\id ECC - Biblica® Open Hindi Contemporary Version (Updated 2021) \ide UTF-8 \h उद्बोधक \toc1 उद्बोधक \toc2 उद्बोधक \toc3 उद्बो \mt1 उद्बोधक \c 1 \s1 सब कुछ व्यर्थ है \p \v 1 दावीद के पुत्र, येरूशलेम में राजा, दार्शनिक के वचन: \q1 \v 2 “बेकार ही बेकार!” \q2 दार्शनिक का कहना है. \q1 “बेकार ही बेकार! \q2 बेकार है सब कुछ.” \b \q1 \v 3 सूरज के नीचे मनुष्य द्वारा किए गए कामों से उसे क्या मिलता है? \q1 \v 4 एक पीढ़ी खत्म होती है और दूसरी आती है, \q2 मगर पृथ्वी हमेशा बनी रहती है. \q1 \v 5 सूरज उगता है, सूरज डूबता है, \q2 और बिना देर किए अपने निकलने की जगह पर पहुंच दोबारा उगता है. \q1 \v 6 दक्षिण की ओर बहती हुई हवा \q2 उत्तर दिशा में मुड़कर निरंतर घूमते हुए अपने घेरे में लौट आती है. \q1 \v 7 हालांकि सारी नदियां सागर में मिल जाती हैं, \q2 मगर इससे सागर भर नहीं जाता. \q1 नदियां दोबारा उसी जगह पर बहने लगती हैं, \q2 जहां वे बह रही थीं. \q1 \v 8 इतना थकाने वाला है सभी कुछ, \q2 कि मनुष्य के लिए इसका वर्णन संभव नहीं. \q1 आंखें देखने से तृप्‍त नहीं होतीं, \q2 और न कान सुनने से संतुष्ट. \q1 \v 9 जो हो चुका है, वही है जो दोबारा होगा, \q2 और जो किया जा चुका है, वही है जो दोबारा किया जाएगा; \q2 इसलिये धरती पर नया कुछ भी नहीं. \q1 \v 10 क्या कुछ ऐसा है जिसके बारे में कोई यह कह सके, \q2 “इसे देखो! यह है नया?” \q1 यह तो हमसे पहले के युगों से होता आ रहा है. \q1 \v 11 कुछ याद नहीं कि पहले क्या हुआ, \q2 और न यह कि जो होनेवाला है. \q1 और न ही उनके लिए कोई याद बची रह जाएगी \q2 जो उनके भी बाद आनेवाले हैं. \s1 बुद्धि की व्यर्थता \p \v 12 मैं, दार्शनिक, येरूशलेम में इस्राएल का राजा रहा हूं. \v 13 धरती पर जो सारे काम किए जाते हैं, मैंने बुद्धि द्वारा उन सभी कामों के जांचने और अध्ययन करने में अपना मन लगाया. यह बड़े दुःख का काम है, जिसे परमेश्वर ने मनुष्य के लिए इसलिये ठहराया है कि वह इसमें उलझा रहे! \v 14 मैंने इन सभी कामों को जो इस धरती पर किए जाते हैं, देखा है, और मैंने यही पाया कि यह बेकार और हवा से झगड़ना है. \q1 \v 15 जो टेढ़ा है, उसे सीधा नहीं किया जा सकता; \q2 और जो है ही नहीं, उसकी गिनती कैसे हो सकती है. \p \v 16 “मैं सोच रहा था, येरूशलेम में मुझसे पहले जितने भी राजा हुए हैं, मैंने उन सबसे ज्यादा बुद्धि पाई है तथा उन्‍नति की है; मैंने बुद्धि और ज्ञान के धन का अनुभव किया है.” \v 17 मैंने अपना हृदय बुद्धि को और बावलेपन और मूर्खता को जानने में लगाया, किंतु मुझे अहसास हुआ कि यह भी हवा से झगड़ना ही है. \q1 \v 18 क्योंकि ज्यादा बुद्धि में बहुत दुःख होता है; \q2 ज्ञान बढ़ाने से दर्द भी बढ़ता है. \c 2 \s1 समृद्धि और सुख-विलास भी बेकार \p \v 1 मैंने अपने आपसे कहा, “चलो, मैं आनंद के द्वारा तुम्हें परखूंगा.” इसलिये आनंदित और मगन हो जाओ. मगर मैंने यही पाया कि यह भी बेकार ही है. \v 2 मैंने हंसी के बारे में कहा, “यह बावलापन है” और आनंद के बारे में, “इससे क्या मिला?” \v 3 जब मेरा मन यह सोच रहा था कि किस प्रकार मेरी बुद्धि बनी रहे, मैंने अपने पूरे मन से इसके बारे में खोज कर डाली कि किस प्रकार दाखमधु से शरीर को बहलाया जा सकता है और किस प्रकार मूर्खता को काबू में किया जा सकता है, कि मैं यह समझ सकूं कि पृथ्वी पर मनुष्यों के लिए उनके छोटे से जीवन में क्या करना अच्छा है. \p \v 4 मैंने अपने कामों को बढ़ाया: मैंने अपने लिए घरों को बनाया, मैंने अपने लिए अंगूर के बगीचे लगाए. \v 5 मैंने बगीचे और फलों के बागों को बनाया और उनमें सब प्रकार के फलों के पेड़ लगाए. \v 6 वनों में सिंचाई के लिए मैंने तालाब बनवाए ताकि उससे पेड़ बढ़ सकें. \v 7 मैंने दास-दासी खरीदें जिनकी मेरे यहां ही संतानें भी पैदा हुईं. मैं बहुत से गाय-बैलों का स्वामी हो गया. जो मुझसे पहले थे उनसे कहीं अधिक मेरे गाय-बैल थे. \v 8 मैंने अपने आपके लिए सोने, चांदी तथा राज्यों व राजाओं से धन इकट्ठा किया, गायक-गायिकाएं चुन लिए और उपपत्नियां भी रखीं जिससे पुरुषों को सुख मिलता है. \v 9 मैं येरूशलेम में अपने से पहले वालों से बहुत अधिक महान हो गया. मेरी बुद्धि ने हमेशा ही मेरा साथ दिया. \q1 \v 10 मेरी आंखों ने जिस किसी चीज़ की इच्छा की; \q2 मैंने उन्हें उससे दूर न रखा और न अपने मन को किसी आनंद से; \q1 क्योंकि मेरी उपलब्धियों में मेरी संतुष्टि थी, \q2 और यही था मेरे परिश्रम का पुरुस्कार. \q1 \v 11 इसलिये मैंने अपने द्वारा किए गए सभी कामों को, \q2 और अपने द्वारा की गई मेहनत को नापा, \q1 और यही पाया कि यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना था; \q2 और