\id 2CO - Biblica® Open Hindi Contemporary Version (Updated 2021) \ide UTF-8 \h 2 कोरिंथ \toc1 कोरिन्थॉस की कलीसिया के नाम पौलॉस का दूसरा पत्र \toc2 2 कोरिंथ \toc3 2 कोरि \mt1 कोरिन्थॉस की कलीसिया के नाम पौलॉस का दूसरा पत्र \c 1 \p \v 1 परमेश्वर की इच्छा के द्वारा मसीह येशु के प्रेरित पौलॉस तथा हमारे भाई तिमोथियॉस. \b \p की ओर से कोरिन्थॉस नगर में परमेश्वर की कलीसिया तथा आखाया प्रदेश के सभी पवित्र लोगों को: \b \p \v 2 परमेश्वर हमारे पिता तथा प्रभु येशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शांति प्राप्‍त हो. \b \s1 सारे धीरज के परमेश्वर \p \v 3 स्तुति के योग्य हैं परमेश्वर हमारे प्रभु येशु मसीह के पिता—करुणामय पिता तथा सब प्रकार के धीरज के स्रोत परमेश्वर, \v 4 जो हमारी सारी पीड़ाओं में धीरज प्रदान करते हैं कि हम पीड़ितों को उसी प्रकार धीरज प्रदान कर सकें, जिस प्रकार परमेश्वर हमें धीरज प्रदान करते हैं. \v 5 ठीक जिस प्रकार हममें मसीह के दुःखों की बहुतायत है, उसी प्रकार बहुत है मसीह के द्वारा हमारा धीरज. \v 6 यदि हम यातनाएं सहते हैं तो यह तुम्हारे धीरज और उद्धार के लिए है; यदि हमें धीरज प्राप्‍त हुआ है तो यह तुम्हारे प्रोत्साहन के लिए है कि तुम भी उन्हीं यातनाओं को धीरज के साथ सह सको, जो हम सह रहे हैं. \v 7 इस अहसास के प्रकाश में तुम्हारे विषय में हमारी आशा अटल है कि जिस प्रकार तुम हमारे कष्टों में सहभागी हो, उसी प्रकार तुम हमारे धीरज में भी सहभागी होगे. \p \v 8 प्रिय भाई बहनो, हम नहीं चाहते कि तुम उन सब क्लेश के विषय में अनजान रहो, जो आसिया प्रदेश में हम पर आए. हम ऐसे बोझ से दब गए थे, जो हमारी सहनशक्ति से परे था. यहां तक कि हम जीवन की आशा तक खो चुके थे. \v 9 हमें ऐसा लग रहा था, मानो हम पर दंड की आज्ञा ही प्रसारित हो चुकी है. यह इसलिये हुआ कि हम स्वयं पर नहीं परंतु परमेश्वर में विश्वास स्थिर रखें, जो मरे हुओं को जीवित करते हैं. \v 10 हमने परमेश्वर पर, जिन्होंने हमें घोर संकट से बचाया और बचाते ही रहेंगे, आशा रखी है, वह हमें भविष्य में भी बचाते ही रहेंगे, \v 11 क्योंकि तुम अपनी प्रार्थनाओं के द्वारा हमारी सहायता करते हो कि हमारी ओर से अनेकों द्वारा उस अनुग्रह के लिए धन्यवाद प्रकट किया जा सके, जो अनेकों की प्रार्थनाओं के फलस्वरूप हमें प्राप्‍त हुआ है. \s1 पौलॉस की योजना बदलने का कारण \p \v 12 इसलिये हमारे गर्व करने का कारण यह है: हमारी अंतरात्मा की पुष्टि कि हमारे शारीरिक जीवन में, विशेष रूप से तुम्हारे संबंध में हमारा व्यवहार परमेश्वर द्वारा दी गई पवित्रता तथा सच्चाई सहित रहा है. यह सांसारिक ज्ञान का नहीं परंतु मात्र परमेश्वर के अनुग्रह का परिणाम था. \v 13 हमारे पत्रों में ऐसा कुछ नहीं होता, जो तुम पढ़ या समझ न सको और मेरी आशा यह है कि तुम अंत में सब कुछ समझ लोगे. \v 14 ठीक जिस प्रकार तुम हमें बहुत थोड़ा ही समझ पाए हो कि तुम हमारे गर्व का विषय हो, प्रभु येशु के दिन तुम भी हम पर गर्व करोगे. \p \v 15 इस निश्चय के द्वारा सबसे पहले, मैं इस उद्देश्य से तुम्हारे पास आना चाहता था कि तुम्हें दुगनी कृपा का अनुभव हो. \v 16 मेरी योजना थी कि मैं मकेदोनिया जाते हुए तुम्हारे पास आऊं तथा वहां से लौटते हुए भी. इसके बाद तुम मुझे यहूदिया प्रदेश की यात्रा पर भेज देते. \v 17 क्या मेरी यह योजना मेरी अस्थिर मानसिकता थी? या मेरे उद्देश्य मनुष्य के ज्ञान प्रेरित होते हैं कि मेरा बोलना एक ही समय में हां-हां भी होता है और ना-ना भी? \p \v 18 जिस प्रकार निःसंदेह परमेश्वर विश्वासयोग्य हैं, उसी प्रकार हमारी बातों में भी “हां” का मतलब हां और “ना” का मतलब ना ही होता है. \v 19 परमेश्वर का पुत्र मसीह येशु, जिनका प्रचार सिलवानॉस, तिमोथियॉस तथा मैंने तुम्हारे मध्य किया, वह प्रचार कभी “हां” या कभी “ना” नहीं परंतु परमेश्वर में हमेशा हां ही रहा है. \v 20 परमेश्वर की सारी प्रतिज्ञाएं उनमें “हां” ही हैं. इसलिये हम परमेश्वर की महिमा के लिए मसीह येशु के द्वारा “आमेन” कहते हैं. \v 21-22 परमेश्वर ही हैं, जो तुम्हारे साथ हमें मसीह में मजबूत करते हैं. परमेश्वर ने हम पर अपनी मोहर लगाकर बयाने के रूप में अपना आत्मा हमारे हृदय में रखकर हमारा अभिषेक किया है. \p \v 23 परमेश्वर मेरी इस सच्चाई के गवाह हैं कि मैं दोबारा कोरिन्थॉस इसलिये नहीं आया कि मैं तुम्हें कष्ट देना नहीं चाहता था. \v 24 इसका मतलब यह नहीं कि हम तुम्हारे विश्वास पर अपना अधिकार जताएं क्योंकि तुम अपने विश्वास में स्थिर खड़े हो. हम तो तुम्हारे ही आनंद के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं. \c 2 \nb \v 1 अपनी ओर से मैं यह निश्चय कर चुका था कि मैं एक बार फिर वहां आकर तुम्हें दुःख न दूं, \v 2 क्योंकि वहां आकर यदि मैं ही तुम्हें दुःखी करूं तो मुझे आनंद किनसे प्राप्‍त होगा, केवल उनसे, जिन्हें मैं ने दुःख पहुंचाया? \v 3 मैंने तुम्हें इसी उद्देश्य से पत्र लिखा था कि जब मैं वहां आऊं तो वे ही लोग मेरे दुःख का कारण न हो जाएं, जिनसे मुझे आनंद की आशा है. मुझे निश्चय है कि मेरा आनंद तुम सभी का आनंद है. \v 4 हृदय के कष्ट और क्लेश के कारण आंसू बहा-बहा कर मैंने तुम्हें यह पत्र लिखा है, इसलिये नहीं कि तुम्हें दुःखी करूं परंतु इसलिये कि तुम तुम्हारे प्रति मेरे अत्याधिक प्रेम को समझ सको. \s1 पापी को क्षमा दी जाए \p \v 5 यदि कोई दुःख का कारण है तो वह मात्र मेरे लिए नहीं परंतु किसी सीमा तक तुम सभी के लिए दुःख का कारण बना है. मैं इसके विषय में इससे अधिक कुछ और नहीं कहना चाहता. \v 6 काफ़ी है ऐसे व्यक्ति के लिए बहुमत द्वारा तय किया गया दंड. \v 7 इसकी बजाय भला यह होगा कि तुम उसे क्षमा कर धीरज दो. कहीं ऐसा न हो कि कष्ट की अधिकाई उसे निराशा में डुबो दे. \v 