह की वाणी है. उन्होंने उन घृणास्पद वस्तुओं को उस भवन में प्रतिष्ठित कर रखा है जो मेरे नाम से प्रख्यात हैं और मेरा भवन अशुद्ध हो चुका है. \v 31 उन्होंने तोफेथ के पूजा-स्थल निर्मित कर लिए हैं जो हिन्‍नोम के पुत्र की घाटी में हैं कि वे वहां अपने पुत्रों-पुत्रियों को होमबलि स्वरूप अर्पित करें, जिसको मैंने आदेश ही न दिया है, न ही यह कभी मेरे विचारों में आया था. \v 32 इसलिये यह देखना, कि वे दिन आ रहे हैं, यह याहवेह की वाणी है, जब इसको तोफेथ-पूजास्थल अथवा हिन्‍नोम के पुत्र की घाटी कहा जाना समाप्‍त हो जाएगा, बल्कि यह नरसंहार घाटी हो जाएगी, वे अपने मृतकों को तोफ़ेथ में तब तक दफनाएंगे कि जब तक वहां कोई जगह ही शेष न हो. \v 33 इन लोगों के शव आकाश के पक्षी को तथा पृथ्वी के पशुओं के आहार होने लगेंगे, इन्हें कोई भी शवों से दूर नहीं भगाएगा. \v 34 तब मैं यहूदिया के नगरों और येरूशलेम के सड़कों में से उल्लास एवं आनंद का स्वर बंद कर दूंगा, वर एवं वधू के विवाहोत्सव की ध्वनि बंद हो जाएगी, क्योंकि सारे देश ही उजाड़ हो जाएंगे. \c 8 \p \v 1 “ ‘याहवेह की यह घोषणा है, उस समय, वे यहूदिया के राजाओं, उच्च अधिकारियों, पुरोहितों, भविष्यवक्ताओं तथा येरूशलेम वासियों की अस्थियां उनकी कब्रों में से निकालकर लाएंगे. \v 2 वे इन अस्थियों को सूर्य, चंद्रमा, आकाश के तारों को समर्पित कर देंगे, जिनसे उन्होंने प्रेम किया, जिनकी उन्होंने उपासना की, जिनका उन्होंने अनुसरण किया, जिनकी इच्छा इन्होंने ज्ञात करने का उपक्रम किया, जिनकी इन्होंने वंदना की. इन अस्थियों को वे न एकत्र करेंगे और न इन्हें गाड़ देंगे, वे भूमि पर विष्ठा सदृश पड़ी रहेंगी. \v 3 इस अधर्मी परिवार के लोगों द्वारा जीवन की अपेक्षा मृत्यु को ही अधिक पसंद किया जाएगा. यह स्थिति उस हर एक स्थान के लोगों की होगी, जिन्हें मैंने इन स्थानों पर खदेड़ा है, यह सेनाओं के याहवेह की वाणी है.’ \s1 पाप और सजा \p \v 4 “तुम्हें उनसे यह कहना होगा, ‘यह याहवेह का कहना है: \q1 “ ‘क्या मनुष्य गिरते और फिर उठ खड़े नहीं होते? \q2 क्या कोई पूर्व स्थिति को परित्याग कर प्रायश्चित नहीं करता? \q1 \v 5 तो येरूशलेम, क्या कारण है \q2 कि ये लोग मुंह मोड़कर चले गये? \q1 उन्होंने छल को दृढतापूर्वक जकड़ रखा है; \q2 वे लौटना तो चाहते ही नहीं. \q1 \v 6 मैंने सुना तथा सुनकर इस पर ध्यान दिया है, \q2 उनका वचन ठीक नहीं है. \q1 एक भी व्यक्ति ने बुराई का परित्याग कर प्रायश्चित नहीं किया है, \q2 उनका तर्क है, “मैंने किया ही क्या है?” \q1 हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया है \q2 जैसे घोड़ा रणभूमि में द्रुत गति से दौड़ता हुआ जा उतरता है. \q1 \v 7 आकाश में उड़ता हुआ \q2 सारस अपनी ऋतु को पहचानता है, \q1 यही सत्य है कपोत, अबाबील तथा सारिका के विषय में \q2 ये सभी अपने आने के समय का ध्यान रखते हैं. \q1 किंतु मेरे अपने लोगों को \q2 मुझ याहवेह के नियमों का ज्ञान ही नहीं है. \b \q1 \v 8 “ ‘तुम यह दावा कैसे कर सकते हो, “हम ज्ञानवान हैं, \q2 हम याहवेह के विधान को उत्तम रीति से जानते हैं,” \q1 ध्यान दो शास्त्रियों की झूठी लेखनी ने विधान को ही \q2 झूठा स्वरूप दे दिया है. \q1 \v 9 तुम्हारे बुद्धिमानों को लज्जित कर दिया गया है; \q2 वे विस्मित हो चुके हैं तथा उन्हें पकड़ लिया गया है. \q1 ध्यान दो उन्होंने याहवेह के संदेश को ठुकरा दिया है, \q2 अब उनकी बुद्धिमत्ता के विषय में क्या कहा जाएगा? \q1 \v 10 इसलिये मैं अब उनकी पत्नियां अन्यों को दे दूंगा \q2 अब उनके खेतों पर स्वामित्व किसी अन्य का हो जाएगा. \q1 क्योंकि उनमें छोटे से लेकर बड़े तक, \q2 हर एक लाभ के लिए लोभी है; \q1 यहां तक कि भविष्यद्वक्ता से लेकर पुरोहित तक भी, \q2 हर एक अपने व्यवहार में झूठे हैं. \q1 \v 11 उन्होंने मेरी प्रजा की पुत्री के घावों को \q2 मात्र गलत उपचार किया है. \q1 वे दावा करते रहे, “शांति है, शांति है,” \q2 किंतु शांति वहां थी ही नहीं. \v 12 क्या अपने घृणास्पद कार्य के लिए उनमें थोड़ी भी लज्जा देखी गई? \q2 निश्चयतः थोड़ी भी नहीं; \q2 उन्हें तो लज्जा में गिर जाना आता ही नहीं. \q1 तब उनकी नियति वही होगी जो समावेश किए जा रहे व्यक्तियों की नियति है; \q2 उन्हें जब दंड दिया जाएगा, घोर होगा उनका पतन, \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 13 “ ‘मैं निश्चयतः उन्हें झपटकर ले उड़ूंगा, \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q2 द्राक्षालता में द्राक्षा न होंगे. \q1 अंजीर वृक्ष में अंजीर न होंगे, \q2 पत्तियां मुरझा चुकी होंगी. \q1 जो कुछ मैंने उन्हें दिया है \q2 वह सब निकल जाएगा.’ ” \b \q1 \v 14 हम चुपचाप क्यों बैठे हैं? \q2 एकत्र हो जाओ! \q1 और हम गढ़ नगरों को चलें \q2 तथा हम वहीं युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्‍त हों! \q1 यह याहवेह हमारे परमेश्वर द्वारा निर्धारित दंड है \q2 उन्हीं ने हमें विष से भरा पेय जल दिया है, \q2 क्योंकि हमने याहवेह के विरुद्ध पाप किया है. \q1 \v 15 हम शांति की प्रतीक्षा करते रहें \q2 किंतु कल्याण के अनुरूप कुछ न मिला, \q1 हम शांति की पुनःस्थापना की प्रतीक्षा करते रहे, \q2 किंतु हमें प्राप्‍त हुआ आतंक. \q1 \v 16 दान प्रदेश में \q2 उनके घोड़ों की फुनफुनाहट सुनाई पड़ रही है; \q1 उनके घोड़ों की हिनहिनाहट से \q2 सारे क्षेत्र कांप उठे हैं. \q1 क्योंकि वे आते हैं \q2 और सारे देश को जो कुछ इसमें है, \q2 उसे सारे नगर एवं उसके निवासियों को नष्ट कर जाते हैं. \b \q1 \v 17 “यह देखना कि, मैं तुम्हारे मध्य नाग छोड़ रहा हूं, \q2 वे सर्प जिन पर मंत्र नहीं किया जा सकता, \q2 वे तुम्हें डसेंगे,” यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 18 मेरा शोक असाध्य है, \q2 मेरा हृदय डूब चुका है. \q1 \v 19 यहां देखो ध्यान से सुनो, \q2 दूर देश से आ रही मेरी प्रजा की पुत्री की विलाप ध्वनि \q1 “क्या याहवेह ज़ियोन में नहीं हैं? \q2 क्या ज़ियोन का राजा उनके मध्य नहीं है?” \b \q1 “क्यों उन्होंने मुझे क्रोधित किया अपनी खोदी हुई प्रतिमाओं द्वारा, \q2 विजातीय प्रतिमाओं द्वारा?” \b \q1 \v 20 “कटनी काल समाप्‍त हो चुका, \q2 ग्रीष्मऋतु भी जा चुकी, \q2 फिर भी हमें उद्धार प्राप्‍त नहीं हुआ है.” \s1 ज़ियोन पर शोक गीत \q1 \v 21 अपने लोगों की पुत्री की दुःखित अवस्था ने मुझे दुःखित कर रखा है; \q2 मैं शोक से अचंभित हूं, और निराशा में मैं डूब चुका हूं. \q1 \v 22 क्या गिलआद में कोई भी औषधि नहीं? \q2 क्या वहां कोई वैद्य भी नहीं? \q1 तब क्या कारण है कि मेरे लोगों की पुत्री \q2 रोगमुक्त नहीं हो पाई है? \c 9 \q1 \v 1 अच्छा होता कि मेरा सिर जल का सोता \q2 तथा मेरे नेत्र आंसुओं से भरे जाते \q1 कि मैं घात किए गए अपने प्रिय लोगों के लिए \q2 रात-दिन विलाप करता रहता! \q1 \v 2 अच्छा होता कि मैं मरुभूमि में \q2 यात्रियों का आश्रय-स्थल होता, \q1 कि मैं अपने लोगों को परित्याग कर \q2 उनसे दूर जा सकता; \q1 उन सभी ने व्यभिचार किया है, \q2 वे सभी विश्‍वासघातियों की सभा हैं. \b \q1 \v 3 “वे अपनी जीभ का प्रयोग \q2 अपने धनुष सदृश करते हैं; \q1 देश में सत्य नहीं \q2 असत्य व्याप्‍त हो चुका है. \q1 वे एक संकट से दूसरे संकट में प्रवेश करते जाते हैं; \q2 वे मेरे अस्तित्व ही की उपेक्षा करते हैं,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 4 “उपयुक्त होगा कि हर एक अपने पड़ोसी से सावधान रहे; \q2 कोई अपने भाई-बन्धु पर भरोसा न करे. \q1 क्योंकि हर एक भाई का व्यवहार धूर्ततापूर्ण होता है, \q2 तथा हर एक पड़ोसी अपभाषण करता फिरता है. \q1 \v 5 हर एक अपने पड़ोसी से छल कर रहा है, \q2 और सत्य उसके भाषण में है ही नहीं. \q1 अपनी जीभ को उन्होंने झूठी भाषा में प्रशिक्षित कर दिया है; \q2 अंत होने के बिंदु तक वे अधर्म करते जाते हैं. \q1 \v 6 तुम्हारा आवास धोखे के मध्य स्थापित है; \q2 धोखा ही वह कारण है, जिसके द्वारा वे मेरे अस्तित्व की उपेक्षा करते हैं,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \p \v 7 इसलिये सेनाओं के याहवेह की चेतावनी यह है: \q1 “यह देख लेना, कि मैं उन्हें आग में शुद्ध करूंगा तथा उन्हें परखूंगा, \q2 क्योंकि अपने प्रिय लोगों के कारण मेरे समक्ष इसके सिवा \q2 और कौन सा विकल्प शेष रह जाता है? \q1 \v 8 उनकी जीभ घातक बाण है; \q2 जिसका वचन फंसाने ही का होता है. \q1 अपने मुख से तो वह अपने पड़ोसी को कल्याण का आश्वासन देता है, \q2 किंतु मन ही मन वह उसके लिए घात लगाने की युक्ति करता रहता है. \q1 \v 9 क्या उपयुक्त नहीं कि मैं उन्हें इन कृत्यों के लिए दंड दूं?” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 “क्या मैं इस प्रकार के राष्ट्र से \q2 स्वयं बदला न लूं?” \b \q1 \v 10 पर्वतों के लिए मैं विलाप करूंगा \q2 और चराइयों एवं निर्जन क्षेत्रों के लिए मैं शोक के गीत गाऊंगा. \q1 क्योंकि अब वे सब उजाड़ पड़े है कोई भी उनके मध्य से चला फिरा नहीं करता, \q2 वहां पशुओं के रम्भाने का स्वर सुना ही नहीं जाता. \q1 आकाश के पक्षी एवं पशु भाग चुके हैं, \q2 वे वहां हैं ही नहीं. \b \q1 \v 11 “येरूशलेम को मैं खंडहरों का ढेर, \q2 और सियारों का बसेरा बना छोड़ूंगा; \q1 यहूदिया प्रदेश के नगरों को मैं उजाड़ बना दूंगा \q2 वहां एक भी निवासी न रहेगा.” \p \v 12 कौन है वह बुद्धिमान व्यक्ति जो इसे समझ सकेगा? तथा कौन है वह जिससे याहवेह ने बात की कि वह उसकी व्याख्या कर सके? सारा देश उजाड़ कैसे हो गया? कैसे मरुभूमि सदृश निर्जन हो गई, कि कोई भी वहां से चला फिरा नहीं करता? \p \v 13 याहवेह ने उत्तर दिया, “इसलिये कि उन्होंने मेरे विधान की अवहेलना की है, जो स्वयं मैंने उनके लिए नियत किया तथा उन्होंने न तो मेरे आदेशों का पालन किया और न ही उसके अनुरूप आचरण ही किया. \v 14 बल्कि, वे अपने हठीले हृदय की समझ के अनुरूप आचरण करते रहे; वे अपने पूर्वजों की शिक्षा पर बाल देवताओं का अनुसरण करते रहें.” \v 15 इसलिये सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर ने निश्चय किया: “यह देख लेना, मैं उन्हें पेय के लिए कड़वा नागदौन तथा विष से भरा जल दूंगा. \v 16 मैं उन्हें ऐसे राष्ट्रों के मध्य बिखरा दूंगा जिन्हें न तो उन्होंने और न उनके पूर्वजों ने जाना है, मैं उनके पीछे उस समय तक तलवार तैयार रखूंगा, जब तक उनका पूर्ण अंत न हो जाए.” \p \v 17 यह सेनाओं के याहवेह का आदेश है: \q1 “विचार करके उन स्त्रियों को बुला लो, जिनका व्यवसाय ही है विलाप करना, कि वे यहां आ जाएं; \q2 उन स्त्रियों को, जो विलाप करने में निपुण हैं, \q1 \v 18 कि वे यहां तुरंत आएं \q2 तथा हमारे लिए विलाप करें \q1 कि हमारे नेत्रों से आंसू उमड़ने लगे, \q2 कि हमारी पलकों से आंसू बहने लगे. \q1 \v 19 क्योंकि ज़ियोन से यह विलाप सुनाई दे रहा है: \q1 ‘कैसे हो गया है हमारा विनाश! \q2 हम पर घोर लज्जा आ पड़ी है! \q1 क्योंकि हमने अपने देश को छोड़ दिया है \q2 क्योंकि उन्होंने हमारे आवासों को ढाह दिया है.’ ” \b \q1 \v 20 स्त्रियों, अब तुम याहवेह का संदेश सुनो; \q2 तुम्हारे कान उनके मुख के वचन सुनें. \q1 अपनी पुत्रियों को विलाप करना सिखा दो; \q2 तथा हर एक अपने-अपने पड़ोसी को शोक गीत सिखाए. \q1 \v 21 क्योंकि मृत्यु का प्रवेश हमारी खिड़कियों से हुआ है \q2 यह हमारे महलों में प्रविष्ट हो चुका है; \q1 कि गलियों में बालक नष्ट किए जा सकें \q2 तथा नगर चौकों में से जवान. \p \v 22 यह वाणी करो, “याहवेह की ओर से यह संदेश है: \q1 “ ‘मनुष्यों के शव खुले मैदान में \q2 विष्ठा सदृश पड़े हुए दिखाई देंगे, \q1 तथा फसल काटनेवाले द्वारा छोड़ी गई पूली सदृश, \q2 किंतु कोई भी इन्हें एकत्र नहीं करेगा.’ ” \p \v 23 याहवेह की ओर से यह आदेश है: \q1 “न तो बुद्धिमान अपनी बुद्धि का अहंकार करे \q2 न शक्तिवान अपने पौरुष का \q2 न धनाढ्य अपनी धन संपदा का, \q1 \v 24 जो गर्व करे इस बात पर गर्व करे: \q2 कि उसे मेरे संबंध में यह समझ एवं ज्ञान है, \q1 कि मैं याहवेह हूं जो पृथ्वी पर निर्जर प्रेम, \q2 न्याय एवं धार्मिकता को प्रयोग करता हूं, \q2 क्योंकि ये ही मेरे आनंद का विषय है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \p \v 25 “यह ध्यान रहे कि ऐसे दिन आ रहे हैं,” याहवेह यह वाणी दे रहे हैं, “जब मैं उन सभी को दंड दूंगा, जो ख़तनित होने पर भी अख़तनित ही हैं— \v 26 मिस्र, यहूदिया, एदोम, अम्मोन वंशज, मोआब तथा वे सभी, जिनका निवास मरुभूमि में है, जो अपनी कनपटी के केश क़तर डालते हैं. ये सभी जनता अख़तनित हैं, तथा इस्राएल के सारे वंशज वस्तुतः हृदय में अख़तनित ही हैं.” \c 10 \s1 मूर्ति पूजा एवं सच्चा स्तवन \p \v 1 इस्राएल वंशजों, तुम्हें संबोधित बात सुनो. \v 2 याहवेह कह रहे हैं: \q1 “अन्य जनताओं के आचार-व्यवहार परिपाटी एवं प्रथाओं को सीखने का प्रयास न करो \q2 और न ही आकाश में घटित हो रहे असाधारण लक्षणों से विचलित हो जाओ, \q2 यद्यपि अन्य राष्ट्र, निःसंदेह, इनसे विचलित हो जाते हैं. \q1 \v 3 क्योंकि लोगों की प्रथाएं मात्र भ्रम हैं, \q2 कारण यह वन से काटकर लाया गया काठ ही तो है, \q2 काष्ठ शिल्पी द्वारा उसके छेनी से बनाया गया है. \q1 \v 4 वे ही इन्हें स्वर्ण और चांदी से सजाते है; \q2 इन्हें कीलों द्वारा हथौड़ों के प्रहार से जोड़ा जाता है \q2 कि ये अपने स्थान पर स्थिर रहें. \q1 \v 5 उनकी प्रतिमाएं ककड़ी के खेत में खड़े किए गए बिजूखा\f + \fr 10:5 \fr*\fq बिजूखा \fq*\ft पक्षियों को डराने का पुतला\ft*\f* सदृश हैं, \q2 जो बात नहीं कर सकतीं; \q1 उन्हें तो उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है \q2 क्योंकि वे तो चल ही नहीं सकतीं. \q1 मत डरो उनसे; \q2 वे कोई हानि नहीं कर सकतीं \q2 वस्तुतः वे तो कोई कल्याण भी नहीं कर सकतीं.” \b \q1 \v 6 याहवेह, कोई भी नहीं है आपके सदृश; \q2 आप महान हैं, \q2 और सामर्थ्य में असाधारण हैं आपकी प्रतिष्ठा. \q1 \v 7 राष्ट्रों का राजा, \q2 कौन हो सकता है वह \q2 जिसमें आपके प्रति श्रद्धा न होगी? \q1 वस्तुतः आप ही हैं इसके योग्य \q2 क्योंकि राष्ट्रों के सारे बुद्धिमानों के मध्य, \q2 तथा राष्ट्रों के सारे राज्यों में कोई भी नहीं है आपके तुल्य. \b \q1 \v 8 किंतु वे पूर्णतः निर्बुद्धि एवं मूर्ख हैं; \q2 उनकी शिक्षाएं धोखे के सिवा और कुछ नहीं. \q1 \v 9 तरशीश से पीटी हुई चांदी \q2 तथा उपहाज़ से स्वर्ण लाया जाता है. \q1 शिल्पी एवं स्वर्णकार की हस्तकला हैं \q2 वे नीले और बैंगनी वस्त्र उन्हें पहनाए जाते हैं— \q2 ये सभी दक्ष शिल्पियों की कलाकृति-मात्र हैं. \q1 \v 10 किंतु याहवेह सत्य परमेश्वर हैं; \q2 वे अनंत काल के राजा हैं. \q1 उनके कोप के समक्ष पृथ्वी कांप उठती है; \q2 तथा राष्ट्रों के लिए उनका आक्रोश असह्य हो जाता है. \p \v 11 “उनसे तुम्हें यह कहना होगा: ‘वे देवता, जिन्होंने न तो आकाश की और न पृथ्वी की सृष्टि की है, वे पृथ्वी पर से तथा आकाश के नीचे से नष्ट कर दिए जाएंगे.’ ” \q1 \v 12 याहवेह ही हैं जिन्होंने अपने सामर्थ्य से पृथ्वी की सृष्टि की; \q2 जिन्होंने विश्व को अपनी बुद्धि द्वारा प्रतिष्ठित किया है, \q2 अपनी सूझ-बूझ से उन्होंने आकाश को विस्तीर्ण कर दिया. \q1 \v 13 उनके स्वर उच्चारण से आकाश के जल में हलचल मच जाती है; \q2 वही हैं जो चारों ओर से मेघों का आरोहण बनाया करते हैं. \q1 वह वृष्टि के लिए बिजली को अधीन करते हैं \q2 तथा अपने भण्डारगृह से पवन को चलाते हैं. \b \q1 \v 14 हर एक मनुष्य मूर्ख है—ज्ञानहीन; \q2 हर एक स्वर्णशिल्पी अपनी ही कृति प्रतिमा द्वारा लज्जित किया जाता है. \q1 क्योंकि उसके द्वारा ढाली गई प्रतिमाएं धोखा हैं; \q2 उनमें जीवन-श्वास तो है ही नहीं. \q1 \v 15 ये प्रतिमाएं सर्वथा व्यर्थ हैं, ये हास्यपद कृति हैं; \q2 जब उन पर दंड का अवसर आएगा, वे नष्ट हो जाएंगी. \q1 \v 16 याहवेह जो याकोब की निधि हैं इनके सदृश नहीं हैं, \q2 क्योंकि वे सभी के सृष्टिकर्ता हैं, \q1 इस्राएल उन्हीं के इस निज भाग का कुल है— \q2 उनका नाम है सेनाओं का याहवेह. \s1 आनेवाला विनाश \q1 \v 17 तुम, जो शत्रु द्वारा घिरे हुए जिए जा रहे हो, \q2 भूमि पर से अपनी गठरी उठा लो. \q1 \v 18 क्योंकि याहवेह का संदेश यह है: \q1 “यह देख लेना कि मैं इस देश के निवासियों को \q2 इस समय प्रक्षेपित करने पर हूं; \q1 मैं उन पर विपत्तियां ले आऊंगा \q2 कि उन्हें वस्तुस्थिति का बोध हो जाए.” \b \q1 \v 19 धिक्कार है मुझ पर! मैं निराश हो चुका हूं! \q2 असाध्य है मेरा घाव! \q1 किंतु मैंने विचार किया, \q2 “निश्चयतः यह एक रोग है, यह तो मुझे सहना ही होगा.” \q1 \v 20 मेरा तंबू नष्ट हो चुका है; \q2 रस्सियां टूट चुकी हैं. \q1 मेरे पुत्र मुझे छोड़ चुके हैं, कोई भी न रहा; \q2 जो पुनः मेरे तंबू को खड़ा करे ऐसा कोई भी नहीं, \q2 जो इसमें पर्दे लटकाए. \q1 \v 21 कारण यह है कि चरवाहे मूर्ख हैं \q2 और उन्होंने याहवेह की बातें ज्ञात करना आवश्यक न समझा; \q1 इसलिये वे समृद्ध न हो सके \q2 और उनके सभी पशु इधर-उधर बिखर गए हैं. \q1 \v 22 समाचार यह आ रहा है, कि वे आ रहे हैं— \q2 उत्तर दिशा के देश से घोर अशांति की आवाज! \q1 कि यहूदिया के नगरों को निर्जन \q2 तथा सियारों का बसेरा बना दिया जाए. \s1 येरेमियाह की प्रार्थना \q1 \v 23 याहवेह, मैं उत्तम रीति से इस बात से अवगत हूं कि मनुष्य अपनी गतिविधियों को स्वयं नियंत्रित नहीं करता; \q2 न ही मनुष्य अपने कदम स्वयं संचालित कर सकता है. \q1 \v 24 याहवेह मुझे अनुशासित करिये किंतु सही तरीके से— \q2 यह अपने क्रोध में न कीजिए, \q2 अन्यथा मैं तो मिट ही जाऊंगा. \q1 \v 25 अपना कोप उन जनताओं पर उंडेल दीजिए \q2 जो आपको नहीं जानते तथा उन परिवारों पर भी, \q2 जो आपसे गिड़गिड़ाने नहीं देते. \q1 क्योंकि इन राष्ट्रों ने याकोब को समाप्‍त कर दिया है; \q2 उन्होंने याकोब को निगल कर उसे पूर्णतः \q2 नष्ट कर दिया है तथा उसके आवास को उजाड़ बना दिया है. \c 11 \s1 भंग की गई वाचा \p \v 1 वह संदेश जो याहवेह द्वारा येरेमियाह के लिए प्रगट किया गया: \v 2 “इस वाचा के वचन पर ध्यान दो, और फिर जाकर यहूदिया तथा येरूशलेम के निवासियों के समक्ष इसकी बात करो. \v 3 उनसे कहना, याहवेह इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: ‘श्रापित है वह व्यक्ति जो इस वाचा की विषय-वस्तु की ओर ध्यान नहीं देता; \v 4 जिसका आदेश मैंने तुम्हारे पूर्वजों को उस समय दिया था, जब मैंने उन्हें मिस्र देश से लौह-भट्टी से यह कहते हुए निराश किया था. मेरे आदेश का पालन करो तथा मेरे आदेशों का आचरण करो, कि तुम मेरी प्रजा हो जाओ तथा मैं तुम्हारा परमेश्वर. \v 5 कि मैं तुम्हारे पूर्वजों को एक देश प्रदान करने की शपथ पूर्ण करूं, जिस देश में दुग्ध एवं मधु धारा-सदृश विपुलता में प्रवाहित होते रहते हैं,’ जैसा कि यह वर्तमान में भी है.” \p यह सुन मैं कह उठा, “याहवेह, ऐसा ही होने दीजिए.” \p \v 6 याहवेह ने मुझे उत्तर दिया, “यहूदिया के नगरों में तथा येरूशलेम की गलियों में इस वचन की वाणी करो: ‘इस वाचा के वचन को सुनो तथा उसका अनुकरण करो. \v 7 क्योंकि मैंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र देश से बाहर लाते समय उन्हें गंभीर चेतावनी दी थी, आज भी मैं उन्हें आग्रही चेतावनी दे रहा हूं, “मेरे आदेश सुनो.” \v 8 फिर भी न तो उन्होंने मेरे आदेश का पालन किया और न ही उन पर ध्यान देना उपयुक्त समझा; बल्कि, उनमें से हर एक अपने कुटिल हृदय की हठीली उत्प्रेरणा में मनमानी करता रहा. जब उन्होंने मेरे इन आदेशों का पालन नहीं किया, मैंने वाचा में बताए सारे शाप उन पर अधीन कर दिए.’ ” \p \v 9 तब याहवेह ने मुझ पर प्रकट किया, “यहूदिया की प्रजा में तथा येरूशलेम वासियों में एक षड़्‍यंत्र का भेद खुला है. \v 10 वे अपने उन्हीं पूर्वजों के अधर्म में लौट चुके हैं, जिन्होंने मेरे आदेशों का पालन करना अस्वीकार कर दिया था और वे परकीय देवताओं की उपासना करने लगे. इस्राएल वंशज तथा यहूदाह गोत्रजों ने मेरी वह वाचा भंग कर दी है, जो मैंने उनके पूर्वजों के साथ स्थापित की थी. \v 11 इसलिये यह याहवेह की वाणी है: ‘यह देखना कि मैं उन पर ऐसी विपत्ति लाने पर हूं जिससे उनका बच निकलना असंभव होगा, यद्यपि वे मेरी ओर गिड़गिड़ाने लगें. \v 12 जिनकी उपासना में वे धूप जलाया करते हैं, किंतु उनकी विपत्ति के समय वे निश्चयतः उनकी रक्षा न कर सकेंगे. \v 13 क्योंकि यहूदिया, तुम्हारे इन देवताओं की संख्या उतनी ही है; जितनी तुम्हारे नगरों की तथा उस घृणित कार्य के लिए उतनी ही वेदियां हैं—वे वेदियां जिन पर तुम बाल के लिए धूप जलाते हो—जितनी येरूशलेम की गलियां.’ \p \v 14 “इसलिये इन लोगों के लिए प्रार्थना मत करो और न उनके लिए मध्यस्थ होकर बिनती करो, क्योंकि जब वे अपने संकट के अवसर पर मेरे पास गिड़गिड़ाने लगे फिर भी मैं उनकी न सुनूंगा. \q1 \v 15 “अब मेरी प्रिया का मेरे परिवार में क्या स्थान रह गया है \q2 जब वह अनेक कुकर्म कर चुकी है? \q1 क्या तुम्हारे द्वारा अर्पित की गई बलि तुमसे तुम्हारी विपत्ति दूर कर देगी, \q2 कि तुम आनंद मना सको?” \b \q1 \v 16 याहवेह ने तुम्हें नाम दिया था \q2 सुंदर आकार तथा मनोरम फल से युक्त हरा जैतून वृक्ष. \q1 किंतु अशांति की उच्च ध्वनि के साथ \q2 याहवेह ने इसमें आग लगा दी है, \q2 अब इसकी शाखाएं किसी योग्य न रहीं. \m \v 17 सेनाओं के याहवेह ने, जिन्होंने तुम्हें रोपित किया, इस्राएल वंश तथा यहूदाह के वंश के द्वारा किए गए संकट के कारण तुम पर संकट का उच्चारण किया है. यह उन्होंने बाल को धूप जलाने के द्वारा मेरे कोप को भड़काने के लिए यह किया है. \s1 येरेमियाह के विरुद्ध षड़यंत्र \p \v 18 इसके सिवा याहवेह ने मुझ पर यह प्रकट किया, इसलिये मुझे इसका ज्ञान मिल गया, तब याहवेह आपने मुझ पर उनके कृत्य प्रकाशित किए. \v 19 मुझे यह बोध ही न था कि वे मेरे विरुद्ध षड़्‍यंत्र रच रहें हैं; मेरी स्थिति वैसी ही थी जैसी वध के लिए ले जाए जा रहे मेमने की होती है, वे परस्पर परामर्श कर रहे हैं, \q1 “चलो, हम इस वृक्ष को इसके फलों सहित नष्ट कर दें; \q2 हम इसे जीव-लोक से ही मिटा दें, \q2 कि उसके नाम का ही उल्लेख पुनः न हो सके.” \q1 \v 20 सेनाओं के याहवेह, आप वह हैं, जो नीतिपूर्ण निर्णय देते हैं \q2 आप जो भावनाओं तथा हृदय को परखते रहते हैं, \q1 मुझे उन पर आपके बदले को देखने का सुअवसर प्रदान कीजिए, \q2 क्योंकि अपनी समस्या मैंने आप ही को सौंप दी है. \p \v 21 इसलिये अनाथोथ के उन व्यक्तियों के संबंध में जो तुम्हारे प्राण लेने को तैयार हैं, जिन्होंने तुम्हें यह धमकी दी है, “याहवेह के नाम में कोई भविष्यवाणी न करना, कि तुम हमारे द्वारा वध किए न जाओ”— \v 22 इसलिये सेनाओं के याहवेह की वाणी यह है: “यह देखना कि मैं उन्हें दंड देने पर हूं! जवान पुरुष तलवार से घात किए जाएंगे, उनकी संतान की मृत्यु लड़ाई में हो जाएगी. \v 23 उनके कोई भी लोग न रहेंगे, क्योंकि मैं अनाथोथ की प्रजा पर विनाश लेकर आ रहा हूं, यह उनके लिए दंड का वर्ष होगा.” \c 12 \s1 येरेमियाह की प्रार्थना \q1 \v 1 याहवेह, जब भी मैं आपके समक्ष अपना मुकदमा प्रस्तुत करता हूं, \q2 आप सदैव ही युक्त प्रमाणित होते हैं. \q1 निःसंदेह मैं आपके ही साथ न्याय संबंधी विषयों पर विचार-विमर्श करूंगा: \q2 क्यों बुराइयों का जीवन समृद्ध होता गया है? \q2 क्यों वे सब जो विश्वासघात के व्यापार में लिप्‍त हैं निश्चिंत जीवन जी रहे हैं? \q1 \v 2 आपने उन्हें रोपित किया है, अब तो उन्होंने जड़ भी पकड़ ली है; \q2 वे विकास कर रहे हैं और अब तो वे फल भी उत्पन्‍न कर रहे हैं. \q1 उनके होंठों पर तो आपका नाम बना रहता है \q2 किंतु अपने मन से उन्होंने आपको दूर ही दूर रखा है. \q1 \v 3 किंतु याहवेह, आप मुझे जानते हैं; \q2 मैं आपकी दृष्टि में बना रहता हूं; आप मेरे हृदय की परीक्षा करते रहते हैं. \q1 उन्हें इस प्रकार खींचकर अलग कर लीजिए, जिस प्रकार वध के लिए भेड़ें अलग की जाती हैं! \q2 उन्हें नरसंहार के दिन के लिए तैयार कर लीजिए! \q1 \v 4 हमारा देश और कितने दिन विलाप करता रहेगा \q2 तथा कब तक मैदान में घास मुरझाती रहेगी? \q1 क्योंकि देशवासियों की बुराई के कारण, \q2 पशु-पक्षी सहसा वहां से हटा दिए गए हैं. \q1 क्योंकि, वे मनुष्य अपने मन में विचार कर रहे हैं, \q2 “परमेश्वर को हमारे द्वारा किए गए कार्यों का परिणाम दिखाई न देगा.” \s1 परमेश्वर का जवाब \q1 \v 5 “यदि तुम धावकों के साथ दौड़ रहे थे \q2 और तुम इससे थक चुके हो, \q2 तो तुम घोड़ों से स्पर्धा कैसे कर सकोगे? \q1 यदि तुम अनुकूल क्षेत्र में ही लड़खड़ा गए तो, \q2 यरदन क्षेत्र के बंजर भूमि में तुम्हारा क्या होगा? \q1 \v 6 क्योंकि यहां तक कि तुम्हारे भाई-बंधुओं तथा तुम्हारे पिता के ही परिवार ने— \q2 तुम्हारे साथ विश्वासघात किया है; \q2 वे चिल्ला-चिल्लाकर तुम्हारा विरोध कर रहे हैं. \q1 यदि वे तुमसे तुम्हारे विषय में अनुकूल शब्द भी कहें, \q2 फिर भी उनका विश्वास न करना. \b \q1 \v 7 “मैंने अपने परिवार का परित्याग कर दिया है, \q2 मैंने अपनी इस निज भाग को भी छोड़ दिया है; \q1 मैंने अपनी प्राणप्रिया को \q2 उसके शत्रुओं के हाथों में सौंप दिया है. \q1 \v 8 मेरे लिए तो अब मेरा यह निज भाग \q2 वन के सिंह सदृश हो गया है. \q1 उसने मुझ पर गर्जना की है; \q2 इसलिये अब मुझे उससे घृणा हो गई है. \q1 \v 9 क्या मेरे लिए यह निज भाग \q2 चित्तिवाले शिकारी पक्षी सदृश है? \q2 क्या वह चारों ओर से शिकारी पक्षी से घिर चुकी है? \q1 जाओ, मैदान के सारे पशुओं को एकत्र करो; \q2 कि वे आकर इन्हें निगल कर जाएं. \q1 \v 10 अनेक हैं वे चरवाहे जिन्होंने मेरा द्राक्षाउद्यान नष्ट कर दिया है, \q2 उन्होंने मेरे अंश को रौंद डाला है; \q1 जिन्होंने मेरे मनोहर खेत को \q2 निर्जन एवं उजाड़ कर छोड़ा है. \q1 \v 11 इसे उजाड़ बना दिया गया है, \q2 अपनी उजाड़ स्थिति में देश मेरे समक्ष विलाप कर रहा है; \q1 सारा देश ही ध्वस्त किया जा चुका है; \q2 क्योंकि किसी को इसकी हितचिंता ही नहीं है. \q1 \v 12 निर्जन प्रदेश में वनस्पतिहीन पहाड़ियों पर \q2 विनाशक सेना आ पहुंची है, \q1 क्योंकि देश के एक ओर से दूसरी ओर तक \q2 याहवेह की घातक तलवार तैयार हो चुकी है; \q2 इस तलवार से सुरक्षित कोई भी नहीं है. \q1 \v 13 उन्होंने रोपण तो किया गेहूं को किंतु उपज काटी कांटों की; \q2 उन्होंने परिश्रम तो किया किंतु लाभ कुछ भी अर्जित न हुआ. \q1 उपयुक्त है कि ऐसी उपज के लिए तुम लज्जित होओ \q2 क्योंकि इसके पीछे याहवेह का प्रचंड कोप क्रियाशील है.” \p \v 14 अपने बुरे पड़ोसियों के विषय में जिन्होंने मेरी प्रजा इस्राएल के इस निज भाग पर आक्रमण किया है, याहवेह का यह कहना है: “यह देख लेना, मैं उन्हें उनके देश में से अलग करने पर हूं और उनके मध्य से मैं यहूदाह के वंश को अलग कर दूंगा. \v 15 और तब जब मैं उन्हें अलग कर दूंगा, मैं उन पर पुनः अपनी करुणा प्रदर्शित करूंगा; तब मैं उनमें से हर एक को उसके इस निज भाग में लौटा ले आऊंगा; हर एक को उसके देश में लौटा लाऊंगा. \v 16 तब यदि वे मेरी प्रजा की नीतियां सीख लेंगे और बाल के जीवन की शपथ कहने के स्थान पर कहेंगे, ‘जीवित याहवेह की शपथ,’ तब वे मेरी प्रजा के मध्य ही समृद्ध होते चले जाएंगे. \v 17 किंतु यदि वे मेरे आदेश की अवहेलना करेंगे, तब मैं उस राष्ट्र को अलग कर दूंगा; अलग कर उसे नष्ट कर दूंगा,” यह याहवेह की वाणी है. \c 13 \s1 नष्ट कमरबंध \p \v 1 याहवेह ने मुझे यह आदेश दिया: “जाकर अपने लिए सन के सूत का बना एक कमरबंध ले आओ और उससे अपनी कमर कस लो, किंतु उसे जल में न डुबोना.” \v 2 याहवेह के आदेश के अनुसार मैंने एक कमरबंध मोल लिया, और उससे अपनी कमर कस ली. \p \v 3 तब दूसरी बार मेरे लिए याहवेह का यह आदेश प्राप्‍त किया गया: \v 4 “तुमने जो कमरबंध मोल लिया है जिससे तुमने अपनी कमर कसी हुई है, उसे लेकर फरात नदी के तट पर जाओ और उसे चट्टान के छिद्र में छिपा दो.” \v 5 इसलिये मैं फरात नदी के तट पर गया, जैसा याहवेह का आदेश था और उस कमरबंध को वहां छिपा दिया. \p \v 6 अनेक दिन व्यतीत हो जाने पर याहवेह ने मुझे आदेश दिया, “उठो, फरात तट पर जाओ और उस कमरबंध को उस स्थान से निकालो जहां मैंने तुम्हें उसे छिपाने का आदेश दिया था.” \v 7 मैं फरात नदी के तट पर गया और उस स्थान को खोदा, जहां मैंने उस कमरबंध को छिपाया था. जब मैंने उस कमरबंध को वहां से निकाला तो मैंने देखा कि वह कमरबंध नष्ट हो चुका था. अब वह किसी योग्य न रह गया था. \p \v 8 तब मुझे याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ था: \v 9 “याहवेह का यह कहना है: ‘ठीक इसी प्रकार मैं यहूदिया का अहंकार नष्ट कर दूंगा तथा येरूशलेम का उच्चतर अहंकार भी. \v 10 इन बुरे लोगों की नियति भी वही हो जाए, जो इस कमरबंध की हुई है, जो अब पूर्णतः अयोग्य हो चुका है. इन लोगों ने मेरे आदेश की अवहेलना की है, वे अपने हठी हृदय के अनुरूप आचरण करते हैं, वे परकीय देवताओं का अनुसरण करते हुए उनकी उपासना करते हैं तथा उन्हीं के समक्ष नतमस्तक होते हैं. \v 11 क्योंकि जिस प्रकार कमरबंध मनुष्य की कमर से बंधा हुआ रहता है, ठीक उसी प्रकार मैंने सारे इस्राएल वंश तथा सारे यहूदाह गोत्र को स्वयं से बांधे रखा,’ यह याहवेह की वाणी है, ‘वे मेरी कीर्ति, स्तवन तथा गौरव के लिए मेरी प्रजा हो जाएं; किंतु उन्होंने इसे महत्व ही न दिया.’ \s1 द्राक्षारस मश्कों का रूपक \p \v 12 “इसलिये तुम्हें उनसे यह कहना होगा: ‘याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का, यह आदेश है: हर एक मश्कों में द्राक्षारस भरा जाए.’ जब वे तुमसे यह पूछें, ‘क्या हमें यह ज्ञात नहीं कि हर एक मश्कों को द्राक्षारस से भरा जाना अपेक्षित है?’ \v 13 तब तुम उन्हें उत्तर देना, ‘याहवेह का संदेश यह है: यह देखना कि मैं इस देश के हर एक नागरिक को कोपरूपी दाखमधु से भरने पर हूं, राजा जो दावीद के सिंहासन पर विराजमान है, पुरोहित, भविष्यद्वक्ता एवं येरूशलेम के सभी निवासी. \v 14 मैं उन्हें एक दूसरे से टकराऊंगा; पिताओं को पुत्रों से तथा पुत्रों को पिताओं से, यह याहवेह की वाणी है. उन्हें नष्ट करते हुए न तो मुझे उन पर दया आएगी न खेद होगा और न ही उन पर तरस आएगा.’ ” \s1 बंधुआई की धमकी \q1 \v 15 सुनो और ध्यान दो, \q2 अहंकारी न बनो, \q2 क्योंकि याहवेह का आदेश प्रसारित हो चुका है. \q1 \v 16 याहवेह, अपने परमेश्वर को सम्मान दो \q2 इसके पूर्व कि वह अंधकार प्रभावी कर दें, \q1 और इसके पूर्व कि अंधकारमय पर्वतों पर \q2 तुम्हारे कदम लड़खड़ा जाएं. \q1 इसके पूर्व कि जब तुम प्रकाश का कल्याण कर रहे हो, \q2 वह इसे और भी अधिक गहन अंधकार बना दें \q2 तथा यह छाया में परिवर्तित हो जाए. \q1 \v 17 किंतु यदि तुम मेरे आदेश की अवहेलना करो, \q2 तुम्हारे इस अहंकार के कारण \q2 मेरा प्राण भीतर ही भीतर विलाप करता रहेगा; \q1 मेरे नेत्र घोर रुदन करेंगे, \q2 मानो वे अश्रुओं के साथ ही बह जाएंगे, \q2 क्योंकि याहवेह की भेड़-बकरियों को बंदी बना लिया गया है. \b \q1 \v 18 राजा तथा राजमाता से अनुरोध करो, \q2 “सिंहासन छोड़ नीचे बैठ जाइए, \q1 क्योंकि आपका वैभवपूर्ण मुकुट \q2 आपके सिर से उतार लिया गया है.” \q1 \v 19 नेगेव क्षेत्र के नगर अब घेर लिए गये हैं, \q2 कोई उनमें प्रवेश नहीं कर सकता. \q1 संपूर्ण यहूदिया को निर्वासन में ले जाया गया है, \q2 पूरा यहूदिया ही बंदी हो चुका है. \b \q1 \v 20 अपने नेत्र ऊंचे उठाकर उन्हें देखो \q2 जो उत्तर दिशा से आ रहे हैं. \q1 वे भेड़-बकरियां कहां हैं, जो तुम्हें दी गई थी, \q2 वे पुष्ट भेड़ें? \q1 \v 21 क्या प्रतिक्रिया होगी तुम्हारी जब याहवेह तुम्हारे ऊपर उन्हें अधिकारी नियुक्त कर देंगे, \q2 जिन्हें स्वयं तुमने अपने साथी होने के लिए शिक्षित किया था? \q1 क्या इससे तुम्हें पीड़ा न होगी \q2 वैसी ही जैसी प्रसूता को होती है? \q1 \v 22 यदि तुम अपने हृदय में यह विचार करो, \q2 “क्या कारण है कि मेरे साथ यह सब घटित हुआ है?” \q1 तुम्हारी पापिष्ठता के परिमाण के फलस्वरूप तुम्हें निर्वस्त्र कर दिया गया \q2 तथा तुम्हारे अंग अनावृत कर दिए गए. \q1 \v 23 क्या कूश देशवासी अपनी त्वचा के रंग को परिवर्तित कर सकता है, \q2 अथवा क्या चीता अपनी चित्तियां परिवर्तित कर सकता है? \q1 यदि हां तो तुम भी जो दुष्टता करने के अभ्यस्त हो चुके हो, \q2 हितकार्य कर सकते हो. \b \q1 \v 24 “इसलिये मैं उन्हें इस प्रकार बिखरा दूंगा, \q2 जैसे पवन द्वारा भूसी मरुभूमि में उड़ा दी जाती है. \q1 \v 25 यही तुम्हारे लिए ठहराया अंश है, \q2 जो माप कर मेरे द्वारा दिया गया है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q1 “क्योंकि तुम मुझे भूल चुके हो \q2 और झूठे देवताओं पर भरोसा करते हो. \q1 \v 26 इसलिये स्वयं मैंने ही तुम्हें निर्वस्त्र किया है \q2 कि तुम्हारी निर्लज्जता सर्वज्ञात हो जाए. \q1 \v 27 धिक्कार है तुम पर येरूशलेम! मैं तुम्हारे घृणास्पद कार्य, \q2 तुम्हारे द्वारा किए गए व्यभिचार, तुम्हारी कामोत्तेजना, \q1 अनैतिक कुकर्म में कामुकतापूर्ण कार्य, \q2 जो तुम पर्वतों एवं खेतों में करते रहे हो देखता रहा हूं. \q1 येरूशलेम, धिक्कार है तुम पर! \q2 तुम कब तक अशुद्ध बने रहोगे?” \c 14 \s1 अनावृष्टि, अकाल एवं तलवार \p \v 1 लड़ाई, तलवार एवं महामारी याहवेह की ओर से येरेमियाह को भेजा अनावृष्टि संबंधित संदेश: \q1 \v 2 “यहूदिया विलाप कर रहा है, \q2 तथा उसके नगर द्वार निस्तेज हो गए हैं; \q1 शोक का पहिरावा पहिने प्रजाजन भूमि पर बैठ गए हैं, \q2 येरूशलेम का गिड़गिड़ाना आकाश तक पहुंच रहा है. \q1 \v 3 सम्पन्‍न लोगों ने जल के लिए अपने सेवकों को कुंओं पर भेजा; \q2 कुंओं पर पहुंचकर उन्होंने पाया \q2 कि वहां जल है ही नहीं. \q1 वे रिक्त बर्तन लेकर ही लौट आए हैं; \q2 उन्हें लज्जा एवं दीनता का सामना करना पड़ा, \q2 वे अपने मुखमंडल छिपाए लौटे हैं. \q1 \v 4 देश में अनावृष्टि के कारण \q2 भूमि तड़क चुकी है; \q1 किसान लज्जा के कारण \q2 मुखमंडल ढांपे हुए हैं. \q1 \v 5 यहां तक कि हिरणी अपने नवजात बच्‍चे को \q2 मैदान में ही छोड़कर चली गई है, \q2 क्योंकि चारा कहीं भी नहीं है. \q1 \v 6 वन्य गधे वनस्पतिहीन पहाड़ियों पर खड़े रह जाते हैं, \q2 वे सियारों के समान हांफते हैं; \q1 उनके नेत्र निस्तेज हो गए हैं \q2 क्योंकि वनस्पति कहीं भी नहीं है.” \b \q1 \v 7 यद्यपि हमारे अनाचार ही हमारे विरुद्ध साक्षी बन गए हैं, \q2 याहवेह, अपनी ही प्रतिष्ठा के निमित्त तैयार हो जाइए. \q1 यह सत्य है कि हम अनेक क्षेत्रों में अपने विश्वासमत से भटके हुए हैं; \q2 हमने आपके विरुद्ध पाप किया है. \q1 \v 8 आप जो इस्राएल की आशा के आधार हैं, \q2 आप जो इसके संकट में इसके बचानेवाले रहे हैं, \q1 आप देश में ही विदेशी सदृश क्यों हो गए हैं, अथवा उस यात्री के सदृश, \q2 जिसने मात्र रात्रि के लिए ही तंबू डाला हुआ है? \q1 \v 9 आप उस व्यक्ति सदृश कैसे हो गए हैं, जो विस्मित हो चुका है, \q2 उस शूर के सदृश जो रक्षा करने में असमर्थ हो गया है? \q1 कुछ भी हो याहवेह, आप हमारे मध्य में उपस्थित हैं, \q2 हम पर आपके ही स्वामित्व की मोहर लगी है; \q2 हमारा परित्याग न कर दीजिए! \p \v 10 अपनी इस प्रजा के लिए याहवेह का यह संदेश है: \q1 “यद्यपि स्वेच्छानुरूप उन्होंने मुझसे दूर जाना ही उपयुक्त समझा; \q2 उन्होंने अपने पांवों पर नियंत्रण न रखा. \q1 इसलिये याहवेह भी उन्हें स्वीकार नहीं करना चाहते; \q2 इसलिये अब वह उनकी पापिष्ठता को स्मरण कर \q2 उनके पापों का लेखा लेंगे.” \p \v 11 याहवेह ने मुझसे कहा, “इन लोगों के कल्याण के लिए बिनती मत करो. \v 12 यदि वे उपवास भी करें, मैं उनके गिड़गिड़ाने पर ध्यान न दूंगा; जब वे होमबलि एवं अन्‍नबलि भी अर्पित करें, मैं उन्हें स्वीकार नहीं करूंगा. इसकी अपेक्षा मैं उन्हें तलवार, अकाल तथा महामारी द्वारा नष्ट कर दूंगा.” \p \v 13 इसे सुन मैंने कहा, “प्रभु परमेश्वर, आप ही देखिए! भविष्यद्वक्ता ही उनसे कह रहे हैं, ‘न तो तुम्हें तलवार का सामना करना पड़ेगा, न ही अकाल का; बल्कि याहवेह तुम्हें इस स्थान पर ही स्थायी शांति प्रदान करेंगे.’ ” \p \v 14 तब याहवेह ने मुझ पर यह प्रकट किया, “ये भविष्यद्वक्ता मेरा नाम लेकर झूठी भविष्यवाणी कर रहे हैं. वे न तो मेरे द्वारा भेजे गए हैं और न ही मैंने उन्हें कोई आदेश दिया है और यहां तक कि मैंने तो उनसे बात तक नहीं की है. जिसे वे तुम्हारे समक्ष भविष्यवाणी स्वरूप प्रस्तुत कर रहे हैं, वह निरा झूठा दर्शन, भविष्यवाणी तथा व्यर्थ मात्र है, उनके अपने ही मस्तिष्क द्वारा बनाया छलावा. \v 15 याहवेह का यह संदेश उन भविष्यवक्ताओं के विषय में है जो मेरे नाम में भविष्यवाणी कर रहे हैं: जबकि मैंने उन्हें प्रगट किया ही नहीं, फिर भी वे यह दावा करते रहते हैं, ‘इस देश में न तो तलवार का प्रहार होगा न ही अकाल का.’ तब इन भविष्यवक्ताओं का अंत ही तलवार तथा लड़ाई द्वारा होगा. \v 16 वे लोग भी, जिनके लिए ये भविष्यद्वक्ता भविष्यवाणी कर रहे हैं, लड़ाई तथा तलवार से मारे गये ये लोग बाहर येरूशलेम की गलियों में फेंक दिए जाएंगे. उन्हें गाड़ने के लिए शेष कोई भी न रहेगा; यही होगी उन सभी की हालत; स्वयं उनकी, उनकी पत्नियों की, उनके पुत्रों की तथा उनकी पुत्रियों की. क्योंकि मैं उनकी पापिष्ठता उन्हीं पर उंडेल दूंगा. \p \v 17 “तुम्हें उन्हें यह संदेश देना होगा: \q1 “ ‘मेरे नेत्रों से दिन-रात अश्रुप्रवाह होने दिया जाए, \q2 इन प्रवाहों को रुकने न दिया जाए; \q1 क्योंकि मेरी प्रजा की कुंवारी पुत्री को, \q2 प्रचंड प्रहार से कुचल दिया गया है, \q2 उसका घाव अत्यंत गंभीर है. \q1 \v 18 यदि मैं खुले मैदान में निकल जाता हूं, \q2 मुझे वहां तलवार से मरे ही मरे दिखाई दे रहे हैं; \q1 अथवा यदि मैं नगर में प्रवेश करता हूं, \q2 मुझे वहां महामारी तथा अकाल ही दिखाई देते हैं. \q1 क्योंकि भविष्यद्वक्ता और पुरोहित दोनों ही \q2 एक ऐसे देश में भटक रहे हैं जो उनके लिए सर्वथा अज्ञात है.’ ” \b \q1 \v 19 याहवेह, क्या आपने यहूदिया का पूर्ण परित्याग कर दिया है? \q2 क्या आपका हृदय ज़ियोन के प्रति घृणा से परिपूर्ण है? \q1 आपने हम पर ऐसा प्रचंड प्रहार क्यों किया है \q2 कि हमारा घाव असाध्य हो गया है? \q1 हम शांति की प्रतीक्षा करते रहे \q2 किंतु कुछ भी अनुकूल घटित नहीं हुआ, \q1 हम अच्छे हो जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे \q2 किंतु हमने आतंक ही पाया. \q1 \v 20 याहवेह, हम अपनी बुराई स्वीकार करते हैं, \q2 हम अपने पूर्वजों की पापिष्ठता भी स्वीकार करते हैं; \q2 क्योंकि हमने आपके विरुद्ध पाप किया है. \q1 \v 21 याहवेह, अपनी ही प्रतिष्ठा के निमित्त हमसे घृणा न कीजिए; \q2 अपने वैभव के सिंहासन को अपमानित न होने दीजिए. \q1 हमसे स्थापित की गई अपनी वाचा का \q2 नाश न कीजिए. \q1 \v 22 क्या जनताओं के देवताओं में कोई ऐसा है, जो वृष्टि दे सके? \q2 अथवा क्या वृष्टि आकाश से स्वयमेव ही हो जाती है? \q1 याहवेह, हमारे परमेश्वर, क्या आप ही वृष्टि के बनानेवाले नहीं? \q2 हमारा भरोसा आप पर ही है, \q2 क्योंकि आप ही हैं जिन्होंने यह सब बनाया है. \c 15 \p \v 1 तब याहवेह मुझसे बात करने लगे: “यद्यपि मोशेह तथा शमुएल भी मेरे सम्मुख उपस्थित हो जाएं, इन लोगों के लिए मेरा हृदय द्रवित न होगा. उन्हें मेरी उपस्थिति से दूर ले जाओ! दूर हो जाएं वे मेरे समक्ष से! \v 2 जब वे तुमसे यह पूछें, ‘कहां जाएं हम?’ तब तुम उन्हें उत्तर देना, ‘यह वाणी याहवेह की है: \q1 “ ‘वे जो मृत्यु के लिए पूर्व-निर्दिष्ट हैं, उनकी मृत्यु होगी; \q1 जो तलवार के लिए पूर्व-निर्दिष्ट हैं, उनकी तलवार से, \q1 जो अकाल के लिए पूर्व-निर्दिष्ट हैं, उनकी अकाल से; \q1 तथा जिन्हें बंधुआई में ले जाया जाना है, वे बंधुआई में ही ले जाए जाएंगे.’ \p \v 3 “मैं उनके लिए चार प्रकार के विनाश निर्धारित कर दूंगा,” यह याहवेह की वाणी है, “संहार के लिए तलवार और उन्हें खींचकर ले जाने के लिए कुत्ते तथा आकाश के पक्षी एवं पृथ्वी के पशु उन्हें खा जाने तथा नष्ट करने के लिए. \v 4 यहूदिया के राजा हिज़किय्याह के पुत्र मनश्शेह द्वारा येरूशलेम में किए गए कुकृत्यों के कारण, मैं उन्हें पृथ्वी के सारे राज्यों के लिए आतंक का विषय बना दूंगा. \q1 \v 5 “येरूशलेम, कौन तुम पर तरस खाने के लिए तैयार होगा? \q2 अथवा कौन तुम्हारे लिए विलाप करेगा? \q2 अथवा कौन तुम्हारा कुशल क्षेम ज्ञात करने का कष्ट उठाएगा? \q1 \v 6 तुम, जिन्होंने मुझे भूलना पसंद कर दिया है,” यह याहवेह की वाणी है. \q2 “तुम जो पीछे ही हटते जा रहे हो. \q1 इसलिये मैं अपना हाथ तुम्हारे विरुद्ध उठाऊंगा और तुम्हें नष्ट कर दूंगा; \q2 थक चुका हूं मैं तुम पर कृपा करते-करते. \q1 \v 7 मैं सूप लेकर देश के प्रवेश द्वारों पर \q2 उनको फटकूंगा. \q1 मैं उनसे उनकी संतान ले लूंगा और मैं अपनी ही प्रजा को नष्ट कर दूंगा, \q2 उन्होंने अपने आचरण के लिए पश्चात्ताप नहीं किया है. \q1 \v 8 अब मेरे समक्ष उनकी विधवाओं की संख्या में \q2 सागर तट के बांध से अधिक वृद्धि हो जाएगी. \q1 मैं जवान की माता के विरुद्ध दोपहर में एक विनाशक ले आऊंगा; \q2 मैं उस पर सहसा व्यथा एवं निराशा ले आऊंगा. \q1 \v 9 वह, जिसके सात पुत्र पैदा हुए थे, व्यर्थ और दुर्बल हो रही है \q2 और उसका श्वसन भी श्रमपूर्ण हो गया है. \q1 उसका सूर्य तो दिन ही दिन में अस्त हो गया; \q2 उसे लज्जित एवं अपमानित किया गया. \q1 और मैं उनके शत्रुओं के ही समक्ष \q2 उन्हें तलवार से घात कर दूंगा जो उनके उत्तरजीवी हैं,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 10 मेरी माता, धिक्कार है मुझ पर, जो आपने मुझे जन्म दिया है, \q2 मैं, सारे देश के लिए संघर्ष एवं विवाद का कारण हो गया हूं! \q1 न तो मैंने किसी को ऋण दिया है न ही किसी ने मुझे, \q2 फिर भी सभी मुझे शाप देते रहते हैं. \p \v 11 याहवेह ने उत्तर दिया, \q1 “निःसंदेह मैं कल्याण के लिए तुम्हें मुक्त कर दूंगा; \q2 निःसंदेह मैं ऐसा करूंगा कि \q2 शत्रु संकट एवं पीड़ा के अवसर पर तुमसे विनती करेगा. \b \q1 \v 12 “क्या कोई लौह को तोड़ सकता है, \q2 उत्तर दिशा के लौह एवं कांस्य को? \b \q1 \v 13 “तुम्हारी ही सीमाओं के भीतर तुम्हारे सारे पापों के कारण \q2 मैं तुम्हारा धन तथा तुम्हारी निधियां लूट की सामग्री बनाकर ऐसे दे दूंगा, \q1 जिसके लिए किसी को \q2 कुछ प्रयास न करना पड़ेगा. \q1 \v 14 तब मैं तुम्हारे शत्रुओं को इस प्रकार प्रेरित करूंगा, \q2 कि वे उसे ऐसे देश में ले जाएंगे जिसे तुम नहीं जानते, \q1 क्योंकि मेरे क्रोध में एक अग्नि प्रज्वलित हो गई है \q2 जो सदैव ही प्रज्वलित रहेगी.” \q1 \v 15 याहवेह, आप सब जानते हैं; \q2 मुझे स्मरण रखिए, मेरा ध्यान रखिए, उनसे बदला लीजिए. \q2 जिन्होंने मुझ पर अत्याचार किया है. \q1 आप धीरज धरनेवाले हैं—मुझे दूर मत कीजिये; \q2 यह बात आपके समक्ष स्पष्ट रहे कि मैं आपके निमित्त निंदा सह रहा हूं. \q1 \v 16 मुझे आपका संदेश प्राप्‍त हुआ, मैंने उसे आत्मसात कर लिया; \q2 मेरे लिए आपका संदेश आनंद का स्रोत और मेरे हृदय का उल्लास है, \q1 याहवेह सेनाओं के परमेश्वर, \q2 इसलिये कि मुझ पर आपके स्वामित्व की मोहर लगाई गई है. \q1 \v 17 न मैं उनकी संगति में जाकर बैठा हूं जो मौज-मस्ती करते रहते हैं, \q2 न ही स्वयं मैंने आनंद मनाया है; \q1 मैं अकेला ही बैठा रहा क्योंकि मुझ पर आपका हाथ रखा हुआ था, \q2 क्योंकि आपने मुझे आक्रोश से पूर्ण कर दिया है. \q1 \v 18 क्या कारण है कि मेरी पीड़ा सदा बनी रही है \q2 तथा मेरे घाव असाध्य हो गए हैं, वे स्वस्थ होते ही नहीं? \q1 क्या आप वास्तव में मेरे लिए धोखा देनेवाले सोता के समान हो जाएंगे, \q2 जिसमें जल होना, न होना अनिश्चित ही होता है. \p \v 19 इसलिये याहवेह का संदेश यह है: \q1 “यदि तुम लौट आओ, तो मैं तुम्हें पुनःस्थापित करूंगा \q2 कि तुम मेरे समक्ष खड़े रह पाओगे; \q1 यदि तुम व्यर्थ बातें नहीं, बल्कि अनमोल बातें कहें, \q2 तुम मेरे प्रवक्ता बन जाओगे. \q1 संभव है कि वे तुम्हारे निकट आ जाएं, \q2 किंतु तुम स्वयं उनके निकट न जाना. \q1 \v 20 तब मैं तुम्हें इन लोगों के लिए \q2 कांस्य की दृढ़ दीवार बना दूंगा; \q1 वे तुमसे युद्ध तो अवश्य करेंगे \q2 किंतु तुम पर प्रबल न हो सकेंगे, \q1 क्योंकि तुम्हारी सुरक्षा के लिए मैं तुम्हारे साथ हूं, \q2 मैं तुम्हारा उद्धार करूंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 21 “इस प्रकार मैं तुम्हें बुरे लोगों के आधिपत्य से विमुक्त करूंगा \q2 और मैं तुम्हें हिंसक के बंधन से छुड़ा लूंगा.” \c 16 \s1 विनाश का दिन \p \v 1 मुझे पुनः याहवेह का संदेश इस प्रकार प्राप्‍त हुआ: \v 2 “इस स्थान में न तो तुम पत्नी लाना और न ही पुत्र उत्पन्‍न करना और न ही पुत्रियां.” \v 3 इस स्थान में उत्पन्‍न पुत्र-पुत्रियों के विषय में, उनकी माताओं एवं उन पिताओं के विषय में, जिन्होंने इन्हें पैदा किया है, याहवेह की यह पूर्ववाणी है. \v 4 “घातक व्याधियों से उनकी मृत्यु हो जाएगी. न उनके लिए विलाप किया जाएगा और न उन्हें गाड़ा जाएगा. उनकी मृत्यु तलवार एवं अकाल से हो जाएगी, वे भूमि पर गोबर सदृश पड़े रहेंगे, उनके शव आकाश के पक्षी एवं वन्य पशुओं का आहार हो जाएंगे.” \p \v 5 याहवेह का आदेश यह है: “उस घर में प्रवेश न करना जिसमें विलाप हो रहा है; न वहां शोक प्रकट करने जाना और न सांत्वना देने, क्योंकि मैंने उन पर से अपनी आशीष, अपना प्रेम तथा अपनी दया हटा ली है,” यह याहवेह की वाणी है. \v 6 “इस देश में दोनों ही, सामान्य तथा विशिष्ट, मृत्यु की भेंट हो जाएंगे. उन्हें न गाड़ा जाएगा, न उनके लिए विलाप किया जाएगा और न कोई उनके शोक में अपने शरीर को निराश करेगा ओर न अपना सिर मुंड़ाएगा. \v 7 कोई भी उनके सुविधा के लिये भोजन की पूर्ति नहीं करेगा जो शोक मृतकों के लिये शोक प्रकट करते हैं, न कोई किसी के पिता अथवा माता के लिए सांत्वना का एक प्याला ही प्रस्तुत करेगा. \p \v 8 “इसके सिवा तुममें से कोई भी ऐसे घर में जाकर न बैठ जाए जहां भोज आयोजित है, कि तुममें से वहां कोई भी भोज में सम्मिलित हो. \v 9 क्योंकि सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: तुम यह देखोगे कि मैं इस स्थान से तुम्हारे देखते-देखते, तुम्हारे ही जीवनकाल में हर्षोल्लास का स्वर, आनंद की ध्वनि, वर तथा वधू के वार्तालाप की वाणी बंद करने पर हूं. \p \v 10 “ऐसा होगा कि जब तुम इन लोगों को यह संपूर्ण संदेश दोगे, तो वे तुमसे प्रश्न करेंगे, ‘याहवेह द्वारा हमारे ऊपर इस महा संकट की वाणी का कारण क्या है? क्या है हमारी अधार्मिकता अथवा हमसे क्या पाप हुआ है? हमसे, जो हम याहवेह हमारे परमेश्वर के विरुद्ध कर बैठे हैं?’ \v 11 तब तुम्हें उनसे यह कहना होगा, ‘कारण यह है कि तुम्हारे पूर्वजों ने मेरा परित्याग कर दिया,’ यह याहवेह की वाणी है, ‘परकीय देवताओं का अनुसरण करना तथा उनकी उपासना करना, उनको नमन करना तुम्हारे पूर्वजों ने उपयुक्त समझा. किंतु मुझे भूलना उन्होंने पसंद किया और मेरे व्यवस्था-विधान का अनुकरण नहीं किया. \v 12 स्वयं तुमने भी तो वही किया है जो ठीक नहीं है, हां, अपने पूर्वजों से भी अधिक; क्योंकि ध्यान दो तुममें से हर एक अपने पतित हृदय के दुराग्रह में मेरी अवज्ञा कर रहा है. \v 13 इसलिये मैं तुम्हें इस देश में से एक ऐसे देश में प्रक्षेपित कर दूंगा, जिस देश को तुम जानते भी नहीं हो, न तुम, न तुम्हारे पूर्वज; तब तुम वहां दिन-रात परकीय देवताओं की उपासना करते रहोगे, क्योंकि मैं तुम पर किसी भी रीति से कोई कृपा न करूंगा.’ \p \v 14 “यद्यपि इस बात को स्मरण रखना: वे दिन बड़े हैं,” यह याहवेह की वाणी है, “जब यह सूक्ति फिर कभी सुनी न जाएगी, ‘जीवित याहवेह की शपथ, जिन्होंने इस्राएल वंशजों को मिस्र देश से निकाल लाया था,’ \v 15 किंतु यह, ‘जीवित याहवेह की शपथ, जो इस्राएल वंशजों को उत्तर दिशा के देशों से तथा उन सभी देशों से निकालकर लाए हैं, जहां उन्हें बंदी किया गया था.’ क्योंकि मैं उन्हें उन्हीं के देश में पुनःस्थापित कर दूंगा, जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था. \p \v 16 “तुम देखोगे कि मैं अनेक मछुवारे बुलवाऊंगा,” यह याहवेह की वाणी है, “ये मछुवारे उन्हें पकड़ लेंगे. तत्पश्चात मैं अनेक शिकारियों को बुलवाऊंगा, वे हर एक पर्वत, हर एक पहाड़ी तथा चट्टानों के दरार में से उनको निकाल डालेंगे. \v 17 उनकी सारी गतिविधियों पर मेरी दृष्टि बनी हुई है; वे मेरे नेत्रों की ओट में नहीं हैं और न उनकी पापिष्ठता मेरी दृष्टि से छिप सकी है. \v 18 मैं उनकी अधर्मिता तथा पापिष्ठता का दूना दंड उन्हें दूंगा, क्योंकि उन्होंने मेरे देश को अशुद्ध कर छोड़ा है; मेरे इस निज भाग को उन्होंने उनकी घृणास्पद प्रतिमाओं के शवों एवं उनकी तिरस्कार कृतियों से भर रखा है.” \q1 \v 19 याहवेह, मेरे बल तथा मेरे अजेयगढ़, \q2 संकट की स्थिति में मेरे आश्रय, \q1 पृथ्वी के चारों ओर से चलकर \q2 राष्ट्र आपके निकट आकर यह स्वीकार करेंगे, \q1 “हमारे पूर्वजों ने इस निज भाग में असत्य, \q2 व्यर्थ तथा निरर्थकता के सिवा और कुछ भी प्राप्‍त नहीं किया है. \q1 \v 20 क्या मनुष्य के लिए यह संभव है कि वह अपने लिए देवताओं को निर्माण कर ले? \q2 फिर भी ये देवता नहीं होते!” \b \q1 \v 21 “इसलिये यह देख लेना मैं उन्हें यह बोध करा ही दूंगा, \q2 अब तो वे अवश्य ही मेरे अधिकार एवं सामर्थ्य से परिचित हो जाएंगे. \q1 तब उन्हें यह ज्ञात हो जाएगा \q2 कि मेरा ही नाम याहवेह है. \b \c 17 \q1 \v 1 “यहूदिया का पाप लौह लेखनी से \q2 लिख दिया गया, \q1 हीरक-नोक से उनके हृदय-पटल पर \q2 तथा उनकी वेदियों के सींगों पर भी. \q1 \v 2 वे अपनी वेदियों तथा अशेराओं का \q2 स्मरण हरे वृक्षों के नीचे, \q1 उच्च पहाड़ियों पर उसी रीति से करते हैं, \q2 जिस रीति से वे अपनी संतान को स्मरण करते हैं. \q1 \v 3 नगर से दूर मेरे पर्वत, \q2 पाप के लिए निर्मित तुम्हारी सीमा में प्रतिष्ठित तुम्हारे पूजा स्थलों के कारण \q1 मैं तुम्हारी संपदा तथा तुम्हारे सारे निधियों को, \q2 लूट की सामग्री बनाकर दे दूंगा. \q1 \v 4 तुम स्वयं ही अपने इस निज भाग को \q2 जो मैंने ही तुम्हें दिया है, \q1 अपने हाथों से निकल जाने दोगे; मैं ऐसा करूंगा कि तुम्हें एक ऐसे देश में \q2 जो तुम्हारे लिए सर्वथा अज्ञात है अपने शत्रुओं की सेवा करनी पड़ेगी, \q1 क्योंकि तुमने मेरे क्रोध में एक ऐसी अग्नि प्रज्वलित कर दी है, \q2 जो सदैव ही प्रज्वलित रहेगी.” \p \v 5 याहवेह ने यह कहा है: \q1 “शापित है वह मनुष्य, जिसने मानव की क्षमताओं को अपना आधार बनाया हुआ है, \q2 जिनका भरोसा मनुष्य की शक्ति में है \q2 तथा जो मुझसे विमुख हो चुका है. \q1 \v 6 क्योंकि वह उस झाड़ी के सदृश है, \q2 जो मरुभूमि में उगी हुई है. समृद्धि उससे दूर ही रहेगी. \q1 वह निर्जन प्रदेश की गर्मी से झुलसने वाली भूमि में निवास करेगा. उस भूमि की मिट्टी लवणमय है, \q2 वहां किसी भी मनुष्य का निवास नहीं है. \b \q1 \v 7 “धन्य है वह मनुष्य जिसने याहवेह पर भरोसा रखा है, \q2 तथा याहवेह ही जिसका भरोसा हैं. \q1 \v 8 वह व्यक्ति जल के निकट रोपित वृक्ष के सदृश है, \q2 जो जल प्रवाह की ओर अपनी जड़ें फैलाता जाता है. \q1 ग्रीष्मकाल का उसे कोई भय नहीं होता; \q2 उसकी पत्तियां सदैव हरी ही रहेंगी. \q1 अकाल उसके लिए चिंता का विषय न होगा \q2 और इसमें समय पर फल लगना बंद नहीं होगा.” \b \q1 \v 9 अन्य सभी से अधिक कपटी है हृदय, \q2 असाध्य रोग से संक्रमित. \q2 कौन है उसे समझने में समर्थ? \b \q1 \v 10 “मैं याहवेह, हृदय की विवेचना करता हूं. \q2 मैं मस्तिष्क का परीक्षण करता हूं, \q1 कि हर एक व्यक्ति को उसके आचरण के अनुरूप प्रतिफल दूं, \q2 उसके द्वारा किए कार्यों के परिणामों के अनुरूप.” \b \q1 \v 11 जिस प्रकार तीतर उन अण्डों को सेती है जो उसके द्वारा दिए हुए नहीं होते, \q2 उस व्यक्ति की स्थिति भी इसी तीतर के सदृश होती है जो धन जमा तो कर लेता है. \q1 किंतु अनुचित रीति से ऐसा धन असमय ही उसके हाथ से निकल जाएगा, \q2 तथा अपने जीवन के अंत में वह स्वयं मूर्ख प्रमाणित हो जायेगा. \b \q1 \v 12 प्रारंभ ही से उच्च स्थल पर प्रतिष्ठित आपका वैभवशाली सिंहासन \q2 हमारा आश्रय रहा है. \q1 \v 13 याहवेह, आप में ही निहित है इस्राएल की आशा; \q2 लज्जित उन्हें होना पड़ेगा जिन्होंने आपका परित्याग किया है. \q1 जो आपसे विमुख होते हैं उनका नामांकन उनमें होगा जो अधोलोक के लिए तैयार हैं, \q2 क्योंकि उन्होंने जीवन्त जल के बहते झरने का, \q2 अर्थात् याहवेह का ही परित्याग कर दिया है. \b \q1 \v 14 याहवेह, यदि आप मुझे सौख्य प्रदान करें, तो मैं वास्तव में निरोगी हो जाऊंगा; \q2 यदि आप मेरी रक्षा करें तो मैं सुरक्षित ही रहूंगा, \q2 कारण आप ही मेरे स्तवन का विषय हैं. \q1 \v 15 सुनिए, वे यह कहते हुए मुझ पर व्यंग्य-बाण छोड़ते रहते हैं, \q2 “कहां है याहवेह का संदेश? \q2 हम भी तो सुनें!” \q1 \v 16 किंतु मैं आपका चरवाहा होने के दायित्व से भागा नहीं; \q2 और न ही मैंने उस घातक दिवस की कामना ही की. \q2 आपकी उपस्थिति में मेरे मुख से मुखरित उच्चारण आपको ज्ञात ही हैं. \q1 \v 17 मेरे लिए आप आतंक का विषय न बन जाइए; \q2 संकट के अवसर पर आप ही मेरे आश्रय होते हैं. \q1 \v 18 मेरे उत्पीड़क लज्जित किए जाएं, \q2 किंतु मुझे लज्जित न होना पड़ें; \q1 निराश उन्हें होना \q2 पड़ें; मुझे नहीं. \q1 विनाश का दिन उन पर टूट पड़ें, दो गुने विध्वंस से उन्हें कुचल दीजिए. \s1 शब्बाथ की पवित्रता रखना \p \v 19 याहवेह ने मुझसे यह कहा: “जाकर जनसाधारण के लिए निर्धारित प्रवेश द्वार पर खड़े हो जाओ, यह वही द्वार है जिसमें से यहूदिया के राजा आते जाते हैं; और येरूशलेम के अन्य द्वारों पर भी जाना. \v 20 वहां तुम्हें यह वाणी करनी होगी, ‘याहवेह का संदेश सुनो, यहूदिया के राजाओं, सारे यहूदिया तथा येरूशलेम वासियों, जो इन प्रवेश द्वारों में से प्रवेश करते हो. \v 21 यह याहवेह का आदेश इसी प्रकार है: अपने विषय में सावधान हो जाओ, शब्बाथ\f + \fr 17:21 \fr*\fq शब्बाथ \fq*\ft सातवां दिन जो विश्राम का पवित्र दिन है\ft*\f* पर कोई भी बोझ न उठाना अथवा येरूशलेम के प्रवेश द्वारों से कुछ भी लेकर भीतर न आना. \v 22 शब्बाथ पर अपने आवासों से बोझ बाहर न लाना और न किसी भी प्रकार के कार्य में संलग्न होना, बल्कि शब्बाथ को पवित्र रखना, जैसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को आदेश दिया था. \v 23 न तो उन्होंने मेरे आदेशों का पालन किया और न उन पर ध्यान ही दिया; बल्कि उन्होंने हठ में अपनी-अपनी गर्दनें कठोर कर लीं, कि वे इन्हें न तो सुनें अथवा अपना आचरण सुधार लें. \v 24 किंतु होगा यह यदि तुम सावधानीपूर्वक मेरी बात सुनोगे, यह याहवेह की वाणी है, कि तुम इस नगर के प्रवेश द्वार से शब्बाथ पर कोई बोझ लेकर प्रवेश न करोगे, बल्कि शब्बाथ को पवित्र रखने के लिए तुम इस दिन कोई भी कार्य न करोगे, \v 25 तब इस नगर के प्रवेश द्वारों से राजा तथा उच्च अधिकारी प्रवेश करेंगे, जो दावीद के सिंहासन पर विराजमान होंगे, जो रथों एवं घोड़ों पर चला फिरा करेंगे. वे तथा उनके उच्च अधिकारी, यहूदिया तथा येरूशलेमवासी, तब यह नगर स्थायी रूप से बस जाएगा. \v 26 वे यहूदिया के नगरों से, येरूशलेम के परिवेश से, बिन्यामिन प्रदेश से, तराई से, पर्वतीय क्षेत्र से तथा नेगेव से बलि, होमबलि, अन्‍नबलि तथा सुगंधधूप अपने साथ लेकर प्रवेश करेंगे. वे याहवेह के भवन में आभार-बलि लेकर भी आएंगे. \v 27 किंतु यदि तुम शब्बाथ को पवित्र रखने, बोझ न उठाने, शब्बाथ पर येरूशलेम के प्रवेश द्वारों से प्रवेश न करने के मेरे आदेश की अवहेलना करो, तब मैं इन द्वारों के भीतर अग्नि प्रज्वलित कर दूंगा. यह अग्नि येरूशलेम में महलों को भस्म करने के बाद भी अलग न होगी.’ ” \c 18 \s1 कुम्हार के घर में \p \v 1 वह संदेश जो याहवेह द्वारा येरेमियाह के लिए प्रगट किया गया: \v 2 “कुम्हार के घर जाओ, वहीं मैं तुम पर अपनी बातें प्रकाशित करूंगा.” \v 3 मैं कुम्हार के आवास पर गया, जहां वह अपने चक्र पर कुछ गढ़ रहा था. \v 4 किंतु वह बर्तन, जिसे वह मिट्टी से बना रहा था, वह उसके हाथों में ही विकृत हो गया; इसलिये उसने उसी से जैसा उसे उपयुक्त लगा, एक अन्य बर्तन का निर्माण कर दिया. \p \v 5 तब याहवेह ने अपना संदेश मुझे इस प्रकार प्रगट किया. \v 6 “इस्राएल वंशजों, क्या तुम्हारे साथ मैं भी वही नहीं कर सकता, जो यह कुम्हार किया करता है?” यह याहवेह की वाणी है. “यह समझ लो इस्राएल वंशजों: मेरे हाथों में तुम्हारी स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसी कुम्हार के हाथों में उस मिट्टी की होती है. \v 7 यह संभव है कि मैं एक क्षण किसी राष्ट्र अथवा किसी राज्य के अंत, पतन अथवा विध्वंस की वाणी करूं. \v 8 किंतु वह राष्ट्र, जिसके संबंध में मैंने विध्वंस की वाणी की थी, यदि अपने कुकृत्यों से विमुख हो जाता है ओर मैं उसके विरुद्ध योजित विध्वंस का विचार ही त्याग दूं. \v 9 अथवा दूसरे क्षण में किसी राष्ट्र, किसी राज्य के विषय में उसके निर्माण अथवा रोपण का विचार व्यक्त करूं, \v 10 यदि वह राष्ट्र अथवा राज्य मेरे आदेश की अवज्ञा करते हुए मेरी दृष्टि में बुरा करता है, तब मैं उसके कल्याण के लिए की गई अपनी प्रतिज्ञा पर पुनर्विचार करूंगा. \p \v 11 “इसलिये अब जाकर यहूदिया तथा येरूशलेम के निवासियों से जाकर यह कहना, ‘याहवेह का संदेश यह है: यह समझ लो! मैं तुम्हारे विरुद्ध घोर विपत्ति नियोजित कर रहा हूं और तुम्हारे विरुद्ध एक योजना बना रहा हूं. ओह! तुममें से हर एक अपनी बुराई का परित्याग कर मेरे निकट लौट आए, अपनी जीवनशैली एवं आचरण को परिशुद्ध कर ले.’ \v 12 किंतु उनका प्रत्युत्तर होगा, ‘इससे कोई भी लाभ न होगा. क्योंकि हमने अपनी रणनीति पहले ही निर्धारित कर ली है; हममें से हर एक अपने बुरे हृदय की कठोरता के ही अनुरूप कदम उठाएगा.’ ” \p \v 13 इसलिये याहवेह का आदेश यह है: \q1 “अब राष्ट्रों के मध्य जाकर यह पूछताछ करो: \q2 क्या कभी किसी ने भी इस प्रकार की घटना के विषय में सुना है? \q1 कुंवारी कन्या इस्राएल ने \q2 अत्यंत भयावह कार्य किया है. \q1 \v 14 क्या लबानोन का हिम खुले \q2 मैदान की चट्टान से विलीन हो जाता है? \q1 अथवा अन्य देश से प्रवाहित शीतल जल \q2 कभी छीना जा सका है? \q1 \v 15 किंतु मेरी प्रजा है कि उसने मुझे भूलना पसंद कर दिया है; \q2 वे निस्सार देवताओं के लिए धूप जलाते हैं, \q1 तथा वे पूर्व मार्गों पर \q2 चलते हुए लड़खड़ा गए हैं. \q1 वे मुख्य मार्ग पर \q2 न चलकर कदमडंडी पर चलने लगें. \q1 \v 16 कि उनका देश निर्जन हो जाए \q2 चिरस्थायी घृणा का विषय; \q1 हर एक जो वहां से निकलेगा चकित हो जाएगा \q2 और आश्चर्य में सिर हिलाएगा. \q1 \v 17 मैं उन्हें शत्रु के समक्ष \q2 पूर्वी वायु प्रवाह-सदृश बिखरा दूंगा; \q1 मैं उनके संकट के समय उनके समक्ष अपनी पीठ कर दूंगा \q2 न कि अपना मुखमंडल.” \p \v 18 तब कुछ लोग विचार-विमर्श करने लगे, “येरेमियाह के विरुद्ध कोई युक्ति गढ़ी जाए; निश्चयतः पुरोहित से तो व्यवस्था-विधान दूर होगा नहीं और न बुद्धिमानों से परामर्श की क्षमता बंद होगी, उसी प्रकार भविष्यवक्ताओं से परमेश्वर का संदेश भी समाप्‍त नहीं किया जा सकेगा. चलो, हम उस पर वाकबाण चलाएं तथा उसके वचन को अनसुनी कर दें.” \q1 \v 19 याहवेह, मेरी विनय पर ध्यान दीजिए; \q2 तथा मेरे विरोधियों की बातों को सुन लीजिए! \q1 \v 20 क्या संकट के द्वारा कल्याण का प्रतिफल दिया जा सकता है? \q2 उन्होंने तो मेरे लिए गड्ढा खोद रखा है. \q1 स्मरण कीजिए मैं आपके समक्ष कैसे ठहरा रहता था \q2 और उनकी सहायता में ही मत दिया करता था, \q2 कि उनके प्रति आपका क्रोध दूर किया जा सके. \q1 \v 21 इसलिये अब उनकी संतान को अकाल को सौंप दीजिए; \q2 तथा उन्हें तलवार की शक्ति के अधीन कर दीजिए. \q1 उनकी पत्नियों को संतानहीन तथा विधवा हो जाने दीजिए; \q2 उनके पतियों को मृत्यु का आहार हो जाने दीजिए, \q2 उनके लड़के युद्ध में तलवार के ग्रसित हो जाएं. \q1 \v 22 जब आप उन पर लुटेरों का आक्रमण होने दें, \q2 तब उनके आवासों से चिल्लाहट सुनाई पड़े, \q1 क्योंकि मुझे पकड़ने के लिए उन्होंने मेरे लिए गड्ढा खोद रखा है, \q2 और उन्होंने मेरे मार्ग में फंदे बिछा रखे हैं. \q1 \v 23 फिर भी, याहवेह, मेरे समक्ष \q2 उनकी घातक युक्तियां आपको ज्ञात हैं. \q1 उनकी पापिष्ठता को क्षमा न कीजिए \q2 और न उनके पाप आपकी दृष्टि से ओझल हों. \q1 आपके ही समक्ष वे नष्ट हो जाएं; \q2 जब आप क्रुद्ध हों तब आप उनके लिए उपयुक्त कदम उठाएं. \c 19 \p \v 1 याहवेह ने आदेश दिया: “जाकर कुम्हार से एक मिट्टी का बर्तन खरीदो, तथा कुछ प्राचीन नागरिकों तथा कुछ प्राचीन पुरोहितों को एकत्र करो \v 2 तब बेन-हिन्‍नोम की घाटी में जाओ, इसके लिए तुम्हें टूटे हुए बर्तनों के प्रवेश द्वार से जाना होगा. वहां तुम उस संदेश की वाणी करना जो मैं तुम्हें भेजा करूंगा, \v 3 तुम कहना, ‘यहूदिया के राजाओं तथा येरूशलेम वासियों याहवेह का संदेश सुनो. सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: मैं इस स्थान पर घोर विपत्ति लाने पर हूं, ऐसी जिसके विषय में सुनते ही हर एक श्रोता के कान झनझना उठेंगे. \v 4 यह इसलिये कि उन्होंने मेरा परित्याग कर इस स्थान को अरुचिकर बना छोड़ा है; उन्होंने इस स्थान पर परकीय देवताओं के लिए बलि अर्पित की है, जिन्हें न तो उनके पूर्वजों ने, न यहूदिया के राजाओं ने कभी जाना-पहचाना था तथा इसलिये भी कि उन्होंने इस स्थान को निर्दोष लोगों के रक्त से रंजित कर रखा है. \v 5 उन्होंने बाल के लिए अपने पुत्रों की होमबलि अर्पित करने के उद्देश्य से बाल के लिए पूजा-स्थल प्रतिष्ठित किए हैं. यह वह कृत्य है, जिसका मैंने उन्हें न तो आदेश दिया और न ही मैंने कभी इसका उल्लेख किया और न यह विचार ही कभी मेरे मस्तिष्क में आया. \v 6 इसलिये यह देखना कि वे दिन आ रहे हैं, यह याहवेह की वाणी है, जब इस स्थान की पहचान तोफेथ अथवा बेन-हिन्‍नोम की घाटी नहीं रह जाएगी, बल्कि तब यह नरसंहार घाटी के रूप में प्रख्यात हो जाएगी. \p \v 7 “ ‘मैं इस स्थान पर यहूदिया तथा येरूशलेम की युक्ति निष्फल कर दूंगा. तथा मैं ऐसा करूंगा कि वे अपने शत्रुओं के समक्ष ही, जो उनके प्राणों के प्यासे हैं, उन्हीं के तलवार के ग्रसित हो जाएंगे. और मैं उनके शव आकाश के पक्षी तथा पृथ्वी के पशुओं का आहार बना दूंगा. \v 8 इस नगर को मैं भय और घृणा का विषय बना दूंगा. इसके निकट से जाता हुआ हर एक व्यक्ति भयभीत होकर इसके घावों को देखेगा और उसका उपहास करेगा. \v 9 मैं ऐसी स्थिति उत्पन्‍न करूंगा कि वे अपनी ही संतान का मांस खाने लगेंगे, जब नगर की घेराबंदी होगी, और उनके शत्रुओं की ओर से उन पर विपत्ति आएगी तथा जो उनके प्राण लेने के लिए तैयार हैं, उन्हें उत्पीड़ित करने लगेंगे, तब वे एक दूसरे का ही मांस खाने लगेंगे.’ \p \v 10 “इसके बाद तुम्हें उन सभी के समक्ष जो तुम्हारे साथ वहां गए हुए हैं उस बर्तन को तोड़ देना होगा, \v 11 तब तुम उनसे कहना, ‘यह सेनाओं के याहवेह का संदेश है: ठीक इसी प्रकार मैं इन लोगों को तथा इस नगर को चूर-चूर कर दूंगा, जैसे कोई कुम्हार द्वारा निर्मित बर्तन को तोड़ देता है, जिसे पुनर्निर्मित करना असंभव होता है. लोग शवों को तोफेथ में गाड़ेंगे, जब तक इन्हें गाड़ने के लिए स्थान शेष न रह जाएगा. \v 12 यही करूंगा मैं इस स्थान एवं यहां के निवासियों के साथ, यह याहवेह की वाणी है, कि मैं इस नगर को तोफेथ सदृश बना दूंगा. \v 13 येरूशलेम के आवास एवं यहूदिया के राजाओं के आवास इस स्थान तोफेथ के सदृश अशुद्ध हो जाएंगे. उन सभी आवासों के कारण, जिन पर उन्होंने आकाश की शक्तियों को होमबलि अर्पित की तथा परकीय देवताओं को पेय बलि अर्पित की थी.’ ” \p \v 14 तत्पश्चात येरेमियाह तोफेथ से लौट आए, जहां याहवेह ने उन्हें भविष्यवाणी के उद्देश्य से भेजा था, येरेमियाह जाकर याहवेह के भवन के आंगन में खड़े हो गए और उन्होंने वहां से उपस्थित जनसमूह को इस प्रकार संबोधित किया, \v 15 “इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह का संदेश यह है: ‘सुनो! मैं इस नगर तथा इसके सारे उपनगरों पर वे सारी विपत्तियां प्रभावी करने पर हूं, जिसकी मैं पूर्वघोषणा कर चुका हूं, क्योंकि उन्होंने मेरे आदेश को न सुनने के हठ में अपनी गर्दनें कठोर कर ली हैं.’ ” \c 20 \s1 पशहूर तथा येरेमियाह \p \v 1 जब याहवेह के भवन के प्रमुख अधिकारी, इम्मर के पुत्र पुरोहित पशहूर ने येरेमियाह को इन विषयों पर भविष्यवाणी करते हुए सुना, \v 2 तब उसने भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को पिटवाया तथा ऊपरी बिन्यामिन द्वार में उन्हें काठ के बांक\f + \fr 20:2 \fr*\fq काठ के बांक \fq*\ft पैरों को बांधने का पुराना उपकरण\ft*\f* में जकड़ दिया, यह याहवेह के भवन के निकट ही था. \v 3 अगले दिन, जब पशहूर ने उन्हें बांक से विमुक्त किया, येरेमियाह ने उससे कहा, “याहवेह द्वारा तुम्हें दिया गया नाम पशहूर नहीं, बल्कि मागोर-मिस्साबीब है. \v 4 क्योंकि याहवेह का संदेश यह है: ‘तुम यह देखोगे कि मैं तुम्हें स्वयं के लिए तथा तुम्हारे सारे मित्रों के लिए आतंक बना देने पर हूं; तुम्हारे देखते-देखते वे अपने शत्रुओं की तलवार से वध किए जाएंगे. तब मैं सारे यहूदिया को बाबेल के राजा के हाथों में सौंप दूंगा, वह उन्हें बंदी बनाकर बाबेल ले जाएगा तथा तलवार से उनका संहार कर देगा. \v 5 मैं इस नगर की सारी धन संपदा इसकी सारी उपज एवं इसकी सारी मूल्यवान सामग्री उसे सौंप दूंगा—यहां तक कि यहूदिया के राजाओं की सारी निधि मैं उनके शत्रुओं के हाथों में सौंप दूंगा. वे उन्हें लूट लेंगे, उन्हें बंदी बना लेंगे तथा उन्हें बाबेल ले जाएंगे. \v 6 और तुम, पशहूर, तथा वे सभी जो तुम्हारे आवास में निवास कर रहे हैं, बंधुआई में ले जाए जाएंगे, तुम बाबेल में प्रवेश करोगे. और वहीं तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी वहीं तुम्हें गाड़ा जाएगा, तुम्हें तथा तुम्हारे उन सभी मित्रों को जिनके लिए तुमने झूठी भविष्यवाणी की थी.’ ” \s1 येरेमियाह का मुकदमा \q1 \v 7 याहवेह, आपने मुझे प्रलोभित किया, कि मैं प्रलोभित हो गया; \q2 आपने मुझे गुमराह किया और आप मुझ पर प्रबल भी हो गए. \q1 सारे दिन मैं उपहास का बर्तन बना रहता हूं; \q2 सभी मेरा उपहास करते रहते हैं. \q1 \v 8 जब भी मैं कुछ कहना चाहता हूं, मैं उच्च स्वर में रोने लगता हूं; \q2 मेरी वाणी के विषय रह गए हैं हिंसा एवं विध्वंस. \q1 क्योंकि मेरे संदर्भ में याहवेह के संदेश का परिणाम हुआ है \q2 सतत निंदा एवं फटकार. \q1 \v 9 किंतु यदि मैं यह निश्चय करूं, “अब मैं याहवेह का उल्लेख ही नहीं करूंगा \q2 अथवा अब मैं उनकी ओर से कोई भी संदेश भेजा न करूंगा,” \q1 तब आपका संदेश मेरे हृदय में प्रज्वलित अग्नि का रूप ले लेता है, \q2 वह प्रज्वलित अग्नि जो मेरी अस्थियों में बंद है. \q1 अब यह मेरे लिए असह्य हो रही है; \q2 इसे दूर रखते-रखते मैं व्यर्थ हो चुका हूं. \q1 \v 10 मैंने अनेकों को दबे स्वर में यह कहते सुना है, \q2 “चारों ओर आतंक व्याप्‍त हो चुका है! \q2 फटकार करो उनकी! निःसंदेह हमें उनकी फटकार करनी ही होगी!” \q1 ये मेरे विश्वास्य मित्रों के शब्द हैं \q2 जिन्हें मेरे पतन में रुचि है. वे विचार कर रहे हैं, \q1 “संभव है वह फंदे में फंस जाए; \q2 और हम उसे अपने वश में कर लें \q2 तथा उससे अपना बदला ले लें.” \b \q1 \v 11 किंतु याहवेह मेरे साथ शक्तिवान योद्धा के सदृश हैं जिसका आतंक चारों ओर व्याप्‍त है; \q2 इसलिये मेरे उत्पीड़क मुझ पर प्रबल न होंगे बल्कि लड़खड़ा जाएंगे. \q1 अपनी विफलता पर उन्हें घोर लज्जा का सामना करना पड़ेगा यह ऐसी चिरस्थायी लज्जा होगी; \q2 जिसे भूलना पसंद करना संभव न होगा. \q1 \v 12 फिर भी सेनाओं के याहवेह, आप तो सद्‍वृत्त की विवेचना करते रहते हैं, \q2 आपकी दृष्टि मन एवं हृदय का आंकलन करती रहती है, \q1 कुछ ऐसा कीजिए कि मैं आपके द्वारा उनसे लिए गए बदले का प्रत्यक्षदर्शी हो जाऊं, \q2 क्योंकि अपना मुकदमा मैंने आपको ही सौंप रखा है. \b \q1 \v 13 याहवेह के लिए गायन हो! \q2 याहवेह का स्तवन हो! \q1 क्योंकि उन्होंने निस्सहाय के प्राणों को \q2 बुरे बंधन से उद्धार प्रदान किया है. \b \q1 \v 14 शापित हो वह दिन जिसमें मैंने जन्म लिया! \q2 जिस दिन मेरी माता ने मुझे जन्म दिया, उसे धन्य न कहा जाए! \q1 \v 15 शापित हो वह व्यक्ति जिसने मेरे पिता को अत्यंत हर्षित कर दिया, \q2 जब उसने उन्हें यह संदेश दिया, \q2 “आपका एक पुत्र पैदा हुआ है!” \q1 \v 16 उस संदेशवाहक की नियति वही हो जो उन नगरों की हुई थी, \q2 जिन्हें याहवेह ने निर्ममता से नष्ट कर दिया था. \q1 उसे प्रातःकाल से ही पीड़ा की कराहट सुनाई देने लगी, \q2 तथा दोपहर में युद्ध की चेतावनी की वाणी. \q1 \v 17 क्योंकि मेरे जन्म के पूर्व ही मेरी जीवन लीला उसने समाप्‍त नहीं कर दी, \q2 कि मेरी माता ही मेरी कब्र हो जाती, \q2 और मेरी माता स्थायी रूप से गर्भवती रह जाती. \q1 \v 18 मैं गर्भ से बाहर ही क्यों आ गया \q2 कि संकट और शोक देखूं, \q2 कि मेरे जीवन के दिन लज्जा में जिए जाएं? \c 21 \s1 सीदकियाहू की प्रार्थना को परमेश्वर अस्वीकार करते हैं \p \v 1 जब राजा सीदकियाहू ने येरेमियाह के पास मालखियाह के पुत्र पशहूर तथा मआसेइयाह के पुत्र पुरोहित ज़ेफनियाह को भेजा था, येरेमियाह को यह संदेश याहवेह की ओर से भेजा गया: \v 2 “कृपया हमारी ओर से याहवेह से पूछताछ कर दीजिए क्योंकि बाबेल का राजा नबूकदनेज्ज़र हमारे विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार है. संभव है याहवेह अपने सामर्थ्य में अलौकिक कार्य के प्रदर्शन के द्वारा नबूकदनेज्ज़र को पीछे हटने के लिए विवश कर दें.” \p \v 3 यह सुन येरेमियाह ने उन्हें उत्तर दिया, “सीदकियाहू से तुम्हें यह कहना होगा, \v 4 ‘याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: यह देखना कि मैं उन शस्त्रों को जो इस समय तुम्हारे हाथों में हैं, जिनसे तुम बाबेल तथा कसदियों के राजा पर प्रहार करने पर हो, जिन्होंने तुम्हारी शहरपनाह के बाहर घेरा डाल रखा है, तुम्हारे ही विरुद्ध अधीन करने पर हूं. अंततः मैं नगर के मध्य में इन शस्त्रों का ढेर लगा दूंगा. \v 5 मैं स्वयं अपने क्रोध, कोप एवं उग्र आक्रोश में विस्तीर्ण शक्तिशाली भुजा के द्वारा तुमसे युद्धरत हो जाऊंगा. \v 6 मैं इस नगर के निवासियों का संहार करूंगा, चाहे वे मनुष्य हों अथवा पशु वे सभी अत्यंत विकट महामारी में नष्ट हो जाएंगे. \v 7 तत्पश्चात, यह याहवेह की वाणी है, मैं यहूदिया के राजा सीदकियाहू को, उसके सेवकों को, उसकी प्रजा को, यहां तक कि, जो इस नगर में महामारी, तलवार तथा अकाल से जीवित बच जाएंगे, उन्हें भी बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र के, उनके शत्रुओं के तथा उनके अधीन कर दूंगा, जो उनके प्राण लेने को तैयार हैं. वह उन्हें अपनी तलवार की धार के प्रहार से वध कर देगा; न तो वह किसी को जीवित छोड़ेगा, न किसी पर कृपा करेगा और न किसी पर सहानुभूति ही प्रदर्शित करेगा.’ \p \v 8 “तुम्हें इन लोगों को यह भी सूचित करना होगा, ‘याहवेह का कहना यह है: यह समझ लो, मैंने तुम्हारे समक्ष जीवन की नीति भी प्रस्तुत कर दी है तथा मृत्यु की नीति भी. \v 9 वह जो इस नगर में निवास कर रहा है उसकी मृत्यु तलवार, अकाल अथवा महामारी से हो जाएगी. किंतु वह जो नगर के बाहर निकलेगा तथा कसदियों के हाथों में जा पड़ेगा जिन्होंने नगर को घेर रखा है; वह जीवित रहेगा, उसका जीवन ही उसकी लूट सामग्री सदृश उपहार प्रमाणित होगा. \v 10 कारण यह है कि मैंने इस नगर पर संकट लाने का निश्चय कर लिया है, कल्याण का नहीं, यह याहवेह की वाणी है. यह नगर बाबेल के राजा को सौंप दिया जाएगा, जो इसे भस्म कर डालेगा.’ \p \v 11 “तत्पश्चात यहूदिया के राजा के परिवार से यह कहना, ‘याहवेह का संदेश सुनो. \v 12 दावीद वंशजों, यह याहवेह का आदेश है: \q1 “ ‘प्रति प्रातःकाल यह ध्यान रखना कि लोगों को निरसहायक न्याय प्राप्‍त हो; \q2 उस व्यक्ति को विमुक्त कर दो \q2 जिसे अत्याचारियों के दमन के कारण लूट लिया गया है, \q1 कि उनके दुष्कर्मों के कारण मेरा कोप अग्नि-सदृश प्रसार करता न जाए, \q2 वह ऐसा प्रज्वलित न हो जाए \q2 कि इसे अलग करना असंभव हो जाए. \q1 \v 13 सुनो, घाटी के निवासियो, सुनो, \q2 चट्टानी पठार के निवासियो, \q2 अब मैं तुम्हारे विरुद्ध हूं, यह याहवेह की वाणी है— \q1 तुम लोग भी सुनो जो इस आश्वासन में संतुष्ट हो, “हम पर कौन आक्रमण कर सकता है? \q2 अथवा कौन हमारे आवास में प्रवेश कर सकता है?” \q1 \v 14 किंतु मैं तुम्हारे कार्यों के परिणामों के अनुरूप ही तुम्हें दंड दूंगा, \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 मैं तुम्हारे वनों में अग्नि प्रज्वलित कर दूंगा \q2 कि इसके सारे मंडल ही नष्ट हो जाएं.’ ” \c 22 \s1 येरूशलेम के विनाश की चेतावनी \p \v 1 यह याहवेह का आदेश है: “यहूदिया के राजा के आवास पर जाओ और वहां इस वचन का प्रचार करो: \v 2 ‘यहूदिया के राजा, याहवेह का यह संदेश सुनो, तुम जो दावीद के सिंहासन पर विराजमान हो, तुम, तुम्हारे सेवक एवं तुम्हारी प्रजा जो इन द्वारों से होकर प्रवेश करते हो. \v 3 यह याहवेह का आदेश है: तुम्हारा न्याय निस्सहाय हो. व्यवहार सद्‍वृत्त तथा उसे मुक्त कर दो जिसे अत्याचारियों ने अपने अधीन रख लूट लिया है. इसके सिवा विदेशी, पितृहीन तथा विधवा के प्रति न तो तुम्हारा व्यवहार प्रतिकूल हो और न हिंसक, इस स्थान पर निस्सहाय की हत्या न की जाए. \v 4 क्योंकि यदि तुम जो पुरुष हो, वास्तव में इन विषयों को ध्यान रखो, इनका आचरण करो, तो इस भवन के द्वार में से राजाओं का प्रवेश हुआ करेगा, वे दावीद के सदृश उनके सिंहासन पर विराजमान हुआ करेंगे, जो रथों एवं घोड़ों पर सवार होते हैं स्वयं राजा को, उसके सेवकों को तथा उसकी प्रजा का प्रवेश हुआ करेगा. \v 5 किंतु यदि तुम इन आदेशों का पालन न करो, तो मैं अपनी ही शपथ ले रहा हूं, यह याहवेह की वाणी है, कि यह महल उजाड़ बन जाएगा.’ ” \p \v 6 क्योंकि यहूदिया के राजा के महलों के विषय में याहवेह की यह वाणी है: \q1 “मेरी दृष्टि में तुम गिलआद सदृश हो, \q2 लबानोन शिखर सदृश, फिर भी निश्चयतः \q1 मैं तुम्हें निर्जन प्रदेश बना छोडूंगा, \q2 उन नगरों के सदृश, जो निर्जन हैं. \q1 \v 7 मैं तुम्हारे विरुद्ध विध्वंसक उत्पन्‍न कर दूंगा, \q2 उनमें से हर एक शस्त्रों से सुसज्जित होगा, \q1 वे तुम्हारे सर्वोत्तम देवदार वृक्ष काट डालेंगे \q2 तथा उन्हें अग्नि में झोंक देंगे. \p \v 8 “अनेक जनता इस नगर के निकट से होते हुए चले जाएंगे और उनके वार्तालाप का विषय होगा, ‘याहवेह ने इस भव्य नगर के साथ ऐसा कर दिया है?’ \v 9 तब उन्हें इसका यह उत्तर दिया जाएगा: ‘इसकी इस स्थिति का कारण यह है कि उन्होंने याहवेह, अपने परमेश्वर की वाचा भंग कर दी है, वे परकीय देवताओं की उपासना करने लगे तथा उन्हीं की सेवा-उपासना करने लगे हैं.’ ” \q1 \v 10 न तो मृतक के लिए रोओ और न विलाप करो; \q2 बल्कि, ज़ोर ज़ोर से विलाप करो, उसके लिए जो बंधुआई में दूर जा रहा है, \q1 क्योंकि वह अब लौटकर नहीं आएगा, \q2 और न वह कभी अपनी मातृभूमि को पुनः देख सकेगा. \m \v 11 क्योंकि यहूदिया के राजा योशियाह के पुत्र शल्लूम के विषय में, जो अपने पिता योशियाह के स्थान पर सिंहासनारूढ़ हुआ है, जो यहीं से चला गया है: याहवेह का यह संदेश है, “अब वह लौटकर यहां कभी नहीं आएगा. \v 12 वह वहीं रह जाएगा जहां उसे बंदी बनाकर ले जाया गया है, वहीं उसकी मृत्यु हो जाएगी; अब वह यह देश कभी न देख सकेगा.” \q1 \v 13 “धिक्कार है उस पर जो अनैतिकता से अपना गृह-निर्माण करता है, \q2 तथा अपने ऊपरी कक्ष अन्यायपूर्णता के द्वारा बनाता है, \q1 जो अपने पड़ोसी से बेगार कार्य तो करा लेता है, \q2 और उसे पारिश्रमिक नहीं देता. \q1 \v 14 वह विचार करता है, ‘मैं एक विस्तीर्ण भवन को निर्माण करूंगा \q2 जिसमें विशाल ऊपरी कक्ष होंगे.’ \q1 इसमें खिड़कियां भी होंगी, \q2 मैं इसकी दीवारों को देवदार से मढ़ कर \q2 उन्हें प्रखर लाल रंग से रंग दूंगा. \b \q1 \v 15 “क्या अपने भवन में देवदार का प्रचूर प्रयोग करने के कारण \q2 तुम राजा के पद पर पहुंच गए हो? \q1 क्या तुम्हारा पिता सर्वसंपन्‍न न था? \q2 फिर भी उसने वही किया जो सही और न्यायपूर्ण था, \q2 इसलिये उसका कल्याण होता रहा. \q1 \v 16 तुम्हारा पिता उत्पीड़ित एवं निस्सहायों का ध्यान रखता था, \q2 इसलिये उसका कल्याण होता रहा. \q1 क्या मुझे जानने का यही आशय नहीं होता?” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 17 “किंतु तुम्हारी दृष्टि तथा तुम्हारे हृदय की अभिलाषा \q2 मात्र अन्यायपूर्ण धनप्राप्‍ति पर केंद्रित है, \q1 तुम निस्सहाय के रक्तपात, दमन, \q2 ज़बरदस्ती धन वसूली और उपद्रव में लिप्‍त रहते हो.” \m \v 18 इसलिये यहूदिया के राजा योशियाह के पुत्र यहोइयाकिम के विषय में याहवेह की यह वाणी है: \q1 “प्रजा उसके लिए इस प्रकार विलाप नहीं करेगी: \q2 ‘ओह, मेरे भाई! अथवा ओह, मेरी बहन!’ \q1 वे उसके लिए इस प्रकार भी विलाप नहीं करेंगे: \q2 ‘ओह, मेरे स्वामी! अथवा ओह, उसका वैभव!’ \q1 \v 19 उसकी अंत्येष्टि उसी रीति से की जाएगी. जैसे एक गधे की \q2 शव को खींचकर येरूशलेम के द्वार के \q2 बाहर फेंक दिया जाता.” \b \q1 \v 20 “लबानोन में जाकर विलाप करो, \q2 बाशान में उच्च स्वर उठाओ, \q1 अबारिम में भी विलाप सुना जाए, \q2 क्योंकि जो तुम्हें प्रिय थे उन्हें कुचल दिया गया है. \q1 \v 21 तुम्हारी सम्पन्‍नता की स्थिति में मैंने तुमसे बात करना चाहा, \q2 किंतु तुम्हारा हठ था, ‘नहीं सुनूंगा मैं!’ \q1 बचपन से तुम्हारी यही शैली रही है; \q2 तुमने कभी मेरी नहीं सुनी. \q1 \v 22 तुम्हारे सभी चरवाहों को वायु उड़ा ले जाएगी, \q2 वे जो तुम्हें प्रिय हैं, बंधुआई में चले जाएंगे. \q1 तब अपनी सारी बुराई के कारण निश्चयतः \q2 लज्जित हो तुम अपनी प्रतिष्ठा खो दोगे. \q1 \v 23 तुम जो लबानोन में निवास कर रहे हो, \q2 तुम जो देवदार वृक्षों के मध्य सुरक्षित हो, \q1 कैसी होगी तुम्हारी कराहट जब पीड़ा तुम्हें अचंभित कर लेगी, \q2 ऐसी पीड़ा जैसी प्रसूता अनुभव करती है!” \p \v 24 यह याहवेह की वाणी है, “मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, यदि यहूदिया के राजा यहोइयाकिम का पुत्र कोनियाह मेरे दाएं हाथ में मुद्रिका भी होता, फिर भी मैं उसे उतार फेंकता. \v 25 मैं तुम्हें उन लोगों के हाथों में सौप दूंगा जो तुम्हारे प्राण लेने को तैयार हैं, हां, उन्हीं के हाथों में जो तुम्हारे लिए आतंक बने हुए हैं, अर्थात् बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र के तथा कसदियों के हाथों में. \v 26 मैं तुम्हें तथा तुम्हारी माता को जिसने तुम्हें जन्म दिया है, ऐसे देश में प्रक्षेपित कर फेंक दूंगा, जहां तुम्हारा जन्म नहीं हुआ था और तुम्हारी मृत्यु वहीं हो जाएगी. \v 27 किंतु वे अपने अभिलाषित देश को कदापि न लौट सकेंगे.” \q1 \v 28 क्या यह व्यक्ति, कोनियाह, \q2 चूर-चूर हो चुका घृणास्पद बर्तन है? \q2 अथवा वह एक तुच्छ बर्तन रह गया है? \q1 क्या कारण है कि उसे तथा उसके वंशजों को एक ऐसे देश में प्रक्षेपित कर दूर फेंक दिया गया है, \q2 जो उनके लिए सर्वथा अज्ञात था? \q1 \v 29 पृथ्वी, ओ पृथ्वी, \q2 याहवेह का आदेश सुनो! \q1 \v 30 याहवेह कह रहे हैं: \q1 “इस व्यक्ति का पंजीकरण संतानहीन व्यक्ति के रूप में किया जाए, \q2 ऐसे व्यक्ति के रूप में, जो भविष्य में समृद्ध न हो सकेगा, \q1 उसके वंशजों में कोई भी व्यक्ति सम्पन्‍न न होगा, \q2 न तो कोई इसके बाद दावीद के सिंहासन पर विराजमान होगा \q2 न ही कोई यहूदिया को उच्चाधिकारी हो सकेगा.” \c 23 \s1 एक धर्ममय शाखा \p \v 1 “धिक्कार है उन चरवाहों पर जो मेरी चराई की भेड़ों को तितर-बितर कर रहे तथा उन्हें नष्ट कर रहे हैं!” यह याहवेह की वाणी है. \v 2 इसलिये उन चरवाहों के विषय में, जो याहवेह की भेड़ों के रखवाले हैं, याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: “तुमने मेरी भेड़ों को तितर-बितर कर दिया है, उन्हें खदेड़ दिया है तथा उनकी देखभाल नहीं की है, इसलिये यह समझ लो कि मैं तुम्हारे अधर्म का प्रतिफल देने ही पर हूं.” यह याहवेह की वाणी है. \v 3 “तत्पश्चात स्वयं मैं अपनी भेड़-बकरियों के बचे हुए लोगों को उन सारे देशों से एकत्र करूंगा, जहां मैंने उन्हें खदेड़ दिया था, मैं उन्हें उन्हीं के चराइयों में लौटा ले आऊंगा जहां वे सम्पन्‍न होते और संख्या में बढ़ते जाएंगे. \v 4 मैं उनके लिए चरवाहे भी तैयार करूंगा वे उनकी देखभाल करेंगे, तब उनके समक्ष किसी भी प्रकार का भय न रहेगा, उनमें से कोई भी न तो व्याकुल होगा और न ही कोई उनमें से खो जाएगा,” यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 5 “यह देख लेना कि ऐसे दिन आ रहे हैं,” यह याहवेह की वाणी है, \q2 “जब मैं दावीद के लिए एक धार्मिकतापूर्ण शाखा उत्पन्‍न करूंगा, \q1 वह राजा सदृश राज्य-काल करेगा \q2 तथा उसके निर्णय विद्वत्तापूर्ण होंगे उस देश में न्याय एवं धार्मिकतापूर्ण होगा. \q1 \v 6 तब उन दिनों में यहूदिया संरक्षित रखा जाएगा \q2 तथा इस्राएल सुरक्षा में निवास करेगा. \q1 उन दिनों उसकी पहचान होगी: \q2 ‘याहवेह हमारी धार्मिकता.’ \m \v 7 इसलिये यह देखना, ऐसे दिन आ रहे हैं,” यह याहवेह की वाणी है, “जब वे ऐसा कहना छोड़ देंगे, ‘जीवित याहवेह की शपथ, जिन्होंने इस्राएल वंशजों का मिस्र देश से निकास किया,’ \v 8 बल्कि वे यह कहने लगेंगे, ‘जीवित याहवेह की शपथ, जो इस्राएल के परिवार के वंशजों को उस देश से जो उत्तर में है तथा उन सभी देशों में से जहां मैंने उन्हें खदेड़ दिया था, निकास कर लौटा ले आया हूं.’ तब वे अपनी मातृभूमि पर निवास करने लगेंगे.” \s1 झूठे नबियों को फटकार \p \v 9 भविष्यवक्ताओं के विषय में मैं यह कहूंगा: \q1 भीतर ही भीतर मेरा हृदय टूट चुका है; \q2 मेरी सारी अस्थियां थरथरा रही हैं. \q1 मेरी स्थिति मतवाले व्यक्ति के सदृश हो चुकी है, \q2 उस व्यक्ति के सदृश जो दाखमधु से अचंभित हो चुका है, \q1 इस स्थिति का कारण हैं याहवेह \q2 और उनके पवित्र वचन. \q1 \v 10 देश व्यभिचारियों से परिपूर्ण हो चुका है; \q2 शाप के कारण देश विलाप में डूबा हुआ है, \q2 निर्जन प्रदेश के चराई शुष्क हो चुके हैं. \q1 उनकी जीवनशैली संकटमय है \q2 तथा उनका बल का उपयोग अन्याय के कामों में होता है. \b \q1 \v 11 “क्योंकि दोनों ही श्रद्धाहीन हैं, भविष्यद्वक्ता एवं पुरोहित; \q2 मेरे ही भवन में मैंने उनका अधर्म देखा है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 12 “इसलिये उनका मार्ग उनके लिए अंधकार में फिसलन सदृश हो जाएगा; \q2 वे अंधकार में धकेल दिए जाएंगे \q2 जहां उनका गिर जाना निश्चित है. \q1 क्योंकि मैं उन पर विपत्ति ले आऊंगा, \q2 जो उनके दंड का वर्ष होगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 13 “मुझे शमरिया के भविष्यवक्ताओं में \q2 एक घृणास्पद संस्कार दिखाई दिया है: \q1 उन्होंने बाल से उत्प्रेरित हो भविष्यवाणी की है \q2 तथा मेरी प्रजा इस्राएल को रास्ते से भटका दिया है. \q1 \v 14 इसके सिवाय येरूशलेम के भविष्यवक्ताओं में भी \q2 मैंने एक भयानक बात देखी है: \q2 मेरे प्रति उनके संबंध में वैसा ही विश्वासघात हुआ है जैसा दाम्पत्य में व्यभिचार से होता है. \q1 वे बुराइयों के हाथों को सशक्त करने में लगे हुए हैं, \q2 परिणामस्वरूप कोई भी बुराई का परित्याग नहीं कर रहा. \q1 मेरी दृष्टि में वे सभी सोदोमवासियों सदृश हो चुके हैं; \q2 वहां के निवासी अमोराह सदृश हो गए हैं.” \p \v 15 इसलिये भविष्यवक्ताओं के संबंध में याहवेह की वाणी है: \q1 “यह देख लेना कि मैं उन्हें नागदौन\f + \fr 23:15 \fr*\fq नागदौन \fq*\ft एक कड़वा फल\ft*\f* खिलाऊंगा \q2 तथा उन्हें पेय स्वरूप विष से भरा जल पिलाऊंगा, \q1 क्योंकि येरूशलेम के भविष्यवक्ताओं से ही \q2 श्रद्धाहीनता संपूर्ण देश में व्याप्‍त हो गई है.” \p \v 16 यह सेनाओं के याहवेह का आदेश है: \q1 “मत सुनो भविष्यवक्ताओं के वचन जो तुम्हारे लिए भविष्यवाणी कर रहे हैं; \q2 वे तुम्हें व्यर्थ की ओर ले जा रहे है. \q1 वे अपनी ही कल्पना के दर्शन का उल्लेख करते हैं, \q2 न कि याहवेह के मुख से उद्‍भूत संदेश को. \q1 \v 17 जिन्हें मुझसे घृणा है वे यह आश्वासन देते रहते हैं, \q2 ‘याहवेह ने यह कहा है: तुम्हारे मध्य शांति व्याप्‍त रहेगी.’ \q1 तब तुम सभी के विषय में जो अपने हृदय के हठ में आचरण करते हो, \q2 मुझे यह कहना है: वे कहते तो हैं, ‘तुम पर विपत्ति के आने की कोई संभावना ही नहीं हैं.’ \q1 \v 18 कौन याहवेह की संसद में उपस्थित हुआ है, \q2 कि याहवेह को देखे तथा उनका स्वर सुने? \q1 \v 19 ध्यान दो, कि याहवेह का प्रकोप \q2 आंधी सदृश प्रभावी हो चुका है, \q1 हां, बवंडर सदृश \q2 यह दुष्टों के सिरों पर भंवर सदृश उतर पड़ेगा. \q1 \v 20 याहवेह के कोप का बुझना उस समय तक नहीं होता \q2 जब तक वह अपने हृदय की बातें कार्यान्वयन की \q2 निष्पत्ति नहीं कर लेते. \q1 भावी अंतिम दिनों में \q2 तुम यह स्पष्ट समझ लोगे. \q1 \v 21 जब मैंने इन भविष्यवक्ताओं को भेजा ही नहीं था, \q2 वे दौड़ पड़े थे; \q1 उनसे तो मैंने बात ही नहीं की थी, \q2 किंतु वे भविष्यवाणी करने लगे. \q1 \v 22 यदि वे मेरी संसद में उपस्थित हुए होते, \q2 तो वे निश्चयतः मेरी प्रजा के समक्ष मेरा संदेश भेजा करते, \q1 वे मेरी प्रजा को कुमार्ग से लौटा ले आते \q2 और वे अपने दुराचरण का परित्याग कर देते. \b \q1 \v 23 “क्या मैं परमेश्वर तब होता हूं, जब मैं तुम्हारे निकट हूं?” \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q2 “क्या मैं तब परमेश्वर नहीं हूं, जब मैं तुमसे दूर होता हूं? \q1 \v 24 क्या कोई व्यक्ति स्वयं को किसी छिपने के स्थान पर ऐसे छिपा सकता है, \q2 कि मैं उसे देख न सकूं?” \q2 यह याहवेह का प्रश्न है. \q1 “क्या आकाश और पृथ्वी मुझसे पूर्ण नहीं हैं?” \q2 यह याहवेह का प्रश्न है. \p \v 25 “मैंने वह सुन लिया है जो झूठे भविष्यवक्ताओं ने मेरा नाम लेकर इस प्रकार भविष्यवाणी करते हैं: ‘मुझे एक स्वप्न आया था! सुना तुमने, मुझे एक स्वप्न आया था!’ \v 26 और कब तक? क्या उन भविष्यवक्ताओं के हृदय में जो झूठी भविष्यवाणी करते रहते हैं, कुछ सार्थक है, हां, वे भविष्यद्वक्ता जो अपने ही हृदय के भ्रम की भविष्यवाणी करते रहते हैं. \v 27 जिनका एकमात्र लक्ष्य होता है उनके उन स्वप्नों के द्वारा, जिनका उल्लेख वे परस्पर करते रहते हैं, मेरी प्रजा मेरा नाम ही भूलना पसंद कर दे, ठीक जिस प्रकार बाल के कारण उनके पूर्वजों ने मेरा नाम भूलना पसंद कर रखा था. \v 28 जिस भविष्यद्वक्ता ने स्वप्न देखा है वह अपने स्वप्न का उल्लेख करता रहे, किंतु जिस किसी को मेरा संदेश सौंपा गया है वह पूर्ण निष्ठा से मेरा संदेश प्रगट करे. भला भूसी तथा अन्‍न में कोई साम्य होता है?” यह याहवेह की वाणी है. \v 29 “क्या मेरा संदेश अग्नि-सदृश नहीं?” यह याहवेह का प्रश्न है, “और क्या एक हथौड़े सदृश नहीं जो चट्टान को चूर्ण कर देता है? \p \v 30 “इसलिये यह समझ लो, मैं उन भविष्यवक्ताओं से रुष्ट हूं,” यह याहवेह की वाणी है, “जो एक दूसरे से मेरा संदेश छीनते रहते हैं. \v 31 यह समझ लो, मैं उन भविष्यवक्ताओं से रुष्ट हूं,” यह याहवेह की वाणी है, “जो अपनी जीभ का प्रयोग कर यह वाणी कहते हैं, ‘यह प्रभु की वाणी है.’ \v 32 यह समझ लो, मैं उन सभी से रुष्ट हूं जिन्होंने झूठे स्वप्नों को भविष्यवाणी का स्वरूप दे दिया है,” यह याहवेह की वाणी है. “तथा इन स्वप्नों को मेरी प्रजा के समक्ष प्रस्तुत करके अपने लापरवाह झूठों तथा दुस्साहसमय गर्वोक्ति द्वारा उन्हें भरमाते है. मैंने न तो उन्हें कोई आदेश दिया है और न ही उन्हें भेजा है. मेरी प्रजा को इनसे थोड़ा भी लाभ नहीं हुआ है,” यह याहवेह की वाणी है. \s1 झूठी भविष्यवाणी \p \v 33 “अब यदि ऐसी स्थिति आए, जब जनसाधारण अथवा भविष्यद्वक्ता अथवा पुरोहित तुमसे यह प्रश्न करें, ‘क्या है याहवेह का प्रकाशन?’ तब तुम्हें उन्हें उत्तर देना होगा, ‘कौन सा प्रकाशन?’ याहवेह की वाणी है, मैं तुम्हारा परित्याग कर दूंगा. \v 34 तब उस भविष्यद्वक्ता अथवा पुरोहित अथवा उन लोगों के विषय में जो यह कहते हैं, ‘याहवेह का सारगर्भित प्रकाशन,’ उस पर मेरी ओर से दंड प्रभावी हो जाएगा उस पर तथा उसके परिवार पर. \v 35 तुममें से हर एक अपने-अपने पड़ोसी एवं अपने बंधु से यह पूछेगा: ‘क्या था याहवेह का प्रत्युत्तर?’ अथवा, ‘क्या प्रकट किया है याहवेह ने?’ या \v 36 ‘क्योंकि याहवेह का प्रकाशन तुम्हें स्मरण न रह जाएगा,’ क्योंकि हर एक व्यक्ति के अपने ही वचन प्रकाशन हो जाएंगे. तुमने जीवन्त परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह हमारे परमेश्वर के संदेश को तोड़ मरोड़ दिया है. \v 37 उस भविष्यद्वक्ता से तुम यह प्रश्न करोगे: ‘क्या उत्तर दिया है याहवेह ने तुम्हें?’ तथा ‘याहवेह ने क्या कहा है?’ \v 38 क्योंकि यदि तुम कहोगे, ‘याहवेह का वह प्रकाशन,’ निश्चयतः यह याहवेह की बात है: इसलिये कि तुमने इस प्रकार कहा है, ‘याहवेह का वह प्रकाशन,’ मैंने भी तुम्हें यह संदेश भेजा है तुम यह नहीं कहोगे, ‘यह याहवेह का वह प्रकाशन है.’ \v 39 इसलिये ध्यान से सुनो, मैं निश्चयतः तुम्हें भूलना पसंद करके तुम्हें अपनी उपस्थिति से दूर कर दूंगा, इस नगर को भी जो मैंने तुम्हें एवं तुम्हारे पूर्वजों को प्रदान किया था. \v 40 मैं तुम्हारे साथ ऐसी चिरस्थायी लज्जा, ऐसी चिरस्थायी निंदा सम्बद्ध कर दूंगा जो अविस्मरणीय हो जाएगी.” \c 24 \s1 अंजीर की दो टोकरियां \p \v 1 जब बाबेल का राजा नबूकदनेज्ज़र यहोइयाकिम के पुत्र यहूदिया के राजा यकोनियाह को, यहूदिया के उच्चाधिकारियों को, येरूशलेम के शिल्पकारों तथा धातुकर्मियों को अपने साथ बाबेल ले गया, याहवेह ने मुझे यह प्रदर्शित किया: याहवेह के मंदिर के समक्ष अंजीर की दो टोकरियां रखी गई हैं, इन्हें देखो. \v 2 एक टोकरी में अत्यंत उत्कृष्ट अंजीर रखे हुए थे, जैसे पहली उपज के पके फल; दूसरी टोकरी में अत्यंत निकृष्ट कोटि के गले हुए, सेवन के लिए सर्वथा अयोग्य अंजीर रखे हुए थे. \p \v 3 तब याहवेह ने मुझसे पूछा, “क्या दिखाई दे रहा है तुम्हें, येरेमियाह?” \p मैंने उत्तर दिया, “अंजीर, उत्तम कोटि के अंजीर उत्कृष्ट हैं, तथा तुच्छ अंजीर अत्यंत निकृष्ट, सेवन के लिए अयोग्य क्योंकि वे गल चुके हैं.” \p \v 4 तब मेरे लिए याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \v 5 “याहवेह इस्राएल के परमेश्वर का वचन यह है: ‘इन उत्तम अंजीरों के सदृश, मैं यहूदिया के बंदियों को उत्तम मान लूंगा, जिन्हें मैंने इस स्थान से कसदियों के देश में कृपादृष्टि में भेज दिया है. \v 6 क्योंकि मैं उन पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखूंगा तथा मैं उन्हें इसी देश में लौटा ले आऊंगा. मैं उन्हें उभारूंगा, ध्वस्त नहीं; मैं उन्हें रोपित करूंगा; नहीं उखाड़ूंगा. \v 7 मैं उन्हें ऐसा हृदय दूंगा जिससे उन्हें यह ज्ञान हो जाएगा, कि याहवेह मैं हूं. वे मेरी प्रजा होंगे, तथा मैं उनका परमेश्वर, क्योंकि वे अपने संपूर्ण हृदय से मेरे निकट लौट आएंगे. \p \v 8 “ ‘किंतु उन निकृष्ट अंजीरों के सदृश, जो खाने के लिए अयोग्य हैं क्योंकि वे गल चुके हैं, वस्तुतः याहवेह का कहना यह है, इसी प्रकार मैं यहूदिया के राजा सीदकियाहू, उसके अधिकारियों तथा येरूशलेम के लोगों का, जो इस देश में रह जाएंगे तथा उन्हें जो मिस्र देश में निवास करते हैं और सभी का परित्याग कर दूंगा. \v 9 मैं उन्हें पृथ्वी के सारे देशों के लिए आतंक, संकट, एक निंदा, एक लोकोक्ति, एक व्यंग्य सदृश तथा उन सभी स्थानों में जहां मैं उन्हें बिखरा दूंगा, एक शाप बना छोड़ूंगा. \v 10 मैं उनके ऊपर तब तक तलवार, अकाल तथा महामारी का प्रहार करता रहूंगा, जब तक वे उस देश में से जो मैंने उन्हें तथा उनके पूर्वजों को प्रदान किया है, नष्ट न हो जाएं.’ ” \c 25 \s1 बंधुआई की नबूवत \p \v 1 योशियाह के पुत्र यहूदिया के राजा यहोइयाकिम के राज्य-काल के चौथे वर्ष में यह बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र के राज्य-काल का पहला वर्ष था, येरेमियाह को याहवेह का संदेश भेजा गया जो यहूदिया की सारी प्रजा से संबंधित था. \v 2 जो भविष्यद्वक्ता येरेमियाह ने यहूदिया के सारे निवासियों तथा येरूशलेम के सारे निवासियों को प्रगट किया: \v 3 अमोन के पुत्र यहूदिया के राजा योशियाह के राज्य-काल के तेरहवें वर्ष से आज तक इन तेईस वर्षों में मुझे याहवेह का संदेश प्राप्‍त होता आया है, जो मैं बार-बार तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत भी करता रहा हूं, किंतु तुमने इसकी अनसुनी ही की है. \p \v 4 याहवेह ने बार-बार अपने भविष्यवक्ताओं को भेजा जो सभी याहवेह के सेवक थे, किंतु न तो तुमने उनकी और ध्यान दिया और न ही उनकी सुनी. \v 5 भविष्यवक्ताओं का संदेश था, “तुम सभी अपने-अपने अनाचार तथा अपने-अपने दुष्कर्मों को त्याग कर लौट आओ, तथा उस देश में निवास करो जो याहवेह ने तुम्हें तथा तुम्हारे पूर्वजों को सदा-सर्वदा के लिए दे दिया है. \v 6 उन परकीय देवताओं का अनुसरण मत करो न उनकी सेवा करो न उनकी उपासना; अपनी हस्तकृतियों के द्वारा मेरे कोप को मत भड़काओ कि मैं तुम्हारी कोई हानि करूं.” \p \v 7 “फिर भी तुमने मेरी न सुनी,” यह याहवेह की वाणी है, “तुमने यह सब स्वयं अपनी ही हानि के लिए अपनी हस्तकृतियों के द्वारा मेरे कोप को भड़काने के उद्देश्य से किया है.” \p \v 8 इसलिये सेनाओं के याहवेह का कहना यह है: “इसलिये कि तुमने मेरे आदेशों का पालन नहीं किया है, \v 9 यह देख लेना कि मैं उत्तर दिशा के सारे परिवारों को बुलाऊंगा,” यह याहवेह की वाणी है, “साथ ही मैं अपने सेवक बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र को भी बुलाऊंगा कि वह इस देश पर इसके निवासियों तथा इस देश के निकटवर्ती इन सारे देशों पर आक्रमण करे. मैं इन्हें पूर्णतः नष्ट कर दूंगा कि वे आतंक तथा व्यंग्य का प्रतीक बन जाएं, कि उनमें स्थायी उजाड़ व्याप्‍त हो जाए. \v 10 इसके सिवा मैं इन देशों से आनंद का स्वर एवं हर्षोल्लास की ध्वनि ही मिटा दूंगा, न वहां वर का स्वर सुना जा सकेगा न वधू का, न वहां चक्की की ध्वनि होगी न दीप की ज्योति. \v 11 यह संपूर्ण देश एक उजाड़ तथा भयावहता में परिवर्तित हो जाएगा, ये जनता सत्तर वर्षों तक बाबेल के राजा की सेवा करते रहेंगे. \p \v 12 “तत्पश्चात यह होगा: जब सत्तर वर्ष बीत जाएंगे, मैं बाबेल के राजा एवं राष्ट्र को तथा कसदियों के देश को उनके अधर्म के लिए दंड दूंगा,” यह याहवेह की वाणी है, “मैं उसे चिरस्थायी उजाड़ में परिवर्तित कर दूंगा. \v 13 उस देश से संबंधित मेरे द्वारा उच्चारित सारे शब्द सत्य प्रमाणित होंगे, वे सब जो इस ग्रंथ में बताए गए है जिनकी भविष्यवाणी येरेमियाह ने इन सभी राष्ट्रों के विरुद्ध की थी. \v 14 क्योंकि अनेक राष्ट्र एवं प्रतिष्ठित राजा उन्हें भी अपने दास बना लेंगे; हां, बाबेलवासियों को भी मैं उनके द्वारा किए गए कार्यों के अनुरूप ही प्रतिफल दूंगा.” \s1 याहवेह के कोप का प्याला \p \v 15 क्योंकि याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का, मेरे लिए आदेश यह है: “मेरे हाथ से मेरे कोप के द्राक्षारस का प्याला ले लो और उन सभी देशों को जहां मैं तुम्हें भेजने पर हूं, इसे पीने के लिए प्रेरित करो. \v 16 वे उस तलवार के कारण जो मैं उनके मध्य भेजने पर हूं, इसे पिएंगे, लड़खड़ाने लगेंगे तथा उन्मत्त हो जाएंगे.” \v 17 मैंने याहवेह के हाथ से वह प्याला ले लिया और याहवेह ने मुझे जिन-जिन राष्ट्रों में भेजा उन्हें पिला दिया: \b \li1 \v 18 येरूशलेम तथा यहूदिया के नगर, उनके राजा एवं उनके उच्चाधिकारियों को वे अवशेष, आतंक, उपहास तथा शाप बने रह जाएं, जैसा कि आज भी देखा जा सकता है; \li1 \v 19 मिस्र का राजा फ़रोह, उसके सेवक, उसके उच्च अधिकारी तथा उसकी सारी प्रजा, \v 20 सभी विदेशी नागरिक; \li1 उज़ देश के सभी राजा; \li1 फिलिस्तिया देश के सभी राजा, यहां तक कि अश्कलोन, अज्जाह\f + \fr 25:20 \fr*\fq अज्जाह \fq*\ft यानी \ft*\fqa गाज़ा\fqa*\f*, एक्रोन, तथा अशदोद के लोग; \li1 \v 21 एदोम, मोआब तथा अम्मोन के वंशज; \li1 \v 22 सोर के सभी राजा, सीदोन के सभी राजा, \li1 तथा उन तटवर्ती क्षेत्रों के राजा जो सागर के परे हैं; \li1 \v 23 देदान, तेमा, बुज़ तथा वे सभी जो अपनी कनपटी के बाल क़तर लेते हैं; \li1 \v 24 अरेबिया के सभी राजा तथा विदेशियों के सभी राजा जो मरुस्थल में निवास करते हैं; \li1 \v 25 ज़िमरी के सभी राजा, एलाम के सभी राजा, मेदिया के सभी राजा; \li1 \v 26 उत्तर के सभी राजा दूर अथवा निकट के, एक के बाद एक, तथा पृथ्वी के सभी राज्य, जो पृथ्वी तल पर हैं, \li1 और इन सबके बाद शेशाख का राजा भी यह द्राक्षारस पिएगा. \b \p \v 27 “तुम्हें उनसे कहना होगा, ‘इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह का आदेश यह है: पियो, मतवाले हो जाओ, उल्टी करो, गिर पड़ो, फिर खड़े ही न होओ, उस तलवार के कारण जो मैं तुम्हारे मध्य तैयार करने पर हूं.’ \v 28 यदि वे तुम्हारे हाथ से वह प्याला लेकर पीना अस्वीकार कर दें, तब तुम्हें उनसे यह कहना होगा, ‘सेनाओं के याहवेह का संदेश यह है: निश्चयतः पीना तो तुम्हें पड़ेगा ही! \v 29 क्योंकि यह देखना, इस नगर में जो मेरे नाम से प्रतिष्ठित हैं, मैं घोर संकट प्रारंभ करने पर हूं, कैसे संभव है कि तुम दंड से बचे रहोगे? तुम दंड से बच न सकोगे, क्योंकि मैंने सारी पृथ्वी के निवासियों के विरुद्ध तलवार का आह्वान किया हुआ है, यह सेनाओं के याहवेह की वाणी है.’ \p \v 30 “इसलिये तुम्हें उन सबके विरुद्ध यह भविष्यवाणी करनी होगी और तुम उनसे यह कहोगे: \q1 “ ‘याहवेह की गर्जना उनके उच्च स्थान से होगी; \q2 तथा उनके पवित्र आवास से उनका स्वरोच्चार होगा \q2 वह अपनी भेड़-बकरियों पर उच्च स्वर में गरजेंगे. \q1 उनका उच्च स्वर पृथ्वी के सारे निवासियों के विरुद्ध, \q2 उनके सदृश होगा जो द्राक्षा को रौंद रहे हैं. \q1 \v 31 पृथ्वी के छोर तक यह आवाज गूंज उठेगी, \q2 क्योंकि याहवेह ने राष्ट्रों पर आरोप लगाया है; \q1 वह सारे मनुष्यों का न्याय करने पर हैं, जहां तक बुराइयों का प्रश्न है, \q2 याहवेह ने उन्हें तलवार से घात होने के लिए तैयार कर दिया है,’ ” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \p \v 32 सेनाओं के याहवेह की यह वाणी है: \q1 “इस ओर ध्यान दो \q2 एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में घोर विपत्ति प्रसारित होती चली जा रही है; \q1 और पृथ्वी के दूर-दूर के क्षेत्रों से \q2 एक विशाल बवंडर स्वरूप ले रहा है.” \m \v 33 उस अवसर पर याहवेह द्वारा घात किए हुए लोग पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक देखे जाएंगे. उनके लिए विलाप नहीं किया जाएगा न ही उन्हें एकत्र करके गाड़ा जाएगा, वे भूमि के ऊपर मल सदृश पड़े रहेंगे. \q1 \v 34 चरवाहो, विलाप करो, विलाप करो; \q2 तुम जो भेड़-बकरियों के स्वामी हो, भस्म में लोटते रहो. \q1 क्योंकि तुम्हारे मारे जाने तथा तुम्हारे तितर-बितर होने के दिन आ पहुंचे हैं; \q2 तुम उत्कृष्ट बर्तन के सदृश गिरकर चूर-चूर हो जाओगे. \q1 \v 35 चरवाहों के समक्ष पलायन करने का कोई स्थान न होगा, \q2 वही स्थिति होगी पशुओं के झुंड के स्वामियों की. \q1 \v 36 चरवाहों के रोने की ध्वनि सुन लो, \q2 साथ ही भेड़-बकरियों के स्वामियों का विलाप भी, \q2 क्योंकि याहवेह उनके चरवाहों को नष्ट कर रहे हैं. \q1 \v 37 उनकी शान्तिपूर्ण चरागाहें \q2 याहवेह के प्रचंड कोप के कारण निस्तब्ध हो गई हैं. \q1 \v 38 सिंह के सदृश याहवेह अपनी मांद से निकल पड़े हैं, \q2 याहवेह के प्रचंड कोप के कारण \q1 तथा दमनकारी तलवार की प्रचंडता के कारण \q2 उनका देश भयावह हो चुका है. \c 26 \s1 येरेमियाह की हत्या की धमकी \p \v 1 योशियाह के पुत्र यहूदिया के राजा यहोइयाकिम के राज्य-काल के प्रारंभ में याहवेह की ओर से यह संदेश भेजा गया: \v 2 “याहवेह का आदेश यह है: याहवेह के भवन के आंगन में खड़े होकर यहूदिया के उन सारे नगरों को संबोधित करो, जो याहवेह के भवन में वंदना के उद्देश्य से एकत्र हुए हैं तथा तुम उन्हें वह सब प्रगट कर दो, जिनके लिए वचन देने का आदेश मैं तुम्हें दे चुका हूं; एक शब्द भी न छूटने पाए. \v 3 यह संभव है कि वे मेरी सुन लें तथा अपनी बुरी चाल का परित्याग कर दें. जिससे मैं उस विध्वंस का विचार त्याग दूं जो मैंने उनके लिए उनके अधर्म के कारण योजित किया था. \v 4 तुम्हें उनसे कहना होगा, ‘यह याहवेह की ओर से प्रसारित चेतावनी है: यदि तुम मेरी न सुनो, मेरी नीति का आचरण न करो जो मैं तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत कर चुका हूं, \v 5 कि तुम मेरे सेवक उन भविष्यवक्ताओं द्वारा भेजा संदेश न सुनो, जिन्हें मैं बार-बार तुम्हारे लिए भेज रहा हूं (जिनकी तुमने नहीं सुनी है), \v 6 तब मैं इस भवन की वही स्थिति कर दूंगा जो शीलो की हुई थी तथा मैं इस नगर को पृथ्वी के सारे राष्ट्रों के लिए एक शाप बना दूंगा.’ ” \p \v 7 याहवेह के भवन में पुरोहितों, भविष्यवक्ताओं तथा सारे जनसाधारण ने येरेमियाह को यह वचन देते हुए सुन लिया. \v 8 जब येरेमियाह याहवेह द्वारा आदेशित सब लोगों के लिए संदेश दे चुके, पुरोहितों, भविष्यवक्ताओं तथा लोगों ने उन्हें यह कहते हुए पकड़ लिया, “इसके लिए तुम्हें प्राण-दंड दिया जाना उपयुक्त है! \v 9 कैसे तुमने याहवेह के नाम में यह भविष्यवाणी कर दी है, यह भवन शीलो सदृश हो जाएगा तथा यह नगर निर्जन तथा उजाड़ हो जाएगा?” याहवेह के भवन परिसर में सारे जनसमूह ने येरेमियाह को घेर लिया. \p \v 10 जब यहूदिया के अधिकारियों ने यह सब सुना, वे राजमहल से याहवेह के भवन परिसर में आ गए, उन्होंने याहवेह के भवन के नव-द्वार के प्रवेश में अपने आसन स्थापित किए. \v 11 तब पुरोहितों एवं भविष्यवक्ताओं ने उन अधिकारियों एवं जनसमुदाय को संबोधित कर कहा, “यह व्यक्ति मृत्यु दंड के योग्य है. उसने इस नगर के विरुद्ध भविष्यवाणी की है, जैसा कि आपने स्वयं सुन लिया है!” \p \v 12 तब येरेमियाह ने सारे अधिकारियों तथा सारे जनसमुदाय को यह कहते हुए अपना प्रत्युत्तर दिया: “स्वयं याहवेह ने मुझे उन शब्दों में जिन्हें आप लोगों ने सुने हैं, इस नगर एवं भवन के विरुद्ध भविष्यवाणी करने का आदेश दिया था. \v 13 अब आप अपने आचरण को तथा अपने कार्यों को सुधार लीजिए तथा याहवेह अपने परमेश्वर के आदेश के प्रति आज्ञाकारी बन जाइए. तब याहवेह आपके संबंध में घोषित विपत्ति के विषय में अपने संकल्प को परिवर्तित कर देंगे. \v 14 जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं तो आपकी कृपा पर निर्भर कर रहा हूं; मेरे साथ आप वही कीजिए जो कुछ आपको उपयुक्त लगे. \v 15 हां, यह अवश्य समझ लीजिए, यदि आप मुझे प्राण-दंड देते हैं, आप एक निस्सहाय की मृत्यु का दोष स्वयं पर तथा इस नगर एवं इसके निवासियों पर ले आएंगे, क्योंकि सत्य यही है कि याहवेह ने ही मुझे इस संदेश को प्रगट करने भेजा है कि आप इसे सुन लें.” \p \v 16 यह सुन अधिकारियों तथा सारे जनसमूह ने पुरोहितों तथा भविष्यवक्ताओं से कहा, “इस व्यक्ति को प्राण-दंड न दिया जाए! क्योंकि इसने हमसे याहवेह हमारे परमेश्वर के नाम में बात की है.” \p \v 17 तत्पश्चात देश के कुछ प्राचीन नागरिकों ने उठकर जनसभा को संबोधित कर कहा, \v 18 “यहूदिया के राजा हिज़किय्याह के राज्य-काल में मोरेशेथवासी मीकाह ने भविष्यवाणी की थी और उसकी भविष्यवाणी सारे यहूदियावासियों से संबंधित इस प्रकार थी, ‘सेनाओं के याहवेह ने यह कहा है: \q1 “ ‘ज़ियोन पर खेत के सदृश हल चला दिया जाएगा, \q2 येरूशलेम खंडहर हो जाएगा, \q2 तथा भवन की पहाड़ी, वन में पूजा-स्थल का स्वरूप ले लेगी.’ \m \v 19 क्या यहूदिया के राजा हिज़किय्याह एवं सारे यहूदिया की जनता ने उसे प्राण-दंड दिया? क्या हिज़किय्याह ने याहवेह से डर और श्रद्धा के साथ याचना नहीं की? क्या याहवेह ने उनका विनाश करने का वह विचार त्याग नहीं दिया, जिसकी चेतावनी याहवेह पहले से दे चुके थे? किंतु अब हम स्वयं अपने ही विरुद्ध घोर संकट कर रहे हैं!” \p \v 20 वस्तुतः एक ऐसा व्यक्ति हो चुका है जिसने याहवेह के नाम में भविष्यवाणी की थी; शेमायाह का पुत्र उरियाह जो किरयथ-यआरीमवासी था; उसने इस नगर एवं देश के विरुद्ध इसी प्रकार के शब्दों में भविष्यवाणी की थी जैसी येरेमियाह ने. \v 21 जब राजा यहोइयाकिम, उसके शूर योद्धाओं तथा उसके अधिकारियों ने ये शब्द सुने, राजा ने उसे घात करने की युक्ति की. किंतु जब उरियाह को इसका समाचार प्राप्‍त हुआ, वह भयभीत हो मिस्र देश को पलायन कर गया. \v 22 तब राजा यहोइयाकिम ने मिस्र देश को अपने ये प्रतिनिधि भेज दिए, अखबोर का पुत्र एल-नाथान तथा उसके साथ अन्य विशिष्ट व्यक्ति, ये सभी मिस्र देश जा पहुंचे. \v 23 वहां से वे उरियाह को लौटा ले आए, उसे राजा यहोइयाकिम के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिसने उसे तलवार से घात कर उसका शव उस स्थान पर फेंक दिया जहां सर्वसाधारण को गाड़ा जाता था. \p \v 24 किंतु, शापान का पुत्र अहीकाम येरेमियाह का सहायक था, परिणामस्वरूप येरेमियाह को मृत्यु दंड के लिए लोगों के हाथों में सौंपा नहीं गया. \c 27 \s1 यहूदिया नबूकदनेज्ज़र की सेवा करेंगे \p \v 1 नबूकदनेज्ज़र द्वारा रखा गया जूआ यहूदिया के राजा सीदकियाहू के पुत्र योशियाह के राज्य-काल के प्रारंभ में ही याहवेह का एक संदेश येरेमियाह को भेजा गया. \v 2 याहवेह ने मुझे यह आदेश दिया: “अपने लिए बंधन एवं जूआ बनाकर अपनी गर्दन पर रख लो. \v 3 और यहूदिया के राजा सीदकियाहू से भेंट करने येरूशलेम आए संदेशवाहकों द्वारा एदोम के राजा, मोआब के राजा, अम्मोन वंशजों के राजा, सोर के राजा तथा सीदोन राजा को यह संदेश प्रगट कर दो. \v 4 उन्हें आदेश दो कि ये संदेशवाहक अपने स्वामियों के पास लौटकर उन्हें यह संदेश दे दें, ‘सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का आदेश है: अपने स्वामियों से तुम्हें यह कहना होगा: \v 5 अपने अनन्य सामर्थ्य तथा अपने अपूर्व भुजबल से मैंने पृथ्वी, मनुष्यों एवं पशुओं की रचना की है जो आकाश तल पर ध्यान करते रहते हैं. अपनी स्वेच्छानुरूप यह मैं उसे दे देता हूं जो मेरी दृष्टि में योग्य है. \v 6 मैंने ही यह संपूर्ण भूभाग बाबेल के राजा अपने सेवक नबूकदनेज्ज़र को सौंप दिया है; मैंने उसे भूमि के वन्य पशु भी दे दिए हैं, कि ये उसकी सेवा में अधीन रहें. \v 7 सभी राष्ट्र उसके, उसके पुत्र के तथा उसके पौत्र के अधीन रहेंगे, उसके अपने राज्य की स्थापना हो जाने तक; तत्पश्चात अनेक राष्ट्र तथा पराक्रमी राजा नबूकदनेज्ज़र को अपने अधीन कर लेंगे. \p \v 8 “ ‘ “किंतु, यदि कोई राष्ट्र अथवा कोई राज्य बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र की अधीनता का विरोध करेगा तथा बाबेल के राजा के जूए में अपनी गर्दन नहीं देगा, उस राष्ट्र को मैं तलवार, अकाल तथा महामारी द्वारा दंड दूंगा, यह याहवेह की वाणी है, यह उस समय तक होता रहेगा जब तक मैं उसके द्वारा उस राष्ट्र को नष्ट न कर दूं. \v 9 किंतु तुम तो अपने भविष्यवक्ताओं, ज्योतिषियों, स्वप्नदर्शियों, शकुन वाचकों तथा टोन्हों की वाणियों की अनसुनी करना जो तुमसे यह कहते हैं, ‘बाबेल के राजा की अधीनता स्वीकार न करना.’ \v 10 क्योंकि वे तुम्हारे लिए झूठी भविष्यवाणी कर रहे हैं जिससे वे इसके द्वारा तुम्हें तुम्हारी मातृभूमि से दूर कर दें; तब मैं ही तुम्हें इस देश से दूर कर दूंगा और तुम नष्ट हो जाओगे. \v 11 किंतु वह राष्ट्र जो बाबेल के राजा के जूए में अपनी गर्दन देकर स्वयं को उसके अधीन कर देगा, मैं उसे उसकी मातृभूमि में ही निवास करने दूंगा, यह याहवेह की वाणी है, वे इसी देश में रहकर कृषि करेंगे और इसी में निवास करेंगे.” ’ ” \p \v 12 यही सब मैंने यहूदिया के राजा सीदकियाहू के समक्ष कह दिया. मैंने उनसे कहा, “अपनी गर्दन बाबेल के राजा के जूए में जोत दीजिए; और उसके तथा उसकी प्रजा के अधीन रहते हुए जीवित बने रहिए. \v 13 क्या आवश्यकता है कि आप तथा आपकी प्रजा तलवार, अकाल तथा महामारी के द्वारा मृत्यु को गले लगाए, जैसा कि याहवेह ने उस राष्ट्र के संदर्भ में उल्लेख किया था जो बाबेल के राजा की अधीनता स्वीकार न करेगा? \v 14 इसलिये उन भविष्यवक्ताओं के परामर्श पर ध्यान ही न दीजिए जो यह परामर्श दे रहे हैं, ‘बाबेल के राजा के अधीन होने की आवश्यकता ही नहीं है,’ क्योंकि वे तुमसे यह झूठी भविष्यवाणी कर रहे हैं. \v 15 ‘क्योंकि वे मेरे द्वारा भेजे गये भविष्यद्वक्ता हैं ही नहीं,’ यह याहवेह की वाणी है. ‘किंतु वे मेरे नाम में झूठी भविष्यवाणी किए जा रहे हैं, कि मैं तुम्हारे देश से तुम्हें दूर कर दूं और तुम नष्ट हो जाओ—तुम और ये भविष्यद्वक्ता, जो तुम्हारे लिए यह भविष्यवाणी कर रहे हैं.’ ” \p \v 16 तब मैंने पुरोहितों तथा सभी लोगों से यह कहा, “याहवेह का संदेश यह है: तुम अपने भविष्यवक्ताओं के शब्दों पर ध्यान न दो जो तुम्हारे लिए यह भविष्यवाणी कर रहे हैं, ‘शीघ्र ही याहवेह के भवन के बर्तन बाबेल से यहां लौटा लिये जाएंगे.’ क्योंकि वे तुम्हारे लिए झूठी भविष्यवाणी कर रहे हैं. \v 17 उनके द्वारा की गई भविष्यवाणी की उपेक्षा ही करना. बाबेल के राजा की अधीनता स्वीकार करके जीवित रहना. भला यह नगर उजाड़ क्यों बना दिया जाए? \v 18 यदि वे वास्तव में भविष्यद्वक्ता हैं तथा यदि उन्हें याहवेह का संदेश प्रगट किया गया है तो, वे अब सेनाओं के याहवेह से बिनती करें कि वे बर्तन, जो याहवेह के भवन में यहूदिया के राजा के राजमहल में तथा येरूशलेम में शेष रह गए हैं बाबेल न ले जाएं. \v 19-20 क्योंकि स्तंभों, जल बर्तन आधारों तथा नगर में शेष रह गए बर्तनों के विषय में, जिन्हें बाबेल का राजा नबूकदनेज्ज़र अपने साथ उस अवसर पर न ले जा सका था, जब वह यहोइयाकिम के पुत्र यहूदिया के राजा यकोनियाह तथा यहूदिया तथा येरूशलेम के सारे अभिजात व्यक्तियों को येरूशलेम से बाबेल को बंधुआई में ले गया था— \v 21 उन बर्तनों के विषय में, जो याहवेह के भवन में, यहूदिया के राजमहलों में तथा येरूशलेम में छूट गए हैं, सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: \v 22 ‘इन्हें बाबेल ले जाया जाएगा और वे सब वहां उस समय तक रहेंगे, जब तक मैं स्वयं उनकी ओर ध्यान न दूं,’ यह याहवेह की वाणी है. ‘तब मैं स्वयं उन्हें लौटा ले आऊंगा और उनके निर्धारित स्थान पर पुनःस्थापित कर दूंगा.’ ” \c 28 \s1 झूठे नबी हाननियाह \p \v 1 झूठे भविष्यद्वक्ता हाननियाह से येरेमियाह का सामना: तब उसी वर्ष यहूदिया के राजा सीदकियाहू के राज्य-काल के प्रारंभ ही में, वस्तुतः चौथे वर्ष के पांचवें माह में अज्ज़ूर के पुत्र गिबयोनवासी हाननियाह ने, जो भविष्यद्वक्ता था, मुझसे याहवेह के भवन में पुरोहितों एवं सारे उपस्थित लोगों के समक्ष यह कहा: \v 2 “इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह का यह संदेश सुनो: ‘मैंने बाबेल के राजा का जूआ भंग कर दिया है. \v 3 दो ही वर्षों के अंतराल में मैं याहवेह के भवन के उन सारे बर्तनों को जिन्हें बाबेल का राजा नबूकदनेज्ज़र इस स्थान से बाबेल को ले गया है, इसी स्थान पर लौटा ले आने पर हूं. \v 4 मैं यहोइयाकिम के पुत्र यहूदिया के राजा यकोनियाह को भी इस स्थान पर लौटा ले आने पर हूं तथा यहूदिया के उन सभी बंदियों को, जो बाबेल चले गए थे,’ यह याहवेह की वाणी है, ‘क्योंकि मैं बाबेल के राजा का जूआ तोड़ दूंगा.’ ” \p \v 5 यह सुन भविष्यद्वक्ता येरेमियाह ने भविष्यद्वक्ता हाननियाह को पुरोहितों एवं याहवेह के भवन में उपस्थित सारे लोगों के समक्ष संबोधित करते हुए कहा. \v 6 भविष्यद्वक्ता येरेमियाह के वचन इस प्रकार थे, “आमेन! याहवेह ऐसा ही हो जाने दें! तुम्हारे द्वारा की गई भविष्यवाणी की याहवेह पुष्टि करें, जो तुम्हारे द्वारा की गई है, कि याहवेह के भवन के बर्तन तथा बाबेल के सारे बंदियों को इस स्थान पर लौटा लाया जाएगा. \v 7 फिर भी, अब मेरा यह वचन सुन लो जो मैं तुम्हारे तथा इन सभी लोगों के सुनने में प्रस्तुत करने पर हूं: \v 8 प्राचीन काल से मेरे और तुम्हारे प्राचीन काल भविष्यद्वक्ता अनेक देशों तथा शक्तिशाली राज्यों के विरुद्ध युद्ध, अकाल संकट तथा महामारी की भविष्यवाणी करते आए हैं. \v 9 वह भविष्यद्वक्ता, जो शांति कल्याण की भविष्यवाणी करता है और उस भविष्यद्वक्ता की भविष्यवाणी चरितार्थ हो जाती है, तब वही भविष्यद्वक्ता याहवेह द्वारा भेजा गया सही भविष्यद्वक्ता होगा.” \p \v 10 यह सुन हाननियाह ने भविष्यद्वक्ता येरेमियाह की गर्दन पर रखा जूआ लेकर तोड़ डाला. \v 11 हाननियाह ने सभी उपस्थित लोगों के समक्ष यह कहा, “याहवेह का संदेश यह है: ‘मैं दो वर्ष के भीतर ही भीतर सारी जनताओं की गर्दन पर से बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र का जूआ तोड़ डालूंगा.’ ” तब भविष्यद्वक्ता येरेमियाह वहां से चले गए. \p \v 12 भविष्यद्वक्ता हाननियाह द्वारा भविष्यद्वक्ता येरेमियाह की गर्दन पर रखे जूए को तोड़ देने के बाद, येरेमियाह को याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \v 13 “जाकर हाननियाह से यह कहना: ‘यह याहवेह द्वारा भेजा गया संदेश है: तुमने तो काठ के जुओं को तोड़ दिया है, किंतु तुम्हीं ने उनके स्थान पर लोहे के जूए निर्मित कर दिए हैं. \v 14 क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह का संदेश यह है: मैंने इन सारी जनताओं की गर्दन पर लोहे का जूआ रख दिया है कि वे बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र के अधीन हो जाएं, वे निश्चयतः उसके अधीन रहेंगे. मैंने तो नबूकदनेज्ज़र को मैदान के पशुओं पर भी अधिकार दे दिया है.’ ” \p \v 15 तब भविष्यद्वक्ता येरेमियाह ने भविष्यद्वक्ता हाननियाह को संबोधित किया, “अब यह सुन लो, हाननियाह! याहवेह ने तुम्हें भेजा ही नहीं है, तुमने इन लोगों को असत्य पर विश्वास करने पर विवश किया है. \v 16 इसलिये याहवेह का संदेश यह है: ‘यह देखना कि मैं तुम्हें आकाश तल पर से ही हटा देने पर हूं. तुम्हारी मृत्यु इसी वर्ष हो जाएगी, क्योंकि तुमने याहवेह के विरुद्ध विद्रोह करने की युक्ति की है.’ ” \p \v 17 उसी वर्ष सातवें माह में, भविष्यद्वक्ता हाननियाह की मृत्यु हो गई. \c 29 \s1 बंदियों को येरेमियाह का पत्र \p \v 1 नबूकदनेज्ज़र द्वारा येरूशलेम से बाबेल बंदी उत्तरजीवी प्राचीनों, पुरोहितों, भविष्यवक्ताओं तथा सारे लोगों को संबोधित येरेमियाह द्वारा लिखित पत्र की विषय-वस्तु यह है. \v 2 (यह उस समय का उल्लेख है जब राजा यकोनियाह, राजमाता, सांसद तथा यहूदिया तथा येरूशलेम के प्रशासक, कुशल मजदूर और शिल्पकार येरूशलेम से पलायन कर चुके थे.) \v 3 यह पत्र शापान के पुत्र एलासाह तथा हिलकियाह के पुत्र गेमारियाह के हाथों में सौंप दिया गया, कि यह पत्र यहूदिया के राजा सीदकियाहू ने बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र को इन शब्दों में संबोधित करते हुए बाबेल में भेजा: \pm \v 4 सभी बंदियों के लिए, जिन्हें मैंने येरूशलेम से बाबेल में बंधुआई में भेजा है, सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: \v 5 “आवासों का निर्माण करो तथा उनमें निवास करो; वाटिकाएं रोपित करो तथा उनके उत्पाद का उपभोग करो. \v 6 विवाह करो और पुत्र-पुत्रियों के जनक हो जाओ; तब अपने पुत्रों के लिए पत्नियां ले आओ तथा अपनी पुत्रियों का विवाह कर उन्हें विदा करो, कि वे संतान पैदा करें-उनका बढ़ना ही होता रहे, कमी नहीं. \v 7 जिस नगर में मैंने तुम्हें बंदी बनाकर रखा है, तुम उस नगर के हित का यत्न करते रहना. उसकी ओर से तुम याहवेह से बिनती भी करते रहना, क्योंकि उस नगर की समृद्धि में ही तुम्हारा हित निहित होगा.” \v 8 क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह का आदेश यह है: “सावधान रहना कि तुम अपने मध्य विद्यमान भविष्यवक्ताओं तथा पूर्वघोषकों के धोखे में न आ जाओ. वे अपने जिन स्वप्नों का उल्लेख करते हैं, उनकी ओर भी ध्यान न देना. \v 9 क्योंकि वे मेरे नाम में तुमसे झूठी भविष्यवाणी कर रहे होंगे. वे मेरे द्वारा भेजे गये बर्तन नहीं हैं,” यह याहवेह की वाणी है. \pm \v 10 क्योंकि याहवेह की वाणी यह है: “जब बाबेल के सत्तर वर्ष पूरे हो जायेंगे, तब मैं तुम्हारी ओर आकर तुमसे की गई बात, तुम्हें इसी स्थान पर लौटा ले आने की वह रुचिर प्रतिज्ञा पूर्ण करूंगा. \v 11 इसलिये कि मेरे द्वारा तुम्हारे लिए योजित अभिप्राय स्पष्ट हैं,” यह याहवेह की वाणी है, “तुम्हें एक प्रत्याशित भविष्य प्रदान करने के निमित, मैंने समृद्धि की योजना का विन्यास किया है, संकट का नहीं. \v 12 उस समय तुम मेरी ओर उन्मुख होकर मुझे पुकारोगे, मुझसे बिनती करोगे और मैं तुम्हारी सुनूंगा. \v 13 तुम मेरी खोज करोगे और मुझे प्राप्‍त कर लोगे, जब तुम अपने संपूर्ण हृदय से मेरी खोज करोगे. \v 14 यह याहवेह की वाणी है, मैं तुम्हें उपलब्ध हो जाऊंगा, मैं तुम्हारे ऐश्वर्य को लौटाकर दूंगा तथा तुम्हें उन सभी राष्ट्रों तथा स्थानों से एकत्र करूंगा, जहां मैंने तुम्हें बंदी कर दिया है,” यह याहवेह की वाणी है, “तब मैं तुम्हें उसी स्थान पर लौटा ले आऊंगा, जहां से मैंने तुम्हें बंधुआई में भेज दिया था.” \pm \v 15 इसलिये कि तुम्हारा यह दावा है, “बाबेल में हमारे निमित्त भविष्यवक्ताओं का उद्भव याहवेह द्वारा किया गया है,” \v 16 यह याहवेह का संदेश है, उस राजा के विषय में जो दावीद के सिंहासन पर विराजमान होता है तथा उन लोगों के विषय में, जो इस नगर में निवास कर रहे हैं, जो सहनागरिक तुम्हारे साथ बंधुआई में नहीं गए हैं— \v 17 सेनाओं के याहवेह की यह वाणी है: “यह देख लेना मैं उन पर तलवार का प्रहार करवाऊंगा, अकाल तथा महामारी भेजूंगा. मैं उनका स्वरूप ऐसे फटे हुए अंजीरों के सदृश बना दूंगा, जो सड़न के कारण सेवन के योग्य ही नहीं रह गए हैं. \v 18 मैं तलवार, अकाल तथा महामारी लेकर उनका पीछा करूंगा. मैं उन्हें पृथ्वी के सारे राज्यों के समक्ष भयावह बना दूंगा, कि वे उन राष्ट्रों के मध्य शाप, भय तथा उपहास का विषय बनकर रह जाएं, जहां मैंने उन्हें दूर किया है. \v 19 क्योंकि उन्होंने मेरे आदेशों की ओर ध्यान नहीं दिया है,” यह याहवेह की वाणी है, “जो मैं अपने सेवकों, भविष्यवक्ताओं के द्वारा बार-बार भेज रहा हूं. किंतु तुमने उनकी सुनी ही नहीं,” यह याहवेह की वाणी है. \pm \v 20 इसलिये तुम याहवेह का आदेश सुनो, तुम सभी बंदियों, जिन्हें मैंने येरूशलेम से बाबेल बंदी किया है. \v 21 यह इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह की कोलाइयाह के पुत्र अहाब तथा मआसेइयाह के पुत्र सीदकियाहू के विषय में, जो मेरे नाम में झूठी भविष्यवाणी कर रहे हैं यह वाणी है: “यह देखना कि मैं उन्हें बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र के हाथों में सौंप दूंगा, जो तुम्हारे देखते-देखते उनका वध कर देगा. \v 22 उनके कारण उन सभी बंदी द्वारा, जिन्हें यहूदिया से बाबेल ले जाया गया है, इस प्रकार शाप दिया जाएगा: ‘याहवेह तुम्हें सीदकियाहू तथा अहाब सदृश बना दें, जिन्हें बाबेल के राजा ने अग्नि में झोंक दिया था.’ \v 23 इस्राएल में उन्होंने जो किया है, वह मूर्खतापूर्ण था; उन्होंने अपने पड़ोसियों की पत्नियों के साथ व्यभिचार किया, उन्होंने मेरे नाम में झूठे वचन दिए हैं, जिनके विषय में मेरी ओर से कोई आदेश नहीं दिया गया था. मैं वह हूं, जिसे संज्ञान है, मैं प्रत्यक्षदर्शी हूं,” यह याहवेह की वाणी है. \s1 शेमायाह के लिए संदेश \p \v 24 नेहेलामी शेमायाह से तुम्हें कहना होगा, \v 25 “इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह की वाणी यह है: इसलिये कि तुमने स्वयं अपने ही नाम में येरूशलेम में निवास कर रहे लोगों को, मआसेइयाह के पुत्र पुरोहित ज़ेफनियाह को तथा अन्य सभी पुरोहितों को पत्र प्रगट किए हैं, जिनमें यह लिखा गया था, \v 26 ‘याहवेह ने आपको पुरोहित यहोइयादा के स्थान पर पुरोहित नियुक्त किया है, कि आप याहवेह के भवन में भविष्यवाणी कर रहे हर एक विक्षिप्‍त व्यक्ति पर पर्यवेक्षक हो जाएं; कि उसे बेड़ी में तथा उसके गले को लौह गली में जकड़ दिया जाए. \v 27 इसलिये आपने अनाथोथवासी येरेमियाह को फटकार क्यों नहीं लगाई, जो आपके समक्ष भविष्यवाणी करता रहता है? \v 28 क्योंकि उसी ने तो हमें बाबेल में यह संदेश भेजा किया था: दीर्घकालीन होगी यह बंधुआई; अपने लिए आवास निर्मित करो और उनमें निवास करो, वाटिकाएं रोपित करो तथा उनके उत्पाद का उपभोग करो.’ ” \p \v 29 पुरोहित ज़ेफनियाह ने यह पत्र भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को पढ़ सुनाया. \v 30 यह होते ही येरेमियाह को याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \v 31 “सभी बंदियों को यह संदेश प्रगट कर दो: ‘नेहेलामी शेमायाह के विषय में याहवेह का संदेश यह है: इसलिये कि शेमायाह ने तुम्हारे समक्ष भविष्यवाणी की है यद्यपि उसे मैंने प्रगट किया ही न था तथा उसने तुम्हें असत्य पर विश्वास करने के लिए उकसा दिया, \v 32 इसलिये याहवेह का संदेश यह है: यह देखना कि मैं नेहेलामी शेमायाह तथा उसके वंशजों को दंड देने पर हूं. इन लोगों के मध्य में उसका कोई भी शेष न रह जाएगा, वह उस हित को देख न सकेगा, जो मैं अपनी प्रजा के निमित्त करने पर हूं, यह याहवेह की वाणी है, क्योंकि उसने याहवेह के विरुद्ध विद्रोह करना सिखाया था.’ ” \c 30 \s1 इस्राएल की पुनःस्थापना \p \v 1 वह संदेश जो याहवेह द्वारा येरेमियाह के लिए प्रगट किया गया: \v 2 “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का आदेश यह है: ‘एक पुस्तक में तुमसे की गई मेरी संपूर्ण बात को लिख लो. \v 3 क्योंकि यह देख लेना, ऐसे दिन आ रहे हैं,’ यह याहवेह की वाणी है, ‘जब मैं अपने लोग इस्राएल तथा यहूदिया की समृद्धि लौटा दूंगा,’ याहवेह की यह वाणी है, ‘मैं उन्हें उस देश में लौटा ले आऊंगा, जो मैंने उनके पूर्वजों को प्रदान किया था और वे उस पर अधिकार कर लेंगे.’ ” \p \v 4 इस्राएल एवं यहूदिया से संबंधित याहवेह का वचन यह है: \v 5 “याहवेह का संदेश यह है: \q1 “ ‘मैंने एक भय की पुकार सुनी है— \q2 आतंक की ध्वनि, शांति है ही नहीं. \q1 \v 6 ज्ञात करो, विचार करो: \q2 क्या पुरुष के लिए प्रसव संभव है? \q1 तब कारण क्या है कि हर एक पुरुष अपने कमर पर हाथ रखे हुए है, \q2 प्रसूता के सदृश और उनका मुखमंडल विवर्ण क्यों हो गया है? \q1 \v 7 हाय! क्योंकि भयंकर होगा वह दिन! \q2 ऐसा कभी देखा ही नहीं गया. \q1 यह याकोब की वेदना का समय होगा, \q2 किंतु याकोब इसमें से पार निकल जाएगा. \b \q1 \v 8 “ ‘उस दिन ऐसा होगा,’ यह सेनाओं के याहवेह की वाणी है, \q2 ‘मैं उसकी गर्दन पर पड़ा हुआ जूआ तोड़ डालूंगा \q1 तथा उनके बंधन तोड़ डालूंगा; \q2 तब इसके बाद अपरिचित आकर उन्हें दास नहीं बनाएंगे. \q1 \v 9 तब वे याहवेह अपने परमेश्वर \q2 तथा दावीद अपने राजा के अधीन रहेंगे, \q2 जिसका मैं उनके लिए उद्भव करूंगा. \b \q1 \v 10 “ ‘याकोब, मेरे सेवक, भयभीत न होओ; \q2 और इस्राएल, हताश न हो जाओ,’ \q2 यह याहवेह का आदेश है. \q1 ‘क्योंकि तुम यह देखोगे कि तुम चाहे कितनी भी दूर क्यों न रहो, \q2 मैं तुम्हारे वंशजों का उद्धार उनके बंधुआई के देश में से करूंगा. \q1 तब याकोब लौट आएगा, वह सुरक्षित रहेगा तथा सुख-शांति की स्थिति में निवास करेगा, \q2 कोई भी उसे भयभीत न करेगा. \q1 \v 11 क्योंकि मैं तुम्हारे साथ रहूंगा, कि तुम्हें विमुक्त कर दूं,’ \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 ‘मैं उन सभी जनताओं का सर्वनाश कर दूंगा, \q2 जहां मैंने तुम्हें बिखरा दिया था, \q2 किंतु मैं तुम्हें पूर्णतः नष्ट नहीं करूंगा. \q1 मैं तुम्हारी न्यायोचित प्रताड़ना अवश्य करूंगा; \q2 किसी भी स्थिति में मैं तुम्हें अदण्डित न छोडूंगा.’ \p \v 12 “क्योंकि याहवेह का स्पष्टीकरण यह है: \q1 “ ‘असाध्य है तुम्हारा घाव, \q2 तथा गंभीर है तुम्हें लगी हुई चोट. \q1 \v 13 तुम्हारा समर्थन करनेवाला कोई भी नहीं है, \q2 न तो तुम्हारे घाव भरेंगे, \q2 और न ही तुम्हें स्वास्थ्य पुनः प्राप्‍त होगा. \q1 \v 14 जिन्हें तुमसे प्रेम था, उन्होंने तुम्हें भूलना पसंद कर दिया है; \q2 उन्हें तुम्हारी कोई चिंता नहीं. \q1 मैंने तुम्हें वह घाव दिया है, जो एक शत्रु ही दे सकता है, \q2 एक ऐसा दंड, जो निर्मम शत्रु दिया करता है, \q1 क्योंकि घोर है तुम्हारा अपराध \q2 तथा असंख्य हैं तुम्हारे पाप. \q1 \v 15 अपने घावों पर विलाप क्यों कर रहे हो, \q2 तुम्हारी पीड़ा असाध्य है? \q1 इसलिये कि तुम्हारी पापिष्ठता जघन्य है \q2 तथा असंख्य हैं तुम्हारे पाप. मैंने ही तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार किया है. \b \q1 \v 16 “ ‘इसलिये वे सभी, जो तुम्हें निगल रहे हैं, स्वयं निगल लिए जाएंगे; \q2 तुम्हारे सब शत्रु बंधुआई में चले जाएंगे. \q1 वे, जो तुम्हें लूट रहे हैं, स्वयं लूट लिए जाएंगे. \q2 वे, जो तुम्हें शिकार बना रहे हैं, मैं उन्हें शिकार होने के लिए सौंप दूंगा. \q1 \v 17 क्योंकि मैं तुम्हारा स्वास्थ्य पुनःस्थापित करूंगा, \q2 तथा तुम्हारे घावों को भर दूंगा,’ \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q1 ‘क्योंकि उन्होंने तुम्हें गृहवंचित घोषित कर दिया है, \q2 उन्होंने कहा है, यह ज़ियोन है; उन्हें तुम्हारी कोई चिंता नहीं.’ \p \v 18 “यह याहवेह की वाणी है: \q1 “ ‘तुम देखना मैं याकोब के शिविर की समृद्धि को लौटाकर दूंगा, \q2 मैं ध्वस्त आवासों के प्रति अनुकम्पा प्रदर्शित करूंगा; \q1 उसके खंडहरों पर ही नगर का पुनर्निर्माण होगा, \q2 तथा महल अपने यथास्थान पर प्रतिष्ठित किया जाएगा. \q1 \v 19 उनसे धन्यवाद तथा हर्षोल्लास का \q2 स्वर आता रहेगा. \q1 मैं उनकी संख्या में वृद्धि करूंगा, \q2 उनकी संख्या कम न होगी; \q1 मैं उन्हें सम्मान्य बना दूंगा, \q2 वे नगण्य न रहेंगे. \q1 \v 20 उनकी संतान भी पूर्ववत समृद्ध हो जाएगी, \q2 मेरे समक्ष सारा राष्ट्र प्रतिष्ठित हो जाएगा; \q2 तथा मैं उन्हें दंड दूंगा, जिन्होंने उन पर अत्याचार किया था. \q1 \v 21 उन्हीं का अपना स्वजन उनका उच्चाधिकारी हो जाएगा; \q2 उन्हीं के मध्य से उनके उच्चाधिकारी का उद्भव होगा. \q1 मेरे आमंत्रण पर वह मेरे निकट आएगा \q2 अन्यथा कैसे मेरे निकट आकर \q2 अपने प्राण को जोखिम में डालेगा?’ \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 22 ‘तब तुम मेरी प्रजा हो जाओगे, \q2 तथा मैं तुम्हारा परमेश्वर.’ ” \b \q1 \v 23 देख लो, याहवेह के बवंडर को, \q2 उनका कोप क्रोध हो चुका है, \q1 यह बवंडर सब कुछ उड़ा ले जाएगा \q2 ये बुराइयां सिर पर टूट पड़ेंगी. \q1 \v 24 याहवेह का प्रचंड कोप तब तक अलग न होगा, \q2 जब तक वह अपने हृदय की बातों को पूर्ण नहीं कर लेते, \q2 जब तक वह इसका निष्पादन नहीं कर लेते. \q1 अंतिम दिनों में \q2 तुम्हारे समक्ष यह सब स्पष्ट हो जाएगा. \c 31 \p \v 1 “उस समय,” यह याहवेह की वाणी है, “मैं इस्राएल के सारे परिवारों का परमेश्वर हो जाऊंगा तथा वे मेरी प्रजा ठहरेंगी.” \p \v 2 यह याहवेह की वाणी है: \q1 “वे लोग, जो तलवार प्रहार से उत्तरजीवित रह गए, \q2 जब इस्राएल ने चैन की खोज की; \q2 उन्हें निर्जन क्षेत्र में आश्रय प्राप्‍त हो गया.” \p \v 3 सुदूर देश में याहवेह उसके समक्ष प्रकट हुए, याहवेह ने उससे यह बात की: \q1 “मैंने तुम्हें, मेरे लोगों को, अनश्वर प्रेम से प्रेम किया है, \q2 इसलिये मैंने तुम्हें अत्यंत प्रेमपूर्वक अपनी ओर आकर्षित किया है. \q1 \v 4 तब मैं पुनः तुम्हारा निर्माण करूंगा, \q2 और तुम निर्मित हो जाओगी, कुंवारी इस्राएल तुम पुनः \q1 खंजरी उठाओगी तथा उनमें सम्मिलित हो जाओगी, \q2 जो आनन्दमग्न हो रहे होंगे. \q1 \v 5 शमरिया की पहाड़ियों पर पुनः \q2 द्राक्षालता रोपण प्रारंभ हो जाएगा; \q1 रोपक इन्हें रोपेंगे \q2 ओर उनका सेवन करेंगे. \q1 \v 6 क्योंकि एक दिन ऐसा भी आएगा \q2 जब एफ्राईम के पर्वतों से प्रहरी पुकारेंगे, \q1 ‘चलो-चलो, हमें याहवेह हमारे परमेश्वर के समक्ष \q2 ज़ियोन को जाना है.’ ” \p \v 7 क्योंकि अब याहवेह का यह आदेश है: \q1 “हर्षोल्लास में याकोब के लिए गायन किया जाए; \q2 तथा राष्ट्रों के प्रमुख के लिए जयघोष किया जाए. \q1 स्तवन के साथ यह वाणी की जाए, \q2 ‘याहवेह, अपनी प्रजा को उद्धार प्रदान कीजिए, \q2 उनको, जो इस्राएल के बचे हुए लोग हैं.’ \q1 \v 8 यह देखना, कि मैं उन्हें उत्तरी देश से लेकर आऊंगा, \q2 मैं उन्हें पृथ्वी के दूर क्षेत्रों से एकत्र करूंगा. \q1 उनमें ये सभी होंगे: नेत्रहीन, अपंग, \q2 गर्भवती स्त्री तथा वह जो प्रसूता है; \q2 एक साथ यह विशाल जनसमूह होगा, जो यहां लौट आएगा. \q1 \v 9 वे रोते हुए लौटेंगे; \q2 तथा वे प्रार्थना करेंगे और मैं उनका मार्गदर्शन करूंगा. \q1 मैं उन्हें जलधाराओं के निकट से लेकर आऊंगा, \q2 उनका मार्ग सीधा समतल होगा, जिस पर उन्हें ठोकर नहीं लगेगी, \q1 क्योंकि मैं इस्राएल के लिए पिता हूं, \q2 तथा एफ्राईम मेरा पहलौठा पुत्र है. \b \q1 \v 10 “राष्ट्रों, याहवेह का संदेश सुनो, दूर तटवर्ती क्षेत्रों में घोषणा करो; \q2 जिसने इस्राएल को छिन्‍न-भिन्‍न कर दिया है: \q1 वही उन्हें एकत्र भी करेगा, वह उन्हें इस प्रकार सहेजेगा, \q2 जिस प्रकार चरवाहा अपनी भेड़-बकरियों को. \q1 \v 11 क्योंकि याहवेह ने मूल्य चुका कर याकोब को छुड़ा लिया है \q2 तथा उसे उसके बंधन से विमुक्त कर दिया है, जो उससे सशक्त था. \q1 \v 12 वे लौटेंगे तथा ज़ियोन की ऊंचाइयों पर आकर हर्षोल्लास करेंगे; \q2 याहवेह की कृपादृष्टि के कारण वे आनंदित हो जाएंगे— \q1 अन्‍न, नई दाखमधु तथा प्रचूर तेल के कारण, \q2 भेड़ों एवं पशुओं के बच्चों के कारण. \q1 उनका जीवन सिंचित उद्यान सदृश होगा, \q2 वे पुनः अंत न होंगे. \q1 \v 13 तब कुंवारी कन्या का हर्ष नृत्य में फूट पड़ेगा इसमें जवान एवं प्रौढ़, \q2 दोनों ही सम्मिलित हो जाएंगे. \q1 क्योंकि मैं उनकी छाया को उल्लास में परिवर्तित कर दूंगा; \q2 मैं उनके शोक को आनंद में ढाल कर उन्हें सांत्वना प्रदान करूंगा. \q1 \v 14 मेजवानी ऐसी होगी कि पुरोहितों के प्राण तृप्‍त हो जाएंगे, \q2 तथा मेरी प्रजा मेरे द्वारा किए गए कल्याण पर संतुष्ट हो जाएगी,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \p \v 15 याहवेह की बात यह है: \q1 “रामाह नगर में एक शब्द सुना गया, \q2 रोना तथा घोर विलाप! \q1 राहेल अपने बालकों के लिए रो रही है. \q2 धीरज उसे स्वीकार नहीं \q2 क्योंकि अब वे हैं ही नहीं.” \p \v 16 याहवेह का आदेश है: \q1 “अपने रुदन स्वर को नियंत्रित करो \q2 तथा अपनी अश्रुधारा को प्रतिबद्ध करो, \q1 क्योंकि तुम्हारे श्रम को पुरस्कृत किया जाएगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q2 “वे शत्रु के देश से लौट आएंगे. \q1 \v 17 तुम्हारा सुखद भविष्य संभव है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q2 “तुम्हारे वंशज निज भूमि में लौट आएंगे. \b \q1 \v 18 “वस्तुस्थिति यह है कि मैंने एफ्राईम का विलाप करना सुना है: \q2 ‘जिस प्रकार उद्दंड बछड़े को प्रताड़ित किया जाता है उसी प्रकार आपने मुझे भी प्रताड़ित किया है, \q2 और मैंने इससे शिक्षा ग्रहण की है. \q1 मुझे अपनी उपस्थिति में ले आइए, कि मैं पूर्ववत हो जाऊं, \q2 क्योंकि याहवेह, आप ही मेरे परमेश्वर हैं. \q1 \v 19 जब मैं आपसे दूर हो गया था, \q2 तब मैंने लौटकर पश्चात्ताप किया; \q1 जब मेरी समझ में आ गया, \q2 तब मैंने अपनी छाती पीटी; मुझे लज्जित होना पड़ा. \q1 तथा मेरी प्रतिष्ठा भी भंग हो गई \q2 क्योंकि मैं अपनी जवानी की लांछना लिए हुए चल रहा था.’ \q1 \v 20 क्या एफ्राईम मेरा प्रिय पुत्र है, \q2 क्या वह सुखदायक संतान है? \q1 वस्तुतः जब-जब मैंने उसके विरोध में कुछ कहा, \q2 मैंने उसे प्रेम के साथ ही स्मरण किया. \q1 इसलिये मेरा हृदय उसकी लालसा करता रहता है; \q2 इसमें कोई संदेह नहीं कि मैं उस पर अनुकम्पा करूंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 21 “अब अपने लिए मार्ग निर्देश नियत कर लो; \q2 अपने लिए तोड़ सूचक खड़े कर लो. \q1 तुम्हारा ध्यान राजपथ की ओर लगा रहे, \q2 उसी मार्ग पर, जिससे तुम गए थे. \q1 कुंवारी इस्राएल, लौट आओ, \q2 लौट आओ अपने इन्हीं नगरों में. \q1 \v 22 हे भटकने वाली कन्या, \q2 कब तक तुम यहां वहां भटकती रहोगी? \q1 याहवेह ने पृथ्वी पर एक अपूर्व परिपाटी प्रचलित कर दी है— \q2 अब पुरुष के लिए स्त्री सुरक्षा घेरा बनेगी.” \p \v 23 इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह की यह वाणी है: “जब मैं उनकी समृद्धि लौटा दूंगा, तब यहूदिया देश में तथा उसके नगरों में पुनः ‘उनके मुख से ये वचन निकलेंगे, पवित्र पर्वत, पूर्वजों के आश्रय, याहवेह तुम्हें आशीष दें.’ \v 24 यहूदिया के सभी नगरों के निवासी, किसान तथा चरवाहे अपने पशुओं सहित वहां एक साथ निवास करेंगे. \v 25 क्योंकि मैं थके हुए व्यक्ति में संतोष, तथा हताश व्यक्ति में उत्साह का पुनःसंचार करता हूं.” \p \v 26 यह सुन मैं जाग पड़ा. उस समय मुझे यह बोध हुआ कि मेरी निद्रा मेरे लिए सुखद अनुभूति छोड़ गई है. \p \v 27 “यह देखना, वे दिन आ रहे हैं,” यह याहवेह की वाणी है, “जब मैं इस्राएल के परिवार में तथा यहूदिया के परिवार में मनुष्य का तथा पशु का बीज रोपित करूंगा. \v 28 जिस प्रकार मैं उनके उखाड़ने में, उनके तोड़ने में, उनके पराभव करने में, उनके नष्ट करने में तथा उन पर सर्वनाश लाने में मैं उन पर नजर रखता आया, उसी प्रकार मैं उनका परिरक्षण भी करता रहूंगा, जब वे निर्माण करेंगे तथा रोपण करेंगे,” यह याहवेह की वाणी है. \v 29 “उन दिनों में उनके मुख से ये शब्द पुनः सुने नहीं जाएंगे, \q1 “ ‘खट्टे अंगूर तो पूर्वजों ने खाए थे, \q2 किंतु दांत खट्टे हुए वंशजों के.’ \m \v 30 किंतु हर एक की मृत्यु का कारण होगा स्वयं उसी की पापिष्ठता; हर एक व्यक्ति, जो खट्टे अंगूर खाएगा, दांत उसी के खट्टे होंगे. \q1 \v 31 “यह देख लेना, वे दिन आ रहे हैं,” यह याहवेह की वाणी है, \q2 “जब मैं इस्राएल वंश के साथ \q1 तथा यहूदिया वंश के साथ \q2 एक नयी वाचा स्थापित करूंगा. \q1 \v 32 उस वाचा के सदृश नहीं, \q2 जो मैंने उस समय उनके पूर्वजों के साथ स्थापित की थी, \q1 जब मैंने उनका हाथ पकड़कर \q2 उन्हें मिस्र देश से उनका निकास किया था, \q1 यद्यपि मैं उनके लिए पति-सदृश था, \q2 उन्होंने मेरी वाचा भंग कर दी,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 33 “किंतु उन दिनों के बाद इस्राएल वंश के साथ मैं \q2 इस वाचा की स्थापना करूंगा,” यह याहवेह की वाणी है. \q1 “उनके अंतर्मन में मैं अपना व्यवस्था-विधान संस्थापित कर दूंगा \q2 तथा उनके हृदय पर मैं इसे लिख दूंगा. \q1 मैं उनका परमेश्वर हो जाऊंगा, \q2 तथा वे मेरी प्रजा. \q1 \v 34 तब हर एक व्यक्ति अपने पड़ोसी को, हर एक व्यक्ति अपने सजातीय को पुनः \q2 यह कहते हुए यह शिक्षा नहीं देने लगेगा, ‘याहवेह को जान लो,’ \q1 क्योंकि वे सभी मुझे जान जाएंगे, \q2 छोटे से बड़े तक,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 “क्योंकि मैं उनकी पापिष्ठता क्षमा कर दूंगा \q2 तथा इसके बाद उनका पाप मैं पुनः स्मरण ही न करूंगा.” \p \v 35 यह याहवेह की वाणी है, \q1 जिन्होंने दिन को प्रकाशित करने के लिए \q2 सूर्य को स्थित किया है, \q1 जिन्होंने चंद्रमा तथा तारों के क्रम को \q2 रात्रि के प्रकाश के लिए निर्धारित कर दिया, \q1 जो समुद्र को हिलाते हैं \q2 कि उसकी लहरों में गर्जन आए— \q2 उनका नाम है सेनाओं के याहवेह: \q1 \v 36 “यदि यह व्यवस्थित विन्यास मेरे समक्ष से विघटित होता है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q1 “तब एक राष्ट्र के रूप में इस्राएल के वंशजों का अस्तित्व भी \q2 मेरे समक्ष से सदा-सर्वदा के लिए समाप्‍त हो जाएगा.” \p \v 37 यह याहवेह की वाणी है: \q1 “यदि हमारे ऊपर विस्तीर्ण आकाशमंडल का मापा जाना संभव हो जाए \q2 तथा भूतल में पृथ्वी की नीवों की खोज निकालना संभव हो जाए, \q1 तो मैं भी इस्राएल द्वारा किए गए उन सारे कार्यों के कारण \q2 इस्राएल के सभी वंशजों का परित्याग कर दूंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \p \v 38 देखना, “वे दिन आ रहे हैं,” यह याहवेह की वाणी है, “जब हनानेल स्तंभ से लेकर कोने के प्रवेश द्वार तक याहवेह के लिए नगर को पुनर्निर्माण किया जाएगा. \v 39 मापक डोर आगे बढ़ती हुई सीधी गारेब पर्वत तक पहुंच जाएगी, तत्पश्चात वह और आगे बढ़कर गोआह की ओर मुड़ जाएगी. \v 40 शवों तथा भस्म से आच्छादित संपूर्ण घाटी तथा किद्रोन सरिता तक विस्तृत खेत, पूर्व तोड़ के घोड़े-द्वार के कोण तक का क्षेत्र याहवेह के निमित्त पवित्र ठहरेगा. यह क्षेत्र तब सदा-सर्वदा के लिए न तो उखाड़ा जाएगा और न ही ध्वस्त किया जाएगा.” \c 32 \s1 येरेमियाह एक खेत खरीदता है \p \v 1 यहूदिया के राजा सीदकियाहू के राज्य-काल के दसवें वर्ष में, जो नबूकदनेज्ज़र के राज्य-काल का अठारहवां वर्ष था, याहवेह का संदेश येरेमियाह को भेजा गया. \v 2 इस समय बाबेल के राजा की सेना येरूशलेम को घेरे हुए थी तथा भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को यहूदिया के राजा के महलों के पहरे के आंगन में बंदी बनाकर रखा गया था. \p \v 3 क्योंकि यहूदिया के राजा सीदकियाहू ने येरेमियाह को यह कहते हुए बंदी बना रखा था, “तुम यह कहते हुए भविष्यवाणी क्यों करते हो? ‘यह याहवेह का संदेश है, यह देखना, मैं इस नगर को बाबेल के राजा के हाथों में सौंपने पर हूं, और वह इसे प्राप्‍त कर लेगा. \v 4 तथा यहूदिया का राजा सीदकियाहू के अधिकार से विमुक्त नहीं हो सकेगा, बल्कि वह निश्चयतः बाबेल के राजा के हाथों में सौंप दिया जाएगा. तब वह आमने-सामने उससे वार्तालाप करेगा तथा वे एक दूसरे को अपने-अपने नेत्रों से देख सकेंगे. \v 5 बाबेल का राजा सीदकियाहू को अपने साथ बाबेल ले जाएगा और वह वहां उस समय तक रखा जाएगा, जब तक मैं उससे भेंट करने वहां न पहुंचूं, यह याहवेह की वाणी है. यदि तुम कसदियों पर आक्रमण भी करो, तुम्हें सफलता प्राप्‍त न होगी.’ ” \p \v 6 येरेमियाह ने यह सूचना दी, “मुझे याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \v 7 यह देखना, तुम्हारे चाचा शल्लूम का पुत्र हनामेल तुमसे भेंट करने आ रहा है. वह तुमसे कहेगा, ‘अनाथोथ का मेरा खेत तुम मोल ले लो, क्योंकि विधान के अंतर्गत यह तुम्हारा ही अधिकार है.’ \p \v 8 “तब मेरे चाचा का पुत्र हनामेल, याहवेह के संदेश के अनुरूप, पहरे के आंगन में मुझसे भेंट करने आया और मुझसे कहा, ‘बिन्यामिन प्रदेश के अनाथोथ में मेरा जो खेत है, उसे तुम मोल ले लो. क्योंकि उसके स्वामित्व को तथा उसके निष्क्रय का अधिकार तुम्हारा ही है, तुम्हीं इसे मोल ले लो.’ \p “तब मुझे यह निश्चय हो गया कि यह याहवेह ही का संदेश था; \v 9 मैंने अपने चाचा के पुत्र हनामेल से अनाथोथ का खेत मोल ले लिया, इसके लिए मैंने दो सौ ग्राम चांदी उसके लिए तौल दी. \v 10 मैंने बंधक-पत्र पर हस्ताक्षर किए तथा उस पर मोहर लगा दी, तब मैंने गवाहों को आमंत्रित किया और तुलामान पर चांदी तौल दी. \v 11 तब मैंने क्रय-बन्धक पत्र लिए—दोनों ही वह, जिस पर मोहर लगी हुई थी, जिसमें नियम तथा शर्तें निहित थी तथा वह, जो खुली हुई प्रति थी— \v 12 मैंने क्रय-बन्धक पत्र अपने चाचा के पुत्र हनामेल ही के समक्ष तथा उन साक्ष्यों के समक्ष, जिन्होंने बंधक-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे तथा पहरे के आंगन में उस समय बैठे हुए यहूदियों के समक्ष, माहसेइयाह के पौत्र, नेरियाह के पुत्र बारूख को सौंप दिया. \p \v 13 “तब मैंने बारूख को उन्हीं की उपस्थिति में सूचित किया: \v 14 ‘इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह का आदेश है: इन बंधक पत्रों को मोहर लगे क्रय-बन्धक पत्र को तथा इस खुले बंधक-पत्र को लेकर एक मिट्टी के बर्तन में संजो दो, कि ये दीर्घ काल तक सुरक्षित बने रहें. \v 15 क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह की वाणी यह है: आवास, खेत तथा द्राक्षाउद्यान इस देश में पुनः मोल लिए जाएंगे.’ \p \v 16 “जब मैं नेरियाह के पुत्र बारूख को क्रय-बन्धक पत्र सौंप चुका, तब मैंने याहवेह से यह बिनती की: \pm \v 17 “प्रभु याहवेह, आपने, मैं जानता हूं आपने अपने विलक्षण सामर्थ्य तथा विस्तीर्ण भुजा के द्वारा आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की है. असंभव तो आपके समक्ष कुछ भी नहीं है. \v 18 सहस्रों पर आप निर्जर प्रेम अभिव्यक्त करते हैं, किंतु इसके विपरीत आप माता-पिता अथवा पूर्वजों की पापिष्ठता का प्रतिफल उनकी संतान की गोद में डाल देते हैं, आपका नाम सेनाओं के याहवेह है, \v 19 महान हैं आपके संकल्प और पराक्रमी आपके कर्म! आपकी दृष्टि मानव की हर एक गतिविधि पर लगी रहती है; आप हर एक को उसके आचरण एवं उसके कार्यों के परिणाम के अनुरूप प्रतिफल देते हैं. \v 20 आपने मिस्र देश में चिन्हों एवं विलक्षण कृत्यों का प्रदर्शन किया तथा आप इस्राएल में तथा सारे मानव जाति दोनों ही के मध्य आज भी कर रहे हैं, तथा आपने अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर ली है, जो आज भी स्थापित है. \v 21 आपने अपनी प्रजा इस्राएल का मिस्र देश से चिन्हों एवं विलक्षण कार्यों तथा सशक्त बाहुबल, विस्तीर्ण भुजा के सिवा घोर आतंक के साथ निकास किया. \v 22 तब आपने उन्हें यह देश दे दिया, जिसे देने की शपथ आपने उनके पूर्वजों से की थी, वह देश जिसमें दुग्ध एवं मधु का बहाव है. \v 23 उन्होंने आकर इस पर अधिकार तो कर लिया, किंतु उन्होंने न तो आपके आदेशों का पालन ही किया और न ही आपके व्यवस्था-विधान का अनुकरण; आपके द्वारा उन्हें जो सारे आदेश दिए गए थे, उन्होंने उनमें से किसी का भी अनुकरण नहीं किया है. यही कारण है, कि आपने उन पर यह विपत्ति आने दी है. \pm \v 24 “यह भी देखिए कि नगर अभिग्रहण के लक्ष्य से निर्मित घेराबंदी की ढलान नगर तक पहुंच चुकी है. तलवार, अकाल तथा महामारी के कारण नगर कसदियों के अधिकार में जा चुका है, जिन्होंने इस पर आक्रमण किया है. वस्तुतः इसलिये कि यह आप ही की पूर्वोक्ति है जो कृतार्थ हो रही है, और अब आप ही देख रहे हैं, कि ऐसा ही हो रहा है. \v 25 प्रभु याहवेह, आपने ही मुझे आदेश दिया था, अपने लिए मूल्य चुका कर खेत क्रय कर लो तथा गवाहों को बुला लो, जबकि नगर कसदियों को सौंपा जा चुका है.” \p \v 26 इस पर येरेमियाह को याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \v 27 “यह स्मरण रखो, मैं याहवेह हूं, सभी मनुष्यों का परमेश्वर. क्या कोई भी ऐसा विषय है, जो मेरे लिए दुस्साध्य है? \v 28 इसलिये याहवेह की वाणी यह है: सुनो, मैं यह नगर कसदियों को सौंपने पर हूं तथा बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र के हाथ में, जो इसे प्राप्‍त कर लेगा. \v 29 इस नगर पर आक्रमण करनेवाले कसदी, नगर में प्रवेश कर नगर में आग लगाकर इसे भस्म कर देंगे; इसमें वे भवन भी सम्मिलित होंगे, जहां छतों पर लोगों ने बाल के लिए धूप जलाया, परकीय देवताओं के लिए पेय बलिदान उंडेला और मेरे कोप को उकसाया. \p \v 30 “इस्राएल तथा यहूदाह गोत्रज अपनी बाल्यावस्था ही से वही करते आए हैं, जो मेरी दृष्टि में ठीक नहीं है; इस्राएल वंशज अपनी हस्तकृतियों के द्वारा मेरे कोप को उकसाते आए हैं, यह याहवेह की वाणी है. \v 31 यह सत्य है कि जिस दिन से इस नगर की स्थापना हुई है, उसी दिन से आज तक यह नगर मेरे क्रोध एवं कोप को उकसाता रहा है, इसलिये यह आवश्यक है कि यह मेरी दृष्टि से दूर कर दिया जाए. \v 32 मेरे कोप को भड़काने के लिए इस्राएल एवं यहूदाह गोत्रजों ने जो दुष्टता की है; उन्होंने, उनके राजाओं ने, उनके नायकों ने, उनके पुरोहितों ने, उनके भविष्यवक्ताओं ने तथा येरूशलेम एवं यहूदिया के निवासियों ने भी. \v 33 मेरी ओर उन्मुख होने की अपेक्षा वे मुझसे विमुख हो गए हैं, यद्यपि मैं उन्हें शिक्षा देता रहा बार-बार शिक्षा देता रहा, किंतु उन्होंने न तो मेरी सुनी और न मेरी शिक्षा का स्वीकार ही किया. \v 34 इतना ही नहीं उन्होंने मेरे नाम में प्रतिष्ठित भवन को अशुद्ध करने के लक्ष्य से अपनी घृणास्पद वस्तुओं को उसमें स्थापित कर दिया है. \v 35 उन्होंने बेन-हिन्‍नोम की घाटी में बाल के लिए पूजा स्थलों का निर्माण किया कि वे मोलेख के लिए अपने पुत्र-पुत्रियों को अग्निबलि प्रथा में समर्पित करें, मैंने उन्हें इसके लिए कोई आदेश न दिया था; हालांकि इसका तो विचार ही मेरे मस्तिष्क में नहीं आया, कि वे यह घृणित कार्य करें तथा यहूदिया को यह पाप करने के लिए प्रेरित करें. \p \v 36 “इसलिये अब इस नगर के विषय में, जिसके संबंध में तुम्हीं यह कह रहे हो, ‘तलवार, अकाल तथा महामारी के कारण यह नगर बाबेल के राजा के हाथ में दे दिया गया है’; याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की यह वाणी है, \v 37 तुम देखना, कि मैं उन्हें उन सभी देशों से एकत्र करूंगा, जिनमें मैंने उन्हें अपने कोप के कारण दूर कर दिया था. अपने क्रोध में, अपने कोप में तथा अपने उग्र आक्रोश में, मैं उन्हें इस देश में लौटा ले आऊंगा कि वे यहां पूर्ण सुरक्षा में निवास करने लगें. \v 38 वे मेरी प्रजा होंगे तथा मैं उनका परमेश्वर. \v 39 मैं उन्हें एकनिष्ठ हृदय तथा एकमात्र अभीष्ट प्रदान करूंगा, कि उनमें मेरे प्रति सदा-सर्वदा को उन्हीं के तथा उनके बाद उनकी संतान के कल्याण के निमित्त चिरस्थायी श्रद्धा व्याप्‍त हो जाए. \v 40 मैं उनसे चिरकालीन वाचा स्थापित करूंगा; कि मैं उनसे विमुख न होऊं, कि उनका हित हो, और मैं उनके हृदय में अपने प्रति ऐसा श्रद्धा संस्थापित कर दूंगा, कि वे मुझसे विमुख कभी न हों. \v 41 अपने संपूर्ण हृदय से तथा अपने संपूर्ण प्राण से उनका हित करना तथा उन्हें इस देश में बसा देना मेरे अतीव हर्ष का विषय होगा. \p \v 42 “क्योंकि याहवेह की वाणी यह है: ठीक जिस प्रकार मैंने उन पर ये घोर विपत्तियां डाली हैं, ठीक उसी प्रकार मैं उन पर वह सारी समृद्धि ले आऊंगा, जिसकी मैं प्रतिज्ञा कर रहा हूं. \v 43 इस देश में, अब खेत मोल लिए जाएंगे, जिसके विषय में तुम कहते रहते हो, ‘उजाड़ हो चुका है यह देश, इसमें अब न तो मनुष्य शेष रह गए हैं, न पशु; सब कुछ कसदियों के अधिकार में जा चुका है.’ \v 44 लोग चांदी देकर खेत क्रय कर लेंगे, वे बंधक-पत्र पर हस्ताक्षर करेंगे तथा उसे आमंत्रित साक्ष्यों को सारे मोहरबन्द कर देंगे. यह सब बिन्यामिन प्रदेश में होगा, येरूशलेम के उपनगरों में होगा यहूदिया के नगरों में होगा, घाटी के नगरों में होगा तथा नेगेव के नगरों में होगा; क्योंकि मैं समृद्धि लौटा दूंगा, यह याहवेह की वाणी है.” \c 33 \s1 उद्धार की प्रतिज्ञा \p \v 1 फिर दूसरी बार येरेमियाह को याहवेह का संदेश भेजा गया, इस समय वह पहरे के आंगन में ही बंदी थे. संदेश यह था: \v 2 “पृथ्वी के बनानेवाले याहवेह का संदेश यह है, याहवेह, जिन्होंने पृथ्वी को आकार दिया कि यह स्थापित की जाए, जिनका नाम याहवेह है: \v 3 ‘मुझसे प्रतिवेदन करो तो मैं तुम्हें प्रत्युत्तर दूंगा और मैं तुम पर विलक्षण तथा रहस्यमय बात, जो अब तक तुम्हारे लिए अदृश्य हैं, उन्हें प्रकाशित करूंगा.’ \v 4 क्योंकि घेराबंदी ढलानों तथा तलवार के प्रहार से प्रतिरक्षा के उद्देश्य से ध्वस्त कर डाले गए इस नगर के आवासों तथा यहूदिया के राजमहलों के संबंध में इस्राएल के परमेश्वर याहवेह का यह संदेश है. \v 5 जब वे कसदियों से युद्ध के लिए निकलेंगे, कि इन खंडहरों को उन मनुष्यों के शवों से भर दें, जिनका संहार मैंने अपने क्रोध एवं कोप में किया है. इसका कारण है नगरवासियों की दुष्टता के परिणामस्वरूप मेरा उनसे विमुख हो जाना. \p \v 6 “ ‘तुम देखोगे कि मैं इस देश में स्वास्थ्य तथा चंगाई ले आऊंगा; मैं उन्हें स्वास्थ्य प्रदान करूंगा, तब मैं उन पर भरपूर शांति तथा सत्य प्रकाशित करूंगा. \v 7 मैं यहूदिया तथा इस्राएल की समृद्धि लौटाकर दूंगा तथा उनका पुनर्निर्माण कर उन्हें पूर्ववत रूप दे दूंगा. \v 8 मैं उन्हें उनके सारे पापों से शुद्ध करूंगा, जो उन्होंने मेरे विरुद्ध किया है, मैं उनकी सारी बुराई को क्षमा कर दूंगा, जिनके द्वारा उन्होंने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया है. \v 9 सारे राष्ट्र उनके लिए मेरे द्वारा निष्पादित हितकार्यो का उल्लेख सुनेंगे तथा वे उन देशों के लिए मेरे द्वारा बनाये गये सारे हितकार्यों तथा शांति की स्थापना को देख भयभीत हो थरथराएंगे; यह मेरे लिए आनंद, स्तवन एवं प्रताप की प्रतिष्ठा होगी.’ \p \v 10 “याहवेह की वाणी यह है: इस स्थान पर, जिसे तुमने उजाड़-निर्जन तथा पशु-विहीन घोषित कर रखा है, अर्थात् यहूदिया के नगरों में तथा येरूशलेम की गलियों में, जो उजाड़, निर्जन एवं पशु-विहीन है, \v 11 एक बार फिर आनंद का स्वर, उल्लास का कलरव, वर एवं वधू का वार्तालाप तथा उन लोगों की बात सुनी जाएगी, जो कह रहे होंगे, \q1 “सेनाओं के याहवेह के प्रति आभार व्यक्त करो, \q2 क्योंकि सदाशय हैं याहवेह; \q2 क्योंकि सनातन है उनकी करुणा.” तथा उनका भी स्वर, जो याहवेह के भवन में आभार की भेंट लेकर उपस्थित होते हैं. \m क्योंकि मैं इस देश की समृद्धि पूर्ववत लौटाकर दूंगा, यह याहवेह की वाणी है. \p \v 12 “सेनाओं के याहवेह का संदेश यह है: ‘इस स्थान पर, जो निर्जन, उजाड़ एवं पशु-विहीन हो गया है, इसके सारे नगरों में ऐसे चरवाहों का निवास हो जाएगा, जो यहां अपने पशुओं को विश्राम करवाते देखे जाएंगे. \v 13 पर्वतीय क्षेत्र के नगरों में, तराई के नगरों में, नेगेव के नगरों में, बिन्यामिन के प्रदेश में, येरूशलेम के उपनगरों में तथा यहूदिया के नगरों में भेड़-बकरियां पुनः उसके हाथों के नीचे से आगे जाएगी, जो उनकी गणना करता है,’ यह याहवेह की वाणी है. \p \v 14 “ ‘तुम यह देखोगे, वे दिन आ रहे हैं,’ यह याहवेह की वाणी है, ‘जब मैं अपनी उस प्रतिज्ञा को पूर्ण करूंगा, जो मैंने इस्राएल के वंश तथा यहूदाह के वंश के संबंध में की थी. \q1 \v 15 “ ‘तब उस समय उन दिनों में \q2 मैं दावीद के वंश से एक धर्मी शाखा को अंकुरित करूंगा; \q2 वह पृथ्वी पर वही करेगा जो न्याय संगत एवं यथोचित होगा. \q1 \v 16 तब उन दिनों में यहूदिया संरक्षित रखा जाएगा \q2 तथा येरूशलेम सुरक्षा में निवास करेगा. \q1 उन दिनों उसकी पहचान होगी: \q2 याहवेह हमारी धार्मिकता है.’ \m \v 17 क्योंकि याहवेह की वाणी है: ‘दावीद के राज सिंहासन के लिए प्रत्याशी का अभाव कभी न होगा, \v 18 लेवी पुरोहितों को मेरे समक्ष होमबलि अर्पण के लिए, अन्‍नबलि होम के लिए तथा नियमित रूप से बलि तैयार करने के लिए किसी उपयुक्त व्यक्ति का अभाव न होगा.’ ” \p \v 19 येरेमियाह को याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \v 20 “यह याहवेह का कहना है: ‘यदि तुम दिन एवं रात्रि से स्थापित की गई मेरी वाचा को इस प्रकार तोड़ सको, कि दिन और रात्रि अपने-अपने निर्धारित समय पर प्रकट न हों, \v 21 तब तो मेरे सेवक दावीद से स्थापित की गई मेरी वाचा भी भंग की जा सकेगी और इसका परिणाम यह होगा, कि उसके सिंहासन पर विराजमान हो राज्य-काल करने के लिए उसके कोई पुत्र न रहेगा और न मेरी सेवा के निमित्त कोई लेवी पुरोहित. \v 22 जिस प्रकार आकाश के तारे अगण्य तथा सागर तट की रेत अपार है, उसी प्रकार मैं अपने सेवक दावीद के वंशजों को तथा लेवियों को, जो मेरी सेवा करते हैं, आवर्धन कर उन्हें असंख्य कर दूंगा.’ ” \p \v 23 तब याहवेह का यह संदेश येरेमियाह को भेजा गया: \v 24 “क्या तुमने ध्यान दिया है कि इन लोगों ने क्या-क्या कहा है. वे कह रहे हैं, ‘जिन दो गोत्रों को याहवेह ने मनोनीत किया था, उन्हें याहवेह ने परित्यक्त छोड़ दिया है’? वे मेरी प्रजा से घृणा कर रहे हैं, उनकी दृष्टि में अब वे राष्ट्र रह ही नहीं गए हैं. \v 25 याहवेह की वाणी यह है: ‘यदि दिन एवं रात्रि से संबंधित मेरी वाचा भंग होना संभव है, यदि आकाश एवं पृथ्वी के नियमों में अनियमितता संभव है, \v 26 तो मैं भी याकोब तथा दावीद मेरे सेवक के वंशजों का परित्याग कर दूंगा; मैं भी दावीद के एक वंशज को, अब्राहाम, यित्सहाक तथा याकोब के वंशजों पर शासन करने के लिए नहीं चुनूंगा. किंतु मैं उनकी समृद्धि लौटा दूंगा तथा उन पर अनुकम्पा करूंगा.’ ” \c 34 \s1 सीदकियाहू के विषय में नबूवत \p \v 1 बाबेल का राजा नबूकदनेज्ज़र अपनी सारी सेना को लेकर येरूशलेम तथा इसके निकटवर्ती नगरों से युद्धरत था, पृथ्वी के सारे राष्ट्र एवं इनकी सारी प्रजा नबूकदनेज्ज़र के अधीन थी, इसी परिस्थिति में येरेमियाह को याहवेह का यह संदेश प्रगट किया गया: \v 2 “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का यह आदेश है: यहूदिया के राजा सीदकियाहू को यह संदेश दो, ‘यह याहवेह की वाणी है: यह देख लेना कि मैं इस नगर को बाबेल के राजा के अधीन कर दूंगा और वह इस नगर को भस्म कर देगा. \v 3 तुम उसके हाथ से बचकर निकल न सकोगे, निश्चयतः तुम पकड़े जाओगे तथा उसे सौंप दिए जाओगे. तुम बाबेल के राजा को प्रत्यक्ष देखोगे, वह तुमसे साक्षात वार्तालाप करेगा और फिर तुम बाबेल को बंदी कर दिए जाओगे. \p \v 4 “ ‘फिर भी, यहूदिया के राजा सीदकियाहू, याहवेह का संदेश सुनिए! आपके संबंध में याहवेह ने कहा है: तुम्हारी मृत्यु तलवार प्रहार से नहीं होगी; \v 5 तुम्हारी मृत्यु शान्तिपूर्ण स्थिति में होगी. जिस प्रकार तुम्हारे पूर्वज राजाओं के सम्मान में, उन उच्चाधिकारी के लिए, जो तुम्हारे प्राचीन काल थे, धूप जलाया गया था, वे तुम्हारे सम्मान में भी धूप जलाएंगे, वे तुम्हारे लिए विलाप भी करेंगे, “धिक्कार है आप पर स्वामी!” यह इसलिये कि यह मेरी उक्ति है, यह याहवेह की वाणी है.’ ” \p \v 6 भविष्यद्वक्ता येरेमियाह ने येरूशलेम में यहूदिया के राजा सीदकियाहू को यह पूरा संदेश दे दिया, \v 7 इस समय बाबेल के राजा की सेना येरूशलेम तथा यहूदिया के इन नगरों से युद्धरत थी. लाकीश तथा अज़ेका, क्योंकि ये ही यहूदिया के ऐसे गढ़नगर थे, जो सुरक्षित रह गए थे. \s1 गुलामों की आज़ादी \p \v 8 जब राजा सीदकियाहू ने सारी प्रजा से, जो येरूशलेम में थी, उद्धार वाणी की वाचा स्थापित की, याहवेह का यह संदेश येरेमियाह को भेजा गया. \v 9 हर एक व्यक्ति अपने इब्री सेवक को तथा अपनी इब्री सेविका को विमुक्त कर दे, कि कोई भी सजातीय यहूदी बंदी न रह जाए. \v 10 सारे अधिकारियों एवं सारी प्रजा ने इस आदेश का पालन किया. वे सभी इस वाचा में सम्मिलित हो गए, कि हर एक व्यक्ति अपने सेवक को अथवा सेविका को विमुक्त कर देगा, कि कोई भी बंधन में न रह जाए. उन्होंने आज्ञापालन किया और उन्हें विमुक्त कर दिया. \v 11 किंतु कुछ समय बाद सभी ने अपना निर्णय परिवर्तित कर अपने सेवकों एवं सेविकाओं को पुनः अपने अधिकार में ले लिया जिन्हें उन्होंने मुक्त किया था. \p \v 12 तत्पश्चात येरेमियाह को याहवेह की ओर से याहवेह का यह संदेश भेजा गया: \v 13 “इस्राएल के परमेश्वर याहवेह ने यह कहा है: मिस्र के निर्गमन के अवसर पर दासत्व आवास से उन्हें निराश करते समय मैंने तुम्हारे पूर्वजों से यह वाचा स्थापित की थी, \v 14 ‘प्रति सातवें वर्ष तुममें से हर एक अपने मोल लिए हुए उस इब्री दास को मुक्त कर दे, जिसने छः वर्ष तुम्हारी सेवा पूर्ण कर ली है. तुम्हें उन्हें सेवा मुक्त करना होगा.’\f + \fr 34:14 \fr*\ft \+xt व्यव 15:12\+xt*\ft*\f* किंतु तुम्हारे पूर्वजों ने न तो मेरे इस आदेश का पालन किया और न उन्होंने मेरा कहा सुनना ही चाहा है. \v 15 यह सत्य है कि कुछ ही समय पूर्व तुमने मेरी ओर उन्मुख होकर वह किया है: जो मेरी दृष्टि में सुधार है. हर एक ने यह घोषणा की है कि उसने अपने पड़ोसी को विमुक्त कर दिया है. तुमने मेरे नाम में प्रतिष्ठित भवन में एक वाचा भी स्थापित की थी. \v 16 यह होने पर भी तुमने विमुख होकर मेरी प्रतिष्ठा अशुद्ध कर दी और हर एक ने अपने-अपने सेवक-सेविकाओं को पुनः अपने अधिकार में ले लिया, जिन्हें उन्होंने इसके पूर्व विमुक्त किया था, जैसा कि स्वयं उनकी भी अभिलाषा थी. तुमने उन्हें पुनः अपने सेवक-सेविकाएं बना लिये. \p \v 17 “इसलिये अब याहवेह का संदेश यह है: तुमने हर एक व्यक्ति द्वारा अपने सजातीय बंधु एवं अपने पड़ोसी को विमुक्त करने की घोषणा करने के मेरे आदेश का उल्लंघन किया है. अब यह देखो, कि मैं तुम्हें छुड़ाने की घोषणा कर रहा हूं, यह याहवेह की वाणी है, मैं तुम्हें तलवार, महामारी एवं अकाल को सौंप रहा हूं. मैं तुम्हें पृथ्वी के सब राष्ट्रों के लिए आतंक बना दूंगा. \v 18 जिन लोगों ने मेरे साथ स्थापित की गई वाचा भंग की है, जिन्होंने इस वाचा की अपेक्षाओं को पूर्ण नहीं किया है, जो उन्होंने मेरे साथ स्थापित की थी, जिस वाचा को उन्होंने बछड़े को दो भागों में विभक्त कर उन भागों के मध्य से निकलकर अविचल घोषित कर दिया था. \v 19 यहूदिया तथा येरूशलेम के अधिकारी, संसद के अधिकारी, पुरोहित तथा सारी प्रजा, जो विभक्त बछड़े के मध्य से होकर निकले थे, \v 20 इन सभी को मैं उनके शत्रुओं के हाथों में सौंप दूंगा, जो उनके प्राणों के प्यासे है. उनके शव आकाश के पक्षी तथा पृथ्वी के वन्य पशुओं के आहार हो जाएंगे. \p \v 21 “यहूदिया के राजा सीदकियाहू को तथा उसके अधिकारियों को मैं उनके शत्रुओं के हाथों में सौंप दूंगा तथा उनके हाथों में जो उनके प्राणों के प्यासे हैं तथा बाबेल के राजा की सेना के हाथों में, जो तुमसे दूर जा चुकी है. \v 22 यह भी देखना, कि मैं यह आदेश देने पर हूं, यह याहवेह की वाणी है, और मैं उस सेना को इसी नगर में लौटा ले आऊंगा. वे इससे युद्ध करेंगे, इसे अधीन कर लेंगे तथा इसे भस्म कर देंगे. और मैं यहूदिया के नगरों को उजाड़ एवं निर्जन बना दूंगा.” \c 35 \s1 रेखाबियों की आज्ञाकारिता \p \v 1 योशियाह के पुत्र यहूदिया के राजा यहोइयाकिम के राज्य-काल में येरेमियाह को याहवेह का यह संदेश भेजा गया: \v 2 “रेखाबियों के वंशजों के निकट जाकर उनसे याहवेह के भवन में आने का आग्रह करो, उन्हें भवन के किसी कक्ष में ले जाकर उन्हें पीने के लिए द्राक्षारस देना.” \p \v 3 इसलिये मैं यात्सानिया को, जो येरेमियाह का पुत्र हाबाज़ीनियाह का पौत्र था तथा उसके भाइयों एवं उसके सारे पुत्रों तथा रेखाबियों के संपूर्ण वंश को \v 4 याहवेह के भवन में परमेश्वर के बर्तन इगदालिया के पुत्र हनान के पुत्रों के कक्ष में ले गया. यह अधिकारियों के कक्ष के निकट और यह शल्लूम के पुत्र, द्वारपाल मआसेइयाह के कक्ष के ऊपर था. \v 5 वहां मैंने रेखाब के वंशजों के समक्ष द्राक्षारस से भरे हुए बर्तन एवं प्याले रख दिए और उनसे कहा, “इनका सेवन करो.” \p \v 6 किंतु उन्होंने कहा, “हम द्राक्षारस का सेवन नहीं करेंगे, क्योंकि रेखाब के पुत्र योनादाब का हमारे लिए आदेश यह है: ‘तुम और तुम्हारी संतान कभी भी द्राक्षारस का सेवन नहीं करोगे. \v 7 न तो तुम अपने लिए आवास का निर्माण करोगे, न तुम बीजारोपण करोगे; न तुम द्राक्षाउद्यान रोपित करोगे और न कभी किसी द्राक्षाउद्यान का स्वामित्व प्राप्‍त करोगे, बल्कि तुम आजीवन तंबुओं में निवास करोगे, कि जिस देश में तुम प्रवास करो, उसमें तुम दीर्घायु हो.’ \v 8 हमने रेखाब के पुत्र योनादाब के सभी आदेशों का पालन किया है. हमने, हमारी पत्नियों ने, हमारी संतान ने कभी भी द्राक्षारस का सेवन नहीं किया \v 9 और हमने अपने निवास के लिए आवासों का निर्माण नहीं किया, न तो कोई द्राक्षोद्यान का, न कोई खेत, न ही हमने अनाज संचित कर रखा है. \v 10 हमारा निवास मात्र तंबुओं में ही रहा है, हमने आज्ञाकारिता में अपने पूर्वज योनादाब के आदेश के अनुरूप ही सब कुछ किया है. \v 11 किंतु जब बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र ने देश पर आक्रमण किया, तब हमने विचार किया, ‘चलो, हम कसदियों तथा अरामी सेना के आगे-आगे येरूशलेम चले जाएं.’ इस प्रकार हम येरूशलेम ही में निवास करते आ रहे हैं.” \p \v 12 तब येरेमियाह को याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \v 13 “इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह का आदेश यह है: जाकर सारे यहूदियावासियों तथा येरूशलेम वासियों से कहो, ‘क्या मेरा वचन सुनकर तुम अपने लिए शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते?’ यह याहवेह की वाणी है. \v 14 ‘रेखाब के पुत्र योनादाब द्वारा आदेशित द्राक्षरस सेवन निषेध आज्ञा का उसके वंशजों ने पालन किया. फिर उन्होंने आज तक द्राक्षरस सेवन नहीं किया, क्योंकि उन्होंने अपने पूर्वजों के आदेश का पालन किया है. किंतु मैंने तुम्हें बार-बार आदेश दिया है, फिर भी तुमने मेरा आदेश सुना ही नहीं. \v 15 इसके सिवा मैंने बार-बार तुम्हारे हित में अपने सेवक, अपने भविष्यद्वक्ता भेजे. वे यह चेतावनी देते रहे, “तुममें से हर एक अपनी संकट नीतियों से विमुख हो जाए और अपने आचरण में संशोधन करे; परकीय देवताओं का अनुसरण कर उनकी उपासना न करे. तभी तुम इस देश में निवास करते रहोगे, जो मैंने तुम्हें एवं तुम्हारे पूर्वजों को दिया है.” किंतु तुमने मेरे आदेश पर न तो ध्यान ही दिया और न उसका पालन ही किया. \v 16 वस्तुतः रेखाब के पुत्र योनादाब के वंशजों ने अपने पूर्वज के आदेश का पालन किया है, किंतु इन लोगों ने मेरे आदेश का पालन नहीं किया है.’ \p \v 17 “इसलिये इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह की वाणी यह है: ‘यह देख लेना! कि मैं सारे यहूदियावासियों तथा येरूशलेम वासियों पर उनके लिए पूर्वघोषित विपत्तियां प्रभावी करने पर हूं. क्योंकि मैंने उन्हें आदेश दिया किंतु उन्होंने उसकी उपेक्षा की; मैंने उन्हें पुकारा, किंतु उन्होंने उत्तर नहीं दिया.’ ” \p \v 18 तब येरेमियाह ने रेखाब के वंशजों को संबोधित करते हुए कहा, “सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: ‘इसलिये कि तुमने अपने पूर्वज योनादाब के आदेश का पालन किया है, सभी कुछ उसके आदेशों के अनुरूप ही किया है तथा वही किया जिसका उन्होंने तुम्हें आदेश दिया था.’ \v 19 इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह की यह वाणी है: ‘रेखाब के पुत्र योनादाब के वंश में मेरी सेवा के निमित्त किसी पुरुष का अभाव कभी न होगा.’ ” \c 36 \s1 येरेमियाह के चर्मपत्र का दहन \p \v 1 योशियाह के पुत्र यहूदिया के राजा यहोइयाकिम के राज्य-काल के चौथे वर्ष में येरेमियाह को याहवेह का यह संदेश भेजा गया: \v 2 “जिस दिन से मैंने तुमसे बात करना प्रारंभ किया है, उसके पहले दिन से ही योशियाह के दिनों से लेकर आज तक मैंने तुमसे इस्राएल, यहूदिया तथा सारे राष्ट्रों के संबंध में जो कुछ कहा है, उसे एक चर्मपत्र कुण्डली लेकर उस पर मेरे सारे संदेश लिख डालो. \v 3 यह संभव है कि यहूदाह के वंशज सारे विपत्ति के विषय में सुनेंगे, जो मैं उन पर प्रभावी करने की योजना बना रहा हूं; कि हर एक व्यक्ति इसे सुन अपनी संकट नीति से विमुख हो जाए और मैं उनकी अधर्मिता तथा उनके पाप को क्षमा कर दूं.” \p \v 4 फिर येरेमियाह ने नेरियाह के पुत्र बारूख को बुलवाया. याहवेह द्वारा प्रगट हर एक संदेश को जैसे जैसे येरेमियाह बोलते गए, वैसे वैसे बारूख एक चर्मपत्र कुण्डली पर लिखता गया. \v 5 येरेमियाह ने बारूख को यह आदेश दिया, “मुझ पर प्रतिबन्ध लगाया गया है; इसलिये याहवेह के भवन में मेरा प्रवेश निषिद्ध है. \v 6 इसलिये तुम्हें ही याहवेह के भवन में जाना होगा और उपवास के लिए निर्धारित दिवस पर तुम मेरे बोले हुए लेख द्वारा चर्मपत्र कुण्डली पर लिखे गए सारे वचन लोगों के समक्ष पढ़ देना. तुम्हें यही वचन उन लोगों के समक्ष भी पढ़ना होगा, जो यहूदिया के नगरों से वहां आएंगे. \v 7 संभव है उनकी बिनती याहवेह के समक्ष प्रस्तुत की जाए, हर एक व्यक्ति अपने अधर्म से विमुख हो जाए, क्योंकि प्रचंड है याहवेह का क्रोध एवं प्रकोप, जिसकी वाणी इन लोगों के विरुद्ध की जा चुकी है.” \p \v 8 नेरियाह के पुत्र बारूख ने येरेमियाह भविष्यद्वक्ता के आदेश का पूरी तरह पालन किया, उसने याहवेह के भवन में जाकर इस अभिलेख में से याहवेह के संदेश का वाचन किया. \v 9 योशियाह के पुत्र यहूदिया के राजा यहोइयाकिम के राज्य-काल के पांचवें वर्ष के नवें माह में येरूशलेम के सभी निवासियों ने तथा यहूदिया के नगरों से वहां आए सभी निवासियों ने याहवेह के समक्ष उपवास रखे जाने की घोषणा की. \v 10 तत्पश्चात बारूख ने याहवेह के भवन में लिपिक शापान के पुत्र गेमारियाह के कक्ष में, जो ऊपरी आंगन में था, याहवेह के भवन के नये प्रवेश द्वार के प्रवेश में खड़े होकर उपस्थित सारे जनसमूह के समक्ष येरेमियाह के अभिलेख के संदेश को पढ़ा. \p \v 11 जब शापान के पौत्र गेमारियाह के पुत्र मीकायाह ने इस अभिलेख से याहवेह का संदेश सुना, \v 12 वह महलों में लिपिकों के कक्ष में चला गया. वहां उसने देखा कि वहां सारे अधिकारी बैठे हुए थे. लिपिक एलीशामा, शेमायाह का पुत्र देलाइयाह, अखबोर को पुत्र एल-नाथान, शापान का पुत्र गेमारियाह, हननियाह का पुत्र सीदकियाहू तथा अन्य सभी अधिकारी भी. \v 13 मीकायाह ने उनके समक्ष उस अभिलेख से बारूख द्वारा लोगों के समक्ष पढ़ी गई संपूर्ण विषय-वस्तु दोहरा दी, जो वह स्वयं सुनकर आया था, \v 14 इस पर सारे अधिकारियों ने कूशी के परपोते, शेलेमियाह के पोते, नेथनियाह के पुत्र, येहूदी को बारूख के लिए इस संदेश के साथ भेजा, “तुमने जिस चर्मपत्र कुण्डली से लोगों के समक्ष पढ़ा है, उसे लेकर यहां आ जाओ.” इसलिये नेरियाह का पुत्र बारूख उस चर्मपत्र कुण्डली को लेकर उनकी उपस्थिति में पहुंच गया. \v 15 उन्होंने उससे आग्रह किया, “कृपया बैठ जाओ और इसे हमें पढ़कर सुनाओ.” \p तब बारूख ने उसे उनके समक्ष पढ़ दिया. \v 16 जब उन्होंने संपूर्ण विषय-वस्तु सुन ली, तब वे भयभीत होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे और उन्होंने बारूख से कहा, “निश्चयतः हम यह सब राजा को सूचित कर देंगे.” \v 17 उन्होंने बारूख से यह भी पूछा, “हमें कृपा कर यह भी बताओ, यह सब तुमने लिखा कैसे? क्या यह येरेमियाह द्वारा बोली हुई बातों का लेख है?” \p \v 18 तब बारूख ने उन्हें उत्तर दिया, “उन्होंने ही मुझे यह सारे वचन कहे हैं, जिन्हें मैंने स्याही से सूची में लिख दिया है.” \p \v 19 तब अधिकारियों ने बारूख को आदेश दिया, “तुम और येरेमियाह जाकर कहीं छिप जाओ और किसी को भी यह ज्ञात न होने पाए कि तुम कहां हो.” \p \v 20 अधिकारियों ने जाकर चर्मपत्र कुण्डली को लिपिक एलीशामा के कक्ष में सुरक्षित रख दिया और फिर राज्यसभा में जाकर राजा को चर्मपत्र कुण्डली में लिखित संपूर्ण विषय-वस्तु की सूचना दे दी. \v 21 राजा ने येहूदी को यह चर्मपत्र कुण्डली लाने का आदेश दिया, उसने जाकर इसे लिपिक एलीशामा के कक्ष से बाहर निकाल लिया. तब येहूदी ने राजा एवं राजा की उपस्थिति में खड़े सारे अधिकारियों के समक्ष चर्मपत्र कुण्डली अभिलेख पढ़ दिया. \v 22 यह नवें माह का अवसर था और राजा अपने शीतकालीन आवास में विराजमान था; उसके समक्ष अंगीठी में अग्नि प्रज्वलित थी. \v 23 जब येहूदी तीन अथवा चार अंश पढ़ लेता था, राजा उतने चर्मपत्र को लिपिक के चाकू से काटकर अंगीठी की अग्नि में डाल देता था, इस प्रकार होते-होते संपूर्ण चर्मपत्र कुण्डली अंगीठी की अग्नि में भस्म हो गई. \v 24 इतना सब होने पर भी राजा तथा उसके सारे सेवकों पर कोई प्रभाव न पड़ा, न वे भयभीत हुए और न उनमें से किसी ने शोक में अपने वस्त्र ही फाड़े. \v 25 यहां तक कि एल-नाथान, देलाइयाह तथा गेमारियाह, राजा से चर्मपत्र कुण्डली को दहन न करने का आग्रह करते रहे, राजा ने उनकी एक न सुनी. \v 26 राजा ने राजपुत्र येराहमील को, आज़रियल के पुत्र सेराइयाह तथा अबदील के पुत्र शेलेमियाह को आदेश दिया, कि वे लिपिक बारूख को तथा भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को पकड़ लें, किंतु इस समय वे याहवेह द्वारा छिपा दिए गए थे. \p \v 27 येरेमियाह के बोले हुए लेख जो बारूख द्वारा लिखित चर्मपत्र कुण्डली में था, जिसका दहन जब राजा यहोइयाकिम ने कर चुका, तब येरेमियाह को याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \v 28 “अब एक नयी चर्मपत्र कुण्डली लो और उस पर वे ही संदेश लिपिबद्ध कर दो, जो उस चर्मपत्र कुण्डली पर लिखे गए थे, जिसको यहूदिया के राजा यहोइयाकिम द्वारा दहन कर दिया गया है. \v 29 यहूदिया के राजा यहोइयाकिम के विषय में तुम्हें यह कहना होगा, ‘यह याहवेह का संदेश है: तुमने तो यह कहते हुए चर्मपत्र कुण्डली का दहन कर दिया है, “तुमने इसमें ऐसा क्यों लिख दिया, कि बाबेल का राजा निश्चयतः आएगा तथा इस देश को ध्वस्त कर देगा तथा उस देश से मनुष्यों एवं पशुओं का अस्तित्व ही समाप्‍त हो जाएगा?” \v 30 इसलिये यहूदिया के राजा यहोइयाकिम के विषय में याहवेह की पूर्ववाणी यह है: दावीद के सिंहासन पर विराजमान होने के लिए उसका कोई भी वंशज नहीं रह जाएगा तथा उसका शव दिन की उष्णता तथा रात्रि के पाले में पड़ा रह जाएगा. \v 31 मैं उसे, उसके वंशजों तथा उसके सेवकों को उनके अधर्म के लिए दंड भी दूंगा; मैं उन पर, येरूशलेम वासियों पर तथा यहूदिया की प्रजा पर वे सभी विपत्तियां प्रभावी कर दूंगा, जिनकी वाणी मैं कर चुका हूं, क्योंकि उन्होंने मेरी चेतावनियों की अवहेलना की है.’ ” \p \v 32 तब येरेमियाह ने नेरियाह के पुत्र लिपिक बारूख को एक अन्य चर्मपत्र कुण्डली दी, जिस पर उसने येरेमियाह के बोले हुए वचन लिखे, इसमें उसने वे सभी संदेश पुनः लिख दिए, जो उस चर्मपत्र कुण्डली में लिखे थे, जिसे यहूदिया के राजा यहोइयाकिम ने अग्नि में दहन कर दिया था. इसके सिवा इसमें इसी प्रकार के अन्य संदेश भी सम्मिलित कर दिए गए. \c 37 \s1 येरेमियाह को कारावास \p \v 1 योशियाह का पुत्र सीदकियाहू, जिसे बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र ने यहूदिया पर राजा नियुक्त किया था; यहोइयाकिम के पुत्र कोनियाह के स्थान पर राज्य-काल कर रहा था. \v 2 किंतु न तो उसने, न उसके सेवकों ने और न देश की प्रजा ने याहवेह की उन चेतावनियों को महत्व दिया, जो याहवेह ने भविष्यद्वक्ता येरेमियाह के द्वारा उन्हें दी थी. \p \v 3 फिर भी, राजा सीदकियाहू ने शेलेमियाह के पुत्र यहूकुल को तथा मआसेइयाह के पुत्र पुरोहित ज़ेफनियाह को भविष्यद्वक्ता येरेमियाह के पास इस अनुरोध के साथ भेजा: “कृपा कर याहवेह हमारे परमेश्वर से हमारे लिए बिनती कीजिए.” \p \v 4 येरेमियाह अब तक बंदी नहीं बनाए गए थे, इसलिये वे अब भी लोगों के बीच आने और जाने के लिए स्वतंत्र थे. \v 5 इसी समय मिस्र से फ़रोह की सेना प्रस्थित हो चुकी थी, जैसे ही कसदी सेना जो येरूशलेम की घेराबंदी किए हुए थी, उसे यह समाचार प्राप्‍त हुआ, उसने येरूशलेम से अपनी घेराबंदी उठा ली. \p \v 6 तब भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को याहवेह की ओर से यह संदेश प्रगट किया गया: \v 7 “इस्राएल के परमेश्वर याहवेह का संदेश यह है: तुम्हें यहूदिया के राजा से यह कहना होगा, जिसने तुम्हें मेरे पास इसलिये भेजा है कि वह मेरी बातें ज्ञात कर सके, ‘तुम यह देख लेना, कि तुम्हारी सहायता के लिए आई हुई फ़रोह की सेना अपने देश मिस्र को लौट जाएगी. \v 8 तब कसदी भी लौट आएंगे तथा इस नगर पर आक्रमण करेंगे; इसे अधीन कर लेंगे तथा इसे भस्म कर देंगे.’ \p \v 9 “यह याहवेह का आदेश है: निःसंदेह कसदी यहां से चले ही जाएंगे, ‘यह कहकर स्वयं को धोखे में न रखो.’ क्योंकि वे यहां से जाएंगे ही नहीं! \v 10 क्योंकि यदि तुमने संपूर्ण कसदी सेना को पराजित भी कर दिया होता, जो तुमसे युद्धरत थी तथा उनके तंबुओं में मात्र निराश सैनिक ही शेष रह गए होते, वे निराश सैनिक ही उठेंगे और इस नगर को भस्म कर देंगे.” \p \v 11 जब फ़रोह की सेना के येरूशलेम की ओर आने का समाचार कसदी सेना ने सुना, उन्होंने येरूशलेम से अपनी घेराबंदी उठा ली, \v 12 तब येरेमियाह बिन्यामिन प्रदेश में कुछ लोगों से पैतृक संपत्ति अभिग्रहण के उद्देश्य से येरूशलेम से प्रस्थित हुए. \v 13 जब वह बिन्यामिन प्रवेश द्वार पर पहुंचे, उन्हें वहां हाननियाह के पौत्र, शेलेमियाह के पुत्र, इरियाह नामक प्रधानप्रहरी ने बंदी बना लिया, उसने भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को संबोधित कर कहा, “अच्छा, तुम कसदियों से भेंट करने जा रहे हो!” \p \v 14 येरेमियाह ने उसे उत्तर दिया, “झूठ! मैं कसदियों से भेंट करने नहीं जा रहा.” इरियाह ने येरेमियाह के स्पष्टीकरण का विश्वास नहीं किया, उसने येरेमियाह को बंदी बनाकर अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया. \v 15 अधिकारी येरेमियाह से रुष्ट हो गए और उन्होंने येरेमियाह को पिटवा कर लिपिक योनातन के निवास में बंदी बनाकर रख दिया, वस्तुतः योनातन का निवास स्थान कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था. \p \v 16 येरेमियाह को पातालगृह में बंदी बनाकर रखा गया था अर्थात् एक तलवार कक्ष में, येरेमियाह इस स्थान पर दीर्घ काल तक रहे. \v 17 राजा सीदकियाहू ने येरेमियाह को बंदीगृह से मुक्त करवाया और महलों में बुलवाया तथा उनसे गुप्‍त में प्रश्न किया, “क्या याहवेह की ओर से कोई संदेश भेजा गया है?” \p येरेमियाह ने राजा को उत्तर दिया, “जी हां,” है, फिर उन्होंने आगे यह भी कहा: “आप बाबेल के राजा के हाथ में सौंप दिए जाएंगे.” \p \v 18 इसके सिवा येरेमियाह ने राजा से पूछा, “मैंने आपके विरुद्ध, आपके सेवकों के विरुद्ध अथवा इस प्रजा के विरुद्ध ऐसा कौन सा पाप कर दिया है, जो आपने मुझे बंदी बना रखा है? \v 19 इस समय आपके वे भविष्यद्वक्ता कहां हैं, जिन्होंने आपके लिए यह भविष्यवाणी की थी, ‘बाबेल का राजा न तो आप पर आक्रमण करेगा न इस देश पर’? \v 20 किंतु अब, महाराज, मेरे स्वामी, कृपा कर मेरा गिड़गिड़ाना सुन लीजिए: अब मुझे लिपिक योनातन के आवास पर न भेजिए, कि वहीं मेरी मृत्यु हो जाए.” \p \v 21 तब राजा ने आदेश दिया और येरेमियाह को पहरे के आंगन में रखने का प्रबंध किया गया, वहां उन्हें प्रतिदिन पाकशाला गली से रोटी प्रदान की जाती रही, यह तब तक होता रहा जब तक नगर में रोटी का निर्माण करना संभव रहा. वैसे येरेमियाह पहरे के आंगन में ही निवास करते रहे. \c 38 \s1 येरेमियाह अंधे कुएं में \p \v 1 इसी समय मत्तान के पुत्र शेपाथियाह, पशहूर के पुत्र गेदालियाह, शेलेमियाह के पुत्र यूकल तथा मालखियाह के पुत्र पशहूर ने येरेमियाह को यह सार्वजनिक घोषणा करते सुना, \v 2 “याहवेह का संदेश यह है: ‘जो कोई इस नगर में ठहरा रह जाएगा, वह तलवार, अकाल अथवा महामारी से ग्रसित होकर रहेगा, किंतु वह, जो नगर से बाहर कसदियों की शरण ले लेगा, वह जीवित रह जाएगा. उसका जीवन युद्ध में प्राप्‍त लूट सामग्री सदृश उसका उपहार हो जाएगा और वह जीवित रहेगा.’ \v 3 यह याहवेह की वाणी है: ‘निश्चयतः यह नगर बाबेल के राजा की सेना के अधीन कर दिया जाएगा, वह इस पर अधिकार कर लेगा.’ ” \p \v 4 यह सुन अधिकारियों ने राजा के समक्ष प्रस्ताव रखा, “अब तो इस व्यक्ति को प्राण-दंड दिया जाना ही उपयुक्त होगा, क्योंकि इसकी इस वाणी से इस नगर में शेष रह गए सैनिकों तथा शेष रह गई सारी प्रजा के मनोबल का ह्रास हो रहा है. यह व्यक्ति प्रजा की हितकामना नहीं, बल्कि संकट का ही प्रयास कर रहा है.” \p \v 5 तब राजा सीदकियाहू ने उन्हें उत्तर दिया, “वह तुम्हारे हाथ में है; मैं किसी भी रीति से आपके विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता.” \p \v 6 तब उन्होंने येरेमियाह को पकड़कर एक अंधे कुएं में डाल दिया, यह राजपुत्र मालखियाह का अंधा कुंआ था. यह पहरे के आंगन में ही था; उन्होंने येरेमियाह को इसमें रस्सियों द्वारा उतार दिया. इस अंधे कुएं में जल नहीं, मात्र कीचड़ ही शेष रह गया था ओर येरेमियाह उस कीचड़ में धंस गए. \p \v 7 किंतु महलों में नियुक्त एबेद-मेलेख नामक कूश देशवासी खोजे को यह ज्ञात हो गया कि उन्होंने येरेमियाह को अंधे कुएं में डाल दिया है. इस समय राजा बिन्यामिन प्रवेश द्वार पर आसन लगाए हुए था, \v 8 एबेद-मेलेख ने महलों से जाकर राजा से यह कहा, \v 9 “मेरे स्वामी, महाराज, इन लोगों ने आरंभ ही से भविष्यद्वक्ता येरेमियाह के साथ जो कुछ किया है, दुष्टतापूर्ण कृत्य ही किया है. जिन्हें इन्होंने अब अंधे कुएं में डाल दिया है, वहां तो भूख से उनकी मृत्यु निश्चित है, नगर में वैसे भी अब रोटी शेष रह ही नहीं गई है.” \p \v 10 यह सुन राजा ने कूश देशवासी एबेद-मेलेख को आदेश दिया, “अपने साथ तीस पुरुषों को अपने अधिकार में लेकर जाओ और भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को अंधे कुएं से बाहर निकाल लो, इसके पूर्व कि उनकी वहीं मृत्यु हो जाए.” \p \v 11 तब एबेद-मेलेख अपने साथ के व्यक्ति लेकर महल में गया. वहां जाकर उसने महलों के भण्डारगृह के नीचे निर्मित एक कक्ष में से कुछ चिथड़े निकाले और उन्हें रस्सियों द्वारा अंधे कुएं में येरेमियाह तक पहुंचा दिया. \v 12 तत्पश्चात कूश देशवासी एबेद-मेलेख ने येरेमियाह से कहा, “इन पुराने वस्त्रों को रस्सियों के नीचे अपनी बगलों में दबा लीजिए.” येरेमियाह ने ऐसा ही किया, \v 13 तब उन्होंने येरेमियाह को रस्सियों से ऊपर खींच लिया और उन्हें अंधे कुएं से बाहर निकाल लिया. येरेमियाह तब पहरे के आंगन में ही ठहरे रहे. \s1 सीदकियाहू येरेमियाह से फिर से प्रश्न करता है \p \v 14 कुछ समय बाद राजा सीदकियाहू ने भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को याहवेह के भवन के तीसरे प्रवेश द्वार पर बुलवाया. राजा ने येरेमियाह से कहा, “मैं आपसे कुछ प्रश्न करूंगा, मुझसे कुछ न छिपाइए.” \p \v 15 येरेमियाह ने सीदकियाहू से ही प्रश्न किया, “जब मैं आपको उत्तर दूंगा, क्या यह सुनिश्चित नहीं है कि आप मेरा वध करवा ही देंगे? इसके सिवा यदि मैं आपको कोई परामर्श दूंगा, आप तो उसका पालन करेंगे नहीं.” \p \v 16 किंतु राजा सीदकियाहू ने गुप्‍त में येरेमियाह से शपथ खाते हुए कहा: “जीवित याहवेह की शपथ, जिन्होंने आपको और मुझे जीवन दिया है, यह निश्चित है, कि मैं न तो आपका वध करवाऊंगा न ही आपको इन व्यक्तियों के हाथों में सौंपूंगा, जो आपके प्राण लेने को तैयार हैं.” \p \v 17 तब येरेमियाह ने सीदकियाहू को उत्तर दिया, “इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह का संदेश यह है: ‘सत्य यह है कि यदि आप बाहर जाएं और बाबेल के राजा के अधिकारियों के समक्ष समर्पण कर दें, तब आप जीवित रहेंगे, यह नगर अग्नि के द्वारा भस्म नहीं किया जाएगा और तब आप और आपका परिवार जीवित रह सकेगा. \v 18 किंतु यदि आप बाहर जाकर बाबेल के राजा के अधिकारियों के समक्ष समर्पण नहीं करते, तो यह नगर कसदियों को सौंप दिया जाएगा; वे इसे अग्नि से भस्म कर देंगे तथा स्वयं आप भी उनके हाथों से बच निकल न सकेंगे.’ ” \p \v 19 तब राजा सीदकियाहू ने येरेमियाह से कहा, “मुझे भय है उन यहूदियों से जो कसदियों से जा मिले हैं, यह संभव है कि कसदी मुझे उनके हाथों में सौंप दें और वे मेरी हालत बुरी कर दें.” \p \v 20 “कसदी आपको उनके हाथों में नहीं सौंपेंगे.” येरेमियाह ने उसे उत्तर दिया. “आप कृपा कर मेरे कहे अनुसार याहवेह के आदेश का पालन कीजिए, कि आपका कल्याण हो और आप जीवित रहें. \v 21 किंतु यदि आप बाहर जाने को टालते रहेंगे, तो याहवेह द्वारा आपके लिए मुझे दिया गया संदेश यह है: \v 22 तब आप देखना, यहूदिया के राजा के महलों में जितनी भी स्त्रियां शेष रह गई है, वे बाबेल के राजा के अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत की जाएंगी. जब वे यहां से जा रही होंगी, वे इस प्रकार कटाक्ष करेंगी: \q1 “ ‘तुम्हारे घनिष्ठ मित्रों ने ही तुम्हें दूर— \q2 तथा आक्रांत कर दिया है. \q1 जब तुम्हारे कदम दलदल में फंसे हुए थे; \q2 वे तुम्हें पीठ दिखाकर चले गए.’ \p \v 23 “वे तुम्हारी पत्नियों एवं बालकों को निकालकर कसदियों को सौंप देंगे. आप स्वयं उनसे छूटकर बच न सकेंगे, बल्कि तुम बाबेल के राजा द्वारा बंदी बना लिए जाओगे; यह नगर अग्नि से भस्म कर दिया जाएगा.” \p \v 24 यह सुन सीदकियाहू ने येरेमियाह से कहा, “किसी को भी इस वार्तालाप के विषय में ज्ञात न होने पाए, आपकी मृत्यु न होगी. \v 25 किंतु फिर भी, यदि अधिकारियों को यह ज्ञात हो जाए कि मैंने आपसे वार्तालाप किया है और तब वे आकर आपसे आग्रह करेंगे, ‘अब तो हमें बता दो, कि तुमने राजा को क्या-क्या बता दिया है और राजा ने तुमसे क्या-क्या कहा है; यदि तुम हमसे कुछ नहीं छिपाओगे तो हम तुम्हारा वध नहीं करेंगे,’ \v 26 तब तुम्हारा प्रत्युत्तर यह होगा, ‘मैं राजा के समक्ष अपनी याचना प्रस्तुत कर रहा था, कि मुझे पुनः योनातन के आवास में न भेजा जाए, कि वहां मेरी मृत्यु हो जाए.’ ” \p \v 27 तब सभी अधिकारी येरेमियाह के पास आ गए और उनसे पूछताछ करने लगे, येरेमियाह ने उन्हें वही उत्तर दिया, जैसा उन्हें राजा द्वारा निर्देश दिया गया था. तब उन्होंने पूछताछ बंद कर दी, क्योंकि वस्तुस्थिति यही थी, कि किसी को भी यह ज्ञात न था कि राजा तथा येरेमियाह के मध्य वार्तालाप विषय वास्तव में क्या था. \s1 येरूशलेम का पतन \p \v 28 येरेमियाह येरूशलेम के पतन के दिन तक पहरे के आंगन में ही निवास करते रहे. \c 39 \nb \v 1 येरूशलेम का पतन इस प्रकार हुआ: यहूदिया के राजा सीदकियाहू के राज्य-काल के नवें वर्ष के दसवें माह में बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र ने अपनी सारी सेना के साथ आकर येरूशलेम की घेराबंदी की. \v 2 सीदकियाहू के राज्य-काल के ग्यारहवें वर्ष के चौथे माह में नवीं तिथि को, नगर शहरपनाह तोड़ करके वे नगर में घुस गए. \v 3 यह होते ही बाबेल के राजा के सभी अधिकारी भीतर आ गए और मध्य प्रवेश द्वार पर बैठ गए: ये अधिकारी थे सामगर का नेरगल-शारेज़र तथा नेबो-सारसेकिम, जो अधिकारियों में प्रमुख था, राजा का परामर्शक नेरगल-शारेज़र तथा अन्य सभी अधिकारी. \v 4 जब सीदकियाहू तथा उसके सैनिकों ने यह देखा; वे रात्रि में राजा के उद्यान में से होते हुए दोनों शहरपनाह के मध्य के द्वार से नगर से होते हुए पलायन कर गए, उन्होंने अराबाह घाटी की ओर भागना चाहा. \p \v 5 किंतु कसदी सेना ने उनका पीछा किया और उन्होंने येरीख़ो के मैदान में यहूदिया के राजा सीदकियाहू को जा पकड़ा. उसे बंदी बना लिया और उसे बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र की उपस्थिति में हामाथ देश के रिबलाह में ले गए, वहां सीदकियाहू पर दंड की आज्ञा प्रसारित कर दी गई. \v 6 तत्पश्चात बाबेल के राजा ने सीदकियाहू के देखते-देखते रिबलाह में उसके पुत्रों का वध कर डाला, बाबेल के राजा ने यहूदिया के सारे अधिकारियों का भी वध कर दिया. \v 7 फिर नबूकदनेज्ज़र ने सीदकियाहू की आंखें निकाल लीं और उसे कांसे की सांकलों में बांधकर बाबेल ले गए. \p \v 8 कसदियों ने महलों को तथा प्रजा के आवासों को भस्म कर दिया तथा येरूशलेम की शहरपनाह तोड़ दीं. \v 9 इस समय वे लोग जो नगर में शेष रह गए थे, वे लोग, जो नगर छोड़कर कसदियों की शरण में जा पहुंचे थे तथा अन्य लोगों को अंगरक्षकों का प्रधान नेबुज़रादान बंधुआई में बाबेल ले गया. \v 10 किंतु कुछ अत्यंत निर्धन लोगों को जिनके पास कुछ भी न था, अंगरक्षकों का प्रधान नेबुज़रादान यहूदिया में ही पीछे छोड़ गया; इन्हें उसने द्राक्षाउद्यान एवं खेत सौंप दिए. \p \v 11 इसी समय बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र ने येरेमियाह के विषय में अंगरक्षकों के प्रधान नेबुज़रादान के द्वारा यह आदेश प्रसारित कर दिया था: \v 12 “उसे ले जाकर उसकी देखभाल करो; ध्यान रहे उसकी कोई हानि न होने पाए, उसके साथ वही किया जाए, जिसका वह तुमसे आग्रह करता है.” \v 13 इसलिये अंगरक्षकों के प्रधान नेबुज़रादान ने रब-सारिस नबूषाज़बान तथा रब-माग नेरगल-शारेज़र के द्वारा तथा बाबेल के राजा के सारे प्रमुख अधिकारियों के द्वारा यह संदेश प्रसारित कर दिया \v 14 उन्होंने कुछ व्यक्तियों को भेजा और उन्होंने येरेमियाह को पहरे के आंगन से निकालकर शापान के पौत्र अहीकाम के पुत्र, गेदालियाह को सौंप दिया, कि वह येरेमियाह को अपने आवास ले जाए. इस प्रकार येरेमियाह लोगों के मध्य रहने लगे. \p \v 15 ऐसा हुआ कि जब येरेमियाह पहरे के आंगन में बंदी बनाकर रखे गए थे, उनके पास याहवेह का यह संदेश आ चुका था: \v 16 “जाकर कूश देशवासी एबेद-मेलेख को यह सूचित करो, ‘इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह की यह वाणी है: यह देखना, कि इस नगर के लिए की गई अपनी पूर्ववाणी को मैं कृतार्थ करने पर हूं—उस वाणी को, जो इसके विध्वंस की वाणी थी, समृद्धि की नहीं. विध्वंस के उस दिन को देखने के लिए तुम जीवित रहोगे. \v 17 किंतु उस दिन मैं तुम्हें इस विध्वंस से बचा लूंगा, यह याहवेह की वाणी है; तुम उन लोगों द्वारा बंदी नहीं बनाए जाओगे, जो तुम्हारे लिए भयास्पद हैं. \v 18 क्योंकि मैं तुम्हें निःसंदेह उनसे बचा लूंगा, तुम तलवार से घात नहीं किए जाओगे. तुम्हारा अपना जीवन ही लूट सामग्री सदृश तुम्हारा छुटकारा होगा, क्योंकि तुमने मुझ पर भरोसा किया है, यह याहवेह की वाणी है.’ ” \c 40 \s1 येरेमियाह मुक्त होता है \p \v 1 राज्यपाल गेदालिया के आवास में से अंगरक्षकों के प्रधान नेबुज़रादान ने जब येरेमियाह को येरूशलेम तथा यहूदिया के सारे बंदियों के बीच जंजीरों से बंधा हुआ देखा जिन्हें बाबेल ले जाया जा रहा था, तब उसने उसे रामाह में विमुक्त कर दिया. उस समय याहवेह का संदेश येरेमियाह को प्रगट किया गया. \v 2 अंगरक्षकों के प्रधान ने येरेमियाह को अलग ले जाकर कहा, “याहवेह, आपके ही परमेश्वर ने इस स्थान के विरुद्ध यह घोर विपत्ति योजित की थी. \v 3 अब याहवेह ने जैसी पूर्ववाणी की थी; उसे ही बनाकर दिखाया है. क्योंकि आप लोगों ने ही तो याहवेह के विरुद्ध पाप किया है, आप लोगों ने उनके आदेशों का पालन नहीं किया, इसलिये आप पर यह विपत्ति टूट पड़ी है. \v 4 किंतु अब देखिए, आज मैं आपको आपके हाथों में पड़ी हुई इन बेड़ियों से विमुक्त कर रहा हूं, यदि आपको उपयुक्त लगे, आप मेरे साथ बाबेल चल सकते हैं, आपकी देखभाल का दायित्व मेरा होगा; किंतु यदि आप मेरे साथ बाबेल चलना उपयुक्त न समझें तो, आपकी इच्छा, आपके समक्ष संपूर्ण देश खुला पड़ा है; आपको जो स्थान अनुकूल लगे वहीं चले जाइए.” \v 5 इसलिये कि येरेमियाह वहां अनिश्चय की स्थिति में ही ठहरे हुए थे, नेबुज़रादान ने उनसे कहा, “अच्छा, तो आप शापान के पौत्र अहीकाम के पुत्र गेदालियाह के पास लौट जाइए, जिसे बाबेल के राजा ने यहूदिया के नगरों पर राज्यपाल नियुक्त किया है, आप गेदालियाह के यहां अपने ही लोगों के मध्य निवास कीजिए. यदि नहीं, तो आपको जहां कहीं उपयुक्त लगे वहीं चले जाइए.” \p इसके बाद अंगरक्षकों के प्रधान ने येरेमियाह को कुछ अन्‍न पदार्थ तथा एक उपहार देकर उन्हें विदा किया. \v 6 येरेमियाह वहां से मिज़पाह में अहीकाम के पुत्र गेदालियाह के यहां जाकर उस देश में शेष रह गए लोगों के मध्य निवास करने लगे. \s1 गेदालियाह की हत्या \p \v 7 जब युद्ध क्षेत्र में सारे सेनापतियों तथा सैनिकों को यह सूचना प्राप्‍त हुई कि बाबेल के राजा ने अहीकाम के पुत्र गेदालियाह को संपूर्ण देश तथा उन पुरुषों, स्त्रियों तथा बालकों पर, जो देश में गरीब थे तथा जो बाबेल में बंदी नहीं किए गए थे, अधिपति नियुक्त कर दिया है, \v 8 वे मिज़पाह में गेदालियाह से भेंट करने आ गए. उनके साथ थे नेथनियाह का पुत्र इशमाएल, कोरियाह के पुत्र योहानन तथा योनातन, तनहूमेथ का पुत्र सेराइयाह, नेतोफ़ातवासी एफाई के पुत्र, माकाहथिवासी का पुत्र येत्सानियाह, दोनों ही तथा उनकी सैनिक टुकड़ी. \v 9 यह सब देखते हुए शापान के पौत्र, अहीकाम के पुत्र, गेदालियाह ने उनके तथा सैनिकों के समक्ष यह कहते हुए शपथ ली: “कसदियों की सेवा करने का विचार तुम्हें भयभीत न करे, इसी देश में निवास करते हुए बाबेल के राजा की सेवा करते रहो, कि तुम्हारा हित हो. \v 10 मैं तो मिज़पाह में ही रहूंगा, कि मैं तुम्हारी सहायता में खड़ा रह सकूं, कि मैं उन कसदियों के लिए तुम्हारा प्रवक्ता हो सकूं जो अपना प्रतिवाद लेकर मेरे पास आए थे, किंतु तुम द्राक्षारस, ग्रीष्मकालीन फल एवं तेल का संग्रहण करते रहना, उन्हें भंडारण बर्तनों में रख देना, अपने-अपने नगरों में निवास करना, जिन्हें अब तुमने अपना लिया है.” \p \v 11 इसी प्रकार वे सभी यहूदियों ने जो इस समय मोआब, अम्मोन, एदोम तथा अन्य देशों में निवास करने लगे थे, यह सुना कि बाबेल के राजा ने यहूदिया में कुछ लोगों को छोड़ दिया है, तथा यह, कि उसने उन पर शापान के पौत्र, अहीकाम के पुत्र गेदालियाह को अधिपति नियुक्त कर दिया है, \v 12 तब सभी स्थानों से सारे यहूदी लौटकर आने लगे, जहां उन्हें खदेड़ दिया गया था, वे यहूदिया देश में आए तथा मिज़पाह में गेदालियाह से भेंट करने गए. उन्होंने बड़ी मात्रा में द्राक्षारस एवं ग्रीष्मकालीन फलों का भंडारण कर डाला. \p \v 13 तब कोरियाह का पुत्र योहानन तथा रणभूमि में सैनिकों के सारे सेनापति मिज़पाह में गेदालियाह से भेंट करने आए. \v 14 उन्होंने उससे कहा, “क्या आपको यह संज्ञान है कि अम्मोन के वंशजों के राजा बालिस ने नेथनियाह के पुत्र इशमाएल को आपकी हत्या के उद्देश्य से भेजा है?” किंतु अहीकाम के पुत्र गेदालियाह ने उनका विश्वास ही नहीं किया. \p \v 15 तब कोरियाह के पुत्र योहानन ने मिज़पाह में अकेले में जाकर गेदालियाह के समक्ष यह प्रस्ताव रखा, “मुझे अनुमति दीजिए, कि मैं जाकर नेथनियाह के पुत्र इशमाएल का वध कर दूं. किसी को भी इसके विषय में ज्ञात न हो सकेगा, हम क्यों उसे आपकी हत्या का अवसर दें? अन्यथा आपकी शरण में आए ये सारे यहूदी पुनः बिखर जाएंगे तथा यहूदिया का बचा हुआ शेष नष्ट हो जाएगा?” \p \v 16 किंतु अहीकाम के पुत्र गेदालियाह ने उससे कहा, “इशमाएल के विषय में तुम्हारा यह वचन असत्य है! मत करो उसकी हत्या.” \c 41 \p \v 1 सातवें माह में एलीशामा का पौत्र नेथनियाह का पुत्र, राजपरिवार का वंशज इशमाएल, राजा के प्रमुख सेनापतियों में से एक तथा दस व्यक्ति अहीकाम के पुत्र गेदालियाह से भेंट करने मिज़पाह पहुंचे. जब वे वहां साथ बैठे हुए भोजन कर रहे थे, \v 2 नेथनियाह का पुत्र इशमाएल तथा उसके दस साथी उठे और तलवार के प्रहार से शापान के पौत्र, अहीकाम के पुत्र गेदालिया का वध कर दिया, गेदालियाह, जिसे बाबेल के राजा ने देश पर अधिपति नियुक्त किया था. \v 3 इशमाएल ने राजा के सारे यहूदियों का भी संहार कर दिया, अर्थात् वे, जो मिज़पाह में गेदालियाह के साथ थे, उसने उन कसदी सैनिकों का भी संहार कर दिया, जो उस स्थान पर पाए गए. \p \v 4 दूसरे दिन, जब गेदालियाह की हत्या की जा चुकी थी, जिसके विषय में किसी को कोई संज्ञान न था, \v 5 शेकेम से, शीलो से तथा शमरिया से अस्सी व्यक्ति वहां पहुंचे, उनकी दाढ़ी मूंड़ी हुई थी, वस्त्र फटे हुए तथा देह पर घाव लगे हुए थे, वे अपने साथ अन्‍नबलि एवं धूप लेकर आए थे, कि इन्हें याहवेह के भवन में ले जाएं. \v 6 तब नेथनियाह का पुत्र इशमाएल मिज़पाह से उनसे भेंट करने निकला, इस समय वह रोता जा रहा था. जब उसकी भेंट इन अस्सी व्यक्तियों के समूह से हुई, उसने उनसे कहा, “चलिए, हम अहीकाम के पुत्र गेदालियाह से भेंट करने चलें.” \v 7 उनके नगर में पहुंचते ही, नेथनियाह के पुत्र इशमाएल तथा उसके साथियों ने उनकी हत्या कर दी और उनके शव कुएं में फेंक दिए. \v 8 किंतु इन अस्सी में से दस जीवित रह गए थे, उन्होंने इशमाएल से आग्रह किया, “हमें जीवनदान दीजिए! हमारे पास गेहूं, जौ, मधु तथा तेल का भंडार है, जिसे हमने खेत में छिपा रखा है.” तब इशमाएल ने अन्य सत्तर के साथ उनकी हत्या नहीं की. \v 9 वह कुंआ जिसमें इशमाएल ने उन लोगों के शव फेंक दिए थे, जिनकी उसने गेदालियाह के साथ हत्या की थी, राजा आसा द्वारा इस्राएल के राजा बाशा से अपनी सुरक्षा के उद्देश्य से निर्मित किया गया था. नेथनियाह के पुत्र इशमाएल ने इस कुएं को मरे हुओं के शवों से भर दिया. \p \v 10 तत्पश्चात इशमाएल ने मिज़पाह में निवास कर रहे सारे लोगों को बंदी बना लिया, राजा की बेटियों तथा मिज़पाह में शेष रह गए सभी यहूदी, जिन्हें अंगरक्षकों के प्रधान, नेबुज़रादान ने अहीकाम के पुत्र गेदालियाह के संरक्षण में छोड़ रखा था. इस प्रकार नेथनियाह के पुत्र इशमाएल ने इन सभी को बंदी बना लिया और वह अम्मोन वंशजों के देश की ओर इन्हें लेकर प्रस्थित हो गया. \p \v 11 नेथनियाह के पुत्र इशमाएल द्वारा किए गए इस संकट का समाचार कोरियाह के पुत्र योहानन तथा उसके साथ की संयुक्त सेना के सेनापतियों को प्राप्‍त हुआ, \v 12 इसलिये उन्होंने सभी पुरुषों को एकजुट किया और नेथनियाह के पुत्र इशमाएल से युद्ध करने के लिए तैयार हुए. नेथनियाह के पुत्र इशमाएल को उन्होंने गिबयोन के महा कुंड के निकट जा पकड़ा. \v 13 जैसे ही इशमाएल के सारे साथियों की दृष्टि कोरियाह के पुत्र योहानन तथा उसके साथी सेनापतियों पर पड़ी, वे पुलकित हो गए. \v 14 इससे मिज़पाह में इशमाएल द्वारा बंदी बनाए गए सभी लोग मुड़कर कोरियाह के पुत्र योहानन के निकट आ गए. \v 15 किंतु नेथनियाह का पुत्र इशमाएल योहानन से बचकर भाग निकला, उसके साथ आठ व्यक्ति भी बच निकले और अम्मोन वंशजों के देश पहुंच गए. \s1 मिस्र के लिए पलायन \p \v 16 तब कोरियाह के पुत्र योहानन तथा उसके साथ की सेना के सारे सेनापतियों ने मिज़पाह से लोगों के संपूर्ण लोगों को निकाल लिया, जिन्हें उसने नेथनियाह के पुत्र इशमाएल से विमुक्त किया था, जिन्हें इशमाएल ने अहीकाम के पुत्र गेदालियाह की हत्या के बाद बंदी बना लिया था, अर्थात्, सैनिक, स्त्रियां, बालक; तथा राज-दरबार के अधिकारी जिन्हें उसने गिबयोन से लौटा ले आया था. \v 17 उपयुक्त समय आने पर मिस्र चले जाने के उद्देश्य से वे जाकर बेथलेहेम के निकटवर्ती नगर गेरुथ किमहाम में ठहरे रहे. \v 18 क्योंकि उन्हें कसदियों का भय था. क्योंकि नेथनियाह के पुत्र इशमाएल ने अहीकाम के पुत्र गेदालियाह की हत्या कर दी थी, जिसको बाबेल के राजा ने देश पर अधिपति नियुक्त किया था. \c 42 \p \v 1 तब सारी सेना के सेनापति, कोरियाह का पुत्र योहानन, होशाइयाह का पुत्र येत्सानियाह, तथा प्रजा के साधारण एवं विशिष्ट सभी लोग भविष्यद्वक्ता येरेमियाह से भेंट करने आ गए \v 2 उन्होंने येरेमियाह भविष्यद्वक्ता से आग्रह किया, “हमारा आपसे निवेदन है, कृपया, याहवेह, अपने परमेश्वर से हमारे लिए, अर्थात् उन बचे हुए लोगों के लिए बिनती कीजिए. क्योंकि बहुसंख्यकों में से अब हम मात्र अल्प ही रह गए हैं, यह तो आप स्वयं देख ही रहे हैं. \v 3 आप प्रार्थना कीजिए, कि याहवेह, आपके परमेश्वर हम पर यह प्रकट कर दें, कि अब हमारा क्या करना उपयुक्त होगा तथा हमारा कहां जाना सार्थक होगा.” \p \v 4 भविष्यद्वक्ता येरेमियाह ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने तुम्हारा प्रस्ताव सुन लिया है. अब देखो, तुम्हारे अनुरोध के अनुसार मैं याहवेह तुम्हारे परमेश्वर से प्रार्थना करूंगा और जो उत्तर मुझे याहवेह की ओर से प्राप्‍त होगा, वह संपूर्ण संदेश मैं तुम पर प्रकट कर दूंगा और उस संदेश का एक भी शब्द मैं तुमसे न छिपाऊंगा.” \p \v 5 यह सुन उन्होंने येरेमियाह को उत्तर दिया, “याहवेह ही हमारे लिए सत्य एवं विश्वसनीय गवाह हों, यदि हम उस संदेश के अनुरूप पूर्णतः आचरण न करें, जो याहवेह आपके परमेश्वर आपके द्वारा हमें प्रगट करेंगे. \v 6 वह संदेश चाहे हमारे लिए सुखद हो अथवा दुखद, हम याहवेह, हमारे परमेश्वर के संदेश को सुनेंगे, जिनके समक्ष जाने का हम आपसे अनुरोध कर रहे हैं, क्योंकि जब हम याहवेह, हमारे परमेश्वर के आदेश का पालन करें, तब हमारा कल्याण हो.” \p \v 7 दस दिन समाप्‍त होते-होते येरेमियाह को याहवेह का संदेश प्राप्‍त हुआ. \v 8 उन्होंने कोरियाह के पुत्र योहानन को, उन सारे सेनापतियों को भी, जो उसके साथ थे तथा सारे साधारण एवं विशिष्ट लोगों की सभा आमंत्रित की. \v 9 और उन्हें संबोधित कर कहा, “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है, उन्हीं याहवेह का, जिनके समक्ष तुमने मुझे अपना निवेदन प्रस्तुत करने का दायित्व सौंपा था: \v 10 ‘यदि तुम वास्तव में इस देश में निवास करते रहो, तब मैं तुम्हें समृद्धि प्रदान करूंगा, तुम्हें नष्ट न करूंगा; मैं तुम्हें यहां रोपित करूंगा, अलग नहीं; क्योंकि मैं तुम पर प्रभावी की गई विपत्तियों के विषय में पछताऊंगा. \v 11 बाबेल के राजा से भयभीत न होना, जिससे तुम इस समय भयभीत हो रहे हो. मत हो उससे भयभीत, यह याहवेह की वाणी है, क्योंकि तुम्हारी सुरक्षा के निमित्त मैं तुम्हारे साथ हूं मैं तुम्हें उसकी अधीनता से मुक्त करूंगा. \v 12 मैं तुम्हें अनुकम्पा का अनुदान दूंगा कि वह तुम पर अनुकम्पा करे और तुम्हें तुम्हारी मातृभूमि पर लौटा दे.’ \p \v 13 “किंतु यदि तुम कहो, ‘हम इस देश में निवास नहीं करेंगे,’ अर्थात् तुम याहवेह, अपने परमेश्वर के आदेश का अनुकरण करना अस्वीकार कर दो, \v 14 और यह कहो, ‘नहीं, हम तो मिस्र देश जाएंगे, जहां न तो युद्ध की स्थिति होगी, जहां न नरसिंगा का युद्धनाद सुनना पड़ेगा और न ही जहां भोजन का अभाव रहेगा. हम वहीं निवास करेंगे,’ \v 15 तब यदि स्थिति यह है, तो यहूदिया के बचे हुए लोगो, याहवेह का यह संदेश सुन लो; सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की वाणी यह है: ‘यदि तुमने मिस्र देश में प्रवेश करने तथा वहां बस जाने का निश्चय कर ही लिया है, \v 16 तब तो वह तलवार जिससे तुम आतंकित हो, तुम्हें वहां मिस्र देश में जा पकड़ेगी, वह अकाल जिसका तुम्हें डर है, वह तुम्हारे पीछे-पीछे मिस्र देश में जा पहुंचेगा और वहां तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी. \v 17 तब वे सभी, जिन्होंने मिस्र में जाकर बस जाने का निश्चय कर लिया है, वे वहां जाकर तलवार, लड़ाई तथा महामारी को ग्रसित हो ही जाएंगे, और हां, वहां उस विपत्ति से, जो मैं उन पर डालने पर हूं, न तो कोई उत्तरजीवी शेष रहेगा और न ही कोई शरणार्थी.’ \v 18 क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह की वाणी यह है: ‘जिस प्रकार मेरा क्रोध एवं आक्रोश येरूशलेम वासियों पर उंडेला जा चुका है, उसी प्रकार मेरा कोप तुम पर उस अवसर पर उंडेला जाएगा, जब तुम मिस्र देश में प्रवेश करोगे. तब तुम शाप, आतंक के प्रतिरूप, अमंगल तथा उपहास का विषय होकर रह जाओगे; इसके बाद तुम इस स्थान को कभी भी देख न सकोगे.’ \p \v 19 “यहूदिया के बचे हुए लोगो, याहवेह ने तुमसे बात की है, ‘मत जाओ मिस्र देश.’ स्पष्टतः यह समझ लो, कि आज मैंने तुम्हें यह चेतावनी दी है \v 20 छल तो तुमने स्वयं से किया है, क्योंकि स्वयं तुमने ही याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर से बात करने का यह दायित्व मुझे सौंपा था, ‘याहवेह हमारे परमेश्वर से प्रार्थना कीजिए तथा जो कुछ याहवेह हमारे परमेश्वर कहें, वह हमें बता दीजिए, कि हम वैसा ही करें.’ \v 21 यही मैंने आज तुम्हें बता दिया है, किंतु तुमने याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के आदेश का पालन नहीं किया है, उसी को, जिसे तुम्हें बता देने के लिए मुझे याहवेह ने भेजा है. \v 22 इसलिये अब तुम्हारा यह स्पष्टतः समझ लेना उपयुक्त होगा, कि तुम जिस स्थान पर जाने की अभिलाषा कर रहे हो, तुम्हारी मृत्यु वहीं तलवार, अकाल तथा महामारी से ही होनी है.” \c 43 \p \v 1 जैसे ही येरेमियाह ने सारे उपस्थित जनसमूह के समक्ष याहवेह, उनके परमेश्वर द्वारा प्रदत्त संदेश सुनाना समाप्‍त किया, \v 2 होशाइयाह का पुत्र अज़रियाह तथा कोरियाह का पुत्र योहानन तथा अन्य सारे दंभी लोग येरेमियाह के विषय में कह उठे: “झूठ बोल रहे हैं आप! याहवेह, हमारे परमेश्वर ने आपको इस संदेश के साथ भेजा ही नहीं है, ‘तुम्हें मिस्र में बस जाने के उद्देश्य से प्रवेश नहीं करना है’; \v 3 यह नेरियाह का पुत्र बारूख है, जो आपको हमारे विरुद्ध उकसा रहा है, कि हमें कसदियों के हाथों में सौंप दिया जाए, कि वे हमारी हत्या कर दें अथवा हमें बंदी बनाकर बाबेल ले जायें.” \p \v 4 तब कोरियाह के पुत्र योहानन ने, सेनापतियों ने तथा सारे लोगों ने यहूदिया देश में ही ठहरे रहने के विषय में याहवेह के आदेश का पालन नहीं किया. \v 5 कोरियाह के पुत्र योहानन तथा सारे सेनापतियों ने यहूदिया के संपूर्ण बचे हुए लोगों को, जो अनेक-अनेक देशों में से विस्थापन की स्थिति से यहूदिया में बस जाने के लिए लौटा लाए गए थे, \v 6 पुरुष स्त्री एवं बालक, राजपुत्रियां तथा हर एक ऐसा व्यक्ति, जिसे अंगरक्षकों के प्रधान नेबुज़रादान ने शापान के पौत्र अहीकाम के पुत्र, गेदालियाह, भविष्यद्वक्ता येरेमियाह तथा नेरियाह के पुत्र बारूख के साथ छोड़ दिया था, \v 7 इन्होंने याहवेह के आदेश का पालन नहीं किया और ये सभी मिस्र देश को चले गए और ताहपनहेस तक जा पहुंचे. \p \v 8 ताहपनहेस में येरेमियाह को याहवेह का यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \v 9 “यहां ताहपनहेस में ही, कुछ बड़े पत्थर लेकर उन्हें यहूदियों के देखते-देखते फ़रोह के महलों के प्रवेश द्वार के सम्मुख के पक्‍के मार्ग के पत्थरों के गारे के नीचे छिपा दो. \v 10 तब उनके समक्ष यह वाणी करो: ‘सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की यह वाणी है, यह देख लेना कि मैं बाबेल के राजा अपने सेवक नबूकदनेज्ज़र को यहां ले आने पर हूं. इन्हीं पत्थरों पर मैं उसका सिंहासन स्थापित करूंगा, जो यहां छिपाए गए हैं. इनके ऊपर वह अपना राजकीय मंडप विस्तृत करेगा. \v 11 नबूकदनेज्ज़र आकर मिस्र को पराजित कर देगा. जिनके लिए मृत्यु नियत की गई है, उनकी मृत्यु हो जाएगी; जिनको बंदी बना लिया जाना नियत है, वे बंदी बना लिए जाएंगे; जो तलवार से वध किए जाने के लिए निर्धारित किए गए हैं, वे तलवार से वध कर दिए जाएंगे. \v 12 मैं मिस्र के देवताओं के मंदिरों में आग लगा दूंगा और वह उन्हें भस्म कर डालेगा तथा मिस्रियों को बंदी बना लेगा. वह मिस्र को ध्वस्त कर देगा जिस प्रकार चरवाहा स्वयं अपने बाह्य वस्त्र को अपनी देह पर लपेट लेता है. उसी प्रकार वह मिस्र को स्वयं पर लपेट लेगा और वहां से सुरक्षित विदा हो जाएगा. \v 13 वह मिस्र के सूर्य मंदिर के पूजा-स्तम्भों को चूर-चूर कर देगा, जो हेलियोपोलिस में हैं; वैसे ही मिस्र के देवताओं के मंदिरों को भी वह भस्म कर देगा.’ ” \c 44 \s1 मूर्ति पूजा के कारण विनाश \p \v 1 मिस्र देश के मिगदोल, ताहपनहेस, मैमफिस नगरों तथा पथरोस प्रदेश में निवास कर रहे यहूदियों के लिए येरेमियाह को यह संदेश भेजा गया: \v 2 “सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की वाणी यह है: येरूशलेम तथा यहूदिया के नगरों पर जो सारी विपत्तियां मेरे द्वारा भेजी गई हैं, उन्हें तो तुमने स्वयं ही देख ली हैं. देख लो, कि आज तक ये स्थान खंडहर बने हुए हैं और कोई भी उनमें निवास नहीं कर रहा. \v 3 उस दुष्कृति के कारण जिसके द्वारा उन्होंने परकीय देवताओं की उपासना करने, उन्हें बलि अर्पण करने के द्वारा मेरे कोप को भड़काया है. ये देवता उनके लिए, तुम्हारे लिए तथा तुम्हारे पूर्वजों के लिए अज्ञात रहे. \v 4 इतना सब होने पर भी मैंने तुम्हारे हित में अपने सेवक भविष्यवक्ताओं को भेजा, बार-बार वे यह संदेश देते रहे, ‘मत करो ये सारे उपक्रम, जो मेरे समक्ष घृणास्पद हैं!’ \v 5 किंतु उन्होंने न इस ओर ध्यान दिया, न मेरा संदेश सुना न वे इन दुष्कृत्यों से विमुख हुए; उन्होंने उन परकीय देवताओं को बलि अर्पण करना समाप्‍त न किया. \v 6 इसलिये मेरा कोप और मेरा आक्रोश उंडेला गया; यहूदिया के नगर तथा येरूशलेम की गलियां इनसे क्रोधित हो गईं और इसका परिणाम यह है कि अब ये खंडहर मात्र रह गए हैं, जैसा आज स्पष्ट ही है, ये अब निर्जन रह गए हैं. \p \v 7 “इसलिये अब, सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की वाणी यह है: तुम क्यों अपनी ही अकाल हानि करने पर तैयार हो, कि तुम्हारे मध्य में यहूदिया में से स्त्री-पुरुष, बालक तथा शिशु कोई बचे हुए लोग न रह जाएं? \v 8 मिस्र देश, जहां तुमने बस जाने के उद्देश्य से प्रवेश किया है, वहां तुम उन परकीय देवताओं को बलि अर्पण करने के द्वारा मेरे कोप को भड़का रहे हो. इसका परिणाम यही होगा कि तुम नष्ट हो जाओगे तथा तुम पृथ्वी के सारी जनताओं के लिए एक शाप, एक कटाक्ष बनकर रह जाओगे. \v 9 क्या तुम अपने पूर्वजों की दुष्कृति भूलना पसंद कर चुके हो—यहूदिया के राजाओं की दुष्कृति, उनकी पत्नियों की दुष्कृति, स्वयं तुम्हारी दुष्कृति तथा तुम्हारी पत्नियों की दुष्कृति, जो यहूदिया में तथा येरूशलेम की गलियों में उनके द्वारा की जाती रही है? \v 10 किंतु पश्चाताप उन्होंने आज तक नहीं किया और उनमें न तो मेरे प्रति श्रद्धा दिखाई, न उन्होंने मेरे व्यवस्था-विधान के पालन किया जो मैंने ही तुम्हारे तथा तुम्हारे पूर्वजों के सामने रखे थे. \p \v 11 “इसलिये इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के याहवेह, की वाणी यह है, यह देख लेना, कि मैं तुम्हारे संकट के लक्ष्य से तुम्हारी ओर अभिमुख होने पर हूं, हां, सारे यहूदिया के सर्वनाश के लक्ष्य से. \v 12 मैं यहूदिया के उस बचे हुए लोगों को, जो मिस्र में बस जाने के लिए तैयार हो चुके हैं, नष्ट कर दूंगा. मिस्र देश में वे पूर्णतः नष्ट हो जाएंगे; वे तलवार तथा अकाल से नष्ट हो जाएंगे. तलवार एवं अकाल से सामान्य एवं विशिष्ट दोनों ही मिटा दिए जाएंगे. वे शाप बन जाएंगे, आतंक-प्रतिरूप हो जाएंगे, अमंगल प्रार्थना तथा उपहास का विषय हो जाएंगे. \v 13 मैं मिस्र के निवासियों को उसी प्रकार दंड दूंगा, जिस प्रकार मैंने येरूशलेम को तलवार, अकाल तथा महामारी का दंड दिया है. \v 14 तब यहूदिया के उन बचे हुए लोगों में से जो मिस्र में इन बातों के साथ जा बसे हैं, कि वे पुनः यहूदिया लौट आएंगे, जहां लौटकर आ रहना ही उनकी अभिलाषा है; उनमें से मात्र अल्प शरणार्थियों के सिवाय न तो कोई शरणार्थी रहेगा और न कोई उत्तरजीवी.” \p \v 15 तब उन सभी व्यक्तियों ने जिन्हें यह ज्ञात था कि उनकी पत्नियां परकीय देवताओं के समक्ष धूप जलाने की प्रथा में संलग्न हैं, अपनी-अपनी पत्नी के साथ एक विशाल सभा के रूप में मिस्र में पथरोस के निवासियों के साथ मिलकर येरेमियाह को यह प्रत्युत्तर दिया, \v 16 “आपने याहवेह के नाम से हमें जो संदेश दिया है, उसे हम नहीं सुनेंगे! \v 17 हम तो निश्चयतः वही सब करेंगे, जो हमारे मुख से मुखरित हुआ है: हम स्वर्ग की रानी के निमित्त धूप जलाएंगे, उसे पेय बलि अर्पित करेंगे; ठीक जैसा हमारे पूर्वज, हमारे राजा और हमारे उच्चाधिकारी यहूदिया के नगरों में तथा येरूशलेम की गलियों में करते रहे हैं. क्योंकि उस समय हमें भोजन का कोई अभाव न था, हम सम्पन्‍न थे तथा हमें किसी प्रतिकूलता का अनुभव न हुआ. \v 18 किंतु जैसे ही हमने स्वर्ग की रानी के लिए धूप जलाना छोड़ा, जैसे ही हमने उसे पेय बलि अर्पित करना छोड़ा, हम सब प्रकार के अभाव में आ पड़े हैं और प्रजा तलवार एवं अकाल द्वारा विनाश हो रही है.” \p \v 19 और स्त्रियों ने आक्षेप लगाना प्रारंभ किया, “जब हम स्वर्ग की रानी के लिए धूप जला रही थी और पेय बलि अर्पित कर रही थी, क्या हम ये बलियां, ये पेय बलियां तथा अर्पण के व्यंजन जिन पर स्वर्ग की रानी की प्रतिकृति होती थी यह सब अपने-अपने पतियों के जानने बिना कर रही थी?” \p \v 20 तब येरेमियाह ने पुरुषों, स्त्रियों, सारे उपस्थित जनसमूह को, उन सभी को, जिन्होंने उन्हें उत्तर दिया था, संबोधित करते हुए कहा: \v 21 “यहूदिया के नगरों में तथा येरूशलेम की गलियों में जो धूप तुम लोगों ने, तुम्हारे पूर्वजों ने, तुम्हारे राजाओं ने, तुम्हारे उच्चाधिकारियों ने तथा देश की प्रजा ने, जलाई हैं, क्या याहवेह की दृष्टि से अदृश्य रह गई है अथवा उन्होंने इन्हें भूलना पसंद कर दिया है? \v 22 यह सब याहवेह के लिए असह्य हो चुका था, तुम्हारे उपक्रमों के संकट के कारण, तुम्हारे द्वारा किए गए घृणास्पद कार्यों के कारण ही आज तुम्हारा देश उजाड़ हो चुका है, यह देश अब भय का स्रोत तथा एक शाप प्रमाणित हो रहा है, आज यह निर्जन पड़ा हुआ है. \v 23 आज तुम्हारे देश पर जो विपत्ति आ पड़ी है, उसका कारण यही है कि तुमने याहवेह की आज्ञा की अवहेलना की है, उनकी नीतियों का आचरण नहीं किया, उनके अधिनियमों तथा साक्ष्यों की अवहेलना की है, तथा तुमने धूप जलाई है.” \p \v 24 तब येरेमियाह ने सारी स्त्रियों सहित सारे जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा, “सारे यहूदियावासियो, जो मिस्र में जा बसे हो, याहवेह का संदेश सुनो. \v 25 सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: तुम्हारे लिए तथा तुम्हारी पत्नियों से संबंधित संदेश यह है: तुमने यह कहते हुए, ‘हम उन सारे संकल्पों को पूर्ण करेंगे, जो हमने किए थे. हम स्वर्ग की रानी के लिए धूप जलाएंगे, उसे पेय बलि भी अर्पित करेंगे, तुमने जो कुछ अपने मुख से घोषित किया, उसे अपने कार्यों द्वारा पूर्ण भी कर दिखाया है.’ \p “जाओ, जाकर अपने संकल्पों की पुष्टि करो और उन्हें पूर्ण भी करो! \v 26 फिर भी, मिस्र में जा बसे यहूदियावासियो, याहवेह का संदेश सुन लो: ‘ध्यान रहे, मैंने अपने ही उदात्त नाम की शपथ ली है,’ यह याहवेह की वाणी है, ‘मिस्र देश में यहूदिया का कोई भी व्यक्ति शपथ करने के लिये अब कभी भी मेरे महान नाम का उपयोग नहीं कर पायेगा. वे फिर कभी नहीं कहेंगे, “याहवेह के नाम की शपथ!” \v 27 मैं उन पर मेरी दृष्टि लगी हुई है, वह हित के लिए नहीं, पर विपत्ति के लिए. यहूदियावासी सभी, जो मिस्र देश में जा बसे है, तब तक तलवार से तथा अकाल से उनकी मृत्यु हो ही जाएगी; जब तक उनके विनाश संपूर्ण न हो. \v 28 हां, अत्यंत अल्प संख्या में कुछ तलवार से बचकर मिस्र से यहूदिया पहुंच जाएंगे. तब यहूदिया के संपूर्ण बचे हुए लोगों को, जो मिस्र में बस जाने के लिए वहां गए थे, उन्हें यह ज्ञात हो जाएगा कि किसका कहना अटल होता है, मेरा अथवा उनका. \p \v 29 “ ‘तुम्हारे लिए इसका चिन्ह यह होगा,’ यह याहवेह की वाणी है, ‘मैं तुम्हें इसी स्थान पर दंड दूंगा, जिससे कि तुम यह समझ सको कि तुम्हारे संकट के लिए मेरी वाणी पूर्ण होकर ही रहेगी.’ \v 30 याहवेह का संदेश यह है: ‘तुम देखोगे कि मैं मिस्र के राजा फ़रोह होफ़राह को उसके शत्रुओं के अधीन कर दूंगा, उनके अधीन जो उसके प्राण लेने को तैयार हैं, ठीक जिस प्रकार मैंने यहूदिया के राजा सीदकियाहू को बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र के अधीन कर दिया था, जो उसका शत्रु था, जो उसके प्राण लेने को तैयार था.’ ” \c 45 \s1 बारूख के लिए संदेश \p \v 1 योशियाह के पुत्र यहूदिया के राजा यहोइयाकिम के राज्य-काल के चौथे वर्ष में जब भविष्यद्वक्ता येरेमियाह ने नेरियाह के पुत्र बारूख को एक पुस्तक में लिखने के लिए जो संदेश दिया था, उसे लिखने के बाद येरेमियाह ने बारूख को कहा: \v 2 “बारूख, इस्राएल के परमेश्वर, याहवेह, का तुम्हारे लिए यह संदेश है: \v 3 तुमने कहा था, ‘हाय, धिक्कार है मुझ पर! याहवेह ने मेरी पीड़ा पर शोक भी लाद दिया है; मैं कराहते-कराहते थक चुका हूं और मुझे कुछ भी चैन प्राप्‍त नहीं हुआ है.’ \v 4 तो तुम्हें उससे यह कहना होगा, ‘यह याहवेह की वाणी है: यह देख लेना कि मैं वह सब ध्वस्त कर दूंगा, जिसे मैंने ही निर्मित किया है. जिसे मैंने रोपित किया है, उसे मैं ही अलग कर दूंगा; अर्थात् संपूर्ण देश को. \v 5 किंतु तुम, क्या तुम अपने लिए विशेष कृपादृष्टि की खोज में हो? मत करो यह खोज. क्योंकि तुम देख लेना मैं सभी मनुष्यों पर सर्वनाश ले आने पर हूं, यह याहवेह की वाणी है, किंतु मैं तुम्हारा जीवन तुम्हें लूट सामग्री सदृश दे दूंगा, चाहे तुम कहीं भी जाओ.’ ” \c 46 \s1 मिस्र के संबंध नबूवत \p \v 1 भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को याहवेह की ओर से राष्ट्रों से संबंधित प्राप्‍त संदेश: \b \p \v 2 मिस्र के संबंध में: \b \p यह मिस्र के राजा फ़रोह नेको की सेना से संबंधित है, जिसे फरात नदी के तट पर कर्कमीश नामक स्थान पर बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र ने योशियाह के पुत्र यहूदिया के राजा यहोइयाकिम के राज्य-काल के चौथे वर्ष में पराजित किया था: \q1 \v 3 “अपनी सभी छोटी-बड़ी ढालों को तैयार कर लो, \q2 और युद्ध के लिए प्रस्थान करो! \q1 \v 4 घोड़ों को \q2 सुसज्जित करो! \q1 उन पर बैठ जाओ \q2 और टोप पहन लो! \q1 अपनी बर्छियों पर धार लगा लो \q2 और झिलम धारण कर लो! \q1 \v 5 यह मेरी दृष्टि में क्यों आ गया? \q2 वे भयभीत हैं वे पीछे हट रहे हैं, \q1 उनके शूर योद्धा पराजित हो चुके हैं, \q2 और अब वे अपने प्राणों की रक्षा के लिए भाग रहे हैं. \q1 वे तो मुड़कर भी नहीं देख रहे, \q2 आतंक सर्वत्र व्याप्‍त हो चुका है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 6 “न तो द्रुत धावक भागने पाए, \q2 न शूर योद्धा बच निकले. \q1 फरात के उत्तरी तट पर \q2 वे लड़खड़ा कर गिर चुके हैं. \b \q1 \v 7 “यह कौन है, जो बाढ़ के समय की नील नदी के सदृश उफान रहा है, \q2 उस नदी के सदृश जिसका जल महानदों में है? \q1 \v 8 मिस्र नील नदी सदृश बढ़ता जा रहा है, \q2 वैसे ही, जैसे नदी का जल उफनता है. \q1 उसने घोषणा कर दी है, ‘मैं उफनकर संपूर्ण देश पर छा जाऊंगी; \q2 निःसंदेह मैं इस नगर को तथा नगरवासियों को नष्ट कर दूंगी.’ \q1 \v 9 घोड़ो, आगे बढ़ जाओ! \q2 रथो, द्रुत गति से दौड़ पड़ो! \q1 कि शूर योद्धा आगे बढ़ सकें: कूश तथा पूट देश के ढाल ले जानेवाले योद्धा, \q2 तथा लीदिया के योद्धा, जो धनुष लेकर बढ़ रहे हैं. \q1 \v 10 वह दिन प्रभु सेनाओं के याहवेह का दिन है— \q2 बदला लेने का दिन, कि वह अपने शत्रुओं से बदला लें. \q1 तलवार तब तक चलेगी, जब तक संतुष्ट न हो जाए, \q2 जब तक उसकी तलवार रक्त पीकर तृप्‍त न हो जाए. \q1 क्योंकि यह नरसंहार प्रभु सेनाओं के याहवेह के लिए \q2 फरात के ऊपरी तट पर स्थित देश में बलि अर्पण होगा. \b \q1 \v 11 “मिस्र की कुंवारी कन्या, \q2 गिलआद जाकर औषधि ले आओ. \q1 निरर्थक ही रहा तुम्हारी औषधियों का संचय करना; \q2 तुम्हारे लिए तो पुनःअच्छे हो जाना निर्धारित ही नहीं है. \q1 \v 12 राष्ट्रों ने तुम्हारी लज्जा का समाचार सुन लिया है; \q2 पृथ्वी तुम्हारे विलाप से पूर्ण है. \q1 भागते हुए सैनिक एक दूसरे पर गिरे पड़ रहे हैं; \q2 और दोनों ही एक साथ गिर गये हैं.” \p \v 13 मिस्र पर बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र के आक्रमण के विषय में याहवेह ने भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को यह संदेश प्रगट किया: \q1 \v 14 “यह घोषणा मिस्र में तथा प्रचार मिगदोल में किया जाए; \q2 हां, प्रचार मैमफिस तथा ताहपनहेस में भी किया जाए: \q1 यह कहना: ‘तैयार होकर मोर्चे पर खड़े हो जाओ, \q2 क्योंकि तलवार तुम्हारे निकटवर्ती लोगों को निगल चुकी है.’ \q1 \v 15 तुम्हारे शूर योद्धा पृथ्वी पर कैसे गिर गए? \q2 पुनः खड़े होना उनके लिए असंभव हो गया है, क्योंकि उन्हें याहवेह ने ही भूमि पर पटका है. \q1 \v 16 फिर बार-बार वे पृथ्वी पर गिराए जा रहे हैं; \q2 भागते हुए वे एक दूसरे पर गिराए जा रहे हैं. \q1 तब उन्होंने कहा, ‘चलो उठो, हम लौट चलें \q2 हम अपने उत्पीड़क की तलवार से दूर अपने लोगों में, \q2 अपने देश लौट चलें.’ \q1 \v 17 वहां वे चिल्लाते रहे, \q2 ‘मिस्र का राजा आवाज मात्र है; \q2 उसने सुअवसर को हाथ से निकल जाने दिया है.’ \b \q1 \v 18 “जिनका नाम है सेनाओं के याहवेह, जो राजा है, उनकी वाणी है, \q2 मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, \q1 यह सुनिश्चित है कि जो पर्वतों में ताबोर-सदृश प्रभावशाली, \q2 अथवा सागर तट के कर्मेल पर्वत सदृश है, वह आएगा. \q1 \v 19 मिस्र में निवास कर रही पुत्री, \q2 बंधुआई में जाने के लिए सामान तैयार कर लो, \q1 क्योंकि मैमफिस का उजड़ जाना निश्चित है \q2 और इसका दहन कर दिया जाएगा तथा यहां कोई भी निवासी न रह जाएगा. \b \q1 \v 20 “मिस्र एक सुंदर कलोर है, \q2 किंतु उत्तर की ओर से एक गोमक्खी आ रही है \q2 वह बढ़ी चली आ रही है. \q1 \v 21 मिस्र में निवास कर रहे भाड़े के सैनिक \q2 पुष्ट हो रहे बछड़ों के सदृश हैं. \q1 वे सभी एक साथ मुड़कर भाग गए हैं, \q2 उनके पैर उखड़ गए हैं, \q1 क्योंकि उनके विनाश का दिन उन पर आ पड़ा है, \q2 उनके दंड का समय. \q1 \v 22 और उसके भागने की ध्वनि रेंगते हुए \q2 सर्प के सदृश हो रही है; \q1 क्योंकि वे सेना के सदृश आगे बढ़ रहे हैं, \q2 और वे उसके समक्ष कुल्हाड़ी लिए हुए लक्कड़हारे के समान पहुंचे जाते हैं. \q1 \v 23 उन्होंने मिस्र के वन को नष्ट कर दिया है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q1 “इसमें कोई संदेह नहीं कि उसका अस्तित्व मिट ही जाएगा, \q2 यद्यपि इस समय वे टिड्डियों-सदृश असंख्य हैं, अगण्य हैं. \q1 \v 24 मिस्र की पुत्री को लज्जा का सामना करना पड़ रहा है, \q2 उसे उत्तर की ओर से आए हुए लोगों के अधीन कर दिया गया है.” \p \v 25 सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश है: “यह देख लेना, मैं थेबेस के अमोन को तथा फ़रोह और मिस्र को उनके देवताओं एवं राजाओं के साथ दंड देने पर हूं, हां, फ़रोह तथा उन सबको, जो उस पर भरोसा किए हुए हैं. \v 26 मैं उन्हें उनके अधीन कर दूंगा, जो उनके प्राण लेने पर तैयार हैं—हां, बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र तथा उसके अधिकारियों के अधीन. किंतु कुछ समय बाद यह देश पहले जैसा बस जाएगा,” यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 27 “किंतु तुम, याकोब, मेरे सेवक; \q2 तुम भयभीत न होना; इस्राएल, तुम हताश न हो जाना. \q1 तुम्हारी बंधुआई के दूर देश में से, \q2 मैं तुम्हें एवं तुम्हारे वंशजों को विमुक्त करूंगा. \q1 तब याकोब लौट आएगा और शांतिपूर्वक सुरक्षा में ऐसे निवास करेगा, \q2 कि उसे कोई भी भयभीत न कर सकेगा. \q1 \v 28 याकोब, मेरे सेवक, भयभीत न होओ, \q2 यह याहवेह का आश्वासन है, \q2 क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूं. \q1 क्योंकि मैं उन सभी राष्ट्रों का पूर्ण विनाश कर दूंगा \q2 जहां-जहां मैंने तुम्हें बंदी किया था, \q2 फिर भी मैं तुम्हारा पूरा विनाश नहीं करूंगा. \q1 तुम्हें दी गई मेरी ताड़ना सही तरीके से होगी; \q2 यह न समझ लेना कि मैं तुम्हें दंड दिए बिना ही छोड़ दूंगा.” \c 47 \s1 फिलिस्तिया से संबंधित नबूवत \p \v 1 इसके पूर्व कि फ़रोह अज्जाह को पराजित करता, भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को फिलिस्तीनियों से संबंधित यह संदेश प्राप्‍त हुआ: \b \p \v 2 यह याहवेह का संदेश है: \q1 “यह देखना कि उत्तर से जल स्तर ऊंचा होने लगेगा; \q2 और यह बढ़कर प्रचंड प्रवाह में परिवर्तित हो जाएगा. \q1 यह संपूर्ण भूमि को आच्छादित कर लेगा वह सब भी जो भूमि के ऊपर है, \q2 नगर को तथा नगरवासियों को भी. \q1 पुरुष चिल्लायेंगे; \q2 तथा देश का हर एक निवासी विलाप करेगा. \q1 \v 3 घोड़ों की टापों की ध्वनि के कारण, \q2 उसके रथों की आवाज सुनकर, \q2 उनके पहियों की गड़गड़ाहट के कारण. \q1 पिता मुड़कर अपने बालकों को देखेंगे; \q2 क्योंकि उनके हाथ ढीले हो चुके हैं. \q1 \v 4 यह इसलिये कि सारे फिलिस्तीनियों के विनाश का \q2 तथा सोर और सीदोन में \q1 हर एक शेष रह गए सहायक को \q2 नष्ट करने का दिन आया है. \q1 स्वयं याहवेह ही फिलिस्तीनियों तथा काफ़तोर के तटवर्ती \q2 क्षेत्रों के बचे हुए लोगों को नष्ट करने के लिए तैयार हैं. \q1 \v 5 अज्जाह को सिर मुंडाना पड़ा है; \q2 अश्कलोन नष्ट किया जा चुका है. \q1 उनकी घाटी के बचे हुए लोगो, \q2 तुम कब तक अपनी देह को घायल करते रहोगे? \b \q1 \v 6 “ ‘आह, याहवेह की तलवार, \q2 और कब तक प्रतीक्षा की जाए तुम्हारे शांत होने की? \q1 अब तो अपनी म्यान में जा बैठो; \q2 विश्राम करो और चुपचाप रहो.’ \q1 \v 7 यह शांत रह भी कैसे सकती है \q2 जब इसे आदेश ही याहवेह ने दिया है, \q1 उसे अश्कलोन तथा समुद्रतट के \q2 क्षेत्रों के विरुद्ध ही नियत किया गया है?” \c 48 \s1 मोआब के विरुद्ध नबूवत \p \v 1 मोआब के विषय में ज़आबोथ याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की वाणी यह है: \q1 “धिक्कार है नेबो पर, क्योंकि यह नष्ट हो चुका है. \q2 किरयथियों को लज्जित किया गया है, इसे अधीन कर लिया गया है; \q2 उच्चस्थ गढ़नगर को लज्जित कर दिया गया है. अब वह चूर-चूर हो चुका है. \q1 \v 2 मोआब की अब ख्याति धूल में जा पड़ी है; \q2 उन्होंने हेशबोन के विरुद्ध विपत्ति योजित की है: \q2 ‘आओ, हम राष्ट्र के रूप में उसका अस्तित्व ही मिटा दें.’ \q1 मदमेन तुम्हारा स्वर भी शांत कर दिया जाएगा; \q2 तलवार तुम्हारा पीछा करेगी. \q1 \v 3 होरोनयिम से विलाप सुनाई पड़ रहा है, \q2 विनाश और पूरा विध्वंस. \q1 \v 4 मोआब भंग हो चुका है; \q2 उसके बालक पीड़ा में विलाप कर रहे हैं. \q1 \v 5 वे लूहीत की चढ़ाई पर, \q2 सदा रोते हुए चढ़ते जाएंगे; \q1 क्योंकि उन्होंने होरोनयिम की ढाल पर \q2 विनाश का विलाप सुन लिया है. \q1 \v 6 अपने प्राण बचाकर भागो; \q2 कि तुम मरुभूमि में धूप चन्दन झाड़ी सदृश हो जाओ. \q1 \v 7 क्योंकि तुमने अपनी ही उपलब्धियों तथा अपनी ही निधियों पर भरोसा किया है, \q2 यहां तक कि तुम स्वयं भी बंदी बना लिए जाओगे, \q1 खेमोश बंदी किया जाएगा, \q2 तथा उसके साथ होंगे उसके पुरोहित तथा अधिकारी. \q1 \v 8 एक विनाशक हर एक नगर में जाएगा, \q2 एक भी नगर बच न सकेगा. \q1 घाटी भी नष्ट हो जाएगी \q2 तथा पठार भी कुछ न रहेगा, \q2 ठीक जैसी याहवेह की पूर्ववाणी थी. \q1 \v 9 मोआब को पंख प्रदान किए जाएं, \q2 कि वह उड़कर दूर चला जाए; \q1 क्योंकि उसके नगर उजाड़ हो जाएंगे, \q2 और कोई भी उनमें निवास न करेगा. \b \q1 \v 10 “शापित होगा वह व्यक्ति, जो याहवेह का कार्य उपेक्षा के भाव से करता है! \q2 तथा शापित वह भी होगा, जो अपनी तलवार को रक्तपात से बचाए रखता है! \b \q1 \v 11 “बचपन ही से मोआब सुख-शांति की अवस्था में रहा है, कभी उसकी शांति भंग नहीं की गई, \q2 जैसे द्राक्षालता अपनी भूमि में स्थित हो गई हो, \q1 उसे एक बर्तन से दूसरे में उंडेला नहीं गया, \q2 न उसने बंधुआई का ही अनुभव किया है. \q1 तब उसका स्वाद वही का वही है, \q2 उसकी सुगंध भी अपरिवर्तित बनी हुई है. \q1 \v 12 इसलिये यह देख लेना, कि वे दिन आ रहे हैं,” \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q1 “जब मैं मोआब में उन्हें भेजा करूंगा, जो बर्तनों से रस उण्डेलते हैं, \q2 वे मोआब को उण्डेलेंगे; \q1 वे मोआब के बर्तन रिक्त कर देंगे \q2 और तब वे उसके बर्तनों को तोड़कर चूर-चूर कर देंगे. \q1 \v 13 खेमोश मोआब की लज्जा का कारण होगा, \q2 जिस प्रकार बेथेल इस्राएल वंश के लिए लज्जा का कारण हो गया था, \q2 जिस पर उन्होंने अत्यंत विश्वास किया था. \b \q1 \v 14 “तुम यह दावा कैसे कर रहे हो, ‘हम तो शूर योद्धा हैं, \q2 युद्ध के लिए हर प्रकार से सुयोग्य’? \q1 \v 15 मोआब नष्ट हो चुका है, इसके नगर नष्ट हो चुके हैं; \q2 इसके सर्वोत्तम जवान वध के लिए उतारे गए हैं,” \q2 यह राजा की वाणी है, जिनका नाम है सेनाओं का याहवेह. \q1 \v 16 “मोआब का विनाश तुरंत हो जाएगा; \q2 उसका विनाश निकट है. \q1 \v 17 तुम, जो उसके पड़ोसी हो, उसके लिए शोक मनाओ, \q2 तुम भी, जो उससे परिचित हो; \q1 यह कहते जाओ, ‘कैसे टूट गया दृढ़ राजदंड, \q2 वह, जो वैभवशाली राजदंड था!’ \b \q1 \v 18 “दीबोन निवासी पुत्री \q2 और अब अपने ऐश्वर्य से नीचे उतर आओ \q2 और आकर इस शुष्क भूमि पर बैठो, \q1 मोआब का विनाशक तुम्हें लक्ष्य करता हुआ आ पहुंचा है, \q2 वह तुम्हारे गढ़नगर नष्ट कर ही चुका है. \q1 \v 19 अरोअर वासियो, \q2 मार्ग के किनारे खड़े हो, सावधानीपूर्वक देखते रहो. \q1 उससे यह पूछो: जो भाग रहा है तथा उससे भी, \q2 जो बचकर निकल रहा है, ‘हुआ क्या है?’ \q1 \v 20 मोआब लज्जित है, क्योंकि इसे तोड़ दिया गया है. \q2 चिल्लाओ, विलाप करो! \q1 आरनोन के निकट जाकर घोषणा करो, \q2 कि मोआब विनष्ट किया जा चुका है. \q1 \v 21 मैदानी क्षेत्र पर भी अब दंड प्रभावी हो चुका है; \q2 होलोन, यहत्स, मेफाअथ, \q2 \v 22 दीबोन, नेबो, बेथ-दिबलाथाईम, \q2 \v 23 किरयथियों, बेथ-गामूल, बेथ-मिओन, \q2 \v 24 केरिओथ, बोज़राह \q2 तथा मोआब के दूरवर्ती एवं निकटवर्ती सभी नगर. \q1 \v 25 मोआब की शक्ति का प्रतीक सींग ही काट दिया गया है; \q2 तथा उसकी भुजा तोड़ दी गई है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 26 “उसे मतवाला कर दो, \q2 क्योंकि उसने याहवेह के समक्ष अहंकार करके विद्रोह किया है. \q1 अब वह उस स्थिति में पहुंच जाएगा जब वह अपनी ही उल्टी में लोटता हुआ दिखाई देगा; \q2 और वह उपहास का विषय बन जाएगा. \q1 \v 27 क्या इस्राएल तुम्हारे लिए उपहास का विषय न बना था? \q2 अथवा क्या वह चोरों में से है, \q1 क्योंकि जब भी इस्राएल का उल्लेख होता है, \q2 तुम घृणाभाव से अपना सिर हिलाने लगते हो? \q1 \v 28 मोआबवासियो, \q2 नगरों में रहना छोड़कर चट्टानों में रहने लगो. \q1 और उस कबूतर समान हो जाओ, \q2 जो दुर्गम चट्टानों की लघु गुफा में घोंसला निर्मित करती है. \b \q1 \v 29 “हमने मोआब के अहंकार— \q2 उसकी उद्दंडता, उसके दर्प, उसके गर्व \q1 तथा उसके मन के विषय में सुन लिया है, \q2 अत्यंत उग्र है उसका अहंकार. \q1 \v 30 मैं अच्छी रीति से समझता हूं उसकी तिलमिलाहट,” \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q2 “किंतु निरर्थक है यह सब; उसकी खोखली गर्वोक्ति ने कुछ भी प्राप्‍त नहीं किया है. \q1 \v 31 इसलिये मैं मोआब के लिए विलाप करूंगा, \q2 पूरे मोआब के लिए होगा मेरा विलाप, \q2 कीर-हेरासेथ वासियों के लिए होगी मेरी कराहट. \q1 \v 32 सिबमाह की लता मैं, \q2 याज़र पर विलाप से अधिक तुम्हारे लिए विलाप करूंगा. \q1 तुम्हारे लतातन्तु सागर पार तक तने हुए हैं; \q2 वे तो याज़र तक पहुंच चुके हैं. \q1 तुम्हारे ग्रीष्मकालीन फलों की उपज \q2 तथा तुम्हारे द्राक्षा की उपज पर विनाशक बरस पड़ा है. \q1 \v 33 इसलिये मोआब के फलदायी उद्यान से \q2 उल्लास एवं आनंद समाप्‍त कर दिए गए हैं. \q1 द्राक्षा रौंदने के कुंड से रस निकलना समाप्‍त हो गया है; \q2 कोई भी उन्हें उल्लास-स्वर के साथ न रौंदेगा. \q1 जो ध्वनि होगी वह \q2 उल्लास-ध्वनि न होगी. \b \q1 \v 34 “हेशबोन में उठ रही चिल्लाहट से एलिआलेह तक \q2 हां, याहज़ तक उन्होंने अपना स्वर उठाया है, \q1 ज़ोअर से होरोनयिम तक तथा एगलथ शलिशियाह तक, \q2 क्योंकि निमरीम की जल राशि समाप्‍त हो जाएगी. \q1 \v 35 मैं मोआब का अस्तित्व ही मिटा दूंगा,” यह याहवेह की वाणी है, \q2 जो पूजा-स्थल पर बलि अर्पण करता है \q2 तथा जो अपने-अपने देवताओं के लिए धूप जलाता है. \q1 \v 36 “इसलिये मोआब के लिए मेरा हृदय ऐसे विलाप करता है, जैसे विलापगान में बांसुरी; \q2 मेरा हृदय कीर-हेरासेथ के निवासियों के लिए बांसुरी के समान कराहता है. \q2 उन्होंने अपनी उपज का बहाव खो दिया है. \q1 \v 37 हर एक सिर शोक के कारण मुंडवाया हुआ \q2 तथा दाढ़ी क़तरी हुई है; \q1 सभी के हाथ घावों से भरे हुए \q2 तथा हर एक ने कमर पर टाट लपेटा हुआ है. \q1 \v 38 मोआब के हर एक घर की छत पर \q2 तथा इसकी सड़कों पर \q1 चहुंओर विलाप व्याप्‍त है, \q2 क्योंकि मैंने मोआब को उस बर्तन के सदृश तोड़ दिया है, \q2 जो तिरस्कृत है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 39 “कैसा चूर-चूर हो चुका है यह! कैसा है उनका विलाप! \q2 मोआब ने लज्जा में कैसे अपनी पीठ इस ओर कर दी है! \q1 अब मोआब उपहास का विषय होकर रह जाएगा, \q2 तथा निकटवर्ती सारे राष्ट्रों के समक्ष आतंक का विषय भी.” \p \v 40 क्योंकि यह याहवेह का संदेश है: \q1 “तुम देखना! कोई गरुड़-सदृश द्रुत गति से उड़ेगा, \q2 और मोआब पर अपने पंख फैला देगा. \q1 \v 41 केरिओथ अधीन कर लिया गया \q2 तथा गढ़ों पर शत्रु का अधिकार हो गया है. \q1 तब उस दिन मोआब के शूर योद्धाओं का हृदय ऐसा हो जाएगा, \q2 जैसे प्रसूता का. \q1 \v 42 मोआब विनष्ट होकर एक राष्ट्र न रह जाएगा \q2 क्योंकि वह याहवेह के समक्ष अहंकारी हो गया है. \q1 \v 43 मोआबवासियो, \q2 आतंक, गड्ढे तथा फंदे तुम्हारे लिए नियत हैं,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 44 “वह, जो आतंक से बचकर भागेगा, \q2 वह गड्ढे में जा गिरेगा, \q1 वह, जो गड्ढे से बाहर निकल आएगा \q2 फंदे में जा फंसेगा; \q1 क्योंकि मैं मोआब पर \q2 दंड का वर्ष ले आऊंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 45 “हेशबोन की छाया में \q2 निर्बल शरणार्थी जा ठहरेंगे; \q1 क्योंकि हेशबोन में से अग्नि फैल रही है, \q2 तथा सीहोन के मध्य से लपटें. \q1 उसने मोआब के माथे को भस्म कर डाला है, \q2 साथ ही उनके कपाल भी, जो युद्ध में आनंद ले रहे थे. \q1 \v 46 धिक्कार है तुम पर मोआब! \q2 खेमोशवासी नष्ट हो चुके हैं; \q1 क्योंकि तुम्हारे पुत्रों को बंदी बना लिया गया है \q2 और तुम्हारी पुत्रियां भी बन्दीत्व में चली गई हैं. \b \q1 \v 47 “फिर भी मैं मोआब की समृद्धि \q2 अंतिम दिनों में लौटा दूंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \p मोआब का दंड इतना ही होगा. \b \c 49 \s1 अम्मोन के विरुद्ध नबूवत \p \v 1 अम्मोन वंशजों के संबंध में: \b \p यह याहवेह का संदेश है: \q1 “क्या इस्राएल के पुत्र नहीं हैं? \q2 अथवा उसके कोई उत्तराधिकारी ही नहीं हैं? \q1 तब क्या हुआ कि अम्मोनी देवता मोलेक ने गाद पर अधिकार कर लिया है? \q2 तथा उसकी प्रजा इसके नगरों में जा बसी है? \q1 \v 2 इसलिये यह देखना कि ऐसे दिन आ रहे हैं, \q1 कि मैं अम्मोन वंशजों के रब्बाह के विरुद्ध \q2 नरसिंगे का आवाज उत्पन्‍न करूंगा; \q1 तब यह एक निर्जन ढेर बनकर रह जाएगा, \q2 उसके आस-पास के गांवों को भस्म कर दिया जाएगा. \q1 तब इस्राएल उन्हें अपने अधीन कर लेगा, \q2 जिन्होंने उसे अधीन किया हुआ था,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 3 “हेशबोन, विलाप करो, क्योंकि अय नगर नष्ट हो चुका है! \q2 रब्बाह की पुत्रियो, विलाप करो! \q1 टाट बांधकर विलाप करो; \q2 विस्मित हो इधर-उधर शहरपनाह के भीतर दौड़ती रहो, \q1 क्योंकि मोलेक बंधुआई में चला जाएगा, \q2 और उसके साथ होंगे उसके पुरोहित तथा अधिकारी. \q1 \v 4 तुम अपनी घाटियों के विषय में कितना अहंकार कर रही हो, \q2 भटकने वाली पुत्री, तुम्हारी घाटी बंद हुई जा रही है. \q1 अपनी संपदा का भरोसा करके तुम गर्व करती रही हो, \q2 ‘कौन कर सकता है मेरा सामना?’ \q1 \v 5 यह देख लेना, मैं तुम पर आतंक लाने पर हूं \q2 यह आतंक तुम्हें चारों ओर से घेर लेगा,” \q2 यह सेनाओं के प्रभु याहवेह की वाणी है. \q1 मैं तुम्हारे चारों ओर के लोगों से तुम पर आतंक लाऊंगा, हर एक भागकर बिखर जाएगा, \q2 शरणार्थियों के एकत्रण के लिए कोई शेष न रहेगा. \b \q1 \v 6 “किंतु तत्पश्चात मैं अम्मोन वंशजों की समृद्धि पुनःस्थापित कर दूंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \s1 एदोम के विरुद्ध नबूवत \p \v 7 एदोम के विषय में: \b \p सेनाओं के याहवेह की वाणी यह है: \q1 “क्या तेमान में अब बुद्धिमत्ता रह ही नहीं गई है? \q2 क्या बुद्धिमान उत्तम परामर्श रहित हो गए हैं? \q2 क्या उनकी बुद्धिमत्ता का क्षय हो चुका है? \q1 \v 8 देदान वासियों, पीछे मुड़कर भाग जाओ \q2 और गहरी गुफाओं में जा छिपो, \q1 क्योंकि मैं उस पर एसाव का संकट डालने पर हूं \q2 उस समय मैं उसे दंड दूंगा. \q1 \v 9 यदि द्राक्षा तोड़नेवाले तुम्हारे निकट आएं, \q2 क्या वे अंगूर न छोड़ेंगे? \q1 यदि चोर रात्रि में आएं, \q2 क्या वे उतना ही विनाश न करेंगे जितना उनके लिए पर्याप्‍त होगा? \q1 \v 10 किंतु मैंने तो एसाव को विवस्त्र कर दिया है; \q2 उसके छिपने के स्थान मैंने प्रकट कर दिए हैं, \q2 अब वह स्वयं को छिपा न सकेगा. \q1 तथा उसके पड़ोसियों के साथ उसके संबंधियों, \q2 तथा उसकी संतान भी नष्ट हो गई हैं, \q2 अब वह भी न रहा. \q1 \v 11 ‘अपने पितृहीनों को यहीं छोड़ दो; मैं उन्हें जीवित रखूंगा. \q2 तुम्हारी विधवाएं मुझ पर भरोसा कर सकती हैं.’ ” \p \v 12 क्योंकि याहवेह की वाणी यह है: “यह देखना, जिन्हें उस प्याले से पीने का दंड नहीं दिया गया था, निश्चयतः उससे पिएंगे और क्या तुम वह हो, जिसे पूर्णतः सहायकमुक्त छोड़ दिया जाएगा? नहीं तुम्हें सहायकमुक्त नहीं छोड़ा जाएगा, किंतु तुम निश्चयतः उस प्याले में से पियोगे. \v 13 क्योंकि मैंने स्वयं अपनी ही शपथ ली है,” यह याहवेह ही की वाणी है, “कि बोज़राह आतंक का, घृणा का, विध्वंस का तथा शाप का साधन बन जाएगा, इसके सभी नगर स्थायी खंडहर बनकर रह जाएंगे.” \q1 \v 14 याहवेह द्वारा प्रगट एक संदेश मैंने सुना है; \q2 राष्ट्रों में एक प्रतिनिधि इस संदेश के साथ भेजा गया है, \q1 “तुम सब एकजुट होकर उस पर आक्रमण करो! \q2 और युद्ध के लिए तैयार हो जाओ!” \b \q1 \v 15 “क्योंकि तब तुम्हें बोध होगा, कि मैंने तुम्हें राष्ट्रों के मध्य लघु बना दिया है, \q2 जनसाधारण में तुच्छ कर दिया है. \q1 \v 16 तुम, जो चट्टानों के मध्य निवास करते हो, \q2 तुम, जो पहाड़ियों की ऊंचाइयों को अपनाए बैठे हो, \q1 तुम्हारी भय पैदा करनेवाली छवि का कारण है, \q2 तुम्हारे हृदय में अवस्थित अहंकार, जिसने तुम्हें भ्रमित कर रखा है. \q1 यद्यपि तुम अपने घोंसले को उतनी ही ऊंचाई पर निर्मित करते हो, जितनी ऊंचाई पर गरुड़ निर्मित करते हैं, \q2 मैं तुम्हें वहां से भी नीचे उतार लाऊंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 17 “एदोम भय का विषय हो जाएगा; \q2 इसके निकट से जाता हुआ हर एक व्यक्ति भयभीत होकर \q2 इसके घावों को देखेगा और उसका उपहास करेगा. \q1 \v 18 सोदोम, अमोराह \q2 तथा इनके निकटवर्ती क्षेत्रों के प्रलय के सदृश,” \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q1 “कोई भी वहां निवास न करेगा; \q2 यह मनुष्यों के निवास के योग्य रह ही न जाएगा. \b \q1 \v 19 “यह देखना, यरदन की झाड़ियों में से कोई सिंह सदृश निकलकर \q2 मजबूत चरवाहों पर आक्रमण कर देगा; \q1 क्योंकि मैं एक ही क्षण में उसे वहां से पलायन के लिए प्रेरित कर दूंगा \q2 तथा इस क्षेत्र पर मैं उसे नियुक्त कर दूंगा, जो इसके लिए समर्थ किया जा चुका है. \q1 कौन है मेरे तुल्य तथा किसमें क्षमता है मुझे न्यायालय में बुलाने की? \q2 इसके सिवा कौन है वह चरवाहा, जो मेरे समक्ष ठहर सकेगा?” \b \q1 \v 20 इसलिये अब याहवेह की उस योजना को समझ लो, जो उन्होंने एदोम के प्रति योजित की है, \q2 तथा उन लक्ष्यों को भी, जो उन्होंने तेमानवासियों के संकट के लिए निर्धारित किए हैं: \q1 इसमें कोई संदेह नहीं कि वे उन्हें खींचकर ले जाएंगे-भले ही वे भेड़-बकरियां मेमने हों; \q2 उनके कारण याहवेह उनकी चराइयों को निश्चयतः निर्जन बनाकर छोड़ेंगे. \q1 \v 21 उनके पतन की ध्वनि के कारण पृथ्वी कांप उठी है; \q2 यह चिल्लाहट है, इस आवाज की ध्वनि लाल सागर तक सुनी गई है. \q1 \v 22 यह देख लेना कि याहवेह ऊंचे उड़कर गरुड़-सदृश झपट्टा मारेंगे, \q2 और अपने पंख बोज़राह के विरुद्ध फैला देंगे. \q1 तब एदोम के शूर योद्धाओं के हृदय \q2 उस दिन प्रसूता के हृदय सदृश हो जाएंगे. \s1 दमेशेक के विरुद्ध नबूवत \p \v 23 दमेशेक के विषय में: \q1 “हामाथ तथा अरपाद को लज्जित किया गया है, \q2 क्योंकि उन्हें संकट समाचार दिया गया है. \q1 वे हताश हो गए हैं. वहां समुद्र के सदृश अशांति है, \q2 इसे शांत करना संभव नहीं. \q1 \v 24 दमेशेक अब निस्सहाय रह गया है, \q2 वह मुड़कर भाग जाने पर तैयार है \q2 ओर घोर आतंक ने उसे जकड़ लिया है; \q1 पीड़ा एवं वेदना ने उसे अपने अधिकार में ले लिया है, \q2 जैसे प्रसूता को. \q1 \v 25 प्रख्यात नगर कैसे परित्यक्त नहीं छोड़ा गया, \q2 वह, जो मेरे आनंद का नगर है. \q1 \v 26 उस नगर के जवान उसकी सड़कों पर पृथ्वी पर गिरे हुए पाए जाएंगे; \q2 उस दिन सभी योद्धा मूक कर दिए जाएंगे,” \q2 यह सेनाओं के याहवेह की वाणी है. \q1 \v 27 “मैं दमेशेक की शहरपनाहें भस्म कर दूंगा; \q2 और अग्नि बेन-हदद के गढ़-स्तम्भों को भस्म कर देगी.” \s1 केदार एवं हाज़ेर के विरुद्ध नबूवत \p \v 28 बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र द्वारा पराजय: केदार, तथा हाज़ोर के राज्यों के विषय में याहवेह की वाणी यह है: \b \q1 “उठो, केदार पहुंच जाओ \q2 और पूर्व के लोगों को नष्ट कर दो. \q1 \v 29 वे अपने शिविर तथा अपनी भेड़-बकरियां अपने साथ ले जाएंगे; \q2 वे अपने लिए अपने शिविर के पर्दे ले जाएंगे, \q2 अपनी सारी सामग्री तथा ऊंट भी. \q1 तब वे एक दूसरे से पुकार-पुकारकर कहेंगे, \q2 ‘चहुंओर आतंक व्याप्‍त है!’ \b \q1 \v 30 “भागो दूर चले जाओ! \q2 हाज़ोरवासियो जाकर गहन गुफाओं में जा बसो,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 “क्योंकि बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र ने तुम्हारे विरुद्ध एक योजना रची है; \q2 तुम्हारे विरुद्ध एक युक्ति गढ़ी है. \b \q1 \v 31 “उठकर ऐसे देश पर आक्रमण करो, \q2 जो शांति में निवास कर रहा है, जो पूर्णतः सुरक्षित है,” \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q1 “उस नगर के न तो प्रवेश द्वार हैं और न कहीं छड़ों से उसे सुरक्षा प्रदान की गई है; \q2 वे अलग, अकेले निवास करते हैं. \q1 \v 32 उनके ऊंट लूट सामग्री हो जाएंगे, \q2 वैसे ही उनके असंख्य पशु भी. \q1 मैं प्रचंड वायु में उन सभी को बिखरा दूंगा, जो अपने कनपटी के केश कतरते रहते हैं \q2 और उनका विनाश उन पर हर एक ओर से टूट पड़ेगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 33 “हाज़ोर सियारों का बसेरा बन जाएगा, \q2 एक स्थायी निर्जन स्थान. \q1 कोई भी वहां निवास न करेगा; \q2 न कोई मनुष्य की सन्तति वहां पाई जाएगी.” \s1 एलाम के विरुद्ध नबूवत \p \v 34 वह संदेश, जो याहवेह की ओर से भविष्यद्वक्ता येरेमियाह को एलाम के संबंध में यहूदिया के राजा सीदकियाहू के राज्य-काल के प्रारंभ में भेजा गया, यह है: \b \p \v 35 सेनाओं के याहवेह की वाणी यह है: \q1 “देख लेना, मैं एलाम के धनुष को तोड़ने पर हूं, \q2 जो उनकी शक्ति का आधार है. \q1 \v 36 आकाश की चारों दिशाओं से \q2 मैं एलाम पर इन चारों वायुओं का प्रहार करूंगा; \q1 इससे इस राष्ट्र का अस्तित्व ही मिट जाएगा, \q2 तब ऐसा कोई राष्ट्र न रहेगा, \q2 जहां एलाम के शरणार्थी न पहुंचेंगे. \q1 \v 37 इस रीति से मैं एलाम को उसके शत्रुओं के समक्ष तितर-बितर कर दूंगा, \q2 उनके समक्ष, जो उनके प्राणों के प्यासे हैं; \q1 उनके ऊपर मैं संकट प्रभावी कर दूंगा, \q2 यह मेरा उग्र कोप होगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 “उनका पीछा करने के लिए मैं तलवार भेज दूंगा, \q2 जब तक वे सभी समाप्‍त न हो जाएं. \q1 \v 38 तब मैं एलाम में अपना सिंहासन प्रतिष्ठित करूंगा, \q2 मैं इसके सभी राजाओं तथा उच्चाधिकारी को नष्ट कर दूंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 39 “किंतु होगा यह, \q2 कि मैं अंतिम दिनों में एलाम की समृद्धि लौटा दूंगा,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \c 50 \s1 बाबेल के विरुद्ध नबूवत \p \v 1 भविष्यद्वक्ता येरेमियाह के द्वारा जो संदेश याहवेह ने कसदियों के देश बाबेल के विषय में दिया, वह यह है: \q1 \v 2 “सारे राष्ट्रों में सर्वत्र यह वाणी हो, यह प्रकट किया जाए, \q2 यह घोषणा की जाए और झंडा ऊंचा किया जाए; \q2 कुछ भी छिपाया न जाए बल्कि यह कहा जाए, \q1 ‘बाबेल अचंभित हो चुका; \q2 बेल लज्जित कर दिया गया, \q2 मारदुक चूर-चूर कर दिया गया है. \q1 उसकी प्रतिमाएं लज्जित कर दी गई है \q2 और उसकी प्रतिमाएं चूर-चूर कर दी गई हैं.’ \q1 \v 3 उत्तरी दिशा का एक राष्ट्र उस पर आक्रमण करेगा, वह उसे निर्जन क्षेत्र में परिवर्तित कर देगा, \q2 वहां कोई निवासी न रह जाएगा. \q1 मनुष्य और पशु दोनों ही वहां से पलायन कर गए हैं; \q2 अब वे वहां से दूर चले गए हैं. \b \q1 \v 4 “उन दिनों में, उस अवसर पर,” \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q1 “इस्राएल वंशज आ जाएंगे, वे और यहूदाह के वंशज, दोनों ही; \q2 वे साथ साथ विलाप करते हुए जाएंगे, वे याहवेह अपने परमेश्वर की खोज करेंगे. \q1 \v 5 वे ज़ियोन के मार्ग के विषय में पूछताछ करेंगे, \q2 वे उसी ओर अभिमुख हो जाएंगे. \q1 वे इस उद्देश्य से आएंगे कि वे याहवेह के साथ \q2 एक चिरकालीन वाचा में सम्बद्ध हो जाएं \q2 जिसे कभी भूलना पसंद न किया जाएगा. \b \q1 \v 6 “मेरी प्रजा खोई भेड़ हो गई है; \q2 उनके चरवाहों ही ने इन्हें दूर किया है, \q2 उन्हीं ने उन्हें पर्वतों पर चले जाने के लिए छोड़ दिया है. \q1 अब वे पर्वतों तथा पहाड़ियों पर भटक रहे हैं \q2 और अब तो उन्हें अपना चैन-स्थल ही स्मरण न रहा है. \q1 \v 7 उनकी भेंट जितनों से भी हुई, उन्होंने उन्हें निगल डाला; \q2 उनके शत्रु यह दावा करते रहे, ‘हम दोषी नहीं हैं, \q1 पाप तो उन्होंने किया है याहवेह के विरुद्ध, जो पूर्वजों के आश्रय हरी चरागाह है, \q2 वस्तुतः याहवेह, उनके पूर्वजों की आशा.’ \b \q1 \v 8 “बाबेल के मध्य से भाग निकलो; \q2 कसदियों के देश से पलायन करो, \q2 उन बकरों के सदृश बन जाओ, जो पशु समूह के आगे-आगे चलते हैं. \q1 \v 9 क्योंकि तुम यह देख लेना कि मैं उत्तरी ओर से सशक्त राष्ट्रों के समूह को \q2 बाबेल पर आक्रमण के लिए प्रेरित करूंगा. \q1 वे उसके विरुद्ध मोर्चा बांधेंगे, \q2 और तब बाबेल बंदी बना लिया जाएगा. \q1 उनका लक्ष्य कर कुशल योद्धा बाण छोड़ेंगे \q2 और उनका प्रहार अचूक ही होगा. \q1 \v 10 कसदिया लूट की सामग्री बन जाएगा; \q2 जो इसे लूटेंगे वे इसे यथाशक्ति लूट लेंगे,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 11 “मेरे उत्तराधिकार के लुटेरो, \q2 इसलिये कि तुम आनंदित हो, इसलिये कि तुम उल्‍लसित हो, \q1 इसलिये कि तुम चरागाहों में बछिया के समान उछलते हो, \q2 घोड़े सदृश हिनहिनाते हो, \q1 \v 12 तुम्हारी माता अत्यंत लज्जित होगी; \q2 तुम्हारी जननी निन्दित हो जाएगी. \q1 तुम देखना कि वह राष्ट्रों में नीच हो जाएगी एक निर्जन क्षेत्र— \q2 एक शुष्क भूखण्ड, एक मरुभूमि. \q1 \v 13 याहवेह की अप्रसन्‍नता के कारण वह निर्जन ही रहेगी, \q2 पूर्णतः निर्जन; हर एक, \q1 जो बाबेल के निकट से निकलेगा, भयभीत हो जाएगा; \q2 और उसके घावों को देखकर उपहास करेगा. \b \q1 \v 14 “हर एक ओर से बाबेल के विरुद्ध मोर्चा बांधो, \q2 तुम सभी धनुर्धारियों. \q1 उस पर प्रहार करो कोई भी तुम्हारे बाणों से बचने न पाए, \q2 क्योंकि याहवेह की दृष्टि में बाबेल पापिष्ठ है! \q1 \v 15 चारों ओर से उसके विरुद्ध आवाज की जाए! \q2 उसने समर्पण कर दिया है, उसके स्तंभ पृथ्वीशायी हो चुके हैं, \q2 उसकी शहरपनाहें भंग की गई हैं. \q1 यह याहवेह का निरा बदला है; तुम भी उससे बदला लो, \q2 उसने जैसा जैसा अन्यों के साथ किया है; \q2 तुम भी उसके साथ वैसा ही करो. \q1 \v 16 बाबेल से रोपक को नष्ट कर दो और उसे भी, \q2 जो कटनी के अवसर पर अपना हंसिया चलाता है. \q1 क्योंकि अत्याचारी की तलवार के कारण \q2 वे लौटकर अपने ही लोगों के पास \q2 भागकर स्वदेश ही चले जाएंगे. \b \q1 \v 17 “इस्राएल तितर-बितर की हुई भेड़-बकरियां हैं, \q2 सिंहों ने उन्हें खदेड़ दिया है. \q1 जिसने उसे सर्वप्रथम निगल डाला था, \q2 वह है अश्शूर का राजा; \q1 जिसने सबसे अंत में उसकी अस्थियां तोड़ दी हैं, \q2 वह है बाबेल का राजा नबूकदनेज्ज़र.” \p \v 18 इसलिये सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: \q1 “तुम यह देखना कि मैं बाबेल के राजा तथा उसके देश को दंड देने पर हूं \q2 ठीक जिस प्रकार मैंने अश्शूर के राजा को दंड दिया है. \q1 \v 19 तब मैं इस्राएल को उसकी चराइयों में लौटा ले आऊंगा, \q2 तब वह कर्मेल तथा बाशान में चरा करेगा; \q1 और पर्वतीय क्षेत्र एफ्राईम तथा गिलआद में \q2 उसकी अभिलाषा पूर्ण की जाएगी. \q1 \v 20 उन दिनों में, उस अवसर पर,” \q2 यह याहवेह की वाणी है, \q1 “इस्राएल में पापिष्ठता की खोज की जाएगी, \q2 किंतु वहां कुछ भी प्राप्‍त न होगा, \q1 वैसे ही यहूदिया में भी पापिष्ठता की खोज की जाएगी, \q2 किंतु वहां भी उनमें कुछ पाया न जाएगा, \q2 क्योंकि मैं बचे हुए लोगों को क्षमा कर दूंगा, जिन्हें मैंने रख छोड़ा है. \b \q1 \v 21 “जाकर मेराथाइम देश पर आक्रमण करो, \q2 जाकर पेकोदवासियों पर भी आक्रमण करो. \q1 उन्हें घात करो तथा उन्हें पूर्णतः नष्ट कर दो,” \q2 यह याहवेह का आदेश है. \q2 “वही सब करो, जिसका मैंने तुम्हें आदेश दिया है. \q1 \v 22 युद्ध की ध्वनि देश में व्याप्‍त है, \q2 विनाश अत्यंत प्रचंड है! \q1 \v 23 वह, जो सारे विश्व के लिए हथौड़ा था, \q2 वह कैसे कट गया, टूट गया! \q1 सारे राष्ट्रों के लिए \q2 बाबेल आज आतंक का विषय कैसे बन गया है! \q1 \v 24 बाबेल, मैंने तुम्हारे लिए फंदा डाला, \q2 और तुम उसमें जा भी फंसे! तुम्हें इसका आभास ही न हुआ; \q1 तुम्हें खोज निकाला गया और तुम पकड़ लिए गए कारण यह था, \q2 कि तुमने याहवेह से द्वन्द किया था. \q1 \v 25 याहवेह ने अपना शस्त्रागार खोल दिया है \q2 ओर उन्होंने अपने आक्रोश के शस्त्र बाहर निकाल लिए हैं, \q1 क्योंकि कसदियों के देश में \q2 यह प्रभु सेनाओं के याहवेह का निष्पादन है. \q1 \v 26 दूरतम सीमा से उसके निकट आ जाओ. \q2 उसके अन्‍नभण्डार खोल दो; \q2 उसे अनाज का ढेर लगाए जैसे कर दो और उसे पूर्णतः. \q1 नष्ट कर दो, \q2 उसका कुछ भी शेष न रह जाए. \q1 \v 27 उसके सारे पुष्ट बैल तलवार से घात कर दो; \q2 उन सभी का वध कर दो! \q1 धिक्कार हो उन पर! क्योंकि उनका समय आ गया है, \q2 उनके दंड का समय. \q1 \v 28 बाबेल से आए शरणार्थियों \q2 तथा आश्रयहीनों का स्वर सुनाई दे रहा है, \q1 कि ज़ियोन में उनके मंदिर के लिए, \q2 याहवेह हमारे परमेश्वर के बदले की घोषणा की जा सके. \b \q1 \v 29 “बाबेल पर आक्रमण के लिए उन सभी को बुला लाओ, \q2 जो बाण छोड़ने में कुशल है. \q1 उसे चारों ओर से घेरकर शिविर डाल दो; \q2 कोई भी बचने न पाए. \q1 उसके द्वारा किए गए कार्यों के अनुसार ही उसे प्रतिफल दो; \q2 उसने जैसा जैसा किया है उसके साथ वैसा ही करो. \q1 क्योंकि बाबेल याहवेह के विरुद्ध अहंकारी हो गया है, \q2 उनके विरुद्ध, जो इस्राएल के पवित्र परमेश्वर हैं. \q1 \v 30 इसलिये बाबेल के शूर जवान वहां की सड़कों पर पृथ्वीशायी हो जाएंगे; \q2 तथा उसके सभी योद्धा उस दिन नष्ट हो जाएंगे,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 31 “ओ अहंकारी, मैं तुम्हारे विरुद्ध हूं, तुम यह देख लेना,” \q2 यह प्रभु सेनाओं के याहवेह की वाणी है, \q1 “क्योंकि तुम्हारा समय आ गया है, \q2 वह समय, जब मैं तुम्हें दंड दूंगा. \q1 \v 32 वह, जो अहंकारी है, वह लड़खड़ा कर गिर पड़ेगा \q2 और कोई नहीं होगा, जो उसे उठाए; \q1 बाबेल के नगरों को मैं भस्म कर दूंगा, \q2 इससे उसके निकटवर्ती सारे क्षेत्र भी नष्ट हो जाएंगे.” \p \v 33 सेनाओं के याहवेह का संदेश यह है: \q1 “इस्राएल वंशज उत्पीड़ित किए जा रहे हैं, \q2 यहूदाह गोत्रज भी; \q1 वे सभी, जिन्होंने उन्हें बंदी बनाया है, \q2 उन्हें मुक्त नहीं कर रहे. \q1 \v 34 सशक्त हैं उनके उद्धारक, \q2 सेनाओं के याहवेह है उनका नाम. \q1 वह उनके सशक्त प्रवक्ता होंगे, \q2 कि पृथ्वी पर शांति की स्थापना हो सके, \q2 किंतु बाबेलवासियों में अशांति.” \b \q1 \v 35 याहवेह की वाणी है, \q2 “कसदी तलवार से घात किए जाएंगे, वैसे ही बाबेलवासी भी!” \q1 बाबेल के अधिकारी एवं बुद्धिमान \q2 तलवार से घात किए जाएंगे! \q1 \v 36 झूठे भविष्यवक्ताओं पर तलवार का प्रहार होगा! \q2 और वे मूर्ख प्रमाणित हो जाएंगे. \q1 शूर योद्धाओं पर तलवार का प्रहार होगा! \q2 और वे चूर-चूर हो जाएंगे. \q1 \v 37 तलवार उनके घोड़ों तथा रथों पर भी चलेगी, \q2 तथा उन सारे विदेशियों पर भी! \q2 जो उनके मध्य में निवास कर रहे हैं, कि वे दुर्बल हो जाएं. \q1 तलवार उसके कोषागारों पर भी चलेगी! \q2 और वे लूट लिए जाएंगे. \q1 \v 38 मैं उनके जलाशयों पर अनावृष्टि भेजूंगा! \q2 और वे सूख जाएंगे. \q1 क्योंकि यह देश प्रतिमाओं का देश हो गया है, \q2 यहां के निवासी उन प्रतिमाओं पर उन्मत्त हुए जा रहे हैं. \b \q1 \v 39 “इसलिये वहां सियार तो निवास करेंगे ही, \q2 उनके सिवा वहां मरुभूमि के प्राणी भी निवास करने लगेंगे. \q1 वहां शुतुरमुर्ग निवास करने लगेंगे \q2 और फिर कभी पीढ़ियों से पीढ़ियों तक इसे बसाया न जा सकेगा. \q1 \v 40 जैसा परमेश्वर ने सोदोम तथा अमोराह \q2 तथा इनके निकटवर्ती क्षेत्रों में विनाश वृष्टि की थी,” \q2 यह याहवेह की पूर्वोक्ति है, \q1 “कोई मनुष्य वहां निवास न कर सकेगा; \q2 और न मानव का कोई अस्तित्व पाया जाएगा. \b \q1 \v 41 “अब देखो! उत्तर की ओर से एक राष्ट्र आक्रमण कर रहा है; \q2 यह राष्ट्र सशक्त है तथा इसके राजा अनेक, \q2 वे पृथ्वी के दूर क्षेत्रों से प्रेरित किए जा रहे हैं. \q1 \v 42 वे अपना धनुष एवं बर्छी उठा रहे हैं; \q2 वे निर्मम एवं क्रूर हैं. \q1 उनका स्वर सागर की लहरों के गर्जन सदृश है, \q2 वे घोड़ों पर सवार होकर आगे बढ़ते आ रहे हैं; \q1 वे युद्ध के लिए सुसज्जित योद्धा सदृश हैं. \q2 बाबेल की पुत्री, वे तुम पर आक्रमण करेंगे. \q1 \v 43 बाबेल के राजा को इसकी सूचना प्राप्‍त हो चुकी है, \q2 उसके हाथ ढीले पड़ चुके हैं. \q1 पीड़ा ने उसे अपने अधीन कर रखा है, \q2 वैसी ही पीड़ा जैसी प्रसूता की होती है. \q1 \v 44 यह देखना, यरदन की झाड़ियों में से कोई सिंह सदृश निकलकर \q2 मजबूत चरवाहों पर आक्रमण कर देगा, \q1 क्योंकि मैं एक ही क्षण में उसे वहां पलायन के लिए प्रेरित कर दूंगा. \q2 तथा इस क्षेत्र पर मैं उसे नियुक्त कर दूंगा, जो इसके लिए असमर्थ किया जा चुका है. \q1 कौन है मेरे तुल्य तथा किसमें क्षमता है मुझे न्यायालय में बुलाने की? \q2 इसके सिवा कौन है वह चरवाहा, जो मेरे समक्ष ठहर सकेगा?” \b \q1 \v 45 इसलिये अब याहवेह की उस योजना को समझ लो, जो उन्होंने बाबेल के प्रति योजित की है, \q2 तथा उन लक्ष्यों को भी, जो उन्होंने तेमानवासियों के संकट के लिए निर्धारित किए हैं: \q1 इसमें कोई संदेह नहीं कि वे उन्हें खींचकर ले जाएंगे-भले ही वे भेड़-बकरियां के बच्चों की नाई हों; \q2 उनके कारण याहवेह उनकी चराइयों को निश्चयतः निर्जन बनाकर छोड़ेंगे. \q1 \v 46 इस घोषनाद के कारण: बाबेल बंदी बना लिया गया है; \q2 पृथ्वी कांप उठी है, सभी राष्ट्रों में निराशा की चिल्लाहट प्रतिध्वनित हो गई है. \c 51 \p \v 1 यह याहवेह की वाणी है: \q1 “यह देखना मैं बाबेल के विरुद्ध तथा लेब-कोमाई के \q2 निवासियों के विरुद्ध एक विनाशक बवंडर उत्पन्‍न करने पर हूं. \q1 \v 2 मैं विदेशियों को बाबेल की ओर भेजूंगा, \q2 कि वे उसको सुनसान करें तथा उस देश को ध्वस्त कर दें; \q1 चारों ओर से वे उसका विरोध करेंगे \q2 यह उसके विनाश का दिन होगा. \q1 \v 3 वह, जो धनुर्धारी है, उसे न तो धनुष तानने दो, \q2 न ही उसे झिलम पहनकर खड़े होने दो. \q1 संक्षेप में, बाबेल के जवानों को किसी भी रीति से बचकर न जाने दो; \q2 बाबेल की संपूर्ण सेना को नष्ट कर दो. \q1 \v 4 वे कसदियों के देश में पृथ्वीशायी हो जाएंगे, \q2 वे अपनी ही सड़कों पर बर्छियों से बेधे जाएंगे. \q1 \v 5 क्योंकि न तो इस्राएल और न यहूदिया को उनके परमेश्वर, \q2 सेनाओं के याहवेह द्वारा परित्याग किया गया है, \q1 यद्यपि उनका देश इस्राएल के पवित्र परमेश्वर के समक्ष \q2 सहायकभाव से परिपूर्ण हो गया है. \b \q1 \v 6 “बाबेल के मध्य से पलायन करो! \q2 तुममें से हर एक अपना प्राण बचा ले! \q2 उसे दिए जा रहे दंड में तुम नष्ट न हो जाना. \q1 क्योंकि यह याहवेह के बदला लेने का अवसर होगा; \q2 वह उसे वही देंगे, जो उसे दिया जाना उपयुक्त है. \q1 \v 7 बाबेल याहवेह के हाथ में स्वर्ण कटोरा समान रहा है; \q2 इससे सारी पृथ्वी मतवाली की गयी है. \q1 राष्ट्रों ने उसकी मदिरा का सेवन किया है; \q2 इसलिये राष्ट्र मतवाले हुए जा रहे हैं. \q1 \v 8 सहसा बाबेल का पतन हो गया है और वह चूर-चूर हो गया है. \q2 उसके लिए विलाप करो! \q1 उसके लिए दर्द मिटाने वाली औषधि ले आओ; \q2 संभव है उसकी वेदना का निवारण हो जाए. \b \q1 \v 9 “ ‘हमने बाबेल का उपचार करना चाहा, \q2 किंतु हमारा प्रयास निष्फल रहा; \q1 उसे वैसा ही छोड़ दिया जाए और हम अपने-अपने देश को लौट चलें, \q2 क्योंकि उसका दंड स्वर्ग तक पहुंच रहा है, \q2 वह आकाश तक पहुंच चुका है.’ \b \q1 \v 10 “ ‘याहवेह ने हमें निस्सहाय घोषित किया है; \q2 आओ, हम ज़ियोन में जाकर इसकी घोषणा करें \q2 कि यह याहवेह हमारे परमेश्वर द्वारा बनाया कृत्य है.’ \b \q1 \v 11 “बाणों की नोक की धार बना लो, \q2 ढालों को उठा लो! \q1 याहवेह ने मेदियों के राजाओं के उत्साह को उत्तेजित कर दिया है, \q2 क्योंकि वे बाबेल के विनाश के लिए तैयार हैं. \q1 यह याहवेह का बदला है, \q2 उनके मंदिर के लिए लिया गया बदला है. \q1 \v 12 बाबेल शहरपनाह पर आक्रमण के लिए संकेत झंडा ऊंचा उठाओ! \q2 वहां एक सशक्त प्रहरी नियुक्त करो, \q1 संतरियों को भी नियुक्त किया जाए, \q2 कुछ योद्धा घात लगाकर छिप जाएं! \q1 क्योंकि याहवेह ने निर्धारित भी किया और निष्पादित भी, \q2 जिसकी पूर्ववाणी वह बाबेलवासियों के विषय में कर चुके थे. \q1 \v 13 तुम, जो महानद के निकट निवास करते हो, \q2 तुम, जो निधियों में सम्पन्‍न हो, \q1 तुम्हारा पतन बड़ा है, \q2 तुम्हारा जीवन सूत्र काटा जा चुका है. \q1 \v 14 सेनाओं के याहवेह ने अपनी ही जीवन की शपथ खायी है: निस्‍संदेह, \q2 मैं तुम्हारे मध्य टिड्डी दल सदृश एक जनसमूह ले आऊंगा, \q2 और वे तुम्हें पराजित कर जयघोष करेंगे. \b \q1 \v 15 “याहवेह ही हैं जिन्होंने अपने सामर्थ्य से पृथ्वी की सृष्टि की; \q2 जिन्होंने विश्व को अपनी बुद्धि द्वारा प्रतिष्ठित किया है. \q2 अपनी सूझ-बूझ से उन्होंने आकाश को विस्तीर्ण कर दिया. \q1 \v 16 उनके नाद उच्चारण से आकाश के जल में हलचल मच जाती है; \q2 वही हैं जो चारों ओर से मेघों का आरोहण बनाया करते हैं. \q1 वह वृष्टि के लिए बिजली को अधीन करते हैं \q2 तथा अपने भण्डारगृह से पवन को चलाते हैं. \b \q1 \v 17 “हर एक मनुष्य मूर्ख है—ज्ञानहीन; \q2 हर एक स्वर्णशिल्पी अपनी ही कृति प्रतिमा द्वारा लज्जित किया जाता है. \q1 क्योंकि उसके द्वारा ढाली गई प्रतिमाएं धोखा हैं; \q2 उनमें जीवन-श्वास तो है ही नहीं. \q1 \v 18 ये प्रतिमाएं सर्वथा व्यर्थ हैं, ये हास्यपद कृति हैं; \q2 जब उन पर दंड का अवसर आएगा, वे नष्ट हो जाएंगी. \q1 \v 19 याहवेह, जो याकोब की निधि हैं, इनके सदृश नहीं हैं, \q2 क्योंकि वे सभी के सृष्टिकर्ता हैं, \q1 उनके निज भाग इस कुल का भी; \q2 उनका नाम है सेनाओं का याहवेह. \b \q1 \v 20 “उनका आश्वासन है, \q2 मेरे लिए तुम युद्ध के शस्त्र हो, \q1 तुम्हारे द्वारा मैं राष्ट्रों को चूर्ण कर देता हूं, \q2 तुम्हारे साथ मैं राज्यों को नष्ट कर देता हूं, \q1 \v 21 तुमसे मैं घोड़े तथा उसके सवार को नष्ट कर देता हूं, \q2 तुमसे ही मैं रथ तथा रथ नियंता को नष्ट कर देता हूं, \q1 \v 22 तुमसे मैं पुरुष तथा स्त्री को नष्ट कर देता हूं, \q2 तथा तुमसे ही मैं वृद्ध तथा जवान को नष्ट कर देता हूं, \q2 तुमसे मैं नवयुवक को तथा कुंवारी कन्या को नष्ट कर देता हूं, \q1 \v 23 तुमसे मैं चरवाहे एवं भेड़-बकरियों को नष्ट करता हूं, \q2 तुमसे ही मैं किसान एवं उसके सहायकों को नष्ट करता हूं, \q2 तथा तुमसे ही मैं राज्यपालों एवं सेनापतियों को नष्ट करता हूं. \p \v 24 “किंतु मैं तुम्हारी आंखों ही के समक्ष बाबेल तथा सारे कसदियावासियों से उनके द्वारा ज़ियोन में किए गए उनके सारे अधर्म का बदला लूंगा,” यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 25 “तुम यह समझ लो, विनाशक पर्वत, मैं तुम्हारे विरुद्ध हूं, \q2 तुम, जो सारे पृथ्वी को नष्ट करते हो,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 “मैं तुम्हारे विरुद्ध अपनी भुजा बढ़ाऊंगा, \q2 और तुम्हें ढलवां चट्टानों से लुढ़का दूंगा, \q2 और तब मैं तुम्हें भस्म हो चुका पर्वत बना छोड़ूंगा. \q1 \v 26 तुममें से वे भवन के लिए कोने की शिला तक न निकालेंगे \q2 और न ही नींव के लिए कोई शिला: \q2 तुम तो सदा-सर्वदा के लिए उजाड़-निर्जन होकर रह जाओगे,” यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 27 “सारे देश में चेतावनी का झंडा ऊंचा किया जाए! \q2 राष्ट्रों में नरसिंगा नाद किया जाए! \q1 राष्ट्रों को उसके विरुद्ध युद्ध के लिए नियुक्त करो; \q2 उसके विरुद्ध अरारात, मिन्‍नी \q2 तथा अश्केनाज राज्य एकत्र किए जाएं. \q1 घोड़ों को टिड्डी दल सदृश ले आओ; \q2 तथा उसके लिए सेनापति भी नियुक्त करो. \q1 \v 28 राष्ट्रों को उसके विरुद्ध युद्ध के लिए नियुक्त करो— \q2 मेदियों के राजा, \q1 उनके राज्यपाल तथा उनके सेनापति, \q2 तथा उनके द्वारा शासित हर एक देश. \q1 \v 29 पृथ्वी कंपित होती तथा वेदना में ऐंठ रही है, \q2 क्योंकि बाबेल के विरुद्ध याहवेह का उद्देश्य अटल है— \q1 बाबेल देश को उजाड़ \q2 एवं निर्जन कर देना. \q1 \v 30 बाबेल के शूर योद्धाओं ने समर्पण कर दिया है; \q2 वे अपने दुर्गों से बाहर नहीं आ रहे. \q1 उनका बल क्षय हो चुका है; \q2 वस्तुतः वे अब स्त्रियां होकर रह गए है. \q1 उनके आवास अग्नि से ग्रसित हो चुके है; \q2 नगर प्रवेश द्वार की छड़ें टूट चुकी हैं. \q1 \v 31 एक समाचार का प्रेषक दौड़कर अन्य से मिलता है \q2 और एक संदेशवाहक अन्य से, \q1 कि बाबेल के राजा को यह संदेश दिया जाए: \q2 एक छोर से दूसरी छोर तक आपका नगर अधीन हो चुका है, \q1 \v 32 घाटों पर शत्रु का अधिकार हो चुका है, \q2 शत्रु ने तो दलदल-वन तक को दाह कर दिया है, \q2 योद्धा अत्यंत भयभीत हैं.” \p \v 33 सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की वाणी यह है: \q1 “बाबेल की पुत्री दांवनी के खलिहान-सदृश है, \q2 जिस पर अन्‍न रौंदा जाता है; \q2 फिर भी शीघ्र ही उसे कटनी के अवसर का सामना करना पड़ेगा.” \b \q1 \v 34 ज़ियोनवासी कहेंगे, “बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र ने तो मुझे ग्रसित कर लिया है, \q2 तथा कुचल दिया है, \q2 उसने मुझे एक रिक्त बर्तन की स्थिति में लाकर छोड़ दिया है. \q1 उसने मुझे विकराल जंतु सदृश निगल लिया है, \q2 और वह मेरे उत्कृष्ट व्यंजनों का सेवन कर तृप्‍त हो चुका है, \q2 वह मानो मुझे बहाकर ले गया है. \q1 \v 35 वह हिंसा, जो बाबेल द्वारा मुझ पर तथा मेरी देह पर की गई थी,” \q2 तब ज़ियोनवासी कहेंगे, वह उसी पर लौट पड़े. \q1 तथा येरूशलेम कहेगा, \q2 “मुझ पर की गई हिंसा का बदला कसदिया देश से लिया जाए,” \p \v 36 इसलिये याहवेह की वाणी यह है: \q1 “यह देख लेना, मैं तुम्हारे सहायक का प्रवक्ता हो जाऊंगा \q2 और तुम्हारे लिए भरपूर बदला प्रभावी करूंगा. \q1 मैं उसकी जल राशि को शुष्क कर दूंगा \q2 तथा उसके जल-स्रोत निर्जल बना दूंगा. \q1 \v 37 बाबेल खंडहरों का ढेर, \q2 तथा सियारों का बसेरा बन जाएगा, \q1 वह भय का पर्याय, निर्जन स्थान, \q2 तथा उपहास का विषय बन जाएगा. \q1 \v 38 बाबेलवासी सशक्त सिंहों के समान दहाड़ेंगे, \q2 वे सिंह के शावकों के समान गुर्राएंगे. \q1 \v 39 जब वे उतावला होंगे, \q2 मैं उनके लिए भोज आयोजित कर दूंगा \q2 और मैं उन्हें ऐसे मतवाले कर दूंगा, \q1 कि वे प्रमुदित हो जाएं और तब वे चिर-निद्रा में चले जाएंगे, \q2 कि वे कभी न जाग सकें,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \q1 \v 40 “मैं उनकी स्थिति वध के लिए \q2 निर्धारित मेमनों के समान कर दूंगा, \q2 मेढ़ों तथा बकरों के सदृश. \b \q1 \v 41 “कैसे शेशाख\f + \fr 51:41 \fr*\fq शेशाख \fq*\fqa बाबिलोण \fqa*\ft का गुप्‍त नाम\ft*\f* को बंदी बना लिया गया है, \q2 जिसे सारी पृथ्वी की प्रशंसा प्राप्‍त होती रहती थी! \q1 यह कैसे हुआ कि बाबेल राष्ट्रों के \q2 मध्य भय का विषय बन गया है! \q1 \v 42 समुद्र जल स्तर ऊंचा होकर बाबेल तक पहुंच गया है; \q2 उसकी प्रचंड लहरों ने इसे ढांप लिया है. \q1 \v 43 उसके नगर भयास्पद हो गए हैं, \q2 अनावृष्टि प्रभावित मरुभूमि सदृश ऐसा क्षेत्र जहां \q1 कोई मनुष्य निवास नहीं करता, \q2 जिसके मध्य से होकर कोई भी नहीं निकलता. \q1 \v 44 मैं बाबेल में ही बेल को दंड दूंगा, \q2 मैं उसके मुख से वही उगलवाऊंगा, जो उसने निगल लिया था. \q1 तब जनता उसकी ओर आकर्षित होना ही छोड़ देंगे. \q2 अब तो बाबेल की शहरपनाह भी ढह चुकी है. \b \q1 \v 45 “मेरी प्रजाजनो, वहां से निकल आओ! \q2 तुममें से हर एक याहवेह के प्रचंड प्रकोप से अपनी रक्षा करें. \q1 \v 46 तुम्हारा हृदय मूर्छित न होने लगे \q2 तथा सारे देश में प्रसारित होते समाचार से तुम भयभीत न हो जाओ; \q1 क्योंकि एक समाचार इस वर्ष आएगा, तत्पश्चात अन्य समाचार अगले वर्ष, \q2 सारे देश में हिंसा भड़क रही होगी, \q2 उच्चाधिकारी ही उच्चाधिकारी के विरुद्ध हो जाएगा. \q1 \v 47 तब तुम यह देख लेना वे दिन आ रहे हैं, \q2 मैं बाबेल की प्रतिमाओं को दंड दूंगा; \q1 सारे देश के लिए यह लज्जा का विषय होगा \q2 घात किए हुओं के शव उसके मध्य में इधर-उधर पड़े पाए जाएंगे. \q1 \v 48 तब स्वर्ग और पृथ्वी तथा इनके सारे निवासी \q2 बाबेल की इस स्थिति पर हर्षनाद करेंगे, \q1 क्योंकि उसके विनाशक \q2 उत्तर दिशा से आएंगे,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 49 “इस्राएल के लोगों के कारण बाबेल का पतन अनिवार्य है, \q2 ठीक जिस प्रकार सारी पृथ्वी पर के मारे गये लोग \q2 बाबेल के ही कारण मारे गये हैं. \q1 \v 50 तुम सभी, जो तलवार से बच निकले हो, \q2 यहां ठहरे न रहो, भागो यहां से! \q1 दूर ही दूर रहते हुए याहवेह को स्मरण कर लिया करो, \q2 येरूशलेम तुम्हारी स्मृति से दूर न रहे.” \b \q1 \v 51 “निंदा सुनकर हम अत्यंत लज्जित हुए हैं \q2 हमारे मुखमंडल पर कलंक लग चुका है, \q1 क्योंकि याहवेह के पवित्र भवन में \q2 विदेशियों का प्रवेश हो चुका है.” \b \q1 \v 52 “तब यह समझ लो: वे दिन आ रहे हैं,” यह याहवेह की वाणी है, \q2 “जब मैं उसकी प्रतिमाओं को दंड दूंगा, \q1 तब घातक प्रहार से पीड़ित, \q2 संपूर्ण देश में कराहते हुए पाए जाएंगे. \q1 \v 53 चाहे बाबेल आकाश-सदृश ऊंचा हो जाए, \q2 चाहे वह अपने ऊंचे गढ़ सुदृढ़ बना ले, \q2 मेरे द्वारा भेजे गए विनाशक उसे जा पकड़ेंगे,” \q2 यह याहवेह की वाणी है. \b \q1 \v 54 “बाबेल में विलाप व्याप्‍त है, \q2 तथा कसदियों के देश में महाविनाश. \q1 \v 55 क्योंकि याहवेह बाबेल के विनाश के लिए तैयार हैं; \q2 वह उसकी उस उच्च आवाज को समाप्‍त कर देंगे. \q1 उसकी ध्वनि उग्र लहरों के सदृश है; \q2 नगर में आवाज गूंज रही है. \q1 \v 56 बाबेल पर विनाशक ने आक्रमण किया है; \q2 उसके सारे शूर योद्धा बंदी बनाए जाएंगे, \q2 उसके धनुष टूट चुके हैं. \q1 क्योंकि याहवेह बदला लेनेवाले परमेश्वर हैं; \q2 वह पूरा-पूरा बदला लेंगे. \q1 \v 57 मैं उसके उच्चाधिकारी तथा परामर्शकों को मदोन्मत बना दूंगा, \q2 उसके राज्यपालों, सेनापतियों तथा शूर योद्धाओं को भी; \q1 कि वे सभी चिर-निद्रा में सो जाएं, और फिर कभी न जागें!” \q2 यह उस राजा की वाणी है, जिनका नाम है सेनाओं के याहवेह. \p \v 58 सेनाओं के याहवेह का संदेश यह है: \q1 “बाबेल की चौड़ी शहरपनाह पूर्णतः \q2 ध्वस्त कर दी जाएगी तथा उसके ऊंचे-ऊंचे प्रवेश द्वार अग्नि में दाह कर दिए जाएंगे; \q1 तब प्रजा का परिश्रम व्यर्थ रहेगा, \q2 तथा राष्ट्रों का सारा परिश्रम मात्र अग्नि में भस्म होने के लिए सिद्ध होगा.” \p \v 59 नेरियाह के पुत्र माहसेइयाह के पौत्र सेराइयाह को दिया गया भविष्यद्वक्ता येरेमियाह का आदेश यह है, यह उसे उस अवसर पर भेजा गया, जब वह यहूदिया के राजा सीदकियाहू के राज्य-काल के चौथे वर्ष में राजा के साथ बाबेल गया था, सेराइयाह वहां महलों का प्रबंधक था. \v 60 येरेमियाह ने एक चर्म कुण्डलिका में उन सारे संकटों की एक सूची बना दी जो बाबेल के लिए निर्धारित किए गए थे, अर्थात् वे सभी भविष्यवाणी, जो बाबेल के विषय में की गई थी. \v 61 तत्पश्चात येरेमियाह ने सेराइयाह को संबोधित कर कहा, “यह ध्यान रखना कि बाबेल पहुंचते ही तुम यह सब उच्च स्वर में सबके समक्ष पढ़ोगे. \v 62 फिर तुम यह भी कहना, ‘याहवेह ने इस स्थान के विषय में भविष्यवाणी की है, कि यह स्थान नष्ट कर दिया जाएगा, इस प्रकार कि इस स्थान पर कोई भी निवासी शेष न रह जाएगा; चाहे मनुष्य हो अथवा पशु और यह स्थायी उजाड़ हो जाएगा.’ \v 63 जैसे ही तुम इस चर्म कुण्डली को पढ़ना समाप्‍त करोगे, तुम एक पत्थर इसमें बांध देना और इसे फरात नदी के मध्य में फेंक देना. \v 64 उसे फेंकते हुए तुम यह कहना, ‘बाबेल इसी प्रकार डूब जाएगा और फिर कभी उठकर ऊपर न आएगा, क्योंकि मैं उस पर ऐसा संकट डालने पर हूं. और उसके लोग गिर जाएंगे.’ ” \p येरेमियाह के शब्द यहीं तक हैं. \b \c 52 \s1 येरूशलेम का पतन \p \v 1 जब सीदकियाहू ने शासन शुरू किया उसकी उम्र इक्कीस साल थी. येरूशलेम में उसने ग्यारह साल शासन किया. उसकी माता का नाम हामुतल था. वह लिबनाहवासी येरेमियाह की पुत्री थी. \v 2 उसने वह किया, जो याहवेह की दृष्टि में बुरा था—वही सब, जो यहोइयाकिम ने किया था. \v 3 वस्तुतः येरूशलेम और यहूदिया ने याहवेह को इस सीमा तक क्रोधित कर दिया था, कि याहवेह ने उन्हें अपनी नज़रों से ही दूर कर दिया. \p सीदकियाहू ने बाबेल के राजा के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था. \p \v 4 तब उसके शासन के नवें साल के दसवें महीने के दसवें दिन बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र ने अपनी सारी सेना के साथ आकर येरूशलेम को घेर लिया, उसके आस-पास छावनी ड़ाल दी और इसके चारों ओर घेराबंदी की दीवार बना ली. \v 5 राजा सीदकियाहू के शासन के ग्यारहवें साल तक नगर घिरा रहा. \p \v 6 चौथे महीने के नवें दिन से नगर में अकाल ऐसा भयंकर हो गया कि नागरिकों के लिए कुछ भी भोजन न बचा. \v 7 तब उन्होंने शहरपनाह को तोड़ दिया और रात में सारे योद्धा दो दीवारों के बीच के द्वार से, जो राजा की वाटिका के पास था, निकल भागे. कसदी इस समय नगर को घेरे हुए थे. ये योद्धा अराबाह की दिशा में आगे बढ़ते गए, \v 8 कसदी सेना ने राजा का पीछा किया और सीदकियाहू को येरीख़ो के मैदानों में जा पकड़ा. उसकी सारी सेना उसे छोड़कर भाग गई. \p \v 9 राजा को बंदी बनाकर वे उसे हामाथ में रिबलाह नामक स्थान पर बाबेल के राजा के समक्ष ले गए, वहां सीदकियाहू पर दंड की आज्ञा घोषित की गई. \v 10 बाबेल के राजा ने सीदकियाहू के समक्ष ही उसके पुत्रों का वध कर दिया, तब उसने रिबलाह में यहूदिया के सभी उच्चाधिकारियों का भी वध कर दिया. \v 11 इसके बाद बाबेल के राजा ने सीदकियाहू की आंखें निकाल लीं और उसे कांसे की सांकलों में बांधकर बाबेल ले गया और उसे बंदीगृह में डाल दिया, जहां वह मृत्युपर्यंत रखा गया. \p \v 12 पांचवें माह के दसवें दिन, जो वस्तुतः बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र के राज्य-काल का उन्‍नीसवां वर्ष था, बाबेल के राजा का सेवक, अंगरक्षकों का प्रधान नेबुज़रादान येरूशलेम आ गया. \v 13 उसने याहवेह के भवन में, राजमहल में और येरूशलेम के सभी भवनों में आग लगा दी. हर एक अच्छा भवन भस्म कर दिया गया. \v 14 अंगरक्षकों के प्रधान के साथ आई हुई कसदियों की सारी सेना ने येरूशलेम के चारों ओर बनाई हुई दीवारों को ढाह दिया. \v 15 तब अंगरक्षकों के प्रधान नेबुज़रादान ने प्रजा में से कुछ गरीब लोगों को, नगर में शेष रह गए लोगों को, उन लोगों को, जो बाबेल के राजा के अधीन में हो गए थे तथा वहां शेष रह गए शिल्पियों को अपने साथ बंधुआई में ले गया. \v 16 नेबुज़रादान ने कुछ गरीब लोगों को कृषि तथा द्राक्षा उद्यानों की देखभाल के लिए वहीं रहने दिया. \p \v 17 याहवेह के भवन के कांस्य स्तंभ, कांस्य के आधार तथा कांस्य जलबर्तनों को कसदी तोड़कर उनके टुकड़ों को बाबेल ले गए. \v 18 वे याहवेह के भवन के पवित्र बर्तन, फावड़े, चिलमचियां, दीपषमक तथा सभी कांस्य बर्तन, जो मंदिर में आराधना के लिए अधीन होते थे, अपने साथ ले गए. \v 19 अंगरक्षकों का प्रधान अपने साथ शुद्ध स्वर्ण एवं चांदी के कटोरे, अग्निबर्तन, चिलमचियां, बर्तन, दीवट, तवे, पेय बलि के कटोरे भी ले गया. \p \v 20 दो स्तंभ, एक विशाल जल बर्तन, बारह कांस्य बैल, जो इस जल बर्तन के नीचे आधार के रूप में रहते थे, जो राजा शलोमोन द्वारा याहवेह के भवन में अधीन किए जाने के लिए निर्मित किए गए थे, इन सबका कांस्य अतुलनीय था. \v 21 हर एक स्तंभ की ऊंचाई लगभग आठ मीटर तथा हर एक की परिधि साढ़े पांच मीटर थी; तथा इनकी परत की मोटाई आठ सेंटीमीटर थी, ये स्तंभ खोखले थे. \v 22 इन सबके ऊपर शीर्ष था, जो कांस्य का बनाया गया था. हर एक शीर्ष की ऊंचाई सवा दो मीटर थी, शीर्ष के चारों ओर अनारों की आकृति की जाली निर्मित की गई थी. दूसरा स्तंभ भी इसी प्रकार का था, उस पर भी अनारों की आकृति निर्मित थी. \v 23 अनारों की कुल संख्या सौ थी तथा इनमें से छियानवे स्पष्टतः दिखाई देते थे; ये सभी चारों ओर की जाली में गढ़े गए थे. \p \v 24 इसके बाद अंगरक्षकों के प्रधान ने प्रमुख पुरोहित सेराइयाह, सहपुरोहित ज़ेफनियाह, तीन मंदिर अधिकारियों, \v 25 नगर में से सैनिकों के पर्यवेक्षक अधिकारी तथा राजा के सात परामर्शकों को, जो वहीं नगर में थे, तथा सेना के आदेशक के लेखापाल को, जो देश के लोगों को सेना में तैयार करता था तथा देश के साठ व्यक्तियों को, जो उस समय नगर में पाए गए थे, अपने साथ बंदी बनाकर ले गया. \v 26 नेबुज़रादान, जो अंगरक्षकों का प्रधान था, उसने इन सभी को रिबलाह ले जाकर बाबेल के राजा के समक्ष प्रस्तुत कर दिया. \v 27 तब बाबेल के राजा ने हामाथ देश के रिबलाह नगर में इन सभी का वध कर दिया. \p इस प्रकार यहूदिया अपने देश से बंधुआई में ले जाया गया. \b \li4 \v 28 नबूकदनेज्ज़र द्वारा बंधुआई में ले जाए गए व्यक्तियों की सूची इस प्रकार है: \b \li1 सातवें वर्ष में, \li2 तीन हजार तेईस यहूदी; \li1 \v 29 नबूकदनेज्ज़र के राज्य-काल के अठारहवें वर्ष में, \li2 येरूशलेम से आठ सौ बत्तीस व्यक्ति; \li1 \v 30 नबूकदनेज्ज़र के राज्य-काल के तेईसवें वर्ष में, \li2 अंगरक्षकों के प्रधान नेबुज़रादान द्वारा सात सौ पैंतालीस यहूदी बंधुआई में ले जाए गए. \b \li4 इन सभी व्यक्तियों की कुल संख्या चार हजार छः सौ पाई गई. \s1 यहोइयाखिन की आज़ादी \p \v 31 यहूदिया के राजा यहोइयाखिन के बंधुआई के सैंतीसवें वर्ष में, बारहवें माह के पच्चीसवें दिन में बाबेल के राजा एवील-मेरोदाख ने अपने राज्य-काल के पहले वर्ष में यहूदिया के राजा यहोइयाखिन पर कृपा प्रदर्शित की और उसे कारागार से बाहर निकाल लिया. \v 32 उसने उससे कृपाभाव में वार्तालाप किया तथा उसके लिए उन राजाओं से उच्चतर स्थान पर सिंहासन स्थापित किया, जो बाबेल में इस समय उसके साथ थे. \v 33 फिर यहोइयाखिन ने कारागार के वस्त्र त्याग दिए. साथ ही, वह मृत्युपर्यंत राजा के साथ भोजन करता रहा. \v 34 बाबेल के राजा की ओर से उसे नियमित रूप से उपवेतन दिया जाता रहा, तथा मृत्युपर्यंत उसकी दैनिक आवश्यकताएं पूर्ण की जाती रहीं.