धरती पर इसका कोई फायदा नहीं. \s1 बुद्धि मूर्खता से बड़ी \q1 \v 12 सो मैंने बुद्धि, बावलेपन \q2 तथा मूर्खता के बारे में विचार किया. \q1 राजा के बाद आनेवाला इसके अलावा और क्या कर सकता है? \q2 केवल वह जो पहले से होता आया है. \q1 \v 13 मैंने यह देख लिया कि बुद्धि मूर्खता से बेहतर है, \q2 जैसे रोशनी अंधकार से. \q1 \v 14 बुद्धिमान अपने मन की आंखों से व्यवहार करता है, \q2 जबकि मूर्ख अंधकार में चलता है. \q1 यह सब होने पर भी मैं जानता हूं \q2 कि दोनों का अंतिम परिणाम एक ही है. \p \v 15 मैंने मन में विचार किया, \q1 जो दशा मूर्ख की है वही मेरी भी होगी. \q2 तो मैं अधिक बुद्धिमान क्यों रहा? \q1 “मैंने स्वयं को याद दिलाया, \q2 यह भी बेकार ही है.” \q1 \v 16 बुद्धिमान को हमेशा याद नहीं किया जाएगा जैसे मूर्ख को; \q2 कुछ दिनों में ही वे भुला दिए जाएंगे. \q1 बुद्धिमान की मृत्यु कैसे होती है? मूर्ख के समान ही न! \s1 मेहनत की व्यर्थता \p \v 17 इसलिये मुझे जीवन से घृणा हो गई क्योंकि धरती पर जो कुछ किया गया था वह मेरे लिए तकलीफ़ देनेवाला था; क्योंकि सब कुछ बेकार और हवा से झगड़ना था. \v 18 इसलिये मैंने जो भी मेहनत इस धरती पर की थी उससे मुझे नफ़रत हो गई, क्योंकि इसे मुझे अपने बाद आनेवाले के लिए छोड़ना पड़ेगा. \v 19 और यह किसे मालूम है कि वह बुद्धिमान होगा या मूर्ख. मगर वह उन सभी वस्तुओं का अधिकारी बन जाएगा जिनके लिए मैंने धरती पर बुद्धिमानी से मेहनत की. यह भी बेकार ही है. \v 20 इसलिये धरती पर मेरे द्वारा की गई मेहनत के प्रतिफल से मुझे घोर निराशा हो गई. \v 21 कभी एक व्यक्ति बुद्धि, ज्ञान और कुशलता के साथ मेहनत करता है और उसे हर एक वस्तु उस व्यक्ति के आनंद के लिए त्यागनी पड़ती है जिसने उसके लिए मेहनत ही नहीं की. यह भी बेकार और बहुत बुरा है. \v 22 मनुष्य को अपनी सारी मेहनत और कामों से, जो वह धरती पर करता है, क्या मिलता है? \v 23 वास्तव में सारे जीवन में उसकी पूरी मेहनत दुःखों और कष्टों से भरी होती है; यहां तक की रात में भी उसके मन को और दिमाग को आराम नहीं मिल पाता. यह भी बेकार ही है. \p \v 24 मनुष्य के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं है कि वह खाए, पिए और खुद को विश्वास दिलाए कि उसकी मेहनत उपयोगी है. मैंने यह भी पाया है कि इसमें परमेश्वर का योगदान होता है, \v 25 नहीं तो कौन परमेश्वर से अलग हो खा-पीकर सुखी रह सकता है? \v 26 क्योंकि जो मनुष्य परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है, उसे परमेश्वर ने बुद्धि, ज्ञान और आनंद दिया है, मगर पापी को परमेश्वर ने इकट्ठा करने और बटोरने का काम दिया है सिर्फ इसलिये कि वह उस व्यक्ति को दे दे जो परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है. यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना है. \c 3 \s1 हर एक काम के लिए तय समय \q1 \v 1 हर एक काम के लिए एक तय समय है, \q2 और धरती पर हर एक काम करने का एक समय होता है: \b \q2 \v 2 जन्म का समय और मृत्यु का समय; \q2 बोने का समय और बोए हुए को उखाड़ने का समय. \q2 \v 3 मार डालने का समय और स्वस्थ करने का समय; \q2 गिराने का समय और बनाने का समय; \q2 \v 4 रोने का समय और हंसने का समय; \q2 शोक करने का समय और नाचने का समय. \q2 \v 5 पत्थर फेंकने का समय और पत्थर इकट्ठा करने का समय; \q2 गले लगाने का समय और गले न लगाने का समय. \q2 \v 6 खोजने का समय और छोड़ देने का समय; \q2 बचाकर रखने का समय और फेंक देने का समय. \q2 \v 7 फाड़ने का समय और सीने का समय; \q2 चुप रहने का समय और बोलने का समय. \q2 \v 8 प्रेम का समय और नफरत का समय; \q2 युद्ध का समय और शांति का समय. \p \v 9 मेहनत करनेवाले को उससे क्या लाभ जिसके लिए वह मेहनत करता है? \v 10 मनुष्य को व्यस्त रखने के लिए परमेश्वर द्वारा ठहराए गए कामों का अनुभव मैंने किया है. \v 11 उन्होंने हर एक वस्तु को उसके लिए सही समय में ही बनाया है. उन्होंने मनुष्य के हृदय में अनंत काल का अहसास जगाया, फिर भी मनुष्य नहीं समझ पाता कि परमेश्वर ने शुरू से अंत तक क्या किया है. \v 12 मैं जानता हूं कि मनुष्य के लिए इससे सही और कुछ नहीं कि वह जीवन में खुश रहे तथा दूसरों के साथ भलाई करने में लगा रहे. \v 13 हर एक व्यक्ति खाते-पीते अपनी मेहनत के कामों में संतुष्ट रहे—यह मनुष्य के लिए परमेश्वर द्वारा दिया गया वरदान है. \v 14 मुझे मालूम है कि परमेश्वर द्वारा किया गया-हर-एक काम सदा बना रहेगा; ऐसा कुछ भी नहीं कि इसमें जोड़ा नहीं जा सकता या इससे अलग किया जा सके. परमेश्वर ने ऐसा इसलिये किया है कि लोग उनके सामने श्रद्धा और भय में रहें. \q1 \v 15 वह जो है, पहले ही