8 इसलिये तुमसे मेरी विनती है कि तुम दोबारा उसके प्रति अपने प्रेम की पुष्टि करो. \v 9 यह पत्र मैंने यह जानने के उद्देश्य से भी लिखा है कि तुम सब विषयों में आज्ञाकारी हो या नहीं. \v 10 जिसे तुम किसी विषय में क्षमा करते हो, उसे मैं भी क्षमा करता हूं. जिस विषय में मैंने क्षमा किया है—यदि वह वास्तव में क्षमा योग्य था—उसे मैंने मसीह को उपस्थित जानकर तुम्हारे लिए क्षमा किया है \v 11 कि शैतान हमारी स्थिति का कोई भी लाभ न उठाने पाए—हम उसकी चालों से अनजान नहीं हैं. \s1 नए नियम के देनेवाले \p \v 12 मैं मसीह के ईश्वरीय सुसमाचार के लिए त्रोऑस आया और वहां प्रभु के द्वारा मेरे लिए द्वार खोला गया. \v 13 वहां अपने भाई तीतॉस को न पाकर मेरा मन व्याकुल हो उठा. इसलिये उनसे विदा लेकर मैं मकेदोनिया प्रदेश चला गया. \p \v 14 धन्यवाद हो परमेश्वर का! जो मसीह के जय के उत्सव की शोभायात्रा में हमारे आगे चलते हैं और हमारे द्वारा अपने ज्ञान की सुमधुर सुगंध हर जगह फैलाते जाते हैं. \v 15 हम ही परमेश्वर के लिए मसीह की सुगंध हैं—उन सबके लिए, जो उद्धार प्राप्‍त करते जा रहे हैं तथा उन सबके लिए भी, जो नाश होते जा रहे हैं. \v 16 जो नाश हो रहे हैं, उनके लिए हम मृत्यु की घातक गंध तथा उद्धार प्राप्‍त करते जा रहे व्यक्तियों के लिए जीवन की प्राणदायी सुगंध. किसमें है इस प्रकार के काम करने की योग्यता? \v 17 हम उनके समान नहीं, जिनके लिए परमेश्वर का वचन खरीदने-बेचने द्वारा लाभ कमाने की वस्तु है. इसके विपरीत हम सच्चाई में परमेश्वर की ओर से, परमेश्वर के सामने मसीह में ईश्वरीय सुसमाचार को दूसरों तक पहुंचाते हैं. \c 3 \p \v 1 क्या हमने दोबारा अपनी आत्मप्रशंसा करनी शुरू कर दी? या कुछ अन्य व्यक्तियों के समान हमें भी तुमसे या तुम्हारे लिए सिफारिश के पत्रों की ज़रूरत है? \v 2 हमारे पत्र तो तुम स्वयं हो—हमारे हृदयों पर लिखे हुए—जो सबके द्वारा पहचाने तथा पढ़े जा सकते हो. \v 3 यह साफ़ ही है कि मसीह का पत्र तुम हो—हमारी सेवकाई का परिणाम—जिसे स्याही से नहीं परंतु जीवित परमेश्वर के आत्मा से पत्थर की पटिया पर नहीं परंतु मनुष्य के हृदय की पटिया पर लिखा गया है. \p \v 4 हमें मसीह के द्वारा परमेश्वर में ऐसा ही विश्वास है. \v 5 स्थिति यह नहीं कि हम यह दावा करें कि हम अपने आप में कुछ कर सकने के योग्य हैं—परमेश्वर हमारी योग्यता का स्रोत हैं, \v 6 जिन्होंने हमें नई वाचा का काम करने योग्य सेवक बनाया. यह वाचा लिखी हुई व्यवस्था की नहीं परंतु आत्मा की है. लिखी हुई व्यवस्था मृत्यु को जन्म देती है मगर आत्मा जीवन देती है. \s1 नई वाचा का वैभव \p \v 7 यदि पत्थर की पटिया पर खोदे गए अक्षरों में अंकित मृत्यु की वाचा इतनी तेजोमय थी कि इस्राएल के वंशज मोशेह के मुख पर अपनी दृष्टि स्थिर रख पाने में असमर्थ थे—यद्यपि यह तेज धीरे धीरे कम होता जा रहा था. \v 8 तो फिर आत्मा की वाचा और कितनी अधिक तेजोमय न होगी? \v 9 यदि दंड-आज्ञा की वाचा का प्रताप ऐसा है तो धार्मिकता की वाचा का प्रताप और कितना अधिक बढ़कर न होगा? \v 10 सच तो यह है कि इस वर्तमान प्रताप के सामने वह पहले का प्रताप, प्रताप रह ही नहीं गया. \v 11 यदि उसका तेज ऐसा था, जो लगातार कम हो रहा था, तो उसका तेज, जो हमेशा स्थिर है, और कितना अधिक बढ़कर न होगा! \p \v 12 इसी आशा के कारण हमारी बातें बिना डर की है. \v 13 हम मोशेह के समान भी नहीं, जो अपना मुख इसलिये ढका रखते थे कि इस्राएल के लोग उस धीरे धीरे कम होते हुए तेज को न देख पाएं. \v 14 वास्तव में इस्राएल के लोगों के मन मंद हो गए थे. पुराना नियम देने के अवसर पर आज भी वही पर्दा पड़ा रहता है क्योंकि यह पर्दा सिर्फ मसीह में हटाया जाता है. \v 15 हां, आज भी जब कभी मोशेह का ग्रंथ पढ़ा जाता है, उनके हृदय पर पर्दा पड़ा रहता है. \v 16 यह पर्दा उस समय हटता है, जब कोई व्यक्ति प्रभु की ओर मन फिराता है. \v 17 यही प्रभु वह आत्मा हैं तथा जहां कहीं प्रभु का आत्मा मौजूद हैं, वहां स्वतंत्रता है \v 18 और हम, जो खुले मुख से प्रभु की महिमा निहारते हैं, धीरे धीरे बढ़ती हुई महिमा के साथ उनके स्वरूप में बदलते जा रहे हैं. यह महिमा प्रभु से, जो आत्मा हैं, बाहर निकलती है. \c 4 \s1 मिट्टी के पात्रों में रखी हुई निधि \p \v 1 इसलिये कि यह सेवकाई हमें परमेश्वर की कृपा से प्राप्‍त हुई है, हम निराश नहीं होते. \v 2 हमने लज्जा के गुप्‍त कामों को त्याग दिया है. न तो हमारे स्वभाव में किसी प्रकार की चतुराई है और न ही हम परमेश्वर के वचन को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं. किंतु सच्चाई को प्रकट करके हम परमेश्वर के सामने स्वयं को हर एक के विवेक के लिए प्रस्तुत करते हैं. \v 3 यदि हमारा ईश्वरीय सुसमाचार ढका हुआ है, तो यह उन्हीं के लिए ढका हुआ है, जो विनाश की ओर जा रहे हैं. \v 4 इस संसार के ईश्वर ने उन अविश्वासियों की बुद्धि को अंधा कर दिया है कि वे परमेश्वर के प्रतिरूप, मसीह के तेजोमय ईश्वरीय सुसमाचार के प्रकाश को न देख सकें. \v 5 हम स्वयं को ऊंचा नहीं करते—हम मसीह येशु को प्रभु तथा स्वयं को मसीह येशु के लिए तुम्हारे दास घोषित करते हैं. \v 6 परमेश्वर, जिन्होंने कहा, “अंधकार में से ज्योति चमके,”\f + \fr 4:6 \fr*\ft \+xt उत्प 1:3\+xt*\ft*\f* वही परमेश्वर हैं, जिन्होंने हमारा हृदय चमका दिया कि हमें मसीह के मुख में चमकते हुए परमेश्वर के प्रताप के ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें. \p \v 7 यह बेशकीमती खजाना मिट्टी के पात्रों में इसलिये रखा हुआ है कि यह साफ़ हो जाए कि यह असीम सामर्थ्य हमारी नहीं परंतु परमेश्वर की है. \v 8 हम चारों ओर से कष्टों से घिरे रहते हैं, किंतु कुचले नहीं जाते; घबराते तो हैं, किंतु निराश नहीं होते; \v 9 सताए तो जाते हैं, किंतु त्यागे नहीं जाते; बहुत कुचले जाते हैं, किंतु नष्ट नहीं होते. \v 10 हम हरदम मसीह येशु की मृत्यु को अपने शरीर में लिए फिरते हैं कि मसीह येशु का जीवन हमारे शरीर में प्रकट हो जाए. \v 11 इसलिये हम, जो जीवित हैं, हरदम मसीह येशु के लिए मृत्यु को सौंपे जाते हैं कि हमारी शारीरिक देह में मसीह येशु का जीवन प्रकट हो जाए. \v 12 इस स्थिति में मृत्यु हममें सक्रिय है और जीवन तुममें. \p \v 13 विश्वास के उसी भाव में, जैसा कि पवित्र शास्त्र का लेख है: मैंने विश्वास किया, इसलिये मैं चुप न रहा. हम भी यह सब इसलिये कहते हैं कि हमने भी विश्वास किया है.\f + \fr 4:13 \fr*\ft \+xt स्तोत्र 116:10\+xt*\ft*\f* \v 14 यह जानते हुए कि जिन्होंने प्रभु येशु को मरे हुओं में से जीवित किया, वही हमें भी मसीह येशु के साथ जीवित करेंगे तथा तुम्हारे साथ हमें भी अपनी उपस्थिति में ले जाएंगे. \v 15 यह सब तुम्हारे हित में है कि अनुग्रह, जो अधिक से अधिक मनुष्यों में व्याप्‍त होता जा रहा है, परमेश्वर की महिमा के लिए अधिक से अधिक धन्यवाद का कारण बने. \p \v 16 इसलिये हम उदास नहीं होते. हमारा बाहरी मनुष्यत्व तो कमजोर होता जा रहा है किंतु भीतरी मनुष्यत्व दिन-प्रतिदिन नया होता जा रहा है. \v 17 हमारा यह छोटा सा, क्षण-भर का कष्ट हमारे लिए ऐसी अनंत और अत्यधिक महिमा को उत्पन्‍न कर रहा है, जिसकी तुलना नहीं कर सकते \v 18 क्योंकि हमने अपना ध्यान उस पर केंद्रित नहीं किया, जो दिखाई देता है परंतु उस पर, जो दिखाई नहीं देता है. जो कुछ दिखाई देता है, वह क्षण-भर का है किंतु जो दिखाई नहीं देता वह अनंत काल का. \c 5 \s1 हमारा स्वर्गीय घर \p \v 1 हमें यह मालूम है कि जब हमारे सांसारिक तंबू—हमारी देह—को, जिसमें हम रहते हैं, गिरा दिया जाएगा तो हमारे लिए परमेश्वर की ओर से एक ऐसा घर तय किया गया है, जो मनुष्य के हाथ का बनाया हुआ नहीं परंतु स्वर्गीय और अनंत काल का है. \v 2 यह एक सच्चाई है कि हम कराहते हुए वर्तमान घर में उस स्वर्गीय घर को धारण करने की लालसा करते रहते हैं \v 3 क्योंकि उसे धारण करने के बाद हम नंगे न रह जाएंगे. \v 4 सच यह है कि इस घर में रहते हुए हम बोझ में दबे हुए कराहते रहते हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि हम नंगे न रहें परंतु वस्त्र धारण करें कि जो कुछ शारीरिक है, वह जीवन का निवाला बन जाए. \v 5 जिन्होंने हमें इस उद्देश्य के लिए तैयार किया है, वह परमेश्वर हैं, जिन्होंने अपना आत्मा हमें बयाने के रूप में दे दिया. \p \v 6 यही अहसास हमें हमेशा प्रोत्साहित करता रहता है कि जब तक हम अपनी शारीरिक देह के इस घर में हैं, हम प्रभु—अपने घर—से दूर हैं \v 7 क्योंकि हम रूप को देखकर नहीं, विश्वास से जीवित हैं. \v 8 हम पूरी तरह आश्वस्त हैं तथा हमारी इच्छा है कि हम शरीर से अलग हो प्रभु के साथ खुशी\f + \fr 5:8 \fr*\ft मूल में \ft*\fqa अपने घर के समान\fqa*\f* में निवास करें. \v 9 हमारी बड़ी इच्छा भी यही है कि चाहे हम घर में हों या उससे दूर, हम प्रभु को भाते रहें \v 10 क्योंकि यह अवश्य है कि हम सब मसीह के न्यायासन के सामने उपस्थित हों कि हर एक को शारीरिक देह में किए गए उचित या अनुचित के अनुसार फल प्राप्‍त हो. \s1 मेल-मिलाप-सेवकाई \p \v 11 हमें यह अहसास है कि प्रभु का भय क्या है, इसलिये हम सभी को समझाने का प्रयत्न करते हैं. परमेश्वर के सामने यह स्पष्ट है कि हम क्या हैं और मैं आशा करता हूं कि तुम्हारे विवेक ने भी इसे पहचान लिया है. \v 12 यह तुम्हारे सामने अपनी आत्मप्रशंसा नहीं परंतु यह तुम्हारे लिए एक ऐसा सुअवसर है कि तुम हम पर गर्व करो कि तुम उन्हें इसका उत्तर दे सको, जो अपने मन की बजाय बाहरी रूप का गर्व करते हैं. \v 13 यदि हम बेसुध प्रतीत होते हैं, तो यह परमेश्वर के लिए है और यदि कोमल, तो तुम्हारे लिए. \v 14 अपने लिए मसीह के प्रेम का यह अहसास हमें परिपूर्ण कर देता है कि सबके लिए एक की मृत्यु हुई इसलिये सभी की मृत्यु हो गई; \v 15 और वह, जिनकी मृत्यु सभी के लिए हुई कि वे, जो जीवित हैं, मात्र अपने लिए नहीं परंतु उनके लिए जिए, जिन्होंने प्राणों का त्याग कर दिया तथा मरे हुओं में से सभी के लिए जीवित किए गए. \p \v 16 इसलिये हमने मनुष्य की दृष्टि से किसी को भी समझना छोड़ दिया है. हां, एक समय था, जब हमने मसीह का अनुमान मनुष्य की दृष्टि से लगाया था—अब नहीं. अब हम उन्हें जान गए हैं. \v 17 यदि कोई मसीह में है, तो वह नई सृष्टि है. पुराना बीत गया. देख लो: सब बातें नई हो गई हैं! \v 18 यह सब परमेश्वर की ओर से है, जिन्होंने मसीह के द्वारा स्वयं से हमारा मेल-मिलाप किया और हमें मेल-मिलाप की सेवकाई सौंपी है. \v 19 दूसरे शब्दों में, परमेश्वर ने संसार के खुद से मेल-मिलाप की स्थापना की प्रक्रिया में मसीह में मनुष्य के अपराधों का हिसाब न रखा. अब उन्होंने हमें मेल-मिलाप की सेवकाई सौंप दी है. \v 20 इसलिये हम मसीह के राजदूत हैं. परमेश्वर हमारे द्वारा तुमसे विनती कर रहे हैं. मसीह की ओर से तुमसे हमारी विनती है: परमेश्वर से मेल-मिलाप कर लो. \v 21 वह, जो निष्पाप थे, उन्हें परमेश्वर ने हमारे लिए पाप\f + \fr 5:21 \fr*\ft या \ft*\fqa पापार्पण\fqa*\f* बना दिया कि हम उनमें परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएं. \c 6 \p \v 1 परमेश्वर के सहकर्मी होने के कारण हमारी तुमसे विनती है कि तुम उनसे प्राप्‍त हुए अनुग्रह को व्यर्थ न जाने दो, \v 2 क्योंकि परमेश्वर का कहना है: \q1 “अनुकूल अवसर पर मैंने तुम्हारी पुकार सुनी, \q2 उद्धार के दिन मैंने तुम्हारी सहायता की.”