हो चुका तथा वह भी जो होने पर है, \q2 पहले ही हो चुका; \q2 क्योंकि परमेश्वर बीती हुई बातों को फिर से दोहराते हैं. \p \v 16 इसके अलावा मैंने धरती पर यह भी देखा कि: \q1 न्याय की जगह दुष्टता है, \q2 तथा अच्छाई की जगह में भी दुष्टता ही होती है. \p \v 17 मैंने सोचा, \q1 “परमेश्वर धर्मी और दुष्ट दोनों का ही न्याय करेंगे, \q2 क्योंकि हर एक काम और हर एक आरंभ का एक समय तय है.” \p \v 18 मनुष्यों के बारे में मैंने सोचा, “परमेश्वर निश्चित ही उनको परखते हैं कि मनुष्य यह समझ लें कि वे पशु के अलावा और कुछ नहीं. \v 19 क्योंकि मनुष्य तथा पशु का अंत एक ही है: जैसे एक की मृत्यु होती है वैसे दूसरे की भी. उनकी सांस एक जैसी है; मनुष्य पशु से किसी भी तरह से बेहतर नहीं, क्योंकि सब कुछ बेकार है. \v 20 सब की मंज़िल एक है. सभी मिट्टी से बने हैं और मिट्टी में मिल भी जाते हैं. \v 21 किसे मालूम है कि मनुष्य के प्राण ऊपरी लोक में जाते हैं तथा पशु के प्राण पाताल में?” \p \v 22 मैंने यह पाया कि मनुष्य के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं है कि वह अपने कामों में संतुष्ट रहे, यही है उसकी मंज़िल. उसे कौन इस स्थिति में ला सकता है कि वह देख पाए कि क्या होगा उसके बाद? \c 4 \s1 अत्याचार के दुष्प्रभाव \p \v 1 धरती पर किए जा रहे अत्याचार को देखकर मैंने दोबारा सोचा: \q1 मैंने अत्याचार सहने वाले व्यक्तियों के आंसुओं को देखा \q2 और यह भी कि उन्हें शांति देने के लिए कोई भी नहीं है; \q1 अत्याचारियों के पास तो उनका अधिकार था, \q2 मगर अत्याचार सहने वालों के पास शांति देने के लिए कोई भी न था. \q1 \v 2 सो मैंने जीवितों की तुलना में, \q2 मरे हुओं को, जिनकी मृत्यु हो चुकी है, अधिक सराहा कि वे अधिक खुश हैं. \q1 \v 3 मगर इन दोनों से बेहतर तो वह है \q2 जो कभी आया ही नहीं \q1 और जिसने इस धरती पर किए जा रहे \q2 कुकर्मों को देखा ही नहीं. \p \v 4 मैंने यह भी पाया कि सारी मेहनत और सारी कुशलता मनुष्य एवं उसके पड़ोसी के बीच जलन के कारण है. यह भी बेकार और हवा से झगड़ना है. \q1 \v 5 मूर्ख अपने हाथ पर हाथ रखे बैठा रहता है, \q2 और खुद को बर्बाद करता\f + \fr 4:5 \fr*\fq बर्बाद करता \fq*\ft मूल में \ft*\fqa अपना ही मांस खाता है\fqa*\f* है. \q1 \v 6 दो मुट्ठी भर मेहनत और हवा से संघर्ष की बजाय बेहतर है \q2 जो कुछ मुट्ठी भर तुम्हारे पास है \q2 उसमें आराम के साथ संतुष्ट रहना. \p \v 7 तब मैंने धरती पर दोबारा बेकार की बात देखी: \q1 \v 8 एक व्यक्ति जिसका कोई नहीं है; \q2 न पुत्र, न भाई. \q1 उसकी मेहनत का कोई अंत नहीं. \q2 वह पर्याप्‍त धन कमा नहीं पाता, \q1 फिर भी वह यह प्रश्न कभी नहीं करता, \q2 “मैं अपने आपको सुख से दूर रखकर यह सब किसके लिए कर रहा हूं?” \q1 यह भी बेकार, \q2 और दुःख भरी स्थिति है! \b \q1 \v 9 एक से बेहतर हैं दो, \q2 क्योंकि उन्हें मेहनत का बेहतर प्रतिफल मिलता है: \q1 \v 10 यदि उनमें से एक गिर भी जाए, \q2 तो दूसरा अपने मित्र को उठा लेगा, \q1 मगर शोक है उस व्यक्ति के लिए जो गिरता है \q2 और उसे उठाने के लिए कोई दूसरा नहीं होता. \q1 \v 11 अगर दो व्यक्ति साथ साथ सोते हैं तो वे एक दूसरे को गर्म रखते हैं. \q2 मगर अकेला व्यक्ति अपने आपको कैसे गर्म रख सकता है? \q1 \v 12 अकेले व्यक्ति पर तो हावी होना संभव है, \q2 मगर दो व्यक्ति उसका सामना कर सकते हैं: \q1 तीन डोरियों से बनी रस्सी को आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता. \s1 उन्‍नति की व्यर्थता \p \v 13 एक गरीब मगर बुद्धिमान नौजवान एक निर्बुद्धि बूढ़े राजा से बेहतर है, जिसे यह समझ नहीं रहा कि सलाह कैसे ली जाए. \v 14 वह बंदीगृह से सिंहासन पर जा बैठा हालांकि वह अपने राज्य में गरीब ही जन्मा था. \v 15 मैंने धरती पर घूमते हुए सभी प्राणियों को उस दूसरे नौजवान की ओर जाते देखा, जो पहले वालों की जगह लेगा. \v 16 अनगिनत थे वे लोग जिनका वह राजा था. फिर भी जो इनके बाद आएंगे उससे खुश न होंगे. निश्चित ही यह भी बेकार और हवा से झगड़ना है. \c 5 \s1 परमेश्वर से अपनी मन्‍नतें पूरी करें \p \v 1 परमेश्वर के भवन में जाने पर अपने व्यवहार के प्रति सावधान रहना और मूर्खों के समान बलि भेंट करने से बेहतर है परमेश्वर के समीप आना. मूर्ख तो यह जानते ही नहीं कि वे क्या गलत कर रहे हैं. \q1 \v 2 अपनी किसी बात में उतावली न करना, \q2 न ही परमेश्वर के सामने किसी बात को रखने में जल्दबाजी करना, \q1 क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में हैं \q2 और तुम पृथ्वी पर हो, \q2 इसलिये अपने शब्दों को थोड़ा ही रखना. \q1 \v 3 स्वप्न किसी काम में बहुत अधिक लीन होने के कारण आता