\f + \fr 6:2 \fr*\ft \+xt यशा 49:8\+xt*\ft*\f* \m सुनो! यही है वह अनुकूल अवसर; यही है वह उद्धार का दिन! \s1 पौलॉस के कष्ट \p \v 3 हमारा स्वभाव किसी के लिए किसी भी क्षेत्र में बाधा नहीं बनता कि हमारी सेवकाई पर दोष न हो. \v 4 इसलिये हम हर एक परिस्थिति में स्वयं को परमेश्वर के सुयोग्य सेवक के समान प्रस्तुत करते हैं: धीरज से पीड़ा सहने में, दरिद्रता में, कष्ट में, \v 5 सताहट में, जेल में, उपद्रव में, अधिक परिश्रम में, अपर्याप्‍त नींद में, उपवास में, \v 6 शुद्धता में, ज्ञान में, धीरज में, सहृदयता में, पवित्र आत्मा में, निश्छल प्रेम में, \v 7 सच के संदेश में, परमेश्वर के सामर्थ्य में, वार तथा बचाव दोनों ही पक्षों के लिए परमेश्वर की धार्मिकता के हथियारों से जो दाहिने और बाएं हाथों में हैं, \v 8 आदर-निरादर में और निंदा और प्रशंसा में; हमें भरमानेवाला समझा जाता है, जबकि हम सत्यवादी हैं; \v 9 हम प्रसिद्ध हैं; फिर भी अप्रसिद्ध माने जाते हैं, हम जीवित तो हैं, पर मरे हुए समझे जाते हैं! हमें दंड तो दिया जाता है किंतु हमारे प्राण नहीं लिए जा सकते. \v 10 हम कष्ट में भी आनंदित रहते हैं. हालांकि हम स्वयं तो कंगाल हैं किंतु बाकियों को धनवान बना देते हैं. हमारी निर्धनता में हम धनवान हैं. \p \v 11 कोरिन्थवासीयो! हमने पूरी सच्चाई में तुम पर सच प्रकट किया है—हमने तुम्हारे सामने अपना हृदय खोलकर रख दिया है. \v 12 हमने तुम पर कोई रोक-टोक नहीं लगाई; रोक-टोक स्वयं तुमने ही अपने मनों पर लगाई है. \v 13 तुम्हें अपने बालक समझते हुए मैं तुमसे कह रहा हूं: तुम भी अपने हृदय हमारे सामने खोलकर रख दो. \s1 विश्वासियों और अविश्वासियों में मेल-जोल असंभव \p \v 14 अविश्वासियों के साथ असमान संबंध में न जुड़ो. धार्मिकता तथा अधार्मिकता में कैसा मेल-जोल या ज्योति और अंधकार में कैसा संबंध? \v 15 मसीह और शैतान में कैसा मेल या विश्वासी और अविश्वासी में क्या सहभागिता? \v 16 या परमेश्वर के मंदिर तथा मूर्तियों में कैसी सहमति? हम जीवित परमेश्वर के मंदिर हैं. जैसा कि परमेश्वर का कहना है: \q1 मैं उनमें वास करूंगा, \q2 उनके बीच चला फिरा करूंगा, \q1 मैं उनका परमेश्वर बनूंगा, \q2 और वे मेरी प्रजा.\f + \fr 6:16 \fr*\ft \+xt लेवी 26:12; येरे 32:38; यहेज 37:27\+xt*\ft*\f* \m \v 17 इसलिये, \q1 “उनके बीच से निकल आओ \q2 और अलग हो जाओ, \q2 यह प्रभु की आज्ञा है. \q1 उसका स्पर्श न करो, जो अशुद्ध है, \q2 तो मैं तुम्हें स्वीकार करूंगा.”\f + \fr 6:17 \fr*\ft \+xt यशा 52:11; यहेज 20:34, 41\+xt*\ft*\f* \m \v 18 और, \q1 “मैं तुम्हारा पिता बनूंगा \q2 और तुम मेरी संतान. \q2 यही है सर्वशक्तिमान प्रभु का कहना.”\f + \fr 6:18 \fr*\ft \+xt 2 शमु 7:14; 7:8\+xt*\ft*\f* \c 7 \p \v 1 इसलिये प्रिय भाई बहनो, जब हमसे ये प्रतिज्ञाएं की गई हैं तो हम परमेश्वर के प्रति श्रद्धा के कारण, स्वयं को शरीर और आत्मा की हर एक मलिनता से शुद्ध करते हुए पवित्रता को सिद्ध करें. \s1 पौलॉस के आनंद का विषय \p \v 2 हमें अपने हृदयों में स्थान दो. हमने किसी के साथ अन्याय नहीं किया, किसी को आहत नहीं किया, किसी का अनुचित लाभ नहीं उठाया. \v 3 यह कहने के द्वारा हम तुम पर दोष नहीं लगा रहे हैं. मैं पहले भी कह चुका हूं कि तुम हमारे हृदय में बसे हो और हमारा-तुम्हारा जीवन-मरण का साथ है. \v 4 मुझे तुम पर अटूट विश्वास है. मुझे तुम पर गर्व है, मैं अत्यंत प्रोत्साहित हुआ हूं. सारे कष्टों में भी मैं आनंद से भरपूर रहता हूं. \p \v 5 हमारे मकेदोनिया में रहने के दौरान हमें शारीरिक रूप से विश्राम नहीं परंतु चारों ओर से कष्ट ही कष्ट मिलता रहा—बाहर तो लड़ाइयां और अंदर भय की बातें. \v 6 मगर परमेश्वर ने, जो हताशों को धीरज देते हैं, तीतॉस को यहां उपस्थित कर हमें धीरज दिया. \v 7 न केवल उसकी उपस्थिति के द्वारा ही परंतु उस प्रोत्साहन के द्वारा भी, जो तीतॉस को तुमसे प्राप्‍त हुआ. उसने मुझे मेरे प्रति तुम्हारी लालसा, वेदना तथा उत्साह के विषय में बताया. इससे मेरा आनंद और अधिक बढ़ गया. \p \v 8 यद्यपि तुम मेरे पत्र से शोकित हुए हो, मुझे इसका खेद नहीं—पहले खेद ज़रूर हुआ था मगर अब मैं देखता हूं कि तुम उस पत्र से शोकित तो हुए किंतु थोड़े समय के लिए. \v 9 अब मैं आनंदित हूं, इसलिये नहीं कि तुम शोकित हुए परंतु इसलिये कि यही तुम्हारे पश्चाताप का कारण बन गया. यह सब परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ही हुआ कि तुम्हें हमारे कारण किसी प्रकार की हानि न हो. \v 10 वह दुःख, जो परमेश्वर की ओर से आता है, वह ऐसा पश्चाताप का कारण बन जाता है जो हमें उद्धार की ओर ले जाता है, जहां खेद के लिए कोई स्थान ही नहीं रहता; जबकि सांसारिक दुःख मृत्यु उत्पन्‍न करता है. \v 11 ध्यान दो कि परमेश्वर की ओर से आए दुःख ने तुममें क्या-क्या परिवर्तन किए हैं: ऐसी उत्सुकता भरी तत्परता, अपना पक्ष स्पष्ट करने की ऐसी बड़ी इच्छा, अन्याय के प्रति ऐसा क्रोध, संकट के प्रति ऐसी सावधानी, मुझसे भेंट करने की ऐसी तेज लालसा, सेवा के प्रति ऐसा उत्साह तथा दुराचारी को दंड देने के लिए ऐसी तेजी के द्वारा तुमने यह साबित कर दिया कि सब कुछ ठीक-ठाक करने में तुमने कोई भी कमी नहीं छोड़ी है. \v 12 हालांकि यह पत्र मैंने न तो तुम्हें इसलिये लिखा कि मुझे उसकी चिंता थी, जो अत्याचार करता है और न ही उसके लिए, जो अत्याचार सहता है परंतु इसलिये कि परमेश्वर के सामने स्वयं तुम्हीं यह देख लो कि तुम हमारे प्रति कितने सच्चे हो. \v 13 यही हमारे धीरज का कारण है. \p अपने धीरज से कहीं अधिक हम तीतॉस के आनंद में हर्षित हैं क्योंकि तुम सबने उसमें नई ताज़गी का संचार किया है. \v 14 यदि तीतॉस के सामने मैंने तुम पर गर्व प्रकट किया है तो मुझे उसके लिए लज्जित नहीं होना पड़ा. जिस प्रकार, जो कुछ मैंने तुमसे कहा वह सच था, उसी प्रकार तीतॉस के सामने मेरा गर्व प्रकट करना भी सच साबित हुआ. \v 15 जब तीतॉस को तुम्हारी आज्ञाकारिता याद आती है तथा यह भी कि तुमने कितने श्रद्धा भाव से उसका सत्कार किया तो वह स्नेह से तुम्हारे प्रति और अधिक भर उठता है. \v 16 तुम्हारे प्रति मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं. यह मेरे लिए आनंद का विषय है. \c 8 \s1 उदारता के लिए प्रोत्साहन \p \v 1 हम भाई बहनों को मकेदोनिया की कलीसियाओं को परमेश्वर द्वारा दिए गए अनुग्रह के विषय में बताना चाहते हैं. \v 2 बड़े भीषण संकटों में भी उनका बड़ा आनंद, तथा भारी कंगाली में भी उनकी बड़ी उदारता छलक पड़ी है. \v 3 मैं इस सच्चाई की पुष्टि कर सकता हूं कि उन्होंने न केवल उतना ही दिया, जो उनके लिए संभव था परंतु उससे कहीं अधिक! यह उन्होंने अपनी इच्छा से दिया है. \v 4 उन्होंने तो हमसे विनती पर विनती करते हुए अनुमति चाही कि उन्हें पवित्र लोगों की सहायता की धन्यता में शामिल होने का सुअवसर प्रदान किया जाए. \v 5 यह सब हमारी आशा के विपरीत था. इससे भी बढ़कर उन्होंने परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सबसे पहले स्वयं को प्रभु के लिए और फिर हमारे लिए समर्पित कर दिया. \v 6 इसलिये हमने तीतॉस से विनती की कि जिस प्रकार इसके पहले उसने तुममें यह प्रक्रिया शुरू की थी, वैसे ही वह इस सराहनीय काम को पूरा भी करे. \v 7 ठीक जिस प्रकार तुम विश्वास, वचन, ज्ञान, उत्साह तथा हमारे प्रति प्रेम में बढ़ते जाते हो, उसी प्रकार अब तुम्हारा प्रयास यह हो कि तुम इस सराहनीय सेवा में भी बढ़ते जाओ. \p \v 8 मैं तुम्हें कोई आज्ञा नहीं दे रहा. मैं सिर्फ बाकियों के उत्साह से तुम्हारे प्रेम की तुलना कर इसकी सच्चाई को परख रहा हूं. \v 9 हमारे प्रभु येशु मसीह की कृपा से तुम भली-भांति परिचित हो: यद्यपि वह बहुत धनी थे, तुम्हारे लिए उन्होंने निर्धनता अपना ली कि उनकी निर्धनता के द्वारा तुम धनी हो जाओ. \p \v 10 यहां मैं अपना मत प्रस्तुत कर रहा हूं, जिसमें तुम्हारा भला है: पिछले वर्ष तुमने दान दिया भी और दान देने की इच्छा में तुम आगे थे, \v 11 इसलिये जो काम तुमने शुरू किया था, उसे पूरा भी करो—इस काम की समाप्‍ति के लिए भी वैसे ही उत्साही बने रहो, जैसे इसकी योजना तैयार करते समय थे. इसकी समाप्‍ति उससे करो, जो इस समय तुम्हारे पास हैं. \v 12 यदि किसी में दान देने की इच्छा है तो जो कुछ उसके पास है, उसी के आधार पर उसका दान ग्रहण होगा—उसके आधार पर नहीं, जो उसके पास नहीं है. \p \v 13 हमारा मतलब यह नहीं है कि दूसरों की भलाई करने के कारण स्वयं तुम कष्ट सहो. हमारा उद्देश्य सिर्फ न्याय करना है. \v 14 इस समय तो तुम्हारी बढ़ोतरी उनकी ज़रूरत पूरी करने के लिए काफ़ी है. कभी यह भी संभव है कि तुम स्वयं को ज़रूरत में पाओ और वे अपनी बढ़ोतरी में से तुम्हारी सहायता करें. तब दोनों पक्ष समान हो जाएंगे. \v 15 पवित्र शास्त्र का उदाहरण है: जिसने अधिक मात्रा में इकट्ठा कर लिया, उसने कुछ भी ज्यादा नहीं पाया और जिसने कम इकट्ठा किया, उसे कोई कमी न हुई.\f + \fr 8:15 \fr*\ft \+xt निर्ग 16:18\+xt*\ft*\f* \s1 कोरिन्थॉस में तीतॉस का भेजा जाना \p \v 16 तीतॉस के मन में तुम्हारे प्रति ऐसा ही उत्साह जगाने के लिए मैं परमेश्वर का आभारी हूं. \v 17 उसने न केवल हमारी विनती ही सहर्ष स्वीकार की बल्कि वह उत्साह में अपनी इच्छा से तुम्हारे पास चला गया है. \v 18 हम उसके साथ एक ऐसे व्यक्ति को भेज रहे हैं, जो सारी कलीसियाओं में ईश्वरीय सुसमाचार के प्रचार के लिए सराहा जा रहा है. \v 19 इतना ही नहीं, स्वयं प्रभु की महिमा तथा लोगों पर इस सहायता के लिए हमारी तत्परता प्रकट करने के उद्देश्य से कलीसियाओं ने इस व्यक्ति को हमारे साथ यात्रा करने के लिए चुना है. \v 20 हम सावधान हैं कि किसी को भी इस सहायता की राशि के प्रबंध करने में हम पर उंगली उठाने का अवसर न मिले. \v 21 हमारा उद्देश्य न केवल वह है, जो प्रभु की दृष्टि में शोभनीय और भला है परंतु मनुष्यों की दृष्टि में भी. \p \v 22 इनके साथ हम एक और व्यक्ति को भेज रहे हैं. अनेक अवसरों पर हमने उसे परखा है और उसे सच्चा ही पाया है. अब तो तुम्हारे लिए उसके भरोसे ने उसमें और अधिक उत्साह तथा सहायता के लिए तेजी का संचार किया है. \v 23 तीतॉस तुम्हारे बीच मेरा साथी तथा सहकर्मी है. उसके साथी यात्री कलीसियाओं के भेजे हुए तथा मसीह का गौरव हैं. \v 24 इसलिये कलीसियाओं के सामने खुले दिल से उन पर अपने प्रेम तथा तुम्हारे प्रति हमारे गर्व के कारणों का प्रमाण दो. \c 9 \p \v 1 वास्तव में यह आवश्यक ही नहीं कि मैं पवित्र लोगों में अपनी सेवकाई के विषय में तुम्हें कुछ लिखूं \v 2 क्योंकि सहायता के लिए तुम्हारी तैयारी से मैं भली-भांति परिचित हूं. मकेदोनियावासियों के सामने मैं इसका गर्व भी करता रहा हूं कि आखाया प्रदेश की कलीसिया पिछले एक वर्ष से इसके लिए तैयार है और उनमें से अधिकांश को तुम्हारे उत्साह से प्रेरणा प्राप्‍त हुई. \v 3 मैंने कुछ साथी विश्वासियों को तुम्हारे पास इसलिये भेजा है कि तुम्हारे विषय में मेरा गर्व करना खोखला न ठहरे, परंतु वे स्वयं तुम्हें सेवा के लिए तैयार पाएं—ठीक जैसा मैं उनसे कहता रहा हूं. \v 4 ऐसा न हो कि जब कोई मकेदोनियावासी मेरे साथ आए और तुम्हें दान देने के लिए तैयार न पाए तो हमें तुम्हारे प्रति ऐसे आश्वस्त होने के कारण लज्जित होना पड़े—तुम्हारी अपनी लज्जा तो एक अलग विषय होगा. \v 5 इसलिये मैंने यह आवश्यक समझा कि मैं साथी विश्वासियों से यह विनती करूं कि वे पहले ही तुम्हारे पास चले जाएं तथा उस प्रतिज्ञा की गई भेंट का प्रबंध कर लें, जो तुमने उदारता के भाव में दी है, न कि कंजूसी के भाव में. \s1 उदार रोपण \p \v 6 याद रहे: वह, जो थोड़ा बोता है, थोड़ा ही काटेगा तथा वह, जो बहुत बोता है, बहुत काटेगा. \v 7 इसलिये जिसने अपने मन में जितना भी देने का निश्चय किया है, उतना ही दे—बिना इच्छा के या विवशता में नहीं क्योंकि परमेश्वर को प्रिय वह है, जो आनंद से देता है. \v 8 परमेश्वर समर्थ हैं कि वह तुम्हें बहुत अधिक अनुग्रह प्रदान करें कि तुम्हें सब कुछ पर्याप्‍त मात्रा में प्राप्‍त होता रहे और हर भले काम के लिए तुम्हारे पास अधिकता में हो, \v 9 जैसा कि पवित्र शास्त्र का लेख है: \q1 उन्होंने कंगालों को उदारतापूर्वक दान दिया; \q2 उनकी सच्चाई और धार्मिकता युगानुयुग बनी रहती है.