है, \q2 और मूर्ख अपने बक-बक करने की आदत से पहचाना जाता है. \p \v 4 यदि तुमने परमेश्वर से कोई मन्नत मानी तो उसे पूरा करने में देर न करना; क्योंकि परमेश्वर मूर्ख से प्रसन्‍न नहीं होते; पूरी करो अपनी मन्नत. \v 5 मन्नत मानकर उसे पूरी न करने से कहीं अधिक अच्छा है कि तुम मन्नत ही न मानो. \v 6 तुम्हारी बातें तुम्हारे पाप का कारण न हों. परमेश्वर के स्वर्गदूत के सामने तुम्हें यह न कहना पड़े, “मुझसे गलती हुई.” परमेश्वर कहीं तुम्हारी बातों के कारण क्रोधित न हों और तुम्हारे कामों को नाश कर डालें. \v 7 क्योंकि स्वप्नों की अधिकता और बक-बक करने में खोखलापन होता है, इसलिए तुम परमेश्वर के प्रति भय बनाए रखो. \s1 धन भी व्यर्थ \p \v 8 अगर तुम अपने क्षेत्र में गरीब पर अत्याचार और उसे न्याय और धर्म से दूर होते देखो; तो हैरान न होना क्योंकि एक अधिकारी दूसरे अधिकारी के ऊपर होता है और उन पर भी एक बड़ा अधिकारी. \v 9 वास्तव में जो राजा खेती को बढ़ावा देता है, वह सारे राज्य के लिए वरदान साबित होता है. \q1 \v 10 जो धन से प्रेम रखता है, वह कभी धन से संतुष्ट न होगा; \q2 और न ही वह जो बहुत धन से प्रेम करता है. \q2 यह भी बेकार ही है. \b \q1 \v 11 जब अच्छी वस्तुएं बढ़ती हैं, \q2 तो वे भी बढ़ते हैं, जो उनको इस्तेमाल करते हैं. \q1 उनके स्वामी को उनसे क्या लाभ? \q2 सिवाय इसके कि वह इन्हें देखकर संतुष्ट हो सके. \b \q1 \v 12 मेहनत करनेवाले के लिए नींद मीठी होती है, \q2 चाहे उसने ज्यादा खाना खाया हो या कम, \q1 मगर धनी का बढ़ता हुआ धन \q2 उसे सोने नहीं देता. \p \v 13 एक और बड़ी बुरी बात है जो मैंने सूरज के नीचे देखी: \q1 कि धनी ने अपनी धन-संपत्ति अपने आपको ही कष्ट देने के लिए ही कमाई थी. \q2 \v 14 उसने धन-संपत्ति निष्फल जगह लगा दी है, \q1 वह धनी एक पुत्र का पिता बना. \q2 मगर उसकी सहायता के लिए कोई नहीं है. \q1 \v 15 जैसे वह अपनी मां के गर्भ से नंगा आया था, \q2 उसे लौट जाना होगा, जैसे वह आया था. \q1 ठीक वैसे ही वह अपने हाथ में \q2 अपनी मेहनत के फल का कुछ भी नहीं ले जाएगा. \p \v 16 यह भी एक बड़ी बुरी बात है: \q1 ठीक जैसे एक व्यक्ति का जन्म होता है, वैसे ही उसकी मृत्यु भी हो जाएगी. \q2 तो उसके लिए इसका क्या फायदा, \q2 जो हवा को पकड़ने के लिए मेहनत करता है? \q1 \v 17 वह अपना पूरा जीवन रोग, \q2 क्रोध और बहुत ही निराशा में बिताता है. \p \v 18 मैंने जो एक अच्छी बात देखी वह यह है: कि मनुष्य परमेश्वर द्वारा दिए गए जीवन में खाए, पिए और अपनी मेहनत में, जो वह सूरज के नीचे करता है, के ईनाम में खुश रहे. \v 19 और हर एक व्यक्ति जिसे परमेश्वर ने धन-संपत्ति दी है तो परमेश्वर ने उसे उनका इस्तेमाल करने, उनके ईनाम को पाने और अपनी मेहनत से खुश होने की योग्यता भी दी है; यह भी परमेश्वर द्वारा दिया गया ईनाम ही है. \v 20 मनुष्य अपने पूरे जीवन को हमेशा के लिए याद नहीं रखेगा, क्योंकि परमेश्वर उसे उसके दिल के आनंद में व्यस्त रखते हैं. \c 6 \p \v 1 मैंने सूरज के नीचे एक बुरी बात देखी जो मनुष्य पर बहुत अधिक हावी है. \v 2 एक व्यक्ति जिसे परमेश्वर ने धन-संपत्ति और सम्मान दिया है जिससे उसे उस किसी भी वस्तु की कमी न हो जिसे उसका मन चाहता है; मगर परमेश्वर ने उसे उनको इस्तेमाल करने की समझ नहीं दी, उनका आनंद तो एक विदेशी लेता है. यह बेकार और बड़ी ही बुरी बात है. \p \v 3 यदि एक व्यक्ति सौ पुत्रों का पिता है और वह बहुत साल जीवित रहता है, चाहे उसकी आयु के साल बहुत हों, पर अगर वह अपने जीवन भर में अच्छी वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करता और उसे क्रिया-कर्म ही नहीं किया गया तो मेरा कहना तो यही है कि एक मरा हुआ जन्मा बच्चा उस व्यक्ति से बेहतर है, \v 4 क्योंकि वह बच्चा बेकार में आता है और अंधेरे में चला जाता है. अंधेरे में उसका नाम छिपा लिया जाता है. \v 5 उस बच्‍चे ने सूरज को नहीं देखा और न ही उसे कुछ मालूम ही हुआ था. वह बच्चा उस व्यक्ति से कहीं अधिक बेहतर है. \v 6 दो बार जिसका जीवन दो हज़ार साल का हो मगर उस व्यक्ति ने किसी अच्छी वस्तु का इस्तेमाल न किया हो, क्या सभी लोग एक ही जगह पर नहीं जाते? \q1 \v 7 मनुष्य की सारी मेहनत उसके भोजन के लिए ही होती है, \q2 मगर उसका मन कभी संतुष्ट नहीं होता. \q1 \v 8 बुद्धिमान को निर्बुद्धि से क्या लाभ? \q1 और गरीब को यह मालूम होने से \q2 क्या लाभ कि उसे बुद्धिमानों के सामने कैसा व्यवहार करना है? \q1 \v 9 आंखों से देख लेना \q2 इच्छा रखने से कहीं अधिक बेहतर है. \q1 मगर यह भी बेकार ही है, \q2 सिर्फ हवा को पकड़ने की कोशिश. \b \q1 \v 10 जो हो चुका है उसका नाम भी रखा जा चुका है, \q2 और यह भी मालूम