\f + \fr 9:9 \fr*\ft \+xt स्तोत्र 112:9\+xt*\ft*\f* \m \v 10 वह परमेश्वर, जो किसान के लिए बीज का तथा भोजन के लिए आहार का इंतजाम करते हैं, वही बोने के लिए तुम्हारे लिए बीज का इंतजाम तथा विकास करेंगे तथा तुम्हारी धार्मिकता की उपज में उन्‍नति करेंगे. \v 11 अपनी अपूर्व उदारता के लिए तुम प्रत्येक पक्ष में धनी किए जाओगे. हमारे माध्यम से तुम्हारी यह उदारता परमेश्वर के प्रति धन्यवाद का विषय हो रही है. \p \v 12 यह सेवकाई न केवल पवित्र लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने का ही साधन है परंतु परमेश्वर के प्रति उमड़ता हुआ धन्यवाद का भाव भी है. \v 13 तुम्हारी इस सेवकाई को प्रमाण मानते हुए वे परमेश्वर की महिमा करेंगे क्योंकि तुमने मसीह के ईश्वरीय सुसमाचार को आज्ञा मानते हुए ग्रहण किया और तुम सभी के प्रति उदार मन के हो. \v 14 तुम पर परमेश्वर के अत्यधिक अनुग्रह को देख वे तुम्हारे लिए बड़ी लगन से प्रार्थना करेंगे. \v 15 परमेश्वर को उनके अवर्णनीय वरदान के लिए आभार! \c 10 \s1 पौलॉस की विनती \p \v 1 मैं पौलॉस, जो तुम्हारे बीच उपस्थित होने पर तो दीन किंतु तुमसे दूर होने पर निडर हो जाता हूं, स्वयं मसीह की उदारता तथा कोमलता में तुमसे व्यक्तिगत विनती कर रहा हूं. \v 2 मेरी विनती यह है: जब मैं वहां आऊं तो मुझे उनके प्रति, जो यह सोचते हैं कि हमारी जीवनशैली सांसारिक है, वह कठोरता दिखानी न पड़े जिसकी मुझसे आशा की जाती है. \v 3 हालांकि हम संसार में रहते हैं मगर हम युद्ध वैसे नहीं करते जैसे यह संसार करता है. \v 4 हमारे युद्ध के अस्त्र-शस्त्र सांसारिक नहीं हैं—ये परमेश्वर के सामर्थ्य में गढ़ों को ढाह देते हैं. \v 5 इसके द्वारा हम उस हर एक विरोध को, उस हर एक गर्व करनेवाले को, जो परमेश्वर के ज्ञान के विरुद्ध सिर उठाता है, गिरा देते हैं और हर एक धारणा को मसीह का आज्ञाकारी बंदी बना देते हैं. \v 6 तुम्हारी आज्ञाकारिता और सच्चाई की भरपूरी साबित हो जाने पर हम सभी आज्ञा न माननेवालों को दंड देने के लिए तैयार हैं. \p \v 7 तुम सिर्फ जो सामने है, उसके बाहरी रूप को देखते हो. यदि किसी को अपने विषय में यह निश्चय है कि वह मसीह का है तो वह इस पर दोबारा विचार करे कि जैसे वह मसीह का है, वैसे ही हम भी मसीह के हैं. \v 8 यदि मैं उस अधिकार का कुछ अधिक ही गर्व करता हूं, जो प्रभु ने मुझे तुम्हारे निर्माण के लिए सौंपा है, न कि तुम्हारे विनाश के लिए, तो उसमें मुझे कोई लज्जा नहीं. \v 9 मैं नहीं चाहता कि तुम्हें यह अहसास हो कि मैं तुम्हें डराने के उद्देश्य से यह पत्र लिख रहा हूं. \v 10 मेरे विषय में कुछ का कहना है, “उसके पत्र महत्वपूर्ण और प्रभावशाली तो होते हैं किंतु उसका व्यक्तित्व कमजोर है तथा बातें करना प्रभावित नहीं करता.” \v 11 ये लोग याद रखें कि तुम्हारे साथ न होने की स्थिति में हम अपने पत्रों की अभिव्यक्ति में जो कुछ होते हैं, वही हम तुम्हारे साथ होने पर अपने स्वभाव में भी होते हैं. \p \v 12 हम उनके साथ अपनी गिनती या तुलना करने का साहस नहीं करते, जो अपनी ही प्रशंसा करने में लीन हैं. वे अपने ही मापदंडों के अनुसार अपने आपको मापते हैं तथा अपनी तुलना वे स्वयं से ही करते हैं. एकदम मूर्ख हैं वे! \v 13 हम अपनी मर्यादा के बाहर गर्व नहीं करेंगे. हम परमेश्वर द्वारा निर्धारित मर्यादा में ही सीमित रहेंगे. तुम भी इसी सीमा में सीमित हो. \v 14 अगर हमने गर्व किया तो भी हम अपनी सीमा का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं, जैसा कि यदि हम तुम तक नहीं पहुंच पाते तो हो जाता. पर तुम तक मसीह येशु का सुसमाचार लेकर हम तुम्हारे पास सबसे पहले पहुंचे हैं. \v 15 अन्यों द्वारा किए परिश्रम का श्रेय लेकर भी हम इस आशा में सीमा पार नहीं करते कि जैसे जैसे तुम्हारा विश्वास गहरा होता जाता है, तुम्हारे बीच अपनी ही सीमा में हमारा कार्यक्षेत्र और गतिविधियां फैलती जाएं \v 16 और हम तुम्हारी सीमाओं से परे दूर-दूर क्षेत्रों में भी ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करें. हम नहीं चाहते कि हम किसी अन्य क्षेत्र में अन्य व्यक्ति द्वारा पहले ही किए जा चुके काम का गर्व करें. \v 17 जो गर्व करता है, वह परमेश्वर में गर्व करे.\f + \fr 10:17 \fr*\ft \+xt येरे 9:24\+xt*\ft*\f* \v 18 ग्रहण वह नहीं किया जाता, जो अपनी तारीफ़ स्वयं करता है परंतु वह है, जिसकी तारीफ़ प्रभु करते हैं. \c 11 \s1 पौलॉस तथा झूठे प्रेरित \p \v 1 मैं चाहता हूं कि तुम मेरी छोटी सी मूर्खता को सह लो—जैसे वास्तव में तुम इस समय सह भी रहे हो. \v 2 तुम्हारे लिए मेरी प्रेम की धुन ठीक वैसी ही है जैसी परमेश्वर की. तुम उस पवित्र कुंवारी जैसे हो, जिसकी मंगनी मैंने एकमात्र वर—मसीह येशु—को सौंपने के उद्देश्य से की है. \v 3 मुझे हमेशा यह भय लगा रहता है कि कहीं शैतान तुम्हारे मन को मसीह के प्रति तुम्हारी निष्कपट, पवित्रता से दूर न कर दे, जैसे सांप ने हव्वा को अपनी चालाकी से छल लिया था. \v 4 क्योंकि जब कोई व्यक्ति आकर किसी अन्य येशु का प्रचार करता है, जिसका प्रचार हमने नहीं किया या तुम्हें कोई भिन्‍न आत्मा मिलती है, जो तुम्हें पहले नहीं मिली थी या तुम कोई भिन्‍न ईश्वरीय सुसमाचार को अपनाते हो, जिसे तुमने पहले ग्रहण नहीं किया था, तो तुम इसे सहर्ष स्वीकार कर लेते हो! \p \v 5 मैं यह नहीं मानता कि मैं तथाकथित बड़े से बड़े प्रेरितों से तुच्छ हूं. \v 6 माना