हो चुका है कि मनुष्य क्या है? \q1 मनुष्य उस व्यक्ति पर हावी नहीं हो सकता \q2 जो उससे बलवान है. \q1 \v 11 शब्द जितना अधिक है, \q2 अर्थ उतना कम होता है. \q2 इससे मनुष्य को क्या फायदा? \p \v 12 जिसे यह मालूम है कि उसके पूरे जीवन में मनुष्य के लिए क्या अच्छा है, अपने उस व्यर्थ जीवन के थोड़े से सालों में. वह एक परछाई के समान उन्हें बिता देगा. मनुष्य को कौन बता सकता है कि सूरज के नीचे उसके बाद क्या होगा? \c 7 \s1 बुद्धि और मूर्खता के बीच का अंतर \q1 \v 1 सम्मानित होना इत्र से कहीं ज्यादा बेहतर है, \q2 और मृत्यु के दिन से बेहतर है किसी व्यक्ति के जन्म का दिन. \q1 \v 2 शोक के घर में जाना \q2 भोज के घर में जाने से कहीं ज्यादा अच्छा है, \q1 क्योंकि हर एक मनुष्य का अंत यही है; \q2 और जीवित इस पर ध्यान दें. \q1 \v 3 शोक करना हंसने से अच्छा है, \q2 क्योंकि हो सकता है कि चेहरा तो उदास हो मगर हृदय आनंदित. \q1 \v 4 बुद्धिमान का हृदय तो शोक करनेवालों के घर में होता है, \q2 मगर निर्बुद्धियों का हृदय भोज के घर में ही होता है. \q1 \v 5 एक बुद्धिमान की फटकार सुनना \q2 मूर्खों के गीतों को सुनने से बेहतर है. \q1 \v 6 मूर्खों की हंसी किसी \q2 बर्तन के नीचे कांटों के जलने की आवाज के समान होती है. \q2 और यह भी सिर्फ बेकार ही है. \b \q1 \v 7 अत्याचार बुद्धिमान को मूर्ख बना देता है \q2 और घूस हृदय को भ्रष्‍ट कर देती है. \b \q1 \v 8 किसी काम का अंत उसकी शुरुआत से बेहतर है, \q2 और धैर्य बेहतर है. घमण्ड से. \q1 \v 9 क्रोध करने में जल्दबाजी न करना, \q2 क्योंकि क्रोध निर्बुद्धियों के हृदय में रहता है. \b \q1 \v 10 तुम्हारा यह कहना न हो, “बीता हुआ समय आज से बेहतर क्यों था?” \q2 क्योंकि इस बारे में तुम्हारा यह कहना बुद्धि द्वारा नहीं है. \b \q1 \v 11 बुद्धि के साथ मीरास पाना सबसे अच्छा है, \q2 और उनके लिए यह एक फायदा है जो जीवित हैं. \q1 \v 12 बुद्धि की सुरक्षा \q2 वैसी ही है जैसे धन की सुरक्षा, \q1 मगर ज्ञान का फायदा यह है: \q2 कि बुद्धि बुद्धिमान को जीवित रखती है. \p \v 13 परमेश्वर के कामों पर मनन करो: \q1 क्योंकि वह ही इसके योग्य हैं \q2 कि टेढ़े को सीधा कर सकें. \q1 \v 14 भरपूरी के दिनों में तो खुश रहो; \q2 मगर दुःख के दिनों में विचार करो: \q1 दोनों ही परमेश्वर ने बनाए हैं, \q2 जिससे मनुष्य को यह मालूम हो कि उसके बाद क्या होगा. \p \v 15 अपने बेकार के जीवन में मैंने हर एक चीज़ देखी: \q1 धर्मी अपनी धार्मिकता में ही खत्म हो जाता है, \q2 किंतु जब दुष्टता करता है तब अपनी उम्र बढ़ाता है. \q1 \v 16 बहुत धर्मी न होना, \q2 और न ही बहुत बुद्धिमान बनना. \q2 इस प्रकार तुम अपना ही विनाश क्यों करो? \q1 \v 17 बहुत दुष्ट न होना, \q2 और न ही मूर्ख बनना. \q2 क्योंकि समय से पहले तुम्हारी मृत्यु क्यों हो? \q1 \v 18 अच्छा होगा कि तुम एक चीज़ पर अधिकार कर लो \q2 और अपने दूसरे हाथ को भी आराम न करने दो. \q2 क्योंकि परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और भय रखनेवाला व्यक्ति ही ये दोनों काम कर पाएगा. \b \q1 \v 19 बुद्धिमान के लिए बुद्धि नगर के \q2 दस शासकों से भी बलवान होती है. \b \q1 \v 20 पृथ्वी पर एक व्यक्ति भी ऐसा धर्मी नहीं है, \q2 जो अच्छे काम ही करता हो और पाप न करता हो. \b \q1 \v 21 लोगों की बातों पर ध्यान न देना, \q2 तो तुम अपने सेवक को तुम्हारी निंदा करते नहीं सुनोगे. \q1 \v 22 क्योंकि तुम्हें मालूम होगा \q2 कि ठीक इसी तरह तुम भी बहुतों की निंदा कर चुके हो. \p \v 23 इन सभी कामों की छानबीन मैंने बुद्धि द्वारा की और मैंने कहा, \q1 “मैं बुद्धिमान बनूंगा,” \q2 मगर यह मुझसे बहुत दूर थी. \q1 \v 24 जो कुछ है वह हमारी बुद्धि से परे है. यह गहरा है, बहुत ही गहरा. \q2 उसकी थाह कौन पाएगा? \q1 \v 25 मैंने अपने हृदय से यह मालूम करने की कोशिश की \q2 कि बुद्धि और ज्ञान क्या हैं \q1 और दुष्ट की मूर्खता पता करूं \q2 और मूर्खता जो पागलपन ही है. \b \q1 \v 26 मुझे यह मालूम हुआ कि एक स्त्री जिसका हृदय घात लगाए रहता है, \q2 और उसके हाथ बेड़ियां डालते हैं वह मृत्यु से भी कड़वी है. \q1 उस स्त्री से वही व्यक्ति सुरक्षित बच निकलता है जो परमेश्वर के सामने अच्छा है, \q2 मगर पापी व्यक्ति उसका शिकार बन जाता है. \p \v 27 दार्शनिक कहता है, “देखो!” मुझे यह मालूम हुआ: \q1 “मैंने एक चीज़ से दूसरी को मिलाया, कि इसके बारे में मालूम कर सकूं, \q2 \v 28 जिसकी मैं अब तक खोज कर रहा हूं \q2 मगर वह मुझे नहीं मिली है. \q1 मैंने हज़ार पुरुष तो धर्मी पाए, \q2 मगर एक भी स्त्री नहीं! \q1 \v 29 मगर मुझे यह ज़रूर मालूम हुआ: \q2 परमेश्वर ने तो मनुष्यों को धर्मी होने के लिए रचा है, \q2 मगर वे अपने ही बनाए हुए निचले रास्ते पर बढ़ने लगे.” \b \c 8 \q1 \v 1 कौन बुद्धिमान के समान है? \q2 किसे इस बात का मतलब मालूम है? \q2 बुद्धि से बुद्धिमान का चेहरा चमक जाता है. \s1 राजाओं की आज्ञा का पालन \p \v 2 दार्शनिक कहता है, परमेश्वर के सामने ली गई शपथ के कारण राजा की आज्ञा का पालन करो. \v 3 उनके सामने से जाने में जल्दबाजी न करना और बुरी बातों पर हठ न करना, क्योंकि राजा वही करेंगे जो उनकी नज़रों में सही होगा. \v 4 राजा की बातों में तो अधिकार होता है, उन्हें कौन कहेगा, “आप क्या कर रहे हैं?” \q1 \v 5 जो व्यक्ति आज्ञा का पालन करता है, बुरा उसका भी न होगा, \q2 क्योंकि बुद्धिमान हृदय को सही समय और सही तरीका मालूम होता है. \q1 \v 6 क्योंकि हर एक खुशी के लिए सही समय और तरीका होता है, \q2 फिर भी एक व्यक्ति पर भारी संकट आ ही जाता है. \b \q1 \v 7 अगर किसी व्यक्ति को यह ही मालूम नहीं है कि क्या होगा, \q2 तो कौन उसे बता सकता है कि क्या होगा? \q1 \v 8 वायु को रोकने का अधिकार किसके पास है? \q2 और मृत्यु के दिन पर अधिकार कौन रखता है? \q1 युद्ध के समय छुट्टी नहीं होती, \q2 और जो बुराई करते हैं वे इसके प्रभाव से कैसे बचेंगे. \p \v 9 यह सब देख मैंने अपने हृदय को सूरज के नीचे किए जा रहे हर एक काम पर लगाया जब एक मनुष्य दूसरे मनुष्य की बुराई के लिए उसके अधिकार का इस्तेमाल करता है. \v 10 सो मैंने दुष्टों को गाड़े जाते देखा. वे पवित्र स्थान में आते जाते थे. किंतु जहां वे ऐसा करते थे जल्द ही उस नगर ने उन्हें भुला दिया. यह भी बेकार ही है. \p \v 11 बुरे काम के दंड की आज्ञा जल्दबाजी में नहीं दी जाती, इसलिये मनुष्य का हृदय बुराई करने में हमेशा लगा रहता है, \v 12 चाहे पापी हज़ार बार बुरा करें और अपने जीवन को बढ़ाते रहें, मगर मुझे मालूम है कि जिनमें परमेश्वर के लिए श्रद्धा और भय की भावना है उनका भला ही होगा, क्योंकि उनमें परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और भय की भावना हैं. \v 13 मगर दुष्ट के साथ अच्छा न होगा और न ही वह परछाई के समान अपने सारे जीवन को बड़ा कर सकेगा, क्योंकि उसमें परमेश्वर के लिए श्रद्धा और भय की भावना नहीं है. \p \v 14 पृथ्वी पर एक और बात बेकार होती है: धर्मियों के साथ दुष्टों द्वारा किए गए कामों के अनुसार घटता है और दुष्टों के साथ धर्मियों द्वारा किए गए कामों के अनुसार. मैंने कहा कि यह भी बेकार ही है. \v 15 सो मैं आनंद की तारीफ़ करता हूं, सूरज के नीचे मनुष्य के लिए इससे अच्छा कुछ नहीं है कि वह खाए-पिए और खुश रहे क्योंकि सूरज के नीचे परमेश्वर द्वारा दिए गए उसके जीवन भर में उसकी मेहनत के साथ यह हमेशा रहेगा. \p \v 16 जब मैंने अपने हृदय को बुद्धि के और पृथ्वी पर के कामों के बारे में मालूम करने के लिए लगाया (हालांकि एक व्यक्ति को दिन और रात नहीं सोना चाहिए). \v 17 और मैंने परमेश्वर के हर एक काम को देखा, तब मुझे मालूम हुआ कि सूरज के नीचे किया जा रहा हर एक काम मनुष्य नहीं समझ सकता. जबकि मनुष्य बहुत मेहनत करे फिर भी उसे यह मालूम न होगा और चाहे बुद्धिमान का यह कहना हो कि, मुझे मालूम है, फिर भी वह इसे मालूम नहीं कर सकता. \c 9 \s1 सभी मनुष्य मृत्यु के अधीन \p \v 1 मैंने सभी कामों में अपना मन लगाया और यह मतलब निकाला कि धर्मी, बुद्धिमान और उनके सारे काम परमेश्वर के हाथ में हैं. मनुष्य को यह मालूम नहीं होता कि उसके सामने क्या होगा; प्रेम या नफ़रत. \v 2 यह सभी के लिए बराबर है. धर्मी और दुष्ट, भले और बुरे, शुद्ध और अशुद्ध, जो बलि चढ़ाता है और जो बलि नहीं चढ़ाता, सभी का अंत एक समान है. \q1 जिस तरह एक भला व्यक्ति है, \q2 उसी तरह एक पापी भी है; \q1 और जिस तरह एक शपथ खानेवाला है, \q2 उसी तरह वह व्यक्ति है जिसके सामने शपथ खाना भय की बात है. \p \v 3 सूरज के नीचे किए जा रहे हर एक काम में मैंने यही बुराई देखी कि सभी मनुष्यों का एक ही अंत है. मनुष्यों के हृदय बुराई से भरे हैं और उनके पूरे जीवन में पागलपन उनके हृदयों में भरा रहता है. इसके बाद उनकी मृत्यु हो जाती है. \v 4 जो जीवित है उसके लिए आशा है क्योंकि निश्चय ही मरे हुए शेर से जीवित कुत्ता ज्यादा अच्छा है. \q1 \v 5 जीवितों को यह मालूम होता है कि उनकी मृत्यु ज़रूर होगी, \q2 मगर मरे हुओं को कुछ भी मालूम नहीं होता; \q1 उन्हें तो कोई ईनाम भी नहीं मिलता, \q2 और जल्द ही उन्हें भुला दिया जाता है. \q1 \v 6 इस तरह उनका प्रेम, घृणा और उत्साह खत्म हो गया, \q2 और सूरज के नीचे किए गए किसी भी काम में उनका कोई भाग न होगा. \p \v 7 इसलिये जाओ और आनंद से भोजन करो और मन में सुख मानकर अंगूर का रस