कि मैं बोलने में निपुण नहीं हूं किंतु निश्चित ही ज्ञान में मैं कम नहीं. वस्तुतः हमने प्रत्येक प्रकार से प्रत्येक क्षेत्र में तुम्हारे लिए इसे स्पष्ट कर दिया है. \v 7 इसलिये कि मैंने तुम्हारे लिए परमेश्वर के ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार मुफ्त में किया, क्या तुम्हें ऊंचा करने के उद्देश्य से मेरा स्वयं को विनम्र बना लेना अपराध था? \v 8 तुम्हारे बीच सेवा करते हुए मेरा भरण-पोषण अन्य कलीसियाओं द्वारा किया जा रहा था. यह एक प्रकार से उन्हें लूटना ही हुआ. \v 9 तुम्हारे साथ रहते हुए आर्थिक ज़रूरत में भी मैं तुममें से किसी पर भी बोझ न बना. मकेदोनिया प्रदेश से आए साथी विश्वासियों ने मेरी सभी ज़रूरतों की पूर्ति की. हर क्षेत्र में मेरा यही प्रयास रहा है कि मैं तुम पर बोझ न बनूं. भविष्य में भी मेरा प्रयास यही रहेगा. \v 10 मुझमें मसीह का सच मौजूद है, इसलिये पूरे आखाया प्रदेश के क्षेत्रों में कोई भी मुझे मेरे इस गौरव से दूर न कर सकेगा. \v 11 क्यों? क्या इसलिये कि मुझे तुमसे प्रेम नहीं? परमेश्वर गवाह हैं कि मैं तुमसे प्रेम करता हूं. \p \v 12 मैं जो कुछ कर रहा हूं, वही करता जाऊंगा कि उन व्यक्तियों की इस विषय में गर्व करने की सारी सम्भावनाएं समाप्‍त हो जाएं कि वे भी वही काम कर रहे हैं, जो हम कर रहे हैं. \v 13 ऐसे व्यक्ति झूठे प्रेरित तथा छल से काम करनेवाले हैं, जो मसीह के प्रेरित होने का ढोंग करते हैं. \v 14 यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं कि शैतान भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूत होने का नकल करता है, \v 15 इसलिये इसमें कोई बड़ी बात नहीं कि उसके सेवक भी जो धार्मिकता के सेवक होने का नाटक करते हैं, जिनका अंत उनके कामों के अनुसार ही होगा. \s1 पौलॉस द्वारा अपने कष्टों का गुणगान \p \v 16 मैं दोबारा याद दिला रहा हूं: कोई मुझे मूर्ख न समझे किंतु यदि तुमने मुझे ऐसा मान ही लिया है तो मुझे मूर्ख के रूप में ही स्वीकार कर लो. इससे मुझे भी गर्व करने का अवसर मिल जाएगा. \v 17 बेधड़क कहा गया मेरा वचन प्रभु द्वारा दिया गया नहीं है—यह सब तो एक मूर्ख की गर्व में कही गई बात है. \v 18 कितने तो अपनी मानवीय उपलब्धियों का गर्व कर रहे हैं, तो मैं भी गर्व क्यों न करूं? \v 19 तुम तो ऐसे बुद्धिमान हो कि मूर्खों को खुशी से सह लेते हो. \v 20 वस्तुतः तुम तो उसकी तक सह लेते हो, जो तुम्हें दास बना लेता है, जो तुम्हारा शोषण करता है, तुम्हारा अनुचित लाभ उठाता है, स्वयं को उन्‍नत करता है, यहां तक कि वह तुम्हारे मुख पर थप्पड़ तक मार देता है! \v 21 मुझे स्वयं लज्जित हो कहना पड़ रहा है कि हम इन सब की तुलना में बहुत दुर्बल थे. \p कोई किसी भी विषय का अभिमान करने का साहस करे—मैं यह मूर्खतापूर्वक कह रहा हूं—मैं भी उसी प्रकार अभिमान करने का साहस कर रहा हूं. \v 22 क्या वे इब्री हैं? इब्री मैं भी हूं, क्या वे इस्राएली हैं? इस्राएली मैं भी हूं, क्या वे अब्राहाम के वंशज हैं? अब्राहाम का वंशज मैं भी हूं. \v 23 क्या वे मसीह के सेवक हैं? मैं पागल व्यक्ति की तरह कहता हूं, मैं उनसे कहीं बढ़कर हूं: मैंने उनसे कहीं अधिक परिश्रम किया है, उनसे कहीं अधिक बंदी बनाया गया हूं, अनगिनत बार पीटा गया हूं, अक्सर ही मेरे प्राण संकट में पड़े हैं. \v 24 यहूदियों ने मुझे पांच बार एक कम चालीस कोड़े लगाए. \v 25 तीन बार मैं बेंत से पीटा गया, एक बार मेरा पथराव किया गया और तीन बार मेरा जलयान ध्वस्त हुआ, एक रात तथा एक दिन मुझे समुद्र में व्यतीत करना पड़ा. \v 26 बार-बार मुझे यात्राएं करनी पड़ीं. कभी नदियों के, कभी डाकुओं के, कभी अपने देशवासियों के, कभी गैर-यहूदियों के, कभी नगरों में, कभी बंजर भूमि में, कभी समुद्र में जोखिम का और कभी झूठे विश्वासियों के जोखिम का सामना करना पड़ा है. \v 27 मैंने अनेक रातें जाग कर, भूखे-प्यासे रहकर, अक्सर भूखे रहकर, सर्दी और थोड़े वस्त्रों में रहते हुए कठिन परिश्रम किया तथा अनेक कठिनाइयां झेली हैं. \v 28 इन सब बाहरी कठिनाइयों के अलावा प्रतिदिन मुझ पर सभी कलीसियाओं की भलाई की चिंता का दबाव रहता है. \v 29 कौन कमजोर है, जिसकी कमज़ोरी का अहसास मुझे नहीं होता? किसके पाप में पड़ने से मैं चिंतित नहीं होता? \p \v 30 यदि मुझे गर्व करना ही है तो मैं अपनी कमज़ोरी का गर्व करूंगा. \v 31 प्रभु येशु मसीह के परमेश्वर तथा पिता, जो युगानुयुग धन्य हैं, गवाह हैं कि मैं झूठ नहीं बोल रहा: \v 32 जब मैं दमिश्क में था तो राजा अरेतॉस के राज्यपाल ने मुझे बंदी बनाने के उद्देश्य से नगर में पहरा बैठा दिया था \v 33 किंतु मुझे शहरपनाह के एक झरोखे से एक टोकरे में बैठाकर नीचे उतार दिया गया और इस प्रकार मैं उसके हाथों से बच निकला. \c 12 \s1 पौलॉस का ईश्वरीय दर्शन तथा उनका कांटा \p \v 1 अपनी बड़ाई करना मेरे लिए ज़रूरी हो गया है—हालांकि इसमें कोई भी लाभ नहीं है—इसलिये मैं प्रभु के द्वारा दिए गए दर्शनों तथा दिव्य प्रकाशनों के वर्णन की ओर बढ़ रहा हूं. \v 2 मैं एक ऐसे व्यक्ति को, जो मसीह का विश्वासी है, जानता हूं. चौदह वर्ष पहले यह व्यक्ति तीसरे स्वर्ग तक उठा लिया गया—शरीर के साथ या बिना शरीर के, मुझे मालूम नहीं—यह परमेश्वर ही जानते हैं. \v 3 मैं जानता हूं कैसे यही व्यक्ति—शरीर के साथ या बिना शरीर के, मुझे मालूम नहीं—यह परमेश्वर ही जानते हैं; \v 4 स्वर्ग में उठा लिया गया. वहां उसने वे अवर्णनीय वचन सुने, जिनका वर्णन करना किसी भी मनुष्य के लिए संभव नहीं है. \v 5 इसी व्यक्ति की ओर से मैं गर्व करूंगा—स्वयं अपने विषय में नहीं—सिवाय अपनी कमज़ोरियों के. \v 6 वैसे भी यदि मैं अपनी बड़ाई करने ही लगूं तो इसे मेरी मूर्खता नहीं माना जा सकेगा क्योंकि वह सत्य वर्णन होगा. किंतु मैं यह भी नहीं करूंगा कि कोई भी मेरे