पिया करो क्योंकि पहले ही परमेश्वर तुम्हारे कामों से खुश हैं. \v 8 तुम्हारे कपड़े हमेशा उजले रहें और तुम्हारे सिर पर तेल की कमी न हो. \v 9 सूरज के नीचे परमेश्वर द्वारा दिए गए बेकार के जीवन में अपनी प्यारी पत्नी के साथ खुश रहो, क्योंकि तुम्हारे जीवन का और सूरज के नीचे की गई मेहनत का ईनाम यही है. \v 10 अपने सामने आए हर एक काम को पूरी लगन से करो क्योंकि अधोलोक में जिसकी ओर तुम बढ़ रहे हो, वहां न तो कोई काम या तरकीब, न ज्ञान और न ही बुद्धि है. \p \v 11 मैंने दोबारा सूरज के नीचे देखा, \q1 कि न तो दौड़ में तेज दौड़ने वाले \q2 और न युद्ध में बलवान ही जीतते हैं, \q1 न बुद्धिमान को भोजन मिलता है \q2 और न ही ज्ञानवान को धन-दौलत \q2 और न ही योग्य को अनुग्रह; \q1 क्योंकि ये समय और संयोग के वश में हैं. \p \v 12 मनुष्य अपने समय के बारे में नहीं जानता: \q1 जैसे बुरे जाल में फंसी एक मछली के, \q2 और फंदे में फंसे पक्षियों के समान, \q1 वैसे ही मनुष्य बुरे समय में जा फंसेगा \q2 जब यह अचानक ही उस पर आ पड़ेगा. \s1 मूर्खता से बेहतर है बुद्धि \p \v 13 मैंने सूरज के नीचे बुद्धि का एक और उदाहरण देखा, जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया. \v 14 बहुत ही थोड़े लोगों का एक छोटा नगर था इसमें एक बहुत ही सम्मानित राजा आया और उसने इस नगर के विरुद्ध घेराव किया. \v 15 मगर उस नगर के एक साधारण लेकिन बुद्धिमान ने अपनी बुद्धि द्वारा इस नगर को छुड़वा दिया. फिर भी उस सीधे-सादे को किसी ने याद नहीं किया. \v 16 इसलिये मैंने यह कहा, “बुद्धि शक्ति से बढ़कर है.” लेकिन किसी सीधे-सादे की बुद्धि को तुच्छ ही जाना जाता है और उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया जाता. \q1 \v 17 मूर्खों के बीच राजा की चिल्लाहट से अकेले में \q2 बुद्धिमान की बातें सुन लेना कहीं ज्यादा अच्छा है. \q1 \v 18 युद्ध के शस्त्रों की तुलना में बुद्धि ज्यादा अच्छी है, \q2 मगर एक पापी हर एक अच्छी चीज़ का नाश कर देता है. \b \c 10 \q1 \v 1 जिस प्रकार मरी हुई मक्खियां सुगंध तेल को बदबूदार बना देती हैं, \q2 उसी प्रकार थोड़ी सी मूर्खता बुद्धि और सम्मान पर भारी पड़ती है. \q1 \v 2 बुद्धिमान का हृदय तो उसे सही ओर ले जाता है, \q2 किंतु मूर्ख का हृदय उसे उस ओर जो गलत है. \q1 \v 3 रास्ते पर चलते समय भी मूर्खों के हृदय में, \q2 समझ की कमी होती है, \q2 और सबसे उसका कहना यही होता है कि वह एक मूर्ख है. \q1 \v 4 यदि राजा का क्रोध तुम्हारे विरुद्ध भड़क गया है, \q2 तो भी तुम अपनी जगह को न छोड़ना; \q2 क्योंकि तुम्हारा धीरज उसके क्रोध को बुझा देगा. \b \q1 \v 5 सूरज के नीचे मैंने एक और बुराई देखी, \q2 जैसे इसे कोई राजा अनजाने में ही कर बैठता है. \q1 \v 6 वह यह कि मूर्खता ऊंचे पदों पर बैठी होती है, \q2 मगर धनी लोग निचले पदों पर ही होते हैं. \q1 \v 7 मैंने दासों को तो घोड़ों पर, \q2 लेकिन राजाओं को दासों के समान पैदल चलते हुए देखा है. \b \q1 \v 8 जो गड्ढा खोदता है वह खुद उसमें गिरेगा; \q2 और जो दीवार में सेंध लगाता है, सांप उसे डस लेगा. \q1 \v 9 जो पत्थर खोदता है वह उन्हीं से चोटिल हो जाएगा; \q2 और जो लकड़ी फाड़ता है, वह उन्हीं से जोखिम में पड़ जाएगा. \b \q1 \v 10 यदि कुल्हाड़े की धार तेज नहीं है \q2 और तुम उसको पैना नहीं करते, \q1 तब तुम्हें अधिक मेहनत करनी पड़ेगी; \q2 लेकिन बुद्धि सफलता दिलाने में सहायक होती है. \b \q1 \v 11 और यदि सांप मंत्र पढ़ने से पहले ही डस ले तो, \q2 मंत्र पढ़ने वाले का कोई फायदा नहीं. \b \q1 \v 12 बुद्धिमान की बातों में अनुग्रह होता है, \q2 जबकि मूर्खों के ओंठ ही उनके विनाश का कारण हो जाते है. \q1 \v 13 उसकी बातों की शुरुआत ही मूर्खता से होती है \q2 और उसका अंत दुखदाई पागलपन होता है. \q2 \v 14 जबकि वह अपनी बातें बढ़ाकर भी बोलता है. \b \q1 यह किसी व्यक्ति को मालूम नहीं होता कि क्या होनेवाला है, \q2 और कौन उसे बता सकता है कि उसके बाद क्या होगा? \b \q1 \v 15 मूर्ख की मेहनत उसे इतना थका देती है; \q2 कि उसे नगर का रास्ता भी पता नहीं होता. \b \q1 \v 16 धिक्कार है उस देश पर जिसका राजा एक कम उम्र का युवक है \q2 और जिसके शासक सुबह से ही मनोरंजन में लग जाते हैं. \q1 \v 17 मगर सुखी है वह देश जिसका राजा कुलीन वंश का है \q2 और जिसके शासक ताकत के लिए भोजन करते हैं, \q2 न कि मतवाले बनने के लिए. \b \q1 \v 18 आलस से छत की कड़ियों में झोल पड़ जाते हैं; \q2 और जिस व्यक्ति के हाथों में सुस्ती होती है उसका घर टपकने लगता है. \b \q1 \v 19 लोग मनोरंजन के लिए भोजन करते हैं, \q2 दाखमधु जीवन में आनंद को भर देती है, \q2 और धन से हर