स्वभाव, मेरे वर्णन से प्रभावित हो मुझे मेरे कथन अथवा करनी से अधिक श्रेय देने लगे. \v 7 मेरे अद्भुत प्रकाशनों की श्रेष्ठता के कारण मुझे अपनी बड़ाई करने से रोकने के उद्देश्य से मेरे शरीर में एक कांटा लगाया गया है—मुझे कष्ट देते रहने के लिए शैतान का एक अपदूत—कि मैं अपनी बड़ाई न करूं. \v 8 इसके उपाय के लिए मैंने तीन बार प्रभु से गिड़गिड़ाकर विनती की. \v 9 प्रभु का उत्तर था: “कमज़ोरी में मेरा सामर्थ्य सिद्ध हो जाता है इसलिये तुम्हारे लिए मेरा अनुग्रह ही काफ़ी है.” इसके प्रकाश में मैं बड़े हर्ष के साथ अपनी कमज़ोरियों के विषय में गर्व करूंगा कि मेरे द्वारा प्रभु मसीह का सामर्थ्य सक्रिय हो जाए. \v 10 मसीह के लिए मैं कमज़ोरियों, अपमानों, कष्टों, उत्पीड़नों तथा कठिनाइयों में पूरी तरह संतुष्ट हूं क्योंकि जब कभी मैं दुर्बल होता हूं, तभी मैं बलवंत होता हूं. \s1 कोरिन्थॉस के विश्वासियों के लिए पौलॉस की हितचिंता \p \v 11 यह करते हुए मैंने स्वयं को मूर्ख बना लिया है. तुमने ही मुझे इसके लिए मजबूर किया है. होना तो यह था कि तुम मेरी प्रशंसा करते. यद्यपि मैं तुच्छ हूं फिर भी मैं उन बड़े-बड़े प्रेरितों की तुलना में कम नहीं हूं. \v 12 मैंने तुम्हारे बीच रहते हुए प्रेरिताई प्रमाण स्वरूप धीरज, चमत्कार चिह्न, अद्भुत काम तथा सामर्थ्य भरे काम दिखाए. \v 13 भला तुम किस क्षेत्र में अन्य कलीसियाओं की तुलना में कम रहे, सिवाय इसके कि मैं कभी भी तुम्हारे लिए बोझ नहीं बना? क्षमा कर दो. मुझसे भूल हो गई. \p \v 14 मैं तीसरी बार वहां आने के लिए तैयार हूं. मैं तुम्हारे लिए बोझ नहीं बनूंगा. मेरी रुचि तुम्हारी संपत्ति में नहीं, स्वयं तुममें है. संतान से यह आशा नहीं की जाती कि वे माता-पिता के लिए कमाएं—संतान के लिए माता-पिता कमाते हैं. \v 15 तुम्हारी आत्माओं के भले के लिए मैं निश्चित ही अपना सब कुछ तथा खुद को खर्च करने के लिए तैयार हूं. क्या तुम्हें बढ़कर प्रेम करने का बदला तुम मुझे कम प्रेम करने के द्वारा दोगे? \v 16 कुछ भी हो, मैं तुम पर बोझ नहीं बना. फिर भी कोई न कोई मुझ पर यह दोष ज़रूर लगा सकता है, “बड़ा धूर्त है वह! छल कर गया है तुमसे!” \v 17 क्या वास्तव में इन व्यक्तियों को तुम्हारे पास भेजकर मैंने तुम्हारा गलत फायदा उठाया है? \v 18 तीतॉस को तुम्हारे पास भेजने की विनती मैंने की थी. उसके साथ अपने इस भाई को भी मैंने ही भेजा था. क्या तीतॉस ने तुम्हारा गलत फायदा उठाया? क्या हमारा स्वभाव एक ही भाव से प्रेरित न था? क्या हम उन्हीं पद-चिह्नों पर न चले? \p \v 19 यह संभव है तुम अपने मन में यह विचार कर रहे हो कि हम यह सब अपने बचाव में कह रहे हैं. प्रिय मित्रो, हम यह सब परमेश्वर के सामने मसीह येशु में तुम्हें उन्‍नत करने के उद्देश्य से कह रहे हैं. \v 20 मुझे यह डर है कि मेरे वहां आने पर मैं तुम्हें अपनी उम्मीद के अनुसार न पाऊं और तुम भी मुझे अपनी उम्मीद के अनुसार न पाओ. मुझे डर है कि वहां झगड़ा, जलन, क्रोध, उदासी, बदनामी, बकवाद, अहंकार तथा उपद्रव पाऊं! \v 21 मुझे डर है कि मेरे वहां दोबारा आने पर कहीं मेरे परमेश्वर तुम्हारे सामने मेरी प्रतिष्ठा भंग न कर दें और मुझे तुममें से अनेक के अतीत में किए गए पापों तथा उनके अशुद्धता, गैर-कानूनी तथा कामुकता भरे स्वभाव के लिए पश्चाताप न करने के कारण शोक करना पड़े. \c 13 \s1 अंतिम चेतावनियां \p \v 1 तुम्हारे पास मैं तीसरी बार आ रहा हूं. “हर एक बात की पुष्टि के लिए दो या तीन गवाहों की ज़रूरत होती है.”\f + \fr 13:1 \fr*\ft \+xt व्यव 19:15\+xt*\ft*\f* \v 2 वहां अपने दूसरी बार ठहरने के अवसर पर मैंने तुमसे कहा था और अब वहां अनुपस्थित होने पर भी वहां आने से पहले मैं उन सबसे यह कह रहा हूं: जिन्होंने अतीत में पाप किया है तथा बाकी लोगों से भी, यदि मैं फिर आऊंगा तो किसी पर दया न करूंगा \v 3 क्योंकि तुम यह सबूत चाहते हो कि जो मेरे द्वारा बातें करते हैं, वह मसीह हैं और वह तुम्हारे प्रति निर्बल नहीं परंतु तुम्हारे मध्य सामर्थ्यी हैं. \v 4 वास्तव में वह दुर्बलता की अवस्था में ही क्रूसित किए गए, फिर भी वह परमेश्वर के सामर्थ्य में जीवित हैं. निःसंदेह हम उनमें कमजोर हैं, फिर भी हम तुम्हारे लिए परमेश्वर के सक्रिय सामर्थ्य के कारण उनके साथ जीवित रहेंगे. \p \v 5 स्वयं को परखो कि तुम विश्वास में हो या नहीं. अपने आपको जांचो! क्या तुम्हें यह अहसास नहीं होता कि मसीह येशु तुममें हैं? यदि नहीं तो तुम कसौटी पर खरे नहीं उतरे. \v 6 मुझे भरोसा है कि तुम यह जान जाओगे कि हम कसौटी पर खोटे नहीं उतरे. \v 7 हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि तुमसे कोई गलती न हो. इसलिये नहीं कि हम भले दिखाई दें, परंतु इसलिये कि तुम वही करो, जो उचित है, फिर हम भले ही खोटे दिखाई दें. \v 8 सच्चाई के विरोध में हम कुछ भी नहीं कर सकते. हम सच के पक्षधर ही रह सकते हैं. \v 9 हम अपने कमजोर होने तथा तुम्हारे समर्थ होने पर आनंदित होते हैं और यह प्रार्थना भी करते हैं कि तुम सिद्ध बन जाओ. \v 10 इस कारण दूर होते हुए भी मैं तुम्हें यह सब लिख रहा हूं कि वहां उपस्थिति होने पर मुझे प्रभु द्वारा दिए गए अधिकार का प्रयोग कठोर भाव में न करना पढ़े. इस अधिकार का उद्देश्य है उन्‍नत करना, न कि नाश करना. \b \s1 आशीर्वचन \p \v 11 अंत में, प्रिय भाई बहनो, आनंदित रहो, अपना स्वभाव साफ़ रखो, एक दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो, एक मत रहो, शांति बनाए रखो और प्रेम और शांति के परमेश्वर तुम्हारे साथ होंगे. \b \p \v 12 पवित्र चुंबन से एक दूसरे को नमस्कार करो. \p \v 13 सभी पवित्र लोग जो यहां हैं, उनकी ओर से नमस्कार. \b \p \v 14 प्रभु येशु मसीह का अनुग्रह, और परमेश्वर का प्रेम, और पवित्र आत्मा की सहभागिता तुम सभी के साथ बनी रहे.