एक समस्या का समाधान होता है. \b \q1 \v 20 अपने विचारों में भी राजा को न धिक्कारना, \q2 और न ही अपने कमरे में किसी धनी व्यक्ति को शाप देना, \q1 क्योंकि हो सकता है कि आकाश का पक्षी तुम्हारी वह बात ले उड़े \q2 और कोई उड़नेवाला जंतु उन्हें इस बारे में बता देगा. \c 11 \s1 कई उद्यमों में निवेश करें \q1 \v 1 पानी के ऊपर अपनी रोटी डाल दो; \q2 क्योंकि बहुत दिनों के बाद यह तुम्हें दोबारा मिल जाएगी. \q1 \v 2 अपना अंश सात भागों बल्कि आठ भागों में बांट दो, \q2 क्योंकि तुम्हें यह पता ही नहीं कि पृथ्वी पर क्या हो जाए! \b \q1 \v 3 अगर बादल पानी से भरे होते हैं, \q2 तो वे धरती पर जल बरसाते हैं. \q1 और पेड़ चाहे दक्षिण की ओर गिरे या उत्तर की ओर, \q2 यह उसी जगह पर पड़ा रहता है जहां यह गिरता है. \q1 \v 4 जो व्यक्ति हवा को देखता है वह बीज नहीं बो पाएगा; \q2 और जो बादलों को देखता है वह उपज नहीं काटेगा. \b \q1 \v 5 जिस तरह तुम्हें हवा के मार्ग \q2 और गर्भवती स्त्री के गर्भ में हड्डियों के बनने के बारे में मालूम नहीं, \q1 उसी तरह सारी चीज़ों के बनानेवाले \q2 परमेश्वर के काम के बारे में तुम्हें मालूम कैसे होगा? \b \q1 \v 6 बीज सुबह-सुबह ही बो देना \q2 और शाम में भी आराम न करना क्योंकि तुम्हें यह मालूम नहीं है, \q1 कि सुबह या शाम का बीज बोना फलदायी होगा \q2 या दोनों ही एक बराबर अच्छे होंगे. \s1 जवानी में अपनी सृष्टिकर्ता की याद रखो \q1 \v 7 उजाला मनभावन होता है, \q2 और आंखों के लिए सूरज सुखदायी. \q1 \v 8 अगर किसी व्यक्ति की उम्र बड़ी है, \q2 तो उसे अपने जीवनकाल में आनंदित रहने दो. \q1 किंतु वह अपने अंधकार भरे दिन भुला न दे क्योंकि वे बहुत होंगे. \q2 ज़रूरी है कि हर एक चीज़ बेकार ही होगी. \b \q1 \v 9 हे जवान! अपनी जवानी में आनंदित रहो, \q2 इसमें तुम्हारा हृदय तुम्हें आनंदित करे. \q2 अपने हृदय और अपनी आंखों की इच्छा पूरी करो. \q1 किंतु तुम्हें यह याद रहे \q2 कि परमेश्वर इन सभी कामों के बारे में तुम पर न्याय और दंड लाएंगे. \q1 \v 10 अपने हृदय से क्रोध \q2 और अपने शरीर से बुराई करना छोड़ दो क्योंकि बचपन, \q2 और जवानी भी बेकार ही हैं. \b \c 12 \q1 \v 1 जवानी में अपने बनानेवाले को याद रख: \q2 अपनी जवानी में अपने बनानेवाले को याद रखो, \q1 इससे पहले कि बुराई \q2 और वह समय आए जिनमें तुम्हारा कहना यह हो, \q2 “मुझे इनमें ज़रा सी भी खुशी नहीं,” \q1 \v 2 इससे पहले कि सूरज, चंद्रमा \q2 और तारे अंधियारे हो जाएंगे, \q2 और बादल बारिश के बाद लौट आएंगे; \q1 \v 3 उस दिन पहरेदार कांपने लगेंगे, \q2 बलवान पुरुष झुक जाएंगे, \q1 जो पीसते हैं वे काम करना बंद कर देंगे, क्योंकि वे कम हो गए हैं, \q2 और जो झरोखों से झांकती हैं वे अंधी हो जाएंगी; \q1 \v 4 चक्की की आवाज धीमी होने के कारण \q2 नगर के फाटक बंद हो जाएंगे; \q1 और कोई व्यक्ति उठ खड़ा होगा, \q2 तथा सारे गीतों की आवाज शांत हो जाएगी. \q1 \v 5 लोग ऊंची जगहों से डरेंगे \q2 और रास्ते भी डरावने होंगे; \q1 बादाम के पेड़ फूलेंगे \q2 और टिड्डा उनके साथ साथ घसीटता हुआ चलेगा \q2 और इच्छाएं खत्म हो जाएंगी. \q1 क्योंकि मनुष्य तो अपने सदा के घर को चला जाएगा \q2 जबकि रोने-पीटने वाले रास्तों में ही भटकते रह जाएंगे. \b \q1 \v 6 याद करो उनको इससे पहले कि चांदी की डोर तोड़ी जाए, \q2 और सोने का कटोरा टूट जाए, \q1 कुएं के पास रखा घड़ा फोड़ दिया जाए \q2 और पहिया तोड़ दिया जाए; \q1 \v 7 धूल जैसी थी वैसी ही भूमि में लौट जाएगी, \q2 और आत्मा परमेश्वर के पास लौट जाएगी जिसने उसे दिया था. \b \q1 \v 8 “बेकार! ही बेकार है!” दार्शनिक कहता है, \q2 “सब कुछ बेकार है!” \s1 दार्शनिक का उद्देश्य \p \v 9 बुद्धिमान होने के साथ साथ दार्शनिक ने लोगों को ज्ञान भी सिखाया उसने खोजबीन की और बहुत से नीतिवचन को इकट्ठा किया. \v 10 दार्शनिक ने मनभावने शब्दों की खोज की और सच्चाई की बातों को लिखा. \p \v 11 बुद्धिमानों की बातें छड़ी के समान होती हैं तथा शिक्षकों की बातें अच्छे से ठोकी गई कीलों के समान; वे एक ही चरवाहे द्वारा दी गईं हैं. \v 12 पुत्र! इनके अलावा दूसरी शिक्षाओं के बारे में चौकस रहना; \p बहुत सी पुस्तकों को लिखकर रखने का कोई अंत नहीं है और पुस्तकों का ज्यादा पढ़ना भी शरीर को थकाना ही है. \q1 \v 13 इसलिये इस बात का अंत यही है: \q2 कि परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और भय की भावना रखो \q1 और उनकी व्यवस्था और विधियों का पालन करो, \q2 क्योंकि यही हर एक मनुष्य पर लागू होता है. \q1 \v 14 क्योंकि परमेश्वर हर एक काम को, \q2 चाहे वह छुपी हुई हो, \q2 भली या बुरी हो, उसके लिए न्याय करेंगे.